Serial Story: ज्योति से ज्योति जले (भाग-4)

महेंद्र का आपरेशन डा. खांडेपारकर के हाथों सफलता से संपन्न हुआ. महेंद्र के हृदय के दाएं हिस्से का शुद्ध रक्त बाहर ले जाने वाली नलिका में रुकावट पैदा हो गई थी जिसे दूर करने के लिए पहली बार और कमजोर पड़ गए वाल्व को ठीक करने के लिए दूसरी बार सर्जरी की गई. आपरेशन के कुछ दिन बाद जब उसे डिस्चार्ज किया गया तब हम उसे टैक्सी से घर तक ले गए. उस दिन सारे महल्ले वालों ने रश्मि का इतना शानदार स्वागत किया कि जिस का वर्णन शब्दों में करने के लिए शब्दकोष के सारे अच्छे शब्द भी शायद कम पड़ें. उस दिन का नजारा मेरे लिए एक कभी न भूलने वाला अनुभव बन गया. मुझे लगा मैं ने अपने समय का सब से बेहतरीन उपयोग उस दिन किया.

लेकिन रश्मि की यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई. घर आने के 10 दिन बाद ही महेंद्र को अचानक पैरों की तकलीफ शुरू हो गई. वह दिनरात पीड़ा से कराहता रहता. उस का बदन बुखार से तपता रहता और दर्द असहनीय होने पर वह तड़प उठता. रश्मि तब बिना समय गंवाए महेंद्र को के.ई.एम. ले गई जहां उसे फिर भरती किया गया और शुरू हुआ एक नया सिलसिला…ब्लड कल्चर, हड्डियों का एक्सरे, एम.आर.आई., सोनोग्राफी और न जाने क्याक्या.

एक्सरे और एम.आर.आई. की रिपोर्ट से पता चला कि महेंद्र को बोन टी.बी. है. उसे ठीक करने के लिए ढेरों रुपए और एक लंबे समय की जरूरत है. पिछले 8 महीने से यही भागदौड़ चली आ रही है. इस दौरान रश्मि के हिस्से में बेहिसाब तकलीफें आईं तो मैं ने उसे समझाया कि देखो रश्मि, तुम महेंद्र के लिए जितना कर सकती थीं, किया, अब तुम इस मामले से बाहर निकल जाओ, प्लीज…

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‘‘दीदी, प्लीज,’’ वह लगभग चीख उठी, ‘‘जब परिवार का एक सदस्य गंभीर रूप से बीमार होता है तब उस के साथसाथ घर के दूसरे सदस्यों का जीवन किस हद तक बिखर जाता है इस का एहसास आप को है? महेंद्र की बड़ी बहन आरती पढ़ना चाहती है लेकिन उस ने पढ़ाई छोड़ कर अपनी किशोरावस्था को गृहस्थी की आग में झोंक दिया. सब से छोटी बहन नीलम की आंखें आप ने नहीं देखीं न? लेकिन मैं ने उस की आंखों में बसे सतरंगी सपनों को राख में बदलते देखा है. तीनों बहनें हर पल अपनी जिंदगी के साथ समझौता करती हुई जीए जा रही हैं. उन का क्या भविष्य? ‘‘नहीं, दीदी, मैं अगर अपने हाथ खींच लूं तो उन की मदद कौन करेगा? कहां से लाएंगे वे इलाज के लिए इतना सारा पैसा?’’

उस दिन वह बेहद व्यथित थी. वह जैसे जिंदगी की जंग हार गई थी. अपनी मजबूरी में फंसी वह, अब क्या होगा, सोच कर चिंतित हो उठी थी. ‘‘दिव्येशजी, कैसे हैं आप?’’ ज्यों ही उन्होंने दरवाजा खोला मैं ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं. आप बैठिए, मैं रश्मि को जगाता हूं. वह अभीअभी सोई है.’’ ‘‘नहीं, आप उसे सोने दीजिए. कैसी है अब उस की तबीयत?’’ मैं ने सोफे पर बैठते हुए चिंतित लहजे में पूछा.

‘‘आज ठीक है. 2 दिन से वह बुखार से तड़प रही थी. न जाने अचानक उसे क्या हो गया? वह डाक्टर के पास इलाज भी नहीं करवाना चाहती. उस की वजह से मैं भी 2 दिन से घर पर हूं.’’ मैं उन्हें देखती रह गई कि क्या वाकई में कोई पति अपनी पत्नी से इस कदर मोहब्बत करता होगा?

दिव्येशजी ने गरम कौफी का प्याला मुझे देते हुए कहा, ‘‘वर्षाजी, मेरी रश्मि कुछ अलग ही मिट्टी की बनी है. उस के भोलेपन एवं निर्दोषिता ने ही मुझे उस की ओर आकर्षित किया था. हम ने प्रेम विवाह किया था. शुरुआत का हमारा जीवन काफी संघर्षमय रहा. उस का आर्थिक एवं भावनात्मक सहारा पा कर ही मैं अपना पारिवारिक जीवन स्थिर कर पाया हूं?

‘‘नौकरी और घर की जिम्मेदारियां, बच्चों की पढ़ाई तीनों मोर्चों पर वह बिना थकेहारे लड़ती रही. अब जा कर हमारा जीवन स्थिर हो पाया है. हमारे दोनों बच्चे अपना उज्ज्वल कैरियर बनाने के लायक बने, सब रश्मि की बदौलत…’’ मैं स्तब्ध हो कर उन की बातें सुनती रही.

‘‘वर्षाजी, सच कहूं तो आदित्य की विदेश शिक्षा को ले कर हम ने बैंक से 15 लाख का कर्ज न लिया होता तो महेंद्र के आपरेशन को ले कर रश्मि को इधरउधर भटकना न पड़ता…काश, 2 साल पहले वह हमें मिला होता,’’ फिर थोड़ा रुक कर वे बोले, ‘‘रश्मि को तो आटेदाल का भाव तक नहीं मालूम. सच तो यह है कि मैं ने उसे बाजार के धक्के न खाने की हिदायत दे रखी है. मैं नहीं चाहता कि धूप में बाजार के चक्कर काट कर वह अपनी सेहत खराब करे.’’

सच ही तो कहते हैं दिव्येशजी. दोपहर की कड़ी धूप में उस की गौर त्वचा ताम्रवर्ण हो जाती है. तब मैं उसे ‘लाली लाली’ कह कर चिढ़ाती हूं और वह खिलखिला कर हंस पड़ती है. तब उसे देख कर भी मेरे मन में खयाल आ जाता है, ‘काश, मिहिर की एक बहन भी होती, रश्मि जैसी…’ ‘‘कहां खो गईं आप? क्या नीरज भाई की याद सताने लगी?’’ वह मेरे कान के पास आ कर फुसफुसाई तब मुझे होश आया.

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‘‘मेरे दोनों दुश्मन साथ बैठ कर, मेरे खिलाफ किस जंग की तैयारी कर रहे हैं?’’ उस के होंठों पर शरारत भरी मुसकान उभर आई. ‘‘हां, हम दोनों रश्मिपुराण पढ़ रहे थे,’’ मैं ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा.

‘‘जहे नसीब, हम इतने, महान कब से बन गए कि हमारे नाम का पुराण बन गया और हमें पता तक न चला?’’ वह नाटकीय अंदाज में बोली. ‘‘रश्मि, बस, अब बहुत हो चुका. इस से ज्यादा कुरबानी मैं तुझे नहीं देने दूंगी क्योंकि अब उन की मदद करने की न तो तुझ में सामर्थ्य ही रही है और न ही तुझे समझाने की शक्ति मुझ में रही.’’

‘‘नहीं दीदी, ऐसा नहीं कहते. जब तक दिल में हौसला है और हाथों में दम, मैं उस की मदद करती रहूंगी और आप ने शायद यह सुना भी हो कि प्रार्थना में उठने वाले हाथ से ज्यादा मदद में उठने वाले हाथ महत्त्वपूर्ण होते हैं.’’ एक दिन रश्मि आई तो मुझे उस सुनार के बारे में याद दिलाने लगी जिस की दुकान से मैं ने स्नेह के बेटे के लिए एक बे्रसलेट और स्नेह के लिए एक जोड़ी बाली बनवाई थीं.

रश्मि अपने कुछ जेवर ले कर आई थी और चाहती थी कि उन गहनों को बेच कर मैं उसे कुछ पैसे ला दूं. ‘‘दीदी, प्लीज, आप मना करेंगी तो मैं कहां जाऊंगी? मैं किसी को जानती भी तो नहीं.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं क्यों करूं तुम्हारा यह काम? क्या दिव्येशजी यह जानते हैं?’’ उस ने अपनी पलकें झुका दीं. ‘‘नहीं, और आप उन से कहेंगी भी नहीं, आप को मेरी कसम,’’ और उस ने मेरा दायां हाथ उठा कर अचानक अपने सिर पर रख दिया.

‘‘रश्मि, यह सब गलत हो रहा है और गलत काम में मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सकती.’’ ‘‘दीदी, प्लीज, आखिरी बार.’’

आखिर उस की जिद के सामने मैं ने घुटने टेक दिए. अपने ज्वैलर्स के पास से 15 हजार रुपए ले कर जब मैं ने उस के हाथ में थमाए तो वह फूल सी खिल उठी, पर मेरा हृदय मुरझा गया. उन पैसों से वह महेंद्र के इलाज, दवाइयां, इंजेक्शन, हेल्थड्रिंक आदि तथा अस्पताल में रहते हुए उस के मम्मीपापा के लिए खाना लाने के लिए खर्च करती रही. आखिरकार, महेंद्र ठीक हो कर घर आ गया. पहले से वह बेहतर था. उस की जान पर मंडराता हुआ खतरा टल गया था. अपने सहकार की ज्योति जला कर रश्मि ने महेंद्र की बुझती हुई जीवन ज्योति को पुन: प्रज्वलित करने का एक अद्भुत प्रयास किया जिसे डा. पांडे तथा डा. दलवी जैसी कई सिद्ध हस्तियों ने सराहा. उस ने मेरे मन में दबी नेकी की उदात्त भावना को भी तो बखूबी उजागर किया. उस की ज्येति में मैं ने अपनी ज्योति को भी शामिल कर लिया. ज्योति से ज्योति जलाने का सिलसिला आगे भी चलता रहे, यही मेरी कामना है.

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Serial Story: ज्योति से ज्योति जले (भाग-3)

पूर्व कथा

रश्मि की सोच है कि किसी भी बच्चे का भविष्य खराब न हो. जैसे ही उसे पता चलता कि किसी बच्चे के परिवार में समस्या है, वह उस की मदद करने को तैयार हो जाती. न जाने कितने ही विद्यार्थियों की फीस, किताबें, यूनीफार्म आदि का वह इंतजाम करती, जिस का हिसाब नहीं. नतीजतन, वह स्वयं पैसों के अभाव में रहती.
एक दिन रश्मि ने मिहिर की मां वर्षा को नसीहत दी तो उस ने बेटे को पीटना बंद कर दिया और वह आदर्श मां बन गई. रश्मि से प्रभावित हो कर वर्षा उस के काफी करीब हो गई. वर्षा ने रश्मि को दूसरे बच्चों, परिवारों के लिए पैसा खर्च करने से बारबार रोका लेकिन रश्मि अपनी धुन में बढ़ती ही रही.

अब आगे…

रुद्र से ही जाना था कि रश्मि ने अपनी जिंदगी में कभी भी अपने दोनों बच्चों पर हाथ नहीं उठाया. हाथ उठाने की बात तो दूर, कभी ऊंची आवाज में डांटा तक नहीं. शायद यही वजह थी कि उस के दोनों बेटे रुद्र और आदित्य शांत प्रकृति के साथ ही साथ पढ़ने में होनहार और तेजस्वी विद्यार्थी हैं. रुद्र वाणिज्य में स्नातक बनने के बाद एम.बी.ए. कर रहा है. आदित्य गत 2 साल से आस्टे्रलिया में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है.

शायद ये सब उस की नेकनियती की ही बदौलत है कि वह आर्थिक, सामाजिक एवं पारिवारिक दृष्टिकोण से एकदम सुखी है. उस के घर में उसे किसी बात की कमी नहीं. शायद उस ने अपने हिस्से का सारा अभाव भरा जीवन पहले ही जी लिया था और यही वजह है कि वह दूसरों की मदद करने को सदा तत्पर रहती है. मेरी सास के अचानक गुजर जाने के कारण कुछ दिन तक मेरा रश्मि से मिलना नहीं हो सका. वैसे वह उन दिनों मुझे सांत्वना देने के लिए कम से कम 4 बार मेरे घर आई लेकिन उस माहौल में उस से ज्यादा बातचीत नहीं हो पाई थी.

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धीरेधीरे मेरा जीवन सामान्य हुआ तो मैं उस से मिलने स्कूल पहुंची. तब वह कुसुम के साथ किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रही थी. मुझे देख कर रश्मि हौले से मुसकराई, लेकिन उस के चेहरे के भाव मैं बखूबी पढ़ सकती हूं. मुझे लगा जरूर वह किसी विषय को ले कर बेहद चिंतित है. मैं ने कुसुमजी से ही पूछना ठीक समझा, जो उसी स्कूल की अध्यापिका व रश्मि की सहेली थीं.

कुसुमजी ने बताया, ‘‘मोहिनी की क्लास में एक बच्चा महेंद्र पढ़ता है. वह बहुत गंभीर रूप से बीमार है. डेढ़ साल पहले उस के हृदय की सर्जरी की गई थी पर उस की तबीयत फिर बिगड़ जाने पर डाक्टर ने हिदायत दी है कि जल्द से जल्द फिर हार्ट सर्जरी नहीं की गई तो उस के साथ कुछ भी हो सकता है. महेंद्र की मम्मी रेखाजी रश्मि से मिल कर अभीअभी गई हैं. उन से बातचीत करने के बाद से ही वह कुछ परेशान नजर आ रही है.’’ यह जान कर मेरी छठी इंद्रिय ने मुझे चेतावनी दी कि रश्मि फिर किसी मुसीबत में फंसने वाली है. मैं ने उसे कड़क लहजे में कहा, ‘‘देखो रश्मि, मैं जान गई हूं कि तुम महेंद्र का केस सुन कर उस की मदद जरूर करना चाहोगी लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, दीदी? रेखाजी कितनी उम्मीदें ले कर मेरे पास आई थीं. उन्हें मैं नाउम्मीद कैसे करती? आप कहां जानती हैं कि महेंद्र उन का इकलौता बेटा है? 3 बेटियों के बाद न जाने कितनी मन्नतों के बाद रेखाजी ने उसे पाया है. वे क्या उसे यों ही गंवा दें? ‘‘इस सब से परे, एक हकीकत और भी है कि उस के पापा जन्म से ही अपाहिज हैं. महेंद्र उन के बुढ़ापे का एकमात्र सहारा है. मैं उन की मदद जरूर करूंगी और प्लीज…आप मुझे रोकिएगा भी मत.’’

उस दिन के बाद हमारा मिलना कुछ अनिश्चित सा होता चला गया. कुसुमजी से ही मुझे पता चला था कि रश्मि महेंद्र के आपरेशन को ले कर पैसा जमा करने में लगी हुई है. मैं उस के घर हर रोज फोन करती. रुद्र या दिव्येशजी से मुझे एक ही जवाब मिलता कि वह महेंद्र के आपरेशन के सिलसिले में किसी से मिलने गई है.

एक शाम रश्मि घर पर मिल गई. वह बहुत खुश थी. चहकती आवाज में ही मुझे बताया, ‘‘दीदी, महेंद्र के आपरेशन के लिए विविध सामाजिक संस्थाओं से हमें मदद मिल गई है. उन में से एक संस्था मेस्को, एक मुसलिम ट्रस्ट है, जो जाति- पांति के भेदभाव से परे सभी की सहायता करता है. उस संस्था की कार्यकर्ता से मैं बेहद प्रभावित हूं. दीदी, जहांआरा नाम है उन का और उन से मिल कर ही मैं ने जाना कि हम दोनों धर्मों के लोग नाहक ही नदी के दो किनारों की तरह आमनेसामने रहते हैं. हकीकत यह है कि आम हिंदू और आम मुसलमान दुश्मनी नहीं दोस्ती चाहते हैं.

‘‘खैर, आगे समाचार यह है कि अब महेंद्र का आपरेशन हो जाएगा और वह फिर पहले की तरह स्वस्थ बन जाएगा. आप हमारे साथ के.ई.एम. अस्पताल चलेंगी?’’ ‘‘ना बाबा ना…सामाजिक कार्य का ठेका तुम ने ले रखा है, मैं ने नहीं. मेरे पास इतना समय और पैसा नहीं है जिसे मैं दूसरों के पीछे बरबाद करती रहूं. मैं भली, मेरा परिवार भला.’’

‘‘आप को तो कुछ भी कहना बेकार है. जाइए, मैं आप से बात नहीं करती,’’ इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. उस दिन आते ही रश्मि बोली, ‘‘दीदी, आज मैं आप को अपने साथ ले जाना चाहती हूं. देखिए, आप मना नहीं करेंगी,’’ उस ने विनती भरे स्वर में मुझ से कहा तो मैं तुरंत उस के साथ हो ली.

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महेंद्र का परिवार एक कमरे के छोटे से घर में रहता है, छोटेछोटे घरों से बनी एक विशाल बस्ती, आंबावाड़ी है, हम वहीं जा रहे थे. महेंद्र के मम्मीपापा एवं तीनों बहनों ने बड़ी ही गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया. जब रश्मि ने चंदे की नकद राशि एवं धनादेश महेंद्र के पापा के हाथों में थमाए तो विजयभाई का समग्र अस्तित्व गद्गद हो उठा. उन के चेहरे पर रश्मि के प्रति कृतज्ञता के जो भाव थे, उन्हें पढ़ कर एवं महेंद्र की स्थिति देख कर मुझे पहली बार लगा कि रश्मि ने इस बार सच में ही सही काम किया है. सभी के चेहरे पारदर्शिता और खुद्दारी के मिलेजुले भावों से चमक रहे थे.

महेंद्र अपनी मम्मी के कान में कुछ कह रहा था. रश्मि उसे देख कर बोली, ‘‘बेटे, मम्मी से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं. देखो, मैं आप की चीज ले कर ही आई हूं. मैं ने अपना वादा निभाया, अब आप भी अच्छे, बहादुर बच्चे की तरह सर्जरी के लिए तैयार रहना.’’ रश्मि ने अपने बैग से वीडियो गेम निकाल कर उस के हाथ में थमा दिया तब उस नन्हे बालक की आंखें दुनिया भर की रोशनी से जगमगा उठीं.

‘‘टीचर, हमारी आंखों से बहने वाले आंसू, हम गरीबों की ओर से आप के चरणों में सच्ची श्रद्धा बन कर अर्पित हैं क्योंकि हमारे पास कोई भी तोहफा देने की सामर्थ्य नहीं, इसे स्वीकार करें,’’ रेखाजी अपने आंसुओं को पोंछती हुई बोलीं. मेरी जैसी पत्थर दिल स्त्री भी तब रोए बिना न रह सकी. रश्मि की तो बात ही क्या कहूं? जब हम वहां से वापस हो रहे थे तब मैं एक अजीब सा आत्मसंतोष महसूस कर रही थी.

रश्मि ने अपनी ओर से जो दान का सिलसिला शुरू किया था, वही पलट कर उसे मिलता रहा, उस की जानपहचान से ले कर कई गरीब अभिभावकों तक, सब ने कुछ न कुछ उसे दिया. इस बात का मुझे बेहद दुख था कि उस के इस नेक काम में उस के अपने स्टाफ के लोगों ने कोई मदद नहीं की थी.

‘‘रश्मि, कल रात को कहां रह गई थी? मैं ने तुम्हारे घर फोन किया तब रुद्र ने बताया कि तुम रेखाजी के साथ किसी डाक्टर से मिलने गई हो.’’ ‘‘दीदी, महेंद्र की मम्मी आपरेशन से पहले दूसरे डाक्टरों से भी राय लेना चाहती थीं. डा. कौशल पांडे मुंबई के मशहूर हार्ट सर्जन हैं. उन से मिल कर लगा कि संसार में आज भी इनसानियत जिंदा है. जब डा. पांडे को पता चला कि मैं अध्यापिका की हैसियत से महेंद्र की मदद कर रही हूं तब उन्होंने हमें वचन दिया कि यदि हम आपरेशन के.ई.एम. में न करवा कर उन के अस्पताल में करवाना चाहें तो वह अपनी पूरी टीम के साथ, निशुल्क उस का आपरेशन करेंगे. उन्होंने हम से अपनी सलाह की फीस भी लेने से मना कर दिया.’’

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यह सोच कर रश्मि बेहद खुश थी कि उसी की तरह, दुनिया में और भी लोग हैं, जो गरीब और लाचार लोगों का दुखदर्द समझते और बांटते हैं. मैं इस कल्पना मात्र से ही खुश थी कि डा. कौशल पांडे जैसे मशहूर हार्ट सर्जन से उतना सम्मान पाना रश्मि के लिए निसंदेह एक अद्भुत अनुभव रहा होगा.

आगे पढ़ें- महेंद्र का आपरेशन डा. खांडेपारकर के…

Serial Story: ज्योति से ज्योति जले (भाग-2)

रश्मि ने यश की मम्मी की पूरी बात धैर्य से सुनी फिर बिना मेरी ओर देखे ही उन को वचन दे दिया कि वह यथाशक्ति उन की मदद करेगी. रश्मि जानती थी कि अगर वह मेरी ओर देखती तो शांतिजी को मदद करने का वचन नहीं दे पाती क्योंकि मैं उसे ऐसा करने से जरूर रोकती.

मुझे विश्वास था कि उसे कुछ भी कहना व्यर्थ था. फिर सोचा, एक आखिरी कोशिश कर लूं, शायद सफलता मिल जाए.

तब प्रत्युत्तर में उस ने जो कुछ कहा, वह मेरे लिए अप्रत्याशित था.

‘‘वर्षा दीदी, मैं अपना दर्द सीने में दबा कर सिर्फ खुशियां बांटने में विश्वास करती हूं. इसीलिए अपने गमों से न तो कभी आप का परिचय करवाया, न ही किसी और का, पर आज ऐसा करना मेरे लिए जरूरी हो गया है.

‘‘दीदी, मैं ने बचपन और जवानी के चंद वर्षों का हर पल अभावों में गुजारा है. कभीकभी तो हमारे घर खाने को भी कुछ नहीं होता था. मैं भूखी रहती, पर कभी भी अपने ही पड़ोस में रहने वाले अपने सगे चाचा के घर जा कर रोटी का एक निवाला तक पाने की कोशिश नहीं की. धन के अभाव में मैं ने अपनी मां को तिलतिल मरते देखा है. मेरा इकलौता छोटा भाई इलाज के अभाव में मर गया. उस के हृदय में सुराख था.

‘‘ऐसी बात नहीं थी कि हम गरीब थे. पापामम्मी दोनों अध्यापक थे लेकिन पापा अपने वेतन का अधिकतर हिस्सा जरूरतमंदों की मदद में खर्च करते तब मां के सामने घर खर्च चलाने में कितनी दिक्कतें आती होंगी.’’

मैं सांस रोके उस की आपबीती सुनती रही.

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‘‘मम्मी खुद भी अपने कर्तव्य एवं अपने विद्यार्थियों के प्रति पूर्णतया समर्पित एक आदर्श शिक्षिका थीं. वह हमेशा कहतीं, ‘बेटी, एक शिक्षिका के तौर पर मेरी यह दृढ़ मान्यता है कि किसी भी विद्यार्थी की असफलता के पीछे शिक्षक की नाकामयाबी छिपी होती है. इसलिए मैं हमेशा इसी प्रयास में रहती हूं कि विद्यार्थियों को मैं अपनी तरफ से बेहतरीन शिक्षा दूं.’ मम्मी का जीवन मंत्र था, ‘प्यार, विद्या और खुशियां बांटने से बढ़ते हैं.’ उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इस मंत्र को आत्मसात करने में गुजार दी.

‘‘वर्षा दीदी, अब आप ही बताइए कि ऐसे आदर्श मातापिता की बेटी हो कर अगर मैं उन की राह न चलूं तो क्या यह उन के प्रति अन्याय नहीं होगा? मेरा हर कार्य मम्मी के प्रति मेरी श्रद्धांजलि है.’’

मैं रश्मि की जिंदगी का यह पन्ना आज ही पढ़ सकी. जब मातापिता इतने उदार और आदर्श शिक्षक थे तब बेटी का भी ऐसा होना स्वाभाविक ही था. शायद यही राज है उस की कुशाग्र बुद्धि व प्रतिभा का. वह भी एक तेजस्वी और निष्ठावान शिक्षिका है. जब भी वह किसी विद्यार्थी के लिए किसी प्रसंग, किसी विषय पर भाषण या फिर वादविवाद के लिए निबंध तैयार करती तो उस विद्यार्थी का पहला पुरस्कार निश्चित होता.

उस की बातें सुनने के बाद मैं ने अपनेआप को वचन दिया कि मैं कभी भी उसे दूसरों की मदद करने की बात को ले कर टोकूंगी नहीं.

यश की मम्मी शांति को उस ने बाद में भी 15 हजार रुपए दिए थे क्योंकि उस के पापा की बीमारी ने उन्हें घर बेच कर एक गंदी बस्ती में रहने पर मजबूर किया था. वहां उस की जवानी में कदम रख रही बहन सुरक्षित नहीं थी. यह बात जब शांति ने रश्मि को बताई तो उस ने खुद का फिक्स्ड डिपाजिट तुड़वा कर उन्हें पैसे दे कर अच्छी सी बस्ती में किराए पर कमरा दिलवाया था.

जब मुझे इस बात का पता चला तब न चाहते हुए भी मैं अपनी नाराजगी जाहिर कर बैठी, ‘‘मेरी अच्छी रश्मि, तुम कब सुधरोगी? तुम नहीं जानतीं, यश की मम्मी निहायत ही झूठी औरत है. सच बताना, इतनी तकलीफों के बावजूद क्या तुम ने शांति के चेहरे की चमक में रत्तीभर भी फर्क महसूस किया? वह बेहतरीन कपड़े पहनती है और बुरा मत मानना मेरी बहना, वह तुम से भी ज्यादा सजसंवर कर रहती है. क्या इतना काफी नहीं उस का झूठ पकड़ने के लिए?’’

वह निर्विकार नजरों से मुझे ताकती रही, फिर बोली, ‘‘दीदी, आप ही सोचिए, किसी को मुझ से झूठ बोल कर क्या हासिल होगा?’’

आखिरकार मैं ने उस की आंखें खोलने के लिए मामले की तह तक पहुंचना जरूरी समझा. किसी तरह समझाबुझा कर मैं ने शांति से उस के पति की मेडिकल फाइल हासिल की, वडोदरा के डाक्टर का फोन नंबर प्राप्त किया और एक सुबह उन से बात की.

उस के बाद मैं ने तय किया कि मैं अब रश्मि को और ज्यादा मूर्ख नहीं बनने दूंगी. जब हम मिले तब मैं ने उस से कहा, ‘‘रश्मि, मैं ने आज ही सुबह वडोदरा में डा. शाह से बात की. उन्होंने क्या कहा, सुनना चाहोगी?’’

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‘‘दीदी, मैं ने आप से कहा था न कि इस मामले में हमारी कोई बहस नहीं होगी…’’

मैं ने उसे बीच में ही टोका, ‘‘नहीं रश्मि, आज तो मैं अपनी बात पूरी कर के ही रहूंगी और तब तक तुम एक शब्द भी बोलोगी नहीं, समझीं.

‘‘सुन, डा. शाह का कहना है कि शांति के पति के आपरेशन का कुल खर्च 17 हजार नहीं, सिर्फ 11,500 रुपए ही आया था. शांति ने उन से प्रार्थना की थी कि अगर वह बिल बढ़ा कर बनाएं तो अतिरिक्त पैसों से वह अपने पति की दवाइयों का खर्च निकालेगी, इसलिए… खैर, ऐसे चंद खुदगर्ज लोग ही डाक्टर के व्यवसाय को बदनाम करते हैं. उन्हें खेद है कि अनजाने में उन्होंने किसी धोखेबाज का साथ दिया.’’

रश्मि स्तब्ध थी. उस दिन उस के चेहरे पर पहली बार व्यथा के भाव देख कर मेरा मन आर्तनाद कर उठा. वह पीड़ा उस धोखेबाज औरत की देन थी.

उस घटना के बाद मैं ने उसे धमकाया, ‘‘देख रश्मि, अब बहुत हो चुका, आगे से ‘आ बैल, मुझे मार’ करेगी तो मैं दिव्येशजी को सबकुछ बता दूंगी. उन से कह दूंगी कि वह तुम्हें ऐसा पागलपन करने से रोकें, समझीं.’’

रश्मि ने तब झट से कहा, ‘‘मेरी प्रिय दीदी, कोई भी कार्य करने से पहले मैं दिव्येश से इजाजत जरूर लेती हूं, फिर उस पर अमल करती हूं…आज तक मैं ने उन से कोई भी बात नहीं छिपाई क्योंकि मैं जानती हूं कि वह मेरी हर खुशी में खुश हैं.’’

‘‘क्या?’’ मेरा मुंह मारे आश्चर्य के खुला का खुला रह गया. सचमुच रश्मि बेहद खुशनसीब है. दिव्येशजी भी ऐसे हैं तो फिर क्या कहना?

‘‘दीदी, दिव्येश बखूबी जानते हैं कि गरीबी और लाचारी इनसान के हौसलों को किस कदर तोड़ कर रख देती है. सिर्फ 17 वर्ष की आयु में ही उन्होंने बैंक की नौकरी कर पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी. अपनी पढ़ाई उन्होंने नौकरी के साथ ही संपन्न की.’’

‘‘मैं उन से मिलना चाहती हूं, क्या तुम्हारे घर आ सकती हूं?’’ अब तक हम दोनों पक्की सहेलियां बन गई थीं.

दिव्येशजी से मिलने पर मैं उन के स्वभाव की भी कायल हो गई. जितनी देर मैं उन के साथ रही, सिवा रश्मि की तारीफ के उन के मुंह से कुछ नहीं निकला.

जब वह मेरे लिए जलपान की व्यवस्था करने गई तब उन्होंने बोलना शुरू किया, ‘‘वर्षाजी, रश्मि आप की बेहद तारीफ करती है. जैसा सुना था वैसा ही आप को पाया. आप से मिल कर मुझे बेहद खुशी हुई, यकीन कीजिए.

‘‘रश्मि इतने बड़े बेटों की मां है, फिर भी उस में बचपना पहले जैसा ही है. वह बहुत ही भोली और सरल है. जल्द ही दूसरों की बातों में आ जाती है. दूसरों को खुशियां बांट कर उसे खुशी मिलती है और उस की खुशी में हमसब खुश हैं,’’ दिव्येशजी यह बतातेबताते बेहद भावुक हो उठे.

तभी उन का बड़ा बेटा रुद्र भी आ गया, ‘‘नमस्ते, आंटीजी…’’ उस ने अपना बैग टेबल पर रख दिया और हमारे सामने आ कर बैठ गया.

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‘‘आप…वर्षा आंटी हैं न. मिहिर की मम्मी…आप की पहली मुलाकात का किस्सा सुना कर मम्मी आज भी हंसती हैं, फिर अपनेआप पर हैरान भी होती हैं, यह सोच कर कि कैसे वह आप को इतना लंबाचौड़ा भाषण सुना बैठीं,’’ रुद्र हंसते हुए बोला.

‘‘बेटे, सच कहूं तो…तुम्हारी मम्मी की इन्हीं बातों ने मेरा मन मोह लिया. मैं आज तक किसी से भी इतनी प्रभावित नहीं हुई जितनी कि तुम्हारी मम्मी से.’’

‘‘एक राज की बात कहूं?’’ मैं मुसकराई, ‘‘तुम्हारे अंकल से भी नहीं.’’

हम सब हंस पड़े.

क्रमश: 

कल आज और कल: आखिर उस रात आशी की मां ने ऐसा क्या देखा

Serial Story: कल आज और कल (भाग-2)

मैं ने मम्मी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘क्या बुराई है इस में यदि कोई दंपती बच्चा पैदा करने में असक्षम हो और इस में दूसरे की मदद ले?’’ मम्मी ने भी मुझे करारा जवाब देते हुए कहा, ‘‘पर उस बच्चे की रगों में खून तो उस मां का ही दौड़ रहा है न जो कोख किराए पर देती है?’’

मैं समझ गई थी कि मम्मी से इस वक्त बहस करना ठीक नहीं. सो मैं ने कहा, ‘‘हां मम्मी, आप बात तो ठीक ही कह रही हैं.’’

वे धीरेधीरे बुदबुदाने लगीं, ‘‘हर इनसान अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकता है… न कोई समाज न ही कोई संस्कार… आने वाली पीढ़ी तो और भी न जाने क्या करेगी? अगर मातापिता ही ऐसे हैं तो…’’

मैं जानती थी कि मम्मी से इस विषय पर और बात करना उचित नहीं. लेकिन मेरे बच्चों को उन की बात बड़ी ही दकियानूसी लगतीं.

मेरी बेटी अकसर कहती, ‘‘मौम, दादी ऐसी बात क्यों करती हैं. यदि सब लोग अपने हिसाब से रहते हैं तो इस में क्या बुराई है?’’

मैं कहती, ‘‘बुराई तो कुछ नहीं पर मम्मी अभी यहां नईनई आई हैं न इसलिए उन्हें यह सब अजीब लगता है.’’

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ऐसा चलते कब 3 साल बीत गए पता ही न चला. मम्मी भी आशी दीदी से मिलने मुंबई जाना चाहती थीं. बच्चों की भी छुट्टियां थीं तो मैं ने बच्चों के भी टिकट ले लिए. हां, पापा नहीं जाना चाहते थे. उन के दोस्तों का यहां कुछ प्रोग्राम था.

आशी दीदी बहुत खुश थीं कि मम्मी आ रही हैं. इन 3 सालों में वे भी तो कितनी अकेली रह गई थीं. जब मम्मी और बच्चे वहां पहुंच गए तो आशी दीदी उन्हें रोज कहीं न कहीं घुमा लातीं. उन के लिए तरहतरह का खाना बनातीं. रात को दीदी की बेटियां और मेरे बच्चे एक ही कमरे में सो जाते. आशी दीदी के पति यानी मेरे ननदोई निशांत तो शिप पर ही थे. वे तो 6 महीने में मुंबई आते थे. आशी दीदी ने अपनी 2 बेटियों को पालने में जिंदगी अकेले ही बिता दी. निशांत भी आशी दीदी की इस बात की तारीफ करते नहीं थकते.

एक रात मम्मी को कुछ बेचैनी सी हुई तो लिविंगरूम में सोफे पर आ कर लेट गईं.

थोड़ी ही देर में देखती हैं कि कोई नौजवान दीदी के कमरे से बाहर निकल रहा है और दीदी अपना नाइट गाउन पहने उसे दरवाजे तक छोड़ने आईं.

जातेजाते उस नौजवान ने दीदी के होंठों को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं कल फिर आऊंगा.’’

दीदी ने भी उसे स्वीकृति दे दी और कहा, ‘‘ओके बाय.’’

दीदी को तो मालूम भी न था कि मम्मी सोफे पर लेटीं यह सब देख रही हैं. उन्होंने उस शख्स के जाते ही लिविंगरूम की बत्ती जला कर पूछा, ‘‘कौन है यह? जंवाई बाबू की गैरहाजिरी में ये सब करते अच्छा लगता है तुम्हें? तुम्हारी 2 जवान बेटियां हैं. उन का तो लिहाज किया होता…’’

दीदी जवाब में सिर्फ इतना ही बोलीं, ‘‘जाने दीजिए मम्मी… आप नहीं समझेंगी.’’

मम्मी का तो पारा हाई था. अत: कहने लगीं, ‘‘मैं नहीं समझूंगी? ये बाल मैं ने धूप में सफेद नहीं किए हैं… मुझे लगता है तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़ गया है,’’ और मम्मी ने झट से मेरे पति आकाश को फोन कर सब बता दिया.

एक पल को तो मेरे पति सकते में आ गए, फिर अगले ही पल बोले, ‘‘मम्मी, तुम आशी को कुछ न कहो. पहले मुझे मामले की तह तक जाने दो.’’

‘‘तुम सब जल्दी मुंबई आओ और देखो यहां आशी क्या कर रही है.’’

अगले ही दिन आकाश ने भारत की फ्लाइट के टिकट बुक कराए और हम भारत पहुंच गए. आकाश और मुझे देख कर आशी दीदी बहुत डर गई थीं. एक दिन तो आकाश ने आशी दीदी से कुछ न पूछा. लेकिन जब आकाश ने आशी दीदी से सब साफसाफ बताने को कहा तो जो आशी दीदी ने बताया वह वाकई चौंकाने वाला था. वे कह रही थीं और मैं और आकाश सुन रहे थे. वे बोलीं, ‘‘भैया, आप को तो मालूम ही है कि निशांत और मेरी शादी दोनों की मरजी से हुई थी… वे मर्चेंट नेवी में होने की वजह से साल में 6 महीने बाहर ही रहते हैं. लेकिन 6 महीने बाहर रहने से निशांत के वहां लड़कियों से संबंध हैं. जब वे यहां भी आते हैं तो भी उन की रुचि मेरे में नहीं होती है… वे घर के मुखिया का दायित्व तो निभा रहे हैं, लेकिन सिर्फ हमारी 2 बेटियों के कारण.

‘‘यदि मैं निशांत को कुछ कहती हूं तो वे कहते हैं कि तुम आजाद हो… चाहे तो तलाक ले लो या तुम भी किसी गैरमर्द से संबंध रख सकती हो. बस बात घर के बाहर न जाए, क्योंकि समाज के सामने तो यह रिश्ता निभाना ही है. हमारी यह शादी तो समाज के समाने सिर्फ एक दिखावा है. अब इन 2 जवान बेटियों को छोड़ कर मैं कहां जाऊं. तलाक भी तो नहीं ले सकती… मुझे भी तो प्यार चाहिए… तन की प्यास क्या सिर्फ मर्द को ही जलाती है, औरत को नहीं?’’

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इतना सुनते ही मम्मी ने दीदी के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया. वे चीख पड़ीं, ‘‘तुझे शर्म नहीं आई ये सब कहते?’’

आकाश ने मम्मी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मम्मी, आप शांत हो जाएइ. मैं आशी से अकेले में बात करता हूं.’’

अब आशी दीदी, आकाश और मैं ही कमरे में थे. लेकिन उस के बाद जो आशी दीदी ने बताया वह तो और भी चौंकाने वाला था.

वे बोलीं, ‘‘यहां भी उन के पड़ोस की महिला से संबंध हैं और इस बारे में उस के पति को भी सब मालूम है. उस महिला ने अपने पति को भी कह दिया है कि वह आजाद है, चाहे जिस स्त्री से संबंध रखे. उस रात पड़ोस की उस महिला का पति ही यहां आया था और यह बात निशांत को भी मालूम है कि मेरे उस से संबंध हैं. उन्हें इस संबंध से कोई हरज नहीं. हां, उन्होंने इतना जरूर कहा है कि यह बात घर से बाहर न जाए, क्योंकि हमारा समाज इन रिश्तों को स्वीकार नहीं करेगा,’’ और फिर आशी दीदी रोने लगीं.

मैं ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आप फिक्र न कीजिए सब ठीक हो जाएगा. आप हमें थोड़ा सोचने के लिए समय दें बस,’’ और फिर मैं और आकाश आशी दीदी के कमरे से बाहर आ कर लौन में सैर करने लगे.

मैं ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘यदि आशी दीदी जो बता रही हैं वह सत्य है, तो इस में दीदी का क्या दोष है? अपनी पत्नी के सिवा गैरस्त्री से संबंध रखने का हक मर्द को किस ने दिया और फिर यदि यह हक निशांत को है तो फिर आशी दीदी को भी है.’’

आकाश ने भी धीरे से कहा, ‘‘हां, तुम ठीक ही कहती हो, लेकिन मम्मी को कौन समझाए? वे तो आशी को कभी माफ नहीं करेंगी.’’

मैं मन ही मन सोच रही थी कि दीदी ने ठीक ही कहा कि तन की आग क्या सिर्फ मर्द को ही जलाती है? कुदरत ने औरत को भी तो शारीरिक उत्तेजना दी है और यदि उस का पति उस में रुचि न ले तो वह अपनी शारीरिक उत्तेजना कैसे शांत करे? सच तो यह है कि इस में दीदी की कोई गलती नहीं है. पर चूंकि हमारे समाज के नियम इन संबंधों को नहीं स्वीकारते, इसलिए सब कुछ चोरीछिपे चल रहा है यहां. सिर्फ दीदी व निशांत ही क्यों उन के पड़ोसी दंपती को भी तो वही समस्या है. तब ही तो वह उस रात दीदी के पास आया था. उस की पत्नी को भी तो इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं. न जाने ऐसे कितने लोग होंगे जिन के ऐसे ही संबंध होंगे.

बात मेरे पति आकाश के दिमाग में ठीक बैठ रही थी. वे कहने लगे, ‘‘तुम ठीक ही कहती हो. लेकिन अब मम्मी को समझाना होगा, जोकि बहुत मुश्किल काम है.’’

आगे पढें- खैर एक बार तो हम मम्मी को ले कर…

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Serial Story: कल आज और कल (भाग-3)

खैर एक बार तो हम मम्मी को ले कर वापस अमेरिका आ गए, लेकिन मेरे ननदोई निशांत के शिप से वापस आने पर हम फिर भारत आए और मम्मी को भी साथ ले आए. वहां आकाश ने निशांत से उन के दूसरी स्त्रियों से संबंध के बारे में पूछा तो निशांत ने उन संबंध को खुले शब्दों में स्वीकारते हुए कहा, ‘‘आकाश आप तो इतने सालों से अमेरिका में रह रहे हैं. आप भी इन्हें बुरा समझते हैं? मेरे संबंधों के बारे में आशी को सब कुछ मालूम है और मैं ने भी आशी को पूरी छूट दी है कि वह भी अगर चाहे तो किसी से संबंध रख सकती है. बस हमारे परिवार पर उन संबंधों का बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए. आकाश आप तो पढ़ेलिखे हैं. आप को तो इन संबंधों से नाराज नहीं होना चाहिए.’’

आकाश ने कहा, ‘‘निशांत आप ठीक कहते हैं, किंतु मम्मी को कौन समझाए?’’

मैं ही समझाऊंगा मम्मी को भी. चलिए अभी बहुत रात हो गई है. कल सुबह बात करते हैं.

अगले दिन सुबह नाश्ता कर निशांत मम्मी के पास बैठ गए और बोले, ‘‘मम्मी, मुझे पता है आप बहुत नाराज हैं मुझ से और आशी से. आप का नाराज होना वाजिब भी है. आप को तो पता है आशी और मेरी शादी हमारे समाज के नियमों के अनुरूप हो गई, लेकिन हम दोनों ही कहीं एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे. हम दोनों ने कोशिश भी की कि हमारा रिश्ता अच्छा बना रहे, लेकिन कहीं कुछ तो कमी थी जिसे हम दोनों दूर करने में असमर्थ थे. शादी का मुख्य उद्देश्य तो शारीरिक संबंध और संतानोत्पत्ति ही होता है. अब बच्चे तो हम पैदा कर चुके हैं. लेकिन कहीं हमारे शारीरिक संबंधों में वह मधुरता नहीं है, जो एक पतिपत्नी के बीच होनी चाहिए. मैं तो वैसे भी 6 महीने शिप पर रहता हूं. ऐसे में आशी तो मेरे पास होती नहीं तो यदि वह सुख मुझे कहीं और से प्राप्त होता है तो उस में क्या बुराई है? मैं ने तो आशी को भी पूरी छूट दी है कि वह भी चाहे जिस से संबंध रख सकती है. उस की भी इच्छाएं हैं. मैं उन मर्दों में से नहीं जो स्वयं तो मौजमस्ती करें और पत्नी को समाज के नियमों की आड़ में तिलतिल मरने के लिए छोड़ दें. अगर आशी के पास वह पड़ोसी आता है तो क्या बुराई है उस में?’’

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लेकिन मम्मी कहां यह सब समझने वाली थीं. मम्मी तो वैसे ही मुंह फुला कर बैठी थीं. निशांत भी समझ गए कि मम्मी को उन की बातें अच्छी नहीं लग रही हैं. अत: उन्होंने मम्मी का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर कहा, ‘‘मम्मी, मैं समझता हूं कि आप को इन सब बातों से बहुत दुख पहुंचा है, किंतु यदि कोई नियम किसी की खुशी के आड़े आए तो उस नियम को तोड़ देना अच्छा…फिर आज ही क्यों पहले जमाने में भी तो यह सब होता था, लेकिन पहले घरपरिवार के लोग उस में साथ देते थे और अब समाज के नियमों के डर से परिवार भी अपनों की खुशियों से मुंह मोड़ लेता है… यदि मैं और आशी एकदूसरे के आचरण से खुश हैं तो दूसरों को तकलीफ क्यों?

‘‘यदि आप को लगता है ये सब इस युग में ही हो रहा है तो लाइए आप को महाभारत जिस का पाठ आप रोज नियम से करती हैं उसी में दिखा देता हूं आप को पुराने युग की सचाई,’’ कह कर निशांत ने इंटरनैट से महाभारत डाउनलोड किया और उसी समय मम्मी को पढ़वाना शुरू कर दिया, जिस में पांडु और कुंती के बारे में साफसाफ लिखा है.

‘‘पांडु को एक ऋषि से श्राप मिला था जिस के कारण वे स्त्री सहवास नहीं कर सकते थे, लेकिन वे चाहते थे कि उन की पत्नी के गर्भ से संतानोत्पत्ति हो, क्योंकि वे अपने पिता के ऋण से मुक्त होना चाहते थे. अत: एक दिन पांडु ने अपनी पत्नी कुंती से कहा, ‘‘प्रिये, तुम पुत्रोत्पत्ति के लिए प्रयत्न करो.’’

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तब कुंती ने कहा, ‘‘हे आर्यपुत्र जब मैं छोटी थी तब मेरे पिता ने मुझे अतिथियों के

स्वागतसत्कार का कार्य सौंप रखा था. मैं ने उस समय दुरवासा ऋषि को अपनी सेवा से प्रसन्न कर दिया था और बदले में उन्होंने मुझे वरदानस्वरूप एक मंत्र देते हुए कहा कि हे पुत्री, इस मंत्र का उच्चारण कर तुम जिस भी देवता का आह्वान करोगी वह चाहे अथवा न चाहे तुम्हारे अधीन हो जाएगा. अत: आप की आज्ञा होने पर मैं जिस देवता का आह्वान करूंगी, उसी से मुझे संतानोत्पत्ति होगी. इस प्रकार धर्मराज से युधिष्ठिर, वायुदेव से भीमसेन, इंद्र से अर्जुन, अश्विन कुमार से जुड़वा पुत्र नकुल व सहदेव प्राप्त हुए.

‘‘मम्मी, यह तो बात हुई 5 पांडु पुत्रों की उत्पत्ति की. उस के बाद यह तो सर्वविदित है कि द्रौपदी के 5 पति थे, क्योंकि उन की माता कुंती अपने 5 बेटों को सदा कहती थीं कि कोई भी वस्तु पांचों बराबर बांट कर इस्तेमाल करो. अत: जब वे द्रौपदी को जीत कर लाए तो वही बात कुंती ने बिना द्रौपदी को देखे कह दी और तब से द्रौपदी के 5 पति थे. इस के अलावा भीम व हिडिंबा से घटोत्कच का जन्म हुआ और धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सू का जन्म एक वेश्या के गर्भ से हुआ था. तो मम्मी अब देखिए आप हमारे जिस धार्मिक ग्रंथ को रोज बड़ी श्रद्धा के साथ पढ़ती हैं, उस में हमारी पुरानी संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है, जिस में यह बताया गया है कि जीवन को स्वेच्छा से हंसीखुशी और मौजमस्ती के साथ जीओ. लेकिन यह भी ध्यान रखो कि आप की इस मौजमस्ती का नुकसान दूसरों को न उठाना पड़े और हम किसी के साथ कोई जबरदस्ती न करें.

‘‘तो मम्मी कहां बुराई है मेरे और आशी के गैरसंबंधों में? आप को बुराई दिखाई देती है, क्योंकि हमारे समाज के नियम इन संबंधों को अस्वीकृत करते हैं. लेकिन ये समाज के नियम बनाए किस ने? समाज के चंद पहरेदारों ने. तो फिर क्यों रोक नहीं इन कोठों पर, वेश्यालयों पर, क्यों खुले हैं ये? सिर्फ उन पहरेदार मर्दों के लिए जो इन नियमों को बनाते तो हैं, किंतु स्वयं उन्हें नहीं मानते और उन मर्दों की औरतें उदासीन जिंदगी जीने के लिए मजबूर होती हैं. वे मर्द अपनी कामेच्छा की संतुष्टि तो कर लेते हैं, किंतु उन की औरतों का क्या जो उन मर्दों से विवाह कर सारी जिंदगी उन के बच्चे ही पालती रहती हैं या फिर उन पर आश्रित होती हैं कि कब उन के पति को उन पर प्यार आए जिस की बारिश में वह उन के तनमन को भिगो दे. उन्हें भी तो हक होना चाहिए अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का या फिर यदि समाज के निमय हैं तो मर्द व औरत के लिए समान रूप से होने चाहिए. मम्मी ये सब तो कल भी होता था आज भी हो रहा है और कल भी होगा. यदि समाज इन पर प्रतिबंध लगाएगा तो चोरीछिपे होगा पर होगा जरूर.’’

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मम्मी अपने जंवाई की बातें सुन कर नि:शब्द थीं. दीदी वहीं बैठ कर सुबकसुबक कर रो रही थीं. निशांत ने उन्हें गले से लगा कर चुप कराते हुए कहा, ‘‘मत रोओ आशी, इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. आगे भी तुम स्वेच्छा से अपनी जिंदगी जी सकती हो.’’

हालांकि मम्मी अभी भी इस तरह के संबंधों को मन से स्वीकार नहीं कर पा रही थीं, लेकिन निशांत व आशी दीदी के चेहरे पर मुसकान देख कर हम सब भी मुसकरा रहे थे.

तभी मम्मी दीदी से कहने लगी, ‘‘बेटी, मैं ने तुम्हें बहुत भलाबुरा कहा. तुम मुझे माफ कर देना.’’

मम्मी को यह सब समझाने में निशांत ने जिस धैर्य से काम लिया वह काबिलेतारीफ था.

तभी आकाश बोल उठे, ‘‘भई, भूख लग रही है. आज खाना बाहर से ही और्डर कर देते हैं.’’

सभी मम्मी से पूछने लगे कि कहिए क्या और्डर किया जाए?

माहौल हलका हो गया था. आशी दीदी व निशांत अपने कमरे में चले गए. हम अमेरिका वापसी की तैयारी में लग गए. अब वापस लौट कर मम्मी को अमेरिका में उन की सहेलियों की बातों से कोई आश्चर्य न होता और अब उन्होंने इस देश को कोसना छोड़ दिया था. मेरे दोनों बच्चे भी कहने लगे थे, ‘‘मौम, अब दादी कुछ बदली बदली लगती हैं.’’

Serial Story: कल आज और कल (भाग-1)

15 वर्षों से अमेरिका में नौकरी करते करते ऐसा लगने लगा जैसे अब हम यहीं के हो कर रह गए हैं. 3 साल में 1 बार अपनी मां के पास अपने देश भारत जाना होता है. बच्चे भी यहीं की बोली बोलने लगे हैं और यहीं का रहनसहन अपना चुके हैं. कई बार मैं अपने पति से कहती कि क्या हम यहीं के हो कर रह जाएंगे? पति कहते कि कर भी क्या सकते हैं? आजकल की नौकरियां हैं ही ऐसी. जहां नौकरी वहीं हम. पहले जमाने की तरह तो है नहीं कि सुबह 9 से शाम 5 बजे तक की सरकारी नौकरी करो और आराम से जिंदगी जीयो और न ही वह जमाना रहा कि पति की नौकरी से ही घर खर्च चल जाए और बचत भी हो जाए. अत: मुझे तो नौकरी करनी ही थी.

मेरे पति आकाश के मांबाबूजी यानी अपने सासससुर को मैं मम्मीपापा ही पुकारती हूं. वे भारत में ही हैं और उन की बहन आशी यानी मेरी ननद भी मुंबई में ही रह रही हैं. उन के पति मर्चेंट नेवी में हैं और 2 सुंदर बेटियां हैं. मम्मीपापा कहने को तो अकेले रहते हैं अपने फ्लैट में, लेकिन उन की देखभाल तो आशी दीदी ही करती हैं. मगर मम्मीपापा को कहां अच्छा लगता है कि वे अपनी बेटी पर बोझ बनें. वे तो भारत में विवाह के बाद पराया धन मानी जाती हैं. लेकिन अब तो मम्मीपापा के अकेले रहने की उम्र भी नहीं रही. अत: हम लोग बारबार उन से आग्रह करते कि हमारे पास अमेरिका में ही रहें. पर वे तो अपने देश, अपने घर के मोह में ऐसे बंधे हैं कि उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहते.

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हर बार यही कहते हैं कि अमेरिका में मन नहीं लगेगा. भारतीय लोग भी तो नहीं हैं वहां. किस से बोलेंगे? भाषा की समस्या अलग से. लेकिन जब आशी दीदी ने उन्हें समझाया कि अब तो अमेरिका में बहुत भारतीय हैं, तो उन्होंने अमेरिका आने का मन बना लिया. फिर क्या था. आकाश भारत गए और वहां का फ्लैट बेचने की कारवाई शुरू कर दी. मम्मीपापा का तो रोमरोम घर में बसा था. बहुत प्यार था मम्मी को उस घर की हर चीज से. क्यों न हो. पापा की खूनपसीने की कमाई से बना था उन का यह घर.

मम्मी एक तरफ तो उदास थीं कि इतने वर्ष जिस घर में रहीं वह आज बिक रहा है, सब छूट रहा है, लेकिन दूसरी तरफ खुश भी थीं कि अपने बेटेपोते के साथ बुढ़ापे के बचेखुचे दिन गुजारेंगी. 2 महीने पूरे हुए. मम्मी आशी दीदी से विदाई ले कर अमेरिका के लिए रवाना हो गईं. आशी दीदी का मन भी बहुत दुखी था कि अब उन का भारत में कोई नहीं. एक मम्मी ही तो थीं जिन से वे दुखसुख की सारी बातें कह लेती थीं.

मम्मीपापा मेरे बच्चों अक्षय और अंशिका से मिल कर बहुत खुश हुए. पापा तो उन से अंगरेजी में बात करने की पूरी कोशिश करते, लेकिन मम्मी उन का अमेरिकी लहजा न समझ पातीं. आधी बातें इशारों में ही करतीं. मैं अच्छी तरह समझती थी कि शुरूशुरू में उन का यहां मन लगना बहुत मुश्किल है. अत: मैं ने उन के लिए औनलाइन हिंदी पत्रिकाएं और्डर कर दीं.

फिर एक दिन मैं ने कहा, ‘‘मम्मी, शाम को कुछ भारतीय महिलाएं अपनी किट्टी पार्टी करती हैं, जिन में से कुछ आप की उम्र की भी हैं. आप रोज शाम को उन के पास चली जाया करें. आप की दोस्ती भी हो जाएगी और मन भी लग जाएगा.’’

एक दिन मैं ने उन महिलाओं से मम्मी का परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘मम्मी, ये हैं विनीता आंटी, ये कमला आंटी, ये रूपा आंटी और ये हमारी मम्मी.’’

सभी महिलाएं बड़ी खुश हुईं. रूपा आंटी कहने लगीं, ‘‘स्वागत है बहनजी हमारे समूह में आप का. बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर. चलो, हमारे परिवार में एक सदस्य और बढ़ गया. अब हम इन्हें रोज नीचे बुला लिया करेंगी.’’

अब मम्मी शाम को 5 बजे अपनी सहेलियों के पास रोज पार्क में चली जातीं. वहां गपशप व थोड़ी इधरउधर की बातें करना उन्हें बहुत अच्छा लगता. धीरेधीरे 1 ही महीने में मम्मी का मन यहां लग गया. पापा तो रोज अपने नए मित्रों के साथ सुबहशाम सैर कर आते और बाकी खाली समय में हिंदी पत्रिकाएं पढ़ते. मम्मी सुबहशाम मेरा रसोई में हाथ बंटातीं. लेकिन अब मम्मी जब शाम को पार्क से लौटतीं, तो उन के पास हर दिन एक नया किस्सा होता, मुझे सुनाने के लिए.

फिर एक दिन मम्मी जब पार्क से लौटीं तो सेम की फलियां काटतेकाटते बोलीं, ‘‘आज मालूम है रूपा क्या बता रही थी? कह रही थी कि इधर एक हिंदुस्तानी पतिपत्नी रहते हैं. दोनों नौकरी करते हैं. उन के बच्चे नहीं हैं. सुना है पति नपुंसक है. उस की पत्नी का दफ्तर में एक अन्य आदमी से संबंध है.’’

‘‘मम्मी यहां सब चलता है और मैं भी पहचानती हूं उन्हें. अच्छे लोग हैं दोनों ही.’’

‘‘क्या खाक अच्छे लोग हैं… पति के रहते पत्नी गैरपुरुष से संबंध रखे तो क्या अच्छा लगता है?’’

मैं मम्मी के चेहरे को गौर से देख रही थी. उन की त्योरियां चढ़ी हुई थीं. सही बात तो यह है कि उन के चेहरे पर ये भाव होने वाजिब ही थे, क्योंकि हमारे हिंदुस्तान में ऐसे संबंधों को कहां मान्यता दी है? हां यह बात अलग है कि वहां चोरीछिपे सब चलता है. यदि बात खुल जाए तो स्त्री और पुरुष दोनों ही बदनाम हो जाते हैं. लेकिन हिंदुस्तान में भी तो शुरू से ही रखैल और देवदासी प्रथा प्रचलित थी. उच्च वर्ग के लोग महिलाओं को बखूबी इस्तेमाल करते थे. लेकिन उच्च वर्ग यह करे तो शानशौकत और निम्न वर्ग तो बेचारा इस्तेमाल ही होता रहा. समाज में समानता कहां है. लेकिन यहां तो समाज इन रिश्तों को खुल कर स्वीकारता है. पर मम्मी को कौन समझाए? मैं उन से इस बारे में बहस नहीं करना चाहती थी. मैं जानती थी इन सब बातों से मम्मी का दिल दुखेगा. सो मैं ने सेम की फलियां हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘लाओ मम्मी, मैं सब्जी छौंक देती हूं, आप थक गई होंगी. जाइए, आप थोड़ा आराम कर लीजिए.’’

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मम्मी भी मुसकरा कर बच्चों के पास चली गईं. मेरी बेटी अंशिका उन से बहुत खुश रहती. धीरेधीरे मम्मी अंगरेजी भी सीखने लगी थीं. अब मम्मीपापा बच्चों से अंगरेजी में ही बात करते. उन के यहां आने से मुझे बहुत सहारा मिल गया था वरना यहां तो सारा काम खुद ही करना पड़ता है, नौकरचाकर तो यहां मिलते नहीं और जिस तरह से मम्मी अपना घर समझ कर काम करती थीं, वे थोड़े ही न करेंगे?

अब मम्मी यहां पूरी तरह ऐडजस्ट हो गई थीं. महीने में 1 बार अपनी सहेलियों के साथ रेस्तरां में किट्टी पार्टी कर लेतीं. सभी महिलाओं में होड़ लगी रहती कि सब से अच्छी डिश कौन बना कर लाती है. सो मम्मी भी उस होड़ में शामिल हो नई सलवारकमीज, पर्स, मैचिंग चप्पलें आदि पहन कर बड़ी खुश होतीं. यही एक सब से अच्छा जरिया था यहां उन का मन लगाने का. सजधज कर चली जातीं. 1-2 गेम खेलतीं और एकदूसरे से अपने मन की बातें कर लेतीं.

इस बार जब वे किट्टी पार्टी से लौटीं तो सब सहेलियों से और भी नईनई बातें सुन कर आईं और बड़ी बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थीं कि कब मैं दफ्तर से आऊं और कब वे अपने मन की बात मुझे बताएं.

मेरे घर आते ही वे 2 कप चाय बना कर ले आईं और फिर मेरे पास आ कर बैठ गईं.

मैं ने पूछा, ‘‘कैसी रही आप की किट्टी पार्टी?’’

वे तो जैसे तैयार ही बैठी थीं सब बताने को. कहने लगीं, ‘‘किट्टी तो बहुत अच्छी थी, किंतु यहां की कुछ बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं. आज तो सभी औरतें स्पर्म डोनेशन की बातें कर रही थीं. वे बता रही थीं कि यदि कोई मर्द बच्चा पैदा करने में असमर्थ हो तो किसी और मर्द के स्पर्म (शुक्राणु) उस की पत्नी की कोख में स्थापित कर दिए जाते हैं और उस पत्नी को यह मालूम ही नहीं होता कि स्पर्म किस मर्द के हैं. ऐसे ही यदि महिला बच्चा पैदा करने में असमर्थ हो तो दूसरी महिला की कोख में दंपती के शुक्राणु व अंडाणु निषेचित कर के स्थापित कर दिए जाते हैं और इस तरह दूसरी महिला 9 महीने के लिए अपनी कोख किराए पर दे देती है. जब बच्चा पैदा हो जाता है तो वह उस दंपती को सौंप देती है. छि…छि… कितना बुरा है ये सब?’’

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Serial Story: मार्जिन औफ एरर

Serial Story: मार्जिन औफ एरर (भाग-4)

महिका का दिल धड़क उठा. उस की नजर अफरोजा की तरफ गई. मुश्किल से 5 फुट 3 इंच की ऊंचाई होगी उस की. गोरी, दुबलीपतली, हलकी लंबाई में तीखा सा चेहरा, ऊंची नाक, सिल्क के महीन धागों सी भूरे बालों और काले कजरारे सुरमे वाली आंखें. जरीदार जरदोजी के पीले सूट में अफरोज़ा आम्रपाली सी संगीतमय लग रही थी. सच, उस ने अपनी आंखों से देखा, अच्युत ने अफरोजा को बड़ी गहरी नजर से देख आंखें हटाईं और अफ़रोजा की आंखों में विद्युतधारा चमक उठी. होंठों पर उस के गुलमोहर की खिलखिलाहट सी तैर गई.

फिर यह दर्शित से धीमेधीमे क्या बात कर रही होगी… जो भी हो, अच्युत महिका का है. उस ने उसे पाने का संकल्प ले रखा है. उसे इस करोड़ों की संपत्ति का उत्तराधिकार पाना है. अच्युत इस लड़की के प्रति कहीं कमजोर तो नहीं हो रहा… नहीं. ऐसा हो तो कैसे. दवा का असर ऐसा होने तो न देगा.

दर्शित ने व्यंग्यभरी अजीब सी अफसोसनाक मुसकान लिए महिका को देखा और इतने में अच्युत ने डाक्टर केशव से कहा, “कितने रुपए दिए गए डाक्टर साहब?”

50 हजार रुपए देने की बात थी. अभी तक 25 हजार रुपए दिए गए.”

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“किस एवज में अंकल?” चौंकी महिका. एक तरह से कहा जाए तो डर और सतर्कता ने उस के चेहरे पर जर्द मातम फैला दिया था, जैसे प्रेमपत्र लिखे जाने के लिए निकाले गए सफेद चमचमाते कागज पर अचानक स्याही गिर गई हो.

“अच्युत, आप को कोई ऐसी दवा या ड्रग देने की पेशकश की गई थी जिस से आप कम सोचसमझ सकें और किसी के निर्देश अनुसार काम करने में ही अपनी भलाई समझें,” डाक्टर ने कहा.

“किस ने किया यह डाक्टर केशव?” अच्युत धीमे मगर गहरे स्वर में पूछ रहे थे.

महिका जमीन की ओर देखती बैठी थी. उस ने डाक्टर केशव को एकबारगी इस तरह देखा जैसे कुछ अनुरोध करना चाहती हो.

डाक्टर केशव अनदेखा करते बोले, “महिका जी मेरे घर आई थीं, उन्हीं की ऐसी इच्छा थी.”

अब सारी आंखें महिका की तरफ थीं.

अचानक महिका ने अच्युत पर निशाना साधा- “अगर मेरे साथ जिंदगी में आगे बढ़ने की गुंजाइश ही नहीं थी तो मुझे अपने साथ दुबई क्यों ले गए थे?”

“अंकल, आप ने वे रुपए मुझे लौटा दिए और सारी बातें बताईं. लेकिन क्या आप ने महिका को यह बताया कि आप मेरे पापा के दोस्त हैं और हमारे पारिवारिक शुभचिंतक? आप ने मुझे कोई दिमाग की दवा नहीं दी, बल्कि विटामिन की गोलियां दीं.”

“बेटा, उन्हें ये सब बताना मैं ने जरूरी नहीं समझा. लालच के मारे से क्या ही बात करता.”

“अच्युत जी, आप मुझे दुबई ले जा कर खुद ही मेरे लालच में फंसे. मेरे पास हम दोनों के उन अंतरंग पलों के वीडियो और तसवीरें हैं जो आधीरात में आप के बहकने की कहानी कहते हैं. ये लीजिए मन भर कर देखिए और दिखाइए. मैं जानती थी, मेरी चाहतों को लालच का नाम दे कर मेरी तौहीन की जाएगी.

“सारे प्रमाण मैं ने इन्हीं दिनों के लिए रखे थे. आप मेरे इतने करीब आ कर मुझे धोखा नहीं दे सकते. और दर्शित को न्योता दे कर क्यों बुलाया यहां? आप के पैसे इन्होंने लिए हैं, मैं ने नहीं. और डाक्टर साहब, आप के पास क्या प्रमाण है कि आप को दवा के लिए रुपए दिए मैं ने?”

अच्युत कुछ कहता, अफ़रोजा बोल पड़ी- “बहुत हुआ महिका जी, डाक्टर केशव के घर जब आप गई थीं और डील कर रही थीं, तब पास ही लगे कमरे में मैं मौजूद हो कर आप की सारी बातें रिकौर्ड कर रही थी. आप भी सुन लीजिए. सर ने मुझे इसी काम के लिए बुलाया था जब आप ने सर से फोन पर बात की थी. और जहां तक अच्युत का आप को ले कर लालच की बात है, जो वीडियो आप दिखा रही हैं उसे आप ने अच्युत को ड्रग दे कर बेहोशी में लिया है. यह भी जानिए कि आप जब दुबई जाने की जिद कर रही थीं, तो अच्युत ने सोचा कि आप को शायद विदेश घूमने का यह मौका गंवाना बहुत मायूस कर देगा. आप के मुंबई आ कर संघर्ष करने की घटनाओं से अच्युत वाकिफ थे, इसलिए आप को साथ ले गए. अच्युत ने मुझ से बाद में मेरी राय भी मांगी थी और मेरे कहने पर ही आप का टिकट बनवाया था. मुझे अच्युत पर पूरा भरोसा है. यों ही दूरियों के बावजूद सालों से हमारा रिश्ता पुख्ता नहीं है.”

“आप कैसे कह सकती हैं कि मैं ने उन्हें कुछ खिलापिला कर तसवीरें लीं?”

“क्योंकि मैं ने इन्हें बताया है, महिका. मेरे पास उस समय की सारी टैस्ट रिपोर्ट हैं. और तुम ने कहां से कौन सी दिमाग को कमजोर करने वाली ड्रग ली, इस के भी तथ्य हैं. देखोगी? या पुलिस से मांग कर देखोगी? कहो, क्या चाहती हो? “अच्युत ने सख्त लहजे में कहा तो महिका कमजोर पड़ गई.”

“कुछ नहीं, मैं यहां से जाना चाहती हूं.”

“दर्शित, तुम चाहो तो महिका से शादी कर सकते हो क्योंकि महिका को ले कर मेरा ऐसा कोई भी इरादा नहीं है. हालांकि महिका के चयन की स्वतंत्रता पर मुझे कुछ भी नहीं कहना चाहिए क्योंकि रिश्ते में आना अकेले की बात नहीं होती, लेकिन इन्होंने मेरे चयन की स्वतंत्रता का भी हनन किया है. अपने स्वार्थ के लिए मुझे मोहरा बनाया. यह जानना महिका के लिए दिलचस्प होगा कि अफरोजा के साथ मेरा प्यार लगभग 10 सालों का है, जब हम साथ कालेज में पढ़ते थे. अफरोजा के घर में तंगी थी, इसलिए अब तक वह नौकरी कर के घर संभाल रही थी. कभी मुझ से मदद लेने की गुंजाइश नहीं रखी. जरूरी नहीं होता कि आप के विकास की प्रक्रिया हमेशा आप के मन के अनुसार ही रही हो. आप का अच्छा होना आप का परिचय है और आप का परिचय दूसरों को प्रभावित करता है, आप का व्यक्तिगत इतिहास नहीं.

“अब उस के छोटे भाई की नौकरी लग गई है तो… क्यों रोज़, अब तो मेरे पास आ जाओगी न हमेशा के लिए?” अच्युत बड़ी गहरी बातें बोल गया था.

महिका ने देखा, अफ़रोजा के गोरे गाल रक्तिम गुलाब से खिल गए थे. आंखों में शरारती मुसकान के साथ बड़ी सी हामी.

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दर्शित ने तुरंत कहा, “दोस्त, स्वीकार कर लेना भले ही आसान नहीं, लेकिन स्थिति को स्वीकार कर लेने के बाद मुश्किलें जरूर आसान हो जाती हैं. मैं महिका के साथ जिंदगी बिताने की बात तो अब सोच भी नहीं सकता. इस धक्के को अब मैं ने स्वीकार लिया है. हां, जिस घर में हम दोनों हैं वहां से महिका के कहीं और जाने तक उसे मोहलत दे दूंगा, तब तक मैं ड्राइंगरूम में रह लूंगा और खाने का इंतजाम हम दोनों अलग कर लेंगे. अब उम्मीद है, महिका जल्द उस फ्लैट को छोड़ देगी. अच्युत के रुपए मैं ने उस अकाउंट से निकाल कर महिका को दे दिए थे, इस के प्रमाण, शुक्र है, मैं ने रख लिए थे. मैं अब उस अकाउंट से निकल जाऊंगा, अच्युत संभाल लेना.”

“महिका तुम रुपए कब लौटाओगी? मेरी फर्म में अब तुम्हारी जगह तो होगी नहीं. हां, इतना जरूर कर सकता हूं कि तुम्हें कानूनी फेर में न डालूं, बस, स्टैंपपेपर पर तुम जबानबंदी कर दो कि तुम मेरे रुपए किसी एक तय तारीख तक लौटा दोगी. बोलो, मंजूर है?” अच्युत सीधी बात पर आ गए थे.

“मुझे 2 साल चाहिए, मुझे एक नौकरी की तलाश होगी,” महिका ने अपनी झेंप को छिपा लिया था.

“हम एक कानूनी डील करेंगे, तुम 2 साल भले ही लो, लेकिन तय यह भी होगा कि मेरे रुपए तुम्हें तय तारीख तक लौटाने होंगे, वरना मैं कानूनी कार्रवाई करूंगा, समय तुम 2 साल कहो या 3 साल, मैं दूंगा.”

“शुक्रिया, पुरुषों के लिए मेरे अनुभव बड़े दुखद थे. आज दर्शित और अच्युत के साथ कुछ सालों के अनुभव ने मुझे अपनी धारणाओं को फिर से नई फुहार में धोने की इच्छा जगाई है. अफ़रोजा खूब खुश रहना और दर्शित, मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूं, मगर जिंदगी आगे चल कर आप को खूब खुशी दे, दुआ कर के जा रही हूं. मैं अपना सामान ले कर अभी निकल जाऊंगी दर्शित, एक गर्ल्स होस्टल पहले देखा था, वहीं शिफ्ट हो रही हूं. अच्युत जी, गलतियों के लिए मैं ने तो कोई हाशिया छोड़ा नहीं था, आप ने सुधारने के लिए दिया.

“जो भी कहूं, कम है, लेकिन आप को पाने की चाह सिर्फ पैसे के लिए ही नहीं थी, इतना विश्वास कर लेना.” यह कह कर महिका उठ कर खड़ी हो गई.

इस लड़की के लिए किसी के मन में कोई चाह न थी, फिर भी उस के जाते ही जैसे सब निस्तब्ध हो गए.

दर्शित की आंखों के कोर में आंसुओं की 2 बूंदें आ कर ठहर गईं एक हाशिए पर हमेशा रह जाने के लिए.

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Serial Story: मार्जिन औफ एरर (भाग-1)

जिंदगी के गणित में हम कितनी ही सफल तकनीकें अपना लें, अनिश्चित का एक हाशिया छोड़ना ही पड़ता है. भूलों की पराबैंगनी किरणों के लिए एक स्थान, जो हमारी जिंदगी का अमिट हिस्सा हो, रहता है, मार्जिन एरर का.

चाहे महिका हो या अच्युत या फिर दर्शित ही, इस मार्जिन औफ एरर की गुंजाइश तो सब की जिंदगी में थी. हां, बेहतर किस ने यह बात समझी, यह बड़ी बात थी. महिका ने समझी यह बात? या फिर दर्शित मान पाया इस सच को? या कि अच्युत ने ही इस हाशिए को हाशिए पर छोड़, नया रास्ता तलाश लिया?

छोटे से फ्लैट के हवादार सुसज्जित कमरे में 12 बजे की काली रात के समय आरामदायक बिस्तर पर दर्शित और महिका आसपास सो रहे थे. 25 साल की महिका रातरानी सी महकती अपने पारदर्शी गुलाबी नाइटगाउन में निश्चिंत नींद में है.

32 साल का दर्शित नींद में भी उस की उपस्थिति को महसूस करता हुआ अनजाने ही अपने हाथों से महिका को जकड़ लेता है. तृप्ति और खुशी के स्पंदन से दर्शित की नींद कुछ खुल सी जाती है. महिका को अपने पास गहरी नींद सोता देख वह आश्वस्त हो फिर से नींद में डूब जाता है.

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नींद कितनी मुश्किल और अनमोल है, यह दर्शित कम बेहतर नहीं समझता. एक सुकूनभरी नींद के उचट जाने से ही तो उम्मीद की तलाश में वह इस रतजगे शहर मुंबई भागा आया था.

वरना, सिलीगुड़ी का वह छोटा सा मगर अच्छा खासा चलता होटल क्योंकर रातोंरात उस के सबकुछ छिन जाने का सबब बन जाता.

आह, उस नेपाली लड़की को याद कर उस का दिल मरोड़ सा जाता है. विश्वास और प्यार, संवेदना और भरोसा कितनी बेदाम चीजें हैं कि लोगों को पल में उन्हें ठोकर मारने में तकलीफ नहीं होती.

जाने क्यों दर्शित की नींद अपना सुकून खो चुकी है. जाने क्यों खोई हुई आश्वस्ति जैसे लौटी ही न हो, लेकिन लौटने के लिए व्याकुल हो.

शायद कुछ घंटे वह सो गया था. इस बार फिर उस के हाथ महिका की ओर बढ़े और वह चौंक कर उठ बैठा. बगल में नहीं थी महिका. फिर से उठ कर चली गई थी उस की प्रेयसी, उस की लिवइन पार्टनर महिका. आजकल अकसर ही आधी रात के बाद दर्शित को बिना बताए वह बिस्तर से उठ कर चली जाती है.

दर्शित बहुत घबराता है. वह उठ कर महिका को देखने जाता है.

ऐसे ही किसी सुबह दर्शित को निशिता भी तो नहीं मिली थी घर में. हमेशा के लिए चली गई थी वह.

दर्शित घबरा कर महिका को पूरे घर में ढूंढता है. वह उसे ड्राइंग या बालकनी में बैठ फोन में कुछ करती दिखती है. दर्शित को देखते ही वह चिढ़ जाती है.

दर्शित को डर लगता है- फिर से वही सब दोहराया न जाए जिसे वह अतीत में विसर्जित कर आया है.

“क्या कर रही हो महिका? रोज आधी रात को बिस्तर से उठ क्यों आती हो?”

“औफिस का काम करती हूं, तुम क्यों पीछे आए?”

“आधी रात को ऐसा क्या काम पड़ जाता…” दर्शित ने झिझक तोड़ते हुए पूछना चाहा तो महिका ने कहा, “देखो दर्शित, मुझे इतनी पाबंदी पसंद नहीं. आती हूं तो आती हूं, तुम्हें जगाती तो नहीं हूं नींद से?”

दर्शित चुप हो गया लेकिन उस के मन के बियाबां में कैसा बवाल मचा था, यह वही जानता था.

बात बढ़ाना नहीं चाहता था दर्शित. दरअसल वह शांतिप्रिय है, सीधा और प्रेमी स्वभाव का है. लेकिन साथ ही, उस की श्रवणशक्ति तेज थी. वह संभावित खतरा सूंघ सकता था. इसी वजह से वह बेचैन था. पुराने अनुभवों के दर्द उसे डराते हैं.

महिका और दर्शित का रात का खाना दर्शित के खुद के होटल से आ जाता है. दोपहर जो जहां काम पर, वह वही लंच करता है. बची सुबह, तो दोनों मिल कर कुछ बना लेते हैं. आज महिका दर्शित पर कोई काम लादे बिना, खुद ही रसोई में घुस गई थी.

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जिस के दिल में कुछ छिपाने वाली बात हो वह कभी भी सवाल वाली आंखों के आगे नहीं रहना चाहता. दर्शित यह समझता था, इसलिए वह महिका के व्यवहार पर और भी चिंतित हुआ.

दर्शित का यहां मुंबई के एक्सप्रैस हाईवे के पास रैस्टोरैंट है. कुछ कर्मचारी काम करते है. लेकिन दर्शित स्वयं भी मेहनत करने में विश्वास करता है.

हां, वह महत्त्वाकांक्षी इतना भी नहीं कि अपनी सुखशांति दांव पर लगा दे. महिका अकसर उस से बहस छेड़ देती है और किसी तरह वह बहसबाजी से बच निकलता है.

महिका के औफिस निकल जाने के बाद ही वह अपने होटल के लिए निकलता है. आज भी इसी तरह निकलते वक़्त ड्राइंगरूम के दराज वाले साइड टेबल से चाबी उठाते हुए उस की नजर एक बिल पर गई.

एक सोने की अंगूठी का बिल? क्यों?

क्या महिका उसे गिफ्ट देना चाहती है? अभी महीनाभर पहले ही तो उस के जन्मदिन पर उसे शर्ट दिया था.

वह बहुत खुश था, कीमत कोई माने नहीं रखती अगर भावनाएं सच्ची हों. दर्शित ऐसा ही तो है.

मगर अब यह अंगूठी? 5 दिन हो गए उसे अंगूठी खरीदे हुए, उस ने कुछ बताया नहीं.

दर्शित ने थकहार कर दिमाग का कपाट बंद किया और होटल के लिए निकल गया.

दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल्स के विशाल कौंप्लैक्स की लिफ्ट में चढ़ते हुए महिका ने अपने फोन का सैल्फी कैमरा औन किया. खुद का चेहरा चैक किया. ग्लैमरस थी वह. और लग भी रही थी. पैंसिलस्कर्ट को थोड़ा सही कर वह लिफ्ट से निकल आई. फोन मैचिंग वैनिटी में रखा. पांचछह फुट हाइट थी उस की. स्टाइल और एटिट्यूड के लिए वह 2 इंच की पैंसिलहिल जरूर पहनती है, खासकर, अच्युत सर के औफिस आते समय.

अच्युत – उस के सपनों के महल की नींव जैसा… विरासत में मिली कंपनी को अच्युत ने अपने बलबूते पर आयातनिर्यात कंपनी में तबदील किया, जिस की आज सारे विश्व में चेन कंपनियां थीं. बड़ी बात यह भी थी कि वह इस कंपनी और अपनी पुश्तैनी संपत्ति का इकलौता वारिस है. हजारों में एक खूबसूरत, स्मार्ट और व्यवहारकुशल.

कल्याण वेस्ट में 15 हजार रुपए महीने के किराए के घर से मालाबार हिल्स के अच्युत सर के कंपनी तक के रास्ते भले ही महिका के लिए कठिन रहे हों, जिंदगी ने उसे खूब संघर्ष दिखाया हो, पर अब जरूर उस के सपने पूरे होंगे.

अगर ऐसा होना न होता तो अच्युत सर सभी विश्वस्त लोगों में से उसे ही अपनी कंपनी के रिसैप्शनिस्ट से पर्सनल असिस्टैंट क्यों बनाते. महिका का खूबसूरत, सुडौल और स्मार्ट शरीर के साथ चालाक दिमाग शायद उस के लिए उस के तमाम सपने पूरे करने के औजार हैं.

और तो और, अब यह नया मौका भी. महिका को पूरा विश्वास हो चला है कि उस के सपने समय के रश्मिरथ पर सवार उस की ओर ही बढ़े चले आ रहे हैं.

विशाल केबिन में शीशे की टेबल के सामने कुरसी की बगल में खड़े हो कर 30 वर्ष के स्मार्ट, खूबसूरत, लंबे अच्युत कोई फाइल पढ़ रहे थे. महिका दरवाजे पर खड़ी हो कर अच्युत से कहती है- “सर, जन्मदिन मुबारक हो.”

“आओ, आओ महिका, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था. मैं कुछ दिन नहीं रहूंगा, ‘नौसिखिए’ फिल्म की शूटिंग के लिए दुबई जा रहा हूं. वहां से यूरोप ट्रिप है बिज़नैस के सिलसिले में. मेरे पीछे तुम्हें मैं कुछ विशेष ड्यूटी दे जाऊंगा.”

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महिका के सुर संगम का सारा ताल झन से टूट गया. उस ने चेहरे के भाव को अभिनय कौशल से छिपा कर कहा, “सर, “मैं तो आप की निजी असिस्टैंट हूं. मेरा तो आप के साथ होना बहुत जरूरी होगा. आप की शूटिंग हो या बिजनैस, आप को डिस्टर्ब हुए बिना अपना काम पूरा करना है. कोई तो आप के साथ होना चाहिए जो आप की व्यस्तता के पलों में आप को अन्य उलझनों से दूर रखे. फिर शूटिंग का यह आप का पहला अनुभव है, शायद. कोई मेरे जैसा अपना साथ रहे…”

महिका साहस और स्मार्टनैस के जरिए अच्युत के कुछ करीब आ गई थी.

अच्युत महसूस करता है उस की सुवासित देह की गंध. वासना में लिपटी महिका की नजर. स्वर में तृष्णा की खनक. 25 साल के यौवन का मादक ज्वार.

तुरंत ही महिका बात बदलते हुए मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश करती कहती है, “सर, यह सोने की अंगूठी मैं ने आप की दी हुई तनख्वाह से खरीदी है. सब तो आप का ही है. आप इसे ना न कहना. यह मेरी भावना है. अगर आप ने नहीं लिया तो मैं बहुत दुखी हो जाऊंगी, सर.”

महिका अंगूठी उस के दाहिने हाथ की अनामिका उंगली में पहना देती है.

अच्युत उसे धन्यवाद देते हुए अंगूठी की प्रशंसा करते हैं और उसे अपनी ओर से एक कीमती पेन गिफ्ट करते हैं.

महिका फिर उसी सवाल पर आ गई. महिका को सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा कर अच्युत अपनी कुरसी पर बैठ गए.

“लेकिन इधर काम कई सैक्टर में बढ़ गया है. अकाउंट्स में अभी नए लोग आए हैं. भरोसे के लिए कोई तो चाहिए. इस बार फिल्म वालों की मुझ पर नजर पड़ गई, तो मना नहीं कर पाया उन्हें.”

“सर, आप को सुझाव दूं? सर, मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त है, बहुत ईमानदार, सीधा और विश्वासी. अकाउंट्स में ऊंची डिग्री है. अभी वह होटल व्यवसाय में है. हम जब तक यहां न रहें, वह रोज दोतीन घंटे के लिए आ कर अकाउंट के मामले देख सकता है. उस से यहां की सारी खबर भी हमें मिल जाएगी और बात हम तीनों के बीच ही रहेगी.”

“ठीक है, तुम्हारी इतनी ही इच्छा है, तो चलो.”

“सर, सो स्वीट औफ यूं. लड़के को कल ले आती हूं.”

आगे पढ़ें- पहली बार अच्युत और दर्शित…

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