उसदिन पहली बार नीरज उन के घर सब के साथ लंच लेने आ रहा था. अंजलि के दोनों छोटे भाई और उन की पत्नियां सुबह से ही उस की शानदार आवभगत करने की तैयारी में जुटे हुए थे. उस के दोनों भतीजे और भतीजी बढि़या कपड़ों से सजधज कर बड़ी आतुरता से नीरज के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे.
अंजलि की ढंग से तैयार होने में उस की छोटी भाभी शिखा ने काफी सहायता की थी. और दिनों की तुलना में वह ज्यादा आकर्षक और स्मार्ट नजर आ रही थी. लेकिन यह बात उस के मन की चिंता और बेचैनी को कम करने में असफल रही.
‘‘तुम सब 35 साल की उम्र में मु झ पर शादी करने का दबाव क्यों बना रहे हो? क्या मैं तुम सब पर बो झ बन गई हूं? मु झे जबरदस्ती धक्का क्यों देना चाहते हो?’’ ऐसी बातें कह कर अंजलि अपने भैयाभाभियों से पिछले हफ्ते में कई बार झगड़ी पर उन्होंने उस के हर विरोध को हंसी में उड़ा दिया था.
कुछ देर बाद अंजलि से 2 साल छोटे उस के भाई अरुण ने कमरे में आ कर सूचना दी, ‘‘दीदी, नीरजजी आ गए हैं.’’
अंजलि ड्राइंगरूम में जाने को नहीं उठी, तो अरुण ने बड़े प्यार से बाजू पकड़ कर उसे खड़ा किया और फिर भावुक लहजे में बोला, ‘‘दीदी, मन में कोई टैंशन मत रखो. आप की मरजी के खिलाफ हम कुछ नहीं करेंगे.’’
‘‘मैं शादी नहीं करना चाहती हूं,’’ अंजलि रुंधी आवाज में बोली.
‘‘तो मत करना, पर घर आए मेहमान का स्वागत करने तो चलो,’’ और अरुण उस का हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा. अंजलि की आंखों में चिंता और बेचैनी के भाव और बढ़
गए थे.
ड्राइंगरूम में नीरज को तीनों छोटे बच्चों ने घेर रखा था. उस के सामने उन्होंने कई पैंसिलें और ड्राइंगपेपर रखे हुए थे.
नीरज चित्रकार था. वे सब अपनाअपना चित्र पहले बनवाने के लिए शोर
मचा रहे थे. उन के खुले व्यवहार से यह साफ जाहिर हो रहा था कि नीरज ने उन तीनों के दिल चंद मिनटों की मुलाकात में ही जीत लिए थे.
अरुण की 6 वर्षीय बेटी महक ने चित्र बनवाने के लिए गाल पर उंगली रख कर इस अदा से पोज बनाया कि कोई भी बड़ा व्यक्ति खुद को हंसने से नहीं रोक पाया.
अंजलि ने हंसतेहंसते महक का माथा चूमा और फिर हाथ जोड़ कर नीरज का अभिवादन किया.
‘‘यह तुम्हारे लिए है,’’ नीरज ने खड़े हो कर एक चौड़े कागज का रोल अंजलि के हाथ
में पकड़ाया.
‘‘आप की बनाई कोई पेंटिंग है इस में?’’ अरुण की पत्नी मंजु ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘जी, हां,’’ नीरज ने शरमाते हुए जवाब दिया.
‘‘हम सब इसे देख लें, दीदी?’’ अंजलि के छोटे भाई अजय की पत्नी शिखा ने प्रसन्न लहजे में पूछा.
अंजलि ने रोल शिखा को पकड़ा दिया.
वह अपनी जेठानी की सहायता से गिफ्ट पेपर खोलने लगी.
नीरज ने अंजलि को उसी का रंगीन पोर्ट्रेट बना कर भेंट किया था. तसवीर बड़ी सुंदर बनी थी. सब मिल कर तसवीर की प्रशंसा करने लगे.
अंजलि ने धीमी आवाज में नीरज से प्रश्न किया, ‘‘यह कब बनाई आप ने?’’
‘‘क्या तुम्हें अपनी तसवीर पसंद नहीं आई?’’ नीरज ने मुसकराते हुए पूछा.
‘‘तसवीर तो बहुत अच्छी है… पर आप ने बनाई कैसे?’’
‘‘शिखा ने तुम्हारा 1 पासपोर्ट साइज फोटो दिया था. कुछ उस की सहायता ली और बाकी काम मेरी कल्पनाशक्ति ने किया.’’
‘‘कलाकार को सत्य दर्शाना चाहिए, नीरजजी. मैं तो बिलकुल भी सुंदर नहीं हूं.’’
‘‘मैं ने इस कागज पर सत्य ही उतारा है… मु झे तुम इतनी ही सुंदर नजर आती हो.’’
नीरज की इस बात को सुन कर अंजलि ने कुछ घबरा और कुछ शरमा कर नजरें झुका लीं.
सब लोग नीरज के पास आ कर अंजलि की तसवीर की प्रशंसा करने लगे. अंजलि ने कभी अपने रंगरूप की वैसी तारीफ नहीं सुनी थी, इसलिए असहज सी हो कर नीरज के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई.
नीरज से उस की पहली मुलाकात शिखा ने अपनी सहेली कविता के घर पर करीब
2 महीने पहले करवाई थी.
42 वर्षीय चित्रकार नीरज कविता के जेठ थे. उन्होंने शादी नहीं की थी. घर की तीसरी मंजिल पर 1 कमरे के सैट में रहते थे और वहीं उन का स्टूडियो भी था.
उस दिन नीरज के स्टूडियो में अपना पैंसिल से बनाया एक चित्र देख कर वह चौंकी थी. नीरज ने खुलासा करते हुए उन सब को जानकारी दी थी, ‘‘अंजलि पार्क में 3 छोटे बच्चों के साथ घूमने आई थीं. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और ये बैंच पर बैठीबैठी गहरे सोचविचार में खो गईं. मैं ने इन की जानकारी में आए बिना इस चित्र में इन के चेहरे के विशेष भावों को पकड़ने की कोशिश की थी.’’
‘‘2 दिन पहले अंजलि दीदी का यह चित्र यहां देख कर मैं चौंकी थी. मैं ने भाई साहब को दीदी के बारे में बताया, तो इन्होंने दीदी से मिलने की इच्छा जाहिर की. तभी मैं ने 2 दिन पहले तुम्हें फोन किया था, शिखा,’’ कविता के इस स्पष्टीकरण को सुन कर अंजलि को पूरी बात सम झ में आ गई थी.
कुछ दिनों बाद कविता उसे बाजार में मिली और अपने घर चाय पिलाने ले गई. अपने बेटे की चौथी सालगिरह की पार्टी में भी उस ने अंजलि को बुलाया. इन दोनों अवसरों पर उस की नीरज से खूब बातें हुईं.
इन 2 मुलाकातों के बाद नीरज उसे पार्क में कई बार मिला था. अंजलि वहां अपने भतीजों व भतीजी के साथ शाम को औफिस से आने के बाद अकसर जाती थी. वहीं नीरज ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. अब वे फोन पर भी बातें कर लेते थे.
फिर कविता और शिखा ने एक दिन उस के सामने नीरज के साथ शादी करने की
चर्चा छेड़ी, तो उस ने उन दोनों को डांट दिया, ‘‘मु झे शादी करनी होती तो 10 साल पहले कर लेती. इस झं झट में अब फंसने का मेरा रत्ती भर इरादा नहीं है. मेरे सामने ऐसी चर्चा फिर कभी मत करना,’’ उन्हें यों डपटने के बाद वह अपने कमरे में चली आई थी.
उस दिन के बाद अंजलि ने नीरज के साथ मिलना और बातें करना बिलकुल कम कर दिया. उस ने पार्क में जाना भी छोड़ दिया. फोन पर भी व्यस्तता का झूठा बहाना बना कर जल्दी फोन काट देती.
उस की अनिच्छा को नजरअंदाज करते हुए उस के दोनों छोटे भाई और भाभियां अकसर नीरज की चर्चा छेड़ देते. उस से हर कोई कविता के घर या पार्क में मिल चुका था. सभी उसे हंसमुख और सीधासादा इंसान मानते थे. उन के मुंह से निकले प्रशंसा के शब्द यह साफ दर्शाते कि उन सब को नीरज पसंद है.
अंजलि की कई बार की नाराजगी उन
की इस इच्छा को जड़ से समाप्त करने में असफल रही थी. किसी को यह बात नहीं जंची थी कि अंजलि ने नीरज से बातें करना कम कर दिया है.
उन के द्वारा रविवार को नीरज को लंच पर आमंत्रित करने के बाद ही इस बात की सूचना अंजलि को पिछली रात को मिली थी.
कुछ देर बाद जब अंजलि चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई, तो वहां बहुत शोर मचा था. नीरज ने तीनों बच्चों के पैंसिल स्कैच बड़े मनोरंजक ढंग से बनाए थे. नन्हे राहुल की उन्होंने बड़ीबड़ी मूंछें बना दी थीं. महक को पंखों वाली परी बना दिया था और मयंक के चेहरे के साथ शेर का धड़ जोड़ा था.
इन तीनों बच्चों ने बड़ी मुश्किल से नीरज को चाय पीने दी. वे उस के साथ अभी और खेलना चाहते थे.
‘‘बिलकुल मेरी पसंद की चाय बनाई है तुम ने, अंजलि. चायपत्ती तेज और चीनी व दूध कम. थैंक्यू,’’ पहला घूंट भरते ही नीरज ने अंजलि को
धन्यवाद दिया.
‘‘कविता ने एक बार दीदी को बताया था कि आप कैसी चाय पीते
हैं. दीदी ने उस के कहे को याद रखा और आप की मनपसंद चाय बना दी,’’ शिखा की इस बात को सुन कर अंजलि पहले शरमाई और फिर बेचैनी से भर उठी.
‘‘चाय मेरी कमजोरी है. एक वक्त था
जब मैं दिन भर में 10-12 कप चाय पी लेता था,’’ नीरज ने हलकेफुलके अंदाज में बात
आगे बढ़ाई.
‘‘आप जो भी तसवीर बनाते हैं, उस में चेहरे के भाव बड़ी खूबी से उभारते हैं,’’ शिखा ने उस की तारीफ की.
‘‘इतनी अच्छी तसवीरें भी नहीं बनाता हूं मैं.’’
‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं?’’
‘‘क्योंकि मेरी बनाई तसवीरें इतनी ही ज्यादा शानदार होतीं तो खूब बिकतीं. अपने चित्रों के बल पर मैं हर महीने कठिनाई से 5-7 हजार कमा पाता हूं. मेरा अपना गुजारा मुश्किल से चलता है. इसीलिए आज तक घर बसाने की हिम्मत नहीं कर पाया.’’
‘‘शादी करने के बारे में क्या सोचते हैं अब आप?’’ अरुण ने सवाल उठाया तो नीरज सब की दिलचस्पी का केंद्र बन गया.
‘‘जीवनसाथी की जरूरत तो हर उम्र के इंसान को महसूस होती ही है, अरुण. अगर मु झ जैसे बेढंगे कलाकार के लिए कोई लड़की होगी, तो किसी दिन मेरी शादी भी हो जाएगी,’’ हंसी भरे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर नीरज ने खाली कप मेज पर रखा और फिर से बच्चों के साथ खेल में लग गया.
नीरज वहां से करीब 5 बजे शाम को गया. तीनों बच्चे उस के ऐसे प्रशंसक बन गए थे कि उसे जाने ही नहीं देना चाहते थे. बड़ों ने भी उसे बड़े प्रेम और आदरसम्मान से विदाई दी थी.
उस के जाते ही अंजलि बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने कमरे में चली आई. अचानक उस का मन रोने को करने लगा, पर आंसू थे कि पलकें भिगोने के लिए बाहर आ ही नहीं रहे थे.
करीब 15 मिनट बाद अंजलि के दोनों छोटे भाई और भाभियां उस से मिलने कमरे में आ गए. उन के गंभीर चेहरे देखते ही अंजलि उन के आने का मकसद सम झ गई और किसी के बोलने से पहले ही भड़क उठी, ‘‘मैं बिलकुल शादी नहीं करूंगी. इस टौपिक पर चर्चा छेड़ कर कोई मेरा दिमाग खराब करने की कतई कोशिश न करे.’’
अजय उस के सामने घुटने मोड़ कर फर्श पर बैठ गया और उस का दूसरा हाथ
प्यार से पकड़ कर भावुक स्वर में बोला, ‘‘दीदी, 12 साल पहले पापा के असमय गुजर जाने के बाद आप ही हमारा मजबूत सहारा बनी थीं. आप ने अपनी खुशियों और सुखसुविधाओं को नजरअंदाज कर हमें काबिल बनाया… हमारे घर बसाए. हम आप का वह कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे.’’
‘‘पागल, मेरे कर्तव्यों को कर्ज क्यों सम झ रहा है? आज तुम दोनों को खुश और सुखी देख कर मु झे बहुत गर्व होता है,’’ झुक कर अजय का सिर चूमते हुए अंजलि बोली.
अरुण ने भरे गले से बातचीत को आगे बढ़ाया, ‘‘दीदी, आप के आशीर्वाद से आज हम इतने समर्थ हो गए हैं कि आप की जिंदगी में
भी खुशियां और सुख भर सकें. अब हमारी
बारी है और आप प्लीज इस मौके को हम दोनों से मत छीनो.’’
‘‘भैया, मु झ पर शादी करने का दबाव न बनाओ. मेरे मन में अब शादी करने की इच्छा नहीं उठती. बिलकुल नए माहौल में एक नए इंसान के साथ नई जिंदगी शुरू करने का खयाल ही मन को डराता है,’’ अंजलि ने कांपती आवाज में अपना भय पहली बार सब को बता दिया.
‘‘लेकिन…’’
‘‘दीदी, नीरजजी बड़े सीधे, सच्चे और नेकदिल इंसान हैं. उन जैसा सम झदार जीवनसाथी आप को बहुत सुखी रखेगा… बहुत प्यार देगा,’’ अरुण ने अंजलि को शादी के विरोध में कुछ बोलने ही नहीं दिया.
‘‘मैं तो तुम सब के साथ ही बहुत सुखी हूं. मु झे शादी के झं झट में नहीं पड़ना है,’’ अंजलि
रो पड़ी.
‘‘दीदी, हम आप की विवाहित जिंदगी में झं झट पैदा ही नहीं होने देंगे,’’ उस की बड़ी भाभी मंजु ने उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘हमारे होते किसी तरह की कमी या अभाव आप दोनों को कभी महसूस नहीं होगा.’’
‘‘मैं जानता हूं कि नीरजजी अपने बलबूते पर अभी मकान नहीं बना सकते हैं. इसलिए हम ने फैसला किया है कि अपना नया फ्लैट हम तुम दोनों के नाम कर देंगे,’’ अरुण की इस घोषणा को सुन कर अंजलि चौंक पड़ी.
अजय ने अपने मन की बात बताई, ‘‘भैया से उपहार में मिले फ्लैट को सुखसुविधा की हर चीज से भरने की जिम्मेदारी मैं खुशखुशी उठाऊंगा. जो चीज घर में है, वह आप के फ्लैट में भी होगी, यह मेरा वादा है.’’
‘‘आप के लिए सारी ज्वैलरी मैं अपनी तरफ से तैयार कराऊंगी,’’ मंजु ने अपने मन की इच्छा जाहिर की.
‘‘आप के नए कपड़े, परदे, फ्लैट का नया रंगरोगन और मोटरसाइकिल भी हम देंगे आप को उपहार में. आप बस हां कर दो दीदी,’’ आंसू बहा रही शिखा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की तो अंजलि ने खड़े हो कर उसे गले से लगा लिया.
‘‘दीदी ‘हां’ कह दो,’’ अंजलि जिस की तरफ भी देखती, वही हाथ जोड़ कर यह प्रार्थना दोहरा देता.
‘‘ठीक है, लेकिन शादी में इतना कुछ मु झे नहीं चाहिए. तुम दोनों कोई करोड़पति नहीं हो, जो इतना कुछ मु झे देने की कोशिश करो,’’ अंतत: बड़ी धीमी आवाज में अंजलि ने अपनी स्वीकृति दे दी.
‘‘हुर्रा,’’ वे चारों छोटे बच्चों की तरह खुशी से उछल पड़े.
अंजलि के दिलोदिमाग पर बना तनाव का बो झ अचानक हट गया और उसे अपनी जिंदगी भरीभरी और खुशहाल प्रतीत होने लगी.उसदिन पहली बार नीरज उन के घर सब के साथ लंच लेने आ रहा था. अंजलि के दोनों छोटे भाई और उन की पत्नियां सुबह से ही उस की शानदार आवभगत करने की तैयारी में जुटे हुए थे. उस के दोनों भतीजे और भतीजी बढि़या कपड़ों से सजधज कर बड़ी आतुरता से नीरज के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे.
अंजलि की ढंग से तैयार होने में उस की छोटी भाभी शिखा ने काफी सहायता की थी. और दिनों की तुलना में वह ज्यादा आकर्षक और स्मार्ट नजर आ रही थी. लेकिन यह बात उस के मन की चिंता और बेचैनी को कम करने में असफल रही.
‘‘तुम सब 35 साल की उम्र में मु झ पर शादी करने का दबाव क्यों बना रहे हो? क्या मैं तुम सब पर बो झ बन गई हूं? मु झे जबरदस्ती धक्का क्यों देना चाहते हो?’’ ऐसी बातें कह कर अंजलि अपने भैयाभाभियों से पिछले हफ्ते में कई बार झगड़ी पर उन्होंने उस के हर विरोध को हंसी में उड़ा दिया था.
कुछ देर बाद अंजलि से 2 साल छोटे उस के भाई अरुण ने कमरे में आ कर सूचना दी, ‘‘दीदी, नीरजजी आ गए हैं.’’
अंजलि ड्राइंगरूम में जाने को नहीं उठी, तो अरुण ने बड़े प्यार से बाजू पकड़ कर उसे खड़ा किया और फिर भावुक लहजे में बोला, ‘‘दीदी, मन में कोई टैंशन मत रखो. आप की मरजी के खिलाफ हम कुछ नहीं करेंगे.’’
‘‘मैं शादी नहीं करना चाहती हूं,’’ अंजलि रुंधी आवाज में बोली.
‘‘तो मत करना, पर घर आए मेहमान का स्वागत करने तो चलो,’’ और अरुण उस का हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा. अंजलि की आंखों में चिंता और बेचैनी के भाव और बढ़
गए थे.
ड्राइंगरूम में नीरज को तीनों छोटे बच्चों ने घेर रखा था. उस के सामने उन्होंने कई पैंसिलें और ड्राइंगपेपर रखे हुए थे.
नीरज चित्रकार था. वे सब अपनाअपना चित्र पहले बनवाने के लिए शोर
मचा रहे थे. उन के खुले व्यवहार से यह साफ जाहिर हो रहा था कि नीरज ने उन तीनों के दिल चंद मिनटों की मुलाकात में ही जीत लिए थे.
अरुण की 6 वर्षीय बेटी महक ने चित्र बनवाने के लिए गाल पर उंगली रख कर इस अदा से पोज बनाया कि कोई भी बड़ा व्यक्ति खुद को हंसने से नहीं रोक पाया.
अंजलि ने हंसतेहंसते महक का माथा चूमा और फिर हाथ जोड़ कर नीरज का अभिवादन किया.
‘‘यह तुम्हारे लिए है,’’ नीरज ने खड़े हो कर एक चौड़े कागज का रोल अंजलि के हाथ
में पकड़ाया.
‘‘आप की बनाई कोई पेंटिंग है इस में?’’ अरुण की पत्नी मंजु ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘जी, हां,’’ नीरज ने शरमाते हुए जवाब दिया.
‘‘हम सब इसे देख लें, दीदी?’’ अंजलि के छोटे भाई अजय की पत्नी शिखा ने प्रसन्न लहजे में पूछा.
अंजलि ने रोल शिखा को पकड़ा दिया.
वह अपनी जेठानी की सहायता से गिफ्ट पेपर खोलने लगी.
नीरज ने अंजलि को उसी का रंगीन पोर्ट्रेट बना कर भेंट किया था. तसवीर बड़ी सुंदर बनी थी. सब मिल कर तसवीर की प्रशंसा करने लगे.
अंजलि ने धीमी आवाज में नीरज से प्रश्न किया, ‘‘यह कब बनाई आप ने?’’
‘‘क्या तुम्हें अपनी तसवीर पसंद नहीं आई?’’ नीरज ने मुसकराते हुए पूछा.
‘‘तसवीर तो बहुत अच्छी है… पर आप ने बनाई कैसे?’’
‘‘शिखा ने तुम्हारा 1 पासपोर्ट साइज फोटो दिया था. कुछ उस की सहायता ली और बाकी काम मेरी कल्पनाशक्ति ने किया.’’
‘‘कलाकार को सत्य दर्शाना चाहिए, नीरजजी. मैं तो बिलकुल भी सुंदर नहीं हूं.’’
‘‘मैं ने इस कागज पर सत्य ही उतारा है… मु झे तुम इतनी ही सुंदर नजर आती हो.’’
नीरज की इस बात को सुन कर अंजलि ने कुछ घबरा और कुछ शरमा कर नजरें झुका लीं.
सब लोग नीरज के पास आ कर अंजलि की तसवीर की प्रशंसा करने लगे. अंजलि ने कभी अपने रंगरूप की वैसी तारीफ नहीं सुनी थी, इसलिए असहज सी हो कर नीरज के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई.
नीरज से उस की पहली मुलाकात शिखा ने अपनी सहेली कविता के घर पर करीब
2 महीने पहले करवाई थी.
42 वर्षीय चित्रकार नीरज कविता के जेठ थे. उन्होंने शादी नहीं की थी. घर की तीसरी मंजिल पर 1 कमरे के सैट में रहते थे और वहीं उन का स्टूडियो भी था.
उस दिन नीरज के स्टूडियो में अपना पैंसिल से बनाया एक चित्र देख कर वह चौंकी थी. नीरज ने खुलासा करते हुए उन सब को जानकारी दी थी, ‘‘अंजलि पार्क में 3 छोटे बच्चों के साथ घूमने आई थीं. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और ये बैंच पर बैठीबैठी गहरे सोचविचार में खो गईं. मैं ने इन की जानकारी में आए बिना इस चित्र में इन के चेहरे के विशेष भावों को पकड़ने की कोशिश की थी.’’
‘‘2 दिन पहले अंजलि दीदी का यह चित्र यहां देख कर मैं चौंकी थी. मैं ने भाई साहब को दीदी के बारे में बताया, तो इन्होंने दीदी से मिलने की इच्छा जाहिर की. तभी मैं ने 2 दिन पहले तुम्हें फोन किया था, शिखा,’’ कविता के इस स्पष्टीकरण को सुन कर अंजलि को पूरी बात सम झ में आ गई थी.
कुछ दिनों बाद कविता उसे बाजार में मिली और अपने घर चाय पिलाने ले गई. अपने बेटे की चौथी सालगिरह की पार्टी में भी उस ने अंजलि को बुलाया. इन दोनों अवसरों पर उस की नीरज से खूब बातें हुईं.
इन 2 मुलाकातों के बाद नीरज उसे पार्क में कई बार मिला था. अंजलि वहां अपने भतीजों व भतीजी के साथ शाम को औफिस से आने के बाद अकसर जाती थी. वहीं नीरज ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. अब वे फोन पर भी बातें कर लेते थे.
फिर कविता और शिखा ने एक दिन उस के सामने नीरज के साथ शादी करने की
चर्चा छेड़ी, तो उस ने उन दोनों को डांट दिया, ‘‘मु झे शादी करनी होती तो 10 साल पहले कर लेती. इस झं झट में अब फंसने का मेरा रत्ती भर इरादा नहीं है. मेरे सामने ऐसी चर्चा फिर कभी मत करना,’’ उन्हें यों डपटने के बाद वह अपने कमरे में चली आई थी.
उस दिन के बाद अंजलि ने नीरज के साथ मिलना और बातें करना बिलकुल कम कर दिया. उस ने पार्क में जाना भी छोड़ दिया. फोन पर भी व्यस्तता का झूठा बहाना बना कर जल्दी फोन काट देती.
उस की अनिच्छा को नजरअंदाज करते हुए उस के दोनों छोटे भाई और भाभियां अकसर नीरज की चर्चा छेड़ देते. उस से हर कोई कविता के घर या पार्क में मिल चुका था. सभी उसे हंसमुख और सीधासादा इंसान मानते थे. उन के मुंह से निकले प्रशंसा के शब्द यह साफ दर्शाते कि उन सब को नीरज पसंद है.
अंजलि की कई बार की नाराजगी उन
की इस इच्छा को जड़ से समाप्त करने में असफल रही थी. किसी को यह बात नहीं जंची थी कि अंजलि ने नीरज से बातें करना कम कर दिया है.
उन के द्वारा रविवार को नीरज को लंच पर आमंत्रित करने के बाद ही इस बात की सूचना अंजलि को पिछली रात को मिली थी.
कुछ देर बाद जब अंजलि चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई, तो वहां बहुत शोर मचा था. नीरज ने तीनों बच्चों के पैंसिल स्कैच बड़े मनोरंजक ढंग से बनाए थे. नन्हे राहुल की उन्होंने बड़ीबड़ी मूंछें बना दी थीं. महक को पंखों वाली परी बना दिया था और मयंक के चेहरे के साथ शेर का धड़ जोड़ा था.
इन तीनों बच्चों ने बड़ी मुश्किल से नीरज को चाय पीने दी. वे उस के साथ अभी और खेलना चाहते थे.
‘‘बिलकुल मेरी पसंद की चाय बनाई है तुम ने, अंजलि. चायपत्ती तेज और चीनी व दूध कम. थैंक्यू,’’ पहला घूंट भरते ही नीरज ने अंजलि को
धन्यवाद दिया.
‘‘कविता ने एक बार दीदी को बताया था कि आप कैसी चाय पीते
हैं. दीदी ने उस के कहे को याद रखा और आप की मनपसंद चाय बना दी,’’ शिखा की इस बात को सुन कर अंजलि पहले शरमाई और फिर बेचैनी से भर उठी.
‘‘चाय मेरी कमजोरी है. एक वक्त था
जब मैं दिन भर में 10-12 कप चाय पी लेता था,’’ नीरज ने हलकेफुलके अंदाज में बात
आगे बढ़ाई.
‘‘आप जो भी तसवीर बनाते हैं, उस में चेहरे के भाव बड़ी खूबी से उभारते हैं,’’ शिखा ने उस की तारीफ की.
‘‘इतनी अच्छी तसवीरें भी नहीं बनाता हूं मैं.’’
‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं?’’
‘‘क्योंकि मेरी बनाई तसवीरें इतनी ही ज्यादा शानदार होतीं तो खूब बिकतीं. अपने चित्रों के बल पर मैं हर महीने कठिनाई से 5-7 हजार कमा पाता हूं. मेरा अपना गुजारा मुश्किल से चलता है. इसीलिए आज तक घर बसाने की हिम्मत नहीं कर पाया.’’
‘‘शादी करने के बारे में क्या सोचते हैं अब आप?’’ अरुण ने सवाल उठाया तो नीरज सब की दिलचस्पी का केंद्र बन गया.
‘‘जीवनसाथी की जरूरत तो हर उम्र के इंसान को महसूस होती ही है, अरुण. अगर मु झ जैसे बेढंगे कलाकार के लिए कोई लड़की होगी, तो किसी दिन मेरी शादी भी हो जाएगी,’’ हंसी भरे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर नीरज ने खाली कप मेज पर रखा और फिर से बच्चों के साथ खेल में लग गया.
नीरज वहां से करीब 5 बजे शाम को गया. तीनों बच्चे उस के ऐसे प्रशंसक बन गए थे कि उसे जाने ही नहीं देना चाहते थे. बड़ों ने भी उसे बड़े प्रेम और आदरसम्मान से विदाई दी थी.
उस के जाते ही अंजलि बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने कमरे में चली आई. अचानक उस का मन रोने को करने लगा, पर आंसू थे कि पलकें भिगोने के लिए बाहर आ ही नहीं रहे थे.
करीब 15 मिनट बाद अंजलि के दोनों छोटे भाई और भाभियां उस से मिलने कमरे में आ गए. उन के गंभीर चेहरे देखते ही अंजलि उन के आने का मकसद सम झ गई और किसी के बोलने से पहले ही भड़क उठी, ‘‘मैं बिलकुल शादी नहीं करूंगी. इस टौपिक पर चर्चा छेड़ कर कोई मेरा दिमाग खराब करने की कतई कोशिश न करे.’’
अजय उस के सामने घुटने मोड़ कर फर्श पर बैठ गया और उस का दूसरा हाथ
प्यार से पकड़ कर भावुक स्वर में बोला, ‘‘दीदी, 12 साल पहले पापा के असमय गुजर जाने के बाद आप ही हमारा मजबूत सहारा बनी थीं. आप ने अपनी खुशियों और सुखसुविधाओं को नजरअंदाज कर हमें काबिल बनाया… हमारे घर बसाए. हम आप का वह कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे.’’
‘‘पागल, मेरे कर्तव्यों को कर्ज क्यों सम झ रहा है? आज तुम दोनों को खुश और सुखी देख कर मु झे बहुत गर्व होता है,’’ झुक कर अजय का सिर चूमते हुए अंजलि बोली.
अरुण ने भरे गले से बातचीत को आगे बढ़ाया, ‘‘दीदी, आप के आशीर्वाद से आज हम इतने समर्थ हो गए हैं कि आप की जिंदगी में
भी खुशियां और सुख भर सकें. अब हमारी
बारी है और आप प्लीज इस मौके को हम दोनों से मत छीनो.’’
‘‘भैया, मु झ पर शादी करने का दबाव न बनाओ. मेरे मन में अब शादी करने की इच्छा नहीं उठती. बिलकुल नए माहौल में एक नए इंसान के साथ नई जिंदगी शुरू करने का खयाल ही मन को डराता है,’’ अंजलि ने कांपती आवाज में अपना भय पहली बार सब को बता दिया.
‘‘लेकिन…’’
‘‘दीदी, नीरजजी बड़े सीधे, सच्चे और नेकदिल इंसान हैं. उन जैसा सम झदार जीवनसाथी आप को बहुत सुखी रखेगा… बहुत प्यार देगा,’’ अरुण ने अंजलि को शादी के विरोध में कुछ बोलने ही नहीं दिया.
‘‘मैं तो तुम सब के साथ ही बहुत सुखी हूं. मु झे शादी के झं झट में नहीं पड़ना है,’’ अंजलि
रो पड़ी.
‘‘दीदी, हम आप की विवाहित जिंदगी में झं झट पैदा ही नहीं होने देंगे,’’ उस की बड़ी भाभी मंजु ने उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘हमारे होते किसी तरह की कमी या अभाव आप दोनों को कभी महसूस नहीं होगा.’’
‘‘मैं जानता हूं कि नीरजजी अपने बलबूते पर अभी मकान नहीं बना सकते हैं. इसलिए हम ने फैसला किया है कि अपना नया फ्लैट हम तुम दोनों के नाम कर देंगे,’’ अरुण की इस घोषणा को सुन कर अंजलि चौंक पड़ी.
अजय ने अपने मन की बात बताई, ‘‘भैया से उपहार में मिले फ्लैट को सुखसुविधा की हर चीज से भरने की जिम्मेदारी मैं खुशखुशी उठाऊंगा. जो चीज घर में है, वह आप के फ्लैट में भी होगी, यह मेरा वादा है.’’
‘‘आप के लिए सारी ज्वैलरी मैं अपनी तरफ से तैयार कराऊंगी,’’ मंजु ने अपने मन की इच्छा जाहिर की.
‘‘आप के नए कपड़े, परदे, फ्लैट का नया रंगरोगन और मोटरसाइकिल भी हम देंगे आप को उपहार में. आप बस हां कर दो दीदी,’’ आंसू बहा रही शिखा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की तो अंजलि ने खड़े हो कर उसे गले से लगा लिया.
‘‘दीदी ‘हां’ कह दो,’’ अंजलि जिस की तरफ भी देखती, वही हाथ जोड़ कर यह प्रार्थना दोहरा देता.
‘‘ठीक है, लेकिन शादी में इतना कुछ मु झे नहीं चाहिए. तुम दोनों कोई करोड़पति नहीं हो, जो इतना कुछ मु झे देने की कोशिश करो,’’ अंतत: बड़ी धीमी आवाज में अंजलि ने अपनी स्वीकृति दे दी.
‘‘हुर्रा,’’ वे चारों छोटे बच्चों की तरह खुशी से उछल पड़े.
अंजलि के दिलोदिमाग पर बना तनाव का बो झ अचानक हट गया और उसे अपनी जिंदगी भरीभरी और खुशहाल प्रतीत होने लगी.