फ्लर्ट: क्यों परेशान थी मीता अपने पति से

नैना,माहा और दलजीत तीनों शैतान लड़कियों की आंखों में हंसतेहंसते पानी आ गया था. थोड़ी देर पहले तीनों चुपचाप अपनेअपने लैपटौप पर बिजी थीं. तीनों मुंबई के वाशी एरिया की इस सोसायटी में टू बैडरूम शेयर करती हैं. एक ही औफिस में हैं, बस से ही औफिस आतीजाती थीं पर अब तो ज्यादातर घर से ही काम कर रही हैं. तीनों बहुत ही बोल्ड ऐंड ब्यूटीफुल टाइप लड़कियां हैं, ‘वीरे दी वेडिंग’ मूवी की लड़कियों जैसी. खूब सम?ादार हैं, कोई इन्हें जल्दी बेवकूफ नहीं बना सकता.

इन के बौस अनिलजी भी यहीं रहते हैं. उन्होंने ही इन तीनों को यह फ्लैट दिलवा दिया था. थोड़े रसिक टाइप हैं. उन्होंने सोचा कि 3 हसीनाएं उन के अंडर में काम करती ही हैं, घर भी पास में हो जाएगा तो थोड़ीबहुत फ्लर्टिंग करता रहूंगा. असल में अनिलजी हर लड़की को प्यार कर सकते हैं. हर लड़की को यह यकीन दिला सकते हैं कि वही इस दुनिया की सब से खूबसूरत लड़की है और किसी भी लड़की से उन का बात करने का जो ढंग है, वह ऐसा कि लगता है जैसे डायलाग मारने की कहीं से ट्रेनिंग ली है.

कई लोगों को अनिलजी पर इस बात पर भी गुस्सा आता है कि ये सोसाइटी के सैक्रेटरी हैं और जरा भी अपनी जिम्मेदारी नहीं सम?ाते. इधरउधर खुद ही गंदा करते रहते हैं. कभी सिगरेट के टोटे रोड पर फेंकते हुए चलेंगे, कभी यों ही इधरउधर थूक देंगे और उन्हें लगता है कि उन्हें सब बहुत पसंद करते हैं.

पता है अनिलजी की सब से बड़ी खासीयत क्या है? फ्लर्ट करते हैं और सामने वाली लड़की को यह पता भी नहीं लग सकता कि फ्लर्टिंग हो रही है. एक तो उम्र में बड़े हैं ही, औफिस में भी सीनियर हैं. किसी भी लड़की से बात करते हैं तो इतनी ग्रेसफुली करते हैं कि तेज से तेज लड़की भी पकड़ नहीं सकती कि अनिलजी फ्लर्ट कर रहे हैं. उलटीसीधी बातें करते भी नहीं हैं.

‘‘आज आप को काम ज्यादा तो नहीं है? देर हो जाएगी तो मेरी कार में ही चलना. एक ही सोसाइटी में तो जाना है. मैं तो कहता हूं रोज मेरे साथ आ जा सकती हो.’’

‘‘मैं तो आज जो भी कुछ हूं, अपनी वाइफ की ही सपोर्ट से हूं. मेरी वाइफ बहुत अच्छी है.’’

‘‘आज आप बहुत अच्छी लग रही हैं, यह कलर आप को सूट करता है.’’

‘‘यह औफिस नहीं है, एक फैमिली है. आप को जब भी कोई प्रौब्लम हो तो मु?ो कह सकती हैं.’’

अब ऐसी बातों पर क्या औब्जैक्शन हो सकता है. असल में अनिलजी को

लड़कियों से बातें करने का, उन्हें जोक्स, कोई मैसेज फौरवर्ड करने का बहुत शौक है. अभी तक तीनों लड़कियों में से किसी ने आपस में उन के बारे में कुछ भी यह सोच कर नहीं बोला कि जाने दो, बौस हैं. शायद मु?ो स्पैशल सम?ाते हैं, इसलिए मु?ो जरा ज्यादा मानते हैं, इसलिए थोड़े स्पैशल नजरिए से देखते हैं, क्या बुरा है. कोई नुकसान तो पहुंचा नहीं रहे हैं. अब जो ये तीनों लड़कियां बुरी तरह हंस रही हैं न. वह इसलिए कि अभीअभी अपने फोन में अनिलजी का मैसेज देखते हुए दलजीत बोल पड़ी थी, ‘‘यार, अनिलजी कोरोना पौजिटिव हो गए हैं, हौस्पिटल में एडमिट हो गए हैं, इन के बच्चे तो विदेश में हैं, बेचारी वाइफ अकेली है.’’

नैना और माहा के हाथ में भी अपनाअपना फोन थे, दोनों ने एकसाथ कहा, ‘‘क्या, तुम्हें भी मैसेज भेजा? मु?ो भी भेजा और साथ में सैड इमोजी भी. है न?’’

नैना हंस पड़ी, ‘‘मतलब सब को फौरवर्ड कर दिया. और मैं सम?ाती थी कि मु?ो ज्यादा अटैंशन देते हैं. अरे, सुनो, सच्चीसच्ची बताना तुम लोगों को भी मैसेज भेजते रहते हैं क्या अनिलजी.’’

दोनों जोरजोर से हंस पड़ीं, ‘‘लो भई, ये तो सब को प्यार बांटते चलते हैं और हम सम?ा रही थीं कि हम ही स्पैशल हैं.’’

फिर तो तीनों अपनेअपने मैसेज एकदूसरी को बताने लगीं और अब इन की हंसी नहीं रुक रही है.

माहा ने कहा, ‘‘देखो, एक आइडिया है.’’

‘‘क्या? बोलोबोलो.’’

‘‘ये जो हम सब के साथ फ्लर्ट करते घूम रहे हैं यह आदत छुड़ाने की कोशिश करनी चाहिए न.’’

दलजीत ने कहा, ‘‘अरे, छोड़ो यार, हमें इन से क्या मतलब. मु?ो तो अपने हैरी से मतलब है. बस वह मु?ो और मैं उसे सच्चा प्यार करते हैं, इतना बहुत है.’’

माहा ने घुड़की मारी, ‘‘फिर शुरू कर दिया हैरी पुराण. आपस में प्यारव्यार करने को कौन मना कर रहा है, लौकडाउन है, घर में बोर हो रहे हैं, अनिलजी के साथ थोड़ा खेल नहीं सकते क्या?’’

दलजीत फिर मिनमिनाई, ‘‘हैरी सुनेगा तो उसे अच्छा नहीं लगेगा.’’

हैरी. कोई अंगरेज… न, न, तीनों लड़कियों ने अच्छेभले हरविंदर को हैरी बना दिया है. दलजीत का मंगेतर है.

दलजीत उस पर जिंदा है, कहती है, ‘‘मेरा हैरी तो सनी देओल लगता है बिलकुल.’’

यह अलग बात है कि नैना और माहा इस बात से तनिक सहमत नहीं.

हमेशा की तरह दलजीत को दोनों शैतान लड़कियों ने इस शरारत में शामिल कर ही लिया. अब इतने दिन से घर में बंद हैं, कितना काम करें. कितना कोरियन शोज देखें. आजकल तीनों पर कोरियन शोज देखने का भूत चढ़ा है. हां, तो बाकायदा मजेदार प्लानिंग हुई. अब अनिलजी जैसे चालू पुरजे के साथ थोड़ी मस्ती करना इन का भी तो हक है. यह क्या. सीधे बनबन कर क्या सिर्फ अनिलजी ही अपना टाइम पास करते रहें.

अनिलजी की पत्नी मीता इतनी सीधी भी कभी नहीं लगी जितनी अनिलजी बताते हैं. बढि़या टाइट रखती हैं इन्हें. चेहरे से ही रोब टपकता है. सब के फ्लैट में इंटरकौम है ही, माहा ने मीता को इंटरकौम पर फोन किया,

हालचाल पूछे, फिर कहा, ‘‘अनिलजी का मैसेज आया था, हौस्पिटल में हैं, तो भी मेरा कितना ध्यान रखते हैं. सर बहुत ही अच्छे हैं, इस बीमारी में भी दूसरों की चिंता करते हैं,’’ और बहुत सी शुभकामनाएं दे कर माहा ने फोन रख दिया.

मीता को ये शुभकामनाएं कुछ खास पसंद नहीं आईं. मन तो हुआ कि पति को फोन करे और कहे कि हौस्पिटल में हो, पहले कोरोना संभाल लो अपना, फिर दूसरों की चिंता कर लेना, पर इस समय तो पति को कुछ कहना पत्नी धर्म के खिलाफ हो जाता, घर आने दो, फिर देख लूंगी, सोच कर दिल को सम?ा लिया.

तीनों लड़कियां अनिलजी के हालचाल पूछ रही थीं. उन के मैसेज एकदूसरे को पढ़वा कर अपना अच्छा टाइम पास कर रही थीं. अनिलजी अपनी उखड़ती सांसों के साथ भी फ्लर्टिंग का यह मौका छोड़ना नहीं चाह रहे थे.

सोच रहे थे कि तीनों लड़कियां कितनी बेवकूफ हैं. मैं तो इन तीनों को ही क्या, जानपहचान की हर लड़की को ऐसे मैसेज कर रहा हूं और ये बेवकूफ अपने को खास सम?ा रही हैं. कभी इन की फेसबुक फ्रैंड्स की लिस्ट देखिए, 5 हजार दोस्त होंगे इन के, जिन में से 4 हजार महिलाएं ही होंगी. गजब रसिया टाइप बंदा है. औफिस की सारी लड़कियां, उन की सहेलियां, सहेलियों की सहेलियां, सब क फोटो और कमैंट देखते ही ऐसे लपक कर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजते हैं कि लड़कियों को पहले तो सम?ा नहीं आता कि कौन है, फिर बेचारी कौमन फ्रैंड्स को देख कर इन की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर लेती हैं, सोचती हैं कि जाने दो, कोई उम्रदराज सीनियर है, क्या नुकसान पहुंचाएगा. बस यहीं भूल कर जाती हैं भोली लड़कियां. फिर तो उन की पोस्ट पर लाइक और कमैंट सब से पहले अनिलजी का ही आता है. एक और खास बात. जितनी सुंदर लड़की, उतना बड़ा कमैंट लिखते हैं.

मीता को सोशल मीडिया में इतना इंटरैस्ट है नहीं तो उन्हें पता ही नहीं चलता कि पति क्या कर रहा है. अनिलजी के बच्चे पिता की ऐक्टिविटीज को टाइम पास सम?ा कर इग्नोर कर देते हैं.

हां, तो अगले दिन मिनमिनाती दलजीत के कंधे पर जैसे बंदूक रख कर माहा और नैना ने दलजीत को स्क्रिप्ट लिख कर दी और बताया कि क्या बोलना है तो दलजीत ने मीता को फोन किया, कहा, ‘‘मैडम, अब कैसे हैं सर. उन के बीमार होने से हम तो परेशान हो गए. आतेजाते पूछ लेते थे कि मार्केट से तो कुछ नहीं चाहिए. इस लौकडाउन में तो उन्होंने हमारा बहुत ही ध्यान रखा है. बस अब जल्दी से ठीक हो कर आएं तो हमें भी कुछ आराम हो. अभी तो मैसेज पर ही उन से बात हो रही है. आप ठीक हैं न?’’

मीता का मन हुआ कि हौस्पिटल जा कर अभी पति से फोन छीन ले. पति की नसनस जानती थी पर अनिलजी भी तो चतुर, चालाक हैं, सीधेसीधे कभी कोई ऐसी हरकत नहीं की कि कोई उन के चरित्र पर एंगली उठा दे.

सरेआम पत्नी की तारीफ करते घूमते. कई बार तो इतनी तारीफ कर देते कि मीता भी हैरान रह जातीं कि क्या सचमुच मैं एक सर्वगुणसंपन्न पत्नी हूं.

अगले दिन नैना का नंबर था. मीता से सीधे पूछा, ‘‘अरे, मैडम सर कैसे हैं?

ठीक तो हैं न? सुबह से कोई मैसेज नहीं आया है उन का. चिंता हो रही है, अब तक तो गुडमौर्निंग के दसियों मैसेज आ जाते थे.’’

‘‘ठीक हैं, काफी ठीक हैं. घर आने ही वाले हैं.’’

‘‘शुक्र है… उन के मैसेज की इतनी आदत हो चुकी है कि क्या बताऊं. सारा दिन टच में रहते हैं. हम तो यहां अकेली पड़ी हैं. इतना बिजी होने के बाद भी वे हर समय हालचाल पूछते रहते हैं तो अच्छा लगता है.’’

अनिलजी घर आ गए हैं, उन्हें कमजोरी है, मीता उन का ध्यान रख रही हैं. अच्छी तरह से क्लास भी ले चुकी हैं. टीचर रही हैं. बिगड़े बच्चों को सुधारना उन्हें खूब आता है. और यहां तो बात पति की थी, पति को तो एक आम औरत भी सुधारने का दम रखती है. सब ठीक हो गया है. तीनों शैतान एकदूसरे से पूछती रहती हैं, बौस का कोई मैसेज आया क्या? जवाब हर बार ‘न’ में होता है अब.

सही डोज: भाग 3- आखिर क्यों बनी सविता के दिल में दीवार

उन दिनों घर का बढ़ता हुआ तनाव दिनबदिन और बढ़ता जा रहा था. सविता हरेक की बात सुनने पर भी नहीं सुनती थी. दिन में कभी भी कमरे में लेट कर उपन्यास पढ़ती रहती थी. सब के जाने के बाद सवेरे ही वह भी घर से निकल पड़ती थी. एक महिला क्लब की सदस्य बन गई थी. दोपहर देर तक ताश खेलती थी. किट्टी पार्टियों में भी जाती थी. कोई कुछ नहीं कह सकता था. नौकरी छुड़वाई थी, सो फिर से कर सकती थी. अलग रहने को बोल दिया था. उस के अलग रहने से घर पर क्या असर पड़ेगा, इतना तो घर वाले सम?ा सकते थे. जब भी सविता मां के घर जाती थी तो यही कह कर कि शाम तक लौट आएगी, पर 3-4 दिनों तक नहीं आती थी. अब उस की इस घर में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई.

एक दिन जब वह घर में थी. रश्मि कुछ ढूंढ़ रही थी, ‘‘भाभी, तुम ने मेरी कापी देखी है कहीं. उस में मेरे कुछ जरूरी नोट्स है. इधर घर में धूल इतनी है कि खोजने में सारे कपड़े गंदे हो गए हैं.’’

सविता बरस पड़ी, ‘‘रश्मि, तुम अपनी चीजों को तो संभाल कर रख नहीं सकतीं, ऊपर से कहती हो सारे घर में धूल की परतें जमी रहती हैं. इतवार को तो तुम घर की सफाई कर सकती हो. कालेज की पढ़ाई मैं ने भी की है पर घर के कामों में अपनी मां का हाथ जरूर बंटाती थी. एक तुम हो कि  पढ़ाई के नाम पर उपन्यास पढ़ती रहती हो. बहुत हो चुका, अब उठो और घर की सफाई करो. महरी भी आती होगी. बरतन सिंक में रख कर नल खोल दो. मैं अपनी एक सहेली के घर जा रही हूं,’’ कह कर सविता चली गई.

क्षुब्ध रश्मि ने पहले अम्मां की ओर देखा. फिर बारीबारी से बाबूजी और भाई की तरफ देखा. कोई कुछ नहीं बोला. नवीन उठ कर अपने कमरे में चला गया. सविता 2 घंटे बाद लौटी. कमरे में जा कर साड़ी बदल रही थी, तभी नवीन आ गया, ‘‘सविता, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे मालूम है कि तुम क्या कहना चाहते हो, उसी का तो इंतजाम करने गई थी.’’

‘‘क्या मतलब? कैसा इंतजाम?’’

‘‘सब समझाजाओगे,’’ कहकर उस ने एक छोटे से सूटकेस में 2-4 कपड़े डाल लिए, फिर बाहर की ओर चल पड़ी.

‘‘बहू, कहां जा रही हो?’’ सास ने ही पूछा.

‘‘भाभी…’’ रश्मि इतना ही कह सकी. बाबूजी ने अखबार मेज पर रख कर अपना चश्मा उतार लिया. इसी बीच नवीन भी आ खड़ा हो गया.

‘‘मैं और नवीन जा रहे हैं. मुझे नौकरी मिल गई है. हैंडलूम हाउस में. नवीन भी मान गया है. मैं ने तो भरसक कोशिश की है इस घर में कुछ व्यवस्था ला सकूं पर मैं अकेली कुछ नहीं कर सकी, घर में काम बहुत होता है, अगर सारा काम एक के ऊपर डाल कर सब लोग निश्चिंत हो जाएं तो कैसे हो सकता है.’’

जातेजाते दरवाजे के पास रुक कर उस ने कहा, ‘‘थोड़ाबहुत सामान है, 2-4 मामूली सी साडि़यां हैं, फिर कभी आ कर दे जाऊंगी.’’

‘‘बहू, हम ने तो तुम से कहा था कि…’’

बात काट कर सविता ने कहा, ‘‘3 साल से ज्यादा हो गया कहे हुए. खैर, अम्मां कोई बात नहीं, मेरा सामान शुभकार्य में लग गया,’’ कह कर वह घर के बाहर निकल गई. नवीन भी तेजी से उस के साथसाथ चलने लगा. पीछे से बाबूजी बोले, ‘‘मुझे पहले ही मालूम था कि एक दिन यह सब होगा.’’

‘‘जाते-जाते, बहुत सुना गई,’’ प्रमिला ने चेहरे में पसीना पोंछते हुए कहा.

‘‘सविता ने ठीक ही सुनाया है. मैं ने तो

तुम्हें उसी समय कहा था कि अपनी हैसियत के अनुसार सामान दो पर तुम ने बहू की सब बढि़या साडि़यां, चांदी के इतने सुंदर बरतन जो उस ने शौक से खरीदे होंगे और स्टील के सारे बरतन बेटी की शादी में दे डाले. ऊपर से उस के हाथों के सोने के दोनों कड़े भी उतरवाकर बेटी को दे दिए.

सविता भी तो हमारी बेटी है. एक बेटी से सामान छीन कर दूसरी बेटी को देना कहां की बुद्धिमानी थी?’’ उधर नवीन ने सविता के साथसाथ चलते हुए कहा, ‘‘मेरी एक बात तो सुन लो, तुम वहां नहीं जाओगी जहां की तुम ने योजना बनाई थी. मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं.’’

‘‘अब क्या दिखाओगे? अच्छी बात है, जो दिखाना चाहता हो वह भी देख लेती हूं.’’ नवीन ने एक टैक्सी रोकी और दोनों बैठ गए. नवीन ने टैक्सी चालक को पता बताया. टैक्सी शहर की भीड़भाड़ से बाहर एक खूबसूरत सी नई कालोनी में जा कर रुक गई.

‘‘उतरो,’’ नवीन ने हाथ से सहारा दे कर सविता को बाहर उतारा, फिर वे एक छोटे से खूबसरत बंगले के बाहर जा कर खड़े हो गए. बाहर ताला लगा था. नवीन ने जेब से चाबी निकाल कर सविता के हाथों पर रख दी, ‘‘खोलो, यह छोटी सी कौटेज तुम्हारी ही है.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’ आश्चर्यचकित हो सविता ने ताला खोला.

‘‘अब भीतर चल कर अपना घर तो देख लो.’’ सपनों में खोई सविता ने नवीन का हाथ पकड़ेपकड़े घर के भीतर प्रवेश किया.

‘‘बहुत खूबसूरत है, क्या सचमुच यह हमारा है? क्या आज से हम यहीं रहेंगे?’’

तन से सविता अपने घर की साजसंवार कर रह रही पर उस के मन में एक पश्चात्ताप था, दुख था. उस ने नवीन को मांबाप और बहन से अलग कर दिया. कुछ दिनों बाद वे दोनों घर गए. घर अब काफी ठीक था. रश्मि का सामान फैला नहीं था. सास ही नहीं ससुर भी घर को साफ रखने में हाथ बंटाते थे. कामवाली बाई लौट आई थी. सविता को देख कर चहक कर बोली, ‘‘मेम साहब, अब तो सब ठीक हो गए हैं. घर का काम करने में कुछ भी देर नहीं लगती. सही डोज दे गई हैं. डोज दे गई हैं.

 

Top 10 Best Family Story in Hindi: पढ़ें रिश्तों से जुड़ी भावुक कर देने वाली पारिवारिक कहानियां

Family Story in Hindi: परिवार हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है, जो हर सुख-दुख में आपका सपोर्ट सिस्टम बनती है. साथ ही बिना किसी के स्वार्थ के आपका परिवार साथ खड़ा रहता है. इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Grihshobha की Best Family Story in Hindi 2024.

Top 10 Family Stories in Hindi : टॉप 10 फैमिली कहानियां हिंदी में

1. तबाही: आखिर क्या हुआ था उस तूफानी रात को

सब कुछ पहले की तरह सामान्य होने लगा था. 1 सप्ताह से जिन दफ्तरों में काम बंद था, वे खुल गए थे. सड़कों पर आवाजाही पहले की तरह सामान्य होने लगी थी. तेज रफ्तार दौड़ने वाली गाडि़यां टूटीफूटी सड़कों पर रेंगती सी नजर आ रही थीं. सड़क किनारे हाकर फिर से अपनी रोजीरोटी कमाने के लिए दुकानें सजाने लगे थे. रोज कमा कर खाने वाले मजदूर व घरों में काम करने वाली महरियां फिर से रास्तों में नजर आने लगी थीं.

पिछले दिनों चेन्नई में चक्रवाती तूफान ने जो तबाही मचाई उस का मंजर सड़कों व कच्ची बस्तियों में अभी नजर आ रहा था. अभी भी कई जगहों में पानी भरा था. एअरपोर्ट बंद कर दिया गया था. पिछले दिनों चेन्नई में पानी कमरकमर तक सड़कों पर बह रहा था. सारी फोन लाइनें ठप्प पड़ी थीं, मोबाइल में नैटवर्क नहीं था. गाडि़यों के इंजनों में पानी चला गया था, जिस के चलते कार मालिकों को अपनी गाडि़यां वहीं छोड़ जाना पड़ा था. कई लोग शाम को दफ्तरों से रवाना हुए, तो अगली सुबह तक घर पहुंचे थे और कई तो पानी में ऐसे फंसे कि अगली सुबह तक भी न पहुंचे. कई कालेजों और यूनिवर्सिटीज में छात्रछात्राएं फंसे पड़े थे, जिन्हें नावों द्वारा सेना ने निकाला.  पूरे शहर में बिजली नहीं थी.

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2. डिवोर्सी: मुक्ति ने शादी के महीने भर बाद ही लिया तलाक

वह डिवोर्सी है. यह बात सारे स्टाफ को पता थी. मुझे तो इंटरव्यू के समय ही पता चल गया था. एक बड़े प्राइवेट कालेज में हमारा साक्षात्कार एकसाथ था. मेरे पास पुस्तकालय विज्ञान में डिगरी थी. उस के पास मास्टर डिगरी. कालेज की साक्षात्कार कमेटी में प्राचार्य महोदया जो कालेज की मालकिन, अध्यक्ष सभी कुछ वही एकमात्र थीं. हमें बताया गया था कि कमेटी इंटरव्यू लेगी, मगर जब कमरे के अंदर पहुंचे तो वही थीं यानी पूरी कमेटी स्नेहा ही थीं. उन्होंने हमारे भरे हुए फार्म और डिगरियां देखीं. फिर मुझ से कहा, ‘‘आप शादीशुदा हैं.’’ ‘‘जी.’’

‘‘बी. लिब. हैं?’’ ‘‘जी,’’ मैं ने कहा.

फिर उन्होंने मेरे पास खड़ी उस अति सुंदर व गोरी लड़की से पूछा, ‘‘आप की मास्टर डिगरी है? एम.लिब. हैं आप मुक्ति?’’ ‘‘जी,’’ उस ने कहा. लेकिन उस के जी कहने में मेरे जैसी दीनता नहीं थी.

‘‘आप डिवोर्सी हैं?’’ ‘‘जी,’’ उस ने बेझिझक कहा.

‘‘पूछ सकती हूं क्यों?’’ ‘‘व्यक्तिगत मैटर,’’ उस ने जवाब देना उचित नहीं समझा.

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3. चिराग : करुणा को क्यों बहू नहीं मान पाए अम्मा और बापूजी

कानपुर रेलवे स्टेशन पर परिवार के सभी लोग मुझ को विदा करने आए थे, मां, पिताजी और तीनों भाई, भाभियां. सब की आंखोें में आंसू थे. पिताजी और मां हमेशा की तरह बेहद उदास थे कि उन की पहली संतान और अकेली पुत्री पता नहीं कब उन से फिर मिलेगी. मुझे इस बार भारत में अकेले ही आना पड़ा. बच्चों की छुट्टियां नहीं थीं. वे तीनों अब कालेज जाने लगे थे. जब स्कूल जाते थे तो उन को बहलाफुसला कर भारत ले आती थी. लेकिन अब वे अपनी मरजी के मालिक थे. हां, इन का आने का काफी मन था परंतु तीनों बच्चों के ऊपर घर छोड़ कर भी तो नहीं आया जा सकता था. इस बार पूरे 3 महीने भारत में रही. 2 महीने कानपुर में मायके में बिताए और 1 महीना ससुराल में अम्मा व बाबूजी के साथ.

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4.  अभियुक्त: सुमि ने क्या देखा था

घंटी बजने के साथ ही, ‘‘कौन है?’’ भीतर से कर्कश आवाज आई.

‘‘सुमि आई है,’’ दरवाजा खोलने के बाद भैया ने वहीं से जवाब दिया.

‘‘फिर से?’’ भाभी ने पूछा तो सुमि शरम से गड़ गई.

विवेक मन ही मन झुंझला उठा. पत्नी के विरोध भाव को वह बखूबी समझता है. सुमि की दूसरी बार वापसी को वह एक प्रश्नचिह्न मानता है जबकि दीपा इसे अपनी सुखी गृहस्थी पर मंडराता खतरा मानती है. विवेक के स्नेह को वह हिसाब के तराजू पर तौलती है.

चाय पीते समय भी तीनों के बीच मौन पसरा हुआ था.

विवेक की चुप्पी से दीपा भी शांत हो गई लेकिन रात को फिर विवाद छिड़ गया.

‘‘शैलेंद्रजी बातचीत में तो बड़े भले लगते हैं.’’

‘‘ऊपर से इनसान का क्या पता चलता है. नजदीक रहने पर ही उस की असलियत पता चलती है.’’

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5.  सब छत एक समान: अंकुर के जन्मदिन पर क्या हुआ शीला के साथ?

शीला को जरा भी फुरसत नहीं थी. अगले दिन उस के लाड़ले अंकुर का जन्मदिन था. शीला ने पहले से ही निर्णय ले लिया था कि वह अंकुर के इस जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगी और एक शानदार पार्टी देगी.

बारबार पिताजी ने सुरेश को समझाया कि वह बहू को समझाए कि इस महंगाई के दौर में इस तरह की अनावश्यक फुजूलखर्ची उचित नहीं. उन की राय में अपने कुछ निकटतम मित्रों और पड़ोसियों को जलपान करवा देना ही काफी था.

सुरेश ने जब शीला को समझाया तो वह अपने निर्णय से नहीं हटी, उलटे बिगड़ गई थी.

शीला बारबार बालों की लटें पीछे हटाती रसोई की सफाई में लगी थी. उस ने महरी को भी अपनी सहायता के लिए रोक रखा था. दिन में कुछ मसाले भी घर पर कूटने थे, दूसरे भी कई काम थे. इसलिए वह सुबह से ही काम निबटाने में लग गई थी.

6. मिटते फासले: शालिनी की जिंदगी में क्यों मची थी हलचल?

मोबाइल फोन ने तो सुरेखा की दुनिया ही बदल दी है. बेटी से बात भी हो जाती है और अमेरिका दर्शन भी घर बैठेबिठाए हो जाता है. अमेरिका में क्या होता है, सुरेखा को पूरी खबर रहती है. मोबाइल के कारण आसपड़ोस में धाक भी जम गई कि अमेरिका की ताजा से ताजा जानकारी सुरेखा के पास होती है.

सर्दी का दिन था. कुहरा छाया हुआ था. खिड़की से बाहर देख कर ही शरीर में सर्दी की एक झुरझुरी सी तैर जाती थी. अभी थोड़ी देर पहले ही शालिनी से बात हुई थी.

शालिनी 2 महीने बाद छुट्टियों में भारत आ रही है. कुरसी खींच कर आंखें मूंद प्रसन्न मुद्रा में सुरेखा शालिनी के बारे में सोच रही थी. कितनी चहक रही थी भारत में आने के नाम से. अपनों से मिलने के लिए, मोबाइल पर मिलना एक अलग बात है. साक्षात अपनों से मिलने की बात ही कुछ और होती है.

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7. नई रोशनी की एक किरण

बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.

‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’

सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’

8. फूलप्रूफ फार्मूला: क्या हो पाई अपूर्वा औऱ रजत की शादी

औफिस से लौटने में कुछ देर हो गई थी लेकिन बच्चों ने मुंह फुलाने के बजाय चहकते हुए उस का स्वागत किया.

‘‘मम्मा, दिल्ली से रजत अंकल आए हैं, हमें उन के साथ खेलने में बड़ा मजा आ रहा है. आप भी हमारे कमरे में आ जाओ,’’ कह कर प्रणव और प्रभव अपने कमरे में भाग गए.

‘‘आ गई बेटी तू, रजत बड़ी देर से तेरे इंतजार में इन दोनों की शरारतें झेल रहा है,’’ मां ने बगैर रसोई से बाहर आए कहा.

हालांकि दिल्ली रिश्तेदारों से अटी पड़ी थी लेकिन अभी तक किसी रजत से तो कोई रिश्ता जुड़ा नहीं था. पापा और बच्चों के साथ एक सुदर्शन युवक कैरम खेल रहा था. अपूर्वा को याद नहीं आया कि उस ने उसे पहले कभी देखा है. अपूर्वा को देखते ही युवक शालीनता से खड़ा हो गया लेकिन इस से पहले कि वह कुछ बोलता, प्रभवप्रणव चिल्लाए, ‘‘आप गेम बीच में छोड़ कर नहीं जा सकते, अंकल. बैठ जाइए.’’

‘‘इन की बात मान लेने में ही इज्जत है बरखुरदार. जब तक यह खेल खत्म होता है, तू भी फे्रश हो ले बेटी. रजत को हम ने रात के खाने तक रुकने को मना लिया है,’’ विद्याभूषण चहके.

‘‘वैसे मैं अपूर्वाजी का सिर खाए बगैर जाने वाला भी नहीं था,’’ रजत ने हंसते हुए कहा.

‘किस खुशी में भई?’ अपूर्वा पूछना चाह कर भी न पूछ सकी और मुसकरा कर अपने कमरे में आ गई.

जब वह फे्रश हो कर बाहर आई तो बाई चाय ले कर आ गई. चाय की प्याली ले कर वह ड्राइंगरूम की बालकनी में आ गई.

9. प्यार की चाह: क्या रोहन को मिला मां का प्यार

झल्लाई हुई निशा ने जब गाड़ी गैरेज में खड़ी की तो रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी. ‘रवि का यह खेल पुराना है,’ वह काफी देर तक बड़बड़ाती रही, ‘जब भी घर में किसी सोशल गैदरिंग की बात होगी, वह बिजनैस ट्रिप पर भाग खड़ा होगा, अब भुगतो अकेले.’

‘तुम चिंता न करना, मेरा सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा.’

‘हूं,’ सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा. कार्ड बांटने और इनवाइट करने तो पर्सनली ही जाना पड़ता है न.’

‘न जाने पार्टी के नाम से उसे इतनी चिढ़ क्यों है? महेश ने विदेश जाने पर पार्टी दी थी तो अरविंद ने विदेश से लौटने की. राघव की बेटी रिंकी को फिल्मों में हीरोइन का चांस मिला तो पार्टी, भाटिया ने फिल्म का मुहूर्त किया तो पार्टी. अपनी सुधा तो कुत्तेबिल्लियों के जन्मदिन पर भी पार्टी देती है. इधर एकलौते बेटे का जन्मदिन मनाना भी खलता है. फिर इन्हीं पार्टियों की बदौलत सोशल स्टेटस बनता है. सोशल कौंटैक्ट्स बनते है,’ पर रवि के असहयोग से अपने किटी सर्किल में निशा पार्टीचोर के नाम से ही जानी जाती थी. इसी कारण वह तमतमा उठी.

‘‘मेमसाब, खाना गरम करूं?’’  मरिअम्मा ने पूछा.

10. जीवन लीला: क्या हुआ था अनिता के साथ

जीवन के आखिरी पलों में न जाने क्यों आज मेरा मन खुद से बातें करने को हो गया. सोचा अपनी  जिंदगी की कथा या व्यथा मेज पर पड़े कोरे कागजों पर अक्षरों के रूप में अंकित कर दूं.

यह मैं हूं. मेरा नाम अनिता है. कहां पैदा हुई, यह तो पता नहीं, पर इतना जरूर याद है कि मेरे पिता कनाडा में भारतीय दूतावास में एक अच्छे पद पर तैनात थे. उन का औफिस राजधानी ओटावा में था. मां भी उन्हीं के साथ रहती थीं. मैं और मेरा भाई मांट्रियल में मौसी के यहां रहते थे. मेरी पढ़ाई की शुरुआत वहीं से हुई. मेरा भाई रोहन मुझ से 5 साल बड़ा था.

स्कूल घर के पास ही था, मुश्किल से 3-4 मिनट का रास्ता था. तमाम बच्चे पैदल ही स्कूल आतेजाते थे. लेकिन हमारे घर और स्कूल के बीच एक बड़ी सड़क थी, जिस पर तेज रफ्तार से कारें आतीजाती थीं. इसलिए वहां के कानून के हिसाब से स्कूल बस हमें लेने और छोड़ने आती थी.

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आखिरी पेशी: भाग-2 आखिर क्यों मीनू हमेशा सुवीर पर शक करती रहती थी

अंधेरे भविष्य के काले बादल मेरी आंखों के आगे गरजतेघुमड़ते रहे और मेरी आंखें बरसती रहीं. करीब 2 घंटे बाद जब दरवाजा खटखटाने की आवाज आईर् मेरी तंद्रा टूटी.

उठ कर मैं ने दरवाजा खोल दिया. सामने सुवीर खड़े थे और उन के बाल बिखरे हुए थे. जी तो हुआ कि उन्हें बाहर ही रहने दूं और एक ?ाटके से दरवाजा बंद कर दूं पर तभी सुवीर कमरे में आ गए थे और उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.

सुवीर पहले तो मेरे गुस्से भरे चेहरे और अस्तव्यस्त वेशभूषा को देखते रहे. फिर बोले, ‘‘माफ करना, मीनू, मुझसे आज गलती हो गई. असल में मैं उसे जानता था. उस का नाम सविता है. तुम से पहले मैं सविता को बहुत प्यार करता था, उस से शादी भी करना चाहता था. वह हमारे पड़ोस में ही रहती थी. अकसर हमारे घर आयाजाया करती थी.

‘‘किंतु मैं अपना प्यार उस पर जाहिर करता, शादी का पैगाम भिजवाता, उस से पहले ही उस के पिताजीका यहां से तबादला हो गया और वह कहीं चली गई —-बिना मिले, बिना कुछ कहे ही. मैं कितनी रातें तड़पा, कितनी रातें मैं ने जागजाग कर काटीं, यह मैं ही जानता हूं.

‘‘जी तो चाहता था कि आत्महत्या कर लूं पर मांबाप का खयाल कर के रह गया. मु?ो

हर वक्त लगता जैसे उस के बिना मेरी जिंदगी बेकार हो गई है. ‘‘सोचा था, कभी शादी नहीं करूंगा, जब वह मिलेगी तभी करूंगा पर मांबाप ने शादी कर लो… शादी कर लो की इतनी रट लगाई कि मैं चुप लगा गया.

‘‘और फिर मैं ने सोचा जब मैं लड़की को पसंद ही नहीं करूंगा तो कैसे शादी होगी पर तभी तुम पसंद आ गईं. तुम्हें देख कर मु?ो लगा कि तुम्हारी जैसी पढ़ीलिखी, कामकाजी और सुंदर लड़की के साथ मैं फिर से जीवन शुरू कर सकूंगा और वास्तव मैं तुम ने मेरे बिखरे जीवन को समेट लिया, मेरे घाव भर दिए.

‘‘शादी के बाद मैं तुम्हें बताना भी चाहता था पर यही सोच कर नहीं बताया कि इस से शायद तुम्हें दुख होगा, जीवन में व्यर्थ ही कड़वाहट आ जाएगी, सो टाल गया और आज अचानक उसे देख कर…’’

और सुवीर मानो इतना ही कह कर हलके हो गए थे. वाक्य अधूरा छोड़ कर पलंग पर बैठ कर यों जूते खोलने लगे जैसे मैं ने उन की बात पर विश्वास कर लिया हो.

सुवीर के एक ही सांस में बिना रुके इतना कुछ कह जाने की मु?ो आशा नहीं थी. उन की शक्ल देख कर उन की बात पर विश्वास कर लेना भी कोई बड़ी बात नहीं थी. पर मुझे अभिमानिनी के दिल के एक पक्ष ने धीमे से मुझसे से कहा था कि सब बकवास है. 2 घंटे में सुवीर कोई कहानी गढ़ लाए हैं और तुझे भोली समझ कर ठग रहे हैं. यदि इतनी ही बात थी तो ? सवाल पर ही मुझे हाथ पकड़ कर रोक क्यों नहीं लिया? वहीं सारी दास्तां क्यों नहीं सुना दी?

और पता नहीं कैसे मेरे मुंह से यह विष भरा वाक्य निकल गया, ‘‘ज्यादा सफाई देने की जरूरत नहीं. ऐसी कई कहानियां मैं ने सुन रखी हैं.’’

मेरे यह कहते ही सुवीर मुझे घूर कर फिर से जूते पहन कर कमरे से बाहर चले गए थे. उस पूरी रात न सुवीर मुझसे बोले और न मैं. बस अनकहे शब्द हम दोनों के बीच तैरते रहे. मुझे लगा था सुवीर अभी हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुला लेंगे और मुझे मना कर ही छोडे़ंगे पर जैसे ही सुवीर ने खर्राटे लेने शुरू किए तो मेरा गुस्सा और भी भड़क उठा. यह भी कोई बात हुई? फिर से बातों का क्रम जोड़ कर मुझे  मना तो सकते थे या अपनी एकतरफा प्रेमकथा की सचाई का कोई सुबूत तो दे सकते थे.

मगर नहीं सुवीर को अकेले सोते देखकर मेरा विद्रोही भावुक मन तरह-तरह की कुलांचें भरने लगा. पूरी रात आंखों में ही कट गई. सुबह कहीं जाकर आंख लगी तो बड़ी देर बाद नींद खुली. सुवीर फैक्टरी जा चुके थे. मन के कोने ने फिर कोंचा, देखा, तेरी जरा भी परवाह नहीं. रात को भी नहीं मनाया और अब भी मिल कर नहीं गए. मन तो वैसे ही खिन्न हो रहा था. देर से सोने और धूप चढ़े उठने की वजह से सिर भी भारी हो रहा था.

मैं ने चुपचाप कैंटीन से 1 कप चाय मंगाई और स्कूल पहुंचतेपहुंचते देर हो गई. एक बार मन में आया था कि जो हुआ, अब मुझे सुवीर को संभालना चाहिए पर दूसरे ही पल कमजोर मन का पक्ष बोलने लगा कि यदि यह बात सच थी तो सुवीर ने या सास ने बातोंबातों में मुझे पहले क्यों नहीं बताया? आखिर छिपा कर क्यों रखा? जब भेद खुल गया तब कहीं… और इस विचार के आते ही मन फिर अजीब सा हो गया.

शाम को मैं सुवीर का बेचैनी से इंतजार कर रही थी पर सुवीर रोज शाम के 5 बजे के स्थान पर रात के 9 बजे आए और बजाय देर से आने का कोई बहाना बनाने या कुछ कहने के वे सीधे अपने कमरे में चले गए और पलंग पर लेट गए. उन की लाललाल आंखों ने मुझे भयभीत कर दिया और मेरा शक ठीक निकला. वे पीकर आए थे. पहले कभी उन्होंने पी थी मुझे मालूम नहीं. हमारे दोस्त उन्हें हमेशा कहते पर वे कभी हाथ नहीं लगाते थे.

सुवीर के मांबाप भी परेशान थे और मैं तो थी ही. एक ही दिन में मेरी दुनिया इस तरह बदल जाएगी, इस का मुझे कभी खयाल भी न आया था. मैं कुछ कहने के लिए भूमिका बांध ही रही थी कि सुवीर के खर्राटों की आवाजें आने लगीं. मेरी रुलाई फूट कर वह निकली. दिनभर के उपवास और मौन ने मुझे तोड़ दिया. मैं भाग कर दरवाजे पर खड़ी सास के गले जा लगी और खूब रोई.

सास ने इतना ही कहा, ‘‘मेरे बेटे की खुशी में ही सारे घर की खुशी है. हां, एक बात का खयाल रखना, सुवीर बेहद जिद्दी है, उसे प्यार से ही जीता जा सकता है और किसी चीज से नहीं,’’ और यह कह कर उन्होंने जबरन मु?ो अपने कंधे से अलग कर दिया. मैं कंधे से अलग हो कर कुछ निश्चय करती हुई गुसलखाने में जा कर हाथमुंह धो आई.

सुवीर जूतों समेत ही सोए थे. उन के जूते, मोजे खोले, टाई की गांठ खोली और चादर डाल कर चुपचाप बिस्तर पर आ कर न जाने कब सो गई. सुबह उठी तो सुवीर लगभग तैयार ही थे. मैं यंत्रवत उन के बचे हुए काम करती रही और उन के चलते समय बोली, ‘‘शाम को वक्त पर घर आ जाना.’’ सुन कर सुवीर मु?ो कुछ देर देखते रहे, फिर चले गए. उन के जाने के बाद मुझे लगा कि मेरे कहने का ढंग प्रार्थना वाला न हो कर आदेश वाला था. और सुवीर वास्तव में ही शाम को वक्त पर नहीं लौटे. इंतजार करतेकरते मु?ो लगने लगा कि  ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मैं कैद हूं और ये दीवारें बेहद संकरी होहो कर मुझे दबा देंगी.

सुवीर पिछले दिन से भी ज्यादा देर से लौटे, पीकर रात के 10 बजे और पिछले दिन की ही तरह बिस्तर पर जूतों समेत सो गए. मन किस कदर बिखर गया था तब. मैं माफी मांगने के कितने-कितने शब्दजाल दिनभर बुनती रहती और सुवीर थे कि बात भी करना पसंद नहीं कर रहे थे. मैं क्लास में भी ढंग से पढ़ा नहीं सकी और बेमतलब में 1-2 स्टूडैंट्स को डांट दिया.

मैं सोचा करती, यदि उस लड़की को उस के चले जाने के कारण वे पहले नहीं पा सके तो अब मैं क्या कर सकती हूं? ऊपर से शराब पी कर और नजारे पेश कर रहे हैं. इस का साफ मतलब है कि अभी भी उसी को चाहते हैं और यदि मैं चली जाऊं तो उसी को ला कर अपनी भूल का प्रायश्चित्त करेंगे. अचानक लगने लगा कि हमारा संबंध बहुत उथला है और इन चुकते जाते संबंधों को जोड़ने के लिए स्वयं को टुकड़ों में बांटने की आवश्यकता नहीं. सुवीर के रवैए ने मुझे निरपेक्ष बने रहने के लिए मजबूर कर दिया. मन के उसी कोने ने फिर कहा,  यदि उस लड़की को ये भुलाना ही चाहते तो मेरे साथ ऐसा व्यवहार कदापि न करते और फिर क्या पता फैक्टरी के बाद का तमाम समय कहां बिताते हैं?

मन की रिक्तता ने मेरी अजीब दशा कर दी थी. दिनभर मेरी जबान पर ताला जड़ा रहता और मन ही मन मेरे और सुवीर के बीच की खाई चौड़ी होती रहती.

अभियुक्त: सुमि ने क्या देखा था

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  मरीचिका: क्यों परेशान थी इला – भाग 2

सब्जी जलने की गंध से इला का ध्यान टूटा. शिमलामिर्च जल कर कोयला हो गई थी. फ्रिज खोल कर देखा तो एक बैगन के सिवा कुछ भी नहीं था. वही काट कर छौंक दिया और दाल कुकर में डाल कर चढ़ा दी. वैसे वह जानती थी कि  यह खाना राजन को जरा भी पसंद नहीं. कितने चाव से सवेरे शिमलामिर्च मंगवाई थी.

इला व राजन हिल कोर्ट रोड के 2 मंजिले मकान की ऊपरी मंजिल पर रहते थे व नीचे के तल्ले पर कंपनी का गैस्टहाउस था. वहीं का कुक जब अपनी खरीदारी करने जाता तो इला भी उस से कुछ मंगवा लेती थी. कभी खाना बनाने का मन न होने पर नीचे से ही खाना मंगवा लिया जाता जो खास महंगा न था. कभी कुछ अच्छा खाने का मन होता तो स्विगी और जोमैटो थे ही.

कमरों के आगे खूब बड़ी बालकनी थी, जहां शाम को इला अकसर बैठी रहती. पहाड़ों से आने वाली ठंडी हवा जब शरीर से छूती तो तन सिहरसिहर उठता. गहरे अंधेरे में दूर तक विशालकाय पर्वतों की धूमिल बाहरी रेखाएं ही दिखाईर् देतीं, बीच में दार्जिलिंग के रास्ते में ‘तिनधरिया’ की थोड़ी सी बत्तियां जुगनू की जगह टिमटिमाती रहतीं.

राजन अकसर दौरे पर दार्जिलिंग, कर्लिपौंग, गंगटोक, पुंछीशिलिंग या कृष्णगंज जाता रहता. इला को कई बार अकेले रहना पड़ता. वैसे नीचे गैस्टहाउस होने से कोई डर न था.

इला ने चाय बनाई व प्याला ले कर बालकनी में आ बैठी. शाम गहरा गई थी. हिल कोर्ट रोड पर यातायात काफी कम हो गया था. अकेली बैठी, हमेशा की तरह इला फिर अपने अतीत में जा पहुंची.

शादी के  बाद राजन की बदली सिलीगुड़ी में हो गई थी. कंपनी की ओर से उसे फ्लैट मिल गया था. राजन के साथ शादी के बाद भी इला रमण को नहीं भूला पाई थी. तन जरूर राजन को समर्पित कर दिया था परंतु मन को वह सम?ा नहीं पाती थी. वह भरसक अपने को घरगृहस्थी में उल?ा कर रखती.

इला का घर शीशे की तरह चमकता रहता. चाय, नाश्ता, खाना सब ठीक समय पर बनता. राजन के बोलने से पहले ही वह उस की सब आवश्यकताएं सम?ा जाती थी परंतु रात आते ही वह चोरों  की तरह छिपने लगती. राजन के गरम पानी के सोते की तरह उबलते प्रेम का वह कभी उतनी गरमजोशी से प्रतिदान न कर पाती. ऐसे में राजन अकसर ?ाल्ला कर बैठक में सोने चला जाता. इला ठंडी शिला की तरह पड़ी रोने लगती. राजन कई तरह से उस का मन बहलाने का प्रयत्न करता.

कभी दौरे पर अपने साथ ले जाता, कभी घुमाने. कभी उसे कई विदेशी साड़ी इत्र और सौंदर्यप्रसाधन मंगवा देता परंतु इला थी कि पसीजना ही भूल गई थी.

जीवन की सब खुशियां उस के हाथों से, मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह खिसकती जा रही थीं. राजन भी इसे अपनी नियति सम?ा कर चुप बैठ गया था. मगर कभीकभी मित्रों के परिवारों के साथ बाहर की सैर का कार्यक्रम बनने पर इला के इस अनोखे मूड के कारण उसे बड़ा दुख होता.

पुरुष एक कार्य एक कार्यकुशल गृहिणी ही नहीं, प्रेमिका, पूर्ण सहयोगी और काफी हद तक बिस्तर पर एक वेश्या की सी भूमिका अदा करने वाली पत्नी चाहता है. मगर इला न जाने किस मृग मारीचिका के पीछे भटक रही थी. एक कुशल गृहिणी की भूमिका निभा कर ही वह अपने पत्नीत्व को सार्थक और अपने कर्तव्यों की इतिश्री सम?ा रही थी.

कभीकभी इला को अपने पर क्रोध भी आता. क्या दोष है बेचारे राजन का? क्यों वह उसे हमेशा निराश करती है? क्यों वह दूसरी औरतों की तरह हंस और खिलखिला नहीं सकती? क्यों वह अन्य पत्नियों की तरह राजन को कभी डांट नहीं पाती? क्यों उन दोनों का कभी ?ागड़ा नहीं होता? ?ागड़े के बाद मानमनौअल का मीठा स्वाद तो उस ने शादी के बाद आज तक चखा ही न था.

इला की बात से राजन कितना खिन्न हो गया था. जब से मनाली में एक नया रिजोर्ट बना था, कई लोग वहां जाने को उत्सुक थे. कितने दिनों से राजन अपने दोस्तों के साथ वहां जाने का कार्यक्रम बना रहा था और इला ने उस के सारे उत्साह पर एक ही मिनट में पानी फेर दिया था. राजन ने ही सब के लिए वहां कमरे बुक करवाए थे, पर अब इला के न जाने से उस की स्थिति कितनी खराब होगी.

रात को राजन आया तो कपड़े बदल कर चुपचाप लेट गया. खाना भी नहीं खाया. इला ने धीरे से मनाली की बात चलानी चाही तो उस ने कह दिया, ‘‘मैं ने सब को कह दिया है कि एक आवश्यक कार्य के कारण मैं न जा सकूंगा. अब तुम क्यों परेशान हो रही हो?’’ कह कर उस ने करवट बदल कर आंखें बंद कर ली थीं जैसे सो गया हो.

‘‘लेकिन प्रोग्राम तो तुम ने ही बनाया था, तुम्हारे न जाने से सब को कितना बुरा लगेगा?’’ इला धीरे से बोली.

‘‘अच्छा या बुरा लगने से तुम्हें तो कुछ अंतर पड़ने वाला नहीं है. जो होगा मैं देख लूंगा. तुम तो वहीं अपनी रसोई, सब्जी, घरगृहस्थी के चक्कर में उल?ा रहो.’’

इला रोने लगी. राजन कुछ पिघला. करवट बदल कर कुहनी के बल लेट कर बोला, ‘‘इला, क्यों तुम मेरे साथ कहीं भी जा कर खुश नहीं होतीं? क्यों हर समय उदास रहती हो? इस घर में  तुम्हें क्या कमी है या मैं तुम्हें क्या नहीं दे पाया, जो अन्य पति अपनी पत्नियों को देते हैं?’’

इला कुछ बोल नहीं पाई. कहती भी क्या?

राजन फिर बोला, ‘‘हमारे घर में सुखसुविधा के कौन से साधन नहीं हैं? हम बहुत धनी न सही परंतु मजे में तो रह ही रहे हैं. फिर भी तुम में किसी बात के लिए उत्साह नहीं. मेरे मित्रों की पत्नियां पति द्वारा एक  साधारण साड़ी ला कर देने पर ही खुशी से उछल पड़ती हैं परंतु तुम तो हंसी, खुशी की सीमा से कहीं बहुत दूर हो. हिमखंड जैसी ठंडी. तुम अपने इस ठंडेपन से मेरी भावनाओं को भी सर्द कर देती हो.’’

इला को उस ने अपनी बांहों के घेरे में ले लिया, ‘‘क्या तुम किसी और को चाहती

हो, जो मेरा प्यार सदा प्यासा ही लौटा देती हो?’’

इला ने ?ाट से अपनी आंखें पोंछ डालीं, ‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो?’’

‘‘फिर क्या विवाह से पहले किसी को चाहती थीं?’’ राजन ने गहरी नजर डालते हुए पूछा.

‘‘तुम आज क्या बेकार की बातें ले बैठे

हो? यदि ऐसा होता तो मैं तुम से विवाह ही क्यों करती?’’

बात भी ठीक थी. इला कोई अनपढ़, भोलीभाली लड़की तो थी नहीं कि उसकी शादी जबरदस्ती कहीं कर दी जाती. सगाई से पहले 2-3 बार राजन उस से मिला था, उस समय कभी नहीं लगा था कि विवाह के लिए उस से जबरन हां कराई गई है.

जब राजन की मां उसे अपनी पसंद की ड्रैसें, लहंगे खरीदने के लिए बाजार ले गई थीं तो उस ने बड़े शौक से अपनी पसंद के कपड़े खरीदे थे. फिर बाद में रेस्तरां में भी सहज भाव से गपशप करती रही थी. प्रारंभ से ही इला उसे सम?ादार लड़की लगी थी, आम लड़कियों की तरह खीखी कर के लजानेशरमाने व छुईमुई हो जाने वाली नहीं.

अपने एक खास मित्र के कहने से वह जब उस की मंगेतर से मिलने गया था तो वह कमसिन छोकरी मुंह पर हाथ रखे सारा समय अपनी हंसी ही दबाती रही थी. बारबार उस के गाल और कान लाल हो जाते थे. राजन ने सोचा था, ‘यह पत्नी बन कर घर संभालने जा रही है या स्कूल की अपरिपक्व लड़की पिकनिक मनाने जा रही है?’

इसी से इला की गंभीरता ने उसे आकृष्ट किया था. स्वयं भी उस की आयु एकदम कम न थी, जो किसी अल्हड़ लड़की को ढूंढ़ता. उस ने सोचा था कि परिपक्व मस्तिष्क की लड़की से अच्छी जमेगी. मगर इला का मन तो न जाने कौन सी परतों में छिपा पड़ा था, जिस की थाह वह अभी तक नहीं पा सका था. विवाह के प्रारंभिक दिनों में उस ने सोचा था कि शायद नया माहौल होने से ऐसा है परंतु अब तो यहां उन दोनों के सिवा घर में कोई न था, जिस के कारण इला इस तरह दबीघुटी सी रहती. किसी तरह भी वह गुत्थी नहीं सुल?ा पा रहा था.

 

कई औरतें ऐसी ही शुष्क होती हैं, किसी तरह अपने मन को सम?ा कर वह संतोष कर लेता. बिना मतलब गृहस्थी उजाड़ने का क्या लाभ? आज भी इला को बांहों में लिएलिए ही वह सो गया. किसी तरह की मांग उस ने इला के सामने नहीं रखी.

इला मन ही मन स्वयं को कोसती रही और निश्चय करती रही कि  अब वह अपने को बदलने का प्रयत्न करेगी. मगर वह स्वयं भी जानती थी कि अगले दिन से फिर पहले वाला ही सिलसिला शुरू हो जाएगा.

वैसे अपने जीवन का यह निश्चय उस ने स्वयं किया था. इस के लिए वह किसी को भी दोषी नहीं ठहरा सकती थी. प्रेम कहानी के इस त्रिकोण में न किसी ने दगा की थी, न कोई दुष्ट बीच में आया था. जीवन की एक कड़वी सचाई थी और पात्र यथार्थ के धरातल पर जीने वाले इसी दुनिया के जीव थे. सिनेमा में गाते, नाचते, पियानो बजाते, बिसूरते नायकनायिका नहीं थे.

मगर अब अपने साथसाथ वह राजन को भी सजा दे रही थी. सचाई से पहले व बाद में वह उस से साधारण रूप में मिलती थी, जिस में सहज मित्रता थी परंतु शादी के बाद अपने उत्तरदायित्व को वह संभाल नहीं पा रही थी.

सही डोज: भाग 2- आखिर क्यों बनी सविता के दिल में दीवार

काम करती हुई सविता सोच रही थी कि उस की मां ने घर को इतना साफसुथरा रखना सिखाया था. काम करने को अकेली मां ही तो थी, पर घर में हर चीज कायदे से अपनी जगह पर रखी होती थी. पिताजी, भैया और वे तीनों काम पर जाते थे, पर मजाल है कि किसी का अपना सामान इधरउधर बिखरा मिले. सब चीजों के लिए एक जगह निश्चित थी. यहां आज ठीक करो, कल फिर वैसा ही हाल. उस की ससुराल के लोग सीखते क्यों नहीं, समझते क्यों नहीं. देवर होस्टल में जरूर रहता है, पर घर आते ही वह भी इस घर के रंग में रंग जाता. ऐसा लगता था जैसे इस तरीके से रहना इन लोगों को कहीं से विरासत में मिला है.

अकसर शिकायत करती महरी की आवाज आई, ‘‘बरतन मेज से उठा कर सिंक में रख कर कुछ देर नल खोल दिया करो तो जल्दी साफ  हो जाते,’’ कह कर वह चली गई. 4 दिन बाद कोई और मिली थी तो रात को खाना खाने के बाद हमेशा की तरह सब लोग बैठक में बातें करने के इरादे से बैठा करते थे.

तभी सविता ने कहा, ‘‘बहुत खोज कर कपड़े धोने के लिए मैं एक नई औरत को इस शर्त पर लाई थी कि सिर्फ कपड़ों के नीचे पहनने वाले कपड़े ही धोने होंगे. बड़े कपड़े यानी पैंट, शर्ट, कमीज, धोतियां, चादरें तो धोबी धोता ही है. पर आज वह मुझसे कह रही थी कि अब बड़े कपड़े भी उसे दिए जाने लगे हैं. वह तो इस बात पर काम छोड़ रही थी. मैं ने किसी तरह उसे समझा दिया है. अब आप लोग सोच लें वह बड़े कपड़े धोऊंगी नहीं.’’

कोई कुछ नहीं बोला, नवीन ने बेचैनी से 1-2 बार कुरसी पर पहलू जरूर बदला. गप्पों का मूड उखड़ चुका था. सब उठ कर अपनेअपने कमरे में चल गए. तभी सविता ने फैसला किया था नवीन के साथ अलग रहना ही इस समस्या का हल है. दोनों की मुलाकात उसे याद हो आई…

दांतों के डाक्टर की दुकान की बात है. एक खूबसूरत सी लड़की बैठी थी. तभी एक युवक भी आ कर बैठ गया. और भी बहुत से लोग बैठे थे. इंतजार तो करना ही था. तभी भीतर से एक तेज दर्दभरी चीख सुनाई दी और साथ में डाक्टर की आवाज भी, ‘‘अगर आप इतना शोर मचाएंगे तो बाहर बैठे मेरे सब मरीज भाग जाएंगे.’’

और तो कोई नहीं भागा, पर 2 मरीज जरूर भाग रहे थे और भागने में यह खूबसूरत सी लड़की उस लड़के से दो कदम आगे ही थी. वह बड़ी तेजी से सीढि़यां उतरती गई. बाहर ही एक औटो खड़ा था. वह औटो में बैठ गई. तभी वह युवक भी जो दो कदम ही पीछे था, घुस गया. उन के शहर में औटो शेयर करने का रिवाज था. रिकशाचालक हिसाब से पैसे ले लेता था.

रिकशा वाले ने लड़की से पूछा, ‘‘बहनजी, कहां जाना है?’’

हांफतेहांफते लड़की ने कहा, ‘‘हजरतगंज.’’

लड़के से रिकशा वाले ने कुछ नहीं पूछा.

कुछ देर बाद दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा और मुसकरा दिए. वे दोनों अब काफी बेहतर महसूस कर रहे थे. तभी युवक ने डरतेडरते धीरे से अपनी दुखती दाढ़ को छुआ. एक गोल सी छोटी सी चीज हाथ में आ गई. उसे संभाल कर मुंह से बाहर निकाल कर उस ने खिड़की की तरफ कर के देखा, ‘‘निकल गया.’’

‘‘क्या?’’ लड़की ने चौंक कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, कंकड़, जो दाढ़ में फंसा था,’’ झेंपकर लड़का बोला, ‘‘शायद चावल में था.’’

लड़की ने कुछ नहीं कहा और युवक की आंख बचाकर अपने सामने के एक दांत पर उंगली फेरी और फिर ‘‘ओह’’ कर अपनी सीट से उछल पड़ी.

‘‘क्या हुआ,’’ युवक ने पूछा.

जवाब में लड़की ने उंगलियों में पकड़ा एक लंबा सा कांटा निकाल कर युवक के हाथ पर रख दिया और फिर नजरें झुका कर कहा, ‘‘मछलीका है, यही मेरे दांत में अटक गया था.’’

‘‘जरूर अटक गया होगा. आप हैं ही ऐसी, कोई भी अटक सकता है.’’ कुछ देर की खामोशी के बाद लड़की फिर बोली, ‘‘आप कहां जाएंगे?’’

‘‘आप हजरतगंज जाएंगी, मैं चिडि़याघर के पास रहता हूं, वहीं उतर जाऊंगा.’’

‘‘चिडि़याघर के भीतर नहीं,’’ लड़की ने कहा और दोनों हंसने लगे. यह नवीन और सविता की पहली मुलाकात थी. यादों में खोई वह खड़ी थी. तभी नवीन ने पीछे से आ कर उसे बांहों के घेरे में ले लिया.

‘‘अंधेरे में खड़ी हो.’’ ‘‘आदत पड़ गई थी, पर अब चांदनी की आदत डाल रही हूं.’’

‘‘सविता, हम ने प्रेम विवाह किया है. तुम्हें प्यार करता हूं, इसीलिए सब घर वालों को छोड़ कर आया हूं हालांकि सब से मेरा प्यार आज भी है.’’ ‘‘प्रेम विवाह हम ने जरूर किया था, पर बाद में प्रेम तो रहा नहीं, सिर्फ विवाह रह गया. प्रेम तो घर के चौकेचूल्हे और घर की चीजें उठानेरखने में न जाए किस अलमारी में बंद हो गया था.’’

‘‘सही कह रही हो सविता.’’ ‘‘गलती मेरी ही थी. शादी से पहले मैं ने तुम से यह जो नहीं पूछा था कि मु?ो कहां ले जा कर रखोगे.’’

‘‘मैं हमेशा तुम्हारी परेशानियों को समझता रहा हूं सविता.’’ ‘‘पर कुछ कर नहीं रहे थे. सब साथ रहते तो कितना अच्छा रहता. अब मुझे अकेलापन खलता है,’’ सविता ने कहा.

‘‘अब भी मेरी मजबूरी है तुम्हें.’’ ‘‘हां मुझे लगता है मैं ने तुम से कुछ छीन लिया है. मैं इतनी खुदगर्ज नहीं हूं नवीन.’’ ‘‘लगता है, तुम्हारी मजबूरी कभी खत्म नहीं होगी. जाओ, जा कर सो जाओ. मुझे सवेरे जल्दी उठना होगा.’’

वैलकम: भाग-2 आखिर क्या किया था अनुराग ने शेफाली के साथ

अभी तक तो शेफाली के अंदर साहस ही साहस था, लेकिन भाभी की बात और भाभी की घबराहट देख कर उसे भी पहली बार कुछ घबराहट सी हुई और जब वह बैठक के दरवाजे पर पहुंची तो कितना भी धैर्य रखने पर उस का मन आशंका से कांप उठा क्योंकि बैठक में बैठे सभी लोगों की नजरें उस के सैंडिलों पर ही थीं.

‘इन लोगों को मुझे देखना है या मेरी चाल अथवा सैंडिल को?’ यह प्रश्न उस के मन में हलचल मचा गया. फिर बरबस मुसकरा कर नमस्ते करने के बाद वह अनुराग की भाभी की बगल में बैठ गई. अनुराग से भी उस की यह फेस टू फेस पहली मुलाकात थी.

शेफाली प्रदर्शनी में सजी निर्जीव गुडि़या की तरह पलकें नीची किए बैठी थी. पुराने जमाने की लड़कियों की तरह उस के मन में अजीब सा संकोच था, जिस से उस के मुख का सौंदर्य फीका पड़ता जा रहा था. अनुराग की मां, छोटा भाई और बहन तीनों ही उस के अंगप्रत्यंग को नजरों से नापते हुए एकदूसरे को कनखियों से देखते हुए मुसकरा रहे थे. ‘‘रंग कैसा बताओगे? मेरे ही जैसा न? अच्छी तरह देख लो,’’ भाभी फुसफुसा कर

अपने देवर के कान में बोली, ‘‘रंग मु  झ से फीका नहीं होना चाहिए,’’ और फिर चश्मे के अंदर आंखें घुमाती हुई वह उस के मुख के और करीब आ गई. मगर तभी देवर ने अपनी भाभी को आंख मार कर हट जाने को कहा, जैसे कह रहा हो कि रंग की प्रतियोगिता में तो तुम हर तरह से पराजित हो भाभी. उसे अगर 100 से 90 मिलेंगे तो तुम्हें 10 भी नहीं मिलने के. ‘‘शेफाली, सुना है आप बहुत अच्छा गाती हैं. एक गाना सुना दीजिए न.’’

आंसू बह कर अपनी असमर्थता की पीड़ा खोल दें, इस से पूर्व ही शेफाली मुंह नीचा कर के कमरे से बाहर जाती हुई बोली, ‘‘मैं अभी आई,’’ उस का मन हुआ कि वह चीख-चीखकर कह दे कि वह ऐसे आदमी से शादी नहीं करना चाहती, जिस में इनसानियत का जरा भी मादा न हो, जिस के घर की महिलाओं को बात करने की भी तमीज न हो. किंतु होंठों तक आ कर भी शब्द रुक गए. उस के कानों में बारबार भाभी के ये शब्द गूंज रहे थे कि वे लोग कैसा भी व्यवहार करें, तू अपनी जबान न खोलना. सदा की तरह आज भी अपने भैया की लाज रखना. वह अपने कमरे में आ कर पलंग

पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. वह 32 साल की होने लगी थी. उस ने कभी अपने दोस्त नहीं बनाए थे.  पहले भैया ने अपने आसपास वालों को कहा था पर बात नहीं बनीं. फिर साइटों पर जाकर प्रोफाइल डाला. तब जा कर अनुराग मिला. भैया उसे हाथ से निकलने नहीं देना चाहते थे.

अब भैया बहुत ही नाराज हो चुके थे. उन्होंने अनुराग की भाभी से साफसाफ कह दिया, ‘‘बहनजी, आप लोगों ने शेफाली के साथ जो व्यवहार किया, उस से मु  झे बड़ा दुख पहुंचा है. सच बात तो यह है कि अगर मु  झे पहले से यह ज्ञात होता कि आप शेफाली के साथ ऐसा व्यवहार करेंगे तो मैं शेफाली को अनुराग से रिश्ता करने की सलाह ही न नहीं देता.’’ इस के बाद उन लोगों ने रुखसत ले ली. वे लोग कानपुर के थे. कानपुर लौट गए. दूसरे ही दिन एफएम रेडियो पर शेफाली का कार्यक्रम था. यद्यपि इस घटना ने उसका मन खराब कर दिया था, पर इस मनोस्थिति के कारण गजल गाते समय उस के स्वर और दर्दीले हो उठे थे. अपनी नौकरी पर वापस जाने के लिए जब वह बैंगलुरु के एअरक्राफ्ट में चढ़ी तो सिर   झुकाए अपराधी की तरह भैया और भाभी के हाहाकार करते मन की बात जान कर उस का रोमरोम सिसक उठा. उस ने मन में यह निश्चय कर लिया कि अब वह कुंआरी ही रहेगी.

अचानक शेफाली के कानों में आवाज आई, ‘‘वी आर लैडिंग इन बैंगलुरु…’ शेफाली टैक्सी से उतर कर जब होस्टल में घुसी तब तक अंधेरा घिर आया था. उर्वशी ने अपने कमरे में उस के कुम्हलाए चेहरे को देखा तो उत्सुकता के बावजूद उस ने फिलहाल शेफाली से न मिलना ही उचित सम  झा. उस ने सोचा, सुबह जब शेफाली कुछ स्वस्थ हो जाएगी, तभी वह उस से सब जानने का प्रयत्न करेगी.

रात भर शेफाली को नींद नहीं आई. जीवन में पहली बार उसे महसूस हुआ कि प्राय: सभी दृष्टियों से अर्निद्य होते हुए भी उसे नीचा दिखाने का प्रयत्न किया गया है. देर से नींद आने के कारण वह सुबह देर तक सोती रही. ‘‘अरे शेफाली, उठ जल्दी… इसे कहते हैं दीवानापन. तू तैयार हो कर अपने दीवाने का स्वागत कर और मैं जाती हूं चाय बनाने,’’ गहरी नींद में सोती शेफाली को अचानक उर्वशी ने आ कर   झक  झोर दिया.

 

आखिरी पेशी: भाग-1 आखिर क्यों मीनू हमेशा सुवीर पर शक करती रहती थी

मीनू शक्की थी और अपने पति सुवीर पर अकसर शक करती रहती थी. उसका यही शक एक दिन दोनों में अलगाव की वजह बन गया. उस दिन कोर्ट में आखिरी पेशी थी…

उस दिन अदालत में सुवीर से तलाक के लिए चल रहे मुकदमे की आखिरी पेशी थी. सुबह से ही मेरा मन न जाने क्यों बहुत घबराया हुआ था. इतना समय बीत गया था, पर थोड़ी छटपटाहट और खीज के अलावा मेरा दिल इतना बेचैन कभी नहीं हुआ था.

शायद इस की वजह यह थी कि उस के ठीक 8 दिन बाद ही दीवाली थी. किसी को तो शायद याद भी न हो पर मुझे खूब याद था कि 4 साल पहले दीवाली से 8 दिन पहले ही सुवीर से रूठ कर मैं मायके चली आई थी.

क्या पता था कि जिस दिन मैं ससुराल की देहरी छोड़ूंगी, ठीक उसी दिन मेरे और सुवीर के तलाक के मुकदमे का फैसला होगा.

सुवीर से बिछुड़े मुझे पूरे 4 वर्ष हो चुके थे. साल के और दिन तो जैसेतैसे कट जाते थे परंतु दीवाली आते ही मेरे लिए वक्त जैसे रुक सा जाता था, रुलाई फूटफूट पड़ती थी. जब सब लोग खुशी और उमंग में डूबे होते तो मैं अपने ही खींचे दायरे में कैद हो कर छटपटाती रहती.

यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि सुवीर से बिछुड़ कर यह सारा वक्त मैं ने अजीब घुटन सी महसूस करते हुए काटा था. इस के बावजूद सुवीर से तलाक की अर्जी मैं किस निर्भीकता और जिद में दे आई थी, इस पर मुझे अभी भी अकसर आश्चर्य होता रहता है. शायद उस वक्त मैं ने सोचा था कि सुवीर तलाक की अर्जी पर अदालत का नोटिस मिलते ही कोर्टकचहरी के चक्करों से बचने के लिए अपनी गलती महसूस कर मुझे स्वयं आ कर मना कर ले जाएंगे पर यह मेरी भूल थी.

मुकदमे की पहली ही पेशी में सुवीर ने अपने जवाब में तलाक का विरोध न कर के अदालत से उन्होंने आपसी सहमति वाले तलाक के प्रावधान पर मेरे वकील के कहने पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे. मेरे आवेदन को स्वीकार कर लेने का अनुरोध किया था. सुवीर के इस अप्रत्याशित रवैए से मेरे मन को बड़ा धक्का लगा था. मेरा मन खालीखाली सा हो गया था. अपने जीवन के अकेले, बोझिल और बासी क्षणों पर मैं कभीकभी बेहद खीज उठती थी. मन में अकसर यह विचार आता, यदि जिंदगी का सफर यों ही अकेले तय करना था तो शादी ही क्यों की मैं ने और फिर जब कर ही ली थी तो घर भर के कहे अनुसार एक बार लौट कर मुझे सुवीर के पास जरूर जाना चाहिए था. क्या पता, मुझे चिढ़ाने के लिए ही सुवीर उस लड़की के साथ घूमते रहे हों.

अब तक जितनी भी पेशियां हुई थीं उन में सुवीर मुझे बेहद उदास और टूटे हुए से दिखाई दिए थे. उन्होंने कभी अपने मुंह से वकील को कुछ  नहीं कहा था. बस, हर बार नजरें मिला कर और फिर  झुकाकर यही कहते रहे थे, ‘‘जैसा इन्हें मंजूर हो, मुझे भी मंजूर है.’’

जज हर बार मामले को 5-6 महीने के लिए टाल रहे थे,शायद इसलिए कि वे भांप गए थे कि यह आप का सिर्फ ईगो है.

कभी-कभी पेशियों से लौट कर मैं कितनी अनमनी हो जाती थी, सोचती, ‘क्या सुवीर नहीं चाहते कि मैं उन से अलग हो जाऊं? क्या सुवीर का उस लड़की से सचमुच ही कोई संबंध नहीं है? क्या सुवीर अभी भी मुझे प्यार करते हैं या यह सब नाटकबाजी है?’

बस, यहीं आ कर मैं हार जाती थी. पता नहीं क्यों मुझे लगता सुवीर नाटक कर रहे हैं. असल में वह खुद ही मुझसे छुटकारा पाना चाहते हैं और मैं सिर झटक कर सभी विचारों से मुक्ति पा लेती थी.

कचहरी 10 बजे तक पहुंचना था पर वक्त मानो रुका जा रहा था. पिताजी को मेरे  साथ जाने की वजह से उस दिन काम पर नहीं जाना था. वे बरामदे में बैठे थे.

मैं ऊबी सी कोई पत्रिका लेकर पलंग पर आ बैठी थी पर मन था कि बांधे नहीं बंध रहा था, उड़ा ही जा रहा था.

सुवीर से जब मेरा चट मंगनी पट ब्याह हुआ था तो मेरे सुनहलेरुपहले दिन न जाने कैसे पंख लगा कर उड़ जाते थे. कवियों की भाषा में यों कहूं कि मेरे दिन सोने के थे और रातें चांदी की तो कोई अतिशयोक्ति न होगी.

मुझे ऐसा घर मिला था कि मैं फूली न समाती थी. सुवीर अपने मांबाप के इकलौते बेटे थे. उन की 2 बहनें थीं, जिन की शादियां हो चुकी थीं. सासससुर साथ ही रहते थे और वे भी मु?ो खूब प्यार करते थे. सुवीर का प्यार पा कर तो मैं सब कुछ भूल ही गई थी. मैं ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया था जहां में शादी से पहले से ही पढ़ाती थी.

सुवीर एक फैक्टरी में प्रबंधक के पद पर थे. हर शाम को उन के लौटने तक मैं उन की पसंद की कोईर् चीज बनाया करती और सुंदर कपड़े पहन कर दरवाजे पर ही उन का स्वागत किया करती थी.

शाम की चाय हम इकट्ठे पी कर अकसर घूमने निकल जाया करते थे. कभी

कहीं, कभी कहीं. वैसे मेरी सास भी बहुत उदार दिल की थीं. हम न जाते तो वे सुवीर से कहतीं, ‘‘बहू सारा दिन काम कर के आई है. ऊब गई होगी. तू भी ऊब गया होगा. जा, कहीं इसे घुमा ला, बेटा. फिर यही दिन तो घूमनेफिरने के हैं. एक बार बच्चों और गृहस्थी के जंजाल में फंसोगे तो फिर चिंता ही चिंता.’’

और हम रोज ही शाम को बातें करतेकरते कहां के कहां पहुंच गए, यह हमें ध्यान ही नहीं रहता था. जब कुछ खापी कर घर लौटने लगते, तब कहीं रास्ते की दूरी का एहसास होता था. इसी तरह शादी हुए 8 महीने गुजर गए थे. एक दिन सुवीर की छुट्टी थी. हम पिकनिक मनाने के उद्देश्य से स्थानीय ?ाल गए थे. वहां काफी भीड़ थी.

घूमफिर कर हम एक जगह चादर बिछा कर बैठ गए थे. हम ने सस्ते में एक जगह से खाना पैक करा लिया था. खानेपीने की चीजें निकालने में व्यस्त हो गई थी और फिर सिर नीचा किएकिए ही मैं ने सुवीर से पूछा, ‘‘खाना निकालूं?’’

सुवीर ने कोई जवाब नहीं दिया. अपने ही विचारों में गुनगुनाते मैं ने यही सवाल दोबारा किया पर जवाब फिर नदारद था. अचानक मैं ने सिर उठा कर देखा तो सुवीर एक  बेहद सुंदर युवती को घूरघूर कर देख रहे थे और वह दबंग युवती भी सुवीर को बिना मेरी परवाह किए आंखों में आंखें डाल कर देखे जा रही थी.

मेरा मन नारी सुलभ ईर्ष्या से जल उठा. लाख सुंदर सही पर मेरे होते हुए

सुवीर का इस तरह उसे देखना मुझे फूटी आंख नहीं भाया. जी तो किया कि उसी समय उस लड़की का मुंह अपने लंबे नाखूनों से नोच लूं पर फिर न जाने क्या सोच कर मैं ने गुस्से में भर कर सुवीर को झकझोर दिया.

मेरे हिलाने से सुवीर मानो सम्मोहन की दुनिया से लौट आए थे. उधर वह युवती भी अचकचा कर चलती बनी थी. पर मैं ने सुवीर को खूब आड़े हाथों लिया, ‘‘क्यों, ऐसी क्या खास बात थी उस में जो भूखे शेर की तरह उसे घूर रहे थे? शर्म नहीं आती लड़कियों को इस तरह देखते हुए? बताओ, आखिर क्या देख रहे थे? क्या कोई पुरानी जानपहचान है?’’

इधर मैं तो गुस्से में आगबबूला हुई जा रही थी और उधर सुवीर अभी भी खोएखोए से थे. सिर्फ हांहूं कर रहे थे. आंखों की पुतलियां भले ही उस लड़की को नहीं देख पा रही थीं परंतु उन में नाचती तसवीर और आंखों का बावरापन साफ बता रहा था कि सुवीर अभी भी उसी के खयालों में डूबे बैठे हैं.

खिसिया कर मैं ने जोर से सुवीर को फिर झकझोरा तो एक बार फिर हां कह कर वे उसी ओर देखने लगे जिधर वह युवती गईर् थी.

मारे गुस्से के मैं पैर पटकती उठ खड़ी हुई और अकेली ही सारा सामान सुवीर के भरोसे छोड़ कर औटो कर के घर चल दी.

सास ने मुझे देखा तो आश्चर्य में पड़ गईं. बोली, ‘‘सुवीर कहां है? क्या अकेली आई हो? सामान कहां है?’’

न जाने वे क्याक्या पूछती रहीं. मैं ने आंखों के उमड़ते सैलाब को रोक कर कहा, ‘‘आएं तो उन्हीं से पूछिएगा.’’

और मैं फटाक से कमरे का दरवाजा बंद कर के पलंग पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. सुवीर का बावरापन याद आते ही मुझे लगा कि जरूर इन दोनों में कोई गहरी सांठगांठ है और कोई बात मुझसे छिपाई गई है. बगैर जानपहचान के कोई भी लड़की इस तरह गैरमर्द को नहीं देख सकती. मेरे मन में तरहतरह के सवाल उठ रहे थे. क्या पता साथ पढ़ती रही हो? क्या पता सुवीर की प्रेमिका हो और शादी के बाद भी वह उन से प्यार करते हो? हो सकता है रखैल ही हो.

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