फाइनेंशियल मुद्दों पर भी बात कर लें शादी से पहले

डिवोर्स या तलाक के कई महत्वपूर्ण कारण हैं- जैसे एक दूसरे के चरित्र पर शक होना, एक दूसरे का स्वभाव बर्दास्त न होना, संवादहीनता तथा और भी कई कारण. लेकिन हाल में जो एक कारण बहुत तेजी से उभरा है, वह है पति पत्नी के बीच फाइनेंशियल मुद्दों पर अस्पष्टता और एक दूसरे से असहमति. मशहूर पत्रिका ‘इकोनाॅमिक्स एंड पाॅलीटिकल वीकली’ के एक शोध के मुताबिक भारत में जैसे जैसे कृषि अर्थव्यवस्था खत्म हो रही है और सर्विस इकोनाॅमी बढ़ रही है, वैसे वैसे कमाने वाले पति, पत्नियों की संख्या भी बढ़ रही है और इसी के साथ ऐसे युगलों के बीच झगड़े, मनमुटाव और तलाक का सबसे बड़ा कारण वित्तीय मुद्दे होते जा रहे हैं.

साल 2016 में भारत में एक करोड़ 36 लाख लोग तलाकशुदा थे, जो कि तब तक की विवाहित आबादी का करीब 0.24 प्रतिशत था और कुल आबादी का 0.11 प्रतिशत थे. लेकिन याद रखिये ये ऐसे तलाकशुदा लोग थे, जिनका बकायदा अदालत से तलाक हुआ था. इन आंकड़ों में बड़ी संख्या में वे लोग शामिल नहीं हैं, जो बिना किसी तलाक के अलग अलग रह रहे थे और न ही ऐसे लोग शामिल हैं, जिन्होंने मुंहजबानी यानी तलाक, तलाक, तलाक कहकर तलाक हासिल किया था और बिना किसी लिखत-पढ़त के तलाकशुदा हो चुके थे. मतलब यह कि वास्तविक रूप से तलाकशुदा लोगों की संख्या और भी ज्यादा है.

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अगर यह देखना हो कि देश में सबसे ज्यादा तलाक कहां होते हैं तो मिजोरम देश में नंबर एक तलाक लेने वाला राज्य है और दूसरे नंबर पर उच्चतम तलाक दर वाला राज्य नागालैंड है. मिजोरम में कुल विवाहित लोगांे में से 4.08 प्रतिशत लोग तलाकशुदा हैं, तो नागालैंड में 0.88 प्रतिशत तलाकशुदा लोगों की आबादी हैं. एक करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले राज्यांे में सबसे ज्यादा तलाक गुजरात में होते हैं, उसके बाद क्रमशः असम, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल आते हैं. लेकिन नोट करने वाली बात यह है कि मिजोरम और गुजरात दोनो ही राज्यों मंे हर चैथे व्यक्ति के तलाकशुदा होने के पीछे किसी न किसी रूप में वित्तीय मुद्दा कारण है.

अब इस कहानी को समझिये. रश्मि और सुनील ने दो वर्ष की डेटिंग के बाद शादी की थी. लेकिन विवाह को अभी छह माह भी नहीं हुए थे कि दोनो का मनमुटाव तलाक की दहलीज तक पहुंच गया. वजह थी दोनो का एक दूसरे पर अपना पैसा खर्च न करने का या अपना पैसा दबाकर रखने का आरोप. हम देखते हैं कि शादी के पहले आजकल के जोड़े महीनों और कई बार तो सालों डेटिंग करते हैं. माना जाता है कि इस दौरान शादी के बंधन में जल्द बंधने वाले जोड़े एक दूसरे में स्वभावगत समानताएं तलाशते हैं और ऐसे मुद्दों पर खुलकर बाते करते हैं, जिन पर बाद में मनमुटाव होने की आशंका रहती है. अगर रश्मि और सुनील ने डेटिंग के दौरान एक दूसरे से फाइनेंशियल मुद्दों पर भी पूरी स्पष्टता के साथ बातचीत की होती तो शायद यह स्थिति नहीं आती.

दरअसल यह रश्मि और सुनील की ही बात नहीं है, ज्यादातर जोड़े शादी के पहले की तमाम मुलाकातों और साथ-साथ रहने के दौरान सारी बातें तो करते हैं, लेकिन संकोचवश एक दूसरे से फाइनेंशियल ग्राउंड पर बातें नहीं करते. जबकि इस पर बात करना आज की तारीख में बहुत जरूरी है. अगर डेटिंग के दौरान रश्मि व सुनील भी इस मुद्दे को बुनियादी मुद्दा समझकर इस संबंध में एक दूसरे से बातचीत की होती तो शायद वे आज अदालत के दरवाजे पर न होते. पैसा जीवन का बुनियादी आधार है, इसलिए उस पर कोई बात न करना, बाद में कई किस्म की समस्याएं खड़ी करता है. कम से कम महिलाओं को तो शादी के पहले की डेटिंग के दौरान अपने पार्टनर में फाइनेंशियल बिहेवियर को पहचानने की कोशिश करनी ही चाहिए. यह काम मुश्किल नहीं है. लड़कों के व्यवहार में उनका फाइनेंशियल बरताव बहुत स्पष्ट होता है. लड़कियों को इस बरताव में छिपे तौर तरीकों को समझने की भूल नहीं करनी चाहिए.

सुनील के स्वभाव में भी उसके फाइनेंशियल व्यवहार का पैटर्न बहुत स्पष्ट था. लेकिन रश्मि ने कभी उनको गंभीरता से नहीं लिया. डेटिंग के दिनों मंे सुनील हमेशा अपने परिवार की दौलत का बखान करता था. इसके प्रमुखता से दो अर्थ निकलते हैं- एक, कमजोर कॅरियर विकास और दूसरा यह कि परिवार पर आर्थिक निर्भरता. इसलिए अगर आपका पार्टनर आपके सामने अपने परिवार की दौलत पर घमंड करता है तो इसका सीधा सा यह मतलब है कि उसे अपने कौशल पर कम विश्वास है. इस कारण से उसका कॅरियर विकास प्रभावित हो सकता है. इसका सीधा अधिक प्रभाव यह होगा कि वह आर्थिक दृष्टि से अपने पैरेंट्स पर निर्भर रहे, जिससे बाद में महिला को काफी पाबंदियों व सीमाओं का सामना करना पड़ सकता है. आर्थिक रूप से अपने परिवार पर निर्भर होने के कारण सुनील हर समय यही उम्मीद करता कि रश्मि उसका खर्च उठाये व तोहफों आदि से उसकी जरूरतें पूरी करती रहे.

इस आदत से तंग बजट, कम बचत व ऋण में फंसने के संकेत मिलते हैं. अगर आपकी आय नियमित व महंगे गिफ्ट्स देने की अनुमति नहीं देती है तो न दें. अगर आप चादर से बाहर पैर फैलायेंगी तो आपका बजट गड़बड़ा जायेगा और आप बचत नहीं कर पायेंगी. उधार लेने से आप कर्ज के जाल में फंस जायेंगी या अपने लक्ष्य की पूर्ति नहीं कर पायेंगी. अगर आपका पार्टनर यह नहीं समझता है तो उसे समझाने का प्रयास करें. अगर तब भी उसकी समझ में न आये और इसका अर्थ ब्रेकअप करना हो तो ब्रेकअप कर लें.

अकसर यह भी होता कि रश्मि का क्रेडिट कार्ड प्रयोग करने से पहले सुनील उससे मालूम ही नहीं करता था, जो इस बात का संकेत था कि वह आर्थिक दृष्टि से लापरवाह व अपने पार्टनर पर निर्भर था. बिना अनुमति के अपने पार्टनर का क्रेडिट कार्ड प्रयोग करना न सिर्फ अनैतिक है बल्कि भविष्य के लिए यह संकेत भी देता है कि आपका पार्टनर लापरवाही से खर्च करता है या घर की आय में योगदान करने के लिए आर्थिक निर्भरता को प्राथमिकता देता है. रश्मि जिन चीजों पर खर्च करना पसंद करती वह सुनील को हमेशा बेकार लगतीं, जो इस बात का स्पष्ट संकेत था कि वह आर्थिक मामलों में केवल अपनी हुक्मरानी चाहता था.

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उस पार्टनर से सावधान रहें जो आपकी खरीदारी या आर्थिक निर्णयों की आलोचना करता है; क्योंकि वह या तो संबंध में तानाशाह बनना चाहता है या अपने पैसे व निर्णयों को लेकर असुरक्षित है. ध्यान रहे कि पैसे की समस्या अकसर व्यक्ति में गहरे मनोवैज्ञानिक मुद्दों का संकेत देती है. सुनील रश्मि की आधिकारिक पोजीशन का भी लाभ उठाता था, जिसका अर्थ यह होता है कि आर्थिक घोटाला किया जायेगा, कॅरियर संभावनाएं अच्छी नहीं हैं या भरोसा कम है. अगर पार्टनर आपकी पोजीशन का शोषण अपने लाभ के लिए कर रहा है, तो बेहतर यह है कि उसे छोड़ दिया जाये. वह आपको सिर्फ सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के रूप में देख रहा है. उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि संकट के समय में वह आपको अधर में छोड़ देगा. यह भी हो सकता है कि उसका अपना कॅरियर अच्छा नहीं है और वह तरक्की नहीं कर सकता.

कुछ अन्य प्रश्न भी हैं, जिनका संबंध रश्मि व सुनील से नहीं है, लेकिन डेटिंग के दौरान उन पर गौर करना चाहिए और उनके आधार पर ही तय करना चाहिए कि ब्रेकअप किया जाये या नहीं. आपका पार्टनर आर्थिक संकट में है. अगर यह स्थिति अस्थाई नहीं है और वह एक आर्थिक संकट के बाद दूसरे आर्थिक संकट में घिरता रहता है और उम्मीद करता है कि हर बार आप उसे बाहर निकालें तो आपको उससे ब्रेकअप कर लेना चाहिए क्योंकि डेटिंग के दौरान ब्रेकअप तलाक से कहीं अधिक आसान होता है. ज्यादा दौलत भी कभी-कभार समस्या बन जाती है; क्योंकि वह अपने साथ बहुत सी बुराइयां व आर्थिक गैर-जिम्मेदारियां भी लाती है. अगर पार्टनर के नैतिक मूल्य मजबूत हैं तो उसकी रईसी कोई समस्या नहीं है, डेटिंग जारी रखें. अगर नहीं, तो छोड़ दें.

अगर पार्टनर के पास पैसे का अभाव है तो निर्णय लेने से पहले उसके कॅरियर के स्टेज को समझें. अगर वह करियर आरंभ कर रहा है तो उसके पास पैसे की कमी हो सकती है और अगर वह कॅरियर के बीच में है और विकास के चिन्ह नजर नहीं आ रहे तो यह समस्या है. वह पैसा बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता या आपके पैसे पर निर्भर है तो ब्रेकअप के बारे में सोचें. अगर वह पैसे को लेकर लापरवाह है, उधार लेकर लौटना भूल जाता है. क्रेडिट कार्ड या फोन खोता रहता है. महंगी चीज खरीदने से पहले अपने अकाउंट बैलेंस को चेक नहीं करता. बेकार की चीजों पर खर्च करता है व बिल अदा करना भूल जाता है. इन मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेता, ऋण या कर्ज पर जीवन गुजारता है. निवेश के मामले में फिक्स्ड डिपाजिट से आगे नहीं सोचता …संक्षेप में उसके आर्थिक मूल्य आप जैसे नहीं हैं, तो उसे क्यों डेट कर रही हैं? छोड़ दो.

शादी के बाद हर लड़की को शर्मिंदा करते हैं ये 6 पल

शादी के बाद हर लड़की की जिंदगी में कई बदलाव होते हैं और वह एक बेटी से बहू में बदल जाती हैं. हालांकि उस घर में भी उसे बेटी बनाकर रखा जाता हैं, लेकिन कई ऐसे मौके आते हैं जब लड़की को ससुराल में एडजेस्ट करना पड़ता हैं.

इसी के साथ कई मौके ऐसे भी आ जाते है जब लडकियों के लिए Embarrassing होते हैं और उनके लिए शर्मिंदा होना पड़ता हैं. तो आइये जानते है शादीशुदा लड़कियों की जिंदगी के ऐसे पलों के बारे में.

1. मैं कुछ भी गड़बड़ी नहीं कर सकती

शादी के बाद नए लोगों के बीच लड़की गैस पास करते हुए काफी अनकंफर्टेबल महसूस करती है. इस काम के लिए या तो उसे सभी के सोने का इंतजार करना पड़ता है या वॉशरूम में जाना पड़ता है.

2. शादी के बाद किचन में पहला कदम

कई लड़कियों को खाना पकाने से काफी नफरत होती है और केवल सिंपल डिशेज बनाना ही जानती है. जब शादी के बाद पहली बार किचन में प्रवेश के दौरान मीठे में कुछ स्पैशल बनाने के कहा जाता है तो परेशानी बढ़ जाती है. यहीं चिंता लगी रही कि कहीं कुछ गड़़बड़ या स्वाद बुरा न हो जाए.

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3. संबंध बनाते समय

शादी के बाद कुछ लड़कियों को पहली बार संबंध बनाते समय काफी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है क्योंकि पहली बार किसी का स्पर्श उसके साथ हो रहा होता, ऐसे में वह खुद को अनकंफर्टेबल महसूस करती है.

4. लॉन्जरी धोते समय

शादी के पहले महीने में कुछ लड़कियां अपनी लॉन्जरी या अंडरगार्मेंट्स को धोने के बाद रात को रूम में ही उन्हें सुखाने लग जाती है क्योंकि वह नहीं चाहती कि कोई उससे लॉन्जरी के ब्रांड व कलर के बारे में सवाल करें. ये सब बाते उसे काफी शर्मिंदा करती हैं.

5. शादी की रात ससुराल को फेस करना

अपनी शादी की पहली रात हर लड़की को काफी शर्मिंदगी भरी लगती है क्योंकि इस दिन कजिन व रिश्तेदारों जॉक्स व ठिठोली कर रहे होते हैं. ज्यादा शर्मिंदगी तब महसूस होती है जब सासु मां कहती है कि जल्दी से पोता-पोती का मुंह दिखा दो और सामने पति बैठा होता है.

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6. पहला ड्रिंकिंग सीजन

अगर ससुराल वाले किसी फंक्शन या घर में एक-साथ ड्रिंक करते है तो अगले दिन उन्हें फेस करना मुश्किल हो जाता है. कई बार ड्रिंक करने के बाद आप या वो ऐसा कुछ बोल देते हैं, जिसके कारण एक-दूसरे से नजरे नहीं मिलाई जाती.

काउंसलिंग: सफल मैरिड लाइफ के लिए है जरूरी

ऋतु जिस की शादी तय हुए अभी 1 महीना ही हुआ था लेकिन फिर भी वह अंदर से खुश नहीं थी, क्योंकि उस के अनियमित पीरियड्स उसे परेशान जो किए हुए थे. वह अपना हाल किसी से बयां नहीं कर पा रही थी. वह अपने पति से भी मन से बात नहीं करती थी. एक दिन जब उस के पति ने उस की उदासी का कारण पूछा तो उस ने पूरा हाल सुना दिया. इस पर उस ने बिना देरी किए डाक्टर की सलाह ली.

आज दोनों हैप्पी मैरिड लाइफ बिता रहे हैं. ऐसा किसी के साथ भी न हो इसलिए प्रीमैरिटल और मैरिटल काउंसलिंग से संकोच न करें. आइए जानते हैं कोलकाता के पीजी हौस्पिटल के एक्स रेसिडेंट गायनाकोलौजिस्ट प्रोफेसर डा. एमएल चौधरी से कि क्यों जरूरी है प्रीमैरिटल व मैरिटल काउंसलिंग.

प्रीमैरिटल काउंसलिंग

1. भविष्य के लिए तैयार करे

किसी भी रिश्ते की नीव प्यार व विश्वास पर टिकी होती है और यह सब रिश्ते में तभी आ पाता है जब हम एकदूसरे को अच्छे से समझें. इस के लिए जरूरत है पहले से उन सब चीजों पर प्रकाश डालने की जो अकसर वैवाहिक जीवन में आती है. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए चीजों की समझ विकसित की जाती है, जिस से सोचने का नजरिया बदलने से जिंदगी आसान लगने लगती है.

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2. कम समय में बेहतर पल बिताने का मौका

प्यारे के रिश्ते में जब तक प्यार भरी बातें न हो तब तक रिश्ता स्ट्रौंग नहीं बन पाता. लेकिन पतिपत्नी दोनों के वर्किंग होने के कारण आज उन के पास एकदूसरे के साथ समय बिताने का समय नहीं होता, जिस से दूरियां बढ़ती हैं. ऐसे में काउंसलिंग से हम कम समय में कैसे क्वालिटी टाइम स्पेंड करें सीख पाते हैं.

3. घबराहट से राहत

अकसर शादी तय होने के बाद चाहे लड़का हो या लड़की यही सोचसोच कर घबराते रहते हैं कि हम रिश्ते पर खरे तो उतरेंगे न, हम एकदूसरे को खुश रख पाएंगे यही सोचसोच कर मन की घबराहट चेहरे पर झलकने लगती है. ऐसे में काउंसलिंग मदद करेगी कि आप घबराए नहीं बल्कि उसे फेस करना सीखें, भीतर से स्ट्रौंग बने.

4. प्रौब्लम्स का हल सुझाए

कई प्रौब्लम्स लड़कियां शादी से पहले अपने पार्टनर को बताना सही नहीं समझतीं और वही प्रौब्लम्स बाद में बड़ी बन जाती हैं. जैसे अनियमित पीरियड्स, पीसीओडी, ऐंट्रोपैटरिक सिस्ट आदि. जो न सिर्फ पीरियड्स के दौरान दर्द का कारण बनती हैं, बल्कि आगे चल कर इनफर्टिलिटी के लिए भी जिम्मेदार होती हैं. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए चीजों पर खुल कर बात करने से सही टाइम पर सही रास्ता मिल जाता है, जो वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने में सहायक है.

5. कौंफिडैंस को बढ़ाए

कई बार अनियमित पीरियड्स वगैरा के कारण चेहरे पर अनचाहे बाल उगने के साथ मुंहासे हो जाते हैं, जो कौंफिडैंस को कम करते हैं. चेहरे पर अनचाहे बालों के कारण पार्टनर के सामने खुल कर बात करने से डर लगता है और आप का व्यक्तित्व सामने नहीं आ पाता. इस के जरिए यह समझाने की कोशिश की जाती है कि भीतर की खूबसूरती व्यक्तित्व दर्शाने वाली होती है. साथ ही वे विकल्प भी बताए जाते हैं, जिस से इस समस्या से आप को निजात मिल सके.

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मैरिटल काउंसलिंग

6. समझाए रिश्ते का महत्त्व

शादी तय होने के बाद का समय हर कपल के लिए काफी बेहतरीन होता है, जिस में वे एकदूसरे के लिए हर समय तैयार रहते हैं. लेकिन शादी के कुछ महीनों बाद जीवन पटरी पर आने लगता है. यह बदलाव दोनों को ही अखरता है. जबकि काउंसलिंग के जरिए कपल को हकीकत से वाकिफ करवाया जाता है और यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि भले ही आप पूरे दिन में 1 घंटा साथ बिताएं लेकिन उस में आप अपना पूरा दिन शेयर कर लें. यानी साथ में बिताया यह समय आप को पूरे दिन के बराबर लगे.

7. एबौर्शन के संबंध में जानकारी

कई बार प्रीकोशन लेने के बावजूद भी गर्भ ठहर जाता है और हड़बड़ी में कपल एबौर्शन करवा लेते हैं, जो कौंप्लिकेशन लाने के साथ आगे चल कर उन्हें हमेशा के लिए बच्चे के सुख से भी वंचित रख सकता है. जबकि काउंसलिंग आप को ऐसी गलती करने से बचा सकती है, क्योंकि यह आप में सही व गलत की समझ विकसित करती है.

8. राइट टाइम टु कंसीव

उम्र बढ़ने के साथ मां बनने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. आज तो पैसा कमाने के चक्कर में लड़कालड़की शादी भी देरी से करते हैं. एक तो लेट मैरिज और उस के बाद देर से फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचना जीवनभर आप को निसंतान रख सकता है. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए समझाया जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ मां बनने के चांसेज भी कम होते जाते हैं. इसलिए अगर आप की शादी 27-28 साल की उम्र में हुई है तो कंसीव करने में देरी न करें.

9. सही समय पर सही निर्णय

सिस्ट, फौलेकल ट्यूब का बंद होना, अंडों का नहीं बनना आज महिलाओं में आम समस्या है. ऐसे में अगर कपल को सफलता नहीं मिलती तो वे निराश हो कर बैठ जाते हैं. जबकि काउंसलिंग के जरिए उन में पौजिटिविटी भर कर उन्हें सही जगह तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है ताकि वे संतान सुख से वंचित न रह सकें.

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पत्नी से परेशान, क्या करें श्रीमान

यों तो हमारा समाज पुरुषप्रधान समाज है और यही समझा जाता है कि पति ही पत्नियों को प्रताडि़त करते हैं, लेकिन ऐसी पत्नियों की संख्या भी कम नहीं है जिन्होंने पतियों की नाक  में दम कर रखा होता है.

पत्नियां किसकिस तरह पतियों को प्रताडि़त करती हैं और उन्हें पतियों से क्याक्या शिकायतें होती हैं:

कई पत्नियों को तो पतियों से इतनी शिकायतें होती हैं कि अगर उन्हें रूप में कामदेव, मर्यादा में राम और प्रेम में कृष्ण भी मिल जाए तो भी जरा सा भी मौका मिलते ही सखियों से, पड़ोसियों से पतिपुराण शुरू हो जाएगा.

उच्चशिक्षित व उच्च पद पर आसीन पत्नियां तो नजरों व हावभाव से भी पतियों का अपमान कर देती हैं. मसलन, उन के अंगरेजी के उच्चारण, रहनसहन, पहननेओढ़ने के तरीकों व पसंद का सब के सामने मजाक उड़ा देती हैं और पति बेचारा अपमान का घूंट पी कर रह जाता है और अंदर ही अंदर अपना आत्मविश्वास खोने लगता है. बाहरी तौर पर कुछ दिखाई न देने पर भी पति के लिए ये सब बहुत कष्टदायक होता है.

मानसिक प्रताड़ना

सोनाली उच्च शिक्षित है और उस का पति नीरज भी बहुत अच्छी नौकरी पर है. पर सीधेसाधे नीरज के व्यक्तित्व से यह सब नहीं झलकता. वह बात करने में भी बहुत सीधा है. उस के कुछ भी गड़गड़ बोलने या गड़बड़ हरकत करने पर सोनाली सब के सामने नाटकीय अंदाज में व्यंग्य से कह देती है कि भई माफ करना मेरे पति को, उन की तो यह आदत है. आदत से मजबूर हैं बेचारे. सुनने वाले कभी उसे तो कभी उस के पति को देखते रह जाते.

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पत्नियां कई बार पतियों को मानसिक रूप से वे सब करने के लिए मजबूर कर देती हैं, जो वे बिलकुल नहीं करना चाहते. पति के मातापिता, भाईबहन के विरुद्ध बोलना, उन की छोटी से छोटी बात को बढ़ाचढ़ा कर बोल कर पति के कान भरना, घर से अलग हो जाने के लिए मजबूर करना आदि. लेकिन इन्हीं बातों में वे मायके में अपने भाईभाभी या बहनों के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश करती हैं या उन की बातों को छिपा लेती हैं, पर ससुराल की बातों को नजरअंदाज करना ज्यादातर पत्नियों को नहीं आता.

झूठे मुकदमे की धमकियां

आजकल की आधुनिक नवयुवतियों ने तो हद ही कर डाली है. अब तो पत्नी के पक्ष में कई कानून बन गए हैं. इन कानूनों का फायदा ज्यादातर उन्हें नहीं मिल पाता जिन्हें वाकई उन की जरूरत होती है. इन कानूनों को हथियार बना कर कई मगरूर पत्नियां पति को कई तरह से प्रताडि़त करती हैं. इन अधिकारों के बल पर परिवारों में बड़ी तेजी से बिखराव आ रहा है. जो स्त्री दया, त्याग, नम्रता, भावुकता, वात्सल्य, समर्पण, सहनशीनता का प्रतिरूप थी वही एक एकल परिवार की पक्षधर हो कर उसी को अपना आदर्श मान रही है.

सारे कानून एकपक्षीय हैं. पति ने तलाक के पेपर पर दस्तखत नहीं किए तो उस पर दहेज या घरेलू हिंसा का केस दर्ज कर उसे फंसा लिया जाता है. फिर तो मजबूरन दस्तखत करने ही पड़ते हैं. अगर पत्नी की ज्यादातियों से तंग आ कर पति पत्नी को तलाक देना भी चाहे तो उसे अच्छीखासी रकम पत्नी की देनी पड़ती है. कई बार यह उस के बूते से बाहर की बात होती है.

हालांकि ऐसी भी पत्नियां हैं जो अपनी सहनशक्ति व कोमल स्वभाव से टूटे घर को भी बना देती हैं, पर उस की संख्या कम है. पति को बारबार टोकना, प्रताडि़त करना, मानसिक कष्ट देना जिंदगी के प्रति पति की खिन्नता को बढ़ाएगा. अंदर ही अंदर उस के आत्मविश्वास को तोड़ेगा, जिस से उस का व्यक्तित्व प्रभावित होगा.

तरहतरह की शिकायतें

इतिहास गवाह है कि उच्च शिक्षित पतियों ने अनपढ़ व कम शिक्षित पत्नियों के साथ भी निर्वाह किया, लेकिन उच्चशिक्षित व उच्च पद पर आसीन पत्नियां, यदि पति उन के अनुरूप नहीं है तो बरदाश्त नहींकर पातीं. वे सर्वगुण संपन्न पति ही चाहती हैं. पत्नियों को पतियों से तरहतरह की शिकायतें होती हैं और वे पति को अपनी बात मानने के लिए मजबूर करती हैं.

पौराणिक व ऐतिहासिक उदाहरणों से पता चलता है कि कैसे उस समय भी पत्नियां सामदामदंडभेद अपना कर पति से उस की इच्छा के विरुद्ध अपनी बात मनवा लेती थीं और कालांतर में उन की जिद्द और महत्त्वकांक्षा पति की मृत्यु और कुल के विनाश का कारण बनती थी. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं इतिहास में जहां पत्नियों की महत्त्वकांक्षाओं ने राज्यों की नींवें हिला दीं और इतिहास की धारा मोड़ कर रख दी.

पत्नियों की अनगिनत शिकायतों का बोझ उठातेउठाते पति बूढ़े हो जाते हैं. मानव साधारण घर से था. लेकिन मेधावी मानव आईआईटी से इंजीनियरिंग और आईआईएम अमहमदाबाद से एमबीए कर के एक प्रतिष्ठित मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर पदस्त हो गया. हालांकि सफलताओं ने, वातावरण ने उसे काफी कुछ सिखा दिया था, पर उस की साधारण परवरिश की छाप उस के व्यक्तित्व पर नजर आ ही जाती. उस की यह कमी उस की पत्नी जो देहरादून के प्रसिद्ध स्कूल से पढ़ी थी, को बरदाश्त नहीं होती थी. मानव के अंगरेजी के उच्चारण से तो उसे सख्त चिढ़ थी. जबतब कह देती, ‘‘तुम तो अंगरेजी बोलने की कोशिश मत किया करो मेरे सामने या फिर पहले ठीक से अंगरेजी सीख लो.’’

सरेआम बेइज्जती

राखी का अपने पति की पसंद पर कटाक्ष होता, ‘‘क्या गोविंदा टाइप कपड़े पसंद करते हो…वह तो कम से कम फिल्मों में ही पहनता है…तुम्हें तो कपड़े पसंद करने के लिए साथ ले जाना ही बेकार है.’’

रोहन जब सोफे पर टांग पर टांग रख कर बैठता तो पैंट या लोअर ऊपर चढ़ जाए या अस्तव्यस्त हो जाए वह परवाह नहीं करता था. वैसा ही अस्तव्यस्त सा बैठा रहता. उस की पत्नी मानसी को उस का नफासत से न बैठना घोर नागवार गुजरता. उस की मित्रमंडली की परवाह किए बिना बारबार उसे आंखें दिखाती रहती कि ठीक से बैठो. उस का ध्यान बातों में कम व रोहन की हरकतों पर अधिक होता.

नमन औफिस से आते ही जूतेमोजे एक तरफ फेंक कर बाथरूम में घुस जाता और फिर चप्पलों सहित पैर धो कर छपछप कर पूरे फर्श को गीला करता हुआ सोफे में धंस कर अधलेटा हो जाता. यह देख कर उस की पत्नी मीना का दिमाग खराब हो जाता और फिर उन में झगड़ा शुरू हो जाता.

इस के अलावा भी कई शिकायतें हैं उसे पति से. पति का अलमारी के कपड़े बेतरबीत कर देना, गीला तौलिया बिस्तर पर डाल देना, गंदे हाथों से कुछ भी खा लेना, खाना खातेखाते जूठे हाथ से फोन पकड़ लेना, जूठे हाथ से डोंगे से दालसब्जी निकाल लेना आदि.

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सामाजिक प्रतिष्ठा पर आंच

यदि पति का व्यक्तित्व तन और मन से यदि असंतुलित होगा तो पत्नी भी इस से अप्रभावित नहीं रहेगी. यदि पति की सामाजिक प्रतिष्ठा पर आंच आएगी तो मान पत्नी का भी न होगा. यदि बच्चे पिता का सम्मान नहीं करेंगे तो कालांतर में मां का भी नहीं करेंगे.

पति को बदलने व सुधारने की कोशिश में ही जीवन की खुशियों का गला घोट देना कहां की समझदारी है. जीवन तो एकदूसरे के अनुसार ढलने में है न कि ढालने में. पति कोई दूध पीता बच्चा है जिस की आदतें पत्नी अपने अनुसार ढाल लेगी? किसी का भी व्यक्तित्व एक दिन में नहीं बनता. अगर कोई बदलाव आएगा भी तो बहुत धीरेधीरे और वह भी आलोचना कर के या उस का मजाक उड़ा कर नहीं. आलोचना नकारात्मकता को बढ़ावा देती है.

कमजोर होता है मनोबल

आज विवाहित स्त्रियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. कहा जाता है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है. लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में यह बात भी सत्य है कि हर सफल स्त्री के पीछे एक पुरुष का हाथ होता है. पति के प्यार, संरक्षण, सहयोग के बिना कोई भी पत्नी अपने क्षेत्र में मनचाही सफलता प्राप्त नहीं कर सकती.

पति को भी छोटीमोटी बातों के कारण अपना आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए. आत्मविश्वास खोने से मनोबल कमजोर होता है. यदि पति को लगता है कि उस के अंदर वास्तव में कुछ ऐसी आदतें हैं, जो उन के सुखी वैवाहिक जीवन में दीवार बन रही है, तो खुद को बदलने की कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है.

 

जब टूटे रिश्ते चुभने लगें

शादी का रिश्ता प्यार और विश्वास का होता है. दो लोग मिल कर एक जीवन शुरू करते हैं और एकदूसरे का सहारा बनते हैं. मगर जब रिश्तों में प्यार कम और घुटन ज्यादा हो तो ऐसे रिश्ते से अलग हो जाना ही समझदारी मानी जाती है. मगर अलग हो जाने के बाद की राह भी इतनी आसान नहीं होती.

पतिपत्नी के बीच रिश्ता टूटने के बाद अक्सर महिलाओं को ज्यादा समस्याएं आती हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आर्थिक जरूरतों के लिए महिलाएं अमूमन अपने पुरुष साथी पर निर्भर होती हैं. विवाद की स्थिति में उन्हें आर्थिक तंगी से बचाने के लिए कानून में कई प्रावधान किए गए हैं. इन्ही में एक मुख्य है गुजाराभत्ता.

हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 में पति और पत्नी दोनों को मैंटीनैंस का अधिकार दिया गया है. वहीं स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के तहत केवल महिलाओं के पास यह हक है.

पति से अलग होने के बाद महिला को पति से अपने और बच्चे के पालनपोषण के लिए गुजारेभत्ते के तौर पर हर माह एक निश्चित रकम पाने का हक़ कानून द्वारा दिया गया है. यदि महिला कमा रही है तो भी उसे गुजाराभत्ता दिया जाएगा. यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि वह सम्मान के साथ अपना जीवनयापन कर सके.

पत्नी के नौकरी न करने पर विवाद की स्थिति में कोर्ट महिला की उम्र, शैक्षिक योग्यता, कमाई करने की क्षमता देखते हुए गुजाराभत्ता तय करता है. बच्चे की देखरेख के लिए पिता को अलग से पैसे देने पड़ते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने मासिक गुजारेभत्ते की सीमा तय की है. यह पति की कुल सैलरी का 25 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है. पति की सैलरी में बदलाव होने पर इसे बढ़ाया या घटाया जा सकता है.

मगर कई बार देखा जाता है कि पति गुजाराभत्ता यानी मैंटीनैंस देने में आनाकानी करते हैं और किसी भी तरह यह रकम कम से कम कराने की जुगत में लगे रहते हैं. वे कोर्ट के आगे साबित करने का प्रयास करते हैं कि उन की आय काफी कम है. वैसे भी रिश्तों में आया तनाव इंसान को एकदूसरे के लिए कितना संगदिल बना देता है इस की बानगी हम अक्सर देखते ही रहते हैं.

हाल ही में हैदराबाद का एक मामला भी गौर करने योग्य है. एक डॉक्टर ने अपनी अलग रह रही पत्नी को 15,000 रुपये प्रति माह गुज़ाराभत्ता देने के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. लेकिन जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से पारित उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया,

ग़ौरतलब है कि दोनों की शादी 16 अगस्त, 2013 में हुई थी और दोनों का एक बच्चा भी है. बच्चे के जन्म के बादपतिपत्नी के बीच कुछ मतभेद पैदा हुए. पत्नी ने घरेलू हिंसा के मामले के साथ ही मैंटीनैंस की अरजी डाली. पत्नी ने दावा किया था कि उस का पति प्रति माह 80,000 रुपये का वेतन और अपने घर और कृषि भूमि से 2 लाख रुपये की किराये की आय प्राप्त कर रहा है . उस ने अपने और बच्चे रखरखाव लिए 1.10 लाख रुपये के मासिक की मांग की .
फैमिली कोर्ट ने मुख्य याचिका के निपटारा होने तक पत्नी और बच्चे को प्रति माह 15,000 रुपये रखरखाव का देने का आदेश दिया . मगर पति ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई.

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या आज के समय में सिर्फ 15,000 रूपए में बच्चे का पालनपोषण संभव है? पीठ ने लोगों की ओछी मनोवृति की ओर इशारा करते हुए कहा कि इन दिनों जैसे ही पत्नियां गुजाराभत्ते की मांग करती हैं तो पति कहने लगते हैं कि वे आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं या कंगाल हो गए हैं, यह उचित नहीं.

शादीब्याह के मामलों में हमारे देश में अजीब सा दोगलापन देखा जाता है. जब रिश्ते की बात होती है तो लड़के की आय और रहनसहन को जितना हो सके उतना बढ़ा कर बताया जाता है. लेकिन जब शादी के बाद खटास आ जाए और लड़के को अपनी पत्नी से छुटकारा पाना हो तो स्थिति उलट जाती है. कोर्ट में पति खुद को अधिक से अधिक मजबूर और गरीब साबित करने की कोशिश में लग जाता है. यह दोहरी मानसिकता कितनी ही महिलाओं व उन के बच्चों के लिए पीड़ा का सबब बन जाती है.

दिल्ली के रोहिणी स्थित अदालत में (नवंबर 10 2020 ) इसी से संबंधित एक केस की सुनवाई हुई. शिकायत कर्ता एक तीन साल के बच्चे की मां है. वह पति से अलग रहती है और अपने मातापिता के खर्च पर भरणपोषण कर रही है. उस का पति भोपाल का एक बड़ा कारोबारी है. उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है.

लेकिन जब पत्नी व अपने बच्चे को गुजाराभत्ता देने की बारी आई तो अपनी आर्थिक स्थिति खराब बताते हुए प्रतिवादी पति ने अपने नाम पर लिए गए कम्पयूटर व लैपटॉप भी अपनी मां के नाम पर कर दिए. यहां तक की जिस कंपनी का मालिक पहले खुद था वह कंपनी भी उस ने अपनी मां के नाम पर कर दी ताकि पत्नी व तीन साल के बच्चे को गुजाराभत्ता देने से बच सके. उस ने तुरंत कंपनी से इस्तीफ़ा दे दिया और अब उस के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं है.

अदालत ने उस के इस आचरण पर अचंभित होते हुए कहा कि लोगों की इस दोहरी मानसिकता को क्या कहा जाए. अपने ही बच्चे का खर्च उठाने को तैयार नहीं. बाद में अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी व बच्चे को निचली अदालत द्वारा निर्धारित गुजाराभत्ते की रकम का भुगतान करे.

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने इस मामले में (फरवरी 2020) महिला व उस के अबोध बच्चे के लिए 15 हजार रुपये का अंतरिम गुजाराभत्ता देने का निर्देश दिया था. पति ने इस आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी थी. सत्र अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.

इस तरह के मामले दिखाते हैं कि कुछ लोगों के लिए रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती. उन के लिए रूपए से बढ़ कर कुछ नहीं. रूपए बचाने के लिए ये लोग ईमानदारी ताक पर रख कर कितना भी नीचे गिर सकते हैं. इस का ख़ामियाज़ा बच्चे को भुगतना पड़ता है. इन बातों को ध्यान में रख कर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के मामले में गुजाराभत्ता और निर्वाहभत्ता तय करने के लिए अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि दोनों पार्टियों को कोर्ट में कार्यवाही के दौरान अपनी असेट और लाइब्लिटी का खुलासा अनिवार्य तौर पर करना होगा. साथ ही अदालत में आवेदन दाखिल करने की तारीख से ही गुजाराभत्ता तय होगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजाराभत्ते की रकम दोनों पार्टियों के स्टेटस पर निर्भर है. पत्नी की जरूरत, बच्चों की पढ़ाई, पत्नी की प्रोफेशनल स्टडी, उस की आमदनी, नौकरी, पति की हैसियत जैसे तमाम बिंदुओं को देखना होगा. दोनों पार्टियों की नौकरी और उम्र को भी देखना होगा.इस आधार पर ही तय होगा कि महिला को कितने रूपए मिलने चाहिए.

कई दफा ऐसा भी होता है कि पति के सामर्थ्य से ज्यादा गुजारेभत्ते की मान कर दी जाती है. ऐसे में पति अगर यह साबित कर दे कि वह इतना नहीं कमाता कि खुद का ख्याल रख सके या पत्नी की अच्छी आमदनी है या उस ने दूसरी शादी कर ली है, पुरुष को छोड़ दिया या अन्य पुरुष के साथ उस का संबंध है, तो उन्हें मैंटीनैंस नहीं देना होगा. खुद की कम इनकम या पत्नी की पर्याप्त आमदनी का सबूत पेश करने से भी उन पर इंटरिम मैंटीनैंस का भार नहीं पड़ेगा.

फरवरी 2018 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने गुजारेभत्ते को ले कर ऐसा ही एक आदेश जारी करते हुए यह स्पष्ट किया था कि यदि पत्नी खुद को संभालने में सक्षम है तो वह पति से गुजारेभत्ते की हक़दार नहीं है. याची के पति ने हाईकोर्ट को बताया था कि याचिकाकर्ता सरकारी शिक्षक है और अक्तूबर 2011 में उस का वेतन 32 हजार रुपये था. इस आधार पर कोर्ट ने उस की गुजारेभत्ते की मान ख़ारिज कर दी.

जरुरी है कि रिश्ता टूटने के बाद भी एकदूसरे के प्रति इंसानियत और ईमानदारी कायम रखी जाए. खासकर जब बच्चे भी हों. क्योंकि इन बातों का असर कहीं न कहीं बच्चे के भविष्य पर पड़ता है.

बेबी करें प्लान लेकिन इन बातों का रखें ध्यान

शाहनवाज

फेसबुक पर स्क्रोल करते करते मुझे मेरे एक बहुत पुराने दोस्त राहुल की आई.डी. नजर आई.
पहली से ले कर 7वी क्लास तक वह मेरे साथ मेरी ही क्लास में साथ पढता था. मैंने उस की
आई.डी. ओपन की और उस की फोटो को जूम कर के बड़े गौर से परखा, की यह वाकई में
राहुल है या मेरी नजर का धोखा है. हां, ये मेरा दोस्त राहुल ही था. दरअसल 8वी क्लास में
राहुल के परिवार वाले दिल्ली के लोनी बॉर्डर पर शिफ्ट हो गए थे. ये बात रही होगी 2007 की.
उस समय न तो हमारे घर में फोन था और न ही राहुल के घर, जिस से हम एक दुसरे के
संपर्क में बने रह सकें.

आई.डी. में फोटो कन्फर्म कर लेने के बाद मैंने उसे बिना हीच किचाए मेसेज कर दिया. “हेल्लो,
कैसा है मेरे भाई? मुझे पहचाना?” 5 मिनट बाद (जिस पर मुझे यकीन है की उस ने भी मेरी
आई.डी. खोल कर मेरा फोटो देखने में और पहचानने में समय लगाया होगा) उस का रिप्लाई
आया, “हा भाई, क्यों नहीं पहचानूंगा तुझे. यार इतने सालों बाद बात हो रही है.” सच में इतने
सालों बाद राहुल से बात कर मुझे बड़ा अच्छा लगा, क्योंकि स्कूल के दिनों में राहुल ही मेरे सब
से नजदीकी दोस्तों में से एक हुआ करता था. थोड़ी देर चैट में बात करने के बाद हम दोनों ने
एक दुसरे के मोबाइल नंबर एक्सचेंज किये. और मैंने उसे कॉल कर बात की.

राहुल से बातचीत में उस ने बताया की वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद अब गुडगाँव में
किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा है. उस ने शादी भी कर ली है और वह अपने
पार्टनर के साथ अब लोनी बॉर्डर नहीं बल्कि दिल्ली के द्वारका सेक्टर 21 में शिफ्ट हो गया है.
कुछ देर और बात करने के बाद उस ने मुझे अपने घर पर इंवाइट किया. और बोला की अगर
मैं नहीं आया तो वह फिर कभी मुझ से बात नहीं करेगा. दोस्ती तो बचानी ही थी, इसीलिए मैंने
राहुल को भरोसा दिलाया की मैं जल्द ही उस से मिलने उस के घर आऊंगा.

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समय निकाल कर मैं राहुल के घर, अपने हाथ में छोटा सा फूलों का गुलदस्ता और बच्चों के
लिए गिफ्ट्स ले कर, उस के बताए हुए एड्रेस पर पहुंच गया. घर पर राहुल और कल्पना (राहुल
की पत्नी) ही थे. मैंने अपने हाथ का सारा सामान राहुल और कल्पना के हाथ में थमाया और
राहुल के गले मिला. मेरे गिफ्ट्स देख राहुल ने कल्पना को देखा और कल्पना ने राहुल को.
दोनों साथ में मुस्कुराए और मेरा स्वागत किया. उन की मुस्कराहट देख मैं अपने मन ही मन
सवाल करने लगा की कही मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी. बच्चो वाले गिफ्ट्स तो मैं ले आया
था लेकिन घर में एक भी बच्चा नहीं दिखाई दिया. अंततः मुझे उन की मुस्कराहट का अंदाजा
लग गया, की राहुल और कल्पना को अभी कोई बच्चा नहीं था.

इतने सालों बाद मिले थे, इसीलिए हम तीनों एक साथ बैठ कर मैं और राहुल अपने स्कूल के
पुराने दिनों को याद करने लगे. कुछ देर की बात के बाद कल्पना खाना बनाने के लिए किचन
की तरफ चली गई और रह गए बस मैं और राहुल. मौका देख कर मैंने राहुल से धीमी आवाज
में फुसफुसाया, “यार गलती से मैं बच्चों के गिफ्ट्स ले आया तुम्हारे लिए, हालांकि मैंने पूछा भी
नहीं लेकिन मुझे लगा की शायद तुम्हारे घर बच्चा होगा. इस के लिए बुरा मत मानियो मेरे
भाई.”

राहुल ने बड़े ही हलके अंदाज में, मेरे कंधे पर अपना हाथ रख मुझे भरोसा दिलाया, “अरे यार
कैसी बात कर रहा है तू भी, भला इस के लिए भी कोई बुरा मानता है.” यह बोल कर राहुल ने
नीचे देखते हुए चिंतित भरे स्वर में बताया की कल्पना से उस की शादी हुए 2 साल हो गए.
और पिछले 3 साल से वह गुडगाँव में अपनी इसी मौजूदा कंपनी में काम कर रहा है. वें दोनों ही
बच्चे के लिए राजी तो हो गए है लेकिन 2020 के मार्च के महीने से लगे लॉकडाउन की वजह
से उन के बने सारे प्लान्स गड़बड़ा गए है. एक तो कभी भी नौकरी चले जाने का डर और वहीँ
दूसरी तरफ दुनिया भर के खर्चे. ऐसे में राहुल और कल्पना ने बच्चे के प्लान को कुछ समय के
लिए और टाल दिया है.

राहुल ने बताया की वह अभी जिस फ्लैट में रह रहा है, वह उस ने अपनी कंपनी से ही लोन
लेने के बाद ख़रीदा है. लोन की कई किश्ते चुकाने के बाद अभी भी 10 लाख रूपए कंपनी को
लौटाने हैं. एक तरफ राहुल के सर दुनिया भर का खर्चा और कर्जा. वहीं दूसरी तरफ राहुल और
कल्पना, दोनों के ही घर वालों का बच्चा ले लेने का दबाव. इन से राहुल बड़ा ही परेशान है.
राहुल अपने बच्चे की परवरिश में किसी भी तरह की कमी नहीं रखना चाहता. वह अपने बच्चे
के जीवन के साथ किसी भी तरह का एडजस्टमेंट नहीं चाहता. इसीलिए राहुल अब नए साल का

बेसब्री से इंतजार कर रहा है. राहुल ने बताया की साल 2020 पूरी दुनिया के लोगों के लिए
कलेश बना है. क्या पता साल 2021 में राहुल के जीवन में कुछ ख़ास हो. इसी का ही इंतजार
राहुल और कल्पना को है.

राहुल बड़ी धीमी आवाज में फुसफुसाया, “2020 का यह साल हमारी इच्छाओं के मरने का साल
है. दुनिया में सिर्फ एक नया जीवन जन्म नहीं लेता, बल्कि उस से पहले कई जिम्मेदारियां भी
जन्म लेती हैं. इस कलह भरे साल में जब किसी का कुछ अच्छा नहीं हुआ तो मेरे साथ कुछ
अच्छा हो जाएगा इस की कोई गारंटी नहीं है.”

राहुल और कल्पना की यह समस्या सिर्फ इन की ही नहीं है बल्कि साल 2020 से हताश और
निराश हुए उस हर जोड़े की है जो अपने घर के आँगन में बच्चे की किलकारियां सुनना चाहते थे
लेकिन दुनिया भर की परेशानियों के चलते वें अपनी इच्छाओं को आगे के लिए पोस्पोन कर रहे
हैं. आगे इस लेख में इन्ही चीजो के संबंध में चर्चा है की मौजूदा स्थिति कैसी है और आप यदि
आने वाले समय में बेबी करने का प्लान कर रहे हैं तो आप को किन किन चीजो को ध्यान में
रखना चाहिए.

क्या है मौजूदा स्थिति?

आम लोगों की स्थिति मेरे दोस्त राहुल और कल्पना के जीवन से कुछ अलग नहीं है. मजदुर
वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के लोगों को इस साल बेहद नुक्सान झेलना पड़ा है.
कोरोना के कारण देश में बिना किसी प्लानिंग के देशव्यापी लॉकडाउन और उस के कारण लोगों
पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव का साक्षी हर कोई है. सरकार की अनियोजित लॉकडाउन ने 80%
आबादी की खून पसीना एक कर बचाए हुए पैसे को किसी जोंक की तरह चूसने का काम किया
है.

ऐसे में लोगों के बने बनाए प्लान पर गहरा असर पड़ा. जो लोग अपने किसी भी काम के लिए
लॉकडाउन से पहले लोन ले चुके थे, उन्हें हर हालत में अपने लोन की किश्ते चुकानी थी. साल
2020 लोगों के बढ़ते हुए जीवन में एक साल का रुकावट बन कर सामने आया. जिस में कमाई
तो ‘नील बटे सन्नाटा’ थी लेकिन खर्चे ‘दिन दुगने और रात चौगुने’. ऐसी स्थिति में यदि किसी
जोड़े ने इस साल की शुरुआत में अपने मन में बेबी करने का प्लान किया था, उन्होंने अपनी

इच्छाओं को अगले साल के लिए स्थगित कर दिया. मेरे दोस्त राहुल का उदाहरण उन में से
एक है.

बेबी करने से पहले इन बातों का ध्यान रखना है बेहद जरुरी

होने वाले खर्चे की प्लानिंग जरुरी:

बच्चे की प्लानिंग करने से पहले आम परिवार शायद इस विषय पर सब से अधिक सोच विचार करते हैं. चाहे वह किसी भी वर्ग का व्यक्ति क्यों न हो, महिला की प्रेगनेंसी के दौरान होने वाला खर्चा आम दिनों के खर्चे की तुलना में ज्यादा ही होता है. प्रेगनेंसी के दौरान महिला को किसी भी समय डॉक्टर को दिखाने की जरुरत पड़ सकती है.

इस के अलावा रेगुलर चेक-अप, मेडिकल टेस्ट, दवाइयां इत्यादि तो अनिवार्य (कम्पलसरी) हैं ही.
ऐसे में घबराने की नहीं बल्कि इन विषयों के संबंध में सोचने विचारने की जरुरत है. एक अच्छी
प्लानिंग का अंजाम भी अच्छा ही होता है.

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अकेले नहीं, दोनों की सहमती जरुरी:

होने वाला बच्चा सिर्फ मां या फिर सिर्फ पिता की जिम्मेदारी नहीं बल्कि दोनों की ही बराबर की जिम्मेदारी हैं. इसीलिए यह जरुरी है की बच्चे की प्लानिंग सिर्फ अकेले न करें बल्कि इस में दोनों की ही सहमती होना बेहद जरुरी है. कई बार यह देखा गया है की किसी एक व्यक्ति के दबाव में बच्चे को जन्म देने से उस बच्चे के प्रति व्यवहार में फर्क पड़ता है. इसीलिए यह सिर्फ एक का फैसला नहीं होना चाहिए क्योंकि बच्चे की
परवरिश में माँ और पिता दोनों का ही योगदान होता है.

डॉक्टर की सलाह से होगा फायदा:

यदि जोड़े ने आपस में बच्चा करने की सहमती पर विचार कर लिया है तो इस के बाद जरुरी है की डॉक्टर से मिल कर इस विषय पर बात कर ली जाए. डॉक्टर स्वस्थ प्रेगनेंसी से पहले जोड़े के कुछ शुरूआती जांच करेंगे जिस में प्रेगनेंसी से पहले महिला का उपयुक्त वजन, स्वस्थ बच्चे के लिए महिला के स्वस्थ शरीर का होना इत्यादि शामिल होगा. और भी कई तरह की सलाह डॉक्टर जोड़े को देते हैं जिस से एक स्वस्थ बच्चे के जन्म में बड़ी सहायता मिलती है. इसीलिए डॉक्टर की सलाह बेहद जरुरी है.

महिलाओं की फिटनेस और मानसिक स्वास्थ दोनों का रखे खास ख्याल:

हेल्दी बच्चे के लिए प्रेग्नेंट महिला का हेल्दी होना भी उतना ही जरूरी है. सिर्फ यही नहीं बच्चे की प्लानिंग के लिए जरूरी है कि कपल शारीरिक ही नहीं मानसिक तौर पर भी तैयार रहें. यदि स्वास्थ से सम्बंधित समस्या है तो उस का इलाज बच्चे की प्लानिंग से पहले कर लेना जरुरी है. वहीं दूसरी ओर
पुरुष की तुलना में महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार हों
क्योंकि मां बनने के दौरान महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा काफी कुछ सहना पड़ता है और कई
अनचाही परिस्थितियों के लिए तैयार रहना पड़ता है. इसीलिए फिटनेस और मानसिक स्वास्थ
दोनों के लिए वें डॉक्टर से भी बात कर सकते हैं.

तनाव से रहे कोसों दूर:

एक स्वस्थ बच्चे की कामना के लिए ये जरुरी है की बच्चे को अपने गर्भ में 9 महीनों तक रखने वाली महिला या अपने पार्टनर का बेहद अच्छे से रखा जाए. तनाव के संबंध में बस एक बात जान लेना जरुरी है की तनाव होने परशरीर पर खाया हुआ खाना नहीं लगता. या कई स्थितियों में ऐसा होता है की खाना खाया ही नहीं जाता. और ये चीज किसी भी गर्भवती महिला और उस के बच्चे के लिए बेहद ही खतरनाक है. इसीलिए ये जरुरी है की महिला खुद किसी भी चीज की टेंशन लेने से बचे और इस के साथ पुरुष पार्टनर की यह जिम्मेदारी है की वह अपने पार्टनर को किसी भी तरह के टेंशन से दूर रखे.

इन चीजो को कहे ना:

कई रिसर्च में यह सामने आया है कि किसी भी तरह के नशे के सेवन और और गर्भवती होने की संभावनाओं में कमी के बीच सीधा संबंध है. सिगरेट में पाए जाने वाले टॉक्सिन से महिलाओं के ऐग्स प्रभावित होते हैं. इस के अलावा फर्टिलाइजेशन और इम्प्लांटेशन की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है. महिला अगर चाय या कॉफी की अधिक शौकीन हैं तो इन पे पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए क्योंकि इन में कैफीन की मात्रा अधिक होती है. जो नुकसान पहुंचा सकती है. और ऐसा भी बिलकुल नहीं है की इन चीजों का इस्तेमाल केवल महिलाओं को बंद करना चाहिए, बल्कि पुरुषों को भी बच्चे की अच्छी सेहत के लिए इन सभी के सेवन से बचना चाहिए. इसीलिए एल्कोहोल, स्मोकिंग और कैफीन का इस्तेमाल करना छोड़ दें तो बेहतर होगा.

यदि दूसरा बेबी कर रहे हैं प्लान:

यदि आप दूसरा बेबी प्लान कर रहे हैं तो पहले और दुसरे बच्चे के बीच कम से कम 3-4 सालों का गैप बना कर रखें. ये जच्चा और बच्चा दोनों के लिए ही फायदेमंद है. दुसरे बच्चे के लिए महिला का शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट होना बेहद जरुरी है. दुसरे बच्चे की प्लानिंग में अपनी परिवार की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखना जरुरी है.

यदि आप जॉब करते हैं और अपने पार्टनर की सहमती से दूसरा बच्चा प्लान कर रहीं हैं तो ये प्लानिंग बेहद गंभीर और हर आयामों को ध्यान में रख कर करना चाहिए. जिस से पहले और दुसरे बच्चे की परवरिश में किसी तरह की कोई कमी न हो. पहले बच्चे की परवरिश के लिए परिजनों का सपोर्ट जरुरी है इसीलिए दुसरे बच्चे के बारे में सोच रहे हैं तो परिजनों की सलाह लेना न भूलें.

यदि आप 30 साल से ऊपर हैं तो:

उम्र बढ़ने के साथ-साथ महिला की बॉडी से एग्स खत्म होने लगते हैं जिसके कारण गर्भधारण करने में दिक्क्त आती है। इसके साथ ही 30 साल की उम्र के बाद महिला की बॉडी में एग्स अनहेल्थी होने लगते हैं जिसकी वजह से ज़्यादा उम्र में कंसीव करने से माँ और बच्चे दोनों को परेशानी हो सकती है. यदि आप गर्भनिरोधक गोलियों पर हैं, तो गर्भवती होने का प्रयास शुरू करने से पहले कुछ महीनों के लिए इसका उपयोग करना बंद कर दें.

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प्रेगनेंसी से पहले धूम्रपान और शराब पीने से बचें….

अपने साथी को धूम्रपान और शराब पीने से रोकने के लिए कहें क्योंकि यह पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या को कम कर सकता है और इस उम्र में तो वैसे भी पुरुषों में शुक्राणुओं और महिलाओं में अंडाणुओं की संख्या घटने लगती है. इस उम्र में प्रेग्नेंट होने से पहले एक्सपर्ट डॉक्टर की सलाह जरुर ले, जो की बहुत मददगार साबित होगा.

जानें वो 9 बातें जिन्हें पुरुषों को भी समझना चाहिए

आज भले ही महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हों, पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगी हों, लेकिन कुछ मामलों में आज भी उन की वही धारणा है, जो पहले हुआ करती थी, जैसे पैसे को ही ले लीजिए. महिलाएं आज भी खर्च से ज्यादा बचत करने पर विश्वास रखती हैं. अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना उन्हें आज भी आता है. अब तो कुछ जगहों पर महिलाएं पूंजी निवेश में भी विश्वास रखती हैं.

इस संबंध में श्री बालाजी ऐक्शन अस्पताल की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. शिल्पी आष्टा का कहना है, ‘‘आज भी महिलाओं की सोच कुछ मामलों में पुरुषों से बिलकुल विपरीत है. पुरुष भविष्य से ज्यादा खुशहाल वर्तमान पर विश्वास रखते हैं, जबकि महिलाएं हर काम भविष्य को ध्यान में रख कर करती हैं और पुरुषों से भी यही अपेक्षा करती हैं कि वे भी इस बात को समझें.

‘‘महिलाएं जोखिम भरे काम से बचना चाहती हैं, खासतौर पर पूंजी को ले कर. इसीलिए वे पूंजी को सोने या चांदी जैसी चीजों पर निवेश करना ज्यादा उचित समझती हैं, जबकि पुरुष ज्यादा मुनाफे के लिए शेयर मार्केट या म्यूचुअल फंड जैसे प्लान में पैसे इनवैस्ट करना ज्यादा उचित समझते हैं, जोकि जोखिम भरा होता है. इसीलिए महिलाएं पुरुषों से चाहती हैं कि वे प्रौपर्टी, सोना या चांदी में पूंजी निवेश करें अथवा बैंक में पैसा जमा कर के लाभ उठाएं.’’

1. पुरुष भी अपनाएं बजट प्लान

महिलाओं को होम फाइनैंस मिनिस्टर भी कहा जाता है और यह सच भी है, क्योंकि भले ही एक पुरुष पैसा कमा कर अपनी मां या पत्नी को देता हो, लेकिन उसे संभालने का गुण महिलाओं के ही हाथ में है. इसलिए महिलाएं चाहे कामकाजी महिलाएं हों या फिर गृहिणियां, वे अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाए रखने के लिए बजट के अनुसार चलना पसंद करती हैं, ताकि भविष्य में उन की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाए नहीं. इसीलिए महिलाएं पुरुषों से भी यही चाहती हैं कि वे भी बजट के अनुरूप चलें.

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2. बच्चों की ऐजुकेशन प्लानिंग हो

शिक्षा इतनी महंगी हो चुकी है कि हर मातापिता के लिए उसे अफोर्ड कर पाना आसान नहीं है. पुरुषों से ज्यादा यह डर महिलाओं को सताता है कि कहीं वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने से पीछे न रह जाएं. आजकल बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए यह जरूरी हो गया है कि पहले से योजना बना कर चला जाए.

3. शादी की प्लानिंग

बढ़ती महंगाई में बच्चों की शादी भी महिलाओं के लिए चिंता का विषय है, खासतौर पर बेटियों की. यह चिंता कामकाजी महिलाओं से ले कर गृहिणियों तक की होती है. इस बारे में इंटरनैशनल मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्य कर रही रविता बालियान का मानना है, ‘‘भले ही आज महिलाएं पुरुषों के कदम से कदम मिला कर चल रही हों, फिर भी अपनी जिम्मेदारियों को ले कर आज भी उन की वही भूमिका है, जो पहले हुआ करती थी. लेकिन बच्चों के जन्म के साथ उन की शादी की चिंता केवल मां को ही नहीं, बल्कि पिता को भी होनी चाहिए. बच्चों की शादी को ले कर कई ऐसे इंश्योरैंस प्लान भी मौजूद हैं, जिन्हें करा लिया जाए, तो उन की शादी के समय काफी आसानी होगी.’’

4. प्राथमिकताओं को महत्त्व दें

29 वर्षीय जयश्री रस्तोगी हाउसवाइफ हैं. पिछले 5 सालों से पूरे परिवार के साथ किराए के मकान में रह रही हैं. हर महिला की तरह उन का भी यह सपना है कि खुद का मकान हो, लेकिन उन के पति की इच्छा है कि पहले उन्हें कार लेनी चाहिए. जयश्री का मानना है कि अगर वे ईएमआई पर अभी घर ले लेंगे, तो भविष्य में किराए के पैसे बच जाएंगे, जिन्हें वे अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खर्च कर सकते हैं. इस तरह की विपरीत सोच कई बार उन के बीच बहस का मुद्दा भी बन चुकी है.

महिलाएं यह बात भलीभांति समझती हैं कि भविष्य में बढ़ने वाली जिम्मेदारियों के साथ घर खरीदना मुश्किल होता जाता है. इसलिए वे पुरुषों से भी यही अपेक्षा रखती हैं कि वे भी इस बात को समझें.

5. निवेश में महिलाओं की भी राय लें

डा. शिल्पी का कहना है, ‘‘महिलाएं खुद के भविष्य के बारे में भी सोचने लगी हैं. इसीलिए वे चाहती हैं कि पुरुष जहां भी पैसे निवेश कर रहे हों, उस के बारे में उन्हें भी पता होना चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी तरह की जरूरत पड़ने या पति के न रहने पर वे उन चीजों को संभाल सकें, अपने बच्चों का भविष्य खराब होने से बचा सकें.’’

6. होम मैंटेनैंस

जब बात होम मैंटेनैंस की आती है, तो महिलाएं इस में पैसे खर्च करने से पीछे नहीं हटती हैं, लेकिन पुरुषों को उन की यह आदत उन का शौक लगता है. लेकिन यह उन के शौक से ज्यादा जरूरत होती है, क्योंकि हर महिला चाहती है कि भले हाईफाई नहीं, फिर भी उन के परिवार का कुछ तो लाइफस्टाइल मैंटेन हो. इस सब का बच्चों के जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है.

7. घर खर्च पुरुष ही उठाएं

महिलाएं अपना पैसा भविष्य के लिए जमा कर के रखती हैं ताकि भविष्य में आने वाली जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकें. लेकिन कई बार महिलाओं के इस व्यवहार को पुरुष उन का लालच समझने लगते हैं. कई पुरुषों का तो यह भी कहना होता है कि जब पैसा दोनों ही कमा रहे हैं, तो फिर घर खर्च कोई एक ही क्यों उठाए? पुरुषों की इस तरह की सोच दांपत्य जीवन के लिए गलत भी साबित हो सकती है.

8. पर्सनल हैल्थ पौलिसी भी है जरूरी

25 वर्षीय एकता त्रिवेदी जोकि स्नैपडिल कंपनी, दिल्ली में एचआर के पद पर कार्य कर रही हैं, का कहना है, ‘‘जब से ईएसआई या नौकरी के दौरान मिलने वाली मैडिकल पौलिसियां आई हैं, तब से पुरुषों का पर्सनल हैल्थ पौलिसी की तरफ रुझान बहुत कम हो गया है. भले ही इन पौलिसियों में पूरे परिवार के लिए सुविधा हो, लेकिन वे इस बात को भूल जाते हैं कि ये पौलिसियां केवल तब तक हैं, जब तक कि आप की नौकरी है. इसलिए पुरुषों को अपने परिवार के भविष्य को ध्यान में रखते हुए पर्सनल हैल्थ पौलिसी में भी पैसा निवेश करना चाहिए ताकि बुढ़ापा सुखदायी हो.’’

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9. जरूरी नहीं हैं महंगी चीजें

आंचल गुप्ता, जो ल्यूपिन में मार्केटिंग ऐग्जीक्यूटिव के पद पर काम कर रही हैं, उन का कहना है, ‘‘मेरे पति को घूमने का बहुत ही ज्यादा शौक है. इसीलिए वे पूरे परिवार के साथ हर साल लंबे ट्रिप पर जाते हैं, जिस में अच्छाखासा पैसा खर्च हो जाता है. कम पैसों में हम अपने शहर या उस के आसपास की जगहों पर भी जा कर घूमने का मजा ले सकते हैं. इस से मौजमस्ती के साथसाथ पैसे भी बच जाएंगे. लेकिन मेरे पति को मेरी यह बात कंजूसी लगती है. जबकि पुरुषों को इस बात को समझना चाहिए, क्योंकि महिलाएं बचत खुद के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए करती हैं.’’

जब पति को खटकने लगे पत्नी

प्राचीनकाल से ही भारत पुरुषप्रधान देश है. लेकिन अब समय करवट ले चुका है. महिला हो या पुरुष दोनों को ही समानता से देखा जाता है. ऐसे में यदि बात पति और पत्नी के बीच की हो तो दोनों ही आधुनिक काल में सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते दिखते हैं. पर कई बार ऐसा होता है कि पति अपनी पत्नी से यदि किसी चीज में कम है तो वह हीनभावना का शिकार होने लगता है और उसे पत्नी कांटे के समान लगने लगती है.

ऐसे में जरूरी है पतिपत्नी में आपसी तालमेल, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि पतिपत्नी में खटास नहीं होती है, लेकिन दूसरे लोग ताने कसकस कर आग में घी का काम करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि इस कठिन स्थिति से निकलने की कोशिश पतिपत्नी दोनों करें.

गलत मानसिकता में रचाबसा समाज समाज में यह मानसिकता हमेशा बनी रहती है कि पत्नी के बजाय पति का ओहदा हमेशा उच्च होता है. पत्नी के उच्च शिक्षित, सुंदर, मशहूर और सफल होने से पति को ईगो प्रौब्लम होने लगती है. समाज की दृष्टि से पति को पत्नी की तुलना में प्रतिभाशाली, गुणी, उच्च पदस्थ आदि होना चाहिए. लेकिन पतिपत्नी को समझना चाहिए कि यह आप की अपनी जिंदगी है. इस में छोटाबड़ा कोई माने नहीं रखता है.

यदि पत्नी ऊंचे ओहदे पर है

अकसर देखने में आता है कि पत्नी का ऊंचे ओहदे पर होना समाज में लोगों को गवारा नहीं होता. ऐसा ही कुछ शालिनी के साथ हुआ. उस की लव मैरिज थी. वह उच्च शिक्षा प्राप्त और एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर कार्य करती थी जबकि पति अरुण उस से कम पढ़ालिखा और अपनी पत्नी के मुकाबले निम्न पद पर था. अकसर उस से लोग कहते रहते थे कि तुझे इतनी शिक्षित और कमाऊ बीवी कहां से मिल गई. साथ ही, शालिनी भी उसे ताने देती रहती थी. इन सभी बातों से अरुण इतना अधिक डिप्रेशन में रहने लगा कि उस के मन में अपनी पत्नी के खिलाफ जहर घुलने लगा और फिर तलाक की नौबत आ गई.

पत्नी दे ध्यान: पत्नी के सामने यदि ऐसी स्थिति आए तो वह इस से घबराए नहीं, बल्कि डट कर सामना करे. कई बार हम सामने वालों की गलतियां गिना देते हैं, लेकिन कहीं न कहीं हम में भी खोट होता है. अकसर एक बड़े ओहदे पर होने के कारण पत्नी अपने पति को खरीखोटी सुनाती रहती है जैसे वह अपनी पढ़ाई व कमाई के नशे में चूर अपने पति की कमियों का उपहास उड़ाती रहती है कि घर का सारा खर्च तो उस की कमाई पर ही चलता है.

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कई कमाऊ पत्नियां सब के सामने यह कहती पाई जाती हैं कि अरे यह कलर टीवी तो मैं लाई हूं, वरना इन के वेतन से तो ब्लैक ऐंड व्हाइट ही आता. इन सब बातों से रिश्तों में खटास बढ़ती है. ऐसी स्थिति में पत्नियों को चाहिए कि वे अपने पति को प्रोत्साहित करें कि वे भी जीवन में तरक्की करें न कि हीनभावना से ग्रस्त हो कर कौंप्लैक्स पर्सनैलिटी बन जाएं.

पति ध्यान दें: पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी से हीनभावना रखने के बजाय उसे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दे. यदि कोई बाहरी व्यक्ति कमज्यादा तनख्वाह का मुद्दा उठाए तो कहे कि हमारे घर में सब कुछ साझा है और हम दोनों पतिपत्नी मिलजुल कर घर की जिम्मेदारियां निभाते हैं.

पत्नी का खूबसूरत होना

वैसे तो हर आदमी की चाह होती है कि उस की पत्नी खूबसूरत हो, लेकिन यदि पत्नी बेहद खूबसूरत हो और पति कम स्मार्ट और सिंपल हो तो लोग यह बोलते नहीं रुकते कि अरे देखो तो लंगूर के मुंह में अंगूर या बंदर के गले में मोतियों की माला. ऐसे में पति को पत्नी बेहद खटकने लगती है. वह न चाह कर भी उसे ताने देता रहता है.

वैसे तो पत्नी की तारीफें पति को गर्व से भर देती हैं, लेकिन जब पत्नी की आकर्षक पर्सनैलिटी पति के साधारण व्यक्तित्व को और दबा देती है, तब संतुलित विचारों वाला पति और भी बौखला जाता है. नतीजतन, पति अपनी सुंदर पत्नी के साथ पार्टीसमारोह में जाने से बचने लगता है. अगर साथ ले जाना जरूरी हो तो पार्टी में पहुंच कर पत्नी से अलगथलग खड़ा रहता है. सजनेधजने तक पर भी ताने देता है.

पत्नी ध्यान दे: ऐसे में पत्नी को समझदारी से काम लेना चाहिए. यदि पत्नी को लगता है कि उस का पति उस की खूबसूरती को ले कर हीनभावना महसूस कर रहा है तो वह पति को समझाए कि पति से बढ़ कर उस के लिए दुनिया में कोई माने नहीं रखता है. साथ ही अपने पति के सामने किसी आकर्षक दिखने वाले आदमी की बात भी न करे. किसी महफिल या समारोह में पति के हाथों में हाथ डाल कर यह दिखाने की कोशिश करे कि वह पति को दिल से प्रेम करती है.

पति ध्यान दे: जिंदगी में उतारचढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन पत्नी पति का हर परिस्थितियों में साथ निभाती है. ऐसे में जरूरी है कि पति लोगों की बातों को नजरअंदाज करे, क्योंकि कुछ लोगों का काम ही होता है कि दूसरे के खुशहाल परिवार में आग लगाना. यदि पतिपत्नी दोनों एकदूसरे का साथ सही से निभाएं तो दूसरा कोई उंगली नहीं उठा सकता.

मायके के पैसे का घमंड

कई बार ऐसा होता है कि पत्नी के मायके में ससुराल के मुकाबले ज्यादा पैसा होता है. पत्नी की सहज मगर रईस जीवनशैली उस के मायके वालों का लैवल, गाडि़यां, कोठियां आदि पति को हीनता का एहसास दिलाने लगते हैं. साथ ही पत्नी भी पति के समक्ष मायके में ज्यादा पैसे होने का राग अलापती रहती है. बातबात पर अपने मायके के सुख बखान कर पति को ताने देती रहती है, जिस से पति हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है और उसे पत्नी खटकने लगती है.

पत्नी ध्यान दे: पतिपत्नी के रिश्ते में एकदूसरे का सम्मान सब से ज्यादा अहम होता है. पत्नी को चाहिए कि वह अपने मातापिता के पैसे पर इतना अभिमान न करे कि उस से दूसरे को ठेस पहुंचे. हमेशा मायके के ऐश्वर्य को अपने पति के सामने न जताए. इस से पति के अहम को ठेस पहुंचती है, साथ ही वह पत्नी को मायके जैसा सुख न देने के कारण हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है.

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पति ध्यान दें: कई बार पत्नी के कुछ खरीदने पर या किसी डिमांड पर पति क्रोधित हो कर उस के मायके के ऐश्वर्य को ले कर उलटासीधा बोलने लगता है. ऐसे में जरूरी यह होता है कि आप प्रेमपूर्वक आपस में बैठ कर बात करें न कि लड़ाई ही इस विषय का समाधान है. जैसे पत्नी का बारबार अपने मायके के सुख के ताने देना पति को खराब लगता है ऐसे ही पति का पत्नी के मायके के लिए बोलना भी उसे खराब लगता है.

समाजिक दूरी से ‘एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर’ में तनाव

सामाजिक दूरी और कोराना का संक्रमण एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में तनाव का कारण बन रहा है. जिसके कारण नजदीकियां दूरियों में बदल गई है. नजदीकियों दूरियों में बदलने से आपस में तनाव बढ रहा है. शादीशुदा जोडों में तनाव घरेलू हिंसा को जन्म दे रहा है तो युवा कपल्स में बढने वाला तनाव मन पर असर डाल रहा है. जिसके चलते लोग बडी संख्या में मेंटल हेल्थ को लेकर परेशान हो रहे है. भारत में मेंटल हेल्थ कभी मुद्दा नहीं रहा इस कारण यहां कपल्स के बीच दिक्कते अधिक बढ रही है.

सरला एक बडी अधिकारी है. उनके पति भी बडे अफसर है. दोनो के बीच कई सालों से पतिपत्नी के बीच वाले स्वाभाविक रिश्ते नहीं चल रहे. 2 साल से दोनो अलग रह रहे है. दोनो को ही एक दूसरे से शिकायत है कि वह अलग रिश्ते रखे हुये है. यह बात सच है कि सरला का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर बन गया था. दोनो ही आपस में खुश थे. सरला पूरी तरह से अपने संबंधों को समाज से दूर रखकर चल रही थी. लोगों में सरला के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की चर्चा भर थी पर किसी को भी पुख्ता जानकारी नहीं थी. यह सरला की समझदारी ही थी. सरला अपना वीकएंड ही उसके साथ गुजारती थी और बाकी सप्ताह अपने घर और औफिस के काम में व्यतीत करती थी. सरला ने अपनी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर वाली लाइफ को सोशल लाइफ से दूर ही रखा था.

सब कुछ अच्छा चल रहा था. अचानक कोविड 19 का संकट आ गया. जहां आपस में मिलना मुश्किल होने लगा. पार्क, होटल, सिनेमाघर तो बंद हो ही गये साथ ही साथ अपने शहर से दूर जाकर मिलना भी बद हो गया. यह तनाव सरला को परेशान करने लगा. सरला अपने साथी से मिल नहीं पा रही थी तो उसका तनाव उसके व्यवहार पर झलकने लगा था. इस बीच लौकडाउन तो खुल गया पर इसके बाद भी माहौल सहज नहीं हो सका. कोविड 19 का संक्रमण बढने लगा. इससे होने वाली मौंतें डराने लगी. सरला को कभी मिलना भी होता तो वह डरने लगी. कोविड के दौरान अकेलापन दूर करने के लिये कपल्स के बीच डेटिंग शुरू हो गई. कपल्स में इसमें पहले वाली फीलिंग्स नहीं मिल रही.

कोरोना का डरः

सरला कहती है ‘लौकडाउन खुलने के बाद हमने मिलने का प्लान बनाया. हम अपनी प्रिय जगह पर मिलने गये तो वहां पहुंचते ही डर लगने लगा. यह डर केवल मेरे मन में ही नहीं था उसके मन में भी था. हमें यह पता था कि हममे से किसी को कोरोना नहीं है. इसके बाद भी हम एक दूसरे के करीब जाने से डर रहे थे. हमने आपसी बातचीत में यह स्वीकार किया किया कि मिलने के लिये हम अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकते है. हमने यह तय किया कि मिलने से पहले कोरोना टेस्ट करा लेगे. इसके बाद फिर लगा कि कोरोना टेस्ट कराकर मिलना भी कोई सहज बात नहीं है.

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असल में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर लोग इसलिये ही बनाते है जिससे वह अपनी जिदंगी खुल कर जी सके. कोरोना सकंट के दौर में इस जिंदगी पर पहरा सा लग गया. यह पहरा ऐसा है जिसका तोडने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है. ऐसे में कपल्स को लग रहा कि दूरदूर बैठ कर बात करने से अच्छा है कि मिले ही ना. इससे किसी के देखने और जानने का खतरा भी नहीं होगा और कोरोना का डर भी नहीं रहेगा. सरला कहती है ‘इस बात समझना और इस पर अमल करना दो अलग बातें होती है. जो संबंध आपकी आदत बन गये हो अगर अचानक बंद हो जाये जो लाइफ में तनाव बढ जाता है. इस तनाव के बढने से तमाम तरह से खतरे भी बढ जाते है. मुझे सिरदर्द और सुस्ती का अनुभव होने लगा. मुझे लगने लगा कि यह रिश्ते अब कैसे चलेगे ? ’

ओवर पजेसिव होने से बिगड रही बातः

चेतना को अचानक नींद ना आने की शिकायत रहने लगी. इससे उसका दिन खराब रहने लगा. चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन गया. कई दिनों तक परेशान रहने के बाद वह अपने पति के साथ डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने उनको साइक्लोजिस्ट के पास जाने सलाह दी. चेतना पहले दिन पति के साथ गई. कांउसलर ने जब खुलकर बात करना शुरू किया तो वह ठीक तरह से सवालों के जवाब देने में हिचकने लगी. डाक्टर ने अगले दिन उसे अकेले आने को कहा. अगले दिन चेतना अकेले गई. तब उसने खुलकर बातचीत करते काउंसलर से कहा कि उसकी एक्स्ट्रा मैरिटल लाइफ सहीं नहीं चल रही. जिसकी वजह से वह तनाव में रहती है. रात में नींद नहीं आती. हम लोग लौकडाउन में एक दूसरे से औन लाइन बातचीत करते थे. किसी तरह से वह समय कट गया पर 5 महीने से आपस में ना मिल पाने का तनाव अब सहन नहीं हो रहा है. हमें यह भी लग रहा कि कहीं इस दूरी की वजह से उसके संंबंध कही और किसी से ना हो जाये. जिससे वह हमें छोडकर चला जाये.‘

साइक्लौजिस्ट सुप्रीती बाली कहती है ‘एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के मामलों में यह डर सामान्य बात होती है. एक दूसरे को लेकर यह चिंता बनी रहती है कि कहीं हमारा ब्रेकअप किसी और की वजह से ना हा जाये. यह चिंता अपने पार्टनर को लेकर ओवर पजेसिव होने की हद तक चली जाती है. शंका बढने के साथ साथ यह हालात और भी खराब होते जाते है. ऐसे में मानसिक रोग बढने लगता है. अगर सही समय पर लोग अपनी बात नहीं बताते तो हालात अपने को नुकसान पहंुचाने तक के लेवल पर पहंुच जाते है. ऐसे लोग को कोविड और कोरोना के दौरान बिगडे हालातों को देखकर समझदारी से काम लेना चाहिये.‘

सुप्रीती बाली कहती है ‘कई बार कपल्स मिलने का प्लान करते है. डर के कारण मिल नहीं पाते. ऐसा अगर दो-तीन बार हो गया तो शकंा होने लगती है कि कहीं अगला संबंधों को खत्म करने के लिये बहाने तो नहीं बना रहा. यह शंका करने से पहले अपने संबंधों को समझना चाहिये. उसके भरोसे और विश्वास को सामने रखकर सोचना चाहिये. तभी तनाव को दूर किया जा सकता है.‘

चेतना ने बताया कि एक-दो बार जब हम मिले भी तो ना हाथ मिलाया, ना गले मिले और ना ही करीब बैठे ऐसे में हमें लग रहा था जैसे हमारे रिश्ते सामान्य नहीं है. उसको हमसे मिलकर पहले जैसी खुशी का अनुभव नहीं हो रहा था. यह बात हमें और भी परेशान करने वाली लग रही थी. इस तरह रिश्तों में दूरी और ठंडापन अनुभव हो रहा था. हमारे बीच रिश्तों की पहले जैसी गर्माहट का अभाव दिख रहा था. डाक्टर के समझाने पर मुझे लगा कि हम बेकार ही अपने बीच दूरी को लेकर चिंता कर रही थी.

मार्केटिंग विभाग में काम करने वाली शोभा कहती है ‘पहले जब मिलने जाना होता था तो मेकअप, ड्रेसअप, सेंट आदि लगाकर खुश्बू बिखेरते जाना होता मन में खुशी होती थी. लगता था कि कुछ समय के ही लिये सही पर अपनी दुनियां बदल जाती थी. अब मिलने से पहले सेनेटाइजर, मास्क लगाना पडता है. मिलने के लिये खुली जगह देखनी पडती है. कई बार घूमते फिरते बात करनी होती है. जिससे पता ही नहीं चलता कि हम मिलने आये है. ऐसी मुलाकातों में अजनबीपन का अनुभव होता है. एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में जो क्लोजनेस आती थी उसका एहसास अब खत्म हो गया है.

कपल्स के आपस में मिलने जुलने की बात करें तो अब लोगों की प्राथमिकताएं बदली है. वह एक दूसरे के करीब जाने और छूने को लेकर सहज अनुभव नहीं कर रहे है. ऐसे में कपल्स के बीच प्यार मोहब्बत की जगह गुस्सा बढने लगा है. लोग चाहते है यह दूरी ना हो पर कपल्स में यह भरोसा नहीं हो रहा कि सामने वाले से कोई खतरा नहीं है. कपल्स के रिश्ते के बीच कोरोना आ गया है. कोराना पति पत्नी और वह जैसी हालत में पहुंच कर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के रिश्ते बिगाडने का काम कर रहा है. इसी कारण से आपस में तनाव खतरनाक हालत तक पहुंच रहा है. इससे बचने के लिये मेंटल हेल्थ पर काम करने की बहुत जरूरत है.‘

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जानलेवा हो रहा तनावः

नेशनल क्राइम ब्यूरों के आंकडे बताते है कि पिछले 5 माह में उत्तर प्रदेश ही राजधानी लखनऊ में 250 लोगों से अधिक ले सुसाइड किया. सुसाइड के मामलों में उत्तर प्रदेश देश का 8 सबसे बडा राज्य है. इन सुसाइड में अधिकतर की वजह पारिवारिेक तनाव रहा है. इन तनाव में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के कारण का अलग से कोई विवेचना नही की गई है. इसकी वजह यह है कि हमारे समाज में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर छिपाने का चलन है. ऐसे में सुसाइड के मामलों में जो मुकदमें कायम भी होते है उनमें इन वजहों को छिपा लिया जाता है. जानकार मानते है कि लौकडाउन का असर पारिवारिक संबंधों खासकर  एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर भी पडा है. इस तनाव के भी बहुत लोग शिकार हुये है.

सुसाइड करने वालों में 33 फीसदी लोग पारिवारिक कारणों यह कर रहे है. इनमें 30 फीसदी महिलाये और 70 फीसदी पुरूष है. साइक्लोजिस्ट सुपीती बाली कहती है कि खराब हालात हर किसी के जीवन में आता है. जिन लोगो की मेंटल हेल्थ अच्छी होती है वह हालात को संभाल लेते है पर जिनकी मेंटल हेल्थ खराब होती है वह मेंटल बीमारियों का शिकार हो जाते है. आत्महत्या करने के पीछे की सबसे बडी वजह मेंटल हेल्थ का सही ना होना होता है.‘

मेंटल हेल्थ जागरूकताकी जरूरतः

मानसिक बीमारियों से समाज को बचाने के लिये जरूरी है कि मेंटल हेल्थ की तरफ अधिक से अधिक ध्यान दिया जाये. मानसिक बीमारियो को रोकने के लिये यह बेहद जरूरी है. लौकडाउन के दौरान सबसे पहले इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है. कोविड 19 महामारी के दौरान बडी संख्या में ऐसे लोग सामने आये जो किसी ना किसी वजह से मानसिक बीमारी से ग्रसित थे. मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूकता, समाज की सोंच और डाक्टरों की कमी से हालत और भी बिगड गये. सुसाइड प्रिविंशन इन इंडिया फाउडेशन के एक सर्वे में यह बात सामने आई कि मरीजो में खुद को हानि पहुंचाने की प्रवृत्ति तेजी से बढ रही है. इस सर्वे में यह भी पाया गया कि 40 फीसदी लोग किसी ना किसी वजह से अवसाद से जूझ रहे थे.

यह बात भी मानी जा रही कि मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूकता लोगों में आई है पर बाकी दुनिया के मुकाबले भारत बहुत पीछे है. अब पहले के मुकाबले मेंटल हेल्थ के मामले अस्पताल पहुचने लगे है. मानसिक रोगों के डाक्टरों और काउसलरों की देश में कमी का ही कारण है कि केाविड के दौरान मेंटल केस के मामले बढने से डाक्टर खुद काम की अधिकता से प्रभावित हो रहे है. यह हमारे देश की त्रासदी है कि मेंटल हेल्थ को पागलपन से जोडा दिया जाता है. परिवारों में मेंटल हेल्थ पर बात करना अभी भी सामान्य बात नहीं है. ऐसे में मेंटल हेल्थ के मामलों को रोकना मुश्किल होगा.

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गलतफहमियां जब रिश्तों में जगह बनाने लगें

राधा और अनुज की शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं. राधा को अपनी नौकरी की वजह से अकसर बाहर जाना पड़ता है. वीकैंड पर जब वह घर पर होती है, तो कुछ वक्त अकेले, पढ़ते हुए या आराम करते हुए गुजारना चाहती है या फिर घर के छोटेमोटे काम करते हुए समय बीत जाता है.

अनुज जो हफ्ते में 5 दिन उसे मिस करता है, चाहता है कि वह उन 2 दिनों में अधिकतम समय उस के साथ बिताए, दोनों साथ आउटिंग पर जाएं, मगर राधा जो ट्रैवलिंग करतेकरते थक गई होती है, बाहर जाने के नाम से ही भड़क उठती है. यहां तक कि फिल्म देखने या रेस्तरां में खाना खाने जाना भी उसे नागवार गुजरता है.

अनुज को राधा का यह व्यवहार धीरेधीरे चुभने लगा. उसे लगने लगा कि राधा उसे अवौइड कर रही है. वह शायद उस का साथ पसंद नहीं करती है जबकि राधा महसूस करने लगी थी कि अनुज को न तो उस की परवाह है और न ही उस की इच्छाओं की. वह बस अपनी नीड्स को उस पर थोपना चाहता है. इस तरह अपनीअपनी तरह से साथी के बारे में अनुमान लगाने से दोनों के बीच गलतफहमी की दीवार खड़ी होती गई.

अनेक विवाह छोटीछोटी गलतफहमियों को न सुलझाए जाने के कारण टूट जाते हैं. छोटी सी गलतफहमी को बड़ा रूप लेते देर नहीं लगती, इसलिए उसे नजरअंदाज न करें. गलतफहमी जहाज में हुए एक छोटे से छेद की तरह होती है. अगर उसे भरा न जाए तो रिश्ते के डूबने में देर नहीं लगती.

भावनाओं को समझ न पाना

गलतफहमी किसी कांटे की तरह होती है और जब वह आप के रिश्ते में चुभन पैदा करने लगती है तो कभी फूल लगने वाला रिश्ता आप को खरोंचें देने लगता है. जो युगल कभी एकदूसरे पर जान छिड़कता था, एकदूसरे की बांहों में जिसे सुकून मिलता था और जो साथी की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था, उसे जब गलतफहमी का नाग डसता है तो रिश्ते की मधुरता और प्यार को नफरत में बदलते देर नहीं लगती. फिर राहें अलगअलग चुनने के सिवा उन के पास कोई विकल्प नहीं बचता.

आमतौर पर गलतफहमी का अर्थ होता है ऐसी स्थिति जब कोई व्यक्ति दूसरे की बात या भावनाओं को समझने में असमर्थ होता है और जब गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं, तो वे झगड़े का आकार ले लेती हैं, जिस का अंत कभीकभी बहुत भयावह होता है.

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रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट अंजना गौड़ के अनुसार, ‘‘साथी को मेरी परवाह नहीं है या वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है, इस तरह की गलतफहमी होना युगल के बीच एक आम बात है. अपने पार्टनर की प्राथमिकताओं और सोच को गलत समझना बहुत आसान है, विशेषकर जब बहुत जल्दी वे नाराज या उदास हो जाते हों और कम्यूनिकेट करने के बारे में केवल सोचते ही रह जाते हों.

‘‘असली दिक्कत यह है कि अपनी तरह से साथी की बात का मतलब निकालना या अपनी बात कहने में ईगो का आड़े आना, धीरेधीरे फूलताफलता रहता है और फिर इतना बड़ा हो जाता है कि गलतफहमी झगड़े का रूप ले लेती है.’’

वजहें क्या हैं

स्वार्थी होना: पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने और एकदूसरे पर विश्वास करने के लिए जरूरी होता है कि वे एकदूसरे से कुछ न छिपाएं और हर तरह से एकदूसरे की मदद करें. जब आप के साथी को आप की जरूरत हो तो आप वहां मौजूद हों. गलतफहमी तब बीच में आ खड़ी होती है जब आप सैल्फ सैंटर्ड होते हैं. केवल अपने बारे में सोचते हैं. जाहिर है, तब आप का साथी कैसे आप पर विश्वास करेगा कि जरूरत के समय आप उस का साथ देंगे या उस की भावनाओं का मान रखेंगे.

मेरी परवाह नहीं: पति या पत्नी किसी को भी ऐसा महसूस हो सकता है कि उस के साथी को न तो उस की परवाह है और न ही वह उसे प्यार करता है. वास्तविकता तो यह है कि विवाह लविंग और केयरिंग के आधार पर टिका होता है. जब साथी के अंदर इग्नोर किए जाने या गैरजरूरी होने की फीलिंग आने लगती है तो गलतफहमियों की ऊंचीऊंची दीवारें खड़ी होने लगती हैं.

जिम्मेदारियों को निभाने में त्रुटि होना: जब साथी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने या उठाने से कतराता है, तो गलतफहमी पैदा होने लगती है. ऐसे में तब मन में सवाल उठने स्वाभाविक होते हैं कि क्या वह मुझे प्यार नहीं करता? क्या उसे मेरा खयाल नहीं है? क्या वह मजबूरन मेरे साथ रह रहा है? गलतफहमी बीच में न आए इस के लिए युगल को अपनीअपनी जिम्मेदारियां खुशीखुशी उठानी चाहिए.

वैवाहिक सलाहकार मानते हैं कि रिश्ता जिंदगी भर कायम रहे, इस के लिए 3 मुख्य जिम्मेदारियां अवश्य निभाएं-अपने साथी से प्यार करना, अपने पार्टनर पर गर्व करना और अपने रिश्ते को बचाना.

काम और कमिटमैंट: आजकल जब औरतों का कार्यक्षेत्र घर तक न रह कर विस्तृत हो गया है और वे हाउसवाइफ की परिधि से निकल आई हैं, तो ऐसे में पति के लिए आवश्यक है कि वह उस के काम और कमिटमैंट को समझे और कद्र करे. बदली हुई परिस्थितियों में पत्नी को पूरा सहयोग दे. रिश्ते में आए इस बदलाव को हैंडल करना पति के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि यह बात आज के समय में गलतफहमी की सब से बड़ी वजह बनती जा रही है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे के काम की कमिटमैंट के बारे में डिस्कस कर उस के अनुसार खुद को ढालना होगा.

धोखा: यह सब से आम वजह है. यह तब पैदा होती है जब एक साथी यह मानने लगता है कि उस के साथी का किसी और से संबंध है. ऐसा वह बिना किसी ठोस आधार के भी मान लेता है. हो सकता है कि यह सच भी हो, लेकिन अगर इसे ठीक से संभाला न जाए तो निश्चित तौर पर यह विवाह के टूटने का कारण बन सकता है. अत: आप को जब भी महसूस हो कि आप का साथी किसी उलझन में है और आप को शक भरी नजरों से देख रहा है तो तुरंत सतर्क हो जाएं.

दूसरों का हस्तक्षेप: जब दूसरे लोग चाहे वे आप के ही परिवार के सदस्य हों या मित्र अथवा रिश्तेदार आप की जिंदगी में हस्तक्षेप करने लगते हैं तो गलतफहमियां खड़ी हो जाती हैं. ऐसे लोगों को युगल के बीत झगड़ा करा कर संतोष मिलता है और उन का मतलब पूरा होता है. यह तो सर्वविदित है कि आपसी फूट का फायदा तीसरा व्यक्ति उठाता है. पतिपत्नी का रिश्ता चाहे कितना ही मधुर क्यों न हो, उस में कितना ही प्यार क्यों न हो, पर असहमति या झगड़े तो फिर भी होते हैं और यह अस्वाभाविक भी नहीं है. जब ऐसा हो तो किसी तीसरे को बीच में डालने के बजाय स्वयं उन मुद्दों को सुलझाएं जो आप को परेशान कर रहे हों.

सैक्स को प्राथमिकता दें: सैक्स संबंध शादीशुदा जिंदगी में गलतफहमी की सब से अहम वजह है. पतिपत्नी दोनों ही चाहते हैं कि सैक्स संबंधों को ऐंजौय करें. जब आप दूरियां बनाने लगते हैं, तो शक और गलतफहमी दोनों ही रिश्ते को खोखला करने लगती हैं. आप का साथी आप से खुश नहीं है या आप से दूर रहना पसंद करता है, तो यह रिश्ते में आई सब से बड़ी गलतफहमी बन सकती है.

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