छलिया कौन: क्या हुआ था सुमेधा के साथ

सब कहते हैं और हम ने भी सुना है कि जिंदगी एक अबूझ पहेली है. वैसे तो जिंदगी के कई रंग हैं, मगर सब से गहरा रंग है प्यार का… और यह रंग गहरा होने के बाद भी अलगअलग तरह से चढ़ता है और कईकई बार चढ़ता है. अब प्यार है ही ऐसी बला कि कोई बच नहीं पाता. ‘प्यार किया नहीं जाता हो जाता है…’ और हर बार कोई छली जाती है… यह भी सुनते आए थे.

आज भी ‘छलिया कौन’ यह एक बड़ा प्रश्नचिन्ह बन कर मुंहबाए खड़ा है. प्यार को छल मानने को दिल तैयार नहीं और प्यार में सबकुछ जायज है, तो प्यार करने वाले को भी कैसे छलिया कह दें? प्यार करने वाले सिर्फ प्रेमीप्रेमिका नहीं होते, प्यार तो जिंदगी का दूसरा नाम है और जिंदगी में बहुतेरे रिश्ते होते हैं. मसलन, मातापिता, भाईबहन, मित्र और इन से जुड़े अनेक रिश्ते…

ममत्व, स्नेह, लाड़दुलार और फटकार ये सभी प्यार के ही तो स्वरूप हैं. इन सब के साथ जहां स्वार्थ हो वहां चुपके से छल भी आ जाता है.

वैसे, जयवंत और वनीला की कहानी भी कुछ इसी तरह की है. कथानायक तो जयवंत ही है, मगर नायिका अकेली वनीला नहीं है. वनीला तो जयवंत और उस की पत्नी सुमेधा की जिंदगी में आई वह दूसरी औरत है जिस की वजह से सुमेधा अपनी बेटी मीनू के साथ अकेली रहने के लिए विवश है. सुमेधा सरकारी स्कूल में शिक्षिका है और जयवंत सरकारी कालेज में स्पोर्ट्स टीचर है. दोनों की शादी परिवारजनों ने तय की थी.

सुमेधा सुंदर और सुशील है और जयवंत के परिजनों को दिल से अपना मान कर सब के साथ सामंजस्य बैठा कर कुशलतापूर्वक घर चला रही है. शादी के 10 सालों बाद सरकारी काम से जयवंत को दूसरे शहर में ठौर तलाशना पड़ा. काफी प्रयासों के बाद भी सुमेधा का ट्रांसफर नहीं हुआ. जयवंत हर शनिवार शाम को आता और पत्नी व बेटी के साथ 2 दिन बिता कर सोमवार को लौट जाता. मीनू भी प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ रही थी तो सुमेधा ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया. सुमेधा सप्ताहभर घर की जिम्मेदारी अकेली उठाती रहती और सप्ताहांत में घर आए पति के लिए भी समय निकालती.

जयवंत के कालेज में एक प्राध्यापिका थी वनीला, जो अधिक उम्र की होने के बाद भी अविवाहित थी. वह सुंदर, सुशील और संपन्न थी. मनोनुकूल वैवाहिक रिश्ता न मिलने से सब को नकारती रही. उम्र के इस सोपान पर तो समझौता करना ही था, जो उस के स्वभाव में नहीं था, इसलिए आजीवन अविवाहित रहने का मन बना चुकी थी. अक्ल और शक्ल दोनों कुदरत ने जी खोल कर दी थी तो अकड़ भी स्वाभाविक. कालेज में सब को अपने से कमतर ही समझती थी.

जयवंत और वनीला ने जब पहली दफा एकदूसरे को देखा तो दोनों का दिल कुछ जोर से धड़का. जयवंत तो था ही स्पोर्ट्समैन तो उस का गठीला शरीर था. उसे देख कर वनीला को अपना संकल्प कमजोर पड़ता जान पड़ा. उसे लगा कि कुदरत ने उस के लिए योग्य जीवनसाथी बनाया तो सही, मगर मिला देर से. दोनों देर तक स्टाफरूम में बैठे रहते, जबरदस्ती का कुछ काम ले कर.

दोनों को पहली बार पता चला कि वे कितने कर्मठ हैं. एकदूसरे की उपस्थिति मात्र से वे उत्साह से लबरेज हो तेजी से काम निबटा देते. अधिकांश कार्यकारिणी समितियों में दोनों का नाम साथ में लिखा जाने लगा, क्योंकि इस से समिति के अन्य सदस्य निश्चिंत हो जाते थे. दोनों को किसी अन्य की उपस्थिति पसंद भी नहीं थी.

स्पोर्ट्स समिति की कर्मठ सदस्य और अधिकांश गतिविधियों की संयोजक अब वनीला मैडम होती थीं. यह अलग बात है कि उन की बातचीत अभी भी शासकीय कार्यों तक ही सीमित थी. व्यक्तिगत रूप से दोनों एकदूसरे से अनजान ही थे.

बास्केटबौल के टूर्नामैंट्स होने थे, जिस की टीम में वनीला दल की अभिभावक के तौर पर जबकि जयवंत कोच के रूप में छात्राओं के दल के साथ गए थे. वहां अप्रत्याशित अनहोनी हुई कि एक छात्रा की तबियत काफी खराब हो गई. उसे हौस्पिटल में भरती करना पड़ा. शहर के दूसरे कालेज के दल के साथ ही अपनी टीम को रवाना कर वे दोनों छात्रा के पेरैंट्स के आने तक वहीं रुके.

हौस्पिटल में गुजरी वह एक रात उन की जिंदगी में बहुत बड़ा परिवर्तन ले आई. रातभर बेंचनुमा कुरसियों पर बैठेबैठे ही काटनी पड़ी और चूंकि काम तो कुछ था नहीं, सो उस दिन खूब व्यक्तिगत बातें हुईं.

जयवंत ने वनीला से अभी तक शादी न करने की वजह पूछी तो उस के मुंह से अनायास निकल पड़ा, “तुम्हारे जैसा कोई मिला ही नहीं…”

उस की बात का इशारा समझ कर जयवंत भी बोल उठा, “जब मैं ही मिल सकता हूं तो मेरे जैसे की जरूरत ही क्या है?”

वनीला की आंखें आश्चर्यमिश्रित खुशी से फैल गईं,”क्या आप ने भी अभी तक शादी नहीं की?”

अब जयवंत मगरमच्छी आंसुओं के साथ बोला,”मेरी दादी मरते वक्त मुझे उन के एक दूर के रिश्तेदार की बेटी का हाथ जबरन थमा गईं… वह दिमाग से पैदल है, तभी तो यहां ले कर नहीं आया… अब मैं उसे तलाक दे दूंगा… यदि तुम चाहोगी तो हम शादी कर लेंगे, वीनू.”

“ओह जय, कितना गलत हुआ तुम्हारे साथ… हम पहले क्यों नहीं मिले? अब तुम्हारी पत्नी है तो हम कैसे शादी कर सकते हैं?”

“क्यों नहीं कर सकते वीनू… आई लव यू…और मुझे पता है कि तुम भी मुझे प्यार करती हो… बोलो, सच है न यह? हमारी जिंदगी है… हम एकदूसरे के साथ बिताना चाहें तो इस में गलत क्या है?” कहते हुए उस ने भावातिरेक में वनीला का हाथ कस कर पकड़ लिया.

उम्र की परतों में वनीला ने जो भावनाओं की बर्फ छिपा रखी थी वह जयवंत के सहारे की गरमी से पिघलने लगी… जवाब में उस ने भी बोल ही दिया, “आई लव यू टू जय… आई वांट टू स्पैंड माई लाइफ विद यू.”

इधर इजहार ए इश्क हुआ और उधर छात्रा की तबियत थोड़ी सुधरने लगी. वीनू सोच रही थी कि जय की पत्नी के साथ मैं छल कर रही हूं तो गलत नहीं है, क्योंकि उस के परिवार वालों ने भी तो जय के साथ छल किया है. जय सोच रहा था कि घर की जिम्मेदारी भी उठाऊंगा, पत्नी और बेटी तो वैसे ही अकेले रहने की आदी हो गई हैं… यहां पर मैं वीनू को उस के हिस्से का प्यार दे कर उस पर उपकार कर रहा हूं… कोई छल नहीं कर रहा, वह भी तो मुझे पाना चाहती है. बेटी को पढालिखा कर शादी कर दूंगा… कितने ही पुरुषों ने 2 शादियां की हैं… यह कहीं से भी गलत नहीं है और सुमेधा तो इस सब से अनजान ही थी.

जय और वीनू अब कालेज के बाद भी साथ में समय गुजारने लगे थे. उम्र का तकाजा था तो शाम के बाद कभी कोई रात भी साथ में गुजर जाती. जय अपने रूम पर कम और वीनू के घर पर अधिक समय गुजारने लगा. दोनों ने चोरीछिपे शादी भी कर ली, मगर उसे गुप्त रखा.

जय का रविवार अभी भी सुमेधा और मीनू के साथ गुजरता था. यह बात भी सोलह आने सच है कि पत्नियों की आंखें उन्हें अपने पतियों की नजरों में परिवर्तन का एहसास करा ही देती हैं. सुम्मी भी जय में आए परिवर्तन को महसूस कर रही थी. रहीसही कसर स्टाफ मैंबर्स ने पूरी कर दी.

एक गुमनाम पत्र पहुंचा था सुम्मी के पास जिस में जयवंत और वनीला के संबंधों का जिक्र करते हुए उसे सावधान किया गया था.

अगले रविवार जब जयवंत घर पहुंचा तो वहां अपने मातापिता और सासससुर को आया देख कर हैरान रह गया. हंगामा होना था… हुआ भी… जयवंत लौट आया इस समझौते के साथ कि तलाक के बाद भी मीनू की पढ़ाई और शादी की सारी जिम्मेदारी वही वहन करेगा. अब वीनू से शादी की बात राज नहीं रह गई थी.

काफी लंबे अरसे बाद किसी वजह से हमारा सुमेधा के शहर में जाना हुआ. जयवंत ने सुम्मी और मीनू से मिल कर आने को कहा. हमें भला क्यों आपत्ति होती… जयवंत और वनीला निस्संतान थे, इसलिए इस की तड़प तो थी ही.

इतने सालों बाद बेटी से मिलने की तड़प तो पिता को होनी स्वाभाविक भी थी. प्यार का खुमार हमेशा एकजैसा नहीं रहता है और जयवंत की पोस्टिंग भी दूसरे शहर में हो चुकी थी. अब उसे अकेले में अपराधबोध सालता होगा. जयवंत के मातापिता ने वीनू को कोसने में कोई कसर नहीं रखी. उन के अनुसार उस बांझ स्त्री ने उन के बेटेबहू का घर तोड़ कर उन का जीवन नारकीय बना दिया है. उस ने पत्नी का सुख तो दिया मगर पिता का सुख नहीं दे पाई. उसी की वजह से जय और मीनू इतने सालों तक एकदूसरे से दूर रहे.

अब मीनू पीजी की पढ़ाई पिता के साथ रह कर उन के कालेज से करना चाहती थी. जयवंत और वनीला की पोस्टिंग अलगअलग शहर में होने से शायद उन्हें फिर उम्मीद की किरण दिख रही थी. सुमेधा का कहना था कि मुझे कोई अपेक्षा नहीं है मगर मीनू को उस का अधिकार मिलना चाहिए.

वनीला के विरोध के बावजूद भी मीनू अपने पिता के घर रहने आ गई थी. वीनू अब वीकैंड में आती थी. जब कभी कुछ विवाद होता तो उन का फोन आने पर हमें ही जाना पड़ता था, क्योंकि न चाहते हुए भी इस कलह की अप्रत्यक्ष वजह तो हम बन ही चुके थे. न हम सुम्मी से मिलने जाते और न ही यह टूटा तार फिर से जुड़ता.

आज भी अचानक फोन आया और वीनू ने कहा, “आपलोग तुरंत आइए, अब इस घर में या तो मैं रहूंगी या मीनू.”

कुछ देर तक तो हम समझ ही नहीं पाए… सौतन का आपसी झगड़ा तो सुना था, मगर सौतेली मां और बेटी का इस तरह से झगड़ना…?

आश्चर्य की एक वजह और थी कि वनीला और मीनू दोनों ही काफी समझदार थीं. अलगअलग दोनों से बात करने पर हम इतना समझ पाए थे कि दोनों अपनी सीमाएं जानती थीं और एकदूसरे के क्षेत्राधिकार में दखल भी नहीं देती थीं. कभीकभी जय संतुलन नहीं कर पाते, तभी विवाद होता था.

जय का कहना था कि मीनू ही मेरी इकलौती संतान है तो वीनू को भी इसे स्वीकार लेना चाहिए. आखिर वह उस की भी बेटी है. सुमेधा ने तो वनीला को अपनी जगह दे दी तो क्या यह उस की बेटी को हमारी जिंदगी में थोड़ी भी जगह नहीं दे सकती? उस का अधिकार तो यह नहीं छीन रही है. 2-3 साल बाद तो ससुराल चली जाएगी, तब तक भी इसे आंख की किरकिरी नहीं मान कर सूरमे की तरह सजा ले… हमारी जिंदगी में रोशनी ही तो कर रही है…

हम भी जय की बातों से सहमत थे. जिंदगी का यही दस्तूर है… दूसरी औरत ही हमेशा गलत ठहराई जाती है. मैं भी एक औरत हूं तो सुम्मी का दर्द महसूस कर रही थी और मीनू से सहानुभूति होते हुए भी वीनू को गलत नहीं मान पा रही थी. मेरे पति वीनू को गलत ठहरा रहे थे और मैं जय को… एक पल को लगा कि उन का झगड़ा सुलझाने में हम न झगड़ पड़ें.

वीनू ने चुप्पी तोड़ी,”हम इतने सालों से अकेले रहे, मीनू कोई छोटी बच्ची नहीं है, उसे समझना चाहिए कि मैं वीकैंड पर आती हूं, उस के आने के बाद जय तो आते नहीं उसे अकेला छोड़ कर, यदि कुछ गलत दिखे तो मुझे मीनू को डांटने का अधिकार है या नहीं? यदि कुछ ऊंचनीच हो गई तो दोष तो मुझे देंगे सब… पड़ोस में रहने वाले लड़के से इस का नैनमटक्का चल रहा है, मैं ने खुद देखा… पूछा तो साफ मुकर गई और जय मुझे ही गलत कह रहे हैं. यह उतनी भी सीधी नहीं है, जितनी दिखती है…” उस का प्रलाप चलता ही रहता यदि हमें मीनू की सिसकियां न सुनाई देतीं.

“मेरी कोई गलती नहीं हैं… आंटी मुझे क्यों ऐसा बोल रही हैं, वे खुद जैसी हैं, वैसा ही मुझे समझ रही हैं… मैं उन की सगी बेटी नहीं हूं तो मेरी तकलीफ क्यों समझेंगी?” सुबकते हुए भी मीनू इतनी बड़ी बात बोल गई. एक पल को सन्नाटा छा गया.

“मुझे भी आज मीनू को देख कर अपना अजन्मा बच्चा याद आता है…” सन्नाटे को चीरते हुए वनीला ने रहस्योद्घाटन किया. अब चौंकने की बारी हमारी थी.

“वीनू, चुप रहो प्लीज… मीनू बेटी के सामने इस तरह बात मत करो…” जयवंत गिड़गिड़ाते हुए बोले. मीनू भी सहम सी गई.

वीनू के सब्र का बांध जो टूटा तो आंसुओं की बाढ़ सी आ गई, “बताओ मेरी क्या गलती है… जब जय आखिरी बार सुम्मी के घर से लौटे थे, तब मैं ने इन्हें खुशखबरी दी थी… जीवन बगिया में नया फूल खिलने वाला था… मगर…”

जय ने बीच में ही बात काट दी, “वीनू प्लीज… मेरी गलती है, मुझे माफ कर दो. मगर प्लीज अब चुप हो जाओ…”

लेकिन वीनू ने भी आज ठान ही लिया था. वह बोलती रही और परत दर परत जयवंत के छल की कलई खोलती गई.

“उस समय इन्होंने मुझे कहा कि अभी कोर्ट में केस चल रहा है. इस समय सुम्मी के वकील को हमारी शादी का सुबूत मिल गया तो हम मुश्किल में पड़ जाएंगे… सरकारी नौकरी भी जा सकती है… तुम अभी बच्चे को एबोर्ट करवा दो.… एक बार कोर्ट की कार्यवाही निबट जाएं फिर हम नए सिरे से जिंदगी शुरू करेंगे और बच्चा तो भविष्य में फिर हो ही जाएगा…”

“तो मैं ने गलत नहीं कहा था… उस समय यही उचित था…”

“उचितअनुचित मैं नहीं जानती. मुझ पर तो बांझ होने का कलंक लग गया, क्योंकि मीनू तुम्हारी बेटी है, यह सब जानते हैं.”

हम पसोपेश में बैठे थे. स्थिति इतनी बिगड़ने की उम्मीद नहीं थी. मैं सोच रही थी कि प्यार क्याक्या बदलाव ला देता है, सही और गलत की विवेचना के परे… सुम्मी ने मातृत्व को जिया मगर परित्यक्त हो कर अधूरी रही.… वीनू ने प्रेयसी बन प्यार पाया मगर मातृत्व की चाह में अधूरी रही… जयवंत ने सुम्मी और वीनू के साथ अधूरी जिंदगी जी, बेटी होने के बाद भी मीनू को दुलार न सका… क्या यही प्यार है या मात्र छलावा है?

“आप ने मेरे पापा को छीना, अपने अजन्मे बच्चे की हत्या की थी, इसलिए आप मां नहीं बन सकीं… कुदरत ने आप को सजा दी,” मीनू भी आज उम्र से बड़ी बातें कर वीनू को कटघरे में खींच रही थी.

“देखो, जो हुआ उसे हम बदल नहीं सकते. मीनू सही कह रही है, हमारी गलती का प्रायश्चित करने के लिए ही कुदरत ने मीनू को हमारे पास भेज दिया है, वही हमारी बेटी है, तुम बांझ नहीं हो… प्लीज अब बात को यहीं खत्म करो…”

“बात तो अब शुरू हुई है. कुदरत ने सजा नहीं दी, यह तो… ” बोलते हुए वीनू उठी और पर्स में से एक कागज निकाल कर मेरे सामने रख दिया, “यह देखो… सजा मुझे मिली है, यह सही है, मैं ने प्यार किया मगर जय ने मेरे साथ कितना बड़ा छल किया… यह अचानक मिला है मुझे, देखो…”

“क्या नाटक है यह? कौन सा कागज है?” जय अब गुस्से से चिल्लाया.

मैं ने देखा… वह मैडिकल सर्टिफिकेट था, जय की नसबंदी का…”आप ने वीनू को बताए बिना ही औपेरशन…”

मैं ने बात अधूरी छोड़ दी. अब जरूरी भी नहीं था कुछ बोलना. अब परछाई पानी में नहीं थी. आईने में सब स्पष्ट दिख रहा था और हम सोच रहे थे कि प्यार में छल हम किस से करते हैं, अपने रिश्तों से या खुद से, खुद की जिंदगी से?

प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही है…

जैसे को तैसा: भाग 2- भावना लड़को को अपने जाल में क्यों फंसाती थी

छाया अपने कमरे में यह सोचसोच कर करवटें बदल रही थी कि आखिर अमन को हो क्या गया है? क्यों वह इस तरह से सब से व्यवहार करने लगा है? रागिनी भी पूछना चाहती थी उस से कि कोई समस्या है तो बताएं, साथ मिल कर सुल   झा लेंगे. लेकिन अमन कैसे बताए किसी को कि वह एक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस चुका है जिस से वह चाह कर भी बाहर नहीं निकल पा रहा है.

‘काश, काश मैं समय को पलट पाता. काश, मैं उस भावना का असली रूप देख पाता, तो आज मेरी जिंदगी कुछ और ही होती.’

अमन अपने मन में सोच ही रहा था कि उस का फोन घनघना उठा. भावना का ही फोन था. ‘नहीं, मैं इस का फोन नहीं उठाऊंगा’ फोन को घूरते हुए अमन बड़बड़ाया. लेकिन अंजाम के डर से उस ने फोन उठा लिया.

‘‘इतनी देर लगती है तुम्हें फोन उठाने में?’’ भावना गुर्राई.

‘‘नहीं, वह मैं सो गया था इसलिए… फोन की आवाज सुन नहीं पाया, सौरी. बोलो न क्या बात है?’’

‘‘बातवात कुछ नहीं, वह कल मु   झे 2 लाख रुपयों की सख्त जरूरत है, तो तुम मेरे घर आ कर दे जाओगे या मैं ही आ जाऊं पैसे लेने?’’ भावना के लफ्ज काफी सख्त थे.

‘‘द… द… दो लाख… पर इतनी जल्दी 2 लाख रुपए कहां से आएंगे?’’

‘‘वह तुम जानो… मु   झे तो बस 2 लाख रुपए चाहिए, वह भी कल के कल,’’ कह कर भावना ने फोन रख दिया और अमन अपना सिर पकड़ कर बैठ गया. मन तो किया उस का अपनी मां की गोद में सिर रख कर खूब रोए और कहे कि अब उसे नहीं जीना है.मर जाना चाहता है वह. मगर छाया हाई बीपी की मरीज है. इसलिए वह अपने आंसुओं को खुद ही पीता रहा घंटों तक. रागिनी से भी वह कुछ नहीं बता सकता था क्योंकि हो सकता है यह सब जानने के बाद वह उस से शादी करने से मना कर दे और वह रागिनी को किसी भी हाल में खोना नहीं चाहता था. अपने ही गम में डूबे कब अमन की आंखें लग गईं और कब सुबह हुई उसे पाता ही नहीं चला. घड़ी में देखा तो सुबह के 7 बज रहे थे.

रात में ठीक से नींद न आने के कारण उस का सिर दर्द से फटा जा रहा था. इसलिए अपनी आंखें बंद कर वह सोने की कोशिश करने ही लगा कि उस का फोन घनघना उठा.उसे लगा भावना का ही फोन है. इसलिए    झल्ला कर बोला, ‘‘आखिर तुम चाहती क्या हो? बोलो न? क्यों तुम मु   झे चैन से जीने देना नहीं चाहती? एक काम करो, बंदूक लाओ और मार दो मु   झे. एक बार में सारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा.’’

रागिनी चौंकी क्योंकि फोन पर वही थी. लेकिन उस ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘अमन, मैं रागिनी बोल रही हूं. ’’

‘‘र… रागिनी… तुम, मु   झे लगा कि मेरे बौस का फोन है. बताओ, इतनी सुबहसुबह क्यों फोन किया? तुम ठीक हो?’’

‘‘हां, मैं तो ठीक हूं. वह मैं ने इसलिए फोन किया कि भैयाभाभी चाहते हैं अगर हमारी शादी अगले महीने के फर्स्ट वीक में हो जाती तो सही होता क्योंकि फिर इतनी दूर अमेरिका से तुरंत आना उन के लिए पौसिबल नहीं हो पाएगा न.’’

‘‘हां, वह कल हमारी बात नहीं हो पाई इस बारे में. सोच रहा हूं औफिस से सीधे तुम्हारे घर ही आ जाऊंगा. भैया तो रहेंगे न?’’

‘‘हांहां, भैया घर पर ही रहेंगे. तुम आ जाओ,’’ रागिनी पूछना चाहती थी कि कोई परेशानी तो नहीं है उसे लेकिन पूछ नहीं पाई.

‘‘ओके, फिर हम शाम को मिलते हैं,’’ अमन फोन रख लेटा ही था कि देखा छाया चाय की ट्रे लिए खड़ी है. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ और हाथ से चाय की ट्रे लेने की कोशिश करने ही लगा. मगर छाया खुद ही चाय की ट्रे टेबल पर रख पानी का खाली जग ले कर वहां से चलती बनी. छाया के चेहरे से ही लगा रहा था कि कल की बात को ले कर अभी भी वह उस से नाराज है. नाश्ते की टेबल पर भी उस ने अमन से कोई बात नहीं की और न ही अमन ने क्योंकि उन के सवालों के क्या जवाब देता वह इसलिए खापी कर सीधे औफिस के लिए निकल गया.

आज शाम औफिस से लौटते हुए अमन को रागिनी के घर जाना था, उस के भैयाभाभी से मिलने. लेकिन वह तो खुद ही रात के 12 बजे घर लौटा, फिर क्या जाता उन से मिलने. रास्ते में जब उस ने अपना फोन चैक किया तो रागिनी और छाया की कई मिस्डकौल्स थीं. वापस जब उस ने उन्हें कौल किया तो किसी ने उस का फोन नहीं उठाया. घर आने पर छाया ने उस से कोई बात भी नहीं की और न ही कुछ पूछाताछ की. खाना डाइनिंग टेबल पर रख सोने चली गई. अमन को भूख तो लगी थी, पर कुछ खाया नहीं. केवल एक गिलास पानी पी कर वह भी सोने चला गया.

‘‘अब गुस्से वाली बात तो है ही न. वहां रागिनी और उस के भैयाभाभी इस का इंतजार कर रहे थे और इन जनाब को कुछ याद ही नहीं रहा.’’

सुबह नाश्ते के टेबल पर छाया ने तल्खी से कहा और फिर जूठे प्लेट्स उठा कर वहां से चलती बनी. अमन के जवाब का इंतजार भी नहीं किया. लेकिन वह जवाब भी क्या देता? यही कि उसे सब याद था, पर जा नहीं पाया रागिनी के भैयाभाभी से मिलने क्योंकि वह उस भावना के साथ था. हां, उसी भावना के साथ जिस का वह मुंह भी नहीं देखना चाहता. लेकिन मजबूर है कि उस की उंगलियों पर नाचने को विवश है.

दूसरे दिन शाम को अमन जब औफिस से घर आया तो काफी थका हुआ महसूस कर रहा था. छाया घर पर नहीं थी इसलिए उस ने खुद ही अपने लिए चाय बनाई. रात के खाने की टेबल पर भी वह चुप ही रहा. बिस्तर पर जब सोने गया, तो फिर उसी बेचैनी ने उसे आ घेरा क्योंकि उसे तो हर पल इसी बात का डर लगा रहता था कि पता नहीं कब भावना का फोन आ जाए और पता नहीं क्या कह दे. इंसान की आंखें नींद से कितनी भी बो ि  झल क्यों न हों, लेकिन अगर सिर पर चिंता मंडरा रही हो तो नींद हवा हो जाती है. अमन के साथ भी यही हो रहा था. भावना नाम के चक्रव्यूह में वह ऐसे फंस चुका था कि उस की रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो चुका था. औफिस में भी उस से ठीक से काम नहीं हो पा रहा था.

मन करता अमन का कि चीखचीख कर दुनिया को भावना की सारी सचाई बता दे. लेकिन क्या इस आग में वह नहीं    झुलसेगा क्योंकि सारी तसवीरें और वीडियो तो यही कह रहे हैं कि अमन ने भावना का बलात्कार किया है. फिर क्या रागिनी के भैया कभी अपनी बहन की शादी अमन से होने देंगे और छाया विश्वास करेगी कि अमन सही बोल रहा है और उस ने भावना के साथ कुछ गलत नहीं किया है? नहींनहीं, उस का चुप रहना ही बेहतर है.

रात के सन्नाटे में घड़ी की टिकटिक उस के सिर पर हथौड़े की चोट की तरह बरस रही थी. मन तो कर रहा था उस का कि घड़ी की बैटरी निकाल कर फेंक दे ताकि वह बजना बंद हो जाए. सोचता, काश समय पीछे जा पाता, तो वह सबकुछ ठीक कर देता. लेकिन यह कहां संभव था. समय कभी पीछे गया है किसी का? हां, उस समय में किए गए अच्छेबुरे कर्म जरूर इंसान के साथसाथ चलते हैं. आज भी उस मनहूस दिन को याद कर अमन तड़प उठता है. सोचता है, काश वह न हुआ होता, तो आज उस की जिंदगी कुछ और ही होती.

आज से 4 साल पहले भावना से उस की पहली मुलाकात अपने एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में हुई थी. शौर्ट ड्रैस में इतनी खूबसूरत लड़की को देख कर मनचला अमन का मन मचल उठा था. लेकिन जब अचानक से वह पार्टी के बीच से ही गायब हो गई, तो उस का मन उदास हो गया. पूछने पर अमन के दोस्त ने बताया कि वह लड़की यानी भावना उस के ही औफिस में काम करती है. अभी पिछले महीने ही इंदौर से ट्रांसफर हो कर वह दिल्ली आई है.

उस के बारे में अमन और भी बहुत कुछ जानना चाहता था, मगर दोस्त से पूछते नहीं बना. घर आ कर भी वह उस के ही खयालों में खो गया. सुबह जब नींद खुली तो भावना का ही मुसकराता चेहरा नजर आया उसे. लेकिन न तो उस के पास भावना का कोई फोन नंबर था और न ही उस के घर का अतापता ही कि वह उस से कौंटैक्ट कर पाता.

उस दिन संडे की छुट्टी से ऊब कर जब वह मौल पहुंचा तो भावना को वहां देख कर

उस की आंखें चमक उठीं. बिना कुछ सोचेसम   झे लपक कर वह उस के करीब आ गया और बोला,  ‘‘हाय, आप वही हैं न… आई मीन… मेरे दोस्त संतोष के बर्थडे पार्टी में मिले थे हम. याद आया?’’

‘‘हां… याद आया. आप अ… मन…’’ भावना रुकरुक कर बोल रही थी क्योंकि ठीक से उसे उस का नाम याद नहीं आ रहा था.

‘‘हां, मैं अमन. अमन सिंह राठौर,’’ बड़ी गरमजोशी के साथ अमन ने अपना हाथ आगे बढ़ाया.

उस की बात पर भावना मुसकरा कर बोल पड़ी, ‘‘नाम ही काफी है. सरनेम बताने की जरूरत नहीं है.’’

उस की बात पर अमन बुरी तरह से    झेंप गया. बोला, ‘‘आई थिंक… यू आर राइट. और सरनेम में रखा ही क्या है. रखा तो नाम में है.’’

उस की बात पर भावना खिलखिला कर हंस पड़ी तो अमन भी हंसने लगा. उस दिन के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए. उन की रोज फोन पर बातें और मुलाकातें होने लगीं.

भेडि़या: भाग 2- मीना और सीमा की खूबसूरती पर किसकी नजर थी

अगले दिन चमेली जसोदा को 25 नंबर के आगे मिली. दोनों ने साथ में काम किया था.

बरामदे में शीला और सान्याल बैठी बियर पी रही थीं. चमेली दोनों के बीच होने वाली वार्त्तालाप को बड़े ध्यान से सुन रही थी.

शीला, ‘‘समाज के इस घिनौना नंगे सच को लोगों के सामने तो लाना ही होगा.’’

‘‘सो तो है. वह दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बारे में पढ़ा?’’ सान्याल बोली.

‘‘हां, मैं ने तो टीवी पर सारा डिटेल में देखा है. सरेआम लोग दरिंदगी कर रहे हैं. सरकार कोई ऐक्शन क्यों नहीं लेती?’’

‘‘बेचारी लड़कियां… थैंकगौड… मेरी बेटियां तो आउट औफ इंडिया हैं,’’ शीला ने बियर का लंबा सिप खींचा.

सान्याल ने सिर घुमा कर शीला को ऐसे देखा जैसे बाकी दुनिया की लड़कियां तो कूड़ाकरकट हैं.

‘‘यू आर राइट शीला,’’ सान्याल को लगा कि अभी यह औरत 1 ग्लास और गटक सकती है. मुंह जुठारने को पूछ ही लिया, ‘‘वन मोर?’’

‘‘नो… नो, इनफ…’’

आखिरी घूंट हलक में उडे़ला और उठ गई, ‘‘ओके सान्याल, मैं चलूं? मिलती हूं सैटरडे को. पैसों का हिसाबकिताब पार्टी के बाद कर लेंगे.’’

शीला जा चुकी थी. सान्याल ने उसे सीढि़यां उतरते देख लिया था.

‘‘स्साली, इडियट. मुफ्ती की मिल जाती है न इसीलिए चिपक जाती है. पूरी बोतल खाली कर के ही हिलती है… यहां से,’’ सान्याल खुद से बातें कर रही थी. इस बीच 2-4 मोटीमोटी  अंगरेजी में गालियां और जड़ दीं शीला को.

चमेली का मन किया कह दे यहां तो सभी ऐसे हैं, मुंह पर कुछ पीछे कुछ. सोचा नहीं, कल को इन दोनों के घर में नौकरी करनी है. चुप रहना ही ठीक होगा.

काम खत्म कर के सड़क पर आई तो

कुछ लोगों को    झुंड में खड़ा देखा. सब काम वालियां थीं.

‘‘अरे क्या हुआ?’’

कुसुम कह रही थी, ‘‘कल रात को नेपाली गार्ड ने 26 नंबर कोठी के पीछे की लेन में भेडि़या देखा.’’

26 नंबर वाली बोली, ‘‘अरे, अरे यानी इसी सामने वाली कोठी के पीछे?’’

‘‘हां, बिलकुल,’’ सीमा ने ऐसे पक्का किया जैसे उस ने अपनी आंखों से देखा.

सब के चेहरे पर भय था जैसे भेडि़या सामने खड़ा हो. सभी के होंठों पर ताले लगे थे.

शायद कोई भी इस विषय पर बात करना नहीं चाहता था. कारण, यह पहली बार नहीं हुआ है. पहले भी जंगली सूअर, लकड़बग्घा और नील गाय जैसे जानवरों को कोठी वालों ने पिछली लेन में घूमते देखा है.

चमेली ने फोन निकाल कर समय देखा दोपहर के 2 बजे थे. जल्दीजल्दी कदम बढ़ाए. बेटियां स्कूल से आ चुकी होंगी. चलने लगी तो जसोदा ने रोका, ‘‘चमेली, आज मैडम के यहां पार्टी है. मेरी जगह तू काम कर ले.’’

‘‘पार्टी तो रात को होगी?’’

‘‘हां.’’

‘‘चल साथ में. रास्ते में सोच कर बताती हूं.’’

चमेली का गणित फिर से चालू हो गया… पार्टी… मतलब पूरे हजार रुपए यानी तिरपाल की जगह  ऐस्बैसटस शीट की छत पड़ सकती है. यह ठीक रहेगा.

झट से कह दिया, ‘‘हांहां ठीक है. तू फिक्र मत कर. ठीक 8 बजे शीला मैडम के यहां पहुंच जाऊंगी… सब संभाल लूंगी.’’

बेटियों की फिक्र ने उस के पैरों को गति दे दी थी. यों तो घर पर बसेसर है पर वह भी कई दफा दारू के अड्डे पर जा बैठता है. दारू की लत से चमेली बहुत आजिज है.

लड़कियां अभी तक लौटी न थीं. रास्ता अकेला है. चमेली को पता नहीं है कि 3 दिन पहले क्या हुआ था और आज भी.

मीना और सीमा तेजी से चलती हुई घर की ओर आ रही थीं. तभी सामने से एक हट्टोकट्टे  बदसूरत मुच्छड़ ने बिलकुल नजदीक से साइकिल से रास्ता काटा, दोनों पीछे हट गईं. सहम कर तेजी से घर को बढ़ गईं. दोबारा फिर दोनों को घूर कर गंदा सा फिकरा कसा और उन को छूता हुआ सामने जा खड़ा हुआ. वहीं से दोबारा कमैंट मारा, ‘‘हाय मैं सदके जावां.’’

दोनों बड़ी तेजी से आगे बढ़ने लगीं. डर से चेहरे सफेद थे. कुछ देर बाद देखा मुच्छड़ एक पेड़ के पीछे छिपा खड़ा था. इरादा नेक न था.

एक बार फिर साइकिल करीब ला कर वहशियाना हंसी के साथ बोला, ‘‘आ जाओ… दोनों को खुश कर दूंगा. साथ में पैसे भी दूंगा.’’

मीना और सीमा, सूखे पत्ते सी कांप गईं.

तभी पीछे से धीरू चाचा की आवाज सुनाई दी, ‘‘क्या हुआ बेटियो?’’

‘‘कुछ नहीं चाचा.’’

मीना ने कह तो दिया, किंतु उन्हें भी माजरा सम   झते देर न लगी, ‘‘डरो नहीं मैं साथ हूं. चलो मेरे साथ चलो, मैं भी घर ही जा रहा हूं.’’

बिना कुछ कहे, धीरू के साथ चल दीं. पेड़ के पास खड़े मुच्छड़ के लिए गंदी गाली निकली थी धीरू ने.

‘‘आज लेट हो गईं?’’ चमेली दोनों के चेहरों को देख हैरान थी. लपक कर करीब आई, ‘‘क्या हुआ?’’

दोनों बस्ते फेंक मां से जा चिपकीं. रुलाई रुक नहीं रही थी. बड़ी मुश्किल से कहा, ‘‘वह, वह…’’

‘‘अरे क्या वह… वह… तुम ने भी भेडि़या देख लिया?

‘‘हां… हां,’’ सच बोलने की हिम्मत न थी.

जो भी हो मुच्छड़ भेडि़ए से कम तो नहीं है. दोनों ने चेहरे घुमा कर रजामंदी में सिर हिलाया.

‘‘बस्ती वाले भी आज यही बता रहे थे,

तुम सहेलियों के साथ आया करो. चलो खाना

खा लों.’’

‘‘नहीं, हमें भूख नहीं है.’’

‘‘अरे, थोड़ा सा तो खा लो,’’ मां ने बड़े प्यार से कहा.

नहीं खाया. दोनों चुपचाप खाट पर लेट कर सोने का बहाना करने लगीं.

‘‘देखो मैं पड़ोस वाली कमलो के घर जा रही हूं. दरवाजा बंद कर लो. बापू भी आता ही होगा. आए तो खाना दे देना.’’

मां के जाते ही दोनों उठ कर बैठ गईं.

‘‘सुन मीना कल हम स्कूल नहीं जाएंगे.’’

‘‘मैं भी यही सोच रही हूं. यह रावण फिर पीछे आएगा.’’

‘‘तू ठीक कहती है.’’

‘‘लेकिन कब तक छुट्टी करेंगे? हम किसी को बता भी नहीं सकते. जिसे भी बताएंगे. हमें ही गलत सम   झेगा.’’

‘‘तो फिर भैया को कहूं?’’

‘‘न… न… यह गजब न करना. फिर तो खुलेआम दुश्मनी हो जाएगी. क्या, भैया उसे छोड़ेगा? मुच्छड़ की हड्डीपसली का चूरा बना कर नदी में बहा देगा. बड़ी बदनामी होगी.’’

‘‘फिर हम क्या करें?’’

‘‘छोड़, देखा जाएगा.’’

अगले दिन दोनों घर से बाहर न निकलीं. दरवाजे की मोटी संध से बाहर    झांक लेतीं. हादसे की दहशत बरकरार थी.

अगले दिन मां के जाने के बाद दोनों ने मन की भड़ास निकाली, ‘‘अरे वह तिरपाली बनिया भी ऐसा ही दिखता है. जाने कैसी भूखी नजरों से घूरता है जैसे खा जाएगा. छि: कैसी घिनौनी हंसी है और वह दूध वाला मोटा लाला? कोई उस की बेटी को ऐसे देखे तो लाला सामने वाले का पेट चीर कर अंतडि़यों का सालन बना कर खा जाएगा. एकदम कसाई दिखता है.’’

सारा दिन दोनों बहनें यही सब बातें करती रहीं. मुंह में अन्न का एक दाना तक न गया. मन ही नहीं करता था. कौर तोड़तीं तो कभी मुच्छड़, कभी तिरपाली तो कभी लाला का डरावना चेहरा उन्हें विचलित करता.

जैसे को तैसा: भाग 1- भावना लड़को को अपने जाल में क्यों फंसाती थी

‘‘अमन,कहां हो तुम? बाय द वे जहां भी हो, मुझे आ कर मिलो अभी, इसी वक्त,’’ फोन पर और्डर देते हुए भावना बोली.

मगर अमन ने यह कहते हुए आने से मना कर दिया कि उस के घर पर कुछ मेहमान आने वाले हैं, तो वह अभी उस से मिलने नहीं आ सकता है.

‘‘ओके… फिर मैं ही आ जाती हूं तुम्हारे घर.’’

‘‘नहीं… तुम यहां मत आना, प्लीज,’’

अमन ने रिक्वैस्ट की, ‘‘ठीक है मैं ही आता हूं.’’

‘‘यह हुई न बात,’’ अपना मुंह गोल कर भावना ने फोन पर ही अमन को बड़ा सा चुम्मा दिया और यह कह कर फोन रख दिया कि उसे इंतजार करना जरा भी नहीं पसंद, इसलिए वह जल्दी आ जाए.

अब अमन को सम   झ नहीं आ रहा था कि वह घर से निकले तो कैसे क्योंकि अगर उस की मां छाया पूछेंगी कि वह कहां जा रहा है तो क्या बहाना बनाएगा? लेकिन जाना तो पड़ेगा वरना उस भावना का कोई भरोसा नहीं कि यहां पहुंच जाए. अपने मन में सोच अमन उठ खड़ा हुआ.

‘‘मां, एक जरूरी काम है, बस थोड़ी देर में आता हूं,’’ बोल कर अमित घर से निकलने ही लगा कि छाया ने उसे रोका, ‘‘पर जा कहां रहा है? अरे, घर पर मेहमान आने वाले हैं और तुम…’’

‘‘हां मां, पता है मु   झे. लेकिन मैं बस थोड़ी देर में आता हूं,’’    झल्लाता सा अमन घर से निकल गया. छाया कुछ और पूछतीं उस से पहले वह गाड़ी स्टार्ट कर पलभर में ओ   झल हो गया.

दरअसल, आज शाम रागिनी अमन की मंगेतर के भैयाभाभी अमन से मिलने उस के घर आने वाले हैं. वे लोग चाहते हैं कि अगर हफ्ता 10 दिनों में ही अमन और रागिनी की शादी हो जाए, तो बहुत अच्छा रहेगा. रागिनी का भाई राकेश गूगल कंपनी में सीओओ है और वे अपने परिवार सहित यहां इंडिया आए हुए हैं. राकेश की सास की हार्ट सर्जरी हुई है इसलिए वे लोग उन्हें देखने आए थे. चूंकि राकेश की पत्नी अपने मातापिता की एकलौती संतान है, इसलिए अपने मातापिता की सारी जिम्मेदारी उन की ही है. इंडिया आने के लिए राकेश को बड़ी मुश्किल से महीनेभर की छुट्टी मिल पाई थी, इसलिए अब वह सोच रहा है कि अगर रागिनी और अमन की शादी इधर ही हो जाए, तो फिर उन्हें तुरंत छुट्टी ले कर यहां नहीं आना पड़ेगा और उन का समय और पैसा दोनों बच जाएंगे.

वैसे सोच तो वे ठीक ही रहे थे क्योंकि उतनी दूर 7 समंदर पार से जल्दीजल्दी छुट्टी ले कर आना कोई बच्चों का खेल थोड़े ही है. आनेजाने में पैसे भी बहुत खर्च हो जाते हैं और बच्चों की पढ़ाई भी रुकती है. लेकिन राकेश का आना व्यर्थ ही गया क्योंकि अमन से उस की भेंट ही नहीं हो पाई. छाया ने कई बार उसे फोन भी लगाया यह पूछने के लिए कि वह कब आ रहा है. लेकिन अमन का फोन नहीं लग रहा था, इसलिए हार कर वे लोग वापस चले गए. रागिनी छाया की सब से प्रिय सहेली की बेटी है. 2 साल पहले ही वह अमेरिका से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स कर के लौटी है. अभी वह दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में बहुत ही अच्छे पैकेज पर जौब कर रही है.

पिछले साल ही एक शादी समारोह में रागिनी और अमन की मुलाकात हुई थी जो धीरेधीरे प्यार में बदल गई. लड़की जानीपहचानी, पढ़ीलिखी और सुंदर है और सब से बड़ी बात कि दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं, यह सोच कर दोनों परिवारों ने भी इस रिश्ते को मंजूरी दे दी और कुछ मेहमानों की मौजूदगी में दोनों की सगाई कर दी गई. लेकिन शादी की डेट 6 महीने बाद का पड़ा क्योंकि अमन ऐसा चाहता था. इसलिए राकेश अमन से बात करना चाह रहा था. मगर बात ही नहीं हो पाई.

मेहमानों के जाने के बाद भी छाया ने अमन को कई बार फोन लगाया. लेकिन हर बार उस का फोन ‘आउट औफ कवरेज’ ही बता रहा था. छाया को परेशान देख कर ब्रजकिशोर अमन के पापा ने कहा भी कि हो सकता उस का फोन डिस्चार्ज हो गया होगा, इसलिए नहीं लग रहा होगा. लेकिन छाया इस बात से परेशान थी कि थोड़ी देर का बोल कर गया यह लड़का घंटों से कहां गायब है? कहीं वह किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गया.

छाया को काफी परेशान देख कर ब्रजकिशोर ने फिर सम   झाया कि बेकार में चिंता करने से क्या होगा? होगा कोई जरूरी काम. आ जाएगा न.  लेकिन छाया कैसे कहे अपने पति से कि ऐसा अकसर ही हो रहा है. रात देखता है न दिन… किसी का फोन आते ही दौड़ पड़ता है एकदम से. और फोन आने पर वह इतना घबरा क्यों जाता है? एक मां अपने बच्चे की हर सांस को पहचानती है, तो क्या अमन की आंखों का डर उसे नहीं सम   झ में आएगा? लेकिन पूछने पर वह कुछ बताता भी तो नहीं है न. या हो सकता है

उस के औफिस में कोई टैंशन हो और उस के बौस का फोन आया हो? नहींनहीं, ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि अभी परसों ही तो उस के बौस से छाया की मुलाकात हुई थी. वे तो अमन की कितनी बढ़ाई करने लगे कि अमन बहुत ही मेहनती लड़का है. फिर किस बात की टैंशन है उसे? खुद से ही सवालजवाब करती हुई छाया ने अभी अपनी आंखें    झपकाई ही कि कौल बज उठी. अमन ही था.

रात के करीब साढ़े 11 बजे अमन को घर आया देख कर छाया का पारा 7वें आसमान पर चढ़ गया. अब गुस्सा तो आएगा ही न, मेहमान आ कर चले गए और यह लड़का अब आ रहा है. क्या सोच रहे होंगे वे लोग कि कितना लापरवाह लड़का है. छाया ने तो किसी तरह कोई बहाना बना कर उन्हें सम   झा दिया कि अचानक से अमन के औफिस से फोन आ गया इसलिए जाना पड़ा, आता ही होगा बस. मगर इस लड़के ने तो हद ही कर दी. बस आता हूं, कह कर घंटों बाद लौटा है. आखिर गया कहां था? कुछ बताता भी तो नहीं है.

‘‘आखिर चल क्या रहा है तुम्हारे दिमाग में?’’ गुस्से से नाक फुलाती जब छाया ने सवाल किया तो अमन यह बोल कर अपने कमरे में

चला गया कि वह बहुत थक गया है, सुबह बात करेगा. यह भी नहीं पूछा उस ने कि रागिनी के भाईभाभी आए थे तो क्या बातें हुईं या उस के बारे में क्या कुछ पूछ रहे थे वे लोग? बस आया और सीधे अपने कमरे में चला गया. खाना भी तो नहीं खाया उस ने.

‘‘देख, अगर तेरे दिल में कोई बात है तो अभी बता दे. मेरे कहने का मतलब है अगर

तुम्हें कोई और लड़की पसंद आ गई हो तो बोल दे, मैं मना कर दूंगी उन्हें,’’ छाया ने स्पष्ट शब्दों में बोला.

‘‘आप बेकार में क्यों मेरा दिमाग खा रही हो मां,’’ अमन    झल्लाया सा बोला, ‘‘क्या चाहती हैं आप बोलिए न? अरे, कोई जरूरी काम आ पड़ा था इसलिए चला गया न तो इस में कौन सी बड़ी आफत आ गई जो आप इतना सुना रही हैं?’’

अमन के तेवर देख छाया हैरान रह गई क्योंकि पहले कभी उस ने अपनी मां से इस तरह से बात नहीं की थी.

‘‘प्लीज, आप जाइए यहां से, मु   झे सोने दीजिए,’’ कह कर अमन ने लाइट औफ कर दी. छाया कुछ पल वहीं खड़ी रही, फिर कमरे से बाहर निकल कर सोचने लगी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अमन को कोई दूसरी लड़की पसंद आ गई हो और अब वह रागिनी से शादी नहीं करना चाहता है? नहींनहीं, अगर ऐसा होता, तो वह सगाई ही क्यों करता रागिनी के साथ. मैं भी न बेकार में उलटासीधा सोचने लगती हूं. हो सकता है इसे औफिस की ही कोई टैंशन हो. अपने खुले बालों को मुट्ठी में लपेट कर जूड़ा बनाते हुए छाया ने पलट कर देखा, तो अमन दीवार की तरफ मुंह किए सो रहा था. इसलिए वह धीरे से दरवाजा बंद कर वहां से चली आई.

अपनी मां से इस तरह बात करना अमन को जरा भी अच्छा नहीं लगा. लेकिन वह भी क्या करे क्योंकि वह अपनी मां से    झूठ नहीं बोल सकता था और छाया सच सुन नहीं पाती. इसलिए उसे अपनी मां से ऐसे रूखे स्वर में बात करनी पड़ी ताकि वह बारबार उस से सवाल न करे. रागिनी को भी उस ने फोन पर ऐसे ही दोटूक शब्दों में जवाब दे कर चुप करा दिया था कि अभी उन की शादी नहीं हुई है, जो वह उस पर इतना हक जता रही है. रागिनी को अमन की बात का बुरा तो लगा था पर उस ने जताया नहीं. लेकिन अमन को यह भी नहीं हुआ कि वापस फोन कर उसे एक बार सौरी बोल दें. उलटे रागिनी ने ही उसे फोन कर हालचाल पूछा था.

रागिनी भले ही अमेरिका से पढ़लिख कर लौटी है और इतनी बड़ी कंपनी में जौब कर रही है, लेकिन उस में घमंड नाममात्र का भी नहीं है. ‘डाउन टू अर्थ’ है वह. उस की इसी अदा पर तो अमन फिदा हो गया था. रागिनी अमीरीगरीबी, जातिधर्म में कोई भेद नहीं करती है. वह तो सड़क पर भीख मांग रहे बच्चे को भी गोद में उठा कर दुलार करने लगती है. जब भी समय मिलता है वह अपनी मेड के बच्चों को बैठा कर पढ़ाती है. हर संडे वह ब्लाइंड्स बच्चों को भी पढ़ाने जाती है. जब उस की मेड का पति शराब पी कर उसे मारतापीटता था, तब रागिनी ने उसे ऐसी डांट लगाई थी कि उस ने अपनी पत्नी के साथ बदसलूकी करना छोड़ दिया.

रागिनी जबतब अपनी मेड की पैसों से

भी मदद करती रहती है. हालांकि उस की यह मदद सामान्य बात है. पर उसे यह सामाजिक सरोकार की भावना अपनी मां और दादी से विरासत में मिली है. वैसे बेतरतीब इंसान तो अमन भी नहीं है. वह भी लोगों की मदद करने में विश्वास रखता है और उस के इसी विश्वास का नतीजा है कि आज वह इतनी बड़ी मुसीबत में फंस चुका है.

भेडि़या: भाग 1- मीना और सीमा की खूबसूरती पर किसकी नजर थी

‘‘अरे, सुन. क्या नाम है तेरा?’’

‘‘चमेली,’’ पास से गुजरती स्त्री ने पलट कर देखा.

‘‘तेरा नाम जसोदा है न?’’ चमेली ने भी उसे पहचान लिया था.

दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराईं.  जसोदा मतलब की बात पर आ गई, ‘‘वह मैं इसी हफ्ते 2 महीने के लिए गांव जाऊंगी. मेरे पास 3 कोठियों का काम है. तीनों में बरतन,    झाड़ूपोंछा और कपड़े धोने का काम करती हूं. पूरे 10 हजार का काम है. एक कोठी की डस्टिंग भी है. उस के 3 हजार अलग से हैं. बोल, काम पकड़ेगी?’’

‘‘यानी 13 हजार,’’ चमेली हिसाब लगा

रही थी.

‘‘सुन, 2 महीने बाद आ कर काम वापस ले लूंगी,’’ जसोदा बोली.

‘‘ठीक है, अपना नंबर दे दे. घर पहुंच कर बताती हूं. हां, कोठी वाली से कल बात करा देना.’’

दोनो ने नंबरों का आदानप्रदान किया. मोबाइल अपनेअपने ब्लाउज में घुसेड़े और उसी तरह मुसकराती हुई विपरीत दिशा में मुंड़ गईं.

चमेली सोचने लगी कि पिछली 2 कोठियां छोड़ कर नई कोठियां पकड़ने की बात तो वह  पहले से ही सोच रही थी. जिन कोठियों में काम कर रही है वे सभी घर से दूर पड़ती हैं. काफी पैदल चलना पड़ता है.

चमेली का गणित फिर चालू हो गया. कोठियों के काम से मिली तनखा में से 3 हजार का राशनपानी, 1 हजार    झुग्गी का किराया. अगले महीने गांव में देवर की शादी है. हजार तो भेजने ही पड़ेंगे. गांव वाले घर की छत भी पक्की करानी है. इस के लिए भी 3 हजार महीने का जमा करती हूं. यहां भी कौन से महल में रह रही है. यह तो ठेकेदार के हाथपैर जोड़े तो 15?15 की जगह दे दी. मीना और सीमा 2 बेटियां हैं. लड़कियां बड़ी हो रही हैं. कोने की    झुग्गी है डर लगा रहता है… फिर भी कुछ तो है.

कैसा नसीब ले कर पैदा हुई है, चमेली… 15 साल पहले बसेसर का हाथ पकड़ कर यहां मुंबई आउटर पर आ गई थी. तब यह हाईवे के दोनों ओर जंगल ही जंगल था. जंगल काट कर कोई बहुत बड़ी बिल्डिंग बननी थी. बिल्डर ने 3-4 और भी ठेके ले लिए थे. सो बसेसर 10-12 साल ठेकेदार से जुड़ा रहा.

एक रोज बसेसर की टांग पर पत्थर गिर गया. पैर की हड्डी टूट गई. उस का काम छूट गया.

बेटे ने साफ कह दिया, ‘‘मैं ईंटगारे का काम कतई नहीं करूंगा.’’

पहले तो चमेली कुली का काम करती थी. पर तब बात और थी. बसेसर का काम छूटने पर  चमेली को भी काम छोड़ना पड़ा. ठेकेदार की नियत खराब थी.

चमेली जिन कोठियों में काम करने जाती है ज्यादातर कोठियों की छत बसेसर ने ही डाली है. पर खुद वह    झुग्गी में रहता है, जिस की दीवारें तो हैं पर छत बल्लियों पर टिके तिरपाल की है. तेज आंधी में कई बार तिरपाल उड़ चुका है. जानती है यहां लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. पर क्या करे? यहां सिर्फ एक ही लालच है लड़कियां पढ़ जाएंगी तो अच्छा घरवार मिल जाएगा. गांव चली गई तो रोटी के लाले पड़ जाएंगे. लड़कियां भी किसी काने, कुबड़े या बूढ़े के साथ बैठा दी जाएंगी. 10वीं कर लेंगी तो कोई न कोई कोठी वाली मेमसाब या साहब के औफिस में लग जाएंगी. लड़का भी ढंग का मिल जाएगा. बस इसी लालच में यहां पड़ी है.

अल सुबह बेटियों के साथ निकल जाती है. स्कूल में लड़कियों को छोड़ती हुई कोठियों की तरफ मुड़ जाती है. कोठियों कहें या कंकरीट का जंगल कहें. कभी मीलों तक घना जंगल था. जहां अब कोठियों है वहां कभी जंगली जानवरों का वास था. लेकिन प्रकृति की खूबसूरत संपदा को बड़ी बेरहमी से उखाड़ फेंका इन भूखे बिल्डरों ने. सिर्फ कुछ रुपयों की खातिर.

आज भी ऊंची इमारतों के पीछे खेत हैं और उन के पीछे घना जंगल है, जिस में आज भी जंगली जानवर खेत पार कर के कोठियों के पीछे लगे कंटीले तारों के पास या सर्विस लेन के आसपास देखे जाते हैं.

ये जानवर, पता नहीं क्या सोचते होंगे हम मनुष्यों के बारे में?

संभवतया सोचते होंगे कि कितना दुस्साहसी और निर्दयी है रे मनुष्य. किसी का रैनबसेरा उजाड़ कर अपने लिए घर बना लिया? लानत है ऐसी मानवता पर.

इन्हीं ऊंची इमारतों के पास लेबर बस्ती है. बस्ती में रहने वाले लोगों की संख्या जानते हैं कितनी होगी?

खेत पार बसे घने जंगल के जानवर जमा कोठियों और फ्लैटों में रहने वाले लोगों की संख्या में जोड़ लो और उस का 4 गुना कर दो. इतनी जनसंख्या है लेबर बस्ती की.

ज्यादातर फ्लैट और कोठियों खाली पड़ी हैं. जंगल में भी जानवर नहीं के बराबर रह गए हैं.

लेबर बस्ती में रहने वाले वही लोग हैं जिन्होंने अपने अन्नदाता के एक इशारे पर पूरी की पूरी प्राकृतिक संपदा को काटने में जरा देर नहीं लगाई और देखतेदेखते जमीन पर ऊंचेऊंचे टावर और कोठियों खड़ी कर दीं.

और अपने लिए? एक कमरे का मकान भी न जुटा सके. बस कच्ची सी    झुग्गी है जिस पर छत तो है नहीं. इसी में गरमी, सर्दी व बरसात सब बिताते हैं. छोडि़ए ये सब.

जरा इन कोठियों में    झांक कर देखें. कौन रहता है? क्या होता है यहां और कैसेकैसे लोग रहते हैं. कोठी नं 25. इस में वृद्ध पतिपत्नी रहते हैं. दोनों सारी सर्दी बालकनी में धूप सेंकते हैं.

घर के गेट पर नेम प्लेट लगी है ब्रिगेडियर अमन. इस जोड़े को धूप में बैठ कर चिल्ड बियर पीने का बहुत शौक है. कई बार पड़ोसी भी साथ देने और ठहाके लगाने आ जाते हैं. गरमियों में यही महफिल देर शाम को शुरू हो कर देर रात तक चलती है. कभीकभी 40 नंबर वाले कर्नल रमन भी साथ देने आ जाते हैं.

कर्नल और ब्रिगेडियर दोनों कई साल तक एक ही यूनिट में साथसाथ थे. हां, रिटायर भी एकसाथ हुए. दोनों के बच्चे कैलिफोर्निया में रहते हैं. बच्चे 2-3 सालों में बूढ़े मांबाप पर    झूठे प्यार की बारिश करने चले आते हैं.

ब्रिगेडियर के घर में 2 आया, 1 खानसामा, 2 लैब्रेडोर कुत्ते और एक भूरी आंखों वाली बिल्ली है. सब के ऊपर लंबी नुकीली मूंछों वाला मुस्तैद नेपाली चौकीदार है यानी घर में 2 लोगों की देखभाल के लिए 6 जीव?

26 नंबर कोठी खाली है. 27 नंबर में सान्याल रहतीं. तलाकशुदा है. घर में इवेंट्स और्गेनाइज करती है.

28 नंबर की शीला सान्याल के साथ बियर पीती है. साथ में दोनों मिल कर किट्टी पार्टी, ताश पार्टी बगैरा भी और्गेनाइज करती हैं. दोनों का गुजारा चल जाता है.

चमेली अब तक इन घरों में काम नहीं करती. हां जसोदा जा रही है तो 2 महीनों के लिए तो ये घर उसे मिलेंगे ही.

चमेली को सान्याल का काम इसलिए भी आकृष्ट कर रहा है क्योंकि सान्याल हर शनिवार को पार्टी रखती है. पार्टी बेशक देर रात तक चलती हो पर जानती है कमाई अच्छीखासी होती है. हर हफ्ते हजार रुपए कमाई.

चमेली खुश है. हिसाब बराबर है. जसोदा की दोनों कोठियों के काम को हां कर देगी. घर पहुंचते ही जसोदा को ‘हां’ कह दी.

दोराहा: पति ने की पत्नी के साथ की बेवफाई

‘‘सौरीमैडम, उपमा मिक्स का एक ही पैकेट था, जो इन्होंने ले लिया. नया स्टौक 3-4 दिनों में आएगा,’’ सेल्समैन की आवाज सुन कर रोहित ने मुड़ कर देखा. एक गौरवर्ण की अमेरिकन नवयुवती उस की तरफ देख रही थी.

उस के देखने में कुछ ऐसी कशिश थी कि रोहित ने उपमा मिक्स का पैकेट सेल्समैन को थमाते हुए कहा, ‘‘यह पैकेट इन्हें दे दो. मैं फिर ले लूंगा.’’ उस युवती ने रोहित को आभारयुक्त नजरों से देखा और फिर डिपार्टमैंटल स्टोर से चली गई.

मैट्रो टे्रन लेट थी. ठंड बढ़ने के साथसाथ घना कुहरा भी छाया था. रोहित प्लेटफार्म पर चहलकदमी कर रहा था. तभी वह वहां एक लड़की से टकराया. दोनों की नजरें मिलीं और दोनों मुसकरा पड़े. वह वही डिपार्टमैंटल स्टोर में मिलने वाली लड़की थी.

तभी मैट्रो आ गई और दोनों एक ही डब्बे में चढ़ गए. रोहित उस के रेशम से लंबे केशों और गौरवर्ण से बहुत प्रभावित हुआ. उस का नाम जेनिथ था. उन में बातचीत शुरू हो गई. ‘‘आप कहां काम करते हैं?’’ ‘‘पार्क एवेन्यू की एक कंपनी में.’’

‘‘मैं भी वहीं काम करती हूं. आप की बिल्डिंग के साथ वाली बड़ी बिल्डिंग में मेरा दफ्तर है.’’ इस मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे घनिष्ठता बढ़ी. फिर दोनों में दूरियां समाप्त हो गईं. कभी रोहित जेनिथ के यहां चला जाता तो कभी जेनिथ उस के यहां आ जाती.

विवाह किए बिना रहने वाले स्त्रीपुरुषों को अमेरिका में सामान्य रूप से ही देखा जाता था. अमेरिका और पाश्चात्य देशों में तलाक लेने पर काफी खर्चा पड़ता था, इसलिए असंख्य जोड़े विवाह किए बिना लिव इन रिलेशनशिप में रहने को प्राथमिकता देते थे.

ऐसे जोड़ों में आपस में वफा या बेवफा जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं था. लेकिन इतना जरूर सम झा जाता था कि जब तक साथ रहें तब तक साथी वफादारी निभाए. एक रोचक बात यह थी कि कुछ समय के लिए साथसाथ रहने को रजामंद हुए जोड़ों में सारी उम्र का साथ बन जाता था, जबकि कानूनी तौर से विवाह कर पतिपत्नी बने जोड़ों का विवाह टूट जाता था.

यानी पक्की डोर से बंधा बंधन टूट जाता था तो कच्ची डोर से बंधा बंधन सारी उम्र चलता था. अमेरिका में युवकयुवतियों के लिए डेटिंग को जरूरी काम सम झा जाता था. जो डेटिंग पर नहीं जाता था उसे मनोचिकित्सक के पास इलाज के लिए भेजा जाता था.

कौमार्य एक बेमानी बात सम झी जाती थी. जेनिथ ने रोहित से संबंध बनाए, साथ ही उस का और अपना एचआईवी टैस्ट भी करवाया कि कहीं उन में से कोई एड्स से ग्रस्त तो नहीं. दोनों इस बात से सहमत थे कि सैक्स संबंधों के दौरान कंडोम का प्रयोग कुदरती मजे को कम करता है.

एक रात सैक्स के दौरान रोहित ने कहा, ‘‘जेनिथ, तुम न कंडोम इस्तेमाल करने देती हो न ही और कोई गर्भनिरोधक अपनाती हो. अगर प्रैगनैंट हो गईं तो? ‘‘तो क्या? तब या तो गर्भपात करा लूंगी या फिर बच्चे को जन्म दे कर मां बन जाऊंगी,’’ जेनिथ ने सहजता से कहा. ‘‘गर्भपात तो ठीक है, मगर बच्चा…’’ ‘‘क्यों क्या आप को बच्चा अच्छा नहीं लगता?’’ ‘‘यह बात नहीं है.

मगर बिना विवाह किए बच्चे को जन्म देना तो नाजायज है?’’ ‘‘यह सब पुरातनपंथी बातें हैं. आजकल के जमाने में कोई इन बातों को नहीं मानता… छोड़ो इसे. यह बताओ आप अपनी पत्नी को यहां कब बुला रहे हो?’’ जेनिथ ने बात में उपजे तनाव को देखते विषय बदलते हुए पूछा. ‘‘मेरा हाल ही में ग्रीन कार्ड बना है. अब मैं अपनी पत्नी को यहां बुला सकता हूं.

मुझे अब बारबार अपना वीजा और वर्क परमिट बढ़वाने की जरूरत नहीं है.’’ रोहित की बात सुन कर जेनिथ गंभीर हो गई. आखिर ब्याहता पत्नी का कानूनी हक अपनी जगह था. वह तो एक साथी के तौर पर लिव इन रिलेशनशिप में उस के साथ रह रही थी. आखिरकार रोहित की पत्नी सुषमा का अमेरिका आना हो ही गया. जेनिथ ने हकीकत को सम झते हुए उस के आने से पहले ही अपना सामान रोहित के फ्लैट से उठा लिया और अपने फ्लैट में चली गई. रोहित की पत्नी सुषमा भी स्नातकोत्तर तक पढ़ीलिखी थी. साथ में कंप्यूटर में डिप्लोमा होल्डर थी. जेनिथ के मुकाबले वह थोड़े छोटे कद की थी. उस का रंग भी गेहुआं था. पर भारतीय नारी के दृष्टिकोण से वह भी सुंदर थी.

थोड़े दिनों तक घूमनाफिरना होता रहा. फिर रोहित सुषमा के लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. थोड़े समय में ही उस के लिए कंप्यूटर सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिल गई. सुषमा के सहयोगियों में कई देशों के युवक थे. उस के साथ की सीट पर बैठने वाला एडवर्ड नील, अमेरिकन था. वह पुरानी सोच रखने वाला रोमन कैथोलिक ईसाई था. वह हर रविवार को चर्च जाता था.

अपने मातापिता की कब्रों पर मोमबत्तियां भी जलाता था. सुषमा उस के इस स्वभाव के कारण उस की तरफ आकर्षित होने लगी. एडवर्ड नील भी सुषमा के भारतीय पहनावे साड़ी और पंजाबी सलवारकमीज को बहुत पसंद करता था. वह भी सुषमा के प्रति स्नेह रखने लगा. एडवर्ड नील को भारतीय व्यंजन बहुत पसंद थे. सुषमा उस के लिए अपने टिफिन बौक्स में खाना लाने लगी.

एडवर्ड नील खाना लेते समय संकोच से भर उठता, क्योंकि वह बदले में खाना औफर नहीं कर पाता था. एक दिन उस के मनोभावों को सम झ सुषमा हंस कर बोली, ‘‘नील, कोई बात नहीं… टेक इट ईजी.’’ तब एडवर्ड नील ने हंस कर कहा, ‘‘क्या आप मु झे भारतीय खाना बनाना सिखाएंगी?’’ ‘‘श्योर… जब आप चाहो.’’ उस दिन रविवार था.

एडवर्ड नील सुषमा के यहां आया. सुषमा ने उस का रोहित से परिचय करवाया. परिचय करते समय रोहित कुछ असहज था जबकि एडवर्ड नील सहज था. एडवर्ड नील नीली जींस और सादी कमीज पर हलकी जैकेट पहने था जबकि रोहित पिकनिक का प्रोग्राम होने के कारण सूटेडबूटेड था. ‘‘रोहित, क्या आप कहीं बाहर जा रहे हैं?’’

‘‘हां, पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम था.’’ ‘‘आप तो सूटकोट में हो. मैं तो उस के बजाय कैजुअल वियर ही पसंद करता हूं. मु झे आप का भारतीय पहनावा कुरतापाजामा बहुत पसंद है.’’ ‘‘यानी आप भारतीय बन रहे हैं और हम अमेरिकन,’’ सुषमा की इस टिप्पणी पर सभी हंस पड़े. एडवर्ड नील ने मनोयोग से सुषमा के साथ रसोईघर में काम किया.

आलू छीले, टिकियां बनाईं, खीर बनाई और कई व्यंजन बनाए. फिर सभी पिकनिक पर चले गए. कार में बैठते समय सुषमा ने एडवर्ड नील से कहा, ‘‘आप अगली सीट पर बैठ जाएं.’’ ‘‘नहीं मैडम, मैं आप का स्थान नहीं ले सकता,’’ एडवर्ड नील ने अदा के साथ सिर नवा कर कहा और पिछली सीट पर बैठ गया. उस की इस अदा पर रोहित भी मुसकरा पड़ा.

पिकनिक स्पौट समुद्री तट था. कई स्त्रीपुरुष अधोवस्त्रों में रेतीले तट पर लेटे धूप सेंक रहे थे. कई समुद्र में नहा रहे थे. एडवर्ड नील कपड़े उतार जांघिया पहने समुद्र में उतर गया. सुषमा तैरना जानती थी मगर इस तरह अधोवस्त्रों में वह समुद्र या नदी में नहीं जाती थी. पिकनिक का दिन काफी अच्छा बीता. फिर एडवर्ड नील थोड़ेथोड़े अंतराल पर सुषमा के घर आता रहा.

थोड़े समय में ही वह अनेक भारतीय व्यंजन बनाना सीख गया. फिर वह भी सुषमा और अन्य साथियों के लिए भारतीय व्यंजन लाने लगा. एडवर्ड नील और सुषमा के मेलजोल को रोहित शंकित नजरों से देखने लगा. वह स्वयं एक गोरी मेम को कई महीनों तक अपने यहां एक साथी के तौर पर रख चुका था, इसलिए शंकित था कि एडवर्ड नील भी उस की पत्नी से गलत संबंध बनाएगा.

अत: अब वह बारबार सुषमा पर तुनक पड़ता. पहले सुषमा को वीकऐंड पर बाहर घुमाने ले जाता था. मगर अब अकेला जाता था. एडवर्ड नील का अपनी पत्नी से हाल ही में तलाक हुआ था. वह आम अमेरिकन लड़कियों के समान ही उच्छृंखल विचारों की थी.

उस की नजरों में उस का पति एक मिस फिट पर्सन था. कमोबेश ऐसे ही विचार सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले अन्य सहयोगियों के थे. उन के विपरीत सुषमा एडवर्ड नील को एक फिलौस्फर और जीनियस मानती थी. दोनों में धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ने लगी. सुषमा का आकर्षण रोहित के लिए काफी कम हो गया. तब उसे जेनिथ की याद आई. 2-3 माह से उस ने उस की खबर न ली थी.

उस ने जेनिथ का फोन नंबर मिलाया. ‘‘अरे, आज आप को मेरी याद कैसे आ गई?’’ ‘‘कभी तो आनी ही थी. कैसी हो?’’ ‘‘फाइन… आप कैसे हैं? आप की पत्नी का क्या हाल है?’’ ‘‘अच्छा है, मिलने आ जाऊं?’’ ‘‘आ जाओ.’’ जेनिथ रोहित का फ्लैट छोड़ते समय प्रैगनैंट थी.

प्रैगनैंसी का पता उसे थोड़े समय बाद ही चला था. वह इस कशमकश में थी कि गर्भपात करवाए या नहीं. वह जानती थी कि बढ़ती उम्र में सहारे के लिए एक साथी के साथसाथ बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर जीवनसाथी को पाना भी आसान था तो छोड़ना भी. मगर जो भावनात्मक सुरक्षा विवाह नामक बंधन या संस्था में थी

वह लिव इन रिलेशनशिप में नहीं थी. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर साथसाथ रहने वाले साथियों में हर समय डर सा रहता कि कहीं उस का साथी उस से नाराज हो या अन्य बैटर साथी पा कर उसे छोड़ न जाए. जबकि विवाह की डोर से बंधे पतिपत्नी निश्चिंत रहते. उन्हें डर नहीं रहता कि साथी छोड़ कर चला जाएगा. फिर यदि तलाक भी लेगा तो नोटिस देगा और इस में समय लगेगा. रोहित जेनिथ के फ्लैट पर पहुंचा. उस को उस के प्रैगनैंट होने की खबर नहीं थी.

जेनिथ गर्भपात कराऊं या नहीं करवाऊं इसी कशमकश के कारण निर्धारित समय निकाल चुकी थी. अब गर्भपात नहीं हो सकता था. गर्भावस्था के कारण उस का शरीर फूल गया था. उस ने ढीलेढाले वस्त्र पहने हुए थे. रोहित उस के बेडौल शरीर को देख कर हैरान रह गया. बोला, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है?’’ ‘‘आप स्त्री होते तो ऐसा न कहते.’’

‘‘गर्भपात करवा लेतीं.’’ ‘‘सोचा तो था. बाद में विचार बना बड़ी उम्र में एक जीवनसाथी और बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. आखिर सारी उम्र तो कोई जवान नहीं रहता,’’ जेनिथ के स्वर में वेदना थी. रोहित थोड़ी देर इधरउधर की बातें करता रहा. फिर उठ खड़ा हुआ, ‘‘अच्छा मैं चलता हूं,’’ और फ्लैट से बाहर निकल गया. जेनिथ को रोहित के इस व्यवहार से धक्का लगा.

अमेरिकन या अंगरेज पुरुष स्वार्थी या मतलबी होते हैं, मगर क्या एक भारतीय भी इतना निर्मोही हो सकता है? अब उसे अपने प्यार या वासना का नतीजा भुगतना था. लिव इन रिलेशनशिप की पोल खुल चुकी थी. विवाह आखिर विवाह ही होता है. फिर उस ने अपनी देखभाल के लिए एक नर्सिंगहोम से संपर्क बना लिया. सुषमा का परिचय सामने के फ्लैट में रहने वाली पड़ोसिन मार्था डोरिन से हो गया.

वह उस के साथ फुरसत में गपशप मारने लगी. एक दिन मार्था डोरिन ने उस से कहा, ‘‘आप तो बहुत मिलनसार हो. आप से पहले वाली तो बहुत रिजर्व्ड थी. आखिर वह अमेरिकन थी न.’’ सुषमा सम झ गई कि रोहित ने उस के आने से पहले किसी लड़की को लिव इन रिलेशनशिप में रखा हुआ था. आखिर वह क्या करता? 3 साल से पत्नी से दूर था.

उसे भी स्त्रीसंसर्ग की जरूरत थी. मगर अब रोहित की उच्छृंखलताएं बढ़ गई थीं. वह रोज पीए घर लौटता था. सारी तनख्वाह पबों, बारों में और लड़कियों पर उड़ाने लगा था. घर का खर्चा सुषमा ही चलाती थी. कितनी विडंबना की बात थी कि जब तक पत्नी नहीं आई थी, जेनिथ से उस का संबंध जरूर था, लेकिन उस में संयम था. मगर अब उस की कामवासना विकृत हो चुकी थी. एडवर्ड नील तनहाई भरा जीवन गुजार रहा था. एक दिन सुषमा ने उस से हमदर्दी से पूछा, ‘‘नील, क्या आप को अकेलापन महसूस नहीं होता?’’ ‘‘यह तनहाई और अकेलापन क्या होता है?’’

‘‘क्या आप नहीं सम झते?’’ ‘‘देखिए, सुषमाजी, विवाह होने या जीवनसाथी के होने का मतलब यह नहीं है कि आप अकेलेपन का शिकार नहीं हैं. अगर पतिपत्नी की भी नहीं बनती हो तो सम झो ऐसे विवाह का कोई अर्थ नहीं.’’ ‘‘आप के यहां तो लिव इन रिलेशनशिप का चलन है. आप कोई साथी क्यों नहीं ढूंढ़ते?’’ ‘‘मेरा इस सिस्टम में विश्वास नहीं है.

इस का चलन उन पुरुषों में है, जो एक से ज्यादा स्त्रियों को शादी किए बिना साथ रखना चाहते हैं. आम आदमी तो विवाह के बंधन में ही विश्वास रखता है.’’ सुषमा अपने कार्यस्थल और घर आने के लिए कभी मैट्रो तो कभी लोकल बस का उपयोग करती थी. एक दिन डबलडैकर बस की खिड़की से उस ने रोहित को एक अमेरिकन युवती के साथ बगलगीर हो जाते देखा तो उसे धक्का लगा. उस रात भी रोहित नशे में धुत्त घर आया. उस रात सुषमा ने उसे सहारा न दिया.

गिरतापड़ता रोहित बिस्तर पर जा लेटा. सुबह नींद खुलने पर उस ने सुषमा को आवाज दी. मगर सुषमा नहीं आई. रोजाना उस की आवाज पर वह उसे चाय की प्याली थमा देती थी. ‘‘आज बैड टी नहीं बनाई?’’ उस ने पूछा. ‘‘खुद बना लीजिए,’’ उस की तरफ देखे बिना सुषमा ने कहा. ‘‘क्या आज मूड खराब है?’’ कहते हुए उस ने सुषमा को बांहों में लेना चाहा.

‘‘मु झे मत छुओ. अपनी उसी के पास जाओ जिस के साथ आप सरेआम घूमते हो.’’ इस पर रोहित ने तैश में आ कर कहा, ‘‘तुम उस दाढ़ी वाले फिलौसफर नील के साथ मस्ती करती हो और इलजाम मु झ पर लगाती हो?’’ ‘‘मैं इलजाम नहीं लगा रही… कल मैं ने खुद देखा था.’’ इस पर रोहित गुस्से में आ कर बाहर चला गया. दोनों अकेले हो गए. धीरेधीरे रुखाई बढ़ती गई. ‘‘तुम भारत वापस चली जाओ,’’ एक दिन रोहित ने कहा. ‘‘क्यों चली जाऊं?’’ ‘‘मैं तुम्हें तलाक देना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो आप यहां भी दे सकते हैं. भारत में एक तलाकशुदा स्त्री की क्या स्थिति होती है, क्या मु झे पता नहीं है.’’ आखिरकार सुषमा का रोहित से तलाक हो ही गया. वह अपने साथी एडवर्ड नील के साथ चली गई. रोहित अपनी नई मित्र मारिया के यहां गया मगर उस ने नया प्रेमी कर लिया था. तब वह जेनिथ के यहां गया. पर वह भी एक नए प्रेमी संग घर बसा चुकी थी. खाली हाथ मलता रोहित अपने फ्लैट के दरवाजे पर खड़ा उस दोराहे को देख रहा था, जिस के एक रास्ते से उस की 7 फेरों की ब्याहता चली गई तो दूसरे से लिव इन रिलेशनशिप की साथी. उस का घर उजड़ चुका था.

राशनकार्ड: क्या हुआ नरेश की बेटियों के साथ

‘‘पापा, सब लोग हम को घर में घुस कर देख क्यों रहे हैं? ऐसा लग रहा है, जैसे वे कोई अजूबा देख रहे हों,’’ नरेश की 22 साला बेटी नेहा बेटी ने पूछा.

‘‘वह… दरअसल, आज हम लोग शहर से आने के बाद क्वारंटीन सैंटर में 14 दिन रहने के बाद अपने घर जा रहे हैं न, इसीलिए सब लोग हमें अजीब नजरों से देख रहे हैं,’’ गांव में नरेश ने अपनी बेटी नेहा को बताया.

नरेश पिछले 20 साल से दिल्ली शहर में रह रहा था. अपनी शादी के कुछ दिनों बाद ही वह अपनी पत्नी के साथ शहर चला गया था.

शहर में कोई काम शुरू करने के लिए नरेश के पास रकम तो थी नहीं, बस थोड़ाबहुत पैसा अपने बड़े भाई से मांग कर ले गया था, जो वहां सामान खरीदने में ही खर्च हो गया.

पर नरेश ने हिम्मत नहीं हारी और महल्ले के लोगों की गाडि़यां साफ करने का काम ले लिया. बस एक बालटी, एक पुराना कपड़ा, कार शैंपू और पानी तो कार वालों के यहां मिल ही जाता था.

जैसेजैसे लोगों के पास गाडि़यां  बढ़ीं, वैसेवैसे नरेश का काम भी बढ़ता चला गया और वह ठीकठाक पैसे कमाने लगा.

शहर में ही नरेश की पत्नी ने 2 बेटियों को जन्म दिया और अब तो बड़ी बेटी नेहा 22 साल की हो चली थी और छोटी बेटी 16 साल की.

नेहा के लिए तो लड़के वालों से बातचीत भी हो गई थी और रिश्ता भी पक्का हो गया था, पर इस लौकडाउन ने तो सभी के सपनों पर पानी ही फेर दिया. बहुत सारे मजदूरों को शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया था.

माना कि यह संकट कुछ महीनों में चला जाएगा, पर तब तक नरेश के पास इतनी जमापूंजी तो थी नहीं कि वह हालात सामान्य होने का इंतजार कर ले और वैसे भी बहुत से कार मालिकों ने अब नरेश को काम से हटा दिया था.

इस कोरोना काल में नरेश और उस का परिवार जितना सामान साथ ले सकते थे उतना ले आए और बाकी का सामान उन्हें मजबूरी के चलते शहर में ही छोड़ना पड़ गया था. पर मरता क्या न करता, जान बचाने के आगे भला सामान की चिंता कौन करता.

गांव में नरेश के बड़े भाई राजू का परिवार था. जब नरेश का परिवार गांव में अपने घर के दरवाजे पर पहुंचा तो सिर्फ राजू ही दरवाजे पर खड़ा था. उस ने उंगली के इशारे से ही नरेश और उस के परिवार को वहीं बाहर वाले कमरे में रुक जाने को कहा. उस कमरे में बरसात के दिनों में जानवरों को बांधा जाता था.

नरेश को पहले तो बहुत बुरा लगा, पर बाद में मन मार कर उस ने उसी कमरे को अपना घर बना लिया.

‘‘मैं ने पहले से ही कुछ दिनों का राशनपानी, एक चूल्हा और ईंधन इसी कमरे में रखवा दिया था, ताकि जब तुम लोग आओ तो दिक्कत का सामना न करना पड़े,’’ राजू ने नरेश से कहा.

‘‘हां भैया, बहुत अच्छा किया आप ने,’’ नरेश ने कहा और मन ही मन सोचने लगा, ‘भैया ने तो पानी भी नहीं पूछा और उलटा हम से अछूतों जैसा बरताव कर रहे हैं.’

नरेश रोज सुबह राजू को बैलों की जोड़ी को हांक कर खेत ले जाते देखता, तो उस का भी मन हो आता कि वह भी इस तरह ही खेती करे.

‘‘हां… तो जाते क्यों नहीं… खेती और मकान में हम लोगों का भी तो हिस्सा होगा न,’’ नरेश की पत्नी संध्या  ने कहा.

‘‘हां… होना तो चाहिए… पर इतने बरसों से इस जमीन की देखभाल भैया ही कर रहे हैं, इसलिए पूछने की हिम्मत नहीं हो रही है,’’ नरेश ने संध्या से कहा.

‘‘पर नहीं पूछोगे, तो यहां गांव में क्या करोगे… किस के सहारे 2 बेटियों को ब्याहोगे… और खुद भी क्या  खाओगे भला,’’ संध्या ने नरेश को समझाते हुए कहा.

जब नरेश को उस कमरे में रहते हुए 15 दिन हो गए, तो एक दिन जब राजू खेत की ओर जा रहा, तो नरेश भी वहां पहुंच गया और बोला. ‘‘भैया वहां गांव के बाहर भी हम सैंटर में 14 दिन रुके थे और अब अपने घर के बाहर भी हम 15 दिन तक पड़े रहे हैं… तो क्या अब हम घर के अंदर आ जाएं?’’

‘‘हां… कोई जरूरत हो तो आ जाना. वैसे, उस कमरे में भी कोई दिक्कत तो होगी नहीं तुम को…’’ राजू ने पूछा.

‘‘नहीं भैया… दिक्कत तो कोई नहीं है… साथ ही, मैं यह बात जानना चाह रहा था कि खेती में हमारा भी तो हिस्सा होगा, तो वह भी बता दीजिए, तो हम

भी अपना धंधापानी शुरू कर दें,’’ नरेश ने कहा.

इतना सुनते ही राजू के तेवर बदल गए. वह घर के अंदर गया. थोड़ी ही देर में वापस आ गया और एक कागज नरेश को दिखाते हुए बोला, ‘‘लो… पहचानो इस कागज को… शहर जाते समय जब तुम्हें पैसे की जरूरत थी, तब तुम्हीं ने तो अपने हिस्से का मकान और खेत सब मेरे नाम कर दिया था. देखो, तुम्हारा ही तो अंगूठा लगा है न?’’

यह सुन कर सन्न रह गया था नरेश… उसे आज भी अच्छी तरह याद था कि शहर जाने के लिए जब उसे कुछ पैसे की जरूरत थी, तब उस ने अपने बड़े भाई से पैसे मांगे थे. तब राजू ने यह कह कर उसे पैसे दिए थे कि वह ये पैसे गांव के चौधरी से ले कर आया है और उसे इस पैसे पर एक निश्चित ब्याज हर महीने देना होगा. इसी बात के इकरारनामे पर अंगूठा लगाया था नरेश ने… अपने ही सगे भाई ने लूट लिया था उसे.

‘‘अरे, यह तो मैं बड़ा भाई होने का फर्ज निभा रहा हूं जो तुम्हें घर में आने भी दिया है, वरना तो तुम लोग बीमारी फैलाने वाले बम से कम नहीं हो इस समय. देख लो गांव में जा कर, कोई पास भी खड़ा हो जाए तो नाम बदल देना मेरा,’’ राजू बोला.

नरेश चुपचाप वहां से लौट गया. नरेश के पास राशन अब खत्म होने को आया था. पत्नी के साथ बातचीत के बाद उस ने सोचा कि क्यों न गांव में बनी दुकान से कुछ राशन उधार ले आऊं, बाद में कुछ काम जम जाएगा, तो लाला का उधार चुकता कर देगा.

‘‘लालाजी, कुछ राशन चाहिए… पर पैसा अभी नहीं दे पाऊंगा… कुछ दिनों बाद काम जमते ही मैं आप को पूरे पैसे दे दूंगा,’’ नरेश ने लाला के पास जा

कर कहा.

‘‘अरे भैया… खुद हमारे पास ही सामान ज्यादा नहीं बचा है और पीछे से भी आवक बंद है. ऐसे में अगर तुम उधार की बात करोगे, तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी… उधार तो नहीं दे पाऊंगा अब. जब तुम्हारे पास पैसे हों… तब गल्ला ले जाना आ कर,’’ लाला की बात सुन कर अपना सा मुंह ले कर रह गया था नरेश.

नरेश अब उलझन में पड़ गया  था. बच्चों का पेट तो भरना ही होगा,  पर कैसे?

अब नरेश के पास आखिरी चारा था कि कुछ सामान गिरवी रख दिया जाए, जिस के बदले में जो पैसे मिलें उस से राशन खरीद लिया जाए.

जब नरेश ने यह बात संध्या को बताई, तो वह अपने कान की बालियां ले आई और बोली, ‘‘आप इन्हीं को गिरवी रख दीजिए और जो पैसे मिलें उस से सामान खरीद लाइए.’’

कोई चारा न देख नरेश बालियां ले कर गांव के एक पैसे वाले आदमी के पास पहुंचा, जो गांठगिरवी का काम करता था.

‘‘अरे भैया… ये सारे काम तो हम ने बहुत पहले से ही बंद कर रखे हैं. और अब तो सरकार का भी इतना दबाव है, फिर तुम तो शहर से आए हो… तुम्हारे पास से ली हुई किसी भी चीज से बीमारी लगने का ज्यादा खतरा है…

‘‘भाई, तुम से तो हम चाह कर भी कुछ नहीं ले सकते… हमें माफ करना भाई… हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाएंगे,’’ उस आदमी के दोटूक शब्द थे.

इधर नरेश गल्ला और पैसे के लिए परेशान हो रहा था, तो उधर उस की पत्नी संध्या और बेटियां एक दूसरी ही तरह की समस्या से जूझ रही थीं.

दरअसल, गांव की लड़कियों के पहनावे और शहर की लड़कियों के पहनावे में बहुत फर्क होता है. शहरों में किसी भी तबके की लड़की के लिए लोअर, टीशर्ट और जींस पहनना आम बात है, पर गांवों में अभी भी लड़कियां सलवारसूट पहनती हैं और ऊपर से दुपट्टा भी डालती हैं. यही फर्क नरेश की बेटियों के लिए परेशानी का सबब बन रहा था. गांव के लड़के तो लड़के, बड़ी उम्र के लोग भी उन्हें अजीब ललचाई नजरों से देखते थे.

एक दिन की बात है. गांव के नजदीक बहने वाली नदी के पानी में एक निठल्ले गैंग के 5 लड़के पैर डाल कर बैठे हुए थे.

‘‘यार, वह जो परिवार दिल्ली से आया है, उस में माल बहुत मस्त है…’’ पहले लड़के ने कहा.

‘‘लड़कियां तो लड़कियां… उन की मां भी बहुत मस्त है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘अरे यार, उन लड़कियों से दोस्ती करवा दो मेरी… मैं हमेशा से ही जींस वाली लड़कियों से दोस्ती करना चाहता था…’’ तीसरा लड़का बोला.

‘‘ठीक है भाई… तू उन लड़कियों  से दोस्ती करना और हम लोग… तो करेंगे प्रोग्राम…’’

‘‘नहींनहीं… भाई ऐसी बात भी मन में मत लाना… वे लोग शहर से आए हैं और अगर उन लड़कियों के साथ प्रोग्राम किया, तो हम लोगों को भी कोरोना हो जाएगा,’’ थोड़ी समझदारी दिखाते हुए एक लड़का बोला, जो मोबाइल और इंटरनैट की कुछ जानकारी रखता था.

‘‘वह तो सब हो जाएगा… सरकार का कहना है कि अगर हम रबड़ के दस्ताने इस्तेमाल करेंगे, तो इंफैक्शन  का खतरा नहीं होगा,’’ पहले वाले ने ज्ञान बघारा.

‘‘अबे तो फिर क्या तू पूरे शरीर में रबड़ पहनेगा?’’ ठहाका मारते हुए एक लड़का बोला.

उस के बाद सब आपस में प्लान बनाने में बिजी हो गए.

नरेश अपनी उधेड़बुन में परेशान चला आ रहा था… उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब शहर से गांव आ कर कैसे गुजारा करेगा, शहर में होता तो कुछ भी काम कर लेता, पर यहां गांव में न तो काम है और न ही कोई किसी भी तरह से मदद करने को तैयार है.

‘‘चाचाजी, नमस्ते.’’

नरेश ने आवाज की दिशा में सिर घुमाया, तो सामने निठल्ले गैंग का हैड खड़ा था.

नरेश जब से गांव में आया था, तब से सब लोगों की अनदेखी ही झेल रहा था, ऐसे में अपने लिए चाचाजी के संबोधन ने उसे बड़ा अच्छा महसूस कराया.

नरेश के होंठों पर एक मुसकराहट दौड़ गई, ‘‘भैया नमस्ते.’’

‘‘अरे चाचा… क्यों परेशान दिख  रहे हैं… कोई समस्या है क्या?’’ वह लड़का बोला.

‘‘भैया… अब क्या बताऊं… वहां की सारी समस्याएं झेल कर परिवार के साथ अपने गांव में पहुंचा हूं, पर यहां भी राशन खत्म हो गया है. न ही कोई पैसे उधार दे रहा है और न ही कोई गल्ला देने को तैयार है,’’ नरेश ने अपनी लाचारी दिखाते हुए कहा.

‘‘अरे तो इस में क्या दिक्कत है चाचा… सरकार की तरफ से सब लोगों को मुफ्त राशन दिया तो जा रहा है,’’ वह लड़का बोला.

‘‘पर भैया… उस के लिए तो राशनकार्ड होना चाहिए… और हमारे पास राशनकार्ड तो है नहीं,’’ नरेश  ने कहा.

‘‘अरे चाचा तो इस में कौन सी बड़ी बात है… रोज दोपहर यहां स्कूल में राशनकार्ड वाले बाबूजी बैठते हैं, जो गांव आए हुए लोगों का राशनकार्ड बनाते हैं… बस, आप को इतना करना है कि पूरे परिवार समेत कल दोपहर स्कूल पर पहुंच जाना. मेरी बाबूजी से अच्छी पहचान है… मैं उन से कह कर आप का कार्ड बनवा दूंगा, और फिर जितना चाहो उतना राशन भी दिलवा दूंगा आप को,’’ निठल्ले गैंग के हैड ने कहा.

अचानक से अपनी समस्याओं का अंत होते देख कर नरेश बहुत खुश हो गया और घर आ कर कल दोपहर होने का इंतजार करने लगा. वह सोचने लगा, ‘एक बार पेट भरने की समस्या का अंत हो जाए, फिर यही गांव के बाजार में कुछ कामधंधा जमाऊंगा. कुछ पैसा बैंक से लोन ले कर, शहर से सामान ले कर बाजार में बेचा करूंगा और फिर भैया का यह कमरा भी छोड़ दूंगा. फिर आराम से अपनी बेटियों का ब्याह करूंगा,’ बस इसी तरह के भविष्य के सपनों में नरेश की आंख लग गई.

अगले दिन 12 बजने से पहले ही नरेश अपनी दोनों बेटियों और पत्नी  को ले कर स्कूल में बाबू से मिलने चलने लगा.

अचानक से रास्ते में निठल्ले गैंग का हैड नरेश के सामने आ गया और नरेश की पत्नी और लड़कियों को घूरते हुए बोला, ‘‘अरे चाचा, वे राशनकार्ड वाले बाबूजी कह रहे थे कि आप सब लोगों का एक पहचानपत्र भी जरूरी है. क्या उस की कौपी लाए हैं आप लोग?’’

‘‘नहीं भैया… आप ने तो कल ऐसा कुछ बताया ही नहीं था…’’ अपनी नासमझी पर परेशान हो उठा था नरेश.

‘‘अरे चाचा… आप परेशान हो रहे हो… वे देखो सामने मेरी झोंपड़ी है. उस में इन बच्चों को आराम से बिठा देते हैं. और हम और आप चल कर पहचानपत्र ले आते हैं,’’ लड़के ने कहा.

‘‘हां, ठीक?है… ऐसा है संध्या… जब तक हम लोग अपना पहचानपत्र नहीं ले कर आते, तुम वहीं झोंपड़ी में बैठ जाओ,’’ नरेश ने अपनी पत्नी से कहा.

नरेश उस लड़के के साथ वापस हो लिया, जबकि उस की पत्नी संध्या अपनी दोनों बेटियों के साथ झोंपड़ी में चारपाई पर जा बैठीं.

रास्ते में जब नरेश उस लड़के के साथ आ रहा था, तब एक जगह वह लड़का रुका और बोला, ‘‘चाचा, बड़ी गरमी है. सामने ही मेरे दोस्त का घर है. पहले एक गिलास पानी पी लें, फिर चलते हैं.’’

दोनों के सामने बिसकुट और शरबत आया. शरबत पीते ही नरेश का अपने शरीर पर कोई जोर नहीं रहा और उसे बेहोशी आने लगी. वह वहीं गिर गया.

उधर जिस झोंपड़ी में नरेश अपने परिवार को छोड़ कर आया था, वहां पर 3-4 लड़के एकसाथ आ गए.

‘‘वाह भाई… आज तो हम शहरी माल के साथ सटासट करेंगे… चलो पहले कौन है लाइन में,’’ बेशर्मी से निठल्ले गैंग का एक लड़का बोल रहा था.

संध्या को उन लड़कों की नीयत पर शक हो गया और वह बचाव का रास्ता खोजने लगी.

अचानक एक लड़के ने संध्या के सीने को हाथों से भींच लिया, जिसे देख कर दूसरा लड़का हंसने लगा.

‘‘अरे, जब बछिया पास में हो तो… गाय को काहे को परेशान करना…’’

‘‘अरे, तुझे बछिया के साथ मजे लेने हैं, तो उस के साथ ले… मुझे तो यह गाय ही पसंद आ गई है.’’

दूसरे लड़के ने संध्या को चारपाई पर बांध दिया और इसी तरह जबरदस्ती  उस की दोनों बेटियों के भी हाथमुंह बांध दिए गए.

पूरा निठल्ला गैंग इस परिवार पर टूट पड़ा और लड़के बलात्कार करने में जुट गए, इतने में वहां गैंग का हैड भी आ गया.

‘‘अरे, अकेले ही सब माल मत खा जाना… मेरे लिए भी छोड़ देना.’’

‘‘अरे, लो यार… आज तो 3-3 हैं. जिस के साथ चाहो, उस के साथ  मजे करो.’’

और उस निठल्ले गैंग के पांचों लड़कों ने बारीबारी से और बारबार संध्या और उस की बेटियों का बलात्कार किया और इतना ही नहीं, बल्कि जो लड़का इंटरनैट की जानकारी रखता था, उस ने अपने मोबाइल से अश्लील वीडियो भी शूट किया और जी भर जाने के बाद वहां से भाग गए.

कुछ ही देर में संध्या का सबकुछ लुट चुका था. आज उस के ही सामने उस की बेटियों और उस का बलात्कार हो गया. उसे और कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह पागल सी हो रही थी. अचानक उस ने अपनी दोनों बेटियों को साथ लिया और गांव के नजदीक बहने वाली नदी में छलांग लगा दी.

इधर जब नरेश होश में आया, तो दौड़ कर उस झोंपड़ी में पहुंचा. पर, वहां के हालात तो कुछ और ही बयान कर रहे थे. अब भी उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक उस का परिवार कहां चला गया.

तभी नरेश की नजर अंदर बैठे हुए निठल्ले गैंग के लड़कों पर पड़ी, जिन पर मस्ती का नशा अब भी चढ़ा हुआ था. वह उन की ओर लपका.

‘‘ऐ भैया… हम अपनी पत्नी और बेटियों को यहीं छोड़ कर गए थे… अब कहां हैं वे सब… कुछ समझ नहीं आ रहा है हम को.’’

‘‘ओह… तो तू होश में आ गया… ले यह मोबाइल में देख ले और समझ ले कि तेरे बच्चे कहां हैं,’’ उस मोबाइल वाले लड़के ने मोबाइल पर बलात्कार का वीडियो नरेश की आंखों के सामने कर दिया.

अपनी बेटियों और पत्नी का एकसाथ बलात्कार होते देख नरेश का खून खौल गया. उस ने कोने में रखी लाठी उठाई और उन लड़कों पर हमला कर दिया. एक तो नरेश पर नशे का असर अब भी था, ऊपर से वे जवान  5 लड़के.

उन लड़कों ने नरेश के हाथों से लाठी छीन ली और तब तक मारा जब तक वह मर नहीं गया.

इस कोरोना संकट और गांव पलायन ने नरेश की मेहनत से बनाए हुए सपनों के छोटेमोटे घोंसले को बरबाद कर दिया था.

नरेश और उस का पूरा परिवार अब खत्म हो चुका था. अब उसे न तो घर की जरूरत थी, न पैसे की, न नौकरी की, न ही राशन की और न ही राशनकार्ड की…

इंतकाम : सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

Crime story in hindi

इंतकाम: भाग 3- सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

तभी दरवाजे की घंटी बजी. हैरानपरेशान और अपने हालात से चिड़ा हुआ सा सुजय दरवाजे पर था. उस ने नेहा के चेहरे की तरफ देखा. ऐसा लग रहा था मानो नेहा कई घंटों से रो रही हो. उस की आंखें भी सूजी हुई थीं.

सुजय ने नेहा के मन की थाह लेने के मकसद से पूछा, ‘‘क्या हुआ सब ठीक तो है?’’

‘‘जी बस सिर में दर्द हो रहा था,’’ कह कर वह पानी ले आई और फिर जा कर बाथरूम में अपना चेहरा धोने लगी.

सुजय को लगा जैसे नेहा सच बात बताना नहीं चाहती. वैसे भी उस ने आज तक कोई सचाई बताई कहां है, यह सोचते हुए उस ने अपने पौकेट में पड़े एक बेकार कागज को फेंकने के लिए जूते से डस्टबिन का ढक्कन खोला तो उसे ऊपर ही किसी तसवीर के टुकड़े दिखाई दिए. उस ने कुछ बड़े टुकड़ों को मिला कर देखा तो उसे सम झ आ गया कि यह तो संजय की तसवीर थी.

अचानक उस की आंखों में यह सोच कर चमक आ गई कि लगता है संजय के साथ नेहा का तगड़ा वाला ब्रेकअप हो गया है. वह खुश हो गया मगर अपनी खुशी होंठों के बीच दबाते हुआ उस ने नेहा से चाय की फरमाइश की और खुद कपड़े बदल कर अपने कमरे में घुस गया.

नेहा चाय ले आई. आज चाय रख कर वह तुरंत मोबाइल में आंखें घुसाए अपने कमरे की तरफ नहीं गई बल्कि सुजय के कमरे को व्यवस्थित करने लगी. टेबल पर रखे कागज और पत्रिकाएं करीने से लगाने के बाद उस की अलमारी के कपड़ ठीक से लगाने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वह सुजय को समय देना चाहती है. उस के काम कर के अपनी गिल्ट कम करने की कोशिश कर रही हो.

सुजय को बहुत समय बाद नेहा पर पहले की तरह प्यार आ रहा था. वह नेहा के करीब गया और बिना कुछ कहे उसे सीने से लगा लिया. नेहा भी खुशी से उस के गले लगी रही. दोनों के बीच की तमाम शिकायतें जैसे खामोशियों के बीच बहने लगीं. उस रात नेहा ने अपनी तरफ से पहल की और दोनों ने एक खूबसूरत साथ का अनुभव किया.

अगले कुछ दिनों तक सुजय ने वाच किया कि नेहा क्या सच में संजय से अलग हो चुकी है. नेहा के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उस के इस विश्वास को पुख्ता किया कि अब नेहा के दिल में संजय नहीं है. नेहा का समय अब उस के लिए होता था. भले ही वह अभी भी काफी खोईखोई सी रहती थी, मगर अब मोबाइल में लगे रहना और हर दूसरे दिन किसी न किसी बहाने से बाहर जाना बंद हो चुका था.

इस तरह 2-3 महीने बीत गए. सुजय ने अपनी तरफ से पता कराया तो उसे खबर मिली कि संजय शादी करने वाला है. उसे तब इस ब्रेकअप की वजह सम झ आ गई लेकिन फिर भी वह इस मामले को ले कर मन से पूरी तरह निश्चित नहीं हो सका था. उसे लगता था कि कहीं नेहा संजय के पास वापस न चली जाए या कहीं नेहा के मन में अभी भी संजय है तो नहीं. ये बातें उसे बेचैन करती थीं. पिछले कुछ दिनों में नेहा को पा लेने के बाद अब वह उसे वापस कतई खोना नहीं चाहता था. उसे नेहा से बहुत प्यार था और एक दिन उस ने एक बड़ा फैसला ले लिया.

यह फैसला था संजय से बदला लेने का, नेहा के जीवन से संजय को हमेशा निकालने का और नेहा के दिल में  झांक कर यह तसल्ली कर लेने का कि नेहा वाकई पूरी तरह उस की बन चुकी है. वह एक अच्छे मौके की तलाश में था. वह अकसर गाड़ी ले कर संजय के घर के आसपास चक्कर लगाता ताकि उसे कोई मौका मिले और वह अपने प्लान को अंजाम दे सके.

उस दिन संडे था. रात में सुजय गाड़ी ले कर बाहर निकला. बहुत देर तक संजय के घर से कुछ दूर गाड़ी पार्क कर के संजय के निकलने का इंतजार करने लगा.

सुजय ने अपनी गाड़ी की प्लेट बदल ली थी. उस ने देखा कि संजय किसी से फोन पर बात करते हुए बाइक ले कर बाहर निकला. सुजय उस का पीछा करने लगा. संजय पुल के पास से गुजर रहा था. सुजय ने अपनी कार से उसे टक्कर मारी. संजय जमीन पर गिर पड़ा. सुजय ने कार रिवर्स की और उसे कुचलता हुआ निकल गया.

काफी दूर आने के बाद एक सुनसान जगह पर सुजय ने फिर से गाड़ी की प्लेट बदली और अपने घर लौट आया.

सुबहसुबह उस ने टीवी पर न्यूज चैनल लगाया. एक चैनल पर संजय की मौत की खबर आ रही थी. उसी समय उस ने चाय के लिए आवाज लगाई, ‘‘नेहा 2 कप चाय ले आना. मतलब मेरे साथ अपने लिए भी.’’

नेहा चाय ले कर आई और वहीं बैठ गई. उस की आंखों के आगे संजय की मौत का समाचार था मगर वह नौर्मल रही. उस ने आराम से चाय खत्म की और सुजय से पूछ कर नाश्ते की तैयारी करने लगी. नाश्ते के साथ उस ने खीर भी बनाई और सुजय को परोस दी. उस के चेहरे पर तड़प या तकलीफ नहीं थी.

नेहा को इस तरह देख कर सुजय का दिल खिल उठा. आज उस ने न केवल संजय से इंतकाम ले लिया था बल्कि नेहा को पूरी तरह हासिल भी कर लिया था. अब उसे कोई डर नहीं था नेहा के कहीं जाने का.

इंतकाम: भाग 2- सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

मन की शांति की तलाश में सुजय अपने एक दोस्त के कहने पर बाबा सेवकानंद के आश्रम पहुंचा. 2-3 घंटे बाबा का प्रवचन सुनने के बाद उस ने तय किया कि यहां हर सप्ताह आया करेगा. उस ने यही किया. हर सप्ताह वह बाबा के दर्शन के लिए पहुंचने लगा. बाबा की तेज नजर सुजय पर पड़ी तो उन्हें सम झ आ गया कि एक मोटा मुरगा फंसा है. मुरगे को हलाल करने के लिए थोड़ी तैयारी की जरूरत होती है. बाबा ने अपना पासा फेंकने की सोची और सुजय को पास बुलाया.

सुजय ने अपनी समस्या बताई. उस के समाधान के लिए बाबा ने उसे एक अनुष्ठान कराने की सलाह दी. यह अनुष्ठान आश्रम में होना तय हुआ और इस की तैयारी के लिए सुजय को क्व20 हजार की रकम लाने को कहा गया. सुजय ने रुपए दिए तो काम शुरू हुआ. हवन की सामग्री के साथ कुछ और चीजें मंगाई गईं. अनुष्ठान के दौरान भी उस से काफी रुपए खर्च कराए गए और फिर दानदक्षिणा के नाम पर भी बाबा ने काफी रुपए ऐंठे.

तय दिन हवन और अनुष्ठान संपन्न हुआ. बाबा ने बताया था कि अनुष्ठान वाली रात उसे सफेद कपड़े पहन कर एक कमरे में आश्रम में ही ठहरना होगा.

सुजय ने ऐसा ही किया. आधी रात को उस के कमरे में बाबा की 2 दासियों ने प्रवेश किया. उन्होंने अपनेअपने तरीके से सुजय को लुभाने और हमबिस्तर होने की कोशिश की तो सुजय का दिमाग चकरा गया. वह सम झ नहीं पा रहा था कि आश्रम की औरतें उस से इस तरह का व्यवहार करेंगी. वह रात में ही अपना सामान और बची इज्जत ले कर दफा हो गया.

इस घटना के कुछ दिन बाद एक बार जब सुजय औफिशियल मीटिंग के लिए शहर से बाहर गया हुआ था तो नेहा संजय के पास पहुंच गई. संजय को तो ऐसे ही मौकों का इंतजार रहता था. उस ने नेहा को बांहों में भर लिया.

तब नेहा शिकायती लहजे में बोली, ‘‘ऐसा कब तक चलेगा संजय. तुम मु झे प्यार करते हो तो अपना बनाते क्यों नहीं? इस तरह छिपछिप कर कब तक मिलते रहेंगे?’’

‘‘जब तक तुम्हारे बेवकूफ पति को पता न चले,’’ संजय ने कहा.

‘‘वह बेवकूफ नहीं और उसे सब पता चल चुका है.’’

‘‘तो ठीक है उस ने कुछ कहा तो नहीं न,’’ संजय ने पूछा.

‘‘कहा नहीं मगर मु झे लगता है जैसे वह बच्चे को ले कर इस शक में है कि वह उस का है या नहीं,’’ नेहा कुछ सोचती हुई बोली.

‘‘वह पति है तो बच्चा तो उसी का होगा न,’’ कह कर संजय बेशर्मी से हंसने लगा.

नेहा खुद को उस की गिरफ्त से आजाद करती हुई बोली, ‘‘दिल के हाथों मजबूर नहीं होती न, तो कभी तेरे पास नहीं आती. तु झे पता है वह बच्चा तेरा है मगर तू जिम्मेदारियां लेना ही नहीं चाहता. कहीं तू मेरे जज्बातों के साथ खेल तो नहीं रहा?’’

‘‘नहीं माई डियर. सैटल होते ही तु झ से शादी करूंगा और अपने बच्चे को अपना नाम भी दूंगा. अब तो खुश है,’’ कह कर संजय ने नेहा की आंखों में  झांका तो वह फिर से उस के सीने से लग गई.

‘‘इसी आस में तो सबकुछ सह रही हूं. तू बस एक बार कह दे मैं सब कुछ छोड़ कर हमेशा के लिए तेरे पास आ जाऊंगी,’’ नेहा ने भावुक होते हुए कहा.

इसी तरह समय गुजरता रहा. नेहा के पेट में एक बार फिर संजय का बच्चा था. नेहा फिर से सुजय के ज्यादा करीब आने लगी ताकि बच्चे को ले कर उसे कोई शक न हो. इधर सुजय अपने दिल के हाथों मजबूर था. वह नेहा का सामीप्य पा कर उस से नाराज नहीं रह पाता था. दूसरी बार नेहा को बेटी हुई. फूल सी बच्ची को गोद में ले कर सुजय संजय का चैप्टर भूल गया और अपने परिवार के कंपलीट होने की खुशी मनाने लगा.

नेहा के बच्चे अब थोड़े बड़े हो गए थे. दोनों स्कूल जाने लगे थे. बच्चों को स्कूल और पति को औफिस भेज कर नेहा संजय से बातें करने में मशगूल हो जाती.

पीछे से जब सुजय फोन करता तो उसे नेहा का फोन व्यस्त मिलता. सुजय जब इस बात को ले कर टोकता तो नेहा बहाने बना देती कि वह मायके वालों से बातें कर रही थी. कई बार नेहा मायके जाने की बात कह कर संजय के साथ कहीं भी निकल जाती.

एक दिन नेहा ने संडे को ऐसा ही बहाना बनाया और चली गई. इधर सुजय ने अपना शक दूर करने के लिए नेहा के मायके फोन लगाया तो उसे पता चला कि नेहा वहां नहीं है. सुजय सम झ गया कि नेहा उस से अभी भी चीट कर रही है. वह फिर से परेशान रहने लगा.

इधर एक दिन जब नेहा सजधज कर संजय से मिलने पहुंची तो देखा कि संजय के घर से कोई और खूबसूरत लड़की निकल रही है.

यह देख कर नेहा संजय पर भड़क उठी, ‘‘यह क्या था संजय. अब मैं सम झी कि तुम मु झे आजकल इग्नोर क्यों करने लगे हो. तुम मेरे पीछे किसी और के साथ…’’

‘‘तो इस में कौन सी बड़ी बात हो गई नेहा. तुम भी तो किसी और मर्द के साथ रहती हो. मैं ने तो कभी कुछ नहीं कहा,’’ संजय बोला.

‘‘मैं मजबूरी में रहती हूं क्योंकि तुम ने मु झ से अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘अब तक क्या नेहा. तुम भी पता नहीं किस मुगालते में जीती हो. 2 बच्चे की शादीशुदा महिला से मैं एक अविवाहित, हैंडसम, वैल सैटल लड़का शादी क्यों करेगा. उस पर तुम्हारी जाति अलग होने का पंगा भी है.’’

‘‘मगर तुम मु झ से प्यार करते हो न. शादी करने के लिए क्या यही एक वजह काफी नहीं?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘नहीं माई डियर बिलकुल नहीं और फिर प्यार खत्म कहां हो रहा है. तुम जब चाहो आ सकती हो मेरा प्यार पाने के लिए.’’

‘‘डिसगस्टिंग संजय. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम इतना गिर सकते हो. मौम ने मु झे पहले ही आगाह किया था मगर मैं तुम्हारे प्यार में पागल बनी रही,’’ नेहा अपने किए पर पछता रही थी.

‘‘तो फिर एक बात और सुन लो डार्लिंग, मैं अगले महीने हिना से शादी करने वाला हूं,’’ संजय ने उसे हकीकत से अवगत कराया तो वह तड़प उठी.

‘‘शादी के वादे मु झ से और शादी किसी और से. तुम इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हो संजय?’’ नेहा की आंखों में आंसू आ गए.

संजय हंसता हुआ बोला, ‘‘क्या यार तुम इतने सालों में यह नहीं सम झ सकी कि मेरी तुम से शादी करने में रुचि नहीं है. अब तो मैच्योर बनो और इस मामले को अच्छे से हैंडल करो.’’

‘‘बिलकुल अब मैं सबकुछ अच्छे से हैंडल करूंगी. तुम्हारे लिए मैं ने अपने पति से चीट किया, तुम्हारी हर गलती इग्नोर की, तुम्हारे धोखे को महसूस ही नहीं कर सकी. मगर अब सब क्लीयर हो गया,’’ कहते हुए उस ने दरवाजा खोला और जोर से बंद करती हुई बाहर निकल गई.

घर आ कर नेहा काफी देर तक रोती रही. संजय की तरफ से उस का मन पूरी तरह से खट्टा हो चुका था. उसे महसूस हो रहा था जैसे संजय ने उस के प्यार को मजाक बना दिया हो. उस के साथ संजय ने विश्वासघात किया था. उसे धोखा दिया था.

2-3 घंटे वह इस धोखे को याद कर सुबकती रही. पुरानी यादें जेहन में तीखे तीर बन कर चुभ रही थीं. उस ने संजय का फोटो निकाला जिसे उस ने कालेज के समय से संभल कर रखा था. फिर उस के छोटेछोटे टुकड़े कर डस्टबिन में फेंक दिए. अपने मोबाइल से संजय की सभी तसवीरें डिलीट कर दीं. इतने में भी सुकून नहीं मिला तो उस का नंबर भी ब्लौक कर दिया.

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