वैलकम: भाग-3 आखिर क्या किया था अनुराग ने शेफाली के साथ

‘‘अरे, क्या बकवास कर रही है?’’ आंखें मलती हुई शेफाली उठ बैठी.

‘‘अगर विश्वास न हो तो खुद जा कर देख लें. मैं ने गैस्टरूम में बैठा दिया है. आंखें फाड़फाड़ कर क्या देख रही है? जल्दी से जा और मैं चली तेरे उस दीवाने के सत्कार के लिए,’’ कह कर उर्वशी वापस चल दी.

शेफाली बड़बड़ाई कि ओह, तो जनाब खुद तशरीफ लाए हैं. चायपानी तो दूर रहा, मैं ऐसा सुनाऊंगी कि भविष्य में किसी दूसरी लड़की को देखने और उस की बेइज्जती करने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे. उस की आंखें क्रोध से लाल हो उठीं. वह बिना सजेसंवरे केवल हाथमुंह धो कर ही अतिथिकक्ष की तरफ बढ़ गई.

अतिथिकक्ष में प्रवेश करने पर जैसे ही शेफाली की दृष्टि अनुराग पर पड़ी, उस की आंखों में क्षमा और सौम्यता थी पर मुख पर मधुर मुसकान खेल रही थी. अचानक शेफाली के हृदय का ज्वालामुखी बजाय फूटने के आंखों की पलकों के   झरोखों से अनुराग को   झांकने के लिए आतुर हो उठा.

‘‘मौर्निंग, शेफाली,’’ अनुराग मुसकराहट के साथ बोला. ‘‘क्या अब भी इंसल्ट करने में कोई कसर रह गई है?’’ आगे वह कुछ न बोल सकी. ‘‘भाभी के व्यवहार के लिए मैं सौरी कहता हूं. इस में मेरा कोई दोष नहीं फिर भी यदि आप मुझे अपराधी सम  झती हैं तो अपराधी आप के सामने हाजिर है,’’ अनुराग बड़ी विनम्रता से बोला. ‘‘लेकिन… आप ने… इंचीटेप…’’ शेफाली का चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था.

‘‘वह सब भाभी की चाल थी. वे नहीं चाहतीं कि उन से सुंदर दूसरी बहू हमारे परिवार में आए और उन को नीचा देखना पड़े. मैं उस समय भाभी को टोक नहीं पाया क्योंकि भाभी ने आते ही मु  झ पर इस तरह रोब जमाना शुरू कर दिया था कि मैं अपने खोल से कभी निकल नहीं पाया.

‘‘जब मुझे इन सब बातों का पता चला तो उन के जाने के बाद मैं आप से मिलने के विचार से लखनऊ में ही रह गया और मैं ने सुबह की बैंगलुरु की फ्लाइट ले ली. सचमुच आप बहुत ही मधुर गाती हैं. जब आप को पहली बार फेस टू फेस देखा तो मैं सकते में था और तब

क्या हो रहा था उस का मु  झे एहसास ही नहीं हो रहा था. फिर मैं ने यहां आप से मिल कर क्षमा मांगने का निर्णय किया और अब मैं अपनी कलाई में आप के हाथों हथकड़ी डलवाने के लिए तैयार हूं.’’ ‘‘लेकिन मैं ने तो शादी न करने का निर्णय कर लिया है और फिर भैया से…’’ ‘‘इस की चिंता न करिए. भैया की स्वीकृति ले कर ही मैं आप के पास आया हूं. रात को मैं उन से मिला था क्योंकि मैं भाभी के साथ कानपुर नहीं गया. और हां, बरात लखनऊ नहीं जाएगी. बस, आप के भैयाभाभी कानपुर आ जाएंगे और वहीं शादी हो जाएगी. शादी का पूरा जिम्मा मेरा है. हमारा पारिवारिक व्यापार इतना तो कर सकता है कि होेने वाले सदस्य का सही ढंग से वैलकम करे,’’

कहतेकहते अनुराग रुक गया और उस की याचनाभरी दृष्टि शेफाली पर टिक गई जैसे कह रहा हो, क्या इस प्रायश्चित्ता के बाद भी तुम मु  झे क्षमा नहीं करोगी?

खामोशी: नेहा अपनी शादीशुदा जिंदगी को संभाल पाई

नेहा एक अतिमहत्त्वाकांक्षी युवती थी. शादी बाद जब वह ससुराल आई तो पति से न सिर्फ भरपूर प्यार मिला, धनदौलत भी भरपूर मिली. मगर सिवाय उसे सहेजने के, वह खुल कर पैसा उड़ाने लगी…

‘‘तुम फिर से शुरू हो गए. क्या तुम्हें नहीं पता था कि मैं पब्लिक फिगर हूं. मेरे दोस्त, मेरे फैन सब मेरी 1-1 बात जानना चाहते हैं,’’ नेहा ने गुस्से में सोफे पर बैठते हुए सचिन से बोला, ‘‘देखो सचिन तुम्हें अपनी मम्मी को समा  झना होगा कि मेरे फोटो मेरे कपड़ों पर बोलना बंद करे… अरे वह नाइटी एक बड़े ब्रैंड ने मु  झे गिफ्ट की ताकि उसे पहन कर मैं सोशल मीडिया पर पोस्ट करूं और उन का प्रमोशन हो और तुम्हारी मम्मी ने इतना ड्रामा शुरू कर दिया. इसे छोड़ो मैं ने तुम्हें 5 लाख का बोला था… मु  झे आज शौपिंग पर जाना है… यार मेरा मूड मत खराब करो,’’ गुस्से में तमतमाई नेहा ने पास पड़ा कुशन जमीन पर पटक दिया.

नेहा एक जानीमानी अदाकारा थी पर 35 पार करते ही काम मिलना कम हो गया. बहन या मां के रोल आने लगे तो नेहा ने अपने दोस्तों के कहने पर एक जानेमाने करोड़पति बिजनैसमैन से शादी कर ली. सचिन एक बड़े बिजनैस परिवार का छोटा बेटा था. पहले तो परिवार ने इस शादी से मना किया पर बेटे के आगे सब ने हां कर दी. आज किसी ने सचिन की मां को बहू की नाइटी में एक रील सोशल मीडिया पर दिखा दी जिस के बाद घर में बवाल मचा है.

नेहा का गुस्सा 7वें आसमान पर था क्योंकि पहली बार उस के कपड़ों को ले कर किसी ने उसे टोका था. सचिन को सम  झ नहीं आ रहा था कि क्या करे क्योंकि मांपिताजी ने पहले ही बोला था कि किसी बिजनैस फैमिली की लड़की से शादी करो जो घरपरिवार को सम  झे पर सचिन को माया नगरी की चमकधमक ने इतना प्रभावित किया कि नेहा एक जीती हुई ट्रौफी लगती थी जिसे ले कर वह हर जगह छाया रहता था.

नईनई शादी के वक्त दूरदूर के रिशेदार नेहा के साथ फोटो खिंचवा कर शेयर करते थे. तब सचिन का सीना चौड़ा हो जाता है. दोस्तोयारों में सिर्फ नेहा की चर्चा रहती थी. पैसे की कोई कमी नहीं थी. सचिन को पर नेहा के बाद उसे जो लोगों का ध्यान मिल रहा था वह उस के लिए बहुत खुशी की बात थी. पर शायद सब शुरूशुरू की खुशी थी. करोड़पति परिवार से आने वाले सचिन के परिवार की अपनी बहू से अपेक्षाएं कुछ और ही थीं घर की दूसरी बहुओं की तरह सास चाहती थी कि नेहा भी घर के छोटेबड़े फंक्शन का हिस्सा बने पर नेहा की पार्टियां, फैशन शो, घूमनाफिरना खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. यहां तक तो फिर भी ठीक था पर आज एक छोटी नाइटी में अपने घर की बहू को नाचते देख सचिन की मां ने नेहा को 2 बातें सुना दीं जिस की वजह से नेहा ने अपना सारा गुस्सा सचिन पर निकल दिया.

रात को गुस्से में नेहा अपने कमरे से बाहर ही नहीं आई? न ही खाना खाया. अगले दिन सुबह नेहा ने फरमान सुना दिया कि वह सब के साथ एक घर में नहीं रहेगी. उसे अलग घर चाहिए.

‘‘नेहा तुम्हें पता है मेरा सारा बिजनैस बड़े भैया और पापा के साथ है और यह घर इतना बड़ा है और तुम्हें कोई रोकटोक नहीं… सोच कर बताओ कि आखिर बार हम ने कब मम्मीपापा के साथ बैठ कर चाय पी जबकि मेरा सारा परिवार सुबह का नाश्ता एकसाथ करता है… यह पापा का नियम है पर तुम्हें कोई कुछ नहीं कहता,’’ सचिन ने प्यार से नेहा को सम  झा.

‘‘प्लीज सचिन यह नाश्ता साथ करने की छोटी बात मु  झ से मत करो. अगर रोकटोक नहीं तो कल तुम्हारी मम्मी ने इतना तमाशा क्यों बनाया? मैं ने एक बार बोल दिया कि अलग घर चाहिए तो चाहिए नहीं तो तुम सोच लो… मेरी लाइन में तलाक आम बात है पर शायद तुम्हारे पापाजी के खानदान में यह आम न हो,’’ बोल कर नेहा ने टौवेल उठाया और नहाने चली गई.

सचिन को अब तक महसूस हो गया था कि नेहा अब नहीं मानेगी. उस ने

पापा और भैया को सारी बात बताई. पापा ने सम  झदारी दिखाते हुए घर से कुछ दूरी वाला फ्लैट सचिन और नेहा के लिए साफ करवाने के लिए बोल दिया. कुछ ही दिनों में नेहा और सचिन कुछ नौकरों के साथ वहां शिफ्ट हो गए पर अब हालात और खराब हो गए. नेहा ने रातरात भर पार्टी करनी शुरू कर दी. वह सचिन को भी साथ चलने को बोलती पर सचिन पर औफिस का काम, फैक्टरी का काम अब बढ़ने लगा था क्योंकि बिजनैस बढ़ रहा था.

‘‘यार तुम्हें दिक्कत क्या है मेरे साथ चलने में… पता है कपिलजी ने खासतौर पर मु  झे फोन कर के बुलाया है. उन की आने वाली फिल्म में एक रोल है शायद मु  झे मिल जाए. सोचो कपिलजी की फिल्म में काम करना कितनी बड़ी बात है,’’ नेहा ने अलमारी से सैक्सी सी ड्रैस निकाल कर शीशे में खुद को देखते हुए सचिन से कहा.

‘‘नेहा तुम यह पहन कर जाओगी?’’ सचिन ने नेहा की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘उफ, बस करो सचिन मु  झे जो पहनना है पहनूंगी… अच्छी नजर आओगी तो ही फिल्म के औफर मिलेंगे,’’ नेहा ने गुस्से में कहा.

‘‘पर शादी के वक्त तुम ने बोला था कि तुम काम नहीं करना चाहती… एक सिंपल लाइफ जीना चाहती हो मेरे साथ… सिर्फ पार्टी, अवार्ड फंक्शन पर जाएगी, सोशल वर्क करोगी इसलिए मेरे घर वाले माने थे,’’ सचिन भी सोफे से खड़ा हो गया.

‘‘तब मु  झे लगा था कि मैं साइड रोल नहीं करूंगी पर अब सब मु  झे बोलते हैं कि इन में वह बात है कि साइड रोल में भी मैं धमाल कर सकती हूं,’’ नेहा इतराती हुई बोली.

‘‘जो करना है करो पर मैं पार्टी में नहीं जा सकता. मु  झे सुबह दिल्ली जाना है… किसी को बोल कर मेरा बैग पैक करवा दो.’’

‘‘बैग पैक करवाने का टाइम नहीं है मेरे पास. मेरी हेयर स्टाइलिस्ट से अपौइंटमैंट है. पार्टी के लिए रैडी होना है और जरा मेरे अकाउंट में क्व3 लाख ट्रांसफर कर देना,’’ बोलते हुए नेहा कमरे से बाहर निकल गए सचिन वहीं खड़ा रहा.

अगले दिन 3 दिन सचिन दिल्ली था. न नेहा का कोई फोन आया और सचिन ने फोन करता तो नेहा ने उठाया नहीं. घर पर फोन करता तो कभी नौकर कहता कि मैडम सो रही हैं तो कभी कहता घर पर नहीं. 3 दिन बाद रात को सचिन 2 बजे घर आया तो भी नेहा घर पर नहीं थी.

अगले दिन दोपहर को नेहा घर आई. सचिन को देख कर बोली, ‘‘अरे तुम आ गए? अच्छा हुआ मु  झे क्व4 लाख चाहिए.’’

‘‘तुम थी कहां सारी रात?’’ सचिन ने नेहा से पूछा.

‘‘कहां थी मतलब? कपिल की पार्टी में और तुम्हें पता है शनिवार से मेरी शूटिंग शुरू हो रही है. तुम मु  झे कैश दे दो. मु  झे निकलना है फ्रैश हो कर,’’ सचिन के गुस्से, नाराजगी को अनदेखा कर के नेहा नहाने चली गई.

अब अकसर नेहा रात को देर से आती या अगले दिन आती. आए दिन सचिन से पैसे मांगती. सचिन भी सब चुपचाप सह रहा था क्योंकि उसे पापा की बात याद थी कि शादी टूटनी नहीं चाहिए. समाज में परिवार की इज्जत है. पर एक रात तो हद हो गई. सचिन बालकनी में रात के 3 बज रहे थे. नेहा किसी और की कार से घर के दरवाजे पर लड़खड़ाते कदमों से उतरी. उस के पीछे 2 मर्द जिन का चेहरा साफ नहीं था. एक मर्द ड्राइविंग सीट से और दूसरा पिछली सीट से उतरा. एक ने पीछे से और दूसरे ने आगे से नेहा को गले लगा लिया. एक गु्रप हग जैसा… सिर्फ गले ही नहीं लगाया जिस ने आगे से गले लगाया था वह नेहा के होंठों को चूम रहा था और पीछे से जिस ने गले लगा रखा था उस के हाथ नेहा की छाती को सहला रहे थे. इतना देख कर सचिन नीचे भागा. उसे लगा कि वे दोनों नेहा के नशे में होने का फायदा उठा रहे हैं. जब तक सचिन नीचे पहुंचा नौकर ने दरवाजा खोल दिया था और नेहा गुनगुनाते हुए ड्राइंगरूम में आ चुकी थी.

‘‘अरे तुम अभी तक जाग रहे हो,’’ सचिन को देख कर वह मदहोश आंखों से सचिन से लिपट गई पर सचिन का दिमाग हिल चुका था क्योंकि नेहा इतने भी नशे में नहीं थी कि कोई उस का फायदा उठा ले और वह गुनगुनाती हुई आए सचिन से लिपट गई.

नेहा को धक्का दे कर अलग किया और बोला, ‘‘कौन थे वे दोनों जो तुम्हें छोड़ने आए थे और तुम्हारी कार कहां है?’’

‘‘अरे चिल्ला क्यों रहे हो कार कपिल के घर है और वे कपिल के दोनो दोस्त थे जो आए थे. आज कपिल के घर पार्टी थी. अब हटो सोने दो मु  झे.’’

सचिन को लगा कि अभी और बात हुई तो बात बिगड़ सकती है. अत: उस ने सुबह होने का इंतजार किया. सारी रात नींद नहीं आई तो सोशल मीडिया में नेहाकपिल का प्रोफाइल देखने लगा जो देखा उसे देख कर सचिन के होश उड़ गए. पिछले 1 हफ्ते में नेहा का प्रोफाइल अर्धनग्न फोटों से भरा हुआ था. इतना ही नहीं अलगअलग लड़कों के साथ लिपट कर कई फोटो थे. सचिन काम की वजह से सोशल मीडिया पर नहीं था और पिछली बार की लड़ाई देखते हुए शायद घर वालों ने भी इन फोटों का जिक्र उस से नहीं किया. पर अब सचिन को लगा कि समाज, परिवार के डर से खामोश रहना कमजोरी हो गई है.

सुबह सचिन ने नेहा से जब फोटो और रात वाले गले लगने और किस की बात

बोली तो नेहा उलटा सचिन पर भड़क गई, ‘‘रहे न तुम छोटी सोच के… गुडबाय किस थी वह और बाय करने का तरीका था गले लगना… और क्या खराबी है इन तसवीरों में… तुम न गंवार हो… मेरी क्रैडिट कार्ड की लिमिट का क्या हुआ?’’

अब सचिन को लगा कि खामोशी तोड़नी होगी, ‘‘नेहा कान खोल कर सुन लो अभी तक सबकुछ मैं ने चुपचाप सहा क्योंकि मु  झे अपने परिवार की चिंता थी… तुम ने मु  झ से शादी से पहले बोला था कि तुम घर संभालोगी और औफिस जौइन करोगी… तुम्हें सब पहले से पाता था कि मेरे घर वाले कैसे हैं, फिर भी मैं ने हमेशा तुम्हारा साथ दिया. तुम वापस फिल्मों में काम करना चाहती हो बिलकुल करो, लाइफ में जो करना चाहती हो करो मैं साथ हूं पर कल जो मैं ने देखा उसे बिलकुल सहन नहीं करूंगा… मैं अपनी पत्नी के सपने पूरे करने मैं हर तरह से उस के साथ हूं पर तुम जो कर रही हो यानी डरी रातरात भर घर नहीं आना, दूसरे लड़कों के साथ गले लगना, अश्लील फोटो सोशल मीडिया पर डालना यह मुझ से सहन नहीं होगा. यही अगर तुम्हारे सपने हैं तो तुम अभी यह घर छोड़ कर चली जाओ मेरे तरफ से तुम आजाद हो. मैं सिर्फ तुम्हारा एटीएम बन कर रह गया… मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूं पर तुम्हारी ऐयाशी के खर्चे बिलकुल नहीं उठा सकता… शाम तक अपना सामान पैक कर के मेरा घर खाली कर दो… बाकी तलाक के समय जो चाहोगी मैं दे दूंगा पर मैं अब इस घुटन में नहीं रहना चाहता,’’ सचिन ने औफिस का बैग उठाया और कमरे से निकल गया. जाते समय सारे नौकरों को बोल गया कि मैडम के जाने के बाद घर लौक कर के वापस कोठी पर चले जाएं.                       द्य

मरजी की मालकिन: भाग-2 घर की चारदीवारी से निकलकर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी रश्मि

वहीं रश्मि भी एक मध्यवर्गीय परिवार से थी और बनारस में ही उस के पिता बैंक में कार्यरत थे. उस के परिवार में एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका मां के अलावा एक बहन और थी जो अभी कालेज के प्रथम वर्ष में थी. बीए कंप्लीट होते ही दोनों ने अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर में प्रवेश लिया तो एक ही कालेज में होने के कारण दोनों का प्यार भी परवान चढ़ने लगा. अकसर दोनों कालेज के किसी पेड़ की छांव तले सारी दुनिया से बेखबर एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले नजर आते. रश्मि अनुराग की फेमनिज्म विचारधारा पर मोहित थी तो अनुराग उस की सरलता, स्पष्टवादिता और बुधिमत्ता का कायल था धीरेधीरे दोनों ही एकदूसरे के पूरक बन गए थे.

एक बार 2 दिन तक जब रश्मि कालेज नहीं आ पाई तो दिन में न जाने कितनी बार अनुराग के उस के पास कौल और व्हाट्सऐप पर मैसेज आ गए. तीसरे दिन जब लंच में दोनों कैंटीन में चाय पी रहे थे तो अचानक अनुराग ने उस का हाथ पकड़ लिया और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘रेणु जिस दिन तुम कालेज नहीं आती हो तो लगता है पूरा कालेज ही सूना है…’’

‘‘अच्छाजी इतने बड़े कालेज में क्या मैं अकेली ही पढ़ती हूं… बातें बनाना तो कोई तुम से सीखे,’’ रश्मि ने अपनेआप पर इठलाते हए कहा. समय पंख लगा कर उड़ रहा था. स्नातकोत्तर करते ही दोनों ने एकसाथ बैंक की परीक्षा दी और आश्चर्यजनक रूप से प्रथम प्रयास में ही रश्मि का 2 बैंकों में चयन हो गया पर अनुराग अभी भी तैयारी कर रहा था. यों तो अनुराग उसे बहुत प्यार करता था उस के साथ जीनेमरने और जिंदगीभर साथ निभाने का वादा भी करता, पैरों पर खड़े हो जाने के बाद अंतर्जातीय होते हुए भी दोनों ने अपनेअपने घर में शादी की बात करने का भी प्रौमिस किया पर अपनी सफलता पर अनुराग उसे खुश से अधिक कुंठित सा लगा. शायद अपनी विफलता के कारण वह रश्मि की सफलता को पचा नहीं पा रहा था पर रश्मि ने इसे सिर्फ अपने मन का बहम और असफलता की स्वाभाविक प्रातिक्रिया सम  झा और उसे एक बार फिर से पूरी मेहनत से प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया.

अनुराग के प्रयास रंग लाए और अगली बार उसे भी सफलता प्राप्त हो गई. दोनों की पोस्टिंग भी मुंबई में ही हो गई जिस से दोनों ही अपने भविष्य को लेकर बहुत उत्साहित थे.चूंकि अब दोनों आत्मनिर्भर हो गए थे तो दोनों के परिवार वाले विवाह करने पर भी जोर दे रहे थे. अनुराग के परिवार वाले उदार विचारधारा के थे सो वे सहज रूप से एक कायस्थ परिवार में ब्राह्मण बहू लाने को तैयार हो गए. उन का सोचना था कि कमाऊ बहू आ रही है तो अभी तक आर्थिक विपन्नता का दंश   झेलते आए परिवार के सदस्यों को कुछ राहत तो मिलेगी दूसरे बेटी की शादी में भी रुपएपैसे की कोई कमी नहीं रहेगी परंतु कट्टर ब्राह्मणवादी विचारधारा के रश्मि के पिता इस के लिए कतई तैयार नहीं थे.

हां, मां वीना अवश्य उदारवादी और यथार्थ विचारधारा की थीं. उन का मानना था कि यदि समाज से दहेज जैसी कुप्रथा को समाप्त करना है तो अंतर्जातीय विवाह ही एकमात्र विकल्प है. अत: एक दिन उचित अवसर तलाश कर उन्होंने पति से कहा, ‘‘देखोजी अपने समाज में तो कमाऊ लड़कों के रेट बहुत ज्यादा हैं. पहले तो अपनी आत्मनिर्भर बेटी के लिए हम इतना रेट क्यों दें. आखिर हम ने भी तो अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाने में उतना ही पैसा और मेहनत लगाई है जितनी उन्होंने अपने लड़के के लिए, दूसरे ऐसे बिकाऊ लड़के के साथ हमारी बेटी आजीवन खुश भी रहेगी इस बात की भी क्या गारंटी है…’’

‘‘तो गैर जाति और अपने से निम्न कुल में बेटी को ब्याह कर अपना ही धर्म भ्रष्ट कर लें हम यही कहना चाहती हो न तुम,’’ पिताजी ने कुछ आक्रोश से कहा. ‘‘जी कहां का धर्म और जाति, आप भूल गए अपनी उस इकलौती बहन को जिस का आप ने देखभाल कर अपनी ही जाति, कुल और गोत्र में न केवल विवाह किया था वरना अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर दानदहेज भी दिया था परंतु फिर भी उस की ससुराल वालों की मांगें कभी कम ही नहीं हुईं. यही नहीं ससुराल वालों ने उन्हें अपने तानों और अनुचित व्यवहार से इस कदर आजीवन आहत किया था कि वे ताउम्र घुटती रहीं और एक दिन ऐसे ही कलह में आए हार्टअटैक ने उन की जान ही ले ली. फिर भी आप अपनी बेटी का विवाह अपनी जाति, कुल में ही करने पर अड़े हैं? मु  झे तो रश्मि की पसंद में कोई बुराई नजर नहीं आती… योग्यता और गुणों के समक्ष जाति कोई माने नहीं रखती,’’ मां ने अपना पक्ष रखते हुए कहा.

‘‘इस बात की क्या गारंटी है कि अनुराग के साथ उस का जीवन सुखमय ही होगा.’’

‘‘देखो शादी कभी जाति और धर्म से सफल नहीं होती, उस की सफलता तो पतिपत्नी के परस्पर त्याग, समर्पण, सहयोग और सम  झदारी पर निर्भर करती है. कम से कम हमारी बेटी की पसंद का तो है अनुराग, फिर कोई दानदहेज का लफड़ा नहीं. अब दांपत्य जीवन को सुखमय बनाना तो उन दोनों पर निर्भर है,’’ मां ने पिताजी को अपने तर्कों से लगभग निरुत्तर सा कर दिया.

2 वर्ष लंबी जद्दोजहद के बाद मां के तर्कों की जीत हुई और एक दिन सादे से समारोह में रश्मि अनुराग की दुलहन बन गई. विवाह के बाद दोनों खुशी के कारण आसमान में उड़ रहे थे. हनीमून के लिए उन्होंने इंडोनेशिया के बाली को चुना. बाली द्वीप में चावल के हरेभरे खेत, अप्रतिम कलात्मक और प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर रश्मि निहाल हो गई. फैशनेबल कपड़े धारण किए आकंठ परस्पर प्रेमरस में डूबे, इस नवयुगल की खूबसूरती देखते ही बनती थी. देखतेदेखते कब हनीमून के 10 दिन बीत गए दोनों को पता ही नहीं चला.

वापसी में पैकिंग करते समय रश्मि बोली, ‘‘अनुराग वे लोग बड़े खुशहाल होते हैं जिन के प्यार को शादी की मंजिल मिलती है.’’ ‘‘और हम उन प्रेमियों में से एक हैं,’’ कहते हुए अनुराग ने उसे अपने बाहुपाश में आबद्ध कर लिया.

मुंबई आ कर दोनों ने अपनाअपना बैंक जौइन कर लिया. अकसर नवदंपतियों के प्रेम को जब जीवन की सचाइयां अपनी गिरफ्त में लेने लगती हैं, जीवन जब कल्पनाओं से परे यथार्थ के धरातल पर अवतरित होने लगता है तो प्यार हवा हो जाता है और प्यार की जगह तकरार और तनाव लेने लगता है सो लगभग 8-10 महीने बाद ही उन दोनों के बीच भी घर की छोटीमोटी समस्याएं अब समयसमय पर सिर उठाने लगी थीं. प्रेमरस में डूबे रहने वाले नवयुगल के बीच अब यदाकदा बहस, ताना, आरोपप्रत्यारोप ने भी अपनी पैठ बनानी प्रारंभ कर दी थी.

ऐसे ही एक दिन जब रश्मि शाम को बैंक से आ कर चाय बना रही थी तभी खुशी से दोहरे होते हुए अनुराग ने प्रवेश किया, ‘‘लाओलाओ जल्दी से चाय पिलाओ उस के बाद मैं तुम्हें एक गुड न्यूज दूंगा.’’

‘‘लो चाय तो बन ही गई अब बताओ क्या गुड न्यूज है?’’ रश्मि अपना और अनुराग का चाय का कप ले कर डाइनिंग टेबल पर अनुराग के सामने वाली कुरसी पर बैठ गई.

‘‘अगले हफ्ते मां और गुडि़या मुंबई आ रही हैं.’’

‘‘अरे वाह यह तो बड़े गजब की न्यूज है. पहली बार हमारे घर कोई आ रहा है,’’ रश्मि ने उत्साहपूर्वक कहा.

‘‘रेषु वे पहली बार अपने घर आ रही हैं.

मैं चाहता हूं कि हम उन का जम कर स्वागतसत्कार करें.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, मैं भी तो शादी के बाद पहली बार ही मिलूंगी उन दोनों से… हम उन्हें पूरा मुंबई घुमाएंगे… बहुत मजा आएगा न,’’ रश्मि भी खुश होते हुए बोली.

‘‘पर मुझे यह सम  झ नहीं आ रहा कि हम कैसे मैनेज करेंगे… तुम और मैं दोनों ही तो सुबह जा कर शाम को आ पाते हैं… ऐसा करना उन दिनों तुम बैंक से 1 सप्ताह की छुट्टी ले लेना.’’

‘‘छुट्टी क्यों लूंगी… ऐसे अगर किसी के भी आने पर छुट्टी लूंगी तो आफत मुसीबत और बीमारीहारी में क्या करूंगी… गुडि़या और मम्मीजी ही तो आ रही हैं… उन्हें भी पता है कि हम दोनों जौब में हैं… घर में हर काम के लिए मेड है और सुखसुविधा का सारा सामान उपलब्ध है आराम से रहें… औफिस से आने के बाद और शनिवाररविवार को तो हम उन के साथ ही रहेंगे न,’’ रश्मि ने अनुराग की बात काटते हुए कहा.

यह सुन कर अनुराग एकदम भनभना गया और बोला, ‘‘बीमारीहारी जब होगी तब देखा जाएगा. मु  झे नहीं अच्छा लगता कि वे दोनों यहां अकेली बोर हों और हम दोनों औफिस में रहें… क्या सोचेंगी दोनों…’’

‘‘अनुराग इस में सोचने जैसा कुछ भी नहीं है… तुम कुछ ज्यादा ही सोच रहे हो और फिर यदि तुम्हें इतना ही लग रहा है तो तुम ले लो छुट्टी और अपनी मम्मी और बहन को कंपनी दो किस ने मना किया है,’’ रश्मि ने कुछ तैश से कहा.इतना सुनते ही अनुराग का पारा एकदम हाई हो गया और वह गुस्से में पैर पटकते हुए बोला, ‘‘बहू का रहना जरूरी होता है इसलिए मेरे छुट्टी लेने का कोई मतलब ही नहीं है.’’

सदैव स्त्रीपुरुष समानता और महिला सशक्तीकरण की बात करने वाले अनुराग के मुंह से इस प्रकार की बातें सुनना उसे बहुत अजीब लगा. गोया महिला और पुरुष की नौकरी की महत्ता भी अलगअलग हो. अनुराग की जिस फेमनिज्म विचारधारा पर वह मोहित थी उस अनुराग के इन दकियानूसी विचारों को सुन कर उसे बहुत बड़ा धक्का लगा पर इस समय उस ने चुप रहना ही उचित सम  झा.

अगले हफ्ते अनुराग की मम्मी और छोटी बहन आ गईं. अनुराग की ही भांति वे भी रश्मि के बैंक चले जाने से कुछ नाखुश सी नजर आईं पर उस के मातापिता ने उसे अनुचित बात के लिए बेवजह   झुकना नहीं सिखाया था सो उस ने कोई चिंता नहीं की. हां, परिस्थितियों में संतुलन कायम करने के लिए शुक्रवार का अवकाश अवश्य ले लिया ताकि वह पूरे 3 दिन उन के साथ रह सके.

1 सप्ताह बाद जब उन के जाने का दिन पास आ गया तो रश्मि बोली, ‘‘अनु कल बाजार चलकर मम्मीजी और गुडि़या को कुछ अच्छा सा खरीदवा देते हैं.’’‘‘अरे यार बाजार जाने का तो मूड बिलकुल ही नहीं है. ऐसा करो तुम ने बाली से जो ड्रैस ली थी वह गुडि़या को दे दो और पिछले मंथ बर्थडे पर जो साड़ी ली थी वह मम्मी को दे दो. तुम बाद में दूसरी ले लेना,’’ अनुराग ने कहा.

‘‘अनुराग कैसी बात करते हो उन दोनों के लिए हम बाजार से उन की पसंद का ले आते हैं. मैं अपनी पसंद की ड्रैस और साड़ी क्यों दूं. मैं ने बड़े मन से अपने लिए खरीदी है… तुम्हें तो पता है कि मु  झे कितनी मुश्किल से कुछ पसंद आ पाता है.’’ ‘‘अरे तो उस में क्या परेशानी है? क्या वे लोग तुम्हारी पसंद के कपड़े नहीं पहन सकतीं? तुम दूसरी ले लेना,’’ अपनी बात का कोई असर न होते देख और सासूमां और ननद के सामने किसी प्रकार का कोई विवाद न हो यह सोच कर अगले दिन रश्मि भरे मन से साड़ी और ड्रैस निकाल लाई और पैर छू कर दोनों को दे दीं.

उसी प्रकार की कुछ छोटीमोटी तकरारों के बीच वक्त गुजर रहा था. इसी बीच एक दिन दोनों के घर में एक नन्हे मेहमान ने अपने आगमन की दस्तक दे दी. नन्हे सदस्य के आगमन की सूचना से उन दोनों के साथसाथ पूरे परिवार में भी खुशियों की बहार आ गई. अब उन दोनों का सारा समय भावी शिशु की बातों में ही बीतता. एक दिन बैडरूम में जब दोनों भावी शिशु के बारे में चर्चा कर रहे तो उसने अनुराग से कहा, ‘‘अनु मैं चाहती हूं कि एक प्यारी सी बेटी हो हमारे घर में और मैं उस का नाम रखूंगी ‘चाहत.’’’

‘‘नहीं यार मु  झे तो लगता है कि पहला बच्चा बेटा ही होना चाहिए पहला बेटा हो जाए फिर दूसरा कुछ भी हो टैंशन नहीं रहती मैं ने तो उस का नाम भी सोच लिया है ‘चिराग.’ ‘चिराग’ रखेंगे हम अपने बेटे का नाम,’’ अनुराग ने प्यार से रश्मि के पेट पर हाथ रखते हुए कहा.

रश्मि के लिए फेमनिस्ट अनुराग के द्वारा दिया गया यह दूसरा   झटका था और वह मन ही मन सोचने लगी किसी भी विचारधारा को 4 लोगों के बीच रखने और अपने घर में लागू करने में कितना अंतर होता है. अनुराग के जिन विचारों पर वह फिदा थी वे धीरेधीरे यथार्थ के धरातल पर हवा होते नजर आ रहे थे. गर्भ उस का, शरीर उस का, डिलिवरी की पीड़ा भी वही सहेगी पर नाम रखने के लिए उस की पूछ तक नहीं. यह कैसा फेमनिज्म है. 9 महीने बाद जब सिजेरियन डिलिवरी से उस ने एक फूल सी नाजुक बेटी को जन्म दिया तो लगा उस की बरसों की मुराद पूरी हो गई हो. रुई के नर्मसफेद गोले की मानिंद, कंजी नीली आंखें और नन्हे से गुलाबी हाथपैरों वाली अपनी ही प्रतिकृति को देख रश्मि की सारी पीड़ा का ही हरण हो गया. अपने सीने से लगा उस ने पहले उसे जीभर कर प्यार किया. बेटी के होने पर अनुराग और उस के परिवार वालों ने कोई खास खुशी व्यक्त नहीं की. हां, अनुराग ने इतना आदेश जरूर दिया कि रेषु बेबी का नाम मम्मी ने अक्षिता रखने को कहा है.’’

‘‘बेटी का नाम मम्मी क्यों रखेंगी, हम रखेंगे न. बेटी तो हमारी है,’’ रश्मि ने तिलमिला कर कहा.

‘‘तुम्हारी तो छोटीछोटी सी बातों को तूल देने की आदत सी हो गई है, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ कह कर पैर पटकता हुआ अनुराग बाहर चला गया. उस के लाख न चाहते हुए भी बेटी का नाम अक्षिता ही रखा गया. वह एक बार फिर मन मसोस कर रह गई. बैंक में बराबर का कमाने पर भी घर के बड़ेबड़े निर्णयों को तो छोड़ो अक्षिता का स्कूल, घूमने का स्थान, घर में खरीदने वाले सामान, सैलरी को कहां कब कैसे खर्च करना है आदि में अनुराग अपनी ही मरजी चलाते.

रश्मि याद है कि उस की मम्मी सदा कहा करती थीं कि अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बना कर ही मैं उस का विवाह करूंगी ताकि उसे जिंदगी में कभी किसी का मुंह न ताकना पड़े और अपने निर्णय वह स्वयं ले सके. वह अपनी मरजी से पहनओढ़ सके और उन्होंने वह किया भी पर अब उस की पसंद ही धोखा दे गई तो वे क्या करें. सोचतेसोचते उसे वह घटना याद आ गई जिस ने उस दिन उसे अंदर तक   झं  झोड़ दिया था और कई दिनों तक वह बस यही सोचती रही कि आखिर वह कमा किसलिए रही है.

उस दिन रश्मि अपनी एक औफिस सहकर्मी के साथ मुंबई में लगे सिल्क ऐक्सपो से कांजीवरम साड़ी खरीद कर लाई थी जिस की कीमत क्व10 हजार थी.

घर आ कर जब उस ने अनुराग को वह साड़ी दिखाई तो कीमत सुनते ही वह

उछल पड़ा, ‘‘क्व10 हजार की साड़ी… इतनी महंगी भी कोई साड़ी लेता है? इतनी महंगी साड़ी कहां पहनोगी जरा बताना तो?’’

‘‘अनु यह प्योर सिल्क है और यह महंगी ही होती है. मु  झे बहुत पसंद थी तो मैं ने ले ली.’’

उस दिन इसी बात को ले कर दोनों में अच्छीखासी बहस हुई जिस से इतने मन से लाई साड़ी आज भी बिना फालपीको के कवर्ड में पड़ी थी. उस दिन उसे पहली बार लगा कि सुबह से शाम तक वह खट किसलिए रही है जब अपने लिए एक साड़ी भी नहीं खरीद सकती.

अक्षिता जब स्कूल जाने लगी तो उस का काम बहुत बढ़ गया. एक दिन अपने अंतरंग क्षणों में वह बड़े प्यार से बोली, ‘‘अनुराग, मु  झे तुम्हारे सहयोग की दरकार है. अकेले अक्षिता और नौकरी दोनों को संभालने में खुद को असहाय पा रही हूं. शाम होतेहोते तो मु  झे लगता है मानो मेरा पूरा शरीर ही निचुड़ गया है.’’

‘‘मैं क्या करूं भई इस के लिए… अब मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं और यदि ज्यादा परेशानी हो रही है तो नौकरी छोड़ दो.’’

समय धीरेधीरे बीत रहा था. अक्षिता अब किशोरावस्था में थी. 8वीं कक्षा में आ चुकी थी. घर और बैंक इन सब के बीच जैसे रश्मि का अस्तित्व ही गुम होता जा रहा था.उसे अपने लिए 1 मिनट की भी फुरसत नहीं थी यही नहीं कई बार तो अक्षिता से भी उस की बातचीत केवल रात्रि में ही हो पाती थी. शादी से पहले हमेशा टिपटौप रहने वाली रश्मि अब किसी तरह उलटेसीधे कपड़े पहन घर के कामों को येनकेन निबटा कर बैंक आती. घर आ कर अक्षिता को देखना और घरेलू कार्य निबटातेनिबटाते रोज 11 बज जाते.

यों तो उस ने घरेलू कार्यों के लिए मेड लगा रखी थी पर इस के बावजूद घर के अनेक ऐसे कार्य होते जो उसे ही करने होते. लाख कोशिशों के बाद भी वह वर्तमान परिस्थितियों के मध्य संतुलन नहीं बैठा पा रही थी. इसी बीच हुई 2 घटनाओं ने उसे एक ठोस निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया. उस दिन अक्षिता के स्कूल में पेरैंट्स टीचर मीटिंग थी और रश्मि के बैंक में बहुत जरूरी मीटिंग जिसे वह किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं सकती थी. जब रश्मि ने अनुराग से पीटीएम में जाने को कहा तो उन्होंने भी जरूरी मीटिंग का हवाला दिया और उस दिन अक्षिता की पीटीएम में कोई नहीं पहुंचा. उस दिन मीटिंग में जाने से पहले अनुराग से जम कर बहस भी हुई और इस चक्कर में वह अपना टिफिन भी टेबल पर रखा ही छोड़ गई. शाम को जैसे ही मीटिंग खत्म कर के वह अपनी टेबल पर आई तो अचानक से चक्कर खा कर गिर पड़ी. उस के सहकर्मियों ने जैसेतैसे उसे संभाला और पानी के छींटे दे कर होश में लाए. किसी तरह वह घर आई.

अगले दिन अवकाश ले कर अक्षिता के स्कूल में उस की टीचर से मिली तो उनकी बातें सुन कर उस के होश उड़ गए, ‘‘अक्षिता इज फेल्ड इन मैथ्स ऐंड हार्डली पास्ड इन साइंस ऐंड संस्कृत. मेम अक्षिता दिनबदिन पढ़ाई में पिछड़ रही है. आप सम  झ सकती हैं कि नैक्स्ट ईयर नाइंथ क्लास है और फिर टैंथ. आई नो बोथ औफ यू आर वर्किंग बट टीनएज बच्चों को यदि मातापिता की तरफ से इमोशनल सपोर्ट नहीं मिलती तो वे पढ़ाई में पिछड़ने के साथसाथ कई बार रास्ता भी भटकने लगते हैं. आजकल अक्षिता का ध्यान पढ़ाई पर बिलकुल नहीं है… यू हैव टू पे अटैंशन औन हर.’’

‘‘जी,’’ कह कर रश्मि घर वापस आ गई क्योंकि जो बात आज अक्षिता की टीचर ने कही उसे तो वह कब से महसूस कर रही थी क्योंकि आजकल अक्षिता अकसर अपने दोस्तों से फोन पर लगी रहती थी और अकसर आईने के सामने खड़े हो कर अपने रूपसौंदर्य को निखारती रहती. चूंकि आज अवकाश लिया था सो वह अपनी डाक्टर दोस्त वर्षा के क्लीनिक जा पहुंची. उसे देखते ही वर्षा बोली, ‘‘अरे आज बैंक खुद चल कर हमारे क्लीनिक कैसे आ गया?’’

 

 

उधर कुआ इधर खाई : मां की मौत के बाद नीमा के साथ क्या हुआ

उधर कुआ इधर खाई : मां की मौत के बाद नीमा के साथ क्या हुआ

मां की मौत के बाद नीमा अकसर गुमसुम रहने लगी थी. उस की सौतेले पिता से कभी बनी नहीं. एक दिन एक अजीब घटना घट गई…

कुछ  दिनों से नीमा कालेज जाते समय अपनेआप को असहज महसूस कर रही थी क्योंकि

वह जब कौलेज जाती तो चौराहे पर खड़ा एक लड़का उसे गंदी नजरों से रोज घूरता रहता. यह रोज रोज की बात हो गई थी. नीमा परेशान रहने लगी. उस ने सौतेले पिता से इस बारे में कोई बात नहीं की.

नीमा की मां का कैंसर के कारण कुछ  समय पहले देहांत हो गया था. जीते जी नीमा

की मां ने अपनी बेटी को समाज में हो रहे अत्याचारों से लड़ने की और अपने को कैसे सुरक्षित रखें अच्छी तरह बता दिया था. वह घर की अकेली बेटी थी.  मां की मृत्यु के बाद नीमा चुपचुप रहने लगी. उस की सौतेले पिता से कभी बौंडिंग बनी ही नहीं. वह सब बातें अपने मन में ही रखती. एक दिन तो हद हो गई. कालेज जाते समय उस लड़के ने नीमा का दुपट्टा खींच कर उस का नाम जानने की कोशिश की.

नीमा उस लड़के के दुपट्टा खींचने से भड़क गई. आव देखा ना ताव और उसे एक थप्पड़ जड़ दिया. उस लड़के को नीमा से ऐसी उम्मीद नहीं थी. भीड़ इकट्ठी होने के डर से यह कह तुझे तो मैं देख लूंगा, वह लड़का वहां से नौ दो ग्यारहा हो गया.

नीमा ने मजबूरीवश इन सब बातों से

बचने के लिए अपना रास्ता बदल लिया. वह रास्ता भी उस के लिए ठीक नहीं था. वहां छोटे तबके के लोग रहते थे और उस रास्ते का डिस्टैंस भी ज्यादा था लेकिन फिर भी मरती क्या न करती. संध्या का समय था. नीमा के सौतेले पिता ने नीमा को पुकारा. नीमा के आने पर  उस से पूछा, ‘‘कालेज जाते समय आज तुम ने अपना रास्ता क्यों बदला?’’  नीमा ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आप ने कैसे जाना?’’  ‘‘मैंने बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं. मैं बाज की नजर रखता हूं.’’

नीमा ने कहा, ‘‘वह क्या है एक लड़का

रोज रास्ते में मु?ो छेड़ कर परेशान करता था, इसलिए.’’

‘‘तो तुम ने यह कैसे सोच लिया कि रास्ता बदल लेने से प्रौब्लम दूर हो जाएगी? ऐसा नहीं है. जिधर से तुम गुजरोगी वह लड़का वहां भी तुम्हें छेड़ने से बाज नहीं आएगा. मु?ो बताना तो चाहिए था.’’

‘‘हां, आप की बात ठीक है पर मैं ने

अपने मन में विचार किया है कि कालेज के फाइनल ऐग्जाम खत्म होने जा रहे हैं. फिर

‘मैं किसी अच्छी कंपनी में जौब के लिए

आवेदन करती हूं, कुछ समय मैं घर में ही

रहूंगी. फिर न बजेगा बांस, न बजेगी बांसुरी,’’ नीमा ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारे इस फैसले से सहमत हूं,’’ सौतेले बाप ने कहा,’’ घर की चीज घर में ही

रहे वही अच्छा है,’’ इतना कह उस के पिता ने नीमा को अपनी ओर खींचा और प्यार से गालों पर हाथ फेरा.

इस छुअन से नीमा को असहजता सी महसूस हुई. वह ठीक से सम?ा भी नहीं पाई थी कि नीमा के पिता ने इधरउधर हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘जरा बताना, उस लड़के ने यहांवहां, कहांकहां छुआ?’’

नीमा को बहुत गुस्सा आया. वह सोच  भी नहीं सकती थी कि यह सौतेला पिता उसे  इस नजर से देखता है. नीमा ने आड़े हाथों लिया. और कहा, ‘‘आप एक पिता हैं, आप को ऐसा करते शर्म नहीं आती? क्यों अपना अंत बिगाड़ रहे हैं? आप तो आस्तीन के सांप निकले.’’ ‘‘पिता होना और पिता कहलाने में बहुत फर्क है समझा’’ नीमा को पिता में अचानक आया यह बदलाव अच्छा नहीं लगा. उस ने देखा उन की आंखों में वासना साफ झलक रही थी. नीमा की आंखों में कितने चित्र बनते बिगड़ते रहे. वह मन में सोचने

लगी कि उधर कुआं तो इधर खाई. इस समय नीमा को बाप कहलाने वाला यह व्यक्ति उस लड़के से ज्यादा खतरनाक लग रहा था. पिता कहलाने वाला यह बाप हैवानियत पर न उतर आए, नीमा उनका हाथ ?ाटक दूर हट कर खड़ी हो गई.

नीमा के मन में आया कि इस बाप कहलाने वाले व्यक्ति के मुंह पर थूके, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया, ‘‘अगर इस जगह आप की अपनी बेटी होती तब? क्यों अपनी इज्जत मिट्टी में मिला रहे हैं. मेरी मां बीमार थीं मां को बेटी के भविष्य की चिंता थी.

‘‘उन्होंने संरक्षण के लिए आप से शादी की थी, जबकि आप उम्र में उन से काफी बड़े थे. देखा जाए तो मेरे नाना की उम्र के हैं आप. आप को यह सब करते लज्जा नहीं आई? अब मैं यहां रुकूंगी नहीं.’’ ‘‘भाग कर जाओगी कहां? तुम्हें लगता है कि तुम यहां से भाग जाओगी. उस  लड़के के पास,’’ सौतेले पिता ने कहा. ‘‘नहीं. यह आप की गलतफहमी है भागूंगी नहीं. मैं और यह मत सोचिए कि मैं डर गई. आप ने मु?ा पर गलत नजर डाली है.  आवाज उठाना मुझे आता है. बस मेरे एक फोन करने की देर है. फिर जेल की हवा खाते देर नहीं लगेगी सम?ो.’’

‘‘अरे बेटी… अरे बेटी…’’

‘‘बेटी मत कहो मुझे. आप की जबान

से बेटी शब्द सुनना अच्छा नहीं लग रहा.

आप की नजरों में रिश्तों की अहमियत ही

नहीं रही.’’

‘‘बेटी, तुम ने तो मेरी आंखें खोल दीं. मैं

तो बस यही देख रहा था कि तुम इस परिस्थिति

से कैसे मुकाबला करोगी. तुम अपनेआप में कितनी स्ट्रौंग हो.’’

‘‘अगरमगर मत करिए. आग बिना

धुआं नहीं उठता. मैं अभी पुलिस को फोन

करती हूं.’’

‘‘क्यों मेरी इज्जत मिट्टी में मिलाने

लगी हुई हो,’’ कह पिता ने नीमा के पैर पकड़

कर गिड़गिड़ाते हुए आगे कहा, ‘‘बेटी मु?ो

माफ कर दे, मेरे बुढ़ापे की लाठी तो तू ही है.

मैं स्वयं की बुराई को दूर कर अच्छाई को आत्मसात करूंगा… मैं न जाने क्यों इतना

विकृत हो गया जो तेरे पर गलत नजर डाली,’’ इतना कह पिता नीमा के पैरों पर सिर रख कर बिलख पड़ा.

आखिरी पेशी: भाग-3 आखिर क्यों मीनू हमेशा सुवीर पर शक करती रहती थी

इसी तरह करते-करते 8 दिन निकल गए. अनिश्चय के झूले में उलझती मैं निश्चिय नहीं कर पाई कि मुझे क्या करना चाहिए कि तभी एक और घटना घट गई. दीवाली पास आ रही थी. शायद 9-10 दिन थे दीवाली में. मेरा जी चाह रहा था कि सुवीर पहले जैसे हो जाएं और हम फिर से नई उमंग के साथ अपनी शादी की पहली सालगिरह से पहले उमंगभरी पहली दीवाली मनाएं.

मैं मन ही मन उस दिन निश्चय कर रही थी कि यदि सुवीर वक्त पर घर आ जाएं तो मैं अब तक के अपने व्यवहार की माफी मांग लूंगी. यही सब सोचते हुए खिड़की के पास बैठ कर सुवीर का इंतजार करने लगी.

तभी आशा के विपरीत सुवीर मुझे वक्त पर आते दिखाई दिए. किंतु यह क्या? सुवीर अकेले नहीं थे. साथ में सविता भी थी. वही सुंदर, दबंग युवती, जिस ने मेरी सारी दुनिया उजाड़ कर रख दी थी.

मैं उसे देखकर अंदर ही अंदर सुलगने लगी. मुझे निश्चय हो गया कि सुवीर रोज इसी के साथ रंगरलियां मनाते हैं. इस वक्त भी दोनों हंस-हंसकर बातें कर रहे थे. तभी उन दोनों ने मुझे देख लिया. मैं बिना कुछ कहे उन्हें अजीब खा जाने वाली नजरों से देख कर उठ गई और बिस्तर पर आकर बिलख-बिलख कर रोने लगी.

थोड़ी देर बाद सुवीर कमरे में आए, पर अकेले ही, वह लड़की उन के साथ नहीं थी. सुवीर ने कहा, ‘‘सविता तुम से कुछ कहने आई है.’’ बस, इस के बाद और कुछ नहीं कहा उन्होंने. 8 दिन बाद हमारी बातचीत हुई थी, वह भी इतनी छोटी और वह भी सविता के बारे में.मन में तो आया कि खूब खरीखोटी सुनाऊं पर न जाने क्या सोच कर चुप रह गई. सुवीर ने यह नहीं बताया कि वह क्या कहने आई है.

मु?ो लगा यही कहने आई होगी कि मैं उन दोनों के रास्ते से हट जाऊं. तलाक ले लूं ताकि वे आपस में शादी कर सकें. यही सब सोचसोच कर मैं अंदर ही अंदर कुढ़तीजलती रही. क्षमायाचना के सारे फंदे यतन से समेटने पर भी जिद की सलाई से निकल ही गए. मैं ने आंख उठा कर देखा तो सुवीर बिलकुल स्वस्थ नजर आ रहे थे, ताजे से मानो कुछ हुआ ही न हो, फिर यह कह कर कि बाकी बातें रात  में बताऊंगा, सुवीर कमरे से बाहर

चले गए.वह शाम मैं ने बहुत कठिनाई से बिताई थी. लगा था, उस अप्रिय बात को रात को कैसे सुन पाऊंगी.

रात के खाने के वक्त भी मुझे लगा कि सुवीर कुछ कहना चाहते हैं पर मन इस कदर भन्नाया हुआ था कि मैं ने उन्हें बात करने का मौका ही नहीं दिया. वे रोज पहले सो जाते थे. उस दिन मैं उन के कमरे में आने से पहले ही आ कर सोने का बहाना बना कर लेट गई. मुझे लगा था इस कड़वी, विषैली अप्रिय बात को जितनी देर न सुनूं, उतना ही अच्छा है.

मगर मुझे सचमुच सोई हुई समझकर सुवीर भी लेट गए. थोड़ी देर बाद सुबीर के खर्राटे सुनाई देने लगे. उन के खर्राटों के साथसाथ मेरा गुस्सा भी बढ़ने लगा. अचानक मैं ने निश्चय कर लिया कि मैं सुवीर के जीवन से निकल जाऊंगी. जब वह लड़की भी सुवीर को चाहती है तो बिना प्यार के इस घर में टिकना फुजूल है. दांपत्य संबंधों को जोड़ने वाली रेखा ही जब टूट गई तो रहने से क्या फायदा? सुबह होने को थी, तब कहीं जा कर मैं सो पाईर् थी. उठी तो सुवीर फैक्टरी जा चुके थे.

मेरा मायका और ससुराल एक ही शहर में थे पर सुवीर के प्यार से बंधी मैं शादी के बाद 3-4 घंटों से ज्यादा मायके में कभी नहीं बिता पाई थी. पर अब अचानक ?झटके से उस कच्ची डोरी को तोड़ सुवीर के घर आने से पहले ही सास को यह कह कर कि मैं मायके जा रही हूं, उन से कह दीजिएगा कि अब वे जो चाहें कर सकते हैं. मैं अपने मांबाप के घर चल दी. यह सोच कर कि मैं सदैव के लिए ससुराल छोड़ कर आ गई हूं.

घर वालों ने मुझे लौट जाने को समझाया था. स्वयं चल कर छोड़ आने को भी कहा था, किंतु मैं दोबारा सुवीर के पास जाने को तैयार नहीं हुई. मैंने घर वालों को और भी नमक-मिर्च लगा कर सुवीर पर ऐसेऐसे इलजाम लगाए कि वे भी चुप बैठ गए.

किंतु कुछ दिनों बाद ही मुझे लगने लगा कि सुवीर के साथ बिताए क्षण मुझे पागल बना देंगे. तब मुझे लगता, सुवीर मनाने आएं तो मैं जा सकती हूं. पर जब सुवीर को ही मेरी जरूरत नहीं तो लद कर अनचाहे ही वहां टिकना बेकार है. और मैं नहीं गई थी. न ही सुवीर लेने आए थे. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था. एक ही लमहे ने जीवन का रुख बदल दिया था. 8 दिन रुकरुक कर गुजर ही गए. अपनी शादी की पहली दीवाली मैं ने सब से छिपछिप कर रो कर कैसे गुजारी, यह सिर्फ मैं ही जानती थी.

मां-बाप ने उस के बाद एड़ी-चोटी का जोर लगा कर यह मामला सुलझाना चाहा. अकेले में शायद पिताजी सुवीर से मिलने भी गए थे, किंतु यह उत्तर पाकर कि यदि मैं स्वयं आना चाहूं तो आ सकती हूं क्योंकि अपनी इच्छा से ही मैं ने वह घर छोड़ा है, वे वापस आ गए थे.

उसके बाद बासी से दिन गुजरते चले गए. काफी कोशिशों के बाद मुझे एक अलग 1 रूम फ्लैट भी मिल गया. मैं ने उन का नंबर अपने मोबाइल से ब्लौक कर दिया. एक दिन मैं स्कूल से पढ़ा कर लौट रही थी कि मैं ने सुवीर को उसी लड़की के साथ चलते और बातें करते देख लिया. यद्यपि सुवीर की दाढ़ी बढ़ी हुई थी, शक्ल से वे काफी उदास और टूटे हुए से लग रहे थे. परेशान से वे सविता से न जाने क्या धीमेधीमे बातें कर रहे थे. वे दोनों मु?ो नहीं देख पाए थे, किंतु उन को एकसाथ फिर बाजार में देख कर मेरा तनमन बुरी तरह जल गया और उसी दिन मैं ने निश्चय कर लिया कि मैं सुवीर से तलाक ले लूंगी.

काफी परेशानियों के बावजूद इस जिद को मैं ने क्रियान्वित करने के लिए कदम भी उठा डाला. सोचा सुवीर इस ?ाटके को सह नहीं सकेंगे और मु?ो लेने आ जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ था. फिर कचहरी में तारीखें लगती रहीं. एक बार अतिरिक्त जिला जज ने हम दोनों को एक अलग कमरे में बुला कर हमें सम?ाया कि हम तलाक लेने से पहले इस के परिणामों के बारे में अच्छी तरह सोच लें. यदि अब भी कोईर् गुंजाइश हो तो पिछली बातों को भूल कर फिर से एकसाथ जीवन बिताने की कोशिश करें. किंतु मेरा कहना था कि सुवीर को जिस लड़की की जरूरत थी, वह उसे मिल गई है. अब चूंकि

उसे मेरी जरूरत नहीं है, इसलिए मैं तलाक चाहती हूं.’’ किंतु आश्चर्य की बात यह कि सुवीर ने अपनी तरफ से कोई वकील नहीं कर रखा था. अदालत में वे चुपचाप नीची निगाहें कर के खड़े रहते और मेरे वकील के कुछ भी कहने के बाद यही कहते, ‘‘जैसी इन की इच्छा हो, वैसा ही कीजिए.’’

कभीकभी मु?ो उन पर तरस आने लगता था. उन के साथ बिताए प्यार के क्षण याद आते. साथसाथ घूमना और प्यारभरा जीवन जीना याद आता. जी में आता, तलाक की अर्जी वापस ले लूं. पर फिर मन कहता वह सब सुवीर की नाटकबाजी है. यदि वे मु?ो चाहते हैं तो उस लड़की से क्यों मिलते हैं और हर बार कचहरी से आ कर टूटीटूटी सी उदास शामों में घिरी रहती थी.’’

मगर अब दीवाली फिर आ रही थी और मैं न चाहते हुए भी अब से 3 साल पहले की स्याह हो गई दीवाली फिर दोहराने जा रही थी. शायद जीवनपर्यंत के लिए क्योंकि उस दिन मुकदमे की आखिरी पेशी थी, उस दिन जज साहब ने अपना फैसला सुनाना था.

अचानक मैं यादों के बवंडर से निकल आई. 9 बज गए थे. मैं कोर्ट जाने के लिए शीशे के आगे खड़ी हो कर कंघी कर ही रही थी कि अचानक बड़े जोर से घंटी बज उठी. सविता अंदर आते ही बोली, ‘‘माफ करना भाभी, सुवीर भैया के बेहद मना करने के बावजूद मैं आज यहां आई हूं, सिर्फ इसलिए कि गलतफहमी इंसान को कहीं का नहीं छोड़ती.’’ ‘‘मैं ने पहले भी कई बार आना चाहा था पर सुवीर भैया ने ही मु?ो नहीं आने दिया और न आप का पता बताया.’’

कुछ देर रुक कर और स्वयं ही सोफे पर बैठते हुए वह फिर बोली, ‘‘सुवीर मु?ो शादी से पहले बहुत प्यारकरते थे, यह बात मुझे बाद में मालूम हुई. असल में मैं ने उन्हें कभी इस नजर से देखा ही नहीं था. इन के घर में शुरू से ही थोड़ाबहुत आनाजाना था. उम्र में भी वे मुझे से काफी बड़े थे, इसलिए मैं अपने सवाल अकसर उन से हल करवाया करती थी और हमेशा उन्हें बड़े भाई की तरह ही समझती थी.

‘‘किंतु सुवीर के विचारों से मैं बिलकुल अनभिज्ञ थी, इसलिए जब पिताजी का अचानक तबादला हुआ तो मैं उन से मिले बिना ही चली गई.‘बाद में सुना कि सुवीर बहुत निराश हो गए थे. मैं तो इलाहाबाद जा कर अपनी पढ़ाई में लग गई और उन को लगभग भूल ही गई. इत्तफाक से 4 साल के बाद मेरी नौकरी इसी शहर में लग गई. उस दिन ?ाल पर सुवीर को देखा तो मु?ो लगा कि उन्हें कहीं देखा है पर याद नहीं आ रहा था कि कहां देखा है. तभी आप ने सुवीर को जोर से हिलाया तो मु?ो अपनी गलती महसूस हुई और मैं अपने होस्टल में लौट गई.

‘‘बाद मैं याद आया कि वे सुवीर ही थे. इस के बाद सुवीर से मेरी मुलाकात 8 दिन बाद हुई. अचानक सुवीर ने ही मुझे बुलाया. मैं ने शादी के लिए उन को मुबारकबाद दी तो कुछ देर तो वे चुप रहे, फिर उन्होंने हंसतेहंसते मुझे अपनी एकतरफा प्यार की गलतफहमी बताई. मैं उस दिन उन के साथ आप के घर आ रही थी, पर जब आप हमें घूर कर अंदर चली गईं तो सुवीर बोले कि मैं मीनू को स्वयं बता दूंगा, कहीं वह गुस्से में तुम्हें उलटासीधा न कह दें.

‘‘इसीलिए मैं उस दिन आप के घर भी नहीं आई. उस के बाद हमारी मुलाकात नहीं हो पाई. अचानक डेढ़ साल बाद एक दिन वे बाजार में मिले तो उन्होंने बताया कि आप उन्हें छोड़ कर चली गई हैं. ‘‘मैं उस दिन भी उन से यही जिद करती रही कि वे इस गलतफहमी को स्वयं आप से मिल कर खत्म कर दें नहीं तो मु?ो आप का पता दे दें मैं जा कर खुद कह दूंगी.

‘‘किंतु सुवीर बोले कि मैं अपनी तरफ से मीनू को सब बात खोल कर बता चुका हूं पर उसे यकीन नहीं आया है. फिर वह मु?ा से कुछ कह या पूछ कर भी नहीं गई तो उसे अपनेआप ही आना चाहिए और इस तरह आप दोनों के स्वाभिमान की वजह से बात टलती रही, बढ़ती रही.

‘‘अभी पिछले साल ही मुझे पता चला कि आप ने कोर्ट में तलाक की अर्जी दे दी है. मुझे यह सुन कर बड़ी तकलीफ हुई, भाभी. गलतफहमी इंसान को कहां से कहां पहुंचा देती है, इस बात का अंदाजा मुझे उसी दिन हुआ.

‘‘आप को एक बात कह दूं कि सुवीर बेहद सीधे, भावुक, अंतर्मुखी और स्वाभिमानी हैं. काफी बार कहने पर भी उन्होंने मुझे आप का पता नहीं दिया. मैं तो जिन से प्यार करती हूं, उन से मेरा विवाह हो रहा है. कल शाम को जब मैं अपनी शादी का निमंत्रणपत्र उन्हें देने गई तो सुवीर की माताजी ने रोतेरोते मुझे बताया कि कल सुवीर के मुकदमे की आखिरी पेशी है, पर मुझे नहीं लगता कि वह कभी दोबारा शादी भी करेगा. मीनू ने जरा सी बात का बतंगड़ बना कर अपना घर बरबाद कर लिया है और सुवीर है कि ?ाकने को तैयार ही नहीं है. मुझे और अपने पिता को भी मीनू के पास नहीं जाने दिया और बात यहां तक आ पहुंची.

‘‘मां ने ही मुझे आप का पता दिया और  सुबह उठते ही मैं आप के पास आ गई. अभी भी वक्त है, भाभी, आखिरी पेशी में भी आप अपनी गलती स्वीकार कर के अपनी अर्जी वापस ले लेंगी तो बात बन जाएगी. अब जल्दी कीजिए, देर न कीजिए. कहिए तो मैं भी आप के साथ चलूं? कृपया अपनी और सुवीर की जिंदगी बिखरने से बचा लीजिए.’’

सविता और कुछ कहती उस से पहले ही मैं ने उमड़ते आंसुओं को रोक कर उसे गले से लगा लिया था और बोली, ‘‘नहीं, मैं अकेली ही सब संभाल लूंगी.’’ और सविता से उस की शादी का निमंत्रणपत्र ले कर और कांपते बदन से उसे प्यार कर के जब उसे विदा किया तो मुझे लगा कि

एक घोंसला टूटते-टूटते रह गया. मैं हार्दिक क्षमायाचना का शब्द जाल बुनते, अपने सुनहरे दिनों के ख्वाब संजोती, अपनी उदास दीवाली को खुशगवार और रोशन करने का ताना बुनती हुई आखिरी पेशी का सुखद अंत करने के लिए कचहरी की ओर चल दी.

मरजी की मालकिन: भाग 1 घर की चारदीवारी से निकलकर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी रश्मि

रश्मि घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी. मगर वह लाख कोशिशों के बावजूद भी खुद और परिवार के मध्य संतुलन नहीं बैठा पा रही थी. इस से पहले कि वह कोई ठोस निर्णय लेती, घर में एक घटना घट गई…

‘‘मां,अनीता मौसी इज कालिंग यू,’’ 7 वर्षीय अक्षिता ने रश्मि को फोन ला कर दिया. उधर से अनीता की खनकती आवाज आई, ‘‘तू तो हीरोइन बन गई माई डियर… पूरे औफिस में बस तेरे ही चर्चे हैं.’’ ‘‘पर मैं ने ऐसा किया क्या है…’’ ‘‘वह तू कल आएगी तब देखना… अभी तो मैं इसे राज ही रहने देती हूं. बस इतना सम  झ ले कि तेरी 1 महीने की मेहनत सफल हो गई है और राज सर खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं,’’ कह कर अनीता ने फोन रख दिया.

‘‘यह अनीता भी न सुरसुरी छोड़ने की अपनी आदत से बाज नहीं आएगी… आधी बात भी बताने की क्या जरूरत थी. अब खुद तो चैन की नींद सोएगी और मैं रातभर करवटें बदलूंगी,’’ बड़बड़ाते हुए रश्मि किचिन समेटने में लग गई. 8 बज रहे थे. अभी अक्षिता को पढ़ाना बाकी था.

औफिस से आने के बाद टीवी के सामने जमे पति अनुराग की बगल में बैठी अक्षिता को रश्मि ने आवाज लगाई. 1 घंटा पढ़ाने के बाद चैन की सांस ले कर बैड पर जैसे ही लेटी तो अनीता के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे… उसे याद आ गया अपना औफिस जहां वह पिछले 1 साल से एज ए पार्ट टाइम वर्कर काम कर रही थी और हाल ही में एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रोजैक्ट उस के हाथ में था जिस का परिणाम आज ही आने वाला था. तबीयत ठीक नहीं होने के कारण वह पिछले 3 दिन से अवकाश पर थी. खैर, कल का कलदेखा जाएगी, यह सोच कर उस ने एक लंबी सांस ली और सोने का प्रयास करने लगी.

अगले दिन सुबह औफिस पहुंच कर रश्मि अपनी सीट पर आ कर बैठी ही थी कि चपरासी रामदीन ने आ कर बोला, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’ जैसे ही रश्मि ने राज सर के कैबिन का दरवाजा खोला वे अपनी सीट से उठ खड़े हुए और उत्साह से भर कर बोले, ‘‘वाहवाह बधाईबधाई रश्मिजी आप ने तो कमाल ही कर दिया जिस प्रोजैक्ट की हम ने उम्मीद ही छोड़ दी थी उसे हासिल कर के आप ने दिखा दिया कि प्रतिभा किसी की मुहताज नहीं होती.’’ ‘‘नहीं सर ऐसा कुछ नहीं है मैं ने तो बस अपना काम ईमानदारी से किया है,’’ रश्मि ने विनम्रता से कहा.

‘‘वही तो लोग नहीं करते… मैं ने आप की काम के प्रति लगन देख कर ही यह प्रोजैक्ट आप को दिया था. फुल टाइम वाले भी इतनी ईमानदारी से काम नहीं करते जितना आप पार्ट टाइम में लर लेती हैं. अब आज से हमारी कंपनी की आप परमानैंट वर्कर हैं. कंपनी के सारे टैंडर वर्क आप ही देखेंगी. हां, हमेशा की तरह आप के लिए टाइम की कोई बंदिश अभी भी नहीं रहेगी. हमें तो बस काम चाहिए.’’

‘‘जी सर,’’ कह कर रश्मि आ कर अपनी सीट पर बैठ गई. तभी अनीता ने आ कर पीछे से उस की आंखें बंद कर लीं. अनीता के स्पर्श को वह बहुत अच्छी तरह जानती थी सो हाथ पकड़ कर उसे अपने सामने किया और शिकायती लहजे में बोली, ‘‘तु  झे तो मैं छोड़ूंगी नहीं कल सुरसुरी छोड़ कर खुद तो चैन से सोई और मैं सो ही नहीं पाई.’’

‘‘अब चल इतनी बड़ी खुशी को सैलिब्रेट भी करेगी या ऐसे ही बातें बनाती रहेगी. चल कैंटीन में कौफी पी कर आते हैं,’’ कह कर दोनों कैंटीन की तरफ बढ़ गईं. ‘‘रियली आई एम प्राउड औफ यू यार… राज सर तो क्या किसी को अंदाजा नहीं था कि यह 2 करोड़ का प्रोजैक्ट हमें मिल पाएगा. पर तूने क्या कैलकुलेशन लगा कर टैंडर डलवाया कि प्रोजैक्ट हमें मिल गया.’’

‘चल अब ज्यादा फूंस के   झाड़ पे मत चढ़ा… कौफी पी और चल अभी बहुत सारे काम बाकी हैं.’’ उस दिन अगले कुछ प्रोजैक्ट के भी टैंडर डलवाने थे सो उन की प्लानिंग उस ने अपनी 2 असिस्टैंट के साथ मिल कर की और 2 बजे औफिस से निकल कर घर आ गई. घर आ कर अक्षिता को खाना खिला कर जो सुलाने लेटी तो बंद पलकों में अतीत के कुछ पन्ने भी धीरेधीरे फड़फड़ाने लगे…

वह उस समय बीए की छात्रा थी जब एक दिन अपनी सहपाठियों से अर्थशास्त्र के कुछ नोट्स मांग रही थी और सभी उसे देने में अनाकानी कर रहे थे. तभी वर्तमान पति अनुराग ने उस की ओर अपनी नोट्स की कौपी बढाते हुए कहा, ‘‘आप मेरी कौपी ले लीजिए शायद आप का काम हो जाएगा.’’

रश्मि ने जैसे ही पलट कर देखा तो सामने एक लंबा, गौरवर्ण का नवयुवक खड़ा था जो उस की ही कक्षा का था. उसे याद आया कि वह क्लास के मेधावी छात्रों में गिना जाता है. आमतौर पर उस ने उसे दूसरों से कम बात करते ही देखा था बल्कि कई बार तो क्लास की कई लड़कियों ने उस की बुद्धिमत्ता को देखते हुए मेलजोल बढ़ाने की कोशिश भी की थी पर अंतर्मुखी प्रवृत्ति के अनुराग पर अपना जादू चलाने में सफलता प्राप्त नहीं कर पाई थीं.

ऐसे में आगे रह कर उसे कापी देना रश्मि को कुछ अजीब सा तो लगा परंतु अपना काम बनता देख वह धीरे से बोली, ‘‘जी बहुतबहुत धन्यवाद. मैं कल अवश्य ले आऊंगी वह मु  झे ज्वाइंडिस हो गया था तो मैं कुछ दिनों से आ नहीं पाई इसलिए…’’ रश्मि ने अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा.

‘‘इट्स ओके नो प्रौब्लम,’’ कह कर अनुराग आगे बढ़ गया.

उस दिन के बाद से ही उस की और अनुराग की थोड़ीबहुत बातचीत प्रारंभ हो गई. दोनों युवा थे, प्रथम मुलाकात के आकर्षण का ही असर था कि वे परस्पर धीरेधीरे एकदूसरे को पसंद करने लगे परंतु यह पसंद कब प्यार में परिवर्तित हो गई दोनों ही नहीं जान पाए.

प्रारंभिक बातचीत में ही एक दिन अनुराग ने उसे बताया कि वह पटना का रहने वाला है. घर में मातापिता के अलावा एक छोटी बहन है जो अभी स्कूल में है. पिता एक सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षक हैं. घर के आर्थिक हालात भी बहुत अच्छे नहीं हैं सो वह यहां बनारस में अपनी पढ़ाई का खर्च भी ट्यूशन कर के निकालता है.

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