ताप्ती- भाग 1: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

बहुत देर से ताप्ती मिहिम के लाए प्रस्ताव पर विचार कर रही थी. रविवार की शाम उसे अपने अकेलेपन के बावजूद बहुत प्रिय लगती थी. आज भी ऐसी ही रविवार की एक निर्जन शाम थी. अपने एकांतप्रिय व्यक्तित्व की तरह ही उस ने नोएडा ऐक्सटैंशन की एक एकांत सोसाइटी में यह फ्लैट खरीद लिया था. वह एक प्राइवेट बैंक में अकाउंटैंट थी, इसलिए लोन के लिए उसे अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी थी. कुछ धनराशि मां ने अपने जीवनकाल में उस के नाम से जमा कर दी थी और कुछ उस ने लोन ले कर यह फ्लैट खरीद लिया था.

मिहिम जो उस के बचपन का सहपाठी और जीवन का एकमात्र आत्मीय था उस के इस फैसले से खुश नहीं हुआ था. ‘‘ताप्ती तुम पागल हो जो इतनी दूर फ्लैट खरीद लिया? एक बार बोला तो होता यार… मैं तुम्हें इस से कम कीमत में घनी आबादी में फ्लैट दिलवा देता,’’ मिहिम ने कुछ नाराजगी के साथ कहा. ‘‘मिहिम मैं ने अपने एकांतवास की कीमत चुकाई है,’’ ताप्ती कुछ सोचते हुए बोली.

मिहिम ने आगे कुछ नहीं कहा. वह अपनी मित्र को बचपन से जानता था. ताप्ती गेहुएं रंग की 27 वर्षीय युवती, एकदम सधी हुई देह, जिसे पाने के लिए युवतियां रातदिन जिम में पसीना बहाती हैं, उस ने वह अपने जीवन की अनोखी परिस्थितियों से लड़तेलड़ते पा ली थी. शाम को मिहिम और ताप्ती बालकनी में बैठे थे. अचानक मिहिम बोला, ‘‘अंकल का कोई फोन आया?’’ ताप्ती बोली, ‘‘नहीं, उन क ा फोन पिछले 4 माह से स्विच्ड औफ है.’’ मिहिम फिर बोला, ‘‘देखो तुम मेरी ट्यूशन वाली बात पर विचार कर लेना. हमारे खास पारिवारिक मित्र हैं आलोक.

उन की बेटी को ही ट्यूशन पढ़ानी है. हफ्ते में बस 3 दिन. क्व15 हजार तक दे देंगे. तुम्हें इस ट्यूशन से फायदा ही होगा, सोच लेना,’’ यह कह कर जाने लगा तो ताप्ती बोली, ‘‘मिहिम, खाना खा कर जाना. तुम चले गए तो मैं अकेले ऐसे ही भूखी पड़ी रहूंगी.’’ फिर ताप्ती ने फटाफट बिरयानी और सलाद बनाया. मिहिम भी बाजार से ब्रीजर, मसाला पापड़ और रायता ले आया. मिहिम फिर रात की कौफी पी कर ही गया. मिहिम को ताप्ती से दिल से स्नेह था.

प्यार जैसा कुछ था या नहीं पता नहीं पर एक अगाध विश्वास था दोनों के बीच. उन की दोस्ती पुरुष और महिला के दायरे में नहीं आती थी. मिहिम नि:स्संकोच ताप्ती को किसी भी नई लड़की के प्रति अपने आकर्षण की बात चटकारे ले कर सुनाता तो ताप्ती भी अपनी अंदरूनी भावनाओं को मिहिम के समक्ष कहने में नहीं हिचकती थी.

जब ताप्ती की मां जिंदा थीं तो एक दिन उन्होंने ताप्ती से कहा भी था कि मिहिम और तुझे एकसाथ देख कर मेरी आंखें ठंडी हो जाती हैं. तू कहे तो मैं मिहिम से पूछ कर उस घर वालों से बात करूं?’’ ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मी, आप क्या बोल रही हैं? मिहिम बस मेरा दोस्त है… मेरे मन में उस के लिए कोई आकर्षण नहीं है.’’ मम्मी डूबते स्वर में बोलीं, ‘‘यह आकर्षण ही तो हर रिश्ते का सर्वनाश करता है.’’

ताप्ती अच्छी तरह जानती थी कि मम्मी का इशारा किस ओर है. पर वह क्या करे. मिहिम को वह बचपन से अपना मित्र मानती आई है और उसे खुद भी आश्चर्य होता है कि आज तक उसे किसी भी लड़के के प्रति कोई आकर्षण नहीं हुआ… शायद उस का बिखरा परिवार, उस के पापा का उलझा हुआ व्यक्तित्व और उस की मां की हिमशिला सी सहनशीलता उसे सदा के लिए पुरुषों के प्रति ठंडा कर गई थी.

ताप्ती जब भी अपने बचपन को याद करती तो बस यही पाती, कुछ इंद्रधनुषी रंग भरे हुए दिन और फिर रेत जैसी ठंडी रातें, जो ताप्ती और उस की मां की साझा थीं. ताप्ती के पापा का नाम था सत्य पर अपने नाम के विपरीत उन्होंने कभी सत्य का साथ नहीं दिया. वे एक नौकरी पकड़ते और छोड़ते गृहस्थी का सारा बोझ एक तरह से ताप्ती की मां ही उठा रही थीं, फिर भी परिस्थितियों के विपरीत वे हमेशा हंसतीमुसकराती रहती थीं.

अपने नाम के अनुरूप ताप्ती की मां स्वभाव से आनंदी थीं, जीवन से भरपूर, दोनों जब साथसाथ चलतीं तो मांबेटी कम सखियां अधिक लगती थीं. ताप्ती ने अपनी मां को कभी किसी से शिकायत करते हुए नहीं देखा था. वे एक बीमा कंपनी में कार्यरत थीं. ताप्ती ने अपनी मां को हमेशा चवन्नी छाप बिंदी, गहरा काजल और गहरे रंग की लिपस्टिक में हंसते हुए ही देखा था.

उन के जीवन की दर्द की छाप कहीं भी उन के चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी. ताप्ती के विपरीत आनंदी को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. अपने आखिरी समय तक वे सजीसंवरी रहती थीं. मगर आज ताप्ती सोच रही है कि काश आनंदी अपनी हंसी के नीचे अपने दर्द को न छिपातीं तो शायद उन्हें ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारी न होती. पापा से ताप्ती को कोई खास लगाव नहीं था.

पापा से ज्यादा तो वह मिहिम के पापा सुरेश अंकल के करीब थी. जहां अपने पापा के साथ उसे हमेशा असुरक्षा की भावना महसूस होती थी, वहीं सुरेश अंकल का उस पर अगाध स्नेह था. वे उसे दिल से अपनी बेटी मानते थे पर मिहिम की मां को यह अहंकारी लड़की बिलकुल पसंद नहीं थी.

बापबेटे का उस लड़की पर यह प्यार देख कर वे मन ही मन कुढ़ती रहती थीं. अंदर ही अंदर उन्हें यह भय भी था कि अगर मिहिम ने ताप्ती को अपना जीवनसाथी बनाने की जिद की तो वे कुछ भी नहीं कह पाएंगी. मिहिम गौर वर्ण, गहरी काली आंखें, तीखी नाक… जब से होश संभाला था कितनी युवतियां उस की जिंदगी में आईं और गईं पर ताप्ती की जगह कभी कोई नहीं ले पाई और युवतियों के लिए वह मिहिम था पर ताप्ती के लिए वह एक खुली किताब था, जिस से उस ने कभी कुछ नहीं छिपाया था.

मां को गए 2 महीने हो गए थे. अब पूरा खर्च उसे अकेले ही चलाना था. मिहिम अच्छी तरह से जानता था कि यह स्वाभिमानी लड़की उस से कोई मदद नहीं लेगी, इसलिए वह अतिरिक्त आय के लिए कोई न कोई प्रस्ताव ले कर आ जाता था. यह ट्यूशन का प्रस्ताव भी वह इसीलिए लाया था.

आज बैंक की ड्यूटी के बाद बिना कुछ सोचे ताप्ती ने अपनी स्कूटी मिहिम के दिए हुए पते की ओर मोड़ दी. जैसे सरकारी आवास होते हैं, वैसे ही था खुला हुआ, हवादार और एक अकड़ के साथ शहर के बीचोंबीच स्थित था. आलोक पुलिस महकमे में ऊंचे पद पर हैं. और अफसरों की पत्नियों की तरह उन की पत्नी भी 3-4 समाजसेवी संस्थाओं की प्रमुख सदस्या थीं और साथ ही एक प्राइवेट कालेज में लैक्चरर की पोस्ट पर भी नियुक्त थीं.

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दिल को देखो: प्रतीक में कौनसा बदलाव देख हैरान थी श्रेया

सुबह से ही अनिलजी ने पूरे घर को सिर पर उठा रखा था, ‘‘अभी घर की पूरी सफाई नहीं हुई. फूलदान में ताजे फूल नहीं सजाए गए, मेहमानों के नाश्तेखाने की पूरी व्यवस्था नहीं हुई. कब होगा सब?’’ कहते हुए वे झुंझलाए फिर रहे थे. अनिलजी की बेटी श्रेया को इतने बड़े खानदान के लोग देखने आ रहे थे. लड़का सौफ्टवेयर इंजीनियर था. बहन कालेज में लैक्चरर और पिता शहर के जानेमाने बिजनैसमैन. अनिलजी सोच रहे थे कि यहां रिश्ता हो ही जाना चाहिए. अनिलजी आर्थिक रूप से संपन्न थे. सरकारी विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत थे. शहर में निजी फ्लैट और 2 दुकानें भी थीं. पत्नी अध्यापिका थीं. बेटा श्रेयांश इंटरमीडिएट के बाद मैडिकल की तैयारी कर रहा था और श्रेया का बैंक में चयन हो गया था. फिर भी लड़के के पिता विष्णुकांत के सामने उन की हैसियत कम थी. विष्णुकांत के पास 2 फैक्ट्रियां, 1 प्रैस और 1 फौर्महाउस था, जिस से उन्हें लाखों की आमदनी थी. इसी कारण से उन के स्वागतसत्कार को ले कर अनिलजी काफी गंभीर थे.

दोपहर 1 बजे कार का हौर्न सुनाई दिया तो अनिलजी तुरंत पत्नी के साथ अगवानी के लिए बाहर भागे. थोड़ी ही देर में ड्राइंगरूम में विष्णुकांत अपनी पत्नी और बेटी के साथ पधारे, परंतु श्रेया जिसे देखना चाहती थी, वह कहीं नजर नहीं आ रहा था. तभी जोरजोर से हंसता, कान पर स्मार्टफोन लगाए एक स्टाइलिश युवक अंदर आया. लंबे बाल, बांहों पर टैटू, स्लीवलैस टीशर्ट और महंगी जींस पहने वह युवक अंदर आते ही अनिलजी व उन की पत्नी को हैलो कह कर सोफे पर बैठ गया.

‘‘श्रेया,’’ मां ने आवाज दी तो श्रेया नाश्ते की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में पहुंची.

‘‘बैठो बेटी,’’ कह कर विष्णुकांत की पत्नी ने उसे अपने पास ही बैठा लिया. उन्होंने परिचय कराया, ‘‘प्रतीक, इस से मिलो, यह है श्रेया.’’

‘ओह तो प्रतीक है इस का नाम,’ सोचते हुए श्रेया ने उस पर एक उड़ती नजर डाल कर बस ‘हाय’ कह दिया. खुशनुमा माहौल में चायनाश्ते और लंच का दौर चला. सब की बातचीत होती रही, लेकिन प्रतीक तो जैसे वहां हो कर भी नहीं था. वह लगातार अपने स्मार्टफोन पर ही व्यस्त था. ‘‘अच्छा अनिलजी, अब हम चलते हैं. मुलाकात काफी अच्छी रही. अब प्रतीक और श्रेया एकदूसरे से दोचार बार मिलें और एकदूसरे को समझें, तभी बात आगे बढ़ाई जाए,’’ कह कर विष्णुकांतजी सपरिवार रवाना हो गए.

ना है आप ने मेरे लिए. कितना बिगड़ा हुआ लग रहा था.’’ अनिलजी श्रेया को समझाते हुए बोले, ‘‘ऐसा नहीं है बेटा, किसी की सूरत से उस की सीरत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. उस से दोचार बार मिलोगी तो उसे समझने लगोगी.’’ इस के 3 दिन बाद श्रेया सुबह बैंक जा रही थी. देर होने के कारण वह स्कूटी काफी तेज गति से चला रही थी कि तभी सड़क पर अचानक सामने आ गए एक कुत्ते को बचाने के चक्कर में उस की स्कूटी सड़क पार कर रहे एक बुजुर्ग से जा टकराई. स्कूटी एक ओर लुढ़क गई और श्रेया उछल कर दूसरी ओर सड़क पर गिरी. श्रेया को ज्यादा चोट नहीं लगी, पर बुजुर्ग को काफी चोट आई. उन का सिर फट गया था और वे बेहोश पड़े थे. श्रेया का तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था कि क्या करे. तभी प्रतीक वहां से गाड़ी से गुजर रहा था. उस ने यह दृश्य देखा तो वह फौरन अपनी गाड़ी से उतर कर श्रेया के पास आ कर बोला, ‘‘आर यू ओके.’’ फिर वह उन बुजुर्ग की ओर लपका, ‘‘अरे, ये तो बहुत बुरी तरह घायल हैं.’’

सुनसान सड़क पर मदद के लिए कोई नहीं था. अपनी चोटों की परवा न करते हुए श्रेया उठी और घायल बुजुर्ग को गाड़ी में डालने में प्रतीक की मदद करने लगी. ‘‘आइए, आप भी बैठिए. आप को भी इलाज की जरूरत है. मैं अपने मैकेनिक को फोन कर देता हूं, वह आप की स्कूटी ले आएगा.’’ श्रेया को भी गाड़ी में बैठा कर प्रतीक बड़ी तेजी से नजदीक के जीवन ज्योति हौस्पिटल पहुंचा. ‘‘डाक्टर अंकल, एक ऐक्सीडैंट का केस है. घायल काफी सीरियस है. आप प्लीज देख लीजिए.’’

‘‘डौंट वरी, प्रतीक बेटा, मैं देखता हूं.’’ डाक्टर साहब ने तुरंत घायल का उपचार शुरू कर दिया. एक जूनियर डाक्टर श्रेया के जख्मों की मरहमपट्टी करने लगी. प्रतीक जा कर कैंटीन से 2 कप चाय ले आया. चाय पी कर श्रेया ने राहत महसूस की.

‘‘हैलो पापा, मेरा एक छोटा सा ऐक्सीडैंट हो गया है पर आप चिंता न करें. मुझे ज्यादा चोट नहीं लगी पर एक बुजुर्ग को काफी चोटें आई हैं. आप जल्दी से आ जाइए. हम यहां जीवन ज्योति हौस्पिटल में हैं,’’ श्रेया ने पापा को फोन पर बताया. अब वह अपने को कुछ ठीक महसूस कर रही थी.

‘‘थैंक्यू वैरी मच, आप ने ऐनवक्त पर आ कर जो मदद की है, उस के लिए तो धन्यवाद भी काफी छोटा महसूस होता है. मैं आप का यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘अरे नहीं, यह तो मेरा फर्ज था. मैं ने डाक्टर अंकल को कह दिया है कि वे पुलिस को इन्फौर्म न करें. हौस्पिटल में सब मुझे जानते हैं, मेरे पिता इस हौस्पिटल के ट्रस्टी हैं.’’ तभी अनिलजी भी पत्नी सहित वहां पहुंच गए. श्रेया ने उन्हें घटना की पूरी जानकारी दी तो वे बोले, ‘‘प्रतीक बेटा, यदि आप वहां न होते तो बहुत मुसीबत हो जाती. थैंक्यू वैरी मच.’’

अनिलजी डाक्टर से बोले, ‘‘इन बुजुर्ग के इलाज का पूरा खर्च मैं दूंगा. प्लीज, इन से रिक्वैस्ट कीजिए कि पुलिस से शिकायत न करें.’’

‘‘डौंट वरी अनिलजी. विष्णुकांतजी इस हौस्पिटल के ट्रस्टी हैं. आप को कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा,’’ डा. साहब मुसकराते हुए बोले. अगली शाम श्रेया कुछ फलफूल ले कर बुजुर्ग से मिलने हौस्पिटल पहुंची. उस ने उन से माफी मांगी. उस की आंखें भर आई थीं. ‘‘नहीं बेटी, तुम्हारी गलती नहीं थी. मैं ने देखा था कि तुम कुत्ते को बचाने के चक्कर में स्कूटी पर से नियंत्रण खो बैठी थी, तभी यह ऐक्सीडैंट हुआ. और फिर तुम्हें भी तो चोट लगी थी.’’

‘‘अरेअरे श्रेयाजी, रोइए मत. सब ठीक है,’’ तभी अंदर आता हुआ प्रतीक बोला.

‘‘आइए, कैंटीन में कौफी पीते हैं. यू विल फील बैटर,’’ दोनों कैंटीन में जा बैठे. कौफी पीने और थोड़ी देर बातचीत करने के बाद श्रेया घर वापस आ गई. फिर तो मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. एक दिन जब श्रेया और प्रतीक रैस्टोरैंट में बैठे थे कि

तभी प्रतीक का एक दोस्त भी वहां आ गया. वे दोनों किसी इंस्टिट्यूट के बारे में बात करने लगे. श्रेया के पूछने पर प्रतीक ने बताया कि वह और उस के 3 दोस्त हर रविवार को एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में मुफ्त पढ़ाते हैं, जहां होनहार गरीब छात्रों को इंजीनियरिंग की तैयारी कराई जाती है. यही नहीं वे लोग उन छात्रों की आर्थिक सहायता भी करते हैं. श्रेया यह सुन कर अवाक रह गई. उस दिन घर पहुंच कर प्रतीक के बारे में ही सोचती रही. सुबह काफी शोरगुल सुन कर उस की आंख खुली तो बाहर का नजारा देख कर उस की जान ही निकल गई. उस ने देखा कि पापा को खून की उलटी हो रही है और मम्मी रो रही हैं. श्रेयांश किसी तरह पापा को संभाल रहा था. किसी तरह तीनों मिल कर अनिलजी को अस्पताल ले गए. जीवन ज्योति हौस्पिटल के सीनियर डाक्टर उन्हें देखते ही पहचान गए. तुरंत उन का उपचार शुरू हो गया. श्रेया को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पापा को अचानक क्या हो गया है. उस ने प्तीक को भी फोन कर दिया था. आधे घंटे में प्रतीक भी वहां पहुंच गया.

डाक्टरों ने अनिलजी का ब्लड सैंपल ले कर जांच के लिए भेज दिया था और शाम तक रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट देख कर डाक्टर का चेहरा उतर गया. प्रतीक को कुछ शक हुआ तो वह वार्ड में अलग ले जा कर डाक्टर साहब से रिपोर्ट के बारे में पूछने लगा. डा. साहब ने अनिलजी की ओर देखा और उन्हें सोता समझ कर धीरे से बोले, ‘‘अनिलजी को ब्लड कैंसर है, वह भी लास्ट स्टेज पर. अब कोई इलाज काम नहीं कर सकता.’’

प्रतीक को बड़ा धक्का लगा. उस ने पूछा, ‘‘फिर भी अंकल, क्या चांसेज हैं? कितना समय है अंकल के पास?’’

‘‘बस महीना या 15 दिन,’’ वे बोले.

तभी आहट सुन कर दोनों ने पलट कर देखा. अनिलजी फटी आंखों से उन की ओर देख रहे थे. दोनों समझ गए कि उन्होंने सबकुछ सुन लिया है. अनिलजी की आंखों से आंसू बह निकले, ‘‘ओह, यह क्या हो गया? अभी तो मेरे बच्चे ठीक से बड़े भी नहीं हुए. अभी तो मैं श्रेया को डोली में बैठाने का सपना देख रहा था. अब क्या होगा?’’ तभी विष्णुकांतजी भी पत्नी सहित वहां आ पहुंचे, ‘‘अनिलजी, आप पहले ठीक हो जाइए, शादीवादी की बात बाद में देखेंगे,’’ वे बोले.

‘‘मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मैं ने सब सुन लिया है. प्रतीक और श्रेया एकदूसरे को पसंद करते हैं. उन की शादी जल्दी हो जाए तो मैं चैन से मर सकूंगा.’’

‘‘कैसी बातें करते हैं आप? शादी की तैयारियों के लिए समय चाहिए. आखिर हमारी कोई इज्जत है, समाज में,’’ विष्णुकांतजी रुखाई से बोले. ‘‘नहीं पापा, मुझे धूमधाम वाली शादी नहीं चाहिए. इतने खराब हालात में इज्जत की चिंता कौन करे. अंकल आप चिंता न करें. यह शादी आज ही और यहीं अस्पताल में होगी,’’ श्रेया का हाथ पकड़ कर अंदर आता प्रतीक तेज स्वर में बोला. श्रेया हैरानी से प्रतीक का मुंह देख रही थी कि तभी वार्डबौय के मोबाइल की रिंगटोन बज उठी, ‘दिल को देखो, चेहरा न देखो… दिल सच्चा और चेहरा झूठा…’ श्रेया के होंठों पर फीकी मुसकान दौड़ गई. पापा सच ही कह रहे थे कि किसी की सूरत से उस की सीरत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. दिखने में मौडर्न प्रतीक कितना संवेदनशील इंसान है. प्रतीक के तेवर देख कर विष्णुकांतजी भी नरम पड़ गए. पूरे अस्पताल को फूलों से सजाया गया. वार्ड में ही प्रतीक और श्रेया की शादी हुई. अस्पताल का हर कर्मचारी और मरीज इस अनोखी शादी में शामिल हो कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था.

 

यह कैसा इंसाफ : परिवार का क्या था फैसला

14 साल की पूनम ने हाईस्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली थी और आगे की पढ़ाई के लिए उसी स्कूल में 11वीं का फार्म भर दिया था. बोर्ड की परीक्षा पास करने के बाद दूसरे स्कूलों के स्टूडेंट भी पूनम के स्कूल में एडमिशन के लिए आए थे. पूनम की कक्षा में कई नए छात्र थे.

हमारी जिंदगी में रोजाना कई चेहरे आते हैं और बिना कोई असर छोड़े चले जाते हैं. लेकिन जिंदगी के किसी मोड़ पर कोई ऐसा भी आता है, जिस की एक झलक ही दिल की हसरत बढ़ा देती है. कुछ ऐसा ही पूनम के साथ भी हुआ था.

उस की क्लास में मोहित ने भी एडमिशन लिया था. पूनम की उस से दोस्ती हुई तो कुछ ही दिनों में वह उसे दिल दे बैठी थी. फतेहपुर की पूनम और नूरपुर के मोहित दो अलगअलग गांवों में पलेबढ़े थे. लेकिन उन का स्कूल एक ही था और यहीं दोनों ने एकदूसरे से कुछ वादे किए.

पहले तो दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती थी, सिर्फ नजरें मिलने पर मुसकरा कर खुश हो जाया करते थे, लेकिन जल्द ही मोहब्बत के अल्फाजों ने इशारों की जगह ले ली जो एक नया एहसास दिलाने लगे. पहली नजर में किसी को प्यार होता है या सिर्फ चंद दिनों की चाहत होती है, इस का नतीजा निकालना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन कुछ नजरें ऐसी भी होती हैं जो दिलों में हमेशा के लिए मुकाम बना लेती हैं.

पूनम ने अपने प्यार का पहले इजहार नहीं किया था, क्योंकि वह प्यारमोहब्बत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन कभीकभी ऐसा होता है कि जो न चाहो वही होता है. पूनम भी इसी चाहत का शिकार हो गई और मोहित से दिल के बदले दिल का सौदा कर बैठी.

पूनम और मोहित का प्यार भले ही 2 नाबालिगों का प्यार था, लेकिन उन के प्यार में पूरा भरोसा  और यकीन था. उसी प्यार की गहराई में डूब कर पूनम सब कुछ छोड़ कर मोहित का हाथ थामे प्यार में गोते लगाती चली गई.

2 प्यार करने वाले भले ही ऊंचनीच, दौलत शोहरत न देखें, लेकिन घर और समाज के लोग यह सब जरूर देखते हैं. इसी ऊंचनीच के फेर में दोनों बुरी तरह फंस कर उलझ गए. पूनम सवर्ण थी तो मोहित दलित परिवार से ताल्लुक रखता था.

पूनम का भरापूरा परिवार जरूर था, जिस में मांबाप और बड़े भाई साथ रहते थे. लेकिन उसे कभी घर वालों का प्यार नहीं मिला. आए दिन छोटीछोटी गलतियों की वजह से उसे मारपीट और गालीगलौज के दौर से गुजरना होता था. ये सब कुछ वह चुपचाप बरदाश्त करती थी.

लेकिन उसे इस बात की खुशी थी कि स्कूल में उसे मोहित का प्यार मिल रहा था. मोहित को देखते ही उस का सारा दुखदर्द छूमंतर हो जाता था. एक दिन उस ने मोहित से अपने साथ की जाने वाली मारपीट की पूरी बात बताई. उस की कहानी सुन कर मोहित द्रवित हो गया. बाद में एक दिन पूनम और मोहित घर से भाग गए.जिस समय मोहित और पूनम घर से भागे, उस वक्त दोनों नाबालिग थे. पहले तो दोनों के घर वालों ने भागने की बात को छिपा लिया, लेकिन उसे कब तक छिपाए रखते. कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं. देखते ही देखते यह बात पूनम के गांव से होते हुए मोहित के गांव तक जा पहुंची.

अब हर ओर उन्हीं दोनों की चर्चा हो रही थी. कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे थे, जबकि कुछ का यह कहना भी था कि मोहित ने ठीक किया. इस से पूनम के घर वाले अब समाज में सिर उठा कर नहीं बोल सकेंगे. बड़ी दबंगई दिखाते थे. बेटी ने नाक कटवा कर सारी दबंगई निकाल दी.

अफवाहों के भले ही पर नहीं होते, लेकिन परिंदों से भी ज्यादा तेजी से उड़ती हैं. आसपास के गांवों में पूनम और मोहित के भागने की खबर फैल गई. आखिर पूनम के घर वालों ने पुलिस थाने में जा कर मोहित के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. इस के बाद पुलिस उन दोनों को तलाश करने लगी. लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. पुलिस वालों ने दूसरे जिलों के थानों में भी खबर कर दी थी.

काफी दिन बाद पूनम और मोहित दिल्ली पुलिस को मिल गए. दिल्ली पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की सूचना संबंधित थाने को दे दी तो उस थाने की पुलिस दोनों को अपने साथ ले गई. क्योंकि पूनम के पिता मोहित के खिलाफ पहले ही पूनम को भगाने और रेप की एफआईआर दर्ज करवा चुके थे.

पुलिस के हत्थे चढ़ने पर पूनम मोहित को ले कर बहुत परेशान थी क्योंकि उसे मालूम था कि उस के घर वाले पुलिस से मिल कर मोहित के साथ क्या करवाएंगे. इस के अलावा उस की जिंदगी भी घर में नरक बन जाएगी. यही सोचसोच कर पूनम रो रही थी क्योंकि उस के बाद जो होना था, उस का उसे अंदाजा था.

मोहित को पुलिस ने हवालात में डाल दिया और पूनम को उस के घर वालों के सुपुर्द कर दिया. जबकि वह उन के साथ नहीं जाना चाहती थी. वह मोहित के साथ ही रहना चाहती थी. लेकिन मजबूर थी. क्योंकि उन लोगों ने मोहित के खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया था.

घर पहुंच कर पिता और भाई ने पूनम को जम कर पीटा और उसे धमकाया कि अगर उस ने कोर्ट में मोहित के खिलाफ बयान नहीं दिया तो उसे और मोहित को जान से मार डालेंगे. पूनम घर वालों की धमकियों से बहुत डर गई. लेकिन अपने लिए नहीं, बल्कि मोहित के लिए वह घर वालों के कहे अनुसार बयान देने को राजी हो गई.

घर वालों ने पूनम को दबाव में ला कर कोर्ट में जबरदस्ती बयान दिलवाया कि मोहित उसे जबरदस्ती भगा कर ले गया था और उस ने उस के साथ रेप भी किया था.

पूनम के लिए यह बहुत बुरा दौर था. उसे उसी के पति के खिलाफ झूठी गवाही के लिए मजबूर किया जा रहा था. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा क्यों दी जा रही है. एक तरफ पूनम अपने घर में ही रह कर बेगानी थी तो वहीं दूसरी तरफ मोहित पर पुलिस का सितम टूट रहा था.

जब पूनम और मोहित घर से भागे थे, तभी उन्होंने शादी कर ली थी. पुलिस ने जब दोनों को दिल्ली से पकड़ा तब मोहित बालिग हो चुका था, जबकि घर से भागे थे तब दोनों नाबालिग थे. पुलिस ने मोहित को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

पूनम के घर वालों ने पुलिस से सांठगांठ कर के मोहित पर अत्याचार करवा कर अपनी बेइज्जती का बदला तो लिया ही साथ ही अपना प्रभाव भी दिखाया.

पूनम के घर वालों में से कोई भी उस के साथ हमदर्दी तक नहीं दिखा रहा था. इस दुनिया में मां ही ऐसी होती है, जिसे अपने बच्चों से सब से ज्यादा प्यार होता है. लेकिन उस की मां सरिता एकदम पत्थरदिल हो गई थी. उसे अपनी बेटी की जरा भी परवाह नहीं थी.

अगर परवाह थी तो अपने परिवार की इज्जत की, जो पूनम ने सरेबाजार नीलाम कर दी थी. बल्कि सरिता तो उसे ताने देते हुए यही कह रही थी कि अगर उसे प्यार ही करना था तो क्या दलित ही मिला था. क्या बिरादरी में सब लड़के मर गए थे. यही बात सोचसोच कर उस की आंखों में शोले भड़कने लगते थे.

करीब 5 महीने बाद मोहित के केस की सेशन कोर्ट में काररवाई शुरू हुई तो हर सुनवाई से पहले पूनम को उस के घर वाले समझाते कि उसे कोर्ट में क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना. बाप और भाई के रूप में राक्षसों के जुल्मोसितम के आगे पूनम ने घुटने टेक दिए थे. उस से जो कहा जाता वही वह अदालत में कहती. ये पूनम की गवाही का ही नतीजा था कि मोहित को हाईकोर्ट से जमानत मिलने में 22 महीने लगे.

मोहित जब जमानत पर जेल से बाहर आया तो किसी तरह पूनम को भी उस की खबर लग गई. वह मोहित को एक नजर देखने के लिए बेकरार हो गई. लेकिन उस के लिए मिलना तो नामुमकिन सा था. पूनम को मोहित के घर वालों का नंबर अच्छी तरह से याद था. एक दिन अकेले कमरे में किसी तरह से मोबाइल ले कर उस ने नंबर डायल कर दिया. दूसरी ओर फोन की घंटी बज रही थी, लेकिन उस से तेज पूनम के दिल की धड़कनें बढ़ चुकी थीं.

वह यही चाह रही थी कि मोहित ही फोन रिसीव करे तो अच्छा रहेगा. आखिर उस की आरजू पूरी हुई और मोहित ने ‘हैलो’ बोला, जिसे सुन कर पूनम सुधबुध खो बैठी. कई बार उधर से हैलो की आवाज से उसे होश आया और रुंधे गले से सिर्फ लरजती आवाज में बोल पाई मोहित. मोहित उस की आवाज को पहचान गया और ‘पूनम पूनम’ कह कर चीख पड़ा.

खैर, उस दिन दोनों के बीच थोड़ी बातचीत हुई. इस के बाद एक बार फिर से पहले की तरह सब कुछ चलने लगा. फोन पर बातें होती रहीं और दोनों ने एक बार फिर पहले की तरह साथ रहने का फैसला कर लिया. तय वक्त पर पूनम और मोहित दोबारा घर से भाग गए और गांव से दूर आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, जिस का उन्हें प्रमाणपत्र भी मिला. पहले जब उन्होंने शादी की थी, उस समय वे नाबालिग थे.

उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन पूनम के घर वालों ने उसे हमेशा के लिए छोड़ दिया. क्योंकि उस ने दोबारा से उन्हें समाज में मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था. काफी अरसे तक पूनम ने अपने घर वालों से कोई बातचीत नहीं की, जबकि मोहित के घर वालों ने उन दोनों को अपना लिया था.

पूनम मोहित के घर पर ही रह रही थी. मोहित के पिता की मौत पहले ही हो चुकी थी. अब घर में सास और एक ननद थी. उन के बीच ही वह हंसीखुशी से रह रही थी. पूनम को अब एक खुशी मिलने वाली थी, क्योंकि वह मां बनने वाली थी. उस ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, जिस से पूरा घर खुश था. अब सब सामान्य था लेकिन उस का एक जख्म भरता नहीं था कि दूसरा बन जाता था.

अभी उस की मासूम बच्ची ने सही तरह से आंखें भी नहीं खोली थीं कि उस के ऊपर मुसीबतों का एक और पहाड़ टूट पड़ा. हुआ यूं कि मोहित पर पहले का जो केस चल रहा था, उस का फैसला आ गया, जिस में सेशन कोर्ट ने मोहित को 7 साल की सजा और 5 हजार रुपए जुरमाने का आदेश दिया.

इस फैसले से पूनम के पैरों तले से जैसे जमीन ही खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जब मोहित से उस ने शादी कर ली और वह बालिग भी है, तब क्यों ऐसा फैसला आया. इस से तो हमारा पूरा परिवार ही बिखर जाएगा. उस ने कोर्ट में इंसानियत के नाते मोहित को छोड़ने की गुजारिश की, पर कोई लाभ नहीं मिला.

पूनम को अपनी बेटी पर बड़ा तरस आ रहा था, जिसे बिना किसी कसूर के इतनी बड़ी सजा मिल रही है, जो उसे 7 सालों तक बाप के प्यार से दूर रहना पड़ेगा. इस दुधमुंही की क्या गलती थी, जो इसे हमारे किए की सजा मिलेगी.

 

इंद्रधनुष: अनुुपम ने कौनसा मजाक किया था

‘‘वाह, आज तो आप सचमुच बिजली गिरा रही हैं. नई साड़ी है क्या?’’ ऋचा को देखते ही गिरीश मुसकराया.

‘‘न तो यह नई साड़ी है और न ही मेरा किसी पर बिजली गिराने का इरादा है,’’ ऋचा रूखेपन से बोली, जबकि उस ने सचमुच नई साड़ी पहनी थी.

‘‘आप को बुरा लगा हो तो माफी चाहता हूं, पर यह रंग आप पर बहुत फबता है. फिर आप की सादगी में जो आकर्षण है वह सौंदर्य प्रसाधनों से लिपेपुते चेहरों में कहां. मैं तो मां से हमेशा आप की प्रशंसा करता रहता हूं. वह तो मेरी बातें सुन कर ही आप की इतनी बड़ी प्रशंसक हो गई हैं कि आप के मातापिता से बातें करने, आप के यहां आना चाहती थीं, पर मैं ने ही मना कर दिया. सोचा, जब तक आप राजी न हो जाएं, आप के मातापिता से बात करने का क्या लाभ है.’’

गिरीश यह सब एक ही सांस में बोलता चला गया था और ऋचा समझ न सकी थी कि उस की बातों का क्या अर्थ ले, ‘अजीब व्यक्ति है यह. कितनी बार मैं इसे जता चुकी हूं कि मेरी इस में कोई रुचि नहीं है.’ सच पूछो तो ऋचा को पुरुषों से घृणा थी, ‘वे जो भी करेंगे, अपने स्वार्थ के लिए. पहले तो मीठीमीठी बातें करेंगे, पर बाद में यदि एक भी बात मनोनुकूल न हुई तो खुद ही सारे संबंध तोड़ लेंगे,’ ऋचा इसी सोच के साथ अतीत की गलियों में खो गई.

तब वह केवल 17 वर्ष की किशोरी थी और अनुपम किसी भौंरे की तरह उस के इर्दगिर्द मंडराया करता था. खुद उस की सपनीली आंखों ने भी तो तब जीवन की कैसी इंद्रधनुषी छवि बना रखी थी. जागते हुए भी वह स्वप्नलोक में खोई रहती थी.

उस दिन अनुपम का जन्मदिन था और उस ने बड़े आग्रह से ऋचा को आमंत्रित किया था. पर घर में कुछ मेहमान आने के कारण उसे घर से रवाना होने में ही कुछ देर हो गई थी. वह जल्दी से तैयार हुई थी. फिर उपहार ले कर अनुपम के घर पहुंच गई थी. पर वह दरवाजे पर ही अपना नाम सुन कर ठिठक गई थी.

‘क्या बात है, अब तक तुम्हारी ऋचा नहीं आई?’ भीतर से अनुपम की दीदी का स्वर उभरा था.

‘मेरी ऋचा? आप भी क्या बात करती हैं, दीदी. बड़ी ही मूर्ख लड़की है. बेकार ही मेरे पीछे पड़ी रहती है. इस में मेरा क्या दोष?’

‘बनो मत, उस के सामने तो उस की प्रशंसा के पुल बांधते रहते हो,’ अब उस की सहेली का उलाहना भरा स्वर सुनाई दिया.

‘वह तो मैं ने विवेक और विशाल से शर्त लगाई थी कि झूठी प्रशंसा से भी लड़कियां कितनी जल्दी झूम उठती हैं,’ अनुपम ने बात समाप्त करतेकरते जोर का ठहाका लगाया था.

वहां मौजूद लोगों ने हंसी में उस का साथ दिया था.

पर ऋचा के कदम वहीं जम कर रह गए थे.‘आगे बढ़ू या लौट जाऊं?’ बस, एकदो क्षण की द्विविधा के बाद वह लौट आई थी. वह अपने कमरे में बंद हो कर फूटफूट कर रो पड़ी थी.

कुछ दिनों के लिए तो उसे सारी दुनिया से ही घृणा हो गई थी. ‘यह मतलबी दुनिया क्या सचमुच रहने योग्य है?’ ऋचा खुद से ही प्रश्न करती. पर धीरेधीरे उस ने अपनेआप को संयत कर लिया था. फिर अनुपम प्रकरण को वह दुस्वप्न समझ कर भूल गई थी. उस घटना को 1 वर्ष भी नहीं बीता था कि घर में उस के विवाह की चर्चा होने लगी. उस ने विरोध किया और कहा, ‘मैं अभी पढ़ना चाहती हूं.’

‘एकदो नहीं पूरी 4 बहनें हो. फिर तुम्हीं सब से बड़ी हो. हम कब तक तुम्हारी पढ़ाई समाप्त करने की प्रतीक्षा करते रहेंगे?’ मां ने परेशान हो कर प्रश्न किया था. ‘क्या कह रही हो, मां? अभी तो मैं बी.ए. में हूं.’ ‘हमें कौन सी तुम से नौकरी करवानी है. अब जो कुछ पढ़ना है, ससुराल जा कर पढ़ना,’  मां ने ऐसे कहा, मानो एकदो दिन में ही उस का विवाह हो जाएगा.

ऋचा ने अब चुप व तटस्थ रह कर पढ़ाई में मन लगाने का निर्णय किया. पर जब हर तीसरेचौथे दिन वर पक्ष के सम्मुख उस की नुमाइश होती, ढेरों मिठाई व नमकीन खरीदी जाती, सबकुछ अच्छे से अच्छा दिखाने का प्रयत्न होता, तब भी बात न बनती.

इस दौरान ऋचा एम.ए. प्रथम वर्ष में पहुंच गई थी. उस ने कई बार मना भी किया कि वरों की उस नीलामी में बोली लगाने की उन की हैसियत नहीं है. पर हर बार मां का एक ही उत्तर होता, ‘तुम सब अपनी घरगृहस्थी वाली हो जाओ, और हमें क्या चाहिए.’

‘पर मां, ‘अपने घर’ की दहलीज लांघने का मूल्य चुकाना क्या हमारे बस की बात है?’ मां से पूछा था ऋचा ने. ‘अभी बहुत भले लोग हैं इस संसार में, बेटी.’ ‘ऋचा, क्यों अपनी मां को सताती हो तुम? कोशिश करना हमारा फर्ज है. फिर कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ही,’ पिताजी मां से उस की बातचीत सुन कर नाराज हो उठे तो वह चुप रह गई थी.

पर एक दिन चमत्कार ही तो हो गया था. पिताजी समाचार लाए थे कि जो लोग ऋचा को आखिरी बार देखने आए थे, उन्होंने ऋचा को पसंद कर लिया था.

एक क्षण को तो ऋचा भी खुशी के मारे जड़ रह गई, पर वह प्रसन्नता उस वक्त गायब हो गई जब पिताजी ने दहेजटीका की रकम व सामान की सूची दिखाई. ऋचा निराश हो कर शून्य में ताकती बैठी रह गई थी.‘25 हजार रुपए नकद और उतनी ही रकम का सामान. कैसे होगा यह सब. 3 और छोटी बहनें भी तो हैं,’ उस के मुंह से अनायास ही निकल गया था.

‘जब उन का समय आएगा, देखा जाएगा,’ मां उस का विवाह संबंध पक्का हो जाने से इतनी प्रसन्न थीं कि उस के आगे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थीं. जब मां ने अजित को देखा तो वह निहाल ही हो गईं, ‘कैसा सुंदरसजीला दूल्हा मिला है तुझे,’ वह ऋचा से बोलीं.

पर वर पक्ष की भारी मांग को देखते हुए ऋचा चाह कर भी खुश नहीं हो पा रही थी.

धीरेधीरे अजित घर के सदस्य जैसा ही होता जा रहा था. लगभग तीसरेचौथे दिन बैंक से लौटते समय वह आ जाता. तब अतिविशिष्ट व्यक्ति की भांति उस का स्वागत होता या फिर कभीकभी वे दोनों कहीं घूमने के लिए निकल जाते.

‘मुझे तो अपनेआप पर गर्व हो रहा है,’ उस दिन रेस्तरां में बैठते ही अजित, ऋचा से बोला.

‘रहने दीजिए, क्यों मुझे बना रहे हैं?’ ऋचा मुसकराई.

‘क्यों, तुम्हें विश्वास नहीं होता क्या? ऐसी रूपवती और गुणवती पत्नी बिरलों को ही मिलती है. मैं ने तो जब पहली बार तुम्हें देखा था तभी समझ गया था कि तुम मेरे लिए ही बनी हो,’ अजित अपनी ही रौ में बोलता गया.

ऋचा बहुत कुछ कहना चाह रही थी, पर उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा था. जब अजित ने पहली ही नजर में समझ लिया था कि वह उस के लिए ही बनी है तो फिर वह मोलभाव किस लिए. कैसे दहेज की एकएक वस्तु की सूची बनाई गई थी. घर के छोटे से छोटे सदस्य के लिए कपड़ों की मांग की गई थी.

ऋचा के मस्तिष्क में विचारों का तूफान सा उठ रहा था. पर वह इधरउधर देखे बिना यंत्रवत काफी पिए जा रही थी.

तभी 2 लड़कियों ने रेस्तरां में प्रवेश किया. अजित को देखते ही दोनों ने मुसकरा कर अभिवादन किया और उस की मेज के पास आ कर खड़ी हो गईं.

‘यह ऋचा है, मेरी मंगेतर. और ऋचा, यह है उमा और यह राधिका. हमारी कालोनी में रहती हैं,’ अजित ने ऋचा से उन का परिचय कराया.

‘चलो, तुम ने तो मिलाया नहीं, आज हम ने खुद ही देख लिया अपनी होने वाली भाभी को,’ उमा बोली.

‘बैठो न, तुम दोनों खड़ी क्यों हो?’ अजित ने औपचारिकतावश आग्रह किया.

‘नहीं, हम तो उधर बैठेंगे दूसरी मेज पर. हम भला कबाब में हड्डी क्यों बनें?’

राधिका हंसी. फिर वे दोनों दूसरी मेज की ओर बढ़ गईं.

‘राधिका की मां, मेरी मां की बड़ी अच्छी सहेली हैं. वह उस का विवाह मुझ से करना चाहती थीं. यों उस में कोई बुराई नहीं है. स्वस्थ, सुंदर और पढ़ीलिखी है. अब तो किसी बैंक में काम भी करती है. पर मैं ने तो साफ कह दिया था कि मुझे चश्मे वाली पत्नी नहीं चाहिए,’ अजित बोला.

‘क्या कह रहे हैं आप? सिर्फ इतनी सी बात के लिए आप ने उस का प्रस्ताव ठुकरा दिया? यदि आप को चश्मा पसंद नहीं था तो वह कांटेक्ट लैंस लगवा सकती थीं,’ ऋचा हैरान स्वर में बोली.

‘बात तो एक ही है. चेहरे की तमाम खूबसूरती आंखों पर ही तो निर्भर करती है, पर तुम क्यों भावुक होती हो. मुझे तो तुम मिलनी थीं, फिर किसी और से मेरा विवाह कैसे होता?’ अजित ने ऋचा को आश्वस्त करना चाहा.

कुछ देर तो ऋचा स्तब्ध बैठी रही. फिर वह ऐसे बोली, मानो कोई निर्णय ले लिया हो, ‘आप से एक बात कहनी थी.’

‘कहो, तुम्हारी बात सुनने के लिए तो मैं तरस रहा हूं. पर तुम तो कुछ बोलती ही नहीं. मैं ही बोलता रहता हूं.’

‘पता नहीं, मांपिताजी ने आप को बताया है या नहीं, पर मैं आप को अंधेरे में नहीं रख सकती. मैं भी कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हूं,’ ऋचा बोली.

‘क्या?’

पर तभी बैरा बिल ले आया. अजित ने बिल चुकाया और दोनों रेस्तरां से बाहर निकल आए. कुछ देर दोनों इस तरह चुपचाप साथसाथ चलते रहे, मानो कहने को उन के पास कुछ बचा ही न हो.

‘मैं अब चलूंगी. घर से निकले बहुत देर हो चुकी है. मां इंतजार करती होंगी,’  वह घर की ओर रवाना हो गई.

कुछ दिन बाद-

‘क्या बात है, ऋचा? अजित कहीं बाहर गया है क्या? 3-4 दिन से आया ही नहीं,’ मां ने पूछा.

‘पता नहीं, मां. मुझ से तो कुछ कह नहीं रहे थे,’ ऋचा ने जवाब दिया.

‘बात क्या है, ऋचा? परसों तेरे पिताजी विवाह की तिथि पक्की करने गए थे तो वे लोग कहने लगे कि ऐसी जल्दी क्या है. आज फिर गए हैं.’

‘इस में मैं क्या कर सकती हूं, मां. वह लड़के वाले हैं. आप लोग उन के नखरे उठाते हैं तो वे और भी ज्यादा नखरे दिखाएंगे ही,’ ऋचा बोली.

‘क्या? हम नखरे उठाते हैं लड़के वालों के? शर्म नहीं आती तुझे ऐसी बात कहते हुए?  कौन सा विवाह योग्य घरवर होगा जहां हम ने बात न चलाई हो. तब कहीं जा कर यहां बात बनी है. तुम टलो तो छोटी बहनों का नंबर आए मां की वर्षों से संचित कड़वाहट बहाना पाते ही बह निकली.

ऋचा स्तब्ध बैठी रह गई. अपने ही घर में क्या स्थिति थी उस की? मां के लिए वह एक ऐसा बोझ थी, जिसे वह टालना चाहती थी. अपना घर? सोचते हुए उस के होंठों पर कड़वाहट रेंग आई, ‘अपना घर तो विवाह के बाद बनेगा, जिस की दहलीज पार करने का मूल्य ही एकडेढ़ लाख रुपए है. कैसी विडंबना है, जहां जन्म लिया, पलीबढ़ी न तो यह घर अपना है, न ही जहां गृहस्थी बसेगी वह घर अपना है.’

जाने और कितनी देर ऋचा अपने ही खयालों में उलझी रहती यदि पिताजी का करुण चेहरा और उस से भी अधिक करुण स्वर उसे चौंका न देता, ‘क्या बात है, ऋचा? हम तुम्हारी भलाई के लिए कितने प्रयत्न करते हैं, पर पता नहीं क्यों तुम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने पर तुली रहती हो.’

‘क्या हुआ, पिताजी?’ ऋचा हैरान स्वर में पूछने लगी.

‘तुम्हें अजित से यह कहने की क्या जरूरत थी कि तुम कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हो?’

‘मैं ने जानबूझ कर नहीं कहा था, पिताजी. ऐसे ही बात से बात निकल आई थी. फिर मैं ने छिपाना ठीक नहीं समझा.’

‘तुम नहीं जानतीं, तुम ने क्या कह दिया. अब वे लोग कह रहे हैं कि हम ने यह बात छिपा कर उन्हें अंधेरे में रखा,’ पिताजी दुखी स्वर में बोले.

‘पर विवाह तो निश्चित हो चुका है, सगाई हो चुकी है. अब उन का इरादा क्या है?’ मां ने परेशान हो कर पूछा था, जो जाने कब वहां आ कर खड़ी हो गई थीं.

‘कहते हैं कि वे हमारी छोटी बेटी पूर्णिमा को अपने घर की बहू बनाने को तैयार हैं. पर मैं ने कहा कि बड़ी से पहले छोटी का विवाह हो ऐसी हमारे घर की रीति नहीं है. फिर भी घर में सलाह कर के बताऊंगा. लेकिन बताना क्या है, हमारी बेटियों को क्या उन्होंने पैर की जूतियां समझ रखा है कि अगर बड़ी ठीक न आई तो छोटी पहन ली,’  वह क्रोधित स्वर में बोले.

‘इस में इतना नाराज होने की बात नहीं है, पिताजी. यदि उन्हें पूर्णिमा पसंद है तो आप उस का विवाह कर दीजिए. मैं तो वैसे भी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं,’ ऋचा ने क्षणांश में ही मानो निर्णय ले लिया.

कुछ देर सब चुप खड़े रहे, मानो कहने को कुछ बचा ही न हो.

‘ऋचा ठीक कहती है. अधिक भावुक होने में कुछ नहीं रखा है. इतनी ऊंची नाक रखोगे तो ये सब यहीं बैठी रह जाएंगी,’ मां ने अपना निर्णय सुनाया.

फिर तो एकएक कर के 8 वर्ष बीत गए थे. उस से छोटी तीनों बहनों के विवाह हो गए थे. ऋचा भी पढ़ाई समाप्त कर के कालिज में व्याख्याता हो गई थी. पिताजी भी अवकाश ग्रहण कर चुके थे.

अब तो वह विवाह के संबंध में सोचती तक नहीं थी. पर गिरीश ने अपने   व्यवहार से मानो शांत जल में कंकड़ फेंक दिया था. अब अतीत को याद कर के वह बहुत अशांत हो उठी थी.

‘‘अरे दीदी, यहां अंधेरे में क्यों बैठी हो? बत्ती भी नहीं जलाई. नीचे मां तुम्हें बुला रही हैं. तुम्हारे कालिज के कोई गिरीश बाबू अपनी मां के साथ आए हैं. अरे, तुम तो रो रही हो. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ ऋचा की छोटी बहन सुरभि ने आ कर कहा.

‘‘नहीं, रो नहीं रही हूं. ऐसे ही कुछ सोच रही थी. तू चल, मैं आ रही हूं,’’ ऋचा अपने आंसू पोंछते हुए बोली.

ड्राइंगरूम में पहुंची तो एकाएक सब की निगाहें उस की ओर ही उठ गईं.

‘‘आप की बेटी ही पहली लड़की है, जिसे देख कर गिरीश ने विवाह के लिए हां की है. नहीं तो यह तो विवाह के लिए हां ही नहीं करता था,’’ ऋचा को देखते ही गिरीश की मां बोलीं.

‘‘आप ने तो हमारा बोझ हलका कर दिया, बहनजी. इस से छोटी तीनों बहनों का विवाह हो चुका है. मुझे तो दिनरात इसी की चिंता लगी रहती है.’’

ऋचा के मां और पिताजी अत्यंत प्रसन्न दिखाई दे रहे थे.

‘तो मुझ से पहले ही निर्णय लिया जा चुका है?’ ऋचा ने बैठते हुए सोचा. वह कुछ कहती उस से पहले ही गिरीश की मां और उस के मातापिता उठ कर बाहर जा चुके थे. बस, वह और गिरीश ड्राइंगरूम में रह गए थे.

‘‘एक बात पूछूं, आप कभी हंसती- मुसकराती भी हैं या यों ही मुंह फुलाए रहती हैं?’’ गिरीश ने नाटकीय अंदाज में पूछा.

‘‘मैं भी आप से एक बात पूछूं?’’ ऋचा ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न कर दिया, ‘‘आप कभी गंभीर भी रहते हैं या यों ही बोलते रहते हैं?’’

‘‘चलिए, आज पता चल गया कि आप बोलती भी हैं. मैं तो समझा था कि आप गूंगी हैं. पता नहीं, कैसे पढ़ाती होंगी. मैं सचमुच बहुत बोलता हूं. अब क्या करूं, बोलने का ही तो खाता हूं. पर मैं इतना बुरा नहीं हूं जितना आप समझती हैं,’’ गिरीश अचानक गंभीर हो गया.

‘‘देखिए, आप अच्छे हों या बुरे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. पुरुषों में तो मुझे विशेष रूप से कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘आप के अनुभव निश्चय ही कटु रहे होंगे. पर जीवन में किसी न किसी पर विश्वास तो करना ही पड़ता है. आप एक बार मुझ पर विश्वास तो कर के देखिए,’’ गिरीश मुसकराया.

‘‘ठीक है, पर मैं आप को सबकुछ साफसाफ बता देना चाहती हूं. मैं कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हूं. दहेज में देने के लिए मेरे पिताजी के पास कुछ नहीं है,’’ ऋचा कटु स्वर में बोली.

‘‘हम एकदूसरे को समस्त गुणों व अवगुणों के साथ स्वीकार करेंगे, ऋचा. फिर इन बातों का तो कोई अर्थ ही नहीं है. मैं तुम्हें 3 वर्षों से देखपरख रहा हूं. मैं ने यह निर्णय एक दिन में नहीं लिया है. आशा है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी.’’

गिरीश की बातों को समझ कर ऋचा खामोश रह गई. इतनी समझदारी की बातें तो आज तक उस से किसी ने नहीं कही थीं. फिर उस के नेत्र भर आए.

‘‘क्या हुआ?’’ गिरीश ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, ये तो प्रसन्नता के आंसू हैं,’’ ऋचा ने मुसकराने की कोशिश की. उसे लगा कि आंसुओं के बीच से ही दूर क्षितिज पर इंद्रधनुष उग आया है.

 

कैसी दूरी: क्या शीला की बेचैनी रवि समझ पाया?

आधी रात का गहरा सन्नाटा. दूर कहीं थोड़ीथोड़ी देर में कुत्तों के भूंकने की आवाजें उस सन्नाटे को चीर रही थीं. ऐसे में भी सभी लोग नींद के आगोश में बेसुध सो रहे थे.

अगर कोई जाग रहा था, तो वह शीला थी. उसे चाह कर भी नींद नहीं आ रही थी. पास में ही रवि सो रहे थे.

शीला को रहरह कर रवि पर गुस्सा आ रहा था. वह जाग रही थी, मगर वे चादर तान कर सो रहे थे. रवि के साथ शीला की शादी के15 साल गुजर गए थे. वह एक बेटे और एक बेटी की मां बन चुकी थी.

शादी के शुरुआती दिन भी क्या दिन थे. वे सर्द रातों में एक ही रजाई में एकदूसरे से चिपक कर सोते थे. न किसी का डर था, न कोई कहने वाला. सच, उस समय तो नौजवान दिलों में खिंचाव हुआ करता था.

शीला ने तब रवि के बारे में सुना था कि जब वे कुंआरे थे, तब आधीआधी रात तक दोस्तों के साथ गपशप किया करते थे.

तब रवि की मां हर रोज दरवाजा खोल कर डांटते हुए कहती थीं, ‘रोजरोज देर से आ कर सोने भी नहीं देता. अब शादी कर ले, फिर तेरी घरवाली ही दरवाजा खोलेगी.’रवि जवाब देने के बजाय हंस कर मां को चिढ़ाया करते थे.

जैसे ही रवि के साथ शीला की शादी हुई, दोस्तों से दोस्ती टूट गई. जैसे ही रात होती, रवि चले आते उस के पास और उस के शरीर के गुलाम बन जाते. भंवरे की तरह उस पर टूट पड़ते. उन दिनों वह भी तो फूल थी. मगर शादी के सालभर बाद जब बेटा हो गया, तब खिंचाव कम जरूर पड़ गया.

धीरेधीरे शरीर का यह खिंचाव खत्म तो नहीं हुआ, मगर मन में एक अजीब सा डर समाया रहता था कि कहीं पास सोए बच्चे जाग न जाएं. बच्चे जब बड़े हो गए, तब वे अपनी दादी के पाससोने लगे.

अब भी बच्चे दादी के पास ही सो रहे हैं, फिर भी रवि का शीला के प्रति वह खिंचाव नहीं रहा, जो पहले हुआ करता था. माना कि रवि उम्र के ढलते पायदान पर है, लेकिन आदमी की उम्र जब 40 साल की हो जाती है, तो वह बूढ़ा तो नहीं कहलाता है.

बिस्तर पर पड़ेपड़े शीला सोच रही थी, ‘इस रात में हम दोनों के बीच में कोई भी तो नहीं है, फिर भी इन की तरफ से हलचल क्यों नहीं होती है? मैं बिस्तर पर लेटीलेटी छटपटा रही हूं, मगर ये जनाब तो मेरी इच्छा को समझ ही नहीं पा रहे हैं.

‘उन दिनों जब मेरी इच्छा नहीं होती थी, तब ये जबरदस्ती किया करते थे. आज तो हम पतिपत्नी के बीच कोई दीवार नहीं है, फिर भी क्यों नहीं पास आते हैं?’

शीला ने सुन ही नहीं रखा है, बल्कि ऐसे भी तमाम उदाहरण देखे हैं कि जिस आदमी से औरत की ख्वाहिश पूरी नहीं होती है, तब वह औरत दूसरे मर्द के ऊपर डोरे डालती है और अपने खूबसूरत अंगों से उन्हें पिघला देती है. फिर रवि के भीतर का मर्द क्यों मर गया है?

मगर शीला भी उन के पास जाने की हिम्मत क्यों नहीं कर पा रही है? वह क्यों उन की चादर में घुस नहीं जाती है? उन के बीच ऐसा कौन सा परदा है, जिस के पार वह नहीं जा सकती है?

तभी शीला ने कुछ ठाना और वह रवि की चादर में जबरदस्ती घुस गई. थोड़ी देर में उसे गरमाहट जरूर आ गई, मगर रवि अभी भी बेफिक्र हो कर सो रहे थे. वे इतनी गहरी नींद में हैं कि कोई चिंता ही नहीं.

शीला ने धीरे से रवि को हिलाया. अधकचरी नींद में रवि बोले, ‘‘शीला, प्लीज सोने दो.’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही है,’’ शीला शिकायत करते हुए बोली.

‘‘मुझे तो सोने दो. तुम सोने की कोशिश करो. नींद आ जाएगी तुम्हें,’’ रवि नींद में ही बड़बड़ाते हुए बोले और करवट बदल कर फिर सो गए.

शीला ने उन्हें जगाने की कोशिश की, मगर वे नहीं जागे. फिर शीला गुस्से में अपनी चादर में आ कर लेट गई, मगर नींद उस की आंखों से कोसों दूर जा चुकी थी.

सुबह जब सूरज ऊपर चढ़ चुका था, तब तक शीला सो कर नहीं उठी थी. उस की सास भी घबरा गईं. सब से ज्यादा घबराए रवि.

मां रवि के पास आ कर बोलीं, ‘‘देख रवि, बहू अभी तक सो कर नहीं उठी. कहीं उस की तबीयत तो खराब नहीं हो गई?’’

रवि बैडरूम की तरफ लपके. देखा कि शीला बेसुध सो रही थी. वे उसे झकझोरते हुए बोले, ‘‘शीला उठो.’’

‘‘सोने दो न, क्यों परेशान करते हो?’’ शीला नींद में ही बड़बड़ाई.

रवि को गुस्सा आ गया और उन्होंने पानी का एक गिलास भर कर उस के मुंह पर डाल दिया.शीला घबराते हुए उठी और गुस्से से बोली, ‘‘सोने क्यों नहीं दिया मुझे? रातभर नींद नहीं आई. सुबह होते ही नींद आई और आप ने उठा दिया.’’

‘‘देखो कितनी सुबह हो गई?’’ रवि चिल्ला कर बोले, तब आंखें मसल कर उठते हुए शीला बोली, ‘‘खुद तो ऐसे सोते हो कि रात को उठाया तो भी न उठे और मुझे उठा दिया,’’ इतना कह कर वह बाथरूम में घुस गई.यह एक रात की बात नहीं थी. तकरीबन हर रात की बात थी.मगर रवि में पहले जैसा खिंचाव क्यों नहीं रहा? या उस से उन का मन भर गया? ऐसा सुना भी है कि जिस मर्द का अपनी औरत से मन भर जाता है, फिर उस का खिंचाव दूसरी तरफ हो जाता है. कहीं रवि भी… नहीं उन के रवि ऐसे नहीं हैं.

सुना है कि महल्ले के ही जमना प्रसाद की पत्नी माधुरी का चक्कर उन के ही पड़ोसी अरुण के साथ चल रहा है. यह बात पूरे महल्ले में फैल चुकी थी. जमना प्रसाद को भी पता थी, मगर वे चुप रहा करते थे.

रात का सन्नाटा पसर चुका था. रवि और शीला बिस्तर में थे. उन्होंने चादर ओढ़ रखी थी.रवि बोले, ‘‘आज मुझे थोड़ी ठंड सी लग रही है.’’

‘‘मगर, इस ठंड में भी आप तो घोडे़ बेच कर सोते रहते हो, मैं कितनी बार आप को जगाती हूं, फिर भी कहां जागते हो. ऐसे में कोई चोर भी घुस जाए तो पता नहीं चले. इतनी गहरी नींद क्यों आती है आप को?’’

‘‘अब बुढ़ापा आ रहा है शीला.’’

‘‘बुढ़ापा आ रहा है या मुझ से अब आप का मन भर गया है?’’

‘‘कैसी बात करती हो?’’

‘‘ठीक कहती हूं. आजकल आपको न जाने क्या हो गया,’’ यह कहते हुए शीला की आंखों में वासना दिख रही थी. रवि जवाब न दे कर शीला का मुंह ताकते रहे.

शीला बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो? कभी देखा नहीं है क्या?’’

‘‘अरे, जब से शादी हुई है, तब से देख रहा हूं. मगर आज मेरी शीला कुछ अलग ही दिख रही है,’’ शरारत करते हुए रवि बोले.

‘‘कैसी दिख रही हूं? मैं तो वैसी ही हूं, जैसी तुम ब्याह कर लाए थे,’’ कह कर शीला ने ब्लाउज के बटन खोल दिए, ‘‘हां, आप अब वैसे नहीं रहे, जैसे पहले थे.’’

‘‘क्यों भला मुझ में बदलाव कैसे आ गया?’’ अचरज से रवि बोले.

‘‘मेरा इशारा अब भी नहीं समझ रहे हो. कहीं ऐसा न हो कि मैं भी जमना प्रसाद की पत्नी माधुरी बन जाऊं.’’

‘‘अरे शीला, जमना प्रसाद तो ढीले हैं, मगर मैं नहीं हूं,’’ कह कर रवि ने शीला को अपनी बांहों में भर कर उस के कई चुंबन ले लिए.

ये लम्हा कहां था मेरा: भाग 2- क्या था निकिता का फैसला

फोन मीनाक्षी का था. उन की आवाज में मनुहार की जगह आज बेबसी झलक रही थी, ‘‘बेटा, तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ सकती हूं पर ऐसे कैसे अकेली रहोगी जिंदगीभर? इसी सोच में पापा दिनरात घुलते रहते हैं… कैसे समझाऊं तुम्हें कि मेरी तबीयत भी अब…’’ और बात पूरी होने से पहले ही मीनाक्षी के सिसकने की आवाजें आने लगीं.

हक्कीबक्की सी निकिता बिना कुछ सोचे बोल उठी, ‘‘मम्मी मैं आप को अभी फोन करने ही वाली थी… मुझे अभिनव पसंद है,’’ और फिर फोन काट धम्म से कुरसी पर बैठ गई. ‘शायद मुझे यही करना चाहिए था… इस के अलावा और कोईर् ऐसा रास्ता भी तो नहीं है जो मम्मीपापा को खुशियां दे पाए.’

शाम को घर पहुंची तो मीनाक्षी ने बताया कि सुदीप निकिता की हां सुनने के बाद आगे की बात करने अभिनव के घर चले गए हैं. वहां अभिनव के दादाजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई. 2-3 दिन से चल रहा बुखार इतना तेज हो गया कि वे बेहोशी की हालत में पहुंच गए. इस कारण उन्हें हौस्पिटल में भरती करना पड़ा. सुदीप भी अभिनव के पिता के साथ हौस्पिटल में ही थे.

2 दिन बाद दादाजी को हौस्पिटल से छुट्टी मिल गई. वे धीरेधीरे स्वस्थ हो रहे थे. इस बीच एक दिन अभिनव के मम्मीपापा निकिता के घर मिठाई का डब्बा ले कर आ गए. उन्होंने बताया कि दादाजी ने अभिनव का विवाह शीघ्र ही कर देने की इच्छा व्यक्त की है. मीनाक्षी और सुदीप तो स्वयं ही चाह रहे थे कि वह विवाह जल्द से जल्द हो जाए. फिर निकिता की हां कहीं न में न बदल जाए, इस का भी उन्हें भय सता रहा था.

डाक्टर से दादाजी की तबीयत के विषय में बात कर 2 महीने बाद ही विवाह

की तिथि तय कर दी गई. इस बीच एकदूसरे से खास बातचीत का अवसर नहीं मिला अभिनव व निकिता को. दोनों वीजा औफिस में मिले, किंतु वहां औपचारिकताएं पूरी करतेकरते ही समय बीत गया. अभिनव का विवाह के बाद एक  प्रोजैक्ट के सिलसिले में फ्रांस जाने का कार्यक्रम था. दोनों परिवारों के कहने पर इसे हनीमून ट्रिप का रूप दे दिया गया. निकिता भी साथ जा रही थी. उस ने भी अपनी प्रकाशन संस्था द्वारा पर्यटन पर प्रकाशित होने वाली एक पुस्तक के लिए फ्रांस पर लिखने में रूचि दिखाते हुए वह काम ले लिया. यों निकिता का मन भी नहीं था विवाह से पहले अभिनव से मिलनेजुलने का. क्या बात करती वह उस से? मातापिता की खुशियों का खयाल न होता उसे तो क्या वह शादी का फैसला लेती? शायद कभी नहीं.

समय पंख लगा कर उड़ा और निकिता व अभिनव पतिपत्नी के रिश्ते में बंध गए. बिदा हो कर निकिता ससुराल पहुंची तो रस्मोरिवाज पूरे होतेहोते रात हो गई. डिनर के बाद वह अपने कमरे में विचारमग्न बैठी थी कि अभिनव आ गया. उस ने बताया कि दादाजी को सांस लेने में कठिनाई हो रही है, इसलिए वह उन के पास ही बैठा है. निकिता को उस ने सो जाने की सलाह दे दी, क्योंकि अगले दिन उन्हें पैरिस की फ्लाइट लेनी थी.

अभिनव के कमरे से जाते ही निकिता कपड़े बदल कर लेट गई. मातापिता की खुशियों के लिए जिंदगी से समझौता करने वाली निकिता यह नहीं जानती थी कि अभिनव भी एक मानसिक संघर्ष से जूझ रहा है. सच तो यह था कि वह भी अभी विवाह नहीं करना चाह रहा था. किसी लड़की के लिए मन में कोई भावना ही नहीं महसूस हो रही थी उसे कुछ दिनों से. अपनी पिछली नौकरी के दौरान हुआ एक अनुभव उस के मनमस्तिष्क को जकड़े बैठा था…

उस औफिस में सोनाली नाम की एक लड़की अभिनव के करीब आने की कोशिश करती रहती थी. काम में वह अच्छी नहीं थी, टीम लीडर अभिनव ही था, इसलिए उसे वश में कर प्रमोशन पाना चाहती थी. अभिनव उस की ओछी हरकतों को नापसंद करता था और उस से दूरी बनाए रखता था. इस बात से वह इतनी नाराज हुई कि एक दिन उस के कैबिन में काम की बातों पर चर्चा करते हुए अचानक ही शोर मचा दिया कि वह उस के साथ जबरदस्ती कर रहा था.

अभिनव के खिलाफ शिकायत भरा लंबाचौड़ा पत्र भी लिख कर दे दिया उस ने. उस में कहा गया कि अभिनव ने जानबूझ कर उस की रिपोर्ट खराब की है, क्योंकि वह उस से उस की मरजी के खिलाफ संबंध बनाना चाहता था. वहां के मैनेजमैंट ने अभिनव से इस विषय में सफाई मांगे बिना ही नौकरी छोड़ने का आदेश दे दिया.

उसी दिन से अभिनव कुंठित सा रहने लगा था. मातापिता द्वारा विवाह की बात शुरू होते ही वह टालमटोल करने लगता था. इस बार भी विवाह के लिए हामी उस ने अपने दादाजी की बीमारी के दबाव में आ कर भरी थी.

दादाजी के पास शादी की पहली रात अभिनव को बैठे देख उस की मम्मी ने वापस कमरे में भेज दिया. वह कमरे में पहुंचा तो निकिता गहरी नींद में थी. विचारों की कशमकश में उलझे हुए अभिनव को कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं लगा.

अगले दिन दोनों पैरिस रवाना हो गए. वहां लगभग 15 दिन बिताने थे उन्हें. अभिनव का काम तो केवल पैरिस तक ही सीमित था, लेकिन निकिता को फ्रांस के कुछ अन्य स्थानों पर भी जाना था.

पैरिस पहुंच कर अभिनव जहां अपने औफिस की मीटिंग्स

और प्रोजैक्ट बनाने में लग गया, वहीं निकिता भ्रमण करते हुए नईनई जानकारी जुटाने में व्यस्त हो गई. उसे अपने प्रकाशन हाउस की फ्रांस स्थित एक सहयोगी कंपनी द्वारा महिला गाइड भी दी गई मदद के लिए.

2 दिन तक निकिता ने पैरिस में डिज्नीलैंड, नात्रे डैम, लैस इन्वैलिड्स, लुव्र म्यूजियम और ऐफिल टावर जा कर पर्याप्त जानकारी एकत्र कर ली. रात में होटल पहुंच कर जब वह डिनर कर लेती तब जा कर पहुंचता था अभिनव. औफिस में वह अगले दिन की प्रेजैंटेशन तैयार करने के बहाने देर तक रुका रहता था. उस के होटल पहुंचने पर निकिता दिनभर की थकान के कारण उनींदी सी होती थी.

अभिनव काम में हुई देरी के कारण माफी मांग निकिता को सोने को कह देता और स्वयं भी बिस्तर पर लेटते ही बेसुध हो जाता. लेकिन एकदूसरे को पतिपत्नी का स्थान न दिए जाने के बावजूद भी इन 2-3 दिनों में दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति मित्रता का भाव जन्म लेने लगा था. दिन में अकसर अपनाअपना काम करते हुए वे फोन पर बातचीत कर लेते थे. एकदूसरे से नई जगह और नए लोगों के विषय में अनुभव बांटना दोनों का अच्छा लगता था.

2 दिन बाद निकिता का पैरिस का काम पूरा हो गया और वह अपनी गाइड के साथ फ्रैंच रिविएरा के लिए रवाना हो गई. फ्रांस के दक्षिण पूर्व में भूमध्य सागर के तट पर बसे इस स्थान के विषय में सोचते हुए निकिता के मस्तिष्क में कांस फिल्म फैस्टिवल, मौजमस्ती के लिए बना विशाल खेल का मैदान, रेतीले बीच और नीस

में मनाए जाने वाले फूलों के कार्निवाल की छवि बन रही थी. मन चाह रहा था कि गाइड के स्थान पर अभिनव साथ होता तो लिखने की सामग्री जुटाने के साथसाथ ही वह दोस्ती का आनंद भी ले पाती.

नौनस्टौप फ्लाइट में लगभग डेढ़ घंटे का सफर तय कर वे नीस पहुंचे. एअरपोर्ट से निकल कर होटल जाने के लिए टैक्सी में बैठ निकिता खिड़की से बाहर झांकने लगी. साफ मौसम जहां निकिता के मन को सुकून दे रहा था, वहीं अभिनव की चाह को भी बढ़ा रहा था. ‘क्या इस समय मुझे सिर्फ एक दोस्त की जरूरत है? मेरी गाइड ऐलिस भी एक अच्छी मित्र बन गई है, फिर अभिनव ही क्यों याद आ रहा है मुझे बारबार?’

निकिता की सोच मोबाइल की रिंग बजने से टूट गई. अभिनव का फोन था अरे, मैं तो फ्लाइट से उतर कर अभिनव को फोन करना ही भूल गई. कुछ देर बातें करने के बाद फोन काटने से पहले अभिनव से मिसिंग यू सुन निकिता मंदमंद मुसकरा उठी.

पैरिस में अभिनव का मन भी औफिस में नहीं लग रहा था. तबीयत खराब होने का बहाना कर वह अपने होटल आ गया. कुछ देर टीवी देखने के बाद वाशरूम गया तो निकिता के अंतर्वस्त्र दरवाजे के पीछे टंगे थे. ‘‘भुलक्कड़, कहीं की,’’ कहते हुए उस ने मुसकरा कर उन्हें दरवाजे से उतारा तो निकिता के परफ्यूम की खुशबू से उसे अपने भीतर एक उत्तेजना सी महसूस हुई.

बिस्तर पर लेटा तो लगा कि निकिता भी पास ही लेटी दिखती तो बैड यों सूनासूना न लगता. जब होटल के कमरे में भी उस का मन नहीं लगा तो टैक्सी ले कर ऐफिल टावर पहुंच गया. वहां मस्ती करते हुए जोड़ों को हाथ में हाथ डाले घूमते देख वह बेचैन होने लगा.

 

 

ताप्ती- भाग 2: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

ताप्ती ने जैसे ही सरकारी कोठी में प्रवेश किया, अर्दली दौड़ कर आया. उस का नामपता पूछ कर अंदर फोन घुमाया और फिर उसे अंदर भेज दिया. ड्राइंगरूम को देख कर ताप्ती सोच रही थी, मेरे पूरे फ्लैट का एरिया ही इस कमरे के बराबर है.

तभी कुछ सरसराहट हुई और एक लंबी कदकाठी के सांवले युवक ने अंदर प्रवेश किया, ‘‘नमस्कार मैं आलोक हूं, आप ताप्ती हैं?’’

ताप्ती एकदम से सकपका गई, ‘‘जी हां, बच्चा किधर है?’’

‘‘गोलू अभी सो रही है. दरअसल, अभी कुछ देर पहले ही स्विमिंग क्लास से आई है.’’

ताप्ती को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह युवक पुलिस महकमे में इतने ऊंचे पद पर आसीन होगा और इस की 9 वर्षीय बेटी भी है.

आलोक बहुत ही धीमे और मीठे स्वर में वार्त्तालाप कर रहे थे. न जाने क्यों ताप्ती बारबार उन की तरफ एकटक देख रही थी. सांवला रंग, चौड़ा सीना, उठनेबैठने में एकदम अफसरी ठसका, घने घुंघराले बाल जो थोड़ेथोड़े कानों के पास सफेद हो गए थे, उन्हें छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया गया था और हंसी जिस में जरा भी बनावट नहीं थी, दिल के आरपार हो जाती थी. बच्चों जैसी हंसी. पता नहीं क्यों बारबार ताप्ती को लग रहा था यह बंदा एकदम खरा सोना है.

चाय आ गई थी. ताप्ती उठना ही चाह रही थी कि आलोक बोला, ‘‘ताप्तीजी, आप आई हैं तो एक बार गोलू की मम्मी से भी मिल लें… अनीता अभी रास्ते में ही हैं… बस 5 मिनट और.’’

ताप्ती को वहां बैठना मुश्किल लग रहा था पर क्या करती… चाय के दौरान बातोंबातों में पता चला कि ताप्ती और आलोक एक ही कालेज में पढ़े हुए हैं, फिर तो कब 1 घंटा बीत गया पता ही नहीं चला.

ताप्ती बोल रही थी, ‘‘आलोक सर आप के तो बहुत प्रशंसक होंगे कालेज में?’’

आलोक मंदमंद मुसकरा कर कुछ कहने ही वाले थे तभी अनीता ने प्रवेश किया.

अपने पति को किसी अजनबी खूबसूरत लड़की से बात करते देख वे प्रसन्न नहीं हुईं. रूखी सी आवाज में बोलीं, ‘‘आप हैं गोलू की ट्यूटर. देखो वह इंटरनैशनल बोर्ड में पढ़ती है… करा पाओगी तुम उस का होमवर्क? हम इसीलिए इतनी ज्यादा फीस दे रहे हैं ताकि उस के प्रोजैक्ट्स और असाइनमैंट में आप उस की मदद कर सको… मुझे और उस के पापा को तो दम मारने की भी फुरसत नहीं है.’’

ताप्ती विनम्रतापूर्वक बोली, ‘‘इसीलिए मैं आज बच्ची से मिलना चाहती थी.’’

तभी परदे में सरसराहट हुई और एक बहुत ही प्यारी बच्ची ने प्रवेश किया. उसे देखते ही अनीता के चेहरे पर कोमलता आ गई, परंतु वह दौड़ कर अपने पापा आलोक के गले में झूल गई. लड़की का नाम आरवी था. पापा के चेहरे की भव्य गढ़न और मां का रंग उस ने विरासत में पाया था, एकदम ऐसा चेहरा जो हर किसी को प्यार करने के लिए मजबूर कर दे.

अनीता अहंकारी स्वर में बोलीं, ‘‘गोलू तुम्हारी ट्यूटर आई हैं. कल से तुम्हें पढ़ाने आएंगी.’’

बच्ची मुंह फुला कर बोली, ‘‘मम्मी आई एम आरवी, राइजिंग सन.’’

ताप्ती मुसकराते हुए बोली, ‘‘हैलो आरवी, कल से मैं आप की आप के प्रोजैक्ट्स में मदद करने आया करूंगी.’’

आरवी ने मुस्करा कर हामी भर दी.

ताप्ती ने कुछ ही देर में महसूस कर लिया था जो आलोक अनीता के आने से पहले इतने सहज थे वे अभी बहुत ही बंधेबंधे से महसूस कर रहे हैं. दोनों पतिपत्नी में कोई साम्य नहीं लग रहा  था.

अब ताप्ती की शाम और देर से होती थी, क्योंकि हफ्ते में 3 शामें उस की आरवी की ट्यूशन क्लास में जाती थीं. पहले 2-3 दिनों तक तो आरवी ने उसे ज्यादा भाव नहीं दिया पर फिर धीरेधीरे ताप्ती से खुल गई. लड़की का दिमाग बहुत तेज था. उसे बस थोड़ी गाइडैंस और प्यार की जरूरत थी.

ऐसे ही एक शाम को जब ताप्ती आरवी को पढ़ाने पहुंची तो एकदम आंधीतूफान के साथ बारिश आ गई. जब 2 घंटे तक बारिश नहीं रुकी तो आलोक ने ही ताप्ती से कहा कि वे आज अपने सरकारी वाहन से उसे छोड़ देंगे.

रास्ते में वे ताप्ती से बोले, ‘‘तुम क्यों रोज इतनी परेशान होती हो… आरवी खुद तुम्हारे घर आ जाया करेगी.’’

ताप्ती बिना झिझक के बोली, ‘‘सर, अनीताजी ने मेरी ट्यूशन फीस इसीलिए क्व15 हजार तय की है, क्योंकि वे होम ट्यूटर चाहती थीं. मैं अपना काम पूरी ईमानदारी से करती हूं. मुझे कोई परेशानी नहीं होती है आनेजाने में.’’

फिर जब कार एक निर्जन सी सोसाइटी के आगे रुकी तो फिर आलोक चिंतित स्वर में बोले, ‘‘तुम्हें यहां डर नहीं लगता?’’

ताप्ती मुसकराते हुए बोली, ‘‘सर, मुझे इंसानों से डर लगता है, इसलिए यहां रहती हूं.’’

आलोक के लिए ताप्ती एक पहेली सी थी और फिर मिहिम के पिता से उन्होंने ताप्ती का सारा इतिहास पता कर लिया कि कैसे वह लड़की अकेले ही आत्मस्वाभिमान के साथ अपनी जिंदगी जी रही है. फिर भी उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है. इस के विपरीत उन की पत्नी अनीता रातदिन छोटीछोटी बातों के लिए झिकझिक करती रहती हैं. नौकर के छुट्टी करने या आरवी की आया न आने पर कैसे रणचंडी बन कर सब की क्लास लेती हैं, इस से वे भलीभांति परिचित थे.

अनीता का सौंदर्य एक कठोर पत्थर की तरह था. उन्होंने आलोक के जीवन को सख्त नियमों और कायदों में बांधा हुआ था, जिस कारण उन का फक्कड़ व्यक्तित्व भी कभीकभी विद्रोह कर उठता था.

आज भी जैसे ही ताप्ती की स्कूटी की आवाज सुनाई दी, आरवी ने शोर मचाना शुरू कर दिया, ‘‘चंचल, ताप्ती मैडम आ गई हैं. जल्दी से चायनाश्ता लगाओ.’’

कभी कभी तो आरवी को ताप्ती अपनी मां ही लगती थी. आज ताप्ती ने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, जिस पर पीला बौर्डर था. उसी से मेल खाते उस ने पीले रंग के झुमके पहने हुए थे और आरवी ने जिद कर के उस के बालों में पीला फूल भी खोंस दिया, जो उस के बालों और चेहरे की खूबसूरती को दोगुना कर रहा था.

आरवी कह रही थी, ‘‘ताप्ती मैडम, पता है आप की शक्ल एक मौडल जैसी लगती है… मुझे उस का नाम याद नहीं आ रहा है.’’

ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘आरवी तुम पागल हो और तुम्हारे कुछ भी कहने से मैं आज की क्लास कैंसिल नहीं करूंगी.’’

‘‘गलत क्या कह रही हैं आरू, आप एकदम सुष्मिता सेन का प्रतिरूप लगती हैं. आप को जब पहली बार देखा था तो मैं तो थोड़ी देर दुविधा में ही रहा था कि यह विश्व सुंदरी हमारे घर कैसे आ गई,’’ आलोक बोले.

 

यथार्थ: सरला ने क्यों किया था शादी के लिए मना

सरला आंटी के सहयोग  से ही उसे एक फ्लैट में बतौर ‘पेइंग गेस्ट’ स्थान मिला था. इस पार्टी में आने के लिए सरला आंटी ने ही जोर दिया था. वह पार्टी की गहमागहमी से अलगथलग शीतल पेय का गिलास लिए किनारे की कुरसी पर बैठी थी. अचानक अपने सामने कुरसी खींच कर बैठे शख्स को उस ने ध्यान से देखा.

‘‘मुझे पहचाना, मैं भगवानदास,’’ उस शख्स ने पूछा.

‘‘हां, हां,’’ उस ने कहा. उस शख्स को तो वह भूल ही नहीं सकती थी. 10 वर्ष पूर्व वह उसे देखने आया था और इस प्रकार संकोच में बैठा था मानो कोई दुलहन हो. इलाहाबाद विश्वविद्यालय की तेजतर्रार मोहना के सामने उस के बोलने की क्षमता जैसे समाप्त हो गई थी. नाम पूछने पर जब उस ने अपना नाम ‘भगवान दास’ बताया तब वह खूब हंसी थी और आहत व अपमानित भगवानदास चुपचाप बैठा रहा था.

बाद में मोहना ने घर वालों से कह दिया था कि उसे ऐसे दब्बू, भोंदू भगवान के दासों में कोई दिलचस्पी नहीं है. वह पहले प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती है. किंतु आज 10 वर्ष बाद भगवानदास पूरा सामर्थ्यवान पुरुष लग रहा था. उस की भेदती दृष्टि का वह सामना नहीं कर पा रही थी. बातचीत से पता चला कि वह बैंक मैनेजर हो गया था. उस के द्वारा बताने पर कि वह सिंचाई विभाग में बतौर स्टेनो काम कर रही है, वह व्यंग्य से मुसकराया, ‘‘आप तो प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहती थीं?’’

‘‘चाहने से ही तो सब संभव नहीं हो जाता,’’ उस ने बेजारी से कहा और जाने के लिए उठ खड़ी हुई. वहां रुकना उसे अब भारी लग रहा था. सरला आंटी से इजाजत ले कर जब वह अपने कमरे में लौटी तो दरवाजे का ताला खोलते हुए उस के हाथ कांप रहे थे. सर्वप्रथम आईने में उस ने स्वयं का अवलोकन किया. 30 वर्ष की उम्र में भी वह सुंदर और कमनीय लग रही थी, इस से उसे कुछ संतोष का अनुभव हुआ. बिस्तर पर लेटते ही उस का दिमाग अतीत में भटकने लगा.

 

वह मां-बाप की इकलौती पुत्री व दोनों भाइयों की लाडली छोटी बहन थी. पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने के कारण उस के ख्वाब बहुत ऊंचे थे. वह उच्चाधिकारी बन कर घरपरिवार की सहा-यता करना चाहती थी और उस के लिए प्रयत्न भी कर रही थी किंतु विश्वविद्यालय के रंगीन वातावरण और सहशिक्षा के आकर्षण ने उसे मनचली बना दिया था. साथी छात्रों द्वारा दिए गए कमेंटों से उसे रोमांच का अनुभव होता था. अत: मानसिक भटकन का दौर आरंभ हो गया.  मोहना अपनी उन सहेलियों को हिकारत भरी नजर से देखती, जो शादी कर के बच्चे पाल रही थीं. विवाहोपरांत रोटी बना कर घर में जीवन व्यतीत करने वाली स्त्रियां उसे गुलामी की प्रतीक लगतीं. उस के संपर्क में आने वाले लोग जब उस से पूछते कि वह शादी कब तक करेगी तब वह कहती कि पढ़ाई पूरी कर के नौकरी में जमने के बाद ही वह इस बारे में सोचेगी.

उस दौरान आए सभी रिश्ते उस ने बेदर्दी से ठुकरा दिए थे, अत: घर वालों ने उसे उस की मरजी पर छोड़ दिया था. उस ने प्रशासनिक सेवा की प्रतियोगिता परीक्षा में 2 बार प्रयास किया किंतु असफल रही. हार कर वह बैंक की नौकरी के लिए कोशिश करने लगी, किंतु वहां भी सफलता हाथ न लगी. उस की लगभग सभी सहेलियों ने विवाह कर के घर बसा लिए किंतु उसे किसी मामूली पुरुष से विवाह करना कबूल न था.

मोहना को ऐसे लोगों और ऐसी व्यवस्था से भी घृणा थी जो एक लड़की की सारी खूबियों व योग्यता को शादी के मापदंड पर तोलते थे.

वह शादी की अहमियत समझती थी लेकिन मन के मुताबिक आदमी भी तो मिलना जरूरी था. उसे मनमाफिक नौकरी भी नहीं मिली. नौकरी के नाम पर बस स्टेनो का जाब मिला. उस ने शुरू में सोचा कि अच्छी नौकरी मिलने पर इसे छोड़ देगी किंतु बाद में यही नौकरी उस की नियति बन गई.

कई वर्ष बाद इस शहर में स्थानां-तरण होने तक सब कुछ शांत व घटना-विहीन चल रहा था, किंतु भगवानदास से हुई भेंट ने मानो शांत जल में कंकड़ फेंक दिया था. उसे याद आया कि उस ने क्या कुछ सोचा था किंतु उसे क्या मिला? शायद यह था सपने और यथार्थ में अंतर.

इत्तिफाकन इस बीच मोहना की भगवानदास से कई बार भेंट हुई. उस ने उसे स्कूटर पर लिफ्ट भी दी. साथसाथ काफी भी पी. इस के अलावा भगवानदास अकसर उस के छोटे से कमरे में भी पहुंच जाता. मोहना को भगवानदास का इत्तिफाकन या जानबूझ कर इस प्रकार मिलना, उस में रुचि जाहिर करना अच्छा लगता. कभीकभी वह उस के शरीर या चेहरे पर प्रशासनिक दृष्टि डालता, कभी उस के कपड़ों को आकर्षक बताता. मोहना एक अनजाने आकर्षण की गिरफ्त में आ गई थी. वर्षों पहले उस के ऊंचे उड़ते ख्वाबों ने जिस व्यक्ति को नाकाबिल सिद्ध कर दिया था, आज हृदय उसे अपनाने को उत्सुक हो उठा था. वह बेसब्री से उस के उस विशेष प्रस्ताव की प्रतीक्षा कर रही थी, जो उन्हें एक अटूट बंधन में बांध देता.

एक रात मम्मी ने मोहना को फोन कर के कहा, ‘‘मोहना, तेरे रंजन चाचा की लड़की छम्मो आजकल लखनऊ में ही रह रही है. उस का जेठ ललित अभी 2 सप्ताह पूर्व स्थानांतरण के बाद वहां पहुंचा है. वह अपर पुलिस अधीक्षक है. शादी के 3 महीने के अंदर ही किसी कारणवश उस का तलाक हो गया था. उस घटना के 10 वर्ष बाद अब वह पुन: विवाह का इच्छुक है. छम्मो ने ही सब कुछ बताया. तू कल ही जा कर छम्मो से मिल ले.’’

‘‘मम्मी, तुम्हें वहां बैठ कर भी चैन नहीं है क्या?’’ मोहना उखड़ कर बोली.

‘‘देख मोहना, तू कोई बच्ची नहीं है. सबकुछ समय से अच्छा लगता है. शादीब्याह की भी एक उम्र होती है.’’

‘‘क्यों, क्या हो गया है, मुझे? बूढ़ी हो गई हूं? इस उम्र तक शादी नहीं हुई तो क्या किसी से भी शादी कर लूं?’’ वह फोन पर ही चीखने लगी.

‘‘मोहना, मांबाप बच्चों को राह दिखाने के लिए सदैव जीवित नहीं रहते. तुम छम्मो का पता लिखो,’’ कहने के बाद मम्मी ने उस छम्मो का पता बताया.

मम्मी के ठंडे, नाराजगी भरे स्वर ने मोहना को संयत कर दिया. उस ने चुपचाप पता लिख लिया. छम्मो उस की चचेरी बहन थी. बचपन से ही वे एकदूसरे की प्रतियोगी थीं. उन में जरा भी नहीं पटती थी. छम्मो अनिंद्य सुंदरी थी. उस का विवाह एक करोड़पति परिवार में हुआ था. वह मोहना और उस की महत्त्वाकांक्षाओं का अकसर मजाक उड़ाती थी. मोहना उस से दूर ही रहती थी. उस से मिल कर उस में हीनभावना जाग्रत हो जाती थी. आज उसी छम्मो की मार्फत उस के लिए दुहाजू व्यक्ति का रिश्ता आया था. अपनी विवशता पर उसे रोना आया किंतु उसे छम्मो के घर जाना ही था अन्यथा मम्मी बेहद नाराज हो जातीं.

अगले दिन मोहना ने कार्यालय से छुट्टी ले ली और छम्मो के घर जाने के लिए तैयार हो गई. वह तैयार हो कर खुद को आईने में निहार ही रही थी कि तभी मकान मालकिन का नौकर उसे ताजे फूलों का एक गुलदस्ता और एक चिट दे गया. चिट में लिखा था, ‘‘मिस मोहना, कल किसी विशेष मसले पर बात के लिए आप से मिलूंगा. कार्यालय के बाहर मेरा इंतजार करिएगा-भगवानदास.’’

मोहना के अधरों पर मुसकराहट आ गई. उसे लगा कि यह विशेष मसला अवश्य ही विवाह का प्रस्ताव होगा. वह छम्मो से मिलने उत्साह से चल पड़ी.

छम्मो का घर ढूंढ़ने में उसे विशेष परेशानी नहीं हुई. आलीशान घर और पोर्टिकों में खड़ी लंबी विदेशी गाड़ी देख कर उसे कोफ्त हुई कि वह तो बसों में धक्के खाती है और छम्मो मौज उड़ाती है. ठंडी सांस ले कर उस ने घंटी दबा दी. दरवाजा वर्दीधारी नौकर ने खोला. वह आदर से उसे बैठा कर अंदर चला गया. कुछ देर में छम्मो वहां आई. उसे देख कर मोहना आसमान से जमीन पर गिरी. दुबलीपतली छम्मो की तुलना वह सामने खड़ी भीमकाय महिला से बिलकुल नहीं कर पा रही थी. उस की कमर, गले, हाथों, बांहों पर अतिरिक्त मांस की थैलियां लटक रही थीं. मोटापे के कारण दोनों बांहें शरीर से अलग फैले अंदाज में झूल रही थीं.

‘‘मुझे पता था कि तुम खुद ही मुझ से मिलने आओगी,’’ वह व्यंग्य से हंस रही रही थी. उस का शरीर हंसी के साथ हिलने लगा. उस का व्यंग्यात्मक लहजा मोहना को अपमानजनक लगा.

‘यह मुटल्ली सोच रही होगी कि मैं उस के जेठ से विवाह के चक्कर में भागी चली आ रही हूं,’ मोहना ने सोचा, लेकिन नपेतुले लहजे में बोली, ‘‘मम्मी ने तुम से मिलने को कहा था इसलिए चली आई. खैर, तुम सुनाओ, आजकल क्या खापी रही हो? तुम्हारा तो कालाकल्प हो गया है.’’

पल भर के लिए छम्मो का चेहरा उतर गया लेकिन संभलते हुए उस ने घमंड भरे लहजे में कहा, ‘‘सेठ मनसुख नारायण की इकलौती बहू भला क्या खाएगीपिएगी, यह कोई पूछने की बात है. तुम्हारी तरह मुझे रोटी की चिंता तो है नहीं इसलिए थोड़ा मांस चढ़ गया है शरीर पर. खैर, तुम सुनाओ, किस के इंतजार में अभी तक कुंआरी बैठी हो?’’

मोहना तिलमिला गई, लेकिन संतुलित लहजे में बोली, ‘‘किसी की प्रतीक्षा में कुंवारी नहीं बैठी हूं. परिस्थितियां ही कुछ ऐसी बन गईं कि शादी की नौबत नहीं आई.’’

मोहना के रुख से छम्मो भी नरम पड़ गई. उस ने कहा, ‘‘मोहना, यह तेरे लिए खुशी की बात है कि ललित भाई साहब से तेरे रिश्ते की बात चली है. यदि  वह तुझे पसंद कर लेते हैं तो तू झट से विवाह की तैयारी शुरू दे.’’

छम्मो की बात को मोहना खिन्न भाव से सुनती रही. उसे छम्मो के डी.वाई.एस.पी. जेठ में तनिक भी रुचि न थी. तभी नौकर चाय के लिए बुलाने आया. छम्मो ने घुटनों पर बल दे कर एक छोटे से ‘उफ’ के साथ अपनी विशाल काया को उठाया. हिरनी सी दौड़ने वाली सुंदर दुबलीपतली छम्मो याद आई मोहना को. दीदी की शादी में मंगल गीतों में ठुमकती छम्मो को देख कर ही तो स्वरूप मोहित हो गया था. फिर उन की शादी भी हो गई थी. सुंदर छम्मो का रूप, गर्व और व्यंग्यात्मक बातें मोहना को कभी अच्छी नहीं लगती थीं. छम्मो की खूब-सूरती का वर्तमान हाल विश्वास के काबिल न था.

इस वक्त छम्मो

मोहना की सुगठित देहयष्टि व आत्म-विश्वास से भरी मुखाकृति को दबीछिपी दृष्टि से देख रही थी.

चाय क्या अच्छीखासी दावत का इंतजाम था. मोहना को खाने के लिए कह कर छम्मो विभिन्न तश्तरियों में सजी मिठाइयों पर टूट पड़ी. पिज्जा, कचौडि़यां, कटलेट जैसे व्यंजनों से मेज अटी पड़ी थी. छम्मो की खुराक ने उस की वर्तमान सेहत का राज खोल दिया.

तभी भारी बूटों की आवाज से घर गूंज उठा. मोहना चौंक कर बूटों की आवाज की दिशा में देखने लगी. एक 6 फुट ऊंचा व्यक्ति बेझिझक अंदर आ गया, ‘‘छम्मो, अकेलेअकेले चाय पी जा रही है?’’

‘‘आइएआइए, मोहना आई है. इस के बारे में मैं ने आप से बताया था न,’’ छम्मो ने खड़ी हो कर आंचल सिर पर डालने का उपक्रम किया.

‘‘ओह, अच्छा,’’ कह कर वह मोहना के बिलकुल बगल की सीट पर बैठ गया. एक भरपूर नजर उस पर डाल कर वह खाने में जुट गया. अपर पुलिस अधीक्षक की वरदी उस के मजबूत शरीर पर जंच रही थी. सिर पर घने बाल थे. कनपटी के सफेद बालों को छिपाने का यत्न नहीं किया गया था. मोटी मूंछें और जुड़ी भवें उस की सख्त प्रवृत्ति को सिद्ध कर रही थीं.

‘‘आप यहां अकेली रहती हैं?‘‘ अचानक ललित ने पूछा.

‘‘जी,’’ मोहना ने संक्षिप्त उत्तर दिया.

‘‘तब तो आप की शामें हम लोगों के साथ बीतनी चाहिए,’’ उस ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा.

मोहना ने उत्तर नहीं दिया. उस की चुप्पी पर ललित ने लापरवाही से कंधे उचकाए और चाय सिप करने लगा. नाश्ते के बाद वह वहां से चला गया. उस में अपने रुतबे की हेकड़ी थी. मोहना शाम तक वहां ठहरी. अंधेरा होने से पहले वह उठ खड़ी हुई. छम्मो उसे छोड़ने बाहर आई. लान में ललित चेक की शर्ट और जींस पहने अपने मातहतों से घिरा बैठा कुछ फाइलें देख रहा था. उस के होंठों पर सुलगती सिगरेट थी. मोहना को देख कर उस ने सिगरेट फेंक दी और उस के पास गया.

‘‘मोहनाजी, आप से मिल कर बहुत अच्छा लगा,’’ ललित ने कहा.

‘‘मुझे भी,’’ मोहना ने औपचारिकता निभाई.

‘‘मैं आप से मिल कर कुछ महत्त्वपूर्ण फैसले करना चाहता हूं. क्या कल हम पुन: मिल सकते हैं?’’ उस ने आग्रह किया.

मोहना हिचकिचा गई. वह ललित से पुन: मिलना या बात करना चाहती ही नहीं थी. उसे भगवानदास से मिल कर कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय करना था. मगर इस तरह किसी के अनुरोध को नकारना असभ्यता होती इसलिए भरसक नम्र हो कर उस ने कहा, ‘‘कल शाम को यदि मौका मिला तो मैं फोन कर दूंगी.’’

‘‘ओ. के.’’ ललित ने कहा. उस का चेहरा उतर गया. वह उलटे पैर अपने सहयोगियों के पास लौट गया.

‘‘हाथ आए अच्छे अवसर को गंवाना सरासर मूर्खता है, मोहना. भाई साहब ने तो तुझे पसंद भी कर लिया था,’’ छम्मो ने उद्विग्न स्वर में कहा.

‘‘महत्त्वपूर्ण फैसले सोचसमझ कर लिए जाते हैं,’’ मोहना ने मुसकरा कर कहा.

‘‘तुझे क्या लगता है कि अब भी सोचनेसमझने का वक्त बाकी है? मुझे तो लगता है कि तेरे भाग्य में अविवाहित रहना ही लिखा है. ताईजी के कहने पर मैं बेमतलब में इस झमेले में फंसी,’’ छम्मो ने नाराज स्वर में कहा.

‘‘तुम्हारी शुभेच्छा के लिए धन्यवाद. मैं फोन करूंगी.’’

‘‘कभी मेरे कमरे में भी आना,’’ मोहना ने कहा, पर छम्मो चुप रही.

मोहना तेजी से बाहर निकल गई. घर पहुंचने पर उसे बाहर ही मकानमालकिन मिल गईं, ‘‘आज तो बहुत अच्छी लग रही हो. आफिस नहीं गई थीं क्या? कहां से आ रही हो?’’

‘‘कजिन से मिल कर आ रही हूं,’’ मोहना उन के प्रश्नों की बौछार से घबरा गई, ‘‘यह बताइए, कोई मुझ से मिलने आया था क्या?’’

‘‘हां, भगवानदास आया था.’’

‘‘अच्छाअच्छा, वह तो कल मिलने आने वाला था. आज ही चला आया.’’

‘‘मोहना, भगवानदास को तुम कैसे जानती हो?’’

‘‘कई वर्ष पहले उस से मिली थी. अब यहीं भेंट हुई है.’’

‘‘इन वर्षों में तुम लोग एकदूसरे से नहीं मिले?’’

‘‘नहीं, लगभग 10 वर्ष बाद हम मिल रहे हैं.’’

‘‘मोहना, भगवानदास अकसर तुम से मिलता है. मुझे लगता है तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो.’’

‘‘आप ठीक समझ रही हैं, आंटी. इसीलिए कोई निर्णय लेने के लिए वह आने वाला है.’’

‘‘क्या यह तुम अच्छा कर रही हो? मेरा मतलब भगवानदास के बीवीबच्चों से है. क्या उन के साथ अन्याय नहीं हो रहा है?’’

‘‘क्या वह विवाहित है?’’ मकान मालकिन की बात सुन कर मोहना को जोरदार झटका लगा.

‘‘मुझे आश्चर्य है. तुम इतनी महत्त्वपूर्ण जानकारी के बिना उस से मिलती रही हो?’’ मकान मालकिन के स्वर में कड़कड़ाहट थी.

दरअसल मोहना को भगवान एक सुखद सपने सा लगा था. वह जानबूझ कर उन अप्रिय सवालों से अनभिज्ञ रहना चाहती थी जो उस के सपने को तोड़ देते. फिर भगवानदास ने स्वयं भी तो कुछ नहीं बताया. उसे लगा होगा कि वह जीवन के उस पड़ाव पर है जहां मात्र एक पुरुष साथी ही संतोष के लिए पर्याप्त होता है. वह उस से ‘फ्लर्ट’ कर रहा था. घर में पत्नीबच्चे थे और वह उसे मनोरंजन के साधन के रूप में इस्तेमाल कर रहा था.

मकान मालकिन गौर से मोहना की उड़ गई रंगत और लाल आंखों को देख रही थीं. उन के चेहरे पर सहानुभूति थी. मोहना चुपचाप कमरे में आ गई. वह बहुत देर तक सोती रही. उसे कई बार वक्त के थपेड़ों से मार्मिक आघात लगा था, जिस ने उस के स्वाभिमान को क्षतविक्षत कर दिया था, परंतु आज की घटना से तो उस का विश्वास ही डोल गया. उस का विवेक चेतनाशून्य हो गया था. वह धोखेबाज महत्त्वपूर्ण निर्णय के लिए आएगा. शायद बिना शादी किए साथ रहने के लिए कहे, क्या वह बर्दाश्त कर  पाएगी?

अचानक कुछ सोच कर मोहना झटकेसे उठी. उस ने आंसू भरे चेहरे को इस तरह पोंछा जैसे जीवन से अवसाद को पोंछ रही हो. कमरे से निकल कर वह मकान मालकिन की बैठक में पहुंची. वहां कोई नहीं था. उस ने फोन पर नंबर घुमाया. उधर से जिस भारीभरकम स्वर ने ‘हेलो’ कहा वह उसी की अपेक्षा कर रही थी कि वही रिसीवर उठाए. वह ललित ही था. मोहना ने कहा, ‘‘ललित साहब, आप महत्त्वपूर्ण फैसले के लिए मुझ से मिलना चाह रहे थे. मैं कल शाम आप की प्रतीक्षा करूंगी.’’

‘‘तो मुहतरमा को मौका मिल गया. बंदा कल हाजिर हो जाएगा,’’ ललित की जीवन से भरपूर आवाज ने मोहना के कानों में नवजीवन की घंटियां बजा दीं.

 

लव गेम: कैसे शीना ने जीता पति का दिल

जिंदगी मौसम की तरह होती है. कभी गरमी की तरह गरम तो कभी सर्दी की तरह सर्द तो कभी बारिश के मौसम की तरह रिमझिमरिमझिम बरसती बूंदों सी सुहानी. जैसे मौसम रंग बदलता है, वैसे ही जिंदगी भी वक्तबेवक्त रंग बदलती रहती है. लेकिन जिंदगी में कभीकभी कुछ सवालों का जवाब देना बड़ा मुश्किल हो जाता है.

यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बदलते मौसम की तरह रंग बदलती हुई भी और उन रंगों में से चटख रंगों को चुराती हुई भी. आइए देखें, इस कहानी के पलपल बदलते रंगों को, जो खुदबखुद फीके पड़ कर गायब होते जाते हैं.

कंट्री क्लब में एक पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस में आयोजकों ने अपने मैंबर्स में से कुछ ऐसे यंग कपल्स के लिए पार्टी रखी थी, जिन की शादी को अभी ज्यादा से ज्यादा 5 साल हुए थे.

इस पार्टी में करीब 50 यंग कपल्स शामिल हुए. सभी बहुत खूबसूरत थे, जो सजधज कर पार्टी में आए थे. उन सभी के छोटेछोटे बच्चे भी थे. लेकिन आर्गनाइजर्स ने बच्चों को पार्टी में लाने की परमिशन नहीं दी थी, इसलिए सब लोग अपने बच्चे घर पर ही छोड़ कर आए थे.

कई यंग कपल्स ऐसे भी थे, जो एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे, इसलिए पार्टी में आते ही वे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिले और एकदूसरे से घुलमिल गए. पार्टी के शुरुआती दौर में स्टार्टर, कौकटेल, मौकटेल, वाइन और सौफ्ट ड्रिंक वगैरह का जम कर दौर चला. इस के बाद सब ने खाना खाया. खाना बहुत लजीज था.

खाने के बाद पार्टी में कपल्स के साथ कई तरह के गेम खेले गए. हर गेम के अपने नियम थे. बहुत ही सख्त. गेम का संचालन एक एंकर कर रहा था. जिस हौल में पार्टी चल रही थी, वहीं एक फुट ऊंचा बड़ा सा पोडियम बना था. उसी पोडियम पर गेम खेले जा रहे थे. आखिर में एक गेम और खेला गया.

एंकर ने एक यंग ब्यूटीफुल लेडी को पोडियम पर इनवाइट किया, जिस की शादी को अभी सिर्फ 4 साल हुए थे और उस का 2 साल का एक बेटा भी था. उस लेडी का नाम शीना था.शीना पोडियम पर जा कर वहां रखी एक चेयर पर बैठ गई. पोडियम पर वाइट कलर का बड़ा सा एक बोर्ड लगा था. एंकर ने शीना से कहा, ‘‘आप बोर्ड पर ऐसे 40 नाम लिखिए, जिन से आप सब से ज्यादा प्यार करती हैं.’’

हौल में जितने भी कपल्स थे, वे सभी पोडियम के आसपास एकत्र हो गए और बड़ी बेचैनी से यह सोच कर एंकर तथा उस महिला की तरफ देखने लगे कि आखिर अब कौन सा गेम होने वाला है. गेम के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम था.

यहां तक कि वह महिला भी नहीं जानती थी कि वह किस तरह के गेम का हिस्सा बनने जा रही है. वह तो मस्तीमस्ती में पोडियम पर आ कर बैठ गई थी.

लेकिन एंकर की बात सुनते ही वह अनईजी हो गई.

‘‘च…चालीस ऐसे लोगों के नाम…’’ शीना कंफ्यूज्ड हो कर बोली, ‘‘जिन से मैं सब से ज्यादा प्यार करती हूं?’’

‘‘यस.’’ एंकर के होठों पर उस समय एक शरारती मुसकराहट खिल रही थी, ‘‘क्या आप की जिंदगी में 40 ऐसे इंसान नहीं हैं, जिन से आप बेहद प्यार करती हों?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ शीना जल्दी से हड़बड़ा कर बोली, ‘‘म…मेरे कहने का मतलब यह नहीं है. 40 क्या, मेरी लाइफ में तो ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन से मैं बेहद प्यार करती हूं और वे सब भी मुझ से बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘गुड.’’ एंकर उत्साहित हो कर बोला, ‘‘आप को सब के नाम नहीं लिखने हैं, जो आप की लिस्ट में सब से ऊपर हों, सिर्फ वही नाम लिखिए. इस गेम का नाम लव गेम है.’’

‘‘लव गेम.’’ पोडियम के चारों तरफ एकत्र लोगों के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ी, ‘‘इंटरेस्टिंग.’’

शीना भी अब चेयर छोड़ कर खड़ी हो गई थी. उस ने बड़े उत्साह से मार्कर पैन उठा लिया और वाइट बोर्ड के पास जा कर उस पर जल्दीजल्दी नाम लिखने लगी. शीना ने सच कहा था. उस की जिंदगी में वाकई ऐसे काफी लोग थे, जिन से वह बहुत प्यार करती थी. यह बात उस के नाम लिखने की स्पीड से पता चल रही थी. उसे इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ा.

कुछ ही मिनट में उस ने 40 नाम लिख दिए. उस लिस्ट में उस के रिलेटिव, फ्रैंड्स, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा भी था. नाम लिख कर वह विक्ट्री स्माइल बिखेरती हुई एंकर की तरफ मुड़ी.

‘‘क्यों, लिख दिए न मैं ने 40 नाम.’’ वह इस अंदाज में बोली, जैसे उस ने गेम जीत लिया हो.

‘‘यस.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘लेकिन गेम अभी खत्म नहीं हुआ मैम. गेम तो अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब अभी आप को इन में से 20 ऐसे नाम कट करने हैं, जिन से आप कम प्यार करती हैं. मान लीजिए, आप इन 40 लोगों के साथ बीच समुद्र में किसी ऐसी बोट में सवार हों, जो डूबने वाली हो. अगर 40 में से 20 लोगों को बीच समुद्र में फेंक दिया जाए तो बोट बच सकती है. ऐसी हालत में वह 20 लोग कौन होंगे, जिन्हें आप बीच समुद्र में फेंक कर बाकी के 20 लोगों की जान बचाएंगी?’’

शीना अब कंफ्यूज्ड नजर आने लगी.

फिर भी वह दोबारा वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने ऐसे 20 लोगों के नाम काट दिए, जिन्हें बीच समुद्र में फेंक कर वह बाकी के अपने 20 लोगों की जान बचा सकती थी. अब वाइट बोर्ड पर जो नाम बचे, उन में उस के बहुत करीबी, रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा था.

‘गुड.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘अब इन में से 10 नाम और काट दीजिए.’’

‘‘म…मतलब?’’ हक्कीबक्की शीना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘सिंपल है,’’ एंकर बोला, ‘‘अब सिर्फ 10 ऐसे नाम चुनें, जिन्हें आप सब से ज्यादा प्यार करती हों और उन 10 लोगों को बचाने के लिए आप बाकी के 10 को बीच समुद्र में फेंक सकती हैं. याद रहे, आप सब बोट पर सवार हैं और वहां जिंदगी और मौत की फाइट चल रही है.’’

शीना वापस वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने 10 और नाम काट दिए. लेकिन वे 10 नाम काटना उस के लिए पहले जितना आसान नहीं था. उस ने बहुत सोचसमझ कर 10 नाम काट दिए. पोडियम के आसपास एकत्र लोग भी अब बड़ी बेचैनी से शीना की तरफ देखने लगे. सब जानना चाहते थे कि शीना अब किस के नाम काटेगी.

वाइट बोर्ड पर जो बाकी 10 नाम बचे थे, उन में उस के कुछ खास रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और बेटा था.

‘‘हूं.’’ एंकर ने गहरी सांस ली.

शीना 10 नाम काट कर के अभी टर्न भी नहीं हुई थी कि उस से पहले ही एंकर बोल पड़ा, ‘‘अब इन में से 6 नाम और काट दो. सिर्फ 4 रहने दो. बोट इतने लोगों का वजन भी नहीं संभाल पा रही है. अभी तुरंत 6 लोगों को और समुद्र में फेंकना पड़ेगा, वरना बोट डूब जाएगी.’’

शीना ने वाइट बोर्ड पर लिखे नाम देखे. वह अब इमोशनल होने लगी. बहरहाल उस ने 6 नाम और काट दिए. बोर्ड पर अब सिर्फ शीना के मदर, फादर, हसबैंड और उस के 2 साल के बेटे का नाम बचा था. दूसरी ओर उसे अपने ब्रदर, सिस्टर के नाम भी काटने पड़े. पूरे हौल में सन्नाटा पसर गया था. सभी लोग इमोशनल हो गए.

‘‘अब अगर इन में से भी 2 नाम और काटने पड़ें…’’ एंकर बहुत धीमी आवाज में बोला, ‘‘तो वे कौन से नाम होंगे, जो आप काटेंगी. किन 2 लोगों को बचाएंगी आप?’’

अब वाकई शीना की हालत बहुत बुरी हो गई. मस्तीमस्ती में शुरू हुआ गेम अचानक बहुत इमोशनल हो गया था. शीना किसी गहरी सोच में डूब गई.

पोडियम के चारों तरफ जमे कपल्स भी यह जानने के लिए बेचैन हो उठे कि आखिर अब शीना कौन से 2 नाम काटेगी? मदर फादर का या फिर हसबैंड और बेटे का?

हौल में सन्नाटा और गहरा गया. शीना की आंखों में भी आंसू आ गए. पोडियम के नीचे खड़ा शीना का हसबैंड उसी तरफ देख रहा था. उसे खुद भी मालूम नहीं था कि शीना अब कौन से 2 नाम काटने वाली है.

शीना ने कांपते हाथों से अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा दिया. देख कर सब सन्न रह गए. किसी को उम्मीद नहीं थी कि शीना अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा देगी. मातापिता तो जीवन देने वाले होते हैं, वह उन का नाम कैसे काट सकती थी? अब वाइट बोर्ड पर सिर्फ 2 नाम चमक रहे थे, हसबैंड और उस के बेटे का नाम.

‘‘प्लीज…’’ शीना रो पड़ी, ‘‘अब मुझ से कोई और नाम काटने के लिए मत कहना.’’

‘‘बस अब यह गेम खत्म होने वाला है.’’ एंकर बोला, ‘‘बिलकुल लास्ट है. अगर आप से कहा जाए कि इन दोनों में से भी आप किस से ज्यादा प्यार करती हैं तो आप किसे चुनेंगी? वह एक कौन होगा, जिसे बचाने के लिए आप दूसरे को बीच समुद्र में फेंक देंगी, हसबैंड या बेटा?’’

‘‘मैं खुद समुद्र में कूदना पसंद करूंगी.’’ शीना भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘लेकिन इन दोनों में से किसी को भी अपने से अलग नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं…आप नहीं,’’ एंकर बोला, ‘‘आप को इन दोनों में से कोई एक नाम काटना है.’’

अब शीना की हालत बहुत बुरी हो गई थी. हौल में मौजूद हर आंख शीना पर ही टिकी थी. हर कोई यह जानना चाहता था कि अब वह किस का नाम काटेगी? हसबैंड या बेटे में से वह किसे चुनेगी?

शीना ने कांपते हाथों से वाइट बोर्ड पर लिखा अपने बेटे का नाम मिटा दिया. सब सन्न रह गए. हर कोई सोच रहा था कि वह अपने हसबैंड का नाम मिटाएगी, क्योंकि हम दुनिया में सब से ज्यादा अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं.

‘‘क्यों?’’ एंकर ने बेचैनी के साथ पूछ ही लिया, ‘‘आप ने अपने हसबैंड को ही क्यों चुना?’’

‘‘जानते हो…’’ शीना पोडियम पर खड़ीखड़ी बहुत इमोशनल हो कर बोली, ‘‘जिस दिन मेरी शादी हुई, उस दिन मम्मीपापा ने मेरे हसबैंड के हाथ में मेरा हाथ देते हुए कहा था, ‘आज से यही आदमी जिंदगी के आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देगा. तुम कभी इस का साथ न छोड़ना. जिस तरह सुखदुख में वह तुम्हारा साथ दे, उसी तरह तुम भी हर सुखदुख में उस का साथ देना.’ मैं ने अपने मम्मीपापा की बात मानी.

‘‘अपने हसबैंड के लिए मैं ने अपने उन्हीं मम्मीपापा तक को त्याग दिया. यहां तक कि जब अपने बेटे और हसबैंड में से भी किसी एक को चुनने का समय आया तो मैं ने अपने हसबैंड को ही चुना. मैं अपने बेटे से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन हसबैंड के रहते मुझे बेटा तो दूसरा मिल सकता है, पर हसबैंड दूसरा नहीं मिल सकता. पतिपत्नी का यह रिश्ता अनमोल है, अटूट है. हमें हमेशा इस रिश्ते का सम्मान करना चाहिए.’’

शीना की बातें सुन कर पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सभी की आंखों में आंसू थे. शीना का हसबैंड भी बेहद इमोशनल हो गया था. एकाएक वह शाम बेहद खास हो गई. लव गेम ने सभी हसबैंड वाइफ के रिलेशन को और मजबूत कर दिया था.

अब पछताए होत क्या: किससे शादी करना चाहती थी वह

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