जरूरी है प्रीमैरिज काउंसलिंग

राघव एक दवा बनाने वाली कंपनी में काम करता है. जब उस का रिश्ता तय हुआ तो उसे लगा कि उस ने गलती से ‘हां’ कर दी है. बारबार उसे यह बात कचोटने लगी कि लड़की की शक्ल ठीक नहीं है. राघव का जीजा उस का घनिष्ठ मित्र था और उस पर उसे पूरा भरोसा भी था. जब वह लड़की देखने गया तो किसी कारण से जीजा आ नहीं सका था. सब के कहने पर उस ने हां कर दी पर अब वह तय नहीं कर पा रहा था.

राघव को जब एक काउंसलर के पास लाया गया तो उस ने अपने दिल की बात उस से की कि लड़की सुंदर नहीं है और वह अगर उस से शादी करेगा तो सारी जिंदगी उसे खुश नहीं रख पाएगा. आखिरकार रिश्ता तोड़ दिया गया और विवाह से पहले सलाह लेने से 2 जिंदगियां बरबाद होने से बच गईं.

पश्चिमी देशों की तरह भारत में भी तलाक का ग्राफ निरंतर बढ़ता जा रहा है. इस की मुख्य वजह है नई पीढ़ी की अपनी एक सोच होना, जो उन्हें अपने ढंग से जीने के लिए उकसाती है. अपनी इच्छाओं को दबाती नहीं है बल्कि अपने हक की लड़ाई लड़ती है. इसलिए उम्मीदें पूरी न होने पर बात तलाक तक पहुंच जाती है.

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तलाक की सब से बड़ी वजह है पतिपत्नी के बीच शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक असंगति होना. इस के नतीजतन देखा गया कि 90 प्रतिशत युगल अवसाद का शिकार हो जाते हैं.

असल में प्यार करना, रिश्तों में बंधना आसान है पर उन्हें निभाना मुश्किल है. विवाह से पहले क्या कोई बताता है कि किस तरह से भावनात्मक रूप से सुदृढ़ और शारीरिक रूप से संतुष्ट रिश्ता कायम किया जाए. शायद नहीं, क्योंकि अभी भी हमारे देश में मातापिता या भाईबहन खुल कर विवाह से जुडे़ मसलों पर बात नहीं करते हैं.

प्रीमैरिज काउंसलिंग का उद्देश्य होता है युवा पीढ़ी को विवाह के बंधन की पूरी जानकारी देना ताकि युवकयुवती एकदूसरे के प्रति सम्मान रखते हुए एक स्नेहपूर्ण व मर्यादित रिश्ता जी सकें. स्वस्थ यौन संबंधों की जानकारी वैवाहिक जीवन को सुखद बनाने के लिए बहुत जरूरी है. अन्य विकासशील देशों की तरह भारत में यौन शिक्षा की जानकारी अभी भी स्कूलकालिज में नहीं दी जाती है इसलिए पतिपत्नी को एकदूसरे की जरूरतों को समझने और सही तरह से संबंध कायम करने के लिए प्रीमैरिज काउंसलिंग आवश्यक है.

अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. संदीप वोहरा का कहना है, ‘‘प्रीमैरिज काउंसलिंग की यह अवधारणा पूरी तरह से पश्चिमी है. भारत में करीब 5 साल पहले इसे मान्यता मिली है और अभी भी यह अपनी प्रारंभिक अवस्था में है. आज की पीढ़ी कैरियर पर ज्यादा ध्यान देती है और चाहती है कि उन के प्रोफेशन के सामने कोई अवरोध न आए. वे मानसिक रूप से सशक्त नहीं हैं इसलिए चाहे वह व्यक्तिगत संबंध हो या प्रोफेशनल, उन्हें समझने के लिए उन के पास न तो समय है न ही कोई दिशा. वे सब से पहले अपने होने वाले जीवनसाथी की शक्ल देखते हैं, आकर्षण को महत्त्वपूर्ण मानते हैं. हम उन्हें समझाते हैं कि यह गौण चीज है और जरूरी है हर स्तर पर संगति होना.’’

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मनोवैज्ञानिक और काउंसलर हेमा गुप्ता का कहना है, ‘‘हमारे जीवन के 2 मुख्य पहलू काम और परिवार वाटर टाइट कंपार्टमेंट नहीं हैं, वे एकदूसरे से संबंधित हैं. विवाह से पहले इन दोनों विषयों पर स्पष्ट रूप से बात करना जरूरी है क्योंकि लड़के के लिए आज उस का काम जितना आवश्यक है उतना ही लड़की के लिए भी है. अगर इस स्तर पर वे सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं तो मतभेद होना स्वाभाविक ही है.

‘‘आज से 20-25 साल पहले तक मातापिता बच्चों से पूछते तक नहीं थे कि वे क्या चाहते हैं क्योंकि माना जाता था कि विवाह एक समझौते का नाम है पर अब विवाह का अर्थ है दोनों का समान रूप से विकास. विवाह 100 प्रतिशत सामंजस्य का नाम है पर उस का अर्थ है एकदूसरे को जैसे वे हैं उसी रूप में स्वीकारना. अकसर जब काउंसलिंग के लिए लड़कालड़की आते हैं तो एक ही सवाल उन्हें परेशान करता है कि उन्हें कैसे पता चले कि सामने वाला उन के लिए कैसा है? वे साथी के बारे में भी विस्तार से जानने को इच्छुक होते हैं.’’

आज जब लड़कालड़की दोनों ही अपनी स्वतंत्र सोच रखते हैं और आत्मनिर्भर रहते हुए आत्मसम्मान के साथ जीवन बिताना चाहते हैं, ऐसे में प्रीमैरिज काउंसलिंग बहुत ही प्रभावी जरिया है.

प्रीमैरिज काउंसलिंग के दौरान घरपरिवार, नौकरी, उत्तरदायित्व और समझौतों पर तो बात होती ही है, सेक्स संबंधी समस्याओं को ले कर भी लड़कालड़की में अनेक सवाल होते हैं. अपोलो अस्पताल की वरिष्ठ स्त्रीरोग विशेषज्ञ डा. गीता चड्ढा का कहना है, ‘‘अगर लड़की वर्जिन होती है तो उसे हम सेक्स की जानकारी देते हैं कि किस तरह पतिपत्नी को शारीरिक रिश्ता कायम करना चाहिए. विवाह के बाद भी ऐसे युगल आते हैं जो कहते हैं कि वे महीनों बीत जाने पर भी शारीरिक संबंध स्थापित नहीं कर पाए हैं. जिन लड़कियों का हाइमन किसी वजह से फट गया है, उस मामले में हम लड़के को समझाते हैं कि ऐसा खेलकूद के दौरान हो जाता है और आवश्यक नहीं कि प्रथम सहवास के दौरान लड़की को रक्तस्राव हो. जो युगल विवाह होते ही संतान नहीं चाहते हैं उन्हें हम विभिन्न गर्भनिरोधकों की जानकारी देते हैं. विवाह से पहले ही लड़की को गर्भनिरोधक पिल्स देना शुरू कर देते हैं ताकि विवाह के बाद वह तनावग्रस्त न रहे.

‘‘कई लड़कियां जो 30 वर्ष से अधिक की होती हैं, वे चाहती हैं कि संतान जल्दी हो जाए तो हम जांच करते हैं कि वे स्वस्थ हैं कि नहीं और विवाह के तुरंत बाद गर्भवती होना ठीक रहेगा या नहीं.

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विवाह से पूर्व यौनसंबंधों के बारे में स्वस्थ जानकारी होना नितांत आवश्यक है क्योंकि यह ऐसा संवेदनशील विषय है जिसे ले कर लड़कालड़की दोनों के मन में एक घबराहट रहती है.’’

वास्तविकता तो यह है कि बेशक प्रीमैरिज काउंसलिंग की अवधारणा पाश्चात्य सभ्यता की देन है पर हर समाज में इस की जरूरत है. खासकर भारत जैसे देश में जहां अभी भी विवाह को ले कर मांबाप और लड़केलड़कियों के मन में पूर्वाग्रह हैं. इस के द्वारा वह विवाह से पहले ही साथी की कमियों, खूबियों और उम्मीदों को समझ विवाह के बाद रिश्ते को बेहतर बना सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वह जान जाते हैं कि उन्हें विवाह के बाद किस स्तर पर और कितना सामंजस्य करना होगा.

क्या आपको पता है महिलाओं के ये 12 सीक्रेट

महिलाओं की जिंदगी में कुछ ऐसी बातें होती हैं, जिसे वह किसी शेयर नही करतीं. साथ ही बहुत सी ऐसी बातें है जिसकी चाहत हर महिला को होती है लेकिन वो स्‍वयं इन्हें अपनी जुबां से कभी नहीं कहती, लेकिन कभी-कभी आपके काम ऐसी बातें लड़कों के काफी काम आ सकती हैं. जैसे उनका प्रेमी उनके नखरे उठाएं, उनके आगे-पीछे घूमें, उन्हें महत्‍वपूर्ण समझें, उनकी हर बात मानें.

1. महिलाओं के सीक्रेट

महिलाओं का स्‍वभाव बहुत शार्मिला होता है. इसलिए उनके दिल की बात को जुबां तक आने में काफी समय लगता हैं. लेकिन बहुत सी बातें ऐसी है जो हर महिला चाहती हैं. जैसे अपने प्रेमी से प्‍यार और देखभाल की उम्‍मीद, साथ ही यह भी की उनका प्रेमी उनके नखरे उठाएं, उनके आगे-पीछे घूमें, उन्हें महत्‍वपूर्ण समझें, उनकी हर बात मानें. आइये इसके अलावा महिलाओं की सीक्रेट के बारे में जानें.

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2. अपनी तारीफ सुनना

महिलाओं को हमेशा उनकी तारीफ करने वाले पुरुष बहुत अच्‍छे लगते हैं. ऐसे में उन्‍हें बहुत अच्‍छा लगता है जब प्रेमी उनमें किसी भी तरह का बदलाव दिखने पर तुरंत उनकी प्रशंसा करें. जैसे अगर महिला फिट दिखें, कोई नया हेयरकट करवाया हो या आकर्षक लगें, तो उनकी तारीफ जरुर करें.

3. ध्यान रखने वाला पुरुष

महिलाओं को केयर करने वाले पुरुष बहुत पसंद होते है. महिलाएं संवेदनशील होती है इसलिए उन्‍हें ऐसे ही पुरुष बहुत अच्‍छे लगते है. जो परेशानी के समय उनकी अच्‍छे से देखभाल कर सकें.

4. कपड़ों से प्रभावित होना

ज्‍यादातर महिलाएं पुरूषों को उनके पहनावे से भी पसंद करती है. इसलिए पुरुषों को चाहिए कि वह महिलाओं को अपने कपड़ों से प्रभावित करने की कोशिश करें. पुरुषों को हमेशा अपने सौंदर्य और कपडों पर ध्यान देना चाहिए. अगर, महिलाएं आपको टाइट जींस में देखना पसंद करती है, तो उनके लिए ज्यादातर टाइट जींस पहनें.

5. पुराने संबंधों के बारे में जानना

अगर महिलाएं आप से आपके पुराने संबंधों के बारे में बात करना चाहे, तो इसका अर्थ यह नहीं कि आपने कुछ गलत किया है. अपने संबंधों के बारे में बात करने से ना डरें. यह तो आप दोनों के लिए अच्छी बात है, क्‍योंकि सच्चाई और लंबी बातचीत आप लोगों को एक दूसरे के करीब ला सकती है.

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6. सुझावों को थोपें नहीं

अकसर पुरुष महिलाओं की समस्‍या सुने बिना अपने सुझावों को उनपर थोपने लगते हैं. पुरुष, अपने राय को उन पर थोप कर उनकी दुनिया को सीमित कर देते हैं. इसलिए अगर वह किसी बात से परेशान है, तो उन्हें सलाह देने से पहले उनकी बात को अच्‍छे से सुनें.

7. रिश्‍ते में रोमांस

महिलाएं अपने रिश्‍ते की कद्र करने के साथ रिश्‍ते में रोमांस को निरंतर बनाये रखना चाहती हैं. इसलिए यह जरूरी है कि आपका रिश्‍ता चाहे वह 5 म‍हीने से हो या 5 सालों से उसमें रोमांस को हमेशा बनाये रखें.

8. कमियों को जानना

महिलाओं को प्रशंसा करने वाले पुरुषों के साथ-साथ कमियां बताने वाले पुरुष भी पसंद होते हैं. जैसे, अगर महिला लंबे समय तक काम करने के बाद काफी थक गई हैं और चिडचिडापन महसूस कर रहीं हैं तो उस समय उनकी कमी को बताने वाले पुरुष पसंद आते हैं.

9. बातों को ध्‍यान से सुनना

महिलाएं अकसर यह जानने की कोशिश करती हैं कि उनकी बातों को आप कितनी ध्‍यान से सुनते हो और कैसे प्रतिक्रिया देते हैं. इसलिये महिलाओं से बात करते समय केवल सर हिलाना काफी नहीं है उनकी बात को महत्वपूर्ण ढंग से सुने.

10. सेक्स में उनकी चाहत

महिला अकसर सेक्‍स के बारे में बात करना और अपने साथी को खुश करना चाहती हैं. इसलिए आप भी सेक्‍स के दौरान वह करें जो महिला साथी चाहती है. इसके लिए विनम्र दृष्टिकोण अक्सर सबसे अच्छा होता है. पहले, यह पूछे कि वह क्या चाहती है. फिर अपनी इच्छा को सकारात्मक और सही तरीके से उनके सामने व्यक्त करें.

11. शिष्टता का व्‍यवहार

जब रोमांस की बात आती है तो बहुत सारी महिलाएं पुरुषों की पारंपरिक मर्दाना भूमिका ही पसंद करती है. जैसे लड़की बैठने के लिये खुद ही कुर्सी खीच सकती हो, लेकिन वह आपका इंतजार करती है कि आप उसको कुर्सी खींच कर दें. तो समय आ गया है कि आप उसकी नजरों में सज्जन पुरुष बन जाएं.

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12. आपकी शर्ट उनके लिए प्यार का चुंबक

क्‍या आपकी महिला साथी आपके स्‍वेटर में सिकुड़ने या शर्ट में घुसने का प्रयास करती हैं. कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, महिलाओं को पुरुष के पसीने की गंध से आरामदायक प्रभाव पड़ता है. क्‍या आप महिलाओं के इस सीक्रेट के बारे में जानते हैं.

पति और परिवार से पहले खुद से करें प्यार

‘योर बैस्ट ईयर एट’ की लेखिका जिन्नी डिटजलर कहती हैं कि अगर आप चाहते हैं कि आप का प्रत्येक वर्ष विशेष व अच्छा हो, तो अपने आप से प्रेम करने एवं आनंद प्राप्ति हेतु सब से पहले अपने प्रति दयावान बनो. जब तक आप चिंतामुक्त रहने का तरीका नहीं सीखोगे तब तक अपने आप को खुश नहीं रख सकते और दूसरों के साथ उदार व्यवहार नहीं कर सकते. इसलिए स्वयं से प्रेम करो और स्वयं को असंतोष और पछतावे से मुक्त रखो.

अपने आप को स्वीकार करो

जब आप स्वयं से बिना शर्त प्रेम करते हो, तो यह गुण आप की औरों से प्रेम करने की योग्यता में वृद्धि करता है. योग गुरु गुरमुख और खालसा कहती हैं कि स्वयं से प्रेम करना सांस लेने की भांति है. जबकि आमतौर पर होता यह है कि हम स्वयं से और अपने सपनों से अलग हो जाते हैं, इसलिए दुखी रहते हैं. जिन्नी कुछ व्यावहारिक तरीके स्वयं से जुड़ने के लिए बताती हैं, जो हैं अच्छा खाना, ध्यान, नए चलन के कपड़े पहनना, दान देने की कला और जीवन के उद्देश्य प्राप्त करना इत्यादि.

100 दिन के नियम

मोनिका जांडस, जिन्होंने ‘स्वयं से प्रेम करें’ नाम से प्रचार अभियान चलाया है, कहती हैं कि स्वयं को प्रेम भरा आलिंगन दो. स्वयं से प्रेम करोगे तो आजीवन प्रेम मिलेगा. जब मैं ने प्रचार शुरू किया तो मैं लोगों से चाहती थी कि वे स्वयं को 100 दिन 100 तरीकों से प्रेम करें. मैं चाहती थी लोग स्वयं की देखभाल करें. जीवन के प्रति लगाव रखें और अपनी भावनाओं को व्यक्त करें. आप विभिन्न चीजों को विभिन्न तरीकों से प्रतिदिन व्यवहार में लाने से स्वयं से प्रेम करना शुरू कर सकते हो. साथ ही अपना जीवन उद्देश्य तय कर के अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हो.

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पूर्वाग्रह को न कहो

पूर्वाग्रह का कभी पुलिंदा न बांधो. जहां भी संभव हो क्षमादाता बनो. माइकल डिओली, जो ‘आप के लिए उत्तम संभावनाएं’ के लेखक भी हैं, कहते हैं कि जीवन में सुगम यात्रा के लिए व्यक्ति को पूर्वाग्रहों के अतिरिक्त भार से समयानुसार मुक्त हो जाना चाहिए. केवल जरूरत पड़ने पर ही व्यक्ति को एक स्थान पर रुकना चाहिए. आप का द्वेष, आप का नकारात्मक आचरण, आप की सनक, द्वंद्व, क्रोध और आप की उदारता की कमी, आप को अच्छे संबंध बनाने से रोकती है.

अनीता मोरजानी, जो नैतिक उत्थान परामर्शदाता एवं लेखिका भी हैं, कहती हैं कि वास्तव में स्वयं के शत्रु हम स्वयं हैं और स्वयं के कठोर आलोचक भी. यदि औरों के प्रति भी हम इसी तरह का रवैया रखते हैं, तो हम हर व्यक्ति का आकलन एक ही दृष्टिकोण से करते हैं. हमें अपने जीवन के प्रत्येक पहलू को स्वीकार करना चाहिए, चाहे वह अच्छा हो या बुरा.

दूसरों के अधीन न बनो

सामान्य जीवन जीते हुए भी अगर मौका मिले तो पूर्ण आनंद लेने से खुद को मत रोको. मनोवैज्ञानिक रोहित जुनेजा, जो ‘दिल से जियो’ के लेखक भी हैं, कहते हैं कि हम स्वयं के सुख और विवाद के मुख्य स्रोत हैं. हम सभी मानव हैं और गलती करना मानवीय प्रवत्ति है. श्रेष्ठता के लिए दूसरों के अधीन न बनो और स्वयं के बारे में गलत राय भी न बनाओ. जरूरतमंद व्यक्तित्व प्रभावशाली नहीं होता. जीवन के उतारचढ़ाव के कारण स्वयं को जीवन के आनंदमयी क्षणों का आनंद लेने से वंचित न रखो.

स्वयं से प्रेम कैसे मुमकिन

स्वयं से प्रेम करने के लिए दिन में कम से कम 5 मिनट ध्यान करो जो रक्तचाप को कम कर जठराग्नि प्रणाली मजबूत करता है और साथ ही जीवन को प्रभावशाली तरीके से जीने योग्य बनाता है. ध्यान आप की स्मरण शक्ति में भी वृद्धि करता है, दुखों से लड़ना सिखाता है और आप के आवेश को रोकता है. तब आप स्वयं को प्रेम करने लगते हैं क्योंकि ध्यान आप की मानसिकता और स्वास्थ्य में वृद्धि करता है. यह खुशी प्रदान करने वाले हारमोंस का भी संचार करता है.

पारिवारिक समस्याएं

आप के निरंतर याद दिलाने और टोकने पर भी अगर आप का जीवनसाथी, घर के बिल, चाबी और घर के अन्य जरूरी सामान सही जगह पर नहीं रखता है, तो समस्या है कि खत्म ही नहीं होती और आप की परेशानी का कारण भी बन जाती है.

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ऐसा कछ होने पर परेशानी में उलझे रहने के बजाय यह सोचो कि आप ने जिस व्यक्ति से विवाह अपना सुखदुख साझा करनेके लिए किया है, उस के साथ आप को असमानता का साझा भी करना है. आप अपनी चिंता को सहज रूप से जीवनसाथी के समक्ष रखो और घर की व्यवस्था एवं निजी जरूरतों के बारे में भी बात करो.

इसी प्रकार कई बार थकावट के कारण कुछ पुरुष संभोग के इच्छुक नहीं होते, जिस के कारण संबंध बनाते समय उन में गर्मजोशी की कमी रहती है. ऐसे में उन की इच्छा के विरुद्ध अगर उन की जीवनसंगिनी उन से यौन संबंध बनाती है तो वे असहज महसूस करते हैं. जिस से जीवनसंगिनी असंतुष्ट रह जाती है.

इस संबंध में यौन विशेषज्ञों का कहना है कि हर 3 में से 1 युगल तब यौन संतुष्टि न होने की समस्या का सामना करता है जब एक साथी इच्छुक होता है और दूसरा इच्छुक नहीं होता. कई बार ऐसी दुशवारियों के कारण आप के दांपत्य जीवन की डोर टूटने की कगार पर आ जाती है. संभोग आप के लिए मात्र औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है. यदि आप का साथी संभोग हेतु इच्छुक नहीं है तो यौन इच्छा जाग्रत करने के कई कई उपाय हैं. आप उसे गुदगुदाएं तथा प्रेम भरी व कामुक वार्त्ता करें. इस से आप के साथी की यौन इच्छा जाग्रत होगी और वह यौन क्रिया हेतु तत्पर हो कर आप से सहयोग करने लगेगा. इस से आप दोनों ही यौन संतुष्टि पा सकोगे.

कामकाजी समस्याएं

औफिस से घर लौटने पर आजकल कई पुरुष लैपटौप या डिनर टेबल पर काम से संबंधित फोनकाल में व्यस्त रहते हैं, जो उन की जीवनसंगिनी की नाराजगी का कारण बनता है क्योंकि पूरे दिन के बाद यह समय आपसी बातचीत का होता है.

जब आप का जीवनसाथी लैपटौप या फोनकाल में व्यस्त हो, तो उसी समय समस्या पर तर्कवितर्क करने के बजाय मुद्दे को सही समय पर उठाएं और उसे प्रेमपूर्वक बताएं कि हम दोनों को साथ समय बिताने की सख्त आवश्यकता है. इस में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए. यदि आप को रोज समय नहीं मिलता तो हफ्ते का एक दिन भी सिर्फ मेरे लिए रखो.

जीवन को रसीला बनाए रखने हेतु चुंबन की सार्थकता से इनकार नहीं किया जा सकता. इस संबंध में किए गए सर्वे का निष्कर्ष यह है कि नौकरी, बच्चे, आदत और पारिवारिक उत्तरदायित्व के कारण विवाहित युगल दिन में केवल 4 मिनट साथ होते हैं. वह वक्त वे चुंबन या प्रेमवार्त्ता को देते हैं तो दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहती है.

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एक आम युगल साल में 58 बार संभोग करता है यानी औसतन सप्ताह में एक बार. इसलिए सिर्फ सैक्स नहीं मित्रता, हासपरिहास, उदारता, क्षमापूर्ण स्वभाव व संभोग से बढ़ कर दंपती के बीच आपसी विश्वास सुखद  वैवाहिक जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है. इस के साथ ही जो व्यक्ति अपनी जीवनसंगिनी का सुबह के समय चुंबन लेते हैं, वे चुंबन न लेने वालों की तुलना में 5 वर्ष दीर्घ आयु वाले होते हैं. इसलिए चुंबन व प्रेमवार्त्ता हेतु समय अवश्य निकालें.

क्या मां बनने के बाद लग जाता है करियर पर ब्रेक?

प्रोफैशनल वर्ल्ड में महिलाओं के लिए गर्भावस्था चुनौतीपूर्ण समय होता है. सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि इस समय उन के सामने मानसिक तौर पर भी बहुत सारी चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं. गर्भावस्था में पेश आने वाली चुनौतियों में से एक नौकरी के स्तर पर महसूस होने वाली चुनौती भी है. इस संदर्भ में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान ज्यादातर महिलाओं को नौकरी से निकाले जाने का डर लगा रहता है.

अधिकतर कामकाजी महिलाओं को ऐसा लगता है कि गर्भवती होने से उन की नौकरी को खतरा हो सकता है. उन्हें नौकरी से निकाल दिया जा सकता है जबकि पिता बनने वाले पुरुषों को अकसर नौकरी या कार्यस्थल पर बढ़ावा मिलता है.

क्या कहता है शोध

अमेरिका की फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध से जुड़े इस निष्कर्ष को ऐप्लाइड मनोविज्ञान के जर्नल में प्रकाशित किया गया. इस में इस बात की पुष्टि की गई है कि मां बनने वाली औरतों को ऐसा महसूस होता है कि गर्भ के दौरान व बाद में कार्यस्थल पर उन का ठीक से स्वागत नहीं किया जाएगा.

अध्ययन में पाया गया कि जब कामकाजी महिलाओं ने अपनी प्रैगनैंसी का जिक्र अपने मैनेजर या सहकार्यकर्ताओं से किया तो उन्हें कैरियर के क्षेत्र में प्रमोशन दिए जाने की दर में कमी आई जबकि बाप बनने वाले पुरुषों को प्रमोशन किए जाने की दर में बढ़ोतरी हुई.

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स्त्री सशक्तीकरण के इस दौर में जब महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाबी के झंडे गाढ़ रही हैं, इस तरह के खुलासे थोड़ा हतोत्साहित करते हैं, पर यह हकीकत है. कहीं न कहीं घरपरिवार के साथ कार्यस्थल की दोहरी जिम्मेदारियों के बीच स्त्री का कैरियर पीछे छूट ही जाता है. वह चाह कर भी दोनों क्षेत्रों में एकसाथ बेहतर परिणाम नहीं दे पाती.

इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि शादी के बाद एक स्त्री का प्राकृतिक दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है. बड़ेबुजुर्गों की सेवा, पति व अन्य परिजनों की देखभाल, बच्चों की परवरिश जैसे काम उसे निभाने ही होते हैं. इस के अलावा शादी के बाद परिवार बढ़ाना भी एक सामाजिक जिम्मेदारी है. वैसे भी आम भारतीय घरों में एक मां से यह अपेक्षा की जाती है कि वह हर तरह के हितों को जिन में उस के खुद के हित भी शामिल हैं, को बच्चे से नीचे रखे.

गर्भावस्था और उस के बाद के 1-2 साल स्त्री को अपने साथसाथ नए मेहमान की सुरक्षा और जरूरतों का भी पूरा खयाल रखना होता है. ऐसे में यदि उसे घर से पूरी सपोर्ट, अच्छा माहौल, आनेजाने यानी ट्रांसपोर्ट की बेहतर सुविधा न मिले तो नई मां के लिए सबकुछ मैनेज करना बहुत कठिन हो जाता है.

एक तरफ जहां उस से घर के सारे काम करने और परिवार की तरफ पूरी जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जाती है, वहीं दूसरी तरफ औफिस में इंप्लौयर भी अपने काम में कोई कोताही नहीं सह सकता. मां कैरियर के किसी भी मुकाम पर क्यों न हो बात जब बच्चे के जन्म और पालनपोषण की आती है तो पिता के मुकाबले एक महिला पर बहुत सारी जिम्मेदारियां आ जाती हैं और इस दौरान उसे बहुत त्याग करने पड़ते हैं. उसे कैरियर के बजाय परिवार को प्राथमिकता देनी पड़ती है.

कामकाजी महिलाओं की संख्या में कमी

विश्वबैंक की एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या लगातार कम हो रही है. कार्यक्षेत्र में हिस्सेदारी के मामले में भारत की महिलाएं 131 देशों में 121वें स्थान पर हैं. यह धर्म के कारण भी है, क्योंकि केवल गर्भधारण या बच्चे ही नहीं, धार्मिक पाखंड पूरे करने में भी कामकाजी औरतों को रिआयत नहीं दी जाती और उन्हें घर, परिवार, पति, बच्चों के साथ धार्मिक रीतिरिवाज भी पूरे करने पड़ते हैं, जिस से काम के बारे में सोचने या घर पर काम करने की क्षमता नहीं रहती.

2004-05 में देश में लगभग 43 फीसदी महिलाएं कामकाजी थीं. कुछ ऐसा ही आंकड़ा 1993-94 में भी था. लेकिन 2016-17 में जब देश नए कीर्तिमान रच रहा था कामकाजी महिलाओं का आंकड़ा 27% से भी कम होता जा रहा था.

हमारे देश से अच्छी स्थिति नेपाल, बंगलादेश और श्रीलंका जैसे देशों की हैं. जैसेजैसे देश में धर्म का प्रचार बढ़ रहा है, औरतों की नौकरियां कम हो रही हैं. औरतों को तो मंदिरों से फुरसत नहीं रहती.

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 के बीच विभिन्न कारणों से 1.97 करोड़ महिलाओं ने नौकरी छोड़ी. यह बात अलग है कि जो महिलाएं काम कर रही हैं वे अपनी काबिलीयत के झंडे गाढ़ रही हैं. मगर इन की संख्या संतोषजनक नहीं है.

ग्लोबल जैंडर 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक 144 देशों में किए गए सर्वे में भारत 136वें नंबर पर है. भारत में महिला कार्यबल की भागीदारी महज 27% है, जो वैश्विक औसत के मुकाबले 23% कम है.

वर्ल्ड इकौनौमिक फोरम द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 5 में से 4 कंपनियों में 10% से भी कम महिला कर्मचारी काम कर रही हैं. भारत की ज्यादातर कंपनियां महिलाओं की जगह पुरुष कर्मचारियों को भरती करना पसंद करती हैं.

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मैटरनिटी बैनिफिट ऐक्ट 2016 के जरीए प्रैगनैंसी के दौरान छुट्टियों को 12 हफ्ते से बढ़ा कर 26 हफ्ते किया गया है ताकि महिलाओं को इस तनाव से उबारा जा सके. हालांकि अभी असंगठित क्षेत्रों में यह तनाव बरकरार है पर सरकारी नौकरियों में बहुत हद तक महिलाएं इस तनाव से बाहर आ रही हैं.

दरअसल, मैटरनिटी लीव के बढ़ते दबाव के कारण कंपनियां महिलाओं को भरती करने से गुरेज करती हैं. बड़ी कंपनियां इस मामले में सकारात्मक रूख अपनाती हैं. वे ऐक्ट से हुए बदलाव का समर्थन करते हुए महिलाओं की भरती में कोई कमी नहीं करतीं. लेकिन असली दिक्कत छोटी और मीडियम कंपनियों से है. इन में महिलाओं की सैलरी कम करने जैसे तरीके अपनाए जाते हैं या इन की हायरिंग ही कम कर दी जाती है.

इंप्लौयर का पक्ष भी देखें

अगर कोई महिला प्रैगनैंसी के बाद 6 माह लीव पर चली जाए और इंप्लौयर को उस के बदले किसी और को रखने की जरूरत न पड़े तो इस का मतलब यह भी माना जा सकता है वह जो काम कर रही थी न के बराबर का था और उस के न होने से किसी को फर्क नहीं पड़ेगा. मान लीजिए कि किसी कंपनी या एक सरकारी यूनिवर्सिटी में कोई महिला काम कर रही है और उसे बच्चे के बाद 6 माह की लीव पर जाना पड़ा. उस के बाद भी उस ने एकडेढ़ साल की पेड लीव ले ली.

जाहिर है, इतने समय तक उस के बगैर काम चल सकता है यानी उस के पास कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं. कार्यालय में उस की उपयोगिता न के बराबर है. उस के होने या न होने से कंपनी या यूनिवर्सिटी को कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर यदि उस के बदले किसी और को ऐडहौक पर रखना पड़ता है तो फिर यही इंगित करता है कि कंपनी को उस महिला की वजह से नया इंप्लोई रखने पर खर्च करना पड़ा. ऐसे में इंप्लौयर अपनी सुविधा देखते हुए भविष्य में महिला इंप्लौइज को कम से कम लेना शुरू कर देगा या फिर उन की सैलरी शुरू से कम रखेगा ताकि भविष्य में उसे अधिक नुकसान न हो.

पारिवारिक ढांचा है मददगार

महिलाओं की इन तमाम दिक्कतों से निबटने में घर और औफिस में अच्छा सपोर्ट सिस्टम मदद कर सकता है. अगर बौस वूमन हो तो इन दिक्कतों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. इसी तरह परिवार का सहयोग भी काफी माने रखता है. जैसेजैसे संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं वैसेवैसे बच्चों की परवरिश मुश्किल होती जा रही है. जहां एक अध्ययन के मुताबिक एक छोटा बच्चा होने से महिलाओं के रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ता है, वहीं किसी बड़ी महिला के परिवार में होने से कामकाजी महिलाओं के काम करने के आसार बढ़ जाते हैं.

इस तरह मां बनने वाली महिलाओं के प्रति कैरियर से जुड़े प्रोत्साहन को कम नहीं किया जाना चाहिए. इस के विपरीत मातापिता दोनों को ही सामाजिक और कैरियर से जुड़ी हर संभव सहायता प्रदान करनी चाहिए ताकि काम और परिवार से जुड़ी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने में उन्हें मदद मिले.

इस दौर में पिता की भूमिका भी तेजी से बदल रही है. उन को मालूम है कि 2 कमाने वाले होंगे तो बेहतर रहन-सहन हो सकता है. इसलिए अब वे अपनी पत्नी की सपोर्ट कर रहे हैं. फिर भी जब तक रूढि़वादी मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक रियल में हालात नहीं बदल सकते.

क्या है समाधान

यदि कैरियर के साथ प्रैगनैंट होना है तो प्रयास करें कि 35 के बाद यह नौबत आए, क्योंकि उस समय तक लड़की अपने पेशे से जुड़े हुनर अच्छी तरह सीख चुकी होती है. वह कैरियर के मामले में सैटल और हर तरह से मैच्योर रहती है. उस में इतनी काबिलीयत आ जाती है कि घर से भी काम कर के दे सकती है. वैसे भी तकनीकी विकास का जमाना है. इंप्लौयर भी उसे सपोर्ट देने को तैयार रहता है, क्योंकि वह कंपनी के लिए काफी कुछ कर चुकी होती है.

मगर 27-28 साल की उम्र में यदि लड़की प्रैगनैंट हो जाए और इंप्लौयर, उसे सिखा रहा होता है तो यह इंप्लौयर के लिए काफी घाटे का सौदा साबित होता है. यदि लड़की मार्केटिंग फील्ड में है तो जाहिर है कि कम उम्र में उस का अधिक दौड़भाग का काम होगा जबकि उम्र बढ़ने पर वह सुपरवाइजर बन चुकी होती है. इसी तरह किसी भी फील्ड में उम्र बढ़ने पर थोड़ी स्थिरता का काम मिल जाता है. ऐसे में यदि वह 2-4 घंटों के लिए भी आ कर महत्त्वपूर्ण काम निबटा जाए तो इंप्लौयर का काम चल जाता है. साथ काम करने वाली लड़कियों को भी समस्या हो सकती है, क्योंकि जो लड़की शादीशुदा है, प्रैगनैंट हो जाती है तो उसे एकमुश्त 6 माह की छुट्टी मिल जाती हैं. मगर 200 में से यदि 140 लड़कियां ऐसी हैं जो अविवाहिता हैं या प्रैगनैंट नहीं होती हैं तो उन के लिए तो यह एक तरह का लौस ही है. भला उन का क्या कसूर था कि उन्हें काम की चुनौतियों को सहना पड़ा. अविवाहिताओं के लिए यह बड़ा भेदभाव है.

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इसी तरह स्वाभाविक है कि इन परिस्थितियों में कोईर् भी इंप्लौयर मेल कैंडीडेट्स को ही तरजीह देगा और अपना घाटा कम करने का प्रयास करेगा. उसे या तो प्रोडक्ट की कीमत में वुद्धि करनी पड़ेगी और तब सोसाइटी द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से वह खर्र्चवहन किया जाएगा या फिर समाधान यह है कि समाज खुद आगे आए और यह खर्च वहन करे या फिर जिस ने कानून बनाया वही यानी सरकार इस का समाधान करे.

किसी को कुछ दें तो न दिलाएं उसे याद

महान जरमन दार्शनिक व कवि फ्रेडरिक नीत्शे कहते हैं, ‘‘जिस ने देने की कला सीख ली समझो उस ने जीवन जीने की कला भी साध ली. देना एक साधना है, जिसे अपने भीतर उतारने में सदियां बीत जाती हैं.’’

हमारे परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों के बीच देने का यह क्रम लगातार चलता रहता है खासकर तीजत्योहारों और शादी समारोह में देने की यह गति और तेज हो जाती है. लेकिन लेनेदेने की इस गति में कई बार हमारी सोच, हमारा मन खुद ही बाधक बन जाता है. जब हम किसी को कुछ देते हैं तो उस में हमारा प्रेम व लगाव छिपा होता है पर वही प्रेम और राग तब काफूर हो जाता है जब हम सामने वाले को गाहेबगाहे यह याद दिलाते हैं कि मैं ने तुम्हें फलां चीज दी थी, याद है न?

ऐसे में सामने वाला खुद को दीनहीन समझने लगता है और यह कुंठा तब और उग्र हो जाती है जब यह ताना पब्लिकली दिया गया हो.

हाल ही में एक सगाई समारोह में कुछ पुरानी सहेलियों के साथ मेरी बैस्टफ्रैंड भी मिली. कमलेश व ज्योति कभी अंतरंग मित्र हुआ करती थीं. छूटते ही ज्योति बोल पड़ी, ‘‘अरे वाह कमलेश, तूने यह वही नैकपीस पहना है न जो मैं ने तुझे तेरी पिछली सालगिरह पर दिया था?’’

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कमलेश भरी महफिल में कुछ न बोल सकी बस मुसकरा कर रह गई. पर उस के मन पर जो चोट लगी उसे वह भूल न सकी.

हमारे आसपास, फैमिली या सोसाइटी में ऐसे लोग भरे हैं जो अपनी दी हुई चीजों का बखान करते नहीं थकते. कई बार तो देने से ज्यादा बढ़ाचढ़ा कर अपनी बात रखी जाती है. लेने वाला जब किसी और के मुख से ऐसी बातें सुनता है तो उस का स्वाभिमान तिलमिला उठता है. अकसर कुंठा से ग्रस्त हो खुद को कोसने लगता है कि आखिर उस ने उस व्यक्ति से कोई उपहार स्वीकार ही क्यों किया?

ऐसे सीखें देने की कला

– चाहे आप ने कितना भी महंगा गिफ्ट क्यों न दिया हो, मन में मलाल न रखें कि हाय मैं ने इतनी महंगी चीज क्यों दे दी.

– गिफ्ट या कोई भी आइटम देते वक्त उस का प्राइस टैग जरूर रिमूव करें या प्राइस प्रिटेंड हो तो उसे इंक या व्हाइट पेपर से कवर कर दें.

– देने के बाद भूल कर भी कभी याद न दिलाएं या किसी पार्टी अथवा गैदरिंग में अनावश्यक याद न कराएं.

– एकसाथ एक जैसे गिफ्ट अपने किसी भी क्लोज को देने की भूल न करें. हो सकता है वे बाइचांस किसी इवेंट में सेम आइटम के साथ दिख जाएं तो शर्मिंदगी हो सकती है.

– किसी को कुछ भी दें तो दिल से दें.

– कोशिश करें डब्बाबंद अच्छी तरह वैल पैक्ड गिफ्ट दें. इस से आप का इंप्रैशन जमेगा.

– देना हमें भीतर से विशाल बनाता है, इसलिए इस परंपरा के वाहक बनें.

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यह कोई बड़ा काम नहीं

खुद को देने की कला में माहिर बनाना कोई बड़ा काम नहीं है, भारी काम नहीं है. थोड़े से प्रयास से हम इस स्किल को बेहतर तरीके से डैवलप कर सकते हैं.

आखिर हम अल्बर्ट आइंस्टीन, ग्राहम बेल, क्रोलबस, जौर्ज वाशिंगटन, वाल्टडिज्नी, बिलगैट्स, एपीजे कलाम जैसे महान लोगों से कुछ क्यों नहीं सीखते, जिन्होंने जीवनभर इस दुनिया को कुछ न कुछ देने का काम किया पर उस का नाम न लिया.

देना अगर गुप्त हो तो तभी वह सफल है. इस का ऐक्सपोजर आप को नैरो बनाता है. गिविंगनैस आप को बड़ा बनाती है. ग्रेटनैस इसी में है कि किसी को देने का एहसास न कराएं. भारी व भरे मन से नहीं, बल्कि खुले व हलके मन से देने की आदत डालें. हैप्पीनैस के साथ गिविंगनैस का कौंबो पैक आप की इमेज को लार्जर दैन लाइफ बना सकता है.

बोरिंग मैरिड लाइफ भी है जरूरी, जानें क्यों

शनाया और सुदीप्त शादी के 3 साल बाद ही मन ही मन इस बात की चिंता करते रहते हैं कि उन के रिश्ते में जो बात शुरू के दिनों में थी, वह आज नहीं है. दोनों को लगता है कि 4 साल के अफेयर के बाद इस प्रेमविवाह में वह चीज कुछ मिसिंग सी है, जो शुरू में दोनों को उत्साह से भरे रखती थी.

दोनों की यह चिंता बेमानी है. शुरू के दिनों का जादू खत्म होने पर अकसर लोग इस मिसिंग स्पार्क की चिंता में यों ही परेशान होते रहते हैं. जब हनीमून पीरियड खत्म हो जाता है, वास्तविकता से सामना होता है, तो कुछ अजीब सा लगता है. हर चीज बोरिंग लगनी शुरू हो जाती है, धीरेधीरे हाथों को पकड़ कर बातें करना, कैंडल लाइट डिनर पर जाना, घंटों फोन पर बातें करना खत्म होता चला जाता है.

हम अकसर यह शिकायत करने लगते हैं कि रिश्ते में स्पार्क मिसिंग है पर रियल लाइफ में हर दिन रोमांस से भरा नहीं हो सकता. समय के साथ चीजें सैटल होती हैं और इस में अच्छाई ही होती है, तो अगली बार जब आप यह शिकायत करें कि आप का रिश्ता बोरियत भरा हो रहा है, इस से पहले यह जान लें कि यह जरा सी बोरियत आप के रिश्ते के लिए कितनी अच्छी है.

बोरियत की जरूरत

मशहूर रिलेशनशिप एक्सपर्ट जोनाथन बैनेट ने एक बार कहा था, ‘‘रिश्ते में बोर होना नौर्मल है. कोई भी रिश्ता चाहे रोमांटिक हो या न हो, हर समय उत्साह और उत्तेजना से भरा नहीं रह सकता. बहुत बोरिंग समय में भी अपने पार्टनर को स्वीकार करना और प्यार करना रिश्ते में गहराई और ताकत बढ़ाता है.’’

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कुछ मौकों पर बहुत बोर होने के बाद भी आप दोनों एकदूसरे के साथ हों, यही दिखाता है कि आप की बौंडिंग बहुत स्ट्रौंग है और यह बोरडम आप के रिश्ते को खत्म नहीं कर सकती है. इस बोरियत में भी आप का रिश्ता मजबूत हो रहा होता है.

अगर आप ने इंटरैस्टिंग और बोरिंग टाइम एकदूसरे के साथ बिता लिया है और एकदूसरे को अब भी प्यार करते हैं तो यकीन कीजिए कि आप का रिश्ता बहुत अच्छा चल रहा है. रिश्ते को लगातार उत्तेजक बनाए रखने के प्रैशर में आप थक सकते हैं और आप तनाव में आ सकते हैं.

अगर आप रोज पार्टनर को खुश रखने का प्रैशर ले रहे हैं तो आप को तनाव हो सकता है. अगर आप को ये सब करने की जरूरत नहीं है, तो आप राहत की सांस ले सकते हैं.

यही नहीं, बोरडम सेफ्टी और सिक्युरिटी की निशानी है. हम लगभग काफी समय जीवन में सेफ और खुश रहने की कोशिश में बिताते हैं. हम कुछ रियल कंफर्टेबल रिश्ते में रहना चाहते हैं. हमें भले ही अपने रिश्ते में बोरियत लगती हो, पर सिक्युरिटी की भावना रिश्ते को मजबूत रखे रखती है, फिर कठिन परिस्थितियां भी रिश्ते को कमजोर नहीं कर पातीं.

कभी यों भी बिताएं दिन

किसी-किसी दिन कुछ ऐक्ससाइटिंग न करना भी ठीक है, बिना कुछ किए यों ही दिन बिताने में भी कभीकभी कोई हरज नहीं है, क्योंकि कुछ न करना भी कुछ है. कभीकभी सिर्फ घर में रहना, बाहर जा कर पार्टी न करना भी ठीक है. घर पर भी रहना काफी कंफर्टिंग हो सकता है. आप की सोशल ऐक्टिविटीज आप के रिश्ते को परिभाषित नहीं करती हैं. अगर आप एकदूसरे से बिना बात किए भी एकदूसरे से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, तो आप का रिश्ता बैस्ट है.

10 में से 4 लोग यह मानते हैं कि दोनों एकदूसरे को जब ग्रांटेड लेने लगते हैं तब स्पार्क मिसिंग होने लगता है. कुछ लोग लंबे वर्किंग आवर्स, कुछ बच्चों का होना इस का कारण मानते हैं.

मिसिंग स्पार्क की क्या पहचान है, आइए जानते हैं.

– आप सैक्स बहुत कम करते हैं.

– आप अब आई लव यू कहने की जरूरत महसूस नहीं करते.

– आप कुछ साथ में नहीं करते.

– आप डेट्स पर नहीं जाते.

– आप अलगअलग रूम में सोते हैं.

– छोटीछोटी बातों पर एकदूसरे की आलोचना करते हैं.

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– आप चीटिंग करते हैं.

– आप अब तारीफ नहीं करते.

– आप अलगअलग टाइम पर सोने जाते हैं.

– आप को पार्टनर के बजाय दोस्तों के साथ घूमना ज्यादा अच्छा लगता है.

– पार्टनर से बात करने से ज्यादा आप सोशल मीडिया पर ज्यादा टाइम बिताते हैं.

यों ताजा करें रिश्ता

अगर आप अपने रिश्ते में मिसिंग स्पार्क को वापस लाना चाहते हैं, तो कुछ ऐसा कर के देखें:

– एकदूसरे की बात सुनें.

– उन्हें बताते रहें कि आप उन्हें प्यार करते हैं.

– अकसर किस करते रहें.

– बिना किसी कारण के भी छोटेछोटे गिफ्ट देते रहें.

– बैडरूम में कुछ स्पाइसी चीजें करें.

– कैंडल लाइट डिनर पर जाएं.

– बजट साथ दे तो रोमांटिक जगह घूमने जाएं.

– अपने फोन से दूरी बनाएं.

– साथसाथ कुछ नई ऐक्सरसाइज करनी शुरू करें.

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– कुछ समय के लिए सोशल मीडिया से दूरी बना लें.

– कुछ टाइम के लिए दूरी बनाएं, जिस से आप एकदूसरे की कंपनी फिर और ऐंजौय करेंगे.

बच्चों के टैंट्रम से निबटें ऐसें

दिल्ली में रहने वाली 2 ऐनर्जेटिक और स्मार्ट बच्चों की मां प्रिया अपने बच्चों के टैंट्रम से परेशान रहती हैं. वे बताती हैं कि कई दफा बच्चे कुछ अनावश्यक मांगें रखते हैं. उन्हें पूरा न किया जाए तो वे गुस्से से भड़क उठते हैं. इसी तरह भूखा होने या नींद पूरी न होने पर भी उन का टैंट्रम हाई हो जाता है.

बच्चों का टैंपर टैंट्रम प्राय: पेरैंट्स के तनाव, चिंता या फ्रस्टे्रशन की वजह बनता है. बच्चों के टैंट्रम को काबू में लाना आसान नहीं होता.

टैंट्रम यानी एकाएक गुस्से से भड़क उठना. बच्चों का टैंट्रम किसी भी रूप में जाहिर हो सकता है जैसे गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन, रोना, चिल्लाना, चीजें तोड़ना, जमीन पर लोटना, भागना आदि. कुछ बच्चे सांस रोकने, उलटी करने या फिर एकदम आवेश में आने जैसी हरकतें भी करते हैं.

मुख्य रूप से 1 से 3 साल की उम्र के बच्चों में टैंट्रम की समस्या ज्यादा देखी जाती है, क्योंकि इस उम्र में बच्चों की सोशल और इमोशनल स्किल्स डैवलप होनी शुरू ही होती हैं. उन के पास बड़ी इमोशंस ऐक्सप्रैस करने के लिए शब्द नहीं होते. वे अधिक आजादी चाहते हैं, मगर पेरैंट्स से दूर होने से घबराते भी हैं. ऐसे में वे रास्ता ढूंढ़ रहे होते हैं जिस के जरीए अपने आसपास की दुनिया को बदलने का प्रयास कर सकें और अपनी मरजी चला सकें.

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बच्चों के टैंट्रम की मुख्य वजह

टैंपरामैंट: जो बच्चे जल्दी अपसैट होते हैं उन में टैंट्रम का खतरा भी अधिक होता है.

स्ट्रैस: तनाव, भूख, थकावट आदि.

कुछ खास स्थितियां जो बच्चों को पसंद नहीं. जैसे कोई उन के खिलौने उठा कर भाग जाए.

स्ट्रौंग इमोशंस: डर, चिंता, गुस्सा, शक आदि.

वैसे तो टैंट्रम बच्चों की विकास प्रक्रिया का एक स्वाभाविक हिस्सा है और इस से बचा नहीं जा सकता. मगर प्रयास किया जाए तो इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. ध्यान रखें प्रत्येक बच्चा दूसरे से जुदा होता है. टैंट्रम पर काबू पाने के लिए एक बच्चे पर अपनाया गया ट्रिक संभव है कि दूसरे बच्चे पर फिट न बैठे.

इन तरीकों से इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है:

बच्चों को व्यस्त रखें

यदि बच्चे बोरियत महसूस कर रहे हैं तो संभव है कि वे अपनी खीज और चिड़चिड़ाहट किसी न किसी रूप में बाहर निकालें और बेवजह रोनाचिल्लाना शुरू कर दें. इसलिए जरूरी है कि आप उन्हें व्यस्त रखें. उन्हें छोटीछोटी रोचक गतिविधियों में बांधे रखें या फिर दूसरे बच्चों को उन के साथ खेलने के लिए बुला लें. इस से उन पर काबू पाया जा सकता है.

कारण समझाने का प्रयास करें

जब बच्चा किसी बात की जिद करे और पूरी न होने पर चिढ़ जाए तो उसी वक्त उसे समझाने का प्रयास करें कि उस की बात न मानने की वजह क्या है. मगर यदि बच्चे का टैंपर टैंट्रम पूरी उफान पर हो तो उस वक्त उस से कुछ भी न कहें.

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रिया बताती हैं, ‘‘मेरी 7 साल की बच्ची एक दिन गुडि़या खरीदने की जिद करने लगी, जबकि हम उस वक्त एक मैडिकल शौप पर थे और मेरे पास ज्यादा रुपए भी नहीं थे. मेरे द्वारा गुडि़या के लिए न करते ही वह जोरजोर से चिल्लाने लगी. मैं ने उसे चुप कराया और प्यार से समझाया कि इस वक्त मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं. फिर मैं ने उसे 2 चौइस देते हुए कहा कि या तो यहां से निकलने के बाद सैलून जा कर अपने बालों को खूबसूरत कट दिला ले या नई गुडि़या ले ले.

‘‘तब मेरी बेटी को एहसास हो गया कि उस की मरजी ही चलेगी. मम्मी वही करेंगी जो मैं करने को कहूंगी. बस उस ने 2 सैकंड सोचा और फिर बड़ी समझदारी से सैलून जाने को तैयार हो गई. इस तरह मुझे अपनी बेटी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं करनी पड़ी और उस ने खुद ही गुडि़या लेने का विचार छोड़ दिया.’’

जाहिर है, किसी बात के लिए सीधा न कहने के बजाय बच्चे को विस्तार से उस फैसले की वजह समझानी चाहिए. इस से बच्चे को बात समझ में आ जाएगी और उस का ईगो भी हर्ट नहीं होगा.

लंबी सांस लेने को कहें

एक बार आप का बच्चा अपना टैंट्रम दिखाना शुरू कर दे तो तुरंत उस के साथ एक ऐक्सरसाइज करना आरंभ करें. आप उसे अपने पास बैठा कर गहरीगहरी सांस लेने को कहें. ऐसा करने से उस का इमोशनल रिएक्शन धीमा पड़ जाएगा. यदि वह ऐसा करने को तैयार नहीं होता तो आप खुद ही ऐसा कर के देखिए. डीप ब्रीदिंग आप को अपने इमोशंस पर कंट्रोल रखने में मदद करेगी. शोध बताते हैं कि आप इस तरह के उपाय कर के अपने पल्स और ब्रीद रेट पर काबू पा सकते हैं. इस से आप स्ट्रैस में नहीं आएंगे.

सजा न दें

सब से बड़ी गलती जो पेरैंट्स करते हैं वह यह है कि बच्चा टैंट्रम दिखा रहा हो तो उसे सजा देना. यह तरीका काम नहीं करता. ऐसे में पेरैंट्स अकसर सोचने लगते हैं कि या तो उन के बच्चे के साथ कुछ गलत है या फिर खुद उन की पेरैंटिंग में ही दोष है, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता. खुद को थोड़ा शांत रखें, अपने पार्टनर से इस बारे में डिस्कशन करें और फिर कोई रास्ता निकालें.

उन्हें शांत कराने का प्रयास न करें

टैंट्रम दिखा रहे बच्चों को इग्नोर करें जब तक कि वे खुद के लिए खतरा पैदा न कर रहे हों. उस कमरे से बाहर निकल जाएं. यदि बच्चा गुस्से में हिटिंग, बाइटिंग, किकिंग जैसी क्रियाएं करने लगे या चीजें उठा कर फेंके तो तुरंत उसे उस जगह से हटा दें. उसे एहसास दिलाएं कि उस के द्वारा दूसरों को तकलीफ देने या चीजें तोड़ने जैसा व्यवहार स्वीकार नहीं किया जाएगा. जहां तक हो सके आप उस की हरकतों पर कोई प्रतिक्रिया न दें या फिर संभव हो तो मुसकरा दें. इस से उसे एहसास होगा कि ऐसी ऐक्टिविटीज द्वारा अपनी बात मनवाने का उस का प्रयास असरकारक नहीं है.

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‘द डिसिप्लिन मिरेकल’ की औथर लिंडा पर्सन के मुताबिक कभीकभी बच्चा अपना गुस्सा बाहर निकालना चाहता है. उसे ऐसा करने दें. अपनी फीलिंग्स बाहर निकाल कर बच्चा तनावमुक्त हो सकेगा.

गिव ए बिग हग

कई दफा टैंट्रम दिखा रहे बच्चे को एक बिग, फर्म हग देना ही पर्याप्त होता है. उसे बिना कुछ कहे बस देर तक हग करें. इस से बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस करता है और उसे एहसास होता है कि आप उस की केयर कर रहे हैं.

थकावट और भूख बच्चों के टैंट्रम के 2 सब से बड़े ट्रिगर्स होते हैं. इसलिए समय पर बच्चों को भोजन जरूर कराएं और पर्याप्त नींद लेने दें. समय पर दूध और पानी पिलाएं. उन के कंफर्ट का खयाल रखें.

स्टैपनी बन कर क्यों रह गई सास

काम से लौटी महिला बोझिल व असहाय होती है. उस के लिए तुरंत कोई भी अप्रिय स्थिति झेलना या घरेलू कार्य करना संभव नहीं होता. ऐसी परिस्थिति में परिवार चाहे संयुक्त हो या एकल, जहां सारी अपेक्षाएं सिर्फ उसी से रखी जाती हैं, वहां तनाव बढ़ता जाता है.

कामकाजी महिलाओं का लगभग एकतिहाई हिस्सा ‘लाइफ स्टाइल डिजीज’ की चपेट में है. एक सर्वे के अनुसार 20-40 साल तक की उम्र की महिलाओं में ‘लाइफ स्टाइल डिजीज’ का खतरा सब से अधिक रहता है. समय रहते इस पर ध्यान न देने से यह गंभीर परेशानी खड़ी कर सकता है. डिप्रैशन, मोटापा, ब्लडप्रैशर, डाइबिटीज जैसी समस्याएं लाइफ स्टाइल डिजीज के अंर्तगत आती हैं, जो कामकाजी महिलाओं में अंदरबाहर की जिम्मेदारियों के कारण उपजे भीषण तनाव से पैदा होती हैं.

पिछली पीढ़ी की कामकाजी महिलाएं

वे बड़े परिवारों में बड़ी होती थीं और बड़े परिवारों में ब्याह दी जाती थीं. संयुक्त परिवारों की सहीगलत, अच्छीबुरी, पसंदनापसंद परंपराएं अपनातीं, निभातीं ये महिलाएं संयुक्त परिवारों में अनेक रिश्तों को निभाने की जिम्मेदारियां भी निभातीं और किसी तरह सब को खुश रख कर अपनी नौकरी बचाए रखने की जद्दोजहद में भी लगी रहती थीं.

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उन के खुद के कमाए पैसे पर भले ही उन का हक न होता था और उन्हें उस का मानसम्मान व आत्मविश्वास प्राप्त न हो पाता था पर उन पर सब का हक होता था. उन का नौकरी करना उन की खुद की समस्या थी, उन के परिवार की नहीं. उन्हें सब के प्रति अपने कर्तव्य पालन में हर वक्त खड़े रहना पड़ता था. अगर उन्हें एक अच्छा खुशहाल जीवन जीना होता था तो उन्हें एक अच्छी पत्नी, मां, बहू, भाभी, हर भूमिका मुस्तैदी से निभानी पड़ती. उन के नौकरी करने में पति का सहयोग न के बराबर होता था.

संयुक्त परिवारों की जिम्मेदारियां पूरी करने के बावजूद और पति का सहयोग न के बराबर मिलने के बावजूद अपने परिश्रम की कमाई को ये महिलाएं अपने ढंग से खर्च भी नहीं कर पाती थीं. कमाती वे थीं पर हिसाब पति के पास रहता था.

घर की जिम्मेदारियों के अलावा मामूली कठिनाइयों के लिए भी उन्हें अवकाश लेने के लिए मजबूर किया जाता था. इन सब का असर उन की कार्यक्षमता पर पड़ता था. जरूरत पड़ने पर औनलाइन जरूरत का सामान मंगाने जैसी सुविधा तब उन के पास नहीं थी. किचन में भी इतने सुविधाजनक उपकरण नहीं होते थे, जबकि संयुक्त परिवारों में बेहिसाब काम होते थे.

नई पीढ़ी की कामकाजी महिलाएं

महिलाओं में बदलाव है. आज अगर पतिपत्नी अपनी अलग गृहस्थी बसा कर रह रहे हैं तो पति अपनी पत्नी को पूरा सहयोग दे रहे हैं. फिर चाहे वह किचन संबंधी कार्य हो या बच्चों के लालनपालन की बात हो. कामकाजी महिलाओं की दोहरी जिम्मेदारियां पूरी तरह से खत्म नहीं होती हैं, क्योंकि बच्चे अकसर समय मिलने पर मां से ही चिपकते हैं और उम्मीद करते हैं. घर के भी कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें एक महिला ही सही तरीके से अंजाम दे पाती है. फिर भी कुछ दकियानूसी परिवारों की बात छोड़ दी जाए तो आज वह संतोषजनक स्थिति में है.

जरूरत पड़ने पर बाहर से खाना और्डर करने का चलन चल पड़ा है. हर जरूरत की वस्तु के लिए औनलाइन शौपिंग जैसी सुविधा भी है. जो कामकाजी युवतियां संयुक्त परिवारों में रह रही

हैं, वहां अमूमन बहुओं की नहीं, बल्कि सासों की मुश्किल है. परिवार के नाम पर अब सासससुर ही रह गए हैं और आज की इस शिक्षित सास का रोल आज के संयुक्त परिवार में बहुत बदल गया है.

एक तरह से आज की पीढ़ी की यह सास स्टैपनी ही नहीं रह गई है. इस ने अपने समय के संयुक्त बड़े परिवार भी निभाए. बहुतों ने नौकरियां भी कीं. नौकरी के साथसाथ गृहस्थी भी संभाली. फिर अपनी संभाली और अब अगर बहूबेटे साथ हैं तो उन की गृहस्थी भी संभाल रही हैं. इसलिए आज बहू से उम्मीद कम और सासों से ज्यादा हो गई है.

जो कामकाजी महिलाएं सासससुर के साथ रहती हैं वे अपने सासससुर से अपनी गृहस्थी व बच्चों के लालनपालन में उन का सहयोग तो चाहती हैं पर जहां तक उन के पैसे की बात आती है, उन की सोच एक आम गृहिणी जैसी हो जाती है कि पति का पैसा तो सब का पर उन का पैसा सिर्फ उन का.

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वे चाहती हैं कि अपने कमाए पैसे का वे खुद जैसे चाहें इस्तेमाल करें. चाहे अपने मातापिता या भाईबहन पर खर्च करें या अपने कपड़ेजेवरों पर, पति या परिवारजन को इस में बोलने का कोई अधिकार न हो. जहां तक पति की कमाई की बात है उसी पर दूसरों का अधिकार हो और सब से ज्यादा अधिकार उस का खुद का हो. पति बिना उस की इजाजत लिए अपने भाईबहन या मातापिता पर भी अपनी कमाई नहीं खर्च कर सकता.

फर्ज और अधिकार में फर्क

सासससुर का फर्ज तो उसे याद रहता है पर अपनी कमाई पर सासससुर का थोड़ा सा अधिकार भी वह सपने में भी नहीं सोच सकती. उन का थोड़ाबहुत अधिकार है तो सिर्फ अपने  बेटे की कमाई पर. जिन युवतियों की यह मानसिकता है, उन्हें समझना चाहिए कि यदि वे अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए दूसरों का सहयोग चाहती हैं तो उन की कमाई पर भी उन के पति की कमाई की तरह ही सब का हक होगा, क्योंकि यह ‘गिव ऐंड टेक’ जैसी बात है. अगर वे किसी रूप में भी परिवारजनों का सहयोग करेंगी और साथ ही अपना मधुर व्यवहार भी बनाए रखेंगी, तभी वे दूसरों से भी सहयोग की उम्मीद कर सकती हैं.

कुछ युवतियों का तो यह आलम है कि वे कहने को तो कामकाजी हैं पर उन की नौकरी इस लायक नहीं होती कि पति या परिवार को बहुत अधिक आर्थिक मदद कर सकें, लेकिन अपनी इस नौकरी के पीछे वे अपने पूरे परिवार को परेशान किए रहती हैं. खास तौर पर सास को न उन से आर्थिक सहयोग ही मिलता है, न घर ही ठीक से संभलता है कि पति निश्ंिचत हो कर अपनी नौकरी कर सके.

आज की युवा पीढ़ी की अधिकतर कामकाजी युवतियों को सास के कर्तव्य तो याद रहते हैं पर अपने सारे कर्तव्य भूल जाती हैं. वे सास से मां जैसे व्यवहार व ससुराल में मायके जैसे अधिकार व व्यवहार की अपेक्षा तो रखती हैं पर स्वयं बेटी जैसे कर्त्तव्य व प्यार देने की बात भूल जाती हैं.

पिछले कुछ समय से सारे उपदेश सासों को ही दिए जा रहे हैं कि सिर्फ सास के ही कर्त्तव्य हैं. यह सोच कर अपनी गृहस्थी सास के भरोसे छोड़ने का समय अब नहीं रहा. सही तो यही है कि पतिपत्नी ही मिल कर अपनी गृहस्थी सुचारु रूप से चलाएं. सासससुर ने पूरी जिंदगी संघर्ष कर, अब थोड़ा विराम पाया है, इसलिए उन्हें भी अपनी अभिरुचियों के साथ जिंदगी जीने दें. उन से बस थोड़ेबहुत सहयोग की ही अपेक्षा रखें जितना वे दे सकते हैं. उन्हें जिम्मेदारियों से न लादें.

कैसी हो कामकाजी महिलाओं की जीवनशैली

कामकाजी महिलाएं चाहे आज की हों या पिछली पीढ़ी की, इस में दोराय नहीं कि उन के जीवन के कुछ साल बहुत तनाव में गुजरते हैं जब तक उन के बच्चे छोटे होते हैं. दोहरी जिम्मेदारियों के बोझ के चलते तनाव व अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से घिर चुकी कामकाजी महिलाओं को अब अपने लिए समय निकालने की जरूरत है. जिन घरों में पति या अन्य परिजन कामकाज में हाथ बंटाते हैं, उन घरों में महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर पाया जाता है. पर इस के लिए कामकाजी महिलाओं का व्यवहार व स्वभाव स्वयं उत्तरदायी है.

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अगर घर में दिन में काम कराने हैं तो सास कराएगी. बच्चों को स्कूल से लाना है तो सास लाएगी. मेड से निबटना है तो सास निबटेगी. घर की सफाई, पुताई कराई है तो जिम्मा सास के सिर पर. बहुत मामलों में मिल्कीयत तो सासससुर की होती है पर उपयोग बेटेबहू करते हैं और रखरखाव का काम सासससुर पर छोड़ दिया जाता है वह भी बहू की सलाह पर जो सलाह कम आदेश ज्यादा होती है. बच्चे बीमार हों तो रातभर सास ही अस्पताल में बैठी नजर आएंगी. सास को बारबार कह दिया जाता है कि आई लव यू मौम, पर असल लव तो अपनी मां पर टपकता है सास पर नहीं. सासदामाद का रिश्ता तो शानदार है पर सासबहू में सास बेचारी स्टैप्नी है, 5वां पहिया जो घिसापिटा होता है.

डबल डेटिंग का डबल मजा

एक कहावत है 2 नावों पर सवारी करने, मतलब एक पांव एक नाव में और दूसरा दूसरी में, ऐसा व्यक्ति न इस नाव का रहता है न उस का. लेकिन जब इस में मजा आने लगे तो बात अलग हो जाती है. सैकंड ईयर में पढ़ने वाली शिप्रा का उदाहरण लेते हैं. खुले बाल,कैप्री, शौर्ट टौप और गौगल्स में जब वह कालेज आती है तो सब की नजरें उसी पर रहती हैं. वह है भी बिंदास.

अपनी जिंदगी में मस्त रहना, जो मन में आए वह करना. शायद इसीलिए उस के लिए प्यारव्यार का कोई मतलब नहीं है. हां, उस का बौयफ्रैंड तो है, वह भी एक नहीं 2. शिप्रा की ये 2 बौयफ्रैंड्स की कहानी बिलकुल शिप्रा की जिंदगी की तरह ही बिंदास है. आप को यह सोच कर आश्चर्य लग रहा होगा कि एकसाथ 2 बौयफ्रैंड्स कैसे?

मजे की बात यह है कि दोनों बौयफ्रैंड्स से उस के करीबी संबंध हैं. पर सवाल यह भी है कि वह मैनेज कैसे करती होगी? यही तो सब से मजेदार बात है. शिप्रा का एक बौयफ्रैंड उस के कालेज में है और दूसरा उस के घर के पास रहता है. शिप्रा दोनों रिलेशनों के बीच कभी भी अपनी आजादी को पिसने नहीं देती. न ही इस का अपनी निजी जिंदगी पर प्रभाव पड़ने देती है.

जब लड़कियां करें डबल डेटिंग

आज के समय में लड़का हो या लड़की सभी के लिए डबल डेटिंग करना मानो आम बात हो गई है. कोई सोशल मीडिया पर लगा है तो कोई गलीमहल्ले से ले कर औफिस तक. शिप्रा भी कालेज में योगेश के साथ अपना अधिकतर समय बिताती है और घर आने के बाद अंकुर से फोन पर बात कर लेती है या उस से मिल लेती है.

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अंकुर और योगेश के सोचविचार में काफी अंतर है. अंकुर और शिप्रा बचपन से एकदूसरे को जानते हैं. इसलिए अंकुर शिप्रा को ज्यादा मिलने या उस के साथ घूमने के लिए जिद नहीं करता. अंकुर बहुत खुले विचारों का है, वहीं योगेश शिप्रा पर रोकटोक और अपना अधिकार दिखाने की कोशिश करता है. लेकिन शिप्रा कहां किसी की सुनने वाली है.

शिप्रा थोड़ी जिद्दी है अपनी मरजी के आगे उसे कुछ और दिखता ही नहीं. यही कारण है कि योगेश और शिप्रा हमेशा लड़ते रहते हैं. कालेज के फैस्ट के दौरान भी दोनों लड़ पड़े. दरअसल, शिप्रा कालेज की डांस सोसाइटी में है. डांस सोसाइटी में राघव भी है, जिसे योगेश बिलकुल भी पसंद नहीं करता. फैस्ट के लिए डांस सोसाइटी ने कपल डांस डिसाइड किया, जिस में राघव शिप्रा का डांस पार्टनर था. ऐसे में शिप्रा और योगेश के बीच लड़ाई तो होनी ही थी.

योगेश शिप्रा को डांस के लिए मना करता रहा, लेकिन शिप्रा योगेश की बातों को नजरअंदाज कर फैस्ट की तैयारी में लग गई. दोनों के बीच बोलचाल बंद हो गई. फैस्ट खत्म होने के बाद भी दोनों के बीच बातचीत शुरू नहीं हुई. शिप्रा रोज कालेज आती, मौजमस्ती करती. शिप्रा के चेहरे

पर योगेश से बात न करने का कोई दुख नहीं था.

दोनों हाथों में लड्डू

अंकुर पिछले कई दिनों से बेहद खुश था. दरअसल, शिप्रा अब अंकुर के साथ ज्यादा समय बिताने लगी थी. पूरे दिन उस से फोन पर चिटचैट करना, फिर कालेज के बाद रोज शाम को मिलना. ऐसे में शिप्रा को योगेश की कमी महसूस ही नहीं हुई.

यही तो मजा है डबल डेटिंग का, इस में रूठनेमनाने का कोई सिलसिला ही नहीं होता और वैसे भी जब हाथों में 2 लड्डू हों और एक टूट भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है. बस, दूसरे लड्डू की मिठास बरकरार रहनी चाहिए.

शिप्रा और अंकुर के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. शिप्रा को अब जब भी कोई जरूरत होती तो वह अंकुर से ही कहती. अंकुर भी शिप्रा के लिए हमेशा मौजूद रहता. हालांकि इस बीच योगेश ने शिप्रा से बात करने की कोशिश जरूर की लेकिन शिप्रा ने उसे बिलकुल भी भाव नहीं दिया. तब योगेश ने शिप्रा को मनाने के लिए सब के सामने माफी मांगने की सोची और योगेश के ऐसा करने पर शिप्रा ने योगेश को माफ कर दिया.

शिप्रा के पास एक ताले की 2 चाबियां थीं. जब कभी उस की दोनों में से किसी से भी अनबन होती वह दूसरे को ज्यादा समय देने लगती. शिप्रा को दोनों में से किसी से प्यार तो नहीं था लेकिन उसे ऐसे रिश्ते में रहने की आदत हो गई थी जो उस की जरूरतों को पूरा कर सके.

बन चुका है नया ट्रैंड

आज अधिकतर लड़केलड़कियां ऐसे रिलेशन में हैं जहां उन्हें प्यार तो नहीं होता, लेकिन ‘आई लव यू’ बोलना उन्हें बहुत अच्छे से आता है. यह एक तरह से ट्रैंड बन गया है. लड़कों के लिए तो यह कूल बनने का सब से अच्छा तरीका है. यदि किसी लड़के की एकसाथ कई गर्लफ्रैंड्स हैं

तो उसे काफी स्मार्ट समझा जाता है. इस में बुराई भी क्या है? आजकल तो सभी इस ट्रैंड को अपना रहे हैं.

रोशन की भी 2 गर्लफ्रैंड्स हैं. पहली नीतिका जिस के साथ वह पिछले 2 वर्षों से रिलेशन में है. दूसरी मनीषा, जो रोशन को सोशल मीडिया पर मिली थी और अब दोनों पिछले 3 महीने से एकदूसरे को डेट कर रहे हैं. नीतिका बहुत सिंपल है, वहीं मनीषा बहुत बोल्ड है.

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हालांकि, नितिन नीतिका की बहुत केयर करता है. नितिन और नीतिका एकदूसरे से कम ही मिल पाते हैं. ऐसे में नितिन को गर्लफ्रैंड होते हुए भी गर्लफ्रैंड की कमी हमेशा महसूस होती थी. तब नितिन ने डेटिंग ऐप पर अपना प्रोफाइल बनाया. जहां उसे मनीषा मिल गई. एकसाथ 2 रिलेशनों में नितिन पूरा बदल गया था. ऐसा लग रहा था मानो वह किसी फिल्म में डबल रोल का किरदार निभा रहा हो.

डबल डेटिंग में डबल रोल

नितिन नीतिका से ज्यादातर फोन पर बात करता था. खासकर रात को, लेकिन अब मनीषा भी उसे रात को फोन करने लगी थी. ऐसे में उस ने मनीषा को घरवालों का बहाना कर के रात को फोन करने से मना कर दिया और चैट पर बात करने को कहा. अब नितिन ईयरफोन लगा कर नीतिका से बात करता और साथ ही साथ मनीषा के मैसेजेस के जवाब भी देता.

नितिन और मनीषा कई बार फ्लैट में भी मिल चुके हैं. दरअसल, मनीषा अपने कुछ दोस्तों के साथ फ्लैट में रहती है. जब कभी उस के दोस्त नहीं होते तो वह नितिन को फ्लैट पर बुला लिया करती है. ऐसे में दोनों एकदूसरे के काफी क्लोज भी हुए. दोनों ने कई बार सैक्स का भी मजा लिया. नितिन मनीषा पर खर्च भी करता. लेकिन उस को इस का कोई दुख नहीं था क्योंकि उसे मनीषा से जो चाहिए था वह तो मिल ही रहा था.

एक दिन नितिन के पास नीतिका का फोन आया और उस ने अगले दिन मिलने के लिए कहा. नितिन ने भी हां बोल दिया. रात को वह मनीषा से बोलने ही वाला था कि वह कल मिल नहीं सकता, तभी मनीषा का मैसेज आया, ‘नितिन, हम कल मिल नहीं पाएंगे. दरअसल, मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है.’ नितिन ने फोन कर के हालचाल पूछा और आराम करने को कहा.

अगले दिन नीतिका और नितिन मिले. दोनों ने साथ मूवी देखी. मूवी देखने के बाद जब दोनों रैस्तरां की तरफ खाने के लिए जाने लगे, तब नितिन ने मनीषा को वहां पर बैठे देखा.

जरूरी है होशियारी

डबल डेट करने वाले लड़के हों या लड़कियां, खतरे की घंटी दोनों के सिर पर मंडराती है. यदि लड़की डबल डेट कर रही है तो एक तो घर पर पकड़े जाने का डर, दूसरा, दोस्तों से छिपाना पड़ता है. तीसरा, दोनों बौयफ्रैंड्स को होशियारी से मैनेज करना पड़ता है. फोन पर कोई भी पोस्ट बौयफ्रैंड के साथ नहीं डाल सकते और फोटो को फोन में छिपा कर रखना भी पड़ता है.

ऐसा ही कुछ लड़कों के साथ भी होता है. लेकिन लड़कों को इन सब के साथ जेब भी ढीली करनी पड़ती है. हां, अगर लड़की सुंदर और बोल्ड हो तो उन्हें जेब ढीली होने का गम नहीं होता.

डबल डेट करते वक्त होशियारी दिखाना बहुत जरूरी है. यदि आप के डबल डेटिंग के बारे में किसी भी पार्टनर को पता चल जाता है तो आप का नाम चीटर और लायर की लिस्ट में जुड़ जाएगा. इस से आप की इमेज भी डाउन हो सकती है. लेकिन डबल डेटिंग के बहुत से फायदे भी होते हैं.                   –

डबल डेटिंग के फायदे

– अगर आप का पार्टनर आप को डिच करता है, तो आप को उस के डिच करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि आप के पास आप का दूसरा पार्टनर अभी भी है.

– यदि आप का किसी एक पार्टनर से ब्रेकअप हो जाता है तो आप के साथ दिल टूटने वाली कंडीशन नहीं होगी.

– आप इमोशनली सिक्योर रहेंगे.

– यदि आप का एक पार्टनर आप के लिए उपस्थित नहीं है तो आप अपने दूसरे पार्टनर की मदद ले सकते हैं.

– आप कभी खुद को अकेला महसूस नहीं करेंगे, कोई न कोई आप के लिए मौजूद रहेगा.

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जब मिले धोखा

जब नितिन ने रैस्तरां में मनीषा को देखा तो वह घबरा गया. उस ने नीतिका से बाहर जाने को कहा और वापस रैस्तरां की तरफ गया. वहां उस ने मनीषा को एक लड़के के साथ बैठे देखा, जो उसे प्यार से खाना खिला रहा था और उस के हाथों को चूम रहा था. यह सब देख कर नितिन मनीषा के पास गया. नितिन को देख कर मनीषा के चेहरे पर शांति छा गई. नितिन ने उस लड़के के सामने ही मनीषा को बुराभला कहा और वहां से चला गया.

मनीषा के धोखे से नितिन को कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वह भी डबल डेट कर रहा था. अगर वह मनीषा के साथ लौयल रहता तो शायद उसे फर्क पड़ता. यहां तो दोनों ही एकदूसरे को धोखा दे रहे थे.

पत्नियों की इन 7 आदतों से चिढ़ते हैं पति

पति और पत्नी का रिश्ता भी अनोखा है. यह कुछ खट्टा है, तो कुछ मीठा. पति पत्नी के बिना रह भी नहीं सकते हैं, तो उन की कई आदतों से पतियों को चिढ़न भी होती है. कभीकभी पति झगड़े के दौरान अपनी नापसंद का खुलासा कर देते हैं, तो कभी कलह के डर से चुप रह कर मन ही मन कुढ़ते रहते हैं. आइए, जानते हैं कि पत्नियों की वे कौन सी आदतें हैं, जो पतियों को पसंद नहीं होतीं और उन से वे परेशान हो उठते हैं:

1. दूसरी महिलाओं की प्रशंसा से ईर्ष्या

अकसर दूसरी किसी महिला की प्रशंसा अपने पति के मुंह से सुनते ही पत्नी के चेहरे का रंग बदल जाता है. उस के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है. मन में शक का बीज पनप जाता है. उसे लगने लगता है कि अवश्य ही पति उस महिला की ओर आकर्षित हो रहा है. कुछ महिलाएं भावुक हो कर पति को खरीखोटी भी सुनाने लगती हैं या फिर मुंह फुला कर बैठ जाती हैं. बहुत सी तो आंखों से आंसू बहाते हुए यह भी कहने लगती हैं कि तुम्हें तो मेरी कोई चीज अच्छी ही नहीं लगती. सारा दिन उसी के गुण गाते रहते हो. उसी के पास चले जाओ. पतियों को पत्नियों की यह आदत बिलकुल अच्छी नहीं लगती.

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2. सैक्स को हथियार बनाना

सैक्स पति और पत्नी दोनों की नैसर्गिक जरूरत होती है. लेकिन पत्नियां कई बार इस प्राकृतिक जरूरत को अपना हथियार बना लेती हैं. कोई भी ऐसी बात मनवानी हो या हलकी सी भी झड़प हो जाए तो वे पति को सब से पहले सैक्स से ही वंचित करती हैं. एक ही बिस्तर पर होने के बावजूद मुंह विपरीत दिशा में कर के सो जाती हैं. पत्नियों की यह आदत पतियों को नागवार लगती हैं.

3. बात घुमाफिरा कर कहना

कई पत्नियां किसी भी बात को साफसाफ नहीं कहतीं. हमेशा घुमाफिरा कर संकेत देने की कोशिश करती हैं. ऐसे में जब पति उन का मकसद नहीं समझ पाते, तो वे ताने कसने लगती हैं. फिर भी पति इशारे को समझ नहीं पाते तो वे चिड़चिड़ी हो कर गलत व्यवहार करने लगती हैं. अत: पति चाहते हैं कि पत्नी जो भी कहना चाहे साफसाफ कहे.

4. पर्सनल चीजों से छेड़छाड़

अपनत्व, एकाधिकार जताने के लिए जब पत्नियां औफिस बैग, पैंटशर्ट की जेब, पर्स, मोबाइल, लैपटौप जैसी चीजों से छेड़छाड़ करती हैं या उन की स्कैनिंग करती हैं, तो इस से पतियों को मन ही मन बहुत कोफ्त होती है. ज्यादा परेशानी तो तब महसूस होती है जब वे किसी महिला फिर चाहे वह कोई क्लाइंट ही क्यों न हो, का फोन एसएमएस, फोटो या कोई कागजात देख कर उस के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करने लगती हैं. पर्स में ज्यादा रुपए देख कर पूछने लगती हैं कि ये कहां से आए, किस ने दिए आदि.

5. लगातार बोलते रहना

कई पत्नियां एक बार बोलना शुरू हो जाए, तो नौनस्टौप बोलती रहती हैं. पता नहीं उन के पास इतनी बातों का स्टौक कहां से आता है. सहेली की शादी में जा कर आएं, डाक्टर को दिखा कर आएं, पड़ोसी के घर में नया टीवी आए, विषय कोई भी हो, वे उस की रनिंग कमैंट्री शुरू कर देती हैं. 1-1 मिनट का ब्योरा पूरे विस्तार के साथ देने लगती हैं. जबकि पति चाहते हैं कि बातचीत सीमित हो. टू द पौइंट हो.

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6. हर वक्त टोकाटाकी

कुछ पत्नियां हर वक्त टोकाटाकी करती रहती हैं. मानों उन्हें अपने पति की हर गतिविधि या आदत पर एतराज होता है. जैसे आज यह ड्रैस क्यों पहनी? आज जल्दी क्यों जा रहे हो? आज देर से क्यों आए? इतने फोन क्यों करते हो? 2-2 मोबाइल क्यों रखते हो? ऐसे सवालों की बहुत लंबी लिस्ट है, जिन्हें पूछपूछ कर पत्नियां पतियों को पका देती हैं.

7. शौपिंग की लत

शौपिंग करना पत्नियों की बड़ी कमजोरी है. कई बार तो वे टाइमपास या मन बहलाने के लिए शौपिंग करती हैं. उन की शौपिंग बड़ी बोरिंग होती है. 1-1 चीज को ध्यान से देखना और उस की कीमत पूछना, कपड़ों को अपने शरीर से लगालगा कर देखना, बिना जरूरत खानेपीने की चीजों को खरीदना, डिस्काउंट के लालच में अधिक मात्रा में खरीद लेना और फिर फेंक देना आदि सचमुच इरिटेटिंग आदतें हैं. पति इन से बहुत ज्यादा चिढ़ते हैं.

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