जानें क्या हैं Chocolate खाने के फायदे

आमतौर पर चॉकलेट को सेहत और दांतों के लिए खतरनाक ही माना जाता है. लेकिन ये पूरा सच नहीं है. चॉकलेट खाने के बहुत से ऐसे फायदे हैं जिनके बारे में हमें पता भी नहीं होता है.

डार्क चॉकलेट में कई ऐसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो सेहत के लिए अच्छे माने जाते हैं. कोको के बीजों से तैयार चॉकलेट, एंटी-ऑक्सीडेंट का सबसे बेहतरीन स्त्रोत है.

कई अध्ययनों में ये साबित हो चुका है कि डार्क चॉकलेट खाने से सेहत तो बेहतर होती है ही साथ ही दिल से जुड़ी बीमारियां भी दूर रहती हैं.

डार्क चॉकलेट खाने के फायदे:

1. सेहत और पौष्ट‍िक तत्वों से भरपूर है डार्क चॉकलेट

चॉकलेट में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं. लेकिन सबसे जरूरी है कि आप बेहतरीन क्वालिटी की डार्क चॉकलेट ही खरीदें. चॉकलेट में एक अच्छी मात्रा में फाइबर्स भी पाए जाते हैं और ये कई प्रकार के लवणों का भी अच्छा स्त्रोत है.

डार्क चॉकलेट में फैटी एसिड भी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं. तुरंत एनर्जी के लिए या फिर लो ब्लड प्रेशर होने पर डार्क चॉकलेट खाना फायदेमंद है. इसमें मौजूद फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम, कॉपर और मैगनीज तुरंत एनर्जी देने का काम करते हैं.

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2. एंटी-ऑक्सीडेंट का बेहतरीन स्त्रोत

कोकोआ और डार्क चॉकलेट में कई प्रकार के बेहतरीन क्वालिटी वाले एंटी -ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं. इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट किसी भी दूसरे खाद्य पदार्थ में पाए जाने वाले एंटी-ऑक्सीडेंट की तुलना में बेहतर और प्रभावी होते हैं.

3. ब्लड फ्लो और लोअर ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए

कोकोआ और डार्क चॉकलेट में कई तरह के बायो-एक्ट‍िव कंपाउंड्स पाए जाते हैं. जिससे धमनियों में ब्लड फ्लो बेहतर होता है और साथ ही लो-ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लम में भी फायदा होता है.

4. दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा कम करती है चॉकलेट

कई अध्ययनों में इस बात की पुष्ट‍ि की गई है कि डार्क चॉकलेट खाने से दिल से जुड़ी बीमारियों के होने का खतरा बहुत कम हो जाता है. चॉकलेट खाने वालों को इस तरह की प्रॉब्लम कम होती हैं.

5. ब्रेन फंक्शन को बेहतर बनाने के लिए

डार्क चॉकलेट ब्रेन के फंक्शन को भी दुरस्त रखने का काम करता है. एक अध्ययन के अनुसार, पांच दिन तक लगातार डार्क चॉकलेट खाने से ब्रेन फंक्शन मजबूत होता है. इसमें मौजूद कैफीन और थियोब्रोमीन ब्रेन फंक्शन को बूस्ट करने में मददगार हैं.

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डेंगू से बचाएंगी आपके किचन में मौजूद ये 7 चीजें

डेंगू और चिकनगुनिया इस समय सबसे तेजी से फैल रही बीमारी में से हैं. डेंगू के दौरान रोगी के जोड़ों में तेज दर्द के साथ ही सिर में भी दर्द होता है. यह बीमारी बड़ों के मुकाबले बच्चों में ज्यादा तेजी से फैलती है.डेंगू बुखार में प्लेटलेट्स का स्तर बहुत तेजी से नीचे गिरता है जिसके कारण शरीर में कमजोरी हो जाती है और जोड़ों में दर्द कई महीनों तक बना रहता है.

डेंगू बुखार के लिए एक और बुहत प्रभावशाली दवा है बकरी का दूध जो बहुत कम हो चुकी प्लेटलेट्स को भी तुरंत बढ़ाने की क्षमता रखता है. लेकिन अगर बकरी का दूध आसानी से न मिले तो आपके घर या बगीचे में मौजूद कुछ हर्ब्स के जरिए भी इस बीमारी से निजात पाई जा सकती है.

1. तुलसी के पत्ते

तुलसी के पत्तों को गरम पानी में उबालकर छानकर, रोगी को पीने को दें. तुलसी की यह चाय डेंगू रोगी को बहुत आराम पहुंचाती है. यह चाय दिनभर में तीन से चार बार पी जा सकती है. तुलसी के पत्तों को उबालकर शहद के साथ पिएं, इससे भी इम्‍यून सिस्‍टम बेहतर बनता है.

2. पपीते की पत्तियां

पपीते की पत्तियां, डेंगू के बुखार के लिए सबसे असरकारी दवा मानी जाती हैं. पपीते की पत्तियों में मौजूद पपेन एंजाइम शरीर की पाचन शक्ति को ठीक करता है. डेंगू के उपचार के लिए पपीते की पत्तियों का जूस निकाल कर रोगी को पिलाने से प्लेटलेट्स की मात्रा तेजी से बढ़ती है.

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3. नारियल पानी है असरदार

अगर आपको या फिर घर में किसी को भी डेंगू का बुखार है तो ऐसे में नारियल पानी पीना बहुत फायदेमंद रहता है. इसमें एलेक्‍ट्रोलाइट्स, मिनरल और अन्‍य जरुरी पोषक तत्‍व होते हैं जो शरीर को मजबूत बनाते हैं.

4. मेथी के पत्ते

डेंगू के बुखार में मेथी के पत्तों को पानी में उबालकर हर्बल चाय के रूप में इसका पयोग किया जा सकता है. मेथी से शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे डेंगू के वायरस भी खत्म हो जाते हैं.

5. एंटीबॉयोटिक है हल्दी

खाने में हल्दी का अधिकाधिक प्रयोग करें. इसे सुबह आधा चम्मच पानी के साथ या रात को दूध के साथ लिया जा सकता है. अगर बुखार से पीड़ित रोगी को जुकाम हो तो दूध का प्रयोग न करें.

6. गिलोय है असरदार दवा

गिलोय का आयुर्वेद में बहुत महत्व है. यह मेटाबॉलिक रेट बढ़ाने के साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत रखने और बॉडी को इंफेक्शन से बचाने में मदद करती है. इसके तनों को उबालकर हर्बल ड्रिंक की तरह सर्व किया जा सकता है. इसमें तुलसी के पत्ते भी डाले जा सकते हैं.

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7. काली मिर्च करे कमाल

तुलसी के पत्तों और दो ग्राम काली मिर्च को पानी में उबालकर पीना सेहत के लिए अच्छा रहता है. यह ड्रिंक आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है और एंटी-बैक्टीरियल के रूप में काम करती है.

Health से जुड़ी इन समस्याओं का इलाज बताएं?

सवाल-

मैं 32 साल की विवाहित स्त्री हूं. मुझे कुछ सालों से डायबिटीज है. दवा लेने से ब्लडशुगर कंट्रोल में रहता है. लेकिन मुझे बारबार वैजाइना में कैंडिडियासिस हो जाता है. दही जैसी सफेद पपड़ी जम जाती है. वैजाइना में खुजली होती है. इतना ही नहीं, सैक्स में भी परेशानी होती है. बताएं क्या करूं?

जवाब-

डायबिटीज में वैजाइना में कैंडिडा का इन्फैक्शन भी हो सकता है. पर इन्फैक्शन अगर बारबार हो तो समझ लें कि ब्लडशुगर कंट्रोल में नहीं है. अपने डायबिटोलौजिस्ट से मिलें. शुगर की जांच कराएं और फिर डाक्टर की सलाह से डायबिटीजरोधी दवा में परिवर्तन लाएं.

साथ ही कैंडिडियासिस से छुटकारा पाने के लिए किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिलें. उन की सलाह के अनुसार वैजाइनल कैंडिडारोधक क्रीम या पेसरी (जैसे माइकोस्टेटिन, निस्टेटिन) का प्रयोग करें. ध्यान रखें कि कोर्स पूरा होने तक दवा लें. दवा लेना बीच में न छोड़ें. और हां, यह इलाज आप के पति को भी लेना होगा वरना इन्फैक्शन दोबारा हो सकता है.

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सवाल-

मैं 24 साल की युवती हूं. इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर ऐप्लिकेशंस में मास्टर्स कर रही हूं. इधर कई दिनों से अपनी आंखों को ले कर परेशान हूं. आंखें ड्राई रहने लगी हैं. कभीकभी नजर धुंधली पड़ जाती है. मेरे एक सहपाठी का कहना है कि उसे भी यह समस्या हुई थी. जब वह आई स्पैशलिस्ट के पास गया तो उन्होंने ‘ड्राई आई सिंड्रोम’ डायग्नोज करते हुए उसे कुछ आई ड्रौप्स डालने के लिए कहा था, जिस से कुछ ही दिनों में आराम आ गया था. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब-

अच्छा होगा कि आप कम से कम 1 बार अपनी आंखें किसी आई स्पैशलिस्ट को दिखा लें. बहुत मुमकिन है कि आप के सहपाठी का अनुमान ठीक हो. ऐसे लोग जिन्हें रोजाना घंटों कंप्यूटर पर काम करना होता है, उन्हें ‘ड्राई आई सिंड्रोम’ होने का रिस्क बना रहता है.

सच यह है कि आंखों का नम रहना उन की तंदुरुस्ती के लिए जरूरी है. इसीलिए प्रकृति ने हमें अश्रुग्रंथियां दी हैं. जबजब हम पलकें झपकते हैं, इन ग्रंथियों से आंसू की बूंदें रिस कर आंखों की सतह को नम कर देती हैं. हमारे जानेअनजाने हमारी अश्रुग्रंथियों से आए आंसू हमारी आंखों पर बहुत महीन फिल्म बिछाए रखते हैं और इसी नमी से आंखें शुष्क होने से बची रहती हैं. लेकिन हम जैसेजैसे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं, वैसेवैसे आंखों के इस सुरक्षाकवच में सेंध लगती जा रही है. बड़े शहरों में प्रदूषण बढ़ने, कंप्यूटर पर घंटों काम करने, आसपास बीड़ीसिगरेट का धुआं छाए रहने, चौबीसों घंटे शुष्क एयरकंडिशंड हवा में रहने से आंखों पर बिछी रहने वाली नमी की हलकी परत सूख जाती है. महानगरों में इसी से ‘ड्राई आई सिंड्रोम’ के भुक्तभोगियों की संख्या बढ़ रही है.

कुछ छोटेछोटे उपायों से हम इस मुश्किल को नियंत्रण में ला सकते हैं, जैसे कंप्यूटर पर काम करते हुए पलकों को बारबार झपकाने की आदत बना लें. कंप्यूटर मौनिटर पर एकटक आंखें गड़ा कर न रखें. बीचबीच में आंखों को आराम दें. बाल धोने के बाद उन्हें अगर हेयरड्रायर से सुखाएं तो आंखों को ड्रायर की हवा से बचाएं. स्कूटर या मोटरसाइकिल पर बैठी हों तो गौगल्स लगा लें. अगर डाक्टर सलाह दें तो नियम से दिन में आर्टिफिशियल टियर ड्रौप्स और रात में सोने से पहले नेत्र ओएंटमैंट डाल कर आंखों की नमी बनाई रखी जा सकती है.

सवाल-

मेरी पीठ के बिलकुल निचले छोर से बारबार पस का रिसाव होता है. ऐसा लगता है जैसे कोई जख्म बन गया है. पट्टी कराकरा कर थक गया हूं, पर यह रिसाव बंद नहीं हो रहा. डाक्टर के अनुसार मुझे पाइलोनाइडल साइनस हो गया है. उन की राय है कि मुझे इस का औपरेशन कराना पड़ेगा. मैं ने सुना है कि औपरेशन के बाद यह साइनस दोबारा हो जाता है. समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? पाइलोनाइडल साइनस होता क्या है इस से कैसे छुटकारा पाऊं?

जवाब-

जैसे चूहा जमीन को खोद कर अंदर ही अंदर लंबी पतली सुरंग बना लेता है. वैसे ही रीढ़ के बिलकुल निचले हिस्से में कभीकभी बाल के पोर से शुरू हो कर पतली सुरंग जैसी बन जाती है, जिसे पाइलोनाइडल साइनस कहते हैं. यह आम विकार किसी भी उम्र में पनप सकता है. यह उठतेबैठते, चलतेफिरते, खड़े होते वक्त कूल्हों के बीच सक्शन पैदा होने से होता है. सक्शन के कारण बाल सतही खाल और उस के नीचे के ऊतकों को बेधते हुए नीचे तक महीन दरार पैदा कर देते हैं. इस क्षेत्र में चूंकि पसीना इकट्ठा होता रहता है, साफसफाई पर ध्यान नहीं रहता, इसी से दरार में संक्रमण पैदा हो जाता है और मवाद बनने लगता है. पाइलोनाइडल साइनस का इलाज औपरेशन ही है. यह सर्जरी आप किसी भी अनुभवी सर्जन से करा सकते हैं.

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सवाल-

मैं 23 साल की युवती हूं. मेरी समस्या विचित्र सी है. जैसे ही मैं घर से बाहर सूर्य की रोशनी में निकलती हूं चेहरे और बदन पर लाल रंग के चकत्ते उभर आते हैं और खुजली शुरू हो जाती है. कृपया बताएं कि मुझे यह परेशानी किस कारण से हो रही है. इस से छुटकारा पाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब-

सूर्य के प्रकाश में अल्ट्रावायलेट किरणें पाई जाती हैं. कुछ लोगों की त्वचा इन किरणों के प्रति जरूरत से ज्यादा संवेदनशील होती है. धूप में निकलते ही चेहरे और बदन पर लाल चकत्ते उभरना और खुजली होना इस बात का द्योतक है कि आप भी सोलर अर्टिकेरिया की ऐलर्जिक समस्या से प्रभावित हैं.

इस परेशानी से बचने के लिए धूप में कम से कम निकलें. अगर निकलना ही हो तो चेहरे जिस्म के अन्य अनढके अंगों पर सनस्क्रीन लोशन लगा लें. यह लोशन कम से कम 15 एस.पी.एफ. वाला हो. इस के अलावा समस्या से उबरने के लिए स्किन स्पैशलिस्ट की सलाह से ऐलर्जीरोधी दवा और स्टेराइड क्रीम लगाने से भी आराम मिलेगा.

– डा. यतीश अग्रवाल

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जानें क्या है ब्रैस्ट कैंसर और इसका इलाज

ब्रैस्ट कैंसर तब होता है जब  कोशिका बढ़ती है और दो संतति कोशिकाओं का निर्माण करने के लिए विभाजित होकर स्तन में शुरू होता है. भारत में महिलाओं के बीच यह  एक प्रमुख कैंसर है, यह सर्वाइकल कैंसर के बाद दूसरे स्थान पर आता  है, लेकिन आश्वस्त रूप से, यदि शुरू के ही  स्टेज  (स्टेज I-II) में पता चलता है तो यह सभी प्रकार के कैंसर में से सबसे अधिक इलाज योग्य भी है. मेनोपॉज़  के बाद की महिलाएं (55 वर्ष से अधिक आयु) अधिक कमजोर होती हैं. हालांकि, कम उम्र की महिलाओं में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है. हर 2 साल में प्रिवेंटिव जांच अनिवार्य है, खासकर अगर तत्काल परिवार की महिला रिश्तेदार (दादी, मां, चाची या बहन) को कभी  कैंसर हुआ हो.लाइफलाइन लेबोरेटरी की एमडी (पैथ) एचओडी हेमेटोलॉजी, साइटोपैथोलॉजी और क्लिनिकल (पैथ) डॉक्‍टर मीनू बेरी के मुताबिक हालांकि यह रेयर है किन्तु  पुरुषों को भी स्तन कैंसर हो सकता है – डक्टल कार्सिनोमा और लोब्युलर कार्सिनोमा सबसे संभावित प्रकार हैं. महिला पुरुष दोनों में लक्षण कमोबेश समान होते हैं.

लक्षण

लक्षण गुप्त या स्पष्ट दोनों ही हो सकते हैं, क्योंकि अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग प्रकार के लक्षण हो सकते हैं . वे कैंसर के विकसित होने के लंबे समय बाद प्रकट हो सकते हैं. हालांकि, ज्यादातर मामलों में निम्नलिखित लक्षण आम हैं:

  • स्तन, बगल और कॉलर बोन पर या उसके आस-पास किसी भी गांठ और सूजन या सूजी हुई लिम्फ नोड्स की बिना देर किए डॉक्टर की जांच की जानी चाहिए. जरूरी नहीं कि हर गांठ एक कैंसर हो – लेकिन यह एक सिस्ट, फोड़ा या फाइब्रो-एडेनोमा (वसा जमा की एक चिकनी, रबड़ जैसी और सौम्य गांठ जो छूने पर चलती है) हो सकती है.
  • ‘संतरे के छिलके’ के जैसा कुछ दिखना या स्तन का धुंधला दिखना.
  • स्तन की त्वचा का मोटा होना, फड़कना, स्केलिंग, मलिनकिरण या चोट लगना.
  • दाने या जलन.
  • निप्पल से पानी या खूनी निर्वहन.
  • स्तन के आकार में परिवर्तन.
  • निप्पल को खींचा हुआ, खींचा हुआ या उल्टा निप्पल.
  • स्तन क्षेत्र में या उसके आसपास दर्द और कोमलता.
  • बाएं स्तन में गांठें अधिक सामान्य रूप से विकसित होती हैं.

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 रिस्क फैक्टर :

  • कैंसर का पारिवारिक इतिहास, और यदि किसी प्रथम श्रेणी की महिला रिश्तेदार (दादी, मां, चाची, या बहन) को ब्रैस्ट कैंसर हो गया हो.
  • मेनोपॉज़ के बाद 55 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को उच्च जोखिम होता है.
  • प्रारंभिक शुरुआत मेनार्चे (11-12 साल से पहले मेंस्ट्रुएशन की शुरुआत) देर से शुरू होने वाली मीनोपॉज (55 साल के बाद मासिक धर्म की समाप्ति).
  • स्तनपान का कोई पिछला इतिहास नहीं है.
  • धूम्रपान और शराब का सेवन.
  • अधिक वजन या मोटापा भी जोखिम को बढ़ा सकता है.

मेटास्टेटिक ब्रैस्ट कैंसर के लक्षण (कैंसर जो शरीर के अन्य भागों में फैल गया है), जिसके बारे में किसी को पता नहीं हो सकता है, इसमें सामान्य कमजोरी, सिरदर्द और बिना किसी प्रशंसनीय कारण के मतली, सांस लेने में परेशानी, पीलिया, त्वचा का पीलापन, सूजन शामिल हो सकते हैं. पेट, वजन घटाने, आदि

प्रिवेंटिव केयर

याद रखने वाला सबसे महत्वपूर्ण  फैक्ट यह है कि उपरोक्त लक्षणों और जोखिम कारकों में से एक या अधिक की उपस्थिति में प्रिवेंटिव जांच का अत्यधिक महत्व है. पारिवारिक इतिहास जैसे कुछ अपरिवर्तनीय जोखिम कारक हैं, लेकिन कुछ जोखिम कारकों को स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से नियंत्रित किया जा सकता है.

– साबुत अनाज (मल्टीग्रेन आटा और ब्रेड, दलिया, जई, मूसली जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट के लिए जाएं), पालक, सरसों के पत्ते, मेथी के पत्ते, सलाद पत्ता, गोभी, ब्रोकोली, केल, और हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे संतुलित आहार लें. फल जैसे केला, सेब, नाशपाती, पपीता, स्ट्रॉबेरी आदि. बादाम, अंजीर और अखरोट जैसे नट्स को आहार में शामिल करें.

– भरपूर शारीरिक गतिविधि आपको फिट रखेगी और मांसपेशियों और हड्डियों को ढीला होने से बचाएगी. फिट और एक्टिव रहने के लिए रोजाना 45 मिनट की ब्रिस्क वॉक करें और लाइट वेट ट्रेनिंग लें.

– धूम्रपान छोड़ें और अत्यधिक शराब के सेवन से बचें.

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नाखून की साफ़-सफाई: कोविड के दौरान और बाद में नाख़ून की स्वच्छता का महत्व

केएआई इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री राजेश यू पांड्या द्वारा इनपुट

भले पूरी दुनिया कोरोनोवायरस महामारी के दंश से उबर रही है, लेकिन हमें फिर भी अपने सुरक्षा को कम नहीं करना चाहिए. घातक कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए अपने हाथों की स्वच्छता के प्रति सतर्क रहना चाहिए. लेकिन क्या हम अपने नाखूनों की स्वच्छता पर पर्याप्त ध्यान दे रहे हैं?  हमारे नाखून हमारे पूरे शरीर के अच्छे स्वास्थ्य का संकेत होते हैं. कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित होने की संभावना गंदे नाखूनों से होती है. अपने नाखूनों की सफाई के प्रति साफ़-सफाई न होने से नाखूनों के नीचे  हानिकारक जीवाणुओं के पैदा होने का स्थान  बन जाता है. ये कीटाणु हमारे हाथों के जरिये मुंह से होते हुए हमारे शरीर के अंदर जाते हैं. चूँकि भारत में नंगे हाथ से खाना खाने की प्रथा है इसलिए नाखून की साफ़-सफाई रखना काफी महत्वपूर्ण है और इसके बिना हाथ की स्वच्छता अधूरी है.

बेहतर नाखून की साफ़-सफाई की आदत का पालन करने से  हमारे नाखून के स्वास्थ्य की उम्र  काफी लम्बी होती है. साफ़ सफाई की इन आदतों में यह शामिल होता है कि खाने के कण, गंदगी, धूल हमारे नाखूनों से चिपके न हो और नाखून के नीचे बैक्टीरिया का निर्माण न हो. शुक्र है नाखून की बेहतर स्वच्छता तथा सफाई बनाए रखना इतना मुश्किल नहीं है. थोड़ी सी लगन, जागरूकता और ध्यान हमारे नाखूनों को स्वस्थ रखने के लिए काफी है.

नाखून की साफ़-सफाई को नज़रअंदाज करने से वायरल इन्फेक्शन से ग्रसित होने की संभावना ज्यादा

नाखूनों की साफ-सफाई के प्रति लगातार लापरवाही बरतने से बैक्टीरिया और वायरल इंफेक्शन जैसी कई गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं. अक्सर इनकी वजह से गंभीर स्वास्थ्य समस्याए हमें घेर लेती हैं. जब तक हम नियमित रूप से हाथ धोने के अलावा अपने नाखूनों के नीचे के हिस्से को साफ नहीं करेंगे, तब तक हमारे हाथ की साफ़-सफाई पूरी नहीं मानी जायेगी. अधिकांश लोग दूसरों के साथ नेल क्लिपर शेयर करने से गुरेज नहीं करते हैं. हालांकि यह एक बेहद गन्दी आदत (अनहेल्दी प्रैक्टिस) है. जब हम अपने पर्सनल हाइजीन प्रोडक्ट्स (व्यक्तिगत स्वच्छता उत्पादों) को किसी से शेयर नहीं करते हैं तो हम अपने नेलकटर को क्यों शेयर करते हैं? इसलिए नेल क्लिपर को भी शेयर न करें, नाखून में प्रचुर मात्रा में कीटाणुओं, जीवाणुओं और वायरसों का जमाव हो सकता है जोकि नेलकटर शेयर करने की वजह से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जा सकते हैं.

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नेलकटर को सूखा और साफ़ रखें

ऐसा करने से हमारे नाखूनों के नीचे बैक्टीरिया और फंगल इंफेक्शन को बढ़ने से रोका जा सकता है. यह देखा गया है कि लंबे समय तक पानी के संपर्क में रहने से नाखून टूट सकते हैं. बर्तन धोते समय, सफाई करते समय या कठोर केमिकल का उपयोग करते समय हमेशा कॉटन-लाइनेड रबर दस्ताने पहनने की सलाह दी जाती है. बेहतर नाखून की साफ-सफाई की आदत का पालन करने के लिए हमें अपने नाखून देखभाल प्रोडक्ट के बारे में सावधान तथा सतर्क रहना चाहिए. ग्रिम रिमूवर के साथ एक तेज स्टेनलेस-स्टील नेल क्लिपर का उपयोग करें, जो नाखूनों के नीचे छिपे कीटाणुओं और जमी हुई मैल को हटा सके. नाखूनों को सीधा काटें, फिर इन्हें एक कोमल कर्व में गोल करें. नाखून काटने के बाद हमेशा हाथों और नाखूनों के नीचे साबुन और पानी से धोएं.

क्यूटिकल्स को बढ़ने से बचाने के लिए हाथों और नाखूनों को नम बनाये रखें. नेल पेंट रिमूवर, हैंड सैनिटाइज़र और हार्श साबुन का बार-बार इस्तेमाल करने से नाखूनों के साथ-साथ क्यूटिकल्स के सूखने का कारण बन सकते हैं. नाखून कम से कम रखें, उन्हें नियमित रूप से ट्रिम करें और कम से कम 20 सेकंड के लिए हाथ धोएं और फिर इसे मॉइस्चराइज़ करें, इससे  बीमारियों की संभावना को कम तथा किसी भी तरह के वायरस से बचा सकता है. केएआई इंडिया नेल क्लिपर में 100% स्टेनलेस स्टील, नेल फाइलर, ग्रिम रिमूवर, नेल ट्रे और नॉन-क्रोमियम कोटिंग जैसी अनूठी विशेषताएं होती हैं, जो उन्हें उचित नाखून स्वच्छता बनाए रखने के लिए सुरक्षित और सबसे प्रभावी बनाती हैं.

यहां कुछ और तरीके दिए गए हैं जिनके माध्यम से हम अपने नाखूनों की स्वच्छता बरकरार रख सकते हैं, और नाखूनों को डैमेज होने से बचा सकते हैं.

नाखून चबाने से बचें:

इससे नाखून के मामूली कट के रूप में नुकसान होने की क्षमता होती है, जिससे इन्फेक्शन हो सकता है . इसके अलावा जब हम अपने नाखून मुंह से काटते हैं, तो कीटाणु सीधे हमारे मुंह में शरीर में अंदर चले जाते हैं.

हैंगनेल के प्रति सतर्क रहें:

अपने लटकते हुए नाखूनों को कभी भी न हटाएं. बल्कि उनके प्रति सावधानी बरतें और उन्हें अच्छे से काटें . उन प्रोडक्ट का उपयोग करना बंद कर दें जो नाखूनों पर नकारात्मक असर डालते हैं. हमेशा एसीटोन मुक्त प्रोडक्ट ही खरीदें.

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नियमित रूप से नेल चेकअप करवाएं:

अगर आपको लगातार नाखून की समस्या है, तो जांच कराने के लिए डॉक्टर या त्वचा विशेषज्ञ से सलाह लें.

नेल क्लिपर शेयर न करें:

कोशिश करें कि अपने नेल क्लिपर को शेयर न करें, क्योंकि उनमें कीटाणु होते हैं. नेल क्लिपर को गुनगुने पानी से धोएं और इसके बाद पानी और एक मुलायम कपड़े से पोछें.

Healthcare Tips: कोविड के इस मुश्किल समय में ख़ुद को कैसे सुरक्षित रखें?

त्योहारों का मौसम आ गया है और लोग छुट्टियों के मूड में आ चुके हैं. दीपावली की तैयारियां जोरों पर हैं, ऐसे में इस बात की जानकारी होना जरूरी है कि इस त्योहार को सुरक्षित, स्वस्थ और जिम्मेदार तरीके से कैसे मनाया जाए.

पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के पल्मोनोलॉजी प्रमुख तथा सीनियर कंसल्टेंट डॉ अरुणेश कुमार ने इस पर अपनी राय देते हुए कहा, “चूंकि दिवाली सभी कम्यूनिटी को एक साथ लाती है, लेकिन महामारी की तीसरी लहर की शुरुआत अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है.  इसलिए स्वास्थ्य या सुरक्षा से समझौता किए बिना रोशनी का त्योहार मनाने के लिए उचित सावधानी और सावधानी बरतना ज़रूरी है.  दिवाली के दौरान किसी भी प्रकार की दुर्घटना या स्वास्थ्य पर नुक़सान से बचने के लिए कुछ सामान्य एहतियाती उपाय करना भी ज़रूरी है. ”

मैग्नेटो क्लीनटेक के सीईओ श्री हिमांशु अग्रवाल ने कहा, “दिवाली नजदीक आने से हमें प्रदूषण के स्तर में बढ़ोत्तरी होने से सावधान रहना चाहिए, यह प्रदूषण घर के अंदर और बाहर दोनों जगह मौजूद है और इसलिए खुद को उसी के अनुसार तैयार करें.  वैसे देखा गया है कि मुख्य रूप से बाहरी स्थानों में प्रदूषण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, हमें यह याद रखने की जरूरत है कि हमारे घरों के अंदर प्रदूषण का स्तर 5 गुना ज्यादा हो सकता है और यह हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम, हार्ट और इम्यूनिटी सिस्टम के लिए खतरनाक है.  वर्तमान समय में वायु प्रदूषण और भी खतरनाक है क्योंकि इससे कोरोनावायरस फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.  दिवाली पर पटाखों से दूरी बनाए रखना नामुमकिन है, इसलिए  प्रदूषण रहित दिवाली उत्सव की वस्तुओं जैसे हरे और पर्यावरण के अनुकूल पटाखे और दीयों का विकल्प चुनना चाहिए.  चूंकि हम भी कुछ पटाखे घर के अंदर ही फोड़ते हैं, इसलिए हमें ऐसा करने से बचना चाहिए.  अपने घरों के अंदर धार्मिक गतिविधियों के लिए इको फ्रेंडली अगरबत्ती जलानी चाहिए.  जितना संभव हो सके घर में वेंटिलेशन में सुधार करना चाहिए.  हालांकि सबसे अच्छा विकल्प यह है कि अपने घरों में एक हाई क्वालिटी  वाला एयर प्यूरीफायर  उपकरण स्थापित किया जाए, जो न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दिवाली से संबंधित प्रदूषकों का खात्मा कर सकें, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर सके कि हम दिवाली के बाद अपने घरों में भी स्वस्थ शुद्ध हवा में सांस लेते रहें. ”

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हेल्थकेयर विशेषज्ञों दुवारा पूरे उत्साह के साथ दिवाली का आनंद लेने के लिए 8 महत्वपूर्ण टिप्स दिए गए हैं.

फिजिकल डिस्टेंसिग बनाए रखें

दिवाली का त्योहार न केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है बल्कि यह लोगों के रिश्तों को मजबूत करने के लिए उन्हे एक साथ लाता है.  हालाँकि इस दिवाली, चाहे कोई भी मज़ा और उत्साह हो, फिजिकल डिस्टेंसिग बनाए रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि कोरोनावायरस की तीसरी लहर के खतरे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.  फिजिकल डिस्टेंसिगदूरी कोविड-19 के फैलाव को कम करने में मदद करती है.  इसका मतलब है कि एक दूसरे से कम से कम 1 मीटर की दूरी बनाए रखना और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर समय बिताने से बचना चाहिए.

मोमबत्ती या दीया जलाने से पहले सैनिटाइजर के इस्तेमाल से बचें

मोमबत्ती या दीया जलाने के दौरान विशेष रूप से अल्कोहल वाला सैनिटाइज़र का उपयोग नहीं करना चाहिए.  सैनिटाइज़र बहुत ज्वलनशील होता हैं और तुरंत आग पकड़ सकते हैं जिससे गंभीर आग का खतरा हो सकता है.  मोमबत्ती या दीया जलाने से पहले हमेशा हाथों को अच्छी तरह से धोना चाहिए.

मास्क लगाए रखें

कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए एहतियाती उपाय बरतने के अलावा दिवाली के दौरान मास्क का उपयोग करना बहुत जरूरी है.  पटाखों के जलने से निकलने वाला धुंआ सांस की समस्या से जूझ रहे मरीजों को गंभीर समस्या पैदा कर सकता है और घरघराहट, खांसी या आंखों में जलन जैसे सांस संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है.

कपड़े ढंग से पहनें

दिवाली के दौरान लोग भव्य रूप से तैयार होते है, लेकिन सुरक्षित रूप से तैयार होना हमेशा महत्वपूर्ण होता है.  शिफॉन, जॉर्जेट, साटन और रेशमी कपड़े ऐसे ट्रेंडिंग कपड़े हैं जो त्योहारों के दौरान पहनना हर किसी को पसंद होता है, लेकिन ऐसे रेशों में आग लगने की आशंका ज्यादा होती है.  इसके बजाय सूती रेशम, सूती या जूट के कपड़ों को पहनना ज्यादा बेहतर होता है.  दिवाली समारोह के दौरान ढीले-ढाले कपड़ों से भी बचना चाहिए.

पोषणयुक्त और स्वस्थ भोजन खाएं

दिवाली में अक्सर मिठाई, स्नैक्स और अन्य आकर्षक चीज़ें बहुत खाई जाती  है.  इन चीज़ों को बहुत ज्यादा खाने से पेट खराब हो सकता है, गैस बन सकती है और हार्ट बर्न हो सकता है.  इसलिए पेट पर अनावश्यक दबाव डाले बिना दिन भर में थोड़ा थोड़ा भोजन करना  अच्छा होता है.  स्वस्थ, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ, फल और मेवे खाएं.  खुद को हाइड्रेट और ऊर्जावान बनाए रखने के लिए खूब पानी पिएं.  साथ ही नाश्ता और दोपहर का भोजन मिस न करें और हर तरह  की शारीरिक गतिविधि में भाग लें.

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पटाखे न जलाएं

भारत में दुनिया का सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है और दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 शहर भारत के हैं.  दिवाली के दौरान किसी भी प्रकार के पटाखे या कचरा जलाने से स्थिति और ख़तरनाक हो जायेगी.  पटाखे फोड़ने से निकलने वाले कार्बन के कण पहले से मौजूद एलर्जी को बढ़ा सकते हैं.  इसके अलावा वाष्प के कण लंबे समय तक नथुने से चिपके रह सकते हैं जो एलर्जिक राइनाइटिस की संभावना को बढ़ा सकते हैं और यहां तक ​​कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के अटैक को भी बढ़ा सकते हैं.  साथ ही जश्न के नाम पर पटाखे फोड़ने से कोविड संक्रमित मरीजों की हालत और खराब हो सकती है.  प्रदूषण रेस्पिरेटरी सिस्टम को प्रभावित करता है और  कोरोनावायरस से भी सांस लेने में समस्या होती है.  कहा जाता है कि फेफड़ों के संक्रमण वाले लोगों में कोविड -19 के लिए प्री मोर्बिड कंडीशन होती है और उनके वायरस से संक्रमित होने की संभावना होती है.  इसलिए, इस कोविड में धुआं पैदा करने वाले पटाखों का फोड़ना विनाशकारी हो सकता है.

अपनी दवाओं को नियमित रूप से खाएं

दिवाली का त्यौहार अधिकांश परिवारों के लिए एक व्यस्त समय हो सकता है, यह महत्वपूर्ण है कि रोजमर्रा के कामों को न भूलें और समय पर दवाएं लेना याद रखें.  दवा खाने के लिए लोग अपने मोबाइल फोन पर रिमाइंडर भी सेट कर सकते हैं या रिमाइंडर नोट लिख सकते हैं और इसे बाथरूम के पीछे, सामने के दरवाजे या किसी अन्य जगह पर चिपका सकते हैं जहां यह ठीक से दिखाई दे.  अगर कोई व्यक्ति दवा लेना भूल जाता है, तो बेहतर होगा कि यथाशीघ्र दवा को खाएं  और तुरन्त अपने डॉक्टर से सलाह लें.

कोविड वैक्सीन लगवाएं

आपको चाहे कोविड हुआ हो या नहीं, आपको कोविड की वैक्सीन लगवानी बहुत ज़रूरी है.  इस बात के सबूत मिले हैं कि लोगों को पूरी तरह से टीका लगवाने से कोविड से बेहतर सुरक्षा मिलती है.  कोविड-19 की वैक्सीन किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से बीमार होने से बचाने में भी मदद करती हैं.  वैक्सीन  लगवाने से अन्य लोगों को भी सुरक्षा  हो सकती है.

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अर्टिकैरिया से छुटकारा पाना है आसान

पित्ती को चिकित्सकीय भाषा में अर्टिकैरिया कहा जाता है. अर्टिकैरिया 20% लोगों को उन के जीवन के किसी न किसी स्तर पर जरूर प्रभावित करता है. यह कई पदार्थों या स्थितियों के कारण होता है. यह त्वचा की एक प्रतिक्रिया है, जिस से चकत्ते पड़ जाते हैं और उन में खुजली होती है. यह खुजली मामूली से ले कर गंभीर स्थिति तक हो सकती है. तेज खुजलाने, शराब का सेवन करने, ऐक्सरसाइज करने और भावनात्मक तनाव से खुजली की समस्या और गंभीर हो सकती है.

अर्टिकैरिया के प्रकार

अर्टिकैरिया निम्न प्रकार के होते हैं:

ऐक्यूट अर्टिकैरिया : ऐक्यूट अर्टिकैरिया में सूजन 6 सप्ताह से कम समय तक रहती है. भोजन, दवा, संक्रमण इस के होने के सब से सामान्य कारण हैं. कीड़े के काटने और किसी आंतरिक रोग के कारण भी यह समस्या हो सकती है.

क्रौनिक अर्टिकैरिया : क्रोनिक अर्टिकैरिया में सूजन 6 सप्ताह से अधिक समय तक रहती है. इस के कारणों को पहचानना कठिन है. इस के कारण ऐक्यूट अर्टिकैरिया के समान हो सकते हैं, लेकिन इस में औटोइम्युनिटी, गंभीर संक्रमण और हारमोन असंतुलन भी सम्मिलित हो सकते हैं.

फिजिकल अर्टिकैरिया : फिजिकल अर्टिकैरिया सर्दी, गरमी, पसीने आदि के कारण हो सकता है. यह केवल उन्हीं स्थानों पर होता है जहां त्वचा इन ट्रिगरों के सीधे संपर्क में आती है.

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लक्षण –

अर्टिकैरिया के कारण निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं :

– लाल, अत्यधिक खुजली वाले अंडाकार या कीड़े के आकार के  चकत्ते. चकत्तों का आकार कुछ मिलीमीटर से कई इंच तक हो सकता है.

– जब लाल चकत्ते को बीच से दबाया जाता है तो यह सफेद या पीला पड़ जाता है.

– अर्टिकैरिया के चकत्ते शरीर के किसी भी भाग पर दिखाई दे सकते हैं. ये अपना आकार बदल सकते हैं, दूसरे स्थान पर फैल सकते हैं, गायब हो सकते हैं और पुन: प्रकट हो सकते हैं. अधिकतर अर्टिकैरिया के लक्षण 24 घंटों में चले जाते हैं, लेकिन क्रौनिक अर्टिकैरिया के लक्षण कई महीनों या वर्षों तक रह सकते हैं.

ट्रिगर/कारण

अनुसंधानों में अर्टिकैरिया के  कई कारणों की पहचान की गई है, लेकिन सभी कारकों के बारे में पता नहीं है. अर्टिकैरिया के सामान्य कारक निम्न हैं :

भोजन : कई लोगों में कुछ भोज्यपदार्थ अर्टिकैरिया के  लिए ट्रिगर का कार्य करते हैं जैसे मछली, मूंगफली, अंडा, दूध आदि.

दवा : कई दवाओं से भी यह समस्या हो सकती है. ऐस्प्रिन, पेनिसिलीन और ब्लड प्रैशर की दवा से यह समस्या अधिक होती है.

सामान्य ऐलर्जन: पराग कण, पशुओं की मृत त्वचा और कीड़ों के डंक जैसे सामान्य ऐलर्जन से भी यह समस्या हो सकती है.

पर्यावरणीय कारक: इन में गरमी, सर्दी, सूर्य का प्रकाश, पानी सम्मिलित हैं. इस के अलावा ऐक्सरसाइज और भावनात्मक तनाव के कारण भी त्वचा पर पड़ने वाले दबाव से अर्टिकैरिया की समस्या हो सकती है.

चिकित्सकीय अवस्था: कभीकभी अर्टिकैरिया की समस्या ब्लड ट्रांसफ्यूजन, इम्यून तंत्र से संबंधित गड़बडि़यों, थायराइड, हारमोन की गड़बड़ी, कैंसर के  कुछ प्रकार जैसे लिंफोमा या बैक्टीरिया का संक्रमण जैसे हैपेटाइटिस, एचआईवी आदि के कारण भी हो सकती है.

आनुवंशिकता: आनुवंशिक अर्टिकैरिया के मामले कम देखे जाते हैं. यह कुछ निश्चित ब्लड प्रोटीन्स के कम स्तर या असामान्य कार्यप्रणाली से संबंधित हैं, जो इसे नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि आप का रोगप्रतिरोधक तंत्र किस प्रकार कार्य करेगा.

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डाक्टर से संपर्क

अगर अर्टिकैरिया की समस्या निम्नलिखित लक्षणों के साथ आए तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें :

– शरीर के कई भागों पर बड़ी संख्या में त्वचा पर चकत्ते पड़ना.

– चक्कर आना.

– सनसनाहट महसूस होना.

– सांस लेने में कष्ट होना.

– छाती में जकड़न महसूस होना.

– ऐसा महसूस होना जैसे जीभ या गले में सूजन आ गई हो.

अर्टिकैरिया का उपचार घर पर ही कुछ सामान्य सावधानियां रख कर किया जा सकता है. लेकिन अगर 5 दिन में लक्षण दूर न हो कर गंभीर हो जाए तो डाक्टर से संपर्क करें.

(डा. रोहित बत्रा, डर्मैटोलौजिस्ट ऐंड विटिलिगो ऐक्सपर्ट, सर गंगाराम हौस्पिटल, नई दिल्ली)

आयरन की कमी को न करें नजरअंदाज

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कामकाजी महिलाएं हों या गृहिणियां हमेशा अपने स्वास्थ्य को इग्नोर करती हैं. वे दिन भर इतनी व्यस्त रहती है कि उन्हें खुद पर ध्यान देने का मौका ही नहीं मिलता.

कई बार उन्हें थकान महसूस होती है, मगर ज्यादा काम का बहाना बना कर वे उसे नजरअंदाज कर देती हैं. जबकि अकसर थकान का आभास होना शरीर में आयरन की कमी होने का संकेत होता है. यदि ज्यादा समय तक इस स्थिति को नजरअंदाज किया जाए तो धीरेधीरे शरीर में खून की कमी होने लगती है और महिलाएं ऐनीमिया से ग्रस्त हो जाती हैं. उन के हीमोग्लोबिन का स्तर नीचे चला जाता है. ऐसे में छोटी से छोटी बीमारी से भी उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है.

आयरन की कमी पड़ सकती है भारी

दरअसल ऐनीमिया एक बड़ी समस्या है. इस से भारत ही नहीं, पूरा विश्व जूझ रहा है. आंकड़ों के अनुसार भारत में हर 3 महिलाओं में 1 महिला ऐनीमिक है. यह कमी 15 से 49 साल की महिलाओं में अधिक है. खून की कमी के दौरान अगर कोई महिला मां बनती है तो उस का बच्चा भी ऐनीमिक हो जाता है.

इस से यह पता चलता है कि हमारे देश में आयरन और फौलिक ऐसिड सप्लिमैंट की कितनी आवश्यकता है. व्यस्त महिलाएं न तो समय पर भोजन करती हैं और न ही सही डाइट लेती हैं. उन्हें लगता है कि समय के साथसाथ जब उन्हें आराम मिलेगा वे स्वस्थ हो जाएंगी. पर क्या वह ऐसा कर पाती हैं? नहीं, उन का आत्मविश्वास जवाब देने लगता है. कई बार तो वे थकान भरे चेहरे को छिपाने के लिए मेकअप का भी सहारा लेती हैं.

अगर कोई उन के थकान भरे चेहरे का जिक्र करता भी है तो वे कुछ कह कर टाल देती है, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता है कि आखिर उन में कमी क्या है और वे अपने स्वस्थ्य को इग्नोर करती जाती हैं.

वैज्ञानिक मानते हैं कि महिलाओं में थकान पुरुषों की अपेक्षा 3 गुना अधिक होती है और उन की यह थकान उन के लिए एक अलार्म है कि उन के शरीर में आयरन की कमी हो रही है.

इस बारे में मुंबई की क्रेनियो थेरैपिस्ट डा. मीता बाली बताती हैं कि अधिकतर महिलाएं बच्चे होने के बाद अपनी जिम्मेदारी केवल बच्चों की परवरिश और पति की देखभाल को ही समझती हैं. जब वे गर्भवती होती हैं तब डाक्टर के अनुसार दवा लेती हैं, लेकिन ज्यों ही बच्चा जन्म लेता है, वे अपना ध्यान बच्चे पर कंद्रित कर देती हैं और अपने की अनदेखी करती हैं.

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उन्हें अपना खयाल तब आता है जब वे थकान महसूस करती हैं. कुछ महिलाएं तो मानसिक रूप से इतनी डिप्रैस्ड होती हैं कि वे अपनी थकान के लिए अपने पति और परिवार वालों को दोषी मानती हैं और उन्हें अपनी परेशानियां नहीं बताती.

मीता बताती हैं कि महिलाएं परिवार की केंद्र बिंदु हैं, उन्हें अपनी समस्या पति और परिवार वालों से कह देनी चाहिए ताकि वे भी उन के काम में हाथ बंटाएं, क्योंकि उन के बीमार होने पर पूरा परिवार परेशान होता है. अगर महिलाएं अपनेआप को थोड़ा समय दें. साल में 1 बार अपनी जांच करवाएं तो अपने अंदर  विटामिन और मिनरल की कमी को जान कर वे आसानी से सप्लिमैंट ले सकती हैं. अगर वे ऐसा कम उम्र से शुरू कर देती हैं तो 50 के बाद भी वे मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ महसूस कर सकती हैं.

आयरन की कमी के मुख्य लक्षण

महिलाओं में आयरन की कमी के कई कारण होते हैं जिन से उन्हें थकान महसूस होती है. वैसे थकान सामान्य समस्या है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं इस के प्रारंभिक लक्षण निम्न हैं :

– किसी काम में मन न लगना.

– दिन के अंत में उदासी छा जाना या थक जाना.

– बारबार लेटने की इच्छा होना.

– खाना खाने की इच्छा न होना.

– अधिक थकान होने पर जी मचलना.

– त्वचा का बेजान होना, चेहरे पर पीलापन आना, जिसे महिलाएं काम के बोझ की वजह से स्पा न जा सकने की वजह समझती हैं.

– बिना वजह चिडचिडापन होना.

– पीरियड्स में रक्तस्राव का बढ़ जाना.

– नाखूनों का टूटना.

– बालों का झड़ना.

थकान की कई वजहें हो सकती हैं जिन्हें समय रहते डाक्टर के पास जा कर जांच करवा  लेना आवश्यक है, कुछ वजहें निम्न हैं:

– अधिक थकान से सिरदर्द और कमजोरी के चलते चेहरे की ताजगी का लुप्त हो जाना.

– थकान की वजह कई बार शारीरिक न हो कर मानसिक भी होती है, इसलिए जीवनशैली पर ध्यान देने की जरुरत होती है.

ऐसे करें आयरन की कमी पूरी

अपने खानपान में आयरन युक्त आहार लेने के साथसाथ महिलाएं बाजार में उपलब्ध आयरन सप्लिमैंट्स का भी प्रयोग कर सकती हैं. इस के अलावा निम्न बातों का भी ध्यान रखें:

– पुरुषों से अधिक महिलाओं में आयरन की कमी देखी जाती है. शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी से ऐनीमिया होता है. लाल रक्त कोशिकाएं मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करती हैं. इस में आयरन युक्त भोजन लेने की जरूरत होती है. भोजन में खासकर हरी पत्तेदार सब्जियां, चुकंदर, कद्दू, शकरकंदी, नारियल, सोयाबीन आदि जरूर शामिल हों. अगर यह संभव नहीं हैं, तो सप्लिमैंट की जरूरत पड़ती है.

– फौलिक ऐसिड की कमी से भी महिलाएं थकान महसूस करती हैं. फौलिक ऐसिड नई कोशिकाओं को विकसित करता है. यह हर महिला के लिए जरूरी होता है. खासकर गर्भावस्था में आयरन और फौलिक ऐसिड बच्चे के विकास में काफी सहायक होता है. इस से शिशु का मस्तिष्क और स्पाइनल कौड का विकास अच्छा होता है, फौलिक ऐसिड हर महिला के भोजन में होनी चाहिए, हर उम्र में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और ऐनीमिया से बचाव के लिए यह जरूरी होता है.

– फौलिक ऐसिड महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर और कोलोन कैंसर की आशंका को कम करता है.

– आयरन और फौलिक ऐसिड प्राकृतिक रूप से पाने के लिए सही मात्रा में हरी पत्तेदार सब्जियां, साबूत दालें और फल खाने की जरूरत होती है.

– आयरन और फौलिक ऐसिड की कमी से शरीर का मैटाबोलिज्म सही तरीके से काम नहीं करता, जिस के कारण पर्याप्त मात्रा में भोजन न मिलने की वजह से शरीर की ऊर्जा तेजी से खत्म हो जाती है और महिलाएं थकान महसूस करती हैं. लेकिन महिलाएं यह नहीं समझतीं. उन्हें लगता है कि बच्चे के पीछे भागतेभागते उन की यह हालत हो रही है. जब तक वे यह बात समझती हैं तब तक बहुत देर हो गई होती है.

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– कई कंपनियों में रात की शिफ्ट में भी महिलाएं काम करती हैं और सुबह घर की देखभाल. ऐसे में उन्हें सही समय पर पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता और वे थकान महसूस करती हैं.

– पीरियड्स के दौरान रक्तस्राव की वजह से आयरन की कमी महिलाओं में अधिक होती है. यह एक बड़ी वजह है, पर वे इस पर ध्यान नहीं देतीं, जबकि उन्हें आयरन सप्लिमैंट लेने की जरूरत होती है.

थकान को केवल उम्रदराज महिलाएं ही नहीं, बल्कि 20 से 30 साल की उम्र वाली भी फेस करती हैं. थोड़ा सा काम करने पर थक जाती हैं, व्यायाम नहीं कर सकतीं, कहीं आनेजाने से बचती हैं.

ये सारी वजहें उन की जीवनशैली और खानपान पर आधारित होती हैं, जिन्हें ठीक करना आवश्यक होता है. शाकाहारी महिलाओं में यह कमी अधिक होती है. इस से बचने और शरीर में आयरन की सही मात्रा बनाए रखने के लिए डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लिमैंट लेने से महिलाएं रोजरोज की थकान से मुक्ति पा सकती हैं.

सांस औऱ दिल से जुड़ी प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल-

मैं बैंगलुरु की एक एमएनसी में कार्यरत 42 वर्षीय पुरुष हूं. पिछले कुछ समय से मुझे अनियमित रूप से दिल धड़कने का एहसास हो रहा है. मुझे कई बार सांस लेने में तकलीफ तथा चक्कर आने का भी अनुभव होता है. क्या ये सब हार्ट अटैक के लक्षण हैं?

जवाब

दिल के अनियमित रूप से धड़कने या दिल की हर बीमारी का ताल्लुक हार्ट अटैक से नहीं होता. सांस लेने में तकलीफ या चक्कर आने जैसे लक्षण, खासकर अनियमित रूप से दिल का धड़कना एस्थिमिया के संकेत हैं. एस्थिमिया के मरीजों में दिल धड़कने की दर असामान्य रूप से अनियमित हो जाती है.

सवाल

मेरे 65 वर्षीय पिता का इंजैक्शन फ्रैक्शन गिर कर 40% हो गया है. क्या इस उम्र में सर्जरी कराना उचित रहेगा?

जवाब

सामान्य स्थिति में इंजैक्शन फ्रैक्शन दर 60 से 70% रहती है. आप के पिता को किसी कार्डियोलौजिस्ट से संपर्क करना चाहिए, जो उन्हें इंप्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) प्रत्यारोपित कराने या रेडियोफ्रिक्वैंसी एब्लेशन कराने की सलाह दे सकते हैं. स्थिति बिगड़ने से

पहले तत्काल उपाय करना जरूरी है, क्योंकि आगे यह और घातक हो सकती है.

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सवाल-

मेरी बहन कई बार बहुत ज्यादा थक जाती है और बेहोशी की स्थिति में पहुंच जाती है. अकसर वह सही तरीके से सांस भी नहीं ले पाती. वह सिर्फ 16 साल की है. क्या इस उम्र का व्यक्ति एस्थिमिया से पीडि़त हो सकता है?

जवाब

एस्थिमिया का उम्र से कोई लेनादेना नहीं है और यह किसी को भी हो सकता है. चक्कर आना, अत्यधिक थकान, सांस लेने में तकलीफ, व्यायाम करने में असमर्थता, सीने में दर्द और बेहोशी की स्थिति एस्थिमिया के लक्षण हो सकते हैं और ऐसे हालात में दिल की धड़कनें भी अनियमित हो सकती हैं. कुछ प्रकार के एस्थिमिया नुकसानरहित होते हैं लेकिन बाद में ये जानलेवा भी हो सकते हैं. किसी को भी दिल की असामान्य धड़कनों की शिकायत को अनदेखा नहीं करना चाहिए क्योंकि इस से दिल की धड़कनें पूरी तरह से रुक जाने का भी खतरा रहता है.

सवाल

दिल की अनियमित धड़कनों की समस्या से नजात पाने में इंप्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) कितना मददगार है? क्या इस तरह के डिवाइस पर बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ता है?

जवाब

आईसीडी दिल की धड़कन दर पर निरंतर निगरानी रखते हुए स्वत: काम करता है और वैंट्रिकुलर टेकीकार्डियो तथा वैंट्रिकुलर फाइब्रिलेशन घटनाएं शुरू होते ही इन का पता लगा लेता है. वैंट्रिकुलर टेकीकार्डियो तथा वेंट्रिकुलर फाइब्रिलेशन घटनाओं का पता लगाने के तत्काल बाद ही आईसीडी कम ऊर्जा की इलैक्ट्रिकल नब्ज या इलैक्ट्रिक शौक के रूप में उपचार शुरू कर देता है ताकि मरीज को नुकसान पहुंचाने से पहले एस्थिमिया से बचाया जा सके. कई प्रकार के आईसीडी उपलब्ध हैं, मसलन सिंगल चैंबर तथा डबल चैंबर आदि.

खराब लाइफस्टाइल के कारण दिल संबंधी बीमारियां एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. आजकल तो 20 वर्ष की उम्र वाले युवाओं में भी दिल की बीमारियां होने लगी हैं. मेरी उम्र 26 साल है. दिल की बीमारियों से बचने के लिए मुझे किस प्रकार की सावधानियां बरतनी चाहिए?

कुछ खास प्रकार के लाइफस्टाइल आप के उच्च रक्तचाप और कोलैस्ट्रौल स्तर को कम कर सकते हैं तथा दिल की बीमारियों की चपेट में आने की आशंका को कम कर सकते हैं. आप को धूम्रपान तथा अल्कोहल के सेवन से बचना चाहिए. कई युवा नियमित व्यायाम को अहमियत नहीं देते. कुछ युवा तो किसी तरह का शारीरिक श्रम भी नहीं करना चाहते. व्यायाम न करने की इस आदत को बदलना चाहिए. आप को नियमित रूप से व्यायाम या प्रतिदिन 45 मिनट तक तेज कदमों से चलने की आदत डालनी होगी. इस के अलावा तनाव दूर करने के लिए कोई शौक पालना दिल के लिए अच्छा होता है.

सवाल-

किसी व्यक्ति के एस्थिमिया से पीडि़त होने के क्या लक्षण हो सकते हैं? क्या समय पर इस का इलाज नहीं कराना घातक साबित हो सकता है?

जवाब

चक्कर आना, अत्यधिक थकान, सांस का फूलना, व्यायाम करने की असमर्थता, सीने में दर्द तथा बेहोश होने के लक्षण एस्थिमिया के संकेत हो सकते हैं. कुछ प्रकार के एस्थिमिया नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन कुछ प्रकार के एस्थिमिया घातक हो सकते हैं. आप को दिल की अनियमित धड़कनों की कमी अनदेखी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस वजह से दिल की धड़कन पूरी तरह से थम भी सकती है.

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सवाल-

मुझे 10 साल पहले 19 साल की उम्र में ही धूम्रपान की लत लग गई थी और अब चेन स्मोकर हो गया हूं. धूम्रपान से दिल की समस्याओं का खतरा कितना बढ़ सकता है?

जवाब

धूम्रपान से दिल की समस्याएं बढ़ जाती हैं. तंबाकू के इस्तेमाल से रक्त थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है और रक्त द्वारा औक्सीजन संचारित करने की दर कम हो जाती है. दिल की आर्टरीज में कहीं भी रक्त थक्का जमने से कई तरह की दिल की बीमारियां बढ़ सकती हैं और स्ट्रोक भी हो सकता है. चेन स्मोकिंग की लत और ज्यादा खतरनाक है, लिहाजा, अच्छी सेहत रखने के लिए आप को धूम्रपान कम कर देना चाहिए.

-डा. वनीता अरोड़ा

मैक्स हौस्पिटल, साकेत में कार्डियक इलैक्ट्रोफिजियोलौजी लैब ऐंड एस्थिमिया सर्विसेज की प्रमुख और ऐसोसिएट डायरैक्टर.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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टाइट जींस पहनना क्यों पसंद लड़कियों को लगता है कि वे टाइट व फिटिंग कपड़ों में ही सैक्सी दिख सकती हैं. लड़कों को ध्यान आकर्षित करने के लिए. बोल्ड व कौन्फिडैंट नजर आने के लिए. अपडेट व स्टाइलिश दिखने के लिए. लड़कियां अपनी फ्रैंड्स को जलाने के लिए भी टाइट जींस पहनना पसंद करती हैं.

कुछ लड़कियां केवल दूसरों को देख कर पहनती हैं.

आजकल लड़कियों को टाइट व स्किनी जींस पहनना पसंद है, भले ही वे इस में कंफर्टेबल हों या न हों, लेकिन कैरी करती हैं. दरअसल, उन्हें लगता है कि इस से उन की फिगर सैक्सी लगेगी और सब का ध्यान उन की तरफ अट्रैक्ट होगा. पर क्या आप जानती हैं टाइट जींस आप को बीमार कर रही है? इस की वजह से आप अस्पताल तक पहुंच सकती हैं?

आस्ट्रेलिया के ऐडिलेड शहर में एक लड़की के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है. स्टाइलिश व सैक्सी दिखने के लिए लड़की ने टाइट जींस पहन तो ली, लेकिन इस टाइट जींस ने उसे अस्पताल पहुंचा दिया, जहां पता चला कि उस के पैरों की मांसपेशियों में खून की सप्लाई रुक गई है. लड़की की हालत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि वह अपने पैरों पर खड़ी भी नहीं हो पा रही थी. उसे लोगों की मदद लेनी पड़ी.

फैशन के साथ खुद को अपडेट रखना अच्छी बात है, लेकिन इस की वजह से हैल्थ को अनदेखा करना सही नहीं है. टाइट जींस भले ही फिगर को सैक्सी लुक देती हो, पर नुकसानदायक होती है. इस की वजह से कई तरह की हैल्थ प्रौब्लम्स होती हैं, जिन की तरफ लड़कियां ध्यान नहीं देतीं.

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बेहोश होना: हमेशा टाइट फिटिंग वाले कपड़े पहनने से घुटन होने लगती है, जिस की वजह से सांस लेने में दिक्कत होती है.

पीठ दर्द की समस्या: आज के समय में हम में से अधिकांश लड़कियां लो वेस्ट जींस पहनना पसंद करती हैं. टाइट व लो वेस्ट जींस पीठ की मसल्स को कंप्रैस और हिप बोन के मूवमैंट को रोकती है. जिस से स्पाइन और पीठ पर दबाव पड़ता है और दर्द की समस्या उत्पन्न होती है.

पेट दर्द: जब टाइट कपड़े पहनते हैं तो कपड़ा पेट पर चिपक जाता है. जिस की वजह से पेट पर प्रैशर पड़ता है और पेट दर्द होता है. यही नहीं टाइट जींस पाचनक्रिया को भी असंतुलित करती है, जिस से ऐसिडिटी होती है.

शरीर में दर्द: टाइट जींस थाइज की नर्व्स को कंप्रैस करती है, जिस से झनझनाहट व जलन महसूस होती है. इस से सिरदर्द, बदन दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं, टाइट जींस पहनने से उठनेबैठने में भी समस्या होती है और बौडी का पोस्चर बिगड़ने लगता है.

थकान महसूस होना: जब टाइट जींस पहनते हैं, तो बहुत जल्दी थक जाते हैं, जिस का असर हमारे काम पर पड़ता है. तब सोचते हैं कि काश औफिस में नाइट ड्रैस पहनने की आजादी होती, इसलिए अगर आप को भी ऐसा लगता है तो कुछ दिन ढीले कपड़े पहन कर देखिए, आप को फर्क खुद पता चल जाएगा.

यीस्ट इन्फैक्शन: यह मुख्य रूप से उन स्थानों पर ज्यादा होता है जहां पसीना ज्यादा आता है. टाइट जींस पहनने से शरीर को हवा नहीं लग पाती, जिस के कारण शरीर में यीस्ट का प्रोडक्शन बढ़ जाता है. इस में खुजली, जलन व दर्द होता है. इसे अनदेखा करना खतरनाक भी हो सकता है.

फंगल व बैक्टीरियल इन्फैक्शन का खतरा: टाइट जींस की वजह से फंगल व बैक्टीरियल इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. इस से त्वचा पर लाल दाने निकल जाते हैं, रैशेज आ जाते हैं.

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जींस के अलावा भी हैं कई आउटफिट

केवल टाइट व स्किनी जींस ही हमें बीमार नहीं करती, बल्कि ऐसे और भी कई कपड़े हैं, जिन का हैल्थ पर इफैक्ट पड़ता है. उन में से एक है शेपवियर. शेपवियर भले ही शरीर के ऐक्स्ट्रा फैट को छिपा कर स्लिम दिखाता हो, लेकिन इस से और्गन पर प्रभाव पड़ता है. शेपवियर के अलावा टाइट ब्रा, पैंटी, फिटिंग टीशर्ट, टाइट बैल्ट, हाई हील का भी असर पड़ता है.

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