शिकायतनामा: पतिपत्नी के रिश्ते में मतभेद पर अनुष्का क्या विचार कर रही थी

देर शाम अनुष्का का फोन आया. कामधाम से खाली होती तो अपने पिता विश्वनाथ को फोन कर अपना दुखसुख अवश्य साझ करती. शादी के 3 साल हो गए, यह क्रम आज भी बना हुआ था. पिता को बेटियों से ज्यादा लगाव होता है, जबकि मां को बेटों से. इस नाते अनुष्का निसंकोच अपनी बात कह कर जी हलका कर लेती.

‘‘पापा, आज फिर ये जोरजोर से चिल्लाने लगे,’’ अनुष्का ने अपने पति कृष्णा का जिक्र किया.

‘‘क्यों?’’ विश्वनाथ निर्विकार भाव से बोले.

‘‘इसी का जवाब मैं खोज रही हूं.’’ कह कर वह भावुक हो गई.

विश्वनाथ का जी पसीज गया. विश्वनाथ उन पिताओं जैसे नहीं थे जो बेटी का विवाह कर के गंगा नहा लेते थे. वे उन पिताओं सरीखे थे जिन्हें अपनी बेटी का दुख भारी लगता. तनिक सोच कर बोले, ‘‘उन की बातों को ज्यादा तवज्जुह मत दिया करो. अपने काम से काम रखो.’’

जब भी अनुष्का का फोन आता वे उसे धैर्य और बरदाश्त करने की सलाह देते. विश्वनाथ की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने अपनी तरफ से कभी बेटियों को निराश नहीं किया. उन की बात पूरी लगन से सुनते. वे चाहते तो कह सकते थे कि यह तुम दोनों का आपसी मामला है. बारबार फोन कर के मु?ो परेशान मत किया करो. ज्यादातर पिताओं की यही भूमिका होती है. बेटियों की शादी कर दी तो अपने बेटाबहू में रम गए.

विश्वनाथ की 3 बेटियां थीं और एक बेटा. उन्होंने बेटेबेटियों में कोई फर्क नहीं किया. अमूमन लोग बेटियों को बोझ समझते हैं. इस के विपरीत विश्वनाथ को लगता, उन की बेटियां ही उन की ताकत हैं. उन की पत्नी कौशल्या की सोच उन से इतर थी. उन्हें अपना बेटा ही हीरा लगता. वे बेटियों को जबतब कोसती रहतीं. विश्वनाथ को बुरा लगता. इसी बात पर तूतूमैंमैं शुरू हो जाती.

विश्वनाथ का जीवन अभावपूर्ण था. बड़े संघर्षों से गुजर कर उन्होंने अपनी औलादों को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाया कि वे अपने पैरों पर खडे़ हो गए. बड़ी बेटी की शादी से वे खुश नहीं थे क्योंकि दामाद का कामधाम कोई खास नहीं था. वे अच्छी तरह जानते थे कि उन की कामाऊ बेटी की बदौलत ही गृहस्थी की गाड़ी चलेगी. उन की मजबूरी थी. कहां से अच्छे वर के लिए दहेज ले आते? बेटी की शक्लसूरत कोई खास नहीं थी. हां, पढ़ने में तेज जरूर थी. पहली से निबटे तो दूसरी अनुष्का आ गई. सब बेटियों में 2 से 3 साल का फर्क था. अनुष्का देखनेसुनने के साथ पढ़ने में भी होशियार थी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह किसी भी सूरत में प्राइवेट नौकरी वाले लड़के से शादी नहीं करेगी. सब चिंता में पड़ गए. कहां से लड़का ढूंढे़ं.

ऐसे में उन के बड़े दामाद ने कृष्णा का जिक्र किया. वह सरकारी नौकरी में था. देखने में ठीकठाक था. रही पढ़ाई तो वह अनुष्का की तुलना में औसत दर्जे का था तो भी क्या? सरकारी नौकरी थी. जिस आर्थिक अनिश्चितता के दौर से विश्वनाथ का परिवार गुजरा, उस से तो मुक्ति मिलेगी. यही सब सोच कर विश्वनाथ इस रिश्ते के लिए अपने दामाद की मनुहार करने लगे. साथसाथ, उन्होंने अपनी तीसरी बेटी के लिए भी सरकारी नौकरी वाले वर से करने का मन बना लिया.

लड़के को अनुष्का पसंद आ गई. दहेज पर मामला रुका तो विश्वनाथ ने साफसाफ कह दिया कि उन की औकात ज्यादा कुछ देने की नहीं है. सांवले रंग के कृष्णा को जब गोरीचिट्टी अनुष्का मिली तो वह न न कर सका. इस के पहले उस ने काफी लड़कियां देखीं. किसी की पढ़ाई पसंद आती तो रूपरंग मनमाफिक न मिलता. रूपरंग होता तो पढ़ाई साधारण रहती. यहां सब था. नहीं था तो दहेज की रकम. कृष्णा को लगा अब अगर और छानबीन में लगा रहेगा तो उम्र निकल जाएगी, ढंग की लड़की न मिलेगी. लिहाजा, उसे भी गरज थी. शादी संपन्न हो गई.

अनुष्का फूले नहीं समा रही थी. उस ने जो चाहा वह मिल गया. बिना आर्थिक किचकिच के जिंदगी आसानी से कटेगी. शादी होते ही वह जयपुर घूमने निकल गई. बड़ी बहन लतिका को तकलीफ हुई. वह सोचने लगी, आज उस का भी पति ऐसी ही नौकरी में होता तो वह भी वैवाहिक जीवन की इस प्रथम पायदान पर चढ़ कर जिंदगी का लुत्फ उठाती.

दोनों के विवाह का शुरुआती दौर बिना किसी शिकवाशिकायत के कटा. अनुष्का इस रिश्ते से निहाल थी. वहीं कृष्णा को लगा, उस ने जैसा चाहा उसे मिल गया. इस बीच, वह एक बेटे की मां बनी.

कृष्णा में एक खामी थी. उसे रुपए से बहुत मोह था. घरगृहस्थी के लिए खर्च करने में कोई कोताही नहीं बरतता तो भी बिना मेहनत के धन ही मिल जाए तो हर्ज ही क्या है. इसी लालच में उस ने अपना काफी रुपया शेयर में लगा दिया. अनुष्का ने एकाध बार टोका. मगर कृष्णा ने नजरअंदाज कर दिया.

एक दिन तो हद हो गई, कहने लगा, ‘मेरा रुपया है, जहां भी खर्च करूं.’

कृष्णा को ऐसे तेवर में देख कर अनुष्का सहम गई. एकाएक उस के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उसे असहज कर दिया. उस का मन खिन्न हो गया. मारे खुन्नस कृष्णा से बोली नहीं. कृष्णा की आदत थी, जल्द ही सामान्य हो जाता. वहीं अनुष्का के लिए आसान न था. चूंकि यह पहला अवसर था, इसलिए अनुष्का ने भी अपनी तरफ से भूलना मुनासिब सम?ा. मगर कब तक. जल्द ही उसे लगा कि कृष्णा अपने मन के हैं, उन्हें सम?ाना आसान नहीं. इस बीच, शेयर के भाव बुरी तरह से नीचे आ गए और उस के लाखों रुपए डूब गए. सो, अनुष्का को कहने का मौका मिल गया.

कृष्णा बुरी तरह टूट गया. परिणामस्वरूप, उस के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया. हालांकि उस की तनख्वाह कम न थी. तो भी, 10 साल की कमाई पानी में बह जाए तो क्या उसे भूल पाना आसान होगा? वह भी ऐसे आदमी के लिए जो बिना मेहनत अमीर बनने की ख्वाहिश रखता हो. कृष्णा अनमना सा रहने लगा. उस का किसी काम में मन न लगता. कब क्या बोल दे, कुछ कहा न जा सकता था. कभीकभी तो बिना बात के चिल्लाने लगता. आहिस्ताआहिस्ता यह उस की आदत में शामिल होता गया.

अनुष्का पहले तो लिहाज करती रही, बाद में वह भी पलट कर जवाब देने लगी. बस, यहीं से आपसी टकराव बढ़ने लगे. अनुष्का का यह हाल हो गया कि अपनी जरूरतों के लिए कृष्णा से रुपए मांगने में भी भय लगता. इसलिए अनुष्का ने अपनी जरूरतों के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली. स्कूल से पढ़ा कर आती तो बच्चों को टयूशन पढ़ाती. इस तरह उस के पास खासा रुपया आने लगा. अब वह आत्मनिर्भर थी.

अनुष्का जब से नौकरी करने लगी तो घर के संभालने की जिम्मेदारी कृष्णा के ऊपर भी आ गई. अनुष्का को कमाऊ पत्नी के रूप में देख कर कृष्णा अंदर ही अंदर खुश था, मगर जाहिर होने न देता. अनुष्का जहां सुबह जाती, वहीं कृष्णा 10 बजे के आसपास. इस बीच उसे इतना समय मिल जाता था कि चाहे तो अस्तव्यस्त घर को ठीक कर सकता था मगर करता नहीं. वजह वही कि वह मर्द है. एक दिन अनुष्का से रहा न गया, गुस्से में कृष्णा का उपन्यास उसी के ऊपर फेंक दिया.

‘यह क्या बदतमीजी है?’ कृष्णा की त्योरियां चढ़ गईं.

‘घर को सलीके से रखने का ठेका क्या मैं ने ही ले रखा है. आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती,’ अनुष्का ने तेवर कड़े किए.

‘8 घंटे डयूटी दूं कि घर संभालूं,’ कृष्णा का स्वर तल्ख था.

‘नौकरी तो मैं भी करती हूं. क्या आप अपना काम भी नहीं कर सकते? बड़े जीजाजी को देखिए. कितना सहयोग दीदी का करते हैं.’

‘उन के पास काम ही क्या है. बेकार आदमी, घर नहीं संभालेगा तो क्या करेगा?’

‘आप से तो अच्छे ही हैं. कम से कम अपने परिवार के प्रति समर्पित हैं.’

‘मैं कौन सा कोठे पर जाता हूं?’ कृष्णा चिढ़ गया.

‘औफिस से आते ही टीवी खोल कर बैठ जाते है. न बच्चे को पढ़ाना, न ही घर की दूसरी जरूरतों को पूरा करना. मैं स्कूल भी जाऊं, टयूशनें भी करूं, खाना भी बनाऊं,’ अनुष्का रोंआसी हो गई.

‘मत करो नौकरी, क्या जरूरत है नौकरी करने की,’ कृष्णा ने कह तो दिया पर अंदर ही अंदर डरा भी था कि कहीं नौकरी छोड़ दी तो आमदनी का एक जरिया बंद हो जाएगा.

‘जब से शेयर में रुपया डूबा है, आप रुपए के मामले में कुछ ज्यादा ही कंजूस हो गए हैं. अपनी जरूरतों के लिए मांगती हूं तो तुरंत आप का मुंह बन जाता है. ऐसे में मैं नौकरी न करूं तो क्या करूं,’ अनुष्का ने सफाई दी.

‘तो मुझ से शिकायत मत करो कि मैं घर की चादर ठीक करता फिरूं.’

कृष्णा के कथन पर अनुष्का को न रोते बन रहा था न हंसते. कैसे निष्ठुर पति से शादी हो गई. उसे अपनी पत्नी से जरा भी सहानुभूति नहीं, सोच कर उस का दिल भर आया.

कृष्णा की मां अकसर बीमार रहती थी. अवस्था भी लगभग 75 वर्ष से ऊपर हो चली थी. अब न वह ठीक से चल पाती, न अपनी जरूरतों के लिए पहल कर पाती. उस का ज्यादा समय बिस्तर पर ही गुजरता. कृष्णा को मां से कुछ ज्यादा लगाव था. उसे अपने पास ले आया.

अनुष्का को यह नागवार लगा. उन के 3 और बेटे थे. तीनों अच्छी नौकरी में थे. अपनीअपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो आराम की जिंदगी गुजार रहे थे. अनुष्का चाहती थी कि वह उन्हीं के पास रहे. वह घर देखे कि बच्चे या नौकरी. वहीं उन के तीनों बेटों के बहुओं के पास अतिरिक्त कोई जिम्मेदारी न थी. वे दिनभर या तो टीवी देखतीं या फिर रिश्तेदारी का लुत्फ उठातीं.

अनुष्का ने कुछ दिन अपनी सास की परेशानियों को झेला, मगर यह लंबे समय तक संभव न था. एक दिन वह मुखर हो गई, ‘आप माताजी को उन के अन्य बेटों के पास छोड़ क्यों नहीं देते?’

‘वे वहां नहीं रहेंगी?’ कृष्णा ने दोटूक कहा.

‘क्यों नहीं रहेंगी? क्या उन का फर्ज नहीं बनता?’ अुनष्का का स्वर तल्ख था.

‘मैं तुम्हारी बकवास नहीं सुनना चाहता. तुम्हें उन की सेवा करनी हो तो करो वरना मैं सक्षम हूं’

‘खाक सक्षम हैं. कल आप नहीं थे, बिस्तर गंदा कर दिया. मुझे ही साफ करना पडा.’

‘कौन सा गुनाह कर दिया. वे तुम्हारी सास हैं.’

‘यह रोजरोज का किस्सा है. आप उन की देखभाल के लिए एक आया क्यों नहीं रख लेते?’ आया के नाम पर कृष्णा कन्नी काट लेता. एक तरफ खुद जिम्मेदारी लेने की बात करता, दूसरी तरफ सब अनुष्का पर छोड़ कर निश्ंिचत रहता. जाहिर है, वह आया पर रुपए खर्च करने के पक्ष में नहीं था. शेयर में लाखों रुपए डुबाना उसे मंजूर था मगर मां के लिए आया रखने में उसे तकलीफ होती.

कंजूसी की भी हद होती है. रात अनुष्का, पिता विश्वनाथ को फोन कर के सुबकने लगी, ‘‘पापा, आप ने कैसे आदमी से मेरी शादी कर दी. एकदम जड़बुद्वि के हैं. मेरी सुनते ही नहीं.’’ फिर एक के बाद एक उस ने सारा किस्सा बयां कर दिया. सब सुन कर विश्वनाथ को भी तीव्र क्रोध आया. मगर चुप रहे यह सोच कर कि बेटी है.

‘‘तुम से जितना बन पड़ता है, करो,’’ पिता विश्वनाथ का स्वर तिक्त था.

‘‘सास को यहां लाने की क्या जरूरत थी? 3 बेटे अच्छी नौकरियों में हैं. सब अपनेअपने बेटेबेटियों की शादी कर के मुक्त हैं. क्या अपनी मां को नहीं रख सकते थे? यहां कितनी दिक्कत हो रही है. किराए का मकान. वह भी जरूरत के हिसाब से लिए गए कमरे जबकि उन तीनों बेटों के निजी मकान हैं. आराम से रह सकती थीं वहां.’’

‘‘अब मैं उन की बुद्वि के लिए क्या कहूं’’ विश्वनाथ ने उसांस ली.

गरमी की छुट्टियां हुईं. अनुष्का अपने बेटे को ले कर मायके आई. कृष्णा उसे मायके पहुंचा कर अपने भाईयों से मिलने चला गया. ससुराल में रुकने को वह अपनी तौहीन सम?ाता. भाईयों का यह हाल था कि वे सिर्फ कहने के भाई थे, कभी दुख में झंकने तक नहीं आते. इतनी ही संवेदनशीलता होती तो जरूर अपनी मां की खोजखबर लेते. वे सब इसी में खुश थे कि अच्छा हुआ, कृष्णा ने मां को अपने पास रख लिया. अब आराम से अपनीअपनी बीवियों के साथ सैरसपाटे कर सकेंगे.

दो दिनों बाद कृष्णा अनुष्का को छोड़ कर इंदौर अपनी नौकरी पर चला गया. मां को दूसरे के भरोसे छोड़ कर आया था, इसलिए उस का वापस जाना जरूरी था. बातचीत का दौर चलता तो जब भी समय मिलता अनुष्का अपना दुखड़ा ले कर विश्वनाथ के पास बैठ जाती.

एक दिन विश्वनाथ से रहा न गया, बोले, ‘‘तुम यहीं रह जाओ. कोई जरूरत नहीं है उस के पास जाने की.’’

अनुष्का ने कोई जवाब नहीं दिया. बगल में खड़ी अनुष्का की मां कौशल्या से रहा न गया, ‘‘आप भी बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देते हैं.’’ अनुष्का की चुप्पी बता रही थी कि यह न तो संभव था न ही व्यावहारिक. भावावेश में आ कर भले ही पिता विश्वनाथ ने कह दिया हो मगर वे भी अच्छी तरह जानते थे कि बेटी का मायके में रहना आसान नहीं है. फिर पतिपत्नी के रिश्ते का क्या होगा? अगर ऐसा हुआ तो दोनों के बीच दूरियां बढ़ेंगी जिसे बाद में पाट पाना आसान न होगा.

अनुष्का की आंखें भर आईं. उसे लग रहा था वह ऐसे दलदल में फंस गई है जहां से निकल पाना आसान न होगा. आज उसे लग रहा था कि रुपयापैसा ही महत्त्वपूर्ण नहीं, बल्कि आदमी का व्यावहारिक व सुलझा हुआ होना भी जरूरी है. पिता विश्वनाथ को आदर्श मानने वाली अनुष्का को लगा, पापा का सुलझपन ही था जो तमाम आर्थिक परेशानियों के बाद भी उन्होंने हम सब भाईबहनों को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाया कि समाज में सम्मान के साथ जी सकें. वहीं, कृष्णा के पास रुपयों के आगमन की कोई कमी नहीं तिस पर उन की सोच हकीकत से कोसों दूर है.

पिता विश्वनाथ की जिंदगी आसान न थी. सीमित आमदनी, उस पर 3 बेटियों ओैर एक बेटे की परवरिश. वे अपने परिवार को ले कर हमेशा चिंतित रहते. मगर जाहिर होने न देते. उन के लिए औलाद ही सबकुछ थी. पत्नी कौशल्या जबतब अपनी बेटियों को डांटतीफटकारती रहती जिस को ले कर पतिपत्नी में अकसर विवाद होता. बेटियों का कभी भी उन्होंने तिरस्कार नहीं किया. उन का लाड़प्यार उन पर हमेशा बरसता रहता. इसलिए बेटियां उन के ज्यादा करीब थीं. यही वजह थी कि बेटियां आज भी अपने पिता को अपना आदर्श मानतीं. जब बेटा हुआ तो मां कौशल्या का सारा प्यार उसी पर उमड़ने लगा. यह अलग बात थी कि जब उन की तीनों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो गईं तो उन की नजर उन के प्रति सीधी हो गई.

एक महीना रहने के बाद अनुष्का कृष्णा के पास वापस इंदौर जाने की तैयारी करने लगी तो अचानक एक शाम विश्वनाथ को क्या सूझ, कहने लगे, ‘‘क्या तुम्हारी मां मुझ से खुश थीं?’’ सुन कर क्षणांश वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई. अनुष्का ने मां की तरफ देखा. उन की आंखें सजल थीं. मानो अतीत का सारा दृश्य उन के सामने तैर गया हो. वे आगे बोले, ‘‘जब वह मुझ से खुश नहीं थी तो तुम कैसे अपने पति से अपेक्षा कर सकती हो वह हमेशा तुम्हें खुश रखेगा?’’

पिता की बेबाक टिप्पणी पर अनुष्का को कुछ कहते नहीं बन पड़ा. वह तो अपने पिता को आदर्श मानती थी. वह तो यही मान कर चलती थी कि उस के पिता समान कोई हो ही नहीं सकता. बेशक पिता के रूप में वे सफल थे मगर क्या पति के रूप में भी वे उतने ही सफल थे? क्या उन्होंने हमेशा वही किया जो कौशल्या को पसंद था? शायद नहीं.

वे आगे बोलते रहे, ‘‘यह लगभग सभी के साथ होता है. पत्नी अपने पति से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा करती है पर खुशी का पैमाना क्या है? क्या कृष्णा शराबी या जुआरी है? कामधाम नहीं करता या मारतापीटता है? सिर्फ विचारों और आदतों की भिन्नता के कारण हम किसी को नापंसद नहीं कर सकते? जब एक गर्भ से पैदा भाईयों में मतभेद हो सकते हैं तो पतिपत्नी में क्यों नहीं.’’

अनुष्का को अपने पिता से यह उम्मीद न थी. उन के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उसे असहज बना दिया. अभी तक उसे यही लग रहा था कि कृष्णा जो कुछ कर रहा है वह एक तरह से उस पर मनोवैज्ञानिक अत्याचार था. उन के कथन ने एक तरह से उसे भी कुसूरवार बना दिया. आहत मन से बोली, ‘‘पापा, जब ऐसी बात थी तो फिर आप ने मुझ क्यों मायके में ही रहने की सलाह दी?’’

वे किंचिंत भावुक स्वर में बोले, ‘‘एक पिता के नाते तुम्हारा दुख मेरा था. पुत्रीमोह के चलते मैं ने तुम्हें यहां रहने की सलाह दी. मगर यह व्यावहारिक न था. काफी सोचविचार कर मुझे लगा कि शायद मैं तुम्हें गलत रास्ते पर चलने की नसीहत दे रहा हूं. बड़ेबुजर्ग का कर्तव्य है कि पतिपत्नी के बीच की गलतफहमियां अपने अनुभव से दूर करें, न कि आवेश में आ कर दूरियां बढ़ा दें, जो बाद में आत्मघाती सिद्ध्र हो.’’

अनुष्का पर पिता विश्वनाथ की बातों का असर पड़ा. उस ने मन बना लिया कि अब से वह कृष्णा को भी समझने की कोशिश करेगी.

वो पहली बारिश की बूंद: क्या जिया राज से शादी कर पाई

जिया की बायोप्सी की रिपोर्ट उस के हाथों में थी. जिस बात का डाक्टर को शक था जिया को वही हुआ था कैंसर और वह भी थर्ड स्टेज. उस के पास इस खूबसूरत दुनिया के अनगिनत रंग देखने के लिए बस कुछ महीने ही थे. वाजिब है कि वह और उस का प्रेमी राज, जिन की कुछ महीने बाद मंगनी तय होनी थी, यह खबर सुन कर टूट कर बिखर चुके होंगे.

इस विचलित करने वाली खबर के साथ मौनसून की दस्तक भी धरती के कई हिस्सों पर पड़ चुकी थी, मगर ये गरजते बादल आसमान में बस कुछ दिनों से थोड़ी देर ठहर कर कहीं और चले जाते थे.जब इंसान किसी पीड़ा से गुजरता होता है तो खासतौर से प्रकृति के होते बदलाव को अपने जीवन से जोड़ कर सोचने लगता है.

आज उन्हें भी इन मनमौजी बादलों को देखते हुए जीवन की कई सचाइयां भलीभांति महसूस होने लगीं, ‘‘यह जिंदगी भी इन बादलों की तरह अपनी मरजी की मालिक है. ये कब बरसेंगे? कब थमेंगे? इस का कोई हिसाबकिताब नहीं जीवनमरण की तरह अनिश्चित और न ही उन के हाथों में होता है.’’वे चुपचाप गुमसुम अपने टू व्हीलर पर सवार यही सोचते मायूस वापस लौट रहे थे कि उन के शरीर से पानी की बूंदें छूने लगीं.‘‘गाड़ी रोको,’’ जिया ने राज के कंधे पर अपने हाथों से थाप देते हुए कहा.

राज को कुछ समझ न आया. शायद उस से कुछ गिर गया हो या हौस्पिटल में कुछ छूट गया होगा. अत: पूछा, ‘‘क्या हुआ कुछ भूल गई क्या?’’‘‘हां.’’‘‘क्या?’’‘‘जीना भूल गई हूं… अब जीना चाहती हूं.’’‘‘जी तो रही हो?’’‘‘ऐसे नहीं, अपने मन की आवाज सुनना चाहती हूं. राज मैं अभी इस बारिश में भीगना चाहती हूं.’’‘‘मेरी बात सुनो हमें यहां से फटाफट निकल लेना चाहिए… तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. तुम ने दवा भी लेनी शुरू करनी है.’’‘‘भाड़ में जाए यह रिपोर्ट.

इतने दिनों से हौस्पिटल के चक्कर लगा और डाक्टरों की बातें सुन एक बात तो मेरे दिमाग में साफ हो गई कि मेरी बीमारी का इलाज उन के हाथ में नहीं, बल्कि मेरे पास है, जो यह कि जितने भी पल शेष बचे हैं उन्हें खुशी से जीना है राज.’’‘‘फिर क्या चाहती हो?’’‘‘आज जब पता चला कि मैं कुछ दिनों की मेहमान हूं तो पता नहीं क्यों अब यह जिंदगी बहुत अच्छी लगने लगी है, जातेजाते जीने का बहुत मन कर रहा है… इसलिए अपना हर पल ऐसे बिताना चाहती हूं जैसे यह मेरा आखिरी पल हो.

मैं अपने मन को बिलकुल उदास नहीं रखना चाहती… वह सबकुछ करना चाहती हूं जो यह दिल चाहता है.’’ राज ने उस की बात सुन कर गाड़ी रोक दी. जिया खुद को आहिस्ताआहिस्ता संभालती गाड़ी से उतर बरसते पानी में अपने पैरों से हौलेहौले छपछप कर खिलखिला, अठखेलियां करती मगन होने लगी. उस की मासूमियत पर राज तो कब से फिदा था.

आज इतनी बड़ी खबर सुन कर भी उस की इतनी शरारत देख कर उस के लिए प्यार इस बारिश की तरह झमझम कर बरस रहा था. वह अपने आंसू पोंछते हुए उसे आवाज देते कहने लगा, ‘‘तुम बीमार पड़ जाओगी.’’‘‘अब और कितना बीमार होना बचा है? मैं ने तय कर लिया है.

मेरे पास जितने भी दिन हैं हम ऐसे रहेंगे जैसे यह बात हमें पता ही नहीं, सब पहले जैसा है, प्रौमिस?’’ जिया के चेहरे की मुसकराहट के साथ उस बिखरते अक्स को बारिश अपनी बूंदों से पोंछते हुए राज की नजरों से बचाने उस का मानो साथ दे रही थी.‘‘प्रौमिस, वैसे क्या रखा है ऐसे भीगने में? पूरे कपड़े खराब.’’‘‘जो छोटीछोटी चीज खुशी दे जाए उस के लिए क्या इतना सोचना. तुम्हारी ब्रैंडेड ली की टीशर्ट रंग उतर कर लो थोड़ी न हो जाएगी.’’‘‘मोबाइल का क्या?’’‘‘कैरी बैग में अच्छे से पैक कर सकते हैं.’’‘‘तुम नहाओ मैं अपना सिर इस छत से बचाते ठीक हूं.’’‘‘श्रीमान यह इंद्र देव का प्रेम बरस रहा है कोई ऐसिड नहीं जो जल या पिघल जाओगे.’’‘‘मुझे सर्दी हो जाएगी.’’‘‘तो डाक्टर कब काम आएंगे?’’‘‘आ जाओ वापस.

बहुत हो गया, घर में शावर में नहा लेना.’’‘‘क्या बात करते हो सच में तुम भी… इस प्रकृति के प्यार की तुम बाथरूम के शावर से कैसे बराबरी कर सकते हो? इस पाप की गरुढ़ पुराण में अलग से सजा लिखी है और वैसे अकसर लोगों को शावर में रोते सुना है खिलखिलाते कभी नहीं.’’‘‘तुम्हारे पास हर बात का जवाब है जिया… तुम ही भीगो मैं नहीं आने वाला.’’‘‘बोले रे पपीहरा… पपीहरा…’’‘‘वैसे जिया गाना तो बाथरूम में भी गाया जा सकता है.’’‘‘बाथरूम में बेसुरे गाने सुनने से तो अच्छेखासे को रोना आ जाए, तुम ही गाओ तुम्हें सूट करता है.’’‘‘तुम्हारा यह नहाना कब खत्म होगा?’’‘‘जब तक बारिश थम न जाए और आज तुम नहीं आए तो हमारा प्यार कैंसल.’’‘‘यह क्या ब्लैकमेल कर रही हो?’’‘‘अरे जो इंसान मेरी खुशियों में शामिल नहीं हो सकता उस को अपना जीवनसाथी क्यों चुनने का रिस्क लूं?’’ कह कर अचानक जिया चुप हो गई.

राज को ऐसे भीगना बिलकुल पसंद नहीं था और ऐसे बीच सड़क किनारे तो हरगिज नहीं. शायद आज ऐसा कुछ पता न होता तो जिया के इतने बुलाने के बाद भी न जाता, मगर कुछ माह बाद जब वह उस का साथ छोड़ जा चुकी होगी, फिर चाह कर भी वह कुछ नहीं कर पाएगा.

यह सोच कर वह बोला, ‘‘तुम यही चाहती हो न कि मैं तुम्हारे साथ आऊं, तुम्हारा हाथ थामे तुम्हें अपनी भीगी बांहों में समेट लूं?’’‘‘हां और एक वादा भी चाहती हूं कि तुम मेरे जाने के बाद अपने जीवनसाथी के साथ हर बरसात ऐसे ही भीगोगे.’’‘‘मैं ने कभी तुम्हारे बिना अपने भविष्य की कल्पना नहीं की… मुझे माफ करना मैं ऐसा कोई वादा तुम से नहीं कर पाऊंगा जिया.’’‘‘हम जैसा सोचते होते और लाइफ में वैसा ही होता तो क्या बात थी. राज मुझे से तो देर हो गई, मैं चाहती हूं आज से तुम्हें मेरे साथ अपने जीवन का हर पल जीना शुरू कर देना चाहिए, करो वादा.’’‘‘पक्का वादा,’’ भावुक राज जिया को भरे मन से गले लगा सिसकने लगा.जिया उसे ऐसे नहीं देखना चाहती थी, उस ने झट उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो आओ फिर.’’‘‘तुम ने कहा न अपने मन की करो. तो आओ पहले तुम्हें अंगूठी तो पहना दूं,’’ और राज सालों पहले बड़े प्यार से जिया के लिए खरीदी वह अंगूठी जिसे वह रोज अपनी जेब में सहेज कर उस परफैक्ट मोमैंट के इंतजार में रखा रहता था उसे पहनाने लगा.

‘‘एकदम अनूठा सरप्राइज… अब मैं भी तुम्हें अंगूठी पहना देती हूं,’’ और जिया पास गिरे ताजे फूल के डंठल को मोड़ राज को पहना देती है.‘‘इस से पहले कि बारिश बंद हो जाए, यह रही मेरी ऐंट्री अच्छे गाने के साथ, ‘हम्म्म… एक लड़की भीगीभागी सी…’’’‘‘क्या बात है वाह.’’‘‘दमदम डिगाडिगा मौसम भीगाभीगा…’’‘‘सुनिए भीतर आ जाइए, देखिए बारिश हो रही है आप भीग जाएंगे.’’खिड़की खोल कर खड़े राज को आई मौनसून की पहली बारिश की बूंदों की बौछार अपने चेहरे पर पड़ते ही उसे यकायक जिया के साथ बिताए उन खूबसूरत पलों के बीच कहीं गुम कर गई थी कि उस की पत्नी सुमन ने प्रेमपूर्वक आवाज लगाई.

राज की जिंदगी जिया के जाने के बाद बेजान होने लगी थी. मगर जिया की कही बातें, उसे दिए वादे उसे उन दुखों से उबारने में सहायक साबित हुए.‘‘आता हूं सुमन, क्या तुम्हें बारिश में भीगना पसंद नहीं?’’जिया के साथसाथ राज भी हर छोटीछोटी चीजों पर बड़ीबड़ी खुशियां ढूंढ़ने लगा था. उस के अंतिम समय तक साथ रहते देखते राज को यह बात समझते देर नहीं लगी कि इंसान की तबीयत का इलाज केवल दवा नहीं, थोड़ा सोचने का नजरिया बदल कर देखने और जीने से है, जिस से हर पीडि़त उस बीमारी से डरने के बजाय विजय प्राप्त करने का मनोबल हासिल कर सकता है.

जिया हिम्मत से लड़ती रही और मात्र 3 महीने में इतना भरपूर जी गई कि जातेजाते अपने साथ संतुष्टि की मुसकराहट ले कर और औरों के चेहरों पर दे कर विदा हुई.‘‘बहुत पसंद है मगर ऐसे अकेले नहीं.’’‘‘बात तुम ने सही कही, किसी का साथ हो तो मजा दोगुना हो जाता है.’’‘‘तो फिर चलें?’’‘‘चलो.’’ उस मौनसून इन भीगे लमहों को जीना तुम ने सिखाया था. मुसकराने और खिलखिलाहट के बीच फर्क समझया था.अब हम साथ बारिश की पहली बूंदों में भीगें यह कुदरत को मंजूर नहीं फिर भी भीगते रहेंगे हम साथ अपनीअपनी जिंदगी में. मैं कहीं और तुम कहीं.

ऐसे देखा जाए तो एक न एक दिन हम सब 1-1 कर यह खूबसूरत दुनिया छोड़ कर जाने वाले हैं. यह सामान्य सी बात तो हमारे पैदा होने के साथ ही तय हो जाती है. तो फिर इंसान इसे तब क्यों जीना शुरू करना चाहता है जब उस के जाने का समय निकट आने वाला होता है?अभी स्कूल में अच्छे से पढ़ाई कर लेते हैं. एक बार कालेज पहुंच गए फिर मस्ती ही मस्ती.

अब कालेज में गंभीर नहीं तो जौब नहीं मिलेगी, एक बार जौब मिल गई फिर मजे ही मजे.अब जौब मिल गई तो फैमिली के लिए पैसे जोड़ लेते हैं, फिर एकसाथ सब ऐंजौय करेंगे.फिर बच्चों की पढ़ाई, इलाज, शादी… एक बार रिटायर्ड हो कर सारी जिम्मेदारियों से फ्री हो जाऊं फिर टाइम ही टाइम है.

जब तक रिटायर हुए तब तक कई बीमारियों ने घेर लिया, पत्नी ने बिस्तर पकड़ लिया. डाक्टर ने आराम करने को कह दिया. फिर कुछ समय बाद जाने का नंबर भी आ गया. इंतजार न करें किसी परफैक्ट टाइम का, बनाएं हर टाइम परफैक्ट भरपूर जीने का.

उन की फेसबुकिया फ्रैंड्स

जब हमारे मित्र हो सकते हैं तो उन की सहेलियां होना भी वाजिब है. मगर यह शब्द उस समय गले नहीं उतरता जब सारा दिन औफिस में मरखप कर आने के बाद हमें एक प्याली चाय के साथ साफसुथरे बिस्तर पर थोड़ा आराम करने की सख्त आवश्यकता होती है और बैठक में घुसते ही हमें ऐसा लगता है जैसे वहां अभीअभी संसद की काररवाई समाप्त हुई हो या हमारी बैठक से बजरंग दल की यात्रा गुजरी हो जो रास्ते में जो मिला नाटक करती जाती है.

चारों तरफ बिखरे कप और प्लेटें, सोफों पर गिरी चाय, फर्श पर बिखरी पानी की बोतलें और गिलास देख कर ऐसा लगता है मानो उन की सहेलियों की सभ्यता के सारे के सारे प्रतीकात्मक चिह्न वहां मौजूद हों.फिर उस वक्त तो बड़ी ही कोफ्त होती है जब औफिस से लौटते हुए ट्रैफिक जामों से जूझते हुए सारे रास्ते चिलचिलाती धूप से गला सूख जाता है और घर पर फ्रिज से पानी की सारी बोतलें तथा बर्फ की सारी ट्रे नदारद मिलती हैं.
फिर हमें झक मार कर टैंक के नल से आ रहे गरम पानी को पी कर ही अपने दिल को सांत्वना देनी पड़ती है.इन सारी बातों को हम सरकारी जीएसटी की तरह बरदाश्त कर जाते हैं और बड़ी शालीनता के साथ अपनी उन से यानी श्रीमतीजी से एक प्याला चाय की फरमाइश करते हैं क्योंकि हमें गरमी में भी चाय पीने की आदत है और एक वे हैं कि हमारी फरमाइश को नजरअंदाज करते हुए गुसलखाने में घुस जाती हैं.

5-6 बार याद दिलाने मेरा मतलब है कि आवाजें लगाने पर करीब 1 घंटे बाद हमारी वे तौलिए से हाथ पोंछती हुई आ कर कहती हैं, ‘‘क्या है… घर में घुसे नहीं कि चिल्लाना शुरूकर दिया.’’फिर हम उन्हें मनाने की गरज से अपने मतलब की बात न कह कर यह कहते हैं,‘‘क्या कर रही थीं. बहुत थकी हुई दिखाई पड़ रही हो.’’‘‘कुछ नहीं, जरा साड़ी धो रही थी.सुशीला की बच्ची ने गंदी कर दी थी. मैं नेसोचा, धो कर अभी डाल दूं वरना नई साड़ी खराब हो जाएगी.’’‘‘तो क्या वह साड़ी… मेरा मतलब है, कल जो क्व8 हजार की नई साड़ी लाया था वह खराब हो गई?’’ हम अपना सिर थाम लेते हैं.

हमारी समझ में नहीं आता कि उसे घर में पहनने की क्या जरूरत थी.‘‘अब छोडि़ए भी. कुछ सहेलियां आ गई थीं. सो पहन ली. फिर वह तो नासमझ बच्ची थी. अगर उस की जगह अपनी बच्ची होती तो?’’उन का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है क्योंकि फैमिली प्लानिंग के चक्कर में हमारे एक भी बच्चा नहीं है. अभी मैडम को नौकरी नहीं मिली है पर ढूंढ़ रही हैं और एक बच्चे की खातिर अपनी एमए बीएड की पढ़ाई को बरबाद नहीं करना चाहतीं.

फिर हम उन्हें कंधे से पकड़ कर बड़े प्यार से याद दिलाते हैं कि दफ्तर से आए लगभग डेढ़ घंटे से भी अधिक हो चुका है. 2 कप कौफी बनाए 1 घंटा हो गया. आप की कौफी को 2 बार गरम कर चुका हूं.इस से ज्यादा और कुछ कहने की हमारी हिम्मत नहीं होती क्योंकि आजकल देश में गवर्नमैंट तो पौराणिक है, पर घरों में स्त्री राज चलने लगा है.

क्या पता कब हमारा कोर्ट मार्शल हो जाए यानी वे हमें छोड़ कर मायके चली जाएं या अपना घर ले लें. पिछली बार जब वे गई थीं तो पूरे महीने में अपने सारे दोस्तों, आसपास के लोगों को, नानीपरनानी को ही नहीं, अपनी ननिहाल में होने वाली पहली नानी तक को याद करता रहा था.वे हमें बैठक की सफाई के लिए कहकर रसोईघर की ओर बढ़ जाती हैं.

मरता क्या नहीं करेगा. बैठक में प्याले समेटते समय हम सोचते हैं कि आज के जमाने में अच्छा घरहोना, सुखसुविधा के साधन होना भी सिरदर्द है और कम से कम जो सिरदर्द हमें है वह तोइस पंखे, एसी, फ्रिज और टैलीविजन और सबसे बड़ा व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम की ही देन है और इस सिरदर्द में सब से बड़ा योगदान हैहमारी उन की रोज नई बनने वाली फेसबुक सहेलियों का.एक दिन की बात है.

हम सिर में दर्दहोने के कारण दफ्तर से छुट्टी ले कर घर आगए थे. उस दिन पहली बार हम ने अपनी मैडम के सहेली मंडल के दर्शन अपने कमरे में लगे दरवाजे के चाबी वाले सूराख में से किए थे.इन लोगों का विचार था कि हम सो रहे हैं.

भला आप ही बताइए जब ऐसी महान हस्तियां, जिन्होंने हमारा रात और दिन का चैन हराम कर रखा हो, घर में मौजूद हों तो हम कैसे सोसकते हैं.वार्त्तालाप अपनी चरम सीमा पर था, ‘‘फलाना ऐसा है… फलाना वैसा है… इस बार ऊंटी में रिजौर्ट खुला है, ग्रेटर कैलाश में एक डिस्को चालू हुआ है वगैरहवगैरह.’’हम चुपचाप अपने पलंग पर लेट गए थे. वार्त्तालाप के दौरान भावावेश में ऊंचे स्वर में बोले गए शब्द तथा हर 5 मिनट बाद जोरदार ठहाके हमारे कानों में पड़ रहे थे.

उस दिन उन की सहेलियों के वार्त्तालाप का नमूना सुन कर हम ने यह अंदाजा लगाया कि उन की सहेलियों के मध्य होने वाले घंटों वार्त्तालाप में न कोई मतलब की बात होती है और न ही उन का आपस में कोई संबंध होता है. बस वही घिसीपिटी बातें, ‘‘उस की शक्ल कितनी अच्छी है, शक्ल न सूरत, उस पर ऐसा भयंकर मेकअप तोबा आदि.’’हां, एक बात जरूर उस दिन हमारी सम?ा में आ गई थी कि ये औरतें एक कुशल आलोचक होती हैं.

क्या मजाल जो वहां बैठी औरतों को छोड़ महल्ले की कोई भी औरत उन की आलोचना का शिकार हुए बगैर रह जाए और यही नहीं, गेहूं के साथ घुन यानी उन औरतों के साथ उन के पतियों का भी क्रियाकर्म ये लगे हाथों कर डालती हैं.

आखिर उस दिन की कृपादृष्टि हम परभी हो ही गई. बैठक समाप्त होने के बाद हमारी श्रीमतीजी धड़धड़ाती हुई अंदर आईं और बगैर कहीं कौमा या विराम लगाए लगातार बोलती्रही चली गईं, ‘‘क्यों जी, आजकल, दफ्तर की स्टैनो के साथ क्या गुलछर्रे उड़ाए जा रहे हैं.मैं भी कहूं रोज दफ्तर से लौटने में देर क्यों हो जाती है.

कान खोल कर सुन लो, अगर फिर उस कलमुंही के साथ कहीं इधरउधर गए तो ठीक नहीं होगा.’’रमा बता रही थी कि उस ने हमाराऔफिस पार्टी का एक फोटो फेसबुक पर देखा था जिस में हम मैंसी के साथ चिपके खड़ेखड़े देख रहे थे. शायद उन की किसी सहेली ने उन सेकह दिया था कि हम एक दिन अपने दफ्तर की स्टैनो के साथ काफी हाउस में बैठे थे जबकि हम कभी स्टैनो के साथ वहां गए ही नहीं थे.

हम ने बहुतेरा समझने की कोशिश की, पर सब बेकार. हम जितना खंडन करते उन का पारा उतना ही और चढ़ता जाता और फिर तो उन्होंने पुलिस में डोमैस्टिक वायलैंस की शिकायत की धमकी दे डाली. महीनेभर तक अपने हाथों की जलीभूनी रोटियां खिला कर उन की सहेलियों को कोसते रहे और उन की सेवा करते रहे.

पर हम पतियों की सब से बड़ी कमजोरी यही होती है कि शाम को 2 घंटे पत्नियों का लंबाचौड़ा भाषण सुनने के बाद जब हमें उन के हाथों की बनी गरमगरम मुलायम रोटियां मिल जाती हैं तो हमारा सारा ताब उसी तरह गायब हो जाता है जैसे आजकल राशन की दुकान से शक्कर.

अब जब हम ने उन्हें राजस्थान के जोधपुर में घुमा लाने का वादा किया तो वे मानीं और हमारी जान में जान आई और हम बाज आए. आइए, उन की सहेलियों के बारे में कुछ कहने या नैन्सी से हंसीमजाक करने से.

चपत: क्या शिखा अपने मकसाद में कामयाब हो पाई

औफिस  से निकल कर रितु आकाश रेस्तरां में पहुंची. वहां एक कोने में बैठी शिखा को उस ने फौरन पहचान लिया, क्योंकि समीर ने उसे उस का फोटो दिखा रखा था.

रितु जानबूझ कर उस की तरफ बढ़नेके बजाय किसी को खोजने वाले अंदाज में इधरउधर देखने लगी. वह नहीं चाहती थी कि शिखा को यह मालूम पड़े कि वह उसे पहले से पहचानती थी.‘‘रितु,’’ शिखा ने जब उसे पुकारा तभी वह उस की तरफ बढ़ी.

शिखा के सामने वाली कुरसी पर बैठते ही रितु ने उस से आक्रामक लहजे में पूछा, ‘‘तुम ने मुझे फोन कर के यहां क्यों बुलाया है?’’शिखा ने गहरी सांस लेने के बाद रितु के हाथ पर अपना हाथ रखा और फिर सहानुभूति भरी आवाज में पूछा, ‘‘क्या तुम समीर से शादी कर के खुश हो?’’‘‘तुम मुझ से यह सवाल क्यों पूछ रही हो?’’ रितु के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘तुम मुझे अपनी शुभचिंतक समझे.’’‘‘तुम मेरा कुछ भला करने जा रही हो?’’‘‘हां.’’‘‘क्या?’’‘‘इन्हें देखो,’’ कह शिखा ने अपने पर्स से कुछ पोस्टकार्ड साइज की तसवीरें निकाल कर रितु को पकड़ा दीं.रितु उन तसवीरों को देख कर हक्कीबक्की रह गई. उफ, मुंह से सिर्फ इतना निकला और फिर सिर झुका लिया.

शिखा ने उत्तेजित लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘यों मायूस होने के बजाय तुम मेरी बात ध्यान से सुनो. ये तसवीरें साफ बता रही हैं कि तुम से शादी करने से पहले समीर ने मेरे साथ प्यार का नाटक खेला था. शादी का वादा करने के बाद मुझे धोखा दिया… मेरी जिंदगी बरबाद कर दी… देख लेना एक दिन वह तुम्हें भीधोखा देगा.’’‘‘ऐसा न बोलो,’’ रितु रोंआसीहो उठी.

‘‘वह भरोसे के काबिल है ही नहीं, रितु. उस ने मुझे छोड़ा, क्योंकि तुम एक अमीर बाप की बेटी थीं. अब किसी और कली का प्रेमी बन कर उसे धोखा देगा, क्योंकि वहलालची होने के साथसाथ स्वाद बदलने का भी आदी है.’’‘‘अगर उस ने मेरे साथ ऐसा कुछ किया, तो मैं उस की जान ले लूंगी,’’ रितु अचानक गुस्से से फट पड़ी.‘‘उसे सीधी राह पर रखने का यही तरीका है कि वह तुम से डरे, रितु.

तुम समीर पर कभी भरोसा न करना. उस की मीठी बातों में न आना. किसी भी औरत का दिल जीतने की कला मेंवह कितना निपुण है, इस का अंदाजा तो अबतक तुम्हें भी हो गया होगा. रितु, अगर तुम ने कभी उसे किसी भी सुंदर स्त्री के साथ घुलनेमिलने का मौका दिया, तो बुरी तरह पछताओगी.’’‘‘धन्यवाद शिखा. तुम ने मुझे वक्त से चेता दिया.

अब मैं पूरी तरह होशियार रहूंगी,’’ रितु ने फौरन उस का आभार प्रकट किया.‘‘मेरी शुभकामनाएं सदा तुम्हारे साथ हैं.’’‘‘मैं तुम से मिलती रहना चाहूंगी.’’‘‘मैं अपना फोन नंबर तुम्हें देती हूं.’’‘‘और अपना पता भी दे दो.’’‘‘ठीक है.’’‘‘इन तसवीरों को मैं रख लूं?’’‘‘क्या करोगी इन का?’’‘‘इन्हीं के बल पर तो मैं समीर की नाक में नकेल डाल पाऊंगी.’’‘‘तो रख लो.’’‘‘धन्यवाद. अब कुछ ठंडा या गरम पी लिया जाए?’’

रितु ने वार्त्तालाप का विषय बदला और फिर दोनों सहेलियों की तरह गपशप करने लगीं. रितु शाम 7 बजे के करीब घर पहुंची.समीर ने मुसकरा कर स्वागत किया. वह उसे अपने पास बैठाना चाहता था, पर रितु ने अपने पर्स से तसवीरें निकाल कर उसे पकड़ाईं और बिना कुछ बोले अपने कमरे में चली गई.

रितु ने अभी पूरे कपड़े भी नहीं बदले थेकि समीर कमरे में आ गया, ‘‘तो मेरी पुरानी सहेली आज तुम से मिलने पहुंच ही गई,’’और फिर रितु को बांहों में भर कर अपनी गरमगरम सांसें उस के कान में छोड़नी शुरूकर दीं.‘‘तुम मुझ से दूर रहो,’’ रितु उस की बांहों की कैद से निकलने की कोशिश करने लगी.‘‘मैं ने तुम से दूर रहने के लिए शादी नहीं की है, जानेमन.’’‘‘शिखा ने मुझे आगाह कर दिया है.’’‘‘किस बारे में?’’‘‘यही कि तुम औरतों का दिल जीतने की कला में बहुत ऐक्सपर्ट हो, पर अब से तुम मुझे उत्तेजित कर के बुद्धू नहीं बना सकोगे.’’‘‘कोशिश करने में क्या हरज है, स्वीटहार्ट,’’ समीर ने उस के गालों को चूमना शुरू कर दिया.‘‘तुम एक दिन किसी दूसरी औरत के चक्कर में जरूर फंस जाओगे.’’‘‘ऐसा शिखा ने कहा?’’‘‘हां.’’‘‘नैवर… बंदा तुम्हें जिंदगी भर सिर्फ तुम्हारा दीवाना बना रहने का वचन दे सकता है.’’‘‘उस ने कहा है कि तुम उस की मीठी बातों पर कभी विश्वास न करना.’’‘‘मेरी बातों पर नहीं, बल्कि मेरे ऐक्शन पर विश्वास करो, मेरी जान,’’ समीर ने उसे झटके से अपनी बांहों में उठा लिया और फिर गुसलखाने की तरफ चल दिया.‘‘अरे, गुसलखाने में क्यों जा रहे हो?’’ रितु घबरा उठी.‘‘आज साथसाथ नहाने का मूड है.’’‘‘मेरे कपड़े भीग जाएंगे.’’‘‘मेरे भी भीगेंगे, पर मैं तो शोर नहीं मचा रहा हूं.’’

रितु के रोके समीर रुका नहीं. जब फुहारे का ठंडा पानी दोनों पर पड़ने लगा, तो रितुमस्त हो अपनी आंखें मूंद समीर के बदन से लिपट गई.‘‘मेरा हनीमून जिंदगी भर चले,’’ ऐसी कामना करने के बाद उस ने अपने तनमन को समीर के स्पर्श से मिल रही उत्तेजक गुदगुदी के हवाले कर दिया.3 दिन बाद रितु ने लंच अवकाश में शिखा से फोन पर बात की.‘‘मैं अपनी अटैची ले कर आज सुबह मायके रहने आ गई हूं,’’ रितु ने उसे गंभीर स्वर में जानकारी दी.‘‘क्या झगड़ा हुआ समीर से?’’ शिखा की आवाज में फौरन उत्सुकता के भाव पैदा हुए.‘‘हां.’’‘‘किस बात पर?’’

‘‘बात लंबी है और मुझे तुम्हारी सलाह भी चाहिए. क्या शाम को मैं तुम से मिलने तुम्हारे घर आ जाऊं?’’‘‘हां, आ जाओ पर कुछ तो बताओ कि हुआ क्या है?’’‘‘अभी नहीं, आसपास कई लोग हैं.’’‘‘कितने बजे तक पहुंचोगी?’’‘‘7 तक.’’‘‘मैं इंतजार करूंगी.’’फोन बंद कर रितु रहस्यमयी अंदाज में मुसकरा रही थी. शाम को घंटी बजाने पर दरवाजा शिखा नेही खोला.

वह अपनी मां के साथ फ्लैट में रहती थी. दोनों ड्राइंगरूम में बैठीं तो उस की मां वहां से उठ कर अपने कमरे में टीवी देखने चली गईं. ‘‘क्या बहुत झगड़ा हुआ तुम दोनों के बीच?’’ शिखा से सब्र नहीं हुआ और उस ने बैठते ही वार्त्तालाप शुरू कर दिया.‘‘समीर का असली चेहरा बेनकाब करवाने में मेरी सहायता करने के लिए तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद, शिखा,’’ रितु भावुक हो उठी.‘‘हुआ क्या है, यह तो बताओ?’’‘‘उस ने मेरी बहुत बेइज्जती की.’’‘‘क्या किया उस ने?’’‘‘मैं ने तो उस से तलाक लेने का मन बना लिया है.’’‘‘क्यों, तुम उस पर इतना गुस्सा हो रही हो?’’‘‘मेरा बस चले तो मैं उस की जान हीले लूं.’’‘‘रितु,’’ शिखा चिढ़ उठी, ‘‘तुम पहले मुझे वह सब क्यों नहीं बता रही हो, जो तुम दोनों के बीच घटा है?’’‘‘उस की बातों को याद कर के मेरा दिल करता है कि उसे कच्चा चबा…’’‘‘रितु,’’ शिखा चिल्ला पड़ी.

रितु ने उसे अजीब नजरों से देखने के बाद चिढ़े लहजे में कहा, ‘‘उस ने मुझ से साफसाफ कह दिया कि कोई न कोई प्रेमिका उस की जिंदगी में हमेशा रहेगी.’’‘‘क्या?’’‘‘और यह भी कहा कि मैं अकेली उसे कभी संतुष्ट नहींकर पाऊंगी.’’‘‘तुम्हारा ऐसा अपमान करने की उस की हिम्मत कैसे हुई?’’‘‘उस ने मुझे मोटी भैंसभी कहा.’’‘‘तुम ने उस के सिर पर कुछ फेंक कर क्यों नहीं मारा?’’‘‘मुझे बदसूरत भी कहा और यह भी ताना मारा कि न मुझे ढंग के कपड़े पहनने की तमीज है और न ही मेरे पास ढंग के कपड़े हैं.’’‘‘तुम ने अच्छा किया जो मायके चली आईं… अब जब तक वह तुम से हाथ जोड़ कर माफी न मांगे, तुम वापस मत जाना.’’‘‘मैं अपनी मरजी से मायके नहीं आई हूं, शिखा.’’‘‘तो?’’‘‘उस ने मुझे जबरदस्ती भेजा.’’‘‘क्यों?’’‘‘उस ने चेतावनी दी है कि जब तक मेरी पर्सनैलिटी में निखार न आ जाए.

तब तक वापस न आना.’’‘‘वह खुद शर्मिंदा होनेके बजाय उलटा तुम्हें धमकी देरहा है?’’‘‘हां, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि अब मैं क्या करूं?’’‘‘तुम उस से न डरो और न उस के सामने झुको, रितु. इस बार तुम अगर कमजोर पड़ गईं, तो उसे दूसरी औरतों के साथ गुलछर्रे उड़ाने की खुली छूट मिल जाएगी.’’‘‘अगर मैं अपनी जिद पर अड़ी रही, तो मेरा घर उजड़सकता है.’’‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा.’’रितु इस का कोई जवाब दे पाती, उस से पहले ही किसी ने घंटी बजा दी तो शिखा दरवाजा खोलने चली गई.

ड्राइंगरूम में जब गुस्से से आगबबूला हो रहे समीर ने शिखा के आगेआगे कदम रखा तो रितु चौंक कर खड़ीहो गई.‘‘मुझे पता था कि तुम यहीं मिलोगी,’’ समीर की आवाज गुस्से के मारे कांप रही थी, ‘‘इस चालाक औरत की बातों में आ कर तुम क्यों अपना घर बरबाद कर रही हो?’’‘‘इन्हें तुम्हारा असली चेहरा क्या है, यह मालूम पड़ना ही चाहिए,’’ शिखा ने रितु की तरफदारी की.‘‘क्या ये तुम्हारा असली चेहरा पहचानती हैं?’’ समीर ने अपनी भूतपूर्व प्रेमिका को गुस्सेसे घूरा.‘‘ये जानती हैं कि मैं इन की शुभचिंतक…’’‘‘नहीं,’’ समीर ने उसे टोक दिया, ‘‘तुम्हारा इरादा तो हमारे विवाहित जीवन की खुशियों को बरबाद करने का है.

क्या तुम ने इसे यह बताया है कि हमारा रिश्ता क्यों टूटा था?’’‘‘तुम्हारे गंदे दिमाग में जो बेबुनियाद शक…’’‘‘मेरा शक बेबुनियाद होता, तो उस शाम तुम मेरे हाथों चुपचाप मार न खातीं.’’ समीर ने फिर रितु को संबोधित किया, ‘‘इस की बदचलनी का ब्योरा मैं तुम्हें सुनाता हूं. मैं वायरल बुखार की चपेट में आ कर करीब 10 दिनों तक बिस्तर पर पड़ा रहा था.

इस धोखेबाज ने इसी घर के अंदर अपने एक सहयोगी के साथ मुंह काला किया. मैं ने इन्हें रंगे हाथों पकड़ा था. उस शाम मैं बड़ी कठिनाई से इसे सरप्राइज देने आया था, पर जो सरप्राइज मु?ो मिला उस का जख्म आज भी टीसता है तो मैं ढंग से सो नहीं पाता हूं, रितु.’’‘‘यह झूठ बोल रहा है,’’ शिखा चिल्लाई.‘‘कौन सच्चा है और कौन झूठा, इस की गवाही के लिए तुम्हारे पड़ोसियों को बुलाऊं?’’‘‘तुम जैसे घटिया आदमी से मैं सारे संबंध पहले ही तोड़ चुकी हूं.

तुम इसी वक्त यहां से चले जाओ.’’‘‘अगर सारे संबंध तोड़ चुकी थीं, तो फिर मेरी पत्नी को मेरे खिलाफ भड़ाकने की कोशिश क्यों की?’’‘‘मैं ने ऐसी कोई कोशिश नहीं…’’‘‘चुप,’’ उसे डांट कर चुप कराने के बाद समीर ने रितु की तरफ घूम कर उसे धमकी दी, ‘‘इस के कहे में आ कर मेरा दिमाग खराब करने की सजा तुम्हें भी मिलेगी. जब तक तुम मेरे मनमुताबिक चलने और दिखने लायक न हो जाओ, तब तक अपने मायके में ही सड़ो,’’ पत्नी को धमकी दे कर समीर गुस्से से पैर पटकता दरवाजे की तरफ चल पड़ा.

कुछ कदम चल कर वह अचानक पलटा और क्रूर मुसकान होंठों पर सजा कर शिखा से बोला, ‘‘तुम ने जो फोटो मेरे घर में आग लगाने के लिए रितु को दिए थे, अब वही फोटो तुम्हारी ऐसी की तैसी करेंगे. मैं देखता हूं कि तुम्हारी शादी अब नीरज से कैसे होती है.’’ समीर को शिखा ने रोकने की कोशिश जरूर की, पर उस के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पाया.

उस का चेहरा पीला पड़ गया था. बेहद चिंतित नजर आते हुए वह थकीहारी सी सोफे पर बैठ गई.रितु के कई बार पूछने पर शिखा ने उसे रोंआसी आवाज में बताया, ‘‘नीरज से मेरा रिश्ता पक्का होने जा रहा है.’’‘‘तब तो समीर उन फोटोज के बलपर तुम्हारे लिए गंभीर समस्या खड़ी करसकता है,’’ रितु भी चिंतित नजर आने लगी.‘‘वे फोटो मैं ने तुम्हारी हैल्प करने के लिए तुम्हें दिए थे.

प्लीज, अब उन को तुम ही वापस ला कर दो, रितु,’’ शिखा बहुत घबराई सी नजर आ रही थी.‘‘वे फोटो मैं तुम्हें जरूर लौटाऊंगी… तुम फिक्र न करो, लेकिन…’’‘‘लेकिन क्या?’’‘‘मैं तो वापस घर नहीं जा सकती. अभी तुम ने समीर की धमकी सुनी थी न.’’‘‘मेरी खातिर वापस चली जाओ, प्लीज,’’ शिखा ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए.‘‘नहीं,’’ रितु ने सख्ती से इनकार कर दिया.‘‘प्लीज.’’‘‘तुम समझ नहीं रही हो… मैं ने पक्का इरादा कर लिया है कि अपनी फिगर ठीक करने के लिए पहले जिम जाना शुरू करूंगी… कुछ नई ड्रैसेज खरीदूंगी… ब्यूटीपार्लर से ब्राइडल पैकेज लूंगी, जो मुझे दुलहन सा आकर्षक बना दे.

मैं अगर इन सब कदमों को उठाए बिना लौट गई, तो मेरी कितनी किरकिरी होगी, जरा सोचो तो,’’ रितु परेशान नजर आने लगी.‘‘मेरे सुखद भविष्य की खातिर उन फोटोज का वापस मिलना क्या जरूरी नहीं है?’’‘‘यह भी ठीक है, पर मैं नहीं चाहतीकि समीर मुझे दुत्कार कर फिर से मायकेभेज दे.’’‘‘तो कल ही तुम इन सब सोचे हुए कामों को कर डालो.

फिर फौरन लौट कर उस से फोटो ले कर मुझे लौटा दो.’’‘‘मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकती हूं, शिखा,’’ रितु ने गहरी सांस छोड़ी.‘‘क्यों?’’‘‘मैं अपनी सारी पगार समीर को दे देती हूं. मेरे अकाउंट में मुश्किल से क्व2 हजार होंगे. अपने मम्मीपापा से मैं ने आर्थिक सहायता न लेने का प्रण कर रखा है, क्योंकि वे रुपए देते हुए मुझे बहुत शर्मिंदा करते हैं.’’‘‘तब सारा खर्चा कैसे करोगी?’’‘‘अगले महीने से अपनी पगार मैं अपने पास रखूंगी.’’‘‘पर तब तक तो समीर न जाने क्याकर बैठेगा.’’‘‘शायद कुछ न करे,’’ रितु ने उसे तसल्ली देने की कोशिश की, पर शिखा की चिंता कम नहीं हुई.

शिखा बहुत देर तक भुनभुनाते हुए कभी समीर को तो कभी रितु को भलाबुरा कहतीरही. उस की सारी बातें को रितु ने खामोश रह कर सुना.कुछ वक्त तो लगा, पर अपना बहुत सारा खून फूंकने के बाद आखिर में शिखा को यहबात समझ आ ही गई कि अगर फोटो लानेके लिए उसे रितु को फौरन लौटने के लिएराजी करना है, तो उसे अपनी ही जेब हलकी करनी पड़ेगी. अगले दिन शिखा ने क्व5 हजार दे कररितु की 3 महीने की जिम कीफीस भरी.

फिर बाजार से कपड़ों की खरीदारीमें क्व8 हजार खर्च किए. बाद में ब्यूटीपार्लर में क्व10 हजार ऐडवांस जमा कराते हुए शिखा रोंआसी हो उठी थी.‘‘धन्यवाद शिखा. मैं अभी यहीं से अपने घर लौट जाती हूं. कल तक वे फोटो तुम्हें कूरियर से मिल जाएंगे, यह मेरा वादा रहा,’’ कह रितु बहुत खुश नजर आ रही थी.‘‘मेरा काम जरूर कर देना, प्लीज,’’ परेशान नजर आ रही शिखा उसे मन ही मन खूब गालियां दे रही थी.‘‘चिंता न करो… मुझे भी तुम अपना शुभचिंतक समझे,’’ रितु ने उसे जबरदस्ती गले लगाया और फिर अपने घर चल दी.

रितु को पलपल दूर होता देख रही शिखा उस घड़ी को कोस रही थी जब उस ने समीर की विवाहित जिंदगी में अशांति पैदा करने के लिए रितु को रेस्तरां में बुलाया था. उसे क्व23 हजार की चपत तो लगी ही थी, पर जो बात उसे बहुत ज्यादा चुभ रही थी, वह यह एहसास था कि समीर और रितु ने मिल कर बड़ी चतुराई से उसे बुद्धू बनाया.

अंधविश्वास की दलदल: भाग 3- प्रतीक और मीरा के रिश्ते का क्या हुआ

मुझे कुछ बोलते नहीं बन रहा था. अभी हम एकदूसरे को ठीक से जानतेपहचानते भी नहीं और यह अपनी मां समान सास के बारे में कैसीकैसी बातें बोल रही है. इस के लिए आंटी ने मेरे सहित न जाने कितनी ही लड़कियों को ठुकरा दिया था.

नंदा फिर कहने लगी, ‘‘सच कहती हूं मीराजी, आप बड़ी किस्मत वाली हैं, जो आप की सास नहीं है, वरना मेरी सास तो मेरे लिए पनौती बन कर रह गई हैं. और ये मेरे पति, लगता है जैसे मैं इन के पल्ले जबरदस्ती बांध दी गई हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मेरे मुंह से निकल गया.

कहने लगी, अरे, देख रही हैं आप. कभी भी मुझे प्यार भरी नजरों से नहीं देखते. पता नहीं किस के खयालों में खोए रहते हैं?

‘‘तो क्या आज भी प्रतीक के दिल में मैं ही हूं? सोच कर मेरी आंखें नम हो गईं. किसी तरह नंदा से छिपा कर अपने आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘ऐसी बात नहीं हैं नंदाजी, मांबाप हों या सासससुर, सब हमारे अपने हैं और जैसे उन्होंने हमें पालापोसा, पढ़ायालिखाया, हमारे सुख को सब से ऊपर रखा, तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम अपने मांबाप को मानसम्मान दें, उन का सहारा बनें.’’ भले ही आंटी ने मेरे साथ जो भी किया पर मैं उन का अपमान कैसे सह सकती थी. लेकिन मेरी एक भी बात उसे अच्छी नहीं लगी. कहने लगी, ‘‘ठीक है जरा मैं आप का घर देख लेती हूं.’’

मैं उसे देख कर सोच में पड़ गई कि इतनी कड़वाहट भरी है इस के दिल में आंटी के लिए.

जातेजाते प्रतीक कहने लगा, ‘‘मीरा, खुश तो हो न अपनी जिंदगी में?’’

‘‘हां, बहुत खुश हूं, और तुम?’’ मेरे पूछने पर वह मेरा मुंह ताकने लगा, जैसे मुझ से ही पूछ रहा हो, क्या तुम्हें मैं खुश दिख रहा हूं? उस ने कुछ न बोला और अपनी नजरें नीची कर कहने लगा, ‘‘पापा नहीं रहे, मां भी शायद ज्यादा दिन न बच पाए. तुम्हें ठुकरा कर आज भी वे पश्चाताप की अग्नि में जल रही हैं. तुम्हारे बारे में बताया था उन्हें. मिलने को तड़प उठी. हो सके तो एक बार मां से मिल लेना,’’ कहतेकहते प्रतीक की आंखें भर आईं. मैं भी अपनी रुलाई कहां रोक पाई.

सोचने लगी, ‘‘आखिर ऐसा हुआ क्यों? क्यों अंधविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई कि आंटी को हमारा प्यार, हमारी खुशी नहीं दिखी.’’ उन्हें यहां से जातेजाते शाम के 5 बज गए थे. रात में खाना खा कर सब सो गए. पर मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी. प्रतीक का मुरझाया हुआ चेहरा, उस की उदासी भरी बातें मेरे मन को तड़पा गईं. स्मृति की सारी पपडि़यां एकएक कर मेरे आंखों के सामने खुलने लगीं…

हम पहली बार तब मिले थे जब प्रोबेशनरी औफिसर की ट्रैनिंग के लिए हम गुड़गांव गए थे.

बातोंबातों में ही जाना की हम एक ही शहर से हैं. ट्रैनिंग के 15 दिन कैसे बीत गए हमें पता ही नहीं चला. यह संयोग ही था कि हमारी पहली पोस्टिंग भी अपने शहर में ही मिल गई. अब तो हमारा मिलनाजुलना अकसर होने लगा. दोस्त तो पहले ही बन चुके थे लेकिन हमें एकदूसरे से प्यार हो गया, यह तब पता चला जब रातरात तक एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगे. एक दिन न मिल पाना भी हमे बेचैन कर जाता. हमारे प्यार पर हमारे घर वालों ने भी हरी झंडी दिखा दी. अब हम एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे थे और प्रतीक के मांपापा मुझे अपने घर का सदस्य समझने लगे थे.

प्रतीक के पापा ने तो यहां तक कहा था, ‘‘प्रतीक बेटा, तुम ने अपने वास्ते इतनी सुंदर और गुणी लड़की खुद ही ढूढ़ ली. ऐसी तो शायद हम न ढूंढ़ पाते.’’

ऐसा नहीं था कि मैं आंटी को पसंद नहीं थी पर कोई एक बात उन्हें परेशान कर रही थी. एक रोज मेरे पापा को बुला कर वे बोलीं, ‘‘भाई साहब, हो सके तो मीरा की जन्मकुंडली भेज दीजिएगा.’’

मेरे पापा आश्चर्य से बोले, ‘‘जन्मकुंडली? पर किस लिए? और हम तो इस कुंडली मिलान पर विश्वास ही नहीं करते. इसलिए कभी बनवाने की सोची भी नहीं. हां, पर जब मीरा बहुत छोटी थी तब इस की दादी ने इस की कुंडली बनवाई थी. पर अब पता नहीं कहां होगी.’’

फिर मेरे पापा हंस कर कहने लगे, ‘‘बहनजी, अब हमें ही देख लीजिए, हमारा कोई कुंडली मिलान नहीं हुआ फिर भी क्या मस्त जिंदगी कट रही है हमारी एकदूसरे के साथ.’’

प्रतीक की मां कहने लगीं, ‘‘सब तो ठीक है, लेकिन अपने बच्चों के भविष्य को ले कर थोड़ा सतर्क तो रहना पड़ता है और हरज ही क्या है जो कुंडली मिलान हो जाए तो? हो सके तो भेज दीजिएगा.’’

प्रतीक और उस के पापा इशारों से मना करते रहे पर प्रतीक की मां जिद पर अड़ गईं. अब दादी तो रही नहीं, फिर भी पापा ने कहा ‘‘ठीक है मैं कोशिश करूंगा.’’

प्रतीक की जिद पर हमारी सगाई तो हो गई पर शादी की डेट 6 महीने बाद की रखी गई. धीरेधीरे हम शादी की तैयारियों में जुट गए.

एक रोज प्रतीक के मांपापा ने मुझ से कहा कि मैं प्रतीक के साथ जा कर अपने लिए गहने पसंद कर लूं. हमें लगा अब उन्हें कुंडलियों के बारे में कुछ जानना नहीं है और हमारे रिश्ते से भी उन्हें कोई एतराज नहीं है.

उस रोज जल्दीजल्दी मैं ने अपने बाल संवारे और प्रतीक की पसंद की ड्रैस पहनी. न जाने कितनी बार खुद को आईने में देखा और बारबार घड़ी पर भी नजरें टिकाई थी. मुझे इस बात का खटका लग रहा था कि कहीं घड़ी ही तो अटक नहीं गई? कहीं ज्यादा देर तो नहीं हो गई? जब यह भरोसा भी टूट गया और बहुत देर बाद भी प्रतीक मेरे घर नहीं आया तो मैं ने ही फोन लगाया यह पूछने के लिए कि हमें गहने पसंद करने जाना था तो आए क्यों नहीं? पर प्रतीक तो फोन ही नहीं उठा रहा था. उस के घर के नंबर पर भी फोन लगाया. वहां भी कोई नहीं उठा रहा था. मुझे चिंता होने लगी. सोचा चल कर खुद ही देख आती हूं पर जैसे ही मैं प्रतीक के घर के अंदर जाने लगी, सब की बातें सुन मेरे पांव वहीं बाहर ही रुक गए.

हाईवे का प्रेम: शिवांगी ने कैसे सिंदूरा का पर्दाफाश किया

सिंदूरा शाह, बैंगलुरु शहर में रेस्तरां के बिजनैस में एक उभरता हुआ नाम था. वह एक महत्त्वाकांक्षी औरत थी और अन्य शहरों में भी रेस्तरां खोलना चाहती थी.

सिंदूरा एक बड़ी बिजनैस आइकोन बनना चाहती थी पर वह जानती थी कि मर्दों की बनाई इस दुनिया में मर्दों के बीच रह कर उन्हें पछाड़ना कितना कठिन है और इस के लिए सिर्फ मेहनत ही काफी नहीं है बल्कि उसे सफलता पाने के लिए उस के पास मौजूद हर चीज को इस्तेमाल करना आना चाहिए.

रेस्तरां के बिजनैस का गुर उसे अपने पिताजी से विरासत में मिला था, सिंदूरा ने उनके द्वारा दिए गए एकमात्र रेस्तरां को 2 और फिर 3 में तबदील किया था.सिंदूरा शाह 45 साल की अविवाहितमहिला थी. उस ने शादी क्यों नहीं करी इस का उत्तर कोई नहीं जानता सिवा सिंदूरा के.

शायदउसे उस के मन का कोई पुरुष मिला नहीं था.पर इस उम्र में भी सिंदूरा बहुत आकर्षक दिखती थी. उस की ताजगी और सुंदरता देख कर लोग हैरानी में पड़ जाते थे. गोरा रंग और गहरी काली आंखें तथा तीखी सी नाक.

अपने गोरे शरीर पर जब सिंदूरा स्लीवलैस ब्लाउज पहनती और साड़ी को नाभि प्रदर्शना ढंग से बांधती तो बहुत आकर्षक लगती.अपनी इस खूबसूरती को अपने व्यवसाय की प्रगति के लिए बखूबी इस्तेमाल करती थी सिंदूरा.

वह अगर साड़ी का पल्लू अपने कंधेपर सजाना जानती  तो उसे गिरा कर अपनेजिस्म को दिखा कर भरपूर फायदा भी उठाना जानती थी.सिंदूरा ठीक इसी रेस्तरां की तर्ज पर एक और रेस्तरां शहर से बाहर जाने वाले हाईवे पर खोलना चाहती थी और इस के लिए वह हाईवेपर जमीन खरीदने के लिए प्रयासरत थी पर हर बार उसे निराशा ही हाथ लगती थी क्योंकि इस एरिए का प्रौपर्टी डीलर शुभांग सिंह जमीन को बेचना नहीं चाहता था, सिंदूरा ने कई बार अपने आदमियों को शुभांग के पास भेजा पर कोईलाभ नहीं हुआ.

प्रौपर्टी डीलर जमीन के मुद्दे पर कोई बात नहीं करना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि मौके की जमीन को जितना देरमें बेचा जाए उतनी ही कीमत बढ़ने का अवसर रहता है.जब सिंदूरा को और कोई रास्ता नहीं सूझ तब उस ने शुभांग से डाइरैक्ट मिल कर बात करने की बात सोची और एक दिन शुभांग के औफिस पहुंच गई.

शुभांग सिंह एक 38 वर्षीय विवाहित और काफी आकर्षक व्यक्ति था जो अपने औफिस में अपनी रिवौल्विंग चेयर पर बैठा हुआ काम कर रहा था. उस की आंखों पर चश्मा लगा हुआ था और उस ने अपने कंधे तक के लंबे बालों को ऊपर की ओर कस कर एक जूडे़ की शक्ल में बांधा हुआ था.

जिस तरह से उस ने सिंदूरा को ऊपर से नीचे तक घूरा था उस से सिंदूरा समझ गई कि वह खूबसूरती का पारखी है और उस का काम आसान होने वाला है.औपचारिक परिचय के बाद दोनों के बीच काम की बातचीत शुरू हुई पर सिंदूरा को झटका तब लगा जब शुभांग ने सिंदूरा को हाईवे वाली जमीन को बेचने से साफ मना कर दिया. सिंदूरा ने दोगुनी कीमत देने को कहा पर फिर भी शुभांग सिंह राजी नहीं हुआ.

सिंदूरा ने बहुत कोशिश करी पर शुभांग सिंह टस से मस नहीं हुआ. सिंदूरा हार कर अपने औफिस आ गई. उस ने कौफी मंगवाई और कुरसी पर बैठ कर सोचने लगी कि कैसे शुभांग सिंह से हाईवे वाली जमीन ली जाए, काम कठिन था और शुभांग भी अडि़यल मालूम होता है, पर थोड़ा दिमाग लगाने के बाद ही सिंदूरा को एक आइडिया आ ही गया.

शुभांग सिंह सोशल मीडिया पर अपने बिजनैस से संबंधित जानकारी अपलोड करता रहता था. सिंदूरा ने उस की सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक और कमैंट करना शुरू कर दिया. उस के कमैंट्स तारीफ भरे और चुटकीलापन लिए होते थे.

इस के अलावा सिंदूरा ने शुभांग के व्हाट्सऐप नंबर पर गुड मौर्निंग और सुविचार जैसे मैसेज भी भेजने शुरू कर दिए जिन के बदले शुभांग सिंह भी कभीकभी रिप्लाई कर देता.एक रात शुभांग सिंह के मोबाइल पर सिंदूरा के नंबर से फोटोज की शक्ल में लगातार 3 मैसेज आए पर इस से पहले कि शुभांग उन्हें देख पाता, सिंदूरा ने वे मैसेज डिलीट कर दिए पर एक फोटो डिलीट न हो सका तो उस ने घबराए से स्वर में शुभांग को फोन किया कि उस के मोबाइल पर सिंदूरा की कुछ निजी तसवीरें फौरवर्ड हो गई हैं जिन में से 2 तो डिलीट हो गई हैं पर एक किसी तकनीकी दिक्कत के कारण डिलीट नहीं हो पा रही है इसलिए वह प्लीज उसे न देखे और बिना देखे ही डिलीट कर दे.

मगर बिना देखे तो कुछ डिलीट हो भी नहीं सकता और फिर मनुष्य का स्वभाव होता है कि जो काम उसे करने के लिए मना किया जाए उसे  वह अवश्य करता है. शुभांग सिंह भी कोई अपवाद नहीं था इसलिए उस ने फौरन अपने मोबाइल में सिंदूरा के भेजे गए मैसेज को देखा. उसे देख कर वह दंग रह गया. यह सिंदूरा की एक ऐसी तसवीर थी जिस में वह लाल रंग की बिकिनी पहने थी और उस का गोरा शरीर गजब ढा रहा था. शुभांग सिंह हुस्न का पारखी था.

वह कई लड़कियों के साथ हमबिस्तर हो चुका था इसलिए सिंदूरा की ऐसी तसवीर देख कर वह उस के जिस्म को चूमने के लिए उतावला हो गया और  सिंदूरा के साथ रात गुजारने का मौका ढूंढ़ने लगा.कुछ दिन और बीते. इस बीच सिंदूरा ने शुभांग को हाईवे वाली जमीन के लिए टटोला पर वह तस से टस नहीं हुआ. लेकिन आज शुभांग सिंह को वह मौका मिल ही गया जिस की उसे तलाश थी.

वे दोनों एक पार्टी में मिले और शुभांग सिंह ने पार्टी समाप्त होने के बाद सिंदूरा को अपनी बड़ी सी गाड़ी में लिफ्ट औफर करी जिसे सिंदूरा ने मुसकरा कर स्वीकार कर लिया और अपने ड्राइवर को आंख के इशारे से गाड़ी घर ले जाने को कह दिया.शुभांग सिंह और सिंदूरा दोनों शहर से बाहर बने शुभांग के फार्महाउस पर पहुचे. यह एक शानदार जगह थी.

चारों तरफ रातरानी के फूलों की महक फैली थी और रंगबिरंगी रोशनी से हरा लौन एक नए ही रंग में नजर आ रहा था. दूसरी तरफ पूल में भरा पानी और उस पानी पर तैरते हुए टिमटिमाते दीए अलग ही माहौल बना रहे थे. शुभांग और सिंदूरा बैडरूम में न जा कर वहीं लौन में फूस से बनी एक गोल झोंपड़ी में बैठ गए जहां पर महंगी शराब और गोश्त का इंतजाम पहले से ही था.

शुभांग ने गोश्त खाया और शराब भी पी जबकि सिंदूरा ने सिर्फ शराब पी और गोश्त खाने से परहेज किया.शराब पीते समय शुभांग सिंदूरा के भीगे हुए होंठों को चूम भी ले रहा था. धीरेधीरे सिंदूरा की आंखें नशीली हो गईं और शुभांग उस पर छाता चला गया. दोनों जोश में थे. शुभांग ने सिंदूरा के कपड़ों को उतारने में देर नहीं करी.

सिंदूरा ने पहले तो शरमाने का अभिनय किया पर बाद में वह खुद सहज हो गई. चालक सिंदूरा ने इस सारे दृश्य को अपने मोबाइल में कैद कर लिया ताकि शुभांग को ब्लैकमेल कर के हाईवे वाली जगह हासिल कर सके.आधे घंटे बाद कमरे में आया तूफान ठंडा पड़ चुका था.

सिंदूरा ने जीवन में पहली बार किसी पुरुष के साथ को जीया था. कितना अच्छा था यह क्षणभर का आनंद, पर जैसे ही इसे जीना चाहा यह छूटता सा गया और मन फिर दोबारा इसी क्षण की मांग करने लगा. इस समय सिंदूरा द बिजनैस वूमन कहीं खो गई थी और जो बिस्तर पर निढाल पड़ी थी वह एक औरत थी.सिंदूरा ने देखा कि शुभांग के लंबे बाल बिखरे हुए थे और उस की आंखें भी गहन तृप्ति के भाव से भरी हुई थीं.

यह ठीक वही पल था जब सिंदूरा के मन में शुभांग के प्रति प्रेम का अंकुर फूटा और उस ने कुछ सोचते हुए मोबाइल में शूट की गई क्लिप्स को एक मुसकराहट के साथ डिलीट कर दिया.‘‘अब मुझे घर जाना होगा नहीं तो बीवी घर से बाहर कर देगी,’’ शुभांग ने नाटकीयता दिखाते हुए कहा और कपड़े पहनने लगा. सिंदूरा मुसकरा कर रह गई.

अगली शाम सिंदूरा को फोन कर केशुभांग ने बताया कि उस की खूबसूरती और बिस्तर पर उस की परफौर्मैंस देख कर वह सिंदूरा को हाईवे वाली जगह उसे देने को तैयार है. अब वह रेस्तरां का अपना बिजनैस उस जगह पर कर सकती है.

सिंदूरा जगह मिल जाने से खुश थी. वह गर्व भी कर रही थी कि आज फिर उस की सुंदरता ने उस के बिजनैस में उस की मदद करी है.सिंदूरा ने अब तक शादी नहीं करी थी क्योंकि उसे उस का मनचाहा पुरुष नहीं मिला था और आज शुभांग के रूप में उसे एक ऐसा व्यक्ति मिला है जिस से वह सच में प्रेम करने लगी है पर उस से विवाह नहीं कर सकती क्योंकि शुभांग पहले से ही विवाहित है.

तो क्या हुआ? प्रेम एक तरफ है तो प्रेम का विवाह में बदल जाना दूसरी तरफ, वह शुभांग को प्रेम करती है और ऐसे ही प्रेम करती भी रहेगी.आज सिंदूरा का जन्मदिन था. शुभांग ने उस के घर पर एक बड़ा सा पीले फूलों का बुके भेजा और फिर शाम तक तो तमाम गिफ्ट्स भेजने का क्रम यों ही चलता रहा.

सच कहा जाए तो सिंदूरा को यह लड़कपन वाला प्यार जताने का तरीका बहुत अच्छा लग रहा था.वे दोनों शाम को एक होटल में मिले और एकदूसरे के साथ समय गुजारा. शुभांग ने सिंदूरा को यह भी बताया कि वह आज से 3 दिन बाद  काम के सिलसिले में थाईलैंड के लिए रवाना हो रहा है जहां पर कुछ दिन बिताएगा और उस ने सिंदूरा को भी साथ चलने का औफर दिया.

‘‘पर मैं सारा बिजनैस कैसे छोड़ कर जाऊं?’’ सिंदूरा ने असमर्थता दिखाते हुए कहा.मगर शुभांग ने उस की एक न चलने दी और उसे थाईलैंड चलने के लिए मना ही लिया. सिंदूरा फूले नहीं समा रही थी. किसी ने कितने अधिकार से उस से अपने साथ चलने को कहा.

वह कहा टाल न सकी और थाईलैंड जाने की तैयारी करने लगी. लगभग 4 हजार किलोमीटर का सफर तय कर के वे दोनों थाईलैंड के बैंकौक शहर पहुंच गए, दिन में आराम करने के बाद दोनों एक रेस्तरां में खाने पहुंचे. बैंकाक का मुख्य भोजन ‘पैड थाई नूडल्स’ है जिस में चिकन तथा अन्य मांस की अधिकता रहती है. वैसे भी बैंकौक में सिंदूरा ने नौनवैज स्ट्रीट फूड बहुत देखा था.

तभी उस के दिमाग में आइडिया आया कि क्यों न बैंकाक में एक शाकाहारी रेस्तरां खोला जाए जो भारतीयों और शाकाहारी लोगों को बहुत आकर्षित करेगा.सिंदूरा थाई नूडल्स का मजा लेतेलेते इस आइडिया के बारे में और विचार करने लगी.

इस बीच शुभांग फोन पर अपनी पत्नी से बात कररहा था.ऐसा लगता था कि उस की पत्नी शुभांग के बारे में कुछ ज्यादा ही चिंतित हो रही थी. शुभांग ने उसे समझयाबुझाया और फिर वह भी नूडल्स खाने में व्यस्त हो गया.खाने के बाद दोनों शौपिंग करने के लिए ‘एशियाटिक द रिवरफ्रंट’ नाम के विशाल मौल में गए, यह काफी बड़ा मौल है जिस में पचासों बुटीक और रेस्तरां हैं. सिंदूरा ने इतनी चकाचौंध और विविधताओं से भरा हुआ मौल पहले कभी नहीं देखा था.

यहां दोनों ने अपनी फुट मसाज कराई और स्पा भी लिया तथा जम कर शौपिंग भी करी. रात हो चली थी. दोनों थक कर चूर हो गए थे. इसलिए अपने होटल के कमरे में चले आए. सिंदूरा ने कमरे में आ कर मौल से खरीदी हुई नाइटी पहनी जिस के अंदर उस का गोरा बदन और भी मादक लगने लगा.शुभांग और सिंदूरा कमरे में अकेले थे.

दोनों के दिल एकदूसरे को देख कर धड़क उठे और दोनों ने एकदूसरे को आगोश में भर लिया. शुभांग के हाथ सिंदूरा के चिकने बदन पर फिसल रहे थे. दोनों एकदूसरे में डूब जाना चाहते थे पर जैसे ही शुभांग ने सिंदूरा के शरीर में प्रवेश करना चाहा, वह कराह उठा.

उसे दर्द हो रहा था. वह दर्द किडनी वाली जगह पर था. शुभांग परेशान हो गया और दर्द के मारे सिंदूरा से अलग हो गया और बिस्तर पर करवट बदलते हुए बेहोश हो गया. सिंदूरा ने तुरंत रूम सर्विस को कौल कर के मैडिकल सुविधा प्रदान करने की गुहार लगाई.

होटल मैनेजमैंट ने तुरंत ऐक्शन लिया और होटल में ही मौजूद एक डाक्टर को बुलाया जिस ने तुरंत शुभांग को अस्पताल के लिए रैफर किया और वह खुद भी साथ में अस्पताल गया.डाक्टरों ने शुभांग के खून के ढेर सारेटैस्ट किए और उस के यूरिन को भी जांचा.

जब रिपोर्ट आने पर उन्होंने सिंदूरा को बताया कि रिपोर्ट गंभीर है और शुभांग की किडनिया जवाब दे चुकी हैं. सिंदूरा बिलख पड़ी. जीवन के इतने वर्ष के बाद उसे किसी मनचाहे पुरुष का साथ मिला था, भले ही वह एक विवाहित पुरुष था पर सिंदूरा ने उसे प्रेम किया था, सच्चा प्रेम और आज जब वह अपने प्रेमी के साथ समय बिताने विदेश आई तब शुभांग की किडनियां खराब हो गईं और वह मौत के मुंह में जा रहा है.

तो क्या शुभांग उस का साथ छोड़ जाएगा? डाक्टर को शुभांग की जान बचाने के लिए एक किडनी की तलाश थी पर इतनी जल्दी किडनी की व्यवस्था अस्पताल में नहीं थी और डोनर मिलने में पता नहीं कितना समय लगता.‘‘तो आप मेरी किडनी ले लीजिए.

मैं शुभांग को किडनी डोनेट करने के लिए तैयार हूं.’’ ‘‘देखिए, आप अच्छी तरह से सोच लीजिए. यदि आप अपने पति को किडनी देना ही चाहती हैं तो हम आप के शरीर की कुछ जांच करने के बाद ही बता पाएंगे कि आप की किडनी शुभांग के लायक है भी या नहीं,’’ डाक्टरों ने कहा. डाक्टरों के मुंह से शुभांग को उस के पति के रूप में बुलाया जाना सिंदूरा को बहुत अच्छा लगा था.सिंदूरा की भावनाएं प्रबल होती जा रही थीं. वह किसी भी हालत में शुभांग को नहीं खोना चाहती थी.

उस ने झट से अपने सारे टैस्ट करा लिए. सारी रिपोर्ट्स नौर्मल आईं. डाक्टर ने उसे यह भी बताया कि उस की किडनी शुभांग को सूट कर जाएगी और वे आराम से उस की किडनी ट्रांसप्लांट कर सकते हैं. एक सुकून की सांस ली थी सिंदूरा ने.

किडनी सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट हो गई थी और आज 1 हफ्ता हो गया था और किडनी शुभांग के शरीर में सही तरीके से काम भी कर रही थी. सिंदूरा और शुभांग दोनों एक ही कमरे में पास के बैड पर थे.

सिंदूरा की हालत में तेजी से सुधार आ रहा था जबकि शुभांग को अभी भी काफी देखरेख की आवश्यकता थी. तभी नर्स ने आ कर बताया कि भारत से कोई महिला शुभांग सिंह से मिलना चाहती है.भारत से आई महिला का नाम सुन कर दोनों चौंक गए थे. आखिर वह कौन हो सकता है? जब वह महिला सामने लाई गई तो और कोई नहीं बल्कि शुभांग की पतनी रूही थी.

अपनी पत्नी को थाईलैंड में देख कर शुभांग बुरी तरह चौंक गया.‘‘रूही तुम यहां कैसे?’’ पर रूही ने जवाब देने की बजाय सवालों की ?ाड़ी लगा दी, ‘‘तुम्हें क्या हो गया? अगर तुम्हें कुछ समस्या थी तो तुम ने अपनी पत्नी को बताने की भी जरूरत नहीं समझ… एक फोन तो कर सकते थे? शुभांग मैं तुम्हारी पत्नी हूं, कोई गैर नहीं.’’

उस की व्यग्रता और प्रेम समझते हुएशुभांग मुसकरा उठा और बदले में उस ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मेरी किडनी में भयंकर दर्द हुआ और मैं बेहोश हो गया. फिर क्या हुआ मुझे कुछ नहीं पता. उस के बाद जब मेरी आंख खुली तब मेरा औपरेशन हो चुका था और मुझे एक नई किडनी लगा दी गई थी,’’ शुभांग ने मुसकराते हुए उत्तर दिया. ‘‘पर तुम अचानक इतनी दूर यहां कैसे आईं?’’ रूही थोड़ा नौर्मल हुई तो उस ने बताया कि जब कई दिनों तक शुभांग का नंबर घंटीबजने के बाद भी नहीं उठा तब रूही ने शुभांग द्वारा चैकइन करने के समय भेजी गई होटलकी लोकेशन के अनुसार होटल के रिसैप्शनसे शुभांग सिंह का नाम पूछ कर जानकारीहासिल करी.

उन्होंने बताया कि इस नाम के मरीजकी हालत अचानक बिगड़ गई थी जिस के पश्चात उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया है और वे किडनी की समस्या से जूझ रहे हैं. इतनी खबर पाते ही रूही वहां से थाईलैंड के लिए निकल पड़ी.‘‘पर अचानक तुम्हारे लिए किडनी की व्यवस्था कैसी हुई? आई मीन किस ने डोनेट की?’’ रूही ने पूछा.पहले तो शुभांग ने सबकुछ छिपाना चाहा पर शायद अब उस की गुंजाइश नहीं बची थी. अत: उस ने बताया कि वह और सिंदूरा एकसाथ काम करते हैं और वह सिंदूरा के ही साथ थाईलैंड आया था और दोनों एक ही होटल में रुके थे.

तभी यह हादसा हुआ. सिंदूरा ने मुझे अपनी किडनी डोनेट कर के मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है.‘‘आगे मुझे कुछ जानने की जरूरत नहीं है. होटल के रिकौर्ड में सिंदूरा का नाम तुम ने अपनी पत्नी के नाम पर दर्ज कराया है,’’ रूही के स्वर में एक दर्द और कसैलापन था.

शुभांग कुछ न बोल सका. अब बारीसिंदूरा के बोलने की थी. बोली, ‘‘मैं क्या करती मैं इस उम्र में आ कर तुम्हारे पति से प्रेम करबैठी और जब मैं ने दिल दे ही दिया तो भला किडनी दे कर जान बचाने में क्यों चूंकती? हां, हम थोड़ी देर के लिए बहक जरूर गए थे, पर यकीन मानो मेरा शुभांग के प्रति प्रेम एकदम निस्वार्थ है.’’ रूही अजीब स्थिति में थी.

एक तरफ तो उसे सिंदूरा में अपनी सौतन नजर आ रही थी, एक ऐसी औरत जिस ने उस के पति के साथ बिस्तर पर रात बिताई है और दूसरी तरफ सिंदूरा में उस के पति की जान बचाने वाली औरत भी दिख रही थी जिस ने अपनी किडनी देने का निर्णय कर के उस के सुहाग की रक्षा करी है. बेचैनी रूही के मन में थी तो सिंदूरा के मन में भी और इस बेचैनी को खत्म करने का जिम्मा रूही ने ही उठाया.

बोली, ‘‘मैं तुम्हारी बहुत शुक्रगुजार हूं जो तुम ने मेरे पति की जान बचाई और मेरे लिए यह स्थिति भी बहुत विचित्र है कि तुम शुभांग से प्रेम करती हो, पर वे मेरा पति हैं.

मैं उन्हें तुम्हारे साथ किसी हालत में नहीं बांट सकती और मैं तुम्हारे और शुभांग के प्रेम को भी परवान चढ़ने नहीं देना चाहती, पर तुम ने मेरे पति की जान बचाई है इसलिए तुम उन के साथ एक हैल्दी रिलेशन रख सकती हो और वह रिलेशन है दोस्ती का. तुम मेरे पति की अच्छी दोस्त बन कर रह सकती हो.

उन से जब चाहे मिल सकती हो और मिलने घर भी आ सकती हो,’’ कह कर रूही ने सिंदूरा का हाथ अपने हाथों में ले लिया.सिंदूरा की आंखें नम हो चली थीं. रूही के चेहरे पर तनाव और मुसकराहट का मेलजोल दिख रहा था.शुभांग यह सब देख और सुन कर चकित हो रहा था.

उस के सामने 2 स्त्रियां थीं जिन में एक उस की पत्नी थी और दूसरी वह महिला थी जिस ने उस से प्रेम किया था.आज शुभांग अपनेआप को एक हाईवेपर खड़ा हुआ पा रहा था जहां चारों ओर कोई ट्रैफिक नहीं था, कोई शोर भी नहीं था बल्किप्रेम ही प्रेम था, रिश्तों का अजबगजब प्रेम,हाईवे का प्रेम.

चालू बहू के सासू मंत्र

इस दुनिया में सास से इतना डरने की क्या जरूरत है? आखिरकार वे भी तो कभी बहू थीं और बहू को भी देरसवेर सास तो बनना ही है. लेकिन ससुराल में अपना वर्चस्व कायम करना है तो सास को पटाना जरूरी है. इस के लिए घर की इस लाइफलाइन को सही ढंग से पकड़ना है, उस के हर उतारचढ़ाव पर नजर रखनी है और उस पर कितना दबाव डालना है इस का भी सहीसही अनुमान लगाना है. पेश हैं सास को पटाने के लिए आजमाए हुए कुछ नुसखे, जो एक बहू की जिंदगी को खुशियों से भर देंगे.

नुसखा नं. 1: आप सही कहती हैं सासू मौम. इस अद्वितीय मंत्र का जाप आप दिन में 10-15 बार करो. वे अगर दिन को रात कहें तो रात कहो. पर ध्यान रखो कि सास भी कभी बहू थी.

नुसखा नं. 2: चाणक्य नीति. सास का

मूड देख कर बात करो. अगर उन का मूड अच्छा है तो माने जाने की संभावना से अपने मन की बात कही जा सकती है. अगर वे मना कर दें तो तुरंत पलट जाओ, हां मम्मीजी, मैं भी यही सोच रही थी.

नुसखा नं. 3: भोली सूरत चालाक मूरत. सब से पहले इस में आप को करना यह है कि अपनेआप को ऐसा दिखाना है कि जैसे आप को कुछ आता ही नहीं है. सहीगलत की समझ ही नहीं है. एकदम भोंदू हैं आप. ऐसे लोगों को सिखाने में सिखाने वालों को बड़ा मजा आता है. यह तो सीखने वाला ही जानता है कि उस ने कितने घाट का पानी पिया है. सास अगर घर की प्रधानमंत्री हैं तो रहने दो. आप बस प्रैसिडैंट वाली कुरसी पर नजर रखो. इस बात को एक उदाहरण से समझे:

द्य सुबह जल्दी उठने के बजाय अपने टाइम पर उठो और जल्दीजल्दी पल्लू संभालते हुए सासू मौम के पास जा कर ऐसे दिखाओ कि आप तो जल्दी उठना चाहती थीं पर… आप का दिल आप का साथ नहीं देता, बस दगा ही देता है.

‘देखो मां अलार्म ही नहीं बजा, मोबाइल की बैटरी भी आज ही डाउन होनी थी,’ इस वाक्य को अच्छे से कंठस्थ कर लो, क्योंकि यह बहुत काम आएगा. सास को भला आजकल का स्मार्ट फोन चलाना कहां आता है. एक हफ्ता ऐसे ही बहाने बना लो और जरूरत पड़े तो नैट पर बहाने सर्च कर लो. एक हफ्ते बाद देखना सास टोकना बंद कर देंगी. फिर बहू का मोबाइल चार्जिंग के लिए लगाना शुरू कर देंगी.

नुसखा नं. 4: बारीक निरीक्षण. इस में आप को देखना है कि किस कैटेगरी की सास आप को मिली हैं, धार्मिक या मौडर्न.

धार्मिक हैं तो थोड़ी मुस्तैदी दिखा कर 2-4 भजन याद कर लो. गूगल है न आप की मदद के लिए. आप को कोई संगीत अवार्ड थोड़े ही जीतना है. आप को तो बस अपनी सास के दिल में जगह बनानी है. फिर क्या? उन की कीर्तन मंडली में थोड़ी नानुकर कर के अपनी आवाज का जादू बिखेरो. फिर देखो लोग कैसे आप की वाहवाही करते हैं. बहू के ऐसा करने पर सास का सीना तो गर्व से फूल जाता है. वे वारीवारी जाती हैं अपनी बहू पर. पर आप को इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है. हाथ जोड़ कर ‘कहां मैं, कहां सासूमां’ वाली चाणक्य नीति अपनाए रखनी है.

नुसखा नं. 5: तारीफ पर तारीफ. बस यही एक अच्छी बहू की निशानी है. उसे सास की दबी इच्छाओं को नए सिरे से उभारना है. वे जो भी बनाएं जैसा भी बनाएं उन की पाक कला पर उंगली उठाने की कोशिश नहीं करनी है. वरना बतौर इनाम आप को ही रसोई में पिसना पड़ेगा.

नुसखा नं. 6: अपनी तारीफ को कभी सीरियसली न लें. आप के बनाए खाने की चाहे कितनी भी तारीफ हो उसे नजरअंदाज ही करें. वरना घर को एक परमानैंट कुक मिल जाएगा और घर के सभी सदस्य उस की तारीफ कर के उस शैफ बहू को रसोई में अपनी फरमाइशों में ही उल?ाए रखेंगे.

आप को जबतब ‘मम्मीजी आप के खाने का जवाब नहीं. काश, मैं ऐसा खाना बना पाती,’ सिर्फ कहना है करना नहीं है. ‘आप तो मेरी मम्मी से भी ज्यादा अच्छा खाना बनाती हैं,’ आप के यह कहने पर तो आप की सास फूल कर कुप्पा हो जाएंगी और आप को रसोई से छुट्टी मिल जाएगी. ऐसा होने पर अकसर होता यही है कि सास का बस चले तो बहू को खिलाखिला कर ही मार डाले.

नुसखा नं. 7: स्मार्ट बनें. इस में आप को अपने ज्ञान को कदमकदम पर इस्तेमाल करना है. सारे ब्यूटी ट्रीटमैंट सास पर आजमाने हैं. कहीं जाने से पहले उन का फेशियल कर दें. उन्हें अच्छे से तैयार कर दें. सुंदर सा जूड़ा बना दें. इन सब कामों में तो हर बहू परफैक्ट होती ही है.

नुसखा नं. 8: खर्चा करें. सास को बहू का उन पर खर्चा करना अच्छा लगता है. इसलिए मौकों पर अगर बहू सास को उपहार दे तो सास तो बहू पर वारीवारी जाएगी.

नुसखा नं. 9: वाचाल बनो. वक्त देख कर सही बात करने का हुनर विकसित करो. औफिस में काम करती हो तो आराम से दोस्तों के साथ तफरीह कर के आओ और घर में घुसते ही ऐसे दिखाओ जैसे औफिस से घर पहुंच कर पता नहीं कितनी बड़ी जंग जीत ली या कोई किला फतह कर लिया.

रोनी सूरत और भोली मूरत दर्शाते हुए, इस से पहले कि कोई आप पर चढ़े आप शुरू हो जाएं, ‘‘हाय राम आज फिर देर हो गई. सौरी मम्मीजी ये ट्रैफिक भी न… कोई साइड ही नहीं देता. अगर वह गाड़ी वाला थोड़ा रुक जाता तो क्या हो जाता उस का… आदिआदि.’’

नुसखा नं. 10: गुरुघंटाल बनो. यानी बातें ज्यादा काम कम. एक बात को बारबार दोहराओगे तो वह भी सही लगने लगेगी. कुछ भी पकाओ तो पहले ही बोलना शुरू कर दो, ‘‘मुझे पता है कि आज खाना स्वादिष्ठ नहीं बना है. मम्मीजी (सास) तो बहुत टेस्टी खाना बनाती हैं. मैं जाने कब सीख पाऊंगी? शायद इस जनम में तो नहीं.’’

चेहरे पर ऐसे भाव लाओ कि सब की दयादृष्टि आप की झोली में ही गिरे. सास तो अपनी तारीफ सुन कर फूल कर कुप्पा हो जाएंगी और कहेंगी, ‘‘बेटा, मैं तुझे सिखाऊंगी.’’

बस यह मौका हाथ से नहीं जाने देना है. खुशीखुशी उन की विद्यार्थी बन जाओ. रसोई में जा कर बस थोड़ा हाथ हिला दो और तारीफ खूब बटोर लो. अगर पति खाने में कोई कमी निकालें तो साफ मुकर जाओ यह बोल कर कि मम्मी ने बनाया है. अब बेचारे पति अपनी मां से थोड़े ही कुछ कहेंगे.

आप में से कई लोग सोचेंगे कि क्या ये नुसखे काम आएंगे? जी हां शतप्रतिशत काम आएंगे. यह बात और है कि सब बहुओं की किस्मत इतनी अच्छी नहीं होती कि उन्हें गाइड करने वाला मिल जाए.

अंत में गुरु मंत्र: विपक्षी पार्टी को कमजोर समझने की भूल नहीं करनी है. अगर आप की चालाकी पकड़ी जाए तो दांत दिखा कर हंसते

हुए कहना है, ‘‘मम्मीजी मैं तो मजाक कर रही थी. मेरा वह मतलब नहीं था, जो आप सम?ा रही हैं. पर देखो आप ने मेरी चोरी पकड़ ली. आप महान हैं. आप ने तो सीआईडी वालों को भी पीछे छोड़ दिया आदिआदि. बस तारीफ पर तारीफ.’’

डरने की क्या बात है सास से? ये नुसखे जान कर कोई बहू नहीं डरती अपनी सास से. बस इतनी सी गुजारिश है बहुओं आप से कि इन्हें अपनी सासों से छिपा कर रखना वरना… वरना कुछ भी हो सकता है.

दो बूंद आंसू: सुनीता ने अंजान की मदद क्यों की

‘कुमारी सुनीता, आप की पूरी फीस जमा है. आप को फीस जमा करने की आवश्यकता नहीं है,’’ बुकिंग क्लर्क अपना रेकौर्ड चैक कर के बोला.‘‘मगर मेरी फीस किस ने जमा कराई है. वह भी पूरे 50 हजार रुपए,’’ सुनीता हैरानी से पूछ रही थी.

‘‘मैडम, आप की फीस औनलाइन जमा की गई है,’’ क्लर्क का संक्षिप्त सा उत्तर था.वह हैरानपरेशान कालेज से वापस लौट आई. उस की मां बेटी का परेशान चेहरा देख कर पूछ बैठी, ‘‘क्या बात है बेटी?’’

‘‘मां, किसी व्यक्ति ने मेरी पूरी फीस जमा करा दी है,’’ वह हैरानी से बोली.‘‘किस ने और क्यों जमा कराई?’’ सुनीता की मां भी परेशान हो उठी. ‘‘पता नहीं मां, कौन है और बदले में हम से क्या चाहता है?’’ बेटी की परेशानी इन शब्दों में टपक रही थी.

उस की मां सोच में पड़ गई. आजकल मांगने के बाद भी मुश्किल से 5-10 हजार रुपए कोई देता है वह भी लाख एहसान जताने के बाद. इधर ऐसा कौन है जिस ने बिना मांगे 50 हजार रुपए जमा करा दिए. आखिर, बदले में उस की शर्त क्या है?‘‘खैर, जाने दो जो भी होगा दोचार दिनों में खुद सामने आ जाएगा,’’ मां ने बात को समाप्त करते कहा.दोनों मांबेटी खाना खा कर लेट गईं.

सुनीता की मां एक प्राइवेट हौस्पिटल में 4 हजार रुपए मासिक पर दाई की नौकरी करती है. आज से 15 साल पहले एक रेल ऐक्सिडैंट में वह पति को खो चुकी थीं. तब सुनीता मुश्किल से 5-6 साल की रही होगी. तब से आज तक दोनों एकदूसरे का सहारा बन जी रही हैं.

सुनीता को पढ़ाना उस का एक फर्ज है. बेटी बीए कर रही थी.सुनीता ने अपने पिता को इतनी कम उम्र में देखा था कि उसे उन का चेहरा तक ठीक से याद नहीं है. कोई नातेरिश्तेदार इन से मिलने नहीं आता था. ऐसे में यह कौन है जो उस की फीस भर गया?दोनों मांबेटी की आंखों में यह प्रश्न तैर रहा था.

पिता के नाम के स्थान पर दिवंगत रामनारायण मिश्रा लिखा था मगर वे कौन थे और कैसे थे, इस की चर्चा घर में कभी नहीं होती थी.

मगर आज…सुनीता के चाचा, मामा, मौसा या किसी दूसरे रिश्तेदार ने आज तक कभी एक रुपए की मदद नहीं की, ऐसी स्थिति में इतनी बड़ी रकम की मदद किस ने की.

बहरहाल, सुनीता उत्साह के साथ पढ़ाई में जुट गई. दोचार वर्षों में वह बैंक, रेलवे या कहीं भी नौकरी कर के घर की गरीबी दूर कर देगी. वह मां को इस तरह खटने  नहीं  देगी. मां ने विधवा की जिंदगी में काफी कष्ट झेला है.

सुनीता उस दिन अचकचा गई जब उस के प्राचार्य  ने उसे एक खत दिया. और कहा, ‘‘बेटी, आप के नाम यह पत्र एक सज्जन छोड़ गए हैं, आप चाहें तो इस पते पर उन से संपर्क कर सकती हैं या फोन पर बात कर सकती हैं.’’‘‘जी, धन्यवाद सर,’’ कह कर वह उन के कैबिन से बाहर आ गई और सीधा घर जा कर खत पढ़ा. उस में लिखा था, ‘‘बेटी, आप की फीस मैं ने भरी है, बदले में मुझे तुम से कुछ भी नहीं चाहिए, न ही तुम्हें यह पैसा लौटाना है.’’

नीचे उन के हस्ताक्षर और मोबाइल नंबर था.सुनीता की मां ने जब वह नंबर डायल किया तो तुरंत जवाब मिला, ‘‘जी, आप सुनीता या उस की मां?’’‘‘मैं उस की मां बोल रही हूं. आप ने मेरी बेटी की फीस क्यों भरी?’’‘‘जी, इसलिए कि मुझे इन के पिता का कर्ज चुकाना था.’’ वह संक्षिप्त उत्तर दे कर चुप हो गया.‘‘ऐसा कीजिए आप मेरे घर आ जाइए.‘‘‘‘ठीक है, रविवार को दोपहर 1 बजे मैं आप के घर आऊंगा,’’ कह कर उस व्यक्ति ने फोन काट दिया.

रविवार को वह समय पर हाजिर हो गया. करीब 28-30 वर्ष का वह नौजवान आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था. वह बाइक से आया और सुनीता की मां को मिठाई का डब्बा दे कर नमस्कार किया.सुनीता ने भी उसे नमस्कार किया और पास में बैठते हुए अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘मैं ने फोन पर बताया तो था कि आप का ऋण चुकता किया है,’’ वह सरल स्वर में बोला था.‘‘कैसा ऋण? दोनों मांबेटी चौंकी थीं.‘‘ऐसा है कि रामनारायणजी ने मेरे पिताजी की 3 हजार रुपए की मदद की थी. उस के बाद मेरे पिताजी जब तक वह पैसा लौटाते तब तक रामनारायणजी गुजर चुके थे.

परिवार का कोई ठिकाना नहीं था. मेरे पिताजी ने आप लोगों को बहुत ढूंढ़ा पर खोज नहीं पाए,’’ वह स्पष्ट स्वर में जवाब दे रहा था, मैं पढ़लिख कर नौकरी में आ गया और स्टेट बैंक की उसी शाखा में आ गया जहां आप लोगों का खाता है.

साथ ही, वहीं सुनीता के कालेज का भी खाता है. मुझे यहीं आप का परिचय और आप की माली हालत का पता चला. मैं ने आप की मदद का निश्चय किया और फीस भर दी.’’‘‘मगर आप अपनेआप को छिपा कर क्यों रखना चाहते थे,’’ यह सुनीता का प्रश्न था.‘‘वह इसलिए कि मुझे बदले में कुछ भी नहीं चाहिए था और जमाने को देखते हुए मुझे चलना था.’’

‘‘फिर सामने क्यों आए?’’ यह सुनीता की मां का प्रश्न था.‘‘जब आप लोगों को परेशान देखा, खास कर आप का यह डर की पता नहीं इस आदमी की छिपी शर्त क्या है? मैं ने आप का ऋण चुकाया था, डराना मेरा पेशा नहीं है. सो, सामने आ गया.’’

अब उस के इस जवाब से वे दोनों मांबेटी, आश्चर्य से भर उठीं.‘‘मैं अब निकलना चाहूंगा. आप लोग चिंता न करें. मैं ने अपने पिताजी का ऋण चुकाया है,’’ वह उठते ही बोला.‘‘ऐसे कैसे? वह भी 3 हजार के 50 हजार रुपए?’’ अभी भी सुनीता की मां समझ नहीं पा रही थी.‘‘3 हजार रुपए नहीं, उन 3 हजार रुपए से मेरे पिता ने मेरी जान बचाई, मेरा इलाज कराया.

मैं जीवित हूं, तभी आज बैंक में काम कर रहा हूं. गरीबी की हालत में मेरे पिताजी की रामनारायणजी ने मदद की थी. आज मेरे पास सबकुछ है, बस, पिताजी नहीं हैं,’’ वह भावुक हो कर बोल रहा था.‘‘फिर तुम यह पैसा वापस क्यों नहीं लेना चाहते?’’ यह सुनीता की मां का प्रश्न था.‘‘उपकार के बदले प्रत्युपकार हो गया. सो कैसा पैसा?’’ वह स्पष्ट बोला.‘‘फिर भी…’’ सुनीता की मां समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे?‘‘कुछ नहीं आंटीजी, आप ज्यादा न सोचें. अब मुझे इजाजत दें,’’ इतना कह कर वह चल दिया.

दोनों मांबेटी उसे जाता देख रही थीं. इन की आंखों से खुशी के आंसू झर रहे थे.‘‘मां, आज भी ऐसे लोग हैं,’’ सुनीता बोली.‘‘हां, तभी तो वह हमारी मदद कर गया.’’‘‘मैं नौकरी कर के उन का पैसा वापस कर दूंगी,’’ वह भावुक हो कर बोली.‘‘बेटी, ऐसे लोग बस देना जानते हैं, लेना नहीं. सो, फीस की बात भूल जाओ. हां, बैंक में मेरा परिचय हो गया है, काम जल्दी हो जाएगा,’’ मां के बोल दुनियादारी भरे थे.

दोनों मांबेटी की आंखों में आंसू थे जो एक ही वक्त में 2 अलग सोच पैदा कर रहे थे. मां जहां पति को याद कर रो रही थी जिन के दम पर आज 50 हजार रुपए की मदद मिली, वहीं बेटी को यह व्यक्ति फरिश्ता नजर आ रहा था. काश, वह भी किसी की मदद कर पाती. 50 हजार रुपए कम नहीं होते.अब बस, दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे.

 

अंधविश्वास की दलदल: भाग 2- प्रतीक और मीरा के रिश्ते का क्या हुआ

हमारे पिछले रिलेशन के बारे में कुछ न बता कर, हम ने एकदूसरे का परिचय सब के सामने रखा. वरुण, प्रतीक से हाथ मिलाते हुए बातें करने लगे और मैं प्रतीक की पत्नी नंदा से बातें करने लगी. थोड़ी देर में ही पता चल गया कि वह कितनी तेजतरार्र औरत है. बस अपनी ही हांके जा रही थी और बीचबीच में मेरे हाथों में डायमंड जड़ी चूडि़यां भी निहारे जा रही थी.

कुछ देर बाद जैसे ही हम चलने को हुए, अपनी आदत के अनुसार वरुण कहने लगे, ‘‘अब ऐसे सिर्फ हायहैलो से काम नहीं चलेगा. परसों क्रिसमस की छुट्टी है. आप सब हमारे घर खाने पर आमंत्रित हैं.’’ प्रतीक के न करने पर वरुण ने उस की एक न सुनी. मुझे वरुण पर गुस्सा भी आ रहा था. क्या जरूरत थी तुरंत किसी को अपने घर बुलाने की? प्रतीक मुझे देखने लगा, क्योंकि मुझे पता था वह भी मेरे घर नहीं आना चाह रहा होगा. पर वरुण को कौन समझाए. मजबूरन मुझे भी कहना पड़ा, ‘‘आओ न बैठ कर बातें करेंगे.’’

याद करना तो दूर, अब प्रतीक कभी भूलेबिसरे भी मेरे खयालों में नहीं आता था. पर आज अचानक उसे देख जाने मेरे मन को क्या हो गया. वरुण ने अपने फोन नंबर के साथ घर का पता भी प्रतीक को मैसेज कर दिया.

रास्ते भर मैं प्रतीक और उस की फैमिली के बारे में सोचती रही. मां ने ही तो बताया था मुझे. मेरे बाद प्रतीक के लिए कितने रिश्ते आए और कुंडली न मिलने के कारण लौट गए. हां, यह भी बताया था मां ने कि प्रतीक की जिस लड़की से शादी तय हुई है उस से प्रतीक के 28 गुणों का मिलान हुआ है. लेकिन प्रतीक और उस की पत्नी को देख कर लग नहीं रहा था कि दोनों के एक भी गुण मिल रहे हों. खैर, मुझे क्या. माना हमारा रिश्ता न हो पाया पर वरुण जैसा इतना प्यार करने वाला पति तो पाया न मैं ने.

घर आ कर हम ने थोड़ी बहुत इधरउधर

की बातें की और सो गए. सुबह उठ कर बच्चों को स्कूल भेज कर हमेशा की तरह हम जौगिंग पर निकल गए. वरुण बातें करते रहे और मैं उन की बातों पर सिर्फ हांहूं करती रही. मेरे मन में बारबार यही सवाल उठ रहे थे कि जन्मपत्री मिलान के बावजूद प्रतीक खुश था अपनी पत्नी के साथ? क्या सच में दोनों का मन मिल रहा था? चाय पीते हुए भी बस वही सब बातें चल रही थी मेरे दिमाग में. वरुण ने टोका भी कि क्या सोच रही हो, पर मैं ने अपना सिर हिला कर इशारों में कहा, ‘‘कुछ नहीं.’’ वरुण को औफिस भेज कर मैं भी अपने बैंक के लिए निकल गई.

रात में खाना खाते वक्त वरुण कहने लगे, ‘‘मीरा, कल मुझे औफिस जाना पड़ेगा. जरूरी मीटिंग है और हो सकता है लेट आऊं. मेरी तरफ से प्रतीक और उस के परिवार को सौरी बोल देना.’’

मुझे वरुण पर बहुत गुस्सा आया. मुझे गुस्सा होते देख कहने लगे, ‘‘सौरी… सौरी… अब इतना गुस्से से भी मत देखो. क्या बच्चे की जान लोगी?’’ और बच्चों के सामने ही मेरे गालों को चूमने लगे. वरुण की यह आदत भी मुझे नहीं पसंद थी. वे बच्चों के सामने ही रोमांस शुरू कर देते और बच्चे भी ‘हो… हो… पापा’ कह कर मजे लेने लगे.

दूसरे दिन वरुण अपने औफिस के लिए निकल गए और थोड़ी देर बाद बच्चे भी यह कह कर घर से निकल गए कि उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिल कर फिल्म जाने का प्रोग्राम बनाया है. अब मैं क्या करूंगी? सोचा चलो खाने की तैयारी ही कर लेती हूं क्योंकि अकेली हूं तो खाना बनाने में वक्त भी लगेगा और घर को भी व्यवस्थित करना था, तो लग गई अपने कामों में.

दोपहर के करीब 1 बजे वे लोग हमारे घर आ गए. मैं ने उन्हें बैठाया और पहले सब को जूस सर्व किया. फिर कुछ सूखा नाश्ता टेबल पर लगा दिया. प्रतीक ने वरुण और बच्चों के बारे में पूछा तो मैं ने उसे बताया, ‘‘उन्हें किसी जरूरी मीटिंग में जाना था इसलिए… लेकिन सामने वरुण को देख कर मुझे आश्चर्य हुआ, ‘‘वरुण, आप तो…?’’

‘‘हां, मीटिंग कैंसिल हो गई और अच्छा ही हुआ. बोलो कोई काम बाकी है?’’ वरुण ने कहा.

‘‘नहीं सब तैयार है,’’ मैं ने कहा.

खानापीना समाप्त होने के बाद हम बाहर लौन में ही कुरसी लगा कर बैठ गए. हम बातें कर रहे थे और बच्चे वहीं लौन में खेल रहे थे. लेकिन मेरा ध्यान प्रतीक के बेटे पर चला जाता जो कभी झूला झूलता तो कभी झूले को ही झुलाने लगता. उस की प्यारी शरारतों पर मैं मंदमंद मुसकरा रही थी. फिर मुझ से रहा नहीं गया तो मैं उस के पास जा कर उस से बातें करने लगी, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ मैं ने पूछा तो उस ने तुतलाते हुए कहा, ‘‘अंछ है मेला नाम.’’

‘‘अंश, अरे वाह, बहुत ही सुंदर नाम है तुम्हारा तो.’’ उस की तोतली बातों पर मुझे हंसी आ गई. लेकिन अचानक से जब मेरी नजर प्रतीक पर पड़ी तो मैं सकपका गई. पता नहीं कब से वह मुझे देखे जा रहा था. मुझे लगा शायद वह मुझ से बहुत कुछ कहना चाह रहा था, कुछ बताना चाह रहा था, लेकिन अपने मन में ही दबाए हुए था.

‘‘ठीक है अब चलते हैं,’’ कह कर प्रतीक उठ खड़ा हुआ पर वरुण ने यह कह कर उन्हें रोक लिया कि एकएक कप चाय हो जाए. जिसे प्रतीक ठुकरा नहीं पाया. मैं चाय बनाने जा ही रही थी कि नंदा भी मेरे पीछेपीछे आ गई और कहने लगी, ‘‘हमारे आने से ज्यादा काम बढ़ गया न आप का?’’

‘‘अरे ऐसी बात नहीं नंदाजी. अच्छा अपने बारे में कुछ…?’’ अभी मैं बोल ही रही थी कि मेरी बात बीच में काटते हुए कहने लगी, ‘‘मैं अपने बारे में क्या बताऊं मीराजी, मेरा तो मानना है आप जैसी नौकरी करने वाली औरतें ज्यादा खुश रहती हैं, वरना हम जैसी गृहिणी तो बस काम और परिवार में पिसती रह जाती हैं. अब हमें ही देख लीजिए, दिन भर बस घर और बच्चों के पीछे पागल रहती हूं. ऊपर से मेरी सास, कुछ भी कर लो उन्हें मुझ से शिकायत ही लगी रहती है. कुछ तो काम है नहीं, बस दिन भर बकबक करती रहती हैं. अरे, मैं ने तो प्रतीक से कितनी बार कहा जा कर इन्हें गांव छोड़ आइए, आखिर हमारी भी तो जिंदगी है कब तक ढोते चलेंगे इस माताजी को पर नहीं, इन्हें मेरी बात सुननी ही कहा है.’’

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