Mother’s Day Special: मां बनना सर्वोत्तम उपलब्धि

औरत की महत्त्वाकांक्षा ने जब उड़ान भरी तो उस ने अपने हर सपने को सच करने की काबिलीयत दुनिया को दिखा कर यह साबित कर दिया कि वह भी योग्यता में पुरुषों से कम नहीं है. कैरियर के प्रति वह इतनी सचेत हो गई कि सफलता की सीढि़यां चढ़तेचढ़ते उस मुकाम पर पहुंच गई जहां परिवार को समय दे पाना उस के लिए कठिन होने लगा. आधुनिक जीवनशैली की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए चूंकि औरत का काम करना अनिवार्य हो गया इसलिए पुरुष भी उसे सहयोग देने के लिए आगे आया और ‘डबल इनकम, नो किड्स’ की धारणा जोर पकड़ने लगी.

अपने निजत्व की चाह व भौतिक सुखसाधनों में जुटी औरत चाहे कितनी ही आगे क्यों न निकल जाए पर कभीकभी उसे यह एहसास अवश्य होने लगता है कि मातृत्व सुख से बढ़ कर न तो कोई सुखद अनुभूति होती है, न ही सफलता. यही वजह है कि आरंभ में कैरियर के कारण मां बनने की खुशी से वंचित रहने वाली औरतें भी आज 30-35 वर्ष की आयु पार कर के भी गर्भधारण करने को तैयार हो जाती हैं. देर से ही सही, किंतु ज्यादा उम्र हो जाने के बावजूद वे प्रेगनेंसी में होने वाली दिक्कतों का सहर्ष सामना करने को तैयार हो जाती हैं. उस समय न तो कैरियर की बुलंदियां उन्हें रोक पाती हैं, न ही कोई और चाह.

प्रकृति से मिला उपहार

प्रकृति से मिला मां बनने का उपहार औरत के लिए सब से बेहतरीन उपहार है. वह इस के हर पल का न सिर्फ आनंद उठाती है वरन उसे इस खूबसूरत एहसास को अनुभूत करने का गर्व भी होता है. मातृत्व का प्रत्येक पहलू औरत को पूर्णता व आश्चर्यजनक अनुभव से भर देता है. मां बनते ही अचानक वह उस शिशु के साथ सोनेजागने, बात करने व सांस लेने लगती है. मां बनना एक ऐसा भावनात्मक अनुभव है जिसे किसी भी औरत के लिए शब्दों में व्यक्त करना असंभव होता है. यह मां ही तो होती है जिस का अपने बच्चे के साथ जुड़ाव न सिर्फ शारीरिक व मानसिक होता है वरन अलौकिक भी होता है. बच्चे के जन्म के साथ उसे जो खुशी मिलती है, वह उसे बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल कर के भी नहीं मिल पाती है. औरत की जिंदगी बच्चे के जन्म के साथ ही पूरी तरह बदल जाती है.

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जब अपने ही शरीर का एक अंश गोद में आ कर अपने नन्हेनन्हे हाथों से अपनी मां को छूता है और जब मां उस फूल से कोमल जादुई करिश्मे को अपने सीने से लगाती है तो उसे महसूस होता है कि उसे जिंदगी की वह हर खुशी मिल गई है जिस की उस ने कभी कल्पना भी न की थी. शिशु का जन्म जीवन में होने वाली ऐसी जादुई वास्तविकता है, जो औरत की जिंदगी की प्राथमिकताएं, सोच व सपनों को ही बदल देती है. एक शिशु को जन्म देने के बाद औरत की दुनिया उस पर ही आ कर सिमट जाती है. वजह है उन दोनों के बीच का अटूट रिश्ता.

मां बनना अगर एक नैसर्गिक प्रक्रिया है तो एक सुखद एहसास भी है. यह कुदरत की एक बहुत ही अनोखी प्रक्रिया है, जिस में सहयोग तो स्त्रीपुरुष दोनों का होता है, पर प्रसवपीड़ा और जन्म देने का सुख सिर्फ औरत के ही हिस्से में आता है. जब एक औरत अपने रक्तमांस से सींच कर, अपनी कोख में एक अंश को 9 महीने रख कर उसे जन्म देती है तो उस के लिए यह सब से गर्व की बात होती है, उस की सब से बड़ी उपलब्धि होती है.

सिमट जाती है दुनिया

शिशु की किलकारी, मुसकराहट व खिले हुए मासूम चेहरे को देख कर वह प्रसवपीड़ा को किसी बीती रात के सपने की तरह भूल जाती है. उसे सीने से लगा कर जब वह दूध पिलाती है तो गर्भधारण करने से ले कर जन्म के बीच तक झेली गई तमाम शारीरिक व मानसिक पीड़ाएं कहीं लुप्त हो जाती हैं. कहा जाता है कि शिशु जन्म के समय एक तरह से औरत का दोबारा जन्म ही होता है, लेकिन शिशु के गोद में आते ही वह अपनी तकलीफ भूल कर उस के पालनपोषण में जीजान से जुट जाती है.

औरत चाहे शिक्षित हो या अशिक्षित, गरीब हो या अमीर, किसी बहुत ही उच्च पद पर आसीन हो या आम गृहिणी, मां बनने के सुख से वंचित नहीं रहना चाहती है और इसीलिए परिस्थिति चाहे जैसी हो, वह इस अनुभूति को महसूस करना ही चाहती है. यही एकमात्र ऐसी भावना है, जो एक तरफ तो औरत को बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत देती है तो दूसरी ओर इस के लिए वह अपनी बड़ी से बड़ी खुशी या चाह को भी दांव पर लगा सकती है. ऐसा न होता तो कैरियर के उच्च मुकाम पर पहुंची औरतें मां बनने के बाद सब कुछ छोड़ सिर्फ मां ही की भूमिका नहीं निभा रही होतीं. औरत के लिए अपने बच्चे से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कुछ नहीं होता. इसलिए वह अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को भी मां बनते ही सीमित कर देती है, क्योंकि उस की नजरों में मां बनना ही सर्वोत्तम उपलब्धि है.

संपूर्णता का एहसास

आज की औरत, जिस की महत्त्वाकांक्षाएं अनंत हैं, जो हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुकी है, जो कामयाबी के शिखर छू रही है, जिस की उपलब्धियां जाने कितने रूपों में देखने को मिलती हैं, वह मां बनते ही जिस ललक से भर जाती है, जिस तरह की संतुष्टि उसे होती है, वह बाकी चीजों को गौण बना देती है. मां बनने की उपलब्धि के आगे बाकी सारी चीजें उस के सामने फीकी पड़ जाती हैं. उसे एहसास होता है कि जो खुशी बच्चे की एक मुसकराहट देखने से मिल सकती है, वह किसी भी तरह के भौतिक सुख से नहीं प्राप्त हो सकती है. वह तनावमुक्त हो उस की छोटीछोटी हरकतों में खो जाती है. शिशु की आंखों में झांकते हुए उस के अंदर ऊर्जा का संचार होता है और संपूर्ण स्त्री होने की गरिमा उसे आंतरिक शक्ति प्रदान करती है. फिर रातों को जागना बोझ नहीं लगता. अपने लिए वक्त न निकाल पाना चुभता नहीं.

फोर्टिस अस्पताल, नोएडा की क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट डा. वंदना प्रकाश के अनुसार, ‘‘मातृत्व की अवधारणा सदियों पुरानी है और जब औरत काम करने के लिए बाहर नहीं निकलती थी तो उस की पहचान एक पत्नी व मां के रूप में ही हुआ करती थी, खासकर अगर वह बेटे की मां होती थी, तो उस को ज्यादा सम्मान मिलता था. आज की नई पीढ़ी में बेशक मां बनना उतना आवश्यक न रहा हो, पर एक मुकाम हासिल करने के बाद उन्हें भी बच्चे के बिना जीवन में अधूरापन महसूस होने ही लगता है और यही वजह है कि बड़ी उम्र में औरतों के मां बनने की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.

‘‘मां बनने से औरत को सामाजिक मान्यता तो मिलती ही है, साथ ही उसे ऐसी सुखानुभूति भी प्राप्त होती है, जो हर चीज से सर्वोपरि होती है. मां बनते ही ममत्व की अनुभूति उसे इतनी खुशी से भर देती है कि बाकी अन्य चीजें गौण हो जाती हैं. वह अपने बच्चे को किसी और के हाथों में सौंपने से भी कतराने लगती है और यही वजह है कि वह अपने कैरियर का जोखिम उठा कर भी बच्चे के पालनपोषण में पूरी जिंदगी लगा देती है. उस के कामकाजी होने की वजह से अगर बच्चा उपेक्षित होता है, तो वह गिल्ट फील करती है, क्योंकि उस समय बच्चे के लालनपालन से बढ़ कर उस के लिए और कुछ नहीं रह जाता. औरत चाहे कितनी ही आधुनिक क्यों न हो जाए, कितनी ही तरक्की क्यों न कर ले, मां बनने के गौरव से खुद को वंचित नहीं करना चाहती है.’’

मां होना सब से बड़ी पहचान

ऐंजेलिना जोली हो या ज्यूड ला या फिर अभिनेत्री गेनेथ पेलट्रा, जिन्हें आस्कर पाने पर भी उतनी खुशी नहीं हुई जितनी कि अपनी बेटी के पैदा होने पर. इस समय उन की प्राथमिकता उन का कैरियर नहीं, बल्कि उन की बेटी है, जिस के कारण वे अभी फिल्मों में काम नहीं कर रही हैं. ऐंजेलिना जोली का अपने बच्चे होने पर अनाथ बच्चों को गोद लेना भी किसी से छिपा नहीं है. 6 बच्चों के साथ खुश ऐंजेलिना का मानना है कि अब उन के अंदर सफल होने या नाम कमाने की वैसी इच्छा नहीं है जैसी कि पहले हुआ करती थी. उन्हें मां बनने के सुख ने न सिर्फ एक बेहतर इनसान बनने का मौका दिया है, बल्कि एक ऐसा स्वार्थी इनसान भी बना दिया है, जो सिर्फ अपने बच्चों के बारे में सोचना चाहता है.

अभिनेत्री सुष्मिता सेन पिछले दिनों दूसरी बेटी को गोद लेने के कारण चर्चा में आई थीं. उन का कहना था कि वे एक और बेटी को गोद ले कर अपने परिवार को पूर्ण करना चाहती हैं. जया बच्चन ने अपने बच्चों की खातिर उस समय अपने कैरियर को अलविदा कहा था जब वे बुलंदियों को छू रही थीं. ऐसी अनेक प्रोफेशनल महिलाएं हैं, जिन्होंने बच्चों की खातिर या तो अपने कैरियर से समझौता कर लिया या फिर वे घर से काम कर रही हैं. उन्हें लगता था कि नौकरी करते हुए वे बच्चों पर ठीक से ध्यान नहीं दे पा रही थीं. ऐसा वे सिर्फ इसीलिए कर पाईं, क्योंकि मां बन कर उन्हें जो पहचान मिली उस के सामने बाकी पहचान या तरक्की उन्हें छोटी लगने लगी थी.

मां बनना ही असली पहचान

आज की प्रोेफेशनल महिला, जो हर तरह से सक्षम है और अंतरिक्ष तक पहुंच चुकी है, पर्वतों की ऊंचीऊंची चोटियों पर सफलता के परचम लहरा चुकी है, पायलट, नेता, डाक्टर, इंजीनियर व सेना आदि क्षेत्रों में है, उस के लिए भी मां बनना सर्वोत्तम उपलब्धि है. फैशन व ग्लैमर जगत से जुड़ी औरतें, जिन्हें हर समय अपनी फिगर के प्रति कांशस रहना पड़ता है, वे भी बेशक उस चकाचौंध भरी दुनिया के सामने किसी सेक्स सिंबल या ग्लैमरस ओब्जेक्ट से ज्यादा कुछ न हों, पर उस के पीछे वे एक ऐसी मां भी होती हैं, जो बच्चे की खातिर कुछ भी त्याग करने को तत्पर रहती हैं. औरत चाहे किसी भी क्षेत्र में कामयाब क्यों न हो जाए, पर मां बनना ही उस की असली पहचान होती है. मां होने पर ही उसे समाज और परिवार से इज्जत भी मिलती है.

आज जब औरतें एक तरफ विवाह के बंधन से दूर भाग रही हैं या परिस्थितिवश ऐसा कदम नहीं उठा पातीं, तब भी एक अकेली औरत अपनी मातृत्व की चाह पूरी करने को आतुर है. सिंगल मदर की अवधारणा का हमारे देश में जोर पकड़ने का कारण यही है कि हर औरत, चाहे वह साधारण स्त्री हो या सिलेब्रिटी, मां बनने के सुख से वंचित नहीं रहना चाहती है, फिर इस के लिए उसे बच्चा ही क्यों न गोद लेना पड़े या फिर किसी और की कोख को किराए पर ले कर इसे पाना पड़े. जो औरतें शारीरिक रूप से फिट न होने या अन्य किसी कमी के चलते स्वयं मां नहीं बन पातीं, वे सेरोगेट मदर का सहारा लेती हैं. सेरोगेट मदर बनने का चलन इसी वजह से बहुत बढ़ रहा है, क्योंकि इस से एक औरत दूसरी औरत को वह खुशी देती है, जिसे वह अपनी कोख में नहीं पाल सकती. भारतीय सरकार का पद्मश्री जैसा उच्चतम सम्मान पाने के वक्त अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने कहा था कि उन्हें अभिनय छोड़ने का कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि उन के दोनों बच्चे उन के लिए सब से बड़े अवार्ड हैं और उन्होंने ही उन्हें खूबसूरत होने का एहसास दिलाया है.

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स्वस्थ रहने के लिए अनिवार्य

मां बनना एक औरत के लिए सर्वोत्तम उपलब्धि और संपूर्ण होने का एहसास तो है ही, साथ ही पतिपत्नी के रिश्ते में बच्चा एक सेतु की तरह भी काम करता है. उस के जरिए मातापिता को और करीब आने का अवसर मिलता है. लेकिन यह भी सच है कि मां बनना किसी भी औरत के लिए स्वस्थ रहने के लिए भी अनिवार्य है. मां बनने से वह कई तरह की बीमारियों से भी बच जाती है और मानसिक तौर पर भी प्रसन्न रहती है. जो औरतें मां नहीं बन पातीं, वे सदा अपने अंदर एक खालीपन, एक अधूरापन महसूस करती हैं, फिर चाहे वे किसी कंपनी की सीईओ या मशहूर हस्ती ही क्यों न हों. अविवाहित औरत के यौनांगों का प्राकृतिक ढंग से इस्तेमाल न होने और गर्भाशय का प्रयोग न होने की वजह से उन्हें कैंसर होने की अधिक संभावना रहती है.

जन्म न देने की प्रक्रिया से न गुजर पाने की अवस्था में उन के शारीरिक विकास में भी बाधा पड़ती है. स्तनपान कराना अगर एक तरफ औरत के लिए सब से सुखद पल होता है, तो दूसरी ओर शिशु के स्वास्थ्य के साथसाथ उस की अपनी सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है. जन्म देने के एकदम बाद बच्चे के स्तनपान के कारण आक्सीटोसिन बारबार निकलता है, जिस की वजह से यूटरस में संकुचन होता है. यह मां को डिलीवरी के बाद होने वाले हैमरेज से बचाता है. यही नहीं, लेक्टेशन एमेनोरिया मैथेड भविष्य में प्रेगनेंसी को रोकने का सब से कारगर तरीका है. मां बनने से हारमोन का स्तर बढ़ता रहता है, जो शरीर को सुरक्षित रखता है. मां बनने से ऐड्रोमेट्रोसिस नामक बीमारी से भी बचाव होता है.

सब से बड़ी प्राथमिकता

मां की भूमिका निभाने से बेहतर और चुनौतीपूर्ण कोई और कार्य हो ही नहीं सकता है. मां बनना एकमात्र ऐसा अनुभव है जिस में एक औरत को कई तरह के शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक पड़ावों से गुजरना पड़ता है, लेकिन एक शिशु को इस दुनिया में लाने से बढ़ कर खुशी, उपलब्धि व सफलता उस के लिए और कोई हो ही नहीं सकती है और यह एकमात्र ऐसी प्राथमिकता है, जो समय के साथ बदलती नहीं वरन और सुदृढ़ होती जाती है. मां होने की पहचान के साथ ही दुनिया पहले जैसी नहीं रहती. मां बनना एक औरत की जिंदगी में होने वाला ऐसा व्यापक बदलाव होता है, जिस से उस की पूरी दुनिया ही निखर उठती है. बच्चे को जन्म देने से पहले वह एक औरत होती है, पर जब वह बच्चे को जन्म देती है या उसे गोद लेती है तो वह मां बन जाती है. मनोस्थिति और संबंधों की नई परिभाषाएं वह गढ़ने लगती है. मातृत्व के दायित्व को निभाने में उसे जो सुख मिलता है, वह उस की सफलता के तमाम शिखरों से भी कहीं ज्यादा ऊंचा होता है.             

शिशु महत्त्वपूर्ण

मातृत्व सब से महत्त्वपूर्ण घटना होने के साथसाथ औरत के जीवन का सब से अहम उत्तरदायित्व भी होता है. यह प्यार और ममता का ऐसा गलियारा होता है, जिस से हर औरत गुजरना चाहती है. अपने अंदर औरत एक अलग तरह के एहसास को महसूस करने लगती है. बाकी चीजें महत्त्वहीन होने लगती हैं और शिशु ही उस की सब से बड़ी प्राथमिकता बन जाता है.

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Mother’s Day Special: बच्चों को खिलाइए चॉको लावा अप्पे

चॉकलेट का नाम सुनते ही बच्चे खुशी से उछलने लगते हैं. आजकल बाजार में अनेकों ब्रांड की चॉकलेट उपलब्ध हैं. अधिक मात्रा में चॉकलेट खाने से बच्चों के दांतों में कैविटी हो जाती है और वे धीरे धीरे खराब होने लगते हैं. आजकल तो लॉक डाउन के कारण उन्हें चॉकलेट मिल भी नहीं पा रही है तो आइए आज हम आपको एक ऐसी चॉकलेटी रेसिपी बनाना बता रहे हैं जो बनाने में तो बहुत आसान है ही, साथ ही इसे खाकर बच्चे तो बहुत ही खुश हो जायेगें. तो आइए इसे कैसे बनाते हैं-

चॉको लावा अप्पे

सामग्री

सूजी/रवा                     1 कप

ताजा दही                      1 कप

पानी                            1/4 कप

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शकर                            1/4 कप

कोको पाउडर                 2 टेबलस्पून

ईनो फ्रूट साल्ट               1/2 सैशे

इलायची पाउडर             1/4 टीस्पून

डेयरी मिल्क चॉकलेट बड़ी   1

घी                                1 टेबलस्पून

विधि

सूजी को दही और पानी में घोलकर ढककर आधे घण्टे के लिए रख दें. अब इसमें शकर,  कोको पाउडर, इलायची पाउडर, और ईनो डालकर अच्छी तरह मिलाएं. अप्पे के सांचे को गर्म करके घी लगाएं और एक चम्मच तैयार मिश्रण डालकर डेयरी मिल्क का एक क्यूब रख कर ऊपर से 1 चम्मच मिश्रण पुनः डालें. ढककर एकदम धीमी आंच पर 5 मिनट पकाकर पलट दें। दोनों तरफ से सिकने पर जब आप बीच से तोड़ेंगी तो डेयरी मिल्क लावा के रूप में  निकलेगी. गर्मागर्म चॉको लावा अप्पे बच्चों को सर्व करें.

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Mother’s Day Special: सास-बहू के रिश्तों में बैलेंस के 80 टिप्स

अकसर देखा जाता है कि घर में सासबहू के झगड़े के बीच पुरुष बेचारे फंस जाते हैं और परिवार की खुशियां दांव पर लग जाती हैं. पर यदि रिश्तों को थोड़े प्यार और समझदारी से जिया जाए तो यही रिश्ते हमारी जिंदगी को खुशनुमा बना देते हैं.

जानिए, कुछ ऐसे टिप्स जो सासबहू के बीच बनाएं संतुलन रखेंगे.

कैसे बनें अच्छी बहू

1. मैरिज काउंसलर कमल खुराना के मुताबिक, बेटा, जो शुरू से ही मां के इतना करीब था कि उस का हर काम मां खुद करती थीं, वही शादी के बाद किसी और का होने लगता है. ऐसे में न चाहते हुए भी मां के दिल में असुरक्षा की भावना आ जाती है. आप अपनी सास की इस स्थिति को समझते हुए शुरू से ही उन से सदभाव का व्यवहार करेंगी तो यकीनन रिश्ते की बुनियाद मजबूत बनेगी.

2. बहू दूसरे घर से आती है. अचानक सास उसे बेटी की तरह प्यार करने लगे, यह सोचना गलत है. प्यार तो धीरेधीरे बढ़ता है. यदि आप धैर्य रखते हुए अपनी तरफ से सास को मां का प्यार और सम्मान देती रहेंगी, तो समय के साथ सास के मन में भी आप के लिए प्यार गहरा होता जाएगा.

3. सास के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें. नाराज होने पर भी बातचीत बंद न करें.

4. यदि आप से कोई गलती हुई है, आप ने सास के प्रति गलत व्यवहार किया है या कोई काम गलत हो गया है तो सहजता से उसे स्वीकार करते हुए सौरी कह दें.

5. सास से यह अपेक्षा न रखें कि वे अपनी गलतियां स्वीकार कर आप से सौरी कहेंगी.

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6. अपनी कमियां और मजबूरियां सास के आगे खुल कर कहें. इस से सास भविष्य में यह सब ध्यान में रख कर ही आप से कुछ करने को कहेंगी या कोई उम्मीद रखेंगी.

7. यदि सास आप के पति से किसी घरेलू विषय पर बात कर रही हैं तो आप वहां न जाएं. कभीकभी सास और पति को अकेले में भी बातें करने दें.

8.आप का घर दूर है तो कभीकभी सास को बिना जरूरत भी सिर्फ हालचाल पूछने के लिए फोन करें. इस से उन्हें महसूस होगा कि आप को उन की भी फिक्र है.

9. सास और पति के प्रति ईमानदार रहें. शांति, सचाई और स्पष्टता के साथ उन के आगे अपनी इच्छाओं और भावनाओं को प्रकट करें.

10. सास को स्मार्ट बनाएं. नई बातें सीखने में उन की रुचि जगाएं. नई तकनीकों का प्रयोग करना सिखाएं. इस से छोटीमोटी बातों से उन का ध्यान हटा रहेगा और वे खुश रहेंगी.

11. पर्सनैलिटी, पेरैंटिंग, स्टाइल या घर की सफाई जैसे मुद्दों पर सास द्वारा आप की आलोचना किए जाने पर शिकायत ले कर पति के पास न पहुंचे, बल्कि शांति के साथ सास के समक्ष अपना पक्ष रखें और बताएं कि ऐसा क्यों है.

12. पति का सपोर्ट अपनी तरफ रखने का प्रयास करें. पतिप्रिया बनें ताकि वे सास का ध्यान आप की अच्छाइयों की तरफ दिलाने का प्रयास करते रहें.

13. अपने फैसलों पर दृढ़ रहें. सास के साथ छोटेछोटे विवादों में पड़ कर रोने या खुद को कमजोर महसूस करने से बचें. आप अपनी इज्जत करेंगी, तभी दूसरे आप की इज्जत करेंगे.

14. सास की तबीयत का खयाल रखें. उन की उम्र अधिक है. ऐसे में कमजोरी, डिप्रैशन और दूसरी तकलीफों को नजरअंदाज न करें. जरूरी हो तो जिद कर के डाक्टर के पास ले जाएं.

15.  सास से यह बात स्पष्ट करें कि वे आप के या पति के अधीन नहीं हैं, बल्कि अपनी मरजी चला सकती हैं. आप उन को आदर और सम्मान देंगी तो बदले में आप को भी प्यार मिलेगा.

16. क्रोध में आ कर सास पर चिल्लाने या उन से बातचीत बंद करने की भूल न करें, क्योंकि ऐसी घटनाएं इंसान कभी नहीं भूलता और रिश्तों में हमेशा के लिए दरार पड़ जाती है. अत: हमेशा धैर्य बनाए रखें.

17. यदि आप के मन में सास के लिए आदर भाव पैदा नहीं होता, क्योंकि वे कम पढ़ीलिखी हैं, देहाती हैं या चिड़चिड़ी अथवा बीमार हैं, तो भी कोशिश कर के उन्हें मान देना सीखें. वे कैसी भी हों, उम्र में आप से बड़ी हैं और सब से बढ़ कर, वे आप के पति की मां हैं, इसलिए आदर की पात्र हैं.

18. जरूरत पड़ने पर सास की मदद करें पर नियंत्रण करने का प्रयास न करें. उदाहरण के लिए उन्हें कुछ रुपए उधार चाहिए तो उन्हें दे दें, पर यह न सोचें कि वे आप के कहे अनुसार ही उन्हें खर्च करें.

19. अपनी सास की इच्छाओं और जरूरतों का ध्यान रखें. एक अच्छी बहू सास की इच्छाओं को मान देती है.

20. अपनी दुनिया में अपनी सास को शामिल करें. उन को साथ ले कर टहलने, योगा क्लास, आर्ट गैलरी, ब्यूटीपार्लर आदि जाएं आप उन की पसंद की जगहों पर भी जा सकती हैं. इस से रिश्ते में मजबूती और भावनात्मक लगाव बढ़ेगा.

21. पति को ले कर सास को ताने न मारें.

22. इस बात को स्वीकार कर लें कि आप दोनों के बीच उम्र में फासले की वजह से पसंद, सोच और सामाजिक मूल्यों का अंतर है. इस वजह से वैचारिक मतभेद होना स्वाभाविक है. उन्हें प्रेम से स्वीकार करें.

23. सहेलियों के सामने सास का मजाक न उड़ाएं.

24. सास को व्यंग्यात्मक या नकारात्मक भाव वाले चुटकुले या घटनाएं न सुनाएं वरना वे उन्हें खुद से जोड़ कर झगड़ सकती हैं.

25. सास के आगे हर बात पर बहाने बनाने या अपनी बात सही साबित करने के लिए बहस करने से बचें.

26. अपनी बात पर कायम रहें पर सास को इस विषय पर भाषण दे कर या जलीकटी सुना कर गुस्सा न करें.

27. सास कुछ सिखा रही हैं तो रुचि ले कर उसे सीखें. उन्हें अच्छा लगेगा.

28. छोटीमोटी बातों को इश्यू न बनाएं. उन्हें हलके ढंग से लें.

29. यह अपेक्षा न करें कि आप की सास और पति आप का चेहरा पढ़ कर सारी बात समझ जाएंगे. उन के आगे शांति और ईमानदारी से अपनी बात रखें.

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30. बहू के तौर पर सास की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के प्रयास में खुद की पहचान बदल लेने से अच्छा है, आप जैसी हैं मूल रूप से वैसी ही रहें. थोड़ाबहुत पौजिटिव चेंज ला सकती हैं, पर जरूरत से ज्यादा खुद में बदलाव लाने का प्रयास आप के मन में असंतुष्टि और झल्लाहट भर देगा और रिश्ता ज्यादा खराब होने का भय रहेगा.

३१ अपनी सास के प्रति आलोचनात्मक रुख न रखें. बहुत सी बहुएं सास के व्यवहार के आधार पर आक्रामक/विरोधी रवैया अपना लेती हैं. जबकि सच यह है कि आप जैसा व्यवहार करेंगी, वैसा ही प्रत्युत्तर आप को मिलेगा.

३२ सास के द्वारा पति से आप की शिकायत, तुलना या आलोचना करने पर आपा न खोए वरन हर मैटर को शांति को हल करें.

३३ अपने बच्चों के आगे सास की बुराई न करें.

३४ पति के घर आते ही उन के आगे उन की मां की शिकायतों का पोथा खोल कर न बैठें. कोई भी पति ऐसी स्थिति में झल्ला उठेगा.

३५ बहुत सी बहुएं अनजाने ही अपनी मां की पक्षपाती बन सास के प्रति बेरुखी का रवैया अपना लेती हैं. मसलन, बच्चों को अपनी मां के पास तो घंटों छोड़ देती हैं पर जब सास वक्त गुजारना चाहे तो पढ़ाई आदि का बहाना बना कर दूर कर देती हैं. याद रखें, आप के बच्चों में आप की सास की जान बसती है. इसलिए बच्चों को दादीमां के पास भी थोड़े प्यार भरे लमहे गुजारने दें.

३६ पति पर थोड़ा तरस खाएं. उन्हें आप दोनों से प्यार है. हर घड़ी उन का इम्तिहान न लें. सास की प्रतियोगी बनने के बजाय उन की सहयोगी की भूमिका निभाएं.

३७ कभीकभी सास की पसंद का खाना भी बनाएं. यदि सास को किसी चीज से परहेज है तो उन के लिए अलग से खाना बनाने में नानुकुर न करें.

३८ खुद को सासू मां की जगह रख कर सोचें. उन की नजर में आप का अनुभव कम है. आप जो काम कर रही हैं, उन की नजर में वह गलत है तो स्वाभाविक है कि वे टोकेंगी. इस में बुरा मानने के बजाय प्यार से उन के आगे अपना पक्ष रखें.

३९ सास से कुछ बोलने से पहले सोचें कि आप अपनी मां से बात कर रही हैं. उसी लहजे और अंदाज में बात करें, जैसे अपनी मां से करती हैं. तब आप को यह आभास होगा कि कई दफा आप सास के प्रति उतनी कोमल नहीं होतीं, जितना आप को होना चाहिए था.

कैसे बनें अच्छी सास

४० यह स्वीकार लें कि बेटा बड़ा हो गया है. उस का अपना परिवार है, बच्चे हैं, जिन्हें वह प्यार करता है. इसलिए अब बहू का सिर्फ आप की ही नहीं, उन की भी जिम्मेदारी उठानी है.

४१ बहू को बदलने का प्रयास न करें. हर किसी का अपना व्यक्तित्व होता है.

४२ पोतेपोतियों के पालने के मुद्दे पर अकसर सासबहू में बहस होती है. आप को समझना होगा कि मां होने के नाते उसे हक है कि वह अपने बच्चों का पालनपोषण अपने ढंग से करें. बहू को जौब करने से रोकें नहीं, बल्कि आगे बढ़ने का मौका दें.

४३ कभी जो प्रभुता आप के हाथ में थी, उसे खुशीखुशी बहू को सौंपें. बहू पर जिम्मेदारियां डाल कर निश्चिंत रहें. सास द्वारा अपनी सत्ता कायम रखने की चाह ही मतभेदों को जन्म देती है.

४४ बेटे को बहू के खिलाफ भड़काएं नहीं, बल्कि उन के बीच प्यार बढ़ाने और उन्हें करीब लाने का प्रयास करें. तभी घर में खुशियां फैलेंगी.

४५ इस बात को समझें कि बहू अलग सामाजिक पृष्ठभूमि, संस्कृति और रीतिरिवाजों के बीच पलबढ़ कर आई है. आप दोनों की सोच और विचारों में अंतर होगा ही, पर इस का मतलब यह नहीं कि आप उस के विचारों को बिलकुल अहमियत न दें. कुछ उस की मानें कुछ अपनी मनवाए.

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४६ पैसों के मामले में बहूबेटे को आजादी दें. उन्हें अपने ढंग से आर्थिक योजनाएं बनाने दें.

४७ बहू के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हों. पहले दिन से ही उसे किसी खास कैटेगरी गर्ल, जैसे पार्टी गर्ल, स्माल टाउन गर्ल, बेवकूफ, घमंडी या जिद्दी घोषित न करें. उसे मौका दें, खुद को प्रूव करने का.

४८ आप अपने लिए प्यारसम्मान की इच्छा रखती हैं, तो वैसा ही प्यारसम्मान आप को बहू को देना होगा.

४९ आप बहू की मां या अभिभावक नहीं हैं, इसलिए उन की तरह बहू पर और्डर न चलाएं.

५० बहू को बेटी की तरह ट्रीट करें. तभी वह भी मां की तरह आप से अपने दिल की हर बात शेयर करेगी. ऐसा होने पर रिश्ते में सदा मिठास कायम रहेगी.

५१ हर वक्त बहू की आलोचना करना छोड़ दें. वह कैसे कपड़े पहनती है, क्या खाती है, कैसा व्यवहार करती है, इन्हें डिसकस करने से अच्छा है, उस की खूबियों पर ध्यान दें. उसे अच्छा करने को प्रेरित करें.

५२ आप बहू से कुछ उलटासीधा कहेंगी तो यह बात सीधे आप के बेटे तक पहुंचेगी और आप बहू के साथसाथ बेटे की नजरों में भी गिर जाएंगी.

५३ बहू की बुराई रिश्तेदारों और पड़ोसियों में न करें, क्योंकि इस तरह घूमफिर कर बात बहू तक पहुंचेगी और स्थिति विस्फोटक हो जाएगी. पुरुष अपनी पत्नी से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं, इसलिए संभव है आप का यह व्यवहार आप को उन से दूर कर दे.

५४ याद रखें, बहू आप के बेटे की जीवनसाथी है और उस की जो बातें या जरूरतें वह समझ सकती है या पूरी कर सकती है, आप नहीं कर सकतीं.

५५ बहू को अपने मामलों में फैसले लेने का हक दें. किसी भी बात पर बहू की तरफ से स्वयं निर्णय लेने की भूल न करें. उस के वजूद को स्वीकारें.

५६ अगर बहू घर गंदा रखती है तो नाकभौं सिकोड़ने के बजाय उस की मदद करें. संभव है, काम अधिक होने की वजह से वह सफाई न कर सकी हो. ऐसे में बातें सुनाने के बजाय स्वयं सफाई करने लगें. आप को काम करते देख वह खुद भी उस काम में लग जाएगी और अगली बार से कोशिश करेगी कि ऐसी नौबत ही न आए.

५७ कुछ खास मौकों पर परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ अपनी बहू के लिए भी  कोई तोहफा लें. इस से रिश्तों में प्रगाढ़ता आती है.

५८ बहू को भी मान दें. कभीकभी उस की तारीफ भी करें. इस से उस के दिल में अच्छा काम करने का उत्साह बढ़ेगा.

५९ बेटेबहू के बीच झगड़ा होने पर किसी एक की साइड लेने से बचें.

६० बेटे की पुरानी गर्लफ्रैंड या पत्नी से बहू की तुलना न करें.

६१ बहूओं को यह बात चुभती है कि सास हर मिनट का हाल जानना चाहती है कि वह क्या कर रही है, उस की जिंदगी में क्या घट रहा है या रुपए कहां खर्च हो रहे हैं वगैरह. ऐसा न कर के थोड़ा स्पेस दे कर चलें. विवाहित बेटे की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा दखल न दें.

६२ बच्चों को बहू बेटे के निजी मामलों का पता करने का जरीया न बनाएं. यह हकीकत बहूबेटे के आगे आएगी तो उन की नजरों में आप का सम्मान कम हो जाएगा.

६३ अपनी बहू से बेटी की तरह व्यवहार करें. उस की राजदार और सहायक बनें. दुख, तकलीफ और संघर्ष के क्षणों में उस का साथ दें.

६४ कभीकभी बहू को प्यार से छुएं, आशीर्वाद दें, गले लगाएं. इस से वह खुद को आप के करीब महसूस करेगी.

६५ अपनी बहू पर एक मां की तरह विश्वास रखें. तभी वह बेटी की तरह आप से सब बातें खुल कर कह सकेगी.

६६ कुछ खास मसलों पर उस की सलाह भी मांगें और उसे मानें भी. बहू को यह बहुत अच्छा लगेगा.

६७ हमेशा बहू की खामियों पर ही ध्यान  न दें. उस के अच्छे पक्ष को भी देखें, क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं होता.

६८ बहू के साथ प्रतियोगिता की भावना न रखें, इस से सिर्फ आप दोनों के बीच तनाव बढ़ेगा.

६९ बहू की भावनाओं का भी खयाल रखें. वह बीमार है तो उस की केयर करें. ऐसी बातें दिल को छू जाती हैं.

७० अपने बेटे को घर के कामकाज में बहू की मदद करने के लिए कहें. इस से बहू के मन में आप के प्रति सम्मान कई गुना बढ़ जाएगा.

७१ यह अपेक्षा न रखें कि आप दूर रहती हैं तो बहूबेटा हर सप्ताह आप से मिलने आएंगे ही. कभीकभी वे अपनी मरजी से सप्ताहांत बिताना चाहें तो चिढ़ें नहीं.

७२ जब बेटे के घर फोन करें और फोन बहू उठाए तो तुरंत बेटे या पोते से बात करने की इच्छा न जताएं. ऐसी बातें बहू को अंदर ही अंदर चुभ जाती हैं और दूरी बढ़ती है. बेहतर होगा कि 2-4 मिनट आप बहू से हालचाल पूछें, बातें करें, फिर बेटे की खोजखबर लें.

७३ हमेशा अपने पोतेपोतियों को सुधारने के मिशन में न लगी रहें. इस से बहू को लगेगा कि आप अप्रत्यक्ष रूप से उस की पेरैंटिंग को नकार रही हैं.
७४बहूबेटा कोई योजना बनाते हैं तो उन के बीच न आएं. उन के फैसलों की भी इज्जत करें.

७५ बातबात पर बहू पर नियंत्रण रखने का प्रयास न करें. इस से बहू मन ही मन आप को दुश्मन समझने लगेगी.

७६ घर की व्यक्तिगत समस्याओं की चर्चा दूसरों के बीच न करें.

७७ घर को युद्ध का अखाड़ा बनाने से बचें. इस से नुकसान आप का ही होगा. आप का बेटा, जिसे आप प्यार करती हैं, वह भी खुश नहीं रह सकेगा. इसलिए हमेशा धैर्य से काम लें.

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७८ काम कैसे करना है, हर वक्त यह डिक्टेट न करती रहें. इस से टैंशन ही बढ़ेगी. हर इंसान दूसरे से भिन्न होता है और भिन्न तरीके से किसी काम को हैंडल करता है, इस सच को समझें.

७९ प्यार पाना है तो इसे दिखाएं भी. बहू को अपनी सपोर्ट दें. फिर देखें केसे वह आप के आगेपीछे घूमती है.

८० बहूबेटे के जीवन में बेवजह दखलंदाजी करने से बचें.

Mother’s Day Special: फैमिली को परोसें टेस्टी और हेल्दी कांजीवरम इडली

साउथ इंडियन खाना हर किसी को पसंद आता है. साउथ का खाना हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी भी होता है. अगर आप को भी हेल्दी और टेस्टी खाना पसंद है तो ये डिश आपके काम की है. आज हम आपको कांजीवरम इडली की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप गरमागरम सांभर के साथ अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को खिला सकती हैं.

हमें चाहिए

– उड़द की धुली दाल ( 02 कप)

– सेला चावल ( 03 कप)

– करी पत्ते ( 03 नग)

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– हींग पाउडर (01 छोटा चम्मच)

– जीरा ( 02 छोटे चम्मच)

– काली मिर्च पाउडर (02 छोटे चम्मच)

– अदरक (02 छोटे टुकड़े कुटे हुये)

बनाने का तरीका

– सबसे पहले चावल और दाल को अच्छी तरह से धो कर अलग-अलग पानी में भि‍गो दें.

– 3-4 घंटे भीगने के बाद इन्हें एक बार फिर धो लें और इसके बाद इन्हें अलग-अलग पीस लें.

– पिसी हुई दाल और चावल को एक में मिला लें साथ ही इसमें अदरक, हींग, जीरा, काली मिर्च पाउडर एवं नमक भी मिला लें और लगभग 20 घंटे के लिए रख दें.

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– 20 घंटे के बाद करी पत्तों को भूनकर मिश्रण में मिला लें. अब एक बड़े बर्तन में पानी भर कर इडली के सांचों में इस मिश्रण को भर कर 25-30 मिनट तक भाप में   पका लें.

– लीजिये, अब आपकी स्‍वादिष्‍ट कांजीवरम इडली तैयार है. इसे प्लेट में इडली चटनी व इडली सांबर के साथ सर्व करें.

मां बनने के दौरान कई सारी जिम्मेदारियां आती हैं-अनामिका सेन गुप्ता

अनामिका सेन गुप्ता

कोफाउंडर, सस्टेनेबल्स

घर हो या बाहर हमेशा महिलाओं के साथ दोेहरी नीति अपनाई जाती है खासकर मां बनने के बाद काम करने पर लोग आश्चर्य की दृष्टि से देखते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है मां बनने के बाद महिलाएं जिम्मेदारी उतनी नहीं ले पातीं, जितनी उन्होंने पहले ली थी. ऐसे में खुद की प्रतिभा को पहचान कर व्यवसाय क्रिएट कर लेना सब से अच्छी बात होती है.

इसी सोच को अपने जीवन का मूल मंत्र बना कर मुंबई की अल्मित्रा सस्टेनेबल्स की कोफाउंडर, मोमप्रैन्योर अनामिका सेनगुप्ता ने सस्टेनेबल और ईकोफ्रैंडली लाइफस्टाइल से लोगों का परिचय करवाया है.

उन से उन की जर्नी के बारे में हुई बात के कुछ खास अंश पेश हैं:

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

मां बनने के बाद ही मैं ने यह व्यवसाय शुरू किया. पहले मैं कौरपोरेट में काम करती थी. जब मैं प्रैगनैंट हुई और बच्चा होने के बाद काम पर लौटी, तो मेरे प्रति लोगों का व्यवहार बदल चुका था. कंपनी को लग रहा था कि मां बनने के बाद मैं काम की जिम्मेदारी लेने में सक्षम नहीं, क्योंकि मैं हायर मैनेजमैंट रोल में काम कर रही थी.

बिना किसी कारण के उन लोगों ने मुझे कंपनी छोड़ने के लिए कहा, जो मेरे लिए काफी शौकिंग था, क्योंकि मैं ने कभी ऐसा अपने लिए सोचा नहीं था, क्योंकि मेरा प्रमोशन भी प्रैगनैंट होने के बाद ही हुआ था.

मेरे हिसाब से जब एक महिला मां बनती है, तो उस की क्रिएटिविटी पहले से अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि उस ने एक बच्चे को क्रिएट कर जन्म दिया है.

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मुझे प्रैगनैंसी के बाद कई महीनों का समय मिला था. उस दौरान मुझे कुछ अलग करने की इच्छा भी पैदा हुई थी, जिसे मैं ने बच्चे के जन्म के साथसाथ शुरू किया, क्योंकि जब मेरे बेटे नियो का जन्म हुआ, तो मुझे उस के लिए बेबी रैप अमेरिका से मंगवाना पड़ा था. उस दौरान मैं ने देखा कि ये रैप मैं यहां भी बना सकती हूं और मैं पेरैंट कंपनी अल्मित्रा तत्त्व के अंतर्गत बेबी रैप बनाने का काम करने लगी और धीरेधीरे मैं ने 3 साल बाद अल्मित्रा सस्टेनेबल्स की भी शुरुआत की.

शुरू में मैं ने सोशल मीडिया का सहारा लिया, जिस में लोगों का रिस्पौंस बहुत अच्छा रहा. अभी 54 देशों में इस की मांग है.

कैसे आगे बढ़ीं?

बेटे के जन्म के बाद मैं उस का किसी भी प्रकार की प्लास्टिक से परिचय नहीं करवाना चाहती थी. पेड़पौधों के बीच वह बड़ा हो रहा है. मैं ने उस के लिए प्लास्टिक टूथब्रश का प्रयोग नहीं किया. उसे बैंबू टूथब्रश दिया. इस तरह जिन चीजों को बेटे की परवरिश में मुझे जरूरत पड़ी, मैं नैचुरल चीजों को खोजती रही. इस से मेरा नैचुरल चीजों में काम करना आसान हुआ.

क्या इस प्रोडक्ट की मार्केटिंग में कुछ मुश्किलें आईं?

शुरू से ही इस का व्यवसाय अच्छा चला है, क्योंकि भारत में मेरी पहली ऐसी कंपनी रही है, जो इस तरीके के प्रोडक्ट बनाती है. यूरोप में इस की मांग सब से अधिक है.

इस काम में परिवार का कितना सहयोग मिलता है?

पूरा परिवार ही सहयोग देता है. यह मेरा अब फैमिली व्यवसाय बन चुका है. मेरे पति बिप्लब दत्ता और ननद कल्यानी दत्ता सभी इस में काम करते हैं. इसे हम सब साथ मिल कर कर रहे हैं. शुरुआत में जब बेटा छोटा था, तब थोड़ी मुश्किलें आईं, लेकिन परिवार ने काफी सहयोग तब भी दिया है.

इस व्यवसाय में किस तरह की समस्या आती है?

समस्या इस में कम आती है, क्योंकि मैं ने हर महिला को काम करने की आजादी दी है. इस के अलावा कारीगरों के साथ भी मेरी ट्यूनिंग अच्छी है. ईकोफैंडली प्रोडक्ट होने की वजह से सब को पहले लगा था कि इसे लोगों तक पहुंचाने में मुश्किलें आएंगी, क्योंकि आम लोग इस की गुणवता को नहीं समझ पाते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. आज हमारे खरीदार यूथ भी हैं, जो अच्छी बात है.

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इस फील्ड में कैरियर बनाना कितना मुश्किल है?

बिलकुल भी मुश्किल नहीं होती. सब से कठिन फेज महिला के मां बनने के बाद आता है. तब मैं ने यह काम शुरू किया था और कोई समस्या नहीं आई. असल में एक महिला का लड़की से मां बनने में कई सारी जिम्मेदारियां आती हैं. ऐसे में अपने दिल की सुनने की जरूरत होती है. महिलाएं इस के साथ अधिक जुड़ सकती हैं, क्योंकि यह काम अगली जैनरेशन के लिए किया जाता है.

क्या कभी ग्लास सीलिंग का सामना  करना पड़ा?

यह तो होता ही रहता है, लेकिन मैं अपने काम और सही उत्पाद पर अधिक फोकस्ड हूं. जब मैं कौरपोरेट में थी, तब ग्लास सीलिंग का सामना महिला होने की वजह से बहुत  अधिक करना पड़ा था और अंत में नौकरी तक छोड़नी पड़ी. यहां मैं अपने हिसाब से सब को अच्छा वातावरण दे रही हूं, इसलिए यहां सभी अच्छे हैं.

मदरहुड के बाद महिलाएं अकसर काम छोड़ घर बैठ जाती हैं, उन से क्या कहना चाहती हैं?

मदरहुड की वजह से मेरी जौब छूट गई थी और मैं ने साहस कर खुद की कंपनी शुरू की और आज सफल हूं. इसलिए आप हमेशा दिल की आवाज सुनें और जो अच्छा लगे, उसे अवश्य करें. अपनी स्ट्रैंथ पर हमेशा विश्वास रखें.

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Mother’s Day Special: मैंगो कोकोनट बर्फी

इस समय आम बहुतायत में बाजार में उपलब्ध है. सफेदा, केसर, अल्फांजो, दशहरी, तोतापरी, नीलम आदि आम की प्रमुख किस्में हैं. आम में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे अनेकों पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने के साथ साथ शरीर में खून की मात्रा को बढ़ाने में भी मददगार होते हैं. इसलिए आम को अपने भोजन में नियमित रूप से शामिल करना चाहिए. यूं भी डॉक्टर्स सीजनल फलों का भरपूर मात्रा में सेवन करने की सलाह देते हैं क्योंकि मौसमी फल हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं. आम से अनेकों लजीज व्यंजन भी बनाये जा सकते हैं…आज हम आपको ऐसी ही एक रेसिपी को बनाना बता रहे हैं-

बनाने में लगने वाला समय  20 मिनट

कितने लोंगों के लिए          20

मील टाइप                        वेज

सामग्री

पका आम                      1 बड़ा

दूध                                 1कप

शकर                               1 कप

किसा ताजा नारियल           3 कप

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इलायची पाउडर                  1/4 टीस्पून

केसर के धागे                       8

बारीक कटे पिस्ता                1 टेबलस्पून

विधि

आम को छीलकर छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर 1/2 कप दूध के साथ मिक्सी में अच्छी तरह ब्लेंड कर लें. बचे आधा कप दूध में केसर के धागे डालकर रख दें. आम की प्यूरी में शकर डालकर तब तक चलाते हुए पकाएं जब तक कि शकर घुल न जाये. अब इसमें किसा नारियल और केसर युक्त दूध डालकर मिश्रण के गाढ़ा होने तक चलाते हुए मध्यम आंच पर  पकाएं. जब मिश्रण पैन में चिपकना छोड़ दे तो इलायची पाउडर डालकर चिकनाई लगी ट्रे में जमाएं.

ऊपर से पिस्ता से गार्निश करके 30 मिनट तक ठंडा होने दें. चौकोर टुकड़ों में काटकर सर्व करें. इसे आप एयरटाइट जार में भरकर फ्रिज में रखकर 15-20 दिन तक प्रयोग कर सकतीं हैं.

यदि आपके पास ताजा नारियल नहीं है तो नारियल बुरादे को गर्म पानी में आधा घण्टा रखकर पानी छानकर प्रयोग करें इससे आपको ताजे नारियल का फ्लेवर मिल जाएगा.

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Mother’s Day Special: मां बनना औरत की मजबूरी नहीं

मातृत्व का एहसास औरत के लिए कुदरत से मिला सब से बड़ा वरदान है. औरत का सृजनकर्ता का रूप ही उसे पुरुषप्रधान समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान देता है. मां वह गरिमामय शब्द है जो औरत को पूर्णता का एहसास दिलाता है व जिस की व्याख्या नहीं की जा सकती. यह एहसास ऐसा भावनात्मक व खूबसूरत है जो किसी भी स्त्री के लिए शब्दों में व्यक्त करना शायद असंभव है.

वह सृजनकर्ता है, इसीलिए अधिकतर बच्चे पिता से भी अधिक मां के करीब होते हैं. जब पहली बार उस के अपने ही शरीर का एक अंश गोद में आ कर अपने नन्हेनन्हे हाथों से उसे छूता है और जब वह उस फूल से कोमल, जादुई एहसास को अपने सीने से लगाती है, तब वह उस को पैदा करते समय हुए भयंकर दर्द की प्रक्रिया को भूल जाती है.

लेकिन भारतीय समाज में मातृत्व धारण न कर पाने के चलते महिला को बांझ, अपशकुनी आदि शब्दों से संबोधित कर उस का तिरस्कार किया जाता है, उस का शुभ कार्यों में सम्मिलित होना वर्जित माना जाता है. पितृसत्तात्मक इस समाज में यदि किसी महिला की पहचान है तो केवल उस की मातृत्व क्षमता के कारण. हालांकि कुदरत ने महिलाओं को मां बनने की नायाब क्षमता दी है, लेकिन इस का यह मतलब कतई नहीं है कि उस पर मातृत्व थोपा जाए जैसा कि अधिकांश महिलाओं के साथ होता है.

विवाह होते ही ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ के आशीर्वाद से महिला पर मां बनने के लिए समाज व परिवार का दबाव पड़ने लगता है. विवाह के सालभर होतेहोते वह ‘कब खबर सुना रही है’ जैसे प्रश्नचिह्नों के घेरे में घिरने लगती है. इस संदर्भ में उस का व्यक्तिगत निर्णय न हो कर परिवार या समाज का निर्णय ही सर्वोपरि होता है, जैसे कि वह हाड़मांस की बनी न हो कर, बच्चे पैदा करने की मशीन है.

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समाज का दबाव

महिला के शरीर पर समाज का अधिकार जमाना नई बात नहीं है. हमेशा से ही स्त्री की कोख का फैसला उस का पति और उस के घर वाले करते रहे हैं. लड़की कब मां बन सकती है और कब नहीं, लड़का होना चाहिए या लड़की, ये सभी निर्णय समाज स्त्री पर थोपता आया है. वह क्या चाहती है, यह कोई न तो जानना चाहता है और न ही मानना चाहता है, जबकि सबकुछ उस के हाथ में नहीं होता है, फिर भी ऐसा न होने पर उस को प्रताडि़त किया जाता है.

यह दबाव उसे शारीरिक रूप से मां तो बना देता है परंतु मानसिक रूप से वह इतनी जल्दी इन जिम्मेदारियों के लिए तैयार नहीं हो पाती है. यही कारण है कि कभीकभी उस का मातृत्व उस के भीतर छिपी प्रतिभा को मार देता है और उस का मन भीतर से उसे कचोटने लगता है.

कैरियर को तिलांजलि

परिवार को उत्तराधिकारी देने की कवायद में उस के अपने कैरियर को ले कर देखे गए सारे सपने कई वर्षों के लिए ममता की धुंध में खो जाते हैं. यह अनचाहा मातृत्व उस की शोखी, चंचलता सभी को खो कर उसे एक आजाद लड़की से एक गंभीर महिला बना देता है.

लेकिन अब बदलते समय के अनुसार, महिलाएं जागरूक हो ई हैं. आज कई ऐसे सवाल हैं जो घर की चारदीवारी में कैद हर उस औरत के जेहन में उठते हैं, जिस की आजादी व स्वर्णिम क्षमता पर मातृत्व का चोला पहन कर उसे बाहर की दुनिया से महरूम कर दिया गया है.

आखिर क्यों औरत की ख्वाहिशों को ममता के खूंटे से बांध कर बाहर की दुनिया से अनभिज्ञ रखा जाता है? जैसे कि अब उस का काम नौकरी या उन्मुक्त जिंदगी जीना नहीं, बल्कि अपने बच्चे की परवरिश में अपना अस्तित्व ही दांव पर लगा देना मात्र रह गया हो.

बच्चे को अपने रिश्ते का जामा पहना कर उस पर अपना अधिकार तो सभी जमाते हैं, लेकिन जो बच्चे के पालनपोषण से संबंधित कर्तव्य होते हैं, उन का निर्वाह करने के लिए तो पूरी तरह से मां से ही अपेक्षा की जाती है. क्या परिवार में अन्य कोई बच्चे का पालनपोषण नहीं कर सकता. यदि हां, तो फिर इस की जिम्मेदारी अकेली औरत ही क्यों ढोती है?

निर्णय की स्वतंत्रता

दबाव में लिया गया कोई भी निर्णय इंसान पर जिम्मेदारियां तो लाद देता है परंतु उन का वह बेमन से वहन करता है. जब हम सभी एक शिक्षित व सभ्य समाज का हिस्सा हैं तो क्यों न हर निर्णय को समझदारी से लें तथा जिम्मेदारियों के मामले में स्त्रीपुरुष का भेद मिटा कर मिल कर सभी कार्य करें. ऐसे वक्त में यदि उस का जीवनसाथी उसे हर निर्णय की आजादी दे व उस का साथ निभाए तो शायद वह मां बनने के अपने निर्णय को स्वतंत्रतापूर्वक ले पाएगी.

एक पक्ष यह भी

कानून ने भी औरत के मां बनने पर उस की अपनी एकमात्र स्वीकृति या अस्वीकृति को मान्यता प्रदान करने पर अपनी मुहर लगा दी है.

मातृत्व नारी का अभिन्न अंश है, लेकिन यही मातृत्व अगर उस के लिए अभिशाप बन जाए तो? वर्ष 2015 में गुजरात में एक 14 साल की बलात्कार पीडि़ता ने बलात्कार से उपजे अनचाहे गर्भ को समाप्त करने के लिए उच्च न्यायालय से अनुमति मांगी थी, लेकिन उसे अनुमति नहीं दी गई. एक और मामले में गुजरात की ही एक सामूहिक बलात्कार पीडि़ता के साथ भी ऐसा हुआ. बरेली, उत्तर प्रदेश की 16 वर्षीय बलात्कार पीडि़ता को भी ऐसा ही फैसला सुनाया गया. ऐसी और भी अन्य दुर्घटनाएं सुनने में आई हैं.

बलात्कार पीडि़ता के लिए यह समाज कितना असंवेदनशील है, यह जगजाहिर है. बलात्कारी के बजाय पीडि़ता को ही शर्म और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है. ऐसे में अगर कानून भी उस की मदद न करे और बलात्कार से उपजे गर्भ को उस के ऊपर थोप दिया जाए तो उस की स्थिति की कल्पना कीजिए, वह कानून और समाज की चक्की के 2 पाटों के बीच पिस कर रह जाती है. लड़की के पास इस घृणित घटना से उबरने के सारे रास्ते खत्म हो जाते हैं और ऐसे बच्चे का भी कोई भविष्य नहीं रह जाता जिसे समाज और उस की मां स्वीकार नहीं करती.

पिछले साल तक आए इस तरह के कई फैसलों ने इस मान्यता को बढ़ावा दिया था कि किस तरह से महिला के शरीर से जुड़े फैसलों का अधिकार समाज और कानून ने अपने हाथ में ले रखा है. वह अपनी कोख का फैसला लेने को आजाद नहीं है. अनचाहा और थोपा हुआ मातृत्व ढोना उस की मजबूरी है.

लेकिन 1 अगस्त, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लड़की के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के असामान्य भू्रण को गिराने की इजाजत दे दी. कोर्ट ने यह आदेश इस आधार पर दिया कि अगर भू्रण गर्भ में पलता रहा तो महिला को शारीरिक व मानसिक रूप से गंभीर खतरा हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 के प्रावधान के आधार पर यह आदेश दिया है. कानून के इस प्रावधान के मुताबिक, 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति उसी स्थिति में दी जा सकती है जब गर्भवती महिला की जान को गंभीर खतरा हो. 21 सितंबर, 2017 को आए मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले ने स्थिति को पलट दिया.

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न्यायालय ने महिला के शरीर और कोख पर सिर्फ और सिर्फ महिला के अधिकार को सम्मान देते हुए यह फैसला दिया है कि यह समस्या सिर्फ अविवाहित स्त्री की नहीं है, विवाहित स्त्रियां भी कई बार जरूरी कारणों से गर्भ नहीं चाहतीं.

कोई भी महिला चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, अवांछित गर्भ को समाप्त करने के लिए स्वतंत्र है, चाहे वजह कोई भी हो. इस अधिकार को गरिमापूर्ण जीवन जीने के मूल अधिकार के साथ सम्मिलित किया गया है. महिलाओं के अधिकारों और स्थिति के प्रति बढ़ती जागरूकता व समानता इस फैसले में दिखाई देती है. अविवाहित और विवाहित महिलाओं को समानरूप से यह अधिकार सौंपते हुए उच्च न्यायालय ने लिंग समानता और महिला अधिकारों के पक्ष में एक मिसाल पेश की है.

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

28 अक्तूबर, 2017 को गर्भपात को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक, अब किसी भी महिला को अबौर्शन यानी गर्भपात कराने के लिए अपने पति की सहमति लेनी जरूरी नहीं है. एक याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह फैसला लिया है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का अधिकार है. गर्भपात कराने के लिए महिला को पति से सहमति लेनी जरूरी नहीं है. बता दें कि पत्नी से अलग हो चुके एक पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. पति ने अपनी याचिका में पूर्व पत्नी के साथ उस के मातापिता, भाई और 2 डाक्टरों पर अवैध गर्भपात का आरोप लगाया था. पति ने बिना उस की सहमति के गर्भपात कराए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी.

इस से पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की याचिका ठुकराते हुए कहा था कि गर्भपात का फैसला पूरी तरह महिला का हो सकता है. अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एम खानविलकर की बैंच ने यह फैसला सुनाया है. फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात का फैसला लेने वाली महिला वयस्क है, वह एक मां है, ऐसे में अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है तो उसे गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है. यह कानून के दायरे में आता है.

हम यह स्वीकार करते हैं कि आज कानून की सक्रियता ने महिलाओं को काफी हद तक उन की पहचान व अधिकार दिलाए हैं परंतु आज भी हमारे देश की 40 प्रतिशत महिलाएं अपने इन अधिकारों से महरूम हैं, जिस के कारण आज उन की हंसतीखेलती जिंदगी पर ग्रहण सा लग गया है.

बच्चे के जन्म का मां और बच्चे दोनों के जीवन पर बहुत गहरा और दूरगामी प्रभाव पड़ता है. इसलिए मातृत्व किसी भी महिला के लिए एक सुखद एहसास होना चाहिए, दुखद और थोपा हुआ नहीं.

हर सिक्के के दो पहलू

बच्चा पैदा करना पूरी तरह से महिलाओं के निर्णय पर निर्भर होने से परिवार में कई विसंगतियां पैदा होंगी.

बच्चे की जरूरत पूरे परिवार को होती है, और उसे पैदा एक औरत ही कर सकती है. ऐसे में उस के नकारात्मक रवैए से पूरा परिवार प्रभावित होगा.

मातृत्व का खूबसूरत एहसास मां बनने के बाद ही होता है. नकारात्मक निर्णय लेने से महिला इस एहसास से वंचित रह जाएगी.

सरोगेसी इस का विकल्प नहीं है, मजबूरी हो तो बात अलग है.

अपनी कोख से पैदा किए गए बच्चे से मां के जुड़ाव की तुलना, गोद लिए बच्चे या सरोगेसी द्वारा पैदा किए गए बच्चे से की ही नहीं जा सकती.

आज के दौर में महिलाएं मातृत्व से अधिक अपने कैरियर को महत्त्व देती हैं. उन की इस सोच पर कानून की मुहर लग जाने के बाद अब परिवार के विघटन का एक और मुद्दा बन जाएगा और तलाक की संख्या में बढ़ोतरी होनी अवश्यंभावी है.

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Mother’s Day Special: फैमिली को खिलाएं जायकेदार मखनी मटर मसाला

अगर आप लंच में अपनी फैमिली के लिए टेस्टी और हेल्दी डिश ट्राय करना चाहते हैं तो मखनी मटर मसाला परफेक्ट औप्शन है.

हमें चाहिए

1 कप मटर उबले हुए

1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

1-2 हरीमिर्चें कटी

1 आलू

1 बड़ा चम्मच फ्रैश क्रीम या मलाई

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तलने के लिए तेल

1/4 छोटा चम्मच गरम मसाला

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1 बड़ा चम्मच घी

1 टमाटर कटा हुआ

नमक स्वादानुसार

बनाने का तरीका

आलू को धो कर छील लें. फिर इस के बड़े टुकड़े काट कर गरम तेल में डीप फ्राई कर लें. उबले मटर, अदरक व लहसुन पेस्ट, हरीमिर्च व टमाटर एकसाथ पीस लें.

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कड़ाही में घी गरम कर हलदी, धनिया पाउडर, 1/4 चम्मच नमक व गरममसाला डाल कर भूनें. इस में उबले मटर का पेस्ट डाल कर भून लें.

फिर इसमें 3/4 कप पानी डाल कर उबलने दें. तले आलू के टुकड़े डालें व फ्रैश क्रीम डाल कर आंच से उतार लें. चावलों के साथ सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : अनुपमा गुप्ता

Mother’s Day Special: सास-बहू की स्मार्ट जोड़ी

शादी हमें एक जोड़े में बांधती है – पति पत्नी की जोड़ी में. लेकिन एक और जोड़ी है जिसमें शादी के कारण हम बंधते हैं और वह है सास बहू की जोड़ी! एक समय था जब पर्दे पर भी सास का किरदार निभाने के लिए किसी निर्दई इमेज वाली एक्ट्रेस जैसे ललिता पवार या शशि कला को चुना जाता था. जिंदगी हो या पर्दा – सास बहू का रिश्ता कड़वाहट भरा होता था. लेकिन यह बीते जमाने की बात होने लगी है. आज के दौर में जहां बहुएं पढ़ी लिखी, नौकरी पेशा, फैशन परस्त और हर लिहाज से स्मार्ट होने लगी हैं वही सासें भी पीछे नहीं रही. आज की सास ने अपनी पुरानी छवि उतार फेंकी है क्योंकि वह अच्छे से जानती है कि बेटे के साथ आजीवन मधुर संबंध बनाए रखने के लिए बहू से अच्छे संबंध रखना बेहद जरूरी है.

स्मार्ट सास और बहू वही है जो एक दूसरे की अहमियत समझती है. बहू जानती है कि सास से अनबन के कारण उसकी गृहस्थी में कलेश घुलेगा और रोजमर्रा का जीवन चलाना कठिन होगा, वहीं सास समझती है कि बहू से बना कर रखा तो पूरे परिवार का सुख मिलता रहेगा और बुढ़ापा भी चैन से गुजरेगा. और फिर जब संबंध इतने निकट का हो तो क्यों ना आपसी मेलजोल और माधुर्य से अपने साथ सामने वाले के जीवन को भी सुखमय बना लिया जाए. कितना अच्छा हो कि बहू जब सास को ‘मम्मी ‘ पुकारे तो वह उसके हृदय से निकले; कि जब सास ‘बेटा ‘ कहे तो उसका तात्पर्य अपने बेटे से नहीं वरन बहू से हो! ऐसा जरूर हो सकता है पर अपने आप नहीं. इसके लिए चाहिए थोड़ी स्मार्टनेस जो दोनों पलड़ों में होनी आवश्यक है. समझदार हैं वे सास बहू जो इस अनमोल रिश्ते की कीमत और गरिमा को पहचानती हैं और देर होने से पहले सही कदम उठा लेते हैं.

एनी चेपमेन, अमेरिकी संगीतकार तथा लोकप्रिय वक्ता, जो स्वयं बहू रही और अब सास बन चुकी हैं, ने कई पुस्तके लिखी, जैसे – ‘ द मदर इन लॉ डांस ‘ , ‘ ओवरकमिंग नेगेटिव इमोशंस ‘ , ’10 वेज़ टू प्रिपेयर डॉटर फॉर लाइफ ‘ आदि. आज के समय में सास बहू के रिश्ते को सुनहरा बनाने के लिए कुछ नियम बताती हैं जो हैं कि न तो सास को बहू की तुलना अपनी बेटी से करनी चाहिए और ना ही बहू को सास की तुलना अपनी मां से करनी चाहिए. साथ ही एनी कहती हैं कि स्मार्ट वो सास और बहू हैं जो एक दूसरे के व्यक्तित्व को पहचान लें. यदि सास या बहु कुछ हठीले स्वभाव की है तो दोनों को चाहिए वे परस्पर नम्रता बनाए रखें लेकिन साथ ही थोड़ी दूरी भी रखें.

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जैसे बहू नई वैसे सास भी

जैसे बहु नई नवेली होती है ठीक वैसे ही सास के लिए भी यह पहला अनुभव होता है. उसे भी नए रिश्ते में ढलना वैसे ही सीखना होता है जैसे बहू सीखती है. इसलिए दोनों को पर्याप्त समयावधि मिलनी चाहिए. हथेली पर सरसों नहीं उगती. इस रिश्ते को सुदृढ़ बनाने के लिए समय और स्पेस की जरूरत होती है. स्मार्ट वो सास बहू हैं जो इस बात को समझते हुए एक दूसरे को पूरा समय और स्पेस दें.

जब वरिष्ठ लेखिका सुधा जुगरान की इकलौती बहू आई तब उन्होंने इस बात को सहर्ष स्वीकारा कि अब उनके बेटे के जीवन और उनके घर में एक अन्य स्त्री का प्रवेश हो रहा है. आम सासु मां की तरह इन्होंने कभी अपनी बहू चारू को खाने, पहनने व सोने को लेकर कोई निर्देश नहीं दिए क्योंकि इनका मानना है कि यह तीनों चीजें किसी भी इंसान की नैसर्गिक जरूरत है और इच्छाएं हैं. इन बातों पर बंधन किसी भी लड़की के जीवन का संतुलन तो डगमगाता ही है अपितु सास बहू के रिश्ते में भी कड़वाहट ला देता है. बेटे के विवाह के बाद सुधा जी ने समझ लिया कि अब उनके लिए केवल उनकी बहू ही हर तरह से महत्वपूर्ण है – उसी की तारीफ, उसी की पसंद, उसी के क्रियाकलाप. उन्होंने सास बहू के रिश्ते को मीठा बनाने का फार्मूला जान लिया था – बेटा तो अपना है ही, सींचना तो उस पौधे को पड़ता है जिसे नया-नया रोपा गया है. शुरू के सालों में इनकी इन्हीं कोशिशों का परिणाम है कि शादी के 6 साल बाद भी दोनों के बीच छोटी-मोटी गलतफहमियां तक सिर नहीं उठा पातीं. वहीं चारु ने भी खुद को बिल्कुल सहजता से नए वातावरण में ढाल लिया. आज वह अपनी सासू मां के साथ शॉपिंग जाती है, दोनों एक जैसी पोशाकें पहनती हैं, गप्पें लगाती हैं ताकि प्यार में यह रिश्ता मां बेटी जैसा, समझदारी में सहेलियों जैसा, और मान सम्मान में सास बहू जैसा बन पाए. सुधा जी के शब्दों में, ” मेरा मानना है विचार बदलो और नजर बदलो, नजारे अपने आप बदल जाएंगे.”

शब्दों का खेल

याद रखिए, सास और बहू अलग परिवेशों से आती हैं, दोनों वयस्क हैं, आज तक की अपनी जिंदगी निश्चित ढंग से जीती आई हैं. शब्दों रिश्तों को पत्थर सा मजबूत भी बना सकते हैं और कांच सा तोड़ भी सकते हैं. सोच समझकर शब्दों का प्रयोग करें. जो भी बोलें, नाप तोल कर बोलें.कोशिश करें कि पहले आप दूसरे की भावनाएं समझें और बाद में मुंह खोले. याद रखें शब्द बाण एक बार कमान से निकल गए तो उनकी वापसी असंभव है, साथ ही, उनके द्वारा दिए घाव भरना भी बहुत मुश्किल. यदि चुप्पी से काम चल सके तो चुप रहे.

बने स्मार्ट बहू

जब बहू अपना घर परिवार, माता पिता, भाई बहन सब कुछ छोड़कर ससुराल आती है तब सास ही उसे प्यार और अपनेपन से दुलार कर ससुराल में मां की कमी महसूस नहीं होने देती. साथ ही बहु को उसके पति (अपने बेटे) के स्वभाव, आदतों, अच्छाइयों, बुराइयों तथा पसंद-नापसंद से परिचित करवाती है. साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों की आवश्यकताओं के बारे में भी समझाती है. नए घर के रीति-रिवाज, परंपराएं एवं रस्में भी बहू सास से ही सीखती है. तो बहू को चाहिए कि अपनी स्मार्टनेस से इस महत्वपूर्ण रिश्ते को मधुर बनाए.

– बहुओं को चाहिए कि वह सास को बुजुर्ग होने के साथ अनुभवी भी माने. अपनी सास से उनके जमाने के मजेदार किस्से सुने – बचपन के, शादी के बाद के, बच्चों को पालते समय संबंधित अनुभव आदि. जब एक सास अपनी बीती हुई जिंदगी के अनुभव अपनी नई बहू से बांटेगी तो उसके मन में बहू के प्रति लगाव बढ़ना स्वाभाविक है जिससे उन दोनों का रिश्ता और सुदृढ़ हो जाएगा.

– बहू अपनी सास से सुझाव लेने में हिचकिचाए नहीं. हो सकता है कि आप अपनी सास के हर सुझाव से इत्तफाक ना रखती हो, फिर भी उनके अनुभव को देखते हुए उनसे सुझाव लेने में कोई हर्ज नहीं है. लेकिन कभी भी उनके दिए सुझावों को व्यक्तिगत लेते हुए उन पर बहस ना करें. सुझाव मानना आपकी इच्छा पर निर्भर करता है, पसंद आए तो माने वरना सास को अपनी सोच से अवगत करा दें.

– रिश्तो में स्पेस देना भी बहुत जरूरी है. आपका पति जो अब तक केवल एक बेटा था और जो अभी तक मां के अनुसार ही चल रहा था, शादी के बाद उसके व्यवहार में परिवर्तन आना स्वाभाविक है. इससे कभी-कभी मां के मन में असुरक्षा की भावना आने लगती है और यह चिढ़ बात- बेबात टोकाटाकी या तानों के रूप में बाहर आती है. यहां एक स्मार्ट बहू का कर्तव्य है कि वह मां बेटे के बीच दरार की वजह ना बने और मां बेटे की आपसी बातचीत का बुरा ना माने, साथ ही हस्तक्षेप ना करे.

नए घर की जिम्मेदारियों को और परिवार के रखरखाव के विषय में जितना बेहतर सास समझा सकती है उतना कोई भी नहीं. नए परिवार में बैलेंस बनाने के लिए सास से अपना रिश्ता एक दूसरे को सुविधा देने की भावना का बनाने की कोशिश कीजिए.

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बने स्मार्ट सास

स्मार्ट सास वह है जो यह बात समझ जाए कि अब नई बहू भी उसके परिवार का हिस्सा बन चुकी है. घर का माहौल सरल रखें ताकि यदि बहू कुछ कहना चाहे तो बेझिझक अपनी बात रख सके. सभी की अपनी कुछ आदतें होती है जिसे हम हमेशा फॉलो करना चाहते हैं. आखिर बहू 25 – 26 वर्ष की आयु में घर में प्रवेश करती है. अगर उसकी कुछ ऐसी आदतें हैं जो सास को पसंद नहीं आ रही तब भी जबरन दबाव डालकर न रोकें. उसे अपनी खास इच्छा या शौक पूरे करने दें तभी वह सब को अपना समझ पाएगी.

– सास होशियारी से बहू की छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करके उसे बेटी की तरह प्यार दुलार दे ताकि उसे मां की कमी महसूस ना हो. तब आपका घर, घर नहीं स्वर्ग बन जाएगा.

– बहू को खुले दिल से अपने परिवार का हिस्सा बनाएं. सास बहू के संबंधों का प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है. यदि सास बहू के बीच संबंध मधुर होते हैं तो घर में व्यर्थ का तनाव नहीं पनपता तथा घर के सभी सदस्य प्रसन्नचित्त रहते हैं.

– सास को चाहिए कि जिस लाड प्यार पर अब तक केवल उसके बेटे का अधिकार था, अब वही प्यार वह बहू बेटे को साथ में बांटे.

टोने-टोटके की दुनिया

सास बहू की नोक झोंक एक ऐसा विषय है जो सदियों से चला आ रहा है. अमूमन हर घर में कभी ना कभी कोई समस्या उभर ही आती है. इसलिए इस विषय पर भी पंडित और धार्मिक दुकानदार अपनी रोटी खूब चालाकी से सेंकने के भरपूर प्रयास करते रहते हैं.

– राजस्थान के वैदिक अनुष्ठान संस्थान के आचार्य अजय द्विवेदी कहते हैं कि मंत्र “ॐ क्रां क्रीं क्रों” का 108 बार जाप करें. सास अपने बेडरूम में मोर पंख रखें जो कि प्रेम और वात्सल्य का प्रतीक होता है. साथ ही बहू पूर्णिमा का व्रत करें. सास और बहू दिन के दोनों पहरों में अपने इष्टदेव का ध्यान करें, उन्हें नैवेद्य अर्पण करें ताकि सास बहू में नकारात्मकता समाप्त हो.

– वेबदुनिया नामक ऑनलाइन चैनल बताता है कि सास व बहू में आपसी संबंध कटु होने पर बहू चांदी का चौकोर टुकड़ा अपने पास रखें. साथ ही शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से हल्दी या केसर की बिंदी माथे पर लगाना शुरू करें. गले में चांदी की चेन धारण करें. और सबसे महत्वपूर्ण बात – किसी से भी कोई सफेद वस्तु ना लें.

– इसी का ठीक उलटा उपाय एस्ट्रो मां त्रिशला बताती हैं कि हर सोमवार को बहू अपनी सास को कोई सफेद चीज खिलाए. साथ ही कुछ सरल उपाय जैसे सास बहू दोनों की फोटो फ्रेम करवाकर उत्तर में लगाएं. और सास हर महीने आने वाली दोनों चौथ पर बहू को सिंदूर का टीका करते हुए “ॐ गंग गणपतए नमः” का जाप करें. बहू को थोड़ा सा गुण और एक मुट्ठी गेहूं किसी चौराहे पर रखते हुए प्रार्थना करनी है कि हे प्रभु हमारे रिश्ते को मां बेटी सा बना दीजिए.

– डॉ आर बी धवन गुरु जी कहते हैं कि 5.5 रत्ती का चंद्रकांत मणि पत्थर लेकर चांदी में बनवाकर बहू को छोटी उंगली में और सास बीच वाली उंगली में सोमवार के दिन धारण करने से गृह क्लेश दूर होगा.

– यूट्यूब पर ‘आपके सितारे’ नाम से अपना चैनल चला रहे वैभव नाथ शर्मा के अनुसार सास बहू के क्लेश को दूर करने के लिए गाय के गोबर का दीपक बनाकर सुखा लें. फिर उसमें तिल का तेल और एक डली गुड़ डालकर दीपक जलाएं जो रात को घर के मुख्य द्वार के मध्य में रखें. मंगलवार की रात को यह करने से सास बहू की दुर्भावना दूर होगी.

ऊपर दिए टोटके तो सिर्फ ट्रेलर है; पिक्चर अभी बाकी है! टोने टोटकों की भरमार इसलिए है क्योंकि लोग अपनी समझदारी पर विश्वास करने की जगह इन अंधविश्वासों की दुनिया में डूबना पसंद करते हैं. पर आप ऐसा कतई न करें. बातों के चक्कर में ना आए, ना ही किसी ढोंगी बाबा – मां ही बातों में फंस कर अपना जीवन दूभर करें. समझदारी से काम लें. अपने आसपास की सास बहू की जोड़ियों को देखें और उनसे सीखने का प्रयास करें.

रीयल लाइफ उदाहरण

दिल्ली की मालती अरोड़ा के पति की मृत्यु बहुत कम उम्र में हो गई थी. उन्होंने नौकरी की, अपने बच्चे पाले. फिर उनकी बहू आ गई जोकि आज के जमाने की थी. उसने इच्छा जताई कि उसकी सास भी उसके साथ मॉल जाएं, शॉपिंग करें और आज के परिधान जैसे जींस और स्कर्ट पहने. मालती जी ने पहले कभी यह सब नहीं किया था. उनका जीवन तो बस जिम्मेदारियों की भेंट चढ़ा रहा था. लेकिन उन्होंने अपनी बहू का पूरा साथ दिया. उन्होंने अपने संकोच को दरकिनार कर जींस और लॉन्ग स्कर्ट पहनना शुरू कर दिया. बहू के दिल में जगह बनाने का यह स्वर्णिम अवसर उन्होंने दोनों हाथ से लपका. आज सब इस सास बहू की जोड़ी को देखकर हैरान हो जाते हैं. मालती जी की समझदारी ने उनके घर को एक मजबूत धागे से बांधे रखा है.

ग्वालियर की गौरी सक्सेना को हर दोपहर में थोड़ा सुस्ताने की आदत थी. जब उनकी बहू आई तो उसने दोपहर में दोनों के पतियों के ऑफिस चले जाने के बाद कभी शॉपिंग तो कभी मूवी का प्रोग्राम बनाना शुरू किया. गौरी ने अपनी आदत को टालते हुए उसका साथ दिया. जैसा प्रोग्राम बनता, वह वैसे ही चल पड़ते. एक बार जब गौरी की बहन मिलने आई और उन्होंने बताया कि तुम्हारी सास बिना दोपहर में सुस्ताए रह नहीं पातीं तब बहू के मन में सास के प्रति आदर भाव और बढ़ गया.

जयपुर की संध्या की जब शादी हुई तब वो एक संयुक्त परिवार का हिस्सा बनी. ऐसे में सबका दिल जीतने के लिए उसने अपनी सास का दामन थामा. जैसाजैसा सास बतातीं, वो वैसा ही करती. धीरे-धीरे पूरा परिवार संध्या का मुरीद हो गया. यहां तक कि शाकाहारी होते हुए भी संध्या ने अपने नए परिवार के स्वादानुसार चिकन भी पकाना सीखा. संसार त्यागने तक उसकी सास केवल उसी के पास रहना पसंद करती रहीं.

कुछ ऐसे टिप्स भी होते हैं जो सास बहू के रिश्ते को और भी मजबूत और प्यारा बना सकते हैं बशर्ते इन्हें सास और बहू साथ में फॉलो करें –

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शेयर करें अपने दिल की बातें: शादी के बाद जहां बहू को नए घर में रहने के रीति रिवाज और रंग ढंग सीखने होते हैं वही सास के मन में भी यह दुविधा होती है कि क्या बहू उनके परिवार के अनुसार खुद को ढाल पाएगी. ऐसे में बेहतर ऑप्शन है कि आप एक दूसरे के साथ अपने मन की बात शेयर करें. इससे आप दोनों को एक दूसरे के विचारों का पता चलेगा और रिश्ता निभाने में आसानी होगी.

अपने विचार एक दूसरे पर न थोपे : यह बात केवल न केवल सास बल्कि बहू को भी समझनी चाहिए कि हर किसी की सोच और विचार अलग होते हैं. अपने विचार दूसरों पर थोपने से उन्हें गुस्सा आना वाजिब है. अगर आप अपने सास बहू के रिश्ते में मिठास रखना चाहते हैं तो एक दूसरे के विचारों का आदर करें. इससे आप दोनों के बीच प्यार बढ़ेगा और रिश्ता मजबूत होगा.

एक दूसरे को दे भरपूर समय : अपनी नई शादी की खुमारी में बहू केवल अपने पति या फिर मायके वालों को ही टाइम दे, यह उचित नहीं. वहीं सास भी अपनी बहू के साथ बैठकर कुछ बातें शेयर करें. एक दूसरे के साथ टाइम स्पेंड करने से न केवल आपको एक दूसरे को समझने का मौका मिलेगा बल्कि प्यार भी बढ़ेगा.

व्यवसाय के क्षेत्र में भी साथ सास बहू

रुचि झा एक इन्वेस्टमेंट बैंकर थीं. एक बार छुट्टियों के दौरान वह अपने गांव पहुंची. रुचि बताती है “उस समय मिथिला पेंटिंग से जुड़े कुछ राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों से मिलने का संयोग बना. उन पेंटिंग्स को देखकर मुझे महसूस हुआ कि मैं इस कला को दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाना चाहती हूं.” रुचि ने कॉर्पोरेट दुनिया से विदा लेने की सोची तो खुद का काम शुरू करने के लिए उन्हें किसी साथी की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि इस काम के लिए उनकी सास रेणुका कुमारी आदर्श साझेदार थीं. दोनों ने मिलकर ‘आइमिथिला हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम प्राइवेट लिमिटेड’ की शुरुआत की तथा अपने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ‘आईमिथिला ‘ से उद्यमिता के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई. साथ ही स्थानीय कलाकारों को भी अपना हुनर दिखाने के लिए एक प्लेटफार्म दिया.

रुचि नोएडा और दिल्ली से मार्केटिंग का काम संभालती हैं जबकि उनकी सास, जोकि वनस्पति विज्ञान प्रोफेसर के रूप में काम कर चुकी हैं, दरभंगा जो मधुबनी आर्ट के लिए मशहूर है, से प्रोडक्शन यूनिट में कलाकारों के साथ समन्वय स्थापित करती हैं. इस सास बहू की जोड़ी ने सुपर स्टार्टअप का अवार्ड भी जीता है.

सास बहू का रिश्ता जितना प्यारा होता है उतना ही नाजुक भी. पूरे परिवार के प्यार और सामंजस्य की धुरी इसी रिश्ते पर टिकी होती है. थोड़ी सी समझदारी से इस रिश्ते को मीठा और मजबूत बनाया जा सकता है. आवश्यकता है तो बस सास और बहू दोनों को इस रिश्ते को निभाने में स्मार्टनेस अपनाने की.

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Mother’s Day Special: बच्चों को ब्रेड के साथ दें गुलकंद जैम

जैम हर बच्चे को पसंद आता है और अगर वह घर पर बना हो तो ये हेल्दी भी हो जाता है. आज हम आपको गुलकंद के जैम की रेसिपी के बारे में बताएंगे. गुलकंद ठंडा और टेस्टी होता है. ये गुलाब के पत्तों से बनता है. इसीलिए ये बच्चों के लिए ठंडक देगा. साथ ही ब्रेड के साथ गुलकंद का टेस्ट बेस्ट टेस्ट देगा.

हमें चाहिए

250 ग्राम ताजी गुलाब की पंखुड़ि‍यां

– 500 ग्राम पिसी हुई मिश्री या चीनी (अगर मीठा कम खाते हैं तो चीनी या मिश्री गुलाब की पंखुड़ि‍यों की बराबर मात्रा में लें.)

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-एक छोटा चम्मच पिसी छोटी इलायची

-एक छोटा चम्मच पिसे सौंफ

बनाने का तरीका

– कांच के एक बड़े बर्तन में एक परत गुलाब की पंखुड़ि‍यों की डालें.

– अब इस पर थोड़ी मिश्री डालें.

– इसके ऊपर एक परत गुलाब की पंखुड़ि‍यों की फिर रखें और फिर थोड़ी मिश्री डालें.

– अब इलायची और सौंफ डाल दें.

– इसके बाद बची गुलाब की पंखुड़ि‍यों और मिश्री को कांच के बर्तन में डालें.

– फिर ढक्कन बंद करके धूप में 7-10 दिन के लिए रख दें.

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– धूप में रखने से मिश्री जो पानी छोड़ेगी, गुलाब की पंखुड़ि‍यों उसी में गलेंगी.

– जब सारी पेस्ट एक सार हो जाए तो इसे जैम के रूप में इस्तेमाल करके अपने बच्चों को खिलाएं.

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