बुजुर्ग माता-पिता को रखें पास, करें बेहतरीन देखभाल

पिछले कुछ वर्षों में भारत की जनसंख्या में परिवर्तन हुआ और वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत बढ़ गया है. आज कुल जनसंख्या का लगभग 8.6 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिक हैं. जिस प्रकार से वरिष्ठ नागरिकों की आबादी बढ़ी है. उसी प्रकार यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि वृद्धावस्था में मधुमेह,उच्च रक्तचाप,, स्लीप एपनिया और कैंसर जैसी स्वास्थ्य परेशानियों से जूझना पड़ता है. वरिष्ठ नागरिक जो एक समय में कभी हमारी देखभाल करते थे, अब उन्हें निरंतर देखभाल और स्वास्थ्य प्रबंधन की आवश्यकता होती है. साथ ही आज हमारी पारिवारिक संरचनाओं में काफी बदलाव भी आया है. भागदौड़ भरी लाइफ के चलते घर में बीमार बुजुर्गों की देखभाल के लिए लोगों के पास टाइम नहीं है.

हम में से बहुत से लोग स्थानांतरित हो गए हैं ,या काम के लिए दूसरे शहरों में जा रहे हैं. इस वजह से माता.पिता को अपनी देखभाल स्वयं ही करनी पड़ती है. इस स्थिति में कई माता.पिता वृद्धाश्रम में शरण ले लेते हैं और कुछ नौकरों पर निर्भर होते हैं .जो उनकी बुनियादी जरूरतों को नहीं समझ पाते हैं. जो लोग एक समय पर आर्थिक रूप से सक्षम थे और अपनी जरूरतों का ख्याल खुद रख सकते थे, वे अचानक हर चीज के लिए दूसरों पर निर्भर होने लगते हैं. दूसरी तरफ बच्चों को बड़े.बूढ़ों के साथ बिताने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता और साथ ही वह यह तय करने में असमर्थ होते हैं कि उन्हें वृद्धाश्रम में रखा जाए या नहीं. ग्रामीण क्षेत्र ऐसे किसी भी विकल्प से रहित होते हैं और समाज के संपन्न वर्ग सामाजिक दबाव के कारण यह कदम नहीं उठा पाते हैं.

फिर क्या विकल्प है और क्या कोई ऐसा उपाय है जो सुलभ ,नवीन सुविधाजनक और सस्ता हो?

जी हां! यही वजह है कि अब होम मेडिकल केयर सर्विसेज का क्रेज बढ़ रहा है. मेडिकल के क्षेत्र में इस सर्विस के जरिए एक बड़ा बिजनेस प्लेटफार्म खड़ा हो गया है. इसके तहत घर में आपको नर्स, डॉक्टर विजिट, लैबोरेट्री टेस्ट की सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं. ट्राईसिटी में इस तरह की सेवाएं पहले मल्टीनेशनल मेडिकल कंपनियां दे रही थीं. लेकिन अब लोकल लेवल पर भी मेडिकल केयर मिल रही है. इसके तहत 24 घंटे और सातों दिन पेशेंट्स मॉनीटरिंग की जाती है. ताकि परिवार के सदस्यों को अपने प्रियजनों के स्वास्थ्य की अच्छी तरह से जानकारी मिलती रहे. इसका उद्देश्य घर के बुजुर्गों को अच्छी क्वालिटी की देखभाल प्रदान करना है.

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1. स्वास्थ्य की निगरानी करना आसान है

भारत में  वरिष्ठ नागरिकों की आबादी जिसमें आपके माता.पिता शामिल हैंैं वह भी इस मोड़ पर आकर सम्मान और समर्थन के हकदार हैं. इसलिए परिष्कृत और एडवांस तकनीक के माध्यम से घर में स्वास्थ्य की निगरानी करना आसान है .

होम हेल्थकेयर इस स्थिति में कारगर साबित हो सकती है. यहां जानिए कि यह आपके माता.पिता की देखभाल में कैसे सहायक हो सकता है.

2. मेडिसिन और पर्सनल केयर

बुजुर्ग अक्सर अपनी दवाओं का गलत इस्तेमाल करते हैं या तो उन्हें लेना भूल जाते हैं या गलत खुराक खा लेते हैं. दूसरी ओर गंभीर परिस्थितियों वाले मरीजों को कई और दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ता है. होम हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स ऐसे मामलों में बड़े सहायक साबित हो सकते हैं.प्रोफेशनल्स को बुनियादी और उन्नत आवश्यकताओं की देखभाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. वे दैनिक जीवन की गतिविधियों में और दवाईयां आदि देने में बड़ों की सहायता करते हैं. इसके साथ ही उन्हें पर्सनल केयर में मदद करते हैं और इस दौरान यह सुनिश्चित करते हैं कि बुजुर्गों को असहज महसूस न हो. इस वजह से किसी भी प्रकार की जटिलताओं और इमरजेंसी जैसे कि गलत दवा के सेवन से भी बुजुर्ग बच जाते हैं.

3. हेल्थ का ध्यान

होम हेल्थकेयर के साथ बुजुर्गों को बेहतर चिकित्सा देखभाल प्रदान करना संभव है.  हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स चिकित्सा उपकरणों और अन्य जरूरतों का पूरा ज्ञान रखते हैं. होम हेल्थकेयर वर्कर्स रोगी की जरूरतों को समझते हैं और हर छोटी  बात पर ध्यान देते हैं .जिससे तेजी से रिकवरी में मदद मिलती है और इस तरह अनावश्यक संक्रमण और अस्पताल में भर्ती होने से भी बचाव हो जाता है.चिकित्सा उपकरणों और सहायता के साथ वे सुधारों पर निगरानी करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि रोगी की चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा किया गया है.

4. भोजन का ध्यान

असंतुलित आहार और भोजन का गलत विकल्प बुजुर्गों और रोगियों के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है.  दूसरी ओर उचित पोषण तेजी से रिकवरी करने में मदद कर सकता है. यदि बुजुर्ग भी कुछ स्वास्थ्य स्थितियों से पीड़ित हैं तो होम हेल्थकेयर आहार और पोषण में सहायता प्रदान करता है.  बुजुर्ग न केवल उस उम्र में अपने आपको स्वस्थ बनाए रखने के लिए पोषण संबंधी परामर्श प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि उन्हें भोजन भी वही दिया जाता है जो उनकी आवश्यकताओं के अनुकूल होता है.

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5. सामाजिक संपर्क

होम हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि बुजुर्गों को सामाजिक संपर्क बेहतर करने के मौके मिलें. प्रोफेशनल्स वॉकिंग या अन्य सामाजिक गतिविधियों के लिए विश्वसनीय भागीदार साबित होते हैं. वे घर के कामों में भी बड़ों की मदद करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण बना रहे.

6. निष्कर्ष –

घर ही ऐसी जगह होती है जहां सबका दिल लगता है और अधिकांश वरिष्ठ नागरिक बीमार होने पर भी अपना घर नहीं छोड़ना चाहते हैं. इसी वजह से घर पर ही  देखभाल महत्वपूर्ण हो जाती है. होम हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स बुजुर्गों को विशेष रूप से प्रशिक्षित नर्सिंग और देखभाल सहायता प्रदान करने के अलावा अन्य आवश्यकताओं को संभालने में अच्छी तरह से ट्रेंड होते हैं.

7. लैब की सुविधा घर बैठे ही

ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि उनके माता-पिता की अच्छी तरह से देखभाल की जा रही है डेली रिपोर्ट अपडेट होती है. इसके अलावा घर से ही लैब टेस्ट के लिए ब्लड सेंपल लेकर रिपोर्ट भी घर तक पहुंचाई जाती है. रिपोर्ट ऑनलाइन कर इलाज कर रहे डॉक्टर तक पहुंचाई जाती हैं. ताकि मरीज को रिपोर्ट के मुताबिक जो मेडिकल केयर की जरूरत है वह दी जा सके.

ऐसे में बुजुर्गों के लिए इस औपचारिक सहायता प्रणाली और उनके जीवन को अधिक सुविधाजनक बनाने की क्षमता के बारे में इस समय अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है.

डॉ विशाल सहगल चिकित्सा निदेशक; पोर्टिया मेडिकल से बातचीत पर आधारित..

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सोशल मीडिया पर सोच-समझ कर बनाएं दोस्त

दिल्ली में 28% महिलाओं को हर सप्ताह यौन उत्पीड़न से जुड़े कौल या मैसेज आते हैं. जो बाकि किसी भी राज्य की तुलना में सब से ज्यादा है. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन औफ इंडिया की तरफ से जारी रिपोर्ट ‘इंटरनेट इंन इंडिया 2017’ के मुताबिक देश में 50 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं जिन में 30% यानी 14.3 करोड़ महिलाएं हैं. देश में इंटरनेट का सब से अधिक इस्तेमाल यंगस्टर्स और स्टूडेंटस करते हैं. गांवों में 100 इंटरनेट यूजर्स में 36 महिलाएं ही इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं. एनसीआरबी के मुताबिक 2016 में देश में महिलाओं के खिलाफ साइबर क्राइम के 930 मामले दर्ज किए गए थे.

1. दोस्ती करें सोच समझ कर

किसी ने आप को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी और आप ने तुरंत स्वीकार कर लिया इस टेंडेंसी को छोड़ दें. दोस्ती हमेशा सोचसमझ कर करें. अनजान लोगों की रिक्वेस्ट को इग्नोर करें या डिलीट मार दें. यदि कोई पुराण दोस्त जानबूझ कर आप को परेशान कर रहा है तो पहले उसे समझाने का प्रयास करें कि आप को यह सब पसंद नहीं. मगर यदि वह न माने तो उसे तुरंत ब्लॉक कर दें. किसी को भी इतनी ढील न दें कि वह आप को परेशान कर सके.

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2. झांसे में न आएं

कभी भी अश्लील मैसेज और फेक कौल्स करने वाले व्यक्ति के झांसे में न आएं. यदि किसी वजह से आप ने उस से दोस्ती कर ली है तो भी कभी उस के बुलाने पर अकेली, सुनसान जगह या अकेले उस के घर पर मिलने न जाएं. मिलना ही है तो मॉल या मेट्रो स्टेशन जैसी खुली जगहों पर मिलें. उसे अपनी निजी बातें न बताएं और कभी भी ऐसी निजी तस्वीरें शेयर न करें जिन का वह गलत इस्तेमाल कर सके.

3. कानून का सहारा लें

फोन पर बिना मर्जी दोस्ती के लिए कहना भी अपराध है. महिलाओं के साथ होने वाले इस तरह के छेड़छाड़ या उत्पीड़न के मामलों में सामान्यतः आरोपी के खिलाफ धारा 354 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है. महिलाओं को फोन या सोशल मीडिया पर उन की इच्छा के बिना दोस्ती के लिए कहना उत्पीड़न का मामला है. इस तरह किसी की निजता में दखल देना अपराध माना जाता है. बारबार टैक्स्ट मैसेज भेजना, मिस्ड कौल करना, फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना, महिला के स्टेटस अपडेट पर नजर रखना और सोशल मीडिया पर उस के पीछे लगे रहना आईपीसी की धारा 354 डी के तहत दंडनीय अपराध है.

4. पुलिस में शिकायत करें

महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए पुलिस ने अब इस तरह के मामलों में साइबर क्राइम के तहत मामला दर्ज करना शुरू कर दिया है. पहले फोन पर मैसेज करने या अश्लील फोटो भेजने पर पुलिस रिपोर्ट तो दर्ज कर लेती थी लेकिन ऐसे मामलों में कार्रवाई करना मुश्किल होता था. क्यों कि ज्यादातर लड़के फेक आईडी पर सिम कार्ड ले कर इस तरह की हरकत करते हैं. ऐसे में कई बार उन्हें सबक सिखाने के लिए आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर मामले की जांच की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच को सौंप दी जाती है  ताकि क्राइम ब्रांच सर्विलांस की मदद से आरोपी पर कार्रवाई कर सके.

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तनिशी 3 साल की थी जब उसके घर एक नन्हा मेहमान आया था .माता पिता ने पहली बार उसके भाई से उसे मिलवाया था. तनिशी ने अपने भाई का नाम शिबू  रखा था . जो उसने बहुत पहले से सोच रखा था .तनिशी के लिए वो सिर्फ उसका भाई ही नहीं था उसकी पूरी दुनिया था.उन दोनों में बहुत प्यार था .तनिशी थी तो उसकी बहन पर प्यार वो उसे माँ जैसा प्यार करती थी. साथ खाना-पीना ,साथ उठना -बैठना ,एक पल को कभी वो उसे अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देती थी. अगर एक पल को भी वो उसकी आँखों के सामने से ओझल हो जाता तो रो-रोकर पूरा घर भर देती थी.

अब तनिशी  10 साल की हो चुकी थी और शिबू 7 साल का.एक बार शिबू स्कूल ट्रिप पर गया था .ट्रिप 3 दिन की थी.तनिशी बहुत परेशान थी की कहीं उसका भाई खो न जाये या उसे कहीं चोट न लग जाये.मम्मी पापा ने उसे बहुत समझाया पर वो कहाँ सुनने वाली थी.वो रोरोकर भगवन जी से कहती थी की “भगवन जी मेरे भाई को जल्दी से घर भेज दो”. जब शिबू ट्रिप से घर लौटा तब जाकर तनिशी की जान में जान आई.

समय बीतता गया, तनिशी  और शिबू बड़े होने लगे .दोनों की पढाई कम्पलीट हो गयी थी.तनिशी डॉक्टर बन चुकी थी और शिबू इंजिनियर .कुछ समय बाद तनिशी  की शादी तय हो गयी. तनिशी को ये चिंता सताने लगी की वो अपने परिवार के बिना कैसे रहेगी खास कर अपने भाई के बिना.तनिशी शिबू को चिढाती थी और कहती थी की देखूँगी की मेरी शादी के बाद तेरा काम कौन करेगा?शिबू भी कह देता था की “शादी करके कब जाओगी  तुम इसकी राह देख रहा  हूँ मै ,मै तुम्हारी शादी में ज़रा सा भी नहीं रोने वाला हूँ .“

शादी का दिन आया.पूरी शादी भर शिबू शांत- शांत सा था. तनिशी भी बहुत दुखी थी .अब विदाई का टाइम आया. तब शिबू ने सबसे कहा की मैंने अपनी बहन के लिए कुछ लिखा है .मै वो सब सुनाना  चाहता हूँ .उसने अपनी डायरी निकाली और उसे पढना शुरू किया ,”मैं थोड़ा introvert टाइप का लड़का हूँ .ज्यादा अपनी feeling एक्सप्रेस नहीं कर पता.ज्यादा बाते भी नहीं करता हूँ. लेकिन  मैंने आज अपनी बहन के लिए कुछ लाइन्स लिखी है ;-

मुझसे मेरे दोस्त पूछते थे की बड़ी बहन का होना कैसा लगता है?

मैंने कहा एक साथ तुम्हे 2 माँ का प्यार मिलता है,सिर्फ बहन ही नहीं माँ की तरह भी ख्याल रखती है वो

कभी डांटती है तो कभी प्यार करती है वो

वैसे तो जानती थोड़ा कम  है मुझे, पर समझती ज्यादा है मुझे

मेरी छोटी छोटी गलतियों को पापा से छुपा कर रखने वाली एक वही तो थी

जब मैं सभी से लड़ झगड़ कर एक कोने में बैठ जाता था ,तब मुझे प्यार से खाना लाकर देने वाली वही तो थी

वैसे तो 3 साल का फर्क है हमारी उम्र में लेकिन न तो मैंने इसे कभी दीदी कहा और न ही इसने कभी शिकायत की

स्कूल ,ट्यूशन ,कॉलेज सब साथ किया है हमने ,एक बॉडीगार्ड की तरह मेरा ख्याल रखा है तुमने

कभी कभी ऐसी उलझनों में फंसा था मै  ,अगर तुम न होती तो शायद कभी न निकल पाता मै

जब भी लाइफ में रोया हूँ तुमने मुझे संभाला है ,वरना तुम्हारे बिना कौन मुझे झेलने वाला है

तुम्ही तो थी एक जिसे मैं अपनी प्रॉब्लम बताता था, वरना ऐसी सिचुएशन से निकलना मुझे कहाँ आता था

तुम बोली सामान मेरा पैक हो गया है ,ये सुनकर न जाने तुम्हारा भाई कितना रोया है

आज छोड़कर हमें चली जाओगी तुम, एक खूबसूरत सी नयी दुनिया बसाओगी  तुम

दूर मत समझना खुद को कभी हमसे ,जब याद करोगी मिलने पहुँच जायेंगे हम तुमसे

तुम सिर्फ बहन नहीं ,दुनिया हो मेरी ,कुछ भी करूंगा देखने को खुशियाँ मैं तेरी

i love you बहना .मैंने कभी ये बोला नहीं but i know  की तुम ये जानती हो “

तालियों से कमरा भर गया. सभी की आँखे नाम थी .तनिशी ये सब सुनकर स्तब्ध थी .वो सोच रही थी की आज मेरा भाई कितना बड़ा हो गया उसने शिबू को अपने गले से लगा लिया.

जी हाँ दोस्तों ये सच है भाई-बहन का रिश्ता दुनिया के सबसे खूबसूरत रिश्तों में से एक है. दोस्तों भाई बहन चाहे जितना भी लड़ झगड़ ले ये रिश्ता ऐसा होता है जो कभी नहीं टूटता .भाई की नज़रों में अपनी बहन से अच्छी कोई लड़की नहीं होती . वो भाई ही तो है जो मुंह पर कड़वा  बोले और पीठ पीछे दुनिया के सामने बहन की तारीफ़ करे .जो सबके कपडे खुद चॉइस करके दे लेकिन खुद के कपडे बहन की चॉइस के ले.ये स्टाइल मुझ पर सूट हो रही है क्या?ये बात गर्लफ्रेंड से पहले 100 बार अपनी बहन से पूछे .खुद के phone को हाथ न लगाने दे पर बहन का phone हक से मांगे .

दोस्तों भाई बहन का रिश्ता आपकी पहचान का इतना गहरा हिस्सा हैं कि उनके  मौजूद नहीं होने के बावजूद भी मिटाया  नहीं जा सकता .भाई -बहन का रिश्ता आपका  सबसे बड़ा मेमोरी बैंक है इसमें न जाने कितनी यादे संजोई रहती है जिन्हें याद करके हमारे चेहरे पर हमेशा मुस्कान  आ जाती है.ये  वह व्यक्ति हैं जो आपको किसी और से बेहतर जानते हैं  .

पर पता नहीं क्यों बचपन में जिनको छोटी छोटी बात बताये बिना वो  रह नहीं पाते थे .अब बड़ी बड़ी मुश्किलों से वो  अकेले जूझते जाते हैं.ऐसा नहीं की उनको अहमियत नहीं है हमारी पर शायद हम  परेशान न हो इसलिए वो  अपनी तकलीफे छुपा जाते हैं.पता नहीं कब वो इतने बड़े हो जाते हैं.

“मैं वो नहीं जो तुम्हे अकेला छोड़ दूंगा ,मैं वो नहीं जो तुमसे नाता तोड़ लूँगा ,मै हूँ तेरा भाई ,हर खुशी  को तुम्हारी तरफ मोड़ दूंगा”

हैप्पी मैरिड लाइफ के लिए काम आएंगे ये टिप्स

पतिपत्नी और वो के बजाय पतिपत्नी और जीवन की खुशियों के लिए रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता है. छोटीछोटी बातें इग्नोर करनी होती हैं. मुश्किल समय में एकदूसरे का सहारा बनना पड़ता है. कुछ बातों का खयाल रखना पड़ता है:

मैसेज पर नहीं बातचीत पर रहें निर्भर

ब्रीघम यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक जो दंपती जीवन के छोटेबड़े पलों में मैसेज भेज कर दायित्व निभाते हैं जैसे बहस करनी हो तो मैसेज, माफी मांगनी हो तो मैसेज, कोई फैसला लेना हो तो मैसेज ऐसी आदत रिश्तों में खुशी और प्यार को कम करती है. जब कोई बड़ी बात हो तो जीवनसाथी से कहने के लिए वास्तविक चेहरे के बजाय इमोजी का सहारा न लें.

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ऐसे दोस्तों का साथ जिन की वैवाहिक जिंदगी है खुशहाल

ब्राउन यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक यदि आप के निकट संबंधी या दोस्त ने डिवोर्स लिया है तो आप के द्वारा भी यही कदम उठाए जाने की संभावना 75% तक बढ़ जाती है. इस के विपरीत यदि आप के प्रियजन सफल वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं तो यह बात आप के रिश्ते में भी मजबूती का कारण बनती है.

पतिपत्नी बनें बैस्ट फ्रैंड्स

‘द नैशनल ब्यूरो औफ इकोनौमिक’ द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जो दंपती एकदूसरे को बैस्ट फ्रैंड मानते हैं वे दूसरों के मुकाबले अपना वैवाहिक जीवन दोगुना अधिक संतुष्ट जीते हैं.

छोटी-छोटी बातें भी होती हैं महत्त्वपूर्ण

मजबूत रिश्ते के लिए समयसमय पर अपने जीवनसाथी को स्पैशल महसूस कराना जरूरी है. यह जताना भी जरूरी है कि आप उन की केयर करते हैं और उन्हें प्यार करते हैं. इस से तलाक की नौबत नहीं आती. आप भले ही ज्यादा कुछ नहीं पर इतना तो कर ही सकते हैं कि प्यारभरा एक छोटा सा नोट जीवनसाथी के पर्स में डाल दें या दिनभर के काम के बाद उन के कंधों को प्यार से सहला दें. उन के बर्थडे या अपनी ऐनिवर्सरी को खास बनाएं. कभीकभी उन्हें सरप्राइज दें. ऐसी छोटीछोटी गतिविधियां आप को उन के करीब लाती हैं.

वैसे पुरुष जिन्हें अपनी बीवी से इस तरह की सपोर्ट नहीं मिलती उन के द्वारा तलाक दिए जाने की संभावना दोगुनी ज्यादा होती है, जबकि स्त्रियों के मामले में ऐसा नहीं देखा गया है. इस की वजह यह है कि स्त्रियों का स्वभाव अलग होता है. वे अपने दोस्तों के क्लोज होती हैं. ज्यादा बातें करती हैं. छोटीछोटी बातों पर उन्हें हग करती हैं. अनजान लोग भी महिलाओं को कौंप्लिमैंट देते रहते हैं, जबकि पुरुष स्वयं में सीमित रहते हैं. उन्हें फीमेल पार्टनर या पत्नी से सपोर्ट की जरूरत पड़ती है.

आपसी विवादों को करें बेहतर ढंग से हैंडल

पतिपत्नी के बीच विवाद होना बहुत स्वाभाविक है और इस से बचा नहीं जा सकता. मगर रिश्ते की मजबूती इस बात पर निर्भर करती है कि आप इसे किस तरह हैंडल करते हैं. अपने जीवनसाथी के प्रति हमेशा सौम्य और शिष्ट व्यवहार करने वालों के रिश्ते जल्दी नहीं टूटते. झगड़े या विवाद के दौरान चिल्लाना, अपशब्द बोलना या मारपीट पर उतारू हो जाना रिश्ते में जहर घोलने जैसा है. ऐसी बातें इंसान कभी भूल नहीं पाता और वैवाहिक जिंदगी पर बहुत बुरा असर पड़ता है.

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एक अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है कि कैसे फाइटिंग स्टाइल आप की मैरिज को प्रभावित करती है. शादी के 10 साल बाद वैसे कपल्स जिन्होंने तलाक ले लिया और वैसे कपल्स जो अपने जीवनसाथी के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे थे, के बीच जो सब से महत्त्वपूर्ण अंतर पाया गया वह था शादी के 1 साल के अंदर उन के आपसी विवाद और झगड़ों को निबटाने का तरीका.वे कपल्स जिन्होंने शादी के प्रारंभिक वर्षों में ही अपने जीवनसाथी के साथ समयसमय पर क्रोध और नकारात्मक लहजे के साथ व्यवहार किया उन का तलाक 10 सालों के अंदर हो गया. ‘अर्ली इयर्स औफ मैरिज प्रोजैक्ट’ में भी अमेरिकी शोधकर्ता ओरबुच ने यही पाया कि अच्छा, जिंदादिल रवैया और मधुर व्यवहार रहे तो परेशानियों के बीच भी कपल्स खुश रह सकते हैं. इस के विपरीत मारपीट और उदासीनता भरा व्यवहार रिश्ते को कमजोर बनाता है.

बातचीत का विषय हो विस्तृत

पतिपत्नी के बीच बातचीत का विषय घरेलू मामलों के अलावा भी कुछ होना चाहिए. अकसर कपल्स कहते हैं कि हम तो आपस में बातें करते ही रहते हैं संवाद की कोई कमी नहीं. पर जरा गौर करें कि आप बातें क्या करते हैं. हमेशा घर और बच्चों के काम की बातें करना ही पर्याप्त नहीं होता. खुशहाल दंपती वे होते हैं जो आपस में अपने सपने, उम्मीद, डर, खुशी और सफलता सबकुछ बांटते हैं. एकदूसरे को जाननेसमझने का प्रयास करते हैं. किसी भी उम्र में और कभी भी रोमांटिक होना जानते हैं.

अच्छे समय को करें सैलिब्रेट

‘जनरल औफ पर्सनैलिटी ऐंड सोशल साइकोलौजी’ में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक अच्छे समय में पार्टनर का साथ देना तो अच्छा है पर उस से भी जरूरी है कि दुख, परेशानी और कठिन समय में अपने जीवनसाथी के साथ खड़ा होना. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर मोनिका लेविंस्की ने जब यौनशोषण का आरोप लगाया तो उस वक्त भी हिलेरी क्लिंटन ने अपने पति का साथ नहीं छोड़ा. उन दिनों के साथ ने दोनों के रिश्ते को और मजबूत बना दिया.

रिस्क लेने से न घबराएं

पतिपत्नी के बीच यदि नोवैल्टी, वैराइटी और सरप्राइज का दौर चलता रहता है तो रिश्ते में भी ताजगी और मजबूती बनी रहती है. साथ मिल कर नईनई ऐक्साइटमैंट्स से भरी ऐक्टिविटीज में इन्वौल्व हों, नईनई जगह घूमने जाएं, रोमांचक सफर का मजा ले, लौंग ड्राइव पर जाएं, एकदूसरे को खानेपीने, घूमने, हंसने, मस्ती करने और समझने के नएनए औप्शन दें. कभी रिश्ते में नीरसता और उदासीनता को न झांकने दें. जिंदगी को नएनए सरप्राइज से सजा कर रखें.

केवल प्यार काफी नहीं

हम जिंदगी में अपने हर तरह के कमिटमैंट के लिए पूरा समय देते हैं, ट्रेनिंग्स लेते हैं ताकि हम उसे बेहतर तरीके से आगे ले जा सकें . जिस तरह  खिलाड़ी खेल के टिप्स सीखते हैं, लौयर किताबें पढ़ते हैं, आर्टिस्ट वर्कशौप्स करते हैं ठीक उसी तरह शादी को सफल बनाने के लिए हमें कुछ न कुछ नया सीखने और करने को तैयार रहना चाहिए. सिर्फ अपने साथी को प्यार करना ही काफी नहीं, उस प्यार का एहसास कराना और उस की वजह से मिलने वाली खुशी को सैलिब्रेट करना भी जरूरी है.

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साइंटिफिक दृष्टि से देखें तो इस तरह के नएनए अनुभव शरीर में डोपामिन सिस्टम को ऐक्टिवेट करते हैं जिस से आप का दिमाग शादी के प्रारंभिक वर्षों में महसूस होने वाले रोमांटिक पलों को जीने का प्रयास करता है. एकदूसरे को सकारात्मक बातें कहना, तारीफ करना और साथ रहना रिश्ते में मजबूती लाता है.

परिवार में अब दामाद हुए बेदम

भारतीय समाज में कोई 4 दशक पहले की बात करें तो उन दिनों ‘दामाद’ को बड़ा आदरसम्मान प्राप्त होता था. दामादजी ससुराल आएं तो सास से ले कर सालियां तक उन की सेवा में जुट जाती थीं. ससुराल में दामादजी की आवभगत में कोई कमी न रह जाए, दामादजी के मुख से बात निकले नहीं कि पूरी हो जाए, किसी बात पर कहीं वे नाराज न हो जाएं, हर छोटीछोटी बात का ध्यान रखा जाता था. उन की आवभगत में हर छोटाबड़ा सदस्य अपने हाथ बांधे आगेपीछे लगा रहता था. उन के खानेपीने, रहनेघूमने की उच्चकोटि की व्यवस्था घर के मुखिया को करनी होती थी और जब ससुराल में सुखद दिन गुजार कर दामादजी अपने घर को प्रस्थान करते थे, तो भरभर चढ़ावे के साथ उन को विदा दी जाती थी. उन से यह आशा की जाती थी कि इस आदरसत्कार से दामादजी प्रसन्न हुए होंगे और उन के घर में हमारी कन्या को कभी कोई दुख नहीं मिलेगा.उत्तर भारत में दामाद की खातिरदारी की खातिर कुछ भी करगुजरने की परंपरा रही है. भले ही गैरकानूनी हो, पर दामाद को खुश करने का यह सिलसिला विवाह के समय दहेज से शुरू हो कर आगे तक चलता ही रहता है. फिर आंचलिक परंपरा तो किसी एक घर के दामाद को गांवभर का दामाद मान कर उस की खातिरदारी करने की भी रही है.

भारतीय समाज में दामाद से ज्यादा महत्त्वपूर्ण परिवार का कोई अन्य सदस्य नहीं होता. दामाद सिर्फ आदमी नहीं है. एक परंपरा है. एक उत्सव है. दामाद आता है तो पूरा घर मुसकराने लगता है. गरीब घर का बच्चा भी उछलनेकूदने लगता है. जिस घर में दालरोटी भी मुश्किल से जुटती है, और दालरोटी के साथ भाजी शायद ही कभी बनती है, उस घर में भी दामाद के आने पर पकवान बनते हैं. खीरपूरी बनती है. फलमिठाइयां आती हैं. इस सब के लिए साधन किधर से आता है, इस का खुलासा भी कभी दामाद के सामने नहीं होता. दामाद बेटे से भी बढ़ कर होता है. आप अपने बेटे के नाम के आगे कभी ‘जी’ लगा कर नहीं बुलाते, मगर झोंपड़ी में रहने वाला ससुर भी अपने दामाद को ‘कुंवरजी’ बोलता है. भीखू, ननकू, छोटेलाल का सीना गर्व से फूल कर56 इंची हो जाता है जब ससुरजी उन को ‘कुंवरजी’ के संबोधन से पुकारते हैं.

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औरत की आर्थिक मजबूरी ने दामाद को हौआ बनाया

बचपन की एक घटना मुझे याद है. उम्र रही होगी यही कोई 8-9 बरस की. पिताजी मुझे और मां को ले कर हमारे ननिहाल गए थे. पिताजी अपनी ससुराल बहुत मुश्किल से ही जाते थे. मां को बड़ी चिरौरी करनी पड़ती थी, तब जा कर कहीं 2-3 साल में एकबार पिताजी का मन बनता था कि चलो, कुछ दिनों के लिए सब को लिए चलते हैं. गोरखपुर जिले के एक गांव में नाना बसते थे. खेतीखलिहानी काफी थी. गांव में दोचार पक्के मकान थे, जिन में से एक नाना का भी था. मेरे 2 मामा थे और उन के बीवीबच्चों से नाना का घर गुलजार रहता था.मुझे याद है कि जिस वक्त हम वहां पहुंचे, शाम के कोई 5 बजे होंगे. घर की देहरी पर ही खाट बिछी थी. जिस पर मोटे से गद्दे पर रेशमी चादर बिछी थी. पिताजी को नाना ने वहां बड़े सत्कार से बिठाया. मैं भी पिताजी की बगल से सट कर बैठ गई. मां दोनों हाथों में संदूकची उठाए भीतर चली गईं. इतने में नानी बड़ी सी परात में पानी ले कर आईं और पिताजी के सामने जमीन पर बैठ कर उन्होंने उन के जूतेमोजे अपने हाथों से उतारे और उन के पैर ठंडे पानी की परात में डाल कर अपने हाथों से मलमल कर धोने लगीं. नानी घूंघट में रोए जातीं, बारबार पिताजी के पैर चूमें जातीं और धोए जातीं. मैं हैरान कि ऐसा क्या हो गया कि नानी इतनी जोरजोर से रो रही हैं. मेरे मन में आशंका उठी कि ऐसा तो नहीं कि हमारे आने से नानी खुश नहीं हैं. मैं पिताजी से जरा और सट गई कि कहीं ऐसा न हो कि यहीं से वापसी हो जाए.मगर पिताजी का नानी के क्रियाकलापों की तरफ कोई खास ध्यान नहीं था. वे आराम से बगल में खड़े नानाजी से बातें कर रहे थे. आने वालों से दुआसलाम कर रहे थे. हालचाल पूछ रहे थे. थोड़ी देर में नानी ने उन के पैरों के नीचे से पानी की परात हटाई और अपने पल्लू से पिताजी के पैर पोंछे. इस के बाद मेरी बड़ी मामी अपनी पानी की परात ले कर सामने जमीन पर बैठ गईं और उन्होंने भी रोरो कर पिताजी के पैर धोए, फिर छोटी मामी और गांव की कुछ और औरतों ने भी यही क्रम दोहराया. कोई आधेपौने घंटे तक तो पिताजी के पैर धुलते रहे, पानी से भी और आंसुओं से भी, और उस के बाद वे घर के भीतर गए.इस क्रिया के बारे में बाद में बड़े होने पर मां से पता चला कि यह उन के ही नहीं, बल्कि पूर्वांचल के अनेक गांवों की रीत है कि दामाद के आगमन पर घर की औरतें उन के आने की खुशी को आंसुओं से व्यक्त करती हैं और उन के पैर पानी से ही नहीं, वरन अपने आंसुओं से भी धो कर इस बात की प्रसन्नता प्रकट करती हैं कि उन का दामाद उन की लड़की को सुखी रख रहा है और वह उस को उस के मातापिता से मिलवाने लाया है.हम करीब 15 दिन वहां रहे. अच्छाअच्छा खाने को मिला. दूधदही, मट्ठा, खीर, मांसाहार क्या नहीं खाया. खूब नईनई पोशाकें मिलीं. मुझे याद है कि जब हम वहां गए थे तो हमारे पास2 संदूक थे, मगर वापसी में हमारे पास4 संदूक, एक बड़ा बैग और 2 बड़े फल के टोकरे थे. साथ में, घी का कनस्तर, लड्डुओं और गुड़ का डब्बा, अपने खेत में उगे चावल का बोरा, मोरपंख से बने4 सुंदर पंखे, मामियों द्वारा हाथ की कढ़ी चादरें और न जाने क्याक्या सामान दिया था नानानानी ने.  मेरे 40 वर्षों के जीवनकाल में मैं4 चार बार ही अपने ननिहाल गई होऊंगी. हां, बहुत चिरौरी करने पर पिताजी मां को ले कर जरूर 5-6 बार गए होंगे, ज्यादा नहीं. मगर हर बार उन की आवभगत वैसी ही होती रही, जैसी मैं ने अपनी याददाश्त में पहली बार देखी थी. नानी की मृत्यु के बाद भी मेरी दोनों मामियां उस परिपाटी का पालन करती रहीं. आज यह पीढ़ी अपने उम्र के चौथे पड़ाव पर है, मगर आज भी अगर पिताजी मां को ले कर चले जाएं तो मुझे विश्वास है कि मेरी मामियां उसी तरह उन के पैर पानी के साथसाथ अपने आंसुओं से धोएंगी, उसी तरह उन की आवभगत करेंगी, जैसी नानी के वक्त में होती थी.मैं कभीकभी मां को उलाहना देती हूं कि तुम तो वैसी आवभगत अपने दामाद की नहीं करतीं, जैसी नानी पापा की किया करती थीं. तो वे हंस देती हैं. उन की हंसी में एक पीड़ा छिपी है. दरअसल, मां आर्थिक रूप से पिताजी पर आश्रित थीं, इसलिए उन की हर इच्छा पिताजी की हां, ना पर ही निर्भर होती थी. वे सालों अपने मायके जाने के लिए तरसती रहती थीं. यहां तक कि नानी की मृत्यु का समाचार मिलने पर भी वे उस वक्त नहीं जा पाईं, 2 माह बाद जब पिताजी को काम से थोड़ी फुरसत हुई, तब गईं. मगर मैं आर्थिक रूप से आजाद हूं. इसलिए अपनी मरजी की मालिक हूं.आज मुझे अपने मातापिता से मिलना होता है तो उस के लिए मुझे अपने पति की मिन्नतें करने की आवश्यकता नहीं होती. मेरे पति साथ जाना चाहें तो ठीक, वरना मैं अकेले ही सक्षम हूं. जब चाहती हूं, टिकट कटा कर मांपिताजी के पास पहुंच जाती हूं. औरत की आर्थिक आजादी ने बीते दशकों में जहां औरत को मजबूत बनाया है, वहीं ससुराल में दामाद की आवश्यकता से अधिक आवभगत और सत्कार, जो पहले इज्जत से ज्यादा एक डर की वजह से हुआ करता था, को खत्म किया है.औरत की आर्थिक आजादी ने उस के मायके वालों पर उस बड़े आर्थिक दबाव को भी खत्म कर दिया है, जो उन्हें मजबूरन दामादजी और उन के परिवार को खुश रखने के लिए झेलना पड़ता था.

बेटा बनने को मजबूर दामाद

लड़कियों की आर्थिक आजादी ने लड़कों की मनमरजी पर रोक लगाई है, तो उन को भी ससुराल में अपने मानसम्मान को बचाए रखने के लिए अपनी भूमिका में परिवर्तन के लिए मजबूर होना पड़ा है. पहले जहां दामाद अपनी ससुराल में एक मेहमान की तरह जाता था और मेहमान की तरह उस का सादरसत्कार होता था, वहीं आज वह घर के बेटे की तरह देखा जाता है. इसलिए दिखावे के आदरसत्कार में कमी आई है और प्रेम व विश्वास में बढ़ोतरी हुई है. कहींकहीं तो इकलौता दामाद सासससुर का ऐसा लाड़ला हो गया है कि वह अपनी बेटी से घर की बातें इतनी डिस्कस नहीं करते, जितनी दामाद के साथ कर लेते हैं. कई घरों में तो ससुरजी बिजनैस संबंधी सलाह बेटे से ज्यादा दामाद से करते नजर आते हैं. वहीं, सासें भी बेटे से ज्यादा प्यार दामाद पर लुटाती दिखाई देती हैं.अब फिल्म ऐक्टर अक्षय कुमार को ही ले लीजिए. उन की पत्नी ट्विंकल खन्ना से ज्यादा उन की सास डिंपल कपाडि़या अक्षय को प्यार करती हैं. अक्षय और उन की सासुमां का रिश्ता बेहद खास है. खुद अक्षय यह बात कई बार कह चुके हैं कि उन की लाइफ में उन की बीवी, बेटी के अलावा उन की सासुमां बहुत अहम स्थान रखती हैं. इन दोनों को अकसर इवैंट्स पर साथ देखा जाता है और दोनों की कैमिस्ट्री देख कर लगता है कि ये असल जिंदगी में सासदामाद नहीं, बल्कि मांबेटे हैं.वहीं, शर्मिला टैगोर अपने दामाद कुणाल खेमू को अपना दूसरा बेटा मानती हैं. कुणाल की शादी शर्मिला टैगोर की छोटी बेटी सोहा अली खान से हुई है. फैमिली के हर पार्टी फंक्शन में भले शर्मिला का बेटा सैफ मौजूद न हो, मगर दामादजी जरूर मौजूद होते हैं.साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत और उन के दामाद धनुष की बौडिंग भी जबरदस्त है. धनुष की शादी रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या से हुई है, मगर धनुष और रजनीकांत को साथ देख कर अकसर लोग उन्हें बापबेटा समझ लेते हैं.वहीं करीना के पापा रणधीर कपूर का अपने छोटे दामादजी यानी सैफ अली खान से रिश्ता काफी करीबी है. इन दोनों की आपस में खूब बनती है. इसीलिए ससुरदामाद की यह जोड़ी भी अकसर फैमिली फंक्शन में साथ पोज देते देखी जाती है.ये तो हुई बौलीवुड की बातें, छोटे शहरों के मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों में भी अब दामाद अपनी ससुराल में बेटे की जगह लेते जा रहे हैं. खासतौर पर वे दामाद जिन की पत्नियां अपने मांबाप की इकलौती हैं, या जिन की सिर्फ बहनें ही हैं, भाई नहीं हैं. इस बदलाव की बड़ी वजहें हैं औरत का पढ़ालिखा होना, नौकरीपेशा होना, अपने पैरों पर खड़ा होना और अपनी मरजी को पूरा करने के लिए पति पर आश्रित  न होना. इस बदलाव के चलते ही दामाद को ससुराल वालों के प्रति अपना व्यवहार और भूमिका में चेंज लाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. मगर इस मजबूरी ने रिश्तों को नए रंगरूप भी दिए हैं. इस से दिखावा, डर और पराएपन की भावना खत्म हुई है और रिश्तों में निकटता आई है, तो साथ ही, दामाद पर 2 परिवारों की जिम्मेदारी और दोनों परिवारों के बुजुर्गों की देखभाल का बोझ भी आन पड़ा है.

दामाद निभा रहे बेटे का फर्ज

नेहा अपने मांबाप की इकलौती बेटी थी. उस की शादी के बाद उस के मांबाप अकेले हो गए. नेहा की शादी दूसरे शहर में हुई थी. उस का पति विकास भी अपने मातापिता का इकलौता बेटा था. नेहा और विकास दोनों नौकरीपेशा थे. कई सालों तक तो कोई परेशानी नहीं हुई, मगर जैसेजैसे नेहा और विकास के मातापिता की उम्र बढ़ती गई, अनेक रोगों ने बूढ़े शरीरों में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दीं. ऐसे में नेहा कभी अपनी ससुराल में तो कभी अपने मातापिता की देखभाल के लिए मायके में रहने लगी. उस की 11 साल की बेटी की पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई. बारबार लंबी छुट्टियां लेने से नेहा की नौकरी भी जाती रही. मगर मांबाप को बीमारी में अकेले कैसे छोड़ती, लिहाजा बेटी को ले कर वह अपने मायके में ही रहने लगी. उधर, ससुराल में उस के सासससुर के साथ भी दिक्कतें शुरू हो गईं. ऐसे में विकास ने एक रास्ता निकाला. उस ने नेहा के मातापिता को अपने साथ रहने के लिए किसी तरह मना लिया. नेहा ने अपना घर बेच कर पहले से बड़ा घर खरीदा, जहां दोनों के मातापिता पूरी आजादी के साथ भी रहें और नेहा और विकास की आंखों के सामने भी रहें. अब विकास और नेहा चारों बुजुर्गों की देखभाल ठीक से कर पाते हैं. नेहा ने नई नौकरी भी जौइन कर ली है. आसिमा का निकाह फैज से हुआ था. आसिमा का कोई भाई नहीं था, मगर उस से छोटी 2 बहनें और थीं, जिन की शादी की जिम्मेदारी उसे निभानी थी. ससुराल आने के बाद वह इसी चिंता में घुली जाती थी कि बहनों के लिए रिश्ता कैसे ढूंढे़. आखिरकार एक दिन उस ने फैज को अपनी परेशानी बताई. फैज को आसिमा की मां अपने बेटे की तरह चाहती थीं, लिहाजा फैज ने भी बेटा होने का फर्ज अदा किया और उस की मेहनत से आसिमा की दोनों बहनों के घर भी बस गए.आज आसिमा बहुत खुश है क्योंकि उस का पति जितना प्यार अपने परिवार के सदस्यों को देता है, जो जिम्मेदारी उन के प्रति निभाता है, वैसा ही प्यार, सम्मान और जिम्मेदारी वह आसिमा की फैमिली के लिए भी प्रकट करता है. यही वजह है कि आसिमा के मन में भी अपने पति और अपने ससुराल वालों के लिए उतनी ही इज्जत और प्यार है, जितनी अपने परिवार के लिए है. जिन परिवारों में बेटे नहीं होते, वहां दामाद ही ससुर के बाद मुखिया बन जाते हैं और उन्हें ही सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां वहन करनी होती हैं.

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दोहरी जिम्मेदारी में पिस रहे दामाद

बदलाव के असर अगर अच्छे हैं, तो बुरे भी हैं. मदनलाल की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं है. छोटी सी किराने की दुकान है, जिस से उस का 5 जनों का परिवार चलता है. ऐसे में जब उस पर उस के सासससुर की देखभाल और इलाज का बोझ भी पड़ने लगा तो घर में आएदिन पत्नी के साथ लड़ाईझगड़े शुरू हो गए. पत्नी कहती कि अपने बीमार मांबाप की देखभाल और इलाज मैं न करवाऊं तो कौन करवाएगा? वहीं मदनलाल कहता है कि इलाज के लिए मैं तो पैसे नहीं दूंगा. पत्नी कहती, मत दो, मैं अपने गहने बेच दूंगी, मगर तुम ने अगर अपने मांबाप पर भी रुपया खर्च किया तो मैं तुम को थाने तक घसीटूंगी. वह मदनलाल पर चीखती कि मेरे बाप ने इतना दहेज दिया, हर तीजत्योहार पर तुम्हारी जेबें भरीं, तब उन से पैसा लेते तुम्हें कभी झिझक नहीं हुई, अब जब उन को बुढ़ापे में देखभाल की, दवाइलाज की जरूरत है तो तुम पीठ दिखा रहे हो?मदनलाल जैसे दामादों की भी समाज में कमी नहीं है जो दोहरी जिम्मेदारी की चक्की में पिस रहे हैं. ऐसी स्थिति में वे पुरुष ज्यादा फंसे हैं, जिन की आय कम है और जिन की ससुराल में बुजुर्गों की देखभाल व जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई मर्द नहीं है. जब तक सासससुर की सेहत ठीक रहती है, तब तक तो कोई परेशानी नहीं होती, मगर बुढ़ापा और बीमारी उन्हें अपने दामाद पर बोझ बना देते हैं.

बौयफ्रैंड पर इकोनौमिक डिपैंडैंस नो…नो…नो…

लड़के-लड़कियों का रिलेशनशिप में होना कोई नई बात नहीं हैं और न ही लड़कियों का अपने बौयफ्रैंड्स से छोटेमोटे गिफ्ट्स की उम्मीद लगाना नया है. लड़कियों की अपने बौयफ्रैंड्स से कई तरह की अपेक्षाएं होती हैं. कुछ के लिए रिलेशनशिप में आने का मतलब ही यह होता है कि आज तक जो इच्छाएं पूरी न हो सकीं, अब करेंगे. लेकिन, ये लड़कियां या तो स्कूलगोइंग होती हैं या फिर कालेजगोइंग, और उन के खुद के पास इतने पैसे नहीं होते जो उन के अरमानों को पूरा करने के लिए पर्याप्त हों.

ऐसे में उन की जरूरतें पूरी करने के लिए प्रकट होते हैं उन के बौयफ्रैंड्स जिन्हें शरूशुरू में तो पैसा लुटाने और अपनी धाक जमाने में बड़ा मजा आता है, लेकिन जैसेजैसे उन के हाथ से पैसा जाने लगता है यह मजा सजा बन कर रह जाता है. डेट्स का बिल, मूवी टिकट, महंगे कैफे में खाना, मिलने पर फूल या चौकलेट, फोन का रिचार्ज विद ऐक्स्ट्रा डाटा पैक, फैस्टिवल और वेलैंटाइन पर अलग तोहफे और बर्थडे पर तो सम झो दीवाला निकल जाता है.

कहीं आनाजाना हो, तब भी रिकशे से ले कर पानी खरीदने तक का बिल बौयफ्रैंड की जेब से ही खर्च होता है, क्योंकि गर्लफ्रैंड का हाथ बैग में लिपस्टिक के लिए तो हर घंटे जाता है लेकिन पैसों के लिए नहीं. लड़कियों का पैसों के मामले में पूरी तरह से बौयफ्रैंड पर आश्रित हो जाना और हर छोटीबड़ी चीज के लिए उस का मुंह ताकना एक आदत बन जाती है जो समय के साथ पहले से ज्यादा गहराती जाती है.

लड़कियों की प्यार के नाम पर अपने बौयफ्रैंड्स पर यह इकनौमिक डिपैंडैंस लड़कों का जीना मुश्किल कर देती है या यों कहें कि उन्हें बरबाद कर देती है. ये वही लड़के हैं जो बेचारे बाबू, जानु, शोनामोना करते रह जाते हैं और रिलेशनशिप खत्म होने पर इन्हीं गर्लफ्रैंड्स को गोल्डडिग्गर होने का टैग देते फिरते हैं. सोशल मीडिया पर तो ऐसे लड़कों की भरमार है. असल में देखा जाए तो इस में पूरी तरह लड़कियों की गलती नहीं कही जा सकती. लड़कों को खुद को एक लैवल अप दिखाने का कोई मौका छोड़ना पसंद नहीं. ऐसे में पैसा, रुतबा दिखाने से बेहतर क्या होगा?

1. बौयफ्रैंड खर्च करने को शान मानते हैं

पीयूष एक अमीर घराने का लड़का था जिसे दिन के 700-800 रुपए लुटाना आम बात लगती थी. उस की गर्लफ्रैंड नीता भी खूब खर्चीली थी और आएदिन पापा से पैसे मांग कर खर्च करती थी. पीयूष और नीता रिलेशनशिप में थे और काफी खुश भी थे. लेकिन जब भी दोनों डेट पर जाते तो सारा खर्च पीयूष उठाता. उसे नीता का पैसे खर्च करना खुद की बेइज्जती लगता था. नीता के पास भी पैसे होते थे लेकिन पीयूष ही सारे बिल भरता था.

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कालेज के थर्ड ईयर तक आतेआते पीयूष को पैसों की तंगी होने लगी, जिस के चलते अब वह नीता पर खर्च नहीं कर पाता था. नीता के सामने  झुकना और ‘लड़की के पैसों पर जीना’ वाली धारणा लिए रिलेशनशिप में रहना पीयूष को कतई मंजूर नहीं था. उस ने डेट्स पर जाना, नीता के साथ फिल्म देखना, घूमनाफिरना सब कम कर दिया. फिर क्या होना था, नीता और पीयूष के बीच अनबन होने लगी. पीयूष हमेशा टैंशन में रहने लगा, नीता को टाइम भी नहीं देता था. आखिर, कुछ ही दिनों में दोनों का ब्रेकअप हो गया.

2. गर्लफ्रैंड को इंप्रैस करने के लिए करते हैं खर्च

काव्या रोहित को कालेज में मिली थी. रोहित उसे देख कर मानो हवा में उड़ने लगा. जब वे दोनों रिलेशनशिप में आए तो रोहित जबतब उसे अपनी स्कूटी पर घुमाने ले जाता. वह उसे उस की मनपसंद आइसक्रीम खिलाने ले जाता था. काव्या के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह महंगे कपड़े खरीद पाती. वह रोहित के सामने जानबू झ कर कहा करती थी कि उसे यह या वह ड्रैस लेने का बहुत मन है लेकिन पैसे नहीं हैं अभी. रोहित यह सुन कर सम झ जाता कि उसे काव्या को गिफ्ट में अगली बार क्या देना है. काव्या और रोहित एक ही ग्रुप में थे. कोई और दोस्त काव्या को यह न कहे कि वह रोहित के पैसों पर जी रही है, रोहित उस के साथसाथ गु्रप की बाकी लड़कियों को भी शौपिंग करा आता. वे सभी कहीं कुछ खाने जाते तो काव्या खाने से इसलिए मना कर देती कि उस के पास पैसे नहीं हैं. इस पर रोहित अपने साथसाथ उस के पैसे भी दे देता.

रोहित हर दूसरे दिन अपनी मम्मी से पैसे मांगता था. मम्मी के मना करने पर उन से लड़ भी पड़ता. अपनी गर्लफ्रैंड का दिल जीतने के लिए उसे जो कुछ भी करना पड़ता, वह करता था. पर वह दिन दूर नहीं था जब दोनों का ब्रेकअप हो गया. रोहित और काव्या दोनों को ही ब्रेकअप का दुख था लेकिन ब्रेकअप के बाद रोहित को काव्या पर बहुत गुस्सा आया था. वह अब उस के बारे में किसी को भी कुछ बताता तो यह जरूर कहता कि वह एक पैसा खाने वाली लड़की है जिस ने उस का पैसों के लिए खूब इस्तेमाल किया. ऐसे में यह सम झना बहुत जरूरी हो जाता है कि चाहे आप का बौयफ्रैंड खुद आप पर पैसे लुटाना चाहे, फिर भी आप को उसे खुद पर खर्च करने से रोक देना चाहिए.

3. गर्लफ्रैंड्स खुद के खर्चे उठाना सीखें

ऐसा नहीं है कि हर लड़की अपने बौयफ्रैंड पर ही निर्भर रहती है. ऐसी लड़कियां भी हैं जो अपने खर्चे खुद उठाती हैं. फिर भी जिन लड़कियों को अपने पैसे खर्च करने के बजाय अपने बौयफ्रैंड की जेब ढीली करने में आनंद आता हो उन्हें यह सम झना बहुत जरूरी है कि वे अपने रिलेशनशिप को तो डिसबैलेंस्ड कर ही रही हैं, साथ ही, अपने बौयफ्रैंड की टैंशन और अजीब व्यवहार का कारण भी बन रही हैं.

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4. हर समय तोहफों की अपेक्षा न करें

लड़कियों का हर समय तोहफे मांगते रहना या अपने बौयफ्रैंड से महंगे तोहफे लेने की अपेक्षाएं असल में लड़कों के लिए परेशानी का सबब बन जाती हैं. वे कभी दोस्तों से पैसे उधार मांगते हैं तो कभी बड़े भाईबहन से. मम्मीपापा अगर पैसे के लिए मना कर दें तो वे उन से लड़ाई झगड़े पर उतर आते हैं. पैसों को ले कर बौयफ्रैंड की यह टैंशन गर्लफ्रैंड अपनी अपेक्षाएं कम कर आसानी से दूर कर सकती है.

5. अपने बिल खुद भरें

हर चीज में लड़कियां लड़कों से आगे हैं तो इस में क्यों पीछे रहें. लड़कियों को जरूरत है कि वे डेट्स या मूवीज का पूरा बिल न सही पर अपने हिस्से का तो दे ही दें. इस से बेचारे बौयफ्रैंड का कम से कम थोड़ा बो झ तो कम होगा.

6. मनपसंद चीजों के लिए पैसे बचाना सीखें

लड़कियों को भी अपने घर से अच्छाखासा जेबखर्च तो मिल ही जाता है. और अगर किसी महंगी चीज को खरीदने का मन करे तो उस के लिए पैसे बचाएं. अपने खुद के पैसों से खरीदी हुई चीज का मोल कहीं ज्यादा होता है.

7. पैसे नहीं हैं तो इच्छाएं कम रखें

हर सुंदर चीज पर दिल आ जाना और अपने बौयफ्रैंड की तरफ नजर घुमा लेना बहुत सी लड़कियों की आदत होती है. यह एक बुरी आदत है क्योंकि आप की इच्छाएं पूरी करना आप के बौयफ्रैंड का काम नहीं है. अगर पैसे नहीं हैं तो ऐसी इच्छाएं रखना कम कर दीजिए. यानी, रिलेशनशिप में खर्च केवल लड़का ही उठाए, यह सरासर गलत है. लड़कालड़की दोनों ही रिलेशनशिप में बराबर की हिस्सेदारी रखते हैं, तो बिल्स के भी बराबर हिस्से होने चाहिए.

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माता-पिता के विवाद का बच्चे पर असर

8 साल के कृष का व्यवहार कहीं से भी उस के हमउम्र दोस्तों सा नहीं है. खेलते समय अकसर अपने साथी दोस्तों को डरानाधमकाना और उन्हें मार बैठना उस की आदतों में शामिल है. इस बात के लिए उस के स्कूल और पासपड़ोस से कई बार शिकायतें भी आ चुकी थीं. उस के मम्मीपापा ने प्यार से, डांट कर समझाया पर वह उन की एक भी नहीं सुनता, बल्कि उन्हें भी आंखें दिखाने लगता है. जब डांट फटकार ज्यादा लगती है, तो घर की चीजें उठाउठा कर फेंकने लगता है.

दरअसल, कृष के मम्मीपापा दोनों कामकाजी हैं. तनावभरी जिंदगी में अकसर दोनों के बीच कहासुनी हो जाती है. कभीकभी तो लड़ाई इतनी बढ़ जाती है कि दोनों चीखनेचिल्लाने लगते हैं. कोई किसी की बात सुननेसमझने को तैयार नहीं होता. कई बार कृष अपने पापा को अपनी मम्मी पर हाथ उठाते भी देखता जिसे देख कर वह सहम उठता. धीरेधीरे फिर वह भी उसी प्रकार आचरण करने लगा. अपने मां, पापा से कोई भी बात वह चीखचिल्ला कर बोलता. गुस्से में घर की चीजें पटकता और वही सब फिर अपने दोस्तों के साथ करने लगा.

इस के लिए उस के मां, पापा जिम्मेदार हैं, क्योंकि कितनी बार कभी रो कर, कभी खामोश रह कर कृष ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, लेकिन उस के मां, पापा ने कभी उस की बातों को नहीं समझा और उस के सामने ही आपस में लड़तेझगड़ते रहे. नतीजा, आज कृष एक जिद्दी और गुस्सैल बच्चा बन चुका है.

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13 साल की तन्वी स्कूल में एकदम चुपचाप रहती है. किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करती और न ही स्कूल की किसी ऐक्टिविटी में भाग लेती है. कारण, 2 साल पहले उस के मां,पापा का तलाक हो गया. दोनों में इतनी लड़ाई होती थी कि आखिरकार दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया. तन्वी रहती तो अपनी मां के साथ है, लेकिन छुट्टियों में अपने पापा के पास भी जाती रहती है. लेकिन अब उस का हंसनाखिलखिलाना सब खत्म हो चुका है. पढ़ाई में भी वह पहले जैसी होशियार नहीं रही. दोस्त भी उस के कम हो गए हैं.

फिर भी उस के मातापिता को समझ नहीं आ रहा है कि ये सब उन के कारण ही हुआ है. उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि उन के खराब रवैए का उन की बेटी पर क्या असर हो रहा है. बस, दोनों ने अपनाअपना स्वार्थ देखा और अलग हो गए.

हर बच्चे के लिए उस के मां, पापा उस के रोल मौडल होते हैं. उन की नजरों में वे सब से बेहतरीन इंसान होते हैं. ऐसे में जब मातापिता बच्चों के सामने ही लड़नेझगड़ने लगते हैं, तो बच्चा ठगा सा महसूस करने लगता है. उस ने अपने दिल में अपने मांपापा की जो छवि बनाई होती है वह टूटनेबिखरने लगती है और फिर या तो वह चुप रहने लगता है या फिर अपने मातापिता की तरह ही बन जाता है.

साइकोलौजी की इमिटेशन थ्योरी से यह साबित भी होता है कि बच्चे सामाजिक व्यवहार अपने मातापिता से ही सीखते हैं. वैसे तो हर मातापिता की यही कोशिश होती है कि वे कुछ भी ऐसा न करें, जिस का बच्चे पर गलत असर हो. लेकिन कई बार उन से बच्चों के सामने ही कुछ ऐसा व्यवहार हो जाता है, जिस का असर बच्चों पर पड़ने लगता है और फिर बच्चे भी वैसा ही करने लगते हैं.

पटना के हाई कोर्ट के एक वकील का कहना है कि पतिपत्नी झगड़ा करने के बाद बच्चों की नजरों में खुद को सही साबित करने के लिए एकदूसरे के खिलाफ जहर भरने लगते हैं. दोनों एकदूसरे पर दोषारोपण करने लगते हैं, जिस से बच्चे दुविधा में पड़ जाते हैं.

लड़ाई-झगड़े का बच्चों पर असर

अवसाद यानी डिप्रैशन

जो बच्चे अपने मातापिता को लड़तेझगड़ते देख  कर बड़े होते हैं उन में डिप्रैशन की समस्या हो जाती है, क्योंकि उन्हें खुशनुमा माहौला नहीं मिलता है, जिस के कारण वे डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं.

डरासहमा रहना

बच्चों के सामने लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज, मारपीट करते वक्त मातापिता यह भूल जाते हैं कि उन की इन हरकतों का बच्चों पर क्या असर हो रहा है. अकसर अपने मांपापा को लड़तेझगड़ते देख बच्चों में डर पैदा होने लगता है.

मानसिक रूप से परेशान: बहुत ज्यादा तंग माहौल में रहने से बच्चों में मानसिक समस्या हो जाती है. उन की मासूमियत खोने लगती है और वे जिद्दी और चिड़चिड़े होने लगते हैं. लेकिन मातापिता नहीं समझ पाते कि ये सब उन के ही कारण हो रहा है. जब तक उन्हें समझ आती है बहुत देर हो चुकी होती है.

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जिंदगी में बहुत कुछ खो देना

जिन बच्चों के घर में हमेशा कलह, अशांति का वातावरण बना रहता है उन का मानसिक विकास सही नहीं हो पाता है और वे दूसरे बच्चों के मुकाबले खेलकूद, पढ़नेलिखने में भी पीछे रह जाते हैं.

खुद को जिम्मेदार समझना

मातापिता की लड़ाई  जब रोज होने लगती है तब बच्चे को लगता है वही इस लड़ाई की वजह है और फिर वह गुमसुम सा रहने लगता है. कई बच्चे तो आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं.

भरोसा टूटने लगता है

लड़तेझगड़ते मांबाप को देख कर बच्चा अपनी जिंदगी से निराश होने लगता है. उसे कुछ भी अच्छा लगना बंद हो जाता है. वह किसी पर जल्दी भरोसा नहीं कर पाता. हर किसी का प्यार उसे झूठा लगता है.

कम आयु के बच्चों पर लड़ाईझगड़े का असर

बाल विशेषज्ञ के अनुसार छोटे बच्चे जहां मातापिता की बातों को समझ नहीं सकते, वहीं वे उन की भावनाओं को भलीभांति समझते हैं. इसलिए देखा गया है कि जिन परिवारों में मातापिता में लड़ाईझगड़े होते हैं, उन के  बच्चे सहम से जाते हैं. उन्हें लगने लगता है अब उन के मम्मीपापा अलग हो जाएंगे और उन के साथ नहीं रहेंगे. वे खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. यहां तक कि वे लोगों से मिलनेजुलने और कहीं आनेजाने से भी कतराने लगते हैं.

बड़ी उम्र के बच्चों पर लड़ाईझगड़े का असर

बड़ी उम्र के बच्चों से अकसर मातापिता लड़ाई में उन का पक्ष लेने की उम्मीद रखते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में बच्चे खुद को फंसा महसूस करते हैं. कई बार बच्चे ग्लानि से भी भर जाते हैं और मांपिता की लड़ाई के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगते हैं.

अमेरिका में हुई एक रिसर्च के अनुसार, शरीर के इम्यून सिस्टम पर लड़ाईझगड़ों का गहरा असर होता है और उन की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है. अगर बचपन में मातापिता के बीच लड़ाईझगड़े हुए हों, वे एकदूसरे से बोलते न हों, तलाक का केस लंबे समय तक चलता रहे, तो इस का असर बच्चों के कोमल मन पर बहुत बुरा पड़ता है और सिर्फ बचपन में ही नहीं, इस का नकारात्मक असर उन के पूरे जीवन पर रहता है.

मातापिता के झगड़ों का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ने लगता है, जिस की वजह से वे स्कूल में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते. रोवेस्टर, सिरैफ्यूज और नोट्रेडम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 3 साल की अवधि के दौरान 216 बच्चों, उन के अभिभावकों और शिक्षकों के बीच अध्ययन किया. मातापिता के संबंधों को ले कर बच्चों की चिंता पर हुए इस अध्ययन में पाया गया कि मातापिता के तनावभरे संबंधों का बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ता है.

पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा होना स्वाभाविक बात है, क्योंकि दोनों अलगअलग पृष्ठभूमियों से होते हैं, सो ऐसे में दोनों के विचारों में मतभेद होना लाजिम है. लेकिन विवाद बढ़ कर मारपीट तक पहुंच जाना और फिर तलाक होना सही नहीं है. कहने को तो यह पतिपत्नी के बीच का मामला है, लेकिन इस से बच्चों की जिंदगी बिखरने लगती है.

एक अध्ययन से पता चला है कि पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़े न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, बल्कि उन के मानसिक विकास पर भी बहुत बुरा असर डालते हैं. इस से बच्चों में कई तरह के मानसिक विकार उत्पन्न हो सकते हैं. वे या तो डरपोक बन जाते हैं या फिर जीवन की सही दिशा से भटक कर बिगड़ने लगते हैं. इसलिए मांबाप भले लड़ेंझगड़ें, पर इतना खयाल रखें कि उन की लड़ाई का असर उन के बच्चों पर न पड़े. अपने बच्चों का वे उसी प्रकार पालनपोषण करें जैसे हर मांबाप करते हैं.

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माता-पिता के लिए टिप्स

– अपने अहम को दरकिनार करते हुए बच्चों के बारे में सोचें.

– लड़ाईझगड़ा हर पतिपत्नी के बीच होता है, लेकिन जब एक गुस्से में हो, तो दूसरे को चुप हो जाना चाहिए. इस से बात

नहीं बढ़ती.

– बच्चों को अपनी लड़ाई का हिस्सा न बनाएं.

– अगर पतिपत्नी किसी बात पर सहमत नहीं हैं, तो बच्चों के सामने ही एकदूसरे की बेइज्जती न करें.

– बच्चों के सामने गलत और नकारात्मक प्रभाव वाली भाषा का इस्तेमाल न करें.

– बच्चों के सामने चिल्लाचिल्ला कर गालीगलौज से बात न करें.

– इस बात का ध्यान रखें कि जो बातें आप को कष्ट पहुंचा सकती हैं वे बालमन पर भी बुरा असर डालेंगी.

– अगर पतिपत्नी के बीच विवाद रुक नहीं रहा है, तो किसी काउंसर से संपर्क करें.

 

औफिस में रखें इन बातों का ध्यान

घर के बाद औफिस मतलब आपको वर्क प्लेस एक ऐसा स्थान होता है जहां आप सबसे ज्यादा समय व्यतीत करती हैं. वहां पर आपके रिश्ते अपने कलिग्स से पौजिटिव होने चाहिए, लेकिन अक्सर ऐसा होता है जब आप किसी औफिस में काम करती हैं और आपकी कुछ लोगों से अच्छी बनने लगती है….आप कोई भी औफिस की प्रौबलम हो उस व्यक्ति  से शेयर करती हैं. उसके साथ लंच पर जाती हैं,अक्सर चाय पीने भी चली जाती हैं,आपको उससे बात करना अच्छा लगता है. वो आपके औफिस का सबसे अच्छा दोस्त बन जाता है. आप हंसी-खुशी के पल उसके साथ शेयर करते हैं. लेकिन कभी-कभी ऐसे रिश्ते लोगों की आंखों में खटकने लगते हैं.

लोग तुरन्त ये सोचने लगते हैं कि जरूर इसका उसके साथ कोई चक्कर चल रहा है.आपस में बात करते हैं कि कुछ तो गड़बड़ है…देखो तो जब देखो उसी के साथ दिखती  है हमेशा.ऐसी बहुत सी बातें हैं जो लोग कहते हैं. अगर आपकी बौस के साथ अच्छी बनती है और आपका उसी बीच प्रमोशन होता है तो लोग ये कहने से बिल्कुस पीछे नहीं हटते की इसने सोर्स लगाया है और क्योंकि हम महिलाओं की बात कर रहे हैं तो उनके लिए तो ये तक बोल दिया जाता कि जरूर इसका बौस के साथ कुछ चक्कर है तभी तो देखो कैसे इसका प्रमोशन हो गया.

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लोग ये नहीं देखते की आप काम अच्छा कर रहे हैं बस आपके खिलाफ औरों को भड़काने का काम करते हैं, लेकिन आप बिल्कुल भी इन बातों पर ध्यान मत दीजिए क्योंकि ये औफिस है औफिस में ये सब लगा रहता है दूसरों के लिए कभी भी अपने रिश्तों को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है. अगर आप सही हैं तो कोई कुछ भी कहे आपको इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए. आप अपने काम पर फोकस करें ,अगर किसी से अच्छी बनती है तो उसको बना कर रखें.

आपके औफिस के लोग भी उस समाज की तरह ही होते हैं…उनका काम ही है कड़वा बोलना. वो सुना तो होगा ही आपने कि लोगों का काम है कुछ कहना….कुछ तो लोग कहेंगे.ये सब कहने का मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि आप अपने रिश्तों को बाकी कलिग्स से बिगाड़ लें…आप उनको समझे और कोशिश करें कि उनको समझाये और इतनी शालीनता से कि उनको बुरा भी न लगे. बेवजह की बातें मत करिए अपने काम से काम रखिए साथ ही उनको और उनकी बातों को सम्मान दें.

अगर आपको कोई परेशानी है तो उनकी मदद भी लें इससे आपके रिश्ते अच्छे बनेंगे.कभी-कभी कुछ लोगों को ज्यादा सम्मान देने पर वो आपकी हरकतों को गलत वे में ले लेता है इसलिए कोशिश करें कि आप उसको वैसा मौका ही न दें. साथ ही दूसरों की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहें.बस इन सारे तरीकों से आप अपने वर्क प्लेस पर अपनी अच्छी छवि बनेगी.

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लड़कों में क्या खोजती हैं लड़कियां

लड़कों की कौन सी अदाएं लड़कियों को अपना दीवाना बना सकती हैं, जान कर हैरान रह जाएंगे आप…

1. बौडी लैंग्वेज

कोई भी लड़की इस बात पर जरूर ध्यान देती है कि आप खड़े कैसे होते हैं, आप का उठनाबैठना कैसा है, दूसरों से बातचीत करते वक्त आप के बोलने की टोन कैसी होती है, आप की चाल कैसी है, आप सीधा, कंधों को उठा कर, कौन्फिडैंटली चलते हैं या नहीं, दूसरों के प्रति आप का व्यवहार कैसा है वगैरह. इसलिए किसी लड़की से मिलने जाना हो तो अपनी बौडी लैंग्वेज पर जरूर ध्यान दें. लड़कियों को वे लड़के भी बिलकुल पसंद नहीं आते जिन के शरीर से दुर्गंध आती हो.

2. लंबे पैर

‘यूनिवर्सिटी औफ कैंब्रिज’ में हुई एक स्टडी में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि महिलाओं और लड़कियों को पुरुषों के लंबे पैर आकर्षित करते हैं. इस औनलाइन सर्वे में पाया गया कि अमेरिका की 800 महिलाओं ने ऐसी मेल फिगर्स को तरजीह दी जिन के पैर औसत से थोड़े ज्यादा लंबे थे.

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3. सफाई और व्यवस्थित जीवनशैली

लड़कियों की नजरों में आने के लिए पर्सनल हाइजीन का खास खयाल रखना जरूरी है. लड़कियों की नजर सब से पहले लड़कों के बालों और दाढ़ी की ओर जाती है. उन्हें लड़कों के उलझे, बेतरतीब और गंदे बाल बिलकुल पसंद नहीं होते. अगर वे रोजाना सेव नहीं करते, कोई हेयरस्टाइल मैंटेन नहीं रखते तो भी लड़कियों की नजरों में उन का आकर्षण घट जाता है. यही नहीं पहली बार किसी लड़की से मिलने जा रहे हैं तो अपने नाखूनों पर भी नजर डालना न भूलें. लड़कियों को गंदे नाखून बिलकुल पसंद नहीं आते. वे यह भी जरूर देखती हैं कि आप ने जो कपड़े पहने हैं वे साफ हैं या नहीं, कपड़े प्रैस किए हैं या नहीं.

4. रियल पर्सनैलिटी

कुछ लड़कों की आदत होती है कि बातबेबात लड़कियों के आगे अपनी शेखी बघारने लगते हैं. अपना नौलेज, इनकम या लुक से संबंधित बातें बढ़ाचढ़ा कर बोलते हैं ताकि लड़कियां इंप्रैस हों. मगर होता इस का उलटा है. बनावटी लड़के कभी लड़कियों को पसंद नहीं आते. उन्हें हर समय रियल रहने वाले लड़के ही पसंद आते हैं.

5. सपाट पेट फिट शरीर

सांइटिफिक जनरल सैक्सियोलौजी में प्रकाशित एक अध्ययन की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि लड़कियां लड़कों के बाइसैप्स से पहले उन के पेट पर नजर डालती हैं. अगर पेट निकला हुआ नहीं है, आप फिट और स्मार्ट हैं तो लड़कियां आप के साथ जुड़ना चाहेंगी. वजह साफ है जो इंसान अपने शरीर की तंदुरुस्ती का खयाल नहीं रख सकता वह रिश्तों को कितना संभाल पाएगा. बढ़ा पेट कहीं न कहीं आप के आलसी स्वभाव, ढीले रवैए और अधिक खाने की आदत का परिचायक होता है. इसलिए किसी खास को पाना चाहते हैं तो सब से पहले अपने पेट पर काम करना शुरू करें.

6. पीछे पड़ने वाला न हो

लड़कियों को हर वक्त पीछे पड़े रहने वाले लड़कों के बजाय थोड़े रिजर्व और हलके ऐटिट्यूट वाले लड़के पसंद आते हैं. जो लड़के बारबार अप्रोच करने और ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते रहते हैं उन्हें ज्यादातर लड़कियां हलके में लेने लगती हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप धैर्य रखना सीखें वरना बनती बात बिगड़ सकती है. किसी भी बात को ले कर अपनी पार्टनर के साथ जबरदस्ती न करें, उसे तनाव में न आने दें.

7. सम्मान की चाह

हर लड़की चाहती है कि उस का प्रेमी या होने वाला जीवनसाथी उस की परवाह करे, उसे इज्जत दे, उस के घर वालों के साथ प्यार से पेश आए. वह जब भी आप की आंखों में देखे तो उसे उन में अपने लिए इज्जत महसूस हो. ऐसे में उसे एहसास होता है कि आप उसे दिल से प्यार करते हैं और यही आप को उस की नजरों में खास बनाता है.

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8. मैच्योरिटी

लड़कियां सदैव समझदार और मैच्योर व्यवहार वाले लड़कों को ही चुनती हैं. छिछोरी या बचकानी हरकतों वालों से दूर भागती हैं. इसलिए जरूरी है कि आप अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखें. बहुत ज्यादा बोलने वाले लड़के भी लड़कियों को पसंद नहीं आते. हर समय जल्दी में रहने वाले और बिना सोचेसमझे फैसले लेने वाले लड़के लड़कियों को पसंद नहीं आते. छोटीछोटी बात पर अपना आपा खो देने वाले लड़कों से भी लड़कियां दूरी बढ़ाती हैं, क्योंकि ऐसे लड़कों के साथ कभी रिश्ता लंबा नहीं खिंच पाता. लड़कियां उन लड़कों को पसंद करती हैं, जिन पर वे आंख मूंद कर भरोसा कर सकें.

9. सैंस औफ ह्यूमर

लड़कियों को वे लड़के ज्यादा पसंद आते हैं, जिन  का सैंस औफ ह्यूमर अच्छा होता है. अगर आप बोर किस्म के इंसान हैं तो लड़कियां आप से दूर भागेंगी. इसलिए अपने स्वभाव को ऐसा बनाने का प्रयास करें कि आप गंभीर माहौल को भी हलकाफुलका कर पाने में समर्थ हों.

10. दोस्ताना व्यवहार

अकड़ू, घमंडी लड़के कभी लड़कियों की फैवरिट लिस्ट में नहीं होते. वे वैसे लड़कों को ही पसंद करती हैं जो उन से फ्रैंडली बिहेवियर करते हैं और जिन के साथ वे कंफर्टेबल फील करती हैं. संकोची या बहुत कम बात करने वाले लड़कों से भी वे दूर भागती हैं. सकारात्मक सोच और अच्छे सैंस औफ ह्यूमर वाले लड़के लड़कियों की पहली पसंद होते हैं. तनावभरे माहौल को भी खुशनुमा बना देने की आदत रखने वाले लड़के लड़कियां को बहुत पसंद आते हैं.

11. बात करने का सलीका

आप के बात करने का तरीका कहीं न कहीं आप के व्यक्तित्व की पहचान होती है. आप दूसरों से कितने सलीके और कायदे से बात करते हैं उस आधार पर लड़कियां आप को परखती हैं. बातबात पर गालियां देने, लड़नेझगड़ने वाले लड़कों से लड़कियां दूर भागती हैं.

12. प्यार जाहिर करने की अदा

यदि आप किसी लड़की को प्यार करते हैं और उस की तरफ से भी स्वीकृति है तो आप को उसे स्पैशल फील कराने का प्रयासकरना होगा. अपनी रिलेशनशिप को मजबूत बनाने और उस लड़की के दिल में बने रहने के लिए अपने प्यार का एहसास कराते रहें. मगर इस का मतलब यह नहीं कि आप पूरी दुनिया में इस बात का ढिंढोरा पीटें. लड़कियां आप का समय चाहती हैं. आप साथ हों तो पूरी दुनिया से उन्हें कोई वास्ता नहीं होता. लड़की को दीवानों की तरह प्यार करें, फिर देखें कैसे वह सिर्फ आप की बन कर रहती हैं.

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कही ईगो न बन जाए आपके रिश्ते के टूटने का कारण

“राजेश क्या तुम अपने पहने कपड़ों को सही जगह नहीं रख सकते? लांड्री बैग है, फिर क्यों सब बिखरा पड़ा है? मैं और कितना करूँगी”!

राजेश  कहता है, “अजीब बात है, मैं ऑफिस से थका हुआ घर आया हूँ, तो एक कप चाय पूछने के बजाए तुम कपड़ों को लेकर झगड़ रही हो! माँ सही कहती थी, तुम कभी मेरी सही पत्नी नहीं बन सकती!”

ऐसे छोटे छोटे झगड़ों से ही रिश्ते में तनाव आता है. गौर करें ‘सही’ शब्द पर. आखिर ‘सही’ की परिभाषा क्या है? ये समझ ना पाने की वजह से ही रिश्ते टूटते हैं. इंसान क्यों शादी जैसे पाक रिश्ते को तोड़ना चाहता है, और कैसे हम इसे बचा सकते हैं?

1. क्रोध बुरा है

अपने गुस्से को खुद पर हावी न होने दें. मतभेद होंगे, झगड़ा होगा, एक दूसरे पर कभी कभी गुस्सा भी आएगा, पर अपने गुस्से से अपने प्यार को मिटने न दें.

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2. बात करना ज़रूरी है

अगर आप बात नहीं करेंगे, तो एक दूसरे के नज़रिये को समझ नहीं पाएंगे, और इससे, गलतफहमियां बढ़ सकती है. इसलिए, समस्या जो भी है, गुस्सा है, मलाल है, तो बता दीजिये. बैठ कर उस पर विचार करें, तो मन हल्का हो जाएगा, और मुश्किलें आसान हो जाएँगी.

3. सुनने और समझने की कोशिश करें

नमन वैसे तो शांत इंसान था, लेकिन हर दिन घरवालों की शिकायत से वह तंग आ गया था. वह अपने घरवालों को जानता था, उनसे जुड़ी समस्या को भी समझता था, पर सपना की बात को सुनना नहीं चाहता था. समस्या से मुंह फेरना, समस्या का हल नहीं है. सपना गलत नहीं थी. वह घर में नई थी, और उसे कई नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था, और ऐसे में वह नमन को छोड़ किसे बताती? इसलिए अपने साथी की बात को सुने, उनका सहारा बने. उनसे बहस करना ज़रूरी नहीं है, समझाया बाद में भी जा सकता है.

4. खुद को उनकी जगह रख कर सोचें

ये पति पत्नी दोनों पर लागू होता है, कि बहस के वक़्त, वे खुद को एक दूसरे की जगह रख कर सोचें. अगर सपना ऐसा करती तो वह समझ पाती कि घरवालों की निंदा हमेशा नमन को सुनना पसंद नहीं होगा.

5. अपने साथी पर का दबाव न डालें

हम अकसर अपने साथी को सर्वोत्तम समझने लगते हैं, और चाहते हैं, की वह हमारी तरह सोचें और करें, पर सब अलग व्यक्ति है, मत अलग है, तो ये आशा न करें कि आपका साथी आपकी तरह सोचेगा.

6. साथी बने, अभिभावक नहीं

पत्नियां सोचती हैं, कि वे अपने पति को बदल देंगी, पर इसकी ज़रूरत क्या है? मोबाइल चेक करना, हर बात पर टोकना, घर से बाहर जाते वक़्त रोकना, ये हरकतें, आपको उनके दिल से  दूर कर सकती हैं . उन्हें अपनी ज़िन्दगी जीने दें, अगर कोई आदत उनके लिए हानिकारक है, तो उन्हें सही तरह से समझाएं.

पति को भी समझना चाहिए की उनकी पत्नी एक पूर्ण महिला हैं, और उन्हें अपनी जिम्मेदारी और फैसले लेना आता है. तो उनके साथी बने, अभिभावक नहीं.

7. साथ में फैसले करें

इससे हर साथी खुद को ख़ास और महत्वपूर्ण महसूस करेगा, और आपके रिश्ते पर अच्छा असर पड़ेगा.

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8. ईगो को छोड़ दें

“मैं क्यों आगे जा कर बात करूँ, उसने झगड़ा किया है, उसे माफ़ी मांगनी चाहिए, अगर उसे परवाह नहीं, तो मुझे भी नहीं”, ऐसी मनोवृत्ति रखने का कोई फायदा नहीं. उन्हें हो न हो, आपको उनकी ज़रूरत है, ये आप समझें, अगर आप कहते हैं, “परवाह नहीं”, तो आप खुद को धोखा  दे रहे हैं.

इस लिए ईगो को छोड़ दें, और खुद आगे बढ़ कर रिश्ते में सुधार लाएं, और अपनी शादी को बचाएं.

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