7 हैल्थ समस्याओं से बचाता है पू्रंस

कम कैलोरी और ज्यादा फाइबर वाला ड्राईफ्रूट पू्रंस यानी सूखा आलूबुखारा सेहत का ध्यान रखने वालों के बीच आजकल खासा ट्रैंड में है. इस में मौजूद पौलीफिनोल नामक ऐंटीऔक्सीडैंट और पोटैशियम दोनों हड्डियों को मजबूत बनाते हैं. बिगड़ी हुई जीवनशैली में हम छोटी भूख लगने पर कुछ भी खा लेते हैं. जबकि इस के बजाय दिन में एक बार 5-6 पू्रंस खा लें तो शरीर को सही पोषण मिल सकता है.

  1. आंतों को बनाए सेहतमंद

पू्रंस में सौल्यूबल फाइबर काफी मात्रा में होता है जिस से आंतों की सफाई अच्छी तरह होती है. इस के सेवन से आंतें स्वस्थ रहती हैं और कब्ज की समस्या में राहत मिलती है.

2. औस्टियोपोरोसिस में लाभदायक

कई मैडिकल शोधों में यह माना गया है कि औस्टियोपोरोसिस की समस्या से ग्रस्त लोगों में पू्रंस काफी लाभदायक रहा है. इस के संतुलित सेवन से बोन डैंसिटी में सुधार होने की संभावना बढ़ जाती है खासतौर पर यदि किसी महिला को मेनोपौज के बाद यह समस्या हुई है तो उसे डाक्टर की सलाह से इस का सेवन जरूर करना चाहिए.

3. ऐनीमिया से करे बचाव

पू्रंस आयरन के साथसाथ पोटैशियम, विटामिन के, विटामिन बी, जिंक और मैग्नीशियम का भी अच्छा स्रोत है. इस के नियमित सेवन से आप के शरीर के लिए जरूरी मिनरल्स की जरूरत काफी हद तक पूरी हो सकती है.

4. डायबिटीज नियंत्रण में सहायक

चूंकि इस में सौल्यूबल फाइबर पाया जाता है इसलिए यह डाइजेशन प्रोसैस को धीमा करने में सहायक है और जब पाचनक्रिया धीमी हो जाए तो डायबिटीज की समस्या से ग्रस्त लोगों की ब्लड शुगर नियंत्रण में रहती है.

5. मांसपेशियों की चोट से उबारे

पू्रंस में बोरोन नाम का खनिज पाया जाता है जो मांसपेशियों के लिए बहुत जरूरी होता है. यदि आप को मांसपेशियों से जुड़ी समस्याएं हर दूसरे दिन हो जाती हैं तो यह संकेत है कि आप के शरीर में बोरोन की कमी है.

6. दिल की सेहत का रखे खयाल

चूंकि पू्रंस कौलेस्ट्रौल और शुगर को नियंत्रण में रखने में सहायक है इसलिए यह दिल के लिए भी लाभदायक है क्योंकि इन समस्याओं का सीधा असर दिल की सेहत पर पड़ता है.

7. ओबेसिटी कम करे

मोटापा आज की जीवनशैली में सब से बड़ी समस्या है. पू्रंस खाने से आप की बारबार कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती जिस से आप अपने वजन को नियंत्रित रख सकती हैं.

कैसे खाएं: वैसे तो पू्रंस को स्नैक की तरह भी खाया जा सकता है लेकिन दूसरे विकल्प भी हैं:

  •  नाश्ते में ओटमील या दलिया के साथ मिक्स कर खा सकती हैं.
  • दूसरे नट्स के साथ संतुलित मात्रा में मिक्स कर खा सकती हैं.
  • हैल्दी ड्रिंक्स या स्मूदी के साथ इसे ब्लैंड कर सकती हैं.
  • प्यूरी बना कर जैम की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं.
  • बेकिंग का शौक है तो कुछ डिशेज में इस का इस्तेमाल किया जा सकता है.

सेहत से जुड़े इन फायदों के साथसाथ पू्रंस के और भी कई फायदे हैं जैसे:

  • यह बालों को मजबूत बनाने में सहायक है.
  • आंखों की रोशनी के लिए फायदेमंद है.
  • इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक है.
  • समय से पहले झुर्रियों का आना रोकने में सहायक है.

कम सेक्स करना बन सकता है प्री मेनोपोज़ का कारण

सेक्स शादीशुदा लोगो के लिए उनके रिश्ते में मजबूती देने में एक अहम भूमिका निभाता है. यह हमारी पर्सनल लाइफ के साथ साथ शारारिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में बेहद कारगर सिद्ध होता है लेकिन आज के समय का लाइफस्टाइल ऐसा हो गया है की लोग अपनी व्यस्तता के चलते सेक्स को  तवज्जो नहीं देती और सेक्स को सिर्फ वंश बढ़ाने का उद्देश्य मनने लगते हैं तो कुछ महिलएं  कामकाजी होने के कारण अपने काम को प्राथमिकता देना पसंद करती है और थकान के कारण सेक्स करने से बचने लगती हैं लेकिन एक स्टडी में पाया गया है की सेक्स हमारे काम करने की क्षमता को बढ़ता है और जो महिलाऐं सेक्स करने से बचती है उन में तनाव की बढ़ोतरी होती है देखा जाए तो पुरुष सेक्स के  मामले में महिलाओं से अधिक रूचि रखतें हैं और महिलाऐं कम अहमियत देती हैं इस  कारण महिलाओं में  मेनोपॉज़ की समस्या उम्र से पहले होने लगती है.

 मेनोपॉज़ होने का कारण

जिस तरह किशोरावस्था यानि  12 से 15  कि उम्र में  महिलाओं के पीरियड्स शुरू हो जाते हैं. पीरियड्स का होने  का संकेत है कि महिला के शरीर में हार्मोनल बदलाव होने लगे है और अब वह गर्भधारण करना चाहे  तो अब वह इस के लिए शारारिक रूप से तैयार होने लगी है लेकिन 45  कि उम्र के बाद महिलाओं में पीरियड्स बंद होने लगते है जिसे मेनोपोज़ कहा जाता है इसे रजोनिवृत्ति भी कहते हैं. लेकिन अब देखा जा रहा है कि जो महिलाएं सेक्सुअली कम एक्टिव होती हैं, उनको 35 की  उम्र में ही मेनोपोज़ कि समस्या का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि कम सेक्स करने के कारण उनका शरीर ओव्यूलेशन बंद करने के जल्दी संकेत देने लगता है, जिसके कारण उनका मेनोपॉज़ समय से पहले हो जाता है. सेक्स कि कमी के कारण प्रजनन की प्रक्रिया में कमी आने लगती है जिस कारण अंडों का बनना बंद होने लगता है , इसलिए ओवरी प्रजनन की क्षमता बिल्कुल खो देती है।और मेनोपॉज़ हो जाता है.

 जल्दी मेनोपोज़ बन सकता है समस्या

जनन शक्ति या गर्भ धारण की क्षमता खत्म हो जाती  है. खून में असंतुलन के कारण गर्मी लगती है, दिल तेज धड़कता है, रात में पसीना आता है, नींद नहीं आती है.  हड्डी कमजोर होने लगती है इसके कारण जोड़ों, पीठ और मांसपेशियों में दर्द का अनुभव होता है. तनाव, चिड़ाचिड़ापन, उदासी, कुछ भी न करने की इच्छा, याद न रहना, जैसी मानसिक समस्या भी होने लगती हैं

प्री मेनोपॉज  से बचाव है जरूरी

महिलाओं को शारारिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि  हफ़्ते में एक बार सेक्स अवश्य करें , ऐसा करने से उनमें मेनोपॉज़ होने की संभावना, उन महिलाओं की तुलना में 28% कम होता है, जो महिलाएं महीने में एक बार सेक्स करती हैं.

शारारिक व मानसिक रूप  से स्वस्थ रहने के लिए सेक्स एक अहम रोल अदा  करता है यह सिर्फ मेनोपोज़ से ही नहीं बल्कि आपको फिट और हेल्दी रखने में भी मदद करता है साथ ही आपके रिश्ते को मजबूती भी देता

मेरे पति नसबंदी कराना चाहते हैं, इसका वैवाहिक जीवन पर कोई असर तो नहीं होगा?

सवाल

मैं 29 वर्षीय और 2 बच्चों की मां हूं. हम आगे बच्चा नहीं चाहते और इस के लिए मेरे पति स्वयं पुरुष नसबंदी कराना चाहते हैं. कृपया बताएं कि इस से वैवाहिक जीवन पर कोई असर तो नहीं होगा?

जवाब

आज जबकि सरकारें पुरुष नसबंदी को प्रोत्साहन दे रही हैं, आप के पति का इस के लिए स्वयं पहल करना काफी सुखद है. आमतौर पर पुरुष नसबंदी को ले कर समाज में अफवाहें ज्यादा हैं. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि भारत में पुरुष नसबंदी कराने वालों का प्रतिशत काफी निराशाजनक है.

दरअसल, पुरुष नसबंदी अथवा वासेक्टोमी पुरुषों के लिए सर्जरी द्वारा परिवार नियोजन की एक प्रक्रिया है. इस क्रिया से पुरुषों की शुक्रवाहक नलिका अवरुद्ध यानी बंद कर दी जाती है ताकि शुक्राणु वीर्य (स्पर्म) के साथ पुरुष अंग तक नहीं पहुंच सकें.

यह बेहद ही आसान व कम खर्च में संपन्न होने वाली सर्जरी है, जिस में सर्जरी के 2-3 दिनों बाद ही पुरुष सामान्य कामकाज कर सकता है. सरकारी अस्पतालों में तो यह सर्जरी मुफ्त की जाती है. अपने मन से किसी भी तरह का भय निकाल दें और पति के इस निर्णय का स्वागत करें.

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मैं 26 वर्षीय युवती हूं. मेरा एक बौयफ्रैंड है, जिसे मैं बेहद पसंद करती हूं. एकांत में वह मेरी ब्रैस्ट को सहलाना चाहता है. मेरे ब्रैस्ट सामान्य से बड़ी है और मैं ने सुना है कि शादी से पहले ब्रैस्ट दबाने अथवा सहलाने से वह बड़ी हो जाती है. मुझे डर है कि यह बेडौल न हो जाए. इसी डर से जब मैं बौयफ्रैंड को मना करती हूं, तो वह नाराज हो जाता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

सैक्स से जुड़े मिथकों में यह भी एक आम मिथक है कि ब्रैस्ट को दबाने, सहलाने व चूमने आदि से वह बड़ी होती है. वास्तव में सैक्स के दौरान फोरप्ले में ब्रैस्ट को छूने, सहलाने से वे कड़े जरूर हो जाते हैं और आमतौर पर ऐसा उत्तेजना की वजह से और ब्रैस्ट की नसों में रक्तसंचार बढ़ने की वजह से होता है.

ब्रैस्ट इंप्लांट के अलावा ऐसा कोई जरीया नहीं है जिस से ब्रैस्ट का साइज बड़ा हो जाए. हां, नियमित ऐक्सरसाइज से बौडी को सही शेप जरूर मिलती है पर ब्रैस्ट बड़ी नहीं होती. वह आकर्षक जरूर दिखने लगती है. अत: बौयफ्रैंड को केवल इस वजह से मना न करें और अपने मन से यह भय निकाल दें.

मेरे घुटनों में दर्द होता है, कहीं मुझे गठिया तो नहीं हैं?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल है. दरअसल मेरे घुटनों में अकसर दर्द बना रहता है. हलका चलने पर ही दर्द शुरू हो जाता है. क्या यह गठिया के लक्षण हैं? इस से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

जवाब

अगर घुटने में दर्द और जकड़न हो और चलनेफिरने पर घुटनों में आवाज आए तो गठिया की शुरुआत हो चुकी है. इस के बढ़ने पर घुटनों को मोड़ने में कठिनाई होती है. घुटनों में विकृतियां भी हो सकती हैं. घुटनों की दिक्कतों की जल्दी शुरुआत का एक और कारण मोटापा और खराब पोषण है. करीब 90त्न की कमी है जो बोन मैटाबोलिज्म को नियंत्रित करने के लिए जरूरी है. समस्या से छुटकारा पाने के लिए व्यायाम करें, सैर करें और वजन को संतुलित रखें. इस के साथ ही अस्पताल जा कर समस्या की जांच कराएं वरना आप की लापरवाही आप पर भारी पड़ सकती है.

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मेरी उम्र 28 साल है. जब मैं भारी चीजें उठाता हूं या ऐक्सरसाइज करता हूं तो मेरे जोड़ों में दर्द होने लगता है. कभी यह दर्द हलका होता तो कभी तेज हो जाता है. इस दर्द का क्या कारण है और इस से छुटकारा पाने का इलाज क्या है?

आप जिन लक्षणों का जिक्र कर रहे हैं वे अवैस्कुलर नैक्रोसिस की बीमारी की ओर इशारा करते हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जिस में बोन टिशू मरने लगते हैं जिस के कारण हड्डियां गलने लगती हैं. बीमारी का समय पर इलाज जरूरी है अन्यथा एक समय के बाद जब बीमारी गंभीर हो जाती है तो हड्डियां पूरी तरह गलने लगती हैं. इस के बाद आप को गंभीर आर्थ्राइटिस की बीमारी हो सकती है.

-डा. अखिलेश यादव

वरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन, जौइंट रिप्लेसमैंट, सैंटर फौर नी ऐंड हिप केयर, गाजियाबाद. 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

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पोट्स एंड पैन्स: चांदी से लोहे तक विभिन्न धातुओं में पकाए गए भोजन का आपके संपूर्ण स्वास्थ्य पर प्रभाव

कुक वेयर का चुनाव हमारे स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है. खाना पकाने के दौरान कुछ धातुएं भोजन में घुल सकते हैं जो संभावित रूप से हमारी सेहत को प्रभावित कर सकते  हैं. इस लेख में हम विभिन्न कुकवेयर धातुओं के स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों का पता लगाएंगे और स्वस्थ खाना पकाने के अनुभव को बढ़ावा देने के लिए सर्वोत्तम विकल्पों की पहचान करेंगे.

ट्रिपली स्टेनलेस स्टील: सुरक्षित और विश्वसनीय विकल्प

ट्रिप्ली स्टेनलेस स्टील कुकवेयर उपलब्ध सबसे सुरक्षित विकल्पों में से एक है. इसकी गैर प्रतिक्रियाशील प्रकृति यह सुनिश्चित करती है कि खाना पकाने के दौरान यह अम्लीय या क्षारीय खाद्य पदार्थों के साथ संपर्क न करे जिस से आपके भोजन में हानिकारक पदार्थों के स्थानांतरण को रोका जा सके. निकल जैसे विषाक्त तत्वों की अनुपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए फूड ग्रेड डेजिग्नेशन के साथ हाई क्वालिटी वाले स्टेनलेस स्टील कुकवेयर का विकल्प चुनें. समान ताप वितरण और उत्कृष्ट स्थायित्व के साथ स्टेनलेस स्टील कुकवेयर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व्यक्तियों के लिए एक शीर्ष विकल्प है.

मेयर ट्रिवेंटेज का परिचय

यह रेवोलुशनरी, टोक्सिन फ्री कुकवेयर अनुभव देता है. नॉन टॉक्सिक फूड ग्रेड स्टेनलेस स्टील और थ्री लेयर्ड कंस्ट्रक्शन के साथ, ट्रिवेंटेज निकल-फ्री खाना पकाने और लंबे समय तक चलने का वादा करता है. यह हीट को समान रूप से वितरित करता है, कुशल खाना पकाने के लिए हॉट स्पॉट्स को खत्म करता है. कूल हैंडल और शेटर रेसिस्टेंट ग्लास लिड की वजह से सुविधा होती है. जबकि कास्ट आयरन कुकवेयर भारी हो सकता है और रखरखाव की आवश्यकता होती है. स्टेनलेस स्टील में नॉन-स्टिक खाना पकाने के लिए तेल की आवश्यकता हो सकती है जबकि ट्रिवेंटेज एक सुरक्षित विकल्प प्रदान करता है. बेहतर खाना पकाने के अनुभव के लिए ट्रिवेंटेज चुनें जो आपके स्वास्थ्य और संतुष्टि को प्राथमिकता देता है.

कास्ट आयरन: टाइम टेस्टेड और नुट्रिएंट्स बूस्टिंग

कास्ट आयरन कुकवेयर का उपयोग सदियों से किया जा रहा है और यह अपने उल्लेखनीय हीट रिटेंशन और डिस्ट्रीब्यूशन प्रॉपर्टीज के लिए जाना जाता है. जब ठीक से सीजन किया जाता है, तो यह रासायनिक कोटिंग्स की आवश्यकता के बिना एक प्राकृतिक नॉन-स्टिक सतह विकसित करता है. यह इसे नॉन-स्टिक कुकवेयर का एक स्वस्थ विकल्प बनाता है.

मेयर कास्ट आयरन का परिचय

यह खाना पकाने के शौकीनों के लिए आदर्श साथी है. अपनी असाधारण विशेषताओं और विश्वसनीय निर्माण के साथ मेयर कास्ट आयरन कुकवेयर किसी भी रसोई के लिए एक वैलुएबल एडिशन है. सिंथेटिक कोटिंग के बिना बनाया गया, यह पूरी तरह से टोक्सिन फ्री खाना पकाने का अनुभव सुनिश्चित करता है. 100त्न वनस्पति तेल के साथ प्री सीजनड यह समय के साथ एक प्राकृतिक नॉन-स्टिक सतह विकसित करता है. अपने हीट रिटेंशन और ट्रांसमिशन के साथ इवन कुकिंग और उत्तम ब्राउनिंग पाएं. इसका स्थायित्व अत्यधिक तापमान परिवर्तन को झेलता है और बुरी तरह जंग लगने पर भी इसे वापस प्रयोग किया जा सकता है.

यह सभी कुकटॉप्स के लिए उपयुक्त है और यह उच्च तापमान पर खाना पकाने और सीधे आंच के संपर्क को संभाल सकता है जो इसे आउटडोर उपयोग के लिए परफेक्ट बनाता है. ऑथेंटिक टच और रिच फ्लेवर के साथ प्रैक्टिकल कुकिंग का अनुभव करें जो पारंपरिक भारतीय व्यंजनों के लिए बिलकुल उपयुक्त है. एक उल्लेखनीय खाना पकाने के अनुभव के लिए मेयर कास्ट आयरन चुनें जो विश्वसनीयता और स्वाद को जोड़ता है.

सिरेमिक: नॉन टॉक्सिक और वर्सटाइल

सिरेमिक कुकवेयर अपनी नॉन रिएक्टिव और नॉन टॉक्सिक प्रकृति के कारण लोकप्रियता हासिल कर रहा है. प्राकृतिक खनिजों से निर्मित यह उच्च तापमान पर भी हानिकारक गैसें या गंध नहीं छोड़ता है. सिरेमिक कुकवेयर की गैर-छिद्रपूर्ण सतह स्वाद, गंध और दाग के अवशोषण को रोकती है. यह न्यूनतम तेल के साथ खाना पकाना संभव बनाता है. एक हेल्दी कुकिंग स्टाइल को बढ़ावा देता है. सबसे सुरक्षित विकल्प के लिए ऐसे सिरेमिक कुकवेयर की तलाश करें जो सीसा, कैडमियम और अन्य भारी धातुओं से मुक्त हो.

पेश है मेयर एन्जेन सिरेमिक कुकवेयर

नॉन-स्टिक कुकवेयर का एक सुरक्षित और भरोसेमंद विकल्प. सिलिकॉन और ऑक्सीजन से बनी इसकी सिरेमिक जेल सतह न्यूनतम तेल के उपयोग के साथ नॉन-स्टिक खाना पकाने का अनुभव सुनिश्चित करती है. प्राकृतिक खनिजों से निर्मित यह उच्च तापमान पर भी हानिकारक गैसों या गंधों के न निकलने की गारंटी देता है. अपनी गैर-छिद्रपूर्ण सतह के साथ यह स्वाद, गंध और दाग के अवशोषण को रोकता है जिससे आपके व्यंजनों की शुद्धता बरकरार रहती है. अपने खूबसूरत डिजाइन से अपनी रसोई को निखारें. इसका हल्का वजन और आसान रखरखाव इसे एक सुविधाजनक विकल्प बनाता है. मेयर एंजेन सिरेमिक कुकवेयर की वर्सेटिलिटी का अनुभव करें क्योंकि यह उच्च तापमान में भी अच्छा काम करता है और खाना पकाने के विभिन्न तरीकों को अपनाता है. मन की शांति के साथ स्वस्थ खाना पकाने को अपनाएं और मेयर एंजेन सिरेमिक कुकवेयर के साथ अपने पाक अनुभव को बढ़ाएं.

पीड़ा से संपन्नता तक

‘‘नई-नई दवाओं के आ जाने से बचने की संभावना में काफी सुधार हुआ है. मरीजों के पास अब कई विकल्प हैं. पहले जब मरीज मेरे पास कैंसर के कुछ खास स्टेज में आते थे तो उनके बचने की संभावना काफी कम होती थी, मैं पेलिएटिव केयर से शुरूआत किया करता था. लेकिन अब मैं उनसे कह सकता हूं कि इसके लिए दवा उपलब्ध है, जिससे मदद मिल सकती है.’’

-डॉ. चिराग देसाई

कंसल्टेंट ऑन्कोलॉजिस्ट एवं डायरेक्टर,

हीमेटो ऑन्कोलॉजिस्ट क्लीनिक,

वेदांता, अहमदाबाद

ब्रेस्ट कैंसर एक ऐसी जंग है जिसका सामना कोई भी नहीं करना चाहता. इसके बावजूद ना जाने कितने लोगों को रोजाना इस समस्या का सामना करना पड़ता है. ब्रेस्ट कैंसर से जंग लड़ने वाले मरीजों को कई शारीरिक और मानसिक चुनौतियों से गुजरना पड़ता है. कैंसर रिसर्च में हुई प्रगति ने इस बीमारी की बेहतर समझ, जांच की उन्नत तकनीक और इलाज के बेहतरीन विकल्पों के साथ उपचार की राह में क्रांति ला दी है. इस क्षेत्र में हुई प्रगति ने ना केवल ब्रेस्ट कैंसर से लड़ने की क्षमता को मजबूत किया है और अनगिनत लोगों तथा उनके परिवारों को उम्मीद दी है, बल्कि उन्हें एक बेहतर जिंदगी जीने की ताकत भी दी है.

डॉ. चिराग देसाई, कंसल्टेंट ऑन्कोलॉजिस्ट एवं डायरेक्टर, हीमेटो ऑन्कोलॉजी क्लीनिक, वेदांता, अहमदाबाद का कहना है, ‘‘नई-नई दवाओं के आ जाने से बचने की संभावना में काफी सुधार हुआ है. मरीजों के पास अब कई विकल्प हैं. पहले जब मरीज मेरे पास कैंसर के कुछ खास स्टेज में आते थे तो उनके बचने की संभावना काफी कम होती थी, मैं पेलिएटिव केयर से शुरूआत किया करता था. लेकिन अब मैं उनसे कह सकता हूं कि इसके लिए दवा उपलब्ध है, जिससे मदद मिल सकती है.’’

अहमदाबाद की 69 वर्षीय स्त्रीरोग विशेषज्ञ, डॉ. प्रतिभा वी कंसगरा के लिए यह निदान, योद्धा के रूप में उनके सफर की शुरूआत थी. उन्हें अप्रैल 2019 में मैटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर (स्तन के अलावा अन्य अंगों तक रोग का फैल जाना) होने का पता चला था. उन्हें काफी गहन कीमोथेरैपी से होकर गुजरना पड़ा और उनका रोग कम हो गया. हालांकि, जुलाई 2022 में सामान्य चेकअप के दौरान डॉक्टरों को पता चला कि उनका कैंसर लौट आया है. वह कहती हैं, ‘‘यह विचार कि ‘मैं ही क्यों?’ कभी भी दिमाग में नहीं आया, क्योंकि मेरी बेटी भी कैंसर से जूझ रही थी और मुझे उसके साथ होना था,’’ दुर्भाग्य से इस बीमारी के कारण उन्होंने अपनी बेटी खो दी.

इलाज के उन्नत विकल्पों ने मरीजों के सर्वाइवल की संभावना बढ़ा दी है, इसके बारे में बताते हुए, डॉ. देसाई कहते हैं, ‘‘जब डॉ. प्रतिभा का कैंसर वापस लौटता नजर आया तो हमने उन्हें ट्रैस्टुजुमैब और पर्टुजुमैब के साथ कीमोथैरेपी दी. कीमोथेरैपी के छह सेशन के बाद, उनकी बीमारी पूरी तरह खत्म होती नजर आई. भले ही हमें अब उनके शरीर में यह रोग कहीं नहीं मिला, फिर भी हमने उस हिस्से को ही हटा दिया जहां कैंसर पनप रहा था, क्योंकि इस उपचार में बहुआयामी तरीकों की जरूरत होती है.’’

डॉ. देसाई के विचारों से सहमत,

डॉ. प्रतिभा कहती हैं, ‘‘पीएचईएसजीओ ने ना केवल मेरा समय बचाया, बल्कि साइड-इफेक्ट के लिहाज से भी इलाज की मेरी यात्रा को आसान बना दिया. इसके साथ ही वार्ड में लंबे समय तक भर्ती रहने की मेरी तकलीफ को भी कम कर दिया.’’

डॉक्टरों का कहना है कि ब्रेस्ट कैंसर को हराने के लिए नियमित रूप से चेक-अप करवाना जरूरी है. यह बात हैदराबाद की रहने वाली, 50 वर्षीय मरीज माधवी वरलवार के मामले में साफ नजर आती है. माधवी को जनवरी 2021 को कान का दर्द होना शुरू हुआ, जिसके साथ उन्हें रोज बुखार भी रहने लगा. उनके फिजिशियन को लगा कि उन्हें मलेरिया हो गया है. वह कहती हैं, ‘‘कई ब्लड टेस्ट किए गए, जिनमें गड़बडि़यां नजर आ रही थीं. कुछ और टेस्ट कराने के बाद मैटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर का पता चला.’’

शारीरिक चुनौतियों के अलावा, मरीज भावनात्मक रूप से भी परेशान होने लगता है. निदान से लेकर उपचार तक की अनिश्चितताएं, संभावित साइड-इफेक्ट और उसके परिणाम, को लेकर डर हमेशा बना रहता है. काफी मरीजों को मास्टेक्टॉमी (स्तन को हटाना) से गुजरना पड़ता है, जिससे उनकी शारीरिक बनावट बदल जाती है और यह भावनात्मक रूप से उन पर प्रभाव डालती है.

उपचार की इस यात्रा में समय बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. चिकित्सा परिसरों में घंटों, अन्य प्रकार के कैंसर मरीजों के साथ बिताना, ज्यादा कठिन और पीड़ादायक हो सकता है.

जामनगर की हितेश्वरीबा जडेजा के लिए, इलाज के दौरान समय और डर दोनों ही चीजें मौजूद थीं. उनके 2 बेटे और 1 बेटी है और कम उम्र ही उन्हें अपने मैटास्टैटिक कैंसर के बारे में पता चला था. उन्हें अपने स्तनों में दर्द महसूस होता था और वह सोचती थीं कि प्रसव के बाद स्तनपान कराने से शायद ऐसा हो रहा है. उनकी एक भाभी हैं जो स्त्रीरोग विशेषज्ञा हैं, उन्होंने कुछ टेस्ट कराने की सलाह दी, जिससे उन्हें कैंसर होने का पता चला. वह कहती हैं, ‘‘मेरे पास सोचने का वक्त नहीं था. मु?ो अपने बच्चों के लिए हिम्मत रखनी थी.’’

कीमोथेरैपी का सफर

इन तीनों महिलाओं को कीमोथेरैपी के गहन सेशन और रेडिएशन थैरेपी से होकर गुरजना पड़ा. पीएचईएसजीओ जैसे नवीन समाधानों का पता चलने से पहले तक उन्होंने लगातार दु:ख सहा और संघर्ष करती रहीं.

माधवी बताती हैं, ‘‘जब मुझे कैंसर होने का पता चला था, तो पीएचईएसजीओ यहां उपलब्ध नहीं था. यूएस में रहने वाली मेरी बेटी ने मुझे इसके बारे में बताया था. जब यह भारत में लॉन्च हुआ तो मैंने अपने डॉक्टर से इस बारे में बात की. पीएचईएसजीओ की वजह से मेरे साइड इफेक्ट कम हो गए और मेरी जिंदगी बेहतर हो गई. आईवी इंजेक्शन से काफी दर्द होता है और कई बार नर्स को नसें भी नहीं मिलतीं. लेकिन, पीएचईएसजीओ कम पीड़ादायक है.’’

डॉ. देसाई कहते हैं, ‘‘कीमोथैरेपी में कीमोथैरेपी पोर्ट नाम का एक छोटा-सा इप्लांट किया जाने वाला डिवाइस मरीज की त्वचा के अंदर लगा दिया जाता है. लेकिन, पीएचईएसजीओ में सर्जरी की प्रक्रिया की जरूरत नहीं होती. किसी भी प्रकार की सर्जिकल प्रक्रिया से ना गुजरने की वजह से भी पीएचईएसजीओ एक आसान विकल्प है.’’

डॉ. प्रतिभा भी कहती हैं कि जब उनका पीएचईएसजीओ शुरू हुआ तो उनकी हालत में काफी सुधार आ गया. वह बताती हैं, ‘‘इससे काफी समय की बचत हुई. पहले मैं काफी कमजोर थी, थकान महसूस होती थी, बाल ?ाड़ने लगे थे और पाचन से जुड़ी बहुत ही गंभीर समस्याएं हो रही थीं. पीएचईएसजीओ के बाद, ये सारे साइड इफेक्ट कम हो गए.’’

माधवी कहती हैं, ‘‘टारगेट थैरेपी के साथ-साथ, कीमोथेरैपी के मेरे सात सेशन हुए. हर सेशन में लगभग 8 से 9 घंटे का समय लगता था और मेरे परिवार को मेरे साथ इंतजार करना पड़ता था. शुक्र है कि मेरे खानपान पर बहुत सारी पाबंदियां नहीं लगाई गई थीं और मुझे शक्कर कम करने के लिए कहा गया था. हर सेशन के बाद, मैं पूरी तरह पस्त हो जाती थी. मेरा पूरा स्वाद चला जाता था. मेरे लिए चबाना और निगलना काफी मुश्किल था. इसलिए, मेरी मां मेरे लिए सिर्फ रागी बॉल्स बनाया करती थीं.’’

इसके अलावा, कीमोथेरैपी से कई साइड इफेक्ट भी होते हैं, जैसे त्वचा संवेदनशील हो जाती है और शरीर का तापमान घटता-बढ़ता रहता है. हितेश्वरीबा का कहना है, ‘‘मैं कुछ भी टाइट नहीं पहन पाती थी, तो फिर मैंने ढीले-ढाले कॉटन के कपड़े पहनना शुरू किया. मैंने अपने फुटवियर में बदलाव करके कुशन वाले सैंडल्स पहनने शुरू किए. जब पहली बार मेरी बीमारी का पता चला तो कीमोथेरैपी के मेरे 4 सेशन हुए थे. स्तन हटाने के बाद, 2021 में कैंसर फिर लौट आया. मुझे कीमोथेरैपी के बहुत ही गहन सेशन से होकर गुजरना पड़ा, क्योंकि वह काफी फैल चुका था. मुझे कई साइड इफेक्ट भी हुए, जैसे गर्भाशय में काफी ब्लीडिंग हुई और बाल झड़ गए. मुझे अपना गर्भाशय भी निकलवाना पड़ा था.’’

हाल के वर्षों में एडवांस चरण वाले ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए बायोलॉजिकल थेरैपीज के रूप में काफी नए तरह के अणुओं को अनुमति मिलते हुए देखा गया है. ऐसा पाया गया कि इन थेरैपीज से इलाज का प्रभाव बढ़ सकता है और बचने की संभावना बढ़ सकती है. पिछले कुछ सालों में इन सारी महिलाओं को पीएचईएसजीओ जैसा उन्नत उपचार दिया गया.

उम्मीदों की कहानी

अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि से आईं इन तीनों महिलाओं की कहानी एक-दूसरे से जुदा हैं, लेकिन जीने की चाह इन तीनों को एक सूत्र में बांधती है. इनकी कहानियां हम सबके अंदर छिपे उस अद्भुत साहस का सबूत है और उनकी हिम्मत हम सबके लिए उम्मीद की एक किरण है.

हितेश्वरीबा एक मुस्कान लिए कहती हैं, ‘‘धीरे-धीरे मैंने बाहर जाना शुरू कर दिया है. कई बार मैं बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती हूं. मेरे दोस्त बहुत अच्छे हैं और अक्सर मु?ासे मिलने आते हैं,’’ वहीं, डॉ. प्रतिभा जानती हैं कि उन्हें अपनी लड़ाई जारी रखनी होगी. वह कहती हैं, ‘‘मेरे पति, जो खुद भी एक डॉक्टर हैं, इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि मैं सही दवाई, सही समय पर लूं और एक हेल्दी लाइफस्टाइल का पालन करूं.’’

नियमित चेक-अप के महत्त्व पर जोर देते हुए, माधवी कहती हैं कि 30 की उम्र के बाद हर महिला को हर साल ब्रेस्ट कैंसर की जांच करवानी चाहिए. वे सपोर्ट ग्रुप और फोरम का भी समर्थन करती हैं. माधवी कहती हैं, ‘‘डॉक्टर्स पर काफी बो?ा है, क्योंकि उन्हें कई सारे मरीजों को देखना होता है. इसलिए, मरीजों के लिए ऐसे सपोर्ट ग्रुप होने चाहिए जो उन्हें दिलासा दे सके, साइड इफेक्ट के बारे में बता सके और उन्हें भरोसा दिला सके कि चीजें बेहतर हो जाएंगी. जब मेरी कीमोथेरैपी शुरू हुई थी तो मेरी स्किन काफी संवेदनशील हो गई थी और डॉक्टर ने बताया है कि यह उसका एक आम साइड इफेक्ट है. इसलिए, मरीजों को अपनी चिंताओं के बारे में बात करने के लिए फोरम में जाना चाहिए. इससे डर को कम करने और आत्मविश्वास लाने में मदद मिल सकती है.’’

इतना ही नहीं, डॉ. देसाई भी नियमित चेक-अप के महत्त्व पर जोर देते हैं. वह कहते हैं, ‘‘सेहतमंद रहने के लिए एक अच्छी लाइफस्टाइल, नियमित एक्सरसाइज और अच्छा भोजन जरूरी है. इसके अलावा, महिलाओं को नियमित चेक-अप करवाना चाहिए, ताकि कुछ बीमारियों का पता शुरूआती स्टेज में ही चल जाए.’’

इन साहसी महिलाओं का सफर हमें याद दिलाता है कि इंसानी जज्बा मुश्किल तूफानों से उबर सकता है. ये हमें सिखाती हैं कि हम अपनी अंदर की ताकत को जगा सकते हैं, दूसरों के प्यार और साथ पर भरोसा कर सकते हैं और एक योद्धा के रूप में और भी बेहतर इंसान के रूप में उभर सकते हैं. इसके अलावा, चिकित्सा विज्ञान में हुई प्रगति ने उम्मीद की किरण दिखाई और जीने का एक नया जज्बा जगाया है.

9 टिप्स लाइफ में बनाएं बैलेंस

रितु कितना भी कोशिश कर ले, दफ्तर का तनाव उस पर हावी ही रहता है. जैसे ही कोई काम आता है उसे करना आरंभ कर देती है. जब वह कार्य के मध्य तक पहुंचती है तो बौस के निर्देश बदल जाते हैं. नतीजतन रितु चिड़चिड़ाहट से भर उठती है. वह इतना अधिक चिड़चिड़ाती है कि घरपरिवार में भी उस की लड़ाई हो जाती है. इस तनाव के कारण वह बहुत बार गलत डिसीजन भी ले लेती है. खुल कर हंसना क्या होता है वह भूल चुकी है.

चाह कर भी रितु खुद को कंट्रोल नहीं कर पाती है. जैसे ही कोई कार्य आता है वह बिना सोचेसम?ो उसे करने में जुट जाती है. थके मन से कार्य करने के कारण उस की वर्क ऐफिशिएंसी जीरो हो गई.

रितु का मन सोचता नहीं बल्कि दौड़ता है, उस के आसपास आने से लोग कतराते हैं. उधर घर में भी रितु सारे कार्य खुद के ही सुपरविजन में करवाती. घर के कामों के लिए किसी पर विश्वास नहीं कर पाती है.

रितु हाई ब्लड प्रैशर, डायबिटीज की मरीज बन चुकी है. दफ्तर और घर के लोग अब उस से कन्नी काटते हैं. आज भी रितु तनाव में जी रही है पर अब तनाव काम से हट कर सेहत का हो गया है.

पूजा को भी यही बीमारी है. दफ्तर से ले कर घर का हर कार्य खुद ही करने की उस की आदत हो गई है. लगता है कि उस के बिना कोई काम ठीक से नहीं हो सकता है पूजा को हर काम खुद करना भी होता और फिर सब के सामने रोना भी होता कि घर और दफ्तर में कोई भी कार्य उस के बिना नहीं हो सकता है.

इस का नतीजा यह निकला कि आसपास के लोगों में पूजा हंसी का पात्र बन गई है. सब को लगता है पूजा लाइमलाइट में रहने के लिए ऐसा करती है. इसलिए अब उस के रोने का न घर में और न ही दफ्तर में किसी पर असर होता है. जब भी कोई काम होता है तब सब को पूजा की याद आती है. खाली समय पूजा को भी काटने को दौड़ता है क्योंकि उसे खुद नहीं पता है कि खुद के साथ समय कैसे व्यतीत होता है. वह एक प्रोग्राम्ड रोबोट बन गई है.

कुमुद घर की सब से बड़ी बहू थी. वह एक भरे पूरे परिवार में रहती थी. धीरेधीरे वह कब कुमुद से भाभी, चाची, ताई और मामी बन गई उसे खुद ही नहीं पता चला. परिवार की हर शादी और हर फंक्शन में वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

कुमुद अपनेआप को तो कहीं पीछे छोड़ आई थी. अपने बुटीक का सपना परिवार की जिम्मेदारियों में कहीं स्वाहा हो गया था. मगर जब कुमुद का संयुक्त परिवार अलग हो गया तो उस के पास बहुत अधिक समय हो गया. उस ने अपने पुराने सपने को फिर से जिंदा करा और अपने घर में ही छोटा सा बुटीक खोल लिया था और देर से ही सही खुद का सपना पूरा कर लिया.

आप को अपने परिवार में या दफ्तर में ऐसे उदाहरण देखने को आराम से मिल जाएंगे जो पूरे दफ्तर या घर की धुरी को संभाल कर रखते हैं. हर कार्य चाहे छोटा हो या बड़ा उन के बिना पूरा नहीं होता है. काम करतेकरते वे इतने ओवरवर्कड हो जाते हैं कि उन की खुद की प्रोडक्टिविटी जीरो हो जाती है.

रिश्तों के नाम पर, शौक के मामले में, हर तरह से वे शून्य हो जाते हैं. इंसान हो कर भी वे मशीन का जीवन जीते हैं.

क्या करें और कैसे करें ताकि आप अपनी प्रोफैशनल, पर्सनल और सोशल लाइफ में बैलेंस बना सकें?

  1. हर समय अवेलेबल न रहें

कुछ लोगों की आदत होती है कि वे हर समय काम करने के लिए तत्पर रहते हैं. घर हो या दफ्तर वे हर काम को करने के लिए अवेलेबल रहते हैं. जानेअनजाने सारे काम का भार उन के सिर पर ही आ जाता है. थके हुए मन और तन से वे कितना काम कर पाएंगे? धीरेधीरे उन की प्रोडक्टिविटी जीरो हो जाती है. छुट्टी के दिन और नौर्मल दिन में उन के लिए कोई फर्क नहीं रह जाता है. नतीजतन ऐसे लोग हर समय चिड़चिड़ाने लगते हैं.

2. खुद को थोड़ा रिलैक्स रखें

24 घंटे काम में ध्यान न लगाएं, थोड़ी देर आंखें बंद कर के यों ही बैठ जाएं. अगर बहुत सारे काम पाइपलाइन में हैं तो कामों को प्रायोरिटाइज करें. अगर कुछ काम छूट जाते हैं तो उन्हें छोड़ दे. आप हर काम के लिए जिम्मेदार नहीं हैं. कुछ जिम्मेदारी अपने लिए भी लें.

3. हर समय लीड न करें

घर हो या दफ्तर हर समय लीड लेने से बचें. कभीकभी दूसरों को भी नेतृत्व करने का मौका दें. जिन लोगों को लीड लेने की आदत होती है वे अकसर अपनी टीम में दोगुना काम करते हैं. काम उतना ही करें जितना आप का शरीर इजाजत दे.

4. दफ्तर का तनाव दफ्तर में ही रखें

दफ्तर में तनाव हो सकता है मगर उसे घर पर मत ले कर आएं. जैसे आप दफ्तर में घर का काम नहीं करती हैं वैसे ही दफ्तर का काम घर पर मत ले कर आएं. दफ्तर का तनाव वहां ही छोड़ आएं, अपने बच्चों या परिवार के सदस्यों पर बेवजह गुस्सा न करें. याद रहे घर में आप के टाइम पर उन का पूरा हक है.

5. घर में करें काम विभाजित

जैसे दफ्तर में हर काम को विभाजित करा जाता है वैसे ही घर पर भी करें. खुद को अपनी मां या सास से कंपेयर न करें. घर के जितने काम के लिए आप जिम्मेदार हैं उतनी ही जिम्मेदारी अपने पति को भी दें. खुद को देवी नहीं, एक औरत ही रहने दें.

6. पौजिटिव वोकैबुलरी का करे प्रयोग

कोशिश करें कि नकारात्मक शब्दावली का प्रयोग कम से कम करें. आप जो बोलते हैं उस की ऐनर्जी आप के चारों तरफ रहती है. अपनी वोकैबुलरी में बस सकारात्मक शब्दों को ही स्थान दें. आप जैसे बोलेंगे वैसा ही सोचेंगे और जैसा सोचेंगे वैसा ही हो जाएगा.

7. न कहना सीखें

अपनेआप को वरीयता दें, खुद को हर समय अवेलेबल न रखें. फिर चाहे घर हो या दफ्तर. जो काम करना नहीं चाहती हैं, उसे न कहना सीख लें. अपनेआप को वरीयता देना सीखें. हमेशा दूसरों को खुश करने के चक्कर में कहीं खुद को ही नाराज न कर दें.

8. हर काम में परफैक्शन न ढूंढें

अगर आप को हर काम में परफैक्शन ढूंढ़ने की आदत है तो आप हमेश ही नाखुश रहने वाले हैं. काम को काम की तरह ही करें, उस के लिए अपनेआप को स्वाहा न कीजिए. परफैक्शन ढूंढ़ने वाले लोग हमेशा परेशान ही रहते हैं. कुछ काम को सीधेसादे ढंग से करना होता है और कुछ काम को बहुत परफैक्टली करना ही होता है. अगर आप ऐसा करना सीख लेंगी तो आप की जिंदगी आसान हो जाएगी.

9. बदलाव का करें स्वागत

जिंदगी में एक ही चीज स्थाई है और वह है बदलाव यानी चेंज. कोई रिश्ता, कोई काम कभी भी एक सा नहीं रहता है. आप आज अपने बच्चों के लिए जरूरी होंगे मगर कल उन के लिए आप शायद फालतू बन जाएं, इस बात को याद रखें और खुद को वरीयता देना सीखें वरना बाद में आप की जिंदगी रोतेबिसूरते ही बीतेगी. दूसरों को भी समय दें मगर खुद की जिम्मेदारी उठाना और खुद के लिए समय देना बेहद जरूरी है.

भूख न लगने और थकान होने का कारण और इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 47 वर्ष है. मेरी समस्या यह है कि मुझे बिलकुल भूख नहीं लगती. थकान बहुत होती है. कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप रोजाना आधे से 1 घंटा व्यायाम करें, अपनी मांसपेशियों पर काम करें और हो सके तो इस के लिए किसी जिम का सहारा लें. शरीर की सुबहशाम स्ट्रैचिंग करें. रोज 2 घंटे टहलें. धूप का सेवन करें, मल्टी विटामिन और प्रोटीन का सेवन करें, पानी या जूस अर्थात तरल पदार्थों का सेवन ज्यादा करें, कैफीन, शराब और तंबाकू का कम सेवन करें तथा पौष्टिक भोजन लें.

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क्या आपको भी भूख नहीं लगती, अगर हां तो आप कुछ कुदरती नुस्खें अपनाकर अपनी भूख बढ़ा सकती हैं. मुनक्का के सेवन से आप अपनी भूख बढ़ा सकती हैं.

जानिए मुनक्का के सेवन के फायदे…

1. अगर आपको भूख कम लगती है तो रात को दूध में 30-40 मुनक्‍का को उबालकर नियमित रूप से पीएं भूख बढ़ जाएगी. इससे शरीर की कमजोरी भी दूर होगी.

2. कई बार कब्ज की वजह से भी भूख नहीं लगती है. कब्ज बहुत ज्यादा है तो मुनक्का के दूध के साथ ईसबघोल भी मिला लें. इससे कब्ज भी दूर होगी और पेट भी साफ रहेगा.

3. जिन लोगों को बार-बार घबराहट होती है और हृदय में दर्द होता है तो उनके लिए भी रामबाण है मुनक्का.

4. 8 से 10 मुनक्का को 2 लौंग के साथ पानी में उबालें. बाद में मुनक्का को पीसकर छानकर चाय की तरह पीएं. ये नुस्खा डायबिटीज के मरीजों के लिए भी अच्छा है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मेरी सास के घुटने में बहुत दर्द रहता है,कब सर्जरी कराना जरूरी है?

सवाल

मेरी सास की उम्र 58 साल है. पिछले 2 वर्षों से उन के घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं जानना चाहता हूं कि कब घुटनों की सर्जरी कराना जरूरी हो जाता है? रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट सर्जरी क्या है?

जवाब

कोई भी और्थोपैडिक सर्जन डायग्नोसिस के बाद ही बता पाएगा कि मरीज के घुटनों के जोड़ कितने क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और क्या घुटना प्रत्यारोपण उपचार का अंतिम विकल्प है. घुटनों का एक्स रे, सीटी स्कैन और एमआरआई कराने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाती है. अगर समस्या गंभीर नहीं है तो नौनसर्जिकल उपचारों से आराम मिल सकता है. लेकिन समस्या गंभीर होने पर घुटना प्रत्यारोपण कराना जरूरी हो जाता है. रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट सर्जरी सर्जरी की एक प्रक्रिया है जिस में रोबोट की सहायता से सर्जरी की जाती है. यह सर्जरी की एक अत्याधुनिक तकनीक है. इस के द्वारा जो कृत्रिम इंप्लांट लगाए जाते हैं, उन का जोड़ों में बेहतर तरीके से प्लेसमैंट होता है.

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मेरी माताजी की उम्र 61 साल है. उन के दोनों घुटने खराब हो गए हैं. डाक्टर ने दोनों घुटनों के लिए घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी कराने की सलाह दी है. लेकिन हमें इस सर्जरी की सफलता को ले कर संदेह है?

जवाब

जिन लोगों के घुटने पूरी तरह खराब हो जाते हैं और दूसरे उपचारों से उन्हें आराम नहीं मिलता है तो घुटना प्रत्यारोपण उन के लिए अंतिम विकल्प बचता है. यह आज के दौर की सब से सफल सर्जरी मानी जाती है क्योंकि अच्छे इंप्लांट्स और बेहतर तकनीकों की उपलब्धता के कारण इस की सफलता दर 100 % है.

-डा. ईश्वर बोहरा

जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन, बीएलके सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली. 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

संपर्क सूत्र, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

मेरे टखनों की मांसपेशियों में दर्द है मुझे कोई उपाय बताएं

सवाल

मुझे खुद को फिट रखनेके लिए दौड़ना पसंद है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे टखनों की मांसपेशियों में दर्द, खिंचावऔर कड़ापन महसूस हो रहा है.मैं क्या करूं?

जवाब

ऐसा लगता है कि ऊंचीनीची सतह पर दौड़ने या किसी और कारण से आप के टखने चोटिल हो गए हैं. यह समस्या टखनों की हड्डियों के फ्रैक्चर होने या मांसपेशियों, लिगामैंट्स और टैंडन के क्षतिग्रस्त होने से होती है. टखनों में होने वाली समस्याओं को स्पोर्ट्स इंजरी कहा जाता है क्योंकि इस के अधिकतर मामले खिलाडि़यों में ही देखे जाते हैं. अगर समस्या लगातार बनी हुई है तो किसी और्थोपैडिक सर्जन को दिखाएं. पहले नौनसर्जिकल उपायों से उपचार किया जाता है. जब इन से मरीज को आराम नहीं मिलता तो एंकल ऐंथ्रोस्कोपी प्रक्रिया द्वारा टखने की सर्जरी की जाती है. यह एक मिनिमली इनवेसिव सर्जरी है जो काफी आसान और दर्दरहित होती है.

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मैं 55 वर्षीय बैंककर्मी हूं. मु   झे औस्टियोपोरोसिस है. अपनी हड्डियों की मजबूती के लिए मैं क्या उपाय कर सकती हूं?

जवाब

हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए आप संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें जिस में सब्जियां, फल, दूध व दुग्ध उत्पाद, सूखे मेवे, अंडे, साबूत अनाज और दालें शामिल हों. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज और वाक करें. इस से बोन डैंसिटी बढ़ती है. रोज कम से कम 20-30 मिनट सुबह की कुनकुनी धूप लें. इस से आप को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल जाएगा जो आप की हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है. अगर आप धूम्रपान या शराब का सेवन करती हैं तो बंद कर दें. नियमित अंतराल पर अपना बोन डैंसिटी टैस्ट कराती रहें.

सवाल

मैं 35 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे नी आर्थ्राइटिस है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या बिना सर्जरी के इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है?

नी आर्थ्राइटिस यानी घुटनों का आर्थ्राइटिस एक लगातार गंभीर होती समस्या है क्योंकि समय के साथ घुटनों के जोड़ों की खराबी बढ़ती जाती है. कई कारण हैं जो घुटनों के आर्थ्राइटिस का कारण बन सकते हैं जैसे घुटनों में लगी कोई चोट, गठिया, औटो इम्यून डिजीजेज आदि. अगर आप की समस्या ज्यादा गंभीर नहीं है तो आप अपने संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं. जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाएं, मोटापे को नियंत्रण में रखें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. डायग्नोसिस के बाद उचित उपचार करने में देरी न करें तो बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है और किसी हद तक घुटना प्रत्यारोपण से बचा जा सकता है.

-डा. ईश्वर बोहराजौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन,

बीएलके सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

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