Hindi Folk Tales : बुजदिल – कलावती का कैसे फायदा उठाया

Hindi Folk Tales : सुंदर के मन में ऐसी कशमकश पहले शायद कभी भी नहीं हुई थी. वह अपने ही खयालों में उलझ कर रह गया था.

सुंदर बचपन से ही यह सुनता आ रहा था कि औरत घर की लक्ष्मी होती है. जब वह पत्नी बन कर किसी मर्द की जिंदगी में आती है, तो उस मर्द की किस्मत ही बदल जाती है.

सुंदर सोचता था कि क्या उस के साथ भी ऐसा ही हुआ था? कलावती के पत्नी बन कर उस की जिंदगी में आने के बाद क्या उस की किस्मत ने भी करवट ली थी या सचाई कुछ और ही थी?

खूब गोरीचिट्टी, तीखे नाकनक्श और देह के मामले में खूब गदराई कलावती से शादी करने के बाद सुंदर की जिंदगी में जबरदस्त बदलाव आया था. पर इस बदलाव के अंदर कोई ऐसी गांठ थी, जिस को खोलने की कोशिश में सुंदर हमेशा बेचैन हो जाता था.

एक फैक्टरी में क्लर्क के रूप में 8 हजार रुपए महीने की नौकरी करने वाला सुंदर अपनी माली हालत की वजह से खातेपीते दोस्तों से काफी दूर रहता था

सुंदर अपने दोस्तों की महफिल में बैठने से कतराता था. उस के कतराने की वजह थी पैसों के मामले में उस की हलकी जेब. सुंदर की जेब में आमतौर पर इतने पैसे ही नहीं होते थे कि वह दोस्तों के साथ बैठ कर किसी रैस्टोरैंट का मोटा बिल चुका सके.

लेकिन शादी हो जाने के बाद एकाएक ही सबकुछ बदल गया था. सुंदर की अहमियत उस के दोस्तों में बहुत बढ़ गई थी. बड़ीबड़ी महंगी पार्टियों से उस को न्योते आने लगे थे. बात दूरी की हो, तो एकाएक ही सुंदर पर बहुत मेहरबान हुए अमीर दोस्त उस को लाने के लिए अपनी चमचमाती गाड़ी भेज देते थे.

पर किसी भी दोस्त के यहां से आने वाला न्योता अकेले सुंदर के लिए कभी भी नहीं होता था. उस को पत्नी कलावती के साथ ही आने के लिए जोर दिया जाता था.

कई दोस्त तो बहाने से सुंदर के घर तक आने लगे थे और कलावती के हाथ की गरमागरम चाय पीने की फरमाइश भी कर देते थे. चाय पीने के बाद दोस्त कलावती की जम कर तारीफ करना नहीं भूलते थे.

एक दोस्त ने तो कलावती के हाथ की बनी चाय की तारीफ में यहां तक कह डाला था, ‘‘कमाल दूध, चीनी या पत्ती में नहीं, भाभीजी के हाथों में है.’’

कम पढ़ीलिखी और बड़े ही साधारण परिवार से आई कलावती अपनी तारीफ से फूली नहीं समाती थी. उस के गोरे गाल लाल हो जाते थे और जोश में वह तारीफ करने वाले दोस्त को फिर से चाय पीने के लिए आने का न्योता दे देती थी.

सुंदर अपने दोस्तों को घर आने के लिए मना भी नहीं कर सकता था. आखिर दोस्ती का मामला जो था. लेकिन वह उन दोस्तों से इतना तंग होने लगा था कि उसे अजीब सी घुटन महसूस होने लगती थी.

सुंदर का एक दोस्त हरीश विदेशी चीजों का कारोबार करता था. वह कारोबार के सिलसिले में अकसर दिल्ली और मुंबई जाता रहता था. वह उम्र में सुंदर से ज्यादा होने के बावजूद अभी भी कुंआरा था.

हरीश काफी शौकीन किस्म का इनसान था. दोस्तों की मंडली में सब से ज्यादा रुपए खर्च करने वाला भी.

हरीश जब कभी सुंदर के घर उस से मिलने जाता था, तो कलावती के लिए विदेशी चीजें तोहफे में ले जाता था. हरीश के लाए तोहफों में महंगे परफ्यूम और लिपस्टिक शामिल रहती थीं.

ऐसे तोहफों को देख कर कलावती खिल जाती थी. इस तरह की चीजें औरतों की कमजोरी होती हैं और इस कमजोरी को हरीश पहचानता था.

सुंदर को अपनी बीवी कलावती पर हरीश की मेहरबानी और दरियादिली अखरती थी. वैसे तो शादी के बाद सभी दोस्त ही सुंदर पर मेहरबान नजर आने लगे थे, मगर हरीश की मेहरबानी जैसे एक खुली गुस्ताखी में बदल रही थी.

सुंदर को उस वक्त हरीश उस की मर्दानगी को ही चुनौती देता नजर आता, जब वह विदेशी लिपस्टिक कलावती को ताहफे में देते हुए साथ में एक गहरी मुसकराहट से कहता, ‘‘मैं शर्त के साथ कहता हूं भाभीजी कि इस लिपस्टिक का रंग आप की पर्सनैलिटी से गजब का मैच करेगा.’’

हरीश के तोहफे से खुश कलावती ‘थैंक्यू’ कह कर जब उस को स्वीकार करती, तो सुंदर को ऐसा लगता जैसे वह उस के हाथों से फिसलती जा रही है.

हरीश के पास अपनी गाड़ी भी थी. उस की गाड़ी में बैठते हुए कलावती की गरदन जैसे शान से तन जाती थी. कलावती को गाड़ी में ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठना अच्छा लगता था, इसलिए वह गाड़ी की अगली सीट पर हरीश के पास ही बैठती थी. मजबूरन सुंदर को गाड़ी की पिछली सीट पर बैठ कर संतोष करना पड़ता था.

शहर में जब कोई नई फिल्म लगती थी, तो हरीश सुंदर से पूछे बिना ही 3 टिकटें ले आता था, इसलिए मना करने की गुंजाइश ही नहीं रहती थी.

जब कलावती फिल्म देखने के लिए तैयार होती थी, तो मेकअप के लिए उन्हीं चीजों को खासतौर पर इस्तेमाल करती, जो हरीश उसे तोहफे में देता रहता था.

सिनेमा जाने के लिए जब कलावती सजधज कर तैयार हो जाती, तो बड़े बिंदास अंदाज में हरीश उस की तारीफ करना नहीं भूलता था. वह कलावती के होंठों पर पुती लिपस्टिक के रंग की खासतौर पर तारीफ करता था.

यह देख कर सुंदर एक बार तो जैसे अंदर से उबल पड़ता था. मगर यह उबाल बासी कढ़ी में आए उबाल की ही तरह होता था.

सिनेमाघर में कलावती सुंदर और हरीश के बीच वाली सीट पर बैठती थी. उस के बदन में से निकलने वाली परफ्यूम की तीखी और मादक गंध दोनों के ही नथुनों में बराबर पहुंचती थी.

परफ्यूम की गंध ही क्यों, बाकी सारे एहसास भी बराबर ही होते थे. अंधेरे सिनेमाघर में अगर कलावती की एक मरमरी नंगी बांह रहरह कर सुंदर को छूती थी, तो वह इस खयाल से बेचैन हो जाता था कि कलावती की दूसरी मरमरी बांह हरीश की बांह को छू रही होगी.

सिनेमाघर में हरीश दूसरी गुस्ताखियों से भी बाज नहीं आता था. सुंदर से कानाफूसी के अंदाज में बात करने के लिए वह इतना आगे को झुक जाता था कि उस का चेहरा कलावती के उभारों को छू लेता था.

जब सुंदर उस दौर से गुजरता, तब मन में इरादा करता कि वह खुले शब्दों में हरीश को अपने यहां आने से मना करेगा, पर बाद में वह ऐसा कर नहीं पाता था. शायद उस में ऐसा करने की हिम्मत नहीं थी. वह शायद बुजदिल था.

हरीश की हिम्मत और बेबाकी लगातार बढ़ती गई. पहले तो सुंदर की मौजूदगी में ही वह उस के घर आता था, मगर अब वह उस की गैरमौजूदगी में भी आनेजाने लगा था.

कई बार सुंदर काम से घर वापस आता, तो हरीश उस को घर में कलावती के साथ चाय की चुसकियां भरते हुए मिलता.

हरीश को देख सुंदर कुछ कह नहीं पाता था, मगर गुस्से के मारे ऐंठ जाता. सुंदर को देख हरीश बेशर्मी से कहता, ‘‘इधर से गुजर रहा था, सोचा कि तुम से मिलता चलूं. तुम घर में नहीं थे. मैं वापस जाने ही वाला था कि भाभीजी ने जबरदस्ती चाय के लिए रोक लिया.’’

सुंदर जानता था कि हरीश सरासर झूठ बोल रहा था, मगर वह कुछ भी कर नहीं पाता. जो चीज अब सुंदर को ज्यादा डराने लगी थी, वह थी कलावती का हाथों से फिसल कर दूर होने का एहसास.

कुछ दिन तक सुंदर के अंदर विचारों की अजीब सी उथलपुथल चलती रही, पर हालात के साथ समझौता करने के अलावा उस को कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझ रहा था.

सुंदर को मालूम था कि उस जैसे साधारण आदमी की सोसाइटी में जो शान एकाएक बनी थी, वह उस की हसीन बीवी के चलते ही बनी थी, वरना पांचसितारा होटलों, फार्महाउसों की महंगी पार्टियों में शिरकत करना उस के लिए एक हसरत ही रहती.

एक सच यह भी था कि पिछले कुछ महीनों से सुंदर को इन सब चीजों से जैसे एक लगाव हो गया था. यह लगाव ही जैसे कहीं न कहीं उसे उस की मर्दानगी को पलीता लगाता था.

कलावती भी जैसे अपने रूपरंग की ताकत को पहचानने लगी थी, तभी तो सुंदर के हरीश सरीखे दोस्तों से कई फरमाइश करने से वह कभी झिझकती नहीं थी. देखा जाए, तो शादी के बाद कलावती की ख्वाहिशें सुंदर की जेब से नहीं, बल्कि उस के दोस्तों की जेब से पूरी हो रही थीं.

सुंदर को यह भी एहसास हो रहा था कि झूठी मर्दानगी में खुद को धोखा देने से कोई फायदा नहीं. अगर उस का कोई दोस्त उस की बीवी के होंठों के लिए लिपस्टिक का रंग पसंद करता था, तो उस के असली माने क्या हो सकते थे?

अपनी खूबसूरत बीवी के खोने का डर सुंदर को लगातार सता रहा था. इस डर के बीच कई तरह की बातें सुंदर के मन में अचानक ही उठने लगी थीं. पति की जगह एक लालची इनसान उस के विचारों पर हावी होने लगा.

सुंदर को लगने लगा था कि उस की बीवी वास्तव में खूबसूरत थी और उस के यारदोस्त काफी सस्ते में ही उस को इस्तेमाल कर रहे थे. अगर उस की खूबसूरत बीवी अमीर दोस्तों की कमजोरी थी, तो उन की इस कमजोरी का फायदा वह अपने लिए क्यों नहीं उठाता था?

इस बात में कोई शक नहीं कि हरीश जैसे अमीर और रंगीनमिजाज दोस्त कलावती के कहने पर उस के लिए कुछ भी कर सकते थे.

सुंदर की सोच बदली, तो उस की वह तकलीफ भी कम हुई, जो दोस्तों के अपनी बीवी से रिश्तों को ले कर उस के मन में बनी हुई थी.

शर्म और मर्दानगी से किनारा कर के सुंदर ने मौका पा कर कलावती से कहा, ‘‘क्या तुम को नहीं लगता कि हमारे पास भी रहने के लिए एक अच्छा घर और सवारी के लिए अपनी कार होनी चाहिए?’’

इस पर कलावती के होंठों पर एक अजीब तरह की मुसकराहट फैल गई. उस ने जवाब में कहा, ‘‘तुम्हारी 8 हजार रुपए की तनख्वाह को देखते हुए मैं इन चीजों के सपने कैसे देख सकती हूं?’’

‘‘कुछ कोशिश करने से सबकुछ हासिल हो सकता है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अगर हमारी आमदनी का कोई ऐक्स्ट्रा जरीया बन जाए, तो कुछ दिनों में ही हमारे दिन भी बदल सकते हैं.’’

‘‘मगर, ऐसा कोई जरीया बनेगा कैसे?’’ कलावती ने पूछा.

‘‘हरीश का काफी अच्छा कारोबार है. अगर वह चाहे तो बड़ी आसानी से हमारे लिए भी कोई आमदनी का अच्छा सा जरीया बन सकता है,’’ एक बेशर्म और लालच से भरी मुसकराहट होंठों पर लाते हुए सुंदर ने कहा.

सुंदर की बात पर कलावती की आंखें थोड़ी सिकुड़ गईं. पति उस से जो कहने के लिए भूमिका तैयार कर रहा था, उसे वह समझ गई थी.

जिस दिन सुंदर ने कलावती से आमदनी का अच्छा जरीया वाली बात की, उसी दिन कलावती काफी रात हुए घर आई. हरीश उस को अपनी गाड़ी से घर के बाहर तक छोड़ने आया था.

यह शायद पहला मौका था, जब हरीश घर के अंदर नहीं आया था.

कलावती अकेले ही अंदर आई थी. उस के होंठों की फीकी पड़ी लिपस्टिक और बिखरेबिखरे बाल जैसे खुद ही कोई कहानी बयान कर रहे थे.

सबकुछ समझते हुए भी सुंदर आज उसे अनदेखा करने के मूड में था. कलावती ने सुंदर को कुछ कहने या सवाल करने का मौका ही नहीं दिया.

होंठों के एक कोर पर फैली लिपस्टिक को हाथ के अंगूठे से साफ करते हुए कलावती ने कहा, ‘‘मैं ने हरीश से बात की है. वह बिना किसी इंवैस्टमैंट के ही हमें अपने काम में 10 फीसदी की पार्टनरशिप देने को तैयार है. इस के लिए मुझे उस के दफ्तर में बैठ कर ही कामकाज में उस का हाथ बंटाना होगा.

‘‘हरीश जो भी सामान बेचता है, वह सब औरतों के इस्तेमाल में आने वाला है, इसलिए उस को लगता है कि एक औरत होने के नाते मैं उस के कारोबार को बेहतर तरीके से देख सकती हूं. जब ऐक्स्ट्रा आमदनी रैगुलर आमदनी की शक्ल ले लेगी, तो मैं बेशक नौकरी छोड़ दूंगी. तुम को मेरे इस फैसले पर कोई एतराज तो नहीं…?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ सुंदर ने उतावलेपन से कहा.

इस के बाद कलावती हरीश के दफ्तर में जाने लगी. कई बार कलावती खुद चली जाती और कभी उस को लेने के लिए हरीश की गाड़ी आ जाती. रात को कलावती अकसर 9-10 बजे से पहले घर नहीं आती थी. कभी रात को हरीश का ड्राइवर घर पर उसे छोड़ने आता था और कभी हरीश खुद.

कलावती अकसर खाना भी खा कर ही आती थी. अगर वह खाना खा कर नहीं आती, तो घर पर नहीं बनाती थी. सुंदर किसी ढाबे या होटल से खाना ले आता और दोनों मिल कर खा लेते थे.

कलावती के रंगढंग और तेवर लगातार बदल रहे थे. कई बार तो वह रात को घर आती, तो उस के मुंह से तीखी गंध आ रही होती थी. यह तीखी गंध शराब की होती थी.

कलावती के बेतरतीब कपड़ों और बिगड़ा हुआ मेकअप भी खामोश जबान में बहुतकुछ कहता था.

मगर सुंदर ने इन सब चीजों की तरफ से जैसे आंखें मूंद ली थीं. उस का खून अब जोश नहीं मारता था.

जो दोस्त कभी सुंदर को घास नहीं डालते थे, वे अपनी की गई मेहरबानियों की कीमत वसूले बिना कैसे रह सकते थे?

अब तो सारा खेल जैसे खुला ही था. एक मर्द अपनी बीवी का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहा था और बीवी सबकुछ समझते हुए भी अपनी खुशी से इस्तेमाल हो रही थी.

इस सारे खेल में हरीश भी खुद को एक बड़े और चतुर खिलाड़ी के रूप में ही देखता था. कारोबार में 10 फीसदी की साझेदारी का दांव खेल कर उस ने अपने दोस्त की खूबसूरत बीवी पर एक तरह से कब्जा ही कर लिया था. अब उस को कई बहाने से दोस्त के घर जाने की जरूरत नहीं रह गई थी. वह पति की रजामंदी से खुद ही उस के पास जो आ गई थी.

जल्दी ही कलावती अपने बैग में नोटों की गड्डियां भर कर लाने लगी थी. कहने को तो नोटों की ये गड्डियां साझेदारी में 10 फीसदी हिस्सा थीं, मगर असलियत में वह कलावती के जिस्म की कीमत थी.

दिन बदलने लगे. केवल एक साल में ही किराए के घर को छोड़ कर सुंदर और कलावती अपने खरीदे हुए नए मकान में आ गए. नया खरीदा मकान जल्दी ही टैलीविजन, वाशिंग मशीन, फ्रिज और एयरकंडीशन से सज भी गया.

दूसरे साल में उन के घर के बाहर एक कार भी सवारी के लिए नजर आने लगी.

लेकिन, इस के साथ ही साथ कलावती जैसे नाम की ही सुंदर की पत्नी रह गई थी. कलावती में घरेलू औरतों वाली कोई भी बात नहीं रह गई थी. अपने पति के कहने पर ही वह पैसा बनाने वाली एक मांसल मशीन बन गई थी.

लोग सुंदर के बारे में तरहतरह की बातें करने लगे थे. कुछ लोग तो पीठ पीछे यह भी कहने लगे थे कि कलावती बीवी तो थी सुंदर की, मगर सोती थी उस के दोस्त हरीश के साथ.

10 फीसदी की मुंहजबानी साझेदारी के नाम पर अगर हरीश उन को कुछ दे रहा था, तो बदले में पूरी शिद्दत से वसूल भी कर रहा था. कलावती के मांसल जिस्म को उस ने ताश के पत्तों के तरह फेंट डाला था.

सुंदर जब लोगों का सामना करता था, तो उन की शरारत से चमकती हुई आंखों में बहुतकुछ होता था. कुछ लोग तो इशारों ही इशारों में कलावती को ले कर सुंदर से बहुतकुछ कह भी देते थे, मगर इस से न ही तो अब सुंदर की मर्दानगी को चोट लगती थी और न ही उस का खून खौलता था. उस की सोच मानो बेशर्म हो गई थी.

हरीश जैसे रंगीनमिजाज रईस मर्दों और कलावती जैसी शादीशुदा औरतों के संबंध ज्यादा दिनों तक टिकते नहीं हैं और न ही इस की उम्र ज्यादा लंबी होती है.

हरीश का मन भी कलावती से भरने लगा था. उस ने कलावती से छुटकारा पाने के लिए उस के प्रति बेरुखी दिखानी शुरू कर दी थी.

कलावती ने उस की बदली हुई नजरों को पहचान लिया, मगर उस को इस की कोई परवाह नहीं थी. हरीश से साफतौर पर कलावती के लेनदेन वाले संबंध थे और वह काफी हद तक इन संबंधों को कैश कर भी चुकी थी. मकान, घर का सारा कीमती सामान और गाड़ी हरीश की बदौलत ही तो थी.

वैसे, कलावती की नजरों में भी हरीश बेकार होने लगा था. उस को और निचोड़ना मुश्किल था.

हरीश ने साफ शब्दों में कलावती से छुटकारा मांगा. इस के बदले में कलावती ने भी एक बड़ी रकम मांगी. हरीश ने वह मांगी रकम दे दी.

हरीश से संबंध खत्म करने पर सुंदर ने कलावती से कहा, ‘‘हमारे पास अब सबकुछ है, इसलिए हमें पतिपत्नी के रूप में अपनी पुरानी जिंदगी में लौट आना चाहिए.’’

सुंदर की बात पर कलावती खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘मुझ को नहीं लगता कि अब ऐसा हो सकता है. पतिपत्नी का रिश्ता तो इस मकान की बुनियाद में कहीं दफन हो चुका है. क्या तुम को नहीं लगता कि पति बनने के बजाय तुम केवल अपनी बीवी के दलाल बन कर ही रह गए? ऐसे में मुझ से दोबारा कोई सती सावित्री बनने की उम्मीद तुम कैसे कर सकते हो?’’

कलावती के जवाब से सुंदर का चेहरा जैसे सफेद पड़ गया. कलावती ने जैसे उस को आईना दिखा दिया था.

कलावती वह औरत नहीं रह गई थी, जो अब घर की चारदीवारी में बंद हो कर रह पाती.

सुंदर भी जान गया था कि उस ने अपनी बीवी को दोस्तों के सामने चारे के रूप में इस्तेमाल कर के हासिल तो बहुतकुछ कर लिया था, मगर अपने जमीर और मर्दानगी दोनों को ही गंवा दिया था.

हरीश को छोड़ने के बाद कलावती ने सुंदर के एक और अमीर दोस्त दिनेश से संबंध बना लिए.

उधर कलावती बाहर मौजमस्ती कर रही थी, इधर सुंदर ने खूब शराब पीनी शुरू कर दी. कभीकभी शराब पी कर सुंदर इतना बहक जाता कि गलीमहल्ले के बच्चे उस का मजाक उड़ाते और उस पर कई तरह की फब्तियां भी कसते.

कुछ फब्तियां तो ऐसी कड़वी और धारदार होतीं कि नशे में होने के बावजूद सुंदर खड़ेखड़े ही जैसे सौ बार मर जाता.

जैसे शराब के नशे में एक बार जब सुंदर लड़खड़ा कर गली में गंदी नाली के पास गिर पड़ा, तो वहां खेल रहे कुछ लड़के खेलना छोड़ उसे उठाने के लिए लपकने को हुए, तो उन में से एक लड़के ने उन को रोक लिया और बोला, ‘‘रहने दो, मेरा बापू कहता है कि यह अपनी औरत की घटिया कमाई खाने वाला एक गंदा इनसान है. इज्जतदार और शरीफ लोगों को इस से दूर रहना चाहिए.’’

एक लड़के का इतना ही कहना था कि बाकी लड़कों के कदम वहीं रुक गए. शराब के नशे में लड़खड़ा कर सुंदर गिर जरूर गया था, मगर बेहोश नहीं था. लड़के के कहे हुए शब्द गरम लावे की तरह उस के कानों में उतर गए.

अपनी बुजदिली और लालच के चलते आज सुंदर कितना नीचे गिर चुका था, इस का सही एहसास गली में खेलने वाले लड़के के मुंह से निकले शब्दों से उसे हो रहा था.

Hindi Fiction Stories : मन की सुंदरता- कैसी थी शोभना

Hindi Fiction Stories : शोभना बचपन से ही नटखट स्वभाव की थी.किन्तु वह अपने स्वभाव को सभी के सामने जाहिर नही करती थी.

वह बच्चों के सँग बच्ची और बड़ों के सङ्ग बड़ी बन जाती थी और कभी बेवज़ह ही शांत होकर एक कोना पकड़कर बैठ जाती थी.

वह बहुत जल्दी क्रोधित भी हो जाती थी.मगर उसमे एक ख़ास बात भी थी कि उसे गलत बात बिल्कुल पसँद नही थी. वह हर माहौल में ढल तो जाती थी, लेकिन उसे व उसके स्वभाव को समझने वाला कोई नही था.

शोभना बहुत ही जज्बाती और संवेदनशील लड़की थी. वह दूसरे के दुख को अपना समझकर कभी   स्वयं ही हैरान परेशान हो जाती थी.

शोभना बी०ए० प्रथम वर्ष की छात्रा थी जो कि पढ़ने में बहुत ही होशियार थी.इसलिए कॉलेज के सभी लड़के उस पर जान छिड़कते थे परंतु शोभना किसी को तनिक भी अपने करीब  फटकने नही देती थी.

उसकी सभी सहेलियां उससे इसलिये चिढ़ती भी थी. इसमें क्या है जो मुझमें नही  है. धीर- धीरे समय गुजर रहा था कि शोभना का जीवन ही अगले दिशा में बदल गई.

शोभना रोजाना की भाँति उस दिन भी कॉलेज जा रही थी, जिस दिन उसका जन्मदिन था.

घर के सभी लोग उसे उस दिन मना कर रहे थे कि शोभू आज कॉलेज मत जा, आज हम सबलोग तेरे बर्थडे पर कुछ स्पेशल करेंगे. फिर भी वह नही मानी. क्योंकि उसे अपने दोस्तों को पार्टी देनी थी, इसलिए शोभना खुशी खुशी कॉलेज जा रही थी वह अपने जन्मदिन को बहुत ही अधिक मान देती थी. वह उस दिन पीले रँग की फ़्रॉक सूट और पीले रंग की एक हाथ मे चूड़ी व दूसरे हाथ मे घड़ी पहनी हुई थी. और माथे पर एक छोटी सी काली बिंदी लगाई थी जिसे वह रोज लगाती है.

वह उस दिन मानो स्वर्ग से उतरी कोई अप्सरा भाँति दिख रही थी. शोभना की इसी सादगी भरी सुंदरता पर कॉलेज के सभी लड़के उस पर फ़िदा थे और उसमें से एक ने तो एकदम से जीना ही दुश्वार कर रखा था. शोभना का,जो इस कॉलेज के मैनेजर  का बेटा था. जिससे सभी डरते थे।वह हमेशा ड्रग्स के नशे में धुत्त रहा करता था. वह सबको डराता धमकाता पर लड़कियों पर कभी नज़र उठाकर नही देखता था.मगर शोभना को देख कर वह पागलों जैसा हरक़त करने लगा था.

शोभना उससे परेशान होकर सभी लड़के लड़कियों के सामने एक दिन उसके बदतमीजी पर उसके गाल पर खींचकर अपनी पांचों उंगलियों की छाप छोड़ दी,जिससे वह मवाली व नशेड़ी लड़का बौखला पड़ा था.वह उसी दिन से बदला लेने के  लिए बेताब हो गया.

उस दिन उसको अवसर मिल ही गया. जिस दिन उसका  जन्म दिन था .  मंद – मंद मुस्कान बिखरी हुई थी. चाँद स्वरूप मुखड़े पर ,जो उसे न सुहाई और  शोभना द्वारा प्रेम प्रस्ताव न स्वीकारने पर व प्रतिशोध की आग में जला हुआ आवेश में आकर रास्ते में उसके चेहरे पर तेजाब का भरा बोतल फेंककर ठहाका मारते हुए बोला- “तुझे अपने सुंदरता पर बहुत नाज़ था न! तो लो अब दिखाओ ना.”

इतना बोलकर वह वहाँ से रफूचक्कर हो गया।जनता तमाशा देख रही थी.कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नही आया। जब वह बेसुध होकर सड़कपर कराह रही थी. तब वहाँ मीडिया भी कैमरा लेकर आ खड़ी हो गई। मीडिया वालों के लिए एक नई सनसनीखेज ख़बर मिल गई थी.

शोभना की हालत बिगड़ती जा रही थी तभी भीड़ को चीरकर एक युवक सामने आया. वही शोभना को उठाकर अस्पताल ले गया जो डॉ० विक्रम ही था , जिसका तभी तबादला हुआ था  इस नये शहर में.

 शोभना को अस्पताल में  आये यहाँ एक महीना हो गया था, और स्वास्थ्य भी बेहतर हो रहा था.

पर शोभना का वो चँचल पन कहीं विलुप्त हो चुका था. रेत के भाँति सब बिखर गया था.

उसके लिए, उसका चेहरा ही एक  पहचान थी.वह भी जल कर ख़ाक हो गया. फिर भी शोभना डॉक्टर विक्रम से काफी अच्छे से घुल मिल गई थी उसे विक्रम की जिंदादिली बहुत अच्छी लगती थी.वे हर हाल में खुश नजर आते थे।और इधर विक्रम भी शोभना का समय -समय पर दवा पुछने आ जाते थे.इसी बीच दोनो की दोस्ती हो गई । शोभना को बातों -बातों में शायरी बोलने की आदत ने अपनी ओर आकर्षित कर रही थी विक्रम को.  जब शोभना कुछ बोलती तो दर्द भरी शायरी जरूर बोलती और विक्रम उसके होंठों को  और उसके आँखों को ध्यान से देखता, जिससे शोभना भी वाकिफ़ थी. मग़र वह अपनी जली हुई सूरत के कारण डॉ० विक्रम से नज़रें नही मिला पाती थी. एक दिन बातों ही बातों में डॉ०विक्रम अपनी बात शोभना के सामने रख ही दिए. परन्तु शोभना इंकार कर बैठी और सिसकती हुई बोली- “विक्रम जी आप मुझ जैसी लड़की को क्यों इतना चाहते हो। मेरी जो सुन्दरता थी वह अभिशाप बन गई। मेरे लिए .  मैं अब कहीं की नहीं हूँ.”

फिर कुछ ही क्षण में सम्भल कर बोली- “हम सिर्फ़ दोस्त बनकर आजीवन रहेंगें। वादा कीजिये.”

“ठीक है जो आपको सही लगे। लेकिन मेरे ख्याल से सुंदरता चेहरे से नहीं, इंसान के मन से होता है. आप दिल से बहुत सुंदर हो.”

विक्रम की बातें सुनकर शोभना विक्रम का कसकर हाथ पकड़कर बोली- “मुझे कभी उम्मीद ही नही था कि आपके जैसा कोई इतना मन से तन से सुंदर साथी मुझे मिलेगा.मेरा जीवन फिर से सँवर गया.”

शोभना के आँखों मे एक पल के लिए खुशी की लहर उमड़ पड़ी.

अरे! शोभना तुम मेरे जीवन की रौशनी हो. अब तुमसे ही मेरा बंजर घर फिर से हरा- भरा होगा.घर की शोभा बढ़ेगी. तुम अपने पवित्र व सुंदर मन से मेरे नहीं… अपने घर को सुसज्जित करोगी.

बस एक दिन दो दिन में तुम्हारे डिस्चार्ज होने के बाद मैं अपने पापा को लेकर तुम्हारे घर आऊँगा.

जीवन भर के लिए. तुम्हारा हाथ और साथ दोनों माँगने के लिए. और साथ ही साथ उस मवाली को भी सलाखों के पीछे करके तुम्हे न्याय भी दिलाने की भरसक प्रयास करूँगा.”

फिर मुस्करा कर बोला, “और यह भी न भूलो कि चिक्तिसा विज्ञानं में हर रोज नई तकनीक का विकास हो रहा है. कल नहीं तो वर्षों बाद तुम पहले जैसी हो जाओगी और मैं रिस्क नहीं लेना चाहता कि तब कोई और तुम्हें उड़ा ले.”

शोभना बूत समान ख़ामोश होकर आँखों में प्रेम के समंदर को थाम कर विक्रम को एक टक देखे जा रही थी. और भविष्य के दिन के लम्हों को सँजोने के लिए कुछ सँकोच-सी सोच लिए अग्रसरित होने को उतावली भी हो रही थी.

Latest Hindi Stories : विवाह – विदिशा को किस बात पर यकीन नहीं हुआ

Latest Hindi Stories :  राज आज बहुत खुश था. विदिशा से मिलने के लिए वह पुणे आया था. दोनों गर्ल्स होस्टल के पास ही एक आइसक्रीम पार्लर पर मिले.

‘‘मैं लेट हो गई क्या?’’ विदिशा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं ही जल्दी आ गया था,’’ राज बोला.

‘‘तुम से एक बात पुछूं क्या?’’ विदिशा ने कहा.

‘‘जोकुछ पूछना है, अभी पूछ लो. शादी के बाद कोई उलझन नहीं होनी चाहिए,’’ राज ने कहा.

‘‘तुम ने कैमिस्ट्री से एमएससी की है, फिर भी गांव में क्यों रहते हो? पुणे में कोई नौकरी या कंपीटिशन का एग्जाम क्यों नहीं देते हो?’’‘‘100 एकड़ खेती है हमारी. इस के अलावा मैं देशमुख खानदान का एकलौता वारिस हूं. मेरे अलावा कोई खेती संभालने वाला नहीं है. नौकरी से जो तनख्वाह मिलेगी, उस से ज्यादा तो मैं अपनी खेती से कमा सकता हूं. फिर क्या जरूरत है नौकरी करने की?’’

राज के जवाब से विदिशा समझ गई कि यह लड़का कभी अपना गांव छोड़ कर शहर नहीं आएगा.

शादी का दिन आने तक राज और विदिशा एकदूसरे की पसंदनापसंद, इच्छा, हनीमून की जगह वगैरह पर बातें करते रहे.

शादी के दिन दूल्हे की बरात घर के सामने मंडप के पास आ कर खड़ी हो गई, लेकिन दूल्हे की पूजाआरती के लिए दुलहन की तरफ से कोई नहीं आया, क्योंकि दुलहन एक चिट्ठी लिख कर घर से भाग गई थी.

‘पिताजी, मैं बहुत बड़ी गलती कर रही हूं, लेकिन शादी के बाद जिंदगीभर एडजस्ट करने के लिए मेरा मन तैयार नहीं है. मां के जैसे सिर्फ चूल्हाचौका संभालना मुझ से नहीं होगा. आप ने जो रिश्ता मेरे लिए ढूंढ़ा है, वहां किसी चीज की कमी नहीं है. ऐसे में मैं आप को कितना भी समझाती, मुझे इस विवाह से छुटकारा नहीं मिलता, इसलिए आप को बिना बताए मैं यह घर हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं…’

‘‘और पढ़ाओ लड़की को…’’ विदिशा के पिता अपनी पत्नी पर गुस्सा करते हुए रोने लगे. वर पक्ष का घर श्मशान की तरह शांत हो गया था. देशमुख परिवार गम में डूब गया था. गांव वालों के सामने उन की नाक कट चुकी थी, लेकिन राज ने परिवार की हालत देखते हुए खुद को संभाल लिया.

विदिशा पुणे का होस्टल छोड़ कर वेदिका नाम की सहेली के साथ एक किराए के फ्लैट में रहने लगी. उस की एक कंपनी में नौकरी भी लग गई.

वेदिका शराब पीती थी, पार्टी वगैरह में जाती थी, लेकिन उस के साथ रहने के अलावा विदिशा के पास कोई चारा नहीं था. 4 साल ऐसे ही बीत गए.

एक रात वेदिका 2 लाख रुपए से भरा एक बैग ले कर आई. विदिशा उस से कुछ पूछे, तभी उस के पीछे चेहरे पर रूमाल बांधे एक जवान लड़का भी फ्लैट में आ गया.

‘‘बैग यहां ला, नहीं तो बेवजह मरेगी,’’ वह लड़का बोला.

‘‘बैग नहीं मिलेगा… तू पहले बाहर निकल,’’ वेदिका ने कहा.

उस लड़के ने अगले ही पल में वेदिका के पेट में चाकू घोंप दिया और बैग ले कर फरार हो गया.

विदिशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस ने तुरंत वेदिका के पेट से चाकू निकाला और रिकशा लेने के लिए नीचे की तरफ भागी. एक रिकशे वाले को ले कर वह फ्लैट में आई, लेकिन रिकशे वाला चिल्लाते हुए भाग गया.

विदिशा जब तक वेदिका के पास गई, तब तक उस की सांसें थम चुकी थीं. तभी चौकीदार फ्लैट में आ गया. पुलिस स्टेशन में फोन किया था. विदिशा बिलकुल निराश हो चुकी थी. वेदिका का यह मामला उसे बहुत महंगा पड़ने वाला था, इस बात को वह समझ चुकी थी. रोरो कर उस की आंखें लाल हो चुकी थीं.

पुलिस पूरे फ्लैट को छान रही थी. वेदिका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. दूसरे दिन सुबह विदिशा को पुलिस स्टेशन में पूछताछ के लिए बुलाया गया. सवेरे 9 बजे से ही विदिशा पुलिस स्टेशन में जा कर बैठ गई. वह सोच रही थी कि यह सारा मामला कब खत्म होगा.

‘‘सर अभी तक नहीं आए हैं. वे 10 बजे तक आएंगे. तब तक तुम केबिन में जा कर बैठो,’’ हवलदार ने कहा.

केबिन में जाते ही विदिशा ने टेबल पर ‘राज देशमुख’ की नेमप्लेट देखी और उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.

तभी राज ने केबिन में प्रवेश किया. उसे देखते ही विदिशा खड़ी हो गई.

‘‘वेदिका मर्डर केस. चाकू पर तुम्हारी ही उंगलियों के निशान हैं. हाल में भी सब जगह तुम्हारे हाथों के निशान हैं. खून तुम ने किया है. लेकिन खून के पीछे की वजह समझ नहीं आ रही है. वह तुम बताओ और इस मामले को यहीं खत्म करो,’’ राज ने कहा.

‘‘मैं ने खून नहीं किया है,’’ विदिशा बोली.

‘‘लेकिन, सुबूत तो यही कह रहे हैं,’’ राज बोला.

‘‘कल जो कुछ हुआ है, मैं ने सब बता दिया है,’’ विदिशा ने कहा.

‘‘लेकिन वह सब झूठ है. तुम जेल जरूर जाओगी. तुम ने आज तक जितने भी गुनाह किए हैं, उन सभी की सजा मैं तुम्हें दूंगा मिस विदिशा.’’

‘‘देखिए…’’

‘‘चुप… एकदम चुप. कदम, गाड़ी निकालो. विधायक ने बुलाया है हमें. मैडम, हर सुबह यहां पूछताछ के लिए तुम्हें आना होगा, समझ गई न.’’

विदिशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. शाम को वह वापस पुलिस स्टेशन के बाहर राज की राह देखने लगी.

रात के 9 बजे राज आया. वह मोटरसाइकिल को किक मार कर स्टार्ट कर रहा था, तभी विदिशा उस के सामने आ कर खड़ी हो गई.

‘‘मुझे तुम से बात करनी है.’’

‘‘बोलो…’’

‘‘मैं ने 4 साल पहले बहुत सी गलतियां की थीं. मुझे माफ कर दो. लेकिन मैं ने यह खून नहीं किया है. प्लीज, मुझे इस सब से बाहर निकालो.’’

‘‘लौज में चलोगी क्या? हनीमून के लिए महाबलेश्वर नहीं जा पाए तो लौज ही जा कर आते हैं. तुम्हारे सारे गुनाह माफ हो जाएंगे… तो फिर मोटरसाइकिल पर बैठ रही हो?’’

‘‘राज…’’ विदिशा आगे कुछ कह पाती, उस से पहले ही वहां से राज निकल गया.

दूसरे दिन विदिशा फिर से राज के केबिन में आ कर बैठ गई.

‘‘तुम क्या काम करती हो?’’

‘‘एक प्राइवेट कंपनी में हूं.’’

‘‘शादी हो गई तुम्हारी? ओह सौरी, असलम बौयफ्रैंड है तुम्हारा. बिना शादी किए ही आजकल लड़केलड़कियां सबकुछ कर रहे हैं… हैं न?’’

‘‘असलम मेरा नहीं, वेदिका का दोस्त था.’’

‘‘2 लड़कियों का एक ही दोस्त हो सकता है न?’’

‘‘मैं ने अब तक असलम नाम के किसी शख्स को नहीं देखा है.’’

‘‘कमाल की बात है. तुम ने असलम को नहीं देखा है. वाचमैन ने रूमाल से मुंह बांधे हुए नौजवान को नहीं देखा. पैसों से भरे बैग को भी तुम्हारे सिवा किसी ने नहीं देखा है. बाकी की बातें कल होंगी. तुम निकलो…’’

रोज सुबह पुलिस स्टेशन आना, शाम 3 से 4 बजे तक केबिन में बैठना, आधे घंटे के लिए राज के सामने जाना. वह विदिशा की बेइज्जती करने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था. तकरीबन 2 महीने तक यही चलता रहा. विदिशा की नौकरी भी छूट गई. गांव में विदिशा की चिंता में उस की मां अस्पताल में भरती हो गई थीं. रोज की तरह आज भी पूछताछ चल रही थी.

‘‘रोजरोज चक्कर लगाने से बेहतर है कि अपना गुनाह कबूल कर लो न?’’

विदिशा ने कुछ जवाब नहीं दिया और सिर नीचे कर के बैठी रही.

‘‘जो लड़की अपने मांपिता की नहीं हुई, वह दोस्त की क्या होगी? असलम कौन है? बौयफ्रैंड है न? कल ही मैं ने उसे पकड़ा है. उस के पास से 2 लाख रुपए से भरा एक बैग भी मिला है,’’ राज विदिशा की कुरसी के पास टेबल पर बैठ कर बोलने लगा.

लेकिन फिर भी विदिशा ने कुछ नहीं कहा. उसे जेल जाना होगा. उस ने जो अपने मांबाप और देशमुख परिवार को तकलीफ पहुंचाई है, उस की सजा उसे भुगतनी होगी. यह बात उसे समझ आ चुकी थी.

तभी लड़की के पिता ने केबिन में प्रवेश किया और दोनों हाथ जोड़ कर राज के पैरों में गिर पड़े, ‘‘साहब, मेरी पत्नी बहुत बीमार है. हमारी बच्ची से गलती हुई. उस की तरफ से मैं माफी मांगता हूं. मेरी पत्नी की जान की खातिर खून के इस केस से इसे बाहर निकालें. मैं आप से विनती करता हूं.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा. आप घर जाइए,’’ राज ने कहा.

विदिशा पीठ पीछे सब सुन रही थी. अपने पिता से नजर मिलाने की हिम्मत नहीं थी उस में. लेकिन उन के बाहर निकलते ही विदिशा टेबल पर सिर रख कर जोरजोर से रोने लगी.

‘‘तुम अभी बाहर जाओ, शाम को बात करेंगे,’’ राज बोला.

‘‘शाम को क्यों? अभी बोलो. मैं ने खून किया है, ऐसा ही स्टेटमैंट चाहिए न तुम्हें? मैं गुनाह कबूल करने के लिए तैयार हूं. मुझ से अब और सहन नहीं हो रहा है. यह खेल अब बंद करो.

‘‘तुम से शादी करने का मतलब केवल देशमुख परिवार की शोभा बनना था. पति के इशारे में चलना मेरे वश की बात नहीं है. मेरी शिक्षा, मेरी मेहनत सब तुम्हारे घर बरबाद हो जाती और यह बात पिताजी को बता कर भी कोई फायदा नहीं था. तो मैं क्या करती?’’ विदिशा रो भी रही थी और गुस्से में बोल रही थी.

‘‘बोलना चाहिए था तुम्हें, मैं उन्हें समझाता.’’

‘‘तुम्हारी बात मान कर पिताजी मुझे पुणे आने देते क्या? पहले से ही वे लड़कियों की पढ़ाई के विरोध में थे. मां ने लड़ाईझगड़ा कर के मुझे पुणे भेजा था. मेरे पास कोई रास्ता नहीं था, इसलिए मुझे मंडप छोड़ कर भागना पड़ा.’’

‘‘और मेरा क्या? मेरे साथ 4 महीने घूमी, मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया, उस का क्या? मेरे मातापिता का इस में क्या कुसूर था?’’

‘‘मुझे लगा कि तुम्हें फोन करूं, लेकिन हिम्मत नहीं हुई.’’

‘‘तुम्हें जो करना था, तुम ने किया. अब मुझे जो करना है, वह मैं करूंगा. तुम बाहर निकलो.’’

विदिशा वहां से सीधी अपने गांव चली गई. मां से मिली. ‘‘मेरी बेटी, यह कैसी सजा मिल रही है तुझे? तेरे हाथ से खून नहीं हो सकता है. अब कैसे बाहर निकलेगी?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे साथ जो छल किया?है, उस की सजा मुझे भुगतनी होगी मां.’’

‘‘कुछ नहीं होगा आप की बेटी को, केस सुलझ गया है मौसी. असलम नाम के आदमी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है. वह वेदिका का प्रेमी था. दोनों के बीच पैसों को ले कर झगड़ा था, जिस के चलते उस का खून हुआ.

‘‘आप की बेटी बेकुसूर है. अब जल्दी से ठीक हो जाइए और अस्पताल से घर आइए,’’ राज यह बात बता कर वहां से निकल गया.

विदिशा को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘सर, मैं आप का यह उपकार कैसे चुकाऊं?’’

‘‘शादी कर लो मुझ से.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मजाक कर रहा था. मेरा एक साल का बेटा है मिस विदिशा.’’

Latest Hindi Stories : तुम मेरी हो – क्या शीतल के जख्मों पर मरहम लगा पाया सारांश

 Latest Hindi Stories :  सारांश का स्थानांतरण अचानक ही चमोली में हो गया. यहां आ कर उसे नया अनुभव हो रहा था. एक तो पहाड़ी इलाका, उस पर जानपहचान का कोई भी नहीं. पहाड़ी इलाकों में मकान दूरदूर होते हैं. दिल्ली जैसे शहर में रह कर सारांश को ट्रैफिक का शोर, गानों की आवाजें और लोगों की बातचीत के तेज स्वर सुनने की आदत सी पड़ गई थी. किंतु यहां तो किसी को देखने के लिए भी वह तरस जाता था. जिस किराए के मकान में वह रह रहा था, वह दोमंजिला था. ऊपर के घर से कभीकभी एक बच्चे की मीठी सी आवाज कानों में पड़ जाती थी. पर कभी आतेजाते किसी से सामना नहीं हुआ था उस का.

उस दिन रविवार को नाश्ता कर के वह बाहर लौन में कुरसी पर आ कर बैठ गया. पास ही मेज पर उस ने लैपटौप रखा हुआ था. कौफी के घूंट भरते हुए वह औफिस का काम निबटा रहा था, तभी अचानक मेज पर रखे कौफी के मग में ‘छपाक’ की आवाज आई. सारांश ने एक तरफ जा कर कौफी घास पर उड़ेल दी. इतनी देर में ही पीछे से एक बच्चे की प्यारी सी आवाज सुनाई दी, ‘‘अंकल, मेरा मोबाइल.’’

सारांश ने मुड़ कर बच्चे की ओर देखा और मुसकराते हुए पास रखे टिशू पेपर से कौफी में गिरे हुए फोन को साफ करने लगा.

‘‘लाइए अंकल, मैं कर लूंगा,’’ कहते हुए बच्चे ने अपना नन्हा हाथ आगे बढ़ा दिया.

किंतु फोन सारांश ने साफ कर दिया और बच्चे को थमा दिया. बच्चा जल्दी से फोन को औन करने लगा. लेकिन कईर् बार कोशिश करने के बाद भी वह औन नहीं हुआ. बच्चे का मासूम चेहरा रोंआसा हो गया.

उस की उदासी दूर करने के लिए सारांश बोला. ‘‘अरे, वाह, तुम्हारा फोन तो छलांग मार कर मेरी कौफी में कूद गया था. अभी स्विमिंग पूल से निकला है, थोड़ा आराम करने दो, फिर औन कर के देख लेना. चलो, थोड़ी देर मेरे पास बैठो, नाम बताओ अपना.’’

‘‘अंकल, मेरा नाम प्रियांश है,’’ पास रखी दूसरी कुरसी पर बैठता हुआ वह बोला, ‘‘पर यह मोबाइल औन क्यों नहीं हो रहा, खराब हो गया है क्या?’’ चिंतित हो कर वह सारांश की ओर देखने लगा.

‘‘शायद, पर कोई बात नहीं. मैं तुम्हारे पापा से कह दूंगा कि इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है, अपनेआप छूट गया था न फोन तुम्हारे हाथ से?’’

‘‘हां अंकल, मैं हाथ में फोन को पकड़ कर ऊपर से आप को देख रहा था,’’ भोलेपन से उस ने कहा.

‘‘फिर तो पापा जरूर नया फोन दिला देंगे तुम्हें. हां, एक बात और, तुम इतने प्यारे हो कि मैं तुम्हें चुनमुन नाम से बुलाऊंगा, ठीक है?’’ सारांश ने स्नेह से प्रियांश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘बुला लेना चुनमुन कह कर, मम्मी भी कभीकभी मुनमुन कह देती हैं मु झे. पर मेरे पापा तो बहुत दूर रहते हैं. मु झ से कभी मिलने भी नहीं आते. अब मैं नानी से फोन पर बात कैसे करूंगा?’’ कहते हुए चुनमुन की आंखें डबडबा गईं.

सारांश को चुनमुन पर तरस आ गया. प्यार से उस के गालों को थपथपाता हुआ वह बोला, ‘‘चलो, हम दोनों बाजार चलते हैं, मैं दिला दूंगा तुम को मोबाइल फोन.’’

‘‘पर अंकल, मेरी मम्मी नहीं मानेंगी न,’’ चुनमुन ने नाक चढ़ाते हुए ऊपर अपने घर की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘अरे, आप की मम्मी को मैं मना लूंगा. हम दोनों तो दोस्त बन गए न, तुम्हारा नाम प्रियांश और मेरा सारांश. चलो, तुम्हारे घर चलते हैं,’’ कहते हुए सारांश ने चुनमुन का हाथ थाम लिया और सीढि़यों पर चढ़ना शुरू कर दिया.

दरवाजे पर नाइटी पहने खड़ी गौरवर्ण की आकर्षक महिला शायद चुनमुन का इंतजार कर रही थी. सारांश को देख कर वह एक बार थोड़ी सकपकाई, फिर मुसकरा कर अंदर आने को कहती हुई आगेआगे चलने लगी. भीतर आ कर सारांश ने अपना परिचय दिया.

उस के बारे में वह केवल इतना ही जान पाया कि उस का नाम शीतल है और पास के ही एक विद्यालय में अध्यापिका है. चुनमुन ने मोबाइल की घटना एक सांस में बता दी शीतल को, और साथ ही यह भी कि अंकल ने उस का नाम चुनमुन रखा है, इसलिए शीतल भी उसे इसी नाम से बुलाया करे, मुनमुन तो किसी लड़की के नाम जैसा लगता है.

शीतल रसोई में चली गई और सारांश चुनमुन से बातें करने लगा. तब तक शीतल फू्रट जूस ले कर आ गई. सारांश ने शाम को बाजार जाने का कार्यक्रम बना लिया. शीतल को भी बाजार में कुछ काम था. पहले तो वह साथ जाने में थोड़ी  िझ झक रही थी, पर सारांश के आग्रह को वह टाल न सकी.

तीनों शाम को सारांश की कार में बाजार गए और रात को बाहर से ही खाना खा कर घर लौटे. बाजार में चुनमुन सारांश की उंगली पकड़े ही रहा. सारांश भी कई दिनों से अकेलेपन से जू झ रहा था. इसलिए उसे भी उन दोनों के साथ एक अपनत्व का एहसास हो रहा था. शीतल के चेहरे पर आई चमक को सारांश साफसाफ देख पा रहा था. वह खुश था कि पड़ोसी एकदूसरे के साथ किस प्रकार एक परिवार की तरह जु

उस दिन के बाद चुनमुन अकसर सारांश के पास आ जाया करता था, सारांश भी कभीकभी उन के घर जा कर बैठ जाता था. सारांश को शीतल ने बताया कि उस के मातापिता हिमाचल प्रदेश में रहते हैं. ससुराल पक्ष के विषय में उस ने कभी कुछ नहीं बताया. सारांश भी अकसर उन को अपने मातापिता व छोटी बहन सुरभि के विषय में बताता रहता था. पिता दिल्ली में एक व्यापारी थे जबकि छोटी बहन एक साल से मिस्र में अपने पति के साथ रह रही थी.

उस दिन सारांश औफिस में बाहर से आए हुए कुछ व्यक्तियों के साथ व्यस्त था. एक महत्त्वपूर्ण बैठक चल रही थी. उस के फोन पर बारबार चुनमुन का फोन आ रहा था. सारांश ने 3-4 बार फोन काट दिया पर चुनमुन लगातार फोन किए जा रहा था. बैठक के बीच में ही बाहर जा कर सारांश ने उस से बात की.

चुनमुन को तेज बुखार था. शीतल ने डाक्टर को दिखा कर दवाई दिलवा दी थी और लगातार उस के पास ही बैठी थी. पर चुनमुन तो जैसे सारांश को ही अपनी पीड़ा बताना चाहता था. सारांश के दुलार से मिला अपनापन वह अपने नन्हे से मन में थाम कर रखना चाहता था.

सारांश ने बैठक में जा कर सब से क्षमा मांगी और अपने स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को बैठा कर औफिस से सीधा चुनमुन के पास आ गया. उसे देखते ही चुनमुन खिल उठा. शीतल भी मन ही मन राहत महसूस कर रही थी. चुनमुन ने सारांश को अपने घर कपड़े बदलने भी तभी जाने दिया जब उस ने रात को चुनमुन के घर ठहरने का वादा किया. शीतल के आग्रह पर सारांश रात का खाना उन के साथ ही खाने को तैयार हो गया.

तेज बुखार के कारण चुनमुन की नींद बारबार खुल रही थी, इसलिए शीतल और सारांश उस के पास ही बैठे थे. अपनेपन की एक डोर दोनों को बांध रही थी. अपने जीवन के पिछले दिन दोनों एकदूसरे के साथ सा झा कर रहे थे. सारांश का जीवन तो कमोबेश सामान्य ही बीता था, पर शीतल एक भयंकर तूफान से गुजर चुकी थी.

कुछ वर्षों पहले वह अपनी दादी के घर हिमाचल के सुदूर गांव में गई थी. उन का गांव मैक्लोडगंज के पास पड़ता था जहां अकसर सैलानी आतेजाते रहते हैं. एक रात वह ठंडी हवा का आनंद लेती हुई कच्ची सड़क पर मस्ती से चली जा रही थी. अचानक एक कार उस के पास आ कर रुकी. पीछे से किसी ने उस का मुंह दबोच लिया और उसे स्त्री जन्म लेने की सजा मिल गई.

अंधेरे में वह उस दानव का चेहरा भी न देख पाई और वह तो अपने पुरुषत्त्व का दंभ भरते हुए चलता बना. उसे तो पता भी नहीं कि एक नन्हा अंकुर वह वहीं छोड़ कर जा रहा है. शीतल का नन्हा चुनमुन. मातापिता ने शीतल पर चुनमुन को अनाथाश्रम में छोड़ कर विवाह करने का दबाव बनाया पर वह नहीं मानी. लोग तरहतरह की बातें कर के उस के मातापिता को तंग न करें, इसलिए उस ने घर से दूर आ कर रहने का निर्णय कर लिया. चुनमुन उस के लिए अपनी जान से बढ़ कर था.

चुनमुन का बुखार कम हुआ तो दोनों थोड़ी देर आराम करने के लिए लेट गए. सारांश की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रहरह कर शीतल के बारे में सोच रहा था, ‘कितनी दर्दभरी जिंदगी जी रही हो तुम, जैसे कोई फिल्मी कहानी हो. इतनी पीड़ा सह कर भी चुनमुन का पालनपोषण ऐसा कि यह बाग का खिला हुआ फूल लगता है, टूट कर मुर झाया हुआ नहीं.

पुरुष के इतने वीभत्स रूप को देखने के बाद भी तुम मु झ से अपना दर्द बांट पाई. तुम शायद यह जानती हो कि हर पुरुष बलात्कारी नहीं होता. तुम्हारे इस विश्वास के लिए मैं तुम्हारा जितना सम्मान करूं, वह कम है. स्वयं जीवन की नकारात्मकता में जी रही हो और दूसरों को सकारात्मक ऊर्जा दे रही हो. तुम कितनी अच्छी हो, शीतल.’ शीतल को मन ही मन इस तरह सराहते हुए सारांश उस का सब से बड़ा प्रशंसक बन चुका था.

2-3 दिनों में चुनमुन का बुखार कम होना शुरू हो गया. औफिस के अलावा सारांश अपना सारा समय आजकल चुनमुन के साथ ही बिता रहा था. शीतल ने स्कूल से छुट्टियां ली हुई थीं, इसलिए बाहर से सामान आदि लाने का काम भी सारांश ही कर दिया करता था. उस का सहारा शीतल के लिए एक परिपक्व वृक्ष के समान था, फूलों से लदी बेल सी वह उस के बिना अधूरा अनुभव करने लगी थी स्वयं को. स्त्री एक लता ही तो है जो पुरुष का आश्रय पा कर और भी खिलती है तथा निस्वार्थ हो कर सब के लिए फलनाफूलना चाहती है.

चुनमुन का बुखार उतरा तो कामवाली बाई बीमार पड़ गई. दोनों घरों का काम लक्ष्मी ही देखती थी. उस ने शीतल को फोन पर सूचना दी और यह सूचना जब वह सारांश को देने पहुंची तो वह सिर पकड़ कर बैठ गया. रात को उस की मां नीलम का फोन आया था कि वे सुरभि के साथ 2 दिनों के लिए चमोली आ रही हैं. सिर्फ एक सप्ताह के लिए भारत आई थी सुरभि और सारांश से बिना मिले वापस नहीं जाना चाहती थी.

‘‘लगता है दोनों यहां आ कर काम में ही लगी रहेंगी,’’ सारांश ने निराश हो कर शीतल से कहा.

‘‘तुम क्यों फिक्र करते हो, मैं सब देख लूंगी,’’ शीतल के इन शब्दों से सारांश को कुछ राहत मिली और वह घर की चाबी शीतल को सौंप कर औफिस चला गया. सारांश की मां नीलम और सुरभि दोपहर को पहुंचने वाली थीं. शीतल ने चुनमुन की बीमारी के कारण पहले ही पूरे सप्ताह की छुट्टियां ली हुई थीं विद्यालय से.

सुरभि और मां सारांश की अनुपस्थिति में घर पहुंच गईं. शीतल के रहते उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई. सारांश के आने पर भी वह सारा घर संभाल रही थी. चुनमुन भी सारांश की मां से बहुत जल्दी घुलमिल गया.

2 दिन कैसे बीत गए, किसी को पता ही नहीं लगा. जाने से एक दिन पहले रात का खाना खाने के लिए शीतल ने सब को अपने घर पर बुलाया. घर की साजसज्जा, खाने का स्वाद, रहने का सलीका आदि से सारांश की मां शीतल से प्रभावित हुए बिना न रह सकीं. बैडरूम में पुराने गानों की सीडी और विभिन्न विषयों पर पुस्तकों का खजाना देख कर सुरभि को शीतल के शौक अपने जैसे ही लगे और वह प्रसन्नता से चहकती हुई हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ का आनंद लेने लगी. चुनमुन सारांश की मां से कहानियां सुन रहा था.

देररात भारी मन से वे शीतल के घर से आए. घर आ कर भी वे दोनों सारांश से शीतल और चुनमुन के बारे में ही बातें कर रही थीं. मौका पा कर सारांश ने शीतल की जिंदगी की दुखभरी कहानी दोनों को सुनाई और शीतल को घर की बहू बनाने का आग्रह किया. किंतु उसे जो शंका थी, वही हुआ. मां ने इस रिश्ते के लिए साफ इनकार कर दिया. सारांश के इस फैसले से सुरभि यद्यपि सहमत थी किंतु मां ने विभिन्न तर्क दे कर उस का मुंह बंद कर दिया. अगले दिन दोनों दिल्ली वापस चली गईं.

वापस दिल्ली आ कर सुरभि 3 दिन और रही मां के पास, और फिर वापसी के लिए रवाना हो गई. मां अपनी दिनचर्या शुरू नहीं कर पा रही थीं. एक तो सब से मिलने के बाद अकेलापन और उस पर सुरभि का पहुंच कर फोन न आना. दिन तो जैसेतैसे कट गया, पर रात में चिंता के कारण उन्हें नींद नहीं आ रही थी. ‘सुबह कुछ तो करना ही होगा,’ उन के यह सोचते ही मोबाइल बज उठा. फोन सुरभि का ही था.

‘‘मम्मा, प्रकृति का शुक्रिया अदा करो कि तुम्हारी बेटी और दामाद सलामत है,’’ सुरभि ने डरी पर राहतभरी आवाज में कहा.

‘‘क्यों, क्या हो गया, बेटा?’’ मां का मुंह भय से खुला रह गया.

‘‘हमारे प्लेन में कुछ आतंकवादी घुस गए थे. अपहरण करना चाह रहे थे वे जहाज का. हमारा समय अच्छा था कि अंदर राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के 3 कमांडो भी यात्रा कर रहे थे. उन्होंने उन शैतानों की एक न चलने दी और हम सभी सुरक्षित अपनेअपने ठिकानों पर पहुंच गए,’’ सुरभि ने एक सांस में ही सब कह डाला. मां ने राहत की सांस ली और उसे आराम करने को कह कर फोन काट दिया.

मां की आंखों से तो जैसे नींद पूरी तरह उड़ गई. ‘क्या होता अगर कुछ अनहोनी हो गई होती? वे दरिंदे यात्रियों की जान ले लेते या फिर महिलाओं के साथ कुछ और…’ यह सोच कर मां का कलेजा कांप उठा. उन्हें सहसा शीतल का ध्यान आ गया, ‘कितनी बेबस होगी वह भी उस रात… कौन चाहता है कि उस की इज्जत तारतार हो जाए?

क्या कुसूर है शीतल या चुनमुन का? शीतल को क्यों यह अधिकार नहीं है कि वह भी बुरे समय से निकल कर नई खुशियों को गले लगाए. क्यों वह उस शैतान का दिया हुआ दुख ढोती रहे जीवनभर.’ सोचते हुए मां ने एक फैसला किया और रात में ही फोन मिला दिया सारांश को.

‘‘कहो मम्मा,’’ सारांश ने ऊंघते हुए फोन उठा कर कहा.

‘‘बेटा, सुरभि ठीक से पहुंच गई है. मैं ने सोचा कि तु झे बता दूं, वरना तू चिंता कर रहा होगा. और हां, एक बात और कहनी है. सुरभि 3 महीने बाद फिर आ रही है इंडिया, उस की सहेली की शादी है. तू भी टिकट ले ले अभी से ही यहां आने का. छुट्टियां जरा ज्यादा ले कर आना. जल्दी ही तु झे भी बंधन में बांध देना चाहती हूं मैं. जिस महीने में जन्मदिन होता है उसी महीने में शादी हो तो अच्छा माना जाता है हम लोगों में. जल्दी ही तारीख बता दूंगी तु झे.’’

‘‘अरे मम्मा, क्या हो गया आज आप को? मेरा जन्मदिन तो पिछले महीने ही था न. मैं आप की बात सम झ नहीं पा रहा ठीक से,’’ परेशान सा होता हुआ सारांश बोला.

‘‘तो मैं कब कह रही हूं कि दूल्हे का जन्मदिन ही पड़ना चाहिए उस महीने. दुलहन का भी हो सकता है. शीतल के जन्मदिन के बारे में चुनमुन बता रहा था मु झे उस दिन.’’

सारांश को एक बार तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ मां की बात सुन कर, फिर आश्चर्य और हर्ष से मुसकराते हुए वह बोला, ‘‘पर मम्मा, शीतल से तो पूछने दो मु झे.’’

‘‘मैं ने पढ़ ली थीं उस की आंखें,’’ मां ने छोटे से उत्तर से निरुत्तर कर दिया सारांश को.

सुबह होते ही सारांश शीतल के पास पहुंच गया. चुनमुन सो कर उठा ही था. सारांश को देखते ही उस से लिपट गया.

‘‘आज तुम्हारे स्कूल में पेरैंट्सटीचर मीटिंग है न? क्या मैं चल सकता हूं तुम्हारे साथ पापा बन कर?’’ कहते हुए सारांश ने चुनमुन को स्नेहभरी निगाहों से देखा. चुनमुन प्यार से सारांश के गाल चूमने लगा और शीतल भाग गई वहां से. एक कोने में हाथ जोड़ कर खड़ी शीतल की आंखों से टपटप बहते आंसू सारी सीमाएं तोड़ देना चाहते थे.

शीतल मुड़ कर वापस आई तो सारांश के आगे सिर  झुका लिया अपना. सारांश ने मुसकरा कर उस की ओर देखा मानो कह रहा हो, ‘कह दो आंसुओं से कि दूर चले जाएं तुम्हारी आंखों से, तुम मेरी हो अब, सिर्फ मेरी.’

Hindi Kahaniyan : नासमझी की आंधी – दीपा से ऐसी क्या गलती हो गयी थी

Hindi Kahaniyan : सुबहसुबह रमेश की साली मीता का फोन आया. रमेश ने फोन पर जैसे ही  ‘हैलो’ कहा तो उस की आवाज सुनते ही मीता झट से बोली, ‘‘जीजाजी, आप फौरन घर आ जाइए. बहुत जरूरी बात करनी है.’’

रमेश ने कारण जानना चाहा पर तब तक फोन कट चुका था. मीता का घर उन के घर से 15-20 कदम की दूरी पर ही था. रमेश को आज अपनी साली की आवाज कुछ घबराई हुई सी लगी. अनहोनी की आशंका से वे किसी से बिना कुछ बोले फौरन उस के घर पहुंच गए. जब वे उस के घर पहुंचे, तो देखा उन दोनों पतिपत्नी के अलावा मीता का देवर भी बैठा हुआ था. रमेश के घर में दाखिल होते ही मीता ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. यह स्थिति उन के लिए बड़ी अजीब सी थी. रमेश ने सवालिया नजरों से सब की तरफ देखा और बोले, ‘‘क्या बात है? ऐसी क्या बात हो गई जो इतनी सुबहसुबह बुलाया?’’

मीता कुछ कहती, उस से पहले ही उस के पति ने अपना मोबाइल रमेश के आगे रख दिया और बोला, ‘‘जरा यह तो देखिए.’’

इस पर चिढ़ते हुए रमेश ने कहा, ‘‘यह क्या बेहूदा मजाक है?  क्या वीडियो देखने के लिए बुलाया है?’’

मीता बोली, ‘‘नाराज न होएं. आप एक बार देखिए तो सही, आप को सब समझ आ जाएगा.’’

जैसे ही रमेश ने वह वीडियो देखा उस का पूरा जिस्म गुस्से से कांपने लगा और वह ज्यादा देर वहां रुक नहीं सका. बाहर आते ही रमेश ने दामिनी (सलेहज) को फोन लगाया.

दामिनी की आवाज सुनते ही रमेश की आवाज भर्रा गई, ‘‘तुम सही थी. मैं एक अच्छा पिता नहीं बन पाया. ननद तो तुम्हारी इस लायक थी ही नहीं. जिन बातों पर एक मां को गौर करना चाहिए था, पर तुम ने एक पल में ही गौर कर लिया. तुम ने तो मुझे होशियार भी किया और हम सबकुछ नहीं समझे. यहीं नहीं, दीपा पर अंधा विश्वास किया. मुझे अफसोस है कि मैं ने उस दिन तुम्हें इतने कड़वे शब्द कहे.’’

‘‘अरे जीजाजी, आप यह क्या बोले जा रहे हैं? मैं ने आप की किसी बात का बुरा नहीं माना था. अब आप बात बताएंगे या यों ही बेतुकी बातें करते रहेंगे. आखिर हुआ क्या है?’’

रमेश ने पूरी बात बताई और कहा, ‘‘अब आप ही बताओ मैं क्या करूं? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा.’’ और रमेश की आवाज भर्रा गई.

‘‘आप परेशान मत होइए. जो होना था हो गया. अब यह सोचने की जरूरत है कि आगे क्या करना है? ऐसा करिए आप सब से पहले घर पहुंचिए और दीपा को स्कूल जाने से रोकिए.’’

‘‘पर इस से क्या होगा?’’

‘‘क्यों नहीं होगा? आप ही बताओ, इस एकडेढ़ साल में आप ने क्या किसी भी दिन दीपा को कहते हुए सुना कि वह स्कूल नहीं जाना चाहती? चाहे घर में कितना ही जरूरी काम था या तबीयत खराब हुई, लेकिन वह स्कूल गई. मतलब कोई न कोई रहस्य तो है. स्कूल जाने का कुछ तो संबंध हैं इस बात से. वैसे भी यदि आप सीधासीदा सवाल करेंगे तो वह आप को कुछ नहीं बताएगी. देखना आप, स्कूल न जाने की बात से वह बिफर जाएगी और फिर आप से जाने की जिद करेगी. तब मौका होगा उस से सही सवाल करने का.’’

‘‘क्या आप मेरा साथ दोगी? आप आ सकती हो उस से बात करने के लिए?’’ रमेश ने पूछा.

‘‘नहीं, मेरे आने से कोई फायदा नहीं. दीदी को भी आप जानते हैं. उन्हें बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. इस बात के लिए मेरा बीच में पड़ना सही नहीं होगा. आप मीता को ही बुला लीजिए.’’

घर जा कर रमेश ने मीता को फोन कर के घर बुला लिया और दीपा को स्कूल जाने से रोका,’’ आज तुम स्कूल नहीं जाओगी.’’

लेकिन उम्मीद के मुताबिक दीपा स्कूल जाने की जिद करने लगी,’’ आज मेरा प्रैक्टिकल है. आज तो जाना जरूरी है.’’

इस पर रमेश ने कहा,’’ वह मैं तुम्हारे स्कूल में जा कर बात कर लूंगा.’’

‘‘नहीं पापा, मैं रुक नहीं सकती आज, इट्स अर्जेंट.’’

‘‘एक बार में सुनाई नहीं देता क्या? कह दिया ना नहीं जाना.’’ पर दीपा बारबार जिद करती रही. इस बात पर रमेश को गुस्सा आ गया और उन्होंने दीपा के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया. हालांकि? दीपा पर हाथ उठा कर वे मन ही मन दुखी हुए, क्योंकि उन्होंने आज तक दीपा पर हाथ नहीं उठाया था. वह उन की लाड़ली बेटी थी.

तब तक मीता अपने पति के साथ वहां पहुंच गई और स्थिति को संभालने के लिए दीपा को उस के कमरे में ले कर चली गई. वह दीपा से बोली, ‘‘यह सब क्या चल रहा है, दीपा? सचसच बता, क्या है यह सब फोटोज, यह एमएमएस?’’

दीपा उन फोटोज और एमएमएस को देख कर चौंक गई, ‘‘ये…य…यह सब क…क…ब  …कै…से?’’ शब्द उस के गले में ही अटकने लगे. उसे खुद नहीं पता था इस एमएमएस के बारे में, वह घबरा कर रोने लगी.

इस पर मीता उस की पीठ सहलाती हुई बोली, ‘‘देख, सब बात खुल कर बता. जो हो गया सो हो गया. अगर अब भी नहीं समझी तो बहुत देर हो जाएगी. हां, यह तू ने सही नहीं किया. एक बार भी नहीं खयाल आया तुझे अपने बूढ़े अम्माबाबा का? यह कदम उठाने से पहले एक बार तो सोचा होता कि तेरे पापा को तुझ से कितना प्यार है. उन के विश्वास का खून कर दिया तू ने. तेरी इस करतूत की सजा पता है तेरे भाईबहनों को भुगतनी पड़ेगी. तेरा क्या गया?’’

अब दीपा पूरी तरह से टूट चुकी थी. ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं ने जो भी किया, अपने प्यार के लिए,  उस को पाने के लिए किया. मुझे नहीं मालूम यह एमएमएस कैसे बना? किस ने बनाया?’’

‘‘सारी बात शुरू से बता. कुछ छिपाने की जरूरत नहीं वरना हम कुछ नहीं कर पाएंगे. जिसे तू प्यार बोल रही है वह सिर्फ धोखा था तेरे साथ, तेरे शरीर के साथ, बेवकूफ लड़की.’’

दीपा सुबकते हुए बोली, ’’राहुल घर के सामने ही रहता है. मैं उस से प्यार करती हूं. हम लोग कई महीनों से मिल रहे थे पर राहुल मुझे भाव ही नहीं देता था. उस पर कई और लड़कियां मरती हैं और वे सब चटखारे लेले कर बताती थीं कि राहुल उन के लिए कैसे मरता है. बहुत जलन होती थी मुझे. मैं उस से अकेले में मिलने की जिद करती थी कि सिर्फ एक बार मिल लो.’’

‘‘लेकिन छोटा शहर होने की वजह से मैं उस से खुलेआम मिलने से बचती थी. वही, वह कहता था, ‘मिल तो लूं पर अकेले में. कैंटीन में मिलना कोई मिलना थोड़े ही होता है.’

‘‘एकदिन मम्मीपापा किसी काम से शहर से बाहर जा रहे थे तो मौके का फायदा उठा कर मैं ने राहुल को घर आ कर मिलने को कह दिया, क्योंकि मुझे मालूम था कि वे लोग रात तक ही वापस आ पाएंगे. घर में सिर्फ दादी थी और बाबा तो शाम तक अपने औफिस में रहेंगे. दादी घुटनों की वजह से सीढि़यां भी नहीं चढ़ सकतीं तो इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा.

‘‘आप को भी मालूम होगा कि हमारे घर के 2 दरवाजे हैं, बस, क्या था, मैं ने पीछे वाला दरवाजा खोल दिया. उस दरवाजे के खुलते ही छत पर बने कमरे में सीधा पहुंचा जा सकता है और ऐसा ही हुआ. मौके का फायदा उठा कर राहुल कमरे में था. और मैं ने दादी से कहा, ‘अम्मा मैं ऊपर कमरे में काम कर रही हूं. अगर मुझ से कोई काम हो तो आवाज लगा देना.’

‘‘इस पर उन्होंने कहा, ‘कैसा काम कर रही है, आज?’ तो मैं ने कहा, ‘अलमारी काफी उलटपुलट हो रही है. आज उसी को ठीक करूंगी.’

‘‘सबकुछ मेरी सोच के अनुसार चल रहा था. मुझे अच्छी तरह मालूम था कि अभी 3 घंटे तक कोई नौकर भी नहीं आने वाला. जब मैं कमरे में गई तो अंदर से कमरा बंद कर लिया और राहुल की तरफ देख कर मुसकराई.

‘‘मुझे यकीन था कि राहुल खुश होगा. फिर भी पूछ बैठी, ‘अब तो खुश हो न? चलो, आज तुम्हारी सारी शिकायत दूर हो गई होगी. हमेशा मेरे प्यार पर उंगली उठाते थे.’ अब खुद ही सोचो, क्या ऐसी कोई जगह है. यहां हम दोनों आराम से बैठ कर एकदो घंटे बात कर सकते हैं. खैर, आज इतनी मुश्किल से मौका मिला है तो आराम से जीभर कर बातें करते हैं.’’

‘‘नहीं, मैं खुश नहीं हूं. मैं क्या सिर्फ बात करने के लिए इतना जोखिम उठा कर आया हूं. बातें तो हम फोन पर भी कर लेते हैं. तुम तो अब भी मुझ से दूर हो.’’ मुझे बहुत कुठा…औरतों के साथ तो वह जम कर…था.

‘‘मैं ने कहा, ‘फिर क्या चाहते हो?’

‘‘राहुल बोला, ‘देखो, मैं तुम्हारे लिए एक उपहार लाया हूं, इसे अभी पहन कर दिखाओ.’

‘‘मैं ने चौंक कर वह पैकेट लिया और खोल कर देखा. उस में एक गाउन था. उस ने कहा, ‘इसे पहनो.’

‘पर…र…?’ मैं ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘‘परवर कुछ नहीं. मना मत करना,’ उस ने मुझ पर जोर डाला. ‘अगर कोई आ गया तो…’ मैं ने डरते हुए कहा तो उस ने कहा, ‘तुम को मालूम है, ऐसा कुछ नहीं होने वाला. अगर मेरा मन नहीं रख सकती हो, तो मैं चला जाता हूं. लेकिन फिर कभी मुझ से कोई बात या मिलने की कोशिश मत करना,’ वह गुस्से में बोला.

‘‘मैं किसी भी हालत में उसे नाराज नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैं ने उस की बात मान ली. और जैसे ही मैं ने नाइटी पहनी.’’ बोलतेबोलते दीपा चुप हो गई और पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदने लगी.

‘‘आगे बता क्या हुआ?  चुप क्यों हो गई?  बताते हुए शर्म आ रही है पर तब यह सब करते हुए शर्म नहीं आई?’’ मीता ने कहा.

पर दीपा नीची निगाह किए बैठी रही.

‘‘आगे बता रही है या तेरे पापा को बुलाऊं? अगर वे आए तो आज कुछ अनहोनी घट सकती है,’’ मीता ने डांटते हुए कहा.

पापा का नाम सुनते ही दीपा जोरजोर से रोने लगी. वह जानती थी कि आज उस के पापा के सिर पर खून सवार है. ‘‘बता रही हूं.’’ सुबकते हुए बोली, ‘‘जैसे ही मैं ने नाइटी पहनी, तो राहुल ने मुझे अपनी तरफ खींच लिया.

‘‘मैं ने घबरा कर  उस को धकेला और कहा, ‘यह क्या कर रहे हो? यह सही नहीं है.’ इस पर उस ने कहा, ‘सही नहीं है, तुम कह रही हो? क्या इस तरह से बुलाना सही है? देखो, आज मुझे मत रोको. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो.’

‘‘‘तो क्या?’

‘‘‘देखो, मैं यह जहर खा लूंगा’, और यह कहते हुए उस ने जेब से एक पुडि़या निकाल कर इशारा किया. मैं डर गई कि कहीं यहीं इसे कुछ हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. और फिर उस ने वह सब किया, जो कहा था. उस की बातों में आ कर मैं अपनी सारी सीमाएं लांघ चुकी थी. पर कहीं न कहीं मन में तसल्ली थी कि अब राहुल को मुझ से कोई शिकायत नहीं रही. पहले की तरह फिर पूछा, ‘राहुल अब तो खुश हो न?’

‘‘‘नहीं, अभी मन नहीं भरा. यह एक सपना सा लग रहा है. कुछ यादें भी तो होनी चाहिए’, उस ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘यादें, कैसी यादें’, मैं ने सवालिया नजर डाली. ‘अरे, वही कि जब चाहूं तुम्हें देख सकूं,’ उस से राहुल ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘पता नही क्यों अपना सबकुछ लुट जाने के बाद भी, मैं मूर्ख उस की चालाकी को प्यार समझ रही थी. मैं ने उस की यह ख्वाहिश भी पूरी कर देनी चाही और पूछा, ‘वह कैसे?’

‘‘‘ऐसे,’ कहते हुए उस ने अपनी अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर झट से मेरी एक फोटो ले ली. फिर, ‘मजा नहीं आ रहा,’ कहते कहते, एकदम से मेरा गाउन उतार फेंका और कुछ तसवीरें जल्दजल्दी खींच लीं.

‘‘यह सब इतना अचानक से हुआ कि मैं उस की चाल नहीं समझ पाई. समय भी हो गया था और मम्मीपापा के आने से पहले सबकुछ पहले जैसा ठीक भी करना था. कुछ देर बाद राहुल वापस चला गया और मैं नीचे आ गई. किसी को कुछ नहीं पता लगा.

‘‘पर कुछ दिनों बाद एक दिन दामिनी मामी घर पर आई. उन की नजरें मेरे गाल पर पड़े निशान पर अटक गईं. वे पूछ बैठीं, ‘क्या हो गया तेरे गाल पर?’ मैं ने उन से कहा, ‘कुछ नहीं मामी, गिर गई थी.’

‘‘पर पता नहीं क्यों मामी की नजरें सच भांप चुकी थीं. उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘गिरने पर इस तरह का निशान कैसे हो गया? यह तो ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने जोर से चुंबन लिया हो. सब ठीक तो है न दीपा?’

‘‘मैं ने नजरें चुराते हुए थोड़े गुस्से के लहजे में कहा, ‘पागल हो गई हो क्या? कुछ सोच कर तो बोलो.’ और मैं गुस्से से वहां से उठ कर चली गई. ‘‘लंच के बाद सब लोग बैठे हुए हंसीमजाक कर रहे थे. मामी मुझे समझाने के मकसद से आईं तो उन्होंने मुझे खिड़की के पास खड़े हो कर, राहुल को इशारा करते हुए देख लिया. हालांकि मैं उन के कदमों की आहट से संभल चुकी थी पर अनुभवी नजरें सब भांप गई थीं. मामी ने मम्मी से कहा, ‘दीदी, अब आप की लड़की बड़ी हो गई है. कुछ तो ध्यान रखो. कैसी मां हो? आप को तो अपने घूमनेफिरने और किटीपार्टी से ही फुरसत नहीं है.’

‘‘पर मम्मी ने उलटा उन को ही डांट दिया. फिर मामी ने चुटकी लेते हुए मुझ से कहा, ‘क्या बात है दीपू? हम तो तुम से इतनी दूर मिलने आए हैं और तुम हो कि बात ही नहीं कर रहीं. अरे भई, कहीं इश्कविश्क का तो मामला नहीं है? बता दो, कुछ हैल्प कर दूंगी.’

‘‘‘आप भी न कुछ भी कहती रहती हो. ऐसा कुछ नहीं है,’ मैं ने अकड़ते हुए कहा. लेकिन मामी को दाल में कुछ काला महसूस हो रहा था. उन का दिल कह रहा था कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है और वे यह भी जानती थीं की ननद से कहने का कोई फायदा नहीं, वे बात की गहराई तो समझेंगी नहीं. इसलिए उन को पापा से ही कहना ठीक लगा, ‘बुरा मत मानिएगा जीजाजी, अब दीपा बच्ची नहीं रही. हो सकता है मैं गलत सोच रही हूं. पर मैं ने उसे इशारों से किसी से बात करते हुए देखा है.’

‘‘पापा ने इस बात को कोई खास तवज्जुह नहीं दी, सिर्फ ‘अच्छा’ कह कर  बात टाल दी. जब मामीजी ने दोबारा कहा तो पापा ने कहा, ‘मुझे विश्वास है उस पर. ऐसा कुछ नहीं. मैं अपनेआप देख लूंगा.’

‘‘मैं मन ही मन बहुत खुश थी, लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी. अब राहुल उन फोटोज को दिखा कर मुझे धमकाने लगा. रोज मिलने की जिद करता और मना करने पर मुझ से कहता, ‘अगर आज नहीं मिलीं तो ये फोटोज तेरे घर वालों को दिखा दूंगा.’

‘‘पहले तो समझ नहीं आया क्या करूं? कैसे मिलूं? पर बाद में रोज स्कूल से वापस आते हुए मैं राहुल से मिलने जाने लगी.’’

‘‘पर कहां पर? कहां मिलती थी तू उस से,’’ मीता ने जानना चाहा.

‘‘बसस्टैंड के पास उस का एक छोटा सा स्टूडियो है. वहीं मिलता था और मना करने के बाद भी मुझ से जबरदस्ती संबंध बनाता. एक बार तो गर्भ ठहर गया था.’’

‘‘क्या? तब भी घर में किसी को पता नहीं चला?’’ मीता चौंकी.

‘‘नहीं, राहुल ने एक दवा दे दी थी. जिस को खाते ही काफी तबीयत खराब हो गई थी और मैं बेहोश भी हो गई थी.’’

‘‘अच्छा, हां, याद आया. ऐसा कुछ हुआ तो था. और उस के बाद भी तू किसी को ले कर डाक्टर के पास नहीं गई. अकेले जा कर ही दिखा आई थी. दाद देनी पड़ेगी तेरी हिम्मत की. कहां से आ गई इतनी अक्ल सब को उल्लू बनाने की. वाकई तू ने सब को बहुत धोखा दिया. यह सही नहीं हुआ. वहां राहुल के अलावा और कौनकौन होता था?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’ लेकिन मुझे इतनी बात समझ में आ गई थी कि राहुल मुझे ब्लैकमेल कर मेरी मजबूरी का फायदा उठा रहा है. और मैं तब से जो भी कर रही थी, अपने घर वालों से इस बात को छिपाने के लिए मजबूरी में कर रही थी. मुझे माफ कर दो. मुझे नहीं पता था कि उस ने मेरा एमएमएस बना लिया है. मैं नहीं जानती कि उस ने यह वीडियो कब बनाया. उस ने मुझे कभी एहसास नहीं होने दिया कि हम दोनों के अलावा वहां पर कोई तीसरा भी है, जो यह वीडियो बना रहा है…’’ और वह बोलतेबोलते  रोने लगी.

मीता को सारा माजरा समझ आ चुका था. वह बस, इतना ही कह पाई,’’ बेवकूफ लड़की अब कौन करेगा यकीन तुझ पर? कच्ची उम्र का प्यार तुझे बरबाद कर के चला गया. इस नासमझी की आंधी ने सब तहसनहस कर दिया.’’

उस ने रमेश को सब बताया. तो, एक बार को तो रमेश को लगा कि सबकुछ खत्म हो गया है. पर सब के समझाने पर उस ने सब से पहले थानेदार से मिल कर वायरल हुए वीडियो को डिलीट करवाया. अपने शहर के एक रसूखदार आदमी होने की वजह से, उन के एक इशारे पर पुलिस वालों ने राहुल को जेल में बंद कर दिया. उस के बाद पूरे परिवार को बदनामी से बचाने के लिए सभी लोकल अखबारों के रिपोर्टर्स को न छापने की शर्त पर रुपए खिलाए. दीपा को फौरन शहर से बहुत दूर पढ़ने भेज दिया, क्योंकि कहीं न कहीं रमेश के मन में उस लड़के से खतरा बना हुआ था. हालांकि, बाद में वह लड़का कहां गया, उस के साथ क्या हुआ?  यह किसी को पता नहीं चला.

Hindi Stories Online : फेसबुक की प्रजातियां

Hindi Stories Online :  आपने कभी गौर किया है कि फेसबुक पर पोस्ट करते रहने वाले लोगों को एक कैटेगरी में रखा जा सकता है? कई तरह के लोग हैं, उन की कई तरह की आदतें हैं. जैसे पशुपक्षियों की कई प्रजातियां होती हैं, वैसे ही फेसबुक के महान लोगों की भी कई किस्मे हैं. आज उन्हीं की उदाहरण सहित बात करते हैं:

एक होते हैं विनय जैसे लोग जो जब तक सुबह 10-15 गुड मौर्निंग की अच्छे विचार वाली पोस्ट्स पोस्ट न कर दें, इन के दिन की शुरुआत नहीं होती. इस में भी कमी रह जाती है तो ये फेसबुक के मैसेंजर में जा कर भी शुभ संदेश देते हैं खासकर महिलाओं को.

फिर आते हैं कपिल जैसे लोग जिन्होंने धर्म के हित के लिए कई पोस्ट्स डालने की जिम्मेदारी उठा रखी है. जिस दिन इन की पोस्ट न दिखे तो संदेह होने लगता है कि आज देश में सब ठीक तो है. इन का धर्म आजकल हमेशा खतरे में रहता है.

ये इस तरह की पोस्ट डाल कर समझते हैं कि इन का नाम अब महान देशभक्तों की लिस्ट में आ गया है और ये अब सम्मान के उतने ही अधिकारी हैं जितने दिनरात बौर्डर पर तैनात सिपाही.

एक होते हैं सुनीता जैसे जो नेता नहीं बन पाए तो क्या, उन्हें राजनीति का पूरा ज्ञान है, जो सारा दिन लेटैस्ट राजनीति पर अपना ज्ञान इतना बघारते हैं कि कभीकभी इन की पोस्ट के आसपास से निकलते हुए भी डर लगता है कि कोई गलत बटन न दब जाए और इन की अमानत में खयानत टाइप चीज न हो जाए. ये घर में बैठेबैठे अपने विचारों से असहमत रहने वाले लोगों की नाक में दम कर सकते हैं.

इन्हें अपनी बात काटने वाले लोगों पर इतना गुस्सा आ सकता है कि ये उन्हें फोन कर के भी उन से लड़ सकते हैं. ऐसे गुणों की स्वामिनी घर पर अपने परिवार का क्या हाल करती होगी, इस का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है या ये भी हो सकता है कि घर में उन के विचारों की कद्र न होती हो, वे एक आम सी इंसान समझ जाती हों, फिर क्या करें, कहां जा कर भड़ास निकालें. चलो, फिर फेसबुक पर ही ज्ञान बघारा जाए.

एक होते हैं रेखा जैसे एक लाइक दें, एक लाइक लें, मतलब आप हमारी पोस्ट पर लाइक नहीं करोगे तो हम भी तुम्हारी पोस्ट लाइक नहीं करेंगे. इन का पूरा दिन इस हिसाबकिताब में बीत जाता है कि उस की पोस्ट पर मुझ से ज्यादा लाइक्स कैसे? रेखा की नजर से किसी की पोस्ट बच नहीं सकती पर ये लाइक्स और कमैंट्स का इतना हिसाब रखती हैं कि इन्हें नाम तक याद रहता है कि उस ने फलां की पोस्ट लाइक की, मेरी नहीं की.

एक होती हैं मीरा की तरह प्रेम दीवानी. पता नहीं कितनी भी उम्र बीत जाए, इन का समय कहीं अटक सा गया है. ये शेरोशायरी से बाहर नहीं निकल पातीं. पूरा दिन कहांकहां से ढेरों शेर ला ला ले कर पोस्ट करती हैं. ऐसा लगता है कौन सा जख्म था जो भरने का नाम ही नहीं ले रहा. एक से एक दिलजले शेर पोस्ट करने वाली प्रजाति.

इन के बच्चे ताउम्र नहीं समझ पाते कि माताजी को हुआ क्या है, कैसे कहें कि माताजी आप के शेर अच्छे नहीं होते पर मां मां होती है, मां को प्यार किया जाता है. माताजी को लगता है कि उन्हें उन के लिखे पर तो भारत रत्न मिलना चाहिए. पर ठीक है फेसबुक है न, हम यहीं लिख रहे हैं. दिल हलका हो रहा है, पढ़ने वालों का भारी हो जाए, उन्हें क्या.

एक होती हैं सुनीति जैसी जो घर वालों को बनी हुई डिशबाद में परोसती हैं. फेसबुक  पर पहले पोस्ट करती हैं, जाने कौनसी तमन्ना पूरी नहीं हुई इन की कि जब तक लोग फेसबुक पर खाने की तारीफ न करें, इन्हे संतोष नहीं होता. अगर घर वाले किसी खाने में कोई कमी निकाल दें तो उन का यही जवाब होता है कि लोगों को तो इतनी पसंद आई है, तुम्हीं लोगों के नखरे? अब इन मुहतरमा को कौन बताए कि मैडम, फेसबुक पर किसी ने तुम्हारी ज्यादा नमक वाली डिश टेस्ट थोड़े ही की है.

इन का मन फेसबुक की तारीफों से तृप्त होता है. घर वाले कुछ भी कहते रहें, इन की बला से. शायद इन की लाइफ में विटामिन टी का अभाव होता है. नहीं समझे? विटामिन तारीफ. जब घर से उतनी तारीफ नहीं मिलती जितनी इन को चाहिए होती है तो ये फेसबुक पर मिली झठी तारीफों से खुशी और संतोष पा लेती हैं, उन्हें सच समझ कर.

एक होती हैं माया जैसी. इन्हें घूमने जाने में आनंद ही इसलिए आता है कि वहां जाते ही फेसबुक पर पिक्स पोस्ट करेंगी. इन्हें पहाड़, पेड़, नदी, सागर, फूलों से प्यार ही इसलिए हो गया है कि ये पिक्स पोस्ट कर सकें. किसी रेस्तरां में खाना मुंह में बाद में जाएगा, पहले उस डिश की पोस्ट फेसबुक पर जाएगी. ये जीवन में जो भी करती हैं, फेसबुक के लिए करती हैं.

एक होते हैं सुधीर जैसे लोग जो किसी पर भी गुस्सा आए, फेसबुक पर बिना उस का नाम लिखे लिख देते हैं, नाम भी नहीं आएगा और सामने वाला भी समझ जाएगा कि उस के लिए लिखा है. इन के लिए फेसबुक एक हथियार है जिस का प्रयोग वे लगभग रोज ही करते हैं. अब तो लोग उन से उलझने से डरने लगे हैं कि भाई को कोई बात पसंद नहीं आई तो कल पोस्ट में अपने को भिगोभिगो कर मारेगा.

देखते ही देखते फेसबुक पर एक जमात और तैयार हो गई है समीक्षकों की. ये किसी भी किताब को पढ़ कर उस की समीक्षा सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि किताब का जिक्र होगा तो उन के लिखे का भी जिक्र होगा और उन का भी नाम होगा. लेखक ने मेहनत की है, यह अलग बात है, पर ये सब को ऐसे बताते हैं, ‘‘तुम ने मेरी फलां समीक्षा पड़ी है? मैं ने बहुत मेहनत से लिखी है समीक्षा, जरूर पढ़ना. (किताब पढ़ो या नहीं, मेरी लिखी समीक्षा पढ़ लो, बस, समीक्षा पर लाइक और कमैंट कर दो, बस) ये किताब तो नहीं लिख पाए पर समीक्षा का ऐसा शोर मचा देते हैं कि लगता है, बस ये तो लेखक से भी अच्छा लिख देते हैं.

एक और प्रजाति है. बताती हूं, एक होते हैं जो फेसबुक पर सब देखते हैं, सब पढ़ते हैं पर शांति से जीना चाहते हैं. इन का मानना है कि एक चुप, हजार सुख. तो भाई, तुम्हें लाइक लेने हैं, ले लो, मैं दूंगी, तुम लोग खुश रहो पर कभीकभी कोई पोस्ट ऐसी भी हो जाती है कि जिस पर गलती से भी लाइक का बटन नहीं दब पाता तो उन्हें यह समझना पड़ता है कि हम ने देखी ही नहीं क्योंकि आजकल तो लोग लाइक्स कम मिलने पर फोन करने लगे हैं कि भाई, हमारी पोस्ट नहीं देखी क्या? फिलहाल फेसबुक की अन्य प्रजातियों पर रिसर्च जारी है.

मगर साथ ही मेरा एक अनुभव और सलाह यह भी है कि जितना हो सके, फेसबुक की प्रजाति में अपना नाम दर्ज करवाने से अच्छा है कि किताबें पढ़ने वालों में अपना नाम दर्ज कराएं. किताबों की दुनिया से दूर हो कर फेसबुक के झूठे संसार में अपना समय खराब करने में जरा भी समझदारी नहीं है.

वे लोग यकीनन अपना समय अच्छी चीजों में लगा रहे हैं जो किताबें पढ़ रहे हैं. फेसबुक से आप एक समय बाद बोर हो सकते हैं, किताबों का शौक कभी पुराना नहीं पड़ता, न आप को इस बात का स्ट्रैस देता है कि उस की लाइक्स मेरी लाइक्स से ज्यादा कैसे.

Best Hindi Stories : प्यार अपने से

Best Hindi Stories : झारखंड राज्य का एक शहर है हजारीबाग. यह कुदरत की गोद में बसा छोटा सा, पर बहुत खूबसूरत शहर है. पहाडि़यों से घिरा, हरेभरे घने जंगल, झील, कोयले की खानें इस की खासीयत हैं. हजारीबाग के पास ही में डैम और नैशनल पार्क भी हैं. यह शहर अभी हाल में ही रेल मार्ग से जुड़ा है, पर अभी भी नाम के लिए 1-2 ट्रेनें ही इस लाइन पर चलती हैं. शायद इसी वजह से इस शहर ने अपने कुदरती खूबसूरती बरकरार रखी है.

सोमेन हजारीबाग में फौरैस्ट अफसर थे. उन दिनों हजारीबाग में उतनी सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए उन की बीवी संध्या अपने मायके कोलकाता में ही रहती थी.

दरअसल, शादी के बाद कुछ महीनों तक वे दोनों फौरैस्ट अफसर के शानदार बंगले में रहते थे. जब संध्या मां बनने वाली थी, सोमेन ने उसे कोलकाता भेज दिया था. उन्हें एक बेटी हुई थी. वह बहुत खूबसूरत थी, रिया नाम था उस का. सोमेन हजारीबाग में अकेले रहते थे. बीचबीच में वे कोलकाता जाते रहते थे.

हजारीबाग के बंगले के आउट हाउस में एक आदिवासी जोड़ा रहता था. लक्ष्मी सोमेन के घर का सारा काम करती थी. उन का खाना भी वही बनाती थी. उस का मर्द फूलन निकम्मा था. वह बंगले की बागबानी करता था और सारा दिन हंडि़या पी कर नशे में पड़ा रहता था.

एक दिन दोपहर बाद लक्ष्मी काम करने आई थी. वह रोज शाम तक सारा काम खत्म कर के रात को खाना टेबल पर सजा कर चली जाती थी. उस दिन मौसम बहुत खराब था. घने बादल छाए हुए थे. मूसलाधार बारिश हो रही थी. दिन में ही रात जैसा अंधेरा हो गया था.

अपने आउट हाउस में बंगले तक दौड़ कर आने में ही लक्ष्मी भीग गई थी. सोमेन ने दरवाजा खोला. उस की गीली साड़ी और ब्लाउज के अंदर से उस के सुडौल उभार साफ दिख रहे थे.

सोमेन ने लक्ष्मी को एक पुराना तौलिया दे कर बदन सुखाने को कहा, फिर उसे बैडरूम में ही चाय लाने को कहा. बिजली तो गुल थी. उन्होंने लैंप जला रखा था.

थोड़ी देर में लक्ष्मी चाय ले कर आई. चाय टेबल पर रखने के लिए जब वह झुकी, तो उस का पल्लू सरक कर नीचे जा गिरा और उस के उभार और उजागर हो गए.

सोमेन की सांसें तेज हो गईं और उन्हें लगा कि कनपटी गरम हो रही है. लक्ष्मी अपना पल्लू संभाल चुकी थी. फिर भी सोमेन उसे लगातार देखे जा रहे थे.

यों देखे जाने से लक्ष्मी को लगा कि जैसे उस के कपड़े उतारे जा रहे हैं. इतने में सोमेन की ताकतवर बाजुओं ने उस की कमर को अपनी गिरफ्त में लेते हुए अपनी ओर खींचा.

लक्ष्मी भी रोमांचित हो उठी. उसे मरियल पियक्कड़ पति से ऐसा मजा नहीं मिला था. उस ने कोई विरोध नहीं किया और दोनों एकदूसरे में खो गए.

इस घटना के कुछ महीने बाद सोमेन ने अपनी पत्नी और बेटी रिया को रांची बुला लिया. हजारीबाग से रांची अपनी गाड़ी से 2 ढाई घंटे में पहुंच जाते हैं.

सोमेन ने उन के लिए रांची में एक फ्लैट ले रखा था. उन के प्रमोशन की बात चल रही थी. प्रमोशन के बाद उन का ट्रांसफर रांची भी हो सकता है, ऐसा संकेत उन्हें डिपार्टमैंट से मिल चुका था.

इधर लक्ष्मी भी पेट से हो गई थी. इस के पहले उसे कोई औलाद न थी.

लक्ष्मी के एक बेटा हुआ. नाकनक्श से तो साधारण ही था, पर रंग उस का गोरा था. आमतौर पर आदिवासियों के बच्चे ऐसे नहीं होते हैं.

अभी तक सोमेन हजारीबाग में ही थे. वे मन ही मन यह सोचते थे कि कहीं यह बेटा उन्हीं का तो नहीं है. उन्हें पता था कि लक्ष्मी की शादी हुए 6 साल हो चुके थे, पर वह पहली बार मां बनी थी.

सोमेन को तकरीबन डेढ़ साल बाद प्रमोशन और ट्रांसफर और्डर मिला. तब तक लक्ष्मी का बेटा गोपाल भी डेढ़ साल का हो चुका था.

हजारीबाग से जाने के पहले लक्ष्मी ने सोमेन से अकेले में कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहना चाहती हूं.’’

‘‘हां, कहो,’’ सोमेन ने कहा.

‘‘गोपाल आप का ही खून है.’’

सोमेन बोले, ‘‘यह तो मैं यकीनी तौर पर नहीं मान सकता हूं. जो भी हो, पर तुम मुझ से चाहती क्या हो?’’

‘‘बाबूजी, मैं बेटे की कसम खा कर कहती हूं, गोपाल आप का ही खून है.’’

‘‘ठीक है. बोलो, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘ज्यादा कुछ नहीं. बस, यह भी पढ़लिख कर अच्छा इनसान बने. मैं किसी से कुछ नहीं बोलूंगी. आप इतना भरोसा तो मुझ पर कर सकते हैं,’’

लक्ष्मी बोली.

‘‘ठीक है. तुम लोगों के बच्चों का तो हर जगह आसानी से रिजर्वेशन कोटे में दाखिला हो ही जाता है. फिर भी मुझ से कोई मदद चाहिए तो बोलना.’’

इस के बाद सोमेन रांची चले गए. समय बीतता गया. सोमेन की बेटी रिया 10वीं पास कर आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई थी.

बीचबीच में इंस्पैक्शन के लिए सोमेन को हजारीबाग जाना पड़ता था. वे वहीं आ कर बंगले में ठहरते थे. लक्ष्मी भी उन से मिला करती थी. उस ने सोमेन से कहा था कि गोपाल भी 10वीं क्लास के बाद दिल्ली के अच्छे स्कूल और कालेज में पढ़ना चाहता है. उसे कुछ माली मदद की जरूरत पड़ सकती है.

सोमेन ने उसे मदद करने का भरोसा दिलाया था. गोपाल अब बड़ा हो गया था. वे उसे देख कर खुश हुए. शक्ल तो मां की थी, पर रंग गोरा था. छरहरे बदन का साधारण, पर आकर्षक लड़का था. उस के नंबर भी अच्छे आते थे.

रिया के दिल्ली जाने के एक साल बाद गोपाल ने भी दिल्ली के उसी स्कूल में दाखिला ले लिया. सोमेन ने गोपाल की 12वीं जमात तक की पढ़ाई के लिए रुपए उस के बैंक में जमा करवा दिए थे.

रिया गोपाल से एक साल सीनियर थी. पर एक राज्य का होने के चलते दोनों में परिचय हो गया. छुट्टियों में ट्रेन में अकसर आनाजाना साथ ही होता था. गोपाल और रिया दोनों का इरादा डाक्टर बनने का था.

रिया ने 12वीं के बाद कुछ मैडिकल कालेज के लिए अलगअलग टैस्ट दिए, पर वह कहीं भी पास नहीं कर सकी थी. तब उस ने एक साल कोचिंग ले कर अगले साल मैडिकल टैस्ट देने की सोची. वहीं दिल्ली के अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट में कोचिंग शुरू की.

अगले साल गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल कालेज में दाखिले के लिए टैस्ट दिए. इस बार दोनों को कामयाबी मिली थी. गोपाल के नंबर कुछ कम थे, पर रिजर्वेशन कोटे में तो उस का दाखिला होना तय था.

गोपाल और रिया दोनों ने बीएचयू मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. सोमेन गोपाल की पढ़ाई का भी खर्च उठा रहे थे. अब दोनों की क्लास भी साथ होती थी. आपस में मिलनाजुलना भी ज्यादा हो गया था. छुट्टियों में भी साथ ही घर आते थे.

वहां से शेयर टैक्सी से हजारीबाग जाना आसान था. हजारीबाग के लिए कोई अलग ट्रेन नहीं थी. जब कभी सोमेन रिया को लेने रांची स्टेशन जाते थे, तो वे गोपाल को भी बिठा लेते थे और अगर सोमेन को औफिशियल टूर में हजारीबाग जाना पड़ता था, तो गोपाल को वे साथ ले जाते थे. इस तरह समय बीतता गया और गोपाल व रिया अब काफी नजदीक आ गए थे. वे एकदूसरे से प्यार करने लगे थे.

गोपाल और रिया दोनों असलियत से अनजान थे. दोनों के मातापिता भी उन की प्रेम कहानी से वाकिफ नहीं थे. उन्होंने पढ़ाई के बाद अपना घर बसाने का सपना देख रखा था. साढ़े 4 साल बाद दोनों ने अपनी एमबीबीएस पूरी कर ली. आगे उसी कालेज में दोनों ने एक साल की इंटर्नशिप भी पूरी की.

रिया काफी समझदार थी. उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे, पर उस ने मना कर दिया और कहा कि अभी वह डाक्टरी में पोस्ट ग्रेजुएशन करेगी.

लक्ष्मी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी. इसी बीच सोमेन भी हजारीबाग में थे. उस ने सोमेन से कहा, ‘‘बाबूजी, मेरा अब कोई ठिकाना नहीं है. आप गोपाल का खयाल रखेंगे?’’

सोमेन ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब गोपाल समझदार डाक्टर बन चुका है. वह अपने पैरों पर खड़ा है. फिर भी उसे मेरी जरूरत हुई, तो मैं जरूर मदद करूंगा.’’

कुछ दिनों बाद ही लक्ष्मी की मौत हो गई.

गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल में पोस्ट ग्रैजुएशन का इम्तिहान दिया था. वे तो बीएचयू में पीजी करना चाहते थे, पर वहां उन्हें सीट नहीं मिली. दोनों को रांची मैडिकल कालेज आना पड़ा.

उन में प्रेम तो जरूर था, पर दोनों में से किसी ने भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था. दोनों ने तय किया कि जब तक उन की शादी नहीं होती, इस प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए.

रिया की मां संध्या ने एक दिन उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए अच्छेअच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. तुम पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए भी शादी कर सकती हो. बहुत से लड़केलड़कियां ऐसा करते हैं.’’

रिया बोली, ‘‘करते होंगे, पर मैं नहीं करूंगी. मुझ से बिना पूछे शादी की बात भी मत चलाना.’’

‘‘क्यों? तुझे कोई लड़का पसंद है, तो बोल न?’’

‘‘हां, ऐसा ही समझो. पर अभी हम दोनों पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. शादी की जल्दी किसी को भी नहीं है. पापा को भी बता देना.’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया. इसी बीच एक बार सोमेन के दोस्त ने उन्हें खबर दी कि उस ने रिया और गोपाल को एकसाथ सिनेमाघर से निकलते देखा है.

इस के कुछ ही दिनों बाद संध्या के रिश्ते के एक भाई ने बताया कि उस ने गोपाल और रिया को रैस्टौरैंट में लंच करते देखा है.

सोमेन ने अपनी पत्नी संध्या से कहा, ‘‘रिया और गोपाल दोनों को कई बार सिनेमाघर या होटल में साथ देखा गया है. उसे समझाओ कि उस के लिए अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. सिर्फ उस के हां कहने की देरी है.’’

संध्या बोली, ‘‘रिया ने मुझे बताया था कि वह गोपाल से प्यार करती है.’’

सोमेन चौंक पड़े और बोले, ‘‘क्या? रिया और गोपाल? यह तो बिलकुल भी नहीं हो सकता.’’

अगले दिन सोमेन ने रिया से कहा, ‘‘बेटी, तेरे रिश्ते के लिए काफी अच्छे औफर हैं. तू जिस से बोलेगी, हम आगे बात करेंगे’’

रिया ने कहा, ‘‘पापा, मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कि आप को बताऊं कि मैं और गोपाल एकदूसरे को चाहते हैं. मैं ने मम्मी को बताया भी था कि पीजी पूरा कर के मैं शादी करूंगी.’’

‘‘बेटी, कहां गोपाल और कहां तुम? उस से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, उसे भूल जाओ. अपनी जाति के अच्छे रिश्ते तुम्हारे सामने हैं.’’

‘‘पापा, हम दोनों पिछले 5 सालों से एकदूसरे को चाहते हैं. आखिर उस में क्या कमी है?’’

‘‘वह एक आदिवासी है और हम ऊंची जाति के शहरी लोग हैं.’’

‘‘पापा, आजकल यह जातपांत, ऊंचनीच नहीं देखते. गोपाल भी एक अच्छा डाक्टर है और उस से भी पहले बहुत नेक इनसान है.’’

सोमेन ने गरज कर कहा, ‘‘मैं बारबार तुम्हें मना कर रहा हूं… तुम समझती क्यों नहीं हो?’’

‘‘पापा, मैं ने भी गोपाल को वचन दिया है कि मैं शादी उसी से करूंगी.’’

उसी समय संध्या भी वहां आ गई और बोली, ‘‘अगर रिया गोपाल को इतना ही चाहती है, तो उस से शादी करने में क्या दिक्कत है? मुझे तो गोपाल में कोई कमी नहीं दिखती है.’’

सोमेन चिल्ला कर बोले, ‘‘मेरे जीतेजी यह शादी नहीं हो सकती. मैं तो कहूंगा कि मेरे मरने के बाद भी ऐसा नहीं करना. तुम लोगों को मेरी कसम.’’

रिया बोली, ‘‘ठीक है, मैं शादी ही नहीं करूंगी. तब तो आप खुश हो जाएंगे.’’

सोमेन बोले, ‘‘नहीं बेटी, तुझे शादीशुदा देख कर मुझे बेहद खुशी होगी. पर तू गोपाल से शादी करने की जिद छोड़ दे.’’

‘‘पापा, मैं ने आप की एक बात मान ली. मैं गोपाल को भूल जाऊंगी. परंतु आप भी मेरी एक बात मान लें, मुझे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.’’

ये बातें फिलहाल यहीं रुक गईं. रात में संध्या ने पति सोमेन से पूछा, ‘‘क्या आप बेटी को खुश नहीं देखना चाहते हैं? आखिर गोपाल में क्या कमी है?’’

सोमेन ने कहा, ‘‘गोपाल में कोई कमी नहीं है. उस के आदिवासी होने पर भी मुझे कोई एतराज नहीं है. वह सभी तरह से अच्छा लड़का है, फिर भी…’’

रिया को नींद नहीं आ रही थी. वह भी बगल के कमरे में उन की बातें सुन रही थी. वह अपने कमरे से बाहर आई और पापा से बोली, ‘‘फिर भी क्या…? जब गोपाल में कोई कमी नहीं है, फिर आप की यह जिद बेमानी है.’’

सोमेन बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि तेरी शादी गोपाल से हो.’’

‘‘नहीं पापा, आखिर आप के न चाहने की कोई तो ठोस वजह होनी चाहिए. आप प्लीज मुझे बताएं, आप को मेरी कसम. अगर कोई ऐसी वजह है, तो मैं खुद ही पीछे हट जाऊंगी. प्लीज, मुझे बताएं.’’

सोमेन बहुत घबरा उठे. उन को पसीना छूटने लगा. पसीना पोंछ कर अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह शादी इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि…’’

वे बोल नहीं पा रहे थे, तो संध्या ने उन की पीठ सहलाते हुए उन को हिम्मत दी और कहा, ‘‘हां बोलिए आप, क्योंकि… क्या?’’

सोमेन बोले, ‘‘तो लो सुनो. यह शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि गोपाल रिया का छोटा भाई है.

‘‘जब मैं हजारीबाग में अकेला रहता था, तब मुझ से यह भूल हो गई थी.’’

रिया और संध्या को काटो तो खून नहीं. दोनों हैरानी से सोमेन को देख रही थीं. रिया की आंखों से आंसू गिरने लगे. कुछ देर बाद वह सहज हुई और अपने कमरे में चली गई.

रात में ही उस ने गोपाल को फोन कर के कहा, ‘‘गोपाल, क्या तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो?’’

गोपाल बोला, ‘क्या इतनी रात गए यही पूछने के लिए फोन किया है?’

‘‘तुम ने सुना होगा कि प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है, इस में कभी खोना भी पड़ता है.’’

गोपाल ने कहा, ‘हां, सुना तो है.’’

‘‘अगर यह सही है, तो तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी. बोलो मानोगे?’’ रिया बोली.

गोपाल बोला, ‘यह कैसी बात कर रही हो आज? तुम्हारी हर जायज बात मैं मानूंगा.’

‘‘तो सुनो. बात बिलकुल जायज  है, पर मैं इस की कोई वजह नहीं बता सकती हूं और न ही तुम पूछोगे. ठीक है?’’

‘ठीक है, नहीं पूछूंगा. अब बताओ तो सही.’

रिया बोली, ‘‘हम दोनों की शादी नहीं हो सकती. यह बिलकुल भी मुमकिन नहीं है. वजह जायज है और जैसा कि मैं ने पहले ही कहा है कि वजह न मैं बता सकती हूं, न तुम पूछना कभी.’’

गोपाल ने पूछा, ‘तो क्या हमारा प्यार झूठा था?’

रिया बोली, ‘‘प्यार सच्चा है, पर याद करो, हम ने तय किया था कि शादी नहीं होने तक हमारा प्यार ‘अधूरा प्यार’ रहेगा. बस, यही समझ लो.

‘‘अब तुम कहीं भी शादी कर लो, पर मेरातुम्हारा साथ बना रहेगा और तुम चाहोगे भी तो भी मैं कभी भी तुम्हारे घर आ धमकूंगी,’’ इतना कह कर रिया ने फोन रख दिया.

Hindi Kahaniyan : अब कोई नाता नहीं – क्या सब ठीक हुआ निशा और दिशा के बीच

Hindi Kahaniyan : “मुझे माफ करना, अतुल. मैं ने तुम्हारा बहुत अपमान किया है, तिरस्कार किया है और कई बार तुम्हारा मजाक भी उड़ाया है. मगर आज जब मुझे अपने बेटे की सब से ज्यादा जरूरत थी तब तुम ही मेरे करीब थे. अगर आज तुम न होते तो न जाने मेरा क्या हाल होता. मैं शायद इस दुनिया में न होता. अतुल बेटा, हम दोनों तो बिलकुल अकेले पड़ गए थे. अब तो मुझे सुमित को अपना बेटा कहने में भी शर्म आ रही है. उसे विदेश क्या भेजा, वह विदेशी हो कर रह गया, मांबाप को भी भूल गया. अब मेरा उस से कोई नाता नहीं,” यह कहते हुए कांता प्रसाद फफकफफक कर रो पड़े, उन्होंने अतुल को खींच कर गले लगा लिया.

अतुल की आंखें भी नम हो गईं., वह अतीत की यादों में खो गया. अतुल के पिता रमाकांत की एक छोटी सी मैडिकल शौप थी जो सरकारी अस्पताल के सामने थी. परिवार की आर्थिक स्थिति विकट होने से अतुल ज्यादा पढ़ नहीं पाया था. कक्षा 12 वीं उत्तीर्ण करने के बाद उस ने फार्मेसी में डिप्लोमा किया और अपने पिता के साथ दुकान में उन का हाथ बंटाने लगा.

एक ही शहर में दोनों भाइयों का परिवार रहता था मगर रिश्तों में मधुरता नहीं थी. कांता प्रसाद और छोटे भाई राम प्रसाद के बीच अमीरीगरीबी की दीवार दिनबदिन ऊंची होती जा रही थी. दोनों भाइयों के बीच एक बार पैसों के लेनदेन को ले कर अनबन हो गई थी जिस के कारण उन के बीच कई सालों से बोलचाल बंद थी. होलीदीवाली जैसे त्योहारों पर महज औपचारिकता निभाते हुए उन के बीच मुलाकात होती थी.

अतुल के ताऊजी कांता प्रसाद एक प्राइवेट बैंक में मैंनेजर थे जो अपने इकलौते बेटे सुमित की पढ़ाई के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे थे. सुमित शहर की सब से महंगे और मशहूर पब्लिक स्कूल में पढ़ता था. जब कभी अतुल उन से बैंक में या घर पर मिलने जाता था तब वे उस का मजाक उड़ाते हुए कहते थे–

‘अरे अतुल, एक बार कालेज का तो मुंह देख लेता. अभी 20-22 का हुआ नहीं कि दुकानदारी करने बैठ गया. कालेजलाइफ कब एंजौय करेगा? तेरा बाप क्या पैसा साथ ले कर जाएगा?’

‘नहीं ताऊजी, ऐसी बात नहीं है. मेरी भी आगे पढ़ने की इच्छा है और पापा भी मुझे पढ़ाना चाहते हैं पर मैं अपने घर की आर्थिक स्थिति से अच्छी तरह से अवगत हूं. मैं ने ही उन्हें मना कर दिया कि मुझे आगे नहीं पढ़ना है. निशा और दिशा को पहले पढ़ानालिखाना है ताकि वे पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं जिस से उन के विवाह में अड़चन न आए. एक बार उन के हाथ पीले हो जाएं तो मम्मीपापा की चिंता मिट जाएगी. वे दोनों आएदिन निशा और दिशा की चिंता करते हैं. आजकल के लड़के पढ़ीलिखी और नौकरी करने वाली लड़कियां ही ज्यादा पसंद करते हैं. ताऊजी, आप को तो पता ही है कि हमारी मैडिकल शौप से ज्यादा आमदनी नहीं होती. सरकारी अस्पताल के सामने मैडिकल की पचासों दुकानें हैं. कंपीटिशन बहुत बढ़ गया है. फिर आजकल औनलाइन का भी जमाना है. मेरा क्या है, मैं निशा और दिशा की विदाई के बाद भी प्राइवेटली कालेज कर लूंगा पर अभी परिवार की जिम्मेदारी निभाना जरूरी है.’

अतुल ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा तो कांता प्रसाद को बड़ा ताज्जुब हुआ कि अतुल खेलनेकूदने की उम्र में इतनी समझदारी व जिम्मेदारी की बातें करने लग गया है. और एक उन का बेटा सुमित जो अतुल की ही उम्र का है मगर उस पर अभी भी बचपना और अल्हड़पन सवार था, वह घूमनेफिरने और मौजमस्ती में ही मशगूल है. कांता प्रसाद के पास रुपएपैसों की कमी न थी. उन के बैंक के कई अधिकारियों के बेटे विदेशों में पढ़ रहे थे, सो  कांता प्रसाद ने भी सुमित को विदेश भेजने के सपने संजो कर रखे थे.

वक्त बीत रहा था. सुमीत इंजीनियरिंग में बीई करने के बाद एमएस के लिए आस्ट्रेलिया चला गया. इसी बीच कांता प्रसाद बैंक से सेवानिवृत हो गए. पत्नी रमा के साथ आराम की जिंदगी बसर कर रहे थे. सुमित के लिए विवाह के ढेरों प्रस्ताव आने शुरू हो गए थे. अपना इकलौता बेटा विदेश में है, यह सोच कर ही कांता प्रसाद मन ही मन फूले न समाते थे. अब तो वे ज़मीन से दो कदम ऊपर ही चलने लगे थे. जब भी कोई रिश्तेदार या दोस्त मिलता तो वे सुमित की तारीफ में कसीदे पढ़ने लग जाते. कुछ दिन तक तो परिवार के सदस्य और यारदोस्त उन का यह रिकौर्ड सुनते रहे मगर धीरेधीरे उन्हें जब बोरियत होने लगी तो वे उन से कन्नी काटने लगे.

वक्त अपनी रफ्तार से चल रहा था. सुमित को आस्ट्रेलिया जा कर 3 साल का वक्त हो गया था. एक दिन सुमित ने बताया कि उस ने एमएस की डिग्री हासिल कर ली है और वह अब यूएस जा रहा है जहां उसे एक मल्टीनैशनल कंपनी में मोटे पैकेज की नौकरी भी मिल गई है. कांता प्रसाद के लिए यह बेशक बहुत ही बड़ी खुशी की बात थी.

कांता प्रसाद और रमा अभी खुशी के इस नशे में चूर थे कि एक दिन सुमित ने बताया कि उस ने अपनी ही कंपनी में नौकरी करने वाली एक फ्रांसीसी लड़की एडेला से शादी कर ली है. सुमित के विवाह को ले कर सपनों के खूबसूरत संसार में खोए हुए कांता प्रसाद और रमा बहुत ही जल्दी यथार्थ के धरातल पर धराशायी हो गए. अब तो दोनों अपने घर में ही बंद हो कर रह गए. लड़की वालों के फोन आने पर ‘अभी नहीं, अभी नहीं’ कह कर टालते रहे. कांता प्रसाद और रमा ने सुमित के विवाह की बात छिपाने की बहुत कोशिश की मगर जिस तरह प्यार और खांसी छिपाए नहीं छिपती, उसी तरह सुमित के विदेशी लड़की से विवाह करने की बात उन के करीबी रिश्तेदारों के बीच बहुत ही जल्दी फैल गई. परिणास्वरूप रिश्तेदारों एवं करीबी लोगों ने उन से किनारा करना शुरू कर दिया.

उधर, सुमित दिनबदिन अपने काम में इतना मसरूफ हो गया था कि वह महीनों तक अपने मातापिता को फोन नहीं कर पाता था. यहां से कांता प्रसाद और रमा फोन करते तो वह कभी काम में व्यस्त बता कर या मीटिंग में है, कह कर फोन काट देता था. अब तो कांता प्रसाद और रमा बिलकुल अकेले पड़ गए थे. छोटीमोटी बीमारी होने पर उन्हें पड़ोसियों का सहारा लेना पड़ता था. मगर हर बार यह मुमकिन नहीं था कि जब उन्हें जरूरत पड़े तब पड़ोसी उन की सेवा में हाजिर हो जाएं. इसी बीच देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने कहर ढाना शुरू कर दिया. लौकडाऊन के कारण कामवाली बाई यशोदा ने आना बंद कर दिया और घरेलू नौकर किशन अपने गांव चला गया. लोग अपनेअपने घरों में बंद हो गए. रमा को दमे की शिकायत थी, तो कांता प्रसाद डायबेटिक थे. चिंता और तनाव ने दोनों को और अधिक बीमार बना दिया था. सुमित इस संकट की घड़ी में व्हाट्सऐप पर ‘टेक केयर, बाहर बिलकुल मत जाना, और जाना पड़ जाए तो मास्क पहन कर जाना, सैनिटाइजर का उपयोग करते रहना, बारबार साबुन से हाथ धोते रहना, सोशल दूरी बनाए रखना’ जैसे महज औपचारिक संदेश नियमित रूप से भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता था.

एक दिन रात में कांता प्रसाद को तेज बुखार आया. उन्हें लगा, मौसम बदलने से आया होगा. घर में ही दवा खा ली. मगर बुखार न उतरा. 2 दिनों बाद उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी और मुंह का स्वाद चला गया. तब रमा को पता चला कि ये तो कोरोना के लक्षण हैं. रात में करीब 1 बजे उन्होंने अतुल को फोन किया और सारी बात बताई. अतुल और उस के पिता ने तुरंत भागदौड़ शुरू कर दी. अतुल ने एक सामाजिक संस्था के यहां से एम्ब्युलैंस मंगवाई और अपने पिता के साथ कांता प्रसाद के घर के लिए रवाना हो गया. बीच रास्ते में अतुल अस्पतालों में बैड की उपलब्धता के लिए लगातार फोन कर रहा था. दोतीन अस्पतालों से नकारात्मक उत्तर मिला, मगर एक अस्पताल में एक बैड मिल गया. अतुल ने कांता प्रसाद को फोन कर के अस्पताल जाने के लिए तैयार रहने के लिए कहा. रात करीब 2 बजे कांता प्रसाद को एक अस्पताल के कोरोना वार्ड में एडमिट कर दिया और ट्रीटमैंट चालू हो गया.

रमा की आंखों में छिपा हुआ नीर आंसुओं का रूप धारण कर उस के गालों को भिगोने लगा जिसे देख अतुल ने कहा–

‘ताईजी, प्लीज आंसू न बहाओ. अब चिंता की बात नहीं है. यह शहर का बहुत अच्छा अस्पताल है. ताऊजी जल्दी ही स्वस्थ हो जाएंगे. ताईजी, अब आप हमारे घर चलो. ताऊजी के ठीक होने तक आप हमारे ही घर पर रहना. अस्पताल में कोरोना मरीज के रिश्तेदारों को ठहरने की अनुमति नहीं है.’

रमा का कंठ रुंध गया था. वह बोल नहीं पा रही थी. खामोशी से अतुल के साथ रवाना हो गई.

कांता प्रसाद का औक्सीजन लैवल कम हो जाने से कुछ दिनों तक उन्हें वैंटिलेटर पर रखा गया. फिर उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. डाक्टरों ने बताया कि समय पर बैड मिल जाने से उन की जान बच गई है. कुछ ही दिनों के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई. कांता प्रसाद मन ही मन सोच रहे थे कि आज अतुल उन की सहायता के लिए दौड़ कर न आता तो न जाने उन का क्या हाल होता. इस कोरोना महामारी ने आज इंसान को इंसान से दूर कर दिया है. कोरोना का नाम सुनते ही अपने लोग ही दूरियां बना लेते हैं. ऐसे में अतुल और राम प्रसाद ने अपनी जान की परवा किए बगैर उन की हर संभव सहायता की थी. बुरे वक्त में अतुल ही उन के काम आया था, उन के अपने बेटे सुमित ने तो उन से अब महज औपचारिक रिश्ता बना कर रखा था. वे मन ही मन सोचने लगे कि अब उस से तो नाता रखना बेकार है.

अतुल के साथसाथ कांता प्रसाद भी अतीत की यादों से वर्तमान में लौटे. वे अभी भी अतुल को अपने गले से लगाए हुए थे. अतुल ने अपने आप को उन से अलग करते हुए कहा–

“ताऊजी, पुरानी बातों को छोड़ दीजिए, मैं तो आप के बेटे के समान हूं. क्या पिता अपने बेटे को डांटताफटकारता नहीं है. फिर आप तो मेरे बड़े पापा हैं. मुझे आप की बातों का कभी बुरा नहीं लगा. अब आप अतीत की कटु यादों को बिसरा दो और अपनी तबीयत का ध्यान रखो. अपनी मैडिकल की दुकान होने से कई बार अस्पतालों में जाना पड़ता है, इसी कारण कुछेक डाक्टरों से मेरी पहचान हो गई है. इसलिए आप को बैड मिलने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई और आप का समय पर इलाज हो गया. अब आप को डाक्टरों ने सख्त आराम की हिदायत दी है.“

बाद में वह ताईजी की ओर मुखातिब होते हुए बोला–

“ताईजी, अब आप ताऊजी के पास ही बैठी रहोगी और इन का पूरा ध्यान रखोगी, साथ ही, अपना भी ध्यान रखोगी. अब आप की उम्र हो गई है, सो आप दोनों को आराम करना चाहिए. अब आप दोनों को किसी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. अभी कुछ ही देर में दिशा और निशा यहां पर आ रही हैं. वे किचन संभाल लेंगी और घर का सारा काम भी वे दोनों कर लेंगी.“

अभी अतुल ने अपनी बात समाप्त भी नहीं की कि राम प्रसाद ने अपनी पत्नी सरला और दोनों बेटियों के साथ घर में प्रवेश किया.

राम प्रसाद भीतर आते ही कांता प्रसाद के पैर छूने के लिए आगे बढ़े तो कांता प्रसाद ने उन्हें अपने गले से लगा लिया. दोनों की आंखों से गंगाजमुना बहने लगी. एक लंबे अरसे से दोनों के मन में जमा सारा मैल पलभर में आंसुओं में बह गया.

दोनों भाइयों को वर्षों बाद गले मिलते देख परिवार के अन्य सदस्यों की आंखें भी पनीली हो गईं. निशा और दिशा सभी के लिए चायनाश्ता बनाने के लिए रसोई घर की ओर मुड़ गई. बैठक में कुछ देर तक निस्तब्धता छायी रही जिसे अतुल ने भंग करते हुए कहा–

“ताऊजी, एक बात कहूं, कोरोना महामारी ने लोगों के बीच दूरियां जरूर बढ़ाई हैं पर हमारे लिए कोरोना लकी साबित हुआ है क्योंकि इस ने 2 परिवारों की दूरियां मिटाई हैं.” यह कहते हुए वह जोर से हंसने लगा, अतुल की हंसी ने गमगीन माहौल को खुशनुमा बना दिया.

कांता प्रसाद और राम प्रसाद की नम आंखों में भी हंसी चमक उठी. कांता प्रसाद ने अतुल को इशारे से अपने करीब बुलाया और अपने पास बैठाते हुए कहा–

“अतुल बेटा, एक बात ध्यान से सुनना, सरकारी अस्पताल के सामने मैं ने अपनी एक दुकान बनवारीलाल को किराए पर दे रखी है न, वह इस महीने की 30 तारीख को खाली कर रहा है. अब तुम इस दुकान में शिफ्ट हो जाना, आज से यह दुकान तुम्हारी है, समझे. मैं जल्दी ही वकील से यह दुकान तुम्हारे नाम करवाने के लिए बात कर लूंगा.”

अतुल बीच में बोल पड़ा–

“नहीं ताऊजी, मेरी अपनी दुकान अच्छी चल रही है. प्लीज, आप ऐसा न करें.”

“अरे अतुल, मुझे पता है, तेरी दुकान कितनी अच्छी चलती है, एक कोने में तेरी छोटी सी दुकान है और अस्पताल से बहुत दूर भी. बस, तू मेरी बात मान ले. अपने ताऊजी से बहस न कर,” कांता प्रसाद ने मुसकराते हुए अतुल को डांट दिया.

“भाईसाहब, आप ऐसा न करें, दुकान भले ही चलाने के लिए हमें किराए पर दे दें पर इसे अतुल के नाम पर न करें, सुमित…”

राम प्रसाद भविष्य का विचार करते हुए सुझाव देने लगे तो कांता प्रसाद किंचित आवेश में बीच में बोल पड़े, “अरे रामू, यह मेरी प्रौपर्टी है, मैं चाहे जिसे दे दूं. सुमित से अब हम कोई नाता नहीं रखना नहीं चाहते हैं. अब वह हमारा नहीं रहा. सुमित ने तो अपनी अलग दुनिया बसा ली है. उसे हम दोनों की कोई जरूरत नहीं है. अब तो अतुल ही हमारा बेटा है.”

कांता प्रसाद की आंखें फिर छलक गईं. राम प्रसाद ने इस समय बात को और आगे बढ़ाना उचित न समझा.

कुछ ही देर में निशा और दिशा किचन से नाश्ता ले कर बाहर आ गईं. रमा ने निशा और दिशा को अपने पास बैठाया. दोनों रमा के दाएंबाएं बैठ गईं. रमा ने दोनों के सिर पर हाथ रखते हुए कहा–

“ये जुड़वां बहनें जब छोटी थीं तब दोनों छिपकली की तरह मुझ से चिपकी रहती थीं. रात को सरला बेचारी सो नहीं पाती थी. तब मैं एक को अपने पास सुलाती थी. इन का पालनपोषण करना सरला के लिए तार पर कसरत करने के समान था. देखो, अब ये कितनी बड़ी हो गई हैं.” यह कहते हुए रमा निशा और दिशा का माथा चूमने लगी, फिर कांता प्रसाद की ओर मुखातिब होते हुए बोली–

“आप ने बहुत बातें कर लीं जी, अब मेरी बात भी सुन लो. मैं ने निशा और दिशा का कन्यादान करने का निर्णय लिया है. इन दोनों के विवाह का संपूर्ण खर्च मैं करूंगी. अतुल इन्हें जितना पढ़ना है, पढ़ने देना और अगर तुम प्राइवेटली आगे पढ़ना चाहो तो पढ़ सकते हो. अब तुम्हें और तुम्हारे मम्मीपापा को निशा-दिशा की चिंता करने की जरूरत नहीं है.“

“रमा, तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मैं भी यही कहने वाला था. हम तो बेटी के लिए तरस रहे थे. ये अपनी ही तो बेटियां हैं.”

कांता प्रसाद ने उत्साहित होते हुए कहा तो उन का चेहरा खुशी से चमक उठा मगर उन की बातें सुन कर राम प्रसाद और मूकदर्शक बन कर बैठी सरला की आंखों से आंसुओं की धारा धीरेधीरे बहने लग गई. माहौल फिर गंभीर बन रहा था,  इस बार निशा ने माहौल को हलकाफुलका करते हुए कहा–

“आप सब तो बस बातें करने में ही मशगूल हो गए हैं. चाय की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है. देखो, यह ठंडी हो गई है. मैं फिर से गरम कर के लाती हूं.“ यह कहते हुए निशा उठी तो उस के साथसाथ दिशा भी खड़ी हो गई. दिशा ने सभी के सामने रखी नाश्ते की खाली प्लेटें उठाईं तो निशा ने ठंडी चाय से भरे कप उठाए. फिर दोनों किचन की ओर मुड़ गईं जिन्हें कांता प्रसाद और रमा अपनी नज़रों से ओझल हो जाने तक डबडबाई आंखों से देखते रहे.

Famous Hindi Stories : सफर में हमसफर – सुमन को कैसे मिल गया सफर में उस का हमसफर

Famous Hindi Stories : रात के तकरीबन 8 बजे होंगे. यों तो छोटा शहर होने पर सन्नाटा पसरा रहता है, पर आज भारतपाकिस्तान का क्रिकेट मैच था, तो काफी भीड़भाड़ थी. वैसे तो सुमन के लिए कोई नई बात नहीं थी. यह उस का रोज का ही काम था.

‘‘मैडम, झकरकटी चलेंगी क्या?’’

सुमन ने पलट कर देखा. 3-4 लड़के खड़े थे.

‘‘कितने लोग हो?’’

‘‘4 हैं हम.’’

‘‘ठीक है, बैठ जाओ,’’ कहते हुए सुमन ने आटोरिकशा स्टार्ट किया.

सुमन ने एक ही नजर में भांप लिया था कि वे सब किसी कालेज के लड़के हैं. सभी की उम्र 20-22 साल के आसपास होगी. आज सुबह से सवारियां भी कम मिली थीं, इसलिए सुमन ने सोचा कि चलो एक आखिरी चक्कर मार लेते हैं, कुछ कमाई हो जाएगी और शकील चाचा को टैक्सी का किराया भी देना था.

अभी कुछ ही दूर पहुंच थे कि लड़कों ने आपस में हंसीमजाक और फब्तियां कसना शुरू कर दिया.

तभी उन में से एक बोला, ‘‘यार, तुम ने क्या बैटिंग की… एक गेंद में छक्का मार दिया.’’

‘‘हां यार, क्या करें, अपनी तो बात ही निराली है. फिर मैं कर भी क्या सकता था. औफर भी तो सामने से आया था,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘हां, पर कुछ भी कहो, कमाल की लड़की थी,’’ तीसरा बोला और सब एकसाथ हंसने लगे.

सुमन ने अपने ड्राइविंग मिरर से देखा कि वे सब बात तो आपस में कर रहे थे, पर निगाहें उसी की तरफ थीं. उस ने ऐक्सलरेटर बढ़ाया कि जल्दी ही मंजिल पर पहुंच जाएं. पता नहीं, क्यों आज सुमन को अपनी अम्मां का कहा एकएक लफ्ज याद आ रहा था.

पिताजी की हादसे में मौत हो जाने के चलते उस के दोनों बड़े भाइयों ने मां की जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया था.

सुमन ग्रेजुएशन भी पूरी न कर पाई थी, मगर रोजरोज के तानों से तंग आ कर वह भाइयों का घर छोड़ कर अपने पुराने घर में अम्मां को साथ ले कर रहने आ गई, जहां से अम्मां ने अपनी गृहस्थी की शुरुआत की थी और उस बंगले को भाईभाभी के लिए छोड़ दिया.

ऐसा नहीं था कि भाइयों ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की, पर सिर्फ एक दिखावे के लिए.

अम्मां और सुमन आ तो गए उस मकान में, पर कमाई का कोई जरीया न था. कितने दिनों तक बैठ कर खाते वे दोनों?

मुनासिब पढ़ाई न होने के चलते सुमन को नौकरी भी नहीं मिली. तब पिताजी के करीबी दोस्त शकील चाचा ने उन की मदद की और बोले, ‘तुम पढ़ने के साथसाथ आटोरिकशा भी चला सकती हो, जिस से तुम्हारी पैसों की समस्या दूर होगी और तुम पढ़ भी लोगी.’

पर जब सुमन ने अम्मां को बताया, तो वे बहुत गुस्सा हुईं और बोलीं, ‘तुम्हें पता भी है कि आजकल जमाना कितना खराब है. पता नहीं, कैसीकैसी सवारियां मिलेंगी और मुझे नहीं पसंद कि तुम रात को सवारी ढोओ.’

‘ठीक है अम्मां, पर गुजारा कैसे चलेगा और मेरे कालेज की फीस का क्या होगा? मैं रात के 8 बजे के बाद आटोरिकशा नहीं चलाऊंगी.’

कुछ देर सोचने के बाद अम्मां ने हां कर दी. अब सुमन को आटोरिकशा से कमाई होने लगी थी. अब वह अम्मां की देखभाल अच्छे से करती और अपनी पढ़ाई भी करती.

सबकुछ ठीक से चलने लगा, पर आज का मंजर देख कर सुमन को लगने लगा कि अम्मां की बात न मान कर गलती कर दी क्या? कहीं कोई ऊंचनीच हो गई, तो क्या होगा…

तभी अचानक तेज चल रहे आटोरिकशा के सामने ब्रेकर आ जाने से झटका लगा और सुमन यादों की परछाईं से बाहर आ गई.

‘‘अरे मैडम, मार ही डालोगी क्या? ठीक से गाड़ी चलाना नहीं आता, तो चलाती क्यों हो? वही काम करो, जो लड़कियों को भाता है,’’ एक लड़के ने कहा.

तभी दूसरा बोला, ‘‘बैठ यार रोहित. ठीक है, हो जाता है कभीकभी.’’

‘‘सौरी सर…’’ पसीना पोंछते हुए सुमन बोली. अभी वे कुछ ही दूर चले

थे कि उन में से चौथा लड़का बोला, ‘‘हैलो मैडम, मैं विकास हूं. आप का क्या नाम है?’’

सुमन ने डरते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम सुमन है.’’

‘‘पढ़ती हो?’’

‘‘बीए में.’’

‘‘कहां से?’’

‘‘जेएनयू से.’’

‘‘ओह, तभी मुझे लग रहा है कि मैं ने आप को कहीं देखा है. मैं वहां लाइब्रेरी में काम करता हूं,’’ वह लड़का बोला.

‘‘अच्छा… पर मैं ने तो आप को कभी नहीं देखा,’’ सुमन बेरुखी से बोली.

तभी सारे लड़के खिलखिला कर हंस दिए.

रोहित बोला, ‘‘क्या लाइन मार रहा है? ऐ लड़की, जरा चौराहे से लैफ्ट ले लेना, वहां से शौर्टकट है.’’

चौराहे से मुड़ते ही सुमन के होश उड़ गए. वह रास्ता तो एकदम सुनसान था. सुमन ने हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘पहले वाला रास्ता तो काफी अच्छा था, पर यह तो…’’

‘‘नहीं, हम को तुम उसी रास्ते से ले चलो,’’ रोहित बोला.

अब तो सुमन का बड़ा बुरा हाल था. उस के हाथपैर डर से कांप रहे थे. आज सुमन को अम्मां की एकएक बात सच होती दिख रही थी. अम्मां कहती थीं कि इतिहास में औरतें दर्ज कम, दफन ज्यादा हुई हैं. वे रहती पिंजरे में ही हैं, बस उन के आकार और रंग अलग होते हैं. समाज को औरतों का रोना भी मनोरंजन लगता है. हम औरतों को चेहरे और जिस्म के उतारचढ़ाव से देखा और पहचाना जाता है, इसलिए तुम यह फैसला करने से पहले सोच लो…

तभी पीछे से उन में से एक लड़के ने अपना हाथ सुमन के कंधे पर रखा और बोला, ‘‘जरा इधर से राइट चलना. हमें पैसे निकालने हैं.’’

सुमन की तो जैसे सांस ही हलक में अटक गई. उस का पूरा शरीर एक सूखे पत्ते की तरह फड़फड़ा गया.

सुमन ने कहा, ‘‘आप लोगों ने आटोरिकशा नहीं खरीदा है. मैं अब झकरकटी में ही छोड़ूंगी, नहीं तो मैं आप सब को यहीं उतार कर वापस चली जाऊंगी.’’

‘‘कैसे वापस चली जाओगी तुम?’’ रोहित ने पूछा.

‘‘क्या बोला?’’ सुमन ने अपनी आवाज में भारीपन ला कर कहा.

‘‘अरे, मैं यह कह रहा हूं कि इतनी रात को सुनसान जगह में हम सभी कहां भटकेंगे. हमें आप सीधे झकरकटी ही छोड़ दो,’’ रोहित बोला.

‘‘ठीक है… अब आटोरिकशा सीधा वहीं रुकेगा,’’ सुमन बोली.

सुमन के जिंदा हुए आत्मविश्वास से उन का सारा डर पानी में पड़ी गोलियों की तरह घुल गया. उसे लगा कि उस के चारों ओर महकते हुए शोख लाल रंग खिल गए हों और वह उन्हें दुनिया के सामने बिखेर देना चाहती है. अभी तो उस के सपनों की उड़ान बाकी थी, फिर भी उस ने दुपट्टे से अपना चेहरा ढक लिया और सामने दिखे एटीएम पर आटोरिकशा रोक दिया.

विकास हैरानी से सुमन के चेहरे पर आतेजाते भाव को अपलक देखे जा

रहा था. सुमन इस से बेखबर गाड़ी का मिरर साफ करती जा रही थी. वह पैसा निकाल कर आ गया और सभी फिर चल पड़े.

बमुश्किल एक किलोमीटर ही चले होंगे, तभी सुमन को सामने खूबसूरत सफेद हवेली दिखाई दी. आसपास बिलकुल वीरान था, पर एक फर्लांग की दूरी पर पान की दुकान थी और मैच भी अभीअभी खत्म हुआ था. भारत की जीत हुई थी. सब जश्न मना कर जाने की तैयारी में थे.

सुमन ने हवेली से थोड़ी दूर और पान की दुकान से थोड़ा पहले आटोरिकशा रोक दिया. सभी वहां झूमते हुए उतर गए, पर विकास वहीं खड़ा उसे देख रहा था.

सुमन गुस्से से बोली, ‘‘ऐ मिस्टर… क्या देख रहे हो? क्या कभी लड़की नहीं देखी?’’

‘‘देखी तो बहुत हैं, पर तुम्हारी सादगी और हिम्मत का दीवाना हो गया यह दिल…’’ विकास बोला.

उन सब लड़कों ने खूब शराब पी रखी थी. तभी उस में से एक लड़के ने पीछे मुड़ कर देखा कि विकास वहीं खड़ा है और उसे पुकारते हुए सभी उस के पास वापस आने लगे.

यह देख सुमन घबरा गई. उधर पान वाला भी दुकान पर ताला लगा कर जाने वाला था.

सुमन तेजी से पलट कर जाने लगी, मगर विकास ने पीछे से उस का हाथ पकड़ लिया और घुटनों के बल बैठ कर बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

यह सुन कर सारे दोस्त ताली बजाने लगे. गहराती हुई रात और चमकते हुए तारों की झिलमिल में विकास की आंखों में सुमन को प्यार की सचाई नजर आ रही थी.

पता नहीं, क्यों सुमन को विकास पर ढेर सारा प्यार आ गया. शायद इस की वजह यह रही होगी कि बचपन से एक लड़की प्यार और इज्जत से दूर रही हो.

सुमन अपने जज्बातों पर काबू पाते हुए बोली, ‘‘चलो, कल कालेज में मिलते हैं. तब तक तुम्हारा नशा भी उतर जाएगा.’’

तभी उन में से एक लड़का बोला, ‘‘सुमन, हम ने शराब जरूर पी रखी है, पर अपने होश में हैं. हम इतने नशे में भी नहीं हैं कि यह न समझ पाएं कि औरत का बदन ही उस का देश होता है और हमारे देश में हमेशा से औरतों की इज्जत की जाती रही है. चंद खराब लोगों की वजह से सारे लोग खराब नहीं होते.’’

सुमन मुसकराते हुए बोली, ‘‘चलो… कल मिलते हैं कालेज में.’’

इस के बाद सुमन ने आटोरिकशा स्टार्ट किया, मगर उसे ऐसा लग रहा था जैसे चांदसितारे और बदन को छूती ठंडी हवा उस के प्यार की गवाह बन गए हों और वह इस छोटे से सफर में मिले हमसफर के ढेरों सपने संजोए और खुशियां बटोरे अपने घर चल दी.

Hindi Kahaniyan : छुअन – क्यों शादी के बंधन से भागती थी स्नेहा

Hindi Kahaniyan :  यदाकदाएफबी पर बात होती थी, आज अचानक स्नेहा का मैसेंजर पर कौल बज उठी.

‘‘गुड मौर्निंग…’’

वही पहले वाली आवाज, वही नटखटपन बातों में, बेबाकी से हंस कर बोलना, ‘‘और बताओ मेरी जान… सबकुछ ठीक है न. मेरे लिए तो वही पहले वाले माधव हो.’’

माधव अपने चिरपरिचित अंदाज में

बोला, ‘‘हां बौस सब ठीक है. जैसे आप छोड़

कर गईं थी वैसा ही हूं. कालेज के पढ़ाई के

बाद आज आप से इस तरह बात हो रही है. वे क्या दिन थे जब हमारी आप से रोज मुलाकातें होती थीं…’’

स्नेहा बात को काटती हुई बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘अगर आप कहें तो मचान रैस्टोरैंट में मिलते हैं.  शाम 4 बजे, मैं इंतजार करूंगी.’’

‘‘हां डियर, आऊंगा,’’ माधव बोला.

स्नेहा हमेशा की तरह समय की पाबंद थी, जो 10 मिनट पहले ही पहुंच गई.

थोड़ी देर में माधव भी आ गया. वही पहली की तरह हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए हुए स्नेहा के सामने जा कर खड़ा हो गया.

स्नेहा पीले रंग की साड़ी में खूब फब रही थी. खुले बाल स्ट्रेट किए हुए और भी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे.

माथे पर एक छोटी सी लाल रंग की बिंदी, आंखों में काजल लगा हुआ. माधव उसे देखता ही रह गया. कुछ न बदली थी वह. बस होंठों पर पहले से ज्यादा लिपस्टिक लगी थी जिस से वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.

‘‘अरे जनाब. ऐसे क्या देख रहे हैं? आइए करीब बैठिए,’’ स्नेहा, माधव का हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.

मगर माधव उस के इस तरह के छूने से पसीने से सराबोर हो गया. क्षणभर के लिए स्तब्ध मानो उसे सांप सूंघ गया हो.

वह सोचने लगा कि क्या आज भी वही प्यार है मेरे दिल में? आज भी वही छुअन

स्नेहा की मुझे पागल बना रही है. वही मादकता इस की आंखों में ठहरी है जो आज तक इस

के जाने बाद मुझे किसी में भी नजर नही आई. आज मैं फिर जी उठा हूं, इस की एक छुअन से. जिंदगी खूबसूरत और रंगीन नजर आ रही है.

वह मन ही मन प्रेम की उन गहराइयों को छू रहा था, जिस की कभी आशा ही न थी.

जब से माधव स्नेहा से मिल कर आया

था तब से उस का बुरा हाल था. उस की बेचैनी कम नहीं हो रही थी. उस की आंखों के सामने स्नेहा का वह खूबसूरत सा चेहरा बारबार झूम जाता. उस का किसी काम में मन नहीं लग

रहा था.

उधर स्नेहा भी बिस्तर पर लेटी हुई

खयालों में गोते लगाती रहती और मन ही मन मुसकराती रहती.

दोनों का प्यार पुन: लौटा तो दोनों तरफ पहले की अपेक्षा और अधिक हिलोरे मारने लगा. उन दोनों में लगातार बातें होने लगी.

दोनों का प्रेम अब एकदूसरे के लिए जरूरत सा हो गया था. रोज किसी न किसी बहाने से मिलना… एकदूसरे के प्रति समर्पित से हो गए. दोनों जब तक एकदूसरे से मिलते नहीं थे तब उन्हें अपनी जिंदगी अधूरी सी महसूस होती.

एक दिन जब स्नेहा मिलने गई तब बातों

ही बातों में शादी का प्रस्ताव रख दिया माधव

के समक्ष.

मगर माधव ने प्रस्ताव सुनते ही कुछ पलों के लिए चुप्पी साध ली…

‘‘अरे क्या हुआ?’’ मैं ने कुछ गलत कहा क्या? स्नेहा माधव के चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए बोली.

‘‘नहीं… नहीं…’’ दबे हुए लहजे में माधव ने उत्तर दिया, ‘‘तो फिर..’’ स्नेहा बोली.

‘‘दरअसल, मेरी शादी हो चुकी थी. इस विषय में मैं आप को बता नहीं पाया था, उस से पहले आप मुझे छोड़ कर चली गई थीं. मेरे घर वालों ने मेरी शादी करा दी थी, मगर मैं तुम्हें

भूल नहीं पाया और अपनी पत्नी को स्वीकार

भी नहीं कर सका, जिस की वजह से वह डिप्रैशन की शिकार हो गई और हर बात को दिल से लगा कर रोज झगड़ती, अपनेआप को ही नुकसान पहुंचाती. एक दिन मैं उसे बिना बताए कहीं चला गया काम के सिलसिले में तो उसे लगा कि मैं उसे छोड़ कर चला गया हूं.

‘‘वह यह बात बरदाश्त न कर सकी और अचानक ब्रेन हैमरेज हुआ और इस दुनिया को छोड़ कर चली गई जिस का मैं आज तक

गुनहगार हूं, स्नेहा. तभी से घरबार त्याग कर मैं अब यही रहता हूं. कभीकभी घर जा कर घर वालों से मिल लेता हूं, मगर जब से आप दोबारा मिली हैं तो फिर से वही नशा चढ़ गया है मुझे आप का… जीने की ललक बढ़ गई है. लेकिन अब शादी नही कर पाऊंगा. पहले मैं तैयार था तो आप नहीं…

‘‘बस… बस… आप की बात सुन ली, समझ ली, पर अब मैं रहूंगी तो सिर्फ आप के साथ ही मैं ने सोच लिया है,’’ स्नेहा एक लंबी सांस भरती हुई तपाक से बोल पड़ी अपने वही पुराने नटखट अंदाज में.’’

‘‘वह कैसे? क्यों आप की शादी नहीं हुई क्या?’’ माधव पुन: अपने चिरपरचित अंदाज में आश्चर्यचकित हो प्रश्न कर बैठा.

‘‘नहीं, मैं ने शादी नहीं की, आप को लगा कि मैं आप को छोड़ कर बहुत खुश थी, तो ऐसा नहीं था. मेरे सामने तमाम मजबूरियां थीं, मैं पढ़ना चाहती थी, आगे कुछ करना चाहती थी, मगर घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि आगे अच्छे से पढ़ पाती. फिर भी बहुत मेहनत के बाद आज मैं अपने परों पर हूं अब मुझे किसी के आगे हाथ नही पसारने होंगे, लेकिन मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी.

‘‘पिताजी तो थे नहीं और मेरे ग्रैजुएशन के बाद मां अपने भाइयों के साथ रहने लगीं. मेरी पढ़ाई और सारी जिम्मेदारी उन के सिर पर आ गई. मेरे मामाजी बहुत पैसे वाले थे जिन्होंने मुझे पढ़ने के लिए पैसे तो दिए पर अपने शराब के अड्डे पर आने वाले शराबियों के सामने मुझे शो पीस की तरह पेश करते थे, उन के मनोरंजन के लिए ताकि उन का कारोबार दिनबदिन बढ़ता जाए. इसी वजह से वे मेरे शादी न करने के फैसले से कोई आपत्ती भी नहीं जताते थे, खैर… अब जो भी हो मैं अपने पैरों पर हूं, सब झंझंटों से दूर साफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करती हूं. मां घर संभालती हैं. आप चाहें तो हम तीनों एक छत के नीचे रह सकते हैं.’’

‘‘नहीं आप से बोल चुका हूं अब शादी

नहीं कर सकता. मगर मेरे दिल में

आप के लिए सम्मान, प्यार और अधिक बढ़

गया है.’’

‘‘ओके… मत कीजिए शादी, आप की मरजी जब मन हो तब बोल दीजिएगा क्योंकि अब मैं आप को खोना नहीं चाहती सारी जिंदगी आप के साथ गुजारना चाहती हूं,’’ स्नेहा मायूस हो कर बोली.

‘‘हां स्नेहा… मेरी भी दिली इच्छा है कि हम दोनों एक छत के नीचे रहें जीवनभर,’’ माधव चेहरे पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए बोला, ‘‘प्यार के रिलेशन में… शादी करने में ढिंढोरा पीटना होगा, सैकड़ों को जवाब देना होगा.’’

‘‘तो आज ही अपना रूम खाली कर के आ जाओ मेरे घर. मां आप को देख कर बहुत खुश हो जाएंगी. उन्हें भी एक बेटा मिल जाएगा,’’ स्नेहा खुशी से बोली.

‘‘हां, मैं आज ही शाम को सामान ले कर आता हूं… सामान ही क्या है मेरे पास, बस थोड़े कपड़े, बरतन और थोड़ी किताबें.’’

‘‘ठीक है मैं अपनी गाड़ी ले कर खुद आऊंगी शाम को.’’

दोनों की खुशियों का आज जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था. जो कभी सपने में भी नहीं सोचा था वह आज पूरा होने जा रहा था.

माधव बाय बोल कर अपने रूम के ओर मुड़ गया और स्नेहा वहीं खड़ी रह गई खुशी से झूमती हुई माधव के दिए लाल गुलाब के फूल को सूंघती हुई. उस को जाते हुए देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी और अनंत सपनों को साकार होते हुए आंखों के सामने देख रही थी. संग बिताए हुए हर लमहे को, हर उस छुअन को सहेज कर, समेट कर नई जिंदगी की ओर अग्रसर हो रही थी. नए सिरे से… नए अंदाज से…

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