अब गोदी मीडिया पर सख्ती संभव

जो काम इंगलैड में टैबलायड साइज के अखबार करते हैं उसी काम में हमारे देश के हिंदी न्यूज चैनल बढ़चढ़ कर के नए पैमाने तय कर रहे हैं. झूठ, सफेद झूठ, भ्रामक झूठ, हानिकारक झूठ में इन चैनलों ने फर्क ही मिटा दिया और जैसे इंगलैंड में टैबलायड हिटलर को कभी जिंदा कर देते हैं, कभी किंग चार्ल्स की 2 और बीवियां खोज लाते हैं, हमारे चैनल क्व2 हजार के नोट में चिप्स से ले कर हर मुसलिम में कोई न कोई खामी ढूंढ़ सकते हैं और सीधीसादी जनता को बहका सकते हैं.

इन चैनलों को दोष नहीं दिया जाना चाहिए, इन के दर्शकों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने बचपन से ही झूठ और चमत्कार की इतनी कहानियां पढ़ीसुनी हैं और इतने गलत तथ्यों को सनातन सत्य माना है कि उन के लिए ये चैनल दर्शनीय है और दूरदर्शन टाइप के बुलेटिन बोरिंग बन कर रह गए चैनल बेकार.

मामला आर्यन खान के ड्रग लेने का हो, तबलीगी जमात के कोविड फैलाने का हो, रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह के आपसी संबंधों का हो, ये चैनल बिना सही झूठ परखे कुछ भी कर सकते हैं.

इन का हाल तो यह है कि जब मोदी की पार्टी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, केरल में हार रही हो तो ये बड़ी खबर बनाते हुए घंटों त्रिपुरा की 2 सीटों की बातें करते रहेंगे कि शायद कुछ चमत्कार हो जाए जिस में समाजवादी, तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस हार जाए.

यह एक तरह की वही भावना है जो हमारा हर अंधविश्वासी पाले रखता है जो पहाड़ पर बने अपने 4 मंजिले मकान को गिरते देख कर उस चमत्कार की कामना करने के लिए भगवद भजन शुरू कर देता है कि मकान 45 के कोण पर झुक जाए पर गिरे नहीं.

सरकार के बारे में कड़वे सच को छिपाने और बाकी दुनिया को छोटा, नीचा, बेईमान दिखाने के लिए हर झूठ का सहारा लेने वाले चैनलों की अपराध रिपोर्टिंग पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है और कहा है कि हर जिले का पुलिस अफसर सूचनाएं देने से पहले 4 बार सोचे. ऐसा होगा या नहीं, पता नहीं पर जो बकबकिए ऐंकर हिंदी चैनलों ने पाल रखे हैं उन पर अंकुश उन के दर्शकों की सेहत के लिए अच्छा है.

इन चैनलों के भ्रामक समाचारों के कारण बहुत से साधारण लोग गुस्से में भरे रहते हैं, कुछ अनापशनाप दवाएं खा लेते हैं, कुछ हिंसक हो जाते हैं, कुछ मायूस भी हो जाते हैं. सरकार और सुप्रीम कोर्ट इन पर स्पीड ब्रेकर लगा सकेगा, इस की गुंजाइश कम है पर कोशिश ही संतोषजनक है.

राम भरोसे स्वास्थ्य सेवा

नर्सिंग सेवाओं की लगातार बढ़ती मांग ने देशभर में नकली और अधकचरे नर्सिंग कालेजों की बाढ़ सी ला दी है. मध्य प्रदेश में 600 नर्सिंग कालेजों की हो रही जांच में पता चला कि कुछ नर्सिंग कालेज केवल नकली पते पर चल रहे हैं पर वे सुंदर आकर्षक सर्टिफिकेट दे देते हैं जिन के बलबूते पर कुकुरमुत्तों की तरह फैल रहे क्लीनिकों में नौकरियां मिल जाती हैं.

बहुत से डाक्टर और नर्सिंगहोम इन्हें ही प्रैफर करते हैं क्योंकि ये सर्टिफिकेट के बल पर बचे रहते हैं. जहां तक सिखाने की बात है, मोटीमोटी बातें तो किसी को भी 4 दिन में बताई जा सकती हैं. अगर कुछ गलत हो जाए तो अस्पताल इसे मरीज की गलती या मरीज की बीमारी पर थोप कर निकल जाता है.

जिस देश में 80% जनता झाड़फूंक, पूजापाठ पर ज्यादा भरोसा करती हो और छोटे डाक्टर या क्लीनिक में जाना भी उस के लिए मुश्किल हो, वह गलत सेवा दे रही नर्स के बारे में कुछ कहने की हैसियत नहीं रखता.

एक मामले में एक नर्सिंग कालेज 3 मंजिले मकान की एक मंजिल में 3 कमरों में चल रहा था और उस का मालिक प्रिंसिपल

मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग का डाइरैक्टर रह चुका है. वह जानता है कि सरकारी कंट्रोल से कैसे निबटा जाता है. नियमों के अनुसार नर्सिंग कालेज में 23 हजार वर्गफुट की जगह होनी चाहिए. उस घरेलू नर्सिंगहोम से 4 बैच निकल भी चुके हैं और नए छात्रछात्राएं आ रहे हैं.

क्या छात्रछात्राओं को मालूम नहीं होता कि वे जिस फेक और फ्रौड मैडिकल या पैरामैडिकल कालेज में पढ़ रहे हैं वह कुछ सिखा नहीं सकता? उन्हें मालूम होता है पर उन का मकसद तो सिर्फ डिगरी या सर्टिफिकेट लेना होता है. यह देश की परंपरा बन गई है जहां प्रधानमंत्री तक अपनी डिगरी के बारे में स्पष्ट कुछ कहने को तैयार नहीं हैं और कभी कुछ कभी कुछ कहते रहे.

ऐसे देश में जहां लोग हजारों की संख्या में लगभग अनपढ़, कुछ संस्कृत वाक्य रट कर करोड़ों का आश्रम चला सकते हैं या धर्म का बिजनैस कर सकते हैं वहां मैडिकल और पैरामैडिकल सेवाओं में जम कर बेईमानी न हो ऐसा कैसे हो सकता है. यह सब मांग और पूर्ति का मामला है. नर्सों की कमी है और किसी सर्टिफिकेट के लिए लड़की या लड़का छोटे डाक्टर या छोटे क्लीनिक के लिए काफी है. पहले भी रजिस्टर्ड मैडिकल प्रैक्टीशनरों के पास जो कंपाउंडर होते थे वे नौसिखिए ही होते थे.

ग्राहक की मानसिकता और उस की सेवा पाने की क्षमता इस मामले के लिए जिम्मेदार है. जब लोग कम पैसों में इलाज कराएंगे तो उन्हें पैरामैडिकल सेवाएं भी अधकचरी मिलेंगी और उन के लिए ट्रेंड करने वाले भी अधकचरे ही होंगे.

आज थोड़े से अक्लमंद लोग क्या कर सकते हैं, यह दिल्ली के एक ज्वैलर के यहां क्व25 करोड़

के डाके से साफ है जिस में एक लड़के ने एक रात में अकेले बिना अंदरूनी सहयोग के तिजोरी काट कर चोरी कर ली और कोई खास सुबूत नहीं छोड़ा. यह तो सैकड़ों कैमरों का कमाल है कि आज हर अपराधी कहीं न कहीं पकड़ा ही जाता है.

नर्सों, फार्मेसिस्टों के बारे में तो पूछिए ही नहीं. पैसे हैं तो अच्छी सेवा मिल जाएगी वरना जैसी मिल रही है उसी से खुश रहिए. यह न भूलें कि आज हर सेवा में बिचौलिए ज्यादा कमा रहे हैं, चाहे वे 4 जनों की फर्म चला रह हों या सैकड़ों टैकसैवी कर्मचारी रख कर औनलाइन सेवा दे रहे हों.

 

धर्म गुरुओं के निशाने पर विदेशी युवतियां

दिल्ली में एक स्विस युवती की हत्या बहुत सारे सवाल खड़ा करती है. यह युवती स्विट्जरलैंड में हत्यारे गुरप्रीत सिंह से 3 साल पहले किसी एक पार्टी में मिली थी और उस के बाद उन में बातचीत होती रहती थी. गुरप्रीत के कहने पर ही लीना बर्जर दिल्ली आई जहां गुरप्रीत ने उस पर विवाह करने का दबाव बनाया. जब वह नहीं मानी तो उसे मार कर उस की लाश को एक सड़क के किनारे फेंक दिया गया.

पुलिस को जंजीरों से बंधी लाश की पहचान और मारने वालेको पकड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि बहुत कम सूत्र उपलब्ध थे. फिर भी उसे पकड़ लिया गया क्योंकि दिल्ली के सैकड़ों कैमरों में हरकोई कहीं न कहीं कैद हो ही जाता है.

आश्चर्य की बात यह है कि  पश्चिमी देशों की पढ़ीलिखी, अपने पैरों पर खड़ी लड़कियों को यह क्या हो रहा है कि वे भारतीय युवाओं के पीछे भी चली आती हैं और भारत की गंदगी, बेईमानी, दोगलेपन को पहचान नहीं पातीं.

गुरुओं के जाल में फंसती हैं लड़कियां

हजारों युवतियां आज गुरुओं के आश्रमों में बसी हुई हैं और नाटक करती हैं कि उन्हें असल शांति यहीं मिल रही है. पश्चिमी देशों में भी हर तरह के गुरुओं ने डेरे जमा रखे हैं जहां वे युवतियों को आकर्षित कर लेते हैं और उन के पीछेपीछे उन के बौयफ्रैंड भी चले आते हैं. उन के पैसे भी लूट लिए जाते हैं और उन के तन का उपयोग भी करा जाता है. टूटे घरों से आ रही ये लड़कियां अपने मांबाप, परिवार से इतनी नाराज रहती हैं कि उन की अवहेलना करने में इन्हें कोई दर्द नहीं होता. कुछ लड़कियां तो बरसों अपने मांबाप, भाईबहन को पता तक नहीं बतातीं.

गोवा, धर्मशाला, जैसलमेर जैसी जगहों पर ऐसी लड़कियों की तादाद बढ़ रही है जो टूरिस्ट वीजा पर आती हैं और किसी लोकल से शादी कर के परमानैंट वीजा पा लेती हैं और फिर यहीं की हो कर रह जाती हैं क्योंकि उन्हें अपना अमीर, साफसुथरा देश नहीं भाता. भारतीय युवकों ने यह भांप लिया है और कितने ही युवक गोरी मेमों को यहां ला रहे हैं क्योंकि यहां शुरू में उन्हें घर का प्यार मिलता है. वे नहीं जानतीं कि भारत में तो मर्द और ज्यादा खूंख्वार होते हैं क्योंकि उन्हें औरत की इज्जत, उसे बराबर समझना सिखाया ही नहीं जाता.

सिर्फ नाम की देवी

2017 में गोवा में आयरलैंड की 28 साल की लड़की डैनियल मैकलाक्लिन की लाश मिली. वह एक आस्ट्रेलियन युवती के साथ रह रही थी. 2020 में गुजरात के सूरत में थाईलैंड की वरिंदा बुर्जोन को उसी घर में जला कर मार डाला.

2018 में केरल में यूरोप के देश लातविया की एक लड़की को मार डाला जो आयुर्वेद इलाज के नाम पर बहका कर भारत बुलाई गई. उसे नशा करा कर उस से रेप किया गया और फिर लाश दलदल में फेंक दी गई थी.

भारत में दिल्ली के पास निठारी में जो हुआ और जिस तरह पकड़े गए 2 जनों को बरी भी कर दिया गया उस से साफ है कि यहां लड़कियां बिलकुल सेफ नहीं हैं. हम न अपनी औरतों की इज्जत करते हैं, न बाहर की औरतों की. पूज लेते हैं पर देवी बना कर. घर में तो जूती ही हैं.

खेल है जंग का मैदान नहीं

अहमदाबाद में भारतपाकिस्तान वर्ल्ड कप क्रिकेट मैच में भारत की जीत कुछ ही ओवरों के बाद साफ  होने लगी थी और पता लग रहा था कि पाकिस्तानी खिलाडि़यों की हिम्मत टूट चुकी है पर फिर भी जिस तरह वहां नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारतीय दर्शक ‘जय श्रीराम’ के नारे लगा कर पाकिस्तानी खिलाडि़यों को चिढ़ाने लगे उस से साफ था कि जो काम जुलाई, 1971 में सेना के जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में जुल्फीकार अली भुट्टो की सरकार का तख्ता पलटने के बाद किया, यहां शुरू हो चुका है और सरकार के मंसूबे, आम आदमी की सोच खासतौर पर उस आदमी की जो महंगे स्टेडियम में हजारों के टिकट खरीद कर जा सकता है, खराब हो चुकी है.

पाकिस्तान भारत से काफी साल दो कदम आगे रहा है जबकि उसे पार्टीशन में सिंध का रेगिस्तान, ब्लूचिस्तान की पहाडि़यां और पूर्वी बंगाल के दलदल भरे इलाके मिले थे.

जिया उल हक ने वही किया जो अब हमारे यहां हो रहा है. नकली मुकदमों से विरोधी दलों के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया. जुल्फीकार अली भुट्टो पर एक विरोधी की हत्या का आरोप लगा कर उसे फांसी की सजा दिलवा दी. 9 साल में संविधान, जो बना ही मुश्किलों से था और जिस में वैसे ही धर्म की बात ज्यादा थी, आम लोगों के हकों की कम, इस के एकएक कर के चिथड़े कर दिए. इस संविधान की डिजाइन में अनेक छेद थे, जिस के जिया उल हक ने चिथड़ेचिथड़े कर दिए.

जिया उल हक ने अपने राज में इसलामी कानून की कट्टरता लागू कर डाली. देश का विनाश शुरू हो गया और अब 50 साल बाद पता चल रहा है कि वह क्या कर गया था.

उस पाकिस्तान के खिलाडि़यों के खिलाफ नारे लगाने का मतलब है कि क्रिकेट दर्शकों की भीड़ में भी धर्म का जहर घुल गया है.

1 लाख से ज्यादा दर्शकों में अगर 1 या 2 हजार भी हल्ला मचाने वाले हों तो भीड़ को भड़कने से कोई नहीं रोक सकता पर ये 1 या 2 हजार लोग देश को गहरी खाई में ले जा रहे हैं, यह खेल के मैदान से साफ है.

जहां तक खेलों में अच्छे रहने का सवाल है, रूस ने वर्षों कम्यूनिज्म की तानाशाही सहन की पर ओलिंपिक में वह हमेशा पहले 3 में रहा. इस का मतलब यह नहीं था कि रूसी जनता खुश थी. वह ‘जय श्रीराम’ की तरह लेनिन, स्टालिन, मार्क्स के नारे लगाती थी. शहरों में मार्क्स और लेनिन की बड़ी मूर्तियां थीं पर स्टोरों में खाली शेल्फ मुंह चिढ़ा रहे थे. यही पाकिस्तान में जिया उल हक व उस के बाद परवेज मुशर्रफ ने किया. गिरे हुए देश की खिल्ली उड़ाने का मतलब है कि हम खुद कितने नीचे गिर गए हैं.

पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी भारत के बुलाने पर भारत में हैं, वे जबरन नहीं घुसे हैं. उन का मजाक उड़ाना अपनी नई संस्कृति की साफ झलक दिखाना है. सदियों से बेइज्जती करना हमारे खून में है. हमारे यहां दलितों को तो जानवर समझ ही जाता था, शूद्रों का मजाक भी उड़ाया जाता रहा है. इन के नाम तक अपमानजनक रखे जाते थे. दान देने वाले बनियों के नाम भी कालूराम, गैंडामल जैसे रखे जाते थे ताकि उन में अपनेआप कमजोरी छाई रहे.

जो फायदा पढ़ाईलिखाई का पिछले 50-60 साल में हुआ था, उसे अब धो डाला गया है. अरबों के बने स्टेडियम में एक मेहमान टीम का माखौल उड़ाना बताता है कि हमारी कलई कितनी पतली है. हम हिटलर के नाजियों से कम नहीं हैं, जिन्होंने यहूदियों को बेइज्जत करने का कोई मौका 1935 से

1945 के बीच नहीं छोड़ा और जरमनी को नष्ट करवा दिया. वे तो बाद में विश्व युद्ध में हारने पर सम?ा गए कि किस कुएं में थे पर क्या हम समझेंगे जो खिलाडि़यों के साथ वैसा बरताव कर रहे हैं जैसा हिटलर ने 1936 के बर्लिन के ओलिंपिक खेलों में किया था, जब उस ने एक काले अमेरिकी खिलाड़ी को पदक पहनाने से इनकार कर दिया था जो सरकार के बुलावे पर बर्लिन पहुंचा था?

मंदिर के नाम पर झूठों का सहारा

हिंदूमुसलिम, हिंदूमुसलिम करतेकरते हिंदूसिख, हिंदूसिख होना ही था. जो पत्नी अपने पति को भाइयों की संपत्ति को हड़पने को उकसाएगी उस के भाईबहन उसी की संपत्ति हड़पने की प्लानिंग कर रहे हों तो गलत नहीं होगा. जब आप बेमतलब के झगड़ों के लिए कीकर के बीज बोएंगे तो कीकर का जंगल ही उगेगा, उस में से आम नहीं निकलेंगे.

आज भारत में औरतें अपने पिता की संपत्ति में से हक के लिए जब लड़ती हैं तो उन्हें यह याद रखना होगा कि उन की ननदें भी ऐसा करेंगी. या तो समस्या को प्यार और दुलार से न्यायोचित ढंग से सुलझा लो वरना एक जगह लगी आग की चिनगारियां दूसरी की साड़ी पर भी छेद करेंगी.

भारत के हिंदू कट्टरवादियों ने दिल खोल कर खुशी जाहिर की आखिर मुसलमानों, दलितों, शूद्रों को सबक सिखाने वाली सरकार मंदिर के नाम पर झूठों का सहारा ले कर बन ही गई और शायद पुरानी पौराणिक परंपरा फिर आ जाएगी जिस में नीची जातियां सेवा के लिए तैयार रहेंगी. इन कट्टरवादियों की औरतों ने साथ दिया पर ये औरतें भूल गईं कि इस का असर होगा कि उन्हें घरों में बिना तालों के बंद कर दिया जाएगा. इन के टेलैंट का इस्तेमाल सिर्फ तंबोला खेलने में बरबाद कर दिया जाएगा.

ये भूल गईं कि हिंदूमुसलिम से शुरू हुई आग अन्य धर्मों तक तो पहुंचेगी ही और कनाडा में बसे लाखों सिख जो मजदूरी करने गए थे पर अब सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिक हैं, अपनी खालिस्तान की बेहूदा मांग को उसी तरह खड़ा करेंगे जैसे हर तार्किक को भारत में पाकिस्तानी उग्रवादी, नक्सली, देशद्रोही कह दिया जाता है.

पंजाब में खालिस्तान की मांग अंदरअंदर ही सुलग रही हो तो पता नहीं पर इतना साफ है कि भारतीय जनता पार्टी का सफाया हो चुका है और उस के साथ प्रकाश सिंह बादल की पार्टी अकाली दल धूल में जा चुकी है जो हिंदूमुसलिम विवाद को शह दे रही थी. पंजाब ने फ्रस्टे्रशन में ड्रग्स का रास्ता चुना है और भारत से बाहर बसे सिखों ने खुल्लमखुल्ला खालिस्तान का. भारतकनाडा संबंध बेहद खराब हो चुके हैं और अमेरिका, इंगलैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड अपने भाई कनाडा के साथ हैं. खालिस्तानी नारे इन देशों में भी गूजेंगे, यह दिख रहा है.

इस का हल फालतू में तूतू, मैंमैं करने से नहीं होगा. जिस से मतभेद हैं उस के साथ किचन में बैठ कर मामले को ठंडा करने से होगा. पर लट्ठ मारने की आदी हो चुकी हिंदूमुसलिम करने वाली जनता और उस की समर्थक सरकार से इस की कोई उम्मीद नहीं है. जो भी पार्टी में, किट्टी में, व्हाट्सऐप पर हिंदूमुसलिम कर रहा है, वह सोच ले कि वह देश के समाज को तारतार कर रहा है, वह दीवाली के पटाखों से पड़ोसियों के घर जला रहा है.

युवाओं की आजादी पर क्यों है पाबंदी

अकेलापन और युवा, बात कुछ अजीब सी जरूर लगती है पर है यह आज की सचाई. नाचतीथिरकती यह बेफिक्र दिखती युवा पीढ़ी अंदर से कितनी अकेली है, यह जानने के लिए आइए मिलाते हैं आप को आज के कुछ युवाओं से:

उदय छोटे से शहर में जन्मा, पला, बढ़ा. यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही बड़े शहर में बसने के सपने देखने लगा. अपने लिए एक अच्छी जिंदगी का सपना देखना क्या गलत है? इस सपने को पूरा करने के लिए उस ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया. नौकरी मिलते ही लगा जैसे नए पंख लग गए. आ गया बड़े शहर. नई नौकरी, नया शहर, खूब रास आया. नए दोस्त बने पर थोड़े ही दिनों में नए शहर का जादू उड़न छू हो गया.

अपनों का प्यार, अपनेपन की कमी, इस नए मिले सुख को कम करने लगी. औफिस से घर आने पर अकेलापन काटने को दौड़ता. दोस्तों का खोखलापन दिखाई देने लगा. दोस्तों की महफिल में भी ‘जो दारूबाज नहीं उस के लिए यह महफिल नहीं’ की अलिखित तख्ती टंगी रहती. मातापिता की दी संस्कारों की गठरी शराब जैसी चीजों को छूने नहीं देती. बचपन के संगीसाथी जाने कब अनजाने में छूट गए पता ही नहीं चला. महानगर में मिले इस अकेलेपन से निराश तो होना ही था. सो उदय अवसाद में चला गया.

अवसाद दे रहा अकेलापन

अब आइए आप को मिलाते हैं अपने दूसरे मित्र मदन से. यह मातापिता के साथ ही रहता है. उसी शहर में नौकरी मिल गई. मातापिता बहुत खुश हैं, खुश तो यह भी है पर मायूसी भी हैं. आजादी जो नहीं मिली. आप पूछेंगे कौन सी आजादी? कैसी आजादी? तो जवाब है अपनी मनमरजी करने की आजादी.

हांहां, आप कहेंगे कौन से मातापिता आजकल टोकाटाकी करते हैं. तो साहब कुछ चीजें हमें घुट्टी में पिला दी जाती हैं, मातापिता कुछ बोलें या न बोलें, पर हम तो जानते हैं कि वे क्या चाहते हैं. बचपन से पाला ही ऐसे है कि अपने मन की नहीं कर पाते हम युवा. अब देखिए न दोस्तों को घर बुलाओ तो खुल कर बात नहीं कर सकते. जो मित्र खानापीना चाहते हैं, नहीं खिलापिला सकते क्योंकि घर में बुजुर्ग हैं.

खुद मित्रों के घर जाओ तो बीच महफिल उठना पड़ता है कि मातापिता प्रतीक्षा कर रहे होंगे. दोस्त मजाक बनाते हैं सो अलग. मदन अपनों के बीच अकेला है. इस भी अब अकेलापन अवसाद दे रहा है.

और यह है हमारी तीसरी मित्र मातापिता की लाडली, सपनों में जीने वाली अवनि. जब तक जिंदगी का अर्थ सम  झ अपने भविष्य के बारे में कुछ सोचती एक आईपीएस. अधिकारी की ब्याहता बन विदा हो गई. आखिर आईपीएस अधिकारी की बेटी जो थी. बराबरी की शादी थी. तुनकमिजाज, गुस्सैल पति के न तो गुस्से से उसे डर लगा न ही ओहदे से. छोड़ कर आ गई पिता के घर.

अब मातापिता पछता रहे हैं और अवनि अपने अकेलेपन से लड़ने के लिए छूटी पढ़ाई का सिरा फिर से पकड़ने की जद्दोजहद में लगी है. सब दोष अवनि को ही दे रहे हैं. पर कोई पूछे शादी से पहले अवनि की इच्छा जानने की जरूरत क्यों नहीं समझी थी उस के मातापिता ने?

दोष किस का

यह है पिंकी, एक प्रोफैसर की बेटी, जिसे मौडलिंग का शौक चढ़ा परंतु पढ़ाईलिखाई के इस माहौल में उस की इस चाहत को सम  झने वाला कोई न था. मगर पिंकी को तो आकाश छूना था. हिम्मत की भी कहां कमी थी, युवा जो ठहरी. उस ने निर्णय लिया और चल दी मुंबई. पर कुदरत ने ऐसी मार लगाई कि उसे कौल गर्ल का खिताब मिल गया.

काश उस के सपनों को उस के मातापिता ने सम  झा होता, उस का साथ दिया होता तो आज वह अपनी मंजिल पाने के लिए प्रयास कर रही होती और एक न एक दिन पा भी लेती. न पाती तो कम से कम इस बुरी नियति से तो बच जाती. पर दोष हमेशा युवाओं को ही दिया जाता है.

पिंकी की इस दुर्दशा के लिए क्या सिर्फ पिंकी का घर से भागने का निर्णय ही दोषी है? हां, एक हद तक है, लेकिन उसे यह निर्णय लेने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा? इस का जवाब तो आप को या हमारे समाज को ही देना होगा. हमारा समाज युवा होती बेटी को उस की पसंद का कार्य करने से कब तक रोकेगा और अगर रोकेगा तो बहुत बार परिणति ऐसी या इस से भी बुरी होगी.

ऐसे में जरूरत है हर बात में युवाओं को दोष देना बंद करने की. समाज हम युवाओं के मन में भी तो   झांक कर देखे कि हमारे सपने हैं, हमारी चाहते हैं और उन्हें पाने के लिए हम कुछ भी करना चाहते हैं. उदय हो, मदन हो, अवनि हो या फिर पिंकी खुल कर जीने का अधिकार सब को है.

खुल कर जीने की आजादी

आज का युवा पूछ रहा है कि सम्मान के नाम पर युवाओं से उन के मन की बात कहने का हक कब तक समाज छीनता रहेगा? बालिग हो गए अपने बच्चे से कब मातापिता बालिग की तरह बात और व्यवहार करना सीखेंगे? युवा हो गए बच्चों के मातापिता के लिए भी जरूरी है कि वे प्रौढ़ मातापिता की तरह व्यवहार करना सीखें.

अकेलेपन से जू  झते, अवसादग्रस्त युवाओं की बढ़ती संख्या बारबार चेतावनी दे रही है. अपने युवाओं को बचाने के लिए उन को उन के अकेलेपन से बाहर लाने के लिए मातापिता को खुद उन का दोस्त बन कर उन्हें अपने मन की कहने और करने की आजादी देनी ही होगी. उन के साथ खड़ा होना ही होगा.

हम युवाओं की खुशी के लिए समाज एक बार कोशिश तो करे. हमें खुल कर जीने की आजादी दे और हमारा साथ दे तो हम अपने इस अवसाद से बाहर आ पाएं.

आसान नहीं शादी की राह

आजकल शादी करते हुए युवाओं को कुछ ज्यादा समझदारी और होशियारी से काम लेना होगा. अक्तूबर के पहले सप्ताह में एक पति ने आगरा के पुलिस थाने में गुहार लगाई कि उस की नईनवेली पत्नी पैसे और जेवर ले कर भाग गई और अब मायके वालों की सहमति से अपने किसी प्रेमी के साथ रह रही है.

पति ने बताया कि उसे शादी से पहले बता दिया गया था कि लड़की के पीछे कोई मजनूं पड़ा है पर युवक की हिम्मत नहीं हुई कि वह संबंध को तोड़े. फिर ऐसे मामलों में सैक्स आकर्षण ऐसा होता है कि अधिकांश युवक होने वाली पत्नी की हर सच्ची झूठी बात को मान लेते हैं.

बाद में पति को छोड़ कर गई लड़की की उस प्रेमी से भी नहीं बनी. अब दोनों पतिपत्नी अधर में लटके हैं और पुलिस थानों के चक्कर काट रहे हैं. कब पुलिस किसे गिरफ्तार कर ले, यह भी नहीं कहा जा सकता.

इसी तरह बिहार के वैशाली जिले में एक विवाहित साली और जीजा ने मिल कर साली के पति को गोली से मरवा दिया ताकि जीजासाली का संबंध बना रहे. साली को यह चिंता नहीं कि उस की बहन का क्या होगा. उसे तो आदमी को पाना था जिस की शादी कुछ महीने पहले हुई थी.

शादी से पहले के संबंध किस के किस के साथ थे और कैसे थे, यह जानना जरूरी है पर आज जब लड़कों को लड़कियां नहीं मिल रहीं और लड़कियों को लड़के तो यह सोचने की फुरसत किसी को नहीं होती कि खुद साथी ढूंढ़ें या मांबाप के ढूंढ़े साथी की बैक चैक करें.

भारत में आजकल 1,500 मैट्रिमोनियल साइट्स हैं और बहुतों ने एक से ज्यादा साइट्स पर अपने अकाउंट खोले हुए हैं. करोड़ों युवा अपना जीवनसाथी ढूंढ़ रहे हैं. उस के लिए वे अपना पैसा रजिस्ट्रेशन में खर्च करते हैं और फिर खुद की अपग्रेड कराने में ताकि बेहतर नाम मिल सके. मैट्रिमोनियल साइट्स 20 अरब रुपए का धंधा कर रही हैं जो इस लड़कालड़की ढूंढ़ने की समस्या का एक पहलू बताता है.

विवाह पर पहले छानबीन न करो तो ऊपर के 2 मामलों की तरह जीवन के कई कीमती साल अदालतों, जेलों, वकीलों के साथ गुजर सकते हैं. मैट्रिमोनियल साइट्स या परिचित पंडित भी अब जम कर धोखा देते हैं क्योंकि वे भी कमीशन बेसिस पर काम करते हैं और उन्होंने बड़ी मार्केटिंग टीम रखी है.

जब युवकयुवतियों की इस तरह की कमी हो तो कल जिस ने हां की उस की जांचपड़ताल का जोखिम कौन कैसे ले सकता है? जो थोड़ीबहुत डिटैक्टिव ऐजेंसियां हैं वे भी फ्रौड करती हैं और नकली रिपोर्ट बना कर उस से पैसे ले लेती हैं. पतिपत्नी के होने वाले संबंध में जांचपड़ताल पहले ही खटास पैदा कर देती है.

वैवाहिक अपराधों के लिए इंडियन पीनल कोड की धाराएं 415, 416, 417 व 419 हैं पर कानून की किताब में कुछ लिखे होने का मतलब यह नहीं होता कि सबकुछ ठीक हो जाएगा या अदालत ठीक करा देगी. अदालती दखल आमतौर पर दोनों पक्षों को और रिजिड बना देता है और संबंध बनाए रखने के बजाय ईगो आगे आ जाता है.

विवाह को चाहे जितना ईश्वर की देन समझ जाए और चाहे जितनी उस पर धार्मिक लागलपेट की जाए पौराणिक युग से ले कर आज तक विवाह का संबंध पहले दिन से ही प्रगाढ़ और विश्वसनीय बन जाए जरूरी नहीं है. हर विवाह में बहुत से तथ्यों को देखना होता है जो न घर वाले देखते हैं, न बिचौलिए पंडित, न मैट्रिमोनियल साइट्स बैक चैक करने में विश्वास रखती हैं.

आज के युवाओं के लिए यह एक बड़ी समस्या बनती जा रही है कि कब किस से शादी करें. हर मामले में कोई पेंच नजर आता है. हमारे यहां तो जाति, उपजाति, गोत्र, भाषा, धर्म का मामला भी है. 140 करोड़ के देश में एक युवक या युवती को मनचाहा साथी मिल जाए यह बड़ी बात है. फिर भी विवाह हो रहे हैं. अरबों उन पर खर्च किए जा रहे हैं, यही खुशी की बात है.

UP के एक गांव की छात्रा को Google ने दिया 56 लाख रुपये का ऑफर

कहते हैं अगर आपके पास प्रतिभा है तो कामयाबी आपके कदम खुद चूमेगी. ऐसी ही एक खबर आई है यूपी गोठवां गांव से, जहां आराध्या त्रिपाठी नाम की लड़की के पास टैलेंट की कमी नहीं और ये बात तब साबित हो जाती है जब Google से उसे 56 लाख रुपये की नौकरी का ऑफर मिलता है. दरअसल आराध्या ने कम उम्र से ही पढ़ाई में प्रतिभा दिखाई. वह पढ़ने लिखने में काफी तेज रही, बचपन से ही हमेशा आगे रहने की सोची. गांव में रहते हुए भी कोई कमी उनके पढ़ाई के आगे नहीं आई. सेंट जोसेफ स्कूल में अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीटेक करने के लिए MMMUT में दाखिला लिया. आराध्या ने हर मुसीबत पार की.

एक गांव से गूगल तक का सफर आसान नहीं था, आराध्या के पिता वकील हैं और मां गृहिणी.  आराध्या ने कम उम्र से ही पढ़ाई में प्रतिभा दिखाई. सेंट जोसेफ स्कूल में अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, वह कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बी.टेक करने के लिए एमएमएमयूटी में शामिल हो गईं. तब से उन्होंने न केवल विश्वविद्यालय में ही नहीं बल्कि पूरे तकनीकी उद्योग में अपनी पहचान बनाई है और Google में सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट इंजीनियर के रूप में  प्रतिष्ठित भूमिका प्राप्त की है. 2023 में, आराध्या ने स्केलर में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम किया.

कंपनी में उनका कार्यकाल इस हद तक सफल रहा, कि उनकी इंटर्नशिप पूरी होने पर, स्केलर ने उन्हें 32 लाख रुपये का पैकेज दिया, जो एक अच्छी सैलरी थी, फिर भी उन्हें जल्द ही Google से एक बड़ा ऑफर मिला. अपनी इंटर्नशिप के दौरान, आराध्या ने काम करते हुए स्केलेबल उत्पादों और लाइव प्रोडक्शन ट्रैफिक को संभालने का व्यापक अनुभव प्राप्त किया. उन्होंने लिंक्डइन पर अपने कौशल के बारे में विस्तार से बताया है कि मेरे पास React.JS, React Redux, NextJs, टाइपस्क्रिप्ट, NodeJs, MongoDb, ExpressJS और SCSS जैसे कई टेक्नोलॉजी स्टैक पर मजबूत पकड़ और अनुभव है. लिंक्डइन पर आज कर हर कोई अपनी जॉब प्रोफाइल बनाता है, वैसे ही आराध्या ने भी बनाया. लिंक्डइन आजकल जॉब के लिए बहुत ही अच्छा साइट माना जाता है.

खबरों के मुताबिक आराध्या कहती हैं कि उन्हें डेटा स्ट्रक्चर्स और एल्गोरिदम में गहरी रुचि है और उन्होंने बहुत सारे कोडिंग प्लेटफॉर्म पर लगभग 1000+ प्रश्न हल किए हैं और उन पर मेरी अच्छी रेटिंग है. आराध्या त्रिपाठी की कहानी कड़ी मेहनत का एक उदाहरण है जिसने साबित कर दिया है कि गांव की लड़कियां भी अब पीछे नहीं रहीं. अगर आपके पास टैलेंट है और आप मेहनती हैं तो कामयाबी आपके पीछे पीछे भागेगी. दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं. जरूरत है तो मेहनत, संकल्प और लगन की.

हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है… इससे पहले भी एक खबर आई थी कि.. पटना की एक लड़की को गूगल ने एक करोड़ की नौकरी का ऑफर दिया था. एक करोड़ से अधिक के सैलरी पैकेज पर प्लेसमेंट पाने वाली लड़की का नाम संप्रीति यादव है. इस वक्त संप्रीति अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम कर रही हैं. उन्होंने गूगल 14 फरवरी 2022 को ज्वाइन किया था. रिपोर्ट के अनुसार गूगल ने उन्हें एक करोड़ 10 लाख का पैकेज दिया था. गूगल में उनका सेलेक्शन 9 राउंड इंटरव्यू के बाद हुआ था.

Same sex marriage को कानूनी मान्यता नहीं, LGBT समुदाय को झटका

समलैंगिक विवाह को लेकर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है. याचिकाकर्ताओं ने शादी को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की थी,  लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता नहीं दी. याचिका दाखिल करने वालों में सेम सेक्स कपल्स, सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ संगठन शामिल थे. आपको बता दें कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर ली थी लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया था. 18 समलैंगिक जोड़ों की तरफ से कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और याचिका में समलैंगिक विवाह की कानूनी और सोशल स्टेटस के साथ अपने रिलेशनशिप को मान्यता देने की मांग की थी. याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे. जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि शादी का अधिकार सिर्फ वैधानिक अधिकार है संवैधानिक अधिकार नहीं.

LGBT कम्युनिटी समेत DU के छात्रों ने तो ‘गे प्राइड मार्च’निकाला,  सेम सेक्स मैरिज मुद्दे पर कोर्ट के फैसले को लेकर जमकर प्रदर्शन किया. इस रैली का उद्देश्य विवाह समानता की मांग करना और सेम सेक्स मैरिज पर कोर्ट के फैसले पर नाराजगी व्यक्त करना था. जिसका जमकर विरोध किया गया.

सेम सेक्स मैरिज पर क्या बोले औवैसी ?

सेम सैक्स मैरिज को लेकर राजनीतिक बयानों की भी कमी नहीं रही, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी राय दी. औवैसी ने ट्वीट कर कहा- कि सुप्रीम कोर्ट संसदीय सर्वोच्चता के सिद्धांत को बरकरार रखा है. यह तय करना अदालतों पर निर्भर नहीं है कि कौन किस कानून के तहत शादी करेगा. मेरा विश्वास और मेरी अंतरात्मा कहती है कि शादी केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच होती है. यह 377 के मामले की तरह गैर-अपराधीकरण का सवाल नहीं है, यह विवाह की मान्यता के बारे में है. यह सही है कि सरकार इसे किसी एक और सभी पर लागू नहीं कर सकती.

सेम सेक्स मैरिज पर बॉलीवुड की प्रतिक्रिया

समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कई बॉलीवुड हस्तियों ने जताई निराशा. अभिनेत्री भूमि पेडनेकर और सेलिना जेटली ने भी विरोध जताया. भूमि पेडनेकर ने फिल्म बधाई हो में लेस्बियन का किरदार निभाया था. भूमि पेडनेकर ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर किया. लिखा सबके लिए समानता क्योंकि प्यार तो प्यार है. भूमि पहले भी समलैंगिकता का समर्थन कर चुकी हैं. फिल्म निर्माता ओनिर ने भी कोर्ट के फैसले पर निराशा जताई. सोशल मीडिया के जरिए कहा- CIS- लिंग वाली दुनिया बेहतर इंसान बनने में विफल रही. ऐसी ही कई और भी हस्तियां हैं जो कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं.

किन देशों में कानूनी तौर पर स्वीकृति ?

कई खबरों और रिपोर्ट्स के मुताबिक दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां सेम सैक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दी गई है. कुल 34 देश में क्यूबा, एंडोरा, स्लोवेनिया, चिली, स्विट्जरलैंड, कोस्टा रिका, ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया, इक्वेडोर, ताइवान, बेल्जियम, डेनमार्क, ब्रिटेन,  फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, आयरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, मेक्सिको, लक्समबर्ग, माल्टा, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना, कनाडा, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड कोलंबिया, ब्राजील, और उरुग्वे का नाम शामिल है. इन देशों में दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है. तीन ऐसे देश हैं जहां पिछले साल ही समलैंगिक विवाह को मान्यता दी गई है. इन देशों में स्लोवेनिया , एंडोरा, और क्यूबा शामिल हैं.

10 ऐसे देश हैं जहां कोर्ट ने मान्यता दी है, इसके अलावा 22 ऐसे देश हैं जहां कानून बनाकर स्वीकृति मिली है. एक रिपोर्ट के मुताबिक सेम सैक्स मैरिज को सबसे पहले नीदरलैंड ने 2001 में वैध माना था, लेकिन कुछ देश ऐसे हैं जहां समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं हैं और तो और ऐसा करने पर सजा का प्रावधान है. ऐसे देशों की संख्या कुल 64 है. यहां पर समलैंगिक विवाह को अपराध माना जाता है और सजा में मौत की सजा भी शामिल है. इनमें जापान जैसे देश भी शामिल हैं.

किन देशों में सेम सेक्स मैरिज अवैध?

आजतक में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, मॉरिटानिया, ईरान, सोमालिया और उत्तरी नाइजीरिया के कुछ हिस्सों में सेम सेक्स मैरिज को लेकर बहुत सख्ती है. इन देशों में शरिया अदालतों में मौत की सजा तक का प्रावधान है… तो वहीं अफ्रीकी देश युगांडा में समलैंगिका विवाह का दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास और फांसी की सजा तक देने का प्रावधान है. 30 अन्य अफ्रीकी देशों में भी समलैंगिक विवाह पर बैन है. 71 देश ऐसे हैं, जहां जेल की सजा का प्रावधान है.

सनातनी सरकार औरतों के पक्ष में नहीं

हम लोग भी लिव इन रिलेशनशिप के पक्ष में बहुत कुछ लिखते रहते हैं पर यह रिलेशनशिप बहुत से खतरों से दूर नहीं क्योंकि कानूनी ढांचा इस तरह बना है जिस में कोई भी अधिकार कानूनन विवाह करने पर ही मिलता है. लिव इन रिलेशनशिप को कोई भी कानूनी संरक्षण देने को न सरकार तैयार है न अदालतें और न ही जोड़े आपस में कोई कौंट्रैक्ट कर सकते हैं.

गुजरात का मैत्री करार एक पुराना तरीका है पर यह भी कानूनन मान्य नहीं है क्योंकि सोशल पौलिसी के खिलाफ किया गया कौंट्रैक्ट कौंट्रैक्ट ही नहीं है.

हां, अब लिव इन रिलेशनशिप में रहने को गैरकानूनी अपराध नहीं माना गया है और यदि दोनों बालिग, शादीशुदा हों या न हों साथ रह सकते हैं. शादीशुदा हों तो दूसरे का जीवनसाथी द्वारा हद से हद ऐडल्ट्री के नाम पर तलाक मांग ही सकती है.

एक मुश्किल तब आई जब एक विवाहिता को लिव इन रिलेशनशिप के बाद बच्चा हुआ. उस ने चाहा कि बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट पर लिव इन पार्टनर और बायोलौजिकल फादर का नाम आए पर न मुंबई की म्यूनिसिपल राजी हुई, न मजिस्टे्रट की अदालत और न ही शायद हाई कोर्ट राजी होगा. इस की बड़ी वजह यह है कि शादी के दौरान हुए बच्चे कानूनन पति के होते हैं चाहे स्पर्म किसी का भी हो. पहले यह सुविधाजनक था और अब स्पर्म डोनरों की बढ़ती गिनती के कारण और ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है कि बच्चा नाजायज न कहलाए. उसे उस पुरुष की संपत्ति में पूरा हक मिलेगा जिस में कंसीव होते समय उस की मां लीगली शादीशुदा थी.

उस बच्चे का भरणपोषण लीगल पिता को करना होगा न कि बायोलौजिकल फादर को. अगर यह न हो तो तलाक के हर मामले में पति कह सकता है कि उस के बेटेबेटी उस के हैं ही नहीं. अगर वास्तव में न भी हों तो भी जिम्मेदारी उन्हीं की होगी.

लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली लड़कियों को डोमैस्टिक वायलैंस से भी संरक्षण नहीं मिलता. पार्टनर की मारपीट पर पुलिस आनाकानी करे कि डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट नहीं लगेगा तो गलत नहीं. हां, आईपीसी का साधारण मारपीट वाला मुकदमा चल सकता है जिस में तुरंत जेल की गारंटी नहीं होती. हाई कोर्ट के कुछ जज तो लिव इन रिलेशनशिप के बहुत खिलाफ हैं और कुछ बहुत उदार.

लिव इन रिलेशन में दोनों परिवारों के रिश्तेदार कट जाते हैं और दोनों पक्षों को अपने रिश्तेदारों के यहां अकेले जाना होता है. विवाहित रिश्तेदार कम घर आते हैं क्योंकि अभी भी समाज में दोनों पार्टनरों को छुट्टा सांड या छुट्टी औरत सम?ा जाता है जो किसी पर डोरे डालने में स्वतंत्र है.

क्या इस पर कोई कानून बनाना चाहिए? हमारी राय तो यही है कि नहीं क्योंकि कानूनी लिव इन रिलेशनशिप असल में एक शादी ही होगी जो दोनों की इच्छा नहीं है. हद से हद दोनों को कौंट्रैक्ट करने दिए जाएं पर उस के लिए जो कौंट्रैक्ट ऐक्ट आज हैं उन्हीं के अंतर्गत रहने की सुविधा हो. कौंट्रैक्ट का एक फायदा तो यह होना चाहिए कि फीमेल रेप का चार्ज न लगा सके और दूसरा यह कि जब रिलेशनशिप टूटे तो जौइंट खरीदे सामान को बांटने में आसानी हो. कौंट्रैक्ट के आधार पर ही लिव इन के दौरान के बच्चों का खर्च और विजिटिंग राइट्स तय होने चाहिए, वे केवल मां की जिम्मेदारी नहीं हो सकते.

हमारे पुराणों में लिव इन रिलेशनशिप के उदाहरण भरे पड़े हैं. मेनका और विश्वमित्र का लिव इन वाली संतान शकुंतला का बेटा भी दुष्यंत से एक रात की लिव इन रिलेशनशिप की देन था जिसे दुष्यंत ने 3 साल बाद अपना लिया क्योंकि उस के पास राज था पर वारिस नहीं. उन दोनों के ही पुत्र का नाम भारत था, जो अब सनातनी सरकार देश का अकेला रखना चाहती है और इंडिया हटाना चाहती है.

इसे पाप कहना तो बिलकुल गलत है. यह न अनैतिक है और

न गैरसामाजिक. हां, कुछ हद तक अव्यावहारिक है पर यदि लड़की

में दमखम है तो गलत नहीं. फिल्म ‘जवान’ में शाहरुख खान का विवाह ऐसी ही लड़की से होता है जिसे बेटी लिव इन रिलेशनशिप में हुई.

इस से पहले अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘पा’ में विद्या बालन से पुत्र लिव इन रिलेशनशिप में हुआ था और दर्शकों ने कोई आपत्ति नहीं की थी. यह एक सभ्य उदार समाज की निशानी है जिसे कुछ कट्टरपंथी समाप्त करना चाहते हैं और वैलेंटाइन डे पर लाठियां ले कर जोड़ों को पीटते रहते हैं कि या तो अलग हो जाओ या फिर यहीं शादी कर लो.

असल में यूनिफौर्म सिविल कोड मुसलिम समाज के पुरुषोंस्त्रियों के लिए नहीं चाहिए जिन का कानून हमेशा से वैसे भी औरतों के पक्ष में काफी है, कम से कम 1956 से पहले हिंदू सनातनी विवाह और विरासत के कानून से. उन में खुली मैरिज भी है जो एक तरह से लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी ढांचा देती है. लेकिन हमारी सनातनी सरकार औरतों के पक्ष में कभी कानून नहीं बनाएगी. उन के लिए तो सीता जैसी देवी भी लक्ष्मणरेखा में रखने लायक है.

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