हैप्पी फैमिली: भाग 3- श्वेता अपनी मां की दूसरी शादी के लिए क्यों तैयार नहीं थी?

‘‘इस बीच श्रीकांत मेरे ही औफिस में मेरा सीनियर बन कर आ गया. मैं खुद को रोक नहीं सकी. हमारा रिश्ता गहरा होता गया. एक ऐक्सीडैंट में श्रीकांत की पत्नी गुजर चुकी थी. हम दोनों ने फिर से एक होने का फैसला लिया और मु झे तेरे पापा से तलाक लेना पड़ा. तब तेरे पापा ने अपनी  झोली फैला कर मु झ से तु झे मांग लिया था. सच बता रही हूं बहुत प्यार करते हैं वे तु झ से.

‘‘उन के शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं कि सपना तुम मु झे छोड़ कर जा रही हो तो तुम्हें रोकूंगा नहीं क्योंकि तुम्हारी खुशी श्रीकांत के साथ ही है. पर मु झे मेरी खुशी, मेरी जिंदगी, मेरी यह बच्ची दे कर चली जाओ. उम्र भर तुम्हारा एहसान मानूंगा. इस के बिना मैं बिलकुल नहीं जी नहीं पाऊंगा.

‘‘उस वक्त तेरे पापा की आंखों में तेरे लिए जो प्यार और ममता थी उसे आज भी नहीं भूल सकी हूं. मैं ने प्रवीण की जिंदगी अधूरी छोड़ दी थी पर तु झे उन की बांहों में सौंप कर मु झे लगा था जैसे मैं ने उन्हें और तु झे नई जिंदगी दी है. इस के बदले मैं ने अपनी ममता का गला घोट दिया और अपने हिस्से का पश्चात्ताप कर लिया. मैं चली आई पर पूरे इस विश्वास के साथ कि प्रवीण के साथ तू बहुत खुश रहेगी. वे तेरे लिए कुछ भी करेंगे. तु झ में उन की जान बसती है. प्रवीण बहुत सम झदार हैं. दिल के साथ दिमाग से भी सोचते हैं और मु झे पूरी उम्मीद है कि उन्होंने जिसे भी तेरी नई मां के रूप में चुना है वह बहुत अच्छी होगी और प्रवीण जैसी ही सम झदार होगी. सच प्रज्ञा अपने पापा और उन की पसंद पर पूरा यकीन रख. यह भी तो सोच कि तेरे ससुराल जाने के बाद वे कितने अकेले हो जाएंगे. तब कौन रखेगा उन का खयाल इसलिए उन्हें यह शादी कर लेने दे बेटा, ‘‘सपना ने बेटी को सम झाते हुए कहा था.

आज मां के मुंह से तलाक की असली वजह जान कर प्रज्ञा का दिल भर आया था. आज तक उसे यही लगता था कि कहीं न कहीं गलती उस के पापा की होगी जो मम्मी को यह घर छोड़ कर जाना पड़ा पर अब वह बड़ी हो गई थी और काफी कुछ सम झने लगी थी. मां की बातों को सुन कर उस का दिल अपने पापा के लिए प्यार से भर उठा.

जिस पापा से वह कल से इतनी नाराज थी आज उसी पापा पर उसे प्यार आ रहा था. कल से उस ने प्रवीण से बात भी नहीं की थी और प्रवीण भी कमरे में अकेले गुमसुम बैठा था मानो जानना चाहता हो कि उसे जिंदगी में कभी पूरा प्यार मिल क्यों नहीं पाया. अपनी मां की बातें सुन कर मन ही मन में प्रज्ञा ने एक फैसला ले लिया. उस ने तय कर लिया कि वह अपने पापा की खुशियों के बीच में नहीं आएगी.

घर लौट कर अमृता और श्वेता के बीच भी एक अनकही सी खामोशी पसरी हुई थी. श्वेता यह बात स्वीकार करने को तैयार नहीं थी कि उस की मां किसी अनजान पुरुष को सामने ला कर कहे कि अब से यह तुम्हारे पापा हैं. वह न अपनी मां से बात कर रही थी और न ही दोस्तों से. स्कूल में लंच के समय वह सहेलियों को छोड़ कर गुमसुम सी एक कोने में बैठी हुई थी.

उसे ऐसे बैठा देख कर उस का दोस्त पीयूष उस के पास आ कर बैठ गया. वह श्वेता की उदासी की वजह पूछ रहा था कि तभी पीयूष के पापा मिलने आए. आते ही उन्होंने बेटे को गले लगाया और चौकलेट हैंपर्स व केक देते हुए सारे दोस्तों को बांटने को कहा.

पीयूष की खुशी देखते ही बनती थी. आज उस का बर्थडे था पर उस के पापा अपनी बीमार मां को देखने गए हुए थे इसी वजह से पीयूष आज बर्थडे नहीं मना रहा था. मगर अब उस के चेहरे पर रौनक लौट आई थी. पापा के जाने के बाद उस ने मुसकराते हुए श्वेता को चौकलेट दी. श्वेता ने चौकलेट ले ली पर उस के चेहरे की उदासी नहीं गई.

‘‘बताओ न श्वेता क्या हुआ. तुम इतनी उदास क्यों हो?’’ पीयूष ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं यार.’’

‘‘बताओ न मैं दोस्त हूं न तुम्हारा.’’

‘‘यार तुम्हारे पापा तुम्हें कितना प्यार करते हैं.’’

‘‘सभी पापा अपने बच्चों से प्यार करते हैं. तुम्हारे पापा भी तो करते हैं. यह बात अलग है कि वे दूर हैं.’’

‘‘यार अपने पापा तो अपने ही होते हैं न. मगर सुना है सौतेले पापा जीना हराम कर देते हैं. अपनी वेदिका को देखा है न,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है श्वेता सौतेले पेरैंट्स भी प्यार करते हैं. मेरे पापा को ही देख. मैं ने कभी किसी को नहीं बताया पर आज तु झे बता रहा हूं. कोई सोच सकता है कि वे मेरे अपने पापा नहीं हैं. उन की जान बसती है मु झ में.’’

‘‘तो क्या सचमुच वे तुम्हारे सौतेले पापा हैं?’’ चौंकते हुए श्वेता ने पूछा.

‘‘हां श्वेता पर अपने से बढ़ कर प्यार करते हैं. इसलिए कहता हूं किसी पर भी सौतेले का ठप्पा नहीं लगाना चाहिए. अब मैं चलता हूं,’’ कह कर पीयूष चला गया.

श्वेता देर तक इस बारे में सोचती रही. तभी उस ने देखा कि प्रज्ञा स्कूल की दूसरी

वाली बिल्डिंग में जा रही है. वह जल्दी से उठी, ‘‘अरे प्रज्ञा तू इसी स्कूल में पढ़ती है?’’

‘‘हां और तू भी? गुड यार.’’

‘‘आ बैठ न तु झ से बातें करनी हैं,’’ श्वेता

ने उसे अपने पास बैठा लिया और पूछा, ‘‘प्रज्ञा

तू ने क्या सोचा हमारे पेरैंट्स की शादी के बारे में?’’

‘‘यार मु झे तो लगता है यह शादी हो जानी चाहिए. हमारा परिवार भी पूरा हो जाएगा और हमारे पेरैंट्स को भी जीवनसाथी मिल जाएंगे. आखिर हम हमेशा उन के साथ तो रह नहीं सकते,’’ प्रज्ञा ने सम झाते हुए कहा.

‘‘तू कह तो सही रही है, मगर क्या तु झे नहीं लगता कि सौतेले मम्मीपापा का होना कितना अजीब है?’’

‘‘यार मैं ने भी पहले ऐसा ही सोचा था. मगर मेरी मम्मी ने ही सम झाया कि ऐसा कुछ नहीं होता कई बार दिल के रिश्ते जन्म के रिश्तों से बड़े निकलते हैं. हमें उन को एक मौका तो देना ही चाहिए न,’’ प्रज्ञा ने कहा.

पीयूष की बातों ने पहले ही श्वेता की सोच को एक दिशा दी थी. अब प्रज्ञा की बातों ने उस का रहासहा संशय भी मिटा दिया.

श्वेता कुछ देर प्रज्ञा की तरफ देखते हुए कुछ सोचती रही, फिर उस से हाथ मिलाते हुए बोली, ‘‘ठीक है हम एक हैप्पी फैमिली बनाएंगे. कोशिश करने में हरज ही क्या है. शायद इस से हमारे पेरैंट्स की अधूरी जिंदगी भी पूरी हो जाए.’’

खुशी से प्रज्ञा ने श्वेता को गले लगा लिया. आज दोनों ही अपनेअपने पेरैंट्स को सरप्राइज देने वाली थीं.

जिंदगी का सफर: भाग 2- क्या शिवानी और राकेश की जिंदगी फिर से पटरी पर लौटी?

राकेश और शिवानी के निरंतर बिगड़ रहे संबंधों में उन के अहं का टकराव महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था. कोई भी पहले  झक कर आपस में मिलने की समझदारी नहीं दिखा रहा था.

राकेश और उस के मातापिता मोहित से तब मिल आते जब शिवानी और उस की सहेली औफिस में होती. शिवानी से मिल कर सुलह की बातें करने को उन में से कोई राजी न था.

‘‘शिवानी बिना पूछे घर से आई थी. वह जब चाहे लौट सकती है, लेकिन वैसा करने के लिए हम उस के सामने हाथ नहीं जोड़ेंगे,’’ उन तीनों की ऐसी जिद के चलते जिद्दी शिवानी की ससुराल लौटने की संभावना बहुत कम होती गई.

शिवानी ने एक फ्लैट का इंतजाम कर लिया.

कमर्शियल अपार्टमैंट जो एक सोसायटी में थी. करीब 2 महीने बाद मोहित का जन्मदिन आया. बर्थडे वह मायके में मनाएगी यह तय हुआ. इस अवसर पर राकेश आएगा, इस बात की शिवानी को पूरी उम्मीद थी. उस ने अच्छी पार्टी का इंतजाम करने के लिए अपनी मां को क्व5 हजार दिए.

‘आज शाम किसी न किसी तरह से मैं राकेश के पास लौटने की सूरत जरूर पैदा कर लूंगी,’ ऐसा निश्चिय शिवानी ने मन ही मन कर लिया.

जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने को शिवानी जल्दी औफिस से निकलने ही वाली थी जब उस के पास उस की मां का फोन आया, ‘‘शिवानी, हम सब तेरी ससुराल में मोहित का जन्मदिन मनाने को इकट्ठे हुए हैं. तू भी यही आ जा.’’

मां के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर शिवानी को गहरा धक्का लगा. बोली, ‘‘मां, पार्टी हमारे घर में होनी थी. मोहित को तुम वहां क्यों ले गई हो?’’ क्रोध की अधिकता के कारण शिवानी थरथर कांप रही थी.

‘‘तेरे सासससुर मोहित को लेने घर आए, तो  हम से इनकार करते नहीं बना. बेटी, तू गुस्सा थूक कर यहीं आ जा. इस से अच्छा मौका फिर तुझे जल्दी…’’

‘‘मां, मैं तुम सब की चालाकी समझ रही हूं,’’ शिवानी की आंखों में बेबसी के आंसू छलक आए,’’ मैं वहां नहीं आऊंगी. बस, मेरी एक बात ध्यान से सुन लो. अगर तुम रोहित को वहां छोड़ कर आई, तो मैं जिंदगीभर तुम लोगों से कोई संबंध नहीं रखूंगी.’’

अपनी मां को आगे कुछ कहने का मौका दिए बगैर शिवानी ने टैलीफोन काट दिया. फिर अपनी सीट से उठ कर बाथरूम में गई और वहां उस की आंखों से खूब आंसू बहे.

शिवानी औफिस में पूरा समय नहीं रुकी. उस ने अपना मोबाइल भी औफ कर दिया. एक रेस्तरां में कई व्यक्तियों के बीच में उस ने लंबा समय सोचविचार करने में गुजारा.

अपने मायके वालों की हरकत से वह बेहद खफा थी. गुस्सा उसे राकेश पर भी था. अपने बेटे के साथ आज की शाम न गुजार पाने का उसे सख्त अफसोस हो रहा था.

‘किसी को मेरी, मेरी भावनाओं की फिक्र नहीं है. मैं भी सब को दिखा दूंगी कि अपनी खुशियों के लिए मैं किसी पर निर्भर नहीं हूं,’ ऐसी सोचों के प्रभाव में आ कर शिवानी ने अपने मायके को छोड़ कर अलग रहने का निर्णय लेने के बाद ही कुछ शांति महसूस करी थी.

शिवानी ने अपने मनोभावों को सहेली अंजलि के साथ बांटते हुए मजबूत स्वर में कहा, ‘‘अंजलि, मैं शिक्षित और आत्मनिर्भर होने के कारण अन्याय के विरोध में अकेली खड़ी हो सकती हूं. राकेश इतना बदल गया है कि मैं उस के साथ पूरा समझौता कर के भी नहीं निभा पा रही थी. मेरे लिए सब से महत्त्वपूर्ण है मोहित का उचित पालनपोषण करना और वह मैं करूंगी सिर्फ अपने बलबूते पर.’’

शिवानी अकेले मोहित के साथ रहने का पक्का फैसला कर चुकी थी. कोई भी उसे समझने की कोशिश करता, तो वह उस से बहस में उलझ जाती या नाराजगीभरी खामोशी धारण कर लेती.

फ्लैट में रहना आरंभ करने के कुछ दिन बाद राकेश ने उस से फोन पर बात करी, ‘‘तुम ने अकेले रहने का फैसला किसलिए किया है. शिवानी? क्या तुम मेरे पास लौटने में दिलचस्पी नहीं रखती हो?’’ राकेश की आवाज में गुस्से और शिकायत के मिलेजुले भाव थे.

‘‘राकेश, यह फ्लैट हम दोनों का है, तुम जब चाहे यहां हमारे साथ आ कर रहना शुरू कर दो,’’ अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए शिवानी ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘मेरी यह गलतफहमी टूट चुकी है कि हर चीज के हम दोनों बराबर के भागीदार हैं. फ्लैट और कार तुम्हारी है क्योंकि उन की किस्त तुम भरती हो. अब तो फ्रिज और टैलीविजन, सोफा और गैस जैसी चीजें भी तुम ने अपनी खरीद ली हैं. मेरा तुम पर या तुम्हारी चीजों पर कोई अधिकार नहीं रहा, यह मुझे अच्छी तरह से समझ आ गया है,’’ राकेश का स्वर कड़वाहट व व्यंग्य से भर उठा.

‘‘राकेश, हम अधिकार के बजाय भागीदारी के नजरिए से जिंदगी के बारे में सोचें, तो क्या वह बेहतर नहीं होगा?’’

‘‘भागीदारी के नाम पर तुम मुझे जो दबाना और शर्मिंदा करना चाहती हो, वह कभी नहीं होगा शिवानी.’’

‘‘राकेश, तुम समझदारी के बजाय अहंकार और गुस्से से काम…’’

‘‘मुझे तुम्हारा लैक्चर नहीं सुनना है,’’ राकेश ने गुस्से से फटते हुए उसे टोका, ‘‘तुम्हारी जैसी बददिमाग औरत के पास में कभी नहीं लौटूंगा. तुम अब जिंदगीभर अकेली रहने का मजा लो,’’ यह धमकी दे कर राकेश ने संबंधविच्छेद कर दिया.

राकेश का कठोर व्यवहार उस रात शिवानी को रुला नहीं पाया. उलटे उस का अकेले रह कर मोहित और अपने जीवन की भावी खुशियां सुनिश्चित करने का संकल्प और ज्यादा मजबूत हो गया.

आगामी हफ्तों में शिवानी ने कई समस्याओं का सामना किया, पर सहायता के लिए उस ने अपने मायके व ससुराल वालों की तरफ नहीं देखा.

मोहित क्रैच में जाने लगा. सुबह मेड आ कर

शिवानी का काम में हाथ बंटाती, पर रात का सारा काम वह खुद करती. बहुत थक कर कभीकभी काफी परेशान हो जाती, पर न उस ने औफिस के काम पर विपरीत प्रभाव पड़ने दिया और न ही अपना मनोबल टूटने दिया.

शिवानी की मां को छोड़ कर कोई उस से मिलने नहीं आता था. बाकी सब शायद उस के टूट कर पुरानी परिस्थितियों में लौटने का इंतजार कर रहे हैं, ऐसी सोच शिवानी को हर परेशानी का सामना करने की ज्यादा हिम्मत प्रदान करती.

शिवानी और राकेश की करीब 5 महीने बाद पहली मुलाकात मोहित की स्कूल की प्रिंसिपल अनिता के औफिस में हुई. उन्होंने दोनों को एकसाथ अपने पास संदेशा दे कर बुलवाया था.

शिवानी ने जब अनिता के कक्ष में प्रवेश किया तब राकेश वहां पहले से उपस्थित था.

वार्त्तालाप के आरंभ में अनिता ने उन्हें जो स्कूल में मोहित के व्यवहार के बारे में बताया वह दोनों को चौंका गया.

अपरिचित -भाग-3: जब छोटी सी गलतफहमी ने तबाह किया अर्चना का जीवन

नीले मोती से अक्षरों में लिखा था, ‘अर्चना, मैं आप को पंसद करता हूं, बहुत… बहुत… बहुत… इतना जितना कभी किसी ने किसी को नहीं किया होगा. आप के साथ जिंदगी बिताना चाहता हूं मैं, इसलिए सिर्फ प्रेमनिवेदन नहीं कर रहा हूं, ब्याह का प्रस्ताव भी रख रहा हूं. न जाने फिर कब मिलना हो, इसलिए जवाब अभी ही दे दें प्लीज. ‘हां’ या ‘ना’ जो भी होगा मैं कबूल कर लूंगा.

‘…अखिल आनंद.’

खत पढ़ कर कंपकंपी छूट गई अर्चना की… जैसे जाड़ा लग कर ताप चढ़ रहा हो और न जाने किस भावना के अधीन हो कर उस ने खत के पीछे ही 2 पंक्तियां लिख डाली थीं, कांपते हाथों से… ‘हमारे घरों में ब्याहशादी के फैसले मातापिता करते हैं. पिता मेरे हैं नहीं, इसलिए जो बात करनी हो मेरी मां से करें.

‘…अर्चना.’

अर्चना ने नजरें झुका कर उसे पत्र लौटाया था, जिसे पढ़ कर भावावेश में अखिल ने उस का हाथ थाम लिया था, ‘आप की तो ‘हां’ होगी न?’

और लज्जाते हुए अर्चना ने ‘हां’ में गरदन हिला दी थी और उसी पल उस के दिल में बस गया था वह.

परीक्षा की तैयारी करतेकरते किताबकापियों में भी जैसे अखिल का चेहरा नजर आने लगा था अर्चना को. उस का वह स्पर्श याद आते ही तनमन सिहर उठता था उस का. पढ़ने में दिल नहीं लग रहा था, जबकि परीक्षा में कुछ ही दिन बाकी थे. पढ़ना जरूरी है, यह भी जानती थी वह, पर क्या करती मन के हाथों मजबूर हो चुकी थी. दिल हसरतों के मोती चुनने लगा था और आंखें सौसौ ख्वाब बुनने लगी थीं, लेकिन तब कहां जानती थी अर्चना कि उस की जिंदगी में प्यार की यह चांदनी सिर्फ चार दिन के लिए ही छाई थी… हां, सिर्फ चार दिन के लिए ही.

5वें दिन मां ताऊजी के घर गई हुई थीं और अर्चना अपने कमरे में बैठी अर्थशास्त्र के एक चैप्टर से सिर खपा रही थी कि मां आ गई धड़धड़ाती हुईं. उन्होंने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया और धीमे मगर चुभते स्वर में बोलीं, ‘ये अखिल आनंद के साथ क्या चक्कर है तेरा?’

‘कौन अखिल आनंद? कैसा चक्कर?’ उस ने नाटक किया.

‘बन मत और साफसाफ बता. क्या बात है? पता है कल शाम उस का बाप तेरे ताऊजी की दुकान पर आया था और कह रहा था कि ‘आप की भतीजी मेरे बेटे को फांस रही है. संभाल लें उसे.’ मैं तो जैसे शर्म से मर गई. बड़ा नाज था मुझे तुझ पर,’ मां रोने लगीं तो उस के भी आंसू निकल पड़े कि यह कैसा मजाक किया उस के साथ अखिल ने. रोतेरोते उस ने पूरा किस्सा मां के सामने बयां कर दिया तो मां ने उसे बांहों में भर लिया.

‘देख बच्चे, वे पैसे वाले लोग हैं. उन का हमारा कोई जोड़ नहीं, बस तू इतना समझ ले. तू मेरी बड़ी सयानी बच्ची है. तुझे ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं. तू पढ़ाई में दिल लगा बस.’ कैसे लगता दिल पढ़ाई में? दिल टूटा था… चोट लगी थी… दर्द भी होता था और टीसें भी उठती थीं कि अभीअभी तो जन्म लिया था उस के प्यार ने और अभी ही उस की मौत भी हो गई.

परीक्षाओं के दौरान ही जैसे आसमान से उतर कर उस के लिए एक रिश्ता आया, परीक्षाएं खत्म होने के फौरन बाद सगाई हो गई और एक महीने बाद ब्याह भी. मां ने उसे सख्त हिदायत दी थी, ‘बेटा, भूल कर भी रजत को कुछ न बताना. बात तो है भी नहीं कुछ, पर मर्द का क्या भरोसा, किस बात को किस तरह से ले ले.’

उस ने मां की हिदायत को हमेशा याद रखा था. रजत एक अच्छा पति साबित हुआ. उस ने उसे प्यार भी दिया और सुखसुविधाएं भी, फिर राहुलरिया की मां बन कर तो वह निहाल हो उठी थी. आहिस्ताआहिस्ता वह प्रेमप्रसंग गुजरे जमाने की असफल और कमजोर लघुकथा बन गया. उस की यादों के अक्स भी दिल के दर्पण से धुंधलाने लगे और अब वह इतने बरसों बाद फिर अचानक सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘अर्चना,’’ अखिल खड़ा था सामने कोक के 2 टिन और ढेरों पैकेट्स हाथों में थामे.

‘‘अखिल,’’ उस के हाथ से कोक का टिन लेते हुए अर्चना ने वह सवाल पूछा जो अब भी उस के मन में गीली लकड़ी सा सुलग रहा था, ‘‘आप ने इतना बड़ा मजाक क्यों किया था मेरे साथ?’’

‘‘कैसा मजाक अर्चना?’’

‘‘बनिए मत, पहले तो मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा, फिर अपने पापा को भेज दिया मेरे ताऊजी के पास कहने को कि आप की बेटी मेरे बेटे को फांस रही है, क्यों?’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं अर्चना? मेरे पापा ने ऐसा कुछ नहीं कहा था. मैं उन के साथ ही तो था. पापा ने तो हाथ जोड़ कर आप का रिश्ता मांगा था. आप के ताऊजी ने कहा था, ‘‘अर्चना को टीबी है, पता नहीं ठीक भी होगी या नहीं.’’

अर्चना के हाथ से ‘कोक’ का टिन छूट गया. जल बिन मछली सी तड़प उठी वह, ‘‘ऐसा कहा था ताऊजी ने? मेरे अपने ताऊजी ने, जिन्हें मैं पापा की तरह मानती थी.’’

‘‘आगे तो सुनिए. वह 2 दिन बाद हमारे घर आए, अपनी बेटी का रिश्ता ले कर, पर पापा ने इनकार कर दिया.’’

‘‘ये थे मेरे अपने? हाय, मैं 12 साल तक धोखे में रही, पर आप ने कैसे यकीन कर लिया उन की बातों पर? यही थी आप की चाहत? अच्छा, एक बात बताइए अखिल, टीबी तो दूर की बात है,  आप ने किसी भी बीमारी की छाया तक देखी थी मेरे चेहरे पर? आप मुझ से मिलते. खुल कर बात करते, लेकिन नहीं… आप ने तो मुझ से मिलने की कोशिश तक नहीं की अखिल. सब ने छल किया मेरे साथ,’’ बोलतेबोलते हांफने लगी थी अर्चना.

‘‘की थी कोशिश… बहुत कोशिश की थी मैं ने आप से मिलने की, पर आप की मां ने कभी आप से मिलने ही नहीं दिया, फिर सोचा वक्त सब ठीक कर देगा, पर फिर सुना कि परीक्षाओं के बाद ही आप का ब्याह हो गया. मैं तब भी आप के ताऊजी के पास गया था, ‘आप तो कह रहे थे, अर्चना को टीबी है, बचेगी नहीं,’ तो उन्होंने रूखे स्वर में कहा था, ‘वह ठीक हो गई. आप पूछ कर देखिएगा उन से.’

‘‘किस से पूछूं? न अब मां हैं और न ही ताऊजी,’’ वह कैसे और क्यों बताती अखिल को कि जो बीमारी उन्होंने उस पर आरोपित की थी, उसी से मिलतीजुलती बीमारी से 2 साल एडि़यां रगड़रगड़ कर मरे वह, और अपनी जिस बेटी के लिए उन्होंने अर्चना का पत्ता काटा था, उस की कैसी दुर्गति हुई ससुराल में.

सच है, यह धरती कर्मों की खेती है. ‘न जाने उस साजिश में कौनकौन शामिल था,’ एक उसांस ले कर सोचा अर्चना ने.

कुछ देर वहां खामोशी पसरी रही, फिर एकाएक अखिल ने जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और उस के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘आप लौटते हुए चंडीगढ़ आइएगा, रजत और बच्चों के साथ हमारे घर. मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’’

अर्चना ने देखा कि उस की आंखों में वही सितारे झिलमिला रहे थे जो बरसों पहले ‘प्रणय निवेदन’ करते वक्त झिलमिलाए थे. एक हूक सी उठी अर्चना के कलेजे में.

वह कुछ देर तक मुग्ध निगाहों से निहारता रहा अर्चना को, फिर अचानक उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘मैं चलता हूं अर्चना, मुझे आज ही वापस जाना है. आज की इस मुलाकात को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा… कभी नहीं,’’ भीगे स्वर में कह कर वह चल दिया, फिर चार कदम चल कर उस ने मुड़ कर देखा. न जाने क्या कहा उस की खामोश निगाहों ने कि अर्चना की आंखें छलक आईं. उन आंसुओं को बहने दिया उस ने, फिर आहिस्ता से नरमी से उस विजिटिंग कार्ड को सहलाया और पर्स में रख लिया सहेज कर एक मधुर एहसास की तरह. वह देखती रही… देखती रही, जुदा हो कर जाते अपने उस परिचित से अपरिचित को तब तक जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया.

हैप्पी फैमिली: भाग 2- श्वेता अपनी मां की दूसरी शादी के लिए क्यों तैयार नहीं थी?

अमृता को अजीब लगा मगर स्वामीजी ने तुरंत कुमार की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘कैसे हो भक्त कुमार?’’

‘‘स्वामीजी मैं अच्छा हूं. बस आप से अपनी पत्नी अमृता को मिलाने लाया था.’’

‘‘आओ देवी अमृता मेरे करीब आ कर बैठो.’’

अमृता स्वामीजी के करीब चली गई. स्वामी ने उस का हाथ देखने के लिए कलाई पकड़ी और अपनी तरफ खींच लिया. अमृता को यह अच्छा नहीं लगा.

स्वामी ने जिस तरह उस का हाथ पकड़ रखा था और जिन आंखों से अमृता

को देख रहा था वह उस के लिए सहज नहीं था.

‘‘अद्भुत भक्त कुमार, आप की बीवी जितनी दिखने में खूबसूरत हैं उतनी ही खूबसूरत इन की किस्मत भी है. इन की वजह से आप जिंदगी में बहुत तरक्की करेंगे… कुछ लोगों के चेहरे पर ही लिखा होता है कि बस ये जिन के साथ होंगे उन की जिंदगी में सबकुछ वारेन्यारे ही होगा.’’

जिस अंदाज में और जिस तरह से स्वामी अमृता की तरफ देखते हुए ये सब बातें कह रहा था वे सब बातें अमृता को अच्छी नहीं लग रही थीं. उसे स्वामी के अंदर एक घिनौना जानवर दिख रहा था. जल्दी से हाथ छुड़ा कर वह खड़ी हो गई.

कुमार ने उसे घूर कर देखा और फिर से बैठने को कहा. इस बार स्वामी ने उसे चेहरे को ऊपर की तरफ करने को कहा. फिर खुद उस के गले में पीछे की तरफ हाथ रखा. अमृता को अजीब लिजलिजा सा एहसास हुआ.

स्वामी ने उस की गरदन की निचली हड्डी पर हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘उम्र के 6ठे दशक में देवी अमृता के जीवन में राजयोग है. भक्त कुमार आप की बीवी आप को हर सुख देगी… धन्य है यह देवी, ‘‘कह कर स्वामी ने हाथ हटाया और आंखें बंद कर कोई मंत्र पढ़ने का दिखावा करने लगा.

कुमार इसी तरह जिद कर के अमृता को

3-4 बार स्वामी के पास ले गया. हर बार स्वामी की नजरें और बातें अमृता को आमंत्रण देती प्रतीत होतीं. एक बार तो सिद्धि के नाम पर अमृता को कमरे में बुला कर स्वामी ने उस के साथ छेड़छाड़ भी की. अमृता के लिए अब यह सब सहना कठिन होता जा रहा था और वह स्वामी से नफरत करने लगी थी.

मगर कुमार पर उस स्वामी का ज्यादा ही रंग चढ़ने लगा था. वह स्वामी का पक्का शिष्य बन गया था. हर महीने हजारों रुपए उसे भेंट चढ़ा कर आता, हर काम से पहले उस की आज्ञा लेता और अमृता से भी यही अपेक्षा रखता. अमृता और कुमार के बीच स्वामी को ले कर अकसर  झगड़ा होने लगा. फिर एक दिन जब अमृता के सब्र का बांध टूट गया तो वह सबकुछ छोड़ कर अपनी बेटी को ले कर मायके आ गई. जल्द ही आपसी सहमति से उन के बीच तलाक भी हो गया.

इस बात को 4 साल से ज्यादा हो गए थे. वह इतने समय से तनहा जीवन जी रही थी.

बेटी की खुशियों में अपनी खुशियां ढूंढ़ती बेटी की जिम्मेदारियों को दिल से निभाती मगर पहली बार प्रवीण से मिल कर उस ने अपने बारे में सोचना चाहा था. प्रवीण के साथ खुद को संपूर्ण महसूस किया था. उस ने भी जीवन में कुछ नए सपने देखने शुरू किए थे, मगर बेटी ने एक पल में उस के सपनों के पंख काट डाले.

बेटी के व्यवहार से अमृता आहत जरूर थी पर उसे तकलीफ दे कर अपनी खुशियां हासिल नहीं करना चाहती थी. बेटी के माथे को सहलाते हुए उस ने मन में सोचा, ‘‘ठीक है मेरी बच्ची तेरे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं. तु झे प्रवीण पापा की तरह पसंद नहीं तो न सही. हम दोनों ही अपनी जिंदगी में खुश रहेंगे.’’

इधर प्रज्ञा का पिता प्रवीण भी अपनी बेटी के रिएक्शन से बहुत दुखी था. प्रवीण का भी अपनी पत्नी सपना से तलाक हो गया था. प्रवीण और सपना की अरेंज्ड मैरिज हुई थी. शादी की शुरुआत में तो सब ठीक था पर फिर धीरेधीरे दोनों के बीच अनबन बढ़ती गई. सपना कभी प्रवीण को दिल से स्वीकार नहीं कर सकी थी. इसी बीच अपने औफिस के सीनियर श्रीकांत से उस का रिश्ता जुड़ गया और उस ने तलाक ले कर श्रीकांत से शादी कर ली.

प्रवीण ने अपनी बेटी प्रज्ञा के साथ जिंदगी को नए ढंग से जीना शुरू किया. वह प्रज्ञा को ही अपनी जिंदगी की सब से बड़ी पूंजी मानता था. मगर आज जिस तरह प्रज्ञा ने अमृता के बारे में जान कर रूखा रिएक्शन दिया वह प्रवीण को बहुत बुरा लगा. वह इस बारे में किसी से बात भी नहीं कर सकता था. प्रज्ञा अपनी मां सपना के बहुत क्लोज थी. भले ही वह रहती पिता के साथ थी पर हर बात मां से फोन या व्हाट्सऐप के जरीए शेयर जरूर करती थी. आज भी घर आते ही उस ने मां को व्हाट्सऐप कौल लगाई. उस के चेहरे पर गुस्सा और आंखों में आंसू साफ दिख रहे थे.

सपना ने तुरंत पूछा, ‘‘क्या बात है पीहू नाराज दिख रही हो?’’

‘‘आप को सचाई पता चलेगी तो आप को भी पापा पर गुस्सा आएगा.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया बेटे?’’

‘‘पापा दूसरी शादी कर रहे हैं. वे मेरे लिए नई मम्मी ले कर आएंगे. अब आप ही बताओ मां क्या यह गुस्से की बात नहीं? उन्हें मेरी जरा भी चिंता नहीं. सब जानते हैं नई मांएं कैसी होती हैं और फिर जरूरत ही क्या है दूसरी शादी करने की? मैं तो हूं ही न उन के साथ?’’

‘‘नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते. जरूरी नहीं कि हर नई मां बुरी ही हो. मैं तो तेरी अपनी मां थी फिर भी तेरे साथ नहीं रह पाई. हो सकता है नई मां तु झे मेरे से भी ज्यादा प्यार दे. वैसे भी मेरी बच्ची सम झदार हो चुकी है. कोई भी समस्या आए तो मु झे बता सकती है पर देख पहले से यह सोच कर मत बैठ कि वह बुरी ही होगी.’’

‘‘पर मम्मा आप ऐसा कह रही हो? मु झे लगता था आप मु झे प्यार करती हो पर नहीं न आप न पापा कोई मु झे प्यार नहीं करता, आप भी प्यार करते तो मुझ से दूर थोड़े ही जाते.’’

प्रज्ञा ने उदास स्वर में कहा, ‘‘बेटा ऐसी बातें सोचना भी मत. मैं तु झे बहुत प्यार करती

हूं और तेरे बेहतर भविष्य के लिए ही मैं तु झे वहां छोड़ कर आई थी. तेरे पापा तु झे मुझ से भी ज्यादा प्यार करते हैं. बेटा आज मैं बताती हूं कि मु झे तेरे पापा को तलाक क्यों देना पड़ा था, मैं तुझ से दूर क्यों आई थी?’’

‘‘मम्मा मैं जानना चाहती हूं मैं ने पहले जब भी पूछा आप टाल जाते थे. मैं जानना चाहती हूं कि आप अलग क्यों हुए. आप हमें छोड़ कर क्यों चले गए. जरूर पापा ने आप को परेशान किया होगा न.’’

‘‘बेटा ऐसा बिलकुल नहीं है. तेरे पापा की कोई गलती नहीं, फिर भी मु झे यह फैसला लेना पड़ा. दरअसल, मैं श्रीकांत नाम के एक लड़के

से प्यार करती थी और यह प्यार कालेज के

समय से शुरू हुआ था. उस वक्त परिस्थितियां ऐसी बनीं कि हम अलग हो गए और मेरी शादी तेरे पापा से हुई. बेटा तेरे पापा ने मु झे कभी तकलीफ नहीं दी. उन्होंने मु झे बहुत प्यार दिया पर अनजाने में मैं ने ही उन्हें तकलीफ दी. मैं उन्हें कभी दिल से अपना नहीं सकी क्योंकि मेरे दिल में हमेशा से श्रीकांत थे. तेरे पापा के साथ हो कर भी मैं उन के साथ नहीं थी. मैं इस तरह उन्हें अधूरा जीते हुए नहीं देखना चाहती थी पर अपने दिल के आगे विवश थी.

बदरंग इश्क: भाग 3- क्यों वंशिका को धोखा दे रहा था सुजीत?

सुजीत घर में कम औफिस में ज्यादा रहने लगा था. महीने में 1-2 बार शहर से बाहर भी जाता रहता और फिर एक दिन उस ने ऐलान कर दिया, ‘‘वंशिका, मैं और स्वीटी लिव इन में रहना चाहते हैं. तुम इस घर में आराम से रहो. मैं स्वीटी के साथ जा कर रह लूंगा. उसे तलाक के एवज में उस के पति का एक फ्लैट मिल गया है.’’ मां तो सुन कर जैसे जड़ हो गई.

अपने रिश्तेदार से मो ने गुहार लगाई अपना घर बचाने की लेकिन हुआ कुछ नहीं. पापा भी गहरे सदमे में थे. खुद को गुनहगार मान रहे थे कि बेटी से पूछे बिना उस की शादी का फैसला लिया था. ‘‘सुजीत, मैं घर छोड़ कर जा रही हूं. अभि मेरे पास ही रहेगा,’’ वंशिका ने अपना फैसला सुना दिया. सुजीत ने फिर से दांव खेला, ‘‘अभि और घर दोनों में से किसी एक को चुन लो.

दोनों चाहिए तो अपना फैसला बदल लो. घर में ही रहो. मैं तुम्हें छोड़ नहीं रहा हूं बस स्वीटी के साथ रहने की अनुमति मांग रहा हूं.’’ वंशिका भीतर तक तिलमिला उठी थी लेकिन बोलने का कोई फायदा नहीं था.

अपना सामान पैक कर, अभि की उंगली पकड़े स्टेशन पर आ गई. जिंदगी का पहला फैसला उस ने खुद लिया था. यह पहला सफर था जिस पर अकेली निकली थी. अभि के सिवा अपना कोई नहीं था. उस के सिवा जीवन का कोई मकसद भी नहीं था. दरवाजे की घंटी बजी.

मम्मीपापा शादी से वापस लौट आए थे. पापा शादी में खाना खा कर नहीं आते थे इसलिए उन्हें खाना देने रसोई में चली गई. खाने का उन का मन नहीं था बस एक कप चाय की फरमाइश की उन्होंने. वंशिका भी थकान सी महसूस कर रही थी इसलिए 3 कप चाय बना कर ले आई. मां तो चाय के लिए कभी मना ही नहीं करती थी.

‘‘वंशु, हम ने सोचा है इस बार तुम्हारे जन्मदिन पर एक बड़ा सा फंक्शन करते हैं. क्या कहती हो?’’ पापा ने चाय पीते पीते पूछा. ‘‘पर क्यों पापा? आप का रिटायरमैंट भी है इसी महीने. तो उस दिन करेंगे बड़ा सा फंक्शन,’’ वंशिका ने तुरंत जवाब दिया. ‘‘2 दिन ही हैं बीच में. जन्मदिन और रिटायरमैंट दोनों की पार्टी एकसाथ कर लेंगे,’’ मां कपड़े बदल कर आ गई थी.

चाय का कप उठा कर बोली. ‘‘सुजीत और उस की मां को भी बुलाते हैं इस बार,’’ पापा की इस बात पर वंशिका और मां दोनों चौंक गए. ‘‘उन का क्या मतलब है हमारी पार्टी से? कुछ भी कहते हैं आप भी,’’ मां ने चाय का कप नीचे रख दिया. ‘‘गलत क्या है इस में? सब को बुलाएंगे तो अभि के पापा और उस की दादी को कैसे छोड़ सकते हैं?’’ पापा ने अपनी बात दोहराई.

‘‘अभि का उन से कोई रिश्ता नहीं है, पापा. एक मकान के बराबर कीमत लगाई थी उन्होंने अभि की और रिश्ते शब्द से उन का कोई सरोकार नहीं है. जो औरत मकान के लालच में अपने ही बेटे का घर तुड़वा सकती है वह अभि की कोई नहीं लगती है… वह इंसान जो न मां का हुआ, न प्रेमिका का, न अपने परिवार का. उस से कैसा रिश्ता हो सकता है अभि का?’’

मां और पापा दोनों ने वंशिका को रोका नहीं. सब कहने दिया. उस के बहते आंसुओं को  भी नहीं पोंछा. बस इतना ही कहा, ‘‘यही तो उन लोगों को बताना है, बेटा. तुम्हें भी, मु झे भी और तुम्हारी मां को भी… लगातार संपर्क कर रहे हैं वे दोनों. पुरानी रिश्तेदारी का हवाला दे रहे हैं.

उन्हे आईना दिखाना है. सब के सामने यह ऐलान करना है कि उन का तुम से या अभि से कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता है. हर रिश्ता लिव इन नहीं होता है कि जब चाहा निभाया जब चाहा तोड़ दिया.’’ पापा चाय के कप रख कर रसोई से बाहर आए तो वंशिका ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यस पापा, आप सही कह रहे हैं.’’ तभी वंशिका का फोन बजा. रितु का फोन था. वंशिका सम झ गई कि यह सब उसी का कियाधरा है.

बदरंग इश्क: भाग 2- क्यों वंशिका को धोखा दे रहा था सुजीत?

मां की बात सुन कर वंशिका का शक सच में बदल गया. अगले हफ्ते अंगूठी की रस्म और उस के अगले हफ्ते शादी. लड़के वाले देर करना ही नहीं चाहते थे. वंशिका भी लड़के के व्यक्तित्व के प्रभाव में आ ही गई. ससुराल में बस लड़का और उस की मां ही थे. लड़का ऐडवोकेट था और मां एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका. एक बड़ा सा घर था उन का. मांग बस इतनी सी कि लड़की घरेलू हो और घर को रहने लायक बना पाए. सब एक सपने के जैसा था.

अभि के होने तक रानियों की तरह रह रही थी ससुराल में सिवा इस के कि वंशिका जान गई थी कि मांबेटे की आपस में ज्यादा नहीं बनती है. दबी जबान से कुछ पहचान वालों ने यह भी कानों में डाल दिया था कि उस के पति सुजीत का किसी विजातीय लड़की से लंबा संबंध रहा है.

मां की असहमति के कारण वह रिश्ता नहीं हो पाया और आननफानन में वंशिका से शादी कर दी.  उस लड़की की भी शादी हो गई थी अपनी ही जाति के एक लड़के के साथ. समय एक  जैसा नहीं रहता. समय बदला या फिर बदलाव वंशिका ने 2 साल बाद महसूस किया. पुरानी गर्लफ्रैंड स्वीटी उस के पति सुजीत की जिंदगी में फिर लौट आई अपने पति को तलाक दे कर.

इस बार पूरी तैयारी के साथ उस ने वंशिका की गृहस्थी पर हमला बोला. सुजीत की मां के दिमाग में यह बात डाल कर कि सुजीत की डोर वंशिका के नियंत्रण में है और ज्यादा समय नहीं लगेगा जब वह उस की संपत्ति पर कब्जा जमा लेगी. अपने बेटे अभि को हथियार बना कर. सुजीत की मां को बेटे का वंशिका पर प्यार लुटाना ज्यादा पसंद नहीं था. अपने बेटे अभि को भी वह हाथों पर रखता था. मकान के आधे हिस्से को उस ने अपने नाम कर लिया था.

इसी कुंठा को स्वीटी ने अपना रास्ता साफ करने में इस्तेमाल किया. ‘‘मौम कब तक सोते रहोगे. देखो कितने खिलौने दिलाए हैं नानू ने. मेरी सारी विश नानू ने पूरी कर दी हैं,’’ और वंशिका को हाथ पकड़ कर अपने खिलौने दिखाने ले गया. सिर को एक  झटका दिया. मन ही मन अभि को शुक्रिया कहा उस तड़प से बाहर निकालने के लिए जो पुरानी यादों के दिमाग में आ जाने से होती है.

नौकरी में शुरूशुरू में तो बहुत असुविधा होती लेकिन जब पापा ने नौकरी का मतलब सम झाया तो नजरिया बदल गया. समस्या ही खत्म हो गई, ‘‘बेटा, जब खुद को नौकर बोल ही दिया तो आदेशों के पालन में दुविधा कैसी?’’  सही कहा था पापा ने. रितु ने भी सुना तो खुद को हंसने से रोक नहीं पाई. जिंदगी  अब गतिमान हो गई थी. रोज ही सुजीत का कोई न कोई मैसेज आ जाता. वंशिका देख लेती लेकिन जवाब नहीं देती. अजनबी नंबर से कौल अटैंड करना भी बंद.

पूरा फोकस अभि और नौकरी पर. ‘‘काफी दिनों से रितु से नहीं मिली थी इसलिए एक कैफे में मिलने को बुला लिया. घर पर बात तो हो जाती लेकिन मां हर बात जानने की कोशिश करती और फिर पापा को भी बताती. उन के मन में डर सा बैठ गया था वंशिका को ले कर,’’ सब सही चल रहा है, वंशिका. सुजीत का फिर से कौल तो नहीं आई?’’ रितु ने बैठते ही पूछा.  ‘‘नहीं कौल तो नहीं बस मैसेज आते रहते हैं,’’ वंशिका ने तुरंत जवाब दिया. ‘‘मैसेज में क्या लिखता है?’’ रितु ने उत्सुकता से पूछा. ‘‘वही कि तुम दोनों वापस आ जाओ. अपना परिवार वापस चाहता हूं.

दूसरे के बच्चे को पिता का प्यार देने से अच्छा है खुद के बेटे को दूं. बस यही.’’ ‘‘जब तलाक लिया था तब उस की अक्ल घास चरने गई थी क्या? एक नंबर का फरेबी इंसान है. ढाई साल के बच्चे पर भी उसे प्यार नहीं आया था. एक  झटके में अपनी खूबसूरत और वफादार पत्नी से अलग हो गया,’’ रितु गुस्से में बोल रही थी. वंशिका ने उसे चुप किया. याद दिलाया, ‘‘कैफे में बैठे हैं. तू बता शादी कब कर रही है? अब तो तु झे सही गिफ्ट दूंगी. नौकरी कर रही हूं. खाली नहीं हूं.’’ वंशिका ने ऐसे बोला कि रितु को हंसी आ गई, ‘‘मम्मीपापा लगे हैं अपने काम पर. मैं तो बस फाइनल करूंगी.

जो फाइनल होगा बात भी उसी से करूंगी.फालतू में इन सिरफिरों को मुंह लगाना मु झे नहीं पसंद,’’ रितु ने सड़ा सा मुंह बना कर कहा. ‘‘हमारे पापा तो ऐसे नहीं हैं न. मेरे साथ जो हुआ उस में मेरी भी नासम झी थी. न शादी को मना कर पाई. शादी की पहली जरूरत विश्वास है.’’ वंशिका की बात पर रितु चौंक कर बोली, ‘‘तू महान है. इतने बड़े धोखे के बाद भी विश्वास की बात करती है. मैं तेरी तरह नहीं हूं. जो विश्वास के लायक हो उसी पर किया जाता है विश्वास. सब पर नहीं.’’ वंशिका बात को खत्म करने के इरादे से बोली, ‘‘रितु, आज की यह छोटी सी ट्रीट मेरी तरफ से है.

जो भी मंगाना हो और्डर कर दे.’’ ‘‘आज जो खिलाएगी खा लूंगी,’’ रितु थोड़ी सामान्य हुई. दोनों अपनीअपनी नौकरी के बारे में बातें करती रहीं. कपड़ों की, जूतेचप्पलों की, पर्स और ज्वैलरी की भी बातें हुईं. कैफे से बाहर आईं तो दोनों का मन हलका हो चुका था. अभि को सुला कर वंशिका भी बिस्तर पर लेट गई. मम्मीपापा किसी शादी में गए हुए थे. कल छुट्टी थी तो सोने की जल्दी नहीं थी. दिमाग भी शरीर को आराम मिलने तक शांत रहता है. आराम मिलते ही सक्रिय हो जाता है.

3 साल पुरानी घटनाएं फिर से यादों में ताजा हो गईं… ‘‘सुजीत, मैं ने सुना है, स्वीटी तलाक ले कर अपने घर वापस आ गई है?’’ वंशिका के सवाल पर सुजीत घबराया नहीं, सहजता से जवाब दिया, ‘‘अपने घर नहीं, अकेली रह रही है किराए के घर में.’’  वंशिका का शक सही था, ‘‘आप मिले उस से,’’ इस प्रश्न पर सुजीत को  गुस्सा आ गया. दोस्त तो अब भी है मेरी. मिलने में क्या समस्या है? तलाक का केस चल रहा है उस का. मैं वकील हूं, उसे सलाह की जरूरत पड़ती है तो बात हो जाती है.

कभीकभी परेशान होती है तो मिलने आ जाती है.’’ पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई वंशिका के. उसे सास का ताना याद आ गया कि कभी तेरा नहीं होगा. पुरानी गर्लफ्रैंड का तलाक करवा रहा है. अपना ठिकाना ढूंढ़ लेना. मेरे घर के 2 हिस्से करवाए थे तूने. अब तेरी गृहस्थी के 2 हिस्से हो जाएंगे.  अभि के पहले जन्मदिन पर घर का आधा हिस्सा सुजीत ने वंशिका के नाम किया  था अपनी मां को बिना बताए. इसी वजह से सास उस की दुश्मन बन गई थी.

जिंदगी का सफर: भाग 1- क्या शिवानी और राकेश की जिंदगी फिर से पटरी पर लौटी?

जिस  सुबह गुस्से से भरी शिवानी अपनी ससुराल छोड़ कर मायके रहने चली आई, उस से पिछली रात उस का अपने पति राकेश से जबरदस्त झगड़ा हुआ था.

‘‘रात को 11 बजे तुम पार्टी में गुलछर्रे उड़ा कर घर लौटो, यह मुझे मंजूर नहीं. आगे से तुम औफिस की किसी पार्टी में शामिल नहीं होगी,’’ शिवानी के घर में कदम रखते ही राकेश गुस्से में फट पड़ा था.

‘‘मेरे नए बौस ने अपनी प्रमोशन की पार्टी दी थी. मैं उस में शामिल होने से कैसे इनकार कर सकती थी?’’ शिवानी का अच्छाखासा मूड फौरन खराब हो गया.

‘‘इस बारे में मैं कोई बहस नहीं करना चाहता हूं.’’

‘‘जो संभव नहीं, उस काम को करने की हामी मैं भी नहीं भर सकती हूं.’’

‘‘अगर ऐसी बात है, तो नौकरी छोड़ दो.’’

‘‘बेकार की बात मत करो, राकेश. 75 हजार रुपये वाली नौकरी न आसानी से मिलती है और न किसी के कहने भर से छोड़ी जाती है.’’

‘‘तुम्हारे, 75 हजार से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण मोहित की उचित परवरिश है, घर की सुखशांति है. इन की बलि चढ़ा कर तुम्हें नौकरी करने की इजाजत नहीं मिलेगी,’’ राकेश का गुस्सा पलपल बढ़ता जा रहा था.

‘‘मोहित के उज्ज्वल भविष्य व घर की सुखसुविधा की आज हर चीज मौजूद है. हमारे सुखद व सुरक्षित भविष्य के लिए समाज में मानसम्मान से जीने के लिए क्या मेरा नौकरी करते रहना जरूरी नहीं है?’’

‘‘यों डींगें मार कर तुम मुझे अपने से कम कमाने का ताना मत दो. सिर्फ अपनी कमाई के बल पर भी मैं मोहित को और तुम्हें इज्जत व सुख से भरी जिंदगी उपलब्ध करा सकता हूं,’’ शिवानी को गुस्से से घूरते हुए राकेश ने दलील दी.

‘‘कम और ज्यादा कमाने की पीड़ा तुम ही महसूस करते हो राकेश. मु?ो इस बात का ध्यान भी नहीं आता. मेरी नौकरी को ले कर गुस्सा करने के बजाय तुम अपनी मानसिकता बदलो. बेकार की हीनभावना का शिकार हो कर अपना और मेरा दिमाग खराब मत…’’

राकेश को उस के मुंह से निकली बात ऐसी चुभी कि उस का हाथ उठ गया. गाल पर लगे चांटे की पीड़ा और अपमान को सहते हुए शिवानी उसी पल से बिलकुल खामोश रह गई. अपनी नाराजगी बरकरार रखते हुए राकेश ने उसे न सम?ाया, न मनाया और न ही किसी दूसरे ढंग से अफसोस प्रकट किया.

एकदूसरे के प्रति शिकायतों व नाराजगी से भरे दोनों ही रातभर ठीक से सो नहीं पाए. उन्होंने 6 साल पहले प्रेम विवाह किया था. शायद इस कारण दोनों दिलों में मायूसी, निराशा व टीस का एहसास ज्यादा गहरा था.

‘राकेश शादी होने से पहले ही मेरे व्यक्तित्व को अच्छी तरह से जानतापहचानता था. मैं बेहद महत्त्वाकांक्षी और मेहनती लड़की हूं. हर तरह से अव्वल रहना मेरा स्वभाव है. प्रेमी के रूप में उस ने हर कदम पर मेरा साथ दे कर मेरे सपनों को पूरा करने का वादा किया था. अब वह तरक्की की दौड़ में मुझ से पिछड़ गया है, तो मैं क्या करूं? जोरजबरदस्ती कर के वह मेरी जिंदगी को नर्क नहीं बना सकता. मैं अपनी जिंदगी अपने ढंग से अपने सपनों को पूरा करने को जीऊंगी… वह साथ नहीं देगा, तो अकेले ही,’ ऐसी सोचों के चलते शिवानी ने रातभर आंसू भी बहाए और गुस्से की आग में भी जलती रही.

राकेश के मन में भी अपनी प्रेमिका बनी पत्नी के प्रति नाराजगी व शिकायतों से भरे विचार रात भर चले…

‘मुझ से ज्यादा कमाने का मतलब यह नहीं कि वह घर के कायदेकानूनों का उल्लंघन करे, सारी मर्यादाओं को तोड़ती जाए. बहुत अमीर बनने के ख्वाब ने उसे अंधा और पागल कर दिया है. मैं ने कभी सोचा भी न था कि यह इतनी स्वार्थी और घमंडी हो जाएगी. अब न तो यह मेरी भावनाओं को समझती है और न ही मोहित पर ध्यान देती है. मुझे  झुका और दबा कर हमेशा अपनी मनमानी कर सकती है, उस की ये गलतफहमी इस बार में तोड़ ही दूंगा,’ इस तरह के विचारों ने राकेश के गुस्से की आग को भड़काए रखा.

अगले दिन रविवार की सुबह शिवानी डरेसहमे 4 वर्षीय मोहित को ले कर अपनी सहेली के साथ रहने उस के घर चली गई. सहेली एक बड़े मकान में अकेले रहती थी. उस ने शादी नहीं की थी. जब तक कोई और इंतजाम न हो जाए, उसे उस के घर जाना ही ठीक लगा. वह अपनी मेड को भी ले गई. राकेश या उस के सासससुर ने उस से एक शब्द नहीं बोला. शिवानी ने विदा होने के समय खुद को बेहद अपमानित और अकेला महसूस किया.

शिवानी के अलग रहने की जानकारी सास ने उस की मां को खबर कर दी कि वह नाराज हो कर और बिना बड़ों की इजाजत लिए घर से गई.

शिवानी इसलिए मां के पास नहीं गई कि वहां तो उस के मातापिता और भैयाभाभी उसे समझने के लिए पहले से भरे बैठे होंगे. शिवानी जानती थी कि कोई भी उस के पक्ष को गंभीरता से सुनने में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा.

उन सभी के एकसाथ लैक्चर उन के फोन आने पर शिवानी पहले भी सुन चुकी है जब उस ने प्रेम विवाह का फैसला किया था.

चिढ़ कर शिवानी को गुस्सा आ गया और फिर कहा, ‘‘मेरी नौकरी को ले कर

राकेश रातदिन क्लेश करता था, पर मैं सब सब्र से सहती रही. कल रात उस ने मुझ पर हाथ उठा कर भारी भूल करी है. वह जब तक माफी नहीं मांगेगा मैं नहीं लौटूंगी. अपना फैसला बदलने के लिए अगर आप सब ने मुझ पर दबाव डाला, तो मैं किसी दूसरे शहर रहने चली जाऊंगी.’’

जिद्दी शिवानी की धमकी सुन कर वे चुप तो जरूर रहने लगे पर उन के हावभाव साफ कहते हैं कि यों उस का अलग रहना उन्हें जरा भी प्रसंद नहीं.

अपने मातापिता व सासससुर को बता शिवानी बिलकुल अलगथलग सी पड़ गई. किसी ने उस के मन की पीड़ा को समझने की कोशिश नहीं करी, इस बात का वह बहुत दुख मान रही थी.

उस के पिता ने भी फोन पर कहा था, ‘‘ज्यादा पैसे कमाने का घमंड मत कर. जिद करेगी, तो तेरा घर उजड़ जाएगा.’’

‘‘हमें लोगों की नजरों में शर्मिंदा मत कर और लौट जा. कहीं बात ज्यादा बिगड़ गई, तो बहुत पछताएगी,’’ उस की मां वक्तबेवक्त आंसू बहाते हुए उसे समझाती.

शिवानी के बड़े भाई संजय ने उसे फोन करना बंद कर दिया. अपनी भाभी कविता के व्यवहार में भी शिवानी रूखापन साफ महसूस करती.

2-4 बार जब वह सब से मिलने गई तो सब के मुंह फूले हुए थे.

मोहित अपने दादादादी व पिता से रोज फोन पर बातें हो जातीं. इन तीनों ने शिवानी से बात करने की एक बार भी इच्छा जाहिर नहीं करी, तो उस ने भी चिढ़ कर इन से संपर्क बनाने की कोई कोशिश नहीं करी.

अपरिचित- भाग-2: जब छोटी सी गलतफहमी ने तबाह किया अर्चना का जीवन

नालडेहरा में किसी हिंदी फिल्म की शूटिंग चल रही थी. रजत और बच्चे उस ओर चले गए और वह घूमघूम कर कुदरती नजारों के चित्र लेने लगी. अर्चना एक पहाड़ी बच्ची की तसवीर उतारने लगी तो सहसा फे्रम में ‘वह’ आ गया. अर्चना ने कैमरा हटा कर देखा तो जैसे वह हिल कर रह गई. एक पेड़ से टिक कर खड़ा था ‘वह’ और नीली जींस और क्रीम कलर की जैकेट में कल से भी ज्यादा डेशिंग लग रहा था.

‘क्या चाहते हैं आप?’ यह पूछने के लिए जैसे ही अर्चना आगे बढ़ी, वह पलक झपकते ही न जाने कहां गायब हो गया.

घूमघाम कर शाम को लौट आए थे वे लोग. बच्चे अंत्याक्षरी खेल रहे थे और अर्चना उन से बेखबर ‘उस की’ ही सोच में डूबी थी कि रजत ने टोका, ‘‘भई अर्ची, आज तुम्हारा चैटर बौक्स क्यों बंद है? कुछ बकबक करो बेगम, चुप्पी तुम्हें शोभा नहीं देती.’’

‘‘थोड़ा सिरदर्द है. थकान भी हो रही है,’’ कह कर टाल दिया उस ने.

रात फिर नींद गायब थी अर्चना की. उसे ‘उसी’ की सोच ने जकड़ा हुआ था. एक बार तो जी में आया कि रजत को सब बता दे पर यह सोच कर रुक गई कि रजत न जाने इस बात को किस रूप में लें? वह उस का मजाक भी उड़ा सकते हैं, उस पर शक भी कर सकते हैं या हो सकता है कि ‘वह’ फिर मिले तो उस से झगड़ने ही बैठ जाएं और एक बात तो पक्की है कि उसे फिर कहीं अकेले नहीं जाने देंगे. इस से तो बेहतर है कि वह चुप ही रहे. जो होगा देखा जाएगा.

अगले दिन ‘रिवोली’ पर सुबह का शो देख कर रजत और बच्चे जाखू चले गए. उन के लाख कहने पर भी अर्चना नहीं गई और सड़क के किनारे बनी दुकानों से छोटीछोटी कलात्मक वस्तुएं खरीदती हुई वह माल रोड पर घूमती रही.

आखिर थक कर वह अनमनी सी चर्च के सामने बिछी एक बैंच पर बैठ गई.

सहसा मन में चाह उठी कि ‘वह’ दिख जाए तो चैन आए. अपनेआप पर हैरानी भी हो रही थी अर्चना को कि जिस की उपस्थिति की कल्पना भी उसे 2 दिन से भयभीत कर रही थी और जिस के आसपास मौजूद होने के एहसास मात्र से वह असहज होती रही, आज उसी को देखने की ललक क्यों जाग रही है मन में? कहीं चला तो नहीं गया ‘वह’? फिर  झरने से बहते एक खनकते हंसी के स्वर ने उस के भटकते मन को जैसे रोक दिया.

अर्चना ने देखा सामने वाली बैंच पर बैठा एक नवविवाहिता जोड़ा दीनदुनिया से बेखबर आपस में हंसीठिठोली कर रहा था. नई नर्म कोंपल सी कोमल वह लड़की चूड़ा खनकाते हुए कभी हंस रही थी, कभी इतरा रही थी तो कभी इठला रही थी और छैलछबीला सा उस का पति खिदमती अंदाज में उस के नाजनखरे उठा रहा था. कभी भाग कर कुल्फी लाता, कभी पौपकौर्न तो कभी चाट के पत्ते. ‘कितने खुशनुमा होते हैं जिंदगी के ये कुछ दिन… फिर तो वही घरगृहस्थी के झगड़ेपचड़े,’ एक ठंडी सांस ले कर सोचा अर्चना ने.

‘‘एक्सक्यूज मी.’’ मुड़ कर देखा अर्चना ने, तो सिर से पांव तक कांप गई. सामने ‘वही’ खड़ा था.

‘‘आप?’’ कह कर वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई.

‘‘जी, आप अर्चना हैं न? अर्चना सचदेव, अमृतसर से?’’

‘‘जी हां, मगर आप?’’

‘‘मुझे पहचाना नहीं आप ने?’’ उस के स्वर में न पहचाने जाने का दर्द था.

अर्चना ने पहली बार उसे सिर से पांव तक देखा. काले ट्राउजर और बंद गले के काले स्वैटर में वह पिछले दिनों से ज्यादा आकर्षक लग रहा था. कश्मीरी सेबों सी लालिमा लिए गोरा रंग और घनेघुंघराले बाल, किसी हिट फिल्म का नायक लग रहा था वह. अर्चना ने अपने दिमाग पर पूरा जोर डाला, स्मृतियों की सारी डायरियां टटोल डालीं, लेकिन उस की पहचान नहीं मिली तो हार कर अर्चना ने इनकार में गरदन हिलाते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं नहीं पहचान पाई आप को.’’

‘‘मैं अखिल हूं… अखिल आनंद… वह खालसा कालेज…’’

‘‘ओ, माय गौड, वहां तक तो मैं पहुंची ही नहीं. कितना बदल गए हैं आप? कैसे पहचानती मैं आप को?’’

‘‘लेकिन आप बिलकुल नहीं बदलीं. बिलकुल वैसी ही हैं आप, तभी तो मैं आप को देखते ही पहचान गया, जब आप गाड़ी से सामान निकाल रही थीं, इत्तेफाक से मैं भी ‘हिमलैंड’ में ही ठहरा हूं.’’

‘‘तभी क्यों नहीं बात कर ली आप ने? इस तरह मेरे पीछेपीछे क्यों घूमते रहे?’’

‘‘डर गया था कि आप न जाने कैसा बरताव करें.’’

‘‘तो अब क्यों सामने चले आए?’’

‘‘डर गया था कि कहीं आप चली न जाएं और मैं आप से दो बातें भी न कर पाऊं.

‘‘अकेले आए हैं आप घूमने?’’

‘‘मैं घूमने नहीं, काम से आया हूं यहां. शिमला में हमारे सेब के बाग हैं, इसी सिलसिले में आनाजाना लगा रहता है.’’

‘‘और बाकी सब… पत्नी वगैरा, वहीं हैं अमृतसर में?’’

‘‘नहीं, अमृतसर तो कब का छूट गया, अब चंडीगढ़ में हैं हम. एक बेटी भी है मेरी, बिलकुल आप की तरह खूबसूरत. सच कहूं अर्चना मैं आप को अभी भी भूल नहीं पाया,’’ बड़े हसरत भरे स्वर में कहा अखिल ने.

‘‘अब इन बातों का क्या फायदा?’’ एक निश्वास के साथ कहा अर्चना ने.

‘‘आप कहां हैं आजकल?’’ अखिल ने बात बदली.

‘‘दिल्ली में.’’

‘‘अर्चना, आप यहीं रुकिए, प्लीज. कहीं जाइएगा नहीं. मैं अभी आया, 5 मिनट में,’’ कह कर वह चला गया और अर्चना का दिलोदिमाग 12 बरसों को चीर कर अमृतसर के खालसा कालेज में जा पहुंचा.

बीकाम अंतिम वर्ष में थी वह. 4 सहेलियों की चौकड़ी थी उन की. मस्त, खिलंदड़ और शरारती. उन के अंतिम 3 पीरियड्स खाली रहते थे, इसलिए वे कालेज बस के बजाय पैदल ही घर चल देती थीं. हंसतीबतियाती आधी सड़क घेर कर चलती थीं वे चारों. उन दिनों एक हैंडसम लड़का एक निश्चित दूरी बना कर उन के पीछे आया करता था बाइक पर. वे उसे कभी मजनू कहतीं तो कभी रोमियो. वे तो यह भी नहीं जानती थीं कि वह दीवाना किस का है.

पहेली तो तब सुलझी, जब परीक्षाएं शुरू होने से पहले लाइबे्ररी की किताबें लौटाने वह अकेली कालेज गई. लाइब्रेरी से निकल कर कोरीडोर तक ही पहुंची थी कि अचानक ‘वह’ सामने आ गया और एक खुलापत्र उस के हाथ में थमा कर न जाने कहां गायब हो गया और अर्चना ने कांपते मन और लरजते हाथों से उस अमराई में जा कर वह खत पढ़ा जहां अपनी हमजोलियों के साथ बैठ कर उस ने हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ पढ़ी थी, ‘नीरज’ के गीत गाए थे और भविष्य के आकाश को चांदसितारों से सजाने की योजनाएं बनाई थीं.

हैप्पी फैमिली: भाग 1- श्वेता अपनी मां की दूसरी शादी के लिए क्यों तैयार नहीं थी?

‘‘नहीं पापा, आप ऐसा नहीं कर सकते. आप ने मु झ से वादा किया था कि आप मेघा के पापा की तरह मु झे हर्ट करने के लिए नई मम्मी ले कर नहीं आओगे,’’ प्रज्ञा ने नाराज स्वर में कहा.

‘‘बेटा मैं मानता हूं मेघा की नई मम्मी अच्छी नहीं थी पर तेरी नई मम्मी बहुत अच्छी हैं. तु झे इतना प्यार करेंगी जितना तेरी अपनी मां भी नहीं करती होंगी,’’ प्रवीण ने बेटी को सम झाने की कोशिश की.

‘‘मैं यह बात कैसे मान लूं डैड? सारी सौतेली मांएं एक सी होती हैं.’’

‘‘चुप कर प्रज्ञा ऐसे नहीं कहते पता नहीं किस ने तेरे दिमाग में ऐसी बातें भर दी हैं,’’ प्रवीण ने  झल्लाए स्वर में कहा.

‘‘दूसरी बातें छोड़ो पापा, जरा अपनी उम्र तो देखो मेरी सहेलियां क्या कहेंगी जब उन्हें पता चलेगा कि मेरे पापा दूल्हा बन रहे हैं. कितना मजाक उड़ाएंगी वे. मेरा.’’

प्रवीण अभी अपनी बिटिया प्रज्ञा को सम झाने की कोशिश कर ही रहा था कि तब तक श्वेता भी अपनी मां पर बिफर पड़ी, ‘‘मम्मी, आप ने पापा से तलाक लिया, मु झे उन से दूर कर दिया पर मैं ने कुछ भी नहीं कहा क्योंकि मैं आप को दुखी नहीं देख सकती थी. पर आज आप ने मेरे आगे किसी अजनबी को ला कर खड़ा कर दिया और कह रही हो कि ये तुम्हारे पापा हैं. मम्मी आप की यह बात मैं नहीं मान सकती. बोल दीजिए इन से मैं इन्हें कभी भी पापा का दर्जा नहीं दे सकती,’’ कहतेकहते श्वेता रोने लगी तो अमृता ने उसे बांहों में समेट लिया.

श्वेता के आंसू पोंछते हुए अमृता ने कहा, ‘‘नहीं बेटा ऐसे नहीं रोते. ठीक है तू जैसा कहेगी मैं वैसा ही करूंगी.’’

काफी देर तक इस तरह के इमोशनल सीन चलते रहे. प्रवीण और अमृता

इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं थे. दोनों ने एकदूसरे को उदास नजरों से देखा और अपनीअपनी बेटी को संभालने लगे. दोनों लड़कियां इस बात पर भड़की हुई थीं कि उन के पेरैंट्स दूसरी शादी करना चाहते हैं.

38 साल की अमृता और 42 साल के प्रवीण को उन के एक कौमन फ्रैंड ने मिलवाया था. दोनों ही तलाकशुदा थे और दोनों के पास 13-14 साल की

1-1 बेटी थीं. प्रवीण की बेटी प्रज्ञा 8वीं कक्षा में पढ़ती थी जबकि अमृता की बेटी श्वेता 9वीं क्लास में पढ़ रही थी. अमृता और प्रवीण को आपस में मिले करीब 6 महीने हो गए थे. दोनों ने एकदूसरे का साथ ऐंजौय किया था. दोनों को महसूस हुआ था जैसे उन के जीवन में जो कमी है वह पूरी हो गई है. जब अपने रिश्ते को ले कर वे सीरियस हो गए तो उन्होंने तय किया कि वे एकदूसरे को अपनीअपनी बेटी से मिलवाएंगे पर उन्हें कहां पता था कि दोनों बच्चियों का रिएक्शन ऐसा होगा.

किसी तरह खाना खत्म कर दोनों अपनीअपनी बेटी को ले कर घर लौट आए. दोनों के ही चेहरे पर शिकन के भाव थे. अपने रिश्ते को ले कर उन के मन में संशय उभरने लगा था क्योंकि बेटियों की रजामंदी के बगैर उन का यह रिश्ता अधूरा ही रहने वाला था.

रात के 11 बज रहे थे. श्वेता सो चुकी थी, मगर अमृता करवटें बदल रही थी. आज उस की आंखों से नींद रूठ गई थी. उसे अपनी पिछली जिंदगी याद आ रही थी. कितनी तड़प थी उस के मन में. कितनी मजबूरी में उस ने अपने पति को छोड़ा था. यह बात बेटी को कैसे सम झाए. बेटी तो अभी भी पापा के बहुत क्लोज थी.

कुमार के साथ अमृता ने लव कम अरेंज्ड मैरिज की थी. शादी से पहले दोनों ने काफी समय तक डेटिंग करने के बाद शादी का फैसला लिया था. उसे कुमार काफी मैच्योर और सम झदार लगता था. शादी के बाद उस की जिंदगी खुशियों से भर गई थी. कुमार उसे बहुत प्यार करता था. जल्द ही अमृता की गोद में श्वेता आ गई. सब बढि़या चल रहा था. इस बीच कुमार को बिजनैस में बड़ा घाटा हुआ. उस ने स्थिति सुधारने का काफी प्रयास किया मगर सबकुछ बिगड़ता जा रहा था. कुमार काफी परेशान रहने लगा था.

एक दिन कुमार घर आया तो बहुत खुश था. अमृता को बांहों में भर कर बोला, ‘‘यार अमृता अब सबकुछ ठीक हो जाएगा… हमारे अच्छे दिन आने वाले हैं.’’

श्वेता ने कहा, ‘‘ऐसा क्या हो गया? तुम्हें ऐसी कौन सी नागमणि मिल गई?’’

‘‘नागमणि ही सम झो. मु झे मेरे दोस्त ने एक बाबा से मिलवाया है. बहुत पहुंचे हुए स्वामी हैं. बस जरा सी भस्म दे कर सारे कष्ट दूर डालते हैं. मु झे भी भस्म मिल गई है. यह देखो, इसे अपने औफिस के गमले की मिट्टी में डालना है. फिर सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘इतने पढ़ेलिखे हो कर तुम ऐसी बातों में विश्वास करते हो? भला भभूत गमले की मिट्टी में डालने से तुम्हारा बिजनैस कैसे सुधर जाएगा?’’ अमृता ने आश्चर्य से कहा.

‘‘देखो अमृता स्वामीजी की शक्ति पर शक करने की भूल न करना… मु झे उन से मेरे दोस्त ने मिलवाया है. बहुत सिद्ध पुरुष हैं. पता है तुम्हें मेरे दोस्त की बीवी कंसीव नहीं कर पा रही थी. बाबाजी के आशीर्वाद से उस के गर्भ में जुड़वां बच्चे आ गए. सोचो कितनी शक्ति है उन के आशीर्वाद में.’’

‘‘प्लीज कुमार ऐसी अंधविश्वास भरी बातें मेरे आगे मत करो.’’

‘‘बस एक बार तुम उन से मिल तो लो फिर देखना कैसे तुम भी उन की शिष्या बन जाओगी,’’ कुमार ने अमृता को सम झाते हुए कहा.

कुमार के बहुत कहने पर आखिर अमृता को स्वामी के पास जाना पड़ा. शहर से करीब

12 किलोमीटर दूर बहुत बड़े क्षेत्र में स्वामीजी का आश्रम था. आश्रम क्या था एक तरह से बंगला ही था. एक बड़े हौल में एक कोने में नंगे बदन केवल धोती पहने स्वामीजी बैठे थे. सामने सैकड़ों अधीर भक्तों की भीड़ एकटक उन्हें निहार रही थी. स्वामीजी के बारे में यह बात प्रसिद्ध थी कि आंखें बंद कर वे किसी का भी अतीत, वर्तमान और भविष्य बता देते हैं.

कई जानेमाने रईस भक्तों की कृपा से उन की कुटिया बंगले में तबदील हो चुकी थी. स्वामी जी का बड़ा सा कमरा कहिए या शयनकक्ष, एक से बढ़ कर एक लग्जरी आइटम्स से सुसज्जित था. स्वामीजी रात 9 बजे से सुबह 9 बजे तक का समय वहीं बिताते थे. उन की सेवा के लिए कम उम्र की कई शिष्याएं नियुक्त थीं.

अमृता और कुमार जा कर आगे वाली लाइन में बैठ गए. कुमार ने आगे बैठने के लिए बाकायदा ऊंची फीस अदा की थी. 10-15 मिनट बाद ही स्वामीजी ने आंखें खोलीं. उन की नजरें पहले कुमार पर और फिर बगल में बैठी अमृता पर पड़ीं और फिर कुछ देर तक उस के चेहरे पर ही टिकी रह गईं. अमृता को देख कर उन की आंखों में चमक आ गई.

बदरंग इश्क: भाग 1- क्यों वंशिका को धोखा दे रहा था सुजीत?

‘‘आज फिर उस का फोन आया था. कह रहा था फिर से शादी कर लेते हैं. मैं अपने बेटे के बिना नहीं रह सकता हूं. तुम भी इतनी कोशिशों के बाद कोई अच्छी नौकरी नहीं ढूंढ़ पाई हो. इस बार पक्का वादा करता हूं, आखिरी सांस तक निभाऊंगा,’’ वंशिका एक सांस में सबकुछ बोल गई. रितु उस के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी. खूबसूरत चेहरे पर लालिमा आ गई थी.

थोड़ा सा गर्व भी मस्तिष्क पर  झलक रहा था जैसे कहना चाह रहा हो. आखिर मैं ने उसे उस की गलती का एहसास करवा ही दिया है. बेटे के प्रति उस के दिल में भावना जगा ही दी है. हार कर ही सही मैं जीत गई हूं. वंशिका के चेहरे की गरिमा देख कर रितु खुश थी लेकिन दुखी थी उस के साफ दिल से. वंशिका का दिल इतना साफ, इतना कोमल था कि उस की जिंदगी को 25 साल की उम्र में ही अवसाद से भर देने वाले इंसान से भी उसे नफरत नहीं थी.

‘‘किस मिट्टी की बनी हो, वंशिका. उस इंसान ने बिना किसी अपराध के तुम्हारी जिंदगी को कैद बना दिया है. फिर भी उस की बातों पर गौर कर रही हो.’’ वंशिका रितु की बात से सहमत थी, लेकिन सुजीत की बातों पर रितु की तरह शक नहीं कर पा रही थी. ‘‘उस ने खुद ही मु झ से संपर्क किया है. मैं ने तो कब से उस का नंबर ब्लौक कर दिया था, लेकिन उस ने दूसरे नंबर से कौल कर लिया.

फिर अभि के बारे में पता करने से मैं उसे नहीं रोक सकती हूं. कोर्ट का भी यही फैसला था.’’ वंशिका की बात सुन कर रितु सम झ गई कि अभी उस की प्यारी सहेली को फरेब और जिम्मेदारी का फर्क सम झ में नहीं आएगा इसलिए उस ने चले जाना ही बेहतर समझा.

रितु के जाने के बाद वंशिका घर वापस आ गई. अभि सोया हुआ था इसलिए चुपचाप  उस के पास जा कर लेट गई. लेटते ही नींद आ गई. वंशिका की मम्मी ने फोन पर रितु से कब बात कर के उस के जीवन में चल रही मानसिक उठापटक की पूरी जानकारी ले ली उसे पता ही नहीं चला.

अभि स्कूल जाने के लिए मना कर रहा था. अकसर ऐसा ही होता कि जब वंशिका घर में होती तो वह स्कूल जाना ही नहीं चाहता. पूरा दिन मां के साथ ही रहता. उस दिन नानानानी के पास भी नहीं जाता. वंशिका उस की मनोदशा सम झती थी इसलिए कभी उस पर स्कूल जाने का दबाव नहीं डालती थी.

जब कोख में था तब से वंशिका पढ़ाई कर रही थी. इसी साल उस ने पोस्ट ग्रैजुएशन पूरा किया था. नौकरी के लिए तलाश जारी थी. जीवन की कड़वाहट भुलाने का एक यही उपाय था इस समय. शादी के बाद भी लड़की को घर में क्यों बैठा रखा है. पसंद का लड़का मिला था फिर भी क्यों उस के साथ निभा नहीं पाई लाडली. बेटी तो बेटी नाती को भी पास में ही रखा हुआ है.

दबी जबान में यही चर्चा करते थे लोग. वंशिका और उस का परिवार सब सुन कर भी अनसुना करता आ रहा था. अभी तक तो किसी को यह भी नहीं पता था कि वंशिका का तलाक हो चुका है और वह कभी ससुराल नहीं जाएगी. अभि को उसे अकेले ही बड़ा करना है. उस के बेवफा बाप से बहुत बेहतर इंसान बनाना है. अभि और वंशिका आज दोनों घर पर ही रहे.

वंशिका ने भी नौकरी ढूंढ़ने की अपनी मुहिम को अगले हफ्ते पर टाल दिया. बस दिनभर गेम खेलती रही उस के साथ. अगले दिन अभि को खुद ही स्कूल छोड़ कर आई. उस के आने से पहले गरमगरम खाना तैयार कर के रखा. पूरा 1 सप्ताह उस की मरजी से ही बिताया. वंशिका अभि के चेहरे पर इतनी खुशी पहली बार देख रही थी. वंशिका ने अभि की पसंद की मिठाई खरीदी और चहकती हुई घर में दाखिल हुई. ‘‘ऐसे क्या देख रही हो मां.

नौकरी मिल गई है मु झे. ज्यादा बड़ी नहीं पर मिल गई है. खुश होना तो बनता है न? इसलिए मिठाई ले आई. आप और पापा तो मीठा खाते नहीं हो तो अभि के लिए ले आई हूं.’’ ‘‘अभि स्कूल से नहीं आया है अब तक. लाओ मैं रख देती हूं,’’ मां खुश थी. ‘‘बड़े दिनों बाद तुम्हारे चेहरे पर हंसी देख कर मन को शांति मिली. कुदरत तुम्हारी मेहनत सफल करे,’’ मां ने वंशिका के सिर पर हाथ फेर कर उसे गले से लगा लिया. उन की आंखों से टपटप आंसू गिर रहे थे. ‘‘नहीं मां, अब रोने का नहीं हंसने का समय आ चुका है. जो हुआ वह मेरे हिस्से में लिखा था.

अपने पापा और अभि के साथ से मैं उस गलतफहमी से बाहर आ गई हूं अब. मेरे लिए हंस दो मां,’’ वंशिका ने मां के आंसू पोंछते हुए कहा. ‘‘मु झे अपने ऊपर गुस्सा आता है बेटा. तु झे मैं ने ही उस रिश्ते के लिए तैयार किया था. जानती नहीं थी कि जिस पढ़ाई को छुड़वा रही हूं, उसी को फिर से करवाना पड़ेगा और नौकरी के लिए तु झे इतना संघर्ष करना पड़ेगा,’’ मां की आंखें अब भी नम थीं. ‘‘आप ने तो सब अच्छा ही देखा था न. सगी मां हो मेरी, सौतेली नहीं हो.

धोखा तो उन रिश्तेदारों ने दिया जिन्होंने सचाई छिपाई. तुम्हारी गलती नहीं थी मां. फिर कभी अपने मुंह से ऐसी बात मत कहना.’’ वंशिका ने मां की साड़ी के पल्लू से एक बार फिर से मां की आंखों से आंसू पोंछ दिए. पापा का फोन आया कि अभि को स्कूल से ले कर पहले बाजार जाएंगे फिर घर आएंगे. उसे नई साइकिल जो दिलानी थी. मां घर के काम में व्यस्त हो गई और वंशिका अपने कमरे में आ कर लेट गई. फोन देखने का आज मन ही नहीं था.

एक संतुष्टि थी कि व्यस्त रहने का एक बहाना तो मिल ही गया है. फिर भी आंखों में आंसू आ गए. दोनों हाथ मुंह पर रख लिए. जीवन में पिछले कुछ सालों में हुई उठापटक घटनाओं के रूप में पलकों में सिमट गई और फिल्म की तरह दृश्य बदलने लगे… बीए की परीक्षा जैसे ही खत्म हुई मां ने बताया कि उन के एक दूर के रिश्तेदार घर आ रहे हैं. वंशिका ने घर को ठीक किया और ड्राइंगरूम को अच्छे से व्यवस्थित कर दिया. उसे पता ही नहीं था कि उस का उत्साह और रचनात्मकता आधार बन जाएगी उस के जीवन में आने वाली मुसीबतों की.

मेहमान आ कर चले गए. जाने के बाद उन का फोन आया तो मां खुशी से उछल पड़ी और वंशिका को पास में बुला कर दुपट्टे से उस का घूंघट निकाल दिया. वंशिका कुछकुछ सम झी लेकिन दूसरे ही पल घबरा कर दुपट्टा उतर कर फेंक दिया. बोली, ‘‘क्या मां. डरा ही दिया आप ने. बिलकुल मत कहना कि तुम्हारे रिश्तेदारों ने मु झे पसंद कर लिया है.’’ मां के चेहरे पर भेदभरी मुसकान थी. ‘‘मेरी लाड़ो को कोई नापसंद कर सकता है क्या? मेरी परी सभी को पसंद है. ग्रैजुएशन करते ही एक स्थापित परिवार ने हाथ मांग लिया है.’’

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