अपशब्द कहें मस्त रहें

फिल्म ‘जब वी मैट’ में दिखाया गया है कि जब नायिका का बौयफ्रैंड उसे धोखा देता है, तब वह तनाव में आ जाती है. एकदम चुपचाप रहने लगती है. तब फिल्म का नायक शाहिद कपूर उसे तनावमुक्त होने का एक रास्ता बताता है. वह यह कि वह उस इंसान को जिस ने उसे दर्द दिया, उसे फोन कर के जीभर के गालियां दे कर, कोस कर अपने मन की भड़ास निकाले. उस ने वैसा ही किया तो उस के मन की सारी भड़ास निकल गई.

अपनी फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में गई सोनल की महंगी ड्रैस पर जब किसी से गलती से जूस गिर गया, तब गुस्से में सोनल के मुंह से उस इंसान के लिए अपशब्द निकल गए. लेकिन बाद में फिर उस ने उस बात के लिए माफी भी मांग ली.

हमारे साथ भी ऐसा ही होता है. किसी इंसान की गलत बात, व्यवहार से या फिर उस के कारण अपना नुकसान हो जाने पर हम भड़क जाते हैं और फिर हमारे मुंह से अपशब्द निकल ही जाते हैं, जैसे ‘बेवकूफ कहीं का, दिखता नहीं है क्या?’ ‘एक नंबर का घटिया इंसान है तू,’ ‘गधा कहीं का, बकवास मत कर’ जैसे अपशब्द बोल कर हम अपने मन की भड़ास निकाल लेते हैं, जो सही भी है, क्योंकि कुछ न बोल कर टैंशन में रहना, मन ही मन कुढ़ते रहने से अच्छा रिएक्ट कर देना है.

खुद को भी कोसें

भड़ास निकाल देने से मन का गुबार बाहर निकल जाता है. किसी के बुरे व्यवहार के कारण जलते-कुढ़ते रहने से हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है. कभी खुद की गलती पर भी हमें गुस्सा आ जाता है. तब भी खुद को कोस लेना अच्छा रहता है. गलती चाहे किसी की भी हो, उसे 2-4 अपशब्द कह दें, तो मन हलका हो जाता है. लेकिन अपने कहे शब्दों का मन में अपराधबोध न रखें, क्योंकि आप ने तो सिर्फ अपनी भड़ास निकाली है और अगर यह भड़ास दबी रह जाए, तो सिरदर्द, माइग्रेन, बीपी और न जाने किनकिन बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं.

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बचपन में हमारे माता-पिता और शिक्षकों ने गाली देने से रोकने की पूरी कोशिश की होगी हमें, फिर भी बड़े होने पर हम लगभग सभी इस भाषा का सहारा लेते हैं और वह भी दिन में कई बार. हमारे मातापिता और शिक्षकों ने भी शायद कभी न कभी किसी न किसी के लिए गुस्से में आ कर अपशब्दों का प्रयोग किया ही होगा, भले मन में या फिर पीठ पीछे, पर किया होगा और करते होंगे जरूर. हां, यह भी सही है कि इस तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना शिष्टता नहीं है, क्योंकि इस में नफरत की बू आती है, लेकिन यह भी सही है कि जो लोग अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, वे हमेशा किसी को बुरा महसूस करवाने के लिए नहीं करते हैं, बल्कि अपने गुस्से को शांत करने के लिए करते हैं.

घुटन जमा न करें

इस संदर्भ में अब तक हुए शोधों और अध्ययनों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि मनमस्तिष्क में भरा रहने वाला यह गुबार अगर समय रहते बाहर नहीं आ पाता है तो लंबे समय तक चलने वाली इस हालत का दुष्प्रभाव हमारी सेहत पर पड़ने लगता है. ऐसे में अपने अंदर घुटन को जमा न कर के उसे बाहर निकाल देना चाहिए. खुद को खुश और तनावमुक्त रखने के लिए समयसमय पर भड़ास निकालते रहना चाहिए. घरबाहर के काम का बोझ, औफिस में बौस की झिड़की या दोस्तों से किसी बात पर तकरार हो जाए, तो दवा के रूप में मन की भड़ास को निकाल लेना ही सही है.

गुस्से में आ कर किसी के साथ मारपीट करने से अच्छा है उस इंसान को खूब कोस

लिया जाए, 2-4 गालियां दे दी जाएं, तो मन को सुकून आ जाता है. मन की भड़ास निकालना एक थेरैपी है और इस बात से विश्वभर के मनोवैज्ञानिक भी एकमत हैं. इस थेरैपी पर काम कर रहे इटली के जौन पारकिन कहते हैं कि हम हर समय खुद को तराशते, सुधारते नहीं रह

सकते हैं. मन की भड़ास निकालना कोई गलत बात नहीं है.

हालांकि बहुत से लोग बुरी भाषा के इस्तेमाल पर अभी भी आपत्ति जताते हैं,

लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि जो लोग अपने मन की भड़ास निकालते हैं वे उन लोगों की तुलना में ज्यादा स्वस्थ हो सकते हैं, जो ऐसा नहीं करते हैं. लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र के प्रोफेसर और शोधकर्ता राबर्ट ओनील ने 2001 में एक अध्ययन किया, जिस में पता चला कि पुरुष और महिलाओं की भड़ास निकालने की अलगअलग प्रतिक्रिया है. हालांकि महिलाएं आज पहले की तुलना में ज्यादा अभद्र और चलताऊ भाषा का प्रयोग करने लगी हैं.

यह तो सकारात्मक गुण है

डा. एम्मा बायरन ने अपनी किताब में भड़ास निकालने पर लिखा है कि यह आप के लिए अच्छा है. ‘द अमेजिंग साइंस औफ बैड लैंग्वेज’ नए शोध से पता चला है कि भड़ास निकालना एक सकारात्मक गुण है, कार्यालय में विश्वास और टीम वर्क को बढ़ावा देने से ले कर हमारी सहनशीलता को बढ़ाने तक. भड़ास निकाल देना हमारी शारीरिक पीड़ा को कम करने, चिंता को कम करने, शारीरिक हिंसा को रोकने, यहां तक कि भावनात्मक दर्द को रोकने में भी मदद कर सकता है.

कीले यूनिवर्सिटी में 2009 हुए एक प्रयोग में उन के मुकाबले वे लोग ज्यादा देर तक बर्फ से ठंडे पानी में अपने हाथ डुबो कर रख सकते हैं जो अभद्र भाषा का ज्यादा प्रयोग करते हैं. हमारे समाज में ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग निंदनीय है, लेकिन पूरी दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जहां लोग एक-दूसरे को गालियां नहीं देते हैं. लेकिन कहा जाता है कि जापानी लोग गालियां नहीं देते हैं, बल्कि वे अपना गुस्सा एक तुतले पर निकालते हैं.

एम्मा बायरन का कहना है कि वहां भी आम बोलचाल की भाषा में एक शब्द इस्तेमाल किया जाता है, ‘मैंको’ जोकि शरीर के एक ऐसे अंग के लिए बोला जाता है, जिस का नाम लेना सभ्य समाज के खिलाफ है. एम्मा बायरन का कहना है कि अपशब्द कह देने से तनमन दोनों की तकलीफ कम हो जाती है. जो हमारी बेइज्जती करता है, हमारा मजाक उड़ाता है, उसे हम हथियार से न सही कम से कम जबान से

अपशब्द कह कर अपने मन की भड़ास तो निकाल ही सकते हैं न? आपस में भाषा का खुलापन होना जरूरी है. इस से आपस में अच्छी बौडिंग रहती है.

अगर अभद्र भाषा नहीं बोल सकते हैं तो आप अपना गुस्सा पंचिंग बैग पर निकाल दें.

कई फिल्मों में भी हम ने देखा है कि हीरो को किसी पर बहुत गुस्सा आता है, तो वह अपना सारा गुस्सा पंचिंग बैग पर निकाल लेता है.

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जापान में बड़ी-बड़ी कंपनियों व कार्यालयों में ऐसे विशेष कक्ष की व्यवस्था का चलन है, जिस में एक पुतला होता है. जब भी किसी कर्मचारी को अपने किसी सहकर्मी कर्मचारी, अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति की वजह से गुस्सा आता है या तनाव होता है तो वह उस पुतले को जी भर कर गालियां देता है, उसे मारतापीटता है ताकि उस के मन की सारी भड़ास बाहर निकल जाए.

देश-विदेश की कई कंपनियां भी अब अपने कर्मचारियों के बैठने और स्वतंत्र रूप से खुल कर बात करने के लिए खास प्रबंध रखती हैं. उद्देश्य यही रहता है कि उन के मन की खटास, गुस्सा बातों के जरीए बाहर निकल जाए और वे तनावमुक्त अपना काम कर सकें.

तोड़-फोड़ से मिलती है शांति

सुन कर थोड़ा अजीब जरूर लगेगा पर गुस्से में थोड़ीबहुत तोड़फोड़ करना भी आप का गुस्सा कम कर सकता है, आप को मानसिक शांति दे सकता है.

साइकोलौजिकल बुलेटिन में भी इस ‘डैमज थेरैपी’ के बारे में बताया गया है. स्पेन के एक कबाड़खाने में तो लोगों को तोड़फोड़ करने की सेवा देनी शुरू भी की जा चुकी है. 2 घंटे के ढाई हजार रुपए. तनाव दूर करने के लिए आप अपना पुराना टीवी, मोबाइल फोन, घर के पुराने सामान आदि के साथ जम कर तोड़फोड़ करते हुए मानसिक शांति पा सकते हैं. तनाव भगाने की इस थेरैपी से मरीजों को कितना लाभ होता है. इस बारे में ‘स्टौप स्ट्रैस’ नामक एक संगठन का दावा है कि उपचार के 2 घंटे की अवधि में आधे घंटे में ही आराम आने लगता है, आप अपने किसी भी दुश्मन के पुतले पर लातघूंसे बरसा कर, गालियां दे कर अपनी भड़ास निकाल सकते हैं.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि गुस्सा सब से अधिक ऐनर्जी वाला नैगेटिव इमोशन है और अगर इसे सही दिशा में मोड़ दिया जाए तो रचनात्मक ऐनर्जी बन सकती है. भड़ास में आप म्यूजिकल इंस्ट्रूमैंट बजा कर, पेंटिंग कर के या अन्य पसंदीदा काम कर के अपनी ऐनर्जी को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं.

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो गुमनाम रहना लोगों में एक तरह से सुरक्षा की भावना पैदा करता है. दिल्ली में काम करने वाली साइकोलौजिस्ट, काउंसलर और फैमिली थेरैपिस्ट गीतांजलि कुमार ने बताया कि जब आप इस तरह से कुछ लिख रहे होते हैं तो आप किसी ऐसे इंसान से कम्युनिकेट कर रहे होते हैं जो आप को जानता हो.

अपनी भड़ास निकाल देने से हम बुरी स्थिति पर नियंत्रण कर पाते हैं. 2-4 अपशब्द कह कर हम सामने वाले को जता सकते हैं कि हम कमजोर या डरपोक नहीं हैं. भड़ास निकाल देना हमारे आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ावा देता है और सुधारात्मक काररवाई करने के लिए प्रेरित करता है. कहा जाता है कि जब गुस्सा आए तो 10 तक उलटी गिनती गिननी चाहिए. गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन जब गुस्सा हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो भड़ास निकाल ही लेनी चाहिए.

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भड़ास हिंसा का सहारा लिए बिना बुरे लोगों से या स्थितियों से हमें वापस लाने में सक्षम बनाती है. किसी को शारीरिक नुकसान पहुंचाए बगैर हम उस पर अपनी भड़ास निकाल कर अपना गुस्सा जाहिर कर देते हैं. लेकिन ज्यादा भड़ास निकालना भी कभीकभी नुकसानदेह हो सकता है, लेकिन एक नुकीले खंजर की तुलना में कुछ तीखे शब्द बेहतर हैं. किसी पर भड़ास निकालना, मतलब चेतावनी भी है कि फिर न उलझना मुझ से वरना छोड़ूंगी नहीं.

सुहाने मौसम में नजदीकियां…

जी हां जब मौसम सुहाना हो तो ऐसे में आपको अपने पार्टनर के साथ समय बीताने का मन तो करता ही होगा…आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अपने पार्टनर को उतना समय नहीं दे पाते क्योंकि हर किसी को पैसे कमाने हैं और ये तो आप बेहतर समझ सकते हैं कि बिना पैसे के जिंदगी में कुछ भी नहीं हो सकता. ये जीवन की सच्चाई है लेकिन इसके कारण हम भूल जाते हैं कि हमारी लाइफ में कोई और भी है जो बहुत खास है और हम उसको समय देना भूल जाते है….चाहे वो आपकी लाइफ फार्टनर हो या आपकी गर्लफ्रेंड आ ब्वायफ्रेंड…इनकी जिंदगी में बहुत ही खास जगह होती है इसलिए इन्हें समय देना चाहिए. क्योंकि बहुत मुश्किल से आपको कोई मिलता है जो आपको खुद से ज्यादा प्यार देता है खुद से पहले आपके बारे में सोचता है. इसलिए उनके लिए वक्त निकालिए…

  • इस वक्त बारिश का मौसम है आप चाहे तो अपने पार्टनर के साथ कहीं घूमने जा सकती हैं..उसके साथ वक्त बिता सकती है. साथ में भुट्टे खाइए बारिश के मौसम का लुत्फ उठाइए.

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  • यदि आप घर पर हैं तो वाइफ से कहिए कि वो पकौड़े बनाए और आप चाय बनाइए और अपनी वाइफ के साथ बैठकर पकौड़े और चाय के साथ मौसम का लुत्फ उठाए.
  • अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी के साथ मूवी देखने जा सकते हैं कोई भी अच्छी सी रोमांटिक मूवी… ये आपके बीच नजदीकियों को बढ़ाएगी और साथ में समय बिताने का भी अच्छा मौका मिलता है.
  • पत्नी को लेकर लॉन्ग ड्राइव पर जा सकते हैं…एक अच्छा सा सॉन्ग बजा दिजिए…ये एक बहुत अच्छा तरीका है साथ में समय बिताने का.
  • ऐसा नहीं है कि ये सारे काम की पहल एक पति ही करे पत्नी भी कर सकती है अगर आपका पति इतना रोमांटिक नहीं है तो ये सब कुछ आप भी कर सकती हैं. इससे आपके पति को भी अच्छा लगेगा. वो भी अपनी ऑफिस की थकान को भूल कर आपके साथ एक अच्छा समय गुजारेगा. उन्हें भी थोड़ी सी बोरियत से राहत मिलेगी..और वो आपके और करीब आएंगे.

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  • अच्छे मौसम में कहीं दूर कुछ दिन की छुट्टियां लेकर आप जा सकते हैं या सकती हैं वहां पर आपको प्राइवेसी भी मिलेगी और साथ में अच्छा वक्त भी बिता पाएंगे.
  • अगर आप चाहें तो वाइफ के साथ घर में ही मूवी देखकर एक अच्छा वक्त बिता सकते हैं.

इन सारे तरीकों से आप अपने रिश्ते को अच्छा बना सकते हैं साथ ही अपने बीच की दूरियों को कम कर सकते हैं. तो पकोड़े खाइए और बारिश और सुहावने मौसम का लुत्फ उठाते हुए प्यार को बढ़ाइए.

लिव इन रिलेशन : कमजोर पड़ रही है डोर

लिव इन रिलेशन में रह रहे पार्टनर की हत्या और खुदकुशी के नएनए मामले रोज सामने आ रहे हैं. ऐसे में इन रिश्तों को ले कर फिर से उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं. अहम सवाल यह है कि पश्चिम की इस परंपरा को तो हम ने स्वीकार कर लिया, लेकिन क्या हम अपनी पारंपरिक और दकियानूसी सोच से बाहर निकल पाए हैं. इन तमाम मामलों पर गौर करें तो यही बात सामने आती है कि हम इस नए मौडल के साथ खुद को एडजस्ट करने में नाकाम साबित हुए हैं. यहां हम लिव इन सिस्टम पर कोई सवाल खड़े नहीं कर रहे हैं. इस की अपनी खूबियां और खामियां हैं, लेकिन जो भी मामले सामने आ रहे हैं उस से यही पता चलता है कि या तो हम पूरी तरह से इस सिस्टम को समझ ही नहीं पाए हैं या फिर इस के हिसाब से खुद को ढाल नहीं पाए हैं.

1. बढ़ रहा है रिश्ते का ग्राफ

एक स्त्री और पुरुष का बिना विवाह किए आपसी रजामंदी से एकसाथ रहने के रिश्ते को लिव इन रिलेशन कहते हैं. इस में एकसाथ रहने की कोई सामाजिक या आर्थिक मजबूरी नहीं होती और न ही कोई दबाव.

युवकयुवतियां सोचसमझ कर साथसाथ रहते हैं और जब चाहें अलग हो सकते हैं. कुछ समय पहले तक सोसायटी के लिए यह एक बड़ा सवाल था, लेकिन आज एक तरह से इस रिश्ते को कुछ हद तक शहरी समाज स्वीकार कर चुका है. महानगरों में यूथ ने लिव इन कल्चर को तेजी से अपना लिया है.

युवाओं ने अपनी सहूलत को ध्यान में रख ऐसे रिश्तों की ओर तेजी से कदम बढ़ाया. इस तेज रफ्तार जिंदगी में संतुलन बनाए रखने और कैरियर में आगे बढ़ने के लिए युवाओं को लिव इन रिलेशनशिप बिना बंधन के आसान रास्ता नजर आता है. यही वजह है कि ऐसे रिश्तों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है.

2. चौराहे पर रिश्ता

आएदिन पार्टनर की हत्या और खुदकुशी के मामलों ने इस रिश्ते को चौराहे पर ला कर खड़ा कर दिया है. जिस स्वतंत्रता की चाहत में युवकयुवती एकदूसरे के करीब आए थे, वहां अब एक नए तरह का बंधन उन्हें नजर आने लगा है.

नोएडा में हुई ब्यूटीशियन श्वेता की मौत ने तरक्की पसंद शहरों में बदलते रिश्ते को ले कर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. पति और ससुराल वालों के अत्याचार से परेशान श्वेता ने बागपत से नोएडा आ कर अपना काम शुरू किया था.

करीब डेढ़ साल पहले उस की जिंदगी में मुकेश आया. वह उस का बचपन का साथी था. दोनों आपसी रजामंदी के साथ रहने लगे. श्वेता की इतनी ही ख्वाहिश थी कि मुकेश उस से शादी कर ले, लेकिन शादी के इसी दबाव ने उस की जान ले ली. आरोप है कि मुकेश ने बिल्डिंग की 8वीं मंजिल से उसे नीचे फेंक दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. पुलिस ने श्वेता की 10 साल की बेटी के बयान पर आरोपी मुकेश को गिरफ्तार कर लिया.

दिल्ली के सुल्तानपुरी में भी कुछ दिन पहले ऐसी ही कहानी दोहराई गई, लेकिन यहां मामला कुछ अलग था. यहां एक महिला मंजू के साथ सुदामा उर्फ राजेश लिव इन रिलेशन में रहता था.

करीब 11 साल पहले दोनों के बीच दोस्ती हुई थी. दोनों 7 साल से एकसाथ रह रहे थे. राजेश को कई साल से बच्चे की चाह थी, लेकिन मंजू इस के लिए तैयार नहीं थी. इसी बात को ले कर दोनों के बीच अकसर लड़ाई होती थी. मंजू का कहना था कि जब बच्चे की चाह थी तो शादी करनी चाहिए थी, फिर लिव इन रिलेशन में रहने का इतने सालों तक बहाना क्यों बनाया. मंजू की यह बात राजेश को नागवार गुजरी और आखिर इसी बात को ले कर उस ने मंजू की हत्या कर दी.

3. नहीं बदली है सोच

दरअसल, पश्चिम की इस परंपरा को हम ने अपनी सुविधा के हिसाब से आत्मसात तो कर लिया, लेकिन हमारी सोच वैसी ही पुरातनपंथी बनी हुई है. सवाल यह है कि जब इस रिलेशनशिप में कोई भी पार्टनर कभी भी अलग हो सकता है तो यहां दबाव बनाने जैसी कोई बात होनी ही नहीं चाहिए थी.

राजेश को यह सोचना चाहिए था कि मंजू उस की पत्नी नहीं थी, इसलिए उस पर बच्चे के लिए दबाव बनाना सरासर गलत था. वहीं श्वेता का मुकेश पर शादी के लिए दबाव बनाना लिव इन रिलेशनशिप की कसौटी पर खरा नहीं कहा जा सकता है.

इस रिलेशन में अलग होने की सुविधा है. यह पारंपरिक शादी की तरह जटिल बंधन नहीं है. अलग होने के लिए लोगों को किसी की सहमति की जरूरत नहीं होती.

लिव इन रिलेशनशिप में अगर पार्टनर के साथ संबंध ठीक है, तो ठीक, नहीं तो उस रिलेशनशिप को वहीं पर खत्म कर दिया जाना चाहिए. इसे आगे बढ़ाने का मतलब है मौत को दावत देना. इस रिलेशनशिप में कंप्रोमाइज के लिए कोई जगह नहीं होती. वैस्टर्न कल्चर में यह ‘वाकइन, वाकआउट’ रिलेशनशिप मानी जाती है.

दोनों पार्टनर में से जो भी जब चाहे, इस से बाहर आ सकता है और दूसरे के खिलाफ नैतिक जिम्मेदारी, बदचलनी का आरोप नहीं लगाता है. दरअसल, पश्चिम के इस मौडल को हम ने अपना तो लिया है, लेकिन हमारी सोच जस की तस बनी हुई है. पुरुष लिव इन पार्टनर को अपनी प्रौपर्टी समझने की भूल कर बैठता है. वह अपनी पार्टनर के साथ आम पति की तरह व्यवहार करने लगता है वहीं युवती भी शादी की जिद करने लग जाती है, जोकि सही नहीं है.

एकदूसरे के साथ ज्यादा वक्त गुजारने पर युवक या युवती भावुक होने लगते हैं, जोकि इस रिलेशनशिप के लिए फिट नहीं बैठता. इसलिए कुछ भी गलत होने से पहले ही इस रिश्ते पर विराम लगा देना चाहिए.

4. भरोसे की कमी

अब मंगोलपुरी की ही वारदात को लीजिए. यहां लिव इन में रह रही युवती ने इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि उस का पार्टनर शराब पी कर आएदिन उसे पीटता था.

यहां भी युवक पुरातन पुरुषवादी मानसिकता का शिकार नजर आता है. युवती भी पुरानी फिल्मों की अभिनेत्री की तरह धोखा खाने की हालत में खुदकुशी कर लेती है. वह युवती पुलिस के पास जा सकती थी. उस युवक के खिलाफ केस दर्ज करा सकती थी और उस युवक का साथ छोड़ सकती थी, लेकिन उस ने तंग आ कर खुदकुशी का खतरनाक रास्ता चुन लिया.

कुछ दिन पहले दिल्ली की एक अदालत ने मिजोरम की एक युवती को अपने पार्टनर की हत्या के जुर्म में 7 साल की सजा और 7 लाख रुपए का जुर्माना सुनाया था. इस युवती ने 2008 में अपने नाईजीरियाई पार्टनर विक्टर ओकोन की इसलिए हत्या कर दी थी कि उस ने युवती को बिना बताए उस के अकाउंट से 49 हजार रुपए निकाल लिए थे.

इस से पता चलता है कि साथ रहने के बावजूद पार्टनर के बीच वह विश्वास कायम नहीं हो पाता है जो एक पतिपत्नी के बीच रहता है. अब सवाल यह है कि अगर विक्टर भरोसे के काबिल नहीं था तो वह युवती उस के साथ क्यों रह रही थी? वह उस से अलग हो कर अपने लिए नए पार्टनर की तलाश कर सकती थी, लेकिन बजाय अलग होने के उस ने इस जघन्य वारदात को अंजाम दिया.

5. चलन बढ़ने की वजह

कैरियर की दौड़ में आज शादी एक बंधन जैसी लगने लगी है. युवा पार्टनर एकदूसरे के करीब तो आते हैं, लेकिन उज्ज्वल भविष्य बनाने की वजह से  वे शादी की जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं होते. वे शादी को एक अड़ंगा मानते हैं लेकिन पार्टनर से वही सब चाहते हैं जो एक शादीशुदा पतिपत्नी का ही अधिकार है.

सैक्स शरीर की नैचुरल डिमांड है. साथ ही एक शख्स अपने इमोशंस को भी शेयर करना चाहता है, ऐसे में लिव इन रिलेशनशिप उन्हें बेहतर औप्शन नजर आता है.

इस दौरान वे पतिपत्नी की तरह एक ही छत के नीचे रहते हैं और फिजिकल रिलेशन भी बनाते हैं. इस से दोनों को न सिर्फ मैंटल सिक्युरिटी मिलती है, बल्कि दोनों का अलगअलग रहने का खर्च भी बच जाता है.

ज्यादातर लिविंग रिलेशन उन युवाओं में पाए गए हैं जो घर से दूर रह रहे हैं. उन के परिवार वालों को ऐसे रिश्ते की कोई खबर नहीं होती. लिविंग रिलेशन में रह रहे युवकयुवतियां अपने मांबाप या घर वालों से अपने रिश्ते को छिपा कर उन्हें अंधेरे में रखते हैं. ऐसे में बिना जवाबदेही के यह रिश्ता युवाओं को शुरुआती दौर में तो खूब रास आता है, लेकिन दिक्कत यह है कि लंबे समय बाद पार्टनर आम पतिपत्नी की तरह व्यवहार करने लग जाते हैं.

6. शादी और लिव इन रिलेशन

शादी महज एक बालिग युवकयुवती का मेल नहीं है. इस में 2 परिवारों का मिलन होता है. शादी से युवकयुवती को सामाजिक तौर पर एकसूत्र में बंधने की मान्यता हासिल होती है.

शादी से दोनों को सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है, लेकिन इस के उलट लिव इन अपनी जरूरतों के हिसाब से 2 युवाओं का मिलन है. शादी जहां एक तरह का स्थायी संबंध माना जाता है, वहीं लिव इन रिलेशनशिप में दोनों पार्टनर असुरक्षा की भावना के शिकार होते हैं.

दोनों के मन में डर रहता है कि न जाने उस का पार्टनर कब साथ छोड़ कर चला जाए. इस तरह के संबंधों में हमेशा तनाव की स्थिति बनी रहती है. यह रिश्ता समाज के दायरे से हट कर नितांत निजी रिश्ता है.

वहीं शादी इतनी जटिल प्रक्रिया है कि वहां दोनों युवकयुवती का अलग होना इतना आसान नहीं है. समाज उन्हें इस कीइजाजत नहीं देता. इस तरह से दोनों रिश्तों की अपनी खूबियां और खामियां हैं.

दरअसल, सवाल हमारी सोच का है. ग्लोबलाइजेशन के बाद से सभी मुल्कों के बीच परंपराओं का तेजी से आदानप्रदान बढ़ा है, लेकिन कईर् मामलों में हमारी स्थिति दो नावों पर सवारी करने जैसी होती है.

हम नई परंपराओं को स्वीकार तो कर लेते हैं, लेकिन अपनी पारंपरिक सोच नहीं  बदलना चाहते और यही वजह है कि हम उस में पूरी तरह से फिट नहीं हो पाते. लिव इन रिलेशन से जुड़े तमाम मामलों के पीछे यह एक महत्त्वपूर्ण कारण है.

7. युवतियों पर पड़ता है सब से अधिक असर

समाज सेविका आरती सिंह का कहना है कि ज्यादातर मामलों में ऐसे संबंध प्रेम पर नहीं, शारीरिक आकर्षण पर निर्भर होते हैं. शरीर का आकर्षण खत्म होते ही रिश्तों में दरार आनी शुरू हो जाती है. कपल के बीच झगड़े शुरू हो जाते हैं.

ऐसे संबंधों के टूटने का सब से ज्यादा असर युवतियों पर पड़ता है. पुरातन सोच रखने वाला हमारा समाज एक ऐसी युवती को कभी सम्मान नहीं देना चाहता है जो शादी से पहले किसी युवक के साथ एक ही घर में रह चुकी हो.

ऐसे में युवतियों को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगता है. आज भी इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुष की गलती को नजरअंदाज किया जाता है. ऐसे में युवतियां अवसाद की शिकार हो जाती हैं और खुदकुशी जैसा खतरनाक कदम उठा लेती हैं.

औफिस में काम करने वाली लड़कियों को ऐसे करें इंप्रैस

समाज बदल रहा है. धीरेधीरे लड़का-लड़की के बीच का अंतर खत्म हो रहा है. कार्यस्थलों से ले कर समाज में हर जगह लड़कालड़की एकसाथ काम कर रहे हैं. परेशानी की बात यह है कि इतने बदलावों के बावजूद अभी तक पुरुषों की भाषा और सोच में बदलाव नहीं आया है. ऐसे में लड़कियों को कई बार असहजता का अनुभव होता है, जो विवाद का कारण भी बन जाता है. लड़कियों की सुरक्षा के लिए बने कानून इस तरह की कई घटनाओं को अपराध मानते हैं. लड़कालड़की के बीच दूरी कम हो और ऐसे विवाद न हों, इस के लिए लड़कों को अपनी सोच व बातचीत का सलीका बदलने की जरूरत है. उन्हें लड़की को एक दोस्त और सहयोगी की नजर से देखना होगा, तभी आपस में अच्छा व स्वस्थ रिश्ता पनपेगा. इस सेघरपरिवार और समाज का भला होगा. लड़कियों के साथ अच्छा व्यवहार करना उन को बराबरी का दर्जा देने की बड़ी पहल है.

नेहा रवि के औफिस में काम करती है. दोनों एक ही रास्ते से अपने घर को जाते हैं. पहले दोनों अलगअलग साधनों से घर से औफिस जाते थे लेकिन अब रवि ने कार खरीद ली है. सो, दोनों एकसाथ कार से ही औफिस आनेजाने लगे हैं. एकसाथ आनेजाने के बाद दोनों पैट्रोल का खर्च आपस में बराबरबराबर बांटते हैं. ऐसे में उन के बीच कभी इस बात का एहसास ही नहीं रहा कि कौन लड़का है और कौन लड़की. रवि और नेहा ने अपनी सोच बदली तो उन के बीच संबंध भी प्रगाढ़ होते गए. केवल रवि और नेहा ही ऐसे नहीं हैं. प्रकाश और कविता भी एकसाथ काम करते थे, जब कभी लंच में या सुबह की चाय का समय आता तो दोनों अपना खर्च खुद उठाते थे. इस का सब से अच्छा रास्ता यह था कि एक दिन का बिल प्रकाश देता तो दूसरे दिन का बिल कविता देती थी.

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समान हों काम के अवसर रवि और कविता ने अकसर देखा कि उन के साथ काम करने वाले साथियों का आपस में काम करतेकरते तनाव हो जाता था. इस का कारण था कि अकसर लड़कियां सोचती थीं कि उन को काम कम करना पड़े. वे अपने लड़की होने का फायदा उठाना चाहती थीं. लड़के उन के इस व्यवहार का लाभ उठाना चाहते थे. ऐसे में आपस का रिश्ता बजाय समझदारी के, स्वार्थ का हो जाता था, जिस की वजह से तमाम शिकायतें होने लगती थीं.

शिवानी और शैलेश के बीच कुछ ऐसा ही हुआ था. शैलेश अकसर शिवानी का काम खुद ही कर लेता था. यह बात शिवानी सभी से कहती भी थी. कई महीने तक यह सब चलता रहा. एक दिन शिवानी ने शैलेश के खिलाफ सब से शिकायत करनी शुरू कर दी. शिवानी की शिकायत थी कि कल रात पार्टी में शैलेश ने उस के साथ गलत व्यवहार करने की कोशिश की. एक बार बात बिगड़ी तो शिवानी और शैलेश दोनों की ही तरफ से आरोपप्रत्यारोप का दौर चला. काम और व्यवहार से शुरू हुई बातचीत निजी संबंधों तक आ गई. दोनों की बातों से यह साफ हो गया कि शिवानी और शैलेश के बीच का रिश्ता केवल आपसी प्रलोभन पर था. शिवानी शैलेश से अपने काम कराती थी. शैलेश को लगता था कि इस के एवज में वह शिवानी से कुछ और हासिल कर सकता है. जब शिवानी ने शैलेश की मनमानी नहीं चलने दी तो दोनों के ही रिश्ते तनावपूर्ण हो गए. शिवानी और शैलेश के व्यवहार से यह बात साफ हो गई कि लड़कालड़की के बीच जहां रिश्तों में स्वार्थ आया वहां मामला बिगड़ते देर नहीं लगती है. ऐसे में दोस्ती में भी जिम्मेदारी बराबरबराबर ही बांटें.

आकर्षण के मोहपाश से बचें किशोरावस्था और उस के बाद की उम्र में लड़कालड़की का आपस में आकर्षण होना कोई बड़ी बात नहीं है. यह आकर्षण स्वार्थ और लोभ में बदल भी जाता है. आमतौर पर पुरुष लड़कियों की मदद कर के उन से लोभ कर बैठता है. ज्यादातर मामलों में यह दैहिक आकर्षण भर होता है. कई बार लड़कियां खुद भी ऐसे मौके देती हैं, जिस से कि वे अपनी बात को मनवा सकें.

कई बार यह शिकायत होती है कि कोई लड़का फलां लड़की का काफी समय से मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न कर रहा है. किसी भी लड़की का लंबे समय तक उत्पीड़न संभव नहीं होता है. यह तभी होता है जब दोनों तरफ से रजामंदी हो. जब नाराजगी होती है तो ऐसे आरोप लगाए जाते हैं. महिला कानूनों को देखें तो यह साफ हो जाता है कि बलात्कार की तमाम घटनाएं भी इस तरह की होती हैं, जिन में लंबे समय तक एकदूसरे के रिश्ते चलते हैं, फिर टूट जाते हैं. आज के दौर में इस तरह के संबंधों के टूटने का प्रभाव लड़की पर तो पड़ता ही है, विवाद होने की दशा में लड़के की मानप्रतिष्ठा, कैरियर और घरसमाज भी टूट जाता है. विवेक के साथ भी कुछ ऐसे ही हुआ. उस की साथी प्रिया ने एकसाथ रहते हुए लंबा वक्त गुजार दिया. इस के बाद एक दिन दोनों के बीच जब विवाद हुआ तो प्रिया ने विवेक पर शारीरिक उत्पीड़न का आरोप लगा दिया. नतीजतन, विवेक को जेल जाना पड़ा. विवेक की नौकरी तो गई ही, उस का मानसम्मान और प्रतिष्ठा भी दावं पर लग गई.

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कार्यस्थल की बात हो या वहां से बाहर की, लड़की के साथ समान व्यवहार रखें. आकर्षण के मोहपाश में फंस कर लड़के कई बार लड़कियों को छृने का प्रयास करते हैं. यह एक शारीरिक आकर्षण होता है और यही हर विवाद की जड़ भी होता है. कई बार तो लड़कियां पहले इस का लाभ उठाती हैं, लेकिन बाद में इस को ही मुद्दा बना लेती हैं. महिला कानून महिलाओं को ऐसे अवसर देते हैं जिन से वे अपने साथ रहने वाले को ही आरोपी बना सकती हैं. सभ्य व्यवहार जरूरी

लड़कों के साथसाथ लड़कियों को भी अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा. उन को खुद से लाभ उठाने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी. लिवइन रिलेशनशिप में रहते समय लड़कालड़की की समान सहमति होती है. इस के बाद जब कभी इन में विवाद होता है तो दोनों अलगअलग हो जाते हैं. आरोप लड़के पर लगते हैं. कानूनी रूप से लड़कियों को ज्यादा अधिकार मिलते हैं. सामान्यतौर पर लड़कियों को ऐसे अवसरों का लाभ उठाने से बचना चाहिए. उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि बिना उस की सहमति के कोई लड़का लाभ नहीं उठा सकता है. जब दोनों की आपसी सहमति थी तो फिर केवल लड़के को दोष देना उचित नहीं है. लड़कियों या महिलाओं द्वारा जब कानून का गलत इस्तेमाल किया जाता है तो संबंधित कानून पर ही सवाल खड़े होने लगते हैं.

दहेज कानून और महिला हिंसा कानून में यह दुरुपयोग देखने को भी मिलता है. अब कोर्ट से ले कर समाज तक यह मानने लगा है कि ये कानून दुरुपयोग का जरिया बन रहे हैं. ऐसे में जब कोई महिला सही शिकायत भी करती है तो उसे लोग संदेह की नजर से देखते हैं. सही शिकायत को भी गलत माना जाता है. कानून पर लोगों का भरोसा बना रहे, इस के लिए जरूरी है कि कानून का दुरुपयोग न हो. कानून और पुलिस हमेशा परेशान करने वाला काम ही करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि खुद समझदारी दिखाएं और ऐसे हालात पैदा ही न होने दें. सो, आपस में सभ्य व्यवहार रखना पड़ेगा.

लाभ उठाने की भूल न करें लड़की यदि खुद से पहल कर लाभ उठाने वाला काम करती दिखे तो उस से दूर रहना चाहिए. अगर लड़की का काम करना है तो उस से उसी तरह का व्यवहार करें जैसे आप अपने पुरुषसाथी से करते हैं. ऐसा करने से हालात नहीं बिगड़ेंगे. कभी ऐसी शिकायत होगी भी, तो सफाई देना आसान होगा. गलत काम कर सफाई देना मुश्किल होता है.

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ऐसे में सही रास्ते पर चलें जिस से परेशानी से बच सकें. अब लड़कियां केवल औफिस में ही काम नहीं करतीं, वे फील्ड जौब भी खूब कर रही हैं. ऐसे में उन के साथ काम करने का समय ज्यादा मिलता है. इस समय को अवसर समझ कर इस का लाभ उठाने की भूल न करें. लाभ उठाने की छोटी सी भूल ही आप के गले की फांस बनती है. युवावस्था में ही नहीं, ऐसे हालात कभी भी बन सकते हैं. ऐसे में जरूरी है कि अब पुरुषवर्ग अपनी सोच और भाषा दोनों पर नियंत्रण रखे. कई बार आपस में बात करते समय लोग यह भूल जाते हैं कि कौन सी बात लड़कियों के सामने नहीं करनी चाहिए, जिस से लड़कियों को बुरा महसूस होता है. महिला और पुरुष का साथसाथ काम करना आज समय की जरूरत है. आपस में दूरी बना कर काम नहीं हो सकता. हर क्षेत्र में ऐसे हालात बन गए हैं. ऐसे में जरूरी है कि पुरुषवर्ग उन के साथ अपना व्यवहार बदले, अपनी बातचीत के सलीके से उन्हें इंप्रैस करे.

 

गर्लफ्रैंड के लिए गिफ्ट

मुकुल ने गर्लफ्रैंड जूही को जन्मदिन पर जो कलाई घड़ी तोहफे में दी थी, वह उसे बहुत ज्यादा पसंद नहीं आई थी. इस के लिए जूही उसे सालभर उलाहना देती रही थी.

मुकुल ने सोच लिया था कि इस बार वह जूही को शानदार तोहफा दे कर उस की बोलती बंद कर देगा. उस ने जूही से बातोंबातों में जान लिया था कि उसे कौन सा और कौन सी कंपनी का मोबाइल पसंद है.

जब मोबाइल शौप पर मुकुल ने उस मोबाइल की कीमत पता की तो वह सोच में पड़ गया. 25 हजार रुपए का मोबाइल, इतना महंगा मोबाइल आखिर वह जूही को कैसे उस के जन्मदिन पर भेंट करेगा? वह निराश हो कर घर की ओर लौट पड़ा.

मुकुल के पापा दीवानचंद्र एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे. मुकुल को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उन्होंने एक महंगे स्कूल में उस का ऐडमिशन कराया था. महंगी फीस और महंगी पढ़ाई. दीवानचंद्र को इस के लिए ओवरटाइम करना पड़ता था. अकसर वे रात को देर से ही घर लौटते थे.

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मुकुल इस बात का फायदा उठाने लगा था. सीधीसादी मम्मी को तो वह कुछ समझता ही नहीं था. पढ़ाई का कोई भी बहाना बना कर घर से निकल जाता, जूही और दोस्तों के साथ मटरगश्ती करता.

जूही एक बड़े बिजनैसमैन की बेटी थी. उस के पिता को व्यापार के सिलसिले में अकसर शहर से बाहर जाना पड़ता था. जूही इस बात का भरपूर फायदा उठा रही थी. वह भी स्वच्छंद प्रवृत्ति की हो गई थी. बड़े परिवार की बेटी होने के कारण उसे महंगी और अकर्षक चीजें ही पसंद आती थीं.

मुकुल की जान इसी आफत में फंसी थी. जूही को सस्ता उपहार वह भेंट नहीं कर सकता था और महंगा खरीदना उस के बूते की बात नहीं थी. अब वह क्या करे? वह इसी उधेड़बुन में खोया रहता था.

एक दिन मुकुल का साथी राकेश उसे अपने साथ मोबाइल शौप पर ले गया. उस ने वहां से एक महंगा मोबाइल खरीदा जिसकी कीमत 35 हजार रुपए थी.

मुकुल ने जब उस से इस महंगे मोबाइल के बारे में पूछा कि यह उस ने किस के लिए खरीदा है तो वह यह जान कर चौंक गया कि इतना महंगा मोबाइल राकेश ने अपनी गर्लफ्रैंड सारिका के लिए खरीदा था. फिर मुकुल ने अपनी जिज्ञासा समाप्त करने के लिए उस से पूछा, ‘‘राकेश, गर्लफ्रैंड के लिए इतना महंगा गिफ्ट खरीदने की क्या आवश्यकता थी?’’

‘‘अरे यार मुकुल, ये मौडर्न और खूबसूरत लड़कियां महंगी और आकर्षक चीजों पर ही मरती हैं. उन्हें जितने महंगे गिफ्ट दो वे उतनी ही अधिक खुश होती हैं. वे महंगे गिफ्ट से अपना स्टेटस मापती हैं. चमकदमक पर मरती हैं ये लड़कियां, चमकदमक पर.’’

‘‘लेकिन राकेश, तुम्हारे पास इतना महंगा गिफ्ट खरीदने के लिए पैसे कहां से आए? तुम्हारे मम्मीपापा तो इस काम के लिए तुम्हें इतने पैसे देने वाले नहीं?’’

‘‘अरे यार मुकुल, यह सब अंदर की बात है. गर्लफ्रैंड को खुश रखने के लिए बहुतकुछ करना पड़ता है.’’

अब मुकुल इस ‘बहुतकुछ’ में उलझ कर रह गया. उस ने राकेश से इस के बारे में पूछा भी. लेकिन राकेश ने यह कह कर उसे टाल दिया कि इस ‘बहुतकुछ’ का मतलब उसे तभी पता चलेगा जब वह उस की और उस के दोस्तों की संगति करेगा.

रातभर मुकुल राकेश के बारे में ही सोचता रहा. उसे जूही को खुश करने का एक रास्ता राकेश की संगति करने में नजर आ रहा था. वह जूही को एक महंगा गिफ्ट दे कर उसे हर हाल में खुश करना चाहता था.

आखिरकार, उस ने निर्णय कर ही लिया कि वह राकेश और उस के दोस्तों की संगति में रहेगा और ‘बहुतकुछ’ करेगा.

राकेश ने मुकुल को अपने विश्वास में ले कर चोरी करने के हुनर सिखाए. साइकिल और बाइक चुराना उन के बाएं हाथ का खेल था. कबाड़ी बाजार में किस के पास सामान बेचना है, राकेश अच्छी तरह से ऐसे चोर दुकानदारों से परिचित था. चेन स्नैचिंग का काम भी राकेश का गु्रप बखूबी जानता था. इस काम में भी उन्हें महारत हासिल थी.

मुकुल भी जल्दी ही चोरी, जेब कतरना और चेन पर झपट्टा मारना अच्छी तरह सीख गया. जूही को खुश करने में अब उसे कोई दिक्कत नहीं हुई. इस बार उस ने जूही को महंगा मोबाइल ही गिफ्ट में नहीं दिया, बल्कि पांचसितारा होटल में उसे बर्थडे पार्टी भी दी. जूही मुकुल जैसे बौयफ्रैंड को पा कर निहाल हो गई. मुकुल तो उस के सपनों  का राजकुमार बन गया.

एक दिन राकेश ने मुकुल के साथ मिल कर चेन स्नैचिंग की योजना बनाई. राकेश कई दिनों से दिल्ली के मौडल टाउन महल्ले की रेकी कर रहा था. उस ने जान लिया था कि शाम के समय कौनकौन सी महिलाएं प्रतिदिन डेयरी से दूध लाती हैं और कौन सी महिलाएं सब्जी ले कर सब्जीमंडी से लौटती हैं.

उस के लक्ष्य पर कमला देवी थीं जो अकेली ही आतीजाती थीं. उन के गले में सोने की चमचमाती चेन उस के लालच को बढ़ाती थी.

राकेश ने सारी बातें मुकुल को अच्छी तरह से समझा दी थीं. चेन पर झपट्टा मार कर उसे छीनना इतना मुश्किल काम नहीं था, जितना उस के बाद मोटरसाइकिल पर बैठ कर भागना. चेन पर झपट्टा मारने का काम मुकुल को मिला और मोटरसाइकिल की ड्राइविंग करने का काम राकेश ने अपने पास रखा.

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योजना के मुताबिक मुकुल ने बड़ी सफाई से अपने काम को अंजाम दिया. चेन पर झपट्टा मारा, कमला देवी को धक्का दे कर नीचे गिराया जिस से उन्हें उठने में देरी हो जाए और इसी बीच वे निकल भागे.

चेन छीन कर मुकुल पलक झपकते ही राकेश के पीछे मोटरसाइकिल पर आ बैठा. राकेश ने मोटरसाइकिल को तेजी से भगाया लेकिन एक आवारा सूअर उन के सामने आ गया. सूअर तो निकल भागा लेकिन उन की मोटरसाइकिल का संतुलन गड़बड़ा गया और दोनों मोटरसाइकिल सहित नीचे गिर गए.

तब तक कमला देवी के शोर को सुन कर महल्ले के लोग उन के पीछे दौड़ पड़े थे. उन के मोटरसाइकिल से गिरते ही भीड़ ने उन को दबोच लिया. भीड़ ने उन की खूब पिटाई की.

तभी भीड़ में से एक महिला आगे बढ़ी. उन्हें मुकुल का चेहरा कुछ जानापहचाना लगा. उन्होंने मुकुल को ध्यान से देखा और उस से पूछा, ‘‘तुम दीवानचंद्र के बेटे मुकुल हो न?’’

मुकुल ने सुबकते हुए कहा, ‘‘जी, आंटी.’’

उस महिला ने मुकुल के गाल पर एक जोरदार तमाचा रसीद करते हुए कहा, ‘‘छी, तुम्हें शर्म नहीं आती इतने मेहनती और इज्जतदार बाप के बेटे हो कर इतना नीच काम करते हुए.’’

मुकुल की आंखों से अविरल आंसू बहने लगे.

वह महिला कोई और नहीं, मुकुल के पापा के साथ उसी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत सहायक प्रबंधक सुशीला देवी थीं जो मुकुल के पापा दीवानचंद्र को भलीभांति जानती थीं. वे यह भी जानती थीं कि मुकुल की पढ़ाई के लिए मुकुल के पापा दिनरात कैसे एक किए रहते हैं.

सुशीला देवी ने मुकुल के पापा को फोन किया और महल्ले के लोगों को सारी बातों से अवगत कराते हुए मामले को थाने जाने से रोका. जब महल्ले के लोगों को सारी जानकारी हुई तो वे भी भौचक्के रह गए कि कैसे एक प्रतिष्ठित विद्यालय के छात्र अपनीअपनी गर्लफ्रैंड्स को खुश करने के लिए चोरी और चेन स्नैचिंग के काम में लगे हुए हैं.

जल्दी ही मुकुल और राकेश के मम्मीपापा घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की आंखें शर्म से नीचे गड़ी हुई थीं. मुकुल और राकेश तो अपने मम्मीपापा से नजरें भी नहीं मिला पा रहे थे. मुकुल ने अपने मम्मीपापा के पैरों में गिरते हुए कहा, ‘‘पापा…मम्मी…मुझे माफ कर दो, ऐसी गलती अब कभी नहीं करूंगा.’’

‘‘मुकुल, मुझे तुम पर कितना नाज था. लेकिन तुम नहीं जानते तुम ने क्या किया? तुम ने मेरी जिंदगीभर की कमाई हुई इज्जत और मानसम्मान एक क्षण में धूल में मिला दिया जो अब कभी वापस नहीं आ सकते,’’ मुकुल के पापा ने कहा.

यह सुन कर सब की आंखें नम हो गईं. सब प्रत्यक्ष देख रहे थे कि औलाद की एक हरकत किस प्रकार से मांबाप का मुंह नीचा करा देती है.

सुशीला देवी मामले को संभालते हुए भीड़ में से उन्हें अपने घर ले गईं. कमला देवी को भी उन्होंने अपने ही घर बुला लिया.

मुकुल और राकेश ने कमला देवी से भी माफी मांगी और भविष्य में कभी ऐसी हरकत न करने का वादा किया. उस के बाद सब अपनेअपने घर चले गए.

मुकुल और उस के मम्मीपापा को उस रात नींद नहीं आई. मुकुल ने प्रायश्चित्त करते हुए अपने मम्मीपापा को सारी बातें सचसच बता दीं. तब उस के पापा ने कहा, ‘‘बेटा, तुम उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हो, जहां तुम अब मेरे बेटे ही नहीं, बल्कि दोस्त समान हो. तुम मेहनत करो, तुम्हें जूही क्या, उस से भी अच्छी जीवनसाथी मिल जाएगी. लेकिन पहले पढ़ाई कर के इस लायक बनो तो सही. चोर बन कर तो तुम जूही को भी नहीं पा सकोगे.’’

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पापा की बात सही निकली. जब जूही को मुकुल की हरकत का पता चला तो उस ने मुकुल को ‘चोर’ कह कर उस से सारे नाते तोड़ लिए. उस के दिए गिफ्ट भी उस को वापस कर दिए. मुकुल जरा सा मुंह ले कर रह गया था.

अब मुकुल को सही सबक मिल गया था. उसे अब अपने मम्मीपापा ही सच्चे मित्र नजर आ रहे थे. वह अब समझ गया था कि भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए सही मार्गदर्शक कौन हो सकते हैं. वह अब पढ़ाई करने में जीजान से जुट गया. उसे दिखाना था कि वह चोर नहीं, अपने मांबाप का लायक बेटा है.

टाइप्स औफ रूममेट्स

‘3 इडियट्स’ को देख कर राजू, फरहान और रैंचो जैसी दोस्ती किस को नहीं चाहिए थी. क्या जिंदगी थी उन की भी, यहां से वहां ‘भैया औल इज वैल’ गाते फिरना, रातरात भर यहां से वहां मटरगश्ती करना, किसी और की शादी में खाना खा कर आना और पकड़े जाने पर कान पकड़ना. यही तो मजा होता है रूममेट्स के साथ रहने का. लेकिन मेरी जिंदगी में ग्रहण तो तब लगा जब मैं कालेज के होस्टल में अपनी रूममेट से मिली. मेरी रूममेट बिलकुल भी वैसी नहीं थी जैसा मैं ने सोचा था.

मैं अपने रूम में घुसी तो देखा वह एक औरत, जोकि उस की मम्मी लग रही थी, के साथ बैड पर बैठी हुई थी. मैं ठहरी एक्स्ट्रोवर्ट जिसे नाचनागाना, धूम मचाना पसंद है. पर जब मैं ने उस की बातें सुनीं तो मुझे समझ आ गया कि इस की और मेरी तो कभी जमने नहीं वाली.

‘‘नहीं, मैं कहीं घूमूंगी नहीं,’’ रूममेट ने सामने बैठी आंटी से कहा.

‘‘अरे, बेटा, यही तो मौका है. कब तक ऐसी छुईमुई सी बनी बैठी रहेगी. यही तो समय है घूमनेफिरने का, थोड़ा बाहर निकल, मजे कर,’’ आंटी ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘मम्मी, नहीं न. मुझे यह सब पसंद नहीं है. आप छोड़ो न यह सब. आप की फ्लाइट का टाइम हो रहा है, जाओ आप.’’

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‘‘अच्छा, ठीक है, जैसा तू चाहे कर,’’ यह कहते हुए आंटी ने उसे गले लगा लिया.

मैं कोने में खड़ी यह दृश्य देख रही थी. सचमुच यह देख कर तो मेरी आंखों में आंसू आ गए. नहींनहीं, इसलिए नहीं कि दृश्य बहुत मार्मिक था, बल्कि इसलिए कि मुझे तो मेरे घर से यह कह कर भेजा गया था कि ज्यादा मटरगश्ती करने की जरूरत नहीं है दिल्ली में. और यहां देखो, माजरा ही अलग है. खैर, जातेजाते उस की मम्मी मुझे नमस्ते के साथ यह कह कर गई थी कि दोनों खूब मजे करना. अब उन आंटी को क्या कहूं कि आप की बेटी का मेरी रूममेट बनने भर से मेरा जीवन मजा से सजा के फेज में आ चुका है.

हालांकि, मैं उस रूममेट के साथ सिर्फ 5 महीने ही रही जिस में मेरा टाइम बाहर अपने दोस्तों के साथ बीतता था जबकि उस का रूम में पढ़तेपढ़ते. इस बार मेरी रूममेट मौजमस्ती करने वाली थी लेकिन अपनी सहेलियों के साथ. मैं जहां अपने बैड पर अपनी बुक ले कर पड़ी रहती, वहीं वह और उस की सहेलियां कचरमचर शोर मचाती रहतीं. इस रूममेट को भी मैं ने झेला ही था वैसे. और इस का साथ 2 सेमेस्टर तक ही चला.

चौथे सेमेस्टर तक मैं कुछ समझती न समझती, यह तो समझ ही चुकी थी कि रूममेट्स किसी भी टाइप के हों पर जो मुझे मिले उस टाइप के तो न हों. इस बार घर से वापस आ कर मैं ने कसम खा ली थी कि कुछ भी हो, पिछली 2 बारी जैसी रूममेट न हों. अगर वैसी हुईं तो मैं वार्डन के पैर पड़ जाऊंगी और रूममेट बदलवा कर छोड़ं ूगी. पर इस बार मेरी नई रूममेट कुछ अलग ही टाइप की थी. मतलब उस से 10 मिनट बात करते ही मेरे मन में मानो गाना बजने लग गया हो ‘जिस का मुझे था इंतजार, वो घड़ी आ गई आ गई है आज…’ वैसे थी तो वह मेरे जैसी ही लेकिन कुछ ज्यादा ही बकबक करती थी. पर मुझे उस की बकबक अच्छी लगती थी.

मुझे पहली 2 रूममेट्स के साथ रह कर अकेलेपन की आदत सी हो गई थी पर मेरी नई रूममेट मुझे शांत बैठने ही नहीं देती थी. हम साथ में खातेपीते, नाचतेगाते और सुखदुख बांटते. कालेज में उस का और मेरा बैच अलग था पर मेरी उस के दोस्तों के साथ और उस की मेरे दोस्तों के साथ खूब अच्छी जमती थी. ग्रैजुएट होने तक हम दोनों साथ ही रहे. उस ने और मैं ने विनती करकर के एकसाथ ही हर सेमेस्टर में रूम अलौट करवाया. पर जो बात मुझे आखिर में जा कर समझ आई वह यह थी कि इस बार मैं ने अपनी रूममेट की अच्छीबुरी सब आदतों को अपनाया था. वह सफाई नहीं करती थी तो मैं ही कर दिया करती थी.

यह तो थीं मेरी 3 अलगअलग टाइप की रूममेट्स. लेकिन रूममेट्स और भी कई टाइप की होती हैं जिन के साथ आप को कैसे न कैसे समय गुजारना ही होता है. कुछ ऐसे टाइप के रूममेट्स हैं जिन के बारे में आप को पता हो तो आप समझ जाएंगे कि आप को उन के साथ अपना टाइम कैसे बिताना है या उन से दोस्ती कैसे करनी है.

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पार्टी एनिमल

यह वह रूममेट है जिसे जब देखो तब पार्टी करने का मन होता रहता है. खासकर पीजी में रहने वाले रूममेट्स इस तरह के होते हैं. कभी ये रातरात भर भी वापस नहीं आते तो कभीकभी तो दिन में भी अपने सभी दोस्तों को बुला कर हुड़दंग मचाए रहते हैं. इस टाइप के रूममेट्स आप की नींद और प्राइवेसी में अकसर ही खलल डालते रहते हैं. इन्हें झेलने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना, बस, इन्हें एक बार बैठ कर समझा दीजिए कि पार्टी रूम में करनी हो तो आप से पूछ लें. कहीं ऐसा न हो कि आप का टेस्ट हो कालेज में और अपने ही रूम में आप पढ़ न पाएं.

उधारी वाला रूममेट

इस तरह के रूममेट्स अकसर ही कुछ न कुछ मांगते दिख जाते हैं, ‘भाई यार, कोई अच्छी शर्ट दे दे,’ ‘यार यह शूज पहन लूं आज, मेरे शूज फट गए हैं,’ ‘अपना डियो दिखइओ यार, मेरा खत्म हो गया,’ ‘गर्लफ्रैंड के साथ डेट है, 500 रुपए उधार दे दे न भाई.’ अगर आप को कभी ऐसे रूममेट्स मिल जाएं तो न कहने की आदत शुरू से ही डाल लीजिए. हालांकि, जब दोस्ती मजबूत हो जाती है तो इस तरह की उधारी बड़ी छोटी लगने लगती है. मगर जब उधारी हद से ज्यादा बढ़ जाए तो रोकना मुश्किल हो जाता है. बेहतर है कि इस मामले में शुरू से ही मना करना सीख जाएं.

खानाचोर

आप सुबह फ्रिज में अपनी फेवरेट आइसक्रीम रख कर जाएंगे, मगर शाम को उसे वहां नहीं पाएंगे, क्योंकि आप का खानाचोर रूममेट चुरा कर खा जाएगा. मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ था. मेरे घर से मेरे लिए केले के चिप्स आए थे जिन्हें मैं ने बड़ी खुशी से अपने बैड के साइड में रखे टेबल के ऊपर रखा था. मेरी रूममेट उस वक्त रूम में नहीं थी जब वह पार्सल आया था.

शाम के वक्त मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ घूमने निकल गई. मुझ से गलती यह हुई कि मैं उन चिप्स को छिपा कर रखना भूल गई. रात में जब मैं वापस लौटी तो मैं ने अपना चिप्स से भरा डब्बा बिलकुल खाली पाया. मन तो किया वही डब्बा उठा कर रूममेट के सिर पर मार दूं लेकिन मैं ने खुद को रोक लिया. खाना चोर रूममेट से बचने का एक ही इलाज है कि या तो उस से पहले ही सब शेयर कर के खाओ या अपना खाना छिपा कर रखना सीख जाओ.

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किताबी कीड़ा

इन रूममेट्स के हाथ में या तो हमेशा किताब दिखेगी या किताबों में ये घुसे दिखेंगे. ये वैसे तो क्लास के टौपर होते हैं लेकिन अपने दोस्तों को बखूबी समझते भी हैं. इन से आप को उस ज्ञान की प्राप्ति होती है जो न आप को कालेज के प्रोफैसर सिखाते हैं और न ही मातापिता.

आप यह कर सकते हैं कि इन्हें अपने साथ थोड़ा घुमाएंफिराएं और वापस आ कर खुद भी थोड़ा पढ़ लें जिस से चीजें समांतर हो जाएं. ये बोरिंग दिख सकते हैं पर असल में होते नहीं हैं.

कुएं का मेढक

जैसा कि नाम सुन कर ही पता चलता है, वह रूममेट जो हमेशा ही रूम में पड़ा रहता है. रूम से बाहर निकलना उसे फूटी आंख नहीं सुहाता. इस तरह के रूममेट्स को ‘चलो छोड़ दो उन के हाल पर,’ जैसी बातों के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि आगे बढ़ कर उन्हें अपने प्लांस में शामिल करना चाहिए. हां, एकदो बार वे आनाकानी करेंगे या मना करेंगे पर फिर मान भी जाएंगे. रूम में ही हमेशा रहने की कोई वजह तो जरूर होगी, आप जानने की कोशिश करेंगे तो हल भी निकल आएगा.

सफाईपसंद

इस तरह के रूममेट्स का बड़ा फायदा होता है. ये जितने सफाईपसंद आप का उतना फायदा. आप के हिस्से की सफाई भी ये कर देते हैं. हां, कभीकभी आप को परेशान भी बहुत करते हैं, ‘यह चीज यहां क्यों रखी है,’ ‘यार, अपना सामान उठा कर रख न,’ आदि. इन के प्रभाव से कुछ हो न हो पर आप सफाई करना तो सीख ही जाते हैं. हां, अगर कभी ये बहुत ज्यादा गुस्सा करें तो इन को इग्नोर कर अपना पलंग फैला कर चले जाएं, आनंद आ जाएगा आप को उस की शक्ल देख कर.

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प्यार का मारा

प्यार के मारे रूममेट के तो क्या ही कहने. आप इस बात से परेशान होंगे कि पलंग पर किस तरफ मुंह कर के सोएं कि हवा ज्यादा लगे और आप की रूममेट इस बात से परेशान होगी कि उस का बौयफ्रैंड आखिर उसे मैसेज क्यों नहीं कर रहा. फिर उस का कभी ब्रेकअप होगा तो आप को उस के आंसू भी पोंछने होंगे और जब पैचअप होगा तो अपना माथा भी पीटना पड़ेगा. यह तो प्यार के मारों के साथ चलता ही रहता है. आप को बस यह ध्यान रखना है कि उन का प्यार आप के लिए सिरदर्द न बन जाए. अपनी रूममेट से पहले ही कह दें कि जब आप रूम में हों तो वह अपने बौयफ्रैंड को न बुलाए, क्योंकि सिचुएशन कभीकभी औक्वर्ड भी हो सकती है.

एंग्री बर्ड

ये रूममेट्स इतने गुस्सैल होते हैं कि कभी तो ये अपना समान फेंक देते हैं या फिर किसी के बारे में बोलना शुरू करते हैं तो चुप ही नहीं होते. कभीकभी तो गालियां भी देते हैं. आप इन के गुस्सा होने के समय थोड़ा दूर ही रहें, तो बेहतर है. हां, जब गुस्सा शांत हो तो बात करें और उन्हें समझाएं जरूर.

गंदगीपसंद रूममेट

यह वह रूममेट होता है जिसे साफसफाई से कोई प्यार नहीं होता. इस के अंडरगारमैंट्स बाथरूम में टंगे मिलेंगे और पसीने की बदबू पूरे कमरे में फैली हुई. इस तरह के रूममेट न केवल आप के वातावरण को खराब करते हैं बल्कि आप के सिर में दर्द भी पैदा कर देते हैं. इन की लाख अच्छाइयां इन की इस एक बुराई के नीचे दबने लगती हैं. दोस्ती से हट कर आप को इन्हें कड़ी हिदायतें दे कर समझाने की जरुरत होती है कि वे अपनी यह बुरी आदत सुधार लें वरना आप या तो उन की शिकायत कर देंगी या फिर अपना रूम चेंज कर लेंगी.

सोतूमल रूममेट

ये रूममेट सोने के इतने आदि होते हैं कि सुबहशाम बस सोते हुए ही दिखते हैं. आप कालेज से यह मन बना कर आते हैं कि आज तो आकाशपाताल एक कर के पढ़ाई करनी है, पर इन्हें देख कर ही उबासी लेने लगते हैं. ये रूममेट सचमुच आप के और आप की पढ़ाई के बीच की सब से बड़ी बाधा हैं. इन्हें समझाने की कोशिश करें. अगर तब भी ये अपनी हर समय सोने की आदत न छोडे़ं तो हो सके तो किसी और दोस्त के रूम पर जा कर पढ़ लें या इन से किसी दोस्त के यहां घूम आने के लिए कह दें.

सिगरेट का आदी

ज्यादतर पीजी में रहने वाले लड़के सिगरेट के आदी होते हैं. ये खुद तो सिगरेट पीते हैं, साथ ही आप के आसपास के वातावरण को प्रदूषित भी कर देते हैं. आप इन से इतना परेशान हो जाएंगे कि कभीकभी लड़ाई भी हो सकती है. बेहतर यह होगा कि आप अपने रूममेट्स के लिए कुछ नियम बना दें और उन नियमों को लागू करें.

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पहला नियम तो यही हो कि स्मोकिंग हमेशा कमरे के बाहर हो. जो यह नियम न माने उस से बात न करें या साथ हैंगआउट करना छोड़ दें. सेहत अच्छी रखना इस उम्र में बहुत जरूरी है. साथ ही, सिगरेट के धुएं के बीच पढ़ाई करना बहुत मुश्किल है.

मदरहुड से महिलाओं के करियर पर ब्रेक

प्रोफेशनल वर्ल्ड में महिलाओं के लिए गर्भावस्था एक चुनौतीपूर्ण समय होता है. सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं बल्कि इस समय उन के सामने मानसिक तौर पर भी बहुत सारी चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं. गर्भावस्था में पेश आने वाली चुनौतियों में से एक नौकरी के स्तर पर महसूस होने वाली चुनौती भी है. इस संदर्भ में हुए एक शोध में यह बात सामने आयी है कि गर्भावस्था के दौरान ज्यादातर महिलाओं को नौकरी से निकाले जाने का डर लगा रहता है.

प्रोफेशनली तनाव महसूस करती हैं महिलाएं

अधिकतर कामकाजी महिलाओं को ऐसा लगता है कि गर्भवती होने से उन की नौकरी को खतरा हो सकता है. उन्हें काम से निकाल दिया जा सकता है जब कि पिता बनने वाले पुरूषों को अकसर नौकरी या कार्यस्थल पर बढ़ावा मिलता है.

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अमेरिका के फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध से जुड़े इस निष्कर्ष को एप्लाइड मनोविज्ञान के जर्नल में प्रकाशित किया गया. इस में इस बात की पुष्टि की गई है कि मां बनने वाली औरतों को ऐसा महसूस होता है कि गर्भ के दौरान और बाद में कार्यस्थल पर उन का अच्छे से स्वागत नहीं किया जाएगा.

क्या कहता है शोध

अध्ययन में पाया गया कि जब कामकाजी महिलाओं ने अपनी प्रेगनेंसी का जिक्र अपने मैनेजर या सहकार्यकर्ताओं से किया तो उन्हें करियर के क्षेत्र में प्रमोशन दिए जाने की दर में कमीं आई जब कि बाप बनने वाले पुरूषों को प्रमोशन किए जाने की दर में बढ़ोतरी हुई.

स्त्री सशक्तिकरण के इस दौर में जब कि महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाबी के झंडे गाढ़ रही हैं इस तरह के खुलासे थोड़ा हतोत्साहित करने वाले प्रतीत होते हैं. पर यह एक हकीकत है. कहीं न कही घर परिवार के साथ कार्यस्थल की दोहरी जिम्मेदारियों के बीच स्त्री का करियर पीछे छूट ही जाता है. वह चाह कर भी दोनों क्षेत्रों में एकसाथ बेहतर परिणाम नहीं दे पाती.

इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि शादी के बाद एक स्त्री का प्राकृतिक दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है. बड़ेबुजुर्गों की सेवा ,पति व अन्य परिजनों की देखभाल ,बच्चों की परवरिश जैसे काम उसे निभाने ही होते हैं. इस के अलावा शादी के बाद परिवार बढ़ाना भी एक सामजिक जिम्मेदारी है. बच्चे के जन्म और लालनपालन में पिता के देखे माँ की भूमिका बहुत ज्यादा होती है और वह इस से बच नहीं सकती. वैसे भी आम भारतीय घरों में एक मां से यह अपेक्षा की जाती है कि वे हर तरह के हितों को जिन में उन के खुद के हित भी शामिल हैं, को बच्चे से नीचे रखें.

गर्भावस्था और उस के बाद के 1 -2 साल स्त्री को अपने साथसाथ नए मेहमान की सुरक्षा और जरूरतों का भी पूरा ख्याल रखना होता है. ऐसे में अगर उसे घर

से पूरा सपोर्ट ,अच्छा वर्किंग एन्वॉयरमेंट, आनेजाने की यानी ट्रांसपोर्ट की बेहतर सुविधा न मिले तो नई मां के लिए सब कुछ मैनेज करना बहुत कठिन हो जाता है.

एक तरफ उन से घर के सारे काम करने और परिवार की तरफ पूरी जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जाती है तो वहीँ ऑफिस में एम्प्लायर भी अपने काम में कोई कोताही नहीं सह सकता. वह करियर के किसी भी मुकाम पर क्यों न हो बात जब बच्चे के जन्म और पालन पोषण की आती है तो पिता यानी पुरुष के देखे एक महिला पर बहुत साड़ी जिम्मेदारियां आ जाती हैं और इस दौरान उस को काफी त्याग करने पड़ते हैं. महिला को करियर के बजाय परिवार को प्राथमिकता देनी पड़ती है.

विश्वबैंक की एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या लगातार कम हो रही है. कार्यक्षेत्र में हिस्सेदारी के मामले में भारत की महिलाएं 131 देशों में 121वें स्थान पर हैं.

2004-05 में देश में लगभग 43 फीसदी महिलाएं कामकाजी थीं. कुछ ऐसा ही आंकड़ा 1993-94 में भी था. लेकिन आज 2016-17 में जब देश नए कीर्तिमान रच रहा है कामकाजी महिलाओं का आंकड़ा 27 प्रतिशत से भी कम होता जा रहा है. हमारे देश से अच्छी स्थिति नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों की हैं.

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 के बीच विभिन्न कारणों से 1.97 करोड़ महिलाओं ने नौकरी छोड़ दी. यह बात अलग है कि जो महिलाएं काम कर रही हैं वे अपनी काबिलियत के झंडे गाढ़ रही हैं मगर यह संख्या संतोषजनक नहीं है.

ग्लोबल जेंडर 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक 144 देशों में किए गए सर्वे में भारत 136 वें नंबर पर है. भारत में महिला कार्यबल की भागीदारी महज 27 प्रतिशत है, जो वैश्विक औसत के मुकाबले 23 प्रतिशत कम है.

वर्ल्ड इकोनौमिक फोरम द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर पांच में से चार कंपनियों में 10 प्रतिशत से भी कम महिला कर्मचारियों की भागीदारी है. भारत की ज्यादातर कंपनियां महिलाओं की तुलना में पुरुष कर्मचारियों को भर्ती करना पसंद करती है. मेटरनिटी बेनेफिट एक्ट 2016 के जरिए प्रेग्नेंसी के दौरान छुट्टियों को 12 हफ्ते से बढ़ा कर 26 हफ्ते किया गया है ताकि महिलाओं को इस तनाव से उबारने की कोशिश की जा सके. हालांकि अभी असंगठित क्षेत्रों में यह तनाव बरकरार है पर सरकारी नौकरियों में बहुत हद तक महिलाएं इस तनाव से बाहर आ रहीं हैं.

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पर मेटरनिटी लीव के बढ़ते दबाव के कारण कंपनियां महिलाओं को भरती करने में गुरेज करती हैं. बड़ी कंपनियां इस मामले में सकारात्मक रुख अपनाती हैं. वे एक्ट से हुए बदलाव का समर्थन करते हुए महिलाओं की भर्ती में कोई कमी नहीं करतीं. लेकिन असली दिक्कत छोटी और मीडियम कंपनियों से है. इन कंपनियों में महिलाओं की सैलरी कम करने जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं. या महिलाओं की हायरिंग ही कम कर दी जाती है.

एम्प्लायर का पक्ष भी देखें

अगर कोई महिला प्रेगनेंसी के बाद 6 माह लीव पर चली जाए और एम्प्लायर को उस के बदले किसी और को रखने की जरुरत न पड़े तो इस का मतलब यह भी माना जा सकता है किमान लीजिये कि किसी कंपनी या एक सरकारी यूनिवर्सिटी में कोई महिला काम कर रही है और उसे बच्चे के बाद 6 माह की लीव पर जाना पड़ा. उस के बाद भी उस ने एक डेढ़ साल की पेड लीव ले ली.

जाहिर है इतने समय तक उस के बगैर काम चल सकता है यानी उस के पास कोई महत्वपूर्ण काम नहीं. कार्यालय में उस की उपयोगिता न के बराबर है. उसके होने या न होने से कंपनी या यूनिवर्सिटी को कोई फर्क नहीं पड़ता.  मगर अगर उसके बदले किसी और को एडहौक पर रखना पड़ता है तो फिर यह इसी बात को इंगित करता है कि कंपनी को उस महिला की वजह से नए एम्प्लाई को रखने का खर्च

करना पड़ा. ऐसे में एम्प्लाई अपनी सहूलियत देखते हुए भविष्य में महिला एम्प्लाइज को कम से कम लेना शुरू कर देगा या फिर उन की सैलरी शुरू से कम रखेगा ताकि भविष्य में उसे अधिक नुकसान न हो.

महिलाओं की इन तमाम दिक्कतों से निपटने में घर और ऑफिस में अच्छा सपोर्ट सिस्टम मदद कर सकता है. अगर बौस वीमेन हो तो इन दिक्कतों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. इसी तरह परिवार का सहयोग भी काफी माने रखता है. जैसे-जैसे ज्वाइंट फैमली खत्म हुई हैं, बच्चों की परवरिश मुश्किल होती जा रही है. एक अध्ययन के मुताबिक़ एक छोटा बच्चा होने से महिलाओं के रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ता है. वहीं किसी बड़ी महिला के परिवार में होने से कामकाजी महिलाओं के काम करने के आसार बढ़ जाते हैं.

इसी तरह मां बनने वाली महिलाओं के प्रति करियर से जुड़ी प्रोत्साहन को कम नहीं किया जाना चाहिए. इस के विपरीत माता और पिता दोनों को ही सामाजिक और करियर से जुड़ी हर संभव सहायता प्रदान करनी चाहिए ताकि काम और परिवार से जुड़ी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने में उन्हें मदद मिलें.

इस दौर में पिता की भूमिका भी तेजी से बदल रही है. उन को मालूम है कि दो कमाने वाले होंगे तो एक बेहतर लाइफ स्टाइल हो सकती है. इसलिए अब वे अपनी पत्नी का सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन फिर भी जब तक रूढ़िवादी मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक रियल में हालात नहीं बदल सकते.

क्या है समाधान

अगर करियर के साथ प्रेग्नेंट होना है तो प्रयास करें कि 35 के बाद यह नौबत आये क्यों कि उस समय तक लड़की अपने पेशे से जुड़े हुनर अच्छी तरह सीख चुकी होती है. वह करियर के मामले में सेटल और हर तरह से मैच्योर रहती है. उस में इतनी काबिलियत आ जाती है कि घर से भी काम कर के दे सके. वैसे भी तकनीकी विकास का ज़माना है. एम्प्लायर भी उसे सपोर्ट देने को तैयार रहता है क्यों कि वह कंपनी के लिए काफी कुछ कर चुकी होती है.

मगर 27 -28 की उम्र में अगर लड़की प्रेग्नेंट हो जाए जब कि एम्प्लायर उसे सिखा रहा होता है तो यह एम्प्लायर के लिए काफी घाटे का सौदा होता है. लड़की अगर मार्केटिंग फील्ड में है तो जाहिर है कि कम उम्र में उस का अधिक दौड़भाग का काम होगा जब कि उम्र बढ़ने पर वह सुपरवाइज़र बन चुकी होती है.

इसी तरह किसी भी फील्ड में उम्र बढ़ने पर थोड़ी स्थिरता का काम मिल जाता है. ऐसे में अगर वह 2 -4 घंटे के लिए भी आ कर महत्वपूर्ण काम निबटा जाए तो एम्प्लायर का काम चल जाता है.

साथ काम करने वाली लड़कियों को भी समस्या हो सकती है क्यों कि जो लड़की शादीशुदा है और प्रेग्नेंट हो जाती है उसे तो एकमुश्त 6 माह की छुट्टियां मिल जाती हैं. मगर 200 में अगर 140 लड़कियां ऐसी हैं जो अविवाहिता हैं या प्रेग्नेंट नहीं होती है तो उन के लिए तो यह एक तरह का लॉस ही है. भला उन का क्या कसूर था?

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इसी तरह स्वाभाविक है कि इन परिस्थितियों में कोई भी एंपलॉयर मेल कैंडीडेट्स को ही तरजीह देंगे और अपना घाटा कम करने का प्रयास करेंगे. उन्हें या तो प्रोडक्ट की कीमत में वृद्धि करनी पड़ेगी और तब सोसाइटी द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से वह खर्च वहन किया जाएगा या फिर एक सोल्युशन यह है कि समाज खुद आगे आये और यह खर्च वहन करे या फिर जिस ने कानून बनाया वही यानी सरकार इस का सौल्यूशन दे.

वो औटो वाला प्यार

मुझे याद है जब मैं ये सोचा करती थी कि ये प्यार, मोहब्बत सब बेकार है, ये सब कुछ नहीं होता. मैं हमेशा यही सोचती थी कि अपनी जिंदगी में कभी प्यार नहीं करूंगी लेकिन वो कहते हैं न शायद की प्यार करते नहीं हो जाता है. बस ऐसा ही हुआ था कुछ मेरे साथ. वो दिन याद है मुझे जब उन्होंने पहली बार मुझसे बात की थी, मैंने भी बस ऐसे ही हाय-हैल्लो कर लिया.लेकिन ये नहीं सोचा था कि एक दिन इसी इन्सान का मुझे साथ मिलेगा.जब उन्होंने मुझे प्रपोज किया था तो कोई एहसास ही नहीं था मन में बस मैंने मजाक में ले लिया उसे फिर मामला थोड़ा गम्भीर समझ में आया और मैंने सीधा मना कर दिया.

तकरीबन एक महीने तक मुझे मनाने में लगे थे वो और मैं यही बोलती की नहीं मेरे घर वाले नहीं मानेंगे.. मेरा एक ही प्यार होगा जिससे मैं शादी करूंगी. मेरे घर में लव मैरेज की कोई इजाजत नहीं देगा.लेकिन उनके मनाते-मनाते मैंने सोचा कि क्या एक मौका देना चाहिए और फिर क्या था मैंने एक दिन उन्हें हां बोल दिया…हां याद है मुझे जब मैंने हां की थी तो हम दोनों औटो में थे और वो मुझे छोड़ने के लिए मेरे घर तक आये थे हालांकि औटो से उतरे नहीं लेकिन घर तक छोड़ कर गए.

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जब मैंने हां कहा था तब कोई उतना प्यार नहीं था मुझे उनसे ना ही कोई अट्रैक्शन था.ऐसा सुना था मैंने कि लोगों का रिलेशन 6 महीने,5 महीने या ज्यादा से ज्यादा 1 साल ही चलता है फिर ब्रेकअप और फिर कोई दूसरा आ जाता है जिंदगी में लेकिन मेरे साथ उल्टा हुआ मुझे रिलेशन में आने के 5 से 6 महीने बाद तो प्यार हुआ था.हम अक्सर मिलते थे…उनके पास स्कूटी थी लेकिन फिर भी मेरे लिए वो औटो से आत थे और रोज मुझे औटो से छोड़ने जाते थे. बहुत खयाल रखते थें…

आज भी रखते हैं.औटो में ही प्यार की कहानियां बन गई और कुछ यादें जब हम बातें करते हुए जाया करते थें. औटो से मुझे गोलगप्पे खिलाने के लिए कहीं भी जाने को तैयार होते थे..उन्हें पता हैं की मुझे गोलगप्पे-चाट बहुत पसंद हैं इसलिए मेरी पसंद का खयाल रखते हैं वो. आज भी मैं मिलती हूं तो गोलगप्पे साथ खिलाने ले जाते हैं हां पहले से काफी कम हो गया क्योंकि दूर हूं. गोलगप्पे खिलाना औटो से छोड़ने जाना…ये सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक साथ ही एक शहर में थे.लेकिन फिर जिंदगी में आगे भी बढ़ना था और कुछ करना था ,अपने पैरों पर खड़े होना था.

मैं पढ़ाई करने बाहर आ गई और वो वहां अपनी लाइफ सेट करने लगे आखिर उनको भी तो जिंदगी में कुछ करना था. अब तो गोलगप्पे अकेले ही खा लेती हूं.आज हम दूर हैं अलग-अलग शहर में फिर भी हमारा प्यार बना हुआ है.

दोनों एक-दूसरे को समझते हैं,सहयोग करते हैं,आपस में सुख-दुख भी फोन करके बांट लेते हैं,उदास होते हैं तो बात करते हैं,कुछ महीनों में ही सही मिल भी लेते हैं.लेकिन आज भी जब मैं औफिस से घर औटो में जाती हूं उनको मिस करती हूं. मुझे नहीं पता की मेरी शादी होगी उनसे या नहीं….हम साथ होंगे या नहीं लेकिन इतना यकीन है की प्यार नहीं कम होगा. मेरी जिंदगी में उनकी जगह कोई नहीं ले पाएगा. लेकिन काश ऐसा ही हो की हम साथ रहें हमेशा और हमारा वो औटो वाला प्यार हमेशा रहे..

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लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में इन बातों का रखें ध्यान

क्या आप लौंग जिस्टेंस रिलेशनशिप में हैं वैसे ये कोई पूछने वाला सवाल लगता नहीं क्योंकि 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में होते हैं, लेकिन तब उसको रिश्ता कायम रखना मुश्किल होता है. रिलेशन में अक्सर ऐसा होता है जब दो लोग साथ होकर भी दो अलग-अलग जगह पर रहते हैं. एक-दूसरे से दूर रहते हैं. अक्सर ऐसा होता है कि जब महीने दो महीने या फिर उससे भी ज्यादा समय बाद दोनों मिलते हैं. फिर भी उनका रिश्ता बना रहता है, लेकिन अगर उस रिश्ते को अच्छा बना कर रखना है और हमेशा साथ रहना रहना है तो आपको कुछ ऐसी बातों पर ध्यान देना होगा जो आपके रिश्ते को मजबूत रखेगी… हम आपको बताएंगे की कौन सी ध्यान देने वाली मुख्य बातें हैं…

1. एक-दूसरे पर रखें भरोसा हमेशा

अगर आप अपने पार्टनर से दूर हैं तो उसमें सबसे जरूरी बात होती है भरोसा. आप दूर होकर अगर भरोसा नहीं कर सकतीं तो फिर आपका रिश्ता सिर्फ नाम का रिश्ता है, क्योंकि लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप भरोसे पर ही टिका होता है. लोग तमाम बातें कहतें हैं, आपको भड़काने का काम करते हैं कि अरे वो तो तुम्हारा फोन ही नहीं उठा रहा है तो ऐसे में आपको चौकन्ना रहने की जरूरत है. मैं ये नहीं कहती की सब लड़के अपनी जगह सही होते हैं, लेकिन भरोसे नाम की भी एक चीज होती है,जो आपके रिश्ते को मजबूती प्रदान करती है.

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2. शक को कम करना है जरूरी

अक्सर ऐसा होता है जब आपका पार्टनर फोन नहीं उठाता या आपको प्रौपर समय नहीं दे पाता तो आपके दिमाग में ये खयाल आता है कि कहीं वो मुझे इग्नोर तो नहीं कर रहा, कहीं वो मुझे धोखा तो नहीं दे रहा, कहीं किसी और के साथ तो नहीं है या उसे कोई और पसंद आ गया. ये सभी खयाल आपके रिश्ते को अन्दर से खोखला कर देते हैं और रिश्ता कमजोर पड़ने लगता है. अगर आप शक कम करेंगी तो आपका रिश्ता अच्छा बना रहेगा.

3. झगड़ा करें कम

अक्सर आप अपने पार्टनर से लड़ाई-झगड़ा करने लगती हैं अगर वो आपका फोन नहीं उठाता या आपको समय नहीं दे पाता तो इसका मतलम ये नहीं की हर वक्त आप उससे झगड़ा ही करेंगी एक तरह से ये भी आपके रिश्ते को कमजोर करता है और फिर उस रिश्ते में कुछ नहीं रह जाता है. अब ये आपके उपर डिपेंड करता है की आप कितना झगड़ा करेंगी और कितनी प्यार से रहकर अपने रिश्ते को मजबूत रखेंगी.

4. रिलेशनशिप में दिखाएं समझदारी

जिस तरह आप अपनी जिंदगी में सेटल होने की कोशिश करती हैं और लाइफ में कुछ अच्छा करना चाहती हैं उसी तरह आपका पार्टनर भी अपनी लाइफ में स्टैंड होने की कोशिश कर रहा होता है जिसके कारण वो आपको समय नहीं दे पाता पर इसका मतलब ये नहीं की वो आपसे प्यार नहीं करता हां कुछ रिश्ते झूठे होते हैं आपका पार्टनर आपको धोखा दे रहा होता है लेकिन हर रिश्ता ऐसा हो ये जरूरी नहीं इसलिए आपको समझदारी दिखानी जरूरी होती है.

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5. पार्टनर को समझना है जरूरी

कभी-कभी आपका पार्टनर बहुत उदास होता है उसे अकेलापन सा महसूस होता है ऐसे में अपना मन और दिल हल्का करने के लिए  वो आपको ही फोन करता है तो आप उसे कुझ बोलें नहीं,झगड़े नहीं कि आप तो फोन ही नहीं करते जब खुद मन हो तो करते हैं बल्कि आप उसे समझें, उसकी प्रॉब्लम को समझें. उसका साथ दें, उसके अकेलेपन को दूर करें.

ये सभी वो तरीके हैं जिससे आप आपने रिश्ते को मजबूत कर सकतीं हैं. इन सभी तरीकों को अपनी जिंदगी में अपना कर देंखें यकीन मानें एक अच्छा रिश्ता बनाने में मदद मिलेगी.

जब बहुएं ही देती हैं धमकी…..

अगर एक जगह कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है तो वहीं दूसरी ओर कुछ महिलाएं ऐसी होती हैं जो घरेलू हिंसा का शिकार तो नहीं होती लेकिन अपने ही ससुरास वालों को झूठे केस में फंसाने की धमकी देती हैं और पति के साथ-साथ पूरे परिवार को अपने काबू में रखना चाहतीं हैं. लेकिन जब वो ऐसा नहीं कर पातीं तो घरवालों को धमकी तक दे देती हैं.इतना ही नहीं उस लड़की के अपने माता-पिता भी बेटी के इन कामों में उसका साथ देते हैं.

अक्सर ऐसा होता है कि जब सास चाहती है कि बहु घर के कामों में हाथ बंटाए लेकिन जब बहु कुछ नहीं करती तो सास बेटे से शिकायत कर बैठती है कि तेरी पत्नी घर के काम नहीं करती मैं अकेले कितना करूं.जब यही बात पति कहता तो पत्नी से उसकी कहा-सुनी होती है साथ ही उसकी नजरों में सास गलत हो जाती है. बस बहु सास को अपना दुश्मन मान बैठती है जो सही नहीं है. भले ही कुछ सासें अच्छी नहीं होती हैं लेकिन हर जगह ऐसी नहीं होती है सास बहु को बेटी मानती है लेकिन मामला तब बिगड़ जाता है जब बहु ही सास को अपना नहीं मानती….

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इनके रिश्तों में खटास इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि बहुएं कभी-कभी तो पति को ही उसके मां के खिलाफ भड़काना शुरू कर देंती हैं…मामला इस हद तक आगे आ चुका होता है यदि सास-ससुर कमजोर पड़ते हैं तो बहुएं उन्हें वृध्दाश्रम तक भेज देती हैं…..पति के सामने खुद में और मां-बाप में से किसी एक को चुनने पर मजबूर कर देती हैं. इस बात का उदाहरण आपर अमिताभ बच्चन के बागबान फिल्म या राजेश खन्ना और गोविंदा की फिल्म स्वर्ग से बखूबी समझ सकते हैं.

हमेशा सास ही गलत नहीं होत है…जरा आप सोचिए भला कौन सी सास ये नहीं चाहती कि उसकी बहु उसकी सेवा न करें…जिस तरह बहु अपने माता-पिता की सेवा करती है वैसे ही अगर थोड़ा अपने सास-ससुर की सेवा कर ले तो भला क्यों हो तकरार.बहुएं हमेशा अपना हक मांगती हैं लेकिन क्या वो अपना फर्ज निभाती हैं जो उनके ससुराल के प्रति है? अगर नहीं तो फिर अपने हक की उम्मीद कैसे कर सकती हैं. अक्सर ही घरों में सास-बहु में 36 का आंकड़ा होता है,लेकिन इसमें हमेशा सास ही गलत हो ये जरूरी नहीं हैं.

हम हमेशा ये देखते हैं कि बहुएं दहेज मांगने का आरोप लगाती हैं शिकायत करती हैं…तो पहली बात तो ये आज भी बहुत सी लड़कियों की फैमिली ऐसी होती है जो खुद ही दहेज देती है,इसमें उसकी खुद की मर्जी होती है तो क्या वो दोषी नहीं हैं?क्या उनकों सजा नहीं होनी चाहिए? एक रिपोर्ट पढ़ने पर पता चला कि महिलाएं खुद की मां के द्वार भी हिंसा का शिकार होती हैं पर वे इस पर ध्यान नहीं देती हैं और तो और उन्हें बचपन से ही सास से घृणा करना सिखा दिया जाता है इसलिए वो सास को अपना दुश्मन समझने लगती हैं.  एक सास अपनी बहु को अपना बेटा देती हैं हमेशा के लिए और अगर वही लड़का अपनी बीवी के कहने पर मां को गलत समझे तो क्या ये सही है नहीं बिल्कुल भी नहीं,मेरी नजर में ये कहीं से भी सही नही है इसलिए बहुओं को अपना नजरिया बदला होगा.

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बहु अगर सच में एक अच्छी बहु बनना चाहती है अपने सास की बेटी बनना चाहती है तो उसको कुछ अपनी जिम्मदारियों को निभाना होगा जिससे सास और बहु के रिश्ते को अच्छा बनाया जा सकता है..जैसे..

  • सास को सास नहीं मां समझे
  • सास की मां की तरह सेवा करें
  • ससुराल को सिर्फ ससुराल नहीं अपना घर समझें
  • घर के कामों में हांथ बटाएं
  • अपने मायके में ससुराल की बुराई न करें
  • पति से सास की बुराई न करें

Edited by Rosy

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