#coronavirus: लौक डाउन और घर, एक महिला की जुबानी

सरकार ने 21 दिन का लॉकडाउन घोषित किया है. ऐसे में स्कूलकॉलेज, ऑफिस, मॉल, मेट्रो, बस, गाड़ी सब कुछ बंद है. बच्चों के पास होमवर्क नहीं. जो थे वे भी उन्होंने दोचार दिनों में निपटा लिए . अब उन का पूरा दिन घर में खेलते, टीवी देखते, खाते, सोते और होहल्ला करते बीतने लगा है . जाहिर है मेरा काम बहुत बढ़ गया है .

इधर पति महोदय सारा दिन लैपटॉप ले कर बैठे रहते हैं. उन के पास जाओ और कोई काम बताओ तो बस यही नारा उन की जुबान पर रहता है,” देखती नहीं हो मैं वर्क फ्रॉम होम कर रहा हूं . कितना काम है मेरे पास. प्लीज़ डिस्टर्ब मत करो मुझे. कितने सारे ईमेल करने है, क्लाइंटस से बातें करनी है, रिपोर्ट बनानी है, एक नये प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहा हूं और तुम हो कि घर के काम का बोझ भी मेरे ऊपर डालना चाहती हो.”

मुझे पति की बातों में दम लगता. दोचार दिन मैं ने उन्हें बिल्कुल भी डिस्टर्ब नहीं किया. मैं चाहती थी कि वे अच्छे से अपने ऑफिस का काम निपटाए. आखिर रोज ऑफिस में पूरे दिन यानी करीब 10 घंटे काम करते हैं तो घर में भी 8 -10 घंटे का काम तो करना ही पड़ेगा.

अब पति महोदय अपने कमरे में बंद रहने लगे. केवल दोपहर में बाहर आ कर खाना खा जाते. इधर मै पूरे दिन घर के घर के कामों ओर बच्चों के झगड़े निपटाने में व्यस्त हो गई .

बच्चे हर दोतीन घंटे पर खाने की डिमांड करते, पूरे दिन घर गंदा करते और मैं पूरा दिन किचन और घर के काम संभालती रह जाती. थोड़ा वक्त निकाल कर अपना पसंदीदा सीरियल देखने को सोचती तो बच्चे रिमोट ले कर चैनल बदल देते. बड़ा बेटा यानी हर्ष कहता, ” क्या ममा बोरिंग सीरियल देख रही हो. हमें गाना सुनना है और फिर गाना बजा कर दोनों बच्चे बिस्तर पर कूदते हुए डांस करने लगते . तब तक परी यानी छोटी बिटिया रिमोट ले कर कार्टून लगा लेती .

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इस तरह शुरुआती दिन मेरे लिए मुश्किल भरे रहे.  उस दिन दोपहर में 2 बजे के करीब परी आ कर मुझ से बोली,” पापा लैपटॉप पर जो इंग्लिश मूवी देख रहे हैं न वह मुझे भी देखनी है.”

” पापा मूवी नहीं देख रहे बेटा ऑफिस का काम कर रहे हैं. “मैं ने उस की बात सुधारनी चाही तो वह भड़क उठी, “क्या ममा मुझे बुद्धू समझा है? पापा मूवी ही देख रहे हैं और कल भी वे इस समय मूवी ही देख रहे थे. कल कोई हिन्दी मूवी थी मगर आज तो धांसू मूवी है. ”

चुप कर, बेटी के मुंह से ऐसी बात सुन कर मैं सकते में आ गई थी. कहां मैं यह सोच कर पति के कमरे में भी नहीं जाती थी कि वे डिस्टर्ब ना हो जाएं और कहां वे मुझे बेवकूफ बना कर खुद मूवी के मजे ले रहे हैं .

मैं उन के कमरे की तरफ बढ़ गई इधर परी पीछे से लगातार बोल रही थी,

” मैं पापा की पूरी रूटीन जानती हूं ममा. पापा सुबह 1 घंटे काम करते हैं फिर 10 से 12 बजे तक सोते हैं. दोपहर 12 से 3 मूवी देखते हैं और 3 से 5 यानी 2 घंटे फिर से काम करते हैं . बाकी बीचबीच में दोस्तों से गप्पे भी मारते हैं.”

” बेटा वे गप्पे नहीं मारते बल्कि क्लाइंट्स से बातें करते हैं.”

अब तक हर्ष भी आ गया था. वह हंसता हुआ बहन की बात का समर्थन करने लगा,” अरे मम्मी पापा ने आप को बुद्धू बनाया है और आप बन गए. कोई क्लाइंट वाइंट से नहीं दोस्तों से बातें करते हैं वह भी चटपटी बातें.”

“…और जानती हो मम्मी यह सब बातें आप से न बताने के लिए उस दिन पापा ने मुझे रिश्वत भी दी जब मैं ने चुपके से उन के कमरे में पहुंच कर उन की चोरी पकड़ ली थी .” परी ने इठलाते हुए कहा.

अब तो मेरे होश फाख्ता उड़ गए थे. मन में झंझावात चल रहा था. तो क्या मिस्टर घर के कामों से बचने और मस्ती करने के लिए ऑफिस के काम का बहाना बना रहे हैं. मैं ने खुद को समझाया, ऐसा नहीं हो सकता. पहले अपनी आंखों से सब कुछ देख लूं फिर यदि सच निकला तो उन के ऊपर बम फोड़ दूंगी.

उस दिन पूरे समय मैं ने उन की जासूसी की. सुबह नाश्ता चाय ले कर वे अपने कमरे में चले गए. मुश्किल से आधाएक घंटा काम कर बिस्तर पर लुढ़क गए. उन्हें सोता देख में अपना आपा खो बैठी और पूरा एक गिलास पानी भर कर उन के ऊपर उड़ेल दिया.

वे सकपका कर उठ बैठे और हड़बड़ाते हुए फाइलें संभालते हुए बोले,” अरे मैं सो कैसे गया? लगता है तबीयत ठीक नहीं है. नेहा जरा चाय बना कर ला दो.”

” जरूर अभी लाती हूं. आप काम करने बैठो परी के हाथ से भिजवाती हूं.” कह कर मैं बाहर आ गई. चाय भी भेज दी. इस के बाद कुछ देर तक वे काम करते रहे.

दोपहर में खाना खा कर वे फिर अपने कमरे में घुस गए. कुछ देर बाद मैं ने अंदर झांका तो वाकई वे लैपटॉप पर कोई फिल्म देख रहे थे और मोबाइल पर किसी से हंस कर बातें भी कर रहे थे.

मेरा पारा चढ़ गया मगर खुद को कंट्रोल करते हुए मैं उन्हें मजा चखाने का प्लान बनाने लगी.

अगले दिन सुबह ही बाथरूम से निकलते समय मैं ने गिरने का बहाना किया और जोर से चिल्ला पड़ी,” हाय मैं मर गई. पैर टूट गया मेरा. हाय सुनते हो ….”

मेरे चिल्लाने की आवाजें सुन कर पति और बच्चे दौड़े आए. घुटने के नीचे और पंजे के ऊपर वाले हिस्से को हाथों से ढकते हुए मैं चिल्ला रही थी,” हाय गिरते समय पैर उलट गया मेरा. बहुत दर्द हो रहा है. कहीं हड्डियां न टूट गई हो.”

पति महोदय ने जल्दी से मुझे गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया. वे बहुत फ़िक्रमंद नजर आ रहे थे. जल्दी से मूव ले कर आए और मेरे पैरों में लगाने लगे. बर्फ से सिकाई भी की. डॉक्टर को बुलाने की बात कहने लगे तो मैं ने यह कह कर रोक दिया कि सिकाई से थोड़ा आराम मिल रहा है. पति महोदय जितने भी घरेलू नुस्खे जानते थे वह सब आजमा रहे थे.

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तब तक बच्चे भूखभूख कहने लगे तो मैं ने पति महोदय को लपेटे में लिया,” . मुझ से पैर जरा भी हिलाया नहीं जा रहा. आज तुम ऑफिस का काम बाद में कर लेना. पहले सब के लिए नाश्ता बना लो और बच्चों को खिला दो. उन्हें नहला भी देना और फिर उन पर नजर भी रखना. बहुत शैतानी करते हैं. घर में झाड़ूपोछा भी लगा देना. इन दिनों घर की सफाई होनी बहुत जरूरी है न‌ और समय मिले तो कपड़े भी धो कर सुखा देना. मेरी उठने की हिम्मत नहीं हो रही है.

पति महोदय का चेहरा बन गया था . फिर भी मुझे लेटने को कह कर वे किचन में चले गए और काम में जुट गए.

मुझे बहुत हंसी आ रही थी. परी ने मुझे हंसते हुए देख लिया था बोली,” आप नाटक कर रहे हो ना ममा ”

‌‌”हां बेटा जरा पापा को मजा चखा लूं . यह ले तेरा रिश्वत. पापा से कुछ न कहना. ”

मैं ने परी को 2 डेयरी मिल्क दिए और कंबल  ओढ़ कर सो गई.

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-9)

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जानकीदास की चिंता और बढ़ी. मेहता परिवार अब पूरी तरह से निराश हो चुका है. ‘‘सोनी कंपनी’’ का एक तिनका भी उन के हाथ नहीं लगने वाला यह शिखा ने खुल कर समझा दिया है. बंटी अब पता नहीं किस तरह से वार करेगा पर उन को पूरा विश्वास है करेगा जरूर और उस का सीधा निशाना होगी शिखा. वो छटपटा रहे थे. उसे किसी मजबूत और सुरक्षित हाथों में सौंपने पर वो भी जिद पकड़ बैठी है शादी ना करने की. ना समझ लड़की यह नहीं समझ पा रही कि मां से बदला लेने वो अपना ही सर्वनाश कर रही है. बारबार पोती को सावधान कर रहे हैं. फिर भी उन के अंदर का भय उन को त्रस्त कर रहा. शिखा दादू के इस आतंक को जानती है पर एक भय की आशंका से घर में तो नहीं बैठ सकती वो भी जो इतनी बड़ी कंपनी की कर्णधार है. उसे पता है बंटी नीचता की सीमा कब का पार कर चुका है. सतर्क वो भी है. इसी समय एक दिन सहपाठी चंदन का फोन आया. वो एक बड़े फाइनैंस कंपनी के मालिक का बेटा है. अब परिवार का व्यापार संभाल रहा है. कभीकभार ही मिलते हैं पुराने साथी. चंदन से लगभग 1 वर्ष बाद संपर्क हुआ. शिखा भी नीरस जीवन से उकता रही थी. चहक उठी,

‘‘चंदन? तू. कहां है इस समय?’’

‘‘तेरे आफिस के एकदम पास. तू किसी मीटिंग में तो नहीं.’’

‘‘अरे नहीं. आज काम करने का मन ही नहीं कर रहा. चला आ प्लीज.’’

‘‘दस मिनट में आया.’’

वास्तव में दस मिनट में ही आ गया वो. उस के परिवार में बच्चों की शादी जल्दी कर दी जाती है. वो शिखा का हमउम्र है पर एक बच्चे का पिता हो गया है. शिखा बहुत खुश.

‘‘1 वर्ष हो गया रतना की शादी में मिले थे. उस के बाद आज जबकि दिल्ली में ही रहते हैं.’’

‘‘सभी लोग व्यस्त हैं. बता क्या चल रहा है?’’

‘‘सब ठीक है.’’

‘‘शिखा, शादी की पार्टी कब होगी?’’

‘‘शायद इस जन्म में नहीं.’’

‘‘क्या कह रही है? बंटी ने तो कुछ और बताया.’’

‘‘अगले महीने शादी है यही न?’’

‘‘हां, पर तुझे कैसे पता?’’

वो हंसी.

‘‘उस ने यही बात दर्जनों लोगों से कही है.’’

‘‘मतलब…शादी नहीं हो रही.’’

‘‘नहीं सारे संबंध तोड़ लिए हैं मैं ने.’’

‘‘थैंक गौड. मुझे बड़ी चिंता थी तेरी. ईश्वर ने बचा लिया तुझे.’’

‘‘ऐसा क्या?’’

क्या नहीं है. अपना तो सब कुछ गंवा चुके. आशा थी डूबते नाव को तेरे जहाज के साथ बांध किनारे पर ले आएंगे वो आशा भी गई. अब बंटी ने शायद अपराध की दुनिया की ओर कदम बढ़ाया है.

शिखा सामान्य रही.

‘‘वही उस का सही रास्ता है तुझे याद है वो बचपन से ही अपराधिक प्रवृत्ति का है, दूसरों को परेशान करना बैग में से सामान चुराना, झूठ बोलना, एगजाम में नकल करना. तब छोटा था अपराध छोटे होते थे अब बड़ा है तो अपराध बड़े होते हैं.’’

‘‘यह मजाक नहीं है. इस समय उस की अकेली तू है. वो जैसे भी हो तुझे पाना चाहता है.’’

‘‘मुझे नहीं मेरा सब कुछ जिस से अपने पैरों के नीचे की जमीन मजबूत हो.’’

‘‘बात एक ही है. सावधान रहना. तू खतरे में है.’’

‘‘मुझे पता है पर तुम लोग ही मेरा मनोबल हो. जाने दे क्या बंटी इस बीच मिला था तुम से?’’

‘‘नहीं बंटी तो नहीं सुकुमार मिला था. मानो हजार वाल्ट का झटका लगा शिखा को.’’

‘‘सुकुमार कब?’’

‘‘हो गए लगभग एक वर्ष. वो भी संयोग ही था. एक चित्र प्रदर्शनी थी. ऐसी जगह जाने का मन तो बहुत करता है पर जा नहीं पाता. उस दिन थोड़ा समय निकाल चला ही गया था वहां मिला था देर तक साथ बैठे, कौफी पी. मैं ने बहुत कोशिश की पर उस ने अपना पता नहीं बताया.’’ शिखा का दिल जोर से धड़क रहा था.

‘‘क्या कर रहा है? कोई नौकरी? फोन नंबर तो दिया होगा?’’

‘‘नहीं दिया, मैं ने मांगा भी तो टाल गया. पर शिखा उसे देख लगा ठीक ही है. कितना हैंडसम लग रहा था. सुंदर पहले भी था पर सहमासहमा अब तो फिल्मी हीरो जैसा स्मार्ट हो गया है.’’

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‘‘अपने विषय में कुछ भी नहीं बताया?’’

‘‘ना. पर मुझे लगा कि दिल्ली में ही है.’’

‘‘तू ने पूछा नहीं?’’

‘‘पूछा तो था. उस ने बताया कि उस घटना के बाद वो मानसिक रूप से एकदम टूट गया था यहां तक कि आत्महत्या करने का पक्का निश्चय कर लिया था कर भी लेता पर भाग्य में कुछ और लिखा था.’’

सिहर उठी शिखा.

‘‘आत्महत्या?’’

‘‘शिखा वो बंटी नहीं, उस की हर बात में गहराई और सच्चाई होती थी और लगा आज भी है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘उस ने बताया कि वो तो बचपन से अनाथ था. उस के जीने का एक ही लक्ष्य थी तू. जब तू ने ही दुत्कार दिया तो वो क्यों जीता? किस के लिए जीता?’’

‘‘फिर?’’

‘‘उसी समय उस के जीवन में एक फरिश्ता मानो स्वर्ग से उतर आए उन्होंने संभाला, जीवन का सही मार्ग दर्शन कराया, हर तरह की सहायता की, जीविका दी और समझाया कि अपने लिए नहीं भलाई और सच्चाई के लिए जीना चाहिए. मैं उन के बताए रास्ते पर ही चल रहा हूं. वो फरिश्ता मेरे भगवान से भी ऊपर हैं.’’

‘‘तो वो ठीक है?’’

‘‘उस के अंतरमन में क्या है यह तो मैं नहीं जानती ऊपर से तो ठीकठाक लगा.’’

‘‘संपर्क का कोई उपाय नहीं?’’

दो पल उसे देखा चंदन ने फिर शांत भाव से बोला, ‘‘शिखा. वास्तव में उस का पता ठिकाना, फोन नंबर कुछ भी मेरे पास नहीं है पर अगर होता भी तो मैं तुझे नहीं देता.’’

‘‘क्यों चंदन?’’

‘‘क्योंकि तू ने उस के साथ जितना बुरा किया है उस के लिए मैं ने तुझे आज भी माफ नहीं किया. बात पुरानी हो गई क्या अब बताएगी तू ने ऐसा क्यों किया था उस दिन.’’

पहली बार आंसू बाहर निकल आए शिखा के.

‘‘मुझे गलत मत समझ चंदन. मैं मजबूर थी.’’

‘‘ऐसी क्या मजबूरी थी?’’

‘‘मैं…मैं नहीं बता सकती.’’

‘‘कारण जो भी हो सुकुमार के साथसाथ तू ने अपना जीवन भी सूना कर लिया.’’

शिखा आज पहली बार खुल कर रोई.

दूसरे दिन आफिस में बैठ काम कर रही थी कि उस का मोबाइल बजा. उठाया तो एक अनजान नंबर था. बिजनैस की बात है किसी भी अनजान फोन को छोड़ना नहीं चाहिए क्या पता कोई नई पार्टी हो? उस ने फोन उठाया और उधर से बंटी की आवाज सुन सन्न रह गई. बंटी ने शिखा के फोन उठाते ही कहा.

‘‘फोन मत काटना प्लीज. मेरी बात सुनो.’’

उस ने संयम से काम लिया. शांत भाव से बोली.

‘‘कहो…’’

‘‘देखो भले ही तुम ने रिश्ता तोड़ा हो पर बचपन की दोस्ती का रिश्ता तो है ही.’’

‘‘सुबहसुबह मुझे रिश्ता याद दिलाने फोन किया वो भी किसी से मोबाइल उधार ले कर.’’

‘‘उधार लेना पड़ा तुम तो मेरा फोन उठाओगी नहीं.’’

‘‘जल्दी कहो क्या बात है?’’

‘‘बेबी. तुरंत पचास लाख न मिले तो हम सड़क पर होंगे.’’

‘‘वो तो अब भी हो एक तरह से.’’

‘‘सच कह रहा हूं बेबी. घर मार्टगेज या अभी के अभी पचास लाख नहीं मिले तो वो हमें निकाल ताला डाल देंगे. प्लीज इस बार बचा लो. कहां जाएंगे हम?’’

‘‘मेरे पास इतने पैसे अभी नहीं हैं.’’

‘‘सोनी कंपनी का नाम ही बहुत है जिसे कहोगी वही बिना पूछे पैसे दे देगा.’’

‘‘इस नाम को सच्चाई, मेहनत और इमानदारी से कमाया है. झूठ, बेईमानी और धंधेबाजी से नहीं. वो सड़कछाप लोगों की अय्याशी के लिए नहीं.’’

‘‘बेबी प्लीज. दोस्ती का वास्ता कोई धोखेबाजी का धंधा नहीं. हमारा घर नीलाम हो रहा है.’’

‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती. फाइनैंस कंपनियों की कमी नहीं है.’’

‘‘सारे दरवाजे खटखटा चुका तब तुम को…’’

‘‘सौरी मैं कुछ नहीं कर सकती.’’

‘‘तो तुम सहायता नहीं करोगी?’’

‘‘पहले ही कह दिया.’’

‘‘अच्छा नहीं किया तुम ने. मुझे जानती नहीं हो मैं तुम को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ंगा.’’ फोन बंद कर दिया शिखा ने.

‘‘दादू की तो नींद ही उड़ गई.’’

‘‘बेबी यह तो भयानक बात हो गई. बंटी किन लोगों की संगत में है उस की खबर है मुझे. हे ईश्वर अब क्या करूं? दे ही देती पैसे.’’

‘‘क्या कह रहे हो दादू? पचास लाख कोई मामूली रकम है. फिर एक बार शेर के मुंह खून लगाने का मतलब समझते हो, हम को भी अपने साथ सड़क पर ला खड़ा करेगा.’’

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‘‘पुलिस को आगे के लिए अगाह कर दें?’’

‘‘नहीं दादू. ऐसा क्या कर लेगा? घर में आफिस में वो घुस नहीं पाएगा. हम बात तक नहीं करते. रास्ते में अपनी गाड़ी में रहते हैं तो क्या करेगा वो.’’

पता नहीं मुझे बहुत घबराहट हो रही है.

‘‘ना दादू. इतना डर कर जिएंगे कैसे?’’

‘‘बंटी भयानक है. शैतान का रूप है.’’

‘‘शैतान हमेशा मारा जाता है.’’

‘‘बेटी हम दुर्बल हैं. शैतान को मारने की शक्ति नहीं है मुझ में.’’

अब शिखा भी गुस्सा हो गई.

‘‘तो मैं क्या करूं. उसे खुश करने में पूरी संपत्ति उसे सौंप दूं या उस से ब्याह कर लूं.’’

शिखा का गुस्सा देख जानकीदास सहम गए.

‘‘गुस्सा मत कर बेटा. मेरी सारी चिंता तो तेरे लिए ही है. तुझे कुछ हुआ तो मैं क्या करूंगा.’’

‘‘कहा ना वो कुछ नहीं कर पाएगा.’’

‘‘भगवान ऐसा ही करे.’’

आगे पढ़ें- पर उस दिन रात भर वो सो नहीं…

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-8)

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‘‘दादू, अब रुक जाओ. यह दोनों विदेशी आर्डर चले जाएं तब दोनों चलेंगे. कुछ नए पेड़पौधे और लगवाने हैं. मैं ‘ब्रह्मकमल लगवाना चाहती हूं.’ ’’

‘‘दोनों साथ आफिस छोड़ कैसे जा सकते हैं बेबी.’’

‘‘8-10 दिन में कुछ नहीं होगा. सभी तो पुराने स्टाफ है.’’

‘‘ठीक है हाथ का काम समाप्त हो तब चलेंगे. हां एक कहावत है ‘‘दुश्मन को कभी दुरबल मान कर मत चलना’’ इसे हमेशा याद रखना.

‘‘दादू, मैं सतर्क हूं.’’

‘‘बेटा एक प्रश्न मुझे बेचैन कर रहा है. जवाब दोगी?’’

‘‘पूछो दादू.’’

‘‘उस दिन तू ने कहा था कि सुकुमार को अपने जीवन से निकाल फेंकने का एक कारण है जो तू बता नहीं सकती. मैं समझता हूं कि वो कारण गंभीर ही होगा. प्रश्न यह है कि क्या सुकुमार को पता है कि वो कारण क्या है?’’

‘‘नहीं दादू. उसे कुछ नहीं पता तभी तो मेरे इस व्यवहार से वो इतना दुखी और आहत हुआ था.’’

‘‘सत्यानाश, अब तो बात बनने की कोई आशा नहीं.’’

‘‘भूल जाइए दादू जैसे ईश्वर मेरे हाथ में विवाह रेखा डालना भूल गए.’’

‘‘मेरी बच्ची.’’

एक हफ्ते बाद काम कर रही थी शिखा. उस का अपना मोबाइल बजा. आजकल यह बहुत कम बजता है. सहेलियों की शादी हो गई तो कुछ देश में कुछ विदेशों में घरपरिवार में व्यस्त हैं, दोस्त कुछ दिल्ली में ही हैं पर नौकरी या बिजनैस में पिल रहे हैं कुछ दिल्ली या देश के बाहर भी चले गए हैं. दादू से तो बैठ कर ही बात होती है. उस दिन के बाद से दुर्गा मौसी का भी फोन नहीं आता. फिर कौन? वो भी औफिस टाइम में इतना फालतू समय है किस के पास. मोबाइल उठा कर देखते ही मिजाज खराब हो गया ‘बंटी’. सोचा काट दे पर उत्सुकता हुई अब क्या मतलब है सुन ही लिया जाए. उस की आवाज सुन हैरान हुई. इतना भी निर्लज्ज हो सकता है कोई यह पता नहीं था उसे अपने को संयत कर शांत स्वर में कहा,

‘‘जो कहना है जल्दी से कहो. मुझे काम है.’’

‘‘मैं भी खाली नहीं हूं. मुझे दो करोड़ चाहिए.’’

‘‘तो.’’

‘‘मुझे तुम से दो करोड़ चाहिए अभी के अभी.’’

‘‘अच्छा. कोई बड़ी बात नहीं. दो करोड़ है ही कितना?’’

‘‘तो मैं कब आ जाऊं लेने?’’

‘‘पहले जरा यह बताओ कि यह दो करोड़ तुम ने कब जमा किए थे मेरी कंपनी में? क्योंकि मुझे याद नहीं इसलिए जमा करने के कागज भी लेते आना.’’

‘‘बंटी ने उद्दंडता से कहा,’’

‘‘मैं ने कोई पैसा जमा नहीं किया. मुझे चाहिए बस.’’

‘‘तो क्या मैं ने तुम से उधार लिया था? मुझे वो भी याद नहीं तो उधार का कागज लेते आना.’’

वो चीखा,

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा?’’

‘‘मैं भी नहीं, और सुनो औफिस आने की कोशिश मत करना. गार्ड इज्जत करना नहीं जानता.’’

‘‘देखो नया काम डालना है. पैसों का जुगाड़ नहीं हुआ.’’

‘‘उधार का बाजार खुला है ब्याज पर दो क्यों दस ले लो.’’

‘‘मतलब तुम नहीं दोगी.’’

‘‘समझने में इतनी देर लगी?’’

‘‘पर समझ गया. मुझे तुम ने नहीं पहचाना अभी तक.’’

‘‘गलत. पहचान गई तभी तो…’’

‘‘ना. एक दम नहीं पहचाना मैं तुम्हारे सोच से बहुत आगे हूं.’’

‘‘ईश्वर तुम को और आगे बढ़ाए मेरी शुभकामनाएं. उस ने फोन काट दिया. ओफ: मरतेमरते भी बेटी से बदला लेने मां उस के पीछे शनिचर लगा गई. कमाल की मां है. रात को पूरी बात सुन दादू की चिंता और बढ़ी. कहा उन्होंने कुछ नहीं पर देर रात तक कमरे की बत्ती जलती रही. मोबाइल पर बारबार किसी से संपर्क करते रहे.’’

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बंटी की आरे से एक प्रयास और आया इस बार वो नहीं उस के पिता मेहताजी स्वयं आए. औफिस में रोक बंटी पर थी उस के पिता पर नहीं वो औपचारिकता निभा कर ही आए. पर शिखा ने उन के आदरसत्कार में कोई कमी नहीं होने दी. कौफी पिलाया, सम्मान से पेश आई. कौफी पीतेपीते मेहताजी बाले,

‘‘बेटा, तुम ने बंटी से रिश्ता तोड़ा इस बात को ले मांबेटे गुस्सा हैं तुम से, पर मैं उन के सामने तो बोल नहीं पाता. तुम से बोल रहा हूं तुम ने एकदम ठीक निर्णय लिया. वो नालायक तुम्हारे लायक है ही नहीं. मेरा इतना बड़ा कारोबार तफरीह और लापरवाही में बरबाद कर के रख दिया.’’

‘‘मन ही मन हंस दी शिखा,’’ यह नया जाल है पर अभी समझ नहीं पा रही कि तीर किस दिशा में चलेगा. कारोबार बरबाद करने में वो बेटे के बराबर के हिस्सेदार हैं, बोली,

‘‘पर अंकल, आप तो अनुभवी बिजनैसमैन हैं. आप के रहते…’’

‘‘मैं ने तो बहुत कोशिश की बचाने की घर तक गिरवी रख दिया, पर जड़ तो मां के सिर चढ़ाए नवाबजादे ने पहले ही खोखली कर दी थी.’’

शिखा चुप रही. वो कौफी समाप्त कर बोले,

‘‘रिश्ता टूटा तो कोई बात नहीं तुम मेरी गोद खिलाई बच्ची हो तुम्हारे पिता मेरे नजदीकी दोस्त थे.’’

एक और सफेद झूठ. पापा ऐसे लोगों को एकदम पसंद नहीं करते थे. हाईहैलो तक ही सीमित होती थी उन की वार्तालाप.

‘‘वो रिश्ता तो नहीं टूटा ना टूटेगा.’’

‘‘मेहताजी के गले में स्नेह का झरना.’’

‘‘सारे रास्ते बंद हो गए तब आया हूं तुम्हारे पास?’’

सावधान हो गई शिखा.

‘‘जी अंकल, पर इस समय, मैं एक लाख भी निकालने की स्थिति में नहीं हूं.’’

‘‘नहीं नहीं तुम गलत समझ रही हो. पैसा नहीं चाहिए मुझे. मैं जानता हूं व्यापार में फैले पैसों से थोड़ा भी निकालना कितना मुश्किल होता है. पैसा नहीं चाहिए.’’

अवाक हुई शिखा. पैसा नहीं, विवाह नहीं तो फिर क्या चाहिए? यह कौन सा नया जाल है रे बाबा. मन ही मन शंकित हो उठी वो.

‘‘तो अंकलजी फिर आप…’’

‘‘अरे घबराओ नहीं मामूली बात है तुम्हें लाभ है मुझे भी थोड़ी राहत मिलेगी. असल में मेरी एक योजना है. हां मेरी योजना से बंटी को मैं ने कोसों दूर रखा है. इस में उस की परछाई तक पड़ने नहीं दूंगा यह वादा है तुम से मेरा. एक नंबर का नालायक है वो.’’ गला सूखने लगा शिखा का.

‘‘आप की योजना क्या है?’’

‘‘बताता हूं. आजकल बड़ेबड़े पैसे वाले लोग धार्मिक स्थलों के आसपास एकांत स्थानों में रिसोर्ट या काटेज बनाना पसंद करने लगे हैं. दो एक लोगों ने बनाया तो चौगुना दामों में बिक गए. तो बेटी मैं कह रहा था तुम्हारे पास तो जोशीमठ के पास चार एकड़ की जमीन पड़ी है वहां हाऊसिंग प्रोजेक्ट क्यों नहीं चालू करतीं.’’

शिखा उन का मकसद समझ गई. मुख कठोर हो गया उस का पर दादू ने सिखाया कि बिजनैस का मूलमंत्र है धैर्य, मिजाज पर नियंत्रण रखना. मधुरता से हंसी वो, ‘‘अंकलजी, वो पापा की बड़ी मनपसंद जगह थी, मेरी भी. वहां हम ने काटेज भी बना रखा है. जाते भी हैं कभीकभी.’’

‘‘कोई बात नहीं जगह तो बहुत बड़ी है.’’

‘‘उस में फूलों की खेती हो रही है. पापा ब्रह्मकमल भी लगाना चाहते थे. फिर अंकल यही काम नहीं संभाल पा रही नए काम में अभी हाथ डालना…’’

वो व्यस्त हो उठे,

‘‘अरे नहीं बेटी, मुझे पता नहीं है क्या कि तुम्हारे ऊपर कितना बोझ है. ना बेटी तुम को उंगली भी नहीं हिलानी पड़ेगी. जमीन पैसा तुम्हारा, मालकिन भी तुम ही रहोगी बस दौड़धूप, झंझटझमेला सब मैं संभाल लूंगा मुनाफा बराबर बांट लेंगे.’’

शिखा को जोर का झटका लगा उस ने समझने के लिए थोड़ा समय लिया मेहताजी ने कुछ और समझा बोले,

‘‘मुझे पता है मेरे बच्चे कि तुम क्या सोच रही हो. जानता हूं कि मेरा बेटा कितना नालायक है. तुम चिंता मत करो मेरा वादा है तुम से कि हमारे प्रोजैक्ट में उस की परछाई तक नहीं पड़ने दूंगा. पूरा काम मैं अकेला संभालूंगा.’’

मधुर स्वर में शिखा ने कहा.

‘‘आप पर मुझे उतना ही भरोसा है जितना पापा पर था. जोशीमठ की जमीन पापा का सपना था, पापा के लिए शांतिस्थल था. वहां वो ऐसेऐसे फूल लगाना चाहते थे जो आमतौर पर नहीं पाए जाते. मैं चाहती हूं उसे ठीक वैसा ही बना दूं जैसा पापा का सपना था.’’

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एकदम बुझ गए मेहताजी.

‘‘बेटा, मैं ने सोचा था.’’

तरस आया शिखा को. कुछ भी हो पापा के हमउम्र हैं. उस ने सांत्वना दी.

‘‘कोई बात नहीं. जमीन और भी मिल जाएंगे. मैं जरा हाथ के काम निबटा लू फिर सोचती हूं. थोड़ी देर में वो उठ गए शिखा काम में लग गई.’’

प्रयास: भाग-4

मेरी खामोशी भांप कर पार्थ ने कहना शुरू किया, ‘‘हमारे बच्चे का गिरना कोई हादसा नहीं था श्रेया. वह मांजी की अंधी आस्था का नतीजा था. मैं भी अपनी मां के मोह में अंधा हो कर वही करता रहा जो वे कहती थीं. उस दिन जब हम स्वामी के आश्रम गए थे तो तुम्हें बेहोश करने के लिए तुम्हारे प्रसाद में कुछ मिलाया गया था ताकि जब तुम्हारे पेट में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच हो तो तुम्हें पता न चले.

‘‘मां और मैं स्वामी के पास बैठे थे. वहां क्या हो रहा था, उस की मुझे भनक तक नहीं थी. थोड़ी देर बाद स्वामी ने मां से कुछ सामान मंगाने को कहा. मैं सामान लेने बाहर चला गया, जब तक वापस आया, तुम होश में आ चुकी थीं. उस के बाद क्या हुआ, तुम जानती हो,’’ पार्थ का चेहरा आंसुओं से भीग गया था.

‘‘लेकिन पार्थ इस में मांजी कहां दोषी हैं? तुम केवल अंदाज के आधार पर उन पर आरोप कैसे लगा सकते हो?’’ मैंने उन का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए पूछा. मेरा दिल अब भी मांजी को दोषी मानने को तैयार नहीं था.

पार्थ खुद को संयमित कर के फिर बोलने लगे, ‘‘यह मेरा अंदाजा नहीं है श्रेया. जिस शाम तुम अस्पताल में दाखिल हुईं, मैं ने मां को स्वामी को धन्यवाद देते हुए सुना. उन का कहना था कि स्वामी की कृपा से हमारे परिवार के सिर से काला साया हट गया.

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‘‘मैं ने मां से इस बारे में खूब बहस की. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मां हमारे बच्चे के साथ ऐसा कर सकती हैं.’’

अब पार्थ मुझ से नजरें नहीं मिला पा रहे थे. मेरी आंखें जल रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर सब कुछ टूट गया हो. लड़खड़ाती हुई आवाज में मैं ने पूछा, ‘‘लेकिन क्यों पार्थ? सब कुछ तो उन की मरजी से हो रहा था? क्या स्वामी के मुताबिक मेरे पेट में लड़की नहीं थी?’’

पार्थ मुझे नि:शब्द ताकते रहे. फिर अपनी आंखें बंद कर के बोलने लगे, ‘‘वह लड़की ही थी श्रेया. वह हमारी श्रुति थी. हम ने उसे गंवा दिया. एक बेवकूफी की वजह से वह हम से बहुत दूर चली गई,’’ पार्थ अब फूटफूट कर रो रहे थे. इतने दिनों में जो दर्द उन्होंने अपने सीने में दबा रखा था वह अब आंसुओं के जरीए निकल रहा था.

‘‘पर मांजी तो लड़की ही चाहती थीं न और स्वामी ने भी यही कहा था?’’ मैं अब भी असमंजस में थी.

‘‘मां कभी लड़की नहीं चाहती थीं श्रेया. तुम सही थीं, उन्होंने हमेशा एक लड़का ही चाहा था. जब से स्वामी ने हमारे लिए लड़की होने की बात कही थी, तब से वे परेशान रहती थीं. वे अकसर स्वामी के पास अपनी परेशानी ले कर जाने लगीं. स्वामी मां की इस कमजोरी को भांप गया था. उस ने पैसे ऐंठने के लिए मां से कह दिया कि अचानक ग्रहों की स्थिति बदल गई है. इस खतरे को सिर्फ और सिर्फ एक लड़के का जन्म ही दूर कर सकता है.

‘‘उस ने मां से एक अनुष्ठान कराने को कहा ताकि हमारे परिवार में लड़के का जन्म सुनिश्चित हो सके. मां को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई. उन्होंने मुझे इस बात की कानोंकान खबर न होने दी.

‘‘पूजा वाले दिन जब मैं आश्रम से बाहर गया तो स्वामी और उस के शिष्यों ने तुम्हारे भ्रूण की जांच की तो पता चला कि वह लड़की थी. अब स्वामी को अपने ढोंग के साम्राज्य पर खतरा मंडराता प्रतीत हुआ. तब उस ने मां से कहा कि ग्रहों ने अपनी चाल बदल ली है. अब अगर बच्चा नहीं गिराया गया तो परिवार को बरबाद होने से कोई नहीं रोक सकता. मां ने अनहोनी के डर से हामी भर दी. एक ही पल में हम ने अपना सब कुछ गंवा दिया,’’ पार्थ ने अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया.

मैं तो जैसे जड़ हो गई. वे एक मां हो कर ऐसा कैसे कर सकती थीं? उस बच्चे में उन का भी खून था. वे उस का कत्ल कैसे कर सकती थीं और वह ढोंगी बाबा सिर्फ पैसों के लिए किसी मासूम की जान ले लेगा?

‘‘मां तुम्हें अब भी उस ढोंगी बाबा के पास चलने को कह रही थीं?’’ मैं ने अविश्वास से पूछा.

‘‘नहीं, अब उन्होंने कोई और चमत्कारी बाबा ढूंढ़ लिया है, जिस के प्रसाद मात्र के सेवन से सारी परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है.’’

‘‘तो क्या मांजी की आंखों से स्वामी की अंधी भक्ति का परदा हट गया?’’ मैं ने पूछा.

पार्थ गंभीर हो गए, ‘‘नहीं, उन्हें मजबूरन उस ढोंगी की भक्ति त्यागनी पड़ी. वह ढोंगी स्वामी अब जेल में है. जिस रात मुझे उस की असलियत पता चली, मैं धड़धड़ाता हुआ पुलिस के पास जा पहुंचा. अपने बच्चे के को मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाला था. अगली सुबह पुलिस ने आश्रम पर छापा मारा तो लाखों रुपयों के साथसाथ सोनोग्राफी मशीन भी मिली. उसे और उस के साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उस ढोंगी को उस के अपराध की सजा दिलाने में व्यस्त होने के कारण ही कुछ दिन मैं तुम से मिलने अस्पताल नहीं आ पाया था.’’

‘‘उफ, पार्थ,’’ कह कर मैं उन से लिपट गई. अब तक रोकी हुई आंसुओं की धारा अविरल बह निकली. पार्थ का स्पर्श मेरे अंदर भरे दुख को बाहर निकाल रहा था.

‘‘आप इतने वक्त से मुझ से नजरें क्यों चुराते फिर रहे थे?’’ मैं ने थोड़ी देर बाद सामान्य हो कर पूछा.

‘‘मुझे तुम से नजरें मिलाने में शर्म महसूस हो रही थी. जो कुछ भी हुआ उस में मेरी भी गलती थी. पढ़ालिखा होने के बावजूद मैं मां के बेतुके आदेशों का आंख मूंद पालन करता रहा. मुझे अपनेआप को सजा देनी ही थी.’’

उन के स्वर में बेबसी साफ झलक रही थी. मैं ने और कुछ नहीं कहा, बस अपना सिर पार्थ के सीने पर टिका दिया.

शाम के वक्त हम अस्पताल से रिपोर्ट ले कर लौट रहे थे. मुझे टीबी थी. डाक्टर ने समय पर दवा और अच्छे खानपान की पूरी हिदायत दी थी. कार में एक बार फिर चुप्पी थी. पार्थ और मैं दोनों ही अपनी उलझन छिपाने की कोशिश कर रहे थे.

तभी पार्थ के फोन की घंटी बजी. मां का फोन था. पार्थ ने कार रोक कर फोन स्पीकर पर कर दिया.

मांजी बिना किसी भूमिका के बोलने लगीं, ‘‘मैं यह क्या सुन रही हूं पार्थ? श्रेया को टीबी है?’’

अस्पताल में रितिका का फोन आने पर पार्थ ने उसे अपनी परेशानी बताई थी. शायद उसी से मां को मेरी बीमारी के बारे में पता चला था.

‘‘पहले अपशकुनी बच्चा और अब टीबी… मैं ने तुम से कहा था न कि यह लड़की हमारे परिवार के लिए परेशानियां खड़ी कर देगी.’’

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पार्थ का चेहरा सख्त हो गया. बोला, ‘‘मां, श्रेया को मेरे लिए आप ने ही ढूंढ़ा था. तब तो आप को उस में कोई ऐब नजर नहीं आया था. इस दुनिया का कोई भी बच्चा अपने मांबाप के लिए अपशकुनी नहीं हो सकता.’’

मांजी का स्वर थोड़ा नर्म पड़ गया, ‘‘पर बेटा, श्रेया की बीमारी… मैं तो कहती हूं कि उसे एक बार बाबाजी का प्रसाद खिला लाते हैं. सब ठीक हो जाएगा.’’

पार्थ गुस्से में कुछ कहने ही वाले थे, लेकिन मैं ने हलके से उन का हाथ दबा दिया. अत: थोड़े शांत स्वर में बोले, ‘‘अब मैं अपनी श्रेया को किसी ढोंगी बाबा के पास नहीं ले जाने वाला और बेहतर यही होगा कि आप भी इन सब चक्करों से दूर रहो. श्रेया को यह बीमारी उस की शारीरिक कमजोरी के कारण हुई है. इतने वक्त तक वह मेरी उपेक्षा का शिकार रही है. वह आज तक एक बेहतर पत्नी साबित होती आई है, लेकिन मैं ही हर पल उसे नकारता रहा. अब मुझे अपना पति फर्ज निभाना है. उस का अच्छी तरह खयाल रख कर उसे जल्द से जल्द ठीक करना है.’’

मांजी फोन काट चुकी थीं. पार्थ और मैं न जाने कितनी देर तक एकदूसरे को निहारते रहे.

घर लौटते वक्त पार्थ का बारबार प्यार भरी नजरों से मुझे देखना मुझ में नई ऊर्जा का संचार कर रहा था. हमारी जिंदगी में न तो श्रुति आ सकी और न ही प्रयास, लेकिन हमारे रिश्ते में मिठास भरने के प्रयासों की श्रुति शीघ्र ही होगी, इस का आभास मुझे हो रहा था.

#coronavirus: थाली का थप्पड़

ओफ़ ! कैसी विकट परिस्थति सामने आ गयी थी. लग रहा था जैसे प्रकृति स्वयं से छीने गये समय का जवाब मांगने आ गयी थी. स्कूल-कॉलेज सब बंद, सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था. सब अपने-अपने घरों में दुबके हुये थें. आदमी को हमेशा से ही आदमी से खतरा रहा है. स्वार्थ, लालच, घृणा, वासना, महत्वकांक्षा और क्रोध, यह आदमी के वो मित्र है जो उन्हें अपनी ही प्रजाति को नष्ट करने के लिये कारण देते हैं. अधिक पाने की मृगतृष्णा में प्रकृति का दोहन करते हुये, वे यह भूल जाते हैं कि वे खुद अपने लिये मौत तैयार कर रहे हैं. जब मौत सामने नजर आती है, तब भागने और दफ़न होने के लिये जमीन कम पड़ जाती है.

आजकल डॉ आरती के दिमाग में यह सब ही चलता रहता था. वे दिल्ली के एक बड़े सरकारी अस्पताल में कार्यरत थी. वे पिछली कई रातों से घर भी नहीं जा पायी थीं. घर वालों की चिंता तो थी ही, अस्पताल का माहौल भी मन को विचलित कर दे रहा था. उनकी नियुक्ति कोरोना पॉजिटिव मरीजों के मध्य थी. हर घंटे कोरोना के संदेह में लोगों को लाया जा रहा था. उनकी जांच करना, फिर क्वारंटाइन में भेजना. यदि रिपोर्ट पाज़िटिव आती तो फिर आगे की कार्यवाही करना.

मनुष्य सदा यह सोचता है कि, बुरा उसके साथ नहीं होगा. किसी और घर में, किसी और के साथ होगा. वह तो हर दुःख, हर पीड़ा से प्रतिरक्षित है, यदि उसके पास धन है. जब उसके साथ अनहोनी हो जाती है, वह रोता है, कष्ट झेलता है. लेकिन फिर देश के किसी और कोने में एक दूसरा मनुष्य उसकी खबर पढ़ रहा होता है और वही सब सोच रहा होता है कि, यह सब मेरे साथ थोड़े ही ना होगा ! हम स्थिति की गंभीरता को तब तक नहीं समझते जब तक पीड़ा हमारे घर का दरवाजा नहीं खटखटाती. धर्म, जाति, धन और रंग के झूठे घमंड में दूसरे लोगों के जीवन को पददलित करने से भी नहीं हिचकतें. किंतु जब मौत महामारी की चादर ओढ़कर आती है तो, वह कोई भेद नहीं करती. उसे कोई सीमा रोक नहीं पाती. वह न आदमी की जाति पूछती है और ना उसका धर्म, न उसका देश पूछती है और ना उसका लिंग. मौत निष्पक्ष होती है. जीवन एक कोने में खड़ा मात्र रोता रहता है. जब आदमी विषाणु बोने में व्यस्त था, वह जीवन के महत्व को भूलकर धन जोड़ता रहा. आज धन बैंकों में बंद उसकी मौत पर हंस रहा था.

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जिन कोरोना पाज़िटिव लोगों को क्वारंटाइन में रखा गया था, उनके कमरों से भिन्न-भिन्न प्रकार की आवाजें आतीं. कोई रो रहा होता, कोई अचानक ही हंसने लगता. वहाँ के अन्य डॉक्टर, नर्स और सफाई कर्मचारी भी अवसाद का शिकार हो रहे थें. आरंभ में डॉ आरती ने वहाँ आ रहे लोगों की आँखों में देखना छोड़ दिया था. उनके पास रोगियों के आँखों में तैरते भय और प्रश्नों के लिये कोई उत्तर नहीं था. परंतु धीरे-धीरे आरती के भीतर कुछ पनपने लगा. अस्पताल को जो दीवार पीड़ा, कष्ट, भय और अनिश्चय के रंगों से रंग गयी थी, उसे उन्होंने कल्पना और आशा के रंगों से रंगना आरंभ कर दिया. यह सब आसान नहीं था. उन सभी को पता था कि वे एकजंग लड़ रहे हैं. आरती ने बस उनके भीतर जंग को जितने का हौसला भर दिया. आपस में मजाक करना, रोगियों को ठीक हो गये मरीजों को कहानियाँ सुनाना, कभी-कभी कुछ गा लेना और रोगियों के साथ एक दूसरे के हौसलें को भी बढ़ाते रहना.

पिछली दसदिनों में कोरोना के संदेह में लाये गये मरीजों की संख्या भी बढ़ गयी थी. इस कारण उसका घर बात कर पाना भी कम हो गया था. घर पर पति अमोल और उनकी दस साल की बेटी सारा थी. अमोल कमर्शियल पायलट थें. वैसे तो बेटी का ध्यान रखने के लिये हाउस-हेल्प आती थी.किंतु दिल्ली में लॉक डाउन की स्थिति होने के बाद, उसे भी उन्होंने आने से मना कर दिया था. इस वजह से अमोल को छुट्टी लेनी पड़ी थी. वे दिल्ली के एक रिहायशी इलाके में बने एक अपार्टमेंट में किराये पर रहते थें. उनका टू बी एच के बिल्डिंग के चौथे फ्लोर पर था. अथक परिश्रम से पैसे जोड़कर और लोन लेकर पिछले वर्ष ही उन्होंने एक डूप्लेक्स खरीद लिया था. इसका पज़ेशन उन्हें इसी वर्ष मार्च में मिलना था, लेकिन इस वैश्विक महामारी ने सभी के साथ उनकी योजनाओं को भी बेकार कर दिया था.

पिछली रात वीडियो कॉल में भी उनके बीच यह ही बात हो रही थी.

“थक गयी होगी ना !?” अमोल के स्वर में प्रेम भी था और चिंता भी.

“हाँ ! पर थकान से ज्यादा बेचैनी है. आस-पास जैसे दुःख ने डेरा डाल रखा है.”

अमोल की आँखों ने मास्क से छुपे आरती के चेहरे पर चिंता और पीड़ा की लकीरों को देख लिया था. आरती एक भावुक और संवेदनशील स्त्री थी. पहले भी अपने पेसेंटस के दर्द को घर लेकर आ जाया करती थी, और अब तो स्थिति भयावह थी. अपनी पत्नी की पीली पड़ गयी आँखों को देखकर अमोल का हृदय कट के रह गया.

“कल घर आने की कोशिश करो !” उसने झिझकते हुये कहा तो आरती हंस पड़ी.

“सब समझती हूँ, आजकल सभी काम अकेले करने पड़ रहे हैं तो बीवी याद आ रही है. मैं नहीं आने वाली.”

“और नहीं तो क्या ! अरे भाई, इकुवालटी का मतलब काम बांटना होता है. हम तो यहाँ अकेले ही लगे हुये हैं.” अमोल ने भी हँसते हुये जवाब दिया और बड़े लाड से अपनी पत्नी को देखने लगा था. परेशानी में भी मुस्कुराते रहना, कष्ट में रोकर फिर हंस देना और अपने आस-पास सकरात्मकता को जीवित रखना, ऐसी ही थी आरती. उसके इन्ही गुणों पर रीझकर तो अमोल उससे प्यार कर बैठा था.

“क्या देख रहे हो ?” अमोल को अपनी ओर अपलक देखते रहने पर आरती ने पूछा था.

“तुम्हें !”

“और क्या देखा !”

“एक निःस्वार्थ, निडर और जीवंत स्त्री !”

“अमोल, तुम भी ना !”

“तुम भी तो घर बैठ सकती थी, पर तुमने बाहर जाना चुना. तुम बाहर निकली ताकि, लोगों के अपने घर लौट सकें. तुम बाहर निकली ताकि, अन्य लोग घरों में सुरक्षित रह सकें. प्राउड ओफ़ यू !”

आरती ने अमोल को प्रेम से देखा और बोली, “तुम्हें याद है जब तुमने मुझे बताया था कि इटली से भारतीयों को लाने वाली फ्लाइट तुम उड़ाने वाले हो तो मैंने क्या कहा था !”

“हाँ, तुम डर गयी थी !”

“उस समय तुमने कहा था कि अगर सब डरकर घर बैठ गये तो जिंदगी मौत से हार जायेगी ! डरना स्वभाविक है, लेकिन उससे लड़ना ही जीत है ! मैं हर दिन डरती हूँ, पर फिर उसे हराकर जीत लेती हूँ !”

“आरती !”

“अमोल, मुझे भी तुम पर गर्व है. इस संकट के समय जो भी अपना-अपना कर्म पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं उन सभी पर गर्व है.”

अमोल और आरती की आँखें एक दूसरे में डूब गयी. हृदय में चिंता भी थी, प्रेम भी और गर्व भी.

“मम्मा !” पता नहीं कब सारा अपने पापा के कंधे से लगकर खड़ी हो गयी थी.

“मेरा बच्चा !” आरती की पीली आँखें थोड़ी पनीली हो गयी थीं.

“आप कब आओगी !” उस प्रश्न की मासूमियत ने आरती के आँखों पर लगे बांध को तोड़ दिया और वो बहने लगीं.

“बेटा, मैंने आपको कहा था ना कि मम्मा हेल्थ सोल्जर हैं और वो …”

“गंदे वायरस को हराने गयी हैं ! आई नो पापा ! पर आई मिस यू मम्मा !” सारा की आँखें भी बहने लगी थीं.

अमोल कभी सारा के आँसू पोंछता, कभी आरती को समझाता.

“मम्मा, सब कहते हैं कि पापा गंदे वायरस को लाये हैं और सब ये भी कहते हैं कि गंदे वायरस से लड़कर आप भी गंदी हो गयी हो ! ईशान कह रहा था कि गंदे मम्मा-पापा की बेटी भी गंदी !” इतना कहकर वो फिर रोने लगी थी.

आरती के दिल पर जैसे किसी ने तेज मुक्का मारा हो, दर्द का एक सागर उमड़ आया था. मनुष्य अन्य जीवों से श्रेष्ठ माना जाता है, जिसका कारण है, बुद्धि. जानवर हेय हैं, क्योंकि उनके पास सोचने के लिये बुद्धि नहीं होती, मात्र एक भावुक हृदय होता है. लेकिन यह बात क्या सत्य है ! क्या सभी मनुष्यों के पास बुद्धि है ! संवेदना की तो अपेक्षा मूर्खता ही है ! इंसान जब इंसानियत छोड़ दे तो उसे क्या कहना चाहिये ! दानव ! जब वो घर से दूर कोरोना जैसे दानव के संक्रमण को रोकने के प्रयास में लगी हुयी थी. घर के बाहर लोगों के दिमाग पर नफरत का संक्रमण फैल रहा था, जिसने उनसे उनकी मनुष्यता को छीन लिया था. वह यह सोचकर सिहर उठी कि उसका परिवार दानवों से घिर गया था.

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अमोल आरती के मन की उथल-पुथल को समझ रहा था. वह उसे यह सब बताकर परेशान नहीं करना चाहता था. अपार्टमेंट के लोगों की छींटाकशी कुछ अधिक ही बढ़ गयी थी. कल जब अमोल और सारा सब्जियां लेकर आ रहे थें, लिफ्ट में ईशान अपने पापा के साथ मिल गया था. उन्हें देखकर वे दोनों लिफ्ट से निकाल गये. उस समय तो अमोल कुछ समझ नहीं पाया था. उसे लगा, शायद उन्हें कुछ काम याद आ गया होगा. फिर जब रात में ईशान की बॉल उनकी बालकोनी में आ गयी, तो सारा ने आदतन बॉल को उसकी तरफ उछाल दिया था. लेकिन ईशान ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया. जब सारा ने इसका कारण पूछा तो वो रुखाई से बोला, “गंदे मम्मी पापा की बेटी गंदी !” इतना सुनते ही सारा की आँखें बरसने लगी थीं. अमोल के लिये उसे चुप कराना मुश्किल हो गया था. अब तो किराने वाला समान देने में भी आनाकानी करने लगा था. डॉक्टर होना जैसे स्वयं एक संक्रमण हो गया था. लेकिन अभी वो आरती को इन परेशानियों से दूर रखना चाहता था. वैसे भी वो अत्यधिक तनाव में काम कर रही थी.

“सारा ! छोड़ो यह सब ! तुमने मम्मा को बताया कि पी एम ने क्या कहा है ?” अमोल ने सफाई से बात बदल दी थी.

यह सारा तो नहीं समझ पायी लेकिन आरती समझ गयी थी. वह गुस्से में थी और कुछ कहने ही वाली थी कि अमोल ने उसे इशारे से चुप रहने को कहा. सारा सब कुछ भूल कर अपनी मम्मा को प्रधानमंत्री के देश के नाम किये सम्बोधन के बारे में बताने लगी थी. उस समय आरती का मन उचाट हो गया था, लेकिन सारा की खुशी देखकर उसने अपना गुस्सा दबा लिया था.

वह बोल रही थी, “मम्मा, कल शाम पाँच बजे सभी लोग अपने घरों की बालकोनी में या खिड़की में आकर आपको थैंकस बोलने के लिये थाली, ड्रम या शंख बजायेंगे ! सब लोग बाहर नहीं आ सकतें ना इसलिये अपने-अपने घरों में रहकर ही करेंगे ! कितना कूल है ना !”

आरती और अमोल ने एक दूसरे को देखा. उन्होंने कहा कुछ नहीं, पर उनकी नजरों के मध्य संवाद हो गया था. जिन्हें थाली बजाने को कहा गया था, उनमें से कितने वास्तव में मानव रह गये थें और कितने मात्र

आरती अभी पिछली रात के बारे में सोच ही रही थी कि सिस्टर सुनंदा की आवाज उसे वर्तमान में ले आयी थी.

“मैम, मास्क खत्म हो गये हैं !”

“अरे ! कल ही तो फोन किया था !” आरती की आवाज में गुस्सा था.

“जी मैम, पर अभी तक कोई जवाब नहीं आया !”

“सो रहे हैं क्या वे लोग ! उन्हें पता नहीं कि इन्फेक्शन फैलने में समय नहीं लगता !” आरती का गुस्सा अब बढ़ गया था.

“जी मैम !” सुनंदा ने सर झुका लिया था. वह कर भी क्या सकती थी. आरती ने भी सोचा उस पर गुस्सा करके क्या होगा. वह उठी और मास्क भिजवाने के लिये फोन करने लगी. तभी उसकी नजर सामने लगे टी वी के स्क्रीन पर गयी. लोग अपने=अपने घरों में थालियाँ और शंख बजा रहे थें.

“ये सब क्या हो रहा है !” आरती के होंठों से फिसल गया.

“मैम, सब हमारा धन्यवाद कर रहे हैं ! आज इतना गर्व हो रहा है ! जंग में खड़े सिपाही जैसा लग रहा है !” उसका चेहरा हर्ष और गर्व से दमक रहा था. उसके चेहरे को देखकर आरती ने सोचा “यदि इस सब से  इन सभी का मनोबल बढ़ रहा है तो यह प्रयास भी बुरा नहीं है. इस कठिन समय में हम सभी को मानसिक ताकत की बहुत आवश्यकता है.”

“हैं ना मैम !” आरती को चुप देखकर सुनंदा ने पूछ लिया था.

“हम सब सैनिक ही हैं, जो एक अनदेखे अनजान दुश्मन से लड़ रहे हैं; वो भी बिना किसी हथियार के ! तुम्हें गर्व होना ही चाहिये !” आरती ने प्रत्यक्ष में कहा था. तभी आरती जिसे फोन कर रही थी, उसने फोन उठा लिया था. उसने सुनंदा को चुप रहने का इशारा किया और बात करने लगी थी.

“क्या सर सो रहे थें क्या !?”

“अरे नहीं ! नींद कहाँ !” उधर से उस आदमी ने कहा था.

“मैं तो सोच रही थी कि इस बार अगर आपने फोन नहीं उठाया तो थाली लेकर पहुँच जाऊँगी आपके पास.” इतना कहकर आरती ने सुनंदा की तरफ देखकर आँख मार दी. सुनंदा भी मुस्कुरा दी थी.

“अरे क्या डॉक्टर मैडम आप भी !” वह खिसियानी हंसी हँसते हुये बोल था.

“अब आप हमें मारने पर तुले हैं तो, थाली ही बजानी पड़ेगी !”

“क्या गलती हो गयी डॉक्टर साहब ?”

“हमने मास्क के लिये कल ही फोन कर दिया था और अभी तक कुछ नहीं पता” आरती का स्वर गंभीर हो गया था.

“एक घंटे पहले ही भेज दिया है, पहुँचने वाला ही होगा !”

“आभार आपका !” आरती के स्वर में व्यंग्य था.

“अरे-अरे कैसी बात कर रही हैं ! आप तो बस हुक्म करो !”

“बस आप स्थिति की गंभीरता को समझो और समय पर सब कुछ भेजते रहो. बस इतना करो !” इतना कहकर आरती ने फोन पटक दिया था. सामने खड़ी सुनंदा उसके जवाब का इंतजार कर रही थी.

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“आने वाला है !” आरती की बात सुनकर सुनंदा चली गयी थी.

आरती ने सोचा कि थोड़ी देर में वो व्यस्त हो जायेगी, इसलिये सारा को विडिओ कॉल कर लेना चाहिये. वो कल ड्रम बजाने को लेकर कितनी उत्साहित थी. घर से अपने कुछ कपड़े भी मंगाने थें. आरती ने कॉल लगा लिया. कुछ देर तक फोन बजता रहा. किसी ने फोन नहीं उठाया. दो-तीन बार फोन करने पर भी जब अमोल ने फोन नहीं उठाया, वह परेशान हो गयी. थोड़ी देर बाद अमोल का फोन आ गया था.

“अमोल ! कहाँ थें तुम ! फोन क्यों नहीं उठा रहे थें !” आरती लगातार बोलती जा रही थी.

“आरती, आरती, आरती शांत हो जाओ !” अमोल ने उसे शांत कराया.

“यहाँ एक समस्या हो गयी थी.” अमोल को आवाज के कंपन को आरती ने सुन लिया था.

“कैसी समस्या? क्या हुआ अमोल !” आरती काँप रही थी.

“अपार्टमेंट के कुछ लोग ..” अमोल की आवाज की झिझक ने आरती को और परेशान कर दिया.

“कुछ लोगों ने क्या ?” वो लगभग चीख उठी थी.

“वे हमें घर खाली करने को कह रहे थें !”

“व्हाट ! क्यों ! हाउ डेयर दें !” आरती का क्रोध बढ़ गया था.

“इडियट्स का कहना था कि तुम कोरोना के रोगियों का इलाज कर रही हो तो पूरी बिल्डिंग को संक्रमण का खतरा है. मैं और सारा भी कोरोना को अपने कपड़ों में लिये घूम रहें हैं.”

“मैं आ रही हूँ ! मैं अभी आ रही हूँ ! देखती हूँ कैसे ..”

“अरे यार ! तुम चिंता मत करो. अभी सभी ठीक है. मैंने पुलिस को फोन कर दिया था. उन्होंने इन सभी की खबर ली है. डॉक्टर कह देने भर से, पुलिस वाले काफी मान दे रहे हैं. बिल्डिंग के सभी लोग ऐसे नहीं हैं. तुम चिंता मत करो. बहुत बड़ा काम कर रही हो. इन कीड़ों की वजह से अपने काम पर से ध्यान मत हटाओ.”

“अमोल ! मेरा मन नहीं लगेगा !” आरती की आवाज में डर सुनकर अमोल ने उसे विडिओ कॉल किया.

अमोल के पास बिल्डिंग के कुछ लोग बैठे थें. सारा विमला आंटी की गोद में बैठी दूध पी रही थी. आरती को देखते ही सब एक साथ चिल्लाकर बोलें, “थैंक यू”.

सारा और अमोल से कुछ देर बात करने के बाद, निश्चिंत होकर आरती ने फोन रख दिया था. किसी ने सही कहा था कि इस दुनिया का अंत अनपढ़ लोगों के कारण नहीं बल्कि पढ़े-लिखे मूर्ख अनपढ़ों के कारण होगा.

सामने लगे टी वी स्क्रीन पर सभी चैनलों में लोगों का धन्यवाद करना दिखाया जा रहा था. आरती सोच रही थी कि इन थाली पीटने में लगें लोगों में से कई तो वो भी होंगे जो अपने आस-पास रह रहें डॉक्टरों और अन्य जो इस महामारी से बचाव के काम में लगें हैं, उन्हें घृणा की दृष्टि से देखते होंगे. आरती का मन वितृष्णा से भर गया.

यह थाली की आवाज थप्पड़ बन कर कान पर लग रही थी. आरती ने आगे बढ़ कर टीवी ऑफ कर दिया.

मजाक: कोरोना ने उतारी, रोमांस की खुमारी

मैंने बर्तन धोते धोते टाइम देखा , एक घंटा हो गया था , मुझे बर्तन धोते हुए. मुझे अचानक  नीतू की पायल की आवाज सुनाई दी, मैं डर गया, आजकल उसकी पायल की आवाज से मैं पहले की  तरह रोमांस से नहीं भर उठता  , डर लगता है कि कोई काम बताने ही आयी होगी , हुआ भी वही , मुझे उन्ही प्यार भरी नजरों से देखा जिनसे मुझे आजकल डर लगता है , बोली ,” सुनो , जरा.”

ये वही दो शब्द हैं जिनसे आजकल मैं वैसे ही घबरा जाता हूँ , जैसे एक आदमी  ,”मित्रों ” सुनकर डर जाता है.

” बर्तन धोकर जरा थोड़ी सी भिंडी काट दोगे?”

मेरे जवाब देने से पहले नीतू  ने मेरे गाल पर किस कर दिया , मझे यह किस आज कांटे की तरह चुभा , बोली ,” काट दोगे न ?”

मैंने हाँ में सर हिला दिया. बर्तन धोकर भिंडी देखी , ये थोड़ी सी भिंडी है ? एक किलो होगी यह !फिर आयी , चार प्याज और लहसुन भी रख गयी , ‘जरा ये भी’, ये इसका ‘जरा’ है न , ‘मित्रों’ जितना खतरनाक है. कौन सी मनहूस घडी थी जब कोरोना के चलते घर में बंद होना पड़ा , घर के कामों और , दोनों बच्चों की धमाचौकड़ी को हैंडल करती नीतू को मैंने प्यार से तसल्ली  दी थी , डरो मत , नीतू , मैं हूँ न ,घर पर ही तो रहूँगा अब , मिलकर काम कर लेंगें , बच्चे तो छोटे हैं , वे तो तुम्हारी हेल्प कर नहीं पायेंगें , तुम्हे जो भी हेल्प चाहिए हो , मुझे बताना ,”कहकर मैंने मौके का फ़ायदा उठाकर उसे बाहों में भर लिया था , पर मुझे उस टाइम यह नहीं पता था कि मैंने अपने पैरों पर कितनी बड़ी कुल्हाड़ी मार ली है.कोरोना के चलते मेरी आँखों के  सामने हर समय छाया रोमांस का पर्दा  हट गया है , मुझे समझ आ गया है कि सेल्स का आदमी होने के बाद भी जैसी बातें करके काम निकलवाना नीतू को आता है , मैं तो कहीं भी नहीं ठहरता उसके आगे.  बंदी घर में रहती है , पर सारे गुण हैं इसमें.और यह जो इसकी भोली शकल देखकर मैं दस सालों से इस पर कुर्बान होता रहा हूँ , यह बिलकुल भी नहीं इतनी सीधी.

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पिंकी , बबलू , हमारे दो बच्चे , जिन्हे इस बात से जरा मतलब नहीं कि क्या बोलना है , क्या नहीं , जो पापा को भारी न पड़े. कल सब्जी काटते हुए मैं फ़ोन देखने लगा , जोर से बोले , ”पापा ,फ़ोन बाद में देख लेना , कहीं आपका हाथ न कट जाए.” पोंछा लगाती नीतू ने झट से हाथ धोकर मेरा फ़ोन उठा कर दूर रख दिया , ” डिअर , बच्चे ठीक कह रहे हैं , तुम्हारा ध्यान इधर उधर होगा तो मुश्किल हो जाएगी ,”कहकर उसने बच्चों से छुपा कर मुझे आँख भी मार दी , मैं घुट कर रह गया , मुझे उसकी ये आँख मारने की अदा कल पहली बार जरा नहीं भाई , चिंता मेरे हाथ की इतनी नहीं है , जितनी इस बात की है कि काम कौन करेगा.

और मैं इसे समझा नहीं पा रहा हूँ कि वर्क फ्रॉम होम का मतलब , घर का काम नहीं होता.मेरी माँ अब तो इस दुनिया  में नहीं है, होती , और देखती कि उनका राज दुलारा प्यार में क्या से क्या बन गया है , रो पड़तीं. नीतू के भोलेपन के कई राज मेरे सामने उजागर हो रहे हैं , वह अक्सर जब यह समझ जाती है कि मैं कोई काम मना कर सकता हूँ , तो वह कुछ इस तरह बच्चों के सामने  थोड़ा दुखी सी होकर बोलती है ,सीमा का फ़ोन आया था ,बता रही थी कि आजकल उसके पति ही बाथरूम धो रहे हैं , उसकी कमर में भी मेरी तरह दर्द रहता है न. ”

बस , दोनों बच्चे मेरे गले लटक जाते हैं कि पापा , आप भी धोओ न बाथरूम .”

फिर मुझे कहाँ मौका मिलता है , खुद ही कहती है ,”बच्चों , पापा को परेशान नहीं करना है , चलो , हटो , पापा अपने आप ही मम्मी की हेल्थ का ध्यान रखते हैं.”

लो , हो गया सब अपने आप तय. मेरे बोलने की गुंजाइश है क्या ?

रात को जब सोने लेटे, हालत ऐसी हो गयी है ,नीतू ने जब मुझे प्यार से देखा , मैंने डर कर करवट बदल ली , और दिन होते तो मैंने उसके ऐसे देखने पर उसे बाहों में भर लिया होता , पर आजकल बहुत सहमा सहमा रहता हूँ कि कहीं कोई काम न बोल दे , मुझे सचमुच डर लगा कि कहीं यह न कह दे कि रात के बर्तन भी अभी कर लोगे , जरा. उसने कहा , सुनो.”

मेरे मुँह से आवाज ही नहीं निकली , वह मेरे पास खिसक आयी तो भी मैंने उसकी तरफ करवट ही किये रखी, बोली , अरे , डिअर , सुनो न.”

मैंने कहा ,”बोलो.”

”नींद आ रही है ?”

मुझे समझ नहीं आया कि क्या बोलूं , कहीं मैं गलत समझ रहा होऊं , और नीतू मेरे पास कहीं रोमांस के मूड से तो नहीं आयी है ,मैंने मन ही मन हिसाब लगाया , नहीं , इस टाइम कोई काम न होगा , बच्चे सो चुके हैं , खाना , बर्तन सब हो तो चुके हैं , अब क्या काम बोल सकती है ! हो सकता है मेरी पत्नी का इरादा नेक हो.

मन में थोड़ी सी आशा लिए मैं उसकी तरफ मुड़ ही गया ,”बोलो.”

उसने मेरे गले में अपनी बाहें डाल दी ,” सुनो , आज सारा दिन काम करते करते इस समय पैरों में बहुत दर्द हो रहा है , थोड़ा सा दबा दोगे क्या ? नींद आ रही हो तो रहने दो.”

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मेरी हालत अजीब थी , ऐसे में कौन अच्छा पति मना कर सकता है ,मैं उठ कर बैठ गया , नाइटी से झांकते उसके पैर खिड़की से आती मंद मंद रौशनी में  सैक्सी से लगे , मन कितनी ही भावनाओं में डोल डोल गया , पर उसके पैरों में दर्द था , मुझे तो उसके पैर दबाने थे , मन हुआ कल से रोज शाम को पांच बजे बालकनी में थाली , ताली नहीं , चीन और कोरोना को गाली दूंगा. कोरोना , तुम्हे मुझ जैसे शरीफ पतियों की हाय लगेगी , तुमने हमारी रोमांस  की सारी खुमारी उतार दी , तुम नहीं बचोगे. मैंने देखा , नीतू सो चुकी थी , उसके चेहरे की सुंदरता और सरलता मुझे इस समय  अच्छी  लग रही थी , पर नहीं , मैंने खुद को अलर्ट किया , नहीं , इसके चेहरे पर मत जाओ ,आनंद , यह कल सुबह फिर , सुनो जरा , कहकर तुम्हे दिन भर नचाने वाली है.मैं भी उससे कुछ दूरी रख कर लेट गया , रोमांस की कोई खुमारी दूर दूर तक नहीं थी.

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा: भाग-2

कनिष्क पूरा दिन इंतजार करता रहा. लेकिन उस लड़की ने रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की. आखिर उसे खुद को रोका नहीं गया और उस ने उसे मैसेज कर दिया, ‘हाय, आई एम कनिष्क. मैं ने तुम्हें मैट्रो में देखा था, आज तुम मेरे बगल में आ कर बैठी भी थीं. मैं तुम से बात करना चाहता था. और हां, मैं ने तुम्हारी कुछ तसवीरें भी ली थीं, तुम इतनी सुंदर लग रही थीं कि

मैं खुद को रोक नहीं पाया,’ कनिष्क ने इतना लिखा और तसवीरें उस लड़की को भेज दीं.

5 मिनट बाद ही उधर से रिप्लाई आ गया, ‘हाय, ये तसवीरें बहुत खूबसूरत हैं, थैंक्यू.’ कनिष्क तो मानो रिप्लाई देख कर उछल पड़ा. उस ने लिखा, ‘ओह वेल, आई एम ग्लैड. बाई द वे तुम्हारा नाम क्या है?’

‘रीतिका,’ रिप्लाई आया.

‘तुम्हारा नाम भी तुम्हारी तरह ही खूबसूरत है,’ कनिष्क ने लिखा और उस की मुसकराहट मानो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी.

‘हाहाहा, इतनी तारीफ?’

‘तुम हो ही तारीफ के काबिल, वैसे मेरा नाम कनिष्क है. मैं हंसराज कालेज का स्टूडैंट हूं, और तुम?’

‘गार्गी कालेज, सैकंड ईयर बीकौम,’ रीतिका ने उधर से लिखा.

‘ओहह, इंप्रैसिव.’

‘थैंक्स.’

कनिष्क सोच में पड़ गया कि अब क्या लिखे. उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि अब आगे क्या कहे सो, वह पूछ उठा, ‘तुम ने अपना यूजरनेम टोस्का क्यों रखा?’

‘मुझे इस का अर्थ पसंद है, मैं खुद को इस शब्द से कनैक्ट कर पाती हूं.’

‘मैं ने इस शब्द को गूगल किया था. यह रूसी शब्द है जिस का अर्थ है अनंत दुख, दर्द, पीड़ा. आखिर इतने दुखी शब्द से तुम कनैक्ट कैसे कर लेती हो?’

‘बस, कर लेती हूं, कोई विशेष कारण नहीं है इस के पीछे.’

‘अच्छा, तुम्हें किताबें पढ़ना भी पसंद है न?’

‘हां, बेहद.’

‘अच्छा सुनो?’ कनिष्क ने लिखा.

‘कहो,’ रीतिका ने कहा.

‘तुम ने अब तक मेरी रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की है, मैं तुम्हारी प्रोफाइल नहीं देख पा रहा हूं.’

‘हां, नैटवर्क में कुछ प्रौब्लम है शायद. नैटवर्क ठीक होते ही एक्सैप्ट कर लूंगी.’

‘ओह, कोई बात नहीं. वैसे एक बात कहूं?’

‘कहो.’

‘तुम्हें देखते ही तुम पर क्रश आ गया था मुझे,’ कनिष्क खुद को कहने से रोक नहीं पाया.

‘सचमुच?’

‘हां, सच. तुम ने तो मुझे बिलकुल नोटिस नहीं किया था वैसे.’

‘ऐसा तो कुछ नहीं है. तुम अपना फोन हाथ में ले कर बैठे थे, बारबार मेरी तरफ देख रहे थे. तुम ने ग्रीन शर्ट पहनी थी चैक वाली. ब्लैक स्पोर्ट्स शूज और ब्लू जींस. मैं तुम्हारे बगल में आ कर बैठी थी तो तुम्हारे चेहरे पर मुसकान आ गई थी.’

रीतिका का मैसेज देख कर कनिष्क सातवें आसमान पर पहुंच गया. वे दोनों रातभर एकदूसरे से बातें करते रहे. कौन सा गाना पसंद है, खाने में क्या पसंद है, कालेज की ऐक्टिविटीज, दोस्तयार. लगभग हर टौपिक पर दोनों बातें करते रहे. देखतेदेखते कब सुबह के 4 बज गए, दोनों को पता ही नहीं चला.

‘वैसे किताबें किस तरह की पढ़ती हो तुम, फिक्शन या नौनफिक्शन?’

‘दोनों ही, लेकिन मुझे फिक्शन ज्यादा पसंद है.’

‘ऐसा क्यों? हकीकत से बेहतर कल्पनाएं लगती हैं तुम्हें?’

‘हकीकत मुझे डराती है.’

‘अच्छा, फिर बीकौम क्यों ली तुम ने? उस में तो सब हकीकत ही है, कुछ कल्पना नहीं है.’ कनिष्क ने चुटकी लेने के अंदाज में पूछा.

‘हाहा, टौपर थी मैं स्कूल में और फर्स्ट सैमेस्टर की भी.’

‘तुम तो समझदार भी हो मतलब.’

‘वो तो मैं हूं.’

‘कल मिलोगी?’ कनिष्क ने मैसेज किया. उधर से मैसेज का जवाब आया, ‘सुबह

8:55, सुभाष नगर मैट्रो स्टेशन.’

‘मिलते हैं,’ आखिरी मैसेज में कनिष्क ने छोटा सा दिल भी भेज दिया और उधर से भी रिप्लाई में दिल आया तो उस की खुशी और बढ़ गई.

अगली सुबह कनिष्क 8:40 पर ही मैट्रो पर पहुंच गया. वह इंतजार में था कि कब रीतिका आए और वह उस का चेहरा देखे, उस से हाथ मिलाए, बातें करे. उस ने सुबह से अब तक रीतिका को कोई मैसेज नहीं भेजा. उसे लगा, कहीं वह ज्यादा उत्सुकता दिखाएगा तो रीतिका उसे डैसप्रेट न समझने लगे. वह मैट्रो में नवादा से चढ़ा था और लगभग 5 मिनट में ही सुभाष नगर पहुंच गया था. वह सुभाष नगर मैट्रो स्टेशन के प्लैटफौर्म पर रखी बैंच पर बैठ गया. उस की नजरें बारबार रीतिका के इंतजार में दाईं ओर मुड़ रही थीं.

वह सोच रहा था कि रीतिका से क्या कहेगा, हाय कैसी हो, नहीं यह नहीं. हाय यू लुक ब्यूटीफुल, नहीं यह तो बड़ा फ्लर्टी साउंड कर रहा है. हैलो, आज तो तुम कल से भी ज्यादा सुंदर लग रही हो, हां परफैक्ट, कनिष्क सब सोच ही रहा था कि एक लड़की उस के सामने आ कर रुक गई. वह समझ गया कि यह रीतिका है. आज उस ने पीला टौप पहना हुआ था, बाल खोले हुए थे और चेहरे पर अब भी मास्क था. रीतिका की आंखें खुशी से चमचमाती हुई दिख रही थीं. कनिष्क की आंखों में उस से मिलने की ललक साफसाफ झलक रही थी.

‘‘हाय,’’ रीतिका ने कहा और हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘हैलो,’’ कनिष्क ने कहते हुए हाथ मिलाया. वह कुछ और कह पाता उस से पहले ही रीतिका ने अपना मास्क उतारना शुरू कर दिया. कनिष्क का चेहरा अचानक पीला पड़ गया. वह रीतिका का चेहरा देख कर दंग रह गया. रीतिका के होंठों का आकार बिगड़ा हुआ था, वे कटेफटे हुए लग रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो कोई हादसा हुआ हो उस के साथ. उस की सारी खूबसूरती उस के होंठों की बदसूरती से धरी की धरी रह गई. कनिष्क की आंखें फटी हुई थीं. कुछ कहने के लिए जैसे उस की जबान पर ताले पड़ गए थे.

रीतिका शायद समझ चुकी थी कनिष्क के मन का हाल. उस ने कहा, ‘‘ओह, मैं अपने नोट्स घर भूल गई हूं आज सबमिट करने थे कालेज में. मैं तुम से बाद में मिलती हूं, तुम जाओ कालेज के लिए लेट हो जाओगे वरना,’’ रीतिका ने बनावटी मुसकराहट के साथ कहा.

कनिष्क ने ओके कहा और मैट्रो उस के सामने आ कर रुकी ही थी कि वह उस में चढ़ गया. पूरे रास्ते वह सोचता रहा कि अब क्या करे. अब उसे रीतिका की खूबसूरती नजर नहीं आ रही थी बल्कि उस के चेहरे का वह दाग बारबार उस की आंखों के सामने आ रहा था. उस ने फोन चैक किया तो रीतिका उस की फौलो रिक्वैस्ट एक्सैप्ट कर चुकी थी. उस ने उस की प्रोफाइल देखी तो एक बार फिर उस के होंठों की जगह मांस के लोथड़े को देख उस का मन खीझ उठा.

आगे पढ़ें- वह कालेज पहुंचा और अपनी…

ज़िन्दगी-एक पहेली: भाग-6

पिछला भाग- ज़िन्दगी–एक पहेली:  भाग-5

अनु की मम्मी हॉस्पिटल के बाहर खड़ी रो रहीं थी लेकिन उन्हें पता नहीं था कि एमरजेन्सी वार्ड में क्या चल रहा है.अनु के पापा बाहर आए और अपने ड्राइवर से कहा कि अनु की  मम्मी को लेकर घर चले जाओ और अपनी पत्नी  से बोले,”  अनु कि तबियत  ज्यादा खराब है तो दिल्ली ले जाने की  तैयारी करो”.अनु कि मम्मी उनका चेहरा देखकर समझ तो गयी थी कि कुछ गलत है उन्होने जिद की तो उन्होने डांटकर वापस घर भेज दिया. अविरल दरवाजे पर खड़ा अपनी दीदी का इंतज़ार  कर रहा था. जैसे ही गाड़ी दिखाई दी उसे लगा अनु आ गयी है पर जब मम्मी को रोकर गाड़ी से उतरते हुए देखा तो उसे डर  लगा उसने तुरंत पूंछा… “मम्मी दीदी कहाँ है?” लेकिन उन्होने कहा कि उसे लेकर दिल्ली जाना है, तैयारी करो.फिर ड्राईवर गाड़ी लेकर हॉस्पिटल चला गया.अंदर अनु की  मम्मी रो रही थी और बाहर अविरल एकटक गाड़ी का इंतज़ार कर रहा था.

अब आसपास के लोग भी घर में जुटने शुरू हो गए थे.अविरल को बहुत डर लग रहा था.थोड़ी देर बाद गाड़ी फिर दिखाई दी.अविरल वही खड़ा हो गया.अविरल के पापा ने कहा कि बेटा अनु बेहोश है दिल्ली लेकर चलना है.अविरल वहीं खड़ा रहा .आसपास के कुछ लोग आए और अनु को उठाकर अंदर ले आए और जमीन में चादर बिछाने को बोले तो अविरल तुरंत लड़ गया कि दीदी को जमीन में क्यूँ लिटा रहे हो, ऊपर बेड पर लिटाओ न.लेकिन अनु को जमीन में लिटा दिया गया.आसपास के लोगो ने अविरलको चिपका लिया और बोले कि अनु तुम्हें छोड़कर बहुत दूर चली गयी.अविरल ने अनु को देखा और तेजी से भागकर अंदर भागा और सारी रात बाहर नहीं आया.

अविरल के पापा के तो जैसे सारे आँसू सूख से गए थे. वो एकदम पत्थर के बुत कि तरह अनु को एकटक देखते रहे .उनके मुंह से बस एक ही शब्द निकला “अब मेरा इलाज़ कौन करेगा ‘बिट्टी’ “.

अविरल की  माँ भी एकदम बेसुध हो चुकी थी.कुछ ही समय में अविरल की  मौसी जो दिल्ली में रहती थी अपने पूरे परिवार के साथ आ गयी थी.सब एकदम सदमे में थे .

सुबह हो चुकी थी.जैसे- जैसे लोगों को पता चला लोग भागते हुए पहुंचे.आसू  और अमित भी अविरल के घर पहुंचे.सुमि को जब पता चला तो वह अविरल के घर जाने को हुई लेकिन सामाजिक बंधनों के कारण वह तड़प कर रह गयी और अपने भाई को संभालने नहीं आ पाई.

अब अनु की बॉडी ले जाने का समय आ चुका था.अविरल अपनी  दीदी से चिपक गया .बोला,” दीदी ठीक हो जाएगी ,इसको कहाँ ले जा रहे हो? सबने गाड़ी में उसकी बॉडी रख ली.सब लोग गाड़ी में बैठ गए.लेकिन अविरल के पापा उनके साथ नहीं गए.उन्होने कहा,” मैंने अपनी बिट्टी को अपनी गोद में खिलाया है.मै उसे पानी में कैसे बहा सकता हूँ? (एक माँ बाप के लिए इससे बड़ा कोई दुःख नहीं होता की उसकी संतान उनके आँखों के सामने ही दम तोड़ दे )

अविरल अपनी दीदी की बॉडी के पास गाड़ी में बैठ गया था.वो बार- बार कह रहा था की ..”दीदी को इतनी कसके क्यों बांध रखा है ?इसका दम घुट रहा होगा”.

अब सब लोग नदी के किनारे पहुँच गए थे .अब अविरल को अनु को अंतिम विदाई देनी थी.जब अनु को पानी में बहाया जा रहा था तो अविरल ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था .वह बार- बार कह रहा था की,”दीदी को पानी  से बहुत डर लगता है ,ये मत करो.ये सुन कर वहाँ मौजूद सब लोगों की आंखे भर आई.अविरल के चचेरे भाइयों ने उसको संभाला और कहा,” अब दीदी को जाने दो“.

शायद ही इस दिन से ज्यादा मनहूस दिन किसी के जीवन में कभी आता होगा.सब लोग अनु को  हमेशा के लिए  विदा करके घर आ गए .

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उसी रात अविरल की मौसी लोगों को वापस दिल्ली भी जाना था .अविरल रो-रोकर उन सबसे मिन्नते कर रहा था की आप लोग मत जाओ ,लेकिन उन्होने किसी जरूरी काम का कहकर उसे समझा दिया.वो उससे बोले अभी 4-5 दिन में हम फिर आ जाएंगे.और फिर वो सब उसी रात वापस दिल्ली लौट गए.

अविरल और उसका परिवार बहुत अकेला हो चुका था.उसे अपने साथ साथ अपने माँ-बाप का ख्याल भी रखना था.अनु की कही हुई बाते उसे रह-रहकर याद आ रही थी .उसके आँसू तो जैसे सूखने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

कुछ समय बाद शुद्धि का दिन आ गया.घर में पूजा थी.दिल्ली से भी मौसी लोग देहारादून आ गईं.जब अविरल की मौसी ने उनकी हालत देखी  तो उन्होने अविरल के परिवार को अपने साथ दिल्ली ले जाने का निश्चय किया.

और अगले ही दिन अविरल की मौसी उन सबको अपने साथ  दिल्ली ले आई.मौसी के 6 लड़के थे जिसमें बड़े लड़के का नाम कार्तिक था और छोटे का नाम अमन था.दोनों ही अविरल और अनु से उम्रमें काफी बड़े थे.उन चारों में आपस में सगे भाई – बहनों सा प्यार था.अविरल, कार्तिक आपस में काफी घुले मिले थे और अमन और अनु आपस में.बचपन से ही हर गर्मियों की छुट्टियों में अविरल और अनु घूमने के लिए मौसी के घर जरूर आते थे.

कार्तिक और अमन अनु के कॉलेज गए इन्फॉर्म करने के लिए तो किसी को भी अनु के छोड़ जाने का विश्वास नहीं हुआ.उसकी रूममेट्स रोने लगीं.थोड़ी देर बाद वो अनु का सारा समान लेकर आई जिसमे अनु का कॉलेज वाला बैग  और कुछ कपड़े थे.

अनु का सारा सामान लेकर अमन और कार्तिक घर वापस आ गए  और सारा समान अनु के मम्मी-पापा को दे दिया.अविरल अनु का बैग  लेकर अलग कमरे में चला गया और बैग  से चिपककर फूट- फूट कर रोने लगा.तभी कार्तिक ने आकर अविरल को संभाला और साथ बाहर ले आए.1-6 दिनों बाद अविरल ने अनु का बैग  खोलकर देखा तो उसमे अविरल को एक  डायरी मिली.जब उसने डायरी पढ़ना शुरू किया तो उसे अपनी आँखों पर  विशवास ही नहीं हुआ.

अगले पार्ट में हम जानेंगे कि अनु ने डायरी में ऐसा क्या लिखा था जिसे पढ़कर अविरल के चेहरे का रंग ही उड़ गया?

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-7)

पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-6)

दादू को आखिर लंदन जाना ही पड़ा. शिखा उन को भेजना नहीं चाहती थी, स्वयं ही जाती. लंदन उस की परिचित जगह है. जानने वाले भी कम नहीं हैं पर यहां जैकेटों के सप्लाई को ठीक समय पर भेजना है, उन की क्वालिटी पर नजर रखना है दुश्मनों की कमी नहीं इतना बोझ दादू के लिए संभालना जरा कठिन था और जब से बंटी को साफ मना कर आई है तब से उसे पूरा विश्वास है कि वो चुप नहीं बैठेगा, कहीं से ना कहीं से नुकसान पहुंचाने की कोशिश तो करेगा ही, ऐसे में दादू को अकेले छोड़ना…लंदन पार्टी से बातचीत पूरी हो चुकी है. पावर आफ एटौर्नी ले कर गए हैं काम हो जाएगा. शिखा अब बाहर की पार्टियों में ज्यादा रुचि ले रही है. इधर बंटी की तरफ से उस के मन में आशंका बढ़ी है बहुत सतर्क रहना पड़ रहा है. वो सोच रही थी दुर्गा मौसी के घर की घटना को हफ्ता बीता पर बंटी चुप क्यों है? सुलह करने की कोशिश क्यों नहीं की? रविवार का दिन था थोड़ी देर से उठी वो. रात देर तक काम किया था. दादू से बात भी हुई काम बन गया, साईन हो गए कल सुबह चले आएंगे. यह भी बड़ी डील है शिखा घबरा रही थी पर दादू ने साहस जुटाया, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं, हम सोचते हैं हम कर रहे हैं पर करने वाला तो कोई और है.’’

लच्छो मौसी ने आज उस के पसंद का नाश्ता बनाया है, आलू परांठा, मूली के लच्छे, बूंदी का रायता. वो शाकाहारी नहीं है पर मांस अंडा ज्यादा पसंद नहीं करती.

दादू तो पूरी तरह शाकाहारी हैं. शिखा मेज पर बैठी ही थी कि दुर्गा मौसी आ धमकी. शिखा को उन का आना बुरा नहीं लगा. अकेली बैठ खाना अच्छा नहीं लगता. उस ने मौसी का हार्दिक स्वागत किया.

‘‘आओ मौसी. नाश्ता करो.’’

तभी लच्छो गरम परांठा ले कर आई. सुगंध से कमरा महक उठा.

‘‘मौसी, एक और प्लेट ला दो.’’

दुर्गा मौसी तुरंत बैठ कर गोद में नैपकिन बिछाते बोली, ‘‘तेरे दादू नाश्ता नहीं करेंगे आज?’’

सतर्क हुई शिखा, मौसी उस की सगी है पर निकटता है मेहता परिवार से क्योंकि रुचि और सोच उन लोगों से ही मिलती है इन की. एक प्लेट में परांठा डाल कर ही लाई लच्छो रख गई मौसी के सामने. वो तुरंत टूट पड़ी प्लेट के ऊपर.

‘‘तेरे दादू क्या दिल्ली से बाहर गए हैं?’’

‘‘नहीं. द्वारका में उन के गुरुभाई के घर कुछ पूजा प्रवचन है.’’

‘‘हूं.’’

पूरी कटोरी भर रायता पी फिर से कटोरी भरती बोलीं, ‘‘कामकाज, जिम्मेदारी कुछ है नहीं तो यह सब फालतू काम करो.’’

‘‘यह फालतू काम तो है मौसी पर साफ शुद्ध भगवान का नाम तो है. जिम्मेदार कामकाजी लोग तो शराब की पार्टी करते चार सौ बीवी का प्लान बनाते उस से तो अच्छा है.’’

मौसी इतनी भी मूर्ख नहीं कि व्यंग के तीर की दिशा ना समझे पर इस समय अपने मिजाज पर कंट्रोल करना बहुत जरूरी है. तुरंत प्रसंग टाल दिया.

‘‘बेबी, बंटी की ओर देख कर छाती फटती है मेरी.’’

‘‘अरे क्या हुआ? हाथपैर टूट गए क्या? हां गाड़ी बड़ी तेज चलाता है. असल में पीने के बाद कंट्रोल नहीं कर पाता. एक ड्राइवर रखने को कहो उसे.’’

गुस्सा पी लिया मौसी ने.

‘‘तू समझती क्यों नहीं, तू ने बड़ा दुख दिया है उसे. बचपन से उस ने तुझे अपना समझ, प्यार किया.’’

‘‘अपना समझा होगा, क्योंकि किसी भी चीज को कोई भी उस की अपनी चीज समझ सकता है पर प्यार का नाम मत लो इस शब्द का मतलब भी नहीं पता उसे.’’ नरम स्वर में दुर्गा मौसी ने कहा.

‘‘उन को आस थी कि तू बंटी की दुलहन बनेगी और यह कोई खयाली पुलाव भी नहीं. मेरे सामने मंजरी ने वचन दिया था तभी तो…’’

‘‘मौसी, उस समय तुम तीनों ही नशे में धुत् थीं शायद बंटी भी गिलास ले साथ दे रहा था.’’

‘‘पर वचन तो दिया ही था.’’

‘‘बारबार तुम ‘वचन’ शब्द को मत दोहराओ तुम्हारे मुख से शोभा नहीं देता. यह बड़ा पवित्र शब्द है उसे गंदे शराब के गिलास में मत बोलो. सुनो नशे के धुन में किए काम को कानून भी मान्यता नहीं देती. मैं ने तो साफ कह दिया है कि मैं इस बात को नहीं मानती.’’

‘‘पर अपनी मां का तो मान रख.’’

‘‘मां. नहीं मां के प्रति मेरे मन में कोई भी अनुभूति नहीं है और मां ने कभी बेटी का प्यार दिया है मुझे.’’

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‘‘गुस्सा मत कर मैं तो यों ही कह रही थी. ठीक है बंटी ना सही कोई दूसरा लड़का.’’

‘‘चुना एक बार ही जाता मौसी बारबार नहीं.’’

‘‘बेटा तू ही सोच वो अनाथ, गरीब आश्रम में पला लड़का तेरे स्तर, तेरे परिवार में बेमेल नहीं था?’’

‘‘बंटी किस बात से मेल खा रहा, शराबी, चरित्रहीन, सड़क पर आ कर खड़े होने वाले भ्रष्ट व्यापारी परिवार…’’

मौसी के शब्द ही खो गए. जाते समय बोल गई, ‘‘बेबी, तू माने या ना माने पर मुझे तेरे लिए बड़ी चिंता है.’’

‘‘इस का सीधा मतलब है कि तुम भी बंटी को विश्वास नहीं करती वो अपने मतलब के लिए मेरे साथ कुछ भी गलत कर सकता है. हद से नीचे जा सकता है. मौसी के पास इस का कोई उत्तर नहीं था. वो थोड़ी देर चुप रह कर बोली, पर बेबी, तेरे दादू और कितने दिन के… तू अकेली कैसे?’’

‘‘तब सोचूंगी कुछ.’’

‘‘वो…वो लड़का… मिलता है कभी?’’

‘‘सुकुमार? नहीं वो वचन का पक्का है.’’

‘‘मैं चाहती हूं तू अकेली ना रहे?’’

‘‘कल किसी को नहीं पता पर जो भी हो बंटी नहीं.’’

दुर्गा मौसी चुप हो गई.

‘‘लंदन’’ का आर्डर मिल गया. काम बढ़े पहले सोचा था हाथ का काम निबटा दूसरे काम में हाथ डालेगी पर ऐसा हुआ नहीं समय सीमा इन की भी कम है, टैंडर बुलाना पड़ा. दादू ने लौट कर पूरी घटना सुनी तो बहुत तनाव में आ गए, ‘‘बेटा, मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘नहीं दादू, अगर चार दुश्मन हैं तो आठ दोस्त भी हैं.’’

‘‘समय पर कोई पास ना हुआ तो?’’

‘‘आप क्या सोच रहे हैं?’’

‘‘यही इस समय वो बौखलाए हुए हैं, डेसपरेट हैं.’’

‘‘कितना बड़ा कारोबार था. हमारे साथ टक्कर लेने वाले थे. सब बरबाद कर दिया.’’

‘‘उस के पीछे एक कारण है दादू.’’

‘‘क्या?’’

‘‘अय्याश तो यह लोग पहले से ही थे, दिमाग में मुफ्त में कंपनी को पाने का सपना पाल बैठे.’’ जानकीदास को चिंता थी शिखा की सुरक्षा की.

‘‘बेबी, एक गार्ड रख दूं?’’

‘‘क्या दादू? इतना भी क्या डरना.’’

‘‘यह अच्छे लोग नहीं हैं. बंटी की संगत बहुत बुरी है.’’

‘‘मैं अपनी गाड़ी में रहती हूं.’’

‘‘उसी का डर है. औफिस गार्ड को मना कर दूंगा कि बंटी अंदर ना आने पाए.’’

‘‘जैसा आप ठीक समझो.’’

‘‘सोच रहा था एक बार जोशीमठ हो आता पर.’’

‘‘जोशीमठ’’ के थोड़ा नीचे गंगा किनारे एक गांव में अति मनोरम स्थान पर पापा ने चार एकड़ जमीन ली थी. कहते थे.

‘‘तेरी शादी के बाद मैं वहां चला जाऊंगा. यहां तो मैं बस तेरे लिए पड़ा हूं. फिर वहां मैं फूलों की खेती करूंगा और शांति से रहूंगा.’’

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वहां एक सुंदर आरामदेह काटेज भी बनवाया था. कभीकभी जा कर रहते भी थे. उसे भी साथ लाना चाहते पर मम्मा के डर से कभी नहीं ले जा पाए. अब दादू महीना दो महीना में जाते हैं. फूलों का बगीचा भी लगाया है. माली है एक केयर टेकर परिवार सहित आउट हाउस में रहता है. झड़ाईसफाई करते हैं और दादू जब रहते हैं तब सेवा करते हैं. नई उम्र का जोड़ा है, सीधेसादे भले लोग.

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#coronavirus: Work From Home का लड्डू

कल रात औफ़िस से ‘वर्क फ़्रौम होम’ का  मेल मिला तो खुशी से मेरा दिल यूं बाग-बाग हो गया, मानो सुबह दफ़्तर जाते हुए मैट्रो में चढ़ते ही खाली सीट मिल गयी हो. एक तो पिछले कुछ दिनों से धर्मपत्नी, दिव्या का कोरोना पर कर्णभेदी भाषण और फिर हाल-चाल पूछने के बहाने मेरे औफ़िस पहुंचने से पहले ही लगातार कौल करने का नया ड्रामा ! उस पर आलम यह कि मुझे हल्की सी खांसी हुई नहीं कि क्वारंटिन का हवाला दे मेरी सांसों को अटका देना ! मेरी हालत किसी बौलीवुड हीरोइन की ज़ीरो फ़िगर से भी पतली हो गयी थी. वैसे वर्क फ़्रौम होम मेरे लिए भी उस गुलाबजामुन की तरह था, जिसे किसी दूसरे की प्लेट में देखकर मैं हमेशा लार टपकाता रहता था. इस और्डर से मेरे भीतर की प्रसन्नता उछल-उछल कर बाहर आ रही थी.

सुबह की बैड-टी के बाद आज के काम पर विचार कर ही रहा था कि “प्लीज़ आज ब्रैकफ़ास्ट आप बनाओ न!” कहते हुए दिव्या ने मधुर मुस्कान के साथ एक फ्लाइंग किस मेरी ओर उछाल दिया. यह बात अलग है कि मुझे वह चुम्मा ज़हर बुझे तीर सा लगा और घनी पीड़ा देता हुआ सीने में चुभ गया. अच्छा बहाना कि रोज़ एक वर्षीय बेटे नोनू की नींद टूट जाने के डर से पांच मिनट में नहाकर आ जाती हूं, आज फुल बौडी एक्सफोलिएशन करते हुए नहाऊंगी तो कम से कम आधा घंटा तो लग ही जायेगा.

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औफ़िस में बौस के आगे सिर झुकाने की आदत का लाभ हुआ और मैं बिना किसी ना-नुकुर के नाश्ता बनाने को राज़ी हो गया. मैंने औफ़िस में हर काम शोर्टकट में निपटा डालने वाला अपना दिमाग यहां भी लगाया और कम से कम परिश्रम और समय में तैयार रेसिपीज़ खोजने के लिए इंटरनैट खंगालना शुरू कर दिया. मेरी मेहनत रंग ले ही आयी और पोहा बनाने की विधि देख मेरी आंखें ऐसे चमक उठीं जैसे किसी छात्र के प्रश्न-पत्र में वही प्रश्न आये हों, जिसकी चिट बनाते हुए उसने पूरी रात नैनों में काट दी हो.

नाश्ते के बाद लैपटौप लेकर दूसरे कमरे में बैठा ही था कि मेरे बौस का फ़ोन आ गया. आवाज़ सुन दिव्या उस कमरे में चली आई और कुछ देर वहां ठहरने के बाद माथे पर त्योरियां चढ़ा मुझे घूरती हुई वापिस निकल ली. ढेर सारा काम देकर बौस ने फ़ोन काट दिया. मुझे मदद के लिए अपने असिस्टेंट को फ़ोन करना था. बेग़म डिस्टर्ब न हों इसलिए मैंने दरवाज़े को आधा बंद कर दिया, लेकिन वह भी अपने कान मेरे कमरे में लगाये थी. फ़ौरन कमरे का दरवाज़ा खोल भीतर झांकती हुई बोली, “काम कर लो न ! क्यों गप्पें मारकर अपना समय ख़राब कर रहे हो?”

“अरे, काम की ही बात कर रहा हूं.” मोबाइल को अपने मुंह से दूर करते हुए मैं बोला.

तिरछी नज़रों से मेरी और देखते हुए अपनी हथेली मुंह पर रख खी-खी करती हुई वह कमरे से चली गयी. उसकी भाव-भंगिमाएं कह रही थीं कि ‘आज पता लगा आप औफ़िस में भी कुछ काम नहीं करते !’

फ़ोन पर असिस्टेंट को काम समझाते हुए अपना दिमाग आधा खाली करवाने के बाद मैं लैपटौप में खो गया. दोपहर हुई और पेट में चूहे मटरगश्ती करने लगे. दिव्या को पुकारा तो वह गोदी में नोनू को लिए अन्दर घुसी. न जाने क्यों नोनू मुझे देख ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा. मैंने पुचकारते हुए अपने हाथ उसकी और बढ़ाये तो दिव्या बोल उठी, “आपको इस समय घर पर देख नोनू डर गया है.”

“क्यों सन्डे को भी तो होता हूं घर पर.”

“इस समय आप कुछ ज़्यादा ही टैंशन में हो, शक्ल तो बिल्कुल ऐसी लग रही है जैसे डेली सोप की किसी संस्कारी बहू की सास के चिल्लाने पर हो जाती है. ऐसा करो, या तो लंच आप तैयार करो या फिर मैं जब तक खाना बनाती हूं आप नोनू के खिलौनों में से किसी कार्टून करैक्टर का मास्क लेकर लगा लो. तभी खुश होकर खेलेगा यह आपके साथ !”

मरता क्या न करता ! दौड़कर बैडरूम में गया और दरवाज़े के पीछे लगे खूंटों से शिनचैन का मास्क उतराकर चेहरे पर लगा लिया.

खाना खाकर जितनी देर दिव्या किचन समेटती रही मैं मास्क पहनकर शिनचैन की आवाज़ में नोनू को हंसाता रहा. नोनू को मैंने अपने असली चेहरे की ओर इतने अपनेपन से ताकते हुए कभी नहीं देखा था. उसकी खिलखिलाहट देख जी चाह रहा था कि अब से मैं शिनचैनी पापा ही बनकर रहूं.

घड़ी की सुई तीन पर आने ही वाली थी. याद आया कि मैनेजर ने वीडियो-कौनफ्रैंस रखी थी, जिसमें मुझे अपनी प्रेज़ेन्टेशन दिखानी थी. किचन में जाकर नोनू को दिव्या की गोद में दे मैं हांफते हुए कमरे में आ गया और लैपटौप खोल मीटिंग के लिए लौग-इन कर लिया. मैनेजर और बाकी दो साथी पहले ही आ चुके थे. मेरे जौइन करते ही सब ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. ‘यह औफ़िस की मीटिंग है या लौफ्टर क्लब की?’ सोचकर सिर खुजलाते हुए हंसी के इस सैशन में मैं उनका साथ देने ही वाला था कि मैनेजर बोल पड़ा, “राहुल, बाज़ार से मास्क खरीद लाते. वैसे घर में रहते हुए मास्क लगाना इतना ज़रूरी भी नहीं कि तुम शिनचैन का मास्क लगाकर बैठ गये!” सब लोगों का मुझ पर हंसना जारी था. पूरी मीटिंग में मैं खिसियानी सूरत लेकर बैठा रहा.

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मीटिंग ख़त्म होने पर आते-जाते बैडरूम में झांक बैड को ललचाई दृष्टि से देखता रहा, लेकिन मजाल कि दो घड़ी भी चैन से लेटने को मिले हों.

रात को सोते हुए जहां रोज़ अगले दिन की प्रेज़ेन्टेशन के विषय में सोचा करता था, आज सोच रहा हूं कि कल नाश्ते में क्या बनाऊंगा? यह वर्क फ़्रौम होम का लड्डू भी शादी जैसा ही है, जिसने खाया वह भी पछताया और नहीं खाने वाले को इसने ख़ूब तरसाया !

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