किटी पार्टी: राधिका ने क्या जवाब दिया

पौश कालोनी का एक इलाका. उस में मिसेज खुशबू की एक दोमंजिला आलीशान कोठी. उस में नीचे वह स्वयं रहती हैं और ऊपर के पोर्शन को अपनी सामाजिक गतिविधियों और मेहमानों के लिए खाली रखती हैं. उन की एक ‘महिला सत्संग’ नाम की संस्था है. उसी के तहत वह महिलाओं की किटी पार्टी करती हैं. अगर यह कहा जाए कि ‘महिला सत्संग’ का मतलब किटी पार्टी ही है, तो गलत न होगा.

किटी पार्टी में शामिल होने वाली महिलाएं हालांकि आती तो संभ्रांत परिवारों से हैं, पर असल में वे बैठीठाली महिलाएं हैं, जिन के पति या तो हैं नहीं या फिर वे बाहर रहते हैं और अकसर वे महिलाएं अकेली रहती हैं.

मिसेज खुशबू भी अकेली रहती हैं. लेकिन उन के बारे में चर्चा यह है कि उन के पति का देहांत हो चुका है, और वह इस शहर में एक प्रतिष्ठित मिशन स्कूल में टीचर रह चुकी हैं. नौकरी से मुक्त होने के बाद वह अपने मूल शहर वापस नहीं गईं, और इसी शहर में अपनी कोठी बना कर बस गईं.

शाम के 6 बजे थे. मिसेज खुशबू ने चाय के लिए अपनी मेड को आवाज दी. उसी समय दरवाजे की बेल बजी. मिसेज खुशबू ने बाहर का गेट खोला, देखा, एक खूबसूरत स्त्री हाथ में बेग लिए खड़ी है. उन्होंने नीचे से ऊपर तक इस स्त्री पर नजर डाली, टौप और नीली जींस में, आंखों पर काला चश्मा लगाए एक गौर वर्ण की खूबसूरत युवती खड़ी है. मिसेज खुशबू ने मुसकरा कर हेलो किया, फिर पूछा, ‘जी, बताइए?’

‘मैं राधिका हूं. क्या मैं आप से मिल सकती हूं?’

‘ओ… यस, कम… कम,’ और मिसेज खुशबू राधिका को अंदर ड्राइंगरूम में ले गईं.

मेड को आवाज दे कर पानी लाने और एक कप चाय और बना कर लाने के लिए कहा.

चाय पर बातचीत शुरू हुई. मिसेज खुशबू ने पूछा, ‘हां तो बताइए, आप क्या बात करना चाहती थीं?’

‘दरअसल मैम, मैं आप के क्लब की मेंबर बनना चाहती हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘ओह, नाइस. क्या करती हैं आप?’

‘जी मेम, मैं भी टीचर हूं.’

‘मैं भी का क्या मतलब…? कोई और भी है?’

‘जी, आप भी टीचर थीं ना?’

‘ओह,’ मिसेज खुशबू मुसकराईं.

‘कहां पढ़ाती हैं आप?’

‘जी, गवर्नमेंट गर्ल्स कालेज में.’

‘क्यों मेंबर बनना चाहती हैं?’

राधिका ने विनम्रता से कहा, ‘क्या है कि मैम, कुछ मेलजोल बढ़ेगा, विचारों के आदानप्रदान से लाभ होगा, और समय भी कटेगा.’

मिसेज खुशबू ने कागजी कार्यवाही पूरी कर के राधिका को ‘महिला सत्संग’ का सदस्य बना लिया. फिर कहा, ‘वैसे तो हर महीने के दूसरे और आखिरी वीकेंड पर हमारी सभा होती है. लेकिन कभीकभी खास सभाएं होती हैं, तो फोन से सब को सूचित कर दिया जाता है.’

कोई एक हफ्ते बाद राधिका के फोन पर मिसेज खुशबू का मैसेज आया, ‘इसी संडे को कुछ नए सदस्यों का परिचय कराने के लिए पार्टी रखी गई है. आप शाम 6 बजे आइएगा.’

राधिका ने मैसेज पढ़ा और ओके लिख कर रिप्लाई सेंड कर दिया.

उस दिन राधिका ने सारे जरूरी काम शाम 5 बजे से पहले ही निबटा लिए. वह ठीक शाम के 6 बजे मिसेज खुशबू की कोठी पर पहुंच गई.

पार्टी ऊपर के कमरे में थी. राधिका ने प्रवेश किया तो देखा कि कई महिलाएं सोफे पर विराजमान थीं. वह उन में से किसी को नहीं जानती थी. उस ने सभी उपस्थित महिलाओं को सिर झुका कर हाथ जोड़ कर नमस्कार कहा और एक खाली सोफे पर बैठ गई. कुछ देर में संस्था की बाकी सदस्य भी आ गईं. सब से अंत में आईं, मिसेज खुशबू. उन्होंने पार्टी की कुछ औपचारिक कार्यवाही के बाद नए सदस्यों का परिचय कराना शुरू किया, ‘ये मिस कल्पना हैं. आकाशवाणी में ये अनाउंसर थीं. अब सोशल वर्कर हैं. ये मिसेज नीलम सिंह हैं, फ्रीलांसर हैं. ये मिसेज मधु हैं, इन का खुद का गारमेंट बिजनेस है और सिलाईकढ़ाई का केंद्र भी चलाती हैं. ये हैं हमारी संस्था की सब से महत्वपूर्ण मेंबर सविता भटनागर, स्त्री मामलों की विशेषज्ञ और मशहूर वकील. फिर वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोलीं, ‘और ये हैं ब्यूटीफुल लेडी राधिका, जो गवर्नमेंट कालेज में अंगरेजी पढ़ाती हैं और खुले विचारों की हैं.’

‘खुले विचारों से मतलब…?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

राधिका ही बोल पड़ी, ‘प्रगतिशील और वैज्ञानिक भी.’

‘तो क्या हम प्रगतिशील नहीं हैं?’ स्वाति मिश्रा ने सवाल किया.

‘जरूर हो सकती हो. क्यों नहीं हो सकती?’ राधिका ने जवाब दिया.

इस के बाद मनीषा त्रिपाठी ने सभी सदस्यों को रामनवमी की अग्रिम बधाई दी. राधिका ने पूछा, ‘अगर कोई रामनवमी न मनाता हो तो…?’

‘क्या आप रामनवमी नहीं मनाती हैं?’ स्वाति ने पूछा.

‘नहीं, मैं क्यों रामनवमी मनाऊं?’ राधिका ने जवाब दिया.

‘क्या आप हिंदू नहीं हैं?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

‘जरूर हिंदू हूं, पर मैं अंधविश्वासी नहीं हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘इस में अंधविश्वास कहां से आ गया? राम कल के दिन पैदा हुए थे,’ मनीषा ने बताया.

राधिका ने शांत हो कर कहा, ‘देखिए, बुरा न मानिए. पहले तो राम ऐतिहासिक नहीं हैं, जैसे बुद्ध हैं, महावीर हैं. दूसरी बात यह कि जो जन्म लेता है, वह भगवान कैसे हुआ? वह तो मनुष्य ही हुआ.’

‘हां, वह मनुष्य रूप में अवतार थे विष्णु के,’ मनीषा ने बताया.

‘उन्हें मनुष्य रूप में अवतार लेने की जरूरत क्यों पड़ी?’

‘रावण और राक्षसों का वध करने के लिए उन्हें अवतार लेना पड़ा था.’

‘रावण और राक्षस लोग विष्णु का क्या नुकसान कर रहे थे, जो उन को मारने के लिए उन्हें धरती पर आना पड़ा?’

‘आप को इतना भी नहीं पता,’ स्वाति ने कहा, ‘रावण और राक्षस लोग ब्राह्मणों के शत्रु थे, उन्हें सताते थे और मार कर खा जाते थे.’

‘ओह, तो इस का मतलब यह हुआ कि राम का अवतार ब्राह्मणों की रक्षा के लिए हुआ था, मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए नहीं. जैसे बुद्ध ने संपूर्ण मानवता को करुणा, मैत्री और अहिंसा का संदेश दिया था.’

फिर राधिका ने आगे कहा, ‘ये राम ब्राह्मणों के भगवान थे, फिर तो आप ने ठीक ही उन की पूजा की.’

मिसेज खुशबू ने देखा, मनीषा और स्वाति के चेहरों पर विषाद की रेखाएं उभर आई थीं. वातावरण में तनाव पैदा हो गया था. उन्होंने तनाव को हलका करने के लिए मधु को गजल सुनाने को कहा, पर तनाव के बीच ही मनीषा और स्वाति पार्टी से उठ कर चली गईं.

‘वादविवाद तो किटी पार्टी का हिस्सा है. इस से गुस्सा हो कर जाना तो ठीक नहीं,’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘किटी पार्टी का मतलब सिर्फ पीनाखाना ही नहीं है, वरन इस का उद्देश्य हर तरह के विषयों पर तार्किक बहस चलाना भी है. यहां आज तक ऐसे विषयों पर कभी बहस ही नहीं हुई. सिर्फ खानापीना और घरगृहस्थी की निजी बातें ही ज्यादा हुई हैं.

‘आज पहली बार राधिका के आने से किटी पार्टी में विमर्श की शुरुआत हुई है. और पहली बार मुझे पता चला कि यह कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आया.’

‘लेकिन मैम, मैं ने तो ऐसा कुछ कहा ही नहीं, जिस से वे नाराज हो कर चली गईं?’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘इट्स ओके.’

इस के बाद पार्टी समाप्त हो गई.

दूसरे दिन मिसेज खुशबू के घर की घंटी फिर बजी. मिसेज खुशबू ने दरवाजा खोला, तो सामने स्वाति मिश्रा को देख कर चौंकी.

‘ओह स्वाति आप? कैसे आना हुआ?’ मिसेज खुशबू ने पूछा.

‘मेम, मुझे कुछ बात करनी है आप से,’ स्वाति ने कहा.

‘ओह, कम… कम,’ मिसेज खुशबू उन्हें घर में ले गईं. ड्राइंगरूम में बैठा कर पूछा, ‘हां बताओ, क्या बात करनी है?’

‘मेम, आप जानती हैं, ये राधिका कौन है?’ स्वाति ने पूछा.

‘ओह, राधिका. वह हमारे ‘महिला सत्संग’ की नई सदस्य बनी हैं. लेकिन तुम इतना परेशान क्यों लग रही हो?’

‘मेम, वह कोटे वाली है,’ स्वाति ने कहा.

‘वाट…? कोठेवाली…? क्या कह रही हो? तुम होश में तो हो? वह टीचर है गवर्नमेंट स्कूल में. कोठेवाली कैसे हो सकती है?’ मिसेज खुशबू ने आश्चर्य के साथ पूछा.

‘सौरी मेम, कोठेवाली नहीं, कोटे वाली.’

‘मतलब…?’

‘मतलब, वह दलित जाति से है. डा. अंबेडकर को मानने वाली है. इसीलिए तो वह राम को नहीं मानती.’

‘तो क्या हुआ? हमारी संस्था यह सब नहीं मानती. हम न तो किसी की जाति पूछते हैं और न ही लिखवाते हैं. आप ने हमारी संस्था के फार्म में जाति का कालम देखा है क्या?’ मिसेज खुशबू ने कठोरता से कहा.

स्वाति ने परेशान हो कर कहा, ‘लेकिन मेम, हम उस के साथ सहज नहीं रह पाएंगे.’

‘क्यों…?’

‘इसलिए कि हम ब्राह्मण हैं… और वह अछूत.’

‘यह क्या ब्राह्मणअछूत लगा रखी है? कौन सी दुनिया में जी रही हो तुम स्वाति ?’ मिसेज खुशबू ने थोड़ा कठोर हो कर कहा.

‘लेकिन, तुम कैसे कह सकती हो, तुम ब्राह्मण हो?’ खुशबू ने पूछा.

स्वाति एकदम चौंक गई. फिर बोली, ‘आप ऐसा कैसे कह रही हैं?’

‘क्यों नहीं कहूं? आप एक सुंदर और सुशिक्षित महिला को अपनी नफरत के काबिल समझती हैं कि वह दलित है? और आप अपने को सम्मान के काबिल समझती हैं कि आप ब्राह्मण हैं? किधर से आप ब्राह्मण हैं और किधर से राधिका दलित है?’ खुशबू ने थोड़ा नाराज हो कर कहा.

स्वाति को इस तरह के सवाल की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी. वह यही समझती थी कि समाज में ब्राह्मण ही सब से ऊंचा वर्ग है और दलित सब से नीचा. उसे अपने घरपरिवार में इसी तरह के भेदभाव वाले संस्कार मिले थे. एक नीच स्त्री की इतनी हैसियत नहीं कि वह किटी पार्टी में धर्म पर बहस करे और मिसेज खुशबू हैं कि ब्राह्मण और दलित में कोई भेद ही नहीं कर रही हैं. कहीं मिसेज खुशबू भी तो दलित नहीं हैं? उस के मन में संदेह पैदा हुआ. उस ने सोचा कि क्यों न संदेह मिटा लिया जाए. अत: स्वाति ने पूछा, ‘मैम, आप किस जाति की हैं?’

मिसेज खुशबू जरा भी विचलित नहीं हुईं. शुरू में वह ऐसे सवालों से जरूर परेशान होती थीं, लेकिन अब नहीं होतीं. उन्हें समझ में आ गया था कि अगर समाज को बदलना है, तो जाति के बंधन से मुक्त होना जरूरी है. इसलिए उन्होंने स्वाति से ही पूछ लिया, ‘आप ही बताओ, मेरी जाति क्या हो सकती है? मैं पेड़ हूं? पक्षी हूं? पशु हूं या मनुष्य हूं?’

‘औफ कोर्स मैम, आप मनुष्य हैं,’ स्वाति ने जवाब दिया.

‘फिर आप जाति क्यों पूछ रही हैं? जातियां तो पशुपक्षियों में होती हैं.’

‘मैम, जातियां मनुष्यों में भी होती हैं.’

खुशबू ने कहा, ‘मुझे तो मनुष्यों में जातियां नहीं दिखाई देतीं. अगर आप को लगता है कि जातियां होती हैं, तो अलगअलग जातियों की कुछ फिजिकली पहचान भी जरूर होनी चाहिए. यह क्या पहचान है, जरा हमें भी बताइए कि किस चीज से कोई ब्राह्मण होता है, और कोई दलित?’

स्वाति इस सवाल से परेशान सी हो गई थी, पर उस ने अपनी परेशानी को छिपाते हुए पूछा, ‘क्या पहचान…? मैं समझी नहीं.’

खुशबू ने दोहराया, ‘मेरे कहने का मतलब यह है कि आप के पास ब्राह्मण होने की क्या पहचान है, जो राधिका के पास नहीं है. और राधिका के पास दलित होने की क्या पहचान है, जो आप के पास नहीं है?’

स्वाति मौन हो गई. खुशबू ने समझाने के लहजे में फिर कहा, ‘क्या स्वाति, आप का और राधिका का रंग अलगअलग है?’

स्वाति ने कहा, ‘नहीं.’

खुशबू ने फिर कहा, ‘तब क्या शरीर की बनावट अलगअलग है? आप की नाक कहीं और जगह लगी है, और राधिका की कहीं और जगह?’

स्वाति ने जवाब दिया, ‘नहीं.’

खुशबू पूछने लगी, ‘तब क्या आप के और राधिका के हाथपैरों की बनावट में कोई अंतर है यानी आप के हाथपैर बड़े हों और राधिका के छोटे?’

स्वाति सहमते हुए बोली, ‘नहीं मैम, ऐसा कुछ नहीं है. सब बराबर हैं.’

खुशबू ने अपनी बात फिर दोहराई, ‘फिर क्या पहचान है…? आप अपने ब्राह्मण होने की कुछ तो पहचान बताइए.’

स्वाति मौन.

खुशबू ने कहा, ‘अच्छा अपनी पहचान नहीं बताना चाहती, तो मत बताओ. पर, कम से कम आप राधिका के ही दलित होने की पहचान बता दीजिए कि आप ने कैसे पहचाना कि वह दलित है?’

स्वाति के पास कोई जवाब नहीं था, पर वह मिसेज खुशबू की कोई भी दलील मानने को तैयार नहीं थी. अगर मानती तो उसे अपनी उच्चता की भावना छोड़नी पड़ती, जिस का मिथ्या दंभ उस की नसनस में भरा हुआ था. उसे वह छोड़ना नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने मिसेज खुशबू से कहा, ‘मैम, मैं अब आप के महिला मंडल में नहीं रहना चाहूंगी. मुझे इजाजत दीजिए, मैं चलती हूं, अपना इस्तीफा भिजवा दूंगी.’

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘आप ने सही फैसला किया है. आप जैसी जातिवादी और मनुष्य विरोधी अशिक्षित महिला की मेरे ‘महिला सत्संग’ में जरूरत भी नहीं है. और केवल मेरे ‘महिला सत्संग’ को ही नहीं, आप किसी भी संस्था, समाज के लिए अवांछित तत्व हैं.’

पारिवारिक सुगंध – भाग 3 : परिवार का महत्व

अब उसे दिल का दौरा पड़ गया था. शराब, सिगरेट, मानसिक तनाव व बेटेबहू के साथ मनमुटाव के चलते ऐसा हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

उसे अपने व्यवहार व मानसिकता को बदलना चाहिए, कुछ ऐसा ही समझाने के लिए मैं अगले दिन दोपहर के वक्त उस से मिलने पहुंचा था.

उस दिन चोपड़ा मुझे थकाटूटा सा नजर आया, ‘‘यार अशोक, मुझे अपनी जिंदगी बेकार सी लगने लगी है. आज किसी चीज की कमी नहीं है मेरे पास, फिर भी जीने का उत्साह क्यों नहीं महसूस करता हूं मैं अपने अंदर?’’

उस का बोलने का अंदाज ऐसा था मानो मुझ से सहानुभूति प्राप्त करने का इच्छुक हो.

‘‘इस का कारण जानना चाहता है तो मेरी बात ध्यान से सुन, दोस्त. तेरी दौलत सुखसुविधाएं तो पैदा कर सकती है, पर उस से अकेलापन दूर नहीं हो सकता.

‘‘अपनों के साथ प्रेमपूर्वक रहने से अकेलापन दूर होता है, यार. अपने बहूबेटे के साथ प्रेमपूर्ण संबंध कायम कर लेगा तो जीने का उत्साह जरूर लौट आएगा. यही तेरी उदासी और अकेलेपन का टौनिक है,’’ मैं ने भावुक हो कर उसे समझाया.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘दिलों पर लगे कुछ जख्म आसानी से नहीं भरते हैं, डाक्टर. शिखा के साथ मेरे संबंध शुरू से ही बिगड़ गए. अपने बेटे की आंखों में झांकता हूं तो वहां अपने लिए आदर या प्यार नजर नहीं आता. अपने किए की माफी मांगने को मेरा मन तैयार नहीं. हम बापबेटे में से कोई झुकने को तैयार नहीं तो संबंध सुधरेंगे कैसे?’’

उस रात उस के इस सवाल का जवाब मुझे सूझ गया था. वह समाधान मेरी पत्नी को भी पसंद आया था.

सप्ताह भर बाद चोपड़ा को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली तो मैं उसे अपने घर ले आया. सविता भाभी भी साथ में थीं.

‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी हफ्ते भर बाद है. मेरे साथ रह कर हमारा मार्गदर्शन कर, यार,’’ ऐसी इच्छा जाहिर कर मैं उसे अपने घर लाया था.

‘‘अरे, अपने बेटे की शादी का मेरे पास कोई अनुभव होता तो मार्गदर्शन करने वाली बात समझ में आती. अपने घर में दम घुटेगा, यह सोच कर शादीब्याह वाले घर में चल रहा हूं,’’ उस का निराश, उदास सा स्वर मेरे दिल को चीरता चला गया था.

नवीन और शिखा रोज ही हमारे घर आते. मेरी सलाह पर शिखा अपने ससुर के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करने लगी. वह उन्हें खाना खिलाती. उन के कमरे की साफसफाई कर देती. दवा देने की जिम्मेदारी भी उसी को दे दी गई थी.

चोपड़ा मुंह से तो कुछ नहीं कहता, पर अपनी बहू की ऐसी देखभाल से वह खुश था लेकिन नवीन और उस के बीच खिंचाव बरकरार रहा. दोनों औपचारिक बातों के अलावा कोई अन्य बात कर ही नहीं पाते थे.

शादी के दिन तक चोपड़ा का स्वास्थ्य काफी सुधर गया था. चेहरे पर चिंता, नाराजगी व बीमारी के बजाय खुशी और मुसकराहट के भाव झलकते.

वह बरात में भी शामिल हुआ. मेरे समधी ने उस के आराम के लिए अलग से एक कमरे में इंतजाम कर दिया था. फेरों के वक्त वह पंडाल में फिर आ गया था.

हम दोनों की नजरें जब भी मिलतीं, तो एक उदास सी मुसकान चोपड़ा के चेहरे पर उभर आती. मैं उस के मनोभावों को समझ रहा था. अपने बेटे की शादी को इन सब रीतिरिवाजों के साथ न कर पाने का अफसोस उस का दिल इस वक्त जरूर महसूस कर रहा होगा.

बहू को विदा करा कर जब हम चले, तब चोपड़ा और मैं साथसाथ अगली कार में बैठे हुए थे. सविता भाभी, मेरी पत्नी, शिखा और नवीन पहले ही चले गए थे नई बहू का स्वागत करने के लिए.

हमारी कार जब चोपड़ा की कोठी के सामने रुकी तो वह बहुत जोर से चौंका था.

सारी कोठी रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी में जगमगा रही थी. जब चोपड़ा मेरी तरफ घूमा तो उस की आंखों में एक सवाल साफ चमक रहा था, ‘यह सब क्या है, डाक्टर?’

मैं ने उस का हाथ थाम कर उस के अनबुझे सवाल का जवाब मुसकराते हुए दिया, ‘‘तेरी कोठी में भी एक नई बहू का स्वागत होना चाहिए. अब उतर कर अपनी बहू का स्वागत कर और आशीर्वाद दे. रोनेधोने का काम हम दोनों यार बाद में अकेले में कर लेंगे.’’

चोपड़ा की आंखों में सचमुच आंसू झलक रहे थे. वह भरे गले से इतना ही कह सका, ‘‘डाक्टर, बहू को यहां ला कर तू ने मुझे हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया… थैंक यू… थैंक यू वेरी मच, मेरे भाई.’’

चोपड़ा में अचानक नई जान पड़ गई थी. उसे अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने का मौका जो मिल गया था. बडे़ उत्साह से उस ने सारी काररवाई में हिस्सा लिया.

विवेक और नई दुलहन को आशीर्वाद देने के बाद अचानक ही चोपड़ा ने नवीन और शिखा को भी एक साथ अपनी छाती से लगाया और फिर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख कर रो पड़ा था.

ऐसे भावुक अवसर पर हर किसी की आंखों से आंसू बह निकले और इन के साथ हर तरह की शिकायतें, नाराजगी, दुख, तनाव और मनमुटाव का कूड़ा बह गया.

‘‘तू ने सच कहा था डाक्टर कि रिश्तों के रंगबिरंगे फूल ही जिंदगी में हंसीखुशी और सुखशांति की सुगंध पैदा करते हैं, न कि रंगीन हीरों की जगमगाहट. आज मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे एकसाथ 2 बहुओं का ससुर बनने का सुअवसर मिला है. थैंक यू, भाई,’’ चोपड़ा ने हाथ फैलाए तो मैं आगे बढ़ कर उस के गले लग गया.

मेरे दोस्त के इस हृदय परिवर्तन का वहां उपस्थित हर व्यक्ति ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

छुटकारा – भाग 3 : नीरज को क्या पता था

‘‘अब यह टौपिक बदल भी लो, यार,’’ चिकन खा रही संगीता को खाने के आनंद में पड़ रहा खलल अच्छा नहीं लगा रहा था.‘‘मैं बहुत परेशान हूं और मु झे इतना गुस्सा आ रहा है… इतना गुस्सा आ रहा है कि…’’उसे टोकते हुए संगीता ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘तुम अनुराधा से इतने ही दुखी और परेशान हो, तो उसे तलाक क्यों नहीं दे देते हो?’’‘‘तलाक?’’

नीरज चौंक पड़ा.‘‘हां, तलाक. हम दोनों तलाकशुदा प्रेमी फिर शादी कर के साथ रहेंगे, डार्लिंग. सोचना शुरू करोगे तो मेरा सु झाव तुम्हें जरूर पसंद आएगा, स्वीटहार्ट.’’‘‘रोहित बीच में न होता, तो मैं जरूर अनुराधा को तलाक दे देता. मैं उसे तो अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं.’’‘‘अपनी इस जान की खुशियों व मन की सुखशांति की तरफ भी ध्यान दो, जानेमन. तुम्हें सम झना चाहिए कि अपनी पत्नी की बातें हर समय कर के तुम माहौल बिगाड़ डालते हो,’’

संगीता ने शिकायत करी.‘‘यार, मैं तुम से अपने दिल की बातें नहीं करूंगा, तो किस से करूंगा?’’ नीरज भी चिड़ उठा.‘‘तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार भरी बातें भी मौजूद हैं न?’’‘‘मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं, डार्लिंग.’’‘‘तब मेरे सामने उन्हीं बातों को जबान पर लाया करो, प्लीज.’’‘‘ओके… ओके,’’ अपने गुस्से को नियंत्रण में रखने की कोशिश करता हुआ

नीरज फिर चुप हो कर खाना खाने लगा. बाद में संगीता के फ्लैट में पहुंचने के बाद दोनों ने प्यार का खेल खेला जरूर, लेकिन इस बार उस में जोश व उत्साह की कमी दोनों को ही महसूस हुई. विदा लेते समय नीरज का आंतरिक तनाव बेचैनी अपनी जगह बने हुए थे, जबकि संगीता के मन में नाराजगी व असंतोष के भाव और ज्यादा गहरा गए थे.महीने के दूसरे हफ्ते में नीरज के सिर पर मंडराता आर्थिक संकट और गहरा गया.अनुराधा की ममेरी बहन की शादी का कार्ड आ गया. करीब 2 हफ्ते बाद होने वाली शादी में शामिल होने के लिए अनुराधा सप्ताह भर के लिए अपने मामा के घर जान चाहती थी. शादी की तैयारी करने के लिए उस ने 30 हजार रुपयों की मांग नीरज के सामने रख दी.

‘‘नीरज, तुम्हारा ऐसा चिड़चिड़ा रूप मैं ने पहले कभी नहीं देखा है,’’ संगीता ने चिढ़ कर शिकायत करी.‘‘मु झे भी पहले कभी एहसास नहीं हुआ था कि मेरे प्रति तुम्हारा प्यार मेरे पर्स में भरे नोटों की संख्या से जुड़ा हुआ है.’’‘‘नीरज, अपनी पत्नी की नौकरी चले जाने से तुम बौखला गए हो… पागल हो गए हो.’’‘‘उस ने नौकरी भी तुम्हारे कारण छोड़ी है.’’‘‘मेरे कारण क्यों?’’ संगीता ने चिढ़ कर पूछा.‘‘कारण साफ नहीं है क्या? मैं लाख इनकार करूं, पर वह हमारे प्रेम संबंध को पहचानती है.

यह किस स्त्री को अच्छा लगेगा कि कमा कर वह लाए और उस का पति उस की कमाई की मदद से अपनी प्रेमिका के साथ गुलछर्रे उड़ाए.’’‘‘तब बंद कर दो, मेरे साथ गुलछर्रे उड़ाना,’’ संगीता चिल्ला पड़ी.‘‘तो क्या तुम मेरे साथ संबंध तोड़ने को तैयार हो?’’ नीरज ने चौंक कर आहत भाव से पूछा.‘‘मैं नहीं, बल्कि तुम यह रिश्ता तोड़ना चाहते हो क्योंकि तुम्हें अनुराधा या मु झ से नहीं बल्कि सिर्फ रुपयों से प्यार है. तुम जैसे लालची इंसान रुपयों के कारण कोई भी रिश्ता जोड़ सकते हैं और तोड़ भी.’’‘‘शटअप,’’ संगीता की चुभती बात नीरज के दिल को जख्मी कर गई.

‘‘तुम कुछ भी कहो, वह ठीक है और जब मैं सच्ची बात मुंह से निकालूं तो ‘शटअप’ चिल्लाओ तुम. वाह.’’नीरज ने उसे कुछ पलों तक गुस्से से घूरा. पर संगीता उस के गुस्से से न डरी थी, न घबराई. उस के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि उस का मूड बगावती हो चुका है.‘‘मैं जा रहा हूं,’’ नीरज  झटके से उठ खड़ा हुआ. संगीता खामोश रही. नीरज का दिमाग बुरी तरह से भन्ना उठा. अचानक उसे यह एहसास हुआ कि आज तक संगीता उस के साथ प्यार का नाटक खेल कर उसे उल्लू बनाती रही. उस के तमतमाए चेहरे ने एक परदा साउस के दिलोदिमाग पर से उठाया और संगीता के प्रति बना उस के मन का आकर्षण व लगाव अभी से गया.‘‘मु झे 1 गिलास पानी पिला सकोगी,

’’ नीरज की नाराजगी उस की आवाज से  झलकरही थी.‘‘श्योर,’’ संगीता उठ कर रसोई की तरफ चल पड़ी.उसके कमरे से बाहर जाते ही नीरज ने उसे गिफ्ट दिए फोन का डब्बा उठा कर फुरती से खोला और फोन जेब रख लिया. फिर फोन को बंद करतेकरते वह मुख्यद्वार की तरफ बढ़ गया.नीरज ने धीमे से कुंडी खोली और बाहर निकल आया. नए फोन को जेब में रखते हुए उस ने अजीब सा संतोष महसूस किया. उसे लगा कि चालाक व लालची संगीता से गिफ्ट वापस ले कर उस ने उसे सही मजा चखा दिया.इस से पहले कि वह लालची और चालाक औरत मु झ से संबंध तोड़ती,

मैं ही उस से दूर हो गया. यह महंगा फोन अपनी अनु को दूंगा तो वह कितनी खुश हो जाएगी. नौकरी फिर से शुरूकरने के लिए उसे राजी करने में भी इस गिफ्ट को दे कर मु झे सहायता मिलेगी. एक लालची औरत के नकली प्रेम की खातिर अपने घर की खुशहाली को दांव पर लगाने की मूर्खता मैं आगे कभी नहीं करूंगा. छुट्टी ले कर अनुराधा के पास मैं कल ही पहुंचता हूं, ऐसे विचारों की उथलपुथल मन में समेटे नीरज अपने फ्लैट की तरफ बढ़ता जा रहा था.नीरज को इस बात की हैरानी भी महसूस हो रही थी कि संगीता से संबंध तोड़ लेने का फैसला उसे परेशान नहीं कर रहा, मगर उसे लग रहा कि अचानक ही उस का मन हलका और प्रसन्न हो गया है. अनुराधा व रोहित से मिलने की खुशी उस के अंदर पलपल बढ़ती जा रही थी.

सच के फूल: क्या हुआ था सुधा के साथ

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भाग्यश्री: मालती देवी शादी के लिए क्यों राजी हुई

शाम का वक्त था भाग्यश्री के घर पर काफी चहलपहल थी. सभी सेवक भागभाग कर काम कर रहे थे. घर की सजावट देखने लायक थी. उसी समय वह कालेज से घर आई. यों कोलकाता का धर्मतल्ला काफी भीड़भाड़ वाला इलाका है. यही वजह थी कि उसे घर आतेआते देर हो गई थी. भाग्यश्री के पिता वहीं पर एक साधारण व्यापारी थे. वे दहेज के लिए पैसे इकट्ठा करने से ज्यादा अपनी दोनों बेटियों को शिक्षित करने पर जोर देते थे और इस में वे कामयाब भी रहे. भाग्यश्री को अपने घर में किए गए सजावट आदि के बारे में कुछ नहीं पता था.

‘‘अरे वाह, आज इतनी सजावट? कोई खास बात है क्या?’’ चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए भाग्यश्री ने पूछा.

‘‘शायद तेरी शादी का खयाल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने लङके वालों को बुलाया है…’’ छोटी बहन दिव्या फिल्मी अंदाज में बोलती हुई उसे छेङने लगी.

‘‘मां, इस बार कौन आ रहा है तुम्हारी इस कालीकलूटी बेटी को देखने के लिए? कितनी नुमाइश करनी है आप को… क्यों नहीं थक जातीं आप?’’ कंधे से बैग उतार कर पैर पटकते हुए भाग्यश्री ने रोष प्रकट किया.

‘‘बेटा, बड़े अच्छे लोग हैं. तुम्हारी मौसी के सुसराल वाले हैं. लङका मानव यहीं यादवपुर में अपना कारोबार करता है. बहुत पैसे वाले लोग हैं.

“अच्छी बात क्या है पता है? तुम्हारे रंग से उन्हें कोई ऐतराज नहीं है बेटा,’’ मां ने उसे समझाते हुए लङके और उस के पूरे खानदान की जानकारी दी, जिस में भाग्यश्री की कोई दिलचस्पी नहीं थी.

‘‘यह क्या बात हुई… मुझ से पूछा भी नहीं और रिश्ता तय कर दिया? अभी तो स्नातक का आखिरी साल चल रहा है और उस के बाद मुझे कानून की पढ़ाई करनी है…’’ वह बोले जा रही थी.

‘‘हां पढ़ लेना, एक बार रिश्ता हो जाए उस के बाद सबकुछ करना. किस ने रोका है तुम्हें,’’ मां ने बीच में ही टोका.

‘‘और हर बार यही अच्छे और संस्कारी लोग न तुुम्हारी बेटी को डार्क कौंप्लैक्शन का खिताब दे कर चले जाते हैं…रहम करो मां,’’ भाग्यश्री पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई.
वहां बिस्तर पर उस के लिए एक सुंदर गुलाबी साड़ी रखी हुई थी.

“अब क्या इसे भी पहनना होगा,’’ वह लगभग चिल्ला कर बोली.

उस ने अपनेआप को आईने में देखा. लंबा कद, छरहरा बदन, पतले होंठ लेकिन सब से ऊपर उस का सांवला रंग… उस ने आईने से नजरें फेर लीं.
तभी गैस्टरूम से पापा की आवाज आई, ‘‘मेहमान आ गए.’’

पापा की आवाज सुनते ही भाग्यश्री का मन स्थिर हो गया. फिर वही सब होगा. लङके वालों को सबकुछ पसंद आएगा पर सांवली रंगत के आगे सब कुछ फीका पड़ जाएगा. वह अनमने ढंग से तैयार हो गई. उस की खूबसूरती गुलाबी साड़ी में और निखर गई थी. उस के तीखे नैननक्श किसी का भी दिल चुराने लिए काफी थे.

शरबत का गिलास लिए जैसे ही वह अंदर आई, मानव की नजरें भाग्यश्री पर स्थिर हो गईं. दोनों की आंखें चार हुईं, दिल की धङकनों ने एकसाथ धङक कर एकदूसरे का अभिनंदन किया. मानव को भाग्यश्री देखते ही पसंद आ गई थी. दोनों पक्षों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ ही था कि भाग्यश्री ने अपनी बात रख दी,”मुझे आप सभी से कुछ कहना है… मैं पहले अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी और एक सफल वकील बनने के बाद ही शादी करूंगी,’’ भाग्यश्री ने तनिक ऊंची आवाज में अपनी बात रखी, जिसे सुन सभी स्तब्ध हो गए.

मानव के घर वाले जहां बड़ी मुश्किल से उस के सांवले रंग से समझौता कर लङकी के घरेलू होने की बात पर राजी हो कर रिश्ता ले कर आए थे, वहीं उस का मुखर हो कर बोलना एवं पढ़ाई और नौकरी वाली बात को सभी के समक्ष बेबाक हो कर रखना उन से बरदाश्त नहीं हुआ.

मानव की मां मालती देवी बोलीें, ‘‘लड़कियों को घर के काम ही शोभा देते हैं और हमारा मानव इतना कमा लेता है कि उस की गृहस्थी अच्छे से गुजरबसर हो जाएगी. तुम्हारी नौकरी हमें…’’ वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि भाग्यश्री उठ खड़ी हुई. मालती देवी का इशारा साफ था. न तो वह भाग्यश्री को आगे पढ़ने की अनुमति दे रही थीं और न ही एक सफल वकील बनने की इजाजत जोकि भाग्यश्री का सपना था. ऐसे घर में शादी कर अपने सपनों को कुचलना उसे कतई मंजूर नहीं था.

उस ने उन की शर्तों पर शादी करने से इनकार कर दिया और अपने कमरे में चली गई. भाग्यश्री के इस व्यवहार को मालती देवी ने अपना अपमान समझ लिया और मानव का हाथ पकड़ कर खींचती हुईं कमरे से बाहर निकल गईं.

पर मानव का दिल तो वहीं भाग्यश्री के पास छूट गया था. उस ने घर पहुंचते ही भाग्यश्री के मोबाइल पर मैसेज किया…

“प्रिए भाग्यश्री,

‘‘मुझे आप के सपनों के साथ कदम से कदम मिला कर चलना है. मां पुराने खयालात की हैं लेकिन मेरा यकीन कीजिए कि मैं उन्हें मना लूंगा. आप बस वह कीजिए जो आप का दिल चाहता है और हां, कहीं अगर मेरी जरूरत महसूस हो तो एक बार आवाज जरूर दें.

“एक बात और… मैं मां के खिलाफ जा कर आप से शादी कर तो सकता हूं पर करना नहीं चाहता. थोड़ा समय दीजिए, मैं सबकुछ ठीक कर लूंगा. यकीन मानिए, मैं बारात ले कर आप के घर ही आऊंगा. आशा है तब तक आप भी मेरा इंतजार करेंगी.’’

“आप का और सिर्फ आप का
मानव.”

‘‘सामने तो कुछ बोला न गया, पीठ पीछे हल्ला बोल… बहुत देखे ऐसे आशिक आवारा,” कहते हुए वह संदेश को मिटाने लगी पर हाथ रुक गया. पहली बार किसी से इतनी आत्मीयता मिली थी, कैसे जाने देती भला.

इस बात को बीते लगभग 7 साल हो गए थे. भाग्यश्री ने वह मुकाम हासिल कर लिया था, जिस के लिए उस ने शादी के कई रिश्ते को ठुकराया था. वैसे इन 7 सालों में मानव ने कभी उसे अकेलेपन का एहसास होने नहीं दिया था. दोनों औपचारिक रूप से मिलते व एकदूसरे का हालचाल लेते रहते थे. यह बात और थी कि मालती देवी इन बातों से बिलकुल अनजान थीं. भाग्यश्री अपने सपनों को साकार करती सिविल कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगी थी. उस की छोटी बहन का विवाह अच्छे घराने में हो गया था.

उस दिन सुबह के करीब 10 बजे थे. मालती देवी रोजमर्रा के कामों के लिए अपने नौकरों पर हुक्म चला रही थीं. तभी उन की बेटी कामिनी रोतेबिलखते मुख्य दरवाजे से अंदर आई.

‘‘मां, अब मैं कभी ससुराल वापस नहीं जाऊंगी,’’ चेहरे पर खून जमने से बने स्याह धब्बे साफ नजर आ रहे थे.

कामिनी मानव की बड़ी बहन थी. कहने को तो शादी के 8 साल हो गए थे लेकिन 1 भी साल ऐसा नहीं गुजरा था जब कामिनी को सताया न गया हो और कामिनी रोतीबिलखती घर न आई हो. हर बार उसे समझा दिया जाता, हाथ जोड़े जाते थे और समझाबुझा कर उसे ससुराल भेज दिया जाता था.

‘‘लोग क्या कहेंगे… बेटी की डोली मायके से निकलती है और अर्थी ससुराल से,’’ मालती देवी हर बार इन्हीं बातों का वास्ता दे कर कामिनी को सुसराल भेज देती थीं और यही वजह थी कि उन्होंने भाग्यश्री का रिश्ता ठुकरा दिया था क्योंकि वह समाज के नियमों के विरुद्ध जा कर पढ़ना चाहती थी, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी, वकील बनना चाहती थी. मगर आज कामिनी के इस दशा ने कोई ठोस कदम लेने पर उन्हें मजबूर कर दिया था.

‘‘राजू…राजू…’’ मालती देवी ने ड्राइवर को जोर से आवाज लगाई.

‘‘जी मैम साहब…’’ राजू दौड़ कर आया.

‘‘गाड़ी निकालो,’’ मालती देवी ने आदेश दिया.

‘‘कामिनी, गाड़ी में बैठो,’’ मालती देवी ने पर्स हाथ में लेते हुए कहा.

राजू गाड़ी निकाल कर खड़ा था. दोनों मांबेटी गाड़ी में बैठ गए. गाड़ी चलने लगी.

‘‘कहां जाना है मैम साहब?’’ ड्राइवर ने डरतेडरते पूछा.

‘‘सिविल कोर्ट,’’ मालती देवी ने आत्मविश्वास के साथ कहा.

कामिनी उन के चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी, क्योंकि उसे लग रहा था कि इस बार भी मां उसे ससुराल छोङने जा रही हैं और उस ने यह भी सोच लिया था कि इस बार अर्थी निकलने वाली बात को वह सच कर दिखाएगी.

लेकिन मां द्वारा सिविल कोर्ट का जिक्र करने से वह अपने अंदर संतोष का अनुभव करने लगी. अब तक वह दूर बैठी थी. करीब आ कर वह मां से लिपट कर रोने लगी.

सिविल कोर्ट के आगू राजू ने गाड़ी रोक दी. मालती देवी कामिनी का हाथ पकड़े लगभग दौड़ती हुई चल रही थीं. मन में केवल यही था कि इस बार बेटी को इस नकली रिश्ते से आजाद करना है, तलाक दिलवा कर ही चैन लेगी. जहां न पति का प्यार है, न सासससुर का स्नेह फिर क्यों बनी रहे वहां? उन्हें सारी बातें याद आ रही थीं कि किस तरह से कामिनी को बहू न समझ बेटी समझने का वादा किया था उस के ससुराल वालों ने लेकिन खोखले वादों के अलावा कुछ भी नहीं दिया था. मालती देवी के आंखों के आगे चलचित्र की तरह सारे दृश्य घूमने लगे थे.

कामिनी का हाथ थामे सिविल कोर्ट के बड़े से दरवाजे से अंदर चली गईं वह. सभी वकील अपनेअपने क्लाइंट के साथ व्यस्त थे. किस से अपनी बात कहे, किसी को तो नहीं जानतीं वे. तभी उन की नजर एक नेम प्लेट पर पड़ी ‘भाग्यश्री.’

नाम को दोहराया उन्होंने. यादों के मानस पटल पर धूल जम चुकी थी. उसे झाड़ा तो तसवीर साफ हो गई. वे लगभग दौड़ती हुई उस के पास पहुंचीं. भाग्यश्री के आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं. उन्हें ऐसी स्थिति में देख कर भाग्यश्री हड़बड़ा कर उठ कर खड़ी हो गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि मालवी देवी ऐसे क्यों खड़ी हैं? कई सवाल एकसाथ सामने आजा रहे थे.

‘‘आप बैठ जाइए न मैडम,’’ भाग्यश्री ने औपचारिकता निभाई.

‘मैडम कहा उस ने. लगता है, मुझे नहीं पहचाना,’ मन ही मन सोचने लगीं मालवी देवी.

मालती देवी ने पर्स से फोन निकाला और नंबर डायल करने लगीं,”मानव, तुम जहां कहीं भी हो यहां आ जाओ? पता राजू से पूछ लेना,’’ जल्दबाजी में केवल इतना ही बोल पाईं वह.

“मां, क्या हुआ?” मानव ने कभी मां को इस तरह बात करते नहीं सुना था. वह भी घबरा गया.

आधे घंटे में मानव उन सब के सामने था. भाग्यश्री ने मालती देवी को पानी पिलाया, उन्हें शांत किया और फिर एकएक जानकारी उन से लेने लगी.
मामला दहेज उत्पीङन का था.

‘‘मैडम देखिए, हमारे पास 2 रास्ते हैं, एक तो आप जा कर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाएं और आगे कानूनी काररवाई की लंबी प्रक्रिया होगी फिर जो फैसला होगा वह हमें मानना ही होगा. दूसरा, मैं कामिनीजी के ससुराल वालों से मिल कर उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के साथ समझाऊं, क्योंकि किसी का घर टूटे यह कोई नहीं चाहता, मैं तो बिलकुल भी नहीं. आगे आप जैसा कहें,’’ भाग्यश्री बोले जा रही थी, जिसे मालवी देवी सुन कर निहाल हुई जा रही थीं और उन्हें अपने किए पर ग्लानि भी हो रही थी.

‘‘बेटा, तुुम्हें जो ठीक लगे वही करो,’’ मालती देवी बोलीं.

भाग्यश्री मानव के साथ जा कर कामिनी के ससुराल वालों से मिली. काले कोर्ट वाले को देखते ही वे सिहर गए थे. रहीसही कसर उस के रौबीले अंदाज ने पूरी कर दी थी. उस ने उन्हें दहेज उत्पीङन पर लगने वाले धाराओं के बारे में बताया. न मानने की स्थिति में होने वाले दुष्परिणामों की भी जानकारी दी. ‘मरता क्या न करता…’ नतीजा यह हुआ कि कामिनी के ससुराल वाले उन की हर बात मानने के लिए तैयार हो गए.

कामिनी के लिए 6 महीने का पूरा आराम, साथ ही पति द्वारा खाना बना कर खिलाए जाने की हिदायत एवं देखभाल करने की जिम्मेदारी सासससुर के ऊपर दे कर साथ ही दहेज में दी गई पूरी रकम को कामिनी के बैंक खाते में भेजने का आदेश दे कर भाग्यश्री और मानव वापस आ गए थे.

यह सब देख मालती देवी की आंखों में भाग्यश्री के लिए ढेर सारा प्यार उमड़ रहा था. जब उन्हें पश्चाताप करने का कोई और रास्ता नहीं दिखा तो एक दिन बेटे से बोलीं,‘‘मानव, मैं भाग्यश्री को बहू बनाना चाहती हूं, वह मान तो जाएगी न?”

‘‘मां, पिछले 7 सालों से वह भी हमारा ही इंतजार कर रही है.’’

‘‘सच मानव,’’ सजल नेत्रों से कहा मालती देवी ने.

उत्तर में मानव ने कुछ फोटोज दिखाए जिस में वे साथसाथ थे. भाग्यश्री के घर जा कर उस की मां से उन्होंने जो कुछ भी कहा वह काबिलेतारीफ थी,
‘‘मुझे अपने बेटे के लिए आप की होनहार और काबिल बेटी का हाथ चाहिए. आशा है, आप मुझे मना नहीं करेंगी.’’

भाग्यश्री की मां ने नम आंखों से मालती देवी को गले से लगा लिया था. मालती देवी ने भाग्यश्री के गले में सोने का हार पहनाया, ‘‘अब से मैं तुम्हारी मां हूं. मुझे मैडम मत कहना प्लीज,” मालती देवी ने याचना भरे शब्दों में कहा.

मानव वहीं सोफे पर बैठा मुसकरा रहा था. जैसे ही एकांत मिला तो बोल पङा, ‘‘कहा था न मैं ने बारात ले कर आप के घर ही आऊंगा…’’

भाग्यश्री क्या कहती भला… शरमा कर दोनों हाथों से चेहरे को ढंक लिया था उस ने.

‘‘वाह…वाह… जी, क्या जोड़ी है बनाई… भैया और भाभी को बधाई हो बधाई…” दिव्या ने फिल्मी अंदाज में गा कर दोनों को साथ खड़ा किया. फिर दोनों ने घर के सभी बड़े सदस्यों का आशीर्वाद लिया. माहौल बेहद खुशनुमा लग रहा था.

नींद: मनोज का रति से क्या था रिश्ता- भाग 2

मनोज को कुछ उत्सुकता सी होने लगी कि आखिर यह कौन है और उस से चाहती क्या है?

कुछ देर बाद चाय, नाश्ता हो गया. फोटो, खबर और सूचना ले कर एकएक कर के सभी प्रैस रिपोर्टर विदा ले कर चले भी गए. पर रति तो अब भी वहीं पर थी. अब मनोज को अकेला पा कर वह उस के पास आई और बेबाक हो कर बोली, ‘‘आप से बस 2 मिनट बात करनी है.”

‘‘हां… हां, जरूर कहिए,‘‘ कह कर मनोज ने पूरी सहमति दी.

‘‘जी, मेरा नाम रति है और मुझे आप की फैक्टरी में काम चाहिए.‘‘

‘‘काम चाहिए, पर अभी तो यहां स्टाफ एकदम पूरा है,‘‘ मनोज ने जवाब दिया.

‘‘जी, किसी तरह 4-5 घंटे का काम दे दीजिए. आप अगर चाहें तो मैं एक आइडिया दूं.‘‘

‘‘हां… हां, जरूर,‘‘ मनोज ने उत्सुकता से कहा, तो वह झट से बोली थी, ‘‘आप अपनी फैक्टरी और इस गोदाम की छत पर सब्जियांफूल उगाने का काम दे दीजिए.‘‘

‘‘अरे… अरे, ओह्ह,‘‘ कह कर मनोज हंसने लगा. वह रति की देह को बड़े ही गौर से देख कर यह प्रतिक्रिया दे बैठा, क्योंकि उस का मन यह मानने को तैयार नहीं था कि रति यह सब कर सकती है.

‘‘हां… हां, क्यों नहीं,” मनोज ने कहा.

“आप इतने मनमोहक पौधों का पौधारोपण करा रहे हो. प्रकृति से तो आप को खूब प्यार होगा. मेरा मन तो यही कहता है,‘‘ ऐसा बोलते समय रति ने भांप लिया था कि मनोज खुश हो गया है.

अब उस के इसी खुश मूड को ताड़ कर वह बोली, ‘‘जी, आप मेरा भरोसा कीजिए. मैं बाजार में बिकवा कर इन की लागत भी दिलवा सकती हूं. और तो और यह तो पक्का है कि आप को मुनाफा ही होगा.‘‘

रति ने कुछ ऐसी कशिश के साथ यह बात कही कि मनोज मान गया.

मनोज को इतना भी पैसे का लालच नहीं था, पर रति का आत्मविश्वास और उस की मनमोहक अदा ने मनोज को उसी समय उस का मुरीद बना दिया था.

उस ने अगले दिन रति को फिर बुलाया और कुछ नियमशर्तों के साथ काम दे दिया. 3 सहायक उस के साथ लगा दिए गए.

बस वह दिन और आज का दिन, रति कभी बैगन, कभी लाल टमाटर, हरी मिर्च, पालक, धनिया वगैरह ला कर दिखाती रहती.

मनोज भी खुश था कि जरा सी लागत में खूब अच्छी सब्जी और फूल खिल रहे थे.

पिछले दिनों रति के इसी कारनामे के कारण मनोज को पर्यावरण मित्र पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका था. पूरे शहर में आज बस उस की ही फैक्टरी थी, जो हरियाली से लबालब थी. आएदिन कोई न कोई फोटोग्राफी की वर्कशौप भी वहीं छत पर होने लगी थी.

रति तो उस के लिए बहुत काम की साबित हो रही थी. यही बात उस ने रति की पीठ पर इत्र की बोतल उडे़लते हुए एक दिन उस से कह दी थी. उस पल अपने अनावृत बदन को उस के सीने में छिपाते हुए रति ने आंखें बंद कर के कहा था, ‘‘बस ये मान लो मनोज कि जिंदगी को जुआ समझ कर खेल रही हूं.

‘‘यह जो मन है ना मनोज, इस के सपने खंडित होना नहीं चाहते. खंडित सपने की नींव पर नया सपना अंकुरित हो जाता है. मैं करूं भी तो क्या. तुम हो तो तुम्हारे दामन में निश्चिंत हूं, आने वाले पल में कब क्या होगा, मैं खुद भी नहीं जानती.’’

उस दिन रति ने उस के सामने अपनी देह के साथ जीवन के भी राज खोल दिए थे. सूखे कुएं की मुंडेर पर अपने मटके लिए वो 7 साल से किसी अभिशाप को ढो रही थी.

पहलेपहले तो पति बाहर कहीं भी जाते थे, तो रति को ताला लगा कर बंद कर के जाते थे. फिर उस ने उन को उन के तरीके से जीतना शुरू किया. वह उन के इस दो कौड़ी के दर्शन को बारबार सराहने लगी. उन को उकसाने लगी कि आप को सारी दुनिया में अपनी बातें फैलानी चाहिए.

दार्शनिक और सनकी पति को सुधारने में समय तो जरूर लगा, पर रति का काम बन गया. इसलिए अब वही हो रहा है जो रति चाहती है. पति बाहर ही रहते हैं और रति को आजादी वापस मिल गई है. कितनी प्यारी है ये आजादी. जितनी सांसें हैं अपने तरीके से जीने की आजादी.

रति को एक हमदर्द चाहिए था. एक अपना जो रोते समय उस की गरदन को कंधा दे सके.

दिन बीतते रहे. हौलेहौले वह जान गया था कि रति को नौकरी नहीं बस मनोज चाहिए था. एक पागल और जिद्दी पति और उस के चिंतन से आजिज आ चुकी रति ने एक बार एक चैनल के साक्षात्कार में मनोज को देखा तो बस उस को हासिल करने की ठान ही ली थी.

पति के दर्शन और ज्ञानभरी बातों से वह दिनभर ऊब जाती थी. नौकरी तो बहाना था. उस को अब इस जीवन में कुछ घंटे हर दिन मनोज का साथ चाहिए था.

मनोज को वह दिन रहरह याद आ रहा था, जब पहली बार रति उस को अपने घर ले गई थी. उस दिन रति के पति नहीं थे, पर वहां नौकरचाकर थे. सबकुछ था. कितनी सुखसुविधाओं से लवरेज था उस का आलीशान बंगला. मगर, उस के घर पर अजीब सी खामोशी थी. पर, मनोज को इस से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता था. रति उसे बिंदास अपने घर पर भी उतना ही हक दे रही थी, जितना वह मनोज को अपनी नशीली, मादक देह पर कुछ दिन पहले दे चुकी थी.

उस दिन जब वह रति से उस के घर पर मिल कर लौट रहा था, तब यही सोच रहा था कि उस की भी तो कोई चाहत है, कोई रंग उस को भी तो चाहिए ही. अब वह और रमा हमउम्र हैं, ठीक है. रमा को जीवन में आराम चाहिए, करे. पूरी तरह आराम कर. पर उस को तो रंगीन और जवान जिंदगी चाहिए. इधर रति खुद एक लता सी किसी शाख का सहारा चाहती थी ना. बस हो गया. एक तरह से वह रति पर अहसान कर रहा था और उस का काम भी चल रहा था.

यही सोचतसोचता वह घर पहुंच गया था. वह जैसे ही भीतर आया, किसी पेनकिलर मलहम की तेज महक उस की नाक में घुसी और उस के कदम की आहट सुन कर रमा की आवाज आई, ‘‘मनोज आ गए तुम. खाना रखा है. प्लीज, खा लो. मैं तो बस जरा लेटी हूं. अब इस दर्द में बिलकुल उठा नहीं जा रहा.‘‘

‘‘हां… हां रमा, ठीक है. तुम आराम करो, सो जाओ,‘‘ कह कर वह बाथरूम में घुस गया.

मनोज बखूबी जानता है कि रमा की नींद रूई से भी हलकी है. कभी लगता है कि उस की नींद में भाप भरी होती है. रमा कभी बेसुध नहीं रहती, कभी चैन की नींद नहीं सोती. ज्यों ही खटका होता है, उस के होने के पहले ही जाग उठती है.
रमा भी अजीब है. इस की यह चेतना सदैव चौकन्नी रहती है. उस को याद है, जब बेटा स्कूल में पढ़ रहा था. परीक्षा के लिए रमा ही उस के साथ रातबिरात जागती थी. तब भी वह बेखबर सोया रहता. पर, रमा उस की एक आहट से जाग जाती और उस को चायकौफी बना कर दे देती थी. तब भी वो कमसिन रमा को झट से जागते, काम करते केवल चुपके से देखता था, दूर से उस को एकटक निहारता था. पर बिस्तर से जाग कर खुद काम नहीं करता था. कभी नहीं.

अब बेटा विदेश में पढ़ रहा है, नौकरी कर के वहीं बस जाएगा, ऐसा उस का फैसला है.

पारिवारिक सुगंध – भाग 2 : परिवार का महत्व

आज इस करोड़पति इनसान का इकलौता बेटा 2 कमरों के एक साधारण से किराए वाले फ्लैट में अपनी पत्नी शिखा के साथ रह रहा था. नर्सिंग होम से सीधे घर न जा कर मैं उसी के फ्लैट पर पहुंचा.

नवीन और शिखा दोनों मेरी बहुत इज्जत करते थे. इन दोनों ने प्रेम विवाह किया था. साधारण से घर की बेटी को चोपड़ा ने अपनी बहू बनाने से साफ मना कर दिया, तो इन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली थी.

चोपड़ा की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए मैं ने इन दोनों का साथ दिया था. इसी कारण ये दोनों मुझे भरपूर सम्मान देते थे.

चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की चर्चा शुरू हुई, तो नवीन उत्तेजित लहजे में बोला, ‘‘चाचाजी, यह तो होना ही था.’’ रोजरोज की शराब और दौलत कमाने के जनून के चलते उन्हें दिल का दौरा कैसे न पड़ता?

‘‘और इस बीमार हालत में भी उन का घमंडी व्यवहार जरा भी नहीं बदला है. शिखा उन से मिलने पहुंची तो उसे डांट कर कमरे से बाहर निकाल दिया. उन के जैसा खुंदकी और अकड़ू इनसान शायद ही दूसरा हो.’’

‘‘बेटे, बड़ों की बातों का बुरा नहीं मानते और ऐसे कठिन समय में तो उन्हें अकेलापन मत महसूस होने दो. वह दिल का बुरा नहीं है,’’ मैं उन्हें देर तक ऐसी बातें समझाने के बाद जब वहां से उठा तो मन बड़ा भारी सा हो रहा था.

चोपड़ा ने यों तो नवीन को पूरी स्वतंत्रता से ऐश करने की छूट हमेशा दी, पर जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई तो बाप ने बेटे को दबा कर अपनी चलानी चाही थी.

जिस घटना ने नवीन के जीवन की दिशा को बदला, वह लगभग 3 साल पहले घटी थी.

उस दिन मेरे बेटे विवेक का जन्मदिन था. नवीन उसे नए मोबाइल फोन का उपहार देने के लिए अपने साथ बाजार ले गया.

वहां दौलत की अकड़ से बिगडे़ नवीन की 1 फोन पर नीयत खराब हो गई. विवेक के लिए फोन खरीदने के बाद जब दोनों बाहर निकलने के लिए आए तो शोरूम के सुरक्षा अधिकारी ने उसे रंगेहाथों पकड़ जेब से चोरी का मोबाइल बरामद कर लिया.

‘गलती से फोन जेब में रह गया है. मैं ऐसे 10 फोन खरीद सकता हूं. मुझे चोर कहने की तुम सब हिम्मत कैसे कर रहे हो,’ गुस्से से भरे नवीन ने ऐसा आक्रामक रुख अपनाया, पर वे लोग डरे नहीं.

मामला तब ज्यादा गंभीर हो गया जब नवीन ने सुरक्षा अधिकारी पर तैश में आ कर हाथ छोड़ दिया.

उन लोगों ने पहले जम कर नवीन की पिटाई की और फिर पुलिस बुला ली. बीचबचाव करने का प्रयास कर रहे विवेक की कमीज भी इस हाथापाई में फट गई थी.

पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहीं पर चोपड़ा और मैं भी पहुंचे. मैं सारा मामला रफादफा करना चाहता था क्योंकि विवेक ने सारी सचाई मुझ से अकेले में बता दी थी, लेकिन चोपड़ा गुस्से से पागल हो रहा था. उस के मुंह से निकल रही गालियों व धमकियों के चलते मामला बिगड़ता जा रहा था.

उस शोरूम का मालिक भी रुतबेदार आदमी था. वह चोपड़ा की अमीरी से प्रभावित हुए बिना पुलिस केस बनाने पर तुल गया.

एक अच्छी बात यह थी कि थाने का इंचार्ज मुझे जानता था. उस के परिवार के लोग मेरे दवाखाने पर छोटीबड़ी बीमारियों का इलाज कराने आते थे.

उस की आंखों में मेरे लिए शर्मलिहाज के भाव न होते तो उस दिन बात बिगड़ती ही चली जाती. वह चोपड़ा जैसे घमंडी और बदतमीज इनसान को सही सबक सिखाने के लिए शोरूम के मालिक का साथ जरूर देता, पर मेरे कारण उस ने दोनों पक्षों को समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया.

हां, इतना उस ने जरूर किया कि उस के इशारे पर 2 सिपाहियों ने अकेले में नवीन की पिटाई जरूर की.

‘बाप की दौलत का तुझे ऐसा घमंड है कि पुलिस का खौफ भी तेरे मन से उठ गया है. आज चोरी की है, कल रेप और मर्डर करेगा. कम से कम इतना तो पुलिस की आवभगत का स्वाद इस बार चख जा कि कल को ज्यादा बड़ा अपराध करने से पहले तू दो बार जरूर सोचे.’

मेरे बेटे की मौजूदगी में उन 2 पुलिस वालों ने नवीन के मन में पुलिस का डर पैदा करने के लिए उस की अच्छीखासी धुनाई की थी.

उस घटना के बाद नवीन एकाएक उदास और सुस्त सा हो गया था. हम सब उसे खूब समझाते, पर वह अपने पुराने रूप में नहीं लौट पाया था.

फिर एक दिन उस ने घोषणा की, ‘मैं एम.बी.ए. करने जा रहा हूं. मुझे प्रापर्टी डीलर नहीं बनना है.’

यह सुन कर चोपड़ा आगबबूला हो उठा और बोला, ‘क्या करेगा एम.बी.ए. कर के? 10-20 हजार की नौकरी?’

‘इज्जत से कमाए गए इतने रुपए भी जिंदगी चलाने को बहुत होते हैं.’

‘क्या मतलब है तेरा? क्या मैं डाका डालता हूं? धोखाधड़ी कर के दौलत कमा रहा हूं?’

‘मुझे आप के साथ काम नहीं करना है,’ यों जिद पकड़ कर नवीन ने अपने पिता की कोई दलील नहीं सुनी थी.

बाद में मुझ से अकेले में उस ने अपने दिल के भावों को बताया था, ‘चाचाजी, उस दिन थाने में पुलिस वालों के हाथों बेइज्जत होने से मुझे मेरे पिताजी की दौलत नहीं बचा पाई थी. एक प्रापर्टी डीलर का बेटा होने के कारण उलटे वे मुझे बदमाश ही मान बैठे थे और मुझ पर हाथ उठाने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हो रही थी.

‘दूसरी तरफ आप के बेटे विवेक के साथ उन्होंने न गालीगलौज की, न मारपीट. क्यों उस के साथ भिन्न व्यवहार किया गया? सिर्फ आप के अच्छे नाम और इज्जत ने उस की रक्षा की थी.

‘मैं जब भी उस दिन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को याद करता हूं, तो मन शर्म व आत्मग्लानि से भर जाता है. मैं आगे इज्जत से जीना चाहता हूं…बिलकुल आप की तरह, चाचाजी.’

अब मैं उस से क्या कहता? उस के मन को बदलने की मैं ने कोशिश नहीं की. चोपड़ा ने उसे काफी डराया- धमकाया, पर नवीन ने एम.बी.ए. में प्रवेश ले ही लिया.

इन बापबेटे के बीच टकराव की स्थिति आगे भी बनी रही. नवीन बिलकुल बदल गया था. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने में उसे बिलकुल रुचि नहीं रही थी. किसी भी तरह से बस, दौलत कमाना उस के जीवन का लक्ष्य नहीं रहा था.

फिर उसे अपने साथ पढ़ने वाली शिखा से प्यार हो गया. वह शिखा से शादी करना चाहता है, यह बात सुन कर चोपड़ा बेहद नाराज हुआ था.

‘अगर इस लड़के ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर शादी की तो मैं इस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी इसे मेरी दौलत की,’ ऐसी धमकियां सुन कर मैं काफी चिंतित हो उठा था.

दूसरी तरफ नवीन शिखा का ही जीवनसाथी बनना चाहता था. उस ने प्रेमविवाह करने का फैसला किया और पिता की दौलत को ठुकरा दिया.

नवीन और शिखा ने कोर्ट मैरिज की तो मेरी पत्नी और मैं उन की शादी के गवाह बने थे. इस बात से चोपड़ा हम दोनों से नाराज हो गया पर मैं क्या करता? जिस नवीन को मैं ने गोद में खिलाया था, उसे कठिन समय में बिलकुल अकेला छोड़ देने को मेरा दिल राजी नहीं हुआ था.

नवीन और शिखा दोनों नौकरी कर रहे थे. शिखा एक सुघड़ गृहिणी निकली. अपनी गृहस्थी वह बड़े सुचारु ढंग से चलाने लगी. चोपड़ा ने अपनी नाराजगी छोड़ कर उसे अपना लिया होता तो यह लड़की उस की कोठी में हंसीखुशी की बहार निश्चित ले आती.

चोपड़ा ने मेरे घर आना बंद कर दिया. कभी किसी समारोह में हमारा आमनासामना हो जाता तो वह बड़ा खिंचाखिंचा सा हो जाता. मैं संबंधों को सामान्य व सहज बनाने का प्रयास शुरू करता, तो वह कोई भी बहाना बना कर मेरे पास से हट जाता.

छुटकारा – भाग 2 : नीरज को क्या पता था

अगले हफ्ते संगीता का जन्मदिन भी आने वाला था. पिछली बार नीरज ने उसे लैदर का कोट दिलवाया था. इस बार उस ने अपनी प्रेमिका को नया मोबाइल दिलाने का वादा काफी पहले कर लिया था. करीब 30-35 हजार का यह खर्चा भी उसे उठाना था.अनुराधा की पगार के कारण उसे ऐसे फालतू खर्चों के लिए कभी बैंक में जमापूंजी में से कुछ भी कभी नहीं निकलवाना पड़ता था.

उस के अकाउंट में वैसे भी ज्यादा रुपए पिछले डेढ़दो सालों से बच नहीं रहे थे क्योंकि संगीता के ऊपर अपना बढि़या प्रभाव जमाए रखने के लिए उस ने काफी अनापशनाप खर्चा किया था.अनुराधा की पगार सिर्फ 1 महीने के लिए उसे उपलब्ध नहीं हुईर् थी और इतने कम समय में ही इन 2 खर्चों को ले कर उस का दिमाग भन्ना उठा था.संगीता से तो उस ने कुछ नहीं कहा, पर अनुराधा से वह कम खर्चा करने की जिद पकड़ कर खूब उल झा.‘‘आप तो हमेशा डंके की चोट पर कहा करते थे कि सिर्फ अपनी पगार के बलबूते पर आप सारा खर्चा आराम से उठा सकते हो.

मैं ने नौकरी करने से जुड़ी परेशानियां भी  झेलीं और कभी आप के मुंह से धन्यवाद तो सुना ही नहीं, बल्कि अपमानित जरूर हुई. अब मैं ने नौकरी छोड़ दी है और रोहित व मेरे सारे खर्चे आप को उठाने ही होंगे,’’ अनुराधा ने सख्त लहजे में अपनी बात कह कर खामोशी अख्तियार कर ली.नीरज खूब चीखताचिल्लाता रहा, पर उस ने उस के साथ बहस और  झगड़ा कतई नहीं किया. हार कर नीरज ने उसे रुपए दिए जरूर, पर ऐसा कर के उस ने अपनी सुखशांति गंवा दी.

पहली बार संगीता को कीमती तोहफा देना भी नीरज को खला. वह अपनी प्रेमिका से सीधेसीधे तो कुछ कह नहीं सका, पर आर्थिक कठिनाइयां उस का मूड खराब रखने लगीं.वह संगीता के सामने अपनी परेशानियों का रोना रोता. उन के बीच रोमांटिक वार्त्तालाप के बजाय बढ़ती महंगाई को ले कर चर्चा ज्यादा होने लगी. अनुराधा की हर मांग और रुपए खर्च करने का हर मौका नीरज का गुस्सा भड़का देता.‘‘सब ठीक चल सकता है, नीरज. मेरी सम झ से तुम जरूरत से ज्यादा परेशान रहने लगे हो. हर वक्त खर्चों का रोना रो कर तुम अपना और मेरा मूड खराब करना बंद करो, यार,

’’ सब्र का घड़ा भर जाने के कारण एक रात संगीता ने चिढ़ कर ये शब्द नीरज को सुना ही दिए.‘‘मेरी परेशानियों को न मेरी पत्नी सम झ रही है, न तुम,’’ नीरज ने फौरन नाराजगी प्रकट करी.‘‘तुम्हारी पत्नीका मु झे पता नहीं, पर मेरे जन्मदिन पर तुम मु झे मोबाइल मत दिलाना. उस खर्चे को बचा कर तुम्हारे चेहरे पर मुसकान लौट आए तो सौदा बुरा नहीं होगा.’’नीरज को लगा कि संगीता ने उस पर कटाक्ष किया है. उस ने चिड़ कर जवाब दिया, ‘‘मैं ने सचमुच ही गिफ्ट नहीं दिया, तो तुम्हारी मुसकान जरूर गायब हो जाएगी, मैडम.’’‘‘सुनो, नीरज,’’ संगीता ऊंची आवाज में बोली,

‘‘मैं तुम्हारे रुपए ऐंठने को तुम्हारे साथ नहीं जुड़ी हुई हूं. हमारे बीच प्रेम का संबंध न होता, तो तुम से सौ गुणा बड़ा धन्ना सेठ मैं बड़ी आसानी से फांस कर दिखा देती.’’

‘‘आईएम सौरी, डियर,’’ उस की नाराजगी व गुस्से से घबरा कर नीरज ने माफी मांगना ही बेहतर सम झा. यह बात जुदा है कि संगीता का मूड फिर उखड़ा ही रहा. नीरज ने उसे आगोश में भर का प्यार करने का प्रयास किया भी, पर उसे मजा नहीं आ रहा था.नीरज जब विदा ले कर उस के फ्लैट से निकला, तो पहली बार वह बड़बड़ा उठा था,

‘‘इन औरतों की कौम ही साली स्वार्थी होती है. इन का हंसनामुसकराना. इन का प्यार, इन की अदाएं, इन का सबकुछ रुपए से जुड़ा हुआ है.’’अनुराधा जिस दिन रोहित को ले कर अपने मामा के घर चली गई, उस के 2 दिन बाद संगीता का जन्मदिन आना था. नीरज ने शादी से सिर्फ 1 दिन पहले पहुंचने का फैसला किया था.‘‘मेरी अनुपस्थिति का गलत फायदा मत उठाना. मेरी कई सहेलियां मु झे तुम्हारी रिपोर्टदेती हैं,’’ अनुराधा ने चलते समय हलकी मुसकराहट के पीछे छिपा कर यह चेतावनी नीरज को दे डाली.‘‘मेरा मन जो कहेगा, मैं करूंगा,’’ नीरज चिड़ उठा.‘‘ऐसी बात है,

तो ठीक है मेरा मन मायके से कभी इस घर में लौटने का न हुआ, तो मेरा वह फैसला तुम भी स्वीकार कर लेना, पतिदेव.’’नीरज ने उस के स्वर की सख्ती को पहचान कर उस से आगे उल झने का इरादा त्याग दिया. गलत काम करने वाले के पास वैसे भी आंखों में आंखें डाल कर बोलने की हिम्मत नहीं होती है.

अनुराधा की अनुपस्थिति में नीरज ने रोज संगीता के फ्लैट पर जाने का कार्यक्रम बना लिया. अगले ही दिन उस ने संगीता को मोबाइल खरीदवा दिया, तो उस का मूड खुशी से खिल उठा. फिर संगीता ने अचानक 3 दिनों के लिए मनाली चलने की अपनी इच्छा उस के सामने जाहिर कर नीरज का दिल ही बैठा दिया.‘‘नहीं, यार, अभी और खर्चा करने की हिम्मत नहीं बची है,

’’ नीरज ने फौरन मनाली चलने से इनकार कर दिया था.‘‘क्रैडिट कार्ड्स हैं तो तुम्हारे पास. कुछ रुपए मैं ले चलूंगी साथ. प्लीज हां कहो न,’’ संगीता ने उस के गले में बांहें डाल कर प्यार से अनुरोध किया.‘‘मनाली चलना है तो इस ट्रिप का सारा खर्च इस बार तुम उठाओ.

मैं तुम्हें बाद में रुपए लौटा दूंगा.’’‘‘स्वीटहार्ट, क्रैडिट कार्ड…’’‘‘क्रैडिट कार्ड इमरजैंसी के लिए रखता हूं मैं. एक बार कार्ड के कर्जे में उल झा, तो निकलना मुश्किल हो जाएगा. अनुराधा की नौकरी भी अब नहीं रही.’’‘‘अब उस की नौकरी छोड़ देने का रोना मत शुरू करो, प्लीज,’’ संगीता ने बड़े नाटकीय अंदाज में हाथ जोड़ दिए.‘‘तब तुम भी मनाली जाने की जिद छोड़ दो.’’

‘‘ठीक है, अब यहीं मरेंगे दिल्ली कीगरमी में.’’‘‘यह तो हुआ नहीं कि मनाली का ट्रिप तुम फाइनैंस करने को राजी हो जाती. अरे, क्या एक बार का खर्च तुम नहीं कर सकती हो?’’‘‘कर सकती हूं, पर प्रेमिका की दौलत पर ट्रिप का आनंद उठाना क्या तुम्हारे जमीर को स्वीकार होगा?’’‘‘तुम ने यह सवाल पूछ लिया है, तो अब बिलकुल स्वीकार नहीं होगा क्योंकि तुम्हारी सोच अब मेरी सम झ में आ गई है.’’‘‘क्या सोच है मेरी?’’ संगीता के माथे में बल पड़ गए.‘‘यही कि हमारी मौजमस्ती तभी संभव है जब मेरा पर्र्स नोटों से भरा रहे.’’‘‘ऐसी बात मुंह से निकाल कर तुम मेरा अपमान कर रहे हो, नीरज. तुम मेरे चरित्र को घटिया बता रहे हो.’’‘‘अब छोड़ो भी इस बहस को और ्रचलो कोई फिल्म देख कर आते हैं,’’ परेशान नीरज ने वार्त्तालाप का विषय बदलने कीकोशिश करी.‘‘सौरी, मैं तुम्हारा 5-6 सौ का खर्चा भी नहीं कराऊंगी. वैसे भी मेरा सिर अचानक दर्द से फटने लगा है.’’‘‘तुम्हारे सिरदर्द के पीछे मनाली न जाने का मेरा फैसला है, यह बात मैं खूब सम झ रहा हूं.’’

पारिवारिक सुगंध – भाग 1 : परिवार का महत्व

रिश्तों की सुगंध ही जीवन में सुखशांति लाती है. लेकिन राजीव अपनी धनदौलत के घमंड में डूबा रहता. रिश्तों की अहमियत उस के लिए कोई माने नहीं रखती थी. परिवार, सगेसंबंधी होते हुए भी वह खाली हाथ था. साथ था तो केवल एक दोस्त.

अपने दोस्त राजीव चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की खबर सुन कर मेरे मन में पहला विचार उभरा कि अपनी जिंदगी में हमेशा अव्वल आने की दौड़ में बेतहाशा भाग रहा मेरा यार आखिर जबरदस्त ठोकर खा ही गया.

रात को क्लिनिक कुछ जल्दी बंद कर के मैं उस से मिलने नर्सिंग होम पहुंच गया. ड्यूटी पर उपस्थित डाक्टर से यह जान कर कि वह खतरे से बाहर है, मेरे दिल ने बड़ी राहत महसूस की थी.

मुझे देख कर चोपड़ा मुसकराया और छेड़ता हुआ बोला, ‘‘अच्छा किया जो मुझ से मिलने आ गया पर तुझे तो इस मुलाकात की कोई फीस नहीं दूंगा, डाक्टर.’’

‘‘लगता है खूब चूना लगा रहे हैं मेरे करोड़पति यार को ये नर्सिंग होम वाले,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से थामा और पास पड़े स्टूल पर बैठ गया.

‘‘इस नर्सिंग होम के मालिक डाक्टर जैन को यह जमीन मैं ने ही दिलाई थी. इस ने तब जो कमीशन दिया था, वह लगता है अब सूद समेत वसूल कर के रहेगा.’’

‘‘यार, कुएं से 1 बालटी पानी कम हो जाने की क्यों चिंता कर रहा है?’’

‘‘जरा सा दर्द उठा था छाती में और ये लोग 20-30 हजार का बिल कम से कम बना कर रहेंगे. पर मैं भी कम नहीं हूं. मेरी देखभाल में जरा सी कमी हुई नहीं कि मैं इन पर चढ़ जाता हूं. मुझ से सारा स्टाफ डरता है…’’

दिल का दौरा पड़ जाने के बावजूद चोपड़ा के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया था. वह अब भी गुस्सैल और अहंकारी इनसान ही था. अपने दिल के दौरे की चर्चा भी वह इस अंदाज में कर रहा था मानो उसे कोई मैडल मिला हो.

कुछ देर के बाद मैं ने पूछा, ‘‘नवीन और शिखा कब आए थे?’’

अपने बेटेबहू का नाम सुन कर चोपड़ा चिढ़े से अंदाज में बोला, ‘‘नवीन सुबहशाम चक्कर लगा जाता है. शिखा को मैं ने ही यहां आने से मना किया है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे, उसे देख कर मेरा ब्लड प्रेशर जो गड़बड़ा जाता है.’’

‘‘अब तो सब भुला कर उसे अपना ले, यार. गुस्सा, चिढ़, नाराजगी, नफरत और शिकायतें…ये सब दिल को नुकसान पहुंचाने वाली भावनाएं हैं.’’

‘‘ये सब छोड़…और कोई दूसरी बात कर,’’ उस की आवाज रूखी और कठोर हो गई.

कुछ पलों तक खामोश रहने के बाद मैं ने उसे याद दिलाया, ‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी में बस 2 सप्ताह रह गए हैं. जल्दी से ठीक हो जा मेरा हाथ बंटाने के लिए.’’

‘‘जिंदा बचा रहा तो जरूर शामिल हूंगा तेरे बेटे की शादी में,’’ यह डायलाग बोलते हुए यों तो वह मुसकरा रहा था, पर उस क्षण मैं ने उस की आंखों में डर, चिंता और दयनीयता के भाव पढ़े थे.

नर्सिंग होम से लौटते हुए रास्ते भर मैं उसी के बारे में सोचता रहा था.

हम दोनों का बचपन एक ही महल्ले में साथ गुजरा था. स्कूल में 12वीं तक की शिक्षा भी  साथ ली थी. फिर मैं मेडिकल कालिज में प्रवेश पा गया और वह बी.एससी. करने लगा.

पढ़ाई से ज्यादा उस का मन कालिज की राजनीति में लगता. विश्वविद्यालय के चुनावों में हर बार वह किसी न किसी महत्त्वपूर्ण पद पर रहा. अपनी छात्र राजनीति में दिलचस्पी के चलते उस ने एलएल.बी. भी की.

‘लोग कहते हैं कि कोई अस्पताल या कोर्ट के चक्कर में कभी न फंसे. देख, तू डाक्टर बन गया है और मैं वकील. भविष्य में मैं तुझ से ज्यादा अमीर बन कर दिखाऊंगा, डाक्टर. क्योंकि दौलत पढ़ाई के बल पर नहीं बल्कि चतुराई से कमाई जाती है,’ उस की इस तरह की डींगें मैं हमेशा सुनता आया था.

उस की वकालत ठीक नहीं चली तो वह प्रापर्टी डीलर बन गया. इस लाइन में उस ने सचमुच तगड़ी कमाई की. मैं साधारण सा जनरल प्रेक्टिशनर था. मुझ से बहुत पहले उस के पास कार और बंगला हो गए.

हमारी दोस्ती की नींव मजबूत थी इसलिए दिलों का प्यार तो बना रहा पर मिलनाजुलना काफी कम हो गया. उस का जिन लोगों के साथ उठनाबैठना था, वे सब खानेपीने वाले लोग थे. उस तरह की सोहबत को मैं ठीक नहीं मानता था और इसीलिए हम कम मिलते.

हम दोनों की शादी साथसाथ हुई और इत्तफाक से पहले बेटी और फिर बेटा भी हम दोनों के घर कुछ ही आगेपीछे जन्मे.

चोपड़ा ने 3 साल पहले अपनी बेटी की शादी एक बड़े उद्योगपति खानदान में अपनी दौलत के बल पर की. मेरी बेटी ने अपने सहयोगी डाक्टर के साथ प्रेम विवाह किया. उस की शादी में मैं ने चोपड़ा की बेटी की शादी में आए खर्चे का शायद 10वां हिस्सा ही लगाया होगा.

रुपए को अपना भगवान मानने वाले चोपड़ा का बेटा नवीन कालिज में आने तक एक बिगड़ा हुआ नौजवान बन गया था. उस की मेरे बेटे विवेक से अच्छी दोस्ती थी क्योंकि उस की मां सविता मेरी पत्नी मीनाक्षी की सब से अच्छी सहेली थी. इन दोनों नौजवानों की दोस्ती की मजबूत नींव भी बचपन में ही पड़ गई थी.

‘नवीन गलत राह पर चल रहा है,’ मेरी ऐसी सलाह पर चोपड़ा ने कभी ध्यान नहीं दिया था.

‘बाप की दौलत पर बेटा क्यों न ऐश करे? तू भी विवेक के साथ दिनरात की टोकाटाकी वाला व्यवहार मत किया कर, डाक्टर. अगर वह पढ़ाई में पिछड़ भी गया तो कोई फिक्र नहीं. उसे कोई अच्छा बिजनेस मैं शुरू करा दूंगा,’’ अपनी ऐसी दलीलों से वह मुझे खीज कर चुप हो जाने को मजबूर कर देता.

छुटकारा – भाग 1 : नीरज को क्या पता था

जिस क्षणिक सुख के लिए वह अपनी पत्नी अनुराधा को छोड़ संगीता के प्यार में पागल था, वहीसंगीता उसे गहरी मुसीबत में डालने की योजना बना रही है… अपनी प्रेमिका संगीता के साथ उस के फ्लैट में घंटाभर गुजारने के बावजूद नीरज का मूड उखड़ा सा ही बना रहा. उस ने न मौजमस्ती करने में रुचि ली, न खानेपीने में.‘‘जो घट चुका है उस के बारे में सोचसोच कर दिमाग खराब करना नासम झी है, स्वीट हार्ट. आज तो तुम्हें ढंग से मुसकराता देखने को तरस गई हूं मैं,’’

नीरज के बालों में प्यार से हाथ फिराते हुए संगीता ने शिकायत सी करी.‘‘उस बेवकूफ लड़की ने बिना बात नौकरी से त्यागपत्र दे कर दिमाग खराब कर दिया है. अरे, 75 हजार की नौकरी अपनी जिद के कारण छोड़ देने की क्या तुक हुई?’’ नीरज अपनी पत्नी अनुराधा के बारे में बोलते हुए एक बार फिर से भड़क उठा.नीरज और अनुराधा की शादी एक तरह से प्रेमविवाह था.

वह उसे लखनऊ में अपने चाचा की बड़ी बेटी की शादी में मिला था. उस की चचेरी बहन की सहेली थी अनुराधा, पढ़ने में तेज, सुंदर पर रहने में बिलकुल सिंपल. शादीमें भी वह बिलकुल साधारण कपड़ों में थी पर सारी सहेलियां उस की इज्जत करती थीं क्योंकि वही सब को हर साल पढ़ा कर ऐग्जाम में पास कराती थी. उसे एमवीए में आसानी से एडमिशन मिल गया था पर उस का पहनावा, रंगढंग नहीं बदला था.नीरजके मांबाप को वह बहुत पसंद आई थी. नीरज  सामने अपनी प्रेमिका संगीता का भूत चढ़ा था पर कई बार कहने पर भी वह शादी को तैयार नहीं हुई थी. जब संगीता को अनुराधा का पता चला तो उस ने एकदम नीरज को शादी करने को कहा और सम झाया कि सीधीसादी पत्नी होगी तो वे दोनों अपनी जिंदगी इसी तरह प्रेम रस में डूब कर चलाते रहेंगे.

फिर अनुराधा दिल्ली आ गई शादी कर के. नीरज के मातापिता लखनऊ में रहते थे. अनुराधा को अच्छी नौकरी मिल गई और उन का एक बेटा भी हो गया. उसे संगीता के बारे में पता चल गया था पर 1-2 बार बोल कर चुप रह गई. उस का सारा पैसा हर माह नीरज तो लेता था.‘‘वैसे है तो यह हैरानी की बात कि तुम्हारी सीधीसादी पत्नी ने इतना महत्त्वपूर्ण फैसला तुम से बिना सलाह किए हुए ले लिया.’’

‘‘दिमाग में भूसा भरा है उस बेवकूफ के.’’‘‘मु झे लगता है कि जब कुछ दिनों के बाद उस का घर में रहने का शौक पूरा हो जाएगा, तो वह बोर हो कर फिर से नौकरी करने लगेगी.’’‘‘अब उस ने कभी नौकरी करने का नामभी लिया मेरे सामने तो मैं उस का सिर फोड़दूंगा.

अब तो सारी जिंदगी रसोई में ही खटना पड़ेगा उसे.’’‘‘जब तुम ने ऐसा फैसला कर ही लिया है, तो फिर इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो? मेरा कुसूर क्या है जो तुम सप्ताह में 1 बार मिलने वाले प्यार करने के इस मौके को अपना मूड खराब रख कर गंवा रहे हो?’’संगीता की आंखों में उभरे उदासी के भावों को नीरज ने फौरन पकड़ा. अपनी चिड़ व गुस्से को भुलाते हुए उस ने संगीता को अपने नजदीक खींच लिया.अपनी प्रेमिका के सुडौल बदन से उठ रही महक को मादक एहसास फौरन ही उस के रोमरोम को उत्तेजित करने लगा. प्यार के मामले में संगीता उस की हर जरूरत, रुचि और खुशी को पहचानती थी.

अगले 1 घंटे तक उस के जेहन में अपनी पत्नी अनुराधा से जुड़ा कोई खयाल पैदा ही नहीं हो पाया.वह करीब 10 बजे अपने घर पहुंचा. अपनी पत्नी पर नजर पड़ते ही उस का दिमाग फिर से भन्ना उठा.‘‘कैसा लगा आज सारा दिन घर में बिताना. जरा मैं भी तो सुनूं कि किस महान कार्य को निबटाया है तुम ने घर बैठने के पहले दिन?’’

नीरज के लहजे से साफ दिख रहा था कि वह अनुराधा से  झगड़ा करने के लिए पूरी तरह से तैयार है.अनुराधा ने लापरवाही से जवाब दिया, ‘‘छोटेछोटे कामों से फुरसत मिलती, तो ही किसी महान कार्य को करने की सोचती न. वैसे एक बात जरूर सम झ में आ गई.’’‘‘कौन सी?’’

‘‘पहले तुम मेरे औफिस से लौटने का इंतजार करते थे और आज वही काम मु झे करना पड़ा. इस में कोई शक नहीं कि इंतजार करते हुए वक्त के खिसकने की रफ्तार बड़ी धीमी प्रतीत होती है. कहां अटक गए थे?’’ ‘‘पहले ही दिन से किसी बेवकूफ गृहिणी की तरह पूछताछ शुरू कर दी न,’’

नीरज की आवाज में व्यंग्य के भाव उभरे.‘‘तुम छिपाना चाहते हो, तो छिपा लो,’’ लापरवाही से कंधे उचकाने के बाद अनुराधा रसोई की तरफ चली गई.गुस्से से भरे नीरज ने खाना खाने से इनकार कर दिया. वैसे उसे भूख भी नहीं थी क्योंकि उस ने संगीता के साथ पिज्जा खा रखा था.खामोश बनी अनुराधा जल्द ही अपने6 वर्षीय बेटे रोहित के साथ सोने चली गई.

नीरज ने मोबाइल खोला और सोफे पर थकाहारा सा पसर गया.मोबाइल या टीवी में आ रहे किसी भी कार्यक्रम को देखने में उस का मन नहीं लग रहा था. मन की चिंता व बेचैनी के चलते उस की आंखों में नींद की खुमारी आधी रात के बाद ही पैदा हुईर्.अगले दिन रविवार की छुट्टी थी. इसी दिन से नीरज की परेशानियों और मुसीबतों का लंबा सिलसिला आरंभ हो गया.अनुराधा ने स्वादिष्ठ गोभी व आलू के पकौड़ों का नाश्ता उसे कराया. रोहित के साथ खेलते हुए वह काफी खुश नजर आ रह थी. नीरज की नाराजगी भरी खामोशी उस के जोश और उत्साह को कम करने में नाकामयाब रही थी.

सुबह 11 बजे के करीब अनुराधा ने उसे महीने भर के सामान की लंबी लिस्ट पकड़ा दी.‘‘इस का मैं क्या करूं?’’ नीरज ने चिड़कर पूछा.‘‘बाजार जा कर सब खरीद लाइए, हुजूर,’’ अनुराधा ने मुसकराते हुए जवाब दिया.‘‘मैं ने यह काम पहले कभी नहीं किया है, तो अब क्यों करूं?’’ ‘‘मैं घर का सारा काम संभालूंगी तो बाहर के कामों की जिम्मेदारी अब आप की रहेगी.’’

‘‘ये सब मु झ से नहीं होगा.’’ ‘‘घर में सामान के आए बिना खाना कैसे बनेगा, वो मु झे जरूर सम झा देना,’’

कह कर अनुराधा रोहित के साथ लूडो खेलने लगी.‘‘मैं ही मरता हूं,’’ नीरज  झटके से उठ खड़ा हुआ, ‘‘सामान लाने के लिए रुपए दे दो.’’‘‘रुपए मेरे पास कहां से आएंगे अब?’’‘‘क्यों? तुम्हें पगार तो मिली है न?.’’‘‘मिली है और मैं ने 8 साल लगातार जो नौकरी करी है उस की आखिरी पगार को मैं ने अपने व रोहित के जरूरी कामों के लिए बचा कर रखने का फैसला किया है.’’‘‘इस बार तो यह खर्चा तुम ही उठाओ.’’‘‘सौरी, डियर.’’‘‘गो टू हैल,’’ नीरज जोर से चिल्लाया और फिर फर्श को रौंदता हुआ बाजार जाने को घर से निकल गया. अगले शनिवार की शाम को जब वह संगीता से मिला, उस समय तक उस की चिंताएं व तनाव जरूरत से ज्यादा बढ़ चुके थे.वे दोनों एक महंगे होटल में डिनर कर रहे थे, लेकिन नीरज स्वादिष्ठ भोजन का आनंद लेने के बजाय अपनी पत्नी की बुराइयां करने में ज्यादा ऊर्जा बरबाद कर रहा था.‘‘कार और फ्लैट की किश्तें… घर का सामान इधर अखबार का खर्चा, रोहित कीफीस. बिजलीपानी का बिल, ये सब खर्चे मु झे पिछले हफ्ते में करने पड़े हैं, संगीता. मेरी सारी पगार उड़नछू करवा दी है उस पागल ने,’’ इन बातों को याद कर के नीरज बुरी तरह से जलभुन रहा था.

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