एक दिन रविवार की दोपहर नीरज अवनि के घर पहुंच गया और बोला, ‘‘यहां से गुजर रहा था तो सोचा तुम से और तुम्हारी मां से भी मिलता चलूं.’’ अवनि ने नीरज को अपनी मां व छोटी बहन से मिलवाया. फिर हंसती हुई बोली, ‘‘ये है मेरा बैस्ट फ्रैंड दीपक.’’
‘‘अच्छा तो ये हैं दीपक, आप के बारे में अवनि से कई बार सुन चुका हूं,’’ नीरज ने कहा. सब ने आपस में कुछ देर बातें कीं. तभी दीपक ने मां से धीरे से कहा, ‘‘शादी की बात करने का अच्छा मौका है.’’ मां जैसे ही नीरज से कुछ कहने को हुईं, एकदम से नीरज ने अपनी और अपने परिवार की जानकारी देने के बाद कहा, ‘‘मुझे अवनि पसंद है और मैं उस से शादी करना चाहता हूं. शायद अवनि भी यही चाहती है. उस ने शर्म के मारे आप से बात नहीं की होगी. क्या आप हमारी शादी के लिए आशीर्वाद देंगी?’’ एक ही सांस में नीरज ने इतना सब कह दिया और फिर पानी पी कर चुप हो गया.
मां और दीपक की तो मनमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने अवनि की तरफ देखा तो वह शरमाती हुई अंदर चली गई. मां ने ‘हां’ कहा और जल्दी ही दोनों की शादी कराने की बात कही. कुछ दिनों से अवनि खुश भी थी और थोड़ी चिंता में भी रहती. नीरज ने उस से पूछा तो उस ने अपने मन की बात कही, ‘‘मेरी शादी के बाद मां और छोटी का क्या होगा. कैसे होगा?’’
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‘‘इस में चिंता की क्या बात है? हम सब साथ ही रहेंगे, एक ही घर में,’’ नीरज ने कहा. यह सुनते ही अवनि की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा, उसे दोहरी खुशी हुई. शादी की तारीख तय हुई लेकिन इधर कुछ दिनों से दीपक का कुछ अतापता नहीं था. अवनि ने उस के औफिस जा कर पता किया तो मालूम हुआ कि उस की तबीयत खराब होने के कारण वह छुट्टी पर है. वह उस के घर गई तो वहां भी ताला लगा हुआ था. अवनि की चिंता बढ़ गई. दीपक का फोन तो पहले से ही स्विच औफ था. अवनि वापस अपने घर आई और दीपक की चिंता में बिना कुछ खाएपिए ही सो गई.
अगले दिन सुबह एक औटो घर के सामने रुका. उस ने देखा कि दीपक उस में से सामान निकाल रहा है. सामान रखा भी नहीं था कि अवनि ने उस पर सवालों की बौछार कर दी. दीपक चुपचाप सुनता रहा. अवनि जब चुप हुई तो उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी बात खत्म हो गई हो तो मैं कुछ बोलूं?’’ अवनि चुप जरूर हो गई थी पर अभी भी गुस्से में थी. दीपक फिर बोला, ‘‘तुम्हारी शादी के लिए अपनी तरफ से तुम को देने के लिए और घर के लिए छोटामोटा सामान, कपड़े वगैरह लेने इंदौर गया था. तुम को बता कर जाता तो तुम मना करतीं, औफिस से छुट्टी नहीं मिलती तो वहां पर भी तबीयत खराब होने का बहाना बनाया.’’ यह सुन कर अवनि का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ. उस ने सामान की तरफ देखा. उस पर इंदौर का पता लिखा हुआ था. फिर भी वह थोड़े गुस्से में बोली, ‘‘क्या जरूरत थी ये सब लाने की. चलो, ठीक है लाए, तो वहां से क्यों, यहां भी तो सब मिलता है.’’ थोड़ी बहसबाजी के बाद सब नौर्मल हो गया और सब सामान देखने लगे. दीपक लगभग 50-60 हजार रुपए का सामान लाया था. दीपक ने एक बैग नहीं खोला, अवनि के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘औफिस की कुछ स्टेशनरी है.’’ अवनि ने उस से ‘थैक्यू माई बैस्ट फ्रैंड, कहा.
निश्चित दिन शादी हुई. सब खुश थे. दीपक, सुधा और छोटी सब ने मिल कर खूब डांस और धमाल किया. शादी का समारोह सादगीपूर्ण हुआ. अवनि की विदाई हुई. शादी के कुछ दिन बाद अवनि ने मां और छोटी को अपने पास बुला लिया. दीपक कुछ दिन तो अवनि से बराबर मिलता रहा लेकिन बाद में उस का मिलनाजुलना कम हो गया.
समय के साथसाथ छोटी भी बड़ी हो गई. उस की भी शादी हो गई और बाद में मां अपनी बीमारी व अपने पति की याद में रहरह कर चल बसीं. दीपक भी अब कम आता, 2-3 महीने में एक बार. उस को देख कर लगता कि काफी बीमार और कमजोर है. पूछने पर कहता, ‘‘काम ज्यादा है, खानेपीने का समय नहीं मिलता. टाइमटेबल बिगड़ गया है. अब ध्यान रखूंगा.’’ ऐसा आश्वासन देता और चला जाता. एक बार 3 महीने से ज्यादा समय हो गया दीपक से मिले, तो अवनि एक दिन सुबहसुबह ही उस के घर पहुंच गई. पर वहां ताला लगा देख कर उस के औफिस भी गई. औफिस में जा कर पता चला कि वह तो कई महीने से औफिस आया ही नहीं. उस की तबीयत बहुत खराब थी. इंदौर जाने को कह गया है इलाज के लिए. यह सुनते ही अवनि के पैरों तले जमीन खिसक गई. फिर थोड़ा संभलती हुई बोली, ‘‘मुझे वहां उस अस्पताल का पता और फोन नंबर मिल सकता है.’’ औफिस वालों ने उसे अस्पताल का पता और फोन नंबर दे दिया.
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अवनि जैसेतैसे घर पहुंची. नीरज औफिस जा चुके थे लेकिन अवनि ने उन्हें फोन लगा कर फौरन घर बुलाया और सारी बात बताई. नीरज को भी झटका लगा कि दीपक ने कभी बताया क्यों नहीं? दोनों ने फौरन इंदौर जाने का फैसला किया. कुछ देर बार दोनों अपनी छोटी सी बच्ची के साथ अपनी गाड़ी से इंदौर के लिए रवाना हुए. अवनि रास्तेभर यही सोचती रही कि दीपक ने ऐसा क्यों किया, कभी कुछ बताया क्यों नहीं, क्या हुआ होगा उसे?
साढ़े 4 घंटे के सफर के बाद वह उस अस्पताल के सामने खड़ी थी जहां दीपक भरती था. अंदर जाते समय उस के पैर कांप रहे थे. रिसैप्शन पर पहुंच कर नीरज ने दीपक का नाम बता कर उस का वार्ड पूछा तो जवाब मिला ‘‘सैकंड फ्लोर, आईसीयू वार्ड, बैड नंबर 6.’’ ऊपर वार्ड के सामने जा कर नीरज बोले, ‘‘तुम थोड़ी देर यहीं बैठो, मैं देख कर आता हूं. फिर तुम जाना. छोटे बच्चों को अंदर ले जाना मना है.’’ अवनि ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ हां में सिर हिला दिया. नीरज अंदर गए. बैड नंबर 6 के पास जा कर रुके तो देखा, दीपक को औक्सीजन मास्क लगा था. साथ ही खून और एक अन्य दवाई की बोतल भी लगी थी. वह बेहोश था. थोड़ी देर रुकने के बाद वह बाहर आए और बच्ची को लेते हुए अवनि से कहा, ‘‘अब तुम जाओ, और देखो, उस से कुछ बोलना नहीं, वह बेहोश है. बस, चुपचाप देख कर चली आना. फिर डाक्टर से मिलने चलेंगे.’’
अवनि ने इस बार कुछ नहीं बोला. फिर डरतीडरती अंदर गई. बैड नंबर 6 के पास रुकी. दीपक को देखा, उस की ऐसी हालत देख कर वह एकदम से चक्कर खाने लगी. पास खड़ी नर्स ने उसे पकड़ा और बाहर ले आई. बाहर आते ही वह रोने लगी. नीरज उसे चुप कराते हुए बोले, ‘‘चलो, डाक्टर से मिलते हैं.’’
डाक्टर के पास गए तो उन्होंने बताया, ‘‘कुछ सालों से दीपक के फेफड़ों में संक्रमण है जो उसे गैराज में काम करते हुए धूल व धुएं के कारण हो गया था. पहले भी उस का इलाज यहां होता रहा और उसे भरती होने के लिए कहा गया. पर उस ने कहा था, ‘मेरे ऊपर कुछ महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है और मेरी दोस्त की शादी भी है.’ यह कह कर उस ने सभी जरूरी दवाइयां ली और चला गया. फिर बाद में आया ही नहीं. अभी जब वह यहां आया तो उस की स्थिति बेहद गंभीर थी. अभी भी कुछ कहा नहीं जा सकता.’’ अवनि ने नीरज को देखा फिर डाक्टर से कहा, ‘‘उस के इलाज में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, डाक्टर साहब.’’
‘‘देखिए, हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं. सबकुछ हमारे हाथ में नहीं है. और मैं आप को यह भी बता दूं कि उस का इलाज लंबा है पर 90 फीसदी चांसेज हैं कि वह ठीक हो जाए. पर कुछ हमारी भी मजबूरियां हैं.’’ डाक्टर ने कहा. अवनि ने पूछा, ‘‘कैसी मजबूरी?’’ तो डाक्टर ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, ‘‘कुछ दवाइयां हैं जो यहां नहीं मिलतीं, उन्हें और्डर दे कर मुंबई या फिर चैन्नई से मंगवाना पड़ता है और कंपनी को कुछ ऐडवांस भी देना पड़ता है. दीपक ने जो रकम यहां जमा की थी वह सब खत्म हो गई. उस के औफिस से भी एक बार 50 हजार रुपए का चैक आया था. वह भी दवाई और अस्पताल के चार्ज में लग गया. उसे बाहर तो नहीं कर सकते, पर कुछ ही दिनों में हम उसे जनरल वार्ड में शिफ्ट करने वाले हैं.’’
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दीपक की ऐसी स्थिति के बारे में सुन कर अवनि अपना रोना रोक नहीं सकी और बाहर आ गई. नीरज ने डाक्टर से कहा, ‘‘अब आप रुपयों की चिंता न करें और जो दवाइयां बाहर से मंगवानी हों, फौरन मंगवाए और दीपक का इलाज करें.’’ यह कहते हुए नीरज ने अपने बैग से चैकबुक निकाली और 1 लाख रुपए का चैक बना कर डाक्टर को दे दिया. डाक्टर ने चैक लेते हुए कहा, ‘‘आप निश्चिंत रहिए. मैं आज ही ईमेल कर दवाइयां का और्डर दे देता हूं और कल ड्राफ्ट से ऐडवांस भी भेज दूंगा. कल रात तक फ्लाइट से दवाइयां भी आ जाएंगी, फिर हम उस का बेहतर इलाज कर पाएंगे. उम्मीद रखिए. 1-2 महीने में वह बिलकुल ठीक हो जाएगा.’’ नीरज डाक्टर के रूम से बाहर आए तो देखा कि बच्ची सो गई थी. नीरज ने अवनि के कंधे पर हाथ रखा तो उन्हें देख कर उस की आंखों में आंसू आ गए और वह हाथ जोड़ कर उम्मीदभरी नजरों से नीरज को देखने लगी.
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