पुरानी साड़ियों को नया रूप देने के 7 टिप्स

साड़ी प्रत्येक भारतीय नारी के व्यक्तित्व में चार चांद लगा देती है इससे इंकार नहीं किया जा सकता. अवसर चाहे छोटा हो या बड़ा साड़ी में नारी सुंदर और आकर्षक तो  लगती ही है. हर महिला की कवर्ड में भांति भांति की साड़ियां होती ही हैं परन्तु समस्या तब आती है जब हम नई और आधुनिक फैशन की साडियां खरीद लाते हैं परन्तु कवर्ड में रखीं कुछ पुरानी साड़िया सालों साल तक यूज में नहीं आ पातीं या फिर एक दो बार पहनने के बाद ही आउट ऑफ़ फैशन हो जातीं हैं.

क्योंकि आजकल साड़ियों का फैशन बहुत जल्दी जल्दी चेंज होता है और ऐसे में पुरानी फैशन की साड़ियों को आप पहन भले ही लें पर इन्हें पहनने के बाद आप आउट डेटिड लगने लगतीं हैं दूसरे कम प्रयोग की जाने के कारण ये हमें नई सी ही लगतीं हैं इसलिए इन्हें किसी को देने का भी मन नहीं करता तो क्यों न इनका रियूज किया जाए. रियूज करने से अपनी पसंद की साड़ी को आप नया रूप तो दे ही पाएंगी साथ ही पैसे की बचत भी कर सकेंगी. आज हम आपको पुरानी साड़ियों को नया रूप देने के ऐसे ही कुछ टिप्स बता रहे हैं.

  1. लेसेज चेंज करें

कुछ समय पूर्व तक जहां साड़ियों में अच्छी खासी चमक वाले चौड़े बोर्डर वाली हैवी साड़ियों का फैशन था वहीं आजकल 1 इंच के पतले गोटा पत्ती के तिकोने बोर्डर वाली साड़ियां फैशन में हैं इसलिए अपनी वार्डरोब की चौड़े बोर्डर वाली साड़ियों के बोर्डर को निकलकर पतला सा  लेस या बोर्डर लगाकर मोडर्न लुक दें.

2. ब्लाउज अपडेट करें

आजकल लाईट साड़ी और हैवी ब्लाउज का फैशन है. अपनी वार्डरोब की साड़ियों के मैचिंग ब्लाउज के स्थान पर जेकोर्ड, चिकन वर्क, मिरर वर्क और हैवी इम्ब्रोइडरी वाले कंट्रास ब्लाउज केरी करें और अपनी साड़ी को दें नया सा लुक.

3. मैक्सी या गाउन बनवाएं

कई बार वार्डरोब में कुछ ऐसी साड़ियां होती हैं जो बिल्कुल ही आउटडेटिड होतीं हैं और जिन्हें आप अपनी कवर्ड से हटा भी नहीं पा रहीं हैं ऐसी साड़ियों से आप बहुत सुंदर सा गाउन बनवाएं. आजकल गाउन काफी फैशन में भी हैं. बस इस बात का ध्यान रखें कि कॉटन, ऑरगेंजा, और बहुत अधिक फूलने वाले फेब्रिक के स्थान पर फाल वाले फेब्रिक का गाउन बनवाएं.

4. सूट सिलवायें

आजकल प्लेन सूट के साथ हैवी दुपट्टे का फैशन ट्रेंड में है. बोर्डर वाली साड़ी का बोर्डर हटाकर आप इससे सूट बनवाएं और यदि पल्ला हैवी है तो मैचिंग कपड़ा लगाकर डिजाइनर दुपट्टा बनवाएं. ध्यान रखें कि प्लेन साड़ी का बॉटम और टॉप एक जैसा वहीँ प्रिंटेड साड़ी का टॉप और दुपट्टा बनवाएं इसके साथ प्लेन बॉटम केरी करें. आप चाहें तो इसके साथ रेडीमेड पेंट या लेगिंग्स का प्रयोग भी कर सकतीं हैं.

5. कुशन्स और दीवान सेट

साटन, सिल्क, बनारसी फेब्रिक वाली साड़ियों से आप बहुत सुंदर कुशन्स बनवा सकतीं हैं वहीँ इसके प्लेन वाले पोर्शन से दीवान सेट बना सकतीं हैं साड़ी यदि बोर्डर वाली है तो इसके बोर्डर को दीवान की चादर में लगायें.

6. लहंगा और स्कर्ट

लहंगा और स्कर्ट बनाने के लिए किसी भी फेब्रिक वाली साड़ी का प्रयोग किया जा सकता है. आजकल कली वाली, ओरेव और सादा चुन्नट वाली स्कर्ट बहुत चलन में हैं. साड़ी के पल्ले का प्रयोग ब्लाउज बनाने में किया जा सकता है. इसके साथ मैचिंग चुन्नी केरी करके आप किसी भी पार्टी में अपना जलवा बिखेर सकतीं हैं.

7. डायनिंग टेबल सेट

बनारसी, सेटिन और कढ़ाई वाली साड़ियों से आप बहुत सुंदर डायनिंग टेबल सेट भी बना सकतीं हैं इसके लिए आप पल्ले से रनर और शेष पोर्शन से डायनिंग टेबल की चेयर्स के सीट कवर बनवाइए.

महंगे पैट्स पालना महंगा

डौग शो को देखने पहुंचे तो वहां उपस्थित डौग जो अपने मालिकों के साथ आए थे, उन्हें देख चकित रह गई. एक से बढ़ कर एक स्टाइलिश ढंग से सजे, कीमती कपड़ों से लैस, परफ्यूम से महकते और जूते, कौलर, नैकटाई, रिंग जैसी ऐक्सैसरीज से सज्जित उन पेट्स को देखना किसी स्वप्नलोक से कम नहीं. उन के नेम टैग भी बहुत ही आकर्षक और वे इस तरह से अपने मालिक के साथ खड़े होते हैं मानो किसी फिल्म की शूटिंग में आए हों और अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे हों.

पग, अमेरिकन पिट, लेबराडोर, बौक्सर, डेशुंड, अफगान हाउंड, कैरेवान हाउंड, आइरिश वुल्फ हाउंड, जरमन शेपर्ड, डाबरमैन जैसे महंगे पैट्स वहां मौजूद थे, जो शानदार गाडि़यों में बैठ कर आए थे. डौग शो में आ कर उन्हें सर्वप्रथम आने के लिए किसी तरह की ट्रिक नहीं दिखानी थी बल्कि उन का चयन उन के कोट साइज, आदत और पसंद के हिसाब से होना था.

तभी वहां से गुजरती एक महिला को कहते सुना, ‘‘कितने मजे हैं इन पैट्स के. आलीशान गाडि़यों में घूमते हैं, बड़ीबड़ी कोठियों में रहते हैं और हम से भी महंगा खाना खाते हैं. कितना कठिन है आज के जमाने में एक बच्चे को पालना और लोग पैट्स पालते हैं.’’

उस के कहने के अंदाज से झलक रहा था कि पैट्स पर इतना पैसा खर्चना की बात उसे अखर रहा था.

बन गए हैं स्टेटस सिंबल

जो अर्फोड कर सकता है, अकेलापन महसूस करता है वह पैट्स रख रहा है तो इस में बुरा क्या है? इस में जलने की बात क्या है? अगर अच्छी ब्रीड के महंगे पैट्स खरीदते हैं तो उन्हें पालने में एक बड़ी रकम जो क्व30-40 हजार महीना हो सकती है, खर्च करनी पड़ सकती है. अब जिस के पास इतना पैसा है तो वह खर्च भी करेगा क्योंकि आज के लाइफस्टाइल में अगर एक तरफ पैट्स सुरक्षा की दृष्टि से जरूरत है तो दूसरी ओर वे स्टेटस सिंबल भी हैं.

चीन में एक तिब्बती मस्टिफ 1 करोड़ पाउंड में बिका. यह बहुत ही आक्रामक गार्ड डौग है. जाहिर सी बात है कि जिस ने उसे खरीदा होगा वह कोई मामूली आदमी तो होगा नहीं बल्कि महंगे पैट पलाने की हैसियत रखता होगा. कोई भी पैट जितना कीमती होता है या बेहतरीन नस्ल का उसे पालने, उस के रखरखाव में 50 हजार रुपये तक खर्च हो सकते हैं.

क्या कहते हैं ऐक्सपर्ट

समाजशास्त्रियों का मानना है कि मर्सिडीज और सौलिटेयर्स को पीछे छोड़ते हुए पैट्स लेटैस्ट स्टेटस सिंबल बनते जा रहे हैं और उन के मालिकों को उन के लिए महंगे प्रोडक्ट्स और सर्विसेज लेने में कोई असुविधा महसूस नहीं होती है. यही वजह है कि इस समय भारत में यह बाजार 300 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है और उन के लिए ब्रैंडेड फूड से ले कर इस समय यहां पपकेक, बैड तो उपलब्ध हैं ही, साथ ही उन के बर्थडे की पार्टी किसी लग्जरी रिजोर्ट में करवाने का इंतजाम भी किया जाता है.

आजकल हर बाजार में जो नई दुकानें ज्यादा चमचमा रही हों, समझ लें कि वे पैट्स का सामान बना रही हैं जिन में फर्राटेदार अंगरेजी बोलने वाली औरतें बिना दाम पूछे पैकेट पर पैकेट खरीद रही होंगी.

कानन मल्होत्रा जो अपने पैट ल्हासा एप्सो के बिना एक पल भी नहीं रह सकती हैं कहती हैं, ‘‘मेरा पैट मेरी बेटी की तरह है और उस की आदतें बिलकुल मेरा जैसा हैं. मेरे पति ने 5 साल पहले उसे मुझे गिफ्ट में दिया था. वह घर से बाहर बिना जूता पहने नहीं निकलती है. मैं ग्रूमिंग के लिए महीने में 2 बार स्पा ले जाती हूं.’’

एक बड़ा बाजार

मेटिंग वैबसाइट से ले कर स्पैशल बेकरी व घर पर ही आ कर ग्रूमिंग सर्विस की सुविधाओं से ले कर पैट्स को साथ ले कर छुट्टियां बिताने के लिए ट्रैवल एजेंट्स के पैकेज सबकुछ मौजूद है. जैकोब और क्रिश्चियन आडीगियर जैसे इंटरनैशनल ब्रैंड उन के लिए कपड़ों से ले कर ज्वैलरी और फर्नीचर तक डिजाइन करते हैं. जगहजगह उन के लिए ऐसे फन रिजोर्ट बने हुए हैं जहां पैट्स के पेरैंट्स यानी मालिक के शहर से बाहर जाने पर उन्हें वहां छोड़ा जा सकता है.

आसान नहीं है पालना

टीवी पर दिखाए जाने वाले पैडीग्री फूड के विज्ञापन से यह तो साबित हो ही जाता है कि पैट्स भी एक शानदार जीवन जीने का अधिकार रखते हैं और उन के मालिक इस बात को ले कर कौंशस हो चुके हैं कि उन्हें अपने पैट्स को बढि़या से बढि़या चीजें व सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए. पेडीग्री फूड का 500 ग्राम का पैकेट 100 रुपए का आता है और 1,000 रुपए तक उस की कीमत है.

इस के अतिरिक्त डौग च्यू जिन का आकार हड्डी, जूतों आदि जैसा होता है, वे भी मिलते हैं. वे भी 25 से 600 रुपए के बीच आते हैं. उन के लिए हेयर ब्रश, टूथब्रश, टूथपेस्ट, नेलकटर, शैंपू, हेयर टौनिक, परफ्यूम सब मिलते हैं.

महंगे पैट्स रखने के शौकीन लोगों के लिए उन्हें पालना भी महंगा ही साबित होगा, लेकिन यह भी सच है कि जो लोग उन्हें पालने की क्षमता रखते हैं, वही उन्हें खरीदते भी हैं. जिस तरह वे अपने बच्चों पर पैसा खर्चते हैं और उन्हें हर सुविधा देने के लिए तत्पर रहते हैं वैसे ही वे अपने पैट्स का भी ध्यान रखते हैं और उन के लिए बेहतरीन चीजें खरीदने में पीछे नहीं रहते हैं.

9 टिप्स: लौन दिखेगा ग्रीन

लौन भले ही छोटा हो, मगर हराभरा हो, कुछ ऐसा जो आंखों को ठंडक दे, पैर रखें तो मखमली घास में धंस जाएं. ऐसे लौन की चाहत के लिए इन जरूरी बातोंको ध्यान में रखना होगा:

  1. जमीन का चयन

बगिया में लौन किस ओर कहां, किस साइज का बनाया जाए इस के लिए सब से पहले अपने मकान के प्लौट का साइज देखें. यदि 500 गज के प्लौट पिछवाड़े लौन तैयारकर रहे हैं तो घास खराब न हो, इस पर आराम से चल सकें, इस के लिए लौन के चारों ओर पैदल चलने के लिए एक पटरी बनाएं. यह प्रावधान रखें कि गोलगोल पत्थर कुछ दूरी पर रख कर आकर्षक रास्ता बने. पत्थर चौकोर या मनपसंद आकार का हों, यह चारों ओर से खुला हो, पेड़ों से ढका न हों, वहां पानी न खड़ा रहता हो, पथरीला न हो.

2. भूमि की जांच

जब यह तय हो जाए कि लौन कहां बनवाना है, तो सब से पहले किसी सौइल एजेंट से अपनी भूमि की जांच करवा लें. दिल्ली पूसा इंस्टिट्यूट में सौइल टैस्ट लैब से किसी विशेषज्ञ से या किसी बढि़या नर्सरी से भूमि जांच की सेवाएं प्राप्त की जा सकती हैं. यह सौइल एजेंट विशेषज्ञ ही आप की भूमि के बारे पूरी जानकारी देगा कि भूमि की किस्म क्या है, रेतीली है, चिकनी है, भुरभुरी है.

इस में न्यूट्रीयनरस कितने हैं, पैलस क्या है, जिस से यह पता चलता है कि यह भूमि अटकलाइन है या नहीं. प्राय उत्तम किस्म के घास वाले लौन के लिए पिट लेवल 6 और 7 के बीच सही माना गया है. यदि जमीन में कुछ कमियां हैं तो भूमि जांच के बाद सौइल एजेंट बताएगा कि अब आगे क्या किया जाए.

3. लौन की खुराक

हरेभरे लौन के लिए खाद कब, कितनी, कौन सी और कैसे डाली जाए यह बात बेहद जरूरी है. अमेरिका में मिसीसिप स्टेट यूनिवर्सिटी के असिसटैंट प्रोफैसर लैंडस्कपिंग बौब ब्रजजैक के अनुसार सिंथैटक खाद के मुकाबले और्गनिक खाद जो कुदरती चीजों जैसे सीवीड या बोन मील अच्छे परिणाम देती है.

अच्छी घास के लिए जरूरी है कंपोजर मिली मिट्टी को खूब मिलाया जाए, इस तरह फावड़े से या ट्रैक्टर चलवाएं कि ऊपरी मिट्टी की परत कम से कम 6 हो. खाद डालने की यह प्रक्रिया साल में कम से कम 2 बार वसंत ऋतु और जब पत्ते झड़ते हैं दोहराई जाए. खाद डालने से इस में मौजूद न्यूट्रीएंट्स और नमी घास के लिए क्रशन का काम करती है. 3-4 बार मिट्टी को ऊपरनीचे करें, फिर समतल करें. कंकड़पत्थर निकालें, जंगली बूटी निकालें. अब इस में गोबर की खाद दे सकते हैं. खाद किसी अच्छे मान्यताप्राप्त स्टोर से ही लें. आजकल तरहतरह की रैडीमेड खाद पैकेटों में मिल रही है और औफ लाइन मंगवाई जा सकती है.

4. घास की किस्म

लौन में घास की किस्म बहुत महत्त्वपूर्र्ण है. जलवायु, स्थान, क्षेत्र और लौन के आकार को देखते हुए घास लगाएं. आजकल नर्सरी में कई प्रकार की घास की वैराइटीज उप्लब्ध हैं जैसे यदि नमी, छाया वाले स्थान पर घास लगानी है तो ऐक्सोनोपस एफिनस की किस्म लगा सकते हैं. अच्छा लौन बनता है, चुभती नहीं, नरम होती है तथा चलने से दबती नहीं. खराब होने का अंदेशा भी नहीं रहता.

गहरे रंग की चाहत हो तो सब की पसंदीदा घास से लौन चमक उठता है. यह बहुत सघन होती है. चलने पर नरम गड्डे सा एहसास दिलाती है.

5. जायसिस किस्म

यदि आप के पास समय काफी है, देखरेख का प्रावधान है, आप बागबानी के शौकीन हैं तो, साउथ ईस्ट एशिया में प्रचलित जायसिस किस्म लगा सकते हैं. इस के पत्ते नुकीले और रंग गहरा हरा होता है.

6. भारत में साइनोडोन

यह घास काफी लोगों की पहली पसंद है. वर्षा ऋतु घास लगाने के लिए सब से उत्तम मौसम माना गया है. घास घनी हो उठती है जिस पर चलने में आनंद आता है.

7. सिंचाई

अमेरिका के ‘अमेरिका सोसाइटी औफ लैंडस्केपिंग आसला’ के विशेषज्ञ जेनेट मेश्सता का मानना है कि यह जरूरी नहीं लौन को रोज पानी दिया जाए. मौसम तथा रोज के तापमान को ध्यान में रखते हुए लौन को धीरेधीरे इस प्रकार पानी दें कि घास की जड़ों को जमने में आसानी हो.

लौन के बीचोंबीच, किनारों में कुछ छोटेछोटे टीन के डब्बे या प्लास्टिक के  खाली डब्बे रख दें. आप स्पिंकल की विधि से 15-20 मिनट तक पानी दें और देखें क्या लौन में रखे डब्बों में 1/2-1 इंच पानी जमा हो गया है. यदि ऐसा है तो इतना पानी अच्छी हरीभरी घास के लिए सप्ताहभर के लिए काफी है.

8. कंटिंग व रोलर लगाना

घास जिस में जड़ लगी हो उसे तैयार भूमि में 1-2 इंच के अंतर से अच्छी तरह दाब कर लगाते जाएं. पासपास लगी घास घनत्व वाला सघन लौन देगी और जल्दी उग भी जाती है.

बाजार में तरहतरह के  लौन उपलब्ध हैं. विदेशों में हाथ से चलाने वाले, मोटर में बैठ कर चलाने वाली घास काटने की मशीनें प्राय आम लोगों के पास रहती हैं क्योंकि वहां घरों में कई एकड़ों में लौन रखने का रिवाज है. हमारे यहां माली घास काटने की मशीन से कटिंग करते हैं, पर इस बात का ध्यान रखें मशीन के ब्लेड तीखे हों ताकि घास ढंग से कटे, उलझे न या जड़ समेत बाहर न आ जाए.

इसलिए बारबार और बहुत छोटी घास काटना अच्छे लौन के हित में नहीं रहता. काटते समय ध्यान में रखें कि किस किस्म की घास लगी है. हर घास को काटने की अपनी अलग मांग रहती है.

9. जो है वह काफी है

यह जरूरी नहींकि आप के पूरे लौन में हरीभरी घास हो. शेड, छायादार और पेड़ के नीचे जहां पानी ठहरता हो वहां घास बराबर नहीं उगती. इसलिए ऐसे स्थानों पर उपयुक्त झड़ीनुमा पौधे लगा कर इस कमी को पूरा किया जा सकता है. इस से लौन हराभरा दिखेगा.

किचिन का मेकओवर करने के 7 टिप्स

किचिन प्रत्येक घर का महत्वपूर्ण स्थान होता है. ये एक ऐसा स्थान है जहां पर प्रत्येक सदस्य की पसंद नापसंद का ध्यान रखा जाता है और स्वादिष्ट भोजन भी बनाया जाता है. आजकल किचिन को भी महंगे महंगे शेल्फ, ग्लासेज और क्रोकरी से सजाया जाता है परन्तु कई बार सब कुछ होने के बाद भी किचिन भरी भरी और अस्तव्यस्त सी प्रतीत होती है. आज हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं. जिनका ध्यान रखकर आप अपनी किचिन का कम खर्चे में भी शानदार मेकओवर कर सकते हैं जिससे आपकी किचिन भी व्यवस्थित और सजी धजी लगेगी-

  1. सही हो कंटेनर्स का चयन 

रसोई में दाल चावल, मसाले के अतिरिक्त अनेकों खाद्य पदार्थ होते हैं जिनके लिए डिब्बो की आवश्यकता होती है. रंग बिरंगे, छोटे बड़े, बेतरतीबी से रखे गए डिब्बे अच्छी खासी किचिन को भी बद्सूरत बना देते हैं इसलिए आपकी किचिन चाहे छोटी हो या बड़ी डिब्बे रसोई की अलमारी के साईज के अनुसार ही खरीदें. ताकि उन्हें अलमारी में करीने से लगाया जा सके और पूरी जगह का उपयोग किया जा सके, साथ ही कोशिश करें कि एक अलमारी में एक रंग, साइज और आकार के डिब्बे ही रखे जाएं ताकि वे दिखने में सुंदर प्रतीत हों.

2. साफ़ सुथरा हो प्लेटफार्म

कई बार प्लेटफार्म पर ही कटलरी, मिक्सी ग्राइंडर, आर ओ जैसे अनेकों सामान को रख दिया जाता है जिससे प्लेटफार्म पूरा भर जाता है और किचिन भरी भरी सी प्रतीत होने लगती है इसलिए जितना हो सके किचिन के प्लेटफार्म को खाली रखें जिससे किचिन बड़ी और व्यवस्थित लगेगी. खाना बनाने के तुरंत बाद प्लेटफार्म को सर्फ के पानी से धोएं या पोंछें. फिर अंत में सूती कपड़े से पोंछकर सुखा दें.

3. उचित हो शेल्फ का चयन

किचिन की किस शेल्फ में क्या रखना है इसका चयन भी अति बुद्धिमानी से करें उदाहरण के लिए दाल-चावल, चाय चीनी, तेल नमक जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं को ऐसी जगह पर रखें जहां से आपको लेने में आसानी हो. कभी कभार प्रयोग में आने वाले बर्तनों, खाद्य पदार्थों को स्टोर या ऐसी शेल्फ में रखें जिसे कम खोला जाता हो. शेल्फ का चयन अपनी किचिन के कंटेनर्स के अनुसार करें ताकि उन्हें एक के ऊपर एक आराम से रखा जा सके.

4. लेबलिंग भी है जरूरी

लेबलिंग के अभाव में अक्सर एक चीज को खोजने के लिए प्रत्येक डिब्बे को उठा उठाकर देखना पड़ता है जिससे समय भी व्यर्थ होता है और किचिन भी अस्तव्यस्त हो जाती है. इसलिए प्रत्येक डिब्बे पर लेबल अवश्य लगायें ताकि आपकी किचिन में आपके अतिरक्त कोई दूसरा भी सहजता से काम कर सके. लेबल लगाने के लिए आप कागज की स्लिप्स के स्थान पर पेपर टेप का प्रयोग भी कर सकतीं हैं इसे लगाना और निकालना काफी आसान होता है.

5. डिक्लटरिंग है जरूरी

अक्सर हमारी किचिन में बहुत सारे क्रेक बर्तन, स्नेक्स के डिब्बों के तली में पड़ी नमकीन और महीनों से प्रयोग न किये गये मसाले या अन्य खाद्य पदार्थ इकट्ठे हो जाते हैं जिससे जगह और कंटेनर्स दोनों ही घिरे रहते हैं इसलिए माह में एक बार अपनी किचिन की डिक्लटरिंग अवश्य करें और जितना भी फालतू सामान हो उसे बिना किसी मोह के अपनी किचिन से बाहर कर दें इससे चीजे व्यवस्थित और किचिन साफ़ सुथरी रहेगी.

6. सजावट करें

आजकल किचिन को भी बहुत खूबसूरत और खुला खुला बनाया जाने लगा है. अपनी किचिन को मनीप्लांट, स्नैकप्लांट जैसे इनडोर पौधों से सजाएं. किचिन में प्लांट्स लगाने के लिए आप कांच की खाली बोतलों का भी प्रयोग कर सकतीं हैं. इनमें पौधे लगाने से किचिन में मिटटी की गंदगी नहीं होती. सप्ताह में एक बार आप इनका पानी बदलते रहें पौधे अपने आप बढ़ते रहते हैं.

7. साफ़ सफाई का रखें ध्यान

साफ़ सफाई के अभाव में महंगे से महंगा सामान भी अपनी आभा खो देता है. किचिन केबिनेट्स,  चिमनी, शेल्फ और ग्लासेज की प्रति सप्ताह सफाई अवश्य की जाना चाहिए वरना वे अच्छी से अच्छी किचिन के सौन्दर्य को भी खराब कर देते हैं.

करें ये भी प्रयोग

  • अक्सर हमारी किचिन में कॉफ़ी, मसाले, शहद आदि के प्लास्टिक और कांच के अनेकों खाशीशियाँ और डिब्बे इकट्ठे हो जाते हैं आप इन्हें उबलते पानी में 2-3 घंटे के लिए डालकर रख दें और फिर चाकू से इनका लेबल निकालकर स्क्रबर से अच्छी  तरह रगड़ दें. अब इनमें मनचाहा सामान भरकर लेबल लगा दें.
  • प्लेटफ़ॉर्म को साफ करने के लिए एक स्प्रे बोतल में 1 टीस्पून सर्फ डालकर घोल तैयार कर लें और फिर इससे प्लेटफोर्म, शेल्फ और ग्लासेज साफ करें.
  • खाली और अनुपयोगी कंटेनर्स व बर्तनों को इनडोर पौधे लगाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
  • आजकल टच पेनल वाली चिमनी और आर ओ चलन में हैं इन्हें साफ करने के लिए स्प्रे के स्थान पर गीले कपड़े का प्रयोग करें साथ ही गीले कपड़े से पोछने के तुरंत बाद सूखे कपड़े से पोंछ दें अन्यथा टच पेनल के खराब होने की सम्भावना रहती है.
  • सिंक में जूठे बर्तनों को छोड़ने के स्थान पर इन्हें एक टब या बाल्टी में भरकर आंगन या वाशिंग एरिया में रखें.

मां नहीं बनें बच्चे की दोस्त

दुनिया का सब से खूबसूरत और मजबूत रिश्ता मां और बच्चे का होता है. मां अपनी संतान के लिए जान भी दे सकती है. बच्चा भी मां के सब से ज्यादा करीब होता है और इमोशनली कनैक्टेड होता है. मां ही होती है जो बच्चे को अच्छी तरह सम?ाती है. कोई भी बच्चा अपनी हर समस्या सब से पहले अपनी मां के साथ शेयर करना चाहता है. मां और बच्चे का यह रिश्ता बेहद खूबसूरत और अनोखा होता है पर कभीकभी कुछ माताएं अनजाने में अपनी संतान के प्रति ऐसा व्यवहार रखने लगती हैं जिस की वजह से बच्चा न सिर्फ मानसिक तौर पर मां से दूर हो जाता है बल्कि दोनों के बीच भावनात्मक लगाव भी कम हो जाता है. ऐसे में मां को इन बातों पर जरूर ध्यान देना चाहिए:

अपने एक बच्चे को ज्यादा प्यार देना

अगर किसी महिला के 2 या 2 से अधिक बच्चे हैं और उस का ध्यान केवल एक ही पर रहता है या फिर एक को ज्यादा मानती है और दूसरों को समानरूप से प्यार नहीं दे पाती है तो यह एक बहुत बड़ी गलती है. ऐसा कर के वह न सिर्फ अपनी उस संतान को स्वयं से बल्कि अपने भाईबहनों से भी दूर करती जाती है. बच्चे भावुक होते हैं. जब उन्हें मां के द्वारा इग्नोर किया जाता है या डांटफटकार मिलती है तो उन के भीतर हीनभावना का विकास हो जाता है जो उन के भविष्य के लिए सही नहीं होता है. इसलिए मां को चाहिए कि अपने सभी बच्चों को हमेशा बराबर प्यार दे.

हर बार बच्चे को दोष देना

मातापिता भी इंसान हैं और इस नाते गलतियां कर सकते हैं. मगर कई घरों में मांबाप हमेशा खुद को सही मानते हैं और बच्चे को ही दोषी मान कर डांटने लगते हैं. अगर आप भी हर बात पर खुद को सही और अपनी संतान को गलत ठहराने की कोशिश करते हैं तो यह आप दोनों के रिश्ते के लिए सही नहीं है. इस से बच्चे के मन में आप के प्रति विद्रोह की भावना घर कर जाती है जो आगे चल कर उसे विकृत मानसिकता का इंसान बना सकती है. मां खासतौर पर ममता और प्यार की प्रतिमूर्ति होती है और कोई भी बात प्यार से समझ सकती है. इसलिए अपने बच्चे के प्रति कभी कठोर रुख न अपनाएं बल्कि उसे प्यार से डील करें.

दोस्त की भूमिका

एक मां को अपने बच्चे के लिए कभीकभी दोस्त की भूमिका भी निभानी चाहिए. उस के साथ बातें कर के उस के मन की हालत सम?ानी चाहिए. इस से दोनों के बीच रिश्ता गहरा होता है. मगर साथ में यह भी पता होना चाहिए कि कब अपनी संतान का दोस्त बन कर व्यवहार करना है और कब एक मां के रोल को निभाना है क्योंकि अगर हर समय दोस्ती ही दर्शाई तो उस का व्यवहार आप के लिए बदल सकता है.

बच्चे के जज्बात समझें

अगर आप हमेशा अपनी बात ऊपर रखती हैं और चिड़चिड़ी रहती हैं तो आप का बच्चा आप से खुल कर बात नहीं कर सकेगा. अगर आप का बच्चा किसी बात पर आप से नाराज है तो उसे मनाने का प्रयास जरूर करें. अगर आप उसे दुखी ही छोड़ देती हैं तो यह आप के लिए सही नहीं है. आप उसे सम?ाएं फिर प्यार से गले लगा लें. इस से बच्चा आप से और भी गहराई से जुड़ जाएगा.

पौजिटिव अप्रोच

आप के बच्चे का ओवरऔल व्यवहार कैसा है या वह कितनी सकारात्मक सोच वाला तमीजदार बच्चा है यह काफी हद तक मां का बच्चे के प्रति सकारात्मक रवेए और परवरिश की देन होती है. कुछ शोध बताते हैं कि जिन बच्चों का अपनी मां के साथ पौजिटिव बौंड होता है वे अपनी युवास्था में भी संतुलित व्यक्तित्व वाले और सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं. मां के साथ अच्छे रिश्ते को जीने वाले ज्यादातर बच्चे हिंसा या क्रोध से दूर रहते हैं.

मां के साथ मजबूत रिश्ता

बच्चे जैसा माहौल घर में देखते हैं वैसा ही वो अपने जीवन में अपनाते भी हैं. कुछ नए शोध बताते हैं कि जिन बच्चों की अपनी मां के साथ स्ट्रौंग रिलेशनशिप होती है वे हमेशा अपनी मां की फीलिंग्स की कद्र करते हैं. अगर उन की मां और उन के पापा के बीच किन्हीं बातों को ले कर ?ागड़े होते हैं या उन के पापा हिंसक व्यवहार करते हैं तो ऐसे बच्चे को अपनी मां की भावनाओं की बेहतर सम?ा होती है.

बच्चे बनते हैं इमोशनली स्ट्रौंग

एक बच्चे का सब से ज्यादा लगाव अपनी मां से होता है. वह केवल भोजन के लिए ही अपनी मां पर निर्भर नहीं होता है बल्कि उस का इमोशनल अटैचमैंट भी होता है. इसी वजह से मां से बच्चे का संवाद उस के मानसिक और भावनात्मक व्यवहार को प्रभावित करता है.

जब बच्चे को घर में अच्छा माहौल, मां की सपोर्ट और भरपूर प्यार मिलता है तो वह खुद को सुरक्षित महसूस करने लगता है और उस में जीवन के प्रति पौजिटिव थिंकिंग पैदा होती है. जिस घर में मां बच्चे के साथ बातें कर के उस की हर परेशानी का हल निकालती रहती है और बच्चे का हौसला बढ़ाती है तो ऐसे बच्चे इमोशनली स्ट्रौंग बनते हैं.

अमेरिका की इलिनोइस यूनिवर्सिटी की स्टडी के अनुसार जब बच्चा अपनी मां के साथ खेलता है तो उस दौरान मां और बच्चा दोनों एकदूसरे के संकेतों का सहज रूप से जवाब दे रहे होते हैं. यह सकारात्मक बातचीत बच्चे के हैल्दी सोशल और इमोशनल डैवलपमैंट में हैल्प करती है.

बच्चे को प्यार से समझएं

मां और बच्चे का रिश्ता बहुत मजबूत होता है. लेकिन समय के साथ हर रिश्ते में कुछ बदलाव होते हैं. उन बदलावों को अपना कर ही आप आगे बढ़ सकते हैं. इसलिए एक उम्र के

बाद बच्चे के साथ हमेशा एक दोस्त की तरह रहें ताकि वह अपनी बात आप से बिना किसी डर के शेयर कर पा सके. जब आप के बच्चे से कोई गलती हो जाए तो गुस्से से डांटने के बजाय उसे प्यार से समझाएं. इस से वह आप की बातों को अच्छे से समझेगा और आप के बीच का रिश्ता मजबूत होगा.

बच्चे को समय दें

आज के समय में ज्यादातर महिलाएं जौब करती हैं. ऐसे में घर और काम के बीच समय निकाल पाना बहुत मुश्किल होता है. अत: वह बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाती. अगर आप के साथ भी ऐसा है तो परेशान न हों. बस यह कोशिश करें कि घर में आप के पास जितना भी समय है बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. याद रखें सही से बात न हो पाने के कारण रिश्तों में दूरियां आ जाती हैं, साथ ही बच्चों के भटकने का खतरा भी रहता है. इसलिए आप जब घर में हों तो फोन में लगे रहने के बजाय अधिक से अधिक समय बच्चे से बातें करें, उस के साथ ऐंजौय करें, खाना बनाएं या कुछ और बच्चे को कुछ नया सिखाएं.

हमेशा अपने बच्चे के बर्थडे के दिन उसे सब से पहले विश करें. इस से आप के बच्चे को इस बात का एहसास रहेगा कि उस की आप की जिंदगी में बहुत अहमियत है. इस दिन अपने बच्चे के लिए कुछ स्पैशल करें. उस की पसंद की चीज खरीद कर दें. उस की मनपसंद जगह पर घूमने जाएं. पूरे परिवार के साथ पिकनिक का प्रोग्राम भी बना सकती हैं.

बच्चों को सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल ऐसे सिखाएं

आजकल के बच्चे यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स का काफी उपयोग करते हैं और इन साइट्स को देख कर बहुत कुछ सीखते हैं. ऐसे में मातापिता के लिए महत्त्वपूर्ण है कि वे अपने बच्चों को इन वैबसाइट्स का सही इस्तेमाल सिखाएं और उन की हाई क्वालिटी कंटैंट चुनने में मदद करें.

इस संदर्भ में सीनियर साइकोलौजिस्ट डा. ज्योति कपूर, फाउंडर मनस्थली, गुरुग्राम कुछ सुझाव दे रही हैं जो आप की अपने बच्चे को गाइड करने में सहायता कर सकते हैं:

डिसिप्लिन और लिमिटेशन मैंटेन रखें

बच्चों को सोशल मीडिया और यूट्यूब का उचित और सीमित इस्तेमाल करने की सीख दें. उन्हें एक समयसीमा दें और बताएं कि वे इतने समय तक ही यूट्यूब या सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं. उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि इन सब में ज्यादा समय लगाना हानिकारक हो सकता है. उन के लिए दूसरी गतिविधियों में भी समय बिताना जरूरी है.

  1. कंटैंट की क्वालिटी चैक करें

बच्चों को यह समझाएं कि सभी कंटैंट बराबर नहीं होते हैं और उन्हें हमेशा अच्छे स्टैंडर्ड और वैल्यूज का ध्यान रखना चाहिए. उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि वे किसी भी वीडियो, चैनल या पेज की औथैंटिसिटी जरूर वैरीफाई करें, साथ ही वे उन्हीं चीजों पर फोकस करें जो उन की जानकारी के लिए जरूरी हों.

2. सामाजिक विषयों पर देखे गए कंटैंट पर बातचीत करें

अपने बच्चों के साथ उन के देखे गए सोशल कंटैंट के बारे में चर्चा करें. उन से उन के देखे गए वीडियो, पेज के बारे में प्रश्न करें और उन की सोच और विचारों को प्रोत्साहित करें. ऐसा करना उन्हें समझने का और अपनी बात रखने का अवसर देगा और उन्हें अच्छी और बुरी सामग्री के बीच अंतर महसूस होगा.

3. सतर्कता और सुरक्षा के बारे में बात करें

बच्चों को सोशल मीडिया और यूट्यूब पर सुरक्षित रहने के बारे में जागरूक करें. उन्हें अपनी व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा करने की सीख दें. अनजान लोगों के साथ बातचीत न करने और किसी भी अनुचित कंटैंट की रिपोर्ट करने का तरीका सिखाएं.

4. संवाद

बच्चों के साथ प्यार से पेश आएं और उन के साथ संवाद बनाए रखें. उन की रुचियों और उन के द्वारा देखे गए कंटैंट पर चर्चा करें. यह उन्हें बताएगा कि आप उन की सोच, रुचियों और इंटरनैट पर देखे जाने वाले कंटैंट को महत्त्व देती हैं. इस से वे कुछ भी देखने के बाद खुद ही आप को बताएंगे और आप हमेशा उन पर नजर रख सकेंगी या उस कंटैंट में दिखाई गई अच्छी बातें उन्हें समझ सकेंगी

लव सैंटर क्यों बन रहे जिम

प्यार उम्र नहीं देखता, सरहदें नहीं देखता, बंधन नहीं देखता. जो एक बार प्यार में पड़ जाता है वह हर बंदिश को तोड़ कर अपने इश्क को मुकम्मल करने की पुरजोर कोशिश में लग जाता है. जी हां, ऐसी ही कहानी है राजस्थान की कनिका सोनी की जिसे बिहार के जिम ट्रेनर लक्की से प्यार हो गया और दोनों ने भाग कर शादी कर ली.

पहले लोगों का प्यार स्कूलकालेज, औफिस या फिर शादीब्याह के मौकों पर परवान चढ़ता था, लेकिन अब इस की जगह जिम सैंटरों ने ले ली है. लोग जिम में पसीना बहाते हुए प्यार में पड़ जाते हैं. बिहार के जमुई के रहने वाले मातापिता ने बेटी को शहर के सब से बड़े जिम में कसरत करने भेजा. लेकिन बेटी को उसी जिम ट्रेनर से प्यार हो गया और दोनों ने मातापिता के मरजी के खिलाफ जा कर शादी कर ली.

सिर्फ युवा ही नहीं, बल्कि शादीशुदा लोग भी जिम ट्रेनर के प्यार में पड़ जाते हैं. एक शादीशुदा महिला का कहना है कि उसे अपने जिम ट्रेनर से प्यार हो गया, लेकिन यह बात वह अपने पति को कैसे बताए सम?ा नहीं आता. सिर्फ आम घरों की लड़कियों या महिलाओं का दिल ही अपने जिम ट्रेनर पर नहीं आया, बल्कि वर्कआउट करतेकरते अपने जिम ट्रेनर को दिल दे बैठी ये हसीनाएं भी:

  1. आयरा खान

अमीर खान की बेटी आयरा खान की फिलफाल शादी तो नहीं हुई है, लेकिन जल्द ही वह जिम ट्रेनर नुपुर शिखरे के साथ शादी के बंधन में बंधने वाली हैं. नुपुर शिखरे आयरा के पापा के जिम ट्रेनर थे. आयरा नुपुर को 3 साल से डेट कर रही हैं.

सुष्मिता सेन: मिस यूनिवर्स का टाइटल अपने नाम करवा चुकीं बौलीवुड अभिनेत्री सुष्मिता सेन एक समय पहले मौडल रोहमान शौल को डेट कर रही थीं. दोनों के बीच इतना प्यार बढ़ गया कि रोहमान शौल सुष्मिता सेन के जिम ट्रेनर बन गए थे. रोहमान सुष्मिता को जिम ट्रेनिंग देते थे जिस के कई वीडियो सुष्मिता ने खुद अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किए.

2. निगार खान

ऐक्ट्रैस निगार खान ने साहिल खान से शादी की थी. कभी बौलीवुड में ऐक्टिंग करने वाले साहिल खान जिम ट्रेनर हैं. बता दें कि जैकी श्रौफ की पत्नी आयशा श्रौफ का भी नाम जिम ट्रेनर साहिल के साथ जुड़ चुका है. हालांकि आयशा ने इसे अफवाह बताया था.

3. अलाया एफ

अलाया एफ का बौयफ्रैंड ऐश्वर्य ठाकरे भी पहले जिम ट्रेनर था. उन का भी ऐक्टर को छोड़ जिम ट्रेनर पर दिल आ गया.

4. मैडोना

हौलीवुड ऐक्ट्रैस मैडोना का ऐक्स बौयफ्रैंड कालोंस लियोन भी जिम ट्रेनर है. हालांकि अब मैडोना किसी और को डेट कर रही हैं.

5. दिशा पाटनी

बौलीवुड की सब से फिट ऐक्ट्रैसेज में शुमार दिशा पाटनी कभी टाइगर श्रौफ के संग रिलेशन में थीं. लेकिन इन दोनों उन्हें अपने नए हैंडसम बौयफ्रैंड के साथ देखा जा रहा है. वे अपने नए बौयफ्रैंड ऐलैक्जैंडर ऐलैक्स को डेट कर रही हैं. दोनों साथ वर्कआउट करते हैं. ऐलैक्जैंडर जिम ट्रेनर भी हैं.

6. देवोलीना भटाचार्जी

टीवी ऐक्ट्रैस देवोलीना भट्टाचार्जी ने अपने जिम ट्रेनर शाहनवाज शेख से शादी कर सभी को चौंका दिया. देवोलीना ने अपने प्यार की खातिर धर्म की दीवार को गिरा कर मुसलिम ट्रेनर शाहनवाज को हमसफर बना लिया.

प्यार तो वही पर उस का पैटर्न बदल रहा है

औनलाइन प्यार का क्रेज तो है ही, पर इस के अलावा अब प्यार की तलाश में लोग जिम सैंटर का रुख करने लगे खासकर सिंगल लोग इसे एक पंथ दो काज की तरह लेते हैं कि शरीर भी फिट रहेगा और इमोशनल सेहत भी शानदार हो जाएगी. जिम चाहेअनचाहे एक ऐसी जगह बन गई है कि जहां कोई अकेला सप्ताह में 1/2 या 7 दिन चला जाए, तो कोई आंख उठा कर नहीं देखने वाला. आप यहां आराम से अपने जिम ट्रेनर प्रेमी से नैनमटक्का कर सकते हैं, कोई कुछ नहीं बोलेगा क्योंकि कोई शंका ही नहीं करेगा कि आप वहां पर अपने प्रेमी के साथ प्रेमआलाप करने जा रहे हैं.

वहीं क्लब में अगर आप की मैंबरशिप भी है, तो वहां जाओ खाओपीओ बस. स्पोर्ट्स में भी पार्टनर चाहिए. लेकिन जिम में आप पूरे सप्ताह अकेले जा सकते हैं और फिर भी अकेले ही रह जाएं आप का कोई दोस्त न बने, तो भी कोई आंख नहीं उठती. यह सोशलाइजिंग की सब से सुलभ जगह है.

जिम में मी टाइम

वैसे तो कोई भी इंसान यह सोच कर जिम नहीं जाता कि वहां उसे कोई साथी मिल जाएगा और वह उस के साथ इश्क लड़ाएगा. वह तो वहां सिर्फ अपनी फिटनैस के लिए आता है, लेकिन जिम में आने वाला कोई शख्स अगर सचमुच अपने रिश्ते को ले कर उदास है तो जिम का माहौल उस की मदद जरूर करता है. जिम ट्रेनर या कोई और उस व्यक्ति को अकेलेपन से जू?ाते देख उस के साथ सिंपैथी दिखाने लगता है, उस का ध्यान रखने लगता है, तो वह उस की ओर आकर्षित होता चला जाता है और एक दिन वह प्यार का रूप ले लेता है.

परेशानियों की वजह भी

मगर जिम वाला प्यार परेशानियों की वजह भी बन रहा है. ऐसे कई मामले देखने को मिल रहे हैं जैसे पिछले साल ही पटना के नामीगिरामी डाक्टर राजीव कुमार सिंह की पत्नी खुशबू सिंह, जो 2 बच्चों की मां है वह 26 साल के जिम ट्रेनर के प्यार में पागल हो गई. दोनों लेट नाइट तक फोन पर बातें करते रहते थे. लेकिन यह बात डाक्टर पति को नागवार गुजरी और उस ने जिम ट्रेनर को जान से मारने की धमकी दे डाली.

उस के बाद उस की सुपारी दे कर उस पर अज्ञात बदमाशों से एक के बाद एक दनादन 5 गोलियां दगवा दीं. यह जानकारी खुद जिम ट्रेनर विक्रम ने पुलिस को दी. गोली लगने के बाद खून से लथपथ वह खुद स्कूटी चला कर अस्पताल पहुंचा तब उस की जान बच पाई.

ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड के देहरादून का है जहां जिम ट्रेनर के प्यार में पागल एक पत्नी ने पति को नींद की गोलियां खिला कर उस की जान ले ली. हरियाणा के यमुनानगर में जिम ट्रेनर के प्यार में पड़ी एक महिला ने 10 लाख रुपयों में अपने पति की जान का सौदा कर डाला.

बीते साल एक व्यापारी की हत्या का बड़ा खुलासा हुआ. पुलिस जांच के मुताबिक पत्नी के जिम ट्रेनर से संबंध और उन की ब्लैकमेलिंग से परेशान पति ने खुद को ही खत्म कर डाला.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते

कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते और आज के टैक्नोलौजी के युग में तो तुरंत प्यार पर पड़ा परदा बेपरदा हो जाता है. हम कहां जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं, किस से मिल रहे हैं टैक्नोलौजी के जरीए आसानी से पता लगाया जा सकता है. जिम में होने वाले अफेयर को ले कर कई बार पतिपत्नी के बीच जासूसी भी की जाती है. इस में जिम के तौलिए को खोज निकालना या साक्ष्य के तौर पर कोई मैसेज तलाशने की कोशिश की जाती है.

धोखा दे रहे पार्टनर के ईमेल तक पहुंचने के लिए एक खास तरह के सौफ्टवेयर का भी इस्तेमाल किया जाता है. पिछले साल ही 15 अक्तूबर में मध्य प्रदेश के भोपाल के कोहेफिजा में एक फिटनैस सैंटर में ऐसा ही मामला देखने को मिला, जहां पतिपत्नी के बीच जम कर हंगामा हुआ. जब पत्नी को पता चला कि फिटनैस सैंटर में पति का किसी अन्य लड़की से अफेयर चल रहा है तो वह वहां पहुंच गई और पतिपत्नी और वो के बीच जम कर जूतमपैजार हो गई.

पुलिस के मुताबिक, महिला के पति का जिम में आने वाली एक लड़की के साथ अफेयर चल रहा था, जिस का पत्नी को पता चल गया और फिर उस के जिम सैंटर आ कर उस लड़की की चप्पलों से जम कर पिटाई कर डाली.

बढ़ने लगे हैं जिम में प्यार के मामले

महिलाओं को ले कर किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि 90 फीसदी महिलाओं का फिटनैस ट्रेनर पर कभी न कभी क्रश रहा. वहीं जिम ट्रेनर का भी वहां आने वाली लड़कियों पर क्रश रहा. जिम न सिर्फ बौडी को ले कर आप की चिंता खत्म कर सकता है बल्कि आप के शादीशुदा जीवन का भी अंत कर सकता है.

आज तलाक के मामलों की बड़ी वजह फिटनैस ट्रेनर्स के साथ अफेयर को देखा जा रहा है. एक वकील का कहना है कि अकसर विवाहित जीवन के अंत की वजह ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स होते हैं. इस तरह के मामलों में सामने आया है कि ट्रेनर के साथ ‘पर्सनल’ हो कर महिलाएं पहले से मुश्किलों से गुजर रहे विवाहित जीवन में परेशानी को और बढ़ा देती हैं. नतीजा यह होता है कि कपल तलाक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं. आमतौर पर ऐसे शादीशुदा जोड़े संपन्न परिवारों से होते हैं, जहां पति बिजनैस में बिजी रहता है.

ऐसे में साथ और सुख तलाश रही महिला को पर्सनल ट्रेनर में यह सब नजर आने लगता है, तो वह उस की ओर आकर्षित होने लगती है.

‘यूनिवर्सिटी औफ ओंटारियो’ की एक स्टडी के मुताबिक, जो लोग अपने पार्टनर के साथ जिम जाते हैं उन के लिए इस दौरान किया गया वर्कआउट काफी इफैक्टिव हो सकता है. अगर आप अपने पार्टनर के साथ जिम जाते हैं तो आप के लिए यह एक प्लस पौइंट है क्योंकि एकसाथ ऐक्सरसाइज करने से आप फिट तो रहेंगे ही आपस का रिश्ता भी मजबूत बनेगा. जो कपल कुछ चीजें एकसाथ करते हैं जैसे साथ में सैर पर जाना, डिनर करना, घूमने जाना उन के रिश्ते काफी अच्छे होते हैं. जो कपल समय की कमी के कारण साथ समय नहीं बिता पाते वे साथ में वर्कआउट करते वक्त अपने लाइफपार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं.

फंदों की सतरंगी दुनिया

फदों की दुनिया भी बड़ी अजीब होती है. अगर हम गौर से देखें तो इस संसार का हर प्राणी किसी न किसी फंदे के शिकंजे में फंसा हुआ नजर आएगा. कोई अपनी बीवी के फंदों से दुखी है, तो कोई प्रेमिका के प्यार में गरदन फंसा कर कसमसा रहा है, जो न छोड़ती है न ही शादी कर रही है. इतना ही नहीं, कोई पैसे की मारामारी में फंसा है, तो कोई दोस्त की गद्दारी में. कोई बौस की चमचागीरी में, तो कोई नेता या पुलिस की दादागीरी में.

फंदों का एक बहुत बड़ा अखाड़ा हमारी राजनीति को भी कहा जा सकता है. गरदन तक जुल्म की दुनिया में डूबे लोगों को सालों के इंतजार के बाद कानून गले में फंदा पहनाने का हुक्म सुना पाता है. पर वोट की शतरंज बिछाए नेताओं को ऐसे लोगों से सहानुभूति हो जाती है. वे फांसी के फंदे में भी फंदा फंसा अपनी वोट की राजनीति कर जाते हैं यानी उन्हें छुड़ा लेते हैं.

इस प्रसंग में एक और किस्म के प्राणियों का यदि जिक्र न किया तो यह चर्चा बेजान नजर आएगी. वे हैं हमारी हाउस मेकर बहनें, जिन्हें सर्दियों के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है. सितंबर में जरा सर्द हवाएं चलीं नहीं कि उन का ऊन, सलाइयों और फंदों का सफर शुरू हो जाता है.

इस में पहले पिछले साल के आधेअधूरे छोड़े स्वैटरों पर काम शुरू होता है, फिर नए ऊनों के लिए बाजार का रुख किया जाता है. जल्दीजल्दी रसोई और घर का काम निबटाया जाता है और वे ले कर बैठ जाती हैं ऊन और सलाइयां. कभी घरों की छतों पर महफिल जमती है, तो कभी किसी की धूप वाली बालकनी में.

बुनाई के साथ ये गृहिणियां एकदूसरे से बहुत से टिप्स भी बांट लेती हैं. जैसे, मटर के छिलकों की रैसिपी, कई चीजों के दाम, कहां मिलेंगी महंगाई के जमाने में कौन सी चीजें सस्ती. सारी जानकारियां बिलकुल सच्ची और फ्री में. साथ में सुखदुख और महल्ले की अपडेट खबरें, जो किसी अखबार या न्यूज चैनल पर किसी को नहीं मिल सकतीं और सब से कमाल की बात यह कि यह सब चलता रहता है और हाथ की सलाइयां बिना रुके फंदों पर फंदे पिरोती जाती हैं. शायद इसे ही कहते हैं एक पंथ दो काज.

बुनाई का फंदा जिस को भा गया, उस की मनोदशा ही कुछ अजीबोगरीब हो जाती है. उस का रातदिन ऐसी कल्पनाओं के संसार में खोया रहता है कि कौन से रंग में कौन सा कौंबिनेशन खूब जमेगा, रजनी की बहू को सर्दियों में बच्चा होगा, उस के लिए अभी से 1-2 बेबी सैट तैयार करने हैं. वहां रजनी की ननद भी जरूर आएगी. बुनाई और स्वैटर बनाने में तो वह ऐक्सपर्ट है.

मैगजीन वगैरह में भी उस के बनाए स्वैटरों के डिजाइन निकलते हैं और जिस महफिल में वह जाती है, बुनाई पूछने और प्रशंसा करने वालों से घिरी रहती है. उस के स्वैटर से मेरे स्वैटर किसी तरह से कम नहीं होने चाहिए. इसी सोच और उधेड़बुन में काफी समय निकल जाता है. यह स्पर्धा और ईर्ष्या भी अजीब चीज होती है. कभी आगे बढ़ाती है तो कभीकभी दिल को जला कर भी रख देती है.

उर्मिलाजी अपनी बालकनी से पड़ोस में नई बसी फैमिली में एक छोटे बच्चे को रोजाना देखती थीं. वह नएनए डिजाइन के स्वैटर पहने चहक रहा होता. अब कैसे एकदम अनजान लोगों से मित्रता बढ़ाई जाए और उस पर भी एकदम से स्वैटर का डिजाइन पूछना काफी ‘भद्दा’ लगता है. पर अपने पर कंट्रोल भी तो नहीं होता. खैर, किसी तरह नए पड़ोसी से बच्चे के बहाने मेलजोल बढ़ा लिया और अवसर मिलते ही छेड़ दी सलाई और फंदों की बातें.

पड़ोसिन भी एक नंबर की बुनक्कड़ निकलीं. दोनों के विचार मिले तो ऊन और सलाइयां तो जैसे हाथों में भागने लगीं. बस जल्दी से रसोई और जरूरी दैनिक कार्य निबटाए और बुनाई का काम शुरू. कभीकभी तो यह काम कंपीटिशन जैसा हो जाता और हाथ की हड्डियां दर्द होने लगतीं. घर वालों से दर्द की बात कहने पर डांट और सहनी पड़ती. फिर भी बुनाई का सफर मुश्किलों से जू?ाते हुए अनवरत जारी रहता. सचमुच बुनाई को जिन्होंने हौबी बना लिया, उन्हें तो हर हालत में इस से जुड़ा कुछ न कुछ करते रहना होता है.

रंजना को एक इंटरव्यू देने जाना था. वह अपने हाथ का बुना लेटैस्ट बुनाई वाला स्वैटर पहन कर वहां गई. वहां इंटरव्यू टीम की एक महिला की नजर उस पर गई तो रंजना की काफी तारीफ हुई. साइंस स्टूडैंट हो कर भी उस की बुनाई में ऐसी सफाई और निपुणता देख सभी वाहवाह कर उठे. पता नहीं रंजना को वह जौब मिलेगी या नहीं पर यह जान कर उसे बहुत अच्छा लगा कि हाथ की बुनाई के कद्रदान सभी जगह बैठे हैं.

छोटे बच्चों के लिए हाथ से बुने प्यारे व आकर्षक रंगबिरंगे स्वैटर का रिवाज सदियों से हमारी हाउस मेकर बहनों के कारण आज भी कायम है. जो लोग बुनाई नहीं कर सकते, वे ईर्ष्यावश ये कमैंट्स करते देखे गए हैं कि हमारे बच्चे तो हाथ के बुने स्वैटर पहनते ही नहीं, इसलिए हमें इतनी मेहनत करने और आंखें लगाने की क्या जरूरत है? फिर बाजार में एक से बढ़ कर एक सुंदर डिजाइन वाले स्वैटर मिल जाते हैं, तो क्यों न हम उन्हें खरीदें.

पर आज भी जिन के घरों में मम्मी, दादी, नानी, मौसी, ताई या कोई और हाथ की बुनाई की कला में सिद्धहस्त है, उन घरों के किशोर बच्चे बड़े शौक से उन के हाथ के बुने स्वैटर पहन कालेज, जौब और कई बार तो फंक्शन में भी जाते हैं और बड़े गर्व से सब को बताते भी हैं कि यह उन की मां, बूआ, दादी या किसी और ने उन्हें जन्मदिन पर बना कर दिया है.

ऐसे उपहार में 1-1 फंदे में गुंथीबुनी होती हैं देने वाले की सच्ची, कोमल, लगाव भरी भावनाएं और लेने वाला जब भी उस स्वैटर को सर्द हवाओं में पहनता है तो देने वाले की नेह भरी गरमाहट के फंदों की गिरफ्त में आए बिना नहीं रह पाता.

आप भी इन सर्दियों में ऐसे मधुर, रंगीन धागों के फंदों में अपना दिल जरूर फंसाएं और बुनतेबुनते प्यार बढ़ाएं.

इस तरह सजाएं डाइनिंग टेबल

आज मुझे अपनी फ्रैंड कुसुम के यहां डिनर पार्टी में जाना है और मैं बहुत ज्यादा खुश हूं क्योंकि इस बहाने सभी दोस्तों से मुलाकात होने जा रही है वरना तो इतनी भागमभाग वाली लाइफ में दोस्तों से मिलने की फुरसत ही कहां मिलती है. मैं उत्साहित इसलिए भी हूं क्योंकि कुसुम इंटीरियर डिजाइनर है और हमेशा उस की सजावट देखने और तारीफ के काबिल होती है.

आइए, जानते हैं कि कुसुम ने किस तरह सजाई थी डिनर पार्टी के लिए खाने की टेबल ताकि जब आप भी अपने दोस्तों को डिनर पर बुलाएं तो सभी कह उठेंगे कि वाह क्या टेबल सजाई है.

खाने की टेबल साफसुथरी तो होनी ही चाहिए, लेकिन आजकल इस की सुंदरता को भी महत्ता दी जाती है, इसलिए कुछ इस तरह सजाएं खाने की टेबल को:

1.सजाएं छोटेछोटे पौधों या फूलों से

अकसर लोग सजाने के लिए आर्टिफिशियल यानी प्राकृतिक फूलों का उपयोग करते हैं, लेकिन यदि आप इन की जगह खुशबू वाले रंगबिरंगे प्राकृतिक फूलों जैसे रंगबिरंगे सेवनवंती, गुलाब, सफेद एवं नारंगी फूलों का इस्तेमाल करेंगी तो आप की टेबल की सुंदरता में चार चांद लग जाएंगे. साथ ही यदि आप जड़ीबूटियों और मसालों से संबंधित छोटेछोटे पौधों से सजाएंगी तो आप की खाने की टेबल मसालों की खुशबू से भी महक उठेगी. यह एक नया तरीका होगा.

2.कैंडल से सजाएं

टेबल के बीच लगाएं फ्रैगरैंस वाली कैंडल ताकि खाने की टेबल ग्लो करे और दोस्तों संग कैंडल लाइट डिनर का मजा ले सकें.

3.लाइट्स का इस्तेमाल

खाने की टेबल के ऊपर एक लैंप लगाएं. उस से टेबल की खूबसूरती और भी बढ़ जाए और टेबल के चारों ओर एक सी लाइट रहे, लेकिन टेबल के ऊपर लाइट लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि लाइट सीधी आंखों पर न आए और बहुत ज्यादा ब्राइट न हो.

4.अलगअलग तरीके से सजाएं

हर बार खाने की टेबल को अलगअलग तरीके से सजाएं क्योंकि हर बार एक तरह से सजावट से बोर हो जाते हैं इसलिए यदि टेबल की सजावट मौसम के अनुकूल, किसी थीम पर आधारित, पारंपरिक चीजों के अनुसार हो तो और बेहतर होगा.

5.पर्सनालाइज्ड सजावट

यदि आप ने किसी खास मेहमान या दोस्त को बुलाया है और आप उसे स्पैशल फील कराना चाहती हैं तो आप उस की पसंद के अनुसार भी टेबल की सजावट कर सकती हैं ताकि वह खुश हो जाए.

6.बहुत ज्यादा सामान से न सजाएं

खाने की टेबल को बहुत ज्यादा सामान से न सजाएं क्योंकि खाने के बरतन रखने के बाद टेबल कंजस्टेड हो जाती है और फिर साफसुथरी नहीं लगती है. इसलिए टेबल पर उतना ही सामान रखें जितना उस की सुंदरता न बिगाड़े.

जिस के साथ बौंडिंग उसी के साथ शौपिंग

कावेरी अपनी शादी पक्की होने के बाद से ही बहुत एक्साइटेड थी. इस दिन के लिए उस ने बहुत सारे सपने देखे थे. वह चाहती थी कि यह उस की जिंदगी का ऐसा दिन हो जो जिंदगी भर के लिए एक यादगार बन जाए.

कावेरी सब भाई बहनों में सब से छोटी और सब से लाडली है. उस के मातापिता ही नहीं बल्कि परिवार का हर सदस्य उस की शादी में खुल कर पैसे खर्च करने वाला था. आर्थिक रूप से उस का परिवार काफी संपन्न है. लिहाजा कावेरी की शादी की शौपिंग लिस्ट भी काफी लंबीचौड़ी बनी थी.

अपनी सहेलियों की और बड़ी बहनों की शादियों में कावेरी ने जैसे लकदख कपड़े, जेवर, मेकअप, सजावट, संगीत और रौनकें देखी थीं, अपनी शादी में वह उन सब से अच्छा, कुछ हट कर, कुछ यूनीक चाहती थी. शादी के लहंगे से ले कर मेंहदी और मेकअप आर्टिस्ट तक सैकड़ों चीजें उसे तय करनी थीं, लेकिन वह चाहती थी कि अपनी सारी शौपिंग किसी ऐसे के साथ करे, जिस से उस का मिजाज और चौइस मिलती हो.

जो उस के नजरिए को समझता हो, जो ट्रेडिशनल के साथसाथ लेटैस्ट फैशन की समझ रखता हो क्योंकि साडि़यों, लहंगों और कुछ भारी काम के सलवारसूट के अलावा कावेरी को वैस्टर्न स्टाइल और लेटैस्ट डिजाइन के आउटफिट्स भी लेने थे, जिन्हें वह हनीमून पर और फ्रैंड्स बगैरा के घर पर पार्टी आदि में पहन सके. अब हर जगह तो भारी सूट या साड़ी वह नहीं पहन सकती है.

शौपिंग में साथ की जरूरत

इस के साथ ही अपने कपड़ों से मिलतेजुलते सैंडल्स व बैग भी उसे लेने थे. फिर लेटैस्ट डिजाइन के अंडरगारमैंट्स, नाइटी, चूडि़यां, कौस्मैटिक्स की तो काफी लंबी लिस्ट थी. कावेरी इन तमाम चीजों की शौपिंग अपनी मां अथवा चाची या मामी के साथ नहीं बल्कि किसी हमउम्र के साथ करना चाहती थी.

कावेरी ने शौपिंग के लिए जो लिस्ट बनाई उस में आइटम्स के हिसाब से उस ने तीन कैटेगरी बनाई. शादी के लहंगे, कपड़े, लौंजरी, नाइटी, फुटवियर, बैग, कौस्मैटिक्स जैसी चीजों की खरीदारी के लिए उस ने अपनी बचपन की सहेली रत्ना को फोन किया.

दरअसल, कावेरी की आदत है कि वह एक चीज के लिए कई दुकानें देखती है. किसी एक जगह उसे चीज पसंद नहीं आती है. रत्ना और कावेरी स्कूल टाइम में खूब घूमती थीं. 1-1 चीज के लिए कईकई दुकानें देखती थीं. दुकानदार से खूब मोलभाव करती थीं. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद था. दोनों के बीच बढि़या ट्यूनिंग थी. दिनभर हाथ में हाथ डाले घूमतीं और थकान का नामोनिशान नहीं. कावेरी को उस वक्त किसी ऐसे का साथ चाहिए था जो दिनभर उस के साथ मार्केट में घूम सके.

ताकि कोई पछतावा न हो

शादी की शौपिंग करते वक्त ज्यादातर लड़कियां जो गलती करती हैं वह है शादी के बाद के लिए सारे हेवी आउटफिट्स खरीदने की. कावेरी की बहनों और कुछ सहेलियों ने अपनी शादी के वक्त काफी हैवी साडि़यां और सूट खरीदे मगर शादी के 1 महीने के बाद ही उन तमाम हैवी सूट्स और साडि़यों का कोई इस्तेमाल नहीं रहा.

वे आउट औफ फैशन हो गए. इसलिए अपनी शादी में कावेरी बहुत सारे हैवी आउटफिट्स खरीदने की जगह कुछ अलगअलग पैटर्न और डिजाइन के हैवी दुपट्टे और हैवी ब्लाउज भी लेना चाहती थी जो बाद में प्लेन सूट्स और साडि़यों के साथ मैच किए जा सकें, जिन्हें अलगअलग चीजों के साथ अलगअलग तरीकों से स्टाइल किया जा सके.

मगर कावेरी का यह पौइंट औफ व्यू उस की मम्मी या उन की उम्र की औरतें नहीं समझ सकेंगी, यह उसे पता था. इस के लिए उसे अपनी सहेली रत्ना पर भरोसा था.

शादी में दुलहन को पहनाए जाने वाले जेवर और दूल्हे को दी जाने वाली चेन, अंगूठी जैसी चीजें सब से ऐक्सपैंसिव आइटम्स होती है. इन्हें सहेली के साथ नहीं बल्कि परिवार के सदस्यों के साथ ही खरीदा जाता है. कावेरी का परिवार सोने और हीरे के जेवर के लिए सिर्फ लाला जुगल किशोर ज्वैलर्स पर ही भरोसा करता है. शादी में क्व15-20 लाख के गहनों की खरीदारी होनी थी तो उस के लिए कावेरी को अपने मातापिता और बड़ी बहन के साथ जाना ठीक लगा. उन्हें गहनों की परख थी.

कावेरी से बड़ी दोनों बहनों और दोनों भाभियों के गहनों की खरीदारी उस के मातापिता ने ही की थी. उन की पसंद सभी को पसंद आई थी. सभी गहने नई डिजाइनों से बहुत आकर्षक थे.

भारतीय शादियों में दुलहन के घर वालों की पूरी कोशिश रहती है कि वे अपनी बेटी को अच्छी से अच्छी और हैवी से हैवी ज्वैलरी शादी में दें, जिस से उस की ससुराल में उस की तारीफ हो और समाज में उन के परिवार का स्टेटस बना रहे. मगर स्टेटस मैंटेन करने के चक्कर में अकसर प्रैक्टिकल होना भूल जाते हैं.

स्टेटस का चक्कर

कावेरी जानती थी कि शादी की हैवी ज्वैलरी को शादी के बाद दोबारा पहनने के बहुत ही कम मौके मिलते हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए वह 1-2 हैवी सैट के साथ 4-5 हलके सैट या अलगअलग पीसेज लेना चाहती थी जिन्हें वह अलगअलग आउटफिट्स के साथ और कई तरीकों से स्टाइल कर सके. उस ने अपनी मां से कहा कि वे उस के लिए सिर्फ गोल्ड या डायमंड ज्वैलरी में इन्वैस्ट न करें बल्कि सिलवर और जंक ज्वैलरी भी लें.

हालांकि यह बात उस की मां को कुछ जमी नहीं, मगर बेटी की पसंद को देखते हुए उन्होंने कुछ हलके सैट के लिए हामी भर दी. कावेरी खुश थी कि उस की पसंद के अनुरूप ज्वैलरी की खरीदारी हो गई.

तीसरी कैटेगरी लकड़ी का फर्नीचर जैसे पलंग, गद्दे, चादरें, सोफा सैट, अलमारी, ड्रैसिंग टेबल और कावेरी की अपनी चीजें रख कर ले जाने के लिए सूटकेस और लगेज बैग की थी. इस के अलावा दूल्हे के कपड़े और दूल्हे के परिवार को दिए जाने वाले गिफ्ट भी खरीदे जाने थे.

ये सब भी कावेरी की पसंद से लिए जाने थे जिस के लिए उसे अपने दोनों बड़े भाइयों के साथ जाना ठीक लगा. उन्हें इस सामान की दुकानों की भी जानकारी थी और रेट्स की भी.

एक त्योहार की तरह

लड़कों के मुकाबले लड़कियों की शादी की शौपिंग एक बहुत ही हैक्टिक और स्ट्रैसफुल काम है.शादी की शौपिंग बहुत सोचसमझकर और सही प्लानिंग के साथ हो तो सारा पैसा वसूल हो जाता है वरना शादी के हफ्ते 2 हफ्ते बाद ही खरीदी गई चीजें बेकार महसूस होने लगती हैं और लगता है सारा पैसा व्यर्थ चला गया. इसलिए शादी के बाद के लिए एवरग्रीन और वर्सटाइल दिखने के साथसाथ कंफर्ट जैसी चीजों का विशेष ध्यान रखते हुए ही खरीदारी की जानी चाहिए.

नौकरीपेशा लड़कियां शादी के बाद हर वक्त क्रिसमस ट्री की तरह सजीधजी या जगमगाती नहीं दिखना चाहती हैं खासतौर से औफिस में. वे तो चंद रोज बाद ही हैवी गहने और भारी काम वाली साडि़यां पहनना छोड़ देती हैं. ये महंगी चीजें फिर हमेशा के लिए उन की अलमारी में ही बंद हो कर रह जाती हैं.

आज लड़कियां सोचती हैं कि शादी की खरीदारी ऐसी हो कि हैवी आउटफिट्स और चमचमाते गहनों के बिना भी न्यूली मैरिड लुक पाया जा सके. मगर घर के बुजुर्ग इन बातों को समझ नहीं पाते हैं इसलिए ‘गृहशोभा’ की राय तो यही है कि शादी की शौपिंग उस के साथ करें जिस के साथ आप की बढि़या ट्यूनिंग हो, जो आप की पसंद और आप की जरूरत को अच्छी तरह समझता हो. वह आप की सहेली भी हो सकती है और आप की बहन भी.               –

Holi 2023: होली से पहले यूं बदलें घर का इंटीरियर

होली पर हर इंसान कुछ नया करना चाहता है खासतौर पर गृहिणियां अपने घर की सजावट को ले कर बड़ी फिक्रमंद रहती हैं. होली में ऐसा क्या करें, क्या बदल दें कि घर के कोनेकोने में नएपन का एहसास जाग उठे? नए साल में क्या नया ले आएं कि देखते ही सब वाहवाह कर उठें? सब से खास होता है घर का ड्राइंगरूम, जिस में बाहर के लोग और पति के दोस्त आदि आ कर बैठते हैं.

वे ड्राइंगरूम के लुक से ही गृहिणी की पसंद, सलीका और क्रिएटिविटी का अंदाजा लगा लेते हैं. इसलिए अधिकतर महिलाएं नए साल में नया सोफा, नए परदे, नया कालीन खरीद कर ड्राइंगरूम का लुक बदलने को बेताब रहती हैं. इंटीरियर डैकोरेटर से भी खूब सलाहमशवरा करती हैं. इस सब में उन का काफी पैसा भी लग जाता है.

मगर इस बार नए साल में हम आप को घर में जो चेंज लाने की सलाह दे रहे हैं उस में न सिर्फ आप के पैसों की बचत होगी, बल्कि घर का लुक भी कुछ ऐसा बदल जाएगा कि लोग आप की सोच और कलात्मकता की तारीफ करते नहीं थकेंगे. इस के साथ ही आप के घर का यह नया लुक आप के अपनों के बीच संबंधों को भी प्रगाढ़ करेगा. आप एकदूसरे से गजब की नजदीकियां महसूस करेंगे. तो आइए जानें क्या है यह नया अंदाज:

कमरे की शोभा

आमतौर पर मध्यवर्गीय या उच्चवर्गीय घरों में प्रवेश करते ही सामने सुंदर फर्नीचर, परदे, शोपीस आदि से सुसज्जित ड्राइंगरूम नजर आता है. बंगले या कोठी में भी पहला बड़ा कमरा बैठक के रूप में अच्छे सोफासैट और सैंट्रल टेबल से सजा होता है. खिड़कीदरवाजों पर खूबसूरत परदे, साइड टेबल पर शोपीस, फ्लौवर पौट या इनडोर प्लांट्स कमरे की शोभा बढ़ाते हैं.

आजकल टू बीएचके और थ्री बीएचके फ्लैट में एक बड़े हौल में पार्टीशन कर के सामने की तरफ ड्राइंगरूम और पीछे की तरफ डाइनिंगरूम बनाया जाता है. कहींकहीं दोनों पोर्शन के बीच पतला परदा डाल कर अलग कर देते हैं, तो कहींकहीं इस की जरूरत महसूस नहीं होती है. ड्राइंगरूम और डाइनिंग एक ही हौल में होते हैं.

डाइनिंगरूम में डाइनिंग टेबल के साथ कुरसियां, लकड़ी के शोकेस में सजी क्रौकरी और दीवार में अलमारियां, अधिकांश घरों की रूपरेखा कुछ ऐसी ही होती है. बैडरूम भी महंगे बैड, ड्रैसिंग टेबल, साइड टेबल्स, अलमारियों आदि से सुसज्जित होता है. फिर बच्चों का स्टडीरूम, जिस में कंप्यूटर टेबल चेयर, किताबों की अलमारी, छोटी सेट्टी, बैड, स्टूल, बीन बैग जैसी बहुत सी चीजें भरी होती हैं.

एक नया घर खरीदें तो उस में फर्नीचर पर होने वाला खर्चा लाखों में आता है. अमीर व्यक्ति हों तो करोड़ों खर्च देते हैं फर्नीचर पर. लेकिन विभा ने अमीर होते हुए भी घर को सजाने में फर्नीचर को महत्त्व नहीं दिया. उन के घर में नाममात्र का फर्नीचर कहींकहीं ही दिखता है. विभा का पूरा घर जमीन पर सजा हुआ है. ड्राइंग से ले कर बैडरूम तक फर्श पर है.

कलात्मक और रईसी लुक

विभा के घर के फाटक में प्रवेश करते ही हरेभरे बगीचे के बीच बनी पत्थर की एक सड़क पोर्टिको तक जाती है. 3 छोटी सीढि़यों के दोनों सिरों पर एक के ऊपर एक रखे 3-3 कलात्मक कलश और उन पर रखे फूल आगंतुकों का स्वागत करते हैं. सीढि़यां चढ़ते ही बाईं साइड पर जूतेचप्पल उतारने की व्यवस्था है क्योंकि दरवाजे के पास से ही उन का पूरा ड्राइंगरूम खूबसूरत मखमली कारपेट से आच्छादित है.

सामने की दीवार से ले कर आधे कमरे तक ऊंचे गद्दों पर रंगीन चादर के ऊपर विभिन्न रंगों और डिजाइनों के अनेक गावतकिए किसी राजेमहाराजे के दरबार सा एहसास दिलाते हैं. बीचबीच में चायपानी आदि के कपगिलास रखने के लिए साधारण लकड़ी के जो छोटे स्टूल्स हैं उन के टौप पर विभा ने स्वयं औयल पेंट से खूबसूरत बेलबूटे उकेरे हैं, जो देखने में कलात्मक लगते हैं और रईसी लुक देते हैं.

ड्राइंगरूम के दूसरे कोने पर छोटे गद्दे पर मखमली चादर और गावतकिए लगा कर संगीत कौर्नर बनाया गया है जहां विभा ने तानपुरा और हारमोनियम रख रखा है. फुरसत के क्षणों में वे इस कोने में बैठ कर खुद रागरागनियों में डूब जाती हैं. कलात्मक नेचर की विभा के अधिकतर दोस्त गीतसंगीत में रुचि रखने वाले हैं.

वीकैंड पार्टी या किसी के जन्मदिन के अवसर पर आए मेहमानों के लिए मुख्य आकर्षण यह संगीत कौर्नर ही होता है. वाद्ययंत्र छेड़ते ही हरकोई गाने के लिए उत्सुक दिखने लगता है.

गावतकियों के सहारे फर्श पर सजी महफिल जो मजा देती है वह लुत्फ महंगे सोफों पर बैठ कर तो कतई नहीं उठाया जा सकता है. जमीन पर सब के साथ बैठने से अजनबियों के बीच भी घर जैसा वातावरण बन जाता है और बातचीत में आत्मीयता स्वयं ही उत्पन्न हो जाती है.

सुंदर दिखेगा कोनाकोना

ड्राइंगरूम की एक दीवार में बनी शैल्फ में प्रसिद्ध लेखकों की किताबें करीने से सजी हुई हैं, शैल्फ के नीचे 2 छोटे बीन बैग रखे हैं, जहां आराम से बैठ कर किताबें पढ़ने का आनंद लिया जा सकता है. कोनों में रखी तिपाइयों पर फ्लौवर पौट में ताजे फूल और सुंदर कैंडल स्टैंड में सुगंधित कैंडल्स लगी हैं. कुल मिला कर विभा का ड्राइंगरूम एक सुंदर आश्रम सा प्रतीत होता है.

घर के भीतर एक छोटे बरामदे के साथ ओपन किचन और डाइनिंग एकसाथ हैं. डाइनिंगहौल के फर्श पर भी कारपेट बिछा है. विभा ने प्राचीन पद्धति के अनुरूप 1 फुट की ऊंचाई वाले लंबे तख्त को डाइनिंग टेबल का रूप दे कर उसे कमरे के बीचोंबीच लगाया है. इस पर सफेद चादर बिछा कर बीच में एक छोटा फ्लौवर पौट ताजे फूलों का रखा है. इस नीची टेबल के चारों तरफ बैठने के लिए कारपेट पर चौकोर गद्दियां बिछाई गई हैं जिन पर खाने के लिए पुराने स्टाइल में आलथीपालथी मार कर बैठते हैं. फर्श से कम स्तर पर उठा हुआ यह मंच फर्श पर बैठने को अधिक आरामदायक और सुविधाजनक बनाता है खासकर वृद्ध लोगों के लिए.

विभा कहती हैं कि पुराने ग्रंथों में भोजन करने का यह तरीका बहुत उत्तम माना गया है. किचन से गरमगरम खाना और चपातियां आतीजाती हैं और घर के सभी सदस्य एकसाथ नीचे बैठ कर खाने का लुत्फ उठाते हैं. विभा के घर आने वाले मेहमानों को भोजन परोसने का यह तरीका बहुत लुभाता है.

पुराने समय की अलग बात

पुराने समय को याद करें तो भारतीय भोजन पद्धति में भी रसोईघर में चूल्हे के निकट ही आसन बिछा कर गृहिणी सब को भोजन परोसती थी और तवे से उतरी गरमगरम रोटी 1-1 कर सब की थाली में डालती जाती थी.

विभा अपने अधिकतर काम नीचे जमीन पर बैठ कर करती हैं. इस से उन के कूल्हों, पैरों और घुटनों की अच्छी ऐक्सरसाइज होती है. विभा के घर के किसी भी सदस्य को मोटापे और जोड़ों के दर्द की समस्या नहीं है और उस की वजह है रहनसहन का यह तरीका, जिस में सभी कार्य जमीन पर बैठ कर किए जाते हैं. यहां तक कि इस घर में सब के सोने की व्यवस्था भी जमीन पर ही की गई है.

घर के किसी कमरे में कोई पलंग नहीं है. इस की जगह कारपेट पर मोटे गद्दे और उन पर चादरतकिए की व्यवस्था है. प्रत्येक गद्दे के सिरहाने दोनों साइड पर रखे छोटे स्टूल पर टेबल लैंप लगा है, साथ ही आवश्यक सामान रखने की व्यवस्था है.

बाजार की चकाचौंध

पारंपरिक रूप से भी भारतीय घरों में लोग हमेशा फर्श पर कम ऊंचाई पर बैठने के तख्त रखते थे या फर्श पर ही बैठने का इंतजाम करते थे. इन दिनों सिमटते घरों के कारण फर्नीचर के बजाय एक बार फिर यही परंपरा लोकप्रिय हो रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जगह घेरने वाले फर्नीचर को हटा देने से कमरे में अच्छीखासी जगह हो जाती है और अधिक लोगों को वहां संयोजित किया जा सकता है.

फर्श पर बैठने से भारी, महंगे फर्नीचर का खर्च भी बचता है और उस बचत को हम किसी अन्य जरूरी कार्य के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. हर चीज फर्श पर होने से छोटे बच्चो के ऊंचाई से गिरने और चोट लगने, फर्नीचर से गिर कर या उस से टकरा कर अपने को जख्मी कर लेने का खतरा भी नहीं रहता है. फर्श पर बैठक रखने से बच्चों की सुरक्षा की चिंता करने की जरूरत नहीं रहती है.

बाजार ने अपनी चकाचौंध से हमें आकर्षित किया और हम ने अपने घरों को अनावश्यक और महंगे फर्नीचर से भर लिया. बाजार हर पल किसी न किसी नई चीज से हमें लुभाने की कोशिशों में रहते हैं. पर क्या कभी हम ने इस बात पर ध्यान दिया है कि सोफे या ऊंची कुरसियों पर अलगअलग बैठ कर हम कितना संकुचित सा महसूस करते हैं, एकदूसरे से कैसे फौर्मल यानी औपचारिक से होते हैं, जबकि जमीन पर इकट्ठे बैठने से हमारे बीच आत्मीयता बढ़ती है. हम खुल कर हंसीमजाक करते हैं. हमारे बीच कोई बनावटीपन नहीं रहता.

याद करिए जब जाड़े की नर्म धूप में मां चटाई बिछा कर बैठती थीं तो कैसे सभी धीरेधीरे उस चटाई पर आ जमते थे. वहीं बैठ कर खाना खाते और गलबहियां करते दिन गुजारते थे. वैसी इंटिमेसी महंगे फर्नीचर पर बैठ कर तो कभी पैदा नहीं हो सकती है. तो आइए इस नए साल में प्रवेश करते हुए हम अपनों से नजदीकियां बढ़ाएं और घर को फर्नीचर से आजाद करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें