अटूट बंधन: भाग-1

विशू  देर तक सोया पड़ा था. वैसे तो जल्दी ही उठ जाता है वह या कहें कि उठना पड़ता है. विश्वनाथ तिवारी, डिप्टी जनरल मैनेजर के पद पर एक मल्टीनैशनल कंपनी में रोबदाब के साथ 13 साल से काम कर रहा है. वह कंपनी के मालिक जालान का दाहिना हाथ है. आकाश चूमता वेतन,  साथ में अन्य सुविधाएं जैसे ड्राइवर, पैट्रोल समेत गाड़ी, फुल फर्निश्ड फ्लैट, मैडिकल और बच्चों की पढ़ाई का पैसा, साल में एक बार देश या विदेश में घूमने का खर्चा और पूरे विश्व में औफिशियल टूर का अलग पैसा. जब  इतनी सारी सुविधाएं देती है कंपनी तो काम भी दबा कर लेती है.

सच तो यह है कि उसी ने ही कंपनी को सफलता की चोटी पर बैठाया है. इस की टक्कर की जो दूसरी कंपनी हैं वे उस पर नजर लगाए हैं कि कब विश्वनाथ का जालान से मतभेद हो और कब वे उसे चारा फेंक, अपनी कंपनी में खींच लें. हां, तो यह भोर की नींद उसे बचपन से लुभाती है.

उस के पिता एक निष्ठावान ब्राह्मण पंडित केशवदास थे. गांव के छोटे से प्राइमरी स्कूल के हैडमास्टर, वेतन अनियमित. पहली पत्नी डेढ़ साल के विश्वनाथ को छोड़ कर दुनिया से चल बसी तो विशू की देखभाल के लिए ही गरीब ब्राह्मण कन्या निर्मला को ब्याह लाए थे वे. उस से 2 बच्चे, बेटा दीनानाथ और बेटी सुलक्षणा हैं. अपनी आय में गृहस्थी नहीं चलती पर 5 बीघा जमीन थी उन के पास. उसी से रोटीकपड़ा चल जाता. मिट्टी का कच्चा घर तो अपना था ही. पर उन के पास सब से बड़ी संपत्ति थी पूरे गांव का आदरसम्मान. भोर में 4 बजे वे उठ जाते. अपने साथ ही वे विशू को जगा कर पढ़ने बैठा देते. कहते, ‘‘ऊषाकाल का अध्ययन सब से श्रेष्ठ होता है, सूर्योदय तक बिस्तर पर रहना चांडालों का काम है.’’

बेचारा विशू, बचपन से ही भोर की मीठी नींद से वंचित रह गया. विद्यार्थी जीवन समाप्त होते ही कंधों पर आ बैठा ऊंचे पद का दायित्व. भोर की तो क्या रात की नींद भी छिन रही थी. पर रविवार के दिन विशू देर तक सोता है, रीमा भी नहीं जगाती, उलटे बच्चों को हल्लागुल्ला करने से रोकती है.

आज रविवार नहीं सोमवार है. हफ्तेभर काम करने का पहला दिन. विशू गहरी नींद में सो रहा था. इतनी निश्चिंत शांति की नींद वह वर्षों से नहीं सोया. बच्चे कब स्कूल चले गए, पता नहीं चला. पहली चाय रोज की तरह सिरहाने रख कर कब नौकर भी चला गया उस का भी पता नहीं चला. रीमा के जोरदार झकझोरने से उठा. हड़बड़ा कर देखा खिड़की के परदे हटा दिए गए हैं. फर्श पर धूप, सामने रीमा हाउसकोट पहने खड़ी हंस रही है.

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‘‘उठिए साहब, पता है 8 बज गए. आज आस्ट्रेलिया की पार्टी से मीटिंग है न?’’

‘‘धत, नींद खराब कर दी मेरी.’’ रीमा बिस्तर पर बैठी प्यार से उस के बिखरे बालों को संवार रही थी और हंस रही थी.

‘‘बच्चों से कम नहीं हो तुम. वे भी तैयार हो, स्कूल चले गए. चलो, उठो.’’

वह फिर लुढ़कने को तैयार.

‘‘सोने दो मुझे.’’

‘‘अरे अरे, ठीक 11 बजे मीटिंग है तुम्हारी.’’

‘‘भाड़ में जाए मीटिंग. जालान का बच्चा संभाले अपनेआप.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘ठीक ही कह रहा हूं. शनिवार को ही मैं रैजिगनेशन लैटर उस के मुंह पर मार आया हूं. आजाद हूं अब मैं.’’

‘‘क्या?’’

रीमा इस तरह छिटक कर खड़ी हो गई मानो हजार वोल्ट का झटका लगा हो.

‘‘नौकरी छोड़ दी तुम ने?’’

‘‘हां.’’

‘‘इतना बड़ा फैसला तुम ने मुझ से पूछे बिना लिया कैसे?’’

विशू ने देखा, एक क्षण पहले की रोमांसभरी मधुर मुसकान उस के मुख से गायब थी. अब वहां क्रोध की ज्वाला थी.

‘‘क्या? तुम से पूछता? यह तो मेरा व्यक्तिगत मामला है. मैं नौकरी करूंगा या नहीं, यह मेरा फैसला है.’’

गुस्से में हांफ रही थी रीमा, ‘‘तुम्हारा फैसला? वाह, बहुत बढि़या. अब तुम्हारा व्यक्तिगत कुछ भी नहीं है जो अपनी मरजी से चलोगे. घरपरिवार वाले हो. तुम्हारे सबकुछ पर हमारा अधिकार है. तुम बिना पूछे इतना बड़ा फैसला कैसे ले सकते हो? सोने की खान जैसी नौकरी, जिस ने तुम को झोंपड़े से उठा कर राजमहल में बैठा दिया. समाज की सर्वोच्च सोसाइटी में तुम को पहचान दी, तुम उसी नौकरी को मिजाज दिखा छोड़ आए.’’

‘‘ऐ, हैलो, यह सब जो तुम मुझे गिना रही हो वह सब खैरात में नहीं दिया है किसी ने मुझे. अपनी योग्यता और ईमानदारी की बदौलत हासिल किया था मैं ने यह मुकाम. कैंपस सिलैक्शन में टौप किया था. एक पिछड़ी कंपनी को कहां से कहां पहुंचा दिया इन 13 वर्षों में. खरबों का मुनाफा कमा कर दिया कंपनी को, नहीं तो बड़ीबड़ी कंपनियों के सामने तिनके की तरह बह जाता जालान का बच्चा.’’

‘‘अपने मुंह मियांमिट्ठू तो बनो मत. तुम जैसे एमबीए आजकल क्लर्क का काम कर रहे हैं.’’

‘‘हां, कर रहे हैं पर 13 वर्ष पहले आज की तरह छवड़ा भरभर एमबीए नहीं निकलते थे प्रति वर्ष.’’

थोड़ी नरम दिखाई दी रीमा, ‘‘देखो, आपस में लड़ाई करने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता. जालान साहब इतनी बड़ी कंपनी के मालिक हैं, कोई मूर्ख तो हैं नहीं. तुम से कंपनी को कितना फायदा है, यह वे भी समझते हैं. तुम इतने वर्षों से इस कंपनी के प्रतिनिधि हो. बहुत से देशों के लोग तुम को ही जानते हैं इस कंपनी के नाम से. तुम्हारे न रहने का मतलब है कंपनी का बहुत नुकसान हो सकता है. बहुत सारे बाहर के कस्टमर तुम्हारी जगह नया आदमी देख डील ही न करें. इस बात को जालान साहब भी जानते हैं.’’

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विशू अवाक हो रीमा को देख रहा था. वह भी एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत है. 50 हजार रुपए से ऊपर ही वेतन लेती है. उस में इतनी प्रैक्टिकल समझ, व्यावसायिक बुद्धि है, यह तो उस ने सोचा ही नहीं था और ऐसा दांवपेंच तो इतने बड़ेबड़े डील कर के भी उस के मस्तिष्क में नहीं आया.

‘‘देखो, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा. जालान साहब मंजे हुए व्यापारी हैं. अपना फायदा अच्छी तरह समझते हैं. तुम्हारी जगह नए आदमी को ले कर उसे अपने हिसाब से तैयार करने में उन को वर्षों लग जाएंगे. कंपनी को बहुत नुकसान होगा. चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं. वे मुझे बेटी मानते हैं. तुम माफी मांग कर रैजिगनेशन वापस ले लो. आज की आस्ट्रेलिया वाली डील में सफल हो जाओगे तो वे औैर भी खुश हो जाएंगे. चलो, उठो, मैं भी तैयार होती हूं. तुम्हारी समस्या का समाधान कर मैं अपने औफिस चली जाऊंगी.’’

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#coronavirus: ताजी हवा का झौंका

पहले जनता कर्फ्यू… फिर लॉकडाउन… और अब ये पूरा कर्फ्यू… समझ में नहीं आता कि टाइमपास कैसे करें…” निशिता ने पति कमल से कहा.

“पहले तो रोना ये था कि समय नहीं मिल रहा… अब मिल रहा है तो समस्या है कि इसे बिताया कैसे जाये…” कमल ने हाँ में हाँ मिलाई.

निशिता और कमल मुंबई की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते हैं. सुबह से लेकर रात तक घड़ी की सुइयों को पकड़ने की कोशिश करता यह जोड़ा आखिर में समय से हार ही जाता है. पैसा कमाने के बावजूद उसे खर्च न कर पाने का दर्द अक्सर उनकी बातचीत का मुख्य भाग होता है.

मुंबई में अपना फ्लैट… गाड़ी… और अन्य सभी सुविधाएं होने के बाद भी उन्हें आराम करने का समय नहीं मिल पाता… टार्गेट पूरे करने के लिए अक्सर ऑफिस का काम भी घर लाना पड़ जाता है. ऐसे में प्यार भला कैसे हो… लेकिन यह भी एक भौतिक आवश्यकता है. इसलिए इन्हें प्यार करने के लिए वीकेंड निर्धारित करना पड़ रहा है. लेकिन पिछले दिनों फैली इस महामारी यानी कोरोना के कहर ने दिनचर्या एक झटके में ही बदल कर रख दी. अन्य लोगों की तरह निशिता और कमल भी घर में कैद होकर रह गए.

“क्या करें… कुछ समझ में नहीं आ रहा. पहाड़ सा दिन खिसके नहीं खिसकता…” निशिता ने लिखा.

“अरे तो बेबी! समय का सदुपयोग करो… प्यार करो ना…” सहेली ने आँख दबाती इमोजी के साथ रिप्लाइ किया.

“अब एक ही काम को कितना किया जाये… कोई लिमिट भी तो हो…” निशिता ने भी वैसे ही मूड में चैट आगे बढ़ाई.

“सो तो है.” इस बार टेक्स्ट के साथ उदास इमोजी आई.

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“ये तो शुक्र है कि बच्चे नहीं हैं. वरना अपने साथ-साथ उन्हें भी व्यस्त रखने की कवायद में जुटना पड़ता.” निशिता ने आगे लिखा.

“बात तो तुम्हारी सौ टका सही है यारा… अच्छा एक बात बता… एक ही आदमी की शक्ल देखकर क्या तुम बोर नहीं हो रही?” सहेली ने ढेर सारी इमोजी के साथ लिखा तो निशिता ने भी जवाब में ढेरों इमोजी चिपका दी.

सहेली से तो चैट खत्म हो गई लेकिन निशिता के दिमाग में कीड़ा कुलबुलाने लगा. अभी तो महज तीन-चार दिन ही बीते हैं और वह नोटिस कर रही है कि कमल से उसकी झड़प होते-होते बस किसी तरह रुकी है लेकिन एक तनाव तो उनके बीच पसर ही जाता है.

कहते हैं कि बाहरी कारक दैनिक जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं. शायद यही कारण है कि लॉकडाउन और कर्फ्यू का तनाव उनके आपसी रिश्तों को प्रभावित कर रहा है. लेकिन इस समस्या का अभी निकट भविष्य में तो कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा.

“कहीं ऐसा न हो कि समस्या के समाधान से पहले उनका रिश्ता ही कोई समस्या बन जाये… दिन-रात एक साथ रहते-रहते कहीं वे अलग होने का फैसला ही न कर बैठें.” निशिता का मन कई तरह की आशंकाओं से घिरने लगा.

“तो क्या किया जाए… घर में रहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं… क्यों न जरा दूरियाँ बनाई जाएँ… थोड़ा स्पेस लिया जाए… लेकिन कैसे?” निशिता ने इस दिशा में विचार करना शुरू किया तो टीवी देखना… गाने सुनना… बुक्स पढ़ना… कुकिंग करना… जैसे एक के बाद एक कई सारे समाधान विकल्प के रूप में आने लगे.

“फिलहाल तो सोशल मीडिया पर समय बिताया जाए.” सोचकर निशिता ने महीनों पहले छोड़ा अपना फ़ेसबुक अकाउंट लोगइन किया. ढेरों नोटिफ़िकेशन आए हुये थे और दर्जनों फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट… एक-एककर देखना शुरू किया तो मेहुल नाम की रिक्वेस्ट देखकर चौंक गई. आईडी खोलकर प्रोफ़ाइल देखी तो एक मुस्कान होठों पर तैर गई.

“कहाँ थे जनाब इतने दिन… आखिर याद आ ही गई हमारी…” मन ही मन सोचते हुये निशिता ने उसकी दोस्ती स्वीकार कर ली.

मेहुल… उसका कॉलेज फ्रेंड… जितना हैंडसम… उतना ही ज़हीन… कॉलेज का हीरो… लड़कियों के दिलों की धड़कन… लेकिन कोई नहीं जानता था कि मेहुल के दिल का काँटा किस पर अटका है. निशिता अपनेआप को बेहद खास समझती थी क्योंकि वह मेहुल के बहुत नजदीकी दोस्तों में हुआ करती थी. हालाँकि मेहुल ने कभी इकरार नहीं किया था और निशिता कि तो पहल का सवाल ही नहीं था लेकिन चाहत की चिंगारी तो दोनों के दिल में सुलग ही रही थी.

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“कहीं वह इस राख़ में दबी चिंगारी को हवा तो नहीं दे रही…” निशिता ने एक पल को सोचा लेकिन अगले ही पल चैट हैड पर मेहुल को एक्टिव देखकर उसने अपने दिमाग को झटक दिया.

“लॉकडाउन में कुछ तो अच्छा हुआ.” मेहुल का मैसेज स्क्रीन पर उभरा. निशिता का दिल धड़क उठा. ऐसा तो कॉलेज के समय भी नहीं धड़कता था.

इसके बाद शुरू हुआ चैट का सिलसिला जो कॉलेज की चटपटी बातों से होता हुआ जीवनसाथी की किटकिटी पर ही समाप्त हुआ और वह भी तभी थमा जब कमल ने लंच का याद दिलाया. निशिता बेमन से उठकर रसोई में गई और जैसा-तैसा कुछ बना… खाकर… वापस मोबाइल पर चिपक गई.

बहुत देर इंतज़ार के बाद भी जब मेहुल ऑनलाइन नहीं दिखा तो वह निराश होकर लेट गई. खाने का असर था, जल्दी ही नींद भी आ गई. उठी तो कमल चाय का कप हाथ में लिए खड़ा था. निशिता ने एक हाथ में कप और दूसरे में मोबाइल थाम लिया. मेहुल का मैसेज देखते ही नींद कि खुमारी उड़ गई.

फिर वही देर शाम तक बातों का सिलसिला. मेहुल उससे नंबर माँग रहा था बात करने के लिए लेकिन निशिता ने उसे लॉकडाउन पीरियड तक टाल दिया. वह नहीं चाहती थी कि कमल को इस रिश्ते का जरा सा भी आभास हो. यूं भी इस तरह के रिश्ते तिजोरी में सहेजे जाने के लिए ही होते हैं. इनका खुले में जाहिर होना चोरों को आमंत्रण देने जैसा ही होता है. यानी आ बैल मुझे मार… निशिता यह खतरा नहीं उठाना चाहती थी. वह तो इस कठिन समय को आसानी से बिताने के लिए कोई रोमांचक विकल्प तलाश रही थी जो उसे सहज ही मिल गया था. लेकिन इस आभासी रिश्ते के चक्कर में वह अपनी असल जिंदगी में कोई दूरगामी तूफान नहीं चाहती थी.

निशिता नहीं जानती थी कि आने वाले दिनों में ऊँट किस करवट बैठगा… लेकिन हाल फिलहाल वह बोरिंग हो रही जिंदगी में अनायास आए इस ताजी हवा के झौंके का स्वागत करने का मानस बना चुकी थी.

#coronavirus: ये कोरोना-वोरोना कुछ नहीं होता

आज नेहा बहुत खुश हैं क्यू कि उसका बचपन का ख्वाब जो पूरा होने जा रहा है.. शादी के बाद वो पहली बार इटली जा रही थी.. उसके सास ससुर ने मुंह दिखाई में इटली घूमने और हनीमून मनाने के लिए टिकट बुक किया था. वैसे तो वो कई बार पापा के साथ बिजनेस ट्रिप पर विदेश गयी थी मगर शेड्यूल टाइट होने से अपनी मन की शॉपिंग और घूमना फिरना नहीं हो पाया था. ये बात जब उसने मंगनी के बाद सृजन को बतायी तो झट से उसने उसे विदेश घुमाने, शॉपिंग कराने और खूब मस्ती करने के लिए प्रॉमिस कर डाली. वो जब धूमधाम से शादी के बाद ससुराल आई तो उसे मुंह दिखाई में ही सरप्राइज मिल गया.

अगले दिन से ही उसने पैकिंग करनी शुरू कर दी.. उसने अपनी सारी मनपसंद ड्रेस पैक कर ली ताकि वो अच्छी अच्छी फोटो भी ले सकें और उसे अपने दोस्तों को दिखाकर, सोशल मीडिया पर डालकर तारीफ बटोर सकें.. अगले ही दिन की फ्लाइट थी.. उन्होंने समय से निकल तो लिया था एयरपोर्ट के लिए, मगर ट्रैफिक जाम के चलते फ्लाइट टेक ऑफ होने से आधा घंटा पहले ही पहुंचे… उनको एयरपोर्ट पर चेक इन करने में वक़्त लग रहा था क्यू कि लैगेज ज्यादा था.. सृजन बार बार काउन्टर पर जल्दी करने को दबाव डाल रहा था.. जबकि स्टाफ उससे कोआपरेट करने को कह रहा था.. इस बीच उसने सभी को नौकरी से बाहर कराने की धमकी भी दे डाली.. जैसे तैसे दोनों अपनी अपनी सीट पर पहुँच गए. सृजन बहुत गुस्से में था और उसने नेहा को बोला “देखना तुम, मैं इनकी नौकरी ले कर रहूँगा.. इन्हें कम से कम हमारा स्टैंडर्ड देखकर तो काम करना चाहिए था”.

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इस पर नेहा बोली कि “नियम तो सब पर लागू होते हैं न.. वो हमारा सामान पहले कैसे चेक कर सकते थे जबकि पहले से लोग लाइन में थे”.

सृजन ने भड़कते हुए कहा कि “तो फिर क्या जरूरत थी इतनी जांच की? हम कोई बम लेकर थोड़े ही जा रहे हैं.. आखिर पैसे वालों की इज्जत भी करनी चाहिए न “?

इस पर नेहा ने चुप रहने में ही भलाई समझी और बाहर की ओर देखने लगी.

फ्लाइट लैंड होते ही वो बाहर निकले तो टैक्सी उन्हें इंतजार करते मिली तो सृजन ने लंबी साँस लेकर कहा कि” Thank God! इसने इंतज़ार नहीं कराया .. और बातें करते दोनों होटल पहुँच गए.. वहां पर काउन्टर पर फारमेल्टी करने के बाद जब सर्विस बॉय उनका लैगेज ले जा रहा था तो उसने यू ही पूछ लिया कि “Sir! Why you have carry heavy language? Every one on trip should carry…” बात पूरी करने से पहले ही नेहा जोर से चिल्ला पड़ी.. “Mind your business”..

सर्विस बाॅय Sorry Madam.. कहकर चुप हो गया.

दोनों ने अपने हनीमून ट्रिप को खूब इंजॉय किया.. आखिरी दिन जब वो खाना खाने प्रसिद्ध रेस्त्रां जा रहे थे तो होटल से उन्हें कॉल आई कि “कृपया करके आप होटल में ही रहे और वापस जाने तक कहीं बाहर न निकले.. क्यू कि इस समय कोई रहस्मय बीमारी फैल रही है जिससे जान जाने का खतरा है और डाक्टर अभी तक बीमारी का न तो नाम जानते हैं और न ही इसका इलाज़..” मगर भला दोनों कहाँ किसी की बात मानने वाले थे.. दोनों को जैसे सभी नियम तोड़ने की जिद्द थी.. खाना खाने के बाद सारा दिन खूब मस्ती की.. मगर आज हर जगह लोग उन्हें कम दिखाई दिए रोज की अपेक्षा…

अगले दिन वो अपने शहर वापस बैंगलोर वापस आ गए.. एयरपोर्ट पर भी कुछ डॉक्टर्स लोगों की जांच कर रहे थे और पूछ रहे थे कि किसी को सर्दी जुकाम तो नहीं है.. सृजन उन्हें अनदेखा करते हुए साइड से निकलने लगा तो एक डॉक्टर ने रोक लिया.. हालांकि सृजन को हल्का बुखार था फिर भी उसने कहा कि वो दोनों स्वस्थ्य है.. दोनों को एक पेपर दिया गया.. जिस पर उसी रहस्मय बीमारी के जिक्र के साथ लक्षण लिखे थे और 14 दिन तक परिवार से अलग रहकर जांच कराने की बात लिखी थी… नेहा ने पढ़ते ही कहा कि “ये तो वही बीमारी लिखी है जिसका जिक्र इटली के होटल में किया गया था और बाहर न जाने की सलाह दी थी.. और तुम्हें बुखार के साथ जुकाम भी है तो तुमने एयरपोर्ट पर मना क्यू किया?”

सृजन ने पेपर छीनकर विंडों से बाहर फेंकते हुए कहा कि “डार्लिंग ये सर्दी जुकाम तो लगा रहता है और तुम भी किन छोटे लोगों की बातों में आती हो? मैं इन लोगों को मुंह नहीं लगाता ”

दोनों सीधे ही अपने फ्लैट में गए जिसे नेहा के पिता ने शादी में दहेज में दिया था.. उनके आने से पहले ही अच्छे से फ्लैट को सजा दिया गया था…

दो दिन ही बीते थे कि सृजन को आज सुबह से ही तेज बुखार के साथ खांसी भी आने लगी.. उसने अपने पास रखी कुछ दवा खा ली और फोन पर ऑफिस की अपडेट लेने लगा तो बातों ही बातों में उसने अपने मैनेजर को बताया कि उसे कई दिनों से सर्दी, जुकाम, खांसी और बुखार आ रहा है और आज नेहा को भी हल्का बुखार है.. इस पर मैनेजर ने उसे डॉक्टर के पास जाने को कहा और उसी रहस्मय बीमारी के बारें में बताया तो सृजन झल्ला पड़ा.. “तुम भी क्या उन लोगों की तरह अनाप शनाप बोलने लगे.. ये सब बीमारी मुझे नहीं हो सकती है” कहकर फोन रख दिया.. और जाने के लिए तैयार होने लगा.. कुछ ही देर बाद डोर बैल बजी.. दरवाजे खोलते ही वो हक्का बक्का रह गया.. क्यू कि मैनेजर और डाक्टर दोनों ही मास्क पहने खड़े थे.. वो आग बबूला होने लगा.. डाक्टर की तेज आवाज पर उसे अंदर आना पड़ा.. थोड़े देर की पूछताछ के बाद ही डॉक्टर ने कॉल करके एम्बुलेंस लाने को बोला.. इससे पहले कि वो, नेहा कुछ समझ पाते…उसे और नेहा को मास्क लगाने को कहा गया और सृजन को दो कवर्ड लोगों ने एम्बुलेंस में बैठने को कहा.. सुनकर नेहा रोने लगी और डॉक्टर की सख्ती के आगे सृजन का रौब न काम आया और उसे एम्बुलेंस में लेकर डॉक्टर चले गए.. साथ आई टीम ने नेहा को उस बीमारी के बारें में बताया और कुछ दवाईयां खाने के लिए दी और साथ ही बताया कि वो 14 दिन तक होम क्वेरेनटाइन (Quarantine) में रहेगी और जांच के बाद स्वस्थ्य पायी गयी तो वो कहीं भी जा सकती है.. जब तक उसे बाहर नहीं निकलना है.. उसका फ्लैट बंद रहेगा.. समय समय पर नर्स आएगी और उसे कोई जरूरत होगी तो बता सकती है या फोन पर बात कर सकती है… इतना बताने के बाद टीम चली गई और नेहा का फ्लैट बाहर से बंद कर दिया गया.

उनके जाते ही नेहा ने अपने पापा को कॉल लगायी और रोते हुए बताया.. आधी अधूरी बात सुनकर वो भावुक हो गए और बेटी को चुपचाप घर आने को कह दिया.. उन्होंने खुद ही नेहा के लिए बंगलौर से दिल्ली तक कि फ्लाइट और दिल्ली से मथुरा तक की बस बुक करा दी और कहा कि रात होते ही चुपचाप पीछे के दरवाजे से निकल कर रात आठ बजे की फ्लाइट पकड़ ले.. नेहा की मां ने आज ही ख़बर देखी थी इस बीमारी को लेकर जिसे डॉक्टर ” कोरोना वायरस” कह रहे थे.. बात सुनते ही वो बीच में बोल पड़ी कि अगर 14 दिन अलग रहने को बोला गया है तो रह ले.. डॉक्टरों ने कुछ सोच कर ही बोला होगा और इटली से आए भी है जहां ये बीमारी फैल रही है.. उसने आज ही न्यूज सुनी है.. इस पर नेहा के पिता बात करते वक्त ही चिल्ला पड़े कि अपने काम से मतलब रखों बस..

नेहा चुपचाप फ्लाइट से होती हुई बस पकड़ कर मथुरा पहुँच गई.. रास्ते में उसे खांसी और छींक भी आ रही थी.. बस में पास बैठी महिला ने टोका तो बोली तो उसने रूखे अंदाज में कहा कि अपनी सीट बदल ले.. अगली सुबह वो अपने पिता के घर थी और जब मेडिकल टीम उसका चेक अप करने घर पहुंची तो उन्हें नेहा नहीं मिली.. उधर सृजन की रिपोर्ट आ चुकी थी और वो इस बीमारी “कोरोना” से संक्रमित था.. सृजन से पूछताछ पर पता चला कि नेहा अपने पिता के घर मथुरा जा सकती है.. सृजन की रिपोर्ट पाॅजिटिव आने के बाद नेहा के भी संक्रमित होने की संभावना बढ़ रही थी..

ये एक ऐसी बीमारी थी जिसकी शुरुआत सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार से हो रही थी और साँस लेने में तकलीफ के साथ लोगों की मृत्यु हो जा रही थी.. ये एक वायरस से फैल रहा था जिसे नोबेल कोरोना covid 19 नाम दिया गया था और डाक्टर अभी तक इसका इलाज़ ढूंढ नहीं पाए थे.. WHO ने मेडिकल इमर्जेंसी घोषित कर दी थी और इसे महामारी का नाम दिया गया था.. भारत में अभी तक इसका संक्रमण नहीं फैला था.. लेकिन विदेश से वापस लौटे लोगों के संक्रमित होने के चलते धीरे धीरे संख्या बढ़ रही थी.. अब विदेश से आने वाले लोगों की जांच की जा रही थी.. स्टाफ और डाक्टर कम पड़ रहे थे और कुछ लोग अपने रसूख दिखा कर बिना जांच निकल रहे थे..

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उधर नेहा के घर पर पूछताछ के लिए लोकल पुलिस गई तो उनके पिता ने सीधे तौर पर इंकार कर दिया कि नेहा से उनकी कोई बात तक नहीं हुई है और इंस्पेक्टर पर धौंस जमाते हुए उनकी शिकायत SP से करने को कहा.. मगर गेट के बाहर आते ही उसने गॉर्ड से पूछा तो उसने बताया कि “आज बिटिया सवेरे ही अकेली ही आई है.. दामाद जी साथ नहीं थे तो इंस्पेक्टर ने फौरन मेडिकल टीम को सूचित किया.. और एसपी ने शहर में अलर्ट जारी किया क्यू कि अगर नेहा संक्रमित पायी गयी तो उसका परिवार और जिनके भी नजदीकी संपर्क में आई होगी सभी संक्रमित हो सकते हैं.. मेडिकल टीम को भी उसके पिता नेहा को सौपने के लिए तैयार न थे.. टीम ने उन्हें विश्वास में लेने की बहुत कोशिश की.. जबकि नेहा की हालत खराब हो रही थी.. उन्हें न जाने किस बात का डर सता रहा था.. एसपी के हस्तक्षेप करने के बाद जबरन मेडिकल टीम उसे जांच के लिए अस्पताल ले गई और उसके माता पिता को भी अकेले रहने (isolation) और बाहर न जाने की सलाह दी.. साथ ही 14 दिन मानिटर करने को कहा.. जांच में नेहा भी संक्रमित निकली.. उसके माता पिता के भी संक्रमित होने की संभावना है और साथ ही नेहा की लापरवाही के चलते फ्लाइट में, बस में उसके संपर्क में आए लोगों के भी संक्रमित होने की संभावना है.. इस तरह डॉक्टर की सलाह न मानकर.. जांच न कराकर.. संक्रमित लोगों के भीड़ में जाने से मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है.. सरकार ने स्पष्ट गाइड लाइन जारी कर दी है लेकिन इसी बीच एक दूसरे शहर में अमेरिका से आयी बालीवुड स्टार के बिना जांच निकलने और आते ही पार्टी आयोजित करने के बाद उसके “कोरोना वायरस के संक्रमण” होने की ख़बर आते ही शहर में डर का माहौल है.. उनके पार्टी में शहर के नामचीन हस्तियों, नेता के आगमन के बाद उनका संसद में प्रवेश से इसके काफी लोगों के बीच पहुंचने का अंदेशा है.. ये तो पढ़े लिखे और पैसे की रौब ज़माने वाले का हाल है.. अभी मेडिकल टीम छोटे छोटे शहर, गाँव और कस्बों में पहुंची ही नहीं है.. सरकार और सभी जिम्मेदार लोग सोशल डिस्टेंस मेनटेन करने की अपील कर रहे हैं क्यू कि डॉक्टर, दवा, मास्क की मात्रा बहुत ही कम मात्रा में है….

ज़िन्दगी–एक पहेली:  भाग-5

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अब धीरे-धीरे अनु के हॉस्टल जाने का समय करीब आ चुका था. जिस दिन हॉस्टल जाना था उस  पूरे दिन ना तो अनु ने कुछ खाया और ना ही अविरल ने. पूरी रात दोनों एक दूसरे से बाते करते रहे और रोते रहे. अगले दिन अनु हॉस्टल के लिए चली गई. अविरल अब अपने आप को घर में काफी अकेला फील करने लगा था क्योंकि अविरल के पापा- मम्मी काफी बिजी रहते थे और अविरल अनु से बहुत ज्यादा घुला मिला था. अविरल को अब घर में बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था.

अविरल जब भी घर से बाहर निकलता सबसे पहले आसू के पास पहुँच जाता. अनु के हॉस्टल में केवल 1 फोन था जिससे सभी लड़कियों को बारी बारी से बात करना होता था. रोज शाम को अनु के पापा अनु को फोन करते थे लेकिन टाइम बहुत कम होता था तो ज्यादा बात नहीं हो पाती थी. अनु के पापा कि तबीयत अब थोड़ी खराब रहने लगी थी. वो पहले से ही गैस्ट्रिक के पेशेंट थे. डॉक्टर भी बोलते थे कि आपकी उम्र बढ़ रही है ये तो लगा रहेगा. अनु हमेशा अपने पापा से कहती कि, “पापा मैं एक बार डॉक्टर बन जाऊ, मैं ही आपका इलाज करूंगी”. अनु के पापा भी मुस्कुराकर बोलते कि “हाँ बेटा, अब तो मैं अपनी बेटी से ही इलाज कराऊँगा”. अनु जब भी अविरल से बात करती तो बोलती कि भैया मैं जब छुट्टी में घर आऊँगी तो सारे सब्जेक्ट देखूँगी, तुम्हें 12th में मुझसे भी अच्छे मार्क्स लाने हैं(अनु ने देहारादून टॉप किया था).

इस साल अविरल का 12th था लेकिन अविरल का मन बिल्कुल भी पढ़ाई में नहीं लग रहा था . वह एक्जाम के महीने गिनता और सोचता कि अभी तो बहुत टाइम है और बाहर निकल जाता. अनु के हॉस्टल जाने के बाद अविरल अक्सर सुमि से मिलता लेकिन अब दोनों के बीच केवल आसू ही मेन टॉपिक होता. सुमि भी अविरल को समझाती कि अविरल एक्जाम आने वाले हैं पढ़ाई पे ज्यादा ध्यान दो.

आसू एक दिन फिर सुमि के पास बात करने गया. इस बार सुमि का रिएक्शन अलग था. वह आसू से बोली कि आसू अब मेरे रास्ते में मत खड़े रहा करो लेकिन वह नहीं माना और रास्तों से छुपकर सुमि को देखने लगा. आसू कि हरकतें सुमि को भी अच्छी लगती थी. अब सुमि और आसू अक्सर बात करने लगे.

कुछ दिनों में सुमि का बर्थड़े आने वाला था तो आसू ने सुमि को कुछ सर्प्राइज़ देने का निश्चय किया. आसू ने 50 चार्ट पेपर और कलर्स खरीदे, फिर एक  दोस्त की  मदद से सभी चार्ट्स में “HAPPY BIRTHDAY” लिखा. सुमि सुबह 6 बजे कोचिंग जाती थी तो आसू और उसके दोस्तों ने पूरी रात सुमि के कोचिंग जाने वाले रस्ते में, खंबों पर और दीवारों पर चार्ट चिपकाए जिससे सुमि जहां से भी निकले उसे “HAPPY BIRTHDAY” वाले चार्ट दिखाई दें.

अगले दिन सुमि जैसे ही घर से निकलकर रोड पर पहुंची, उसे “HAPPY BIRTHDAY” वाले चार्ट दिखाई दिये. जैसे जैसे वह राश्ते पर आगे बढ़ती उसे सिर्फ चार्ट दिखते. यह देखकर उसको बहुत आश्चर्य हुआ. उसी दिन आसू ने सुमि को फिर से प्रपोज़ किया लेकिन सुमि ने फिर से मना कर दिया और दोस्त रहने को बोल दिया. आसू बहुत उदास हो गया और रात में ही किसी को बिना बताए दूसरी सिटी चला गया.

अगले दिन जब सुमि को आसू नहीं दिखा तो वह उदास हो गयी. शाम को अविरल, सुमि से मिला तो सुमि ने अविरल से आसू के बारे में पूछा पर  अविरल को भी आसू के बारे में कुछ नहीं पता था. सुमि को बहुत डर लगने लगा, उसने सोचा कि बस मुझे एक बार आसू से मिलने का मौका मिल जाए तो मै भी उससे अपने दिल की बात कह दूँगी .

अविरल, आसू के घर पहुंचा और उसकी मम्मी से आसू के बारे में पूछा  तो उन्होने बताया कि आसू बहुत परेशान था और किसी दोस्त के घर चला गया है. 4-5 दिन में आ जाएगा. अविरल ने आसू के सारे दोस्तों से पता किया लेकिन उसे कुछ पता नहीं चल सका. 5 दिन और बीत गए. सुमि को अपने एक रिलेटिव के यहाँ जाना था. वह बहुत बेचैन थी क्योंकि  अभी तक आसू से बात नहीं हो सकी थी. अगले दिन सुमि पल्लवी को अपने रिलेटिव का नंबर देकर मसूरी चली गयी और बोली कि आसू जब भी आए तो उससे बोल देना कि रात में 8 बजे रोज वह उसके फोन का इंतज़ार करेगी. जब भी आसू फोन करे तो पहले छोटी छोटी-2 रिंग करे और फिर 10 मिनट बाद कॉल करे. दो दिन बाद आसू वापस आया तो अविरल ने उसे सारी बात बताई. आसू इतना खुश था कि उसका टाइम कट ही नहीं रहा था. बड़ी मुश्किल से 8 बजा. सुमि के अनुसार ही आसू ने कॉल की और तीसरी रिंग होते ही फोन उठा. तुरंत ही आसू ने अविरल को फोन पकड़ा दिया क्योंकि  आसू सुमि की  आवाज पहचान नहीं पाया. अविरल ने उससे थोड़ा बात करके आसू को फोन पकड़ा दिया तो सुमि ने बोला कि तुम्हें देखने का मन कर रहा है. तो आसू ने मज़ाक में बोला कि ठीक है मैं आ जाता हूँ. फिर आसू ने उससे कहा ,”मै तुम्हे बहुत चाहता हूँ.”

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सुमि ने बोला “मैं भी” और शर्माकर फोन काट दिया.

आसू और अविरल ने घर में एनसीसी के कैंप का बहाना बनाया और पल्लवी से सुमि का एड्रैस लेकर 2 दिन बाद मसूरी  पहुँच गए. दोनों दोपहर में मसूरी  पहुंचे और सुमि का घर ढूंढते रहे लेकिन घर नहीं मिला तो वो रात 8 बजे का वेट करने लगे. फिर जैसे ही 8 बजा उन्होने PCO से फोन किया और बताया कि हम तुम्हारे घर के आसपास ही हैं. सुमि को पहले तो मज़ाक लगा लेकिन फिर वो दौड़कर उस PCO के पास तक आई.

आसू और सुमि 5 मिनट तक एक-दूसरे को देखते रहे और फिर दूसरे दिन मंदिर में मिलने का बोलकर चले गए. अगले दिन सुमि अपनी चचेरी बहन  के साथ मंदिर आई. लेकिन दोनों शर्माकर एक दूसरे से बात नहीं कर रहे थे तो अविरल ने दोनों से खुद बात करने को बोला और वहाँ से चला गया. लेकिन दोनों कुछ नहीं बोले बस एक दूसरे को देखते रहे. अगले दिन आसू और अविरल वापस देहारादून आ गए.

कुछ महीनों बाद रक्षा बंधन आया. ये पहला टाइम था जब अविरल के साथ अनु नहीं थी हालांकि अनु ने कूरियर से राखी भेजी थी. अविरल बहुत दुखी था लेकिन अनु की राखी ने काफी हद तक उसे संभाला. अविरल ने फोन से अनु से बात की. अनु ने बोला कि मैं दशहरे में आऊँगी तो खूब मस्ती करेंगे.

ऐसे ही दशहरा आ गया. अनु की दशहरे कि छुट्टियाँ हो गयी और वह एक सप्ताह  के लिए अपने घर आ गयी. सभी लोगों अनु के आने से बहुत खुश थे. शाम को अनु और अविरल घूमने निकले और कुछ जगह घूमकर वापस आए. रात में ही अविरल के पापा ने अविरल को किसी बात पर डांट दिया तो वह गुस्सा होकर कमरे में चला गया .अनु अविरल के पास गयी और बड़े प्यार से बोली “भैया पापा की बात का इतना बुरा क्यूँ मानते हो. मैं यहीं हूँ न सब कुछ ठीक कर दूँगी”. फिर अनु की मम्मी ने अनु की पसंद के पराठे बनाए तो दोनों भाई – बहन ने खूब मजे से खाना खाया और फिर देर रात तक बातें करते रहे.

आधी रात से ही अनु की तबीयत कुछ खराब हो गयी. उसे लगातार उल्टियाँ शुरू हो गयी. अगले दिन अनु को सब डॉक्टर के पास ले गए . डॉक्टर ने कहा कि,” नॉर्मल सी फूड पोइसिनिंग हुई  है, 2-3 दिनों में ठीक हो जाएगी “. डॉक्टर ने कुछ दवाएं दीं फिर सभी घर आ गए. अनु ने आज रात कुछ नहीं खाया. अगले दिन अनु ने सुबह ब्रेकफ़ास्ट किया और फिर दवा खाई लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ और खाने के 30 मिनट बाद ही उसे उल्टी हो गयी. अनु, अविरल और उसके पापा फिर डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने फिर वही कहा कि नॉर्मल सी फूड पोइसिनिंग है और उल्टी रोकने का इंजेक्शन  दे दिया. अब अनु को खाने के बाद उल्टी नहीं हुई लेकिन वो अंदर से बेचैन थी और शाम को जैसे ही इंजेक्शन  का असर खत्म हुआ वैसे ही अनु की तबियत फिर से खराब हो गयी .सभी को चिंता होने लगी लेकिन डॉक्टर ने आश्वासन दिया तो सभी शांत हो गए.अनु ने भी अपने कॉलेज में अपने प्रोफेसर से बात की जो कि जाने माने डॉक्टर थे तो उन्होने भी कहा कि फूड पोइसिनिंग है और कुछ medicine बताकर बोले कि अगर कमजोरी ज्यादा हो तो डॉक्टर से मेरी बात करा देना और ग्लूकोस ले लेना.

आज दशहरे का दिन था. सुबह अनु ने कहा कि पापा बड़ी कमजोरी लग रही है, प्लीज ग्लूकोस की बॉटल चढवा  दो. तो डॉक्टर से बातकर अनु के पापा ने अनु को घर पर ही ग्लूकोस की  बॉटल चढ़वा दी. अनु ने अपने प्रोफेसर से डॉक्टर की बात भी कराई.

अविरल सारा टाइम अनु के पास ही बैठकर उसके सर में बाम लगाता रहा. बोतल  चढ़ने के बाद अनु जब भी लेटती उसकी सांस ठीक से नहीं आती तो वह बेचैन होकर बैठ जाती. इस बारे में जब उसने डॉक्टर को बताया तो डॉक्टर ने बोला कि कुछ एंटिबयोटिक्स दी हैं उसकी वजह से है. थोड़ी देर में सही हो जाएगा. अब शाम हो गयी थी, सभी लोग दशहरे में एक दूसरे के घर मिलने जाते थे तो अनु कि फ़्रेंड्स भी मिलने आई तो अनु ने उनसे बोला कि 1-2 दिन में ठीक हो जाऊँगी तो सबके घर आऊँगी.

अब रात का 11 बज चुका था. अचानक अनु बेहोश हो गयी. उसके पापा और अविरल उसे गोद में लेकर गाड़ी की  तरफ भागे और ड्राईवर से हॉस्पिटल चलने के लिए बोला. अनु के पापा ने अविरल को घर पर ही छोड़ दिया. अनु की  मम्मी,पापा उसे लेकर निकले. आधे रस्ते में  अनु ने को होश आया. उसका सिर अपने पापा की गोद में था . अनु  ने अपने पापा से कहा कि पापा बेचैनी हो रही है, प्लीज विंडो ओपेन कर दो. जैसे ही विंडो ओपेन हुई, अनु की सांसें बंद होने लगीं थी. जैसे ही हॉस्पिटल आया तो डॉक्टर पहले से ही ऑक्सीजन  की किट लिए बाहर खड़े थे. तुरंत ही अनु को ऑक्सीजन  लगाई गयी लेकिन शायद अनु का साथ यहीं तक था. दुर्भाग्यवश ऑक्सीजन  का सिलिंडर ही ऑन नहीं हुआ. थोड़ी देर में अनु की सांसें रुक गयी…..

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अरे ये क्या हुआ, 2-3 दिनों में ही एक हँसते- खेलते परिवार की जिंदगी बदल  गयी.

अगले भाग में हम जानेंगे कि क्या अनु का परिवार इस विपत्ति के पहाड़ से निकल पाएगा ? अविरल का क्या होगा?

शह और मात: भाग-3

उस की इच्छाओं की पूर्ति करतेकरते भी उस से गालियां सुनती है, मार खाती है. पल्लवी उन मूर्खों में से थी जिस ने खुद अपना पैर कुल्हाड़ी पर दे मारा था. अपनी गलतियों के कारण वह संजीव की बिछाई शतरंज की बिसात पर सिर्फ एक मुहरा बन कर रह गई थी. पल्लवी ने आंसू पोंछे और मन मार कर संजीव को खाना परोसने चली गई.

इस के बाद कुछ दिनों तक तो संजीव शांत रहा, लेकिन वह ₹10 हजार रुपयों पर आखिर कितने दिन ऐश करता? उस ने पल्लवी को शरद से ₹1 लाख निकलवाने के लिए कहा और इस के लिए योजना भी समझा दी.

पल्लवी ने संजीव के कहे अनुसार अभिनय करना शुरू कर दिया. एक दोपहर शरद के साथ खाना खाते समय उस ने अपनी छोटी बहन से फोन पर बात करने का नाटक किया और रोने लगी. पल्लवी को इस तरह रोता देख कर शरद परेशान हो गया.

“पल्लवी तुम इस तरह क्यों रो रही हो? घर पर सब ठीक है न?” शरद ने पूछा.

“शरद मेरी मां की तबीयत बहुत खराब है. मुझे उन के औपरेशन के लिए ₹1 लाख का इंतजाम करना होगा और वह भी 2 दिनों के अंदर. मैं इतनी जल्दी इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगी?” पल्लवी ने परेशान होने का नाटक किया.

“तुम फिक्र मत करो पल्लवी. कोई न कोई इंतजाम हो जाएगा,” शरद ने उसे हौसला बंधाते हुए कहा.

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“कैसे फिक्र न करूं शरद. मेरा बैंक अकाउंट संजीव खाली कर चुका है. जो थोड़ेबहुत गहने थे वे मैंने कर्ज उतारने के लिए बेच दिए थे. अभी कुछ दिन पहले मेरे पास घर का किराया देने के लिए एक फूटी कौड़ी तक नहीं थी. उस वक्त तुम ने मेरी मदद की थी. अब मैं किस के आगे हाथ फैलाऊं?” पल्लवी अपने चेहरे को हथेलियों के पीछे छिपा कर रो पड़ी.

शरद अपनी कुरसी खींच कर पल्लवी के पास ले आया और उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा,“पल्लवी ‌सब ठीक हो जाएगा, पहले तुम रोना बंद करो प्लीज.”

शरद को पिघलता देख कर पल्लवी ने उस की बांह को कस कर पकड़ लिया और अपना सिर उस के कंधे पर टिका दिया और रोते हुए कहा, “अगर मां को कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी. मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं बहुत अकेली हो गई हूं शरद.”

“तुम अकेली नहीं हो पल्लवी. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं,” शरद ने पल्लवी के हाथ पर अपना हाथ रखा. वह उस के चेहरे पर उभरती कुटिल मुसकान से बेखबर था.

अगले दिन औफिस पहुंचने से पहले ही पल्लवी को मालूम था कि शरद ने रुपयों का इंतजाम कर लिया होगा. आखिर उस ने अभिनय भी तो कमाल का किया था.

पल्लवी का अंदाजा बिलकुल सही निकला. शरद ने लंच ब्रैक के समय उस के हाथ में ₹1 लाख थमा दिए.

“थैंक यू सो मच शरद. मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी. मैं जल्द से जल्द तुम्हारे सारे रुपए लौटा दूंगी,” पल्लवी ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा.

“कैसी बातें करती हो पल्लवी, क्या मेरा सब कुछ तुम्हारा नहीं है? अब बातें करने में समय बरबाद मत करो. जाओ और अपनी बहन को यह रुपए दे दो,” शरद ने मुसकरा कर उस का माथा चूम लिया.

पल्लवी ने एक बार फिर से शरद को धन्यवाद कहा और रुपए ले कर अपने घर आ गई. ₹1 लाख देख कर संजीव खुशी से उछल पड़ा और एक पल गंवाए बिना पल्लवी के हाथ से नोट झपट लिए, “अरे वाह पल्लवी, आज तो तुम ने कमाल ही कर दिया. अच्छा यह बताओ शरद को तुम पर शक तो नहीं हुआ?”

“नहीं…”

“वैरी गुड… अब अगली बार ₹2 लाख से कम मत मांगना,” संजीव ने हिदायत दी.

“लेकिन संजीव, इस तरह बारबार बहाने कर के ज्यादा रुपए मांगूगी तो शरद को मुझ पर शक हो जाएगा,” पल्लवी ने तर्क दिया.

“पल्लवी, तुम अपने छोटे से दिमाग पर ज्यादा जोर मत डालो. यह शरद तुम पर पूरी तरह से लट्टू हो चुका है. इस का जितना फायदा उठा सकती हो उठा लो. फिर कोई नया बकरा फंसा लेना,” संजीव ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा और चलता बना.

संजीव के जाने के बाद पल्लवी का हाथ अनायास ही अपने माथे पर चला गया. जब शरद ने उस के माथे को चूमा था तो उसे अजीब सी सुखद अनुभूति हुई थी. शरद ने उसे भीतर तक छू लिया था. आज से पहले उस ने न जाने कितने लोगों के साथ प्यार का नाटक किया था मगर उसे ऐसा तो कभी महसूस नहीं हुआ. सिर्फ यही नहीं, शरद के रुपए संजीव को देते समय उसे ग्लानि हो रही थी. वह संजीव के पूछने पर इनकार कर देती थी लेकिन सच तो यह था कि उसे शरद का साथ अच्छा लगने लगा था.

पल्लवी को आभास हुआ कि उस का मन भटक रहा है. वह शादीशुदा होते हुए भी पता नहीं क्याक्या सोचने लगी थी. उसने मन ही मन खुद को फटकारा और अपना ध्यान बंटाने के लिए घर के काम में व्यस्त हो गई.

₹1 लाख रुपए मिलने के बाद भी संजीव का पेट नहीं भरा. उस;ने जल्द ही सारे रुपए उड़ा दिए और पल्लवी को शरद से दोबारा रुपए मांगने के लिए मजबूर करने लगा. इस बार उस:के लालच के साथ रुपयों की मांग भी बड़ी थी. पल्लवी के इनकार करने पर वह उसे प्रताड़ित करने लगा.

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इधर औफिस में पल्लवी और शरद के बीच नजदीकियां बढ़ती जा रहीं थीं. संजीव का बुरा बरताव आग में घी का काम कर रहा था. संजीव के दिए जख्मों को शरद के प्रेम का मरहम भरने लगा था. पल्लवी के प्रति शरद की परवाह उसे शरद की तरफ खींचती चली जा रही थी. जब पल्लवी शरद के करीब होती तो खुद को बेहद सुरक्षित महसूस करती थी. उसे लगता था कि शरद की बांहों में ही उस का घर है. पल्लवी के लिए प्यार का नाटक धीरेधीरे सच होता चला गया. उस ने बहुत कोशिश की मगर वह खुद को शरद से प्यार करने से नहीं रोक पाई. पल्लवी ने निश्चय कर लिया था कि अब चाहे जो हो जाए, वह शरद से कभी रुपयों की मांग नहीं करेगी.

आगे पढ़ें-  संजीव बातबात में राई का पहाड़ बना कर उस पर…

ज़िंदगी एक पहेली: भाग-4

पिछला भाग- ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-3

अविरल सुमि से काफी जुड़ाव महसूस करता था.  पर जैसा की हम जानते हैं की समाज की निगाह में एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते. तो बहन का रिश्ता  तो बहुत दूर की बात है. स्कूल change  होने के बाद अविरल और सुमि एक दूसरे से मिलना  तो दूर बात भी नहीं कर पाते  थे.  अविरल और सुमि कभी- कभी अमित  के घर पर मिलते थे. अब आगे-

सुमि आसू से नफरत करती थी. इसका शायद एक  कारण यह भी था कि अविरल ही सुमि को आसू  के बारे में सब कुछ बता चुका था जैसे कि आसू की गुंडागर्दी, उसके कई अफेयर और ब्रेकअप. सुमि अविरल को आसू की propose करने वाली बात बताकर  उसे दुखी नहीं करना चाहती थी. इसलिए  उसने यह बात अविरल से  नहीं बताई.

सारी बातों से अनभिज्ञ अविरल को अब आसू का साथ अच्छा लगने लगा था. अब वह अपना कॉलेज बंक करके आसू के साथ ही घूमता रहता. वह अनु से भी बातें छुपाने लगा. अनु से अविरल थोड़ा दूर होने लगा. अनु को दुःख तो होता था लेकिन वह यह देखकर खुश होती कि अविरल अब घर से बाहर भी खुश रहने लगा. अब अविरल थोड़ा सा खुलने लगा था, उसका हकलापन भी अब पहले से थोड़ा कम हो गया था. लेकिन अगर अविरल नर्वस होता तो उसका हकलापन कई गुना बढ़ जाता.

आसू का बर्ताव अब धीमे धीमे बदलने लगा था. वह लड़कियों से दूर रहने लगा था. कुछ अनमना सा रहता था आशू. अविरल ने कई बार आसू से कारण पूंछा लेकिन हर बार वह बहाना बनाकर चला गया.  लेकिन एक  दिन अविरल ने बहुत जिद की तो आसू ने बुरा न मानने का promise लेकर बता दिया कि वह सुमि से मोहब्बत करने लगा है. अविरल के पैरों के नीचे  से जमीन खिसक गयी. उसे आसू की मोहब्बत पर विश्वास नहीं हुआ. उसे लगा कि आसू दूसरी लड़कियों की तरह ही सुमि  के  साथ भी फ्रॉड करेगा. अविरल वहां से उठा और बिना कुछ बोले वहां से चला गया. आसू को भी कहीं न कहीं ये शक था कि कहीं अविरल भी तो सुमि को प्यार नहीं करता.

अविरल अपने घर चला गया और रात दिन इसी बारे में सोचता रहा. अविरल को आसू के बदलते रवैये को लेकर उसके प्यार में कुछ सच्चाई तो नजर आई लेकिन वह कंफ्यूज था. उसने अमित के घर में सुमि से इस बारे में बात की तो सुमि ने सारी बात बताई. यह जानकर अविरल को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये बात 1 महिना पुरानी है और आसू जैसा बिगड़ा हुआ लड़का दोबारा सुमि के पास नहीं गया. अब अविरल को आसू की बातों पर विश्वास हो चला था.

कुछ दिनों तक अविरल आसू के घर नहीं गया. एक  दिन आसू के पापा अविरल  के घर आए.  उन्होंने बताया कि काफी दिनों से आसू की हालत ठीक नहीं है उसका किसी चीज में मन नहीं लगता है.  उसका खाना-पीना भी बहुत कम हो गया था.  अभी कुछ दिनों पहले ही उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई थी तो उसे हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा था और एक दिन पहले ही आसू डिस्चार्ज होकर घर आया है.  अविरल आसू से मिलने आसू के घर पहुंचा तो उसे आसू के कमरे से रोने की आवाज़ सुनाई दी.  वह खिड़की के बाहर से  छुपकर देखने लगा. आसू अन्दर सुमि की फोटो लेकर बुरी तरह रो रहा था . तभी जाकर अविरल ने उसका हाथ पकड़ लिया.  आसू अविरल के गले लग बुरी तरह रोते हुए बोला ,“मैं सारी बुरी आदतें छोड़ दूंगा, प्लीज मेरी मदद करो”.

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आसू ने अविरल को बताया कि वह हर समय सुमि को देखने के लिए सुमि के घर के रास्ते  में बैठा रहता और छुपकर उसे देखता रहता.  जिस भी दिन सुमि नहीं दिखती, कहीं भी उसका मन नहीं लगता.  अविरल को आसू पर बहुत दुख हुआ और अविरल ने उसका साथ देने का निश्चय किया.

अविरल ने सुमि से आसू के बारे में बात की लेकिन सुमि तो आसू से नफरत करती थी तो सुमि ने साफ-साफ अविरल से बोल दिया कि मेरे सामने आसू की बात मत करना.  अविरल अब अपने आप को बीच में फंसा हुआ महसूस कर रहा था.  उसका मन बिल्कुल भी पढ़ाई में नहीं लगता था.  अनु जब भी उसे कोई question  पूछती, उसके बारे में अविरल को कुछ भी पता नहीं होता. अनु थोड़ा गुस्सा भी होती और उसे समझाती भी, लेकिन अब अनु की बातें अविरल को अच्छी नहीं लगती थी. अब अविरल अनु की बाते अनसुनी करने लगा था. वह अपनी कोचिंग में एक्सट्रा क्लास का बहाना बना कर अपनी कोचिंग 1 घंटे पहले ही  चला जाता और 1 घंटे बाद आता था.  बाकी का सारा समय वह आसू और उसके दोस्तों के बीच बिताने लगा.

अविरल ने आसू के बारे में पल्लवी से बात की और पल्लवी से सुमि को  समझाने के लिए बोला.  अब अविरल और पल्लवी अक्सर सुमि से  आसू की बातें बताते  रहते . ऐसा होते होते 6 माह और बीत गए.  और कहते हैं ना कि पत्थर पर बार-बार रस्सी घिसने से पत्थर पर भी निशान बन जाता है तो सुमि तो इंसान थी.

अब सुमि को भी लगने लगा था कि शायद आसू बदल गया है.  आसू हर दिन उसके कोचिंग आने और जाने का इंतजार करता और जैसे ही सुमि दिखती वह छुप जाता था.  सुमि को उसकी यह हरकत देखकर मन ही मन बहुत हंसी आती .

शायद अब सुमि के मन में कहीं ना कहीं आसू के लिए जगह बनने लगी थी.  अब वो भी जब आते जाते आसू को देख लेती तो आंखें झुका कर निकल जाती थी.  पल्लवी और सोनी का घर आसपास ही था तो वे दोनों रोज मिलती थी और उन दोनों के बीच में रोज ही आसू की बातें होती थी.  अब  सुमि को आसू की बातें अच्छी लगने लगी थी.  इसका एहसास पल्लवी और अविरल को भी हुआ.  अविरल  ने खुशी होकर आसू को सारी बात बताई. आसू भी बहुत खुश हुआ.

आसू अब एनसीसी में सीनियर हो चुका था था तो उसने अविरल का एडमिशन भी एनसीसी में करा लिया.  अविरल अब केवल खाने और सोने के लिए ही घर पर रहता था.  अनु को अविरल की इन हरकतों से बहुत दुख होता था.  अनु ने अविरल को बैठा कर उससे बात की तो अविरल  को भी एहसास हुआ कि वह क्या कर रहा है? लेकिन अब अविरल के लिए काफी देर हो चुकी थी. अविरल का फाइनल एक्जाम आने वाला था.  और कुछ समय बाद अविरल का फाइनल रिजल्ट आया जो कि बहुत ही खराब था.  अविरल ने आसू की मदद से एक फर्जी रिजल्ट बनवाया और घर में दिखाया.  लेकिन अनु को इस बात पर शक था क्योंकि वह जानती थी कि अविरल ने बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं की है.

अनु भी मेडिकल की तैयारी कर रही थी और उसका सेलेक्शन MBBS  में हो गया.  घर में सभी लोग बहुत खुश थे.  अनु के पापा और अनु काउंसलिंग के लिए दिल्ली गए और अनु का एडमिशन करा दिया गया.  एडमिशन के बाद अनु और उसके पापा वापस देहरादून आ गए.  अनु को 15 दिन बाद हॉस्टल जाना था.  अविरल को जब यह बात पता चली उसे बहुत दुख हुआ.  वह अनु से बोला कि, “दीदी यही पढ़ाई कर लो ना”.

अनु का भी दिल्ली जाने का मन नहीं था तो उसने अपने पापा से बात की.  अनु के पापा अपने बच्चों की भावना समझते थे तो उन्होंने बड़े प्यार से बच्चों को समझाया कि अनु  को देश का सबसे अच्छा कॉलेज मिला है.  बहुत समझाने के बाद अविरल और अनु  मान तो गए लेकिन उनका मन बेचैन था.

अगले भाग में हम जानेंगे की अविरल के जीवन में अब कौन सा बड़ा तूफान उसका इंतज़ार कर रहा था ?

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लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-6)

पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-5)

‘‘हैपी बर्थ डे मौसी’’

गिफ्ट ले पुलकित मुख से गुस्सा दिखाया दुर्गा ने, ‘‘कहा था न गिफ्ट मत लाना.’’

वो हंसी. आज बहुत ही सुंदर लग रही है वो एकदम ओस धूली अभीअभी खिली फूल जैसी. कल ही घमासान हुई है बंटी के साथ पर बंटी के चेहरे पर उस की कोई झलक तक नहीं. हंस कर बोला,

‘‘हाई बेबी.’’

‘‘हाई आंटी, नमस्ते. कैसी हैं आप?’’

‘‘ठीक हूं बेटी. पर मंजरी के बिना मेरी शौपिंग, पार्टी, मूवी सब सूनी हो गई. लोग कितनी उमर तक बैठे रहते हैं और उसे ही जल्दी पड़ी थी मुझे छोड़ जाने की. उन्होंने सुगंधित रूमाल सूखे आंखों पर रगड़ा, दुर्गा ने परिवेश भारी होते देख प्रसंग बदला, ‘‘तुझे लंच पर बुलाया था और तू मेहमान की तरह अब आ रही है.’’

बैठ गई शिखा, एक माजा उठाया.

‘‘क्या करूं काम इतना बढ़ गया है कि…’’

कहते ही मन ही मन उस ने सिर पीटा, यह क्या कह गई दुश्मनों के सामने.

‘‘हां सुना है तू ने बड़ी कुशलता से बिजनैस को बढ़ाया है मंजरी जो छोड़ गई थी उस से दो गुना हो गया है…’’

‘‘मुझे भला क्या आता है मांजी? सब दादू की मेहनत है.’’

‘‘हां सुना है अब विदेश में भी खूब काम चल पड़ा है.’’

‘‘खूब तो नहीं बस पैर रखा ही है. बेचारे दादू ही दोतीन बार विदेश दौड़े इस उम्र में अकेले तब जा कर…’’

‘‘तू भी तो सब छोड़ लगी पड़ी है.’’

‘‘लगना पड़ता है. ईमानदारी और सिनसियर ना हो तो बिजनैस मजधार में डूबता है.’’

एकपल के लिए उस ने मांबेटे पर नजर डाली. देखा दोनों का मुंह फूल गया है. नंदा ने बड़ी चालाकी से बात संभालने का प्रयास किया, ‘‘बेबी, हमें सब से ज्यादा खुशी है, तुम्हारी कामयाबी से, पर तुम्हारी मां की जगह मैं हूं इसलिए तुम्हारे लिए चिंता और डर मन में लगा ही रहता है.’’

‘‘क्यों आंटी?’’

‘‘समय अच्छा नहीं है लोग जलते हैं दूसरों को फलताफूलता देख. इसलिए जो है उसे छिपा उल्टी बात प्रचार करना चाहिए.’’

‘‘मतलब बिजनैस डूब रहा है, दीवाला निकल रहा है यही सच…’’

‘‘एकदम ठीक.’’

शिखा खुल कर हंसी,

‘‘अब समझी आंटी बंटी यही बात क्यों कहता है, लोग भी मान चुके हैं कि मेहता संस के बुरे दिन आ गए.’’ नंदा का मुख तमतमा उठा, बंटी के जबड़े कस गए. नथूने फूल उठे. दुर्गा ने बात संभाली,

‘‘बेबी, नमकीन ले चाय पीएगी? बनवा दूं?’’

शाम को ही लौटने का मन बना कर गई थी शिखा पर नहीं लौट पाई. मौसी ने रात के खाने तक रोक ही लिया. इस बीच दुर्गा मौसी ने टूटे तार को जोड़ने की बहुत कोशिश की, धीरेधीरे माहौल सामान्य भी हो गया. खाना खातेखाते 9 बज गए. मौसी ने चिंता जताई,

‘‘बेबी, इतनी रात हो गई तू अकेली जाएगी.’’

‘‘9 ही तो बजे हैं मौसी. मैं चली जाऊंगी. शंकर दादा हैं तो साथ में.’’

शंकर ‘‘कुंजवन’’ के पुराने ड्राईवर हैं. मंजरी नौकरों को नौकर ही समझती थी पर पापा ने ही सिखाया था कि बड़ों का सम्मान करो भले ही वो नौकर ही क्यों ना हो.

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‘‘बंटी तुझे पहुंचा आता.’’

‘‘अरे नहीं रात कहां है?’’

‘‘दिल्ली का माहौल क्या है देख तो रही है. बेबी मुझे तेरी बड़ी चिंता रहती है. अकेली लड़की?’’

‘‘अकेली कैसे? पूरा घर साथ में है.’’

‘‘फिर भी…समय का काम समय पर ही होना चाहिए.’’

अब तेरी एक नहीं सुनूंगी. कल ही पंडितजी को बुला महुरत निकलवाती हूं.

‘‘महुरत?’’

‘‘हां… बंटी भी कब तक बैठा रहेगा?’’ नंदा बोल पड़ी,

‘‘हमारी तो आफत हो गई है. रोज दोचार लड़की वाले आ बैठते हैं.’’

नरम स्वर में शिखा ने कहा

‘‘वो तो होगा ही आंटी, आप का बंटी हीरा जो है.’’

‘‘तू ही बता कब तक मना करूं?’’

‘‘मना कर ही क्यों रही हैं. कर दीजिए न शादी.’’

‘‘कैसे कर दूं. मंजरी को वचन दिया था उस का पालन ना करने का पाप कैसे सिर पर लूं?’’

दुर्गा ने समर्थन किया

‘‘बात सच है. मंजरी तेरी शादी बंटी से ही तय कर गई है.’’

‘‘शादी तो मुझे करनी है, और मैं बालिग भी कब की हो चुकी तो मैं ही तय करूंगी कि किस से शादी करूंगी.’’

‘‘पर बेटा बंटी तेरा बचपन का दोस्त है. वो तुझे चाहता है.’’

‘‘मौसी मुझे छोड़ उस के दर्जनभर दोस्त और भी हैं जिन को वो चाहता है तो क्या उन सब से शादी करेगा?’’

बंटी चीखा.

‘‘शिखा, जबान संभाल के बात करो,’’

‘‘मैं भी चाहती हूं तुम से बात ना करूं. मजबूर किया गया बोलने को. मौसी मैं चली. याद रखना इन के साथ मुझे अपने घर कभी मत बुलाना.’’

उस के निकलते ही नंदा बेटे पर झिड़की.

‘‘बापबेटे कटोरा ले चौराहे पर खड़े होना.’’

बचने की आखरी उम्मीद है शिखा. उसे नाराज कर दिया नालायक अब डूबो मझधार में. तेवर दिखाने चला तो शिखा को.

‘‘बात सही है. बचना चाहो तो बेबी को मनाओ.’’

घर लौटते हुए शिखा ने मन ही मन निर्णय लिया कि आज की घटना के विषय में दादू को कुछ नहीं बताएगी. उस की गाड़ी की आवाज सुनते ही जानकीदास ड्राईंगरूम में आ गए. शिखा हंसी.

‘‘मुझे पता था मेरे लौटने तक तुम बैठे रहोगे. रात की दवाई ली?’’

‘‘बस अब ले कर सीधे सोने जाता हूं.’’

‘‘साड़े दस बज गए.’’

‘‘हां तू भी जा कर सो जा टीवी या किताब ले मत बैठना. अपने कमरे में आ कर फ्रैश हो ली शिखा. नरम फूल सा नाईट सूट पहन बिस्तर पर बैठ क्रीम लगाते हुए आज उस ने हलका महसूस किया. मेहता परिवार में आज मातम छा गया होगा. एक बड़ा सा सपनों का महल था उन के सामने उस के दम पर उछलते फिर रहे थे. जल्दी से शादी कर उस के दम पर अपने को सड़क पर आने से बचाना चाहते थे. उधेड़बुन में ना रख कर शिखा उन की सारी आशाओं की जड़ ही काट आई. उस का अपना सिर दर्द समाप्त हुआ. बत्ती बंद कर वो लेट गई. मां उस की शुभचिंतक कभी नहीं रही. सदा ही उस की इच्छा, पसंद, शौक का गला दबा अपनी दिशा में हांकती रही. उस की छोटीछोटी खुशियों की हत्या कर मन ही मन अपनी जीत पर गर्व करती रही. उस के प्यार को भी उस से छीन पता नहीं कहां कितनी दूर फेंक दिया जिसे वो इस जीवन में नहीं खोज पाएगी. सुकुमार वचन का पक्का है वचन दे कर गया है कि अब कभी उस को अपना मुख नहीं दिखाएगा.’’

उस दिन तो शिखा ने मां को ही समर्थन किया था उसे अपने से बहुत नीचे स्तर का कह धिक्कारा था. व्यंग किया था, पैसों का लालची कहा था और गेट से बाहर निकाल दिया था. उस दिन के बाद वो कभी नहीं दिखाई दिया ‘कुंजवन’ के बाहर आते ही तो शिखा की प्यासी व्यथित दोनों आंखें उसी को खोजती हैं पर कहां है वो, कहां चले गए तुम? मेरे मुंह के बोल सुन मुझे छोड़ गए एक बार मेरी आंखों में भी तो झांकते मन को पढ़ते कि मैं ने ऐसा क्यों किया? मुझे समझने की कोशिश करते. तुम मेरे बचपन के प्यार हो, तुम मुझे कैसे छोड़ गए बस मेरे दो मुंह के बोल सुन कर. लौट आओ प्लीज, मेरे पास लौट आओ. मैं बहुत अकेली हूं. उस ने आंसू पोंछे. मां जातेजाते उस के साथ एक और शत्रुता कर गई. बंटी से उस के विवाह की बात कह कर उसे सिर चढ़ा गई. मेहता परिवार तो आसमान पर छलांगे लगाने लगा खास कर बंटी. सब के सामने ऐसा दिखाने लगा मानो उस का विवाह ही हो चुका है शिखा के साथ, जबकि शिखा ने एक दिन भी घास नहीं डाली उसे. राजकन्या के साथ पूरा साम्राज्य मुट्ठी में आ रहा है. बंटी ने अय्याशी बढ़ा दी, चमचे भी जुट गए. व्यापार डूबने लगा तो क्या, शिखा तो अपने व्यापार को चौगुना बढ़ा रही है ब्याह होते ही सब कुछ मुट्ठी में, तब तक जरा हिचकोले खा ही लेंगे. आज शिखा रोजरोज की फजिहत की जड़ ही काट आई है. इतनी देर में उसे नींद आई.

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#coronavirus: कोरोना वायरस पर एक हाउसवाइफ का लेटर

कोरोना,तुम मेरे देश को जानते नहीं? हम तुम्हें गोबर से भी भगा सकते हैं. तुम ने यहां आ कर एक हाउसवाइफ के साथ अन्याय किया है. जब तुम्हारे डर का शोर मेरे बेटे के स्कूल में मचा तब मैं फेशियल करवा रही थी.

पति अमित टूर पर थे. मेरा मोबाइल बजा. वैसे तो मैं न उठाती, पर स्कूल का नाम देख कर उठाना ही पड़ा. मैसेज था अपने बच्चे को ले जाओ. ऐसा धक्का लगा न उस समय तुम्हें बहुत कोसा मैं ने. उस के बाद हमारी किट्टी पार्टी भी थी. टिशू पेपर से मुंह पोंछ कर मैं बंटी को लेने उस के स्कूल पहुंची. ऊपर से बुरी खबर. स्कूल ही बंद हो गए. बंटी को जानते नहीं हो न? इस की छुट्टियां मतलब मैं तलवार की नोक पर चलती हूं, कठपुतली की तरह नाचती हूं.

अमित जब बाहर से गुनगुनाते हुए घर में घुसते हैं इस का मतलब होता है मैं अलर्ट हो जाऊं, कुछ ऐसा हुआ जो अमित को तो पसंद है, पर मुझ पर भारी पड़ेगा. वही हुआ. तुम्हें यह लिखते हुए फिर मेरी आंखें भर आई हैं कि अमित के पूरे औफिस को अगले 3 महीनों के लिए वर्क फ्रौम होम का और्डर मिल गया. वर्क फ्रौम होम का मतलब किसी हाउसवाइफ से पूछो.

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तो वर्क फ्रौम होम शुरू हो गया. मतलब अमित अब आराम से उठेंगे, उन के चायनाश्ते का टाइम अब तय नहीं होगा. मतलब मेरा मौर्निंग वाक अब गया तेल लेने… बंटी और अमित अब पूरा दिन रिलैक्स करेंगे कि पूछो मत. बंटी के स्कूल तो शायद कुद दिनों बाद खुल भी जाएंगे, पर अमित? 3 महीने? घर पर? वर्क फ्रौम होम? लैपटौप खुला रहेगा, रमाबाई की सफाई पर छींटाकशी होती रहेगी, मेरे अच्छेभले रूटीन पर कमैंट्स होते रहेंगे. बीचबीच में चाय बनाने के लिए कहा जाएगा, बाजार का कोई काम कहने पर ‘घर में तो काम करना मुश्किल हो जाता है,’ डायलौग है ही.

अमित कितने खुश हैं. अब मैं भीड़ से बचने के लिए वीकैंड पर मूवी देखने के लिए भी नहीं कहूंगी. ट्रेन, फ्लाइट की भीड़ से भी बचना है. यह भी तो नहीं कि अमित अगर घर पर हैं तो कुछ ऐक्स्ट्रा रोमांस, मुहब्बत जैसी कोई चीज हो रही है… अब तो साबुन, टिशू पेपर, सैनेटाइजर की ही बातें हैं न… कितनी बार हाथ धोती हूं, हाथों की स्किन ड्राई हो गई है…

और यह मेड भी तो कम नहीं. पता है कल रमाबाई क्या कह रही थी? कह रही

थी, ‘‘दीदी, मेरा पति कह रहा है, कोरोना कहीं तुम्हें मार न दे… रमा सब लोग वर्क फ्रौम होम ले रहे हैं… तुम भी 10 दिन की छुट्टी ले लो.’’

मैं ने घूरा तो भोली बन कर बोली, ‘‘दीदी क्या करें, आप लोगों की चिंता है… हम ही कहीं से न ले आएं यह कोरोना का इन्फैक्शन.’’

मैं अलर्ट हुई. जितना मीठा बोल सकती थी, उतना मीठा बोली, ‘‘नहीं रमा, तुम चिंता न करो… जो होगा देखा जाएगा… तुम आती रहना. बस आ कर हाथ अच्छी तरह धो लिया करो,’’ मन ही मन सोचा कि अमित और बंटी की छुट्टियां और कहीं यह भी गायब हो गई तो कोरोना के बच्चे, तुम्हें मेरे 7 पुश्ते भी माफ नहीं करेंगे.

बंटी और अमित की फरमाइशों पर नाचतेनाचते ही न मर जाऊं कहीं… हाय, ये दोनों कितने खुश हैं… उफ, अमित की आवाज आई है… बापबेटे का मन शाम की चाय के साथ पकौड़ों का हो आया है… वर्क फ्रौम होम है न, तो अब औफिस की कैंटीन की चटरपटर की आदत तो मुझे ही झेलनी है न… छोड़ो, मुझे कोरोना की बात ही नहीं करनी.

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लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-5)

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पता नहीं उसी दिन से सुकुमार एकदम गायब हो गया, कहीं भी कभी भी किसी को दिखाई नहीं दिया. हवा में कपूर की तरह अदृश्य हो गया. फिर तो मम्मा ने उसे ‘लंदन’ ही भेज दिया एमबीए करने. इस घटना से बंटी का खून दुगना हो गया ऊपर से मम्मा की शह पा वो शिखा को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति ही मानने लगा. मम्मा ने कई बार दोनों की मंगनी की बात कही अवश्य थी पर वो भी व्यस्त थीं तो बात बस बात ही बन कर रह गई है अभी तक. शिखा ने उसे कभी पसंद नहीं किया अब मम्मा के बाद तो उठतेबैठते उसे काटती है. पता नहीं सुकुमार अब कहां है. किस हाल में है. भावुक लड़का, शिखा को खो कर कहीं उस ने आत्महत्या तो… सिहर उठी. ना…ना भगवान, वो जहां भी हो उस की रक्षा करना, उसे स्वस्थ और सुखी रखना. एक प्रतिभा की अकालमृत्यु मत होने देना प्रभू.

आंसू पोंछे शिखा ने लैपटौप औन करते ही कल की घटना याद हो आई लंच के बाद से सिर थोड़ा भारी हो रहा था. घर आ कर सोने की सोच रही थी कि बंटी आया. ठीक उसी चाल से दनदनाता आ कर कुरसी खींच बैठ गया. कोई औपचारिकता की परवा किए बिना. पीछे से रामदयाल सहमा सा, डरा सा झांकने लगा शिखा ने इशारा किया तो वो चला गया. गुस्से से सिर जल रहा था पर संयम और धैर्य की शिक्षा उस ने पापा से ली है नहीं तो मम्मा जैसी महिला को झेलना आसान नहीं था. बंटी सीधे अपने मुद्दे पर आया, ‘डील तो तुम ने कर ली पर इतनी बड़ी सप्लाई तीन महीने में दे पाओगी?’

शिखा ने सामने की खुली फाइल बंद की और कुरसी की पीठ पर ढीली पड़ गई.

‘‘लगता है मेरे बिजनैस को ले कर तुम को मुझ से भी ज्यादा चिंता है.’’

‘‘क्यों न हो. दो दिन बाद मुझे ही तो संभालना है.’’

‘‘ओ रिऐली, मुझे तो पता नहीं कि मैं सब कुछ छोड़ कर सन्यास ले रही हूं.’’

‘‘सन्यास की बात किस ने की? शादी के बाद दायित्व तो दायित्व मेरा ही होगा.’’

‘‘किस की शादी?’’

‘‘सारी दुनिया जानती है मैं तुम्हारा मंगेतर हूं.’’

‘‘कोई रस्म हुई है क्या?’’

‘‘वो भी कर लेते हैं. अब मुझे शादी की जल्दी है.’’

‘‘तुम को होगी ही अपनी डूबती नाव को किनारे पर लाने की, पर मेरे साथ ऐसी कोई समस्या नहीं.’’

‘‘अरे आंटी का दिया वचन…’’

‘‘नशे में धुत् हो कर कोई भी अपने को भारत का प्रधानमंत्री घोषित करे तो क्या वो हो जाएगा.’’

रंग उड़ गया बंटी का, ‘‘क्या कह रही हो?’’

‘‘जो तुम सुन रहे हो.’’

‘‘सारा समाज जानता है आंटी ने वचन दिया था.’’

‘‘मैं भी जानती हूं इस बात का प्रचार तुम लोगों ने ही जोरशोर से किया है. उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. जाने दो यह काम का समय है तुम को कोई काम हो तो कहो.’’

नरम पड़ा बंटी,

‘‘देखो इतना बड़ा सप्लाई इतने कम समय में कोई एक कंपनी तो दे नहीं पाएगी तुम को कई कंपनियों से काम करवाना पड़ेगा. एक लाट हमें भी दे दो.’’

‘‘सौरी,’’ मैं ठेका दे चुकी.

‘‘मुझे बताया तक नहीं?’’

‘‘नहीं. पहला विदेशी आर्डर है. मैं ने उन को काम दिया है जिन पर मुझे भरोसा है, विश्वास है. तुम पर विश्वास का ही प्रश्न नहीं तो भरोसा क्या होगा?’’

बंटी का गोरा मुख लाल हो गया. शिखा ध्यान से उसे देख रही थी. वो वास्तव में हैंडसम है, लंबा, गोरा तीखे नैन नक्श उसी का हम उम्र पर अत्यधिक शराब और अय्याशी ने अभी से उस के शरीर को थुलथुल बनाना शुरू कर दिया है. मुख पर, आंखों के नीचे चर्बी की परतें जमनी शुरू हो गई हैं. उसे लगा थोड़ी थकान भी है.

बंटी उठ खड़ा हुआ.

‘‘तो तुम आंटी के वचन की परवा नहीं करोगी?’’

‘‘परवा तो तब करती अगर वचन होता.’’ शराब पिला कर बड़ीबड़ी संपत्ति लिखवा लेते हैं लोग. बिना कुछ बोले चला गया था बंटी, शिखा विचलित नहीं हुई पर घटना सुन कर चिंता में पड़ गए थे जानकीदास.

‘‘बेटा, यह अच्छा नहीं हुआ.’’ यह अच्छे लोग नहीं हैं चुप नहीं बैठेंगे.

‘‘आप इतने दुखी क्यों हैं दादू?’’ क्या करेंगे वो?

‘‘यह तो नहीं जानता पर चिंता तो हो रही है.’’

‘‘बिजनैस में दुशमनी तो चलती ही रहती है.’’

‘‘पता है जीवनभर इसी से जुड़ा हूं. शरीफों की दुशमनी से डर नहीं लगता वो जो भी करें अपने स्वर से नीचे नहीं गिरते पर यह लोग तो इतने गिरे हुए हैं और इस समय बौखलाए हुए हैं, क्योंकि सड़क पर आने ही वाले हैं बस…’’

‘‘जो होगा देखा जाएगा.’’

‘‘बेबी.’’

‘‘कुछ कहोगे दादू.’’

‘‘बेटा तू हमारी अकेली वारिस है. शादी नहीं करेगी क्या?’’

अनमनी हो गई थी शिखा,

‘‘पता नहीं दादू. हाथ में शादी की लकीर डालना ही भूल गए होंगे विधाता पुरुष.’’

उस ने हंस कर ही टाला पर मानो एक जलता तीर उस के हृदय के अंदर जा घुसा.

दूसरे दिन सुबह आफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी कि मोबाइल बजा. उस ने देखा दुर्गा मौसी. मां की ममेरी बहन पर सहेली थी मां की, एक स्कूल की क्लास में. रहीस खानदान की नाकचढ़ी मालकिन. मम्मा रहते बहुत आना जाना था अब बहुत कम हो गया. असल में शिखा को ही समय नहीं मिलता. ‘हैलो मौसी. गुड मौर्निंग. कैसी हो आप?’

‘‘बस रहने दे. मैं कैसी हूं उस से तुझे क्या?’’

‘‘सौरी मौसी. गुस्सा मत करो. विश्वास करो एकदम समय नहीं मिलता.’’

‘‘जाने दे. कहां है तू? रास्ते में तो नहीं?’’

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‘‘बस निकलने ही वाली हूं.’’

‘‘सुन, आज शाम मेरे घर आ जा साथ खाना खाएंगे.’’

‘‘अचानक डिनर का निमंत्रण ओहो ध्यान ही नहीं था. हैपी बर्थ डे मौसी. जरूर आऊंगी.’’

गला भारी हो गया मौसी का.

‘‘मंजरी क्या गई तू ने मौसी से रिश्ता ही तोड़ दिया.’’

शिखा का भी मन भर आया.

‘‘नहीं मौसी, जनम का रिश्ता कभी टूटता है भला. मुझे इतना काम रहता है…’’

‘‘सारा काम तू ने अपने सिर पर लिया क्यों है. उस बूढ्ढे को मोटी रकम दे कर क्यों रखा है. पड़ेपड़े छप्पन भोग उड़ाने.’’

दादू के प्रति अपमानजनक शब्दों से मन ही मन आहत हुई शिखा. मन में जो प्रसन्नता जागी थी वो विराग में बदल गया. रसहीन शब्दों में बोली,

‘‘उन्होंने ही सब कुछ संभाल रखा है. नहीं तो मुझे भला क्या आता था?’’

‘‘काम तेरा है संभालना तो तुझे ही पड़ेगा. वो तो कर्मचारी ही हैं.’’

‘‘और मेरे सब से बड़े सहारा जाने दो. अब चलूं.’’

‘‘सुन तू आफिस से सीधे यहां आना. रात को खाना खा कर घर जाएगी और हां यह गिफ्टविफ्ट के चक्कर में मत पड़ना.’’

‘‘एकदम नहीं पड़ूंगी.’’

आफिस से जल्दी निकल शिखा ने सीधे कनाट प्लेस आ कर मौसी के लिए पिओर लैदर का बैग खरीदा. फिर नहाधो कर तैयार हुई. आज उस ने सफेद सीधेसादे शर्ट के नीचे लंबे खादी का स्कर्ट पहना घेरदार जयपूरी प्रिंट का. इस समय वो मासूम किशोरी सी लग रही थी. जब मौसी के घर पहुंची तब पांच बज चुके थे. ड्राइंगरूम में पैर रखते ही उस का सुबह से हलके मिजाज पर काले पत्थर का बोझ पड़ गया. बंटी और उस की मां वहां पहले से महफिल जमाए बैठे हैं. कोल्ड ड्रिंक और नमकीन का दौर चल रहा है. यह कोई अनहोनी बात नहीं दुर्गा मौसी भी बंटी की मां नंदा की क्लासमेट थी और अकसर पार्टियों में साथ घूमती हैं. उसे इन बातों की जानकारी होते भी मन में विराग आना नहीं चाहिए था. उस ने गिफ्ट पकड़ाया.

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लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-4)

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तैयार हो वो औफिस आई. बैठते ही रामदयाल पानी ले आया. पुराना स्टाफ, सीधासादा, वयोवृद्ध. पहले बिटिया कहता था अब मालकिन का सम्मान देता है. पानी ले उस ने कहा.

‘‘रामदयाल.’’

‘‘जी साब.’’

‘‘ब्रिजेश बाबू आ गए?’’

‘‘जी साब जी.’’

‘‘उन को बुला दो.’’

थोड़ी देर में ब्रिजेश बाबू आए. दादू से थोड़े ही छोटे हैं, सरल स्वभाव के हैं.

‘‘आइए बाबूजी बैठिए.’’

‘‘कोई समस्या है क्या मैडम.’’

‘‘जी, देखने में तो छोटी बात है पर समस्या छोटी नहीं बहुत बड़ी हो सकती है.’’

वो घबराए.

‘‘क्या हो गया?’’

‘‘आप तो जानते हैं हर कंपनी का नियम है कि उस की डील छोटी हो या बड़ी उसे सिक्रेट रखा जाता है.’’

‘‘हां यह तो व्यापार का पहला नियम है.’’

‘‘हमारी कंपनी में इस नियम का पालन नहीं हो रहा.’’

चौंके वो, ‘‘क्या?’’

‘‘हाल में जो डील हुई है उस की खबर बाहर फैली है…कैसे?’’

वो घबराए, मुख पर चिंता की रेखाएं उभर आईं, ‘‘पर…उस की खबर तो आप, सरजी और मुझे ही है बाकी किसी को पता नहीं.’’

‘‘तभी तो यह प्रश्न उठ रहा है सूचना बाहर कैसे गई?’’

उन्होंने सोचा, शिखा ने सोचने के लिए उन को समय दिया.

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे छोड़ दो और लोगों को पता हो सकता है.’’

‘‘वो कौन हैं?’’

‘‘एक तो मेरा सहकारी जो सारे कागजपत्तर संभालता है दूसरा टाईपिस्ट जिस ने डील के पेपर मतलब टर्म्स औफ कंडीशंस टाईप किया था.’’

‘‘आप के पास कितने दिनों से काम कर रहे हैं?’’

‘‘हो गए चारपांच वर्ष.’’

‘‘स्वभाव के कैसे हैं दोनों?’’

‘‘सहकारी राजीव तो प्रश्न के बाहर है. रामदयाल का पोता गरीब पर ईमानदार सज्जन परिवार वैसे ही सहमा रहता है दादा के डर से.’’

‘‘दूसरा?’’

‘‘टाईपिस्ट विकास हां वो थोड़ा शौकीन और चंचल स्वभाव का है. पर इस प्रकार का अपराध कभी कुछ किया नहीं…’’

‘‘वो बिक सकता है?’’

‘‘शायद.’’

‘‘उस पर नजर रखिए. जरूरत हो तो निकाल सकते हैं.’’

‘‘अगर लीक हुआ हो तो कंपनी को नुकसान?’’

‘‘बहुत ज्यादा नहीं पक्की डील है हमारी. काम भी शुरू हो जाएगा बस, इस की थोड़ी चिंता रहेगी.’’

‘‘मैं उस पर नजर रखता हूं.’’

अगले दिन छुट्टी थी. ड्राइंगरूम में बैठ दादू पोती बात कर रहे थे, ‘‘दादू, टाईपिस्ट विकास ही चोर निकला आखिर.’’

‘‘हां, मेहता ने खरीदा था उसे.’’

‘‘तब तो वो हमारे लिए खतरनाक है.’’

‘‘पर अब वो हमारे काम का है.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘उस ने यह काम एक मुश्त मामूली पैसों के लिए किया था. मैं ने प्रतिमाह हजार रुपए बढ़ा दिए.’’

‘‘यह लो, सजा के बदले ईनाम.’’

‘‘बड़ी कंपनी चलाने के लिए दोचार कांटे भी पालने पड़ जाते हैं बेबी.’’

‘‘आप जो ठीक समझो.’’

‘‘बेबी, एक बात तुझ से कहने की सोच रहा था. मेहता संस की हालत अच्छी नहीं है. मतलब डूबने के कगार पर है.’’

‘‘पुरानी खबर है दादू.’’

‘‘तू जानती है? कैसे पता? इन लोगों ने खबर छिपा रखी है और बापबेटे लंबी चौड़ी हांकते घूम रहे हैं.’’

‘‘मैं तो आम स्कूल में नहीं पढ़ी वो स्कूल महंगा स्कूल था. मेरे नब्बे प्रतिशत दोस्त व्यापारी परिवारों के बच्चे थे जिन में बंटी भी था. इन का घर भी गिरवी पड़ा है.’’

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‘‘इतना नहीं पता था मुझे.’’

‘‘हां, व्यापार डूबा है बेईमानी और धोखाधड़ी के कारण और बापबेटे के खराब, दिखावा, अय्याशी के खर्चे में अभी भी कोई कमी नहीं.’’

‘‘बेबी, तेरा भविष्य तो तेरी मम्मा वहां ही बांध गई है. क्या होगा बेटा?’’

‘‘चिंता मत करो दादू. कोई बंधन नहीं, शराब के नशे में इंसान अनापशनाप बोलते ही रहते हैं.’’

‘‘पर उसी को इन लोगों ने पत्थर की लकीर मान लिया है.’’

‘‘इन के मानने से क्या होगा? मैं नाबालिक हूं क्या?’’

‘‘कितने दुख की बात है हाथ का हीरा फेंक कांच का टुकड़ा उठा लिया तेरी मां ने.’’

‘‘मां की बात मां जाने’’ जीवन तो मेरा है.

दोपहर सोने की आदत नहीं थी शिखा को. टीवी का नशा भी नहीं. तो कंप्यूटर खोल कुछ बकाया काम निबटाने बैठी. जो डील हुई है उस से अब निश्चिंत है. तीन बड़ी गारमेंट्स कंपनी को ठेका दे दिया है ढाई महीना समय सीमा दे कर. पंद्रह दिन हाथ में रखा है पैकिंग, कारगो की व्यवस्था इन सब के लिए. यह तीनों कंपनियों के साथ सोनी कंपनी पहले भी काम कर चुकी हैं. भरोसे की पार्टी है समय पर सप्लाई और माल की गुणवत्ता में कभी कोई शिकायत का मौका नहीं मिला और अच्छे व्यापार के लिए यही दोनों बातें अहम हैं फिर भी दादू ने बारबार उन को सावधान कर दिया है कि पहला विदेशी सप्लाई है बीस से साड़े उन्नीस भी नहीं होना चाहिए. सच दादू न होते तो वो कुछ भी नहीं कर पाती. दादू की छाया में रह कर ही वो इतनी कुशलता से सिर्फ व्यापार को चला ही नहीं रही वरन् ऊंचाई पर ले जाने में सफल हो रही है. और मम्मा ने दादू को सदा ही वेतन पाने वाला कर्मचारी ही समझा ससुर का आदर सम्मान कभी दिया ही नहीं उन को, दादू बेटा जाने के बाद भी यहां टिके रहे बस शिखा के लिए, नहीं तो उन के जैसे अनुभवी और ईमानदार व्यक्ति का आदर कम नहीं. कोई भी दुगने पैसों से उन का स्वागत कर लेता. कल दादू ने ठीक ही कहा था मम्मा ने हाथ से कच्चा हीरा फेंक कांच का टुकड़ा उठा लिया था यह भी नहीं सोचा कि कांच हथेली को काट लहूलुहान कर देगा.

कच्चा हीरा था सुकुमार, नाम जैसा ही कोमल भावुक और मृदुभाषी. रंग सांवला अवश्य था पर सौम्यता लिए आकर्षक व्यक्तित्त्व था उस का. कितना मीठा गला था उस का और क्लास क्या पूरे स्कूल का बैस्ट स्टूडैंट. मां के विराग का एक ही कारण था कि वह गरीब था. मातापिता नहीं थे एक आश्रम में बड़ा हुआ वो भी उम्र की एक सीमा तक फिर तो घर के दो बच्चों को मुफ्त पढ़ाने के बदले किसी बड़े आदमी के आउट हाऊस में रहता था कुछ और बच्चे पढ़ा अपना खर्चा चलाता था. शिखा, बंटी यह सब जिस स्कूल में पढ़ते थे वो महंगा स्कूल था बड़े बिजनैसमैन, नेता, मंत्री, अभिनेता जैसे लोगों के बच्चे ही वहां प्रवेश पाते. वहां ही सुकुमार पढ़ता था यह भी संयोग की बात थी. असल में इस स्कूल के प्रतिष्ठक जो थे वो धार्मिक और दयालू थे. उन्होंने एक नियम बनाया था कि प्रतिवर्ष छटी क्लास में कोई गरीब बेसहारा पर मेधावी को स्कूल ट्रस्ट गोद लेगा उस के ग्रैजुऐशन तक स्कूल कालेज का पूरा खर्चा उठाएगा. उन का चुनाव होगा एक प्रतियोगिता के द्वारा. सुकुमार उस में भी प्रथम आया था तो सहपाठी बन गया. अपने गुण के कारण वो सब का प्रिय बन गया था और शिखा का प्रियतम. उस का पहला प्यार, बचपन का प्यार. मेहता परिवार की नजर शुरू से शिखा पर थी, इतना बड़ा राजपाट अकेली मालकिन वो. बंटी भी बचपन से अति चालाक था वो शिखा से चिपकाचिपका रहता जिस से सुकुमार उस के पास ना आ पाए. शिखा उसे कभी पसंद नहीं करती, काटने की कोशिश भी करती पर मम्मा बंटी की स्कूल की सहेली होने के नाते इस परिवार और बंटी के लिए कोठी नं. 55 के द्वार सदा चौरस खुले रहते बंटी उस का लाभ उठाता. शिखा उस से बोले ना बोले, उस के साथ खेले ना खेले यहां ही पड़ा रहता. पर शिखा, सुकुमार एकदूसरे के प्रति समर्पितप्राण थे पहले ही दिन से. ग्रैजुएशन से पहले ही उस ने मम्मा से उस का हाथ मांगने का साहस कर डाला उसे कुत्ते की तरह दुत्कार ‘कुंजवन’ से निकाला मम्मा ने सब के सामने और शिखा को भी पता नहीं क्या हो गया मम्मा के सुर में सुर मिला उस ने भी उसे अपमानित तो किया ही साथ ही कड़े शब्दों में कह दिया कि आगे वे अपनी शक्ल उसे कभी ना दिखाए.

आगे पढ़ें- पता नहीं उसी दिन से सुकुमार एकदम गायब हो गया, कहीं भी…

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