Serial Story: स्वामी जी का आशीर्वाद- भाग 1

अलका ने सुबहसुबह नाश्ता तैयार किया और जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. समीर ने टोका,” क्या बात है आज कहीं जाना है क्या?”

“हां, स्वामी जी के पास जाना है. आप भूल गए क्या? आज उन्होंने मुझे बुलाया था न, पुत्रप्राप्ति के लिए किसी अनुष्ठान की शुरुआत करनी थी.”

“हां याद आया. पिछले महीने जब हम दोनों गए थे तभी तो उन्होंने बताया था कि फरवरी महीने की चतुर्दशी को एक अनुष्ठान की शुरुआत करनी है. चलो ठीक है. तुम आज जा कर उन से मिलो. ऑफिस से जल्दी छुट्टी ले कर शाम तक मैं भी आ जाऊँगा,” समीर ने कहा.

“हां जी ठीक है. फिर आप मुझे लेने आ जाना. मैं ने आटा जमा दिया है. सब्जी भी बन गई है. बस मांजी फुलके बना लेंगी. नन्ही और छोटी तो अभी सो रही हैं, ” अलका ने सास की तरफ देखते हुए कहा.

“कोई नहीं बहू तू निश्चिंत हो कर जा. मैं दोनों बच्चियों को संभाल लूंगी. बस स्वामी जी तेरी मनोकामना पूरी कर दें और कुछ नहीं चाहिए,” पास में बैठी सासू मां ने उसे आश्वस्त किया.

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अलका ने आज नीले रंग की साड़ी पहनी थी. स्वामी जी ने कहा था कि उसे मंगल, शुक्र और शनिवार को नीला रंग ही पहनना चाहिए. अलका निकलने लगी कि तभी छोटी जाग गई और रोने लगी. अलका ने उसे किसी तरह चुप कराया. मुंह में दूध की बोतल दे कर मांजी के पास बिठा दिया. वैसे तो छोटी 3 साल की हो चुकी थी पर सो कर उठते ही सब से पहले उसे दूध की बोतल चाहिए होती थी. नन्ही भी सातवें साल में लग चुकी थी. क्लास 2 में पढ़ने भी जाती थी.

देखा जाए तो अलका के जीवन में कोई कमी नहीं थी. पति समीर अच्छा कमाता था. घर में सारी सुखसुविधाएं थीं. दो बेटियां थीं और सासससुर भी बच्चियों को संभालने में उस का पूरा सहयोग देते थे. भरापूरा परिवार था. इतना सब होने के बावजूद अलका को एक कमी सालती रहती थी और वह थी बेटे की कमी. सास भी एक पोते की ख्वाहिश रखती थी. अलका स्वामी जी के आश्रम इसी चक्कर में जाने लगी थी. उस की किसी परिचिता ने ही उसे स्वामी जी के बारे में बताया था और कहा था कि उन का आशीर्वाद मिल जाए तो सब कुछ संभव हो जाता है.

स्वामी जी की उम्र करीब 50 साल की थी. चेहरे पर दाढ़ीमूछें और बदन पर गेरुए वस्त्र. शहर से 15 किलोमीटर दूर एक सुनसान से इलाके में स्वामी जी का बड़ा सा आश्रम था. यहां सुखसुविधा की हर चीज मौजूद थी. आश्रम में कई कमरे थे. एक बड़े से हॉल में वह भक्तों को उपदेश देते थे. दूसरे कमरे में उन के ध्यान लगाने की व्यवस्था थी. तीसरा कमरा थोड़ा अंदर की तरफ था. वहां स्वामी जी अपने खास भक्तों को ही बुलाते थे और थोड़ा वक्त उन के साथ अकेले बिताते थे. उन्हें ज्ञान देते थे. एक कमरे में स्वामी जी के सारे गैजेट्स रखे हुए थे जहां किसी को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी.

अलका स्वामी जी के खास भक्तों में शुमार हो चुकी थी मगर अब तक उसे अंदर नहीं बुलाया गया था. वह हॉल में बैठ कर ही स्वामी जी के प्रवचन सुना करती. आज जब वह आश्रम पहुंची तो स्वामी जी ने अपने उसी कमरे में आने को कहा जहां खास भक्त ही आ सकते थे. अलका खुशी से फूली नहीं समाई और जल्दी से अंदर पहुंची.

स्वामी ने कमरा अंदर से बंद कर लिया. इस वक्त स्वामी के शरीर पर सिवा एक धोती के और कोई कपड़ा नहीं था. अलका को कुछ अजीब लगा मगर स्वामी के प्रति उस के मन में गहरी श्रद्धा थी. वह हाथ जोड़ कर नीचे बैठने लगी तो स्वामी ने उसे बाजुओं से पकड़ कर बैड के पास रखी कुर्सी पर बिठा लिया.

फिर उसे आंखें बंद कर ध्यान लगाने को कहा और बोला, “पुत्री आज मैं तुझे एक मंत्र बताऊंगा. तुझे उस मंत्र को 108 बार जपना है. इस बीच मैं तेरे साथ योगक्रिया करुंगा पर तुझे खामोश रह कर मंत्रजाप करते रहना होगा. कुछ भी बोलना नहीं है. ”

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अलका ने आंखें बंद कर लीं और स्वामी के बताए मंत्र का जाप करने लगी. तभी उसे महसूस हुआ जैसे कोई उस के होठों पर कुछ चिपका रहा है. उस ने जल्दी से आंखें खोली तो स्वामी को अपने बहुत करीब पाया. स्वामी की लाललाल आंखों में वासना की लपटें साफ़ दिख रही थीं. स्वामी ने अलका के मुंह पर टेप चिपका दिया था ताकि वह चिल्ला न सके.

अब स्वामी एकएक कर उस के कपड़े उतारने लगा. अलका चिल्लाने की और खुद को उस जानवर के पंजे से छुड़ाने की नाकाम कोशिश करती रही. पर कुछ कर न सकी. स्वामी ने उस की इज्जत तारतार कर दी. वह देर तक उसे लूटताखसोटता रहा.

अंत में अपनी भूख मिटा कर वह उस की आंखों में देखता हुआ बोला, ” पुत्री घबरा मत मेरे आशीर्वाद से अब तुझे पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी. तू आज की बात घर में किसी से मत कहना वरना कार्य की सफलता बाधित होगी और तेरी बदनामी भी हो जाएगी. अगर तूने मुंह खोला तो याद रख तेरे साथ बहुत बुरा होगा. तेरी बच्चियां खतरे में आ जाएंगी ”

अलका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे, किसे दोष दे और किस से क्या कहे? वह उसी अस्तव्यस्त हालत में बाहर निकलने लगी तो स्वामी ने उसे रोका,” पुत्री बाथरूम में जा कर चेहरा धो, बाल और कपड़े संवार और फिर बाहर निकल वरना लोग क्या सोचेंगे? तेरी मनोकामना पूरी करने के लिए मुझे तेरे करीब आना पड़ा. अब तू पुत्रवती बनेगी. तेरी हर तकलीफ दूर हो जाएगी.”

अलका दर्द से व्यथित थी. मन में स्वामी के लिए घृणा के भाव उबल रहे थे. दिमाग में हजारों सवाल घूम रहे थे, जैसे यदि वह घरवालों को अपने साथ हुई इस घटना की जानकारी देगी तो क्या वे उसे पहले की तरह ट्रीट करेंगे? क्या वे उस औरत को अपने घर की लाडली बहू बना कर रखेंगे जिस की इज्जत लुट चुकी हो? उस का मन बेचैन हो रहा था. वह सोचने लगी कि यह सच्चाई बता कर क्या वह अपने पति की नजरों में गिर नहीं जाएगी? क्या पति उस की बात पर विश्वास करेगा?

हैरानपरेशान सी अलका चेहरा धो कर बाहर निकली तो देखा स्वामी उस के पति से बात कर रहा है. अलका अंदर ही अंदर बुरी तरह डर गई. स्वामी ने उस की तरफ देखते हुए उस के पति समीर से कहा,” ले जा अपनी पत्नी को. मैं ने उसे अपना आशीर्वाद दे दिया है. अनुष्ठान की शुरुआत भी कर दी है और हां अलका पुत्री, मैं ने तेरे पति को बता दिया है कि तुझे हर सोमवार यहां आना होगा ताकि अनुष्ठान पूर्ण हो सके,” स्वामी ने धूर्तता से कहा तो अलका अंदर से घबरा उठी.

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Serial Story: स्वामी जी का आशीर्वाद- भाग 2

समीर ने स्वामी के पैर छू कर विदा लिया और अलका को ले कर घर की तरफ चल पड़ा. अलका समझ रही थी कि घरवालों के मन में स्वामी के प्रति कैसी अंधभक्ति जमी है. वह चाह कर भी पति के आगे स्वामी की हकीकत जाहिर नहीं कर सकी. उल्टा समीर सारे रास्ते स्वामी की तारीफों के पुल बांधता आया. अलका के दिमाग में तूफान उठते रहे.

उस दिन रात में वह ठीक से सो भी नहीं सकी. बारबार उठ कर बैठ जाती. जैसे ही नींद पड़ती कि स्वामी का चेहरा आंखों के आगे घूमने लगता और वह नींद में ही चीख पड़ती. सांसे तेज चलने लगतीं.

धीरेधीरे दिन बीतने लगे. फिर से सोमवार आने वाला था और अलका यह सोचसोच कर बेचैन थी कि वह अब क्या करेगी. उस ने अपने दिल का दर्द किसी से भी बयां नहीं किया था. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब उसे क्या करना चाहिए.

रविवार की रात पति ने याद दिलाया,” कल हमें स्वामी जी के पास जाना है. मैं ने ऑफिस से छुट्टी ले ली है. तुम सुबह तैयार रहना.”

“मगर मैं अब वहां जाना नहीं चाहती प्लीज.”

“मगर क्यों ? कोई बात हुई है क्या? बताओ अलका, ” समीर ने पूछा.

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अलका समझ नहीं पा रही थी कि पति को कैसे बताए? कहीं उसे ही गलत न समझ लिया जाए. इसलिए उस ने बहाना बनाया ,”बच्चों को छोड़ कर जाना पड़ता है न इसलिए.”

“अरे नहीं अलका तुम बच्चों की फ़िक्र मत करो. उन्हें मां संभाल लेंगी. स्वामी जी ने बताया है कि अनुष्ठान अधूरा रह गया तो पूरे परिवार पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ेगा. बच्चों की जान पर बन आएगी. वैसे भी एक बार अनुष्ठान पूरा हो जाए तो स्वामी जी के आशीर्वाद से तुम पुत्रवती बन जाओगी. तुम ही चाहती थी न,” समीर ने समझा कर कहा.

मन मसोस कर अलका को फिर से स्वामी के पास जाना पड़ा. समीर अलका को ले कर भक्तों की कतार में किनारे की तरह बैठ गया. स्वामी ने जैसे ही अलका को देखा तो उस की आंखों में चमक आ गई. इधर अलका का दिल धड़क रहा था. स्वामी ने थोड़ी देर उपदेश देने का ढोंग किया और फिर उठ गया.

इधर समीर के पास किसी क्लाइंट का फोन आ गया. उस ने उठते हुए अलका से कहा,” मुझे जरूरी काम से किसी क्लाइंट से मिलने जाना होगा. बस 1-2 घंटे में आ जाऊंगा,” कह कर वह चला गया.

अलका बुत बन कर बैठी रही. कुछ ही देर में स्वामी ने उसे अंदर आने को सूचना भिजवाई. अलका का दिल कर रहा था कि वह भाग जाए पर पति को क्या जवाब देगी. यही सोच कर उस से उठा भी नहीं गया. स्वामी ने उसे फिर से बुलवाया. एक बार फिर से अलका के शरीर को रौंदा.

काम पूरा होने के बाद स्वामी ने फिर धूर्तता से कहा,” जा पुत्री हाथमुंह धो कर आ. अब तुझे अगले सोमवार आना होगा.”

अलका का दिल कर रहा था कि पास पड़ी कुर्सी उठा कर स्वामी के सिर पर दे मारे मगर वह ऐसा नहीं कर सकती थी. अपने साथसाथ अपने परिवार की इज्जत मिट्टी में नहीं मिला सकती थी.

कई बार यही सब फिर से दोहराया गया. घर वाले खुश थे कि अनुष्ठान पूरा होने पर उस के गर्भ में पुत्र धन आएगा. जब कि अलका अंदर ही अंदर घुट रही थी. फिर धीरेधीरे अलका को अपने शरीर के अंदर बदलाव नजर आने लगे.

उस दिन सुबहसुबह बाथरूम में उसे उल्टियां हुईं. पीरियड्स पहले ही बंद हो चुके थे. अलका समझ गई थी कि वह गर्भवती है पर इस बार गर्भवती होने के अहसास उसे कोई खुशी नहीं दी. उल्टा वह चिल्लाचिल्ला कर रोने लगी. उसे लग रहा था जैसे उस कुटिल स्वामी की दो लाल आंखें अभी भी उस का पीछा कर रही हैं. उस के गर्भ को भींच कर ठहाके मार रही हैं. वह तड़प उठी और वहीं पर बेहोश हो कर गिर पड़ी.

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बाद में घर वालों ने डॉक्टर को बुलाया तो सब को पता चल गया कि वह गर्भवती है. सभी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई मगर अलका का चेहरा पीला पड़ा हुआ था. वह समझ नहीं पा रही थी कि आज प्रेगनेंसी की खुशी मनाए या फिर स्वामी द्वारा दिए गए धोखे का गम.

पति प्यार से उस की तरफ देख रहा था. सास बलैयां ले रही थी मगर वह उदास अपने आंसू छिपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी. 2 दिन बाद सोमवार था. पति उसे फिर से स्वामी के पास ले कर गया. उस के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और बोला,” स्वामी जी आप के आशीर्वाद से अलका मां बनने वाली है.”

अलका ने स्वामी की तरफ देखा. स्वामी ने धूर्तता से हंसते हुए कहा,” पुत्रवती भव. आज अनुष्ठान का अंतिम दिन है पुत्री. आओ मेरे साथ.”

कमरे में पहुंचते ही अलका ने चिल्ला कर स्वामी से कहा,” तेरा बच्चा मेरे पेट में है धूर्त, अब क्या करोगे ? अपने बच्चे को अपना नाम नहीं दोगे? ”

” पागल है क्या तू ? तेरे बच्चे को अपना नाम दूंगा तो मुझ पर भरोसा कौन करेगा? लाखों लोगों की भीड़ नहीं देखी जो मेरे मेरे ऊपर विश्वास रख कर इतनी दूर मेरे दर पर आते हैं, गुहार लगाते हैं. ”

“हां पाखंडी तेरी धूर्तता सब के आगे नहीं आती न. तभी तू स्वामी का मुखौटा लगा कर रोज नईनई औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाता है. मेरे जैसी मजबूर औरतें चुपचाप तेरी ज्यादतियां सहती रहती हैं तभी तेरी हिम्मत इतनी बढ़ी हुई है.”

“जुबान संभाल कर बात कर. तू कर भी क्या सकती है? पति को बताएगी तो बता दे. देखूं किस की इज्जत पर आंच आती है ? यहां भक्तों की भीड़ देखी ही है, सब तुझे पागल समझ कर पत्थरों से मारेंगे. समझदारी इसी में है कि अब अपने इस बच्चे और पति के साथ सुख से जी. मेरे यहां आने की जरूरत नहीं है.”

” मैं यह सच अपने पति को जरूर बताऊंगी. सब बता दूंगी उन्हें .. “रोते हुए अलका ने कहा.

स्वामी हंसा, ” बता रहा हूं तुझे, ऐसी भूल मत करना. तेरी जिंदगी और परिवार की इज़्ज़त दोनों बर्बाद हो जाएंगे. चल अब उठ, जा यहां से. चली जा और याद रखना मुंह खोला तो तेरी ही जिंदगी तबाह होगी. मुझ पर आंच भी नहीं आएगी.”

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केलिकुंचिका: दुर्गा की कौनसी गलती बनी जीवनभर की सजा

Serial Story: केलिकुंचिका- भाग 3

माधुरी ने उस से कहा, ‘‘तुम वेदों को इतना महत्त्व क्यों दे रही हो? मैं ने तो सुना है कि वेद स्त्रियों के लिए नहीं हैं.’’ दुर्गा बोली, ‘‘तू उस की छोड़, क्लासिकल भाषाओं के अच्छे जानकारों की जरूरत हमेशा रहेगी. हर युग में उन्हें नए ढंग से पढ़ा और समझा जाता है.’’ जब तक दुर्गा माधुरी के साथ रही, उस ने दुर्गा की आर्थिक सहायता भी की. कुछ पैसे दुर्गा ट्यूशन पढ़ा कर भी कमा लेती थी. इस बीच, दुर्गा का बेटा शलभ 2 साल का हो चुका था. तभी जरमनी से संस्कृत टीचर के लिए उस का बुलावा आ गया.

कोलकाता के जरमन कौन्सुलेट से दुर्गा और बेटे शलभ को वीजा भी मिल गया. वह जरमनी के हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी गई.

जरमनी पहुंच कर दुर्गा को बिलकुल अलग माहौल मिला. जरमनी के लगभग एक दर्जन से ज्यादा शीर्ष विश्वविद्यालयों हीडेलबर्ग, एलएम यूनिवर्सिटी म्यूनिक, वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी, टुएबिनजेन यूनिवर्सिटी आदि में संस्कृत की पढ़ाई होती है. उसे देख कर खुशी हुई कि जरमनी के अतिरिक्त अन्य यूरोपियन देश और अमेरिका के विद्यार्थी भी संस्कृत पढ़ते हैं. वे जानना चाहते हैं कि भारत के प्राचीन इतिहास व विचार किस तरह इन ग्रंथों में छिपे हैं. भारत में संस्कृत की डिगरी तो नौकरी के लिए बटोरी जाती है लेकिन जरमनी में लोग अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए संस्कृत पढ़ने आते हैं. इन विद्यार्थियों में हर उम्र के बच्चे, किशोर, युवा और प्रौढ़ होते हैं. दुर्गा ने देखा कि इन में कुछ नौकरीपेशा यहां तक कि डाक्टर भी हैं. दुर्गा को पता चला कि अमेरिका और ब्रिटेन में जरमन टीचर संस्कृत पढ़ाते हैं. हम अपनी प्राचीन संस्कृति और भाषा की समृद्ध विरासत को सहेजने में सफल नहीं रहे हैं. यहां का माहौल देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि जरमन लोग ही शायद भविष्य में संस्कृत के संरक्षक हों. वे दूसरी लेटिन व रोमन भाषाओं को भी संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं.

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दुर्गा का बेटा शलभ भी अब बड़ा

हो रहा था. वह जरमन के अतिरिक्त हिंदी, इंगलिश और संस्कृत भी सीख रहा था. दुर्गा ने कुछ प्राचीन पुस्तकों, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम, गीता और वेद के जरमन अनुवाद भी देखे और कुछ पढ़े भी. जरमन विद्वानों का कहना है कि भारत के वेदों में बहुतकुछ छिपा है जिन से वे काफी सीख सकते हैं. सामान्य बातें और सामान्य ज्ञान से ले कर विज्ञान के बारे में भी वेद से सीखा जा सकता है.

जरमनी आने पर भी दुर्गा हमेशा अपनी सहेली माधुरी के संपर्क में रही थी. उस ने माधुरी को कुछ पैसे भी लौटा दिए थे जिस के चलते माधुरी थोड़ा नाराज भी हुई थी. माधुरी से ही दुर्गा को मालूम हुआ कि उस की दीदी अमोलिका और पापा दीनानाथ अब नहीं रहे. अमोलिका का बेटा बंटी कुछ साल नानी के साथ रहा था, बाद में वह अपने पापा जतिन के पास चला गया. उस की नानी भी उसी के साथ रहती थी. बंटी 16 साल का हो चुका था और कालेज में पढ़ रहा था. इधर, दुर्गा का बेटा शलभ 15 साल का हो गया था. वह भी अगले साल कालेज में चला जाएगा. दुर्गा के निमंत्रण पर माधुरी जरमनी आई थी. वह करीब एक महीने यहां रही. दुर्गा ने उसे बर्लिन, बोन, म्युनिक, फ्रैंकफर्ट, कौंलोन आदि जगहें घुमाईं. माधुरी इंडिया लौट गई.

दुर्गा से यूनिवर्सिटी की ओर से वेद पढ़ाने को कहा गया. उस से वेद के कुछ अध्यायों व श्लोकों का समुचित विश्लेषण करने को कहा गया. दुर्गा ने वेदों का अध्ययन किया था, इसलिए उसे पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं हुई. उस के पढ़ाने के तरीके की विद्यार्थियों और शिक्षकों ने खूब प्रशंसा की. दुर्गा अब यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित हो चुकी थी, बल्कि उसे अन्य पश्चिमी देशों में भी कभीकभी पढ़ाने जाना होता था.

5 वर्षों बाद शलभ फिजिक्स से ग्रेजुएशन कर चुका था. उसे न्यूक्लिअर फिजिक्स में आगे की पढ़ाई करनी थी. पीजी में ऐडमिशन से पहले उस ने मां से इंडिया जाने की पेशकश की तो दुर्गा ने उस की बात मान ली. दुर्गा ने उस के जन्म की सचाई अब उसे बता दी थी. सच जान कर उसे अपनी मां पर गर्व हुआ. अकेले ही काफी दुख झेल कर, अपने साहस के बलबूते पर मां खुद को और मुझे सम्मानजनक स्थिति में लाई थी. शलभ को अपनी मां पर गर्व हो रहा था. हालांकि वह किसी संबंधी के यहां नहीं जाना चाहता था लेकिन दुर्गा ने उसे अपने पिता जतिन और नानी से मिलने को कहा. माधुरी ने दुर्गा को जतिन का ठिकाना बता दिया था. जतिन आजकल नागपुर के पास वैस्टर्न कोलफील्ड में कार्यरत था.

इंडिया आ कर शलभ ने पहले देश के विभिन्न ऐतिहासिक व प्राचीन नगरों का भ्रमण किया. बाद में वह पिता से मिलने नागपुर गया. उस दिन रविवार था, जतिन और नानी दोनों घर पर ही थे. डोरबैल बजाने पर जतिन ने दरवाजा खोला. शलभ ने उस के पैर छुए. जतिन बोला, ‘‘मैं ने तुम को पहचाना नहीं.’’ शलभ बोला, ‘‘मैं एक जरमन नागरिक हूं. भारत घूमने आया हूं. मैं अंदर आ सकता हूं. मेरी मां ने मुझे आप से मिलने के लिए कहा है.’’

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शलभ का चेहरा एकदम अपनी मां से मिलता था. तब तक उस की नानी भी आई तो उस ने नानी के भी पैर छू कर प्रणाम किया. जतिन और नानी दोनों शलभ को बड़े गौर से देख रहे थे. शलभ ने देखा कि शोकेस पर उस की मौसी और मां दोनों की फोटो पर माला पड़ी हुई है. शलभ ने दोनों तसवीरों की ओर संकेत करते हुए पूछा, ‘‘ये महिलाएं कौन हैं?’’

जतिन ने बताया, ‘‘एक मेरी पत्नी अमोलिका, दूसरी उन की छोटी बहन दुर्गा है, अब दोनों इस दुनिया में नहीं हैं.’’

‘‘एस तुत मिर लाइट,’’ शलभ बोला. ‘‘मैं समझा नहीं,’’ जतिन ने कहा.

‘‘आई एम सौरी, यही पहले मैं ने जरमन भाषा में कहा था,’’ शलभ बोला. ‘‘अरे वाह, कितनी भाषाएं जानते हो,’’ जतिन ने हैरानी जताई.

‘‘सब मेरी मां की देन है,’’ शलभ ने कहा. फिर दुर्गा की फोटो को दिखाते हुए शलभ बोला, ‘‘तो ये आप की केलिकुंचिका हैं.’’

‘‘व्हाट?’’ ‘‘केलिकुंचिका यानी साली, सिस्टर इन लौ.’’

‘‘यह कौन सी भाषा है…जरमन?’’ ‘‘जी नहीं, संस्कृत.’’

‘‘तो तुम संस्कृत भी जानते हो?’’ ‘‘जी, आप की केलिकुंचिका संस्कृत की विदुषी हैं, उन्हीं ने मुझे संस्कृत भी सिखाई है.’’

‘‘वह तो बहुत पहले मर चुकी है.’’ ‘‘आप के लिए मृत होंगी.’’

‘‘व्हाट? हम लोगों ने उसे ढूढ़ने की बहुत कोशिश की थी, पर वह नहीं मिली. आखिर में हम ने उसे मृत मान लिया.’’ ‘‘अच्छा, तो अब चलता हूं, कल दिल्ली से मेरी फ्लाइट है.’’

शलभ ने उठ कर दोनों के पैर छुए और बाहर निकल गया. ‘‘अरे, जरा रुको तो सही, हमारी बात तो सुनते जाओ, शलभ…’’

वे दोनों उसे पुकारते रहे, पर उस ने एक बार भी मुड़ कर उन की तरफ नहीं देखा.

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Serial Story: केलिकुंचिका- भाग 1

दीनानाथजी बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे. वे 5वीं मंजिल के अपने अपार्टमैंट में रोज शाम को इसी समय चाय पीते और नीचे बच्चों को खेलते देखा करते थे. उन की पत्नी भी अकसर उन के साथ बैठ कर चाय पिया करती थीं. पर अभी वे किचन में महरी से कुछ काम करा रही थीं. तभी बगल में स्टूल पर रखा उन का मोबाइल फोन बजा. उन्होंने देखा कि उन की बड़ी बेटी अमोलिका का फोन था. दीनानाथ बोले, ‘‘हां बेटा, बोलो, क्या हाल है?’’

अमोलिका बोली, ‘‘ठीक हूं पापा. आप कैसे हैं? मम्मी से बात करनी है.’’ ‘‘मैं ठीक हूं बेटा. एक मिनट होल्ड करना, मम्मी को बुलाता हूं,’’ कह कर उन्होंने पत्नी को बुलाया.

उन की पत्नी बोलीं, ‘‘अमोल बेटा, कैसी तबीयत है तेरी? अभी तो डिलीवरी में एक महीना बाकी है न?’’ ‘‘वह तो है, पर डाक्टर ने कहा है कि कुछ कौंप्लिकेशन है, बैडरैस्ट करना है. तुम तो जानती हो जतिन ने लवमैरिज की है मुझ से अपने मातापिता की मरजी के खिलाफ. ससुराल से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलने वाली है. तुम 2-3 महीने के लिए यहां आ जातीं, तो बड़ा सहारा मिलता.’’

‘‘मैं समझ सकती हूं बेटा, पर तेरे पापा दिल के मरीज हैं. एक हार्टअटैक झेल चुके हैं. ऐसे में उन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं होगा.’’ ‘‘तो तुम दुर्गा को भेज सकती हो न? उस के फाइनल एग्जाम्स भी हो चुके हैं.’’

‘‘ठीक है. मैं उस से पूछ कर तुम्हें फोन करती हूं. अभी वह घर पर नहीं है.’’

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दुर्गा अमोलिका की छोटी बहन थी. वह संस्कृत में एमए कर रही थी. अमोलिका की शादी एक माइनिंग इंजीनियर जतिन से हुई थी. उस की पोस्ंिटग झारखंड और ओडिशा के बौर्डर पर मेघाताबुरू में एक लोहे की खदान में थी. वह खदान जंगल और पहाड़ों के बीच में थी, हालांकि वहां सारी सुविधाएं थीं. बड़ा सा बंगला, नौकरचाकर, जीप आदि. कंपनी का एक अस्पताल भी था जहां सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध थीं. फिर भी अमोलिका को बैडरैस्ट के चलते कोई अपना, जो चौबीसों घंटे उस के साथ रहे, चाहिए था. अमोलिका के मातापिता ने छोटी बेटी दुर्गा से इस बारे में बात की. दुर्गा बोली कि ऐसे में दीदी का अकेले रहना ठीक नहीं है. वह अमोलिका के यहां जाने को तैयार हो गई. उस के जीजा जतिन खुद आ कर उसे मेघाताबुरू ले गए.

दुर्गा के वहां पहुंचने के 2 हफ्ते बाद ही अमोलिका को पेट दर्द हुआ. उसे अस्पताल ले जाया गया. डाक्टर ने उसे भरती होने की सलाह दी और कहा कि किसी भी समय डिलीवरी हो सकती है. अमोलिका ने भरती होने के तीसरे दिन एक बेटे को जन्म दिया. पर बेटे को जौंडिस हो गया था, डाक्टर ने बच्चे को एक सप्ताह तक अस्पताल में रखने की सलाह दी. जतिन और दुर्गा प्रतिदिन विजिटिंग आवर्स में अस्पताल आते और खानेपीने का सामान दे जाते थे. एक दिन जतिन ने जीप को कुछ जरूरी सामान, दवा आदि लेने के लिए शहर भेज दिया था. दुर्गा मोटरसाइकिल पर ही उस के साथ अस्पताल आई थी. उस दिन मौसम खराब था. अस्पताल से लौटते समय बारिश होने लगी. दोनों बुरी तरह भीग गए थे. दुर्गा मोटरसाइकिल से उतर कर गेट का ताला खोल रही थी. उस के गीले कपड़े उस के बदन से चिपके हुए थे जिस के चलते उस के अंगों की रेखाएं स्पष्ट झलक रही थीं. जतिन के मन में तरंगें उठने लगी थीं.

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ताला खुलने पर दोनों अंदर गए. बिजली गुल थी. दुर्गा सीधे बाथरूम में गीले कपड़े बदलने चली गई. इस बात से अनजान जतिन तौलिया लेने के लिए बाथरूम में गया. वह रैक पर से तौलिया उठाना चाहता था. दुर्गा साड़ी खोल कर पेटीकोट व ब्लाउज में थी. उस ने नहाने की सोच कर हैंडशावर हाथ में ले रखा था. उस ने दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया था ताकि कुछ रोशनी अंदर आ सके. अचानक किसी की उपस्थिति महसूस होने पर उस ने पूछा, ‘‘अरे आप, जीजू, अभी क्यों आए? निकलिए, मैं बंद कर लेती हूं.’’ इतना कह कर उस ने खेलखेल में हैंडशावर से जतिन को गीला कर दिया. जतिन बोलता रहा, ‘‘यह क्या कर रही हो? मुझे पता नहीं था कि तुम अंदर हो़’’

‘‘मुझे भी पता नहीं, अंधेरे में पानी किधर जा रहा है,’’ और वह हंसने लगी. ‘‘रुको, मैं बताता हूं पानी किधर छोड़ा है तुम ने. यह रहा मैं और यह रही तुम,’’ इतना बोल कर जतिन ने उसे बांहों में भर लिया. दुर्गा को भी लगा कि उस का गीला बदन तप रहा है.

‘‘क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे.’’ ‘‘अभी कहां कुछ किया है मैं ने?’’

दुर्गा को अपने भुजबंधन में लिए हुए ही एक चुंबन उस के होंठों पर जड़ दिया जतिन ने. इस के बाद तपिश खत्म होने पर ही अलग हुए वे दोनों. दुर्गा बोली, ‘‘जो भी हुआ, वह हरगिज नहीं होना चाहिए था. क्षणिक आवेश में आ कर हम दोनों ने अपनी सीमाएं तोड़ डालीं. जरा सोचिए, दीदी को जब कभी यह बात मालूम होगी तो उस पर क्या गुजरेगी.’’

जतिन बोला, ‘‘अब जाने दो, जो हुआ सो हुआ. उसे बदला तो नहीं जा सकता. ठीक तो मैं भी नहीं समझता हूं, पर बेहतर होगा अमोलिका को इस बारे में कुछ भी पता न चले.’’

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इस घटना के एक सप्ताह बाद अमोलिका भी अस्पताल से घर आई. उस का बेटा बंटी ठीक हो गया था. घर में सभी खुश थे. दुर्गा भी मौसी बन कर प्रसन्न थी. वह अपनी दीदी और भतीजे की देखभाल अच्छी तरह कर रही थी. जतिन ने शानदार पार्टी दी थी. अमोलिका के मातापिता भी आए थे. एक सप्ताह रह कर वे लौट गए. लगभग 2 महीने तक सबकुछ सामान्य रहा. दुर्गा की तबीयत ठीक नहीं रह रही थी. अमोलिका ने जतिन से कहा, ‘‘इसे थोड़ा डाक्टर को दिखा लाओ.’’

दुर्गा को अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस होने लगा था. पीरियड मिस होने से वह अंदर से डरी हुई थी. जतिन दुर्गा को ले कर अस्पताल गया. वहां लेडी डाक्टर ने चैक कर कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, सबकुछ नौर्मल है. दुर्गा मां बनने वाली है. जतिन और दुर्गा एकदूसरे को आश्चर्य से देख रहे थे. पर डाक्टर के सामने बनावटी मुसकराहट दिखाते रहे ताकि डाक्टर को सबकुछ नौर्मल लगे.

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Serial Story: केलिकुंचिका- भाग 2

छोटे से माइनिंग वाले शहर में सभी अफसर एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. थोड़ी ही देर में डाक्टर ने अमोलिका को फोन कर कहा, ‘‘मुबारक हो, शाम को मैं आ रही हूं, मिठाई खिलाना.’’ ‘‘श्योर, दरअसल हम लोगों ने जिस दिन पार्टी दी थी आप छुट्टी ले कर बाहर गई थीं.’’

‘‘वह तो ठीक है, मैं तुम्हारी मौसी बनने की खुशी में मिठाई मांग रही हूं. ठीक है, शाम को डबल मिठाई खा लूंगी.’’ डाक्टर से बात करने के बाद अमोलिका के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. उस के मन में संदेह हुआ क्योंकि दुर्गा और जतिन के अलावा घर में तीसरा और कोई नहीं था, कहीं यह बच्चा जतिन का न हो. उसे अपनी बहन पर क्रोध आ रहा था. साथ ही, उसे नफरत भी हो रही थी.

अभी तक दुर्गा और जतिन दोनों अस्पताल से घर भी नहीं लौटे थे. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आने वाले भीषण तूफान से कैसे निबटा जाए. कुछ पलों का आनंद इतनी बड़ी मुसीबत बन जाएगा, उन्होंने इस की कल्पना भी नहीं की थी. दोनों सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल अमोलिका को यह बात तो पता चलेगी ही, तब उस के सामने कैसे मुंह दिखाएंगे.

घर पहुंच कर दुर्गा बंटी के लिए दूध बना कर ले गई. उस ने दूध की बोतल अमोलिका को दी. वह बहुत गंभीर थी. दुर्गा वापस जाने को मुड़ी ही थी कि अमोलिका ने उसे हाथ पकड़ कर रोक लिया. पहले तो वह सोच रही थी कि सारा गुस्सा अभी के अभी उतार दे, पर उस ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारा एमए भी पूरा हो गया है. अगले महीने तुम्हारा कौन्वोकेशन भी है.’’ दुर्गा बोली, ‘‘हां.’’

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‘‘आगे के लिए क्या सोचा है? और तुम ने संस्कृत ही क्यों चुनी? इनफैक्ट संस्कृत की तो यहां कोई कद्र नहीं है.’’ ‘‘आजकल जरमनी में लोग संस्कृत में रुचि ले रहे हैं. बीए करने के बाद मैं एक साल स्कूल में पार्टटाइम संस्कृत टीचर थी. मैं ने जरमनी की एक यूनिवर्सिटी में संस्कृत ट्यूटर के लिए आवेदन दिया था. मैं ने जरमन भाषा का भी एक शौर्टटर्म कोर्स किया है. मुझे उम्मीद है कि जरमनी से जल्दी ही बुलावा आएगा.’’

‘‘कब तक जाने की संभावना है?’’ ‘‘कुछ पक्का नहीं कह सकती हूं, पर 6 महीने या सालभर लग सकता है. उन्होंने कहा है कि अभी तुरंत वैकेंसी नहीं है, होने पर सूचित करेंगे.’’

‘‘तब तक तुम्हारा ये बच्चा…’’ अमोलिका के मुंह से अचानक यह सुनना दुर्गा के लिए अनपेक्षित था. इस अप्रत्याशित प्रश्न के लिए वह तैयार नहीं थी. उसे चुप देख कर अमोलिका ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई दीदी के यहां आ कर यह सब गुल खिलाने में. वैसे तो मैं समझ सकती हूं तेरे पेट में किस का अंश है, फिर भी मैं तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’

दुर्गा सिर नीचे किए रो रही थी, कुछ बोल नहीं पा रही थी. अमोलिका ने ही फिर कड़क कर कहा, ‘‘यह किस का काम है? बंटी के सिर पर हाथ रख कर कसम खा तू, किस का काम है यह?’’ दुर्गा फिर चुप रही. तब अमोलिका ने ही कहा, ‘‘जतिन का ही दुष्कर्म है न यह? सच बता तुझे बंटी की कसम.’’

‘‘तुम्हारी खामोशी को मैं तुम्हारी स्वीकृति समझ रही हूं. बाकी मैं जतिन से समझ लूंगी.’’ दुर्गा वहां से चली गई. अमोलिका ने अपनी मां को फोन कर कहा, ‘‘मां, मैं कुछ दिनों के लिए वहां आ कर तुम लोगों के साथ रहना चाहती हूं.’’

मां ने कहा, ‘‘बेटा, यह तेरा घर है. जब चाहे आओ और जितने दिन चाहो आराम से रहो.’’ उस रात अमोलिका और जतिन में काफी कहासुनी हुई. उस ने जतिन से कहा, ‘‘तुम्हारे दुष्कर्म के बाद मुझे तुम से घिन हो रही है. मुझे नहीं लगता, मैं यहां और रह पाऊंगी.’’

जतिन के माफी मांगने और मना करने के बावजूद दूसरे दिन अमोलिका दुर्गा के साथ पीहर आ गई. उस ने मेघाताबुरू की कहानी मां को बताई. उस की मां भी बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने दुर्गा से कहा, ‘‘अरे, तू अपनी सगी बहन के घर में आग लगा बैठी.’’ दुर्गा के पास कोई जवाब न था. वह चुप रही. मां ने कहा, ‘‘मैं तेरी जैसी कुलटा को अपने घर में नहीं रख सकती. तू निकल जा मेरे घर से. हम लोग तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहते.’’

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उस रात दुर्गा को नींद नहीं आ रही थी. वह रात में एक बैग ले कर दरवाजा खोल कर घर से निकलना ही चाहती थी कि अमोलिका जग उठी. उस ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो?’’ दुर्गा बोली, ‘‘कुछ सोचा नहीं है, या तो आत्महत्या करूंगी या फिर सब से दूर कहीं चली जाऊंगी.’’

‘‘एक पाप तो तूने पहले ही किया, दूसरा पाप आत्महत्या करने का होगा.’’ ‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘तू एबौर्शन करा ले, उस के बाद आगे की जिंदगी का रास्ता साफ हो जाएगा.’’

‘‘एबौर्शन कराना भी तो एक पाप ही होगा.’’ ‘‘तू अभी चुपचाप घर में बैठ. कुछ दिनों में हम सब लोग मिलजुल कर बात कर कोई समाधान ढूंढ़ लेंगे.’’

दुर्गा ने महसूस किया कि उस के मातापिता दोनों ने ही उस से बोलचाल बंद कर दी है. वह तो अमोलिका की गुनाहगार थी, फिर भी दीदी कभीकभी उस से बात कर लेती थीं. उस को अंदर से ग्लानि थी कि उस की एक छोटी सी भूल की सजा दीदी और बंटी को भी मिल रही है. 2 दिनों बाद ही दुर्गा अचानक घर छोड़ कर कहीं चली गई. उस ने अपना कोई अतापता किसी को नहीं बताया. दुर्गा अपने साथ पढ़ी एक सहेली माधुरी के यहां कोलकाता आ गई. दोनों ने 12वीं तक साथ पढ़ाई की थी. उस ने उसे अपनी कहानी बताई और कहा, ‘‘प्लीज, मेरा पता किसी को मत बताना. मुझे कुछ दिनों के लिए पनाह दे, फिर मैं कहीं दूरदराज चली जाऊंगी.’’

माधुरी अविवाहित थी और नौकरी करती थी. वह बोली, ‘‘तू कहीं नहीं जाएगी. तू जब तक चाहे यहां रह सकती है. तू तो जानती ही है कि इस दुनिया में मेरा अपना निकटसंबंधी कोई नहीं है. तू यहीं रह, तू मां बनेगी और मैं मौसी.’’

वहीं दुर्गा ने एक बालक को जन्म दिया. उस ने वहीं रह कर इग्नू से 2 साल का मास्टर इन वैदिक स्टडीज का कोर्स किया. इसी बीच, उस ने झारखंड में धनबाद के निकट काको मठ और महाराष्ट्र में नासिक के निकट वेद पाठशालाओं में वहां के संतों व गुरुजनों से भी वेद पर विशेष चर्चा कर वेद के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाया.

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चरित्रहीन कौन: उमेश की गंदी हरकतों से क्यों परेशान थी आयुषी

Serial Story: चरित्रहीन कौन- भाग 1

पति उमेश की गंदी हरकतों से आयुषी तंग आ चुकी थी. आखिर कितनी मेड बदलेगी वह. उमेश की गंदी हरकतों से परेशान हो कर कितनी मेड काम छोड़ गईं तो कितनी को आयुषी ने खुद निकाल दिया.

आयुषी बैंक में नौकरी करती है और उमेश एलआईसी कार्यालय में है. उमेश तो घर से

10-11 बजे निकलता है, पर आयुषी को घर से जल्दी निकलना पड़ता है. उन के 2 बच्चे हैं- बेटी पावनी 11 साल की और बेटा सनी 7 साल का.

आयुषी दोनों बच्चों को स्कूल भेज उमेश का लंच पैक कर बाकी का काम बाई पर छोड़ तैयार हो कर बैंक निकल जाती. उसे हमेशा यही डर सताता है कि पता नहीं उस के पीछे उमेश और बाई कहीं कुछ…

कितनी बार आयुषी ने उमेश को अखबार की ओट से बाई को गंदी नजरों से घूरते देखा है. अब झाड़ूपोंछा लगाते वक्त किसी के भी कपड़े अस्तव्यस्त हो ही जाते हैं. इस का यह मतलब तो नहीं है कि कोई उसे गंदी नजरों से घूरे. ऐसे में कोई भी बाई असहज हो जाएगी. आयुषी ऐसे ही पति पर शक नहीं कर रही थी.

‘‘नंदा, मैं औफिस जा रही हूं. तुम काम खत्म कर के चली जाना… और हां फ्रिज में कुछ खाने का सामान रखा है उसे लेती जाना,’’ कह एक दिन आयुषी औफिस चली गई.

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आयुषी थोड़ी दूर ही पहुंची थी कि उसे याद आया कि वह अपनी दराज की चाबी भूल आई. उस ने तुरंत स्कूटी घर की तरफ घुमाई. घर की दूसरी चाबी आयुषी के पास रहती थी. अत: वह दरवाजा खोल कर जैसे ही अंदर गई उस के पैर वहीं ठिठक गए. उमेश और नंदा दोनों आयुषी के बैड पर एकदूसरे से लिपटे थे.

आयुषी को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था. बाई तो भाग गई… उमेश हकलाते हुए कहने लगा, ‘‘आयुषी मैं नहीं वही जबरदस्ती करने…’’

आयुषी ने बिना उमेश की पूरी बात सुने एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर दे मारा और फिर कहने लगी, ‘‘शर्म नहीं आती तुम्हें झूठ बोलते हुए… बिना तुम्हारी मरजी के वह और तुम… छि… छि:…,’’ कह आयुषी अपने आंसू पोंछते हुए आगे बोली, ‘‘उस दिन को कोसती हूं मैं, जिस दिन मेरी तुम से शादी हुई थी.’’

आयुषी औफिस तो चली गई, पर अपनी तबीयत खराब होने का बहाना कर तुरंत घर आ गई. पूरा दिन और रात वह सिसकती रही. किसी से कुछ नहीं कहा. न ही अपने बच्चों को इस बारे में कुछ पता लगने दिया. वह सोचने लगी कि कभी बच्चों को अपने पापा की इन गंदी हरकतों का पता चला, तो दोनों नफरत करेंगे उन से… उमेश की तो अब हिम्मत ही नहीं थी कि वह आयुषी के सामने जाए.

आयुषी बच्चों को सुबह स्कूल भेज कर घर का सारा काम खत्म कर औफिस चली जाती थी. कोई भी कामवाली सुबह आने को तैयार नहीं थी. सब यही कहतीं कि 9 बजे के बाद ही आ सकती हैं. आयुषी का मन तो करता कि नौकरी छोड़ दे, पर बच्चों के स्कूल और पढ़ाई पर जो मोटा पैसा खर्च होता है वह कहां से आएगा. आसमान छूती महंगाई के युग में एक की कमाई से घर चलाना संभव नहीं था.

एक बाई आई भी, पर कुछ दिन काम कर के छोड़ गई. वही बात सुबह 8 बजे नहीं आ सकती. आयुषी की तो कमर जवाब देने लगी थी. आखिर वह घरबाहर कितना करेगी.

आयुषी ने अपनी सहेली वैशाली से बाई के बारे में पूछने के लिए फोन किया, तो उस ने बताया, ‘‘हां एक बाई आती तो है मेरे घर काम करने, पर वह थोड़ी बूढ़ी है. अगर तुम कहो तो भेज देती हूं.’’

वैशाली की बात सुन कर आयुषी खुश हो गई, उसे यही तो चाहिए था. वह मन ही मन मुसकराई कि उमेश अब बूढ़ी औरत को क्या घूरेगा.

कांता बाई दूसरे दिन से ही काम पर आने लगी. अब आयुषी को कोई फिक्र नहीं थी. सब कुछ सुचारु रूप से चल रहा था.

कांता बाई 2-3 दिनों से नहीं आ रही थी, वैशाली से पता चला कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए कुछ दिनों बाद आएगी. सुन कर आयुषी के पसीने छूट गए.

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कांता बाई एक रोज किसी और को ले कर आई और कहने लगी, ‘‘मैडमजी, यह मेरी बहू है रूपा. अब से यही आप के घर काम करेगी.’’

‘‘कांता बाई जब आप की तबीयत ठीक हो जाएगी तब तो आओगी न काम पर?’’ आयुषी ने पूछा.

‘‘मैडमजी अब मुझ से काम नहीं होता है… गठिया की शिकायत है मुझे. काम करती हूं तो दर्द और बढ़ जाता है. मगर आप चिंता न करो मेरी बहू मुझ से भी अच्छा काम करेगी,’’ कांता बाई ने कहा.

आयुषी ने हां तो कह दी पर फिर वही शर्त कि सुबह 8 बजे आना पड़ेगा. रूपा मान गई.

रूपा काम तो अच्छा करती थी, पर आयुषी को डर लगा रहता था कि उमेश की गंदी नजर कहीं रूपा पर भी न पड़ जाए. रूपा थी भी बहुत खूबसूरत और फिर उम्र भी ज्यादा नहीं थी. यही कोई 22-23 साल. आयुषी के सामने ही वह काम कर के चली जाती थी.

आयुषी रविवार के दिन रूपा से खाना बनाने में भी मदद ले लिया करती थी. रूपा का व्यवहार भी अच्छा था. आयुषी हमेशा उसे कुछ न कुछ दे देती थी. जैसे पुराने सलवारसूट, चूडि़यां, बिंदी, लिपस्टिक आदि. रूपा भी बहुत खुश रहती थी. आयुषी को वह अब मैडमजी नहीं, दीदी कह कर बुलाने लगी थी.

आयुषी ने जब एक दिन रूपा से पूछा कि तुम्हारा पति क्या करता है, तो बोली, ‘‘दीदी, मेरा मर्द मजदूरी करता है. हमारी शादी के अभी 2 साल ही हुए हैं.’’

रूपा अपने मायके, ससुराल, नातेरिश्तेदारों सब के बारे में बताती रहती थी. आयुषी अब रूपा पर भरोसा करने लगी थी, परंतु उसे अपने पति पर कतई भरोसा न था.

रूपा को आयुषी के घर काम करते हुए करीब 7 महीने हो चुके थे. अब तो रूपा कभीकभार लेट भी आती, तो आयुषी कुछ नहीं कहती थी. उसे लगता था कि अगर रूपा ठीक है, तो उमेश कुछ नहीं कर सकता है.

रूपा अब बड़े सलीके से सजधज कर रहने लगी थी. आयुषी ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘रूपा, आज तो तुम बहुत अच्छी लग रही हो और यह तुम्हारा सलवारसूट भी. कहां से खरीदा? बहुत ही सुंदर रंग है.’’

रूपा कहने लगी, ‘‘दीदी, मेरी मां ने दिया था.’’

रूपा का चेहरा कुछ दिनों से बड़ा ही खिलाखिला सा लगने लगा था. आयुषी ने पूछा भी, ‘‘रूपा आजकल बड़ी खुश नजर आ रही है… कोई बात है क्या?’’ तब रूपा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘नहीं दीदी.’’

रूपा कुछ महीनों से काम करने लेट से आने लगी थी. पूछने पर कहने लगी ‘‘मेरी सास बीमार हैं, इस कारण देर हो जाती है,’’

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Serial Story: चरित्रहीन कौन- भाग 3

उमेश कहने लगा, ‘‘झूठ बोल रही है वह औरत. एक रोज मुझ से ही पैसा मांगने लगी कि मेरी सास बीमार है, डाक्टर को दिखाना है. मुझे दया आ गई तो दे दिए, फिर तो वह हमेशा पैसे की मांग करने लगी. तब मैं ने मना कर दिया. शायद इसलिए मुझ पर गंदा इलजाम लगा रही है,’’ सफाई देते हुए उमेश ने कहा, पर उस के चेहरे से झूठ साफ झलक रहा था.

‘‘कांता बाई तो अपनी बहू का गर्भपात भी कराने गई थी, लेकिन डाक्टर ने यह कह कर मना कर दिया कि समय ज्यादा हो गया है, जान को खतरा हो सकता है फिर अब तो एक जांच से पता चल जाता है कि बच्चे का बाप कौन है,’’ अपनी नजरें उमेश पर गड़ाते हुए आयुषी ने कहा.

‘‘मुझे ये सब क्यों सुना रही हो? मैं ने कहा न कि मैं ने कुछ भी नहीं किया… बारबार मुझे ये बातें न सुनाओ,’’ उमेश ने अपनी नजरें चुराते हुए कहा.

आयुषी रात भर करवटें बदलती रही. देखा तो उमेश भी नहीं सोया था. आयुषी को अपने दोनों बच्चों का भविष्य अंधकार में डूबता नजर आ रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे.

दोनों बच्चों को स्कूल भेज कर और उमेश के औफिस जाने के बाद आयुषी ने कांता बाई के घर का रुख किया.

‘‘कांता बाई, क्या मैं अंदर आ सकती हूं?’’ बाहर से ही आयुषी ने आवाज देते हुए कहा.

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कांता बाई आयुषी को अंदर अपनी कोठरी में ले गई.

आयुषी ने कहा, ‘‘रूपा अगर तुम सब सचसच बताओगी, तो मैं तुम्हारी मदद करने को तैयार हूं.’’

‘‘दीदी, पहले तो आप मुझे माफ कर दो.’’

आयुषी ने कहा, ‘‘हां कर दिया. अब बोलो.’’

‘‘आप को याद होगा, जब मैं पहली बार आप के घर लेट आई थी… जैसे ही मेरा काम खत्म हो गया और मैं अपने घर जाने लगी, तो साहब ने कहा कि 1 कप चाय बना दो, फिर चली जाना. चाय दे कर मैं जाने लगी, तो वे बोले कि रूपा थोड़ी देर बैठो. फिर मेरी बनाई चाय की तारीफ करने लगे. फिर कहने लगे कि तुम्हारी दीदी (यानी आप) इतनी अच्छी चाय नहीं बना पाती है. चाय क्या उस के बनाए खाने में भी स्वाद नहीं होता है. फिर कहने लगे कि मैं आप को कुछ न बताऊं. वे अब रोज मेरी तारीफ करने लगे,’’  बोलतेबोलते रूपा चुप हो गई.

रूपा फिर कहने लगी, ‘‘साहब ने एक रोज मुझ से कहा कि तुम्हारा पति यहां नहीं है, तो तुम्हारा कभी मन नहीं करता है?’’

उन की नजरों और उन की कही बातों को मैं समझ गई. फिर कहने लगे, ‘‘देखा रूपा, यह कोई शर्म की बात नहीं है. यह तो शरीर की जरूरत है और सभी को चाहिए ही… तुम्हारी दीदी तो मेरे साथ बैठना भी पसंद नहीं करती है.’’

‘‘साहब रोज मुझे पैसे पकड़ा देते थे… कहते थे कि अपनी दीदी को कुछ न बताना… कभी भी किसी चीज या पैसे की जरूरत हो तो मुझ से मांग लेना. बिलकुल संकोच मत करना… तुम जरा लेट ही काम करने आया करो… इसी बहाने तुम्हारे हाथों की बनी चाय पीने को मिल जाया करेगी…

साहब की सारी बातें मुझे सच्ची लगने लगी थीं और रूपा की आंखों से आंसू बह निकले.

आयुषी ने कहा, ‘‘आगे क्या हुआ वह बताओ.’’

‘‘मैं साहब की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई और फिर… मुझे माफ कर दो दीदी, मुझे नहीं पता था कि इस का अंजाम ये सब होगा,’’ कह कर रूपा फफकफफक कर रो पड़ी.

‘बेचारी, अभी इस की उम्र ही क्या है?’ आयुषी सोचने लगी.

‘‘मैडमजी, कल साहब भी आए थे. माफी मांग रहे थे. कहने लगे कि वह एक डाक्टर को जानते हैं और फिर मुझे वहां ले गए. मगर डाक्टर ने गर्भपात करने से यह कह कर मना कर दिया कि मेरी जान को खतरा है. साहब उसे पैसों का लालच भी देने लगे कि डाक्टर आप आराम से सोचना, हम परसों फिर आएंगे.’’

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‘‘रूपा, तुम कल जाओ, मैं भी पीछे से आती हूं… साहब को मत बताना कि तुम ने मुझे कुछ बताया है,’’ रूपा को समझा कर आयुषी अपने घर वापस आ गई.

‘‘उमेश, सुबह औफिस की कह कर घर से जल्दी निकल गया. आयुषी तो इसी ताक में थी. उस ने उमेश का पीछा किया. देखा तो उमेश ने अपनी गाड़ी एक क्लीनिक के पास रोक दी. रूपा वहां पहले से खड़ी थी. जैसे ही दोनों क्लीनिक के अंदर गए, आयुषी भी उन के पीछे चल पड़ी.

‘‘मैं ने आप को पहले भी कहा था कि यह गर्भपात अब नहीं हो सकता है… इन की जान को खतरा है,’’ डाक्टर उमेश से कह रहा था.

आयुषी दंग थी कि उमेश पहले भी रूपा को यहां ले कर आ चुका है गर्भपात करवाने और मुझे बेवकूफ बना रहा था कि उस ने कुछ नहीं किया है.

‘‘डाक्टर, आप जितना पैसा कहेंगे दूंगा, पर आप को यह गर्भपात किसी भी तरह करना ही पड़ेगा,’’ उमेश गिडगिड़ाते हुए डाक्टर से कहे जा रहा था.

पैसा है ही ऐसी चीज कि पाप भी पुण्य लगने लगता है. अत: डाक्टर रूपा का गर्भपात करने के लिए तैयार हो गया. आयुषी अब अपनेआप को नहीं रोक पाई. नर्स रोकती रही, वह दनदनाते हुए क्लीनिक के अंदर चली गई.

आयुषी को देखते ही उमेश के पसीने छूटने लगे और डाक्टर कहने लगा, ‘‘कौन हैं आप? ऐसे बिना परमिशन के अंदर कैसे आ गईं?’’

‘‘जैसे आप बिना परमिशन के एक औरत का गर्भपात करने जा रहे हैं डाक्टर. क्या आप को पता है कि इस का अंजाम क्या होगा?’’ आयुषी ने गुस्से में कहा.

डाक्टर, तुरंत गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे माफ कर दो मैडम… मैं तो कब से इस आदमी को यही समझाने की कोशिश कर रहा हूं, पर…’’

उमेश भी कहने लगा, ‘‘आयुषी, इस में मेरी कोई गलती नहीं है. यह चरित्रहीन औरत है. मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि इस ने मुझे कैसे…?’’

उमेश की बात पूरी होने से पहले ही आयुषी ने एक जोरदार तमाचा उमेश के गाल पर जड़ दिया, ‘‘चुप एकदम चुप… अब और नहीं… छल, फरेब, धोखेबाजी सब कुछ तो तुम में भरा पड़ा है… चरित्रहीन रूपा नहीं तुम हो तुम. तुम ने इस की गरीबी का फायदा उठाया है… अब इस का अंजाम भी तुम्हीं भुगतोगे.’’

‘‘आयुषी, मुझे माफ कर दो. अब कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा… अंतिम बार मेरा भरोसा कर लो,’’ उमेश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘भरोसा और तुम्हारा? वह तो इस जन्म में नहीं होगा… अपनी गलती को सुधारने का एक ही उपाय है कि इस बच्चे को अपना नाम दे दो वरना उम्र भर सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाओ,’’ आयुषी ने दोटूक शब्दों में कहा.

फिर वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘अब मैं जो कह रही हूं वह करो. तुम इस बच्चे को अपना लो. यही एक रास्ता है तुम्हारे पास.’’

दोनों ने सहमति से तलाक लिया और उमेश रूपा को ले कर एक कमरे के मकान में रहने लगा. आयुषी को पता चला कि रूपा अब ठाट से रहती है और उमेश का सारा पैसा ऐंठ लेती है.

एक रोज सुबह दरवाजे पर खटखट हुई. देखा बढ़ी दाढ़ी, बिखरे बालों वाला एक आदमी खड़ा था.

‘‘आयुषी मैं उमेश, तुम्हारा गुनाहगार…’’

इस से पहले कि वह कुछ और कहता, आयुषी गरज उठी, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे दरवाजे पर आने की… चले जाओ यहां से. न मैं और न ही मेरे बच्चे तुम्हारी सूरत देखने को तैयार हैं.’’

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उमेश गिड़गिड़ाया, ‘‘आयुषी रूपा गली के एक ड्राइवर के साथ भाग गई. वह मेरा पैसा भी ले गई. अब तुम्हीं मेरा आसरा हो. प्लीज मुझे माफ कर दो.’’

आयुषी ने बेरुखी से दरवाजा बंद कर दिया पर घंटे भर तक वह दरवाजे पर ही सिसकती रही. उमेश से कभी वह कितना प्यार करती थी. आज वह धोखेबाज गिड़गिड़ा रहा है. पुराने प्यार का हवाला दे रहा है पर वह कुछ नहीं कर सकी. बच्चों से भी नहीं कह सकती कि उन का पिता आया था. यह जहर तो उसे अकेले ही पीना होगा.

Serial Story: चरित्रहीन कौन- भाग 2

आयुषी कुछ नहीं कहती, उस पर घर छोड़ कर औफिस चली जाती थी. आयुषी को इस बात की हैरानी होती थी कि उमेश इतना कैसे सुधर गया, रूपा उसे चाय देने भी जाती, तो नजर उठा कर भी नहीं देखता है. आयुषी को लगा कि शायद उसे उस दिन का थप्पड़ याद है और फिर मुसकरा उठी.

रूपा को काम पर न आए आज हफ्ता हो गया. आयुषी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, किस से पूछे कि रूपा क्यों नहीं आ रही है. फिर याद आया कि वैशाली से पूछती हूं.

वैशाली ने कहा कि उस के घर भी रूपा कई दिनों से नहीं आ रही है. उस ने यह भी कहा कि रूपा का घर आयुषी के घर से थोड़ी दूर पर ही है. जा कर पूछ ले. आयुषी को लगा कि वैशाली सच कह रही है. उसे जा कर देखना चाहिए कि क्यों नहीं आ रही है और वह काम पर आएगी भी या नहीं.

संकरी सी गली में 1 कमरे का घर, 1 खटिया पर कांता बाई लेटी थी. बाहर से ही सब दिख रहा था.

‘‘कांता बाई,’’ आयुषी की आवाज सुनते ही कांता बाई बाहर आ गई.

‘‘रूपा कई दिनों से नहीं आ रही है, तो देखने आ गई, तबीयत तो ठीक है न उस की? आयुषी ने कांता बाई से पूछा.

कांता बाई अपना सिर पीटते हुए कहने लगी, कर्मजली मर जाए तो अच्छा है.’’

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‘‘कांता बाई ऐसा क्यों कह रही… कोईर् बात हो गई क्या?’’ आयुषी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैडमजी, तो और मैं क्या बोलूं?’’ पता नहीं ये कलमुंही कहां से अपना मुंह काला करवा कर आई है… किस का पाप अपने पेट में लिए घूम रही है… यह देखने से पहले मैं मर क्यों नहीं गई. अपने बेटे को क्या जवाब दूंगी. कांता बाई ने बिलखते हुए कहा.

‘‘आप को अपने बेटे को क्यों जवाब देना पड़ेगा… रूपा के पेट में तो आप के बेटे का ही बच्चा…’’

कांता बाई बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘मेरा बेटा तो साल भर से गुजरात में है. वहां कमाने गया है, तो उस का बच्चा कैसे हो सकता है मैडमजी?’’

आयुषी को जोर का झटका लगा. वह रूपा से मिले बिना ही घर आ गई. उस ने तो रूपा को एक अच्छी और सुलझी हुई औरत समझा था, पर वह तो चरित्रहीन निकली.

आयुषी को यह भी डर सताने लगा कि पता नहीं रूपा किस के बच्चे की मां बनने वाली है. कहीं मेरे पति? फिर अपने दिमाग को झटका देती हुई अपनेआप को ही समझाने लगी कि नहींनहीं ऐसा कैसे हो सकता है. रूपा तो मेरे सामने ही रोज काम कर के चली जाती थी. हां कुछ दिन लेट आई थी, पर उमेश तो उसे देखता भी नहीं था… फिर वह तो कितने घरों में काम करती है… कोई भी हो सकता है. मगर आयुषी को अंदर ही अंदर कोई अनजाना डर सताने लगा था.

आयुषी को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि दूसरी बाई कहां से ढूंढ़ेगी और अगर मिल भी गई तो फिर वह कैसी होगी? ये सब सोचसोच कर ही आयुषी का दिमाग चकराने लगता था. उसे अब बाई के नाम से ही डर लगने लगा था.

आयुषी ने औफिस से कुछ दिनों की छुट्टी ले ली, क्योंकि घर और बाहर दोनों जगह काम करना उस के लिए मुश्किल हो गया था.

आयुषी को काम करते देख कर एक दिन उमेश ने कहा, ‘‘लगता है तुम्हारी बाई भाग गई.’’

आयुषी ने कहा, ‘‘उस की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए नहीं आ रही है.’’

‘‘अरे, यह तबीयत खराब तो एक बहाना है पैसे बढ़वाने का. जानती है कि तुम औरतों का उस के बिना काम नहीं चलने वाला, इसलिए नखरे दिखाती है,’’ एक कुटिल मुसकान के साथ उमेश ने कहा.

‘‘जब तुम्हें कुछ पता नहीं है, तो बकबक क्यों करते हो?’’ आयुषी ने उमेश को झिड़कते हुए कहा, लेकिन उमेश को टटोलना भी था कि कहीं रूपा की इस हालत का जिम्मेदार उमेश तो नहीं है.

‘‘कांता बाई कह रही थी कि रूपा पेट से है, पर ताज्जुब की बात है कि उस का पति साल भर से उस से दूर है… फिर वह पेट से कैसे रह गई? खैर, जो भी हो पर कांता बाई तो रोरो कर कह रही थी कि जिस ने भी उस की बहू के साथ यह कुकर्म किया, उसे वह छोड़ेगी नहीं… यह भी कह रही थी कि पुलिस को सच बता देगी,’’ आयुषी उमेश को देख कर बोल रही थी और उस का चेहरा भी पढ़ने की कोशिश कर रही थी.

‘‘तो तुम मुझे क्यों सुना रही हो?’’ हकलाते हुए उमेश ने कहा, ‘‘और वैसे भी आज मुझे जल्दी औफिस के लिए निकलना है, तो नाश्ता लगा दो,’’ उमेश अपनेआप को ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा था कि ये फालतू की बातों से उसे क्या लेनादेना. मगर आयुषी को उमेश पर शक होने लगा था.

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आयुषी सोचने लगी कि रूपा ही बता सकती है कि कौन है वह इंसान, जिस ने उस के साथ ये सब किया. पर मैं क्यों पूछूं. कहीं उस ने उमेश पर ही झूठा इलजाम लगा दिया तो? आयुषी मन ही मन बड़बड़ा रही थी.

कांता बाई को अचानक अपने घर आए देख कर आयुषी डर गई. बोली, ‘‘क्या बात है कांता बाई?’’

‘‘मैडमजी, मैं ने अपनी बहू को बहुत मारापीटा कि बताओ कौन है इस का जिम्मेदार वरना तुझे तेरी मां के घर भेज दूंगी.’’

आयुषी के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. बोली, ‘‘तो मुझे क्यों सुना रही हो कांता बाई?’’ फिर एक सवालिया नजरों से वह कांता बाई को देखने लगी.

‘‘मैडमजी, मुझे माफ कीजिए पर रूपा ने आप के साहब का ही नाम बताया.’’

‘‘कांता बाई, पागल हो गई हो क्या, जो ऐसी बातें कर रही हो… और आप की बहू… उसे मैं ने क्या समझा था और क्या निकली… किसी और का पाप मेरे पति के सिर मढ़ने की कोशिश कर रही है,’’ आयुषी ने तैश में आते हुए कहा.

‘‘मैडमजी, मैं झूठ नहीं बोल रही हूं. रूपा ने जो कहा वही बता रही हूं और मैं उसे डाक्टर के पास भी ले कर गई थी गर्भपात करवाने, पर डाक्टर ने कहा कि अब गर्भपात नहीं हो सकता है. टाइम ज्यादा हो गया है. आप ही कुछ करो मैडमजी, नहीं तो मुझे सब को आप के पति की करतूत बतानी पड़ेगी,’’ एक तरह से कांता बाई ने धमकी देते हुएकहा. वह भी बेचारी क्या करती. जो उसे समझ आया कह कर चली गई.

कांता बाई तो चली गई, पर आयुषी को ढेरों टैंशन दे गई. अपने पति का चरित्र तो उसे पहले से पता था. बेशर्म कहीं का… सुधरने का ढोंग कर रहा था… और मेरे पीछे छि: अपना ही सिर पकड़ कर आयुषी चीखने लगी कि अब क्या करूं.

जब शाम को उमेश घर आया तो आयुषी ने उसे कांता बाई की कही सारी बातें बता दीं.

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