Health tips: तनाव दूर करने के 5 आसान टिप्स

आप वास्तव में स्वस्थ रहना चाहती हैं, तो शरीर के साथसाथ दिमाग को भी स्वस्थ रखें. कई दफा बीमारियां और शारीरिक पीड़ाएं मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक पहलू से भी जुड़ी होती हैं, जिन पर आमतौर पर हम ध्यान नहीं देते. उदाहरण के लिए फाइब्रोसाइटिस को ही ले लें. यह ऐसी स्थिति है जिस से मांसपेशियों में दर्द, नींद और मूड से संबंधित समस्याएं हो सकती है. यह समस्या पुरुषों से कहीं ज्यादा महिलाओं में दिखती है और यह ताउम्र भी रह सकती हैं. इस की कई वजहें हो सकती हैं जैसे आर्थ्राइटिस, संक्रमण या फिर व्यायाम की कमी. ऐसे में जरूरी है कि शरीर के साथसाथ मानसिक सेहत का भी खयाल रखा जाए.

स्वास्थ्य पर असर

मानसिक बीमारियों की शुरुआत डिप्रैशन से होती है. एक व्यक्ति जब किसी बात को ले कर थोड़े समय के लिए उदास होता है, तो उस के खतरनाक नतीजे नहीं होते. मगर जब उदासी लंबे समय तक बनी रहे तो यह डिप्रैशन में बदल जाती है और व्यक्ति हमेशा उदास, परेशान, तनहा रहने लगता है, नकारात्मक बातें करता है और दूसरों से मिलने से कतराता है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है.

दिल्ली जैसे महानगरों में लोग डिप्रैशन के साथसाथ टैंशन के भी शिकार हो रहे हैं. एक तरफ अधिक से अधिक रुपए कमाने की जरूरत तो दूसरी ओर रिश्तों में बढ़ रहा तनाव और एकाकी जीवन लोगों में टैंशन यानी तनाव बढ़ा रहा है.

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वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 35% से ज्यादा लोग ऐक्सरसाइज करने में आलस करते हैं. शारीरिक रूप से कम सक्रियता व्यक्ति के लिए दिल की बीमारियों, कैंसर, डायबिटीज और हड्डियों के रोगों के साथसाथ मानसिक रोगों का भी खतरा बढ़ाती है.

इन बातों का रखें खयाल

व्यायाम करें: व्यायाम करने से ऐंडोर्फिन हारमोन का संचार बढ़ता है. यह एक ऐसा हारमोन है जो दर्द और तनाव से लड़ता है और अच्छी नींद लाने में सहायक होता है. रोज स्ट्रैचिंग, वाकिंग, स्विमिंग, डांसिंग जैसे व्यायाम मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं.

सामाजिक बनें: अध्ययनों के मुताबिक जिन लोगों को सामाजिक सहयोग मिलता है वे तनाव, डिप्रैशन और दूसरे मानसिक रोगों से दूर रहते हैं. फिर अपनी समस्याओं को दूसरों से डिस्कस करने पर नए रास्ते भी मिलते हैं और तनाव भी घटता है.

पसंदीदा काम करें: अकसर लोग अपनी हौबी के लिए समय नहीं निकाल पाते, जो ठीक नहीं है. अपनी हौबी को अपनाएं. इस से जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता है और सोच सकारात्मक होती है. अपने अंदर की रचनात्मकता को बाहर लाएं. यह कोई भी काम जैसे लेखन, बागबानी, कौमेडी, कुकिंग आदि कुछ भी हो सकता है.

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किसी के लिए कुछ कर के देखें: अपने लिए तो हम सभी जीते हैं, मगर कभीकभी दूसरों के लिए भी कुछ कर पाने की खुशी मन से मजबूत बनाती है. किसी की मदद करना, किसी अजनबी को कुछ देना या फिर अपनों के काम आना जैसे कार्य आप को आनंद से भर देंगे. यानी लोगों की तारीफ करें और उन्हें खुशी दें.

दूसरों की परवाह न करें: लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे जैसी बातें अकसर हमारे दिमाग के संतुलन को बिगाड़ देती हैं. इसलिए दूसरों की परवाह किए बगैर वह करें जो आप को सही लगे.

मेरे सिर में लगातार दर्द हो रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 52 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले कुछ महीनों से मुझे लगातार सिरदर्द हो रहा है. थोड़े दिनों से रात में भी इतना तेज दर्द होता है कि नींद खुद जाती है. मैं क्या करूं?

जवाब-

कभीकभी सिरदर्द हो तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर आप को लगातार कई दिनों से सिरदर्द हो रहा हो, रात में तेज सिरदर्द होने से नींद खुल रही हो, चक्कर आ रहे हों, सिरदर्द के साथ जी मिचलाने और उलटियां होने की समस्या हो रही हो तो समझिए कि आप के मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ रहा है. मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ने का कारण ब्रेन ट्यूमर हो सकता है. अगर आप पिछले कुछ दिनों से इस तरह की स्थिति का सामना कर रही हैं तो सतर्क हो जाएं और तुरंत डायग्नोसिस कराएं.

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अगर आपको अक्सर ही सिरदर्द और सुस्ती की शिकायत रहती है या फिर देखने बोलने में भी समस्या होती है, तो सावधान हो जाइये क्योंकि हो सकता है कि आपके ऊपर ब्रेन ट्यूमर का खतरा मंडरा रहा हो. बता दें कि ट्यूमर दो तरह का होता है. एक जिसे ब्रेन कैंसर कहा जाता है और दूसरा सामान्य ट्यूमर. ब्रेन कैंसर स्वास्थ्य के लिए घातक होता है. हालांकि दोनों ही तरह के ट्यूमर में दिमाग की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती हैं.

दिमाग में किसी एक या अधिक कोशिकाओं के असामान्य रूप से बढ़ने की वजह से ब्रेन ट्यूमर होता है. ब्रेन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकता है और जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती है बढ़ती ट्यूमर का खतरा भी बढ़ता जाता है. ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों को पहचानना बहुत मुश्किल है. ऐसे में कई बार मरीज को पता ही नहीं चलता कि उसे ब्रेन ट्यूमर है.

आज हम आपको ब्रेन ट्यूमर के कुछ सामान्य लक्षणों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे आप समय रहते इसकी पहचान कर उपचार करा सकती हैं.

लगातार सिरदर्द का बने रहना

सिरदर्द के वैसे तो कई सारे कारण हो सकते हैं, लेकिन लगातार सिरदर्द होने का एक कारण ब्रेन ट्यूमर भी है. अन्य कारणों से सिरदर्द और ब्रेन ट्यूमर की वजह से होने वाले सिरदर्द में अंतर कर पाना डाक्टर्स के लिए भी काफी मुश्किल होता है. ऐसे में अगर आपको सर्दी, खांसी और छींक के साथ लगातार सिरदर्द हो रहा हो और उपचार करने के बावजूद ठीक नहीं हो रहा हो तो यह ब्रेन ट्यूमर का लक्षण हो सकता है. ऐसा होने पर जल्द ही डाक्टर के पास जाए और उसका परामर्श लें.

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Health Tips: Nails से जानिए सेहत का राज

गलत खान-पान और गलत जीवनशैली का प्रभाव हमारे शरीर पर हमेशा पड़ता है, जिसे हम नहीं जान पाते और जब तक इस बारें में पता चलता है, तब तक बहुत देर हो जाती है. हमारे नाखून भी ऐसे ही है, जो हमारे शरीर की आधी बीमारी को बताने में सफल होते है. असल में नाखून हमारे शरीर में किस चीज की कमी है या कौन सी बिमारी दस्तक दे रही है, उसकी कंडीशन क्या है आदि सभी बातें आसानी से बता देती है. इसके अलावा सालों साल आप क्या खा रहे है या किसे अधिक खा रहे है, इन सबका असर नाखूनों पर पड़ता है. नाखून की सतह पर सफेद दाग या धब्बे या नाखूनों का ‘ब्रिटल’ होना या नीला पड़ जाना, उसके आकार में परिवर्तन होना आदि शामिल है.

इस बारें में मुंबई की ‘द स्किन इन’ की डर्मेटोलोजिस्ट डा. सोमा सरकार बताती है कि नाखूनों की सहायता से मिनरल्स, विटामिन्स की कमी के अलावा मालन्युट्रिशन, थाइरोइड डिसआर्डर, एनीमिया, कार्डियाक डिसीज, लंग्स डिसआर्डर आदि बीमारियों का पता आसानी से लगाया जाता है. हेल्दी नाखून का रंग हमेशा हल्का गुलाबी होता है. हर दिन हेल्दी नाखून 0.003 मिलीमीटर से 0.01 मिलीमीटर तक बढ़ता है, लेकिन ये व्यक्ति की उम्र और स्वास्थ्य पर निर्भर करता है. कम उम्र में नाखून जल्दी बढ़ते है जबकि अधिक उम्र होने पर इसके बढ़ने की रफ्तार कम हो जाती है. ठंडी में नाखून जल्दी नहीं बढ़ पाते, जबकि गर्मी के मौसम में ये जल्दी बढ़ते है. यहां कुछ बातें निम्न है, जिसे जानना जरुरी है,

– अगर नाखून के आकार तोते की चोंच के तरह हो रहे है तो, व्यक्ति को कार्डिएक की बीमारी या लंग्स डिसआर्डर होने की संभावना होती है,

– नाखून की सतह पर सफेद स्पाट या लकीरे होने पर बायोटिन की कमी होती है, बायोटिन हमारे शरीर में उपस्थित बैड कोलेस्ट्रोल को घटाकर शरीर को उर्जा प्रदान करती है, इसके अलावा ऐसे नाखून लीवर सम्बन्धी बिमारी की ओर इशारा करते है, इसके लिए फ्रेश वेजिटेबल्स और सलाद का खाना लाभदायक होता है.

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– कैल्शियम, प्रोटीन और विटामिन्स की कमी से नाखून ‘ब्रिटल’ हो जाते है, इसमें नाखून के ऊपर से पपड़ी निकलने लगते है, असल में ऐसे नाखूनों में ब्लड सर्कुलेशन कम होता है, ऐसे नाखून वाले व्यक्ति अधिकतर थाइरोइड या आयरन की कमी के भी शिकार होते है, जिसे समय रहते इलाज करना जरुरी है, एग, फिश, बादाम, आलमंड्स आदि का सेवन भी इसमें लाभदायक होता है.

– नीले रंग के नाखून वाले अधिकतर व्यक्ति श्वास की बिमारी, निमोनिया या दिल से सम्बंधित बिमारियों से पीड़ित होने की संभावना होती है.

– पीले नाखून वाले व्यक्ति अधिकतर पीलिया के शिकार होते है, इसके अलावा सिरोसिस और फंगल इन्फेक्शन जैसी बीमारियां उन्हें हो सकती है, धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के नाखून भी पीले या बदरंग हो जाते है.

– आधे सफेद और आधे गुलाबी रंग के नाखून वाले व्यक्ति को किडनी से सम्बंधित बीमारियां हो सकती है, ऐसे नाखून खून की कमी को भी संकेत देती है.

– सफेद रंग के नाखून लीवर से सम्बंधित बिमारियों जैसे हेपेटाइटिस की खबर देते है.

– कई बार नाखूनों के आस-पास की त्वचा सूखने लगती है, इसे अनदेखा न करें, ये विटामिन सी, फोलिक एसिड या प्रोटीन की कमी से होती है, इसलिए अपने आहार में प्रोटीनयुक्त पदार्थ, पत्तेदार सब्जियां आदि लें.

इसके आगे डा. सोमा कहती है कि महिलाएं खासकर पानी में अधिक काम करती है. इसलिए उनमें नाखून की बिमारी अधिक देखी जाती है, ऐसे में उन्हें अपने नाखूनों की देखभाल अच्छी तरह से करनी चाहिए, जो निम्न है.

– काम करने के बाद हल्के गरम पानी से नाखूनों को साफ करने के बाद, नेल क्रीम या किसी भी कोल्ड क्रीम से अपने नाखूनों को मोयास्चराइज करें.

-एसीटोन युक्त नेल रिमूवर से नेलपॉलिश कभी साफ न करें.

– नाखूनों को समय-समय पर काटकर उसे नेल फाइलर द्वारा साफ करें.

– नेल पालिश लगाने से पहले नेल हार्डर लगाकर नेलपालिश लगायें, जिससे नाखून केमिकल से सुरक्षित रहे.

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– नाखून की बाहरी त्वचा का खास ध्यान रखें, नेल क्यूटिकल्स ही नाखूनों को फंगल और बेक्टेरिया के इन्फेक्शन से बचाते है.

– खाने में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स वाले पदार्थ अधिक लें.

नाखून, हेयर और स्किन हमारे अंदर की स्वस्थता को प्रतिबिंबित करते है, इसलिए उसमें आये किसी भी परिवर्तन को नजरंदाज नहीं करना चाहिए और समय रहते डाक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए.

मेरे बेटे के दूध के दांत में कीड़ा लगा है, क्या यह इलाज जरूरी है?

सवाल

मेरे 9 वर्षीय बेटे के दूध के दांत में कीड़ा लगा है. घर में सभी बड़ों का कहना है कि हमें अनावश्यक ही उस का इलाज कराने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. दूध का दांत है निकल ही जाना है. पर जब जब किसी कारण हम उसे बच्चों के डाक्टर के पास ले जाते हैं, तो वह हमें इस का इलाज कराने की सलाह देता है. क्या यह इलाज सचमुच जरूरी है?

जवाब

आप के बेटे का डाक्टर बिलकुल सही सलाह दे रहा है. दांत में कीड़ा लगे रहने से बच्चे के स्वास्थ्य पर कई तरह से बुरा असर पड़ सकता है. उस के मुंह से बास आने से दूसरे बच्चे उस से कन्नी काटने लग सकते हैं, बच्चे को भोजन चबाने में दिक्कत हो सकती है, जिस के चलते उस के जबड़े का विकास ठीक से नहीं हो पाएगा. यह इन्फैक्शन दांत की मज्जा से जबड़े की हड्डी में भी फैल सकता है. इतना ही नहीं, कुछ नए शोध अध्ययनों के अनुसार इस के फलस्वरूप आगे चल कर शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव भी देखने में आ सकते हैं. अत: समय से इलाज करा लेने से बच्चा इन सब परेशानियों से आसानी से बच सकता है.

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बच्चों को भी साफसफाई और स्वस्थ आदतों के बारे में समझाना चाहिए. साफसुथरा रहने से वे न केवल स्वस्थ रहेंगे, बल्कि उन का आकर्षण और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. बचपन की आदतें हमेशा बनी रहती हैं इसलिए जरूरी है कि वे बचपन से ही हाइजीन के गुर सीखें.

ओरल हाइजीन

ओरल हाइजीन प्रत्येक बच्चे की दिनचर्या का एक प्रमुख अंग होना चाहिए. ऐसा करने से बच्चा कई बीमारियों जैसे कैविटी, सांस की बदबू और दिल की बीमारियों से बचा रहेगा.

क्या करें

– बच्चे ध्यान रखें कि रोजाना दिन में 2 बार कम से कम 2 मिनट के लिए अपने दांतों को ब्रश से साफ करें. खासतौर पर खाना खाने के बाद सफाई बहुत ही जरूरी है.

– बच्चे कम उम्र से ही रोजाना ब्रश और कुल्ला करने की आदत डालें.

– टंग क्लीनर से जीभ साफ करना सीखें.

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ताकि गैजेट्स का आंखों पर न हो असर

टैक्नोलौजी डिजिटलाइजेशन के इस युग में खुद को उन का मुरीद होने से रोक पाना मुश्किल है. कंप्यूटर, स्मार्टफोन, टैबलेट्स, लैपटौप्स और टैलीविजन जैसे डिजिटल डिवाइस अब सिर्फ लोगों की जरूरत नहीं रह गए हैं, बल्कि अब लोग इन के ऐडिक्ट हो चुके हैं. हमारे इस ऐडिक्शन की कीमत हमारी आंखों को चुकानी पड़ती है. इन गैजेट्स व डिवाइस के चलते हमारी आंखें न सिर्फ थक जाती हैं, बल्कि उन में जलन व लाल होने की शिकायत भी होने लगती है. ऐसी तकलीफों से बचने के लिए पेश हैं, कुछ टिप्स:

रूटीन चैकअप: अगर आप कंप्यूटर में लगातार काम करती हैं, तो साल में 1 बार नेत्रविज्ञानी के पास जरूर जाएं. अगर आप की आंखें लाल रहती हैं और उन में खुजली होती है तो समझ लीजिए कि आप की आंखों को जांच की जरूरत है.

रिड्यूस ग्लेयर: सिस्टम के मौनिटर पर ऐंटीग्लेयर स्क्रीन जरूर लगवाएं. संभव हो तो अपने आसपास की दीवारों पर गहरे रंग का पेंट करवाएं. इस से रिफ्लैक्शन की प्रक्रिया रुक जाती है, जो आप की आंखों को आराम पहुंचाती है.

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बे्रक लें: लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करते रहना आंखों को नुकसान पहुंचाता है. कंप्यूटर की स्क्रीन पर एकटक देर तक देखना सही नहीं है. हर 1 घंटे में कुछ मिनट का बे्रक जरूर लें.

स्पैक्ट्स में प्रोटैक्टिव लैंस का प्रयोग: सही लैंस के इस्तेमाल से आंखों को सुरक्षित रखा जा सकता है. कौंटैक्ट लैंस आंखों की नमी को बचाने का काम करते हैं. कंप्यूटर पर लगातार काम करते रहने से आंखों की नमी को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में सही लैंस का चुनाव करना बेहद जरूरी है. इसिलोर के क्रिजाल प्रिवेंसिया आंखों के लिए बहुत लाभकारी हैं. ये लैंस कंप्यूटर और स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट से आंखों को बचाते हैं.

ऐक्सरसाइज आंखों की: अपनी हथेलियों को तब तक रगड़ें जब तक वे गरम न हो जाएं. इस के बाद उन्हें आंखों पर रखें. इस से आंखों को आराम मिलता है. लगातार कंप्यूटर पर काम करने व इस के प्रभाव से आंखों को बचाने के लिए आप 20-20-20 रूल फौलो कर सकती हैं. अपनी कंप्यूटर स्क्रीन से हर 20 मिनट में 20 सैकंड के लिए नजरें हटाएं तथा कंप्यूटर के बीच की दूरी कम से कम 20 इंच बनाए रखें.

सही रोशनी: बहुत ज्यादा रोशनी होने से आंखों पर तनाव पड़ता है. ऐसे में बहुत ज्यादा रोशनी वाले स्थान पर कंप्यूटर में काम न करें. फ्लोर लैंप की रोशनी कंप्यूटर पर काम करने के लिए सही रहती है.

पानी का चमत्कार: पानी वाकई चमत्कारी होता है. आंखों को दिन में कई बार पानी से धो कर आप न सिर्फ उन्हें साफ बल्कि तरोताजा भी रख सकती हैं. थोड़ेथोड़े अंतराल में पानी पीते रहने से भी आंखों को फायदा होता है. लगातार कंप्यूटर पर काम करते रहने से आंखों से किनारे पर सूजन आ जाती है. पानी पीते रहने से आप इस परेशानी से दूर रह सकती हैं.

सही पोश्चर: कंप्यूटर पर काम करने के दौरान आप के बैठने के पोश्चर से आंखों से विजन पर बहुत फर्क पड़ता है. आप के काम करने की जगह का स्ट्रक्चर व कुरसी भी आंखों पर असर डालती है. काम करने के दौरान कंप्यूटर से आप की आंखों की दूरी करीब 20 से 24 इंच होनी चाहिए और कंप्यूटर की स्क्रीन आंखों से 10 से 15 इंच नीचे होनी चाहिए. आप डैस्क लैंप भी प्रयोग कर सकती हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि लैंप की रोशनी बहुत ज्यादा  हो.

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हैल्दी डाइट: बैलेंस डाइट के जरीए आप विटामिन ए, सी और ई की कमी को दूर कर सकती हैं. ये सभी विटामिन आंखों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी होते हैं. फल, सब्जियां खाएं. इन में टमाटर, पालक और हरी पत्तेदार सब्जियां लें. डाक्टर आंखों के स्वास्थ्य के लिए मछली खाने की सलाह भी देते हैं. इस से ओमेगा-3 मिलता है, जो आंखों के लिए अच्छा होता है.

– शिव कुमार
सीईओ, इसिलोर इंडिया

क्या है एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस, जानें इस खतरनाक बीमारी के बारे में

पांच वर्ष पूर्व सुरेश (रोगी के अनुरोध पर बदला हुआ नाम) की गर्दन में तेज दर्द हुआ था. इसके डेढ़ वर्ष बाद सुरेश की कमर में अत्यंत पीड़ादायी दर्द रहने लगा. उन्होंने डाक्टर को दिखाया, लेकिन सही जांच नहीं हो पाई, क्योंकि उनके स्कैन और एक्स-रे सामान्य थे. सुरेश को कमर में सुबह दर्द और अकड़न होती रही.

दर्द के चलते सुरेश दैनिक कार्य करने में असमर्थ थे. केवल 23 वर्ष की आयु में मित्र और परिजन उनके साथ दुर्व्यवहार करने लगे और उन्हें ‘आलसी’ कहना शुरू कर दिया. उनकी अक्रियता और काम न करने की इच्छा का कारण उनके वजन को माना गया. दर्द और दुर्व्यवहार से कुंठित होकर सुरेश को अपना काम बदलना पड़ा. इस समय वह एक दिन में 2 पेनकिलर ले रहे थे.

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तुरंत राहत पाने की इच्छा से सुरेश ने एक और्थोपेडिशियन को दिखाया. डाक्टर की सलाह पर उन्होंने एमआरआई स्कैन करवाया, जिसमें एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस का पता चला. और्थोपेडिशियन ने सुरेश को कुछ कसरत बताई, ताकि वह सक्रिय रहें और रूमैटोलौजिस्ट को दिखाने के लिये भी कहा, ताकि लंबी अवधि में उनकी रीढ़ को क्षति न हो. रूमैटोलौजिस्ट ने सुरेश को बायोलौजिक्स के एक कैटेगरी में उपचार की सलाह दी. बायोलौजिक्स द्वारा उपचार से सुरेश शारीरिक क्षति से बच गये और आज वह घर और औफिस, दोनों जगह सक्रिय हैं.

एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस (एएस) एक अपरिवर्तनीय, दाहक और स्व-प्रतिरक्षित रोग है, जो रीढ़ को प्रभावित करता है. इसे रीढ़ का गठिया भी कहा जाता है, इसमें रीढ़ बढ़ जाती है और उसका लचीलापन चला जाता है.

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इसे अक्सर कमर का आम दर्द समझा जाता है, लेकिन सुबह उठने के बाद यदि कमर में 30-45 मिनट तक दर्द या अकड़न रहे और ऐसा 90 दिनों या अधिक समय तक हो, तो यह एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस हो सकता है. यह किसी को भी हो सकता है, लेकिन आम तौर पर पुरूषों में पाया जाता है, किशोरवय में या 20 से 30 वर्ष की आयु के बीच.

नई दिल्ली में एम्स के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. दानवीर भादू ने कहा,  “एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस एक पुरानी और शरीर में कमजोरी लाने वाली बीमारी है. हालांकि अलग-अलग कारणों से मरीजों को इसके बेहतर इलाज के विकल्प नहीं मिल पाते. बायोलॉजिक थेरेपी अपनाकर हम शरीर की संरचनात्मक प्रक्रिया में नुकसान को कम से कम कर सकते है और मरीजों में चलने-फिरने की स्थिति में सुधार कर सकते हैं. कई मरीज रीढ़ की हड्डीघुटनों और जोड़ों में दर्द के इलाज के लिए अन्य तरीके अपनाने लगते हैंजिससे लंबी अवधि बीतने के बाद भी मरीजों को रोग में कोई आराम नहीं पहुंचता. मरीजों में एलोपैथिक दवा के साइड इफेक्ट्स का डर और गैरपारंपरिक दवाइयों की शाखा जैसे होम्योपैथिक और यूनानी जैसी चिकित्सा विज्ञान की शाखाओं पर विश्वास अब भी बना है. वैकल्पिक दवाएं लेने से रीढ़ की हड्डी के बीच कोई ओर हड्डी पनपने का खतरा रहता हैजिससे वह पूरी तरह सख्त हो सकती है और मरीज के व्हील चेयर पर आने का खतरा रहता है.  

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एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस में सबसे आम चुनौती यह है कि रोगी केवल दर्द से राहत पर ध्यान देता है. पेनकिलर्स और कसरत से कुछ हद तक स्थिति को नियंत्रण में किया जा सकता है, लेकिन जांच और प्रभावी उपचार में विलंब से रीढ़ और गर्दन इस तरह मुड़ सकती है कि आगे देखने के लिये गर्दन को उठाना असंभव हो जाए. इसे ‘स्ट्रक्चरल डैमेज प्रोग्रेशन’ कहा जाता है. और क्षति होने पर रोगी व्हीलचेयर पर आ सकता है. इसलिये एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस से पीड़ित व्यक्ति को रूमैटोलौजिस्ट से सलाह लेनी चाहिये और प्रभावी उपचार विकल्प का पालन करना चाहिये. मेडिकल उपचार के अलावा परिजनों, मित्रों और सहकर्मियों के सहयोग से रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है.

पीरियड्स के ‘बर्दाश्त ना होने वाले दर्द’ को चुटकियों में करें दूर

पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इस दौरान महिलाओं को बहुत तेज दर्द का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वो दवाइयों का सहारा लेने लगती हैं. पीरियड्स पेन में इस्तेमाल होने वाले पेन किलर्स हाई पावर वाले होते हैं. स्वास्थ पर उनका काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको पांच घरेलू टिप्स के बारे में बताएंगे जिनको अपना कर आप हर महीने होने वाले इस परेशानी से राहत पा सकेंगी.
तो आइए शुरू करें.

1. तले आहार से करें परहेज

पीरियड्स में आपको अपनी डाइट पर खासा ख्याल रखना होगा. इस दौरान तले, भुने खानों से दूर रहें. अपनी डाइट में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करें. ये काफी असरदार होते हैं.

2. तेजपत्ता

तेजपत्ता से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है. पीरियड्स से होने वाली परेशानियों में तेजपत्ता काफी कारगर होता है. महावारी के दर्द को दूर करने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं.

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3. हौट बैग

पीरियड्स में होने वाले दर्द में हौट बैग काफी कारगर होता है. इसको पेट के उस हिस्से पर रखना होता है जहां दर्द महसूस हो रहा है. ऐसा करने से आपको आराम मिलेगा.

4. कैफीन से रहें दूर

पीरियड्स के दौरान काफीन से दूरी बनाएं रखें. इस वक्त में इसके सेवन से गैस की परेशानी होती है. गैस के कारण कई बार दर्द बढ़ जाता है.

5. एक्सरसाइज को अपनी रूटीन में शामिल करें

डेली रूटीन में एक्सरसाइज को शामिल करने से आपको दर्द में काफी राहत मिलेगी. इससे ब्लौटिंग की परेशानी में भी काफी राहत मिलती है.  ब्लौटिंग की वजह से ही दर्द महसूस होता है. ऐसे में लाइट एक्‍सरसाइज करने से आपकी मसल्‍स रिलैक्‍स महसूस करेंगी.

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6. नमक से भी बना लें दूरी

पीरियड्स में ब्लौटिंग होना एक आम बात है. ऐसे में अगर आप पीरियड्स से कुछ समय पहले ही नमक का सेवन कम कर देती हैं तो आपकी किडनी को अत्यधिक पानी निकालने में मदद मिलने के साथ आपको दर्द में भी राहत मिलेगी.

इन छोटे संकेतों से पहचाने दिल की बीमारी का खतरा

 आम तौर पर ह्रदय रोग के लिए कोरोनरी आर्टर बीमारी प्रमुख कारण होता है. हृदय की अन्य बीमारियों में पेरिकार्डियल रोग, हृदय की मांसपेशियों से संबंधित समस्या, महाधमनी की समस्या हार्ट फेल होना, दिल की धड़कन का अनियमित होना हार्ट के वौल्व से संबंधित बीमारी जैसी कई बीमारियां हैं. इन परेशानियों से बचने के लिए जरूरी है कि आप इनके लक्षणों के बारे में जान लें. और जब भी आपको इनका आभास हो आप तुरंत डाक्टर से मशवरा लें.

ह्रदयघात के लक्षणों में छाती में भारीपन, भुजाओं या कंधों में, गले, जबड़े, पीठ या गर्दन में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. इसके अलावा धड़कन का बढ़ना, सांस लेने में परेशानी, चक्कर आना, पसीना आना जैसे अन्य लक्षण भी अहम हैं.

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यदि आपको आपकी छाती पर भार महसूस हो रहा है या छाती की मांसपेशियों में खिंचाव महसूस हो रहा है इसका मतलब है कि आपका ह्रदय स्वस्थ नहीं है. वो अच्छे से काम नहीं कर रहा है.

वहीं आप कसरत करने के बाद छाती में दर्द महसूस करते हैं या आपको कुछ ज्यादा थकान महसूस होती हो तो इसका अर्थ है कि आपके हृदय के रक्त प्रवाह में कुछ गड़बड़ी है.

यदि आपको हल्का फुल्का काम करने के बाद भी सांस लेने में परेशानी हो रही है, या जब आप लेटें तब आपको सांस लेने में परेशानी हो रही हो, तो समझ जाइए कि आपके ह्रदय में कुछ परेशानी है.

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इसके अलावा थोड़ा काम करने के बाद भी आपको थकान या चंचलता महसूस होती है तो ये ह्रदय ब्लाकेज के लक्षण हो सकते हैं.

यदि आप ज्यादातर वक्त थका हुआ महसूस करते हैं, इसके अलावा आपको अच्छे से नींद भी ना आती हो, अचानक से आपको थकान हो जाए, उल्टी का मन हो तो समझ जाइए कि आपको ह्रदय संबंधित परेशानी है.

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प्रेग्नेंसी में होती है मौर्निंग सिकनेस? ऐसे करें ठीक

27 वर्षीय अंजलि को प्रैगनैंट होते ही मौर्निंग सिकनेस की समस्या शुरू हो गई, लेकिन उस ने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि परिवार वालों ने कहा था कि यह आम बात है. 2-3 महीनों में यह समस्या ठीक हो जाती है. मगर अंजलि के साथ ऐसा नहीं हुआ. धीरेधीरे वह कमजोर होती गई. और फिर एक वक्त ऐसा आया कि चलने फिरने में भी असमर्थ महसूस करने लगी.

परेशान हो कर जब डाक्टर के पास आई तो उन्होंने बताया कि वह डिहाइड्रेशन की शिकार हो चुकी है, जो इस अवस्था में बिलकुल ठीक नहीं है और किसी भी वक्त मिस कैरेज हो सकता है. अंजलि को हौस्पिटल में दाखिल कर आईवी के द्वारा पानी और दवा दी गई. 2-3 दिनों में वह स्वस्थ हो गई. बाद में एक हैल्दी बच्चे को जन्म दिया.

बीमारी नहीं है यह

असल में प्रैगनैंसी में मौर्निंग सिकनेस आम बात है. यह कोई बीमारी नहीं, क्योंकि इस दौरान महिलाएं कई हारमोनल बदलावों से गुजरती हैं. पहली तिमाही में मौर्निंग सिकनेस ज्यादा होती है. इस बारे में मुंबई की ‘वर्ल्ड औफ वूमन क्लीनिक’ की डाइरैक्टर और स्त्रीरोग विशेषज्ञा बंदिता सिन्हा बताती हैं कि गर्भावस्था में मौर्निंग सिकनेस को अच्छा माना जाता है, करीब 60 से 80% महिलाओं को यह होती है, लेकिन बारबार होने पर शरीर से अधिक मात्रा में पानी बाहर निकल जाता है, जिस से निर्जलीकरण हो जाता है और इस का प्रभाव बच्चे और मां दोनों पर पड़ने लगता है.

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कुछ महिलाओं को सवेरे ही नहीं, पूरा दिन यह समस्या होती रहती है. लेकिन यह अधिक और 3 महीने के बाद भी होती है, तो डाक्टर की सलाह लेना जरूरी होता है, क्योंकि हारमोनल बदलाव 4-5 महीने तक ही रहता है. इस के बाद शरीर इसे एडजस्ट कर लेता है.

बारबार उलटियां होने पर महिला थकान और कमजोरी महसूस करती है. इस से गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर असर पड़ता है. वह कुपोषण का शिकार हो सकता है, जिस से मिस कैरेज या समय से पहले डिलिवरी होने का डर रहता है.

गंभीर मौर्निंग सिकनेस को हाइपरमेसिस ग्रैविडेरम कहते हैं. इस का इलाज समय रहते करा लेना चाहिए ताकि बच्चा और मां दोनों स्वस्थ रहें. यह समस्या उन महिलाओं को अधिक होती है, जिन के जुड़वां या ट्रिप्लेट बच्चे होते हैं.

ऐसे करें काबू

इन बातों का ध्यान रखने से मौर्निंग सिकनेस को काबू में किया जा सकता है:

  • सुबह बिस्तर से उठते ही तुरंत ड्राई प्लेन बिस्कुट, ड्राई फ्रूट्स, सेब, इडली आदि का सेवन करें. बाद में कोई तरल पदार्थ या पानी पीएं.
  • थोड़ीथोड़ी देर बाद कुछ न कुछ खाती रहें.
  • जिस फूड की गंध से उलटी आती हो उसे न खाएं.
  • बाहर का खाना न खाएं, क्योंकि इस से अपच होने पर ऐसिडिटी की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से उलटियां होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.
  • खाना अधिक गरम न खाएं. हमेशा हलका ठंडा भोजन करें.
  • पानी, सूप, नारियल पानी, इलैक्ट्रोल पाउडर आदि का अधिक सेवन करें. फ्रूट जूस न लें, क्योंकि इस में कैमिकल होता है, जो कई बार नुकसानदायक साबित होता है.
  • वजन अधिक होने पर उलटियां होने के चांस अधिक रहते हैं, इसलिए वजन को काबू में रखें.
  • जिन्हें माइग्रेन या ऐसिडिटी अधिक होती हो, उन्हें भी उलटियां अधिक हो सकती हैं.
  • तनाव को दूर रखें.
  • पूरी नींद लें.

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ये घरेलू नुसखे भी अपना सकती हैं:

  • अदरक को नमक के साथ लेने पर काफी हद तक इस परेशानी को दूर किया जा सकता है.
  • पानी, नीबू और पुदीने के रस को मिला कर लेने से भी मौर्निंग सिकनेस दूर होती है.

इस के बाद भी अगर मौर्निंग सिकनेस की समस्या रहती है, तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन: शारीरिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण

शारीरिक विकास के लिए ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह कोशिकाओं के निर्माण और पुनर्निर्माण को बहाल करता है. छोटी उम्र में हार्मोन काफी तेजी से बनता है. यही ब्लड ग्रोथ हार्मोन हमें जवां बनाए रखता है. लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, हमारा शरीर हार्मोन बनाना कम कर देता है. 30 साल की उम्र के बाद हमारा शरीर ग्रोथ हार्मोन बनाना कम कर देता है यानी उम्र 10 साल बढ़ने में इस की क्षमता 25 फीसदी तक घट जाती है.

क्या है ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन

 यह हमारे शरीर में मौजूद जरूरी हार्मोन है. यह शरीर में मांसपेशियों और कोशिकाओं को विकसित करता है. ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन को पिट्यूटरी ग्लैंड बनाता है. इस हार्मोन के बिना शरीर में मांसपेशियों का गठन और बोन डोसिटी बढ़ना नामुमकिन है.

कद बढ़ाने में मददगार

इंसान के कद बढ़ाने में जिस तत्त्व का महत्त्वपूर्ण स्थान है, वह है ह्यूमन ग्रोथ होर्मोन. कैल्शियम का सेवन भी हमारे लिए काफी महत्त्वपूर्ण है. कैल्शियम से न केवल हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं बल्कि यह हमारे कद बढ़ाने में भी काफी मददगार साबित होता है. हम अपने कद को योग के द्वारा भी प्राकृतिक रूप से बढ़ा सकते हैं. योग तनावमुक्त रखने के साथ ही शारीरिक विकास में भी मददगार है.

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चीनी का सेवन कम करें

 डायबिटीज वाले लोगों के बजाय नौन डायबिटिक लोगों का ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन का लैवल 3-4 गुना ज्यादा होता है. इंसुलिन को सीधे तौर पर प्रभावित करने के साथ ही चीनी का अधिक इस्तेमाल करने से वजन और मोटापा भी तेजी से बढ़ता है और इस का असर ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन के स्तर पर पड़ता है. इसलिए ज्यादा से ज्यादा संतुलित आहार लेने की कोशिश करें, ताकि आप स्वस्थ रहें. आप जो भी आहार लेते हैं उस का सीधा प्रभाव आप के स्वास्थ्य, हार्मोन और शारीरिक बनावट पर पड़ता है.

रात को खाना कम खाएं

 रात को सोने से पहले कभी भी ज्यादा खाना न खाएं. अधिक कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन वाला आहार इंसुलिन को बढ़ाता है और रात को बनने वाले ग्रोथ हार्मोन को रोकता है. खाना खाने के 2-3 घंटे तक इंसुलिन का स्तर कम हो जाता है.

दिनचर्या बदलें

लगातार तनाव में रहना शरीर में ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन की मौजूदगी को कम करता है. हंसने और खुश रहने से शरीर को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, साथ ही ग्रोथ हार्मोन में भी बढ़ोतरी होती है. सिनेमा देखना भी काफी लाभप्रद है.

ग्रोथ हार्मोन को बढ़ाने की दवा

 मार्केट में ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन को बढ़ाने की काफी दवाएं मौजूद हैं, लेकिन इन का इस्तेमाल आप अपनी मरजी से नहीं कर सकते. इन का सेवन करने के लिए आप को अपने डाक्टर से सलाहमशवरा करना पड़ेगा. डाक्टर यदि जरूरी समझे तो कुछ समय के लिए इस के सेवन की अनुमति दे सकता है.

साइड इफैक्ट्स

 बिना जरूरत के ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन का इस्तेमाल करने से कई नुकसान हो सकते हैं. इस के ज्यादा सेवन से शरीर का कोई भी अंग बढ़ सकता है, जैसे हाथ, पैर और जबड़ा. इसलिए इस का इस्तेमाल आवश्यकतानुसार ही करें.

ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन कैसे बढ़ता है

  • व्यायाम शुरू करने के आधे घंटे बाद शरीर में ग्रोथ हार्मोन बनना शुरू होता है, जो 45 मिनट तक बढ़ता है यानी 60 मिनट तक स्थिर रहता है. इस के बाद इस का लैवल घटना शुरू हो जाता है.
  • शरीर दिन भर में जितना ग्रोथ हार्मोन बनाता है उस का 75 फीसदी निर्माण अच्छी नींद के दौरान करता है.
  • ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन के लिए विटामिन और अच्छी डाइट बहुत जरूरी है. विशेषज्ञ की सलाह के बिना सप्लीमेंट्स का इस्तेमाल कतई न करें.
  • शरीर में ग्रोथ हार्मोन बनाए रखने के लिए रोजाना जरूरी कैलोरी का 20 फीसदी हिस्सा शुद्ध फैट से हासिल होता है.

खास आहार बढ़ाए ग्रोथ हार्मोन

 स्वस्थ शरीर पाने के लिए ग्रोथ हार्मोन बहुत जरूरी है. यह मांसपेशियों के लिए काफी अहम है. इस के लिए प्रोटीनयुक्त भोजन का सेवन करें.

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मांसमछली का सेवन

 एमिनो एसिड के महत्त्वपूर्ण स्रोतों में एक खास है मांस और मछली, जो पूरी तरह प्रोटीन से भरपूर होते हैं. यह शरीर में ह्यूमन ग्रोथ होर्मोन बनाने में कारगर साबित होते हैं.

डेयरी और अंडे

 भरपूर प्रोटीन के लिए डेयरी प्रोडक्ट्स और अंडे भी खास हैं यानी ये ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन बनाने के लिए सभी जरूरी एमिनो एसिड प्रदान करते हैं. दूध और सोया दूध में लगभग प्रति एक गिलास में 8 ग्राम प्रोटीन होता है, जबकि स्ट्रिंग पनीर या एक अंडे में 6 ग्राम प्रोटीन होता है.

सब्जियों का अधिक सेवन करें

 एमिनो एसिड हासिल करने के लिए हरी सब्जियों का ज्यादा सेवन करें, क्योंकि ज्यादातर पौधों में एमिनो एसिड होता है. इसलिए हरी सब्जियों को रोजाना अपने खाने में इस्तेमाल करें.

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