40th Birthday- चालीसवां बर्थडे: जब शिल्पा की आंखों से हटा चकाचौंध का परदा

औफिस में रोजी पीछे की सीट से उठ कर आगे शिल्पा की बगल में आ कर बैठ गई. बोली, ‘‘शिल्पा सुनो तुम्हारा 40वां बर्थडे आ रहा. क्या प्लान किया है? हमें भी तो कुछ बताओ?’’

‘‘रोजी, तुम देखना पार्टी को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ूंगी. यह सबकुछ डिफरैंट लुक स्टाइल में होगा,’’ अल्पना धीरे से बोली, ‘‘हम सब ने 1-1 कर के 4 दशक पार कर ही लिए अब तुम ही बची हो, हा… हा… हा…’’

औफिस से निकल कर शिल्पा कार से घर चल दी. घर में घुसी तो किचन से चाय उबलने की सुगंध से उस के पैर किचन की तरफ बढ़ गए. वहां औफिस से आ कर श्रीमानजी किचन में चाय बना रहे थे.

शिल्पा को किचन में आया देख कर बोले, ‘‘शिल्पा चाय पीओगी.’’

‘‘श्योर हाफ कप मेरे लिए भी बना लेना, मैं चेंज कर के आती हूं.’’

स्वप्निल ने चाय बन जाने पर 2 कप में डाल बालकनी में ले आया. सोचने लगा आज तो शिल्पा कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रही है. शिल्पा कहीं कोई न कोई डिमांड न जरूर करती है. अकसर जब वह ज्यादा खुश दिखाई देती है तो… स्वप्निल ने बालों को पीछे की ओर झटक कर चाय का एक घूंट पीया. तब तक शिल्पा भी आ गई. स्वप्निल के हाथ से कप ले कर निगाहें सड़क पर जमा दीं. आतेजाते लोगों को देखने लगी.

‘‘शिल्पा क्या सोच रही हो?’’

‘‘स्वप्निल मेरा बर्थडे आने वाला है. इसे में औफिस की दोस्तों के साथ मिल कर यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हूं.’’

‘‘मैं अब समझ, तुम इतनी खुश क्यों दिखाई दे रही हो. बेगम साहिबा आगे कहो मैं क्या खिदमत कर सकता हूं?’’

‘‘स्वप्निल मुझे 50 हजार रुपये चाहिए.’’

‘‘शिल्पा तुम सबकुछ तो जानती हो अभी फ्लैट की पहली किस्त जमा करनी है. अगर नहीं की तो फ्लैट नहीं मिलेगा.’’

‘‘स्वप्निल मैं अपनी दोस्तों को कह चुकी हूं सब मेरा मजाक बनाएंगी, सब से कह चुकी हूं कि बर्थडे पर ग्रैंड सैलिब्रेशन करूंगी उस का क्या?’’

‘‘शिल्पा अभी तक तो तुम ने कभी बाहर बर्थडे नहीं मनाया. घर में ही सादगी से हम मना लेते थे.’’

‘‘तब मैं हाउसवाइफ थी अब मैं भी वर्किंग वूमन हूं.’’

‘‘यह क्या नया शौक लगा लिया है?’’

‘‘इस में अनकौमन क्या है? सभी तो मना रहे हैं? इस औफिस में सभी लोग अपना बर्थडे बाहर ही सैलिब्रेट करते हैं. हमारे औफिस में काम करने वाली सभी लेडीज ने अपने 40वें बर्थडे की पार्टी को बहुत ही खूबसूरत तरीके से मनाया है. अब मेरी बारी है, अपने लिए ड्रैस, खानेपीने, डैकोरेशन और रिटर्न गिफ्ट भी देना होगा. इन के लिए पैसे तो चाहिए ही.’’

‘‘शिल्पा मैं तुम्हें इतने पैसे नहीं दे सकता. तुम अपने पैसे निकाल लो.’’

‘‘क्या कहा?’’

‘‘शिल्पा तुम तो खुद कमा रही हो.’’

‘‘अभीअभी तो नौकरी जौइन की है. मेरे पास पैसे नहीं हैं,’’ की शिल्पा पैर पटकती हुई बैडरूम में चली गई.

‘‘बैड पर लेट कर रोना शुरू कर दिया कि  बुद्धिजीवियों के अंदर बुद्धि का इतना अभाव… स्वप्निल को अपनी जेब कटने के पूरे आसार नजर आ रहे थे. जैसाकि हर बार होता आया है.

‘‘चलो बेटा उठो चल कर मनाने वरना रोटी नहीं मिलने की,’’ स्वप्निल बड़बड़ाया.

शिल्पा का रोना लाख समझने पर भी रुक ही नहीं रहा था. कह रही थी, ‘‘स्वप्निल, क्या मुझे जन्मदिन मनाने का भी अधिकार नहीं है?’’

‘‘अधिकार है, मैं भी मानता हूं, लेकिन फुजूलखर्ची से बचना चाहिए. अपनी जेब को भी टटोल कर देख लेना चाहिए. अमीरों के लिए जो एक मामूली खर्च है वहीं हमारे लिए खर्च करने पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. इतनी नादान तो तुम हो नहीं कि बात को समझ न सको.’’

‘‘स्वप्निल मैं ने अपनी दोस्तों से वादा किया है कि बहुत अच्छी पार्टी का इंतजाम करूंगी. मैं उन्हें क्या जवाब दूंगी?’’

‘‘मेरी और तुम्हारी तनख्वाह मिला कर भी घर चलाना मुश्किल होता है. यह अमीरों के साथ दोस्ती कर के इधर घर के हालात पर तुम्हारा ध्यान ही नहीं है. फिर भी मैं दे दूंगा क्व50 हजार अब खुश हो जाओ,’’ स्वप्निल ने शिल्पा के आगे सेरैंडर करते हुए कहा.

‘‘अभी तो कह रहे थे आप के पास पैसे नहीं हैं. अब कहां से आए?’’

‘‘वाकई मेरे पास पैसे नहीं हैं. लेकिन तुम चिंता मत करो मैं इंतजाम करता हूं.’’

‘‘पहले मेरे अकाउंट में पैसे भेजो तब मैं मानूंगी.’’

‘‘कह तो दिया मेरा विश्वास करो. अब उठो और चल कर खाना बनाओ बहुत भूख लगी है.’’

शिल्पा बेमन से उठी और किचन में आई. रात काफी हो चुकी थी इसलिए उस ने खाने में पुलाव बना लिया. प्लेट परोस कर टेबल पर रख कर फिर से पलंग पर लेट गई. स्वप्निल डाइनिंगटेबल पर एक ही प्लेट में पुलाव देख कर समझ गया शिल्पा अभी भी खफा है. प्लेट उठा कर अंदर ही ले आया. सोचा इसी में से आधाआधा खा लेंगे पर यह क्या शिल्पा सो चुकी थी.

स्वप्निल का भी मन नहीं किया खाने का. प्लेट वापस डाइनिंगटेबल पर ढक कर रख कर वह खुद भी सो गया.

सुबह स्वप्निल जागा तो उस के मस्तिष्क में उथलपुथल मची हुई थी कि पैसे कहां से लाऊं वरना शिल्पा तो मुझे ताने देदे कर परेशान कर  देगी. कैसे भी कर के मुझे पैसों का इंतजाम करना होगा. रमेशजी ने प्लौट के लिए जो पैसे मुझे जमा करने के लिए दिए हैं मैं उन्हीं को शिल्पा के अकाउंट में ट्रांसफर कर देता हूं. पैसे अरेंज होने पर जमा करा दूंगा. सोचते हुए वह औफिस जाने के लिए तैयार हो गया.

देखा शिल्पा तो अभी तक उठी नहीं थी शायद आज औफिस नहीं जाएगी. हो सकता है ऐसा जानबू?ा कर रही हो. स्वप्निल ने शिल्पा को जगाना उचित नहीं समझ. बैग ले कर औफिस के लिए निकल पड़ा.

स्वप्निल ने औफिस पहुंच कर आज कैंटीन में ही नाश्ता किया और औफिस में अपनी टेबल पर आ कर काम निबटाने लगा. लेकिन मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था. पता नहीं शिल्पा को क्यों लगता है जैसे उस के पास पैसों का पेड़ लगा है. स्वप्निल ने शिल्पा के खाते में क्व50 हजार ट्रांसफर कर दिए.

कुछ ही देर बाद शिल्पा का मैसेज आया, ‘‘थैंक्यू डार्लिंग, 2 ही दिन बचे हैं तैयारी के.

आज औफिस से लौटते हुए शाम को शौपिंग चलते हैं.’’

स्वप्निल ने जवाब में लिख दिया, ‘‘मुझे आने में देरी होगी तुम खुद ही चली जाना,’’ शिल्पा को इसी पल का इंतजार था.

पैसे मिलते ही जैसे पंख लग गए थे. उस ने सब से पहले रोजी को फोन पर साथ चलने के लिए तैयार होने के लिए कहा. फिर खुद भी झटपट तैयार हो कर निकल पड़ी. रास्ते में से रोजी को पिक किया और दोनों सहेलियां शहर के एक बड़े से मौल में पहुंच कर शौपिंग करने लगी और वहीं रैस्टोरैंट में खाया. शिल्पा स्वप्निल के लिए खाना पैक करवा ही रही थी, ‘‘रोजी ने कहा शिल्पा मेरे पति के लिए भी चाइनीज पैक करा देना. अब घर जा कर मेरी खाना बनाने की हिम्मत नहीं है.’’

‘‘ओके डियर अभी करवाती हूं.’’

कांउटर पर पेमैंट कर दोनों सहेलियां पैकेट ले कर कार पार्किंग की ओर चल पड़ीं.

गाड़ी में बैठ कर सीट बैल्ट बांधते हुए रोजी से रहा नहीं गया. बोली, ‘‘शिल्पा, यार

तुम ने तो पति पर जादू कर रखा है. आज तो जबरदस्त शौपिंग की है. खाना भी मजेदार था.’’

‘‘रोजी लेकिन अभी पार्टी को 2 दिन का समय है, तब तक सरप्राइज को ओपन मत करना वरना सारा मजा किरकिरा हो जाएगा.’’

‘‘इस की फिकर मत करो, बस तुम ऐंजौय करो.’’

स्वप्निल ने शिल्पा को रमेशजी के पैसे ट्रांसफर कर तो दिए लेकिन 3 दिन में क्व50 हजार का इंतजाम करना ही होगा वरना इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगा, उसे अपने सिर पर तलवार लटकी दिखाई दे रही थी. उस का मन बारबार मनोतियां मान रहा था. पैसों का इंतजाम कैसे किया जाए इस के लिए पूरे हाथपैर मारे लेकिन उधार भी लोग कब तक देंगे. यह तो उस का आएदिन का काम हो गया था.

शिल्पा को समझने की कोशिश में हर बार नाकामयाबी ही मिलती थी. घर का माहौल बिगड़ा ही रहता. यह दर्द न सहने के कारण इधरउधर से ले कर हर महीने काम चला रहा था.

मगर इस बार रकम बड़ी थी और वह भी दूसरे की अमानत. अभी वह अपना काम कर के निकलने ही वाला था कि रमेशजी सामने खड़े थे. उन्हें इस तरह अचानक आया देख कर स्वप्निल  घबरा गया जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. अपने को संभालते हुए उन्हें बैठने के लिए कह कर अपने माथे पर आए पसीने को पोंछने लगा. बोला, ‘‘रमेशजी, इस वक्त कैसे आना हुआ?’’

‘‘अरे भाई क्या बताऊं मेरी पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो गई है. डाक्टर ने कहा है औपरेशन होगा. उस के डाक्टर ने कई टैस्ट लिखे हैं. इलाज के लिए पैसों की जरूरत है. मैं अपने पैसे जो प्लौट के लिए आप को जमा कराने के लिए दिए थे उन्हें वापस दे दो. मैं प्लौट?की किस्त अगले महीने जमा करा दूंगा.’’

स्वप्निल ने कभी सोचा भी नहीं था कि इस तरह से वह बेबस हो जाएगा, लेकिन वह पैसा तो रमेशजी का अपना है. उन का मांगना भी वाजिब है. स्वप्निल के आगे बस एक ही औप्शन था कि वह अपने फ्लैट के लिए रखे गए पैसों में से रमेशजी के पैसे दे दे. खुद अपने घर का सपना हमेशा के लिए अपने सीने में दफन कर दे. स्वप्निल ने कांपती हुई उंगलियों से

50 हजार रुपये रमेशजी के एकाउंट में ट्रांसफर कर दिए. रमेशजी धन्यवाद कह कर चले गए.

मगर स्वप्निल वहीं कुरसी पर निढाल हो कर बैठा गया. उस की घर जाने की इच्छा ही मर गई थी. आज मां बहुत याद आ रही थी. मां बाबा का कितना खयाल रखतीं. जरूरत पड़ने पर अपनी बचत के पैसों से कितनी ही बार बाबा को मेरी फीस भरने के लिए पैसे दिए. बहुत ही सुल?ा हुई सरल स्वभाव की महिला थीं. किसी भी प्रकार के आडंबर से दूर सरल जीवन बिताया. बाबा से कभी फरमाइश नहीं की उन्होंने.

चपरासी औफिस कैबिन में स्वप्निल को इस तरह सोच में डूबा हुआ देख कर ठिठक गया. पूछा, ‘‘साहब तबीयत खराब है क्या?’’

‘‘अरे नहीं,’’ स्वप्निल हड़बड़ा कर उठा और घर की तरफ लुटे हुए इंसान की तरह पैरों को घसीटता हुआ चल पड़ा.

स्वप्निल जब घर के अंदर दाखिल हुआ उस का शरीर निढाल हो चुका था. आराम करने के लिए बैडरूम में दाखिल हुआ तो देखा शिल्पा का शौपिंग का सामान बैड पर बेतरतीब बिखरा था. आज न जाने क्यों उसे शिल्पा पर क्रोध आ गया और वह चीख उठा, ‘‘शिल्पा ये सब क्या है? थका हुआ औफिस से आया हूं. तुम ने एक गिलास पानी तक नहीं पूछा. बैठ कर मोबाइल पर चैट कर रही हो.’’

स्वप्निल का यह रूप पहली बार देखा शिल्पा कुछ सहम सी गई.

‘‘शिल्पा खाने में क्या बनाया है?’’

‘‘मैं तो रैस्टोरैंट से ही खाना खा कर आई

हूं. आप के लिए रैस्टोरैंट से पैक करा कर लाई हूं.’’

‘‘हद हो गई है. यह लगभग हर दूसरे दिन की कहानी हो गई है. मैं रोजरोज यह रैस्टोरैंट का खाना खा कर तंग आ गया हूं. मेरी सेहत भी बिगड़ने लगी है परंतु तुम्हें क्या फर्क पड़ता है. यह खाना मुझे नहीं खाना है. कुछ और बना दो.’’

‘‘अब मुझ से नहीं बनेगा.’’

और कोई दिन होता तो स्वप्निल खुद ही बना लेता लेकिन आज मूड उखड़ा हुआ था. वह फिर से चीखा, ‘‘तुम्हें मेरे से ज्यादा अपनी सहेलियों की परवाह है,’’ तनाव बढ़ता ही जा रहा था, ‘‘शिल्पा मुझे गुस्सा मत दिलाओ वरना… वरना कहतेकहते स्वप्निल बेहोश हो गया.’’

शिल्पा घबरा गई. स्वप्निल को हिलाया पानी के छींटे मारे लेकिन स्वप्निल

होश में नहीं आया. शिल्पा ने सोसायटी में रहने वाले डाक्टर को फोन पर स्वप्निल के बेहोश होने की बात बताई. डाक्टर तुरंत शिल्पा के घर पहुंच कर स्वप्निल को चैक किया. बोला, ‘‘स्वप्निल का बीपी बहुत ज्यादा है. घर में कोई बात हुई है क्या? लगता है इन्होंने औफिस के काम का ज्यादा तनाव ले लिया है. ये दवाएं लिख दी हैं. आप मंगा लें. एक इंजैक्शन लगा देता हूं मैं कुछ देर इन के पास हूं. आप दवा मगां लें.’’

शिल्पा सोसायटी के मैडिकल स्टोर दवा लेने चली गई. लौटने पर देखा स्वप्निल को होश आ गया था. डाक्टर ने शिल्पा को दवा कबकब देनी है समझा दिया, साथ ही हिदायत दी कि स्वप्निल से कोई भी ऐसी बात न करें जिस से उसे टैंशन हो.

डाक्टर के चले जाने के बाद शिल्पा स्वप्निल के लिए गरमगरम

खिचड़ी बना लाई. स्वप्निल खिचड़ी खा कर सो गया.

सुबह शिल्पा चाय बना कर लाई, ‘‘स्वप्निल उठो चाय पी लो. स्वप्निल मुझे माफ कर दो. तनाव का कारण मुझे बताओ शायद मैं कुछ कर सकूं.’’

‘‘शिल्पा में तुम्हें खुश देखना चाहता था. इसी चाहत की वजह से मैं ने तुम्हें रमेशजी के

पैसे ट्रांसफर कर दिए थे. लेकिन मुझे क्या पता था रमेशजी को अपनी पत्नी के इलाज के लिए पैसों की जरूरत पड़ जाएगी. वे कल शाम को ही पैसे लेने आ पहुंचे मेरे पास. अपने प्लौट की किस्त के लिए रखे पैसे रमेशजी को दे दिए.

‘‘अब समझ में आया. स्वप्निल मुझे माफ कर दो. मेरे पास कुछ पैसे बचे हैं और कुछ मेरी सेविंग के पैसे हैं. आप कल ही प्लौट की किस्त जमा करा देना.’’

‘‘शिल्पा तुम ने आज मेरे सिर पर से बहुत बड़ा बोझ उतार दिया.’’

अगली सुबह स्वप्निल औफिस चला गया. आज उसे किस्त जमा करानी थी. शाम को जब घर लौटा तो घर का नक्शा ही बदला हुआ था. चारों तरफ घर फूलों से सजा था.

‘‘शिल्पा ये सब क्या है?’’

‘‘आज हम पहले की तरह मेरा बर्थडे सैलिब्रेट करेंगे. मैं दिखावे की जिंदगी में इतना आगे निकल गई थी कि सहीगलत कुछ भी

समझ नहीं आ रहा था. मेरी असली खुशी तुम ही तो हो. मेरी आंखों पर से चकाचौंध का परदा हट गया है.’’

स्वप्निल ने गिफ्ट देते हुए शिल्पा को गले लगा लिया और गुनगुनाने लगा, ‘‘बारबार दिन ये आए… हैप्पी बर्थडे टू यू…’’

पीछे देखा तो औफिस के सारे दोस्तों को देख कर शिल्पा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

जिंदगी की जंग: क्या सही था नीना का घर छोड़ने का फैसला?

‘‘अरे रामू घर की सफाई हुई या नहीं? जल्दी से चाय का पानी आंच पर चढ़ाओ.’’

सवेरे सवेरे अम्मां की आवाज से अचानक मेरी नींद खुली तो देखा वे नौकरों को अलगअलग निर्देश दे रही थीं. पूरे घर में हलचल मची थी. आज गरीबरथ से जया दीदी आने वाली हैं. जया दीदी हम बहनों से सब से बड़ी हैं. उन की शादी बहुत ही ऊंचे खानदान में हुई है. साथ में दोनों बच्चे व जीजाजी भी आ रहे हैं. अम्मां चाहती हैं कि इंतजाम में कोई कमी न हो.

तभी बाबूजी की आवाज आई, ‘‘अरे बैठक की चादर बदली कि नहीं? मेहमान आने ही वाले होंगे. सब कुछ साफसुथरा होना चाहिए. कभीकभी तो आ पाते हैं बेचारे. उन को छुट्टी ही कहां मिलती है.’’

तभी अम्मां की नजर मुझ पर पड़ी, ‘‘अरे नीना, तू तो ऐसे ही बैठी है और यह क्या, मुन्नू तो एकदम गंदा है. चल उठ, नहाधो कर नए कपड़े पहन और हां, मुन्नू को भी ढंग से तैयार कर देना वरना मेहमान कहेंगे कि हम ने तुम्हें ठीक से नहीं रखा.’’

अम्मां की बातें सुन कर मन कसैला हो गया. मैं भी शादी के बाद जब 1-2 बार आई थी, तब घर का माहौल ऐसा ही रहता था. पहली बार जब मैं शादी के बाद मायके आई थी, तब सब कैसे खुश हुए थे. क्या खिलाएं, कहां बैठाएं. लग रहा था जैसे मैं कभी आऊंगी ही नहीं.

लेकिन कितने दिन ऐसा आदर सत्कार मुझे मिला. ससुराल जाते ही सब को मेरी बीमारी के बारे में पता चल गया. कुछ दिनों तक तो उन लोगों ने मुझे बरदाश्त किया, फिर बहाने से यहां ला कर बैठा गए. दरअसल, मुझे सफेद दाग की बीमारी थी, जिसे छिपा कर मेरी शादी की गई थी.

फिर घर की प्यारी बेटी, जो पिता की आंखों का तारा व मां के लिए नाज थी, के साथ शुरू हुआ एक नया अध्याय. जो पिता मेरा खुले दिल से इलाज करवाते थे, उन्हें अब मेरी जरूरी दवाएं भी बोझ लगने लगीं. मां को शर्म आने लगी कि पासपड़ोस वाले कहेंगे कि बेटी मायके में आ कर ही बस गई. भाईबहन भी कटाक्ष करने से बाज नहीं आते थे.

अभी यह लड़ाई चल ही रही थी कि पति का बोया हुआ बीज आकार लेने लगा. खैर, जैसेतैसे मुन्नू का जन्म हुआ.

नाती के जन्म की जैसी खुशी होनी चाहिए, वैसी किसी में नहीं दिखी. बस एक कोरम पूरा किया गया.

धीरेधीरे मुन्नू 3 साल का हो गया. तब मैं ने भी ठान ली कि ऐसे बैठे रह कर ताने सुनने से अच्छा है कुछ काम किया जाए.

सिलाईकढ़ाई और पेंटिंग का शौक मुझे शुरू से ही था. शादी के पहले मैं ने सिलाई का कोर्स भी किया था. मैं अगलबगल की कुछ लड़कियों को सिलाई सिखाने लगी. उन को मेरा सिखाने का तरीका अच्छा लगा, तो वे और लड़कियां भी ले आईं. इस तरह मेरा सिलाई सैंटर चल निकला. ढेर सारी लड़कियां मुझ से सिलाई सीखने आने लगीं और इस से मेरी अच्छी कमाई होने लगी.

मुन्नू के 4 साल का होने पर मैं ने उसे पास के प्ले स्कूल में भरती करा दिया. अब मेरे पास समय भी काफी बचने लगा, जिस का सदुपयोग मैं अपने सिलाई सैंटर में किया करती थी. धीरेधीरे मेरा सैंटर एक मान्यता प्राप्त सैंटर हो गया. काम काफी बढ़ जाने के कारण मुझे 2 सहायक भी रखने पड़े. इस से मुझे अच्छी मदद मिलती थी.

अभी जिंदगी ने रफ्तार पकड़ी ही थी कि भैया की शादी हो गई. नई भाभी घर में आईं तो कुछ दिन तो सब कुछ ठीक रहा. मगर धीरेधीरे उन को मेरा वहां रहना नागवार गुजरने लगा.

मां अगर मुन्नू के लिए कुछ भी करतीं तो उन का पारा 7वें आसमान पर चढ़ जाता. शुरूशुरू में तो वे कुछ नहीं कहती थीं, लेकिन बाद में खुलेआम विरोध करने लगीं.

एक दिन तो हद ही हो गई. बाबूजी बाजार से मुन्नू के लिए खिलौने ले आए. उन्हें देखते ही भाभी एकदम फट पड़ीं. चिल्ला कर बोलीं, ‘‘बाबूजी, घर में अब यह सब फुजूलखर्ची बिलकुल भी नहीं चलेगी. इस महंगाई में घर चलाना ऐसे ही मुश्किल हो गया है, ऊपर से आप आए दिन मुन्नू पर फुजूलखर्ची करते रहते हैं.’’

हालांकि ऐसा नहीं था कि घर की माली हालत खराब थी. भैया कालेज में हिंदी के प्रोफैसर थे और बाबूजी को भी अच्छीखासी पैंशन मिलती थी. मुझे भाभी की बातें उतनी बुरी नहीं लगीं, जितना बुरा बाबूजी का चुप रहना लगा. बाबूजी का न बोलना मुझे भीतर तक भेद गया. मैं सोचने लगी क्या बाबूजी पुत्रप्रेम में इतने अंधे हो गए हैं कि बहू की बातों का विरोध तक नहीं कर सकते?

उन्हीं बाबूजी की तो मैं भी संतान थी. मेरा मन कचोट कर रह गया. क्या शादी के बाद लड़कियां इतनी पराई हो जाती हैं कि मांबाप पर भी उन का हक नहीं रहता? खैर जैसेतैसे मन को मना कर मैं फिर सामान्य हो गई. मुन्नू को स्कूल भेजना और मेरा सैंटर चलाना जारी रहा.

मेरा सिलाई सैंटर दिनबदिन मशहूर होता जा रहा था. अब आसपास के गांवों की लड़कियां और महिलाएं भी आने लगी थीं. मेरी कमाई अब अच्छी होने लगी थी, इसलिए मैं हर महीने कुछ रुपए मां के हाथ पर रख देती थी. शुरू में तो मां ने मना किया, परंतु मेरे यह कहने पर कि अगर मैं लड़का होती और कमाती रहती तो तुम पैसे लेतीं न, वे मान गई थीं. कुछ पैसे मैं भविष्य के लिए बैंक में भी जमा करा देती थी.

किसी तरह जिंदगी की गाड़ी चल रही थी. घर में भाभी की चिकचिक बदस्तूर जारी थी. मांपिताजी के पुत्रप्रेम से भाभी का दिमाग एकदम चढ़ गया था. अब तो वे अपनेआप को उस घर की मालकिन समझने लगी थीं. हालांकि मां का स्वास्थ्य बिलकुल ठीक था और वे घर का कामकाज भी करना चाहती थीं, लेकिन धीरेधीरे मां को उन्होंने एकदम बैठा दिया था.

उन्हें खाना बनाने का बहुत शौक था, खासकर बाबूजी को कुछ नया बना कर खिलाने का, जिसे वे बड़े चाव से खाते थे. लेकिन भाभी को यह सब फुजूलखर्ची लगती थी, इसलिए उन्होंने मां को धीरेधीरे रसोई से दूर कर दिया था.

मैं तो उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती थी. मुझे देखते ही वे बेवजह अपने बच्चों को मारनेपीटने लगती थीं. एक दिन मैं दोपहर को सिलाई सैंटर से खाना खाने घर पहुंची तो बाहर बहुत धूप थी. सोचा था घर पहुंच कर आराम से खाना खाऊंगी.

हाथमुंह धो कर खाना ले कर बैठी ही थी कि भाभी ने भुनभुनाना शुरू कर दिया कि कितना आराम है. बैठेबैठाए आराम से खाना जो मिल जाता है. मुफ्त के खाने की लोगों को आदत लग गई है. अरे जितना खर्च इस में लगता है, उतने में तो हम 2 नौकर रख लें.

सुन कर हाथ का कौर हाथ में ही रह गया. लगा, जैसे खाना नहीं जहर खा रही हूं. फिर खाना बिलकुल नहीं खाया गया. हालांकि जितना बन पाता था, मैं सुबह किचन का काम कर के ही सिलाई सैंटर जाती थी. लेकिन भाभी को तो मुझ से बैर था, इसलिए हमेशा मुझ से ऐसी ही बातें बोलती रहती थीं. लेकिन उस दिन उन की बात मेरे दिल को चीर गई और मैं ने सोच लिया कि बस अब बहुत हो गया. अब और बरदाश्त नहीं करूंगी.

उसी क्षण मैं ने फैसला कर लिया कि अब इस घर में नहीं रहूंगी. कुछ दिन बाद

छोटे से 2 कमरों का घर तलाश कर मैं ने अम्मांबाबूजी के घर को छोड़ दिया. हालांकि घर छोड़ते समय मां ने हलका विरोध किया था, लेकिन कब तक मन को मार कर मैं जबरदस्ती इस घर में रहती.

नए घर में आने के बाद मैं नए उत्साह से अपने काम में जुट गई. अपने घर की याद तो बहुत आती थी. मगर फिर सोचती कैसा घर, जब वहां मेरी कोई कीमत ही नहीं. खैर मैं ने अपनेआप को पूरी तरह से अपने काम में रमा लिया.

सिलाई सैंटर में लड़कियों की भीड़ ज्यादा बढ़ गई तो सैंटर की एक शाखा और खोल ली. मुन्नू भी दिनोंदिन बड़ा हो रहा था और पढ़ाई में जुटा था. पढ़ने में वह काफी होशियार था. हमेशा अच्छे नंबरों से पास होता था.

दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे. अम्मांबाबूजी का हालचाल फोन से पता चल जाता था. कभीकभार मुन्नू से मिलने के लिए वे आ भी जाते थे. अब मेरा काम बहुत बढ़ गया था.

मैं ने एक बुटीक भी खोल लिया था, जिसे हमारे सैंटर की लड़कियां और महिलाएं मिल कर चला रही थीं. मेरा बुटीक ऐसा चल निकला कि मुझे कपड़ों के निर्यात का भी और्डर मिलने लगा. मैं बहुत खुश थी कि मेरी वजह से कई महिलाओं को रोजगार मिला था.

अब मुन्नू भी एम.बी.ए. कर के मेरे आयातनिर्यात का काम देखने लगा था. उस के बारे में मुझे एक ही चिंता थी कि उस की शादी कर दूं.

एक दिन मेरे मायके की पड़ोसिन गीता आंटी मिलीं. कहने लगीं कि तुम को पता है, तुम्हारे मायके में क्या चल रहा है? मेरे इनकार करने पर उन्होंने बताया कि तुम्हारी भाभी तुम्हारे मांबाबूजी पर बहुत अत्याचार करती हैं. तुम्हारा भाई तो कुछ बोलता ही नहीं. अभी कल तुम्हारे बाबूजी मुझ से मिले थे. वे किसी वृद्धाश्रम का पता पूछ रहे थे. जब मैं ने पूछा कि वे वृद्धाश्रम क्यों जाना चाहते हैं, तो उन्होंने कहा कि मैं अब इस घर में एकदम नहीं रहना चाहता हूं. बहू का अत्याचार दिनबदिन बढ़ता ही जा रहा है.

सुन कर मैं रो पड़ी. ओह, मेरे अम्मांबाबूजी की यह हालत हो गई और मुझे पता भी नहीं चला. मेरा मन धिक्कार उठा.

यहां मेरी वजह से कई परिवार चल रहे थे और वहां मेरे अम्मांबाबूजी की यह हालत हो गई है. रात को ही मैं ने फैसला कर लिया, बहुत हुआ अब और नहीं. अम्मांबाबूजी को यहीं ले आऊंगी. अगले ही दिन गाड़ी ले कर मैं और मुन्नू उन को लाने के लिए घर गए. हमें देखते ही वे रोने लगे. हम ने उन्हें चुप कराया फिर साथ चलने को कहा.

अभी वे कुछ बोलते, उस से पहले ही वहां भाभी आ गईं और अपना वही अनर्गल प्रलाप करने लगीं. बाबूजी ने उन की तरफ देखा और शांति से बस इतना कहा, ‘‘हमें जाने दो बहू.’’

अम्मांबाबूजी गाड़ी में बैठ गए. मुझे लगा आज मैं हवा में उड़ रही हूं. आज मैं ने जिंदगी की जंग को जीत लिया था.

Best Hindi Story- भोर: राजवी को कैसे हुआ अपनी गलती का एहसास

उस दिन सवेरे ही राजवी की मम्मी की किट्टी फ्रैंड नीतू उन के घर आईं. उन की कालोनी में उन की छवि मैरिज ब्यूरो की मालकिन की थी. किसी की बेटी तो किसी के बेटे की शादी करवाना उन का मनपसंद टाइमपास था. वे कुछ फोटोग्राफ्स दिखाने के बाद एक तसवीर पर उंगली रख कर बोलीं, ‘‘देखो मीरा बहन, इस एनआरआई लड़के को सुंदर लड़की की तलाश है. इस की अमेरिका की सिटिजनशिप है और यह अकेला है, इसलिए इस पर किसी जिम्मेदारी का बोझ नहीं है. इस की सैलरी भी अच्छी है. खुद का घर है, इसलिए दूसरी चिंता भी नहीं है. बस गोरी और सुंदर लड़की की तलाश है इसे.’’

फिर तिरछी नजरों से राजवी की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘उस की इच्छा तो यहां हमारी राजवी को देख कर ही पूरी हो जाएगी. हमारी राजवी जैसी सुंदर लड़की तो उसे कहीं भी ढूंढ़ने से नहीं मिलेगी.’’ यह सब सुन रही राजवी का चेहरा अभिमान से चमक उठा. उसे अपने सौंदर्य का एहसास और गुमान तो शुरू से ही था. वह जानती थी कि वह दूसरी लड़कियों से कुछ हट कर है.

चमकीले साफ चेहरे पर हिरनी जैसी आंखें और गुलाबी होंठ उस के चेहरे का खास आकर्षण थे. और जब वह हंसती थी तब उस के गालों में डिंपल्स पड़ जाते थे. और उस की फिगर व उस की आकर्षक देहरचना तो किसी भी हीरोइन को चैलेंज कर सकती थी. इस से अपने सौंदर्य को ले कर उस के मन में खुशी तो थी ही, साथ में जानेअनजाने में एक गुमान भी था. मीरा ने जब उस एनआरआई लड़के की तसवीर हाथ में ली तो उसे देखते ही उन की भौंहें तन गईं. तभी नीतू बोल पड़ीं, ‘‘बस यह लड़का यानी अक्षय थोड़ा सांवला है और चश्मा लगाता है.’’

‘लग गई न सोने की थाली में लोहे की कील,’ मीरा मन में ही भुनभुनाईं. उन्हें लगा कि मेरी राजवी शायद इसे पसंद नहीं करेगी. पर प्लस पौइंट इस लड़के में यह था कि यह नीतू के दूर के किसी रिश्तेदार का लड़का था, इसलिए एनआरआई लड़के के साथ जुड़ी हुई मुसीबतें व जोखिम इस केस में नहीं था. जानापहचाना लड़का था और नीतू एक जिम्मेदार के तौर पर बीच में थीं ही.

फिर कुछ सोच कर मीरा बोलीं, ‘‘ओह, बस इतनी सी बात है. आजकल ये सब देखता कौन है और चश्मा तो किसी को भी लग सकता है. और इंडियन है तो रंग तो सांवला होगा ही. बाकी जैसा तुम कहती हो लड़का स्मार्ट भी है, समझदार भी. फिर क्या चाहिए हमें… क्यों राजवी?’’

अपने ही खयालों में खोई, नेल पेंट कर रही राजवी ने कहा, ‘‘हूं… यह बात तो सही है.’’

तब नीतू ने कहा, ‘‘तुम भी एक बार फोटो देख लो तो कुछ बात बने.’’

‘‘बाद में देख लूंगी आंटी. अभी तो मुझे देर हो रही है,’’ पर तसवीर देखने की चाहत तो उसे भी हो गई थी.

मीरा ने नीतू को इशारे में ही समझा दिया कि आप बात आगे बढ़ाओ, बाकी बात मैं संभाल लूंगी. मीरा और राजवी के पापा दोनों की इच्छा यह थी कि राजवी जैसी आजाद खयाल और बिंदास लड़की को ऐसा पति मिले, जो उसे संभाल सके और समझ सके. साथ में उसे अपनी मनपसंद लाइफ भी जीने को मिले. उस की ये सभी इच्छाएं अक्षय के साथ पूरी हो सकती थीं.

नीतू ने जातेजाते कहा, ‘‘राजवी, तुम जल्दी बताना, क्योंकि मेरे पास ऐसी बहुत सी लड़कियों की लिस्ट है, जो परदेशी दूल्हे को झपट लेने की ख्वाहिश रखती हैं.’’

नीतू के जाने के बाद मीरा ने राजवी के हाथ में तसवीर थमा दी, ‘‘देख ले बेटा, लड़का ऐसा है कि तेरी तो जिंदगी ही बदल जाएगी. हमारी तो हां ही समझ ले, तू भी जरा अच्छे से सोच लेना.’’

पर राजवी तसवीर देखते ही सोच में डूब गई. तभी उस की सहेली कविता का फोन आया. राजवी ने अपने मन की उलझन उस से शेयर की, तो पूरे उत्साह से कविता कहने लगी, ‘‘अरे, इस में क्या है. शादी के बाद भी तो तू अपना एक ग्रुप बना सकती है और सब के साथ अपने पति को भी शामिल कर के तू और भी मजे से लाइफ ऐंजौय कर सकती है. फिर वह तो फौरेन कल्चर में पलाबढ़ा लड़का है. उस की थिंकिंग तो मौडर्न होगी ही. अब तू दूसरा कुछ सोचने के बजाय उस से शादी कर लेने के बारे में ही सोचना शुरू कर दे…’’

कविता की बात राजवी समझ गई तो उस ने हां कह दिया. इस के बाद सब कुछ जल्दीजल्दी होता गया. 2 महीने बाद नीतू का दूर का वह भतीजा लड़कियों की एक लिस्ट ले कर इंडिया पहुंच गया. उसे सुंदर लड़की तो चाहिए ही थी, पर साथ में वह भारतीय संस्कारों से रंगी भी होनी चाहिए थी. ऐसी जो उसे भारतीय भोजन बना कर प्यार से खिलाए. साथ ही वह मौडर्न सोच और लाइफस्टाइल वाली हो ताकि उस के साथ ऐडजस्ट हो सके. पर उस की लिस्ट की सभी मुलाकात के बाद एकएक कर के रिजैक्ट होती गईं. तब एक दिन सुबह राजवी के पास नीतू का फोन आया, ‘‘शाम को 7 बजे तक रेडी हो जाना. अक्षय के साथ मुलाकात करनी है. और हां, मीरा से कहना कि वे तुझे अच्छी सी साड़ी पहनाएं.’’

‘‘साड़ी, पर क्यों? मुझ पर जींस ज्यादा सूट करती है,’’ कहते हुए राजवी बेचैन हो गई.

‘‘वह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. तुम साड़ी यही समझ कर पहनना कि उसी में तुम ज्यादा सुंदर और अटै्रक्टिव लगती हो.’’

नीतू आंटी की बात पर गर्व से हंस पड़ी राजवी, ‘‘हां, वह तो है.’’

और उस दिन शाम को वह जब आकर्षक लाल रंग की डिजाइनर साड़ी पहन कर होटल शालिग्राम की सीढि़यां चढ़ रही थी, उस की अदा देखने लायक थी. होटल के मीटिंग हौल में राजवी को दाखिल होता देख सोफे पर बैठा अक्षय उसे देखता ही रह गया. नीतू ने जानबूझ कर उसे राजवी का फोटो नहीं भेजा था, ताकि मिलने के बाद ही अक्षय उसे ठीक से जान ले, परख ले. नीतू को वहीं छोड़ कर दोनों होटल के कौफी शौप में चले गए.

‘‘प्लीज…’’ कह कर अक्षय ने उसे चेयर दी. राजवी उस की सोच से भी अधिक सुंदर थी. हलके से मेकअप में भी उस के चेहरे में गजब का निखार था. जैसा नाम वैसा ही रूप सोचता हुआ अक्षय मन ही मन में खुश था. फिर भी थोड़ी झिझक थी उस के मन में कि क्या उसे वह पसंद करेगी?

ऐसा भी न था कि अक्षय में कोई दमखम न था और अब तो कंपनी उसे प्रमोशन दे कर उस की आमदनी भी दोगुनी करने वाली थी. फिर भी वह सोच रहा था कि अगर राजवी उसे पसंद कर लेती है तो वह उस के साथ मैच होने के लिए अपना मेकओवर भी करवा लेगा. मन ही मन यह सब सोचते हुए अक्षय ने राजवी के सामने वाली चेयर ली. अक्षय के बोलने का स्मार्ट तरीका, उस के चेहरे पर स्वाभिमान की चमक और उस का धीरगंभीर स्वभाव राजवी को प्रभावित कर गया. उस की बातों में आत्मविश्वास भी झलकता था. कुल मिला कर राजवी को अक्षय का ऐटिट्यूड अपील कर गया.

उस मुलाकात के बाद दोनों ने एकदूसरे को दूसरे दिन जवाब देना तय किया. पर उसी दिन रात में राजवी ने अक्षय को फोन लगाया, ‘‘एक बात का डिस्कशन तो रह गया. क्या शादी के बाद मैं आगे पढ़ाई कर सकती हूं? और क्या मैं आगे जा कर जौब कर सकती हूं? अगर आप को कोई एतराज नहीं तो मेरी ओर से इस रिश्ते को हां है.’’

‘‘ओह. इस में पूछने वाली क्या बात है? मैं मौडर्न खयालात का हूं क्योंकि मौडर्न समाज में पलाबढ़ा हूं. नारी स्वतंत्रता मैं समझता हूं, इसलिए जैसी तुम्हारी मरजी होगी, वैसा तुम कर सकोगी.’’

अक्षय को भी राजवी पसंद आ गई थी, उसे इतनी सुंदर पत्नी मिलेगी, उस की कल्पना ही उस को रोमांचित कर देने के लिए काफी थी. फिर तो जल्दी ही दोनों की शादी हो गई. रिश्तेदारों की उपस्थिति में रजिस्टर्ड मैरिज कर के 4 ही दिनों के बाद अक्षय ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ ली और उस के 2 महीने बाद आंखों में अमेरिका के सपने संजोए और दिल में मनपसंद जिंदगी की कल्पना लिए राजवी ने ससुराल का दरवाजा खटखटाया. ये ऐसे सपने थे जिन्हें हर कुंआरी, महत्त्वाकांक्षी और उत्साही लड़की देखती है. राजवी खुश थी, लेकिन एक हकीकत उसे खटक रही थी. वह इतनी सुंदर और पति था सांवला. जोड़ी कैसे जमेगी उस के साथ उस की? पर रोमांचित कर देने वाली परदेशी धरती ने उसे ज्यादा सोचने का समय ही कहां दिया.

कई दिन दोनों खूब घूमे. शौपिंग, पार्टी जो भी राजवी का मन किया अक्षय ने उसे पूरा किया. फिर शुरू हुई दोनों की रूटीन लाइफ. वैसे भी सपनों की दुनिया में सब कुछ सुंदर सा, मनभावन ही होता है. जिंदगी की हकीकत तो वास्तविकता के धरातल पर आ कर ही पता चलती है. एक दिन अक्षय ने फरमाइश की, ‘‘आज मेरा इंडियन डिश खाने को मन कर रहा है.’’

‘‘इंडियन डिश? यू मीन दालचावल और रोटीसब्जी? इश… मुझे ये सब बनाना नहीं आता. मैं तो अपने घर में भी खाना कभी नहीं बनाती थी. मां बोलती थीं तब भी नहीं. और वैसे भी पूरा दिन रसोई में सिर फोड़ना मेरे बस की बात नहीं. मैं उन लड़कियों में नहीं, जो अपनी जिंदगी, अपनी खुशियां घरेलू कामकाज के जंजालों में फंस कर बरबाद कर देती हैं.’’

चौंक उठा अक्षय. फिर भी संभलते हुए बोला, ‘‘अब मजाक छोड़ो, देखो मैं ये सब्जियां ले कर आया हूं. तुम रसोई में जाओ. तुम्हारी हैल्प करने मैं आता हूं.’’

‘‘तुम्हें ये सब आता है तो प्लीज तुम ही बना लो न… दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं. और हां, 2 दिनों के बाद तो मेरी स्टडी शुरू होने वाली है, क्या तुम भूल गए? फिर मुझे टाइम ही कहां मिलेगा इन सब झंझटों के लिए. अच्छा यही रहेगा कि तुम किसी इंडियन लेडी को कुक के तौर पर रख लो.’’

अक्षय का दिमाग सन्न रह गया. राजवी को हर रोज सुबह की चाय बनाने में भी नखरे करती थी और ठीक से कोई नाश्ता भी नहीं बना पाती थी. लेकिन आज तो उस ने हद ही कर दी थी. तो क्या यही है राजवी का असली रूप? लेकिन कुछ भी बोले बिना अक्षय औफिस के लिए निकल गया. पर यह सब तो जैसे शुरुआत ही थी. राजवी के उस नए रंग के साथ जब नया ढंग भी सामने आने लगा अक्षय के तो होश ही उड़ गए. एक दिन राजवी बिलकुल शौर्ट और पतले से कपड़े पहन कर कालेज के लिए निकलने लगी.

अक्षय ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह क्या पहना है राजवी? यह तुम्हें शोभा नहीं देता. तुम पढ़ने जा रही हो तो ढंग के कपड़े पहन कर जाओगी तो अच्छा रहेगा…’’

‘‘ये अमेरिका है मिस्टर अक्षय. और फिर तुम ने ही तो कहा था न कि तुम मौडर्न सोच रखते हो, तो फिर ऐसी पुरानी सोच क्यों?’’

‘‘हां कहा था मैं ने पर पराए देश में तुम्हारी सुरक्षा की भी चिंता है मुझे. मौडर्न होने की भी हद होती है, जिसे मैं समझता हूं और चाहता हूं कि तुम भी समझ लो.’’

‘‘मुझे न तो कुछ समझना है और न ही तुम्हारी सोच और चिंता मुझे वाजिब लगती है. और यह मेरी निजी लाइफ है. मैं अभी उतनी बूढ़ी भी नहीं हो गई कि सिर पर पल्लू रख कर व साड़ी लपेट कर रहूं. और बाई द वे तुम्हें भी तो सुंदर पत्नी चाहिए थी न? तो मैं जब सुंदर हूं तो दुनिया को क्यों न दिखाऊं?’’

राजवी के इस क्यों का कोई जवाब नहीं था अक्षय के पास. फिर जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों के बीच छोटीमोटी बातों पर झगड़े बढ़ते गए. अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? भूल कहां हो रही है और इस स्थिति में क्या हो सकता है, क्योंकि अब पानी सिर के ऊपर शुरू हो चुका था. राजवी ने जो गु्रप बनाया था उस में अमेरिकन युवकों के साथ इंडियन लड़के भी थे. शर्म और मर्यादा की सीमाएं तोड़ कर राजवी उन के साथ कभी फिल्म देखने तो कभी क्लब चली जाती. ज्यादातर वह उन के साथ लंच या डिनर कर के ही घर आती. कई बार तो रात भर वह घर नहीं आती. अक्षय के पूछने पर वह किसी सहेली या प्रोजैक्ट का बहाना बना देती.

अक्षय बहुत दुखी होता, उसे समझाने की कोशिश करता पर राजवी उस के साथ बात करने से भी कतराती. अक्षय को ज्यादा परेशानी तो तब हुई जब राजवी अपने बौयफ्रैंड्स को ले कर घर आने लगी. अक्षय उन के साथ मिक्स होने या उन्हें कंपनी देने की कोशिश करता तो राजवी सब के बीच उस के सांवले रंग और चश्मे को मजाक का विषय बना देती और अपमानित करती रहती. एक दिन इस सब से तंग आ कर अक्षय ने नीतू आंटी को फोन लगाया. उस ने ये सब बातें बताना शुरू ही किया था कि राजवी उस से फोन छीन कर रोने जैसी आवाज में बोलने लगी, ‘‘आंटी, आप ने तो कहा था कि तुम वहां राज करोगी. जैसे चाहोगी रह सकोगी. पर आप का यह भतीजा तो मुझे अपने घर की कुक और नौकरानी बना कर रखना चाहता है. मेरी फ्रीडम उसे रास नहीं आती.’’

अक्षय आश्चर्यचकित रह गया. उस ने तब तय कर लिया कि अब से वह न तो किसी बात के लिए राजवी को रोकेगा, न ही टोकेगा. उस ने राजवी को बोल दिया कि तुम अपनी मरजी से जी सकती हो. अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा. पर थोड़े दिनों के बाद अक्षय ने नोटिस किया कि राजवी उस के साथ शारीरिक संबंध भी नहीं बनाना चाहती. उसे अचानक चक्कर भी आ जाता था. चेहरे की चमक पर भी न जाने कौन सा ग्रहण लगने लगा था.

अब वह न तो अपने खाने का ध्यान रखती थी न ही ढंग से आराम करती थी. देर रात तक दोस्तों और अनजान लोगों के साथ भटकते रहने की आदत से उस की जिंदगी अव्यवस्थित बन चुकी थी. एक दिन रात को 3 बजे किसी अनजान आदमी ने राजवी के मोबाइल से अक्षय को फोन किया, ‘‘आप की वाइफ ने हैवी ड्रिंक ले लिया है और यह भी लगता है कि किसी ने उस के साथ रेप करने की कोशिश…’’

अक्षय सहम गया. फिर वह वहां पहुंचा तो देखा कि अस्तव्यस्त कपड़ों में बेसुध पड़ी राजवी बड़बड़ा रही थी, ‘‘प्लीज हैल्प मी…’

पास में खड़े कुछ लोगों में से कोई बोला, ‘‘इस होटल में पार्टी चल रही थी. शायद इस के दोस्तों ने ही… बाद में सब भाग गए. अगर आप चाहो तो पुलिस…’’

‘‘नहींनहीं…,’’ अक्षय अच्छी तरह जानता था कि पुलिस को बुलाने से क्या होगा. उस ने जल्दी से राजवी को उठा कर गाड़ी में लिटा दिया और घर की ओर रवाना हो गया. राजवी की ऐसी हालत देख कर उस कलेजा दहल गया था. आखिर वह पत्नी थी उस की. जैसी भी थी वह प्यार करता था उस को. घर पहुंचते ही उस ने अपने फ्रैंड व फैमिली डाक्टर को बुलाया और फर्स्ट ऐड करवाया. उस के चेहरे और शरीर पर जख्म के निशान पड़ चुके थे. दूसरे दिन बेहोशी टूटने के बाद होश में आते ही राजवी पिछली रात उस के साथ जो भी घटना घटी थी, उसे याद कर रोने लगी. अक्षय ने उसे रोने दिया. ‘जल्दी ही अच्छी हो जाओगी’ कह कर वह उसे तसल्ली देता रहा पर क्या हुआ था, उस के बारे में कुछ भी नहीं पूछा. खाना बनाने वाली माया बहन की हैल्प से उसे नहलाया, खिलाया फिर उसे अस्पताल ले जाने की सोची.

‘‘नहींनहीं, मुझे अस्पताल नहीं जाना. मैं ठीक हो जाऊंगी,’’ राजवी बोली.

अक्षय को लगा कि राजवी कुछ छिपा रही है. कहीं वह मां तो नहीं बनने वाली? पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो कहती रही है कि बच्चे के बारे में तो अभी 5 साल तक सोचना भी मत. पहले मैं कैरियर बनाऊंगी, लाइफ को ऐंजौय करूंगी, उस के बाद ही सोचूंगी. फिर कौन सी बात छिपा रही है यह मुझ से? क्या इस के साथ वाकई रेप हुआ होगा? दुखी हो गया अक्षय यह सोच कर. उसे जीवन का यह नया रंग भयानक लग रहा था. 2 दिन बाद अक्षय जब शाम को घर आया तो देखा कि राजवी फिर से बेहोश जैसी पड़ी थी. उसे तेज बुखार था. अक्षय परेशान हो गया. फिर बिना कुछ सोचे वह उसे अस्पताल ले गया. डाक्टर ने जांचपड़ताल करने के बाद उस के जरूरी टैस्ट करवाए और उन की रिपोर्ट्स निकलवाईं.

लेकिन रिपोर्ट्स हाथ में आते ही अक्षय के होश उड़ गए. राजवी की बच्चेदानी में सूजन थी और इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी. डाक्टर ने बताया कि उसे कोई संक्रामक रोग हो गया है.

चेहरा हाथों में छिपा कर अक्षय रो पड़ा. यह क्या हो गया है मेरी राजवी को? वह शुरू से ही कुछ बता देती या खुद ट्रीटमैंट करवा लेती तो बात इतनी बढ़ती नहीं. ये तू ने क्या किया राजवी? मेरे प्यार में तुझे कहां कमी नजर आई कि प्यार की खोज में तू भटक गई? काश तू मेरे दिल की आवाज सुन सकती. अक्षय को डाक्टर ने सांत्वना दी कि लुक मिस्टर अक्षय, अभी भी उतनी देर नहीं हुई है. हम उन का अच्छे से अच्छा ट्रीटमैंट शुरू कर देंगे. शी विल बी औल राइट सून… और वास्तव में डाक्टर के इलाज और अक्षय की केयर से राजवी की तबीयत ठीक होने लगी. लेकिन अक्षय का धैर्य और प्यार भरा बरताव राजवी को गिल्टी फील करा देता था.

अस्पताल से घर लाने के बाद अक्षय राजवी की हर छोटीमोटी जरूरत का ध्यान रखता था. उसे टाइम पर दवा, चायनाश्ता व खाना देना और उस को मन से खुश रखने के लिए तरहतरह की बातें करना, वह लगन से करता था. और राजवी की इन सब बातों ने आंखें खोल दी थीं. नासमझी में उस ने क्याक्या नहीं कहा था अक्षय को. दोस्तों के सामने उस का तिरस्कार किया था. उस के रंग को ले कर सब के बीच उस का मजाक उड़ाया था और कई बार गुस्से और नफरत के कड़वे बोल बोली थी वह. यह सब सोच कर शर्म सी आती थी उसे.

अपनी गोरी त्वचा और सौंदर्य के गुमान की वजह से उस ने अपना चरित्र भी जैसे गिरवी रख दिया था. अक्षय सांवला था तो क्या हुआ, उस के भीतर सब कुछ कितना उजला था. उस के इतने खराब ऐटिट्यूड के बाद भी अक्षय के बरताव से ऐसा लगता था जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. वह पूरे मन से उस की केयर कर रहा था. राजवी सोचती थी मेरी गलतियों, नादानियों और अभिमान को अनदेखा कर अक्षय मुझे प्यार करता रहा और मुझे समझाने की कोशिश करता रहा. लेकिन मैं अपनी आजादी का गलत इस्तेमाल करती रही. कुछ दिनों में राजवी के जख्म तो ठीक हो गए पर उन्होंने अपने गहरे दाग छोड़ दिए थे. जब भी वह आईना देखती थी सहम जाती थी.

पूरी तरह से ठीक होने के बाद राजवी ने अक्षय के पास बैठ कर अपने बरताव के लिए माफी मांगी. अक्षय गंभीर स्वर में बोला, ‘‘देखो राजवी, मैं जानता हूं कि तुम मेरे साथ खुश नहीं हो. मैं यह भी जानता हूं कि मैं शक्लसूरत में तुम्हारे लायक नहीं हूं. काश मैं अपने शरीर का रंग बदलवा सकता पर वह मुमकिन नहीं है. तब एक ही रास्ता नजर आता है मुझे कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती रहने के बजाय अपना मनपसंद रास्ता खोज लो.’’ इस बात पर राजवी चौंकी मगर अक्षय बोला, ‘‘मेरा एक कुलीग है. मेरे जैसी ही पोस्ट पर है और मेरी जितनी ही सैलरी मिलती है उसे. प्लस पौइंट यह है कि वह हैंडसम दिखता है. तुम्हारे जैसा गोरा और तुम्हारे जैसा ही फ्री माइंडेड है. अगर तुम हां कहो तो मैं बात कर सकता हूं उस से. और हां, वह भी इंडिया का ही है. खुश रखेगा तुम्हें…’’

‘‘अक्षय, यह क्या बोल रहे हो तुम?’’ राजवी चीख उठी. अक्षय ऐसी बात करेगा यह उस की सोच से परे था.

‘‘मैं ठीक ही तो कह रहा हूं. इस झूठमूठ की शादी में बंधे रहने से अच्छा होगा कि हम अलग हो जाएं. मेरी ओर से आज से ही तुम आजाद हो…’’

अक्षय के होंठों पर अपनी कांपती उंगलियां रखती राजवी कांपती आवाज में बोली, ‘‘इस बात को अब यहीं पर स्टौप कर दो अक्षय. मैं ने कहा न कि मैं ने जो कुछ भी किया वह मेरी भूल थी. मेरा घमंड और मेरी नासमझी थी. अपने सौंदर्य पर गुमान था मुझे और उस गुमान के लिए तुम जो चाहे सजा दे सकते हो. पर प्लीज मुझे अपने से अलग मत करना. मैं नहीं जी पाऊंगी तुम्हारे बिना. तुम्हारे प्यार के बिना मैं अधूरी हूं. जिंदगी का और रिश्तों का सच्चा सुख बाहरी चकाचौंध में नहीं होता वह तो आंतरिक सौंदर्य में ही छिपा होता है, यह सच मुझे अच्छी तरह महसूस हो चुका है.’’

इस के आगे न बोल पाई राजवी. उस की आंखों में आंसू भर गए. उस ने हाथ जोड़ लिए और बोली, ‘‘मेरी गलती माफ नहीं करोगे अक्षय?’’ राजवी के मुरझाए गालों पर बह रहे आंसुओं को पोंछता अक्षय बोला, ‘‘ठीक है, तो फिर इस में भी जैसी तुम्हारी मरजी.’’  और यह कह कर वह मुसकराया तो राजवी हंस पड़ी. फिर अक्षय ने अपनी बांहें फैलाईं तो राजवी उन में समा गई.

Short Story: एक रिश्ता एहसास का

‘सुधा बारात आने वाली है देखो निधि तैयार हुई की नहीं ……’,हर्ष ने सुधा को आवाज़ लगाते हुए कहा.
सुधा का दिल ये सोच कर बहुत ही ज़ोरों से धडकने लगा की अब मेरी निधि मुझसे दूर हो जाएगी.
सुधा निधि को लेने उसके कमरे की तरफ बढ़ी .निधि को दुल्हन के रूप में देख कर वो एक पल को वहीँ दरवाज़े की ओट में खड़ी हो गयी.

सुधा अपने अतीत की यादों में खो गयी . उसकी यादों का कारवां बरसों पहले जा पहुंचा था. नंदिनी और सुधा बहुत की पक्की दोस्त थी और हो भी क्यूँ न बचपन की दोस्ती जो थी.

जिस शाम सुधा की इंगेजमेंट थी उसी शाम जब नंदिनी सुधा के घर अपने पति हर्ष के साथ आ रही थी तभी उनकी गाडी का बहुत ही भयानक एक्सीडेंट हो गया जिसमे नंदिनी चल बसी.और पीछे छोड़ गयी अपनी हंसती खेलती दुनिया.नंदिनी के दो बच्चे थे विशाल और निधि.दोनों बहुत ही छोटे थे.नंदिनी की मौत के बाद परिवार वालों ने हर्ष से दूसरी शादी का दवाब डाला.
जब सुधा को इस बात का पता चला तो उसने बिना आनाकानी किए हर्ष से शादी के लिए हामी भर दी थी, क्योंकि नंदिनी की असमय मौत के बाद उसे सबसे अधिक चिंता उनके दोनों बच्चों- निधि और विशाल के भविष्य की थी.
नई-नई दुल्हन बनकर आई थी सुधा . अचानक ही उसकी ज़िंदगी में सब कुछ बदल गया था. जिस शख़्स को अब तक अपनी दोस्त के के पति के रूप में देखती आई थी, वो अब उसी की पत्नी बन चुकी थी. चूंकि बच्चे बहुत ही छोटे थे और पहले से ही सुधा से घुले-मिले थे, तो उन्होंने भी उसे अपनी मां के रूप में आसानी से स्वीकार कर पाएंगे.

दूसरी तरफ़ हर्ष का भी वो बहुत सम्मान करती थी. समय बीतता रहा, बच्चों के साथ सुधा ख़ुद भी बच्ची ही बन जाती और खेल-खेल में उन्हें कई बातें सिखाने में कामयाब हो जाती. लेकिन इतना कुछ करने पर भी बात-बात पर उसे ‘सौतेली मां’ का तमगा पहना दिया जाता. अगर बच्चे को चोट लग जाए, तो पड़ोसी कहते, “बेचारे बिन मां के बच्चे हैं, सौतेली मां कहां इतना ख़्याल रखती होगी…” इस तरह के ताने सुनने की आदी हो चुकी थी सुधा, लेकिन सबसे ज़्यादा तकलीफ़ तब होती, जब अपना ही कोई इस दर्द को और बढ़ा देता. चाहे बच्चों का जन्मदिन हो या कोई अचीवमेंट, हर बार घर के क़रीबी रिश्तेदार यह कहने से पीछे नहीं हटते थे कि आज इनकी अपनी मां ज़िंदा होती, तो कितनी ख़ुश होती.
अचानक सुधा ने अपने अतीत से बहार आकर महसूस किया की निधि ने आकर पीछे से उसकी आँखों को अपने हाथ से ढक लिया .
सुधा ने बिना उसके कहे पहचान लिया की वो निधि है.उसने कहा तैयार हो गयी मेरी राजकुमारी!

“माँ , तुम्हें कैसे पता चला कि ये मैं हूं?” निधि ने हैरान होकर पूछा.
“बेटा , तुम्हारी ख़ुशबू मैं अच्छी तरह से पहचानती हूं. तुम्हारा एहसास, तुम्हारा स्पर्श सब कुछ मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है? आख़िर मां हूँ मै तुम्हारी .” सुधा ने निधि का हाथ थामकर कहा.
“क्या हुआ माँ तुम कुछ परेशान लग रही हो ,कोई बात है क्या?किसी ने कुछ कहा.” निधि ने सुधा के गले लगकर पूछा.
सुधा ने आँखों में आंसू भरकर कहा,”निधि मै सही हूँ न ?क्या मेरी परवरिश में तुम्हे कोई कमी तो नहीं लगी.अगर मेरे प्यार में कोई कमी रह गयी हो तो मुझे माफ़ कर देना…”
मां… तुमसे ही मैं ममता की गहराई जान पाई हूं. तुम ऐसा मत सोचो ” निधि ने माँ को गले लगाते हुए कहा.

सुधा ने निधि के सर पर हाँथ फेरते हुए कहा,”चलो अब नीचे चले ,बारात आ गयी है और उनको इंतज़ार करवाना ठीक नहीं.” वो हँसते हुए बोली
पर निधि के मन तो तूफ़ान उमड़ रहा था.सुधा के आंसुओं ने उसे अन्दर तक झकझोर कर रख दिया था.वो जान चुकी थी की उसकी माँ के मन में क्या उधेड़बुन चल रही है.
पर उसने अपने आप को शांत किया और सुधा के साथ नीचे आ गयी.
शादी की सारी रश्में पूरी हो चुकी थी .अब विदाई का समय आ चुका था.
निधि अपने परिवार वालों के गले लग कर बहुत रोई .फिर जब वो अपनी माँ के गले लगी तभी पीछे से किसी ने कहा,”आज अगर निधि की सगी माँ जिंदा होती तो वो बहुत खुश होती.”
बस फिर क्या था.निधि तो जैसे इसी मौके के इंतज़ार में थी.
उसने कहा
”ये क्या सगी माँ –सगी माँ लगा रखा है.हमने जबसे होश संभाला, इन्ही को ही देखा, इन्ही को ही पाया. हर क़दम पर साये की तरह इन्होने ने ही ज़िंदगी की धूप से हमें बचाया. अपनी नींदें कुर्बान करके हमें रातभर थपकी देकर सुलाया. फिर भी हर ख़ुशी के मौ़के पर यहां आंसू बहाए जाते हैं कि आज हमारी सगी मां होती, तो ऐसा होता, वैसा होता…
आज इतने बरसों बाद जब मैं पीछे पलटकर देखती हूं, तो एक ही लफ़्ज़ बार-बार मेरे कानों में गूंजता है… सौतेली मां! ताउम्र इस एक शब्द से जंग लड़ती आ रहीं है मेरी माँ … अब तो जैसे ये इनकी पहचान ही बन गया हो. हर बार अग्निपरीक्षा, हर बात पर अपनी ममता साबित करना… जैसे कोई अपराधी हो ये . हर बार तरसती निगाह से सबकी ओर देखती हैं की कहीं से कोई प्रशंसाभरे शब्द कह दे . लेकिन ऐसा होता ही नहीं .
पूरे समाज ने इन्हें कटघरे में खड़ा करके रख दिया है…..पर क्यूँ दें ये सफ़ाई? क्यों करे ख़ुद को साबित…? मां स़िर्फ मां होती है, उसकी ममता सगी या सौतेली नहीं होती… लेकिन कौन समझता है इन भावनाओं को. दो कौड़ी की भी क़ीमत नहीं है इनकी भावनाओं की…

क्या आप सभी जानते है की वो तो अक्सर ख़ुद से इस तरह के सवाल करती रहती है, जिनका जवाब किसी के पास नहीं होता.
इसके बाद निधि रोते हुए सुधा के गले लग गयी और बोली,”माँ मुझे माफ़ कर दो .माँ तुमने जो किया, वो मेरे लिए गर्व की बात है .तुम तो मेरी प्रेरणा हो माँ .शायद मैंने तुम्हारा साथ देने में बहुत देर कर दी .i love you माँ .”
आज सुधा को अपने आप से कोई शिकायत नहीं थी.उसके चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था जिसे बयां नहीं किया जा सकता……

Family Story – केलिकुंचिका: दुर्गा की कौनसी गलती बनी जीवनभर की सजा

दीनानाथजी बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे. वे 5वीं मंजिल के अपने अपार्टमैंट में रोज शाम को इसी समय चाय पीते और नीचे बच्चों को खेलते देखा करते थे. उन की पत्नी भी अकसर उन के साथ बैठ कर चाय पिया करती थीं. पर अभी वे किचन में महरी से कुछ काम करा रही थीं. तभी बगल में स्टूल पर रखा उन का मोबाइल फोन बजा. उन्होंने देखा कि उन की बड़ी बेटी अमोलिका का फोन था. दीनानाथ बोले, ‘‘हां बेटा, बोलो, क्या हाल है?’’

अमोलिका बोली, ‘‘ठीक हूं पापा. आप कैसे हैं? मम्मी से बात करनी है.’’ ‘‘मैं ठीक हूं बेटा. एक मिनट होल्ड करना, मम्मी को बुलाता हूं,’’ कह कर उन्होंने पत्नी को बुलाया.

उन की पत्नी बोलीं, ‘‘अमोल बेटा, कैसी तबीयत है तेरी? अभी तो डिलीवरी में एक महीना बाकी है न?’’ ‘‘वह तो है, पर डाक्टर ने कहा है कि कुछ कौंप्लिकेशन है, बैडरैस्ट करना है. तुम तो जानती हो जतिन ने लवमैरिज की है मुझ से अपने मातापिता की मरजी के खिलाफ. ससुराल से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलने वाली है. तुम 2-3 महीने के लिए यहां आ जातीं, तो बड़ा सहारा मिलता.’’

‘‘मैं समझ सकती हूं बेटा, पर तेरे पापा दिल के मरीज हैं. एक हार्टअटैक झेल चुके हैं. ऐसे में उन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं होगा.’’ ‘‘तो तुम दुर्गा को भेज सकती हो न? उस के फाइनल एग्जाम्स भी हो चुके हैं.’’

‘‘ठीक है. मैं उस से पूछ कर तुम्हें फोन करती हूं. अभी वह घर पर नहीं है.’’

दुर्गा अमोलिका की छोटी बहन थी. वह संस्कृत में एमए कर रही थी. अमोलिका की शादी एक माइनिंग इंजीनियर जतिन से हुई थी. उस की पोस्ंिटग झारखंड और ओडिशा के बौर्डर पर मेघाताबुरू में एक लोहे की खदान में थी. वह खदान जंगल और पहाड़ों के बीच में थी, हालांकि वहां सारी सुविधाएं थीं. बड़ा सा बंगला, नौकरचाकर, जीप आदि. कंपनी का एक अस्पताल भी था जहां सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध थीं. फिर भी अमोलिका को बैडरैस्ट के चलते कोई अपना, जो चौबीसों घंटे उस के साथ रहे, चाहिए था. अमोलिका के मातापिता ने छोटी बेटी दुर्गा से इस बारे में बात की. दुर्गा बोली कि ऐसे में दीदी का अकेले रहना ठीक नहीं है. वह अमोलिका के यहां जाने को तैयार हो गई. उस के जीजा जतिन खुद आ कर उसे मेघाताबुरू ले गए.

दुर्गा के वहां पहुंचने के 2 हफ्ते बाद ही अमोलिका को पेट दर्द हुआ. उसे अस्पताल ले जाया गया. डाक्टर ने उसे भरती होने की सलाह दी और कहा कि किसी भी समय डिलीवरी हो सकती है. अमोलिका ने भरती होने के तीसरे दिन एक बेटे को जन्म दिया. पर बेटे को जौंडिस हो गया था, डाक्टर ने बच्चे को एक सप्ताह तक अस्पताल में रखने की सलाह दी. जतिन और दुर्गा प्रतिदिन विजिटिंग आवर्स में अस्पताल आते और खानेपीने का सामान दे जाते थे. एक दिन जतिन ने जीप को कुछ जरूरी सामान, दवा आदि लेने के लिए शहर भेज दिया था. दुर्गा मोटरसाइकिल पर ही उस के साथ अस्पताल आई थी. उस दिन मौसम खराब था. अस्पताल से लौटते समय बारिश होने लगी. दोनों बुरी तरह भीग गए थे. दुर्गा मोटरसाइकिल से उतर कर गेट का ताला खोल रही थी. उस के गीले कपड़े उस के बदन से चिपके हुए थे जिस के चलते उस के अंगों की रेखाएं स्पष्ट झलक रही थीं. जतिन के मन में तरंगें उठने लगी थीं.

ताला खुलने पर दोनों अंदर गए. बिजली गुल थी. दुर्गा सीधे बाथरूम में गीले कपड़े बदलने चली गई. इस बात से अनजान जतिन तौलिया लेने के लिए बाथरूम में गया. वह रैक पर से तौलिया उठाना चाहता था. दुर्गा साड़ी खोल कर पेटीकोट व ब्लाउज में थी. उस ने नहाने की सोच कर हैंडशावर हाथ में ले रखा था. उस ने दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया था ताकि कुछ रोशनी अंदर आ सके. अचानक किसी की उपस्थिति महसूस होने पर उस ने पूछा, ‘‘अरे आप, जीजू, अभी क्यों आए? निकलिए, मैं बंद कर लेती हूं.’’ इतना कह कर उस ने खेलखेल में हैंडशावर से जतिन को गीला कर दिया. जतिन बोलता रहा, ‘‘यह क्या कर रही हो? मुझे पता नहीं था कि तुम अंदर हो़’’

‘‘मुझे भी पता नहीं, अंधेरे में पानी किधर जा रहा है,’’ और वह हंसने लगी. ‘‘रुको, मैं बताता हूं पानी किधर छोड़ा है तुम ने. यह रहा मैं और यह रही तुम,’’ इतना बोल कर जतिन ने उसे बांहों में भर लिया. दुर्गा को भी लगा कि उस का गीला बदन तप रहा है.

‘‘क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे.’’ ‘‘अभी कहां कुछ किया है मैं ने?’’

दुर्गा को अपने भुजबंधन में लिए हुए ही एक चुंबन उस के होंठों पर जड़ दिया जतिन ने. इस के बाद तपिश खत्म होने पर ही अलग हुए वे दोनों. दुर्गा बोली, ‘‘जो भी हुआ, वह हरगिज नहीं होना चाहिए था. क्षणिक आवेश में आ कर हम दोनों ने अपनी सीमाएं तोड़ डालीं. जरा सोचिए, दीदी को जब कभी यह बात मालूम होगी तो उस पर क्या गुजरेगी.’’

जतिन बोला, ‘‘अब जाने दो, जो हुआ सो हुआ. उसे बदला तो नहीं जा सकता. ठीक तो मैं भी नहीं समझता हूं, पर बेहतर होगा अमोलिका को इस बारे में कुछ भी पता न चले.’’

इस घटना के एक सप्ताह बाद अमोलिका भी अस्पताल से घर आई. उस का बेटा बंटी ठीक हो गया था. घर में सभी खुश थे. दुर्गा भी मौसी बन कर प्रसन्न थी. वह अपनी दीदी और भतीजे की देखभाल अच्छी तरह कर रही थी. जतिन ने शानदार पार्टी दी थी. अमोलिका के मातापिता भी आए थे. एक सप्ताह रह कर वे लौट गए. लगभग 2 महीने तक सबकुछ सामान्य रहा. दुर्गा की तबीयत ठीक नहीं रह रही थी. अमोलिका ने जतिन से कहा, ‘‘इसे थोड़ा डाक्टर को दिखा लाओ.’’

दुर्गा को अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस होने लगा था. पीरियड मिस होने से वह अंदर से डरी हुई थी. जतिन दुर्गा को ले कर अस्पताल गया. वहां लेडी डाक्टर ने चैक कर कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, सबकुछ नौर्मल है. दुर्गा मां बनने वाली है. जतिन और दुर्गा एकदूसरे को आश्चर्य से देख रहे थे. पर डाक्टर के सामने बनावटी मुसकराहट दिखाते रहे ताकि डाक्टर को सबकुछ नौर्मल लगे.

छोटे से माइनिंग वाले शहर में सभी अफसर एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. थोड़ी ही देर में डाक्टर ने अमोलिका को फोन कर कहा, ‘‘मुबारक हो, शाम को मैं आ रही हूं, मिठाई खिलाना.’’ ‘‘श्योर, दरअसल हम लोगों ने जिस दिन पार्टी दी थी आप छुट्टी ले कर बाहर गई थीं.’’

‘‘वह तो ठीक है, मैं तुम्हारी मौसी बनने की खुशी में मिठाई मांग रही हूं. ठीक है, शाम को डबल मिठाई खा लूंगी.’’ डाक्टर से बात करने के बाद अमोलिका के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. उस के मन में संदेह हुआ क्योंकि दुर्गा और जतिन के अलावा घर में तीसरा और कोई नहीं था, कहीं यह बच्चा जतिन का न हो. उसे अपनी बहन पर क्रोध आ रहा था. साथ ही, उसे नफरत भी हो रही थी.

अभी तक दुर्गा और जतिन दोनों अस्पताल से घर भी नहीं लौटे थे. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आने वाले भीषण तूफान से कैसे निबटा जाए. कुछ पलों का आनंद इतनी बड़ी मुसीबत बन जाएगा, उन्होंने इस की कल्पना भी नहीं की थी. दोनों सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल अमोलिका को यह बात तो पता चलेगी ही, तब उस के सामने कैसे मुंह दिखाएंगे.

घर पहुंच कर दुर्गा बंटी के लिए दूध बना कर ले गई. उस ने दूध की बोतल अमोलिका को दी. वह बहुत गंभीर थी. दुर्गा वापस जाने को मुड़ी ही थी कि अमोलिका ने उसे हाथ पकड़ कर रोक लिया. पहले तो वह सोच रही थी कि सारा गुस्सा अभी के अभी उतार दे, पर उस ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारा एमए भी पूरा हो गया है. अगले महीने तुम्हारा कौन्वोकेशन भी है.’’ दुर्गा बोली, ‘‘हां.’’

‘‘आगे के लिए क्या सोचा है? और तुम ने संस्कृत ही क्यों चुनी? इनफैक्ट संस्कृत की तो यहां कोई कद्र नहीं है.’’ ‘‘आजकल जरमनी में लोग संस्कृत में रुचि ले रहे हैं. बीए करने के बाद मैं एक साल स्कूल में पार्टटाइम संस्कृत टीचर थी. मैं ने जरमनी की एक यूनिवर्सिटी में संस्कृत ट्यूटर के लिए आवेदन दिया था. मैं ने जरमन भाषा का भी एक शौर्टटर्म कोर्स किया है. मुझे उम्मीद है कि जरमनी से जल्दी ही बुलावा आएगा.’’

‘‘कब तक जाने की संभावना है?’’ ‘‘कुछ पक्का नहीं कह सकती हूं, पर 6 महीने या सालभर लग सकता है. उन्होंने कहा है कि अभी तुरंत वैकेंसी नहीं है, होने पर सूचित करेंगे.’’

‘‘तब तक तुम्हारा ये बच्चा…’’ अमोलिका के मुंह से अचानक यह सुनना दुर्गा के लिए अनपेक्षित था. इस अप्रत्याशित प्रश्न के लिए वह तैयार नहीं थी. उसे चुप देख कर अमोलिका ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई दीदी के यहां आ कर यह सब गुल खिलाने में. वैसे तो मैं समझ सकती हूं तेरे पेट में किस का अंश है, फिर भी मैं तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’

दुर्गा सिर नीचे किए रो रही थी, कुछ बोल नहीं पा रही थी. अमोलिका ने ही फिर कड़क कर कहा, ‘‘यह किस का काम है? बंटी के सिर पर हाथ रख कर कसम खा तू, किस का काम है यह?’’ दुर्गा फिर चुप रही. तब अमोलिका ने ही कहा, ‘‘जतिन का ही दुष्कर्म है न यह? सच बता तुझे बंटी की कसम.’’

‘‘तुम्हारी खामोशी को मैं तुम्हारी स्वीकृति समझ रही हूं. बाकी मैं जतिन से समझ लूंगी.’’ दुर्गा वहां से चली गई. अमोलिका ने अपनी मां को फोन कर कहा, ‘‘मां, मैं कुछ दिनों के लिए वहां आ कर तुम लोगों के साथ रहना चाहती हूं.’’

मां ने कहा, ‘‘बेटा, यह तेरा घर है. जब चाहे आओ और जितने दिन चाहो आराम से रहो.’’ उस रात अमोलिका और जतिन में काफी कहासुनी हुई. उस ने जतिन से कहा, ‘‘तुम्हारे दुष्कर्म के बाद मुझे तुम से घिन हो रही है. मुझे नहीं लगता, मैं यहां और रह पाऊंगी.’’

जतिन के माफी मांगने और मना करने के बावजूद दूसरे दिन अमोलिका दुर्गा के साथ पीहर आ गई. उस ने मेघाताबुरू की कहानी मां को बताई. उस की मां भी बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने दुर्गा से कहा, ‘‘अरे, तू अपनी सगी बहन के घर में आग लगा बैठी.’’ दुर्गा के पास कोई जवाब न था. वह चुप रही. मां ने कहा, ‘‘मैं तेरी जैसी कुलटा को अपने घर में नहीं रख सकती. तू निकल जा मेरे घर से. हम लोग तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहते.’’

उस रात दुर्गा को नींद नहीं आ रही थी. वह रात में एक बैग ले कर दरवाजा खोल कर घर से निकलना ही चाहती थी कि अमोलिका जग उठी. उस ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो?’’ दुर्गा बोली, ‘‘कुछ सोचा नहीं है, या तो आत्महत्या करूंगी या फिर सब से दूर कहीं चली जाऊंगी.’’

‘‘एक पाप तो तूने पहले ही किया, दूसरा पाप आत्महत्या करने का होगा.’’ ‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘तू एबौर्शन करा ले, उस के बाद आगे की जिंदगी का रास्ता साफ हो जाएगा.’’

‘‘एबौर्शन कराना भी तो एक पाप ही होगा.’’ ‘‘तू अभी चुपचाप घर में बैठ. कुछ दिनों में हम सब लोग मिलजुल कर बात कर कोई समाधान ढूंढ़ लेंगे.’’

दुर्गा ने महसूस किया कि उस के मातापिता दोनों ने ही उस से बोलचाल बंद कर दी है. वह तो अमोलिका की गुनाहगार थी, फिर भी दीदी कभीकभी उस से बात कर लेती थीं. उस को अंदर से ग्लानि थी कि उस की एक छोटी सी भूल की सजा दीदी और बंटी को भी मिल रही है. 2 दिनों बाद ही दुर्गा अचानक घर छोड़ कर कहीं चली गई. उस ने अपना कोई अतापता किसी को नहीं बताया. दुर्गा अपने साथ पढ़ी एक सहेली माधुरी के यहां कोलकाता आ गई. दोनों ने 12वीं तक साथ पढ़ाई की थी. उस ने उसे अपनी कहानी बताई और कहा, ‘‘प्लीज, मेरा पता किसी को मत बताना. मुझे कुछ दिनों के लिए पनाह दे, फिर मैं कहीं दूरदराज चली जाऊंगी.’’

माधुरी अविवाहित थी और नौकरी करती थी. वह बोली, ‘‘तू कहीं नहीं जाएगी. तू जब तक चाहे यहां रह सकती है. तू तो जानती ही है कि इस दुनिया में मेरा अपना निकटसंबंधी कोई नहीं है. तू यहीं रह, तू मां बनेगी और मैं मौसी.’’

वहीं दुर्गा ने एक बालक को जन्म दिया. उस ने वहीं रह कर इग्नू से 2 साल का मास्टर इन वैदिक स्टडीज का कोर्स किया. इसी बीच, उस ने झारखंड में धनबाद के निकट काको मठ और महाराष्ट्र में नासिक के निकट वेद पाठशालाओं में वहां के संतों व गुरुजनों से भी वेद पर विशेष चर्चा कर वेद के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाया.

माधुरी ने उस से कहा, ‘‘तुम वेदों को इतना महत्त्व क्यों दे रही हो? मैं ने तो सुना है कि वेद स्त्रियों के लिए नहीं हैं.’’ दुर्गा बोली, ‘‘तू उस की छोड़, क्लासिकल भाषाओं के अच्छे जानकारों की जरूरत हमेशा रहेगी. हर युग में उन्हें नए ढंग से पढ़ा और समझा जाता है.’’ जब तक दुर्गा माधुरी के साथ रही, उस ने दुर्गा की आर्थिक सहायता भी की. कुछ पैसे दुर्गा ट्यूशन पढ़ा कर भी कमा लेती थी. इस बीच, दुर्गा का बेटा शलभ 2 साल का हो चुका था. तभी जरमनी से संस्कृत टीचर के लिए उस का बुलावा आ गया.

कोलकाता के जरमन कौन्सुलेट से दुर्गा और बेटे शलभ को वीजा भी मिल गया. वह जरमनी के हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी गई.

जरमनी पहुंच कर दुर्गा को बिलकुल अलग माहौल मिला. जरमनी के लगभग एक दर्जन से ज्यादा शीर्ष विश्वविद्यालयों हीडेलबर्ग, एलएम यूनिवर्सिटी म्यूनिक, वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी, टुएबिनजेन यूनिवर्सिटी आदि में संस्कृत की पढ़ाई होती है. उसे देख कर खुशी हुई कि जरमनी के अतिरिक्त अन्य यूरोपियन देश और अमेरिका के विद्यार्थी भी संस्कृत पढ़ते हैं. वे जानना चाहते हैं कि भारत के प्राचीन इतिहास व विचार किस तरह इन ग्रंथों में छिपे हैं. भारत में संस्कृत की डिगरी तो नौकरी के लिए बटोरी जाती है लेकिन जरमनी में लोग अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए संस्कृत पढ़ने आते हैं. इन विद्यार्थियों में हर उम्र के बच्चे, किशोर, युवा और प्रौढ़ होते हैं. दुर्गा ने देखा कि इन में कुछ नौकरीपेशा यहां तक कि डाक्टर भी हैं. दुर्गा को पता चला कि अमेरिका और ब्रिटेन में जरमन टीचर संस्कृत पढ़ाते हैं. हम अपनी प्राचीन संस्कृति और भाषा की समृद्ध विरासत को सहेजने में सफल नहीं रहे हैं. यहां का माहौल देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि जरमन लोग ही शायद भविष्य में संस्कृत के संरक्षक हों. वे दूसरी लेटिन व रोमन भाषाओं को भी संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं.

दुर्गा का बेटा शलभ भी अब बड़ा हो रहा था. वह जरमन के अतिरिक्त हिंदी, इंगलिश और संस्कृत भी सीख रहा था. दुर्गा ने कुछ प्राचीन पुस्तकों, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम, गीता और वेद के जरमन अनुवाद भी देखे और कुछ पढ़े भी. जरमन विद्वानों का कहना है कि भारत के वेदों में बहुतकुछ छिपा है जिन से वे काफी सीख सकते हैं. सामान्य बातें और सामान्य ज्ञान से ले कर विज्ञान के बारे में भी वेद से सीखा जा सकता है.

जरमनी आने पर भी दुर्गा हमेशा अपनी सहेली माधुरी के संपर्क में रही थी. उस ने माधुरी को कुछ पैसे भी लौटा दिए थे जिस के चलते माधुरी थोड़ा नाराज भी हुई थी. माधुरी से ही दुर्गा को मालूम हुआ कि उस की दीदी अमोलिका और पापा दीनानाथ अब नहीं रहे. अमोलिका का बेटा बंटी कुछ साल नानी के साथ रहा था, बाद में वह अपने पापा जतिन के पास चला गया. उस की नानी भी उसी के साथ रहती थी. बंटी 16 साल का हो चुका था और कालेज में पढ़ रहा था. इधर, दुर्गा का बेटा शलभ 15 साल का हो गया था. वह भी अगले साल कालेज में चला जाएगा. दुर्गा के निमंत्रण पर माधुरी जरमनी आई थी. वह करीब एक महीने यहां रही. दुर्गा ने उसे बर्लिन, बोन, म्युनिक, फ्रैंकफर्ट, कौंलोन आदि जगहें घुमाईं. माधुरी इंडिया लौट गई.

दुर्गा से यूनिवर्सिटी की ओर से वेद पढ़ाने को कहा गया. उस से वेद के कुछ अध्यायों व श्लोकों का समुचित विश्लेषण करने को कहा गया. दुर्गा ने वेदों का अध्ययन किया था, इसलिए उसे पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं हुई. उस के पढ़ाने के तरीके की विद्यार्थियों और शिक्षकों ने खूब प्रशंसा की. दुर्गा अब यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित हो चुकी थी, बल्कि उसे अन्य पश्चिमी देशों में भी कभीकभी पढ़ाने जाना होता था.

5 वर्षों बाद शलभ फिजिक्स से ग्रेजुएशन कर चुका था. उसे न्यूक्लिअर फिजिक्स में आगे की पढ़ाई करनी थी. पीजी में ऐडमिशन से पहले उस ने मां से इंडिया जाने की पेशकश की तो दुर्गा ने उस की बात मान ली. दुर्गा ने उस के जन्म की सचाई अब उसे बता दी थी. सच जान कर उसे अपनी मां पर गर्व हुआ. अकेले ही काफी दुख झेल कर, अपने साहस के बलबूते पर मां खुद को और मुझे सम्मानजनक स्थिति में लाई थी. शलभ को अपनी मां पर गर्व हो रहा था. हालांकि वह किसी संबंधी के यहां नहीं जाना चाहता था लेकिन दुर्गा ने उसे अपने पिता जतिन और नानी से मिलने को कहा. माधुरी ने दुर्गा को जतिन का ठिकाना बता दिया था. जतिन आजकल नागपुर के पास वैस्टर्न कोलफील्ड में कार्यरत था.

इंडिया आ कर शलभ ने पहले देश के विभिन्न ऐतिहासिक व प्राचीन नगरों का भ्रमण किया. बाद में वह पिता से मिलने नागपुर गया. उस दिन रविवार था, जतिन और नानी दोनों घर पर ही थे. डोरबैल बजाने पर जतिन ने दरवाजा खोला. शलभ ने उस के पैर छुए. जतिन बोला, ‘‘मैं ने तुम को पहचाना नहीं.’’ शलभ बोला, ‘‘मैं एक जरमन नागरिक हूं. भारत घूमने आया हूं. मैं अंदर आ सकता हूं. मेरी मां ने मुझे आप से मिलने के लिए कहा है.’’

शलभ का चेहरा एकदम अपनी मां से मिलता था. तब तक उस की नानी भी आई तो उस ने नानी के भी पैर छू कर प्रणाम किया. जतिन और नानी दोनों शलभ को बड़े गौर से देख रहे थे. शलभ ने देखा कि शोकेस पर उस की मौसी और मां दोनों की फोटो पर माला पड़ी हुई है. शलभ ने दोनों तसवीरों की ओर संकेत करते हुए पूछा, ‘‘ये महिलाएं कौन हैं?’’

जतिन ने बताया, ‘‘एक मेरी पत्नी अमोलिका, दूसरी उन की छोटी बहन दुर्गा है, अब दोनों इस दुनिया में नहीं हैं.’’

‘‘एस तुत मिर लाइट,’’ शलभ बोला. ‘‘मैं समझा नहीं,’’ जतिन ने कहा.

‘‘आई एम सौरी, यही पहले मैं ने जरमन भाषा में कहा था,’’ शलभ बोला. ‘‘अरे वाह, कितनी भाषाएं जानते हो,’’ जतिन ने हैरानी जताई.

‘‘सब मेरी मां की देन है,’’ शलभ ने कहा. फिर दुर्गा की फोटो को दिखाते हुए शलभ बोला, ‘‘तो ये आप की केलिकुंचिका हैं.’’

‘‘व्हाट?’’ ‘‘केलिकुंचिका यानी साली, सिस्टर इन लौ.’’

‘‘यह कौन सी भाषा है…जरमन?’’ ‘‘जी नहीं, संस्कृत.’’

‘‘तो तुम संस्कृत भी जानते हो?’’ ‘‘जी, आप की केलिकुंचिका संस्कृत की विदुषी हैं, उन्हीं ने मुझे संस्कृत भी सिखाई है.’’

‘‘वह तो बहुत पहले मर चुकी है.’’ ‘‘आप के लिए मृत होंगी.’’

‘‘व्हाट? हम लोगों ने उसे ढूढ़ने की बहुत कोशिश की थी, पर वह नहीं मिली. आखिर में हम ने उसे मृत मान लिया.’’ ‘‘अच्छा, तो अब चलता हूं, कल दिल्ली से मेरी फ्लाइट है.’’

शलभ ने उठ कर दोनों के पैर छुए और बाहर निकल गया. ‘‘अरे, जरा रुको तो सही, हमारी बात तो सुनते जाओ, शलभ…’’

वे दोनों उसे पुकारते रहे, पर उस ने एक बार भी मुड़ कर उन की तरफ नहीं देखा.

Love Story- उजाले की ओर: क्या हुआ नीरजा और नील के प्यार का अंजाम?

राशी कनाट प्लेस में खरीदारी के दौरान एक आवाज सुन कर चौंक गई. उस ने पलट कर इधरउधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. उसे लगा, शायद गलतफहमी हुई है. उस ने ज्योंही दुकानदार को पैसे दिए, दोबारा ‘राशी’ पुकारने की आवाज आई. इस बार वह घूमी तो देखा कि धानी रंग के सूट में लगभग दौड़ती हुई कोई लड़की उस की तरफ आ रही थी.

राशी ने दिमाग पर जोर डाला तो पहचान लिया उसे. चीखती हुई सी वह बोली, ‘‘नीरजा, तू यहां कैसे?’’

दरअसल, वह अपनी पुरानी सखी नीरजा को सामने देख हैरान थी. फिर तो दोनों सहेलियां यों गले मिलीं, मानो कब की बिछड़ी हों.

‘‘हमें बिछड़े पूरे 5 साल हो गए हैं, तू यहां कैसे?’’ नीरजा हैरानी से बोली.

‘‘बस एक सेमिनार अटैंड करने आई थी. कल वापस जाना है. तुझे यहां देख कर तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो सोचा भी न था कि हम दोनों इस तरह मिलेंगे,’’ राशी सुखद आश्चर्य से बोली, ‘‘अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं. तुझे कोई जरूरी काम तो नहीं है? चल, किसी कौफीहाउस में चलते हैं.’’

‘‘नहीं राशी, तू मेरे घर चल. वहां आराम से गप्पें मारेंगे. अरसे बाद तो मिले हैं,’’ नीरजा ने कहा.

राशी नीरजा से गप्पें मारने का मोह छोड़ नहीं पाई. उस ने अपनी बूआ को फोन कर दिया कि वह शाम तक घर पहुंचेगी. तब तक नीरजा ने एक टैक्सी रोक ली. बातोंबातों में कब नीरजा का घर आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अरे वाह नीरजा, तू ने दिल्ली में फ्लैट ले लिया.’’

‘‘किराए का है यार,’’ नीरजा बोली.

तीसरी मंजिल पर नीरजा का छोटा सा फ्लैट देख कर राशी काफी प्रभावित हुई. फ्लैट को सलीके से सजाया गया था. बैठक गुजराती शैली में सजा था.

नीरजा शुरू से ही रिजर्व रहने वाली लड़की थी, पर राशी बिंदास व मस्तमौला थी. स्कूल से कालेज तक के सफर के दौरान दोनों सहेलियों की दोस्ती परवान चढ़ी थी. राशी का लखनऊ में ही मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया था और नीरजा दिल्ली चली गई थी. शुरूशुरू में तो दोनों सहेलियां फोन व पत्रों के माध्यम से एकदूसरे के संपर्क में रहीं. फिर धीरेधीरे दोनों ही अपनी दुनिया में ऐसी उलझीं कि सालों बाद आज मुलाकात हुई.

राशी ने उत्साह से घर आतेआते अपने कैरियर व शादी तय होने की जानकारी नीरजा को दे दी थी, परंतु नीरजा ऐसे सवालों के जवाबों से बच रही थी.

राशी ने सोफे पर बैठने के बाद उत्साह से पूछा, ‘‘नीरजा, शादी के बारे में तू ने अब तक कुछ सोचा या नहीं?’’

‘‘अभी कुछ नहीं सोचा,’’ नीरजा बोली, ‘‘तू बैठ, मैं कौफी ले कर आती हूं.’’

राशी उस के घर का अवलोकन करने लगी. बैठक ढंग से सजाया गया था. एक शैल्फ में किताबें ही किताबें थीं. नीरजा ने आते वक्त बताया था कि वह किसी पब्लिकेशन हाउस में काम कर रही थी. राशी बैठक में लगे सभी चित्रों को ध्यान से देखती रही. उस की नीरजा से जुड़ी बहुत सी पुरानी यादें धीरेधीरे ताजा हो रही थीं. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की नीरजा से अचानक मुलाकात हो जाएगी.

राशी बैठक से उस के दूसरे कमरे की तरफ चल पड़ी. छोटा सा बैडरूम था, जो सलीके से सजा हुआ था. राशी को वह सुकून भरा लगा. थकी हुई राशी आरामदायक बैड पर आराम से सैंडल उतार कर बैठ गई.

‘‘नीरजा यार, कुछ खाने को भी ले कर आना,’’ वह वहीं से चिल्लाई.

नीरजा हंस पड़ी. वह सैंडविच बना ही रही थी. किचन से ही वह बोली, ‘‘राशी, तू अभी कितने दिन है दिल्ली में?’’

‘‘मुझे तो आज रात ही 10 बजे की ट्रेन से लौटना है.’’

‘‘कुछ दिन और नहीं रुक सकती है क्या?’’

‘‘नीरजा… मां ने बहुत मुश्किल से सेमिनार अटैंड करने की इजाजत दी है. कल लड़के वाले आ रहे हैं मुझे देखने,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘राशी, तू अरेंज मैरिज करेगी, विश्वास नहीं होता,’’ नीरजा हंस पड़ी.

‘‘इंदर अच्छा लड़का है, हैंडसम भी है. फोटो देखेगी उस की?’’ राशी ने कहा उस से. फिर अचानक उस ने उत्सुकतावश नीरजा की एक डायरी उठा ली और बोली उस से, ‘‘ओह, तो मैडम को अभी भी डायरी लिखने का समय मिल जाता है.’’

तभी कुछ तसवीरें डायरी से नीचे गिरीं. राशी ने वे तसवीरें उठा लीं और ध्यानपूर्वक उन्हें देखने लगी. तसवीरों में नीरजा किसी पुरुष के साथ थी. वे अंतरंग तसवीरें साफ बयां कर रही थीं कि नीरजा का रिश्ता उस शख्स से बेहद गहरा था. राशी बारबार उन तसवीरों को देख रही थी. उस के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे. उसे कमरे की दीवारें घूमती सी नजर आईं.

तभी नीरजा आ गई. उस ने जल्दी से ट्रे रख कर राशी के हाथ से वे तसवीरें लगभग छीन लीं.

राशी ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘नीरजा, बात क्या है?’’

नीरजा उस से आंखें चुरा कर विषय बदलने की कोशिश करने लगी, परंतु नाकामयाब रही. राशी ने कड़े शब्दों में पूछा तो नीरजा की आंखें भर आईं. फिर जो कुछ उस ने बताया, उसे सुन कर राशी के पांव तले जमीन खिसक गई.

नीरजा ने बताया कि 4 साल पहले जब वह दिल्ली आई, तो उस की मुलाकात नील से हुई. दोनों स्ट्रगल कर रहे थे. कालसैंटर की एक नौकरी के इंटरव्यू में दोनों की मुलाकात हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकात दोस्ती में बदल गई. नीरजा को नौकरी की सख्त जरूरत थी, क्योंकि दिल्ली में रहने का खर्च उठाने में उस के मातापिता असमर्थ थे. नीरजा ने इस नौकरी का प्रस्ताव यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि बाद में किसी अच्छे औफर के बाद यह नौकरी छोड़ देगी. औफिस की वैन उसे लेने आती थी, लेकिन उस के मकानमालिक को यह पसंद नहीं था कि वह रात में बाहर जाए.

इधर नील को भी एक मामूली सी नौकरी मिल गई थी. वह अपने रहने के लिए एक सुविधाजनक जगह ढूंढ़ रहा था. एक दिन कनाट प्लेस में घूमते हुए अचानक नील ने एक साझा फ्लैट किराए पर लेने का प्रस्ताव नीरजा के आगे रखा. नीरजा उस के इस प्रस्ताव पर सकपका गई.

नील ने उस के चेहरे के भावों को भांप कर कहा, ‘‘नीरजा, तुम रात के 8 बजे जाती हो और सुबह 8 बजे आती हो. मैं सुबह साढ़े 8 बजे निकला करूंगा तथा शाम को साढ़े 7 बजे आया करूंगा. सुबह का नाश्ता मेरी जिम्मेदारी व रात का खाना तुम बनाना. इस तरह हम साथ रह कर भी अलगअलग रहेंगे.’’

नीरजा सोच में पड़ गई थी. संस्कारी नीरजा का मन उसे इस ऐडजस्टमैंट से रोक रहा था, परंतु नील का निश्छल व्यवहार उसे मना पाने में सफल हो गया. दोनों पूरी ईमानदारी से एकदूसरे का साथ देने लगे. 1 घंटे का जो समय मिलता, उस में दोनों दिन भर क्या हुआ एकदूसरे को बताते. दोनों की दोस्ती एकदूसरे के सुखदुख में काम आने लगी थी. नीरजा ने उस 2 कमरे के फ्लैट को घर बना दिया था. उस ने नील की पसंद के परदे लगवाए, तो नील ने भी रसोई जमाने में उस की पूरी सहायता की थी.

इतवार की छुट्टी का रास्ता भी नील ने ईमानदारी से निकाला. दिन भर दोनों घूमते. शाम को नीरजा घर आ जाती तो नील अपने दोस्त के यहां चला जाता. इंसानी रिश्ते बड़े अजीब होते हैं. वे कब एकदूसरे की जरूरत बन जाते हैं, यह उन्हें स्वयं भी पता नहीं चलता. नीरजा और नील शायद यह समझ ही नहीं पाए कि जिसे वे दोस्ती समझ रहे हैं वह दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी है.

नीरजा अचानक रुकी. उस ने अपनी सांसें संयत कर राशी को बताया कि उस दिन बरसात हो रही थी. जोरों का तूफान था. टैक्सी या कोई भी सवारी मिलना लगभग असंभव था. वे दोनों यह सोच कर बाहर नहीं निकले कि बरसात थमने पर नील अपने दोस्त के यहां चला जाएगा. पर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.

नील शायद उस तूफानी रात में निकल भी जाता, पर नीरजा ने उसे रोक लिया. वह तूफानी रात नीरजा की जिंदगी में तूफान ला देगी, इस का अंदेशा नीरजा को नहीं था. तेज सर्द हवाएं उन के बदन को सिहरा जातीं. नीरजा व नील दोनों अंधेरे में चुपचाप बैठे थे. बिजली गुल थी. नीरजा को डर लग रहा था. नील ने मजबूती से उस का हाथ थाम लिया.

तभी जोर की बिजली कड़की और नीरजा नील के करीब आ गई. दोनों अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के सामने कुछ और न सुन सके. दिल में उठे तूफान की आवाज के सामने बाहर के तूफान की आवाज दब गई थी. नीरजा के अंतर्मन में दबा नील के प्रति प्रेम समर्पण में परिवर्तित हो गया. नील ने नीरजा को अपनी बांहों में भर लिया. नीरजा प्रतिकार नहीं कर पाई. दोनों अपनी सीमारेखा का उल्लंघन यों कर गए, मानो उफनती नदी आसानी से बांध तोड़ कर आगे निकल गई हो.

तूफान सुबह तक थम गया था, लेकिन इस तूफान ने नीरजा की जिंदगी बदल दी थी. नीरजा ने अपने इस प्रेम को स्वीकार कर लिया था. नीरजा का प्रेम अमरबेल सा चढ़ता गया. उस के बाद किसी भी रविवार को नील अपने दोस्त के यहां नहीं गया. नीरजा को नील के प्रेम का बंधन सुरक्षा का एहसास कराता था.

एक दिन नीरजा ने नील को प्यार करते हुए कहा, ‘‘हमें अब शीघ्र ही विवाह कर लेना चाहिए.’’

नील ने प्यार से नीरजा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘नीरजा, मेरे प्यार पर भरोसा रखो. मैं अभी शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं. ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने से डरता हूं. लेकिन इस वक्त मुझे तुम्हारा साथ और सहयोग दोनों ही अपेक्षित हैं.’’

उन दोनों के सीधेसुलझे प्यार के तार उस वक्त उलझने लगे, जब नीरजा की बड़ी बहन रमा दीदी व जीजाजी अचानक दिल्ली आ पहुंचे. नीरजा बेहद घबरा गई थी. उस ने नील से जुड़ी हर चीज को छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन रमा दीदी ने भांप लिया था. उन्होंने नील को बुलाया. नील इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था. रमा ने नील पर विवाह के लिए दबाव बनाया, जो नील को मंजूर नहीं था.

रमा दीदी को भी उन के रिश्ते का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने देवर विपुल के साथ नीरजा की शादी का मन बना लिया था. नील इसे बरदाश्त न कर पाया. बिना कुछ कहेसुने उस ने दिल्ली छोड़ दी. नीरजा के नाम एक लंबा खत छोड़ कर नील मुंबई चला गया.

नीरजा अंदर से टूट गई थी. उस ने रमा दीदी को सब सचसच बता दिया. उस दिन से नीरजा के रिश्ते अपने घर वालों से भी टूट गए. नीरजा फिर कभी कालसैंटर नहीं गई. वह इस का दोष नील को नहीं देना चाहती थी. उस ने नील के साथ बिताए लमहों को एक गुनाह की तरह नहीं, एक मीठी याद बना कर अपने दिल में बसा लिया.

कुछ दिनों बाद उसे एक पब्लिकेशन में नौकरी मिल गई. वह दिन भर किताबों में डूबी रहती, ताकि नील उसे याद न आए. उम्मीद का एक दीया उस ने अपने मन के आंगन में जलाए रखा कि कभी न कभी उस का नील लौट कर जरूर आएगा. उस का अवचेतन मन शायद आज भी नील का इंतजार कर रहा था. इसी कारण उस ने घर भी नहीं बदला. हर चीज वैसी ही थी, जैसी नील छोड़ कर गया था.

नीरजा का अतीत एक खुली किताब की तरह राशी के सामने आ चुका था. वह हतप्रभ बैठी थी. रात 10 बजे राशी की ट्रेन थी. नीरजा के अतीत पर कोई टिप्पणी किए बगैर राशी ने उस से विदा ली. सफर के दौरान राशी की आंखों में नींद नहीं थी. वह नीरजा की उलझी जिंदगी के बारे में सोचती रही.

अगले दिन शाम को इंदर अपनी मां व बहन के साथ आया. राशी ने ज्योंही बैठक में प्रवेश किया, सब से पहले लड़के की मां को शिष्टता के साथ नमस्ते किया. फिर वह लड़के की तरफ पलटी और अपना हाथ बढ़ा कर परिचय दिया, ‘‘हेलो, आई एम डा. राशी.’’

इंदर ने भी खड़े हो कर हाथ मिलाया, ‘‘हैलो, आई एम इंद्रनील.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद राशी ने इंदर की मां से कहा, ‘‘आंटी, आप बुरा न मानें तो मैं इंद्रनील से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ इंद्रनील की मां अचकचा कर बोलीं.

वे दोनों ऊपर टैरेस पर चले गए. कुछ चुप्पी के बाद राशी बोली, ‘‘मुंबई से पहले तुम कहां थे?’’

अचानक इस प्रश्न से इंद्रनील चौंक उठा, ‘‘दिल्ली.’’

‘‘इंद्रनील, मैं तुम्हें नील बुला सकती हूं? नीरजा भी तो इसी नाम से बुलाती थी तुम्हें,’’ राशी ने कुछ तल्ख आवाज में कहा.

इंद्रनील के चेहरे के भाव अचानक बदल गए. वह चौंक गया था, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

राशी आगे बोली, ‘‘तुम ने नीरजा के साथ ऐसा क्यों किया? अच्छा हुआ कि तुम से शादी होने से पहले मेरी मुलाकात नीरजा से हो गई. तुम्हारी फोटो नीरजा के साथ न देखती तो पता ही न चलता कि तुम ही नीरजा के नील हो.’’

नील के पास कोई जवाब न था. वह हैरानी से राशी को देखे जा रहा था, जिस ने उस के जख्मों को कुरेद कर फिर हरा कर दिया था, ‘‘लेकिन तुम नीरजा को कैसे…’’ आधी बात नील के हलक में ही फंसी रह गई.

‘‘क्योंकि नीरजा मेरे बचपन की सहेली है,’’ राशी ने कहा.

नील मानो आकाश से नीचे गिरा हो, ‘‘लेकिन वह तो सिर्फ एक दोस्त की तरह…’’ उस की बात बीच में काट कर राशी बोली, ‘‘अगर तुम एक दोस्त के साथ ऐसा कर सकते हो, तो मैं तो तुम्हारी कुछ भी नहीं. नील, तुम्हें नीरजा का जरा भी खयाल नहीं आया. कहीं तुम्हारी यह मानसिकता तो नहीं कि नीरजा ने शादी से पहले तुम से संबंध बनाए. अगर तुम्हारी यह सोच है, तो तुम ने मुझ से शादी का प्रस्ताव मान कर मुझे धोखा देने की कैसे सोची. जो अनैतिक संबंध तुम्हारे लिए सही है, वह नीरजा के लिए गलत कैसे हो सकता है. तुम नीरजा को भुला कर किसी और से शादी के लिए कैसे राजी हुए? नीरजा आज तक तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

कुछ चुप्पी के बाद नील बोला, ‘‘मैं ने कई बार सोचा कि नीरजा के पास लौट जाऊं, लेकिन मेरे कदम आगे न बढ़ सके. उस के पास वापस जाने के सारे दरवाजे मैं ने खुद ही बंद कर दिए थे.’’

‘‘नीरजा आज भी तुम्हारा शिद्दत से इंतजार कर रही है. जानते हो नील, जब मुझे तुम्हारे और नीरजा के संबंध का पता चला, तो मुझे बहुत गुस्सा आया था. फिर सोचा कि मैं तो तुम्हारी जिंदगी में बहुत बाद में आई हूं, पर नीरजा और तुम्हारा रिश्ता कच्चे धागों की डोर से बहुत पहले ही बुन चुका था. अभी देर नहीं हुई है नील, नीरजा के पास वापस चले जाओ. मैं जानती हूं कि तुम्हारा दिल भी यही चाहता है. जिस रिश्ते को सालों पहले तुम तोड़ आए थे, उसे जोड़ने की पहल तो तुम्हें ही करनी होगी,’’ राशी ने नील को समझाते हुए कहा.

नील कुछ कहता इस से पहले ही राशी ने अपने मोबाइल से नीरजा का नंबर मिलाया. ‘‘हैलो राशी,’’ नीरजा बोली, तो जवाब में नील की भीगी सी आवाज आई, ‘‘कैसी हो नीरजा?’’

नील की आवाज सुन कर नीरजा चौंक गई.

‘‘नीरजा, क्या तुम मुझे कभी माफ कर पाओगी?’’ नील ने गुजारिश की तो नीरजा की रुलाई फूट पड़ी. उस की सिसकियों में नील के प्रति प्यार, उलाहना, गिलेशिकवे, दुख, अवसाद सब कुछ था.

‘‘बस, अब और नहीं नीरजा, मुझे माफ कर दो. मैं कल ही तुम्हें लेने आ रहा हूं. रोने से मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. मैं चाहता हूं तुम्हारा सारा गम आंसू बन कर बह जाए, क्योंकि उन का सामना शायद मैं नहीं कर पाऊंगा.’’

फोन पर बात खत्म हुई तो नील की आंखें नम थीं. वह राशी के दोनों हाथ पकड़ कर कृतज्ञता से बोला, ‘‘थैंक्यू राशी, मुझे इस बात का एहसास कराने के लिए कि मैं क्या चाहता हूं, वरना नीरजा के बगैर मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करता.’’

नील व नीरजा की जिंदगियों ने अंधेरी गलियों को पार कर उजाले की ओर कदम रख दिया था.

Hindi Story- मेरे घर आई नन्ही परी: क्यों परेशान हो गई समीरा

समीरा परी को गोद में लिए शून्य में ताक रही थी. उस की आंखों से आंसुओं की ?ामा?ाम बरसात हो रही थी. उसे सम नहीं आ रहा था कि क्यों उसे परी के लिए वह ममता महसूस नहीं हो रही हैं जैसे एक आम मां को होती है. समीरा को तो यह खुद को भी बताने में शर्म आ रही थी कि उसे परी से कोई लगाव महसूस नहीं होता. तभी परी ने अचानक रोना शुरू कर दीया.

समीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे रोना क्यों आ रहा है. उसे लग रहा था कि जैसे उसे किसी ने बांध दीया हो. उस की पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त सी हो गई थी. वह अपनेआप को ही नहीं पहचान पा रही थी.

समीरा ने जैसा फिल्मों में देखा था, जैसा अपनी बहनोंभाभियों से सुना था वैसा कुछ भी महसूस नहीं कर पा रही थी. उस ने सुना था कि मां की थपकी से बच्चा सो जाता है. उस ने भी परी को थपथपाना शुरू कर दीया परंतु परी का रोना और तेज हो गया.

झंझाला कर समीरा ने परी को पलंग पर पटक दीया और खुद को आईने में निहारने लगी. आईने में खुद को देख कर उस की झंझलाहट और बढ़ गई. हर तरफ से झुलती हुई मांस की परतें, शरीर की कसावट न जाने कहां गुम हो गई थी. 55 किलोग्राम से एक झटके में वह 70 किलोग्राम की हो गई थी. कितना नाज था उसे अपनी त्वचा, बालों और फिगर पर. परी के जन्म के बाद सब एक याद बन कर रह गया.

तभी पीछे से समीरा की सास रुपाली आ गई और परी को गोद में उठाते हुए बोली, ‘‘अजीब मां हो तुम, बेटी गला फाड़फाड़ कर रो रही है और तुम्हें शीशे से फुरसत नहीं है.’’

‘‘सभी कामों के लिए तो नौकर हैं और ऊपरी काम मैं करती हूं.  कमसेकम परी का ध्यान तो रख सकती हो. कैसे लगाव होगा बेटी को तुम्हारे साथ अगर उस का सारा काम दादी या नानी ही करेगी?’’

समीरा गुस्से से परी को देख रही थी. 1 माह की परी दादी की गोद में मंदमंद मुसकरा रही थी.

बिना कोई जवाब दिए समीरा गुसलखाने में नहाने चली गई. शावर की ठंडी फुहारें सिर पर पड़ते ही उस का गुस्सा शांत हो गया और अब फिर से उस की आंखें गीली थीं परंतु इस बार कारण था परी.

समीरा सोच रही थी कि वह कितनी बुरी मां है. क्यों वह परी से कटीकटी रहती है. बालों में शैंपू लगा कर जैसे ही धोने लगी. बालों का गुच्छा हाथों में आ गया. समीरा फिर से चिंतित हो उठी कि इसी रफ्तार से बाल गिरते रहे तो जल्द ही वह टकली हो जाएगी. नहाने के बाद जैसे ही वह तौलिए से अपना शरीर पोंछने लगी तो पेट, स्तनों और जांघों पर स्ट्रैचमार्क फिर से उसे दिखाई दे गए. जल्दीजल्दी वह गाउन पहन कर गुसलखाने से बाहर आ गई.

समीरा का पूरा वार्डरोब बेकार हो गया था. कोई भी कपड़ा उसे फिट नहीं आता था.

तभी रुपाली परी को ले कर आ गई और प्यार से समीरा से बोली, ‘‘बेटा, परी को फीड करा दो.’’

समीरा के लिए यह एक समस्या थी. स्तनपान कैसे कराना है समीरा को ठीक से पता नहीं था. कभी परी के मुंह में दूध ही नही जा पाता था तो कभी परी इतना अधिक दूध पी लेती कि उसे उलटी हो जाती. समीरा सोच रही थी, दीदी बोलती थी कि बच्चे को स्तनपान कराने से मां

को बहुत संतुष्टि महसूस होती हैं पर समीरा को कितना दर्द महसूस होता है. ऊपर से समीरा के सब पसंदीदा खानपान पर स्तनपान के कारण रोक थी. 1 माह बाद भी परी को स्तनपान कराने का सही तरीका समीरा समझ नहीं पा रही थी. कभीकभी तो उसे लगता कि वह कैसे इस झंझट से बाहर भी निकल पाएगी. थोड़ी देर बाद परी सो गई. उसे बिस्तर पर लिटा कर समीरा भी आंखें बंद कर लेट गई पर नींद थी कि आंखों से कोसों दूर.

समीरा का विवाह 5 वर्ष पहले रोहिन से हुआ था. रोहिन से उस का परिचय एक मैट्रीमोनियल साइट पर हुआ था, दोनों ने लगभग 1 साल तक डेटिंग करी और फिर परिवार की सहमति से विवाह के बंधन में बंध गए. रोहिन का परिवार आधुनिक सोच का था. समीरा के सपने पंख लगा कर खुले असमान में उड़ रहे थे.

विवाह की पहली सालगिरह पर भी समीरा का परिवार ही समीरा को बच्चे के लिए छेड़ रहा था परंतु समीरा की सास रुपाली बोली, ‘‘अरे, अभी तो समीरा खुद ही बच्ची है. जब मरजी होगी कर लेंगे.’’

विवाह के समय समीरा 30 वर्ष की थी. विवाह के 3 वर्ष पूरे हो गए थे और तभी 1 माह समीरा ने अपने पीरियड्स मिस कर दिए. उसे लगा शायद वह मां बनने वाली है, इसलिए वह और रोहिन डाक्टर के पास गए. प्रैगनैंसी टैस्ट नैगेटिव आया तो डाक्टर्स ने और हारमोनल चैकअप कराए. रिपोर्ट्स निराशाजनक आई. रिपोर्ट्स के मुताबिक समीरा का फर्टिलिटी रेट तेजी से डिक्लाइन हो रहा है. उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था. उस का मासिकचक्र तो एकदम सामान्य था. फिर शुरू हुआ चैकअप और टैस्ट्स न कभी भी खत्म होने वाला सिलसिला. समीरा भी अब मां बनना चाहती थी इसलिए खुद को तनावमुक्त रखने के लिए उस ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी. 1 साल की मेहनत के बाद परिणाम सकारात्मक रहा. समीरा मातृत्व की इस यात्रा को पूरी तरह से जीना चाहती थी. उस ने पूरे 9 माह भरपूर एहतियात बरती. बच्चे के लिए सारी तैयारी कर ली परंतु ना जाने आखिरी माह आतेआते उस का चिड़चिड़ापन बढ़ क्यों गया.

समीरा की दमकती त्वचा पर झइयां आ गईं. वजन भी बढ़ा जा रहा था. समीरा की मम्मी और सास ने उसे प्यार से सम?ाया, ‘‘बेटा, एक बार बच्चा हो जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा.’’

परी भी अब 1 माह की हो गई थी परंतु समीरा के बाल जिस तेजी से झड़ रहे थे वजन भी उसी तेजी से बढ़ रहा था. उसे लगता जैसे परी के जन्म के बाद वह एक जेलखाने में कैद हो गई है. उसे रोहिन से जलन होने लगी थी क्योंकि रोहिन तो अभी भी जस का तस था और वह बूढ़ी सी लगने लगी थी.

जब परी को देखने उस की ननद दीया आई तो मजाक में बोली, ‘‘भाभी, अब तो आप भैया की आंटी भी लगने लगी हो.’’

हालांकि रुपाली ने दीया को डांटते हुए कहा, ‘‘अपने बढ़ते वजन की चिंता करो.’’

मगर समीरा के मन में यह बात घर कर गई.

आज समीरा परी को ले कर अपने घर जा रही थी. समीरा के साथसाथ रोहिन को भी लग रहा था कि जगह बदलने से समीरा का मूड भी बदल जाएगा.

घर पहुंचते ही सब से पहले छोटी बहन बोली, ‘‘दीदी, ये बाल कैसे हो गए हैं ?ाड़ू जैसे… कितने घने और चमकीले बाल थे आप के.’’

जो भी पासपड़ोस की आंटी आती कोई उस के काले धब्बों पर तो कोई उस के बढ़ते वजन का जिक्र जरूर करती, पर जातेजाते यह तस्सली दे जाती कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.

समीरा सुबह से बिना नहाएधोए टैलीविजन के आगे पसरी थी. रोहिन का फोन आते ही उस से लड़ने लगी, ‘‘अब फुरसत मिली हैं तुम्हें, रात में मैं ने तुम्हें कितनी बार फोन किया. मन भर गया न तुम्हारा मु?ा से क्योंकि मैं अब अनाकर्षक हो गई हूं.’’

रोहिन दूसरी तरफ क्या कह रहा था, समीरा की मां को पता नहीं चल पाया परंतु रोहिन के फोन रखते ही समीरा की मां ने समीरा को आड़े हाथों लिया, ‘‘अगर ऐसे ही रहोगी तुम समीरा, तो जरूर रोहिन रास्ता भटक जाएगा. क्या हाल बना रखा है तुम ने… रोनेबिसूरने के अलावा करती क्या हो तुम? वहां पर तुम्हारी सास और यहां

पर मैं परी की देखभाल करती हूं और तुम क्या करती हो. मां बनने का फैसला तुम्हारा था. तुम्हें किसी ने मजबूर नहीं किया था… मां बनना आसान नही है.’’

एकाएक समीरा के सब्र का बांध टूट गया. बोली, ‘‘यह अकेला मेरा नहीं रोहिन का भी फैसला था पर उस की जिंदगी पर क्या फर्क

पड़ा. मेरी आजादी छिन गई है. मेरी अपनी पहचान मुझ से छूट गई है. परी की नींद सोती हूं और उस की नींद जागती हूं, बाहर की दुनिया से कट सी गई हूं.

‘‘मेरा अपना पति जो कभी मेरा दीवाना था मुझ से दूरी बना कर रखता है. एकाएक उम्र से 10 वर्ष बड़ी हो गई हूं. हरकोई मां के फर्ज के ऊपर नसीहत देता है पर यह मां भी एक इंसान है, हरकोई भूल जाता है,’’ दिल का गुबार निकाल कर समीरा फूटफूट कर रोने लगी.

समीरा की मां को समीरा का यह व्यवहार समझ नहीं आ रहा था. उसे लगता था कि समीरा कामचोर और आलसी मां है. रातदिन समीरा की मम्मी उसे यही बताती रहती कि मां बनने का दूसरा नाम त्याग और बलिदान है. समीरा को न ठीक से भूख लगती और न ही नींद आती थी. सारा दिन सब को काटने के लिए तैयार रहती.

जब रोहिन समीरा को लेने आया तो उसे देख कर दंग रह गया. समीरा का वजन

और भी बढ़ गया था. रोहिन को देखते ही वह उस के गले लग कर रोने लगी. रोहिन को समीरा के मूक रुदन में उस की छटपटाहट समझ आ रही थी.

अगले रोज उस ने दफ्तर से छुट्टी ले ली और समीरा को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने चैकअप कर के रोहिन से कहा, ‘‘देखो, शारीरिक रूप से समीरा ठीक है परंतु उस के अंदर पोस्टपार्टम डिप्रैशन के लक्षण नजर आ रहे हैं.

‘‘आमतौर पर हर 5 में से 1 महिला बच्चे के जन्म के पश्चात ऐसे दौर से गुजरती है. इसके लिए उसे दवा की नहीं तुम्हारे साथ की जरूरत है. तुम्हें समीरा को वापस यह एहसास दिलाना होगा कि वह अब भी उतनी ही

आकर्षक है. उस के अंदर हीनभावना घर कर गई है. तुम लोगों ने आखिरी बार संबंध कब बनाया था?’’

रोहिन अचकचाते हुए बोला, ‘‘अभी तो परी 1 माह की हुई है और समीरा तो अभी शायद इस के लिए तैयार नहीं है.’’

डाक्टर बोली, ‘‘बिना पूछे ही तुम ने तय कर लिया… शायद यह भी समीरा के पोस्टपार्टम का कारण हो सकता है. समीरा को नौर्मल होने का एहसास कराना तुम्हारी ही जिम्मेदारी हैं. हम लोग यह भूल जाते हैं कि बच्चे के जन्म के साथसाथ मां का भी जन्म होता है. उसे भी दुलार और प्यार की आवश्यकता होती है क्योंकि उस की तो पूरी जिंदगी ही बदल जाती है और फिर डाक्टर ने रोहिन के साथसाथ समीरा को भी खुद पर ध्यान देने की सलाह दी.

रोहिन को डाक्टर से बातचीत के बाद समीरा के बदले व्यवहार का कारण काफी हद तक सम?ा आ गया था.

रात में जब रोहिन ने समीरा से प्यार करने की पेशकश करी तो वह तुरंत तैयार हो गई. परी के जन्म के बाद समीरा को पहली बार ऐसा लगा वह मां ही नहीं एक पत्नी भी है. इस प्रेमक्रीड़ा के साथ समीरा का तनाव भी कहीं धुल सा गया. रोहिन को भी बहुत दिनों के बाद समीरा खुश दिखाई दे रही थी जो उसे भी खुशी दे रहा था.

उस रात के बाद से रोहिन और समीरा हर रात साथ बिताने लगे. परी के छोटेछोटे काम रात में उठ कर रोहिन भी कर देता. समीरा को इस बात से ही बहुत मदद हो जाती थी. रोहिन फिर सुबह भी समय से उठ कर जिम जाता और फिर औफिस.

समीरा को भी अब लगने लगा था कि उसे भी अब अपने खोल से बाहर निकलना चाहिए. रात में तो उस के साथ रोहिन भी जागता है मगर फिर भी वह बिना किसी शिकायत के अपने सारे काम भी करता है.

रोहिन शनिवार को परी की पूरी जिम्मेदारी उठाता. समीरा शनिवार को कहीं भी घूमनेफिरने को आजाद थी. रोहिन की सपोर्ट के कारण अब समीरा भी अपनी पुरानी दुनिया में आने लगी.

कुछ दिनों बाद समीरा ने खुद रसोई का काम संभालना शुरू किया. वह अब अपना खाना खुद बनाने लगी थी. 1 हफ्ते में ही वह पहले से अधिक स्फूर्तिवान हो गई. उस ने यह भी विवेचना कर ली थी कि परी के काम के कारण वह घर के बाकी कामों पर ध्यान नहीं दे पा रही है. इसलिए सब के मना करने के बावजूद उस ने परी के लिए 12 घंटे के लिए एक आया रख ली. अब समीरा के पास खुद के लिए भी समय था. उस ने ऐक्सरसाइज आरंभ कर दी. धीरेधीरे सब समस्याओं का निदान हो रहा था.

अब समीरा  की चिड़चिड़ाहट पहले से बहुत कम हो गई थी. रोहिन ने भी समीरा के हर फैसले में साथ दीया. समीरा ने 7 माह बाद फिर से नौकरी करने का फैसला लिया और 1 माह के भीतर ही उसे अपनी पसंद के अनुरूप नौकरी मिल गई.

घर से बाहर निकलते ही समीरा की शिकायतें, चिड़चिड़ाहट, बढ़ता वजन, बेजान त्वचा सब एक खिड़की से बाहर निकल गए और समीरा के आत्मविश्वास को पंख लग गए थे. समीरा को समझ आ गया था कि वह पत्नी है, बेटी है, बहू है, मां भी है मगर सब से पहले एक स्त्री है. मां बनना भी जिंदगी का एक और प्यारा मोड़ ही है मगर यह जिंदगी का आखिरी पड़ाव नहीं है.

मां बनने के बाद शरीरक, मानसिक और भावनात्मक रूप से परिवर्तन तो होते हैं मगर उन्हें सहज रूप से स्वीकार कर के या  तो हम इस सफर का आनंद ले सकते हैं या फिर रोतेबिसूरते रहें.

आज परी पूरे 9 माह की हो गई थी और दीवार पकड़पकड़ कर चलने की कोशिश कर रही थी. समीरा भी खुश हो कर मोबाइल में ये पल कैद करते हुए गुनगुना रही थी, ‘‘मेरे घर आई एक नन्ही परी…’’

शन्नो की हिम्मत : एक लड़की ने कैसे बदल दी अपने पिता की जिंदगी

लेखक- मंजर मुजफ्फरपुरी

शन्नो की मां अनवरी मजबूरी के चलते पति के सितम चुपचाप सह लेती थी, लेकिन एक दिन शन्नो का सब्र जवाब दे गया और उस ने बाकरपुर थाने जा कर बाप की शिकायत कर डाली. थाना इंचार्ज एसआई पूनम यादव ने सूझबूझ से काम लेते हुए फिरोज खान को हिरासत में ले लिया.

लेकिन जब पुलिस वाले फिरोज खान की कमर पर रस्सा बांधने लगे, तो शन्नो यह देख कर तड़प उठी. वह एसआई पूनम यादव से रोते हुए बोली, ‘‘मैडमजी, पापा को माफ कर दीजिए. आप इन्हें सिर्फ समझा दीजिए कि अब दोबारा कभी अम्मी को नहीं सताएंगे.

‘‘मैं यह नहीं जानती थी कि पापा इतनी बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे. प्लीज, पापा को छोड़ दीजिए,’’ कह कर वह उन से लिपट कर रोने लगी.

‘‘घबराओ नहीं बेटी, तुम्हारे पापा को कुछ नहीं होगा. हम इन्हें समझाबुझा कर जल्दी छोड़ देंगे,’’ एसआई पूनम यादव ने शन्नो को काफी समझाया, लेकिन वह रोतीबिलखती रही.

पापा के बगैर शन्नो थाने से बाहर नहीं आना चाहती थी. बड़ी मुश्किल से उसे घर पहुंचाया गया.

इस वाकिए के बाद शन्नो हंसना ही भूल गई. पापा को उस की वजह से जेल जाना पड़ा था. इस बात का उसे बहुत अफसोस था.

एसआई पूनम यादव ने फिरोज खान की माली हालत के मद्देनजर उस पर बहुत कम जुर्माना लगाया, जिस से वह एकाध महीने में ही जेल से छूट गया.

एसआई पूनम यादव ने फिरोज खान को जेल से बाहर आने के बाद समझाया, ‘‘देखो फिरोज, तुम ने बेटा पाने की चाहत में बेटियों की जो लाइन लगा रखी है, उस का बोझ तुम्हें अकेले ही उठाना पड़ेगा, इसलिए अब भी वक्त है कि तुम अपनी बेटियों को ही बेटा समझो. उन्हें प्यारदुलार दो.

‘‘अगर तुम्हारे घर बेटा पैदा नहीं हुआ, तो इस की जिम्मेदार तुम्हारी पत्नी नहीं है, बल्कि तुम खुद हो.

‘‘तुम्हारे घर में कोई तुम्हारा दुश्मन नहीं है, बल्कि तुम सब के दुश्मन हो और अपनी जिंदगी के साथ भी दुश्मनी कर रहे हो.

‘‘अब क्या तुम अपनी बेटी शन्नो से इस बात का बदला लोगे कि तुम्हारे द्वारा उस की मां पर ढाए जाने वाले जुल्म से घबरा कर वह थाने चली आई?’’

फिरोज खान सिर झुकाए चुपचाप एसआई पूनम यादव की बातें सुनता रहा.

‘‘खबरदार फिरोज, अब भूल से भी कोई ऐसीवैसी हरकत मत करना.’’

फिरोज खान ने एसआई पूनम यादव की बात को अनसुना कर दिया, क्योंकि उस के मन में शन्नो के लिए बदले की आग सुलग रही थी. घर में कदम रखते ही फिरोज ने शन्नो की पिटाई की.

बेटी को पिटता देख अनवरी बचाने आई, तो फिरोज ने उसे भी खूब मारापीटा, फिर दोनों मांबेटी को घर से निकाल दिया.

इस दुखद मंजर को अड़ोसपड़ोस के लोग चुपचाप देखते रहे. किसी के लफड़े में पड़ने की क्या जरूरत है, इस सोच के चलते महल्ले वाले अपनेअपने जमीर को मुरदा बनाए हुए थे. कोई भी यह नहीं सोचना चाहता था कि कल उन के साथ भी ऐसा हो सकता है.

अनवरी शन्नो को साथ ले कर अपने मायके समस्तीपुर चली आई और अपनी बेवा मां से लिपट कर खूब रोई.

सारा दुखड़ा सुनाने के बाद अनवरी बोली, ‘‘अम्मां, आज से शन्नो का जीनामरना आप को ही करना होगा.’’

सुबह होते ही अनवरी बस में सवार हो कर ससुराल लौट गई. इस बात को 10 साल बीत गए.

शन्नो के ननिहाल वाले गरीब थे, इस के बावजूद मामूमौसी वगैरह ने मिलजुल कर शन्नो की परवरिश की. उसे अच्छी से अच्छी तालीम दे कर कुछ इस तरह निखारा कि अपनेपराए, सभी उस पर नाज करने लगे.

आज शन्नो 18-19 बरस की हो चली थी. इस दौरान फिरोज खान ने उस की कोई खोजखबर नहीं ली, क्योंकि वह उस से बहुत चिढ़ता था. उसी की वजह से उसे जेल जाना पड़ा था. शन्नो की मां अनवरी अकसर मायके आ कर बेटी को देख लेती थी.

इस बार अनवरी मायके आई, तो उस ने मायके के तमाम रिश्तेदारों को इकट्ठा किया और अपनी लाचारी बयान करते हुए शन्नो के हाथ पीले करने की गुहार लगाई. इस पर मायके वालों ने भरपूर हमदर्दी जताई.

शन्नो के बड़े मामू साबिर ने तो मीटिंग के दौरान ही अपनी जिम्मेदारी का एहसास कराते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप लोगों को ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं ने शन्नो के लिए एक अच्छा सा लड़का देख रखा है. वह शरीफ है, कम उम्र का है, पढ़ालिखा है और नौकरी भी बहुत अच्छी करता है.’’

लेकिन जब लड़के की असलियत पता की गई, तो मालूम हुआ कि वह किसी भी नजरिए से शन्नो के लायक नहीं था. वह 50 साल से ऊपर का था और 2 बीवियों को तलाक दे चुका था. नौकरी करने के नाम पर वह दिल्ली में रिकशा चलाता था.

साबिर द्वारा पेश किया गया ऐसा बेमेल रिश्ता किसी को पसंद नहीं आया. नतीजतन, उस रिश्ते को नकार दिया गया. इस पर साबिर ने नाराजगी जताई, तो उस की बड़ी बहन नरगिस बानो ने साबिर को तीखा जवाब दिया, ‘‘लड़का जब इतना ही अच्छा है, तो शन्नो को दरकिनार करो और उस से अपनी बेटी को ब्याह दो.’’

नरगिस बानो के इस फिकरे ने साबिर के होश ठिकाने लगा दिए. वह तिलमिला कर फौरन मीटिंग से उठ गया. शन्नो के लिए एक मुनासिब लड़के की तलाश जारी थी और जल्दी ही नरगिस बानो ने एक लायक लड़के को देख लिया, जो सब को पसंद आया.

शादी की तारीख एक महीने के अंदर तय की गई. चंद ननिहाली रिश्तेदारों ने माली मदद में पहल की. इस में नरगिस बानो खासतौर से आगे रहीं.

लड़का पेशे से वकील होने के अलावा एक सच्चा समाजसेवी भी था. उस के स्वभाव में करुणा कूटकूट कर भरी थी. उस ने लड़की वालों से किसी चीज की मांग नहीं की थी. शन्नो की बरात आने में 10 दिन बाकी रह गए थे. इसी बीच एक दिन शन्नो के होने वाले पति रिजवान ने नरगिस बानो को फोन कर शादी से इनकार करने का संकेत दिया.

वजह पूछने पर उस ने बताया कि लड़की अपने बाप को जेल की हवा खिलवा चुकी है. इस वजह से कोई भी शरीफ लड़का ऐसी लड़की को अपना हमसफर बनाना पसंद नहीं करेगा.

शन्नो के ननिहाल वालों की आंखों में मायूसी का अंधेरा पसर गया. वे आपस में मिलबैठ कर सोचविचार कर रहे थे कि बिगड़ी बात कैसे बनाई जाए, तभी नरगिस बानो के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. रिजवान का फोन था.

नरगिस बानो ने झट से फोन रिसीव किया और बोलीं, ‘‘तुम्हारे शुभचिंतकों ने हमारी शन्नो के खिलाफ और जो कुछ भी शिकायतें की हैं, तो वे भी हम से कह कर भड़ास निकाल लो.’’ ‘ऐसी बात नहीं है, बल्कि मैं ने तो आप लोगों से माफी मांगने के लिए फोन किया है. मुझे माफ कर दीजिए प्लीज.’

नरगिस बानो ने मोबाइल फोन का स्पीकर औन कर दिया, ताकि लड़के की बात उन के अलावा घर के दूसरे लोग भी सुन सकें.

‘आप के ही कुछ सगेसंबंधी मेरे कान भर कर मुझे गुमराह करने पर तुले थे. लेकिन भला हो एसआई पूनम मैडम का, जिन्होंने आप के रिश्तेदारों द्वारा रची गई झूठी कहानी का परदाफाश कर मेरी आंखें खोल दीं.’

‘‘लेकिन, कौन पूनम मैडम?’’ नरगिस बानो ने चौंक कर पूछा.

‘जी, वे एक पुलिस वाली होने के अलावा समाजसेवी भी हैं. उन से मेरी अच्छी जानपहचान है. मैं ने उन से शन्नो और उस के अब्बू फिरोज खान साहब से संबंधित थानापुलिस वाली बात जब बताई, तो उन्हें वह सारा माजरा याद आ गया. तब उन की पोस्टिंग बाकरपुर थाने में थी. उन्होंने मुझे सबकुछ बता दिया है, जिस से सारी बात साफ हो गई और मेरा दिल साफ हो गया.’

शन्नो के ननिहाल वाले गौर से रिजवान की बातें सुन रहे थे. रिजवान ने आगे कहा, ‘बड़े अफसोस की बात है कि अपने लोग भी कितने दुश्मन होते हैं. ऐसे लोग अगर किसी मजबूर का भला नहीं कर सकते, तो कम से कम बुराई करने से परहेज करें.’

और फिर देखते ही देखते शन्नो की शादी रिजवान के साथ करा दी गई. शादी में एसआई पूनम यादव भी दूल्हे की तरफ से शरीक हुई थीं.

विदाई के दौरान शन्नो की रोती हुई आंखें किसी को तलाश रही थीं. एसआई पूनम यादव उस की बेचैनी को समझ रही थीं. वे थोड़ी देर के लिए भीड़ से निकल गईं और जब लौटीं, तो उन के साथ शन्नो के अब्बू फिरोज खान थे. उस के हाथ में एक छोटी सी थैली थी.

अपने अब्बू को देखते ही शन्नो उन से लिपट गई और रोने लगी. फिरोज खान ने थैली शन्नो की तरफ बढ़ा दी. इसी बीच एसआई पूनम यादव शन्नो से मुखातिब हुईं, ‘‘तुम्हारे पापा ने कड़ी मेहनत और अरमान से तुम्हारे लिए ये गहने बनवाए हैं, इस की गवाह मैं हूं. मैं चाहे जहां भी रहूं, लेकिन ये कोई भी काम मुझ से मशवरा ले कर ही करते हैं.

‘‘तुम्हारे पापा अब बेटी को मुसीबत समझने की नासमझी से तोबा कर चुके हैं. तुम्हारी सारी बहनें अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं और खूब नाम रोशन कर रही हैं.’’

‘‘मैडमजी ठीक बोल रही हैं बेटी,’’ यह शन्नो की मां अनवरी बानो थीं.

एसआई पूनम यादव बोलीं, ‘‘बस यह समझो कि शन्नो बेटी के अच्छे दिन आ गए हैं. मुबारक हो.’’

शन्नो बोली, ‘‘आप की बड़ी मेहरबानी मैडमजी. आप ने मेरे घर वालों को बिखरने से बचा लिया,’’ इतना कह कर वह एसआई पूनम यादव से लिपट कर इस तरह रो पड़ी, जैसे वह बरसों पहले बाकरपुर थाने में उन से लिपट कर रोई थी.

Husband Wife Story- दिल जंगली: पत्नी के अफेयर होने की बात पर सोम का क्या था फैसला

रात के 10 बज रहे थे. 10वीं फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट से सोम कभी इस खिड़की से नीचे देखता तो कभी उस खिड़की से. उस की पत्नी सान्वी डिनर कर के नीचे टहलने गई थी. अभी तक नहीं आई थी. उन का 10 साल का बेटा धु्रव कार्टून देख रहा था. सोम अभी तक लैपटौप पर ही था, पर अब बोर होने लगा तो घर की चाबी ले कर नीचे उतर गया.

सोसाइटी में अभी भी अच्छीखासी रौनक थी. काफी लोग सैर कर रहे थे. सोम को सान्वी कहीं दिखाई नहीं दी. वह घूमताघूमता सोसाइटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में भी चक्कर लगा आया. अचानक उसे दूर जहां रोशनी कम थी, सान्वी किसी पुरुष के साथ ठहाके लगाती दिखी तो उस का दिमाग चकरा गया. मन हुआ जा कर जोर का चांटा सान्वी के मुंह पर मारे पर आसपास के माहौल पर नजर डालते हुए सोम ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर उन दोनों के पीछे चलते हुए आवाज दी, ‘‘सान्वी.’’

सान्वी चौंक कर पलटी. चेहरे पर कई भाव आएगए. साथ चलते पुरुष से तो सोम खूब परिचित था ही. सो उसे मुसकरा कर बोलना ही पड़ा, ‘‘अरे प्रशांत, कैसे हो?’’

प्रशांत ने फौरन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम सुनाओ, क्या हाल है?’’

सोम ने पूरी तरह से अपने दिलोदिमाग पर काबू रखते हुए आम बातें जारी रखीं. सान्वी चुप सी हो गई थी. सोम मौसम, सोसाइटी की आम बातें करने लगा. प्रशांत भी रोजमर्रा के ऐसे विषयों पर बातें करता हुआ कुछ दूर साथ चला. फिर ‘घर पर सब इंतजार कर रहे होंगे’ कह कर चला गया.

प्रशांत के जाने के बाद सोम ने सान्वी को घूरते हुए कहा, ‘‘ये सब क्या चल रहा है?’’

सान्वी ने जब कड़े तेवर से कहा कि जो तुम्हें सम झना है, सम झ लो तो सोम को हैरत हुई. सान्वी पैर पटकते हुए तेजी से घर की तरफ बढ़ गई. आ कर दोनों ने एक नजर धु्रव पर डाली. सान्वी ने धु्रव को ले जा कर उस के रूम में सोने के लिए लिटा दिया. अगले दिन उस का स्कूल भी था.

सान्वी के बैडरूम में पहुंचते ही सोम गुर्राया, ‘‘सान्वी, ये सब क्या चल रहा है? इतनी रात प्रशांत के साथ क्यों घूम रही थी?’’

‘‘ऐसे ही… वह दोस्त है मेरा… नीचे मिल गया तो साथ घूमने लगे.’’

‘‘यह नहीं सोचा कि कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?’’

‘‘नहीं सोचा… ऐसा क्या तूफान खड़ा हो गया?’’

सुबह सोम को औफिस जाना था. वह बिजनैसमैन था. आजकल उस का काम घाटे में चल रहा था… उस का दिमाग गुस्से में घूम रहा था पर इस समय वह सान्वी के अजीब से तेवर देख कर चुपचाप गुस्से में करवट बदल कर लेट गया.

सान्वी ने रोज की तरह कपड़े बदले, फ्रैश हुई, नाइट क्रीम लगाई और मन ही मन मुसकराते हुए प्रशांत को याद करते उस की बातों में खोईखोई बैड पर लेट गई. बराबर में नाराज लेटे सोम पर उस का जरा भी ध्यान नहीं था. उस से बिलकुल लापरवाह थोड़ी देर पहले की प्रशांत की बातों को याद कर मुसकराए जा रही थी.

प्रशांत और सान्वी का परिवार 2 साल पहले ही इस सोसाइटी में करीबकरीब साथ ही शिफ्ट हुआ था. प्रशांत से उस की दोस्ती जिम में आतेजाते हुई थी जो बढ़ कर अब प्रगाढ़ संबंधों में बदल चुकी थी. प्रशांत की पत्नी नेहा और उन के 2 युवा बच्चों आर्यन और शुभा से वह बहुत बार मिल चुकी थी. आपस में घर भी आनाजाना हो चुका था. सब से नजरें बचाते हुए प्रशांत और सान्वी अपने रिश्ते में फूंकफूंक कर कदम आगे बढ़ा रहे थे. दोनों का दिल किसी जंगली की तरह न किसी रिश्ते का नियम मानता था, न समाज का कोई कानून. दोनों को एकदूसरे को देखना, बातें करना, साथ हंसना, कुछ समय साथ बिताना बहुत खुशी दे जाता था. दोनों ने अब किसी की भी परवाह करनी छोड़ दी थी.

धु्रव छोटा था. उस की पूरी जिम्मेदारी सान्वी ही उठाती थी. सोम लापरवाह इंसान था. सोम से उस का विवाह उस की दौलत देख कर सान्वी के पेरैंट्स ने तय किया था पर शादी के बाद सोम की पर्सनैलिटी सान्वी को कुछ ज्यादा जंची नहीं. जहां सान्वी बहुत सुंदर, स्मार्ट, फिटनैस के प्रति सजग, जिंदादिली स्त्री थी, वहीं सोम ढीलाढाला सा नौकरों पर बिजनैस छोड़ दोस्तों के साथ शराब पीने में खुशी पाने वाला गैरजिम्मेदार, मूडी, गुस्सैल इंसान था.

सोम के मातापिता भी इसी बिल्डिंग में दूसरे फ्लैट में रहते थे. सान्वी उन के प्रति भी हर फर्ज पूरा करती आई थी. सासससुर को जब भी कोई जरूरत होती, इंटरकौम से सान्वी को बुला लेते. सान्वी फौरन जाती. सोम घरगृहस्थी की हर जिम्मेदारी सान्वी पर डाल निश्चिंत रहता. दोस्तों के साथ पी कर आता. अंतरंग पलों में सान्वी के साथ जिस तरह पेश आता सान्वी कलप कर रह जाती. कहां उस ने कभी रोमांस में डूबे दिनरातके सपने देखे थे और कहां अब पति के मूडी स्वभाव से तालमेल मिलाने की कोशिश ही करती रह जाती.

प्रशांत से मिलते ही दिल खिल सा गया था. प्रशांत उस की हर बात पर ध्यान देता, उस की हर जरूरत का ध्यान रखता  था. सोम कभीकभी मुंबई से बाहर जाता. धु्रव स्कूल में होता तब प्रशांत औफिस से छुट्टी कर धु्रव के आने तक का समय सान्वी के साथ ही बिताता. किसी भी नियम को न मानने वाले दोनों के दिल सभी सीमाएं पार कर गए थे. दोनों एकदूसरे की बांहों में तृप्त हो घंटों पड़े रहते.

सान्वी के तनमन को किस सुख की कमी थी, वह सुख जब प्रशांत से मिला तो उस की सम झ में आया कि अगर प्रशांत न मिला होता तो यह कमी रह जाती. मशीनी से सैक्स के अलावा भी बहुत कुछ है जीवन में… अब सान्वी को पता चला सैक्स सिर्फ शरीर की जरूरत के समय पास आना ही नहीं है, तनमन के अंदर उतर जाने वाला मीठा सा कोमल एहसास भी है.

प्रशांत न मिलता तो न जाने जीवन के कितने खूबसूरत पल अनछुए से रह जाते. उसे कोई अपराधबोध नहीं है. उस ने हमेशा सोम को मौका मिलने पर किसी के साथ भी फ्लर्ट करते देखा है. उस के टोकने पर हमेशा यही जवाब दे कर उसे चुप करवा दिया कि कितनी छोटी सोच है तुम्हारी… 2 बार वह रिश्ते की एक कजिन के साथ सोम को खुलेआम रंगरलियां मनाते पकड़ चुकी है, पर सोम नहीं सुधरा. पराई औरतों के साथ मनमानी हरकतें करना उस के हिसाब से मर्दानगी है. उसे खुशी मिलती है. आज प्रशांत के साथ उसे देख कर ज्यादा कुछ शायद इसलिए ही कह न सका… प्रशांत को याद करतेकरते सान्वी को नींद आ गई.

प्रशांत घर पहुंचा तो नेहा, आर्यन, शुभा सब लेट चुके थे. आर्यन, शुभा दोनों कालेज के लिए जल्दी निकलते थे. उन के लिए नेहा को भी टाइम से सोना पड़ता था.

प्रशांत चेंज कर के बैडरूम में आया तो नेहा ने पूछा, ‘‘इतना लेट?’’

‘‘हां, टहलना अच्छा लग रहा था.’’

‘‘किस के साथ थे?’’

‘‘सान्वी मिल गई थी, फिर सोम भी आ गया था.’’

नेहा चुप रही. पति की सान्वी से बढ़ती नजदीकियों की उसे पूरी खबर थी पर क्या करे, कैसे कहे, युवा बच्चे हैं… बहुत सोचसम झ कर बात करनी पड़ती है. प्रशांत को गुस्से में चिल्लाने की आदत है. शुभा सम झ रही थी कि सान्वी को क्या पता प्रशांत के बारे में… वह बाहर कुछ और है, घर में कुछ और जैसेकि आम आदमी होते हैं. 20 साल के वैवाहिक जीवन में नेहा प्रशांत की रगरग से वाकिफ हो चुकी थी. दूसरी औरतों को प्रभावित करने में उस का कोई मुकाबला नहीं था. नेहा की खुद की छोटी बहन से प्रशांत की अंतरंगता थी. वह कुछ नहीं कर पाई थी. जब उस की बहन की शादी कहीं और हो गई तब जा कर नेहा की जान में जान आई थी. पता नहीं कितनी औरतों के साथ वह फ्लर्ट कर चुका था. गरीब घर की नेहा अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य देने के चक्कर में प्रशांत के साथ निभाती आई थी, पर सान्वी का यह किस्सा आज तक का सब से ज्यादा ओपन केस हो रहा था. अब नेहा परेशान थी. सोसाइटी को यह पता था कि दोनों का जबरदस्त अफेयर है. दोनों डंके की चोट पर मिलते, मूवी देखते, बाहर जाते. प्रशांत तो लेटते ही खर्राटे भरने लगा था पर नेहा बेचैन सी उठ कर बैठ गई कि कैसे रोके प्रशांत की दिल्लगियां? कब सुधरेगा यह? बच्चे भी बड़े हो गए… वह जानती है बच्चों तक यह किस्सा पहुंच चुका है, बच्चे नाराज से रहते हैं, चुप रहने लगे हैं. आजकल नेहा का कहीं मन नहीं लग रहा है. क्या करे. इस बार जैसा तो कभी नहीं हुआ था. अब तो प्रशांत और सान्वी डंके की चोट पर बताते हैं कि हम साथ है.

नेहा रातभर सो नहीं पाई. सुबह यह फैसला किया कि बच्चों के जाने के बाद प्रशांत

से बात करेगी. बच्चे चले गए. प्रशांत थोड़ा लेट निकलता था. उस का औफिस पास ही था. नेहा ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘प्रशांत, बच्चों को भी तुम्हारा और सान्वी का किस्सा पता है… दोनों का मूड बहुत खराब रहता है… सारी सोसाइटी को पता है. मेरी फ्रैंड्स ने तुम दोनों को कहांकहां नहीं देखा. शर्म आती है अब प्रशांत… अब उम्र भी हो रही है. ये सब अच्छा नहीं लगता. मैं ने पहले भी तुम्हारी काफी हरकतें बरदाश्त की हैं… अब बरदाश्त नहीं हो रहा है. तुम उस के ऊपर पैसे भी बहुत खर्च कर रहे हो. यह भी ठीक नहीं है.’’

‘‘पैसे मेरे हैं, मैं उन्हें कहीं भी खर्च करूं और रही उम्र की बात, तो तुम्हें लगता होगा कि तुम्हारी उम्र हो गई, मैं सान्वी के साथ भरपूर ऐंजौय कर रहा हूं. दरअसल, उस का साथ मु झे यंग रखता है. यहां तो घर में तुम्हारे उम्र, बच्चे, खर्चों के ही बोरिंग पुराण चलते हैं और रही सोसाइटी की बात तो मैं किसी की परवाह नहीं करता, ठीक है? और कुछ?’’

नेहा का चेहरा अपमान और गुस्से से लाल हो गया, ‘‘पर मैं अब यह बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

प्रशांत कुटिलता से हंसा, ‘‘अच्छा, क्या कर लोगी? मायके चली जाओगी? तलाक ले लोगी? हुंह,’’ कह कर वह तौलिया उठा कर नहाने चला गया.

नेहा की आंखों से क्षोभ के आंसू बह निकले. सही कह रहा है प्रशांत, क्या कर लूंगी, कुछ भी तो नहीं. मायका है नहीं. नेहा रोती हुई किचन में काम करती रही. मन में आया, सोम से बात कर के देखूं. सोम का नंबर नेहा के पास नहीं था. अब नेहा ने सान्वी से बात करना बिलकुल छोड़ दिया था. सोसाइटी में उस से आमनासामना होता भी तो वह पूरी तरह से सान्वी को इग्नोर करती. सान्वी भी बागी तेवरों के साथ चुनौती देती हुई मुसकराहट लिए पास से निकल जाती तो नेहा का रोमरोम सुलग उठता.

अपनी किसी सहेली से नेहा को पता चला कि सान्वी 2 दिन के लिए अपने मायके गई है. अत: सही मौका जान कर वह शाम को सोम से मिलने उस के घर चली गई. सोम ने सकुचाते हुए उस का स्वागत किया.

नेहा ने बिना किसी भूमिका के बात शुरू की, ‘‘आप को भी पता ही होगा कि सान्वी और प्रशांत के बीच क्या चल रहा है… आप उसे रोकते क्यों नहीं?’’

‘‘हां, सब पता है. आप प्रशांत को क्यों नहीं रोक रही हैं?’’

‘‘बहुत कोशिश की पर सब बेकार गया.’’

‘‘मेरी कोशिश भी बेकार गई,’’ कह कर सोम ने जिस तरह से कंधे उचका दिए, उसे देख नेहा को गुस्सा आया कि यह कैसा आदमी है… कितने आराम से कह रहा है कि कोशिश बेकार गई.

‘‘तो आप इसे ऐसे ही चलने देने वाले हैं?’’

‘‘हां, क्या कर सकता हूं?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि मैं स्ट्रौंग पोजीशन में हूं नहीं, अतीत की मेरी हरकतों के कारण आज वह मु झ पर हावी हो रही है.

‘‘मेरा बिजनैस घाटे में है. मैं सान्वी को रोक नहीं पा रहा हूं, सारा दिन बैठ कर उस की चौकीदारी तो कर नहीं सकता.

‘‘बच्चे, घर और मेरे पेरैंट्स की पूरी जिम्मेदारी वह उठाती है… पर ठीक है. कुछ तो करना पड़ेगा… वह लौट आए. फिर कोशिश करता हूं.’’

नेहा दुखी मन से घर आ गई. सोम बहुत कुछ सोचता रहा. सान्वी कैसे किसी से खुलेआम प्रेम संबंध रख सकती है. बहुत हो गया… हद हो गई बेशर्मी की. आ जाए तो उसे ठीक करता हूं, दिमाग ठिकाने लगाता हूं.

उस दिन फोन पर भी उस ने सान्वी से सख्त स्वर में बात की पर सान्वी पर जरा भी

फर्क नहीं पड़ा. सोम की बातों का उस पर फर्क पड़ना बंद हो चुका था. जब से दिल की सुनने लगी थी, दिमाग भी दिल के ही पक्ष में दलीलें देता रहता था. सो जंगली सा दिल बेखौफ आगे बढ़ता जा रहा था और खुश भी बहुत था.

सान्वी आ गई. अगले दिन जब धु्रव को स्कूल भेज सुस्ताने बैठी तो सोम उस के पास आ कर तनातना सा बैठ गया. सान्वी ने महसूस किया कि वह काफी गंभीर है.

‘‘सान्वी, जो भी चल रहा है उसे बंद करो वरना…’’

सान्वी पलभर में कमर कस कर मैदान में खड़ी हो गई, ‘‘वरना क्या?’’

‘‘बहुत बुरा होगा.’’

‘‘क्या बुरा होगा?’’

‘‘जो तुम कर रही हो मैं उसे बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

‘‘क्यों? क्या तुम मु झ से कमजोर हो? मैं तुम्हारी ये सब हरकतें बरदाश्त करती रही हूं तो तुम क्यों नहीं कर सकते?’’

‘‘सान्वी,’’ सोम दहाड़ा, ‘‘तुम मेरी पत्नी हो… तुम मेरी बराबरी करोगी?’’

‘‘मैं वही कर रही हूं जो मु झे अच्छा लगता है. कुछ पल अपने लिए जी रही हूं तो क्या गलत है? जिस खुशी का तुम ने ध्यान नहीं रखा, वह अब मिल गई… खुश हूं, क्या गलत है? ये सब तो तुम बहुत सालों से करते आए हो.’’

‘‘सान्वी, सुधर जाओ, नहीं तो मु झे गुस्सा आ गया तो मैं कोर्ट में भी जा सकता हूं… तुम्हारे और प्रशांत के खिलाफ शिकायत कर सकता हूं.’’

‘‘हां, ठीक है, चलो कोर्ट… सारी उम्र मन मार कर जीती रहूं तो ठीक है?’’

‘‘सान्वी, बहुत हुआ. प्रशांत से रिश्ता खत्म करो, नहीं तो कानूनी काररवाई के लिए तैयार रहो… मैं प्रशांत को भी नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘अच्छा? कौन सी कानूनी काररवाई करोगे? नया कानून नहीं जानते? यह न अपराध है, न पुरुषों की बपौती. औरत को भी सैक्सुअल चौइस का हक है.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो?’’

‘‘हां, शादीशुदा होते हुए भी सालों से पराई औरतों के साथ नैनमटक्का कर रहे हो, हमारे रिश्ते को एडलट्री की आग में तुम भी  झोंकते

रहे हो.’’

‘‘पर कोर्ट ने अवैध संबंधों में जाने के लिए नहीं कहा है, न उकसाया है.’’

‘‘पर यह तो साफ हो गया है कि न तुम मेरे मालिक हो, न मैं तुम्हारी गुलाम हूं. मु झे कानून की धमकी देने से कुछ नहीं होगा. तुम्हारी खुद की फितरत क्या रही है… अब बैठ कर सोचो कि मैं ने कितना सहा है. मु झे प्रशांत के साथ अच्छा लगता है. बस, मु झे इतना ही पता है और मु झे भी खुश रहने का उतना ही हक है जितना तुम्हें. और किसी भी जिम्मेदारी से मैं मुंह नहीं मोड़ रही हूं,’’ कह कर घड़ी पर नजर डालते हुए सान्वी ने आगे कहा, ‘‘ध्रुव के स्कूल से वापस आने से पहले मु झे घर के कई काम निबटाने होते हैं, उस के प्रोजैक्ट के लिए सामान लेने भी मु झे ही जाना है,’’ कह कर सान्वी उठ कर नहाने चली गई.

बाथरूम से उस के गुनगुनाने की आवाजें बाहर आ रही थीं. सोम सिर पकड़ कर बैठा था. कुछ सम झ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे.

‘‘अगले दिन जब धु्रव को स्कूल भेज सुस्ताने बैठी तो सोम उस के पास आ कर तनातना सा बैठ गया. सान्वी ने महसूस किया कि वह काफी गंभीर है…’’

Online Hindi Story : लौट आओ अपने वतन : विदेशी चकाचौंध में फंसी उर्वशी

लेखक- केशव राम वाड़दे

लंदन एयरपोर्ट पर ज्यों ही वे तीनों आधी रात उतरे, उर्वशी को छोड़ उस के मम्मीपापा का चेहरा एकाएक उतर गया. आंखें नम हो आईं.

एयरपोर्ट पर हर तरफ जगमगाहट थी. चकाचौंध इतनी थी कि रात होने का आभास ही नहीं हो रहा था.

इस चकाचौंध में भी उर्वशी के मम्मीपापा के चेहरों की उदासी साफ झलक रही थी. उर्वशी का रिश्ता तय करने के लिए वे लंदन उसे लड़के वालों को दिखाने लाए थे, लेकिन उन का मन इतना उदास था कि मानो उसे विदा करने आए हों.

सड़क  के दोनों ओर बड़ीबड़ी स्ट्रीट लाइटें, हर चौराहे पर रैड सिगनल, मुस्तैदी से ड्यूटी निभा रही टै्रफिक

पुलिस, साफसुथरी, चौड़ी सड़कों पर दौड़तीभागती लंबीलंबी चमचमाती कारें, बाइक, साइकिलें और विक्टोरिया (तांगे), पैदल यात्रियों के लिए ईंटों से बने फुटपाथ, अनगिनत दुकानें, मौल वहां की शोभा बढ़ा रहे थे.

उस समय लंदन की ठिठुरन वाली ठंड में भी हाफ जींस, टीशर्ट डाले, हर उम्र के कई जोड़े स्टालों पर कोल्डडिं्रक, आइसक्रीम का मजा उठाते दिखे. कहीं कोई तनाव नहीं. सुकूनभरी जीवनशैली चलती दिख रही थी.

विशाल बहुमंजिला इमारतें और उन पर टंगे बड़ेबड़े ग्लोसाइन. रास्ते में कई छोटेछोटे पार्क और उन की शोभा बढ़ाते फुहारे. हर तरफ एक सिस्टम. उर्वशी तो जैसे दूसरी दुनिया में भ्रमण कर रही थी. उस के चेहरे का उत्साह देखते ही बनता था. मन ही मन अनेक सपने संजोए उस ने. अपने वतन से कोसों दूर लंदन में अपने लिए वर देखने आना उर्वशी का उद्देश्य था. वह भारत में अपनी शादी के लिए किसी से भी बात करने में अपनी तौहीन समझती थी. और तो और अपनी मातृभाषा में बात करना भी उसे पसंद नहीं था. गिनती के लड़केलड़कियों से ही उस की मित्रता थी.

उसे लगता कि हर भारतीय गंदगी, आलस्य और बेचारगी में जीता है. भारतीय कामचोर होते हैं. यहां के बड़ेबड़े घोटाले, किसानों की लाचारी और नेताओं के बड़ेबड़े लच्छेदार भाषण? सारा दोष पब्लिक का ही तो है. यहां की सड़कें तो गायभैंसों के लिए बनी हैं ताकि वे सड़क के बीचोंबीच जुगाली कर सकें, धूलधुएं से भरा वातावरण, चूहोंमच्छरों से अस्तव्यस्त जनजीवन. ऊपर से दौड़तेभागते कुत्तों का झुंड. पान की पीकों से रंगी दीवारें, सड़कें,  बेतरतीबी से बने मकान, सोच कर ही उबकाई आने लगती थी उसे.

जमाने से चला आ रहा ‘ओल्ड फैशंड’ धोतीकुरता, सलवारजंपर, ऊपर से दुपट्टा. एडि़यों से ऊपर उठी सिमटीसिकुड़ी साडि़यां और किलो के भाव से लदे सोनेचांदी के जेवर, भला यह भी कोई पहनावा है? न चेहरे पर कोई क्रीम, न बौडीलोशन लेकिन खुद को फैशनेबल मानने वाली ये औरतें? कहीं कोई मैचिंग नहीं. अगर कपड़े ठीकठाक हों तो भी पैरों में फटी खुली जूतियां, जैसे मुंह चिढ़ा रही हों.

जेन ड्राइव कर रहा था. उर्वशी का ध्यान उस की तरफ नहीं था. उस का नाम जेन नहीं था. लेकिन जयदीप से बदल कर उस ने अपना अंगरेजों वाला नाम रख लिया था. पूरे परिवार में मात्र उर्वशी ही थी, जिस ने अपनी सभ्यता, संस्कृति बिलकुल पीछे छोड़ रखी थी. पूरी तरह पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर खुद को अंगरेजों जैसा ही बना डाला था उस ने.

शौर्ट स्कर्ट, पैंसिल हील वाले सैंडल, जींस, ब्रेसलेट यही सब उर्वशी को पसंद था. कंधों तक का स्टाइलिश हेयरकट, इंगलिश फिल्मों और पौप म्यूजिक की शौकीन, कांटेछुरी से खाना, एकदम बोल्ड.

भारत में तो उर्वशी को एक भी लड़का पसंद नहीं आया था. यों कहें कि वह किसी भी लड़के को देखनेमिलने में इच्छुक ही नहीं थी. उस की तो इच्छा ही थी कि उस की शादी इंडिया से बाहर ही हो चाहे वह अमेरिका हो, आस्ट्रेलिया या फिर ब्रिटेन ही क्यों न हो, पर वह भारत में शादी नहीं करेगी. चाहे उसे जिंदगी यों ही क्यों न गुजारनी पड़े.

हरियाणा में रहने वाली उर्वशी की बूआ, जो अब मुंबई में थीं और अपनी पंजाबी बोलना नहीं भूल पाईर् थीं, को उर्वशी की मम्मी सरला ने फोन किया. एक समय था जब बूआजी को उर्वशी की मम्मी से बात करना पसंद नहीं था, लेकिन आज उर्वशी के लिए रिश्ता बताने के लिए उन्होंने फोन किया, ‘‘भाभीजी, तुसी

उर्वशी दे ब्याह दी चिंता न करो. चाहो ते इक फोटो भिजवा देवो, मुंडे दी माताजी नू. इक मुंडा हैगा लंडन विच… काफी साल होए, मां हरियाणा दी रहण वाली सी. मां चाहंदी है कि लड़के दा ब्याह हिंदुस्तानी कुड़ी नाल होवे. इस वास्ते मैं फून कीत्ता…’’ बस, इधर बूआ से फोन पर बात हुई और उधर उर्वशी का परिवार लंदन पहुंचा.

जेन को देखते ही उर्वशी को लगा कि जैसे उस के सपनों का राजकुमार मिल गया हो. उस ने उर्वशी का बैग  पिछली सीट पर डाला और तुरंत डिग्गी खोल दी. तब उर्वशी ने देखा कि उस के मम्मीपापा ने अपनेअपने बैग उठा कर डिग्गी में खुद ही रखे थे. थोड़ा बुरा तो लगा था तब उसे. जेन के कहने पर वह आगे की सीट पर बैठी थी.

जयदीप से जेन तक की कहानी लंबी तो नहीं थी. जेन का परिवार हरियाणा का था. 18 वर्ष से वे लंदन में रचबस गए. होश संभालते ही जयदीप ने सब से पहला और बड़ा काम यही किया कि अपना नाम बदल कर जेन रख लिया. साथ ही अपना तौरतरीका व रहनसहन भी बदल डाला. उसे देख कोई कह ही नहीं सकता था कि वह हिंदुस्तानी है.

उर्वशी को एक नजर में वह भा तो गया, पर अभी ढेर सारी जांचपड़ताल जो करनी थी उसे.

घर कालोनी में था और काफी अच्छा भी था. बड़ा सा मेन गेट और गेट के दोनों तरफ एक कतार में नारियल के कई ऊंचेलंबे वृक्ष मकान की शोभा बढ़ा रहे थे. हर कमरा बड़ी तरतीब से सजा हुआ मिला. पर वहां रहने वाले मात्र 2 प्राणी थे. एक उस की मम्मी और दूसरा खुद वह.

चंद मिनटों में उन के सामने जेन की मम्मी ने हिंदुस्तानी भोजन परोसा, उन की मम्मी आनेजाने वाले हर हिंदुस्तानी को खुद खाना बना कर ऐसे ही खिलाती थीं, फिर देर तक हिंदुस्तान में रह रहे खासमखास लोगों के विषय में पूछती रहीं, बतियाती रहीं. वे बड़ी सलीकेदार थीं, व्यावहारिक थीं. उन के मन में कई बातों की पीड़ा थी, दर्द था जो जबान से फूट पड़ा था.

‘‘अब तो जीनामरना, सबकुछ यहीं होगा. अपने वतन की खूब याद सताती है. फिर इस के डैडी ने तो हम से नाता ही तोड़ रखा है. एक अंगरेजन के साथ रह रहे हैं. वह तो अच्छा है जो यह नौकरी कर रहा है. वरना बड़ी खराब जगह है यह और लोग बड़े गंदे हैं. बस, चमकदमक के अलावा और कुछ भी नहीं है यहां. मन तो नहीं लगता, देखो, लड़का क्या चाहता है?’’

फिर थोड़ा ठहर कर, एक लंबी सांस खींची. जब वे बोलीं तो भीतर की कड़वाहट चेहरे पर साफ झलक रही थी, ‘‘अगर अंगरेजन के चंगुल से इस के डैडी मुक्त हो जाएं तो यकीन मानें, यह देश छोड़ अपने वतन लौट आऊंगी. काश, ऐसा हो जाए.’’

जेन और उर्वशी के बीच बातचीत अधिकतर अंगरेजी में ही होती थी. जेन की फर्राटेदार अंगरेजी कभीकभी उर्वशी समझ नहीं पाती. फिर भी वह संभाल लेती. ऐसा नहीं कि जेन हिंदी नहीं जानता था, पर टूटीफूटी. हिंदी बोलतेबोलते न जाने कब अंगरेजी में घुस जाता…

‘‘चलो, तुम्हें घुमा लाऊं,’’ बात दूसरे दिन की शाम की थी. खुशीखुशी उर्वशी ने मम्मीपापा को भी साथ चलने के लिए कहा. सुनते ही जेन आगबबूला हो गया और बोला, ‘‘हमारे बीच इन बुड्ढों का क्या काम? सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. यह तुम्हारा इंडिया नहीं, जहां कहीं भी पूरा परिवार एकसाथ निकल पड़े. यहां का कल्चर, सोसाइटी, कुछ अलग है, तभी तो यह लंदन है.’’

वह अभी और कुछ कहता, तभी सरलाजी उर्वशी को देख कर अपनी आंख हौले से भींचते हुए इशारा कर बोलीं, ‘‘तुम दोनों हो आओ, जयदीप ठीक ही कह रहा है?’’

‘‘मेरा नाम जेन है. जयदीप नहीं. इस घटिया नाम से मुझे फिर न बुलाएं. सो प्लीज, जेन कहा करें,’’ उस ने एतराज जताते हुए कहा.

‘‘ओह, सौरी जेन, आगे से याद रखूंगी,’’ सरलाजी ने सुधार कर उस हिप्पी जेन से क्षमा मांगी. उधर पापाजी  का चेहरा तमतमा उठा. उर्वशी अपनी मम्मी का इशारा समझ जेन के साथ हो ली. तब जेन का व्यवहार उसे जरा भी नहीं भाया था. ऐसा रूखापन?

काफी देर इधरउधर भटकने के बाद वे दोनों डिस्कोथिक गए. आधी रात गए डिस्कोथिक में कईकई जोड़े थिरकते दिखे. कुछ पल वह भी उर्वशी के साथ डांस फ्लोर पर रहा. फिर वह एक अंगरेज युवती के साथ देर तक डांस करता रहा.

उर्वशी जेन को देर तक निहारती रही. उसे समझने का प्रयास करती रही पर विफल रही. अभी वह उस के विषय में सोच ही रही थी कि किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा. वह चौंक पड़ी. सामने एक युवक खड़ा था. वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘डांस प्लीज?’’

‘‘वाय नौट,’’ वह उठ खड़ी हुई.

अभी उस ने डांस शुरू किया ही था कि उसे महसूस हुआ कि वह बदतमीजी पर उतर आया है. यही नहीं उस की बदतमीजी लगातार बढ़ती ही जा रही थी. उस ने खुद को  छुड़ाने की कोशिश की, पर अपने को छुड़ा नहीं पाई और जेन से चिल्लाचिल्ला कर मदद मांगने लगी पर जेन ने यह सब देख कर भी अनदेखा कर दिया. जैसेतैसे वह खुद मुक्त हुई और साथ ही उस ने एक जोरदार थप्पड़ उस व्यक्ति के चेहरे पर रसीद कर दिया. अंगरेज थप्पड़ खा कर तिलमिला उठा था.

जोरदार थप्पड़ की झनझनाहट से उस का सिर घूम गया था. वह कुछ भी कर जाता, अगर जेन ने मिन्नतें न की होतीं. काफी देर बाद वह शांत हुआ और जेन को धक्का देते हुए वहां से हट गया. जेन ने इस बात की नाराजगी उर्वशी पर निकाली, ‘‘जानती हो, वह एक गुंडा है. फिर, वह कौन सा निगल रहा था तुम्हें?’’

‘‘तो क्या तुम किसी के साथ हो रहे अन्याय को बस देखते ही रहोगे. विरोध नहीं करोगे उस का? कैसी परवरिश है तुम्हारी?’’ उर्वशी गुस्से में बोली.

‘‘छोड़ो भी, तुम लोगों को जीना आता ही कहां है? हर पल किसी न किसी से उलझते ही रहो बस,’’ जेन बोला.

उर्वशी ने जेन से उलझना उचित नहीं समझा और चुपचाप घर लौट आई. फिर तो रास्तेभर दोनों ने एकदूसरे से बिल्कुल भी बात नहीं की. मम्मीपापा को सोता देख वह भी सोने चली गई.

‘‘कैसा रहा जेन के साथ कल का दिन तुम्हारा?’’ सरलाजी ने उर्वशी से पूछा. उस ने मुंह बिचका दिया. सरलाजी के होंठों पर एक मुसकान तैर गई. एक  शाम को उर्वशी और उस के मम्मीपापा को जेन समुद्र किनारे ले गया.

समुद्रतट पर अंगरेजों का साम्राज्य था. नंगेधड़ंगे, कुछ तो हदें पार कर रहे थे. सरलाजी उर्वशी के साथ थीं इसलिए, बात घुमा कर बोलीं, ‘‘चलो, यहां से… बहुत घूम लिए. फिर मेरी तो सांस भी फूलने लगी है.’’ फिर वे लौटते हुए देर तक न जाने क्याक्या बड़बड़ाती रही थीं. वैसे उर्वशी को समुद्रतट का नजारा जरा भी न भाया था. यहां के लोग सभ्य, सलीके वाले होते हैं, भ्रम टूटने लगा था अब तो.

जेन ने डायनिंग टेबल पर पूछा, ‘‘कैसा लगा हमारा लंदन?’’ उस ने शराब के 2 पैग बना, मम्मीपापाजी को पेश किए. पापाजी के इनकार करने पर उस ने कहा, ‘‘आप इंडिया के लोग शराब नहीं पीते? फिर जीते कैसे हैं?’’ यही वजह है कि भारत हमेशा पीछे रहा है. अब यहां के लोगों को ही देख लें. हर कोई एंजौय करता है. जेन का इतना कहना ही उस के लिए मुसीबत ले आया. अपने को बहुत

देर से दबा कर बैठी उर्वशी अपना आपा खो बैठी जैसे सहस्र बिच्छुओं ने उसे एकसाथ काट खाया हो. ऊंची आवाज में वह कहती रही और जेन स्तब्ध खड़ा बस, सुनता ही रहा.

‘‘मैं ने यहां की तहजीब और तमीज अच्छी तरह महसूस कर ली है. बड़ीबड़ी इमारतों और झूठी चकाचौंध के अलावा और कुछ नहीं पाया. यहां बुजुर्गों का तो जरा भी लिहाज नहीं. नग्नता के अलावा और कुछ भी नहीं. जबरन एंजौय का ढोंग. फिर तुम्हारी मम्मी के होते, तुम्हारे पापा ने कितना घृणित काम किया? यही है यहां का कल्चर. औैर बात इतने में खत्म नहीं होती. तुम बुजदिल हो. तुम में इंसानियत नाम की चीज नहीं है. मेरा भारत महान है, महान ही रहेगा. वहां दिखावा नहीं है. सच्चे, सीधेसादे लोग बसते हैं, हमारे वतन में.’’

वह तैश में थी, थोड़ा ठहर कर, पल भर रुक कर बोली, ‘‘जयदीप, तुम भी अंगरेज नहीं हो. नाम बदल लेने से किसी के संस्कार, संस्कृति नहीं बदलती, समझे मिस्टर जेन. तुम भी हिंदुस्तानी हो. इस देश ने तुम में अहम भर दिया है. इस देश में तुम पूरी जिंदगी क्यों न बिता लो, तब भी तुम्हारी यहां कोई अहमियत नहीं है. मेरी यह बात याद रखना.’’

हक्काबक्का जेन स्तब्ध खड़ा सुन रहा था. जेन की माताजी भी सिर झुकाए, शर्म से गढ़ी खड़ी थीं. मम्मीपापा के साथ उर्वशी ने डायनिंग टेबल छोड़ दी. उर्वशी ने महसूस किया कि उस के मम्मीपापा की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बह रही थी. वे खुश थे यह जान कर कि उन की बेटी अब इस लायक हो गई है कि

वह अच्छेबुरे की पहचान कर सके और वे लोग उसे नासमझ समझते रहे थे.

बेहद दृढ़ स्वर में उर्वशी बोली, ‘‘हम कल लौट रहे हैं अपने वतन, तुम्हारा लंदन तुम्हें ही मुबारक. एक बात और कि तुम हमें छोड़ने नहीं आओगे.’’

उर्वशी का तमतमाया चेहरा देखने की ताकत जेन में थी ही नहीं, उस ने चुपचाप वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें