‘‘हमारे तो शहर की रौनक ही चली गई,’’ करण ने अपने स्वर में उदासी घोलने का अभिनय किया. अच्छा, मैं ने कुछ भेजा है तुम्हें… अपने फोन में चैक करो मेरी किस मिला क्या?’’ करण ने अंजुल को एक चुंबन की इमोजी भेजी.
‘‘तुम भी न,’’ अंजुल को लगने लगा कि दूर होने से शायद करण को उस की कमी खल रही है और वह रिश्ते को आगे बढ़ाने की फिराक में है. खैर, इस समय करण उस का काम आपने औफिस में करवाता रहे, अंजुल को यही चाहिए था.
आज ऋषि ने बताया कि शाम को औफिस में एक एचआर इवेंट है, जिस में कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे जाने वाले हैं. आमंत्रण पर अंजुल शाम तक वहीं रुक गई. कई लोगों ने रंगारंग
कार्यक्रम में अपने हुनर दर्शाए. ऋषि की दरख्वास्त पर अंजुल ने एक गाना गया, ‘ख्वाबों में बसे हो तुम, तुम्हें दिल में छुपा लूंगी,
जब चाहे तुम्हें देखूं, आईना बना लूंगी…’
‘‘मैं तुम्हारे गाने पर फिदा हो गया,’’ महफिल की समाप्ति पर ऋषि ने कहा.
‘‘बस गाने पर?’’अंजुल ने तिरछी मुसकान लिए पूछा.
‘‘अरे, मैं तो तुम्हारी हर अदा पर मिटने लगा हूं.’’
‘‘अच्छा फ्लर्ट कर लेते हो,’’ अंजुल थोड़ा लजाते हुए बोली.
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‘‘कौन कमबख्त फ्लर्ट कर रहा है, मैं तो सचाई बयान कर रहा हूं,’’ ऋषि ने भरपूर अदायगी से उत्तर दिया.
आज गाना गाते हुए अंजुल ने कई बार ऋषि को आंखों ही आंखों में इशारे किए थे, जिन से उस की हिम्मत काफी बढ़ गई. यह बात ऋषि के साथ औफिस के और कई लोगों ने भी भांप ली.
अब कई सहकर्मी अंजुल व ऋषि को एकदूसरे के साथ छेड़ने लगे. अंजुल इस छेड़खानी से पुलकित हो उठती. ऋषि भी मुसकरा कर अपनी सहमति दिखाता.
‘‘आज मुंबई के मौसम की खनक सुनने का मन कर रहा है. शाम को जुहू बीच ले चलो न…’’ अंजुल इठला कर कहने लगी.
औफिस के बाद ऋषि और अंजुल जुहू बीच के लिए निकल गए. रात को चांद की मखमली ठंडी लुनाई में दोनों ने एक एकांत कोना खोज निकाला. वहां की ठंडी सीली रेत पर बैठ कर वे आतीजाती लहरों में अपने पांव भिगोने लगे.
कुछ ही देर में अंजुल ने गुनगुनाना आरंभ किया, ‘ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा, कहा दो दिलों ने कि मिल कर कभी हम न होंगे जुदा…’
अंजुल की आंखों में कुछ ऐसा आकर्षण था कि ऋषि ने आगे बढ़ कर उस के अधरों पर अपने अधर रख दिए. अंजुल ने भी उसे नहीं रोका. कुछ पानी की शीतलता, कुछ चांदनी की खुमारी, कुछ उम्र का उफान… इन स्नेहिल क्षणों में दोनों ने अपने रिश्ते को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया.
दिल्ली लौट कर अंजुल ने सब से पहले रणदीप से मुलाकात की.
‘‘आप आए बहार आई. भई, यहां हमारा औफिस अधिक वीरान हो गया था या हमारा दिल, कहना जरा मुश्किल है,’’ हर बार की तरह हलकाफुलका फ्लर्ट करते हुए रणदीप ने उसे देखते ही कहा, ‘‘तुम्हारे लौटने की खुशी में कल एक पार्टी रखी है. पार्टी में अच्छे से तैयार हो कर आना. तुम्हारा दमकता रूप देखने का मन हो रहा है.’’
अंजुल मन ही मन चिढ़ गई कि अपनी तो बीवी है, बच्चा है, गृहस्थी है. ऐसे में फ्लर्ट करने को भी मिल जाए तो क्या बुरा है. मुझे तो अपने बारे में खुद ही सोचना पड़ेगा न. फिर ऊपर से हंसते हुए अपनी लटों को अदा से कानों के पीछे धकेलते हुए कहने लगी, ‘‘आप बुरा न मानें तो अपने क्लाइंट को भी बुला लूं?’’
रणदीप ने सहर्ष स्वीकृति दे दी.
करण को जैसे ही ज्ञात हुआ कि अंजुल शहर में लौट आई है, उस ने तुरंत उसे फोन किया, ‘‘हाय जानेमन, तभी आज मौसम इतना कातिलाना हुआ जा रहा है.’’
‘‘हाहा… कोरी बातें बनाना तो कोई तुम से सीखे. पर अभी नहीं, कल मेरे औफिस की पार्टी में मुलाकात होगी. अभी मैं काफी व्यस्त हूं,’’ जल्दबाजी में अंजुल ने फोन काट दिया.
उस की बेरुखी करण को अटपटी अवश्य लगी, मगर पार्टी में जो धमाका उस की प्रतीक्षारत था, वह उस की कल्पना से भी परे था.
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पार्टी में अंजुल खिलखिलाती हुई ऋषि की बांहों में बांहें डाले प्रविष्ट हुई. प्यार में मदहोश दोनों एक प्रेमसिक्त युगल जोड़ा प्रतीत हो रहा. सर्वप्रथम वह रणदीप की ओर बढ़ी, ‘‘इन से मिलिए रणदीप, ये हैं ऋषि मुंबई के हमारे क्लाइंट,’’ अंजुल और ऋषि के मुखड़ों पर फैली रोशनी उन का रिश्ता समझाने के लिए पर्याप्त थी.
‘‘आई एम हैप्पी फौर यू, अंजुल,’’ रणदीप ने कहा तो अंजुल आगे कहने लगी, ‘‘केवल हैप्पी होने से काम नहीं चलेगा, मुझे आप से कुछ चाहिए. मैं मुंबई औफिस में स्थानांतरण चाहती हूं.’’
अंजुल के मुख से अचानक यह सुन कर रणदीप को एक झाटका लगा, ‘‘नहीं अंजुल, यह संभव नहीं. तुम्हारी हमारे दिल्ली औफिस में बेहद आवश्यकता है. मैं तुम्हें मुंबई नहीं भेज सकता.’’ उस ने दो टूक जवाब दे कर अंजुल का हौसला गिराना चाहा.
तभी करण ने पार्टी में प्रवेश किया. आज अंजुल ने उस की ओर से नजर फेर ली.
करण अंजुल के बदले रुख पर हैरान हो ही रहा था कि किसी ने शायरी की फरमाइश कर दी. सभी कुछनकुछ सुनाने लगे. जब माइक अंजुल की तरफ बढ़ाया गया तो उस ने सुनाया:
‘‘सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां.
जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहां.’’
उस के इस शेर पर खूब तालियां बजीं. चुप थे तो बस रणदीप और करण. आज के इस समा के लिए दोनों ही तैयार न थे.
अगला नंबर करण का आया. उस ने अपनी आवाज में पूरा दर्द उड़ेल कर कहा:
‘‘मैं ने सहेज रखी हैं तुम से जुड़ी सभी यादों को. अकसर हंस देता हूं मैं याद कर उन वादों को.’’
मगर अंजुल ने उस की बात के मर्म पर किंचित ध्यान नहीं दिया, उलटा उन्मुक्त हास लिए उस से ऋषि को मिलवाया.
अगले दिन औफिस में अंजुल ने रणदीप की मेज पर अपना त्यागपत्र रखा, ‘‘रणदीप, यदि आप मेरा 15 दिन का नोटिस पीरियड छोड़ देंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी, लगेगा कि मेरे काम की, मेरी मेहनत की कदर की आप ने.’’
‘‘अंजुल, किसी के वादों के लिए अपनी जौब छोड़ना अक्लमंदी नहीं होती. मैं कहता हूं एक बार फिर सोच लो,’’ रणदीप के लिए अंजुल का यह कदम अप्रत्याशित था.
‘‘रणदीप, वादों व सपनों में तो मैं अब तक घिरी थी. लेकिन अब मैं यथार्थ की धरा पर खड़ी हूं. मैं ने ऋषि से शादी कर ली है.’’
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अंजुल की इस बात से जैसे रणदीप को करंट लगा, ‘‘और जो यहां रह गया है?’’
‘‘नौट माई सर्कस, नौट माई मनी, मुझे क्या करना है,’’ आज अंजुल केवल अपने आने वाले वक्त के बारे में सोच रही थी. आखिर उसे वह मिल गया था, जिस की तलाश में वह अब तक इधरउधर भटकती रही थी.