‘‘इस बीच श्रीकांत मेरे ही औफिस में मेरा सीनियर बन कर आ गया. मैं खुद को रोक नहीं सकी. हमारा रिश्ता गहरा होता गया. एक ऐक्सीडैंट में श्रीकांत की पत्नी गुजर चुकी थी. हम दोनों ने फिर से एक होने का फैसला लिया और मु झे तेरे पापा से तलाक लेना पड़ा. तब तेरे पापा ने अपनी झोली फैला कर मु झ से तु झे मांग लिया था. सच बता रही हूं बहुत प्यार करते हैं वे तु झ से.
‘‘उन के शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं कि सपना तुम मु झे छोड़ कर जा रही हो तो तुम्हें रोकूंगा नहीं क्योंकि तुम्हारी खुशी श्रीकांत के साथ ही है. पर मु झे मेरी खुशी, मेरी जिंदगी, मेरी यह बच्ची दे कर चली जाओ. उम्र भर तुम्हारा एहसान मानूंगा. इस के बिना मैं बिलकुल नहीं जी नहीं पाऊंगा.
‘‘उस वक्त तेरे पापा की आंखों में तेरे लिए जो प्यार और ममता थी उसे आज भी नहीं भूल सकी हूं. मैं ने प्रवीण की जिंदगी अधूरी छोड़ दी थी पर तु झे उन की बांहों में सौंप कर मु झे लगा था जैसे मैं ने उन्हें और तु झे नई जिंदगी दी है. इस के बदले मैं ने अपनी ममता का गला घोट दिया और अपने हिस्से का पश्चात्ताप कर लिया. मैं चली आई पर पूरे इस विश्वास के साथ कि प्रवीण के साथ तू बहुत खुश रहेगी. वे तेरे लिए कुछ भी करेंगे. तु झ में उन की जान बसती है. प्रवीण बहुत सम झदार हैं. दिल के साथ दिमाग से भी सोचते हैं और मु झे पूरी उम्मीद है कि उन्होंने जिसे भी तेरी नई मां के रूप में चुना है वह बहुत अच्छी होगी और प्रवीण जैसी ही सम झदार होगी. सच प्रज्ञा अपने पापा और उन की पसंद पर पूरा यकीन रख. यह भी तो सोच कि तेरे ससुराल जाने के बाद वे कितने अकेले हो जाएंगे. तब कौन रखेगा उन का खयाल इसलिए उन्हें यह शादी कर लेने दे बेटा, ‘‘सपना ने बेटी को सम झाते हुए कहा था.
आज मां के मुंह से तलाक की असली वजह जान कर प्रज्ञा का दिल भर आया था. आज तक उसे यही लगता था कि कहीं न कहीं गलती उस के पापा की होगी जो मम्मी को यह घर छोड़ कर जाना पड़ा पर अब वह बड़ी हो गई थी और काफी कुछ सम झने लगी थी. मां की बातों को सुन कर उस का दिल अपने पापा के लिए प्यार से भर उठा.
जिस पापा से वह कल से इतनी नाराज थी आज उसी पापा पर उसे प्यार आ रहा था. कल से उस ने प्रवीण से बात भी नहीं की थी और प्रवीण भी कमरे में अकेले गुमसुम बैठा था मानो जानना चाहता हो कि उसे जिंदगी में कभी पूरा प्यार मिल क्यों नहीं पाया. अपनी मां की बातें सुन कर मन ही मन में प्रज्ञा ने एक फैसला ले लिया. उस ने तय कर लिया कि वह अपने पापा की खुशियों के बीच में नहीं आएगी.
घर लौट कर अमृता और श्वेता के बीच भी एक अनकही सी खामोशी पसरी हुई थी. श्वेता यह बात स्वीकार करने को तैयार नहीं थी कि उस की मां किसी अनजान पुरुष को सामने ला कर कहे कि अब से यह तुम्हारे पापा हैं. वह न अपनी मां से बात कर रही थी और न ही दोस्तों से. स्कूल में लंच के समय वह सहेलियों को छोड़ कर गुमसुम सी एक कोने में बैठी हुई थी.
उसे ऐसे बैठा देख कर उस का दोस्त पीयूष उस के पास आ कर बैठ गया. वह श्वेता की उदासी की वजह पूछ रहा था कि तभी पीयूष के पापा मिलने आए. आते ही उन्होंने बेटे को गले लगाया और चौकलेट हैंपर्स व केक देते हुए सारे दोस्तों को बांटने को कहा.
पीयूष की खुशी देखते ही बनती थी. आज उस का बर्थडे था पर उस के पापा अपनी बीमार मां को देखने गए हुए थे इसी वजह से पीयूष आज बर्थडे नहीं मना रहा था. मगर अब उस के चेहरे पर रौनक लौट आई थी. पापा के जाने के बाद उस ने मुसकराते हुए श्वेता को चौकलेट दी. श्वेता ने चौकलेट ले ली पर उस के चेहरे की उदासी नहीं गई.
‘‘बताओ न श्वेता क्या हुआ. तुम इतनी उदास क्यों हो?’’ पीयूष ने पूछा.
‘‘कुछ नहीं यार.’’
‘‘बताओ न मैं दोस्त हूं न तुम्हारा.’’
‘‘यार तुम्हारे पापा तुम्हें कितना प्यार करते हैं.’’
‘‘सभी पापा अपने बच्चों से प्यार करते हैं. तुम्हारे पापा भी तो करते हैं. यह बात अलग है कि वे दूर हैं.’’
‘‘यार अपने पापा तो अपने ही होते हैं न. मगर सुना है सौतेले पापा जीना हराम कर देते हैं. अपनी वेदिका को देखा है न,’’ श्वेता ने कहा.
‘‘ऐसा कुछ नहीं है श्वेता सौतेले पेरैंट्स भी प्यार करते हैं. मेरे पापा को ही देख. मैं ने कभी किसी को नहीं बताया पर आज तु झे बता रहा हूं. कोई सोच सकता है कि वे मेरे अपने पापा नहीं हैं. उन की जान बसती है मु झ में.’’
‘‘तो क्या सचमुच वे तुम्हारे सौतेले पापा हैं?’’ चौंकते हुए श्वेता ने पूछा.
‘‘हां श्वेता पर अपने से बढ़ कर प्यार करते हैं. इसलिए कहता हूं किसी पर भी सौतेले का ठप्पा नहीं लगाना चाहिए. अब मैं चलता हूं,’’ कह कर पीयूष चला गया.
श्वेता देर तक इस बारे में सोचती रही. तभी उस ने देखा कि प्रज्ञा स्कूल की दूसरी
वाली बिल्डिंग में जा रही है. वह जल्दी से उठी, ‘‘अरे प्रज्ञा तू इसी स्कूल में पढ़ती है?’’
‘‘हां और तू भी? गुड यार.’’
‘‘आ बैठ न तु झ से बातें करनी हैं,’’ श्वेता
ने उसे अपने पास बैठा लिया और पूछा, ‘‘प्रज्ञा
तू ने क्या सोचा हमारे पेरैंट्स की शादी के बारे में?’’
‘‘यार मु झे तो लगता है यह शादी हो जानी चाहिए. हमारा परिवार भी पूरा हो जाएगा और हमारे पेरैंट्स को भी जीवनसाथी मिल जाएंगे. आखिर हम हमेशा उन के साथ तो रह नहीं सकते,’’ प्रज्ञा ने सम झाते हुए कहा.
‘‘तू कह तो सही रही है, मगर क्या तु झे नहीं लगता कि सौतेले मम्मीपापा का होना कितना अजीब है?’’
‘‘यार मैं ने भी पहले ऐसा ही सोचा था. मगर मेरी मम्मी ने ही सम झाया कि ऐसा कुछ नहीं होता कई बार दिल के रिश्ते जन्म के रिश्तों से बड़े निकलते हैं. हमें उन को एक मौका तो देना ही चाहिए न,’’ प्रज्ञा ने कहा.
पीयूष की बातों ने पहले ही श्वेता की सोच को एक दिशा दी थी. अब प्रज्ञा की बातों ने उस का रहासहा संशय भी मिटा दिया.
श्वेता कुछ देर प्रज्ञा की तरफ देखते हुए कुछ सोचती रही, फिर उस से हाथ मिलाते हुए बोली, ‘‘ठीक है हम एक हैप्पी फैमिली बनाएंगे. कोशिश करने में हरज ही क्या है. शायद इस से हमारे पेरैंट्स की अधूरी जिंदगी भी पूरी हो जाए.’’
खुशी से प्रज्ञा ने श्वेता को गले लगा लिया. आज दोनों ही अपनेअपने पेरैंट्स को सरप्राइज देने वाली थीं.