तालमेल: भाग-1

‘‘गोपाल जीजाजी सुनिए,’’ अचानक अपने लिए जीजाजी का संबोधन सुन कर विधुर गोपाल चौंक पड़ा. उस ने मुड़ कर देखा, ऋतु एक सुदर्शन युवक के साथ खड़ी मुसकरा रही थी. चंडीगढ़ में उस के परिवार के साथ गोपाल और उस की पत्नी रचना का दिनरात का उठनाबैठना था.

‘‘अरे, साली साहिबा आप? अरे, शादी कर ली और मुझे बताया तक नहीं?’’

‘‘आप का कोई अतापता होता तो शादी में बुलाती,’’ ऋतु ने शिकायत भरे स्वर में कहा और फिर युवक की ओर मुड़ कर बोली, ‘‘राहुल, यह गोपाल जीजाजी हैं.’’

‘‘मुझे मालूम है. जब पहली बार तुम्हारे घर आया था तो अलबम में इन की कई तसवीरें देखी थीं. पापा ने बताया था कि ये भी कभी परिवार के ही सदस्य थे. दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद भी संपर्क रहा था. फिर पत्नी के आकस्मिक निधन के बाद न जाने कहां गायब हो गए,’’ राहुल बीच ही में बोल उठा.

‘‘रचना के निधन के बाद मनु को अकेले संभालना मुश्किल था, इसलिए उसे देहरादून में एक होस्टल में डाल दिया. यहां से देहरादून नजदीक है, इसलिए अपना ट्रांसफर भी यहीं करवा लिया. अकसर आप लोगों से संपर्क करने की सोचता था, मगर व्यस्तता के चलते टाल जाता था.’’

गोपाल ने जैसे सफाई दी, ‘‘चलो, सामने रेस्तरां में बैठ कर इतमीनान से बातें करते हैं. अकेले रहता हूं, इसलिए घर तो ले जा नहीं सकता.’’

‘‘तो हमारे घर चलिए न जीजाजी,’’ राहुल ने आग्रह किया.

ये भी पढ़ें- Serial Story: टेलीफोन- अकेली कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में कौनसी घटना घटी?

‘‘तुम्हारे घर जाने और वहां खाना बनने में देर लगेगी और मुझे बहुत भूख लगी है. मैं रेस्तरां में खाना खाने जा रहा हूं, तुम भी मेरे साथ खाना खाओ. अब मुलाकात हो गई है तो घर आनाजाना तो होता ही रहेगा.’’

रेस्तरां में खाना और्डर करने के बाद गोपाल ने ऋतु से उस के परिवार का हालचाल पूछा और फिर राहुल से उस के बारे में. राहुल ने बताया कि वह एक फैक्टरी में इंजीनियर है.

‘‘नया प्लांट लगाने की जिम्मेदारी मुझ पर है, इसलिए बहुत व्यस्त रहता हूं. घर वालों से बहुत कहा था कि फिलहाल मेरे पास घरगृहस्थी के लिए बिलकुल समय नहीं होगा. अत: शादी स्थगित कर दें. मगर कोई माना ही नहीं और उस की सजा भुगतनी पड़ ही है बेचारी ऋतु को. खैर, अब आप मिल गए हैं तो मेरी चिंता दूर हो गई. अब आप इसे संभालिए और मैं अपनी नौकरी को समय देता हूं. अगर मैं यह प्रोजैक्ट समय पर यानी अगले 3 महीने में सफलतापूर्वक पूरा नहीं कर सका तो मेरी यह नौकरी ही नहीं पूरा भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा जीजाजी,’’ राहुल ने बताया.

‘‘दायित्व वाली नौकरी में तो ऐसे तनाव और दबाव रहते ही हैं. खैर, अब साली साहिबा की फिक्र छोड़ कर तुम अपने प्रोजैक्ट पर ध्यान दो और फिलहाल खाने का मजा लो, अच्छा लग रहा है न?’’

‘‘हां, क्या आप रोज यहीं खाना खाते हैं?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘अकसर सुबह नौकरानी नाश्ता और साथ ले जाने के लिए लंच बना देती है, शाम को यहीं कहीं खा लेता हूं.’’

‘‘अब आप इधरउधर नहीं हमारे साथ खाना खाया करेंगे जीजाजी. ऋतु बढि़या खाना बनाती है.’’

‘‘जीजाजी को मालूम है, मैं ने रचना दीदी से ही तो तरहतरह का खाना बनाना सीखा है,’’ ऋतु बोली.

‘‘तब तो तुम्हें जीजा को क्याक्या पसंद है, यह भी मालूम होगा?’’ राहुल ने पूछा, तो ऋतु ने सहमति में सिर हिला दिया.

‘‘तो फिर कल रात का डिनर जीजाजी की पसंद का बनेगा,’’ राहुल ने कहा, ‘‘मना न करिएगा जीजाजी.’’

‘‘जीजाजी को अपने घर का पता तो बताओ,’’ ऋतु बोली.

‘‘आप के पास व्हीकल है न जीजाजी?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘हां, मोटरसाइकिल है.’’

‘‘तो फिर पता क्या बताना तुम घर ही दिखा दो न. मैं यहां से सीधा फैक्टरी के लिए निकल जाता हूं. तुम जीजाजी के साथ घर जाओ, मैं एक राउंड लगा कर आता हूं. तब तक आप लोग बरसों की जमा की हुई बातें कर लेना.’’

‘‘कमाल के आदमी हो यार… कुछ देर पहले मिले अजनबी के भरोसे बीवी को छोड़ कर जा रहे हो.’’

‘‘क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं जीजाजी, ऋतु के घर में आप की भी वही इज्जत है, जो ललित जीजाजी की,’’ राहुल ने उठते हुए कहा.

गोपाल अभिभूत हो गया. ललित ऋतु की बड़ी बहन लतिका का पति था. मोटरसाइकिल पर ऋतु उस से सट कर बैठी. एक अरसे के बाद नारीदेह के स्पर्श से शरीर में एक अजीब सी अनुभूति का एहसास हुआ. लेकिन अगले ही पल उस ने उस एहसास को झटक दिया कि ऐसा सोचना भी राहुल और ऋतु के परिवार के साथ विश्वासघात है. बातों में समय कब बीत गया पता ही नहीं चला. राहुल के लौटने के बाद वह चलने के लिए उठ खड़ा हुआ.

‘‘आप कल जरूर आना जीजाजी,’’ राहुल ने याद दिलाया.

‘कल नहीं, आज शाम

को कहो, 12 बज चुके हैं बरखुरदार. वैसे भी शाम को मुझे औफिस में देर हो जाएगी, इसलिए फिर कभी आऊंगा.’’

‘‘देरसवेर से अपने यहां कुछ फर्क नहीं पड़ता जीजाजी और फिर देर तक काम करने के बाद तो घर का बना खाना ही खाना चाहिए,’’ राहुल ने जोड़ा.

‘‘लेकिन हलका, दावत वाला नहीं,’’ गोपाल ने हथियार डाल दिए.

‘‘हलका यानी दालचावल बना लूंगी, मगर आप को आना जरूर है,’’ ऋतु ठुनकी.

शाम को जब गोपाल ऋतु के घर पहुंचा तो राहुल तब तक नहीं आया था.

‘‘हो सकता है 10 मिनट में आ जाएं और यह भी हो सकता है कि 10 बजे तक भी न आएं… फोन कर बता देती हूं कि आप आ गए हैं,’’ ऋतु ने मोबाइल उठाते हुए कहा.

ये भी पढ़ें- Short Story: दो टकिया दी नौकरी

‘‘ठीक है, मैं खाना पैक कर देती हूं. आप ड्राइवर को आने के लिए कह दीजिए,’’ कह कर ऋतु ने मोबाइल रख दिया. बोली, ‘‘कहते हैं आने में देर हो जाएगी, ड्राइवर को खाना लाने भेज रहे हैं. आप टीवी देखिए जीजाजी, मैं अभी इन का टिफिन पैक कर के आती हूं.’’

‘‘मुझे फोन दो पूछता हूं कि यह कहां की शराफत है कि मुझे घर बुला कर खुद औफिस

में खाना खा रहा है,’’ गोपाल की बात सुन

कर ऋतु ने नंबर मिला कर मोबाइल उसे पकड़ा दिया.

‘‘आप घर पर हैं, इसलिए मैं भी समय पर घर का खाना खा लूंगा जीजाजी वरना

अकेली ऋतु के पास तो ड्राइवर को घर पर खाना लाने नहीं भेज सकता ना,’’ गोपाल की शिकायत सुन कर राहुल ने कहा, ‘‘आप के साथ ऋतु भी खा लेगी वरना भूखी ही सो जाती है.

आगे पढ़ें- आप मेरे रहने न रहने की परवाह मत करिए…

ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-3

आइये अब जानते हैं अविरल की आने वाली जिंदगी के बारे में-

अविरल और अनु के फ़ाइनल एक्जाम के रिज़ल्ट काफी अच्छे आए थे . 4th के एक्जाम टॉप करने के बावजूद अविरल खुश नहीं थी. उसकी  खुशी कहीं गुम सी हो गयी थी.वह हर समय उदास रहने लगा. कोई नहीं समझ पा रहा था की अविरल क्यों उदास है पर अनु को अविरल की उदासी का कारण साफ-साफ समझ आ रहा था . अनु उसे समझाती  की भले ही उनके स्कूल अलग-अलग हो पर वो हर कंडिशन में उसके साथ है.वह उसे बहुत  समझाने कि कोशिश करती.  अविरल को थोड़ी देर तो समझ आता लेकिन फिर वो उदास हो जाता. एड्मिशन का टाइम आ चुका था. अनु का एड्मिशन दूसरे स्कूल में हो गया.

अविरल  को आज पहले दिन अकेले स्कूल जाना था. उसका मन भरा हुआ था .अनु भी बहुत उदास थी पर क्या करती . अविरल  अब स्कूल में एकदम शांत हो गया.  बच्चे उसे “ए हकले – ए हकले” कहकर चिढ़ाते लेकिन वह कुछ न बोलता. बस वहाँ से चला जाता. अविरल  स्कूल के दरवाजों की तरफ  बार बार देखता जहां से अनु हर पीरियड के बाद आती थी.

अब वो अपने आपको बहुत अकेला महसूस करने लगा था. अब अविरल का मन पढ़ाई में भी कम लगता था. कुछ दिनो में अविरल  का टूर फिर से जाने वाला था लेकिन इस बार अनु के बिना टूर पर जाने का उसका मन नहीं था. लेकिन माता- पिता और अनु  के समझाने पर वह चला गया.

अविरल को अनु ने समझा-बुझा कर टूर पर तो भेज दिया लेकिन कहीं न कहीं उसका मन बहुत बेचैन होने लगा था. उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था .वो रात दिन उसका इंतज़ार करती थी.

और हाँ यह बात 1995 कि है जब फोन नहीं हुआ करते थे. टूर में बच्चों ने अविरल  का खूब मज़ाक बनाया. यहाँ तक की  उसका सूटकेस भी  तोड़ दिया. वह रोने लगा . वह जल्दी से घर पहुँचने कि राह देखने लगा. यहाँ अनु भी अविरल  कि जगह तकिया लगाकर सोती. उसने खेलने कि जगहों पर कई बार लिखा-“भैया कब आओगे, जल्दी आओ न”.

ये भी पढ़ें- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-3)

10 दिनों बाद अविरल  वापस आ गया. समय बीतने लगा. माता पिता को लगता था कि अविरल  का हकलापन समय के साथ ठीक हो जाएगा लेकिन अब अविरल  डिप्रेशन में जाने लगा था. वह लोगों से दूर रहने लगा. कुछ समय बाद उसकी दोस्ती अमित से हो गयी. अमित की दोस्ती ने अविरल को एक सहारा तो दिया लेकिन कहीं न कहीं उसकी पढ़ाई पर असर भी डाला . 5th क्लास का रिज़ल्ट कुछ खास अच्छा नहीं आया. दो तीन साल और बीत गए. अब अविरल  के स्कूल में भी कोएड एडुकेशन स्टार्ट हो गयी.

अमित की चचेरी बहन पल्लवी  और उसकी दोस्त सुमि का एड्मिशन भी उसी स्कूल में हो गया. अमित, अविरल  और पल्लवी तीनों अच्छे दोस्त बन गए और बाद में पल्लवी की दोस्त सुमि भी अविरल  से बात करने लगी. इनमे से कोई भी कभी अविरल  का मज़ाक नहीं बनाता था. सभी उससे बोलते थे कि जब तुम्हें आन्सर आता है तो तुम क्लास में बताते क्यूँ नहीं. अविरल  कुछ नहीं बोलता था. अविरल  के दोस्तों को अविरल  का भोलापन देखकर बहुत दुख होता.

अविरल को दोस्त तो मिल गए थे लेकिन उसकी कमी उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी. जब वह औरों से अपनी तुलना करता तब वह अपने हकलापन को अपनी सबसे बड़ी कमी समझता . उसका रिज़ल्ट भी साल दर साल खराब होता चला गया. अविरल  सुमि को अपनी दूसरी बहन मानने लगा था जो कि स्कूल में हमेशा उसके साथ रहती. वो अनु की तरह ही अविरल  को समझाती और उसकी बात सुनती थी. देखते ही  देखते 10th  का रिज़ल्ट भी  आ गया. अविरल  का रिज़ल्ट बहुत खराब आया. अविरल  के माता पिता बहुत गुस्सा हुए लेकिन अनु ने सबको समझा लिया.

अब अविरल  को लगने लगा कि वो न ढंग से  बोल पाता है, न पढ़ाई में अच्छा है तो उसका मर जाना ही अच्छा है. उसने कई बार सुसाइड करने की कोशिश की लेकिन अनु का रोता हुआ चेहरा याद आता और वह रुक जाता.

10th के बाद अविरल  का एड्मिशन दूसरे कॉलेज में हो गया. वहाँ भी लड़के उसे चिढ़ाते थे ।अब अविरल को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा था . एक बार तो वह जाकर लड़कों से भिड़ गया जहां उसे काफी चोटें भी आई. जब घरवालों ने उससे चोट के बारें में पूछा तो उसने बहाना बनाकर बात टाल दी.

लेकिन हर बार की इन्सल्ट उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी . एक दिन वह अपने  चचेरे भाई आसू के पास गया जो की लड़ाई झगड़े में लगा रहता था. उसने सारी बातें आसू को बताई ।अगले दिन अविरल और आसू कुछ लड़कों के साथ गए और जो अविरल को चिढ़ाते थे उनसे खूब मारपीट की. आज अविरल  बहुत खुश था. धीरे- धीरे अविरल  गलत संगत में पड़ने लगा. उसे यह सब अच्छा लगने लगा .अनु काफी हद तक उसे समझा कर रखती. लेकिन अविरल अब बड़ा हो रहा था उसे अपने आगे किसी की बात समझ नहीं आती थी.

अविरल  ने एक बार आसू  को बताया कि उसकी क्लास में एक लड़की (सुमि) है जिसे वह अपनी बहन मानता है उसे कुछ लड़के घर आते- जाते  परेशान करते हैं. अगले दिन अविरल  और आसू  कुछ लड़कों के साथ सुमि  के पीछे- पीछे चलने लगे. जैसे ही कुछ लड़के सुमि को परेशान करने आए, आसू अपने दोस्तों के साथ वहाँ लड़ने पहुँच गया. उसके बाद वो लड़के कभी सुमि  को परेशान करने नहीं आए.

ये भी पढ़ें- 16वें साल की कारगुजारियां

आसू  मन ही मन सुमि  से प्यार करने लगा. लेकिन सुमि  उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी. वह अविरल  से भी कहती कि आसू  से अलग रहे, लेकिन अविरल  नहीं मानता. आसू  ने 1 बार राश्ते में सुमि  को प्रपोज़ किया लेकिन सुमि  ने डांटते हुए कहा कि “मैं तुमसे नफरत करती हूँ, अगली बार मेरे पास मत आना”.

आसू दुखी होकर घर लौट गया.

अगले भाग में हम जानेंगे कि क्या सुमि आसू  को पसंद करेगी और क्या अविरल  उनकी हेल्प करेगा?

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-3)

पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-2)

इस बार जानकीदास चौंके, ‘‘क्या कह रही है? यह शादी तो तेरी मां ही तय कर के गई है.’’

‘‘4 वर्ष पहले मुंह की बात थी बस. 4 वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है…’’

उन्होंने हैरानी के साथ पोती को देखा, ‘‘पर तू तो बंटी को पसंद करती है.’’

‘‘मैं बंटी को पसंद करती हूं यह तो नई खबर है? किस ने खबर दी आप को?’’

वो थोड़ा सकपका गए, ‘‘नहीं…वो इतना हैंडसम और स्मार्ट है. तू पार्टी पिकनिक क्लब में भी उस के साथ जाती है तो…’’

‘‘तो उस का मतलब मैं उसे पसंद करती हूं. ना दादू वो स्मार्ट नहीं सियार की तरह धूर्त है और हैंडसम तो धतूरे का फूल भी सुंदर लगता है पर है विषैला. रही उस के साथ पार्टी पिकनिक की बात तो दादू आप की मालकिन बहू ने इस घर के दरवाजे उस नालायक के लिए सपाट खोल रखे थे बंद करने में थोड़ा समय तो लगेगा. उसी समय की प्रतीक्षा है मुझे.’’

जानकीदास के मुख पर स्वरित की रेखाएं उभर आईं, ‘‘आज बहुत काम है मैं जल्दी निकल जाऊंगा तुम आराम से आना बेटी.’’

‘‘ठीक है. लंच टाइम में मिलेंगे.’’

बातों के भी पर होते हैं. जानकीदास ने ठीक ही कहा था. जो उड़ती चिडि़या पकड़ना जानते हैं वो पकड़ भी लेते हैं. थोड़ा लेट पहुंची शिखा. दादू आ गए थे तो चिंता नहीं थी. दादू वास्तव में ढाल की तरह सदा पोती के सिर पर छाया रखते हैं फिर भी मां के छोड़े बिजनैस को शिखा ने मजबूत हाथों से संभाला. डगमगाना तो दूर और भी फलाफूला. असल में शिखा ने भी अपने सामने आने वाले लंबे जीवन का एकमात्र सहारा इस बिजनैस को ही मान लिया है. उस के जीवन के सारे सुंदर और मधुर भावनाओं को तो उस की मां ही कुचल कर चली गईं और जातेजाते एक वायरस से चिपका गई जिस का नाम है ‘बंटी’. वो कहते हैं न कि शैतान का नाम लो तो शैतान हाजिर वही हुआ. सामने पड़ी फाइल को छूआ भी नहीं था शिखा ने कि दनदनाता अंदर आया ‘बंटी’. सामने की कुरसी खींच बैठ गया. मम्मा का सिर चढ़ाया ‘कुंजवन’ और ‘सोनी कंपनी’ के आफिस को अपनी बपौती समझता है. किसी प्रकार की औपचारिकता की परवा उसे नहीं शिखा का सिर तक जल उठा क्रोध से. उस के माथे पर बल पड़ गए. कठोर शब्दों में कहा, ‘‘यह औफिस है, यहां कुछ फौरमेलिटियों का पालन करना पड़ता है.’’ इस तरह एकदम मेरे कमरे में मत चले आया करो.

मुंह बनाया बंटी ने, ‘‘फौरमेलिटि, माई फुट… मिजाज खट्टा मत करो मेरा. आया हूं एक नेक काम के लिए…’’

मिजाज खट्टा तो शिखा का ही हो गया था बंटी को देखते ही. उस ने कड़वे स्वर में कहा, ‘‘रिएली, क्या है तुम्हारा नेक काम?’’

‘‘तुम को कौंग्रेचूलेट करना…’’

‘‘किस बात के लिए?’’

‘‘अरे वाह, विदेशी कंपनी से गठबंधन, करोड़ों का कौंट्रैक्ट क्या कम खुशी की बात है?’’

वास्तव में बातों के पर होते हैं अब शिखा को खोजना पड़ेगा अपने खास स्टाफों में वो कौन है जिसे बंटी ने खरीदा है. ऊपर से शांत रही.

‘‘बिजनैस में कौंटै्रक्ट और गठबंधन तो होते ही रहते हैं तुम्हारा भी तो बिजनैस है, यह बात तो जानते ही होंगे.’’

‘‘जानता हूं पर इतनी बड़ी डील यही बड़ी बात है. बधाई भी उसी के लिए.’’

‘‘तुम तो व्यापारी परिवार के बेटे हो मेरी ही तरह, तो यह भी जानते होंगे कि देशी हो या विदेशी, छोटी हो या बड़ी डील ही हमारी रोजीरोटी है. उस पर उछलने वाली कोई बात नहीं होती. फिर भी धन्यवाद चल कर आ कर बधाई देने के लिए.’’

‘‘अरे तुम तो सचमुच गुस्से में हो. स्वीटहार्ट, तुम समझ क्यों नहीं पातीं कि मैं तुम से मिलने का बहाना खोजता फिरता हूं, बिना मिले चैन नहीं पड़ता.’’

इसे नहीं काटा तो यह दिमाग चाटेगा. आज बहुत काम करना है उसे. शिखा ने फाइल हटा सीधे बंटी की तरफ देखा, ‘‘नहीं जानती थी. जो भी हो, आज तो मेरे दर्शन हो गए बधाई भी दे दी. अब कट लो बहुत काम है मुझे.’’

‘‘मेरे कटने की बात मत करो कट तो तुम रही हो.’’

‘‘समझते हो तो अच्छी बात है.’’

‘‘हां,’’ बंटी का स्वर नरम पड़ गया, ‘‘देखो, हमारा संबंध तो जुड़ ही गया है तो कटनाकाटना क्यों?’’

‘‘संबंध कोई नहीं जुड़ा. मम्मा उल्टासीधा क्या बक गई विलायती शराब के नशे में, वो मेरे हाथ की लकीर नहीं बन सकती.’’

‘‘मुझे बहुत काम है. इस समय बकवास अच्छी नहीं लग रही.’’

‘‘ठीक है ठीक है. अभी चला जाऊंगा. जो कहने आया था…आज शाम 6 बजे तैयार रहना मैं तुम को उठा लूंगा. एक पार्टी है.’’

माथे पर बल पड़ गए शिखा के.

‘‘मेरे पास न निमंत्रण है न कोई खबर मैं क्यों जाऊंगी.’’

‘‘अरे मैं कहने ही तो आया था. मेरा दोस्त विवेक है न, उस का ‘गुड़गांव’ में एक फार्म हाऊस है वहां ही वो पार्टी दे रहा है.’’

‘‘विवेक…वो भ्रष्ट मंत्री का बेटा? यह फार्म हाऊस भी तो घूस में कमाया हुआ है. किसी उद्योगपति ने दिया है और शराब पी कर गाड़ी चला कर उस ने तीन गरीबों की हत्या भी की जिस की जगह फांसी का तखता होना चाहिए वो फार्म हाऊस पार्टी दे रहा है, अति महान देश है हमारा.’’ सहम गया बंटी. शिखा को इतना कड़वा बोलते पहले कभी नहीं सुना. क्या बड़ी डील होने से मिजाज आसमान पर जा बैठा है लड़की का. जो भी हो इस समय उस के व्यापार की दशा अब डूबे या तब डूबे है. शिखा वो मजबूत किनारा है जो खींच कर उसे डूबने से बचा सकती है. शादी हो जाती तो सोनी कंपनी उस की मुट्ठी में होती पर अब तो नरमाई से ही काम लेना पड़ेगा.

‘‘अरे उस से तुम को क्या लेनादेना. पार्टी इनजौए करेंगे और चले जाएंगे बस. मैं तो साथ हूं ना…?’’

‘‘तुम…तुम दूध के धुले हो…नहीं पता था और लेनादेना तो बहुत है मानवता के नाते.’’

ये भी पढ़ें- मुखौटा: भाग-2

अंदर ही अंदर जल कर भी बंटी चुप रहा. शिखा की सहायता इस समय उसे बहुत जरूरी है. उठ खड़ा हुआ. ‘‘चलती तो अच्छा लगता. सब की गर्लफ्रैंड आ रही हैं.’’ आग लग गई शिखा को.

‘‘सुनो बंटी सावधान कर रही हूं आगे से मुझे गर्लफ्रैंड कहने की भूल या साहस मत करना. हम दो परिचित परिवार के हैं बस और कुछ नहीं.’’

‘‘पर…हमारा रिश्ता…?’’

‘‘अभी तक तो कुछ भी नहीं. बाए…’’

उस ने फिर फाइल खींच ली.

थोड़ी देर से जागी शिखा, बाथरूम से फ्रेश हो नीचे उतरी. सदा की तरह नाश्ते की मेज पर जानकीदास पहले से विराजमान. नहाधो तरोताजा, आकर्षक व्यक्तित्त्व, पापा के प्रतिरूप. रसोई से कचौड़ी की सुगंध आ रही थी.

‘‘गुड मौर्निंग दादू.’’

‘‘वेरी गुड मौर्निंग बेबी.’’

वो हंसी, ‘‘दादू एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो…’’

‘‘आप फिल्म लाइन में क्यों नहीं गए?’’

‘‘गया तो था.’’

‘‘हैं…यह तो पता नहीं था.’’

‘‘बात जरा सिके्रट है.’’

‘‘लाइन से हीरो के रोल मिल गए तो उस समय के सारे हीरो हाथ जोड़ खड़े हो गए मेरे सामने आ कर. उन में दिलीप, देवानंद भी थे. लगे रोने कि तू हमारी रोजीरोटी मारने इस लाइन में क्यों चला आया? भईया, कुछ और काम कर ले. तरस आ गया तो छोड़ कर आ गया.’’

लच्छो मौसी थालभर कचौड़ी लाई थी वो भी हंस पड़ी. शिखा तो लोटपोट हो रही थी. मन एकदम हलका हो गया. दादू ना होते तो शिखा तनाव में घुटघुट कर मर ही जाती. मां ने बेटी के लिए बस एक यही अच्छा काम किया है नहीं तो सर्वनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जानकीदास ने कचौड़ी उठाने को ज्यों ही हाथ उठाया त्यों ही लच्छो ने थाल हटा लिया.

‘‘बाबूजी, आप का दलिया अभी लाई.’’

‘‘क्या? दलिया…कौन खाएगा दलिया.’’

गुस्से में लाल हो गए वो. आराम से कचौड़ी चबाती शिखा बोली, ‘‘आप खाएंगे…यह सब आप के सेहत के लिए ठीक नहीं.’’

‘‘मुझे खाना ही नहीं है.’’

वे उठने लगे तो शिखा ने रोका, ‘‘अरे अरे…बैठिए…मौसी दादू को कचौड़ी दो पर गिन कर दो कचौड़ी बस.’’

जानकीदास खा तो रहे थे पर चिंता में थे. शिखा ने पूछा, ‘‘दादू, क्या सोच रहे हैं.’’

‘‘यही कि डील होते ही मेहता परिवार को पता कैसे चला?’’

‘‘घर का भेदी लंका ढावे.’’

‘‘पर यह भेदी कौन हो सकता है इस का पता तो लगाना ही पड़ेगा नहीं तो पूरी लंका ढह जाएगी.’’

‘‘डील का पता किसकिस को था?’’

‘‘ब्रजेशबाबू तो एकाउंटेंट हैं उन को तो पता होगा ही.’’

‘‘ना ना वो सब से पुराने और अति ईमानदार हैं. और कोई.’’

‘‘देख कोई भी काम हो कागजपत्तर बनवाने हो तो दोतीन जनों की मदद चाहिए ही.’’

‘‘तो इन दोतीनों में ही खोजना होगा.’’

‘‘काम कठिन है पर करना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘एक बात और है, लंदन की एक कंपनी से प्रस्ताव आया है. यह भी बड़ी डील है.’’

‘‘ले पाएंगे?’’

‘‘उस में अभी समय है. पहले इस काम को पूरा कर लें. काम अभी शुरू करना है. मैं ने कई टेंडर मांगे थे आ गए हैं तीन चार, आज मैं बैठता हूं लंच के बाद तेरे साथ कम से कम दो को चुन कर काम शुरू करवाना है. समय बहुत ज्यादा नहीं है हमारे पास.’’

‘‘दादू, एक बात का ध्यान रखना, क्वालिटी क्लास होनी चाहिए. हफ्ता दसदिन समय बढ़ाना भी पड़े तो कोई बात नहीं पर क्वालिटी से कोई समझौता नहीं.’’

‘‘वो तो है ही.’’

ये भी पढ़ें- सुबह का भूला: भाग-4

ज़िन्दगी –एक पहेली:  भाग 2

अविरल अब 7 साल का हो चुका था और स्कूल भी जाता था. अविरल बहुत होशियार था . वह स्कूल में हमेशा पहले नंबर पे रहता था चाहे वह पढ़ाई हो या खेल. लेकिन वह स्वभाव से बहुत संकोची था. वह बहुत कम बोलता था. शायद इसका एक  कारण यह भी था कि जब वह बोलता था तो लोग उसका मज़ाक बनाते थे क्योंकि  वह हकलाता था. लोग उसे हकला- हकला कहकर चिढ़ाने लगते थे . यहाँ तक की अविरल के कुछ रिश्तेदार भी उसका मज़ाक बनाने से पीछे नहीं हटते थे. वो अक्सर उसे हक्कू कहकर बुलाते थे.

अविरल  के दिमाग में इसका गहरा असर पड़ने लगा. अविरल  के माता पिता भी थोड़ा परेशान हुए लेकिन उन्होने सोचा कि जैसे- जैसे अविरल  बड़ा होगा, सब ठीक हो जाएगा. अविरल के माता पिता हमेशा उसे समझाते कि सब ठीक हो जाएगा. अवि के पास लोग आते तो थे, उससे  बात भी करते थे लेकिन केवल उसका मज़ाक बनाने के लिए. अवि अब लोगो के पास जाने से डरने लगा था.

अविरल हर किसी से अपनी परेशानी बताने में डरता था .यहाँ तक की वो अपने माता-पिता से भी अपने दिल की बात नहीं कह पाता  था. एक उसकी बहन ही तो थी जिससे वो अपने मन की सारी बाते कह पाता था.उसके लिए   उसकी बहन अनु ही उसकी पूरी दुनिया बन गयी थी.

अविरल  हमेशा दुखी होकर अनु से बोलता कि दीदी मै औरों की तरह क्यों नहीं हूँ ? भगवान जी ने ऐसा क्यों किया?  वह उसे समझाती, कि मेरा भाई सबसे अच्छा है. वह अविरल को उसकी  अच्छाइयाँ बताती और बोलती कि जो मेरे भाई का मज़ाक बनाते हैं न एक  दिन मेरा भाई उन सभी से हजारों कदम आगे निकलेगा और ये लोग मुंह  देखते रह जाएंगे. अविरल  खुश हो जाता और फिर दोनों भाई बहन अपनी छोटी सी दुनिया में मशगूल हो जाते. अनु अविरल को समझा तो देती पर मन ही मन वो बहुत दुखी होती. वो बाद में  उन लोगों के पास जाती जो अविरल को चिढाते थे और उनसे झगड़ा करती लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ.

कुछ सालों बाद  अविरल  के पापा ने अपना बिज़नेस देहरादून  में सेट अप किया जिससे कि बच्चों की और अच्छे से पढ़ाई-लिखाई  हो पाये.  दोनों का एड्मिशन एक जाने माने स्कूल में करा दिया गया. अनु तो तुरंत स्कूल में घुल मिल गयी लेकिन अविरल  स्कूल जाने में डरने लगा. जब भी वह स्कूल जाता, बहुत रोता. अनु उसे अपने साथ स्कूल ले जाती और अपने साथ ही बिठाये रहती. अविरल  की मम्मी  ने भी टीचर से request की  कि कुछ दिन अविरल  को अनु के साथ ही बैठने दे. अनु लगातार अविरल  को समझाती रहती जिससे कुछ समय बाद अविरल  अपनी क्लास में बैठने लगा.

लेकिन यहाँ भी अविरल  कि समस्या आगे आ गयी. अविरल  के हकलाने पर सारे बच्चे ज़ोर से हँसते. कुछ  टीचर्स  भी अविरल  के हकलाने पर हँसते और बार बार उससे ही question  पूछते . अब अविरल  ने क्लास में answer  करना ही बंद कर दिया, जिससे उसे हमेशा punish  किया जाता. अविरल  बहन को परेशान देखकर उससे यह बातें छुपाने लगा  और रोज़  पनिशमेंट सहने लगा.

लेकिन अविरल  हमेशा exam में टॉप करता. स्कूल की  प्रिन्सिपल अविरल  को बहुत पसंद करती थी. उन्होंने  अविरल  को अपने पास बुलाया  और प्यार करते हुए बोली  की  इतने सुंदर और होनहार बच्चे को ये कमी क्यूँ हो गयी.

एक बार अनु की एक सहेली ने अविरल को अपने पास बुलाकर उससे कहा की तुम मुझे ज़रा अपनी tongue दिखाओ. उसने अविरल की tongue देखी  और बोली  की तुम्हारी tongue  ज्यादा जुड़ी है. जिसकी वजह से ये problem है. अविरल ने यह बात अपने पापा से बताई और बोला की इसे नीचे से काट दो. लेकिन पापा ने समझाया की,”नहीं बेटा ऐसा कुछ भी नहीं है ,ऐसा कभी सोचना भी मत”. अविरल उस समय तो ये बात  समझ गया. लेकिन अनु की सहेली की बात उसके दिमाग में बस गयी थी.

अविरल  अब 4th क्लास में आ चुका था. उसके स्कूल का 1 टूर जाना था जिसमे भाई बहन दोनों शामिल हुए. सभी क्लास के अलग ग्रुप थे ,लेकिन अनु ने टीचर्स से request करके  अविरल  को अपने ग्रुप में रखा. टूर में अनु उसे अपने साथ रखती. भाई बहन का ऐसा प्यार देखकर सभी की आँखों में आँसू आ जाते.

अविरल  अब फिर से परेशान रहने लगा क्यूँ की उसकी बहन 5 स्टैंडर्ड में थी और स्कूल 5 के बाद coed  नहीं था. अनु को अब अलग स्कूल में जाना था. अविरल ये सोच- सोच कर  अकेले में रोता रहता. अनु भी बहुत दुखी थी लेकिन अब भाई बहन को थोड़ा अलग होना ही था.

अगले भाग में जानेंगे की अविरल आगे की चुनौतियों का कैसे सामना करता है?

ज़िन्दगी – एक पहेली: भाग 1   

यह कहानी है एक जाने माने और प्रतिष्ठित परिवार में जन्मे अविरल के बारे में .अविरल का जन्म एक बहुत ही प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था .उसके पापा शहर के जाने माने बिज़नेस मैन  थे. अपने शहर से बाहर भी उनकी बहुत इज्जत थी. सभी की एक नॉर्मल सी  दिनचर्या थी. पिता राजनीति से थे. इसलिए वह अपने राजनीतिक कामों में लग जाते थे. मां ग्रहणी थी तो घर का सारा काम काज देखती थी. उनकी एक लड़की थी जिसे वह बहुत प्यार करते थे .लेकिन दादी दादा को लगता था कि लड़का होना चाहिए जिससे कि परिवार पूरा हो जाए. समय बीतता गया  और एक नन्ही किलकारी के साथ एक बच्चे ने जन्म लिया. उसकी बहन ने उसका नाम अविरल रखा .

अविरल  बचपन से ही देखने में बहुत सुंदर था. सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे. उसकी बड़ी बहन उसे रात दिन लिए लिए घूमती थी. उसके लिए तो उसका भाई उसकी पूरी दुनिया था. वो एक पल को भी उसे अपनी आँखों के सामने से ओझल नहीं होने देती थी.लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नही चली. धीरे-धीरे सारी खुशी एक चिंता में बदलने लगी. अविरल 2  साल का हो चुका था  लेकिन वह कुछ बोलता नहीं था. घरवालों को चिंता होने लगी कि कहीं हमारा बच्चा गूंगा तो नहीं है. आसपास के लोगों ने भी बोलना शुरू कर दिया ,”कि लगता है आपका बच्चा गूंगा है”.कुछ लोगों ने कहा की हो सकता है बच्चा थोड़ी देर से बोले.

सभी लोग दुखी रहने लगे लेकिन उसकी बहन उसे ऐसे ही खुश होकर प्यार करती रहती.उसके लिए तो उसके भाई से ज्यादा प्यारा कुछ भी नहीं था. देखते-देखते 3 साल और निकल गए लेकिन अविरल  नहीं बोला. मां-बाप और भी परेशान रहने लगे. वह अविरल  को लेकर डॉक्टर के पास ले गए. डॉक्टर ने कहा,” इसका बोलना मुश्किल है. आप भगवान से दुआ कीजिये . अगर ये कुछ समय में नहीं बोलता है तो ऑपरेशन करना होगा. लेकिन उसमे भी बच्चे की जान का रिस्क है क्योंकि बच्चा छोटा है.”

ये भी पढ़ें- मुखौटा: भाग-2

उसके मम्मी -पापा भगवान से प्रार्थना करने लगे कि भगवान ने हमें इतना सुंदर बच्चा दिया लेकिन यह कमी क्यूँ दे दी. घर के सभी लोग हिम्मत हार चुके थे लेकिन उसकी बहन हमेशा बोलती कि मेरा भैया एक  दिन जरूर बोलेगा. वह  रात दिन उससे बातें करती रहती.

पूरा परिवार मन ही मन उदास रहने लगा उन्होंने मान लिया था कि हमारा बच्चा गूंगा है. अंत में उसके घर वालों ने ऑपरेशन का डिसीजन  लिया. उसकी बहन ने रो-रोकर मम्मी पापा से कहा  कि जब भैया की जान को खतरा है तो ऑपरेशन क्यूँ? ऑपरेशन की डेट पास आ रही थी. सभी की चिंता बढ़ती जा रही थी.

पर उसकी बहन ने हिम्मत नहीं हारी वो अब उससे और बातें करने लगी और कोशिश करती कि भैया  कुछ बोले. एक  दिन आया जब भगवान भी बहन कि ममता के आगे पिघल गए और बच्चे के मुह से पहला शब्द निकला – ‘बिट्ठ’ क्यूँ कि घर वाले सभी उसकी बहन को बिट्टी कहकर बुलाते थे.

बहन दौड़कर मम्मी पापा के पास भागी और बोली “पापा भैया बोला”. किसी को विश्वास नहीं हुआ लेकिन बच्ची के बार- बार जिद करने पर सभी लोग बच्चे के पास गए. बहन को पास देखकर बच्चा बहुत तेजी से पास आया और बहन से चिपक कर फिर से “बिट्ठ” बोला. सभी के मुह बंद थे और आँखों में आँसू थे लेकिन केवल एक  आवाज गूंज रही थी “बिट्ठ”.

तुरंत ही उसके पापा ने  हवन और भोज के लिए पूरे शहर को आमंत्रण दिया. सभी समझ रहे थे कि भगवान ने उनके मन कि सुन ली लेकिन उन्हे क्या पता था कि भगवान उस छोटी बच्ची कि ममता के आगे हार गये थे.

ये भी पढ़ें- सुबह का भूला: भाग-4

बच्चा धीरे – धीरे बड़ा होने लगा . सभी बहुत खुश थे . 2-3 साल और बीत गए. अब बच्चा बोलने तो लगा था लेकिन लगता है अविरल  और परेशानियों का चोली दामन का साथ था. अविरल बोलने तो लगा था पर  बड़े होने के साथ- साथ उसको नई परेशानियों ने घेर लिया.

अगले भाग में जानेंगे अविरल के जीवन में  आने वाले संघर्ष के बारे में-

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-2)

ये भी पढ़ें- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-1)

शिखा ने दादू को देखा उस का एकमात्र मजबूत आश्रय. ‘‘दादू, आप के मन में यह आशंका जब आई है तब कोई कारण तो होगा? किसी पर संदेह? कोई स्टाफ?’’

‘‘ठीक से नहीं कह सकता पर… यह बात सच है. यह बहुत बड़ी विदेशी पार्टी है और आर्डर भी छोटामोटा नहीं. इस कौंट्रैक्ट के लिए बहुत सारी कंपनियां हाथ धो पीछे पड़ी थीं. बाजी हम ने मार ली, इस से ईर्ष्या बढ़ेगी. आज नहीं तो कल पता तो वो लगा ही लेंगे. उन लोगों में ‘मेहता एंड सन’ का नाम भी है.’’

चौंकी शिखा, ‘‘मतलब बंटी.’’

‘‘वो तुम्हारा मंगेतर है घर या आफिस अबाध गति से उस का आनाजाना है. उस पर तुम रोक भी नहीं लगा सकती.’’

‘‘पर दादू, उन की तो अपनी ही चलती कंपनी है.’’

जानकीदास ने सिर हिलाया, ‘‘यह गलत है. ऊपर से यह चाहें कितना भी दिखावा क्यों ना करें, सब जानते हैं अंदर से खोखले हो गए हैं. गले तक डूबे बैठे हैं कर्ज में. किसी भी दिन सब कुछ समाप्त हो सकता है. दोनों बापबेटे इस समय बचाव के चक्कर में घूम रहे हैं. और…’’

‘‘और क्या?’’

‘‘इन में न विवेक है न मानवता, न दया. यह लोग इस समय डेसपरेट हैं कंपनी और गिरवी रखे घर को बचाने के लिए, कुछ भी कर सकते हैं कुछ भी, हां कुछ भी…’’

शिखा स्तब्ध सी हो गई.

‘‘मैं बंटी से आजकल बहुत कम मिलती हूं.’’

‘‘पर तुम्हारी मां जो गलती कर गई है तुम्हारे जीवन के लिए वो एक जहरीला कांटा है. उन की नजर तुम्हारी कंपनी पर शुरू से थी और है.’’

‘‘मेरी मंगनी नहीं हुई दादू. मुंह की बात भर है.’’

‘‘वही एकमात्र आशा की किरण है. लो घर आ गया. जा कर आराम करो. चिंता मत करना.’’

‘‘बात तो चिंता की ही है.’’

‘‘हां है पर कभीकभी इंसान को कुछ उलझनों को वक्त के भरोसे भी छोड़ना पड़ता है.’’

शिखा ने अपने कमरे में आ कर सब से पहले सूट उतार फेंका. यह औपचारिक ड्रेस उसे एकदम पसंद नहीं. खुला दिन था, धूप थी दिनभर अब उमस है. पसीने वाली उमस. नहा कर उस ने एक फूल सी हलकी और नरम लंबी मैक्सी पहनी. मौसी लस्सी दे गई उस का घूंट भर वो खिड़की पर आई. वर्षा से धुले पेड़पौधे चमक गए हैं. नरम हरियाली की ओढ़नी ओढ़ सब मुसकरा रहे हैं उन पर ढलते सूरज की किरण. अनमनी हो गई वो, पापा का चेहरा सामने आ गया. स्नेह छलकती आंखें, भावुक चेहरा. यह बगीचा भरा है सुंदरसुंदर फूल और फलों के पेड़ों से. पापा ने ही बेनाम इस घर का नामकरण किया था.

‘कुंजवन’ पहले तो यह बस पचपन नंबर कोठी थी. पापा के साथ ही साथ एक और चेहरा सामने आ जा रहा है. पता नहीं क्यों आज गाड़ी से उतरते समय अचानक दादू ने पूछा,

‘‘बेबी, सुकुमार कहां है तुझे पता है कुछ?’’

गिरतेगिरते संभली थी वो, ‘‘नहीं तो…मुझे कैसे पता होगा?’’

‘‘संपर्क नहीं है?’’

‘‘क्यों होगा? मैं ने ही तो मना किया था.’’

ये भी पढ़ें- सुबह का भूला: भाग-3

‘‘हां बात तो सही है. मैं ही सठिया गया हूं कुछ याद नहीं रहता.’’

पर वह दादू को कैसे कहे कि सुकुमार से संपर्क भले न हो पर वो उस से दूर नहीं है. उस के लिए मनप्रण से वो आज भी समर्पित है. इसी गेट से उसे शिखा ने चरम अपमान के साथ बाहर निकाल दिया था. कभी भी अपना मुंह उसे ना दिखाए यह भी कहा था. मां को खुश करने, मां की आज्ञा का पालन करने के लिए अपना पहला प्यार, बचपन का प्यार, आने वाले जीवन के सारे के सारे सपनों को अपने हाथों बलि चढ़ा दिया. मां को प्रसन्न करने को, वो भी उस मां के लिए जिस का विरोध करना ही उस के जीवन का सब से बड़ा उद्देश्य था, जिस के विरुद्ध ही वो हर काम को करती आई है. पापा का देहांत हो चुका था पर दादू थे. अवाक हो वो पोती का मुख देखते रह गए. सुकुमार जैसे शांत सौम्य लड़के के साथ यह क्या किया शिखा ने. मां के हाथ की कठपुतली तो वो कभी नहीं थी, तो फिर आज क्या हो गया उसे?

एक गहरी सांस ली शिखा ने. उस दिन के बाद फिर कभी उस ने सुकुमार को नहीं देखा इतने वर्ष हो गए. उस से इतनी बड़ी चोट खा क्या वो दिल्ली छोड़ चला गया था या संसार छोड़? सिहर उठी. ना…ना…जहां हो सकुशल हो. स्वस्थ हो.

सुबह नाश्ते के मेज पर दादू ने बैठते ही कहा, ‘‘बेबी, काम आज से ही शुरू करवाना है. जितनी जल्दी हो काम निबटाना होगा.’’

‘‘वो तो है पर अभी तीन महीने हाथ में है तो.’’

‘‘मुझे डर है कोई अंतरघात ना करे.’’

‘‘पर यह बात किसी को क्या पता?’’

‘‘तू अभी बच्ची है नहीं समझेगी. तेरी मां थी जन्मजात पक्की बिजनैस लेडी. बात अब तक विरोधी पक्षों के कानों में जा कर उन को बेचैन भी कर रही होगी.’’

चौंकी शिखा, ‘‘हैं…पर दादू, कैसे?’’

‘‘कल ही तो कहा था बातों के पर होते हैं तो सावधान और जल्दी काम पूरा करवा कर सप्लाई भेजनी है.’’

थोड़ी देर चुपचाप नाश्ता करने के बाद शिखा ने पूछा, ‘‘दादू, कल इतने वर्षों के बाद आप ने सुकुमार के विषय में पूछा. कोई विशेष कारण?’’

जानकीदास का प्याला छलक गया, ‘‘अरे नहीं…नहीं…बस…अचानक याद आ गया.’’

‘‘याद तो पहले भी आना चाहिए था, उस के अपमान दुख, व्यथा और सबकुछ खो जाने के चश्मदीद गवाह आप ही थे दादू.’’

‘‘मैं तेरी बात समझ रहा हूं बेटी पर इस घर में तो तू जानती ही है तेरी मां का फैसला ही अंतिम फैसला होता था पर…’’

‘‘पर क्या दादू?’’

‘‘तू तो हमेशा मां के विरोध में तन कर खड़ी होती थी. सच तो यह है कि इधर तेरी मां तुझ से थोड़ा घबराने लगी थी. वही तू ने मां के अन्याय का विरोध करना तो दूर उस के सुर में सुर मिला उस सीधेसादे बच्चे को अपमान कर के घर से निकाला तो निकाला कभी अपनी सूरत न दिखाने का कड़ा आदेश भी दे दिया. क्यों बेटी?’’

शिखा झुक गई चाय की प्याली के ऊपर. बुझे गले से बोली, ‘‘कारण था दादू…’’

‘‘ऐसा भी क्या कारण जो उस लड़के को इतना बड़ा यातनामय कष्ट जीवनभर के लिए दे डाला.’’

‘‘था दादू. समय आने पर आप को सब से पहले बताऊंगी.’’

‘‘क्या लाभ बता कर? उस बच्चे में तेरे लिए निश्छल और एकनिष्ठ प्यार था. उस की मूर्खता थी कि अपना स्तर भूल गया था उस की सजा भी मिल गई. पर जाने दे जो समाप्त हो गया उस की ओर मुड़ कर नहीं देखा जाता.’’

अरे हां, ‘‘मेहता ने फोन किया था वो जल्दी में हैं बंटी से तेरी शादी के लिए पूछ रहे थे, मंगनी की रसम कब करेंगे.’’

माथे पर बल पड़ गए शिखा के, ‘‘मंगनी तक बात आई कैसे?’’

आगे पढ़ें- इस बार जानकीदास चौंके, ‘‘क्या कह रही है? यह शादी तो…

ये भी पढ़ें- इंडियन वाइफ: भाग-2

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-1)

भोर में गरज चमक के साथ सारे बादल एकसाथ बरस पड़े मानो धरती पर फिर से सुनामी लाने का इरादा हो.

शिखा की नींद भी खुली थी मेघों की गड़गड़ाहट से. उसे रात के अंधेरे में प्रकृति का ऐसा तांडव आनंद देता है और लड़कियों की तरह डराता नहीं है. ऐसे में उसे बड़ी अच्छी नींद आती है. आज भी पैरों के पास से मोटी चादर खींच वो दोबारा सो गई, बरखा की लोरी सुनतेसुनते.

दिल्ली की धरती पर ऐसी वर्षा बहुत कम ही होती है. अब हो रही है तो शिखा उस का पूरा लाभ उठाएगी. नींद में डूबने से पहले ही उस ने निर्णय ले लिया कि आज कुछ भी हो आफिस नहीं जाएगी. घर में रह कर मौसी से पकौड़े, चीले, कचौड़ी बनवा कर दिन भर चाटती रहेगी. पर वह जो चाहती है वो भला हुआ है आज तक?

घड़ी की सूई और लच्छो मौसी का मजबूत गठबंधन है. ठीक 6 बजे पहली चाय ले कर हाजिर, ‘‘ उठो बेबी रानी, आज आफिस जल्दी जाना है न?’’

झुंझला कर आंख खोली तो मौसी सामने खड़ी नजर आईं. उन्होंने खिड़की के सारे परदे हटा दिए. बादल जाने कहां भाग गए थे. हवा में नमी तो है पर नीला आकाश, सूरज की सुनहरी किरण धरती को चूमने उतर पड़ी है. वह झुंझलाई, ‘क्या है मौसी. सोने दो. आज मुझे कहीं नहीं जाना.’ वो धम्म से फिर लेट गई.

लच्छो ने दुलारा, ‘‘बेबी बिटिया, बाबूजी ने कहा है आज जरूरी काम है.’’

बाबूजी अर्थात दादू उन के नाम से ही जरूरी काम याद आ गया शिखा को. एक विदेशी कंपनी से गठबंधन की बात चल रही थी. बहुत दिनों से अब जा कर दोनों पक्षों की सहमति हुई है. उन के प्रतिनिधि आए हैं अमेरिका से. थोड़ा सा मतभेद अभी भी है वो अगर आज की मीटिंग में दूर हो जाए तो साईन हो जाएंगे. करोड़ों का लाभ होगा शिखा की कंपनी को अर्थात् शिखा को क्योंकि कंपनी की मालकिन शिखा है, दादू हैं जीएम. हड़बड़ा कर उठ बैठी. चाय गटकने लगी.

‘‘गुड मौर्निंग, मालकिन साहिबा.’’

ये भी पढ़ें- सुबह का भूला: भाग-3

दरवाजे पर दादू, सैर कर के, नहाधो कर आए हैं. 6 फुट लंबा शरीर साठ के पार कर भी ना टूटा है, ना झुका है. गोरा रंग, सौम्य दर्शन. पापा भी ऐसे ही सुदर्शन और सौम्य स्वभाव के थे पर कितनी जल्दी सब को छोड़ कर चले गए. दादू शिखा को ‘मालकिन साहिब’ कहते हैं. कभी चिड़ा कर कभी मजाक में. वो उठ खड़ी हुई.

‘‘दादू, मीटिंग का टाइम क्या है?’’

‘‘लंबी चलेगी लगता है. ग्यारह बजे का समय दिया है तो बीच में लंच ब्रेक… विदेशी लोगों में पंकचुएलिटी होती है. 10 बजे आफिस पहुंच डौक्यूमेंट देख लेना है.’’

‘‘दादू, बात बनेगी क्या?’’

‘‘लगता तो है. एक वर्ष हो गए बात करते दो चक्कर तो हम भी लगा कर आए हैं उन के यहां.’’

‘‘बात बन गई तो पैसा ही नहीं अपने क्षेत्र में नाम भी बढ़ेगा.’’

‘‘वो तो है ही पर बेटा अब जल्दी करो.’’

‘‘जी दादू.’’

वैसे शिखा सभी प्रकार की ड्रैस पहनती है, साड़ी छोड़. मम्मा की साडि़यों का अंबार है उस के पास. वे साड़ी छोड़ और कुछ नहीं पहनती थीं. देशविदेश में बिजनैस टूअर पर जाते समय भी साड़ी ही पहनती. पहले शिखा मां की इस भारतीय रुचि के आगे मन ही मन नतमस्तक होती थी, गर्व भी अनुभव करती थी पर फिर उस के समझ में आया कि मां की यह रुचि भारतीय स्त्री की पोशाक के प्रति आदर न था, आकर्षण भी नहीं था, यह भी एक लाभ का सौदा था. साड़ी का रिवाज देशविदेशों में आज भी है.

इस साड़ी के कारण उन को हर क्षेत्र में कुछ विशेष सुविधा मिल जाती. पक्की बिजनैस लेडी थीं मम्मा, एक सूई का साथ मिल जाए तो भी लेने से नहीं चूकती थी. तभी तो अपने साधारण से व्यापार को बढ़ा कर विशाल व्यापार साम्राज्य गढ़ लिया था. उन के छोड़े व्यापार का टर्न ओवर 50 करोड़ को पार कर चुका है पर हां दादू ने भी इस को मजबूत हाथों से थाम कर इसे और फैलाया है. मम्मा को गए तीन वर्ष हो गए. इन तीन वर्षों में कंपनी का टर्नओवर कई करोड़ बढ़ गया है. कुछ नई योजनाएं भी हैं जिन में से एक पर आज मीटिंग है अमेरिकन पार्टी के साथ. उन के यहां से तीन सदस्यों की टीम आई थी.

नहाधो कर आज शिखा ने पूरी तरह से वेस्टर्न ड्रेस उठाया, शर्ट, सूट के साथ बालों का टाइट जूड़ा शीशे के सामने खड़ी हो फिनिशिंग टच देतेदेते अचानक ही पापा का चेहरा सामने आ गया. 6 वर्ष हो गए उन के देहांत को पर आज भी उन का स्पर्श, उन का दुलार, उन के प्यार की गुनगुनाहट को वह अनुभव करती हैं. इतनी बड़ी ‘सोनी एंड कंपनी’ की मालकिन कर्णधार शिखा सोनी तब वही छोटी सी बच्ची बन जाती है इस 26 वर्ष की उम्र में. पापा और मम्मा की बेमेल जोड़ी थी. मम्मा पूरी तरह मनप्राण से बिजनैस को समर्पित लोहे जैसी कठोर एक ऐसी स्त्री थी जो स्वार्थ और सफलता के लिए सबकुछ बलि चढ़ा सकती थी. उन के अंदर कोमल भावनाओं के लिए तिलमात्र स्थान नहीं था, जो रास्ते में सामने आए उसे दोनों पैरों से रौंद कर आगे बढ़ो चाहे वो कोई हो. कोई भी संतान या पति.

पापा एकदम विपरीत थे भावुक, कोमल हृदय, कविता व प्रकृति प्रेमी, संवेदनशील एक उदार हृदय पुरुष. वह कभी नहीं चाहते थे कि फूल सी बेटी को बिजनैस के दलदल में धकेला जाए. वो एक राजकुमार खोज रहे थे जो उन की लाड़ली को सपनों की दुनिया में ले जाए, वो मिल भी गया था पर नियति के मन में कुछ और ही होगा.

सजग हुई शिखा…सामने… जल्दीजल्दी सीढि़यों को पार कर नीचे उतर आई और देखा प्रत्येक बार की तरह दादू ने इस बार भी उसे हरा दिया. वह तैयार हो उस की प्रतीक्षा पहले से ही कर रहे हैं.

मीटिंग सफल रही. 6 हजार लैदर जैकेट सप्लाई देना है उन की समयसीमा है 3 महीने. मम्मा के जाने के बाद ही गारमैंट फैक्टरी डाली गई है. ठीकठाक चल रही है पर इतना बड़ा आर्डर पहली बार मिला वह भी विदेश से. हस्ताक्षर हो गए. बढि़या लंच करा उन को एअरपोर्ट छुड़वा कर दोनों ने जब चैन की सांस ली तब 4 बज रहे थे.

‘‘दादू, आप ने 3 महीने का समय ले ही लिया अब तो सप्लाई देने की कोई चिंता नहीं.’’

जानकीदास ने सिर हिलाया, ‘‘चिंता है मालकिन साहिबा.’’

शिखा अवाक, ‘‘क्यों दादू, तीन महीने तो बहुत हैं.’’

‘‘6 हजार की संख्या भी बहुत बड़ी है, मतलब महीने में दो हजार. बेबी काम में हजारों अड़चनें आ सकती हैं जैसे बिजली, लेबर और भी दिक्कतें हैं…’’

‘‘और भी…वो क्या?’’

‘‘मशीन में गड़बड़ी या विरोधी पक्षों का उपद्रव.’’

‘‘विरोधी पक्ष… पर दादू इस कौंट्रैक्ट के विषय में किसी को क्या पता.’’

‘‘बातों के पर होते हैं उड़ जाते हैं सही ठिकानों पर क्योंकि पैसा सब का ईमान खरीद लेता है बड़ी ताकत है उस में.’’

ये भी पढ़ें- इंडियन वाइफ: भाग 1

सोनी कंपनी अब दूसरी कंपनियों की सिरदर्द बन गई है. मम्मी थी पक्की व्यापारी. हीरे की परख की अनुभवी जौहरी. पापा के साथ उन्होंने विवाह किया था किसी कोमल भावना या आकर्षण के कारण नहीं बल्कि पापा की जांचपरख कर उन को कच्चा हीरा पा कर. नाना उस समय हार्ट अटैक के बाद पूरे बैड रैस्ट पर थे. पापा तभी नएनए उन की कंपनी में एकाउंटैंट हो कर आए थे. उन को पहचानते देर नहीं लगी थी बापबेटी को. उम्र कम, इतने बड़े कंपनी की अकेली वारिस इस समय उन्हें ऐसा कोई चाहिए था जो ईमानदार हो, भरोसे का हो साथ ही साथ अपना भी हो जो उन्हें छोड़ कर जा न सके. संयोगवश पापा भी अविवाहित थे तो विवाह हो गया. दादू को भी बुला लिया क्योंकि वे योजना आयोग में बड़ी कुशलता से काम कर रहे थे. पापा के साथ बंधन को मजबूत करने के लिए मम्मा ने एक खेल और खेला विवाह के वर्ष भर के अंदर ही उस को जन्म दे बंधन को अटूट कर दिया. पापा के प्राण अटक गए शिखा में, शायद दादू के भी.

‘‘वैसे घबराने की कोई बात नहीं. मैं हूं. बेबी तुम चिंता मत करो.’’

आगे पढ़ें- यह बहुत बड़ी विदेशी पार्टी है और आर्डर भी छोटामोटा नहीं. इस…

Serial Story: उड़ान (भाग-3)

आखिर एक दिन उस का मन इतना विरक्त हुआ कि उस ने तय कर लिया कि वह अपने केश उतरवा देगी.

घर में उत्सव जैसा माहौल था. नाई आया. आंगन में एक पीढ़े पर वह बैठी. नाई ने अपना उस्तरा तेज किया और उस के सिर पर फेरना शुरू किया. केशगुच्छ जमीन पर गिरते गए. नाई के जाने के बाद घर की बड़ीबूढि़यां आईं और बोलीं, ‘‘चलो बेटी, अब नहा लो.’’

अरुणा उठ खड़ी हुई. नहा कर उस ने एक कोरी रेशम की साड़ी पहनी जो विधवाओं का लिबास था. अब उस की दिनचर्या बिलकुल बदल गई थी. उस के हिस्से में आए जप, तप, पूजापाठ, व्रतउपवास और संयमी जीवन.

उस के गांव से कुछ स्त्रियां तीर्थयात्रा पर जा रही थीं. अरुणा भी उन के साथ हो ली.

घर लौटी तो हमेशा की तरह उस के भाई उसे बसस्टैंड पर लेने आए थे.

‘‘कहो अक्का, तुम्हारी यात्रा सुखद रही न?’’ केशव ने पूछा.

‘‘हां,’’ वह बताने लगी, ‘‘मैं ने चारों धाम के दर्शन कर लिए. मेरा जीवन सार्थक हो गया.’’

उस ने देखा राघव कुछ अनमना सा था.

‘‘क्या बात है राघव, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, अक्का.’’

नागमणि द्वार पर खड़ी उस का रास्ता देख रही थी.

‘‘भाभी, मैं तुम सब के लिए उपहार लाई हूं,’’ अरुणा बोली, ‘‘तुम्हारे और जया के लिए चंदेरी साडि़यां…’’

कहतेकहते उस की निगाह अंदर सहन में झूले पर बैठी जया पर पड़ी तो वह ठिठक गई.

‘‘अरे, यह क्या?’’ उस के मुंह से निकला.

जया का गला व माथा सूना था. सारे सुहाग के चिह्न नदारद. एक मैली सी साड़ी लपेटे वह शून्य में ताकती अनमनी सी बैठी थी.

‘‘भाभी,’’ अरुणा ने अस्फुट चीत्कार किया, ‘‘यह क्या देख रही हूं मैं? यह कब और कैसे हुआ?’’

नागमणि ने रोरो कर बताया कि जया का पति उसे मायके छोड़ने आया था. सुबह नदी में नहाने गया. हेमावती नदी में बाढ़ आई हुई थी. सुरेश तैरते हुए एक भंवर में फंस गया और तुरंत डूब गया.

‘‘ओह, इतना बड़ा हादसा हो गया और आप लोगों ने मुझे खबर तक न की.’’

‘‘यही नहीं,’’ नागमणि रो कर बोली, ‘‘पति की मृत्यु की खबर से जया को इतना गहरा सदमा लगा कि उसी शाम उसे प्रसव वेदना हुई और एक सतमासा बच्चा पैदा हुआ, वह भी मरा हुआ. इस दोहरे आघात से लड़की एकदम विक्षिप्त सी हो गई है. न किसी से बोलतीचालती है न ठीक से खातीपीती है. बस, दिनभर गुमसुम सी इस झूले पर बैठी रहती है.’’

ये भी पढ़ें- Short Story: न्यायदंश- क्या दिनदहाड़े हुई सुनंदा की हत्या का कातिल पकड़ा गया?

‘‘लेकिन आप लोगों ने इस के गहने क्यों उतरवा दिए? यह तो बड़ी ज्यादती है.’’

‘‘हम ने नहीं, इस ने खुद उतार फेंके हैं. मुझे तो डर है कि यह कहीं दुख से पागल न हो जाए.’’

‘‘ओह,’’ अरुणा ने ठंडा निश्वास छोड़ा. इस भतीजी से उसे बहुत लगाव था. पलभर में उस का सुखी संसार उजड़ गया था.

कुछ दिन बाद बैठक में भाई राघव, भाभी नागमणि, भतीजे श्रीधर और भतीजी जया के साथ अरुणा बैठी हुई थी. अचानक भाई ने प्रसंग छेड़ा.

‘‘स्वामीजी ने कहा था कि जया मांगलिक है इसलिए उस का एक वटवृक्ष से गठबंधन करा कर बाद में उस का विवाह करना चाहिए. हम ने वह भी किया. फिर भी पता नहीं क्यों यह हादसा हो गया? स्वामीजी के अनुसार तो यदि एक नवग्रह जाप करा कर ग्रहशांति के लिए एक छोटा सा यज्ञ करा दिया गया होता तो यह अनर्थ न होता.’’

‘‘उन की छोड़ो, आगे की सोचो. अब जया के बारे में क्या इरादा है?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘उसे यों मझधार में तो छोड़ा नहीं जा सकता. तुम लोग उस की दूसरी शादी क्यों नहीं कर देते?’’

‘‘दूसरी शादी?’’

नागमणि भौचक उस का मुंह ताकने लगी. उस के होंठ कांपे और आंखों से आंसू ढुलकने लगे, ‘‘अक्का, क्या यह संभव है?’’

‘‘क्यों नहीं.’’

‘‘लेकिन लोग क्या कहेंगे? समाज इस की अनुमति देगा?’’ राघव ने टोका.

‘‘राघव, तुम किस समाज की बात कर रहे हो? हम लोग भी तो समाज का अंग हैं और तुम तो गांव के मुखिया हो. सब के अगुआ हो. तुम्हें यह क्रांतिकारी कदम उठाना ही होगा. तुम्हें एक दृष्टांत कायम करना होगा. आखिर किसी को तो पहल करनी चाहिए तभी तो इन कुरीतियों का अंत होगा.’’

‘‘लेकिन बिरादरी वाले हमें जीने नहीं देंगे.’’

‘‘न सही, पर बेटी पहले है या बिरादरी? जरा सोचो, जया के पति की अकाल मृत्यु हुई है, पर तुम लोग जया को जीतेजी मार रहे हो. क्षति उस की हुई और सजा भी वही भुगते. यह कहां का न्याय है?’’

‘‘अक्का ठीक कह रही हैं,’’ केशव ने कहा.

‘‘लेकिन मेरा मन इस की गवाही नहीं देता. हमारे हिंदू धर्म में विधवा विवाह वर्जित है.’’

‘‘अन्य धर्मों में विधवा विवाह की छूट है. मुसलमानों और ईसाइयों में विधवा विवाह होते रहते हैं. पता नहीं, हम हिंदू ही नारी के प्रति इतने बर्बर क्यों हैं? पुरुष एक छोड़ दस शादियां कर सकता है. एक पत्नी के मरने पर दोबारा कुंआरी कन्या से विवाह कर सकता है. ये सारे कायदेकानून, सारे प्रतिबंध स्त्रियों के लिए ही हैं. क्यों न हों, ये नियम पुरुषों ने ही तो बनाए हैं. लेकिन अब सारे देश में बदलाव की लहर बह रही है.

‘‘स्त्रियों के हित में नित नए कानून बन रहे हैं. स्त्रियां अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं. वे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं, पर अफसोस, हमारा गांव वहीं का वहीं है. वही संकीर्ण मानसिकता, वही पिछड़ापन. कुप्रथाओं के मकड़जाल में फंसा, तंत्रमंत्र, छुआछूत, टोनाटोटका, झाड़फूंक और अंधविश्वासों से घिरा है हमारा ग्रामीण समाज. ऊपर से हमारे धर्म के ठेकेदार हमें धर्म की दुहाई दे कर तिगनी का नाच नचाते रहते हैं. मैं यह सब इसलिए कह रही हूं कि हमें जया को आजीवन रोने व कलपने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए. उस का भविष्य संवारने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.’’

‘‘मैं अक्का से सहमत हूं,’’ केशव बोला, ‘‘हमें जया की दूसरी शादी कर देनी चाहिए. मेरी नजर में एक अति उत्तम लड़का है. वह सुलझे विचारों वाला है. उस की सोच नई है. मैं उस से बात करूंगा.’’

‘‘ठीक है, पर एक बात, जातपांत को ले कर कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए. जया को इस माहौल से निकालो. उसे शहर भेजो. वहां के उन्मुक्त वातावरण में उसे सांस लेने दो. उस के पंख मत कतरो. उस पर अंकुश मत लगाओ. उसे उड़ान भरने दो. उसे स्वच्छंद विचरने दो. उस के  व्यक्तित्व को विकसित होने दो.’’

‘‘अक्का, तुम ने भी तो कम उम्र में अपने पति को गंवाया था. तुम ने भी तो सारी उम्र निष्ठा से वैधव्य धर्म का पालन किया.’’

‘‘राघव, उस समय मेरे सामने और कोई विकल्प नहीं था. मुझ में मातापिता के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं थी. लेकिन यह जरूरी नहीं कि जया का हश्र मेरे जैसा हो. उस में और मुझ में एक पीढ़ी का फर्क है. हमारे समय में लड़कियों को पढ़ायालिखाया नहीं जाता था. उसे पहले पिता फिर पति और फिर पुत्र का आश्रित हो कर रहना पड़ता था. विधवा होना तो उस के लिए एक बड़ा अभिशाप था.

अपनी इच्छाओं का दमन कर, रूखासूखा खा कर, मोटाझोटा पहन कर वह एक उपेक्षित की जिंदगी गुजारती थी. उसे मनहूस, कुलच्छिनी माना जाता था और उस की दशा जानवरों से भी बदतर होती थी. तुम तो जानते हो कि हमारी तमिल भाषा में ‘मुंडे’ यानी ‘विधवा’ गाली है. ‘मुंडेदे’ यानी विधवा की अवैध संतान भी एक गाली है. लेकिन अब हम विधवा के प्रति सदय हैं. हम में जागरूकता आई है. हम ने कई पुरानी कुप्रथाओं का त्याग किया है. एक समय था कि हमारे देश में सती का चलन था. बालविवाह और देवदासी की प्रथा थी. हमारे दक्षिण भारत के गांवों में नवजात बच्चियों को दूध के गागर में डुबो कर मार दिया जाता था. अब जमाना बदल रहा है. हमें जमाने के साथ चलना चाहिए. जया पढ़ीलिखी है, सबल है, सक्षम है. उसे स्वावलंबी बनने दो. उसे नया जीवनदान दो.’’

ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री की प्रेमिका: क्या था मीनाक्षी के खूबसूरत यौवन के पीछे का सच?

नागमणि अरुणा के पैरों पर गिर पड़ी, ‘‘अक्का, मुझे क्षमा कर दो. मैं ने आप को बहुत जलीकटी सुनाई है. आप को बहुत दुख पहुंचाया है.’’

‘‘वह सब भूल जाओ. अब हमारे सामने जया की ज्वलंत समस्या है. इस का समाधान ढूंढ़ना है. जिंदगी जीने के लिए है, घुटघुट कर मरने के लिए नहीं.’’

वह उठ कर जया की बगल में जा बैठी. उस की पीठ पर हाथ फेरते हुए उस ने कहा, ‘‘क्यों बिटिया, मैं ने ठीक कहा न?’’

जया के निस्पंद शरीर में तनिक हरकत हुई. उस ने सिर घुमा कर अरुणा को देखा और बिना कुछ बोल अपना सिर उस के कंधे पर टिका दिया.

जवाब ब्लैकमेल का

कहानी- विनय कुमार पाठक

रमासन्न रह गई. उस के मोबाइल पर व्हाट्सऐप पर किसी ने उस के अंतरंग क्षणों का वीडियो भेजा था और साथ में यह संदेश भी कि यदि वह इस वीडियो तथा इस तरह के और वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड होते नहीं देखना चाहती तो उस के साथ उसे हमबिस्तर होना पड़ेगा और वह सबकुछ करना पड़ेगा जो वह

उस वीडियो में बड़े प्यार और कुशलता से कर रही है.

वह घर में फिलहाल अकेली थी. प्रकाश औफिस जा चुका था. वह शाम 7 बजे के बाद

ही घर लौटता है. क्या करे, वह समझ नहीं पा रही थी. ‘प्रकाश को फोन करूं क्या?’ उस ने सोचा.

नहीं, पहले समझ तो ले मामला क्या है मानो उस ने खुद से कहा. उस ने वीडियो क्लिप को ध्यान से देखा. कहीं यह वीडियो डाक्टर्ड तो नहीं? किसी पोर्न साइट में उस के चेहरे को फिट कर दिया गया हो शायद. पर नहीं. यह डाक्टर्ड वीडियो नहीं था. वीडियो में साफसाफ वही थी. दृश्य भी उस के बैडरूम का ही था

और उस के साथ जो पुरुष था वह भी प्रकाश ही था. बैडशीट भी उस की थी. इतनी कुशलता से कोई कैसे पोर्न वीडियो में तबदीली कर सकता है?

प्रकाश ओरल सैक्स का दीवाना था. वह तो पहले संकोच करती थी पर धीरेधीरे उस की झिझक भी मिट गई थी. अब वह भी इस का भरपूर आनंद लेने लगी थी. साथ ही प्रकाश उन क्षणों का आनंद रोशनी में ही लेना चाहता था. फ्लैट में और कोई था नहीं. अत: अकसर वे रोशनी में ही यौन सुख का आनंद लेते थे.

वीडियो में वह प्रकाश के साथ थी और बैडरूम के ठीक सामने स्विचबोर्ड भी साफसाफ दिख रहा था. पर ऐसा कैसे हो सकता है? यह दृश्य तो लगता है किसी ने जैसे कमरे में सामने खड़े हो कर फिल्माया है. उस का सिर चकराने लगा. उस की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था.

ये भी पढ़ें- छैल-छबीली: भाग 3

तभी उस के दिमाग में एक विचार कौंधा. ट्रूकौलर पर उस ने उस नंबर को सर्च किया, जिस से वीडियो क्लिप भेजा गया था. देवेंद्र महाराष्ट्र. ट्रूकौलर पर यही सूचना थी. देवेंद्र कौन हो सकता है? क्या इस नंबर पर कौल कर पता करे या फिर प्रकाश से बोले. वह कोई निर्णय कर पाती उस के पहले ही उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो.’’

‘‘भाभीजी नमस्कार, आशा है वीडियो आप को पसंद आया होगा. ऐसे कई वीडियो हैं हमारे पास आप के. कम से कम 25. कहो तो इन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दूं?’’

‘‘कौन हो तुम और क्या चाहते हो?’’

‘‘बहुत सुंदर प्रश्न किया है आप ने. कौन हूं मैं और क्या चाहता हूं? कौन हूं यह तो सामने आने पर पला चल जाएगा और क्या चाहता हूं

यह तो वीडियो क्लिप के साथ मैं ने बता दिया है आप को. सच पूछो भाभीजी तो आप के वीडियो का मैं इतना दीवाना हूं कि मैं ने तो पोर्न साइट देखना ही छोड़ दिया है. आप तो पोर्न सुपर स्टार को भी मात कर देती हैं. आप ने मुझे अपना दीवाना बना लिया है.’’

रमा समझ नहीं पाई कि क्या किया जाए. गुस्सा तो उसे बहुत आ रहा था पर उस से ज्यादा उसे डर लग रहा था कि कहीं सचमुच उस ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड कर दिया तो वह क्या करेगी. फिर उस

ने एक उपाय सोचा और उस के अनुसार उसे जवाब दिया, ‘‘देखो, मैं तैयार हूं पर इस के लिए सुरक्षित जगह होनी चाहिए.’’

‘‘आप के घर से सुरक्षित जगह और क्या होगी? प्रकाशजी तो रात में ही वापस आते हैं न?’’

रमा चौंक पड़ी. मतलब वीडियो भेजने वाला प्रकाश का नाम भी जानता है और वह कब आता है यह भी उसे पता है.

‘‘आते तो 7 बजे के बाद ही हैं पर औफिस तो इसी शहर में है. कहीं बीच में आ गए तो फिर मेरी क्या हालत होगी? 2 दिनों के बाद वे अहमदाबाद जाने वाले हैं 1 सप्ताह के लिए. इस बीच में आप की बात मान सकती हूं.’’

‘‘अरे, वाह आप तो बड़ी समझदार निकलीं. मैं तो सोच रहा था आप रोनाधोना शुरू कर देंगी.’’

‘‘बस, आप वीडियो किसी को मत दिखाइए और मेरे मोबाइल पर कोई वीडियो मत भेजिए. ये कहीं देख न लें… इसे मैं डिलीट कर रही हूं.’’

‘‘जैसे 1 डिलीट करेंगें वैसे ही 5 भी डिलीट कर सकती हैं. मैं कुछ और वीडियो भेजता हूं. देख तो लीजिए आप कितनी कुशलतापूर्वक काम को अंजाम देती हैं. देख कर आप डिलीट कर दीजिएगा. इन वीडियोज ने तो मेरी नींद उड़ा दी है. इंतजार रहेगा 2 दिन बीतने का. हां, कोईर् चालाकी मत कीजिएगा. मुझे अच्छा नहीं लगेगा कि दुनिया आप की इस कलाकारी को देखे. रखता हूं.’’

फोन डिसकनैक्ट हो गया. कुछ ही देर में एक के बाद एक कई क्लिप उस के मोबाइल पर आते गए. उस ने 1-1 क्लिप को देखा. ऐसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य हो कर उन के क्रीड़ारत वीडियोज बना रहा था. शाम को प्रकाश आया तो रमा का चेहरा उतरा हुआ था. ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ प्रकाश ने टाई की नौट ढीली करते हुए पूछा. ‘‘तबीयत बिलकुल ठीक नहीं है, बड़ी मुसीबत में हूं. दिनभर सोचतेसोचते दिमाग भन्ना गया है,’’ रमा ने तौलिया और पाजामा उस की ओर बढ़ाते हुए कहा. ‘‘कितनी बार तुम्हें सोचने के लिए मना किया है. छोटा सा दिमाग और सोचने जैसा भारीभरकम काम,’’ कपड़े बदलते हुए प्रकाश ने चुटकी ली.

‘‘पहले फ्रैश हो लो, चायनाश्ता कर लो, फिर बात करती हूं,’’ रमा ने कहा और फिर रसोई की ओर चल दी.

प्रकाश फ्रैश हो कर बाथरूम से आ कर नाश्ता कर चाय पीने लगा. रमा चाय का कप हाथ में लिए उदास बैठी थी.

‘‘हां, मुहतरमा, बताइए क्या सोच कर अपने छोटे से दिमाग को परेशान कर रही हैं?’’ प्रकाश ने यों पूछा मानो वह उसे किसी फालतू बात के लिए परेशान करेगी.

जवाब में रमा ने अपना मोबाइल फोन उठाया, स्क्रीन को अनलौक किया और उस वीडियो क्लिप को चला कर उसे दिखाया.

वीडियो देख प्रकाश भौचक्का रह गया, ‘‘यह… क्या है?’’

‘‘कोई देवेंद्र है, जिस ने मुझे यह क्लिप भेजा है. इसे सोशल साइट पर अपलोड करने की धमकी दे रहा था. अपलोड न करने के लिए वह मेरे साथ वही सब करना चाहता है जो वीडियो में मैं तुम्हारे साथ कर रही हूं. मैं ने उस से 2 दिन की मोहलत मांगी है. उस से कहा है कि 2 दिन बाद तुम अहमदाबाद जा रहे हो. उस दौरान उस की मांग पूरी की जाएगी.’’

प्रकाश 1-1 क्लिप को देख रहा था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि कैसे कोई इतना स्पष्ट वीडियो बना सकता है. उस ने अपने बैड के पास जा कर देखा. कहीं कोई गुप्त कैमरा लगाने की गुंजाइश नहीं थी और कोई गुप्त कैमरा लगाता कैसे. घर में तो किसी अन्य के प्रवेश करने का प्रश्न ही नहीं है. अपार्टमैंट में सिक्युरिटी की अनुमति के बिना कोई आ ही नहीं सकता. उस के प्लैट के सामने अपार्टमैंट का ही दूसरा फ्लैट था जो काफी दूर था. ‘‘हमें पुलिस को खबर करनी होगी,’’ प्रकाश ने कहा, ‘‘पर पहले एक बार खुद भी समझने की कोशिश की जाए कि मामला क्या है.’’ दोनों काफी तनाव में थे. खाना खा कर कुछ देर तक टीवी देखते रहे पर किसी चीज में मन नहीं लग रहा था. रात के 11 बजे दोनों सोने बैड पर गए, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी. पतिपत्नी दोनों की ही इच्छा नहीं थी और दिनों की तरह रतिक्रिया में रत होने की. और दिन होता तो प्रकाश कहां मानता. मगर आज तनाव ने सबकुछ बदल दिया था.

ये भी पढ़ें- एक दिन अपने लिए: भाग 2

प्रकाश की बांहों में लेटी रमा कुछ सोच रही थी. प्रकाश छत को निहार रहा था. एकाएक प्रकाश को खिड़की के पास कोई संदेहास्पद वस्तु दिखाई दी. वह झपट कर खिड़की के पास गया. उस ने देखा सैल्फी स्टिक की सहायता से सामने वाले फ्लैट की खिड़की से कोई मोबाइल से उन की वीडियोग्राफी कर रहा था. प्रकाश तुरंत बाहर निकल कर उस फ्लैट में गया और डोरबैल बजाई. पर मोबाइल में शायद उस ने उसे बाहर निकलते हुए देख लिया था. काफी देर डोरबैल बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो प्रकाश वापस आ गया. उस ने इंटरकौम से सोसाइटी के सचिव को फोन कर मामले की जानकारी दी. सचिव ने बताया कि उस में कोई देवेंद्र नाम का व्यक्ति रहता है और किसी प्राइवेट फर्म में काम करता है. इस तरह की घटना से सभी हैरान थे.

काफी कोशिश की गई देवेंद्र से बात करने की. पर न तो उस ने फोन उठाया न ही दरवाजा खोला. हार कर सिक्युरिटी को ताकीद कर दी गई कि उस व्यक्ति को सोसाइटी से बाहर न निकलने दिया जाए.

दूसरे दिन सुबह थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई और फिर देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया. ‘‘तुम ने बहुत अच्छा निर्णय लिया कि वीडियो के बारे में मुझे बता दिया. यदि उस के ब्लैकमेल के झांसे में आ जाती तो काफी मुश्किल होती और फिर वह न जाने कितने लोगों को इसी तरह ब्लैकमेल करते रहता,’’ प्रकाश ने बिस्तर पर लेटेलेटे रमा की कमर में हाथ डालते हुए कहा. रमा ने उस के हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘पहले खिड़की के परदे ठीक करो, बत्ती बुझाओ फिर मेरे करीब आओ.’’ प्रकाश खिड़की के परदे ठीक करने के लिए उठ गया.

3 सखियां: भाग-7

पिछला भाग- 3 सखियां: भाग-6

‘‘मैं आप के साथ हूं.’’ फिर एक दिन आभा को अचानक फेसबुक पर रितिका की खबर मिली. उस ने लिखा था, ‘तुम्हारा नाम फेसबुक पर देखा तो तुम से फिर संपर्क करने की तमन्ना हुई. युगों बीत गए तुम से बात किए या मिले हुए. अपना हालचाल बताना.’ आभा खुशी से उछल पड़ी. इतने सालों बाद अपनी सखी का संदेश पा कर वह भावुक हो गई. उस ने फौरन रितिका को फोन लगाया.

‘‘रितिका,’’ वह फोन पर चीखी.

‘‘आभा माई डियर, मैं बयान नहीं कर सकती कि मुझे तुम से बात कर के कितनी खुशी हो रही है. मैं ने सुना कि तू इंडिया आ गई है.’’

‘‘हां, और तू कहां है? इटली में?’’

‘‘अरे नहीं यार, इटली तो छूट चुका.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘यह एक लंबी कहानी है, ऐंटोनियो बड़ा फरेबी निकला.’’

‘‘क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां आभा. उस ने मुझे बड़ा धोखा दिया.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘वह बड़ा झूठा था. वह गले तक कर्ज में डूबा हुआ था. उस का महल भी गिरवी पड़ा था.’’

‘‘तो उस का काम कैसे चलता था?’’

‘‘पता नहीं. उस ने मुझे अपने महल में टिका दिया. शुरूशुरू में वह मुझ से बहुत प्यार जताता था. पर जब उसे पता चला कि मैं इंडियन हूं पर किसी रियासत की राजकुमारी नहीं और न ही मेरे पास अगाध दौलत है जिसे वह हथिया सके, तो उस ने मेरी ओर से आंखें फेर लीं. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला. वह महीनों घर से गायब रहता. न मेरा हाल पूछता न अपने बारे में कुछ बताता. धीरेधीरे मुझे उस की असलियत मालूम हुई. उस के पास आमदनी का कोई जरीया नहीं था. वह अमीर औरतों को अपने जाल में फांसता था और उन से पैसे ऐंठता था. यही उस की जीविका का आधार था और यही उस का पेशा था. दरअसल, वह एक जिगोलो था. वह पैसे के लिए अपना तन बेचता था. भला ऐसे आदमी के साथ मैं कैसे रह सकती थी? उस ने तो मुझे भी धंधे में झोंकने की कोशिश की.’’

‘‘ओह नो.’’

‘‘हां. जब मुझे उस के नापाक इरादों की भनक मिली तो मैं चौकन्नी हो गई. मैं ने वहां से भागने का प्लान बनाया. हालांकि यह काम इतना आसान नहीं था. फिर भी मैं ने घर की एक बुढि़या नौकरानी को अपने कुछ गहने दिए और उस की मदद से मैं ने एक नाव किराए पर ली और नदी पार की. रोम पहुंच कर मैं सीधे इंडियन ऐंबैसी की शरण में गई. वहां अपनी राम कहानी सुनाई और फिर भारत वापस पहुंची. अब मैं अपनी मां के साथ रहती हूं, बिलकुल अकेली. न कोई संगी न साथी,’’ उस ने बुझे स्वर में कहा. ‘‘रितिका तेरी कहानी सुन कर तो रोना आता है. अभी तेरी उम्र ही क्या है. ये पहाड़ जैसी जिंदगी किस के सहारे काटेगी? बुरा न मान तो एक बात कहूं, तू दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती?’’

ये भी पढ़ें- एक दिन अपने लिए: भाग 1

‘‘दूसरी शादी? राम भजो. 2 बार कर के तो पछता रही हूं. नहीं, शादी का सुख मेरी जिंदगी में नहीं है और इत्तफाक से बच्चे भी नहीं हुए, नहीं तो उन के लिए ही जी लेती. जब तक मां हैं हम दोनों एकदूसरे के सहारे दिन काट रही हैं. आगे की देखी जाएगी.’’

‘‘तब तेरा समय कैसे कटता है?’’

रितिका ने एक आह भरी और कहा, ‘‘कट ही जाता है किसी तरह. सुबह होती है शाम होती है, जिंदगी यों ही तमाम होती है. दरअसल, हालात ही कुछ ऐसे बने कि मेरी कायापलट हो गई. वैसे कहते हैं कि शादी एक जुआ है. पर मैं तो कहूंगी कि जिंदगी एक जुआ है. किसी को बैठेबिठाए, अनायास ही जीवन की हर खुशी मिल जाती है. उस के सिर पर जीत का सेहरा लग जाता है और कोई आजीवन झींकता रहता है, संघर्ष करता रहता है पर उस के मन की एक भी मुराद पूरी नहीं होती. कभीकभी लगता है कि दुनिया हमारी मुट्ठी में है पर दूसरे ही क्षण पारे की तरह सब हाथ से फिसल जाता है. हम सब एक कठपुतली समान हैं और कोई अदृश्य शक्ति हमें नचाती रहती है. खैर छोड़ न यार, कोई और बात कर. हां, अपनी सखी शालिनी की सुना. उस के क्या हालचाल हैं?’’

‘‘उस की कुछ न पूछ,’’ आभा ने एक आह भर कर कहा.

‘‘भला क्यों?’’

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं है.’’

‘‘ये क्या कह रही है आभा? क्या हुआ था उसे?’’

‘‘कोई बीमारी नहीं थी उसे. उस के पति ने बहलाफुसला कर उसे वापस इंडिया भेजा और उस के लौटने के तुरंत बाद उसे तलाक के कागजात भेज दिए. उस के मांबाप तलाक देने के पक्ष में नहीं थे. पर शालिनी ने कागजात पर दस्तखत कर दिए. इस के बाद वह बिलकुल टूट सी गई. पार्थ को वह बहुत चाहती थी. वह बहुत गुमसुम रहने लगी. वह डिप्रैशन का शिकार हो गई और ड्रग्स भी लेने लगी. उस के मांबाप ने उस के लिए वर ढूंढ़ना शुरू कर दिया और एक अधेड़, दुहाजू वर तलाश भी कर लिया. फिर शालिनी को समझाबुझा कर शादी के लिए राजी भी कर लिया. पर शादी के एक दिन पहले शालिनी ने किसी ड्रग का ओवरडोज ले लिया. रात को सोई तो सोई ही रह गई.’’

‘‘हायहाय ये तो बहुत बुरा हुआ. बेचारी शालिनी.’’ ‘‘हां, समझ में नहीं आता कि उस की असमय मौत के लिए किसे दोष दें. उस के मांबाप की दकियानूसी सोच को, जो ये सोचते हैं कि शादी के बिना एक स्त्री का निस्तार नहीं है या उस के कू्रर पति को जिस ने उस के साथ वहशियाना बरताव किया और उस का जीना दूभर कर दिया या अपने समाज के संकीर्ण दृष्टिकोण को जो लड़कियों के प्रति हमेशा असहिष्णु रहा है और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझता है. खैर यह तो हुई शालिनी की कहानी. अब किसी दिन तुझे फुरसत से अपने बारे में बताऊंगी. अब फोन रखती हूं.’’

‘‘ठीक है. पर तू मुझे जबतब फोन करती रहना. इस से मुझे बहुत आत्मबल मिलता है.’’

‘‘अवश्य,’’ कह कर आभा ने फोन रख दिया.

उस की नजर बाहर बैठे राम पर पड़ी जो बड़ी लगन से बच्चों को पढ़ा रहे थे. वह मुग्ध भाव से उन का सौम्य मुखमंडल ताकती रही. यदि सहचर मन मुताबिक मिले तो एक स्त्री का जीवन सफल हो जाता है. अगर शादी के जुए में उस का पांसा सही पड़ गया तो समझो उस के पौबारह हैं, उस ने भावविभोर हो कर सोचा.

ये भी पढ़ें- छैल-छबीली: भाग 2

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें