इंतकाम: भाग 1- सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

‘‘नेहा इधर तो आ,’’ मां ने आवाज लगाई तो मोबाइल पर आंखें टिकाए नेहा सामने आ कर खड़ी हो गई.

‘‘इस बार तु झे पीरियड्स नहीं आए?’’

‘‘हां, आई गैस 20 डेज ऐक्स्ट्रा हो चुके हैं,’’ नेहा ने सहजता से जवाब दिया.

‘‘कल तेरा जी भी मिचला रहा था?’’

नेहा ने मोबाइल उठा कर रख दिया. मां जिस तरफ इशारा कर रही थी वह बात सम झते ही वह चौकन्नी हो गई. फिर कौन्फिडैंस के साथ बोली, ‘‘अरे, ये आप कैसी बात कह रही हैं मौम?’’

‘‘तु झे जानती हूं इसलिए कह रही हूं. आजकल वैसे भी तेरा ज्यादा समय किस के साथ गुजरता है इस की भी खबर है मु झे. बेटी इस मामले में शायद तू नादान है, लेकिन मेरी बात सम झ. मैं अभी जानना चाहती हूं कि सब ठीक है या नहीं. ऐसा कर अभी जा कर प्रैगनैंसी टैस्ट कर. ये मैं कल ले कर आई थी. मु झे तु झ पर कई दिनों से शक है,’’  मां ने उसे प्रैगनैंसी टैस्ट किट देते हुए कहा.

‘‘मौम आप अपनी बेटी पर शक कैसे कर सकते हो?’’

‘‘क्योंकि तेरी संगत गलत है. अब जा,’’ मां ने थोड़े नाराज स्वर में कहा.

नेहा टैस्ट करने चली गई. थोड़ी देर में ही मुंह लटका कर लौटी. वह सच में प्रैगनैंट थी.

‘‘अभी मेरे आगे संजय को फोन लगा और सारी बात बता कर पूछ कि क्या वह तु झ से शादी करेगा और इस बच्चे को अपनाएगा?’’ मां ने और्डर दिया.

‘‘पर मां उसे अभी अचानक फोन कैसे करूं. पता नहीं कहां होगा. मैं बाद में कर के बताती हूं,’’ नेहा ने टालना चाहा.

‘‘बेटा अभी मेरे सामने कर. इन मामलों में देर नहीं की जा सकती. मैं जानती हूं वह शादी करने को तैयार नहीं होगा. फिर भी तू पूछ कर तसल्ली कर ले,’’ मां ने सम झाते हुए कहा.

नेहा ने जब संजय को सब बता कर शादी के लिए पूछा तो वह हंस पड़ा, ‘‘क्या यार अभी हमारी उम्र है इन  झं झटों में पड़ने की? एक बार मिस्टेक हो गई. साफ करवा ले. फिर सोचेंगे क्या करना है. वैसे भी मु झे बहुत बड़ा आदमी बनना है.

‘‘सो तू अभी शादीवादी के बारे में मत सोच. मेरे प्यार में कमी आए तो कहना. शादी के लफड़े को अभी किनारे रख.’’

‘‘नेहा ने मां को सारी बात बताई तो मां तुरंत उसे नर्सिंगहोम ले गई और गर्भपात करवा कर वापस आ गई. मां को बेटी की प्रैगनैंसी की टैंशन से तो मुक्ति मिली मगर अब उस का घर बसाने की जल्दी होने लगी.

‘‘देख नेहा यह लड़का तु झ से कभी शादी नहीं करेगा यह बात लिख कर रख ले. जब उसे ऐसे ही सारी चीजें मिल रही हैं तो भला वह रिश्तों के चक्कर में क्यों पड़ेगा. सम झदारी इसी में है हम तेरी अच्छी जगह शादी करा दें. मैं तेरे पापा से बात करती हूं,’’ मां ने कहा.

‘‘मौम प्लीज ऐसा मत करो. मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती,’’ नेहा गिड़गिड़ाई.

‘‘तो क्या तेरे पिता को सारी बात बता दूं?’’ मां ने डराया.

‘‘नहीं मम्मी प्लीज.’’

‘‘तो मैं जैसा कह रही हूं वैसा कर. मैं तेरा इन गलत कामों में और साथ नहीं दे सकती,’’ मौम ने सख्त आवाज में कहा.

नेहा 2-4 दिन बहुत परेशान रही. कई बार संजय को फोन कर के रिक्वैस्ट की. शादी के लिए मनाने की कोशिश की मगर संजय हर बार बहाने बना देता.

कभी कहता कि अभी शादी नहीं करनी है, कभी कहता कि जाति अलग है घर वाले नहीं मानेंगे और कभी कहता कि कुछ बड़ा बनने के बाद ही सोचूंगा.

एक दिन फिर नेहा संजय से मिली तो. उस से वही बात करनी चाही और

साफसाफ बोली, ‘‘यार मेरे घर वाले अब जल्द से जल्द मेरी शादी कराना चाहते. हैं. तु झे मेरी जरा भी फिक्र है तो शादी के लिए हां कह दे.’’

संजय उस की आंखों में  झांकता हुआ बोला, ‘‘देख नेहा मैं तु झे प्यार बहुत करता हूं और शादी भी कर लूंगा, मगर अभी नहीं. तू ऐसा कर अभी अपने मांबाप के कहे अनुसार शादी कर ले. हम पहले की तरह मिलते रहेंगे. तेरे मांबाप भी तु झे ले कर फ्रिक हो जाएंगे. बाद में जब मैं कुछ बन जाऊंगा और अपने सपने पूरे कर लूंगा तब तु झ से शादी भी कर लूंगा. तेरी शादी के बाद भी हमारे बीच प्यार कम नहीं होगा यह मेरा वादा है.’’

काफी मानसिक द्वंद और तनाव के बाद आखिर एक दिन नेहा ने मौम के आगे किसी दूसरे से शादी के लिए हामी भर दी. आननफानन में पिता ने उस की शादी एक मिडल क्लास फैमिली के सब से बड़े बेटे से करा दी जो दिल्ली में जौब करता था. उस के पेरैंट्स पुणे में रहते थे.

शादी के बाद नेहा कुछ दिन पुणे में रही और फिर वापस दिल्ली अपने पति के पास आ गई. उस का पति सुजय उस से काफी प्यार करता था और नेहा भी यही दर्शाती थी कि वह भी उस से गहरा प्यार करती है. मगर नेहा कहीं न कहीं 2 नावों की सवारी कर रही थी. एक तरफ तो पति को यह दिखाती कि वह उस की बहुत केयर करती है और दूसरी तरफ वह अपने पूर्व प्रेमी यानी संजय के साथ पहले की तरह रिश्ते में थी.

बहुत जल्द सुजय को यह एहसास हो गया कि नेहा उस से चीट कर रही है और किसी दूसरे लड़के के संपर्क में है. दरअसल, वह पूरा समय मोबाइल में लगी रहती और कई बार इस चक्कर में जरूरी काम भी भूल जाती. मगर सुजय नेहा पर ऐसे ही कोई इलजाम नहीं लगाना चाहता था. इसलिए वह कोई पुख्ता सुबूत मिलने का इंतजार कर रहा था.

एक दिन सुजय को वह सुबूत भी मिल गया जब उस ने नेहा को एक मौल में अपने प्रेमी के साथ देखा.

उस दिन वह औफिस से आया तो बहुत गुस्से में था. आते ही नेहा से सवाल किया, ‘‘आज तुम मौल में किस के साथ थी.’’

अचानक किए गए इस सवाल से नेहा थोड़ी सहमी फिर चालाकी से

बोली, ‘‘मेरा दोस्त मतलब स्कूल फ्रैंड था?’’

‘‘यह दोस्त तुम्हारे ज्यादा ही करीब नहीं था?’’

‘‘अरे आप भी न क्या सोचने लगे. बस दोस्त है रास्ते में मिल गया. आप की भी तो कोई दोस्त होगी ऐसी?’’

‘‘मैं ऐसी कोई दोस्त नहीं रखता,’’ कह कर सुजय हाथमुंह धो कर अपने कमरे में चला गया.

अब सुजय का प्यार डांवांडोल हो चुका था. वह सम झ गया था कि उस की पत्नी का एक यार भी है जो अब भी उस के करीब है.

इस बात को काफी दिन बीत चुके थे मगर सुजय ने नेहा से दूरी बना ली थी. इसी बीच नेहा संजय की वजह से एक बार फिर प्रैगनैंट हो गई. जैसे ही उसे एहसास हुआ कि वह प्रैगनैंट है उस ने जल्दी से अपना दिमाग चलाना शुरू किया. आजकल सुजय दूर रहता था. ऐसे में प्रैगनैंसी के बारे में जान कर वह बच्चे को अपना नहीं मानेगा. इस बात का खयाल आते ही उस ने तय किया कि वह सुजय को मनाएगी और करीब जाएगी. उस ने ऐसा ही किया और पूरी तैयारी के साथ हौट ऐंड सैक्सी नाइटी पहन कर सुजय के पास पहुंची.

उसे सौरी कहने के बाद अपने जलवे दिखा कर काबू में कर लिया और उस की बांहों में आ गई. सुजय को पता नहीं था कि नेहा की चाल क्या है. एक खूबसूरत स्त्री का साथ पा कर पुरुष खुद पर कंट्रोल नहीं रख पाते और ऐसा ही कुछ सुजय के साथ हुआ. कुछ दिनों के बाद नेहा ने बेफिक्र हो कर अपनी प्रैगनैंसी की खबर सुजय को दे दी.

सुजय को शक तो हुआ पर वह दावे से नहीं कह सकता था कि बच्चा उस का नहीं है. इसलिए उस ने बच्चे के आने की तैयारियां शुरू कर दीं. सुजय के घर वाले बहुत खुश हो गए. बस सुजय का दिल ही पूरी तरह खुशी नहीं मना पा रहा था. सही समय पर नेहा ने बेटे को जन्म दिया. बच्चे का चेहरा देख कर सुजय का दिल खिल उठा. नेहा के प्रति उस का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया और वह फिर से नेहा और बच्चे के साथ अपनी खूबसूरत जिंदगी की कल्पना करने लगा. इस बीच वैसे भी नेहा का संपर्क संजय से काफी कम हो चुका था जिस का एहसास सुजय को था. वह अपने मन को दिलासा देने लगा कि अब बच्चे के आने के बाद नेहा वापस संजय के पास नहीं जाएगी बल्कि उस के साथ प्यार से गृहस्थी चलाएगी.

कुछ समय तक ऐसा हुआ भी. नेहा अपने बच्चे के पालनपोषण में व्यस्त रहने लगी. उस का बाहर जाना या घंटों फोन में बिजी रहना काफी हद तक कम हो गया.

सुजय ने दिल से नेहा को माफ कर दिया था. मगर जल्द ही उसे एक कड़वी हकीकत का सामना करना पड़ा जब उस ने फिर से नेहा और संजय को साथ देखा. एक बार फिर से उस के मन की शांति चली गई.

सुजय चाह कर भी नेहा से अलग नहीं हो सकता था क्योंकि वह अपने बच्चे से बहुत प्यार करता था और कहीं न कहीं नेहा की खूबसूरती उस की कमजोरी थी. वह नेहा से भी अलग नहीं होना चाहता था. इसलिए वह घुटघुट कर जीने को विवश हो गया.

विरासत: नाजायज संबंध के चलते जब कठघरे में खड़ा हुआ शादीशुदा विनय

कई दिनों से एक बात मन में बारबार उठ रही है कि इनसान को शायद अपने कर्मों का फल इस जीवन में ही भोगना पड़ता है. यह बात नहीं है कि मैं टैलीविजन में आने वाले क्राइम और भक्तिप्रधान कार्यक्रमों से प्रभावित हो गया हूं. यह भी नहीं है कि धर्मग्रंथों का पाठ करने लगा हूं, न ही किसी बाबा का भक्त बना हूं. यह भी नहीं कि पश्चात्ताप की महत्ता नए सिरे में समझ आ गई हो.

दरअसल, बात यह है कि इन दिनों मेरी सुपुत्री राशि का मेलजोल अपने सहकर्मी रमन के साथ काफी बढ़ गया है. मेरी चिंता का विषय रमन का शादीशुदा होना है. राशि एक निजी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. रमन सीनियर मैनेजर है. मेरी बेटी अपने काम में काफी होशियार है. परंतु रमन के साथ उस की नजदीकी मेरी घबराहट को डर में बदल रही थी. मेरी पत्नी शोभा बेटे के पास न्यू जर्सी गई थी. अब वहां फोन कर के दोनों को क्या बताता. स्थिति का सामना मुझे स्वयं ही करना था. आज मेरा अतीत मुझे अपने सामने खड़ा दिखाई दे रहा था…

मेरा मुजफ्फर नगर में नया नया तबादला हुआ था. परिवार दिल्ली में ही छोड़ दिया था.  वैसे भी शोभा उस समय गर्भवती थी. वरुण भी बहुत छोटा था और शोभा का अपना परिवार भी वहीं था. इसलिए मैं ने उन को यहां लाना उचित नहीं समझा था. वैसे भी 2 साल बाद मुझे दोबारा पोस्टिंग मिल ही जानी थी.

गांधी कालोनी में एक घर किराए पर ले लिया था मैं ने. वहां से मेरा बैंक भी पास पड़ता था.

पड़ोस में भी एक नया परिवार आया था. एक औरत और तीसरी या चौथी में

पढ़ने वाले 2 जुड़वां लड़के. मेरे बैंक में काम करने वाले रमेश बाबू उसी महल्ले में रहते थे. उन से ही पता चला था कि वह औरत विधवा है. हमारे बैंक में ही उस के पति काम करते थे. कुछ साल पहले बीमारी की वजह से उन का देहांत हो गया था. उन्हीं की जगह उस औरत को नौकरी मिली थी. पहले अपनी ससुराल में रहती थी, परंतु पिछले महीने ही उन के तानों से तंग आ कर यहां रहने आई थी.

‘‘बच कर रहना विनयजी, बड़ी चालू औरत है. हाथ भी नहीं रखने देती,’’ जातेजाते रमेश बाबू यह बताना नहीं भूले थे. शायद उन की कोशिश का परिणाम अच्छा नहीं रहा होगा. इसीलिए मुझे सावधान करना उन्होंने अपना परम कर्तव्य समझा.

सौजन्य हमें विरासत में मिला है और पड़ोसियों के प्रति स्नेह और सहयोग की भावना हमारी अपनी कमाई है. इन तीनों गुणों का हम पुरुषवर्ग पूरी ईमानदारी से जतन तब और भी करते हैं जब पड़ोस में एक सुंदर स्त्री रहती हो. इसलिए पहला मौका मिलते ही मैं ने उसे अपने सौजन्य से अभिभूत कर दिया.

औफिस से लौट कर मैं ने देखा वह सीढि़यों पर बैठ हुई थी.

‘‘आप यहां क्यों बैठी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी… सर… मेरी चाभी कहीं गिर कई है, बच्चे आने वाले हैं… समझ नहीं आ रहा

क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों, आओ मेरे घर में आ जाओ.’’

‘‘जी…?’’

‘‘मेरा मतलब है आप अंदर चल कर बैठिए. तब तक मैं चाभी बनाने वाले को ले कर आता हूं.’’

‘‘जी, मैं यहीं इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘जैसी आप की मरजी.’’

थोड़ी देर बाद रचनाजी के घर की चाभी बन गई और मैं उन के घर में बैठ कर चाय पी रहा था. आधे घंटे बाद उन के बच्चे भी आ गए. दोनों मेरे बेटे वरुण की ही उम्र के थे. पल भर में ही मैं ने उन का दिल जीत लिया.

जितना समय मैं ने शायद अपने बेटे को नहीं दिया था उस से कहीं ज्यादा मैं अखिल और निखिल को देने लगा था. उन के साथ क्रिकेट खेलना, पढ़ाई में उन की सहायता करना,

रविवार को उन्हें ले कर मंडी की चाट खाने का तो जैसे नियम बन गया था. रचनाजी अब रचना हो गई थीं. अब किसी भी फैसले में रचना के लिए मेरी अनुमति महत्त्वपूर्ण हो गई थी. इसीलिए मेरे समझाने पर उस ने अपने दोनों बेटों को स्कूल के बाकी बच्चों के साथ पिकनिक पर भेज दिया था.

सरकारी बैंक में काम हो न हो हड़ताल तो होती ही रहती है. हमारे बैंक में भी 2 दिन की हड़ताल थी, इसलिए उस दिन मैं घर पर ही था. अमूमन छुट्टी के दिन मैं रचना के घर ही खाना खाता था. परंतु उस रोज बात कुछ अलग थी. घर में दोनों बच्चे नहीं थे.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं रचना?’’

‘‘अरे विनयजी अब क्या आप को भी आने से पहले इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

खाना खा कर दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद मुझे लगा रचना कुछ असहज सी है.

‘‘क्या हुआ रचना, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है.’’

अपनी जगह से उठ कर मैं उस का सिर दबाने लगा. सिर दबातेदबाते मेरे हाथ उस के कंधे तक पहुंच गए. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. हम किसी और ही दुनिया में खोने लगे. थोड़ी देर बाद रचना ने मना करने के लिए मुंह खोला तो मैं ने आगे बढ़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के बाद रचना ने आंखें नहीं खोलीं. मैं धीरेधीरे उस के करीब आता चला गया. कहीं कोई संकोच नहीं था दोनों के बीच जैसे हमारे शरीर सालों से मिलना चाहते हों. दिल ने दिल की आवाज सुन ली थी, शरीर ने शरीर की भाषा पहचान ली थी.

उस के कानों के पास जा कर मैं धीरे से फुसफुसाया, ‘‘प्लीज, आंखें न खोलना तुम… आज बंद आंखों में मैं समाया हूं…’’

न जाने कितनी देर हम दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप लेटे रहे दोनों के बीच की खामोशी को मैं ने ही तोड़ा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो तुम?’’

‘‘नहीं, परंतु अपनेआप से हूं… आप शादीशुदा हैं और…’’

‘‘रचना, शोभा से मेरी शादी महज एक समझौता है जो हमारे परिवारों के बीच हुआ था. बस उसे ही निभा रहा हूं… प्रेम क्या होता है यह मैं ने तुम से मिलने के बाद ही जाना.’’

‘‘परंतु… विवाह…’’

‘‘रचना… क्या 7 फेरे प्रेम को जन्म दे सकते हैं? 7 फेरों के बाद पतिपत्नी के बीच सैक्स का होना तो तय है, परंतु प्रेम का नहीं. क्या तुम्हें पछतावा हो रहा है रचना?’’

‘‘प्रेम शक्ति देता है, कमजोर नहीं करता. हां, वासना पछतावा उत्पन्न करती है. जिस पुरुष से मैं ने विवाह किया, उसे केवल अपना शरीर दिया. परंतु मेरे दिल तक तो वह कभी पहुंच ही नहीं पाया. फिर जितने भी पुरुष मिले उन की गंदी नजरों ने उन्हें मेरे दिल तक आने ही नहीं दिया. परंतु आप ने मुझे एक शरीर से ज्यादा एक इनसान समझा. इसीलिए वह पुराना संस्कार, जिसे अपने खून में पाला था कि विवाहेतर संबंध नहीं बनाना, आज टूट गया. शायद आज मैं समाज के अनुसार चरित्रहीन हो गई.’’

फिर कई दिन बीत गए, हम दोनों के संबंध और प्रगाढ़ होते जा रहे थे. मौका मिलते ही हम काफी समय साथ बिताते. एकसाथ घूमनाफिरना, शौपिंग करना, फिल्म देखना और फिर घर आ कर अखिल और निखिल के सोने के बाद एकदूसरे की बांहों में खो जाना दिनचर्या में शामिल हो गया था. औफिस में भी दोनों के बीच आंखों ही आंखों में प्रेम की बातें होती रहती थीं.

बीचबीच में मैं अपने घर आ जाता और शोभा के लिए और दोनों बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार भी ले जाता. राशि का भी जन्म हो चुका था. देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब शोभा मुझ पर तबादला करवा लेने का दबाव डालने लगी थी. इधर रचना भी हमारे रिश्ते का नाम तलाशने लगी थी. मैं अब इन दोनों औरतों को नहीं संभाल पा रहा था. 2 नावों की सवारी में डूबने का खतरा लगातार बना रहता है. अब समय आ गया था किसी एक नाव में उतर जाने का.

रचना से मुझे वह मिला जो मुझे शोभा से कभी नहीं मिल पाया था, परंतु यह भी सत्य था कि जो मुझे शोभा के साथ रहने में मिलता वह मुझे रचना के साथ कभी नहीं मिल पाता और वह था मेरे बच्चे और सामाजिक सम्मान. यह सब कुछ सोच कर मैं ने तबादले के लिए आवेदन कर दिया.

‘‘तुम दिल्ली जा रहे हो?’’

रचना को पता चल गया था, हालांकि मैं ने पूरी कोशिश की थी उस से यह बात छिपाने की. बोला, ‘‘हां. वह जाना तो था ही…’’

‘‘और मुझे बताने की जरूरत भी नहीं समझी…’’

‘‘देखो रचना मैं इस रिश्ते को खत्म करना चाहता हूं.’’

‘‘पर तुम तो कहते थे कि तुम मुझ से प्रेम करते हो?’’

‘‘हां करता था, परंतु अब…’’

‘‘अब नहीं करते?’’

‘‘तब मैं होश में नहीं था, अब हूं.’’

‘‘तुम कहते थे शोभा मान जाएगी… तुम मुझ से भी शादी करोगे… अब क्या हो गया?’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? एक पत्नी के रहते क्या मैं दूसरी शादी कर सकता हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? क्या जो हमारे बीच था वह महज.’’

‘‘रचना… देखो मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, जो भी हुआ उस में तुम्हारी भी मरजी शामिल थी.’’

‘‘तुम मुझे छोड़ने का निर्णय ले रहे हो… ठीक है मैं समझ सकती हूं… तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं. दुख मुझे इस बात का है कि तुम ने मुझे एक बार भी बताना जरूरी नहीं समझा. अगर मुझे पता नहीं चलता तो तुम शायद मुझे बिना बताए ही चले जाते. क्या मेरे प्रेम को इतने सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी?’’

‘‘तुम्हें मुझ से किसी तरह की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.’’

‘‘मतलब तुम ने मेरा इस्तेमाल किया और अब मन भर जाने पर मुझे…’’

‘‘हां किया जाओ क्या कर लोगी… मैं ने मजा किया तो क्या तुम ने नहीं किया? पूरी कीमत चुकाई है मैं ने. बताऊं तुम्हें कितना खर्चा किया है मैं ने तुम्हारे ऊपर?’’

कितना नीचे गिर गया था मैं… कैसे बोल गया था मैं वह सब. यह मैं भी जानता था कि रचना ने कभी खुद पर या अपने बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं करने दिया था. उस के अकेलेपन को भरने का दिखावा करतेकरते मैं ने उसी का फायदा उठा लिया था.

‘‘मैं तुम्हें बताऊंगी कि मैं क्या कर सकती हूं… आज जो तुम ने मेरे साथ किया है वह किसी और लड़की के साथ न करो, इस के लिए तुम्हें सजा मिलनी जरूरी है… तुम जैसा इनसान कभी नहीं सुधरेगा… मुझे शर्म आ रही है कि मैं ने तुम से प्यार किया.’’

उस के बाद रचना ने मुझ पर रेप का केस कर दिया. केस की बात सुनते ही शोभा और मेरी ससुराल वाले और परिवार वाले सभी मुजफ्फर नगर आ गए. मैं ने रोरो कर शोभा से माफी मांगी.

‘‘अगर मैं किसी और पुरुष के साथ संबंध बना कर तुम से माफी की उम्मीद करती तो क्या तुम मुझे माफ कर देते विनय?’’

मैं एकदम चुप रहा. क्या जवाब देता.

‘‘चुप क्यों हो बोलो?’’

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद… हा… हा… हा… यकीनन तुम मुझे माफ नहीं करते. पुरुष जब बेवफाई करता है तो समाज स्त्री से उसे माफ कर आगे बढ़ने की उम्मीद करता है. परंतु जब यही गलती एक स्त्री से होती है, तो समाज उसे कईर् नाम दे डालता है. जिस स्त्री से मुझे नफरत होनी चाहिए थी. मुझे उस पर दया भी आ रही थी और गर्व भी हो रहा था, क्योंकि इस पुरुष दंभी समाज को चुनौती देने की कोशिश उस ने की थी.’’

‘‘तो तुम मुझे माफ नहीं…’’

‘‘मैं उस के जैसी साहसी नहीं हूं… लेकिन एक बात याद रखना तुम्हें माफ एक मां कर रही है एक पत्नी और एक स्त्री के अपराधी तुम हमेशा रहोगे.’’

शर्म से गरदन झुक गई थी मेरी.

पूरा महल्ला रचना पर थूथू कर रहा था. वैसे भी हमारा समाज कमजोर को हमेशा दबाता रहा है… फिर एक अकेली, जवान विधवा के चरित्र पर उंगली उठाना बहुत आसान था. उन सभी लोगों ने रचना के खिलाफ गवाही दी जिन के प्रस्ताव को उस ने कभी न कभी ठुकराया था.

अदालतमें रचना केस हार गई थी. जज ने उस पर मुझे बदनाम करने का इलजाम लगाया. अपने शरीर को स्वयं परपुरुष को सौंपने वाली स्त्री सही कैसे हो सकती थी और वह भी तब जब वह गरीब हो?

रचना के पास न शक्ति बची थी और न पैसे, जो वह केस हाई कोर्ट ले जाती. उस शहर में भी उस का कुछ नहीं बचा था. अपने बेटों को ले कर वह शहर छोड़ कर चली गई. जिस दिन वह जा रही थी मुझ से मिलने आई थी.

‘‘आज जो भी मेरे साथ हुआ है वह एक मृगतृष्णा के पीछे भागने की सजा है. मुझे तो मेरी मूर्खता की सजा मिल गई है और मैं जा रही हूं, परंतु तुम से एक ही प्रार्थना है कि अपने इस फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना.’’

चली गई थी वह. मैं भी अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया था. मेरे और शोभा के बीच जो खालीपन आया था वह कभी नहीं भर पाया. सही कहा था उस ने एक पत्नी ने मुझे कभी माफ नहीं किया था. मैं भी कहां स्वयं को माफ कर पाया और न ही भुला पाया था रचना को.

किसी भी रिश्ते में मैं वफादारी नहीं निभा पाया था. और आज मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा हो कर मुझ पर हंस रहा था. जो मैं ने आज से कई साल पहले एक स्त्री के साथ किया था वही मेरी बेटी के साथ होने जा रहा था.

नहीं मैं राशि के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा. उस से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा. वह मेरी बेटी है समझ जाएगी. नहीं मानी तो उस रमन से मिलूंगा, उस के परिवार से मिलूंगा, परंतु मुझे पूरा यकीन था ऐसी नौबत नहीं आएगी… राशि समझदार है मेरी बात समझ जाएगी.

उस के कमरे के पास पहुंचा ही था तो देखा वह अपने किसी दोस्त से वीडियो चैट कर रही थी. उन की बातों में रमन का जिक्र सुन कर मैं वहीं ठिठक गया.

‘‘तेरे और रमन सर के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘वही जो इस उम्र में चलता है… हा… हा… हा…’’

‘‘तुझे शायद पता नहीं कि वे शादीशुदा हैं?’’

‘‘पता है.’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘राशि, देख यार जो इनसान अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं है वह तेरे साथ क्या होगा? क्या पता कल तुझे छोड़ कर…’’

‘‘ही… ही… मुझे लड़के नहीं, मैं लड़कों को छोड़ती हूं.’’

‘‘तू समझ नहीं रही…’’

‘‘यार अब वह मुरगा खुद कटने को तैयार बैठा है तो फिर मेरी क्या गलती? उसे लगता है कि मैं उस के प्यार में डूब गई हूं, परंतु उसे यह नहीं पता कि वह सिर्फ मेरे लिए एक सीढ़ी है, जिस का इस्तेमाल कर के मुझे आगे बढ़ना है. जिस दिन उस ने मेरे और मेरे सपने के बीच आने की सोची उसी दिन उस पर रेप का केस ठोक दूंगी और तुझे तो पता है ऐसे केसेज में कोर्ट भी लड़की के पक्ष में फैसला सुनाता है,’’ और फिर हंसी का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया.

सीने में तेज दर्द के साथ मैं वहीं गिर पड़ा. मेरे कानों में रचना की आवाज गूंज रही थी कि अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना… अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना, परंतु विरासत तो बंट चुकी थी.

बीहू की शांति: पर्सी दोस्ती की आड़ में लड़की को क्यों फंसता था?

HINDI STORY

बीहू की शांति: भाग 3-पर्सी दोस्ती की आड़ में लड़की को क्यों फंसता था?

कुछ दिनों तक मोबाइल पर बातचीत के बाद मुलाकात तय हुई. वे तीनों होटल में गए जहां पर पर्सी ने जम कर लेस्बियन कल्चर की सपोर्ट में भाषणबाजी करी.

अब तक पर्सी समझ चुकी थी कि उसे क्या करना है, ‘‘तो लेस्बियन इतने अच्छे हैं तो आ जाओ न हमारे साथ,’’ कहते हुए अपने होंठ शांति के होंठों से चिपका दिए पर्सी ने. शांति ने अपने पूरे शरीर को ढीला छोड़ दिया. इस समय उस के शरीर पर पर्सी और बीहू अपना सारा प्रेम निछावर कर रही थीं.

शांति ने चरम सुख एक बार नहीं बल्कि 2-2 बार अनुभव किया. प्यासी धरती आज पानी की बूंदों से तृप्त हो रही थी.

उस दिन शर्म की दीवार क्या गिरी फिर तो आए दिन का खेल ही हो गया. अब तीनों जब भी मिलते, जवानी का मजा लेते और बदले में शांति बीहू और पर्सी को पैसे भी दे कर जाती. शांति को बीहू और पर्सी का साथ बहुत अच्छा लग रहा था और अब शांति पहले से ज्यादा खुश नजर आ रही थी पर उस की यह खुशी ज्यादा दिन तक नजर नहीं आई जब एक दिन पर्सी ने घबराते हुए शांति को बताया कि जिस होटल में वे तीनों मजा करने जाते थे वहां के कमरे में शायद स्पाई कैमरा लगा हुआ था और उस कैमरे में हमारी सभी की सैक्स करते समय के न्यूड वीडियो कैद हो गए हैं और अब उस होटल का मालिक हमे ब्लैकमेल कर रहा है और वीडियो को इंटरनैट पर लीक न करने के 2 लाख रुपए मांग रहा है.

‘‘पर कैसा वीडियो है वह और हैं कहां?’’ शांति ने पूछा तो पर्सी ने उसे अपने मोबाइल पर एक अनजान नंबर से आया वीडियो दिखाया जिस में शांति पूरी तरह से नग्न हो कर बिस्तर पर लेटी हुई है जबकि बीहू उस के पैरों को सहला रही है.

शांति दंग रह गई थी. वह किसी भी हालत में यह नहीं चाहती थी कि उस के चरित्र पर कोई लांछन लगा सके पर यहां तो उस का पूरा वीडियो ही बना हुआ है.

शांति ने बीहू को मिलने के लिए बुलाया और एक ही सांस में सारी घटना कह सुनाई. पर्सी भी साथ में थी.

‘‘पर इस बात की क्या गारंटी है कि ब्लैकमेलर एक बार हम से पैसा ले कर दोबारा हम से पैसे नहीं मांगेगा?’’ शांति ने कुछ सोचते हुए कहा.

पर्सी के चेहरे पर बड़ा आत्मविश्वास सा दिखाई दिया जब उस ने कहा कि एक बार पैसे मांगने के बाद वह दोबारा पैसे नहीं मांगेगा.

वैसे तो बीहू जानती थी कि आए दिन लड़केलड़कियों के सैक्स स्कैंडल

इंटरनैट पर अपलोड होते रहते हैं पर फिर भी किसी तरह की बदनामी न हो इसलिए वह भी यही चाहती थी कि बात रफादफा कर दी जाए हालांकि 2 लाख रुपए की रकम छोटी नहीं होती पर फिर मरता क्या न करता.

शांति और बीहू ने 2 लाख रुपए मिल कर किसी तरह पर्सी को दिए ताकि वह उस होटल के मकानमालिक अर्थात उस ब्लैकमेलर को दे सके. फिर कई हफ्तों तक उन लोगों में कोई मुलाकात करना ठीक नहीं समझ.

अभी 6 महीने ही गुजरे थे कि पर्सी ने एक बार फिर से घबराए स्वर में शांति को बताया कि वह ब्लैकमेलर मुझे फोन कर के फिर से पैसे मांग रहा है.

इस बार शांति को पर्सी की बात पर थोड़ा शक हुआ, ‘‘पर उस का फोन बारबार तुम्हारे पास ही क्यों आ रहा है हम में से किसी के पास क्यों नहीं आता.’’

शांति के इस सवाल से सकपका गई पर्सी. उसे इस प्रश्न की आशा न थी, इसलिए उस ने बात बदलते हुए कहा कि हमें जल्द ही कुछ करना चाहिए वरना हम सब बदनाम हो जाएंगे.

आखिर बीहू और शांति के पास कोई पैसों का पेड़ तो था नहीं. वे दोनों परेशान दिखी पर न जाने क्यों शांति को पर्सी की बात पर शक हो रहा था. उस ने शाम को पर्सी से फिर से उस के कमरे पर मिलने को कहा और यह भी कहा कि उसे अपनी इज्जत तो बचानी ही है. अत: कैसे भी हो वह पैसे ले कर आएगी.

शाम को पर्सी, बीहू और शांति एकसाथ थीं. शांति अपने साथ 2 लाख रुपए बैग में ले कर आई थी और बहुत परेशान हो रही थी कि कहीं यह ब्लैकमेलर उस का वीडियो वायरल न कर दे.

पर्सी ने पैसे देख कर उसे भरोसा दिलाया कि वह घबराए नहीं. पैसे दे देंगे तो वह कुछ नहीं करेगा.

शांति के आग्रह पर अपनी टैंशन कम करने के नाते तीनों ने जम कर शराब पी और

पार्टी करी. शराब पी कर सब से पहले पर्सी लुढ़क गई क्योंकि शांति ने चुपके से सिर्फ पर्सी की शराब में ही नींद की गोलियां मिलाई थीं और खुद बीहू और शांति सिर्फ नशे में होने का नाटक भर कर रही थीं. उन दोनों ने पर्सी की उंगली की बायोमीट्रिक छाप से पर्सी का मोबाइल अनलौक किया और उस की छानबीन करी, उस के चैट्स खंगाले और जो समाने आया उस से वे दोनों दंग रह गईं.

पर्सी के अनेक लड़कों और लड़कियों से संबंध थे. वह लेस्बियन होने का दिखावा करती और फिर लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर उन के आपसी संबंध का न्यूड वीडियो बना कर बाद में उन्हीं को ब्लैकमेल करती.

शांति को उसी दिन शक हो गया था जब उस के सवाल पर पर्सी के चेहरे का रंग उड़ गया था. तभी उस ने अपने मन की बात बीहू से शेयर करी और तभी दोनों ने मिल कर पूरी प्लानिंग से  पार्टी वाला प्रोग्राम बनाया.

बीहू और शांति ने पर्सी को बैड के सिरहाने से बांध दिया और उस के मोबाइल से ही पुलिस को फोन कर के पर्सी के बारे में सबकुछ बता दिया. पर्सी का पता भी बता दिया. पुलिस द्वारा फोन करने वाले की पहचान पूछे जाने पर सिर्फ ‘एक पीडि़त’ कह कर फोन काट दिया.

बीहू को पर्सी ने धोखे में रखा और अपने जाल में फंसाया. बीहू कभी पर्सी को माफ नहीं करेगी और अब शायद किसी अनजाने पर इतनी जल्दी भरोसा भी नहीं कर पाएगी.

‘‘तुम चाहो तो मुझ पर भरोसा कर सकती हो क्योंकि मैं भी एक सताई हुई औरत हूं,’’ शांति ने जैसे बीहू के मन की बात पढ़ ली थी.

बीहू के चेहरे पर मुसकराहट थी. उस ने कमरे से अपना सारा सामान उठाया और शांति के साथ एक अनजान शहर की ओर जाने वाली बस में बैठ गई.

अब बीहू को किसी ड्रामा स्कूल से नाटक के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं थी. अपने अनुभवों से वह जान चुकी थी कि यहां पर सब तरफ एक नाटक चल रहा है जिस में लोग अपना असली चेहरा छिपाए रहते हैं और नकली चेहरा जनता को दिखाते हैं.

बीहू और शांति बाकी का जीवन एकदूसरे के असली चेहरे के साथ बिताएंगी जबकि दुनिया के सामने उन का नकली चेहरा ही होगा.

पुरुषों द्वारा किसी न किसी रूप में पीडि़त महिलाएं आज आजाद हो चुकी थीं. समाज उन के रिश्ते को ‘अननैचुरल’ भी कह सकता है पर सच तो यह था कि अब बीहू को शांति मिल चुकी थी और अब शांति के साथ बीहू थी.

बीहू की शांति: भाग 2-पर्सी दोस्ती की आड़ में लड़की को क्यों फंसता था?

लेस्बियन संबंधों के बारे में सिर्फ पढ़ा भर ही था बीहू ने पर पिछली रात अनुभव भी कर लिया.

‘‘कल रात जो भी हुआ वह ठीक नही था,’’ बीहू ने कहा.

‘‘क्या ठीक नहीं था, लेस्बियन होना कोई नई बात नहीं, हर जगह होता है यह और फिर लड़कों के साथ सैक्स करने से तो अच्छा है, कम से कम बच्चे पैदा होने का तो कोई डर नहीं रहता,’’ यह बात पर्सी ने इस अंदाज से कही थी कि बीहू भी मुसकरा उठी.

बीहू को भी तो लड़कों से दर्द के अलावा कुछ नहीं मिला था पर ऐसा नहीं था कि अपने लेस्बियन होने के गुण को बीहू ने एक ही रात में स्वीकार कर लिया था पर यह तो सच था कि पहली बारिश के बाद जिस तरह से माहौल हलकाफुलका सा हो जाता है वैसा ही हलकापन जरूर महसूस किया था बीहू ने.

शायद इसी कारण अब बीहू कुछ नए किरदारों में भी फिट बैठ रही थी और ‘थिएटर दिवस’ पर रवींद्रालय में आने वाले एक विशेष कार्यक्रम के लिए बीहू और पर्सी ने जम कर मेहनत करी थी. एक प्ले तैयार किया था जिस में यह संदेश था कि औरत किसी तरह से मर्द पर आश्रित नहीं, बच्चा पैदा करने के लिए भी नहीं.

इस प्ले में तमाम तथ्य दिए गए थे जिन से दर्शकों को लगा कि अगर पुरुष पूरी तरह से हिंसक या बलात्कारी बनते जा रहे हैं तो फिर महिलाओं को उन का बहिष्कार कर देना चाहिए और चाहे इस के लिए उन्हें लेस्बियन कल्चर ही क्यों नहीं अपनाना पढ़े.

मगर क्या पुरुषविहीन समाज संभव है? अगर हां तो यह कैसे हो पाएगा? इस प्रश्न के साथ इस प्ले को खत्म किया गया था.

दर्शकों की तालियां बता रही थीं कि उन लोगों को ड्रामा बहुत पसंद आया. सभी कलाकारों ने एकसाथ स्टेज पर आ कर सभी दर्शकों का अभिनंदन किया.

बीहू और पर्सी अपने चेंजिंगरूम में आ कर अभी बैठे  ही थे कि दरवाजे पर खटखट की आवाज आई तो बीहू ने दरवाजा खोला. देखा सामने 30-35 साल की एक शादीशुदा औरत खड़ी थी जो देखने से ही काफी पैसे वाली लग रही थी.

वह बड़ी बेपरवाही से अंदर आ गई और सोफे में धंस गई. अपना परिचय देते हुए उस ने बताया कि उस का नाम शांति है. उस ने उन दोनों की ऐक्टिंग की जम कर तारीफ करी और लेस्बियन कल्चर पर खूब सवालजवाब करने लगी. शांति की सारी बातों के जवाब पर्सी ने बखूबी दिए.

शांति का मिजाज बहुत खुला हुआ और दोस्ताना था जातेजाते वह अपना मोबाइल नंबर भी दे गई और जल्दी ही फिर मिलने का वादा भी कर गई.

उस ने अपना वादा जल्द ही निभाया जब  फोन कर के पर्सी और बीहू को ‘सन ऐंड

शाइन’ नाम के रेस्तरां में बुलाया जहां का तेली भाजा (एक बंगाली डिश)बहुत प्रसिद्ध था. रेस्तरां में शांति जिस तरह से खाने का और्डर दे रही थी उस से वह खाने की शौकीन तो लगी ही, साथ ही साथ बीहू और पर्सी को यह भी पता चल गया कि वह काफी खुले विचारों वाली है.

‘‘पर मुझे ऐसे पैसे का क्या करना,’’ शांति जैसे आज अपना दुख कह ही देना चाहती थी और उस ने अपना सारा दुख बयां कर ही दिया.

शांति और उस के पति बाबुल की शादी एक लव मैरिज थी जोकि भावावेश के चलते करी गई. बाबुल एक ब्राह्मण परिवार से था और शांति एक लोहार परिवार से. दोनों कालेज में थे तभी दोनों में प्यार हुआ. बाबुल एक दिलफेंक लड़का था. दोनों में जिस्मानी संबंध बन गए और शांति को गर्भ ठहर गया.

जब शांति ने बाबुल को इस बारे में बताया तो उस ने इसे अपना बच्चा मानने से ही इनकार कर दिया और उसे नीच जाति का कह कर उलटा आरोप शांति के चरित्र पर ही लगाने लगा. शांति ने रोते हुए सारी बात अपने भाई और घर वालों को बताई. उस के घर वालों ने पुलिस की मदद ली और पुलिस ने ईमानदारी से काम करते हुए बाबुल और उस के मातापिता के समक्ष शांति से शादी करने का प्रस्ताव रखा. पुलिस के दबाव और बदनामी के डर से बाबुल ने शांति से शादी कर ली.

अब घर में पैसा और नौकरचाकर किसी चीज की कमी नहीं है. कमी है तो बस बाबुल के प्रेम की, महीनों बीत जाते हैं वह शांति को छूता तक नहीं और बाबुल के मांबाप बातबात में शांति को लोहार की बेटी होने का ताना देते रहते हैं. उसे लगता है कि उस की जरूरत किसी को नहीं.

इसीलिए जब मैं ने आप का वह प्ले देखा तब मैं ने सोचा कि कितना अच्छा हो अगर इस दुनिया से ये निर्दयी पुरुष खत्म ही हो जाएं.’’

पर्सी और बीहू ने उसे धैर्य बंधाया. बातों का दौर कुछ देर तक चलता रहा. अब समय चलने का हो गया था. तीनों बाहर निकले तो शांति ने उन दोनों को अपनी गाड़ी में ही लिफ्ट दे दी.

बीहू और पर्सी पीछे वाली सीट पर बैठ गईं और शांति भी आगे न बैठ कर उन्हीं के साथ पीछे वाली सीट पर बैठ गई.

तीनों चुप थीं कार में कोई बंगाली संगीत बज रहा था. तभी पर्सी का हाथ शांति की जांघ पर रेंगने लगा. कुछ देर शांति कुछ नहीं बोली फिर उस की सवालिया नजरें पर्सी की ओर उठीं तो पर्सी ने भी निगाहों से ही उसे चुप बैठने को कह दिया, शांति पुरुष संसर्ग की प्यासी थी. फिर भी उसे पर्सी का स्पर्श भा रहा था.

पर्सी और बीहू की मंजिल आ गई थी. दोनों के कमरे को जान और पहचान लिया था शांति ने. जब शांति ने अगली बार मिलने की इच्छा जताई तो पर्सी ने वार्डन की दुहाई देते हुए किसी और जगह मिलने को कहा.

चिंता: आखिर क्या था लता की चिंताओं कारण?

बुधवार को दिन भर लता अपने पति के लौटने की प्रतीक्षा करती रही. घर के मुख्यद्वार पर जरा सी आहट होने पर उस की निगाहें खुद ब खुद बाहर की ओर उठ जाती थीं. एक बार तो उसे लगा जैसे कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा हो. आशा भरे मन से उस ने दरवाजा खोला. देखा तो एक पिल्ला दरवाजे से अंदर घुसने का व्यर्थ प्रयास कर रहा था, जिस के कारण खटखट की आवाज हो रही थी. देख कर लता के होंठों पर मुसकराहट तैर गईर्. अगले ही पल निराश हो कर वह फिर लौट आई.

पिछले शनिवार को उस के पति इलाहाबाद गए थे. उस दिन अचानक उन्हें अपने मुख्य अधिकारी की ओर से इलाहाबाद जाने का आदेश प्राप्त हुआ था. कुछ गोपनीय कागजात सुबह तक वहां जरूरी पहुंचाए जाने थे, इसलिए वह रात की गाड़ी से ही रवाना हो गए थे. लता को यह बता कर गए थे कि एकदो दिन का ही काम है, मंगलवार को वह हर हालत में वापस लौट आएंगे.

मंगलवार की शाम तक तो लता को अधिक फिक्र नहीं थी परंतु जब बुधवार की शाम तक भी उस के पति नहीं लौटे तो उसे चिंता सताने लगी. उसे लगा, जैसे उन्हें घर से गए महीनों बीत गए हों. जब देर रात गए तक भी पति महोदय नहीं आए तो उस के मन में बुरेबुरे विचार आने लगे. वह सोने का असफल प्रयास करने लगी. कभी एक ओर करवट लेती तो कभी दूसरी ओर, पर नींद जैसे उस से कोसों दूर थी.

‘कहां रुक सकते हैं वह,’ लता सोचने लगी, ‘कहीं गाड़ी न छूट गई हो. लेकिन अगर गाड़ी छूट गई होती तो अगली गाड़ी भी पकड़ सकते थे. कल न सही, आज तो आ ही सकते थे.

‘हो सकता है उन की जेब कट गई हो और सभी पैसे निकल गए हों. ऐसे में उन्हें बड़ी मुश्किल हो गई होगी. वापसी पर टिकट लेने के लिए उन के सामने विकट समस्या खड़ी हो गई होगी.’

पर दूसरे ही क्षण लता उस का समाधान भी खोजने लगी, ‘इस के बावजूद तो कई उपाय थे. वहां स्थित अपने कार्यालय के शाखा अधिकारी को अपनी समस्या बता कर पैसे उधार मांग सकते थे. वहां के शाखा अधिकारी यहीं से तो स्थानांतरित हो कर गए हैं और उन के अच्छे दोस्त भी हैं. हां, उन की कलाई पर घड़ी भी तो बंधी है, उसे बेच सकते हैं. नहीं, उन की जेब नहीं कटी होगी. अब तक न आ सकने का कोई और ही कारण रहा होगा.

‘हो सकता है स्टेशन पर उन का सामान चुरा लिया गया हो. तब तो वह बड़ी मुसीबत में फंस गए होंगे. उन के ब्रीफकेस में तो दफ्तर के बहुत सारे महत्त्वपूर्ण कागज थे. यदि ऐसा हो गया तो अनर्थ हो जाएगा. फिर तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा. अपनी नौकरी के बचाव के लिए अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ेगा. कैसी भयावह स्थिति होगी वह?’

यह सोच कर लता की आंखों के सामने कई प्रकार के भयानक दृश्य घूमने लगे.

‘नौकरी छूट गई तो दरदर भटकना पड़ेगा. आजकल दूसरी नौकरी कहां मिलती है? हर महीने मिलने वाला वेतन एकदम बंद हो जाएगा. तनख्वाह के बिना गुजारा कैसे चलेगा? मकान का किराया कहां से देंगे? बच्चों की फीस, किताबें, घर का अन्य खर्च, इतना सबकुछ. कटकटा कर उन्हें हर माह 2,200 रुपए तनख्वाह मिलती है. सब का सब घर के अंदर व्यय हो जाता है. लेकिन अगर यह पैसा भी मिलना बंद हो गया तो कहां से करेंगे ये सब खर्च?

‘यदि ऐसी नौबत आ गई तो कोई अन्य उपाय करना होगा…हां, अपने मायके से कुछ मदद लेनी होगी. पर वह भी आखिर कब तक हमारी सहायता करेंगे? बाबूजी, मां, भैया, भाभी और उन के छोटेछोटे बच्चे…उन का भी भरापूरा परिवार है. उन के अपने भी तो बहुत सारे खर्चे हैं. अंत में तो उन्हें खुद ही कुछ न कुछ अपनी आमदनी का उपाय करना होगा.

‘हां, एक बात हो सकती है,’ लता को उपाय सूझा, ‘मैं अपने पिताजी से कहसुन कर उन्हें कोई छोटीमोटी दुकान खुलवा दूंगी. कितने कष्टदायक दिन होंगे वे भी. क्या हमारे लिए दूसरों का मोहताज बनने की नौबत आ जाएगी.’

लता सोचतेसोचते एक बार फिर वर्तमान में लौट आईर्. दोनों बच्चे चारपाई पर हर बात से बेखबर गहरी नींद सो रहे थे. वह सोचने लगी, ‘काश, वह खुद भी एक बच्ची होती.’

बाहर घुप अंधेरा छाया हुआ था. दूर कहीं से कुत्ते भूंकने की आवाज रात के सन्नाटे को तोड़ रही थी. उस ने अनुमान लगाया कि रात के 12 बज चुके होंगे. उस ने सिर को झटका दिया, ‘मैं तो यों ही जाने क्याक्या सोचने लगी हूं. बाहर जाने वाले को किसी कारण ज्यादा दिन भी तो लग सकते हैं.’

लता ने अपने मन को समझाने की पूरीपूरी कोशिश की. दुशचिंताए उस का पीछा नहीं छोड़ रही थीं. न चाहते हुए भी उसे तरहतरह के खयाल सताने लगते थे.

‘नहीं, उन का सामान चोरी नहीं हुआ होगा. तो फिर वह अभी तक लौटे क्यों नहीं थे? कल तो उन्हें जरूर आ जाना चाहिए,’ और तब लता को पति पर रहरह कर गुस्सा आने लगा, अगर ज्यादा ही दिन लगाने थे तो कम से कम तार द्वारा तो सूचना दे ही सकते थे. फोन पर भी बता सकते थे कि वह अभी नहीं आ सकेंगे…आ जाएं एक बार, खूब खबर लूंगी उन की.

आएंगे तो दरवाजा ही नहीं खोलूंगी. पर दरवाजा तो खोलना ही होगा. मैं उन से बात ही नहीं करूंगी. बेशक, जितना जी चाहे मनाते रहें. खूब तंग करूंगी. चाय तक के लिए नहीं पूछूंगी. वह समझते क्या हैं अपनेआप को. पता नहीं, जनाब वहां क्या गुलछर्रे उड़ा रहे होंगे. उन्हें क्या पता यहां उन की चिंता  में कोई दिनरात घुले जा रहा है.’

अगले क्षण उसे किसी अज्ञात भय ने घेर लिया, ‘कहीं वह किसी औरत वगैरह के चक्कर में न पड़ गए हों. आजकल बड़ेबडे़ शहरों में कई पेशेवर औरतें केवल अजनबी व्यक्तियों को फंसाने के चक्कर में रहती हैं. जरूर ऐसा ही हुआ होगा. उन्हें फंसा कर उन का सब कुछ लूट लिया होगा. पर ऐसा नहीं हो सकता. वह आसानी से किसी के चंगुल में फंसने वाले नहीं हैं. जरूर कोई अन्य कारण रहा होगा.’ लता के दिलोदिमाग में अजीब तर्कवितर्क चल रहे थे.

ऐसी कौन सी वजह हो सकती है जो वह अभी तक नहीं लौटे. कहीं कोई दुर्घटना वगैरह तो नहीं हो गई? नहीं, नहीं…लता एक बार तो भीतर तक कांप उठी.

‘रिकशा से स्टेशन आते समय कोई दुर्घटना…नहीं, नहीं…बस दुर्घटना या रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई हो. अगर चोट लगी होगी तो किसी अस्पताल में पड़े कराह रहे होंगे…नहीं, नहीं, उन्हें कुछ नहीं हो सकता.’ लता मन ही मन पति की सलामती के लिए कामना करने लगी.

‘अगर ऐसी कोई दुर्घटना हुई होती तो अब तक अखबार, रेडियो या टेलीविजन पर खबर आ जाती.’

लता चारपाई से उठी और अलमारी में से पिछले 3-4 दिन के समाचारपत्र ढूंढ़ कर ले आई. उस ने अखबारों के सभी पन्ने उलटपलट कर एकएक खबर देख डाली. इलाहाबाद की किसी भी दुर्घटना की खबर नहीं थी.

‘यह मैं क्या उलटासीधा सोचने लगी. कितनी मूर्ख हूं मैं,’ लता ने अपनेआप को चिंता के भंवर से मुक्त करना चाहा. पर उस का व्याकुल मन उसे घेरघार कर फिर वहीं ले आता. उसे लगता, जैसे उस के पति अस्पताल में पड़े मौत से जूझ रहे हों.

‘वहां तो उन की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं होगा. बेहोशी की हालत में वह अपना अतापता भी नहीं बता पाए होंगे. कहीं वह वहीं पर दम न तोड़ गए हों. नहीं, नहीं, उन का लावारिस शव…यह सोच कर वह अंदर तक सिहर उठी. उस ने पाया कि उस की आंखें गीली हो गई हैं और आंसुओं की बूंदें उस के गालों पर लुढ़क आईं. अपनी नादान सोच पर उसे हंसी भी आई और गुस्सा भी.

‘यह मुझे क्या होता जा रहा है. जागते हुए भी मुझे कैसेकैसे बुरे सपने आने लगे हैं.’ लता कल्पना की आंखों से देख रही थी कि कुछ लोग उस के पति के शव को गाड़ी पर लाद कर ले आए हैं. घर पर भीड़ जमा हो गई है. चारों ओर हंगामा मचा हुआ है. लोग उस से सहानुभूति जता रहे हैं.’

उस ने एक बार फिर उन विचारों को अपने दुखी मन से झटक देना चाहा, पर विचारों की उड़ान पर किस का वश चलता है.

‘उन के मरने के बाद मेरा क्या होगा? उन के अभाव में यह पहाड़ सी जिंदगी कैसे कटेगी,’ लता के विचारों की शृंखला लंबी होती जा रही थी.

‘नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. ऐसे में दूसरी शादी…नहीं, नहीं, किस से शादी करूंगी मैं? इस उम्र में कौन थामेगा मेरा हाथ. क्या कोई व्यक्ति उस के दोनों बच्चों को अपनाने के लिए राजी हो जाएगा. कौन करेगा इतना त्याग, पर मैं अभी इतनी बूढ़ी तो नहीं हो गई हूं कि कोई मुझे पसंद न करे. 24 वर्ष की उम्र ही क्या होती है. 2 बच्चों को जन्म देने के बाद भी मैं सुंदर व अल्हड़ युवती सी दिखाई देती हूं. उस दिन पड़ोस वाली कमला चाची कह रही थीं, ‘लता, लगता ही नहीं तुम 2 बच्चों की मां हो. अगर साथ में बच्चे न हों और मांग में सिंदूर न हो तो कोई पहचान ही नहीं सकता कि तुम विवाहिता हो.’

फिर एकाएक लता को सुशील का ध्यान हो आया, ‘सुशील अविवाहित है. कई बार मैं ने सुशील को प्यार भरी नजरों से अपनी ओर निहारते पाया है. वह अकसर मेरे बनाए खाने की तारीफ किया करता है. मुझे खुद भी तो सुशील बहुत अच्छा लगता है. सुशील सुदर्शन है, सभ्य है, मनमोहक व्यक्तित्व वाला है. वह उन का दोस्त भी है. यहां घर पर आताजाता रहता है.

मैं किसी के माध्यम से उस के दिल को टोहने का प्रयास करूंगी. यदि वह मान गया तो उस के साथ मेरा जीवन खूब सुखमय रहेगा. वह उन से ऊंचे पद पर भी है. आय भी अच्छी है. उस के पास कार, बंगला सबकुछ है. वह जरूर मुझ से विवाह कर लेगा,’ लता अनायास मन ही मन खुद को सुशील के साथ जोड़ने लगी.

‘मैं सुशील के साथ हनीमून भी मनाने जाऊंगी. वह मुझे कश्मीर ले जाने के लिए कहेगा. मैं ने कभी कश्मीर नहीं देखा है. उन्होंने कभी मुझे कश्मीर नहीं दिखाया. कितनी बार उन से अनुरोध किया कि कभी कश्मीर घुमा लाओ, पर वह हमेशा टालते रहे हैं. पर मुन्ना और मुन्नी? उन को मैं यहीं उन के नानानानी के पास छोड़ जाऊंगी.’

सुशील के साथ प्रेम क्रीड़ा, छेड़छाड़ इत्यादि क्षण भर में ही लता कई बातें अनर्गल सोच गई.

कश्मीर का काल्पनिक दृश्य, तसवीरों में देखी डल झील, शिकारे, हाउस बोट, निशात बाग, शालीमार बाग, गुलमर्ग इत्यादि के बारे में सोच कर उस का मन रोमांचित हो उठा.

एकाएक उस की तंद्रा भंग हो गई. बाहर दरवाजे पर दस्तक हो रही थी. लता कल्पनाओं के संसार से मुक्त हो कर एकाएक वास्तविकता के धरातल पर लौट आईर्. अपने ऊटपटांग विचारों को स्मरण कर के वह ग्लानि से भर गई, ‘कितने नीच विचार हैं मेरे. क्या मैं इतना गिर गई हूं? क्या इतनी ही पतिव्रता हूं मैं?’ लता को लगा जैसे अभीअभी उस ने कोई भयंकर सपना देखा हो.

बाहर कोई अब भी दरवाजा खटखटा रहा था. ‘इतनी रात गए कौन हो सकता है?’ लता सोचती हुई उठी और आंगन में आ गईर्. दरवाजा खोला, देखा तो उस के पति ब्रीफकेस हाथ में लिए सामने खड़े मुसकरा रहे थे. वह दौड़ कर उन से लिपट गई.

प्रसन्नता के मारे उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

बीहू की शांति: भाग 1- पर्सी दोस्ती की आड़ में लड़की को क्यों फंसता था?

ऐसा बिलकुल नहीं था कि उसे लड़कों से हमेशा से नफरत थी. बचपन से ले कर इंटरमीडिएट तक वह लड़कों के साथ पढ़ी. उस के बाद विश्वविद्यालय तक लड़के ही तो उस के साथी थे. कुछ लड़के बहुत केयरिंग थे सच्चे दोस्तों जैसे पर कुछ लड़के लड़कियों से दोस्ती सिर्फ उन के शरीर तक ही रखते थे.

उस तरह के लड़के, पुरुष हर जगह टकराए, स्कूल, बाजार, रिश्तेदारी, सभी जगह चुभती निगाहें और कुहनियां.

किशोरावस्था में अपनी उम्र से दोगुने अंकल के द्वारा अपने साथ हुए यौन शोषण की भयानक यादों को कितनी मुश्किल से भुला पाई थी बीहू और अगर उस समय मां और पापा की सपोर्ट नहीं मिलती तो वह कब की आत्महत्या कर चुकी होती.

परिवार वालों का साथ पाने से बीहू मजबूत बनी रही और उस ने विश्वास रखा कि अगर उस के साथ गलत हुआ है तो उस की गलती नहीं बल्कि उस व्यक्ति की है जिस ने उस के साथ गलत किया है. सजा तो उस आदमी को मिलनी चाहिए.

बड़ी होती बीहू जानेअनजाने में लड़कों से अपनेआप को दूर ही रखने लगी. लड़कों की मौजूदगी उस के लिए दमघोटू बनने लगी. शादियों, पार्टियों में जाने से भी गुरेज करती थी बीहू और अगर जाए भी तो पापा के साए में ही खानापीना कर के वापस घर आ जाना. यही उस का पार्टी ऐंजौय करने का तरीका था.

पापा भी बीहू के चारों तरफ एक सुरक्षित सा घेरा बनाए रहते थे. धीरेधीरे युवा होती बीहू के मन में लड़कों के प्रति एक रीतापन सा छा गया जबकि लड़कियों की संगत उसे सुहाती थी.

बीहू के पापा की सरिया बनाने की फैक्टरी थी. पैसों की कोई कमी नही थी. अत:

बीहू ने पहले तो कौमर्स से ग्रैजुएशन किया और  फिर अपने अंदर की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए थिएटर में काम करना चाहा जिस के लिए उस ने कोलकाता में जा कर ‘ललित स्कूल औफ ड्रामा’ में थिएटर की बारीकियां सीखने के लिए दाखिला ले लिया. यह डिप्लोमा 2 साल का था. बीहू को वहां रहने के लिए एक अच्छे कमरे की तलाश थी जो ड्रामा स्कूल से बहुत दूर न हो.

‘‘वैल तुम तो यूपी से आई है. हमारे स्कूल में यूपी का एक और लड़की है पर्सी नाम का. हम तुम्हें उस से मिलवा देंगे. तुम्हें उस से काफी मदद मिलेगी,’’ ड्रामा स्कूल के सिक्यूरिटी औफिसर ने बीहू से कहते ही मोबाइल पर एक नंबर डायल कर दिया. उधर से कोई बात करने लगा. बातचीत पर्सी से हो रही थी जिसे यह बताया जा रहा था कि अगर उसे रूमपार्टनर की जरूरत है तो वह आ कर बीहू से मिल सकती है क्योंकि बीहू भी उत्तर प्रदेश की है और पर्सी भी वहीं की है इसलिए कोलकाता में उत्तर प्रदेश वालों की आपस में खूब बनेगी.

वैसे तो बीहू को एकाकी रहना अधिक खलता नहीं था पर यहां परदेश में कोई अपने उधर का मिलना अच्छा लग रहा था उसे और अनजान पर्सी के लिए उस के दिल में पहले से ही एक सौफ्ट कौर्नर सा बन चुका था.

बीहू कुरसी पर बैठी हुई थी कि सामने से एक मौडर्न सी लड़की आती दिखाई दी, जिस ने टीशर्ट के ऊपर एक लूजर सी जैकेट डाल रखी थी. उस के बाल कटे हुए थे जोकि पूरी तरह लापरवाही से बिखरे हुए थे. पर्सी को देख कर ही एक टौमबौय जैसी फीलिंग आ रही थी.

आते ही पर्सी ने बीहू की तरफ हाथ बड़ाया, ‘‘मैं मुरादाबाद से हूं और तुम?’’

‘‘मैं नोएडा से,’’ बीहू ने जवाब दिया.

‘‘थिएटर के शौक ने हम दोनों को बड़ी दूर ला दिया, पर अब तुम मिल गई हो तो थोड़ा अकेलापन कम लगेगा,’’ पर्सी बहुत जल्दी मिक्सअप हो गई जैसे वह बीहू को पहले से जानती हो.

पर्सी एक महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. वह एक मध्यवर्गीय परिवार से थी और फिल्मों में काम करना चाहती थी, पर जहां भी ट्राई किया हर आदमी ने उस का शोषण ही करना चाहा. फिर फिल्म इंडस्ट्री में कोई गौडफादर नहीं होने के कारण पर्सी ने पैसे कमाने के लिए थिएटर की ओर रुख किया. जिस दिन पर्सी के पास खूब ढेर सारे पैसे हो जाएंगे उस दिन वह वापस अपने घर लौट जाएगी. जहां जा कर वह अपनी 2 छोटी बहनों की पढ़ाईलिखाई और मांबाप की जिम्मेदारी निभाएगी.

बीहू बहुत अधिक सामान ले कर नहीं आई थी. सिर्फ एक बड़ा सा ब्रीफकेस था जो आसानी से कैब में रख लिया गया और ड्राइवर ने जीपीएस में पहुंचने का स्थान साकेत नगर डाल दिया. बहुत दूर नहीं था साकेत नगर, मात्र 15 मिनट की ड्राइविंग के बाद ही मंजिल आ गई दोनों की.

कैब का बिल देने में खुद पर्सी ने देर नहीं करी और बीहू को ले कर फट से अपने कमरे की ओर बढ़ चली.

बीहू ने फोन पर सब ठीक होने की जानकारी अपने मांबाप को दी और उस दिन थकी होने के कारण जल्दी सो गई. अगले दिन क्लास थी, जहां पर बीहू ने बड़ी सहजता से सारे किरदार निभा लिए, उस की किरदारों में जमने की क्षमता को देख कर पर्सी भी हैरान रह गई थी. आज पहले दिन ही अपने सीनियर्स और साथी कलाकारों की वाहवाही लूटी ली थी बीहू ने. पर बीहू सिर्फ उदासी भरे किरदार ही अच्छे से निभा पाती थी जबकि उसे कई बार सर ने यह बताया कि थिएटर का एक अच्छा कलाकार बनने के लिए यह जरूरी है कि वह हर तरह का किरदार निभाए.

बीहू ने सर की बात का कोई विरोध नहीं किया और पर्सी और बीहू दोनों कौफी पी कर अपने कमरे में चली आईं.

आज मौसम खराब था. रहरह कर बिजली कड़क जाती थी. बीहू खिड़की से बाहर देख रही थी. तभी बारिश के एक झोके ने उसे खिड़की बंद कर देने पर मजबूर कर दिया.

‘‘बिलकुल इसी खिड़की की तरह तुम ने अपने को बंद कर रखा है बीहू, कम औन यार, कुछ तो खुलो कोई बौयफ्रैंड. कोई गर्लफ्रैंड,’’ पर्सी ने बीहू के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा तो बीहू के अंदर का दर्द जाग उठा और वह कुछ न कह पाई. शब्द घुट कर रह गए और सिसकी निकल पड़ी.

उस की सिसकी सुन कर पर्सी समझ गई कि बीहू ने बहुत कुछ अपने अंदर छिपा रखा है. उस ने बीहू से कुछ नहीं कहा. उस पूरी रात बीहू पर्सी से लिपट कर सोई.

भले ही बीहू के मन में कुछ नहीं था पर इस तरह से लिपट कर सोने को पर्सी ने एक मौन आमंत्रण माना और अगले दिन जब बीहू सोने चली तो खुद पर्सी उस से लिपट गई और उस की पीठ को सहलाने लगी. पीठ से उस के हाथ बीहू की जांघ के आसपास हरकत करने लगे थे.

बीहू पहले तो थोड़ी असहज लगी पर जल्द ही उसे पर्सी का अपने यौननांगों के इतने निकट आना अच्छा लग रहा था. बीहू पर्सी की गरम सांसों को अपने अंगों में महसूस कर सकती थी और पर्सी के हाथ लगातार बीहू के शरीर पर हरकत करते रहे जब तक बीहू चरम पर नहीं पहुंच गई. उस के बाद पर्सी ने भी चरम सुख प्राप्त कर लिया.

सार्वजनिक: तन्मय ने तमन्ना के साथ खेला घिनौना खेल?

गुड विल सोसायटी के टावर नंबर 1 के टौप फ्लोर के कोने वाले फ्लैट में तन्मय और तमन्ना रहते हैं. एकदम एकांत फ्लैट. अपनी निजता का ध्यान रखते हुए उन्होंने यह फ्लैट मार्केट रेट से अधिक किराए पर लिया. नौजवानों के दिल कुछ जुदा ढंग से धड़कते हैं और उन के धड़कने के लिए पूरी आजादी भी चाहिए.

उन के सामने का टावर नंबर 2 था. थोड़ी दूरी अवश्य थी. निजता को ध्यान में रखते हुए सोसायटी के विभिन्न टावरों के बीच दूरी थी. दूरी तो अवश्य थी लेकिन बालकनियां आमनेसामने थीं. बालकनी में खड़े हो कर हाथ हिला कर हायहैलो हो जाती थी.

टावर नंबर 2 में तन्मय के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में एक अधेड़ दंपती सविता व राजेश अपने 2 छोटे बच्चों के संग रहते थे. शाम के समय उन के बच्चे सोसायटी के पार्क में खेलते और सविता बालकनी से उन पर नजर रखती थी. कहने को तो तन्मय और तमन्ना अपने को पति पत्नी कहते थे लेकिन उन का कोई विधिवत विवाह नहीं हुआ था. वास्तव में वे दोनों लिव इन पार्टनर थे. किराया आधाआधा देते थे और घर का सारा खर्च भी आधाआधा उठाते थे. सोसायटी में वे किसी से बातचीत नहीं करते थे और अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त रहते थे. दोनों के पास फ्लैट की 1-1 चाबी होती थी.

जो जब चाहे बिना डोरबैल बजाए घर में प्रवेश करते थे. सविता को उन दोनों का व्यवहार अजीब लगता था. न मांग में सिंदूर न ही कोई मंगलसूत्र? न ही चूडि़यां. हमेशा जींसटौप में तमन्ना दिखाई देती थी और कभीकभी मिनीस्कर्ट और हौट पैंट में आतेजाते दिखाई देती. राजेश समझता कि हम ने उन का क्या करना है. तू दूसरों के बारे में मत सोच,अपने परिवार पर ध्यान दे.

सविता भी तपाक से उत्तर देती. उस का हौटपैंट के साथ ब्लाउज से भी छोटा टौप पहनना नंगापन है. बैडरूम में जो मरजी पहने या न पहने, मैं ने क्या करना है. कम से कम घर से बाहर तो ढंग के कपड़े पहने. हमारे छोटेछोटे बच्चे हैं, कल वे ऐसे कपड़े पहनें तो क्या आप बरदास्त करोगे?

राजेश के पास इस का कोई उत्तर नहीं था. अत: बात घुमाई, ‘‘उन का प्रेम को दर्शाने का एक तरीका है. आजकल के युवा ऐसे कपड़े पहन कर रिझते हुए प्रेम करते हैं.’’

‘‘तो आप कहना चाहते हो, मैं ने आप को कभी नहीं रिझया?’’

‘‘तोबातोबा मेरे कहने का यह मतलब थोड़े था. तुम आज भी जालिम कातिल लगती हो.’’

‘‘फिर थोड़ी सी सब्जी फ्रूट ले आओ.’’

मुसकराते हुए सोसायटी के बाहर मदरडेयरी के बूथ चला गया. सब्जीफ्रूट खरीदने के बाद राजेश सोसायटी के गेट पर घुस रहा था तभी तमन्ना ओला कैब से उतरी. चुस्त जींसटौप, ऊंची ऐड़ी के सैंडल और आंखों पर बड़ा सा चश्मा पहने लंबे डग भरते हुए चल रही थी. राजेश उस की मटकती कमर देखता धीरेधीरे उस के पीछे चल रहा था. ऊपर बालकनी में खड़ी सविता सब देख रही थी.

फ्लैट के भीतर पहुंचते ही सविता ने राजेश को आड़े हाथों लिया, ‘‘पतली कमर का मजा ले आए?’’

‘‘तोबातोबा क्या बात कर रही हो.’’ ‘‘मुझे अभी चश्मा नहीं लगा है. अंधेरे में भी दूर तक दिखाई देता है.’’

‘‘मुझे तेरी शादी के टाइम वाली कमर याद आ गई. मैं बस तुलना कर रहा था. तेरी कमर ज्यादा पतली थी.’’

सविता सब समझती थी. हर मर्द की तरह राजेश भी खूबसूरत लड़की को देखता रह जाता. तमन्ना ने अपने फ्लैट का दरवाजा खोला. भीतर तन्मय डाइनिंग टेबल पर ही बोतल के साथ बैठा था. तमन्ना ने एक बीयर की बोतल खोली और गट से पी गई.

‘‘क्या बात है, मेरी जानेमन नाराज सी लग रही है?’’

‘‘एक तो औफिस वालों ने काम का प्रैशर डाला हुआ है. ऊपर से सोसायटी में घुसो तो साले खड़ूस ऐसे पीछे चलते हैं, जैसे कोई लड़की कभी देखी न हो.’’

तन्मय ने तमन्ना को अपने गले लगाते हुए गालों पर एक प्यार भरा चुंबन अंकित किया, ‘‘तू है ही इतनी सैक्सी. बेचारे बुड्ढों को गोली मार.’’

तमन्ना तन्मय से शारीरिक हो गई. ड्राइंगरूम की बालकनी का दरवाजा खुला था. खिड़की पर भी कोई परदा नहीं था.कमरे की लाइट में दोनों के हिलतेडुलते जिस्म की स्पष्ट छवि अपनी बालकनी में खड़ी सविता को दिखाई दे रही थी, ‘‘जो बंद कमरे में होना चाहिए, खुलेआम हो रहा है. आग लगे ऐसी जवानी को,’’ बड़बड़ाती हुई सविता अपने कमरे में चली गई.

सविता सही बड़बड़ा रही थी कि निगोड़ी जवानी को आग लगे. तन्मय और तमन्ना जवानी के जोश में होश खो बैठे थे. न अपना होश था न समाज की फिक्र. धड़ल्ले से बिना शादी के एकसाथ रहते हुए जीवन आजादी के साथ बिना रोकटोक के मस्ती के साथ जी रहे हैं.

1 घंटे बाद भी तन्मय और तमन्ना मदहोश थे. यही हाल उन का पिछले 2 वर्ष से चल रहा था जब से वे दोनों लिव इन में रह रहे हैं.

तमन्ना पिछले कुछ दिनों से औफिस के काम में इतनी व्यस्त रही, उसे टूर पर भी जाना पड़ा. 10 दिन का टूर बना. काम 7 दिन में ही समाप्त हो गया. वैसे तो हररोज रात को दोनों की फोन पर बातचीत होती, लेकिन मिलन नहीं हो रहा था. काम जल्दी खत्म होने पर कंपनी की अनुमति से तमन्ना जल्दी वापस रवाना हो गई. वह तन्मय को सरप्राइज देना चाहती थी.

उस ने अपने वापस आने का कार्यक्रम तन्मय को नहीं बताया.

जैसे ही तमन्ना ने अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाजा खोला उस के खुद के लिए सरप्राइज तैयार था. तन्मय एक अन्य लड़की के साथ शारीरिक था. उन को देखते ही तमन्ना एकदम स्तब्ध हो गई. उसे उस पल कुछ नहीं सूझ.

तमन्ना को अचानक देखते ही तन्मय के होश उड़ गए. उसे तमन्ना के आने की कतई उम्मीद नहीं थी.

तन्मय और लड़की भौचक्के देखते रहे. लड़की अपने वस्त्र समेटने लगी. तमन्ना के हाथ में सूटकेस ट्रौली थी. उस ने उठा कर दोनों के ऊपर फेंक मारी. सूटकेस लड़की को लगा. वस्त्र उस के हाथ से छूट गए. एक खूंख्वार शेरनी की तरह तमन्ना उस लड़की पर झपटी और उस का हाथ पकड़ कर खींचा. लड़की छूटने की कोशिश कर रही थी. तन्मय को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करे.

तमन्ना उस लड़की को खींच कर दरवाजे तक ले गई. दरवाजा खोला और बाहर धकेल दिया और फिर दरवाजा बंद कर दिया. वैसे तो फ्लैट कोने वाला था. उसी फ्लोर के दूसरे फ्लैट में एक किट्टी पार्टी थी जहां सम्मिलित होने सविता 3 और हमउम्र अधेड़ महिलाओं के साथ लिफ्ट से बाहर निकली.

तमन्ना की चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ गंदी गालियां उन्होंने सुनी. वे सभी रुक कर तमन्ना के फ्लैट की ओर देखने लगीं. फ्लैट के दरवाजे पर एक लगभग नग्न अवस्था में बदहवास लड़की अपने को छिपाने की असफल कोशिश कर रही थी.

फ्लैट के भीतर तन्मय और तमन्ना के झगड़ने की आवाज भी आ रही थी. सविता के साथ बाकियों को भी कुछ समझ नहीं आया. तभी दरवाजा खुला. तमन्ना गुस्से में अपशब्द बकते हुए तन्मय को धक्का दे रही थी, ‘‘तेरी हिम्मत कैसे हुई इस के साथ हमबिस्तर होने की?’’

अब तन्मय भी बोल उठा, ‘‘कौन सी तू ने मेरे साथ शादी की है जो बीवी वाला रोब झड़ रही है? मैं किस के भी साथ रहूं, तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली, मैं तुझ से पूछता हूं तू कहां जाती है, कहां रहती है?’’

‘‘इस फ्लैट का आधा किराया देती हूं.’’

अब सविता और बाकी महिलाओं को सारा माजरा समझ आ गया. जिस फ्लैट में किट्टी पार्टी थी, वहां से एक चादर ला कर उस लड़की का तन ढक कर फ्लैट के अंदर ले गए. तमन्ना ने फ्लैट का दरवाजा बंद कर दिया. तन्मय बाहर खड़ा रहा.

महिलाओं की आंखें उसे घूर रही थीं. उस की नजर झुकी हुई थी. सविता से रुका नहीं गया. वह दो टूक बोल ही उठी, ‘‘दोनों के बारे में कुछ बताएगा या फिर बुत बन कर दोनों से पिटेगा?’’

तन्मय ने सिर्फ लोअर पहना हुआ था. वह सीढि़यों से नीचे भाग गया. महिलाओं ने उस लड़की से पूछताछ की. लड़की रो पड़ी. उस के कपड़े और पर्स फ्लैट के अंदर था.

सविता ने फ्लैट की डोरबैल बजाई. तमन्ना ने दरवाजा खोला. उसे कोई शर्म नहीं थी. उलटा सविता चढ़ गई, ‘‘क्या है? फिल्म देख ली न और क्या देखना है. मेरे मुंह मत लगना.’’

सविता चुपचाप लौट गई, ‘‘नंगों से तो कुदरत भी डरती है. हमारी क्या औकात है,’’ किट्टी पार्टी वाले फ्लैट में घुस गई.

‘‘इस नंगीमुंगी लड़की को दफा करो. जहन्नुम में जाएं तीनों. बेशर्मी की हद है. अपनी पार्टी क्यों खराब करें. शो मस्ट गो औन.’’

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ लड़की गिड़गिड़ाने लगी.

‘‘चादर हम ने दी है. एक बार तमन्ना से अपने कपड़े मांग ले.’’

उस लड़की ने डोरबेल बजाई. हालांकि तमन्ना खुद लिव इन में थी लेकिन तन्मय को दूसरी लड़की के साथ देख नहीं सकी. उस ने लिव इन को तोड़ने का निश्चय कर लिया. तमन्ना ने उसे कपड़े नहीं दिए. बालकनी में गई और उस के कपड़ों में आग लगा दी.

‘‘आज तो इस को नंगा घूमना पड़ेगा,’’ जलते हुए कपड़े बालकनी से नीचे फेंक दिए. उस का पर्स खोल कर क्रैडिटडैबिट कार्ड तोड़ कर फेंक दिए. नकद नोटों को भी आग लगा दी और पर्स नीचे फेंक दिया.

सोसायटी में सब की जबान पर यही प्रसंग था कि फ्लैट मालिक को फोन किया जाए,

ऐसे किराएदार सोसायटी में नहीं चलेंगे. इनको हटाना होगा. तमन्ना अपना आपा खो चुकी थी. उस ने तन्मय के सारे कपड़े बालकनी में रखे और आग लगा दी. तन्मय का लैपटौप बालकनी से नीचे फेंक दिया. आग देखते सोसायटी के लोग घबरा गए. उन्होंने पुलिस और फायर ब्रिगेड को फोन किया. कुछ नौजवान आगे बढ़े. फ्लैट का दरवाजा तोड़ा गया.

पुलिस आई तमन्ना को काबू किया.आग बुझाई गई. पुलिस तमन्ना और लड़की को पुलिस स्टेशन ले गई. एक कौंस्टेबल की ड्यूटी लगा दी. जैसे तन्मय आए, पुलिस स्टेशन ले आए. महिला पुलिस ने लड़की को पहनने को कपड़े दिए. सब के परिवार को बुलाया गया. तन्मय और तमन्ना के परिवार दिल्ली से बाहर रहते थे. उन्हें नहीं मालूम था. पता चल गया. पूरी सोसायटी में बदनाम अलग हो गए. परिवार की नजरों में गिर गए. चाहे जितने आधुनिक बन जाएं, भारतीय समाज में गुपचुप तो सबकुछ स्वीकार्य है लेकिन खुल्लमखुल्ला नहीं.

तन्मय सिर्फ लोअर में घूम रहा था. आधी रात को जैसे सोसायटी के गेट के पास आया. तैनात कौंस्टेबल उसे पुलिस स्टेशन ले गया.

तमन्ना ने तन्मय को खूब खरीखोटी सुनाई. हाथापाई हो गई. सोसायटी में एक सज्जन टीवी चैनल में कार्यरत थे. वे लाइव कवरेज के लिए पुलिस स्टेशन पहुंच गए. अपनी बदनामी से बचने के लिए उस लड़की ने तन्मय पर धोखा, फुसलाना, विवाह के ?ांसे में शारीरिक संबंधों के आरोप जड़ दिए.

तमन्ना ने भी ऐसे आरोप जड़ दिए. अगर तन्मय उस के प्रति निष्ठावान नहीं है तब आसानी से उसे किसी और लड़की के साथ रहने लायक नहीं छोड़ेगी. मन ही मन उसने ठान लिया था.

बैडरूम में होने वाला सीन सार्वजनिक हो गया. टीवी चैनल पर कवरेज हो गई. तन्मय के लिए लिव इन एक खेल था, दो नावों पर सवार तन्मय बचने के लिए गोते लगा रहा था.

किसी से नहीं कहना: उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

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