Mother’s Day Special: थैंक्यू मां

पूजा के आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे. आज उसने ईशा का मनपसंद आलू का पराठा बनाया था और उसे खाते ही ईशा ने उसे “थैंक्यू मम्मा, इतना टेस्टी पराठा बनाने के लिए” बोला था.

यूँ बात बहुत छोटी थी. वह उसकी माँ थी और उसके लिए अच्छे से अच्छा खाना बनाना उसका फ़र्ज़ था लेकिन अपनी बच्ची के मुंह से ‘थैंक्यू’ शब्द सुनकर उसे कितनी खुशी हुई थी केवल वही महसूस कर पा रही थी. तो क्या माँ को भी उससे यही उम्मीद थी? पर वह उनकी उम्मीद पर कहाँ खरा उतर पायी थी. सोचते हुए वह सालों पहले के अपने अतीत में जा पहुंची.

“सच आँटी मेरी बेटी तो मेरे पिताजी (ससुर) का आशीर्वाद है. इसे मैं उन्ही का दिया हुआ प्रसाद मानती हूं. यदि आज वे होते तो बहुत खुश होते.” मायके आयी पूजा दो महीने की ईशा को गोदी में लिए बड़े गर्व से अपनी आंटियों को बता रही थी.

उसी दिन दोपहर को वह बेटी को लेकर सोई थी कि पास के कमरे से पापा के साथ बैठी माँ का उदास स्वर सुनाई दिया, “पूजा ने ईशा को अपने ससुर का आशीर्वाद बताया, उनकी खूब तारीफ की. अच्छा लगा, पर उसने एक बार भी मेरा नाम न लिया. जबकि सवा महीने के संवर मे मैंने ही उसके घर पर रहकर उसे और उसकी बच्ची को संभाला. माना कि ये मेरा फ़र्ज़ था लेकिन अगर वो दो शब्द मेरे लिए भी बोल देती तो मुझे कितनी खुशी होती?” लेकिन आश्चर्य…उस समय माँ की बात का मर्म समझने की बजाय वह बेतहाशा उन पर चीखने लगी थी.

“मुझे नही मालूम था कि आप ये सब तारीफ पाने के लिए कर रही हो. मुझे जो सही लगा मैंने बोला. अगर आपको इतना ही तारीफ पाने का शौक था तो पहले ही बता दिया होता मैं सबके सामने आपका गुणगान कर देती.” वह आवेश में बोलती चली गयी. एक बार भी नही सोचा कि माँ को कितनी तकलीफ हो रही होगी. कितनी नासमझ थी वो जो ये भी न समझ सकी कि हमेशा से मुँह पर मौन की पट्टी रखे माँ जिंदगी में अपने सभी कर्तव्यों को भलीभांति निभाती आयी हैं. ससुराल, पति और बच्चों के लिए तमाम त्याग और बलिदान करती रहीं मगर मुंह से उफ़ तक नही की. लेकिन इन सबके बाद भी, आख़िर हैं तो वे हाड़ मास से बनी एक इंसान ही. क्या कभी उन्हें अपने काम की तारीफ पाना अच्छा नही लगता, क्या प्रशंसा के दो बोल उन्हें नही सुहाते?

उसने उस वक्त माँ का मन दुखाया था और आज ये बात उसे अंदर ही अंदर खाये जा रही थी. पर करती भी क्या उस वक्त उसकी समझ ही वैसी थी. एक औरत और वो भी माँ शायद काम करने के लिए ही बनी होती है. उससे सदा त्याग की आशा की जाती है. यही सोचा जाता है कि उसे तारीफ की क्या जरूरत. ये सब वो अपनी ख़ुशी के लिए ही तो कर रही है. ममता की मूरत को देवी बना के पूजा तो जा सकता है पर एक साधारण इंसान समझ प्रोत्साहन के दो शब्द नही कहे जा सकते.

स्वयं माँ ने भी तो बिदा के वक्त उसे यही समझाया था कि बड़ों का आदर सम्मान करना व उस घर के प्रति अपने सभी कर्तव्य ईमानदारी से निभाना. वह तो माँ की इसी सीख को शिरोधार्य कर चली थी. ससुराल में उससे कोई भूल न हो अतः जी जान से वह वहां के रिश्तों के प्रति समर्पित थी. वैसे भी उसके ससुर एक नेकदिल इंसान थे. उनकी बीमारी के दौरान उसने तन मन से उनकी बहुत सेवा की थी और बदले में उनका अथाह स्नेह भी पाया था. उनकी मृत्यु के दो महीने पश्चात ईशा का जन्म हुआ था अतः उनके प्रति अपने लगाव व सम्मान को प्रदर्शित करने हेतु वह उनकी तारीफ किया करती थी. लेकिन जानती न थी कि उस दिन माँ की अनदेखी से उन्हें बहुत दुःख होगा. आखिर उसकी सभी खुशियों की सूत्रधार उसकी जन्मदात्री का भी तो अपने बच्चों की तारीफ पर कोई हक बनता था. बच्चों के मुंह से निकला तारीफ़ का छोटा सा शब्द भी उनके दिल को कितनी ख़ुशी देगा वह कभी समझ ही न पायी.

उसे याद आया ईशा के जन्म के समय पर उसके घर कोई कामवाली बाई भी नही थी. माँ पापा के साथ मिलकर अकेले ही सारे काम निपटाती थीं. इस दौरान साफ सफाई, झाड़ू पोछा, बर्तन, कपड़े आदि कामों में उन्हें पूरा दिन हो जाता था. फिर सबका खाना बनाने के बाद वे समय समय पर उसके लिए मूंग की दाल दलिया, मेवे के लड्डू, हरीरा आदि बनाने में जुट जाती थीं. बचे हुए वक्त में वे नन्ही ईशा को गोदी में लिए बैठी रहतीं ताकि वह कुछ देर चैन की नींद सो सके.

ईशा वैसे भी बहुत कमजोर पैदा हुई थी पर उन्हीं की मेहनत से महीने भर में ही उन दोनों माँ बेटी के चेहरे पर रौनक आ गयी थी. जहां ईशा खूब गोल मटोल और सुंदर दिखने लगी थी वहीं वह खुद भी लंबे घने बालों के साथ और भी आकर्षक लगने लगी थी. सोचते हुए उसकी आँखों से पछतावे के आंसू झरने लगे. ओह्ह उस वक्त वह अपनी माँ की मेहनत क्यों नहीं देख पायी या देख कर भी उसे अनदेखा कर दिया ये सोचकर कि ये तो उनका फ़र्ज़ है. सच उसकी इस नादानी से माँ को कितनी पीड़ा पहुंची होगी, इसका अंदाज भी वो नही लगा सकती.

वो माँ जिसकी दुनिया अपने बच्चों से शुरू होकर उन्हीं पर खत्म हो जाती है क्या वे अपने बच्चों के मुँह से प्रशंसा के दो बोल सुनने की हकदार नही. निस्वार्थ भाव से पूरी जिंदगी अपने बच्चों पर निछावर कर देने वाली माँ क्या इस सम्मान के योग्य नही होती कि चंद शब्दों में कभी हम उनकी तारीफ कर दें? माना हम उनके अहसानों का बदला कभी नही चुका सकते पर बदले में उन्हें धन्यवाद तो कह सकते हैं. प्यार भरा शुक्रिया कहकर उनके चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान तो ला सकते हैं. आज उसकी बेटी ईशा के छोटे से थैंक्यू ने उसे इस शब्द की महत्ता भलीभांति समझा दी थी. अभी भी देर नही हुई. हालांकि माँ अब बहुत वृद्ध हैं. कान से ऊंचा सुनती हैं और शरीर से भी बहुत अशक्त हो चली हैं. लेकिन जब उसे सुध आयी तभी भला सोचकर उसने अपने आँसू पोंछे और जल्दी जल्दी घर के काम निपटाने लगी.

ठीक शाम चार बजे वह मम्मी के घर उनके पैरों के पास बैठी थी. ईशा नाना के साथ मस्ती में लगी थी. “माँ याद है एक बार जब आँटी लोग ईशा को देखने हमारे घर आयी थीं उस दिन अपनी बेवकूफी में मैं न जाने आपको क्या क्या कह गयी थी और आपका मन बहुत दुखाया था. उस दिन के व्यवहार के लिए मैं दिल से क्षमाप्रार्थी हूं. मुझे माफ़ कर दो माँ. वर्षों बाद शायद आपकी महत्ता को समझ पायी हूं.” हाथ जोड़ते हुए ईशा की आँखों मे आंसू छलछला उठे.

“आज आपको हर उस पल के लिए थैंक्यू भी बोलना चाहती हूं, जिन पलों में आपने मेरा उत्साहवर्धन किया, मुझे संभाला, मेरा हौसला बढ़ाया. ढेरों शुक्रिया माँ कि जब जब मुझे आपकी जरूरत थी आप मेरे साथ थीं. सच माँ, बहुत प्यार करती हूं आपको पर कभी जता नही पायी. थैंक्यू सो मच माँ मेरी माँ होने के लिए.” कहकर उसने माँ की गोद मे अपना सर टिका दिया. माँ की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे. बड़े स्नेह से अपने कांपते हाथों को उसके सिर पर फेरकर वे उसे आशीर्वाद दिए जा रही थीं. शायद उनकी ममता आज पूरी तरह तृप्त हो चुकी थी. वहीं पूजा का मन भी हल्का हो एक असीम शांति से भर चुका था.

Mother’s Day Special: मां का दिल- क्या बदल सकता है मां का प्यार?

2 साल के राजू को गोद में खिलाते हुए माला ने अपनी बहन सोनू से कहा, “सोनू, पता नहीं क्यों मुझे कभीकभी ऐसा लगता है जैसे राजू हमारी संतान नहीं.”

“पगला गई हो क्या दीदी, यह क्या कह रही हो? राजू आप की संतान नहीं तो क्या बाजार से ख़रीदा है जीजू ने?”  कह कर 16 साल की सोनू जोरजोर से हंसने लगी. मगर माला के चेहरे की शिकन कम नहीं हुई.

राजू के चेहरे को गौर से देखती हुई बोली, “जरा इस की आंखें देख. तेरे जीजू से मिलती हैं, न मुझ से. आंखें क्यों पूरा चेहरा ही हमारे घर में किसी से नहीं मिलता.”

“मगर दीदी, बच्चे का चेहरा मांबाप जैसा ही हो, यह जरूरी तो नहीं. कई बार किसी दूर के रिश्तेदार या फिर जिसे आप ने प्रैग्नैंसी के दौरान ज्यादा देखा हो, उस से भी मिल सकता है. वैसे, यह अभी बहुत छोटा है, बड़ा होगा तो अपने पापा जैसा ही दिखेगा.”

“बाकी सबकुछ छोड़. इस का रंग देख. मैं गोरी, मेरी बेटी दिशा गोरी मगर यह सांवला. तेरे जीजू भी तो गोरे ही हैं न. फिर यह… ”

‘अरे दीदी, लड़कों का रंग कहां देखा जाता है. वैसे भी, यह 21वीं सदी का बच्चा है. जनवरी 2001 की पैदाइश है. इस की बर्थडेट खुद में खास है. 11 /1 / 2001 को जन्म लेने वाला यह तुम्हारा लाडला जरूर जिंदगी में कुछ ऐसा काम करेगा कि तुम दोनों का भी नाम हो जाएगा,” प्यार से राजू को दुलारते हुए सोनू ने कहा.

” वह तो मैं मानती हूं सोनू कि लड़कों का रंग नहीं देखते और फिर मां के लिए तो अपने बच्चे से प्यारा कुछ हो ही नहीं सकता पर यों ही कभीकभी कुछ बातें दिमाग में आ जाती हैं.”

” याद है दीदी, इस के जन्म वाले दिन जीजू कितने खुश थे. इसे बांहों में ले कर झूम उठे थे. बेटा हुआ है, इस बात की खुशी उन के चेहरे पर देखते ही बनती थी. मुझे तो लगता है जैसे जीजू इस पर जान छिड़कने हैं और एक तुम हो जो इसे…”

” देख सोनू, जान तो मैं भी छिड़कती हूं पर कभीकभी संदेह सा होता है. मैं तो बच्चे को जन्म दे कर बेहोश हो गई थी. बाद में तेरे जीजू ने ही इसे मेरी बांहों में डाला था.”

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सोनू ने दरवाजा खोला तो सामने अपने जीजा दिनेश को देख कर मुसकारा उठी. दिनेश की आवाज सुनते ही नन्हा राजू मां की गोद से छिटक कर बाहर भागा और बाप की बांहों में झूल गया. दिनेश ने तुरंत अपने साथ लाया हुआ चौकलेट उस के नन्हे हाथों में थमा दिया.

सोनू मुसकराते हुए बोली, “यह है बापबेटे का मिलन. दीदी, देख लो अपनी आंखों से तुम्हारा राजू अपने बापू से कितना प्यार करता है.”

माला ने एक ठंडी आह भरी और पुराने खयालों में खो गई. उसे याद आ रहा था वह दिन जब दिशा पैदा हुई थी. घरभर में एक अनकही सी उदासी पसर गई थी. सास ने बुरा सा मुंह बना लिया था. उस पर दिनेश भी खुश नहीं थे. बच्ची को गोद में उठा कर चूमा भी नहीं. बस, दूर से ही देख कर चले गए थे. माला मानती है कि घर में सब लड़के की बाट जोह रहे थे. मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि बेटी को प्यार ही न करें. उस के साथ सौतेला व्यवहार किया जाए. आज दिशा 5 साल की हो गई है. पर मजाल है कि कभी दिनेश उस के लिए चौकलेट ले कर आए हों. बेटे के पीछे ऐसा भी क्या पागलपन कि बेटी को बिलकुल ही इग्नोर कर दिया जाए.

वक्त यों ही गुजरता रहा. माला को 2 बेटियां और हुईं. हर बार सास और पति का मुरझाया चेहरा उसे अंदर तक तोड़ देता. राजू दादी और पापा की आंखों का तारा था. वह अब स्कूल जाने लगा था और जिद्दी भी हो गया था. स्कूल से उस की बदमाशियों की शिकायतें अकसर आने लगी थीं.

माला अकसर सोचती कि उस का बेटा तीनों बेटियों से कितना अलग है. कभीकभी मन में शक गहराता की क्या वाकई वह उस का बेटा है? फिर मन को समझा लेती कि हो न हो, यह सब उसे मिलने वाले हद से ज्यादा प्यारदुलार का नतीजा हो.

दिनेश इन शिकायतों के प्रति आंख मूंद लेता. माला कुछ कहती तो हंस कर कहता, “माला, जरा सोचो, हमारा एक ही बेटा है. इसे ही अपना सारा प्यारदुलार देना है. आखिर बुढ़ापे में यही तो हमारे काम आएगा.”

“ऐसा क्यों कह रहे हो? तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि बेटियां काम नहीं आएंगी?”

“क्यों माला, क्या तुम कभी अपनी मां के काम आ सकीं? तुम तो इतनी दूर हो मायके से, बताओ कैसे काम आओगी? इसी तरह हमारी बच्चियां भी कल को ब्याह कर बहुत दूर चली जाएंगी. जमाने की रीत है यह. फिर हम चाहेंगे तो भी उन्हें अपने पास नहीं बुला सकेंगे. हमारे लिए अपना राजू ही खड़ा होगा.”

दिनेश की बात सुन कर माला का दिल रो पड़ा. सचमुच वह अपनी मां के लिए कुछ भी नहीं कर पाई थी. उस की मां का पैर टूट गया था. वह महीनों  बिस्तर पर पड़ी रही. मगर सास ने उसे बच्चों को छोड़ कर जाने की अनुमति नहीं दी. वैसे भी, तब राजू कुल 4 महीने का था. वह चाह कर भी नहीं जा सकी. दिनेश भले ही कड़वा बोल रहा था मगर कहीं न कहीं यही सच था. समाज ने बेटियों के पैरों में बेड़ियां जो डाल रखी हैं.

माला अकसर राजू को पढ़ाते हुए सोचती कि वह अपनी बेटियों को भी खूब पढ़ाएगी. बड़ी बेटी को दिनेश ने 8वीं के बाद घर पर बैठा लिया था और उस के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी थी. मगर दोनों छोटी बेटियों को आगे पढ़ाने के लिए माला अड़ गई. वक्त गुजरता गया. राजू ने 12वीं पास कर ली. बाकी विषयों में साधारण होने के बावजूद वह मैथ्स में काफी तेज निकला. पूरे खानदान में कोई भी मैथ्स में कभी इतने अच्छे नंबर नहीं लाया था. राजू के नंबर इतने अच्छे थे कि दिनेश ने उसे इंजीनियरिंग पढ़ाने की ठान ली. एक अच्छे कालेज में दाखिले और फीस के लिए बाकायदा उस ने रुपयों का इंतजाम भी कर लिया था.

मगर कुछ समय से राजू को कई तरह की शारीरिक परेशानियां महसूस होने लगी थीं. उसे आजकल आंखों से धुंधला दिखने लगा था. एक आंख की रोशनी काफी कम हो गई थी. बारबार हाथपैर सुन्न होने लगे थे. बोलने में भी कई बार कठिनाई होने लगती. उस ने घरवालों को ये सारी बातें नहीं बताई थीं. इंजीनियरिंग एंट्रेंस टैस्ट से ठीक एक दिन पहले वह अचानक लड़खड़ा कर गिर पड़ा. माला ने हड़बड़ा कर उसे उठाया तो वह रोने लगा.

“क्या हुआ बेटे?” माला ने घबरा कर पूछा तो उस ने बड़ी मुश्किल से अपनी सारी तकलीफ़ों के बारे में विस्तार से बताया. तब तक दिनेश भी आ गया था. उस ने देर नहीं की और तुरंत बेटे को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने कई तरह के टैस्ट लिख दिए. जांच के बाद पता चला कि उसे मल्टीपल स्क्लेरोसिस की समस्या है.

मल्टीपल स्क्लेरोसिस एक औटोइम्यून डिजीज है जिस में सैंट्रल नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है. इस में देखने, बात करने, चलने और ध्यान एकाग्र करने से जुड़ी समस्याएं पैदा होती हैं. इंसान अपना संतुलन खो बैठता है. इस से पीड़ित व्यक्ति कई बार लकवे का शिकार भी हो जाता है. डाक्टरों के मुताबिक, राजू के शरीर का एक हिस्सा आंशिकरूप से लकवाग्रस्त भी हो गया था. यह बीमारी कभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाती.

राजू की बीमारी काफी गंभीर हालत में पहुंच चुकी थी और लाखों रुपयों का खर्च आना था. राजू पूरी तरह ठीक हो सकेगा या नहीं, इस बारे में भी श्योर नहीं कहा जा सकता था.

इस बीच डाक्टर ने दिनेश और माला का डीएनए टैस्ट कराने की बात की. यह टैस्ट राजू की बीमारी बेहतर ढंग से समझने और सही इलाज के लिए जरूरी था. माला तो तुरंत तैयार हो गई मगर दिनेश टैस्ट कराने से आनाकानी करने लगा. माला ने लाख कहा मगर वह तैयार नहीं हो रहा था. बाद में जब डाक्टर ने इस टैस्ट की आवश्यकता बताते हुए दिनेश को समझाया तो वह हार कर टैस्ट कराने को तैयार हो गया.

जब टैस्ट की रिपोर्ट आई तो सब दंग रह गए. रिपोर्ट के मुताबिक, दिनेश और माला राजू के मांबाप नहीं थे. माला ने सवालिया नजरों से पति की तरफ देखा तो दिनेश अनजान बनते हुए वहां से चला गया. शाम को घर लौटा तो माला ने एक बार फिर पति से राजू के जन्म का राज पूछा. तो दिनेश फूटफूट कर रोने लगा.

माला ने उसे सहारा दिया तो उस के कंधों पर सिर रखता हुआ दिनेश बोला, “माला, मां की बहुत इच्छा थी कि हमारा भी एक बेटा हो. ऐसा ही कुछ मैं भी चाहता था. मगर दूसरी बेटी को जन्म दे कर जब तुम बेहोश हो गईं तो मैं ने देखा कि उसी वार्ड में एक महिला ने बेटे को जन्म दिया था. उस के 2 बेटे पहले से थे. मेरा मन डोल गया. मैं ने उस बच्चे के बाप से बात की. बेटी के बदले बेटा लेना चाहा तो उस ने साफ इनकार कर दिया. फिर मैं ने एक मोटी रकम का लालच दिया. थोड़ा सोचविचार कर वह तैयार हो गया. हम दोनों ने जल्दीजल्दी अपने बच्चे बदल लिए.

“मेरी गोद में राजू आ गया. उसे पा कर मैं बहुत खुश था. मुझे उस की जाति की परवा थी और न खानदान की. मेरे लिए तो इतना ही काफी था कि वह एक लड़का है और अब से मेरा बेटा कहलाएगा.”

यह कहतेकहते दिनेश फिर से रोने लगा और माफी मांगता हुआ आगे बोला, “माला, मुझे माफ कर दो. बेटे की चाह में मैं बावला हो गया था. अपनी बिटिया किसी और को सौंप कर दूसरे का बच्चा घर ले आया. शायद, इसी बात की सजा मिली है मुझे.”

“ऐसा मत कहो दिनेश, अब जो हो गया सो हो गया. शायद इसी वजह से मुझे अकसर संदेह होता था कि यह बच्चा मेरा नहीं. बचपन में इसे सीने से लगाने पर वह आत्मिक तृप्ति नहीं मिलती थी जो अपने बच्चे को लगाने पर मिलती है. तुम ने जो भी किया सासुमां की खुशी के लिए किया. मगर याद रखो, खुशी खरीद कर नहीं मिल सकती. जो हमें मिला है हमें उसी में खुश रहना चाहिए.”

मांबाप की ये सारी बातें कमरे के बाहर खड़ी माला की छोटी बिटिया ने सुन ली. उस ने बड़ी बहन को भी सारी बातें बता दीं. दोनों बेटियां चुपकेचुपके कमरे में दाखिल हुईं.

दिनेश ने उन्हें अपनी बांहों में भरते हुए कहा, “माला, जो हुआ उसे भूल जाओ. मगर मैं अब अपने किए का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. अब तक अपनी दोनों बेटियों का हक़ मारता रहा, मगर अब और नहीं. राजू के इलाज पर लाखों रुपए खर्च होंगे. वे रुपए हमारी बच्चियों के हक के हैं. वह कभी ठीक हो सकेगा या नहीं, यह भी श्योर नहीं कहा जा सकता. हमें राजू को अपनी जिंदगी से निकाल देना चाहिए. यही सब के लिए अच्छा होगा.”

माला दिनेश का चेहरा देखती रह गई. दोनों बेटियों ने भी पिता की हां में हां मिलाई, “जब राजू भैया हमारे अपने भाई हैं ही नहीं तो फिर हमारे घर में क्यों हैं?”

“चुप कर, नैना,” अचानक माला चीखी. फिर पति की तरफ देखती हुई बोली, “यह क्या कह रहे हो तुम? एक गलती सुधारने के लिए उस से बड़ी गलती करना चाहते हो? इतना बड़ा अपराध करना चाहते हो? क्या ऐसा करने पर तुम्हारा दिल तुम्हें कोसेगा नहीं? जिस बच्चे को आज तक हम अपना बच्चा मान कर इतने लाड़प्यार से पालते आ रहे हैं, आज अचानक वह पराया हो गया? क्या उस की बीमारी का बहाना बना कर हम उसे अकेला छोड़ देंगे?”

बड़ी बेटी ने कंधे उचकाते हुए कहा, “देखो न मां, आज तक हमारे हिस्से का लाड़प्यार और सुखसुविधाएं भी भाई को मिलतीं रहीं. भाई को आप ने अलग कमरा दिया. अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाया. ट्यूशन लगवाया. उन की हर जरूरत बढ़चढ़ कर पूरी की. मगर सब बेकार गया न. अब तो वे उम्रभर उठ ही नहीं सकेंगे. फिर इलाज का क्या फायदा? जाने दो भाई को. कहीं छोड़ आओ उन्हें. वे आप का खून भी नहीं, फिर बेकार घर में रख कर इलाज में रुपए लगाने का क्या फायदा?”

“वाह बेटे, आप तो इतने बड़े हो गए कि हर चीज में फायदा देखने लगे. मैं भी फायदा देखती तो बेटियों को पढ़ाती ही नहीं. फायदा क्या है, वे तो ससुराल चली जाएंगी न. बचपन से जिस भाई की कलाई में राखी बांधती आ रही हो, आज वह पराया हो गया? रिश्ते क्या केवल खून के होते हैं? भाई से तुम लोगों का दिल का कोई रिश्ता नहीं?”

“मां, ऐसी इमोशनल बातें कह कर हमें उलझाओ मत. सच यही है कि भाई हमारा नहीं है और अब उम्रभर हमें उस की सेवा करनी पड़ेगी. वह उठ भी नहीं सकेगा. ऐसे में लौजिक क्या कहता है? यही न, कि इन्हें कहीं छोड़ आओ.”

बेटी की बातें माला के कानों में जहर जैसी चुभ रही थीं. बेटी के गालों पर एक तमाचा जड़ती हुई वह चीखी, “खबरदार जो किसी ने मेरे बेटे के खिलाफ एक शब्द भी कहा. वह मेरे पास रहेगा और मेरे दिल का टुकड़ा बन कर रहेगा.”

“पर माला अब राजू ठीक होगा, इस बात का कोई भरोसा नहीं है. हमारे पास इतने पैसे भी नहीं हैं. उस के इलाज में सारे रुपए खर्च हो जाएंगे तो फिर हमारी बेटियों का क्या होगा?”

” पैसा है या नहीं, यह बात महत्त्वपूर्ण नहीं. हम उस की सेवा करेंगे. उस का खयाल रखेंगे. वैसे, बहुत सी बीमारियां प्राकृतिक जड़ीबूटियों या घरेलू उपायों से भी ठीक हो जाती हैं. जरूरत पड़ी तो किसी बड़े नहीं लेकिन छोटे अस्पताल में तो इलाज करा ही लेंगे. लेकिन इस तकलीफ के समय उसे अकेला नहीं छोड़ेंगे. यदि राजू सच में हमारा बच्चा होता तो भी क्या तुम उसे ऐसे छोड़ देते? नहीं न. तो फिर अब क्यों? राजू मेरी बेटियों का हक नहीं मार रहा. उसे अब तक अपना बच्चा मान कर पालापोसा है, तो आगे भी वह मेरा ही बेटा रहेगा. भूले से भी मुझे मेरे बच्चे से जुदा करने की बात न सोचना. और हां, तुम में से कोई भी राजू से इस सचाई के बारे में नहीं बताएगा,” माला ने अपना फैसला सुना दिया था.

दूसरे कमरे में लेटा राजू सबकुछ सुन रहा था. एक तरफ आत्मग्लानि, दूसरी तरफ बीमारी का दर्द और उस पर पिता व बहनों की इस सोच ने उसे अंदर तक तोड़ दिया था. वह खुद को बहुत असहाय महसूस कर रहा था. मगर मां की बातें उस के जख्मों पर मरहम लगाने का काम कर रही थीं. सारा दर्द उस की आंखों से पानी बन कर बह निकला था. उसे बचपन से अब तक की अपनी जिंदगी के लमहे याद आ रहे थे. छोटा सा था वह जब मां के आंचल में छिप कर शरारतें करता. जैसेजैसे बड़ा हुआ वैसेवैसे जिद्दी होता गया. जो भी जिद करता, घरवाले उसे पूरा करते. घर में अपनी मरजी चलाता. बहनों को डांटता, तो कभी प्यार भी करता. आज वे सारे रिश्ते बेगाने हो चले थे.

अचानक ही वह तड़प कर चीखा, “मां, इधर आओ मां.”

माला दौड़ी गई. पीछेपीछे पिता और बहनें भी उस के कमरे में आ गए. राजू मां का हाथ थाम कर रोते हुए टूटेफूटे शब्दों में कहने लगा, “मां, आज तक मैं ने जितनी भी गलतियां कीं उन के लिए आप सब मुझे माफ कर दो और मां, मेरी बहनों पर आप नाराज न होना. मेरी बहनें  जो कह रही हैं और पापा ने जो कहा है वह सही है. कहीं छोड़ आओ मुझे. किसी धर्मशाला या आश्रम में पड़ा रहूंगा. आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहता. मेरी बहनों को हर खुशी मिलनी चाहिए. उन के रास्ते में बाधा नहीं बनना चाहता.”

“चुप हो जा मेरे बच्चे,” मां ने प्यार से उस का माथा सहलाते हुए कहा, “तू बड़ा भाई है. तेरी बहनों को खुशी तभी मिलेगी जब उन के पास तेरा प्यार और आशीर्वाद रहेगा. तू वादा कर हमेशा मेरी आंखों के आगे रहेगा.”

दोनों बहनें भी भाई के प्यार को महसूस कर रही थीं. दोनों बेटियां मां के गले लग गईं और बोलीं, “मां, आप बिलकुल सही हो. हम अपने भाई को कहीं भी जाने नहीं देंगे.”

दिनेश को भी अपनी गलती का एहसास हो गया था. दिनेश ने माला का हाथ थामते हुए कहा, “माला, मां के दिल जैसा कोई दिल नहीं होता. मुझे गर्व है कि तुम मेरी पत्नी हो. मैं गलत था. आज के बाद ऐसी बात मेरे जेहन में नहीं आएगी. हम सब मिल कर हमेशा राजू का साथ देंगे. मुझे माफ कर दे राजू बेटा. मैं बहुत स्वार्थी हो गया था. पर तेरी मां ने मेरी आंखें खोल दीं.”

बेटियों ने भी हामी में सिर हिलाया, तो माला की आंखों में खुशी के आंसू आ गए.

Mother’s Day Special: पिता और बच्चे के बीच का सेतु है मां

बच्चे के लिए दूध की बोतल तैयार करना, उस का नैपी बदलना, उसे गोद में लिए ही शौपिंग करना, यहां तक कि फिल्म देखना, ये सब काम ज्यादातर मां ही करती है. इसीलिए बच्चे का मां के साथ अलग ही भावनात्मक रिश्ता होता है. लेकिन पिता के साथ बच्चे का भावनात्मक रिश्ता बनाने में मां ही मदद करती है. तभी पिता और बच्चा करीब आ पाते हैं. जरमनी के नैटवर्क औफ फादर्स के चेयरमैन हांस जार्ज नेल्स भी कहते हैं कि साझा अनुभव, रीतिरिवाज, साथ बिताया सप्ताहांत और बिना मां की मौजूदगी वाली साझी अभिरुचियां पिता और बच्चे को करीब लाने का आधार बनती हैं. पिता को बच्चे से जुड़ने के लिए सब से पहले उस की मां के साथ सहयोग करना होता है. मां के साथ किया गया सहयोग पिता को बच्चे से जुड़ने में मददगार साबित होता है. यह बहुत जरूरी होता है कि जब बच्चा छोटा होता है तब मां उस का खयाल रखने में पिता पर भरोसा करे. तब पिता बच्चे के साथ मां से थोड़ा अलग तरह का रिश्ता कायम कर पाता है.

बच्चे की छोटीबड़ी बात में पिता को भी हिस्सेदार बनाती है मां:

बच्चे का हर काम यानी उसे नहलाने से ले कर खिलानेसुलाने तक का काम मां ही करती है. इसीलिए पिता बच्चे से थोड़ा दूर ही रहता है और दूर से ही उसे देख मुसकराता रहता है. लेकिन धीरेधीरे मां ही पिता को भी थोड़ी जिम्मेदारी निभाना सिखाती है जैसे यदि मां नहाने जा रही है तो बच्चे को पिता को सौंप जाती है. शुरू में पिता झिझकता और शर्म महसूस करते हुए बच्चे को पकड़ता है, लेकिन फिर आदत होने लगती है और वह थोड़ाथोड़ा वक्त बच्चे को देने लगता है. शुरू में पिता बच्चे की पौटी से नाकभौं सिकोड़ता है और तुरंत बच्चे को मां को सौंप देता है. लेकिन धीरेधीरे मां बच्चे के पिता से नैपी आदि बदलने में हैल्प लेने लगती है, तो पिता को भी इस की आदत हो जाती है. पिता भी बच्चे के प्रति अपनी भावनात्मक जिम्मेदारी समझने लगता है और इस तरह वह बच्चे से पहले से ज्यादा जुड़ जाता है. इस से पिता और बच्चे के बीच की दूरी कम होती है. पिता और बच्चे के बीच एक रिश्ता बन जाता है. बच्चा पिता के करीब रहने लगता है.

पिता पर भी भरोसा करती है:

बच्चे को ले कर मां किसी पर भी जल्दी भरोसा नहीं करती है. वह बच्चे का हर काम खुद करती है. लेकिन पिता पर उसे भरोसा होता है इसलिए वह बच्चे के छोटेबड़े कामों में पिता की मदद लेना शुरू करती है जैसे किचन में कोई काम है तो बच्चे को पिता को सौंप देती है. इस से पिता को कुछ समय बच्चे के साथ अकेले बिताने के लिए मिलता है, तो बच्चे से लगाव बढ़ता है. पिता के मन में प्यार जगाती है मां: बच्चा 9 महीने मां के गर्भ में रहता है, इसलिए दुनिया में आने के बाद मां और बच्चे का एक अलग ही भावनात्मक रिश्ता होता है. लेकिन पिता से वह रिश्ता धीरेधीरे कायम होता है. शुरूशुरू में पिता को बच्चे को गोद में लेने से भी डर लगता है. लेकिन मां पिता को बच्चा संभालना सिखाती है, उस की नन्हीनन्ही शरारतों का जिक्र पिता से करती है, बच्चे से उसी तरह तोतली जबान में बात करती है और फिर उस का खुश होता चेहरा पिता को दिखाती है.

गलतफहमी दूर करती है मां:

बच्चा बड़ा हो या छोटा, कई बार पिता और बच्चे के बीच किन्हीं बातों को ले कर तनाव हो जाता है, क्योंकि अकसर पिता थोड़ा कठोर और कड़क स्वभाव का होता है. ऐसा होने की एक वजह यह भी है कि वह मां की तरह अपना प्रेम प्रदर्शित नहीं कर पाता. ऐसे में पिता के द्वारा किसी चीज के लिए मना कर देने पर बच्चे को लगता है कि पिता उस से प्यार नहीं करते. तब मां ही बच्चे को प्यार से समझाती है कि पिता के ऐसा करने की क्या वजह थी. वह बच्चे को यह भी समझाती है कि पिता उस से बहुत प्यार करते हैं. दूरी बढ़ जाए तो करीब लाती है मां: कई बार बड़े होते बच्चे और पिता के बीच किसी बात को ले कर अनबन हो जाए तो बच्चा और पिता दोनों ही एकदूसरे से मुंह बना लेते हैं. टीनऐजर बच्चे के साथ तो यह समस्या कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है. ऐसे में मां ही समझदारी दिखाते हुए दोनों का पौइंट औफ व्यू एकदूसरे के सामने रखती है और उन्हें समझाती है.

तब एकदूसरे से बात न करते हुए भी वे एकदूसरे का नजरिया समझ जाते हैं. बच्चे को यह भी पता लग जाता है कि पिता गलत नहीं हैं. वे बड़े हैं इसलिए उसे टोकते हैं और पिता भी जान जाता है कि बच्चे की उम्र ही ऐसी है. इसलिए नाराज हो कर मुंह फुलाने के बजाय बातचीत के जरीए समस्या का हल निकाला जाता है और इस का सारा श्रेय मां को ही जाता है. 

बच्चे की नजरों में पिता को रोल मौडल बनाती है मां:

पिता से बच्चे को मां ही जोड़ती है. वह बताती है कि पिता में क्या खूबियां हैं और कैसे उन्होंने अपने परिवार को जोड़ कर रखा है. वह पिता के बचपन के, उन की पढ़ाईलिखाई के, उन के खेलकूद आदि के बारे में बच्चे को बताती है. तब बच्चा पिता से उन की खूबियों और सफलता के बारे में प्रश्न करने लगता है और इस तरह पिता और बच्चे के बीच अच्छे मुद्दों को ले कर संवाद की शुरुआत होती है और वह पिता को पहले से भी ज्यादा सम्मान देने लगता है. पिता उस के रोल मौडल बन जाते हैं. उसे लगता है वह आज जो कुछ भी है पिता की वजह से ही है और उसे अपने पिता जैसा ही बनना है. 

Mother’s Day Special: तुम्हें सब है पता मेरी मां

जब मिस वर्ल्ड का ताज किसी प्रतियोगी से सिर्फ एक प्रश्न दूर हो और उस प्रश्न के जवाब में प्रतियोगी एक मां को सब से ज्यादा सैलरी पाने का हकदार बताए और साथ ही मां की गरिमा को और बढ़ाते हुए यह भी कहे कि मां के वात्सल्य की कीमत कैश के रूप में नहीं, बल्कि आदर और प्यार के रूप में ही अदा की जा सकती है और जब उस के इस जवाब पर खुश हो कर विश्व भी अपनी सहमति की मुहर लगा कर उसे ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ मानते हुए ‘मिस यूनिवर्स’ का ताज पहना देता है तो यकीनन उस की कही बात उस के ताज की ही तरह महत्त्वपूर्ण हो जाती है.

मानुषी छिल्लर के जवाब से शतप्रतिशत सहमत होने में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है. सचमुच मां का काम अतुल्य है. एक मां एक दिन में ही अपने बच्चे के लिए आया, रसोइया, धोबी, अध्यापिका, नर्स, टेलर, मोची, सलाहकार, काउंसलर, दोस्त, प्रेरक, अलार्मघड़ी और न जाने ऐसे कितने तरह के कार्य करती है, जबकि घर से बाहर की दुनिया में इन सब कार्यों के लिए अलगअलग व्यक्ति होते हैं.

एक विलक्षण शक्ति

मां बनते ही मां के कार्यक्षेत्र का दायरा बहुत विकसित हो जाता है, किंतु निश्चित रूप से मां को ‘संपूर्ण और सम्माननीय मां’ उस के वे दैनिक कार्य नहीं बनाते, बल्कि एक मां को महान उस की वह आंतरिक शक्ति बनाती है, जो उसे एक ‘सिक्स्थ सैंस’ के रूप में मिली होती है, जिस के बल पर मां बच्चे के अंदर इस हद तक समाहित हो जाती है कि अपने बच्चे की हर बात, हर पीड़ा, हर जरूरत, उस की कामयाबी और नाकामयाबी हर बात को बिना कहे केवल उस का चेहरा देख कर ही भांप लेती है.

मां का कर्तव्य केवल अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करना ही नहीं होता, बल्कि मां की और भी बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं. अपने बच्चों को समझना, जानना और उन पर विश्वास करना, उन का उचित मार्गदर्शन और चरित्र निर्माण कर के उन्हें एक अच्छा इंसान बनाना भी मां की जिम्मेदारियों में शामिल होता है.

जहां एक तरफ मां का भावनात्मक संबल किसी भी बच्चे का सब से बड़ा सहारा होता है, वहीं दूसरी तरफ मां के विश्वास और मार्गदर्शन में वह शक्ति होती है, जिस से वह अपने बच्चे को फर्श से अर्श तक पहुंचा सकती है.

बच्चे को योग्य बनाती है मां

जहां एक तरफ अब्राहम लिंकन की मां ने घोर आर्थिक तंगी के बावजूद अब्राहम लिंकन को चूल्हे के कोयले से अक्षर ज्ञान कराया और उन्हें अमेरिका के राष्ट्रपति के पद पर पदासीन होने योग्य बनाया, वहीं दूसरी तरफ जब महान वैज्ञानिक थौमस एडिसन को उन के स्कूल टीचर ने ‘ऐडल्ट चाइल्ड’ कह कर उन्हें हतोत्साहित किया तब उन की मां ने एड

Mother’s Day Special: और प्यार जीत गया

देवयानीको समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? जिस दोराहे पर 25 साल पहले वह खड़ी थी, आज फिर वही स्थिति उस के सामने थी. फर्क सिर्फ यह था कि तब वह खुद खड़ी थी और आज उस बेटी आलिया थी. उस का संयुक्त परिवार होने के बावजूद उसे रास्ता सुझाने वाला कोई नहीं था. पति सुमित तो परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ से दबे रहने वाले शख्स थे. उन से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार था. शादी के बाद से आज तक उन्होंने कभी एक अच्छा पति होने का एहसास नहीं कराया था. घंटों कारोबार में डूबे रहना उन की दिनचर्या थी. प्यार के 2 बोल सुनने को तरस गई थी वह. घर के राशन से ले कर अन्य व्यवस्थाओं तक का जिम्मा उस पर था. वह जब भी कोई काम कहती सुमित कहते, ‘‘तुम जानो, रुपए ले लो, मुझे डिस्टर्ब मत करो.’’

संयुक्त परिवार में देवयानी को हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती. भाइयों और परिवार में सुमित के खुद को उच्च आदर्श वाला साबित करने के चक्कर में कई बार देवयानी अपने को कटघरे में खड़ा पाती. तब उस का रोमरोम चीत्कार उठता. 25 वर्षों में उस ने जो झेला, उस में स्थिति तो यही थी कि वह खुद कोई निर्णय ले और अपना फैसला घर वालों को सुनाए. इस वक्त देवयानी के एक तरफ उस का खुद का अतीत था, तो दूसरी तरफ बेटी आलिया का भविष्य. उसे अपना अतीत याद हो गया. वह स्कूल के अंतिम वर्ष में थी कि महल्ले में नएनए आए एक कालेज लैक्चरर के बेटे अविनाश भटनागर से उस की नजरें चार हो गईं. दोनों परिवारों में आनाजाना बढ़ा, तो देवयानी और अविनाश की नजदीकियां बढ़ते लगीं. दोनों का काफी वक्त साथसाथ गुजरने लगा. अत्यंत खूबसूरत देवयानी यौवन की दहलीज पर थी और अविनाश उस की ओर जबरदस्त रूप से आकर्षित था. वह उस के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता. अत्यंत कुशाग्र अविनाश पढ़ाई में भी देवयानी की मदद करता और जबतब मौका मिलते ही कोई न कोई गिफ्ट भी देता. वह अविनाश के प्यार में खोई रहने के बावजूद अपनी पढ़ाई में अव्वल आ रही थी. दिन, महीने, साल बीत रहे थे. देवयानी स्कूल से कालेज में आ गई. वह दिनरात अविनाश के ख्वाब देखती. उस के घर वाले इस सब से बेखबर थे. उन्हें लगता था कि अविनाश समझदार लड़का है. वह देवयानी की मदद करता है, इस से ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन उन का यह भ्रम तब टूटा, जब एक रात एक अजीब घटना हो गई. अविनाश ने देवयानी के नाम एक लव लैटर लिखा और एक पत्थर से बांध कर रात में देवयानी के घर की चारदीवारी में फेंका. उसी वक्त देवयानी के पिता वहां बने टौयलेट में जाने के लिए निकले. अचानक पत्थर आ कर गिरने से वे चौंके और देखा तो उस पर कोई कागज लिपटा हुआ था. उन्होंने उसे उठाया और वहीं खड़े हो कर पढ़ने लगे. ज्योंज्यों वे पत्र पढ़ते जा रहे थे. उन की त्योरियां चढ़ती जा रही थीं.

देवयानी के पापा ने गली में इधरउधर देखा, कोई नजर नहीं आया. गली में अंधेरा छाया हुआ था, क्योंकि स्ट्रीट लाइट इन दिनों खराब थी. उस वक्त रात का करीब 1 बज रहा था और घर में सभी सदस्य सो रहे थे. उन्हें अपनी बेटी पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन इतनी रात गए वे कोई हंगामा नहीं करना चाहते थे. वे अपने बैडरूम में आए उन की पत्नी इस सब से बेखबर सो रही थी. वे उस की बगल में लेट गए, लेकिन उन की आंखों में नींद न थी. उन्हें अपनी इस लापरवाही पर अफसोस हो रहा था कि देवयानी की हरकतों और दिनचर्या पर नजर क्यों नहीं रखी? खत में जो कुछ लिखा था, उस से साफ जाहिर हो रहा था कि देवयानी और अविनाश एकदूसरे के प्यार में डूबे हैं. देवयानी के पापा फिर सो नहीं पाए. रात भर उन्होंने खुद पर नियंत्रण किए रखा, लेकिन जैसे ही देवयानी उठी उन के सब्र का बांध टूट गया. वह अपनी छोटी 2 बहनों और 2 भाइयों के साथ चाय पी रही थी कि उसे पापा का आदेश हुआ कि चाय पी कर मेरे कमरे में आओ. ‘‘ये क्या है देवयानी?’’ उस के आते ही अविनाश का खत उस की तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने पूछा.

‘‘क्या है पापा?’’ उस ने कांपती आवाज में पूछा और फोल्ड किए हुए खत को खोल कर देखा, तो उस का कलेजा धक रह गया. अविनाश का खत, पापा के पास. कांप गई वह. गला सूख गया उस का. काटो तो खून नहीं.

‘‘क्या है ये…’’ पापा जोर से चिल्लाए.

‘‘पा…पा…,’’ उस के गले से बस इतना ही निकला. वह समझ गई कि आज घर में तूफान आने वाला है. बुत बनी खड़ी रह गई वह. घबराहट में कुछ बोल नहीं पाई और आंखों से अश्रुधारा बह निकली. ‘‘शर्म नहीं आती तुझे,’’ पापा फिर चिल्लाए तो मां भी कमरे में आ गईं.

‘‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो सुबहसुबह?’’ मां ने पूछा.

‘‘ये देख अपनी लाडली की करतूत,’’ पापा ने देवयानी के हाथ से खत छीनते हुए कहा.

‘‘क्या है ये?’’

‘‘खुद देख ले ये क्याक्या गुल खिला रही है. परिवार की इज्जत, मानमर्यादा का जरा भी खयाल नहीं है इस को.’’ मां ने खत पढ़ा तो उन का माथा चकरा गया. वे धम्म से बैड पर बैठ गईं.’’ ‘‘यह क्या किया बेटी? तूने बहुत गलत काम किया. तुझे यह सब नहीं करना चाहिए था. तुझे पता है तू घर में सब से बड़ी है. तूने यह नहीं सोचा कि तेरी इस हरकत से कितनी बदनामी होगी. तेरे छोटे भाईबहनों पर क्या असर पड़ेगा. उन के रिश्ते नहीं होंगे,’’ मां ने बैड पर बैठेबैठे शांत स्वर में कहा तो देवयानी खुद को रोक नहीं पाई. वह मां से लिपट कर रो पड़ी. पापा के दुकान पर जाने के बाद मां ने देवयानी को अपने पास बैठाया और बोलीं, ‘‘बेटा, भूल जा उस को. जो हुआ उस पर यहीं मिट्टी डाल दे. मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘नहीं मां, हम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं,’’ देवयानी ने हिम्मत जुटा कर मां से कहा.

‘‘नहीं बेटा, इस प्यारव्यार में कुछ नहीं धरा. वह तेरे काबिल नहीं है देवयानी.’’ ‘‘क्यों मां, क्यों नहीं है मेरे काबिल? मैं ने उसे 2 साल करीब से देखा है. वह मेरा बहुत खयाल रखता है. बहुत प्यार करता है वह भी मुझ से.’’ ‘‘बेटा, वे लोग अलग जाति के हैं. उन का खानपान उन के जिंदगी जीने के तरीके हम से बिलकुल अलग है,’’ मां ने देवयानी को समझाने की कोशिश की.

‘‘पर मां, अविनाश मेरे लिए सब कुछ बदलने को तैयार है. उस के मम्मीपापा भी बहुत अच्छे हैं,’’ देवयानी मां से तर्कवितर्क कर रही थी. ‘‘और तूने सोचा है कि तेरे इस कदम से तेरे छोटेभाई बहनों पर क्या असर पडे़गा? रिश्तेदार, परिवार वाले क्या कहेंगे? नहीं देवयानी, तुम भूल जाओ उस को,’’ मां ने फैसला सुनाया. पापा ने कड़ा फैसला लेते हुए देवयानी की शादी दिल्ली के एक कारोबारी के बेटे सुमित के साथ कर दी. लेकिन वह अविनाश को काफी समय तक भुला नहीं पाई. शादी के बाद वह संयुक्त परिवार में आई तो ननदों, जेठानियों और बच्चों के बड़े परिवार में उस का मन लगता गया. एक बेटी आलिया और एक बेटे अंकुश का जन्म हुआ, तो वह धीरेधीरे अपनी जिम्मेदारियों में खो गई. लेकिन अविनाश अब भी उस के दिल के किसी कोने में बसा हुआ था. उसे कसक थी कि वह अपने प्यार से शादी नहीं कर पाई.

देवयानी अपने अतीत और वर्तमान में झूल रही थी. उस की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने घड़ी में टाइम देखा. 3 बज रहे थे. पौ फटने वाली थी. उस के बगल में पति सुमित सो रहे थे. आलिया और अंकुश अपने रूम में थे.देवयानी को आलिया और तरुण के बीच चल रहे प्यार का एहसास कुछ दिन पूर्व ही हुआ था, आलिया के सहपाठी तरुण का वैसे तो उन के घर आनाजाना था, लेकिन देवयानी ने इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. वह एक मध्यवर्गीय परिवार से वास्ता रखता था. उस के पापा एक बैंक में मैनेजर थे. हैसियत के हिसाब से देखा जाए, तो उस का परिवार देवयानी के परिवार के सामने कुछ भी नहीं था. लेकिन आजकल स्कूलकालेज में पढ़ने वाले बच्चे जातपांत और गरीबीअमीरी से ऊपर उठ कर स्वस्थ सोच रखते हैं. तरुण ने आलिया के साथ ही बीकौम किया और एक यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक विभाग में नौकरी लग गया था. जबकि आलिया अभी और आगे पढ़ना चाहती थी.

उस दिन आलिया बाथरूम में गई हुई थी. तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. देवयानी ने देखा मोबाइल स्क्रीन पर तरुण का नाम आ रहा था. उस ने काल को औन कर मोबाइल को कान पर लगाया ही था कि उधर से तरुण की चहकती हुई आवाज आई, ‘‘हैलो डार्लिंग, यार कब से काल कर रहा हूं, कहां थीं?’’

देवयानी को समझ में नहीं आया कि वह क्या बोले तो बस सुनती रही. तरुण बोले जा रहा था. ‘‘क्या हुआ जान, बोल क्यों नहीं रहीं, अभी भी नाराज हो? अरे यार, इस तरह के वीडियो चलते हैं आजकल. मेरे पास आया, तो मैं ने तुझे भेज दिया. मुझे पता है तुम्हें ये सब पसंद नहीं, सो सौरी यार.’’

‘‘हैलो तरुण, मैं आलिया की मम्मी बोल रही हूं. वह बाथरूम में है.’’

‘‘ओह सौरी आंटी, वैरी सौरी. मैं ने सोचा. आलिया होगी.’’ ‘‘बाथरूम से आती है, तो कह दूंगी,’’ कहते हुए देवयानी ने काल डिसकनैक्ट कर दी. लेकिन उस के मन में तरुण की काल ने उथलपुथल मचा दी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने आलिया के माबोइल में वाट्सएप को खोल लिया. तो वह आलिया के बाथरूम से निकलने से पहले इसे पढ़ लेना चाहती थी. दोनों ने खूब प्यार भरी बातें लिख रही थीं और आलिया ने तरुण के साथ हुई एकएक बात को लंबे समय से सहेज कर रखा हुआ था. दोनों बहुत आगे बढ़ चुके थे. देवयानी को 25 साल पहले का वह दिन याद हो आया, जब उस के पापा ने अविनाश का लिखा लव लैटर पकड़ा था. सब कुछ वही था, जो उस के और अविनाश के बीच था. प्यार करने वालों की फीलिंग शायद कभी नहीं बदलती, जमाना चाहे कितना बदल जाए. एक फर्क यह था कि पहले कागज पर दिल की भावनाएं शब्दों के रूप में आकार लेती थीं, अब मोबाइल स्क्रीन पर. तब लव लैटर पहुंचाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते थे, अब कितना आसान हो गया है.

देवयानी कई दिनों से देख रही थी कि आलिया के खानेपीने, सोनेउठने की दिनचर्या बदल गई थी. अब उसे समझ आ रहा था कि आलिया और तरुण के बीच जो पक रहा था, उस की वजह से ही यह सब हो रहा था. देवयानी ने फैसला किया कि वह अपनी बेटी की खुशियों के लिए कुछ भी करेगी. उस ने आलिया से उसी दिन पूछा, ‘‘बेटी, तुम्हारे और तरुण के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या चल रहा है मौम?’’ आलिया ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘मेरा मतलब प्यारव्यार.’’

‘‘नहीं मौम, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘मुझ से झूठ मत बोलना. मैं तुम्हारी मां हूं. मैं ने तुम्हारे मोबाइल में सब कुछ पढ़ लिया है.’’

‘‘क्या पढ़ा, कब पढ़ा? यह क्या तरीका है मौम?’’

‘‘देखो बेटा, मैं तुम्हारी मां हूं, इसलिए तुम्हारी शुभचिंतक भी हूं. मुझे मां के साथसाथ अपनी फै्रंड भी समझो.’’

‘‘ओके,’’ आलिया ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘‘मैं तरुण से प्यार करती हूं. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘लेकिन बेटा क्या तुम उस के साथ ऐडजस्ट कर पाओगी? तरुण तो मुश्किल से 20-25 हजार रुपए महीना कमाता होगा. क्या होगा इतने से.’’

‘‘मौम आप टैंशन मत लें. हम दोनों ऐडजस्ट कर लेंगे. शादी के बाद मैं भी जौब करूंगी,’’ आलिया ने कहा.

‘‘तुम्हें पता है जौब क्या होती है, पैसे कहा से, कैसे आते हैं?’’

‘‘हां मौम, आप सही कह रही हैं. मुझे अब तक नहीं पता था, लेकिन अब सीख रही हूं. तरुण भी मुझे सब बताता है.’’

‘‘हम कोई मदद करना चाहें उस की… उस को अच्छा सा कोई बिजनैस करा दें तो…?’’

‘‘नहीं मौम, तरुण ऐसा लड़का नहीं है. वह कभी अपने ससुराल से कोई मदद नहीं लेगा. वह बहुत खुद्दार किस्म का लड़का है. मैं ने गहराई से उसे देखासमझा है.’’

‘‘पर बेटा परिवार में सब को मनाना एकएक बात बताना बहुत मुश्किल हो जाएगा. कैसे होगा यह सब…?’’ मां ने आलिया के समक्ष असमर्थता जताते हुए कहा.

‘‘मुझे कोई जल्दी नहीं है मां… मैं वेट करूंगी.’’ देवयानी के समक्ष अजीब दुविधा थी. वह बेटी को उस का प्यार कैसे सौंपे? पहली अड़चन पति सुमित ही थे. फिर उन के भाई यानी आलिया के चाचाताऊ कैसे मानेंगे? तरुण व आलिया परिवारों के स्टेटस में दिनरात जैसा अंतर था. फिर भी देवयानी ठान चुकी थी कि यह शादी करवा कर रहेगी. उस ने अपने स्तर पर भी तरुण और उस के परिवार के बारे में पता लगाया. सब ठीक था. सब अच्छे व नेकदिल इंसान और उच्च शिक्षित थे. कमी थी तो बस एक ही कि धनदौलत, कोठीबंगला नहीं था. एक रात मौका देख कर देवयानी ने सुमित के समक्ष आलिया की शादी की बात रखी, ‘‘वह शादी लायक हो गई है, आप ने कभी ध्यान दिया? उस की फैं्रड्स की शादियां हो रही हैं.’’

‘‘क्या जल्दी है, 1-2 साल बाद भी कर सकते हैं. अभी तो 24 की ही हुई है.’’

‘‘24 की उम्र कम नहीं होती सुमित.’’

‘‘तो ठीक है, लेकिन अब रात को ही शादी कराएंगी क्या उस की? मेरी जेब में लड़का है क्या, जो निकाल कर उस की शादी करवा दूंगा?’’

‘‘लड़का तो है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘तरुण, आलिया का फ्रैंड. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. अच्छी अंडरस्टैंडिंग है दोनों में.’’

‘‘वह बैंक मैनेजर का बेटा,’’ सुमित उखड़ गए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या देवयानी?’’

‘‘बिलकुल नहीं हुआ है. जो कह रही हूं बहुत सोचसमझ कर दोनों के हित के लिए कह रही हूं. वह आलिया को खुश रखेगा, बस इतना कह सकती हूृं.’’ देवयानी ने उस रात अपने पति सुमित को तकवितर्क और नए जमाने की आधुनिक सोच का हवाला दे कर अपने पक्ष में कर लिया. उसे लगा एक बड़ी बाधा उस ने पार कर ली है. अब बारी थी परिवार के अन्य सदस्यों के समक्ष दीवार बन कर खड़ा होने की. उस ने अपनी  सास, देवर और जेठानियों के समक्ष अपना मजबूत पक्ष रखा. उस ने यह भी कहा कि अगर आप तैयार न हुए, तो वह घर से भाग कर शादी कर लेगी तो क्या करोगे? फिर तो चुप ही रहना पड़ेगा. और अगर दोनों बच्चों ने कुछ कर लिया तो क्या करोगे? जीवन भर पछताओगे. इस से तो अच्छा है कि हम अपनी सहमति से दोनों की शादी कर दें. और एक एक दिन वह आ गया जब आलिया और तरुण की शादी पक्की हो गई. शादी वाले दिन जब आलिया अग्नि के समक्ष तरुण के साथ फेरे ले रही थी अग्नि से उठते धुएं ने देवयानी की आंखों से अश्रुधारा बहा दी. इस अश्रुधारा में उसे अपने पुराने ख्वाब पूरे होते हुए नजर आए. उसे लगा कि 25 साल बाद उस का प्यार जीत रहा है.

Mother’s Day Special: मेरी मां के नाम

इस बात को लगभग 1 साल हो गया लेकिन आज भी एक सपना सा ही लगता है. अमेरिका के एक बड़े विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी औफ ह्यूस्टन के बोर्ड के सामने मैं इंटरव्यू के लिए जा रही थी. यह कोई साधारण पद नहीं था और न ही यह कोई साधारण इंटरव्यू था. लगभग 120 से ज्यादा व्यक्ति अपने अनुभव और योग्यताओं का लेखाजोखा प्रस्तुत कर चुके थे और अब केवल 4 अभ्यर्थी मैदान में चांसलर का यह पद प्राप्त करने के लिए रह गए थे.

मुझे इस बात का पूरा आभास था कि अब तक न तो किसी भी अमेरिकन रिसर्च यूनिवर्सिटी में किसी भारतीय का चयन चांसलर की तरह हुआ है और न ही टैक्सास जैसे विशाल प्रदेश ने किसी स्त्री को चांसलर की तरह कभी देखा है. इंटरव्यू में कई प्रश्न पूछे जाएंगे. हो सकता है वे पूछें कि आप में ऐसी कौन सी योग्यता है जिस के कारण यह पद आप को मिलना चाहिए या पूछें कि आप की सफलताएं आप को इस मोड़ तक कैसे लाईं?

इस तरह की चिंताओं से अपना ध्यान हटाने के लिए मैं ने जहाज की खिड़की से बाहर अपनी दृष्टि डाली तो सफेद बादल गुब्बारों की तरह नीचे दिख रहे थे. अचानक उन के बीच एक इंद्रधनुष उभर आया. विस्मय और विनोद से मेरा हृदय भर उठा…अपनी आंखें ऊपर उठा कर तो आकाश में बहुत इंद्रधनुष देखे थे लेकिन आंखें झुका कर नीचे इंद्रधनुष देखने का यह पहला अनुभव था. मैं ने अपने पर्स में कैमरे को टटोला और जब आंख उठाई तो एक नहीं 2 इंद्रधनुष अपने पूरे रंगों में विराजमान थे और मेरे प्लेन के साथ दौड़ते से लग रहे थे.

आकाश की इन ऊंचाइयों तक उठना कैसे हुआ? कैसे जीवन की यात्रा मुझे इस उड़ान तक ले आई जहां मैं चांसलर बनने का सपना भी देख सकी? किसकिस के कंधों ने मुझे सहारा दे कर ऊपर उठाया है? इन्हीं खयालों में मेरा दिल और दिमाग मुझे अपने बचपन की पगडंडी तक ले आया.

यह पगडंडी उत्तर प्रदेश के एक शहर फर्रुखाबाद में शुरू हुई जहां मैं ने अपने बचपन के 18 साल रस्सी कूदते, झूलाझूलते, गुडि़यों की शादी करते और गिट्टे खेलते बिता दिए. कभी अमेरिका जाने के बारे में सोचा भी नहीं था, वहां के आकाश में उड़ने की तो बात ही दूर थी. बचपन की आवाजें मेरे आसपास घूमने लगीं :

‘अच्छा बच्चो, अगर एक फल वाले के पास कुछ संतरे हैं. अब पहला ग्राहक 1 दर्जन संतरे खरीदता है, दूसरा ग्राहक 2 दर्जन खरीदता है और तीसरा ग्राहक सिर्फ 4 संतरे खरीदता है. इस समय फल वाले के पास जितने संतरे पहले थे उस के ठीक आधे बचे हैं. जरा बताओ तो कि फल वाले के पास बेचने से पहले कितने संतरे थे?’ यह मम्मी की आवाज थी.

‘मम्मी, हमारी टीचर ने जो होमवर्क दिया था, उसे हम कर चुके हैं. अब और नहीं सोचा जाता,’ यह मेरी आवाज थी.

‘अरे, इस में सोचने की क्या जरूरत है? यह सवाल तो तुम बिना सोचे ही बता सकती हो. जरा कोशिश तो करो.’

सितारों वाले नीले आसमान के नीचे खुले आंगन में चारपाइयों पर लेटे सोने से पहले यह लगभग रोज का किस्सा था.

‘जरा यह बताओ, बच्चो कि अमेरिका के राष्ट्रपति का क्या नाम है?’

‘कुछ भी हो, हमें क्या करना है?’

‘यह तो सामान्य ज्ञान की बात है और सामान्य ज्ञान से तो सब को काम है.’

फिर किसी दिन होम साइंस की बात आ जाती तो कभी राजनीति की तो कभी धार्मिक ग्रंथों की.

‘अच्छा, जरा बताओ तो बच्चो कि अंगरेजी में अनार को क्या कहते हैं?’

‘राज्यसभा में कितने सदस्य हैं?’

‘गीता में कितने अध्याय हैं?’

‘अगले साल फरवरी में 28 दिन होंगे या 29?’

हम कार में हों या आंगन में, गरमी की दोपहर से बच कर लेटे हों या सर्दी की रात में रजाई में दुबक कर पड़े हों, मम्मी के प्रश्न हमारे इर्दगिर्द घूमते ही रहते थे. न हमारी मम्मी टीचर हैं, न कालिज की डिगरी की हकदार, लेकिन ज्ञान की प्यास और जिज्ञासा का उतावलापन उन के पास भरपूर है और खुले हाथों से उन्होंने मुझे भी यही दिया है.

एक दिन की बात है. हमसब कमरे में बैठे अपनाअपना होमवर्क कर रहे थे. मम्मी हमारे पास बैठी हमेशा की तरह स्वेटर बुन रही थीं. दरवाजे की आहट हुई और इस से पहले कि हम में से कोई उठ पाए, पापा की गुस्से वाली आवाज खुले हुए दरवाजे से कमरे तक आ पहुंची.

‘कोई है कि नहीं घर में, बाहर का दरवाजा खुला छोड़ रखा है.’

‘तुझ से कहा था रेनु कि दरवाजा बंद कर के आना, फिर सुना नहीं,’ मम्मी ने धीरे से कहा लेकिन पापा ने आतेआते सुन लिया.

‘आप सब इधर आइए और यहां बैठिए, रेशमा और टिल्लू, तुम दोनों भी.’ पापा गुस्से में हैं यह ‘आप’ शब्द के इस्तेमाल से ही पता चल रहा था. सब शांत हो कर बैठ गए…नौकर और दादी भी.

‘रेनु, तुम्हारी परीक्षा कब से हैं?’

‘परसों से.’

‘तुम्हारी पढ़ाई सब से जरूरी है. घर का काम करने के लिए 4 नौकर लगा रखे हैं.’ उन्होंने मम्मी की तरफ देखा और बोले, ‘सुनो जी, दूध उफनता है तो उफनने दीजिए, घी बहता है तो बहने दीजिए, लेकिन रेनु की पढ़ाई में कोई डिस्टर्ब नहीं होना चाहिए,’ और पापा जैसे दनदनाते आए थे वैसे ही दनदनाते कमरे से निकल गए.

मैं घर की लाड़ली थी. इस में कोई शक नहीं था लेकिन लाड़ में न बिगड़ने देने का जिम्मा भी मम्मी का ही था. उन का कहना यही था कि पढ़ाई में प्रथम और जीवन के बाकी क्षेत्रों में आखिरी रहे तो कौन सा तीर मार लिया. इसीलिए मुझे हर तरह के कोर्स करने भेजा गया, कत्थक, ढोलक, हारमोनियम, सिलाई, कढ़ाई, पेंटिंग और कुकिंग. आज अपने जीवन में संतुलन रख पाने का श्रेय मैं मम्मी को ही देती हूं.

अमेरिका में रिसर्च व जिज्ञासा की बहुत प्रधानता है. कोई भी नया विचार हो, नया क्षेत्र हो या नई खोज हो, मेरी जिज्ञासा उतावली हो चलती है. इस का सूत्र भी मम्मी तक ही पहुंचता है. कोई भी नया प्रोजेक्ट हो या किसी भी प्रकार का नया क्राफ्ट किताब में निकला हो, मेरे मुंह से निकलने की देर होती थी कि नौकर को भेज कर मम्मी सारा सामान मंगवा देती थीं, खुद भी लग जाती थीं और अपने साथ सारे घर को लगा लेती थीं मानो इस प्रोजेक्ट की सफलता ही सब से महत्त्वपूर्ण कार्य हो.

मैं छठी कक्षा में थी और होम साइंस की परीक्षा पास करने के लिए एक डिश बनाना जरूरी था. मुझे बनाने को मिला सूजी का हलवा और वह भी बनाना स्कूल में ही था. समस्या यह थी कि मुझे तो स्टोव जलाना तक नहीं आता था, सूजी भूनना तो दूर की बात थी. 4 दिन लगातार प्रैक्टिस चली…सब को रोज हलवा ही नाश्ते में मिला. परीक्षा के दिन मम्मी ने नापतौल कर सामान पुडि़यों में बांध दिया.

‘अब सुन, यह है पीला रंग. सिर्फ 2 बूंद डालना पानी के साथ और यह है चांदी का बरक, ऊपर से लगा कर देना टीचर को. फिर देखना, तुम्हारा हलवा सब से अच्छा लगेगा.’

‘जरूरी है क्या रंग डालना? सिर्फ पास ही तो होना है.’

‘जरूरी है वह हर चीज जिस से तुम्हारी डिश साधारण से अच्छी लगे बल्कि अच्छी से अच्छी लगे.’

‘साधारण होने में क्या खराबी है?’

‘जो काम हाथ में लो, उस में अपना तनमन लगा देना चाहिए और जिस काम में इनसान का तनमन लग जाए वह साधारण हो ही नहीं सकता.’

आज लोग मुझ से पूछते हैं कि आप की सफलता के पीछे क्या रहस्य है? मेरी मां की अपेक्षाएं ही रहस्य हैं. जिस से बचपन से ही तनमन लगाने की अपेक्षा की गई हो वह किसी कामचलाऊ नतीजे से संतुष्ट कैसे हो सकता है? उस जमाने में एक लड़के और एक लड़की के पालनपोषण में बहुत अंतर होता था, लेकिन मेरी यादों में तो मम्मी का मेरे कोट की जेबों में मेवे भर देना और परीक्षा के लिए जाने से पहले मुंह में दहीपेड़ा भरना ही अंकित है.

मेरी सफलताओं पर मेरी मम्मी का गर्व भी प्रेरणादायी था. परीक्षा से लौट कर आते समय यह बात निश्चित थी कि मम्मी दरवाजे की दरार में से झांकती हुई चौखट पर खड़ी मिलेंगी. जिस ने बचपन से अपने कदमों के निशान पर किसी की आंखें बिछी देखी हों, उसे आज जीवन में कठिन से कठिन मार्ग भी इंद्रधनुष से सजे दिखते हों तो इस में आश्चर्य कैसा? इस का श्रेय भी मैं अपनी मम्मी को ही देती हूं.

मैं 18 वर्ष की थी कि जिंदगी में अचानक एक बड़ा मोड़ आ गया. अचानक मेरी शादी तय हो गई और वह भी अमेरिका में पढ़ रहे एक लड़के के साथ. जब मैं ने रोरो कर घर सिर पर उठा दिया तो मम्मी बोलीं, ‘बेटा, शादी तो होनी ही थी एक दिन…कल नहीं तो आज सही. तुम्हारे पापाजी जो कर रहे हैं, सोचसमझ कर ही कर रहे हैं.’

‘सब को अपनी सोचसमझ की लगती है. मेरी सोचसमझ कोई क्यों नहीं देखता. मुझे पढ़ना है और बहुत पढ़ना है. अब कहां गया उफनता हुआ दूध और बहता हुआ घी का टिन?’

‘तुम्हें पढ़ना है और वे लोग तुम्हें जरूर पढ़ाएंगे.’

‘आज तक पढ़ाया है किसी ने शादी के बाद जो वे पढ़ाएंगे? कौन जिम्मेदारी लेगा मेरी पढ़ाई की?’

‘मैं लेती हूं जिम्मेदारी. मेरा मन है… एक मां का मन है और यह मन कहता है कि वे तुझे पढ़ाएंगे और बहुत अच्छे से रखेंगे.’

मुझे पता था कि यह सब बहलाने की बातें थीं. मेरा रोना तभी रुका जब मेरा एडमिशन अमेरिका के एक विश्व- विद्यालय में हो गया. मम्मी के पत्र बराबर आते रहे और हर पत्र में एक पंक्ति अवश्य होती थी, ‘यह सुरेशजी की वजह से आज तुम इतना पढ़ पा रही हो…ऊंचा उठ पा रही हो.’ जिंदगी का यह पाठ कि ‘हर सफलता के पीछे दूसरों का योगदान है,’ मम्मी ने घुट्टी में घोल कर पिला दिया है मुझे. इसीलिए आज जब लोग पूछते हैं कि ‘आप की सफलता के पीछे क्या रहस्य है?’ तो मैं मुसकरा कर इंद्रधनुष के रंगों की तरह अपने जीवन में आए सभी भागीदारों के नाम गिना देती हूं.

‘‘वी आर स्टार्टिंग अवर डिसेंट…’’ जब एअर होस्टेस की आवाज प्लेन में गूंजी तो मैं अतीत से वर्तमान में लौट आई. खिड़की से बाहर झांका तो इंद्रधनुष पीछे छूट चुके थे और नीचे दिख रहा था अमेरिका का चौथा सब से बड़ा महानगर- ह्यूस्टन. मेरा मन सुबह की ओस के समान हलका था, मेरा मस्तिष्क सभी चिंताओं से मुक्त था.

ठीक 8 घंटे के बाद चांसलर और प्रेसीडेंट का वह दोहरा पद मुझे सौंप दिया गया था. मैं ने सब से पहले फोन मम्मी को लगाया और अपने उतावलेपन में सुबह 5 बजे ही उन्हें उठा दिया.

‘‘मम्मी, एक बहुत अच्छी खबर है… मैं यूनिवर्सिटी औफ ह्यूस्टन की प्रेसीडेंट बन गई हूं.’’

?‘‘फोन जरा सुरेशजी को देना.’’

‘‘मम्मी, आप ने सुना नहीं क्या, मैं क्या कह रही हूं.’’

‘‘सब सुना, जरा सुरेशजी से तो बात कर लूं.’’

मैं ने एकदम अनमने मन से फोन अपने पति के हाथ में थमा दिया.

‘‘बहुतबहुत बधाई, सुरेशजी, रेनु प्रेसीडेंट बन गई. मैं तो यह सारा श्रेय आप ही को देती हूं.’’

हमेशा दूसरों को प्रोत्साहन देना और श्रेय भी खुले दिल से दूसरों में बांट देना – यही है मेरी मां की पहचान. आज उन की न सुन कर, अपनी हर सफलता और ऊंचाई मैं अपनी मम्मी के नाम करती हूं.

लेखिका- रेनू खटोर

Mother’s Day Special: यह कैसी मां- क्या सच थीं मां के लिए की गई पापा की बातें

माया को देखते ही बाबा ने रोना शुरू कर दिया था और मां चिल्लाना शुरू हो गई थीं. मां बोलीं, ‘‘बाप ने बुला लिया और बेटी दौड़ी चली आई. अरे, हम मियांबीवी के बीच में पड़ने का हक किसी को भी नहीं है. आज हम झगड़ रहे हैं तो कल प्यार भी करेंगे. 55 साल हम ने साथ गुजारे हैं. मैं अपने बीच में किसी को भी नहीं आने दूंगी.’’

‘‘मैं इस के साथ नहीं रहूंगा. तुम मुझे अपने साथ ले चलो,’’ कहते हुए बाबा बच्चों की तरह फूटफूट कर रो पड़े.

‘‘मैं तुम को छोड़ने वाली नहीं हूं. तुम जहां भी जाओगे मैं भी साथ चलूंगी,’’ मां बोलीं.

‘‘तुम दोनों आपस का झगड़ा बंद करो और मुझे बताओ क्या बात है?’’

‘‘यह मुझे नोचती है. नोचनोच कर पूछती है कि नीना के साथ मेरे क्या संबंध थे? जब मैं बताता हूं तो विश्वास नहीं करती और नोचना शुरू कर देती है.’’

‘‘अच्छाअच्छा, दिखाओ तो कहां नोचा है? झूठ बोलते हो. नोचती हूं तो कहीं तो निशान होंगे.’’

‘‘बाबा, दिखाओ तो कहां नोचा है?’’

बाबा फिर रोने लगे. बोले, ‘‘तेरी मां पागल हो गई है. इसे डाक्टर के पास ले जाओ,’’ इतना कहते हुए उन्होंने अपना पाजामा उतारना शुरू किया.

मां तुरंत बोलीं, ‘‘अरे, पाजामा क्यों उतार रहे हो. अब बेटी के सामने भी नंगे हो जाओगे. तुम्हें तो नंगे होने की आदत है.’’

बाबा ने पाजामा नीचे कर के दिखाया. उन की जांघों और नितंबों पर कई जगह नील पड़े हुए थे. कई दाग तो जख्म में बदलने लगे थे. वह बोले, ‘‘देख, तेरी मां मुझे यहां नोचती है ताकि मैं किसी को दिखा भी न पाऊं. पीछे मुड़ कर दवा भी न लगा सकूं.’’

‘‘हांहां, मैं नोचूंगी. जितना कष्ट तुम ने मुझे दिया है उतना ही कष्ट मैं भी दूंगी,’’ इतना कहते हुए मां उठीं और एक बार जोर से बाबा की जांघ पर फिर चूंटी काट दी. बाबा दर्द से तिलमिला उठे और माया के पैरों पर गिर कर बोले, ‘‘बेटी, मुझे इस नरक से निकाल ले. मेरा अंत भी नहीं आता है. मुझे कोई दवा दे दे ताकि मैं हमेशा के लिए सो जाऊं.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे मरोगे. तड़पतड़प कर मरोगे. तुम्हारे शरीर में कीड़े पड़ेंगे,’’ मां चीखीं.

24 घंटे पहले ही माया का फोन बजा था.

सुबह के 9 बज चुके थे, पर माया अभी तक सो रही थी. उस के सोने का समय सुबह 4 बजे से शुरू होता और फिर 9-10 बजे तक सोती रहती.

माया के पति मोहन मर्चेंट नेवी में थे इसलिए अधिकतर समय उसे अकेले ही बिताना पड़ता था. अकेले उसे बहुत डर लगता था इसलिए सो नहीं पाती थी. सारी रात उस का टेलीविजन चलता था. उसे लगता था कि बाहर वालों को ऐसा लगना चाहिए कि इस घर में तो रात को भी रौनक रहती है.

सुबह 4 बजे जब दूध की लारी बाहर सड़क पर आ जाती और लोगों की चहलपहल शुरू हो जाती तो वह टेलीविजन बंद कर के नींद के आगोश में चली जाती थी. काम वाली बाई भी 11 बजे के बाद ही आ कर घंटी बजाती थी.

उस ने फोन की घंटी सुनी तो भी वह उठने के मूड में नहीं थी, उसे लगा था कि यह आधी रात को कौन उसे जगा रहा है. पर एक बार कट कर फिर घंटी बजनी शुरू हुई तो बजती ही चली गई.

अब उस ने फोन उठाया तो उधर से बाबा की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो, मन्नू, तेरी मां मुझे मारती है,’’ कह कर उन के रोने की आवाज आनी शुरू हो गई. माया एकदम परेशान हो उठी.

उस के पिता उसे प्यार से मन्नू ही बुलाते थे. 80 साल के पिता फोन पर उसे बता रहे थे कि 70 साल की मां उन्हें मारती है. यह कैसे संभव हो सकता है.

‘‘आप रो क्यों रहे हो? मां कहां हैं? उन्हें फोन दो.’’

‘‘मैं बाहर से बोल रहा हूं. घर में उस के सामने मैं उस की शिकायत नहीं कर सकता,’’ इतना कह कर वह फिर रोने लगे थे.

‘‘क्यों मारती हैं मां?’’

‘‘कहती हैं कि नीना राव से मेरा इश्क था.’’

‘‘कौन नीना राव, बाबा?’’

‘‘वही हीरोइन जिस को मैं ने प्रमोट किया था.’’

‘‘पर इस बात को तो 40 साल हो गए होंगे.’’

‘‘हां, 40 से भी ज्यादा.’’

‘‘आज मां को वह सब कैसे याद आ रहा है?’’

‘‘मैं नहीं जानता. मुझे लगता है कि वह पागल हो गई है. मैं घर नहीं जाऊंगा. वह मुझे नोचती है. नोचनोच कर खून निकाल देती है,’’ बाबा ने कहा और फिर रोने लगे.

‘‘आप अभी तो घर जाओ. मैं मां से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, उस से कुछ मत पूछना, वह मुझे और मारेगी.’’

‘‘अच्छा, नहीं पूछती. आप घर जाओ, नहीं तो वह परेशान हो जाएंगी.’’

‘‘अच्छा, जाता हूं पर तू आ कर मुझे ले जा. मैं इस के साथ नहीं रह सकता.’’

‘‘जल्दी ही आऊंगी, आप अभी तो घर जाओ.’’

बाबा ने फोन रख दिया था. माया ने भी फोन रखा और अपनी शून्य हुई चेतना को वापस ला कर सोचना शुरू किया. पहला विचार यही आया कि मां को पागल बनाने वाली यह नीना राव कौन थी और वह 40 साल पहले वाले जमाने में पहुंच गई.

तब वह 12 साल की रही होगी और 7वीं कक्षा में पढ़ती होगी. तब उस के बाबा एक प्रसिद्ध फिल्मी पत्रिका के संपादक थे.

बाबा और मां का उठनाबैठना लगातार फिल्मी हस्तियों के साथ ही होता था. दोनों लगातार सोशल लाइफ में ही व्यस्त रहते थे. अपने बच्चों के लिए भी उन के पास समय नहीं था. उन की दादी- मां ही उन्हें पाल रही थीं. रात भर पार्टियों में पीने के बाद दोनों जब घर लौटते तो आधी रात हो चुकी होती थी. सुबह जब माया और राजा स्कूल जाते तब वे दोनों गहरी नींद में होते थे. जब माया और राजा स्कूल से घर लौटते तो बाबा अपने काम से और मां किटी और ताश पार्टी के लिए निकल चुकी होतीं.

स्कूल में भी सब को पता था कि उस के पिता फिल्मी लोगों के साथ ही घूमते हैं इसलिए जब भी कोई अफवाह किसी हीरोहीरोइन के बारे में उड़ती तो उस की सहेलियां उसे घेर लेती थीं और पूछतीं, ‘क्या सच में राजेंद्र कुमार तलाक दे कर मीना कुमारी से शादी कर रहा है?’ दूसरी पूछती, ‘क्या देवआनंद अभी भी सुरैया के घर के चक्कर लगाता है?’ तीसरी पूछती, ‘सच बता, क्या तू ने नूतन को देखा है? सुना है देखने में वह उतनी सुंदर नहीं है जितनी परदे पर दिखती है?’

ऐसे अनेक प्रश्नों का उत्तर माया के पास नहीं होता था, क्योंकि उस की दादीमां बच्चों को फिल्मी दुनिया की खबरों से दूर ही रखती थीं. पर एक बार ऐसा जरूर हुआ जब मां उसे अपने साथ ले गई थीं. कार किनारे खड़ी कर के उन्होंने कहा था, ‘देखो, उस घर में जाओ. बाबा वहां हैं. तुम थोड़ी देर वहां बैठना और सुनना नीना और बाबा क्या बातें कर रहे हैं और कैसे बैठे हैं.’

वह पहला अवसर था जब वह किसी हीरोइन के घर जा रही थी. उस ने अपनी फ्राक को ठीक किया था, बालों को संवारा था और कमरे के अंदर चली गई थी. उस ने बस इतना सुना था कि कोई नई हीरोइन है और अगले ही महीने एक प्रसिद्ध हीरो के साथ एक फिल्म में आने वाली है.

नमस्ते कह कर वह बैठ गई थी. बाबा ने पूछा था, ‘कैसे आई हो? मां कहां हैं?’

उस ने उत्तर दिया था, ‘मां बाजार गई हैं. अभी थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

बाबा ने बैठने का इशारा किया था और फिर नीना से बातें करने में व्यस्त हो गए थे. माया के कान खड़े थे. मां ने कहा था कि सब बातें ध्यान से सुनना और फिर उसे यह भी देखना था कि बाबा और नीना कैसे बैठे हुए हैं. उस ने ध्यान से देखा था कि नीना ने बहुत सुंदर स्कर्ट ब्लाउज पहना हुआ था और वह आराम से सोफे पर बैठी थी. उस के हाथ में एक सिगरेट थी जिसे वह थोड़ीथोड़ी देर में पी रही थी. बाबा पास ही एक कुरसी पर बैठे थे और दोनों लगातार फिल्म पब्लिसिटी की ही बात कर रहे थे.

आधा घंटे बाद मां ने ड्राइवर को भेज कर उसे बुलवा लिया था. बाबा वहीं रह गए थे. उन दिनों वह नीना को प्रमोट करने का काम भी कर रहे थे. किसी भी नए हीरो या हीरोइन को प्रमोट करने के काम के लिए बाबा को काफी रुपए मिलते थे और मां को ऐसे धन की आदत पड़ गई थी. उन का जीवन ऐशोआराम से भरा था. आएदिन नए शहरों में जाना, पांचसितारा होटलों में रुकना, रंगीन पार्टियों का मजा लेना उन की आदत में शुमार हो गया था. तब उन्होंने भी यह उड़ती सी खबर सुनी थी कि बाबा उस हीरोइन पर ज्यादा ही मेहरबान हैं, पर उस के द्वारा जो धन की वर्षा हो रही थी उस ने मां के दिमाग को बेकार बना दिया था.

मां को तो बस, भरे हुए पर्स से मतलब था. जब मां को तनाव होना चाहिए था तब तो कुछ नहीं हुआ, पर कुछ साल बीत जाने के बाद उन्होंने बाबा को कुरेदना शुरू किया था. वह कहतीं, ‘अच्छा, सचसच बताना नीना को तुम प्यार करने लगे थे क्या?’

बाबा बोलते, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. तुम्हें पता है कि पब्लिसिटी के लिए क्याक्या कहानियां बनानी पड़ती हैं. तुम तो लगातार मेरे साथ थीं फिर अब क्यों पूछ रही हो?’

अब तक बाबा का काम कम हो गया था. बाजार में और भी कई फिल्मी पत्रिकाएं आ चुकी थीं. जवान और चालाक सेके्रटरी हीरोहीरोइनों को संभालने के लिए आ चुके थे. ऐसे भी कभीकभी ही थोड़ा सा काम मिलता था. पैसे की भी काफी तंगी हो गई थी. जवानी में बाबा ने पैसा बचाया नहीं और अब पुरानी आदतें छूट नहीं पा रही थीं इसलिए मां और बाबा में भी आपस में कहासुनी होनी शुरू हो गई थी.

अब तक माया विवाह योग्य हो चुकी थी और उस ने अपना जीवनसाथी स्वयं ही चुन लिया था. राजा भी काम की तलाश में अमेरिका पहुंच गया था. बुरी आदतें और अनियमित दिनचर्या के कारण बाबा की सेहत भी डगमगाने लगी थी. चारों तरफ से दबाव ही दबाव था. अब मां के गहने बिकने शुरू हो गए थे. ऐसे में जब भी मां का कोई गहना बिकता, अपना गुस्सा इसी प्रकार से बाबा से प्रश्न कर के निकालतीं.

कभी पूछतीं, ‘अच्छा उस साल दीवाली पर तुम ने रात नीना के घर गुजारी थी न? घर में और भी कोई था या तुम दोनों अकेले थे?’

बाबा जो भी उत्तर देते, उस पर उन्हें विश्वास नहीं होता. ढलती उम्र, बालों में फैलती सफेदी और कमजोर होते अंगप्रत्यंग उन्हें अत्यंत शंकालु बनाते जा रहे थे. तब तक केवल मां की जबान ही चलती थी. फिर माया का विवाह हो गया और वह विदेश चली गई. उस के पति की नौकरी अच्छी थी इसलिए वह हर महीने मां और बाबा के लिए भी पैसे भेजती थी. घर उन का अपना था इसलिए आधा घर किराए पर दे दिया था. वहां से भी हर महीने पैसा मिल जाता था. इस प्रकार दोनों का गुजारा भली प्रकार से चल रहा था.

बीचबीच में माया का चक्कर मुंबई का लगता रहता था पर तब उस ने कभी इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया था कि दोनों का आपस में झगड़ा किस बात को ले कर होता है. मां कभीकभी उसे भी जलीकटी सुना देती थीं, बोलतीं, ‘अरे, बाबा ने जवानी में बहुत मस्ती मारी है. अभी वैसा नहीं है इसलिए झुंझलाए रहते हैं. अब इस बूढ़े को कौन मुंह लगाएगा.’

‘मां, चुप हो जाओ. बाबा के लिए ऐसे कैसे बोलती हो? तुम भी तो मस्ती मारती थीं.’

‘नहींनहीं, मैं तो सिर्फ ताश खेलती थी, इन की मस्तियां तो हाड़मांस की होती थीं.’

माया डांट कर मां को चुप करा देती थी. उस ने तो दोनों को जवानी में मौजमस्ती करते ही देखा था. अगर दादी नहीं होतीं तो उन दोनों भाईबहनों का बचपन पता नहीं कैसे बीतता.

कुछ सालों बाद माया भारत लौट आई थी. उस ने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए चेन्नई को चुना था. माया के पति साल में 2 ही बार छुट्टी पर चेन्नई आते थे. अब साल में एक बार वह भी मांबाबा को बुला लेती थी. एक माह बिताने के बाद वे मुंबई लौट जाते थे. जितने दिन बेटी के पास रहते बहुत सुखसुविधा में रहते पर उन की जड़ें तो मुंबई में थीं इसलिए उन्हें वहां लौटने की भी जल्दी होती थी.

जितने दिन वे दोनों बेटी के पास होते उतने दिन उन में झगड़ा नहीं होता था. पर माया ने देखा था कि मां का व्यवहार थोड़ा अजीब होता जा रहा है. बाबा को दुखी देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगता था. यदि बाबा को कोई चोट लग जाती तो वह तालियां बजाने लगती थीं. उन की इस बचकानी हरकत पर माया को बहुत गुस्सा आता था और वह मां को डांट भी देती थी.

लेकिन आज के फोन ने माया को हिला कर रख दिया था. इतने बूढ़े पिता को उन की जीवनसंगिनी ही मार रही है और वह किसी से शिकायत भी नहीं कर सकते हैं. उस ने कुछ सोचा और मुंबई अपने मामा को फोन मिलाया. वह फोन पर बोली, ‘‘मामा, मां और बाबा कैसे हैं? इधर आप का चक्कर उन के घर का लगा था?’’

‘‘नहीं, मैं एक महीने से उन के घर नहीं गया हूं. मेरे घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं कहीं भी आताजाता नहीं हूं. क्यों, क्या बात है? उन का हालचाल जानने के लिए उन को फोन करो.’’

‘‘सुबह बाबा का फोन आया था. रो रहे थे. मुझे बुला रहे हैं. आप जरा देख कर आइए क्या बात है? इतनी दूर से आना आसान नहीं है.’’

‘‘तुम कहती हो तो आज ही दोपहर को चला जाता हूं. तुम मुझ से वहीं बात कर लेना.’’

‘‘ठीक है, मैं 2 बजे फोन करूंगी,’’ कह कर माया ने फोन रख दिया.

अब किसी भी काम में माया का दिल नहीं लग रहा था. समय बिताने के लिए उस ने पुराना अलबम उठा लिया. उस के बाबा और मां की फोटो हर हीरो-हीरोइन के साथ थी. नीना राव के साथ एक फोटो में उस ने मांबाबा को देखा. नीना राव कितनी खूबसूरत थी. माया ने तो उसे पास से भी देखा था. उस की गुलाबी रंगत देखते ही बनती थी. नीना राव की सुंदरता के आगे मां फीकी लग रही थीं. इस फोटो में बाबा ने दोनों औरतों के गले में बांहें डाली हुई थीं.

नीना की सुंदरता देख कर माया ने सोचा तब मां को जरूर हीन भावना होती होगी, पर बाबा का काम ही ऐसा था कि वह उन के काम में बाधा नहीं डाल सकती थीं. जब नीना को प्रमोट किया जा रहा था तब बाबा का अधिक से अधिक समय उस के साथ ही बीतता था. तब मां अपनी किटी पार्टियों में व्यस्त रहती थीं. हर जगह वह बाबा के साथ नहीं जा सकती थीं. तब का मन में दबाया हुआ आक्रोश अब मानसिक विकृति बन कर उजागर हो रहा था. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि मानसिक अवसाद कितना घिनौना रूप ले सकता है.

2 बजते ही माया ने मुंबई फोन मिलाया. मामा ने फोन उठाया और बोले, ‘‘तुम जल्दी आ जाओ. यहां के हालात ठीक नहीं हैं. मैं तुम्हें फोन पर कुछ भी नहीं बता सकता हूं.’’

फोन रखते ही माया ने शाम की फ्लाइट पकड़ी और रात के 10 बजे तक  घर पहुंच गई थी.

उन दोनों की हालत देख कर माया भी रो पड़ी. अकेले वह दोनों को नहीं संभाल सकती थी. उस ने अपने बड़े बेटे को फोन कर के बंगलौर से बुला लिया. उस ने भी दोनों की हालत देखी और दुखी हो गया. दोनों मांबेटे ने बहुत दिमाग लगाया और इस फैसले पर पहुंचे कि मां और बाबा को अलगअलग रखा जाए, माया बाबा को अपने साथ ले गई और मां को एक नर्स और एक नौकरानी के सहारे छोड़ दिया.

मां को बहुत समझाया और साथ ही धमकी भी दे डाली, ‘‘सुधर जाओ, नहीं तो मैंटल हास्पिटल में डाल देंगे. तुम्हारा बुढ़ापा बिगड़ जाएगा.’’

एक छोटे बच्चे की तरह बाबा माया का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकले और तेजी से जा कर कार में बैठ गए. उस अप्रत्याशित मोड़ ने मां को स्तंभित कर दिया था. वह शांत हो कर अपने बिस्तर पर बैठी रहीं और नर्स ने उन्हें नींद की गोली दे कर लिटा दिया. कल से ही उन का इलाज शुरू होगा.

Mother’s Day Special: कैसे बचें एजिंग इफेक्ट से?

खूबसूरत दिखने की चाहत हर किसी का अरमान होता है,फिर चाहे कोई भी उम्र हो? जैसे-जैसे उम्र बढ़ने लगती है उसका सबसे पहला इफेक्ट आपके चेहरे पर ही दिखाई देता है. बढ़ती उम्र के असर को कम करने के लिए आप मार्केट के प्रॉडक्ट्स का इस्तमाल शुरू कर देते हैं. लेकिन, क्या आप इन उत्पादों के साइड इफेक्ट्स से वाकिफ हैं? स्किन पर आए एजिंग इफेक्ट को आप प्रॉपर डाइट, भरपूर नींद और एक्सरसाइज करके भी कम कर सकते हैं. आइए, जानते है कुछ ऐसे ही सुपरफुड्स के बारे में.

1.कॉफी

इंस्टेंट ग्लो के लिए कॉफी सबसे उत्तम प्रॉडक्ट है. एक शोध के मुताबिक कॉफी में मौजूद कम्पाउंड्स त्वचा को कैंसर से बचाते हैं और आपको लंबे समय तक जवान रखते हैं. कॉफी में मौजूद कैफीन से स्किन डलनेस दूर होती है जो आपकी स्किन में निखार लाती है. कॉफी के बीज स्किन पर रगड़ने से डेड सेल्स खत्म हो जाऎंगे और स्किन कोमल हो जाती है.

2.अनार

अनार के उपयोग से झुर्रियों और रूखेपन को कम किया जा सकता है. इसमें विटामिन सी होता है जो मिडल एज की महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद होता है. अनार में एंथोसियानिन्स तत्व होता है,जो कोलैजेन के उत्पादन को रोकता है. अनार के प्रयोग से स्किन स्मूथ और कसी हुई रहती है.

3.तरबूज

तरबूज के प्रयोग से आप सूरज की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से बच सकते है. तरबूज में लाइकोपिन एंटी-ऑक्सीडेंट कंपाउंड होता है. रिसर्च के अनुसार टमाटर की बजाय तरबूज में 40 प्रतिशत ज्यादा फाइटो केमिकल होता है, जो एसपीएफ 3 के बराबर होता है. ये आपकी स्किन पर सन्सक्रीन का काम करता है.

4.अखरोट

अखरोट में ओमेगा-3 फैटी एसिड बालों को हाइड्रेटेड रखता है और विटामिन इ बालों को डेमेज होने से बचाता है. बालों को इन्हीं दोनों तत्वों से फायदा मिलता है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ बाल भी झड़ने लगते है.अखरोट के प्रयोग से इस समस्या से निजात मिलता है. इसमें मौजूद कॉपर आपके बालों को असमय सफेद होने से बचाता है क्योंकि यह आपके बालों के नेचुरल कलर को बनाए रखता है.

Mother’s Day Special: मां के लिए नाश्ते में बनाएं हेल्दी और टेस्टी मूंग दाल ढोकला

ढोकला गुजरात का फेमस डिश है. यूं तो ढोकला बेसन से बनाया जाता है, लेकिन आज हम आपको मूंग दाल का ढोकला बनाने की रेसिपी बता रहे हैं. मूंग दाल ढोकला फ्राई नहीं होता है. जानें इसे बनाने की विधि.

हमें चाहिए-

  • मू्ंगदाल
  • बेसन
  • दही
  • हरी मिर्च
  • शक्कर
  • नमक
  • तेल
  • फ्रूट सॉल्ट
  • सरसो
  • तिल
  • हिंग
  • हल्दी पाउडर
  • घिसा हुआ नारियल
  • धनिया पत्ता

बनाने का तरीका

सबसे पहले पीली मूंग दाल को तीन से चार घंटे तक पानी में भीगो लें. इसके बाद उसका पानी निकाल कर हटा दें. अब भींगे हुए मूंग में हरी मिर्च डालकर अच्छी तरह पीस लें. अब इसमें नमक, थोड़ी सी शक्कर हींग थोड़ा सा तेल हल्दी पाउडर थोड़ा सा बेसन और दही डाल कर अच्छी तरह से मिला लें.

अब इस पूरे मिश्रण में फ्रूट सॉल्ट डालें. अब इसे हल्के हाथों से मिला लें. अच्छी तरह से मिला लेने के बाद एक थाली में तेल लगाकर सारा मिश्रण उसमें डाल दें. अब इसे स्टीम (भाप) पर पकने के लिए रख दें. इसे 10 से 12 मिनट तक भाप पर पकने के लिए छोड़ दें. 10 मिनट बाद इसके निकाल लें. आपका ढ़ोकला तैयार हो चुका है.

अब इसे छौंक लगा लें. इसके लिए एक पैन में तेल गर्म कर लें. इसमें सरसों, तिल, हींग, अगर तीखा खाना हो तो थोड़ी हरी मिर्च डाल दें. अब इसे अच्छी तरह पकाने के बाद ढोकले के उपर फैलाकर डाल दें और अंत में हरे धनिये पत्ते के साथ घिसा हुआ नारियल डाल दें और चटनी के साथ सर्व करें.

Mother’s Day Special: उसका निर्णय- क्या थी मां के फैसले की वजह

‘‘मैंहोस्टल नहीं जाऊंगी,’’ कह कर पैर पटकती किश्ती अपने कमरे के अंदर घुस गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. अचला घबरा कर बेटी को मनाने दौड़ीं. बहुत मनाने के बाद किश्ती ने दरवाजा खोला.

‘‘बेटी, इस समय तुम्हारा होस्टल जाना बहुत जरूरी है. औफिस में मेरा काम बहुत बढ़ गया है. मुझे देर तक वहां रुकना पड़ता है और फिर तुम्हारे पापा को अकसर औफिस के काम से बाहर जाना पड़ता है. ऐसे में तुम्हें घर में अकेला नहीं छोड़ सकते हैं,’’ मां ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘तो तुम अपनी नौकरी छोड़ दो,’’ किश्ती चीख पड़ी.

अभी तो उस ने 7वीं पास की है और घर से निकालने की तैयारी शुरू हो गई. 12वीं के बाद जब कोई कोर्स करेगी तब शौक से जाएगी. पर मां उसे जबरदस्ती कैदखाने में अभी से क्यों भेज रही है. घर में कितना मजा आता है, जैसा मन चाहे वैसा करो. सुना है होस्टल में टीवी भी देखने को नहीं मिलता. उस के पापा भी इस समय शहर में नहीं हैं, नहीं तो रोरो कर उन से अपने मन की करवा लेती. किश्ती को मां पर बहुत गुस्सा आ रहा था. मां के आगे वह बहुत रोई भी, पर मां नहीं पिघलीं.

कई बैगों में जरूरत का सामान रख कर अचला किश्ती को छोड़ने होस्टल चली गईं. दूर खड़ी किश्ती मां को होस्टल में फौर्म भरते देख रही थी. आज उसे मां दुश्मन लग रही थीं. न जाने किस गलती की सजा दे रही थीं. उसे मां से नफरत सी हो गई. उस ने तय कर लिया कि वह अब मां से कभी बात नहीं करेगी. पापा से मां की हर बात की शिकायत करेगी. मां ने लौटते समय किश्ती को गले लगाया तो वह छिटक कर दूर हो गई. न उस ने मां के चेहरे को देखा न ही मां के लौटते बोझिल कदमों को.

किश्ती होस्टल के कमरे में रहने आ गई.

3 पलंग के कमरे में सब की अलमारी व टेबल अलगअलग थी. किश्ती बैग से धुली साफ चादर पलंग पर बिछा कर बैठी ही थी कि तभी बगल में खड़ी आंचल बोली, ‘‘मैं तुम से लंबी हूं और पलंग पर खड़ी हो कर छत छू सकती हूं.’’

इस से पहले कि किश्ती कुछ कहती, वह चप्पलें पहन कर किश्ती के पलंग पर खड़ी हो कर छत छूने लगी.

‘‘तुम ने मेरी चादर गंदी कर दी,’’ किश्ती गुस्से से बोली.

‘‘तो क्या हुआ,’’ कह कर किश्ती को धक्का दे कर आंचल पलंग से नीचे उतर गई. किश्ती जमीन पर कुहनी के बल जा गिरी. वह दर्द से वह कराह उठी. क्या यहां रोजरोज ऐसे ही दर्द सहना पड़ेगा या फिर चुप रह कर ये सब देखना पड़ेगा? क्यों किया मां ने ऐसा? मां ने वापस जा कर किश्ती को कई बार फोन किया पर उस ने फोन नहीं उठाया.

रात 11 बजे फिर से मां का फोन आया तो किश्ती फोन पर ही चिल्लाई, ‘‘मुझे अकेले यहां मरने दो,’’ और फोन काट दिया.

15 दिन बाद पापा होस्टल आए. गोरे, स्मार्ट, हीरो जैसे दिखने वाले पापा उसे कितना प्यार करते हैं. किश्ती ने रोरो कर मां की एकएक बात की शिकायत की. उस को पूरा विश्वास था कि पापा उस को तुरंत अपने साथ घर ले जाएंगे, पर पापा ने ऐसा नहीं किया.

पापा बोले, ‘‘किश्ती बेटा, मां ने सही निर्णय लिया है. मुझे अकसर घर से बाहर जाना पड़ता है और तेरी मां न नौकरी छोड़ सकती है और न ही तुम्हें घर में अकेला रख सकती है.’’

पापा बहुत सारा खाने का सामान दे कर उसे होस्टल में छोड़ कर चले गए. किश्ती समझ गई कि अब उसे हमेशा यहीं रहना है. अपने घर से दूर, अपनों से दूर. पर अब उस का अपना है कौन? कोई भाईबहन भी तो नहीं जिस से मन की बात साझा कर सके वह.

किश्ती धीरेधीरे होस्टल के वातावरण में अपनेआप को ढालने लगी. पापा के गले झूलने वाली चुलबुली किश्ती अब नन्ही सी उम्र में गंभीर हो गई थी. पढ़ने और खेल में अव्वल आने से होस्टल में उस की धूम मच गई थी. इतना सब होने पर भी मां के प्रति नफरत कम नहीं हुई थी. वह छुट्टियों में घर जाती तो मां से बेरुखी दिखाती.

आज किश्ती 11वीं की परीक्षा दे कर घर आई थी. तभी पापा भी टुअर से लौट

कर घर आए थे. मां को तो औफिस से फुरसत ही नहीं थी. पापा शाम को किश्ती को ले कर एक समारोह में गए. अब वह समझदार हो गई थी. एक किनारे की कुरसी पर अकेले बैठी किश्ती अतिथियों को देख कर उन के मन के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी. उस के पास रखी खाली कुरसी पर एक बहुत सुंदर, शालीन महिला आ कर बैठ गई. किश्ती को बहुत समय बाद कोई अपना सा लगा. फिर तो बातों का सिलसिला ऐसा चला कि जैसे सदियों की दोस्ती हो.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?,’’ उस महिला ने पूछा.

‘‘किश्ती, और आप का?’’

‘‘सहेली…’’ दोनों खिलखिला पड़ीं. पास खड़ी उन की प्यारी सी बच्ची भी बिना कुछ समझे हंसने लगी.

‘‘घर आना,’’ कह कर सहेली ने पता दे दिया.

किश्ती की छुट्टियां समाप्त होने पर वह वापस होस्टल आ गई. इस बार वह होस्टल यह तय कर के आई थी कि 12वीं के बाद होस्टल नहीं जाएगी. अब वह बड़ी हो गई है. मां उसे जबरदस्ती नहीं भेज सकती. मां उसे इंजीनियर बनाना चाहती थी. नहीं मानेगी अब वह मां की कोई भी बात. नफरत करती है उन से. 12वीं की परीक्षा पूरी होने पर किश्ती वापस घर आ गई. अपनी मरजी से उस ने पत्रकारिता में प्रवेश ले लिया. मां नौकरी में व्यस्त थीं. पापा 15 दिन में एक बार घर आते और फिर जल्दी चले जाते. दिनभर किश्ती पढ़ाई करने में लगी रहती. रात में मां के प्रति नफरत की आग लिए अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लेती और देर रात तक जागती रहती.

मगर आज कई दिनों के बाद किश्ती का मन किसी अपने से बात करने का हुआ तो पिछले साल समारोह में मिलीं सहेली के घर चली गई. साफसुथरा सजा हुआ घर था, हर कोना व्यवस्थित तरीके से और नई साजसज्जा से गुलजार था. सहेली दिल खोल कर उस से मिलीं. उस की पसंद का खाना बनाया. दोनों ने खूब सारी बातें कीं. ऐसा प्यार ही तो वह मां से चाहती थी. चिंकी इधरउधर उछलकूद कर रही थी. अंधेरा घिरने लगा था.

किश्ती अपने घर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि तभी डोरबैल बजी, ‘‘तुम 2 मिनट रुको, मेरे पति आए हैं, मिल कर जाना,’’ कह कर सहेली गेट खोलने चली गईं.

एक स्मार्ट व्यक्ति के गाड़ी से उतरते ही चिंकी उन से लिपट गई. औफिस बैग उन्होंने सहेली को प्यारभरी मुसकान दे कर पकड़ा दिया. किश्ती ने शीशे से देखा तो उस के पैरों के नीचे की जमीन कांपने लगी. उसे देख कर विश्वास ही नहीं हो रहा था. यह तो उस के पापा थे.

शीशे को हाथ से पोंछ कर आंख गड़ा कर देखा, उस की आंखें बिलकुल ठीक देख रही हैं. यह तो उस के पापा हैं. तो क्या पापा ने मां को छोड़ दूसरी शादी कर ली? किश्ती तुरंत कमरे के दूसरे दरवाजे से छिप कर तेजी से निकल गेट के बाहर आ गई. उसे लग रहा था कि वह भंवर में अंदर तक डूबती जा रही थीं. अब वह किस से नफरत करे, मां से या पापा से? हांफती हुई किश्ती घर आ कर मां के सामने खड़ी हो गई. उन के सामने रखे कंप्यूटर का मुंह घुमा कर, अपनी आंखों में धधकती चिनगारी लिए. मां उस का यह रूप पहले भी कई बार देख चुकी थीं. वे शांत रहीं.

‘‘मां सचसच बताओ पापा कहां हैं?’’

अचला को इस प्रश्न की आशा नहीं थी. वे कमरे से बाहर जाने लगीं तो किश्ती दरवाजा घेर कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं बड़ी हो गई हूं. एकएक बात मुझे बिलकुल सच बताओ, नहीं तो किसी भी अनहोनी को देखने के लिए तैयार हो जाओ.’’

अचला बेटी की धमकी सुन कांप सी गईं. बोली, ‘‘आओ बैठो, मैं सब बताऊंगी, सबकुछ सचसच…’’

दोनों पलंग पर आमनेसामने बैठ गईं. उस वक्त मुजरिम थीं उस की मां अचला और न्यायाधीश थी किश्ती.

‘‘तुम्हारे पापा नंदिता से प्रेम करते थे. वह आकर्षक थी. घरेलू भी थी. मेरे

सामने जब इन्होंने डाइवोर्स के कागज रखे तब मैं ने यह शर्त रखी कि किश्ती को इस बात का कभी पता नहीं चलना चाहिए वरना वह टूट जाएगी. जब वह होस्टल जाएगी तब पापा बन कर ही उन्हें वहां जाना होगा और जब वह छुट्टियों में घर आएगी तब उन्हें भी घर पर आते रहना होगा. और हां, मैं ने उन्हें डाइवोर्स नहीं दिया. उन से कह दिया कि वे जहां जाना चाहें जा सकते हैं. मेरी तरफ से मुक्त हैं. उन्होंने मुझे छोड़ा है, मैं ने उन्हें नहीं. तुम घर पर रहती तब कभी न कभी तुम्हें पता चल ही जाता, इसलिए तुम्हें बहुत मजबूरी में मैं ने दिल पर पत्थर रख कर होस्टल भेजा और साथ में तुम्हारी नफरत भी सही. तुम मुझ से नफरत करती रही और मैं नंदिता से.’’

किश्ती मां की बातें सुन कर सन्न रह गई थी. मां के प्रति किए अपने रूखे व्यवहार के कारण आज वह अपनेआप को गुनहगार समझ रही थी.

‘‘मां मुझे माफ कर दो,’’ कह कर वर्षों से अनछुए रिश्तों को पिघलाती किश्ती मां से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी, ‘‘मां, आज तुम भी रो कर अपने मन में जमा गुबार निकाल दो. बहुत पत्थर हो गई हो तुम.’’

मांबेटी के मिलन का कोई साक्षी था तो वह एकमात्र समय, जो शाम से रात और रात से सुबह तक के परिवर्तन को देख रहा था.

सुबह की चाय किश्ती मां को पलंग पर ही पकड़ाती थी. फिर कुछ बातें और फिर अपनेअपने कार्यक्षेत्र में कूद जाना. यही दोनों की दिनचर्या थी. आज किश्ती ने चाय मां के सामने रख कर अखबार उठाया तो निगाह पहले पन्ने के कोने में छपे समाचार पर पड़ी, ‘सड़क दुर्घटना में महिला की मौत…’

तसवीर देख कर वह बुरी तरह चौंक उठी. यह तो नंदिता थीं. उस ने अखबार मां के सामने रख दिया. मां ने खबर पढ़ कर बिना चाय पीए कप एक किनारे सरका दिया.

‘‘मां तुम वहां जाओगी क्या?’’

‘‘नहीं, जिस जगह जाने से दिल और दिमाग दोनों को तकलीफ हो वहां नहीं जाना चाहिए.’’

मां और किश्ती दोनों के मन में उथलपुथल चल रही थी. पर दोनों ही मौन थीं. कुछ घटनाओं के एहसास में शब्द मौन हो जाते हैं.

नंदिता की मौत की खबर को 8 दिन हो गए थे. आज मां औफिस से जल्दी आ गई थीं. किश्ती मां से किसी बात पर परामर्श कर रही थी. शाम ढल रही थी. तभी दरवाजे पर एक पुरुष की आकृति उभरी. एक विक्षिप्त सा, थकाहारा आदमी. किश्ती ने नजर उठाई, अरे, यह तो पापा हैं. क्या हाल हो गया है इन का. वे कस कर दरवाजा पकड़े थे कि कहीं गिर न जाएं. उन के पीछे प्यारी चंचल चिंकी डरीसहमी खड़ी थी. उस का चेहरा पीला पड़ा था. उस के होंठ फटे हुए थे.

पापा ने धीमी आवाज में बोलना शुरू किया, ‘‘अचला, यह चिंकी है. इस की मां मर गई है. यह बहुत बीमार है. क्या तुम कुछ दिनों के लिए इसे अपने साथ रख लोगी? इस की तबीयत ठीक होते ही इसे होस्टल में छोड़ दूंगा.’’

इस से पहले कि मां कुछ बोलतीं किश्ती निर्णायक की भूमिका में खड़ी हो गई. वह इस छोटी सी बच्ची के मन में नफरत की नई चिनगारी जन्म नहीं लेने देगी.

‘‘नहीं, चिंकी कहीं नहीं जाएगी. यह यहीं रहेगी हमारे साथ. और हां, आप चाहें तो आज भी हमारे साथ रह सकते हैं.’’

पापा ने प्रश्नात्मक निगाहों से मां की तरफ देखा. मां का मौन रहना हां की स्वीकृति दे रहा था. किश्ती साफ देख रही थी कि उस के निर्णय से इस घर से नफरत के बादल छंटने शुरू हो गए.

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