औरत एक पहेली: संदीप और विनीता के बीच कैसी थी दोस्ती

पगली: आखिर क्यूं महिमा अपने पति पर शक करती थी- भाग 1

‘‘सौरभदेखने में ही सुंदर और स्मार्ट नहीं है, उन के पास दिल भी सोने का है. मेरी तो लौटरी खुल गई है सहेली. हनीमून से मैं उन के प्यार में पागल हो कर लौटी हूं,’’ शिमला से लौटते ही महिमा ने अपनी सहेली के साथ फोन पर बातें करते हुए अपने पति सौरभ की जोशीले अंदाज में खूब प्रशंसा करी. मगर उसे क्या पता था कि उस की खुशियों से भरा गुब्बारा उसी रात फूट जाएगा.

काफी थके होने के कारण महिमा ने सारी शाम अपने कमरे में आराम किया. उस की सास सुमित्रा और ननद शिखा उसे डिस्टर्ब करने एक बार भी कमरे में नहीं आईं.

सौरभ शाम को बाहर घूमने चला गया था. वह रात 10 बजे के करीब जब लौटा तब तक महिमा सजधज कर उस के स्वागत के लिए तैयार हो चुकी थी.

‘‘कहां घूम आए आप?’’ महिमा के इस सवाल का कोई जवाब न दे कर सौरभ ने उस का हाथ पकड़ा और अपने सामने बैठा लिया.

उस की आंखों में बेचैनी और परेशानी के भाव पढ़ते ही महिमा की मुसकराहट गायब हो गई. अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के साथ उस के बोलने का इंतजार करने लगी.

‘‘किसी और के बताने से पहले मैं ही तुम्हें बता रहा हूं कि मेरी जिंदगी में पहले से एक औरत मौजूद है जिस का साथ कभी न छोड़ने का वादा मैं ने उस से किया हुआ है,’’ बड़े असहज अंदाज में सौरभ ने यह विस्फोटक जानकारी महिमा को दी.

‘‘मु?ा से ऐसा मजाक मत करो, प्लीज,’’ महिमा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम्हें यों दुख और मानसिक आद्यात पहुंचाने का मु?ो अफसोस है, पर अंजलि की मेरी जिंदगी में मौजूदगी एक ऐसी सचाई है जिस का सामना तुम्हें करना ही होगा.’’

‘‘जब यह अंजलि थी ही, तो आप ने मु?ा से शादी क्यों करी?’’

महिमा का गुस्से से लाल होता जा रहा चेहरा देख कर सौरभ मन ही मन चौंका. उस ने इस मौके पर महिमा के रोनेधोने या लड़ने?ागड़ने की कल्पना ही करी थी.

‘‘मु?ो अफसोस है, पर मातापिता के दबाव… उन की इच्छा… उन की खुशियों की खातिर…’’ महिमा का उसे घूरने का अंदाज कुछ ऐसा था कि सौरभ अपने किसी वाक्य को बेचैनी के कारण पूरा नहीं कर सका.

‘‘मातापिता की खुशियों की खातिर आप ने मु?ो इस ?ां?ाट में क्यों उल?ा लिया. आप की जिंदगी में मैं कहां फिट होऊं?’’ महिमा ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘तुम इस घर में पूरे मानसम्मान के साथ रहो. बस, मैं अंजलि को छोड़ूं, ऐसी जिद न करना.’’

‘‘प्यार तुम उसे करो और मैं सिर्फ नाम की पत्नी बन कर तुम्हारे साथ रहूं, यह स्थिति मु?ो कभी मंजूर नहीं होगी,’’ महिमा भड़क उठी.

‘‘प्यार तो मैं तुम्हें भी बहुत करने लगा हूं, लेकिन…’’

‘‘क्या सच कह रहे हो?’’ महिमा ने उस

के कंधे जोर से पकड़े और अपना चेहरा नजदीक ला कर उस की आंखों में गहराई से भावुक अंदाज में ?ांका.

‘‘बिलकुल सच. तुम बहुत अच्छी…

बहुत प्यारी हो,’’ सौरभ ने कोमल लहजे में

जवाब दिया.

‘‘क्या अंजलि से ज्यादा प्यार करते हो मु?ो?’’

‘‘शायद उस के बराबर ही.’’

‘‘उसे छोड़ दो.’’

‘‘नहीं.’’

‘‘उस के लिए कल को क्या मु?ो अपने से दूर करोगे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘दोनों के साथ प्यार का संबंध निभा लोगे?’’

‘‘हां.’’

‘‘बहुत चालू इंसान हो तुम तो,’’ सौरभ की ठोड़ी शरारती अंदाज में हिलाने के बाद महिमा ने एक बार हंसना शुरू किया तो उस पर पड़ा हंसी का दौरा कई मिनटों बाद ही रुका.

सौरभ मुंह बाए महिमा को पलंग पर लोटपोट होते देख रहा था. उस ने कल्पना भी नहीं करी थी अंजलि की चर्चा छिड़ने पर महिमा की ऐसी प्रतिक्रिया की.

‘कहीं यह पागल तो नहीं हो गई है?’ इस सवाल ने अचानक सौरभ के मन में उठ कर उसे डर व घबराहट का शिकार भी बना दिया.

‘‘अरे, यों हंसना बंद करो… किस बात पर तुम्हें हंसी आ रही है, यह तो बताओ…’’

सौरभ की ऐसी बातों को सुन कर महिमा हंसी रोकने की कोशिश करती, पर उस का हर प्रयास विफल होता रहा.

हंसी रुक जाने के बाद महिमा ने सौरभ का हाथ पकड़ा और फिर लापरवाही से कंधे उचकाते हुए बोली, ‘‘आप रखे रहिए इस अंजलि दीदी को अपनी प्रेमिका बना कर. मु?ो उन के कारण रोनाधोना है न रूठ कर मायके जाना है न मु?ो तलाक चाहिए और न ही मैं आत्महत्या करने जा रही हूं इस कारण.’’

‘‘थैंक यू, महिमा,’’ सौरभ को इस के अलावा कोईर् जवाब नहीं सू?ा.

‘‘सिर्फ ‘थैंक यू’ से काम नहीं चलेगा, सर,’’ महिमा ने पास खिसक कर उस के गाल पर प्यार से हाथ फेरना शुरू किया, ‘‘इन अंजलि देवी के कारण अगर आप ने मेरे प्यार के कोटे में जरा भी कटौती करी, तो खैर नहीं जनाब की.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा,’’ सौरभ ने फौरन वादा किया.

‘‘हनीमून के दौरान तुम ने मेरे दिल, दिमाग और बदन पर जो अपने प्यार का नशा चढ़ाया है, वह कभी कम न हो.’’

‘‘नहीं होगा.’’

‘‘ऐसा नहीं हो रहा है, इस का सुबूत मु?ो मिलता रहे.’’

‘‘कैसा सुबूत चाहोगी?’’

‘‘ऐसा,’’ महिमा ने उस के बाल खिंच कर चेहरा ऊपर उठाया और एक लंबा, जोश व उत्तेजना बढ़ाने वाला होंठों का चुंबन ले डाला.

महिमा ने उसे संभलने या सोचने का मौका ही नहीं दिया. उस के प्यार करने का अंदाज उस रात बड़ा अनोखा व बेहद आक्रामक था.

‘‘मेरे धोखेबाज पति मेरे जादूगर… मेरे कृष्ण कन्हैया…’’ न जाने ऐसे कितने नामों से महिमा उसे उत्तेजना के प्रभाव में बुला रही थी जिन से उस का प्रेम, गुस्सा, पीड़ा और लगाव ?ालक उठता था.

सौरभ के मातापिता व बहन को अंजलि से उस के अवैध प्रेम संबंध की खबर थी. पिछली रात महिमा और सौरभ ने खाना अपने कमरे में ही खाया. उन तीनों को यह आशंका थी कि अंजलि के कारण उन में कहीं लड़ाई?ागड़ा न हुआ हो. मारे चिंता के वे तीनों रातभर ठीक से सो भी नहीं पाए थे.

अगले दिन महिमा को सहज ढंग से हंसतामुसकराता देख उन तीनों ने

बड़ी राहत की सांस ली. उन का यह अंदाजा कुछ देर बाद गलत साबित हुआ कि शायद सौरभ ने महिमा को अंजलि के बारे में रात को कुछ बताया ही नहीं.

सौरभ जब औफिस के लिए निकलने लगा तब महिमा ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘शाम को पहले सीधे घर आना. अंजलि दीदी से मिलने मैं भी आप के साथ चलूंगी.’’

अंजलि का घर में यों खुल्लमखुल्ला नाम लिया जाना उन सब को बड़ा अजीब सा लगा. घर से बाहर निकलने जा रहा सौरभ दरवाजे के पास ठिठका और उस ने इशारे से महिमा को अपने पास बुलाया.

माथे में नाराजगी दर्शाने वाले बल डाल कर सौरभ ने उसे चेतावनी दी, ‘‘यों ऊंची आवाज कर के अंजलि के बारे में कुछ मत बोला करो.’’

‘‘क्यों?’’ महिमा ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘मु?ो अच्छा नहीं लगता है.’’

‘‘अरे, अंजलि आप की प्रेमिका है. उस के बारे में बातें हों, तो आप को अच्छा लगना चाहिए.’’

‘‘तुम बेवकूफों जैसी बातें मत करो,’’ सौरभ को गुस्सा आ गया.

‘‘यह तो सच है कि मैं बुद्धू हूं और थोड़ी सी पागल भी, पर एक बात पूछूं आप से,’’ महिमा की मुसकराहट और गहरी हो गई.

‘‘क्या?’’

‘‘अपने पाप और गलत काम की लोग चर्चा करने से बचते हैं. अंजलि से आप का संबंध क्या ऐसे कामों की श्रेणी में आता है?’’

‘‘नहीं, लेकिन…’’

‘‘बस, फिर आप मु?ो मत टोको. मैं अंजलि दीदी के लिए कुछ गिफ्ट ला कर रखूंगी. शाम को दोनों उन से मिलने चलेंगे.’’

‘‘गिफ्ट की कोई जरूरत

नहीं है.’’

‘‘अरे, कैसे नहीं है. आप की प्रेमिका की मुंहदिखाई की रस्म में मैं उन्हें कुछ उपहार जरूर दूंगी. आप वक्त से घर आ जाना,’’ महिमा खुल कर हंसी और शरारती अंदाज में सौरभ के गाल पर चिकोटी काट कर पीछे हट गई.

सौरभ चाह कर भी उस पर गुस्सा नहीं कर पाया और ‘‘पगली कहीं की,’’ कह कर मुसकराता हुआ औफिस चला गया.

महिमा को ढेर सारी अंजलि के बारे में जानकारी अपनी सास आरती और ननद शिखा से मिली. वे दोनों पिछले 2 सालों से भरी बैठी थीं.

‘‘अंजलि दीदी सुंदर और स्मार्ट होने के साथसाथ अभी तक अविवाहित भी हैं. उन की शादी नहीं हुई है, पर एक पुरुष के प्यार की जरूरत तो उन्हें भी महसूस होती होगी. इत्तफाक से वह पुरुष सौरभ निकल गए है. ऐसा हो जाता है, मम्मीजी. मु?ो कुछ खास चिंता नहीं हैं उन के इस चक्कर की,’’ महिमा के इन शब्दों को सुन कर आरती और शिखा देर तक हैरानी से भरी रहीं.

जीवन चलने का नाम

‘‘ मम्मी, चाय,’’ सरिता ने विभा को चाय देते हुए ट्रे उन के पास रखी तो उन्होंने पूछा, ‘‘विनय आ गया?’’

‘‘हां, अभी आए हैं, फ्रेश हो रहे हैं. आप को और कुछ चाहिए?’’

‘‘नहीं बेटा, कुछ नहीं चाहिए,’’ विभा ने कहा तो सरिता ड्राइंगरूम में आ कर विनय के साथ बैठ कर चाय पीने लगी.

विनय ने सरिता को बताया, ‘‘परसों अखिला आंटी आ रही हैं, उन का फोन आया था, जा कर मम्मी को बताता हूं, वे खुश हो जाएंगी.’’

सरिता जानती थी कि अखिला आंटी और मम्मी का साथ बहुत पुराना है. दोनों मेरठ में एक ही स्कूल में वर्षों अध्यापिका रही हैं. विभा तो 1 साल पहले रिटायर हो गई थीं, अखिला आंटी के रिटायरमैंट में अभी 2 साल शेष हैं. सरिता अखिला से मेरठ में कई बार मिली है. विभा रिटायरमैंट के बाद बहूबेटे के साथ लखनऊ में ही रहने लगी हैं.

विनय के साथसाथ सरिता भी विभा के कमरे में आ गई. विनय ने मां को बताया, ‘‘मम्मी, अखिला आंटी किसी काम से लखनऊ आ रही हैं, हमारे यहां भी 2-3 दिन रह कर जाएंगी.’’

विभा यह जान कर बहुत खुश हो गईं, बोलीं, ‘‘कई महीनों से मेरठ चक्कर नहीं लगा. चलो, अब अखिला आ रही है तो मिलना हो जाएगा. मेरठ तो समझो अब छूट ही गया.’’

विनय ने कहा, ‘‘क्यों मां, यहां खुश नहीं हो क्या?’’ फिर पत्नी की तरफ देख कर उसे चिढ़ाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बहू तुम्हारी सेवा ठीक से नहीं कर रही है क्या?’’

विभा ने तुरंत कहा, ‘‘नहींनहीं, मैं तो पूरा दिन आराम रतेकरते थक जाती हूं. सरिता तो मुझे कुछ करने ही नहीं देती.’’

थोड़ी देर इधरउधर की बातें कर के दोनों अपने रूम में आ गए. उन के दोनों बच्चे यश और समृद्धि भी स्कूल से आ चुके थे. सरिता ने उन्हें भी बताया, ‘‘दादी की बैस्ट फ्रैंड आ रही हैं. वे बहुत खुश हैं.’’

अखिला आईं. उन से मिल कर सब  बहुत खुश हुए. सब को उन से हमेशा अपनत्व और स्नेह मिला है. मेरठ में तो घर की एक सदस्या की तरह ही थीं वे. एक ही गली में अखिला और विभा के घर थे. सगी बहनों की तरह प्यार है दोनों में.

चायनाश्ते के दौरान अखिला ही ज्यादा बातें करती रहीं, अपने और अपने परिवार के बारे में बताती रहीं. मेरठ में वे अपने बहूबेटे के साथ रहती हैं. उन के पति रिटायर हो चुके हैं लेकिन किसी औफिस में अकाउंट्स का काम देखते हैं. विभा कम ही बोल रही थीं, अखिला ने उन्हें टोका, ‘‘विभा, तुझे क्या हुआ है? एकदम मुरझा गई है. कहां गई वह चुस्तीफुरती, थकीथकी सी लग रही है. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. तुझे ऐसे ही लग रहा है,’’ विभा ने कहा.

‘‘मैं क्या तुझे जानती नहीं?’’ दोनों बातें करने लगीं तो सरिता डिनर की तैयारी में व्यस्त हो गई. वह भी सोचने लगी कि मम्मी जब से लखनऊ आई हैं, बहुत बुझीबुझी सी क्यों रहने लगी हैं. उन के आराम का इतना तो ध्यान रखती हूं मैं. हमेशा मां की तरह प्यार और सम्मान दिया है उन्हें और वे भी मुझे बहुत प्यार करती हैं. हमारा रिश्ता बहुत मधुर है. देखने वालों को तो अंदाजा ही नहीं होता कि हम मांबेटी हैं या सासबहू. फिर मम्मी इतनी बोझिल सी क्यों रहती हैं? यही सब सोचतेसोचते वह डिनर तैयार करती रही.

डिनर के बाद अखिला ने विभा से कहा, ‘‘चल, थोड़ा टहल लेते हैं.’’

‘‘टहलने का मन नहीं. चल, मेरे रूम में, वहीं बैठ कर बातें करेंगे,’’ विभा ने कहा.

‘‘विभा, तुझे क्या हो गया है? तुझे तो आदत थी न खाना खा कर इधरउधर टहलने की.’’

‘‘आंटी, अब तो मम्मी ने घूमनाटहलना सब छोड़ दिया है. बस, डिनर के बाद टीवी देखती हैं,’’ सरिता ने अखिला को बताया तो विभा मुसकरा भर दीं.

‘‘मैं यह क्या सुन रही हूं विभा?’’

‘‘अखिला, मेरा मन नहीं करता?’’

‘‘भई, मैं तुम्हारे साथ रूम में घुस कर बैठने नहीं आई हूं, चुपचाप टहलने चल और कल मुझे लखनऊ घुमा देना. थोड़ी शौपिंग करनी है, बहू ने चिकन के सूट मंगाए हैं.’’

सरिता ने कहा, ‘‘आप मेरे साथ चलना आंटी. मम्मी के पैरों में दर्द रहता है. वे आराम कर लेंगी.’’

अगले दिन अखिला विभा को जबरदस्ती ले कर बाजार गई. दोनों लौटीं तो खूब खुश थीं. विभा भी सरिता के लिए एक सूट ले कर आई थीं.

डिनर के बाद भी अखिला विभा को घर के पास बने गार्डन में टहलने ले गई. विभा बहुत फ्रैश थीं. सरिता को अच्छा लगा, विभा का बहुत अच्छा समय बीता था.

विभा को ले कर अखिला बहुत चिंतित  थीं. वे चाहती थीं कि विभा पहले की तरह ही चुस्तदुरुस्त हो जाए. पर यह इतना आसान न था. जिस दिन अखिला को वापस जाना था वे सरिता से बोलीं, ‘‘बेटा, कुछ जरूरी बातें करनी हैं तुम से.’’

‘‘कहिए न, आंटी.’’

‘‘मेरे साथ गार्डन में चलो, वहां अकेले में बैठ कर बातें करेंगे.’’

दोनों घर के सामने बने गार्डन में जा कर एक बैंच पर बैठ गईं.

‘‘सरिता, विभा बहुत बदल गई है. उस का यह बदलाव मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘हां आंटी, मम्मी बहुत डल हो गई हैं यहां आ कर जबकि मैं उन का बहुत ध्यान रखती हूं, उन्हें कोई काम नहीं करने देती, कोई जिम्मेदारी नहीं है उन पर, फिर भी पता नहीं क्यों दिन पर दिन शिथिल सी होती जा रही हैं.’’

‘‘यही तो गलती कर दी तुम ने बेटा, तुम ने उसे सारे कामों से छुट्टी दे कर उस के जीवन के  उद्देश्य और उपयोगिता को ही खत्म कर दिया. अब वह अपनेआप को अनुपयोगी मान कर अनमनी सी हो गई है. उसे लगता है कि उस का जीवन उद्देश्यहीन है. मुझे पता है तुम तो उस के आराम के लिए ही सोचती हो लेकिन हर इंसान की जरूरतें, इच्छाएं अलग होती हैं. किसी को जीवन की भागदौड़ के बाद आराम करना अच्छा लगता है तो किसी को कुछ काम करते रहना अच्छा लगता है. विभा तो हमेशा से ही बहुत कर्मठ रही है. मेरठ से रिटायर होने के बाद भी वह हमेशा किसी न किसी काम में व्यस्त रहती थी. वह जिम्मेदारियां निभाना पसंद करती है. ज्यादा टीवी देखते रहना तो उसे कभी पसंद नहीं था. कहती थी, सारा दिन टीवी वही बड़ेबुजुर्ग देख सकते हैं जिन्हें कोई काम नहीं होता. मेरे पास तो बहुत काम हैं और मैं तो अभी पूरी तरह से स्वस्थ हूं.

‘‘जीवन से भरपूर, अपनेआप को किसी न किसी काम में व्यस्त रखने वाली अब अपने कमरे में चुपचाप टीवी देखती रहती है.

‘‘विनय जब 10 साल का था, उस के पिताजी की मृत्यु हो गई थी. विभा ने हमेशा घरबाहर की हर जिम्मेदारी संभाली है. वह अभी तक स्वस्थ रही है. मुझे तो लगता है किसी न किसी काम में व्यस्त रहने की आदत ने उसे हमेशा स्वस्थ रखा है. तुम धीरेधीरे उस पर फिर से थोड़ेबहुत काम की जिम्मेदारी डालो जिस से उसे लगे कि तुम्हें उस के साथ की, उस की मदद की जरूरत है.

सरिता, इंसान तन से नहीं, मन से बूढ़ा होता है. जब तक उस के मन में काम करने की उमंग है उसे कुछ न कुछ करते रहने दो. तुम ने ‘आप आराम कीजिए, मैं कर लूंगी’ कह कर उसे एक कमरे में बिठा दिया है. जबकि विभा के अनुसार तो जीवन लगातार चलते रहने का नाम है. उसे अब अपना जीवन ठहरा हुआ, गतिहीन लगता है. तुम ने मेरठ में उस की दिनचर्या देखी थी न, हर समय कुछ न कुछ काम, इधर से उधर जाना, टहलना, घूमना, कितनी चुस्ती थी उस में, मैं ठीक कह रही हूं न बेटा?’’

‘‘हां आंटी, आप बिलकुल ठीक कह रही हैं, मैं आप की बात समझ गई हूं. अब आप देखना, अगली बार मिलने पर मम्मी आप को कितनी चुस्तदुरुस्त दिखेंगी.’’

अखिला मेरठ वापस चली गईं. सरिता विभा के कमरे में जा कर उन्हीं के बैड पर लेट गई. विभा टीवी देख रही थीं. वे चौंक गईं, ‘‘क्या हुआ, बेटा?’’

‘‘मम्मी, बहुत थक गई हूं, कमर में भी दर्द है.’’

‘‘दबा दूं, बेटा?’’

‘‘नहीं मम्मी, अभी तो बाजार से घर का कुछ जरूरी सामान भी लाना है.’’

विभा ने पलभर सरिता को देख कर कुछ सोचा, फिर कहा, ‘‘मैं ला दूं?’’

‘‘आप को कोई परेशानी तो नहीं होगी?’’ सरिता धीमे से बोली.

‘‘अरे नहीं, परेशानी किस बात की, तुम लिस्ट बना दो, मैं अभी कपड़े बदल कर बाजार से सारा सामान ले आती हूं,’’ कह कर विभा ने फटाफट टीवी बंद किया, अपने कपड़े बदले, सरिता से लिस्ट ली और पर्स संभाल कर उत्साह और जोश के साथ बाहर निकल गईं.

विनय आया तो सरिता ने उसे अखिला आंटी से हुई बातचीत के बारे में बताया. उसे भी अखिला आंटी की बात समझ में आ गई. उस ने भी अपनी मम्मी को हमेशा चुस्तदुरुस्त देखा था, वह भी उन के जीवन में आई नीरसता को ले कर चिंतित था.

एक घंटे बाद विभा लौटीं, उन के चेहरे पर ताजगी थी, थकान का कहीं नामोनिशान नहीं था. मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘आज बहुत दिनों बाद खरीदा है, देख लो, कहीं कुछ रह तो नहीं गया.’’

सरिता सामान संभालने लगी तो विभा ने पूछा, ‘‘तुम्हारा दर्द कैसा है?’’

‘‘थोड़ा ठीक है.’’

इतने में विनय ने कहा, ‘‘सरिता, आज खाने में क्या बनाओगी?’’

‘‘अभी सोचा नहीं?’’

विनय ने कहा, ‘‘मम्मी, आज आप अपने हाथ की रसेदार आलू की सब्जी खिलाओ न, बहुत दिन हो गए.’’

विभा चहक उठीं, ‘‘अरे, अभी बनाती हूं, पहले क्यों नहीं कहा?’’

‘‘मम्मी, आप अभी बाजार से आई हैं, पहले थोड़ा आराम कर लीजिए, फिर बना दीजिएगा,’’ सरिता ने कहा तो विभा ने किचन की तरफ जाते हुए कहा, ‘‘अरे, आराम कैसा, मैं ने किया ही क्या है?’’

विनय ने सरिता की तरफ देखा. विभा को पहले की तरह उत्साह से भरे देख कर दोनों का मन हलका हो गया था. वे हैरान भी थे और खुश भी कि सुस्त रहने वाली मां कितने उत्साह से किचन की तरफ जा रही थीं. सरिता सोच रही थी कि आंटी ने ठीक कहा था जब तक मम्मी स्वयं को थका हुआ महसूस न करें तब तक उन्हें बेकार ही इस बात का एहसास करा कर कुछ काम करने से नहीं रोकना चाहिए था, जबरदस्ती आराम नहीं करवाना चाहिए था. अच्छा तो यही है कि मम्मी अपनी रुचि का काम कर के अपनेआप को व्यस्त और खुश रखें और जीवन को उत्साह से जिएं. उन का व्यक्तित्व हमारे लिए आज भी महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है यह एहसास उन्हें करवाना ही है.

सरिता ने अपने विचारों में खोए हुए किचन में जा कर देखा, पिछले 6 महीने से कभी कमर, कभी पैर दर्द बताने वाली मां के हाथ बड़ी तेजी से चल रहे थे.  वह चुपचाप किचन से मुसकराती हुई बाहर आ गई.

जोरू का गुलाम: मायके पहुंची ऋचा के साथ क्या हुआ?

‘‘अरे, ऋचा दीदी, यहां, इस समय?’’ सुदीप अचानक अपनी दीदी को देख हैरान रह गया. ‘‘सप्ताहभर की छुट्टी ले कर आई हूं. सोचा, घर बाद में जाऊंगी, पहले तुम से मिल लूं,’’ ऋचा ने गंभीर स्वर में कहा तो सुदीप को लगा, दीदी कुछ उखड़ीउखड़ी सी हैं.

‘‘कोई बात नहीं, दीदी, तुम कौन सा रोज यहां आती हो. जरा 5 मिनट बैठो, मैं आधे दिन की छुट्टी ले कर आता हूं. आज तुम्हें बढि़या चाइनीज भोजन कराऊंगा,’’ लाउंज में पड़े सोफों की तरफ संकेत कर सुदीप कार्यालय के अंदर चला गया. ऋचा अपने ही विचारों में डूबी हुई थी कि अचानक ही सुदीप ने उस की तंद्रा भंग की, ‘‘चलें?’’

ऋचा चुपचाप उठ कर चल दी. उस की यह चुप्पी सुदीप को बड़ी अजीब लग रही थी. यह तो उस के स्वभाव के विरुद्ध था. जिजीविषा से भरपूर ऋचा बातबात पर ठहाके लगाती, चुटकुले सुनाती और हर देखीसुनी घटना को नमकमिर्च लगा कर सुनाती. फिर ऐसा क्या हो गया था कि वह बिलकुल गुमसुम हो गई थी? ‘‘सुदीप, मैं यहां चाइनीज खाने नहीं आई,’’ ऋचा ने हौले से कहा.

‘‘वह तो मैं देख ही रहा हूं, पर बात क्या है, अक्षय से झगड़ा हुआ है क्या? या फिर और कोई गंभीर समस्या आ खड़ी हुई है?’’ सुदीप की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. ‘‘अक्षय और झगड़ा? क्या सभी को अपने जैसा समझ रखा है? पता है, अक्षय मेरा और अपनी मां का कितना खयाल रखता है, और मांजी, उन के व्यवहार से तो मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं उन की बेटी नहीं हूं,’’ ऋचा बोली.

‘‘सब जानता हूं. सच पूछो तो तुम्हारी खुशहाल गृहस्थी देख कर कभीकभी बड़ी ईर्ष्या होती है,’’ सुदीप उदास भाव से मुसकराया. ‘‘सुदीप, जीवन को खुशियोंभरा या दुखभरा बनाना अपने ही हाथ में है. सच पूछो तो मैं इसीलिए यहां आई हूं. कम से कम तुम से व प्रेरणा से मुझे ऐसी आशा न थी. आज सुबह मां ने फोन किया था. फोन पर ही वे कितना रोईं, कह रही थीं कि तुम अब विवाहपूर्व वाले सुदीप नहीं रह गए हो. प्रेरणा तुम्हें उंगलियों पर नचाती है. सनी, सोनाली और मां की तो तुम्हें कोई चिंता ही नहीं है,’’ ऋचा ने शिकायत की.

‘‘और क्या कह रही थीं?’’ सुदीप ने पूछा.

‘‘क्या कहेंगी बेचारी, इस आयु में पिताजी उन्हें छोड़ गए. 3 वर्षों में ही उन का क्या हाल हो गया है. सनी और सोनाली का भार उन के कंधों पर है और तुम उन से अलग रहने की बात सोच रहे हो,’’ ऋचा के स्वर में इतनी कड़वाहट थी कि सुदीप को लगा, इस आरोपप्रत्यारोप लगाने वाली युवती को वह जानता तक नहीं. उसे उम्मीद थी कि घर का और कोई सदस्य उसे समझे या न समझे, ऋचा अवश्य समझेगी, पर यहां तो पासा ही उलटा पड़ रहा था. ‘‘अब कहां खो गए, किसी बात का जवाब क्यों नहीं देते?’’ ऋचा झुंझला गई.

‘‘तुम ने मुझे जवाब देने योग्य रखा ही कहां है. मेरे मुंह खोलने से पहले ही तुम ने तो एकतरफा फैसला भी सुना डाला कि सारा दोष मेरा व प्रेरणा का ही है,’’ सुदीप तनिक नाराजगी से बोला. ‘‘ठीक है, फिर कुछ बोलते क्यों नहीं? तुम्हारा पक्ष सुनने के लिए ही मैं यहां आई हूं, वरना तुम से घर पर भी मिल सकती थी.’’

‘‘मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता, न ही तुम से बीचबचाव की आशा रखता हूं. मैं केवल तुम से तटस्थता की उम्मीद करता हूं. मैं चाहूंगा कि तुम एक सप्ताह का अवकाश ले कर हमारे साथ आ कर रहो.’’ ‘‘पता नहीं तुम मुझ से कैसी तटस्थता की आशा लगाए बैठे हो. मां, भाईबहन आंसू बहाएं तो मैं कैसे तटस्थ रहूंगी?’’ ऋचा झुंझला गई.

‘‘हमें अकेला छोड़ दो, ऋचा. हम अपनी समस्याएं खुद सुलझा सकते हैं,’’ सुदीप ने अनुनय की. ‘‘अब तुम्हारे लिए अपनी सगी बहन पराई हो गई? मां ठीक ही कर रही थीं कि तुम बहुत बदल गए हो. प्रेरणा सचमुच तुम्हें उंगलियों पर नचा रही है.’’

‘‘ऋचा दीदी, प्रेरणा तो तुम्हारी सहेली है, तुम्हीं ने उस से मेरे विवाह की वकालत की थी. पर आज तुम भी मां के सुर में सुर मिला रही हो.’’ ‘‘यही तो रोना है, मैं ने सोचा था, वह मां को खुश रखेगी, हमारा घर खुशियों से भर जाएगा, पर हुआ उस का उलटा…’’

‘‘मैं कोई सफाई नहीं दूंगा, केवल एक प्रार्थना करूंगा कि तुम कुछ दिन हमारे साथ रहो, तभी तुम्हें वस्तुस्थिति का पता चलेगा.’’ ‘‘ठीक है. यदि तुम जोर देते हो तो मैं अक्षय से बात करूंगी,’’ ऋचा उठ खड़ी हुई.

‘‘तो कब आ रही हो हमारे यहां रहने?’’ सुदीप ने बिल देते हुए प्रश्न किया. ‘‘तुम्हारे यहां?’’ ऋचा हंस दी, ‘‘तो अब वह घर मेरा नहीं रहा क्या?’’

‘‘मैं तुम्हें शब्दजाल में उलझा भी लूं तो क्या. सत्य तो यही है कि अब तुम्हारा घर, तुम्हारा नहीं है,’’ सुदीप भी हंस दिया.

लगभग सप्ताहभर बाद ऋचा को सूटकेस व बैग समेत आते देख छोटी बहन सोनाली दूर से ही चिल्लाई, ‘‘अरे दीदी, क्या जीजाजी से झगड़ा हो गया?’’ ‘‘क्यों, बिना झगड़ा किए मैं अपने घर रहने नहीं आ सकती क्या? ले, नीनू को पकड़,’’ उस ने गोद में उठाए हुए अपने पुत्र की ओर संकेत किया.

सोनाली ने ऋचा की गोद से नीनू को लिया और बाहर की ओर भागी. ‘‘रुको, सोनाली, कहां जा रही हो?’’

‘‘अभी आ जाएगी, अपनी सहेलियों से नीनू को मिलवाएगी. उसे छोटे बच्चों से कितना प्यार है, तू तो जानती ही है,’’ मां ने ऋचा को गले लगाते हुए कहा. ‘‘लेकिन मां, अब सोनाली इतनी छोटी भी नहीं है जो इस तरह का व्यवहार करे.’’

‘‘चल, अंदर चल. इन छोटीछोटी बातों के लिए अपना खून मत जलाया कर. माना अभी सोनाली में बचपना है, एक बार विवाह हो गया तो अपनेआप जिम्मेदारी समझने लगेगी,’’ मां हाथ पकड़ कर ऋचा को अंदर लिवा ले गईं. ‘‘हां, विवाह की बात से याद आया, सोनाली कब तक बच्ची बनी रहेगी. नौकरी क्यों नहीं ढूंढ़ती. इस तरह विवाह में भी सहायता मिलेगी,’’ ऋचा बोली.

‘‘बहन का विवाह करना भैयाभाभी का कर्तव्य होता है, उन्हें क्यों नहीं समझाती? मेरी फूल सी बच्ची नौकरी कर के अपने लिए दहेज जुटाएगी?’’ मां बिफर उठीं. ‘‘मेरा यह मतलब नहीं था. पर आजकल अधिकतर लड़कियां नौकरी करने लगी हैं. ससुराल वाले भी कमाऊ वधू चाहते हैं. इन की दूर के रिश्ते की मौसी का लड़का आशीष बैंक में काम करता है, पर उसे कमाऊ बीवी चाहिए. वैसे भी, इस में इतना नाराज होने की क्या बात है? सोनाली काम करेगी तो उसे ?इधरउधर घूमने का समय नहीं मिलेगा. फिर अपना भी कुछ पैसा जमा कर लेगी. तुम्हें याद है न मां, पिताजी ने पढ़ाई समाप्त करते ही मुझे नौकरी करने की सलाह दी थी. वे हमेशा लड़कियों के स्वावलंबी होने पर जोर देते थे,’’ ऋचा बोली.

‘‘अरे दीदी, कैसी बातें कर रही हो, जरा सी बच्ची के कंधों पर नौकरी का बोझ डालना चाहती हो?’’ तभी सुदीप का स्वर सुन कर ऋचा चौंक कर मुड़ी. प्रेरणा व सुदीप न जाने कितनी देर से पीछे खड़े थे. सुदीप के स्वर का व्यंग्य उस से छिपा न रह सका. ‘‘बड़ी देर कर दी तुम दोनों ने?’’ ऋचा बोली.

‘‘ये दोनों तो रोज ऐसे ही आते हैं, अंधेरा होने के बाद.’’ ‘‘क्या करें, 6 साढ़े 6 तो बस से यहां तक पहुंचने में ही बज जाते हैं. फिर शिशुगृह से तन्मय को लेते हुए आते हैं, तो और 10-15 मिनट लग जाते हैं.’’

‘‘क्या? तन्मय को शिशुगृह में छोड़ कर जाती हो? घर में मां व सोनाली दोनों ही रहती हैं, क्या तुम्हें उन पर विश्वास नहीं है? जरा से बच्चे को परायों के भरोसे छोड़ जाती हो?’’ प्रेरणा बिना कुछ कहे तन्मय को गोद में ले कर रसोईघर में जा घुसी.

‘‘मां, तुम इन लोगों से कुछ कहती क्यों नहीं, जरा से बच्चे को शिशुगृह में डाल रखा है.’’ ‘‘मैं ने कहा है बेटी, मेरी दशा तो तुझ से छिपी नहीं है, हमेशा जोड़ों का दर्द, ऐसे में मुझ से तो तन्मय संभलता नहीं. सोनाली को तो तू जानती ही है, घर में टिकती ही कब है. कभी इस सहेली के यहां, तो कभी उस सहेली के यहां.’’

ऋचा कुछ क्षणों के लिए स्तब्ध बैठी रही. उसे लगा, उस के सामने उस की मां नहीं, कोई और स्त्री बैठी है. उस की मां के हृदय में तो प्यार का अथाह समुद्र लहलहाता था. वह इतनी तंगदिल कैसे हो गई.

तभी प्रेरणा चाय बना लाई. तन्मय भी अपना दूध का गिलास ले कर वहीं आ गया. अचानक ही ऋचा को लगा कि उसे आए आधे घंटे से भी ऊपर हो गया है, पर किसी ने पानी को भी नहीं पूछा. शायद सब प्रेरणा की ही प्रतीक्षा कर रहे थे. सोनाली तो नीनू को ले कर ऐसी अदृश्य हुई कि अभी तक घर नहीं लौटी थी. झटपट चाय पी कर प्रेरणा फिर रसोईघर में जा जुटी थी. ऋचा अपना कप रखने गई तो देखा, सिंक बरतनों से भरी पड़ी है और प्रेरणा जल्दीजल्दी बरतन साफ करने में लगी है.

‘‘यह क्या, आज कामवाली नहीं आई?’’ अनायास ही ऋचा के मुंह से निकला. ‘‘आजकल बड़े शहरों में आसानी से कामवाली कहां मिलती हैं. ऊपर से मांजी को किसी का काम पसंद भी नहीं आता. सुबह तो समय रहता ही नहीं, इसलिए सबकुछ शाम को ही निबटाना पड़ता है.’’

‘‘अच्छा, यह बता कि आज क्या पकेगा? मैं भोजन का प्रबंध करती हूं,’’ ऋचा ने कहा. ‘‘फ्रिज में देख लो, सब्जियां रखी हैं, जो खाना है, बना लेंगे.’’

‘‘क्या कहूं प्रेरणा, लगता है, मेरे आने से तो तेरा काम और बढ़ गया है.’’ ‘‘कैसी बातें कर रही है? सुदीप की बहन होने के साथ ही तू मेरी सब से प्यारी सहेली भी है, यह कैसे भूल गई, पगली. इतने दिनों बाद तुझे मेरी याद आई है तो मुझे बुरा लगेगा?’’ अनजाने ही प्रेरणा की आंखें छलछला आईं.

फ्रिज से सब्जियां निकाल कर काटने के लिए ऋचा मां के पास जा बैठी. ‘‘अरे, यह क्या, 4 दिनों के लिए मेरी बेटी मायके क्या आ गई, तुरंत ही सब्जियां पकड़ा दीं,’’ मां का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘ओह मां, किसी ने पकड़ाई नहीं हैं, मैं खुद सब्जियां ले कर आई हूं. खाली ही तो बैठी हूं, बातें करते हुए कट जाएंगी,’’ ऋचा ने बात पूरी नहीं की थी कि सुदीप ने आ कर उस के हाथ से थाली ले ली और कुरसी खींच कर वहीं बैठ कर सब्जियां काटने लगा. ‘‘यह बैठा है न जोरू का गुलाम, यह सब्जी काट देगा, खाना बना लेगा, तन्मय को नहलाधुला भी देगा. दिनरात पत्नी के चारों तरफ चक्कर लगाता रहेगा,’’ मां का व्यंग्य सुन कर सुदीप का चेहरा कस गया.

वह कोई कड़वा उत्तर देता, इस से पहले ही ऋचा बोल पड़ी, ‘‘तो क्या हुआ, अपने घर का काम ही तो कर रहा है,’’ उस ने हंस कर वातावरण को हलका बनाने का प्रयत्न किया. ‘‘जो जिस काम का है, उसी को शोभा देता है. सुदीप को तो मैं ने उस के पैर तक दबाते देखा है.’’

‘‘उस दिन बेचारी दर्द से तड़प रही थी, तेज बुखार था,’’ सुदीप ने धीरे से कहा. ‘‘फिर भी पति, पत्नी की सेवा करे, तोबातोबा,’’ मां ने कानों पर हाथ

रखते हुए आंखें मूंद कर अपने भाव प्रकट किए. ‘‘मां, अब वह जमाना नहीं रहा, पतिपत्नी एक ही गाड़ी के 2 पहियों की तरह मिल कर गृहस्थी चलाते हैं.’’

‘‘सब जानती हूं, हम ने भी खूब गृहस्थी चलाई है. तुम 4 भाईबहनों को पाला है और मेरी सास तिनका उठा कर इधर से उधर नहीं रखती थीं.’’ ‘‘इस में बुराई क्या है? अक्षय की मां तो घर व हमारा खूब खयाल रखती हैं.’’

‘‘ठीक है, रखती होंगी, पर मुझ से नहीं होता. पहले अपनी गृहस्थी में खटते रहे, अब बेटे की गृहस्थी में कोल्हू के बैल की तरह जुते रहें. हमें भी घूमनेफिरने, सैरसपाटे के लिए कुछ समय चाहिए कि नहीं? पर नहीं, बहूरानी का दिमाग सातवें आसमान पर रहता है, नौकरी जो करती हैं रानीजी,’’ मां ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा. ‘‘यदि नौकरी करने वाली लड़की पसंद नहीं थी तो विवाह से पहले आप ने पहली शर्त यही क्यों नहीं रखी थी?’’ ऋचा ने मां को समझाना चाहा.

‘‘इस में भी हमारा ही दोष है? अरे, एक क्या तेरी भाभी ही नौकरी करती है? आजकल तो सभी लड़कियां नौकरी करती हैं, साथ ही घर भी संभालती हैं,’’ मां भला कब हार मानने वाली थीं. ऋचा चुप रह गई. उसे लगा, मां को कुछ भी समझाना असंभव है.

दूसरे दिन सुबह ही ऋचा भी तैयार हो गई तो प्रेरणा के आश्चर्य की सीमा न रही, ‘‘यह क्या, आज ही जा रही हो?’’

‘‘सोचती हूं, तुम लोगों के साथ ही निकल जाऊंगी. फिर कल से औफिस चली जाऊंगी…क्यों व्यर्थ में छुट्टियां बरबाद करूं. सोनाली के विवाह में तो छुट्टियां लेनी ही पड़ेंगी,’’

वह बोली. ‘‘तुम कहो तो मैं भी 2 दिनों की छुट्टियां ले लूं? आई हो तो रुक जाओ.’’

‘‘नहीं, अगली बार जब 3-4 दिनों की छुट्टियां होंगी, तभी आऊंगी. इस तरह तुम्हें भी छुट्टियां नहीं

लेनी पड़ेंगी.’’ ‘‘बेचारी एक दिन के लिए आई, लेकिन मेरी बेटी काम में ही जुटी रही. रुक कर भी क्या करे, जब यहां भी स्वयं ही पका कर खाना है तो,’’ मां ऋचा को इतनी जल्दी जाते देख अपना ही रोना रो रही थीं.

‘अब जो होना है, सो हो. मैं आई थी सुदीप व प्रेरणा को समझाने, पर किस मुंह से समझाऊं. प्रेम व सद्भाव की ताली क्या भला एक हाथ से बजती है?’ ऋचा सोच रही थी. ‘‘अच्छा, दीदी,’’ सुदीप ने बस से उतर कर उस के पैर छुए. प्रेरणा पहले ही उतर गई थी.

‘‘सुदीप, मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उपदेश देने का मुझे कोई हक है. फिर भी देखना, सनी की नौकरी व सोनाली के विवाह तक साथ निभा सको तो…’’ कहती हुई ऋचा मुड़ गई. पर उसे लगा, मन जैसे बहुत भारी हो आया है, कहीं थोड़ा एकांत मिल जाए तो फूटफूट कर रो ले.

मुक्त: क्या शादी से खुश नही थी आरवी?

सब मेहमानों को विदा करने के बाद वंश के शरीर का पोरपोर दुख रहा था. शादी में खूब रौनक थी पर अब सब मेहमानों के जाने के बाद पूरा घर भायभाय कर रहा था. सोचा क्यों न एक कप चाय पी कर थोड़ी थकान कम कर ली जाए और फिर वंश ने अपनी मम्मी शालिनी को आवाज दी, ‘‘मम्मी, 1 कप चाय बना दीजिए.’’फिर वंश मन ही मन सोचने लगा कि आरवी से भी पूछ लेता हूं.

बेचारी नए घर में पता नहीं कैसा महसूस कर रही होगी.वंश ने धीमे से दरवाजा खटखटाया तो आरवी की महीन सी आवाज सुनाई दी,‘‘कौन हैं?’’वंश बोला, ‘‘आरवी मैं हूं.’’अंदर जा कर देखा, आरवी एक हलके बादामी रंग का सूट पहने खड़ी थी. न होंठों पर लिपस्टिक, न आंखों में काजल, न ही कोई और साजशृंगार. ऐसा नहीं था कि वंश कोई पुरानी सोच रखता था, पर आरवी के चेहरे पर वह लुनाई नहीं थी जो नई दुलहन के चेहरे पर रहती है.वंश ने चिंतित स्वर में कहा ‘‘ठीक तो हो आरवी, चाय पीओगी?’’‘‘नहीं मैं चाय नहीं पीऊंगी,’’ और यह कहते हुए आरवी का स्वर इतना सपाट था कि वंश उलटे पैर लौट गया.

मन ही मन वंश सोच रहा था कि न जाने कैसी लड़की है. उस ने तो सुना था कि पत्नी के आने से पूरे जीवन में खुशी की रुनझन हो जाती है पर आरवी तो न जाने क्यों इतनी सिमटीसिमटी रहती है.रात को वंश कितने अरमान के साथ आरवी के पास गया था. कितनी सारी बातें करनी थी पर उस ने देखा आरवी गहरी नींद में सोई हुई है. वंश को थोड़ी निराशा हुई पर फिर लगा हो सकता है बेचारी थक गई होगी.

वैसे भी पूरी उम्र पड़ी है बात करने के लिए.अगले दिन वंश अपने दोस्त नीरज से यह बात बोल ही रहा था तो नीरज हंसते हुए बोला, ‘‘हरकोई तुम्हारी तरह बातों में शताब्दी ऐक्सप्रैस तो नहीं हो सकता है.’’‘‘कुछ समय दो एडजस्ट हो जाएगी.’’‘‘वैसे भी लड़कियां अपना घरपरिवार सबकुछ छोड़ कर आती हैं तो उन्हें एडजस्ट होने में कुछ समय लगता है.’’आज रात वंश और आरवी अपने हनीमून के लिए मौरिशस जा रहे थे.

वंश ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आरवी पैकिंग करने में मदद करूं क्या?’’आरवी ठंडे स्वर में बोली, ‘‘थैंक्यू वंश, मैं ने कर ली है.’’वंश को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि आरवी का बस एक छोटा सा बैग था जिस में 4 या 5 टीशर्ट और 3 जींस थीं. आरवी से बड़ा तो वंश का ही बैग था. वंश के जीवन में आरवी पहली लड़की नहीं थी, उस की पहले भी गर्लफ्रैंड रह चुकी हैं. लड़कियों को तो कपड़ों, गहनों और मेकअप का कितना शौक होता है.पूरे रास्ते विमान यात्रा में भी आरवी के मुंह पर चुप्पी का ताला लगा हुआ था. वंश तो आरवी की सादगी पर पहले दिन से ही मोहित था.

उस के होंठों पर छोटा सा काला तिल, थोड़ी सी उठी हुई छोटी सी नाक, हंसते हुए गालों पर पड़ते गड्ढे, उठे हुए चीकबोंस और लहराते काले घुंघराले बाल आरवी का रूखापन उसे समझ नहीं आ रहा था.मौरिशस में होटल के कमरे में पहुंच कर आरवी ऐसे सहम गई जैसे वंश उस का पति नहीं कोई अजनबी हो.वंश ने सोचा शायद आरवी हनीमून में थोड़ी खुल जाए. रात को आरवी बाथरूम से नहा कर निकली तो बच्चों जैसा नाईट सूट पहनी थी.वंश का सर्वांग जल गया.

वंश झंझला कर बोला, ‘‘आरवी, तुम्हें शादी का मतलब पता है या नहीं?’’आरवी कुछ न बोली पर उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.वंश घबरा गया और बोला, ‘‘आरवी मेरा वह मतलब नहीं था. सौरी मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता था पर तुम मुझ से इतनी दूर क्यों रहती हो?’’आरवी धीमे से बोली, ‘‘वंश, मुझे कुछ टाइम दे दो.’’‘‘आरवी, मैं तैयार हूं, पर थोड़ा मुसकरातो दो.’’हनीमून में भी दोस्ती करने की सारी कोशिश वंश ही करता रहा था… आरवी वहां हो कर भी नहीं थी.

वंश को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किस से बात करे? दोस्तों से बात करेगा तो वे उस का मजाक उड़ाएंगे कि वह अपनी बीवी को काबू में नहीं रख पाया है.आरवी का बर्फ जैसा ठंडा व्यवहार वंश को अंदर तक जला देता था. वंश जैसे ही रात में आरवी के करीब जाने की कोशिश करता, आरवी की घिग्घी बंध जाती. वंश को ऐसा महसूस होता जैसे वह कोई बलात्कारी हो.

वंश का मन सिहर उठता और वह आरवी को परे धकेल देता. कभी वंश को लगता कि आरवी के मम्मीपापा से बात करे या उस की सहेलियों से कि क्या आरवी को कोई समस्या है?मौरिशस से सीधे वंश और आरवी मुंबई चले गए, जहां वंश की नौकरी थी. अगले दिन वंश के औफिस जाने के बाद आरवी ने घर की कायापलट ही कर दी थी. वंश जब लौटा तो चकित रह गया.

आरवी की चुप्पी तो नहीं टूटी थी पर वह घर में वंश के साथ रचबस गई थी.एक दिन वंश आरवी से बोला, ‘‘घर की याद आ रही है क्या? तुम शादी के बाद एक बार भी अपने घर नहीं गई हो, तुम्हारी पगफेरे की रस्म भी होटल में ही कर दी थी.’’आरवी ने कहा, ‘‘नहीं वंश मैं ठीक हूं.’’वंश को याद आया कि आरवी को उस ने कभी अपने घर बात करते नहीं देखा और न ही वह और लड़कियों की तरह सारासारा दिन अपने मोबाइल में लगी रहती है.

रात के 8 बज गए थे. वंश अभी तकदफ्तर से नहीं आया था और आरवी बेचैनी से वंश की प्रतीक्षा कर रही थी. जैसे ही वंश ने घंटी बजाई आरवी दौड़ आई और बोली, ‘‘कहां चले गए थे?’’ वंश मुसकराते हुए बोला, आरवी कपड़े बदल लो… चलो आज डिनर करने बाहरचलते हैं.’’आरवी एक सादा सा कौटन का सूट पहनने के लिए निकली थी कि तभी वंश बोला, ‘‘रुको,’’ फिर शिफौन का मैहरून रंग का गाउन निकाल कर आरवी को दे दिया और साथ में मोतियों का सैट.जब आरवी तैयार हो कर आई तो वंश बोला, ‘‘आरवी आज इतनी सुंदर लग रही हो कि आंखें नहीं ठहर रही हैं मेरी.’’आरवी शरमाते हुए बोली, ‘‘वंश, तुम कुछ भी बोलते रहते हो.’’वंश कार ड्राइव करते हुए सोच रहा था शुक्र है कम से कम आरवी हंसी तो.

डिनर करते हुए वंश ने आरवी से उस के शौक और दोस्तों के बारे में बातचीत करी पर परिवार की बात करते ही आरवी चुपहो गई. वंश को इतना तो समझ आ गया था कि कोई बात तो है जो आरवी के परिवार से जुड़ीहुई है.1 माह बीत गया था. आरवी बोलती तोअब भी कम ही थी, परंतु इस जीवन में रचबस गई थी, वंश की पसंदनापसंद को आरवी जान चुकी थी.खाने में क्या बनाना है जैसे छोटी सीबात को भी वह वंश से 10 बार पूछती थी.कोई भी फैसला आरवी अपनेआप से लेने में सक्षम नहीं थी.

वंश धीरेधीरे आरवी को घर के साथसाथ बाहर के काम की भी जिम्मेदारी देने लगा था. जो आरवी घर से बाहर पैर निकालनेमें पहले 10 बार ?झिकती थी अब वही मुंबईके हर कोने से परिचित थी. परंतु आरवी और वंश का रिश्ता अब भी उतना ही औपचारिक था.देखते ही देखते करवाचौथ का त्योहार आ गया था. वंश ने आरवी के लिए मम्मी के कहे अनुसार साड़ी, गहने और चूडि़यां ले आया था. करवाचौथ से एक दिन पहले वह शाम को ही आ गया था. उस ने आरवी को कुछ नहीं करने दिया. उस के हाथों में मेहंदी लगवाई और रात का खाना बाहर से पैक करवाया.

रात में वंश ने आरवी को अपने हाथों से खाना खिलाया तो आरवी बोली, ‘‘वंश आई एम वैरी हैप्पी.’’वंश बोला, ‘‘आरवी मैं कब हैप्पी बनूंगा.’’आरवी वंश की बात सुन कर एकदम से सकपका गई.करवाचौथ की रात को आरवी इतनी सुंदर लग रही थी कि वंश अपनेआप को रोक नहीं पाया था, पर आरवी के बर्फ जैसे ठंडे शरीर को बांहों में लेते ही वह सिहर उठा. अब तो वंश को ये लगने लगा था शायद वह ही नामर्द है, जिस कारण आरवी को वह उत्तेजित नहीं कर पाता है. वंश इतना परेशान हो चुका था कि उस ने फैसला कर लिया कि वह 3-4 दिन के लिए गोवा चला जाएगा.

जब उस ने आरवी को बताया तो आरवी अपना सामान भी रखने लगी, तभी वंश बोला, ‘‘आरवी, मैं जा रहा हूं, तुम नहीं.’’‘‘तुम तो मेरी छाया से भी दूर भागती हो, तो तुम यहां पर ही अपनी कंपनी ऐंजौय करो.’’आरवी को वंश से यह उम्मीद नहीं थी पर वह क्या बोलती?गोवा से जब चौथे दिन वंश लौटा तो आरवी वंश से बोली, ‘‘देखो मैं बुरी ही सही पर तुम आगे से मुझे छोड़ कर मत जाना. पता है मैं तुम्हारे बिना कितना अधूरा महसूस कर रही थी?’’‘‘आरवी, तुम एक रोबोट हो, तुम्हारे अंदर कोई संवेदना नहीं है…

पर मैं एक इंसान हूं… मैं तुम्हें प्यार करता हूं पर मैं अपनी शारीरिक जरूरतों का क्या करूं? क्या तुम किसी और से प्यार करती हो या मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं?’’आरवी बोली, ‘‘वंश ऐसा नहीं है, मैं ही तुम्हारे लायक नहीं हूं… यह शादी मेरी गलती की सजा है, वह गलती जिसे मैं ने जानबूझ कर नहीं बल्कि अनजाने में किया था,’’ अचानक आरवी ने यह कह कर अपनी जीभ काट ली.वंश सकते में आ गया, ‘‘क्या यह शादी आरवी के लिए सजा है?’’ वंश को एकाएक बहुत तेज गुस्सा आ गया.

मन करा कि आरवी से पूछे कि जब शादी का मन ही नहीं था तो क्यों उस की जिंदगी खराब कर दी.आरवी के मुंह से बात तो निकल गई थी पर उसे समझ आ गया था कि वंश आहत हो गया है. शाम को जब आरवी वंश के लिए चाय ले कर आई तो चुपचाप उस के पास बैठ गई और बोली, ‘‘वंश मैं आप को दुख नहीं पहुंचाना चाहती थी.’’‘‘आरवी मुझे पूरा सच जानना है… मुझे इस जबरदस्ती के रिश्ते से मुक्त कर दो.’’

आरवी भर्राई आवाज में बोली,’’ वंश, पूरा सच जान कर आप मुझ से नफरत करने लगोगे…‘‘शायद घर से चले जाने को भी कह दे.’’‘‘वंश मैं आप को खोना नहीं चाहती हूं, यह घर मुझे अपना लगता है, आप मुझे अपने लगते हो.’’वंश प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर कर बोला, ‘‘आरवी, मैं तुम से एक पति की हैसियत से नहीं, बल्कि एक दोस्त के तौर पर बात करना चाह रहा हूं.’’‘‘जब मैं कालेज में अंतिम वर्ष में थी, तब मेरी जिंदगी में रोशन आ गया था. मैं उस से बेहद प्यार करने लगी थी और वह भी मुझे बेहद चाहता था…

वंश रोशन के साथ मैं थोड़ा आगे तक निकल गई थी जिसे हमारे समाज में गलत मानते हैं. मैं उस के प्यार में बावरी हो गई थी.‘‘जब मेरा परिवार लड़का देखने लगा तो मैं ने अपने परिवार को रोशन के बारे में बताया, पर मम्मीपापा ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वे लोग उस जाति से हैं जो काफी रूढि़वादी होते हैं और आर्थिक रूप से भी रोशन का परिवार अधिक संपन्न नहीं है. पर मेरे ऊपर तो इश्क का जनून सवार था, मैं ने रोशन को जब सारी बात बताई तो उस ने कहा कुछ सोचने का समय दो.‘‘एक दिन जब मुझे पता चला कि आप लोग मुझ से मिलने आ रहे हैं, तो मैं रात को घर से निकल गई और रोशन के फ्लैट में पहुंच गई.‘‘रोशन मुझे इस तरह देख कर हक्काबक्का रह गया. उस के 2 और दोस्त जो वहीं उस के साथ रहते थे मुझे अजीब नजरों से देख रहे थे.

फिर रोशन मुझे एक कमरे में ले गया और बोला कि चलो आज फिर से सुहागरात मना लेते हैं. मैं घबरा गई और बोली कि रोशन प्लीज अभी नहीं.. तुम कुछ भी करो पर मुझे अपना बना लो. मैं तुम्हारे अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती हूं. इस पर रोशन हंसते हुए बोला कि जान वही तो करने की कोशिश कर रहा हूं.‘‘मैं ने जैसे ही रोशन को धक्का दिया तो वह तिलमिला उठा और बोला कि निकलो यहां से, मैं ने कोई धर्मशाला नहीं खोल रखी है… जा कर पहले सैक्स ऐजुकेशन लो फिर शादीवादी के बारे में सोचना… निहायत ठंडी हो तुम, पहली बार भी तुम एक लाश की तरह पड़ी रही थी.जब मैं रोशन के हाथों अपमानित हो कर अपने घर पहुंची तो मम्मी ने मुझे आड़े हाथों लिया.

भैया ने 3-4 थप्पड़ लगा दिए. पापा मुझे नफरतभरी नजरों से देख रहे थे. सब ने मुझे चरित्रहीन और गिरी हुई लड़की मान लिया. किसी ने मुझ से बात नहीं करी. ‘‘मैं अंदर ही अंदर घुट रही थी. चाहती थी कोई तो मुझ से बात करे, मेरे साथ मेरे दर्द को बांटे. वंश मेरी गलती बस इतनी थी कि मैं ने रोशन पर भरोसा किया. पर कभी लगता है मैं बेवकूफ हूं. मुझे कोई फैसला लेना ही नहीं आता है.‘‘फिर लगता है शायद रोशन ठीक ही कहता है… मैं सैक्स के लायक नहीं हूं. आप लोग कब आए, कब मेरी शादी तय हुई. मुझे शायद कुछ भी याद नहीं और फिर आरवी फूटफूट कर रोने लगी.

उस की हिचकियां बंध गई पर फिर भी वह आगे बोलती रही, ‘‘मैं आप के काबिल नहीं हूं, मैं आज तक तुम्हारे साथ पतिपत्नी का रिश्ता नहीं बना पाई हूं. शायद मैं कभी किसी पुरुष को खुश नहीं कर पाऊंगी.’’वंश सारी बातें सुनने के बाद बोला, ‘‘आरवी तुम्हारी कोई गलती नहीं है. तुम क्यों खुद को सजा दे रही हो? तुम्हें रोशन जैसे लड़के ने कुछ भी कहा और तुम ने उसे सच मान कर स्वीकार कर लिया.‘‘नई जिंदगी को खुले दिल से स्वीकार करो. अगर मैं पसंद नहीं हूं तो मैं खुद तुम्हें इस रिश्ते से मुक्त करा दूंगा. अन्यथा खुद को इन पूर्वग्रहों से मुक्त करो.’’आरवी ?

झिकते हुए बोली, ‘‘वंश, क्या आप मुझे चरित्रहीन, गिरी हुई लड़की नहीं मानते हो?’’ ‘‘आरवी उस हिसाब से मैं अधिक चरित्रहीन हूं, क्योंकि मेरी जिंदगी में भी तुम से पहले 3 लड़कियां आई थीं.’’आरवी फिर सहमते हुए बोली, ‘‘अगर मैं आप को पूरी उम्र पत्नी का सुख  नहीं दे पाई तो?’’ ‘‘आरवी, मेरे लिए तुम्हारा प्यार और सम्मान, शारीरिक नजदीकी से अधिक जरूरी है. फिर डाक्टर्स किस मर्ज की दवा हैं? सब से पहले अतीत के पन्ने को फाड़ दो. खुद को अतीत से मुक्त कर के मुझे खुले दिल से अपना लो और इस का एक ही तरीका है रोशन और अपने परिवार के साथसाथ खुद को भी माफकर दो.‘‘तुम्हारे परिवार ने जो भी किया वह सही है या गलत है, मुझे नहीं पता है, पर उन्हें माफ कर दो और आगे बढ़ो.

जब तक तुम खुद को अतीत से मुक्त नहीं करोगी, इस रिश्ते को अपना नहीं पाओगी.’’उस रात घर का कोनाकोना खुशी से भरा था. आरवी लाल और हरी साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी.वंश आगे बढ़ कर आरवी को गले लगाने ही वाला था कि कुछ सोचते हुए एकाएक रुक गया. आरवी ही चुपके से वंश के गले लग गई. तब वंश को ऐसा महसूस हुआ मानो आज वास्तव में आरवी अपने अतीत से मुक्त हो कर उस की बांहों में पिघल रही थी.

गंवार: देवरानी-जेठानी का तानों का रिश्ता

आज मोनिका 2 महीने की बीमारी की छुट्टी के बाद पहली बार औफिस जा रही थी. मोनिका की देवरानी वंदना ने अपने हाथों से मोनिका के लिए टिफिन तैयार किया था. वह किचन से बाहर आते हुए बोली –

“भाभी, आप का टिफिन,” और मोनिका के करीब पहुंची तो मोनिका उसे गले लगा लिया. मोनिका की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. उस के मानस पटल पर अतीत की यादें किसी चलचित्र की भांति अंकित होने लगीं.

छोटे से गांव से मायानगरी मुंबई के पौश इलाके में बहू बन कर आने वाली वंदना के लिए अपननी ससुराल की राह पहले दिन से ही कठिन बन गई थी. शादी के बाद अपनी इकलौती जेठानी के पैर छूने के लिए झुकी तो मोनिका पीछे हटते हुए बोली –

“ओह, व्हाट इज़ दिस? यह किस जमाने में जी रही है, गंवार कहीं की, आजकल कोई पैर छूता है क्या? यह हाईटेक युग है, हाय-हैलो और हग करने का जमाना है. लगता है यह लड़की एजजुकेटेड भी नहीं है.”

“फिर तो भाभी से गले मिल लो वंदना,” अजित ने हंसते हुए कहा.

वंदना आगे बढ़ी तो मोनिका ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, “बस, बस, दूर से ही नमस्कार कर दो, मैं मान लूंगी.”

वंदना दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार कर आगे बढ़ गई थी.

शादी के पहले दिन से ही जेठानी मोनिका का पारा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था. हाईटेक सिटी मुंबई की गलियों में बचपन बिताने वाली मोनिका को किसी ठेठ गांव की लड़की बतौर अपनी देवरानी कतई पसंद नहीं थी. मोनिका ने अपने देवर अजित की शादी अपने मामा की इकलौती बेटी लवलीना से करवाने के लिए बहुत हाथपैर मारे थे परंतु अजित ने उस की एक न सुनी थी.

लवलीना मौडलिंग करती थी और शहर के स्थानीय फैशन शोज में नियमित रूप से शरीक होती थी. फैशन शोज के लिए वह देश के अन्य शहरों में भी अकसर जाती थी. लवलीना का ताल्लुक हाईफाई सोसायटी से था. जुहू स्कीम इलाके में स्टार बेटेबेटियों के साथ स्वच्छन्द जीवन का लुत्फ उठाने वाली लवलीना फिल्मों में भी अपना नसीब आजमा रही थी. मोनिका किटी पार्टियों, शौपिंग व पिकनिक की जबरदस्त शौकीन थी. वह चाहती थी कि उस के परिवार में ऐसी ही कोई मौड लड़की आए ताकि जेठानीदेवरानी में बेहतर तालमेल बना रहे. परंतु जब अजित ने देहाती लड़की से विवाह कर लिया तो मोनिका के तमाम ख्वाब पत्थर से टकराए शीशे की भांति टूट कर चकनाचूर हो गए. वह जलभुन कर रह गई.

अजित मैडिकल का छात्र था. जब वह एमबीबीएस के अंतिम वर्ष में स्टडी कर रहा था तब अपने मित्र सुमित के विवाह में शरीक होने उस के गांव गया था. वह पहली बार किसी गांव में गया था. पर्वतों की तलहटी में बसे इस गांव के प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर अभिजीत को पहली नजर में ही इस गांव से प्यार हो गया था. गांव के चारों ओर आच्छादित हरियाली, दूरदूर तक लहलहाते हरेभरे खेत, खेतों में फुदकती चिडियां, हरेभरेघने वृक्षों पर कलरव करते विहग और उन की छांव में नृत्य करते मोर, अमराइयों में कूकती कोयल आदि ने अजित को इतना प्रभावित किया कि वह शादी के बाद भी कई दिनों तक अपने दोस्त के घर पर ही रुक गया था.

अपने दोस्त के विवाह में ही अजित ने वंदना को देखा था. विवाह के 2 दिन पूर्व आयोजित संगीत संध्या में उस ने वंदना को गाते और नृत्य करते हुए पहली बार देखा था. संगीत संध्या की रात को नींद ने अजित की आंखों से किनारा कर लिया. रातभर उस की आंखों के सामने वंदना का चेहरा ही घूम रहा था. उसे लगा कि अब उस की तलाश पूरी हो गई है. उस के दिमाग में जीवनसाथी की जो तसवीर थी उसी के अनुरूप वंदना थी.

सुमित के विवाह के बाद अजीत ने वंदना के बारे में छानबीन शुरू कर दी थी. उस ने प्रवीण के पिता शिवशंकर प्रसाद से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ‘बेटा, वंदना, पंडित रामप्रसाद की ज्येष्ठ कन्या है. वे सेवानिवृत्त अध्यापक हैं, जो 2 वर्ष पहले ही सेवानिवृत्त हुए हैं. घर की गरीबी के कारण वंदना ने कक्षा 10वीं उत्तीर्ण कर स्कूल को अलविदा कह दिया था. वंदना मेरी गोद में खेली है, लड़की बहुत ही संस्कारित, सुशील और बुद्धिमान है. वंदना की आवाज बहुत ही मीठी व सुरीली है. वह बहुत अच्छा गाती है. प्रवीण के विवाह में संगीत संध्या में तुम ने वंदना के गीत सुने होंगे. अजित, एक बात मैं तुम्हें यह भी बताना चाहूंगा कि वंदना के विवाह की चिंता ने रामप्रसाद की नींद हराम कर दी है. उन की बिरादरी के कई लोग वंदना को देखने आते हैं पर दहेज पर आ कर बात फिसल जाती है. वंदना से छोटी एक और बहन है. उस के हाथ भी पीले करने हैं. गत वर्ष पंडितजी की पत्नी का अल्पावधि बीमारी के बाद आकस्मिक निधन हो गया था. उन्होंने इलाज में पैसे पानी की तरह बहाया. पर उसे बचा न सके. पंडितजी की पत्नी का निधन क्या हुआ, इस परिवार की रीढ़ ही टूट गई.’

शिवशंकर प्रसाद ने अजित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘बेटे अजित, पंडितजी मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं. उन की दोनों बेटियां सुंदर, सुशील और सुसंस्कारित हैं. अगर वंदना तुम्हें पसंद है और उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहते हो तो मुझे पंडितजी से बात करने में प्रसन्नता होगी.’

शिवशंकर प्रसाद की बातों से अजित के मन में लड्डू फूट रहे थे. वह जल्दी से जल्दी मुंबई जा कर इस संबंध में अपने मातापिता से बात करना चाहता था.

शिवशंकर ने अल्पविराम के बाद कहा, ‘बेटा, कोई निर्णय लेने से पहले अपने मातापिता से एक बार बात जरूर कर लेना. हो सके तो उन्हें एक बार यहां ले कर आ जाना.’

‘जरूर अंकल, मैं कोई निर्णय लेने से पूर्व मातापिता से जरूर बात करूंगा और मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी पसंद ही मेरे मातापिता की पसंद होगी. अंकल, वंदना तो मुझे पहली नजर में ही पसंद आ गई है. मैं ऐसी ही लड़की को अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता हूं, जिस का मन स्वच्छ कांच की तरह पारदर्शक हो, जिस के आरपार सहज देखा जा सकता है. वंदना का मन ताल के स्वच्छ जल की तरह निर्मल है, जिस के भीतर सहजता से झांक कर तल को देखा जा सकता है. अंकल, सुमित के विवाह के दौरान हमारी कई बार मुलाकातें हो चुकी हैं. मैं कल ही मुंबई जा रहा हूं. आप चाहे तो वंदना के पापा से बात कर सकते हैं,’ अजित उत्साहित हो कर बोल रहा था.

‘ठीक है, मैं कल ही पंडितजी से बात कर लेता हूं,’ शिवशंकर ने कहा.

अजित ने मुंबई पहुंच कर जब अपने मम्मीपापा और भैयाभाभी से इस बारे में बात की तो मोनका भाभी क्रोधित हो गईं. उन्होंने नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा, ‘अरे, अजीत, मैं ने तो लवलीना से तुम्हारे लिए बात कर रखी है. मुंबई जैसे शहर में गांव की अशिक्षित और गंवार लड़की ला कर समाज में हमारी नाक कटवाओगे क्या?’

‘अरे भाभी, मैं ने आप से पहले ही कह दिया था न कि मुझे लवलीना पसंद नहीं है. मेरी और उस की सोच में ज़मीनआसमान का अंतर है. भाभी, मैं सीधासादा लड़का हूं जबकि लवलीना हायफाय,’ अजित मुसकराते हुए और कुछ कहने जा रहा था मगर मोनिका ने अजित की बात काटते हुए कहा, ‘क्या बुराई है लवलीना में, दिखने में किसी हीरोईन से कम नहीं है, अच्छी पढ़ीलिखी है, ऊंचे खानदान की है, हाई सोसायटी से ताल्लुकात रखती है. भैया, तुम्हें ऐसी लड़की दिन में चिराग ले कर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगी,’ कहते हुए मोनिका मुंह फुला कर बैठक से चली गई.

‘अरे भाई, उसे अपनी पसंद की लड़की से शादी करने दो न. तुम अपनी पसंद उस पर क्यों थोप रही हो?’ अजित के बड़े भाई रोहन ने मोनिका को समझाते हुए कहा. लेकिन तब तक मोनिका अपने कमरे में जा हो चुकी थी.

2 ही दिनों बाद अजित अपने मातापिता को ले कर वंदना के गांव पहुंच गया. वंदना सभी को पसंद आ गई. अजित की मम्मी ने तो वंदना के हाथ में शगुन भी दे दिया. चट मंगनी और पट विवाह हो गया. मोनिका की नाराजगी के बावजूद वंदना इस घर की बहू बन कर आ गई. वंदना को विवाह के पहले दिन से ही अपनी जेठानी मोनिका की नाराज़गी का शिकार होना पड़ा था. वह बातबात पर वंदना पर ताने कसती थी. लेकिन वंदना ने मानो विनम्रता का चोगा पहन लिया हो, वह मोनिका के तानों पर चूं तक न करती, चुपचाप सहन करती रही. वंदना जानती थी कि शब्द से शब्द बढ़ता है, सो, उस के लिए इस वक्त खामोश रहना ही उचित है. उसे विश्वास था कि समय सदैव एकसमान नहीं रहता है, यह परिवर्तनशील है, एक दिन उस का भी वक्त बदलेगा.

समय बीत रहा था. मोनिका एक सरकारी बैंक में नौकरी करती थी, सो, वह हमेशा अपना टिफिन खुद बना कर सुबह 9 बजे अपनी स्कूटी से बैंक चली जाती थी और शाम को 5 बजे के आसपास लौटती थी. वंदना से मोनिका इस कदर नाराज थी कि वह उस के हाथ की चाय तक नहीं पीती थी. मोनिका के बैंक जाने के बाद ही वंदना का किचन में प्रवेश होता था. वंदना के सासससुर मोनिका के तेजतर्रार स्वभाव से भलीभांति परिचित थे, सो, वे हमेशा खामोश ही रहते थे. सबकुछ ठीक चल रहा था. पर किसी को क्या पता था कि कोई अनहोनी उन के दरवाजे पर जल्दी ही दस्तक देने वाली है.

एक दिन शाम को बैंक से लौटते वक्त किसी टैम्पो ने मोनिका की स्कूटी को पीछे से जोर से टक्कर मार दी. मोनिका ने हेल्मेट पहना हुआ था, इसलिए उस के सिर पर चोट नहीं आई मगर उस के दाएं हाथ और बाएं पैर पर गहरी चोट आई थी. किसी भले व्यक्ति ने अपनी कार से मोनिका को नजदीक के अस्पताल में पहुंचाया था. अस्पताल से फोन आते ही अजित और वंदना तुरंत अस्पताल पहुंचे.

मोनिका के पति रोहन औफिस के काम से भोपाल गए हुए थे. अजित ने देखा कि मोनिका आईसीयू में है. डाक्टरों ने बताया कि वह अभी बेहोशी की अवस्था में है. कुछ देर में उन्हें होश आ जाएगा. हैल्मेट की वजह से उन के सिर में कोई चोट नहीं आई, मगर वह घबरा कर बेहोश हो गई है. उस के हाथ और पैर में गहरी चोट लगी है. फ्रैक्चर भी हो सकता है. एक्सरे रिपोर्ट आने के बाद पता चल जाएगा.

कुछ ही देर में मोनिका को होश आ गया. डाक्टर ने अजित को इशारे से अंदर बुलाया. अजित ने मोनिका को बताया कि वे बिलकुल न घबराएं. उन के हाथ और पैर में ही चोट लगी है, सिर में कहीं चोट नहीं आई है. एक्सरे से मालूम पड़ जाएगा कि फ्रैक्चर है या नहीं. कुछ ही देर बाद डाक्टर ने एक्सरे देख कर अजित को बताया कि मोनिका के दाएं हाथ और बाएं पैर में फ्रैक्चर है. उन्हें करीब एक सप्ताह अस्पताल में रहना पड़ेगा. अजित ने फोन द्वारा रोहन को घटना की जानकारी दे दी.

करीब 2 सप्ताह के बाद मोनिका को अस्पताल से छुट्टी मिली. अजित और वंदना के साथ मोनिका घर पर आई. घर के दरवाजे पर मोनिका को रोक कर वंदना ने कहा, ‘भाभी, अब तुम अपने लिए पानी का गिलास तक नहीं भरोगी. डाक्टर ने वैसे भी आप को पूरे 2 महीने आराम करने की सलाह दी है. फिर आप के एक हाथ और एक पैर पर प्लास्टर चढ़ा है. सो, आप को अब आराम की सख्त जरूरत है. आज से आप मुझे कोई भी और किसी प्रकार का काम करने के लिए कहने में कोई संकोच नहीं करोगी, ऐसा मुझ से वादा करो. तभी आप को मैं घर के अंदर आने दूंगी.’ यह कहने के साथ ही वंदना बीच दरवाजे पर खड़ी हो गई.

मोनिका की आंखों से आंसू छलक पड़े. उस ने वंदना को एक हाथ से अपनी ओर खींचते हुए उस का माथा चूम लिया और रुंधे कंठ से बोली, ‘वंदना, मुझे माफ कर देना, मैं ने तुम्हें न जाने क्याक्या कहा और तुम्हें बेवजह परेशान भी बहुत किया. तुम पिछले 2 सप्ताह से सबकुछ भुला कर मेरी सेवा में समर्पित हो गईं. इतनी सेवा तो अपना भी कोई नहीं करेगा. वंदना, तुम्हें इस घर में आए अभी 7 महीने ही हुए हैं, पर तुम ने अपनी मृदुलवाणी और विनयभाव से हम सब का दिल जीत लिया. मुझे अजित की पसंद पर गर्व है. वंदना, तुम्हारे बरताव से एक बात मेरी समझ में आ गई कि गांव की लड़की अशिक्षित हो सकती है मगर असंस्कारित नहीं. तुम पारिवारिक एटिकेट्स की जीतीजागती मूरत हो. वंदना, प्लीज, पहले तुम मुझे माफ कर दो, तो ही मैं घर में प्रवेश करूंगी.’

‘भाभी, आप बड़ी बहन के समान हैं, जिसे अपनी छोटी बहन को डांटने और फटकारने का हक तो होता है न, फिर भला, मुझे बुरा क्यों लगेगा. आप माफी की बात कर के मुझे शर्मिंदा न करें, यह तो आपका विनय है भाभी,’ कहते हुए वंदना ने अपनी जेठानी को बांहों में भर लिया.

‘अरे भाई, देवरानी और जेठानी की डायलौगबाजी खत्म हो गई हो, तो हम अंदर चलें क्या, मुझे और अजित को जोर से भूख लगी है,’ दरवाजे के बाहर खड़े रोहन ने अजित की ओर देख कर मुसकराते हुए कहा.

‘हां…हां भाईसाहब, खत्म हो गई है हमारी डायलौबाजी, आप सब भीतर आइए. मैं भाभी को अपने कमरे में बिठा कर आप सभी के लिए चायनाश्ता बनाती हूं,’ कहते हुए वंदना ने अपने दोनों हाथ मोनिका की तरफ बढ़ा दिए, जिन्हें उस ने कस कर पकड़ लिया और धीरेधीरे वंदना का सहारा लेते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ने लगी.

“अरे भाभी, आप कहां खो गई हो, अब तो मेरा हाथ छोड़ो न, आप ने कब से इसे कस कर पकड़ रखा है. आप को बैंक जाने में देर हो रही है,” वंदना ने कहा.

“ओह, सौरी वंदना, मैं तो अतीत में पहुंच गई थी,“ कहते हुए मोनिका ने वंदना के हाथ से टिफिन लिया और अपने पति रोहन के साथ धीरेधीरे सीढ़ियों से उतरने लगी.

नींद: मनोज का रति से क्या था रिश्ता

दूसरी शादी: कैसे हुआ नौशाद को पछतावा

वह रात कयामत की रात थी. मैं और मेरी बीवी उदास थे, क्योंकि मैं दूसरी शादी करने जा रहा था. लेकिन इस बात से मैं उतना दुखी नहीं था, जितनी वह गमगीन थी.

हमारी शादी को 6 साल हो चुके थे. हजार कोशिशों के बावजूद हमारे आंगन में कोई फूल नहीं खिला था. इस कमी को ले कर मैं कुछ उदास रहने लगा था और नर्गिस की तरफ से मन भी हटने लगा था. जबकि उस के प्यार में कोई फर्क नहीं आया था. वह मुझे भी समझाती कि मैं नाउम्मीद न होऊं, कभी न कभी तो उस की गोद जरूर हरी होगी.

नर्गिस को मैं ने पहली रात से ही प्यार दिया था, आम पतियों की तरह. अपना प्यार जताने के लिए चालू किस्म के डायलागभी बोले थे. मगर सच तो यह है कि मुझे औरतों की वफा पर कभी पूरा विश्वास नहीं रहा. मैं तो इस कमी के चलते यहां तक सोचने लगता कि औलाद की चाह में औरतें कभीकभी गलत कदम भी उठा लेती हैं. नर्गिस एक प्राइवेट फर्म में काम करने जाती है. क्या पता वहभी…

खैर, इन बातों की मुझे खास चिंता नहीं थी. मेरे मन में तो अब बस, एक ही ख्वाहिश करवटें ले रही थी, दूसरी शादी करने की ख्वाहिश. लेकिन नर्गिस से यह बात कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी. मैं बड़े ही पसोपेश में था कि तभी मुझे मां का एक खत मिला. खत पढ़ कर मेरा दिल बागबाग हो गया. उन्होंने मेरी दूसरी शादी करने का इरादा जाहिर किया था. लड़की भी उन्होंने ढूंढ़ ली थी और जल्द ही मेरा निकाह कर देना चाहती थीं. सिर्फ मेरी मां का ही नहीं, मेरे भाईबहनों का भी यही इरादा था.

खत पा कर जैसे मुझ में हिम्मत सी आ गई. आफिस से छूटते ही मैं सीधे घर पहुंचा और खत नर्गिस के हाथ में थमा दिया.

वह खत पढ़ने के बाद हैरत से बोली, ‘‘यह सब क्या है?’’

‘‘भई, मेरे घर वालों ने मेरी दूसरी शादी का इरादा जाहिर किया है, और क्या है. वैसे तुम क्या कहती हो?’’

वह कोई जवाब देने के बजाय उलटे मुझ से ही सवाल कर बैठी, ‘‘आप क्या कहते हैं?’’

‘‘भई, मैं तो सोच रहा हूं कि अब मुझे दूसरी शादी कर ही लेनी चाहिए. शायद इसी बहाने हमारा सूना आंगन चहक उठे,’’ इतना कह कर मैं उस का चेहरा पढ़ने लगा. उस के चेहरे पर उदासी उमड़ आई थी.

मैं फिर बोला, ‘‘अब तुम भी कुछ कहती तो अच्छा होता.’’

‘‘मैं क्या कहूं, जैसा आप बेहतर समझें, करें.’’

हमारे बीच कुछ देर खामोशी रही. मैं उस के मुंह से कोई स्पष्ट बात सुनना चाहता था, लेकिन वह कुछ कहने के लिए जैसे तैयार ही नहीं थी.

मैं ने उसे फिर कुरेदा, ‘‘नर्गिस, मुझे तो अब औलाद का सुख पाने का यही एक रास्ता नजर आ रहा है. फिर भी तुम साफसाफ कुछ कह देती तो मुझे यह कदम उठाने में आसानी हो जाती.’’

‘‘इस बारे में एक औरत भला साफ- साफ क्या कह सकती है?’’ वह मेरे सामने एक सवाल छोड़ कर रसोई में चली गई.

मैं सोचने लगा, नर्गिस ठीक ही कहती है. कोई औरत अपने मर्द को दूसरी शादी की इजाजत कैसे दे सकती है. यह काम तो मर्दों की मर्जी का है. वे चाहें तो दूसरी क्या 4-4 शादियां करें. मैं भी कितना बड़ा बेवकूफ हूं, यह सोच कर मैं मुसकरा उठा और शादी करने का मेरा इरादा पुख्ता हो गया.

घंटे भर बाद जब वह खाना बना कर कमरे में आई तो मैंने कहा, ‘‘नर्गिस, कल मैं घर जा रहा हूं.’’

उस ने मेरी बात को नजरअंदाज करते हुए पूछा, ‘‘खाना खाइएगा, लगाऊं?’’

‘‘हां, ले आओ,’’ मैं ने कहा तो वह सिर झुकाए चली गई.

कुछ देर बाद वह मेरा खाना ला कर मेरे पास ही बैठ गई. मैं ने सिर्फ अपनी प्लेट देख कर पूछा, ‘‘अरे, क्या तुम नहीं खाओगी?’’

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ कह कर वह खामोश हो गई.

मैं ने भी उस से जिद नहीं की और चुपचाप खाने लगा, क्योंकि मैं जानता था कि उस की भूखप्यास तो मां का खत पढ़ते ही मर गई होगी, इसलिए जिद करना बेकार था.

खाना खाने के बाद हम दोनों चुपचाप बिस्तर पर आ गए. मेरे दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. शायद उस के भी दिमाग में कुछ चल रहा होगा. मैं सोच रहा था कि मुझे ऐसा करना चाहिए या नहीं? नर्गिस मुझ से बेहद प्यार करती है. कैसे बर्दाश्त करेगी मेरी दूसरी शादी? इस गम से तो वह मर ही जाएगी.

जब अभी से उस की यह हालत हो रही है तो आगे न जाने क्या होगा. उस की तबीयत भी ठीक नहीं है. आज ही डाक्टर को दिखा कर आई है. मैं ने उस से पूछा भी नहीं कि डाक्टर ने क्या कहा. अपनी दूसरी शादी के चक्कर में कितना स्वार्थी हो गया हूं मैं.

फिर जैसे मेरे अंदर से किसी ने कहा, ‘नौशाद, इतना सोचोगे तब तो कर ली शादी. अरे, आजकल तो औरत खुद अपने मर्द को छोड़ कर दूसरी शादी कर लेती है और तुम मर्द हो कर इतना सोच रहे हो. और फिर तुम तो अपनी बीवी को तलाक भी नहीं दे रहे. कुछ दिन वह जरा उदास रहेगी, फिर पहले की तरह हंसनेबोलने लगेगी. इसलिए अब उस के बारे में सोचना बंद करो और अपना काम जल्दी से कर डालो. मौका बारबार नहीं आता.’

सुबह आंख खुली तो नर्गिस मेरा नाश्ता तैयार कर चुकी थी. उस ने मेरी पसंद का नाश्ता खीर और पूरी बनाई थी. नाश्ता भी मुझे अकेले ही करना पड़ा. बहुत कहने पर भी उस ने मेरा साथ नहीं दिया.

मैं ने उसे समझाया, ‘‘नर्गिस, तुम क्यों इतनी उदास हो रही हो? मैं दूसरी शादी ही तो करने जा रहा हूं, तुम्हें छोड़ तो नहीं रहा. अगर इसी बहाने मैं बाप बन गया तो तुम्हारा सूनापन भी दूर हो जाएगा.’’

वह खामोश रही. एकदम खामोश. मुझे उस की खामोशी से घबराहट सी होने लगी और जल्दी से घर से निकल जाने को मन करने लगा.

मैं ने झटपट अपना सूटकेस तैयार किया, कपड़े पहने और यह कहते हुए बाहर निकल आया, ‘‘नर्गिस, मुझे लौटने में 10-15 दिन लग सकते हैं. तुम अपना खयाल रखना.’’

मैं रिकशा पकड़ कर स्टेशन पहुंचा. टिकट कटा कर एक्सप्रेस गाड़ी पकड़ी और धनबाद से रफीगंज पहुंच गया.

फिर चौथे ही दिन फरजाना नाम की एक लड़की से चंद लोगों की मौजूदगी में मेरा निकाह हो गया. वह लड़की गरीब घर की थी, लेकिन पढ़ीलिखी और खूबसूरत थी.

फरजाना को अपनी दूसरी बीवी के रूप में पा कर मुझ में जैसे नई उमंगें भर गईं. मैं ने 20 दिन उस के साथ बहुत मजे में गुजारे. मेरे परिवार वाले भी उस से बहुत खुश थे. नईनई बीवी का मुझ पर ऐसा नशा छाया कि मुझे नर्गिस की कई दिनों याद तक नहीं आई.

फिर मुझे नर्गिस की चिंता सताने लगी. उस के बारे में बुरेबुरे खयाल आने लगे. फिर एक दिन मैं ने अचानक धनबाद की गाड़ी पकड़ ली.

ट्रेन से उतर कर जब स्टेशन से बाहर आया तो मुझे डा. असलम मिल गए. वह मुझे देखते ही लपक कर पास आते हुए बोले, ‘‘भई, मुबारक हो. मैं कब से ढूंढ़ रहा हूं तुम्हें मुबारकबाद देने को.’’

उन के मुंह से ये शब्द सुन कर मैं सोचने लगा कि मेरी शादी के बारे में इन्हें कैसे पता चल गया. शायद नर्गिस ने इन्हें बताया हो.

मैं ने झेंपते हुए उन की मुबारकबाद का शुक्रिया अदा किया तो वह कहने लगे, ‘‘भई, सिर्फ शुक्रिया से काम नहीं चलेगा, कुछ खिलानापिलाना भी पड़ेगा. बड़ी तपस्या का फल है.’’

‘‘तपस्या का फल…’’ मैं कुछ समझा नहीं. मैं हैरत से बोला तो वह शरारत भरे अंदाज में कहने लगे, ‘‘शरमा रहे हो. होता है, होता है. पहली बार बाप बन रहे हो न, इसलिए.’’

‘‘बाप… डाक्टर साहब, आप क्या कह रहे हैं. मेरी समझ में तो सचमुच कुछ भी नहीं आ रहा,’’ मेरी हैरानी बदस्तूर जारी थी.

उन्होंने कहा, ‘‘मियां, नाटकबाजी बंद करो और मेरी एक बात ध्यान से सुनो, तुम्हारी वाइफ बहुत कमजोर है. उस का जरा खयाल रखो, नहीं तो डिलीवरी के समय परेशानी हो सकती है.’’

यह सुन कर मेरी हैरत और खुशी का ठिकाना नहीं रहा. हैरत इसलिए हुई कि नर्गिस ने इतनी बड़ी खुशी की बात मुझ से छिपाए क्यों रखी. मैं ने उन से फिर पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, आप सच कह रहे हैं? मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा.’’

वह मेरा हैरानी भरा चेहरा देख कर बोले, ‘‘क्या वाकई तुम्हें मालूम नहीं है?’’

‘‘हां, मैं सच कह रहा हूं. यह आप को कब पता चला?’’

‘‘जिस दिन तुम आफिस जाते वक्त अपनी वाइफ को मेरे चेंबर में छोड़ कर गए थे. मैं तुम्हें मुबारकबाद भी देना चाहता था, लेकिन फिर नर्गिस से पता चला कि तुम किसी काम से घर चले गए हो. मगर ताज्जुब है, नर्गिस ने तुम्हें यह बात नही बताई,’’ वह सिर हिलाते हुए आगे बढ़ गए.

मैं जल्दी से रिकशा पकड़ कर सीधे घर पहुंचा. उस वक्त नर्गिस गुमसुम सी कमरे में बैठी हुई थी. मैं ने जाते ही उस से पूछा, ‘‘नर्गिस, यह मैं क्या सुन रहा हूं? तुम ने मुझ से इतनी बड़ी बात छिपाए रखी?’’

वह कुछ देर मेरी तरफ देखती रही, फिर उदास स्वर में बोली, ‘‘नहीं छिपाती तो आप दूसरी शादी कैसे करते.’’

‘‘इस का मतलब है, तुम भी यही चाहती थीं कि मेरी दूसरी शादी हो जाए?’’

‘‘मैं नहीं, सिर्फ आप चाहते थे, आप. आप ही के दिल में दूसरी शादी की तमन्ना पैदा हो गई थी. एक औरत तो कभी नहीं चाहेगी कि उस की कोई सौतन आए. सिर्फ औलाद नहीं होने से हमारा प्यार कम होने लगा था, मेरी तरफ से आप का मन हटने लगा था. आप की नजर में मेरी कोई कीमत नहीं रह गई थी. मुझ से दिली प्यार नहीं रह गया था. और मेरा प्यार इतना कमजोर नहीं कि अपनी कोख में पल रहे बच्चे का सहारा ले कर मैं आप को अपने इरादे से रोकती.’’

उस रात की निरंतर चुप्पी के बाद आज वह खूब बोली और फिर फूटफूट कर रोने लगी. मेरे पास उस का कोई जवाब नहीं था.

मैं ने उस के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘नर्गिस, मैं औलाद के लिए नहीं, बल्कि दूसरी शादी के लिए लालायित हो गया था और भूल कर बैठा. अब शायद इस भूल की सजा भी मुझे काटनी पड़ेगी.’’

वह मुझे माफ कर के मेरे गले से लग गई थी.

आज इस बात को लगभग 15 साल गुजर चुके हैं. मैं 6 बच्चों का बाप बन गया हूं. 3 नर्गिस के हैं और 3 फरजाना के. 2 शादियां कर के जैसे दो नावों की सवारी कर रहा हूं. बहुत टेंशन में रहता हूं.

नर्गिस तो बहुत सूझबूझ वाली और संवेदनशील औरत है. लेकिन फरजाना छोटीछोटी बात पर भी मुझ से झगड़ती और ताने सुनाती रहती है. आज मैं बहुत पछता रहा हूं. सोचता हूं, आखिर मैं ने दूसरी शादी क्यों की?

मैं सिर्फ बार्बी डौल नहीं हूं

खुद को आईने में निहारते हुए परी को अपने दाहिने गाल पर एक दाना दिखा. वह परेशान हो गई. क्या करे? क्या डाक्टर के पास जाए? फिर उस ने जल्दीजल्दी फाउंडेशन और कंसीलर की मदद से उस दाने को छिपाया और होंठों पर लिपस्टिक का फाइनल टच दिया. सिर पर थोड़ा सा पल्लू कर, पायल और चूडि़यां खनकाती वह बाहर निकली.

परी की सास और ननद उसे प्रशंसा से देख रही थीं, वहीं जेठानियों की आंखों में उस ने ईर्ष्या का भाव देखा तो परी को लगा कि उस का शृंगार सार्थक हुआ.

पासपड़ोस की आंटी और दूर के रिश्ते की चाची, ताई सब शकुंतला को इतनी सुंदर बहू लाने के लिए बधाई दे रही थीं. शकुंतला अभिमान से मंदमंद मुसकरा रही थीं. वे बड़े सधे स्वर में बोलीं, ‘‘यह तो हमारे मनु की पसंद है. पर हां, शायद इतनी खूबसूरत बहू मैं भी नहीं ढूंढ़ पाती.’’

नारंगी शिफौन साड़ी पर नीले रंग का बौर्डर था और नीले रंग का ही खुला ब्लाउज, जो उस की पीठ की खूबसूरती को उभार रहा था. पीठ पर ही परी ने एक टैटू बनवा रखा था जो मछली और एक परी के चित्र का मिलाजुला स्वरूप था.

परी को अपने इस टैटू पर बहुत गुमान था. इसी टैटू के कारण कितने ही लड़कों का दिल उस ने अपनी मुट्ठी में कर रखा था. परी की पारदर्शी त्वचा, दूध जैसा रंग, गहरी कत्थई आंखें सबकुछ किसी को भी बांधने के लिए पर्याप्त था. मनीष से उस की मुलाकात बैंगलुरु के नौलेज पार्क में हुई थी. दोनों का औफिस उसी बिल्डिंग में था. कभीकभी दोनों की मुलाकात कौफीहाउस में भी हो जाती थी.

मनीष अपने मातापिता की इकलौती संतान था. शकुंतला और कवींद्र दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत अपनी संतान के पालनपोषण में लगा दी थी. बचपन से ही मनीष के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उसे हर चीज में अव्वल

आना है. कोई भी दोयम दरजे की चीज या व्यक्ति उसे मान्य नहीं था. पढ़ाई में अव्वल, खेलकूद में शीर्ष स्थान.

12वीं के तुरंत बाद ही उस का दाखिला देश के सब से अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में हो गया था. उस के तुरंत बाद मुंबई के सब से प्रतिष्ठित कालेज से उस ने मैनेजमैंट की डिग्री हासिल की और बैंगलुरु में 60 लाख की सालाना आय पर उस ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर के रूप में जौइन कर लिया था जहां पर उस की मुलाकात परी से हुई और परी हर मामले में उस की जिंदगी के सांचे में फिट बैठती थी.

परी के मातापिता के पास अपनी बेटी के सौंदर्य और पढ़ाई के अलावा कुछ और दहेज में देने के लिए नहीं था. शकुंतला और कवींद्र ने मनीष की शादी के लिए बहुत बड़े सपने संजोए थे पर परी की खूबसूरती, काबिलीयत और मनीष की इच्छा के कारण चुप लगा गए. सादे से विवाह समारोह के बाद शकुंतला और कविंद्र ने बहुत ही शानदार रिसैप्शन दे कर मन के सारे अरमान पूरे कर लिए थे.

शाम को मनीष के दोस्त के यहां खाने पर जाना था. परी थक गई थी. उस का

कपड़े बदलने का मन नहीं था. जब वह उसी साड़ी में बाहर आई तो शकुंतला ने टोका, ‘‘परी तुम नईनवेली दुलहन हो. ऐसे बासी कपड़ों में कैसे जाओगी?’’

परी बुझे स्वर में बोली, ‘‘मम्मी, मुझे बहुत थकान हो रही है. यह साड़ी भी तो अच्छी है.’’

शकुंतला ने बिना कुछ कहे उसे मैरून रंग का कुरता और शरारा पकड़ा दिया. परी ने मदद के लिए मनीष की तरफ देखा तो वह भी मंदमंद मुसकान के साथ अपनी मां का समर्थन ही करता नजर आया.

फिर से उस ने पूरा शृंगार किया. आईने में उस ने देखा, अब वह दाना और स्पष्ट हो गया था. तभी पीछे से शकुंतला की आवाज सुन कर घबरा कर उस ने उस दाने के ऊपर फाउंडेशन लगा लिया और फाउंडेशन का धब्बा अलग से उभर कर चुगली कर रहा था.

बाहर ड्राइंगरूम की रोशनी में शकुंतला बोलीं, ‘‘परी फाउंडेशन तो ठीक से लगाया

करो. यह क्या फूहड़ की तरह मेकअप किया

है तुम ने?’’

परी घबरा गई. जैसे ही शकुंतला उस के करीब आईं तभी मनीष की कार का हौर्न सुनाई दिया. परी बाहर की तरफ भागी.

पीछे से शकुंतला की आवाज आई, ‘‘परी रास्ते में ठीक कर लेना.’’

कार में बैठते ही मनीष ने परी को अपने करीब खींच लिया और चुंबनों की बरसात कर दी. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘मन नहीं है मयंक के घर जाने का. कहीं उस की नीयत न बिगड़ जाए. जान, बला की खूबसूरत लग रही हो तुम.’’

मनीष की बात पर परी धीरे से मुसकरा दी. करीब 15 मिनट बाद कार एक नए आबादी क्षेत्र में बनी सोसाइटी के आगे रुक गई. मनीष ने घंटी बजाई और एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला. चेहरे पर मुसकान और मधुरता लिए हुए उन्हें देख कर ऐसा आभास हुआ परी को कि वह उन के साथ बैठ कर थोड़ा सुस्ता ले.

तभी अंदर से ‘‘हैलो… हैलो…’’ बोलता हुआ एक नौजवान आया. गहरी काली आंखें, तीखी नाक और खुल कर हंसने वाला. उस के व्यक्तित्व में सबकुछ खुलाखुला था. परी बिना परिचय के ही समझ गई थी कि यह मयंक है और वह महिला उस की मां है.’’

परी और मनीष 4 घंटे तक वहां बैठे रहे. परी को लगा ही नहीं कि वह यहां पहली बार आई है. जहां मनीष के घर उसे हर समय डर सा लगा रहता था कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. हर समय अपने रंगरूप को ले कर सजग रहना पड़ता था, वहीं यहां वह एकदम सहज थी.

तभी परी के मोबाइल की घंटी बजी. शकुंतलाजी दूसरी तरफ थीं, ‘‘परी तुम्हें कुछ

होश है या नहीं, क्या समय हुआ है? मनीष

का तो वह दोस्त है पर तुम्हें तो खयाल रखना चाहिए न…’’

जब वे लोग वहां से बिदा हो कर चले तब रात के 11 बज चुके थे. घर पहुंच कर परी जब चेहरा धो रही थी तब उस ने करीब से देखा, उस दाने के साथ एक और दाना बगल में उग चुका था. वह गहरी चिंता में डूब गई. वह मन ही मन सोच में डूब गई कि अब कैसे सामना करूंगी? उस ने तो मुझे पसंद ही मेरी खूबसूरत पारदर्शी त्वचा की वजह से किया है.

मनीष अधीरता से बाथरूम का दरवाजा पीट रहा था, ‘‘डौल, मेरी बार्बी डौल जल्दी आओ.’’

उस की कोमल व बेदाग साफ त्वचा के कारण ही तो वह उसे बार्बी डौल कहता था.

फिर से उस ने फाउंडेशन लगाया और बाहर आ गई. मनीष ने उसे बांहों में उठाया

और फिर दोनों प्यार में डूब गए.

उषा की किरणों ने जैसे ही कमरे के अंदर प्रवेश किया, मनीष प्यार से अपनी बार्बी डौल

के गाल थपथपाने लगा. पर यह क्या, मनीष एकदम बोल उठा, ‘‘परी, तुम्हारे गाल पर यह क्या हो रहा है?’’

परी घबरा कर उठ बैठी और बोली, ‘‘मनीष सौरी वह कल से पता नहीं क्यों ये दाने हो गए हैं.’’

दरअसल, वे दाने भयावह रूप से मुखर

हो उठे थे और रहीसही कसर तनाव ने पूरी कर दी थी.

मनीष बिना किसी हिचकिचाहट के परी के करीब आया और बोला, ‘‘ये तो ठोड़ी पर भी हैं. आज डाक्टर को दिखा कर आना.’’

परी बहुत ज्यादा चिंतित हो उठी थी. उसे अपनी बेदाग त्वचा पर बहुत गुमान था. अब

ये दाने…

रात में प्रेम क्रीड़ा के दौरान भी परी के मन में अनकहा तनाव ही व्याप्त रहा. सुबहसवेरे ही उठ कर वह नहा ली. हलकी गुलाबी रंग की साड़ी उस के रंग में मिलजुल गई थी. साथ में उस ने मोतियों की माला और जड़ाऊ झुमके पहने. फिर आईने के आगे खड़ा हो कर गहरे फाउंडेशन की परतों में अपने दानों को छिपा लिया. अब पूरी तरह से अपनेआप से संतुष्ट थी.

बाहर आ कर देखा तो शकुंतला गाउन में घूम रही थीं. अपनी बहू का खिला चेहरा देख कर वे प्रसन्न हो गईं.

शकुंतला ने परी का माथा चूम लिया. परी रसोई की तरफ चली गई और नाश्ते की तैयारी करने लगी.

तभी शकुंतला आईं और अभिमान से बोलीं, ‘‘परी, तुम आराम करो. हमारे यहां बहू बस रसोई में हाथ ही लगाती है. सारे काम के लिए ये नौकरचाकर हैं ही.’’

परी ने चाय का पानी चढ़ाया और बाहर आ कर बैठ गई. शकुंतला भी उस के सामने आ कर बैठ गईं और उसे पैनी नजरों से दखते हुए बोलीं, ‘‘परी, तुम्हें बस सुंदर लगना है. इसी कारण से तुम इस घर की बहू बनी हो.’’

परी असमंजस में बैठी रही. उस का मन बहुत उदास हो चला था. यों 24 साल की परी आत्मविश्वास से भरपूर युवती थी. मनीष से पहले भी उस की जिंदगी में कई युवक आए और गए, पर मनीष के आने के बाद उस के जीवन में स्थिरता आ गई थी.

दोनों के परिवार वालों को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी. कम से कम परी को तो पता था. पर यह तो उसे विवाह के बाद ही पता चला कि मनीष के मातापिता ने उसे पूरे दिल से स्वीकार नहीं किया था.

वह बुझे मन से अंदर चली गई. एक अनकहा भय उसे घेरे हुए था. इतना डर तो

उसे किसी ऐग्जाम में भी नहीं लगा था.

तभी जिया अंदर आ गई. वह मनीष की मौसी की बेटी थी और रिश्ते में उस की ननद. जिया बेहद खूबसूरत थी और कालेज के सैकंड ईयर में पढ़ रही थी. चिडि़या की तरह चहकते हुए वह बोली, ‘‘भाभी, चलो आज मूवी देखने चलते हैं. आप की बात भैया कभी नहीं टालेंगे.’’

मनीष उस को चपत लगाते हुए बोला, ‘‘मुझ से नहीं बोल सकती? चलो फिर भाभी ही ले जाएगी तुम्हें…’’

दोनों पूरे कमरे में धमाल मचा रहे थे. न जाने क्यों ये सब देख कर परी की आंखों

में आंसू आ गए. सबकुछ अच्छा है फिर भी बंधाबंधा महसूस हो रहा था.

जिया एकाएक सकपका सी गई. मनीष भी परी के करीब आ कर प्यार से उस का सिर सहलाने लगा और बोला, ‘‘परी घर जाना है तो आज ले कर चलता हूं.’’

परी बोली, ‘‘मनीष न जाने क्यों थकावट सी महसूस हो रही है. लगता है पीरियड्स शुरू होने वाले हैं.’’

जिया तब तक अपनी प्यारी भाभी के लिए एक गिलास जूस ले कर आ गई थी. परी का मन भीग गया और उस ने जिया को गले से लगा लिया. उसे लगा जैसे जिया के रूप में उस ने अपनी छोटी बहन को पा लिया हो.

शाम को मनीष के कहने पर परी जींस और कुरती पहन रही थी पर यह क्या जींस तो कमर में फिट ही नहीं हो रही थी. अभी 3 महीने पहले तक तो ठीक थी. झुंझला कर वह कुछ और निकालने लगी.

तभी मनीष बोला, ‘‘परी यह करवाचौथ टाइप की ड्रैस मत पहनो. जींस थोड़ी टाइट है तो क्या हुआ. पहन लो न.’’

परी ने मुश्किल से जींस पहन तो ली पर अपने शरीर पर आई अनावश्यक चरबी उस से छिपी न रही. वह जब तैयार हो कर बाहर निकली, तो मनीष मजाक में बोल ही पड़ा, ‘‘यार, तुम तो शादी के तुरंत बाद आंटी बन गई हो.’’

परी को यह सुन कर अच्छा नहीं लगा. तभी शकुंतला भी बाहर आ गईं और बोलीं, ‘‘परी खुद पर ध्यान दो और कल से ऐक्सरसाइज शुरू करो.’’

उस दिन परी फिल्म का आनंद न ले पाई. एक तो जरूरत से ज्यादा टाइट कपड़ों के कारण वह असहज महसूस कर रही थी, दूसरे बारबार परफैक्ट दिखने का प्रैशर उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था.

अपने शरीर में आए बदलावों से वह परेशान थी. ऐसे में उसे दुलार और प्यार की आवश्यकता थी. पर उस के नए घर में उसे ये सब नहीं मिल पा रहा था.

रात को उस ने मनीष को अपने करीब न आने दिया. मनीष रातभर उसे हौलेहौले दुलारता रहा. सुबह परी की बहुत देर से आंखें खुलीं. वह जल्दीजल्दी नहा कर जब बाहर निकली तो देखा, नाश्ता लग चुका था.

वह भी डाइनिंगटेबल पर बैठ गई. कवींद्र ने परी की तरफ देख कर चिंतित स्वर में कहा, ‘‘परी बेटा, यह क्या हो रहा तुम्हारे चेहरे पर?’’

एकाएक परी को याद आया कि वह आज मेकअप करना भूल गई.

शकुंतला भी बोलीं, ‘‘मनीष आज परी को डाक्टर के पास ले जाओ. चेहरे पर तिल के अलावा किसी भी तरह के निशान अच्छे नहीं लगते हैं.’’

मनीष भी परी को ध्यान से देख रहा था. परी को एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे वह एक स्त्री नहीं एक वस्तु है.

शाम को जब मनीष और परी डाक्टर के पास गए, तो डाक्टर ने सबकुछ जानने के बाद दवाएं और क्रीम लिख दी.

1 महीना बीत गया पर दानों ने धीरेधीरे

परी के पूरे चेहरे को घेर लिया था. परी आईने

के सामने जाने से कतराने लगी. उस का आत्मविश्वास कम होने लगा था. वह सब से नजरें चुराने लगी थी. ऊपर से रातदिन शकुंतला की टोकाटाकी और मनीष का कुछ न बोल कर अपनी मां का समर्थन करना उसे जरा भी नहीं भाता था.

औफिस में भी लोग उसे देखते ही सब से पहले यही बोलते, ‘‘अरे, यह क्या हुआ तुम्हारे  चेहरे पर?’’

परी मन ही मन कह उठती, ‘‘शुक्रिया बताने का… आप न होते तो मुझे पता ही नहीं चलता…’’

परी के विवाह को 2 महीने बीत गए थे.

इस बीच घर, नए रिश्ते और औफिस की जिम्मेदारी के बीच बस वह एक ही बार अपने मायके जा पाई थी. परी का जब से विवाह हुआ था वह एक तनाव में जी रही थी. यह तनाव था हर समय खूबसूरत दिखने का, हर समय मुसकराते रहने का, हर किसी को खुश रखने का और इन सब के बीच परी कहीं खो सी गई थी. वह जितनी कोशिश करती कहीं न कहीं कमी

रह ही जाती.

इसी बीच एक सुबह उस ने अपनी ठोड़ी के आसपास काले बालों को देखा. बाल काफी सख्त भी थे. उस की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. नहाते हुए ऐसे ही बाल उस ने नाभि के आसपास भी देखे. वह घंटों बाथरूम में बैठी रही.

बाहर मनीष उस का इंतजार कर रहा था. जब आधा घंटा हो गया तो उस ने

दरवाजा खटखटाया. परी बाहर तो आ गई पर ऐसा लगा जैसे वह बहुत थकी हुई हो.

मनीष उसे इस हालत में देख कर घबरा उठा. बोला, ‘‘क्या हुआ परी? ठीक नहीं लग रही. क्या घर की याद आ रही है?’’

परी फफक उठी. वह अपने ऊपर रो रही थी. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

कवींद्रजी भी वहीं आ गए और मनीष

को डांटते हुए बोले, ‘‘नालायक, तुम ने ही कुछ किया होगा,’’ फिर परी से बोले, ‘‘बेटा, तुम इस की बात का बुरा मत मानो. मैं तुम्हें आज ही तुम्हारे मम्मीपापा के पास भेजने का इंतजाम

करता हूं.’’

अचानक से परी का मूड बदल गया. उसे लगा वहां वह खुल कर सांस ले पाएगी.

शाम को फ्लाइट में बैठते हुए उसे ऐसा लग रहा था मानो वह एकदम फूल की तरह हलकी हो गई है.

घर पहुंचते ही मम्मी ने उसे गले से लगा लिया. पापा भी उसे देखते ही खिल गए.

मम्मी ने रात के खाने में सबकुछ उस की पसंद का बनाया. परी का बुझाबुझा चेहरा उन से छिपा न रहा. रात को परी के कमरे में जा कर परी की मम्मी ने प्यार से पूछा, ‘‘परी क्या बात है, मनीष की याद आ रही है?’’

जवाब में परी फूटफूट कर रोने लगी और सारी बातें बता दीं.

कुछ देर रोने के बाद संयत हो कर परी बोली, ‘‘मम्मी, मैं अपने अंदर होने वाले बदलावों से परेशान हूं. मेरी ससुराल में हर वक्त सुंदर और परफैक्ट दिखने की तलवार लटकी रहती है. परेशान हो चुकी हूं मैं.’’

मम्मी उस के सिर पर तब तक प्यार से

हाथ फेरती रहीं जब तक वह गहरी नींद में सो न गई. अगले दिन तक परी काफी हद तक संभल गई थी.

मम्मी उस से बोलीं, ‘‘परी, मुझे पता है

तुम जिंदगी के बदलावों से परेशान हो, पर अगर समस्या है तो समाधान भी होगा. तुम चिंता मत करो हम आज ही किसी महिला विशेषज्ञा के पास चलेंगे.’’

डाक्टर ने सारी बातें बहुत ध्यान से सुनीं और फिर कुछ टैस्ट

लिखे. अगले दिन रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में पता चला परी को ओवरी की समस्या है, जिस में ओवरी के अंदर छोटेछोटे सिस्ट हो जाते हैं. डाक्टर ने रिपोर्ट देखने के बाद बताया कि परी को पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम है, जो हारमोनल बदलाव की वजह से हो जाता है.

इस के प्रमुख लक्षण हैं- चेहरे पर अत्यधिक मुंहासे, माहवारी का अनियमित होना, शरीर और चेहरे के किसी भी भाग पर अनचाहे बाल होना बगैरा.

ये सब बातें सुनने के बाद परी को ध्यान आया कि पिछले कुछ महीनों से उसे माहवारी में भी बहुत अधिक स्राब हो रहा था. डिप्रैशन, वजन का बढ़ना और बिना किसी ठोस वजह के छोटीछोटी बातों पर रोना भी पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के दूसरे लक्षण हैं.

जब परी ने इस सिंड्रोम के बारे में गूगल पर सर्च किया तो उस ने देखा कि इस सिंड्रोम के कारण महिलाओं को मां बनने में भी समस्या हो जाती है. ये सब पढ़ कर वह चिंतित हो उठी. जब परी की मम्मी ने देखा कि परी 2 दिन से गुमसुम बैठी है तो उन्होंने मनीष को कौल किया और सारी बात बताई.

अगले दिन ही मनीष परी के घर आ गया. मनीष को देख कर परी फूटफूट कर रोने लगी और बोली, ‘‘मनीष, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं.

मैं अब खूबसूरत नहीं हूं और शायद मां भी नहीं बन पाऊंगी.’’

मनीष बिना कुछ बोले प्यार से उस का सिर सहलाता रहा.

अगले दिन वह परी को साथ ले कर उसी डाक्टर के पास गया और डाक्टर के साथ बैठ कर ध्यानपूर्वक हर चीज को समझने की कोशिश की.

रात को खाने के समय मनीष ने परी के मम्मीपापा से कहा, ‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं कि परी इस दौर से गुजर रही थी और मैं समझ नहीं पाया उलटे उस पर रातदिन एक खूबसूरत और जिम्मेदार बहू होने का दबाव डालता रहा.’’

‘‘कल मैं अपनी परी को ले कर जा रहा हूं पर इस वादे के साथ कि अगली बार वह हंसतीखिलखिलाती नजर आएगी.’’

रातभर परी मनीष से चिपकी रही और पूछती रही कि वह उस से बेजार तो नहीं हो जाएगा? पीसीओएस के कारण परी की त्वचा

के साथसाथ बाल भी खराब होते जा रहे थे.

उस का वजन भी पहले से अधिक हो गया था और 2 ही माह में वह अपने खोल में चली

गई थी.

मनीष ने परी के किसी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया. अगले रोज घर पहुंच कर उस ने अपने मातापिता को भी बताया. शकुंतला जहां इस बात को सुन कर नाखुश लगीं, वहीं कवींद्र चिंतित थे. परी दुविधा में बैठी थी.

मनीष बोला, ‘‘परी, यह सच है तुम्हारी खूबसूरती के कारण ही मैं तुम्हारी तरफ आकर्षित हुआ था पर यह भी झूठ नहीं होगा कि प्यार मुझे तुम्हारी ईमानदारी और भोलेपन के कारण ही हुआ. तुम जैसी भी हो मेरी नजरों में तुम से अधिक खूबसूरत कोई नहीं है.

‘‘अगर कल को मैं किसी दुर्घटना के

कारण अपने हाथपैर खो बैठूं या कुरूप हो जाऊं तो क्या तुम्हारा प्यार मेरे लिए कम हो जाएगा?’’

परी की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. वह कितनी गलत थी मनीष को ले कर? वह क्यों अंदर ही अंदर घुटती रही.

मनीष परी को गले लगाते हुए बोला, ‘‘यह कोई बीमारी नहीं. थोड़ी सी मेहनत और ध्यान रखना पड़ेगा. तुम एकदम ठीक हो जाओगी.’’

परी यह सुन कर हलका महसूस कर रही थी.

5 महीने तक परी डाक्टर की देखरेख में रही, जीवनशैली में बदलाव कर और मनीष के हौसले ने उस में नई ऊर्जा भर दी थी. इस दौरान परी का वजन भी घट गया और त्वचा व बाल फिर से चमकने लगे.

शकुंतला की बातों पर परी अब अधिक ध्यान नहीं देती थी, क्योंकि

उसे पता था कि उस का और मनीष का रिश्ता दैहिक स्तर से परे है. संबल मिलते ही उस के हारमोंस धीरेधीरे सामान्य हो गए और 1 साल के बाद परी और मनीष के संसार में ऐंजेल आ गई.

परी ने मां बनने के बाद अब खुद का ब्लौग आरंभ कर दिया है. ‘मैं कौन हूं,’ जिस में वह अपने अनुभव तमाम उन महिलाओं के साथ साझा करती है, जो इस स्थिति से जूझ रही हैं. पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से जुड़ी हर छोटीबड़ी बात को परी इस ब्लौग में साझा करती है. चेहरे और शरीर पर अनचाहे बाल, ऐक्ने और वजन से परे भी एक महिला की पहचान है, यह परी के ब्लौग का उद्देश्य है. परी का यह ब्लौग ‘मैं कौन हूं’ तमाम उन महिलाओं को समर्पित है जिन का सौंदर्य शरीर और चेहरे तक सीमित नहीं है. उन की पहचान उन के विचारों और जुझारू किरदारों से है.

गहराइयां : विवान को शैली की कौनसी बात चुभ गई?

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