थायराइड और दूसरी बीमारियों में Constipation की प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल-

मैं 42 वर्षीय थायराइड का रोगी हूं. मुझे अकसर कब्ज रहता है. इस समस्या से कैसे छुटकारा पाऊं ?

जवाब-

जिन लोगों में थायराइड हारमोनों का स्तर कम होता है अर्थात जिन्हें हाइपोथायराइडिज्म होता है उन में अकसर कब्ज की समसया देखी जाती है. हाइपोथायराइडिज्म में बड़ी आंत की कार्यप्रणाली धीमी पड़ जाती है, जिस से उस का संकुचन प्रभावित होता है और भोजन से अधिक मात्रा में जल का अवशोषण होने लगता है, जो बड़ी आंत में पचे हुए भोजन की धीमी गति का कारण बन जाता है. जब भोजन बड़ी आंत में सामान्य गति से आगे नहीं बढ़ता है तो मल त्यागने की आदत में बदलाव आ जाता है.

हाइपोथायराइडिज्म से ग्रस्त लोग शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. अपने भोजन में सब्जियां, फ लों, साबूत अनाज और दही जरूर शामिल करें. थायराइड हारमोनों के स्तर को नियंत्रित रखने के लिए अपनी दवा सही समय पर लें. तनाव न पालें, क्योंकि यह भी कब्ज का एक प्रमुख कारण है.

सवाल-

मैं 27 वर्षीय गर्भवती महिला हूं. मुझे चौथा महीना चल रहा है, लेकिन कई दिनों से कब्ज के कारण काफी परेशान हूं. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब-

गर्भावस्था के दौरान ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन का स्तर अधिक होने से आंतों की मांसपेशियां रिलैक्स हो जाती हैं, जिस से भोजन और द्रव की गति धीमी हो जाती है और गर्भाश्य का आकार बढ़ने से आंतों पर दबाव पड़ता है, जिस से उन का संकचुन प्रभावित होता है. इसीलिए अकसर गर्भवती महिलाओं को कब्ज हो जाती है. आप को बहुत परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन कुछ जरूरी उपाय कर के अपनी पाचनप्रक्रिया को दुरुस्त रख सकती हैं. आप पानी और दूसरे तरल पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करें. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. गर्भावस्था में अकसर महिलाओं में तनाव का स्तर बढ़ जाता है, इस से भी कब्ज होने की आशंका बढ़ जाती है. तनाव से बचने और मस्तिष्क को शांत रखने के लिए प्रतिदिन 10-20 मिनट तक ध्यान करें. अपने खानपान और नींद का भी पूरा ध्यान रखें. अगर समस्या ज्यादा गंभीर है तो आप का डाक्टर आप को मल को मुलायम करने वाली दवा लेने को कहेगा.

ये भी पढ़ें- पिछले 2-3 वर्षों से मुझे कब्ज की शिकायत है, बताएं क्या करूं?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय कालेज स्टुडैंट हूं. मेरा वजन बहुत अधिक है, इसे कम करने के लिए मैं डाइटिंग कर रही हूं. लेकिन इस के कारण मुझे कब्ज रहने लगा है, क्या करूं?

जवाब-

सब से पहले तो डाइटिंग की अवधारणा ही गलत है. आप को वजन कम करने के लिए कभी डाइटिंग नहीं बल्कि डाइट प्लानिंग करनी चाहिए. आप के शरीर को सामान्य रूप से काम करने के लिए एक निश्चित मात्रा में कैलोरी की आवश्यक है. अगर आप प्रतिदिन 1200 कैलोरी से कम का सेवन करेंगी तो आप का मैटाबोलिज्म धीमा पड़ जाएगा, जिस का सीधा प्रभाव आप के मल त्यागने की आदतों पर होगा. आप का पाचनतंत्र ठीक प्रकार से काम करेगा.

सवाल-

मेरा बेटा 10 साल का है. वह सब्जियां बिलकुल नहीं खाता. उस का पेट साफ  नहीं रहता है. क्या सब्जियां न खाना इस का कारण है?

जवाब

बच्चों को सब्जियां खिलाना बहुत जरूरी है क्योंकि पोषक तत्त्वों से भरपूर सब्जियों में फ ाइबर की मात्रा काफ ी अधिक होती है. कब्ज बड़ी आंत की समस्या है और फ ाइबर हमारी आंतों के लिए ब्रश का काम कर उन्हें साफ  रखती है और कब्ज नहीं होने देता. आप अपने बच्चे के डाइट चार्ट में सब्जियों के साथसाथ फ लों और साबूत अनाज भी शामिल करें. उसे पानी और दूसरे  तरल पदार्थ भी पर्याप्त मात्रा में दें.

सवाल

हृदयरोगियों के लिए कब्ज कितनी खतरनाक हो सकती है? किन बातों पर ध्यान रखना जरूरी है?

जवाब

हृदयरोगियों को अगर मल त्यागने में जोर लगाना पड़े, तो यह उन के लिए ठीक नहीं है. वैसे तो कब्ज के कारण हृदयरोगों के गंभीर होने का कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, लेकिन मल त्यागने में अत्यधिक प्रैशर लगाने से रक्तदाब बढ़ सकता है, जिस से हार्ट फे ल्योर, हृदय की धड़कनें अनियंत्रित हो जाना और कोरोनरी आर्टरी डिजीज का खतरा बढ़ सकता है. कई हृदयरोगियों में दवा के साइड इफै क्ट्स के कारण भी कब्ज की समस्या हो जाती है.

फाइबर युक्त भोजन का सेवन अधिक करें. पानी और दूसरे तरल पदार्थ अधिक मात्रा में लें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. कब्ज की समस्या गंभीर है तो अपने डाक्टर से बात करें.

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सवाल

मेरी उम्र 55 वर्ष है और मुझे बचपन से कब्ज की शिकायत है. क्या इस का इलाज कराना जरूरी है? इस के नवीनतम उपचार क्या हैं?

जवाब-

इतने लंबे समय से चले आ रहे कब्ज का उपचार करना बहुत जरूरी है. कब्ज के उपचार में केवल दवा से काम नहीं चलता, खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाना भी जरूरी है. इस के उपचार के लिए आयुर्वेदिक दवा, हर्बल दवा, एलोपैथी सभी की समयसमय पर आवश्यकता पड़ती है. अपने भोजन में फाइबर युक्त खाद्यपदार्थों जैसे साबूत अनाज, सब्जियों और फ लों का अधिक मात्रा में शामिल करें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. प्रोबायोटिक भोजन का सेवन भी करें. तुरंत किसी फि जिशियन को दिखाएं, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या और गंभीर हो सकती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Top 10 Best Heart Disease Tips: दिल की बीमारी की 10 अहम खबरें हिंदी में

Heart Disease Tips in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Heart Disease Tips Stories in Hindi 2021. हाल ही में बिग बॉस 13 के विजेता सिद्धार्थ शुक्ला का मात्र 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक से अचानक निधन हो गया है.खबर सुनकर हर कोई हैरान है आखिर ऐसा कैसे हो गया.एक हँसता खेलता जीवन के लिए सपने देखने वाला शख़्स इस तरह कैसे जा सकता है. वहीं इसका कारण दिल का दौरा बताया जा रहा है. इसी के चलते आज हम आपको Heart से जुड़ी बीमारियों की Stories के बारे में बताएंगे, जिससे आपकी हेल्थ पर फर्क पड़ सकता है. तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Heart Disease Tips Stories in Hindi.

1. सावधान : हार्ट अटैक का बड़ा कारण है ज्यादा तनाव

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बिग बॉस 13 के विनर और टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का महज 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. जिससे हर कोई सदमे में हैं. उनके फैंस इसलिए भी दुखी और हैरान हैं क्योंकि वो एक हेल्दी पर्सन थे और फिटनेस का पूरा ख्याल रखते थे. फिर भी वो हार्ट अटैक का शिकार हो गए.

मौजूदा समय में बदलती लाइफस्टाइल और तनाव के बीच आम लोग भी इस समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. ताकी आपका दिल स्वस्थ रहे.

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2. क्यों होते हैं कम उम्र में हार्ट अटैक

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पहले तो हार्ट अटैक बड़ी उम्र के लोगों में देखा जाता था पर पिछले 2 सालों से कम उम्र के युवा इसका शिकार होने लगे हैं. स्टडी है कि हर मिनिट में 3 से 4 भारतीय जिनकी उम्र 30 से 50 के मध्य है वो एक सीवियर हार्ट अटैक से गुजरते हैं .साउथ एशिया के लोग अन्य किसी भी जगह के लोगों की अपेक्षा ज्यादा हार्ट अटैक झेलते हैं .क्योंकि ये हाई ब्लड प्रेशर, टाइप टू डायबिटीज और बढ़े कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित होते हैं.आखिर क्या कारण है कि युवा इतनी कम उम्र में दिल के मरीज़ हो जा रहे हैं तो आइए इसके कारण जानते हैं.

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3. बढ़ रहा है हार्ट अटैक का खतरा, ऐसे रखें दिल का ख्याल

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बिग बॉस 13 के विनर और टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का महज 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. जिससे हर कोई सदमे में हैं. उनके फैंस इसलिए भी दुखी और हैरान हैं क्योंकि वो एक हेल्दी पर्सन थे और फिटनेस का पूरा ख्याल रखते थे. फिर भी वो हार्ट अटैक का शिकार हो गए.

मौजूदा समय में बदलती लाइफस्टाइल और तनाव के बीच आम लोग भी इस समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. ताकी आपका दिल स्वस्थ रहे.

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4. अधिक उबासी लेना हो सकता है आने वाले हार्ट अटैक का संकेत

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हार्ट अटैक एक बहुत ही गंभीर स्थिति होती है जिसमें हमारी जान जाने तक का खतरा भी होता है. इसमें हमारा रक्त प्रवाह ब्लॉक हो जाता है और हमारे ह्रदय की मसल्स डेमेज होने लगती हैं. जैसा कि हमने आज तक देखा या सुना है हम सोचते हैं कि हार्ट अटैक के लक्षण केवल छाती में दर्द होना या फिर जमीन पर गिरना ही होते हैं. परन्तु असल में जब आप को हार्ट अटैक आने की सम्भावना होती है तो यह लक्षण आप के आस पास भी नहीं फिरते हैं. हार्ट अटैक के कुछ लक्षण बहुत ही अजीब व हैरान पूर्वक भी हो सकते हैं जिनमें से एक लक्षण होता है उबासियां लेना. क्या आप चौंक गए? चलिए जानते हैं इसके बारे में.

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5. हार्ट अटैक और हार्ट फेल्योर में क्या फर्क है?

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मेरी उम्र 32 साल है. कुछ साल पहले मेरे पापा को दिल का दोरा पड़ा था और कुछ दिनों पहले ही पता चला कि मेरा दिल लगभग फेल हो चुका है. समस्या गंभीर होने के कारण डाक्टर ने हार्ट ट्रांसप्लांट की सलाह दी है. मैं जानना चाहता हूं कि हार्ट अटैक और हार्ट फेल्योर में क्या फर्क है?

जवाब-

किसी व्यक्ति को हार्ट अटैक तब आता है, जब हृदय की तरफ बहने वाले रक्त में बाधा पैदा हो. अमूमन ऐसा धमनियों में प्लाक जमा होने के कारण होता है. हृदय तक खून नहीं पहुंच पाने की ऐसी गंभीर समस्या के चलते हृदय की मांसपेशियों के बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने की आशंका पैदा हो जाती है. दूसरी तरफ, हार्ट फेल्योर एक ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति को धीरेधीरे शिकार बनाती है. इस में हृदय की मांसपेशियां कमजोर और कड़ी पड़ जाती हैं और ऐसे में उन्हें रक्त को पंप करने में मुश्किल आती है, जोकि रक्तप्रवाह के लिए एक जरूरी प्रक्रिया है.

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6. सर्दियों में बढ़ता हार्ट अटैक का खतरा, जानें क्यों

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ठंड का मौसम खुशियों का मौसम होता है, इस खुशनुमा मौसम का मतबल है ढेर सारे त्‍यौहार, छुट्टियां और कई और चीजें. सर्दियों का यह मौसम बच्‍चों और बुजुर्गों की सेहत के लिये परेशानी खड़ी कर कर सकता है, ठंड का यह मौसम अपने साथ हमेशा ही कुछ चुनौतियां और सेहत से जुड़े खतरे लेकर आता है, खासकर बुजुर्गों के लिये. वातावरण में काफी बदलाव होने की वजह से बुजुर्गों के लिये एक सामान्‍य जीवनशैली का पालन कर पाना मुश्किल हो जाता है.

बुजुर्ग जब युवा होते हैं तो उसकी तुलना में इस उम्र में बौडी हीट जल्‍दी खो देते हैं. शरीर में होने वाला बदलाव उम्र बढ़ने के साथ आता है, जिससे आपके लिये ठंड महसूस होना ज्‍यादा मुश्किल हो सकता है. इससे पहले कि बुजुर्ग व्‍यक्ति को कुछ पता चले कि आखिर क्‍या हो रहा है, बहुत ज्‍यादा ठंड खतरनाक समस्‍याओं में बदल सकता है.

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7. जानिए किन ब्लड ग्रुप के लोगों में है हार्ट अटैक की ज्यादा संभावना

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क्या आपको पता है कि आपका ब्लड ग्रुप इस बात की जानकारी देता है कि आपको दिल से संबंधित बीमारियां होंगी या नहीं? जी हां, आपका ब्लड ग्रुप ऐसी कई बातें बताता है. एक शोध के अनुसार जिन लोगों का ब्लड ग्रुप ‘A’, ‘B’ या ‘AB’ है, उन्हें दिल संबंधित बीमारी होने की संभावना अन्य से 9 फीसदी ज्यादा होती है. वहीं ‘O’ ब्लड ग्रुप के लोगों में ये खतरा तुलनात्मक रूप से कम होता है. शोध परिणामों से पता चला है कि ‘A’, ‘B’ या ‘AB’ ब्लड ग्रुप वाले लोगों में ये परेशानी विलेब्रांड के कारण है. विलेब्रांड एक तरह का प्रोटीन है, जो रक्त को जमा देता है.

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8. ..तो आने वाला है हार्ट अटैक

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हार्ट अटैक कभी भी अचानक आ सकता है, लेकिन कुछ लक्षण हैं, जो हार्ट अटैक के 1 महीने पहले नजर आने लगते हैं.  अगर आपको भी नजर आते हैं यह 6 लक्षण तो सावधान हो जाएं, क्योंकि आप हार्ट अटैक के शि‍कार हो सकते हैं. अभी जानिए इन लक्षणों को, ताकि हार्ट अटैक से बचा जा सके.

1. सीने में असहजता

यह दिल के दौरे के लिए जिम्मेदार लक्षणों में से एक है. सीने में होने वाली किसी भी प्रकार की असहजता आपको दिल के दौरे का शि‍कार बना सकती है. खास तौर से सीने में दबाव या जलन महसूस होना. इसके अलावा भी अगर आपको सीने में कुछ परिवर्तन या असहजता का अनुभव हो, तो तुरंत अपने चिकित्सक से सलाह लें.

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9. सेक्स के दौरान हार्टअटैक, जानें क्या है सच्चाई

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सेक्स के कारण दिल का धड़कना बंद हो जाए, यह दुर्लभ होता है. यूएसए टुडे की संवाददाता किम पेंटर का कहना है कि एक बड़ी शोध के अनुसार यह तथ्य सामने आया है कि सेक्स के दौरान या इसके बाद आमतौर पर हृदय गति रुकना बहुत कम अवसरों पर होता है और अगर ऐसा होता भी है तो यह आम तौर पर एक पुरुष के साथ ज्यादा होता है.

1 हजार महिलाओं में से किसी एक को तकलीफ…

शोध में बताया गया है कि एकाएक दिल की धड़कन रुकने के एक सौ मामलों में मात्र एक मामला सेक्स से जुड़ा होता है और एक हजार महिलाओं में से किसी एक को यह तकलीफ होती है. यह अध्ययन अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की वैज्ञानिक बैठक के दौरान पेश किया गया था. इस अध्ययन को जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलाजी में प्रकाशित किया गया है.

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10. पेन किलर दवाइयों से बढ़ता है हार्टअटैक का खतरा

सामान्य दर्द निवारक दवाई डाइक्लोफेनेक का इस्तेमाल दिल का दौरा और आघात जैसी हृदय संबंधी प्रमुख बीमारियों के जोखिम को बढ़ा सकता है. एक नए अध्ययन में इस बात को लेकर आगाह किया गया है. एक अध्ययन में डाइक्लोफेनेक के उपयोग की तुलना कोई भी दवा का प्रयोग नहीं करने, पैरासिटामोल तथा अन्य पारंपरिक दवा निवारक दवाओं से करने के साथ की गई है.

पेन किलर के पैकेट पर हो जोखिम का उल्लेख

डेनमार्क स्थित आरहुस विश्वविद्यालय अस्पताल के शोधकर्ताओं ने बताया कि डाइक्लोफेनेक सामान्य बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं होनी चाहिए और अगर यह बिकती है, तो उसके पैकेट के आगे के भाग पर इसके संभावित जोखिम का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया जाना चाहिए. डाइक्लोफेनेक एक पारंपरिक नौन-स्टेरोयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग (एनएसएआईडी) होता है, जिसका इस्तेमाल दुनियाभर में बड़े पैमाने पर दर्द और सूजन के निवारण के लिए किया जाता है.

इस शोध में डाइक्लोफेनेक का इस्तेमाल शुरू करने वाले लोगों में हृदय रोग संबंधी जोखिम की तुलना अन्य एनएसएआईडी दवाइयों और पैरासिटामोल के इस्तेमाल करने वालों से की गई है.

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वजन कम करने का बेहद आसान तरीका है वाटर वर्कआउट

अगर आप जिमिंग, जुंबा, जौगिंग, पाइलेरस, ऐरोबिक्स, ब्रिस्क वाकिंग आदि फिटनैस के तरीकों से उकता गई हैं, तो वाटर वर्कआउट अपनाएं यानी अब पूल को जिम पूल बनाएं. वैसे तो फिटनैस के सभी तौरतरीकों से बौडी टोनिंग जरूर होती है, पर कैलोरी बर्न करने और बीमारियों से दूर रहने के लिए वाटर वर्कआउट अधिक कारगर है. वाटर वर्कआउट कर के आप कई तरह की बीमारियों को भी दूर कर सकती हैं. इस से शरीर के सभी अंगों की बढ़िया कसरत हो जाती है.

क्या है वाटर वर्कआउट

पानी में ऐक्सरसाइज करना ही वाटर वर्कआउट या ऐक्वा वर्कआउट अथवा ऐरो वर्कआउट कहलाता है. पानी बहता नहीं, बल्कि रुका होना चाहिए. तालाब या स्विमिंग पूल में वाटर ऐक्सरसाइज करना बैस्ट रहता है. इन में पानी का स्तर 3 फुट से अधिक नहीं होना चाहिए. आप अपनी सुविधा के अनुसार पानी का स्तर तय कर सकती हैं यानी घुटनों तक, पैल्विक तक या चैस्ट तक. साथ ही पानी का तापमान 20 से 25 डिग्री सैल्सियस से अधिक नहीं हो.

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पानी में सब छूमंतर

ऐक्सरसाइज करने में मोटापा सब से बड़ी बाधा बनता है. ऐसे में वाटर वर्कआउट अपनाएं. विशेषज्ञों के अनुसार पानी में ऐक्सरसाइज करते समय शरीर का वजन केवल 10% रह जाता है. यही नहीं वाटर वर्कआउट कर के जोड़ों के दर्द, गठिया, मोटापा, मधुमेह आदि में राहत मिलती है. खुले में करने से हाथ या पैर गलत दिशा में जाने से चोट लगने की संभावना रहती है और साथ ही शरीर के भारीपन के कारण ऐक्सरसाइज प्रभावी तरीके से भी नहीं हो पाती है.

वाटर वर्कआउट मांसपेशियों को मजबूती मिलती है. इस के अलावा पानी में व्यायाम करने से शरीर और मन दोनों को तनाव से राहत मिलती है. जब शरीर पानी में होता है तो वजन कम महसूस होता है. इसलिए शरीर पर व्यायाम का प्रभाव भी कम होता है, जो मांसपेशियों में तनाव या शारीरिक तनाव पैदा नहीं करता. पानी में कसरत करने से ताजगी और खुशी महसूस होती है. वाटर वर्कआउट वेट लौस करने और हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद रहता है.

जरूरी है देखरेख

यदि आप पहली बार वाटर वर्कआउट कर रही हैं, तो ट्रेनर की निगरानी में ही करें. 1 घंटे से अधिक पानी में न रहें अन्यथा त्वचा पर सनबर्न हो सकता है. इस से बचने के लिए वाटर वर्कआउट करने के 20 मिनट पहले शरीर पर सनस्क्रीन लगाएं. किसी भी तरह का वाटर वर्कआउट करने के बाद 10-15 मिनट आराम जरूर करें ताकि शरीर का तापमान सामान्य हो जाए.

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कैलोरी बर्नर

आप सेहतमंद तरीके से वजन कम करना चाहती हैं, तो वाटर वर्कआउट जरूर अपनाएं, क्योंकि पानी में ऐक्सरसाइज करने से मांसपेशियों में तनाव नहीं आता है. अगर आप दिन में 1 घंटा वाटर वर्कआउट करती हैं तो 300 से 600 कैलोरी बर्न कर सकती हैं. यानी वाटर वर्कआउट करने से शरीर की चरबी को खत्म करने के साथसाथ उसे सुरक्षित तरीके से शेप में भी ला सकती हैं.

फ्लैक्सिबिलिटी में विस्तार

फ्लैक्सिबिलिटी यानी लचीलापन. वाटर वर्कआउट से जुड़ी है फ्लैक्सिबिलिटी. पानी में  कसरत करने से अंदरूनी चोट नहीं लगती. साथ ही जोड़ अधिक लचीले बनते हैं. नतीजतन उन की सक्रियता में इजाफा होता है.

तनाव से छुटकारा

यदि आप बहुत तनाव में हैं, तो वाटर वर्कआउट करें. इस से आप तरोताजा महसूस करेंगी और तनाव से राहत मिलेगी. पानी में होने पर दिमाग ऐंडोर्फिंस हारमोन रिलीज होते हैं, जिस से तनाव कम होता है.

स्ट्रौंग होतीं मसल्स

जहां वाटर वर्कआउट से वजन कम होता है, वहीं तनाव से राहत मिलती है. मांसपेशियों में लचीलापन बढ़ता है, कई रोगों का निदान होता है. इसे नियमित करने से मसल्स भी स्ट्रौंग होती हैं, साथ ही उन में लचीलापन भी बढ़ता है.

कंट्रोल में ब्लडप्रैशर

पानी में व्यायाम करने से शरीर में रक्त का प्रवाह बेहतर होता है, जिस से ब्लडप्रैशर की समस्या नहीं होती. इस से हार्टबीट भी बेहतर रहती है.

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जानें क्यों बढ़ रही महिलाओं में थायराइड की प्रौब्लम

थायराइड की परेशानी दुनियाभर में बहुत आम है. पूरी दुनिया में करीब 200 मिलियन लोग इस से प्रभावित हैं. नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इन्फौर्मेशन के अनुसार भारत में करीब 42 मिलियन लोग थायराइड के शिकार हैं. इन में 60% महिलाएं हैं. भारत में प्रत्येक 8 युवा महिलाओं में 1 थायराइड से ग्रस्त है. पुरुषों के मुकाबले महिलाएं थायराइड की ज्यादा शिकार होती हैं.

क्या है थायराइड गड़बड़ी

थायराइड ग्लैंड गरदन पर सामने तितली के आकार की ग्रंथि है जो हारमोन बनाती है और ये हारमोन शरीर के भिन्न अंगों के सही काम करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं. ये शरीर के मैटाबोलिक रेट के साथसाथ कार्डिएक और पाचन संबंधी काम को सुचारु रखते हैं. मस्तिष्क का विकास, मांसपेशियों पर नियंत्रण और हड्डियों का रखरखाव भी इन्हीं से संभव होता है. थायराइड की गड़बड़ी थायराइड ग्लैंड के काम को प्रभावित करती है. इस से मैटाबोलिज्म के लिए आवश्यक हारमोन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है.

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महिलाएं ज्यादा प्रभावित क्यों

थायराइड की ज्यादातर गड़बड़ी अपनेआप बेहतर हो जाने वाली प्रक्रिया है यानी एक अच्छी स्थिति है, जिस में मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली हमला करती है और थायराइड ग्रंथि को नष्ट कर देती है. विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक औटो इम्यून डिजीज जैसे सीलिएक डिजीज, डायबिटीज मैलिटस टाइप, इनफ्लैमेटरी बोवेल डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस महिलाओं में आम हैं.

थायराइड की गड़बड़ी की किस्में

हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म, थाइरोइडिटिस, थायराइड कैंसर जैसी आम गड़बडि़यां हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करती हैं. इन में से हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होती हैं.

हाइपोथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता कम होती है और सामान्य के मुकाबले कम हारमोन बनते हैं. इस से शरीर में हारमोन और मैटाबोलिज्म का संतुलन गड़बड़ा जाता है. महिलाओं में हाइपोथायरोडिज्म के सब से आम कारणों में एक है औटोइम्यून डिजीज जिसे हैशिमोटोज डिजीज कहा जाता है. इस में ऐंटीबौडीज धीरेधीरे थायराइड को लक्ष्य करते हैं और थायराइड हारमोन बनाने की इस की क्षमता को नष्ट कर देते हैं. अनुमान है कि 11 महिलाओं में से 1 अपने जीवन में हाइपोथायराइड से ग्रस्त होती है.

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हाइपरथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है और सामान्य के मुकाबले ज्यादा हारमोन बनते हैं. ये हारमोन शरीर के मैटाबोलिज्म को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाइपरथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि बड़ी हो जाती है. इस से शरीर का मैटाबोलिज्म बढ़ जाता है और अचानक वजन कम हो जाता है, हृदय की धड़कनें तेज या अनियमित हो जाती हैं और चिंता होती है.

शुरुआती लक्षण

थायराइड की गड़बड़ी अकसर शुरू में नहीं पकड़ी जाती है, क्योंकि इस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं. इसे बांझपन, लिपिड डिसऔर्डर, ऐनीमिया या डिप्रैशन समझ कर भ्रमित होने की आशंका रहती है. लक्षण देर से सामने आते हैं. तब तक हुए नुकसान की भरपाई न हो पाने की स्थिति बन जाती है.

हाइपोथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: थकान, शुष्क त्वचा, मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज, ठंड बरदाश्त न कर पाना, सूजी हुई पलकें, वजन अत्यधिक बढ़ना, मासिक अनियमित होना.

हाइपरथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: घबराहट, सोने में परेशानी, वजन कम होना, हथेलियों का गीला रहना, तेज और अनियमित हृदय की धड़कन, भारी आंखें, पलकें झपके बगैर घूरना, नजर में बदलाव, अत्यधिक भूख, पेट की गड़बड़ी, गरमी नहीं झेल पाना.

थायराइड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार घटक

थायराइड की बीमारी का पारिवारिक इतिहास, औटोइम्यून स्थिति का साथसाथ मौजूद रहना, गरदन में रैडिएशन का इतिहास, थायराइड की सर्जरी, थायराइड बढ़ जाना.

रोकथाम

थायराइड की गड़बड़ी लाइफस्टाइल से जुड़ी गड़बड़ी नहीं है और पर्याप्त मात्रा में आयोडीन लेने के अलावा किसी और प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है. थायराइड की गड़बड़ी का समय पर पता चल जाए और सही उपचार किया जाए तो इसे  बढ़ने से रोका जा सकता है. महिलाओं को साल में 1 बार थायराइड ग्रंथि की जांच जरूर करानी चाहिए ताकि बीमारी का जल्दी पता लग सके और समय से इलाज हो सके.

डा. सुनील कुमार मिश्रा

मेदांता हौस्पिटल     

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अपने बच्चे का मेंटल बर्डन करें ऐसे कम

कोविड 19 महामारी ने हमारी नियमित जिंदगी को तो मानो खत्म ही कर दिया हो और सभी में एक भय और अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न कर दी है. न केवल बड़े व्यक्ति बल्कि बच्चे भी इसी डर से सहमे हुए हैं. अपने जज्बातों को दबा हुआ महसूस कर रहे हैं. बच्चों का दिमाग अभी भी विकसित हो रहा है इसलिए उनके दिमाग पर इतनी स्ट्रेस का बहुत नेगेटिव असर पड़ सकता है. इसलिए आपको बच्चों के बारे में अधिक फिक्र करनी चाहिए और उनकी स्थिति को भी अधिक गंभीरता से लेना चाहिए. आज हम आपको बताने वाले हैं कुछ ऐसे टिप्स जिनसे आप बच्चों के मानसिक भार को कम कर सकते हैं.

 1. उन्हें दे अधिक अटेंशन :

छोटे बच्चों को अधिक प्यार और अधिक अटेंशन की आवश्यकता होती है और वह आपसे यही उम्मीद करते हैं कि अगर उन्हें किसी दिन अधिक भार महसूस हो तो आप उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करें. इसलिए आप आपके बच्चों को अटेंशन दें और रोजाना उन्हें हग करें ताकि आपका प्यार उन्हें महसूस हो सके.

 2. उनके अच्छे व्यवहार के लिए दें पुरुस्कार :

अगर आपके बच्चे कोई अच्छा व्यवहार करते हैं या अगर कई बार वह अच्छा महसूस नहीं भी करते हैं तो उन्हें आप छोटा मोटा उनकी पसंद का गिफ्ट दे दें जिससे वह खुश हो सकें और मानसिक तनाव से छुटकारा पा सकें. ऐसे में आप उन्हें चॉकलेट या कोई खिलौना दे सकते हैं.

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 3. उन्हें सजा न दें :

आपको यह समझ लेना चाहिए की बच्चे भी इस समय एक युद्ध में लीन हैं जो उन्हें बहुत तंग कर रहा है. इस स्थिति में अगर वह जाने अनजाने में कोई गलती कर बैठते हैं तो आपको उन्हें मारना या पिटना नहीं चाहिए और न ही किसी चीज पर प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार की सजा से उनका मानसिक विकास बाधित हो सकता है और आपका रिश्ता भी खराब हो सकता है.

 4. खुद को उनके लिए रोल मॉडल बनाएं :

अगर आपके बच्चे आपको देखेंगे तो वह और अच्छे से स्थिति से निपटना सीखेंगे. अगर आप उनके सामने हमेशा परेशान और उदास बैठे रहेंगे तो वह भी यही सीखेंगे लेकिन अगर आप हमेशा खुश और चीयर अप महसूस करेंगे और उन्हें दिखाएंगे तो वह भी यह सीखेंगे और उनके मन से एक भार अपने आप ही कम हो जायेगा.

5. घर पर डिबेट न करें :

अगर आपके पास कोई ऐसा विषय है जो बच्चों के दिमाग पर बोझ बन सकता है तो उसके बारे में घर पर  चर्चा न करें. खास कर कोविड से बढ़ने वाले केस और डर की चीजों का बच्चों के सामने तो बिलकुल ही जिक्र न करें नहीं तो इससे बच्चों के दिमाग पर अधिक प्रेशर पड़ सकता है. समाचार आदि भी उन्हें कम ही देखने दें..

 6. उनके लिए एक शेड्यूल बना दें :

बच्चों के लिए एक शेड्यूल बना दें जिसमें पढ़ाई के साथ साथ उन्हें खेलने और रिलैक्स करने का टाइम भी दें. बहुत से मां बाप केवल पढ़ाई को लेकर ही बच्चे पर अधिक प्रेशर डाल देते हैं लेकिन आपको थोड़ा समय बच्चे के एंजॉय करने के लिए जैसे टीवी देखना आदि के लिए भी दे देना चाहिए.

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तो यह सब टिप्स थी जिनके कारण आप बच्चों के दिमाग से थोड़ा प्रेशर कम कर सकते हैं और साथ ही उन्हें फोन आदि के माध्यम से उनके सहपाठियों से भी जोड़ें रखें ताकि वह खुद को अकेला महसूस न कर पाए..

स्ट्रोक की स्थिति में 6 – एस को जानें

मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे गूढ़ और महत्वपूर्ण अंग है जिसे खोपड़ी के अंदर बहुत ही नजाकत से संभाल कर रखा जाता है. लेकिन खराब लाइफस्टाइल और कई बीमारियां मस्तिष्क के लिए बड़ा खतरा बन जाती हैं. स्ट्रोक इन्हीं में से एक ऐसी बीमारी है, जो वैश्विक स्तर पर चार में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है. हालांकि सभी तरह के स्ट्रोक में तकरीबन 80 फीसदी मामलों से बचा जा सकता है, बशर्ते कि इसकी सही समय पर पहचान की जाए ताकि मरीज को तत्काल अस्पताल पहुंचाकर उसे लकवाग्रस्त होने तथा मौत से बचाया जा सके.

स्ट्रोक की स्थिति में लोगों को तत्काल कार्रवाई करने के लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है और 6—एस पद्धति से इसकी पहचान करने में मदद मिलती है. ये हैं: सडेन यानी लक्षणों की तत्काल उभरने की पहचान, स्लर्ड स्पीच यानी जुबान अगर लड़खड़ाने लगे, साइड वीक यानी बाजू, चेहरे, टांग या इन तीनों में दर्द होना, स्पिनिंग यानी सिर चकराना, सिवियर हेडेक यानी तेज सिरदर्द और छठा सेकंड्स यानी लक्षणों के उभरते ही कुछ सेकंडों में अस्पताल पहुंचाना. कई सारे अध्ययन बताते हैं कि स्ट्रोक पीड़ित मरीज की प्रति मिनट 19 लाख मस्तिष्क कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, लगभग 140 करोड़ स्नायु संपर्क टूट जाता है और 12 किमी तक स्नायु फाइबर खराब हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में मिनट भर की देरी भी मरीज को स्थायी रूप से लकवाग्रस्त और मौत तक की स्थिति में पहुंचा देती है.

शालीमार बाग स्थित मैक्स हॉस्पिटल के न्यूरो साइंस विभाग के प्रिंसिपल कंसलटेंट डॉ शैलेश जैन के अनुसार, खराब लाइफस्टाइल, खासकर खानपान की गलत आदतें, जंक फूड, मांस—अंडे का सेवन आदि के कारण कोरोनरी आर्टेरियल डिजीज, स्ट्रोक और इंट्राक्रेनियल हेमरेज की नौबत अब दशक पुरानी बात हो गई है. तनाव, धूम्रपान और अल्कोहल का सेवन, खानपान की गलत आदतें और शारीरिक गतिविधियों की कमी समेत खराब लाइफस्टाइल स्ट्रोक का कारण बनती हैं, वहीं खानपान की स्वस्थ आदतें अपनाने से देखा गया है कि 80 फीसदी से ज्यादा मामलों को टाला जा सकता है.

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ब्रेन स्ट्रोक एक गंभीर और जानलेवा स्थिति है और आम तौर पर हार्ट अटैक के मुकाबले अधिक खतरनाक होता है. अन्य बड़े कारणों के अलावा नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि नहीं करना भी शुरुआती चरण के स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार माना जाता है. नियमित व्यायाम से न सिर्फ संपूर्ण स्वास्थ्य बना रहता है, बल्कि कई सारी बीमारियां भी दूर रहती हैं. स्ट्रोक का खतरा बढ़ाने वाली अन्य बीमारियों में हाइपरटेंशन, डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल शामिल हैं. हाइपरटेंशन के कारण ही इस्केमिक स्ट्रोक (ब्लॉकेज के कारण) के 50 फीसदी से ज्यादा मामले होते हैं और इससे हेमोरेजिक स्ट्रोक (मस्तिष्क में रक्तस्राव) की संभावना बढ़ जाती है. लिहाजा नियमित व्यायाम से रक्तचाप का उचित स्तर बनाए रखने में मदद मिलती है और इससे 80 फीसदी तक ब्रेन स्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है.

इसी तरह डायबिटीज के कारण स्ट्रोक की आशंका दोगुनी हो जाती है क्योंकि ब्लड शुगर लेवल बढ़ने के कारण सभी बड़ी रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और यही इस्केमिक स्ट्रोक का कारण बनता है. इसमें भी नियमित व्यायाम से न सिर्फ ब्लड ग्लूकोज लेवल नियंत्रित रहता है बल्कि डायबिटीज की स्थिति में स्ट्रोक अटैक की संभावना भी कम हो जाती है. शरीर में हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल से भी स्ट्रोक का खतरा रहता है और इसे भी नियमित व्यायाम से नियंत्रित किया जा सकता है.

चूंकि ब्रेन अटैक होने पर शरीर को स्थायी नुकसान उठाना पड़ता है, इसलिए समय पर सतर्क होना और मरीज को नजदीकी अस्पताल तक पहुंचाना जरूरी होता है. ब्रेन अटैक पर काबू पाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम इसकी डायग्नोसिस है. लिहाजा स्ट्रोक की पहचान के लिए 6एस पद्धति अपनाना जरूरी है.

इसका इलाज स्ट्रोक के टाइप पर निर्भर करता है. लगभग 85 फीसदी स्ट्रोक के मामले इस्केमिक होते हैं जिन पर दौरा पड़ने के 4.5 घंटे के अंदर इंट्रावेनस मेडिकेशन टीपीए से काबू पाया जा सकता है.

किसी विशेषज्ञ और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की मदद से यह प्रक्रिया सुरक्षित और त्वरित तरीके से अपनाई जाती है. बायप्लेन टेक्नोलॉजी में एडवांस्ड उपकरण सुरक्षित तरीके से मस्तिष्क की रक्त नलिकाओं तक सुरक्षित पहुंचते हुए 3डी तस्वीर देता है जिससे किसी तरह की दिक्कत का खतरा कम रहता है.

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यह प्रक्रिया ग्रॉइन 3 – 4 मम का कट (जांघ के पास) लगाकर अपनाई जाती है जहां से किसी योग्य इंटरवेंशनल न्यूरोलॉजिस्ट द्वारा कैथेटर डालकर मस्तिष्क तक पहुंचाया जाता है और फिर रक्त प्रवाह सुचारु करने के लिए कैथेटर से रक्त थक्का निकाल लिया जाता है. इसमें कोई ओपन सर्जरी नहीं होती. हाल के परीक्षणों से साबित हुआ है कि मरीज मेकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी के बाद बहुत अच्छी तरह रिकवर होता है और उसके स्वतंत्र रूप से लंबा जीवन जीने की संभावना बढ़ जाती है.

शालीमार बाग स्थित मैक्स हॉस्पिटल के न्यूरो साइंस विभाग के प्रिंसिपल कंसलटेंट डॉ शैलेश जैन से बातचीत पर आधारित.

40 की उम्र के बाद खुद को ऐसे रखें फिट एंड फाइन

आमतौर पर देखा जाता है कि चालीस की उम्र के बाद से महिलाओं में कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. 40 की उम्र ऐसा पड़ाव है, जब स्त्री के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. इस उम्र में मेनोपौज के बाद कुछ समस्याएं, जैसे चिड़चिड़ापन, थकान, वजन बढना, लगातार खाते रहने की चाहत आदि हो सकती हैं. हालांकि यह समस्या सभी स्त्रियों में एक समान नहीं होती.

कई महिलाओं को लगता है कि वह बिल्कुल स्वस्थ हैं पर वह वाकई में पूरी तरह से स्वस्थ हो यह जरूरी नहीं है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपनी हेल्थ को क्रौस चेक करें और डाक्टर से परामर्श लें. इसी के साथ ही रूटीन चेकअप कराती रहें और अपने खानपान और फिटनेस का भी विशेष खयाल रखें.

आइये जानें 40 की उम्र के बाद होने वाली समस्याओं और उनसे बचने के उपायों के बारें में-

ब्लड प्रेशर

इस उम्र में ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ जाता है. जब स्त्रियां अपने खानपान पर ध्यान नहीं देतीं तो बीपी बढऩे की पूरी संभावना होती है. यदि आपको लगे कि आपका ब्लड प्रेशर सामान्य है, तब भी नियमित रूप से इसकी जांच करानी चाहिए.

डाइट :

इस उम्र में ओमेगा-थ्री फैटी एसिड से युक्त आहार का सेवन रक्तचाप को नियंत्रित करने के साथ हृदय की अनियमित गति को भी ठीक करने में मददगार है.

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फिटनेस :

एक शोध के अनुसार सिल्वर योग ब्लड प्रेशर की समस्या को कम करता है. अगर आप किसी भी कारण योग नहीं कर पा रही हैं तो सुबह कम से कम 45 मिनट टहलें.  टहलते समय ध्यान रखें कि पहले 10 सामान्य गति से और अगले 20 मिनट तेज गति से चलें और फिर अपनी गति को मध्यम कर 10 मिनट तक चलें. रोजाना 40-45 मिनट ऐसा करें. अगर आप सुबह टहल नहीं पा रही हैं तो रात को डिनर के 30 मिनट बाद टहले.

कोलेस्ट्रौल

ब्लड प्रेशर के साथ-साथ स्त्रियों में कोलेस्ट्रौल की भी समस्या हो जाती है. इसलिए महिलाओं को हर पांच साल में कोलेस्ट्रौल की जांच जरूर करानी चाहिए. एक शोध में पाया गया है कि कभी-कभी एचडीएल या अच्छा कोलेस्ट्रौल भी टाइप-1 मधुमेह से पीडि़त महिलाओं के हृदय रोग के खतरे को बढ़ा सकता है.

डाइट :

उच्च फाइबर खाद्य पदार्थ जैसे दलिया, जौ, गेहूं, फल और सब्जियों का सेवन करें. यह रक्त में कोलेस्ट्रौल कम करने में मदद करता है.

फिटनेस :

हफ्ते में पांच दिन 30 से 40 मिनट एरोबिक एक्सरसाइज करें और अपने लिपिड प्रोफाइल को मौनिटर करें.

डायबिटीज

डायबिटीज अपने आप में एक गंभीर समस्या है. सही समय पर इसका पता न चलने पर हृदय रोग, किडनी व आंखों से संबंधित समस्याओं की आशंका बढ़ जाती है. इसलिए स्त्रियों को साल में कम से कम एक बार डायबिटीज की जांच अवश्य करानी चाहिए.

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डाइट :

डायबिटीज में फाइबर डाइट शुगर लेवल को नियंत्रित करता है. इसलिए गेहूं, ब्राउन राइस या व्हीट ब्रेड आदि को अपनी डाइट में शामिल करें, साथ ही ताजे फल और सब्जियों का सेवन करें. इसके अलावा उच्च प्रोटीन डाइट लें और खूब पानी पिएं.

फिटनेस :

व्यायाम करने से शरीर में रक्तसंचार सुचारु रूप से होता है. इससे ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है, मेटाबौलिज्म संतुलित रहता है और मधुमेह का खतरा कम होता है. वैसे मधुमेह के मरीजों को कई तरह के व्यायाम करने चाहिए. कभी योग करें, कभी कार्डियो और कभी वेट लिफ्टिंग. हमेशा एक तरह से एक्सरसाइज न करें.

बचे तेल को बार-बार इस्तेमाल करना यानी सेहत को खतरा

भारतीय खाने में पकौड़े तलने से लेकर तड़का लगाने तक, तेल को कई तरीकों से और कई चीजों में इस्तेमाल किया जाता है. कई घरों में एक बार इस्तेमाल किए गए तेल को बार-बार इस्तेमाल किया जाता है ताकि तेल को बर्बाद होने से बचाया जा सके, लेकिन क्या आप जानती हैं कि तेल के पुनर्प्रयोग से काफी सारी बीमारियां हो जाती हैं? जी हां बचे हुए तेल का बार-बार इस्तेमाल करना आपके सेहत के लिए बेहद खतरनाक है.

बचे तेल के इस्तेमाल से हो सकता है कैंसर

अगर तेल में एक बार कोई चीज फ्राइ कर दी गई है और बार-बार उसी तेल में बाकी चीजें भी बनाई जा रही हैं, तो इससे फ्री रैडिकल्स जन्म ले लेते हैं, इससे सूजन और जलन के अलावा बीमारियां हो जाती हैं. ये फ्री रैडिकल्स बौडी की स्वस्थ कोशिकाओं (सेल्स) से खुद को जोड़ लेते हैं. फ्री रैडिकल्स कई बार कैंसर को जन्म दे सकते हैं. इसके अलावा तेल को बार-बार इस्तेमाल करने से अथरोस्कालरोसिस (atherosclerosis) हो सकता है, जिसमें शरीर में बैड कलेस्ट्राल बढ़ जाता है और धमनियां ब्लौक हो जाती हैं.

ये भी होते हैं प्रभाव

एक ही तेल को बार-बार इस्तेमाल करने से असिडिटी, दिल संबंधी बीमारियां, ऐल्टशाइमर्ज डिजीज, पार्किंसन्स डिजीज और गले में जलन हो सकती है.

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कितनी बार करें तेल का इस्तेमाल

डीप फ्राइ के लिए एक बार इस्तेमाल किए गए तेल को दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन कुछ मामलों में ऐसा किया जा सकता है. हालांकि उन मामलों में यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस प्रकार का तेल इस्तेमाल किया जा रहा है. मसलन, क्या इसे हल्का फ्राइ करने के लिए इस्तेमाल किया गया या फिर डीप फ्राइ के लिए? इस तेल में खाने के किस आइटम को फ्राइ किया गया?

इस तरह के तेल खाने में करें इस्तेमाल

सभी तेल एक दूसरे से काफी अलग होते हैं. कुछ में स्मोकिंग पाइंट ज्यादा होता है. यानी डीप फ्राइंग के दौरान कुछ में धुंआ ज्यादा निकलता है तो कुछ में कम. कुछ तेल ऐसे होते हैं जिन्हें गरम करने पर बिल्कुल भी धुंआ नहीं निकलता, जैसे कि सनफ्लार ऑइल, सोयाबीन का तेल, मूंगफली का तेल आदि. ऐसे तेल जिनका स्मोकिंग पाइंट ज्यादा न हो उन्हें फ्राइ करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.

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बचे तेल के दुष्प्रभाव से बचने के तरीके

कुकिंग के बाद बचे तेल को ठंडा होने देना चाहिए और उसके बाद उसे एक एयरटाइट डब्बे में छानकर भर दें. इससे उस तेल में रहे फूड पार्टिकल्स भी निकल जाएंगे. जब भी आप तेल को दोबारा इस्तेमाल करें तो देख लें कि उसका कलर और थिकनेस कैसी है. अगर तेल डार्क कलर और पहले से अधिक गाढ़ा व ग्रीस जैसा है तो उसे फेंक दें. इसके अलावा अगर तेल गरम करने पर पहले के मुकाबले अधिक धुंआ छोड़े तो उसे फेंक देना ही बेहतर है.

यूरीन इन्फेक्शन से छुटकारा दिलाएंगे ये 4 आसान होममेड टिप्स

यूरीन इन्फेक्शन का प्रमुख कारण ज्यादा देर तक पेशाब रोके रहना है. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में इसकी संभावना ज्यादा होती है. कई बार लोग ज्यादा देर तक पेशाब से रोके रहते हैं, जिसके कारण पित्ताशय में बैक्टीरिया इकट्ठे हो जाते हैं और इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. पित्ताशय में होने वाले इसी संक्रमण को यूरीन इन्फेक्शन कहते हैं. यूरीन इन्फेक्शन की वजह से किडनी पर बहुत बुरा असर पड़ता है. ऐसे में किडनी फेल होने की भी संभावना रहती है.

लक्षण

यूरीन इन्फेक्शन की वजह से पेशाब में जलन, गुप्तांगों में खुजली, रुक रुककर पेशाब आना, मूत्र का रंग गहरा पीला होना, मूत्र से बदबू आना, मू्त्र के साथ खून का आना, थकान और कमजोरी महसूस होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं.

इलाज

1. खूब पानी पिएं

यूरीन इन्फेक्शन से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी पिए. दिनभर में लगभग छ: से सात लीटर पानी पीना जरूरी होता है. आयूरीन इन्फेक्शन ब्लैडर में बैक्टीरिया के जमाव की वजह से होता है. ऐसे में खूब पानी पीने से ब्लैडर में बैक्टीरिया जमा नहीं होने पाता है और संक्रमण से बचाव होता है.

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2. खट्टे फलों का करें सेवन

खट्टे फलों का सेवन करें क्योंकि इनमें साइट्रिक एसिड होता है. ये साइट्रिक एसिड बैक्टीरिया को खत्म करने में मददगार होते हैं, इसलिए पेशाब में इंफेक्शन होने पर खट्टे फलों का सेवन करना चाहिए या फिर उनका रस पीना चाहिए. इसके लिए आप नींबू, संतरा और आंवला जैसे खट्टे फलों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

3. लस्सी पिएं

दिन में कम से कम दो बार लस्सी पीएं. लस्सी ब्लैडर में पनप रहे बैक्टीरिया को बाहर करने में मदद करता है. इसके अलावा लस्सी पीने से पेशाब में जलन की समस्या से भी राहत मिलता है. ये यूरीन इंफेक्शन की समस्या को कम करने में भी सहायक है.

4. सेब का सिरका

एप्पल साइडर विनेगर यानी कि सेब का सिरका यूरीन इन्फेक्शन में बेहद लाभकारी है. इसके लिए एक गिलास पानी में 2-3 चम्मच सेब का सिरका और आधा चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार पिएं. इससे आपको बहुत जल्द ही असर दिखाई देगा.

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इसके अलावा पेशाब में संक्रमण रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की कोशिश करें. तेज पेशाब लगे तो उसे ज्यादा देर तक रोके नहीं. शारीरिक संबंध बनाने के बाद पेशाब करना न भूलें. बाथरूम को हमेशा साफ सुथरा रखें और खुली जगहों पर पेशाब करने से बचें.

Breast Feeding बढ़ाएं Baby की Immunity

कोरोना जैसी महामारी से निबटने के लिए जितना हो सके अपनी  इम्यूनिटी को बढ़ाना बहुत जरूरी है. इसे बढ़ाने के लिए मार्केट में ढेरों सप्लिमैंट्स उपलब्ध हैं. लेकिन अगर बात हो शिशुओं की,  तो उन की इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए मां के दूध से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता. तभी तो हर न्यू मौम को यह सलाह दी जाती है कि वह शुरुआती 6 महीने अपने बच्चे को सिर्फ अपना दूध ही पिलाए क्योंकि मां का दूध विटामिंस, मिनरल्स व ढेरों न्यूट्रिएंट्स का खजाना जो  होता है.

ब्रैस्ट फीडिंग से बढ़ती है इम्यूनिटी

अकसर न्यू मौम्स अपनी फिगर को मैंटेन रखने के लिए व बच्चे की भूख को शांत करने के लिए उसे शुरुआती जरूरी महीनों में ही फौर्मूला मिल्क देना शुरू कर देती हैं. भले ही इस से उन की भूख शांत हो जाती हो, लेकिन शरीर की न्यूट्रिशन संबंधित जरूरतें पूरी नहीं हो पाती. जबकि मां का दूध प्रोटीन, फैट्स, शुगर, ऐंटीबौडीज व प्रोबायोटिक से भरपूर होता है, जो बच्चे को मौसमी बीमारियों से बचा कर उस की इम्यूनिटी को बूस्ट करने का काम करता है.

अगर मां किसी इन्फैक्शन की चपेट में आ भी जाती है, तो उस इन्फैक्शन से लड़ने के लिए शरीर ऐंटीबौडीज बनाना शुरू कर देता है और फिर यही ऐंटीबौडीज मां के दूध के जरीए बच्चे में पहुंच कर उस की इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करती है. तो हुआ न मां का दूध फायदेमंद.

कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जो बच्चे शुरुआती 6 महीनों में सिर्फ ब्रैस्ट फीड करते हैं, उन में किसी भी तरह की ऐलर्जी, अस्थमा व संक्रमण का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. इसलिए मां का दूध बच्चे के लिए दवा का काम करता है.

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 ब्रैस्ट फीडिंग वीक

महिलाओं में ब्रैस्ट फीडिंग के लिए जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 1 से  7 अगस्त के बीच विश्व स्तर पर ब्रैस्ट फीडिंग वीक मनाया जाता है. उन्हें हर साल जगहजगह पर आयोजित कार्यक्रमों के जरीए शिक्षित किया जाता है कि मां के दूध से न सिर्फ बच्चा ही बीमारियों से दूर रहता है बल्कि मां भी इस से ओवेरियन व ब्रैस्ट कैंसर के रिस्क से बच सकती है. इस से रिलीज होने वाला हारमोन औक्सीटोसिन के कारण यूटरस अपने पहले वाले आकार में तो आ ही जाता है, साथ ही ब्लीडिंग भी कम हो जाती है. ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से कैलोरीज बर्न होने के कारण महिला की बौडी को शेप में आने में आसानी होती है. इसलिए जागरूक बन कर बच्चे को करवाएं ब्रैस्ट फीड.

जानते हैं ब्रैस्ट फीडिंग के अन्य फायदे

न्यूट्रिशन ऐंड प्रोटैक्शन:

मां के स्तनों से आने वाले पहले दूध को कोलोस्ट्रम कहते हैं, जिसे बेकार सम झ कर बरबाद न करें क्योंकि यह न्यूट्रिएंट्स का खजाना होने के साथ इस में फैट की मात्रा भी बहुत कम होती है, जिस से बच्चे के लिए इसे पचाना काफी आसान हो जाता है, साथ ही यह बच्चे के शरीर में ऐंटीबौडीज बनाने का भी काम करता है.

स्ट्रौग बौंड बनाने में मददगार:

बचपन से ही मां और बच्चे का बौंड स्ट्रौंग बने, इस के लिए ब्रैस्ट फीडिंग का अहम रोल होता है. ब्रैस्ट फीड करवाने से मां और बच्चा एकदूसरे का स्पर्श पाते हैं. ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से औक्सीटोसिन हारमोन, जिसे बौंडिंग हारमोन भी कहते हैं रिलीज होता है. यही हारमोन जब आप किसी अपने को किस या हग करते हैं, तब भी रिलीज होता है.

ब्रैस्ट फीड बेबी मोर स्मार्ट:

विभिन्न शोधकर्ताओं ने ब्रैस्ट फीडिंग व ज्ञानात्मक विकास में सीधा संबंध बताया है. अनेक शोधों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जिन बच्चों को लंबे समय तक ब्रैस्ट फीड करवाया जाता है, उन का आईक्यू लैवल काफी तेज होने के साथसाथ वे हर चीज में काफी स्मार्ट भी होते हैं क्योंकि मां के दूध में दिमाग को तेज करने वाले न्यूट्रिएंट्स कोलैस्ट्रौल, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड पाए जाते हैं.

ब्रैस्ट मिल्क को बच्चा आसानी से पचा लेता है क्योंकि इस में फैट की मात्रा बहुत कम होती है, जिस से बच्चे को कब्ज जैसी शिकायतों का भी सामना नहीं करना पड़ता, जबकि बच्चे के लिए फौर्मूला मिल्क को पचाना काफी मुश्किल हो जाता है और जब यह पचता नहीं है तो बच्चे को उलटी, पेट दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने के लिए ब्रैस्ट फीड है बैस्ट.

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एसआईडीएस का खतरा कम:

एक शोध से यह पता चला है कि कम से कम 2 महीने तक ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से एसआईडीएस मतलब सडन इन्फैंट डैथ सिंड्रोम का खतरा 50% तक कम हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो बच्चे स्तनपान करते हैं, वे आसानी से अच्छी नींद सोते हैं, जो उन की इम्यूनिटी को बढ़ाने में भी अहम रोल निभाता है. तो फिर अपने शिशु को हैल्दी रखने के लिए करवाएं ब्रैस्ट फीड.

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