सेहत के लिए वरदान मल्टीग्रेन आटा

रोटी हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का मुख्य स्रोत है. अनेकानेक व्यंजन खा लेने के बाद भी हमें संतुष्टि केवल रोटी खाने पर ही होती है. लगभग हर अनाज कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत होता है. आमतौर पर भारतीय घरों में रोटी बनाने के लिए गेहूं, बाजरा, मक्का और ज्वार जैसे अनाज का प्रयोग किया जाता है.

अधिकांश घरों में मूलत: गेहूं की सादी रोटियां ही बनाई जाती हैं, परंतु गेहूं की रोटी स्वादिष्ठ अधिक, पौष्टिक कम होती है. इसलिए गेहूं में यदि अन्य अनाज को मिला कर आटा पिसवाया जाए तो ऐसे आटे से बनी रोटी की पौष्टिकता बढ़ जाती है. इस प्रकार के आटे को मल्टीग्रेन आटा या कौंबिनेशन फ्लोर कहा जाता है. मल्टीगे्रन आटे से बनी रोटी विभिन्न प्रकार के रोगों में भी लाभदायक होती है.

कैसे तैयार करें मल्टीग्रेन आटा

इस प्रकार का आटा तैयार करने के लिए गेहूं तथा अन्य अनाज का अनुपात 3-2 का रखें. मसलन, यदि आप को 5 किलोग्राम आटा तैयार करना है तो गेहूं की मात्रा 3 किलोग्राम तथा सोयाबीन, मक्का, जौ, चना आदि अनाज की मात्रा 500-500 ग्राम रखें. यदि आप बाजार का पैक्ड आटा प्रयोग करती हैं, तो इसी अनुपात में गेहूं के आटे में अन्य अनाज का आटा मिला कर प्रयोग करें.

विभिन्न रोगों में मल्टीग्रेन आटे का उपयोग

मधुमेह के रोगी 5 किलोग्राम गेहूं के आटे में डेढ़ किलोग्राम चना, 500 ग्राम जौ और 50 ग्राम मेथीदाना मिला कर पिसवाएं. मेथी ब्लडशुगर को नियंत्रित करती है.

ये भी पढ़ें- Breakfast की ये 4 गलतियां पड़ सकती हैं आप पर भारी

5 किलोग्राम गेहूं के आटे में प्रोटीन के मुख्य स्रोत 500 ग्राम सोयाबीन, 1 किलोग्राम चना और 500 ग्राम जौ मिला कर पिसवाए गए आटे की रोटी खाने से बढ़ती उम्र के बच्चों को लाभ होता है.

गर्भवती महिलाओं को गेहूं के आटे में सोया, पालक, मेथी, बथुआ और लौकी जैसी हरी सब्जियों और थोड़ी सी अजवाइन का मिला कर उस का प्रयोग करना चाहिए. मेनोपौज की प्रक्रिया से गुजर चुकी महिलाओं के शरीर में हारमोन परिवर्तित हो जाते हैं. ऐसे में अधिकतर महिलाओं को हाई ब्लडप्रैशर, हाई कोलैस्ट्रौल और डायबिटीज जैसी बीमारियां घेर लेती हैं. ऐसी स्थिति में 10 किलोग्राम आटे में 5 किलोग्राम गेहूं, 1 किलोग्राम सोयाबीन, डेढ़ किलोग्राम

चना और 1 किलोग्राम जौ मिला कर उस आटा का प्रयोग करें.

मोटापे के शिकार लोगों को गेहूं के आटे के बजाय केवल चना, ज्वार, बाजरा जैसे विभिन्न अनाज से बनी रोटी का प्रयोग करना चाहिए.

दुबलेपन के शिकार और कब्ज के रोगी 5 किलोग्राम गेहूं में 1 किलोग्राम चना और 1 किलोग्राम जौ डाल कर आटा पिसवाएं. फिर इस में विभिन्न हरी सब्जियां डाल कर प्रयोग करें. इन लोगों को फाइबर्स की आवश्यकता रहती है, जिन की पूर्ति चना, जौ और हरी सब्जियां कर देती हैं.

ब्लडप्रैशर के रोगियों को 5 किलोग्राम गेहूं के आटे में 500 ग्राम सोयाबीन, 1 किलोग्राम चना और 250 ग्राम अलसी मिला कर उसे प्रयोग करना चाहिए.

आटा सदैव मोटा पिसवाएं और बिना छाने चोकरयुक्त ही प्रयोग करें. इस से आप के पाचनतंत्र को भोजन पचाने के लिए अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि चोकर में निहित फाइबर्स रोटी को सुपाच्य बना देते हैं.

रोटी सदैव बिना घी लगाए ही खाएं, क्योंकि घी लगी रोटी गरिष्ठ और अधिक कैलोरीयुक्त हो जाती है, जो शीघ्र पचती नहीं है.

ये भी पढ़ें- Health और Beauty के लिए फायदेमंद है एलोवेरा जूस

Breakfast की ये 4 गलतियां पड़ सकती हैं आप पर भारी

एक कहावक तो आपने सुना ही होगा दिन का नाश्ता किसी राजा की तरह करना चाहिए और रात का खाना भिखारी की तरह. दरअसल, इस कहावत में अच्छी सेहत का बेहतरीन मंत्र छिपा हुआ है. सुबह का नाश्ता दिन का सबसे महत्वपूर्ण भोजन है. नाश्ता ही हमारे मेटाबौलिज्म को किकस्टार्ट करता है. ऐसे में इसमें खाए जाने वाली चीजों का चुनाव करते वक्त खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है. अपना नाश्ता चुनने में हममें से बहुत से लोग गलती कर जाते हैं. जिसका खामियाजा हमारी सेहत को भुगतना पड़ता है. नाश्ते में या तो हम बहुत ज्यादा मात्रा में शुगर प्रोडक्ट्स लेने लगते हैं या फैट की असंतुलित मात्रा लेना शुरू कर देते हैं. ऐसे में हमारी सेहत को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. आज हम आपको 5 ऐसी गलतियों के बारे में बताने वाले हैं जो नाश्ते को लेकर हम करते हैं और जिससे सेहत संबंधी गंभीर समस्याओं की संभावना बढ़ती है.

1. नाश्ता स्किप कर देना

सुबह का नाश्ता न करना सेहत के साथ खिलवाड़ है. इससे मेटाबौलिज्म बुरी तरह से प्रभावित होता है. सुबह का नाश्ता दिन भर में आपकी पाचन शक्ति की बेहतरी के लिए जिम्मेदार होता है. यह लो ब्लड शुगर लेवल को रोकने में मददगार होता है. नाश्ता करने से आप दिन भर एनर्जेटिक होकर काम कर सकते हैं. इससे थकान नहीं होती है.

ये भी पढ़ें- Health और Beauty के लिए फायदेमंद है एलोवेरा जूस

2. उपयुक्त मात्रा में नाश्ता न करना

नाश्ते में कितनी मात्रा में फूड्स खा सकते हैं इस बारे में भी जानना बहुत जरूरी है. बहुत ज्यादा खा लेना भी सही नहीं है. विशेषज्ञों के मुताबिक एक औसत नाश्ते में एक कटोरी या 5-8 चम्मच अनाज, 10-15 ग्राम लीन प्रोटीन शामिल होना चाहिए.

3. देर से नाश्ता करना

नाश्ते का फायदा तभी है जब जागने के 1 घंटे के भीतर कर लिया जाए. नाश्ते में आप जो कुछ भी खाते हैं उससे आपके पूरे दिन का भोजन प्रभावित होता है. अगर आप रात में भारी भोजन करते हैं तो आप नाश्ता भी देर से करेंगे. साथ ही अगर आप देर से नाश्ता करते हैं तो आप दिन भर ज्यादा खाते हैं.

4. कार्ब्स और प्रोटीन का न होना

संतुलित नाश्ते के लिए ये दोनों पोषक तत्व अपनी डाइट में जरूर शामिल करें. लोग नाश्ते में या तो कार्ब्स का सेवन करते हैं या प्रोटीन का. लेकिन एक आदर्श नाश्ता वह है जिसमें कौम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट भी हो और साथ ही उच्च जैविक मूल्यों वाला प्रोटीन भी शामिल हो. कौम्पेक्स कार्ब्स शरीर में बिना फैट बढ़ाए एनर्जी की स्थिरता को मेंटेन रखने तथा ब्लड शुगर को स्थिर रखने में मददगार होते हैं.

ये भी पढ़ें- Fitness Tips: प्रौफेशनल से जानें कैसे रखें फिटनेस का ख्याल

Health और Beauty के लिए फायदेमंद है एलोवेरा जूस

अगर आप इस कोरोना वायरस जैसे महामारी से बचना चाहते हैं तो आपको अपना इम्यून सिस्टम मजबूत रखना होगा इसके लिए आपको एलोवेरा जूस का सेवन करना काफी फायदेमंद होगा एलोवेरा एक ऐसी औषधि है जो आसानी से घरों और बाजारों में मिल जाती है एलोवेरा एंटीऑक्सिडेंट्स , विटामिंस और मिनरल्स तत्वों के गुणों से भरपूर होती हैं.  इसके इस्तेमाल करने से आपके त्वचा बालों और पेट से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं.  एलोवेरा जूस तो आपके स्वास्थ्य और सुंदर के लिए रामबाण औषधि के रूप में होता है.  यदि Aloe vera जूस का सेवन नियमित रूप से सुबह खाली पेट किया जाए तो इसके कई सारे फायदे होते हैं तो आइए इन फायदों के बारे में जानते हैं.

पाचन तंत्र मजबूत करता है –

यदि Aloe vera जूस का रोजाना सेवन खाली खाली पेट किया जाए तो इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है.  इसके साथ ही पेट से संबंधित समस्याएं भी दूर हो जाती हैं जिन लोगों को कब्ज की शिकायत रहती है उन्हें रोजाना दो चम्मच एलोवेरा जूस का सेवन करना चाहिए ऐसा करने से आपको जल्द ही अच्छा परिणाम देखने को मिलेगा.

वजन कम करने में मददगार –

अगर आप अपने बढ़ते वजन को लेकर पहचान है तो ऐसे में आपके लिए एलोवेरा जूस एक असरदार उपाय है आप रोजाना खाली पेट आधा कप एलोवेरा जूस को लेकर सेवन करें एलोवेरा में एंटी इन्फ्लेमेटरी के गुण होते हैं.  जो आपके फैट को बर्न करने में सहायक होते हैं जिससे कि आपका वजन कम होने लगेगा.

ये भी पढ़ें- Fitness Tips: प्रौफेशनल से जानें कैसे रखें फिटनेस का ख्याल

इम्यून सिस्टम को मजबूत करना –

कोविड-19 महामारी ने हम सभी को यह बता दिया है कि इम्यून सिस्टम का मजबूत होना हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है एलोवेरा जूस को पीने से आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है विशेषज्ञों के अनुसार एलोवेरा का जोश इम्यून सिस्टम को बूट करने में काफी मददगार होता है इसके साथ ही इसका सेवन पीएच लेवल को भी सुधरता है.

सूजन कम करना –

एलोवेरा में एंटीऑक्सीडेंट के गुण होते हैं जो आपके शरीर के सूजन को कम करने में मदद करता है.  इसके साथ ही यदि रोजाना खाली पेट एलोवेरा जूस का सेवन किया जाये हैं.  तो आपको सिर दर्द और तनाव से भी राहत मिलती है.  साथ ही आप के जख्म को भरने में भी सहायक होती है.

एलोवेरा जूस का सेवन करने से पहले डॉक्टर कि सलाह जरूर लें.

ये भी पढ़ें- Independence Day Special: बीमारियों से आज़ादी दिलवाने के लिए अपनाएं एक्सपर्ट के 5 टिप्स

Independence Day Special: बीमारियों से आज़ादी दिलवाने के लिए अपनाएं एक्सपर्ट के 5 टिप्स

इस वर्ष हमारा देश आज़ादी के 75 साल मना रहा है. इस सदी में आज़ादी का हर व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व है – चाहे वो पुरुष हो या महिला, बच्चा हो या बुज़ुर्ग. एक इंसान के लिए सबसे कीमती होता है उसका स्वास्थ्य.  यदि स्वास्थ्य सही हो तो यह इंसान सब कुछ हासिल कर सकता है.  तो आईये इस स्वतंत्रता  दिवस पर हम अपने शरीर को बीमारियों से आज़ाद रखने के लिए कुछ टिप्स जानते हैं:

 ये टिप्स बता रहीं हैं न्यूट्रीशनिस्ट, डायटीशियन और फिटनेस एक्सपर्ट मनीशा चोपड़ा.

टिप्स 1: मौसमी सब्जियां और फलों का सेवन करें

वैसे तो कई सब्जियां और फल पूरे साल मौजूद रहे हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं को खाना जरूरी है जो चल रहे मौसम के लिहाज से उपयुक्त हों. स्वस्थ और ताजा भोजन हासिल करने की कोशिश करें. आप इस मौसम के लिहाज से अनुकूल टमाटर, बेरी, आम, तरबूज, खरबूज, आलू बुखारा, अजवायन, नारंगी आदि जैसे फलों और सब्जियों पर ध्यान दे सकते हैं.

ये भी पढ़ें- गंभीर बीमारी के संकेत है फेशियल हेयर

टिप्स 2: पूरे दिन पर्याप्त पानी पीएं

पानी पीना और इस मानसून के सीजन में शरीर में नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है. सुनिष्चित करें कि स्वयं को ताजगी महसूस कराने के प्रयास में हर दिन कम से कम 8-10 गिलास पानी पीएं. यदि संभव हो, तो कम ठंडा पानी पीएं, क्योंकि ज्यादा ठंडा पानी पीने से स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

टिप्स 3: नियमित रूप से व्यायाम करें

व्यायाम हमारे शरीर के लिए बेहद ज़रूरी है.  एहूमे अनेक बीमारियों से बचाये रखता है इसलिए अपने शरीर को बीमारियों से आज़ाद करने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना बहुत आवश्यक है.

टिप्स 4: कोल्ड ड्रिंक के बजाय ताजा फलों का जूस पीएं

बहुत से ऐसे लोग हैं जो ज्यादा प्यास का अनुभव महसूस करते हैं और अक्सर अपनी प्यास बुझाने के लिए कोल्ड ड्रिंक पीना पसंद करते हैं. लेकिन ऐसे ठंडे पेय आपके शरीर को फायदे के बजाय नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए, अपनी प्यास बुझाने के प्रयास में कोल्ड ड्रिंक के बजाय ताजा फलों के रस का इस्तेमाल करें. ये कोल्ड ड्रिंक के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद हैं और इनसे आपका स्वस्थ और फिट रह सकता है.

ये भी पढ़ें- 10 टिप्स: प्रेग्नेंसी के पहले और बाद में ऐसे रखें अपना ख्याल

टिप्स 5: स्वस्थ शरीर के लिए स्वच्छता बनाए रखें

जैसा कि आप जानते हैं, स्वस्थ शरीर के लिए स्वच्छता जरूरी है. यह सुनिष्चित करें कि क्या आप जो भोजन या पेय पदार्थ ले रहे हैं, वह स्वच्छ और ताजा है. आपका शरीर घर या रेस्तरां में गंदे बर्तनों की वजह से बैक्टीरियल इन्फेक्षन का शिकार हो सकता है. इसलिए हमेशा यह सुनिष्चित करें कि खाने से पहले और बाद अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएं. इसके अलावा, अपने चेहरे को समय समय पर धोते रहें.

पीरियड्स में पीठ दर्द से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल

मेरी उम्र 24 वर्ष है. अकसर मासिकधर्म से पहले और उस दौरान मेरी पीठ में दर्द होता है. क्या यह कोई समस्या है?

जवाब

हां, यह बिलकुल सामान्य स्थिति है. यह मासिकधर्म से पहले तनाव (पीएमएस) के लक्षण हैं और इस दौर में यह आम बात है. कई महिलाओं को सिर्फ पीठ दर्द ही नहीं होता, बल्कि उन के जोड़ों और सिर में भी दर्द होता है.

पीएमएस के वक्त भावनात्मक बदलाव के अलावा शारीरिक लक्षण भी उभरते हैं. पीरियड के दौरान शरीर में थोड़ा दर्द भी होता है, जिस से हड्डियां और मांसपेशियां भी प्रभावित हो सकती हैं.

कुछ महिलाओं को सिंकाई से आराम मिलता है. आर्थ्राइटिस पीडि़त महिलाओं का पीठ दर्द बढ़ भी सकता है और आार्थ्राइटिस पीडि़त पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा होता है. लिहाजा अपने डाक्टर से मिल कर कैल्सियम और विटामिन डी लैवल की जांच कराना जरूरी है.

ये भी पढ़ें- कही मेरे पति का अफेयर तो नही चल रहा, मैं कैसे पता लगाउं ?

ये भी पढ़ें-

पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इस दौरान महिलाओं को बहुत तेज दर्द का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वो दवाइयों का सहारा लेने लगती हैं. पीरियड्स पेन में इस्तेमाल होने वाले पेन किलर्स हाई पावर वाले होते हैं. स्वास्थ पर उनका काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको पांच घरेलू टिप्स के बारे में बताएंगे जिनको अपना कर आप हर महीने होने वाले इस परेशानी से राहत पा सकेंगी.
तो आइए शुरू करें.

1. तले आहार से करें परहेज

पीरियड्स में आपको अपनी डाइट पर खासा ख्याल रखना होगा. इस दौरान तले, भुने खानों से दूर रहें. अपनी डाइट में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करें. ये काफी असरदार होते हैं.

2. तेजपत्ता

तेजपत्ता से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है. पीरियड्स से होने वाली परेशानियों में तेजपत्ता काफी कारगर होता है. महावारी के दर्द को दूर करने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- पीरियड्स के ‘बर्दाश्त ना होने वाले दर्द’ को चुटकियों में करें दूर

10 टिप्स: प्रेग्नेंसी के पहले और बाद में ऐसे रखें अपना ख्याल

गर्भावस्था के दौरान महिला को कई शारीरिक और भावनात्मक बदलावों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में मां और जन्म लेने वाले बच्चे के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि गर्भधारण करने से पहले ही प्लानिंग कर ली जाए -पूर्व गर्भावस्था, गर्भावस्था के दौरान, प्रसव अवधि और प्रसव के बाद. आइए जानते हैं इन चारों चरणों के दौरान जरूरी सावधानियों के बारे में:

गर्भावस्था से पहले अगर आप मां बनने की योजना बना रही हैं तो सब से पहले किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा से मिलें. इस से आप को स्वस्थ प्रैगनैंसी प्लान करने में सहायता मिलेगी.

गर्भधारण करने के 3 महीने पहले से जिसे प्री प्रैगनैंसी पीरियड कहते हैं, डाक्टर के सुझाव अनुसार जीवनशैली में परिवर्तन लाने से न केवल प्रजनन क्षमता सुधरती है, बल्कि गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याएं भी कम होती हैं और प्रसव के बाद रिकवर होने में भी सहायता मिलती है.

1 सर्वाइकल स्मीयर:

याद करें कि आप ने पिछली बार सर्वाइकल स्मीयर टैस्ट कब करवाया था. यदि अगला टैस्ट आने वाले 1 साल में करवाना बाकी है तो उसे अभी करा लें. स्मीयर जांच सामान्यत: गर्भावस्था में नहीं कराई जाती है, क्योंकि गर्भावस्था की वजह से ग्रीवा में बदलाव आ सकते हैं और सही रिपोर्ट आने में कठिनाई हो सकती है.

2 वजन:

अगर आप का वजन ज्यादा है और बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) 23 या इस से अधिक है, तो डाक्टर आप को वजन कम करने की सलाह देंगे. वजन घटाने से आप के गर्भधारण करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और आप अपनी गर्भावस्था की सेहतमंद शुरुआत कर सकती हैं. अगर आप का वजन कम है तो डाक्टर से बीएमआई बढ़ाने के सुरक्षित उपायों के बारे में बात करें. यदि आप का वजन कम है तो माहवारी चक्र अनियमित रहने की भी संभावना अधिक होती है. इस से भी गर्भधारण में समस्याएं आती हैं. आप का बीएमआई 18.5 और 22.9 के बीच होना चाहिए.

ये भी पढ़ें- Fittness Tips: फिट बॉडी पाने के लिए करें ये 5 एक्सरसाइज

3 गर्भावस्था के दौरान:

द इंस्टिट्यूट औफ मैडिसिन की गाइडलाइंस के अनुसार प्रैगनैंसी के दौरान महिला को अपने बीएमआई के हिसाब से वजन बढ़ाना चाहिए. अंडरवेट वूमन यानी बीएमआई 18.5 से कम हो तो उसे 12 से 18 किलोग्राम तक वजन बढ़ाना चाहिए. नौर्मल वेट वूमन यानी बीएमआई 18.5 से 25 हो तो 11 से 15 किलोग्राम तक वजन बढ़ाएं. महिला ओवर वेट हो यानी 25 से 30 तक बीएमआई हो तो उसे 7 से 11 किलोग्राम तक वजन बढ़ने देना चाहिए. 30 से ज्यादा बीएमआई होने पर 5 से 9 किलोग्राम तक वजन बढ़ाना चाहिए.

4 व्यायाम:

व्यायाम हैल्दी लाइफस्टाइल का अहम हिस्सा है. कोई कौंप्लिकेशन न हो तो प्रैगनैंट वूमन को हैल्दी रहने के लिए नियमित व्यायाम करते रहना चाहिए. कम से कम 30 मिनट का सामान्य व्यायाम जरूर करें. आइस हौकी, किक बौक्सिंग, राइडिंग आदि न करें.

5 संतुलित और पोषक भोजन खाएं:

मैक्स हौस्टिपल, शालीमार बाग, दिल्ली के डाक्टर एसएन बासु कहते हैं कि गर्भावस्था के दौरान संतुलित और पोषण भोजन का सेवन करें ताकि बच्चे के विकास और आप के शरीर में हो रहे बदलावों के लिए आप का शरीर तैयार हो सके. एक मां बनने वाली महिला को आमतौर पर प्रतिदिन 300 अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है.

6 सप्लिमैंट्स:

गर्भावस्था के दौरान प्रतिदिन कैल्सियम, फौलेट और आयरन की निश्चित मात्रा की निरंतर आवश्यकता होती है. इन की पूर्ति के लिए सप्लिमैंट्स का सेवन करना जरूरी होता है. कैल्सियम-1200 एमएल, फौलेट-600 से 800 एमएल, आयरन-27 एमएल. हर गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान 100 एमजी की आयरन की 100 गोलियों का सेवन अवश्य करना चाहिए. ये मां और बच्चे दोनों के लिए जरूरी हैं. प्रैगनैंसी के शुरुआती दिनों में विटामिंस की मेगा डोज बर्थ डिफैक्ट्स की वजह बन सकती है. प्रैगनैंट महिलाओं को अनपाश्चराइज्ड दूध, सौफ्ट चीज और रौ रैड मीट भी नहीं लेना चाहिए. इस से मिसकैरेज और दूसरी समस्याएं पैदा हो सकती है. प्रैगनैंट वूमन को हमेशा फल और सब्जियां अच्छी तरह धो कर खानी चाहिए.

7 पर्याप्त नींद लें:

गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त आराम और नींद की जरूरत होती है. उन्हें रात में कम से कम 8 घंटे और दिन में 2 घंटे सोना चाहिए. नींद की कमी के कारण शरीर की लय गड़बड़ा जाती है.

8 शारीरिक रूप से सक्रिय रहें:

गर्भावस्था के दौरान भी अपनी सामान्य दिनचर्या जारी रखें. घर का काम करें. अगर नौकरी करती हैं तो औफिस जाएं, रोज आधा घंटा टहलें. डाक्टर की सलाह के हिसाब से अपना वर्कआउट जारी रखें. ध्यान रखें, इस दौरान रस्सी न कूदें और न ही कोई ऐसा कार्य करें जिस से शरीर को झटका लगे.

ये भी पढ़ें- ब्रैस्टफीडिंग: आपके बेबी को आपका पहला तोहफा

9 भावनात्मक स्वास्थ्य का ध्यान रखें:

गर्भावस्था में भावनात्मक स्वास्थ्य का खयाल रखें. मूड स्विंग अधिक हो तो अवसाद की शिकार हो सकती हैं. अगर 2 सप्ताह तक यह स्थिति बनी रहती है तो डाक्टर से संपर्क करें.

10 प्रसव:

सामान्य प्रसव में रिकवरी जल्दी हो जाती है. 7 से 10 दिनों में शरीर में ऊर्जा का स्तर सामान्य हो जाता है. जबकि आमतौर पर सिजेरियन डिलिवरी के बाद 4 से 6 सप्ताह तक कोई काम न करने की सलाह दी जाती है. अस्पताल से घर आने पर अधिक शारीरिक मेहनत न करें. प्रसव के तुरंत बाद वजन घटाने में जल्दबाजी न करें. संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें. बच्चे को स्तनपान जरूर कराएं.

ब्रैस्टफीडिंग: आपके बेबी को आपका पहला तोहफा

लेखक- डा. तोषी व्यास

फिजियोथैरेपिस्ट (स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञ)

ब्रैस्टफीडिंग के सफ़र की शुरुआत हर बार आसान नहीं होती. कई बार बहुत सी बातों की समझ नहीं होती और कई बार कुछ बातें इतनी समझा दी जाती हैं कि हम कंफ्यूज हो जाते हैं. ब्रैस्टफीडिंग ना सिर्फ शिशु को कई प्रकार के इंफेक्शन से बचाता है जैसे निमोनिया, उल्टी दस्त, कान की तकलीफ़, बल्कि मां को भी कई गंभीर बीमारियों से बचाने में मददगार है जैसे स्तन कैंसर, पोस्टपार्टम डिप्रेशन आदि. तो आइए समझते हैं ब्रैस्टफीडिंग से जुड़ी ज़रूरी जानकारी और भ्रांति के बारे में.

1. सबसे पहली और बेहद जरूरी बात. बैलेंस डाइट. अक्सर देखने में आता है कि मां को डिलीवरी के बाद कई दिनों तक केवल दूध दलिया या लौकी गिलकी ही दी जाती है , जबकि यह वह समय है जिसमें सबसे ज्यादा न्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती है. इसलिए मां को संपूर्ण, संतुलित आहार दें जैसे दाल, चावल, सब्जी रोटी, सलाद, दही, छाछ आदि. डिलीवरी नॉर्मल हो या सिजेरियन, दूसरे दिन से ही टमाटर, टमाटर पालक, ब्रोकोली, सब्जियों आदि का सूप काफी फायदेमंद होता है.

2. बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का पीला गाढ़ा दूध आपके शिशु के लिए वरदान है. इसे कभी निकालकर ना फेंके.

3. प्रत्येक ब्रैस्टफीडिंग से पहले निप्पल को धोने की जरूरत नहीं होती है, यदि आप ऐसा करती हैं तो आप उस पदार्थ को भी साफ कर देती हैं जो स्वत: वहां निकलता रहता है और बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाने में कारगर है.

ये भी पढ़ें- दिमाग की दुश्मन हैं ये आदतें

4. अक्सर मां को डिलीवरी के तुरंत बाद आराम देने के लिए शिशु को मां से अलग रखा जाता है जबकि यह समय मां और शिशु की आपसी बॉन्डिंग के लिए बहुत जरूरी है और यही वह सबसे अच्छा समय भी है जब धीरे-धीरे मां और बच्चा दोनों ही ब्रैस्टफीडिंग को सीख सकते हैं जैसे ब्रैस्टफीडिंग के समय आप का पोश्चर सही है या नहीं, आपका शिशु सही ढंग से मुंह में निप्पल और गहरे गुलाबी घेरे को भी मुंह में लेकर दूध पिए जिसे लैचिंग कहते हैं.
“कंगारू तकनीक” जिसमें मां अपनी गर्माहट शिशु को प्रदान करती है भी इसी का एक रूप है जो बेहद लाभकारी है खासकर जन्म से पहले जन्मे शिशु के लिए.

5. ब्रैस्टफीडिंग कराते समय हमेशा ध्यान रखें कि आप और शिशु दोनों कंफर्टेबल पोश्चर में हों, अपनी सुविधानुसार आप बैठकर अथवा करवट पर लेट कर ब्रैस्टफीडिंग करवा सकती हैं. कंफर्टेबल पोश्चर में रहने के लिए तकियों का इस्तेमाल एक उत्तम उपाय है.

6. यदि आप को ब्रैस्टफीडिंग करवाते समय निप्पल में दर्द, सूजन अथवा लालिमा महसूस हो तो जरूर चेक करें कि शिशु की लैचिंग ठीक तरीके से हुई है या नहीं. फिर भी आराम ना मिले तो बिना देर किए विशेषज्ञ की सलाह लें.

7. यदि शिशु की उम्र 6 माह से कम है तो ऊपर से कोई भी आहार, घुटी या पानी ना दें. मां का दूध सर्वोत्तम और संपूर्ण आहार है.

8. कई बार सुनते हैं कि व्यायाम करने से दूध का स्वाद बदल जाता है. यह एक भ्रांति है. अपनी क्षमता अनुसार व्यायाम, संतुलित भोजन, और 3 —5 लीटर पानी या तरल पदार्थ आपको हमेशा फायदा ही करेंगे.

9. एक जरूरी बात जिससे हर दूसरी मां परेशान होती है. क्या बच्चे को उसकी जरूरत के हिसाब से दूध मिलता होगा? कहीं वह कमजोर तो नहीं पड़ जाएगा? दूध का बनना “डिमांड और सप्लाई” पर निर्भर होता है यानि जितना बच्चा पिएगा उतना बनेगा. दिन भर में बच्चा कितनी बार दूध पी रहा है, लैचिंग ठीक से हो रही है या नहीं, स्तन खाली होता है या नहीं, दिन भर में बच्चा कितनी बार नैपी गीली (नॉर्मल 8 से 10) कर रहा है आदि बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं और यदि सब ठीक है तो निश्चिंत रहिए. पंप करके मापने की गलती ना करें. फिर भी दिक्कत हो तो विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें.

10. शिशु बीमार हो या मां, सही इलाज और खानपान के साथ-साथ ब्रैस्टफीडिंग जारी रखें l. यदि बच्चे को दस्त हो रहे हों तब भी ब्रैस्टफीडिंग ज़रूर जारी रखें. यदि आप बीमार हैं तो अपने डॉक्टर को बताना ना भूलें कि आप ब्रैस्टफीडिंग करवाती हैं ताकि डॉक्टर आपको वही दवाइयां दे जिनसे शिशु की सेहत को कोई नुकसान ना पहुंचे.

ये भी पढ़ें- बच्चों के डिप्रेशन का कारण और इलाज, जानें यहां

11. शिशु को कम से कम 2 साल तक ब्रैस्टफीडिंग कराएं. जब भी आप ब्रैस्टफीडिंग बंद कराना चाहें, उसे जबरदस्ती या घरेलू नुस्खों (नीम, करेले का रस, हींग) की मदद से बंद ना करें. बल्कि धीरे-धीरे आपके शिशु के कंफर्ट लेवल को ध्यान में रखकर करें.

12.  आखिरी बात परिवार के सदस्यों के लिए. यदि आपके परिवार में कोई भी महिला है जो ब्रैस्टफीडिंग करवाती है तो उसे पूरा सहयोग करें, उसकी सेहत का ध्यान रखें, दवाइयां जैसे कैल्शियम, आयरन समय पर दें. उसके कामों में हाथ बटाएं, उसकी नींद और खानपान का ध्यान रखें.

बच्चों के डिप्रेशन का कारण और इलाज, जानें यहां

सोनू एक हँसमुख बच्चा है पर बीते कुछ दिनों से वो बहुत चुप और उदास रहने लगा था न जाने किस सोच में गुम रहता . माँ सीमा को तब चिंता हुई जब उसका खाना भी अचानक कम हो गया ऐसे में उसे डॉक्टर को दिखाया गया तब पता लगा कि सोनू डिप्रेशन में है और उसे काउंसलिंग की आवश्यकता है .सीमा और समीर सोच में पड़ गए कि इतना स्वस्थ्य वातावरण देने पर भी ये कैसे हुआ ?

काउंसलिंग पर पता लगा कि स्कूल बस में बच्चे उसके नाम का मजाक बना बना कर उसे चिढ़ाते थे इसी से उसे मानसिक चोट पहुँची और किसी से शेयर न करने से वो डिप्रेशन की स्थिति तक पहुँच गया. ऐसे ही एक किस्से में दादा दादी के घर वापस लौट जाने से 8 साल की रिया डिप्रेशनग्रस्त हो गई जिसे काफी इलाज के बाद सामान्य किया जा सका. उपरोक्त उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि डिप्रेशन वयस्कों की तरह बच्चों में भी हो सकता है बस कारण अलग अलग हो सकते हैं.यदि कोई बच्चा लगातार दुखी या चिढचिढा है तो जरूरी नहीं कि वो डिप्रेशनग्रस्त हो .किंतु वो बार बार उदास रहता है लोगों से बात करने में हिचक रहा है खाने या नींद पर असर है तो हो सकता है वो डिप्रेशन में हो.अगर आपको भी लगता है कि बच्चों में डिप्रेशन नहीं हो सकता तो इन बातों पर गौर करें.

बच्‍चों में डिप्रेशन के लक्षण

चिढ़चिढ़ाहट और क्रोध आना, लगातार दुख या निराशा लगना

लोगों से संवाद करना बंद हो जाना

अस्वीकृत होने का भय रहना, भूख में कमी या अधिकता

नींद में कमी या अधिकता

रोने का मन होना, एकाग्रता में कमी

थकान और ऊर्जा में कमी

ये भी पढ़ें- Corona के बाद बढ़े जोड़ों के दर्द के मामले, पढ़ें खबर

बिना कारण पेट दर्द या सिरदर्द रहना

कुछ भी काम करने का मन न होना

अपराधबोध से ग्रसित होना

आत्महत्या जैसे घातक विचार आना.

क्‍यों होता है बच्‍चों में डिप्रेशन

कई बच्‍चों को स्‍कूल में दूसरे बच्‍चों द्वारा बहुत ज्‍यादा परेशान किए जाने पर वो डिप्रेशनग्रस्त हो सकता है. स्‍कूल में बच्‍चे को चिढ़ाये जाने पर उसके आत्‍म-सम्‍मान में कमी आती है और लगातार तनाव में रहने के कारण वो डिप्रेशन की स्थिति में पहुंच जाता है. वहीं लगातार पड़ रहे किसी भी दबाव के कारण भी बच्‍चा इस स्थिति में पहुंच सकता है. अब ये दबाव पढ़ाई का भी हो सकता है और भावनात्मक भी.

अनुवांशिक कारण

जिन बच्‍चों के परिवार में किसी सदस्‍य को पहले डिप्रेशन हुआ हो, उनमें बाकी बच्‍चों की तुलना में डिप्रेशनग्रस्त होने का खतरा ज्‍यादा रहता है. वहीं ऐसा आवश्यक नहीं है कि जिन बच्‍चों में डिप्रेशन का कोई पारिवारिक इतिहास न हो, उन्‍हें कभी डिप्रेशन हो ही नहीं सकता है. अगर आपको लग रहा है कि आपके बच्‍चे में डिप्रेशन का खतरा है तो जरा करीब से उसके क्रियाकलापों, भावनाओं और व्‍यवहार पर ध्‍यान दें.

लाइफ स्टाइल में बदलाव

वयस्‍कों की तरह बच्‍चे जल्‍दी किसी परिवर्तन को स्‍वीकार नहीं कर पाते हैं. नए घर या स्‍कूल में जाना, पैरेंट्स का अलगाव देखना या भाई-बहन का बिछड़ना, या दादा-दादी से दूर होना, ये सभी चीजें बच्‍चे के मन मस्तिष्क पर नकारात्‍मक छाप डालती हैं. अगर आपको लग रहा है कि इन चीजों के कारण आपका बच्‍चा प्रभावित हो रहा है तो जितना जल्‍दी हो सके, उससे इस बारे में बात करें. यदि किसी हादसे के बाद बच्‍चे के व्‍यवहार में परिवर्तन दिख रहा है तो आपको तुरंत डिप्रेशन की पहचान कर उसका इलाज शुरू करवा देना चाहिए.

ये भी पढ़ें- Monsoon Special: आंखों की बीमारी से बचना है जरूरी

रासायनिक असंतुलन

कुछ बच्‍चों में शरीर के अंदर रसायनों के असंतुलन के कारण डिप्रेशन हो जाता है. हार्मोनल परिवर्तन और वृद्धि होने के कारण ये असंतुलन हो सकता है लेकिन ऐसा कुपोषण या शारीरक गतिविधियां कम करने की वजह से भी हो सकता है. बच्‍चे का विकास ठीक तरह से हो रहा है या नहीं, इसकी जांच के लिए नियमित चेकअप करवाते रहें. इस तरह बच्चों को डिप्रेशन की स्थितियों से बचाया जा सकता है .

Corona के बाद बढ़े जोड़ों के दर्द के मामले, पढ़ें खबर

इन दिनों जोड़ों के दर्द के बढ़ते मामले कोई नई और असाधारण बात नहीं है लेकिन कोरोना काल में युवा और अधेड़ उम्र के लोगों में भी यह समस्या तेजी से बढ़ी है. कोविड के कारण लोगों का संपूर्ण स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया है क्योंकि इस संक्रमण से प्रभावित व्यक्ति होम क्वारंटीन या अस्पताल में भर्ती होने के कारण लंबे समय तक निष्क्रिय हो जाता है. इसके अलावा वायरस के दुष्प्रभावों के कारण भी मांसपेशियों और जोड़ों में कमजोरी के मामले बढ़े हैं.

डॉ. अखिलेश यादव, सीनियर हिप एंड नी रिप्लेसमेंट सर्जन, सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर, गाजियाबाद के अनुसार, कोविड की परेशानियों के साथ पारिवारिक पृष्ठभूमि, उम्र संबंधी परेशानियां, मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, रूमेटोइड अर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस तथा सूजन संबंधी बीमारियों जैसे संक्रमण समेत कई कारण भी जोड़ों के दर्द के मामले बढ़ रहे हैं. विटामिन डी3 और बी12 समेत अन्य पोषक तत्वों की कमी के कारण जोड़ों को मजबूती देने वाली हड्डियों और कार्टिलेज पर बुरा असर पड़ता है.

पहले से किसी तरह की समस्या से ग्रस्त व्यक्तियों में भी कोविड के बाद के दौर में जोड़ों का दर्द, सूजन, मांसपेशियों और जोड़ों में अकड़न, चलने—फिरने में दिक्कत आदि की आशंका रहती है. इस समस्या की गंभीरता जहां आंशिक से लेकर मामूली तक होती है, वहीं बहुत से मरीज लॉकडाउन के दौरान इस तरह की गंभीर और बार—बार आने वाली समस्या की शिकायत लेकर आए हैं.

ये भी पढ़ें- Monsoon Special: आंखों की बीमारी से बचना है जरूरी

प्रोफेशनल्स के बीच जोड़ों के दर्द के मामलों का एक बड़ा कारण घर से काम करना भी बन रहा है. वैसे तो ज्यादातर कामकाजी प्रोफेशनल्स हमेशा घर से काम करने का ख्वाब देखते हैं लेकिन लॉकडाउन के दौरान काम करते वक्त गलत तरीके से बैठकर काम करने, आरामदेह स्थिति में काम करने के कारण लंबे समय तक जोड़ों संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं.

जंक और फ्रोजन फूड पर बढ़ती निर्भरता अर्थराइटिस और जोड़ों के असह्य होते दर्द के मामले बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रही है. हाई—फैट जंक फूड में मौजूद बैक्टीरिया शरीर में सूजन बढ़ाते हैं जिससे हमारे शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली (इम्युन सिस्टम) घुटने जैसे जोंड़ों की कार्टिलेज और कोशिकाओं पर ही हमला करने लगती है जिससे काफी नुकसान होता है और खासकर संवेदनशील अंगों पर ज्यादा असर पड़ता है.

इस समस्या के साथ मोटापा, व्यायाम का अभाव, बोन डेंसिटी, पेशे से जुड़ी इंजुरी, कामकाज का खराब माहौल जैसे ठीक होने वाले और ठीक नहीं होने वाले कई रिस्क फैक्टर्स जुड़े हुए हैं. दर्द के कारण शारीरिक क्षमता कम होने लगती है और इससे जीवन की गुणवत्ता कमजोर हो जाती है तथा दूसरी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.

हालांकि नियमित व्यायाम करने बैठने या झुकने आदि जैसे प्रक्रियाओं में सुरक्षित मानकों को अपनाने जैसे सक्रिय लाइफस्टाइल बनाए रखने से बहुत सारी समस्याओं से बचा जा सकता है.
कई वर्षों से सक्रिय लाइफस्टाइल अपनाने वाले जो लोग कोविड महामारी के दौरान निष्क्रिय हो गए हैं, उनके संपूर्ण स्वास्थ्य पर असर पड़ा है. बैठने—सोने की खराब मुद्रा या आराम करने के लिए लेट जाने और शरीर को बहुत कम सक्रिय रखने के कारण शरीर अकड़ जैसा जाता है. इस अकड़न और इससे जुड़ी समस्याओं से बचने तथा लंबे समय तक पूरी तरह से स्वस्थ जोड़ बनाए रखने के लिए खुद को सक्रिय रखना ही सबसे अच्छा उपाय है. हल्का—फुल्का व्यायाम भी दर्द से छुटकारा दिलाने में मददगार हो सकता है.

ये भी पढ़ें- 6 टिप्स: दवाई के बिना भी काबू में रहेगा ब्लड प्रेशर

6 टिप्स: दवाई के बिना भी काबू में रहेगा ब्लड प्रेशर

ब्लड प्रेशर आजकल शहरी जीवन में एक बेहद आम समस्या बन गई है. हाई ब्लड प्रेशर हो या लो ब्लड प्रेशर दोनों ही स्थितियां आपके सामान्य जीवन को नुकसान पहुंचाने का काम करती हैं. आज हम आपको कुछ ऐसे तरीके बताने जा रहे हैं जिससे आप बिना कोई दवा खाए अपने ब्लड प्रेशर की समस्या को काबू में कर सकते हैं…

1. रोज 7 घंटे सोना है जरूरी :

रिसर्च में ये सामने आया है कि जो लोग 5 घंटे या उससे कम सोते हैं उनमें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या बेहद आमतौर पर पाई जाती है. ये आदत न सिर्फ ब्लड प्रेशर बल्कि हाइपर टेंशन का भी कारण बनती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे लोग अगर रोज़ 7 घंटे की नींद लेने लगे तो इस समस्या पर काबू पाने में मदद मिल सकती है.

2. नमक कम खाएं :

नमक आपके शरीर में ज्यादा पानी बनाए रखने में मददगार साबित होता है. शरीर में जब पानी की मात्रा ज्यादा होती है तो ये ब्लड प्रेशर बढ़ाने का काम करती है. जो लोग ब्लड प्रेशर के पहले से मरीज़ है अगर वो ज्यादा नमक का इस्तेमाल करते हैं तो उनमें कार्डियोव्स्क्युलर बीमारियों का खतरा पहले से ज्यादा बढ़ जाता है. ऐसे लोगों को नॉन वेज भी संभल कर खाना चाहिए क्योंकि उसमें सामान्य से ज्यादा नमक पाया जाता है.

ये भी पढ़ें- बार-बार सर्दी-जुकाम होना ठीक नहीं

3. हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट एक्सरसाइज जरूरी :

वैसे तो वर्कआउट करना आपको ज्यादातर बीमारियों से दूर रखता है लेकिन ब्लड प्रेशर के मामले में तो ये और भी ज़रूरी हो जाता है. ब्लड प्रेशर की समस्या से दूर रहने के लिए आपको हर हफ्ते करीब 150 मिनट वर्कआउट करने में खर्च करने चाहिए. रेग्युलर एरोबिक आपके ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाए रखने में मदद करता है और आपको दवाओं से भी दूर कर देता है.

4. रोजाना 10 मिनट मेडिटेशन :

स्ट्रेस में मानव शरीर में एड्रेलिन नाम का एक हारमोन निकलता है जो कि हार्टबीट और ब्लड प्रेशर को बढ़ाने का कम करता है. इसलिए स्ट्रेस भी ब्लड प्रेशर को बढ़ाने का काम करता है ऐसे में स्ट्रेस से दूर रहकर ब्लड प्रेशर से भी छुटकारा मिल जाता है. मेडिटेशन स्ट्रेस से छुटकारा पाने का सबसे बेहतर तरीका हो सकता है. रिसर्च में सामने आया है कि दिन में सिर्फ 10 मिनट मेडिटेशन आपको ब्लड प्रेशर की समस्या से दूर रखता है.

5. सब्जियां और फल खाएं :

रिसर्च में ये सामने आया है कि आपकी थाली में सब्जियां और फल जितने ज्यादा होते हैं ब्लड प्रेशर की समस्या आपसे उतनी ही दूर रहती है. हापरटेंशन के मरीजों के लिए भी फ्रूट्स का इस्तेमाल करना बेहद फायदेमंद साबित होता है. ये आपके ब्लड को सामान्य रखने में मदद करता है. ये शरीर में विटामिन और पोटेशियम जैसे तत्वों को कम नहीं होने देते.

ये भी पढ़ें- Corona में धूम्रपान करने वाले लोगों को है न्यूलॉजिकल बीमारियां होने का खतरा

6. वजन को कंट्रोल में रखें :

ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखने के लिए आपको अपने वज़न को भी कंट्रोल में रखना पड़ता है. जैसे-जैसे आपका वजन बढ़ता है आपके दिल को ब्लड पंप करने में मुश्किल पेश आने लगती है. इसका सीधा नतीजा ब्लड प्रेशर के रूप में सामने आता है. आपकी लंबाई के मुताबिक आपको अपना वज़न मेंटेन करना चाहिये.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें