शेयर केयर रिलेशनशिप रिपेयर

दृष्टि रावत 34 साल की है. वह फरीदाबाद में रहती है. देखने में ब्यूटीफुल और कौन्फिडैंट दृष्टि एक वौइस आर्टिस्ट है. 4 साल पहले उस ने विक्रम संवत के साथ लव मैरिज की थी. विक्रम एक बिजनेसमैन है. उस का क्रौकरी का बिजनैस है. बिजनैसमैन होने के नाते विक्रम बहुत बिजी रहता है. लेकिन इस के बावजूद वह घर और बाहर दोनों के काम में दृष्टि की हैल्प करता है.

कभीकभी तो वह खुद अकेले ही घर का सारा काम कर लेता है तो कभीकभी मार्केट जा कर राशन ले आता है. इतना ही नहीं विक्रम कई बार अकेले ही लंच और डिनर भी बना लेता है क्योंकि वह सम?ाता है कि असल माने में पार्टनर की यही परिभाषा है कि वह अपने पार्टनर की हर समय सपोर्ट करे.

दृष्टि और विक्रम दोनों हाउस होल्ड प्रौडक्ट भी साथ जा कर लाते हैं. चाहे घर के कामों से जुड़े टूल्स हों या फिर होम गैजेट हों दृष्टि और विक्रम उन्हें खरीदने साथ ही जाते हैं. इस का एक फायदा यह रहता है कि ये टूल्स और गैजेट कैसे काम करते हैं यह वे दोनों एकसाथ जान लेते हैं. ऐसे में जब दृष्टि घर में नहीं होती या अपने औफिस के काम में बिजी होती है तो विक्रम इन  टूल्स और गैजेट की हैल्प से घर को अच्छी तरह मैनेज कर लेता है.

एक लड़की क्या चाहती है

एक अच्छे हसबैंड की सारी खूबी विक्रम के अंदर है. किस तरह पार्टनर को खुश रखा जा सकता है, किस तरह अपने काम और मैरिड लाइफ को बैलेंस किया जाता है. इन सब बातों से विक्रम पूरी तरह अवगत है. तभी तो उस की मैरिड लाइफ में वे दिक्कतें नहीं हैं जो उन कपल्स के बीच होती हैं जहां घर के कामों को वाइफ या हसबैंड में से सिर्फ कोई एक संभाल रहा होता है.

जब विक्रम दृष्टि की हैल्प करता है तो वह बहुत खुश हो जाती है. यह सच भी है कि एक लड़की यही चाहती है कि उस का पार्टनर उस के सभी कामों में मदद करे. वह सही मानों में उस का हमसफर हो न सिर्फ कहने भर को.

क्लाउड किचन चलाने वाली रति अग्निहोत्री रिलेशनशिप पर अपनी राय देते हुए कहती है, कोई भी रिलेशन बिना केयर के नहीं चलता. ‘‘आप का पार्टनर भी आप से यही केयर चाहता है. आजकल हसबैंडवाइफ दोनों ही वर्किंग हैं. ऐसे में उन्हें अपने लिए बिलकुल समय नहीं मिलता है क्योंकि वाइफ औफिस के साथसाथ घर भी संभालती है. इस की वजह से वह हर वक्त थकान में चूर रहती है. ऐसे में उस में चिड़चिड़ापन आना स्वाभाविक है. लेकिन वहीं जहां आप का पार्टनर भी काम का कुछ भार अपने ऊपर ले ले तो यह भार कुछ कम हो सकता है. मैं भी अपना बिजनैस इसलिए कर पा रही हूं क्योंकि मेरे पार्टनर मेरे घर के कामों में मेरी हैल्प करते हैं.’’

ऐसे निभाएं रिश्ता

आंकड़े भी यही बताते हैं कि हैल्पिंग पार्टनर वाली मैरिज ज्यादा समय तक टिकती है. वहीं उन की रोमांटिक लाइफ भी उन कपल्स के मुकाबले ज्यादा हैप्पी होती है जहां सिर्फ फीमेल पार्टनर ही घर के सभी कार्यों का बोझ उठाती हैं.

अगर आप भी अपनी वाइफ या पार्टनर की हैल्प करना चाहते हैं लेकिन आप के पास इन सब के लिए बहुत कम समय है तो आप कुछ स्मार्ट होम ऐप्लायंसिस और गैजेट की हैल्प ले सकते हैं. इन के इस्तेमाल से आप कम समय में ही अपने घर के कामों को जल्दी निबटा पाएंगे और अपने पार्टनर के साथ समय बिता पाएंगे. आप की छोटी सी हैल्प से आप की रिलेशनशिप खुशियों से भर जाएगी.

मार्केट में ऐसे बहुत से प्रौडक्ट्स हैं जिन की हैल्प से आप अपने काम को जल्दी से जल्दी निबटा सकते हैं. इस के बाद बाकी बचे समय में आप अपने पार्टनर के साथ समय बिता सकते हैं. आप चाहे तो अपने रिलेटिव्स और फ्रैंड्स को उन के घर जा कर सरप्राइज भी दे सकते हैं.

अगर बात करें गैजेट की तो एक गैजेट है स्मार्ट रोबोट वैक्यूम क्लीनर. इस क्लीनर का इस्तेमाल फ्लोर की साफसफाई के लिए किया जाता है. इस का इस्तेमाल कर के आप चंद मिनटों में झड़ूपोंछा का काम निबटा सकते हैं. आप इसे अपने फोन से भी कनैक्ट कर सकते हैं.  इसी तरह आप ढो मेकर और रोटी मेकर का यूज कर के भी कम समय में रोटियां बना सकते हैं.

इसी तरह दही मेकर है जो आप को दही जमाने के झंझट से छुटकारा दिलाता है. इन कामों से बचे हुए टाइम को आप अपने क्वालिटी टाइम के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तरह से आप की फीमेल पार्टनर भी आप का साथ पा कर खुश हो जाएंगी.

सोचो अगर आप और आप की पार्टनर डिनर के बाद साथ में कुछ क्वालिटी टाइम स्पैंड करना चाहते हैं लेकिन सिंक में बरतन धोने के लिए पड़े हुए हैं. सुबह आप दोनों को औफिस जाने की जल्दी होती है ऐसे में आप डिशवौशर का इस्तेमाल कर के क्वालिटी टाइम स्पैंड कर सकते हैं.

वहीं अगर आप के रिश्ते में किसी कारणवश खटास आ गई है तो आप उसे अपने पार्टनर की हैल्प और उन की केयर कर के दूर कर सकते हैं. यही वह समय है जब आप अपने उलझे रिश्ते को शेयरिंग और केयरिंग के जरीए सुलझ सकते हैं.

जब फीमेल पार्टनर घर का बोझ उठाएं

अगर बात करें उन लोगों की मैरिड लाइफ कैसी होती है जहां सिर्फ फीमेल पार्टनर ही घर का सारा भार उठाती हैं. यह बात हम श्रेया और अंकुश की कहानी से जानेंगे.

श्रेया और अंकुश दोनों ही वर्किंग हैं. ऐसे में श्रेया घर और औफिस दोनों का काम संभालती है. वहीं अंकुश सोफे पर बैठेबैठे और्डर देता रहता है. इतना ही नहीं अंकुश खाने में भी नुक्स निकालता है. अकसर खाने में वैराइटी और घर के कामों को ले कर उन के बीच बहस होती रहती है. श्रेया इन सब से बहुत परेशान हो गई है. वह इस रिश्ते से अब थक गई है. उस का ऐसा फील करना गलत भी नहीं है. जब एक ही पर्सन जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रहा हो तो वह एक समय बाद तंग हो ही जाता है. ऐसा ही अभी श्रेया के साथ हो रहा है.

असल में जब एक ही व्यक्ति घर और बाहर दोनों के ही काम करता है तो वह फ्रस्ट्रेटिंग फील करता है. उसे बातबात पर गुस्सा आता है. इस से उस की रिलेशनशिप में भी प्रौब्लम होती है. वहीं अगर दोनों पार्टनर मिल कर सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं तो उन का रिलेशन खुशनुमा रहता है.

ऐसे बनाएं खुशहाल जिंदगी

ऐसा नहीं है कि पार्टनर के साथ मिल कर काम करने से आप सिर्फ उन की हैल्प कर रहे हैं. पार्टनर के साथ मिल कर काम करने से आप अपनी मैरिड लाइफ को ज्यादा समय दे पाते हैं. इस से मनमुटाव भी नहीं होता है और आप की लाइफ स्मूथली मूव करती है, साथ ही आप मैंटली और फिजिकली हैप्पी भी फील करती हैं.

अगर दोनों पार्टनर मिल कर घर और बाहर दोनों के काम को संभालते हैं तो यह किसी एक पर बोझ नहीं बनता. ऐसा करने से दोनों ही अपने वर्क और स्किल्स पर ध्यान दे पाते हैं, साथ ही उन की लव लाइफ भी अच्छी और खुशहाल रहती है. दोनों पार्टनर के साथ मिल कर काम करने से आप अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को भी ज्यादा समय दे पाते हैं. वहीं किसी एक को भी ऐसा नहीं लगता कि उसे अपना रिश्ता बचाने के लिए ऐक्स्ट्रा ऐर्फ्ट करना पड़ रहा है न ही उस का पार्टनर उसे टेक फौर गरांटेड ले रहा है.

कोई भी रिश्ता तभी बेहतर होता है जब आप अपने पार्टनर और उस की फैमिली को रिस्पैक्ट देते हैं. यहां यह बात समझनी बहुत जरूरी है कि सिर्फ मेल पार्टनर या हसबैंड के मांबाप को मांबाप न समझ जाए बल्कि फीमेल पार्टनर या वाइफ के मांबाप को भी मांबाप समझ जाए. आप अपनी फीमेल पार्टनर या वाइफ के मांबाप को भी वह सम्मान दें जो आप अपनी पार्टनर से अपने मांबाप के लिए चाहते हैं.

आखिर इज्जत का हक सिर्फ लड़के के मां बाप तक ही क्यों सीमित रहे. जब 2 लोग 1 रिश्ते में आ रहे हों तो सम्मान भी तो दोनों के मांबाप का होना चाहिए.

अगर आप भी अपने रिश्ते में शांति और सुकून चाहते हैं तो अपने पार्टनर की पूरी मदद करें, साथ ही उस के मां बाप को भी पूरा सम्मान दें. वहीं अगर आप के रिश्ते में तनाव या मनमुटाव चल रहा है तो इस बार अपने रिश्ते को केयरिंग से रिपेयर करें.

Married Life में इसकी हो नो ऐंट्री

शक लाइलाज बीमारी है. अगर एक बार यह किसी को, खासकर पतिपत्नी में से किसी को अपनी चपेट में ले ले, तो वह उसे हैवान बना सकती है. ऐसी एक घटना हाल ही में हैदराबाद में देखने को मिली जहां अवैध संबंधों के शक पर एक महिला ने अपने पति को ऐसी सजा दी जिस का दर्द वह शायद जिंदगी भर नहीं भूल पाएगा.

आप यह जान कर दंग रह जाएंगे कि 30 साल की इस आरोपी महिला ने पति से विवाद होने पर चाकू से उस का प्राइवेट पार्ट काटने की कोशिश की, जिस के चलते पति को गंभीर चोटें आईं.

ऐसा ही एक अन्य मामला दिल्ली के निहाल विहार इलाके में भी सामने आया, जहां पति ने ही अपनी पत्नी का मर्डर कर दिया. पकड़े जाने पर पति ने सारी बात पुलिस को बता दी. उस ने साफ किया कि उसे अपनी पत्नी के चरित्र पर शक था. दोनों ने लव मैरिज की थी, लेकिन पति को लगता था कि उस की पत्नी की दोस्ती कई लड़कों से है. इस बात को ले कर अकसर दोनों में झगड़ा होता था.

टूटते परिवार बिखरते रिश्ते

शक न जाने कितने हंसतेखेलते परिवारों को तबाह कर देता है. दांपत्य जीवन, जो विश्वास की बुनियाद पर टिका होता है, उस में शक की आहट जहर घोल देती है. हाल के दिलों में अवैध संबंधों के शक में लाइफपार्टनर पर हमले और हत्या करने की घटनाएं बढ़ रही हैं. मनोवैज्ञानिक इस के पीछे संयुक्त परिवारों के बिखरने को एक बड़ा कारण मानते हैं.

दरअसल, संयुक्त परिवारों में जब पतिपत्नी के बीच मनमुटाव होता था तो घर के बड़े उसे आपसी बातचीत से सुलझा देते थे या बड़ों की उपस्थिति में पतिपत्नी का झगड़ा बड़ा रूप नहीं ले पाता था, जबकि आज पतिपत्नी अकेले रहते हैं, आपसी झगड़ों में वे एकदूसरे पर हावी होने की कोशिश करते हैं. वहां उन के आपसी संबंधों में शक की दीवार को हटाने वाला कोई नहीं होता.

ऐसे में शक गहराने के कारण पतिपत्नी का रिश्ता दम तोड़ने लगता है. वर्तमान लाइफस्टाइल में जहां पतिपत्नी दोनों कामकाजी है और दिन में 8-10 घंटे वे घर से बाहर रहते हैं और उन का विपरीत सैक्स के साथ उठनाबैठना होता है, जो दोनों के बीच शक का कारण बनता है. ऐसे में पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे पर विश्वास रखना होगा.

बिजी लाइफस्टाइल

शादी के बाद जहां वैवाहिक रिश्ते को बनाए रखने में पतिपत्नी दोनों की जिम्मेदारी होती है, वहीं इसे खत्म करने में भी दोनों का ही हाथ होता है. शादी के कुछ वर्षों बाद जब दोनों अपनी रूटीन लाइफ से बोर हो कर और जिम्मेदारियों से बचने के लिए किसी तीसरे की तरफ आकर्षित होने लगते हैं यानी ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखते हैं, तो वैवाहिक रिश्ते का अंत शक से शुरू हो कर एकदूसरे को शारीरिक नुकसान पहुंचाने और हत्या तक पहुंच जाता है.

कई बार परिवार की जिम्मेदारियों के बीच फंसे होने के कारण जब पतिपत्नी जिंदगी की उलझनों को सुलझा नहीं पाते तो उन के बीच अनबन होने लगती है और उस के लिए वे बाहरी संबंधों को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं. उन के दिमाग में शक घर करने लगता है. धीरेधीरे शक गहराता जाता है और झगड़ा बढ़ जाता है. यदि कोई उन्हें समझाए तो शक और सारी समस्याएं खत्म हो सकती हैं, लेकिन एकल परिवार में उन्हें समझाने वाला कोई नहीं होता. इस कारण हालात मारपीट से ले कर हत्या तक पहुंच जाते हैं.

तुम सिर्फ मेरे हो वाली सोच

लाइफपार्टनर के प्रति अधिक पजैसिव होना भी शक का बड़ा कारण बनता है. आज के माहौल में जहां महिलाएं और पुरुष औफिस में साथ में बड़ीबड़ी जिम्मेदारियां संभालते हैं, ऐसे में उन का आपसी मेलजोल होना स्वाभाविक है. फिर पति या पत्नी में से जब भी कोई एकदूसरे को किसी बाहरी व्यक्ति से मेलजोल बढ़ाते देखता है तो उस पर शक करने लगता है और उसे यह बरदाश्त नहीं होता कि उस का लाइफपार्टनर, जिसे वह प्यार करता है, वह किसी और से मिलेजुले, क्योंकि वह उस पर सिर्फ अपना अधिकार समझता है.

इस तरह की मानसिकता संबंधों में कड़वाहट भर देती है. पति या पत्नी जब फोन पर किसी अन्य महिला या पुरुष का मैसेज या कौल देखते हैं तो एकदूसरे पर शक करने लगते हैं. भले ही वास्तविकता कुछ और ही हो, लेकिन शक का बीज दोनों के संबंध में दरार डाल देता है, जिस का अंत मारपीट और हत्या जैसी घटनाओं में

होता है.

जासूसी का जरीया बनते ऐप्स

पतिपत्नी के रिश्ते में दूरी लाने में स्मार्टफोन भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. जहां सोशल मीडिया ने वैवाहिक जोड़ों को शादी के बंधन से अलग किसी और के साथ प्यार की पींगें बढ़ाने का मौका दिया है, वहीं स्मार्ट फोन में ऐसे ऐप्स भी आ गए हैं, जो पतिपत्नी को एकदूसरे की जासूसी करने का पूरा अवसर देते हैं.

इन ऐप्स द्वारा पति या पत्नी जान सकती है कि उस का लाइफपार्टनर उस के अतिरिक्त किस से फोन पर सब से ज्यादा बातें करता है यानी किस से आजकल उस की नजदीकियां बढ़ रही हैं, उन के बीच क्या बातें होती हैं, वे कौन सी इमेज या वीडियो शेयर करते हैं. यानी लाइफपार्टनर के फोन पर कंट्रोल करने का पूरा इंतजाम है. ये ऐप्स लाइफपार्टनर की हर ऐक्टिविटी पर नजर रखने का पूरा मौका देते हैं. इन ऐप्स की मदद से लाइफपार्टनर का फोन पूरी तरह आप का हो सकता है.

अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप तकनीक का सदुपयोग आपसी रिश्तों में नजदीकी लाने में करें या उसे रिश्ते में दूरी बनाने का कारण बनाएं?

2 कदम तुम चलो, 2 कदम हम

पति पत्नी का संबंध बेहद संवेदनशील होता है, जिस में अपने साथी के साथ प्यार होने के साथसाथ एकदूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के निर्वाह का भाव भी होना जरूरी है. जब हम अपने साथी के प्रति अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह करते हैं, तो हमें अपने अधिकारों को मांगने की जरूरत नहीं पड़ती. वे स्वत: मिल जाते हैं. लेकिन जब हम अपने कर्तव्यों को तिलांजलि दे देते हैं और अधिकारों की मांग करते हैं, तो फिर यहीं से शुरुआत होती है प्रेमपूर्ण संबंधों में टकराव की. जैसाकि अनिल और रोमा के साथ हुआ.

‘‘यह क्या है, सारे कपड़े बिखरे पड़े हैं. जरा सी भी तमीज नहीं है,’’ घर को अस्तव्यस्त देख कर औफिस से आते ही अनिल का पारा चढ़ गया.

किचन में खाना बनाती रोमा उस की बात सुन कर एकदम से बोल पड़ी, ‘‘सामान बिखरा पड़ा है, तो ठीक कर दो न, क्या मेरी ही जिम्मेदारी है कि मैं ही घर के सारे काम करूं? मैं भी तो औफिस जाती हूं. लेकिन घर आने के बाद सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. तुम तो सब्जी तक नहीं लाना चाहते. औफिस से आते ही खाना बनाऊं या घर समेटूं? खाने में देर होने पर भी तुम्हारा पारा चढ़ जाता है. खाना भी समय पर मिलना चाहिए और घर भी सजासंवरा. मैं भी इनसान हूं कोई मशीन नहीं.’’

रोमा की बात सही थी, लेकिन उस का कहने का तरीका तीखा था, जो अनिल को चुभ गया. फिर क्या था छोटी सी बात झगड़े में बदल गई और 3 दिनों तक दोनों में बोलचाल बंद रही.

एकदूसरे को समझें

आमतौर पर ऐसी स्थिति हर उस घर में होती है, जहां पतिपत्नी दोनों वर्किंग होते हैं. वहां काम को ले कर आपस में चिकचिक होती रहती है. इस का कारण यह है कि पति को पत्नी का पैसा तो चाहिए, लेकिन उस के काम में हाथ बंटाना उसे गंवारा नहीं. ऐसा नहीं है कि इस तरह की खटपट सिर्फ कामकाजी पतिपत्नी के बीच ही होती है. जो पत्नियां हाउसवाइफ हैं, उन के पति उन के बारे में यही सोचते हैं कि वे दिन भर औफिस में काम करते हैं और बीवी घर पर आराम करती है. जबकि सच यह है कि हाउसवाइफ भी दिन भर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में आराम करने की फुरसत नहीं पाती है. सच तो यह है कि पतिपत्नी के बीच तकरार का कारण उन का एकदूसरे को न समझना और एकदूसरे के काम को कम आंकना है.

जब तक हम अपने साथी के प्रति प्रेम और आदर का भाव नहीं रखेंगे और उसे और उस के परिवार के सदस्यों को अपना नहीं समझेंगे, तब तक हम सुखमय पारिवारिक जीवन की कल्पना चाह कर भी नहीं कर सकते.

प्यार दो प्यार लो

प्यार कभी भी एकतरफा नहीं हो सकता है. अगर आप चाहते हैं कि आप का साथी आप को सराहे, तो इस के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप भी उसे उसी शिद्दत से प्यार करें, जिस तरह से वह करता है. सच तो यह है कि एकतरफा संबंधों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है. जब आप किसी के साथ वैवाहिक बंधन में बंध जाते हैं, तो यह बात बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती है कि आप अपने साथी को उसी रूप में चाहें जैसा वह है. अगर आप उसे बदलने की कवायद में लग जाएंगे, तो आप दोनों के बीच कभी भी सहज प्रेमसंबंध नहीं बन पाएंगे. खुश रहने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप दोनों एकदूसरे से बिना शर्त प्यार करें.

थोड़ा आदर थोड़ा सम्मान

प्यार भरे संबंधों के लिए एकदूसरे को प्यार करने और एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करने के साथसाथ यह भी बेहद जरूरी है कि आप अपने साथी को वही आदरसम्मान दें, जिस की आप उस से अपेक्षा करते हैं. अगर आप को अपने साथी की कोई बात अच्छी नहीं लगती है या आप को उस से शिकायत है, तो उसे चार लोगों के सामने बुराभला कहने के बजाय अकेले में बात करना उचित होता है.

माना कि आप की पत्नी ने खाना बनाया और उस में थोड़ा सा नमक ज्यादा हो गया, मगर आप ने उसे परिवार के सभी सदस्यों के सामने खरीखोटी सुना दी. इस से आप की पत्नी की भावनाएं ही आहत नहीं होती हैं उस का सम्मान भी खंडित होता है.

इसी तरह से आप के पति कोई सामान लाएं और उस में कुछ खराब निकल गया और आप ने उन्हें सुना दिया कि आप को तो कोई भी सामान खरीदने का तरीका नहीं आता है. इस से उन की भावनाएं आहत होंगी और आप दोनों के संबंध में न चाहते हुए भी दूरी आने लगेगी. ऐसी स्थिति से बचने के लिए यह जरूरी है कि आप दोनों एकदूसरे की कमियों को दूसरों के सामने जाहिर कर के अपने साथी को अपमानित करने के बजाय एकदूसरे की कमियों को दूर कर के उसे पूरा करने की कोशिश करें. पतिपत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं, आप को अपने जीवन में इस भावना को भरने की जरूरत है. तभी आप अपने जीवनसाथी को पूरा आदरसम्मान दे पाएंगे.

दायित्वों का निर्वाह

कोई भी काम किसी एक का नहीं है. अगर आप अपने मन में यह भावना रखेंगे तो कभी आप दोनों के बीच तकरार नहीं होगी. पतिपत्नी दोनों के लिए यह जरूरी है कि वे किसी काम को किसी एक पर थोपने के बजाय उसे मिलजुल कर करें. ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जब पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी हैं, तो ऐसे में पत्नी से यह अपेक्षा करना कि औफिस से आने के बाद घर समेटना, खाना बनाना, बच्चों को होमवर्क कराना सारी उस की जिम्मेदारी है, गलत बात है. घर आप दोनों का है, इसलिए जिम्मेदारियां भी आप दोनों की हैं. अगर आप दोनों एकसाथ मिल कर दायित्वों का निर्वाह करेंगे, तो आप को जीवन में खुशियों का समावेश स्वत: हो जाएगा. अगर आप ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर घरेलू कामों को पूरा कर दिया, तो आप छोटे नहीं हो जाएंगे, उलटे इस से आप दोनों के संबंधों में प्रगाढ़ता ही आएगी. पतिपत्नी का संबंध साझेदारी का है, जिस में एकदूसरे के साथ अपना सुखदुख साझा करने के साथसाथ घरबाहर की जिम्मेदारियों में भी साझेदारी निभाने की जरूरत है. तभी आप अपने घर का माहौल हंसीखुशी से परिपूर्ण बना सकते हैं.

बहस है बेकार

यह सच है कि पतिपत्नी के संबंध में प्यार के साथ तकरार भी होती है, लेकिन छोटीछोटी बातों पर एकदूसरे से झगड़ना अच्छी बात नहीं है. अगर आप को अपने साथी की कोई बात अच्छी नहीं लगती है, तो उसे ले कर बेकार की बहस करना अच्छा नहीं है, क्योंकि कब छोटी सी बात भयंकर झगड़े का रूप ले लेती है, पता ही नहीं चलता है. अगर आप दोनों के बीच किसी बात को ले कर मनमुटाव हो गया है, तो एकदूसरे से माफी मांगने में झिझकें नहीं. सुखमय दांपत्य जीवन के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप अपने संबंधों के बीच अपने अहं को न आने दें.

एकदूसरे की केयर करते हैं

‘‘आज की बिजी लाइफ में लोग अपना ही खयाल नहीं रख पाते, तो दूसरे का क्या रखेंगे. लेकिन पतिपत्नी के रिश्ते में यह लागू नहीं होता. भले ही वे अपना खुद का ध्यान न रख पाते हों, लेकिन अपने पार्टनर का ध्यान जरूर रखते हैं. यहीं से भावनात्मक जुड़ाव की शुरुआत होती है. वैसे रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए दांपत्य जीवन के पुराने ढर्रों से बाहर निकल कर उसे रोमांचित बनाने का भी प्रयास करना चाहिए. इस से बौंडिंग और भी मजबूत होती है.’’

– स्मिता व पोरस चड्ढा, शादी को 5 वर्ष बीत चुके हैं

इन बातों का रखें ध्यान

– सुखमय दांपत्य जीवन के लिए यह जरूरी है कि आप अपने साथी को उस की अच्छाईबुराई के साथ स्वीकार करें. उसे बदलने की कोशिश करने के बजाय उसे समझने की कोशिश करें.

– अपनेआप को अपने साथी से ज्यादा समझदार और महत्त्वपूर्ण समझने के बजाय उस का पूरक बनने की कोशिश करें. इस बात को समझें कि जिस तरह से साइकिल 1 पहिए से नहीं चल सकती है, उसी तरह पतिपत्नी रूपी साइकिल भी 1 पहिए से नहीं चल सकती. जब तक पतिपत्नी दोनों के बीच तालमेल नहीं होगा आप के जीवन में खुशियों का समावेश नहीं होगा.

– अपने जीवनसाथी के साथसाथ उस से जुड़े लोगों को भी पूरा आदरसम्मान दें.

– घर के काम को किसी एक की जिम्मेदारी समझने के बजाय उसे मिलबांट कर निबटाने की कोशिश करें.

– इस बात को समझें कि कोई भी संबंध एकतरफा नहीं चल सकता. अगर आप चाहते हैं कि आप का साथी आप को प्यार करे और आप का सम्मान करे, तो आप को भी ऐसा ही करना होगा.

– अपने जीवनसाथी की भावनाओं का खयाल रखें और महत्त्वपूर्ण दिनों पर उस का मनपसंद उपहार दें.

अच्छे दोस्त भी हैं

‘‘पतिपत्नी का रिश्ता ताउम्र हंसीखुशी निभाने के लिए आपस में दोस्ती का संबंध होना बहुत जरूरी है. यदि दोनों दोस्ती का रिश्ता रखेंगे, तो कभी भी दोनों के मध्य अहंकार का कोई स्थान नहीं होगा. यह सच है कि किसी महिला के लिए एक नए परिवार से जुड़ना, नए रिश्ते निभाना आसान नहीं होता. मगर यह चंद दिनों की बात होती है. बाद में यही अटपटी चीजें प्यारी लगने लग जाती हैं.’’

– डा. मीनाक्षी ओमर व रवि ओमर, शादी को 10 वर्ष बीत चुके हैं

साथी साथ निभाना

– अपने प्रेम को प्रगाढ़ करने के लिए एकदूसरे की भावनाओं को समझें.

– सरप्राइज उपहार दें. पत्नी अगर कामकाजी है और पति औफिस से पहले घर आए तो घर को सजासंवरा कर पत्नी को तारीफ करने का मौका दें.

– पत्नी अस्वस्थ है, तो पति घर पर रह कर पत्नी का खयाल रखे.

– एकसाथ घूमने जाएं. नए प्रेमी की तरह हाथ में हाथ डाले चलें.

– कभीकभी एकदूसरे को फूल उपहार में दें. इस से रिश्ते में गरमाहट बनी रहती है.

– हमेशा खुश रहने की कोशिश करें और संबंधों के बीच कभी भी स्वार्थ, अहं को न आने दें.

बड़ी उम्र में शादी: जरूरी या मजबूरी

तथाकथित सभ्य समाज में भी विवाह जैसे बेहद निजी मामले में लोगों की राय बिन बुलाए मेहमान की तरह तुरंत आ टपकती है. उस पर भी बात यदि बड़ी आयु में हो रहे विवाह की हो तो सभी की नजरें उस व्यक्तिविशेष पर यों उठ जाती हैं जैसे उस ने इस उम्र में शादी कर के कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो. अपराधी न होते हुए भी उसे लोगों की घूरती निगाहों और व्यंग्य बाणों का सामना करना पड़ता है.

समाज में इस तरह के विवाह को रंगीलेपन की श्रेणी में ही रखा जाता है. उस व्यक्ति के चरित्र पर हर तरफ से उंगलियां उठने लगती हैं. सभी ऐसा जताते हैं जैसे बड़ी उम्र में उस के विवाह कर लेने से विवाह की पवित्रता के भंग हो जाने का पूरापूरा खतरा है. बड़ी उम्र में हुए इस विवाह के कारण लोगों का विवाह के इस बंधन से भरोसा ही उठ जाएगा. क्या बड़ी उम्र में की गई यह शादी टिक पाएगी या इस उम्र में शादी कर के उन्हें क्या हासिल होगा जैसे प्रश्नों की झड़ी सी लग जाती है, जिन के उत्तर में व्यक्ति घबरा जाता है. समाज के ठेकेदार कहे जाने वालों की यह सोच उन की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाती है. उन के हिसाब से उम्र के इस आखिरी पड़ाव को बिताने का रामभजन ही सर्वोत्तम तरीका है. क्या जरूरत है कि शादी की ही जाए?

क्या है वास्तविकता

मगर वास्तविकता कुछ और है. जीवन की अनुभवजनित सचाई यही कहती है कि बढ़ती उम्र के इस दौर में इनसान का अकेलापन भी बढ़ता जाता है. विशेषकर उन हालात में जब कोई बुजुर्ग अपने जीवनसाथी को खो चुका हो या उस से अलग हो चुका हो.

कुछ शारीरिक थकान और कुछ मानसिक तौर पर असुरक्षा का भाव इनसान को अंदर ही अंदर भयभीत कर देता है. उम्र के इस पड़ाव पर व्यक्ति को एक साथी की जरूरत होती है, जो उसे मानसिक व भावनात्मक संबल दे सके, उस के दुखदर्द या मनोदशा को समझ सके और यह काम एक जीवनसाथी ही कर सकता है.

यह वह समय होता है जब बुजुर्गों के पास अनुभवों का भंडार होता है और सुनने वाले सिर्फ गिनती के. अत: एक बार युवावस्था तो अकेले बिताई जा सकती है, परंतु बड़ी उम्र के इस दौर में व्यक्ति को एक अदद साथी की जरूरत होती ही है, जो न सिर्फ न्यायसंगत है, बल्कि सुरक्षित भी. तो क्या गलत है अगर कोई बुजुर्ग अकेले होने पर किसी का दामन थाम उस के साथ जिंदगी बिताना चाहे. क्या बड़ी उम्र में वह अपनी खुशी के लिए अपनी जिंदगी के फैसले नहीं कर सकता?

जैसे तैसे क्यों जीना

वृद्धावस्था उम्र का वह दौर होता है जब व्यक्ति अपने सभी कर्तव्यों से निवृत्त हो चुका होता है. जैसे बच्चों को पढ़ालिखा, योग्य बना कर उन की शादीब्याह कर चुका होता है. बच्चे भी शादीब्याह कर अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं. उन की प्राथमिकताएं भी बदल जाती हैं. वे चाह कर भी अपने बुजुर्गों के साथ अधिक समय नहीं बिता पाते. तो ऐसे में क्या उन को अपनी बढ़ती उम्र के चलते जिंदगी को बोझ समझ कर जैसेतैसे जीते रहना चाहिए, या उन्हें जिंदगी के एक नए दौर की शुरुआत करनी चाहिए? इस उम्र में शादी करने का फैसला एक अहम फैसला होता है, जिस का तहेदिल से स्वागत होना चाहिए.

यहां पर फिल्म इंडस्ट्री के जानेमाने कलाकार और फिल्म मेकर करीब बेदी द्वारा 70 साल की उम्र में 42 साल की परवीन दुसांज से की गई शादी इस का बेहतरीन उदाहरण है. यह कबीर बेदी की चौथी शादी है. उन की पिछली तीनों शादियां क्यों सफल नहीं हो पाईं या उन के टूटने के क्या कारण थे, उन का नितांत व्यक्तिगत मसला है. उन रिश्तों की हकीकत कुछ भी हो, उन पर सवाल उठाना बेमानी होगा, उन के निजी मामलों में दखल होगा. लोगों द्वारा ये कयास जरूर लगाए जा रहे होंगे कि क्या यह शादी सफल होगी या फिर पिछली तीनों शादियों की तरह यह भी बिखर जाएगी?

इस बारे में रोचिका अपनी बेबाक राय देते हुए कहती हैं कि कबीर बेदी की 3 शादियां नहीं टिकीं तो चौथी शादी के टिकने में भी बड़ा संशय है. आकांक्षा का भी यही कहना है कि क्या गारंटी है कि कबीर की चौथी शादी टिकेगी ही? ऐसे में यहां एक प्रश्न उठाना चाहूंगी कि माना कि करीब बेदी की चौथी शादी के टिकने की संभावना बहुत कम है, पर जिन नवविवाहित जोड़ों की शादी महीने भर में ही तलाक के कगार पर आ खड़ी होती है. क्या उन की शादी के टिकने की गारंटी आप ले सकते हैं? यदि नहीं तो बड़ी उम्र की शादी पर इतना बवाल क्यों? किशोर कुमार की 4 शादियों के बाद भी उन की लोकप्रियता में कहीं कोई कमी नहीं हुई. आज भी उन को एक महान गायक और कलाकार के रूप में जाना जाता है.

राय जुदाजुदा

समझ व अनुभव में काफी बड़ी सुधा का कहना है कि अगर किशोर कुमार 4 विवाह कर के भी लोगों में लोकप्रिय हैं, तो इसलिए कि आम जनता उन के कार्यक्षेत्र से प्रभावित है, उन की पर्सनल लाइफ से उसे कुछ लेनादेना नहीं है. लोग किशोर कुमार की आवाज के दीवाने हैं. तो यहां पर सुधा ने अनजाने में खुद ही मेरी बात का समर्थन कर दिया, जिसे मैं पहले ही उदाहरणस्वरूप पेश कर चुकी थी. हां, सुधा  की इस बात से अवश्य सहमत हुआ जा सकता कि है शादी के नाम पर इस संस्था का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

फिल्म जगत में किया जाने वाला कोई भी कार्य हमारे समाज खासकर युवाओं पर गहरा असर डालने वाला होता है. फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों- दिलीप कुमार व अमिताभ बच्चन के आर्दश जीवन का नमूना भी पेश है.

पूनम अहमद इस बात से पूरा इत्तफाक रखते हुए कहती हैं कि हर किसी के हालात अलग होते हैं. यह जरूरी नहीं है कि अगर कुछ लोगों की शादी एक आर्दश बनी हो तो सभी उसी नक्शेकदम पर चल पाएं. पूनम ने एक और तर्क दिया कि वे दोनों जब तक लिव इन में रहे कोई नहीं बोला, लेकिन जैसे ही रिश्ते को नाम दिया तो हंगामा क्यों बरपा? यहां यह बात माने नहीं रखती कि किस कारण से व्यक्तिविशेष की शादी टूटी है, बल्कि बात यहां प्रौढ़ावस्था में अपनेपन व सहारे की जरूरत की है, जिसे चाहना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार भी है क्योंकि इस उम्र में इनसान के लिए सिर्फ भावनाओं की अहमियत होती है न कि दैहिक सुख की. बड़ी आयु की शादी की सार्थकता और प्राथमिकता इसी में समाई है.

बढ़ती उम्र में भी व्यक्ति अपने जीवन से प्यार करे और उसे जिंदादिली से जीए. एकदूसरे का सच्चा साथी, हमदर्द बन कर एकदूसरे का सहारा बने. इस से अधिक खुशी की बात और क्या हो सकती है और धीरेधीरे ही सही समाज भी बदलाव को स्वीकार अवश्य करेगा.

शादी का बंधन प्यार का बंधन

जो लोग वैलेंटाइन डे को केवल प्यार के इजहार से जोड़ कर देखते हैं, वे इस का सही अर्थ नहीं समझते. वैलेंटाइन डे प्यार के साथसाथ शादी से भी जुड़ा है. रोम में तीसरी शताब्दी के सम्राट क्लाडियस का अपने शासनकाल में यह मानना था कि शादी करने से पुरुषों की शक्ति और बुद्धि कम होती है. इसलिए उस ने अपने सैनिकों और अफसरों के लिए शादी न करने का फरमान जारी कर दिया. संत वैलेंटाइन ने इस बात का विरोध किया और सैनिकों और अफसरों को शादी करने का आदेश दिया. इस से नाराज हो कर क्लाडियस ने 14 फरवरी, 269 को उसे मौत की सजा दे दी. उसी की याद में लोगों ने वैलेंटाइन डे मनाने की शुरुआत की.

वैलेंटाइन डे और शादी के बीच रिश्ते को समझ कर अब भारत में भी युवाओं ने वैलेंटाइन डे को मैरिज डे के रूप में मनाने की शुरुआत कर दी है. इस से कट्टरवादी सोच को करारा जवाब मिला है.

कट्टरवादी लोग वैलेंटाइन डे की कितनी ही आलोचना कर लें, पर प्यार करने वालों के लिए इस दिन का महत्त्व कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. 2015 में होने वाली शादियों की तारीखों को देखा जाए तो सब से अधिक शादियां वैलेंटाइन डे के ही दिन हो रही हैं. होटलों, मैरिज हौलों, ब्यूटीपार्लरों और मैरिज गार्डनों की बुकिंग में सब से ज्यादा मारामारी इसी दिन की है. इस की वजह यह है कि हम सामान्य व्यवहार में उदार होने लगे हैं. हम हर उस त्योहार को मनाने लगे हैं जिसे बहुत सारे लोग मनाते हैं. इस से साफ पता चलता है कि त्योहार अब किसी खास धर्म की बपौती नहीं रह गए हैं. वैलेंटाइन डे, चीनी नया साल, क्रिसमस, ईद, दीवाली आदि सभी लोग मिल कर मनाने लगे हैं. इसी वजह से सामान्य रीतिरिवाज वाले दिनों को पीछे छोड़ कर लोगों ने वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने की शुरुआत कर दी है.

स्पैशल दिन बनाने की चाहत

रीतिका कहती हैं, ‘‘मैं अपनी शादी के दिन को स्पैशल दिन बनाना चाहती थी. मुझे लगा कि अगर हम शादी के दिन को पूरी जिंदगी स्पैशल फील करना चाहते हैं, तो क्यों न वैलेंटाइन डे के दिन ही शादी करें. इस से हमें हर साल एक अलग तरह का एहसास अनुभव होता रहेगा. शादी की सफलता में प्यार और रोमांस का सब से अहम रोल होता है. वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने से यह हमेशा अनुभव होता रहेगा. हम जब भी अपनी शादी की सालगिरह मनाएंगे एक स्पैशल फीलिंग आती रहेगी.’’

खुशियों का बाजार

हाल के कुछ सालों से वैलेंटाइन डे के दिन प्यार का इजहार करने के लिए बाजार में तरहतरह के ऐसे उत्पाद आने लगे हैं, जो रिश्तों को रोमानी बनाने का पूरा काम करते हैं. होटलों में रुकने, घूमने या खाने जाएं तो वहां की सजावट अलग किस्म की होती है. इस से रोमांस की फीलिंग आती है. पत्रिकाएं, अखबार और टीवी से ले कर दूसरी तमाम जगहों पर केवल और केवल प्यार और रोमांस का माहौल रहता है. सब से खास बात यह कि ज्वैलरी से ले कर कपड़े तक कुछ भी खरीदने के लिए जाएं तो वैलेंटाइन डे औफर की भरमार रहती है. कुल मिला कर इस दिन खुशियों से बाजार भरा रहता है.

मैरिज डे बन गया वैलेंटाइन डे

वैलेंटाइन डे के दिन अपनी शादी की छठी सालगिरह मना रहे अर्पित और पारुल श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘वैलेंटाइन डे के दिन शादी कर के हम ने प्यार के बंधन को शादी के बंधन में बांधने का काम किया है. हमें इस दिन शादी की सालगिरह मना कर बहुत अच्छा अनुभव होता है. प्यार को शादी के बंधन में बांधने का इस से अच्छा दूसरा दिन नहीं हो सकता है. इस दिन हमारे साथ पूरी दुनिया प्यार के इस प्रतीक को मनाती है.’’  लैक्मे ब्यूटी सैलून की संचालक रिचा शर्मा कहती हैं, ‘‘शादी के लिए दुलहन को तैयार करने की सब से अधिक बुकिंग हमारे पास वैलेंटाइन डे के दिन की ही आ रही है. हाल के कुछ सालों से यह चलन धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा है. शादीशुदा कपल्स भी वैलेंटाइन डे के दिन थीम पार्टियों का आयोजन करने लगे हैं, जिस से इस दिन मेकअप कराने वालों की तादाद बढ़ जाती है,’’

समाज में अब रूढियां टूट रही हैं. लोग अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जीना चाहते हैं. वे अपनी जिंदगी में किसी भी तरह के धर्म या आडंबर को जगह नहीं देना चाहते हैं.

टूटते आडंबर

वैलेंटाइन डे को पश्चिमी सभ्यता का दिन मान कर जिस तरह से इस का विरोध किया गया था वह गलत था. वैलेंटाइन डे को अपनी शादी का दिन बना कर लोगों ने इस बात को साबित कर दिया है. इन लोगों ने कट्टरवादी लोगों और उन की सोच को करारा जवाब भी दिया है. समय के साथ चलना आज की जरूरत है. ऐसे में जिस दिन पूरी दुनिया खुशी मनाती हो हमें भी उस में शामिल हो जाना चाहिए. हमें धर्म के आडंबरों को इस से दूर रखना चाहिए ताकि हर तरह के लोग एकसाथ मिल कर खुशियां मना सकें.

कुछ साल पहले तक इस दिन सड़कों, पार्कों, सिनेमाहौलों और दूसरी जगहों पर लड़कालड़की का साथ खड़े होना मुश्किल होता था. कुछ कट्टरवादी लोग इस दिन ग्रीटिंग कार्ड तक बिकने नहीं देते थे. शहर और समाज को सुरक्षित रखने के लिए पुलिस और प्रशासन को अलग से सुरक्षा इंतजाम करने पड़ते थे. मगर अब समाज ने कट्टरवादी विचारधारा को दरकिनार कर वैलेंटाइन डे को शादी का दिन बना कर सामाजिक स्वीकृति दे दी है. इस बारे में लखनऊ की अनिता मिश्रा कहती हैं, ‘‘कई देशों में हमारी सोच को दकियानूसी माना जाता है. वैलेंटाइन डे को जिस तरह से हमारे देश ने अपनाया है, उसे एक नई सोच दी है. इस से साफ पता चलता है कि हमारा देश और हमारी सोच दकियानूसी नहीं है. वैलेंटाइन डे को हमारे समाज ने प्यार के दायरे से बाहर निकाल कर परिवार और प्यार दिवस के रूप में मनाने का बड़ा काम किया है. यह बताता है कि हम रूढिवादी ताकतों और सोच को पछाड़ कर आगे बढ़ रहे हैं.’’

परिवार दिवस के रूप में नई पहचान

समाजशास्त्री डाक्टर दीपमाला सचान कहती हैं, ‘‘शादी और प्यार का रिश्ता एकदूसरे का पूरक होता है. ऐसे में प्यार को परिभाषित करने वाले दिन को शादी का दिन बना कर युवाओं ने जो शुरुआत की है वह बहुत सार्थक है. समाज भी इसे स्वीकार रहा है. आने वाले दिनों में यह और प्रचलित होगा. इस से कट्टरता के नाम पर वैलेंटाइन डे का विरोध करने वालों को करारा जवाब मिल रहा है. लोगों ने बता दिया है कि समाज में कट्टरता फैलाने वालों के लिए कोई जगह नहीं रह गई है.’’

वैलेंटाइन डे को जिस तरह से प्यार के साथ जोड़ कर पहले प्रचारप्रसार किया गया था, उस से एक अलग तरह का संदेश युवाओं में गया. इसे उन्होंने लड़कियों को प्रभावित करने का जरीया समझ लिया था. अब इसे परिवार दिवस के रूप में जगह मिल गई है. वैलेंटाइन डे के दिन शादी कर के युवाओं ने इस दिन को परिवार दिवस के रूप में मान्यता देने का काम किया है. इस से समाज में वैलेंटाइन डे की नई पहचान बनी है. इस का विरोध करने वालों को भी अब यह समझ में आने लगा है. यही वजह है कि साल दर साल वैलेंटाइन डे के विरोध की घटनाएं कम होने लगी हैं. वैलेंटाइन डे का विरोध करने वाले केवल प्रतीकात्मक विरोध करने के लिए विरोध प्रदर्शन करने भर तक सीमित रहने लगे हैं.

Raksha Bandhan: भाई-बहन आपकी सबसे बड़ी संपत्ति 

टीनएज जीवन का ऐसा पड़ाव होता है, जहां अपने पराए लगने लगते हैं और पराए अपने. इस उम्र में हमारी आंखों पर ऐसी पट्टी पड़ जाती है कि हमें अपने भाईबहन भी अपने जानी दुश्मन लगने लगते हैं. हम उनसे भी अपनी बातें शेयर करना पसंद नहीं करते हैं. यहां तक कि मुसीबत में पड़ने पर भी उन्हें बताने से डरते हैं कि इन्हें बताने से पापामम्मी को पता चल जाएगा और जिससे उन्हें डांट पड़ेगी , जिसका नतीजा यह होता है कि हम गलतियां करते जाते हैं और उनका खामियाजा अकेले ही भुगातना पड़ता है और कई बार तो हमें इसकी वजह से कई मुसीबतों का भी सामना करना पड़ता है. इसलिए ये समझना बहुत जरूरी है कि भाईबहन हमारे दुश्मन नहीं बल्कि हमारी असली संपत्ति होते हैं. जी हां , आइए जानते हैं कैसे.

1. मुसीबत में हमें बचाते

नेहा जो बहुत ही स्मार्ट और पैसे वाली थी, जिसके कारण हर लड़का उससे फ्रेंडशिप करने को उत्सुक रहता था. और जिसके कारण नेहा भी किसी को खुद के सामने कुछ नहीं समझती थी. और उसकी इसी बेवकूफी का फायदा उसके बोयफ्रेंड साहिल ने उठाया. उसने नेहा से पैसे ऐंठने के चक्कर में उससे कुछ न्यूड फोटोज क्लिक करने को कहा. कहते हैं न कि प्यार में सब जायज होता है. उसने बिना सोचेसमझे साहिल को फोटोज भेज दी. अब तो वह उसे इन फोटोज से ब्लैकमेल करके पैसे ऐंठने लगा. जिसके कारण वह परेशान रहने लगी. लेकिन उसके भाई से ये सब देखा न गया और उसने बहन को कसमें देकर उससे परेशानी की वजह को जान ही लिया. और फिर भाई का फर्ज निभाते हुए उसने मम्मीपापा को बताए बिना साहिल को ऐसा सबक सिखाया कि आगे वह कभी नेहा जैसी लड़कियों को धोखा देने के बारे में सोचेगा भी नहीं. इस घटना के बाद नेहा को समझ आ गया कि भाई से प्यारा कोई नहीं. इससे धीरेधीरे दोनों के बीच बोंडिंग स्ट्रोंग बनती चली गई.

2. चीजें शेयर करने में हिचकिचाते नहीं 

भाईबहन का रिश्ता ऐसावैसा नहीं होता है. चाहे आपस में कितनी भी लड़ाई क्यों न हो जाए , लेकिन मुसीबत या फिर एकदूसरे के चेहरे पर खुशी लाने के लिए दोनों एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. यहां तक कि अपनी सबसे प्यारी चीज भी शेयर करने से नहीं  हिचकिचाते हैं. शोभा जो पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम जोब करती थी, क्योंकि एक तो वह खुद कुछ करना चाहती थी और दूसरा पिता के बीमार होने के बाद से उसके घर की हालत भी ठीक नहीं थी. उसने मेहनत करके पैसा कमाया. और फिर घर की जरूरतों को पूरा करते हुए फिर अपने लिए एक लैपटोप भी खरीदा. जिसे खरीदने का वह काफी समय से सपना देख रही थी. इसे पाकर वह बहुत खुश भी थी. लेकिन इस बीच उसके भाई की भी ऑनलाइन क्लासेज शुरू हो गई और उसे भी लैपटोप की जरूरत पड़ी. तो शोभा ने बिना कुछ सोचे अपनी सबसे प्यारी चीज को अपने भाई को दे दिया. ताकि उसे किसी भी तरह की कोई दिक्कत न हो. जो इस बात की और इशारा करता है कि चाहे चीज कितनी भी कीमती व जरूरी  क्यों न हो, लेकिन इस रिश्ते से बड़ी व कीमती नहीं हो सकती.

3. करते हैं  मोटिवेट 

कई बार जीवन में ऐसे पड़ाव भी आते हैं , जिसमें हम हिम्मत छोड़ने लगते हैं. जीवन जीने की इच्छा ही खत्म होने लगती है. हमें ऐसा लगने लगता है कि हम कुछ नहीं कर सकते, बस सामने हार ही हार नजर आती है. ऐसे में भाई हो या बहन एकदूसरे का हौसला बढ़ाकर उसे आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करते हैं. राहुल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उसके नौंवी में बहुत कम मार्क्स आए , जिससे उसके मन में ये बात बैठ गई कि उसका कैरियर चौपट सा हो गया है, अब इसकी वजह से न ही घर में उसे प्यार सम्मान मिलेगा और न ही स्कूल में. सब उसका मजाक बनाएंगे. जिसकी वजह से उसके चेहरे की हंसी भी गायब होने लगी थी. ऐसे में उसकी बहन ने उसे समझाया कि जरूरी नहीं कि जो जीवन में एक बार हार जाए या फिर असफल हो जाए , उसे बारबार हार का ही सामना करना पड़ेगा. हमारे सामने है अल्बर्ट अ ाइंटरिन का उदाहरण. जो दुनिया में जीनियस के तौर पर जाने जाते हैं. वे चार साल तक बोल और सात साल तक की उम्र तक पढ़ नहीं पाते थे. जिससे उनके शिक्षक और पेरेंट्स उन्हें सुस्त  छात्र के रूप में देखते थे. जिसके कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया. इन सबके बावजूद वे भौतिक विज्ञान की दुनिया में सबसे बड़ा नाम साबित हुए. तुम्हें  भी इससे सीख लेकर आगे कुछ कर दिखाने के लिए जीतोड़ मेहनत करने की जरूरत है न की आज की परिस्तितियों से हार मानकर बैठ जाने की. और इसमें मैं तुम्हें जितना सपोर्ट कर सकूंगी करूंगी , लेकिन तुम्हें  इस तरह हार नहीं मानने दूंगी. यही होती है भाईबहन के रिश्ते की असली सच्चाई.

4. इमोशनली स्ट्रौंग बनाते

हम जिससे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं , कई बार हम उनसे दूर हो जाते हैं. जैसे अचानक से परिवार के किसी प्रिय सदस्य का निर्धन हो जाना , या फिर पढ़ाई या जॉब के कारण अपनों से दूर हो जाना या फिर बेस्ट फ्रेंड का दूर हो जाना, जो हमें अंदर ही अंदर परेशान करके रख देता है. ऐसे में भाईबहन ही वो टूल होते हैं , जो हमें इन परिस्तितियों से लड़कर आगे बढ़ना सिखाते हैं. हमें प्यार से समझाते हैं कि भले ही आज ये वक्त थम सा गया है, लेकिन हमें खुद को अंदर से इतना ज्यादा कमजोर नहीं बनाना है कि हम भी बस इस वक्त के साथ थम कर रह जाएं. बल्कि स्ट्रौंग बनकर आगे बढ़ना सीखना होगा. परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा, एकदूसरे को समझना होगा. अगर खुद को  इमोशनली स्ट्रौंग बनाओगे तो ये वक्त भी गुजर जाएगा. ऐसे समय में भले ही भाईबहन खुद टूट जाए , लेकिन चेहरे पर नहीं दिखाते हैं और अपने भाईबहन को फुल सपोर्ट करके इस परिस्तिथि से लड़कर आगे बढ़ना सिखाते हैं.

5. हमारे लिए लड़ जाते हैं लोगों से 

ये तो दुनिया की रीत है कि आप चाहे लोगों के लिए कितना भी अच्छा कर लो, लेकिन जरूरी नहीं कि वह आपकी तारीफ करे ही. किसी बात पर कोई आपकी तारीफ भी कर सकता है तो कोई आपकी बुराई भी . लेकिन हम किसी का मुंह नहीं रोक सकते. तनवी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उसने एक बार अपने फ्रेंड के साथ असाइनमेंट क्या शेयर नहीं किया, कि उसके फ्रेंड्स ने उससे बात करनी ही छोड़ दी. और वे  सब यूनिटी बनाकर उसका मजाक बनाने लगे. जिससे परेशान होकर तनवी ने कॉलेज जाना ही छोड़ दिया. ऐसे में उसके भाई ने उसे लोगों का मुकाबला करना सिखाया और यहां तक कि उसके लिए उसके दोस्तों तक से भी लड़ गया. वे ये हरगिज नहीं देख पाया कि किसी और की वजह से उसकी बहन की आंखों में आंसू आए. यही वो रिश्ता है , जिसमें चाहे भाईबहन आपस में कितना भी लड़ लें , लेकिन कोई और उनके अपने को परेशान करे, ये उन्हें गवारा नहीं होता.

6. लाइफ को मेमोरेबल बनाते 

कभी बहन के कपड़े छुपा देना तो कभी भाई का फोन छुपा देना, खाना खाते हुए कोई ऐसी बात कर देना, जिससे भाई या बहन गुदगुदा कर हंस दे. बचपन में तू कैसे कपड़े पहनती थी, कैसी सी लगती थी, बालों में तेल और दो चोटी करके स्कूल जाना, जिसके कारण तेरे फ्रेंड्स तुझे चिपकूचिपकू कहते थे. भाई तू भी कुछ कम नहीं था. याद है मुझे वो श्रुति का किस्सा , जिसके पीछे तूने मम्मीपापा से भी झूठ बोला था. तू कितना उसके पीछे पड़ा था और वो तुझे पतलू कहकर तुझे घास तक नहीं डालती थी. यही सब बातें भाईबहन के रिश्ते को यादगार बनाती है और ताउम्र हसने का मौका देती है.

7. उदासी को पल में दूर भगाते 

तुम मेरे लिए कितने कीमती हो, इसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है. बस इतना कह सकता हूं कि तुझे उदास देख मैं भी हो उठता हूं उदास. ऐसे में भाईबहन एकदूसरे की उदासी को दूर करने के लिए कभी उनकी पसंद की डिश बनाते हैं , तो कभी उन्हें घुमाने के बहाने उनका दिल बहलाने की कोशिश करते हैं. उनके चेहरे की उदासी को दूर करने के लिए उनके लिए गुनगुनाते हैं , क्योंकि संगीत से मन को खुशी जो मिलती है. उनके साथ खेलते हैं , साथ वक्त बिताते हैं , उनकी परेशानी को दूर करने की कोशिश करते हैं. उन्हें कोई कुछ न कहे , और परेशान न करें इसके लिए उनके बॉडीगार्ड बनकर आगे पीछे घूमते रहते हैं. बस इसी प्रयास में लगे रहते हैं कि भाई या बहन के चेहरे की उदासी दूर हो जाए और वह फिर से मुस्कुराने लगे.  इस तरह भाईबहन का रिश्ता बहुत अनमोल होता है, जिसकी हमेशा कद्र करनी चाहिए.

Raksha Bandhan: इस राखी पर बच्चों की भावनाओं को दे प्राथमिकता कुछ ऐसे

मुझे अभी भी याद आता है, जब मैं अपने घर पर तैयार हो रही थी, क्योंकि मुझे माँ के पास भाई को राखी बाँधने जाना था. मैंने बेटे रोहन को जल्दी तैयार किया और जाने की तैयारी करने लगी, तभी माँ का फ़ोन आता है कि आते हुए रास्ते से मिठाई लेते आना, क्योंकि रिया आज आ रही है. उसके पास समय नहीं होगा. माँ की ये बात सुनकर सीमा को पहले गुस्सा आया,  उसके नजदीक रहने की वजह से माँ हर काम उसे ही सौंप देती है. जबकि वह भी मुंबई में पली-बड़ी है, उसे भी सब मालूम होगा.दो बहनों के भाई राजीव को रक्षाबन्धन पर  दोनों बहने राखी बांधती है, बचपन में सभी साथ थे, लेकिन बड़े होने पर सभी अलग हो गए, लेकिन राजीव से बड़ी बहन सीमा और उससे छोटी बहन रिया की शादी होने पर वे अपने ससुराल चले गए. सीमा मुंबई में रहती है, इसलिए भाई को राखी बाँधने हर साल आती है, जबकि रिया दुबई में रहती है,पर राखी पर आने की हमेशा कोशिश करती है.

भावनाओं को महत्व देती त्यौहार

हमारे देश में वैसे तो कई खुशियों के त्यौहार होते है, लेकिन राखी उनमे सबसे अधिक खुशियाँ देता है. इस त्यौहार में भाई-बहन के रिश्ते को एक रेशम की डोरी के द्वारा भावनाओं को गहराई में उतरने का मौका मिलता है. सावन का महीना वैसे भी साज-श्रृंगार और प्यार-अनुराग का प्रतीक होता है, ऐसे में यह त्यौहार सभी भाई-बहनों के दिल में उमंग भर देता है. इस त्यौहार पर बहने भाई को ऐसी राखियाँ बांधे, जो उनके जीवन को प्रेरित करें, क्योंकि इस बार राखीप्यार, विश्वास, मुस्कान, स्वतंत्रता और क्षमा की. इसमें एकाकी होते परिवार में भूमिका होती है, पेरेंट्स की, जो इस रिश्ते को सालों साल मजबूत बनाए रखने की दिशा में अहम भूमिका निभाते है.

समझे बच्चों को

इस बारें मेंसाइकोलोजिस्ट राशिदा कपाडिया कहती है कि बच्चे के जन्म के बाद से माता-पिता की जरुरत होती है. माता-पिता का प्यार बच्चे को मिलते रहते है, उस प्यार की जरुरत उसे हमेशा रहती है, लेकिन एक बच्चे के बाद जब उन्हें दूसरा बच्चा होता है, तो उनके अंदर हमेशा यही डर रहता है कि अब मेरा प्यार बट जाएगा. जाने अनजाने में पेरेंट्स भी छोटे बच्चे पर अधिक ध्यान रखते है. माता-पिता को बच्चे की भावना को समझना जरुरी है. भाई और बहन के बीच में प्यार का बंटवारा होने पर, या दोनों में से किसी एक के दूर चले जाने पर, जो बच्चा दूर होता है, उसके आने पर पेरेंट्स का ध्यान उस बच्चे पर अधिक जाता है. हालाँकि ये स्वाभाविक है, क्योंकि हमेशा वे उससे मिल नहीं पाते. इसलिए वे उस बच्चे की पैम्परिंग अधिक करते है, उनकी पसंद, नापसंद का ख्याल रखते है, ये नैचुरल होने पर भी दूसरी बहन या भाई जो पेरेंट्स के पास रहते है, जो पेरेंट्स का अधिक ध्यान नजदीक रहने की वजह से रखते है, उनके मन में थोड़ी खटास आ जाती है. वे सोचते है कि मेरे पेरेंट्स मुझसे अधिक दूसरे भाई या बहन को प्यार दे रहे है, उनकी किसी गलतियों को नजरंदाज कर रहे है, जबकि नजदीक रहने वाले बच्चे की थोड़ी गलती को वे नजरंदाज नहीं कर पाते, लेकिन जरुरत के समय दूर रहने वाले बच्चे किसी काम के नहीं होते.

आर्थिक रूप से संपन्न बच्चे

इसके आगे राशिदा कहती है कि ऐसा अधिक पैसे वाले बच्चे के साथ भी होता है. तीनों बच्चों में जो बेटी धनी है, उसका ध्यान भी पेरेंट्स अधिक रखते है, क्योंकि जरुरत की महंगी चीजे वही दे सकते है, भले ही वे देर से क्यों न दे. इससे बच्चे के अंदर इर्ष्या की भावना पैदा होती है. दोनों बच्चों को समान रूप से ध्यान देना जरुरी है. वह नहीं मिलने पर भाई या बहन हर्ट फील करते है.

तुलना न करें

साइकोलोजिस्ट राशिदा आगे कहती है कियहाँ यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि बड़े बच्चों के शादी हो जाने पर उनके बच्चे भी होते है, जो अपने माता-पिता के प्रति उनके पेरेंट्स का व्यवहार नजदीक से देखते है. अब वे ग्रैंड पेरेंट्स बन चुके होते है, ऐसे में बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के व्यवहार पसंद नहीं आते. एक दूसरे के बीच तुलना उनके बच्चों को पसंद नहीं होता.इसपर ध्यान न देने पर परिवार की एक ट्रेडिशन बन जाती है, जो ठीक नहीं. जबकि आज बच्चे बहुत अकेले और सोशल मीडिया की दुनिया में व्यस्त होते है, जहाँ उन्हें परिवार, रिश्ते आदि का महत्व कम होता है.

Raksha Bandhan: कितना प्यारा भाई-बहन का रिश्ता

रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था. घर में सब बहुत खुश थे मगर नेहा के मन में एक कसक उठ रही थी. दरअसल उस के अपने भाई ने पिछले 7 साल से उस से कोई संबंध नहीं रखा था. उस का हर रक्षाबंधन और भाईदूज वीराना जाता था और ऐसा पिछले 7 साल से हो रहा था.

नेहा को याद है 7 साल पहले रक्षाबंधन के दिन जब वह अपने भाई के घर गई थी तो उपहार को ले कर एक छोटी सी बात पर दोनों भाईबहन के बीच झगड़ा हुआ जो बढ़ता ही गया. मांबाप ने रोकना चाहा पर यह झगड़ा रुका नहीं और उस दिन से दोनों के बीच बातचीत बंद थी. हर रक्षाबंधन को नेहा अपने भाई को याद करती है लेकिन उस के घर कभी नहीं जाती. इस तरह उस का रक्षाबंधन अधूरा ही रह जाता है और इस दिन जो ख़ुशी वह पहले अनुभव करती थी उस से वंचित रह जाती है. देखा जाए तो आज के समय में हमारे पास बहुत सारे भाईबहन नहीं होते.

सामान्यतः एक या दो भाईबहन ही होते हैं. अगर वे ही आपस में लड़ लें या बातचीत बंद कर दें तो त्यौहार का मजा ही जाता रहता है. खासकर रक्षाबंधन तो भाईबहन का ही त्यौहार है. होलीदिवाली भी ऐसे त्यौहार हैं जब इंसान अपनों का साथ पाकर खिल उठता है. एकदूसरे के घर जाता है. महिला अपने मायके में ढेर सारा प्यार बटोर कर घर लौटती है. मगर यदि आप ने अपनों के घर आनेजाने या मिलने का रास्ता ही बंद कर रखा है तो आप के लिए त्यौहार की खुशियां ही बेमानी हो जाती हैं.

इसलिए जरूरी है कि आप अपने इकलौते भाई या बहन को संजो कर रखें. उन का प्यार एक ऐसा खजाना है जिस से महरूम रह कर आप खुश नहीं रह सकते. याद रखें आप को आप के भाई या बहन से ज्यादा और कोई नहीं समझ सकता. आप ने उन के साथ अपना बचपन बिताया है. साथ बड़े हुए हैं. मांबाप का प्यार साझा किया है. 20 – 22 साल का यह खूबसूरत साथ कभी भुलाया नहीं जा सकता. उन के साथ मिलने वाली ख़ुशी, पुराने बचपन के दिनों को याद करने का सुख और कोई नहीं दे सकता.

रक्षाबंधन भाई बहन के स्नेह का प्रतीक है. यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांध कर उन की लंबी उम्र और कामयाबी की कामना करती हैं. भाई भी अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं.

भारत के सभी राज्यों में यह त्यौहार अलगअलग नाम से मनाया जाता है. उत्तरांचल में रक्षा बंधन को श्रावणी के नाम से जाना जाता है. महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा तो राजस्थान में राम राखी कहा जाता है. दक्षिण भारतीय राज्यों में इसे अवनि अवित्तम कहते हैं. रक्षाबंधन का सामाजिक और पारिवारिक महत्व भी है.

वैसे आधुनिकता की बयार में बहुत कुछ बदल गया है. आज के ग्लोबल माहौल में रक्षाबंधन भी हाईटेक हो गया है. वक्त के साथसाथ भाई बहन के पवित्र बंधन के इस पावन पर्व को मनाने के तौरतरीकों में विविधता आई है. व्यस्तता के इस दौर में काफी हद तक त्यौहार महज रस्म अदायगी तक ही सीमित हो कर रह गए हैं.

अब बहुत सी महिलाएं बाबुल या प्यारे भईया के घर जाने की जहमत भी नहीं उठातीं. कुछ मजबूरीवश ऐसा नहीं कर पाती. रक्षाबंधन से पहले की तैयारियां और मायके जा कर अपने अजीजों से मिलने के इंतजार में बीते लम्हों का मीठा अहसास ज्यादातर महिलाएं नहीं ले पातीं. कभी भाई दूर देश चला जाता है तो कभी दिल से दूर हो जाता है और कभी व्यस्तता का आलम. मगर मत भूलिए कि ऑनलाइन राखी की रस्म अदायगी में अहसासों का वह मंजर नहीं खिल पाता जो भाईबहन के रिश्तों में मजबूती लाता है.

आप कितनी भी व्यस्त क्यों न हों या भाई से कितनी भी नाराज ही क्यों न हों इस दिन भाई से जरूर मिलें. अपनों के साथ समय बिताने और मीठी नोकझोंक के साथ रिश्ते में प्यार की मिठास घोलने का मौका मत गंवाइए.

क्या कहता है विज्ञान

भाईबहन पर दुनियाभर की चुनिंदा यूनिवर्सिटी में हुईं रिसर्च ये साबित करती हैं कि इन का रिश्ता एकदूसरे को काफी कुछ सिखाता है और ये दोनों परिवार के लिए कितने जरूरी हैं.

अमेरिकी शोधकर्ताओं के मुताबिक भाईबहन एकदूसरे की संगत से जीवन के उतारचढ़ाव सीखते हैं और समाज में कैसे आगे बढ़ना है इस की समझ बढ़ती है क्योंकि सब से लम्बे समय तक यही एकदूसरे के साथ रहते हैं.

भाईबहन एकदूसरे का अकेलापन कितना दूर कर पाते हैं इसे जानने के लिए तुर्की में एक रिसर्च हुई. रिसर्च के मुताबिक बहनें अपने भाइयों के लिए ज्यादा केयरिंग होती हैं. वह इस रिश्ते को अधिक गंभीरता से निभाती हैं. वहीं भाई अपनी बहनों पर कई बार गुस्सा दिखाते हैं या नाराज हो जाते हैं. ऐसा बहनों की तरफ से बहुत कम होता है.

सिबलिंग इफेक्ट

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और सायकोलॉजिस्ट लौरी क्रेमर के मुताबिक भाईबहन के सम्बंधों से बढ़ने वाली समझ को सिबलिंग इफेक्ट कहते है. यह सिबलिंग इफेक्ट दोनों पर कई तरह से असर डालता है. भाईबहन एकदूसरे की दिमागी क्षमता को बढ़ाते हैं. इन में गंभीरता बढ़ने के साथ ये एकदूसरे को समाज में अपनी जगह बनाना सिखाते हैं.

अमेरिका की पार्क यूनिवर्सिटी ने भाईबहन के रिश्तों को समझने के लिए सिबलिंग प्रोग्राम शुरू किया और पेन्सेल्वेनिया राज्य के 12 स्कूलों को शामिल किया गया. इस प्रोग्राम का लक्ष्य था कि भाईबहन की जोड़ी मिल कर कैसे निर्णय लेते हैं और जिम्मेदारी किस तरह निभाते हैं. रिसर्च में सामने आया कि कम उम्र से एकदूसरे का साथ मिलने की वजह से इन में समझदारी जल्दी विकसित होती है. इस की वजह से इन में डिप्रेशन, शर्म और अधिक हड़बड़ी जैसा स्वभाव नहीं विकसित होता.

जब कोई व्यक्ति सिबलिंग रिलेशनशिप में बड़ा होता है तो उस में सहानुभूति, साझा करने और करुणा के भाव भी विकसित होते हैं. एक अध्ययन के अनुसार इस से बच्चे विशेष रूप से लड़के दूसरों के प्रति अधिक दयालु और निस्वार्थ बन सकते हैं.

स्वीडन के एक अध्ययन से पता चला है कि सिबलिंग रिलेशनशिप आप को खुश रहना वाला व्यक्ति बनाती है. जीवन के बाद के वर्षों में भी यह असर कायम रहता है.  बहन के साथ सपोर्टिव रिलेशनशिप आप की मेंटल हेल्थ के लिए अच्छा है. बड़ी ब हन आप को आइसोलेशन, गिल्टी आदि से बचाती है.

सिबलिंग होने से बच्चों में सोशल और इंटरपर्सनल स्किल्स को बढ़ावा मिलता है. जो बच्चे सिबलिंग रिलेशनशिप में बड़े होते हैं वे अपने साथियों के साथ बेहतर तरीके से बातचीत कर सकते हैं. सिबलिंग होने से आप अपने लक्ष्यों को पाने के लिए मेहनत करते हैं और अपने लक्ष्य हासिल करते हैं.

ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने 395 परिवारों पर स्टडी की जिन के एक से ज्या दा बच्चेप थे और उन के कम से कम एक बच्चे की उम्र 10 साल या इस से कम थी. डाटा इकट्ठा करते समय प्रोफेसर ने इस बात पर गौर किया कि छोटी या बड़ी बहन होने से सिबलिंग कोई बुरी आदत या व्यवहार से दूर रहते हैं जैसे हिचकिचाना या डरना.

अन्यो स्टेडी में खुलासा हुआ कि जब भाई या बहन लड़ते हैं तो इस से दोनों को बहस करना और अपनी भावनाओं को कंट्रोल करने का हुनर सीखने का मौका मिलता है. अगर किसी की बहन है तो वे नकारात्मक चीजों से ज्यादा दूर रहते हैं. इन में अकेलापन, डर और शर्मीलापन कम देखा जाता है. ये चीजें मिल कर किसी इंसान के रवैये में नकारात्मकता ला सकती हैं और उसे डिप्रेशन या किसी खाने या किसी चीज से नफरत हो सकती है. यहां तक कि कुछ मामलों में इंसान खुद को ही नुकसान पहुंचा सकता है.

बहन होने से इन सब चीजों को सकारात्मक तरीके से हैंडल करने में मदद मिलती है. जिन लोगों की बहन होती है वो आसानी से अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं और अपने मतभेदों को सुलझा पाते हैं. अगर भाई बहन के बीच प्यार हो तो दोनों के व्यवहार में सकारात्मकता आती है जो कि केवल पेरेंट्स के प्यार से नहीं मिल सकती है.

Raksha Bandhan: भाई बहन का रिश्ता बनाता है मायका

पता चला कि राजीव को कैंसर है. फिर देखते ही देखते 8 महीनों में उस की मृत्यु हो गई. यों अचानक अपनी गृहस्थी पर गिरे पहाड़ को अकेली शर्मिला कैसे उठा पाती? उस के दोनों भाइयों ने उसे संभालने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि एक भाई के एक मित्र ने शर्मिला की नन्ही बच्ची सहित उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया.  शर्मिला की मां उस की डोलती नैया को संभालने का श्रेय उस के भाइयों को देते नहीं थकती हैं, ‘‘अगर मैं अकेली होती तो रोधो कर अपनी और शर्मिला की जिंदगी बिताने पर मजबूर होती, पर इस के भाइयों ने इस का जीवन संवार दिया.’’

सोचिए, यदि शर्मिला का कोई भाईबहन न होता सिर्फ मातापिता होते, फिर चाहे घर में सब सुखसुविधाएं होतीं, किंतु क्या वे हंसीसुखी अपना शेष जीवन व्यतीत कर पाते? नहीं. एक पीड़ा सालती रहती, एक कमी खलती रहती. केवल भौतिक सुविधाओं से ही जीवन संपूर्ण नहीं होता, उसे पूरा करते हैं रिश्ते.

सूनेसूने मायके का दर्द:

सावित्री जैन रोज की तरह शाम को पार्क में बैठी थीं कि रमा भी सैर करने आ गईं. अपने व्हाट्सऐप पर आए एक चुटकुले को सभी को सुनाते हुए वे मजाक करने लगीं, ‘‘कब जा रही हैं सब अपनेअपने मायके?’’  सभी खिलखिलाने लगीं पर सावित्री मायूसी भरे सुर में बोलीं, ‘‘काहे का मायका? जब तक मातापिता थे, तब तक मायका भी था. कोई भाई भाभी होते तो आज भी एक ठौरठिकाना रहता मायके का.’’  वाकई, एकलौती संतान का मायका भी तभी तक होता है जब तक मातापिता इस दुनिया में होते हैं. उन के बाद कोई दूसरा घर नहीं होता मायके के नाम पर.

भाईभाभी से झगड़ा:

‘‘सावित्रीजी, आप को इस बात का अफसोस है कि आप के पास भाईभाभी नहीं हैं और मुझे देखो मैं ने अनर्गल बातों में आ कर अपने भैयाभाभी से झगड़ा मोल ले लिया. मायका होते हुए भी मैं ने उस के दरवाजे अपने लिए स्वयं बंद कर लिए,’’ श्रेया ने भी अपना दुख बांटते हुए कहा.

ठीक ही तो है. यदि झगड़ा हो तो रिश्ते बोझ बन जाते हैं और हम उन्हें बस ढोते रह जाते हैं. उन की मिठास तो खत्म हो गई होती है. जहां दो बरतन होते हैं, वहां उन का टकराना स्वाभाविक है, परंतु इन बातों का कितना असर रिश्तों पर पड़ने देना चाहिए, इस बात का निर्णय आप स्वयं करें.

भाईबहन का साथ:

भाई बहन का रिश्ता अनमोल होता है. दोनों एकदूसरे को भावनात्मक संबल देते हैं, दुनिया के सामने एकदूसरे का साथ देते हैं. खुद भले ही एकदूसरे की कमियां निकाल कर चिढ़ाते रहें लेकिन किसी और के बीच में बोलते ही फौरन तरफदारी पर उतर आते हैं. कभी एकदूसरे को मझधार में नहीं छोड़ते हैं. भाईबहन के झगड़े भी प्यार के झगड़े होते हैं, अधिकार की भावना के साथ होते हैं. जिस घरपरिवार में भाईबहन होते हैं, वहां त्योहार मनते रहते हैं, फिर चाहे होली हो, रक्षाबंधन या फिर ईद.

मां के बाद भाभी:

शादी के 25 वर्षों बाद भी जब मंजू अपने मायके से लौटती हैं तो एक नई स्फूर्ति के साथ. वे कहती हैं, ‘‘मेरे दोनों भैयाभाभी मुझे पलकों पर बैठाते हैं. उन्हें देख कर मैं अपने बेटे को भी यही संस्कार देती हूं कि सारी उम्र बहन का यों ही सत्कार करना. आखिर, बेटियों का मायका भैयाभाभी से ही होता है न कि लेनदेन, उपहारों से. पैसे की कमी किसे है, पर प्यार हर कोई चाहता है.’’

दूसरी तरफ मंजू की बड़ी भाभी कुसुम कहती हैं, ‘‘शादी के बाद जब मैं विदा हुई तो मेरी मां ने मुझे यह बहुत अच्छी सीख दी थी कि शादीशुदा ननदें अपने मायके के बचपन की यादों को समेटने आती हैं. जिस घरआंगन में पलीबढ़ीं, वहां से कुछ लेने नहीं आती हैं, अपितु अपना बचपन दोहराने आती हैं. कितना अच्छा लगता है जब भाईबहन संग बैठ कर बचपन की यादों पर खिलखिलाते हैं.’’

मातापिता के अकेलेपन की चिंता:

नौकरीपेशा सीमा की बेटी विश्वविद्यालय की पढ़ाई हेतु दूसरे शहर चली गई. सीमा कई दिनों तक अकेलेपन के कारण अवसाद में घिरी रहीं. वे कहती हैं, ‘‘काश, मेरे एक बच्चा और होता तो यों अचानक मैं अकेली न हो जाती. पहले एक संतान जाती, फिर मैं अपने को धीरेधीरे स्थिति अनुसार ढाल लेती. दूसरे के जाने पर मुझे इतनी पीड़ा नहीं होती. एकसाथ मेरा घर खाली नहीं हो जाता.’’

एकलौती बेटी को शादी के बाद अपने मातापिता की चिंता रहना स्वाभाविक है. जहां भाई मातापिता के साथ रहता हो, वहां इस चिंता का लेशमात्र भी बहन को नहीं छू सकता. वैसे आज के जमाने में नौकरी के कारण कम ही लड़के अपने मातापिता के साथ रह पाते हैं. किंतु अगर भाई दूर रहता है, तो भी जरूरत पर पहुंचेगा अवश्य. बहन भी पहुंचेगी परंतु मानसिक स्तर पर थोड़ी फ्री रहेगी और अपनी गृहस्थी देखते हुए आ पाएगी.

पति या ससुराल में विवाद:

सोनम की शादी के कुछ माह बाद ही पतिपत्नी में सासससुर को ले कर झगड़े शुरू हो गए. सोनम नौकरीपेशा थी और घर की पूरी जिम्मेदारी भी संभालना उसे कठिन लग रहा था. किंतु ससुराल का वातावरण ऐसा था कि गिरीश उस की जरा भी सहायता करता तो मातापिता के ताने सुनता. इसी डर से वह सोनम की कोई मदद नहीं करता.

मायके आते ही भाई ने सोनम की हंसी के पीछे छिपी परेशानी भांप ली. बहुत सोचविचार कर उस ने गिरीश से बात करने का निर्णय किया. दोनों घर से बाहर मिले, दिल की बातें कहीं और एक सार्थक निर्णय पर पहुंच गए. जरा सी हिम्मत दिखा कर गिरीश ने मातापिता को समझा दिया कि नौकरीपेशा बहू से पुरातन समय की अपेक्षाएं रखना अन्याय है. उस की मदद करने से घर का काम भी आसानी से होता रहेगा और माहौल भी सकारात्मक रहेगा.

पुणे विश्वविद्यालय के एक कालेज की निदेशक डा. सारिका शर्मा कहती हैं, ‘‘मुझे विश्वास है कि यदि जीवन में किसी उलझन का सामना करना पड़ा तो मेरा भाई वह पहला इंसान होगा जिसे मैं अपनी परेशानी बताऊंगी. वैसे तो मायके में मांबाप भी हैं, लेकिन उन की उम्र में उन्हें परेशान करना ठीक नहीं. फिर उन की पीढ़ी आज की समस्याएं नहीं समझ सकती. भाई या भाभी आसानी से मेरी बात समझते हैं.’’

भाईभाभी से कैसे निभा कर रखें:

भाईबहन का रिश्ता अनमोल होता है. उसे निभाने का प्रयास सारी उम्र किया जाना चाहिए. भाभी के आने के बाद स्थिति थोड़ी बदल जाती है. मगर दोनों चाहें तो इस रिश्ते में कभी खटास न आए.

सारिका कितनी अच्छी सीख देती हैं, ‘‘भाईभाभी चाहे छोटे हों, उन्हें प्यार देने व इज्जत देने से ही रिश्ते की प्रगाढ़ता बनी रहती है नाकि पिछले जमाने की ननदों वाले नखरे दिखाने से. मैं साल भर अपनी भाभी की पसंद की छोटीबड़ी चीजें जमा करती हूं और मिलने पर उन्हें प्रेम से देती हूं. मायके में तनावमुक्त माहौल बनाए रखना एक बेटी की भी जिम्मेदारी है. मायके जाने पर मिलजुल कर घर के काम करने से मेहमानों का आना भाभी को अखरता नहीं और प्यार भी बना रहता है.’’

ये आसान सी बातें इस रिश्ते की प्रगाढ़ता बनाए रखेंगी:

– भैयाभाभी या अपनी मां और भाभी के बीच में न बोलिए. पतिपत्नी और सासबहू का रिश्ता घरेलू होता है और शादी के बाद बहन दूसरे घर की हो जाती है. उन्हें आपस में तालमेल बैठाने दें. हो सकता है जो बात आप को अखर रही हो, वह उन्हें इतनी न अखर रही हो.

– यदि मायके में कोई छोटामोटा झगड़ा या मनमुटाव हो गया है तब भी जब तक आप से बीचबचाव करने को न कहा जाए, आप बीच में न बोलें. आप का रिश्ता अपनी जगह है, आप उसे ही बनाए रखें.

– यदि आप को बीच में बोलना ही पड़े तो मधुरता से कहें. जब आप की राय मांगी जाए या फिर कोई रिश्ता टूटने के कगार पर हो, तो शांति व धैर्य के सथ जो गलत लगे उसे समझाएं.

– आप का अपने मायके की घरेलू बातों से बाहर रहना ही उचित है. किस ने चाय बनाई, किस ने गीले कपड़े सुखाए, ऐसी छोटीछोटी बातों में अपनी राय देने से ही अनर्गल खटपट होने की शुरुआत हो जाती है.

– जब तक आप से किसी सिलसिले में राय न मांगी जाए, न दें. उन्हें कहां खर्चना है, कहां घूमने जाना है, ऐसे निर्णय उन्हें स्वयं लेने दें.

– न अपनी मां से भाभी की और न ही भाभी से मां की चुगली सुनें. साफ कह दें कि मेरे लिए दोनों रिश्ते अनमोल हैं. मैं बीच में नहीं बोल सकती. यह आप दोनों सासबहू आपस में निबटा लें.

– आप चाहे छोटी बहन हों या बड़ी, भतीजोंभतीजियों हेतु उपहार अवश्य ले जाएं. जरूरी नहीं कि महंगे उपहार ही ले जाएं. अपनी सामर्थ्यनुसार उन के लिए कुछ उपयोगी वस्तु या कुछ ऐसा जो उन की उम्र के बच्चों को भाए, ले जाएं.

Father’s day 2023: क्या आप पिता बनने वाले हैं

दृश्य1: दिल्ली मैट्रो रेल का एक कोच

यात्रियों से खचाखच भरे दिल्ली मैट्रो के एक कोच में एक आदमी चढ़ता है. उस के एक कंधे पर लंच बैग तो दूसरे कंधे पर लैपटौप बैग टंगा है. उस के हाथ में एक मोटी किताब भी है जिस पर लिखा है, ‘गर्भावस्था में पत्नी का कैसे रखें खयाल.’ उसे किताब पढ़ता देख कर बगल में खड़ा दूसरा आदमी पूछ ही लेता है, ‘‘कृपया बुरा न मानें मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या आप पिता बनने वाले हैं?’’ इस पर किताब वाले आदमी का जवाब होता है, ‘‘हां.’’

दृश्य2: फरीदाबाद स्थित एक अस्पताल

फरीदाबाद स्थित एक अस्पताल में जहां शिशु की देखभाल संबंधी ट्रेनिंग चल रही है, वहां कुछ पुरुष छोटे बच्चों के खिलौने थामे खड़े हैं, तो कोई बच्चे को सुलाने की प्रैक्टिस कर रहा है. कोईर् डाइपर बदलने की तैयारी में है, तो कुछ बच्चे को नहलाना तो कुछ उसे तौलिए में लपेटना सीख रहे हैं. कुछ डाक्टर पुरुषों को बच्चे के जन्म के बाद उस की देखरेख करने के टिप्स बता रहे हैं.

ये कुछ ऐसे दृश्य हैं जिन को देख कर महिलाएं भले ही आश्चर्यचकित हों पर आज पुरुषों द्वारा बच्चे को संभालने की ट्रेनिंग लेना और गर्र्भावस्था पर आधारित किताबें पढ़ना बदलती सोच को उजागर करता है. दरअसल, भारतीय समाज की कईर् कुरीतियों में से एक कुरीति यह भी है कि बच्चे को पैदा करने के बाद उस की देखरेख की और अन्य सारी जिम्मेदारियां महिलाओं के सिर पर ही मढ़ दी जाती हैं. पुरुषों का काम सिर्फ बच्चे की परवरिश के लिए आर्थिक सहयोग देने तक ही सिमट कर रह जाता है.

पति की जिम्मेदारी

एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस के गाइनेकोलौजिस्ट विभाग की एचओडी डा. अनीता कांत, जो ऐेसे दंपतियों की काउंसलिंग भी करती हैं और उन्हें ट्रेनिंग भी देती हैं, का कहना है, ‘‘देखिए, यह एक परंपरा बन चुकी है. और इसे बनाने वाले घर के बड़ेबुजुर्ग ही होते हैं. दरअसल, लड़कों को शुरू से ही इतना पैंपर किया जाता है कि उन्हें घरेलू कार्यों में कतई दिलचस्पी नहीं रहती. पिता बनने के बाद भी उन में उतनी परिपक्वता नहीं आ पाती जितनी कि महिलाओं में आती है. वे जीवन में होने वाले इस बदलाव को उतनी जिम्मेदारी के साथ महसूस नहीं कर पाते जितना एक महिला कर पाती है. पत्नी और बच्चे की देखभाल की बात आती है तो वे अपने कदम पीछे कर लेते हैं. इस में भी बड़ेबुजुर्गों खासतौर पर लड़के की मां का तर्क होता है कि वह खुद अपनी देखभाल नहीं कर सकता तो पत्नी या बच्चे की कैसे करेगा? जबकि यह सरासर गलत है. बच्चे को जन्म देना पति और पत्नी दोनों का आपसी निर्णय होता है. ऐसे में गर्भावस्था के दौरान और उस के बाद पति की जिम्मेदारी बनती है कि वह हर कदम पर पत्नी को सहयोग दे. यह सहयोग केवल आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी हो, तो ज्यादा बेहतर है.

‘‘इतना ही नहीं घर के कामकाज में भी पति को पत्नी का हाथ बंटाना चाहिए. यह कह कर पीछे नहीं हटना चाहिए कि ये तो औरतों के काम हैं. अगर महिला कामकाजी है तो खासतौर पर पति को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि पत्नी को इस अवस्था में घर पर ज्यादा से ज्यादा आराम मिले.

‘‘गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में कई शारीरिक बदलाव आते हैं. इन बदलावों के कारण उन्हें कोई न कोई तकलीफ जरूर होती है. ऐसे में जब पत्नी यह कहे कि उस का फलां काम करने का मन नहीं है, तो उसे बहाना न समझें, क्योंकि गर्भावस्था में महिलाएं बहुत थकावट महसूस करने लगती हैं.

पतियों का रवैया

कुछ पुरुषों को बंधन में बंधना बिलकुल रास नहीं आता. शादी के बाद भी वे बैचलरहुड का ही मजा लेना चाहते हैं और कई पुरुष ऐसा करने में सफल भी रहते हैं. लेकिन पत्नी के गर्भधारण करने और बच्चे के जन्म के बाद वे खुद बंधन में बंधा महसूस करने लगते हैं. डाक्टर के पास पत्नी को नियमित चैकअप के लिए ले जाना या गर्भधारण से जुड़ी पत्नी की समस्या को सुनना उन्हें बोरिंग लगने लगता है. यही नहीं, कुछ पति गर्भावस्था के दौरान पत्नी के बढ़े वजन और बेडौल होते शरीर की वजह से भी पत्नी को नजरअंदाज करना शुरू कर देते हैं.

पत्नी को अपने साथ कहीं बाहर ले जाने में भी उन्हें शर्म आती है. पति के इस व्यवहार से पत्नी खुद को उपेक्षित महसूस करने लगती है. कई बार महिलाएं अपने शरीर और बढ़ते वजन को देख अवसाद में आ जाती हैं. जबकि गर्भवती महिलाओं के लिए अवसाद की स्थिति में आना बहुत नुकसानदायक है.

भावनात्मक सपोर्ट जरूरी

बालाजी ऐक्शन मैडिकल इंस्टिट्यूट की सीनियर कंसल्टैंट और गाइनेकोलौजिस्ट डा. साधना सिंघल कहती हैं, ‘‘प्रसव के बाद महिलाओं के वजन और शरीर दोनों को ठीक करने के उपाय हैं. बस, पतियों को यह समझने की जरूरत है कि उन की पत्नी उन्हें संतान देने के लिए गर्भवती हुई है. इस दौरान पत्नी के शरीर के आकारप्रकार पर ध्यान देने की जगह पति को उस की सेहत और उसे खुश रखने पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यदि पत्नी किसी भी वजह से अवसाद में आती है तो इस का सीधा असर उस पर और होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है. इस के अलावा कई बार पति काम का बहाना बना कर चैकअप के लिए पत्नी के साथ नहीं जाते. ऐसा नहीं होना चाहिए. पति इस बात को समझे कि बच्चा सिर्फ पत्नी का ही नहीं है. जब पत्नी गर्भावस्था के दौरान होने वाली सारी पीड़ा सहती है, तो पति का भी फर्ज है कि वह अपनी पत्नी के लिए समय निकाले और उस की हर परेशानी से उबरने में मदद करे. चैकअप के लिए खासतौर पर डाक्टर के पास पत्नी के साथ जाए, क्योंकि डाक्टर मां और पिता दोनों की काउंसलिंग करती हैं. चैकअप के दौरान सिर्फ पत्नी को मैडिकल ट्रीटमैंट नहीं दिया जाता, बल्कि पति को भी मानसिक रूप से पिता बनने के लिए तैयार किया जाता है.

गर्भावस्था के दौरान एक पत्नी को पति का भावनात्मक सपोर्ट बेहद जरूरी होता है. विशेषज्ञ मानते हैं पति का यह सपोर्ट पत्नी को शारीरिक व मानसिक मजबूती देता है, जिस का अच्छा असर आने वाले शिशु पर भी पड़ता है.

पति भी सीखे सभी काम

इन सब के अलावा प्रसव को आसान बनाने के लिए गर्भवती को डाक्टर की सलाह से जो व्यायाम वगैरह करने होते हैं, उन में पति को पत्नी का पूरा सहयोग करना चाहिए.

बच्चे की देखभाल के लिए मैडिकल संस्थाओं द्वारा आयोजित विभिन्न ट्रेनिंग कार्यक्रमों में भी पत्नी के साथ हिस्सा लेना चाहिए. इन ट्रेनिंग कार्यक्रमों में कई जानकारियां ऐसी होती हैं, जो खासतौर पर पिता के लिए ही होती हैं. जैसे पिता को बच्चे को गोद में लेना, मां की अनुपस्थिति में बच्चे को फीड कराना, वैक्सिनेशन के लिए बच्चे को हौस्पिटल ले जाना आदि.

इन ट्रेनिंग कार्यक्रमों में सिर्फ इमोशनल थेरैपी ही नहीं, टच थेरैपी के फायदे भी बताए जाते हैं. दरअसल, गर्भावस्था में गर्भवती महिला को न सिर्फ उचित खानपान की जरूरत पड़ती है, उसे समयसमय पर हलकी मालिश की भी जरूरत पड़ती है. इन ट्रेनिंग कैंपों में पतियों को यह बताया जाता है कि वे कैसे अपनी गर्भवती पत्नी की हलकी मालिश कर यानी टच थेरैपी से राहत पहुंचा सकते हैं.

डा. साधना कहती हैं, ‘‘बच्चे के  सभी काम मां ही करे, यह किसी किताब में नहीं लिखा है. बच्चे से मां की जितनी बौंडिंग होनी चाहिए उतनी ही पिता की भी. इसलिए पिता को बच्चे की देखभाल के वे सारे काम आने चाहिए, जो मां को आते हैं. जिस तरह पिता की गैरमौजूदगी में मां बच्चे को संभाल लेती है, उसी तरह पिता को भी मां की गैरमौजूदगी में बच्चे को संभालना आना चाहिए. खासतौर पर वर्किंग महिलाओं को बच्चों की परवरिश में यदि पति का सहयोग मिल जाए तो वे दफ्तर और घर दोनों के कार्यों को आसानी से संभाल सकती हैं.’’

कामकाजी पतिपत्नी के लिए गर्भावस्था का समय जहां आनंद और कुतूहल का समय होता है, वहीं चुनौतियां भी कम नहीं होतीं. ऐसे समय में पति को पत्नी के घर व औफिस के कामकाज पर भी ध्यान रखना चाहिए. एक समय के बाद डाक्टर सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट से न जानेआने, ज्यादा न चलनेफिरने, भारी सामान न उठाने, ज्यादा काम का बोझ न उठाने की सलाह देते हैं. ऐसे समय में यदि पति पत्नी को औफिस ले जाए और ले आए, घर में केयर करे तो यह जच्चाबच्चा दोनों के स्वास्थ्य के लिए सही होता है.

पिता बनना है तो बदलें लाइफस्टाइल

बच्चा पैदा करने का प्लान करने से पहले पतियों को यह तय कर लेना चाहिए कि उन्हें सब से पहले अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव लाना होगा. इस बदलाव की शुरुआत होगी किसी भी तरह के नशे से खुद को दूर रखने से. दरअसल, गर्भवती महिला पर शराब, सिगरेट, पानमसाला आदि चीजों का खराब प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए यदि इन में से कोई भी लत पति में है तो उसे त्यागना होगा. साथ ही देर से घर आने और ज्यादा वक्त दोस्तों के साथ बिताने की आदत को भी सुधारना होगा, क्योंकि इस वक्त पत्नी को आप की सब से ज्यादा जरूरत है.

डा. साधना कहती हैं, ‘‘गर्भवती महिला को अकेलेपन से घबराहट होती है. इस अवस्था में उसे हमेशा किसी का साथ चाहिए, जिसे वह अपनी भावनाएं और तकलीफें बता सके. ऐसे में पति से बेहतर उस के लिए और कोई नहीं हो सकता.’’

समझें क्या चाहती है पत्नी

बच्चे के वजन और शरीर में आने वाले परिवर्तन के कारण इस दौरान पत्नी चिड़चिड़ी हो जाती है. ऐसी स्थिति में पति प्रसव से पहले पत्नी को हर तरह से सपोर्ट करे ताकि उसे गुस्सा या झल्लाहट न आए. पति के स्नेह और प्यार से वह बच्चे को आसानी से जन्म दे पाएगी.

डा. अनीता बताती हैं, ‘‘गर्भावस्था के दौरान हारमोन में परिवर्तन होते हैं और मानसिक अवस्था में भी बदलाव आता है. ऐसे में पति की थोड़ी सी भी मदद पत्नी के लिए बड़ा सहारा बन सकती है. पति का प्यार, पत्नी औैर इस दुनिया में आने वाले बच्चे के लिए दवा का काम करेगा.’’

गर्भावस्था के दौरान पत्नी का पलपल मूड बदलता रहता है. ऐसे में पति कतई गुस्सा न करे वरन पत्नी की दिक्कतों को समझने की कोशिश करे. उस का बढ़ा पेट कई कार्यों को करने में दिक्कत पैदा करता है. कुल मिला कर बैस्ट हसबैंड और बैस्ट फादर बनना है तो पत्नी की गर्भावस्था के दौरान वह धैर्य रखे और हर स्थिति में पत्नी का साथ निभाए.

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