चाहत के वे पल: अपनी पत्नी गौरा के बारे में क्या जान गया था अनिरुद्ध

Serial Story: चाहत के वे पल- भाग 2

शेखर का मन हुआ अभी गौरा को जलील कर के हाथ पकड़ कर ले आए पर वह चुपचाप थके पैरों से औफिस न जा कर घर ही लौट आया. बच्चे हैरान हुए. वह चुपचाप बैडरूम में जा कर लेट गया. बेहद थका, व्यथित, परेशान, भीतरबाहर अनजानी आग में झुलसता, सुलगता… ये सब चीजें, यह घर, यह परिवार कितनी मेहनत, कितने संघर्ष और कितनी भागदौड़ के बाद व्यवस्थित किया था. आज अचानक जैसे सब कुछ बिखरता सा लगा. बेशर्म, धोखेबाज, बेवफा, मन ही मन पता नहीं क्याक्या वह गौरा को कहता रहा.

शेखर अपने मातापिता की अकेली संतान था. उस के मातापिता गांव में रहते थे. गौरा के मातापिता अब दुनिया में नहीं थे. वह भी इकलौती संतान थी. शेखर की मनोदशा अजीब थी. एक बेवफा पत्नी के साथ रहना असंभव सा लग रहा था. पर ऐसा क्या हो गया… उन के संबंध तो बहुत अच्छे हैं. पर गौरा को उस के प्यार में ऐसी क्या कमी खली जो उस के कदम बहक गए… अगर वह ऐसे बहकता तो गौरा क्या करती, उस ने हालात को अच्छी तरह समझने के लिए अपना मानसिक संयम बनाए रखा.

गौरा जैसी पत्नी है, वह निश्चित रूप से अपने पति को प्यार से, संयम से संभाल लेती, वह इतने यत्नों से संवारी अपनी गृहस्थी को यों बरबाद न होने देती… तो वह क्यों नहीं गौरा की स्थिति को समझने की कोशिश कर सकता? वह क्यों न बात की तह तक पहुंचने की कोशिश करे? बहुत कुछ सोच कर कदम उठाना होगा.

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2 घंटे के बाद गौरा आई, अब तक बच्चे खेलने बाहर जा चुके थे. शेखर को अकेला लेटा देख वह चौंकी, फिर प्यार से उस का माथा सहलाते हुए उस के पास ही अधलेटी हो गई, ‘‘आप ने मुझे फोन क्यों नहीं किया? मैं फौरन आ जाती.’’

‘‘रचना को छोड़ कर?’’

‘‘कोई आप से बढ़ कर तो नहीं है न मेरे लिए,’’ कहते हुए गौरा ने शेखर के गाल पर किस किया.

शेखर गौरा का चेहरा देखता रह गया फिर बोला, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘कैसी है तुम्हारी फ्रैंड?’’

‘‘ठीक है,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे कर गौरा खड़ी हो गई, ‘‘चाय बना कर लाती हूं, आप ने लंच किया?’’

‘‘हां.’’

गौरा गुनगुनाती हुई चाय बनाने चल दी. शेखर स्तब्ध था. इतनी फ्रैश, इतनी खुश क्यों? ऐसा क्या हो गया? बस, इस के आगे शेखर कोई कल्पना नहीं करना चाहता था. उस का दिमाग एक अनोखी प्लानिंग कर चुका था. शेखर अब सैर पर नियमित रूप से जाने लगा था. वह स्मार्ट था, मिलनसार था, उस ने धीरेधीरे सैर करते हुए ही अनिरुद्ध से दोस्ती कर ली थी. अपना नाम शेखर ने विनय बताया था ताकि गौरा तक उस का नाम न पहुंचे. शेखर बातोंबातों में अनिरुद्ध से दोस्ती बढ़ा कर, उस का विश्वास पा कर, उस से खुल कर उन के रिश्ते का सच जानना चाहता था. दोनों की दोस्ती दिनबदिन बढ़ती गई. शेखर गौरा का नाम लिए बिना अपने परिवार के बारे में अनिरुद्ध से बातें करता रहता था. अनिरुद्ध ने भी बताया था, ‘‘सीमा लखनऊ में अच्छे पद पर है. वह अपनी जौब छोड़ कर बनारस नहीं आना चाहती. मैं ही ट्रांसफर करवाने की कोशिश कर रह हूं.’’

शेखर हैरान हुआ. इस का मतलब यह तो अस्थाई रिश्ता है, इस का क्या होगा. लेकिन शेखर को इंतजार था कि अनिरुद्ध कब गौरा की बात उस से शेयर करेगा. कभी शाम को शेखर अनिरुद्ध को कौफी हाउस ले जाता, कभी बाहर लंच पर बुला लेता. कहता, ‘‘मेरी पत्नी मायके गई है, बोर हो रहा हूं.’’ उस की कोशिश अनिरुद्ध से ज्यादा से ज्यादा खुलने की थी और एक दिन उस की कोशिश रंग लाई. अनिरुद्ध ने उस के सामने अपना दिल खोल कर रख दिया, ‘‘यहां मेरी दोस्त है गौरा.’’

शेखर के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. हथेलियां पसीने से भीग उठीं. एक पराए पुरुष के मुंह से अपनी पत्नी के बारे में सुनना आसान नहीं था.

अनिरुद्ध कह रहा था, ‘‘बहुत ही अच्छी है, हम साथ पढ़ते थे. अचानक फेसबुक पर मिल गए.’’

‘‘अच्छा? उस की फैमिली?’’

‘‘पति है, 2 बच्चे हैं, उन में तो गौरा की जान बसती है.’’

‘‘फिर तुम्हारे साथ कैसे?’’

‘‘बस यों ही,’’ कह अनिरुद्ध ने बात बदल दी. शेखर ने भी ज्यादा नहीं पूछा था. अब अनिरुद्ध अकसर शेखर से गौरा की तारीफ करता हुआ उस की बातें करता रहता था. उस ने यह भी बताया था कि पढ़ते हुए एकदूसरे के अच्छे दोस्त थे बस. कोई प्रेमीप्रेमिका नहीं थे, और आज भी. अनिरुद्ध चला गया था पर शेखर बहुत देर तक बैंच पर बैठा बहुत कुछ सोचता रहा. फिर उदास सा घर की तरफ चल पड़ा. आज शनिवार था. छुट्टी थी. गौरा ने थोड़ी देर बाद ही उस की कमर में पीछे से हाथ डालते हुए पूछा, ‘‘कहां खोए हुए हो? जब से सैर से आए हो, चेहरा उतरा हुआ है, क्या हुआ?’’

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शेखर को आज गौरा की बांहें जैसे कांटे सी चुभीं. उस के हाथ दूर करते हुए बोला, ‘‘कुछ नहीं, बस जरा काम की टैंशन है.’’

‘‘उफ,’’ कह कर गौरा उस का कंधा थपथपा कर किचन की तरफ बढ़ गई. आजकल शेखर अजीब मनोदशा में जी रहा था. गौरा सामने आती तो उसे कुछ कह न पाता था. घर के बाहर होता तो उस का मन करता, जा कर गौरा को पीटपीट कर अधमरा कर दे… अनिरुद्ध को उस के सामने ला कर खड़ा करे. कभी सालों से समर्पित पत्नी का निष्कपट चेहरा याद आता, कभी अनिरुद्ध की बातें याद आतीं. आज उस ने सोच लिया, छुट्टी भी है,

वह अनिरुद्ध से उन दोनों के संबंध के बारे में कुछ और जान कर ही रहेगा. शेखर ने अनिरुद्ध को फोन किया, ‘‘क्या कर रहे हो? लंच पर चलते हैं.’’

‘‘पर तुम्हारी फैमिली भी तो है?’’

‘‘आज उन सब को बाहर जाना है किसी के घर, मैं वहां बोर हो जाऊंगा. चलो हम दोनों भी लंच करते हैं कहीं.’’

‘‘ठीक है, आता हूं.’’

दोनों मिले. शेखर ने खाने का और्डर दे कर इधरउधर की बातें करने के बाद पूछा, ‘‘और तुम्हारी दोस्त के क्या हाल हैं? कहां तक पहुंची है बात, दोस्ती ही है या…?’’

‘‘वह सब कहने की बात थोड़े ही है, दोस्त,’’ अनिरुद्ध मुसकराया.

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Serial Story: चाहत के वे पल- भाग 1

‘‘गौरा जब हंसती है तो मेरे चारों तरफ खुशी की लहर सी दौड़ जाती है. कैसी मासूम हंसी है उस की इस उम्र में भी. मुझे तो लगता है उस के भोले, निष्कपट से दिल की परछाईं है उस की हंसी,’’ अनिरुद्ध कह रहा था और शेखर चुपचाप सुन रहा था. अपनी पत्नी गौरा के प्रेमी के मुंह से उस की तारीफ. यह वही जानता था कि वह कितना धैर्य रख कर उस की बातें सुन रहा है. मन तो कर रहा था कि अनिरुद्ध का गला पकड़ कर पीटपीट कर उसे अधमरा कर दे, पर क्या करे यह उस से हो नहीं पा रहा था. वह तो बस गार्डन में चुपचाप बैठा अनिरुद्ध की बातें सुनने के लिए मजबूर था.

फिर अनिरुद्ध ने कहा, ‘‘अब चलें… मेरा क्या है. मैं तो अकेला हूं, तुम्हारे तो बीवीबच्चे इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘क्यों, आज गौरा मिलने नहीं आएगी?’’

‘‘आज शनिवार है. उस के पति की छुट्टी रहती है और उस के लिए पति और बच्चे पहली प्राथमिकता हैं जीवन में.’’

‘‘तो फिर तुम से क्यों मिलती है?’’

‘‘तुम नहीं समझोगे.’’

‘‘बताओ तो?’’

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‘‘फिर कभी, चलो बाय,’’ कह कर अनिरुद्ध तो चला गया, पर शेखर गुस्से में तपती अपनी कनपटियों को सहलाता रहा कि क्या करे. क्या घर जा कर गौरा को 2 थप्पड़ रसीद कर उस के इस प्रेमी की बात कर उसे जलील करे? पर क्या वह गौरा के साथ ऐसा कर सकता है? नहीं, कभी नहीं. गौरा तो उसे जीजान से प्यार करती है, उस के बिना नहीं रह सकती, फिर उस के जीवन में यह क्या और क्यों हो रहा है? यह अनिरुद्ध कहां से आ गया?

वह पिछले 3 महीनों के घटनाक्रम पर गौर करने लगा जब वह कुछ दिनों से नोट कर रहा था कि गौरा अब पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी. वह अपने प्रति बहुत सजग हो गई थी, सैर पर जाने लगी थी, ब्यूटीपार्लर जा कर नया हेयरस्टाइल, फेशियल, मैनीक्योर, पैडीक्योर सब करवाने लगी थी. पहले तो वह ये सब नहीं करती थी. अब हर तरह के आधुनिक कपड़ों में दिखती थी. सुंदर तो वह थी ही, अब बहुत स्मार्ट भी लगने लगी थी. दोनों बच्चों सिद्धि और तन्मय की देखरेख, घर के सारे काम पूरा कर अपने पर खूब ध्यान देने लगी थी. सब से बड़ी बात यह थी कि धीरगंभीर सी रहने वाली गौरा बातबात पर मुसकराती थी.

शेखर पर वह प्यार हमेशा की तरह लुटाती थी, पर कुछ तो अलग था, यह शेखर को साफसाफ दिख रहा था. अब तक गौरा ने शेखर को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. उसे कुछ भी कहना शेखर को आसान नहीं लग रहा था. वह सच्चरित्र पत्नी थी, फिर यह क्या हो रहा है? क्यों गौरा बदल रही है? इस का पता लगाना शेखर को बहुत जरूरी लग रहा था. पर कुछ पूछ कर वह उस के सामने छोटा भी नहीं लगना चाहता था. क्या करे? गौरा का ही पीछा करता हूं किसी दिन, यह सोच कर उस ने मन ही मन कई योजनाएं बना डाली थीं.

शेखर गौरा का मोबाइल चैक करना चाहता था, पर उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. घर में यह अलिखित सा नियम था, कोई किसी का फोन नहीं छूता था. यहां तक कि युवा होते बच्चों के फोन भी उन्होंने कभी नहीं छुए. पर कुछ तो करना ही था. एक दिन जैसे गौरा नहाने गई, उस ने गौरा का फोन चैक करना शुरू किया. किसी अनिरुद्ध के ढेरों मैसेज थे, जिन में से अधिकतर जवाब में गौरा ने अपने पति और बच्चों की खूब तारीफ की हुई थी. अनिरुद्ध से मिलने के प्रोग्राम थे. अनिरुद्ध? शेखर ने याद करने की कोशिश की कि कौन है अनिरुद्ध? फिर उसे सब कुछ याद आ गया.

गौरा ने एक दिन बताया था, ‘‘शेखर आज फेसबुक पर मुझे एक पुराना सहपाठी अनिरुद्ध मिला. उस ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी तो मैं हैरान रह गई. वह यहीं है बनारस में ही.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘हां शेखर, कभी मिलवाऊंगी, कभी घर पर बुला लूं?’’

‘‘फैमिली है उस की यहां?’’

‘‘नहीं, उस की फैमिली लखनऊ में है. उस की पत्नी वहां सर्विस करती है. 2 बच्चे भी वहीं हैं, वह अकेला रहता है यहां. बीचबीच में लखनऊ जाता रहता है.’’

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‘‘ठीक है, बुलाएंगे कभी,’’ शेखर ने थोड़ा रूखे स्वर में कहा, तो गौरा ने फिर कभी इस बारे में बात नहीं की थी. लेकिन दिनबदिन जब गौरा के अंदर कुछ अच्छे परिवर्तन दिखे तो वह हैरान होता चला गया. वह अभी भी पहले की ही तरह घरपरिवार के लिए समर्पित पत्नी और मां थी. फिर भी कुछ था जो शेखर को खटक रहा था. फोन चैक करने के बाद शेखर ने अब इस बात को बहुत गंभीरता से लिया. जाहिल, अनपढ़ पुरुषों की तरह इस बात पर चिल्लाचिल्ला कर शोर मचाना, गालीगलौज करना उस की सभ्य मानसिकता को गवारा न था. इस विषय में किसी से बात कर वह गौरा की छवि को खराब भी नहीं करना चाहता था. वह उस की पत्नी थी और दोनों अब भी जीजान से एकदूसरे को प्यार करते थे.

एक दिन गौरा ने जब कहा, ‘‘शेखर, मैं दोपहर में कुछ देर के लिए बाहर जा रही हूं… कुछ काम हो तो मोबाइल तो है ही.’’

शेखर को खटका हुआ, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘एक फ्रैंड से मिलने.’’

‘‘कौन?’’

‘‘रचना.’’

शेखर ने आगे कुछ नहीं पूछा था. लेकिन दोपहर में वह औफिस से उठ कर ऐसी जगह जा कर खड़ा हो गया जहां से वह गौरा को जाते देख सकता था. शेखर ने पहले बच्चों को स्कूल से आते देखा, फिर अंदाजा लगाया, अब गौरा बच्चों को खाना देगी, फिर शायद जाएगी. यही हुआ. थोड़ी देर में खूब सजसंवर कर गौरा बाहर निकली. अपनी सुंदर पत्नी को देख शेखर ने गर्व महसूस किया. फिर अचानक अनिरुद्ध के बारे में सोच कर उस के अंदर कुछ खौलने सा लगा. गौरा पैदल ही थोड़ी दूर स्थित नई बन रही एक सोसायटी की एक बिल्डिंग की तरफ बढ़ी. तीसरे फ्लैट की बालकनी में खड़े एक पुरुष ने उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया. शेखर ने दूर से उस पुरुष को देखा. चेहरा जानापहचाना लगा उसे. यह तो रोज गार्डन में सैर करने के लिए आता है.

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Serial Story: चाहत के वे पल- भाग 3

‘‘मतलब? क्या तुम शारीरिक रूप से भी…’’

अनिरुद्ध ने उस की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘चलो आज बताता हूं तुम्हें. असल में गौरा बहुत अच्छी है. वह हमेशा पहले भी अपनी मर्यादा में रहने वाली लड़की थी और आज भी वह बहुत अच्छी पत्नी और मां है. हम जब शुरू में मिले तो बातें बहुत आम सी होती रहीं. एक दिन जब गौरा मुझ से मिलने मेरे फ्लैट पर आई तो मैं ने पहली बार उस का हाथ पकड़ा. मुझे अचानक एक शेर याद आया था जो मैं ने उसे सुनाया भी था. उस का हाथ छुआ तो लगा, काश, सारी दुनिया उस के हाथ की तरह गरम और सुंदर होती. फिर मैं अपनेआप को रोक नहीं पाया था और मैं ने उसे बांहों में भर लिया. उस ने खुद पर नियंत्रण रखने की कोशिश की थी, लेकिन फिर वह सब हो गया जो होना नहीं चाहिए था. चाहत के उन पलों में उस ने खुद स्वीकार कर लिया कि उन पलों में वैसी चाहत, प्यार, सरसता उसे अपने पति के साथ अब नहीं मिलती.

उस ने बताया उस का पति है तो बहुत अच्छा इनसान पर अंतरंग पलों में उसे उस का मशीनी अंदाज उतना नहीं छूता जितना उसे मेरा स्पर्श अनोखे उत्साह से भर जाता है. उन पलों की मेरी चाहत में वह खो सी जाती है. उस का पति तो उन पलों को भी जरूरी काम समझता है. वह अंतरंग संबंधों का 1-1 पल जीना चाहती है, एक खुशनुमे माहौल में रोमांटिक समर्पण चाहती है. वह अपने पति को धोखा नहीं देना चाहती, वह अपने पति को बहुत प्यार करती है पर उस के मन के किसी कोने में बसी एक अधूरी सी कसक मेरे साथ मिटती है. कभीकभी पल भर में भी जीवन के अनंत पलों को एकसाथ जीया जा सकता है.

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गौरा उस पल यही महसूस करती है जब मेरे साथ होती है,’’ अनिरुद्ध कहे जा रहा था, खाना कब से सर्व हो कर ठंडा हो रहा था. शेखर बिलकुल सांस रोके अनिरुद्ध की बातें सुन रहा था, जो बताता जा रहा था, ‘‘गौरा जैसे एक प्यासा रेगिस्तान है और शायद उस का पति खुल कर बरसने की कला नहीं जानता. उस के जीवन में साथ रहना, सोना, खाना, पारिवारिक कार्यक्रमों में जाना सब कुछ है पर प्यार की उष्णता न जाने कहां खो गई है… अपने पति का साथ गौरा को किसी महोत्सव से कम नहीं लगता, उस का पति स्नेही भी है पर भावनाओं के प्रदर्शन में अत्यंत अनुदार वह अकसर भूल जाता है कि बच्चों और घर की अन्य जिम्मेदारियों के बीच चक्करघिन्नी सी नाचती गौरा भी प्यार चाहती है.’’ शेखर जो अब तक स्वयं को जीने की कला में पारंगत मानता था आज उसे एहसास हुआ कि उस से चूक हुई है.

‘‘आज तो मैं ने तुम्हें सब बता दिया, मेरे दिल पर भी एक बोझ सा है कि मैं भी सीमा के साथ गलत कर रहा हूं पर क्या करूं, अपने कैरियर के चलते मुझ से दूर रह कर भी उसे मेरी कमी नहीं खलती और यहां गौरा अपने पति के साथ रह कर भी चाहत भरे पल खोजती ही रह जाती है. शायद हमारे जीवन में कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है. मुझे लगता है गौरा को जब यह पता चलेगा कि मेरा ट्रांसफर कभी भी हो सकता है तो वह बहुत दुखी होगी.’’

शेखर चौंका, ‘‘क्या? तुम्हारा ट्रांसफर?’’

‘‘हां, कोशिश कर रहा हूं, सीमा तो आएगी नहीं, बच्चे भी तो हैं. मुझे ही जाने की कोशिश करनी पड़ेगी. घरगृहस्थी सिर्फ सीमा की जिम्मेदारी तो नहीं है न.’’ सामने बैठा व्यक्ति शेखर को अचानक अपने से ज्यादा समझदार लगा. बिल शेखर ने

ही दिया. फिर दोनों अपनेअपने घर लौट आए. शेखर घर आया, बच्चे नहीं दिखे तो पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं?’’

‘‘एक बर्थडे पार्टी में गए हैं.’’

‘‘तो इस का मतलब हम दोनों अकेले हैं घर में.’’

गौरा ने ‘हां’ में सिर हिलाया. रास्ते भर शेखर को गुस्सा तो बहुत आ रहा था गौरा पर, नफरत भी हो रही थी पर गौरा को देखते ही वह उस से नाराज नहीं हो पाया. उस ने गौरा को बांहों में उठा लिया. गौरा हैरान हुई, फिर उस के गले में बांहें डाल दीं. शेखर खुद पर हैरान था. वह कैसे यह सब कर रहा है. उस ने गौरा पर प्यार की बरसात कर दी. गौरा हैरान सी मुसकराते हुए उस बरसात में नहाती रही. शेखर ने खुद नोट किया, सचमुच सालों हो गए थे गौरा के साथ ऐसा समय बिताए, सालों से वह मशीन बन कर ही तो करता है सारे काम. गौरा के चेहरे पर फैला संतोष और सुख पता नहीं क्याक्या समझा गया शेखर को.

बहुत देर तक शेखर ने गौरा को अपनी बांहों से आजाद नहीं किया तो गौरा हंस पड़ी, ‘‘आप को क्या हो गया आज?’’

‘‘क्यों, अच्छा नहीं लगा?’’

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‘‘मैं तो इन पलों को ढूंढ़ती ही रह जाती हूं, मुझे क्यों नहीं अच्छा लगेगा?’’ शेखर के कानों में अनिरुद्ध की आवाज गूंज गई. वह बहुत देर तक गौरा से बातें करता रहा, बहुत समय बाद दोनों ने बहुत ही अच्छा समय साथ बिताया. बच्चे आ गए तो दोनों उन से बातें करने में व्यस्त हो गए.

अगले 2 दिन शेखर अनिरुद्ध से कोई बात नहीं कर पाया. सैर पर भी नहीं जा पाया. वह बहुत व्यस्त था. तीसरे दिन सैर करते समय अनिरुद्ध मिला तो उस ने बताया, ‘‘मेरा ट्रांसफर हो गया है. मैं अगले हफ्ते चला जाऊंगा.’’

शेखर चौंका, ‘‘तुम्हारी दोस्त? उसे पता है?’’

‘‘नहीं, आज शाम को फोन पर बताऊंगा.’’

‘‘क्यों? वह आई नहीं मिलने?’’

‘‘नहीं, उस के बच्चों की परीक्षाएं हैं. वह व्यस्त है.’’

‘‘तो क्या उस से मिले बिना ही चले जाओगे?’’

‘‘शायद.’’

शेखर जब शाम को औफिस से आया तो उस ने गौरा का चेहरा पढ़ने की कोशिश की. क्या वह जानती है अनिरुद्ध जा रहा है, क्या वह उदास है? उसे कुछ अंदाजा नहीं हुआ. गौरा बच्चों को पढ़ा रही थी. शेखर फ्रैश हो कर आया तो बच्चों से कहने लगी, ‘‘अब तुम दोनों पढ़ो, मैं पापा के लिए चाय बनाती हूं.’’ बच्चे ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चले गए. शेखर ने चाय पीते हुए थोड़ीबहुत इधरउधर की बातें करने के बाद कहा, ‘‘अरे, वह जो तुम्हारा दोस्त था, क्या नाम है उस का?’’

‘‘अनिरुद्ध.’’

‘‘हां, क्या हाल हैं उस के?’’

‘‘ठीक है, उस का ट्रांसफर हो गया है, वह जा रहा है.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘हां, 2 दिन बाद,’’ शेखर को गौरा के चेहरे पर विषाद की एक रेखा भी नहीं दिखी, वह हैरान हुआ जब गौरा ने मुसकराते हुए आगे बात की, ‘‘और बताओ, दिन कैसा रहा?’’

‘‘ठीक रहा. तो वह जा रहा है?’’

‘‘तो उसे तो जाना ही था न. उस का परिवार है वहां. चलो, अब आप टीवी देखो, मैं जल्दी से खाने की तैयारी कर बच्चों की पढ़ाई देखती हूं,’’ कहते हुए गौरा उस के बाल छेड़ती मुसकरा दी. शेखर समझ ही नहीं पाया कि वह अनिरुद्ध के जाने पर खुल कर चैन की सांस ले, ठहाका लगाए या गौरा को सीने से लगा ले. पलभर की देर किए बिना शेखर ने उठ कर जाती गौरा को पीछे से बांहों में भर लिया.

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Valentine Special: यह रिश्ता नहीं हो सकता

Serial Story: यह रिश्ता नहीं हो सकता- भाग 2

कैथ को अपनी बेटी की कोई चिंता न रहती थी. एक दिन जब कैथ सारी रात बाहर काट कर जब घर आई तब पौ फटने को था. सैम ने डांटते हुए कहा, ‘‘अब आने की क्या जरूरत थी? दोचार दिन और मौज कर के आती.’’

कैथ ने भी गुस्से में कहा, ‘‘डौंट ट्राई टु बी लाइक रयूड इंडियन हस्बैंड. मेरे बाप का घर है, मैं ने तुम्हें पनाह दी है तभी तुम यहां रहते हो. मैं अपनी मरजी से आतीजाती रहूंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम्हारा घर तुम्हें मुबारक. पर अगर तुम्हें मेरी वाइफ बन कर रहना है तो तुम्हें अपना ऐटीट्यूड और बिहेवियर चेंज करना होगा वरना तुम्हारे लिए मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है.’’

‘‘अगर रोजरोज मुझे तुम रोकतेटोकते रहोगे तो तुम्हारे लिए भी इस घर में कोई जगह नहीं है. यू कैन गो.’’

‘‘मैं तो खुशीखुशी चला जाऊंगा पर लोलिता का क्या होगा?’’

‘‘यह तो अच्छा है कि लोलिता का रूप भले तुम से मिलता हो रंग से वह अमेरिकन दिखती है तुम्हारे जैसी एशियन नहीं वरना उसे कोई अमेरिकन लड़का मिलना संभव न होता. उस का जो भी होगा अच्छा होगा.’’

अगले ही दिन सैम 3 बड़े बक्सों में अपने कपड़े और जरूरी सामान ले कर कंपनी के गैस्ट हाउस में चला गया. 2 सप्ताह बाद वह एक अपार्टमैंट में चला गया. वहां उसे कैथ के वकील के द्वारा तलाक का नोटिस मिला. सैम ने अपनी बेटी को सारी कहानी बता दी.

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सैम और कैथ दोनों वकील के यहां बैठे थे. वकील ने कहा, ‘‘कैथ ने असमाधेय मतभेदों के चलते आप से तलाक की मांग की है. इस विषय में आप का क्या कहना है?’’

‘‘कैथ ने सही कहा है,’’ सैम बोला.

‘‘बेहतर है आप लोग संपत्ति का बंटवारा कोर्ट से बाहर आपसी सहमति से कर लें वरना बहुत टाइम लगेगा.’’

कैथ ने वकील से कहा, ‘‘यह बंगला मेरे डैड ने मेरी शादी के पहले ही मेरे नाम कर दिया था. उस पर सैम का कोई हक नहीं है.’’

सैम ने कहा, ‘‘अपना घर भी मैं ने शादी के पहले ही खरीदा था, उस पर भी कैथ का कोई हक नहीं होगा. उस की ईएमआई भी अकेले मैं ही देता आया हूं. फिलहाल उसे रेंट पर दे रखा है.’’

वकील बोला, ‘‘यह तो अच्छी बात है. बाकी चीजों का भी फैसला कर लें जैसे कोई लोन वगैरह.’’

सैम और कैथ ने तय किया कि दोनों के बैंक बैलेंस अपनेअपने पास रहेंगे. कुछ फर्नीचर सैम ने अपने कार्ड से लिया था. उसे वह अपने फ्लैट में ले जाएगा.

वकील ने कहा, ‘‘आप की बेटी अब वयस्क हो चुकी है. कोर्ट के सामने उसे बोलना होगा कि वह किस के साथ रहना चाहती है.’’

लोलिता ने कोर्ट में अपने पिता के साथ रहने की इच्छा जाहिर की और कहा कानूनन कैथ का उस पर कोई अधिकार नहीं होगा. बिना लोलिता की मरजी के कैथ उस से नहीं मिल सकती है. जल्द ही दोनों का तलाक हो गया.

कैथ के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. वह अपनी मरजी से अपने लाइफस्टाइल में जी रही थी. सैम ने अपना ट्रांसफर टेक्सास के औस्टिन शहर में करा लिया. उस ने कैलिफोर्निया का घर बेच दिया. कैलिफोर्निया में घर की कीमत बहुत ज्यादा होती है. जितना पैसा उसे मिला उतने में वह औस्टिन में 2 बड़े घर आराम से खरीद सकता था. पर उस ने 3 कमरे का एक घर खरीदा. लोलिता का ऐडमिशन टैक्सास के ह्यूस्टन शहर के राइस यूनिवर्सिटी में हुआ. ह्यूस्टन से औस्टिन मात्र ढाई घंटे में पहुंचा जा सकता था, इसलिए सैम और लोलिता का अकसर मिलना भी हो जाता था. कैथ 4-5 महीने में एक बार लोलिता से मिलने आती कुछ देर साथ रह कर रात को कैलिफोर्निया लौट जाती.

इधर कैथ अब बिलकुल आजाद थी. उस ने कंपनी का काम छोड़ कर घर से ही

अपना कुछ बिजनैस शुरू किया. अब वह रोज पीने लगी थी. वह करीब 45 साल की हो चुकी थी. एक दिन नशे की हालत में वह एक युवक से टकरा गई तब उस युवक का फोन सड़क पर गिर कर टूट गया. कैथ के सौरी बोलने पर उस ने फोन उठाते हुए कहा, ‘‘एक तो पहले से ही मुसीबत में हूं और इसे भी आज ही टूटना था.’’

कैथ ने टूटा हुआ फोन अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘आई एम वैरी सौरी. इसे मैं ठीक करा दूंगी तब तक तुम मेरा फोन रख लो. मेरा कार्ड रख लो और मेरे फोन का इंतजार करना. तुम अपना नाम तो बताओ?’’

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‘‘राजन,’’ बस इतना ही कहा. उस युवक ने कैथ का संदेश मिलने पर राजन एक होटल पहुंचा. वह एक फाइवस्टार होटल था. कैथ ने उसे वहां डिनर कराया और उस के बारे में कुछ जानकारी ली. राजन ने उसे बताया कि वह भारत से एमएस करने आया है. उसे स्कौलरशिप नहीं मिली है पर उसे उम्मीद है कि कोई पार्ट टाइम जौब कर वह पढ़ाई का खर्च निकाल लेगा. पर अभी तक उसे कोई जौब नहीं मिली है.

राजन की कहानी सुन कैथ बोली, ‘‘जितना समय तुम जौब में दोगे उस से कम समय भी अगर तुम मुझे दो तो तुम्हारे सारे खर्च का इंतजाम हो जाएगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम देखते जाना.’’

चलते समय कैथ ने उसे लेटेस्ट मौडल का आई फोन देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा फोन रिपेयर करना बेकार है और उस से कम खर्च में नया फोन मिलता है… यहां लेबर बहुत कौस्टली है.’’

राजन को लेने में संकोच हो रहा था. तब वह बोली, ‘‘रख लो, मेरी तरफ से गिफ्ट समझो और तुम कब मुझे समय दे सकते हो?’’

‘‘वीकैंड में ही संभव होगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम. मेरे फोन का वेट करना.’’

एक शनिवार कैथ ने राजन को फोन कर एक स्टोर के पास बुलाया. कैथ वहां कार ले कर उस का इंतजार कर रही थी. राजन को बैठने को कहा और उसे ले कर एक प्राइवेट रिजोर्ट में गई. वहां जा कर पूछा, ‘‘तुम कितना वक्त दे सकते हो मुझे?’’

‘‘मैं समझा नहीं?’’

‘‘इस में समझने की कोई बात ही नहीं है. तुम 2 दिन फ्री हो. तुम चाहो तो सोमवार सुबह तक हम दोनों यहां रुक सकते हैं. अगर जल्दी लौटना चाहो तो पहले लौट चलेंगे. मेरे साथ कोई औपचारिकता नहीं, मुझ से फ्रीली बोल सकते हो और जो जी चाहे कर सकते हो,’’ यह सुन कर राजन उसे आश्चर्य से देखने लगा.

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Serial Story: यह रिश्ता नहीं हो सकता- भाग 3

राज को आश्चर्यचकित देख कैथ ने कहा, ‘‘अच्छा अब बताओ यहां कब तक रुक सकते हो?’’

‘‘मैं कल शाम तक लौटना चाहूंगा. 2-3 घंटों में एक प्रोजैक्ट का बचा काम पूरा कर लूंगा. पर क्या यहां एक ही रूम में रुकना है?’’

‘‘इतना बड़ा सूट क्या 2 के लिए काफी नहीं है? ऐंजौय टिल देन.’’

‘‘राजन और कैथ करीब 2 दिन वहां रहे. राजन ने फ्री लंच डिनर, ड्रिंक और वाटर पार्क सब का आनंद लिया. संडे शाम को राजन को ड्रौप करते हुए कैथ ने उसे 1000 डौलर कैश दिए. यही तुम्हारी जौब रहेगी और इसी तरह तुम्हें नियमित पेमैंट मिलती रहेगी. कम लगे तो बताना.’’

राजन और कैथ का इसी तरह मिलना होता. कभी वे आसपास शौर्ट वैकेशन पर एक दिन के लिए जाते. इसी दौरान जब दोनों ने पी रखी थी बल्कि कैथ ने तो बहुत ज्यादा पी ली थी उस की कुछ हरकतों से दोनों के धैर्य की सीमा टूट गई और जब एक बार यह टूटी तो आगे भी परहेज न रहा. राजन को कैश के अतिरिक्त अच्छेअच्छे गिफ्ट्स लैपटौप, कैमरा, ऐप्पल वाच आदि मिलते रहे. राजन का करीबकरीब पूरा खर्च कैथ उठाती रही, दोनों की जरूरतें पूरी होतीं. देखतेदेखते राजन की पढ़ाई भी पूरी हो गई और उसे टैक्सास में जौब भी मिल गई.

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जाते समय कैथ बोली, ‘‘अगर तुम चाहो तो बीचबीच में आ सकते हो मैं रिटर्न एयर टिकट भेज दूंगी.’’

ह्यूस्टन के राइस यूनिवर्सिटी कैफेटेरिया के एक कोने में एक दिन लोलिता कौफी पी रही थी. जिस टेबल पर वह कौफी पी रही थी वह एक छोटा सा टेबल था जिस पर सिर्फ 2 कुरसियां थीं. उस टेबल पर आमतौर पर लोलिता ही बैठा करती थी. बाकी टेबल पर स्टूडैंट्स गु्रप में बैठते. लोलिता को भीड़ या शोर पसंद नहीं था. उसी टेबल पर एक आदमी हाथ में कौफी का मग लिए आया और उस से पूछा, ‘‘क्या आप किसी और का इंतजार कर रही हैं?’’

लोलिता कुछ पल उसे देखती रही, फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘जी, मैं किसी का इंतजार कर रही थी.’’

सौरी बोल कर वह जाने लगा तो लोलिता ने कहा, ‘‘हैलो, आप ने मेरी पूरी बात नहीं

सुनी है.’’

‘‘जी, कहिए.’’

‘‘दरअसल, मैं आप का ही वेट कर रही थी.’’ बोल कर लोलिता मुसकरा उठी, फिर बोली, ‘‘आप यहां बेतकल्लुफ हो कर बैठ सकते हैं.’’

‘‘थैंक्स,’’ बोल कर वह बैठ गया.

‘‘इस कैफेटेरिया में आप को पहली बार देख रही हूं.’’

‘‘जी, मैं राजन हूं. आज ही कंप्यूटर साइंस में टीचिंग असिस्टैंट के पद पर जौइन किया है.’’

‘‘ग्रेट, तब मैं आप की छात्रा लोलिता हूं. बी टैक फाइनल में हूं. खुशी हुई आप से मिल कर. अगर मैं गलत नहीं तो आप एशियन लगते हैं.’’

‘‘यस मैं इंडियन हूं और अगर मैं गलत नहीं तो आप रंग से अमेरिकन और रूप से इंडियन लगती हैं.’’

‘‘बिलकुल सही पकड़ा है आप ने… मेरे डैड भारतीय हैं और मौम अमेरिकन पर अब वे अलग हो चुके हैं और मैं डैड के साथ रहती हूं.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद राजन बोला, ‘‘आप एकांत में इस कोने में बैठीं किसी का इंतजार कर रही होंगी, इसलिए मैं आप से पूछ बैठा था.’’

‘‘मैं अकसर यहीं अकेली बैठना पसंद करती हूं. शायद कल से यह सीट खाली नहीं रहेगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि इस पर आप बैठे होंगे.’’

‘‘आप मजाक अच्छा कर लेती हैं.’’

‘‘वैसे मजाक करने का मौका बहुत कम मिलता है. पर मैं आप की स्टूडैंट हूं. आप मुझे तुम कहें तो बेहतर होगा.’’

लोलिता और राजन में नजदीकियां बढ़ती गईं, दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. लोलिता के डैड सैम को भी राजन पसंद था. 6 महीनों में लोलिता ने बी टैक पूरा किया. तब राजन ने उस से कहा, ‘‘अब हम दोनों शादी कर सकते हैं.’’

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‘‘मैं और डैड भी यही सोच रहे हैं.’’

‘‘तब शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए, इसे भी जल्दी निबटा लेते हैं दोनों मिल कर.’’

शादी की तैयारियां हो रही थीं, शादी के कार्ड भी छप चुके थे. सैम, लोलिता

और राजन एकसाथ वैडिंग की प्लानिंग कर रहे थे. सैम और लोलिता गैस्ट लिस्ट बना रहे थे जहां कार्ड भेजने थे. राजन ने अपने भी कुछ गैस्ट के नाम लिखवा दिए थे.

राजन लोलिता का फोटो अलबम देख रहा था, उस में अचानक उस की नजर कैथरीन की फोटो पर पड़ी. उस ने लोलिता से पूछा, ‘‘यह लेडी कौन हैं?’’

‘‘ये मेरी मां हैं. हालांकि अब उन से हमारा संपर्क न के बराबर है फिर भी औपचारिकतावश एक कार्ड उन्हें भी भेज रहे हैं हम लोग. अगर

वे आना चाहें तो आ सकती हैं,’’ बोल कर लोलिता ने कैथ का कार्ड राजन को देखने के लिए बढ़ा दिया.

कैथ के बारे में जानने के बाद राजन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. हालांकि वह उसे छिपाने की पूरी कोशिश कर रहा था. कुछ देर बाद वह जब जाने लगा तो लोलिता उसे छोड़ने के लिए बाहर उस की कार तक आई. तब राजन ने साहस करते हुए कहा, ‘‘तुम लोग अभी शादी के कार्ड पोस्ट मत करना.’’

‘‘क्यों? शादी की तैयारियां हो रही हैं, शादी के कार्ड भी छप चुके हैं.’’

‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं, अभी सिर्फ छपे ही हैं न, उन्हें रोक दो, किसी को नहीं भेजना है. मेरा कहा मानो  इसी में सब की भलाई है.’’

‘‘यह अचानक क्या हो गया तुम्हें? शादी क्यों पोस्टपोन करना चाहते हो?’’

‘‘मैं पोस्टपोन नहीं इस रिश्ते को पूरी तरह से खारिज करना चाहता हूं. यह रिश्ता किसी कीमत पर नहीं हो सकता है. आई एम डीपली सौरी बट हैल्पलैस.’’

‘‘पर यह शादी क्यों नहीं हो सकती है?’’

‘‘मैं इस से आगे कोई सफाई नहीं दे सकता हूं. बेहतर है हम दोस्त बने रहें तो यही काफी होगा. ओके, बाय.’’

राजन ने कार स्टार्ट की और वह तेजी से चल गया. वह मन में सोच रहा था कि अच्छा हुआ उस ने कैथ का फोटो भर ही देखा था. कहीं अचानक शादी के मौके पर वह मिल जाती तो कितना बुरा होता. मेरी भलाई इसी में है कि अब यह शहर जल्द से जल्द छोड़ दूं.

लोलिता और सैम सोचते रह गए कि आखिर शादी न करने की वजह क्या रही होगी. लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें आज तक पता न चल सका और यह पहेली बनी रही, क्योंकि राजन शहर छोड़ कर कहीं और चला गया था. शायद अमेरिका से भी दूर किसी अन्य देश में.

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Serial Story: यह रिश्ता नहीं हो सकता- भाग 1

कैथरीन ने देर रात अपनी कार ड्राइव वे में पार्क की. फिर वह लड़खड़ाते कदमों से चल कर बैकयार्ड डोर खोलने की कोशिश करने लगी. वह नशे में थी, इसलिए चाबी की होल में ठीक से नहीं लगा पा रही थी. आहट सुन कर श्याम ने अंदर से दरवाजा खोला. कैथरीन अपना बैग एक तरफ फैंक कर लिविंगरूम में धम्म से सोफे पर बैठ गई.

श्याम ने कहा, ‘‘कैथ, अब तुम सिर्फ मेरी वाइफ ही नहीं हो एक बच्ची की मां भी हो. मैं तुम्हारी हरकतें न चाहते हुए भी बरदाश्त कर लेता हूं पर बेचारी लोलिता की सोचो वह 3 साल की हो गई है. उसे भी तुम्हारी जरूरत है.’’

‘‘व्हाट, सैम, तुम भी दकियानूसी वाली बात करते हो. लोलिता को हम बेबी केयर में भेज ही रहे हैं, उसे कोई प्रौब्लम नहीं है तो तुम्हें क्या प्रौब्लम है. अब मेरा मूड खराब न करो. चलो सोने चलें.’’

बैड पर लालिता को देख कर कैथ ने चिल्ला कर कहा, ‘‘मैं ने इस के लिए पिछले 10 दिनों से अलग रूम में बैड लगा दिया है और यह आज फिर यहां. इसे उस के कमरे में ले जाओ.’’

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‘‘बहुत मुश्किल से रोतेरोते सो पाई है, फिर इस की नींद खराब हो जाएगी. फिलहाल इसे यहीं रहने दो.’’

कैथ ने लोलिता को उठा कर अलग रूम में ले जाने लगी. तभी श्याम ने गुस्से से उस के हाथ से छीन कर फिर उसे बैड पर सुला दिया.

कैथ ने भी गुस्से में चिल्ला कर कहा, ‘‘हाऊ डेयर यू असौल्ट मी.’’

‘‘मैं ने असौल्ट कब किया? बस तुम्हारे हाथ से ले कर बेबी को वापस बैड पर सुला दिया,’’ सैम बोला.

‘‘इट्स औल द सेम. तुम ने फोर्सिबली छीना है मुझ से. आउट बोथ औफ यू. इस रूम से निकलो दोनों और मुझे सोने दो.’’

शोर से लोलिता उठ गई और वह डर गई थी. उसे गोद में ले कर सैम लोलिता के रूम में गया और दोनों वहीं सो गए.

श्याम एक भारतीय मूल का इंजीनियर था. कुछ वर्ष पूर्व वह अमेरिका के कैलिफोर्निया में आया था और उसे ग्रीन कार्ड मिल चुका था. उस के मातापिता भारत में थे. अगले 1-2 साल में उसे अमेरिकी नागरिकता मिलने की उम्मीद थी. करीब 5 साल पहले उस ने एक अमेरिकन लड़की कैथरीन से शादी की थी. हालांकि उम्र में वह श्याम से कुछ बड़ी थी. यह शादी उस के मातापिता की मरजी के विरुद्ध थी. कैथ उसी की कंपनी में रिसैप्शनिस्ट थी. कैथरीन स्कूल से आगे पढ़ नहीं सकी थी. उस की मां का देहांत उस के बचपन में हो गया था और उस के पिता का भी निधन शादी के एक साल बाद हो गया था. उस के पिता की संपत्ति के अलावा उसे इंश्योरैंस से भी काफी डौलर्स मिले थे. कैथरीन बचपन से ही स्वच्छंद स्वभाव की थी. वह श्याम को सैम कहती और श्याम भी उसे कैथ कह कर बुलाता था.

सुबह उठ कर सैम ने कैथ से पूछा, ‘‘कल रात की बातें कुछ याद भी है तुम्हें?’’

‘‘मुझे सब याद है, उतनी ज्यादा भी नहीं पी थी मैं ने.’’

‘‘अच्छा कुछ और पी लेती तो और हंगामा करती.’’

‘‘हंगामा तुम ने किया था, मैं ने नहीं.’’

‘‘मैं ने तो बस लोलिता का कमरा अलग कर दिया था और वहां कैमरा भी लगा दिया था ताकि उस पर नजर भी रख सकें.’’

‘‘लोलिता को मांबाप दोनों का प्यार चाहिए. अभी उतनी बड़ी भी नहीं है कि उस का अलग सोना जरूरी है.’’

‘‘यह तुम्हारा इंडिया नहीं है, यहां तो एक साल के बच्चों को भी लोग अलग सुलाने लगते हैं.’’

‘‘इंडिया और अमेरिका की बात कहां से आ गई. मैं तो वर्षों से अमेरिका में ही हूं और यहीं रहने जा रहा हूं. तुम ने भी यह जान कर मुझ से शादी की थी.’’

‘‘वही तो मेरी सब से बड़ी भूल थी.’’

‘‘अब बेकार बातों को तूल न दो. लोलिता की डे केयर तुम ड्रौप कर रही हो या नहीं?’’

‘‘नहीं, आज मैं हाफ डे लीव लूंगी, तुम ही ड्रौप कर देना.’’

‘‘और हां, बौस बोल रहा था तुम्हें समझाने के लिए… दफ्तर पी के न जाया करो. किसी ने तुम्हारे खिलाफ कंप्लेन की है.’’

‘‘बौस की ऐसीतैसी, वह जानता नहीं है कि नौकरी मेरी मजबूरी नहीं है, बस एक शौक है टाइम पास.’’

‘‘तुम्हारे लिए हो सकता है पर औफिस टाइम पास के लिए नहीं है.’’

‘‘तुम अपना काम करो और बौस को मैं हैंडल कर लूंगी.’’

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कैथ अकसर वीकैंड में क्लब से नशे की हालत में घर आती और सैम के साथ उस का झगड़ा होता. सैम की क्लब में कोई रुचि नहीं थी. एक बार उस ने इतनी ज्यादा पी ली कि उस की कार कोई दूसरा आदमी चला कर लाया और कैथ को अपने दोनों हाथों से उठा कर घर छोड़ने आया. सैम ने दरवाजा खोला तो देखते ही वह गुस्से से आगबबूला हो उठा. उस आदमी को धन्यवाद दे विदा कर कैथ से कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है? तुम्हें शर्म नहीं आती कि इतना पी लेती हो कि गैरमर्द को तुम्हें बांहों में टांग कर लाना पड़ता है.’’

‘‘वह कोई अनजान नहीं था. मेरे स्कूल का साथी था. हम दोनों बहुत बार डेट पर भी जा चुके हैं और…’’

‘‘और क्या, तुम उस के साथ फिजिकल भी रही होगी. शेम औन यू.’’

‘‘माइंड योर टंग. मैं कोई कुएं की मेढक नही हूं, तुम्हारे जैसी कंजर्वेटिव नहीं हूं. मुझे घर से पूरी छूट थी.’’

‘‘मैं जानता हूं. तुम्हारी स्टैप मौम से नहीं पटती थी और तुम्हारा बाप जोरू का गुलाम था इसलिए ज्यादातर तुम नानी के यहां रही. उस के बाद बोर्डिंग में रही. तुम मुझे एक दिन वैकेशन में मिआमि में मिली… न जाने कैसे अचानक मुझ पर फिदा हो गई.’’

‘‘फिदा हो गई, माई फुट, तुम ने मुझे बीयर औफर की और मेरे साथ डांस करने के लिए रिक्वैस्ट की थी. मैं नहीं गई थी तुम्हारे पास.’’

‘‘स्टौप इट नाऊ, गो टु बैड. कल सुबह बात करते हैं.’’

इसी तरह तूतू, मैंमैं कर दोनों के दिन कट रहे थे. लोलिता अब बड़ी हो चली थी, वह अपनी मां के व्यवहार से दुखी थी और अपने पिता से उसे बहुत प्यार था. उसे हाई स्कूल में बोर्डिंग में भेज दिया गया.

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Serial Story: फैसला दर फैसला- भाग 4

पिछला भाग- फैसला दर फैसला: भाग 3

पिछले वर्ष उस का एक मित्र उसे वहां ले गया था. काफी नाम कमाया उस ने. पैसा भी कमाया… मैं बहुत खुश थी. देर से ही सही मेरे सुख का सूरज उदित तो हुआ. लेकिन वह मेरा भ्रम था… उस ने दूसरा विवाह कर लिया है.’’

‘‘विवाह?’’

‘‘हां दीदी… तुम्हारी तरह फटी आंखों से एकसाथ कई सवाल मेरे चेहरे पर भी उभर आए थे… हमारा तलाक तो हुआ ही नहीं था.

‘‘मन ने धीरे से हिम्मत बंधाई कि उस के पास पैसा है, खरीदे हुए रिश्ते हैं तो क्या हुआ, सच तो सच ही है, हिम्मत मत हार.

‘‘दरवाजा खोलो, दरवाजा खोलो… मुझे न्याय दो, मेरा हक दो… झूठ और फरेब से मेरी झोली में डाला गया तलाक मेरी शादी के जोड़ से भारी कैसे हो सकता है? न जाने किस अंधी उम्मीद में मैं ने अदालत का दरवाजा खटका दिया.

‘‘आज अपने मुकदमे की फाइल उठाए कचहरी के चक्कर काटती मैं खुद एक मुकदमा बन गई हूं. आवाज लगाने वाले अर्दली, नाजिर, मुंशी, जज, वकील, प्यादा, गवाह सभी मेरी जिंदगी के शब्दकोश में छपे नए काले अक्षर हैं. रात के अंधेरे में मैं ने जज की तसवीर को अपनी पलकों से चिपका पाया है. न्यायाधीश बिक गया… बोली लगा दी चौराहे पर मेरी चंद ऊंची पहुंच के अमीर लोगों ने.

‘‘लानत है… यह सोचने भर से मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है… भावनाओं के भंवर में डूबतीउतराती कभी सोचती हूं मेरा दोष ही क्या था, जिस की उम्रकैद की सजा मिली मुझे और फांसी पर लटकी मेरी खुशियां?’’ न चाहते हुए भी फाड़ कर फेंक देने का जी चाहता है उन बड़ीबड़ी, लाल, काली किताबों को, जिन में जिंदगी और मौत के अंधे नियम छपे हैं… निर्दोषों को सजा और कुसूरवारों को खुलेआम मौज करने की आजादी देते हैं. जीने के लिए संघर्ष करती औरत का अस्तित्व क्यों सदियों से गुम होता रहा है. समाज की अनचाही चिनी गई बड़ीबड़ी दीवारों के बीच?’’

‘‘एक निजी प्रश्न पूछूं इशिता?’’

‘‘हूं… पूछो.’’

‘‘जिंदगी में फिर कोई हमसफर नहीं मिला? मेरा मतलब है पुनर्विवाह का विचार फिर कभी मन में नहीं आया?’’ मैं ने उसे चुभते प्रश्नों के जंगल में भटकने के लिए छोड़ दिया था.

‘‘मिला था. अभिनंदन… मेरे अधीनस्थ

काम करता था. कोर्टकचहरी की भागदौड़ से

ले कर बैंक से रुपए निकलवाने में उस ने मेरी मदद की थी. उस के साथ रह कर लगा

इंसानियत अभी मरी नहीं है… अभिनंदन जैसे लोगों के मन में बसती है. विश्वास करने का मन किया था उस पर… सच पूछो तो उस के साथ एक बार फिर घर बसाने का विचार भी आया था मन में.

‘‘लेकिन वह भी मेरा भ्रम था. अपनी उच्चाकांक्षाओं के चलते उस ने अपने सहकर्ताओं से पहले प्रौन्नति पाने के लिए मेरा जीभर कर इस्तेमाल किया… बौस यानी बेताज बादशाह, जिसे चाहे नौकरी पर रखे, जिसे चाहे निकाले… महिला मंडल में हर समय फुसफुसाहट होती… पुरुष वर्ग खुल्लमखुल्ला फबतियां कसता कि अभिनंदन की तो लौटरी लग गई… हम से जूनियर है और प्रगति हम से अधिक कर गया… भई जिस के ऊपर बौस का वरदहस्त हो उस की आनबानशान के क्या कहने. अभिनंदन खिसियानी हंसी की आड़ में यह कटुता झेल जाता पर मेरा मन उस के प्रति दया से द्रवीभूत हो उठता. अजीब हैं ये लोग, कैसीकैसी बातें करते हैं?’’ एक दिन मैं ने दुखी हो कर कहा.

‘‘इशिताजी जलते हैं ये लोग हमारे रिश्ते से. सब को तो आप के जैसी सुंदर, सुगढ़ प्रेयसी नहीं मिलती न.’’

‘‘उस के इन शब्दों को सुन कर मैं सहज भाव से सोचने लगती कि कितना निर्मल हृदय है अभिनंदन का… जमाने के उतारचढ़ाव से अनजान.

‘‘एक दिन मैं ने विवाह जैसे गंभीर विषय को ले कर उस से बात की तो वह

तुरंत टाल गया. फिर कभी गांव जाने का बहाना, कभी मां से अनुमति लेने का बहाना बनाता रहा. एक दिन मैं ने बहुत जोर दिया तो फिर विद्रूप सा बोला कि किस गलतफहमी में जी रही हैं इशिताजी? आप ने कैसे सोच लिया कि मैं आप जैसी तलाकशुदा और 1 बेटे की मां से शादी करूंगा? मेरा रिश्ता पिछले साल मेरी बचपन की मित्र सोनाली से तय हो चुका है… सिर्फ इंतजार कर रहा था, कब मेरी प्रमोशन हो और मैं शादी के कार्ड छपवाऊं?

‘‘चीखचीख कर रोने को मन करने लगा. गले से घुटती सी आवाजें निकलने लगीं… चीख ने घुटती आवाजों का रूप ले लिया… उस शातिर इंसान ने एक निष्पाप मन को अपमानित किया था… वह सीधासरल नहीं, बल्कि वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ दिखने की चेष्टा करता रहा था. लगा उसी वक्त अपने तेज नाखूनों से उस का मुंह नोच डालूं… वह मुझे दलदल में धकेलता गया और मैं जान तक नहीं पाई.

‘‘कितने दिनों तक घर का दरवाजा बंद कर के रोती रहती थी… लगता रोने के लिए यह जगह बेहद सुरक्षित है, न कोई देखने वाला… किसी को दिखाना भी नहीं चाहती थी. लेकिन धीरेधीरे मेरे आंसू थम गए. सोचती, घर के बाहर मैं सीना तान कर, सिर उठा कर चलती हूं, लेकिन घर आ कर मुझे क्या हो जाता है? बाहर निकल कर ये आवाजें दीवारों, खिड़कियों, दरवाजों से टकराएंगी, फिर यंत्रवत यहांवहां फैले शोर में घुलमिल जाएंगी. घुटती आवाजें जब बंद हो जाएंगी तब सीने से दर्द का यह सैलाब मुझे नीचे से ऊपर तक झकझोर देगा और मैं भंजित प्रतिमा की तरह बिखरती जाऊंगी… नहींनहीं मुझे बिखरने का अधिकार नहीं… हालांकि दुनिया चाहती है कि कब मैं गिरूं और वह तमाशा देखे. मेरे फिसल कर गिर जाने से, मेरे अंगभंग हो जाने से न जाने कितने दिलों और दिमागों को सुकून मिलेगा… लेकिन ऐसा होगा नहीं. मेरे पैर चलतेचलते इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि लड़खड़ा कर भी मुझे गिरने नहीं देते… ठोकरें पड़ी हों तो उन को भी झेल लेते हैं, धरती से मुझे प्यार है और धरती पर पुष्पों का सपना बेमानी हो गया है.’’

इशिता मेरे साथ बाहर दालान में आ गई. बागीचे के फूलों की ताजगी उस के भीतर प्रविष्ट हो उसे अलौकिक आनंद दे रही थी… सुखद हो संघर्षमयी इशिता की यात्रा, इसी कामना के साथ मैं उठ खड़ी हुई.

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Serial Story: फैसला दर फैसला- भाग 1

‘‘इसमहीने की 12 तारीख को अदालत से फिर आगे की तारीख मिली है. अभी भी मामला गवाहियों पर अटका है. हर तारीख पर दी जाने वाली अगली तारीख किस तरह किसी की रोशन जिंदगी में अपनी कालिख पोत देती है, यह कोई मुझ से पूछे.’’

न जाने कितनी बार इशिता का भेजा मेल उलटपलट कर पढ़ चुकी थी मैं. हर बार नजर उन 2 पंक्तियों पर अटक जाती, जिन में उस ने प्रसन्न से तलाक लेने की बात की थी. 20 बरस तक विवाह की मजबूत डोर से बंधी जिंदगी जीतेजीते तो पतिपत्नी एकदूसरे की आदत बन जाते हैं, एकदूसरे के अनुरूप ढल जाते हैं, फिर अलग होने का प्रश्न ही कहां उठता है?

मन की गहराइयों से आती आवाज ने पुरजोर कोशिश की थी इस सच को नकारने की, पर यथार्थ मेल में भेजी उन 2 पंक्तियों के रूप में मेरे सामने था. कैसे विश्वास करूं, समझ नहीं पा रही थी… सबकुछ झूठ सा लग रहा था.

मन अतीत में भटकने लगा था… बरसों पुरानी धुंधली यादें मेरे मनमस्तिष्क पर एक के बाद एक अपने रंगरूप में साकार सी हो उठी थीं. मेरे सामने थी मातापिता के टूटे रिश्तों की बदरंग तसवीर, सहमी सी इशिता, जिस ने मामामामी के तलाक की परिणति में उस उम्र में दरदर की ठोकरें खाई थीं, जब लड़कियां गुडि़यों के ब्याह रचाती हैं और मामामामी जब पुनर्विवाह की डोर में बंध गए तो नन्ही इशि मेरी मां की गोद में शाख से गिरे पत्ते की भांति आ कर गिरी थी.

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वैसे मां खुद ही उसे अपने घर ले आई थीं. अपनेअपने नीड़ के निर्माण में मग्न मामामामी को तिनके जोड़ने और तोड़ने से ही फुरसत कहां थी, जो अपनी बेटी को रोकते? कभी पलट कर मां से उस की खोजखबर भी तो नहीं ली थी उन्होंने.

यों मां ने इशिता को भरपूर प्यार दिया था. अपनी और भाई की बेटी की देखरेख में अंतर नहीं किया, लेकिन फिर भी इशिता का भावुक मन कई बार विचलित हुआ था. मां सबकुछ दे कर भी मां नहीं बन सकी थीं. कई बार उस का मन करता उस की जिद पर, नादानी पर कोई डांटे, रोने पर कोई दुलार करे, पर उसे रोने का अवसर ही कब देती थीं मां?

इतना प्यार जताने के बाद भी उसे अपनी जननी न जाने क्यों याद आती. अकसर मेरी गोद में सिर रख कर इशिता सिसक उठती, ‘‘दीदी, चिडि़या भी अपने बच्चों की देखभाल तब तक करती है, जब तक वे उड़ना न सीख जाएं. अगर मुझे पाल नहीं सकते थे तो जन्म ही क्यों दिया उन्होंने?’’

मैं उस के गालों पर लुढ़क आए आंसुओं को जबतब पोंछती, पर कभी समझा नहीं पाई कि कभीकभी स्वार्थ का पलड़ा फर्ज के पलड़े से भारी हो उठता है. उस कच्ची उम्र में इस बात का मर्म समझ भी कहां पाती वह? कुछ बड़ी हुई तो हमेशा मातापिता के संबंधविच्छेद के लिए दोषी मां को ही ठहराया उस ने.

बच्चों की खातिर कराहते वैवाहिक बंधन के निर्वहन का दम भरने वाली इशिता स्वयं कैसा कठोर निर्णय ले बैठी? ऐसा क्या घटा जो वज्र जैसी छाती को मर्माहत कर गया? क्या पतिपत्नी का जुड़ाव नासूर बन कर ऐसी लहूलुहान पीड़ा दे गया कि अब कोई दूसरा विकल्प ही नहीं रह गया था? क्या दांपत्य जीवन में दरार कभी भी पड़ सकती है?

अचानक टैक्सी के रुकने की आवाज ने

मुझे ऊहापोह की यात्रा से यथार्थ में लौट आने

को विवश कर दिया. मेल में भेजे पते को

खोजती हुई मैं सही जगह पहुंच गई थी.

दिल्ली के एक पौश इलाके में स्थित बहुमंजिला इमारत में उस का सुंदर सा फ्लैट था. घर की सजावट देख कर लगा उस के पास जीविका के सभी साधन हैं, किसी की दया की मुहताज नहीं है वह. टेबल पर लगे फाइलों के ढेर, बारबार बजती फोन की घंटियां सब उस की व्यस्तता के स्पष्ट परिचायक थे.

इशिता शायद घर पर नहीं थी वरना मेरे आने की सूचना सुन कर जरूर पहुंच गई होती. अब तक नौकरानी चायनाश्ता दे गई थी. मैं कोने में रखे स्टूल पर से अलबम उठा कर उस के काले पन्ने बदलने में मशगूल हो गई, जिस में संजोई यादें अब इशिता का अतीत बन चुकी थीं.

कुछ ही देर में इशिता मेरे सामने थी. उसे आलिंगन में ले कर जैसे ही मैं ने उस

के माथे को चूमा उस के आंसू उस के गालों पर लुढ़क गए. ये आंसू दांपत्य की टूटन और सामाजिक प्रताड़ना के त्रास से उत्पन्न हताशा के सूचक थे या किसी अपने आत्मीय से मिलने की खुशी में उस का तनमन भिगो गए थे, जान ही नहीं पाई मैं. 20 बरस के अंतराल में बहुत कुछ सरक गया था… यही सब तो पूछने आई थी मैं उस के पास.

काफी समय इधरउधर की बातों में ही निकल गया. कभी वह आलोक के बारे में

पूछती, कभी मेरे बेटे और बहू के बारे में प्रश्न करती. मैं कनखियों से उस के दिव्य रूप को निहार रही थी. वही गौर वर्ण, छरहरा संगमरमर सा तराशा शरीर, कंटीली भवें, सूतवां नाक, मृगनयनी सी आंखें, कुल मिला कर अभी भी किसी पुरुष को आकर्षित कर सकती थीं… वही सौम्य व्यवहार, वही शिष्टता. कुछ भी तो नहीं बदला था.

हां, सहमी सी रहने वाली इशिता की जगह अब मेरे सामने बैठी थी सुदृढ़, आत्मविश्वास से भरपूर इशिता, जिस ने जीवन की टेढ़ीमेढ़ी पगडंडियों और अंधेरे रास्तों पर आने वाली हर अड़चन को चुनौती के रूप में स्वीकार किया था. उस की मांग का सिंदूर, कलाइयों में खनकती लाल चूडि़यां और माथे पर लाल बिंदिया देख कर तो मन शंकित हो उठा था कि ये सुहागचिह्न तो पति के अस्तित्व के सूचक हैं, फिर वह मेल?

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अब तक मैं अपने ऊपर नियंत्रण खो चुकी थी, लेकिन कुछ पूछने से पहले ही वह कोई न कोई प्रश्न कर देती जैसे अपने अतीत को कुरेदने से डरती हो.

आगे पढ़ें- रात का भोजन समाप्त कर हम ऊपर शयनकक्ष में…

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