ताप्ती- भाग 4: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

लौटते हुए मिहिम बोला, ‘‘काफी रात हो गई है आलोक भैया. मैं ताप्ती को छोड़ दूंगा… आप को भी देर हो रही होगी.’’

आलोक का मन था वे फिर से ताप्ती के घर जाएं पर प्रत्यक्ष में कुछ न बोल सके.

रास्ते में मिहिम ताप्ती से बोला, ‘‘ताप्ती, अपनी मम्मी की गलती मत दोहराओ. यह तुम्हारा रास्ता नहीं है. गलत आदमी से प्यार करने का नतीजा आंटी के साथसाथ तुम ने भी भोगा है.’’

ताप्ती बोली, ‘‘तुम क्या कह रहे हो, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

मिहिम समझाते हुए बोला, ‘‘तुम्हें तुम से ज्यादा जानता हूं और दिल के हाथों मजबूर होना मुझ से अधिक कौन जानेगा.’’

‘‘आलोक भैया एक बेहद सुलझे हुए इंसान हैं पर अपने ससुर के बहुत एहसान हैं उन पर या यों कहूं उन का यह मुकाम उन के ससुर की वजह से है तो गलत न होगा. अपनी उलझनों को मत बढ़ाओ, लौट आओ.’’

ताप्ती के दिल का चोर जानता था यह सच है. वह न जाने क्यों आलोक की तरफ झुकी जा रही है. उन का रुतबा या उन का व्यक्तित्व क्या उसे खींच रहा है, उसे नहीं मालूम. पर गुस्से में उस ने मिहिम को अंदर भी नहीं बुलाया और धड़ाक से कार का दरवाजा बंद कर के चली गई.

रातभर वह मिहिम की बात पर विचार करती रही और फिर निर्णय ले लिया कि वह कोई भी बहाना बना कर ट्यूशन से मना कर देगी.

जब वह सोमवार को ट्यूशन लेने पहुंची तो देखा अनीताजी भी वहीं हैं. उसे देख कर मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘ताप्ती, तुम ने आरवी की शौपिंग में मदद करी, थैंकयू सो मच.’’

‘‘आज उस की क्लास नहीं होगी, आज हम मांबेटी और कुछ सामान लेने जा रही हैं पर कल तुम जरूर आना. अपनी बर्थडे पार्टी में तुम्हारे बिना यह केक भी नहीं काटेगी.’’

घर पहुंची ही थी कि कूरियर आया था. पैकेट खोल कर देखा तो वही शिफौन की साड़ी थी और साथ एक नोट भी था, जिस पर लिखा था कि कल की पार्टी में यही पहनना, मुझे बहुत खुशी होगी.

ताप्ती पैकेट हाथ में लिए बैठी रही. न जाने क्यों उसे गुस्से के बजाय असीम आनंद आ रहा था.

अगले दिन बैंक से आने के बाद वह पार्टी के लिए तैयार हो रही थी कि तभी दरवाजे की बैल बजी. देखा मिहिम खड़ा था.

मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैडम, अभी भी नाराज हो क्या? मुझे पता था कि तुम आरवी के जन्मदिन की पार्टी के लिए तैयार हो रही होगी, इसलिए सोचा तुम्हें लेता चलूं.’’

पता नहीं क्यों मिहिम के सामने उस की हिम्मत नहीं पड़ी वह साड़ी पहनने की. मन मार कर उस ने अपनी मां की आसमानी मुक्कैश जड़ी साड़ी पहनी और साथ में गोल्डन झुमके पहन लिए, जो उस के चेहरे पर खूब खिल रहे थे.

मिहिम उसे देख कर बोला, ‘‘वाह, एकदम फुलझड़ी लग रही हो, पर मैडम अभी दीवाली 2 माह दूर है.’’

जब वे पार्टी में पहुंचे तो आलोक ने दूर से ही देख लिया कि ताप्ती ने उन की साड़ी

नहीं पहनी है और ऊपर से उसे मिहिम के साथ देख कर उन का मूड और उखड़ गया. आरवी ताप्ती का हाथ पकड़ कर उसे केक की टेबल के पास ले आई. ताप्ती ने आलोक और अनीता दोनों का अभिवादन किया.

केक काटने के बाद ताप्ती जब वाशरूम की तरफ जा रही थी तो आलोक रास्ते में मिल गए. इधरउधर देख कर बोले, ‘‘मेरा उपहार पसंद नहीं आया क्या? मेरा कितना मन था तुम्हें उस साड़ी में देखने का.’’

तभी न जाने कहां से अनीता आ गईं और पति को देख कर बोलीं, ‘‘तुम यहां खड़े हो, वहां सारे मेहमान तुम्हारी राह देख रहे हैं.’’

अनीता को न जाने क्यों यह आभास हो गया था कि उन के पति का इस लड़की से कोई संबंध है. मन ही मन उन्हें अपने गोरे रंग और खूबसूरती पर बहुत अहंकार था पर इस लड़की के सामने न जाने क्यों वे हीनभावना से ग्रस्त हो जाती थीं.

लौटते समय ताप्ती और मिहिम अनीताजी से विदा लेने आए तो ताप्ती ने सही मौका देख कर कहा, ‘‘मैम, मैं अब यह ट्यूशन नहीं पढ़ा पाऊंगी, मुझे एक परीक्षा की तैयारी करनी है… मेरी मां की इच्छा थी कि मैं राज्य प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में बैठूं.’’

अनीता के दिल पर से जैसे बहुत बड़ा बोझ हट गया हो. अत: मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘अवश्य तुम कर लोगी… मेरे लायक कोई काम हो तो जरूर बताना.’’

रास्ते में मिहिम बोला, ‘‘सही निर्णय सही समय पर, प्राउड औफ यू.’’

न जाने क्यों रोज ताप्ती आरवी की प्रतीक्षा करती. उसे लगता कि वह जरूर आएगी और उस पर गुस्सा करेगी या यों कहें वह आलोक का इंतजार कर रही थी.

1 हफ्ता बीत गया और ताप्ती ने अपने मन को मजबूत कर लिया था. वह खुश भी थी कि वह बाहर निकल आई और फिर से उस ने अपने एकांतवास से दोस्ती कर ली.

उस दिन शनिवार की शाम थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. ताप्ती ने सोचा मिहिम होगा पर देखा, आलोक खड़े थे. बिना कुछ बोले उन्होंने ताप्ती को एक फूल की तरह अपनी गोद में उठा लिया और फिर उसे सोफे पर बैठा कर बोले, ‘‘मेरा क्या कुसूर है… तुम ने मुझे क्यों अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया? पता है आरवी का बुरा हाल है… वह किसी भी ट्यूटर से पढ़ने को तैयार नहीं है.’’

ताप्ती चुप रही.

आलोक आगे बोले, ‘‘ताप्ती, मैं क्या करूं. अगर मेरा मन तुम्हारी तरफ झुका जा रहा है… झूठ नहीं बोलूंगा तुम मेरी जिंदगी की पहली औरत हो, जिस ने मेरे दिल के तार छुए हैं… अनीता मेरी पत्नी हैं पर पत्नी से ज्यादा वे मुझे एक सख्त मिजाज प्रिंसिपल लगती हैं. हमारे विवाह की नींव ही एहसान और नियमकायदों पर टिकी हुई है. उस में कहीं भी रोमांचित करने वाले पल नहीं हैं.

‘‘अगर कोशिश भी करूं तो मेरी पत्नी मेरे गंवारपन का उपहास उड़ाती है, उस ने आलोक से नहीं, एक पुलिस अधिकारी से शादी करी है.’’

उस रात आलोक ने अपने जीवन की पूरी कहानी सुनाई. वे एक गरीब परिवार से थे. जब वे दिल्ली आए थे, तब उन की मुलाकात अनीता से हुई. अनीता उन की वाक्पटुता की कायल थीं. आलोक एक बहुत अच्छे डिबेटर थे और उन की इसी बात पर अनीता फिदा हो गई थीं.

वे आलोक के जीवन की पहली महिला थीं. अनीता का हाथ पकड़ कर उन्होंने सभ्य और उच्चवर्गीय समाज में उठनेबैठने के सलीकों को सीखा था. अनीता के पिता ने देखते ही इस हीरे को पहचान लिया था. उन्हें अपनी राजकुमारी के बारे में अच्छी तरह से पता था कि उसे आलोक जैसा ही कोई शांत और प्रखर बुद्धि का जीवनसाथी चाहिए. ऊपर से आलोक का भव्य व्यक्तित्व सोने में सुहागा था. अनीता के पिता में आलोक को अपने ही पिता की भूलीबिसरी छवि याद आती थी, इसलिए वे उन की कोई भी बात कभी नहीं टालते थे.

ये लम्हा कहां था मेरा: भाग 3- क्या था निकिता का फैसला

उधर निकिता नीस में होटल पहुंच कुछ देर आराम करने के बाद ऐलिस के साथ सी बीच की ओर चल दी. वहां का नजारा बहुत हसीन था. आराम से लेटे युवकयुवतियां भी थे वहां और छोटे बच्चों का हाथ पकड़ उन्हें टहलाते हुए हंसतेमुसकराते बुजुर्ग भी. निकिता को बारबार अभिनव का ही खयाल आ रहा था. लग रहा था कि उसे फोन कर बताए कि कितना मनोरम दृश्य है इधर.

वहां कुछ लोगों के विचार अपनी डायरी में नोट कर तसवीरें खींचने के बाद ऐलिस के साथ वह बाजार की ओर चल दी. विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बेचते और पर्यटन की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण बाजार हैं नीस में.

सब से पहले वे उस बाजार में पहुंचे जहां लोग अपने पुराने सामान को कम कीमत पर बेचने व अन्य लोग उस में से अपनी जरूरत का सामान लेने आते हैं. निकिता दुकानदारों व लोगों से बातचीत में व्यस्त थी. ऐलिस वहां रखा सामान देखते हुए एक बड़ी सी घड़ी की ओर आकर्षित हो गई. उसे हाथों में उठा कर देखते हुए उस का पैर नीचे रखे सोफे से टकरा गया और धड़ाम से जमीन पर गिरते ही घड़ी का कांच टूट कर उस के हाथ में गड़ गया.

ऐलिस को ऐसी स्थिति में देख निकिता घबरा गई. आसपास खड़े लोगों में से किसी ने अस्पताल फोन कर ऐंबुलैंस मंगवा ली. अस्पताल पहुंचने पर कांच निकालने के लिए ऐलिस को औपरेशन थिएटर ले जाया गया. निकिता ने पब्लिशिंग हाउस में फोन कर ऐलिस के पति का मोबाइल नंबर लिया और घटना की जानकारी दे दी. औपरेशन चल ही रहा था कि ऐलिस के औफिस से कुछ लोग उस के पति के साथ वहां पहुंच गए.

निकिता ने तब अभिनव को फोन किया और सारी बात बताई. अभिनव ने सुनते ही नीस आने का निर्णय कर लिया.

‘‘अरे नहीं, ऐसा मत करो अभिनव… मैं कुछ देर बाद होटल लौट जाऊंगी और कल फिर अपने काम में लग जाऊंगी… मेरी फिक्र न करो तुम,’’ निकिता बोली.

‘‘नहीं निकिता, अजनबी जगह है वह तुम्हारे लिए, मैं आ रहा हूं… और फिर तुम ने बताया कि अभी कोई नया गाइड भी प्रोवाइड नहीं कर पाएंगे पब्लिशर तुम्हें.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम्हें भी तो काम है न पैरिस में… मैं यहां डरूंगी नहीं… अकेली ही…’’

‘‘अरे डर तो मैं गया था तुम्हारा फोन सुन कर…जब तुम ने कहा न कि तुम अस्पताल से बोल रही हो तो मुझे लगा कि 2016 की तरह ही कहीं फिर से टैररिस्ट अटैक तो नहीं हो गया वहां… बस उस के बाद से अचानक फिक्र सी होने लगी है तुम्हारी… बस कुछ न कहो, मैं आ रहा हूं.’’

सच तो यह था कि निकिता कुछ कहना चाह भी नहीं रही थी. ऐलिस के चोटिल होने के बाद अचानक ही वह स्वयं को इतना अकेला महसूस करने लगी थी कि कुछ देर पहले तक यहां के लोगों की मुसकराहट उसे विद्रूप हंसी लगने लगी थी और प्रत्येक पुरुष उसे राजन जैसा लग रहा था.

अगले दिन पर्यटन स्थलों पर जा कर लेखन सामग्री एकत्र करना तो दूर उसे अस्पताल से होटल लौटने में ही अजीब सी दहशत हो रही थी.

हिम्मत जुटा कर होटल पहुंची तो अभिनव का फोन आ गया. उस ने बताया कि फ्लाइट में टिकट न मिलने के कारण वह ट्रेन से रहा है. वहां से हर 40 मिनट बाद नीस के लिए ट्रेन मिल जाती है. लगभग 6-7 घंटे की जर्नी होगी. रात तक वह नीस पहुंच जाएगा.

निकिता को अभिनव का आना बहुत अच्छा लग रहा था, साथ ही चिंता भी हो रही थी कि रात के समय कहीं ट्रेन से आते हुए उसे किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े. घबराई सी वह अभिनव को बारबार फोन कर रही थी.

अभिनव उस की परेशानी को महसूस कर उस का ध्यान कहीं और लगाने के उद्देश्य से बोला, ‘‘तुम आराम करो न निकिता… ट्रेन में मेरे पास वाली सीट पर एक बहुत खूबसूरत हसीना बैठी है. फ्रांस की ब्यूटी से बात करने का मौका मिला है… थोड़ी देर तो मजे लेने दो जिंदगी के.’’

निकिता ने ओके कह कर फोन रख दिया और रोंआंसी हो उठी. अभिनव का किसी और को सुंदर कहना और उस में रूचि लेना उसे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. ‘मैं ऐसा क्यों महसूस करने लगी हूं अभिनव के प्रति और खुद को असुरक्षित महसूस करने पर मुझे अभिनव की जरूरत क्यों लगने लगी है? क्यों राजन की छवि नहीं दिखाई दे रही मुझे अभिनव में?’ उस ने स्वयं से प्रश्न करने शुरू कर दिए और फिर उत्तर भी दे दिए, ‘क्यों लगेगा वह मुझे राजन जैसा? राजन ने निकिता को सिर्फ एक देह समझा और अभिनव… उस ने मेरे मन को जाना, मुझे यहां कैसा लग रहा होगा इस वक्त, वह अच्छी तरह समझ गया.

‘मेरे इतने करीब होने पर भी कभी मन नहीं डोला उस का और 7 फेरों में बंध जाने पर भी मेरे जिस्म को अपनी जागीर नहीं समझा उस ने. तभी तो मेरा जी चाह रहा है उस के कंधे पर सिर रख कर आंखें मूंद लूं और समर्पित कर दूं खुद को मन को ही नहीं, तन को भी…’

रात के लगभग 1 बजे पहुंच गया अभिनव. निकिता उसे देख कर खिल उठी. उस का झीनी गुलाबी नाइटी पहने अपनी स्नेहिल आंखों और प्रेम भरी मुसकान से स्वागत करना अभिनव को बहुत अच्छा लगा.

‘‘मैं चेंज कर लेती हूं, फिर चलते हैं डाइनिंग हौल में,’’ कह कर निकिता उठने लगी तो अभिनव ने उस का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया, ‘‘नहीं, रूम में ही मंगा लेते हैं कुछ… मेरे पास बैठी रहो आज… बहुत कुछ बताना है तुम्हें… बस मैं आया अभी,’’ कह कर अभिनव वाशरूम में फ्रैश होने चला गया.

निकिता ने कमरे में अनियन टार्ट और कौफी मंगवा ली.

अभिनव फ्रैश हो कर लौटा तो दोनों कौफी के घूंट भरने लगे. अभिनव तो जैसे आज निकिता के सामने अपना मन खोल देने को व्याकुल हो रहा था. बिना किसी लागलपेट को बोल उठा, ‘‘निकिता, पता है मैं शादी नहीं करना चाहता था?’’

‘‘मतलब?’’ निकिता का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

कुछ पल की चुप्पी के बाद अभिनव ने आपबीती सुना दी निकिता को.

‘‘निकिता इस बात को सुनने के बाद क्या तुम मुझ पर यकीन रख पाओगी… सच बताना क्या तुम्हें लगता हूं मैं वैसा जैसा सोनाली ने इलजाम लगा मुझे बना दिया था?’’ वह रुंधे गले से निकिता की ओर देखते हुए बोला.

‘‘अभिनव स्त्री के बारे में कहा जाता है कि वह पुरुष की फितरत उस की आंखें देख कर ही जान जाती है. सच कहूं तो आज मुझे बहुत दुख हो रहा है कि आप जैसे इंसान पर ऐसे आरोप लगे. भेड़ और भेडि़ए का फर्क समझ आता है मुझे. आप चाहते तो अपने शरीर की भूख मिटा सकते थे इन बीते 3 दिनों में, पर आप जब तक मेरे दिल तक नहीं पहुंचे शरीर तक पहुंचना बेमानी लगा आप को… आप के लिए बहुत इज्जत है मेरे मन में,’’ निकिता एक सांस में ही सब बोल गई.

‘‘निकिता, तुम्हारा इस प्रकार मुझ पर विश्वास करना… बता नहीं सकता कि तुम ने मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है.’’

‘‘अभिनव अपने जीवन की किताब भी आज मैं खोल देना चाहती हूं तुम्हारे सामने… मैं भी शादी नहीं करना चाहती थी,’’ कह कर निकिता बेबस चेहरा लिए अभिनव की ओर देखने लगी.

‘‘मुझे सब पता है निकिता, तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं,’’ निकिता की ओर स्नेह से देखता हुआ अभिनव बोला.

‘‘क्या पता है?’’ हक्कीबक्की सी हो निकिता ने पूछा.

‘‘निकिता तुम्हारी एक सहेली थी न अदीबा नाम की, जो पुणे में तुम्हारे साथ पीजी में रहती थी, उस का भाई हाशिम मेरा दोस्त है. कुछ समय पहले वह अपनी बहन की एक सहेली के लिए हमारे औफिस में जौब की बात करने आया था. मेरा अच्छा दोस्त है, इसलिए बहन की उस सहेली के विषय में सब बताया था उस ने.उस सहेली पर किस प्रकार उस के ही पिता के दोस्त ने बुरी नजर डाली थी, यह बताते हुए उस ने मुझ से कहा था कि बहन की सहेली के लिए जल्द से जल्द नौकरी का इंतजाम करना है तो कि वह पिछला सब भूल कर सामान्य जीवन बिताने लगे.‘‘तुम एक दिन जब अदीबा के साथ हाशिम के पास आई थीं तो मैं ने देख लिया था. फिर जब तुम्हें देखने तुम्हारे घर आया तो तुम्हारे चेहरे के भाव देख कर समझ गया कि विवाह बंधन में तुम भी बंधना नहीं चाहती, पर जब तुम्हारी ओर से हां में जवाब मिला और उधर दादाजी बीमार हुए तो मैं ने भी हां कह दी. आज तुम ने जो विश्वास मुझ पर दिखाया, मैं एहसानमंद हो गया हूं तुम्हारा. हां, एक बात और तुम उस बुरे हादसे को बिलकुल भूल जाओ, मैं हूं न साथ,’’ अभिनव ने अपनी बात पूरी करने से पहले ही निकिता का हाथ अपने हाथों में ले लिया.

बिस्तर पर आतेआते रात के 3 बज चुके थे. नाइट लैंप की हलकी रोशनी में

अभिनव की आंखों में नींद की जगह मदहोशी छलक रही थी. उस मदहोशी का असर निकिता पर भी हो रहा था और वह अभिनव के आकर्षण से स्वयं को अलग नहीं कर पा रही थी. कुछ देर तक दोनों पलकें मूंदें लेट कर बातचीत शुरू करने की एकदूसरे की पहल का इंतजार करते रहे.

आखिर चुप्पी को तोड़ते हुए अभिनव बोला, ‘‘निकिता एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहो न,’’ अभिनव के मोहपाश में जकड़ी निकिता उस की ओर प्रेमभरी दृष्टि डालते हुए बोली.

‘‘सोच रहा हूं तुम्हें फ्रांस पर बहुत कुछ लिखना है, इस के लिए जानकारी जुटा रही हो तुम. इस प्रेम नगरी में आ कर क्या फ्रैंच किस पर कुछ नहीं लिखना चाहोगी?’’ शरारत से मुसकराते हुए अभिनव बोला.

‘‘कैसे लिखूंगी? मुझे कहां पता है कुछ फ्रैंच किस के बारे में,’’ निकिता अदा से बोली.

अभिनव खिसक कर निकिता के पास आ गया और फिर उस के चेहरे पर चुंबनों की बौछार कर दी. निकिता का पोरपोर भीगा जा रहा था. कितना खूबसूरत और बेशकीमती

था वह लमहा, जो अब तक उन के भीतर ही छिपा था पर उसे महसूस करवाने वाला आज मिला था उन्हें.

‘‘ऐलिस बाजार में घड़ी की सुंदरता को निहार ही रही थी कि अचानक उस का पैर फिसला और…’’

‘‘झीनी गुलाबी नाइटी पहने निकिता ने जब रात को अभिनव का स्वागत किया तो वह खुशी से झूम उठा…’’

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ताप्ती- भाग 3: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

वे कब पीछे से आ कर चुपके से सब देख रहे थे, यह गुरुशिष्या की जोड़ी को पता ही नहीं चल पाया.

ताप्ती का चेहरा लाल हो गया. आरवी चिल्ला कर बोली, ‘‘पापा, आप कब आए?’’

पता नहीं कैसा खिंचाव था दोनों के बीच… जहां ताप्ती की उदासीनता आलोक को न जाने क्यों आकर्षित करती थी, वहीं आलोक का चुंबकीय आकर्षण भी रहरह कर ताप्ती को अपनी ओर खींचता था.

ताप्ती ने बचपन में भी कभी अपने पिता की सुरक्षा महसूस नहीं करी थी. उस ने हमेशा अपने पापा को एक हारे हुए इंसान के रूप में देखा था. जब मरजी आती वे घर आते और जब मन नहीं करता महीनोंमहीनों अपनी महिला और पुरुष मित्रों के पास पड़े रहते. ताप्ती से उन्हें कोई लगाव है या नहीं, उसे आज तक पता नहीं चल पाया.

जब उस की मम्मी को कैंसर डायग्नोज हुआ था, वे फिर उन की जिंदगी से गायब हो गए. जब भी कोई जिम्मेदारी आती तो वे ऐसे ही महीनों गायब हो जाते थे. ताप्ती कभीकभी सोचती कि मम्मी ने इस आदमी से प्यार करने की बहुत भारी कीमत चुकाई है.

आनंदी ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सत्य से कोर्ट में विवाह किया था. एक प्रेमी के रूप में वे जितने अच्छे थे, पति बनते ही गृहस्थी की जिम्मेदारियों से वे भागने लगे. दरअसल, शादी के बाद ही आनंदी को एहसास हो गया कि वे शादी के लिए बने ही नहीं हैं. आनंदी मन ही मन अपने गलत लिए गए फैसले पर घुलती रही और तभी असमय कैंसररूपी दीमक उन्हें चाट गई.

सत्य एक पिता और पति के रूप में न कभी उन की जिंदगी से पूरी तरह निकले न ही पूरी तरह उन की जिंदगी का हिस्सा बन पाए. एक लुकाछिपी का खेल चलता रहा. मम्मी के परिवार ने उन्हें बहुत पहले अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया था, शायद उन के विवाह के बाद से और सत्य के घर वाले उन के गैरजिम्मेदार रवैए के कारण उन से छुटकारा चाहते थे और इस विवाह ने उन्हें सुनहरा मौका दे दिया, इसलिए उन्होंने पहले ही दिन से दूरी बना कर रखी.

शायद आलोक का अपनी बेटी आरवी के लिए अथाह प्यार ही ताप्ती को खींचता था. वह आलोक में अपने उस पिता को ढूंढ़ती थी जो हमेशा मुसीबत आने पर उन मांबेटी को छोड़ कर चला जाता था.

एक बार ताप्ती ने अपनी मां से झुंझला कर कहा भी था, ‘‘मम्मी, क्यों इन्हें ढो रही हो, तलाक क्यों नहीं ले लेतीं?’’

तब आनंदी ने कड़वाहट से कहा था, ‘‘कोई तो है अपना कहने के लिए और पगली मैं तो तलाक ले भी लूंगी, तू बेटी तो सत्य की ही कहलाएगी… यह आदमी किस नीचता तक उतर सकता है, तुझे मालूम नहीं. जो है जैसा है रहने दे, कभीकभी ही सही कम से कम उसे पिता का फर्ज तो याद रहता है.’’

उस दिन रविवार था. ताप्ती काम खत्म कर लाल स्कर्ट और पीली कुरती में अलसा रही थी तभी बैल बजी. आरवी कार से उतरी और दौड़ती हुई ताप्ती के गले से झूल गई, ‘‘ताप्ती मैम मम्मी टूर पर गई हैं… और मेरा बिलकुल मन नहीं लग रहा था, इसलिए मैं यहां आ गई हूं. शाम को हम लोग शौपिंग पर चलेंगे.’’

ताप्ती बोली, ‘‘ठीक है बाबा, कुछ खाया या नहीं?’’

ताप्ती को कुछ ही दिनों में अपनी इस छात्रा से एक अनोखा लगाव हो गया. पता नहीं क्यों वह आरवी के साथ अपना बचपना जीती थी. वह बचपन जिसे वह कभी नहीं जी पाई, जो हमेशा एक असुरक्षा के साए में ही रहा. ताप्ती ने बहुत प्यार से आरवी के लिए पिज्जा बनाया और फिर दोपहर के खाने की तैयारी करने लगी. अभी वह खाने की मेज पर खाना लगा ही रही थी कि घर की बैल बजी.

आरवी पूछ रही थी, ‘‘पापा, आप बड़ी जल्दी आ गए?’’

‘‘मैम, तैयार हो जाओ, शौपिंग पर चलेंगे.’’

‘‘पापा, मैम ने बहुत अच्छा पिज्जा बनाया था. चलो खाना खाते हैं… शी इज एन ऐक्सीलैंट कुक.’’

आलोक हंसते हुए डाइनिंगटेबल पर बैठ गए. पता नहीं ताप्ती क्यों इतना पसीनापसीना हो रही थी.

आलोक ताप्ती से बोले, ‘‘सौरी, मुझे बहुत भूख लग रही है. तुम से पूछे बिना ही खाने पर बैठ गया हूं.’’

ताप्ती के बनाए खाने में सच में बहुत स्वाद था. अरहर की दाल, भरवां करेले, चावल और रोटी. ऐसा लगा आलोक को जैसे वे बरसों से भूखे हों. खाना खातेखाते अचानक आलोक के मुंह से निकल गया, ‘‘तुम जितना अच्छा खाना बनाती हो, उतनी ही सुंदर भी हो.’’

ताप्ती एकदम से लाल हो गई.

आलोक को जब समझ आया तो थोड़े से झेंप कर बोले, ‘‘आज आप स्कर्ट में एकदम स्कूली बच्ची लग रही हो.’’

ताप्ती आलोक के साथ नहीं जाना चाहती थी, इसलिए आरवी से बोली, ‘‘आरवी, तुम पापा के साथ जाओ, मुझे किसी जरूरी काम से जाना है.’’

आरवी रोंआसी सी बोली, ‘‘चलो न मैम नहीं तो मैं भी नहीं जाऊंगी. मुझे अपने जन्मदिन की शौपिंग करनी है… मम्मी जन्मदिन से 1 दिन पहले लौटेंगी.’’

आलोक बोले, ‘‘चलो न ताप्ती.’’

पता नहीं ताप्ती आलोक के आगे क्यों कमजोर पड़ जाती थी. जब वह फीरोजी जयपुरी बंदेज के सलवारकुरते में तैयार हो कर निकली तो आलोक फिर से खुद को काबू न कर पाए और धीरे से बोल उठे, ‘‘आज तो हम एक परिवार की तरह लग रहे हैं.’’

ताप्ती कट कर रह गई पर कुछ बोल न पाई. मन ही मन कुढ़ भी रही थी कि क्या जरूरत थी तैयार होने की. स्कर्ट भी तो ठीक ही थी.

आलोक आज खुद ही कार ड्राइव कर रहे थे. वे लगातार बोल रहे थे और माहौल को हलका करने की कोशिश कर रहे थे. वे किसी भी कीमत पर अपनी बेटी की खूबसूरत ट्यूटर को नाराज नहीं करना चाहते थे.

शौपिंग मौल में पहुंच कर ताप्ती आरवी के कपड़े दिलवाने में बिजी हो गई. वहीं घूमतेघूमते 2 घंटे बीत गए. तभी ताप्ती की नजर एक शिफौन की रानी रंग की साड़ी पर पड़ी, जिस में गोटा पट्टी लगी थी.

आरवी बोली, ‘‘पापा, ताप्ती मैम को यह साड़ी बहुत पसंद आ रही है.’’

इस से पहले कि ताप्ती कुछ बोलती, आलोक ने वह साड़ी पैक करवा दी. दुकान से बाहर आ ही रहे थे कि मिहिम से टकरा गए. अपने किसी काम से आया हुआ था. ताप्ती को आलोक और आरवी के साथ देख कर बोला, ‘‘शुक्र है तुम घर से बाहर तो निकलीं वरना मेरे लिए तो हमेशा मैडम को बहाना तैयार रहता है.’’

आलोक ने हंसते हुए कहा, ‘‘चलो मिहिम तुम भी हमारे साथ डिनर करो.’’

डिनर करते हुए मिहिम और आलोक अपनी बातों में ही व्यस्त रहे… ताप्ती का मन न जाने क्यों एक सपने के पीछे भटकता रहा. सपना उस के अपने परिवार का.

 

गलतफहमी: क्यों रीमा को बाहर भेजने से डरती थी मिसेज चंद्रा

मैंएक मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर एक्जीक्यूटिव हूं. कंपनी द्वारा दिए 2-3 बैडरूम के फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहता हूं. परिवार में मेरी पत्नी व एक 10 वर्ष का बेटा है जो कौन्वैंट स्कूल में छठी क्लास में पढ़ रहा है. मेरी पत्नी खूबसूरत, पढ़ीलिखी है. मैं इस फ्लैट में पिछले

2 साल से रह रहा हूं. चूंकि हम लोगों को कंपनी मोटी तनख्वाह देती है तो उसी हिसाब से काम भी करना पड़ता है. मैं रोज 9 बजे अपनी गाड़ी से औफिस जाता व शाम को 6-7 बजे लौटता. कभीकभी तो इस से भी ज्यादा देर हो जाती थी. इसलिए कालोनी या बिल्ंिडग में क्या हो रहा है, यहां कौन लोग रहते हैं और क्या करते हैं, इस की मुझे बहुत कम जानकारी है. थोड़ाबहुत जो मेरी पत्नी मुझे खाना खाते वक्त या किसी अन्य बातचीत में बता देती थी उतना ही मैं जान पाता था.

एक दिन छुट्टी के दिन मैं अपनी बालकनी में बैठा सुबहसुबह पेपर पढ़ते हुए चाय पी रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने की बिल्ंिडग में रहने वाली लड़की पर पड़ी, जो यही कोई 17-18 वर्ष की रही होगी. वह मेरी तरफ देखे जा रही थी. पहले तो मैं ने उसे यों ही अपना भ्रम समझा कि हो सकता है उसे कुछ कौतूहल हो, इस कारण वह मेरे फ्लैट की तरफ देख रही हो.

वैसे सुबहशाम टहलने का मेरा एक रूटीन था. सुबह उठ कर आधापौना घंटा कालोनी की सड़कों पर टहलता था व रात को खाना खा कर हम तीनों, मैं, मेरी पत्नी व मेरा बेटा कालोनी में टहलते अवश्य थे. अगर मेरे बेटे को रात को आइसक्रीम खाने की तलब लग जाती थी तो उसे आइसक्रीम भी खिलाने जाना पड़ता था.

मैं ने कई बार इस बात पर ध्यान दिया कि वह लड़की मेरे ऊपर व मेरी गतिविधियों पर नजर रखती है. मैं बालकनी में बैठा पेपर पढ़ रहा होता तो वह बालकनी की तरफ देखती और मुझ पर नजर रखती थी. जब हम रात को टहल रहे होते तो वह भी अपने कुत्ते के साथ टहलने निकल आती थी. कभीकभी उस का छोटा भाई भी उस के साथ आ जाता था, जोकि सिर्फ 5-6 साल का था, मगर दोनों भाईबहनों में बहुत फर्क था. वह बहुत खूबसूरत थी पर उस का छोटा भाई देखने में बहुत साधारण था.

एक दिन रात को मैं ने उस के पूरे परिवार को देखा. उस लड़की को छोड़ कर बाकी सभी देखने में बहुत साधारण थे. मुझे ताज्जुब भी हुआ मगर चूंकि आज के जमाने में कुछ भी हो सकता है इसलिए मैं ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा किंतु जब उस लड़की की मेरे में दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी तो मुझे थोड़ी परेशानी होने लगी कि मेरी बीवी देखेगी तो क्या कहेगी, मेरे बच्चे पर इस का क्या असर पड़ेगा.

कुछकुछ अच्छा भी लग रहा था. इस उम्र में कोई नौजवान लड़की अगर आप को प्यार करने लगे, चाहने लगे तो बड़ा अच्छा लगता है. अपने पुरुषार्थ पर विश्वास और बढ़ जाता है. इसलिए मैं भी कभीकभी पेपर पढ़ते समय उस की तरफ देख लेता था. हालांकि मेरी बालकनी और उस की बालकनी में करीब 50 फुट का फासला था, फिर भी हम एकदूसरे पर नजर रख सकते थे.

कुछ दिनों बाद उस ने भी सुबहसुबह टहलना शुरू कर दिया. कभी मेरे आगे, कभी मेरे पीछे. मैं यह सोच कर थोड़ा रोमांचित हुआ कि वह अब मेरी निकटता चाहने लगी है. शायद उसे मुझ से वास्तव में प्यार हो गया है. मैं भी उस के मोह में गिरफ्तार हो चुका था. अब मैं खाली समय में उस के बारे में सोचता रहता था. 40 से ऊपर की उम्र में जब पतिपत्नी  के संबंधों में एक ठहराव सा, एक स्थायित्च, एक बासीपन सा आ जाता है उस दौर में इस प्रकार के संबंध नई ऊर्जा प्रदान करते हैं.

लगभग हर व्यक्ति एक नवयौवना के प्यार की कामना करता है. कुछ पा लेते हैं, कुछ सिर्फ खयालों में ही अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं. कुछ लोग कहानियां, सस्ते उपन्यासों द्वारा अपनी इस चाहत को पूरा करते हैं, क्योंकि इस दौर में व्यक्ति इतना बड़ा भी नहीं होता कि वह हर लड़की को बेटी समान माने, बेटी का दरजा दे. वह अपने को जवान ही समझता है व जवानी की ही कामना करता है. मैं भी इस दौर से गुजर रहा था.

मगर एक दिन गड़बड़ हो गई. उसे कहीं जाना था जो शायद मेरे औफिस जाने के रास्ते में ही पड़ता था. मैं औफिस जाने के लिए तैयार हो कर निकला. अपनी गाड़ी मैं ने बाहर निकाली तो देखा वह मेरी तरफ ही चली आ रही है. उस ने मुझे इशारे  से रुकने को कहा और नजदीक आ  कर बोली, ‘‘अंकल, क्या आप मुझे कालीदास मार्ग पर छोड़ देंगे? मुझे देर हो गई है और मुझे वहां 10 बजे तक पहुंचना बहुत जरूरी है.’’

कार से कालीदास मार्ग पहुंचने में लगभग 45 मिनट लगते हैं. हालांकि अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर मुझे कुछ झटका सा लगा था मगर शराफत के नाते मैं ने कहा, ‘‘बैठो, छोड़ दूंगा.’’

वह चुपचाप कार में बैठ गई.‘‘वहां के स्कूल में आज आईआईटी प्रवेश की परीक्षा है,’’ उस ने संक्षिप्त जवाब दिया.रास्तेभर हम खामोश रहे. वह अपने नोट्स पढ़ती रही. मैं ने उसे उस के स्कूल छोड़ दिया.

हालांकि मेरा मन बड़ा अनमना सा हो गया था अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर. मैं तो क्याक्या खयाली पुलाव पका रहा था और वह मेरे बारे में क्या सोचती थी? मगर उस के बाद भी उस की गतिविधियों में कोई बदलाव नहीं आया. उसी प्रकार सुबहशाम टहलना, बालकनी में खड़े हो कर मुझे देखना. चूंकि दूरी काफी थी इसलिए मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि उस के देखने में अनुराग है, आसक्ति है या कुछ  और है.

मैं ने सोचा, हो सकता है उसे मुझ से बात शुरू करने के लिए कोई और शब्द न मिला हो इसलिए उस ने मुझे ‘अंकल’ कहा हो. चूंकि मुझ को उस में रुचि थी अत: मैं ने उस के और उस के घरपरिवार के बारे में लोगों से पूछा, पता लगाया, पत्नी के द्वारा थोड़ीबहुत जानकारी ली. मुझे पता लगा उस के पिताजी भी एक दूसरी फर्म में इंजीनियर हैं मगर उन की यह

दूसरी पत्नी हैं. पहली पत्नी की मौत हो चुकी है.एक दिन छुट्टी के दिन वह सुबहसुबह मेरे फ्लैट में आई. मैं पेपर पढ़ रहा था. पत्नी ने दरवाजा खोल कर मुझे बुलाया, ‘‘आप से मिलने कोई रीमा आई है.’’

‘‘कौन रीमा?’’‘‘वही जो सामने रहती है.’‘‘ओह, मगर उसे मुझ से क्या काम?’’‘‘आप खुद ही उस से मिल कर पूछ लो.’’

मैं बालकनी से उठ कर ड्राइंगरूम में आया. उस ने मुझे नमस्ते की.मैं ने सिर हिला कर उस की नमस्ते का जवाब दिया.‘‘बोलो?’’ मैं ने पूछा.‘‘अंकल, मैं आप की थोड़ी मदद चाहती हूं.’’‘‘किस प्रकार की मदद?’’

वह थोड़ी देर खामोश रही, फिर बोली, ‘‘मेरा सलैक्शन आईआईटी में हो गया है मगर मेरे मम्मीपापा मुझे जाने नहीं देना चाहते. मैं चाहती हूं कि आप उन्हें समझाएं.’’

‘‘मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊं, मेरा उन से कोई परिचय नहीं. कोई बातचीत नहीं. मेरी बात क्यों मानेंगे?’ ‘‘अंकल, प्लीज, मेरी खातिर, मेरी मम्मी की खातिर आप उन्हें समझाइए.’‘‘न ही मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूं और न ही तुम्हारी मम्मी को, फिर मैं तुम्हारी खातिर कैसे तुम्हारे पापा से बात करूं?’’

‘‘मैं प्रभा की बेटी हूं.’’‘‘कौन प्रभा?’’ ‘‘वही जो आप की दूर के एक रिश्तेदार की बेटी थीं.’’मैं चौंका, ‘‘क्या तुम्हारी मम्मी बाबू जगदंबा प्रसाद की बेटी थीं?’’‘‘जी.’’ ‘‘ओह, तो यह बात है, तो क्या तुम मुझे जानती हो?’’

‘‘जी, मम्मी ने आप के बारे में बताया था. नाना के पास आप की फोटो थी. मम्मी ने बताया था कि आप चाहते थे कि आप की शादी उन से हो जाए मगर नाना नहीं माने. क्योंकि तब आप की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी और आप लोग उम्र में भी लगभग बराबर के थे.’’

प्रभा बहुत खूबसूरत और मेरे एक दूर के रिश्तेदार की बेटी थी. वे लोग पैसे वाले थे. उस के पिताजी पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे जबकि मेरे पिताजी बैंक में अफसर. तब पैसे के मामले में एक बैंक अफसर से पीडब्ल्यूडी के एक इंजीनियर से क्या मुकाबला?

मैं अभी पढ़ रहा था, तभी सुना कि प्रभा की शादी की बात चल रही है. मैं ने अपनी मां से कहलवाया मगर उन लोगों ने मना कर दिया, क्योंकि मैं अभी एमकौम कर रहा था और उन को प्रभा के लिए इंजीनियर लड़का मिल रहा था. फिर प्रभा की शादी हो गई. मैं ने एमकौम, फिर सीए किया तब नौकरी मिली. इसीलिए मेरी शादी भी काफी देर से हुई.

तो रीमा उसी प्रभा की बेटी है. मुझे प्रभा से शादी न हो पाने का मलाल अवश्य था मगर मुझे उस के मरने की खबर नहीं थी. असल में हमारा उन के यहां आनाजाना बहुत कम था. कभीकभार किसी समारोह में या शादीविवाह में मुलाकात हो जाती थी. मगर इधर 8-10 साल से मेरी उस के परिवार के किसी व्यक्ति से मुलाकात नहीं हुई थी. इसीलिए मुझे उस की मौत की खबर नहीं थी.

‘‘तुम्हारी मम्मी कब और कैसे गुजरीं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘दूसरी डिलीवरी के समय 7 साल पहले मेरी मम्मी की मृत्यु हो गई.’’‘‘और आजकल जो हैं वह?’’‘‘एक साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. राहुल उन से पैदा हुआ है.’’

अब मुझे दोनों भाईबहनों की असमानता का रहस्य समझ में आया कि क्यों रीमा इतनी खूबसूरत थी और उस का भाई इतना साधारण. और क्यों दोनों में उम्र का भी काफी अंतर था.

‘‘तो तुम मुझ से क्या चाहती हो?’‘‘अंकल, मैं आप को पिता के समान मानती हूं. जब आप शाम को बच्चे के साथ बाहर घूमने निकलते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है. मैं भी चाहती हूं कि मेरे पापा भी ऐसा करें मगर उन के पास तो मेरे लिए फुरसत ही नहीं है. मम्मी लगता है मुझ से जलती हैं कि मैं इतनी खूबसूरत क्यों हूं. अब इस में हमारा क्या दोष? इसीलिए वह मेरी हर बात में कमी निकालती हैं, हर बात का विरोध करती हैं. वह नहीं चाहतीं कि मैं ज्यादा पढ़लिख कर आगे बढ़ूं.’’

अब मुझे उस की नजरों का अर्थ समझ में आने लगा था. वह मुझ में उस आदर्श पिता की तलाश कर रही थी जो उस के आदर्शों के अनुरूप हो. जो उस के पापा की कमियों को, उस की इच्छाओं को पूरा कर सके. मुझे अपनी सोच पर आत्मग्लानि भी हुई कि मैं उस के बारे में कितना गलत सोच रहा था. लगता था वह घर से झगड़ा कर के आई थी.

‘‘तुम ने नाश्ता किया है कि नहीं?’’ मैं ने पूछा तो वह खामोश रही.मैं समझ गया. झगड़े के कारण उस ने नाश्ता भी नहीं किया होगा.‘‘ठीक है, तुम पहले नाश्ता करो. शांत हो जाओ. फिर मैं चलता हूं तुम्हारे घर.’’

मैं ने उसे आश्वस्त किया. फिर हम सब ने बैठ कर नाश्ता किया. मैं ने अपनी पत्नी को बताया कि मैं रीमा के मम्मीपापा से मिलने जा रहा हूं.

‘‘मैं भी साथ चलूंगी,’’ मेरी पत्नी ने कहा.‘‘तुम क्या करोगी वहां जा कर?’’

‘‘आप नहीं जानते, यह लड़की का मामला है. अगर उन्होंने आप पर कोई उलटासीधा इलजाम लगाया या आप से पूछा कि आप को उन की बेटी में इतनी रुचि क्यों है तो आप क्या जवाब देंगे? और अगर उन्होंने कहा कि आप को उस से इतना ही लगाव है तो उसे अपने पास ही रख लीजिए. तो क्या आप इतना बड़ा फैसला अकेले कर सकेंगे?’’

मैं ने इस पहलू पर गौर ही नहीं किया था. मेरी पत्नी का कहना सही था.हम सब एकसाथ रीमा के घर गए.

मैं ने उन के घर पहुंच कर घंटी बजाई. उस की मम्मी ने दरवाजा खोला तो हम लोगों को देख कर वह नाराजगी से अंदर चली गईं फिर उस के पापा दरवाजे पर आए.

वहां का माहौल काफी तनावपूर्ण थारीमा के पिता नरेशचंद्र और मां माया रीमा से बहुत नाराज थे कि वह घर का झगड़ा बाहर क्यों ले गई, वह मेरे पास क्यों आई?

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वह बोले.हम दोनों ने उन को नमस्कार किया. मैं ने कहा, ‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’ उन्होंने बड़े अनमने मन से कहा, ‘‘आइए.’’

हम सब उन के ‘ड्राइंग कम डाइनिंग रूम’ में बैठ गए. थोड़ी देर खामोशी छाई रही, फिर मैं ने ही बात शुरू की.‘‘आप शायद मुझे नहीं जानते.’’‘‘जी, बिलकुल नहीं,’’ उन्होंने रूखे स्वर में कहा.

‘‘आप की पहली पत्नी मेरी बहुत दूर की रिश्तेदार थीं.’’‘‘तो?’’

‘‘इसीलिए रीमा बेटी से हम लोगों को थोड़ा लगाव सा है,’’ मैं कह तो गया मगर बाद में मुझे स्वयं अपने ऊपर ताज्जुब हुआ कि मैं इतनी बड़ी बात कैसे कह गया.

‘‘तो?’’ उन्होंने उसी बेरुखी से पूछा.मैं ने बड़ी मुश्किल से अपना धैर्य बनाए रखा. मुझे उन के इस व्यवहार से बड़ी खीज सी हो रही थी. कुछ देर खामोश रह कर मैं फिर बोला, ‘‘वह आईआईटी से पढ़ाई करना चाहती है…’’

‘‘मगर हम लोग उस को नहीं भेजना चाहते,’’ मिस्टर चंद्रा ने कहा.‘‘कोई खास बात…?’’‘‘यों ही.’’

‘‘यों ही तो नहीं हो सकता, जरूर कोई खास बात होगी. जब आप की बेटी पढ़ने में तेज है और फिर उस ने परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ली है तो फिर आप को एतराज किस बात का है?’’

अब मिसेज चंद्रा भी बाहर आ कर अपने पति के पास बैठ गईं.‘‘देखिए भाई साहब, रीमा हमारी बेटी है. उस का भलाबुरा सोचना हमारा काम है, किसी बाहरी व्यक्ति या दूर के रिश्तेदार का नहीं,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

मैं ने खामोशी से उन की बात सुनी. उन की बातों से मुझे इस बात का एहसास हो गया कि मिसेज चंद्र्रा का ही घर में काफी दबदबा है और नरेश चंद्रा उन के ही दबाव में हैं शायद इसीलिए रीमा को आगे पढ़ने नहीं देना चाहते.

मैं ने अपना धैर्य बनाए हुए संयत स्वर में कहा, ‘‘आप की बात बिलकुल सही है मगर क्या आप नहीं चाहतीं कि आप की बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त करे, इंजीनियर बने. लोग आप का उदाहरण दें कि वह देखो वह मिसेज चंद्रा की बेटी है जो इंजीनियर बन गई है,’’ मैं ने थोड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया.

मेरी बातों से वे थोड़ा शांत हुईं.  उन का अब तक का अंदाज बड़ा आक्रामक था.‘‘मगर हम चाहते हैं कि उस की जल्दी से शादी कर दें. वह अपने पति के घर जाए फिर उस का पति जैसा चाहे, करे.’’

‘‘मतलब आप शीघ्र ही अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती हैं.’’‘‘जी हां,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

‘‘मगर क्या रीमा एक बोझ है? मेरे विचार से तो वह बोझ नहीं है, और आजकल तो लड़के वाले भी चाहते हैं कि लड़की ज्यादा से ज्यादा पढ़ी हो. और जब वह इंजीनियर बन जाएगी, खुद अच्छा कमाएगी तो आप को भी इतनी परेशानी नहीं होगी उस की शादी में,’’ मैं ने अपनी बात कही.

‘‘आप की बात तो सही है, मगर…’’ मिसेज चंद्रा सोचते हुए बोलीं.

मैं उन के इस मगर का अर्थ समझ रहा था किंतु मैं रीमा के सामने नहीं कह सकता था. वह हम लोगों के साथ ही बैठी थी. मैं ने उसे अपने बेटे व उस के भाई के साथ मेरे घर जाने को कहा. वह थोड़ा झिझकी. मैं ने उसे इशारों से आश्वस्त किया तो वह चली गई.

‘‘देखिए, जहां तक मैं समझता हूं आप का और रीमा का सहज संबंध नहीं है. आप लोगों के बीच कुछ तनाव है.’’

मिसेज चंद्रा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया.

‘‘देखिए, मेरी बात को आप अन्यथा न लीजिए. यह बहुत सहज बात है. असल में आप दोनों के बीच किसी ने सहज संबंध बनाने का प्रयास ही नहीं किया. आप को उस की खूबसूरती के कारण हमेशा हीनता महसूस होती है. इसीलिए आप उसे हमेशा नीचा दिखाना चाहती हैं, उस की उन्नति नहीं चाहती हैं, मगर क्या यह अच्छा नहीं होता कि आप बजाय उस से जलने के गर्व महसूस करतीं कि आप की एक बहुत ही सुंदर बेटी भी है. उसे एक खूबसूरत तोहफा मानतीं नरेश की पहली पत्नी का. उसे इतना प्यार देतीं, उस की हर बात का खयाल रखतीं कि वह आप को अपनी सगी मां से ज्यादा प्यार, सम्मान देती. अगर आप को कोई परेशानी न हो तो मैं उस की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूं,’’ मैं ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी आंखों ही आंखों में अपनी रजामंदी दे दी.

मेरी बात का उन पर लगता है सही असर हुआ था क्योंकि जो बात मैं ने कही थी कभीकभी इन बातों का कुछ लोग उलटा अर्थ लगा लड़ने लग जाते हैं. मगर गनीमत कि उन्होंने मेरी बातों का बुरा नहीं माना.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी. आप उस से कह दीजिए कि हम लोग उसे इंजीनियरिंग पढ़ने भेज देंगे,’’ मिसेज चंद्रा ने बड़े ही शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं नहीं, यह बात उस से आप ही कहेंगी और आप खुद देखेंगी कि इस बात का कैसा असर होगा.’’

थोड़ी देर में वह चाय और नाश्ता लाईं जिस के लिए अभी तक उन्होंने हम लोगों से पूछा नहीं था.

फिर मैं ने अपने घर टैलीफोन कर रीमा को बुलवाया. रीमा आई तो मिसेज चंद्रा ने उसे अपने पास बिठाया. उस का हाथ अपने हाथों में ले कर थोड़ी देर तक उसे देखती रहीं, फिर उन्होंने उस का माथा चूम लिया, ‘‘तुम जो कहोगी मैं वही करूंगी,’’ उन्होंने रुंधे गले से कहा तो रीमा उन से गले लग कर रोने लगी. मिस्टर चंद्रा की आंखों में भी आंसू आ गए थे. आंसू तो हमारी भी आंखों में थे मगर वह खुशी के आंसू थे.

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यादों के सहारे : आखिर नीलू की यादों में क्यों गुम रहता था प्रकाश

वह बीते हुए पलों की यादों को भूल जाना चाहता था. और दिनों के बजाय वह आज  ज्यादा गुमसुम था. वह सविता सिनेमा के सामने वाले मैदान में अकेला बैठा था. उस के दोस्त उसे अकेला छोड़ कर जा चुके थे. उस ने घंटों से कुछ खाया तक नहीं था, ताकि भूख से उस लड़की की यादों को भूल जाए. पर यादें जाती ही नहीं दिल से, क्या करे. कैसे भुलाए, उस की समझ में नहीं आया.

उस ने उठने की कोशिश की, तो कमजोरी से पैर लड़खड़ा रहे थे. अगलबगल वाले लोग आपस में बतिया रहे थे, ‘भले घर का लगता है. जरूर किसी से प्यार का चक्कर होगा. लड़की ने इसे धोखा दिया होगा या लड़की के मांबाप ने उस की शादी कहीं और कर दी होगी…

‘प्यार में अकसर ऐसा हो जाता है, बेचारा…’ फिर एक चुप्पी छा गई थी. लोग फिर आपसी बातों में मशगूल हो गए. वह वहां से उठ कर कहीं दूर जा चुका था. उस ने उस लड़की को अपने मकान के सामने वाली सड़क से गुजरते देखा था. उसे देख कर वह लड़की भी एक हलकी सी मुसकान छोड़ जाती थी. वह यहीं के कालेज में पढ़ती थी. धीरेधीरे उस लड़की की मुसकान ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. जब वे आपस में मिले, तो उस ने लड़की से कहा था, ‘‘तुम हर पल आंखों में छाई रहती हो. क्यों न हम हमेशा के लिए एकदूजे के हो जाएं?’’ उस लड़की ने कुछ नहीं कहा था. वह कैमिस्ट से दवा खरीद कर चली गई थी. उस का चेहरा उदासी में डूबा था.

उस लड़की का नाम नीलू था. नीलू के मातापिता उस के उदास चेहरे को देख कर चिंतित हो उठे थे. पिता ने कहा था, ‘‘पहले तो नीलू के चेहरे पर मुसकराहट तैरती थी. लेकिन कई दिनों से उस के चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह रंगत नहीं, वह चिडि़यों की तरह फुदकती नहीं, बल्कि किसी बासी फूल की तरह उस के चेहरे पर पीलापन छाया रहता है.’’

नीलू की मां बोली, ‘‘लड़की सयानी हो गई है. कुछ सोचती होगी.’’

नीलू के पिता बोले, ‘‘क्यों नहीं इस के हाथ पीले कर दिए जाएं?’’

मां ने कहा, ‘‘कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस से तो यही अच्छा रहेगा.’’ नीलू की यादों को न भूल पाने वाले लड़के का नाम प्रकाश था. वह खुद इस कशिश के बारे में नहीं जानता था. वह अपनेआप को संभाल नहीं सका था. उसे अकेलापन खलने लगा था. उस की आंखों के सामने हर घड़ी नीलू का चेहरा तैरता रहता था. एक दिन प्रकाश नीलू से बोला, ‘‘नीलू, क्यों न हम अपनेअपने मम्मीडैडी से इस बारे में बात करें?’’

‘‘मेरे मम्मीडैडी पुराने विचारों के हैं. वे इस संबंध को कभी नहीं स्वीकारेंगे,’’ नीलू ने कहा.

‘‘क्यों?’’ प्रकाश ने पूछा था.

‘‘क्योंकि जाति आड़े आ सकती है प्रकाश. उन के विचार हम लोगों के विचारों से अलग हैं. उन की सोच को कोई बदल नहीं सकता.’’

‘‘कोई रास्ता निकालो नीलू. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’ नीलू कुछ जवाब नहीं दे पाई थी. एक खामोशी उस के चेहरे पर घिर गई थी. दोनों निराश मन लिए अलग हो गए. पूरे महल्ले में उन दोनों के प्यार की चर्चा होने लगी थी.

‘‘जानती हो फूलमती, आजकल प्रकाश और नीलू का चक्कर चल रहा है. दोनों आपस में मिल रहे हैं.’’

‘‘हां दीदी, मैं ने भी स्कूल के पास उन्हें मिलते देखा है. आपस में दोनों हौलेहौले बतिया रहे थे. मुझ पर नजर पड़ते ही दोनों वहां से खिसक लिए थे.’’

‘‘हां, मैं ने भी दोनों को बैंक्वेट हाल के पास देखा है.’’

‘‘ऐसा न हो कि बबीता की कहानी दोहरा दी जाए.’’

‘‘यह प्यारव्यार का चक्कर बहुत ही बेहूदा है. प्यार की आंधी में बह कर लोग अपनी जिंदगी खराब कर लेते हैं.’’

‘‘आज का प्यार वासना से भरा है, प्यार में गंभीरता नहीं है.’’

‘‘देखो, इन दोनों की प्रेम कहानी का नतीजा क्या होता है.’’ प्रकाश के पिता उदय बाबू अपने महल्ले के इज्जतदार लोगों में शुमार थे. किसी भी शख्स के साथ कोई समस्या होती, तो वे ही समाधान किया करते थे. धीरेधीरे यह चर्चा उन के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने घर आ कर अपनी पत्नी से कहा था, ‘‘सुनती हो…’’ पत्नी निशा ने रसोईघर से आ कर पूछा, ‘‘क्या है जी?’’

‘‘महल्ले में प्रकाश और नीलू के प्यार की चर्चा फैली हुई है,’’ उदय बाबू ने कहा.

‘‘तभी तो मैं मन ही मन सोचूं कि आजकल वह उखड़ाउखड़ा सा क्यों रहता है? वह खुल कर किसी से बात भी नहीं करता है.’’

‘‘मैं प्रोफैसर साहब के यहां से आ रहा था. गली में 2-4 औरतें उसी के बारे में बातें कर रही थीं.’’

‘‘मैं प्रकाश को समझाऊंगी कि हमें यह रिश्ता कबूल नहीं है,’’ निशा ने कहा. उधर नीलू के मम्मीडैडी ने सोचा कि जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करवा दें और वे इस जुगाड़ में जुट गए.

नीलू को जब इस बारे में मालूम हुआ था, तो उस ने प्रकाश से कहा, ‘‘प्रकाश, अब हम कभी नहीं मिल सकेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने पूछा था.

‘‘डैडी मेरा रिश्ता करने की बात चला रहे हैं. हो सकता है कि कुछ ही दिनों में ऐसा हो जाए,’’ इतना कह कर नीलू की आंखों में आंसू डबडबा गए थे.

‘‘क्या तुम ने…?’’

‘‘नहीं प्रकाश, मैं उन के विचारों का विरोध नहीं कर सकती.’’

‘‘तो तुम ने मुझे इतना प्यार क्यों किया था?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘हम एकदूसरे के हो जाएं, क्या इसे प्यार कहते हैं? क्या जिस्मानी संबंध को ही तुम प्यार का नाम देते हो?’’

यह सुन कर प्रकाश चुप था.

‘‘क्या अलग रह कर हम एकदूसरे को प्यार नहीं करते रहेंगे?’’ कुछ देर चुप रह कर नीलू बोली, ‘‘मुझे गलत मत समझना. मेरे मम्मीडैडी मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उन के प्यार को ठेस नहीं पहुंचा सकती.’’

‘‘क्या तुम उन का विरोध नहीं कर सकती?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘जिस ने हमें यह रूप दिया है, हमें बचपन से ले कर आज तक लाड़प्यार दिया है, क्या उन का विरोध करना ठीक होगा?’’ नीलू ने समझाया.

‘‘तो फिर क्या होगा हमारे प्यार का?’’ प्रकाश ने पूछा.ा

‘‘अपनी चाहत को पाने के लिए मैं उन के अरमानों को नहीं तोड़ सकती. उन की सोच हम से बेहतर है.’’ इस के बाद वे दोनों अलग हो गए थे, क्योंकि लोगों की नजरें उन्हें घूर रही थीं. नीलू के मम्मीडैडी की आंखों के सामने बरसों पुराना एक मंजर घूम गया था. उसी महल्ले के गिरधारी बाबू की लड़की बबीता को भी पड़ोस के लड़के से प्यार हो गया था. उस लड़के ने बबीता को खूब सब्जबाग दिखाए थे और जब उस का मकसद पूरा हो गया था, तो वह दिल्ली भाग गया था. कुछ दिनों तक बबीता ने इंतजार भी किया था. गिरधारी बाबू की बड़ी बेइज्जती हुई थी. कई दिनों तक तो वे घर से बाहर निकले नहीं थे. इतना बोले थे, ‘यह तुम ने क्या किया बेटी?’

बबीता मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गई थी. एक दिन चुपके से मुंहअंधेरे घर से निकल पड़ी और हमेशाहमेशा के लिए नदी की गोद में समा गई. गिरधारी बाबू को जब पता चला, तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया था. नीलू की शादी उमाकांत बाबू के यहां तय हो गई थी. जब प्रकाश को शादी की जानकारी हुई, तो उस की आंखों में आंसू डबडबा आए थे. वह अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था. प्रकाश का एक मन कहता, ‘महल्ले को छोड़ दूं, खुदकुशी कर लूं…’ दूसरा मन कहता, ‘ऐसा कर के अपने प्यार को बदनाम करना चाहते हो तुम? नीलू के दिल को ठेस पहुंचाना चाहते हो तुम?’

कुछ पल तक यही हालत रही, फिर प्रकाश ने सोचा कि यह बेवकूफी होगी, बुजदिली होगी. उस ने उम्रभर नीलू की यादों के सहारे जीने की कमस खाई. नीलू की शादी हो रही थी. खूब चहलपहल थी. मेहमानों के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. गाजेबाजे के साथ लड़के की बरात निकल चुकी थी. प्रकाश के घर के सामने वाली सड़क से बरात गुजर रही थी. वह अपनी छत पर खड़ा देख रहा था. वह अपनेआप से बोल रहा था, ‘मैं तुम्हें बदनाम नहीं करूंगा नीलू. इस में मेरे प्यार की रुसवाई होगी. तुम खुश रहो. मैं तुम्हारी यादों के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजार दूंगा…’

प्रकाश ने देखा कि बरात बहुत दूर जा चुकी थी. प्रकाश छत से नीचे उतर आया था. वह अपने कमरे में आ कर कागज के पन्नों पर दूधिया रोशनी में लिख रहा था:

‘प्यारी नीलू,

‘वे पल कितने मधुर थे, जब बाग में शुरूशुरू में हमतुम मिले थे. तुम्हारा साथ पा कर मैं निहाल हो उठा था. ‘मैं रातभर यही सोचता था कि वे पल, जो हम दोनों ने एकसाथ बिताए थे, वे कभी खत्म न हों, पर मेरी चाहत के टीले को जमीन से उखाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर दिया गया. ‘मैं चाहता तो जमाने से रूबरू हो कर लड़ता, पर ऐसा कर के मैं अपनी मुहब्बत को बदनाम नहीं करना चाहता था. मेरे मन में हमेशा यही बात आती रही कि वे पल हमारी जिंदगी में क्यों आए? ‘तुम मेरी जिंदगी से दूर हो गई हो. मैं बेजान हो गया हूं. एक अजीब सा खालीपन पूरे शरीर में पसर गया है. संभाल कर रखूंगा उन मधुर पलों को, जो हम दोनों ने साथ बिताए थे.

‘तुम्हारा प्रकाश…’

प्रकाश की आंखें आंसुओं से टिमटिमा रही थीं. धीरेधीरे नीलू की यादों में खोया वह सो गया था.

 

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी

अदितिभागीभागी बसस्टौप की तरफ जा रही थी. आज फिर से सारा काम काम खत्म करने में उसे देर हो गई थी. आज वह किसी भी कीमत पर बस नहीं छोड़ना चाहती थी.

बस छूटी और शुरू हो गया पति का लंबा लैक्चर, ‘‘टीचर ही तो हो… फिर भी तुम से कोई काम ढंग से नहीं होता. पता नहीं बच्चों को क्या सिखाती हो?’’

पिछले 5 सालों से वह यही सुन रही है.

अदिति 30 वर्ष की सुंदर नवयुवती है. अपने कैरियर की शुरुआत उस ने एक कंपनी में ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर के पद से करी थी. वही कंपनी में उस की मुलाकात अपने पति अनुराग से हुई, जो उसी कंपनी में सेल्स मैनेजर का काम संभालता था. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में तबदील हो गई. शादी के बाद प्राथमिकताएं बदल गईं.

अनुराग और अदिति आंखों में ढेर सारे सपने संजो कर जीवन की राह पर चल पड़े. अदिति घर, दफ्तर का काम करतेकरते थक जाती थी. तब अनुराग ने ही एक मेड का बंदोबस्त कर दिया था.

जिंदगी गुजर रही थी और धीरेधीरे दोनों अपनी गृहस्थी को जमाने की कोशिश कर रहे थे. तभी उन की जिंदगी में एक फूल खिलने का आभास हुआ. डाक्टर ने अदिति को बैडरैस्ट करने को कहा, इसलिए उस के पास नौकरी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था. एक प्यारी सी परी आ गई थी. उन के जीवन में पर साथ ही बढ़ रही थी जिम्मेदारियां.

अदिति पिछले 2 सालों से घर पर थी, इसी बीच अनुराग ने बैंक से लोन ले कर एक प्लैट भी ले लिया था. उधर पापा भी रिटायर हो गए थे तो उधर की तरफ भी उस की थोड़ी जवाबदेही हो गई थी. जैसे हर मध्यवर्ग के साथ होता है. उन्होंने भी कुछ खर्चों में कटौती करी और मेड को हटा दिया और अदिति ने भी नौकरी के लिए हाथपैर मारने शुरू कर दिए.

 

अदिति ने बहुत कंपनियों में कोशिश करी पर 2 साल का अंतराल एक खाई की तरह हो गया उस के और नौकरी के बीच में. फिर उस ने सोचविचार के बाद स्कूल में अप्लाई किया और जल्द ही एक स्कूल टीचर के रूप में उस की नियुक्ति हो गई.

अनुराग यह सुन कर खुश था क्योंकि वह समय से घर आ सकती है और अपनी बेटी के साथ समय बिता सकती है. समस्या थी कि 1 वर्ष की परी की. उसे किस के भरोसे छोड़ कर जाए, सम झ नहीं आ रहा था. परी के नानानानी और दादादादी उसे अपने साथ रखने को तैयार थे पर वहां आ कर रहना नहीं चाहते थे. मेड के भरोसे पूरा दिन परी को अदिति छोड़ना नहीं चाहती थी. फिर उन्हें पड़ोस में ही एक डे केयर मिल गया, हालांकि उस की फीस काफी ज्यादा थी पर अपनी बच्ची की सुरक्षा उन की प्राथमिकता थी.

आज अदिति को स्कूल जाना था. सुबह से ही अदिति की रेल बन गई. नाश्ता और खाना बनाना, फिर घर की साफसफाई और परी का भी पूरा बैग तैयार करना था. जब वह परी को डे केयर छोड़ कर बाहर निकली तो उस का रोना न सुन सकी और खुद ही कब सुबकने लगी, उसे पता ही नहीं चला. पर अदिति ने महसूस किया, जितनी वह बेबस है. उतनी ही बेबसी अनुराग की आंखों में भी है.

स्टाफरूप में उस का परिचय सब से कराया गया. सब खिलखिला रहे थे पर उसे सबकुछ नया और अलग लग रहा था. जब वह कंपनी में थी तो वहां पर आप कैसे भी व्यवहार कर सकते थे पर स्कूल के अपने नियमकायदे थे और उन्हें सब से पहले शिक्षक को ही अपने जीवन में उतारना होता है.

कक्षा में पहुंच कर देखा सारे बच्चे शोर मचा रहे थे. वह जोरजोर से चिल्ला रही थी पर कोई फायदा नहीं. उसे महसूस हुआ वह क्लास में नहीं एक सब्जी मंडी आ गई है. पास से ही प्रिंसिपल गुजर रही थीं. शोर सुन कर वे कक्षा में आ गईं, बच्चों को चुपचाप खड़े हो कर एक कड़ी नजर से देखा तो वे एकदम चुप हो कर बैठ गए.

पूरा दिन अदिति का बस चिल्लाते ही बीता. 6 घंटे के स्कूल में उसे बस मुश्किल से 15 मिनट लंच ब्रेक के मिले. अदिति को पहले दिन ही यह अनुमान लग गया कि यह इतना भी आसान नहीं है जितना वह सम झती है.

स्कूल बस में बैठ कर पता ही नहीं चला कब उस की आंख लग गई. जब साथ वाली अध्यापिका ने उसे  झं झोड़ कर उठाया तो उस की आंख खुली. डे केयर से परी को ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ी. वह पसीने से सराबोर थी और भूख से उस के प्राण निकल रहे थे. परी को गोद में लिए उस ने खाना खाया और लेट गई.

शाम को वह जैसे ही कमरे से बाहर निकली तो देखा दोपहर के जूठे बरतन उसे मुंह चिड़ा रहे थे. उस ने बरतन मांजने शुरू ही किए थे कि परी रोने लगी. हाथ का काम छोड़ कर, अदिति ने उस का दूध गरम किया. शाम की चाय उसे 7 बजे मिली. पहले जब वह नौकरी पर थी तो पूरे दिन की एक मेड रहती थी पर क्योंकि इस बार वह बस टीचर ही है और दोपहर तक घर आ जाएगी, यह सोच कर उस ने खुद ही अनुराग से काम वाली को मना कर दिया था. वैसे भी परी की डे केयर की फीस ही उन के बजट को गड़ाबड़ा रही थी.

रात को बिस्तर पर लेट कर अदिति को ऐसे लगा जैसे वह कोई जंग लड़ कर आई हो. अनुराग ने रात में जब प्यार जताने की कोशिश करनी चाही तो उस ने एक  झटके से उसे हटा दिया. बोली, ‘‘सुबह 4 बजे उठना है, प्लीज मैं बहुत थक गई हूं.’’

अनुराग मुंह बना कर बोला, ‘‘क्या थक गई हो? न तुम्हारे टारगेट होंगे न ही कोई गोल, तुम्हें तो हर माह बस फ्री की तनख्वाह मिलेगी, टीचर ही तो हो.’’

अदिति के पास बहस का समय नहीं था. अत: वह मुंह फेर कर सो गई.

अदिति अगले दिन कक्षा में गई और पढ़ाने लगी. आधे से ज्यादा बच्चे उसे न सुन कर अपनी बातों में ही व्यस्त थे. एकदम उसे बहुत तेज गुस्सा आया और उस ने बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया. बाहर खड़े हो कर दोनों बच्चे फील्ड में चले गए और खेलने लगे. छुट्टी की घंटी बजी, तो उस ने बैग उठाया तभी चपरासी आ कर उसे सूचना दे गया कि उन्हें प्रिंसिपल ने बुलाया है.

अदिति भुनभुनाती हुई औफिस की तरफ लपकी. प्रिंसिपल ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘अदिति तुम ने आज 2 बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया… तुम्हें मालूम है वे पूरा दिन फील्ड में खेल रहे थे. एक बच्चे को चोट भी लग गई है. कौन जिम्मेदार है इस का?’’

अदिति बोली, ‘‘मैडम, आप उन बच्चों को नहीं जानतीं कि वे कितने शैतान हैं.’’

प्रिंसिपल ठंडे स्वर में बोलीं, ‘‘अदिति बच्चे शैतान नहीं हैं, आप उन  को संभाल नहीं पाती हैं, यह कोई औफिस नहीं है… आप टीचर हैं, बच्चों की रोल मौडल, ऐसा व्यवहार इस स्कूल में मान्य नहीं है.’’

बस जा चुकी थी और वह बहुत देर तब उबेर की प्रतीक्षा में खड़ी रही. जब 4 बजे उस ने डे केयर में प्रवेश किया तो उस की संचालक ने व्यंग्य किया, ‘‘आजकल टीचर को भी लगता है कंपनी जितना ही काम रहता है.’’

अदिति बिना बोले परी को ले कर अपने घर चल पड़ी. वह जब शाम को उठी तो देखा अंधेरा घिर आया था. उस ने रसोई में देखा जूठे बरतनों का ढेर लगा था और अनुराग फोन पर अपनी मां से गप्पें मार रहा था.

उस ने चाय बनाई और लग गई काम पर. रात 10 बजे जब वह बैडरूम में घुसी तो थक कर चूर हो गई थी. उस ने अनुराग से बोला, ‘‘सुनो एक मेड रखनी होगी… मैं बहुत थक जाती हूं.’’

अनुराग बोला, ‘‘अदिति टीचर ही तो हो… करना क्या होता है तुम्हें, सुबह तो सब कामों में मैं भी तुम्हारी मदद करने की कोशिश करता हूं… पहले जब तुम कंपनी में थी तब बात अलग थी… रात हो जाती थी… अब तो सारा टाइम तुम्हारा है.’’

तभी मोबाइल की घंटी बजी. कल उसे 4 बच्चों को एक कंपीटिशन के लिए ले कर जाना था. अदिति इस से पहले कुछ और पूछती, मोबाइल बंद हो गया. बच्चों को ले कर जब वह प्रतियोगिता स्थल पर पहुंची तो पला चला कि उन्हें अभी 4 घंटे प्रतीक्षा करनी होगी. उन 4 घंटों में अदिति अपने विद्यार्थियों से बात करने लगी और कब 4 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला. उसे महसूस हुआ ये बच्चे जैसे घर पर अपनी हर बात मातापिता से बांटते हैं, वैसे ही स्कूल में अध्यापकों से बांटते हैं. पहली बार उसे लगा टीचर का कार्य बस पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है.

आज फिर घर पहुंचने में देर हो गई क्योंकि सब विद्यार्थियों को घर पहुंचा कर ही वह अपने घर पहुंच सकी. डे केयर पहुंच कर देखा, परी बुखार से तप रही थी. वह बिना खाएपीए उसे डाक्टर के पास ले गई और अनुराग भी वहां ही आ गया. बस आज इतनी गनीमत थी कि अनुराग ने रात का खाना बना दिया.

रात खाने पर अनुराग बोला, ‘‘अदिति तुम 2-3 दिन की छुट्टी ले लो.’’

अदिति ने स्कूल में फोन किया तो पता चला कि कल उसी के विषय की परीक्षा है तो कल तो उसे जरूर आना पड़ेगा, परीक्षा के बाद भले ही चली जाए.

 

सुबह पति का फूला मुंह छोड़ कर वह स्कूल चली गई. परीक्षा समाप्त होते  ही वह विद्यार्थियों की परीक्षा कौपीज ले कर घर की तरफ भागी. घर पहुंच कर देखा तो परी सोई हुई थी और सासूमां आई हुई थीं, शायद अनुराग ने फोन कर के अपनी मां से उस की यशोगाथा गाई होगी.

उसे देखते ही सासूमां बोली, ‘‘बहू लगता है स्कूल की नौकरी तुम्हें अपनी परी से भी ज्यादा प्यारी है. मैं घर छोड़ कर आ गई हूं और देखा मां ही गायब.’’

अदिति किसकिस को सम झाए और क्या सम झाए जब वह खुद ही अभी सब सम झ रही है.

वह कैसे यह सम झाए उस की जिम्मेदारी अब बस परी की तरफ ही नहीं, अपने विद्यालय के हर 1 बच्चे की तरफ है. उस का काम बस स्कूल तक सीमित नहीं है. वह 24 घंटे का काम है जिस की कहीं कोई गणना नहीं होती. बहुत बार ऐसा भी हुआ कि अदिति को लगा कि वह नौकरी छोड़ कर परी की ही देखभाल करे पर हर माह कोई न कोई मोटा खर्च आ ही जाता.

अदिति की नौकरी का तीनचौथाई भाग तो घर के खर्च और डे केयर की फीस में ही खर्च हो जाता और एकचौथाई भाग से वह अपने कुछ शौक पूरे कर लेती. वहीं अनुराग का हाल और भी बेहाल था. उस की तनख्वाह का 80% तो घर और कार की किस्त में ही निकल जाता और बाकी का 20% उन अनदेखे खर्चों के लिए जमा कर लेता जो कभी भी आ जाते थे. उस के सारे शौक तो न जाने कहां खो गए थे.

अदिति जानेअनजाने अनुराग को अपनी बड़ी बहन और बहनोई का उदाहरण देती रहती जो हर वर्ष विदेश भ्रमण करते हैं और उन के पास खाने वाली से ले कर बच्चों की देखभाल के लिए भी आया थी. उन के रिश्तों में प्यार की जगह अब चिड़चिड़ाहट ने ले ली थी. कभीकभी अदिति की भागदौड़ देख कर उस का मन भी

भर जाता. ऐसा नहीं है अनुराग अदिति को आराम नहीं देना चाहता था पर क्या करे वह कितनी भी कोशिश कर ले, हर माह महंगाई बढ़ती ही जाती…

देखतेदेखते 2 वर्ष बीत गए और अदिति अपनी टीचर की भूमिका में अच्छी तरह ढल गई थी. जब कभी वह सुबहसुबह दौड़ लगाती अपनी बस की तरफ तो सोसाइटी में चलतेफिरते लोग पूछ ही लेते ‘‘आप टीचर हैं क्या किसी स्कूल में?’’

पर अब अदिति मुसकरा कर बोलती, ‘‘जी, तभी तो सुबहसवेरे का सूर्य देखना का मु झे समय नहीं मिलता है.’’

स्कूल अब स्कूल नहीं है उस का दूसरा घर हो गया है. उस की परी भी उस के साथ ही स्कूल जाती है और आती है. औरों की तरह उसे परी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती है. जब उस के पढ़ाई हुए विद्यार्थी उस से मिलने आते हैं तो वह गर्व से भर उठती है. वह टीचर ही तो है, जिंदगी से भरपूर क्योंकि हर वर्ष नए विद्यार्थियों के साथ उस की उम्र साल दर साल बढ़ती नहीं घटती जाती है.

उधर अनुराग भी बहुत खुश था, परी के जन्म के समय से ही उस की प्रोमोशन  लगभग निश्चित थी पर किसी न किसी कारण से वह टलती ही जा रही थी. आज उस के हाथ में प्रोमोशन लैटर था. पूरे 20 हजार की बढ़ोतरी और औफिस की तरफ से कार भी मिल गई. इधर अदिति के साथ परी के आनेजाने से डे केयर का खर्चा भी बच रहा था.

अनुराग ने मन ही मन निश्चिय कर लिया कि इस बार विवाह की वर्षगांठ पर वह और अदिति गोवा जाएंगे. वह सबकुछ पता कर चुका था, पूरे 60 हजार में पूरा पैकेज हो रहा था. अनुराग ने घर पहुंच कर ऐलान किया कि वे आज डिनर बाहर करेंगे और वह अदिति को उस की मनपसंद शौपिंग भी कराना चाहता है.

अदिति आज बहुत दिनों बाद खिलखिला रही थी और परी भी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी. अदिति की वर्षों से एक प्योर शिफौन साड़ी की तम्मना थी. जब दुकानदार ने साड़ी दिखानी शुरू कीं, तो अदिति मूल्य सुन कर बोली, ‘‘अनुराग कहीं और से लेते हैं.’’

तब अनुराग ने अपना प्रोमोशन लैटर दिखाया और बोला, ‘‘इतना तो मैं अब कर सकता हूं.’’

डिनर के समय अनुराग अदिति का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘अदिति बस 1-2 साल की तपस्या और है, फिर मैं अपनी कंपनी में डाइरैक्टर के ओहदे पर पहुंच जाऊंगा.’’

दोनों शायद आज काफी समय बाद घोड़े बेच कर सोए थे. दोनों ने ही आज छुट्टी कर रखी थी. दोनों ही इन लमहों को जी भर कर जीना चाहते थे.

आज अदिति अनुराग से कुछ और भी बात करना चाहती थी. वह अब परी के लिए एक भाई या बहन लाना चाहती थी. इस से पहले कि वह अनुराग से इस बारे में बात करती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘जानता हूं पर इस के लिए प्यार भी जरूरी है,’’ और फिर दोनों प्यार में सराबोर हो गए.’’

1 माह पश्चात अदिति के हाथ में अपनी प्रैगनैंसी रिपोर्ट थी जो पौजिटिव थी. वे बहुत खुश थे. उस ने तय कर लिया था, इस बार वे अपने बच्चे के साथ पूरा समय बिताएगी और जब दोनों ही बच्चे थोड़े सम झदार हो जाएंगे तभी अपने काम के बारे में सोचेगी. अनुराग भी उस की बात से सहमत था. अब अनुराग भी थोड़ा निश्चित हो गया था क्योंकि अब उस की अगले वर्ष प्रोमोशन तय थी.

रविवार की ऐसी ही कुनकुनी दोपहरी में दोनों पक्षियों की तरह गुटरगूं कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उधर से अनुराग की मां घबराई सी बोल रही थीं, ‘‘अनुराग के ?झ को हार्ट अटैक आ गया है और उन्हें हौस्पिटल में एडमिट कर लिया गया है.’’

वहां पहुंच कर पता चला 20 लाख का पूरा खर्च है. अनुराग ने दफ्तर से अपनी तनख्वाह से एडवांस लिया, हिसाब लगाने पर उसे अनुमान हो गया था कि उस की पूरी तनख्वाह बस अब इन किस्तों में ही निकल जाएगी, फिर से कुछ वर्षों तक.

घर पहुंच कर जब उस ने अदिति को सारी बात से अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं अनुराग, मैं हूं न, हम मिल कर सब संभाल लेंगे.’’

हालांकि मन ही मन वह खुद भी परेशान थी. पर यह दोनों को ही सम झ आ गया था कि यही जीवन है, फिर चाहे हंस कर गुजारो या रो कर आप की मरजी है.

अनुराग अपनी मां के  साथ हौस्पिटल के गलियारे में चहलकदमी कर रहा था. अदिति को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई थी. आधे घंटे पश्चात नर्स उन के बेटे को ले कर आई. उसे हाथों में ले कर अनुराग की आंखों में आंसू आ गए.

फिर से 3 माह पश्चात अदिति अपने युवराज को घर छोड़ कर स्कूल जा रही हैं, पर आज वह घबरा नहीं रही है क्योंकि अब अनुराग के मां और पापा उन के साथ ही रह रहे हैं. उधर अदिति के मांपापा ने बच्चों की देखभाल और घर की देखरेख के लिए कुछ समय के लिए अपनी नौकरानी उन के घर भेज दी. जिंदगी बहुत आसान नहीं थी पर मुश्किल भी नहीं थी.

इस बार विवाह की वर्षगांठ पर अनुराग फिर से अदिति को गोवा ले जाना चाहता था और उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार अदिति का वह सपना पूरा कर पाएगा. रास्तों पर चलते हुए वे जीवन के इस सफर को शायद हंसतेखिलखिलाते पूरा कर ही लेंगे.

घोंसला: सारा ने क्यों शादी से किया था इंकार

साराआज खुशी से झम रही थी. खुश हो भी क्यों न पुणे की एक बहुत बड़ी फर्म में उस की नौकरी जो लग गई थी. अपनी गोलगोल आंखें घुमाते हुए वह अपनी मम्मी से बोली, ‘‘मैं कहती थी न कि मेरी उड़ान कोई नहीं रोक सकता.’’

‘‘पापा ने पढ़ने के लिए मुझे मुजफ्फरनगर से बाहर नहीं जाने दिया पर अब इतनी अच्छी नौकरी मिली है कि वह मुझे रोक नहीं सकते हैं.’’

सारा थी 23 वर्ष की खूबसूरत नवयुवती, जिंदगी से भरपूर, गोरा रंग, गोलगोल आंखें, छोटी सी नाक और गुलाबी होंठ, होंठों के बीच काला तिल सारा को और अधिक आकर्षक बना देता था. उसे खुले आकाश में उड़ने का शौक था. वह अकेले रहना चाहती थी और जीवन को अपने तरीके से जीना चाहती थी.

जब भी सारा के पापा कहते, ‘‘हमें तुम से जिंदगी का अधिक अनुभव है इसलिए हमारा कहा मानो.’’

सारा फट से कहती, ‘‘पापा मैं अपने अनुभवों से कुछ सीखना चाहती हूं.’’

सारा के पापा उसे पुणे भेजना नहीं चाहते थे पर सारा की दलीलों के आगे उन की एक न चली.

फिर सारा की मम्मी ने भी समझया, ‘‘इतनी अच्छी नौकरी है, आजकल अच्छी नौकरी वाली लड़कियों की शादी आराम से हो जाती है.

फिर सारा के पापा ने हथियार डाल दिए थे. ढेर सारी नसीहतें दे कर सारा के पापा वापस मुजफ्फरनगर आ गए थे.

सारा को शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हुई थी परंतु धीरधीरे वह पुणे की लाइफ की अभ्यस्त हो गई थी.

यहां पर मुजफ्फरनगर की तरह न टोकाटाकी थी न ही ताकाझंकी. सारा को आधुनिक कपड़े पहनने का बहुत शौक था जिसे सारा अब पूरा कर पाई थी. वह स्वच्छंद तितली की तरह जिंदगी बिता रही थी. दफ्तर में ही सारा की मुलाकात मोहित से हुई थी. मोहित का ट्रांसफर दिल्ली से पुणे हुआ था.

मोहित को सारा पहली नजर में ही भा गई थी. सारा और मोहित अकसर वीकैंड पर बाहर घूमने जाते थे. परंतु सारा को हरहाल में रात 9 बजे तक अपने होस्टल वापस जाना ही पड़ता था.

फिर एक दिन मोहित ने यों ही सारा से कहा, ‘‘सारा, तुम मेरे फ्लैट में शिफ्ट क्यों नहीं हो जाती हो. चिकचिक से छुटकारा भी मिल जाएगा और हमें यों ही हर वीकैंड पर बंजारों की तरह घूमना नहीं पड़ेगा. सब से बड़ी बात तुम्हारा होस्टल का खर्च भी बच जाएगा.’’

सारा छूटते ही बोली, ‘‘पागल हो क्या, ऐसे कैसे रह सकती हूं तुम्हारे साथ? मतलब मेरातुम्हारा रिश्ता ही क्या है?’’

मोहित बोला, ‘‘रहने दो बाबा, मैं तो भूल ही गया था कि तुम तो गांव की गंवार हो. छोटे शहर के लोगों की मानसिकता कहां बदल सकती हैं चाहे वह कितने ही आधुनिक कपड़े पहन लें.’’

सारा मोहित की बात सुन कर एकदम चुप हो गईं. अगले कुछ दिनों तक मोहित सारा से खिंचाखिंचा रहा.

एक दिन सारा ने मोहित से पूछा, ‘‘मोहित, आखिर मेरी गलती क्या हैं?’’

मोहित बोला, ‘‘तुम्हारा मुझ पर अविश्वास.’’

‘‘बात अविश्वास की नहीं है मोहित, मेरे परिवार को अगर पता चल जाएगा तो वे मेरी नौकरी भी छुड़वा देंगे.’’

‘‘तुम्हें अगर रहना है तो बताओ बाकी सब मैं हैंडल कर लूंगा.’’

घर पर पापा के मिलिटरी राज के कारण सारा का आज तक कोई बौयफ्रैंड नहीं बन पाया था, इसलिए वह यह सुनहरा मौका हाथ से नहीं छोड़ना चाहती थी. अत: 1 एक हफ्ते बाद मोहित के साथ शिफ्ट कर गई. घर पर सारा ने बोल दिया कि उस ने एक लड़की के साथ अलग से फ्लैट ले लिया है क्योंकि उसे होस्टल में बहुत असुविधा होती थी.

यह बात सुनते ही सारा के मम्मीपापा ने जाने के लिए सामान बांध लिया था. वे देखना चाहते थे कि उन की लाड़ली कैसे अकेले रहती होगी.

सारा घबरा कर मोहित से बोली, ‘‘अब क्या करेंगे?’’

मोहित हंसते हुए बोला, ‘‘अरे देखो मैं कैसा चक्कर चलाता हूं,’’

अगले रोज मोहित अपनी एक दोस्त शैली को ले कर आ गया और बोला, ‘‘तुम्हारे मम्मीपापा के सामने मैं शैली के बड़े भाई के रूप में उपस्थित रहूंगा.’’

सारा के मम्मीपापा आए और फिर मोहित के नाटक पर मोहित हो कर चले गए.

सारा के मम्मीपापा के सामने मोहित शैली के बड़े भाई के रूप में मिलने आता. सारा के मम्मीपापा को अब तसल्ली हो गई थी और वे निश्तिंत हो कर वापस अपने घर चले गए.

सारा और मोहित एकसाथ रहने लगे थे. सारा को मोहित का साथ भाता था परंतु अंदर ही अंदर उसे अपने मम्मीपापा से झठ बोलना भी कचोटता रहता था. एक दिन सारा ने मोहित से कहा, ‘‘मोहित, तुम मुझे पसंद करते हो क्या?’’

मोहित बोला, ‘‘अपनी जान से भी ज्यादा?’’

सारा बोली, ‘‘मोहित तुम और मैं क्या इस रिश्ते को नाम नहीं दे सकते हैं?’’

मोहित चिढ़ते हुए बोला,’’ यार मुझे माफ करो, मैं ने पहले ही कहा था कि हम एक दोस्त की तरह ही रहेंगे. मैं तुम पर कोई बंधन नहीं लगाना चाहता हूं और न ही तुम मुझ पर लगाया करो. और तुम यह बात क्यों भूल जाती हो कि मेरे घर पर रहने के कारण तुम्हारी कितनी बचत हो रही है और भी कई फायदे भी हैं,’’ कहते हुए मोहित ने अपनी आंख दबा दी.

सारा को मोहित का यह सस्ता मजाक बिलकुल पसंद नहीं आया. 2 दिन तक मोहित और सारा के बीच तनाव बना रहा परंतु फिर से मोहित ने हमेशा की तरह सारा को मना लिया. सारा भी अब इस नए लाइफस्टाइल की अभ्यस्त हो चुकी थी.

सारा जब मुजफ्फरनगर से पुणे आई थी तो उस के बड़ेबड़े सपने थे परंतु अब न जाने क्यों उस के सब सपने मोहित के इर्दगिर्द सिमट कर रह गए थे.

आज सारा बेहद परेशान थी. उस के पीरियड्स की डेट मिस हो गई थी. जब उस ने मोहित को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘सारा ऐसे कैसे हो सकता है हम ने तो सारे प्रीकौशंस लिए थे?’’

‘‘तुम मुझ पर शक कर रहे हो?’’

‘‘नहीं बाबा कल टैस्ट कर लेना.’’

सारा को जो डर था वही हुआ. प्रैगनैंसी किट की टैस्ट रिपोर्ट देख कर सारा के हाथपैर ठंडे पड़ गए.

मोहित उसे संभालते हुए बोला, ‘‘सारा टैंशन मत लो कल डाक्टर के पास चलेंगे.’’

अगले दिन डाक्टर के पास जा कर जब उन्होंने अपनी समस्या बताई तो डाक्टर बोली, ‘‘पहली बार अबौर्शन कराने की सलाह मैं नहीं दूंगी… आगे आप की मरजी.’’

घर आ कर सारा मोहित की खुशामद करने लगी, ‘‘मोहित, प्लीज शादी कर लेते हैं. यह हमारे प्यार की निशानी है.’’

मोहित चिढ़ते हुए बोला, ‘‘सारा, प्लीज फोर्स मत करो… यह शादी मेरे लिए शादी नहीं बल्कि एक फंदा बनेगी.’’

सारा फिर चुप हो गई थी. अगले दिन चुपचाप जब सारा तैयार हो कर जाने लगी तो मोहित भी साथ हो लिया.

रास्ते में मोहित बोला, ‘‘सारा, मुझे मालूम है तुम मुझ से गुस्सा हो पर ऐसा कुछ

जल्दबाजी में मत करो जिस से बाद में हम

दोनों को घुटन महसूस हो. देखो इस रिश्ते में

हम दोनों का फायदा ही फायदा है और शादी के लिए मैं मना कहां कर रहा हूं, पर अभी नहीं कर सकता हूं.’’

डाक्टर से सारा और मोहित ने बोल दिया था कि कुछ निजी कारणों से वे अभी बच्चा नहीं कर सकते हैं.

डाक्टर ने उन्हें अबौर्शन के लिए 2 दिन बाद आने के लिए कहा. मोहित ने जब पूरा खर्च पूछा तो डाक्टर ने कहा, ‘‘25 से 30 हजार रुपए.’’

घर आ कर मोहित ने पूरा हिसाब लगाया, ‘‘सारा तुम्हें तो 3-4 दिन बैड रैस्ट भी करना होगी जिस कारण तुम्हें लीव विदआउट पे लेनी पड़ेगी. तुम्हारा अधिक नुकसान होगी, इसलिए इस अबौर्शन का 50% खर्चा मैं उठा लूंगा.’’

सारा छत को टकटकी लगाए देख रही थी. बारबार उसे ग्लानि हो रही थी कि वह एक जीव हत्या करेगी. बारबार सारा के मन में खयाल आ रहा था कि अगर उस की और मोहित की शादी हो गई होती तो भी मोहित ऐसे ही 50% खर्चा देता. सारा ने रात में एक बार फिर मोहित से बात करने की कोशिश करी, मगर उस ने बात को वहीं समाप्त कर दिया.

मोहित बोला, ‘‘तुम्हें वैसे तो बराबरी चाहिए, मगर अब फीमेल कार्ड खेल रही हो. यह गलती दोनों की है तो 50% भुगतान कर तो रहा हूं और यह बात तुम क्यों भूल जाती हो कि तुम्हारा वैसे ही क्या खर्चा होता है. यह घर मेरा है जिस में तुम बिना किराए दिए रहती हो.’’

मोहित की बात सुन कर सारा का मन खट्टा हो गया.

जब से सारा अबौर्शन करा कर लौटी थी वह मोहित के साथ हंसतीबोलती जरूर थी, मगर उस के अंदर बहुत कुछ बदल गया था. पहले जो सारा मोहित को ले कर बहुत केयरिंग और पजैसिव थी अब उस ने मोहित से एक डिस्टैंस बना लिया था.

शुरूशुरू में तो मोहित को सारा का बदला व्यवहार अच्छा लग रहा था परंतु बाद में उसे सारा का वह अपनापन बेहद याद आने लगा.

पहले मोहित जब औफिस से घर आता था तो सारा उस के साथ ही चाय लेती थी परंतु आजकल अधिकतर वह गायब ही रहती थी.

एक दिन संडे को मोहित ने कहा, ‘‘सारा कल मैं ने अपने कुछ दोस्त लंच पर बुलाए हैं.’’

सारा लापरवाही से बोली, ‘‘तो मैं क्या

करूं, तुम्हारे दोस्त हैं तुम उन्हें लंच पर बुलाओ या डिनर पर.’’

‘‘अरे यार हम एकसाथ एक घर में रहते हैं… ऐसा क्यों बोल रही हो.’’

सारा मुसकराते हुए बोली, ‘‘बेबी, इस घोंसले की दीवारें आजाद हैं… जो जब चाहे उड़ सकता है. कोई तुम्हारी पत्नी थोड़े ही हूं जो तुम्हारे दोस्तों को ऐंटरटेन करूं.’’

मोहित मायूस होते हुए बोला, ‘‘एक दोस्त के नाते भी नहीं?’’

‘‘कल तुम्हारी इस दोस्त को अपने दोस्तों के साथ बाहर जाना है.’’

मोहित आगे कुछ नहीं बोल पाया.

सारा ने अब तक अपनी जिंदगी मोहित

के इर्दगिर्द ही सीमित कर रखी थी. जैसे ही उस

ने बाहर कदम बढ़ाए तो सारा को लगा कि वह कुएं के मेढक की तरह अब तक मोहित के

साथ बनी हुई थी. इस कुएं के बाहर तो बहुत

बड़ा समंदर है. सारा अब इस समंदर की सारी सीपियों और मोतियों को अनुभव करना

चाहती थी.

एक दिन डिनर करते हुए सारा मोहित से बोली, ‘‘मोहित, तुम्हें पता नहीं है तुम कितने अच्छे हो.’’

मोहित मन ही मन खुश हो उठा. उसे लगा कि अब सारा शायद फिर से प्यार का इकरार करेगी.

मगर सारा मोहित की आशा के विपरीत बोली, ‘‘अच्छा हुआ तुम ने शादी करने से मना कर दिया. मुझे उस समय बुरा अवश्य लगा परंतु अगर हम शादी कर लेते तो मैं इस कुएं में ही सड़ती रहती.’’

अगले माह मोहित को कंपनी के काम से बैंगलुरु जाना था. उसे न जाने क्यों अब सारा का यह स्वच्छंद व्यवहार अच्छा नहीं लगता था. उस ने मन ही मन तय कर लिया था कि अगले माह सारा के जन्मदिन पर वह उसे प्रोपोज कर देगा और फिर परिवार वालों की सहमति से अगले साल तक विवाह के बंधन में बंध जाएंगे.

बैंगलुरु पहुंचने के बाद भी मोहित ही सारा को मैसेज करता रहता था परंतु चैट पर बकबक करने वाली सारा अब बस हांहूं के मैसेज तक सीमित हो गई थी.

जब मोहित बैंगलुरु से वापस पुणे पहुंचा तो देखा सारा वहां नही थी. उस ने फोन लगाया तो सारा की चहकती आवाज आई, ‘‘अरे यार मैं गोवा में हूं, बहुत मजा आ रहा है.’’

इस से पहले कि मोहित कुछ बोलता सारा ने झट से फोन काट दिया.

3 दिन बाद जब सारा वापस आई तो मोहित बोला, ‘‘बिना बताए ही चली गईं, एक बार पूछा भी नही.’’

सारा बोली, ‘‘तुम मना कर देते क्या?’’

मोहित झेंपते हुए बोला, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था.’’

मोहित को उस के एक नजदीकी दोस्त ने बताया था कि सारा अर्पित नाम के लड़के के साथ गोवा गई थी. मोहित को यह सुन कर बुरा लगा था, मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि सारा से क्या बात करे? उस ने खुद ही अपने और सारा के बीच यह खाई बनाई थी.

मोहित सारा को दोबारा से अपने करीब लाने के लिए सारे ट्रिक्स अपना चुका था परंतु अब सारा पानी पर तेल की तरह फिसल गई थी.

अगले हफ्ते सारा का जन्मदिन था. मोहित ने मन ही मन उसे सरप्राइज देने की सोच रखी थी. तभी उस रात अचानक मोहित को तेज बुखार हो गया. सारा ने उस की खूब अच्छे से देखभाल करी. 5 दिन बाद जब मोहित पूरी तरह से ठीक हो गया तो उसे विश्वास हो गया कि सारा उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. मोहित ने सारा के लिए हीरे की अंगूठी खरीद ली. कल सारा का जन्मदिन था. मोहित शाम को जल्दी आ गया था. उस ने औनलाइन केक बुक कर रखा था.

न जाने क्यों आज उसे सारा का बेसब्री से इंतजार था.

जैसे ही सारा घर आई तो मोहित ने उस के लिए चाय बनाई. सारा ने मुसकराते हुए चाय का कप पकड़ा और कहा, ‘‘क्या इरादा है जनाब का?’’

मोहित बोला, ‘‘कल तुम्हारा जन्मदिन है, मैं तुम्हें स्पैशल फील कराना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो तुम्हें मेरे घर आ कर करना पड़ेगा.’’

‘‘तुम क्या अपने घर जा रही हो जन्मदिन पर.’’

‘‘मैं ने अपने औफिस के पास एक छोटा सा फ्लैट ले लिया है. मैं अपना जन्मदिन वहीं मनाना चाहती हूं. अब मैं अपना खर्च खुद उठाना चाहती हूं… यह निर्णय मुझे बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था.’’

मोहित बोला, ‘‘मुझे मालूम है तुम मुझ से अब तक अबौर्शन की बात से नाराज हो. यार मेरी गलती थी कि मैं ने तुम से तब शादी करने के लिए मना कर दिया था.’’

‘‘अरे नहीं तुम सही थे, मजबूरी में अगर तुम मुझ से शादी कर भी लेते तो हम दोनों हमेशा दुखी रहते.’’

‘‘सारा मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मोहित पर मैं तुम से आकर्षित थी… अगर प्यार होता तो शायद आज मैं अलग रहने का फैसला नहीं लेती.’’

सारा सामान पैक कर रही थी. मोहित के अहम को ठेस लग गई थी, इसलिए उस ने अपना आखिरी दांव खेला, ‘‘तुम्हारे नए बौयफ्रैंड को पता है कि तुम ने अबौर्शन करवाया था. अगर तुम्हारे घर वालों को यह बात पता चल जाएगी तो सोचो उन्हें कैसा लगेगा? मैं तुम पर विश्वास करता हूं, इसलिए मैं तुम से शादी करने को अभी भी तैयार हूं.’’

‘‘पर मोहित मैं तैयार नहीं हूं. बहुत अच्छा हुआ कि इस बहाने ही सही मुझे तुम्हारे विचार पता चल गए. और रही बात मेरे परिवार की, तो वे कभी नहीं चाहेंगे कि मैं तुम जैसे लंपट इंसान से विवाह करूं. मोहित तुम्हारा यह घोंसला आजादी के तिनकों से नहीं वरन स्वार्थ के तिनकों से बुना हुआ है. अगर एक दोस्त के नाते कभी मेरे घर आना चाहो तो अवश्य आ सकते हो,’’ कहते हुए सारा ने अपने नए घोंसले का पता टेबल पर रखा और एक स्वच्छंद चिडि़या की तरह खुले आकाश में विचरण करने के लिए उड़ गई.

सारा ने अब निश्चय कर लिया था कि वह अपनी मेहनत और हिम्मत के तिनकों से अपना घोंसला स्वयं बनाएगी. तिनकातिनका जोड़ कर बनाएगी अब वह अपना घोंसला… आज की नारी में हिम्मत, मेहनत और खुद पर विश्वास का हौसला.

सौगात: बरसों बाद मिली स्मिता से प्रणव को क्या सौगात मिली?

लेखिका- कंचन

स्मिता तेज कदमों से चलती हुई स्टेशन की एक खाली बैंच पर बैठ गई. कानपुर वाली ट्रेन आने में अभी 2 घंटे बाकी थे. एक बार उस ने सोचा कि वेटिंगरूम में जा कर थोड़ा सुस्ता ले, पर फिर विचार बदल दिया. आज उस के दिल में जो खुशी का ज्वार फूट रहा था, उस के आगे कोई भी परेशानी माने नहीं रखती थी. स्मिता आज दिनभर की घटनाओं के क्रम और रफ्तार को सोच कर हैरान थी. आज सुबह ही ब्रह्मपुत्र मेल से 8 बज कर 25 मिनट पर कानपुर से इलाहाबाद पहुंची थी. होटल दीप में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था. इलाहाबाद के प्रसिद्ध व्यवसायी विपिन चंद्र की तरफ से स्मिता को निमंत्रणपत्र भेजा गया था. विपिन चंद्र पेशे से फैक्टरियों के मालिक होते हुए भी दिल से कवि और कलापारखी थे. वे साल में इस प्रकार के कवि सम्मेलन 1-2 बार आयोजित करते थे. ऐसे सम्मेलनों में वे जानेमाने कवियों के साथ उभरते नए कवियों को भी बुलाते थे, ताकि उन की कला को मंच मिल सके और आर्थिक रूप से भी उन की मदद हो सके. हमारे देश में आर्थिक तंगी से तंग हो कर कितनी ही प्रतिभाएं हर रोज दम तोड़ देती हैं. स्मिता सोचने लगी कि यह भी एक तरह का समाज कल्याण कार्य है.

सिविल लाइंस स्थित दीप होटल कुछ खास बड़ा नहीं था, परंतु पुराना और जानामाना अवश्य था. आटो वाले को दीप होटल का पता था इसलिए स्मिता को उस ने मात्र 20 मिनट में ही होटल के बाहर उतार दिया. स्मिता ने होटल में जा कर रिसैप्शनिस्ट को अपना परिचयपत्र और निमंत्रणपत्र दिखाया. रिसैप्शनिस्ट ने उसे लौबी में बैठाया और कहा, ‘‘मैं अभी मैनेजर साहब को खबर करती हूं.’’ स्मिता ने सोफे पर बैठते हुए सोचा, ‘कवि सम्मेलन के लिए मैं ही शायद सब से पहले आ गई हूं. स्टेशन पर बैठी रहती तो अच्छा था. सम्मेलन शुरू होने में अभी डेढ़ घंटा बाकी है. क्या करूंगी साढ़े 10 बजे तक?’ स्मिता ने सामने रखी पत्रिकाओं पर निगाह डाली और एक पत्रिका उठाने ही जा रही थी कि पीछे से किसी की आवाज आई, ‘‘आप को आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई न?’’

‘‘जी, नहीं,’’ कह कर स्मिता ने जैसे ही नजर घुमाई तो देखा सामने प्रणव खड़ा था. कोट पर लगे बिल्ले से पता चला, प्रणव ही मैनेजर था. स्मिता हैरान थी, उस का सहपाठी, प्रेमी प्रणव इस साधारण से होटल में मैनेजर था? कितनी तनख्वाह पाता होगा, 15-20 या 25 हजार? प्रणव तो इतना मेधावी छात्र हुआ करता था, और उस के आईएएस बनने की खबर भी तो आई थी, उस का क्या हुआ?

प्रणव ने स्मिता को पहचान कर कहा, ‘‘मेहमान कवियों में जब तुम्हारा नाम देखा तो मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि स्मिता तुम होगी, तुम तो मलिक थीं न?’’

‘‘हां, तो? 25 साल तक कुंआरी बैठी रहूं और पढ़पढ़ कर बुड्ढी होती रहूं? अरे भई, राम नरेश सहाय से मेरी शादी हुए 23 साल हो गए हैं,’’ स्मिता ने हंसते हुए कहा. अपनी गरिमा और गांभीर्य की चादर को उतार कर स्मिता अचानक पहले वाली कालेज गर्ल बन गई थी.

प्रणव ने कहा, ‘‘चलो, मेरे केबिन में चल कर बात करते हैं.’’ इतना कह कर प्रणव ने एक कर्मचारी को बुला कर चायनाश्ता मंगवाया और स्मिता के साथ केबिन में चला आया. होटल की तरह प्रणव का केबिन भी कुछ खास बढि़या न था. स्मिता और प्रणव दोनों टेबल के दोनों ओर आराम से बैठ गए. स्मिता ने पूछा, ‘‘तुम बताओ, यहां पर कैसे? मैं ने तो सुना था तुम एक बार टीवी के किसी ‘क्विज शो’ में गए थे. बाद में सुना तुम्हारा आईएएस में सलैक्शन हो गया है.’’

प्रणव मुसकरा कर बोला, ‘‘मेरे बारे में बड़ी खबरें रखती रहीं. कालेज में तो मुझे कभी भाव नहीं दिया.’’

‘‘सही कहा तुम ने, कभी भाव नहीं दिया, पर खबरें रखने में क्या जाता है?’’ स्मिता ने बात को बदल कर पूछा, ‘‘यह बताओ, तुम ने शादी की? इस होटल में कैसे नौकरी कर रहे हो? शक्ल तो देखो, अपनी उम्र से 10 साल बड़े लग रहे हो.’’ प्रणव ने हंस कर कहा, ‘‘जब से आई हो प्रश्नों की बौछार कर रही हो. एक बात तो तय है कि तुम्हें मेरी परवा पहले भी थी और अब भी है. हालांकि तुम ने अपने मुंह से कभी कुछ कहा नहीं, पर मुझे तुम्हारी भावनाओं का एहसास है.’’ इतने में नाश्ता आ गया तो जैसे स्मिता को बात बदलने का मौका मिल गया, कहने लगी, ‘‘अरे वाह, क्या बढि़या समोसे हैं. होटल में खाना बढि़या बनता है, यह मानना पड़ेगा.’’ प्रणव समझ गया स्मिता पहले की तरह प्यार की बातों को किसी बहाने टालने का प्रयास कर रही थी. वह स्वयं भी समझता  था कि अब स्मिता एक शादीशुदा औरत थी. उस ने कालेज के दिनों में ही प्रणव के प्रणय निवेदन को स्वीकारा नहीं था. स्मिता और प्रणव दोनों चुपचाप नाश्ता करने लगे. दोनों अपनेअपने ढंग से अतीत को देख रहे थे.

कालेज के रंगारंग कार्यक्रम में स्मिता और प्रणव पहली बार मिले थे. दोनों को युगल गान के लिए चुना गया था. प्रणव में संगीतकारों वाली समझ थी. गीत बढि़या गाया जाए, उस के लिए यह काफी न था. गीत को विभिन्न वाद्यों के मेल से कैसे सजा कर पेश किया जाए यह उन के लिए माने रखता था. तमाम तैयारियों के बाद जब कार्यक्रम के दौरान प्रणव और स्मिता ने गीत गाया तो उन्हें खूब तालियां मिलीं. कालेज के शिक्षकों ने भी उन की प्रशंसा की. धीरेधीरे उन के सहपाठियों ने उस युगल गान के बहाने उन की युगल जोड़ी बनानी शुरू कर दी. ऐसी बातें सुन प्रणव तो खुश होता था पर स्मिता हंस कर कहती, ‘तुम लोग कहानी बना रहे हो, ऐसा कुछ नहीं है’ प्रणव ने कई बार स्मिता से इस बारे में बात करनी चाही पर स्मिता कोई न कोई बहाने से टाल जाती. धीरेधीरे प्रणव समझ गया कि स्मिता शायद उसे प्रेमी के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहती थी. इस के बावजूद वह स्मिता का दोस्त बने रहना चाहता था. प्रणव पढ़ाई में अत्यंत प्रखर छात्र था. उस ने स्मिता को अपने नोट्स दिए. पुस्तकालय से किताबें इश्यू करा कर दीं. स्मिता को याद है वह प्रायोगिक परीक्षा का दिन, जब प्रणव ने उस में आत्मबल जगाया था. कालेज के नियम के अनुसार, प्रत्येक परीक्षार्थी को शिक्षक के सामने 2 पर्चियां उठानी होती थीं. उन में किन्हीं 2 प्रयोगों के नाम लिखे होते थे. परीक्षार्थी को उन प्रयोगों में से एक का चुनाव कर शिक्षक को बताना पड़ता था और उसी प्रयोग को प्रयोगशाला में करना पड़ता था. स्मिता ने जिन पर्चियों का चुनाव किया था उन में लिखे दोनों प्रयोग उसे मुश्किल लग रहे थे. आखिरकार उस ने एक प्रयोग चुना और शिक्षक को बताया. स्मिता प्रयोगशाला में प्रयोग करने जा रही थी कि अचानक प्रणव ने आ कर कहा, ‘चेहरे का बल्ब क्यों औफ है? कौन सा प्रैक्टिकल मिला?’ स्मिता ने धीरे से अपनी पर्ची दिखाई.

‘अरे, यह तो बहुत आसान है. समय से पहले कर लोगी तुम, घबराना नहीं.’ उस ने उस प्रयोग के बारे में जरूरी टिप्स दिए और शिक्षकों की नजर बचा कर जल्दी से खिसक गया. उस की इन्हीं छोटीछोटी मदद के कारण स्मिता अच्छे अंकों से पास हो गई.इसी बीच स्मिता के पिता का तबादला हैदराबाद हो गया. प्रणव ने बड़ी मिन्नत कर के स्मिता से मिलने का समय मांगा तो वह मान गई. स्मिता ने अपने भाई को भी उसी समय कालेज से ले जाने का समय दे दिया. प्रणव पुस्तकालय के बाहर स्मिता से मिलते ही बोला, ‘सुना है तुम हैदराबाद जा रही हो?’

‘हां.’

‘यहीं होस्टल में रह जाओ न?’

‘यह संभव नहीं है.’

‘पता है मैं ने हमारे गाने की रिकौर्डिंग अपने घर में मम्मी को सुनाई है. मम्मी को तुम्हारे बारे में भी बताया है. मेरे पेरैंट्स मुझे आईएएस अधिकारी के रूप में देखना चाहते हैं जबकि मैं तो संगीतकार बनना चाहता हूं. जगजीत सिंह-चित्रा सिंह के जैसी हमारी जोड़ी भी क्या खूब जमेगी, है न?’स्मिता गंभीरता से बोली, जो वह कई बार अकेले में अभ्यास कर चुकी थी, ‘देखो प्रणव, मैं कोई चलतीफिरती मूर्ति नहीं हूं जो तुम्हारे प्यार को समझ न सकूं. मैं एक रूढि़वादी परिवार से हूं. हमारे घर में प्यार शब्द को सिर्फ गाने में इस्तेमाल करने की इजाजत है. प्यार कर घर बसाने की तो मैं सपनों में भी नहीं सोच सकती. तुम एक मेधावी छात्र हो. अपने मांबाप की इच्छा पूरी कर आईएएस अधिकारी बनो, देश की सेवा करो. हर जोड़ी जगजीत सिंह-चित्रा सिंह जैसी कामयाब नहीं बनती है. फिल्म अभिमान की कहानी याद है न? अभिमान में अमिताभ-जया दोनों गायक कलाकार थे. दोनों में प्यार हुआ, शादी हुई. उस के बाद जो दोनों के अहं आपस में टकराए तो बस, कहानी बन गई.’ स्मिता थोड़ा रुक कर बोली, ‘मुझे उम्मीद है कि तुम्हें मुझ से कई गुणा सुंदर और गुणी जीवनसंगिनी मिलेगी.’ इतने मे स्मिता के भैया आते दिखाई दिए. स्मिता ने आगे बढ़ कर प्रणव का परिचय भैया से करवाया. उन तीनों में औपचारिकतावश 2-4 बातें हुईं. इस के बाद स्मिता हमेशा के लिए उस कालेज और प्रणव की जिंदगी से चली गई. अतीत के पन्नों से निकल स्मिता ने नजरें उठाईं तो प्रणव को अपनी ओर देखते पाया. स्मिता ने सोचा, ‘प्रणव क्या देख रहा है? कहीं उसे चेहरे की हलकीहलकी झुर्रियां तो दिखाई नहीं दे रहीं? आने से पहले तो मैं फेशियल करवा आई थी.’

इतने में प्रणव ने कहा, ‘‘तुम ने अपने बारे में कुछ नहीं बताया.’’

‘‘हैदराबाद आ कर मैं ने राजनीतिशास्त्र में उस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर यानी एमए की डिगरी हासिल की,’’ स्मिता सहज हो कर बोलने लगी, ‘‘इस के बाद डेढ़ साल स्कूल में शिक्षिका रही. बस. फिर शादी हो गई. एक बेटा हो गया. बेटा अब बड़ा हो गया है. उसे पढ़ाने की जिम्मेदारी अब मेरी नहीं है, कोचिंग वालों की है. इसलिए अब खाली समय में थोड़ा लिखने का प्रयास करती हूं. कहानी खत्म.’’ यह कह कर स्मिता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर प्रणव से पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे आए, यह तुम ने अब तक नहीं बताया?’’

प्रणव बोला, ‘‘क्या करोगी जान कर? हर कहानी रोचक नहीं होती है न.’’

‘‘इसीलिए तो जानना चाहती हूं. यह कहानी रोचक कैसे नहीं बन पाई? प्लीज, अपनी मित्रता की खातिर ही सही, कालेज के बाद की जिंदगी के बारे में बताओ. हो सकता है, शायद मैं तुम्हारे कुछ काम आ सकूं.’’

‘‘मेरे काम? तुम्हारे पतिदेव को बताऊं, स्मिता ऐसा कह रही है?’’ कह कर प्रणव हंसने लगा. स्मिता झेंप गई, फिर बोली, ‘‘मेरे कहने का मतलब तुम्हारी मदद करना था. तुम्हारी बात पकड़ने की आदत अभी गई नहीं है.’’ प्रणव मुसकरा रहा था. थोड़ी देर बाद उस ने शांतभाव से कहना शुरू किया, ‘‘तुम्हारे जाने के बाद मैं ने भी राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर का कोर्स जौइन किया. प्रथम वर्ष में ही मैं ने आईएएस की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली और मुख्य परीक्षा की तैयारियों में लग गया. जिस दिन मुख्य परीक्षा पास की तो मैं और निश्चित हो गया. सोचा, बस, अब अंतिम सीढ़ी साक्षात्कार रह गई है. साक्षात्कार को अभी कुछ दिन बाकी थे कि मेरे पिताजी अकस्मात हार्टअटैक के कारण चल बसे. मैं ने जोधपुर अपने घर जा कर मां और दीदी को संभाला. जिस दिन साक्षात्कार था, उसी दिन पिताजी का श्राद्ध था. मैं रस्मों और रिश्तेदारों में उलझा हुआ था.’’ यह कहतेकहते प्रणव शांत हो गया. थोड़ी देर बाद यंत्रवत फिर कहने लगा, ‘‘रिश्तेदारों के जाने के बाद मैं ने प्राइवेट ही स्नातकोत्तर डिगरी हासिल करने के लिए फौर्म भर दिया. साथ ही, घर चलाने के लिए छोटेमोटे काम ढूंढ़ने लगा. कभी दुकान का सेल्समैन तो कभी स्कूल का क्लर्क.’’

स्मिता व्यथित हो कर बोली, ‘‘आईएएस की तैयारी बीच में ही छोड़ दी, दोबारा प्रयास कर सकते थे?’’ प्रणव के स्वर में झुंझलाहट सुनाई पड़ी जब वह बोला, ‘‘अरे मैडम, कविताएं और कहानियां वास्तविक नहीं होती हैं,’’ यह कह कर वह चुप हो गया. स्मिता ने कहना चाहा कि कविता और कहानी सभी यथार्थ से ही प्रेरित होती हैं. तभी तो साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है. इस समय स्मिता ने चुप रहना ही बेहतर समझा. थोड़ी देर बाद प्रणव स्वयं ही संयत हो बोला, ‘‘मेरे बाबूजी अपनी ईमानदारी की कमाई से केवल घर का खर्च चलाते और हमें पढ़ाते थे. उन के जाने के बाद सिर्फ पुश्तैनी मकान रह गया था. दीदी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती और मैं अपनी कमाई से घर और बाहर का काम संभालने लगा. जिंदगी मंथर गति से चल रही थी कि पता चला, मां ब्लड कैंसर से ग्रस्त हैं. शायद हम दोनों भाईबहन के भविष्य की चिंता में ही मां ऐसा रोग लगा बैठी थीं. उन्होंने बीमारी को हम से छिपा कर भी रखा था, पड़ोस की आंटी को पता था. 4 महीने में मां भी हमें छोड़ गईं.’’ प्रणव थोड़ा रुका. स्मिता को उस की आंखों में आंसू दिखे. उस ने भी महसूस किया कि मांबाप का साया सिर से उठ जाए तो कैसी बेचारगी होती है. यों ही बच्चे अनाथ नहीं कहलाते. प्रणव फिर संवेदनशून्य हो कर कहने लगा, ‘‘अब मेरी दीदी के ब्याह की जिम्मेदारी मेरी थी. पता चला दूल्हे तो शादी के बाजार में भारी दहेज में बिकते थे. कहीं कोई बात बन नहीं रही थी. ऐसे में एक परिवार में बात चली तो लड़के वाले हमारे पुश्तैनी मकान के बदले दीदी को बहू बनाने को तैयार हो गए. मैं अपने ही घर में अपने जीजा और दीदी के सासससुर का नौकर बन कर रह गया. दीदी कुछ कह नहीं पाती थीं क्योंकि वे अपने पति को छोड़ कर भाई पर दोबारा बोझ बनना नहीं चाहती थीं.

‘‘जब जीवन असहनीय हो गया तो मैं यहां भाग आया. यहां भी छोटेमोटे काम किए, फिर दीप होटल में काम मिला. अब शादीशुदा हूं 2 बच्चे हैं. कह सकती हो कि जिंदगी कट रही है.’’ स्मिता सोचने लगी, जीवन खुल कर जीना और सिर्फ काटने में अंतर होता है. पैदा होते ही हम मौत की तरफ बढ़ते हुए जिंदगी काटते ही तो हैं. प्रणव की आवाज आई तो स्मिता ध्यान से सुनने लगी. प्रणव कह रहा था, ‘‘मेरा अनुभव यह कहता है कि जिंदगी अचानक ही घटी घटनाओं का क्रम है. जैसे आज इतने सालों बाद तुम मिली हो, वह भी कवयित्री बन कर. पता है, कभीकभी ऐसा लगता है यदि जिंदगी को फ्लैशबैक में जा कर दोबारा जीने का अवसर मिलता तो शायद मैं अलग ढंग से जीता.’’ प्रणव ज्यादा बोलने की वजह से हांफ रहा था. स्मिता ने सोचा कि कहीं प्रणव हाई ब्लडप्रैशर का रोगी तो नहीं. इस से पहले कि स्मिता कुछ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती, होटल का एक कर्मचारी आया और प्रणव से बोला, ‘‘सर, बाहर मेहमान लोग आना शुरू हो गए हैं, उन्हें लौबी में बिठाऊं या कन्वैंशन हौल में?’’

प्रणव ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘अरे, समय का पता ही नहीं लगा. तुम उन्हें लौबी में ही बिठाओ. पानी सर्व करवाओ, मैं अभी आता हूं.’’ इतना कह कर प्रणव स्मिता से बोला, ‘‘तुम्हें भी मैं अन्य कवियों के साथ छोड़ देता हूं. मुझे सभागार की व्यवस्था दोबारा चैक करनी है. तुम्हारी कविताएं अवश्य सुनूंगा, पक्का वादा. सम्मेलन के बाद मिलते हैं.’’ प्रणव ने स्मिता को लौबी में छोड़ा और तेजी से सभागार की ओर बढ़ गया. स्मिता अन्य कवियों से नमस्ते, आदाब वगैरह कहने लगी. उन में अशोक चक्रधर की स्मिता बहुत बड़ी प्रशंसक थी. उन से बातचीत कर वह बहुत प्रसन्न हुई. इतने में सभी कविगणों को सभागार में बैठाया गया. इस के बाद विपिन चंद्र, होटल के मालिक, विश्वनाथ के साथ पधारे तो सभी ने उठ कर उन दोनों का अभिवादन किया. विश्वनाथ ने मंच पर जा कर अतिथि कवियों का स्वागत किया और कवि सम्मेलन शुरू करने की घोषणा अपनी एक छोटी सी कविता से की. कवियों में सर्वप्रथम जानेमाने कवि गौरव को बुलाया गया. गौरव मूलत: हास्य कवि हैं जो अपनी छोटीछोटी कविताओं में व्यंग्य के रूप में बड़ीबड़ी बात समझा जाते हैं. उन्होंने आते ही अपनी आत्महत्या की योजना के बारे में व्यंग्यात्मक ढंग की कविता सुनाई. वातावरण पूरा हास्यमय हो गया. इस के बाद दिल्ली के उभरते कवि विनय विनम्र ने नेताओं की देशभक्ति पर एक गीत प्रस्तुत किया तो श्रोताओं ने तालियों से उन का जोरदार समर्थन किया. ऐसे ही कार्यक्रम बढ़ता रहा पर स्मिता का मन कहीं और भटक रहा था. उसे यह खयाल बारबार परेशान कर रहा था कि प्रणव जैसा मेधावी छात्र अपनेआप को समाज में प्रतिष्ठित न कर पाया. मां से बचपन में सुनी कहावत ‘पढ़ोगे, लिखोगे तो बनोगे नवाब…’ उसे झूठी लग रही थी.

इसी बीच जलपान करने के लिए सभी कवियों और श्रोताओं को पास ही के हौल में बुलाया गया. स्मिता ने देखा कि विश्वनाथ और विपिन चंद्र बैठे बातचीत कर रहे थे. स्मिता ने मन ही मन साहस बटोरा और उन दोनों के पास पहुंच गई. उस ने अभिवादन कर विपिनजी से कहा, ‘‘सर, मैं आप से थोड़ी देर बात करना चाहती हूं.’’ विपिनजी स्मिता को जानते थे, बोले, ‘‘हां जी, कहिए, आप को चैक तो मिल गया है न?’’ स्मिता ने मुसकरा कर कहा, ‘‘जी, वह तो मिल गया है. पर आज मैं आप से इस होटल के मैनेजर प्रणव के बारे में बात करना चाहती हूं.’’ इतना कह कर स्मिता ने कालेज के सब से प्रतिभावान छात्र प्रणव की कहानी संक्षेप में कह डाली. उस ने फिर कहा, ‘‘आप जैसे कलापारखी शायद प्रणव की प्रतिभा का उचित मूल्य दे सकेंगे. क्या आप उसे अपने व्यवसाय में किसी प्रकार का कार्य दिला सकते हैं?’’ विपिनजी बोले, ‘‘अरे स्मिताजी, आप के सहपाठी को हम भी अच्छी तरह जानते हैं. दरअसल, अभी विश्वनाथ भी हमें यही बता रहे थे कि आर्थिक तंगियों की वजह से यह होटल बंद होने की कगार पर था कि तभी प्रणव ने जौइन किया. कर्मचारी कम होने की वजह से प्रणव ने हर तरह का काम किया. आज फिर से यह होटल चल पड़ा है. मेरी एक फैक्टरी, जिस में साबुन, शैंपू वगैरह बनते हैं, ऐसे ही हालात से गुजर रही है. ठीक है, देखते हैं, प्रणव वहां भी अपनी जादू की छड़ी घुमा सकता है या नहीं.’’

स्मिता खुश हो कर बोली, ‘‘धन्यवाद, सर, मुझे उम्मीद थी कि आप मेरी विनती का मान जरूर रखेंगे.’’ विपिनजी बोले, ‘‘अरेअरे, इस में धन्यवाद कैसा? भई, हमें भी तो कर्मठ और ईमानदार स्टाफ की जरूरत पड़ती है या नहीं?’’ स्मिता थोड़ा सोच कर बोली, ‘‘एक और बात है सर, प्रणव को यह मालूम नहीं होना चाहिए कि मैं ने आप से उस की सिफारिश की है. इस से उस के आत्मसम्मान को ठेस लग सकती है. मुझे विश्वास है प्रणव स्वयं ही अपनी काबिलीयत साबित कर पाएगा. आप को निराशा नहीं होगी. अच्छा सर, अब मैं चलती हूं. सब लोग जलपान हौल से वापस आ रहे हैं.’’ इतना कह कर स्मिता तेजी से सभागार की अपनी सीट पर जा बैठी. कवि सम्मेलन जलपान के अल्पविराम के बाद फिर से शुरू हुआ. कई जानेमाने गीतकार भी आए. हमारे फिल्म संगीत की एक विचित्र परंपरा यह है कि गीतकार का गीत चाहे जनजन की जबां पर आ जाए पर उस के पीछे गीतकार को कोई जानता ही नहीं है. कोई जानना चाहता भी नहीं है. गीत के गायक या बहुत हुआ तो संगीतकार, जिस ने धुन बनाई है, पर आ कर बात थम जाती है. फिल्म ‘शोर’ का गाना इक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है…इसे गुनगुनाते समय कितने लोग भला उस गीत के गीतकार संतोष आनंद को याद करते होंगे. ऐसे में गीतकारों को अपने गीत कह कर, गा कर सुनाते देख अच्छा लगा. इतने में स्मिता का नाम पुकारा गया तो वह भी साड़ी संभालती हुई, हाथ में कविता की डायरी लिए पहुंच गई. सभी को नमस्कार कर उस ने प्रसिद्ध गीतकार गोपालदास नीरज की कुछ लाइनें पढ़ीं. इस के बाद स्मिता ने उड़ान नामक अपनी कविता, जिस में एक पंछी के माध्यम से जीवन की वास्तविकता और उस से समझौता कर कैसे अपनी उड़ान जारी रखी जा सकती है, का सस्वर पाठ किया. इस के बाद उस ने अपनी मधुमेह रोग पर लिखी हास्य कविता का पाठ किया. उस ने मंच से देखा, प्रणव श्रोताओं में पीछे खड़ा था और उस की कविता सुन कर ‘वाहवाह’ कहता हुआ तालियां बजा रहा था.

अंत में अशोक चक्रधरजी की सारगर्भित, व्यंग्यात्मक कविताओं का रसास्वादन सभी ने किया. तत्पश्चात विपिन चंद्र ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया व सभा की समाप्ति अपनी कविता के साथ की. सभा समाप्ति के बाद स्मिता ने देखा विपिनजी ने प्रणव को बुलाया. स्मिता उत्सुकतावश वहीं पड़े एक बड़े से टेबल के पीछे छिप गई. उस ने सुना, विपिनजी कह रहे थे, ‘‘प्रणव, विश्वनाथजी तुम्हारे काम की बड़ी तारीफ कर रहे थे. क्या तुम मेरी फैक्टरी में मैंनेजिंग डायरैक्टर का पद संभालना चाहोगे? 80 हजार प्रति माह वेतन के साथ मकान और गाड़ी भी दी जाएगी.’’ प्रणव को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उस ने बड़ी मुश्किल से कहा, ‘‘ये…ये आप क्या कह रहे हैं? क्या यह सच है?’’ स्मिता ने देखा, विपिनजी और विश्वनाथजी दोनों मुसकरा कर हामी भरते हुए सिर हिला रहे थे. विपिनजी ने कहा, ‘‘बिलकुल सच कह रहे हैं. विश्वनाथ को जब तक नया मैनेजर नहीं मिल जाता, तुम इन का कार्यभार भी रोज कुछ समय के लिए आ कर संभाल देना. कंप्यूटर पर भी इन का औफिशियल काम कर सकते हो. हां, यदि तुम्हें कोई आपत्ति है तो बता सकते हो.’’

प्रणव बोला, ‘‘आपत्ति क्या सर, बस, यही लग रहा है कि ऐसा काम पहले कभी किया नहीं है तो…’’ अब विश्वनाथजी ने उस से कहा, ‘‘प्रणव, तुम ने हर तरह का काम किया है. यही तुम्हारी काबिलीयत का सुबूत है. आज तुम्हें अच्छा अवसर मिल रहा है. जाओ, खूब मेहनत करो और अपने परिवार को एक अच्छी जिंदगी दो.’’ प्रणव के कानों में अपनी ही कही बातें गूंजने लगीं, जिंदगी अचानक घटी घटनाओं का क्रम है. उस ने भावातिरेक में विपिन व विश्वनाथजी को झुक कर प्रणाम किया. स्मिता ने देखा पास ही एक दरवाजा है, वह बैठेबैठे ही टेबल के पीछे से दरवाजे तक पहुंच गई और एक ही झटके में दरवाजे से निकल पड़ी. इस के बाद लौबी पार कर वह सीधी होटल के बाहर निकल गई. इधर, थोड़ी देर बाद प्रणव स्मिता को ढूंढ़ते हुए रिसैप्शनिस्ट के पास पहुंचा. रिसैप्शनिस्ट ने बताया, ‘‘स्मिता सहाय, वे मैडम तो अभी 5 मिनट पहले होटल से निकल गई हैं. बहुत जल्दी में लग रही थीं. शायद उन की गाड़ी का समय हो गया होगा.’’

प्रणव ने स्मिता को याद किया और मुसकरा दिया. सोचा, स्मिता की कन्नी काटने की आदत अभी गई नहीं है. थोड़ी देर रुकती तो बताता कि उस से दोबारा मिलना हसीन यादें ही नहीं दे गया बल्कि उस की जिंदगी में आर्थिक बदलाव की बहुत बड़ी सौगात ले कर आया. प्रणव ने पदोन्नति की  खबर देने के लिए तुरंत घर पर फोन किया और अपनी पत्नी मोना से बातें करने लगा. मन ही मन सोचने लगा, जीवन के सफर में ऐसे खूबसूरत मोड़ आते रहे तो सफर अब आसान हो जाएगा. होटल से बाहर आ कर स्मिता ने एक अजीब हलकापन महसूस किया. उसे विवेकानंद की कही बातें याद आ गईं. उन के अनुसार, जब किसी दूसरे की भलाई के लिए व्यक्ति कुछ काम करता है तो उस में किसी सिंह की तरह अपार शक्ति का संचार हो जाता है. शायद इसी कारण स्वभावत: चुप रहने वाली स्मिता आज मुखर हो पाई थी. उस ने मन ही मन विपिनजी को धन्यवाद दिया. हालांकि सच्चे प्यार में बदला लेना या देना संभव नहीं है. तब भी कालेज में प्रणव से ली गई छोटीछोटी मदद के बदले आज उस का उपकार कर आंतरिक खुशी हुई. मनमयूर जैसे नाच उठा. शायद प्रणव से दोबारा मुलाकात न हो, इस से कोई फर्क भी नहीं पड़ता. जिंदगीभर के लिए आज की यादें उस के तनहा पलों को गुदगुदाने के लिए काफी थीं. स्मिता आंखों में आंसू और होंठों पर मुसकान लिए चलती रही. आखिरकार स्टेशन की बैंच पर बैठ कर दिनभर की घटनाओं को याद करने लगी. उसे लगा प्रणव से उस का प्रेम किसी भी आशा अपेक्षा से परे था. बिलकुल निस्वार्थ, बंधनहीन.

 

ताप्ती- भाग 5: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

फिर अनीता के पिता ने ही पहल कर के उन्हें दिल्ली के नामी कोचिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला दिला दिया और आलोक ने भी उन को गलत साबित नहीं किया. पहली बार में ही उन का चयन हो गया. अनीता के पिता का जो सपना उन के बेटा या बेटी पूरा नहीं कर पाए वह उन के भावी दामाद ने पूरा कर दिया.

आलोक को यह रिश्ता मंजूर है या नहीं किसी ने उन से नहीं पूछा. अनीता के लिए आलोक एक जीवनसाथी नहीं, बल्कि एक ट्रौफी हसबैंड थे.

जब रात के 9 बज गए तो ताप्ती ने कहा, ‘‘आरवी आप का इंतजार कर रही होगी.’’

आलोक बोले, ‘‘दोनों मांबेटी नाना के घर गई हैं, परसों आएंगी. आज की रात में यहीं रुक जाऊं क्या?’’

ताप्ती की भी यही इच्छा थी, पर उसे डर भी लग रहा था.

आलोक शायद उस के चेहरे के भाव से समझ गए, इसलिए बोले, ‘‘फिक्र मत करो, मैं अपने सरकारी वाहन में नहीं आया हूं… सुबह ही निकल जाऊंगा.’’

उस रात पहली बार ताप्ती को पुरुष स्पर्श का एहसास हुआ जो नारी के सौंदर्य को दोगुना कर देता है.

सुबह जब उस ने आलोक को कौफी पकड़ाई तो आलोक बोले, ‘‘ताप्ती, अगले शनिवार भी आ सकता हूं क्या? और प्लीज वही साड़ी पहन कर रखना जो मैं ने तुम्हें भेजी थी.’’

वह 1 हफ्ता एक दिन की तरह बीत गया और फिर से शनिवार की शाम आ गई. ताप्ती ने आलोक के कहे अनुसार उन की ही साड़ी पहनी और आज उस ने गजब का शृंगार भी किया था. दरवाजे की घंटी बजते ही जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने अनीताजी को देख कर सकपका गई, साथ में आरवी भी थी.

ताप्ती को देखते ही आरवी बालसुलभता से बोली, ‘‘मैम, यह तो वही साड़ी है, जिसे उस दिन आप मौल में देख रही थीं. आज आप एकदम दुलहन जैसी लग रही हैं.’’

अनीताजी की आंखों से नफरत की चिनगारी निकल रही थी. उन्हें पता था कि इतनी महंगी साड़ी यह दो टके की लड़की नहीं खरीद सकती है. उन का शक अब यकीन में बदल गया था.

आरवी सब चीजों से अनजान अपनी मम्मी से बोल रही थी, ‘‘मम्मी, बात करो न मैम से कि वे मेरी हफ्ते में 1 दिन आ कर ही मदद कर दें.’’

अनीताजी कुछ न बोल आरवी का हाथ पकड़ कर तीर की तरह निकल गईं.

ताप्ती ऐसे ही बैठी रही. तभी आलोक आ गए, ताप्ती ने उन्हें पूरी बात बता दी. आलोक किसी और मूड से आए थे. वे ताप्ती के बालों से खेलने लगे, उन की उंगलियां उस के होंठों को छू रही थीं.

ताप्ती ने उन्हें धक्का दे कर कहा, ‘‘मैं क्या हूं… एक मिस्ट्रैस या मन बहलाने का साधन… आप क्या हर हफ्ते ऐसे ही झूठ बोल कर रात के अंधेरे में आएंगे?’’

आलोक शरारत से बोले, ‘‘सब रुतबे वाले आदमियों की मिस्ट्रैस होती हैं और पुलिस महकमा तो वैसे भी इन सब बातों के लिए बदनाम है.’’

ताप्ती इस से पहले और कुछ बोलती, आलोक ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. रातभर दोनों प्रेम के संगीत में डूबे रहे.

सुबह जाते हुए आलोक बोले, ‘‘चिंता मत करो ताप्ती, जल्द ही मैं सामने के

दरवाजे से आऊंगा, तुम मेरे लिए भोग की वस्तु नहीं हो, तुम मेरे मन के सुकून के लिए जरूरी हो.

‘‘बस थोड़ा सा और ताप्ती फिर तुम और मैं एकसाथ रहेंगे, दिन के उजाले में भी.’’

ताप्ती अपने बैंक पहुंची ही थी कि उसे चपरासी बुलाने आया कि मैनेजर साहब ने उसे अपने कैबिन में बुलाया है. अंदर जा कर देखा मैनेजर के साथ एक अधेड़ उम्र के पुरुष बैठे थे. एकदम अनीता का ही नक्शा था.

ताप्ती को देखते ही गुस्से में बोले, ‘‘तो तुम हो ताप्ती… शर्म नहीं आती मेरी बहन के परिवार में आग लगाते हुए? नौकरी करती, खूबसूरत हो, यहांवहां मुंह मारने से अच्छा है तुम किसी ढंग के लड़के से शादी कर लो,’’ फिर व्यंग्य करते हुए बोले, ‘‘जानता हूं तुम्हारे आगेपीछे कोई नहीं है, कहीं की भी झूठी पत्तलें चाटो पर आलोक को बख्श दो,’’ जातेजाते वह शख्स नीचता पर उतर आया और ताप्ती को घूरते हुए बोला, ‘‘वैसे आलोक की जगह तुम मुझे भी दे सकती हो.’’

ताप्ती शर्म के कारण सिर नहीं उठा पा रही थी. पता नहीं मैनेजर क्या सोच रहे होंगे.

अनीता के भाई के जाने के बाद मैनेजर बोले, ‘‘ताप्ती आई कैन अंडरस्टैंड, पर तुम चिंता मत करो, हो जाता है कभीकभी, मुझे तुम्हारी समझदारी पर पूरा भरोसा है.’’

फिर से शनिवार की शाम आ गई थी. ताप्ती और आलोक किसी भी सोशल नैटवर्किंग साइट पर टच में नहीं थे, न ही वे कभी एकदूसरे के साथ फोन पर बात करते थे. बस शनिवार की शाम का यह अनुबंध था.’’

ताप्ती को विश्वास था अब आलोक कभी नहीं आएंगे, इसलिए वह एक पुराने से फ्रौक में बैठी थी.

घंटी बजी और आलोक आ गए. ताप्ती को बांहों में भरते हुए बोले, ‘‘एकदम बार्बी डौल लग रही हो… जल्द ही आगे के दरवाजे से आऊंगा… मैं ने अनीता से बात कर ली है.’’

ताप्ती बोली, ‘‘आरवी का क्या होगा?’’ और फिर ताप्ती ने उस दिन की घटना भी विस्तार से बता दी. दरअसल, अब वह आलोक के साथसाथ अपनी सुरक्षा के लिए भी चिंतित थी.

पूरी घटना सुन कर आलोक बोले, ‘‘चिंता न करो, मैं ने अनीता के परिवार से भी बात कर ली है. तुम्हें अब कोई परेशान नहीं करेगा. तुम बस अपना मन बना लो… थोड़ा सा होहल्ला होगा पर फिर सब भूल जाएंगे, तुम मजबूत रहना.’’

रविवार की शाम मिहिम का फोन आया. उस ने ताप्ती से कहा, ‘‘तैयार रहना, आज डिनर पर चलेंगे.’’

ताप्ती ने वही स्कर्ट और कुरती पहनी जिन्हें आलोक उस के लिए दीवाली पर पहनने के लिए जयपुर से लाए थे.

वहां पहुंच कर देखा तो अनीताजी भी बैठी थीं. उस ने मिहिम को शिकायतभरी नजरों से देखा. बोलीं, ‘‘ताप्ती, मैं तुम पर कोई दोषारोपण करने नहीं आई हूं. अकेली तुम्हारी ही गलती नहीं है, पर कोई भी फैसला लेने से पहले एक बार आरवी के बारे में जरूर सोचना.’’

‘‘मुझे मालूम है तुम एक दर्दनाक बचपन से गुजरी हो. क्या तुम आरवी के लिए भी ऐसा ही चाहोगी?

‘‘एक बच्चे को मां और पिता दोनों की आवश्यकता होती है और यह तुम से बेहतर कौन जान सकता है. प्लीज, उस की जिंदगी से चली जाओ. आलोक के सिर पर इश्क का जनून सवार है पर आलोक आरवी के बिना नहीं रह पाएगा. हां, मैं उसे हिटलर जैसी लगती हूं पर किस के फायदे के लिए, कभी समझ नहीं पाएगा. तुम ही कदम पीछे हटा लो ताप्ती, प्रेमी और पति में बहुत फर्क होता है.’’

अचानक ताप्ती को महसूस हुआ जैसे अनीता नहीं, उन के मुंह से उस की मां बोल रही हैं. मेज पर सजा खाना ताप्ती को जहर लग रहा था.

रास्तेभर मिहिम और ताप्ती चुप बैठे रहे. मिहिम ताप्ती के साथ अंदर आया और बोला, ‘‘ताप्ती, क्यों आग से खेल रही हो? तुम एक बार हां तो कहो, मैं तुम्हारे लिए लड़कों की लाइन लगा दूंगा.’’

ताप्ती डूबते स्वर में बोली, ‘‘मेरे साथ कौन शादी करेगा मिहिम?’’

मिहिम प्यार से उस के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोला, ‘‘ताप्ती मैं भी तैयार हूं, तुम हां तो करो.’’

ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘मिहिम, प्लीज मैं और तुम कभी नहीं.’’

मिहिम को पता था, ताप्ती उसे बस अच्छा मित्र ही मानती है. न जाने क्यों

उसे आलोक से ईर्ष्या हो रही थी. उस मंगलवार की शाम ताप्ती अभी औफिस से आ कर बैठी ही थी कि आरवी अपनी आया के साथ आ गई. ताप्ती के गले लग कर सुबकते हुए बोली, ‘‘मैम, मैं और मम्मी अब नानाजी के घर रहेंगे… पापा दूसरी शादी कर रहे हैं… मैं मम्मी को अकेले नहीं छोड़ सकती, इसलिए उन के साथ जा रही हूं.’’

ताप्ती ने देखा लड़की बिलकुल मुरझा गई है… उसे लगा आरवी नहीं जैसे यह ताप्ती बोल रही हो. उस ने मन ही मन अनीता को धन्यवाद भी दिया कि उस ने आरवी को उस दूसरी औरत का नाम नहीं बताया अन्यथा आरवी कभी भी उसे माफ न कर पाती.

मगर जब आरवी वापस जा रही थी तो ताप्ती ने निर्णय ले लिया कि वह अपने प्यार का ताजमहल आरवी के बचपन पर कभी खड़ा नहीं करेगी. ताप्ती सोच रही थी कि इस शनिवार की रात वह आलोक को अपना निर्णय सुना देगी.

तभी फोन की घंटी बजी. मिहिम का फोन था. वह बता रहा था कि आलोक भैया का ट्रांसफर असम हो गया है. ताप्ती जानती थी कि किस कारण से आलोक ने अपना ट्रांसफर इतनी दूर करवाया है पर अब आरवी और अनीता ही आलोक के साथ जाएंगी.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. ताप्ती ने सोचा शायद आलोक होंगे. वह मन ही मन अपनी लाइंस को दोहरा रही थी पर दरवाजे के बाहर तो हारे हुए जुआरी की तरह एक अधेड़ उम्र का पुरुष खड़ा था. ताप्ती ने देखा और एकदम से पीछे हट गई. फिर से ताप्ती के जीवन में पिता का आगमन हो गया था.

अचानक ताप्ती को मिहिम का वह छंद याद आ गया, जिसे वह हमेशा उसे परेशान करने के लिए गाता था-

‘‘ताप्ती क्यों तेरा यह रूपरंग कलकल बहता जाए,क्यों कोई पुरुष इस में सुकून की छांव न पाए,

निर्जन ही रहेगी मिहिम बिना तेरी जीवनधारा, हां तो कर दे मृगनयनी कब से खड़ा हूं यों हारा.’’

अधूरा सपना: कौन थी अभीन का प्यार

पता नही क्यों जब भी शादी में , बैंड बाजे की धुन में कोइ फिल्मी गाने की सैड सैंाग बजती है, अभीन की धड़कने तेज हो जाती. उसकी आंखे बंद हो जाती कुछ पल के लिए ,दिल और मन रूआंसा सा हो जाता है  कुछ पल के लिए.  रभीना हां यही तो नाम था उस लड़की का जिसे देख देख वो फिल्मी प्यार मे डुब जाता था. रभीना अभीन को के प्रति सीरियस है इसका एहसास कभी भी नही होने देती थी. ये बात अभीन को भी पता था. पर अभीन हर शाम गुप्ता स्टोर के पास पांच बजे के करीब खडा़ हो जाता था ,ताकि वो टियूशन जाती रभीना का दीदार कर सके. रोज दीदार के नाम पर खडा़ तो नही हो सकता था गुप्ता जी के स्टोर पर ,इसलिए कुछ ना कुछ रोज अभीन को दुकान से खरीदना ही पड़ता था. गुप्ता अंकल सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने रहते थे. अभीन अभी अभी बारहवीं में तो गया था.

मैथ ,फिजिक्स ,केमिस्ट्री के प्रशनो केा रट्टा मारने के बाद वो तुरंत रभीना के याद में डूब जाता था. और याद में भी ऐसे डूबता मानो सच में गोता लगा रहा हो. रभीना उसकी बाहों में ,रभीना उसके जोक पर लागातार हंसते हुए. अभीन, रभीना को बस सोचता जाता और अपना होश खोता जाता. अभीन के इस पढ़ाकू व्यवहार से मां चिंतित रहने लगी. ऐसी भी क्या पढाइ जो बंद कमरे में पढते -पढते बिना खाये पिये सो जाये. मां को कहां पता था कि अभीन बंद कमरे सिर्फ पढाई नही करता. वारहवीं का इग्जाम खत्म होते होते ही अभीन का प्यार और भी परवान चढ़ने लगा. अभीन से रभीना कभी बात नही करती थी. इन दो सालो में भी अभीन रभीना से बात नही कर पाया. पर इससे अभीन को कोइ फर्क नही पड़ता था. वो हर रोज गुप्ता स्टोर से खरीदारी कर आता.

गुप्ता जी के दुकान की ऐसी कोइ चीज नही रही हो जिसे अभीन ने नही खरीदी हो. अब तो गुप्ता अंकल ही अभीन को बता देते थे कि बेटे आज सर्ट में लगाने वाली बटन ही खरीद ले ,बेटे आज ना हेयर डाई खरीद ले. और फिर अभीन दे देा अंकल कह कर टियूशन जाती अभीना को निहारता निढाल हो जाता कुछ पलो के लिए. अभीन पढ़ने में तो तेज था ही साथ ही उसने अपने बेहतर जीवन के सपने भी बुने थे. उसका प्यार जितना फिल्मी था उतना ही फिल्मी उसके सपने थे. पर उसकी खूबसूरत सपने में भी खूबसूरत रभीना भी थी. एक अच्छी पैकेज वाली नौकरी ,एक मकान और छोटी सी कार में खुद से डाªइव करते हुए रभीना को बारिश के बूदों में घुमााना. अपनी इसी सपने को पूरा करने के लिए अभीन दिन रात पढा़ई करता था. अभी भी अभीना उसके लिए सपना ही थी , एक कल्पना जिसे देख वो खुश हुआ करता था. जिसे महसूस कर वो अपने सपनो को सच करने के लिए आइ लीड को पीटते नींद केा भगाने के लिए आंख के पुतलियों पे उर्जा देती पानी की छिंटो के सहारे पढाई करता था.

पहली कोशिश में पहली ही दफा में ही अभीन ने इजीनियरिंग परीक्षा इंट्रेस निकाल ली. अपार खुशी ,पर दुखः इस बात की थी  ,कि अब गुप्ता अंकल के दुकान पर रोज समान खरीदने का मौका नही मिलेगा. अब वो अब अपनी सपना को अपने खव्वाब को रोज अपनी आंखो से दीदार नही कर पायेगा. अभीन वापस अपने घर आते ही चिंतित हो उठा. उसके कइ दिनो से इस तरह के व्यवहार से उसके माता पिता भी चिंतित हो उठे. हमेशा खुश रहने वाला लड़का इतना परेशान क्यों है ?

अभीन के होश उड़े हुए थे. वो थोड़ा बेसुध सा रहने लगा. अभीन अब उतावले से रभीना से बात करने और उसे मिलने के रास्ते तलाशने लगा. अपने मोहल्ले में ही रहने वाली रभीना के लिए उसने कभी ऐसी कोशिश नही की थी. उसने कभी ये बात नही सोची थी कि ऐसा भी कभी अवस्था आयेगा. आखिरकर वो अपने मासी के घर रहने वाली रेंटर निकली. किसी बहाने से अभीन अपने मासी के यहां पहुंच भी गया. पर ये क्या रभीना दो बार सामने से गुजरी , उसने ध्यान ही नही दिया. गुप्ता अंकल के स्टोर पर तो रोज मुझे देख हंसती थी. वो मुझसे कही ज्यादा खुश लगती थी ,मुझे गुप्ता अंकल के स्टोर पर इंतजार करता देख. पर आज ना जाने ऐसा व्यवहार क्यू कर रही है. अभीन को रभीना पर गुस्सा भी आ रहा था. ऐसी भी क्या बेरूखी. आखिर अभीन गुस्सा होकर यो कहें निराश होकर अपने हल्के कदम और भारी मन के साथ कब अपने घर पहुच गया उसे भी  पता ना चला. अभीन अभी भी गुस्से में ही था. रात का भोजन नही ,अगले दिन, दिन भर कमरे से बाहर निकलना नही. अभीन के माता पिता परेशान हो गये. कही ऐसा तो नही कि अभीन घर से दूर इंजीनियरिंग की पढाई करने जाने से दुखी है. अभीन माता पिता से, घर से दूर रहने के फायदे और स्वालंबी बनने की जरूरत पर लम्बी लेक्चर सूनते सूनते बोर होने लगा. तो घर से निकला. माता पिता समझे अब अभीन समझदार हो गया. अभीन गुप्ता अंकल क स्टोर पर पहुंचा. दो साल में पहली बार अभीन गुप्ता अंकल के स्टोर पर साम पांच बजे के बाद मुरझाया चेहरा लेकर पहुंचता है. गुप्ता अंकल ने पुछा ’’ अरे तुमने बताया नही  तुमने आइआइटी एक बार में ही निकाल ली.’’ ’’ हां अंकल निकाल ली  ’’ कह कर अभीन चुपचाप हो गया. और एका एक अपने मासी के घर की ओर बढ चला. आज रभीना से पुछ ही लुंगा कि शादी करोगी या नही ? और कुछ ही देर में अभीन रभीना के घर के दरवाजे पर था. पर ये क्या उसके दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. तभी उसकी मासी आवाज देती हैं. ’’ अरे अभीन उधर रेंटर के कमरे की ओर क्या कर रहा है ़ इधर आ ’’  ’’ आता हूं मासी  ये आपके रेंटर कहां गये ,इनका दवाजा बंद है  लगता है मार्केट गये हैं !’’  ’’ नही नही !

मार्केट नही गये अपने गांव गये हैं. उनकी बेटी है ना रभीना उसकी शादी है अगल हप्ते ’’. अभीन अंदर से हिल जाता है. रोते हुए अपने घर की ओर दैाड़ता है. उसका दिमाग भारी लगने लगता है. अपने बहते आॅशु को पोछते हुए दौड़ते हुए चलने लगता है. अभीन को मालुम है कि लोग उसे रोते हुए देख रहे हैं. पर आंशु रोकना उसके बस की बात नही थी , सो उसने दौड़ कर घर जल्द पहुंचना ही अच्छा समझा. और बंद कमरे में जी भर रोया अभीन और रोते हुए थक कर सो गया. रात को सपने में भी आयी राभीना ,पर कहीं से ऐसा नही लगा जैसे रभीना उसकी जिंदगी से चली गयी हो. पहले की ही तरह अभीन के बाहों में लिपटी अभीन के बाल को खींचती. और अभीन के जोक पर पहले चुपचाप रहती ये भी कोइ जोक है. और फिर खिलखिला कर हसंती और जी खोल कर हंसती. अभीन के चेतन में अभी भी था कि रभीना उसकी जिंदगी से चली गयी है. पर उसकी हिम्म्त ही नही हुइ पुछने की ,क्यूकिं रभीना तो अभी उसकी बाहों मे थी. सुबह तैयार होकर अपने सपने को पूरा करने के लिए अभीन आईआईटी दिल्ली निकल रहा था. पर उसका सपना थोड़ा थेाड़ा अधूरा सा लग रहा था क्यूकि इस सपने में रभीना नही थी.

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