बच्चों के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं खिलौने

याद करिए वो दिन जब आप बच्चे थे और आपके वो दिन अलगअलग भूमिका निभाने में ही बीतते थे. लेकिन वो पुराने दिन सिर्फ मस्ती तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि उससे भी कहीं ज्यादा.

आपको बता दें कि रोल प्ले करना बच्चों के विकास का मुख्य चरण माना जाता है, क्योंकि इससे बच्चा क्रिएटिव सोंचना, समस्याओं को सुलझाना, व्यावहारिक समझ, घुलनामिलना व बात करना सीखता है. यहां तक कि वह नए रोल निभाने की भी कोशिश करता है और दुनिया को अपने नजरिए से देखने लगता है. उसमें सहानुभूति व कल्पनाशीलता का भी विकास होता है.

यही नहीं इससे बच्चा विभिन्न परिस्थितियों व समस्याओं से जूझना सीखता है जिसको लेकर अकसर हम चिंतित रहते हैं. जैसे बच्चा अपनी गुडि़या को इंजैक्शन लगाते समय उसे यह एहसास कराता है कि ‘इससे तुम्हें दर्द नहीं होगा.’ जो बच्चे के डाक्टर के पास जाने के डर को दूर करता है.

इतना ही नहीं बच्चों में खेलों के जरिए रोजाना बदलाव आने के साथ वे नई चीजें जानने के साथ कुछ नया करने की कोशिश करते हैं. कल्पनाशीलता उन्हें समर्थ बनाती है जो उनके जीवन की नई दिशा देने का काम करती है.

इसी दिशा में अमेरिका की मल्टीनैशनल टोए कंपनी मेटल काफी वर्षों से प्रयासरत है ताकि वे बच्चों को क्रिएटिव बनाने की दिशा में अहम रोल अदा कर सकें.

रोल प्ले गेम्स जैसे चैटर टेलीफोन, एल ऐंड एल स्मार्ट स्टेजिस स्मार्ट फोन, ग्रे स्वीट मैनर टी सैट, मैडिकल किट न सिर्फ दिखने में स्मार्ट है बल्कि बच्चों के विकास में इनका अहम योगदान है.

जीवन एक कला है, करते रहें कुछ नया

कुशलता से कोई भी किया गया कार्य सफलता का मूलमंत्र होता है. हम और हमारा मन दोनों एक हो जाते हैं, तब जो कार्य होता है वह गुणात्मक दृष्टि से बेहतर होता है. यह तभी संभव हो पाता है जब हम अपने प्रति वफादार होते हैं. सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है, धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, हम उसे पढ़ते हैं, फिर भी सिगरेट जला लेते हैं. सूचना का भंडार ज्ञान नहीं होता है. ज्ञान का जन्म अनुभव की जमीन पर होता है. यह तभी संभव हो पाता है जब हम अपनेआप से प्यार नहीं करते हैं. अपनेआप के प्रति, अपने शरीर के प्रति, अपने मन के प्रति जिम्मेदार नहीं होते हैं. शरीर के प्रति सजगता ही सकारात्मक सोच के प्रति उत्साह जगाती है.

अब तक जाना गया है-अपनेआप को दुखी बनाए रखें या प्रसन्न रहें, यह आप के ही हाथ में है. मेरी प्रसन्नता जब तक बाहरी दुनिया के हाथों में होगी, मैं दुखी ही रहूंगा. बाहर जो घटता है वह निरंतर बदल रहा है. कभी मेरे अनुकूल घटता है, तो कभी मेरे प्रतिकूल. कभी मैं खुश हो जाता हूं तो कभी दुखी. हर घटना मेरी अपेक्षा के अनुसार नहीं घटती, उसे जैसे घटना था वैसे ही घटता है. मेरा सारा प्रयास बाहर जो घट रहा है, उसे बदलने के लिए होता है. ‘तो क्या मैं प्रयास करना छोड़ दूं?’ ‘नहीं, मैं जो प्रयास कर रहा हूं उस के अनुकूल कुछ होगा, प्रतिकूल भी घट सकता है या तीसरा कुछ भी घट सकता है.’ मुझे हर परिस्थितिका सामना करने के लिए तैयार रहना होगा. काम तो करना ही है. जब तक शरीर है, उसे क्रियाशील रखना है.

लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है. अवसाद तो चौबीसों घंटे बना रहता है. जो अप्रिय है वह काले बादल की तरह आता है और चेतना पर छा जाता है. बाहर कितना भी प्रिय घट जाए, पर भीतर अगर नकारात्मक सोच का दंश रखा है तो वह उसे भी गंदा कर देगा. याद रखिए, एक क्विंटल दूध को एक कटोरी दही फाड़ देता है. नकारात्मकता की शक्ति ज्यादा घनी होती है. जब हम सही होते हैं, हमारी दृष्टि में उत्साह जगता है. तब बाहर का कांटों से भरा पथ भी हमें चलने योग्य लगता है, क्यों? ‘उत्साह बाहर से नहीं आता, वह भीतर की आंतरिक शक्ति है.’ हम जितना अधक सोचेंगे उतने ही नकारात्मक होते चले जाएंगे, उतने ही दुखी व अशांत. मैं ने यह जाना है, यह पाया है, अनावश्यक विचारणा ही अभिशाप है और उस से बचने का एक ही उपाय है, निरंतर कार्यरत रहें, और मन को पूरी तरह उसी काम में लगाएं. जानता हूं, यह कठिन है, पर असंभव नहीं है. यह तभी संभव हो पाता है जब हम इस के खतरे से सावधान हो जाते हैं.

यह संभव हो पाता है, जब :

जो उंगली बाहर उठती है वह भीतर की ओर भी जाने लगती है. हम बाहर से इतने प्रभावित हैं कि अपने भीतर झांक ही नहीं पाते हैं.

दूसरों से तुलना करना, असंगत कार्य है.

कुछ मिला है, वह आप के प्रयास से मिला है, आप की मेहनत से मिला है. आप ने छोटा मकान बनाया है, सोने के लिए तख्त भी ले आए हैं. छोटी बाइक भी है. बच्चा स्कूल जा रहा है. आप खुश तो हैं. पर नहीं, इधर मकान का उद्घाटन हुआ, अगले दिन से ही विचार खड़ा हो जाता है, आप के सहयोगी ने आप से बड़ा फ्लैट ले लिया है, वह छोटी कार भी ले आया है. उस ने महंगा वाला डबल बैड खरीदा है.

आप अपने घर का, अपनी वस्तुओं का सुख नहीं ले पाते हैं, फिर एक असंतोष की आग भी आप के भीतर जग जाती है. अरे, इतनी मेहनत से आप यहां तक आए हैं, क्या खुश नहीं हैं? अगर नहीं हैं तो आप को कोई भी खुशी नहीं दे सकता है. याद रखिए, दूसरों से कभी तुलना नहीं करें. आप जो कल थे, उस से आज बेहतर हैं. तुलना हमेशा अपनी, अपनेआप से ही करें. कल से स्वास्थ्य आज अच्छा है, आज खाना अच्छा खाया है, आज नींद अच्छी आई.

हर छोटी खुशी, बेहतर स्वास्थ्य और बेहतर खुशी देती जाती है.

सारसार सब ले लिया

यह आवश्यक नहीं है कि हम हमेशा सही ही हों. गलती हर इंसान से होती है. पर समझदारी इसी में है कि आप अपना मूल्यांकन खुद ही करें. हम जब दूसरों से बात करते हैं, सलाह लेते हैं, या वे स्वयं देने चले आते हैं तो हम उन्हें सुनें और विवेक की धरती पर उस का मूल्यांकन करें. हर सलाह को मानना भी उचित नहीं है और नकारना भी गलत है. तब मूल्यांकन अनवरत हो, पर अपनी सक्रियता को रोकना, स्थगन करना उचित नहीं है. जीवन में हर दिन यही क्रम रहता है. हमारे समाज में सलाह देने की बीमारी है. पर बहस न करें, मात्र सुन लें, काम तो आप को ही है. जो राह सही है, उसी पर चलते रहें.

इस से दूसरे की प्रतिक्रिया से आप बचे रहेंगे. आप सब को खुश नहीं रख सकते हैं पर बिना बहस के उस अवांछित की सुनें. इस से आप उन की प्रियता को बनाए रख सकते हैं. इस से आप की ऊर्जा बढ़ेगी, कार्यकुशलता बढ़ेगी. बहस तो कहीं पर भूल कर भी नहीं करना है. बोलें कम, सुनें ज्यादा, क्योंकि वे जो सलाह दे रहे हैं, ये उन के अनुभव हैं, जो स्मृति से निकल कर आए हैं. आज की समस्या नई है. इस का समाधान अतीत की जानकारी में असंभव है. सो, बहस की बहुत संभावना है. पर यहां बचना है. इसलिए विचार का स्वागत करें, विवेक पर कसें अपने सोच को, निर्णय का हमेशा मूल्यांकन करते रहें. तब निराशा की संभावना कम होती चली जाती है.

क्या लागे मेरा

सक्रिय जीवन जीने के लिए यह धारणा आवश्यक है. मैं ने पाया है, मैं जहां भी गया हूं, नकारात्मक भावनाओं की अनुगूंज सुबह से शाम तक सुनाई पड़ती है. कभी भी कोई भी काम शुरू किया, पहला उत्तर यही मिला-जिन्होंने किया उन्हें क्या मिला? असफलता की कहानियां सुनाई जाती हैं. हम इतने भयभीत क्यों हैं? हर काम शुरू करने के पहले ही हमें दूसरे की असफलता का उदाहरण दे कर डरा दिया जाता है. कहने का अभिप्राय यह है कि कुछ भी करने के लिए मन बनाने से पहले ही हमें डरा दिया जाता है.

इस नकारात्मक सोच ने हमारी मानसिक ऊर्जा को सोख लिया है. हम एक पक्षी की तरह हैं, जो नकारात्मक आकाश में उड़ रहे हैं, जिन के लिए कहीं ठिकाना नहीं है. हम इस से बचें, ऐसे लोगों से बचें. हम भूतप्रेतों से बहुत डरते हैं. सवाल होते हैं, भूत होते हैं या नहीं? पर जो निरंतर अतीत में है, दुखद स्मृतियों में है, निराशा में है, वह भूत ही तो है.

उन से बचें. वे सारी मानसिक ऊर्जा को सोख लेते हैं. मन का और पानी का स्वभाव एक जैसा होता है. दोनों नीचे की ओर बहते हैं. ऊपर उठाने के लिए जोर लगाना पड़ता है. बल लगता है. इसलिए हर प्रयास के लिए प्रयास करने से पहले, जो नैगेटिव होता है, जो नैगेटिव ऊर्जा है, उस से दूर रहा जाए. समाचारपत्रों को, टीवी न्यूज को, जहां नकारात्मकता का भंडार जमा है, उन से सुबह और रात को दूर रहा जाए. ‘हौरर शो’, ब्रैकिंग न्यूज आदि सब नकारात्मक सोच के भंडार हैं, इन से बचें. ज्योतिषियों से बचें. सुबहसुबह पंचांग देखना बंद करें. जो भविष्य वक्ता हैं, वे नकारात्मकता के व्यवसायी हैं, वे सकारात्मक खुद के लिए होते हैं, आप को अंधेरे में धकेल कर खुद उजाले में दौलत और शोहरत बटोरते हैं. दुनिया का कोई ज्योतिषी न तो अपनी न किसी अन्य की आयु का एक भी पल बढ़ा सकता है. हां, चिकित्सक अवश्य प्रयास करता है.

ये सब नकारात्मक लहरें हैं जो आप को एक कदम चलने से रोक देती हैं. प्रयत्नविमुख कर देती हैं. इन से बचाव मात्र वर्तमान में निरंतर करना है.

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