Boyfriend मेरे साथ फिजिकल रिलेशनशिप बनाने के लिए कहता है, मैं क्या करूं?

Boyfriend :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं बीए के तीसरे साल की छात्रा हूं और 8 महीने से एक लड़के से प्यार करती हूं. जब वह सेक्स के लिए कहता है, तो मैं मना कर देती हूं. इस से वह नाराज हो जाता है और सोचता है कि मैं उसे प्यार नहीं करती. अब वह मुझ से हमेशा के लिए दूर अपने गांव जाना चाहता है, पर मैं उस के बगैर नहीं रह सकती. मैं क्या करूं?

जवाब

शायद वह सेक्स के लिए ही गांव जाने का नाटक कर रहा होगा. अगर वह वाकई आप से प्यार करता है, तो उसे आप से शादी कर लेनी चाहिए. इस के बाद आप दोनों जी भर कर सेक्स कर सकते हैं.

पहले प्यार होता है और फिर सैक्स का रूप ले लेता है. फिर धीरेधीरे प्यार सैक्स आधारित हो जाता है, जिस का मजा प्रेमीप्रेमिका दोनों उठाते हैं, लेकिन इस मजे में हुई जरा सी चूक जीवनभर की सजा में तबदील हो सकती है जिस का खमियाजा ज्यादातर प्रेमी के बजाय प्रेमिका को भुगतना पड़ता है भले ही वह सामाजिक स्तर पर हो या शारीरिक परेशानियों के रूप में. यह प्यार का मजा सजा न बन जाए इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखें.

बिना कंडोम न उठाएं सैक्स का मजा

एकदूसरे के प्यार में दीवाने हो कर उसे संपूर्ण रूप से पाने की इच्छा सिर्फ युवकों में ही नहीं बल्कि युवतियों में भी होती है. अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए वे सैक्स तक करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन जोश में होश न खोएं. अगर आप अपने पार्टनर के साथ प्लान कर के सैक्स कर रहे हैं तो कंडोम का इस्तेमाल करना न भूलें. इस से आप सैक्स का बिना डर मजा उठा पाएंगे. यहां तक कि आप इस के इस्तेमाल से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिसीजिज से भी बच पाएंगे.

अब नहीं चलेगा बहाना

अधिकांश युवकों की यह शिकायत होती है कि संबंध बनाने के दौरान कंडोम फट जाता है या फिर कई बार फिसलता भी है, जिस से वे चाह कर भी इस सेफ्टी टौय का इस्तेमाल नहीं कर पाते. वैसे तो यह निर्भर करता है कंडोम की क्वालिटी पर लेकिन इस के बावजूद कंडोम की ऐक्स्ट्रा सिक्योरिटी के लिए सैक्स टौय बनाने वाली स्वीडन की कंपनी लेलो ने हेक्स ब्रैंड नाम से एक कंडोम बनाया है जिस की खासीयत यह है कि सैक्स के दौरान पड़ने वाले दबाव का इस पर असर नहीं होता और अगर छेद हो भी तो उस की एक परत ही नष्ट होती है बाकी पर कोई असर नहीं पड़ता. जल्द ही कंपनी इसे मार्केट में उतारेगी.

ऐक्स्ट्रा केयर डबल मजा

आप के मन में विचार आ रहा होगा कि इस में डबल मजा कैसे उठाया जा सकता है तो आप को बता दें कि यहां डबल मजा का मतलब डबल प्रोटैक्शन से है, जिस में एक कदम आप का पार्टनर बढ़ाए वहीं दूसरा कदम आप यानी जहां आप का पार्टनर संभोग के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करे वहीं आप गर्भनिरोधक गोलियों का. इस से अगर कंडोम फट भी जाएगा तब भी गर्भनिरोधक गोलियां आप को प्रैग्नैंट होने के खतरे से बचाएंगी, जिस से आप सैक्स का सुखद आनंद उठा पाएंगी.

कई बार ऐसी सिचुऐशन भी आती है कि दोनों एकदूसरे पर कंट्रोल नहीं कर पाते और बिना कोई सावधानी बरते एकदूसरे को भोगना शुरू कर देते हैं लेकिन जब होश आता है तब उन के होश उड़ जाते हैं. अगर आप के साथ भी कभी ऐसा हो जाए तो आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा लें लेकिन साथ ही डाक्टरी परामर्श भी लें, ताकि इस का आप की सेहत पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े.

पुलआउट मैथड

पुलआउट मैथड को विदड्रौल मैथड के नाम से भी जाना जाता है. इस प्रक्रिया में योनि के बाहर लिंग निकाल कर वीर्यपात किया जाता है, जिस से प्रैग्नैंसी का खतरा नहीं रहता. लेकिन इसे ट्राई करने के लिए आप के अंदर सैल्फ कंट्रोल और खुद पर विश्वास होना जरूरी है.

सैक्स के बजाय करें फोरप्ले

फोरप्ले में एकदूसरे के कामुक अंगों से छेड़छाड़ कर के उन्हें उत्तेजित किया जाता है. इस में एकदूसरे के अंगों को सहलाना, उन्हें प्यार करना, किसिंग आदि आते हैं. लेकिन इस में लिंग का योनि में प्रवेश नहीं कराया जाता. सिर्फ होता है तन से तन का स्पर्श, मदहोश करने वाली बातें जिन में आप को मजा भी मिल जाता है, ऐंजौय भी काफी देर तक करते हैं.

अवौइड करें ओरल सैक्स

ओरल सैक्स नाम से जितना आसान सा लगता है वहीं इस के परिणाम काफी भयंकर होते हैं, क्योंकि इस में यौन क्रिया के दौरान गुप्तांगों से निकलने वाले फ्लूयड के संपर्क में व्यक्ति ज्यादा आता है, जिस से दांतों को नुकसान पहुंचने के साथसाथ एचआईवी का भी खतरा रहता है.

यदि इन खतरों को जानने के बावजूद आप इसे ट्राई करते हैं तो युवक कंडोम और युवतियां डेम का इस्तेमाल करें जो छोटा व पतला स्क्वेयर शेप में रबड़ या प्लास्टिक का बना होता है जो वैजाइना और मुंह के बीच दीवार की भूमिका अदा करता है जिस से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिजीजिज का खतरा नहीं रहता.

पौर्न साइट्स को न करें कौपी

युवाओं में सैक्स को जानने की इच्छा प्रबल होती है, जिस के लिए वे पौर्न साइट्स को देख कर अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं. ऐसे में पौर्न साइट्स देख कर उन के मन में उठ रहे सवाल तो शांत हो जाते हैं लेकिन मन में यह बात बैठ जाती है कि जब भी मौका मिला तब पार्टनर के साथ इन स्टैप्स को जरूर ट्राई करेंगे, जिस के चक्कर में कई बार भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. लेकिन ध्यान रहे कि पौर्न साइट्स पर बहुत से ऐसे स्टैप्स भी दिखाए जाते हैं जिन्हें असल जिंदगी में ट्राई करना संभव नहीं लेकिन इन्हें देख कर ट्राई करने की कोशिश में हर्ट हो जाते हैं. इसलिए जिस बारे में जानकारी हो उसे ही ट्राई करें वरना ऐंजौय करने के बजाय परेशानियों से दोचार होना पड़ेगा.

सस्ते के चक्कर में न करें जगह से समझौता

सैक्स करने की बेताबी में ऐसी जगह का चयन न करें कि बाद में आप को लेने के देने पड़ जाएं. ऐसे किसी होटल में शरण न लें जहां इस संबंध में पहले भी कई बार पुलिस के छापे पड़ चुके हों. भले ही ऐसे होटल्स आप को सस्ते में मिल जाएंगे लेकिन वहां आप की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती.

हो सकता है कि रूम में पहले से ही कैमरे फिट हों और आप को ब्लैकमैल करने के उद्देश्य से आप के उन अंतरंग पलों को कैमरे में कैद कर लिया जाए. फिर उसी की आड़ में आप को ब्लैकमेल किया जा सकता है. इसलिए सावधानी बरतें.

अलकोहल, न बाबा न

कई बार पार्टनर के जबरदस्ती कहने पर कि यार बहुत मजा आएगा अगर दोनों वाइन पी कर रिलेशन बनाएंगे और आप पार्टनर के इतने प्यार से कहने पर झट से मान भी जाती हैं. लेकिन इस में मजा कम खतरा ज्यादा है, क्योंकि एक तो आप होश में नहीं होतीं और दूसरा पार्टनर इस की आड़ में आप के साथ चीटिंग भी कर सकता है. हो सकता है ऐसे में वह वीडियो क्लिपिंग बना ले और बाद में आप को दिखा कर ब्लैकमेल या आप का शोषण करे.

न दिखाएं अपना फोटोमेनिया

भले ही पार्टनर आप पर कितना ही जोर क्यों न डाले कि इन पलों को कैमरे में कैद कर लेते हैं ताकि बाद में इन पलों को देख कर और रोमांस जता सकें, लेकिन आप इस के लिए राजी न हों, क्योंकि आप की एक ‘हां’ आप की जिंदगी बरबाद कर सकती है.

सैक्स के बाद के खतरे

ब्लैकमेलिंग का डर

अधिकांश युवकों का इंट्रस्ट युवतियों से ज्यादा उन से संबंध बनाने में होता है और संबंध बनाने के बाद उन्हें पहचानने से भी इनकार कर देते हैं. कई बार तो ब्लैकमेलिंग तक करते हैं. ऐसे में आप उस की ऐसी नाजायज मांगें न मानें.

बीमारियों से घिरने का डर

ऐंजौयमैंट के लिए आप ने रिलेशन तो बना लिया, लेकिन आप उस के बाद के खतरों से अनजान रहते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि 1981 से पहले यूनाइटेड स्टेट्स में जहां 6 लाख से ज्यादा लोग ऐड्स से प्रभावित थे वहीं 9 लाख अमेरिकन्स एचआईवी से. यह रिपोर्ट शादी से पहले सैक्स के खतरों को दर्शाती है.

मैरिज टूटने का रिस्क भी

हो सकता है कि आप ने जिस के साथ सैक्स रिलेशन बनाया हो, किसी मजबूरी के कारण अब आप उस से शादी न कर पा रही हों और जहां आप की अब मैरिज फिक्स हुई है, आप के मन में यही डर होगा कि कहीं उसे पता लग गया तो मेरी शादी टूट जाएगी. मन में पछतावा भी रहेगा और आप इसी बोझ के साथ अपनी जिंदगी गुजारने को विवश हो जाएंगी.

डिप्रैशन का शिकार

सैक्स के बाद पार्टनर से जो इमोशनल अटैचमैंट हो जाता है उसे आप चाह कर भी खत्म नहीं कर पातीं. ऐसी स्थिति में अगर आप का पार्टनर से बे्रकअप हो गया फिर तो आप खुद को अकेला महसूस करने के कारण डिप्रैशन का शिकार हो जाएंगी, जिस से बाहर निकलना इतना आसान नहीं होगा.

कहीं प्रैग्नैंट न हो जाएं

आप अगर प्रैग्नैंट हो गईं फिर तो आप कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी. इसलिए जरूरी है कोई भी ऐसावैसा कदम उठाने से पहले एक बार सोचने की, क्योंकि एक गलत कदम आप का भविष्य खराब कर सकता है. ऐसे में आप बदनामी के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठाने में भी देर नहीं करेंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Story Collection : न्यायदंश – क्या दिनदहाड़े हुई सुनंदा की हत्या का कातिल पकड़ा गया?

Hindi Story Collection : जेठ का महीना था. गरम लू के थपेड़ों ने आम लोगों का जीना मुहाल कर दिया था. ऐन दोपहर के वक्त लोग तभी घर से निकलते जब उन्हें जरूरत होती वरना अपने घर में बंद रहते. यही वक्त था जब 4 लोग सुनंदा के घर में घुसे. सुनंदा पीछे के कमरे में लेटी थीं. जब तक किसी की आहट पर उठतीं तब तक वे चारों कमरे में घुस आए. एक ने उन के पैर दबाए तो दूसरे ने हाथ. बाकी दोनों ने मुंह तकिए से दबा कर बेरहमी के साथ सुनंदा का गला रेत दिया. वे छटपटा भी न सकीं.

जब चारों आश्वस्त हो गए कि सुनंदा जिंदा नहीं रहीं तो इत्मीनान से अपने हाथ धोए. कपड़ों पर लगे खून के छींटे साफ किए. फ्रिज खोल कर मिठाइयां खाईं. पानी पीया और निकल गए. महल्ले में दोपहर का सन्नाटा पसरा हुआ था. इसलिए किसी को कुछ पता भी न चला.

हमेशा की तरह शाम को पारस यादव दूध ले कर आया. फाटक खोल कर अंदर घुसा, आवाज दी. कोई जवाब न पा कर बैठक में घुस गया. सुनंदा अमूमन बैठक में रहती थीं. जब वे वहां न मिलीं तो ‘दीदी, दीदी’ कहते इधरउधर देखते हुए बैडरूम में घुस गया. सामने का दृश्य देख कर वह बुरी तरह से घबरा गया. भाग कर बाहर आया. एक बार सोचा कि चिल्ला कर सब को बता दे, परंतु ऐसा न कर सका. शहर में रहते उसे इतनी समझ आ गई थी कि बिना वजह लफड़े में नहीं फंसना चाहिए. वह उलटेपांव घर लौट आया.

इस हादसे की खबर उस ने अपनी बीवी तक को न दी. रहरह कर सुनंदा का विकृत चेहरा उस के सामने तैर जाता तो वह डर से सिहर जाता. रात भर वह सो न सका. उस के दिमाग में बारबार यही सवाल उठता कि आखिर 62 वर्ष की सुनंदा को इतनी बेरहमी से किस ने मारा? किस से उन की दुश्मनी हो सकती है? पिछले 40 साल से वह उन के घर में दूध दे रहा है. हिसाबकिताब की पक्की सुनंदा बेहद पाकसाफ महिला थीं. हां, थोड़ी तेज अवश्य थीं.

पिं्रसिपल होने के नाते सुनंदा के स्वर में सख्ती व कड़की दोनों थी. वे बिना लागलपेट के अपनी बात कहतीं. उन्हें इस बात की परवा नहीं रहती कि उन के कहे का दूसरों पर क्या असर पड़ेगा. उन के तल्ख स्वभाव ने उन्हें अपने सहकर्मियों के बीच भी अप्रिय बना दिया था. अध्यापिका थीं तब भी वे अपना लंच अकेले करतीं.

वे अविवाहित थीं. बालबच्चे वाले प्रेमशंकर के साथ रहने का फैसला उन का अपना था. अपने इस निर्णय पर वे अंत तक कायम रहीं.

प्रेमशंकर ने भी आखिरी दम तक उन का साथ निभाया. उन के बीवीबच्चे जानते थे कि सुनंदा के साथ उन का क्या संबंध है, परंतु प्रतिरोध नहीं किया. इस की सब से बड़ी वजह थी, प्रेमशंकर सुनंदा पर निर्भर थे. सुनंदा अपनी तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा प्रेमशंकर के बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खर्च कर देतीं. विरोध की जगह उलटे कभीकभार आ कर अपने आत्मीय होने का परिचय प्रेमशंकर की पत्नीबच्चे दे जाते. प्रेमशंकर अकसर रात सुनंदा के पास गुजारते. जहां भी जाना होता, सुनंदा के साथ जाते. रुसवाइयों से बेखबर प्रेमशंकर सुनंदा के पास समय गुजारते.

सारा महल्ला जानता था कि प्रेमशंकर सुनंदा के लिए क्या हैं? शायद एक वजह यह भी थी सुनंदा के पासपड़ोसियों से कटने की.

सुनंदा जिस मकान में किराएदार थीं वह मकान उन के पिता के जमाने से चला आ रहा था. लगभग 75 सालों से वे मकान पर काबिज थीं. मांबाप के मरने व भाइयों के शादी कर दूसरे शहरों में बस जाने के बावजूद उन्होंने यह मकान खाली नहीं किया. चाहतीं तो अपना घर बनवा कर जा सकती थीं. लेकिन इस घर में उन के मांबाप रहे, यहीं वे पलीबढ़ीं, इसलिए इस घर से उन का भावनात्मक रिश्ता था. मकानमालिक विपिन नहीं चाहता था कि अब वे रहें. इस को ले कर अकसर दोनों में तकरार होती. आज की तारीख में वह मकान शहर के प्राइम लोकेशन पर था. खरीदार उस की मनमानी कीमत दे रहे थे, जो सुनंदा के लिए संभव न था. सुनंदा न वह मकान खरीद सकती थीं न छोड़ सकती थीं. किराया भी नाममात्र का था. सुनंदा ने मकान पर कब्जा कर लिया था और नियमानुसार मकान का किराया कचहरी में जमा करतीं. विपिन तभी से खार खाए बैठा था. इस के बावजूद उस ने हिम्मत न हारी. एक रोज आया, विनीत स्वर में बोला, ‘‘मैडम, आप अध्यापिका रह चुकी हैं. लोगों को नेकी के रास्ते पर चलने की शिक्षा देती हैं. क्या आप की शिक्षा में यही लिखा है कि किसी का हक मार लो?’’

‘‘हक तो आप ने मेरा मारा है?’’ सुनंदा बोलीं.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘पिछले 75 सालों से रह रही हूं. इतना किराया दे चुकी हूं कि इस मकान पर मालिकाना हक हमारा बनता है.’’

‘‘अरे वाह, ऐसे कैसे हक बनता है?’’ विपिन बोला, ‘‘आप किराएदार थीं न कि मकानमालिक बनने आई थीं. इतने साल मेरे घर का उपभोग किया. उपभोग की कीमत आप ने दी, न कि इस जमीन व ईंट सीमेंट के बने मकान की?’’

‘‘आप जो समझिए, मैं जीतेजी इस मकान को खाली नहीं करूंगी.’’

‘‘किसी की जमीन हड़पना आप को शोभा देता है?’’

‘‘मैं ने हड़पा कहां है, मरने के बाद आप की ही है.’’

‘‘तब तक मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं?’’

‘‘यह आप जानें,’’ सुनंदा किचन में चली गईं. विपिन को नागवार लगा.

एक दिन सुनंदा ने पुलिस को बुला लिया. उन का आरोप था कि मकानमालिक ने बिजली काट दी है. सुनंदा के साथ प्रेमशंकर भी बैठे थे.

‘‘कनैक्शन क्यों काटा?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘एक साल से ये बिजली का बिल नहीं दे रहीं,’’ मकानमालिक बोला.

‘‘क्या यह सही है, मैडम?’’ इंस्पैक्टर सुनंदा की तरफ मुखातिब हुआ.

‘‘यह सरासर झूठ बोल रहा है,’’ सुनंदा उत्तेजित हो गईं.‘‘अभी पिछले महीने मैं ने इसे 200 रुपए बिजली के बिल के लिए दिए थे,’’ प्रेमशंकर बोले.

‘‘आप कौन हैं?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

प्रेमशंकर बगलें झांकने लगे. तब मकानमालिक बोला, ‘‘ये पिछले 30 साल से यहां आ रहे हैं.’’

‘‘क्या रिश्ता है आप का इन से?’’ इंस्पैक्टर ने प्रेमशंकर से पूछा.

‘‘आप से मतलब?’’ सुनंदा झुंझलाईं.

‘‘मतलब तो नहीं है, फिर भी पुलिस होने के नाते यह जानना मेरा पेशा है,’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘बेमतलब की बात छोडि़ए. इन से कहिए कि कनैक्शन जोड़ दें,’’ प्रेमशंकर सिगरेट की राख झटकते हुए बोले.

‘‘मैं नहीं जोड़ूंगा. पिछले साल भर का बकाया चुकता करें.’’

‘‘झूठा, बेईमान,’’ सुनंदा चिल्लाईं.

‘‘चिल्लाइए मत,’’ इंस्पैक्टर ने डंडा हिलाया.

‘‘डंडा नीचे रख कर बात कीजिए. मैं कोई चोरउचक्की नहीं,’’ सुनंदा ने आंखें तरेरीं, ‘‘एक सम्मानित स्कूल की प्रिसिंपल हूं.’’

‘‘बेहतर होगा कि आप अपनी जबान को लगाम दें.’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘मैं लगाम दूं और यह झूठ पर झूठ बोलता जाए.’’

‘‘क्या सुबूत है कि आप सच बोल रही हैं?’’ इंस्पैक्टर का स्वर तल्ख था.

‘‘सच बोलने के लिए किसी सुबूत की जरूरत नहीं होती. किसी से पूछ लीजिए, मेरे ऊपर किसी की फूटी कौड़ी भी बकाया है?’’

‘‘मकानमालिक का तो है?’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘तमीज से बात कीजिए. आप कैसे कह सकते हैं?’’ सुनंदा बोलीं.

‘‘मैं नहीं, मकानमालिक कह रहा है.’’

‘‘आप मकानमालिक की पैरवी करने आए हैं या हल निकालने?’’

‘‘हम जो कुछ करेंगे कानून के दायरे में करेंगे. जबरदस्ती बिजली कनैक्शन दिलाना हमारे दायरे में नहीं आता. बेहतर होगा, आप दूसरा मकान ढूंढ़ लें,’’ इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘आप एक समझदार महिला हैं. किसी के घर पर कब्जा करना क्या आप को शोभा देता है?’’

‘‘मैं ने कब्जा किया है? मैं किराया बराबर देती हूं.’’

‘‘न के बराबर. फिर मकानमालिक नहीं चाहता तो छोड़ दीजिए मकान.’’

‘‘अपने जीतेजी यह मकान नहीं छोड़ूंगी,’’ सुनंदा भावुक हो उठीं. प्रेमशंकर ने बात संभाली. उस ने इंस्पैक्टर को बताया कि वे मकान क्यों नहीं छोड़ना चाहतीं, जबकि शहर में उन की खुद की जमीन है. वस्तुस्थिति जानने के बाद इंस्पैक्टर को सुनंदा से सहानुभूति तो हुई फिर भी इतने भर के लिए वह किसी के मकान पर इतने सालों से काबिज हैं, यह उस की समझ से परे था.

लाखों लोग बंटवारे के बाद अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ कर भारत चले आए. अगर सब ऐसा ही सोचते तो हो चुकती सुलह. इंस्पैक्टर को सुनंदा की भावुकता बचकानी लगी. इस उम्र में भी परिपक्वता का अभाव दिखा. सुनंदा उसे घमंडी, नकचढ़ी, बदमिजाज और एक अव्यावहारिक महिला लगीं.

उस रोज कुछ नहीं हुआ. आपसी सहमति से कुछ बन पड़ता तो ठीक था, जबरदस्ती तो वह बिजली जोड़ नहीं सकता था. दूसरे जिस तरीके से सुनंदा पेश आईं, इंस्पैक्टर को वह नागवार लगा.

इंस्पैक्टर थाने लौट आया. मकानमालिक खुश था. उसे विश्वास था कि बगैर बिजली सुनंदा ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएंगी. उन लोगों के बीच प्रेमशंकर ने भले ही सुनंदा की हां में हां मिलाई, पर अंदर ही अंदर वे चाहते थे कि सुनंदा यह घर कुछ लेदे कर छोड़ दें. वैसे भी महल्ले में लोग उन्हें भेद भरी नजरों से देखते हैं तो उन्हें अच्छा नहीं लगता. लड़ाईझगड़े की स्थिति में उन की स्थिति और भी खराब हो जाती. उन से सफाई देते नहीं बन पाता कि आखिर अपने व सुनंदा के बीच के संबंधों को वे किस रूप में दर्शाएं. एक दिन क्रोध में आ कर मकानमालिक की बीवी ने कह दिया था कि आप से इन का रिश्ता क्या है जो इन की तरफ से बोलते हैं? तब प्रेमशंकर से जवाब देते न बना था. सुनंदा ने तूतूमैंमैं कर के उस का मुंह बंद कर दिया था.

प्रेमशंकर पर सुनंदा के बड़े एहसान थे. उस के घर का सारा खर्चा वही चलातीं. जमीन भी प्रेमशंकर के नाम खरीदी. बीमा की सारी पौलिसियों में नौमिनी प्रेमशंकर को बनाया था. एक दिन मौका पा कर प्रेमशंकर ने अपने मन की बात कही. सुनंदा ने दोटूक शब्दों में प्रेमशंकर की बोलती बंद कर दी, ‘‘तुम्हें दिक्कत होती है तो मत रहो मेरे साथ. मैं बाकी जिंदगी किसी तरह काट लूंगी. पर यह मकान नहीं छोड़ूंगी.’’

प्रेमशंकर एहसानफरामोश नहीं थे. जिस के साथ जवानी गुजारी उस का बुढ़ापे में साथ छोड़ना उन्हें गवारा न था.

‘‘हमारी उम्र हो चली है. तुम हर महीने कोर्ट में किराया जमा करने जाती हो. क्या कोर्टकचहरी अब संभव है?’’ प्रेमशंकर बोले.

‘‘मेरे लिए संभव है. उस ने मेरे साथ ज्यादती की है. मैं इसे नहीं भूल सकती,’’ सुनंदा जिद्दी थीं. प्रेमशंकर की उन के आगे एक न चली.

इधर, मकानमालिक इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘सर, आप सोच सकते हैं कि वह कैसी मगरूर महिला है. जिस मकान का किराया 5 हजार रुपए होना चाहिए उस का सिर्फ 500 रुपए देती है.’’

‘‘वह तो ठीक है. औरत का मामला है, इसलिए मैं ज्यादा जोरजबरदस्ती नहीं कर सकता,’’ इंस्पैक्टर बोला. कुछ देर सोचने के बाद फिर बोला, ‘‘मकान बेच क्यों नहीं देते?’’

‘‘बापदादाओं का मकान बेचने का दिल नहीं है.’’

‘‘और कोई चारा नहीं?’’

‘‘खरीदेगा कौन? किराएदार के रहते कोई जल्दी हाथ नहीं लगाएगा.’’

‘‘किसी दबंग को बेच दो. थोड़ा कम दाम देगा मगर मुक्ति तो मिलेगी,’’ इंस्पैक्टर की राय उसे माकूल लगी. मकानमालिक ने घर आ कर अपनी पत्नी से रायमशविरा किया. पत्नी भी बेमन से तैयार हो गई.

2 करोड़ रुपए के मकान का आधे दाम में सौदा हुआ. गुड्डू सिंह ठेकेदार ने वह मकान खरीद लिया. गुड्डू सिंह ने पहले तो मिन्नतें कीं. सुनंदा जब नहीं मानीं तो थाने जा कर 5 लाख रुपए इंस्पैक्टर को दे दिए. 2 दिन बाद खबर आई कि कुछ गुंडों ने सुनंदा का गला रेत कर उन की हत्या कर दी. होहल्ला मचा. कुछ संगठनों ने विरोध में जुलूस निकाला. भाषणबाजी हुई.

संपादकों ने एक अकेली महिला की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा संपादकीय लिखा. दोचार दिन खबरें छपीं. असली हत्यारा लापता रहा. पुलिस ने प्रेमशंकर को गिरफ्तार किया क्योंकि इस हत्या से सीधेसीधे लाभ उन्हीं को मिला. बीमा की राशि मिली. जमीन तो उन के नाम थी ही. बैंक एफडी के भी वारिस प्रेमशंकर थे. अंत में न कुछ निकलना था, सो न ही निकला. इंस्पैक्टर ने नाटे यादव नामक हिस्ट्रीशीटर को इस हत्या का जिम्मेदार मान कर झूठी रिपोर्ट दर्ज कर ली, ताकि जनता व मीडिया चुप हो जाए.

नाटे यादव की खोज की खबरें रोज अखबार में आने लगीं. 1 महीना बीत जाने के बाद भी जब नाटे यादव गिरफ्तार नहीं हुआ व अखबार पुलिसिया कार्यशैली पर सवाल उठाने लगे तो एक रोज खबर छपी कि पुलिस मुठभेड़ में नाटे यादव मारा गया. उस के एनकाउंटर से भले ही जनता को संतोष हुआ हो कि सुनंदा के साथ न्याय हुआ, फिर भी यह सवाल हमेशा के लिए सवाल ही रह गया कि क्या नाटे यादव ने ही सुनंदा का कत्ल किया था? कोयला माफिया गुड्डू सिंह उस मकान को गिरवा कर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनवाने लगा.

Hindi Fiction Stories : तुम्हारा इंतजार था – क्या एक हो पाए अभय और एल्मा

Hindi Fiction Stories :  अभय अपनी यूरोप यात्रा के दौरान वेनिस गया हुआ था. वेनिस में सड़कें पानी की होती हैं, मतलब एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कार नहीं, लांच नावों से जाना पड़ता है. वह मुरानो ग्लास फैक्टरी देखने गया था. वे लोग लाइव शो दिखाते हैं यानी ग्लास को पिघला कर कैसे उसे विभिन्न शक्लों में ढाला जाता है. अभी शो शुरू होने में कुछ वक्त बाकी था, सो, वह बाहर एक पेड़ की छाया में बैठ कर वेनिस की सुंदरता देख रहा था. ग्रैंड कैनाल में सैलानी वेनिस की विशेष नाव ‘गोंडोला’ और अभय मन ही मन सोच रहा था कि वेनिस बनाने वाले के दिमाग की दाद देनी होगी.

जुलाई का महीना था, काफी गरमी थी. तभी एक इंडियन लड़की आ कर उस के बगल में बैठ गई.

उस ने अभय से कहा, ‘‘हाय, मुझे लग रहा है कि आप इंडिया से हैं?’’

‘‘हां, मैं इंडियन हूं,’’ बोल कर अभय ने उस लड़की को एक बार गौर से ऊपर से नीचे तक देखा. मन ही मन सोच रहा था श्यामल वर्ण में भी इतना आकर्षण.

‘‘मैं, एल्मा. मैं केरल से हूं. वेनिस घूमने आई हूं,’’ लड़की बोली.

‘‘और मैं, अभय. बनारस से हूं. मैं भी एक टूर पैकेज पर आया हूं.’’

फिर एल्मा ही ने हाथ बढ़ाया और हैंड शेक कर कहा, ‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई.’’

‘‘मुझे भी. पर न जाने क्यों लग रहा है कि आप को पहले भी कहीं देखा है.’’

तब तक शो का समय हो गया था और दोनों फैक्टरी के अंदर चले गए. इस के बाद दोनों साथसाथ ही फैक्टरी घूमे. फैक्टरी से निकल कर दोनों ने फैक्टरी से जुड़ा भव्य शोरूम देखा. एक से बढ़ कर एक शीशे की कलाकृतियां और घरेलू उपयोग के सामान थे. उन्हें वहां खरीदा जा सकता था या और्डर देने पर वे लोग दिए पते पर इंश्योर्ड पार्सल कर देते थे. पर दोनों में किसी ने भी कुछ नहीं खरीदा था.

अभय ने पूछा, ‘‘क्या तुम अकेले यहां आई हो?’’

‘‘नहीं, मेरी सहेली भी साथ में है. हम तो यहां 3 दिनों से हैं. आज उस की तबीयत ठीक नहीं है तो वह नहीं निकल सकी. अब मैं यहां से सीधे होटल जाऊंगी उसी के पास.’’  एल्मा ने जवाब दिया और ‘‘ओके, बाय’’ बोल कर चली गई.

अगले दिन को वह वैटिकन सिटी में था. यह अत्यंत छोटा सा शहर जिसे एक स्वतंत्र देश का दरजा प्राप्त है और विश्वविख्यात है. यह विश्व का सब से छोटा देश है. यहीं पोप का मुख्यालय भी है. यह रोम शहर के अंदर ही दीवारों से घिरा एन्क्लेव (अंत:क्षेत्र) है. एक आइसक्रीम की दुकान पर खड़ेखड़े आइसक्रीम खा रहा था, तभी एल्मा भी वहां आ गई थी.

अभय ने कहा, ‘‘हाय एल्मा, क्या सुखद आश्चर्य है. आज फिर हम मिल गए. पर तुम आज भी अकेली हो? तुम्हारी सहेली कहां रह गई?’’

‘‘तुम ने इंडिया की न्यूज सुनी? कल मुंबई में सीरियल बम ब्लास्ट हुए हैं.

2 सौ से ज्यादा लोग मरे हैं और सैकड़ों घायल हैं. घायलों में मेरी सहेली का भाई भी था. वह रोम चली गई है. वहां से सीधे मुंबई जाएगी.’’

‘‘ओह, हाउ सैड. पता नहीं हमारे देश को किस की नजर लग गई है. खैर, तुम वैटिकन घूम चुकी हो?’’

‘‘नहीं, अभी सेंट पीटर बैसिलिक बाकी है.’’

‘‘ओह, तुम क्रिश्चियन हो?’’ अभय ने पूछा.

‘‘हां,’’ बोली एल्मा.

‘‘पर एल्मा, मुझे क्यों बारबार लग रहा है कि पहले भी तुम्हें देख चुका हूं. एक बार से ज्यादा ही. तुम केरल में कहां रहती हो?’’

‘‘केरल मेरा नेटिव स्टेट है. पर स्कूलिंग के बाद वहां नहीं रही. मैं हैदराबाद चली आई.’’

अभय चौंक कर बोला ‘‘हैदराबाद.’’

‘‘क्यों? इस में चौंकने वाली क्या बात है? मैं ने वहीं माधापुर के नैशनल फैशन इंस्टिट्यूट से फैशन टैक्नोलौजी का कोर्स किया है और वहीं रेडीमेड कपड़े बनाने वाली कंपनी में काम भी करती हूं.’’

‘‘तभी मुझे बारबार लग रहा है कि मैं ने तुम्हें देखा है. मैं भी वहीं माधापुर के साइबर टावर्स में स्थित ओरेकल कंपनी में काम करता हूं.’’

‘‘चलो, अच्छा है, कोई परदेस में बिलकुल अपने शहर का आदमी मिलता है तो बहुत खुशी होती है.’’

अभय को तब तक कुछ याद आया तो कहा, ‘‘अब मैं बता सकता हूं कि तुम्हें मैं ने पहले कहां देखा है. वहां कोंडापुर के एक रैस्टोरैंट में जो हर संडे को 99 रुपए में बुफे ब्रेकफास्ट देता है.’’

‘‘सही कहा है तुम ने. मैं तो कोशिश करती हूं हर संडे वहां जाने की और 99 रुपए में ब्रंच (नाश्ता और दोपहर का मिलाजुला भोजन) कर लेती हूं. नाश्ते के नाम पर जीभर के जितना खानापीना हो सिर्फ 99 रुपए में हो जाता है,’’ एल्मा बोली, और हंस कर आगे कहा, ‘‘लड़कों का काम ही यही है. जहां मौका मिला, नजरें चुरा कर लड़कियों को देखने लगते हैं. डोंट माइंड, मजाक कर रही थी.’’

‘‘वैटिकन के बाद तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘मैं तो यहां से इंगलैंड होते हुए इंडिया जा रही हूं. और तुम?’’

‘‘मैं तो यहां से सीधे वापस इंडिया जाऊंगा.’’

लेकिन एल्मा को अब बैसिलिक रोमन विशेषाधिकार प्राप्त चर्च देखने जाना था. वह जातेजाते बोली, ‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. जब दोनों हैदराबाद में ही हैं तो कभी मिल भी सकते हैं. अपना खयाल रखना.’’

‘‘एक मिनट रुको, हैदराबाद में मिलने के लिए यह रख लो,’’ बोलते हुए उस ने अपना कार्ड एल्मा को दे दिया. एल्मा ने भी पर्स से अपना एक कार्ड निकाल कर अभय को दे दिया. इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को बाय किया.

कुछ दिनों के बाद दोनों हैदराबाद में थे. एक दिन अभय ने एल्मा से फोन कर के पूछा, ‘‘संडे को क्या प्रोग्राम है? रैस्टोरैंट में ब्रंच के लिए आ रही हो?’’

‘‘वह तो आना ही है. वरना 99 रुपए में भरपेट नाश्ता और खाना दोनों कहीं नहीं मिलेगा. वह भी क्वालिटी फूड.’’

‘‘चलो, तो फिर वहीं मिलते हैं.’’

संडे को दोनों उसी रैस्टोरैंट में मिले. दोनों अपनेअपने दोस्त व रूममेट के साथ गए थे. एल्मा ने अपनी सहेली निशा से दोनों का परिचय कराया. अभय ने भी अपने दोस्त का दोनों लड़कियों से परिचय कराया. चारों एक ही टेबल पर बैठे थे. बुफे था, चारों जम के पेटपूजा कर रहे थे, साथ में बातें भी हो रही थीं.

अपने दोस्त को इंगित करते हुए अभय बोला, ‘‘मैं कोंडापुर में इस के साथ अपार्टमैंट शेयर कर रहा हूं.  और तुम?’’

‘‘मैं भी निशा के साथ माधापुर में ही एक दोरूम का अपार्टमैंट शेयर करती हूं.’’

‘‘और आज क्या कर रही हो? मूवी चलोगी? बोलो तो मैं अपने मोबाइल से 4 टिकटें यहीं से बुक कर देता हूं.’’

एल्मा ने अपनी सहेली की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘चलेगा.’’

फिर अभय ने वहीं से दोपहर 2 बजे शो की टिकटें बुक कर दीं. इस के बाद चारों अपने अपार्टमैंट गए और फिर सही समय पर सिनेमाहौल पहुंच गए थे. मूवी देखने के बाद चारों ने कैफे में कौफी पी और फिर वे अपनेअपने अपार्टमैंट के लिए चल दिए.

इस के बाद अभय और एल्मा दोनों अब अकेले भी मिलने लगे थे. उन के साथ अब उन के रूममेट नहीं होते थे. छुट्टी के दिन वे दिनभर साथ रहते, घूमतेफिरते, होटलों में जाते और मूवी देखते थे. देखतेदेखते दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे थे. दोनों इस स्थिति को भी समझ रहे थे कि वे अलगअलग धर्मों के मानने वाले थे.

एक दिन अभय ने एल्मा को शादी के लिए प्रोपोज भी कर दिया था. एल्मा ने कहा, ‘‘मुझे तो तुम से बेहद प्यार है और मैं पर्सनली तो इस के लिए तैयार हूं. पर हम लोगों को एकबार अपने मातापिता को भी बताना चाहिए. संभव हो वे हमारी शादी से खुश भी हों.’’

अभय बोला, ‘‘ठीक है, हम दोनों अगले संडे को उन लोगों को यहां बुला लेते हैं.’’

अगले रविवार दोनों के मातापिता हैदराबाद पहुंच गए थे. उसी दिन शाम को वे 6 लोग, अभय, एल्मा और उन के मातापिता शाम को हैदराबाद के केबीआर पार्क में मिले. दोनों के मातापिता के बीच बहस चल रही थी.

अभय के पिता ने कहा ‘‘ये अंगरेज सब से पहले केरल में ही आए थे. फिर वहां के गरीब, असहाय या पिछड़े लोगों को प्रलोभन दे कर या बहका कर धर्मपरिवर्तन करवाते थे. उन के आने के पहले तो वहां क्रिश्चियन नहीं थे. हम लोग तो सदियों से हिंदू हैं. हम को यह शादी स्वीकार है बशर्ते कि आप लोग हिंदू धर्म अपना लें. वरना हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है.’’

एल्मा के पिता ने अपना तर्क देते हुए कहा, ‘‘हम तो दादा, परदादा के समय से ही क्रिश्चियन हैं. हम भी यही चाहते हैं कि अभय हमारा धर्म अपना ले. वैसे भी हिंदू धर्म तो बस इंडिया और नेपाल में ही है जबकि हमारा धर्म दुनिया के अनेक देशों में प्रचलित है. अभय के क्रिश्चियन बनने के बाद ही हम एल्मा की शादी की इजाजत दे सकते हैं. वरना हमें यह शादी मंजूर नहीं है.’’

अभय और एल्मा दोनों के मातापिता अपनीअपनी बात पर अड़े थे, कोई भी झुकने को तैयार न था. बल्कि बहस अब गरम हो चली थी. दोनों अपनेअपने धर्म को अच्छा साबित करने में लगे थे.

तभी अभय ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘आप लोग बहुत बोल चुके हैं. अब कृपया शांत रहे. कुछ हम दोनों पर भी छोड़ दीजिए. आखिरी फैसला हम दोनों मिल कर करेंगे.’’

एल्मा बिलकुल खामोश थी बल्कि थोड़ी सहमी थी. सब लोग पार्क से निकल अपनेअपने घर चले गए. अगले दिन ही दोनों के मातापिता हैदराबाद से लौट गए थे.

इधर, अभय ने एल्मा से पूछा ‘‘हम दोनों के मातापिता को बिना धर्मपरिवर्तन किए यह शादी मंजूर नहीं है. मैं तो कोर्टमैरिज करने को तैयार हूं. तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘मुझे तुम से प्यार है और शादी से कोई एतराज नहीं. पर बड़ी समस्या यह है कि मेरे मातापिता और मेरी छोटी बहन सभी मुझ पर आश्रित हैं. पिताजी ने काफी ख्ेत बंधक रखे हैं मेरी पढ़ाई के लिए. पिताजी ने कहा है कि अगर मैं ने अपनी मरजी से शादी की तो मुझ से उन का कोई रिश्ता नहीं रहेगा. अब मैं उन लोगों को कैसे छोड़ दूं? मेरी स्थिति समझ रहे हो न तुम?’’

‘‘तब मैं क्या समझूं? तुम्हारा फैसला?’’

‘‘मैं मजबूर हूं, मैं फिलहाल शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘तो क्या मैं तुम्हारा इंतजार करूं?’’

एल्मा बोली, ‘‘मैं तो यह भी नहीं कहूंगी कि तुम मेरे लिए अनिश्चितता की स्थिति में रहो. तुम अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हो.’’

इस के बाद दोनों जुदा हो गए. मिलनाजुलना जानेअनजाने ही कभी हो पाता था, पर फोन पर संपर्क बना हुआ था. कुछ दिनों बाद अभय ने चंडीगढ़ के पास मोहाली में एक आईटी कंपनी जौइन कर ली थी. अब एल्मा से फोन पर भी संपर्क नहीं रहा था.

इस बीच 3 साल बीत चुके थे. अभय शिमला घूमने गया था. दिसंबर का महीना था, बर्फ तो गिर ही रही थी ऊपर से मौसम भी खराब था. जोरों की बारिश हो रही थी. वह अपने होटल के कमरे में बैठा था. रात हो चुकी थी. तभी कौलबैल बजी, तो उस ने सोचा कि वेटर होगा और कहा, ‘‘खुला है, आ जाओ.’’

दरवाजा खुलने पर जो आकृति उसे नजर आई तो कुछ पल के लिए उसे लगा कि सपना देख रहा है. पर जब वह उस के और निकट आई तो वह आश्चर्य से कुछ देर तक उसे देखता ही रहा था. भीगे कपड़ों में एल्मा सामने खड़ी थी सूटकेस लिए.

अभय बोला ‘‘तुम अचानक यहां कैसे? यहां का पता तुम्हें किस ने दिया?’’

‘‘सब बताऊंगी. मैं भीग गई हूं. पहले मुझे चेंज करने दोगे?’’

‘‘ठीक है, बाथरूम में धुला टौवेल है. जाओ, चेंज कर लो.’’

थोड़ी देर में एल्मा चेंज कर निकली, तब तक अभय ने उस के लिए कौफी मंगा दी थी. उस ने कहा ‘‘कौफी गरम है, पी लो.’’

कौफी पीते हुए एल्मा ने कहा, ‘‘मैं ने हैदराबाद के तुम्हारे रूममेट से मोहाली का पता लिया. मोहाली गई तो वहां से तुम्हारे रूममेट ने मुझे यहां का पता दिया. मैं सब छोड़ तुम्हारे पास आई हूं. मुझे पता है तुम ने अभी तक शादी नहीं की है. क्या तुम मुझे अपनाने को तैयार हो? ’’

अभय बोला, ‘‘मैं तो पहले भी तैयार था, आज भी तैयार हूं, पर तुम्हारा धर्म, तुम्हारे मातापिता और बहन?’’

‘‘मैं तो प्यार को धर्म से बड़ा मानती हूं. हम दोनों धर्म बदले बिना भी अपना रिश्ता निभा सकते हैं.’’

‘‘मैं तो तैयार हूं पर तुम्हारा परिवार?’’ अभय बोला.

एल्मा बोली, ‘‘मेरी बहन नर्सिंग कर के दुबई में नर्स है. उस ने वहीं पर लवमैरिज कर ली है. उसी ने मुझे तुम्हारे पास आने की हिम्मत दी है. मातापिता को हम दोनों बहनें पैसे भेजती रहेंगी जिस से वे अपने खेत छुड़ा लेंगे. मैं भी चंडीगढ़ की गारमैंट कंपनी में जौब कर लूंगी.’’ थोड़ी देर की खामोशी के बाद एल्मा आगे बोली, ‘‘पर पहले यह बताओ, तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘शादी कैसे करता? तुम्हारा इंतजार था,’’  अभय बोला.

‘‘वह तो ठीक है, पर तुम्हें यकीन था कि मैं वापस तुम्हारे पास आऊंगी.’’

‘‘मुझे अपने प्यार पर यकीन था,’’ बोल कर अभय ने एल्मा को अपनी आगोश में ले लिया.

Hindi Moral Tales : अब जाने दो उसे – रिश्तों की कशमकश

Hindi Moral Tales :  मुझे नाकारा और बेकार पड़ी चीजों से चिढ़ होती है. जो हमारे किसी काम नहीं आता फिर भी हम उसे इस उम्मीद पर संभाले रहते हैं कि एक दिन शायद वह काम आए. और जिस दिन उस के इस्तेमाल का दिन आता है, पता चलता है कि उस से भी कहीं अच्छा सामान हमारे पास है. बेकार पड़ा सामान सिर्फ जगह घेरता है, दिमाग पर बोझ बनता है बस.

अलमारी साफ करते हुए बड़बड़ा रहा था सोम, ‘यह देखो पुराना ट्रांजिस्टर, यह रुकी हुई घड़ी. बिखरा सामान और उस पर कांच का भी टूट कर बिखर जाना…’ विचित्र सा माहौल बनता जा रहा था. सोम के मन में क्या है, यह मैं समझ नहीं पा रहा था.

मैं सोम से क्या कहूं, जो मेरे बारबार पूछने पर भी नहीं बता रहा कि आखिर वजह क्या है.

‘‘क्या रुक गया है तुम्हारा, जरा मुझे समझाओ न?’’

सोम जवाब न दे कर सामान को पैर से एक तरफ धकेल परे करने लगा.

‘‘इस सामान में किताबें भी हैं, पैर क्यों लगा रहे हो.’’

सोम एक तरफ जा बैठा. मुझे ऐसा भी लगा कि उसे शर्म आ रही है. संस्कारों और ऊंचे विचारों का धनी है सोम, जो व्यवहार वह कर रहा है उसे उस के व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं माना जा सकता क्योंकि वह ऐसा है ही नहीं.

‘‘कल किस से मिल कर आया है, जो ऐसी अनापशनाप बातें कर रहा है?’’

सोम ने जो बताया उसे सुन कर मुझे धक्का भी लगा और बुरा भी. किसी तांत्रिक से मिल कर आया था सोम और उसी ने समझाया था कि घर का सारा खड़ा सामान घर के बाहर फेंक दो.

‘‘खड़े सामान से तुम्हारा क्या मतलब है?’’

‘‘खड़े सामान से हमारा मतलब वह सामान है जो चल नहीं रहा, बेकार पड़ा सामान, जो हमारे काम में नहीं आ रहा वह सामान…’’

‘‘तब तो सारा घर ही खाली करने वाला होगा. घर का सारा सामान एकसाथ तो काम नहीं न आ जाता, कोई सामान आज काम आ रहा है तो कोई कल. किताबों को पैरों से धकेल कर बाहर फेंक रहे हो. ट्रांजिस्टर में सैल डालोगे तो बजेगा ही… क्या तुम ने पूरी तरह समझा कि वह तांत्रिक किस सामान की बात कर रहा था?’’

‘‘हमारे घर का वास्तु भी ठीक नहीं है,’’ सोम बोला, ‘‘घर का नकशा भी गलत है. यही विकार हैं जिन की वजह से मुझे नौकरी नहीं मिल रही, मेरा जीवन ठहर गया है भाई.’’

सोम ने असहाय नजरों से मुझे देखा. विचित्र सी बेचैनी थी सोम के चेहरे पर.

‘‘अब क्या घर को तोड़ कर फिर से बनाना होगा? नौकरी तो पहले से नहीं है… लाखों का जुगाड़ कहां से होगा? किस घरतोड़ू तांत्रिक से मिल कर आए हो, जिस ने यह समझा दिया कि घर भी तोड़ दो और घर का सारा सामान भी बाहर फेंक दो.’’

हंसी आने लगी थी मुझे.

मां और बाबूजी कुछ दिन से घर पर नहीं हैं. सोम उन का ज्यादा लाड़ला है. शायद उदास हो गया हो, इसलिए बारबार जीवन ठहर जाने का गिला कर रहा है. मैं क्या करूं, समझ नहीं पा रहा था.

‘‘तुम्हें नीलू से मिले कितने दिन हो गए हैं? जरा फोन करना उसे, बुलाना तो, अभी तुम्हारा जीवन चलने लगेगा,’’ इतना कह मैं ने मोबाइल उठा कर सोम की तरफ उछाल दिया.

‘‘वह भी यहां नहीं है, अपनी बूआ के घर गई है.’’

मुझे सोम का बुझा सा स्वर लगा. कहीं यही कारण तो नहीं है सोम की उदासी का. क्या हो गया है मेरे भाई को? क्या करूं जो इसे लगे कि जीवन चलने लगा है.

सुबहसुबह मैं छत पर टहलने गया. बरसाती में सामान के ढेर पर नजर पड़ी. सहसा मेरी समझ में आ गया कि खड़ा सामान किसे कहते हैं. भाग कर नीचे गया और सोम को बुला लाया.

‘‘यह देख, हमारे बचपन की साइकिलें, जिन्हें जंग लगी है, कभी किसी काम में नहीं आने वालीं, सड़े हुए लोहे के पलंग और स्टूल, पुराना गैस का चूल्हा, यह पुराना टीवी, पुराना टूटा टेपरिकार्डर और यह साइकिल में हवा भरने वाला पंप…इसे कहते हैं खड़ा सामान, जो न आज काम आएगा न कल. छत का इतना सुंदर कोना हम ने बरबाद कर रखा है.’’

आंखें फैल गईं सोम की. मां और बाबूजी घर पर नहीं थे सो बिना रोकटोक हम ने घर का सारा कबाड़ बेच दिया. सामान उठा तो छत का वह कोना खाली हो गया जिसे हम साफसुथरा कर अपने लिए छोटी सी आरामगाह बना सकते थे.

नीचे रसोई में भी हम ने पूरी खोज- खबर ली. ऊपर वाली शैल्फ पर जला हुआ पुराना गीजर पड़ा था. बिजली का कितना सामान जमा पड़ा था, जिस का उपयोग अब कभी होने वाला नहीं था. पुरानी ट्यूबें, पुराने हीटर, पुरानी इस्तरी.

हम ने हर जगह से खड़ा सामान निकाला तो 4 दिन में घर का नकशा बदल गया. छत को साफ कर गंदी पड़ी दीवारों पर सोम ने आसमानी पेंट पोत दिया. प्लास्टिक की 4 कुरसियां ला कर रखीं, बीच में गोल मेज सजा दी. छत से सुंदर छोटा सा फानूस लटका दिया. जो खुला भाग किसी की नजर में आ सके वहां परदा लगा दिया, जिसे जरूरत पड़ने पर समेटा भी जा सके और फैलाया भी.

‘‘एक हवादार कमरे का काम दे रहा है यह कोना. गरमी के मौसम में जब उमस बढ़ने लगेगी तो यहां कितना आराम मिला करेगा न,’’ उमंग से भर कर सोम ने कहा, ‘‘और बरसात में जब बारिश देखने का मन हो तो चुपचाप इसी कुरसी पर पसर जाओ…छत की छत, कमरे का कमरा…’’

सोम की बातों को बीच में काटते हुए मैं बोल पड़ा, ‘‘और जब नीलू साथ होगी तब और भी मजा आएगा. उस से पकौड़े बनवा कर खाने का मजा ही कुछ और होगा.’’

मैं ने नीलू का नाम लिया इस पर सोम ने गरदन हिला दी.

‘‘सच कह रहे हो भाई, नीचे जा कर देखो, रसोई भी हलकीफुलकी हो गई है… देख लेना, जब मां आएंगी तब उन्हें भी खुलाखुला लगेगा…और अगर मां ने कबाड़ के बारे में पूछा तो क्या कहेंगे?’’

‘‘उस सामान में ऐसा तो कोई सामान नहीं था जिस से मां का काम रुकेगा. कुछ काम का होता तब तो मां को याद आएगा न?’’

मेरे शब्दों ने सोम को जरा सा आश्वासन क्या दिया कि वह चहक कर बोला, ‘‘भाई क्यों न रसोई के पुराने बरतन भी बदल लें. वही प्लेटें, वही गिलास, देखदेख कर मन भर गया है. मेहमान आएं तो एक ही रंग के बरतन मां ढूंढ़ती रह जाती हैं.’’

सोम की उदासी 2 दिन से कहीं खो सी गई थी. सारे पुराने बरतन थैले में डाल हम बरतनों की दुकान पर ले गए. बेच कर, थोड़े से रुपए मिले. उस में और रुपए डाल कर एक ही डिजाइन की कटोरियां, डोंगे और प्लेटें ला कर रसोई में सजा दीं.

हैरान थे हम दोनों भाई कि जितने रुपए हम एक पिक्चर देखने में फूंक देते हैं उस से बस, दोगुने ही रुपए लगे थे और रसोई चमचमा उठी थी.

शाम कालिज से वापस आया तो खटखट की आवाज से पूरा घर गूंज रहा था. लपक कर पीछे बरामदे में गया. लकड़ी का बुरादा उड़उड़ कर इधरउधर फैल गया था. सोम का खाली दिमाग लकड़ी के बेकार पड़े टुकड़ों में उलझा पड़ा था. मुझे देख लापरवाही से बोला, ‘‘भाई, कुछ खिला दे. सुबह से भूखा हूं.’’

‘‘अरे, 5 घंटे कालिज में माथापच्ची कर के मैं आया हूं और पानी तक पूछना तो दूर खाना भी मुझ से ही मांग रहा है, बेशर्म.’’

‘‘भाई, शर्मबेशर्म तो तुम जानो, मुझे तो बस, यह कर लेने दो, बाबूजी का फोन आया है कि सुबह 10 बजे चल पड़ेंगे दोनों. शाम 4 बजे तक सारी कायापलट न हुई तो हमारी मेहनत बेकार हो जाएगी.’’

अपनी मस्ती में था सोम. लकड़ी के छोटेछोटे रैक बना रहा था. उम्मीद थी, रात तक पेंट आदि कर के तैयार कर देगा.

लकड़ी के एक टुकड़े पर आरी चलाते हुए सोम बोला, ‘‘भाई, मांबाप ने इंजीनियर बनाया है. नौकरी तो मिली नहीं. ऐसे में मिस्त्री बन जाना भी क्या बुरा है… कुछ तो कर रहा हूं न, नहीं तो खाली दिमाग शैतान का घर.’’

मुझे उस पल सोम पर बहुत प्यार आया. सोम को नीलू से गहरा जुड़ाव है, बातबेबात वह नीलू को भी याद कर लेता.

नीलू बाबूजी के स्वर्गवासी दोस्त की बेटी है, जो अपने चाचा के पास रहती है. उस की मां नहीं थीं, जिस वजह से वह अनाथ बच्ची पूरी तरह चाचीचाचा पर आश्रित है. बी.ए. पास कर चुकी है, अब आगे बी.एड. करना चाहती है. पर जानता हूं ऐसा होगा नहीं, उसे कौन बी.एड. कराएगा. चाचा का अपना परिवार है. 4 जमातें पढ़ा दीं अनाथ बच्ची को, यही क्या कम है. बहुत प्यारी बच्ची है नीलू. सोम बहुत पसंद करता है उसे. क्या बुरा है अगर वह हमारे ही घर आ जाए. बचपन से देखता आ रहा हूं उसे. वह आती है तो घर में ठंडी हवा चलने लगती है.

‘‘कड़क चाय और डबलरोटी खाखा कर मेरा तो पेट ही जल गया है,’’ सोम बोला, ‘‘इस बार सोच रहा हूं कि मां से कहूंगा, कोई पक्का इंतजाम कर के घर जाएं. तुम्हारी शादी हो जाए तो कम से कम डबल रोटी से तो बच जाएंगे.’’

सोम बड़बड़ाता जा रहा था और खातेखाते सभी रैक गहरे नीले रंग में रंगता भी जा रहा था.

‘‘यह देखो, यह नीले रंग के छोटेछोटे रैक अचार की डब्बियां, नमक, मिर्च और मसाले रखने के काम आएंगे. पता है न नीला रंग कितना ठंडा होता है, सासबहू दोनों का पारा नीचा रहेगा तो घर में शांति भी रहेगी.’’

सोम मुझे साफसाफ अपने मनोभाव समझा रहा था. क्या करूं मैं? कितनी जगह आवेदन दिया है, बीसियों जगह साक्षात्कार भी दे रखा है. सोचता हूं जैसे ही सोम को नौकरी मिल जाएगी, नीलू को बस, 5 कपड़ों में ले आएंगे. एक बार नीलू आ जाए तो वास्तव में हमारा जीवन चलने लगेगा. मांबाबूजी को भी नीलू बहुत पसंद है.

दूसरी शाम तक हमारा घर काफी हलकाफुलका हो गया था. रसोई तो बिलकुल नई लग रही थी. मांबाबूजी आए तो हम गौर से उन का चेहरा पढ़ते रहे. सफर की थकावट थी सो उस रात तो हम दोनों ने नमकीन चावल बना कर दही के साथ परोस दिए. मां रसोई में गईं ही नहीं, जो कोई विस्फोट होता. सुबह मां का स्वर घर में गूंजा, ‘‘अरे, यह क्या, नए बरतन?’’

‘‘अरे, आओ न मां, ऊपर चलो, देखो, हम ने तुम्हारे आराम के लिए कितनी सुंदर जगह बनाई है.’’

आधे घंटे में ही हमारी हफ्ते भर की मेहनत मां ने देख ली. पहले जरा सी नाराज हुईं फिर हंस दीं.

‘‘चलो, कबाड़ से जान छूटी. पुराना सामान किसी काम भी तो नहीं आता था. अच्छा, अब अपनी मेहनत का इनाम भी ले लो. तुम दोनों के लिए मैं लड़कियां देख आई हूं. बरसात से पहले सोचती हूं तुम दोनों की शादी हो जाए.’’

‘‘दोनों के लिए, क्या मतलब? क्या थोक में शादी करने वाली हो?’’ सोम ने झट से बात काट दी. कम से कम नौकरी तो मिल जाए मां, क्या बेकार लड़का ब्याह देंगी आप?’’

चौंक उठा मैं. जानता हूं, सोम नीलू से कितना जुड़ा है. मां इस सत्य पर आंख क्यों मूंदे हैं. क्या उन की नजरों से बेटे का मोह छिपा है? क्या मां की अनुभवी आंखों ने सोम की नजरों को नहीं पढ़ा?

‘‘मेरी छोड़ो, तुम भाई की शादी करो. कहीं जाती हो तो खाने की समस्या हो जाती है. कम से कम वह तो होगी न जो खाना बना कर खिलाएगी. डबलरोटी खाखा कर मेरा पेट दुखने लगता है. और सवाल रहा लड़की का, तो वह मैं पसंद कर चुका हूं…मुझे भी पसंद है और भाई को भी. हमें और कुछ नहीं चाहिए. बस, जाएंगे और हाथ पकड़ कर ले आएंगे.’’

अवाक् रह गया मैं. मेरे लिए किसे पसंद कर रखा है सोम ने? ऐसी कौन है जिसे मैं भी पसंद करता हूं. दूरदूर तक नजर दौड़ा आया मैं, कहीं कोई नजर नहीं आई. स्वभाव से संकोची हूं मैं, सोम की तरह इतना बेबाक कभी नहीं रहा जो झट से मन की बात कह दूं. क्षण भर को तो मेरे लिए जैसे सारा संसार ही मानो गौण हो गया. सोम ने जो नाम लिया उसे सुन कर ऐसा लगा मानो किसी ने मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही निकाल ली हो.

‘‘नीलू भाई को बहुत चाहती है मां. उस से अच्छी लड़की हमारे लिए कोई हो ही नहीं सकती…अनाथ बच्ची को अपना बना लो, मां. बस, तुम्हारी ही बन कर जीएगी वह. हमारे घर को नीलू ही चाहिए.’’

आंखें खुली रह गई थीं मां की और मेरी भी. हमारे घर का वह कोना जिसे हम ने इतनी मेहनत से सुंदर, आकर्षक बनाया वहां नीलू को मैं ने किस रूप में सोचा था? मैं ने तो उसे सोम के लिए सोचा था न.

नीलू को इतना भी अनाथ मत समझना…मैं हूं उस का. मेरा उस का खून का रिश्ता नहीं, फिर भी ऐसा कुछ है जो मुझे उस से बांधता है. वह मेरे भाई से प्रेम करती है, जिस नाते एक सम्मानजनक डोर से वह मुझे भी बांधती है.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला? मुझे तो कभी पता नहीं चला.’’

‘‘बस, चल गया था पता एक दिन…और उसी दिन मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर यह जिम्मेदारी ले ली थी कि उसे इस घर में जरूर लाऊंगा.’’

‘‘कभी अपने मुंह से कुछ कहा था उस से तुम दोनों ने?’’ बारीबारी से मां ने हम दोनों का मुंह देखा.

मैं सकते में था और सोम निशब्द.

‘‘नीलू का ब्याह तो हो भी गया,’’ रो पड़ी थीं मां हमें सुनातेसुनाते, ‘‘उस की बूआ ने कोई रिश्ता देख रखा था. 4 दिन हो गए. सादे से समारोह में वह अपने ससुराल चली गई.’’

हजारों धमाके जैसे एकसाथ मेरे कानों में बजे और खो गए. पीछे रह गई विचित्र सी सांयसांय, जिस में मेरा क्याक्या खो गया समझ नहीं पा रहा हूं. पहली बार पता चला कोई मुझ से प्रेम करती थी और खो भी गई. मैं तो उसे सोम के लिए इस घर में लाने का सपना देखता रहा था, एक तरह से मेरा वह सपना भी कहीं खो गया.

‘‘अरे, अगर कुछ पता चल ही गया था तो कभी मुझ से कहा क्यों नहीं तुम ने,’’ मां बोलीं, ‘‘सोम, तुम ने मुझे कभी बताया क्यों नहीं था. पगले, वह गरीब क्या करती? कैसे अपनी जबान खोलती?’’

प्रकृति को कोई कैसे अपनी मुट्ठी में ले सकता है भला? वक्त को कोई कैसे बांध सकता है? रेत की तरह सब सरक गया हाथ से और हम वक्त का ही इंतजार करते रह गए.

सोम अपना सिर दोनों हाथों से छिपा चीखचीख कर रोने लगा. बाबूजी भी तब तक ऊपर चले आए. सारी कथा सुन, सिर पीट कर रह गए.

वह रात और उस के बाद की बहुत सी रातें ऐसी बीतीं हमारे घर में, जब कोई एक पल को भी सो नहीं पाया. मांबाबूजी अपने अनुभव को कोसते कि क्यों वे नीलू के मन को समझ नहीं पाए. मैं भी अपने ही मापदंड दोहरादोहरा कर देखता, आखिर मैं ने सोम को क्यों और किसकिस कोण से सही नहीं नापा. सब उलटा हो गया, जिसे अब कभी सीधा नहीं किया जा सकता था.

सोम एक सुबह उठा और सहसा कहने लगा, ‘‘भाई, खड़े सामान की तरह क्यों न अब खड़े भावों को भी मन से निकाल दें. जिस तरह नया सामान ला कर पुराने को विदा किया था उसी तरह पुराने मोह का रूप बदल क्यों न नए मोह को पाल लिया जाए. नीलू मेरे मन से जाती नहीं, भाभी मान जिस पर ममता लुटाता रहा, क्यों न उसे बहन मान नाता जोड़ लूं…मैं उस से मिलने उस के ससुराल जाना चाहता हूं.’’

‘‘अब क्यों उसे पीछे देखने को मजबूर करते हो सोम, जाने दो उसे…जो बीत गई सो बात गई. पता नहीं अब तक कितनी मेहनत की होगी उस ने खुद को नई परिस्थिति में ढालने के लिए. कैसेकैसे भंवर आए होंगे, जिन से स्वयं को उबारा होगा. अपने मन की शांति के लिए उसे तो अशांत मत करो. अब जाने दो उसे.’’

मन भर आया था मेरा. अगर नीलू मुझ से प्रेम करती थी तो क्या यह मेरा भी कर्तव्य नहीं बन जाता कि उस के सुख की चाह करूं. वह सब कभी न होने दूं. जो उस के सुख में बाधा डाले.

रो पड़ा सोम मेरे कंधे से लग कर. खुशनसीब है सोम, जो रो तो सकता है. मैं किस के पास जा कर रोऊं और कैसे बताऊं किसी को कि मैं ने क्या नहीं पाया, ऐसा क्या था जो बिना पाए ही खो दिया.

‘‘सिर्फ एक बार उस से मिलना चाहता हूं भाई,’’ रुंधा स्वर था सोम का.

‘‘नहीं सोम, अब जाने दो उसे.

Latest Hindi Stories : रैना – स्नेह पात्र बनी रैना कैसे बन गई कुलटा ?

Latest Hindi Stories : यह खबर जंगल की आग की तरह पूरी कालोनी में फैल गई थी कि रैना के पैर भारी हैं और इसी के साथ कल तक जो रैना पूरी कालोनी की औरतों में सहानुभूति और स्नेह की पात्र बनी हुई थी, अचानक ही एक कुलटा औरत में तबदील हो कर रह गई थी. और होती भी क्यों न. अभी डेढ़ साल भी तो नहीं हुए थे उस के पति को गुजरे और उस का यह लक्षण उभर कर सामने आ गया था.

अब औरतों में तेरेमेरे पुराण के बीच रैना पुराण ने जगह ले ली थी. एक कहती, ‘‘देखिए तो बहनजी इस रैना को, कैसी घाघ निकली कुलक्षिणी. पति का साथ छूटा नहीं कि पता नहीं किस के साथ टांका भिड़ा लिया.’’

‘‘हां, वही तो. बाप रे, कैसी सतीसावित्री बनी फिरती थी और निकली ऐसी घाघ. मुझे तो बहनजी, अब डर लगने लगा है. कहीं मेरे ‘उन पर’ भी डोरे न डाल दे यह.’’

‘‘अरे छोडि़ए, ऐसे कैसे डोरे डाल देगी. मैं तो जब तक बिट्टू के पापा घर में होते हैं, हमेशा रैना के सिर पर सवार रहती हूं. क्या मजाल कि वह उन के पास से भी गुजर जाए.’’

‘‘पर बहनजी, एक बात समझ में नहीं आती…सुबह से रात तक तो रैना कालोनी के ही घरों में काम करती रहती है, फिर जो पाप वह अपने पेट में लिए फिर रही है वह तो कालोनी के ही किसी मर्द का होगा न?’’

‘‘हां, हो भी सकता है. पर बदजात बताती भी तो नहीं. जी तो चाहता है कि अभी उसे घर से निकाल बाहर करूं पर मजबूरी है कि घर का काम कौन करेगा?’’

‘‘हां, बहनजी. मैं भी पूछपूछ कर हार गई हूं उस से, पर बताती ही नहीं. मैं ने तो सोच लिया है कि जैसे ही मुझे कोई दूसरी काम वाली मिल जाएगी, इस की चुटिया पकड़ कर निकाल बाहर करूंगी.’’

सच बात तो यह थी कि कालोनी की किसी भी औरत ने उस आदमी का नाम उगलवाने के लिए रैना पर कुछ खास दबाव नहीं डाला था. शायद यह सोच कर कि कहीं उस ने उसी के पति का नाम ले लिया तो.

मगर नौकर या नौकरानी का उस शहर में मिल पाना इतना आसान नहीं था. इसलिए मजबूर हो कर रैना को ही उन्हें झेलना था, और झेलना भी ऐसे नहीं बल्कि सोतेजागते रैना के खूबसूरत चेहरे में अपनी- अपनी सौत को महसूसते हुए. मसलन, जिन 4 घरों में रैना नियमित काम किया करती थी, उन सारी औरतों के मन में यह संदेह तो घर कर ही गया था कि कहीं रैना ने उन के ही पति को तो नहीं फांस रखा है.

फिर तो रोज ही सुबहशाम वे अपनेअपने पतियों को खरीखोटी सुनाने से बाज नहीं आतीं, ‘आप किसी दूसरी नौकरानी का इंतजाम नहीं करेंगे? मुझे तो लगता है, आप चाहते ही नहीं कि रैना इस घर से जाए.’

‘क्यों? मैं भला ऐसा क्यों चाहूंगा?’

‘कहा न, मेरा मुंह मत खुलवाइए.’

‘देखो, रोजरोज की यह खिचखिच मुझे पसंद नहीं. साफसाफ कहो कि तुम कहना क्या चाहती हो?’

‘क्या? मैं ही खिचखिच करती हूं? और यह रैना? कैसे हमें मुंह चिढ़ाती सीना ताने कालोनी में घूम रही है, उस का कुछ नहीं? आप मर्दों में से ही तो किसी के साथ उस का…’

इस प्रकार रोज का ही यह किस्सा हो कर रह गया था उन घरों का, जिन में रैना काम किया करती थी.

आखिर उस दिन यह सारी खिच- खिच समाप्त हो गई जब औरतों ने खुद ही एक दूसरी नौकरानी तलाश ली.

फिर तो न कोई पूर्व सूचना, न मुआवजा, सीधे उसी क्षण से निकाल बाहर किया था सभी ने रैना को. बेचारी रैना रोतीगिड़गिड़ाती ही रह गई थी. पर किसी को भी उस पर दया नहीं आई थी.

कुछ दिनों तक तो रैना का गुजारा कमा कर बचाए गए पैसों से होता रहा था पर जब पास की उस की सारी जमापूंजी समाप्त हो गई तब कालोनी के दरवाजे- दरवाजे घूम कर पेट पालने लगी थी. इसी तरह दिन कटते रहे थे उस के. और जब समय पूरा हुआ तो खैराती अस्पताल में जा कर रैना भरती हो गई थी.

उस कालोनी में कुछ ऐसे घर भी थे जिन्होंने अपने यहां नियमित नौकर रखे हुए थे. उन्हीं में एक घर रमण बाबू का भी था, जहां रामा नाम का एक 12 वर्ष का बच्चा काम करता था, लेकिन एक दिन अचानक ही रामा को उस का बाप आ कर हमेशाहमेशा के लिए अपने साथ ले गया.

घर का झाड़ ूपोंछा, बरतन व कपडे़ धोने आदि का काम अकेले कमलाजी से कैसे हो पाता? सो, अब उन के घर में भी नौकर या नौकरानी की तलाश शुरू हो गई थी. कमलाजी की बेटी को तो अपनी पढ़ाई से ही फुरसत नहीं मिलती थी कि वह घर के किसी भी काम में मां का हाथ बंटा सकती. सो 2 ही दिनों में घर गंदा दिखने लग गया था. जब सुबहसुबह ड्राइंगरूम की गंदगी रमण बाबू से देखी नहीं गई तो उन्होंने खुद ही झाड़ू उठा ली. यह देख कर कमलाजी बुरी तरह अपनी बेटी पर तिलमिला उठी थीं, ‘‘छी, शर्म नहीं आती तुम्हें? पापा झाड़ू दे रहे हैं और तुम…’’

‘‘बोल तो ऐसे रही हैं मम्मी कि मैं इस घर की नौकरानी हूं. अगर यही सब कराना था तो मुझे पढ़ाने की क्या जरूरत थी. बचपन में ही झाड़ू थमा देतीं हाथ में.’’

अभी बात और भी आगे बढ़ती कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई थी.

‘‘अरे, देखो तो कौन है,’’ रमण बाबू ने कहा.

दरवाजा खोला तो सामने गोद में नवजात बच्चे को लिए रैना नजर आई थी. उसे देख कर मन और भी खट्टा हो गया था कमलाजी का. बोली थीं, ‘‘तू…तू… क्यों आई है यहां?’’

रैना गिड़गिड़ा उठी थी, ‘‘कल से एक दाना भी पेट में नहीं गया है मालकिन. छाती से दूध भी नहीं उतर रहा. मैं तो भूखी रह भी लूंगी पर इस के लिए थोड़ा दूध दे देतीं तो…’’

कमलाजी अभी उसे दुत्कारने की सोच ही रही थीं कि तभी घर के ढेर सारे काम आंखों में नाच उठे थे. फिर तो उन के मन की सारी खटास पल भर में ही धुल गई थी. बोल पड़ीं, ‘‘जो किया है तू ने उसे तो भुगतना ही पड़ेगा. खैर, देती हूं दूध, बच्चे को पिला दे. रात की रोटी पड़ी है, तू भी खा ले और हां, घर की थोड़ी साफसफाई कर देगी तो दिन का खाना भी खा लेना. बोल, कर देगी?’’

चेहरा खिल उठा था रैना का. थोड़ी ही देर में घर को झाड़पोंछ कर चमका दिया था उस ने. बरतन मांजधो कर किचन में सजा दिए थे. यानी चंद ही घंटों में कमलाजी का मन जीत लिया था उस ने.

शाम को रैना जब वहां से जाने लगी तो कमलाजी उसे टोक कर बोली थीं, ‘‘वैसे तो तुझ जैसी औरत को कोई भी अपने घर में घुसने नहीं देगा पर मैं तुझे एक मौका देना चाहती हूं. मन हो तो मेरे यहां काम शुरू कर दे. 150 रुपए माहवार दूंगी. खाना और तेरे बच्चे को दूध भी.’’

इतना सुनना था कि रैना सीधे कमलाजी के पैरों पर ही झुक गई थी.

इस प्रकार पूरी कालोनी में कुलक्षिणी के नाम से मशहूर रैना को कमलाजी के घर में काम मिल ही गया था. इस के लिए कमलाजी को कालोनी की औरतों के कटाक्ष भी झेलने पड़े थे, पर जरूरत के वक्त ‘गदहे को भी बाप’ कही जाने वाली कहावत का ज्ञान कमलाजी को था.

रैना के घर में काम पर आने से रमण बाबू की गृहस्थी की गाड़ी फिर से पहले की तरह चलने लग गई थी, लेकिन रैना का आना उन के हक में शुभ नहीं हुआ था. जब तक रमण बाबू घर में होते, अपनी पत्नी, यहां तक कि बेटी की नजरों में भी संदिग्ध बने रहते.

धीरेधीरे हालात ऐसे होते गए थे रमण बाबू के कि दिनभर में पता नहीं कितनी बार रैना को ले कर कभी पत्नी की तो कभी बेटी की झिड़की उन्हें खानी पड़ जाती थी.

आखिर एक दिन अपने बेडरूम के एकांत में कमलाजी से पूछ ही दिया उन्होंने, ‘‘मैं चरित्रहीन हूं क्या कि जब से यह रैना आई है, तुम और तुम्हारी बेटी मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ी रहती हो?’’

‘‘रैना के बारे में तो आप जानते ही हैं. आप ही बताइए जिन घरों में रैना काम किया करती थी उन घरों के मर्द कहीं से बदचलन दिखते हैं? नहीं न. पर रैना का संबंध उन में से ही किसी न किसी से तो रहा ही होगा. मैं उस मर्द को भी दोष नहीं देती. असल में रैना है ही इतनी सुंदर कि उसे देख कर किसी भी मर्द का मन डोल जाए. इसीलिए आप को थोड़ा सचेत करती रहती हूं. खैर, आप को बुरा लगता है तो अब से ऐसा नहीं करूंगी. पर आप खुद ही उस से थोड़े दूर रहा कीजिए…’’

रैना को रमण बाबू के घर में काम करते हुए लगभग 1 वर्ष हो आया था. इस बीच रैना ने एक दिन की भी छुट्टी नहीं की थी. तभी एक दिन उसे मोहन से पता चला कि उस की मां गांव में बीमार है.

मां का हाल सुन रैना की आंखों में आंसू आ गए थे. मां के पास जाने के लिए उस का मन मचल उठा था लेकिन तभी उसे अपने बच्चे का खयाल आ गया था. बच्चे के बारे में क्या कहेगी वह. समाज के लोग तो पूछपूछ कर परेशान कर देंगे. फिर मन में आया कि जब तक मां के पास रहेगी, घर से निकलेगी ही नहीं. रही बात मां की, तो उसे तो वह समझा ही लेगी. वैसे भी कौन सा उसे जिंदगी बिताने जाना है गांव…

सारा कुछ ऊंचनीच सोचने के बाद कमलाजी से सप्ताह भर की छुट्टी की बात की थी उस ने.

‘‘क्या, 1 सप्ताह…’’ अभी आगे कुछ कमलाजी बोलतीं कि बेटी ने अपनी मां को टोक दिया था, ‘‘मम्मी, जरा इधर तो आइए,’’ फिर पता नहीं उन के कान में क्या समझाया था उस ने कि उस के पास से लौट कर सहर्ष रैना को गांव जाने की इजाजत दे दी थी उन्होंने.

रैना के जाने के बाद कमलाजी अपने पति से बोली थीं, ‘‘रैना 1 सप्ताह के लिए अपने गांव जा रही है. अगर आप कहें तो हम लोग भी इस बीच पटना घूम आएं. काफी दिन हो गए मांबाबूजी को देखे.’’

‘‘देखो, मैं तो नहीं जा सकूंगा. यहां मुझे कुछ जरूरी काम है. चाहो तो तुम बच्चों के साथ हो आओ,’’ रमण बाबू बोले थे.

फिर तो रात की ट्रेन से ही कमलाजी, दोनों बच्चों के साथ पटना के लिए प्रस्थान कर गई थीं.

कमलाजी को गए अभी दूसरा ही दिन था कि अचानक ही रात में रमण बाबू को बुखार, खांसी और सिरदर्द ने आ दबोचा. सारी रात बुखार में वह तपते रहे थे. सुबह भी बुखार ज्यों का त्यों बना रहा था. चाय की तलब जोरों की लग रही थी पर उठ कर चाय बना पाने का साहस उन में नहीं था. वह हिम्मत जुटा कर बिस्तर से उठने को हुए ही थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.

उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने रैना खड़ी थी. उसे देख कर वह चौंक पड़े थे. अभी वह कुछ पूछते कि रैना ही बोल पड़ी, ‘‘बाबूजी, जब मैं गांव पहुंची तो मां एकदम ठीक हो गई थीं. फिर वहां रुक कर क्या करती. यहां मालकिन को दिक्कत होती या नहीं?’’

‘‘पर यहां तो कोई है नहीं. सभी पटना…’’ एकबारगी जोरों की खांसी उठी और वह खांसतेखांसते सोफे पर बैठ गए.

उन्हें उस हाल में देख कर रैना पूछ बैठी, ‘‘तबीयत तो ठीक है, मालिक?’’

खांसी पर काबू पाने की कोशिश करते हुए वह बोले थे, ‘‘देख न, कल रात से ही बुखार है. खांसी और सिरदर्द भी है.’’

इतना सुनना था कि रैना ने आगे बढ़ कर उन के माथे पर अपनी हथेली टिका दी. फिर चौंकती हुई बोल पड़ी, ‘‘बुखार तो काफी है, मालिक. कुछ दवा वगैरह ली आप ने?’’

जवाब में सिर्फ इतना बोल पाए रमण बाबू, ‘‘एक कप चाय बना देगी?’’

फिर तो चाय क्या, पूरी उन की सेवा में जुट गई थी रैना.

रमण बाबू ने फोन कर के डाक्टर को बुलवा लिया था. डाक्टर ने जोजो दवाइयां लिखीं, रैना खुद भाग कर ले आई. डाक्टर की हिदायत के अनुसार रमण बाबू के माथे पर वह अपने हाथों से ठंडे पानी की पट्टी भी रखती रही. खुद का खानापीना तो भूल ही गई, अपने बच्चे को भी दूध तभी पिलाती जब वह भूख से रोने लगता.

इस प्रकार 2 ही दिनों में उस की देखभाल से रमण बाबू काफी हद तक स्वस्थ हो चले थे. इस बीच रैना ने उन्हें कुछ अलग ढंग से भी प्रभावित करना शुरू कर दिया था. एक तो घर का एकांत, फिर रैना जैसी खूबसूरत और ‘चरित्रहीन’ स्त्री की निकटता, उस को प्राप्त करने के लिए रमण बाबू का भी मन डोल उठा था.

रात को घर का सारा काम निबटाने के बाद रैना रमण बाबू के पास जा कर बोली, ‘‘अब मैं जाती हूं, मालिक. मालकिन तो बुधवार की रात को आएंगी, मैं बृहस्पतिवार की सुबह आ जाऊंगी. आप की तबीयत भी अब ठीक ही है.’’

जवाब में रमण बाबू बोल पड़े थे, ‘‘अरे कहां, आज तो तबीयत पहले से भी ज्यादा खराब है.’’

‘‘जी?’’ चौंक कर रैना ने अपनी हथेली उन के माथे पर टिका दी थी. फिर बोली थी, ‘‘न, कहां है बुखार.’’

अभी वह उन के माथे से अपनी हथेली हटाती कि एक झपट्टे के साथ उस की कलाई पकड़ कर रमण बाबू बोल पड़े थे, ‘‘तू भी कमाल की है. अंदर का बुखार कहीं ऊपर से पता चलता है?’’

रैना समझ गई थी कि अब उस के मालिक पर कौन सा बुखार सवार है. चेहरे पर उन के प्रति घिन सी उभर आई थी. एक झटके से अपना हाथ उन की पकड़ से मुक्त कराती हुईरैना बोल पड़ी थी, ‘‘छि मालिक, आप भी? आप मर्दों के लिए तो औरत भले अपनी जान ही क्यों न दे दे, पर आप के लिए वह मांस के टुकडे़ से अधिक कुछ भी नहीं,’’ इस के साथ ही अपने बच्चे को उठा कर वह तेजी से बाहर निकल गई थी.

बृहस्पतिवार की सुबह रैना जल्दी- जल्दी तैयार हो कर रमण बाबू के यहां पहुंच गई. कमलाजी की नजर उस पर पड़ी तो दांत पीसती हुई बोल पड़ी थीं, ‘‘आ गई महारानी? अरे, तुझ जैसी औरत पर भरोसा कर के मैं ने बहुत बड़ी भूल की.’’

रैना समझ तो गई थी कि मालकिन क्यों उस पर गुस्सा हो रही हैं, फिर भी पूछ बैठी थी, ‘‘मुझ से कोई भूल हो गई, मालकिन?’’

‘‘अरे, बेशरम, भूल पूछती है? अब बरबाद करने के लिए तुझे मेरा ही घर मिला था? हुं, मां बीमार है, छुट्टी चाहिए…’’

‘‘मां सचमुच बीमार थीं मालकिन पर जब मैं वहां पहुंची तो वह ठीक हो चुकी थीं. वहां रुकने से कोई फायदा तो था नहीं. मन में यह भी था कि यहां आप को दिक्कत हो रही होगी, इसीलिए चली आई. यहां आ कर देखा तो मालिक बहुत बीमार थे. आप लोग भी नहीं थे यहां…’’

‘‘बस, मौका मिल गया तुझे मर्द पटाने का.’’

‘‘यह क्या बोल रही हैं मालकिन. मैं तो लौट ही जाती, पर मालिक को उस हालत में छोड़ना ठीक नहीं लगा. मालिक को कुछ हो जाता तो?’’

‘‘चुप…चुप बेशरम. बोल तो ऐसे रही है जैसे वह मालिक न हुए कुछ और हो गए तेरे. अरे, बदजात, यह भी नहीं सोचा तू ने कि किस घर में सेंध मार रही है? पर तू भला क्यों सोचेगी? अगर यही सोचा होता तो शहर क्यों भटकना पड़ता तुझे? अरे, पति मेरे हैं, जो होता मैं देखती आ कर, पर…’’

‘‘बस, बस मालकिन, बस,’’ आखिर रैना के धैर्य का बांध टूट ही गया, ‘‘अगर मालिक को कुछ हो गया होता तो क्या कर लेतीं आप आ कर? अरे, पति का दर्द क्या होता है, यह आप क्या समझेंगी. आप के माथे पर तो सिंदूर चमक रहा है न. मुझ से पूछिए कि मर्द के बिना औरत की जिंदगी क्या होती है. आप ने मुझे कैसीकैसी गालियां नहीं दीं. इसीलिए न कि आज मेरे पति का हाथ मेरे सिर पर नहीं है. आज वह जिंदा होता, तब अगर छिप कर मैं किसी गैर से भी यह बच्चा पैदा कर लेती तो कोई मुझे कुछ नहीं कहता. यह जिसे पूरी कालोनी वाले मेरा पाप समझते हैं, इस में भी मेरी कोई गलती नहीं है. अरे, हम औरतें तो होती ही कमजोर हैं. बताइए, आप ही बताइए मालकिन, कोई गैर मर्द यदि किसी औरत की इज्जत जबरन लूट ले तो कुलटा वह मर्द हुआ या औरत हुई? पर नहीं, हमारे समाज में गलत सिर्फ औरत होती है.

‘‘खैर, मर्द लोग औरत को जो समझते हैं, सो तो समझते ही हैं, पर दुख तो इस बात का है कि औरतें भी औरत का मर्म नहीं समझतीं. अच्छा मालकिन, गलती माफ कीजिएगा मेरी. मैं समझ गई कि मेरा दानापानी यहां से भी उठ गया. पर मालकिन, मैं ने तो अपना धर्म निभाया है, अब ऊपर वाला जो सजा दे,’’ बोलते- बोलते रैना फफक पड़ी थी.

कमलाजी मौन, रैना की एकएक बात सुनती रही थीं. उन्हें भी लगने लगा था कि रैना कुछ गलत नहीं बोल रही. तभी रैना फिर बोली, ‘‘अच्छा तो मालकिन, मैं जाती हूं. कहासुना माफ कीजिएगा.’’

अभी जाने के लिए रैना पलटने को ही थी कि कमलाजी बोल पड़ीं, ‘‘हेठी तो देखो जरा. थोड़ा रहनसहन और चाल- चलन के लिए टोक क्या दिया, लगी बोरियाबिस्तर समेटने. मैं ने तुझ से जाने के लिए तो नहीं कहा है.’’

रैना की आंखें कमलाजी पर टिक गई थीं. कमलाजी फिर से बोल पड़ीं, ‘‘देख, मैं भी औरत हूं. औरत के मर्म को समझती हूं. मैं ने तो सिर्फयही कहा है न कि अकेले मर्द के घर में तुझे नहीं जाना चाहिए था. खैर छोड़, अच्छा यह बता, क्या सचमुच किसी ने तेरे साथ जबरदस्ती की थी? अगर की थी तो तू उस का नाम क्यों नहीं बता देती?’’

रैना का चेहरा अजीब कातर सा हो आया. वह बोली, ‘‘उस का नाम बता दूं तो मेरे माथे पर लगा दाग मिट जाएगा? अरे, मैं तो थानापुलिस भी कर देती मालकिन, पर अपनी गांव की तारा को याद कर के चुप हो गई. मुखिया के बेटे ने तारा का वही हाल किया था जो मेरे साथ हुआ. उस ने तो थानापुलिस में भी रपट लिखवाई थी, पर हुआ क्या? रात भर तारा को ही थाने में बंद रहना पड़ा और सारी रात…

‘‘मुखिया का बेटा तो आज भी छाती तान कर घूमता फिर रहा है और बेचारी तारा को कुएं में डूब कर अपनी जान गंवानी पड़ी…मालकिन लोग तो मुझ पर ही लांछन लगाते कि सीधेसादे मर्द को मैं ने ही फांस लिया. अच्छा मालकिन, बुरा तो लगेगा आप को, एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछ.’’

‘‘अगर आप के पीछे मालिक ने ही मेरे साथ बदसलूकी की होती और मैं आप से बोल देती तो आप मुझे निकाल बाहर करतीं या मालिक को? मुझे ही न. हां, दोचार रोज मालिक से मुंह फुलाए जरूर रहतीं फिर आप दोनों एक हो जाते, और…’’ बोलतेबोलते फिर रैना फफक पड़ी थी.

कमलाजी ने गौर से रैना के चेहरे को देखा था. कुछ देर वैसे ही देखती रही थीं, फिर जैसे ध्यान टूटा था उन का. बोल पड़ी थीं, ‘‘अच्छा, अब रोनाधोना छोड़. देख तो कितना समय हो गया है. सारे काम ज्यों के त्यों पड़े हैं. चल, चल कर पहले नाश्ता कर ले, फिर…’’

मालकिन का इतना बोलना था कि एकबारगी फुर्ती सी जाग उठी थी रैना में. आंसू पोंछती वह तेजी से अंदर की ओर बढ़ गई थी.

Hindi Kahaniyan : छंटता कुहरा – क्या था उपेक्षा का पति के लिए प्लान

Hindi Kahaniyan :  ‘‘अबतो तेरी शादी को 2 साल हो गए हैं. आखिर तू कब तक मु झ से छोटीछोटी बातों पर सलाह लेता रहेगा, हर काम के बारे में पूछता रहेगा… इस तरह दूध पीता बच्चा बनने से तो काम नहीं चलेगा. अब तो मेरा पल्लू छोड़,’’ अपनी सास को पति पर इस तरह  झुं झलाते देख कावेरी मन ही मन मुसकरा उठी.

कावेरी उस समय अपने कमरे की  झाड़पोंछ कर रही थी जब वल्लभ ने आ कर कहा था कि उसे अपने दोस्तों को अपनी प्रोमोशन की पार्टी देनी है और तुम सारी व्यवस्था कर लेना. तब उस ने हमेशा की तरह अपनी सास पर बात डालते हुए कहा था कि मांजी से पूछ लो और यह भी पूछ लेना कि क्याक्या बनेगा तथा बाजार से कितना सामान आएगा.

वल्लभ तो सदा से यही कहता और चाहता था कि मां की ही चले, इसलिए कावेरी को मात्र सूचना दे कर वह मां से पूछने चला गया. मगर आज आशा के विपरीत मां की तरफ से हिदायतें मिलने के बजाय डांट पड़ी तो वह हैरान रह गया. मगर कावेरी खुश थी कि इतने वर्षों में ही सही उस की तरकीब काम तो आई.

जब कावेरी का वल्लभ के साथ विवाह हुआ था तो वह सरकारी दफ्तर में अच्छे पद पर काम करता था. एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की जैसा घरवर चाहती है, उसी के अनुरूप था वह. एक ननद थी जिस की शादी हो चुकी थी. घर में सिर्फ सासससुर थे और कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं थी. कावेरी के मातापिता इस विवाह से संतुष्ट थे तो वह खुद भी खुश थी. लेकिन विवाह के 2 दिन बाद ही वह जान गई कि उस के उच्च पदासीन पति की डोर उस की मां के हाथों में है. पति ही नहीं ससुर तक की नकेल सास के हाथों में है. घर में उन्हीं की चलती है. अपना दबदबा बनाए रखने की उन्हें आदत सी हो गई है.

वल्लभ हर बात मां से पूछ कर करता था. यहां तक कि सोना, नहाना, जानाआना, क्या खाना है, क्या पहनना है, हर चीज पर मां की हुकूमत थी. मां अपने इकलौते बेटे पर ममता लुटाती हैं, ठीक है पर उन की ममता का घेरा इतना जकड़ा था कि उस में किसी का सेंध लगाना नामुमकिन तो था ही, साथ ही इस के बाहर न आने के कारण वल्लभ डरपोक भी बन गया था. मां की हर बात उस के लिए अंतिम होती थी. फिर चाहे वह सही हो या गलत. कावेरी मांबेटे के रिश्ते के बीच नहीं आना चाहती थी, पर मां को उन दोनों के बीच आते देख कावेरी छटपटा जाती.

मां उन्हें अकेली भी नहीं छोड़ती थीं. या तो उन के कमरे में बैठी रहतीं या फिर बेटे को कमरे में बुला लेतीं. पति की निकटता की चाह में कावेरी मन ही मन कुढ़ती रहती.

वल्लभ से कहती तो वह लड़ता, ‘‘तुम मांबेटे के बीच कांटे बोना चाहती हो? मां सही ही कहती हैं कि बीवी के आते ही मां का साम्राज्य खत्म हो जाता है, पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. इस घर में वही होगा जो मां चाहेंगी.’’

कावेरी ने बहुत सम झाने की कोशिश की कि मां अपनी जगह हैं और पत्नी अपनी जगह पर मां की उंगली पकड़ने के आदी वल्लभ को उस की कोईर् बात सम झ न आती. घर में तो सास चिपकी ही रहतीं पर कहीं बाहर जाना होता तो भी साथ रहतीं. कावेरी की हर बात में नुक्स निकालना और वल्लभ को भड़काना तो जैसे उन का शौक बन गया था. पति सुख क्या होता है, कावेरी सम झ ही नहीं पा रही थी. अपने बेटे के सारे काम वे खुद करतीं.

कावेरी करना चाहती तो कहतीं, ‘‘तू 2 दिन की आई छोकरी मेरे बेटे पर हक जमाना चाहती है? अरे, इतना बड़ा तो मैं ने ही किया है न इसे? इस की जरूरतों से वाकिफ हूं मैं… तू क्या जाने कितना नमक या मिर्च खाता है यह.’’

कावेरी चुप रहती. आंसुओं को बंद कमरे में बहने देती. हद है… कैसी मां हैं… बेटे से इतना लगाव था तो शादी क्यों की थी. असल में वल्लभ को किसी के साथ बांटना उन्हें पसंद न था. सास के दबदबे से आतंकित कावेरी सदा डरीसहमी रहती. नववधू के चेहरे पर जो लालिमा और रौनक होती है वह कावेरी के चेहरे पर कभी नजर नहीं आई. उस का निजी तो कुछ था ही नहीं. उन दोनों की आपस की बातों को सास कुरेदकुरेद कर पूछतीं. कावेरी शर्म से गड़ जाती जब सास उस के कमरे की चीजों को उलटतीं.

एक दिन तो कावेरी यह सुन कर सन्न रह गई जब सास ने कहा, ‘‘खबरदार जो मेरे बेटे के साथ ज्यादा सोई. दिनबदिन कमजोर होता जा रहा है वह… अपने ही पति को खाने पर तुली हुई है.’’

कावेरी का मन चिल्लाने को करता पर पति ही साथ न था तो विद्रोह कैसे करती. ससुर उसे करुण दृष्टि से देखते और स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेर देते तो पत्नी की  िझड़की खाते, ‘‘बहू के साथ मिल कर कौन सा प्रपंच रच रहे हो… याद रखना मेरी सत्ता कोई नहीं छीन सकता है.’’

कावेरी सम झ गई थी कि अगर उसे इस घर में रहना है तो चुप रहने के सिवा उस के पास और कोई रास्ता नहीं है. सास मानो उस के धैर्य की परीक्षा ले रही थीं. वे चाहती थीं कि कावेरी उन के खिलाफ कुछ बोले और वल्लभ उस से नफरत करने लगे. मगर कावेरी पति के थोड़ेबहुत प्यार को खोना नहीं चाहती थी. इसलिए सास की किसी भी बात का प्रतिकार नहीं करती.

वल्लभ उसे एक नन्हे शिशु जैसा लगता जो कुएं के मेढक के समान था,

जिस ने स्वयं रास्ता खोजना सीखा ही न था. कावेरी को यह सोच कर हैरत होती कि वह नौकरी कैसे कर पाता है. उस का मन होता कि वह वल्लभ के काम में उस की हिस्सेदार बने पर वह सारी बातें मां को बताता.

कावेरी कुछ पूछती तो  िझड़क देता, ‘‘अपनी हद में रहो, बेकार के सवालजवाब करना मु झे पसंद नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हारी बीवी हूं वल्लभ, तुम्हारे दुखसुख की साथी. मैं हर क्षण तुम्हारे साथ बांटना चाहती हूं. फिर छोटीछोटी बातें ही नजदीकियां लाती हैं. जब मां को सब बता सकते हो तो मु झे क्यों नहीं?’’ अकेले में कभी कावेरी कुछ कहने का साहस करती तो वल्लभ आगबबूला हो मां के पास जा कर बैठ जाता.

कुढ़तीचिढ़ती अपनेआप को कोसती कावेरी को लगता कि वह पागल हो जाएगी. कभी आत्महत्या करने का विचार आता. मायके लौटने का विकल्प उस के पास न था. मध्यवर्ग की यही बड़ी त्रासदी है कि अगर एक बार लड़की को विदा कर दिया तो उस के अकेले लौटने का प्रश्न ही नहीं उठता है. कौन मांबाप ब्याहता बेटी को रख सकते हैं? फिर कावेरी अपने अंतस के दुख कैसे बांटती, इसलिए भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती.

फिर उसे लगा ऐसे तो समस्या का समाधान नहीं निकलेगा. जितना वह कुढ़ेगी या रोएगी, सास उतना ही उसे सताएगी और पति और विमुख होता जाएगा. ब्याह को तब 1 साल भी नहीं हुआ था कि उस के अंदर एक नया जीव सांस लेने लगा.

वल्लभ अपनी खुशी व्यक्त करना चाहता तो सास एकदम टोक देतीं, ‘‘बालबच्चे सभी के होते हैं. इस में इतनी खुशी की क्या बात है?’’

अपने अंश की खुशी कावेरी अकेले ही बांटती. उस का मन करता कि वल्लभ उस के साथ आने वाले के लिए ख्वाब बुने. पर हर पल मां के साए में दुबका रहने वाला व्यक्ति अपने दिल की भावनाओं को व्यक्त कर पाना और बांट पाना कैसे सीख पाता.

‘नन्हे शिशु का आगमन एक सुखद माहौल में न हुआ तो’ यह सोच कर ही कावेरी कांप जाती. उसी की खातिर उस ने भी वल्लभ जैसा बनने का निश्चय किया. विरोध तो वह पहले भी नहीं करती थी. बस अब चुपचाप, निर्विकार ढंग से काम में लगी रहती. सास को यह बात खलती कि आखिर बहू उस के क्यों नहीं सलाह लेती या पलट कर कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं करती है.

असल में सास चाहती थीं कि बहू सारा दिन उन की चापलूसी करे. इस से उन के अहं को संतुष्टि मिलती कि बेटा ही नहीं, बहू भी उन की मुट्ठी में है. अपनी सत्ता छिन जाने का डर बुढ़ापे में ज्यादा गंभीर रूप ले लेता है. कावेरी उन के मनोभावों को ताड़ गई थी, इसलिए उस ने वैसा ही व्यवहार करना शुरू कर दिया, ‘जी मांजी, आप जो कहती हैं, वही सही है. ऐसा ही करूंगी,’ कहतेकहते उसे इस अभिनय में रस आने लगा. अगर इसी तरह घर में सुखशांति रह सकती है तो इस में बुराई क्या है. कावेरी ने ऐसा रुख अपनाया कि सास को लगे कि वही सर्वोपरि हैं.

‘मांजी दूध कितना लेना है, मांजी सब्जी कौन सी और कितनी बनेगी’ या ‘प्रैस वाली को कौन से कपड़े देने हैं?’ जैसे सवालों की बौछार वह सारा दिन करती रहती.

हमेशा अपनेआप में सिमटी रहने वाली बहू को इतना मनुहार करते और सम्मान देते देख वल्लभ की मां जहां हैरान हुईं वहीं संतुष्ट भी हुईं. अब उन्होंने वल्लभ के कान भरने छोड़ दिए थे. किस बात में कावेरी का दोष निकालतीं जब वह हर बात में उन की राय लेने लगी थी.

वल्लभ कावेरी की पीड़ा को न पहले सम झ पाया था न ही अब सम झ पाया. वह तो इसी में खुश था कि कावेरी हर बात मां की मरजी के अनुसार करती है.

‘‘तुम काफी बदल गई हो,’’ वल्लभ की निकटता कावेरी की सांसों को छू रही थी, खिन्नता और उदासी जो उन के कमरे में निजी क्षणों में बिखरी रहती थी, उस की जगह आत्मीयता ने ले ली थी.

‘‘मां कह रही थीं कि उन से हर बात पूछ कर करने लगी हो. देखों मैं शुरू से ही चाहता था कि मां को उचित सम्मान देना चाहिए. फिर पिताजी तक उन की हां में हां मिलाते हैं.’’

‘‘सही कह रहे हैं आप, पर आप को मेरी एक बात माननी होगी,’’ कावेरी ने डरतेडरते कहा.

‘‘क्या?’’ उस की पलकों को चूमते हुए वल्लभ ने पूछा.

‘‘आप बातबात पर चिढ़ना और नाराज होना छोड़ दें. इस से बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ता है.’’

‘‘बस इतनी सी बात है, जब तुम मां की बात मानने लगी हो तो फिर मैं भी न नहीं कहूंगा.’’

बांहों में समाई कावेरी का मन टीस उठा था. हर शब्द में मां का जिक्र और उन्हीं की वजह से पति का मिलता प्यार.

पहला बेटा हुआ तो सास खिल उठीं. कावेरी ने भी बड़ी चालाकी से मुन्ने

की सारी जिम्मेदारी उन पर डाल दी. कहती कि मांजी, मुन्ने का दूध का टाइम हो गया है, आप ठीक बनाती हैं, जरा बना दीजिए. मुन्ना रो रहा है, इसे आप ही संभालिए. फिर तो नैपी बदलने से ले कर हर काम कावेरी सास को सौंपती गई. हालांकि वह अपने बेटे का काम स्वयं ही करना चाहती थी पर जानती थी कि ऐसा करने पर मांजी मीनमेख निकालने लगेंगी या कहेंगी कि जैसे मैं ने तो बच्चे पाले ही नहीं हैं. वह किसी भी तरह की अप्रिय स्थिति से बचना चाहती थी.

एक दिन मुन्ना रात को रोने लगा और चुप ही न हुआ तो मांजी ने कहा, ‘‘ला मु झे दे, मैं इसे अपने पास सुला लेती हूं.’’

उस दिन के बाद से कावेरी ने मुन्ने को उन्हीं के पास सुलाना शुरू कर दिया. मां की ममता को भविष्य को सुखद करने के लिए कुछ समय दबाना आवश्यक हो गया था. वल्लभ तो इसी में खुश था कि मुन्ना मां के सुरक्षित हाथों में है.

सास की व्यस्तता बढ़ गई और कावेरी अभिनय में चतुर होती गई. पर मन ही मन डरती थी कि कहीं बच्चा भी पिता जैसा दब्बू बना तो क्या होगा पर एक विश्वास था कि आखिर कब तक मांजी अपना वर्चस्व जता तानाशाही चलाती रहेंगी.

उम्र बढ़ने पर शरीर भी जवाब देने लग जाता है और फिर जिस औरत ने सारी उम्र हुकूमत की हो और इसी कारण दिनरात एक कर दिए हों, वह थकने भी जल्दी लगती है. कावेरी महसूस करने लगी थी कि मांजी थकने लगी हैं. कई बार उस के कुछ पूछने पर  झल्लाने लगतीं. लेकिन कावेरी अनजान बनी उन के सुपुर्द 10 काम और कर देती. घर की साम्राज्ञी की अवहेलना कैसे करती वह. वल्लभ भी बच्चे के साथ ज्यादा समय गुजारने लगा था. पिता बनने के बाद उस के व्यक्तित्व में सुधार आया था. उस का भी एक वजूद है, यह बात उसे  झं झोड़ने लगी थी.

मांजी कहीं किसी रिश्तेदार के घर शादी में जाने की इच्छा प्रकट करतीं तो कावेरी  झट से कह देती, ‘‘बच्चा आप के बिना कैसे रहेगा और फिर मैं अकेली बच्चे और घर को कैसे संभालूंगी या बच्चे को अपने साथ ले जाइए या…’’

वह अपनी बात अधूरी छोड़ देती तो मातृभक्त पत्नी को स्नेहसिक्त नजरों से ताकता वल्लभ कह उठता, ‘‘ठीक ही तो कह रही है मां, कावेरी. तुम्हारे बिना तो घर एक दिन में ही अस्तव्यस्त हो जाएगा.’’

फिर उन का जाना टल जाता.

हालांकि कावेरी को बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलती थी पर अब वह स्वयं ही फिल्म के टिकट ले आता.

कावेरी कहती, ‘‘बच्चे के साथ मैं कैसे जाऊंगी. आप टिकट ले आए हैं तो मांजी को ले जाइए.’’

तब मांजी को ही कहना पड़ता, ‘‘मैं बच्चे को संभाल लूंगी, तुम दोनों चले जाओ.’’

बेटे की खुशी की खातिर उन्हें बहू पर कमान ढीली करनी पड़ती. स्वयं उन्हें घूमने का बहुत शौक था पर अब बच्चे की वजह से कहीं नहीं निकल पाती थीं. पहले कावेरी को ढेर सारी चेतावनियां दे कर जाती थीं पर अब उन्हें लगने लगा था कि उन की आजादी छिनती जा रही है. बेटा भी बहू के निकट होता जा रहा है. पोते को न संभाले तो बेटा नाराज हो जाएगा और वह उन के रोब के साए से निकल गया तो क्या होगा, सोच कर ही वे कांप उठतीं. इसी कशमकश में बहू के ऊपर से सारे प्रतिबंध हटते गए.

मगर उस दिन तो हद हो गई जब उन की बहन की बेटी के ब्याह में जाने की बात उठी. कावेरी रोने लगी, ‘‘मांजी, हम आप के बिना क्या करेंगे… आप न जाएं, इन्हें भेज दें.’’

‘‘अरे, 2-3 दिनों में आ जाऊंगी,’’ वे जैसे कुछ राहत पाने को व्याकुल थीं. वैसे भी वल्लभ के जाने का मतलब था बहू भी उस के साथ जाएगी, वह भी बच्चे को छोड़ कर. पर वल्लभ अड़ गया कि वही जाएगा. उस का आत्मविश्वास देख कावेरी को खुशी हुई.मांजी का सम्मान करना ठीक है पर खुली हवा में सांस लेने का सब को अधिकार है, यह जताना भी बहुत जरूरी था. अपनी आजादी सभी को बहुत प्यारी होती है. फिर चाहे वह बच्चा हो या बड़ा.

कावेरी मर्यादाओं या सीमाओं का उल्लंघन करने में यकीन नहीं करती थी पर चाहती थी कि वल्लभ, बाबूजी और बच्चे का अपना एक व्यक्तित्व हो ताकि वे कुएं के मेढक न बनें. बाबूजी की दुखद स्थिति से वह परिचित थी. अपने वजूद को नगण्य होते देखना कितना पीड़ादायक होता है, मांजी को इस बात का एहसास कराना जरूरी था. एक कुहरा जो उन के रिश्तों में छाया था, जिस की वजह से सब घुटते रहते थे, उसे हटाना जरूरी था.

पलंग पर विचारों में डूबी कावेरी न जाने और कितनी देर बैठी रहती अगर वल्लभ आ कर उसे  झं झोड़ता नहीं, ‘‘सुना न कि मां क्या कह रही हैं? यह अचानक मां को क्या हो गया है… अब क्या होगा… दोस्तों को क्या जवाब दूंगा. पार्टी नहीं दी तो वे मजाक उड़ाएंगे. वैसे भी…’’ उस ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘आप चिंता न करें, सारा इंतजाम हो जाएगा. मां अब आराम चाहती हैं, मैं सब संभाल लूंगी,’’ आत्मविश्वास की किरणें और 2 सालों का धैर्य उस के चेहरे को दिपदिपा रहा था.

वल्लभ को लगा अब कुछ कहना या पूछना बेकार है. उसे अपने इर्दगिर्द छाया कुहारा छंटता सा महसूस हुआ.

कावेरी मन ही मन मुसकराई और फिर किचन की ओर चल दी.

‘‘वल्लभ कावेरी की पीड़ा को न पहले सम झ पाया था न ही अब सम झ पाया. वह तो इसी में खुश था कि कावेरी हर बात मां की मरजी के अनुसार करती है…’’

Hindi Stories Online : मुसाफिर – चांदनी ने क्या किया था

Hindi Stories Online : गर्भवती चांदनी को रहरह कर पेट में दर्द हो रहा था. इसी वजह से उस का पति भीमा उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराने ले गया. उस ने लेडी डाक्टर से बड़ी चिरौरी कर जैसेतैसे एक पलंग का इंतजाम करवा लिया. नर्स के हाथ पर 10 रुपए का नोट रख कर उस ने उसे खुश करने का वचन भी दे दिया, ताकि बच्चा पैदा होने के समय वह चांदनी की ठीक से देखभाल करे.

चांदनी के परिवार में 4 बेटियां रानी, पिंकी, गुडि़या और लल्ली के अलावा पति भीमा था, जो सीधा और थोड़ा कमअक्ल था.

भीमा मरियल देह का मेहनती इनसान था. ढाबे पर सुबह से रात तक डट कर मेहनत से दो पैसे कमाना और बीवीबच्चों का पेट भरना ही उस की जिंदगी का मकसद था. जब कभी बारिश के दिनों में तालतलैया में मछलियां भर जातीं, तब भीमा की जीभ लालच से लार टपकाने लगती थी और वह जाल ले कर मछली पकड़ने दोस्तों के साथ घर से निकल पड़ता था.

गांव में मजदूरी न मिलने पर वह कई बार दिहाड़ी मजदूरी करने आसपास के शहर में भी चला जाता था. तब चांदनी अकेले ही सुबह से रात तक ढाबे पर रहती थी.

गठीले बदन और तीखे नाकनक्श की चांदनी 30 साल की हो कर भी गजब की लगती थी. जब वह ढाबे पर बैठ कर खनकती हंसी हंसती, तो रास्ता चलते लोगों के सीने में तीर से चुभ जाते थे. कितने तो मन न होते हुए भी एक कप चाय जरूर पी लेते थे.

अस्पताल में तनहाई में लेटी चांदनी कमरे की दीवारों को बिना पलक झपकाए देख रही थी. उसे याद आया, जब एक बार मूसलाधार बारिश में उस के गांव भगवानपुर से आगे 4 मील दूर बहती नदी चढ़ आई थी. सारे ट्रक नदी के दोनों तरफ रुक गए थे. तकरीबन एक मील लंबा रास्ता ट्रकों से जाम हो गया था.

तब न कोई ट्रक आता था, न जाता था. सड़क सुनसान पड़ी थी. इस कारण चांदनी का ढाबा पूरी तरह से ठप हो चुका था. वह रोज सवेरे ग्राहक के इंतजार में पलकपांवड़े बिछा कर बैठ जाती, पर एकएक कर के 5 दिन निकल गए और एक भी ग्राहक न फटका था. बोहनी तो हुई ही नहीं, उलटे गांठ के पैसे और निकल गए थे.

ऐसे में चांदनी एकएक पैसे के लिए मुहताज हो गई थी. चांदनी मन ही मन खुद पर बरसती कि चौमासे का भी इंतजाम नहीं किया. उधर भीमा भी 15 दिनों से गायब था. जाने कसबे की तरफ चला गया था या कहीं उफनती नदी में मछलियां खंगाल रहा था.

भीमा का ध्यान आते ही चांदनी सोचने लगी कि किसी जमाने में वह कितना गठीला और गबरू जवान था. आग लगे इस नासपिटी दारू में कि उस की देह दीमक लगे पेड़ की तरह खड़ीखड़ी सूख गई. अब नशा कर के आता है और उसे बेकार ही झकझोर कर आग लगाता है. खुद तो पटाके की तरह फुस हो जाता है और वह रातदिन भीतर ही भीतर सुलगती रहती है.

कभीकभी तो भीमा खुद ही कह देता है कि चांदनी अब मुझ में पहले वाली जान नहीं रही, तू तलाश ले कोई गबरू जवान, जिस से हमारे खानदान को एक चिराग तो मिल जाए.

तब चांदनी भीमा के मुंह पर हाथ रख देती और नाराज हो कर कहती कि चुप हो जा. शर्म नहीं आती ऐसी बातें कहते हुए. तब भीमा बोलता, ‘अरी, शास्त्रों में लिखा है कि बेटा पैदा करने के लिए घड़ी दो घड़ी किसी ताकतवर मर्द का संग कर लेना गलत नहीं होता. कितनों ने ही किया है. पंडित से पूछ लेना.’

चांदनी अपने घुटनों में सिर दे कर चुप रह जाती थी. रास्ता रुके हुए छठा दिन था कि रात के अंधेरे को चीरती एक टौर्च की रोशनी उस के ढाबे पर पड़ी. चांदनी आंखें मिचमिचाते हुए उधर देखने लगी. पास आने पर देखा कि टौर्च हाथ में लिए कोई आदमी ढाबे की तरफ चला आ रहा था.

वह टौर्च वाला आदमी ट्रक ड्राइवर बलभद्र था. बलभद्र आ कर ढाबे के बाहर बिछी चारपाई पर बैठ गया. बरसात अभी रुकी थी और आबोहवा में कुछ उमस थी.

बलभद्र ने बेझिझक अपनी कमीज उतार कर एक तरफ फेंक दी. वह एक गठीले बदन का मर्द था. पैट्रोमैक्स की रोशनी में उस का गोरा बदन चमक छोड़ रहा था. बेचैनी और उम्मीद में डूबती चांदनी कनखियों से उसे ताक रही थी.

थकान और गरमी से जब बलभद्र को कुछ छुटकारा मिला, तब उस का ध्यान चांदनी की ओर गया.

वह आवाज लगा कर बोला, ‘‘क्या बाई, कुछ रोटी वगैरह मिलेगी?’’

‘‘हां,’’ चांदनी बोली.

‘‘तो लगा दाल फ्राई और रोटी.’’

चांदनी में जैसे बिजली सी चमकी. उस ने भट्ठी पर फटाफट दाल फ्राई कर दी और कुछ ही देर में वह गरम तवे पर मोटीमोटी रोटियां पलट रही थी.

चारपाई पर पटरा लगा कर चांदनी ने खाना लगा दिया. खाना खाते समय बलभद्र कह रहा था, ‘‘5 दिनों में भूख से बेहाल हो गया.’’

जाने चांदनी के हाथों का स्वाद था या बलभद्र की पुरानी भूख, उसे ढाबे का खाना अच्छा लगा. वह 14 रोटी खा गया. पानी पी कर उस ने अंगड़ाई ली और वहीं चारपाई पर पसर गया. बरतन उठाती चांदनी को जेब से निकाल कर उस ने सौ रुपए का एक नोट दिया और बोला, ‘‘पूरा पैसा रख ले बाई.’’

चांदनी को जैसे पैर में पंख लग गए थे. उसे बलभद्र की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था. बरतन नाली पर रख कर चांदनी फिर भट्ठी के पास आ बैठी. बलभद्र लेटेलेटे ही गुनगुना रहा था.

गीत गुनगुनाने के बाद बलभद्र बोला, ‘‘बाई, आज यहां रुकने की इच्छा है. आधी रात को कहां ट्रक के पास जाऊंगा. क्लीनर ही गाड़ी की रखवाली कर लेगा. क्यों बाई, तुम्हें कोई एतराज तो नहीं?’’

चांदनी को भला क्या एतराज होता. उस ने कह दिया कि उसे कोई एतराज नहीं है. अगर रुकना चाहो तो रुक जाओ और बलभद्र गहरी तान कर सो गया.

चांदनी की चारों बेटियां ढाबे के पिछले कमरे में बेसुध सोई पड़ी थीं. रात गहरी हो रही थी. बादलों से घिरे आसमान में बिजली की चमक और गड़गड़ाहट रहरह कर गूंज रही थी.

तब रात के 12 बजे होंगे. किसी और ग्राहक के आने की उम्मीद छोड़ कर चांदनी वहां से हटी. देखा तो बलभद्र धनुष बना गुड़ीमुड़ी हुआ चारपाई पर पड़ा था.

चांदनी भीतर गई और एक कंबल उठा लाई. बलभद्र को कंबल डालते समय चांदनी का हाथ उस के माथे से टकराया, तो उसे लगा कि उसे तेज बुखार है.

चांदनी ने अचानक अपनी हथेली बलभद्र के माथे पर रखी. वह टुकुरटुकुर उसे ही ताक रहा था. उन आंखों में चांदनी ने अपने लिए एक चाहत देखी.

तभी अचानक तेज हवा चली और पैट्रोमैक्स भभक कर बुझ गया. हड़बड़ा कर उठती चांदनी का हाथ सकुचाते हुए बलभद्र ने थाम लिया. थोड़ी देर कसमसाने के बाद चांदनी अपने बदन में छा गए नशे से बेसुध हो कर उस के ऊपर ढेर हो गई थी. सालों बाद चांदनी को बड़ा सुख मिला था.

भोर होने से पहले ही वह उठी और पिछले कमरे की ओर चल पड़ी थी. उस ने सोचा कि खुद भीमा ने ही तो इस के लिए उस से कहा था, और फिर इस काली गहरी अंधेरी रात में भला किस ने देखा था. यही सब सोचतेसोचते वह नींद में लुढ़क गई.

सूरज कितना चढ़ आया था, तब बड़ी बेटी ने उसे जगाया और बोली, ‘‘रात का मुसाफिर 5 सौ रुपए दे गया है.’’

वह चौंकती सी उठी, तो देखा बलभद्र जा चुका था. चारपाई पर पड़ा हुआ कंबल उसे बड़ा घिनौना लगा. वह देर तक बैठी रात के बारे में सोचती रही.

15 दिन बाद बलभद्र फिर लौटा और भीमा के साथ उस ने खूब खायापीया. नशे में डूबा भीमा बलभद्र का गुण गाता भीतर जा कर लुढ़क गया और चांदनी ने इस बार जानबूझ कर पैट्रोमैक्स बुझा दिया.

बलभद्र का अपना ट्रक था और खुद ही उसे चलाता था, इसलिए उस के हाथ में खूब पैसा भी रहता था. चांदनी का सांचे में ढला बदन और उस की चुप रहने की आदत बहुत भाई थी उसे. चांदनी अपने शरीर के आगे मजबूर होती जा रही थी और बलभद्र के जाते ही हर बार खुद को मन ही मन कोसती रहती थी.

अब बलभद्र के कारण भीमा की माली हालत सुधरने लगी. वह उस का भी गहरा दोस्त हो गया था. 3 लड़कों का बाप बलभद्र बताता था कि कितना अजीब है कि वह लड़की पैदा करना चाहता है और भीमा लड़के की अभिलाषा रखता है.

चांदनी चुप जरूर थी, लेकिन अंदर ही अंदर खुश रहती थी. उस का सातवां महीना था. भीमा के साथ आसपास के जानने वाले लोग भी बेचैनी से इस बच्चे के जन्म का इंतजार कर रहे थे.

तब पूरे 9 महीने हो गए थे. एक दिन अचानक बलभद्र खाली ट्रक ले कर वहां आ धमका और उदास होता हुआ बोला, ‘‘अब वह पंजाब में ही ट्रक चलाएगा, क्योंकि घर के लोगों ने नाराज हो कर उसे वापस बुलाया है.’’

यह सुन कर भीमा और चांदनी बेहद उदास हो गए थे. आखिरी बार चांदनी ने उसे अच्छा खाना खिलाया और दुखी मन से विदा किया. अगले ही दिन उसे अस्पताल आना पड़ा था. तब से वह बच्चा पैदा होने के इंतजार में थे.

उसे दर्द बढ़ गया, तो उस ने नर्स को बुलाया. आननफानन उसे भीतर ले जाया गया. आखिरकार उस ने बच्चे को जन्म दिया और बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद होश में आने पर चांदनी ने जाना कि उस ने एक बेटे को  न्म दिया है. वह जल्दी से बच्चे को घूरने लगी कि लड़के की शक्ल किस से मिलती है… भीमा से या बलभद्र से?

लेखक- डा. ओम पंकज

‘आप की अदालत’ के रजत शर्मा को देखकर जब Rekha ने अपने आप को किया कमरे में बंद

Rekha  : प्रसिद्ध एंकर रजत शर्मा जिनके तीखे सवालों से हर कोई घबराता है, बहुत-बहुत सोच समझ कर जवाब देता है. परंतु सालों से चला आ रहा ‘आप की अदालत’ शो राजनेता और अभिनेता सभी से रूबरू करा चुका है. फिर चाहे वह बाला साहेब ठाकरे हो अमिताभ बच्चन हो, शत्रुघ्न सिन्हा हो राजेश खन्ना हो या शाहरुख सलमान आमिर खान, कंगना रनौत, सोनाक्षी सिन्हा आदि कलाकार ही क्यों ना हो ‘आप की अदालत’ में करीबन हर क्षेत्र से जुड़े प्रसिद्ध हस्तियां शामिल हो चुकी है. और आपकी अदालत के रजत शर्मा के तीखे सवालों का सामना भी किया है . लेकिन एक ऐसी एक्ट्रेस है जिन्हें खुद रजत शर्मा अपने शो में आमंत्रित करना चाहते हैं लेकिन वह नाकामयाब रहे हैं और वह कोई और नहीं बल्कि प्रसिद्ध जानी-मानी अभिनेत्री रेखा है 70 साल की उम्र के बावजूद अपनी खूबसूरती और अदाओं को लेकर लाखों दिलों की धड़कन कहलाने वाली रेखा रजत शर्मा को देखकर नौ दो ग्यारह हो जाती है.

‘आप की अदालत’ के रजत शर्मा के अनुसार वह तहे दिल से चाहते थे एक बार आपकी अदालत में रेखा जी शामिल हो. रजत शर्मा के अनुसार, मैं इस जुगाड़ में लगा भी था कि किस तरह में रेखा जी को अपने शो में लेकर आऊं, गुलशन ग्रोवर मेरा बहुत अच्छा दोस्त है एक बार मैं उसको मिलने एक शूटिंग में गया था जहां पर रेखा भी शूटिंग कर रही थी मैंने सोचा कि अभी अच्छा मौका है मैं रेखा जी से शो में आने के लिए बात कर सकता हूं. लेकिन तभी उस फिल्म के डायरेक्टर ने आकर बताया की रेखा जी ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया है.

रेखा जी का कहना है कि वह आपकी अदालत वाला मुझे अपनी अदालत में ले जाएगा. मुझे उस वक्त लगा कि यह सब मजाक ही है लेकिन मैंने जब देखा कि रेखा जी सचमुच एक कमरे में बंद है तो मैं वहां से चला आया. उसके बाद एक बार मैं जीतू जी के साथ लिफ्ट के लिए खड़ा था हम दोनों साथ में कहीं जा रहे थे तभी लिफ्ट हमारे सामने रुकी और दरवाजा खुला तो लिफ्ट में रेखा की थी रेखा जी ने जैसे ही मुझे देखा वह देखते ही मुझे बोलने लगी ओ माय गॉड यह मुझे अदालत ले जाएगा और यह कहकर उन्होंने तुरंत लिफ्ट का दरवाजा बंद कर दिया और ऊपर के फ्लोर में चली गई. रेखा जी मेरे तीखे सवालों से बचना चाहती है , इस लिए वह मेरे सामने ही नहीं पड़ना चाहती. लेकिन मेरी कोशिश आज भी जारी है रेखा जी को अपने शो में लाने की. मुझे पूरी उम्मीद है मेरी कोशिश एक दिन जरूर कामयाब होगी.

‘केसरी चैप्टर 2’ में दमदार परफौर्मेंस के बाद 2025 में पूरे साल छाए रहेंगे Akshay Kumar, रिलीज होंगी सात फिल्में

Akshay Kumar : अक्षय कुमार की हाल ही में रिलीज हुई फिल्म केसरी चैप्टर 2 ने दर्शकों का दिल जीत लिया है. इस फिल्म की रिलीज के पहले ही दिन दर्शकों और आलोचकों से फिल्म को सिर्फ और सिर्फ तारीफ मिली है. खास तौर पर अक्षय कुमार के इस फिल्म में बेहतरीन अभिनय को सराहा गया. अक्षय कुमार का साथ दे रहे फिल्म में अनन्या पांडे और आर माधवन के सशक्त अभिनय की भी फिल्म क्रिटिक और दर्शकों द्वारा तारीफ हुई. ऐसे में कहना गलत ना होगा अक्षय कुमार की काफी सारी फ्लौप फिल्मों के बाद केसरी चैप्टर 2 हिट फिल्मों का खाता खोल सकती है.

फिल्म की कहानी जलियांवाला बाग के दर्दनाक हादसे पर केंद्रित है जिसकी सच्चाई को सामने लाने वाले भारत के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ केस लड़ने वाले वकील सी शंकरन नायर की जीवनी पर केंद्रित है उन्होंने सच्चाई का साथ देकर पूरी ब्रिटिश सरकार को हिला के रख दिया था और जलियांवाला बाग में मरे लोगों को न्याय दिलाया था. अक्षय कुमार ने वकील सी शकरन नायर का किरदार बखूबी निभाया है. वैसे भी अक्षय कुमार उन फ्रीडम फाइटर की कहानी पर फिल्म बनाने और ऐसी महान हस्तियों का किरदार निभाने में माहिर हैं जिन्होंने देश के लिए बहुत कुछ किया है, देश के लिए कुर्बान हुए है लेकिन उनका नाम देश के इतिहास से गायब है.

किसी भी फिल्म की सफलता में डायरेक्टर का बहुत बड़ा योगदान रहता है. केसरी चैप्टर 2 को बेहतरीन बनाने में डायरेक्टर करण सिंह त्यागी के सटीक डायरेक्शन का बहुत बड़ा योगदान है. जिसके चलते फिल्म में सब कुछ परफेक्ट है एक्टिंग से लेकर ब्रिटिश जमाने की रहन-सहन , कोर्टरूम, फिल्म के छोटे-छोटे किरदारों को भी डायरेक्टर ने बखूबी दिखाया है. फिल्म की कहानी डायरेक्शन लोकेशन कलाकारों का अभिनय सब पूरी तरह से परफेक्ट है. क्योंकि स्वयं सच्ची घटना पर आधारित है इसलिए फिल्म में कुछ भी बाहर से नहीं डाला गया है. केसरी चैप्टर 2 से कुमार की हिट फिल्म का खाता खुल गया है . गौरतलब है इस फिल्म के बाद अक्षय कुमार की और भी कई बेहतरीन फिल्में एक के बाद एक रिलीज होने जा रही है.

जैसे हाउसफुल 5, हेरा फेरी 3, साउथ की पौराणिक फिल्म कन्नाप्पा जिसमें अक्षय कुमार अलग अवतार में नजर आएंगे. भागम भाग 2, वेलकम टू जंगल, आदि कई सारी फिल्में जिनकी रिलीज 2025 में होने वाली है , जो अक्षय कुमार के डूबे हुए करियर को संवारने में मील का पत्थर स्थापित हो सकती है.

80 साल की उम्र में Sharmila Tagore ने बिना कीमोथेरेपी किए फेफड़ों के कैंसर जैसी भयानक बीमारी को दी मात

Sharmila Tagore : अपने जमाने की प्रसिद्ध एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर हमेशा से अपनी फिटनेस और खूबसूरती के लिए जानी जाती रही हैं. आज 80 साल की उम्र में भी शर्मिला टैगोर फिट एंड फाइन नजर आती हैं. हाल ही में शर्मिला टैगोर अपनी बहू करीना कपूर के साथ एक विज्ञापन में भी नजर आई थी. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि 2023 में शर्मिला टैगोर को फेफड़ों का कैंसर हो गया था. जिसका इलाज शर्मिला टैगोर ने बिना कीमोथेरेपी किए किया और इस दौरान उन्होंने अपने आप को शालीनता और संयम के साथ पेश करना जारी रखा.

खास बात यह है कि शर्मिला टैगोर को फेफड़े के कैंसर का पता शून्य चरण में ही लग गया था, जिस वजह से उनका इलाज करना आसान हो गया. कैंसर का जल्दी पता चलने की वजह से कीमो के बिना ही फेफड़ो से कैंसर को जड़ से निकालने में डौक्टरों को आसानी हो गई और उनकी रिकवरी भी जल्दी हो गई. शर्मिला की बेटी सोहा अली खान के अनुसार उनकी मां शर्मिला टैगोर ने 80 साल की उम्र में पूरी सावधानी के साथ कैंसर को मात देकर सोहा को एक नई दिशा दी है. जिसके अनुसार अगर बड़ी मुसीबत में भी हम संयम से काम ले तो मुश्किलों में भी रास्ता निकल आता है. जैसे कि उनकी मां शर्मिला टैगोर कैंसर जैसी बीमारी को मात देकर अब पूरी तरह स्वस्थ हैं.

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