वह नीला परदा: भाग-2

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह अपने कुत्ते डोरा के साथ जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर वह बुरी तरह घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान कराना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. ऐसे में हत्यारे तक पहुंचने का जरिया सिर्फ वह नीला परदा था, जिस में उस लड़की की लाश थी. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा. एक रोज क्रिस्टी के पास किसी जैनेट नाम की लड़की का फोन आया, जो पेशे से नर्स थी. वह क्रिस्टी से मिल कर नीले परदे के बारे में कुछ बताना चाहती थी.

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मौयरा की मदद से जैनेट एक गत्ते का बड़ा सा डब्बा कमरे के बीचोबीच खींच लाई. बीच में बिछे गलीचे पर नीचे बैठ कर उस ने सभी चीजें तरतीब से सजा दीं. फैमी नाम की इस स्त्री का फोटो करीब 9५12 इंच के स्टील के फ्रेम में जड़ा था. उस में क्रिस्टी द्वारा प्रसारित खिड़की के अनुमानित चित्र से मिलतीजुलती एक खिड़की के सामने एक काले चमड़े से मढ़ा सोफा पड़ा था और उस पर एक युवती लगभग 3 साल के गोलमटोल बच्चे को गालों से सटाए बैठी मुसकरा रही थी.

‘‘क्या नाम बताया जैनेट आप ने?’’

‘‘फैमी.’’

‘‘सरनेम पता है?’’

‘‘नहीं, बताया तो था परंतु विदेशी नामों को याद रखना बेहद कठिन लगता है.’’

‘‘क्यों, क्या किराए की कोई लिखतपढ़त नहीं है?’’

जैनेट का मुंह उतर गया. घबरा कर हकलाती हुई वह बोली, ‘‘लड़की भली थी. ऐडवांस किराया नकद दे कर यहां रहने आई थी. कोई किरायानामा तो मैं ने नहीं लिखवाया, मगर रसीद मैं उसे जरूर दे देती थी. पहली तारीख को वह महीने का किराया कैश दे देती थी. मैं कुसूरवार हूं अफसर, पर यह कोई ऐसी बड़ी आमदनी तो न थी जिसे छिपाया जाए…’’

‘‘घबराओ नहीं, ऐसे गैरकानूनी अनुबंध अनेक बेवकूफ लोग कर लेते हैं. अब खुद ही देखो न क्या हो सकता है लापरवाही का अंजाम…’’

 

‘‘क्यों, क्या कोई संगीन मामला है?’’

‘‘हो भी सकता है. हम तुम्हें डराना नहीं चाहते, क्योंकि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. बहरहाल, हम एक लापता लड़की को ढूंढ़ रहे हैं. क्या कोई सुराग तुम हमें दे सकती हो? कोई इस का मित्र? यह तसवीर वाला बच्चा?’’

‘‘शायद यह बच्चा उस का बेटा है, जो अपने बाप के पास रहता है. फैमी छुट्टी वाले दिन शायद इस से मिलने जाती थी.’’

‘‘इस का मतलब वह तलाक ले चुकी थी?’’

‘‘नहीं पता.’’

‘‘बाकी समय वह क्या करती थी?’’

‘‘ठीक से नहीं पता, मगर कहीं 9 से 5 तक नौकरी करती थी. घर जल्दी आ जाती थी और मेरी ही रसोई में पकातीखाती थी. अफसर, बात यह है कि मैं ज्यादातर यूरोप में रहती हूं. मैं ने खुद ही नहीं पूछा.’’

‘‘जैनेट, यहां उस का कोई परिचित तो आता होगा?’’

‘‘विदेशियों पर मेरा इतना विश्वास नहीं है, इसलिए मैं ने उसे साफ मना कर दिया था कि वह किसी मेहमान को नहीं लाएगी. आप को तो पता ही है कि यहां जवान लड़कियां क्याक्या कर्म करती हैं. मगर मेरी पीठ पीछे अगर कोई आता हो तो कह नहीं सकती.’’

‘‘जब रखा तब कोई रेफरेंस लैटर तो लिया होगा उस के बौस का या बैंक का?’’

‘‘हां, मगर जब वह वापस नहीं आई तो मैं ने फेंक दिया.’’

‘‘कुछ कह कर गई थी तुम से?’’

‘‘हां, उस ने कहा कि वह क्रिसमस की छुट्टियों में मोरक्को अपने वतन जा रही है.’’

‘‘अच्छा, मदद के लिए शुक्रिया. अगर आप को कोई एतराज न हो तो मैं सामान का यह डब्बा संग ले जाऊं?’’

‘‘बेशक, बेशक.’’

अपने औफिस में ला कर क्रिस्टी ने सारा सामान खोला, मगर उस स्त्री की पहचान के सभी कागजात गायब थे. कहीं नाम तक का सुबूत नहीं था. क्रिस्टी ने अनुमान लगाया कि किसी ने जानबूझ कर सभी कागजात गायब किए होंगे. मगर मेज पर रखी तसवीर शायद इसलिए फेंक गया कि उस की अब जरूरत नहीं थी. फिर भी कुछ भी ठीक नहीं बैठ रहा था.

क्रिस्टी ने पुलिस फाइल के अगले कार्यक्रम में इस चित्र को प्रसारित किया. टीवी स्क्रीन पर बड़ा कर के दिखाया, मगर उस स्त्री को जानने वाला कोई भी सामने नहीं आया. उस का अगला कदम था, मोरक्को जाने वाली सभी सवारियों की पड़ताल. पिछले 1 साल के सभी यात्रियों के रिकार्ड उस ने हीथ्रो एअरपोर्ट से मंगवाए, मगर कोई सफलता नहीं मिली. हो सकता है कि वह स्त्री किसी अन्य देश में गई हो और फिर वहां से मोरक्को चली गई हो. हो सकता है, फैमी नाम केवल बुलाने का नाम हो. मगर उस का असली नाम क्या होगा?

मौयरा ने सुझाया कि जाने वाले यात्रियों के बजाय वह मोरक्को से आ कर यहां बस जाने वाली लड़कियों के रिकार्ड तफतीश करे. क्रिस्टी को यह बात जंच गई.

उस ने मोरक्को के दूतावास से संपर्क किया. वहां से आए नागरिकों को पासपोर्ट औफिस में ढूंढ़ा. आखिरकार एक लड़की का पता मिला, जो 7-8 साल पहले पढ़ाई करने के लिए यहां आई थी. उस का नाम फहमीदा सादी था. फहमीदा सादी के वापस मोरक्को जाने का कोई प्रमाण नहीं मिला. यह आसानी से अपना नाम फैमी रख सकती थी. क्रिस्टी ने इसे भी एक सूत्र मान लिया और अपनी खोज जारी रखी, मगर अन्य तथ्यों की तरह यह भी एक हवाईकिला था. केवल मान्यता पर की गई खोज से क्या हत्यारा मिल जाएगा?

लंदन में फहमीदा सादी कहां रह रही थी, यह पता लगाना कठिन काम था, मगर पासपोर्ट औफिस से उस के अपने देश में उस का पता मिल गया. क्रिस्टी ने जैसेतैसे अपने विभाग को दलीलें दे कर खर्चे के लिए राजी कर लिया और वह मोरक्को चला गया फहमीदा के परिवार से मिलने.

फहमीदा का परिवार बहुत अमीर नहीं था. 1 विधवा अधेड़ उम्र की मां, 1 अंधा भाई और 3 कुंआरी छोटी बहनें. पर ये लोग बड़े शिष्ट और विनम्र थे.

 

क्रिस्टी को देख कर वे लोग घबरा न जाएं, इसलिए उस ने अपनेआप को उन की पुत्री का प्रोफेसर बताया. बताया कि फहमीदा उन से कई महीनों से नहीं मिली है. वह इत्तफाक से किसी रिसर्च के सिलसिले में यहां आए थे. उन्होंने सोचा वह यहां होगी. अत: मिलने चले आए.

फहमीदा की मां ने कौफी और खजूर चांदी की तश्तरी में पेश किए और हंस कर बोली कि उन की बेटी लंदन में ही है और उस के खत बराबर आते हैं.

अब क्रिस्टी यह कैसे सोच लेता कि फहमीदा मर गई है? उस का यहां आना बेकार की कोशिश साबित हो रहा था. उसे लग रहा था कि वह गलत जगह झक मार रहा है. अपनी नकली मित्रता की साख बरकरार रखने के लिए वह बेकार के हंसीमजाक और बातचीत की कडि़यां पिरोता रहा, लेकिन कुछ बातों पर मां और भाई की तरफ से अनापेक्षित बातें सुनने को मिलीं. मसलन, उस के यह कहने पर कि वह हिजाब पहनती है, इसीलिए मैं ने यहां से उस के लिए 2 बढि़या रूमाल खरीदे हैं. मां आश्चर्य से उसे देख कर बोली, ‘‘अरे वह कब से रूमाल सिर पर बांधने लगी?

वह तो नित नए फैशन रचती है केशों के.’’

क्रिस्टी सकपका गया. बोला, ‘‘नहीं, लंदन में विवाहित स्त्रियां हिजाब पहनने लगी हैं. उस का बेटा कैसा है?’’

‘‘हमारी बेटी तो अभी तक कुंआरी है. आप गलत पते पर आ गए हैं,’’ मां ने कहा.

‘‘हो सकता है. आप के पास आप की बेटी का कोई फोटो है?’’

मां झटपट फोटो ले आई. निस्संदेह यह फैमी का ही चित्र है. हालांकि इस में उस

के केश लंबे और वेशभूषा मोरक्कन थी. अब क्रिस्टी का माथा ठनका. उस ने दुभाषियों के माध्यम से बातचीत जारी रखते हुए पूछा, ‘‘क्या मैं आप की पुत्री के पत्र देख सकता हूं?’’

फैमी की मां को भी कुछ संदेह हुआ, मगर फिर वह पत्र ले आई. क्रिस्टी ने बहाने से मां को समझाया कि उसे ये पत्र दे दे ताकि वह फैमी को इन्हें दिखा कर चकित कर सके.

दुभाषियों के समझाने पर मां ने पत्र दे दिए.

‘‘1-2 दिन शहर घूम लूं. फिर आप से आ कर मिलूंगा जाने से पहले,’’ यह कह कर क्रिस्टी उठ खड़ा हुआ. फहमीदा सादी की मां को असमंजस में छोड़ कर वह भारी मन से बाहर आ गया.

2 बातें पक्की हो गई थीं. एक तो यह कि लड़की यही चित्र वाली लड़की थी, दूसरी यह कि उस का नाम फैमी ही था.

 

मगर तीसरी बात एक विशाल प्रश्न के हुक से लटक रही थी, वह यह कि फैमी का बेटा कहां था, क्यों उस के बारे में मां को पता नहीं था. जरूर या तो वह अवैध था या गोद लिया. जैनेट ने साफसाफ कहा था कि उस का किसी से संबंध था. बच्चा अपने बाप के पास था और फैमी उस से बराबर मिलने जाती थी. लंदन में अनेक बच्चे अकेले अभिभावक पालते हैं, परंतु अधिकांश में स्त्री के पास बच्चा रहता है और पुरुष अपना आनाजाना भर रखता है. यहां स्थिति उलटी बैठ रही थी. शायद अपने अवैध रिश्ते को छिपाने के लिए फैमी ने बच्चे को पिता के पास रखा हुआ था, विचित्र.

फैमी के लिखे हुए शुरू के पत्र, खुले दिल से एक बेटी की ओर से अपनी मां को लिखे गए पत्र थे. वे बराबर हर हफ्ते लिखे गए थे. उन में पैसा घर भेजने का भी जिक्र था, मगर बाद वाले पत्र बेहद संक्षिप्त और औपचारिक समाचार भर थे. पैसों का कोई जिक्र नहीं था.

अगले 2-4 दिन बाद क्रिस्टी फैमी की मां से विदा लेने गया. बातोंबातों में उस ने पूछा कि जब एक कुंआरी लड़की को इतनी दूर परदेश भेजा था तो कोई तो मित्र या जानपहचान का परिवार वहां होगा. मां ने कई नाम गिना दिए.

क्रिस्टी ने उन के पते मांगे तो मां अचंभित रह गई, पूछने लगी, ‘‘आप क्या करेंगे?’’

‘‘वह कई दिनों से मिली नहीं है न, इसलिए उस के मित्रों से पूछ लूंगा. यों ही बस.’’

फैमी की बहन ने किसी पुरानी डायरी में से 1-2 पते दिए, जो कई साल पहले के रहे होंगे. पते ले कर वह लंदन लौट गया.

लंदन आ कर क्रिस्टी ने उन पतों पर तहकीकात करनी चाही. एक घर में अब कोई नाइजीरियन परिवार रह रहा था, तो दूसरे घर के व्यक्ति का रुख बड़ा टालमटोल वाला था. ये सभी पते लंदन के पूर्वी भाग के थे, जो मुख्य शहर से करीब 30-40 मील दूर पड़ते हैं. तीसरे व्यक्ति ने फहमीदा के बारे में अच्छा नहीं बोला, मगर क्रिस्टी ने बल दे कर उस से तहकीकात की. पुलिस का नाम सुन कर वह कुछकुछ बता पाया.

फहमीदा पहले इधर ही रहती थी और कैडबरी की फैक्टरी में काम करती थी. मगर

4 साल पहले वह यह जगह छोड़ कर पता नहीं कहां चली गई.

इस फैक्टरी में सब कुछ बदल गया था. कैडबरी कंपनी ने यहां का काम बंद कर दिया था और कारखाना कोटपैंट बनाने वाले एक भारतीय ने खरीद लिया था.

फैमी अभी भी उस से आंखमिचौली खेल रही थी. कैडबरी के पुराने रजिस्टरों से उसे उसी जगह काम करने वाली स्त्रियों के नामपते मिले. बहुत ढूंढ़ कर एक ऐसी औरत मिली, जो फैमी को जानती थी और उसे कुछकुछ याद था. यह थी लारेन, जो फैमी के संग उसी जगह काम करती थी और आयरलैंड से आई थी. दोनों हमउम्र और विदेश में अकेली थीं, इसलिए मित्र बन गई थीं.

लारेन ने क्रिस्टी को बताया, ‘‘फैमी बेहद भोली और खुशमिजाज थी. 3-4 साल यहां रह कर वह अपने पुराने खयालों से उबर रही थी. खूब फैशन करती थी. कई लोग, जो उस के अपने ही कबीले के थे उस से शादी करना चाहते थे, मगर वह एक पढ़ालिखा व्यक्ति चाहती थी. धीरेधीरे उस की दोस्ती मुहम्मद नाम के एक आदमी से हो गई. मुहम्मद पढ़ने के लिए लंदन आया था.

वह मोरक्को का ही था. शायद कानून की पढ़ाई कर के यहां आया था. देखने में हट्टाकट्टा और अच्छी शक्लसूरत का था. फैमी उस के प्रेम में फंस गई, मगर जब उसे पता चला कि वह मुहम्मद के बच्चे की मां बनने वाली है तब सब कुछ ताश के किले की तरह ढह गया. मुहम्मद ने उस से गर्भ गिरा देने को कहा, क्योंकि वह शादीशुदा था. उस ने दलील दी कि उस की बीवी ही सब कुछ की मालिक है, वह उसी के दम पर इंग्लैंड आया है वगैरह…

‘‘फहमीदा ने बच्चा गिराने से मना कर दिया और वह सब से मुंह छिपा कर कहीं चली गई. उस को लड़का हुआ था और वह बहुत खुश थी. उस ने बेटे का नाम अब्दुल रखा था. यह बात उस ने मुझे फोन पर बताई थी. उस ने यह भी बताया कि मुहम्मद उस से मिलने और बेटे को देखने आया था.

‘‘बस, इस के बाद क्या हुआ, मुझे नहीं पता. फिर मेरी भी शादी हो गई, तो मैं यहां नए घर में आ गई. फैमी की 4 साल से कोई खबर नहीं मिली.’’

लारेन की कहानी सुन कर क्रिस्टी फैमी को तो जान गया, मगर यह कैसे पता चले कि वह कहां है. जो नीले परदे वाली लाश थी वह फैमी है या कोई और? लारेन की बातों से क्रिस्टी ने अंदाजा लगाया कि यह बच्चा अब्दुल करीब 5 साल का हो गया होगा. झटपट उस ने मौयरा से बर्थ रजिस्टर चैक करने को कहा. पूरे देश के जन्ममृत्यु के खाते में से यह ढूंढ़ना बड़ा मुश्किल काम था. कुछ दिन लगे, मगर बर्थ सर्टिफिकेट मिल गया. पिता का नाम मुहम्मद भी मिल गया. बच्चे का जन्म ईस्ट ऐंड के पास ही के इलाके हैक्नी के एक अस्पताल में हुआ था.

‘‘कहां मिलेगा यह बच्चा?’’

‘‘स्कूल में.’’

‘‘हां, मगर कहां के स्कूल में?’’

‘‘हर 2 मील पर स्कूल है. जन्म की तारीख मैच कराई जाए तो मिल जाएगा.’’

‘‘लगभग 20 हजार प्राइमरी स्कूलों में तुम ढूंढ़ने जाओगी? पागलपन है यह. कुछ

और सोचो.’’

क्रिस्टी का धीरज जवाब दे रहा था. अगर यह बच्चा मिल भी जाता तो केवल 1 फीसदी उम्मीद थी कि उस की मां का कत्ल हुआ है. मोरक्को में मिली फहमीदा सादी और बेसिंगस्टोक से मिली तसवीर भले ही एक हो, मगर उस के पास जो लाश थी वह उसी की थी, इस का भी कोई सुबूत नहीं था.

 

अगले दिन मौयरा ने एक और सलाह दी. हर बच्चे के नाम से उस के मांबाप को सरकारी भत्ता मिलता है. फहमीदा नाम की स्त्री या मुहम्मद नाम का पुरुष जरूर यह भत्ता ले रहा होगा कहीं न कहीं. क्रिस्टी यह सुन कर उछल पड़ा.

करीब 2 हफ्ते हरेक जगह से तमाम रजिस्टर देखतेदेखते वे लोग पस्त हो गए, जन्म की तारीख मिलती तो नाम नहीं. दोनों मिल भी गए तो जन्मस्थान का फर्क. तीनों मिल गए तो मांबाप सलामत.

यह एक जरिया भी बंद हो गया. हताश हो कर क्रिस्टी ने मौयरा से फाइल बंद करने को कहा. लंदन जैसे शहर में यह कोई एक ही किस्सा नहीं था उस के लिए. उस की टीम को जाने कितने कत्लों की तहकीकात करनी होती थी. यह बात और थी कि यह सब से ज्यादा चुनौती देने वाला कत्ल था.

क्रिस्टी और मौयरा दोनों दिमागी थकान से चूरचूर हो गए थे. हफ्ते भर के लिए यूरोप में छुट्टियां बिताने चले गए. क्रिस्टी अपने बीवीबच्चों के साथ और मौयरा अपने बौयफ्रैंड और उस की 7 साल की बेटी के साथ.

 

हफ्ते भर बाद सोमवार की एक सुहानी सुबह थी जब क्रिस्टी वापस अपने दफ्तर की कुरसी पर बैठा. सामने मेज पर एक स्लिप उस की फाइलों के रैक पर चिपकी उसे घूर रही थी. स्लिप के ऊपर एक नंबर लिखा था कि उसे फोन कर ले.

क्रिस्टी ने फोन मिलाया तो दूसरी तरफ से बैंक मैनेजर जौन की बीवी डोरा बोली, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. मुझ से आ कर मिलो या वक्त दो तो मैं ही आ जाऊं.’’

‘‘आप ही इधर आ जाइए. शहर में आ कर कुछ मन बदल जाएगा. जौन भी साथ

होगा क्या?’’

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकेगा, क्योंकि जौन अस्पताल में है. मैं ही आ जाती हूं अकेली.’’

‘‘तो फिर आप मुझ से विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूजियम के दरवाजे के पास मिलिए, जहां सभी झंडे लगे हैं. ठीक 2 बजे दोपहर यह आप के लिए ठीक रहेगा.’’

‘‘हां, मैं पहुंच जाऊंगी.’’

ठीक 2 बजे डोरा स्कर्ट और लंबा कोट पहने हैट लगाए टैक्सी से उतरी. क्रिस्टी ने लपक कर उसे टैक्सी से उतारा और उस के हाथ को झुक कर चूमा. डोरा गंभीर स्वर में बोली, ‘‘हैलो, मैं आप को देख कर बेहद खुश हूं.’’

वे दोनों अंदर चले गए. वहां थोड़ा इधरउधर घूम कर वे एक बेंच पर एकांत में बैठ गए.

 

डोरा ने बताया कि 1 हफ्ता पहले शनिवार को वह शौपिंग करने गई थी अपनी पड़ोसिन को साथ ले कर. जौन घर पर अकेला था और रसोई के इलैक्ट्रिक उपकरण आदि चमका रहा था.

‘‘मैं ने जौन के लिए एक धुएं के रंग जैसा डल नीला जंपर खरीदा उस दिन. मगर जब मैं ने उसे घर ला कर दिखाया तो वह भड़क उठा.’’

‘‘ले जा, ले जा वापस यह ड्रैस. यह भी कोई रंग है जिंदा व्यक्ति के पहनने का,’’ यह कह कर वह कांपने लगा. उसे चक्कर से आए और उस की आंखें जैसे मेरे आरपार देखने लगीं. मैं एकदम घबरा गई और मैं ने एंबुलेंस मंगवा ली. जौन तभी से अस्पताल में है. जंपर मैं ने वापस कर दिया, मगर बड़ी हैरान हूं.’’

‘‘तुम बात को समझो, डोरा. शायद वह नीला रंग उसे कुछ याद दिला गया हो. तुम अब इस बात का खयाल रखना कि उसे कुछ भी ऐसा न दिखे, जो उसे उत्तेजित करे.’’

‘‘ठीक है, पर बात यहीं खत्म नहीं होती. अस्पताल के डाक्टर ने बताया कि वह रात

में 2-3 बार डर कर बड़बड़ करने लगा, जैसे किसी से कह रहा हो कि घबराओ नहीं, वह जरूर मिलेगा. डेविड, प्लीज कुछ करो.’’

‘‘कुछ नहीं कर पा रहे हम लोग, कोई सूत्र नहीं मिलता. फिलहाल केस बंद ही समझो.’’

‘‘ऐसा मत करो, केस बंद हो गया तो वह आत्मा निराश हो जाएगी.’’

‘‘हम पुलिस वाले आत्माओं से आर्डर नहीं लेते. तुम भी यह अंधविश्वास छोड़ दो. कोई आत्मावात्मा नहीं होती.’’

दोटूक बात सुन कर डोरा रोआंसी व हक्कीबक्की रह गई. क्रिस्टी ने उसे सांत्वना दी, रेस्तरां में जा कर चाय पिलाई और वादा किया कि वह जौन को देखने जरूर आएगा. उसे समझाएगा कि यह एक डेड केस है, जिस का कोई हल नहीं निकल सकता.

एक टैक्सी बुला कर उस ने डोरा को विदा किया और वापस अपने औफिस लौट आया. उस समय 5 बजे थे. अगले दिन का एजेंडा लिख कर और मौयरा को सब आदेश दे कर वह घर जाने की तैयारी कर रहा था. उस ने कोट व हैट पकड़ा ही था कि टैलीफोन की घंटी बज उठी. रिसीवर उठाया तो उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो इंस्पैक्टर क्रिस्टी, मैं लारेन बोल रही हूं. आप ने मुझे पहचाना? कुछ दिन पहले आप मुझ से मिले थे, फैमी नाम की औरत के बारे में जानने के लिए, याद आया?’’

‘‘हांहां, कहिए, कैसे फोन किया?’’

‘‘मेरा खयाल है मैं ने परसों मुहम्मद को देखा. वह एक सब्जी वाले से बातें कर रहा था. मैं उस की ओर बढ़ी पर पता नहीं कैसे वह भीड़ में गुम हो गया. मुझे पक्का विश्वास है कि वह मुहम्मद ही था. मैं ने उस सब्जी वाले से पूछा भी कि वह धारीदार कमीज वाला कौन था, तो उस ने बताया कि वह उस दुकान का पुराना मालिक नासेर था. मैं ने पूछा क्या उस का नाम मुहम्मद है, तो सब्जी वाला बोला, ‘नहीं वह नासेर ही है.’ पर इंस्पैक्टर मुझे तो वह मुहम्मद ही लगा.’’

‘‘ओ.के. लारेन, थैंक्स फौर कौलिंग. हम कल शाम को तुम से मिलते हैं.’’

लारेन के घर पर क्रिस्टी उस से मिला. लारेन का पति घर पर ही था. एक अच्छे नागरिक की तरह उस ने अपनी ओर से मदद करने को कहा. क्रिस्टी ने उस से पूछा कि यदि वह लारेन को ले जाए कुछ देर के लिए, तो क्या वह बच्चों को देख लेगा घर पर? इस पर वह सहर्ष राजी हो गया.

क्रिस्टी अपनी कार में लारेन को ले कर उस दुकान पर गया. दुकान बंद हो चुकी थी. मगर पूछने पर पता चला कि मालिक ऊपर ही रहता है. क्रिस्टी ने बहाना बना कर घंटी बजाई और सीधा सवाल पूछा, ‘‘मुहम्मद है क्या?’’

‘‘यहां तो इस नाम का कोई नहीं है. आप कौन हैं?’’

‘‘उस का पुराना दोस्त हूं. वह यहीं रहता था.’’

‘‘नहींनहीं, आप शायद धोखा खा रहे हैं. हम से पहले यहां एक औरत रहती थी. उस के आदमी के नाम से यह दुकान थी, मगर वह तो कई साल पहले नशे की बुरी लत के कारण मर गया. औरत 3 बेटियों के साथ विधवा हो गई. हालांकि उस ने दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन यह दुकान वही चलाती थी. उस का दूसरा पति यहां आताजाता था, मगर रहता कहीं और था. वह पढ़ता था शायद, उस का भी नाम मुहम्मद नहीं, नासेर था.’’

‘‘क्या वह तुम से कल मिलने आया था?’’

‘‘वह अकसर आ जाता है यहां. इधर उस के देश वाले लोग रहते हैं शायद. कभीकभी दुकान पर भी आ जाता है, मगर हम उस को नहीं जानते. हम लोग पाकिस्तान से हैं और हमारी भाषा उन से नहीं मिलती.’’

फिर कुछ रुक कर पुन: बोला, ‘‘देखो अफसरजी, हम कुछ और नहीं बता पाएंगे, क्योंकि दुकान का सौदा जिस एजेंट के साथ हुआ था वह मर गया. उस का बेटा अपना कारोबार किसी और को बेच कर अमेरिका चला गया. आप को उसी से सब पता चल सकता है.’’

क्रिस्टी को लगा वह व्यक्ति सच बोल रहा है. लारेन से उस ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पक्के तौर पर लगा कि तुम ने मुहम्मद को देखा है?’’

लारेन ने जिसे देखा था उस की महीन कटी हुई दाढ़ी थी, जबकि मुहम्मद दाढ़ी नहीं रखता. यह सोच कर लारेन असमंजस में पड़ गई. जो मुहम्मद उसे याद था वह इतना मोटा नहीं था जितना कल वाला नासेर. फिर भी क्रिस्टी ने लारेन को तसल्ली दी कि उस की मदद काफी काम आई है.

लारेन को उस के घर छोड़ कर क्रिस्टी वापस चला गया. अगले दिन उस ने मोयरा को उस दुकान के कागजात निकलवाने के लिए भेज दिया. दुकान की पहली मालकिन साफिया नासेर नाम की औरत थी. वह तुर्की की थी जिस की उम्र 42 वर्ष थी.

मगर सवाल यह था कि दुकान बेच कर वह चली कहां गई?

– क्रमश:                                              

वह नीला परदा: भाग-1

जौन एक सफल बैंक अधिकारी रहा था. संस्कारी परिवार के सद्गुणों ने उसे धर्मभीरु व कर्तव्यनिष्ठ बना रखा था. उस के पिता पादरी थे व माता अध्यापिका. शुरू से अंत तक उस का जीवन एक सुरक्षित वातावरण में कटा. नैतिक मूल्यों की शिक्षा, पिता के संग चर्च की तमाम गतिविधियों व बैंक की नौकरी के दौरान जौन ने कोई बड़ा हादसा नहीं देखा. जब तक नौकरी की, वह लंदन में रहा अपने छोटे से परिवार के साथ. फिर इकलौती बेटी का विवाह किया फिर समयानुसार उस ने रिटायरमैंट ले लिया. पत्नी को भी समय से पूर्व रिटायरमैंट दिला दिया था. फिर वह लंदन से 30 मील दूर रौक्सवुड में जा कर बस गया.

रौक्सवुड एक छोटा सा गांव था. हर तरह की चहलपहल से दूर, सुंदरसुंदर मकानों वाला. ज्यादा नहीं, बस, 100 से 150 मकान, दूरदूर छितरे हुए, बड़ेबड़े बगीचों वाले. वातावरण एकदम शांत. घर से आधा मील पर अगर कोई गाड़ी रुकती, तो यों लगता कि अपने ही दरवाजे पर कोई आया है. छोटा सा एक बाजार था,

2-3 छोटेबड़े स्कूल थे और एक चर्च था. हर कोई एकदूसरे को जानता था.

10 वर्षों से जौन यहां रह रहा था. चर्च की सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने की उस की पुरानी हौबी थी. दोनों पतिपत्नी सब के चहेते थे. शादी हो या बच्चे की क्रिसनिंग सब में वे आगे बढ़ कर मदद देते थे.

जौन सुबह अंधेरे ही उठ जाता. डोरा यानी उस की पत्नी सो ही रही होती. वह कुत्ते को ले कर टहलने चला जाता. अकसर टहलतेटहलते उसे अपने जानने वाले मिल जाते. अखबार की सुर्खियों पर चर्चा कर के वह 1-2 घंटों में वापस आ जाता.

ऐसी ही अक्तूबर की एक सुबह थी. दिन छोटे हो चले थे. 7 बजे से पहले सूरज नहीं उगता था. 4 दिन की लगातार झड़ी के बाद पहली बार आसमान नीला नजर आया. पेड़ों के पत्ते झड़ चुके थे. जहांतहां गीले पत्तों के ढेर जमा थे. घरों के मालिक जबतब उन्हें बुहार कर जला देते थे.

जौन की आंख सुबह 5 बजे ही खुल गई. उस का छोटा सा कुत्ता रोवर उस का कंबल खींचते हुए लगातार कूंकूं  किए जा रहा था.

‘‘चलता हूं भई, जरा तैयार तो हो लेने दे,’’ जौन ने उसे पुचकारा.

उस की पत्नी दूसरे कमरे में सोती थी. जौन को उस का देर रात तक टीवी पर डरावनी फिल्में देखना खलता था.

जौन ने जूते पहने, कोट और गुलूबंद पहना, हैट पहन कर कुत्ते को जंजीरपट्टा पहना कर वह चुपचाप निकल गया.

 

घर से करीब 1 मील पर जंगल था. करीब 3 वर्गमील के क्षेत्र में फैला यह जंगल इस कसबे की खूबसूरती का कारण था. इसी से गांव का नाम रौक्सवुड पड़ा था. जंगल में चीड़ और बल्ली के पेड़ों के अलावा करीने से उगे रोडोडेंड्रन के पेड़ भी थे, जो वसंत ऋतु में खिलते थे. इन के बीच अनेक ऊंचीनीची ढलानों वाली पगडंडियां थीं, जिन पर लोग साइकिल चलाने का अभ्यास करते थे. कभीकभी कोई छोटी गाड़ी भी दिख जाती थी. चूंकि लोग खाद के लिए सड़ी पत्तियां खोद कर ले जाते थे, इसलिए ढलानों पर बड़ेबड़े गड्ढे भी थे.

जंगल की पगडंडियों पर दूरदूर तक चलना जौन का खास शौक था. 2-4 मिलने वालों को दुआसलाम कर वह अपने रास्ते चलता गया.

सूरज अभी उगा नहीं था, मगर दिन का उजाला फैलने लगा था. जौन जंगल में काफी दूर तक आ गया था. इस हिस्से में कई गड्ढे थे. पत्तियों ने उन गड्ढों को भर दिया था. घने पेड़ों की जड़ों के पास छाया होने के कारण वहां सड़न और काई जमा थी, जिस में कुकुरमुत्तों के छत्ते उगे हुए थे. एक अजीब दुर्गंध हवा में थी, जो सुबह की ताजगी से मेल नहीं खा रही थी.

रोवर दूर निकल गया था. जौन ने सीटी बजाई, मगर उस ने अनसुना कर दिया. जौन उसे पुकारता वहां तक पहुंच गया. सामने कीचड़ व सड़े पत्तों से भरे एक गड्ढे में रोवर अपने अगले पंजे मारमार कर कूंकूं कर रहा था. जौन कहता रहा, ‘‘छोड़ यार, घर चल, वापस जाने में भी घंटा लगेगा अब तो.’’

मगर रोवर वहीं अड़ा रहा. जौन पास चला गया, ‘‘अच्छा बोल, क्या मिल गया तुझे?’’

तभी जौन ने देखा गड्ढे में कीचड़ से सना एक कपड़ा था, जिसे रोवर दांतों से खींचे जा रहा था. कपड़ा मोटे परदे का था, जिस का रंग नीला था. तभी जौन पूरी ताकत से वापस भागा. रोवर को भी वापस आना पड़ा. जौन तब तक भागता रहा, जब तक उसे दूसरा व्यक्ति नजर नहीं आ गया. जौन रुक गया, मगर उस के बोल नहीं फूटे.

अंगरेज अपनी भावनाओं को बखूबी छिपा लेते हैं. जौन ने हैट को छू कर उस से सलाम किया और चाल को सहज कर के वह सीधा घर आ गया. रोवर के साथ होते हुए भी उसे लग रहा था कि जैसे कोई उस के पीछे आ रहा है. घर में घुसते ही उस ने दरवाजा इतनी जोर से बंद किया कि डोरा ऊपर से चिल्लाई, ‘‘कौन है?’’

जौन ने उत्तर नहीं दिया और सोफे पर बैठ गया. डोरा नीचे दौड़ी आई. जौन का चेहरा देख कर वह घबरा गई पर कुछ कहा नहीं. चुपचाप रोवर को बगीचे में भेज कर दरवाजा बंद करने लगी तो जौन ने कहा, ‘‘उसे बंधा रहने दो, नहीं तो जंगल में भाग जाएगा.’’

डोरा की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने वैसा ही किया और रोज की तरह चाय बनाने लगी. चाय की केतली की चिरपरिचित सीटी की आवाज से जौन वापस अपनी दुनिया में लौट आया और उस ने पास ही रखे फोन पर सीधा 999 नंबर मिलाया. पुलिस को अपना पता दे कर जल्दी आने को कहा.

पुलिस 10 मिनट में ही पहुंच गई. जौन ने पुलिस वालों को बताया कि उसे शक है कि जंगल में एक गड्ढे में कीचड़ में डूबी कोई लाश है. पुलिस को समझते देर नहीं लगी. हवलदार ने उस से संग चल कर दिखाने के लिए कहा, तो जौन को उलटी आ गई.

हवलदार समझदार आदमी था. वह समझ गया कि 75 वर्षीय जौन, जो दफ्तर की कुरसी पर बैठता आया था, इतना कठोर न था कि इस तरह के हादसे को सहजता से पचा लेता.

फिर भी उस ने कोशिश की. जौन से कहा, ‘‘कुछ दिशा, रास्ता आदि समझा सकते हो?’’

जौन को उगता सूरज याद आया, जिस से उस ने दिशा का अंदाजा लगाया. फिर कुकुरमुत्तों के झुरमुट याद आए और वह दुर्गंध जो पिछले 2 घंटे से उस के समूचे स्नायुतंत्र को जकड़े हुए थी और उसे बदहवास कर रही थी. फिर जौन को दोबारा उलटी आ गई.

हवलदार ने अंत में अपने एक सहायक सिपाही से कहा कि वह इंस्पैक्टर क्रिस्टी को ले कर आए, शायद यहां कोई हत्या का मामला है.

आननफानन हत्या परीक्षण दल अपने कुत्तों को ले कर आ पहुंचा. जौन थोड़ा संभल गया था. इंस्पैक्टर क्रिस्टी का स्वागत करते हुए उस ने सारी बात फिर से सुनाई.

क्रिस्टी ने पहला काम यह किया कि उस ने अपने कुत्ते को जौन के पास ले जा कर सुंघवाया. इस के बाद रोवर को भी अंदर लाया गया और पुलिस के कुत्ते ने उसे भी अच्छी तरह सूंघा, खासकर उस के अगले पंजों को. इस के बाद क्रिस्टी और उस का दल अपने कुत्ते को मार्गदर्शक बना कर जौन के बताए रास्ते पर निकल पड़े.

 

अगले 1 घंटे में ही पुलिस का एक भारी दस्ता अनेक उपकरण ले कर उस स्थान पर पहुंच गया और उस ने गड्ढे में से सड़ीगली एक स्त्री की लाश बरामद की, जिसे पता नहीं कितने महीनों पहले एक परदे में लपेट कर कोई वहां फेंक गया था. लाश का सिर गायब था और दोनों हाथ भी. परदे का रंग समुद्री नीला था, जो अब बिलकुल बदरंग हो गया था. कुत्तों की मदद से अधिकारियों ने जंगल का कोनाकोना छान मारा, मगर उस का सिर और हाथ नहीं मिले.

लाश को शव परीक्षण के लिए भेज दिया गया. जौन हफ्ता भर अस्पताल में रहा. स्थान बदलने की खातिर उसे पास के बड़े शहर वोकिंग में ले जाया गया. कुछ ही हफ्तों में उस ने वहीं दूसरा मकान ले लिया और रौक्सवुड छोड़ दिया.

शव परीक्षण से जो तथ्य सामने आए उन से पता चला कि स्त्री की हत्या किसी आरी जैसी चीज से गला काट कर की गई थी. मरने वाली भारतीय या अन्य किसी एशियाई देश की थी. उस के पेट पर मातृत्व के निशान थे. मृतका की उम्र 30 से 40 वर्ष ठहराई गई.

क्रिस्टी ने फाइल को मेज पर रखते हुए आवाज दी, ‘‘मौयरा.’’

‘‘यस डेव.’’

‘‘पिछले 3 सालों की खोई हुई स्त्रियों की लिस्ट निकलवाओ. हमें एक एशियन या ग्रीक जाति की थोड़ी हलके रंग की चमड़ी वाली स्त्री की तलाश है. उस का कद 5 फुट 3 से 5 इंच का हो सकता है. न बहुत मोटी, न पतली.’’

करीब 45 साल की मौयरा पिछले 15 सालों से डेविड क्रिस्टी की सेक्रेटरी है. क्रिमिनल ला में उस ने स्नातक किया था.

पूरे दिन की छानबीन के बाद भी कोई सुराग नहीं मिला. देश भर की सभी पुलिस चौकियों को इत्तिला भेज दी गई, मगर परिणाम कुछ नहीं निकला.

क्या वह कोई टूरिस्ट थी या किसी की मेहमान? हो सकता है कि उसे लूटपाट कर मार डाला गया हो. एशियन स्त्रियां अकसर कीमती गहने पहनती हैं. बाहर से आए आगंतुकों की पूरी जानकारी पासपोर्ट चैक करते समय रजिस्टर में दर्ज होती है. हीथ्रो एअरपोर्ट की पुलिस से पूछताछ की गई. अनेक नाम, अनेक देश, अनेक ऐसी स्त्रियां पिछले 3 सालों में ग्रेट ब्रिटेन में आईं.

लिस्टें महीने व साल के हिसाब से मौयरा के पास पहुंचीं. पासपोर्ट के फोटो सिर्फ चेहरे के होते हैं बाकी शरीर के नहीं और इस केस में सिर तो गायब ही था. ऐसे में चेहरा कहां देखने को मिलता, जिसे पासपोर्ट फोटो के साथ मैच किया जाता. खोए हुए पासपोर्ट भी गंभीरता से ढूंढ़े गए, मगर कोई सूत्र हाथ नहीं आया.

क्रिस्टी ने कहा, ‘‘अगर मेहमान थी तो 6 महीने के बाद जरूर वापस गई होगी अपने देश. जो वापस चली गईं उन को छोड़ दो, मगर जो वापस नहीं गईं उन की लिस्ट जरूर वीजा औफिस में होगी, क्योंकि वे अवैध नागरिक बन कर यहीं टिक गई होंगी.’’

3-4 दिन बाद वीजा औफिस से जवाब आ गया. ऐसी स्त्रियों में कोई भी लाश से मिलतीजुलती नहीं मिली.

आखिर डेविड क्रिस्टी ने फाइल बंद कर दी.

 

उसी दिन शाम को जौन का फोन आया. पूछा, ‘‘मि. क्रिस्टी, आप की तहकीकात कैसी चल रही है?’’

‘‘कुछ खास नहीं, कपड़े सड़गल गए हैं. न केश, न नाखून, न फिंगरप्रिंट, न दांत. किस आधार पर तहकीकात करूं?’’

‘‘मैं ने तो और कुछ नहीं बस वह नीला परदा देखा था, जो उस के बदन को ढके हुए था.’’

‘‘जौन, तुम परेशान क्यों होते हो. इस देश में हर महीने एक लड़की की हत्या होती है. लड़कियों को आजादी तो दे दी, मगर हम क्या उन्हें सुरक्षा दे सके? शायद पिछड़ी हुई सभ्यताओं में ठीक ही करते हैं कि स्त्रियों को घर से बाहर ही नहीं जाने देते.’’

‘‘परेशानी मुझे नहीं तो और किसे होगी. जब भी घर के अंदर घुसता हूं, तो लगता है कि वह मेरे पीछे भागी आ रही है और मैं ने उस के मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया.’’

‘‘जौन, ऐसा है तो कुछ दिन किसी दूसरे देश में पत्नी के साथ हौलीडे मना कर आ जाओ और किसी अच्छे मनोरोगचिकित्सक को दिखा लो.’’

‘‘मुझे लगता है कि वह हम से न्याय मांग रही है.’’

‘‘हां, तुम चर्च में जाने वाले धर्मभीरु इंसान हो, मगर याद रखो मर कर कोई वापस नहीं आया. शांतचित्त हो कर सोचो, साहसमंद बनो, अपना खयाल रखो. तुम अगर विचलित होगे तो डोरा का क्या होगा?’’ कहने को तो क्रिस्टी बोल गया, मगर उस के मन में वह नीला परदा कौंध गया. उस ने उस परदे की बारीकी से छानबीन की, तो अंदर की तरफ एक लेबल मिल गया जिस पर कंपनी का नाम था.

‘‘मौयरा, देखो इस परदे की मैन्युफैक्चर कंपनी का नाम.’’

‘‘उस से क्या होगा. कंपनी ने कोई एक परदा तो बनाया नहीं होगा.’’

‘‘चलो, कोशिश करने में क्या हरज है.’’

मौयरा ने परदे बनाने वाली कंपनी को पत्र लिखा तो उत्तर मिला कि यह परदा 20 वर्ष पहले बना था, उन की कंपनी में. रिटेल में बेचने वाली दुकान का नाम ऐक्सल हाउजलिनेन स्टोर था. पर इस स्टोर की बीसियों ब्रांचें पूरे देश में फैली हुई थीं. सहायता के तौर पर उन्होंने अपने बचेखुचे स्टौक में से ढूंढ़ कर वैसा ही एक परदा क्रिस्टी को भेज दिया. उस स्टोर की एक भी ब्रांच इस क्षेत्र में नहीं थी. एक ब्रांच 40 मील दूर पर मिल ही गई, तो उन्होंने अपने सब रिकौर्ड उलटेपलटे और बताया कि परदा करीब 15 साल पहले बिका होगा. इस के बाद उस की बिक्री बंद हो गई थी, क्योंकि सारा माल खत्म हो गया था.

क्रिस्टी ने पुलिस फाइल के विशेष कार्यक्रम में कंपनी द्वारा भेजे गए परदों को टैलीविजन पर प्रस्तुत किया और जनता से अपील की कि अगर वे किसी को जानते हों, जिस के पास ऐसे परदे हों तो वे पुलिस की सहायता करें. उस ने किसी खोई हुई स्त्री का पता देने की भी मांग की. परदा 6 फुट लंबा था, जो किसी ऊंची खिड़की या दरवाजे पर टंगा हो सकता है.

एपसम में एक कार बूट सेल लगती है. दूरदूर से लोग अपने घरों का पुराना सामान कार के बूट में भर कर ले आते थे और कबाड़ी बाजार में बेच कर लौट जाते हैं. अकसर इस में कुछ पेशेवर कबाड़ी भी होते हैं. ऐसी ही एक कबाड़ी थी मार्था. उस का आदमी बिके हुए सामान खरीद लेता था. उस की एक सहेली थी शीला. शीला भी यही काम करती थी, मगर वह बच्चों के सामान यानी पुरानी गुडि़यां, फर के खिलौने, बच्चों के कपड़े आदि की खरीदारी करती थी.

पुलिस फाइल का प्रोग्राम लगभग सभी स्त्रियां देखती हैं. मार्था 1 हफ्ते की छुट्टी पर ग्रीस चली गई थी. लौट कर आई तो शीला का फोन आया, ‘‘मार्था, तू बड़ी खुश हो रही थी न कि तेरे पुराने परदे 10-10 पाउंड में बिक गए. ले देख, उन का क्या किया किसी खरीदार ने. पुलिस को तलाश है उन की. साथ ही, किसी खोई हुई औरत की भी. मुझे तो लगता है जरूर कोई हत्या का मामला है.’’

‘‘परदों से हत्या का क्या संबंध, अच्छेभले तो थे लेबल तक लगा हुआ था. मैं ने बेचे तो क्या गुनाह किया?’’

‘‘नहीं, वह तो ठीक है, मगर पुलिस क्यों पूछेगी? कुछ गड़बड़ तो है. तुझे फोन कर के उन्हें बताना चाहिए.’’

‘‘मैं ने बेच दिए, बाकी मेरी बला से. खरीदने वाला उन को क्यों खरीद रहा है, मुझे इस से क्या मतलब? चाहे वह उस का गाउन बना कर पहने, चाहे पलंग पर बिछाए, चाहे घर में टांगे उस की मरजी.’’

अगली बार फिर पुलिस फाइल पर अपील की गई. अब मार्था विचलित हो उठी. उस ने फोन उठा कर दिए हुए नंबर पर फोन मिलाया.

बात करने वाला कोई बेहद शालीन मृदुभाषी व्यक्ति था. मार्था ने बताया, ‘‘कुछ महीने पहले उस ने बिलकुल ऐसे ही 6 फुट लंबे परदे बेचे थे. खरीदने वाली कोई औरत थी और दूर से आई थी. उस ने परदे के दामों पर हुज्जत की थी, इसलिए मुझे कुछकुछ याद है.’’

‘‘बता सकती हो वह देखने में कैसी थी?’’

‘‘रंग गोरा था और उस ने सिर पर रूमाल बांधा हुआ था. शायद तुर्की या ईरानी होगी. उस ने यह भी कहा था कि वह दूर से आई थी शायद बेसिंग स्टोक से.’’

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, इतना भी क्लू मिल जाए तो हमारा काम आसान हो जाता है. आप इस बारे में चुप रहें तो अच्छा. कोई भी तहकीकात चुपचाप ही की जाती है.’’

‘‘मैं अब चैन से सो सकूंगी,’’ कह कर मार्था ने फोन रख दिया.

 

क्रिस्टी ने अपनी खोज बेसिंग स्टोक और उस के आसपास के इलाके में सीमित कर ली. परदों के बेचने का समय हत्या के समय से लगभग मिलता था.

फिर भी यह भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ने जैसा ही था. तथ्यों से अभी वह कोसों दूर था. कैनवास अभी गीला ही था. किसी भी रंग की लकीर खींचो वह फैल कर गुम हो रही थी.

फिर से जौन का फोन आ गया. पूछा, ‘‘डेविड क्रिस्टी है क्या?’’

‘‘बोल रहा हूं. कौन है?’’

‘‘मैं जौन, पहचाना?’’

‘‘अरे हां, खूब अच्छी तरह, ठीक हो?’’

‘‘नहीं, अस्पताल में रह कर आया हूं.

मुझे फिर से वही बेचैनी और फोबिया तंग कर रहा था. डाक्टर ने मुझे ट्रैंक्विलाइजर पर रखा कुछ दिन और मेरा सुबह का घूमना बंद करवा दिया. अब मैं करीब 10-11 बजे डोरा के साथ टहलने जाता हूं, वह भी भरे बाजार में. कुत्ते को ले कर डोरा जाती है या चर्च का कोई जानने वाला. नया शहर है यह, तो भी न जाने कैसी दहशत बैठ गई है.’’

‘‘देखो, मैं इसी पर काम कर रहा हूं. तुम बेफिक्र रहो.’’

डेविड क्रिस्टी मार्था की बातें सोचता रहा. अगले पुलिस फाइल के प्रोग्राम में उस ने एक खिड़की का अनुमानित चित्र पेश किया, जिस पर नेट का परदा लगा था और दोनों ओर हूबहू वैसे ही नीले परदे डोरी से बंधे सुंदरता से लटक रहे थे.

इस फोटो के साथ ही उस ने जनता से अपील की कि यदि वह ऐसी किसी खिड़की को देखा हो तो उसे सूचित करें.

इस प्रोग्राम के बाद उसे एक स्त्री का फोन आया. इत्तफाक से वह बेसिंग स्टोक से ही बोल रही थी, ‘‘इंस्पैक्टर क्रिस्टी, मैं आप से मिलना चाहती हूं.’’

बेसिंग स्टोक का नाम सुनते ही क्रिस्टी तुरंत उठ खड़ा हुआ. फौरन अपनी सेक्रेटरी मौयरा को ले कर वह बताए हुए पते पर पहुंच गया.

 

वह एक सुंदर सा मकान था, जो 3 ओर से बगीचे से घिरा हुआ था. चौथी ओर फेंस यानी बांस की चटाईनुमा दीवार थी.

क्रिस्टी ने घंटी बजाई तो किसी ने थोड़ा सा दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैं इंस्पैक्टर क्रिस्टी और यह है मेरी सहायिका मौयरा. हमें बुलाया गया है,’’

कह कर क्रिस्टी ने अपना पुलिस का बैज दिखाया.

उत्तर में स्त्री ने दरवाजा पूरा खोल दिया और स्वागत की मुद्रा में एक ओर सरक गई, ‘‘प्लीज, कम इन. मैं जैनेट हूं. पेशे से नर्स हूं.’’

क्रिस्टी और मौयरा अंदर दाखिल हुए. जैनेट ने उन्हें बैठाया.

‘‘आप ने मुझे फोन क्यों किया?’’

‘‘इंस्पैक्टर, मैं बिलकुल अकेली रहती हूं. नर्स हूं और फ्रीलांस काम करती हूं, एजेंसी के माध्यम से. अकसर मुझे यूरोप भी जाना पड़ता है. कईकई महीने मुझे बाहर रहना पड़ता है. आप तो देख ही रहे हैं कि मेरा घर 3 तरफ से यह पूरी तरह असुरक्षित है. इसलिए मेरे मित्रों ने सलाह दी कि मैं कोई किराएदार रख लूं ताकि घर की सुरक्षा रहे.’’

‘‘वाजिब बात है. ऐसा तो अनेक लोग करते हैं.’’

‘‘इसलिए मैं ने अखबार में इश्तिहार दे दिया था. जवाब में जो लोग आए उन में एक स्मार्ट सी एशियन लड़की भी थी, जो काफी पढ़ीलिखी थी. वह भी बिलकुल अकेली थी. बातचीत से वह भली लगी, इसलिए मैं ने उसे चुन लिया. उस का नाम फैमी था और वह मोरक्को की रहने वाली थी. यहां वह स्टूडैंट बन कर आई थी, फिर यहीं नौकरी मिल गई और स्थाई रूप से बस गई. पिछले क्रिसमस पर वह अपने देश छुट्टियां मनाने गई, मगर वापस नहीं लौटी.’’

‘‘उस का कोई पत्र आया आप के पास?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘उस ने जाते समय अपने घर का पता दिया था आप को?’’

‘‘नहीं, वह कम बोलने वाली और खुशमिजाज लड़की थी. शायद वह वहीं रह गई हो सदा के लिए.’’

‘‘ऐसा कम ही होता है पर चलो मान लेते हैं. लेकिन आप ने मुझे क्यों बुलाया?’’

‘‘दरअसल, जब वह नहीं लौटी तो मैं ने कमरा खाली कर दिया और उस का सारा सामान इकट्ठा कर के रख दिया. आजकल उस कमरे में एक फ्रैंच स्टूडैंट रहता है.’’

‘‘सब कुछ ठीक है. इस में इतना घबराने और पुलिस को बुलाने की क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘आप लोगों ने जो खिड़की का फोटो और नीला परदा दिखाया था, उसी को देख कर मैं ने फोन किया. फैमी का जो सामान मैं ने पैक कर के बक्से में रखा, उस में उस का एक चित्र भी है, जिस में वह 2-3 साल के एक बच्चे के साथ वैसी ही खिड़की या दरवाजे के पास बैठी है. आप का चित्र देख कर मैं ने फोन कर दिया.’’

‘‘क्या वह चित्र दिखा सकती हैं मुझे?’’

‘‘हां, मैं ने सामान नीचे उतरवा लिया था.’’

– क्रमश:                             

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