बार-बार सर्दी-जुकाम होना ठीक नहीं

मौसम बदलने पर बीमार पड़ना या फिर सर्दी-जुकाम हो जाना आम बात है लेकिन अगर आप उन लोगों में से शामिल हैं जिन्हें साल के 12 महीने में से 10 महीने सर्दी जुकाम रहता है, तो आपको इसपर विचार करने की जरूरत है. वैसे शायद आप अकेली नहीं है जो इस तरह की समस्या से दो-चार हो रही हैं. चलिए आज हम आपको इस खबर में बताते हैं कि आखिर बार-बार बीमार पड़ने की वजह क्या है…

सही तरीके से हाथ न धोना

सामान्य सर्दी जुकाम बड़ी आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में ट्रांसफर हो जाता है. सेंटर फार डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन की मानें तो कम से कम 20 सेकंड तक अच्छी तरह से हाथ धोना चाहिए. इसके अलावा खाना खाने से पहले, ट्वाइलेट का इस्तेमाल करने के बाद, किसी बीमार व्यक्ति की देखभाल के बाद और खांसने या छींकने के बाद भी हाथों को अच्छी तरह से धोना चाहिए. अगर आप ऐसा नहीं करती हैं तो आपको भी सर्दी जुकाम होने का खतरा रहता है.

कमजोर इम्यूनिटी

इसमें कोई शक नहीं कि वैसे लोग जिनका इम्यून सिस्टम यानी रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर होती है वे जल्दी बीमार पड़ते हैं. इम्यूनिटी वीक होने की कई वजहें होती है जिसमें औटोइम्यून समस्या, कुछ बीमारियां या फिर कई तरह की दवाईयां शामिल होती हैं जो शरीर को कमजोर बना देती हैं और रोगों से लड़ने की क्षमता खत्म हो जाती है.

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शरीर में पानी की कमी

अगर आपका शरीर डिहाइड्रेटेड है यानी शरीर में पानी की कमी है तब भी आपका इम्यून सिस्टम यानी रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिससे आपके बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. खुद को हाइड्रेटेड रखकर आप बीमार पड़ने के खतरे को कई गुना कम कर सकती हैं.

बार-बार चेहरा छूना

शरीर में कीटाणुओं के पहुंचने का सबसे आसान तरीका है हमारे हाथों के जरिए… अगर आपके हाथों में कीटाणु हैं क्योंकि आपने अपने हाथ सही तरीके से नहीं धोएं हैं या फिर कोई गंदगी जगह छूने के बाद आपने हैंडवाश नहीं किया है और उसके बाद आप अपना चेहरा या मुंह छूते हैं तो हाथों में लगे कीटाणु बड़ी आसानी से हमारे शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं.

किसी चीज से ऐलर्जी

अगर आपको किसी चीज से ऐलर्जी है तो आपकी सर्दी जुकाम की समस्या और ज्यादा बढ़ जाएगी. इतना ही नहीं ऐलर्जी की वजह से सर्दी के लक्षण भी आए दिन दिखते और बढ़ते नजर आते हैं. अगर आपकी सर्दी जुकाम की समस्या 7 दिन के अंदर ठीक नहीं होती तो आपको डाक्टर से संपर्क कर चेक करवाना चाहिए कि कहीं आपको किसी तरह की कोई ऐलर्जी तो नहीं है.

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Corona में धूम्रपान करने वाले लोगों को है न्यूलॉजिकल बीमारियां होने का खतरा

कोविड ने दूसरी लहर के दौरान अपना प्रकोप दिखाया और इसने बहुत अधिक नुकसान भी किया है. इस दौरान हमें देखने को मिला कि है यह केवल हमारे फेफड़ों को ही नहीं बल्कि बहुत से अन्य और मुख्य ऑर्गन को भी प्रभावित करता है. इसमें न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा भी शामिल है और इस खतरे में हमारा नर्वस सिस्टम डेमेज होने से लेकर हमारी सभी सेंस लॉस होने तक का खतरा शामिल है. यह सारी समस्याएं कोविड होने के दूसरे या चौथे हफ्ते में देखने को मिलती हैं.

इनमें से अधिकतर लक्षणों में. सिर दर्द, चक्कर आना, बेहोश रहना, सिजर्स आदि बीमारियां शामिल हैं. हमारा स्वाद और सूंघने की क्षमता भी चली जाती है और ऐसा 30 से 40% कोविड के मरीजों में देखने को मिला है हालांकि न्यूरो बीमारियों से कोविड संबंधी केस केवल 0.1 प्रतिशत पाए गए है. स्ट्रोक का खतरा भी 60 से 70% है.

स्ट्रोक का रिस्क डायबिटिक और हाइपर टेंशन के मरीजों में अधिक देखने को मिलता है और इसमें कोरोनरी आर्टरी डिजीज का खतरा भी शामिल होता है. इसके कारण कोविड के मरीज की 6 से 8 हफ्ते के बाद अचानक से मृत्यु भी हो सकती है. स्ट्रोक में हमारा दिमाग अचानक से काम करना बंद कर देता है और जब कोई इंफेक्शन इसके साथ शामिल हो जाती है तो स्ट्रोक और अधिक खतरनाक बन जाता है.

न्यूरोपैथी में फेस के साथ साथ हमारे हाथ और पैरों जैसे लिंब्स को भी खतरा होता है. इसे जीबी सिंड्रोम कहा जाता है और यह दवाइयों के द्वारा ठीक किया जा सकता है. सिर दर्द , चैन की नींद न आना , थकान रहना इस सिंड्रोम के कुछ मामूली से लक्षण होते है.

फंगल एब्सेस उन लोगों में देखने को मिलता है जिनकी डायबिटीज नियंत्रण में नहीं रहती है और जिन्हें साथ में कोविड भी होता है. इंसीफेलाइटीस एक गंभीर स्थिति होती है और यह 20 से 50% केसों में वायरस के द्वारा होती है. यह सारी बीमारियों जो ऊपर मेंशन की गई हैं न्यूरोलॉजिकल असामान्यताओं के कारण ही होती हैं और अधिकतर में इनके लक्षण दुविधा में रहना, कंफ्यूज हो जाना, असामान्य गतिविधि करना आदि होते हैं.

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सीजर भी कोविड 19 के दौरान होने वाली न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में से एक है. अगर आप धूम्रपान करते हैं तो आपका इन सभी बीमारियों का रोगी होने के चांस बढ़ जाते हैं और यह आपके हृदय से जुड़े रोगों के रिस्क भी बढ़ा सकता है. वैसे तो धूम्रपान करना आपके फेफड़ों के लिए पहले से ही नुकसान दायक होता है लेकिन अगर आप कोविड होने के बावजूद भी धूम्रपान जारी रखते हैं तो आपके फेफड़ों का खतरा और अधिक बढ़ जाता है. इससे आपका वेसल स्ट्रोक होने का रिस्क भी बढ़ जाता है.

धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को जो कोविड पॉजिटिव भी है, उसे स्ट्रोक का रिस्क क्यों होता है?

स्ट्रोक होने के बहुत से अलग अलग रिस्क फैक्टर होते हैं जिनमें से एक धूम्रपान करना भी है. स्मोकिंग के कारण आपकी आर्टरीज ब्लॉक होने का और ब्लड क्लोट का रिस्क काफी ज्यादा बढ़ जाता है. इस समस्या का कारण जानने के लिए बहुत सारी स्टडीज की गई. और इसका एक कारण यह पाया गया की धूम्रपान की चीजों यानी टोबेको से युक्त चीजों में बहुत से ऐसे खतरनाक कैमिकल मिले हुए होते हैं जो ब्लड क्लाॅट का रिस्क बढ़ा देते हैं.

आज ही धूम्रपान करना छोड़ दें

अगर आप धूम्रपान करना जारी रखते हैं तो इससे आपकी एक ऐसी आदत बन जाती है जिसे छोड़ पाना बहुत मुश्किल होता है. अगर आपकी धूम्रपान की आदत बनी हुई है तो आपको इसे छोड़ने का एक माइंड सेट बनाना होगा क्योंकि इसके बिना इसे छोड़ पाना बहुत मुश्किल होता है. चाहे आप नियमित रूप से धूम्रपान करते हैं या फिर कभी कभार दोनों ही तरह से यह आपकी शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है . अगर आपको सिगरेट पीने का मन करता है तो खुद को केवल एक या आखरी कह कर बुद्धू मत बनाइए क्योंकि ऐसा कोई तरीका काम नहीं करता है. इस की बजाए आप अपने आप को 15 मिनट रोकें और किसी अन्य गतिविधि में शामिल कर लें. इसे छोड़ने के लिए अधिक से अधिक पानी पिएं और च्यूइंग गम का प्रयोग करें. इससे आपकी स्मोकिंग की क्रेविंग शांत होगी.

डॉ शैलेश जैन, प्रिंसिपल कंसलटेंट, न्यूरोसाइंस ,मैक्स हॉस्पिटल, शालीमार बाग, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित

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प्रैग्नेंसी और आईवीएफ से जुड़ी प्रौब्लम का सौल्यूशन बताएं?

सवाल-

मैं 25 साल की विवाहित महिला हूं. मेरे कुछ सपने हैं, इसलिए मैं अभी मां नहीं बनना चाहती. यदि मैं 35-36 की उम्र में मां बनना चाहूं तो क्या इस में कोई समस्या आ सकती है? कुछ लोग कहते हैं कि इस उम्र में मां बनना संभव नहीं है. क्या यह सच है?

जवाब-

बढ़ती उम्र के साथ अंडों की संख्या और गुणवत्ता दोनों ही कम होने लगती है, जिस कारण इस उम्र में कंसीव कर पाना मुश्किल होता है. यदि आप ने ठान लिया है कि आप 35 की उम्र में मां बनना चाहती हैं, तो इस में कोई समस्या नहीं है. आज साइंस और टैक्नोलौजी में प्रगति के कारण कई ऐसी तकनीकें उपलब्ध हैं, जिन के माध्यम से इस उम्र में भी गर्भधारण किया जा सकता है. इस के लिए आप आईवीएफ की मदद ले सकती हैं.

आप की उम्र अभी कम है, इसलिए आप के अंडों की गुणवत्ता अच्छी होगी. आप अपने स्वस्थ अंडे फ्रीज करवा सकती हैं जो भविष्य में मां बनने में आप के लिए सहायक साबित होंगे और आईवीएफ ट्रीटमैंट भी आसानी से पूरा हो जाएगा. फ्रीज किए अंडे को आप के पति के स्पर्म के साथ मिला कर पहले भू्रण तैयार किया जाएगा और फिर उस भ्रूण को आप के गर्भ में इंप्लाट कर दिया जाएगा. कुछ ही दिनों में आप को प्रैगनैंसी की खुशखबरी मिल जाएगी.

सवाल-

मेरी उम्र 35 साल है. मेरी शादी को 8 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं. मु  झे धूम्रपान की भी आदत है. क्या कोई तरीका है, जिस से मैं मां बन सकूं?

जवाब-

इस उम्र में कंसीव करने में समस्या आना आम बात है, लेकिन इस का सब से बड़ा कारण धूम्रपान है. यदि आप मां बनना चाहती हैं तो धूम्रपान को पूरी तरह छोड़ना होगा. यदि आप के पति भी स्मोकिंग करते हैं, तो उन्हें भी इस आदत को छोड़ने के लिए कहें. आप की उम्र अधिक है, इसलिए जल्दी गर्भधारण करना जरूरी है, वरना वक्त के साथ समस्या और बढ़ सकती है. इस के लिए पहले आप किसी डाक्टर से परामर्श लें. यदि इलाज से फायदा न हो तो आप आईवीएफ ट्रीटमैंट की मदद ले सकती हैं.

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सवाल-

मेरी उम्र 40 साल है. मैं एक बार आईवीएफ ट्रीटमैंट करवा चुकी हूं, लेकिन वह असफल रहा. मैं फिर से आईवीएफ ट्राई करना चाहती हूं. क्या इस में कोई खतरा है?

जवाब-

आप ने आईवीएफ ट्रीटमैंट की असफलता का कारण नहीं बताया. खैर आईवीएफ ट्रीटमैंट की कोई लिमिट नहीं है, इसलिए आप इसे बिना घबराए दोबारा करवा सकती हैं. हां, इसे बारबार करने से गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है. सफल आईवीएफ के लिए तनाव से दूर रहें और वजन को संतुलित रखें.

आजकल आईवीएफ के क्षेत्र में कई नईनई तकनीकों का विकास हो रहा है. चिकित्सक के द्वारा जरूरत के हिसाब से तकनीक का चुनाव करने पर गर्भधारण करने में मदद हो सकती है.

सवाल-

मैं 35 साल की विवाहित महिला हूं. मैं आईवीएफ तकनीक की मदद से मां बनना चाहती हूं और उम्मीद करती हूं कि तकनीक सफल रहे. इसलिए मैं जानना चाहती हूं कि क्या भ्रूण की संख्या गर्भवती होने की संभावना को प्रभावित करती है?

जवाब-

गर्भवती होने के लिए एक भू्रण के साथ सफलता की उम्मीद 28% होती है, जबकि 2 भू्रण के साथ सफलता की उम्मीद 48% होती है. लेकिन इस के साथ ही जुड़वां बच्चे होने की संभावना भी अधिक हो जाती है. यदि आप जुड़वां बच्चों का रिस्क नहीं लेना चाहती हैं, तो आप एक ही भू्रण को इंप्लांट करवा सकती हैं. इस के लिए आप के स्वस्थ अंडे का भू्रण तैयार किया जाएगा और फिर उस भू्रण को आप के गर्भ में इंप्लांट कर दिया जाएगा. यह आप की प्रैगनैंसी की संभावना को भी बढ़ाएगा और आप को अधिक समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ेगा.

सवाल-

मैं 31 साल की कामकाजी महिला हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या आईवीएफ में जुड़वां या एकसाथ कई बच्चे होने की संभावना रहती है?

जवाब-

पहले विशेषज्ञ अच्छे गर्भधारण के लिए एकसाथ कई भू्रण ट्रांसफर करने की सलाह देते थे, क्योंकि तब यह पता लगा पाना मुश्किल होता था कि ट्रांसफर किया गया भू्रण कमजोर है या नहीं. इस की वजह से कभीकभी जुड़वां या एकसाथ कई बच्चों का जन्म हो जाता था, लेकिन अब वक्त बदल चुका है और टैक्नोलौजी भी. आज की ऐडवांस टैक्नोलौजी के चलते यह पता लग जाता है कि भू्रण कमजोर तो नहीं. आप अपनी इच्छा से 1 या जुड़वां बच्चों की मां बन सकती हैं.

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सवाल-

मेरी उम्र 34 साल है. मैं 2 सालों से गर्भवती होने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन अब उम्मीद हार रही हूं. मेरी सहेली ने मु  झे आईवीएफ तकनीक के बारे में बताया. मैं जानना चाहती हूं कि आईवीएफ तकनीक में कोई रिस्क तो नहीं? यह तकनीक मेरे स्वास्थ्य को नुकसान तो नहीं पहुंचाएगी?

जवाब

जी हां, आईवीएफ तकनीक भले ही मां बनने में एक वरदान की तरह है, लेकिन इस के कुछ साइड इफैक्ट भी हो सकते हैं. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि आईवीएफ कराने वाले हर मरीज को इन साइड इफैक्ट्स से गुजरना पड़े.

आईवीएफ ट्रीटमैंट में प्रीमैच्योर बेबी जन्म ले सकता है, इसलिए आप को पूरी प्रैगनैंसी के दौरान खास खयाल रखने को कहा जाता है. बारबार जांच की जाती है ताकि आप की और आप के बच्चे के स्वास्थ्य की हर खबर रखी जा सके.

इस के अलावा इस में व्यवहार में बदलाव, थकान, नींद आना, सिरदर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द, चक्कर आना आदि समस्याएं भी शामिल हैं. यदि आप को इन में से कोई भी समस्या हो तो तुरंत डाक्टर से परामर्श लें. खुद का खास खयाल रखने से आप इन समस्याओं से बच सकती हैं.

-डा. सागरिका अग्रवाल

स्त्रीरोग विशेषज्ञा, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली 

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे… 

गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पैनक्रियाटिक रोगों की बड़ी वजह है अल्कोहल सेवन, धूम्रपान और गॉल ब्लॉडर स्टोन

बदलती तकनीकों से आसान हो गया है पैनक्रियाटिक रोगों का इलाज, अब न्यूनतम शल्यक्रिया एंडोस्कोपिक तकनीक होने लगी है ज्यादा कारगर और लोकप्रिय युवा कामकाजी प्रोफेशनल्स में अल्कोहल सेवन, धूम्रपान के बढ़ते चलन और गॉल स्टोन के स्टोन के कारण पैनक्रियाटिक रोगों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पैनक्रियाज से जुड़ी बीमारियों में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और पैनक्रियाटिक कैंसर के मामले ज्यादा हैं. लेकिन आधुनिक एंडोस्कोपिक पैनक्रियाटिक प्रक्रियाओं की उपलब्धता और इस बीमारी की बेहतर समझ और अनुभव रखने वाली विशेष पैनक्रियाटिक केयर टीमों की बदौलत इससे जुड़े गंभीर रोगों पर भी अब आसानी से काबू पाया जा सकता है.

आधुनिक पैनक्रियाटिक उपचार न्यूनतम शल्यक्रिया तकनीक के सिद्धांत पर आधारित है और इसे मरीजों के लिए सुरक्षित और स्वीकार्य इलाज माना जाता है.

पेट के पीछे ऊपरी हिस्से में मौजूद पैनक्रियाज पाचन एंजाइम और हार्मोन्स (ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने वाले इंसुलिन सहित) को संचित रखता है. पैनक्रियाज का मुख्य कार्य शक्तिशाली पाचन एंजाइम को छोटी आंत में संचित रखते हुए पाचन में सहयोग करना होता है. लेकिन स्रावित होने से पहले ही जब पाचन एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं तो ये पैनक्रियाज को नुकसान पहुंचाने लगते हैं जिनसे पैनक्रियाज में सूजन यानी पैनक्रियाटाइटिस की स्थिति बन जाती है.

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एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस इनमें सबसे आम बीमारी है जो गॉलस्टोन, प्रतिदिन 50 ग्राम से ज्यादा अल्कोहल सेवन, खून में अधिक वसा और कैल्सियम होने, कुछ दवाइयों के सेवन, पेट के ऊपरी हिस्से में चोट, वायरल संक्रमण और पैनक्रियाटिक ट्यूमर के कारण होती है. गॉल ब्लाडर में पथरी पित्त वाहिनी तक पहुंच सकती है और इससे पैनक्रियाज नली में रुकावट आ सकती है जिस कारण एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस होता है. बुजुर्गोंं में ट्यूमर ही इसका बड़ा कारण है. इसमें पेट के ऊपरी हिस्से से दर्द बढ़ते हुए पीठ के ऊपरी हिस्से तक पहुंच जाता है. कुछ गंभीर मरीजों को सांस लेने में तकलीफ और पेशाब करने में भी दिक्कत आने लगती है.

इस बीमारी का पता लगने पर ज्यादातर मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है. मामूली पैनक्रियाटाइटिस आम तौर पर एनलजेसिक और इंट्रावेनस दवाइयों से ही ठीक हो जाती है. लेकिन थोड़ा गंभीर और एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस जानलेवा भी बन सकती है और इसमें मरीजों को लगातार निगरानी और सपोर्टिव केयर में रखना पड़ता है. ऐसी स्थिति में मरीज को नाक के जरिये ट्यूब डालकर भोजन पहुंचाया जाता है. पैनक्रियाज के आसपास की नलियों से संक्रमित द्रव को  कई बार एंडोस्कोपिक तरीके से या ड्रेन ट्यूब के जरिये बाहर निकाला जाता है. उचित इलाज और विशेषज्ञों की देखरेख में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस से पीड़ित ज्यादातर मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं. इस बीमारी की पुनरावृत्ति से बचने के लिए अल्कोहल का सेवन छोड़ देना चाहिए और गॉल ब्लाडर सर्जरी के जरिये पथरी निकलवा लेनी चाहिए. लिपिड या कैल्सियम लेवल को दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है.

इसके अलावा क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस की डायनोसिस और इलाज में एंडोस्कोपिक स्कारलेस प्रक्रियाओं की अहम भूमिका होती है. इसमें मरीज को लगातार दर्द या पेट के ऊपरी हिस्से में बार—बार दर्द होता है. लंबे समय तक बीमार रहने पर भोजन पचाने के लिए जरूरी पैनक्रियाटिक एंजाइम की कमी और इंसुलिन के अभाव में डायबिटीज होने के कारण डायरिया की शिकायत हो जाती है. पैनक्रियाज और इसकी नली की जांच के लिए इसमें एमआरसीपी और एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड जैसे टेस्ट कराने पड़ते हैं.

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पैनक्रियाटिक ट्यूमर भी धूम्रपान, डायबिटीज मेलिटस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और मोटापे के कारण होता है. इसके लक्षणों में पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, पीलिया, भूख की कमी और वजन कम होना है. ऐसे मरीजों का सबसे पहले सीटी स्कैन किया जाता है. इसके बाद जरूरत पड़ने पर ईयूएस और टिश्यू सैंपलिंग कराई जाती है. इसमें लगभग 20 फीसदी कैंसर का पता लगते ही सर्जरी कराई जाती है, बाकी मरीजों को कीमोथेरापी दी जाती है. कीमोथेरापी के बाद बहुत कम  जख्म रह जाता है और फिर मरीज की सर्जरी की जाती है. कीमोथेरापी से पहले मरीज के पीलिया के इलाज के लिए कई बार ईआरसीपी और स्टेंटिंग भी कराई जाती है. ईआरसीपी के दौरान पित्त वाहिनी में स्टेंट डाला जाता है ताकि ट्यूमर के कारण आए अवरोध को दूर किया जा सके. पैनक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित कुछ मरीजों को तेज दर्द भी हो सकता है, ऐसे में उन्हें दर्द से निजात दिलाने के लिए ईयूएस गाइडेड सीपीएन (सेलियक प्लेक्सस न्यूरोलिसिस) कराया जाता है.

डॉ. विकास सिंगला, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के निदेशक और प्रमुख, मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित.

बीमारी के कारण भी हो सकती है डबल चिन की प्रौब्लम, पढ़ें खबर

मोटापे से कई तरह की परेशानियां पैदा होती हैं. इससे शरीर के सारे अंग प्रभावित होते हैं. डबल चिन मोटापे के कारण होता है. इससे आपकी सुंदरता पर बुरा असर होता है. आम तौर पर लोग इसे पसंद नहीं करते और इससे छुटकारा पाने के लिए काफी मशक्कत करते हैं, पर परिणाम हमेशा सकारात्मक नहीं होता. इस खबर में हम आपको उन कारणों के बारे में बताएंगे जिनके चलते डबल चिन की परेशानी होती है.

1. थायराइड

थायराइड डबल चिन का एक प्रमुख कारण है. आपको बता दे कि वजन बढ़ना हाइपोथायरायडिज्म सामान्य सूचक है. लेकिन क्या यह जानते हैं कि आपके जबड़े के बढ़ने का भी यही कारण हो सकता है? यदि आपके जबड़े की हड्डी के नीचे स्थित क्षेत्र में त्वचा समय के साथ फैट से भर जाती है, तो आपको डबल चिन की समस्या हो सकती है. थायराइड के बढ़ने से गर्दन में भी सूजन आ सकती है.

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2. कुशिंग सिंड्रोम

कुशिंग सिंड्रोम के प्रमुक लक्षम हैं उपरी शरीर का मोटा होना और गर्दन में फैट का जमा होना. इसमें लंबे समय तक कोर्टिसोल का अधिक उत्पादन होने लगता है जिसका परिणाम पिट्यूटरी एडेनोमा के रूप में दिखता है. अगर आप एडेनोमा से पीड़ित हैं, तो ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी जरूरी हो सकती है.

3. साइनस इंफेक्शन

क्रोनिक साइनसाइट के कारण लिंफ नोड्स बढ़ता है. इसके कारण आपके चेहरे और गर्दन पर मोटापा आ सकता है. इस तरह की पुरानी साइनसिसिस जो डबल चिन के लिए जिम्मेदार है उसमें एलर्जी रैनिटिस, अस्थमा, नाक की समस्याएं या स्यूनोसाइटिस शामिल हैं.

4. सलवेरी ग्लैंड इन्फ्लमेशन

कई बार लार ग्रंथी में इंफेक्शन की वजह से जबड़े वाले हिस्से में सूजन हो जाती है जिसके कारण डबल चिन हो जाती है. ओरल हाइजीन, लार की नली की समस्या, पानी में अपर्याप्त जल, पुरानी बीमारी और धूम्रपान इस सूजन के कुछ सामान्य कारण हैं.

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वजन कम करने के लिए ऐसे करें डायट प्लान

लेखिका- स्नेहा सिंह 

इंडियन फूड का नाम लेते ही हमारे दिमाग में पंजाबी,साउथ इंडियन, राजस्थानी आदि व्यंजनो की छवि नजर आ जाती है और मुंह में पानी आ जाता है. यह स्वाभाविक भी है. क्योंकि हमारे देश में सब से अधिक प्रकार के व्यंजन खाए जाते हैं. पर इस के साथ हमारे मन में हमेशा एक्स्ट्रा चर्बी और फैट को ले कर भी चिंता बनी रहती है कि क्या खाएं और क्या न खाएं? कितना खाएं और कब खाएं? इन सभी समस्या को दूर करने के लिए अपने स्वाद को ध्यान में रख कर वेट लौस डायट के प्लान की बात करेंगे.

हम जो भी खाते हैं, उससे हमें कार्य करने की शक्ति मिलती है और यह शक्ति हमें केलरी के रूप में मिलती है. केलरी चार तरह की होती है.

1. कार्बोहाइड्रेट 

यह शरीर को कार्बन के रूप में ऊर्जा (शक्ति) देता है. ऊर्जा का मुख्य स्रोत कार्बोहाइड्रेट है. जिससे शरीर को सभी प्रकार के कार्य करने की शक्ति मिलती है. एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट से चार केलरी के बराबर ऊर्जा मिलती है.

2. प्रोटीन

प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर के स्नायुओं और पेशियों का निर्माण करना और उन्हें स्वस्थ रखना है. इसलिए बच्चों एवं युवकों के शरीर के विकास के लिए प्रोटीन बहुत महत्वपूर्ण है. एक ग्राम प्रोटीन से भी 4 केलरी ऊर्जा मिलती है.

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3. फैट

फैट शरीर के स्नायुओं को फैटी एसिड के रूप में ऊर्जा प्रदान करता है. इस बीच जो फैट रह जाता है, वह ड्राइग्लिसराइड्स के रूप में स्नायुओं में जमा होता है. एक ग्राम फैट में 9 केलरी होती है. इसलिए वेट लौस डायट में ज्यादा चर्बी वाला खाना खाने से मना किया जाता है.

4. विटामिन और मिनरल्स

विटामिन और मिनरल्स हड्डियों को मजबूत बनाने में, घाव ठीक करने में और शरीर में रोगप्रतिकारक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है. ये भोजन को ऊर्जा में रूपांतरित करते हैं और स्नायुओं को स्वस्थ रखते हैं.

5. वेट लौस के लिए कितनी केलरी लें

यह जानना बहुत जरूरी है कि पूरे दिन में महिलाओं को कितनी केलरीयुक्त भोजन खाना चाहिए, जिससे शरीर का वजन नियंत्रण में रहे. तो इसका जवाब यह है कि सामान्य रूप से पूरे दिन में महिलाओं को 18– से 2— केलरीयुक्त खुराक खानी चाहिए. पूरे दिन में केलरी लेने का मापदंड कई बातों पर निर्भर करता है. इसमें पूरे दिन काम करने के प्रकार, उम्र, शरीर के आकार और जीवनशैली आदि के आधार पर तय किया जाता है. अगर आप 25– केलरीयुक्त भोजन लेती हैं और इतनी ही ऊर्जा खर्च करती हैं तो शरीर में शून्य केलरी रहती है. इस परिस्थिति में वजन एकदम स्टबल रहता है. परंतु अगर आप मात्र 2— केलरी खर्च करती हैं तो 5– केलरी बचेगी और आप का वजन एक सप्ताह में आधा किलोग्राम बढ़ जाएगा. महीने में 2 से 3 किलोग्राम शरीर का वजन बढ़ जाएगा.

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तो वजन कम करने के लिए पूरे दिन में 3 बार खाएं, पर थोड़ाथोड़ा खाएं. कुछ डायटीशियन दिन में 5 बार डायट की सलाह देते हैं, तब थोड़ी मुश्किल होती है. वर्कआउट अधिक करना पड़ता है. इसके अलावा अगर आप का मेटाबोलिज्म कम होगा, तो पाचनतंत्र पर अधिक श्रम पड़ेगा और पाचन ठीक से नहीं होगा.

वजन कम करने के लिए सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि दिन के शुरू में सुबह का नाश्ता दिन भर की डायट की अपेक्षा अधिक होना चाहिए. क्योंकि सुबह के नाश्ते की केलरी तेजी और पूरी तरह बर्न हो जाती है. यानी कि हम दिन भर अनेक एक्टिविटी करते हैं, जिसमें अधिक केलरी खर्च होती है. इसलिए सुबह नाश्ता जरूर करपा चाहिए.

जानें क्या है फाइब्रॉएड से जुड़े मिथ

जब महिलाएं 35 वर्ष की अवस्था तक पहुंचती है तो उनमें यूटरीन फाइब्रॉएड होना काफी आम बात होती है. इसे अक्सर यूटरस में सॉफ्ट ट्यूमर के रूप में जाना जाता है. अगर फाइब्रॉएड का इलाज लम्बे समय के लिए नहीं किया जाता है तो महिला की जिंदगी और उसका स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है.

इससे कभी-कभी मासिक धर्म के दौरान बहुत ज्यादा खून बहने की समस्या होती है या अगर यह फाइब्रॉएड बहुत ज्यादा बड़ा हो गया तो इससे पेल्विस में बहुत ज्यादा दर्द तथा भारीपन, पीठ दर्द, पैर में दर्द, यूरिनरी फ्रीक़्वेन्सी, और बॉवेल मूवमेंट में मुश्किल, सेक्स के दौरान बहुत ज्यादा दर्द और ब्लॉटिंग में सामान्य दर्द की भावना हो सकती है. चूंकि महिलाओं को इस कंडीशन के बारे में विधिवत जानकारी नहीं होती है. इसलिए उनमें इससे सम्बंधित कई मिथक तथा भ्रांतियां फ़ैल गयी है. इसलिए जरूरी है कि महिलाएं फाइब्रॉएड के बारें में जाने और इससे बचने के लिए उपाय कर सकें.

नीचे इस कंडीशन से सम्बंधित कुछ मिथक बताये जा रहे हैं.

पहला मिथक- यूट्रीन फाइब्रॉएड के लिए हिस्टेरेक्टॉमी ही एकमात्र प्रभावी इलाज है

एक दशक पहले यह बात सही थी. लेकिन अब मेडिकल के क्षेत्र में कई उन्नति होने से अब हमारे पास यूट्रीन फाइब्रॉएड का इलाज करने के लिए कम से कम चीरफाड़ वाली प्रक्रिया मौजूद है. और अब हिस्टेरेक्टॉमी एक वैकल्पिक इलाज बन गया है. हमने कई महिलाओं के लिए न्यूनतम इनवेसिव विकल्प यूट्रीन फाइब्रॉएड एम्बोलिज़ेशन (यूएफई) किया . यह नॉनसर्जिकल आउट पेशेंट प्रक्रिया गर्भाशय (यूटरस) को निकाले बिना यूटरीन फाइब्रॉएड का इलाज कर सकती है. यूएफई उन महिलाओं के लिए बढ़िया होती है जो इनवेसिव सर्जरी से बचना चाहती हैं.

दूसरा मिथक: फाइब्रॉएड कैंसर हैं

यूटरीन फाइब्रॉएड का पता चलने के बाद महिला के दिमाग में पहला सवाल यह आता है कि “क्या फाइब्रॉएड कैंसर? ” इस सवाल का जवाब है कि यह कैंसर नहीं होता है. फाइब्रॉएड ट्यूमर की स्लो वृद्धि होती हैं और इसका यूट्रीन कैंसर से कोई संबंध नहीं है. फाइब्रॉएड इस हद तक दर्दनाक होते हैं कि वे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं.लेकिन ये जानलेवा नहीं होते है. फाइब्रॉएड का इलाज दवा या न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया के माध्यम से किया जा सकता है.

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तीसरा मिथक: फाइब्रॉएड से गर्भावस्था प्रभावित होती है

लोगों का मानना है कि अगर किसी महिला को यूट्रीन फाइब्रॉएड का पता चलता है, तो वह गर्भधारण नहीं कर सकती है. वे अक्सर यूट्रीन फाइब्रॉएड को बांझपन समझते हैं. लेकिन सभी फाइब्रॉएड आपकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं करते हैं. गर्भावस्था वास्तव में कई अन्य फैक्टर्स पर भी निर्भर करती है. यह देखा गया है कि जिन महिलाओं में फाइब्रॉएड का लक्षण नहीं दिखता है, वैसी महिलाएं आमतौर पर किसी भी प्रजनन समस्या का सामना नहीं करती है. फाइब्रॉएड होने के बावजूद कई महिलाएं स्वस्थ गर्भ धारण कर सकती हैं.

चौथा मिथक: फाइब्रॉएड एक बार अगर हटा दिया गया तो वह दोबारा नहीं होता है

फाइब्रॉएड फिर से हो सकता है, भले ही आपने इस स्थिति का इलाज करा लिया हो. यह महत्वपूर्ण है कि अगर आपमें यह समस्या हो चुकी हो तो इलाज के बाद भी अपने चिकित्सक के साथ नियमित तौर पर संपर्क में रहे. नियमित टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट के माध्यम से आपका चिकित्सक दोबारा फाइब्रॉएड होने की जांच करेगा. अग़र यूट्रीन फाइब्रॉएड फिर से हो जाता है तो मरीज को अलग इलाज कराने का सुझाव दिया जाता है. आपका चिकित्सक आपके लिए सही उपचार चुनने में आपकी सहायता करेगा. यूएफई सहित अधिकांश इनवेसिव सर्जरी कई महिलाओं को उनके गर्भाशय से फाइब्रॉएड को स्थायी रूप से बाहर करने में मदद करती हैं.

पांचवां मिथक: फाइब्रॉएड का इलाज दवाओं के खाने से हो सकता है

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि फाइब्रॉएड फिर से भी हो सकता है. इसलिए यह जरूरी है कि डॉक्टर से कंसल्ट करने के बाद भी दवाओं को खाते रहना चाहिए. कुछ दवाएं समय के साथ फाइब्रॉएड को सिकोड़ने में मदद करती हैं और कभी-कभी कुछ अक्रामक उपचार भी स्थिति को खत्म करने के लिए फायदेमंद होते हैं. लेकिन दवाओं का सेवन न करना लक्षणों को बदतर कर सकता है और फाइब्रॉएड को बढ़ा सकता है.

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छठा मिथक: मेनोपॉज के बाद फाइब्रॉएड गायब हो जाता हैं

कभी-कभी मेनोपॉज के दौरान हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी कराने से आपके गर्भाशय में नया फाइब्रॉएड भी विकसित हो सकता हैं. यह दर्शाता है कि मेनोपॉज के बाद भी महिलाओं को भी फाइब्रॉएड के इलाज कराने की जरुरत होती है. यूएफई एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है जो फाइब्रॉएड को ब्लड के प्रवाह को अवरुद्ध करके सुरक्षित और प्रभावी ढंग से सिकोड़ती है, जिससे फाइब्रॉएड सिकुड़ जाते हैं और लंबे समय के लिए गायब हो जाते हैं.

मदरहुड हॉस्पिटल, नोयडा के गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटेट्रिशियन- सीनियर कंसल्टेंट डॉ मंजू गुप्ता

टुकड़ों में नींद लेना पड़ सकता है भारी

खूब थके हों और झपकी आ जाए तो आप तरोताजा हो जाते हैं. लेकिन ऐसी दशा में पूरी नींद न लेना या लगातार टुकड़ों में सोना सेहत लिए अच्छा नहीं है. एक स्टडी की मानें तो बार-बार नींद टूटने से शरीर पर बुरा असर पड़ता है

वैसे लंबी और चैन की नींद सौभाग्यशाली लोगों को ही मिलती है, सभी के लिए एक बार में 7-9 घंटे सोना संभव नहीं है. नींद की कमी से कई सारी बीमारियां भी होने लगती हैं. जो लोग एक बार में भरपूर नींद नहीं ले पाते हैं या फिर देर रात तक जगने के बाद सोते हैं उनके मन में अक्सर ख्याल आता है कि क्यों न टुकड़ों में नींद पूरी की जाए.

ऐसे में अमेरिका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में दो तरह की नींद का अध्ययन किया. बिना व्यवधान की लंबी नींद और दूसरी कम समय के लिए टुकड़ों में ली जाने वाली नींद. इस स्टडी में 62 सेहतमंद पुरुषों को शामिल किया गया और एक लैबरेटरी में रखा गया. इनमें कुछ लोगों को बार-बार जगाया गया.

वैज्ञानिकों ने इस शोध में पाया कि पहली रात के बाद दोनों ही समूह के प्रतिभागियों को थकान थी. बाद की रातों में टुकड़ों में सोने वाले समूह की अपेक्षा देर रात के बाद शांति से सोने वाले समूह के लोगों का मूड 30 प्रतिशत बेहतर था. यह भी पता चला कि टुकड़ों में सोने वाले लोग अगले दिन ज्यादा थके और सुस्त नजर आए

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दिन में सोना खतरनाक

स्लीप जर्नल में पब्लिश हुए एक दूसरे शोध की मानें तो जो लोग दिन में 6 घंटे की नींद लेते हैं, उन्हें रात में सात घंटे रोज नींद लेने वालों की अपेक्षा बीमारी का खतरा चार गुना ज्यादा रहता है.

याद्दाश्त कमजोर होना

कम नींद लेने का प्रभाव दिमाग पर पड़ता है और दिमाग सही तरीके से काम नहीं करता. इसकी वजह से पढ़ने, सीखने व निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है.

भूख ज्यादा लगना

टुकड़ों में नींद लेने से मेटाबॉलिज्म कमजोर हो जाता है. कम नींद लेने के कारण हॉर्मोन में असंतुलन भी होता है जिससे कारण ज्यादा भूख लगती है. इसके कारण ही अच्छी नींद न लेने वाले लोगों को पेट भरने का आभास देर से होता है. इसलिए टुकड़ों में नींद लेने के बजाय एक साथ लंबी नींद लीजिए.

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इन 5 दालों में छिपा है आप की सेहत का राज

दाल जैसे, राजमा, उरद, मूंग आदि में खूब सारा प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और आयरन आदि जैसे ढेर सारे पोषक तत्‍व मिले होते हैं. अगर आप वेजिटेरियन हैं तो दालों को अपने खाने में हर रोज शामिल कीजिये. आइये देखते हैं कि कौन सी दाल में कौन से गुण छुपे हुए हैं.

1. प्रोटीन का भंडार राजमा

राजमा (किडनी बीन्स) में बहुत सारा प्रोटीन होता है. यही नहीं इसमें आयरन, फौसफोरस, मैगनीशियम और विटामिन बी9 पाया जाता है. साथ ही यह सोडियम और पोटैशियम में सबसे लो आहार हैं. राजमा में सोया प्रोडक्‍ट के मुकाबले अधिक प्रोटीन होता है.

2. मसूर दाल

मसूर दाल की प्रकृति गर्म, शुष्क, रक्तवर्द्धक एवं रक्त में गाढ़ापन लाने वाली होती है. इस दाल को खाने से बहुत शक्‍ति मिलती है. दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज व अनियमित पाचन क्रिया में मसूर की दाल का सेवन लाभकारी होता है. सौदर्य के हिसाब से भी यह दाल बहुत उपयोगी है.

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3. काबुली चना, हरा चना और लाल चना

काबुली चना, हरा चना और लाल चना नाम से जाना जाने वाला यह चना तीन प्रकार का होता है. इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन,नमी, चिकनाई, रेशे, केल्शिय, आयरन व विटामिन्स पाए जाते हैं. रक्ताल्पता, कब्ज, डायबिटिज और पीलिया जैसे रोगों में चने का प्रयोग लाभकारी होता है. बालों और त्वचा की सौंदर्य वृद्धि के लिए चने के आटे का प्रयोग हितकारी होता है. चना एक प्रमुख फसल है.

4. काली बीन्‍स

गर्भवती महिलाओं के लिये काला बीन्‍स बहुत लाभकारी होता है क्‍योंकि इसमें फोलेट पाया जाता है. जो कि बच्‍चे के विकास के लिये एक जरुरी तत्‍व होता है. एक कटोरी काला बीन्‍स आपको 90 प्रतिशत तक के फोलेट तक की जरुरत पूरी कर देगा. इसमें फाइबर और प्रोटीन भी अच्‍छी मात्रा में पाया जाता है. रोजाना इसे स्‍प्राउट के तौर पर जरुर खाइये.

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5. मूंग दाल

मूंग साबुत हो या धुली, पोषक तत्वों से भरपूर होती है. अंकुरित होने के बाद तो इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों केल्शियम,आयरन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन्स की मात्रा दोगुनी हो जाती है. मूंग शक्तिवर्द्धक होती है. ज्वर और कब्ज के रोगियों के लिए इसका सेवन करना लाभदायक होता है.

मोबाइल तकिए से रखें दूर, वरना हो सकता है नुकसान

जब से फोन का स्वरूप बदला और इतना छोटा हो गया कि वह हम सब की मुट्ठी के अंदर समाने लगा तब यह बहुगुणी भी हो गया, बातचीत और पूरी दुनिया के काम निबटाने के कारण इस छोटे रूप का मोबाइल सब के पास हर समय हर वक्त साथी की तरह रहने लगा. यह सौ फीसदी सच है कि मोबाइल के द्वारा आप पूरी दुनिया की जानकारी अपनी जेब में रख सकती हैं. इसी कारण मोबाइल जीवन का जरूरी अंग बन गया है. लोग इस के बिना जी नहीं पाते हैं. यहां तक कि सुबह, दोपहर, शाम, दिनरात हर पल मोबाइल को अपने पास रखना नहीं भूलते हैं. किसी को चिंता होती है कि कोई जरूरी फोन न आ जाए या किसी को जल्दी उठने के लिए उसी में अलार्म लगाने की जरूरत होती है. आमतौर पर लोगों की यह आदत होती है कि वे रात को सोते समय अपने तकिए के नीचे मोबाइल रख कर सो जाते हैं. लेकिन जो भी ऐसा कर रहा है उस की यह आदत बिलकुल गलत है. ऐसा करने से आगे आने वाले समय में आप को सिरदर्द और चक्कर आने की समस्याएं हो सकती हैं. मोबाइल से निकलने वाला इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रैडिएशन काफी नुकसानदेह होता है. लत है गलत

जैसेजैसे मोबाइल फोन और टैबलेट का साइज बढ़ता जा रहा है वैसेवैसे ये गैजेट्स और अधिक नुकसानदेह बनते जा रहे हैं. रात को जब अंधेरा होने लगता है तो हमारा शरीर मैलाटोनिन नाम का तत्त्व शरीर में छोड़ने लगता है. यह तत्त्व शरीर को नींद के लिए तैयार करता है.

मगर मोबाइल फोन और टैबलेट की डिस्पले स्क्रीन से निकलने वाली नीलीहरी  रोशनी इस तत्त्व को नहीं बनने देती. इस वजह  से शरीर में बहुत ही कम मात्रा में मैलाटोनिन बनता है जिस से आसानी से नींद भी नहीं आती. हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि नीलीहरी रोशनी के बजाय उन की डिस्पले स्क्रीन से पीलीलाल रोशनी निकले.

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बढ़ा नुकसान

रातभर मोबाइल को तकिए के पास रखने को ले कर हुए कई अध्ययनों में भी कहा गया है कि इस से तमाम दिक्कतें हो सकती हैं, जिन में प्रमुख हैं- बारबार होने वाला सिरदर्द, सिर में कभीकभी ?ान?ानाहट होना और उस ?ान?ानाहट से निराशा पैदा होना, कम काम करने पर भी लगातार थकान महसूस करना, बेवजह ही चलते हुए चक्कर आना, निराशा और नकारात्मक सोच का बहुत बढ़ जाना, घंटों तक कोशिश कर के भी गहरी नींद न आना, आंखों में सूखापन बनने लगना, किसी भी काम में ध्यान न लगना, शारीरिक श्रम से जी चुराना, कानों में आवाज बजना जैसा महसूस होना, पास बैठ कर बात करने में भी किसी वाक्य को साफ सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचनतंत्र में गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द इतना ही नहीं  रातभर मोबाइल पास रहेगा तो वह आप की त्वचा की सामान्य उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को तेज कर सकता है. समय से पहले ?ार्रियां, त्वचा की सूजन, खुजली तक की समस्याओं में योगदान देता है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

आज सारी दुनिया के सभी चिकित्सकों का यही कहना है कि अगर सोने से पहले मोबाइल फोन अथवा टैबलेट का इस्तेमाल न किया जाए तो लगभग एक घंटे की नींद और ली जा सकती है. उन का कहना है कि हमारी जैविक घड़ी धरती की चौबीसों घंटों की घड़ी के साथ तालमेल बैठा कर काम करती है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि दिमाग में एक मास्टर घड़ी होती है जिस पर वातावरण के कई कारणों से भी असर पड़ता है. नींद पूरी न होने से सेहत को काफी नुकसान पहुंचता है. अच्छी नींद लेने के लिए जरूरी है कि सोने से कम से कम 1 घंटा पहले मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटौप जैसी चीजों का इस्तेमाल करना बंद कर दें.

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