Valentine’s Special: स्मार्ट मेकअप ट्रिक्स अपनाएं और रूप सजाएं

वैलेंटाइन डे यानी प्यार करने के लिए प्यार से बना दिन है. हर लडक़ी चाहती है कि वह इस दिन कुछ खास लगे. लेेकिन कामकाजी लड़कियां अपने बिजी शेड्यूल की वजह न तो वह अपनी स्किन को टाइम दे पातीं हैं न सैलून जाकर तैयार हो पाती हैं. अगर आप भी ऐसी ही कामकाजी महिलाएं हैं तो फिक्र न करें. पूरे दिन की ऑन लाइन मीटिंग के बावजूद पंद्रह मिनट की कुछ स्मार्ट मेकअप ट्रिक्स आजमाएंगी तो आपके वो खास आपके रूप को देखकर बस फिदा हो जाएंगे. रूप को निखारने के ट्रिक्स बता रहीं हैं ब्यूटी एक्सपर्ट और अरोमा थेरेपिस्ट नीति अरोड़ा.

ब्यूटी के स्मार्ट टिप्स और ट्रिक्स

फेस क्लीन

सबसे जरूरी बात कि दिनभर की थकान चेहरे पर नहीं दिखे इसके लिए आइस वॉटर से फेस धोएं, इसके बाद कॉफी और शुगर से स्क्रब करें.

परफेक्ट रेड

लिपस्टिक में रेड एक ऐसा रंग है जो फ्रैश लुक देगा.इसके अलावा आप  मैरून टोन भी ले सकती है. अगर आपको बिल्कुल मेकअप पसंद नहीं हैं तो टिंटेड ग्लॉस लगा सकती हैं. अगर आप रेड से होंठो को सजाती हैं तो आखों को ज्यादा हाइलाइट करने की जरूरत भी नही पड़ती.

हाथों में जब होगा हाथ

हाथों को फटाफट क्लीन करने के लिए फ्रैंच मेन्क्यिोर करें, आजकल मार्केट में रेडी टू यूज मैनिक्योर किट उपलब्ध हैं. फिर नेल पेंट लगाएं.

हाइलाइटर और ब्लशर

अगर आप को बहुत हैवी मेकअप नहीं करना तो सीसी और बीबी क्रीम को मॉश्चाइजर के साथ मिक्स करके लगाएं. यह नेचुरल कवरेज है. इसके ऊपर आप ब्लशर और हाइलाइटर का प्रयोग करें. डस्की स्किन है तो गोल्डन और फेयरटोन है तो सिल्वर कलर ही लगाएं.

आंखें कुछ कहती हैं

मोहब्बत में आंखों से भी कुछ कहा जाता है. ऐसे में इस मौके पर आंखों का मेकअप करना न भूलें. सिर्फ ब्लैक आइलाइनर ही क्यों. इंडियन टोन के हिसाब से डार्क ब्राउन और डार्क चैरी उन पर बिजलियां गिराने के लिए काफी है. आईशेड्स लगाने में तो समय लगता है ऐसे में स्पार्कल और शिमर आईलिड पर लगाएं. आईब्रो पेंसिल से आईब्रोज को शेप करें. इन सभी के बाद मस्कारा का एक स्ट्रोक ही काफी है.

हेयर स्टाइल

छोटे बाल हो तो उन्हें खुला छोड़ दे हल्के बालों को घना दिखाने के लिए कर्ल करे अपने फेस लुक के अनुसार बालों को स्ट्रेट भी कर सकती हैं लंबे बालों हाई पोनी बनाएं.

चलते-चलते

एक और टिप खुद को सजाने के बाद महकना न भूले. उनका पसंदीदा ड्यिू या परफ्यूम से महकें. बहुत स्ट्रांग परफ्यूम न लगाएं. हल्का फ्लोरल आपकी फ्रैगनेंस में चार-चांद लगा देगा.

Valentine’s Day: परिंदा- क्या भाग्या का उठाया कदम सही था

भाग्या के घर में उस की शादी की बातें हो रही थीं. उस के पापा राज ने अपने समाज के कुछ लड़के देखे थे. बात आगे बढ़ाने से पहले उन्होंने भाग्या से कहा, ‘‘यदि तुम्हें कोई लड़का पसंद हो तो बता दो, हम उस से मिल कर तुम्हारी शादी करवा देंगे.’’

जवाब में भाग्या ने घरवालों की बात पर अपनी मोहर लगाते हुए कहा, ‘‘पापा, कोई नहीं है. आप को जैसा ठीक लगे, मु झे मंजूर है.’’

‘‘ठीक है, फिर मैं लड़के वालों से बात कर के मिलने की तारीख तय कर देता हूं. आपस में तुम लोग एकदूसरे से मिल लो, फिर बात आगे बढ़ेगी.’’

घर पर शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. इधर भाग्या भी अपने काम में व्यस्त थी. समय पंख लगा कर उड़ रहा था. 2 दिनों बाद लड़के वालों से मिलने सब दूसरे शहर जाने वाले थे. आज सुबह भाग्या ने अपना बैग पैक किया व औफिस जाने के लिए जैसे ही बाहर निकली कि उस की मां मोना ने उसे आवाज दी, ‘‘भाग्या, आज अपने औफिस में छुट्टी की बात कर लेना, हमें परसों निकलना है.’’ भाग्या ने बिना पलटे ही, ‘‘ठीक है मां,’’ कहा और तेजी से घर से बाहर निकल गई.

रात के 9 बज चुके थे. सब के घर आने का समय हो गया था. मोना भोजन तैयार कर सब के घर आने की राह देख रही थी. भाग्या अभी तक घर नहीं आई तो मोना कुछ चिंतित सी हो गईं. साधारणतया वह 9 बजे तक आ जाती थी. 9.30 बज गए थे. राज भी घर पर आ गए. मोना को घर पर अकेली परेशान देख कर राज ने पूछा, ‘‘भाग्या अभी तक नहीं आई? क्या बात है?’’ मोना ने पलट कर कहा, ‘‘हां, आती होगी. आजकल काम ज्यादा है इसलिए जल्दी जाती है और देरी से घर आती है. मैं फोन लगा कर पूछती हूं कि कहां है.’’

उन्होंने भाग्या को फोन लगाया. घंटी जा रही थी किंतु उस ने फोन नहीं उठाया. सब परेशान हो रहे थे. समय गुजर रहा था. 10 बजे तक भाग्या घर नहीं आई तो राज ने कहा, ‘‘मैं देख कर आता हूं. चल संजू.’’ संजू भाग्या का छोटा भाई था. राज ने जैसे ही घर के बाहर कदम रखा कि मोना के फोन की घंटी बजी. मोना ने वहीं से आवाज दे कर कहा, ‘‘रुको, भाग्या का फोन है.’’ आवाज दे कर मोना ने फोन उठाया, ‘‘कब से तु झे फोन कर रहे हैं, उठा भी नहीं रही है, सब ठीक है न? कहां है, कब तक आएगी? सब परेशान हैं.’’ लेकिन भाग्या ने मोना की बात बीच में काट कर कहा, ‘‘मां, मेरी चिंता मत करो. मैं ठीक हूं. मैं ने शादी कर ली है. मु झे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. हम नहीं मिलेंगे. हम ने शहर भी छोड़ दिया है,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

‘‘हैलो, भाग्या, सुन…’’ मोना बोलती रहीं और कंठ अवरुद्ध हो गया. फोन हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया. कटी हुई डाली की तरह मोना धम्म से जमीन पर गिर पड़ीं. यह देख कर सभी उन की तरफ दौड़े, ‘‘क्या हुआ?’’

मोना ने अस्फुटित शब्दों में कहा, ‘‘उस ने शादी कर ली है, और कहा है कि वह वापस नहीं आएगी, उसे मत ढूंढ़ना. वह यह शहर छोड़ कर चली गई है.’’

उस के इस कदम से घर के सभी लोग स्तब्ध हो गए. नींद उड़ गई थी सब की. भोजन ठंडा हो गया था. घर में भय से भरा सन्नाटा पसरा हुआ था. बाहर के कमरे में सभी लोग बैठे थे किंतु वे सभी कुछ कहनेसुनने व सोचने की स्थिति में नहीं थे. अब जाएं भी तो कहां जाएं. जवान लड़की का इस तरह चले जाना इज्जत का सवाल होता है. ऐसी खबरें भी आग की तरह फैलती हैं. मोना छाती पीट कर रो रही थीं. उधर राज का क्रोध सातवें आसमान पर था. वे मोना पर अपने क्रोध के अग्निबाण चला रहे थे.

‘‘सब तेरा ही सिखायापढ़ाया है, घर पर क्या करती हो, बच्चों का ध्यान नहीं रख सकती.’’ उस के पिता ने उन्हें बीच में टोक दिया, ‘‘अब लड़ने झगड़ने से क्या फायदा होगा. तुम्हारी इसी हरकत से वह चली गई है. जब देखो एकदूसरे को काटने के लिए दौड़ते हो. अब शांत हो कर आगे की सोचो. लड़की जात है, इस बात का ध्यान रखना कि बात घर से बाहर नहीं जाए. अब शादी कर ली है तो लड़की को घर लाने की बात सोचो. मन को शांत रखो. उसे सम झाबु झा कर घर लाना होगा.’’

उन की बात सुन कर सब लोग चुप थे. मन में उथलपुथल मची हुई थी और हारे हुए से अपने समय को कोस रहे थे. 2 दिन हो गए, भाग्या की कोई खबर नहीं मिली. परिवार के सभी लोग इस बात से चिंतित थे कि कहीं लड़की के साथ कुछ गलत तो नहीं हुआ, कौन सी जाति का लड़का है? क्या करता है? आजकल समाज में जिस तरह की घटनाएं हो रही थीं, चिंता होना लाजमी थी. कहते हैं न इश्कमुश्क छिपाए नहीं छिपता है. इस बात को परिवार भरसक छिपाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन जल्दी हवा में सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. गांव में ऐसी बातें जल्दी फैलती हैं. इधरउधर से लड़के की जानकारी भी मिल रही थी कि इसे भाग्या के साथ देखा गया था. 2 दिन तक जब भाग्या की कोई खबर नहीं मिली तो सब ने पुलिस की मदद लेने का फैसला लिया. लेकिन तभी फोन की घंटी बजी. नया नंबर देख कर राज ने फोन उठाया. उधर से भाग्या की आवाज आई, ‘‘पुलिस में खबर करने की जरूरत नहीं है. मैं बहुत खुश हूं. हमें ढूंढ़ने की कोशिश मत करो. हम आप को नहीं मिलेंगे, न ही घर आएंगे.’’

राज ने मन शांत रख कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम ने शादी कर ली है. अब तो घर आ जाओ. बैठ कर बात करेंगे. हम उसी लड़के से तुम्हारी शादी समाज के सामने करवा देंगे. ऐसे हम समाज में क्या मुंह दिखाएंगे. हमें भी तो लड़के से मिलने दो. नहीं आई तो मजबूरन हमें पुलिस की मदद लेनी पड़ेगी.’’

‘‘मैं ने कहा न कि मैं बहुत खुश हूं. हमें ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. हम ने शहर छोड़ दिया है. मैं अब बालिग हूं, अपना भलाबुरा सोच सकती हूं,’’ इस के बाद फोन बंद हो गया. आजकल सोशल मीडिया ने सब की जिंदगी में अपने पांव पसार रखे हैं. दुनिया में यह जीवन की खुली किताब का सब से आसान जरिया भी बन गया है. देररात भाग्या ने अपने सोशल अकाउंट पर शादी की तसवीरें पोस्ट कर के अपनी शादी को सार्वजनिक कर दिया. उस के बाद उस ने अपना फोन भी बंद कर दिया. परिवार जिस इज्जत की दुहाई दे रहा था, उसे उस ने पलभर में चकनाचूर कर दिया था. समाज रिश्तेदारों में यह बात आग की तरह फैल गई थी. जितने मुंह उतनी बातें. लड़के की तसवीर देख कर भाग्या के घरवालों ने लड़के के घर का पता ढूंढ़ना शुरू किया. गांव के कुछ शुभचिंतकों ने लड़केवालों का पता भी दे दिया था. ऐसे समय में शुभचिंतक भी बहुत पैदा हो जाते हैं. सब भागेभागे लड़के के घर गए व उस के मातापिता से कहा, ‘‘हमें हमारी लड़की से मिलने दो.’’ लेकिन, उन्होंने भी साफ कह दिया कि उन का लड़का भी घर से गायब है व उस का फोन भी बंद आ रहा है. वे भी बहुत परेशान हैं. उस से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. राज को गुस्सा आ गया, वे बोले,’’ आप को जैसे ही पता चले हमें भी अवगत कराएं. आप के लड़के ने हमारी लड़की को भगाया है. हम उसे नहीं छोड़ेंगे.’’ लड़के वाले भी घबरा गए. वे बोले, ‘‘देखिए, हम भी उतने ही परेशान हैं जितने आप. हमारा लड़का भी घर से भाग गया है. हम क्या कहें.’’

वे मायूस हो कर घर लौट गए. घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा था. उधर लड़के वालों का भी संदेश आ गया, अच्छा हुआ लड़की शादी से पहले भाग गई. वरना हमारे बच्चे की जिंदगी खराब हो जाती.’

राज ने घर में सब से कह दिया, ‘‘इस लड़की ने हमारी नाक कटा कर रख दी है. अब हमें उस से कोई नाता नहीं रखना है.’’ इधर भाग्या के जीवन में बसंत ने खुशियों की दस्तक दी थी. पलाश के प्यार ने उस के जीवन को महका दिया था. आज वह दुनिया से चीखचीख कर कहना चाहती थी कि मैं आजाद हूं. जैसे कोई पंछी पिंजरे से बाहर निकल कर खुले आसमान में मदमस्त हो कर विचरण करता है, वैसे ही भाग्या का मन उड़ान भर रहा था. उमंगें जहां हृदय में हिलोरें मार रही थीं वहीं भय भी ग्रहण बन कर बैठा था. कब क्या होगा, कोई नहीं जानता था. उसे पता था कि उस का परिवार इतनी आसानी से उन्हें जीने नहीं देगा.

इधर पलाश हर कदम पर उस के साथ खड़ा था. हर 2 दिन में वे शहर बदलते रहे कि कहीं उन का नंबर ट्रेस कर के ढूंढ़ लिया तो पकड़े जा सकते हैं. इस भागमभाग में भी यह प्रेमिल जोड़ा अपनी दुनिया में खुशियों के रंग भर रहा था. भाग्या के माथे पर सिंदूर की लालिमा दमक रही थी. वहीं, आंखों में भविष्य के सुनहरे सपने पल रहे थे. प्यार के रंग में रंगी उस की जिंदगी में इंद्रधनुषी रंग भर गए थे. उस के ससुराल वालों ने उसे अपनी पलकों पर बिठा कर इतना दुलार दिया कि उसे मातापिता की कमी महसूस नहीं हुई. उन के साथ के बिना यह शादी संभव नहीं थी. शादी की तसवीर पोस्ट करने के बाद दोनों गुजरात के एक होटल में 2 दिन के लिए रुक गए. रात को पलाश ने अपने घर फोन कर के मातापिता से स्थिति का जायजा लिया व उन्हें अपने सकुशल होने की सूचना दी.

नवविवाहित जोड़ा प्यार की खुमारी के रंग में रंगा हुआ अपने जीवन को सतरंगी बना रहा था. रात को पलाश थक कर सो गया, पर भाग्या की आंखों में नींद नहीं थी. पलाश की आगोश में लेटी हुई वह अपने अतीत में विचरण कर रही थी. बचपन से ही उस ने अपने घर में प्यार के दो शब्द भी नहीं सुने थे. मातापिता को हमेशा लड़ते देखा था. दोनों का गुस्सा भाग्या पर निकलता था. मां ने भी हमेशा संजू और उस में फर्क किया. जैसे उस का लड़की होना ही बुरा था. वे लड़की की जिम्मेदारियों से बचना चाहते थे. बातबात पर भाग्या को कोसना व मारना आम बात थी. मां हर वक्त उसे डांटती रहतीं, तो कभी गुस्से में उस का सिर दीवार से फोड़ देतीं.

पापा का दिल उस के माथे से निकलते हुए खून को देख कर भी कभी नहीं पसीजा. घर में भाग्या का बचपन सहमते हुए ही बीता. बचपन से ही ताने सुनसुन कर व मार खाखा कर वह कुछ ढीठ सी हो गई थी. उसे युवावस्था में आतेआते घरवालों की हर बात से फर्क पड़ना बंद हो गया था. पैसे की लालची उस की मां ने उसे पढ़ने के साथसाथ काम पर भी लगवा दिया था. उस की मां को बस मिलने वाले गिफ्ट व पैसे के अलावा किसी बात से कोई मतलब नहीं था कि भाग्या बाहर क्या करती है. भाग्या ने भी उन्हें पैसे व गिफ्ट दे कर उन का ध्यान खुद से हटा दिया.

घर में उपेक्षित बच्चों के कदम बाहर जल्दी बहकते हैं. अपनेपन व प्यार के लिए तरसती भाग्या के कदम कम उम्र में ही बहक गए थे. एक बार अपनी क्लास के मुसलमान सहपाठी के साथ पकड़ी गई तो घर से बाहर निकलने के साथ उस का कालेज भी बंद करवा दिया गया. उसे घर में बंधक बना कर नजरबंद कर दिया गया. उस के दोस्त को मारपीट कर धमका कर हवालात के दर्शन करवा दिए व लड़की को बहलानेफुसलाने की रपट करवा दी. दोनों तरफ पहरे हो गए थे. बहुत कोशिश करने के बाद भी वह घर से बाहर नहीं जा सकी.

कम उम्र में सहीगलत की सम झ ही कहां होती है. मामला शांत करने के लिए कुछ दिनों बाद उसे ननिहाल में भेज कर घरवालों ने उस की शादी करवाने का निर्णय लिया. लेकिन, शादी की बात सुनते ही उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की. बमुश्किल से कुछ रिश्तेदारों ने बीचबचाव कर के कहा, ‘लड़की अभी छोटी है. पहले लड़की को लिखाओपढ़ाओ, प्यार से सम झाओ.’ भाग्या के पास भी दूसरा मार्ग नहीं था, या तो वह पढ़े या शादी करे. उस ने फिर से पढ़लिख कर कुछ करने का मन बनाया. घर वालों ने भी उस के प्रति थोड़ी नरमी बरतनी शुरू कर दी. घर वालों ने प्राइवेट परीक्षा देने की अनुमति प्रदान की. लेकिन घर से बाहर उसे अकेले आनेजाने की अनुमति नहीं थी. वह सिर्फ परीक्षा देने ही जाती थी. उस का जीवन एक कैदी की तरह बीतने लगा. 2 वर्षों तक यों ही चलता रहा. फिर घरवालों को लगा कि वह सुधर गई है, तो फिर से पढ़ाने के साथ उस के घर वालों ने उसे अपने करीबी रिश्तेदार के यहां काम पर भी रख दिया, जिस से आमदनी भी होती रहे व उस का भविष्य भी सुधर जाए. परिवार का कोई न कोई सदस्य पहले उसे खुद लेनेछोड़ने जाता था.

खुली हवा में सांस लेने के लिए तरसती भाग्या के जीवन में पलाश के आने से बसंत का आगमन शुरू हो गया था. प्यार की फगुनाहट दिल में दस्तक देने लगी थी. मन का मौसम चुपके से बदल रहा था. वह उस के औफिस में काम से आता था, वहां एकदूसरे से नजरें मिलीं और दिल चुपचाप धड़कने लगे. रोज औफिस में होती मुलाकातों ने उन्हें एकदूसरे के करीब ला दिया. एक दिन पलाश ने भाग्या को शादी के लिए प्रपोज किया तो बिना देर किए भाग्या ने अपने जीवन को बदलने का मन बना लिया.

औफिस लंच के समय भाग्या पलाश के घर वालों से भी कभीकभार मिलने लगी. इस बार वह सतर्क थी कि दिल में महकते हुए प्यार के फूलों की महक किसी तक न पहुंचे. फिर से कोई इन फूलों को न मसले. सुंदर, सलोनी लड़की पा कर पलाश के घर वालों ने उसे सहर्ष अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर आशीष व नेह की बारिश में भिगो दिया. प्यार के लिए तरसती भाग्या का समय सच में उस पर मेहरबान हो रहा था. इधर परिवार में उस की शादी के चर्चे शुरू हुए तो भाग्या ने घबरा कर पलाश व उस के परिवार को सब बात बता दी. वह उन्हें खोना नहीं चाहती थी. उस ने कहा जल्दी शादी करो वरना हमारी शादी कभी नहीं होगी. पलाश के मातापिता ने कहा, ‘बेटी तुम चिंता मत करो, हम तुम्हारे घरवालों से बात करेंगे.’ कहते हैं न दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. तब उस ने कहा, ‘नहीं, मेरे घर वाले नहीं मानेंगे. मेरे पापा बहुत गुस्से वाले हैं. वे पलाश के साथ कुछ भी कर सकते हैं. उन की यहां सब से बहुत जानपहचान है.’

भय से उस का चेहरा पीला पड़ रहा था. औफिस के काम में भी मन नहीं लग रहा था. औफिस का मालिक उन के परिवार का करीबी था. वह सब जानता था. उस ने भाग्या के जीवन में खुशियों की खातिर उस का साथ देने का फैसला लिया. उस ने भाग्या को दिलासा दिया कि वह उस की मदद करेगा. पर किसी को भी यह बात पता नहीं चलनी चाहिए. उस ने भाग्या के घर पर संदेश दिया कि आजकल औफिस में काम ज्यादा है, इसलिए औफिस जल्दी आना होगा व देर तक रुकना होगा. रिश्तेदार होने के कारण किसी को उस पर शक नहीं हुआ. इधर पलाश व उस के घर वालों ने गुपचुप तरीके से  झटपट शादी की तैयारियां शुरू कर दीं.

मातापिता बन कर वे बेटी को घर लाने की तैयारी कर रहे थे. किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई. भाग्या ने भी घर छोड़ने के कुछ दिनों पहले से अपना सामान चुपचाप ले जा कर अपने होने वाले नए घर में रखना शुरू कर दिया. चुपचाप सारी तैयारियों को अंजाम देते हुए अंत में दूसरे शहर जा कर कोर्टमैरिज कर ली.

भाग्या के सासससुर, ननदननदोई सब ने मिल कर उस की  झोली खुशियों से भर दी. उसी शाम दोनों पलाश की बहन के घर गुजरात चले गए. शेष सभी लोग देररात तक वापस शहर में आ गए. रात को राज ने उस के औफिस में जब पूछताछ की तो मालिक ने कह दिया, ‘मैं तो आज दिन में बाहर गया था, मु झे नहीं पता है.’ सब की कोशिशों ने भाग्या का जीवन बदल दिया था.

मामला ठंडा होने तक दोनों एक शहर से दूसरे शहर घूमते रहे. फिर पुलिस की मदद से अपने घर लौट आए. आज पंछी कैद से आजाद था, उसे पिंजरे के घुटनभरे माहौल से मुक्ति मिल गई थी. यहां सांस लेने के लिए खुला आसमान था, रहने के लिए घर था, जिसे वह अपना कह सकती थी. जो मन चाहे कर सकती थी. जीवन के नीरस रंग चटकीले रंगों में बदल गए थे. भय का कोई साया साथ नहीं था.

सुबहशाम घर में इतनी शांति उस ने कभी नहीं देखी थी. अब सुबह मधुर संगीत से होती थी तो शाम को घर में हंसी के ठहाके गूंजते थे. वह आज अपने घर में सुरक्षित थी. प्यार व दुलार का एहसास अब हो रहा था. सास के रूप में उसे मां मिली थीं जिन्होंने उसे अपने आंचल में छिपा कर अपनी ममता उस पर लुटा दी थी. जीवन पूर्ण सतरंगी हो गया था.

राज व मोना चाह कर भी कुछ नहीं कर सके. उन्होंने भाग्या से संबंध तोड़ लिए थे. लेकिन भाग्या ने मन बनाया कि कुछ समय बाद वह कोशिश करेगी कि अपने घर वालों के मन को भी मिठास का स्वाद चखा दे. पलाश के फूलों की महक सब के जीवन में ताउम्र महकती रहे. पंरिदे पिंजरे में कैद नहीं, खुले आसमान में विचरते ही अच्छे लगते हैं. कलरव की मधुरता ही जीवन को सुंदर बनाती है.

Valentine लुक को गॉर्जियस बनाए डिजाइनर साड़ी

वेलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी आ गया है. ऐसे में अपने लुक को स्टाइलिश बनाने और इस खास दिन को और खास बनाने के लिए ऐसी ड्रेस कैरी करें जो सबसे हट कर हो. तो क्यों न इस प्यार के मौसम में बॉलीवुड एक्ट्रेस भूमि पेडेकर की तरह वाइट साड़ी पहन कर जलवा बिखेरा जाएं.

प्यार के इस मौसम में रेड कलर की धूम हर तरफ देखने को मिलती है. फिर चाहे वो ट्रेडिशनल ड्रेस हो या वेस्टर्न ड्रेस. आप रेड कलर पहन कर मॉडर्न और ट्रेंडी लुक तो दिखा सकती है लेकिन खास लुक पाने के लिए बॉलीवुड एक्ट्रेस भूमि पेडनेकर की डिजाइनर वाइट साड़ी ट्राई कर सकती है.

 

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राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर अपनी फिल्म ‘बधाई दो’ के प्रमोशन के लिए कपिल शर्मा के शो में नजर आएंगे. चैनल ने एपीसोड का प्रोमो रिलीज कर दिया है. भूमि पेडनेकर शो में डिजाइनर साड़ी पहनकर पहुंची हैं. डिजाइनर अबु जानी-संदीप खोसला की डिज़ाइन की हुई इस वाइट ओर्गेंजा साड़ी में रेड कलर के धागे से लव शब्द को अलग-अलग भाषाओं में एम्ब्रॉयडर किया गया है. जो देखने में बहुत स्टाइलिश लग रहा है. साड़ी का कलर कॉम्बिनेशन भी अलग लुक दे रहा है.

 

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अब साड़ियों में एक्सपेरिमेंट होने लगे हैं. ट्रेडिशनल साड़ियों को मॉर्डन टच देने के लिए स्टाइलिश ब्लाउज आ गए हैं. भूमि पेडेकर ने वाइट साड़ी को प्लेन वाइट बस्टियर स्टाइल ब्रालेट के साथ पहना है साड़ी के साथ लुक को गॉर्जियस बनाने के लिए मेकअप  मिनिमल, मैट और न्यूड किया हुआ है और बालों को खुला छोड़ा हुआ है. इसके साथ डायमंड ब्रेसलेट और छोटे इयररिंग भूमि की खूबसूरती को और निखार रहे है.

अगर आपके लिए भूमि के जैसी डिजाइनर साड़ी खरीदना मुश्किल है तो कम बजट में आप ऐसे ही कलर कॉम्बिनेशन में दूसरा कोई मिनिमल पैटर्न भी चुन सकती हैं..अब बहुत से होमग्रोन ब्रैंड्स हैं जो आपकी पसंद और डिजाइन के हिसाब से साड़ियां कस्टमाइज़ कर सकते हैं. अब आपको जॉर्जेट,सिल्क, ऑर्गेंजा, बनारसी, सिफॉन नेट तरह तरह की साड़ियों की वैराइटी भी मिल जाती है.

अगर आप भी इस वेलेंटाइन डे को खास बनाना चाहती है तो इस तरह की साड़ी को जरूर ट्राई करें.

Serial Story: अंत भला तो सब भला – भाग 1

माहभर बाद जब ग्रीष्मा अपने स्कूल पहुंची तो पता चला कि पुराने प्रिंसिपल सर का तबादला हो गया है और नए प्रिंसिपल ने 2 दिन पहले ही जौइन किया है. जैसे ही उस ने स्टाफरूम में प्रवेश किया सभी सहकर्मी उस के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए बोले, ‘‘ग्रीष्मा अच्छा हुआ जो तुम ने स्कूल जौइन कर लिया. कम से कम उस माहौल से कुछ देर के लिए ही सही दूर रह कर तुम खुद को तनावमुक्त तो रख पाओगी. आज ही प्रिंसिपल सर ने पूरे स्टाफ से मुलाकात हेतु एक मीटिंग रखी है. तुम भी मिल लोगी वरना बाद में तुम्हें अकेले ही मिलने जाना पड़ता.’’ प्रेयर के बाद अपनी कक्षा में जाते समय जब ग्रीष्मा प्रिंसिपल के कक्ष के सामने से गुजरी तो उन की नेमप्लेट पर नजर पड़ी. लिखा था- ‘‘प्रिंसिपल विनय कुमार.’’

शाम की औपचारिक बैठक के बाद घर जाते समय आज इतने दिनों के बाद ग्रीष्मा का मन थोड़ा हलका महसूस कर रहा था वरना वही बातें… सुनसुन कर उस की तो जीने की इच्छा ही समाप्त होने लगी थी. नए सर अपने नाम के अनुकूल शांत और सौम्य हैं. सोचतेसोचते वह कब घर पहुंच गई उसे पता ही न चला. रवींद्र की अचानक हुई मौत के बाद अब जिंदगी धीरेधीरे अपने ढर्रे पर आने लगी थी. रवींद्र के साथ उस का 10 साल का वैवाहिक जीवन किसी सजा से कम न था. अपने मातापिता की इकलौती नाजों से पलीबढ़ी ग्रीष्मा का जब रवींद्र से विवाह हुआ तो सभी लड़कियों की भांति वह भी बहुत खुश थी. परंतु शीघ्र ही रवींद्र का शराबी और बिगड़ैल स्वभाव उस के सामने उजागर हो गया.

रवींद्र का कपड़ों का पुश्तैनी व्यवसाय था. मातापिता की इकलौती बिगड़ैल संतान थी. शराब ही उस की जिंदगी थी. उस के बिना एक दिन भी नहीं रह पाता था. ग्रीष्मा ने शुरू में बहुत कोशिश की कि रवींद्र की शराब की लत छूट जाए पर बरसों की पड़ी लत उस की जरूरत नहीं जिंदगी बन चुकी थी. अपने तरीके से जीना उस की आदत थी. दुकान बंद कर के देर रात तक यारदोस्तों के साथ मस्ती कर के शराब के नशे में धुत्त हो कर घर लौटना और बिस्तर पर ग्रीष्मा के शरीर के साथ अठखेलियां करना उस का प्रिय शौक था. यदि कभी ग्रीष्मा नानुकुर करती तो मार खानी पड़ती थी.

ऐसे ही 1 माह पूर्व शराब के नशे में एक रात घर लौटते समय रवींद्र की बाइक एक कार से टकरा गई और वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठा. उस की मृत्यु से ग्रीष्मा सहित उस के सासससुर पर जैसे गाज गिर गई. इकलौते बेटे की मृत्यु से उन का खानापीना सब छूट गया. नातेरिश्तेदार अपना शोक जता कर 13 दिनों के बाद 1-1 कर के चले गए. रवींद्र के जाने के बाद ग्रीष्मा ने अपने बिखरे परिवार को संभालने में पूरी ताकत लगा दी. मातापिता के लिए इकलौते बेटे का गम भुलाना आसान नहीं होता. संतान जिस दिन जन्म लेती है मातापिता उसी दिन से उस के साथ रोना, हंसना और जीना सीख लेते हैं और उस के साथ भविष्य के सुनहरे सपने बुनने लगते हैं पर जब जीवन के एक सुखद मोड़ पर अचानक वही संतान साथ छोड़ देती है तो मातापिता तो जीतेजी ही मर जाते हैं.

कहने के लिए तो रवींद्र उस का पति था, परंतु रवींद्र के दुर्व्यवहार के कारण उस के प्रति प्रेम जैसी भावना कभी जन्म ही नहीं ले पाई. रवींद्र से अधिक तो उसे अपने सासससुर से प्यार था. उन्होंने उसे सदैव बहू नहीं, बल्कि एक बेटी सा प्यार दिया. अपने बेटे रवींद्र के आचरण का वे भले ही प्रत्यक्ष विरोध न कर पाते थे, परंतु जानते सब थे और इसीलिए सदैव मन ही मन अपराधबोध से ग्रस्त हो कर अपने प्यार से उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. इसलिए रवींद्र के जाने के बाद अब वे उस की ही जिम्मेदारी थे. बड़ी मुश्किल से पोते कुणाल का वास्ता देदे कर उस ने उन्हें फिर से जीना सिखाया.

रवींद्र की मृत्यु के बाद आज पहली बार वह स्कूल गई थी. सासससुर ने ही उस से कहा, ‘‘बेटा, घर में रहने से काम नहीं चलेगा… जाने वाला तो चला गया अब तू ही हमारा बेटा, बेटी, और बहू है. तू अपनी नौकरी जौइन कर ले. दुकान तो हम दोनों संभाल लेंगे.’’ ग्रीष्मा विवाह से पहले एक स्कूल में पढ़ा रही थी और पति ने उसे रोका नहीं था. किचन का काम समाप्त कर के वह जब बिस्तर पर लेटी तो बारबार मन सुबह की मीटिंग में हुई प्रिंसिपल सर की बातों पर चला गया. न जाने क्या था उन के व्यक्तित्व में कि ग्रीष्मा का मन उन के बारे में सोच कर ही प्रफुल्लित हो उठता.

एक दिन स्कूल से घर के लिए निकली ही थी कि झमाझम बारिश शुरू हो गई. स्कूटी खराब होने के कारण वह उस दिन रिकशे से ही आई थी. बारिश रुकने के इंतजार में वह एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई. तभी विनय सर की गाड़ी उस के पास आ कर रुकी, ‘‘मैडम, आइए मैं आप को घर छोड़ देता हूं,’’ कह कर उन्होंने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोल दिया.

‘‘नहींनहीं सर मैं चली जाऊंगी. आप परेशान न हों,’’ कह कर ग्रीष्मा ने उन्हें टालने की कोशिश की.

मगर वे फिर बोले, ‘‘मान भी जाइए मैडम, बारिश बहुत तेज है. आप भीग कर बीमार हो जाएंगी और फिर कल लीव की ऐप्लिकेशन भेज देंगी.’’ ग्रीष्मा चुपचाप गाड़ी में बैठ गई.

गाड़ी में पसरे मौन को तोड़ते हुए विनय सर ने कहा, ‘‘मैडम, आप कहां रहती हैं? कौनकौन हैं आप के घर में?’’

‘‘सर यहीं अरेरा कालोनी में अपने सासससुर और एक 10 वर्षीय बेटे के साथ रहती हूं.’’ ‘‘आप के पति?’’

‘‘सर अभी 1 माह पूर्व ही उन का देहांत हो गया,’’ ग्रीष्मा ने दबे स्वर में कहा. यह सुन विनय सर लगभग हड़बड़ाते हुए बोले, ‘‘ओह सौरी… आई एम वैरी सौरी.’’

‘‘अरे नहींनहीं सर इस में सौरी की क्या बात है… आप को तो पता नहीं था न, तो पूछना जायज ही है. सर… आप के परिवार में… कहतेकहते ग्रीष्मा रुक गई.’’ ‘‘मैडम मैं तो अकेला फक्कड़ इंसान हूं. विवाह हुआ नहीं और मातापिता एक दुर्घटना में गुजर गए. बस अब मैं और मेरी तन्हाई,’’ कह कर विनय सर एकदम शांत हो गए.

‘‘जी सर…बसबस सर यहीं उतार दीजिए. वह सामने मेरा घर है,’’ सामने दिख रहे घर की ओर इशारा करते हुए ग्रीष्मा ने कहा.

आगे पढ़ें- एक दिन जैसे ही ग्रीष्मा स्कूल पहुंची, चपरासी…

Serial Story: कोई अपना – भाग 2

चंद क्षणों के बाद उस युवक ने पूछा, ‘‘सुनीलजी कितने बजे तक आ जाते हैं?’’ ‘‘कोई निश्चित समय नहीं है. वैसे अच्छा होगा, आप उन से कार्यालय में ही मिलें. ऐसा है कि वे घर पर किसी से मिलना पसंद नहीं करते.’’

‘‘जी, औफिस में उन के पास समय ही कहां होता है.’’ ‘‘इस विषय में मैं आप की कोई भी मदद नहीं कर सकती. बेहतर होगा, आप उन से वहीं मिलें,’’ ढकेछिपे शब्दों में ही सही, मैं ने उन्हें फिर वह कहानी दोहराने से रोक दिया जिस की टीस अकसर मेरे मन में उठती रहती थी.

वे दोनों अपना सा मुंह ले कर चले गए. उन के इस तरह उदास हो कर जाने पर मुझे दुख हुआ, परंतु क्या करती? शाम को पति को सब सुनाया तो वे हंस पड़े, ‘‘ऐसा कहने की क्या जरूरत थी, उन की नईनई शादी हुई है. प्रेमविवाह किया है. दोनों के घर वालों ने कुछ नहीं दिया. सो, कर्ज ले कर कोई काम शुरू करना चाहता है. घर चला आया तो हमारा क्या ले गया. तुम प्यार से बात कर लेतीं, तो कौन सा नुकसान हो जाता?’’

‘‘लेकिन काम हो जाने के बाद तो ये मजे से अपना पल्ला झटक लेंगे.’’ ‘‘झटक लें, हमारा क्या ले जाएंगे. देखो शालिनी, हम समाज से कट कर तो नहीं रह सकते. मैं बैंक अधिकारी हूं, मुझ से तो वही लोग मिलेंगे, जिन्हें मुझ से काम होगा. अब क्या हम किसी के साथ हंसेंबोलें भी नहीं? कोई आता है या बुलाता है तो इस में कोई खराबी नहीं है. बस, एक सीमारेखा खींचनी चाहिए कि इस के पार नहीं जाना. भावनात्मक नाता बनाने की कोई जरूरत नहीं है. यों मिलो, जैसे हजारों जानने वाले मिलते हैं. इतनी मीठी भी न बनो कि कोई चट कर जाए और इतनी कड़वी भी नहीं कि कोई थूक दे.’’

मेरे पति ने व्यावहारिकता का पाठ पढ़ा दिया, जो मेरी समझ में तो आ गया, मगर भावुकता से भरा मन उसे सहज स्वीकार कर पाया अथवा नहीं, समझ नहीं पाई.

एक शाम एक दंपती हमारे यहां आए. बातचीत के दौरान पत्नी ने कहा, ‘‘अब आप कार क्यों नहीं ले लेते.’’ ‘‘कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई. जब लगेगा कार होनी चाहिए तब ले लेंगे,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘फिर भी भाभीजी, भाईसाहब बैंक में उच्चाधिकारी हैं, स्कूटर पर आनाजाना अच्छा नहीं लगता.’’ ‘‘क्यों, हमें तो बुरा नहीं लगता. कृपया आप विषय बदल लीजिए. हमारी जिंदगी में दखल न ही दें तो अच्छा है.’’

बच्चे बाहर पढ़ रहे थे, जिस वजह से कमरतोड़ खर्चा बड़ी मुश्किल से हम सह रहे थे. ईमानदार इंसान इन सारे खर्चों के बीच भला कहां कार और अन्य सुविधाओं के विषय में सोच सकता है. उस पर तुर्रा यह कि कोई आ कर यह जता जाए कि अब हमें स्कूटर शोभा नहीं देता, तो भला कैसे सुहा सकता है. एक बार तो कमाल ही हो गया. हमें किसी के जन्मदिन की पार्टी में जाना पड़ा. मेजबान ने मुझे घर की मालकिन से मिलाया, ‘‘आप सुनीलजी की पत्नी हैं और ये हैं मेरी पत्नी सुलेखा.’’ कीमती जेवरों से लदी आधुनिका मुझे देख ज्यादा प्रसन्न नहीं हुईं. फीकी सी मुसकान से मेरा स्वागत कर अन्य मेहमानों में व्यस्त हो गईं. पति को तो 2-3 लोगों ने बैंक की बातों में उलझा लिया, लेकिन मैं अकेली रह गई. चुपचाप एक तरफ बैठी रही. अचानक हाथ में गिलास थामे एक आदमी ने कहा, ‘‘आप सुनीलजी की पत्नी हैं?’’

‘‘जी हां,’’ मैं ने उत्तर दिया. ‘‘भाभीजी, आप से एक बात करनी थी…जरा सुनीलजी को समझाइए न, पूरे 50 हजार रुपए देने को तैयार हूं. आप कहिए न, मेरा काम हो जाएगा. अरे, ईमानदारी से रोटी ही चलती है, बस? आखिर वे कितना कमा लेते होंगे, यही 14-15 हजार…कितनी बार कहा है, हम से हाथ मिला लें…’’

मैं उस धूर्त व्यापारी को जवाब दिए बगैर ही वहां से उठ खड़ी हुई थी. मेरे पति पूरी बात सुन कर हैरान रह गए. मैं ने तनिक गुस्से से कहा, ‘‘आज के बाद ऐसी पार्टियों में मत ले जाना. मेरा वहां दम घुटता है.’’ ‘‘कोई बात नहीं, शालिनी, तुम एक कान से सुनो, दूसरे से निकाल दो. आजकल हर तीसरा इंसान बिकाऊ है. शायद वह सोचता होगा, तुम से बात कर के उस का काम आसान हो जाएगा.’’

मैं रो पड़ी थी. फिर कितने दिन सामान्य नहीं हो पाई थी. इसी बीच फिर खाने का दावतनामा मिला तो मैं ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘उन लोगों ने हम दोनों को खासतौर पर बुलाया है. छोटा सा काम शुरू किया है, उसी खुशी में.’’ ‘‘मुझे किसी के काम से क्या लेनादेना है, आप ही चले जाइए.’’

‘‘ऐसा नहीं सोचते, शालिनी, वे हमारा इतना मान करते हैं, सभी एकजैसे नहीं होते.’’

पति ने बहुत जिद की थी, मगर मैं टस से मस न हुई. वे अकेले ही चले गए. जब पति 2 घंटे बाद लौटे तो कोई साथ था.

‘‘नमस्ते, भाभीजी,’’ एक नारी स्वर कानों में पड़ा, सामने एक युवा जोड़ा खड़ा था. ऐसा लगा, इस से पहले कहीं इन से मिल चुकी हूं. ‘‘आप हमारे घर नहीं आईं, इसलिए सोचा, हम ही आप से मिल आएं,’’ महिला ने कहा.

‘‘बैठिए,’’ मैं ने सोफे की तरफ इशारा किया. उस के हाथ में रंगदार कागज में कुछ लिपटा था, जिसे बढ़ कर मेरे हाथ में देने लगी. मुझे लगा, बिच्छू है उस में, जो मुझे डस ही जाएगा. मैं ने जरा तीखी आवाज में कहा, ‘‘नहींनहीं, यह सब हमारे यहां…’’

‘‘यह मेरे बुटीक की पहली पोशाक है. हमारे मांबाप ने तो हमें दुत्कार ही दिया था. लेकिन सुनील भाईसाहब की कृपा से हमें कर्ज मिला और छोटा सा काम खोला. हमें आप लोगों का बहुत सहारा है, आप ही अब हमारे मांबाप हैं. कृपया मेरी यह भेंट स्वीकार करें,’’ कहतेकहते वह रो पड़ी. मैं भौचक्की सी रह गई कि पत्थरों के इस शहर में कोई रो भी रहा है. वह कड़वाहट जिसे मैं पिछले कई सालों से ढो रही थी, क्षणभर में ही न जाने कहां लुप्त हो गई.

‘‘भाभीजी, आप इसे स्वीकार कर लें, वरना इस का दिल टूट जाएगा,’’ इस बार उस के पति ने बात संभाली. मैं ने उस के हाथ से पैकेट ले कर खोला, उस में गुलाबी रंग की कढ़ाई की हुई सफेद साड़ी थी.

‘‘आप घर नहीं आईं, इसलिए हम स्वयं ही देने चले आए. आप इसे पहनेंगी न?’’ ‘‘हांहां, जरूर पहनूंगी, मगर इस की कीमत कितनी है?’’

‘‘वह तो हम ने लगाई ही नहीं, आप पहन लेंगी तो कीमत अपनेआप मिल जाएगी.’’ ‘‘नहींनहीं, भला ऐसा कैसे होगा,’’ फिर मेरा स्वर कड़वा होने लगा था. मैं कुछ और भी कहती, इस से पहले मेरे पति ने ही वह साड़ी ले कर मेज पर रख दी, ‘‘हमें यह साड़ी पसंद है, शालिनी इसे अवश्य पहनेगी. और गुलाबी रंग तो इसे बहुत प्रिय है.’’

आगे पढ़ें- मैं निरुत्तर हो गई. परंतु मन में दबा…

Valentine’s Day: नया सवेरा- भाग 2

पिछला भाग- Valentine’s Day: नया सवेरा (भाग-1)

छोटी मां को कभी मैं ने पापा की कमाई पर ऐशोआराम करते नहीं देखा. वे तो घर से बाहर भी नहीं जाती थीं. चुपचाप अपने कमरे में रहतीं. धीरेधीरे मेरी उन के प्रति नफरत कम होती गई, लेकिन अभी भी मैं उन को मां मानने को तैयार नहीं थी. कभीकभी दिल जरूर करता कि मैं उन से पूछूं कि क्यों उन्होंने मेरे उम्रदराज पापा से शादी की जबकि उन्हें तो कोई भी मिल सकता था. आखिर इतनी खूबसूरत थीं और इतनी जवान. लेकिन हमारे बीच बहुत दूरी बन गई थी जिसे न मैं ने कभी दूर करना चाहा, न उन्होंने. ऐसा लगता था मानो घर के अलगअलग 2 कमरों में 2 जिंदा लाशें हों.

घड़ी की घंटी ने सुबह के 3 बजाए. मैं कमरे से बाहर गई और फ्रिज से पानी निकाल कर पिया. तभी मेरी नजर छोटी मां पर पड़ी जो बाहर बालकनी में बैठी थीं और बाहर की तरफ एकटक देख कर कुछ सोच रही थीं.

मु झे अनायास ही हंसी आ गई. मु झे दया आ रही थी इस बंगले पर जहां की महंगी दीवारों और महंगे कालीनों ने महंगे आंसुओं का मोल नहीं सम झा. मैं अपने कमरे में रो रही थी और छोटी मां इसी अवस्था में सुबह के 3 बजे बालकनी में बैठी हैं. खैर, मैं अपने कमरे में जाने के लिए जैसे ही मुड़ी, आज मेरे दिल ने मु झे रोक लिया.

दिमाग ने फिर उसे जकड़ा, कहा कि तु झे क्या मतलब है. यहां सब अपनी जिंदगियां जी रहे हैं. तू भी जी. क्या तु झे तेरी छोटी मां ने कभी कुछ कहा? जब तू उदास थी तब कभी तु झ से उदासी का कारण पूछा? जब कभी तू परेशान थी, कभी तेरे पास आ कर बैठीं वो? यह तो छोड़, कभी तु झ से कुछ बात भी करने की कोशिश की इन्होंने? तेरी जिंदगी में कभी कोई दिलचस्पी दिखाई इन्होंने? नहीं न, फिर तू किस बात की सहानुभूति दिखाना चाहती है? तो सब जैसा सब चल रहा है सदियों से इस घर में, वैसा ही चलने दे. अब और कुछ नए रिश्ते न बना. लेकिन पता नहीं क्या हुआ, आज तो मेरा मन मेरे दिमाग से हारने वाला नहीं था.

कदम वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ ही नहीं रहे थे. मैं ने एक नजर फिर छोटी मां पर डाली. उन के गालों से आंसुओं का सैलाब बह रहा था. न जाने मु झे उस वक्त क्या हुआ, मेरे कदम उन की तरफ बढ़ने लगे. मैं उन के पास जा कर खड़ी हो गई.

मैं ने उन से पूछा, ‘‘आप ठीक तो हैं न? इस वक्त अकेले में यहां?’’ छोटी मां ने आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘मैं तो अकसर यहां बैठ कर खुद से बात कर लेती हूं

प्रीति, और अकेले रहना तो इस घर की नियति ही है. तुम भी तो अकेली ही रहती हो. हां, आज बात कुछ और है. प्रीति, कल रात 11 बजे मेरे पिता चल बसे.’’ यह कह कर छोटी मां चुप हो गईं. मु झे सम झ में नहीं आ रहा था मैं क्या कहूं. मैं ने पहली बार ठीक से उन से बात की थी. मैं तो शायद दूसरों से बात करना, उन्हें सांत्वना देना भी भूल गई थी.

मैं कुछ देर चुप रही. फिर छोटी मां ने खुद कहा, ‘‘मेरे पापा बहुत शराब पीते थे. हम 3 बहनें ही थीं. उन्हें बेटा नहीं था. वे कुछ कमाते भी नहीं थे. हमारी मां थोड़ाबहुत जो कमातीं उसी से गुजर चलता था. मां ने उस हालत में भी मेरी बड़ी 2 बहनों को तो पढ़ाया. परंतु जब मेरा स्कूल में दाखिले का समय आया तो वे किसी अनजान बीमारी से ग्रसित हो गईं. हालांकि, मैं 6 वर्ष की थी, मां मु झे बस थोड़ीथोड़ी याद हैं. हां, एक बार पापा ने मां को बहुत मारा था. मैं उस वक्त बहुत डर गई थी.

‘‘मां की मृत्यु के बाद मेरी बड़ी बहनों ने घर की जिम्मेदारी ले ली. वे खुद भी पढ़तीं और मु झे भी पढ़ातीं. मैं स्कूल नहीं जाती थी. उतना पैसा नहीं था हमारे पास. मेरी बहनें मु झे घर पर ही पढ़ातीं. मैं ने पढ़ाई काफी देर से शुरू की थी, परिणामस्वरूप 20 वर्ष की आयु में मैं ने मैट्रिक की परीक्षा ओपन स्कूल से दी. मैं पास तो हो गई, लेकिन अच्छे अंक नहीं आए. फिर घर का खर्चा भी चलाना मुश्किल होता जा रहा था. दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी. पापा तो पहले की तरह शराब के नशे में ही डूबे रहते.

‘‘कभीकभी सोचती हूं कि यदि दादाजी ने अपना घर नहीं बनाया होता, तब हमारा क्या होता. कम से कम सिर छिपाने की जगह तो थी. खैर, यही सब देखते हुए मैं ने अस्पताल में नौकरी करने की सोची. तनख्वाह बहुत कम थी, परंतु दालरोटी का खर्च निकल ही आता था. अस्पताल में मु झ पर बुरी नजर डालने वाले बहुत थे. कभीकभी खूबसूरती भी औरत की दुश्मन बन जाती है.

‘‘एक दिन तुम्हारे पिता किसी काम से अस्पताल आए. उन्होंने मु झे वहां देखा. मेरे बारे में पूछताछ की. मेरे घर का पता लिया और मेरे पापा से मिले. औरों की तरह उन्हें भी मेरी खूबसूरती भा गई और गरीब की खूबसूरती को खरीदना अमीरों के लिए शायद ही कभी मुश्किल रहा हो. उन्होंने मेरे पिता के सम्मुख शादी का प्रस्ताव रखा.

‘‘मेरे पिता तो जैसे खुशी से फूले नहीं समाए. 20 साल की बेटी को 42 साल के उम्रदराज से ब्याहने में उन्हें जरा सी भी तकलीफ नहीं हुई, बल्कि उन की खुशी की तो कोई सीमा ही नहीं थी. उन्हें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उन की बेटी शहर के जानेमाने रईसजादे के साथ ब्याही जाएगी. पैसों में बहुत बल होता है. बहुत बुरा लगा मु झे. मेरी राय तो कभी ली ही नहीं गई. पापा किस अधिकार से मेरी जिंदगी का निर्णय कर सकते थे? कभी बाप होने का कोई फर्ज निभाया था उन्होंने? मैं बहुत रोई, चिल्लाई लेकिन मेरी कौन सुनने वाला था. मैं ने अपनी बहनों को यह बात कही, परंतु वे भी अपनी घरगृहस्थी के  झमेलों में इस तरह लिप्त थीं कि ज्यादा कुछ कर न सकीं. वे खुद भी इस स्थिति में नहीं थीं कि मेरी कोई सहायता कर सकें.

‘‘परंतु मेरा मन नहीं माना. मैं ने सोच लिया कि कुछ भी हो जाए, मैं यह शादी नहीं करूंगी. लेकिन, तभी मेरी बड़ी बहन के साथ एक दुर्घटना हो गई. वे बस से कहीं जा रही थीं और वह बस खाई में गिर गई. वे बच तो गईं लेकिन इलाज में बहुत पैसा लगता. तब मैं ने ठंडे मन से सोचा. बहन को बचाना जरूरी था. आखिर उन्होंने मां की तरह पाला था मु झे. पैसों की ताकत को मैं ने उस वक्त पहचाना. मैं ने चुपचाप तुम्हारे पापा से शादी करने का मन बना लिया. मु झे पता चला कि उन की एक 12 वर्ष की बेटी भी है परंतु फिर भी मैं ने सिर्फ अपनी बड़ी बहन को बचाने की खातिर यह सब किया.

आगे पढ़ें  तुम्हारे पिता ने हमारी आर्थिक रूप से बहुत मदद की…

Serial Story: कोई अपना – भाग 1

स्थानांतरण के बाद जब हम नई जगह आए तो पिछली भूलीभटकी कई बातें अकसर याद आतीं. कुछ दिन तो नए घर में व्यवस्थित होने में ही लग गए और कुछ दिन पड़ोसियों से जानपहचान करने में. धीरेधीरे कई नए चेहरे सामने चले आए, जिन से हमें एक नया संबंध स्थापित करना था. मेरे पति बैंक में प्रबंधक हैं, जिस वजह से उन का पाला अधिकतर व्यापारियों से ही पड़ता. अभी महीना भर ही हुआ था कि एक शाम हमारे

घर में एक युवा दंपती आए और इतने स्नेह से मिले, मानो बहुत पुरानी जानपहचान हो. ‘‘नई जगह पर दिल लग गया न, भाभीजी? हम ने तो कई बार सुनीलजी से कहा कि आप को ले कर हमारे घर आएं. आप आइए न कभी, हमारे साथ भी थोड़ा सा समय गुजारिए.’’ युवती की आवाज में बेहद मिठास थी, जो कि मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही थी. इतने प्यार से ‘भाभीभाभी’ की रट तो कभी मेरे देवर ने भी नहीं लगाई थी.

मेरे पति अभी बैंक से आए नहीं थे, सो मुझे ही औपचारिकता निभानी पड़ रही थी. नई जगह थी, सो, सतर्कता भी आवश्यक थी. शायद? उन्होंने मेरे चेहरे की असमंजसता पढ़ ली थी. युवक बोला, ‘‘मुझे सुनीलजी से कुछ विचारविमर्श करना था. बैंक में तो समय नहीं होता न उन के पास, इसलिए सोचा, घर पर ही क्यों न मिल लें. इसी बहाने आप के दर्शन भी हो जाएंगे.’’

‘‘ओह,’’ उन का आशय समझते ही मेरे चेहरे पर अनायास ही एक बनावटी मुसकान चली आई. शीतल पेय लेने जब मैं भीतर जाने लगी तो वह युवती भी साथ ही चली आई, ‘‘मैं आप की मदद करूं?’’

मेरे चेहरे पर खीझ उभर आई कि अपना काम हो तो लोग किस सीमा तक झुक जाते हैं.

लगभग 4 साल पहले जब नएनए लुधियाना गए थे, तब भी ऐसा ही हुआ था. मधु कैसे घुसी चली आई थी हमारी जिंदगी में. दोनों पतिपत्नी कितने प्यार से मिले थे. मधु के पति केशव ने कहा था, ‘भाभीजी, आप आइए न हमारे घर. मधु आप से मिल कर बहुत खुश होगी.’ ‘जी, जरूर आएंगे,’ मैं कितनी खुश हुई थी, कोई अपना सा लगने वाला जो मिला था. परिवार सहित पहले वे लोग हमारे घर आए और उस के बाद हम उन के घर गए. मधु मुझ से जल्दी ही घुलमिल गई थी जैसे पुरानी दोस्ती हो.

‘ये साहब आप को कैसे जानते हैं?’ मैं ने पति से पूछा. ‘हमारे बैंक की ही एक पार्टी है. अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए बेचारा दौड़धूप कर रहा है. बड़ी फैक्टरी खोलने का विचार है,’ पति ने लापरवाही से टाल दिया था, मानो उन्हें मेरा प्रश्न बेतुका सा लगा हो.

एक दिन मधु ऊन लाई और जिद करने लगी कि मैं उस के बेटे का स्वेटर बुन दूं. काफी मेहनत के बाद मैं ने रंगबिरंगा स्वेटर बुना था. उसे देख कर मधु बहुत खुश हुई थी, ‘भाभी, बहुत सफाई है आप के हाथ में. अब एक स्वेटर अपने देवर का भी बुन देना. ये कह रहे थे, इतना अच्छा स्वेटर तो उन्होंने आज तक नहीं देखा.’

‘मुझे समय नहीं मिलेगा,’ मैं ने टालना चाहा तो वह झट बोल पड़ी, ‘अपना भाई कहेगा तो क्या उसे भी इसी तरह इनकार कर देंगी?’ मधु के स्वर का अपनापन मुझे भीतर तक पुलकित कर गया था.

वह आगे बोली, ‘माना कि हम में खून का रिश्ता नहीं है, फिर भी आप को अपनों से कम तो नहीं जाना. मुझे ऊन से एलर्जी है, तभी तो आप से कह रही हूं.’ आखिर मुझे उस की बात माननी पड़ी. लेकिन मेरे पति ने मुझे डांट दिया था, ‘यह क्या समाजसेवा का काम शुरू कर दिया है? उसे ऊन से एलर्जी है तो पैसे दे कर कहीं से भी बनवा लें. तुम अपनी जान क्यों जला रही हो?’

‘वे लोग हम से कितना प्यार करते हैं, और कुछ बना दिया तो क्या हुआ.’ मेरे पति खीझ कर चुप रह गए थे.

हमारा आनाजाना लगा रहता और हर बार वे लोग ढेर सारा प्यार जताते. धीरेधीरे उन का आना कम होने लगा. 2 महीनों की छुट्टियों में हम अपने घर गए थे. जब वापस आए, तब भी वे हम से मिलने नहीं आए.

एक दिन मैं ने पति से कहा, ‘मधु नहीं आई हम से मिलने, वे लोग कहीं बाहर गए हुए हैं?’ ‘पता नहीं,’ पति ने लापरवाही से उत्तर दिया.

‘क्या, केशव भाईसाहब आप से नहीं मिले?’ ‘कल उस का भाई बैंक में आया था.’

‘तो आप ने उन का हालचाल नहीं पूछा क्या?’ ‘नहीं. इतना समय नहीं होता, जो हर आनेजाने वाले के परिवार का हालचाल पूछता रहूं.’

‘कैसी रूखी बातें कर रहे हैं.’ किसी तरह पति मुझे टाल कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए और मैं यही सोचने लगी कि आखिर मधु आई क्यों नहीं?

15-20 दिनों बाद बच्चों के स्कूल में ‘पेरैंट्स मीटिंग’ थी. मधु का घर रास्ते में ही पड़ता था. अत: सो, वापसी पर मैं उस के घर चली गई. ‘ओह, आप,’ मधु का स्वर ठंडा सा था, मानो उसे मुझ से मिलना अच्छा न लगा हो. जब भीतर आई तो उस की सखियों से मुलाकात हुई. उस ने उन से मेरा परिचय कराया, ‘इन से मिलो, ये हैं मेरी रेखा और निशी भाभी, और आप हैं शालिनी भाभी.’

थोड़ी देर बाद 15-20 वर्ष का लड़का मेरे सामने शीतल पेय रख गया. सोफे पर 4-5 सूट बिछाए, वह अपनी सखियों में ही व्यस्त रही. वे तीनों महंगे सूटों और गहनों के बारे में ही बातचीत करती रहीं. मैं एक तरफ अवांछित सी बैठी, चुपचाप अपनी अवहेलना और उन की गपशप सुनती व महसूस करती रही. शीतल पेय के घूंट गले में अटक रहे थे. कितने स्नेह से मैं उस से मिलने गई थी बेगाना सा व्यवहार, आखिर क्यों?

‘अच्छा, मैं चलूं,’ मैं उठ खड़ी हुई तो वहीं बैठेबैठे उस ने हाथ हिला दिया, ‘माफ करना शालिनी भाभी, मैं नीचे तक नहीं आ पाऊंगी.’ ‘कोई बात नहीं,’ कहती हुई मैं चली आई थी.

मैं मधु के व्यवहार पर हैरान रह गई थी कि कहां इतना अपनापन और कहां इतनी दूरी.

दिनभर बेहद उदास रही. रात को पति से बात की तो उन्होंने बताया, ‘उन्हें बैंक से 2 करोड़ रुपए का कर्ज मिल गया है. नई फैक्टरी का काम जोरों से चल रहा है. भई, मैं तो पहले ही जानता था, उन्हें अपना काम कराना था, इसलिए चापलूसी करते आगेपीछे घूम रहे थे. लेकिन तुम तो उन से भावनात्मक रिश्ता बांध बैठीं.’ ‘लेकिन,’ अनायास मैं रो पड़ी, क्योंकि छली जो गई थी, किसी ने मेरे स्नेह को छला था.

‘कई लोग अधिकारी के घर तक में घुस जाते हैं, जबकि काम तो अपनी गति से अपने समय पर ही होता है. कुछ लोग सोचते हैं, अधिकारी से अच्छे संबंध हों तो काम जल्दी होता है और केशव उन्हीं लोगों में से एक है,’ पति ने निष्कर्ष निकाला था. उस के बाद वे लोग हम से कभी नहीं मिले. मधु का वह दोगला व्यवहार मन में कांटे की तरह चुभता है. कोई ज्यादा झुक कर ‘भाभीजी, भाभीजी’ कहता है तो स्वार्थ की बू आने लगती है.

इसी कारण मैं ने उस युवती को टाल दिया. फिर शीतल पेय उन के सामने रख, पंखा तेज कर दिया क्योंकि गरमी बहुत ज्यादा थी. वे दोनों बारबार पसीना पोंछ रहे थे.

आगे पढ़ें- चंद क्षणों के बाद उस युवक ने पूछा…

Valentine’s Day: नया सवेरा- भाग 1

आज रोहित ने मु झ से वह कह दिया जिसे शायद मैं शायद सुनना भी चाहती थी और शायद नहीं भी. दिल तो कह रहा था कि उसी क्षण उस के साथ हो ले, पर हमेशा की तरह दिमाग ने उसे फिर जकड़ लिया, और हमेशा की तरह दिल हार गया. हालांकि वह उदास हो गया पर उदास होना तो इस दिल की नियति ही थी. जब भी मेरे दिल ने उन्मुक्त आसमान में स्वच्छंद उड़ान भरना चाही, जब भी मेरे दिल ने गुब्बारे की तरह हलका हो कर बिना कुछ सोचे, बिना कुछ सम झे हवा के वेग के साथ अपने को खुले आसमान में छोड़ना चाहा या जब भी मेरे दिल ने रोहित की बांहों में छिप कर जीभर कर रो लेना चाहा, हर बार इस दिमाग ने मेरे मन की भावनाओं को इतना जकड़ लिया कि मन बेचारा मन मार कर ही रह गया. मैं आखिर ऐसी क्यों हूं? मात्र 23 वर्ष की तो हुई हूं. मेरी उम्र की लड़कियां जिंदगी को कितना खुल कर जीती हैं, उठती लहरों की तरह लापरवाह, सुबह की पहली किरण की तरह उम्मीदों से भरी, पलपल को खुल कर जीती हैं. आखिर यह सब मेरी नियति में क्यों नहीं? परंतु मैं नियति को दोष क्यों दूं?

आखिर किस ने मु झे रोका है? आखिर किस को मेरी चिंता है? पापा, जिन से एक छत के नीचे रहते हुए भी शायद ही कभी मुलाकात होती है, या छोटी मां जिन्होंने न ही मु झे कभी रोका है, न ही कभी किसी बात के लिए टोका है. हम तीनों कहने को तो एक ही घर में रहते थे पर परिवार जैसा कुछ नहीं हमारे बीच, बिलकुल पटरियों की तरह जो एकसाथ रह कर भी कभी नहीं मिलतीं.

अपने कमरे में बैठी मैं आज जब अपने मन के डर को कुरेदना चाहती थी, उस से जीतना चाहती थी, तब अनायास ही मेरी नजर मां की तसवीर पर पड़ी. कितना प्यार करती थीं मु झ से, मेरी पसंद का भोजन बनाने से ले कर मु झे पार्क में ले कर जाना, मेरे साथ खेलना, मु झे पढ़ाना, मानो उन की दुनिया मु झ से शुरू हो कर मु झ पर ही खत्म होती थी. पापा तो हो कर भी कभी नहीं होते थे. मैं ने कई बार मां को पापा के इंतजार में आंसू बहाते देखा. कई बार मैं उन से कहती, ‘मां, आप पापा के लिए क्यों रोती हैं? क्यों हमेशा मेरे जन्मदिन का केक काटने से पहले उन से बारबार घर आने की गुहार लगाती हैं, जबकि पापा कभी नहीं आते और कभी घर आते भी हैं तो अपने कमरे बंद रहते हैं. मां, आप पापा को छोड़ क्यों नहीं देतीं?’

मेरे ऐसा कहने पर मां मु झे प्यार से सम झातीं, ‘बेटी, मैं ने तुम्हारे पिता को अपना सबकुछ माना है. उन की महत्त्वाकांक्षाओं ने उन के रिश्तों की जगह ले ली है. मु झे उस दिन का इंतजार करना है जब उन का यह भ्रम टूटे कि वे अपने पैसों से सबकुछ खरीद सकते हैं. यदि हम लोग उन्हें छोड़ कर चले जाएंगे तो कल जब उन का यह भ्रम टूटेगा, वे अकेले पड़ जाएंगे. तब उन के साथ कौन होगा? और यह मैं नहीं देख सकती. मु झे अपने प्यार और समर्पण पर पूर्ण विश्वास है, वह दिन जरूर आएगा.’

11 वर्ष की आयु में मां की ये दलीलें मु झे बिलकुल सम झ में नहीं आतीं. आज याद करती हूं तो लगता है, इतना प्यार और इतना समर्पण, इतना निश्छल प्रेम और उस प्रेम को पाने के लिए इतना धैर्य, कैसे कर पातीं थीं मां ये सब? और आखिर क्यों करती थीं? क्यों उन्होंने उस इंसान के साथ अपनी जिंदगी खराब कर ली जिस की नजरों में मां की कोई इज्जत नहीं थी. जिस की नजरों में मां के लिए कोई प्यार नहीं था और न ही प्यार था अपनी बेटी के लिए.

वह इंसान तो केवल पैसों की मशीन बन कर रह गया था जिस के भीतर भावनाओं ने शायद पनपना भी बंद कर दिया था. और एक दिन अचानक कार ऐक्सिडैंट में मु झ से वह ममता की निर्मल छाया भी छिन गई. मात्र 12 वर्ष की थी मैं, खूब रोई, चिल्लाई पर मेरी पीड़ा सुनने वाला कौन था. जितनी मु झे पीड़ा थी उतना क्रोध भी था. क्रोध उस पिता पर जिन्होंने मेरी मां को आखिरी बार भी देखना उचित नहीं सम झा. विदेश गए थे वे, जब यह दुर्घटना घटी. मैं ने पापा से रोरो कर जल्दी से जल्दी आने की अपील की परंतु वे मु झे टालते रहे और अंत में नानाजी ने मां की अंत्येष्टि की. याद है मु झे कितना बिलखबिलख कर रोए थे नानाजी.

बारबार अपनी बेटी के मृत शरीर को देख कर माफी मांगते ही रहे कि कैसे उन्होंने अपनी फूल सी कोमल बेटी की शादी इस इंसान के साथ कर दी. उस के बाद नानाजी मु झे अपने साथ ले गए. परंतु कुछ ही वक्त बाद पश्चात्ताप में वे भी इस कदर जले कि यह प्यारभरा साया भी मु झ से छिन गया. तब कहीं जा कर पापा आए और मु झे अपने साथ घर ले गए. मैं अपने पापा से लिपट कर खूब रोई थी. तब पहली बार पापा ने मु झ से कहा था, ‘मां चली गईं तो क्या हुआ? तुम्हारे पापा हैं तुम्हारे पास. सब ठीक हो जाएगा, बेटा. हम जल्दी ही बंगले में शिफ्ट हो रहे हैं. वहां हमारा अपना बागान होगा. तुम वहां खूब खेलना.’

पापा आज पहली बार मु झ से प्यार से बोले थे. मु झे लगा कि शायद मां की तपस्या रंग ला रही है. शायद सच में पापा बदल गए हैं. शायद मां के जाने के बाद उन्हें अपनी गलती महसूस हुई. लेकिन, कुछ ही वक्त के बाद मैं यह सम झ गई कि ऐसा कुछ नहीं था.

पापा जैसे थे वैसे ही हैं. उन्होंने मु झे आश्रय जरूर दिया परंतु कभी मु झे स्नेह नहीं दिया. हमेशा की तरह फिर उन के पास समय नहीं था. धीरेधीरे अकेले रहने की मेरी आदत ही पड़ती गई. घर से स्कूल और स्कूल से घर. पापा शायद ही कभी मेरे स्कूल आए होंगे. न कभी अच्छे अंक लाने से मेरी पीठ थपथपाई गई, न ही कभी बुरे अंक लाने पर डांटा. हां, स्कूल में अन्य बच्चों के मातापिता को देखती तो बहुत तकलीफ होती. मां तो नहीं थीं पर पिता थे मेरे, जो हो कर भी नहीं थे.

कई बार टीचर ने मु झ से कहा, ‘प्रीति, तुम अपने पिता से कहना कि वे पेरैंट्सटीचर मीटिंग में आएं, सभी आते हैं.’ मैं चुप ही रहती. मानो मैं मन से हार चुकी थी. कौन पिता? कैसे पिता? धीरेधीरे ये सब खत्म हो गया. अब कोई मु झ से कुछ नहीं कहता. स्कूल वालों को टाइम पर फीस मिल रही थी और अब मेरे पिता शहर के जानेमाने रईस थे. उन्हें कोई क्या सिखाता. इसी बीच मेरी आया ने मु झे बताया कि पापा फिर शादी करने वाले हैं.

मेरा किशोरमन अपनी मां की जगह किसी और को कैसे दे सकता था. पापा से तो मैं ने कुछ नहीं कहा. परंतु मन ही मन ठान लिया कि वो औरत जो भी हो, पापा की पत्नी तो बन सकती है परंतु मेरी मां नहीं. मैं अपनी मां की जगह किसी और को कभी नहीं दूंगी. पापा ने मां की मृत्यु से 9 महीने बाद ही दूसरी शादी कर ली. वह कौन थी? कैसी थी? न तो मैं जानती थी और न ही जानना चाहती थी. मेरे स्कूल में कई लोग मु झ से पूछते लेकिन मैं चुप रहती. फिर उन्होंने पूछना भी बंद कर दिया. मैं कहीं न कहीं हीनभावना से ग्रस्त रहने लगी. मैं लोगों की भीड़ से बस भाग जाना चाहती थी. अकेलापन ही धीरेधीरे मु झे अपना सा लगने लगा. खैर, पापा ने छोटी मां से मेरा परिचय करवाया. ‘प्रीति, इन से मिलो. इन का नाम आशा है और आज से यही तुम्हारी मां हैं.’ मैं चुप रही. एक नजर भी उठा कर उस आशा को नहीं देखा. मैं अब घर में और कैद रहने लगी. स्कूल से आते ही अपने कमरे में चली जाती. बस, कभीकभार आशा आया से कुछ बात कर लेती. छोटी मां ने कभी मु झ से कुछ बात करने की कोशिश नहीं की. और समय गुजरता गया. पापा अब भी नहीं बदले. कई बार वे छोटी मां पर चिल्लाते. लगता था कि फिर वही सब दोहराया जा रहा है.

आगे पढें  छोटी मां को कभी मैं ने पापा की कमाई पर ऐशोआराम…

Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के- भाग 1

लेखक- जितेंद्र मोहन भटनागर

इसबार जब गरमी की छुट्टियों में तान्या अपनी मम्मी के साथ नानी के घर रुड़की आई तो उन्हीं दिनों उस के बड़े मामामामी भी छुट्टी ले कर आए हुए थे, इसलिए उन के साथ घूमनेफिरने और बातों में ही सारा समय बीत गया.

छुट्यिं खत्म हुईं तो दिल्ली तक तान्या के बड़े मामा निकुंज और मामी शिवाली उन्हें अपनी कार से दिल्ली एअरपोर्ट छोड़ने आए. दिल्ली से मुंबई की फ्लाइट के टाइम से 2 घंटे पहले वे पहुंच गए.

मम्मी के साथ एअरपोर्ट में प्रवेश से पहले तान्या मामी से गले मिलते हुए बोली, ‘‘देखो मामी मेरी हाइट आप के बराबर हो गई है, मुझे मामा जैसी हाइट पकड़नी है.’’

‘‘मामा तो 6 फुट के हैं और मैं उन से केवल 4 इंच छोटी हूं तेरी मम्मी की और मेरी हाइट लगभग बराबर है. तुझे पता है हम जैसी लंबी हाइट की लड़कियों को शादी के लिए लड़के बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. तू 6 फुट की हो जाएगी तो हम सब के लिए लड़का ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा.’’

‘‘मामी एक बात बताओ, नानी को, मम्मी को और आप को भी, मेरी शादी की इतनी फिक्र क्यों रहती है? मैं ने अभी तो एमएससी एविएशन पूरा किया है और अब मैं ऐविशन अफसर बनने का एडवांस कोर्स कर रही हूं. मुझे हर हालत में अपना सपना पूरा करना है और आर्मी जौइन करनी है.’’

‘‘ठीक है तेरी पढ़ाई कौन रोक रहा है तू जितना चाहती है पढ़ ले. पायलट अफसर भी बन जा पर एक समय तो आएगा जब तेरा मन किसी को लाइफपार्टनर बनाना चाहेगा… आर्मी जौइन कर भी लेगी तो शादी तो तेरी हमें करनी ही है… तेरी मामी यह कहना चाह रही है.’’ मामा ने मुसकराते हुए तान्या का समझना चाहा.

अपने पर्स से चैकिंग हेतु, एअर टिकट निकालते हुए तान्या बोली, ‘‘मामा, आप मामी की बात छोड़ो, आप तो मिलिटरी में कैप्टन हो आप बताओ आप क्या चाहते हो? क्या मैं अपना विजन बदल दूं? शादी की सोचने लगूं?’’

‘‘अब तू बड़ी हो गई है… हम सब की एक ही तो लाडली है, इसलिए हम सब हमेशा तेरे अच्छे के लिए ही सोचते हैं,’’ कहते हुए मामा ने तान्या को गले से लगा लिया.

समय हो रहा था. मामामामी को बायबाय करते हुए तान्या ने अपनी मम्मी के साथ एअरपोर्ट के अंदर प्रवेश किया. लगेज चैक इन के बाद अपने बोर्डिंग पास ले कर दोनों वेटिंग लाउंज में डिसप्ले बोर्ड के सामने सीट पर बैठ गए.

बैठते ही तान्या बोली, ‘‘मम्मा, काश हमारे रेलवे प्लेटफौर्म भी इतने नीट ऐंड क्लीन होते?’’

‘‘एक दिन वह भी आ जाएगा बेटी…’’ मां ने बड़ी तसल्ली से कहा.

पता नहीं कब आएगा वह दिन,’’ तान्या मन ही मन बुदबुदाई.

इंडिगो फ्लाइट नंबर 232 ए की उड़ान के लिए गेट नंबर 2 से ऐरोप्लेन में ऐंट्री शुरू हो गई थी.

मां के साथ चलती हुई तान्या ने ऐरोप्लेन के भीतर अपनी निर्धारित सीटों के पास पहुंच कर नंबर देखने के बाद मां को विंडो वाली सीट पर बैठा दिया.

वह जानती थी कि 3 सीटों में से विंडो वाली सीट किसी और को ऐलौट है और मां को

विंडो सीट ही पसंद है, इसलिए उस ने मां को विंडो सीट पर बैठा दिया और खुद बीच वाली सीट पर बैठ गई. उस ने सोच लिया था कि जो भी तीसरी सीट पर आएगा उस से रिक्वैस्ट कर लेगी कि वह किनारे वाली सीट पर बैठ जाए.

तभी स्मार्ट, 6 फुट हाइट के बेहद आकर्षक तथा हैंडसम लड़के ने किनारे वाली खाली सीट के पास रुक कर पहले तो ऊपर के कैबिन में अपना हैंडबैग रखा, फिर एक नजर सीट नंबर पर डाली और बारीबारी से तान्या और उस की मम्मी को देखने के बाद अपनी उंगली से तान्या की मम्मी को इंगित करते हुए बुदबुदाया, ‘‘मम्मी ऐंड डौटर.’’

उस की बुदबुदाहट सुन कर तान्या बोल पड़ी, ‘‘यस शी इज माई मौम अनिला, ऐंड माइसैल्फ तान्या.

‘‘तान्या, लैट मी गो टु माई अलौटेड सीट,’’ कहते हुए अनिला उठने को हुई तभी तान्या ने उन्हें बैठे रहने का इशारा कर के उस हैंडसम से कहा, ‘‘आई फील ग्लैड इफ यू कैन एडजस्ट…’’

तान्या की बात पूरी होने से पहले ही वह बोला, ‘‘लैट हर सिट औन दैट सीट तान्या,’’ इतना कह कर वह किनारे वाली सीट पर बैठ गया और बीच वाली सीट पर बैठी तान्या से बोला, ‘‘आई एम डाक्टर नितिन.’’

‘‘ओह नाइस, आर यू बिलौंग्स टु मुंबई.’’

‘‘नहीं मैं दिल्ली का रहने वाला हूं. मुंबई के नानावटी हौस्पिटल में इंटर्नशिप कर रहा हूं, मां संसार में हैं नहीं, डैडी की तबीयत बिगड़ जाने के कारण 1 हफ्ते की छुट्टी ले कर दिल्ली गया था पर तीसरे ही दिन लौटना पड़ा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि यह लास्ट फ्लाइट है. कोविड 19 के प्रकोप के कारण आज रात 12 बजे से सारी ट्रेन्स, फ्लाइट्स, इंटर स्टेट बसेज सब की गतिविधियां बंद हो रही हैं. पूरी कंट्री में आज रात 12 बजे से कंप्लीट लौकडाउन लगा दिया गया है.

‘‘मेरी छुट्टियां भी कोविड-19 की गंभीरता को देखते हुए कैंसिल कर दी गई हैं.’’

तान्या अब तक चुप थी. अचानक पूछ बैठी, ‘‘न्यूज मैं भी सुन रही थी डाक्टर, पर यह वायरस क्या इतना गंभीर है कि कंप्लीट लौकडाउन लगाना और ट्रैवलिंग तथा मूवमैंट रोक देना जरूरी था क्या?’’

‘‘हां बीमारी स्प्रैड न हो, इसलिए स्टैप तो सही है, लेकिन कितना सफल रहेगा यह आने वाला समय ही बताएगा…’’

तभी यात्रियों से अपनीअपनी सीट बेल्ट बांध लेने का अनुरोध हुआ, साथ ही एअर होस्टेज ने आवश्यक निर्देशों का प्रैक्टिकल डिस्प्ले कर के बताया और उस के बाद उस फ्लाइट ने कुछ देर रनवे पर दौड़ने के बाद उड़ान भरी. कैबिन कू्र के ऐनाउंसमैंट से पता चला कि कुल 1 घंटे 55 मिनट का दिल्ली से मुंबई तक का सफर है.

फ्लाइट ने ठीक 19:20 पर टेक औन किया. आसमान में पहुंच कर ऐरोप्लेन के एक लेबल पर आने के बाद सीट बैल्ट खोलने की इंस्ट्रंक्शन दे दी गई. रिलैक्स हो कर बैठने के बाद तान्या ने 2-3 बार मुंह घुमा कर डाक्टर नितिन की तरफ देखा. वह कानों में इयर प्लग लगाए संगीत सुनने में व्यस्त हो गया था.

हृष्टपुष्ट शरीर का मालिक, चेहरे पर तेज, निश्चिंत चेहरा, बड़ी आंखें, चौड़ा माथा, घुंघराले बाल, डैनिम की शर्ट और पैंट पहने, आंखों पर महंगा चश्मा पहने एक प्रभावशाली व्यक्तित्त्व डाक्टर नितिन.

तान्या सोचने लगी कि हौस्पिटल में सफेद कोट पहने वह कैसा लगता होगा. उस ने पहली बार एक अच्छी हाइट वाले स्मार्ट और यंग डाक्टर को देखा था. अभी इंटर्नशिप कर रहा है तो शादी तो हुई नहीं होगी हां यह हो सकता है कि अपने साथ पढ़ने वाली किसी लेडी डाक्टर से उस का अफेयर हो.

सच तो यह था कि जीवन में पहली बार तान्या को महसूस हुआ कि उस के दिल की धड़कनों के सुर बदल गए हैं. अगर कभी उस का मन शादी को राजी होगा तो ऐसा ही लड़का वह चाहेगी.

वह अपने साथ उस को ले कर पेयर मैचिंग करने लगी. उसे लगा मामी सही तो कहती हैं कि लंबे लड़के बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. इस उड़ान के साथसाथ वह अपना कल्पना की भी उड़ान भरने लगी.

मगर तान्या के विचारों से बेखबर नितिन कानों में इयर प्लग ठूंसे आंखें बंद कर के संगीत सुनने में व्यस्त था.

कहते हैं कि जब अपने को बहुत आकर्षक समझने वाली किसी खूबसूरत लड़की की तरफ स्मार्ट और हैंडसम दिखने वाला लड़का कोई विशेष तवज्जो नहीं देता है तो उस लड़की के अहं को ठेस सी लगती है.

उस ने वहां से ध्यान हटा कर दूसरी तरफ लगाना चाहा. अनिला तो चाहे ट्रेन हो या फ्लाइट, हमेशा की तरह गति पकड़ते ही नींद के झेंके लेने लगी थीं. इसीलिए उन्हें किनारे की विंडो वाली सीट पसंद थी.

एक दिन वह भी पायलट सीट पर बैठ कर इस से भी तेज गति से फाइटर प्लेन

चलाएगी. उस का ध्यान अपने सहपाठी तेजस की तरफ चला गया. उस का किसी से कंपीटिशन था तो तेजस से. क्लास में वही उस से 1 इंच ऊंची हाइट का था. अपने को उस ने ऊंची हाइट का दिखने के लिए 2 इंच ऊंची हील के सैंडल या चप्पलें पहनती थी.

तेजस के बुद्धिकौशल की वे कायल थी. अपने मन को पूरे नियंत्रण में रखते हुए वह उस से बातें तो खूब घुलमिल कर करती थी, पर कभी सीमा पार करने की हिम्मत न कर सके, ऐसा तान्या ने अपना स्वभाव बना रखा था.

इसीलिए उस के सहपाठी जो अपना दिल उसे देना तो चाहते थे पर देने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे. उन्होंने तान्या को बंद किताब की उपमा दे रखी थी. एक ऐसी किताब जिसे केवल तान्या ही खोल सकती थी.

एक बार तान्या ने ऐविएशन के एडवांस कोर्स की क्लास में अपने करीब बैठे तेजस की, उस के मुंह पर ही तारीफ कर दी, ‘‘आज तुम बहुत स्मार्ट लग रहे हो. यह बताओ कि ऐसा क्या खाते हो जिस से तुम्हारा ब्रेन एक बार में ही सब ग्रेस्प कर लेता है?’’

तेजस इतना सुनते ही उस के करीब खिसकते हुए बोला, ‘‘क्या वास्तव में आज मैं तुम्हें जंच रहा हूं?’’

‘‘यस इट इज फैक्ट. तुम पर स्माल चेक वाली ब्लैक शर्ट और औफ वाइट ट्राउजर बहुत जमता है, फिर मैचिंग  टाई पहन कर तुम बहुत अच्छे लगते हो.’’

उस दिन तेजस तान्या के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर पगला सा गया. अचानक बोल पड़ा, ‘‘तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मैं तुम से…’’

उस की बात को काटते हुए तान्या बोली, ‘‘मुझे पता है कि आगे तुम क्या कहने वाले हो, इसलिए मैं पहले से ही तुम्हें बता दे रही हूं कि मेरा यह शरीर तुम्हारे लिए नहीं बना है… यह किसी और के लिए है, कह कर वह जोर से हंसी.

तेजस जितना तान्या की तरफ खिसका था उतना ही वापस खिसक कर बैठ गया.

अचानक तान्या का ध्यान फिर नितिन की तरफ चला गया. उसे अपनी ही दुनिया में खोया देख कर इस बार उस से रहा नहीं गया. उस ने जानबूझ कर अपनी कुहनी से उस की कुहनी जोर से टकरा दी.

तान्या चाहती थी वही हुआ. नितिन का ध्यान भंग हुआ. उस ने ईयर प्लग कानों से

हटाए और फिर तान्या को देखते हुए बोला,

‘‘ऐनी प्रौब्लम?’’

तान्या ने समझ लिया था कि अगर उस ने ‘नो’ कह दिया तो यह फिर कानों में इयर प्लग लगा कर म्यूजिक सुनने में व्यस्त हो जाएगा और यह सफर भी कोई लंबा नहीं है, इसलिए वह बोली, ‘‘हां, प्रौब्लम है.’’

कानों में लगे दोनों इयर प्लग हटा कर नितिन बोला, ‘‘ओह क्या प्रौब्लम है? मुझे खुशी होगी तुम्हारी प्रौब्लम को सौल्व कर के.’’

यह सुनते ही तान्या को मौका मिल गया. वह अपनी मुसकान को जितना कातिलाना

बना सकती थी उतना बनाती हुई बोली, ‘‘छोटा सा सफर है. बाएं मम्मी तो निद्रा की गोद में चली गई हैं और आप संगीत सुनने में व्यस्त हो गए. बीच में फंसी बैठी मैं बोर हो रही हूं, आखिर करूं तो क्या करूं?’’

‘‘यदि तुम्हें भी संगीत का शौक है तो यह लो एक इयर प्लग तुम अपने कान में लगा लो. एक मैं लगा लेता हूं. दोनों मिल कर संगीत सुनते हैं.’’

‘‘अरे संगीत तो मैं घर में भी सुनती रहती हूं. मुझे तो बातें करना अच्छा लगता है और इस से समय भी अच्छा कट जाता है.

‘‘तो लो मैं इयर प्लग जेब में रख लेता हूं, मोबाइल का म्यूजिक औफ कर देता हूं… बातें करना तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है. बोलो क्या बातें करनी हैं?’’

‘‘आप अपने बारे में कुछ बताएं, फिर मुझ से मेरे बारे में कुछ पूछें.’’

‘‘ऐसा क्यों.’’

‘‘बस ऐसे ही ताकि सफर बातोंबातों में कट जाए और बोरियत भी न हो.’’

तान्या की नजरों की भाषा और भावनाएं समझते हुए नितिन मुसकराया और बोला, ‘‘प्यार भरी बातें करना चाह रही हो तो यह तभी संभव है जब मुझे अपनत्व से पुकारो.’’

‘‘अपनत्व से मतलब?’’ तान्या ने थोड़ा उस की तरफ झकते हुए पूछा?

‘‘मतलब मुझे ‘आप’ कहना छोड़ कर ‘तुम’ कहो. जैसे तुम मुझ से पूछ सकती हो कि नितिन क्या तुम्हारी शादी हो गई है. तब मैं कहूंगा, नहीं मुझे अभी कोई सूटेबल लड़की नहीं मिली है या मेरा यह भी उत्तर हो सकता है कि अभी तो मेरा कैरियर शुरू हुआ है शादी के बारे में नहीं सोचा है.’’

तान्या को उस की बातों में रस आना शुरू हो गया था, इसलिए जब बोलतेबोलते नितिन ने चुप हो कर तान्या के नयनों में अपनी नजरें समा दीं तो प्रेम के रहस्यमयी जादू ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया.

तान्या के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘डाक्टर, तुम चुप क्यो हो गए? मुझे तुम्हारा बोलना अच्छा लग रहा था.’’

‘‘तुम्हें तो अच्छा लगना शुरू हो गया, पर तुम शांत और चुप हो, तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. अब तुम कुछ अपने बारे में बताओ… अपनी शादी वगेहरा के बारे में.’’

तान्या जो अभी तक तो चाह रही थी कि नितिन उस से खूब सारी बातें करे पर जब उस ने बातें शुरू करीं तो उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अपने मन के उद्गारों को कैसे व्यक्त करे. अपने मन के विचारों की बंद किताब एकदम से कैसे खोल कर कह डाले कि वह उसे चाहने लगी है. यह भी बात ठीक नहीं रहेगी.

मगर जब नितिन ने उसे बोलने के लिए बाध्य किया तो उस ने बताना शुरू किया, ‘‘उस के पिता फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे और प्लेनक्रैश हो जाने के कारण उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. तब से मेरा सपना भी फ्लाइट अफसर बनने का है. आजकल मैं एमएससी ऐविएशन करने के बाद ऐविएशन का एडवांस कोर्स कर रही हूं. रही शादी की बात तो इस बारे में बस इतना ही जानती है कि जब भी शादी करूंगी तो तुम्हारी जैसी हाइट वाले लड़के से.’’

‘‘मेरे जैसी हाइट वाले लड़के से? इस का अर्थ हुआ कि शादी करोगी पर मुझ से नहीं. ठीक है मैं फिर किसी और को ढूंढ़ लूंगा,’’ कह कर नितिन हंसा.

उस के इतना कहते ही तान्या की हथेली स्वत: ही उस की भुजाओं से जा चिपकी और आंखें अपने कहानी कह बैठीं.

‘‘देखो तान्या, इन दिनों कोरोना का प्रकोप अपने चरम पर है और डाक्टर होने के नाते मेरा अभी तो केवल एक ही उद्देश्य है. अस्पताल पहुंच कर अपने स्टाफ के साथ संक्रमितों के

प्राणों की रक्षा करना, उस के बाद शादी के बारे

में सोचूंगा. अभी तो मैं इतना ही कह सकता हूं कि तुम्हारी जैसी हाइट की लड़कियां कम ही दिखती हैं और अगर तुम से शादी हो जाती तो हमारी जोड़ी सभी को अच्छी लगेगी,’’ कह

कर नितिन अपने बाजू को थामे तान्या की

हथेली को अपने दूसरे हाथ की हथेली से

सहलाने लगा.

तान्या को उस का सहलाना अच्छा लग रहा था. वह कुछ बोलने जा ही रही थी कि अचानक प्लेन के भीतर की सभी लाइट्स औन हो गईं और ऐनाउंसमैंट होने लगी कि शीघ्र ही हम मुंबई के छत्रपति शिवाजी एअरपोर्ट के डोमैस्टिक टर्मिनल 1 में लैंड करने वाले हैं. कृपया अपनीअपनी सीट बैल्ट बांध लें.

ऐनाउंसमैंट में उपजे शोर से अनिला की भी आंख खुल गई थी. सभी यात्री अपनीअपनी सीट बैल्ट कसने में जुट गए.

प्लेन लैंड होने के बाद जब गंतव्य पर रुका तो सभी ने उतरना शुरू किया. डाक्टर नितिन के चेहरे पर आनंद के भाव थे. तान्या उसे पसंद आ गई थी. अपना बैग कैबिन से निकाल कर वह पहले निकल गया, क्योंकि पीछे से यात्रियों ने प्लेन के ऐक्जिट गेट की तरफ खिसकना शुरू कर दिया था.

प्लेन से निकल कर तान्या अपनी मम्मी के साथ उसी ऐक्जिट गेट से बाहर लौबी में आई तो नितिन तान्या के इंतजार में रुका हुआ था. तीनों लगभग साथसाथ चलते हुए लगेज कलैक्शन कैरोसेल के घूमते पट्टे के पास आए.

अनिला वहीं पीछे वेटिंग बैंचों में से एक खाली बैंच पर बैठ गई थीं. उन्हें पता था कि चक्कर खाते कैरोसेल पर अपने सूटकेस सामने आने में समय लगता ही है. उस के पास बैठी विदेशी महिला लगातार खांस रही थी और बीचबीच में उसे 1-2 छींकें भी आ चुकी थीं.

लगातार खांसने और छींकने की आवाज सुन कर डाक्टर नितिन लपक

कर पीछे गया और अपनी जेब से एक फेस मास्क निकाल कर अनिला को देते हुए बोला, ‘‘मम्मीजी, आप इसे पहन लीजिए और यहां से हट कर उस खाली बैंच पर बैठ जाइए.’’

अनिला उठ कर उस विदेशी औरत से दूर एक खाली चेयर पर बैठ गई और नितिन अपना ब्रीफकेस लेने के लिए तान्या के पास आ कर खड़ा हो गया.

नितिन और तान्या ने अपनेअपने लगेज संभाले. दोनों की आंखें एक बार फिर मिलीं. दोनों ही मुसकराए. फिर एअरपोर्ट के एक्जिट गेट की तरफ बढ़ते हुए नितिन तान्या से बोला, ‘‘मुझे यह जर्नी हमेशा याद रहेगी. सी यू अगेन,’’ कहते हुए नितिन ने अपनी जेब से विजिटिंग कार्ड निकाला और तान्या की तरफ बढ़ाते हुए बोला, ‘‘तान्या कीप माई विजिटिंग कार्ड फौर एनी मैडिकल असिस्टैंस, इन केस औफ नीड.’’

तान्या ने हाथ बढ़ा कर कार्ड ले लिया और फिर मुसकराते हुए आंखों में एक सपना लिए नितिन को अपने से दूर जाते देखने लगी.

आगे पढ़ें- अनिला उठ कर उस विदेशी औरत से दूर एक खाली चेयर पर बैठ गई और नितिन अपना ब्रीफकेस लेने के लिए तान्या के पास आ कर खड़ा हो गया…

Valentine’s Day को जानें कैसे मनाते है Gehraiyaan एक्टर सिद्धांत चतुर्वेदी

अगर आपने किसी चीज के लिए जी जान से मेहनत की है, तो उसका फल अवश्य मिलेगा और मैंने इसमें कोई कमी नहीं की और आज यहाँ पर पहुंचा हूँ, जहाँ मुझे दीपिका पादुकोण जैसी बड़ी अभिनेत्री के साथ काम करने का मौका मिला, कहते है 28 वर्षीय अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी. दरअसल सिद्धांत एक शांत स्वभाव के व्यक्ति है, इसलिए जब कभी उन्हें रिजेक्शन मिलता है, तो वे अपने मन को खुद ही शांत कर सोचते है कि ये फिल्म उनके लिए नहीं बनी है. वे युवा पीढ़ी से भी कहते है कि उन्होंने जो सपना देखा है, वह पूरा तभी हो सकता है, जब व्यक्ति अच्छी तरह सोचकर कदम बढाएं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्मे और 5 साल की उम्र में परिवार के साथ मुंबई आयें. मुंबई आकर चार्टेड एकाउंट की पढाई करते हुए ही फिल्म में उतरने की कोशिश करते रहे. इसमें देर भले हुई हो,पर उनके मन मुताबिक फिल्में मिली. उनके पिता एक चार्टर्ड एकाउंटेंट है और उनकी मां एक गृहिणी. सीए की पढाई के दौरान एक सिद्धांत को एक प्रतियोगिता में जाने का अवसर मिला और वे ‘फ्रेश फेस 2012’ का ख़िताब जीता. इसके बाद उन्होंने कुछ विज्ञापन, मॉडलिंग असाइनमेंट और फोटोशूट किए. सही काम न मिलने की वजह से सिद्धांत मुंबई में अभिनेता और लेखक के रूप में एक थिएटर ग्रुप में शामिल हो गए. थिएटर ग्रुप में एक नाटक के दौरान, उन्हें फिल्म निर्देशक लव रंजन ने नोटिस किया और उन्हें टीवी शो ‘लाइफ सही है ‘ मिली. टीवी के बाद उन्हें फिल्म भी मिली, पर उन्हें सफलता गलीबॉय से मिली. साधारण कदकाठी और घुंघराले बाल होने की वजह से उन्हें बहुत रिजेक्शन सहना पड़ा. ‘गहराइयाँ’ फिल्म रिलीज़ हो चुकी है, जिसमें उन्होंने काफी इंटेंस भूमिका निभाई है. उनसे उनकी जर्नी के बारें में बात हुई आइये जाने कुछ बातें.

सवाल – दीपिका पादुकोण के साथ इंटेंस भूमिका निभाने का अनुभव कैसा था, रिलेशनशिप में आये उतार-चढ़ाव को कैसे देखते है?

जवाब– निर्देशक शकुन बत्रा से जब मैं स्क्रिप्ट के लिए मिला, तो मेरी उम्र 24 थी, जबकि उन्हें एक 30 साल का मेच्योर व्यक्ति चाहिए. उन्होंने मुझे नहीं लिया और मुझे ये फिल्म करनी थी. एक दिन मैं इशान खट्टर के साथ एक रेस्तरां में गया, वहां मेरी बात शकुन बत्रा से हुई. उन्होंने मेरी एक्टिंग गलीबॉय में देखी थी, जहाँ मैंने रणवीर सिंह की मेंटर की भूमिका निभाई थी. उन्होंने समय लिया और दो दिन बाद उन्होंने मुझे बताया कि जेन की मेरी भूमिका ट्रांसफॉर्म किया जा सकता है और उन्होंने मुझे इस फिल्म के लिए चुना.

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मैंने रोमांटिक फिल्में बचपन से देखी है और लगा था कि ऐसी ही कुछ शाहरुख़ खान की फिल्में जैसी रोमांटिक सीन्स होगी, क्योंकि इससे पहले मैंने इस तरह के रिश्तो के बारें में कभी सुना नहीं था. शाहरुख़ खान मेरे पसंदीदा हीरों है और मैं भी ट्रू लव ऑन स्क्रीन करना चाहता था. इस फिल्म में दीपिका पादुकोण और धर्मा प्रोडक्शन जैसी लोग जुड़े है, इसलिए इसमें मेरा सपना कुछ हद तक पूरा हो सकता है. मैं बाहर से आया हूँ और काफी दिनों तक ऑडिशन दे रहा हूँ, पर कोई अच्छा काम नहीं मिल रहा है. इसमें दीपिका पादुकोण भी है, जिस पर मेरा क्रश पहले से रहा है. मौका अच्छा है, हाँ कहने के बाद भी मैं इस भूमिका को निभाने में डर रहा था, क्योंकि मेरे हिसाब से प्यार जन्मों-जन्मों वाला होता है. जिसे आज सभी ओल्ड स्कूल थॉट कहते है. इस भूमिका के लिए मुझे कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना पड़ा. दीपिका से मिलने पर कैसे क्या करूँ, कैसे बैठू समझ नहीं आ रहा था,क्योंकि स्क्रिप्ट के अनुसार काफी इंटेंस सीन्स थे. एक से दो हफ्ते मुझे सामान्य होने में लगे थे, लेकिन दीपिका की सहयोग से ऐसा जल्दी हो पाया, क्योंकि वह बहुत साधारण स्वभाव की है और मुझे इस फिल्म को करने में काफी सहयोग दिया है. वर्कशॉप करने के बाद मैं नार्मल हो पाया, पर शुरू मैं काफी घबराया हुआ था.

सवाल–क्या इस फिल्म से क्या आपको स्टार की उपाधि मिल पाएगी?

जवाब– जब में 19 साल में हीरो बनना था. फिर मुझे लगा कि आप जो बनना चाहते है उसपर फोकस करें, स्टार बनना किसी के हाथ में नहीं होता. अगर आप स्टार किड है तो प्रोडूसर उसे स्टार बना देते है. आउटसाइडर को स्टार बनाने वाली जनता होती है. मुझे दर्शकों ने बहुत प्यार दिया है, पर इतना जरुर है कि अब मैं महंगे कपडे पहनने लगा हूँ. मेरे पेरेंट्स, पडोसी को लगता है कि मैं स्टार हूँ, पर मेरे दोस्त कुछ अतरंगी ड्रेस पहनने पर मेरा बहुत मजाक उड़ाते है. मैं इस सब चीजो के बारें में नहीं सोचता, क्योंकि इससे मेरा काम सही नहीं हो पाता. एक्शन और कट के बीच में मैं अपना दिमाग नहीं लगता. मेरा काम बारीकी से क्राफ्ट को देखना और कुछ नया लेकर आना है. अपना एक नया मार्ग बनाना है.

सवाल–आप अपनी जर्नी को कैसे देखते है? कॉलेज में आप वेलेंटाइन डेज को कैसे मनाते थे?

जवाब– मैं अपनी जर्नी से बहुत संतुष्ट हूँ. मेरी जर्नी की सफलता का पूरा श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है. कॉलेज में मुझे वेलेंटाइन डे मनाने का समय नहीं मिलता था, क्योंकि सुबह कॉलेज से निकलने के बाद चार्टेड एकाउंट की क्लास कर केवल दो से तीन घंटे के लिए दोस्तों के साथ थिएटर देखता और प्रैक्टिस करता था. रात को फिर सीए की पढाई करना पड़ता था. थिएटर की बात मेरे पेरेंट्स को पता नहीं था, ऐसे में वेलेंटाइन डे को मनाने का समय नहीं मिलता था और मेरे आसपास लड़कियां कम मंडराती थी, क्योंकि मैं साधारण दिखने वाला लड़का था. इसके अलावा मेरे पिता का कहना था कि कुछ भी करने से पहले अपने कैरियर में स्टेब्लिटी लाओं, इसके बाद जो भी करना चाहो कर सकते हो, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री में अनिश्चितता बहुत है और वहां तुम्हारे कोई चाचा या ताऊ बैठे नहीं है, जो तुम्हे आसानी से काम दे देंगे.

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पिता की बात सही थी,ग्रेजुएशन के बाद मैंने सीए की प्रवेश परीक्षा को भी क्लियर किया, उसकी पढाई भी शुरू कर दी. उस दौरान थिएटर में भी मुझे कई अवार्ड मिलने लगे थे. मुझे समझना मुश्किल हो रहा था कि मैं क्या करूँ? मुझे जॉब भी मिल गया,पूरा दिन काम करने के बाद थिएटर नहीं कर पा रहा था. मुझसे थिएटर छूटता जा रहा था. काम से आने पर पिता देखते थे कि मैं अपने काम से खुश नहीं हूँ. इसके अलावा मैं और मेरे पिता हर फ्राइडे एक नई फिल्म देखते थे. मेरी हालत देखकर उन्होंने एकदिन कहा कि सीए की फाइनल कभी भी दे सकते हो इसलिए अब ऑडिशन देना शुरू करो, लेकिन मै किसी को जानता नहीं था इसलिए थिएटर के दोस्तों के साथ ऑडिशन देता रहा. काम किसी एड में भी नहीं मिला, क्योंकि मेरा चेहरा किसी हीरो की तरह नहीं है . मेरे कर्ली बाल है, आँखे छोटी है. रिजेक्शन के बाद दुखी होकर घर आने पर पिता दिलासा देते थे. फिर मैंने सीए की अंतिम परीक्षा दी, लेकिन क्लियर नहीं कर पाया. अब मैंने जी जान से ऑडिशन देने लगा और पहला शो टीवी का मिला और आज यहाँ पहुंचा हूँ. मैं संघर्ष के दर्द को समझता हूँ.

सवाल – आपके रिलेशनशिप में सबसे अधिक नजदीक किसके रहे?

जवाब – सबसे अधिक नजदीक मैं अपने पिता के रहा हूँ,उन्होंने हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया है और सही रास्ता बताया.

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