स्टमक फिट तो आप फिट

जीवनशैली और खानपान में बदलाव का नतीजा है कि किशोर और युवाओं में पेट के अल्सर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. सामान्य भाषा में कहें तो पेट में छाले व घाव हो जाने को पेप्टिक अल्सर कहा जाता है.

क्यों होता है पेप्टिक अल्सर: पेट में म्यूकस की एक चिकनी परत होती है, जो पेट की भीतरी परत को पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड के तीखेपन से बचाती है. इस ऐसिड और म्यूकस परतों के बीच तालमेल होता है. इस संतुलन के बिगड़ने पर ही अल्सर होता है.

कारण है एच. पायलोरी बैक्टीरिया: पेप्टिक अल्सर का सबसे प्रमुख कारण एच. पायलोरी बैक्टीरिया है. वर्ष 1982 में एक औस्ट्रेलियाई डाक्टर बेरी जे. मार्शल ने एच. पायलोरी (हेलिकोबेक्टर पायलोरी) नामक बैक्टीरिया का पता लगाया था. इस बैक्टीरिया  को बिस्मथ के जरिए जड़ से मिटाने में सफल होने की वजह से 2005 का नोबेल पुरस्कार भी उन्हें मिला. उन्होंने माना था कि सिर्फ खानपान और पेट में ऐसिड बनने से पेप्टिक अल्सर नहीं होता, बल्कि इसके लिए एक बैक्टीरिया भी दोषी है. इसका नाम एच. पायलोरी रखा गया. एच. पायलोरी का संक्रमण मल और गंदे पानी से फैलता है.

अल्सर के लक्षण: अल्सर के लक्षणों में ऐसिडिटी होना, पेट फूलना, गैस बनना, बदहजमी, डायरिया, कब्ज, उलटी, आंव, मितली व हिचकी आना प्रमुख हैं.

पेप्टिक अल्सर होने पर सांस लेने में भी दिक्कत होती है. यदि पेप्टिक अल्सर का जल्दी उपचार न किया जाए और यह लंबे समय तक शरीर में बना रहे तो यह स्टमक कैंसर का कारण भी बन जाता है.

आंतरिक रक्तस्राव होने के कारण शरीर में खून की कमी हो जाती है. पेट या छोटी आंत की दीवार में छेद हो जाते हैं, जिससे आंतों में गंभीर संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

क्या न करें: पेप्टिक अल्सर से बचना है तो धूम्रपान, तंबाकू युक्त पदार्थों, मांसाहार, कैफीन तथा शराब  से दूर रहें.

क्या करें: पेट की समस्याओं से बचने और पाचनतंत्र को सही रखने के लिए इन टिप्स पर गौर करें:

  • पुदीना पेट को ठंडा रखता है. इसे पानी में उबाल कर या मिंट टी के रूप में लिया जा सकता है.
  • अजवाइन पेट को हलका रखती है और दर्द से भी राहत दिलाती है.
  • बेलाडोना मरोड़ और ऐंठन से राहत दिलाता है.
  • स्टोमाफिट लिक्विड और टैबलेट पेट को फिट रखने में लाभकारी है. इस में मौजूद पुदीना, अजवाइन, बेलाडोना और बिस्मथ विकार को बढ़ने से रोकने के साथसाथ पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखता है. डाक्टर की सलाह से इस का सेवन किया जा सकता है.

थकान, कमजोरी का इलाज है प्रोटीन

प्रोटीन शरीर में पेशियों, अंगों, त्वचा, ऐंजाइम, हारमोन आदि बनाने के लिए बेहद जरूरी होते हैं. ये छोटे अणु हमारे शरीर में कई महत्त्वपूर्ण काम करते हैं.

हमारे शरीर में 20 प्रकार के एमिनो ऐसिड होते हैं, जिन में से 8 जरूरी एमिनो ऐसिड कहलाते हैं, क्योंकि शरीर इन्हें खुद नहीं बना सकता. इसलिए इन्हें आहार के माध्यम से लेना बहुत जरूरी होता है. शेष 12 एमिनो ऐसिड गैरजरूरी कहे जा सकते हैं, क्योंकि हमारा शरीर खुद इन का उत्पादन कर सकता है. प्रोटीन छोटे अणुओं से बने होते हैं, जिन्हें एमिनो ऐसिड कहते हैं. ये एमिनो ऐसिड एकदूसरे के साथ जुड़ कर प्रोटीन की शृंखला बना लेते हैं.

प्रोटीन से युक्त आहार को पचाने के लिए शरीर को ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है. इसलिए प्रोटीन को पचाने के दौरान शरीर में जमा कैलोरी (वसा और कार्बोहाइड्रेट) बर्न हो जाती है. इस तरह प्रोटीन का सेवन करने से शरीर का वजन सामान्य बना रहता है.

अगर आप शाकाहारी हैं और ऐनिमल प्रोटीन का सेवन नहीं करते हैं तो आप के लिए प्रोटीन की जरूरत पूरी करना थोड़ा मुश्किल होगा. यही कारण है कि शाकाहारी लोगों में प्रोटीन की कमी होने की संभावना ज्यादा होती है.

एक व्यक्ति को औसतन कितनी मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है?

हर व्यक्ति को अपने शरीर के अनुसार अलग मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है. यह व्यक्ति की ऊंचाई और वजन पर निर्भर करता है. सही मात्रा में प्रोटीन का सेवन कई चीजों पर निर्भर करता है जैसे आप कितने ऐक्टिव हैं, आप की उम्र क्या है? आप का मसल मास क्या है? आप की सेहत कैसी है?

अगर आप का वजन सामान्य है, आप ज्यादा व्यायाम नहीं करते, भार नहीं उठाते तो आप को औसतन 0.36 से 0.6 ग्राम प्रति पाउंड (0.8 से 1.3 ग्राम प्रति किलोग्राम वजन) प्रोटीन की जरूरत होती है. औसत पुरुष के लिए 56 से 91 ग्राम रोजाना और औसत महिला के लिए 46 से 75 ग्राम रोजाना.

प्रोटीन की कमी क्या है?

प्रोटीन की कमी बहुत ज्यादा होने पर शरीर में कई बदलाव आ सकते हैं. इन की कमी शरीर के लगभग हर काम को प्रभावित करती है. ये 13 लक्षण बताते हैं कि आप अपने आहार में पर्याप्त प्रोटीन का सेवन नहीं कर रहे हैं.

वजन में कमी: प्रोटीन की कमी के 2 प्रकार हैं-

पहला- क्वाशिओरकोर. यह तब होता है जब आप कैलोरी तो पर्याप्त मात्रा में ले रहे हैं, लेकिन आप के आहार में प्रोटीन की कमी है और दूसरा मरैज्मस. यह तब होता है जब आप कैलोरी और प्रोटीन दोनों ही कम मात्रा में ले रहे होते हैं.

अगर आप प्रोटीन का सेवन पर्याप्त मात्रा में नहीं कर रहे हैं, तो हो सकता है कि आप का आहार संतुलित नहीं है. आप के आहार में कैलोरी पर्याप्त मात्रा में नहीं है या आप का शरीर भोजन को ठीक से नहीं पचा पा रहा है. अगर आप बहुत कम मात्रा में कैलोरी का सेवन करते हैं, तो आप का शरीर प्रोटीन का इस्तेमाल ऐनर्जी पाने के लिए करेगा न कि पेशियां बनाने के लिए. इस से आप का वजन कम हो जाएगा. हालांकि कुछ लोगों में वजन बढ़ जाता है, क्योंकि उन के शरीर में प्रोटीन को पचाने के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं होती.

बाल, त्वचा और नाखूनों की समस्याएं: प्रोटीन की कमी का बुरा असर अकसर बालों, त्वचा और नाखूनों पर पड़ता है, क्योंकि ये अंग पूरी तरह प्रोटीन से बने होते हैं. प्रोटीन की कमी से अकसर सब से पहले बाल पतले होने लगते हैं, त्वचा पर से परतें उतरने लगती हैं और नाखूनों में दरारें आने लगती हैं.

थकान या कमजोरी महसूस होना: जब शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं मिलता तो पेशियां कमजोर होने लगती हैं, शरीर पेशियों में से एमिनो ऐसिड पाने की कोशिश करता है, जिस से मसल मास कम हो जाता है और मैटाबोलिक रेट भी कम होने लगता है. इस से शरीर में ताकत और ऐनर्जी कम हो जाती और आप हमेशा थका हुआ महसूस करते हैं.

चीनी या मीठा खाने की इच्छा: प्रोटीन को पचाने में कार्बोहाइड्रेट की तुलना में ज्यादा समय लगता है. जब आप ज्यादा कार्बोहाइड्रेट से युक्त भोजन खाते हैं, तो ब्लड शुगर अचानक बढ़ती है और फिर कम हो जाती है. इसलिए चीनी या मीठा खाने की इच्छा होती है. इस से बचने के लिए अपने आहार में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट दोनों की पर्याप्त मात्रा का सेवन करें ताकि आप का शरीर भोजन को धीरेधीरे पचाए और ब्लड शुगर के स्तर में अचानक बदलाव न आए.

ऐनीमिया या खून की कमी: अगर आप के शरीर में प्रोटीन की कमी है तो विटामिन बी12 और फौलेट की कमी होने की संभावना भी बढ़ जाती है, जिस के कारण खून की कमी यानी ऐनीमिया हो सकता है. इस में शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है, जिस कारण ब्लड प्रैशर कम हो सकता है और आप थकान भी महसूस कर सकते हैं.

प्रतिरक्षा क्षमता/ इम्यूनिटी: प्रोटीन की कमी से इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है और फिर बारबार बीमार पड़ने लगते हैं. ठीक होने में भी समय लगता है. इम्यून सैल्स प्रोटीन से बने होते हैं. इसलिए अगर आप का आहार संतुलित नहीं है तो आप डोमिनो इफैक्ट से परेशान हो सकते हैं.

ब्लड प्रैशर और हार्ट रेट कम होना: प्रोटीन की कमी से ब्लड प्रैशर कम होने की संभावना बढ़ जाती है. अगर शरीर को सही पोषण न मिले तो इस का असर शरीर के सभी कार्यों पर पड़ता है.

लिवर की समस्याएं: प्रोटीन की कमी और लिवर रोग एकदूसरे से संबंधित हैं. प्रोटीन के बिना आप का लिवर डिटौक्सीफिकेशन का काम ठीक से नहीं कर पाता.

पेशियों और जोड़ों में दर्द: प्रोटीन की कमी होने पर शरीर ऊर्जा की जरूरत पूरी करने के लिए पेशियों से कैलोरी बर्न करने लगता है, जिस से पेशियों एवं जोड़ों में दर्द, कमजोरी महसूस होने लगती है.

पेशियों में कमजोरी: मध्य आयुवर्ग के पुरुषों में अकसर उम्र बढ़ने के साथ सार्कोपेनिया हो जाता है. उन का मसल मास कम होने लगता है. अगर वे अपने आहार में प्रोटीन का सेवन पर्याप्त मात्रा में न करें तो यह समस्या और ज्यादा बढ़ सकती है.

सूजन: अगर आप के शरीर में प्रोटीन की कमी है, तो आप एडिमा यानी सूजन से पीडि़त हो सकते हैं. शरीर में पानी भरने से आप अपनेआप में फुलावट महसूस करते हैं. प्रोटीन टिशूज में खासतौर पर आप के पैरों और टखनों में पानी भरने से रोकता है.

चोट जल्दी ठीक न होना: प्रोटीन की कमी से शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता तो कमजोर होती ही है, साथ ही घाव को भरने के लिए नए टिशूज और नई त्वचा बनाने के लिए भी प्रोटीन की जरूरत होती है.

बच्चों का ठीक से विकास न होना: प्रोटीन न केवल पेशियों और हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि शरीर के विकास के लिए भी जरूरी है. इसलिए बच्चों में प्रोटीन की कमी घातक साबित होती है. प्रोटीन की कमी के कारण उन का विकास ठीक से नहीं हो पाता है.

-डा. श्रुति शर्मा

डाइट काउंसलर, बैरिएट्रिक एवं न्यूट्रिशनिस्ट, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

नैचुरल तरीके से बढ़ाएं ब्रैस्ट मिल्क की मात्रा

हर युवती शादी के बाद मां बनने का सपना देखती है और जब वह मां बन जाती है तो वह चाहती है कि वह अपने बच्चे को हर खुशी दे पाए और उस का बच्चा हमेशा हैल्दी रहे. इस के लिए वह अपने बच्चे को कष्ट सह कर भी खुद का दूध पिलाती है, क्योंकि डाक्टर्स मानते हैं कि बच्चे के लिए शुरुआती 6 महीने मां का दूध सब से महत्त्वपूर्ण होता है. क्योंकि इस में सभी जरूरी पौष्टिक तत्त्व जो होते हैं जो बच्चे के विकास के लिए जरूरी होते हैं. साथ ही उन के इम्यून सिस्टम को स्ट्रौंग बनाने का भी काम करते हैं.

लेकिन आज खानपान व अन्य हैल्थ कारणों से लेक्टेशन प्रौब्लम आ रही है जिस के कारण पर्याप्त मात्रा में मां के स्तनों में दूध नहीं आने के कारण बच्चे की जरूरत पूरी नहीं हो पाती. ऐसे में झंडु सतावरी काफी फायदेमंद है. क्योंकि ये लेक्टेशन का नैचुरल उपाय है जो मां के दूध की मात्रा को नैचुरल ढंग से बढ़ाने का काम जो करता है.

गलैक्टेगोज बढ़ाए ब्रैस्ट मिल्क

फीड कराने वाली मां को जरूरत होती है कि वो पौष्टिक डाइट खाए जिस से उस के स्तनों में पर्याप्त मात्रा में दूध आ पाए. लेकिन कई बार अच्छा खाने के बावजूद भी दूध की मात्रा घट जाती है. ऐसे में गलैक्टेगोज के माध्यम से ब्रैस्ट मिल्क को बढ़ाने की सलाह दी जाती है. आप को बता दें कि सतावरी में ग्लैक्टेगोज गुण होते हैं.

क्या है सतावरी

सतावरी जो अधिकांशत: हिमालय में पाई जाती है और इसे सदियों से आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में प्रयोग किया जाता है. इस में हीलिंग गुण हाने के साथ ब्रैस्ट मिल्क के उत्पादन को बढ़ाने की क्षमता भी होती है.

कैसे है मददगार

सतावरी जिसे गलेक्टेगोज के रूप में जानते हैं. ये कोर्टिकोइड और प्रोलेक्टिन के उत्पादन को बढ़ाने का काम करता है. जिस से मां के दूध की क्वालिटी व मात्रा दोनों बढ़ती है. साथ ही ये स्टीरोइड हारमोन को सीक्रेशन के लिए प्रेरित करता है जिस से दूध की क्वालिटी सुधरने के साथसाथ ब्रैस्ट साइज में भी बढ़ोतरी होती है. साथ ही ये नैचुरल होने के कारण सैफ है. इसे आप दूध के साथ ले कर खुद व आपने बच्चे को हैल्दी रख सकते हैं.

हैल्थ को दें प्राथमिकता

आज हमारा लाइफ स्टाइल ऐसा हो गया है जिस के कारण हम अपनी हैल्थ पर जरा भी ध्यान नहीं देते हैं जिस से ढेरों कमियां हम में रह जाती हैं और इस का असर प्रैग्नैंसी के समय व उम्र बढ़ने पर साफ दिखता है. इसलिए जरूरी है कि पौष्टिक डाइट लें ताकि आप हमेशा सेहतमंद रहें.

गर्भ में पल रहे बच्चे हो रहे हैं जहरीले पदार्थों से प्रभावित

गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी है कि वो अपने और गर्भ में पल रहे बच्चे का खासा ख्याल रखें. पर लाख कोशिशों के बाद भी ऐसे बहुत से कारक हैं जिनसे गर्भ में पल रहा बच्चा नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है. हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट की माने तो गर्भवती महिला जब किसी खतरनाक रसायन के संपर्क में आती है तो इसका असर पेट में पल रहे बच्चे के फेफड़ों पर होता है. इस बात का खुलासा हाल ही में प्रकाशित एक जर्नल में हुआ है.

स्पेन में हुई इस शोध में 1033 गर्भवती महिलाओं को शामिल किया गया था. इनकी जांच के बाद प्राप्त तथ्यों से ये स्पष्ट हुआ कि बच्चों के जन्म से पहले पैराबेंस फ्थेलेट्स और परफ्लुओरोअल्काइल सब्सटैंस (PFAS) के संपर्क और बच्चों के फेफड़े के ठीक से काम न करने के बीच गहरा संबंध है.

आपको बता दें कि घरेलू उत्पादों और खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में पीएफएएस पाए जाते हैं. भोजन और पानी के द्वारा पीएफएएस तत्व हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं. इसके बाद नाभि के माध्यम से इसका असर अजन्में बच्चे तक भी पहुंचता है.

इस शोध से जुड़े शोधकर्ताओं की माने तो “रोकथाम के उपायों से रासायनिक पदार्थो के संपर्क से बचा जा सकता है. इसके अलावा सख्त विनियमन और जन-जागरूकता के लिए उपभोक्ता वस्तुओं पर लेबल लगाने से बचपन में फेफेड़े खराब होने से रोकने में मदद मिल सकती है और लंबे समय में स्वास्थ्य में इसका लाभ मिल सकता है.”

बुढ़ापे में चाहते हैं अच्छी याद्दाश्त तो आज से खाना शुरू करें ये फल

फलों के सेवन हमारी सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है. इनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व शरीर की बहुत सी जरूरतों को पूरी करते हैं. इस खबर में हम आपको संतरे से होने वाले फायदों के बारे में बताएंगे. हाल के एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि संतरा खाने से दिमाग की ताकत बढ़ती है.

शोधकर्ताओं की माने तो रोज एक संतरा खाने से दिमाग तेज होता है और भूलने की बीमारी का खतरा एक तीहाई कम हो जाता है.

हाल ही में हुई एक अध्ययन के रिपोर्ट की माने तो संतरा बुढ़ापे में होने वाली डिमेंशिया जैसी खतरनाक बीमारी में बेहद लाभकारी होता है. संतरे में सिट्रिक एसिड होता है, जिसमें नाबाइटिन नाम का रसायन होता है. ये रसायन याददाश्त को कमजोर करने वाले कारकों को खत्म कर देता है.

अध्ययन में ये बात भी सामने आई है कि मस्तिष्क की कई बीमारियों में, जैसे डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी बीमारियों में खट्टे फल काफी प्रभावी होते हैं. पशुओं पर किए गए परीक्षण में यह बात सामने आई कि साइट्रिक एसिड में पाया जाने वाले रासायनिक नाबाइटिन स्मृति को धीमा नहीं होने देता.

इस शोध को करीब 13,000 से अधिक लोगों पर किया गाया. सैंपल में मध्यम आयु व बुजुर्गों और महिलाओं को रखा गया. इन पर ये शोध कई सालों तक चला. शोध के नतीजों में पाया गया कि खट्टे फलों का सेवन करने वाले लोगों में डिमेंशिया के विकसित होने का खतरा उन लोगों से 23 फीसदी कम हो जाता है, जो सप्ताह में 2 से भी कम बार खट्टे फलों का सेवन करते हैं.

वो 5 मसाले जो रखेंगे आपके दिल का ख्याल

मसालों का सेवन केवल स्वाद के लिए नहीं किया जाता है बल्कि स्वास्थ की बेहतरी में भी इनका योगदान बेहद अहम होता है. मसालों में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं जो आपके दिल के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.

इस खबर में हम आपको उन पांच मसालों के बारे में बताएंगे जिनके सेवन से आप अपने दिल को हेस्दी रख सकेंगी.

दाल चीनी

खाने में दालचीनी का इस्तेमाल शरीर में खून के बहाव को बोहतर बना कर रखता है. इससे शरीर में ब्लड क्लौटिंग का खतरा काफी कम हो जाता है. दिल की परेशानियों को दूर रखने के लिए जरूरी है कि आप रोज एक चुटकी दालचीनी का सेवन करें.

लहसुन

दिल का काफी नुकसान होता है बढ़े हुए कौलेस्ट्रोल से. लहसुन दिल की बीमारियों में काफी कारगर होता है. बढ़े हुए कौलेस्ट्रोल को कम करने में ये बेहद फायदेमंद होता है. आपको बता दें कि लहसुन में एलिसिन नाम का एक एंटीऔक्सिडेंट पाया जाता है, इसका काम होता है कौलेस्ट्रोल को नियंत्रण में रखना. इसके अलावा ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी लहसुन काफी असरदार होता है.

हल्दी

आपको बता दें कि हल्दी में एंटीऔक्सिडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं. ये तत्व हमारे शरीर में ब्लड कौलेस्ट्रोल को कम करने में बेहद असरदार होते हैं. डायबिटिज से बचाव करन के लिए ये काफी प्रभावशाली उपाय है.

काली मिर्च

काली मिर्च कौर्डियोप्रोटेक्ट‍िव एक्शन को सक्रिय करने का काम करती है. ये औक्सीडेटिव डैमेज से हमे सुरक्षा देता है इसके साथ ही कार्डियक फंक्शन को भी सही रखता है.

धनिया के बीज

धनिया के बीजों में एंटीऔक्सिडेंट की मात्रा अधिक होती है. इसमें मौजूद तत्व हमारे दिल को फ्री रेडिकल्स से सुरक्षित रखते हैं. कौलेस्ट्रोल को कंट्रोल करने के लिए और ब्लड फ्लो बढ़ाने के में धनिए का बीज बेहद कामगर होता है.

पैरों में जलन को न करें नजरअंदाज

पैरों में जलन की समस्या को आमतौर पर अधिकतर लोग नजरअंदाज करते हैं. उसे गंभीरता से नहीं लेते और सोचते हैं कि अपनेआप ठीक हो जाएगी, लेकिन जानकारों का मानना है कि इस में लापरवाही बरतना बिलकुल भी सही नहीं है. यह समस्या शरीर के बाकी हिस्सों में भी परेशानी पैदा कर सकती है.

रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार हमें आने वाली बीमारी के बारे में कतई अहसास नहीं हो पाता और यह बीमारी विकराल रूप धारण कर लेती है जिस की वजह से घातक नतीजे भुगतने पड़ते हैं. ऐसी ही एक समस्या है पैरों में जलन. पैरों में जलन का मुख्य कारण है शरीर में विटामिन बी, फोलिक एसिड या कैल्शियम की कमी होना.

यह परेशानी न केवल एक खास आयुवर्ग के लोगों में होती है बल्कि यह किसी को भी अपना का शिकार बना सकती है.

क्या हैं कारण

  • पैरों में जलन हलकी से तेज और गंभीर हो सकती है. अकसर यह जलन तंत्रिकातंत्र में गड़बड़ी या शिथिलता के कारण होती है.
  • न्यूरोपैथी बीमारी भी पैरों की जलन का कारण हो सकती है, क्योंकि न्यूरोपैथी का असर सभी नसों पर पड़ता है. इसलिए यह जरूरी रूप से सभी अंगों और तंत्रों को प्रभावित कर सकती है. इस में पैरों में जलन, दर्द और चुभन काफी संवेदनशील तरीके से महसूस होती है.
  • विटामिन बी12 तंत्रिकातंत्र सहित हमारे शरीर के कई कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
  • पैरों में जलन हाइब्लड प्रैशर के कारण भी हो सकती है. हाइब्लड प्रैशर के कारण ब्लड सर्कुलेशन में भी परेशानी होती है. इस से त्वचा के रंग में बदलाव, पैरों की पल्सरेट और हाथपावों के तापमान में कमी रहती है, जिस से पैरों में जलन की समस्या महसूस होती है.
  • किडनी संबंधी बीमारी होने पर भी पैरों में जलन होना स्वाभाविक है.
  • पैरों में जलन का प्रमुख कारण डायबिटीज होता है. इन लोगों में इस बीमारी के निदान के लिए किसी अतिरिक्त परीक्षण की जरूरत नहीं होती. और डाक्टर तुरंत इस पर नियंत्रण कर लेता है.
  • थायरायड हार्मोन का लैवल कम होने से भी पैरों में जलन की समस्या होती है.
  • दवाओं का दुष्प्रभाव, एचआईवी की दवाएं लेने और कीमोथेरैपी से भी पैरों में जलन हो सकती है.

जांच अवश्य कराएं

  • इलैक्ट्रोमायोग्राफी  :  ईएमजी टैस्ट के लिए मांसपेशियों में सूई डाली जाती है और इस की क्रियाओं के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है.
  • लैबोरटरी टैस्ट :  पैरों में जलन के कारणों का पता लगाने के लिए लैबोरटरी में ब्लड, यूरिन और रीढ़ का लिक्विड टैस्ट किया जाता है.
  • नर्व बायोप्सी :  गंभीर परिस्थितियों में इस टैस्ट को भी किया जाता है. इस में डाक्टर शरीर से नर्व टिशू का एक टुकड़ा निकाल कर माइक्रोस्कोप से उस की पूरी जांच करते हैं.
  • फायदेमंद है सिरका :  पैरों की जलन से सिरका भी नजात दिलाता है. एक गिलास गरम पानी में 2 बड़े चम्मच कच्चा व अनफिल्टर्ड सिरका मिला कर पीने से आप के पैरों की जलन खत्म हो जाएगी.

घरेलू उपचार

  • पैरों की जलन से तुरंत राहत देने में सेंधा नमक कारगर है. मैग्नीशियम सल्फेट से बना सेंधा नमक सूजन और दर्द को कम करने में मददगार साबित होता है. इस के लिए एक टब कुनकुने पानी में आधा कप सेंधा नमक मिला कर पैरों को 10 से 15 मिनट तक उस में डुबो कर रखें. इस उपाय को कुछ समय तक नियमित करते रहें. सेंधा नमक के पानी का इस्तेमाल डायबिटीज, हाइब्लड प्रैशर या हार्ट डिसीज वालों के लिए सही नहीं है. इस के इस्तेमाल से पहले अपने डाक्टर से एडवाइज अवश्य लें.
  • सरसों का तेल प्राकृतिक औषधि है और यह पैरों की जलन को दूर करने में मददगार साबित होता है. एक कटोरी में 2 चम्मच सरसों का तेल लें और उस में 2 चम्मच ठंडा पानी या एक बर्फ का टुकड़ा मिला दें, फिर इस से अपने पैर के तलवों में खूब मालिश करें, सप्ताह में 2 बार ऐसा करने से आप को आराम मिलेगा.
  • सिरका भी पैरों की जलन से आराम दिलाता है. एक गिलास गरम पानी में 2 चम्मच कच्चा व अनफिल्टर्स सिरका मिला कर पिएं. ऐसा करने से आप के पैरों की जलन दूर हो जाएगी.
  • इस बीमारी के दौरान शाकाहारी लोगों को अपने खानपान का खास ध्यान रखना चाहिए. दूध दही. पनीर, चीज, मक्खन, सोया मिल्क या टोफू का उन्हें नियमित सेवन करना चाहिए. जबकि मासाहारियों को अंडे, मछली रैडमीट, चिकन और सी फूड से विटामिन बी12 भरपूर मात्रा में मिलता है.
  • लौकी को काट कर उस का गूदा पैरों के तलवों पर मलने से भी जलन दूर होती है.
  • पैरों में जलन होने पर करेले के पत्तों के रस की मालिश करने से भी लाभ होता है.
  • हलदी में भरपूर मात्रा में पाए जाने वाला करक्यूमिन पूरे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करता है. हलदी में मौजूद एंटीइनफ्लेगेटरी गुण पैरों की जलन और दर्द को दूर करने में मददगार साबित होता है. हलदी को दूध के साथ भी ले सकते हैं.

भारतीय महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा है सर्वाइकल कैंसर का खतरा

दुनियाभर में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. कैंसर आज लोगों के मौत के सबसे बड़े कारणों में से एक है. कैंसर 100 से भी अधिक प्रकार के होते हैं. इनमें सबसे आम फेफड़े, ब्रेस्ट, प्रोस्टेट, मुंह और सर्वाइकल कैंसर है. कुछ रिपोर्टों की माने तो मध्य वर्ग की 50 फीसदी महिलाओं में ह्यूमन पेपिलोमावायरस (HPV) होने का खतरा सबसे अधिक होता है. सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित अधिकतर महिलाओं में इस वायरस का इन्फेक्शन पाया गया है.

आपको बता दें कि HPV कई तरह के वायरसों का समूह होता है, जो गर्भाशय ग्रीवा को संक्रिमित करता है. ये वायरस सेक्शुअल रिलेशन बनाने से एक से अगले व्यक्ति में फैलता है.

दो प्रकार के ह्यूमन पेपिलोमावायरस से सर्वाइकल कैंसर होने का खतरा 70 फीसदी अधिक हो जाता है. इस वायरस के टेस्ट रिपोर्ट में ये सामने आया है कि साल 2014 और 2018 में 31 से 45 वर्ष की लगभग 4,500 महिलाओं में 47 फीसदी महिलाओं में ह्यूमन पेपिलोमावायरस से पीड़ित थीं. जबकि16 से 30 वर्ष की आयु वाली 30 फीसदी  महिलाओं में इस कैंसर का प्रभाव देखा गया है.

लोगों की जान के लिए खतरनाक कैंसरों के प्रकार में सर्वाइकल कैंसर प्रमुख है. भारत में महिलाओं की मौत का दूसरा बड़ा कारण है सर्वाइकल कैंसर. जानकारों की माने तो अगर शुरुआती चरणों में इसका इलाज किया जाए तो इसके बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती है.

बदन दर्द का कारण हो सकता है अवसाद

अवसाद एक ऐसा डिस्आर्डर है जिसे दिमाग से जोड़ कर देखा जाता है. लेकिन इस के लक्षण शारीरिक रूप से भी दिखाई देते हैं. जिन्हें अवसाद की समस्या होती है उन में से लगभग 50 प्रतिशत लोगों को शरीर में दर्द महसूस होता हैं. दरअसल शरीर और मस्तिष्क आपस में जटिल रूप से जुड़े होते हैं. जब एक ठीक नहीं है तो इस बात की आशंका बहुत बढ़ जाती है कि दूसरे पर भी इस का प्रभाव दिखाई देने लगे. कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि अवसाद व्यक्ति के दिमाग में दर्द पैदा करने वाले हिस्सों को एक्टिव कर देता है. जिस से हमें मसल्स पेन ,जौइंट पेन ,चेस्ट पेन और हेडएक आदि का एहसास हो सकता है.

कई दफा हम दर्द खत्म करने की दवाईयां खाते रहते हैं पर इस दर्द की मूल वजह यानी अवसाद पर ध्यान नहीं देते और लंबे समय तक तकलीफ सहते रहते हैं.

यूनिवर्सिटी औफ कोलोरेडो, हेल्थ साइंस सेंटर के डौक्टर रोबर्ट डी कीले ने 200 से ज्यादा मरीजों का अध्ययन कर पाया कि शुरुआत में डौक्टर्स उन की

शारीरिक तकलीफों खासकर गले और बदन में दर्द की वास्तविक वजह यानी अवसाद का अंदाजा भी नहीं लगा सके. इस वजह से लंबे समय तक उन्हें अपनी तकलीफों से छुटकारा नहीं मिला. केवल डौक्टर ही नहीं बल्कि मरीज भी एंटीडिप्रेशन मेडिसिन लेने को तैयार नहीं थे क्यों कि उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि वे डिप्रेशन के मरीज है.

क्या है अवसाद

अवसाद एक गंभीर स्‍थिति है. हालांकि यह कोई रोग नहीं बल्कि एक संकेत है कि आप के शरीर और जीवन में असंतुलन पैदा हो गया है. अवसाद से निपटने में दवाइयां (एंटीडिप्रेसेंट) उतनी कारगर नहीं होती जितनी आप की सकारात्मक सोच और जीवनशैली में बदलाव का प्रयास. साधारणतः अवसाद के प्रारंभिक शारीरिक लक्षणों के तौर पर नींद की कमी, कमजोरी, थकावट, आदि की पहचान की जाती है. पर कई दफा इस की वजह से शारीरिक पीड़ा और दर्द जैसे बैक, नेक और ज्वाइंट पेन आदि भी पैदा होने लगते हैं. अवसादग्रस्त व्यक्ति न तो ठीक तरह से खाते हैं और न ही पूरी नींद ले पाते हैं. इस से भी मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं जिस से शरीर और गर्दन में दर्द हो सकता है.

अवसाद और शरीर में दर्द होना

इस सन्दर्भ में सरोज सुपरस्पेशेलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली के न्यूरोलौजिस्ट डा. जयदीप बंसल कहते हैं कि शारीरिक दर्द और अवसाद में गहरा बायलौजिकल संबंध है. न्युरोट्रांसमीटर्स, सेरोटोनिन और नोरेपिनेफ्रीन दर्द और मूड दोनों को प्रभावित करते हैं. अवसाद की स्थिति में ये अनियंत्रित हो जाते हैं. इन का अनियंत्रित हो जाना अवसाद और दर्द दोनों से जुड़ा है. सामान्य तौर पर दर्द इस बात का सूचक होता है कि अंदर कोई परेशानी है. यह परेशानी शारीरिक या मानसिक या दोनों हो सकती है. कईं बार हमें कोई शारीरिक समस्‍या नहीं होती तब भी हमारे शरीर के किसी हिस्‍से में दर्द होने लगता है इसे साइकोसोमैटिक पेन कहते हैं. जिस का तात्पर्य है कि मस्तिष्क और मन की परेशानी शारीरिक रूप से प्रदर्शित हो रही है.

समय के साथ बढ़ जाता है दर्द

अधिकतर अवसादग्रस्त लोग खुद को लोगों से अलगथलग कर घऱ की चहारदीवारी में कैद कर लेते हैं. इस से उन की शारीरिक सक्रियता काफी कम हो जाती है. कुछ लोग घंटो सोए रहते हैं या लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर या मोबाइल पर लगे रहते हैं. इस दौरान वो अपना पौस्चर भी ठीक नहीं रखते। गलत पौस्चर और लगातार एक ही स्‍थिति में बैठे रहने से कमर दर्द और गर्दन में दर्द की समस्या हो जाती है. कईं लोग कम्‍प्‍युटर पर झुक कर काम करते हैं जिस से गर्दन में खिंचाव होता है. दिनरात बिस्तर में दुबके रहना, मांसपेशियों को कमजोर बना देता है. इस से भी शरीर और जोड़ों में दर्द होने लगता है। शारीरिक रूप से सक्रिय न रहने से हड्डियां भी कमजोर पड़ने लगती हैं.

उपाय

  1. जीवनशैली में बदलाव लाएं.
  2. सकारात्मक सोच पैदा करें क्यों कि इस से शरीर में एक नई उर्जा का संचार होता है.
  3. जोड़ों को क्रियाशील बनाए रखने के लिए नियमित रूप से कसरत करें. इस से हड्डियां मजबूत होती हैं .
  4. गैजेट्स के साथ कम से कम समय बिताएं। लोगों के साथ मिलेजुले. अच्छे रिश्ते बनाएं.
  5. समय का प्रबंधन बेहतर तरीके से करें.
  6. पढ़ाई या काम के दौरान थोड़ीथोड़ी देर का ब्रेक लें.
  7. शरीर का पौश्‍चर ठीक रखें. गलत पौश्‍चर शारीरिक दर्द का प्रमुख कारण है.
  8. कभीकभी कामकाज से छुट्टी ले कर घर वालों या दोस्तों के साथ घूमने जाने का प्रोग्राम बनाएं.
  9. पूरी नींद लें.
  10. चाय, कौफी का सेवन कम से कम करें.
  11. चहारदीवारी से बाहर निकलें और कुछ समय धूप में बिताएं. इस से आप को विटामिन डी मिलेगा जो आप की हड्डियां मजबूत बनाएगा और आप का मूड भी बेहतर करेगा.
  12. डिप्रेशन संबंधी किसी भी तरह के लक्षण दिखने पर उन्हें नजरअंदाज न करें. तुरंत किसी मनोचिकित्सक से मिलें.

ये एक मिनट का एक्सरसाइज, 45 मिनट के जौगिंग के बराबर है

लंबी लाइफ और अच्छी सेहत के लिए एक्सरसाइज बेहद जरूरी होता है. एक्सरसाइज करने से शरीर से भारी मात्रा में पसीना निकलता है जिसके साथ शरीर की बहुत सी गंदगियां बाहर निकल आती हैं. हाल ही में एक स्टडी में ये बात सामने आई कि एक्सरसाइज करने से उम्र लंबी होती है और आप स्वस्थ रहती हैं. पर जिस तरह की लोगों की लाइफ हो चुकी है, एक्सरसाइज के लिए समय निकालना सबके बस की बात नहीं रही. ऐसे में हम आपको एक ऐसा एक्सरसाइज बताने वाले हैं जिसे सिर्फ एक मिनट तक कर के 45 मिनट के बराबर का फायदा लिया जा सकता है.

हाल ही में एक शोध के मुताबिक सिर्फ एक मिनट के हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने से शरीर को 45 मिनट की जौगिंग या लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने के बराबर फायदा होता है. इस स्टडी में लोगों को हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज के नाम पर स्प्रिंट करने को कहा गया.

इस टेस्ट में शोधकर्ताओं ने सभी लोगों को दो समूहों में बांट दिया, इसमें एक ग्रुप को 12 हफ्तों तक लगातार हर 10 मिनट के बाद हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज जैसे स्प्रिंट करनी थी. वहीं, दूसरे ग्रुप ने घंटों पसीना बहाकर लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज की.

तय वक्त के बाद लोगों की मांसपेशियों और दिल की सेहत की जांच की गई. नतीजों से ये स्पष्ट हुआ कि लिन लोगों ने सिर्फ एक मिनट की हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज की उनको भी उतना ही फायदा हुआ, जितना घंटों तक लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने वालों को हुआ.

इस स्टडी ने ये स्प्ष्ट किया कि हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज शरीर के लिए उतना ही फायदेमंद है जितना लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज कर घंटों जिम में पसीना बहाना.

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