बैकुंठ: कोई कब तक उठा सकता है पाखंडों का भार

Serial Story: बैकुंठ- भाग 3

श्यामाचरण उठे तो सरगई को वैसे ही पड़ा देख कर बड़बड़ाए थे. खाया नहीं महारानी ने, बेहोश होंगी तो यही होगा, मैं ने ही जबरदस्ती व्रत रखवाया है. भैया तो मुझे छोड़ेंगे नहीं. जब तक यहां थे, मालती की हिमायत, वकालत करते थे हमेशा. मांबाबूजी और दादी से कई बार बहस होती रहती धर्म संस्कारों, रीतिरिवाजों को ले कर कि आप लोग तो आगे बढ़ना ही नहीं चाहते. तभी तो एक दिन अपने परिवार को ले कर भाग लिए आस्टे्रलिया, वहीं बस गए और रामचरण से रैमचो बन गए. अपनी धरती, अपने परिवार को छोड़ कर, उन के बारे में सोचते हुए श्यामाचरण नहाधो कर जल्दीजल्दी नित्य पूजा समाप्त करने में जुट गए.

सुबहसुबह खाली सड़क मिलने की वजह से रैमचो की टैक्सी घंटे से

पहले ही घर पहुंच गई. रैमचो गाड़ी से उतरे, साथ में उन का छोटा बेटा संकल्प उर्फ सैम भी था. मालती ने दरवाजा खोला था. ‘‘अरे भैया, बताया नहीं कि सैम भी साथ है,’’ वह पैर छूने को झुकी.

‘‘नीचे झुक सैम, तेरे सिर तक तो चाची का हाथ भी नहीं जा रहा, कितना लंबा हो गया तू, दाढ़ीमूंछ वाला, चाची के बगैर शादी भी कर डाली. हिंदी समझ आ रही है कि भूल गया. फोर्थ स्टैंडर्ड में था जब तू विदेश गया था.’’ रैमचो की मुसकराते हुए बात सुनती हुई मालती प्यार से उन्हें अंदर ले आई. ‘‘कहां है श्याम, अभी सो ही रहा है?’’ तभी पूजा की घंटी सुनाई दी, ‘‘ओह, तो यह अभी तक बिलकुल वैसा ही है. सुबहशाम डेढ़ घंटे पूजापाठ, जरा भी नहीं बदला,’’ वे सोफे पर आराम से बैठ गए. सैम भी उन के पास ही बैठ कर अचरज से घर में जगहजगह सजे देवीदेवताओं के पोस्टर, कलैंडर देख रहा था.

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‘‘स्टें्रज पा, आई रिमैंबर अ लिटिल सैम एज बिफोर,’’ संकल्प बोला. ‘‘वाह भैया, इतने सालों बाद दर्शन दिए,’’ श्यामाचरण पैर छूने को झुके तो रैमचो ने उन्हें बीच में ही रोक लिया, ‘‘इतनी पूजापाठ के बाद आया है, कहांकहां से घूम कर आ रहे इन जूतों को हाथ लगा कर तू अपवित्र नहीं हो जाएगा,’’ कह कर वे मुसकराए.

‘‘बदल जा श्याम, अपना जीवन तो यों ही पूजापाठ में निकाल दिया, अब बच्चों की तो सोच, उन्हें जमाने के साथ बढ़ने दे. इतने सालों बाद भी न घर में कोई चेंज देख रहा हूं न तुझ में,’’ उन्होंने उस के पीले कुरते व पीले टीके की ओर इशारा किया, ‘‘इन सब में दिमाग व समय खपाने से अच्छा है अपने काम में दिमाग लगा और किताबें पढ़, नौलेज बढ़ा. आज की टैक्नोलौजी समझ, सिविल कोर्ट का लौयर है तो हाईकोर्ट का लौयर बनने की सोच. कैसे रहता है तू, मेरा तो दम घुटता है यहां.’’

भतीजे संकल्प के गले लग कर श्यामाचरण नीची निगाहें किए हुए बैठ गए. चुपचाप बड़े भाई की बातें सुनने के अलावा उन के पास चारा न था. संकल्प अंदर सब देखता, याद करता. सब को सोता देख, उठ कर चाची के पास किचन में पहुंच गया और उन के साथ नाश्ता उठा कर बाहर ले आया.

‘‘अरे, बच्चों को उठा दिया होता. क्षितिज और पल्लवी तो उठ गए होंगे. बहू को इतना तो होश रहना चाहिए कि घर में कोई आया हुआ है, यह क्या तरीका है,’’ पांचों उंगलियों में अंगूठी पहने हाथ को सोफे पर मारा था श्यामाचरण ने. ‘‘और तुम्हारा क्या तरीका है, बेटी या बहू के लिए कोई सभ्य व्यक्ति ऐसे बात करता है?’’ उन्होंने चाय का कप उठाते, श्याम को देखते हुए पूछा. आज बड़े दिनों बाद बडे़ भैया श्याम की क्लास ले रहे थे, मालती मन ही मन मुसकराईर्.

‘‘कोई नहीं, अभी संकल्प ने ही सब को उठा दिया और सब से मिल भी लिया, सभी आ ही रहे हैं, रात को देर में सोए थे. उन को मालूम कहां भैया लोगों के आने का. उठ गए हैं, आते ही होंगे, सब को जाना भी है,’’ मालती ने बताया. रैमचो को 2 बजे कौन्फ्रैंस में पहुंचना था. सो, सब के साथ मनपसंद नाश्ता करने लगे, ‘‘अब तुम भी आ जाओ, मालती बेटा.’’

‘‘आप लोग नाश्ता कीजिए, भैया, मेरा तो आज करवाचौथ का व्रत है,’’ वह भैया की लाई पेस्ट्री प्लेट में लगा कर ले आई थी. ‘‘लो बीपी रहता है न तुम्हारा, व्रत का क्या मतलब? पहले भी मना कर चुका हूं, जो हालत इस ने तुम्हारी कर रखी है, इस से पहले चली जाओगी.’’ दक्ष, मम्मी के लिए प्लेट ला…श्याम, घबरा मत, तेरी हैल्थ की केयर रखना इस का काम है और वह बखूबी करती है. तू खुद अपना भी खयाल रख और इस का भी. शशि ने तो व्रत कभी नहीं रखा, फिर भी सुहागन मरी न, मैं जिंदा हूं अभी भी. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है, तू वहीं अटका हुआ है और सब को अटका रखा है. भगवान को मानता है तो कुछ उस पर भी छोड़ दे. अपनी कारगुजारी क्यों करने लगता है.’’

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दक्ष प्लेट ले आया तो रैमचो ने खुद लगा कर प्लेट मालती को थमा दी. ‘‘जी भैया,’’ उस ने श्याम को देखा जो सिर झुकाए अच्छे बच्चे की तरह चुपचाप खाए जा रहे थे. भैया को टालने का साहस उस में भी न था, वह खाने लगी.

‘‘पेस्ट्री कैसी लगी बच्चो? श्याम तू तो लेगा नहीं, धर्म भ्रष्ट हो जाएगा तेरा, पर सोनाक्षीपल्लवी तुम लोग तो लो या फिर तुम्हारा भी धर्म…कौन सी पढ़ाई की है. आज के जमाने में. चलो, उठाओ जल्दीजल्दी. इन सब बातों से कुछ नहीं होता. गूगल कैसे यूज करते हो तुम सब, मैडिसन कैसेकैसे बनती हैं, कभी पढ़ा है? कुछ करना है अपने भगवान के लिए तो अच्छे आदमी बनो जो अपने साथ दूसरों का भी भला करें, बिना लौजिक के ढकोसले वाले हिपोक्रेट पाखंडी नहीं. अब जल्दी सब अपनी प्लेट खत्म करो, फिर तुम्हारे गिफ्ट दिखाता हूं,’’ वे मुसकराए. ‘‘मेरे लिए क्या लाए, बड़े पापा,’’ दक्ष ने अपनी प्लेट सब से पहले साफ कर संकल्प से धीरे से पूछा था, तो उस ने भी मुसकरा कर धीरे से कहा, ‘‘सरप्राइज.’’

नाश्ते के बाद रैमचो ने अपना बैग खोला, सब के लिए कोई न कोई गिफ्ट था. ‘‘श्याम इस बार अपना यह पुराना टाइपराइटर मेरे सामने फेंकेगा, लैपटौप तेरे लिए है. अब की बार किसी और को नहीं देगा. दक्ष बेटे के लिए टैबलेट. सोनाक्षी बेटा, इधर आओ, तुम्हारे लिए यह नोटबुक. पल्लवी और मालती के लिए स्मार्टफोन हैं. अब बच गया क्षितिज, तो यह लेटैस्ट म्यूजिकप्लेयर विद वायरलैस हैडफोन फौर यू, माय बौय.’’ ‘‘अरे, ग्रेट बड़े पापा, मैं सोच ही रहा था नया लेने की, थैंक्यू.’’

‘‘थैंक्यूवैंक्यू छोड़ो, अब लैपटौप को कैसे इस्तेमाल करना है, यह पापा को सिखाना तुम्हारी जिम्मेदारी है. श्याम, अभी संकल्प तुम्हें सब बता देगा, बैठो उस के साथ, देखो, कितना ईजी है. और हां, अब तुम लोग अपनेअपने काम पर जाने की तैयारी करो, शाम को

फिर मिलेंगे.’’ सुबह की पूजा जल्दी के मारे अधूरी रह गई तो श्यामाचरण ने राधे महाराज को शुद्धि का उपाय करने के लिए बुलाया. रैमचो ने यह सब सुन लिया था. महाराज का चक्कर अभी भी चल रहा है, अगली जेनरेशन में भी सुपर्स्टिशन का वायरस डालेगा, कुछ करता हूं. उस ने ठान लिया.

10 बजे राधे महाराज आ गए. ‘‘नमस्ते महाराज, पहचाना,’’ रैमचो ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘काहे नहीं, बड़े यजमान, कई वर्षों बाद देख रहा हूं.’’ ‘‘यह बताइए कि लोगों को बेवकूफ बना कर कब तक अपना परिवार पालोगे. अपने बच्चों को यही सब सिखाएंगे तो वे औरों की तरह कैसे आगे बढ़ेंगे, पढ़ेंगे? क्या आप नहीं चाहते कि वे बढ़ें?’’ रैमचो ने स्पष्टतौर पर कह दिया.

पंडितजी सकपका गए, ‘‘मतबल?’’ ‘‘महाराजजी, मतलब तो सही बोल नहीं रहे. मंत्र कितना सही बोलते होंगे. कुछ मंत्रों के अर्थ मैं मालती बहू से पहले ही जान चुका हूं. आप जानते हैं, जो हम ऐसे कह सकते हैं उस से क्या अलग है मंत्रों में? पुण्य मिलते बैकुंठ जाते आप में से या आप के पूर्वजों में से किसी ने किसी को देखा है या बस, सुना ही सुना है?’’

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‘‘नहीं, यजमान, पुरखों से सुनते आ रहे हैं. पूजा, हवन, दोष निवारण की हम तो बस परिपाटी चलाए जा रहे हैं. सच कहूं तो यजमानों के डर और खुशी का लाभ उठाते हैं हम पंडित लोग. बुरा लगता है, भगवान से क्षमा भी मांगते हैं इस के लिए. परिवार का पेट भी तो पालना है, यजमान. हम और कुछ तो जानते नहीं, और ज्यादा पढ़ेलिखे भी नहीं.’’ राधे महाराज यह सब बोलने के बाद पछताने लगे कि गलती से मुंह से सच निकल गया.

Serial Story: बैकुंठ- भाग 2

पल्लवी मालती को बड़े ध्यान से सुन रही थी. सोच रही थी कि आज की पीढ़ी का होने पर भी अपने धर्म के विरोध में कुछ कहने का इतना साहस उस में नहीं था जितना अम्माजी बेधड़क कह गईं. मैं ने एमबीए किया हुआ है, जौब भी करती हूं पर धर्म का एक डर मेरे अंदर भी कहीं बैठा हुआ है. सोनाक्षी भी कालेज में है. उस ने 72 सोमवार के व्रत केवल पापाजी के डर से नहीं रखे, बल्कि खुद अपने भविष्य के डर से भी, अपने विश्वास से रखे हैं.

‘‘अम्मा, आप ही राधे महाराज से बात कर लीजिए,’’ क्षितिज बोला. ‘‘मैं करूंगी तो उन्हें शर्म आएगी लेने में, उन से उम्र में मैं काफी बड़ी हूं. क्षितिज, तुम ही अपनी तरफ से बात कर लेना, यही ठीक रहेगा.’’

‘‘ठीक है अम्मा, आज ही शाम को बात कर लूंगा वरना हफ्तेभर की छुट्टी की अरजी दी तो औफिस वाले मुझे सीधा ही बैकुंठ भेज देंगे,’’ कह कर क्षितिज मुसकराया. एक नहीं, ऐसी अनेक घटनाएं व पूजा आएदिन घर में होती रहतीं, जिन में श्यामाचरण के अनुसार राधे महाराज की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती. राधे महाराज से पहले उन के पिता किशन महाराज, श्यामाचरण के पिता विद्याचरण के जमाने से घर के पुरोहित हुआ करते थे. जरा भी कहीं धर्म के कामों में ऊंचनीच न हो जाए, विवाह, बच्चे का जन्म, अन्नप्राशन, मुंडन कुछ भी हो, वे ही संपन्न करवाते, आशीष देते और थैले भरभर कर दक्षिणा ले जाते.

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इधर, राधे महाराज ने शुभमुहूर्त और शुभघड़ी के चक्कर में श्यामाचरण को कुछ ज्यादा ही उलझा लिया था. कारण मालती को साफ पता था, बढ़ते खर्च के साथ बढ़ता उन का लालच, जिसे श्यामाचरण अंधभक्ति में देख नहीं पाते. कभी समझाने का प्रयत्न भी करती तो यही जवाब मिलता, ‘‘तुम तो निरी नास्तिक हो मालती, नरक में भी जगह नहीं मिलेगी तुम को, मैं कहे दे रहा हूं. पूजापाठ कुछ करना नहीं, न व्रतउपवास, न नियमधरम से मंदिरों में दर्शन करना. घर में जो मुसीबत आती है वह तुम्हारी वजह से. चार अक्षर ज्यादा पढ़लिख गई तो धर्मकर्म को कुछ समझना ही नहीं. ‘‘तुम्हारी देखादेखी बच्चे भी उलटापुलटा सीख गए. घबराओ मत, बैकुंठ कभी नहीं मिलेगा तुम्हें. घर की सेवा, समाजसेवा करने का स्वांग बेकार है. अपने से ईश्वर की सेवा करते मैं ने तुम्हें कभी देखा नहीं, कड़ाहे में तली जाओगी, तब पता चलेगा,’’ कहते हुए आधे दर्जन कलावे वाले हाथ से गुरुवार हुआ तो गुरुवार के पीले कपड़ों में सजेधजे श्यामाचरण, हलदीचंदन का टीका माथे पर सजा लेते. उन के हर दिन का नियम से पालन उन के कपड़ों और टीके के रंग में झलकता.

‘‘नरक भी नहीं मिलेगा, कभी कहते हो कड़ाहे में तली जाऊंगी, कभी बैकुंठ नहीं मिलेगा, फिर पाताल लोेक में जाऊंगी क्या? जहां सीता मैया समा गई थीं. अब मेरे लिए वही बचा रह गया…’’ उस की हंसी छूट जाती. मुंह में आंचल दबा कर वह हंसी रोकने की कोशिश करती. कभीकभी उसे गुस्सा भी आता कि दिमाग है तो तर्क के साथ क्यों नहीं मानते कुछ भी. कौआ कान ले गया, सब दौड़ पडे़, अपने कानों को किसी ने हाथ ही नहीं लगा कर देखना चाहा, वही वाली बात हो गई. अब कुछ तो करना चाहिए कि यह सब बंद हो सके. पर कैसे? वह सोचने लगी कि क्षितिज का सीडीएस का इंटरव्यू भी तो उन के इसी शुभमुहूर्त के चक्कर में छूट गया था. उस की बरात ले कर ट्रेन से पटना के लिए निकलने वाले थे हम सब, तब भी घर से मुहूर्त के कारण इतनी देर से स्टेशन पहुंचे कि गाड़ी ही छूट गई. किस तरह फिर बस का इंतजाम किया गया था. सब उसी में लदेफंदे हाईस्पीड में समय से पटना पहुंचे थे, पर श्यामजी की तो लीला निराली है, तब भी यही समझ आया कि सही मुहूर्त में चले थे, इसलिए कोई हादसा होने से बच गया. फिर पूजा भी इस के लिए करवाई, कमाल है.

नया केस लेंगे तो पूजा, जीते तो सत्यनारायण कथा, हारे तो दोष निवारण, शांतिपाठ हवन. पता नहीं वह कौन सी आस्था है. या तो सब अपने उस देवता पर छोड़ दो या फिर सपोर्ट ही करना है उसे, तो धार्मिक कर्मकांडों की चमचागीरी से नहीं, बल्कि उसे ध्यान में रख कर अपने प्रयास से कर सकते हो. तो वही क्यों न करो. पर अब कौन समझाए इन्हें कितनी बार तो कह चुकी. करवाचौथ की पूजा के लिए मेरी जगह वे उत्साहित रहते हैं. मांजी के कारण यह व्रत रखे जा रही हूं. पिछले वर्ष ही तो उन का निधन हो गया, पर श्यामजी को कैसे समझाऊं कि मुझे इस में भी विश्वास नहीं. कह दूं तो बहुत बुरा मान जाएंगे. औरत के व्रत से आदमी की उम्र का क्या संबंध? हां, स्वादिष्ठ, पौष्टिक व संतुलित भोजन खिलाने, साफसफाई रखने और घर को व्यवस्थित व खुशहाल रखने से अवश्य हो सकता है, जिस का मैं जीजान से खयाल रखती हूं. बस, अंधविश्वास में उन का साथ दे कर खुश नहीं कर पाती, न स्वयं खुश हो पाती.

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‘‘चलो, कोई तो पूजा करती हो अपने से, साल में एक बार. घर की औरत के पूजाव्रत से पूरे घर को पुण्य मिलता है, सुहागन मरोगी तो सीधा बैकुंठ जाओगी.’’ दुनियाभर को जतातेफिरते श्यामाचरण के लिए आज मालती ने भी व्रत रखा है, उन की इज्जत बढ़ जाती. अपने से ढेर सारे फलफलाहारी, फेनीवेनी, पूजासामग्री, उपहार, साड़ी, चूड़ी, आल्ता, बिंदी सब ले आते. सरगई का इंतजाम करना जैसे उन्हीं की जिम्मेदारी हो, इस समझ का मैं क्या करूं? रात की पूजा करवाने के लिए राधे पंडित को खास निमंत्रण भी दे आए होंगे. सरगई के लिए 3 बजे उठा दिया श्यामाचरण ने.

‘‘खापी लो अच्छी तरह से मालती, पूजा से पहले व्रत भंग नहीं होना चाहिए.’’ वह सोते से अनमनी सी घबरा कर उठ बैठी थी कि क्या हो गया. उस ने देखा श्यामजी उसे जगा कर, फिर चैन से खर्राटे भरने लगे. यह प्यार है या बैकुंठ का डर? पागलों की तरह इतनी सुबह तो मुझ से कभी खाया न गया, भूखा रहना है तो पूरे दिन का खाना मिस करो न. हिंदुओं का करवा, मुसलमानों का रोजा सब यही कि दो समय का भोजन एकसाथ ही ठूंस लो कि फिर पूजा से पहले न भूख लगेगी न प्यास, यह भी क्या बात हुई अकलमंदी की. नींद तो उचट चुकी थी, वह सोचे जा रही थी. तभी फोन की घंटी बजी. इस समय कौन हो सकता है? श्यामजी की नाक अभी भी बज रही थी, सो, फोन उसी ने उठा लिया.

‘‘हैलो, कौन?’’ ‘‘ओ मालती, मैं रैमचो, तुम्हारा डाक्टर भैया, अभी आस्ट्रेलिया से इंडिया पहुंचा हूं.’’

‘‘नमस्ते भैया, इतने सालों बाद, अचानक,’’ मालती खुशी से बोली, ससुराल में यही जेठ थे जिन से उन के विचार मेल खाते थे. ‘‘हां, कौन्फ्रैंस है यहां, सब से मिलना भी हो जाएगा और सब ठीक हैं न?

1 घंटे में घर पहुंच रहा हूं.’’ ‘आज 5 सालों बाद डाक्टर भैया घर आ रहे हैं. अम्मा के निधन पर भी नहीं आ सके थे. भाभी का लास्ट स्टेज का कैंसर ट्रीटमैंट चल रहा था, उसी में वे चल भी बसीं. 3 लड़के ही हैं भैया के, तीनों शादीशुदा, वैल सैटल्ड. कोई चिंता नहीं अब, डाक्टरी और समाजसेवा में ही अपना जीवन समर्पित कर रखा है उन्होंने. वह बच्चों को प्रेरणा के लिए उन का अकसर उदाहरण देती है,’ यह सब सोचते हुए मालती फटाफट नहाधो कर आई. फिर श्यामजी को उठा कर भैया के आने के बारे में बताया.

‘‘रामचरण भैया, अचानक…’’ ‘‘नहीं, रैमचो भैया. मैं उन की पसंद का नाश्ता तैयार करने जा रही हूं, आप भी जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ उस ने हंसते हुए कहा और किचन की ओर बढ़ गई.

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Serial Story: बैकुंठ- भाग 1

बाथरूम में नहाते हुए लगातार श्यामाचरण की कंपकंपाती स्वरलहरी गूंज रही थी. उन की पत्नी मालती उन के कोर्ट जाने की तैयारी में जुटी कभी इधर तो कभी उधर आजा रही थी. श्यामाचरण अपनी दीवानी कचहरी में भगत वकील नाम से मशहूर थे. मालती ने पूजा के बरतन धोपोंछ कर आसन के पास रख दिए, प्रैस किए कपड़े बैड पर रख दिए, टेबल पर जल्दीजल्दी नाश्ता लगा रही थी. मंत्रपाठ खत्म होते ही श्यामाचरण का, ‘देर हो रही है’ का चिल्लाना शुरू हो जाता. मुहूर्त पर ही उन्हें कोर्ट भी निकलना होता. आज 9 बज कर 36 मिनट का मुहूर्त पंडितजी ने बतलाया था. श्यामाचरण जब तक कोर्ट नहीं जाते, घर में तब तक अफरातफरी मची रहती. लौटने पर वे पंडित की बतलाई घड़ी पर ही घर में कदम रखते. बड़ा बेटा क्षितिज और बहू पल्लवी, बेटी सोनम और छोटा बेटा दक्ष सभी उन की इस पुरानी दकियानूसी आदत से परेशान रहते, पर उन का यह मानना था कि वे ऐसा कर के बैकुंठधाम जाने के लिए अपने सारे दरवाजे खोलते जा

रहे हैं. यों तो श्यामाचरण चारों धाम की यात्रा भी कर आए थे और आसपास के सारे मंदिरों के दर्शन भी कर चुके थे, फिर भी सारे काम ठीकठाक होते रहें और कहीं कोई अनर्थ न हो जाए, इस आशंका से वे हर कदम फूंकफूंक कर रखते और घर वालों को भी डांटतेडपटते रहते कि वे भी उन के जैसे विधिविधानों का पालन किया करें.

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‘‘अम्मा, अब तो हद ही हो गई, आज भी पापाजी की वजह से मेरा पेपर छूटतेछूटते बचा. अब से मैं उन के साथ नहीं जाऊंगा, बड़ी मुश्किल से मुझे परीक्षा में बैठने दिया गया, पिं्रसिपल से माफी मांगनी पड़ी कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा,’’ दक्ष पैंसिलबौक्स बिस्तर पर पटक कर गुस्से में जूते के फीते खोलने लगा और बोलता रहा, ‘‘फिर मुझे राधे महाराज वाले मंदिर ले गए, शुभमुहूर्त के चक्कर में उन्होंने जबरदस्ती 10 मिनट तक मुझे बिठाए रखा कि परीक्षा अच्छी होगी. जब परीक्षा ही नहीं दे पाता तो क्या खाक अच्छी होती. उस राधे महाराज का तो किसी दिन, दोस्तों से घेर कर बैंड बजा दूंगा.’’ ‘‘ऐसा नहीं कहते दक्ष,’’ मालती ने उसे रोका, उसे दक्ष के कहने के ढंग पर हंसी भी आ रही थी. श्यामाचरण के अंधभक्ति आचरण और पंडित राधे महाराज की लोलुप पंडिताई ने, जो थोड़ीबहुत पूजा वह पहले करती थी, उस से भी उसे विमुख कर दिया. लेकिन चूंकि पत्नी थी, इसलिए वह उन का सीधा विरोध नहीं कर पा रही थी. मन तो बच्चों के साथ उस का भी कुछ यही करता इस महाराज के लिए जो बस अपना उल्लू सीधा कर पैसे बटोरे जा रहा है.

सोनाक्षी, क्षितिज और पल्लवी सब अपनीअपनी जगह इन मुहूर्त व कर्मकांड के ढकोसलों से परेशान थे. सोनाक्षी को महाराज के कहने पर अच्छा वर पाने के लिए जबरदस्ती 72 सोमवार के व्रत रखने पड़ रहे थे. पता नहीं कौन सा ग्रहदोष बता कर पूजा व उपवास करवाए जा रहे थे. सोमवार के दिन कालेज में उस की अच्छी खिंचाई होती. ‘अरे भई, सोनाक्षी को पढ़ाई के लिए अब क्यों मेहनत करनी है, इस की लाइफ तो इस के व्रतों को सैट करनी है. पढ़लिख कर भी क्या करना है, बढि़या मुंडा मिलेगा इसे. अपन लोगों का तो कोई चांस ही नहीं,’ सब ठिठोली करते, ठठा कर हंस पड़ते.

बड़ा बेटा क्षितिज भी धार्मिक ढकोसलों से परेशान था. एक दिन उस ने छत की टंकी में गिरी बिल्ली को जब तक निकाला तब तक वह मर ही गई. श्यामाचरण ने सारा घर सिर पर उठा लिया, ‘‘अनर्थ, घोर अनर्थ, बड़ा पाप हो गया. नरक में जाएंगे सब इस के कारण,’’ उन्होंने फौरन राधे महाराज को फोन खड़खड़ा दिया. राधे पंडित को तो लूटने का मौका मिलना चाहिए, वे तुरंत सेवा में हाजिर हो गए.

‘‘मैं यह क्या सुन रहा हूं. यजमान से ऐसा पाप कैसे हो गया, मंदिर में अब कम से कम सवा किलो चांदी की बिल्ली चढ़ानी पड़ेगी. 12 पंडितों को बुला कर 7 दिनों तक लगातार मंत्रोच्चारहवन तथा भोजन कराना पड़ेगा, फिर घर के सभी सदस्य गंगास्नान कर के आएंगे, तभी जा कर शुद्धि हो पाएगी. बैकुंठ धाम जाना है तो यजमान, यह सब करना ही पड़ेगा,’’ राधे महाराज ने पूजाहवन के लिए सामग्री की अपनी लंबी लिस्ट थमा दी. उस में सारे पंडितों को वे कपड़ेलत्ते शामिल करने से भी नहीं चूके थे. क्षितिज को बड़ा क्रोध आ रहा था. एक तो पैसे की बरबादी, उस पर औफिस से जबरदस्ती छुट्टी लेने का चक्कर. औफिस में कारण बताए भी तो क्या. जिस को बताएगा, वह मजाक बनाएगा. ‘‘मैं तो इतनी छुट्टी नहीं ले सकता. आज रविवार है, फिर पूरा एक हफ्ते का चक्कर. हवन के बाद सब के साथ एक दिन भले ही चांदी की बिल्ली मंदिर में चढ़ा कर गंगास्नान कर आऊं, वह भी सवा किलो की नहीं, केवल नाम की, पापाजी की तसल्ली के लिए,’’ क्षितिज खीझ कर बोला.

‘‘पापाजी इस के लिए मानेंगे कैसे? सब की बोलती तो उन के सामने बंद हो जाती है. अम्माजी ही चाहें तो कुछ कर सकती हैं,’’ पल्लवी अपने बेटे किशमिश को साबुन लगाती हुई बोली. 4 साल का शरारती किशमिश श्यामाचरण की नकल करते हुए खुश हो, कूदकूद कर अपने ऊपर पानी डालने लगा. ‘‘तिपतिप, हलहल दंदे…हलहल दंदे,’’ वह उछलकूद मचा रहा था, पल्लवी भी गीली हो गई.

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‘‘ठहर जा बदमाश, दादाजी की नकल करता है, अम्माजी देखो, आप ही नहला सकती हो इसे,’’ पल्लवी ने आवाज लगाई. ‘‘अम्माजी, आप ही इस शैतान को नहला सकती हैं और इन के पापा की समस्या भी आप ही सुलझा सकेंगी, देखिए, कल से मुंह लटकाए खड़े हैं,’’ मालती के आने पर पल्लवी मुसकराई और कार्यभार उन्हें सौंप कर अलग

हट गई. ‘‘सीधी सी बात है, पंडित पैसों के लालच में यह सब पाखंड करते हैं. कुछ पैसे उन्हें अलग से थमा दो, कुछ नए उपाय ये झट निकाल लेंगे. न तुम्हें छुट्टी लेनी पड़ेगी, न कुछ. तुम्हारी जगह तुम्हारे रूमाल से भी वे काम चला लेंगे. इतने लालची होते हैं ये पंडित.

मैं सब जानती हूं पर सवा किलो की चांदी की बिल्ली की तो बात पापाजी के मन में बचपन से ही धंसी है, मानेंगे नहीं, दान करेंगे ही वरना उन के लिए बैकुंठ धाम के कपाट बंद नहीं हो जाएंगे?’’ वह हंसी, फिर बोली, ‘‘मैं तो 30 सालों से इन का फुतूर देख रही हूं. मांजी थीं, सो पहले वे कुछ जोर न दे सकीं वरना उस वक्त की मैं संस्कृत में एमए हूं, क्या इतना भी नहीं जानती थी कि ये पंडित क्या और कितना सही मंत्र पढ़ते हैं, अर्थ का अनर्थ और अर्थ भी क्या, देवताओं के काल्पनिक रूप, शक्ति, कार्यों का गुणगान. फिर हमें यह दे दो, वह दे दो. हमारा कल्याण करो. बस, खुद कुछ न करो. खाली ईश्वर से डिमांड. बस, यही सब बकवास. अच्छा हुआ जो संस्कृत पढ़ ली, आंखें खुल गईं मेरी, वरना धर्म से डर कर इन व्यर्थ के ढकोसलों में ही पड़ी रहती,’’ मालती किशमिश को नहला कर उसे तौलिये से पोंछती मुसकरा रही थी.

आगे पढ़ें- पल्लवी मालती को बड़े ध्यान से सुन रही थी….

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चाहत के वे पल: अपनी पत्नी गौरा के बारे में क्या जान गया था अनिरुद्ध

Serial Story: चाहत के वे पल- भाग 2

शेखर का मन हुआ अभी गौरा को जलील कर के हाथ पकड़ कर ले आए पर वह चुपचाप थके पैरों से औफिस न जा कर घर ही लौट आया. बच्चे हैरान हुए. वह चुपचाप बैडरूम में जा कर लेट गया. बेहद थका, व्यथित, परेशान, भीतरबाहर अनजानी आग में झुलसता, सुलगता… ये सब चीजें, यह घर, यह परिवार कितनी मेहनत, कितने संघर्ष और कितनी भागदौड़ के बाद व्यवस्थित किया था. आज अचानक जैसे सब कुछ बिखरता सा लगा. बेशर्म, धोखेबाज, बेवफा, मन ही मन पता नहीं क्याक्या वह गौरा को कहता रहा.

शेखर अपने मातापिता की अकेली संतान था. उस के मातापिता गांव में रहते थे. गौरा के मातापिता अब दुनिया में नहीं थे. वह भी इकलौती संतान थी. शेखर की मनोदशा अजीब थी. एक बेवफा पत्नी के साथ रहना असंभव सा लग रहा था. पर ऐसा क्या हो गया… उन के संबंध तो बहुत अच्छे हैं. पर गौरा को उस के प्यार में ऐसी क्या कमी खली जो उस के कदम बहक गए… अगर वह ऐसे बहकता तो गौरा क्या करती, उस ने हालात को अच्छी तरह समझने के लिए अपना मानसिक संयम बनाए रखा.

गौरा जैसी पत्नी है, वह निश्चित रूप से अपने पति को प्यार से, संयम से संभाल लेती, वह इतने यत्नों से संवारी अपनी गृहस्थी को यों बरबाद न होने देती… तो वह क्यों नहीं गौरा की स्थिति को समझने की कोशिश कर सकता? वह क्यों न बात की तह तक पहुंचने की कोशिश करे? बहुत कुछ सोच कर कदम उठाना होगा.

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2 घंटे के बाद गौरा आई, अब तक बच्चे खेलने बाहर जा चुके थे. शेखर को अकेला लेटा देख वह चौंकी, फिर प्यार से उस का माथा सहलाते हुए उस के पास ही अधलेटी हो गई, ‘‘आप ने मुझे फोन क्यों नहीं किया? मैं फौरन आ जाती.’’

‘‘रचना को छोड़ कर?’’

‘‘कोई आप से बढ़ कर तो नहीं है न मेरे लिए,’’ कहते हुए गौरा ने शेखर के गाल पर किस किया.

शेखर गौरा का चेहरा देखता रह गया फिर बोला, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘कैसी है तुम्हारी फ्रैंड?’’

‘‘ठीक है,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे कर गौरा खड़ी हो गई, ‘‘चाय बना कर लाती हूं, आप ने लंच किया?’’

‘‘हां.’’

गौरा गुनगुनाती हुई चाय बनाने चल दी. शेखर स्तब्ध था. इतनी फ्रैश, इतनी खुश क्यों? ऐसा क्या हो गया? बस, इस के आगे शेखर कोई कल्पना नहीं करना चाहता था. उस का दिमाग एक अनोखी प्लानिंग कर चुका था. शेखर अब सैर पर नियमित रूप से जाने लगा था. वह स्मार्ट था, मिलनसार था, उस ने धीरेधीरे सैर करते हुए ही अनिरुद्ध से दोस्ती कर ली थी. अपना नाम शेखर ने विनय बताया था ताकि गौरा तक उस का नाम न पहुंचे. शेखर बातोंबातों में अनिरुद्ध से दोस्ती बढ़ा कर, उस का विश्वास पा कर, उस से खुल कर उन के रिश्ते का सच जानना चाहता था. दोनों की दोस्ती दिनबदिन बढ़ती गई. शेखर गौरा का नाम लिए बिना अपने परिवार के बारे में अनिरुद्ध से बातें करता रहता था. अनिरुद्ध ने भी बताया था, ‘‘सीमा लखनऊ में अच्छे पद पर है. वह अपनी जौब छोड़ कर बनारस नहीं आना चाहती. मैं ही ट्रांसफर करवाने की कोशिश कर रह हूं.’’

शेखर हैरान हुआ. इस का मतलब यह तो अस्थाई रिश्ता है, इस का क्या होगा. लेकिन शेखर को इंतजार था कि अनिरुद्ध कब गौरा की बात उस से शेयर करेगा. कभी शाम को शेखर अनिरुद्ध को कौफी हाउस ले जाता, कभी बाहर लंच पर बुला लेता. कहता, ‘‘मेरी पत्नी मायके गई है, बोर हो रहा हूं.’’ उस की कोशिश अनिरुद्ध से ज्यादा से ज्यादा खुलने की थी और एक दिन उस की कोशिश रंग लाई. अनिरुद्ध ने उस के सामने अपना दिल खोल कर रख दिया, ‘‘यहां मेरी दोस्त है गौरा.’’

शेखर के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. हथेलियां पसीने से भीग उठीं. एक पराए पुरुष के मुंह से अपनी पत्नी के बारे में सुनना आसान नहीं था.

अनिरुद्ध कह रहा था, ‘‘बहुत ही अच्छी है, हम साथ पढ़ते थे. अचानक फेसबुक पर मिल गए.’’

‘‘अच्छा? उस की फैमिली?’’

‘‘पति है, 2 बच्चे हैं, उन में तो गौरा की जान बसती है.’’

‘‘फिर तुम्हारे साथ कैसे?’’

‘‘बस यों ही,’’ कह अनिरुद्ध ने बात बदल दी. शेखर ने भी ज्यादा नहीं पूछा था. अब अनिरुद्ध अकसर शेखर से गौरा की तारीफ करता हुआ उस की बातें करता रहता था. उस ने यह भी बताया था कि पढ़ते हुए एकदूसरे के अच्छे दोस्त थे बस. कोई प्रेमीप्रेमिका नहीं थे, और आज भी. अनिरुद्ध चला गया था पर शेखर बहुत देर तक बैंच पर बैठा बहुत कुछ सोचता रहा. फिर उदास सा घर की तरफ चल पड़ा. आज शनिवार था. छुट्टी थी. गौरा ने थोड़ी देर बाद ही उस की कमर में पीछे से हाथ डालते हुए पूछा, ‘‘कहां खोए हुए हो? जब से सैर से आए हो, चेहरा उतरा हुआ है, क्या हुआ?’’

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शेखर को आज गौरा की बांहें जैसे कांटे सी चुभीं. उस के हाथ दूर करते हुए बोला, ‘‘कुछ नहीं, बस जरा काम की टैंशन है.’’

‘‘उफ,’’ कह कर गौरा उस का कंधा थपथपा कर किचन की तरफ बढ़ गई. आजकल शेखर अजीब मनोदशा में जी रहा था. गौरा सामने आती तो उसे कुछ कह न पाता था. घर के बाहर होता तो उस का मन करता, जा कर गौरा को पीटपीट कर अधमरा कर दे… अनिरुद्ध को उस के सामने ला कर खड़ा करे. कभी सालों से समर्पित पत्नी का निष्कपट चेहरा याद आता, कभी अनिरुद्ध की बातें याद आतीं. आज उस ने सोच लिया, छुट्टी भी है,

वह अनिरुद्ध से उन दोनों के संबंध के बारे में कुछ और जान कर ही रहेगा. शेखर ने अनिरुद्ध को फोन किया, ‘‘क्या कर रहे हो? लंच पर चलते हैं.’’

‘‘पर तुम्हारी फैमिली भी तो है?’’

‘‘आज उन सब को बाहर जाना है किसी के घर, मैं वहां बोर हो जाऊंगा. चलो हम दोनों भी लंच करते हैं कहीं.’’

‘‘ठीक है, आता हूं.’’

दोनों मिले. शेखर ने खाने का और्डर दे कर इधरउधर की बातें करने के बाद पूछा, ‘‘और तुम्हारी दोस्त के क्या हाल हैं? कहां तक पहुंची है बात, दोस्ती ही है या…?’’

‘‘वह सब कहने की बात थोड़े ही है, दोस्त,’’ अनिरुद्ध मुसकराया.

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Serial Story: चाहत के वे पल- भाग 1

‘‘गौरा जब हंसती है तो मेरे चारों तरफ खुशी की लहर सी दौड़ जाती है. कैसी मासूम हंसी है उस की इस उम्र में भी. मुझे तो लगता है उस के भोले, निष्कपट से दिल की परछाईं है उस की हंसी,’’ अनिरुद्ध कह रहा था और शेखर चुपचाप सुन रहा था. अपनी पत्नी गौरा के प्रेमी के मुंह से उस की तारीफ. यह वही जानता था कि वह कितना धैर्य रख कर उस की बातें सुन रहा है. मन तो कर रहा था कि अनिरुद्ध का गला पकड़ कर पीटपीट कर उसे अधमरा कर दे, पर क्या करे यह उस से हो नहीं पा रहा था. वह तो बस गार्डन में चुपचाप बैठा अनिरुद्ध की बातें सुनने के लिए मजबूर था.

फिर अनिरुद्ध ने कहा, ‘‘अब चलें… मेरा क्या है. मैं तो अकेला हूं, तुम्हारे तो बीवीबच्चे इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘क्यों, आज गौरा मिलने नहीं आएगी?’’

‘‘आज शनिवार है. उस के पति की छुट्टी रहती है और उस के लिए पति और बच्चे पहली प्राथमिकता हैं जीवन में.’’

‘‘तो फिर तुम से क्यों मिलती है?’’

‘‘तुम नहीं समझोगे.’’

‘‘बताओ तो?’’

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‘‘फिर कभी, चलो बाय,’’ कह कर अनिरुद्ध तो चला गया, पर शेखर गुस्से में तपती अपनी कनपटियों को सहलाता रहा कि क्या करे. क्या घर जा कर गौरा को 2 थप्पड़ रसीद कर उस के इस प्रेमी की बात कर उसे जलील करे? पर क्या वह गौरा के साथ ऐसा कर सकता है? नहीं, कभी नहीं. गौरा तो उसे जीजान से प्यार करती है, उस के बिना नहीं रह सकती, फिर उस के जीवन में यह क्या और क्यों हो रहा है? यह अनिरुद्ध कहां से आ गया?

वह पिछले 3 महीनों के घटनाक्रम पर गौर करने लगा जब वह कुछ दिनों से नोट कर रहा था कि गौरा अब पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी. वह अपने प्रति बहुत सजग हो गई थी, सैर पर जाने लगी थी, ब्यूटीपार्लर जा कर नया हेयरस्टाइल, फेशियल, मैनीक्योर, पैडीक्योर सब करवाने लगी थी. पहले तो वह ये सब नहीं करती थी. अब हर तरह के आधुनिक कपड़ों में दिखती थी. सुंदर तो वह थी ही, अब बहुत स्मार्ट भी लगने लगी थी. दोनों बच्चों सिद्धि और तन्मय की देखरेख, घर के सारे काम पूरा कर अपने पर खूब ध्यान देने लगी थी. सब से बड़ी बात यह थी कि धीरगंभीर सी रहने वाली गौरा बातबात पर मुसकराती थी.

शेखर पर वह प्यार हमेशा की तरह लुटाती थी, पर कुछ तो अलग था, यह शेखर को साफसाफ दिख रहा था. अब तक गौरा ने शेखर को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. उसे कुछ भी कहना शेखर को आसान नहीं लग रहा था. वह सच्चरित्र पत्नी थी, फिर यह क्या हो रहा है? क्यों गौरा बदल रही है? इस का पता लगाना शेखर को बहुत जरूरी लग रहा था. पर कुछ पूछ कर वह उस के सामने छोटा भी नहीं लगना चाहता था. क्या करे? गौरा का ही पीछा करता हूं किसी दिन, यह सोच कर उस ने मन ही मन कई योजनाएं बना डाली थीं.

शेखर गौरा का मोबाइल चैक करना चाहता था, पर उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. घर में यह अलिखित सा नियम था, कोई किसी का फोन नहीं छूता था. यहां तक कि युवा होते बच्चों के फोन भी उन्होंने कभी नहीं छुए. पर कुछ तो करना ही था. एक दिन जैसे गौरा नहाने गई, उस ने गौरा का फोन चैक करना शुरू किया. किसी अनिरुद्ध के ढेरों मैसेज थे, जिन में से अधिकतर जवाब में गौरा ने अपने पति और बच्चों की खूब तारीफ की हुई थी. अनिरुद्ध से मिलने के प्रोग्राम थे. अनिरुद्ध? शेखर ने याद करने की कोशिश की कि कौन है अनिरुद्ध? फिर उसे सब कुछ याद आ गया.

गौरा ने एक दिन बताया था, ‘‘शेखर आज फेसबुक पर मुझे एक पुराना सहपाठी अनिरुद्ध मिला. उस ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी तो मैं हैरान रह गई. वह यहीं है बनारस में ही.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘हां शेखर, कभी मिलवाऊंगी, कभी घर पर बुला लूं?’’

‘‘फैमिली है उस की यहां?’’

‘‘नहीं, उस की फैमिली लखनऊ में है. उस की पत्नी वहां सर्विस करती है. 2 बच्चे भी वहीं हैं, वह अकेला रहता है यहां. बीचबीच में लखनऊ जाता रहता है.’’

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‘‘ठीक है, बुलाएंगे कभी,’’ शेखर ने थोड़ा रूखे स्वर में कहा, तो गौरा ने फिर कभी इस बारे में बात नहीं की थी. लेकिन दिनबदिन जब गौरा के अंदर कुछ अच्छे परिवर्तन दिखे तो वह हैरान होता चला गया. वह अभी भी पहले की ही तरह घरपरिवार के लिए समर्पित पत्नी और मां थी. फिर भी कुछ था जो शेखर को खटक रहा था. फोन चैक करने के बाद शेखर ने अब इस बात को बहुत गंभीरता से लिया. जाहिल, अनपढ़ पुरुषों की तरह इस बात पर चिल्लाचिल्ला कर शोर मचाना, गालीगलौज करना उस की सभ्य मानसिकता को गवारा न था. इस विषय में किसी से बात कर वह गौरा की छवि को खराब भी नहीं करना चाहता था. वह उस की पत्नी थी और दोनों अब भी जीजान से एकदूसरे को प्यार करते थे.

एक दिन गौरा ने जब कहा, ‘‘शेखर, मैं दोपहर में कुछ देर के लिए बाहर जा रही हूं… कुछ काम हो तो मोबाइल तो है ही.’’

शेखर को खटका हुआ, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘एक फ्रैंड से मिलने.’’

‘‘कौन?’’

‘‘रचना.’’

शेखर ने आगे कुछ नहीं पूछा था. लेकिन दोपहर में वह औफिस से उठ कर ऐसी जगह जा कर खड़ा हो गया जहां से वह गौरा को जाते देख सकता था. शेखर ने पहले बच्चों को स्कूल से आते देखा, फिर अंदाजा लगाया, अब गौरा बच्चों को खाना देगी, फिर शायद जाएगी. यही हुआ. थोड़ी देर में खूब सजसंवर कर गौरा बाहर निकली. अपनी सुंदर पत्नी को देख शेखर ने गर्व महसूस किया. फिर अचानक अनिरुद्ध के बारे में सोच कर उस के अंदर कुछ खौलने सा लगा. गौरा पैदल ही थोड़ी दूर स्थित नई बन रही एक सोसायटी की एक बिल्डिंग की तरफ बढ़ी. तीसरे फ्लैट की बालकनी में खड़े एक पुरुष ने उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया. शेखर ने दूर से उस पुरुष को देखा. चेहरा जानापहचाना लगा उसे. यह तो रोज गार्डन में सैर करने के लिए आता है.

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Serial Story: चाहत के वे पल- भाग 3

‘‘मतलब? क्या तुम शारीरिक रूप से भी…’’

अनिरुद्ध ने उस की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘चलो आज बताता हूं तुम्हें. असल में गौरा बहुत अच्छी है. वह हमेशा पहले भी अपनी मर्यादा में रहने वाली लड़की थी और आज भी वह बहुत अच्छी पत्नी और मां है. हम जब शुरू में मिले तो बातें बहुत आम सी होती रहीं. एक दिन जब गौरा मुझ से मिलने मेरे फ्लैट पर आई तो मैं ने पहली बार उस का हाथ पकड़ा. मुझे अचानक एक शेर याद आया था जो मैं ने उसे सुनाया भी था. उस का हाथ छुआ तो लगा, काश, सारी दुनिया उस के हाथ की तरह गरम और सुंदर होती. फिर मैं अपनेआप को रोक नहीं पाया था और मैं ने उसे बांहों में भर लिया. उस ने खुद पर नियंत्रण रखने की कोशिश की थी, लेकिन फिर वह सब हो गया जो होना नहीं चाहिए था. चाहत के उन पलों में उस ने खुद स्वीकार कर लिया कि उन पलों में वैसी चाहत, प्यार, सरसता उसे अपने पति के साथ अब नहीं मिलती.

उस ने बताया उस का पति है तो बहुत अच्छा इनसान पर अंतरंग पलों में उसे उस का मशीनी अंदाज उतना नहीं छूता जितना उसे मेरा स्पर्श अनोखे उत्साह से भर जाता है. उन पलों की मेरी चाहत में वह खो सी जाती है. उस का पति तो उन पलों को भी जरूरी काम समझता है. वह अंतरंग संबंधों का 1-1 पल जीना चाहती है, एक खुशनुमे माहौल में रोमांटिक समर्पण चाहती है. वह अपने पति को धोखा नहीं देना चाहती, वह अपने पति को बहुत प्यार करती है पर उस के मन के किसी कोने में बसी एक अधूरी सी कसक मेरे साथ मिटती है. कभीकभी पल भर में भी जीवन के अनंत पलों को एकसाथ जीया जा सकता है.

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गौरा उस पल यही महसूस करती है जब मेरे साथ होती है,’’ अनिरुद्ध कहे जा रहा था, खाना कब से सर्व हो कर ठंडा हो रहा था. शेखर बिलकुल सांस रोके अनिरुद्ध की बातें सुन रहा था, जो बताता जा रहा था, ‘‘गौरा जैसे एक प्यासा रेगिस्तान है और शायद उस का पति खुल कर बरसने की कला नहीं जानता. उस के जीवन में साथ रहना, सोना, खाना, पारिवारिक कार्यक्रमों में जाना सब कुछ है पर प्यार की उष्णता न जाने कहां खो गई है… अपने पति का साथ गौरा को किसी महोत्सव से कम नहीं लगता, उस का पति स्नेही भी है पर भावनाओं के प्रदर्शन में अत्यंत अनुदार वह अकसर भूल जाता है कि बच्चों और घर की अन्य जिम्मेदारियों के बीच चक्करघिन्नी सी नाचती गौरा भी प्यार चाहती है.’’ शेखर जो अब तक स्वयं को जीने की कला में पारंगत मानता था आज उसे एहसास हुआ कि उस से चूक हुई है.

‘‘आज तो मैं ने तुम्हें सब बता दिया, मेरे दिल पर भी एक बोझ सा है कि मैं भी सीमा के साथ गलत कर रहा हूं पर क्या करूं, अपने कैरियर के चलते मुझ से दूर रह कर भी उसे मेरी कमी नहीं खलती और यहां गौरा अपने पति के साथ रह कर भी चाहत भरे पल खोजती ही रह जाती है. शायद हमारे जीवन में कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है. मुझे लगता है गौरा को जब यह पता चलेगा कि मेरा ट्रांसफर कभी भी हो सकता है तो वह बहुत दुखी होगी.’’

शेखर चौंका, ‘‘क्या? तुम्हारा ट्रांसफर?’’

‘‘हां, कोशिश कर रहा हूं, सीमा तो आएगी नहीं, बच्चे भी तो हैं. मुझे ही जाने की कोशिश करनी पड़ेगी. घरगृहस्थी सिर्फ सीमा की जिम्मेदारी तो नहीं है न.’’ सामने बैठा व्यक्ति शेखर को अचानक अपने से ज्यादा समझदार लगा. बिल शेखर ने

ही दिया. फिर दोनों अपनेअपने घर लौट आए. शेखर घर आया, बच्चे नहीं दिखे तो पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं?’’

‘‘एक बर्थडे पार्टी में गए हैं.’’

‘‘तो इस का मतलब हम दोनों अकेले हैं घर में.’’

गौरा ने ‘हां’ में सिर हिलाया. रास्ते भर शेखर को गुस्सा तो बहुत आ रहा था गौरा पर, नफरत भी हो रही थी पर गौरा को देखते ही वह उस से नाराज नहीं हो पाया. उस ने गौरा को बांहों में उठा लिया. गौरा हैरान हुई, फिर उस के गले में बांहें डाल दीं. शेखर खुद पर हैरान था. वह कैसे यह सब कर रहा है. उस ने गौरा पर प्यार की बरसात कर दी. गौरा हैरान सी मुसकराते हुए उस बरसात में नहाती रही. शेखर ने खुद नोट किया, सचमुच सालों हो गए थे गौरा के साथ ऐसा समय बिताए, सालों से वह मशीन बन कर ही तो करता है सारे काम. गौरा के चेहरे पर फैला संतोष और सुख पता नहीं क्याक्या समझा गया शेखर को.

बहुत देर तक शेखर ने गौरा को अपनी बांहों से आजाद नहीं किया तो गौरा हंस पड़ी, ‘‘आप को क्या हो गया आज?’’

‘‘क्यों, अच्छा नहीं लगा?’’

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‘‘मैं तो इन पलों को ढूंढ़ती ही रह जाती हूं, मुझे क्यों नहीं अच्छा लगेगा?’’ शेखर के कानों में अनिरुद्ध की आवाज गूंज गई. वह बहुत देर तक गौरा से बातें करता रहा, बहुत समय बाद दोनों ने बहुत ही अच्छा समय साथ बिताया. बच्चे आ गए तो दोनों उन से बातें करने में व्यस्त हो गए.

अगले 2 दिन शेखर अनिरुद्ध से कोई बात नहीं कर पाया. सैर पर भी नहीं जा पाया. वह बहुत व्यस्त था. तीसरे दिन सैर करते समय अनिरुद्ध मिला तो उस ने बताया, ‘‘मेरा ट्रांसफर हो गया है. मैं अगले हफ्ते चला जाऊंगा.’’

शेखर चौंका, ‘‘तुम्हारी दोस्त? उसे पता है?’’

‘‘नहीं, आज शाम को फोन पर बताऊंगा.’’

‘‘क्यों? वह आई नहीं मिलने?’’

‘‘नहीं, उस के बच्चों की परीक्षाएं हैं. वह व्यस्त है.’’

‘‘तो क्या उस से मिले बिना ही चले जाओगे?’’

‘‘शायद.’’

शेखर जब शाम को औफिस से आया तो उस ने गौरा का चेहरा पढ़ने की कोशिश की. क्या वह जानती है अनिरुद्ध जा रहा है, क्या वह उदास है? उसे कुछ अंदाजा नहीं हुआ. गौरा बच्चों को पढ़ा रही थी. शेखर फ्रैश हो कर आया तो बच्चों से कहने लगी, ‘‘अब तुम दोनों पढ़ो, मैं पापा के लिए चाय बनाती हूं.’’ बच्चे ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चले गए. शेखर ने चाय पीते हुए थोड़ीबहुत इधरउधर की बातें करने के बाद कहा, ‘‘अरे, वह जो तुम्हारा दोस्त था, क्या नाम है उस का?’’

‘‘अनिरुद्ध.’’

‘‘हां, क्या हाल हैं उस के?’’

‘‘ठीक है, उस का ट्रांसफर हो गया है, वह जा रहा है.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘हां, 2 दिन बाद,’’ शेखर को गौरा के चेहरे पर विषाद की एक रेखा भी नहीं दिखी, वह हैरान हुआ जब गौरा ने मुसकराते हुए आगे बात की, ‘‘और बताओ, दिन कैसा रहा?’’

‘‘ठीक रहा. तो वह जा रहा है?’’

‘‘तो उसे तो जाना ही था न. उस का परिवार है वहां. चलो, अब आप टीवी देखो, मैं जल्दी से खाने की तैयारी कर बच्चों की पढ़ाई देखती हूं,’’ कहते हुए गौरा उस के बाल छेड़ती मुसकरा दी. शेखर समझ ही नहीं पाया कि वह अनिरुद्ध के जाने पर खुल कर चैन की सांस ले, ठहाका लगाए या गौरा को सीने से लगा ले. पलभर की देर किए बिना शेखर ने उठ कर जाती गौरा को पीछे से बांहों में भर लिया.

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Valentine Special: यह रिश्ता नहीं हो सकता

Serial Story: यह रिश्ता नहीं हो सकता- भाग 2

कैथ को अपनी बेटी की कोई चिंता न रहती थी. एक दिन जब कैथ सारी रात बाहर काट कर जब घर आई तब पौ फटने को था. सैम ने डांटते हुए कहा, ‘‘अब आने की क्या जरूरत थी? दोचार दिन और मौज कर के आती.’’

कैथ ने भी गुस्से में कहा, ‘‘डौंट ट्राई टु बी लाइक रयूड इंडियन हस्बैंड. मेरे बाप का घर है, मैं ने तुम्हें पनाह दी है तभी तुम यहां रहते हो. मैं अपनी मरजी से आतीजाती रहूंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम्हारा घर तुम्हें मुबारक. पर अगर तुम्हें मेरी वाइफ बन कर रहना है तो तुम्हें अपना ऐटीट्यूड और बिहेवियर चेंज करना होगा वरना तुम्हारे लिए मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है.’’

‘‘अगर रोजरोज मुझे तुम रोकतेटोकते रहोगे तो तुम्हारे लिए भी इस घर में कोई जगह नहीं है. यू कैन गो.’’

‘‘मैं तो खुशीखुशी चला जाऊंगा पर लोलिता का क्या होगा?’’

‘‘यह तो अच्छा है कि लोलिता का रूप भले तुम से मिलता हो रंग से वह अमेरिकन दिखती है तुम्हारे जैसी एशियन नहीं वरना उसे कोई अमेरिकन लड़का मिलना संभव न होता. उस का जो भी होगा अच्छा होगा.’’

अगले ही दिन सैम 3 बड़े बक्सों में अपने कपड़े और जरूरी सामान ले कर कंपनी के गैस्ट हाउस में चला गया. 2 सप्ताह बाद वह एक अपार्टमैंट में चला गया. वहां उसे कैथ के वकील के द्वारा तलाक का नोटिस मिला. सैम ने अपनी बेटी को सारी कहानी बता दी.

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सैम और कैथ दोनों वकील के यहां बैठे थे. वकील ने कहा, ‘‘कैथ ने असमाधेय मतभेदों के चलते आप से तलाक की मांग की है. इस विषय में आप का क्या कहना है?’’

‘‘कैथ ने सही कहा है,’’ सैम बोला.

‘‘बेहतर है आप लोग संपत्ति का बंटवारा कोर्ट से बाहर आपसी सहमति से कर लें वरना बहुत टाइम लगेगा.’’

कैथ ने वकील से कहा, ‘‘यह बंगला मेरे डैड ने मेरी शादी के पहले ही मेरे नाम कर दिया था. उस पर सैम का कोई हक नहीं है.’’

सैम ने कहा, ‘‘अपना घर भी मैं ने शादी के पहले ही खरीदा था, उस पर भी कैथ का कोई हक नहीं होगा. उस की ईएमआई भी अकेले मैं ही देता आया हूं. फिलहाल उसे रेंट पर दे रखा है.’’

वकील बोला, ‘‘यह तो अच्छी बात है. बाकी चीजों का भी फैसला कर लें जैसे कोई लोन वगैरह.’’

सैम और कैथ ने तय किया कि दोनों के बैंक बैलेंस अपनेअपने पास रहेंगे. कुछ फर्नीचर सैम ने अपने कार्ड से लिया था. उसे वह अपने फ्लैट में ले जाएगा.

वकील ने कहा, ‘‘आप की बेटी अब वयस्क हो चुकी है. कोर्ट के सामने उसे बोलना होगा कि वह किस के साथ रहना चाहती है.’’

लोलिता ने कोर्ट में अपने पिता के साथ रहने की इच्छा जाहिर की और कहा कानूनन कैथ का उस पर कोई अधिकार नहीं होगा. बिना लोलिता की मरजी के कैथ उस से नहीं मिल सकती है. जल्द ही दोनों का तलाक हो गया.

कैथ के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. वह अपनी मरजी से अपने लाइफस्टाइल में जी रही थी. सैम ने अपना ट्रांसफर टेक्सास के औस्टिन शहर में करा लिया. उस ने कैलिफोर्निया का घर बेच दिया. कैलिफोर्निया में घर की कीमत बहुत ज्यादा होती है. जितना पैसा उसे मिला उतने में वह औस्टिन में 2 बड़े घर आराम से खरीद सकता था. पर उस ने 3 कमरे का एक घर खरीदा. लोलिता का ऐडमिशन टैक्सास के ह्यूस्टन शहर के राइस यूनिवर्सिटी में हुआ. ह्यूस्टन से औस्टिन मात्र ढाई घंटे में पहुंचा जा सकता था, इसलिए सैम और लोलिता का अकसर मिलना भी हो जाता था. कैथ 4-5 महीने में एक बार लोलिता से मिलने आती कुछ देर साथ रह कर रात को कैलिफोर्निया लौट जाती.

इधर कैथ अब बिलकुल आजाद थी. उस ने कंपनी का काम छोड़ कर घर से ही

अपना कुछ बिजनैस शुरू किया. अब वह रोज पीने लगी थी. वह करीब 45 साल की हो चुकी थी. एक दिन नशे की हालत में वह एक युवक से टकरा गई तब उस युवक का फोन सड़क पर गिर कर टूट गया. कैथ के सौरी बोलने पर उस ने फोन उठाते हुए कहा, ‘‘एक तो पहले से ही मुसीबत में हूं और इसे भी आज ही टूटना था.’’

कैथ ने टूटा हुआ फोन अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘आई एम वैरी सौरी. इसे मैं ठीक करा दूंगी तब तक तुम मेरा फोन रख लो. मेरा कार्ड रख लो और मेरे फोन का इंतजार करना. तुम अपना नाम तो बताओ?’’

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‘‘राजन,’’ बस इतना ही कहा. उस युवक ने कैथ का संदेश मिलने पर राजन एक होटल पहुंचा. वह एक फाइवस्टार होटल था. कैथ ने उसे वहां डिनर कराया और उस के बारे में कुछ जानकारी ली. राजन ने उसे बताया कि वह भारत से एमएस करने आया है. उसे स्कौलरशिप नहीं मिली है पर उसे उम्मीद है कि कोई पार्ट टाइम जौब कर वह पढ़ाई का खर्च निकाल लेगा. पर अभी तक उसे कोई जौब नहीं मिली है.

राजन की कहानी सुन कैथ बोली, ‘‘जितना समय तुम जौब में दोगे उस से कम समय भी अगर तुम मुझे दो तो तुम्हारे सारे खर्च का इंतजाम हो जाएगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम देखते जाना.’’

चलते समय कैथ ने उसे लेटेस्ट मौडल का आई फोन देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा फोन रिपेयर करना बेकार है और उस से कम खर्च में नया फोन मिलता है… यहां लेबर बहुत कौस्टली है.’’

राजन को लेने में संकोच हो रहा था. तब वह बोली, ‘‘रख लो, मेरी तरफ से गिफ्ट समझो और तुम कब मुझे समय दे सकते हो?’’

‘‘वीकैंड में ही संभव होगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम. मेरे फोन का वेट करना.’’

एक शनिवार कैथ ने राजन को फोन कर एक स्टोर के पास बुलाया. कैथ वहां कार ले कर उस का इंतजार कर रही थी. राजन को बैठने को कहा और उसे ले कर एक प्राइवेट रिजोर्ट में गई. वहां जा कर पूछा, ‘‘तुम कितना वक्त दे सकते हो मुझे?’’

‘‘मैं समझा नहीं?’’

‘‘इस में समझने की कोई बात ही नहीं है. तुम 2 दिन फ्री हो. तुम चाहो तो सोमवार सुबह तक हम दोनों यहां रुक सकते हैं. अगर जल्दी लौटना चाहो तो पहले लौट चलेंगे. मेरे साथ कोई औपचारिकता नहीं, मुझ से फ्रीली बोल सकते हो और जो जी चाहे कर सकते हो,’’ यह सुन कर राजन उसे आश्चर्य से देखने लगा.

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