आजकल छोटे कसबों में रहने वाली औरतों को कोई पिछड़ा हुआ न सम झे. इन छोटे कसबों की औरतें पहननेओढ़ने और पार्टी करने के मामले में शहर वालियों को भी पीछे करने लगी हैं.
अभी परसों कविता के यहां पर किट्टी पार्टी थी जिस में मेरी मुलाकात सनोबर से हुई. अरे वही सनोबर जो एक छोटे से गांव से आई थी. भाई वाह, क्या कमाल का कायाकल्प हो गया है उस का जब वह अपने गांव से इस कसबे में रहने आई थी तो उस के चेहरे पर छोटी जगह से होने के कारण एक डर और दबेपन का भाव झलकता रहता था और बातचीत करने में भी हिचकती थी पर अब तो उस के चेहरे की चमक कुछ और ही बयां करती है.
सनोबर के लंबे बालों की जगह अब छोटे बालों ने ले ली है, कपड़ों में भी आधुनिकता की झलक है जो थोड़े से छोटे हो गए हैं और उस
का शरीर भी किसी सांचे में ढला हुआ सा लगता है. अब तो ऐरोबिक कसरतें करती है वह और उस का सावलां रंग भी अब तो गोरागुलाबी हो चला है.
‘‘इतना फिट और खूबसूरत कैसे रह लेती हो सनोबर?’’ मैं ने हलकी सी िझ झक के साथ कहा तो सनोबर ने दंभ भरे अंदाज में मु झे बताया कि यह सब सफलता की चमक है, सफलता? कैसी सफलता? मेरी आंखों में छिपे सवाल को भांप कर सनोबर ने समाधान करते हुए बताया कि दरअसल वह डांस के रील्स बनाती है और फिर उन्हें इंस्टाग्राम और अन्य तमाम तरह के सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर अपलोड करती है और फिर लोग लाइक और कमैंट करते हैं और उस की रील्स पसंद आने पर उसे फौलो भी करते हैं. सनोबर के 5 हजार से भी ज्यादा फौलोअर्स हैं और इतने फौलोअर्स होने से उसे एक तरह से सैलिब्रिटी स्टेटस तो हासिल है ही, साथ ही साथ वह इन रील्स को बना कर पैसे भी कमाती है.
कहीं न कहीं सनोबर की सफलता ने मु झे भी इंस्पायर किया कि मैं भी कुछ करूं और आजकल भला रील्स बनाने से ज्यादा सरल क्या होगा? किसी अधिक ताम झाम की जरूरत नहीं, थोड़ाबहुत शक्लसूरत ठीक हो तो अच्छी बात है और अगर नहीं भी हो तो फिल्टर लगा कर काम चल जाता है, बस शुरुआती दौर में लोग आप को लाइक करने लगें तो आगे का काम और आसान हो जाता है. हां तो लोगों के लाइक आने में कौन सी कठिनाई है. अरे भले मैं एक ट्रैंड डांसर न सही पर बचपन में पड़ोस वाली आंटी को भरतनाट्यम करते देखते थे तभी से क्लासिकल डांस के प्रति रुचि जागी थी और
मैं शौकिया क्लासिकल डांस करने लगी थी और अब तो मेरे पास सीखने के लिए इंटरनैट उपलब्ध है तो ऐसे में जब मैं अपनी क्लासिकल डांसिंग मूव्स दिखाऊंगी तो लोग मुझे जरूर पसंद करेंगे और मेरी रील को वायरल होने से कौन रोकेगा भला?
मगर मेरे साथ एक कड़क सासससुर की निगरानी की समस्या भी थी. शायद ही मेरी सासूमां को मेरा डांस करना भाता. पर कला तो कला है और उसे दबा कर रखने में उस का नष्ट हो जाना तय है, यही सोच कर मैं ने अपनी डांस की एक पोशाक निकाली जिसे मैं ने अपने रिश्तेदार की शादी में जाने के लिए खरीदा था. अब इस में ढेरों सिकुड़नें पड़ चुकी थीं क्योंकि जब मेरी बेटी गर्भ में थी तभी इसे अलमारी में रख दिया गया था और अलमारी की सफाई के दौरान ही इसे निकालते और धूप में सुखाकर वापस रख दिया जाता और आज पूरे 5 साल बाद इसे पहनने के मकसद से बाहर निकाला गया है. पोशाक की हालत देख कर इसे ड्राई क्लीन की जरूरत महसूस हुई तो फट से इसे कसबे की सब से अच्छी लौंड्री से ड्राईक्लीन कराया.
लांड्री वाले भी बड़े पारखी होते हैं, कपड़े के वजन और डिजाइन देखकर पोशाक की अहमियत जान लेते है और उसी के अनुसार बिल को ज्यादा या कम बनाते हैं.
खैर, कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है. मन में ललक थी एक सैलिब्रिटी स्टेटस पाने की सो मैं ने बिल चुकाया और चौराहे वाले पार्लर में चेहरे का रंगरोगन कराया. किसी भी नृत्य की विधा में चेहरे और आंखों के उपयोग की अहमियत को तो आप जानते ही हैं इसलिए आंखों पर मेकअप वाली लड़की को विशेष ध्यान देने को कहा. चेहरा ठीक हुआ तो घर आ कर डांस के लिए जगह तलाशनी थी मैं ने क्योंकि डांस ऐसी जगह करना था जो मेरी सास को बिलकुल डिस्टर्ब न करे.
वैसे तो मेरी सास हर घरेलू काम में परफैक्ट हैं और ऐसा ही परफैक्शन वे मु झ से चाहती हैं पर शायद ही वे कभी मेरे काम से संतुष्ट रही हों पर फिर भी हम सासबहू का रिश्ता ठीकठाक ही चल रहा था. इसलिए नीचे के कमरों को छोड़ कर मैं ने अपनी छत को चुना क्योंकि वहां पर कोई डिस्टरबैंस भी नहीं होगी और ठीक रोशनी मिलेगी जिस से वीडियो की क्वालिटी अच्छी आएगी.
वीडियो शूट करने के लिए पड़ोस की 20 साल की लड़की गरिमा को मैं ने अपना मोबाइल थमाया और बड़े ही मनोयोग से भरतनाट्यम की मुद्राएं बना कर नृत्य करने लगे. अभी थोड़ा ही वीडियो बना था कि मेरी 5 साल की बिटिया छुटकी रोने लगी. उस के रोने से
मेरी सास का ध्यान उस तरफ गया और वे तो मेरी रील्स बनाने और नाचने की तैयारियों को देख कर पहले से मुंह बनाए बैठी थीं सो अब
उन्हें मुझ पर चिल्लाने का पूरा अधिकार मिल चुका था. ‘‘अरे आजकल तो औरतों को अपने नाचगाने से फुरसत ही नहीं, जब बच्चे नहीं संभाले जाते तो उन्हें पैदा ही मत करो, हमारे जमाने में तो…’’ और इस के आगे सास ने क्याक्या कहा मैं ने सुनने की कोशिश भी नहीं करी और चुपचाप अपने कमरे में आ कर बेटी को चुप कराने लगी.
कुछ सासूमां की बातें और कुछ डांस ठीक से न कर पाने के कारण मन खिन्न हो चुका था और वैसे भी इतने दिनों से डांस करना छूट चुका था सो शरीर का लचीलापन भी कम हो गया था और मैं हांफने लगी थी. अगले कई दिनों तक मैं ने डांस नहीं किया पर फिर एक दिन जब सासूमां मार्केट गई थीं तब गरिमा की जिद पर मैं ने फिर से डांस किया और एक छोटा सा वीडियो बना कर रील के रूप में इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दिया और तमाम हैशटैग बना कर अपने दोस्तों को टैग भी करना नहीं भूली.
रील के पोस्ट होने के ठीक बाद ही मैं लाइक्स और कमैंट का इंतजार करने लगी और इसी उम्मीद में घर का सब काम छोड़ कर आती और मोबाइल में नोटिफिकेशन चैक करती पर रात तक सिर्फ 10-12 लाइक्स ही आए थे. थोड़ी निराशा जरूर हुई पर वैसे मैं ने रील बनाने से पहले गूगल पर पढ़ा था कि रील बनाते ही आप फेमस नहीं हो जाओगे बल्कि इस के लिए बहुत धैर्य रखना होगा.
मुझे निराश देख कर गरिमा ने मुझे इशारों
में बताया कि लोग मसालेदार वीडियो ज्यादा देखना चाहते हैं. ऐसे में भला मेरे शुद्ध भरतनाट्यम के मूव्स को भला कौन देखना चाहेगा? और हो सकता है कि मेरे वीडियो
ठीक औडियंस तक पहुंच ही न पा रहे हों. अभी मैं दुविधा में ही थी कि मेरे पति कुमार आ गए. वे थोड़े परेशान लग रहे थे. कारण
पूछने पर पता चला कि कंपनी ने कुमार का प्रमोशन कर के उन का ट्रांसफर भी कर दिया है और अब उन्हें इस पैतृक कसबे को छोड़कर कानपुर जाना होगा,
ट्रांसफर का नाम सुनते ही मां और पापा का मन भारी हो गया. होता भी क्यों नहीं? कुमार को लखनऊ से अपनी ग्रैजुएशन खत्म करते ही जौब मिल गई थी और उन की कंपनी ने उन के पैतृक कसबे में ही अपने काम के विस्तार के लिए भेज दिया था. बड़े कम लोग होते हैं जिन्हें उन के मांबाप के पास रह कर ही नौकरी मिल जाती है और मांबाप की सेवा का अवसर भी पर अब तो इन्हें कानपुर जाना था.
रात का खाना किसी से नहीं खाया गया, मु झ से भी नहीं. सुबह सासूमां ने बनावटी हिम्मत दिखाते हुए कहा, ‘‘कानपुर कौन सा दूर है, हम दोनों हर महीने आते रहेंगे अपनी छुटकी के पास.’’
‘‘तो क्या आप लोग हमारे साथ नहीं चलोगे?’’ कुमार के इस सवाल के जवाब में बाबूजी ने कहा कि उम्र के इस पड़ाव में अपना घर छोड़ कर कहीं और नहीं जाना.
कुमार ने बहुत रिक्वैस्ट करी पर मांपापा नहीं माने, कुमार के साथ मु झे भी कानपुर जाना पड़ा. जब से ब्याह कर आई थी तब से इसी घर में सासससुर के साथ रही पर अब उन से दूर जाना थोड़ा बुरा तो लग ही रहा था पर अपने पति के साथ किसी बड़े शहर में जाना, बड़ी बिल्डिंगों के फ्लैट में रहना, मौल में ऐस्कलेटर पर चढ़तेउतरते हुए सैल्फी लेना यह सब मन को सुहा तो रहा ही था और फिर कुमार के साथ जब अकेली रहूंगी तो जी भर कर मनचाही रील्स भी तो बना सकूंगी, ये सब सोचते हुए उत्साह बढ़ रहा था, जरूरी पैकिंग कर ली गई थी और अगले दिन हम कानपुर के लिए रवाना हो गए.
कानपुर में फ्लैटरूपी आवास, कुमार की कंपनी ने दिलाया था इसलिए हमें कोई परेशानी नहीं हुई. हम ने अपना सामान भी सैट कर लिया और डिनर बाहर जा कर किया. नई जगह में आ कर मन प्रफुल्ल था और अपने कानपुर प्रवास के दूसरे ही दिन मैं ने धड़ल्ले से रील्स बनानी शुरू कर दीं. यहां तो सास की कोई पाबंदी भी नहीं थी. मैं ने कुछ नई साडि़यां खरीदीं और नाभिप्रदर्शना ढंग से बांध कर हिंदी फिल्मों के गानों पर रील्स बना इंस्टाग्राम पर पोस्ट कीं जिन पर अपेक्षाकृत कुछ अधिक लाइक्स भी आए थे. मु झे लगा कि इंस्टाग्राम पर स्टार बनने से मु झे कोई नहीं रोक सकता पर ऐसा नहीं था क्योंकि महीनों बीत जाने पर और सैकड़ों रील्स डालने के बाद भी मेरी कोई रील ऐसी नहीं थी जिस के हजारों लाइक्स आए हों और यह काम काफी कठिन है यह हमारी सम झ में आ चुका था.
इंस्टाग्राम से मन हटा तो पड़ोसी रीना ने फेसबुक का नाम कुछ लिखने और फोटोज पोस्ट करने के लिए सु झाया, मु झे ठीक लगा कि फेसबुक पर कोई किस्साकहानी लिखा जाए. मसलन, पहलेपहल मैं ने लिखा, ‘‘सिर में तेज दर्द है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा.’’
इस छोटी सी बात के बदले कई राय और घरेलू नुसखे बताने वाले कमैंट आ गए. जुड़े लोगों की संख्या देख कर भी उत्साह जगा और फिर कुछ और लिखने को प्रेरित हुई. कभी कविता तो कभी बचपन की यादें तो कभी अपनी नन्ही बेटी की शैतानियों के बारे में लिखती रही तो मेरी पोस्ट अच्छे ढंग से वायरल होने लगीं, कभी लिखने को कुछ न होता तो मनगढ़ंत कहानी बना कर पोस्ट कर देती. अब तो मेरे कई रिश्तेदार भी मुझ से सोशल मीडिया पर जुड़ने लगे और मेरी तारीफ करने लगे थे.
कहते हैं कि अच्छा समय बहुत जल्दी गुजर जाता है. मुझे कानपुर आए कब 1 साल हो गया पता ही नहीं चला और आज ही सासूमां का फोन आया था कि वे कल शाम को कानपुर हमारे पास आ रही हैं.
अब जब से मैं ने अपनी सास के आने की खबर सुनी थी तब से तो मेरे होश ही उड़ गए. यहां पर 2 कमरों के फ्लैट में काम ही कितना था? कुमार लंच ले नहीं जाते थे सो अपने लिए 4 परांठे बना कर ही काम चला लेती थी. कभी जोमैटो का सहारा ले लेती. इधर जब से लिखना शुरू किया तब से तो और भी काहिल हो गई थी और मन को यह कह कर सम झा लेती कि अरे अब तू बड़ी फेसबुकिया लेखक हो गई है. इतना आराम तो कर ही सकती है पर अब सासूमां आ रही हैं तो सब से पहले तो वे मेरी किचन में झांकेंगी और किचन के सारे कनस्तरों में उन्हें घुन और कीड़े ही नजर आएंगे. किचन से ही लगा हुआ एक छोटा सा स्टोर था. मैं ने सोचा लगे हाथों इस का भी मुआयना कर लूं सो देखा कि 2 किलोग्राम चने की दाल में घुन लग चुका था और चावलों में भी कीड़े पड़ गए थे.
1 लिटर पुराना शहद भी मिला, सोचा झाड़ू करने वाली रजनी को यह सामान दे दूंगी पर उस ने भी मुंह बना कर कह दिया, ‘‘इस में तो अनाज से ज्यादा घुन है मैडम हम ऐसा सामान नहीं खाते.’’
मन मसोस कर मैं फिर से स्टोर में रखे सामान को तलाशने की नीयत से गई तो देखा कि अचार में फफूंद लगी हुई है और नीबू का अचार भी खराब हो रहा है. वैसे इतना सब सामान लाने में कुमार की गलती है. अरे, जब कम खर्चा है तो छोटी पैकिंग वाला सामान लाओ भला किलोकिलो क्यों लाते हो? मैं बहुत झुं झुलाई और वहां अचार के डब्बे को हाथ में ले कर एक सैल्फी खींची और फेसबुक पर अपलोड कर दी. उस के साथ में कैप्शन लिख दिया कि कड़क और सख्त सासूमां के आने के साइड इफैक्ट. आगे लिखा कि जब सासूमां के साथ रहती थी तब उन्होंने रील्स बनाने को मना कर दिया था अब वे फिर से मेरे पास आ रही हैं,पता नहीं फेसबुक पर आप लोगों से कब मुलाकात होगी और इतना लिख कर बड़ी जल्दी से पोस्ट का बटन दबा दिया और मुक्त भाव से बिखरे सामान को ठीक करने में लग गई.
शाम तक काफी हद तक घर ठीक भी हो गया, अचानक मन में खयाल आया कि भले ही यह फ्लैट छोटा है, थोड़ाबहुत पैदल चल कर ही काम हो जाता है पर कितना अच्छा होता कि वेनिस की तरह यहां भी चारों तरफ पानी होता और एक से दूसरी जगह जाने के लिए हमें सुंदरसुंदर नावों का सहारा लेना पड़ता. खयाल अच्छा था पर अभी मैं इन खयालों में और डूबती कुमार के फोन ने मेरे विचारों पर रोक लगा दी.
‘‘अरे वह तुम्हारी चचेरी ननद बेबी का फोन आया था, बड़ी तारीफ कर रही थी तुम्हारे फेसबुकिया लेखन की और वह जो तुम ने मेरी मां पर कोई पोस्ट डाली है उस के बारे में भी जिक्र कर रही थी.’’
पोस्ट और अपनी चचेरी ननद का नाम सुनते ही मेरे मन में कुछ खटका. मैं सम झ गई थी कि अब तक मेरी सासूमां तक वह अचार वाली पोस्ट तो पहुंच ही गई होगी और सासूमां के बारे में लिखे शब्द उन्हें बता भी दिए गए होंगे.
मैं ने तुरंत मोबाइल खोला और पोस्ट हटानी चाहीें पर अब तक तो उस पोस्ट पर सैकड़ों लाइक्स आ चुके थे और इतनी देर में तो मेरी ननद ने अपना काम कर ही दिया होगा पर अब मैं सिर्फ इस पोस्ट को डिलीट करने के अलावा कर ही क्या सकती थी.
शाम को सासससुर आ गए ढेरों सामान लाए थे जिस में देशी घी और अचार मुख्य रूप से था, मेरी बेटी तो अपने दादादादी से अलग ही नही हो रही थी.
सच कहूं तो सासूमां के सामने काफी असहज महसूस कर रही थी मैं और उस का कारण मेरी सासूमां के हैशटैग वाली पोस्ट थी, पर तीर तो कमान से निकल ही चुका था इसलिए मैं पूरे मनोयोग से सासूमां की सेवा करने में लग गई. उन की पसंद का पूरा ध्यान रखा और देर रात तक उन के पास बैठ कर पुरानी यादों को ताजा करती रही.
‘‘तुम्हारी ननद बेबी कह रही थी कि अब तुम बड़ी अच्छी कविताकहानी लिखने लगी हो.’’
मैं यह बात सुन कर सन्न रह गई कि निश्चित ही बेबी ने सासूमां को उस पोस्ट के बारे में सबकुछ बता दिया होगा तभी तो वे पूछताछ कर रही हैं. मैं हकला गई.
सासूमां ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘अरे तू चाहे नाचे या गीत लिखे या गाए पर जो भी कर एक स्त्री की मर्यादा में रह कर कर. उस कसबे में थे तो हमें भी आसपास की लोकलाज का ध्यान रखना था, परिवार की इज्जत का खयाल रखने के लिए हम ने भी घूंघट में जीवन काट दिया पर अब जीवन की सां झ आ गई है, अब तक तो हम ने सब का ध्यान रखा और अब भी हम लोगों के लिए जीते रहेंगे तो भला हम कब जीवन जी पाएंगे इसलिए अब जो हमें अच्छा लगेगा हम वही करेंगे.’’
सासूमां थोड़ा रुकीं और फिर बोलीं, ‘‘वह जो तुम लोगों का नाच का अड्डा है न वह जो ग्राम है न, क्या कहते हैं उसे? हां इंस्टाग्राम, उस जगह पर आजकल तो बहुएं अपनी सास के साथ मिल कर खूब रील्स बनाती है. अरे, अब हम से नाचवाच तो होगा नहीं पर कुरसी पर बैठेबैठे आंखों के इशारे तो हम भी कर सकते हैं.’’
सासूमां शरमाते हुए कह रही थीं. मैं अब तक उन की सारी मजबूरी और छोटी जगह में रहने के कारण एक दायरे में बंधे रहने की विवशता सम झ चुकी थी.
इतनी देर में दूसरे कमरे से कुमार और ससुर साहब उठ कर हमारा डांस देखने के लिए आ गए थे और सब सासूमां का यह रूप देख कर मारे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.
फट से मैं ने मोबाइल उठाया और अपनी सासूमां के साथ एक छोटा सा शूट किया. पाशर्व में गाना बज रहा था, ‘‘सास गाली देवे, ननद चुटकी लेवे ससुराल गेंदा फूल…’’
गाना भले ही बहुत झुमाने वाला नहीं था मगर सोलफूल था जिस में सासूमां पहले तो बैठेबैठे अपने ऐक्सप्रैशन देती रहीं पर फिर वे जल्दी से बैड से उतर कर मेरे साथ नाचने लगीं और तब तक नाचती रही जब तक वे थक नहीं गईं. यह देख कर ससुर और कुमार भी हमारे साथ नाच में शामिल हो गए थे.
इसी बीच मैं सब की नजर बचा कर इस मजेदार मौके को फेसबुक और इंस्टाग्राम दोनों जगह लाइव और पोस्ट करने में लग गई थी. इंस्टाग्राम पर रील्स के रूप में तो फेसबुक पर एक कहानी के रूप में.
मैं और मेरी सास के भले ही फौलोअर्स नहीं थे पर हम दोनों अपनेआप में ही एक सैलिब्रिटी स्टेटस हासिल कर चुकी थीं और मेरी ससुराल सच में एक गेंदाफूल ही तो थी जिस मे रिश्तों के रंग थे, आपसी प्रेम की सुगंध थी. यहां इंस्टाग्राम की रील्स थी तो फेसबुक की कहानियां भी और मैं और मेरी सास अब मिल कर चला रहे थे जीवन का फेस्टाग्राम.