
संगीता और नगीना का परिचय एक यात्रा के दौरान हुआ था. उस से पहले वे कभी नहीं मिली थीं. एक ही दफ्तर में काम करने के कारण उन दोनों के पति ही एकदूसरे के घर आतेजाते थे. इसीलिए वे दोनों एकदूसरे की पत्नियों से भी परिचित हो गए थे, लेकिन दोनों की पत्नियों का मिलन पहली बार इस यात्रा में ही हुआ था.
हुआ यों कि संगीता के पति दीपक ने दफ्तर से 15 दिन की छुट्टी ली. दीपक के साथ काम करने वालों ने सहज ही पूछलिया, ‘‘क्या बात है, दीपक, इतनी लंबी छुट्टी ले कर कहीं बाहर जाने का विचार है क्या?’’
दीपक ने सचाई बता दी, ‘‘हां, हमारा विचार राजस्थान के कुछ ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा करने का है. पत्नी कई दिनों से घूमनेके लिए चलने का आग्रह कर रही थी, इसीलिए मैं ने इस बार 15 दिन की यात्रा का कार्यक्रम बना डाला.’’
सभी ने दीपक के इस निश्चय की सराहना करते हुए कहा, ‘‘हो आओ. घूमनेफिरने से ताजगी आती है. आदमी को साल दो साल में घर से निकलना ही चाहिए. इस से मन की उदासी दूर हो जाती है.’’
तभी नगीना के पति रमेश ने दीपक से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे साथ और कोई भी जा रहा है?’’
‘‘नहीं, बस, श्रीमतीजी और मैं ही जा रहे हैं. बच्चे भी साथ नहीं जा रहे हैं, क्योंकि इस से उन की पढ़ाई में हर्ज होगा. वे अपने दादादादी के पास रहेंगे.’’
‘‘यह तो तुम ने बड़ी समझदारी का काम किया.’’
‘‘हां, मगर उन के बिना हमें कुछ अच्छा नहीं लगेगा. बच्चों के साथ रहने से मन लगा रहता है.’’
‘‘भई, मेरी पत्नी भी कहीं चलने के लिए जोर डाल रही है, पर सोचता हूं…’’
‘‘इस में सोचने की क्या बात है? अगर राजस्थान में घूमने की इच्छा हो तो हमारे साथ चलो.’’
‘‘तुम्हें कोई असुविधा तो नहीं होगी?’’
‘‘हमें क्या असुविधा होगी, भई, हनीमून मनाने थोड़े ही जा रहे हैं.’’किया, ‘‘जाओ,भई, ऐसा मौका मत छोड़ो. सफर में एक से दो भले. पर्यटन में अपनों का साथ होना बहुत अच्छा रहता है.’’
रमेश को यह सलाह जंच गई. उस ने उसी समय छुट्टी की अरजी दे डाली. बड़े बाबू ने अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए उस की छुट्टी की भी स्वीकृति दे दी. इसीलिए दोनों दंपतियों का साथ हो गया.
रेलवे स्टेशन पर दोनों जोड़ों का जब मिलन हुआ तो संगीता ने नगीना से कहा, ‘‘देखिए, एक ही शहर में रहते हुए भी हम अभी तक नहीं मिल पाईं?’’
नगीना ने मोहक मुसकान के साथ जवाब दिया, ‘‘अब हम लोग खूब मिला करेंगी, पिछली सारी कसर पूरी कर लेंगी.’’
इस यात्रा में संगीता औैर नगीना का बराबर साथ रहा. रेल और मोटर में तो उन का साथ रहता ही था. वे लोग जहां ठहरते थे, वहां भी कमरे पासपास ही होते थे. एक बार तो एक ही कमरे में दोनों जोड़ों को रात बितानी पड़ी. लिहाजा, इस सफर में नगीना और संगीता को एकदूसरे को देखनेसमझने के खूब मौके मिले.
इस अवधि में संगीता ने यह जाना कि रमेश पत्नी का खूब खयाल रखता है. वह दिनरात उस की सुखसुविधा के लिए चिंतित रहता है. वह नगीना की पसंद की चीजें नजर आते ही ले आता है. आग्रह करकर के खिलातापिलाता. पत्नी को जरा सा उदास देखते ही वह प्रश्नों की झड़ी लगा देता, ‘‘क्या हो गया? तबीयत ठीक नहीं है क्या? सिरदर्द तो नहीं हो रहा है? क्या हाथपैर ही दर्द कर रहे हैं?’’
नगीना के मुंह से अगर कभी यह निकल जाता कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है तो रमेश भागदौड़ मचा देता. पत्नी के सिर पर कभी बाम मलता तो कभी हाथपैर ही दबाने लगता. जरूरत होती तो डाक्टर को भी बुला लाता.
नगीना मना करती रह जाती, ‘‘घबराने की कोईर् बात नहीं. साधारण बुखार है.’’
मगर रमेश घबरा जाता. नगीना जब तक पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती थी, तब तक वह बेहद परेशान रहता. जब नगीना हंसहंस कर बातें करने लगती तब कहीं उस की जान में जान आती.
पत्नी को यों खिलीखिली सी रखने के लिए वह सतत प्रयत्नशील रहता.सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस अवधि में वह अपनी पत्नी पर न तो कभी झल्लाता, न ही नाराज होता. कई बार नगीना ने उस की इच्छा के खिलाफ भी काम किया. फिर भी उस ने कुछ नहीं कहा.
रमेश के इस व्यवहार से संगीता बड़ी प्रभावित हुई. उसे नगीना से ईर्ष्या होने लगी. वह मन ही मन अपने पति दीपक और रमेश में तुलना करने लगती.
जिन बातों की ओर संगीता का पहले कभी ध्यान नहीं जाता था उस ओर भी उस का ध्यान जाने लगा था. एक टीस सी उस के मन में उठने लगी थी, ‘एक मेरा पति है और एक नगीना का. दोनों में कितना अंतरहै. दीपक तो मेरा कभी खयाल ही नहीं रखता. 15 वर्ष से अधिक अवधि बीत गई हमारे विवाह को, फिर भी कोई जानकारी ही नहीं है.
‘दीपक तो बस अपनेआप में ही डूबा रहता है. हां, कुछ कह दूं तो भले ही ध्यान दे दे. मगर मेरे मन की बात जानने की उसे स्वयं कभी इच्छा ही नहीं होती. मन की बात छिपाना ही उसे नहीं आता. जो मन में आता है, वह फौरन जीभ पर ले आता है. उस का चेहरा ही बहुत कुछ कह देता है. कठोर से कठोर बात भी उस के मुंह से निकल जाती है. ऐसे क्षणों में उसे इस बात का भी ध्यान नहीं रहताकि किसी को बुरा लगेगा या भला? वह तो बस अपने मन की बात कह के हलके हो जाते हैं. कोई मरे या जिए उस की बला से.
‘दीपक की सेवा करकर के भले ही कोई मर जाए, फिर भी प्रशंसा के दो बोल उस के मुंह से शायद ही निकलते हैं. बीमारी तक में उसे खयाल नहीं रहता कि मेरी कुछ मदद कर दे. जाने किस दुनिया में रहता है वह. उस के जीवन से कोई और भी जुड़ा हुआ है, इस का उसे ध्यान ही नहीं रहता. पत्नी का उसके लिए जैसे कोई महत्त्व ही नहीं है. न जाने किस मिट्टी का बना है वह. अच्छा बनेगा तो इतना अच्छा कि उस से अच्छा कोई और हो ही न शायद. बुरा बनेगा तो इतना बुरा कि वैरी से भी बढ़ कर. सचमुच बहुत ही विचित्र प्राणी है दीपक.’
संगीता के मन के ये उद्गार एक दिन नगीना के सामने प्रकट हो गए. उस दिन दोनों के पति यात्रा से वापस लौटने के लिए आरक्षण कराने गए थे. वे दोनों बैठी इधर- उधर की बातें कर रही थीं. तभी नगीना ने अपने पति की आलोचना शुरू कर दी. बच्चों के लिए खरीदे गए कपड़ों को ले कर पतिपत्नी में शायद खटक चुकी थी.
संगीता कुछ देर तक तो सुनती रही, किंतु जब नगीना रमेश के व्यवहार की तीखी आलोचना करने लगी तो वह अपनेआप को रोक नहीं पाई. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नहीं, तुम्हारे पति तो ऐसे नहीं लगते. इन 12-13 दिनों में मैं ने जो कुछ देखा है, उस के आधार पर तो मैं यही कह सकती हूं कि तुम्हें अच्छा पति मिला है. वह तुम्हारा बड़ा खयाल रखते हैं. तुम्हारी सुखसुविधा के लिए वह हमेशा चिंतित रहते हैं. आश्चर्य है कि तुम ऐसे आदर्श पति की बुराई कर रही हो.’’
नगीना ने बड़ी तल्खी से जवाब दिया, ‘‘काश, वह आदर्श पति होते?’’
संगीता ने साश्चर्य पूछा, ‘‘फिर आदर्श पति कैसा होता है?’’
नगीना ने बड़े दर्द भरे स्वर में कहा, ‘‘संगीता, तुम मेरे पति को सतही तौर पर ही जान पाई हो, इसीलिए ऐसी बातें कर रही हो. हकीकत में वह ऐसे नहीं हैं.’’
‘‘तो फिर कैसे हैं?’’ ‘‘जैसे दिखते हैं वैसे नहीं हैं.’’ ‘‘क्या मतलब?’’ नगीना ने फर्श पर बिछे गलीचे की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘वह इस गलीचे की तरह हैं.’’ संगीता का आश्चर्य बढ़ता ही जा रहा था. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी बात समझ नहीं पाई?’’
फर्श पर बिछे हुए गलीचे के एक कोने को थोड़ा सा उठाती हुई नगीना बोली, ‘‘संगीता, गलीचे के नीचे छिपी हुई यह धूल, यह गंदगी, किसी को नजर नहीं आती. लोगों को तो बस यह खूबसूरत गलीचा ही नजर आता है. इसे ही अगर सचाई मानना हो तो मान लो. मगर मैं तो उस नंगे फर्श को अच्छा समझती हूं जहां ऐसा कोई धोखा नहीं है. संगीता, मुझे तुम से ईर्ष्या होती है. तुम्हें कितने अच्छे पति मिले हैं. अंदरबाहर से एक से.’’
संगीता मुंहबाए नगीना को देखती रह गई. उस से कुछ कहते ही नहीं बना. ंिकंतु दीपक के प्रति उसे जैसे नई दृष्टि प्राप्त हुई थी. अपने सारे दोषों के बावजूद वह उसे बहुत अच्छा लगने लगा. संगीता के मन में उस के प्रति जैसे प्यार का ज्वार उमड़ पड़ा.
अब्बाजान की प्राइवेट नौकरी के कारण 3 बड़े भाईबहनों की पढ़ाई प्राइमरी तक ही पूरी हो सकी थी. लेकिन मैं ने बचपन से ही ठान लिया था कि उच्चशिक्षा हासिल कर के रहूंगी. ‘‘रेशमा, हमारी कौम और बिरादरी में पढ़ेलिखे लड़के कहां मिलते हैं? तुम पढ़ाई की जिद छोड़ कर कढ़ाईबुनाई सीख लो,’’ अब्बू ने समझाया था.
मेरी देखादेखी छोटी बहन भी ट्यूशन पढ़ा कर पढ़ाई का खर्च खुद पूरा करने लगी. 12वीं कक्षा की मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे वजीफा मिलने लगा. इस दरमियान दोनों बड़ी बहनों की शादी मामूली आय वाले लड़कों से कर दी गई और भाई एक दुकान में काम करने लगा. मैं ने प्राइवेट कालेजों में लैक्चरर की नौकरी करते हुए पीएचडी शुरू कर दी. अंत में नामचीन यूनिवर्सिटी में हिंदी अधिकारी के पद पर कार्यरत हो गई. छोटी बहन भी लैक्चरर के साथसाथ डाक्टरेट के लिए प्रयासरत हो गई. मेरी पोस्टिंग दूसरे शहर में होने के कारण अब मैं ईदबकरीद में ही घर जाती थी. इस बीच मैं ने जरूरत की चीजें खुद खरीद कर जिंदगी को कमोबेश आसान बनाने की कोशिश की. लेकिन जब भी अपने घर जाती अम्मीअब्बू के ज्वलंत प्रश्न मेरी मुश्किलें बढ़ा देते.
‘‘इतनी डिगरियां ले ली हैं रेशमा तुम ने कि तुम्हारे बराबर का लड़का ढूंढ़ने की हमारी सारी कवायद नाकाम हो गई है.’’ ‘‘अब्बू अब लोग पढ़ाई की कीमत समझने लगे हैं. देखना आप की बेटियों के लिए घर बैठे रिश्ता आएगा. तब आप फख्र करेंगे अपनी पढ़ीलिखी बेटियों पर,’’ मैं कहती.
‘‘पता नहीं वह दिन कब आएगा,’’ अम्मी गहरी सांस लेतीं, ‘‘खानदान की तुम से छोटी लड़कियों की शादियां हो गईं. वे बालबच्चेदार भी हो गईं. सब टोकते हैं, कब कर रहे हो रेशमा और नसीमा की शादी? तुम्हारी शादी न होने की वजह से हम हज करने भी नहीं जा सकते हैं,’’ अम्मी ने अवसाद उड़ेला तो मैं वहां से चुपचाप उठ कर चली गई. यों तो मेरे लिए रिश्ते आ रहे थे, लेकिन बिरादरी से बाहर शादी न करने की जिद अम्मीअब्बू को कोई फैसला नहीं लेने दे रही थी.
शिक्षा हर भारतीय का मूल अधिकार है, लेकिन हमारा आर्थिक रूप से
कमजोर समाज युवाओं को शीघ्र ही कमाऊपूत बनाने की दौड़ में शिक्षित नहीं होने देता. नतीजतन पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी कौम आर्थिक तंगी, सीमित आय में ही गुजारा करने के लिए विवश होती है. यह युवा पीढ़ी की विडंबना ही है कि आगे बढ़ने के अवसर होने पर भी उस की मालीहालत उसे उच्च शिक्षा, ऊंची नौकरियों से महरूम कर देती है. उस दिन अब्बू ने फोन किया. आवाज में उत्साह था, ‘‘तुम्हारे छोटे चाचा एक रिश्ता लाए हैं. लड़का पोस्ट ग्रैजुएट है. प्राइवेट स्कूल में नौकरी करता है तनख्वाह 8 हजार है… खातेपीते घर के लोग हैं… फोटो भेज रहा हूं.’’
‘‘दहेज की कोई मांग नहीं है. सादगी से निकाह कर के ले जाएंगे,’’ भाईजान ने भी फोन कर बताया. अब्बू और भाईजान को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई.
मैंने फोटो देखा. सामान्य चेहरा. बायोडाटा में मेरी डिगरियों के साथ कोई मैच नहीं था, लेकिन मैं क्या करती. अम्मीअब्बू की फिक्र… बहन की शादी की उम्र… मैं भी 34 पार कर रही थी… भारी सामाजिक एवं पारिवारिक दबाव के तहत अब्बू ने मेरी सहमति जाने बगैर रिश्ते के लिए हां कर दी. सगाई के बाद मैं वापस यूनिवर्सिटी आ गई. लेकिन जेहन में अनगिनत सवाल कुलबुलाते रहे कि पता नहीं उस का मिजाज कैसा होगा… उस का रवैया ठीक तो होगा न… मुझे घरेलू हिंसा से बहुत डर लगता है… यही तो देख रही हूं सालों से अपने आसपास. क्या वह मेरे एहसास, मेरे जज्बात की गहराई को समझ पाएगा?
तीसरे ही दिन मंगेतर का फोन आ गया. पहली बार बातचीत, लेकिन शिष्टाचार, सलीका नजर नहीं आया. अब तो रोज का ही दस्तूर बन गया. मैं थकीहारी औफिस से लौटती और उस का फोन आ जाता. घंटों बातें करता… अपनी आत्मस्तुति, शाबाशी के किस्से सुनाता. मैं मितभाषी बातों के जवाब में बस जी… जी… करती रहती. वह अगर कुछ पूछता भी तो बगैर मेरा जवाब सुने पुन: बोलने लगता.
चौथे महीने के बाद वह कुछ ज्यादा बेबाक हो गया. मेरे पुरुष मित्रों के बारे में, रिश्ते की सीमाओं के बारे में पूछने लगा. कुछ दिन बाद एक धार्मिक पर्व के अवसर पर बात करते हुए मैं ने महसूस किया कि वह और उस का परिवार पुरानी निरर्थक परंपराओं एवं रीतिरिवाजों के प्रति बहुत ही कट्टर और अडिग हैं. मैं आधुनिक प्रगतिशील विचारधारा वाली ये सब सुन कर बहुत चिंतित हो गई.
यह सच है कि बढ़ती उम्र की शादी महज मर्द और औरत को एक छत के नीचे रख कर सामाजिक कायदों को मानने एवं वंश बढ़ाने की प्रक्रिया के तहत एक समझौता होती है, फिर भी नारी का कोमल मन हमेशा पुरुष को हमसफर, प्रियतम, दोस्त, गमगुजार के रूप में पाने की ख्वाहिश रखता है… मैं ऐसे कैसे किसी संवेदनहीन व्यक्ति को जीवनसाथी बना कर खुश रह सकती हूं? एक दिन उस ने फोन पर बताया कि वह पोस्ट ग्रैजुएशन का अंतिम सेमैस्टर देने के लिए छुट्टी ले रहा है… मुझे तो बतलाया गया था कि वह पोस्ट ग्रैजुएशन कर चुका है… मैं ने उस के सर्टिफिकेट को पुन: देखा तो आखिरी सेमैस्टर की मार्कशीट नहीं थी… मेरा माथा ठनका कि इस का मतलब मुझे झूठ बताया गया. मैं पहले भी महसूस कर चुकी थी कि उस की बातों में सचाई और साफगोई नहीं है.
उस ने फोन पर बताया कि वह प्राइवेट नौकरी की शोषण नीति से त्रस्त हो चुका है. अब घर में रह कर अर्थशास्त्र पर किताब लिखना चाहता है. ‘‘किताब लिखने के लिए नौकरी छोड़ कर घर में रहना जरूरी नहीं है. मैं ने 2 किताबें नौकरी करते हुए लिखी हैं.’’
मेरे जवाब पर प्रतिक्रिया दिए बगैर उस ने बात बदल दी. अनुभवों और परिस्थितियों ने मुझे ठोस, गंभीर और मेरी सोच को परिपक्व बना दिया था. उस का यह बचकाना निर्णय मुझे उस की चंचल, अपरिपक्व मानसिकता का परिचय दे गया.
एक दिन मुझे औफिस का काम निबटाना था, तभी उस का फोन आ गया. हमेशा की तरह बिना कौमा, पूर्णविराम के बोलने लगा, ‘‘यह बहुत अच्छा हो गया… आप मुझे मिल गईं. अब मेरी मम्मी को मेरी चिंता नहीं रहेगी.’’
‘‘वह कैसे?’’ ‘‘क्योंकि मेरी तमाम बेसिक नीड्स पूरी हो जाएंगी.’’ सुन कर मैं स्तब्ध रह गई. मैं ने संयम जुटा कर पूछा.
‘‘बेसिक नीड्स से क्या मतलब है आप को?’’ उस ने ठहाका लगा कर जवाब दिया, ‘‘रोटी, कपड़ा और मकान.’’
मैं सुन कर अवाक रह गई. भारतीय समाज में पुरुष परिवार की हर जरूरत पूरा करने का दायित्व उठाते हैं. यह मर्द तो औरत पर आश्रित हो कर मुझे बैसाखियों की तरह इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है. इस से पहले भी उस ने मेरी तनख्वाह और बैंकबैलेंस के बारे में पूछा था जिसे मैं ने सहज वार्त्ता समझ कर टाल दिया था.
अपने निकम्मेपन, अपने हितों को साधने के लिए ही शायद उस ने पढ़ीलिखी नौकरीपेशा लड़की से शादी करने की योजना बनाई थी. आज मेरे जीवन का यह अध्याय चरमसीमा पर आ गया. मैं ने चाचा, अब्बू व भाईजान को अपनी सगाई तोड़ देने की सूचना दे कर दूसरे ही दिन मंगनी में दिया सारा सामान उस के पते पर भिजवा दिया. मेरा परिवार काठ बन गया. मुझे खुदगर्जी के चेहरे पर मुहब्बत का फरेबी नकाब पहनने वाले के साथ रिश्ता कबूल नहीं था. छलकपट, स्वार्थ, दंभ से भरे पुरुष के साथ जीवन व्यतीत करने से बेहतर है मैं अकेली अनब्याही ही रहूं.
माही को 2 शादियों के कार्ड एकसाथ मिले. एक भाई की बेटी की शादी का और एक जेठजी की बेटी की शादी का. दोनों शादियां भी एक ही दिन थीं और दोनों ही रिश्ते ऐसे कि शादी में जाना टाला नहीं जा सकता था.
माही कार्ड को उलटपुलट कर ऐसे देखने लगी, जैसे ध्यान से देखने पर कोई न कोई सुराग मिल जाएगा या कोई दूसरी तारीख मिल जाएगी. या फिर कोई दूसरी सूरत मिल जाएगी दोनों शादियां अटैंड करने की. वह क्या करेगी अब? भाई की बेटी की शादी में शामिल नहीं हो पाएगी तो भैयाभाभी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर जेठजी की बेटी की शादी में शामिल नहीं हुई तो जेठजेठानी उस की मजबूरी समझ कर कुछ कहेंगे नहीं पर उन के प्यार भरे उलाहने का सामना कैसे करेगी?
किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. विभव से पूछेगी तो वे तपाक से कह देंगे कि जो तुम्हें ठीक लगता है वह करो. वह फिर दोराहे पर खड़ी हो जाएगी. या फिर बहुत अच्छे मूड में होंगे तो कह देंगे कि तुम अपने
भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाओ और मैं अपने भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाता हूं. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती. शाम होने को थी, अंधेरा धीरेधीरे चारों तरफ फैल रहा था.
उस का दिल वहां पहुंच गया जब उमंगें थीं, रंगीन इंद्रधनुषी सपने थे, मातापिता थे. उस की कुलांचे भरने वाली उम्र थी. वे 2 भाईबहन थे. मातापिता की इकलौती लाडली बेटी. भाई के बाद लगभग 10 सालों के बाद हुई, इसलिए भाई का भी लाड़प्यार भरपूर मिला. वह 20 साल की थी जब भाई की शादी हुई. आम लड़कियों की तरह उस के भी कई अरमान थे भाई की शादी के… काफी लड़कियां देखने के बाद सिमरन पसंद आ गई. भाई के सेहरा बांधे देख हर बहन की तरह वह भी खुश थी.
भाभी ने जब घर में कदम रखा तो खुशियां जैसे उन के घर के दरवाजे पर हाथ बांधे खड़ी हो गईं. भाभी 23 साल की थीं, उम्र का फासला कम था. उसे लगा उसे हमउम्र एक सहेली मिल गई. अभी तक तो घर में सभी बडे़ थे. 3 साल उसे भाभी के सान्निध्य में रहने का मौका मिला. 23 साल की उम्र में उस की भी शादी हो गई. पहले मां काम करती थीं तो वह निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई करती थी. मां भाभी की भी किचन में पूरी मदद करती थीं. पर भाभी न जाने क्यों उस से हमेशा चिढ़ी सी ही रहती थीं. शायद उन्हें लगता था कि यह आराम से अपनी पढ़ाई कर रही है. बाकी सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. नई होने के कारण वे अधिक नहीं बोल पाती थीं पर भावभंगिमाओं से सब जता देती थीं.
भाभी के हावभाव समझ कर वह भी किचन में हाथ बंटाने की कोशिश करने लगी तो मां ने टोक दिया, ‘तू जा…अपनी पढ़ाई कर… ये काम तो जिंदगी भर करने हैं…’ वह जाने को हुई तो भाभी बोल पड़ीं, ‘पर काम आएगा नहीं तो आगे करेगी कैसे?’ उसे समझ नहीं आया कि भाभी की बात माने कि मां की. वह एम.एससी. कर रही थी. पढ़ने में वह हमेशा कक्षा में अच्छे विद्यार्थियों में गिनी जाती रही. भाभी अपनी चुप्पी के पीछे से भी पूरी दबंगता दिखा देती थीं. भाई भी उस से अब पहले की तरह बेतकल्लुफ नहीं रहते थे. पहले की तरह भाई से फरमाइश करने की उस की अब हिम्मत नहीं पड़ती थी.
भाई कहीं बाहर तो जाते तो भाभी के लिए कई चीजें खरीद कर लाते. वह बहुत उम्मीद से देखती कि शायद उस के लिए भी कुछ खरीद कर लाए हों, पर ऐसा होता नहीं था. उसे किसी बात की कमी नहीं थी पर भाई का कुछ न लाना जता देता कि अब उन की जिंदगी में उस की कोई अहमियत नहीं रह गई है. उस ने यह मासूम सी शिकायत मां से की तो उन्होंने उसे ही समझा दिया, ‘ऐसा तो होता ही है पगली. तेरी शादी होगी तो तेरा पति भी तेरे लिए ऐसे ही लाएगा, पति के लिए पत्नी सब कुछ होती है.’
‘और लोग कुछ नहीं होते?’
‘होते हैं… पर पत्नी से कम ही होते हैं.’ 2 साल तक भाभी का व्यवहार समझते हुए भी उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया. उस के लिए भाभी फिर भी अपनी थीं पर भाभी उसे कभी अपना नहीं समझ पाईं. उस के 23 की होतेहोते मातापिता ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया. विभव बैंक में अफसर थे. उन के घर में 2 भाई व 1 बहन और मां थीं. वहां सब कुछ अच्छा देख कर उस का रिश्ता तय हो गया और फिर उस की शादी हो गई. उस ने सोचा कि अब भाभी के साथ उस के रिश्ते सहज हो जाएंगे, जब वह कभीकभी आएगी तो भाभी भी उसे पूरा सम्मान देंगी.
ससुराल में सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया पर घर में जेठानी का ही राज था. वे पूरे परिवार पर छाई हुई थीं. सास, ननद व यहां तक की उस के पति के दिलोदिमाग पर भी वही राज कर रही थीं. वह अनायास ही ईर्ष्या से भर उठी. मायके जाती तो वहां सब कुछ भाभी का तो यहां सब कुछ जेठानी का.
धीरेधीरे न चाहते हुए भी उस के मन में जेठानी के प्रति ईर्ष्या की भावना घर कर गई. पति से कुछ भी पूछती तो एक ही जवाब मिलता कि भाभी से पूछ लो.
‘साड़ी खरीदनी है साथ चलो,’ तो उसे जवाब मिलता, ‘भाभी के साथ चली जाओ’ या फिर, ‘चलो भाभी को भी साथ ले चलते हैं, उन की पसंद बहुत अच्छी है.’’
‘खाने में क्या बनाऊं…’
‘भाभी से पूछ लो.’
सास भी बड़ी बहू से पूछे बिना कुछ न करतीं. उसे सब प्यार करते पर महत्त्व बड़ी को ही देते. जेठानी के साथ समझौता करना उसे अच्छा नहीं लगता था. जेठानी उस का रुख समझ कर बहुत संभल कर चलतीं पर कुछ न कुछ हो ही जाता. जेठजेठानी कहीं जाते तो बच्चे घर छोड़ जाते. बच्चों की चाचा के साथ घूमने की आदत तो पहले से ही थी. अब चाची भी आ गईं. तो क्या… वे दोनों कहीं भी जाना चाहते तो दोनों बच्चे भी उन के साथ लग लेते. वह विभव पर भुनभुनाती, ‘नई शादी हमारी हुई है या जेठजेठानी की? वे दोनों तो अकेले जाते हैं और हमारे साथ ये दोनों लग लेते हैं.’
‘तो क्या हुआ माही… उन्हें इस बात की समझ थोड़े ही है… बच्चे ही तो हैं.’
‘ये ऐसे ही हमारे साथ जाते रहे तो जब तक ये बड़े होंगे तब तक हम बूढ़े हो जाएंगे…’
‘अरे, जब हमारे चुनमुन होंगे तो उन्हें भाभी संभालेगी तब हम खूब अकेले घूमेंगे.’
‘जरूर संभालेंगी… अपने तो संभलते नहीं…’
जेठानी उस का मूड समझ कर बच्चों को जबरन रोकतीं. न मानने पर 1-2 थप्पड़ तक जड़ देतीं. बच्चे रोते तो उन्हें रोता देख कर विभव का मूड खराब हो जाता. और विभव का खराब मूड देख कर उस का मूड खराब हो जाता और जाने का सारा मजा किरकिरा हो जाता. उसे जेठानी पर तब और भी गुस्सा आता. लेकिन जिन बातों में वह जेठानी के साथ समझौता नहीं करना चाहती थी, उन्हीं बातों में भाभी के साथ समझौता करने की कोशिश करती. उन्हें खुश रखने का प्रयास करती ताकि उन के साथ संबंध अच्छे बने रहें.
भैयाभाभी कहीं जाते तो थोड़े दिन के लिए मायके आने के बावजूद वह भाई के बच्चों की देखभाल करती, उन्हें अपने साथ घुमाने ले जाती, चौकलेट, आइसक्रीम वगैरह खिलाती पर भाभी उसे फिर भी खास तवज्जो न देतीं. माही उस घर को अभी भी अपना घर समझती. फिर वही पहले वाला हक ढूंढ़ती. पर उस की सारी कोशिशें बेकार हो जातीं. भाभी उस से मतलब का रिश्ता निभातीं, इसलिए उन में आत्मीयता कभी नहीं आ पाई.
वह जबजब भाभी के साथ किचन में कुछ करने की कोशिश करती, तो भाभी उसे साफ जता देतीं कि अब उन को उस का अपने किचन में छेड़खानी करना पसंद नहीं. वह 2-4 दिन के लिए आई है. मां के साथ बैठे और जाए. फिर उस के बच्चे हुए तो सास बुजुर्ग होने की वजह से उस की अधिक देखभाल नहीं कर पाईं पर जेठानी ने अपना तनमन लगा दिया, मां जैसी देखभाल की उन की.
‘देखा माही… भाभी कितना खयाल रखती है तुम्हारा… मैं कहता था न कि उन्हें समझने में तुम गलती कर रही हो.’
जेठानी की देखभाल से वह पिघलने को होती तो विभव की बात से जलभुन जाती. पहले बच्चे के समय जब मां ने बारबार कहा कि अब थोड़े दिन के लिए मायके आ जा तो सवा महीने के बच्चे को ले कर वह मायके चली आई. विभव से कह आई कि बहुत दिनों बाद जा रही हूं, इसलिए आराम से रहूंगी. तुम्हें तो वैसे भी मेरी जरूरत नहीं है.
जेठानी ने जाने की बात सुनी तो मना किया, ‘तुम अभी कमजोर हो माही… खुद की व बच्चे की देखभाल नहीं कर पाओगी… यहीं रहो, थोड़े महीने बाद चली जाना.’
‘मेरी मां व भाभी मेरी देखभाल करेंगी…’ भाभी का स्वभाव जानते हुए भी वह बोली. मायके पहुंची तो खुश थी वह. इस बार लंबे समय के लिए आई थी. जब घर पहुंची तो, भावुक हो कर मां व भाभी से मिलना चाहा पर भाभी का उखड़ा मूड देख कर उत्साह पर पानी फिर गया. मां भी बहुत उत्साहित नहीं दिखीं, लगा मां ने रीतरिवाज निभाने व उस का मन रखने के लिए उसे मायके आने को कहा था. शायद उन्हें सचमुच विश्वास नहीं था कि वह आ जाएगी.
ससुराल में जेठानी उस के आगेपीछे घूम कर उस का ध्यान रखतीं, बच्चे की पूरी देखभाल करतीं, सास हर समय सब से उस का ध्यान रखने को कहतीं, उस का बेटा सब की आंखों का तारा था वहीं मायके में मां की भी काम के करने की एक सीमा थी, फिर भी उन का पहला ध्यान अपने पोतेपोतियों पर रहता था, नहीं तो बहू की नाराजगी मोल लेनी पड़ती. भाभी को तो उस की देखभाल से मतलब ही नहीं था. जो खाना सब के लिए बनता वही उस के लिए भी बनता.
एक दिन रात में तबीयत खराब होने की वजह से वह बच्चे की देखभाल भी नहीं कर पा रही थी. मां ने रोते हुए बच्चे को उठा लिया पर उस का पेट दर्द रुक नहीं पा रहा था. मां ने हार कर उस के भाई के कमरे का दरवाजा खटखटा दिया. बहुत मुश्किल से भाई की नींद खुली, उस ने दरवाजा खोला.
‘बेटा माही की तबीयत ठीक नहीं है. पेट में दर्द हो रहा है…’
‘क्या मां… तुम भी न. छोटीछोटी बातों के लिए जगा देती हो. अरे परहेज वगैरह वह कुछ करती नहीं… हाजमा बिगड़ गया होगा. कोई दवादे देती. बेकार में नींद खराब कर दी.’
‘सब कुछ कर के देख लिया बेटा, पर दर्द रुक नहीं रहा.’
‘तो दर्द की कोई गोली दे दो. इतनी रात में मैं क्या कर सकता हूं. और तुम भी मां… कहां की जिम्मेदारी ले ली. उसे अपने घर भेजने की तैयारी करो. उन की जिम्मेदारी है वही संभालें. सो जाओ अभी सुबह देखेंगे.’ कह कर भाई ने दरवाजा बंद कर दिया.
मां लौट आईं. न माही ने कुछ पूछा. न मां ने कुछ कहा.
उस ने सब कुछ सुन लिया था. सारी रात वह दर्द से तड़पती रहीं, मां सिराहने बैठी रही, पर भाईभाभी ने सहानुभूति जताने की कोशिश भी न की. सुबह पेट दर्द कम हो गया पर तबीयत फिर भी ठीक नहीं थी लेकिन भैयाभाभी ने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि रात में तबीयत ठीक नहीं थी अब कैसी है, वह सोच रही थी कि उस की इतनी तकलीफ में तो ससुराल में रात में पूरा घर हिल जाता. यहां तक की बच्चे भी उठ कर बैठ जाते, यहां मां के अलावा सब सो रहे थे.
सोचतेसोचते उस का मन भारी सा हो गया. किस मृगतृष्णा में बंधी हुई वह बारबार यहां आती है और भैयाभाभी के द्वारा अपमानित होती है. क्या खून के रिश्ते ही सब कुछ होते हैं? जेठजेठानी उस पर जान छिड़कते हैं, लेकिन उन्हें वह अपना नहीं समझ पाती, उलटा चाहती है कि उस का पति भी उन्हें अधिक तवज्जो न दे.
वह बिस्तर पर गमगीन सी बैठी हुई थी तभी मां चाय ले कर आ गईं. माही रात की बात से दुखी होगी, यह तो वे जानती थीं पर उन के हाथ में था भी क्या.
‘क्या हुआ माही. अब कैसी तबीयत है तेरी?’ मां स्नेह से उस का सिर सहलाते हुए बोलीं.
‘अब ठीक है मां. आप को भी रात भर सोने नहीं दिया मैं ने.’
‘अरे… कैसी बात कर रही है तू. अच्छा चल मुंहहाथ धो ले और चाय पी ले.’
माही चुपचाप चाय पीने लगी. मां ने अपना कप उठा लिया. दोनों चुप थे पर दोनों के दिल की बातों से परेशान थे.
‘मां, मेरी तबीयत अगर ऐसी ससुराल में खराब होती तो मेरे जेठजेठानी सारा घर सिर पर उठा लेते,’ अचानक माही बोली तो मां समझ गईं कि माही क्या कहना चाहती है. वे धीरे से उस के पास खिसक आईं, ‘माही, तू जिन रिश्तों की जड़ों को सींचना चाह रही है वे खोखली हैं. सूखी हुई हैं बेटा. खून के रिश्ते ही सब कुछ नहीं होते. जितनी कोशिश उन्हें अपनी भाभी के साथ बनाने की करती है, उस का अंशमात्र भी अपने जेठजेठानी के साथ करेगी तो वे रिश्ते लहलहा उठेंगे. जो रिश्ते तेरी तरफ कदम बढ़ा रहे हैं उन्हें थाम. उन का स्वागत कर. जो तुझ से दूर भाग रहे हैं उन के पीछे क्यों भागती है?’ मां उस के और अपने मन के झंझावतों को शब्द देती हुई बोलीं.
‘‘ये तेरी मृगतृष्णा है कि कभी न कभी भाभी तेरे प्यार को समझेगी और तेरी तरफ कदम बढ़ाएगी. कुछ लोग प्यार की भाषा को कभी नहीं समझ पाते. पर तू प्यार की कीमत समझ माही. अपने जेठजेठानी के प्यार को समेट ले… वही हैं तेरे भैयाभाभी, जो तेरे दुखसुख में काम आते हैं. तेरा खयाल रखते हैं. तेरे अच्छेबुरे व्यवहार को तेरी नादानी समझ कर भुला देते हैं.’
मां उसे पहले भी यह बात कई बार समझाना चाहती थीं, उस के प्यार का बहाव ससुराल की तरफ मोड़ना चाहती थीं पर माही समझना ही नहीं चाहती थी. पर आज पता नहीं क्यों मां की बात समझने का दिल कर रहा था. उन की बातें उस के अंतर्मन को छू रही थीं. मां चली गईं तो वह अपनेआप में गुमसुम सी हो गई. जब उस का गाल ब्लैडर की पथरी का औपरेशन हुआ था तब भी कैसे सास व जेठजेठानी ने दिनरात एक कर दिया था और भैयाभाभी ने बस एक फोन कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी. जेठजेठानी ने तनमनधन लगा दिया था. ननद भी औपरेशन के समय 2 दिन के लिए उस के पास आ गई थी.
आज पिछली सारी बातें जैसे साफ हो रही थीं, उस की आंखों पर पड़ा भ्रम व मोह का परदा हट रहा था. आज पहली बार वह समझ रही थी कि जो उसे अपनाना चाह रहे थे उन्हें वह ठुकरा रही थी और जो उसे ठुकरा रहे थे उन रिश्तों के पीछे वह भाग रही थी. सच वे भी तो भैयाभाभी हैं जिन से उसे प्यार मिलता है, उस के न सही उस के पति के हैं तो उस के भी हैं. वे रिश्ते भी तो उस के अपने हैं.
वह उठ कर चुपचाप सामान पैक करने लगी तभी मां कमरे में आ गई, ‘क्या कर रही है माही?’ उसे सामान पैक करते देख कर मां बोलीं.
‘अपने घर जा रही हूं मां. अपने भैयाभाभी के पास.’
मां चुप हो गईं. दोनों मांबेटी बिना शब्दों के कहे भी एकदूसरे के दिल की बात समझ गईं थीं. दूसरे दिन माही ससुराल लौट आई. उसे वापस आया देख कर घर में सास, पति, जेठजेठानी सभी खुश हो गए. किसी ने उस से नहीं पूछा कि वह इतनी जल्दी क्यों लौट आई.
धीरेधीरे समय कुछ साल आगे सरक गया. उस के बच्चे थोड़े बड़े हो गए. फिर उन का तबादला दिल्ली से कानपुर हो गया. समय धीरेधीरे सरकता रहा. मातापिता व सास का साथ समय के साथ छूट गया. मां के जाने के बाद मेरठ जाना बंद हो गया. लेकिन दिल्ली जेठजेठानी के पास त्योहार व छुट्टियों में आनाजाना बना रहा. तभी घंटी की आवाज सुन कर वह चौंक गई, शायद विभव औफिस से लौट आए थे. वह वर्तमान में लौट आई उस ने उठ कर दरवाजा खोल दिया.
‘‘क्या बात है माही… बहुत गमगीन सी लग रही हो… तबीयत ठीक नहीं है क्या? विभव उसे इस कदर उदास देख कर बोले.’’
‘‘नहीं कुछ नहीं सब ठीक है… दिल्ली से सोनिया की शादी का कार्ड आया है. जाने की तैयारी करनी है. रिजर्वेशन कराना है, यही सब सोच रही थी,’’ वह उत्साहित होते हएु बोली.
‘‘और यह दूसरा किस का है?’’ विभव दूसरा कार्ड उठाते हुए बोले.
‘‘यह मेरठ से आया है.’’ माही लापरवाही दिखाते हुए बोली, ‘‘आप बैठ कर देख लो मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर माही उठ कर किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद 2 कप चाय बना कर ले आई.
‘‘अरे यह तो साले साहब की बेटी की शादी का कार्ड है. वहां भी तो जाना होगा. तुम वहां चली जाओ मैं…’’
‘‘नहीं…’’ माही बीच में बात काटती हुई बोली, ‘‘वहां आप उपहार भेज दो, हम दोनों ही दिल्ली जाएंगे… और थोड़े दिन पहले जाएंगे. क्योंकि शादी में मदद भी तो करनी है,’’ माही पूरे आत्मविश्वास से बोली और शांत भाव से चाय पीने लगी.
विभव ने चौंक कर उस की तरफ देखा, सब कुछ समझा और चुपचाप चाय पीने लगे. समझ गए कि प्यार व स्नेह के रिश्ते खून के रिश्तों पर भारी पड़ गए हैं. आपस में प्यार और विश्वास नहीं है तो खून के रिश्तों के धागे भी कच्चे पड़ जाते हैं. इसलिए परछाइयों के पीछे भागने के बजाय हकीकत को अपनाना चाहिए.
“एंड द विनर इज…….”
‘शीना, प्लीज प्लीज….शीना,’ एक अन्य प्रतिभागी का हाथ पकड़े खड़ी शीना मन ही मन कह रही थी. उस के चहरे पर घबराई हुई मुस्कान थी लेकिन दिल की धड़कनें इतनी तेज थीं कि लग रहा था मानो सीना चीरते हुए बाहर आ जाएंगी.
“एंड द विनर इज… मिस नेहा कौशिक,” नाम सुनते ही पूरा औडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया.
शीना ने चेहरे पर मुस्कान सजाए रखी और अपनी साथी प्रतिभागी को जीत की बधाई देने लगी. साथी प्रतिभागी को अब अन्य प्रतिभागियों ने भी घेरना शुरू कर दिया था. शीना फर्स्ट रनरअप आई थी, जीती होती तो इस समय शायद लोगों ने उसे घेरा हुआ होता.
अपनी मम्मी शोभा के साथ ओडिटोरियम से बाहर निकलते हुए शीना कुछ उदास दिख रही थी, सिर्फ इसलिए नहीं कि वह हार गई बल्कि इसलिए भी कि अब वह अपने दोस्तों के साथ घूमने नहीं जा पाएगी क्योंकि घूमने जाने की शर्त ही मम्मी ने यह रखी थी कि शीना मिस डीवा दिल्ली का यह कौंपीटीशन जीते.
“हे, हाय शीना, कौंगरेट्स यार,” शीना की कार के पास आ नेहा ने कहा.
“जीती तो तुम हो, फिर मु…” शीना आगे कुछ कहती उस से पहले ही उस की मम्मी ने उस की बांह पकड़ उसे चुप कराने का इशारा किया और कहने लगीं, “ओह, कोंगरेट्स नेहा, तुम ने भी काफी अच्छा परफोर्म किया.”
“अरे आंटी, थैंकयू, अब सब खूबसूरती का तो खेल नहीं होता, परफौर्मेंस भी माने रखती है, क्यों शीना?” नेहा ने शीना की तरफ देखते हुए कहा. “वैसे तुम्हें न थोड़ा पढ़नालिखना भी चाहिए, तुम्हारा जवाब तो बहुत ही बुरा था आज, हाहाहाह,” शीना के मुंह पर हंसती हुए नेहा निकल गई.
“कैसी छिपकली जैसी शक्ल है और कैंची जैसी जबान, जाने क्या देख कर क्राउन दे दिया इस को,” झल्लाकर शोभा ने कहा.
“जवाब सुन कर मम्मी. उस की बौडी भी कितनी पर्फेक्ट है और बाल देखे आप ने नैचुरली सुंदर दिखते हैं,” शीना ने उदास होते हुए कहा.
“इस बार डांस के साथसाथ तेरा सोशल साइंस का ट्यूशन भी लगवा देती हूं, अच्छेअच्छे जवाब दे पाएगी तभी,” शोभा ने कुछ सोचते हुए कहा.
“इतना बुरा जवाब था क्या मेरा?”
“बेटा, आप की प्रेरणा कौन है सवाल का जवाब ऐश्वर्या राय नहीं होता बल्कि कहा जाता है कि प्रेरणा मां है. जजेस को भावुक करने की जरूरत होती है. जहां कोई जवाब न आए वहां मां को घुसा दो, बस हो गया काम. बचपन से समझाया है फिर भी आखिर में ऐश्वर्या राय बोल कर आ गई. इतनी सुंदर शक्ल के साथ थोड़ी बुद्धि भी होती तो बात बन जाती.”
“मम्मी आप न मेरा हौसला तोड़ रही हो.”
“लोगों की माएं उन के सपने तोड़ती हैं, मैं तो फिर भी बस हौसला तोड़ रही हूं,” शोभा ने कहा और कार में जा बैठ गई. शीना भी कार में बैठी और दोनों घर के लिए निकल गईं.
शीना को 7 साल की उम्र से ही उस की मम्मी छोटेमोटे ब्यूटी पेजैंट्स में ले जाती रही हैं. अधिकतर ब्यूटी पेजैंट्स उस ने जीते ही हैं. उस के पापा डाक्टर हैं तो अपनी बेटी को भी पढ़ाई में आगे जाता देखना चाहते थे, लेकिन शोभा अपनी बेटी की खूबसूरती को यों व्यर्थ करने के पक्ष में नहीं थी. उस का कहना था कि उस की बेटी ऐश्वर्या न सही जुही चावला ही बन जाए, मिस वर्ल्ड का न सही तो एक दिन मिस इंडिया का टाइटल तो लाए.
पेजैंट्स और कुछ शूट्स से जो पैसे मिलते वे सब शोभा के पास ही रहते थे. शीना के पापा और मम्मी की अरेंज मैरिज हुई थी तो ‘शादी के बात भी प्यार हो जाता है’ का नुक्ता यहां नहीं चल पाया था और शोभा के लिए अपने पति के साथ रहना उन्हें झेलना भर था. शोभा बचपन से ही मौडल बनना चाहती थी लेकिन मम्मीपापा के ‘लोग क्या कहंगे’ के तर्क का जवाब नहीं दे पाई. कालेज के सेकंड ईयर में ही जिस लड़के से प्यार था उस से शादी करने के लिए मम्मीपापा से खूब लड़ाई की थी. नतीजा यह हुआ कि मम्मीपापा तो नहीं माने लेकिन शोभा के लिए उन के मन में जो प्यार था वो उस के प्रेमकांड के चलते कम हो गया.
कालेज का प्यार तो कालेज तक ही रहा लेकिन थर्ड ईयर में अच्छे नंबरों ने भी शोभा से मुंह मोड़ लिया. किसी अच्छे कालेज में मेरिट के आधार पर एडमिशन की नौबत तो आने से रही और इस गम में एंट्रैन्स में भी वह कुछ खास कर नहीं पाई. मम्मी के अनुसार, कालेज में जो गुल खिलाएं हैं उस के लिए अब आगे की पढ़ाई के लिए घर से तो पैसा मिलेगा नहीं, शादी करो और ससुराल जाओ. हुआ भी यही, जल्द से जल्द शादी की गई और दूसरे ही साल शीना ने जन्म ले लिया. पति से शोभा की कभी बनी नहीं, सो, शीना का एकएक खर्च उस के पापा के ऊपर था और शीना की खूबसूरती से आए पैसे शोभा के खर्च के लिए थे. क्योंकि कुछ हो न हो शोभा में स्वाभिमान तो खूब था.
घर पहुंच कर थकी हारी शीना सीधा अपने कमरे में जा लेट गई. उस ने आंखें बंद ही की थीं कि बाहर से मम्मी पापा के झगड़ने की आवाजें आने लगीं. पापा शीना के कालेज जाने की बात कर रहे थे और मम्मी का कहना था कि वह कालेज जाएगी तो डांस क्लास, सिंगिंग क्लास, जिम और शूट्स पर कौन जाएगा.
आवाजों के बीच शीना को धीरेधीरे नींद ने अपनी आगोश में घेर लिया.
अगली सुबह वह अपने कमरे से नीचे ब्रेकफास्ट के लिए आई तो मम्मी मुंह फुलाए बैठी थीं और पापा के चेहरे पर संतुष्टि की लकीरें छाई हुई थीं.
“शीना,” पापा ने कहा.
“हां, पापा,” शीना ने जवाब दिया.
“तुम्हारा फर्स्ट ईयर दो महीने पहले ही स्टार्ट हो चुका है और तुम ने उस के लिए कोई पढ़ाई स्टार्ट नहीं की है न ज्यादा क्लासेज ली हैं, तो कल से तुम रोज कालेज जाओगी और सुबह जिम, कालेज से आ कर डांस और सिंगिंग क्लास. जो एक दो शूट्स हों उन्हें वीकेंड में कर लेना. इस से आगे मुझे कुछ नहीं सुनना है.”
“ओके पापा, पर मम्मी….”
“मम्मी के कहने से कुछ नहीं होता, एक दो साल पढ़ लोगी तो कुछ नहीं बिगड़ेगा,” पापा ने कहा.
“कैसे नहीं बिगड़ेगा, कालेज में मटरगश्ती करेगी, धूप में रंग पक्का कर आएगी और पता नहीं कैसेकैसे लोगों से मिलेगी. वैसे भी मेरी बेटी सेलेब्रिटी है, ऐसे आम लोगों के साथ उठनाबैठना करेगी तो….” शोभा मुंह मटकाते हुए गुस्से में बड़बड़ाए जा रही थीं.
“तो क्या? कोई सेलेब्रिटी नहीं है तुम्हारी बेटी, दो तीन पत्रिकाओं में फोटो आ जाने से कोई सेलेब्रिटी नहीं हो जाता, इसे इतना सिर पर मत चढ़ाओ.”
“पापा, अगले महीने कालेज से ट्रिप जा रही है मैं भी जाऊं?” शीना ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा.”
“नह…” मम्मी बोलने वाली ही थीं कि पापा ने कह दिया, “हां चले जाना.”
शीना का तो आज दिन ही बन गया था. दिन भर वह फेसपैक, हेयर मास्क, नेलपेंट आदि लगाने में व्यस्त थी. अब वह आखिर कालेज जाने वाली थी वो भी रोज. मम्मी पापा की बात इतनी जल्दी मान कैसे गईं यह उसे अब तक समझ नहीं आया था लेकिन जो भी था उसे खुशी खूब हो रही थी.