Serial Story: आई विल चेंज माईसेल्फ

 

 

 

 

रागविराग: भाग 1- कैसे स्वामी उमाशंकर के जाल में फंस गई शालिनी

विकास की दर क्या होती है, यह बात सुलभा की समझ से बाहर थी. वह मां से पूछ रही थी कि मां, विकास की दर बढ़ने से महंगाई क्यों बढ़ती है? मां, बेरोजगारी कम क्यों नहीं होती? मां यानी शालिनी चुप थी. उस का सिरदर्द यही था कि उस ने जब एम.ए. अर्थशास्त्र में किया था, तब इतनी चर्चा नहीं होती थी. बस किताबें पढ़ीं, परीक्षा दी और पास हो गए. बीएड किया और अध्यापक बन गए. वहां इस विकास दर का क्या काम? वह तो जब छठा वेतनमान मिला, तब पता लगा सचमुच विकास आ गया है. घर में 2 नए कमरे भी बनवा लिए. किराया भी आने लगा. पति सुभाष कहा करते थे कि एक फोरव्हीलर लेने का इरादा है, न जाने कब ले पाएंगे. पर दोनों पतिपत्नी को एरियर मिला तो कुछ बैंक से लोन ले लिया और कार ले आए. सचमुच विकास हो गया. पर शालिनी का मन अशांत रहता है, वह अपनेआप को माफ नहीं कर पाती है.

जब अकेली होती है, तब कुछ कांटा सा गड़ जाता है. सुभाष, धीरज की पढ़ाई और उस पर हो रहे कोचिंग के खर्च को देख कर कुछ कुढ़ से जाते हैं, ‘‘अरे, सुलभा की पढ़ाई पर तो इतना खर्च नहीं आया, पर इसे तो मुझे हर विषय की कोचिंग दिलानी पड़ रही है और फिर भी रिपोर्टकार्ड अच्छा नहीं है.’’

‘‘हां, पर इसे बीच में छोड़ भी तो नहीं सकते.’’

सुलभा पहले ही प्रयास में आईआईटी में आ गई थी. बस मां ने एक बार जी कड़ा कर के कंसल क्लासेज में दाखिला करा दिया था. पर धीरज को जब वह ले कर गई तो यही सुना, ‘‘क्या यह सुलभा का ही भाई है?’’

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‘‘हां,’’ वह अटक कर बोली. लगा कुछ भीतर अटक गया.

‘‘मैडम, यह तो ऐंट्रैंस टैस्ट ही क्वालीफाई नहीं कर पाया है. इस के लिए तो आप को सर से खुद मिलना होगा.’’

सुभाषजी हैरान थे. भाईबहन में इतना अंतर क्यों आ गया है? हार कर उन्होंने उसे अलगअलग जगह कोचिंग के लिए भेजना शुरू किया. अरे, आईआईटी में नहीं तो और इतने प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज खुल गए हैं कि किसी न किसी में दाखिला तो हो ही जाएगा.

हां, सुलभा विकास दर की बात कर रही थी. वह बैंक में ऐजुकेशन लोन की बात करने गई थी. उस ने कैंपस इंटरव्यू भी दिया था, पर उस का मन अमेरिका से एमबीए करने का था. बड़ीबड़ी सफल महिलाओं के नाम उस के होस्टल में रोज गूंजते रहते थे. हर नाम एक सपना होता है, जो कदमों में चार पहिए लगा देता है. बैंक मैनेजर बता रहे थे कि लोन मिल जाएगा फिर भी लगभग क्व5 लाख तो खुद के भी होने चाहिए. ठीक है किस्तें तो पढ़ाई पूरी करने के बाद ही शुरू होंगी. फीस, टिकट का प्रबंध लोन में हो जाता है, वहां कैसे रहना है, आप तय कर लें.

रात को ही शालिनी ने सुभाष से बात की.

‘‘पर हमें धीरज के बारे में भी सोचना होगा,’’ सुभाष की राय थी, ‘‘उस पर खर्च अब शुरू होना है. अच्छी जगह जाएगा तो डोनेशन भी देना होगा, यह भी देखो.’’

रात में सुलभा के लिए फोन आया. फोन सुन कर वह खुशी से नाच उठी बोली, ‘‘कैंपस में इंटरव्यू दिया था, उस का रिजल्ट आ गया है, मुझे बुलाया है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘मुंबई जाना होगा, कंपनी का गैस्टहाउस है.’’

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‘‘कब जाना है?’’

‘‘इसी 20 को.’’

‘‘पर ट्रेन रिजर्वेशन?’’

‘‘एजेंट से बात करती हूं, मुझे एसी का किराया तो कंपनी देगी. मां आप भी साथ चलो.’’

‘‘पर तुम्हारे पापा?’’

‘‘वे भी चलें तो अच्छा होगा, पर आप तो चलो ही.’’

सुभाष खुश थे कि चलो अभी बैंक लोन की बात तो टल गई. फिर टिकट मिल गए तो जाने की तैयारी के साथ सुलभा बहुत खुश थी.

सुभाष तो नहीं गए पर शालिनी अपनी बेटी के साथ मुंबई गई. वहां कंपनी के गैस्टहाउस के पास ही विशाल सत्संग आश्रम था.

‘‘मां, मैं तो शाम तक आऊंगी. यहां आप का मन नहीं लगे तो, आप पास बने सत्संग आश्रम में हो आना. वहां पुस्तकालय भी है. कुछ चेंज हो जाएगा,’’ सुलभा ने कहा तो शालिनी सत्संग का नाम सुन कर चौंक गई. एक फीकी सी मुसकराहट उस के चेहरे पर आई और वह सोचने लगी कि वक्त कभी कुछ भूलने नहीं देता. हम जिस बात को भुलाना चाहते हैं, वह बात नए रूप धारण कर हमारे सामने आ जाती है.

उसे याद आने लगे वे पुराने दिन जब अध्यात्म में उस की गहरी रुचि थी. वह उस से जुड़े प्रोग्राम टीवी पर अकसर देखती रहती थी. उस के पिता बिजनैसमैन थे और एक वक्त ऐसा आया था जब बिजनैस में उन्हें जबरदस्त घाटा हुआ था. उन्होंने बिजनैस से मुंह मोड़ लिया था और बहुत अधिक भजनपूजन में डूब गए थे. उस के बड़े भाई जनार्दन ने बिजनैस संभाल लिया था. वहीं सुभाष से उन की मुलाकात और बात हुई. उस के विवाह की बात वे वहीं तय कर आए. उसे तो बस सूचना ही मिली थी.

तभी वह एक दिन पिता के साथ स्वामी उमाशंकर के सत्संग में गई थी. उन्हें देखा था तो उन से प्रभावित हुई थी. सुंदर सी बड़ीबड़ी आंखें, जिस पर ठहर जाती थीं, वह मुग्ध हो कर उन की ओर खिंच जाता था. सफेद सिल्क की वे धोती पहनते थे और कंधे तक आए काले बालों के बीच उन का चेहरा ऐसा लगता था जैसे काले बादलों को विकीर्ण करता हुआ चांद आकाश में उतर आया हो.

शालिनी के पिता उन के पुराने भक्त थे. इसलिए वे आगे बैठे थे. गुरुजी ने उस की ओर देखा तो उन की निगाहें उस पर आ कर ठहर गईं.

शालिनी का जब विवाह हुआ, तब उस के भीतर न खुशी थी, न गम. बस वह विवाह को तैयार हो गई थी. पिता यही कहते थे कि यह गुरुजी का आशीर्वाद है.

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विवाह के कुछ ही महीने हुए होंगे कि सुभाष को विशेष अभियान के तहत कार्य करने के लिए सीमावर्ती इलाके में भेजा गया. शालिनी मां के घर आ गई थी.

तभी पिता ने एक दिन कहा, ‘‘मैं सत्संग में गया था. वहां उमाशंकरजी आने वाले हैं. वे कुछ दिन यहां रहेंगे. वे तुम्हें याद करते ही रहते हैं.’’

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Serial Story: आई विल चेंज माईसेल्फ- भाग 1

लेखक- राजेश कुमार सिन्हा

आज सुबह उठते ही अनुज ने यह तय कर लिया था कि वह औफिस नहीं जाएगा, बस पूरे दिन आराम करेगा या कोई अच्छी सी साहित्यिक पत्रिका पढ़ेगा. इस से थोड़ा मानसिक तनाव कम हो जाएगा, यही सोच कर उस ने सब से पहले अपने सीनियर और सहकर्मी दोनों को ही मैसेज कर दिया और फिर अनमने मन से चाय बनाने की तैयारी करने लगा.

अनुज को किचन में जाना बिलकुल पसंद नहीं था. जब तक कोमल उस के साथ थी, वह शायद ही कभी किचन में गया था, पर उस के जाने के बाद से उस के पास किचन में न जाने का कोई विकल्प नहीं था.

पिछ्ले 5 महीनों से वह लंच कैंटीन में और डिनर पास के होटल में कर लेता था, पर चाय या कुछ लाइट स्नैक्स के लिए किचन में आना उस की मजबूरी थी.

अनुज जब बहुत छोटा था, तभी उस के मातापिता का देहांत एक सड़क दुर्घटना में हो गया था और उस की परवरिश उस की बूआ ने की थी, जो उसे बहुत प्यार करती थी, इसलिए वहां उस के जिम्मे कोई काम नहीं था. फिर कालेज और आगे की पढ़ाई उस ने होस्टल में रह कर की थी, जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध थीं. ऐसे में न तो उसे कोई काम करने का मौका मिला और न ही उस ने कभी ऐसी रुचि दिखाई.

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नौकरी शुरू करने के कुछ ही दिन बाद कोमल उस की जिंदगी में आ गई, फिर तो मानो उस की जिंदगी में पर लग गए…

वह इन्हीं खयालों में डूबा था कि अचानक उस के मोबाइल की घंटी बजी. फोन औफिस से ही था. उस ने फोन उठा लिया और बातें करने लगा. बातचीत लंबी चली और जब बात खत्म हुई, तब तक आधी चाय उबल कर नीचे आ चुकी थी. उसे बहुत गुस्सा आया और चाय पीने का मूड जाता रहा. तभी उसे खयाल आया कि अगर अभी कोमल यहां होती तो अब तक उसे दोबारा चाय मिल चुकी होती…

कोमल का खयाल आते ही वह गुस्से से भर गया. बेमन से उस ने टैलीविजन चालू कर दिया और अपने पसंदीदा चैनल की खोज में फटाफट चैनल बदलने लगा. तभी उसे याद आया कि वह जब भी ऐसा करता था तो कोमल उसे डांट दिया करती थी.

“क्या कर रहे हो, न खुद कुछ देखते हो और न दूसरों को देखने देते हो, मुझे पता है कि तुम गुस्से में हो, पर अपना गुस्सा इस पर क्यों निकाल रहे हो, कुछ खराब हो जाएगा तो बिना मतलब ही खर्च करना पड़ जाएगा. लाओ रिमोट… मुझे दो,” और वह रिमोट उस के हाथ से ले लिया करती थी.

“तुम्हें कैसे पता कि मैं गुस्से में हूं?”

“मुझे सब पता चल जाता है,” यह कह कर वह जोर से हंस दिया करती थी. उस की हंसी में मेरा गुस्सा न जाने कहां चला जाता था.

आज पता नहीं क्यों उसे कोमल की याद बारबार आ रही थी. वह उसे चाह कर भी भूल नहीं पा रहा था. अचानक उस के जेहन में कोमल से हुई उस की पहली मुलाकात का पूरा दृश्य किसी फिल्म की तरह घूमने लगा.

अनुज को एमबीए करते ही मुंबई की एक नामचीन एमएनसी में नौकरी मिल गई थी, और उस की कंपनी ने उसे रहने की सुविधा भी दे रखी थी, इसलिए वह बिलकुल टेंशन फ्री था. उस की बूआ भी यह जान कर बहुत खुश थीं क्योंकि मुंबई में मूल समस्या रहने की ही होती है.

अनुज को फ्लैट अंधेरी में मिला हुआ था और उस का औफिस नरीमन पाइंट में था और दोनों ही लोकेशन ऐसे थे कि उसे आनेजाने में भी ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी.

अनुज अपने व्यवहार और कुशल कार्यशैली के कारण कुछ ही समय में अपनी कंपनी में काफी लोकप्रिय हो गया था. उस की बौस उस के परफार्मेंस का उदाहरण दूसरों को दिया करती थीं.

एक दिन उस के बौस ने उसे बताया कि उस की कंपनी एक नया प्रोडक्ट लौंच करने वाली है, जिस की मार्केटिंग टीम को उसे ही लीड करना है. साथ ही, उस ने यह भी कहा कि उसे उस ऐड कंपनी से भी कोआर्डिनेट करना होगा, जिसे उस प्रोडक्ट का विज्ञापन तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है, ताकि सबकुछ दिए गए टाइम फ्रेम में हो सके.

यह सुन कर अनुज बहुत खुश हुआ और इस ने यह जानकारी अपनी बूआ को भी दी.

अगले दिन ही उसे ऐड कंपनी के औफिस जाने को कहा गया, जो अंधेरी में ही था, जहां उसे टीम लीडर कोमल शर्मा से मिलना था. साथ ही, उस की बौस ने उसे कोमल का नंबर भी दे दिया, ताकि औफिस ढूंढ़ने में अगर कोई परेशानी हो तो वह उस से बात कर सके.

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अनुज लंच के बाद अपने औफिस से निकला और बड़ी आसानी से ऐड कंपनी के औफिस में पहुंच गया. कुछ देर इंतजार करने के बाद औफिस ब्वाय ने उसे मीटिंग रूम तक पहुंचा दिया.

मीटिंग में कोमल के अलावा 2 और लोग थे पारुल और नवनीत, एक आम परिचय के बाद ऐड कैंपेन पर लंबी बातचीत चली. बीचबीच में अनुज अपनी बौस को भी अपडेट करता रहा.

टी ब्रेक में थोड़ी पर्सनल बातचीत भी हुई. अनुज ने अपने बारे में विस्तार से बताया और यह भी कहा कि वह इस प्रोजैक्ट को ले कर काफी उत्साहित है और यह चाहता है कि यह पूरी तरह से सफल हो जाए.

कोमल ने भी उसे एश्योर किया कि उस की पूरी टीम अपना बेस्ट देगी, भले ही हमें शार्ट नोटिस पर ही मिलना क्यों न पड़े.

अनुज ने धीरे से कहा कि वह बैचलर है, इसलिए उसे लेट सीटिंग से भी कोई दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि वह अंधेरी में ही रहता है.

इस पर कोमल ने मुसकराते हुए कहा कि बैचलर तो वह भी है और अंधेरी में ही रहती है. अगर जरूरत पड़ती है तो वह भी लेट सीटिंग को तैयार है.

उस दिन मीटिंग काफी देर तक चली. कोमल भी उस के साथ ही औफिस से निकली. दोनों कुछ दूर तक साथ ही रहे.

कोमल ने उसे बताया कि वह मूल रूप से राजस्थान की है, पर वह बौर्न ऐंड ब्रेट अप यहीं की है. उस के पापा का यहां अपना बिजनेस है.

अनुज ने भी उसे अपने बारे में बताया और फिर दोनों अलगअलग आटो ले कर निकल गए.

घर पहुंच कर अनुज बहुत देर तक इस प्रोजैक्ट के बारे में सोचता रहा. अगर वह इस में सफल हो जाता है तो जाहिर है, उस के कैरियर को अच्छा ग्रोथ मिल सकता है. उसे कोमल भी काफी अच्छी लगी. अपने काम की एक्सपर्ट, सुलझी हुई, मिलनसार और विनम्र भी, ठीक वैसी ही जैसी वह लाइफ पार्टनर चाहता है. उसे खुद पर हंसी भी आ गई, क्याक्या सोच लिया उस ने.

दूसरे दिन औफिस पहुंच कर उस ने अपनी बौस को पूरी जानकारी दी और उन्होंने अनुज के काम की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह बाकी चीजों को छोड़ कर अभी सिर्फ इस प्रोजैक्ट पर ध्यान दे, क्योंकि कंपनी इसे अगले महीने ही बाजार में लाना चाहती है और इस के लिए अगर उसे हफ्तेभर अंधेरी में ही बैठना पड़े तो भी चलेगा, पर काम समय से पहले पूरा हो जाना चाहिए.

अनुज ने उन्हें बड़े ही स्पष्ट शब्दों में कहा, “मैडम, प्लीज ट्रस्ट मी, आप ने जो ट्रस्ट मेरे ऊपर किया है, उसे कभी टूटने नहीं दूंगा, मेरे लिए भी यह एक चैलेंज की तरह है, जिसे मैं सही तरीके से अंजाम तक पहुंचा के ही कोई दूसरा काम करूंगा.”

“मुझे तुम पर पूरा ट्रस्ट है अनुज, तभी तो मैं ने इस के लिए तुम्हें सेलेक्ट किया है और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगे.”

“बिलकुल नहीं मैडम, मैं जानता हूं कि मेरे कुछ सीनियर इस बात को ले कर आप से नाराज भी हैं, फिर भी आप मेरे साथ हैं.”

“गौड ब्लेस यू अनुज, डोंट वरी फौर आल सच इसुज, तुम बस इस काम पर ध्यान दो.”

“थैंक्स मैडम,” अनुज ने बहुत संजीदगी से कहा और अपने काम में लग गया.

पूरा एक हफ्ता मार्केटिंग स्ट्रेटेजी बनाने और मीटिंग में निकल गया और अगला हफ्ता उस ने पूरी तरह से ऐड कंपनी के लिए फ्री रखा था, ताकि इस बार सबकुछ फाइनल कर के सेल्स हेड और सीईओ के लिए प्रेजेंटेशन रखा जा सके.

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उस ने कोमल को पहले से ही फोन कर के अपने 3 दिन का प्रोग्राम बता दिया था और कोमल ने भी उस से वादा किया था कि उस की तरफ से सबकुछ तैयार है और डेडलाइन के पहले ही वह उसे फाइनल कौपी सौंप देगा.

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Serial Story: आई विल चेंज माईसेल्फ- भाग 2

लेखक- राजेश कुमार सिन्हा

अगले सोमवार को अनुज सीधे कोमल के औफिस पहुंच गया और पूरे दिन वहीं रहा. उस ने महसूस किया था कि कोमल पहले की तुलना में उस से काफी फ्री हो गई थी. कोमल के लिए यह ऐड एक चैलेंज की तरह ही था और वह भी पूरी शिद्दत से उस काम में लगी हुई थी. आखिर सभी की मेहनत रंग लाई और जो ऐड तैयार हुआ, वह काफी आकर्षक था, जिसे ऐड कंपनी के डायरेक्टर ने भी देखते ही ओके कर दिया था. उस दिन भी अनुज और कोमल साथसाथ ही निकले, तो अनुज ने कहा,
“कोमल, आज तो एक कौफी बनती है मेरी तरफ से, आप ने बहुत मेहनत की है.”

“अच्छा… तो आप कौफी से ही काम चलाना चाहते हैं.”

“अरे नहीं, मैं तो आप की पूरी टीम को लंच दूंगा, बस. एक बार प्रोजैक्ट लौंच हो जाने दीजिए.”

“और डिनर मेरी तरफ से,” कोमल ने कहा.

“मैं तैयार हूं, चलिए इस की शुरुआत कौफी से करते हैं,” और दोनो कौफी कौर्नर में जा कर बैठ गए.

“आज मैं अपने पसंद की कौफी और्डर करती हूं, एनी प्रोब्लम?”

“बिलकुल नहीं.”

उस ने वेटर को बुला कर 2 कैफे मोचा और सैंडविच और्डर कर दिया और बोली,
“आज थोड़ी भूख सी लग रही है. आप को भी लग रही है क्या?”

“भूख तो नहीं है, पर शेयर जरूर करूंगा.”

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हम ने करीब आधा घंटा साथ बिताया. इस दरमियान हम ने एकदूसरे से काफी बातें शेयर कीं, मसलन हमारी रुचि, हमारी फैमिली,फ्यूचर प्लान आदि. मैं ने उसे बताया कि मुझे मुंबई काफी पसंद है और मैं शायद यहीं सैटल होना पसंद करूंगा. उस ने भी मुझे बताया कि उस के पास तो मुंबई के अलावा कोई औप्शन नहीं है और न ही उसे किसी और शहर में इंट्रेस्ट है.

कौफी खत्म होते ही हम बाहर आ गए और बात करतेकरते मेन रोड पर आ गए, जहां से हम दोनों ने आटो लिया और एकदूसरे को बाई कहते हुए अपनेअपने घर को निकल पड़े.

घर पहुंच कर अनुज काफी देर तक कोमल के बारे में ही सोचता रहा. उसे कोमल के बातचीत करने का अंदाज बहुत पसंद आता था. ऐसा लगता था मानो वह किसी करीबी से बात कर रहा हो. जरा सा भी ईगो नहीं है उस के पास, कौन कहेगा कि वह मुंबई जैसे महानगर में पलीबढ़ी है. काश, उसे ऐसी ही लाइफ पार्टनर मिल जाती. उस पूरी रात वह इन्हीं सब विचारों और कल्पनाओं में उलझा रहा.

सुबह औफिस पहुंचते ही अनुज ने सब से पहले मैडम फोन्सेका को फाइनल डमी दिखाई और उन को साथ ले कर प्रेजेंटेशन के लिए बोर्ड रूम में चला गया, जहां पहले से ही सेल्स हेड और सीईओ मौजूद थे. शुरुआत में अनुज थोड़ा नर्वस जरूर था, पर उस ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ प्रोडक्ट लौंच की मार्केटिंग स्ट्रेटजी और तैयार किए गए विज्ञापन के सारे डिटेल्स के बारे में बताया, जिस की सभी ने खुले मन से सराहना की. सीईओ ने तो उस की पीठ थपथपाते हुए कहा,
“यंग मैन यू हैव ए ब्राइट फ्यूचर कीप इट अप.”

अनुज की खुशी का ठिकाना नहीं था. औफिस के सभी लोग उस की तारीफ कर रहे थे. सब से ज्यादा खुश तो मिसेज फोन्सेका थीं, उन्हें अपने निर्णय पर बहुत गर्व हो रहा था.

अनुज ने सब से पहले इस के बारे में अपनी बूआ को बताया और फिर कोमल को, दोनों ही बहुत खुश हुए. कोमल ने तो लंच की डेट भी फिक्स कर दी.

नियत तारीख को प्रोडक्ट लौंच हो गया. उस का रैस्पोंस काफी अच्छा था. सभी लोग अनुज के परफोर्मेंस की तारीफ कर रहे थे.

अनुज ने कोमल की पूरी टीम के साथ लंच का प्रोमिस किया था, पर उस की टीम के 2 लोग छुट्टी पर थे, इसलिए लंच की डेट फिक्स नहीं हो पा रही थी. तो यह तय हुआ कि पहले डिनर वाली पार्टी हो जाए, फिर लंच कर लेंगे.

अगले फ्राइडे की रात अंधेरी के ही एक रेस्तरां में मिलना तय हुआ. उस दिन औफिस से सीधे डिनर पर जाने के बजाय वह पहले घर गया और फिर रेस्तरां पहुंचा.

अनुज के पहुंचने के कुछ ही देर बाद कोमल भी आ गई. उस ने दूर से ही हाथ हिलाया, तो कुछ देर के लिए वह उसे पहचान ही नहीं पाया, क्योंकि अब तक उस ने कोमल को साधारण ड्रेस में ही देखा था और आज वह साड़ी में थी. जब वह उस के करीब आई, तो कोमल ने ही कहा, “ऐसे क्यों देख रहे हैं आप? मैं साड़ी में हूं इसलिए, दरअसल, मुझे साड़ी बहुत पसंद है, पर औफिस में कोई नहीं पहनता तो मैं कैसे पहनूं?”

“सच कहूं, प्लीज, बुरा नहीं मानिएगा. बहुत अच्छी लग रही हैं, इसलिए नजर नहीं हट रही.”

“क्यों मेरा मजाक उड़ा रहे हैं? आप चलिए, अंदर चलते हैं.”

“अरे नहीं कोमलजी, सच कह रहा हूं.”

“चलिएचलिए, अंदर चलते हैं,” कहते हुए वह आगे बढ़ गई.

वैसे तो काफी लोग वेटिंग में थे, पर उस ने पहले से ही सीट रिजर्व करा ली थी, इसलिए हमें परेशानी नहीं हुई.

मैं ने बैठते ही कहा,
“कोमल, आप और्डर दे दीजिए. आप को इस का अच्छा आइडिया है.”

“फिर, मैं अपने पसंद का दूंगी,” उस ने हंसते हुए कहा.

“आप को जो पसंद है वही और्डर दीजिए.”

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उस ने एक सूप, एक स्टार्टर और मेन कोर्स का और्डर साथ में ही दे दिया. कुछ देर हम शांत रहे और फिर उस ने ही चुप्पी तोड़ी, “मैं भी आप के प्रोजैक्ट को ले कर काफी टेंस थी, पता नहीं कैसा रहेगा, पर आप की कम्पनी को हमारा काम पसंद आया. मुझे बहुत खुशी हुई.”

“आप लोगों ने भी काफी मेहनत की थी, तो जाहिर है कि इसे अप्रूवल मिलना ही था, वैसे आप कितने सालों से इस फील्ड में हैं.”

“मुझे 4 साल हो गए. मैं ने ग्रेजुएशन के बाद मास कम्युनिकेशंस में एडवांस डिप्लोमा किया और फिर जौब में आ गई.”

“आप के रिलेटिव्स भी मुंबई में ही हैं या राजस्थान भी जाना होता है आप का?”

“हमारे अधिकांश रिलेटिव्स मुंबई में ही हैं, पर राजस्थान से कनेक्शन है अभी भी. पर अकसर पापा ही जाते हैं. मेरा तो जाना नहीं होता.”

तब तक वेटर ने खाना सर्व कर दिया, पर हमारी बातचीत चलती रही.

“एक बात पूछ सकता हूं, बुरा तो नहीं मानेंगी?”

“पूछने के लिए इजाजत की जरूरत नहीं. आप पूछ सकते हैं.”

“आप का कोई बौयफ्रेंड तो होगा ही?”

“ऐसा कैसे कह सकते हैं आप?” उस ने मुस्कुराते हुए कहा.

“सौरी,अगर आप को बुरा लगा.”

“देखिए, आप जिस सेंस में पूछ रहे हैं उस सेंस में मेरा कोई बौयफ्रेंड नहीं… हां, काफी लड़के मेरे फ्रेंड हैं.”

“शादी के बारे में क्या सोचा है आप ने?”

“आप तो आज इंटरव्यू लेने के मूड मे हैं.”

-नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं. बस, ऐसे ही पूछ लिया.”

“शादी तो करना चाहती हूं. कुछ लड़कों से इस सिलसिले में मिली भी हूं, पर उन्हें मेरे जौब को ले कर प्रोब्लम थी, इसलिए बात आगे नहीं बढ़ी.”

“कैसी प्रॉब्लम?”

“अनुज, मैं जिस फील्ड में हूं, वहां वर्किंग आवर फिक्स नहीं होता. कभीकभी देर रात तक क्लाइंट के या अपने औफिस में रहना पड़ता है, या कभीकभी मुंबई से हफ्तेपंद्रह दिन के लिए बाहर जाना होता है, क्लाइंट के साथ लंच या डिनर भी करना होता है. और हरेक लड़के को ऐसी लड़की अच्छी नहीं लगती. उन्हें हमारे कैरेक्टर पर शक होने लगता है, तो फिर शादी का औचित्य ही क्या रह जाता है.

“तो बेहतर है कि ऐसे लोगों से बात ही आगे नहीं बढ़ाई जाए. मुझे मेरा जौब बहुत पसंद है और मैं इसे न तो छोड़ सकती हूं और न चेंज कर सकती हूं.”

“कोमल, अगर मैं आप से यह कहूं कि मुझे आप के जौब से कोई परेशानी नहीं है, तो क्या आप मुझ से शादी करना चाहेंगी?

“मैं सीरियसली बोल रहा हूं, पता नहीं, यह सब कैसे बोल गया.”

कोमल ने पलभर के लिए खाना रोक दिया और मेरी आंखों में देखा, शायद उसे इस सवाल की उम्मीद नहीं थी या वह इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी.

कुछ देर के लिए सिर्फ हम दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. चुप्पी कोमल ने ही तोड़ी, “अनुज,जहां तक मैं आप को समझ पाई हूं कि मुझे आप एक अच्छे इनसान लगे, शायद इसीलिए मैं आप से इतना क्लोज भी हो गई, पर थोड़ा वक्त दीजिए, मैं अभी आप को इस का जबाब नहीं दे पाऊंगी.”

“कोमलजी, आप भी मुझे अच्छी लगीं, इसीलिए मैं ने अपने मन की बात आप से कह दी. अगर आप ना कह देंगी, तब भी जो रेस्पेक्ट आप के लिए है, वही रहेगा. आप यह भी जानती हैं कि एक बूआ के अलावा मेरा और कोई नहीं है.

“जी, आप ने बताया है.”

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तब तक हमारा डिनर भी हो चुका था. कोमल ने पहले किए गए वादे के अनुसार पेमेंट किया और हम दोनों रेस्तरां से बाहर निकले और वहीं से आटो ले कर अपने अपने घर लौट गए.

आगे पढ़ें- अचानक मोबाइल के लगातार बजने…

Serial Story: आई विल चेंज माईसेल्फ- भाग 3

लेखक- राजेश कुमार सिन्हा

घर पहुंच कर मैं बारबार उस क्षण के बारे में हीं सोच रहा था कि मैं कैसे यह सब बोल गया, जबकि मैं इस के लिए तैयार हो कर नहीं गया था. इस में कोई दोराय नहीं कि कोमल मुझे पसंद नहीं थी, पर इतनी जल्दी मैं उसे प्रपोज कर दूंगा, यह मैं ने सोचा भी नहीं था,आखिर मेरे में इतनी हिम्मत आई कहां से, यह मैं खुद समझ नहीं पा रहा था. इसी उधेड़बुन में कब मेरी आंख लग गई, मैं खुद समझ नहीं पाया.

अचानक मोबाइल के लगातार बजने वाले रिंगटोन से मेरी नींद खुल गई. सब से पहले मैं ने घड़ी की तरफ देखा, 12 बज रहे थे. अभी कौन फोन कर रहा है, देखा तो कोमल का फोन था, मैं ने तुरंत फोन लिया, “सो गए थे आप, माफ कीजिएगा कि मैं ने जगा दिया आप को.”

“अरे नहीं, बस आंख लग गई थी. आप ठीक से घर तो पहुंच गई थीं?”

-हां, कोई परेशानी नहीं हुई. वहां से तो पास में ही है मेरा घर, अनुज मैं ने घर पहुंच कर बहुत सोचा और मेरे दिल और दिमाग दोनों ने यही कहा कि आप जैसा शख्स अगर लाइफ पार्टनर हो तो जिंदगी सुकून के साथ गुजारी जा सकती है, मैं ने आप के बारे में अपने पेरेंट्स को बता दिया है और वे आप से मिलना चाहते हैं. कल आ सकते हैं तो आ जाइए. एड्रेस व्हाट्सएप कर देती हूं.”

“मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि क्या कभी ऐसा होता है कि इनसान जो चाहे वह उसे इतनी जल्दी मिल जाए,” मैं ने धड़कते हुए दिल को किसी तरह थामा और कहा, “थैंक्स कोमल, मेरे पास शब्द नहीं हैं, मैं क्या कहूं आप को बस यही सोच रहा हूं कि कैसे कल की सुबह तक इंतजार कर पाऊंगा. आता हूं कल 11 बजे तक…”

उस ने हंसते हुए कहा, “रात गुजरेगी तो सुबह ही आएगी, हां, कल हम सब साथ में लंच करेंगे. आप अब सो जाइए, रात काफी हो गई है. कल मिलते हैं, बाई, गुड नाइट.”

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“टेक केयर, गुड नाइट…
अचानक मैं खुद को दुनिया का सब से भाग्यशाली इनसान समझने लगा था और ईश्वर को न जाने कितनी बार थैंक्स बोल चुका था. मेरी आंखों से नींद गायब हो चुकी थी और मुझे कल उस के घर जाने को ले कर टेंशन हो रही थी, पता नहीं वे लोग क्या पूछेंगे?कैसा व्यवहार करेंगे? पता नहीं, मुझे यह खुशी मिलेगी भी या नहीं? ऐसे ही अनेक सवाल मुझे परेशान कर रहे थे और ऐसे में नींद आती भी तो कैसे. मैं ने टीवी चालू कर दिया और यों ही चैनल बदलने लगा. शायद किसी चैनल पर कोई पुरानी फिल्म आ रही थी और मैं उसे ही देखतेदेखते सो गया.

सुबह करीब साढ़े 8 बजे नींद खुली तो देखा टीवी औन ही था. फटाफट चाय बनाई और पेपर ले कर बैठ गया, पर पेपर पढ़ने का बिलकुल मूड नहीं हुआ, जेहन में सिर्फ कोमल ही घूम रही थी और मन ही मन उस के पैरेंट्स द्वारा पूछे जाने वाले काल्पनिक प्रश्नों का पूर्वाभ्यास कर रहा था. पता नहीं, क्यों ऐसा लग रहा था कि आज घड़ी की सूई आगे बढ़ ही नहीं रही है, साढ़े 10 बजते ही मैं ने अपना सब से लकी ड्रैस निकाला, जिसे पहन कर मैं ने जौब का इंटरव्यू दिया था और तैयार हो कर बिल्डिंग के नीचे आ गया. सामने ही एक आटो खड़ा था. मैं ने उसे जेबी नगर बोला और बैठ गया. साथ ही, कोमल को मेसेज भी कर दिया.

मुझे कोमल का फ्लैट खोजने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. वह अपार्टमेंट के नीचे आ गई थी. मुझे देखते ही उस ने मुसकरा कर मेरा स्वागत किया और लिफ्ट की तरफ बढ़ने लगी. उस का फ्लैट सातवें फ्लोर पर था. उस ने जैसे ही अपने घर की बेल दबाई, तो मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी. उस ने धीरे से कहा, “आल द बेस्ट” और मुसकराने लगी. दरवाजा उस की मम्मी ने खोला था.

“आ जाओ बेटा. हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे. मैं ने उन का अभिवादन किया और सोफे पर बैठ गया.

मुझे वे बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व की सौम्य सी महिला लगीं. मैं ने एक नजर हाल पर डाली. सबकुछ बहुत ही व्यवस्थित और करीने से सजा हुआ था. सारे फर्नीचर सफेद रंग के थे और उन की बनावट बहुत ही कलात्मक थी. इसी बीच कोमल मेरे लिए पानी ले कर आ गई, शायद वह समझ गई थी कि मुझे उस की जरूरत थी. मैं ने अपना गला तर किया, जिस से मुझे काफी राहत मिली.

मम्मी ने ही बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाया.

“तुम भी शायद अंधेरी में ही रहते हो?”

“हां आंटीजी, मैं वर्सोवा में रहता हूं. मेरी कंपनी ने मुझे फ्लैट दे रखा है.”

“और रहने वाले कहा के हो?”

“मैं भोपाल से हूं. सारी पढ़ाई भी वहीं से की है. मेरे पैरेंट्स की डेथ बहुत पहले ही हो गई थी. मेरी परवरिश बूआजी ने ही की है और उन का भी मेरे सिवा कोई नहीं है. वैसे तो और भी रिश्तेदार हैं, पर मेरे ताल्लुकात उन से ज्यादा नहीं हैं. मैं ने गौर किया कि वे मेरे चेहरे को बड़े गौर से देख रही थीं. शायद उसे पढ़ने की कोशिश कर रही होंगी, तभी कोमल के पापा आते हुए दिखे. मैं ने खड़े हो कर उन का अभिवादन किया, तो उन्होंने हंसते हुए कहा, “यस यंग मैन, कैसे हो, बी रिलैक्सड.”

“ठीक हूं अंकल.”

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“मुझे तुम्हारे बारे में कोमल ने सबकुछ बताया था. सच कहूं, तो जितना भरोसा मुझे अपने उपर नहीं है उस से कहीं ज्यादा अपनी बेटी पर है. अगर इस ने तुम्हें पसंद किया है, तो जरूर कुछ सोच कर ही किया होगा.

“और मैं उस के हर डिसीजन में उस के साथ हूं. बस, एक बात कहना चाहता हूं कि कोमल मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी है. इस का दिल कभी मत दुखाना. बड़े प्यार से पाला है इसे, उन का चेहरा बता रहा था कि वे इमोशनल हो गए थे,” मैं ने धीरे से कहा.

“अंकल, आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं,भले ही कोमल से मेरी मुलाकात बहुत पुरानी नहीं है, पर इतना मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि इस से बेहतर पार्टनर मुझे नहीं मिल सकती.

“थैंक यू माई सन… गौड ब्लेस यू. तुम दोनों खुश रहो और मुझे क्या चाहिए,” तभी उस की मम्मी ने कहा.

“कोमल, अनुज को अपना घर दिखाओ तब तक मैं लंच की तैयारी करती हूं.”

कोमल मुझे ले कर अपने रूम में आ गई. वह बहुत खुश दिख रही थी. मैं ने ही कहा, “कोमल, आप की फैमिली कितनी अच्छी है.”

“सिर्फ मेरी ही नहीं अब वो आप की भी है, बाई द वे, ये आप आप क्या लगा रखा है.

“ओके… चलो सही कहा तुम ने, शायद मैं बहुत लकी हूं इसीलिए ईश्वर ने मुझे तुम से मिलवाया और तुम अब मेरी जिंदगी में शामिल होने जा रही हो.”

“तुम नहीं मैं भी लकी हूं. तुम रियली बहुत अच्छे हो. अनुज बूआजी को फोन करो ना, मम्मी को उन से बात करनी है और मुझे भी.”

मैं ने बूआ को फोन लगा कर उन्हें सारी बातें बताईं और फोन कोमल को दे दिया.

कोमल और उस की मम्मी ने काफी देर तक बूआ से बातचीत की, तब तक मैं उस के पापा से उन के बिजनेस और उन के परिवार के बारे में बात करता रहा.

मुझे वो काफी इंट्रेस्टिंग लगे, बिलकुल सहज सरल पर काफी अनुभवी. मम्मी और बूआ की बातचीत तकरीबन घंटेभर चली. फिर हम ने लंच किया. मेरे यह कहने पर कि खाना काफी स्वादिष्ठ है.”

मम्मी ने तुरंत कहा, “ऐसा है तो हर संडे तुम्हारा लंच हमारे साथ ही रहेगा, नो एक्सक्यूज प्लीज.”

“ओके आंटीजी, जैसा आप का आदेश.”

फिर मैं ने जब चलने की बात की तो उस के पापा ने मुझे ड्रॉप करने की बात की. पर, मेरे लाख मना करने के बावजूद वे नहीं माने, फिर तो सभी गाड़ी में बैठ गए.

गाड़ी कोमल ही ड्राइव कर रही थी. मैं उस की बगल में बैठा था और मम्मीपापा पीछे. उन्होंने मुझे मेरे अपार्टमेंट के पास छोड़ दिया. आज मानो मुझे जन्नत मिल गई थी. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था.

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मैं ने इस बारे में औफिस में किसी को नहीं बताया था, क्योंकि मैं उन्हें सरप्राइज देना चाहता था. इस के बाद से मैं काफी बदल सा गया था. औफिस में मेरी परफार्मेंस से सभी खुश थे. लगभग हरेक संडे को हम मिलते ही थे और घंटों बैठ कर अपने भावी जीवन के सपने संजोया करते थे.

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Serial Story: आई विल चेंज माईसेल्फ- भाग 5

लेखक- राजेश कुमार सिन्हा

इसी सोचविचार में वह दिन भी आ गया, जिस दिन उसे मुंबई पहुंचना था. कोमल के पापा अपनी गाड़ी ले कर आ गए थे और अनुज को ले कर एयरपोर्ट पहुंच गए. नियत समय पर कोमल की फ्लाइट आ गई और वह कुछ ही देर में बाहर आ गई. उस ने दूर से ही चहकते हुए हाथ हिलाया और करीब आ कर सब से पहले अनुज से ही कहा था, “तुम्हें बहुत मिस किया मैं ने,” इस पर उस के पापा ने हंसते हुए कहा था कि फिर हम तो बेकार ही परेशान हो रहे थे.

एयरपोर्ट से निकल कर गाड़ी में बैठने तक के समय में ही कोमल ने पूरे एक महीने की रूटीन सुना डाली थी. उस की मम्मी ने जब कहा कि पहले उन के घर ही चलते हैं, तो कोमल ने मना कर दिया था कि नहीं, वह पहले अपने घर ही जाएगी.

घर पहुंचते ही सब से पहले कोमल ने बाहर से खाने का और्डर दे दिया और अस्तव्यस्त घर को ठीक करने मे लग गई. खाना आते ही दोनों ने खाना खाया और फिर कोमल ने उस के लिए बतौर गिफ्ट खरीदे गए. शर्ट, जींस, परफ्यूम का पैकेट देते हुए कहा, “यह सब मैं ने अपनी पसंद से खरीदा है. मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हें पसंद आएगा, मुझे पता है अनुज, तुम्हें बहुत तकलीफ हुई होगी, पर क्या करूं ऐसे मौके कम मिलते हैं, देखो ना अभी इस प्रोजैक्ट में मुझे कम से कम 2 हफ्ते और लगेंगे, तब जा कर यह कम्प्लीट होगा, बस थोड़ा सा और कोओपरेट कर दो, फिर मेरा पूरा समय तुम्हारे लिए होगा.

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“इटस ओके कोमल, बी हैप्पी.”

इस के बाद करीब 3 हफ्ते तक कोमल लगभग लेट ही आती थी, जबकि वह समय पर आ जाता था. कोमल यह महसूस करती थी कि अनुज उस से थोड़ा खिंचाखिंचा सा रहता है, पर अपनी तरफ से नौर्मल रहने की वह पूरी कोशिश करती थी.

कोमल को प्रोजैक्ट रिपोर्ट अगले संडे तक फाइनल करनी थी, जिस के लिए उसे संडे को औफिस जाना था और अनुज उस दिन मूवी देखने जाने के मूड में था, पर कोमल ने उस से कहा कि यह उस के कैरियर का सवाल है, इसलिए बस इस संडे तक वह बिजी है. उस के बाद कुछ दिन वह कोई नया काम नहीं लेगी.

नियत समय पर रिपोर्ट सबमिट हो गई. कोमल के काम को सभी ने सराहा और उसे प्रमोशन भी मिल गया.

कोमल ने अनुज से कहा कि एक दिन वर्किंग डे में ही छुट्टी लेते हैं और पूरे दिन बाहर घूमते हैं, पर अनुज ने इस पर अपनी सहमति नहीं दी. उस रात डिनर के बाद कोमल ने अनुज से पूछ ही लिया, “अनुज, शायद तुम मुझ से नाराज हो. तुम्हारी परेशानी मैं समझ सकती हूं, पर क्या करूँ मैं उस औफर को छोड़ नहीं सकती थी.”

“नहीं, मैं नाराज नहीं हूं.”

“तुम झूठ बोल रहे हो. मैं समझ सकती हूं.”

“तो फिर पूछ क्यों रही हो?”

“मैं कितनी तुम्हें सचाई बता चुकी हूं, उन एक महीनों में शायद ही कोई दिन होगा, जिस दिन मैं ने तुम्हें मैसेज नहीं किया हो.”

“तो फिर गई ही क्यों थी, जब इतना प्यार था, तो जाना ही नहीं चाहिए था.”

“अनुज, मेरे औफिस में उस काम को मेरे अलावा और कोई नहीं कर सकता था, वह बहुत प्रेस्टीजियस कॉनट्रैक्ट था हमारी कंपनी के लिए.”

“मुझ से भी ज्यादा…”

“अनुज, तुम गलत समझ रहे हो. तुम से उस की तुलना कैसे हो सकती है? तुम मेरे लिए क्या हो, यह मुझे बताने की जरूरत थोड़े ही है.”

“इसीलिय शायद तुम ने मुझ से पूछने की भी जरूरत नहीं समझी कि तुम्हें सिंगापुर जाना भी चाहिए या नहीं.”


“अनुज, व्हाट डू यू मीन बाई पूछना यार, औफिस की जरूरत थी तो मुझे जाना था. हां, मैं ने तुम्हें तुरंत फोन इसलिए नहीं किया, क्योंकि मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहती थी.”

“क्यों पूछ लेती तो तुम्हारा कद छोटा हो जाता.”

“तुम बेवजह बात बढ़ा रहे हो. प्लीज, सो जाओ.”

“बात मैं ने शुरू की या तुम ने?”

“बेशक, मैं ने की, पर मुझे नहीं पता था कि तुम इस कदर भरे पड़े हो, छोटी सी बात को इतना बड़ा क्यों बना रहे हो? हम पतिपत्नी हैं, बौयफ्रेंडगर्लफ्रेंड नहीं. और हां, तुम इतने पढ़ेलिखे हो, समझदार हो, फिर ये टिपिकल हसबैंड वाली लैंग्वेज क्यों बोल रहे हो?”

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“अच्छा… तो मैं टिपिकल हसबैंड टाइप हूं तो शादी ही क्यों की मुझ से?”

“अनुज, आई एम रियली सौरी. प्लीज, सो जाओ.”

“तुम सो जाओ. मुझे नींद नहीं आ रही है,” कह कर अनुज कमरे से बाहर आ कर ड्राइंगरूम में टीवी चालू कर बैठ गया.

2-3 दिन यों ही बगैर संवाद के गुजरा, जबकि कोमल पहल करती रही और सारी जिम्मेदारियां भी पूरी करती रही. एक दिन उस ने औफिस से ही फोन कर के अनुज को बताया कि मम्मी ने आज डिनर पर बुलाया है, तो मुझे उन की थोड़ी हेल्प करनी होगी, इसलिए वह पहले चली जाएगी और उसे औफिस से सीधे वहीं आने को कहा, तो अनुज ने कहा कि आज वर्कलोड ज्यादा है. उसे देर हो सकती है. अगर ज्यादा देर होगी तो वह नहीं भी आ सकता है.

इस पर कोमल ने कहा कि कोई फर्क नहीं पड़ता हम लोग वेट कर लेंगे. तुम जरूर आ जाना. दरअसल, अनुज वहां जाना नहीं चाहता था, इसलिए उस ने वर्कलोड का बहाना बना दिया और सीधे होटल से खाना पार्सल ले कर घर चला गया.

इस बीच कोमल का कई बार फोन आया, पर वह सिर्फ मैसेज दे कर छोड़ देता था. करीब रात 11 बजे कोमल का मैसेज आया कि हम ने तुम्हारा काफी वेट किया और अब रात ज्यादा हो गई है, इसलिए मैं यहीं रुक जाती हूं. कल औफिस के बाद घर आ जाऊंगी. उस ने उस मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.

शाम को दोनों लगभग एक समय पर ही घर लौटे. कोमल ने रोज की तरह 2 कप चाय तैयार की और सोफे पर बैठ गई. उस ने अनुज से पूछा, “चाय के साथ कुछ और लोगे?”

“नहीं, आज मेरा चाय पीने का ही मूड नहीं है.”

“तो पहले बता देते, नहीं बनाती. कौफी लोगे?”

“नहीं, मेरा मूड नहीं है.”

“तुम्हारे मूड को अचानक क्या हो गया? औफिस में कुछ हुआ क्या?”

“नहीं, सब ठीक है.”

“फिर कोई तो वजह होगी?”

“तुम्हें सबकुछ बताना जरूरी है.”

“क्यों नहीं, मैं तुम्हारी बेटर हाफ हूं.”

“प्लीज, बहस मत करो. पीसफुली जीने दो.”

“इतना रूडली क्यों बोल रहे हो?”

“मैं ऐसा ही हूं.”

“तुम ऐसे बिलकुल नहीं हो, इसीलिए बुरा लगा.”

“हां ऐसा था नहीं, पर अब हो गया हूं और अगर कुछ दिन और तुम्हारे साथ रहा, तो शर्तिया पागल हो जाऊंगा.”

“मैं इतनी बुरी हूं अनुज तो फिर साथ रहने का क्या फायदा? मैं अपने पापा के घर चली जाती हूं. ऐसे भी हम लड़कियों का कोई घर तो होता नहीं ना.”

“ऐज यू विश,” कह कर अनुज वहां से निकल गया.

दूसरे दिन दोनों में कोई बात नहीं हुई. औफिस जाने के समय अनुज ने लंच का डब्बा भी नहीं लिया और बिना कुछ बोले निकल गया.

कोमल ने उसे फोन भी किया. उस ने न तो फोन लिया, न ही उस के मैसेज का जवाब दिया. शाम में भी दोनों में कोई बात नहीं हुई.

हां, अनुज ने उसे मैसेज दिया कि वह घर जा रहा है और फिर उसे दिल्ली के लिए निकलना है. शायद लौटने में एक हफ्ता लग सकता है. उस दिन कोमल मम्मी के पास चली गई.

हालांकि उस के मूड को देख कर मम्मी को कुछ संदेह हुआ, पर उन्होंने पूछा नहीं. एक हफ्ते में अनुज का कोई फोन तो नहीं आया, पर हां, एकदो मैसेज का जवाब जरूर दिया उस ने.

दिल्ली से लौटने की कोई सूचना उस ने नहीं दी और कोमल ने भी पहल नहीं की.

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हां, उस की मम्मी ने जरूर अनुज से बात की, पर उस का जवाब बिलकुल औपचारिक सा था. कोमल ने भी अपनी मम्मी को सबकुछ बता दिया और कहा कि जब तक अनुज लेने नहीं आएगा, वह नहीं जाएगी.

कोमल की मम्मी ने अनुज की बूआ को फोन किया था, तो उन की बातों से लगा कि उन्हें इस की कोई जानकारी नहीं थी, तो उन्होंने बताना भी उचित नहीं समझा, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि जैसे ही दोनों का गुस्सा शांत होगा, सबकुछ ठीक हो जाएगा.
इसी कशमकश में 5 महीने गुजर गए थे.

आज न जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि उस से बहुत बड़ी गलती हो गई है. माना कि उस ने सिंगापुर के बारे में पहले नहीं बताया तो क्या हुआ, ऐसा तो वह कई बार करता है कि सीधे घर पहुंच कर उसे बताता है कि रात 12 बजे की फ्लाइट से चेन्नई जाना है और कोमल बिना किसी सवाल के आधे घंटे में उस का बैग तैयार कर देती है, और वह इतनी बेरुखी से उस से क्यों पेश आया. वहां रह कर भी वह उस के लिए कितनी परेशान रहा करती थी. अगर वह अपने कैरियर को ले कर सीरियस है तो इस में बुराई क्या है. क्या वह अपने कैरियर को ले कर सीरियस नहीं है? क्या अपने” स्यूडो मेल इगो” को संतुष्ट करने के लिए कोमल जैसी लड़की के लिए ऐसा अमानवीय व्यवहार करना उचित था.

उसे आज ऐसा लग रहा था मानो उस से कोई जघन्य अपराध हो गया हो और वह इस के लिए कभी खुद को माफ नहीं कर पाएगा. उस ने बगैर और देर किए व्हाटसएप पर एक छोटा सा मैसेज लिखा, “कोमल, कमिंग टू यू – प्रोमिस आई विल चेंज माइसेल्फ”
और बिना जवाब का इंतजार किए कोमल के औफिस के लिए निकल पड़ा.

Serial Story: आई विल चेंज माईसेल्फ- भाग 4

लेखक- राजेश कुमार सिन्हा

एक संडे कोमल पूरा लंच बना कर सपरिवार मेरे घर आ गई और फिर वहीं सब ने लंच किया. हमारी शादी की तारीख तय हो गई. शादी मुंबई में ही होनी थी. तय यही हुआ कि एंगेजमेंट और शादी सब एकसाथ ही हो जाएगी.

जब मैं ने इस की जानकारी अपने औफिस के लोगों ने दी, तो सभी खुश हुए क्योंकि शादी यहीं होनी थी तो सभी उस में शामिल हो सकते थे.

शादी की तारीख में जब 15 दिन बचे तो उस ने बूआ को भी मुंबई ही बुला लिया. फ्लैट के लिए सभी जरूरी सामान की शौपिंग कोमल, उस की मम्मी और उस ने साथ मिल कर ही की थी, बाकी तैयारियां कोमल के पापा और उन के करीबी मिल कर कर रहे थे. उस की अपनी शौपिंग भी उस ने कोमल के साथ मिल कर ही की थी.

शादी की तारीख के 2 दिन पहले एंगेजमेंट की रस्म हुई. उस की तरफ से औफिस के कुछ लोग थे और कोमल की तरफ से काफी लोग थे और उसी दिन उस का सभी से परिचय भी हुआ. कार्यक्रम काफी अच्छा रहा. सभी ने ऐंज्वाय किया और उन के सुखमय जीवन की कामना की. 2 दिन बाद ही शादी थी. उस के कुछ पुराने दोस्त भी आ गए थे, जो उस के घर ही रुके हुए थे. ऐसे में पूरा माहौल खुशनुमा बना हुआ था.

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शादी के दिन बरात के लिए सभी को शाम 7 बजे हाल पहुंचना था और उसी के अनुसार उस ने सभी को आमंत्रित किया हुआ था. वह अपने दोस्तों और बूआजी के साथ शाम 6 बजे ही पहुंच गया था. कोमल के परिवार के भी सभी करीबी लोग हाल पहुंच चुके थे. बरात में उस के औफिस के लगभग सभी लोग शामिल हुए. सबकुछ समायानुसार बड़े धूमधाम से संपन्न हुआ.

अनुज के दोस्तों ने जब कोमल को देखा, तो उन्होंने अनुज को सही मामले में लकी माना.

शादी का मुहूर्त रात का था. खाने की व्यव्स्था बहुत ही बढिया थी. सभी लोग पूरे आयोजन की दिल से तारीफ कर रहे थे.

मुहूर्त के अनुसार सात फेरे के साथ शादी संपन्न हो गई और विदाई की रस्म के साथ वह कोमल को ले कर अपने घर आ गया. उस के दोस्त भी अगले दिन ही लौट गए, पर उस ने बूआजी को एक हफ्ते के लिए और रोक लिया था. उस ने एक हफ्ते की छुट्टी ले रखी थी. इस बीच जैसा बूआ या कोमल की मम्मी कहती थी, वैसा ही दोनों कर लिया करते थे.

अगले संडे को बूआ को भोपाल लौटना था. उस दिन कोमल के पैरेंट्स भी आ गए और सब लोग साथ ही एयरपोर्ट गए. बूआ ने दोनों को जी भर कर आशीर्वाद दिया और कोमल से कहा, “मैं इसे तुम्हारे हवाले कर रही हूं. अब तुम्हीं इस की सबकुछ हो.”

कोमल ने भी हंसते हुए बूआ को इस का आश्वासन दिया.

कोमल का साथ मिलते ही अनुज की जिंदगी को मानो पर लग गया था. वह बहुत ही खुश रहने लगा था. कोमल वाकई बूआ को दिए गए प्रोमिस को पूरा कर रही थी. वह औफिस की अपनी जिम्मेदारियों के साथसाथ अनुज का भी पूरा खयाल रखती थी. आमतौर पर दोनों के औफिस से वापस आने का समय एक ही था और मेड भी उसी समय आती थी, जिस के जिम्मे डिनर का काम था. लंच के लिए दोनों का डब्बा कोमल खुद तैयार करती थी और ब्रेकफास्ट का जिम्मा अनुज ने खुद ले रखा था.

इस तरह जिंदगी की गाड़ी एक पटरी पर चलने लगी थी. अनुज जब कभी टूर पर जाता था तो कोमल अपने घर चली जाती थी. इस से अनुज भी टेंशन फ्री रहता था और घर लौटने पर कोमल उस का ऐसे स्वागत करती थी मानो वह कई दिनों बाद लौटा हो.

एक दिन कोमल ने औफिस से लौट कर बहुत उत्साहित हो कर बताया कि उस की कंपनी को एक बहुत बड़ा प्रोजैक्ट मिला है और इसी सिलसिले में उसे अगले हफ्ते एक महीने के लिए सिंगापुर जाना होगा.

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यह सुनते ही अनुज का मन छोटा हो गया, जिस की गवाही उस का चेहरा दे रहा था. कोमल ने पूछा भी, “क्यों तुम्हें मेरी इस कामयाबी से खुशी नहीं हुई?”

“नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. कौंग्रेट्स, इन्फैक्ट मैं यह सोच रहा था कि हमारी नईनई शादी हुई है. ऐसे में तुम्हारा इतने दिनों के लिए जाना परेशान कर रहा है. मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है.”

“इस में चिंता की क्या बात है? मैं बच्ची थोड़े ही हूं. मैं अपना खयाल रख सकती हूं और मैं ने मम्मी से भी बात कर ली है. उन्होंने तो यहां तक कहा है कि इसी बहाने अनुज कुछ दिनों के लिए हमारे साथ रह लेगा तो हमारा भी अच्छा टाइम निकल जाएगा और उसे भी खानेपीने की तकलीफ नहीं होगी.”

“कोमल, मैं यहीं ठीक हूं. ऐसी कोई बात नहीं है, हां, बीचबीच में जा कर मिल जरूर लूंगा. चलो, नो टेंशन. तुम जरूर जाओ.”

“थैंक्स डीयर, तुम ने मेरी टेंशन कम कर दी. मैं तुम को ले कर रियली बहुत परेशान थी,” कोमल ने हंसते हुए कहा.

“चलो, आज डिनर के लिए कहीं बाहर चलते हैं,” अनुज ने कोमल को जाने के लिए कह तो दिया था, पर वह अंदर ही अंदर बहुत दुखी था. उसे लग रहा था कि उस से बिना पूछे कोमल ने इतना बड़ा निर्णय कैसे ले लिया? क्या कोमल के लिए उस की कोई अहमियत नहीं? अगर ऐसा ही हर बार होता रहा, तो क्या जिंदगी की गाड़ी चल पाएगी?

ऐसे तमाम सवाल उसे बारबार परेशान कर रहे थे, पर वह बाहर से खुद को बहुत खुश दिखाने की कोशिश जरूर कर रहा था. एक हफ्ता कुछ जल्दी ही गुजर गया. सिंगापुर के लिए संडे अर्ली मार्निंग की फ्लाइट थी, जिस का टिकट क्लाइंट ने ही बिजनेस क्लास में बुक किया था, जिसे ले कर कोमल बहुत उत्साहित थी. उस के पापा गाड़ी लेकर आ गए थे और हम सब मिल कर उसे छोड़ने एयरपोर्ट गए थे. चेकइन के लिए अंदर जाते वक्त उस की आंखें गीली हो गई थीं. वह बारबार कह रही थी, “अनुज, तुम ठीक से रहना. मम्मी के पास चले जाओ ना… अकेले तुम टेंशन में ही रहोगे, पर मुझे उस समय यह सब नाटकीय लग रहा था.

“एयरपोर्ट से लौटते वक्त मम्मीजी ने भी मुझे घर चलने के लिए कहा था, पर मैं ने कह दिया था कि छुट्टियों के दिन आ जाया करूंगा.

घर पहुंचने पर ऐसा लगा कि जैसे घर काटने को आमादा हो, कोमल मेरे लिए पूरे 2 दिन का खाना फ्रिज में रख कर गई थी, इसलिए खाना बनाने का टेंशन तो नहीं था, पर ऐसा लगता था मानो कोई ऐसी चीज अचानक गायब हो गई हो जो मेरी आदत में शुमार हो.

कोमल ने सिंगापुर पहुंचते ही उसे मैसेज कर दिया था, इसलिए एक टेंशन से उसे मुक्ति मिल गई थी. किसी तरह संडे का दिन बीता. मंडे सुबह जब वह औफिस पहुंचा, तो उस का मूड उखड़ाउखड़ा सा था. पूरे दिन उस का काम में मन नहीं लगा.

कोमल ने सुबह ही उसे मैसेज किया था कि उस के लिए जो अरेंजमेंटस वहां किए गए हैं, उस से वह संतुष्ट है और वह पूरी कोशिश करेगी कि अपना बेस्ट दे सके. साथ ही, उस ने यह भी लिखा था कि वह उसे बहुत मिस कर रही है.

अनुज के जेहन में एक बात बारबार आ रही थी कि अगर कोमल इतनी कैरियर माइंडेड है तो आगे सबकुछ कैसे चलेगा. हालांकि यह सही है कि उस ने पहले ही सबकुछ क्लीयर किया था. पर, अमूमन शादी के पहले लड़कियां अपने कैरियर को ले कर सीरियस रहती हैं, पर शादी के बाद भी इतना सीरियसनेस… इस बात को वह स्वीकार नहीं कर पा रहा था.

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आज कोमल को गए 15 दिन हो गए थे और इस बीच शायद ही कोई ऐसा दिन नहीं रहा होगा, जब कोमल ने उस से यह नहीं कहा होगा कि उस के बगैर उसे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है, पर अनुज को लगता था कि कोमल कम से कम उस से एक बार पूछ तो लेती कि उसे औफिस के काम से सिंगापुर जाना है. वह थोड़े ही उसे मना करता, उसे यही बात बारबार परेशान करती थी.

आगे पढ़ें- एयरपोर्ट से निकल कर गाड़ी में…

प्यार की जीत: भाग 4- निशा ने कैसे जीता सोमनाथ का दिल

घर आ कर निशा ने अपनी सास की चोट पर मरहम लगाया. इस दुर्घटना की खबर मिलते ही बिलाल के अब्बूजान घर लौट आए. उन सब के सामने निशा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘अब्बूजान, मेरे भाइयों ने ही हमारे बुटीक पर पत्थर फेंके थे. आप मेरे बारे में मत सोचिए. उन्होंने जो किया, गलत किया और आप पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए.’’ निशा की बातें सुन कर सब ने अब्बूजान की ओर देखा क्योंकि फैसला लेने वाले वे ही थे.

‘‘ठीक है जुबैदा, तुम अभी आराम करो. कल से बुटीक के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड रखेंगे. तुम दोनों औरतें अकेले में ऐसी हालत को नहीं संभाल पाओगी. इसलिए एक गार्ड की जरूरत है.’’ उन की बातों से यह स्पष्ट था कि वे इस मामले को पुलिस तक ले जाना नहीं चाहते हैं. मगर निशा ने उन के पास जा कर सहम कर कहा, ‘‘अब्बूजान, मैं आप से निवेदन करती हूं कि आप मेरे भाइयों को माफ मत कीजिए. उन्होंने जो भी किया वह बिलकुल गलत है. अगर आप इस बार उन्हें माफ करेंगे तो उन की जुर्रत और बढ़ जाएगी. इसलिए आप उन के खिलाफ पुलिस में शिकायत करा दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हारे जज्बे को समझ सकता हूं बहू, मगर हमें इस मामले में सावधानी बरतनी होगी. जिन्होंने यह हरकत की, वे तुम्हारे भाई हैं. आज नहीं तो कल, हम एक परिवार हो जाएंगे. अगर हम आज जल्दबाजी में पुलिस के पास गए तो हमारे रिश्ते में दरार आ जाएगी. हमें सब्र से काम लेना चाहिए. उन दोनों को एक न एक दिन अपनी गलती का एहसास होगा. हम उस दिन का इंतजार करेंगे.’’ उन के बड़प्पन के सामने अपने पिता की हरकतों को याद कर निशा की आंखें नम हो गईं.

इस दरमियान रमजान का महीना आया. रमजान के महीने के 10वें दिन दोपहर की नमाज के बाद अचानक निशा बेहोश हो गई और उसे देख कर सब के होश उड़ गए. तुरंत डाक्टर को बुलावाया गया. निशा की जांच करने के बाद डाक्टर ने मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘आप लोगों के लिए खुशखबरी है, आप के घर में एक नया मेहमान आने वाला है.’’ यह सुन कर सभी पुलकित हो उठे.

बिलाल के परिवार ने निशा को पलकों पर बिठाया. अब्बूजान और भाईजान दोनों रोज निशा के लिए फल खरीद कर लाते थे. जुबैदा और जीनत दोनों खास पकवान बनातीं. सब का प्यार देख कर निशा की आंखें डबडबा गईं.

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अचानक एक दिन जुबैदा को थकान महसूस हुई और वे एक कुरसी पर बैठ गईं. उन के दाहिने हाथ में इतना दर्द होने लगा कि उसे उठा ही नहीं पाई और धीरेधीरे वह दर्द सीने तक पहुंच गया और जुबैदा बेहोश हो गईं. घर के लोग उन्हें ले कर अस्पताल पहुंचे. डाक्टर ने जांच कर के उन्हें तुरंत आईसीयू में दाखिल कर दिया.

डाक्टर ने कहा, ‘‘इन्हें हार्टअटैक आया है. इन की आर्टरी में ब्लौकेज है और तुरंत बाइपास सर्जरी करनी पड़ेगी. सारी फौर्मेलिटीज पूरी करने के बाद हम औपरेशन करेंगे. इस के लिए कुल मिला कर 5 लाख रुपए खर्च करना होगा आप को.’’ यह सुन कर परिवार के सभी लोग उदास हो गए. बिलाल के पिताजी हताश हो गए थे. शादी हुए इतने सालों में अपनी बीवी को ऐसी हालत में वे पहली बार देख रहे हैं और वे उसे बरदाश्त नहीं कर सके. बच्चों ने पहली बार अपने अब्बूजान की आंखों में आंसू छलकते हुए देखे.

बिलाल के अब्बूजान के पास इस वक्त इतने रुपए नहीं थे. उन्होंने अपने दोनों बेटों के लिए लखनऊ की मेन मार्केट में अलगअलग दुकान खोलने के लिए अपनी सारी बचत उस में लगा दी थी. उन की मजबूरी देख कर निशा ने कहा, ‘‘अब्बूजान, आप ने हमारी बुटीक की कमाई को कभी भी नहीं मांगा. अब हमारे पास 10 लाख रुपए हैं और आप बेफिक्र रहिए.’’

अम्मीजान का औपरेशन बिना किसी परेशानी के साथ हो गया. सभी अस्पताल में अम्मीजान के पास थे. उस समय निशा के मोबाइल की घंटी बजी. उस की मां का फोन था. शादी होने के बाद मां ने एक बार भी फोन नहीं किया था. अब क्यों फोन कर रही है? सोचते हुए निशा ने ‘हैलो’ कहा तो दूसरी तरफ उस की मां की हड़बड़ाई आवाज सुनाई दी, ‘‘निशा, तुम्हारी मदद चाहिए. तुम्हारे भाइयों को पुलिस पकड़ कर ले गई है और उन्हें जमानत पर छुड़वाने के लिए 5 लाख रुपए चाहिए.’’ यह सुनते ही निशा के क्रोध की सीमा नहीं रही.

औपचारिकता के लिए भी मां ने यह नहीं पूछा कि तुम कैसी हो, मगर अपना अधिकार जताते हुए अपने नालायक बेटों के लिए रुपए मांग रही है. वह गुस्से में बोली, ‘‘किस हक से आप मुझ से इतने रुपए मांग रही हैं? आप लोगों ने दर्द के सिवा क्या दिया है मुझे और मुझ से मदद मांगने में आप को लज्जा नहीं आई?’’ ऐसा कहते हुए निशा ने गुस्से में तमतमाते हुए फोन काट दिया. अब्बूजान यह सब सुन रहे थे.

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5 दिनों के बाद जुबैदा घर वापस आ गईं. दोनों बहुओं ने अपनी सास की खूब देखभाल की. दूसरे दिन सुबह ही अब्बूजान कहीं बाहर जाने की तैयारी करने लगे. सब ने सोचा कि शायद वे अपनी दुकान जा रहे हैं. उन्होंने निशा से पूछा, ‘‘बेटी, तुम्हारे पास जो 5 लाख रुपए हैं, क्या तुम मुझे दे सकती हो? निशा ने बिना कोई सवाल पूछे चैक में दस्तखत कर के अब्बूजान को दे दिया. उस चैक को अपने पौकेट में रख कर उन्होंने कहा,’’ मैं अपने संबंधी के घर तक जा रहा हूं.’’ यह सुन कर सब हैरान हो गए क्योंकि बड़ी बहू जीनत का घर लखनऊ में नहीं, फिर किस संबंधी का जिक्र कर रहे हैं अब्बूजान.

‘‘मैं निशा के मायके के बारे में बात कर रहा हूं. वे हमारे संबंधी ही हैं. उन के घर के बेटे जेल में सड़ रहे हैं. उन्हें रिहा कराने के लिए ये रुपए ले जा रहा हूं.’’ निशा ने कुछ कहने की कोशिश कि तो अब्बूजान ने बीच में बात काट कर कहा, ‘‘बहू, तुम्हारा गुस्सा जायज है मगर यह वक्त नहीं है गुस्सा निकालने का. जब वे हम से मदद मांग रहे हैं, तो इनकार करना ठीक नहीं और इंसानियत भी नहीं है.’’ उन की बातें सुन कर सब सन्न हो गए.

अचानक अपने घर की चौखट पर निशा के ससुरजी को देख कर निशा के मांबाप दोनों आश्चर्यचकित हो गए. मगर वे मुसकराते हुए घर के अंदर गए और लक्ष्मी को 5 लाख रुपए का चैक दे कर कहा, ‘‘बहनजी, निशा एक बच्ची है. इसलिए जब आप ने उसे फोन किया तो गुस्से में आ कर न जाने उस ने क्या कह दिया. उस की तरफ से मैं आप से माफी मांगता हूं. इन रुपयों से अपने बेटों को रिहा कराने का काम शुरू कीजिए.’’ यह सुन कर लक्ष्मी और सोमनाथ दोनों की नजरें झुक गईं.

‘‘भाईजान, आप से मैं कुछ बात करना चाहता हूं. बच्चे पतिपत्नी की देन होते हैं. उन्हें अच्छी परवरिश देना हमारा फर्ज है. बच्चों में बेटाबेटी का फर्क करना प्यार का अपमान करने के समान है. जो भी हमें मिले उसे सच्चे मन से अपनाना ही हमारे लिए उचित है और एक बात सुनिए, बच्चों को सहीगलत सिखाना भी हमारा ही कर्तव्य है. अगर बच्चे गलत रास्ते पर चल पड़ें तो इस का मतलब है हमारी परवरिश में ही खोट है. यह मत सोचना कि मैं आप के बेटों की गलतियों के लिए आप को दोषी ठहरा रहा हूं. आगे से उन दोनों को सही रास्ते पर चलने की सीख दीजिए. अपने मन से द्वेष की भावना को हटा दीजिए और अपने बच्चों के मन में भी इस जहर के बीच को मत बोइए. इस दुनिया में हमेशा प्यार की ही जीत होगी, नफरत की नहीं.’’ उन की बातें सुन कर जिंदगी में पहली बार सोमनाथ का अभिमान टूट गया और फूटफूट कर रोने लगे. आगे बढ़ कर जमाल साहब ने सोमनाथ को गले लगाया और वहां हुई प्यार की जीत.

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Serial Story: अब पता चलेगा- भाग 1

28दुबई से संदली उत्साह से भरे स्वर में अपने पापा विकास और मम्मी राधा को बता रही थी,”पापा, मैं आप को जल्दी ही आर्यन से मिलवाउंगी. बहुत अच्छा लड़का है. मेरे साथ उस का एमबीए भी पूरा हो रहा है. हम दोनों ही इंडिया आ कर आगे का प्रोग्राम बनाएंगे.”

विकास सुन कर खुश हुए, कहा,”अच्छा है,जल्दी आओ, हम भी मिलते हैं आर्यन से. वैसे कहां का है वह?”

”पापा, पानीपत का.”

”अरे वाह, इंडियन लड़का ही ढूंढ़ा तुम ने अपने लिए. तुम्हारी मम्मी को तो लगता था कि तुम कोई अंगरेज पसंद करोगी.‘’

संदली जोर से हंसी और कहा,”मम्मी को जो लगता है, वह कभी सच होता है क्या? फोन स्पीकर पर है पर मम्मी कुछ क्यों नहीं बोल रही हैं?”

”शायद उसे शौक लगा है आर्यन के बारे में जान कर.”

राधा का मूड बहुत खराब हो चुका था. वह सचमुच जानबूझ कर कुछ नहीं बोलीं.

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जब विकास ने फोन रख दिया तो फट पड़ीं,”मुझे तो पता ही था कि यह लड़की पढ़ने के बहाने से ऐयाशियां करेगी. अब पता चलेगा पढ़ने भेजा था या लड़का ढूंढ़ने.”

”क्या बात कर रही हो, जौब भी मिल ही जाएगा. अब अपनी पसंद से लड़का ढूंढ़ लिया तो क्या गलत किया? संदली समझदार है, जो फैसला करेगी, अच्छा ही होगा.”

“अब पता चलेगा कि इस लड़की की किसी से निभ नहीं सकती, न किसी काम की अकल है, न कोई तमीज.और जो यह लोन ले रखा है, शादी कर के बैठ जाएगी तो कौन उतारेगा लोन? मुझे पता ही था कि यह लड़की कभी किसी को चैन से नहीं रहने दे सकती,” राधा जीभर कर संदली को कोसती रहीं.

विकास को उन पर गुस्सा आ गया, बोले,”तुम्हें तो सब पता रहता है. बहुत अंतरयामी समझती हो खुद को.पता नहीं कैसे इतना ज्ञानी समझती हो खुद को.

“आसपड़ोस की अपनी जैसी हर समय कुड़कुड़ करने वाली लेडीज की बातों के अलावा कुछ भी पता है कि क्या हो रहा है दुनिया में?”

हर बार की तरह दोनों का गुस्स्सा रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था.

विकास ने जूते पहनते हुए कहा, “मैं ही जा रहा हूं थोड़ी देर बाहर, अकेली बोलती रहो.”

यह कोई पहली बार तो हुआ नहीं था. बातबेबात किचकिच करने वाली राधा का तकियाकलाम था,’अब पता चलेगा.’

बड़ी बेटी प्रिया कनाडा में अपनी फैमिली के साथ रहती थी, संदली फिलहाल दुबई में थी. कोई भी कैसी भी बात करता, राधा हमेशा यही कहतीं कि उन्हें सब पता था. उन का कहना था कि उन्होंने इतनी दुनिया देखी है, उन्हें हर बात का इतना ज्ञान है कि कोई भी बात उन से छिपी नहीं रहती, फिर चाहे कुकिंग की बात हो या फैशन की.

यहां तक कि राजनीति की हलचल पर भी कोई बात होती तो उन का कहना होता कि उन्हें तो पता ही था कि फलां पार्टी यह करेगी. 1-2 दिन पहले वे किसी से कह रहीं थीं कि उन्हें तो पता ही था कि अब किसान आंदोलन होगा.

उन की बात सुनते हुए विकास ने बाद में टोका था,”ऐसी हरकतें क्यों करती हो, राधा? किसान आंदोलन होगा, यह भी तुम्हें पता था, कुछ तो सोच कर बोला करो.”

”अरे,मुझे पता था कि कुछ ऐसा होगा.”

विकास चुप हो गए, पता नहीं कौन सी ग्रंथि है राधा के मन में जो वह हर बात में घर में किसी न किसी बात में हावी होने की कोशिश करती थी. कई बार विकास अपने रिश्तेदारों के सामने राधा की बातों से शर्मिंदा भी हो जाते थे. बेटियां भी इस बात से हमेशा बचती रहीं कि राधा के सामने उन की फ्रैंड्स आएं.

विकास अंधेरी में एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थे. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी पर राधा कंजूस भी थी और बहुत तेज भी, साथ ही उन्हें अपने उस ज्ञान पर भी बहुत घमंड था जो ज्ञान दूसरों की नजर में मूर्खता में बदल चुका था. अजीब सी आत्ममुग्ध इंसान थीं.

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घर में उन के व्यवहार से सब हमेशा दुखी रहते. राधा ने संदली को अगले दिन फोन किया और सीधे पूछा,”अभी शादी कर लोगी तो तुम्हारा लोन कौन चुकाएगा?”

”मैं इंडिया आ कर जौब करूंगी, लोन उतार दूंगी. अभी हम दोनों सीधे मुंबई ही आ रहे हैं, आर्यन को आप लोगों से मिलवा दूं?”

राधा ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. संदली ने उदास हो कर फोन रख दिया. संदली और आर्यन को एअरपोर्ट से लेने विकास खुद जा रहे थे.

प्रोग्राम यह तय हुआ कि विकास औफिस से सीधे एअरपोर्ट चले जाएंगे. देर रात सब घर पहुंचे तो राधा ने सब के लिए डिनर तैयार कर रखा था. आर्यन उन्हें पहली नजर में ही बहुत अच्छा लगा पर बेटी से मन ही मन नाराज थीं कि पढ़ने भेजा था, लड़का पसंद कर के घर ले आई है.

उन्हें विकास पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था कि अभी से कैसे आर्यन को दामाद समझ रहे हैं. संदली फोन पर पहले ही बता चुकी थी कि पानीपत में आर्यन के पिता का बहुत लंबाचौड़ा बिजनैस है. बहुत धनी, आधुनिक परिवार है. 2 ही भाई हैं, आर्यन बड़ा है, छोटा भाई अभय अभी पढ़ रहा है.

आर्यन से मिलने, उस से बातें करने के बाद कोई कारण ही नहीं था कि राधा कुछ कमी निकालती पर यह बात हजम ही नहीं हो रही थी कि बेटी ने अपने लिए लड़का खुद पसंद कर लिया है.

विकास को भी आर्यन बहुत पसंद आया था. वह ऐसे घुलमिल गया था कि जैसे कब से इस परिवार का ही सदस्य है.

डिनर करते हुए संदली ने कहा,”मम्मी, हम दोनों अब कल ही दिल्ली जा रहे हैं. वहां आर्यन के पेरैंट्स हमें एअरपोर्ट पर लेने आ जाएंगे. मुझे भी उन से मिलना है. मैं जल्दी ही वापस आ जाउंगी.”

राधा ने कहा,”मुझे तो पता ही था कि तुम हम से पूछोगी भी नहीं, खुद ही होने वाले ससुराल पहुंच जाओगी.अब पता चलेगा.’’

विकास ने आर्यन की उपस्थिति को देखते हुए मुसकरा कर बात संभाली,”यह तो अच्छा ही है न कि तुम अपनी बेटी को जानती हो, तुम्हें पता था, अच्छा है.”

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संदली ने मां की बात पर ध्यान ही नहीं दिया. युवा मन अपने सपनों में खोया था, प्यार से बीचबीच में एकदूसरे को देखते संदली और आर्यन विकास को बड़े अच्छे लगे.

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औनर किलिंग: भाग 2- अनजानी आशंका से क्यों घिरी थी निधि

जिस शालू ने घर वालों के विरोध के बावजूद विनय से शादी करने में उस का पूरा साथ दिया, वही बहन आज उसे विनय के कारण जान से मारने की साजिश में शामिल हो गई. निधि को इस बात पर अब भी यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘क्या आप ठीक महसूस कर रही हैं?’’ ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने आ कर पूछा तो निधि ने आंखें खोल दीं.

‘‘जी,’’ उस ने संक्षिप्त सा जवाब दिया और उठ कर बैड पर बैठ गई. उसे बैठा देख कर कौंस्टेबल ने इंस्पैक्टर सरोज को फोन कर दिया और 15 मिनट में वे भी वहां पहुंच गईं.

‘‘क्या आप अपने बारे में कुछ बताएंगी?’’ सरोज ने पूछा. निधि ने एक बार फिर चुप्पी साध ली. क्या बताती वह उन्हें कि वह अपनों की ही साजिश का शिकार हुई है. उसे जन्म देने वाले ही उसे मौत की नींद सुला देना चाहते हैं.

‘‘जी, मैं मुंबई की रहने वाली हूं. यहां किसी दोस्त से मिलने आई थी, मगर एक हादसे का शिकार हो गई. कुछ गुंडों ने मुझ पर हमला कर दिया था. मेरा बैग और मोबाइल छीन लिया. शायद किसी बुरी नीयत से वे मेरा पीछा कर रहे थे. मगर मैं किसी तरह उन के चंगुल से बच कर यहां तक आ गई,’’ निधि ने असली बात छिपा ली.

‘‘देखिए, आप हम से कुछ भी छिपाने की कोशिश न करें और न ही डरें. हम आप की मदद करना चाहते हैं. आप चाहें तो उन गुंडों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवा सकती हैं,’’ सरोज ने उसे कुरेदा. मगर निधि ने एक बार फिर से चुप्पी साध ली और अपनी आंखें बंद कर के अपने दर्द को दिल के भीतर ही समेटने की कोशिश करने लगी.

रात हो चली थी. हौस्पिटल में भरती लगभग सभी मरीज नींद की आगोश में जा चुके थे. हां, कभीकभी कोई मरीज दर्द से कराह उठता था तो अवश्य ही वार्ड की शांति भंग हो जाती थी. ड्यूटी पर तैनात नर्स और कंपाउंडर भी उबासियां ले रहे थे मगर निधि की आंखों में दूरदूर तक नींद का नामोनिशान नहीं था.

वह उस वक्त को कोस रही थी जब उस ने शालू की बातों में आ कर घर लौटने का मन बनाया था. मौका भी तो कुछ ऐसा ही था. वह चाह कर भी इनकार नहीं कर सकी थी. उस की छुटकी की शादी जो तय हो गई थी. शालू ने जब चहकते हुए बताया था कि मम्मीपापा उसे विनय सहित अपनाने को राजी हो गए हैं तो उस के सिर से भी मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर शादी करने के अपराधबोध का भारी बोझा उतर गया था जिसे वह इतने सालों से ढो रही थी.

इधर, विनय को भी 2 महीने के लिए ट्रेनिंग पर आस्ट्रेलिया जाना था. निधि ने सोचा, एक पंथ दो काज हो जाएंगे. विनय के बिना यहां अकेले मुंबई में रहना किसी सजा से कम नहीं था. इसलिए उस ने कंपनी से एक महीने की लंबी छुट््टी ले ली और अपने पैतृक गांव सिरसा आ गई.

मां तो निधि को देखते ही उस से लिपट गई थी. पापा ने भी कलेजे से लगा लिया था अपनी लाड़ो को. राज शादी के किसी काम के सिलसिले में शहर गया हुआ था. शालू ने उसे बांहों में भींचा तो फिर छोड़ा ही नहीं…न जाने कितने गिलेशिकवे थे जिन्हें वह शब्दों में बयां नहीं कर सकी थी. बस, आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. निधि के आने से शादी वाले घर में एक अलग ही रौनक आ गई थी.

रात में छुटकी ने उस से चिपटते हुए पूछा, ‘जीजी, एक बार फिर से बता न, तू ने जीजाजी जैसे विश्वामित्र को आखिर कैसे रिझाया?’

‘कितनी बार सुनेगी तू? आखिर तेरा मन भरता क्यों नहीं, एक ही किस्से को बारबार सुन कर तू बोर नहीं होती?’ निधि ने झूठे गुस्से से कहा.

‘अरे, अब तक तो फोन पर ही सुनती आई थी, आमनेसामने सुनने का मौका तो आज ही हाथ लगा है, सुना न. आज तो मैं तेरे चेहरे की लाली भी देखूंगी, जब तू बोलेगी,’ शालू ने जिद की तो निधि छुटकी की जिद नहीं टाल सकी और एक बार फिर से कूद पड़ी यादों की झील में डुबकी लगाने.

‘मुंबई की बरसात तो तू जानती ही है. बादलों का कोई भरोसा नहीं, जब जी चाहे बरस पड़ते हैं. हालांकि हम मुंबई वाले इस की ज्यादा परवा नहीं करते मगर उस दिन बात कुछ और ही थी. सुबह से ही बरसात हो रही थी. दोपहर होतेहोते तो सारे शहर में पानी ही पानी हो गया था.

‘मौसम विभाग ने भारी वर्षा की चेतावनी जारी कर के लोगों को घर में ही रहने की सलाह दी. मगर जो घर से बाहर थे उन्हें तो घर लौटना ही था. मैं भी अपने औफिस में बैठी बारिश के रुकने का इंतजार कर रही थी. लगभग सभी लोग अपने घर जाने की व्यवस्था कर चुके थे. बस, मैं और विनय ही बचे थे.

‘बारिश के थोड़ा सा हलके होने के आसार दिखे तो विनय ने मुझ से कहा, ‘आप को एतराज न हो तो मैं आप को अपनी बाइक पर घर छोड़ सकता हूं.’

‘मगर बाइक पर तो हम भीग जाएंगे…’ मैं ने कहा.

‘घर ही तो जाना है, किसी पार्टी में तो नहीं? घर पहुंच कर कपड़े बदल लेना,’ विनय ने मुसकराते हुए कहा.

‘मुसकराते हुए कितना प्यारा लगता है ये, पता नहीं मुसकराता क्यों नहीं है,’ मैं ने यह मन ही मन सोचा और खुद भी मुसकरा दी. अंत में मैं ने विनय से लिफ्ट लेना तय कर लिया.

‘जैसा कि मैं ने कहा था, घर पहुंचतेपहुंचते मैं और विनय पूरी तरह से भीग चुके थे. मैं ने विनय को एक कप अदरक वाली चाय पीने का औफर देते हुए अंदर आने को कहा. पहले तो उस ने मना कर दिया मगर अचानक ही उसे तेज छींकें आने लगीं तो मैं ने ही हाथ पकड़ कर उसे भीतर खींच लिया था. उसे छूने का यह मेरा पहला अनुभव था. मैं ने महसूस किया कि विनय भी मेरे छूने से थोड़ा सा नर्वस हो गया था.

‘मैं ने कपड़े बदल कर चाय का पानी चढ़ा दिया. तभी मुझे खयाल आया कि विनय भी तो भीगा हुआ है. मगर मेरे पास उसे देने के लिए जैंट्स कपड़े तो थे ही नहीं. मैं ने गैस धीमी कर के उसे तौलिया दिया और साथ ही बदलने के लिए अपना नाइट सूट भी. यह देख कर विनय सकपका गया. मगर फिर जोर से हंस पड़ा और कपड़े बदलने चला गया.

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