बिना स्मोक करे ही महिलाएं हो रही है लंग कैंसर की शिकार

डा. अरविंद कुमार ने थोरेसिक सर्जन के रूप में पूरे विश्व में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है. डा. कुमार ने 10  हजार से अधिक थोरेसिक सर्जरियां की हैं. वे मिनिमली इनवेसिव (की-होल) और रोबोटिक सर्जरी में भी दक्ष हैं. भारत में सबसे पहले “विडियो असिस्टेड थोरोस्कोपिक सर्जरी (वीएटीएस)” का श्रेय भी उन्हीं को जाता है.

डा. कुमार ने नई दिल्ली स्थित औल इंडिया इंस्टीट्यूट औफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) से एम.बी.बी.एस और फिर एम.एस. (सर्जरी) की पढ़ाई की और फिर यहीं कईं वर्षों तक एक सर्जन और प्रोफेसर के रूप में काम किया. डा. कुमार को कईं विश्व प्रसिद्ध संस्थाओं से अंतर्राष्ट्रीय फैलोशिप प्राप्त है जिनमें लिवरपुल हौस्पिटल सिडनी, औस्ट्रेलिया, युनिवर्सिटी औफ फ्लोरिडा, यूएसए आदि सम्मिलित हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान

को देखते हुए उन्हें 2014 में एमिनेंट मेडिकल पर्सन औफ द ईयर श्रेणी में, डा. बी.सी.राय पुरुस्कार सहित कई सम्मान मिले हैं.

वर्तमान में डा. कुमार, नई दिल्ली स्थित श्री गंगाराम हौस्पिटल में सेंटर फौर चेस्ट सर्जरी के चेयरमैन और इंस्टीट्यूट औफ रोबोटिक सर्जरी के निदेशक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वे  लंग केयर फाउंडेशन के फाउंडर एंड मैनेजिंग ट्रस्टी भी हैं.

देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में लंग कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है. पहले इसे “स्मोकर्स डिसीज” कहा जाता था लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. अब युवा, महिलाएं और धुम्रपान न करने वाले भी तेजी से इस की चपेट में आ रहे हैं. लंग केयर फाउंडेशन द्वारा हाल में किए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लंग कैंसर के शिकार 21 प्रतिशत लोग 50 से कम उम्र के हैं.  इन में से कुछ की उम्र तो 30 वर्ष से भी कम है.

पुरुषों के साथसाथ  महिलाएं भी अब इस की चपेट में अधिक आ रही हैं. जो अनुपात पहले 10 पुरुषों पर 1 महिला का था वो अब बढ़कर 4 हो गया है. आइये जानते हैं डा. अरविन्द कुमार से इस बीमारी से जुड़ी विस्तृत जानकारी;

लंग कैंसर क्या है और कैसे होता है?

फेफडों में असामान्‍य कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास होने पर लंग कैंसर होता है.  यह कोशिकाएं फेफड़ों के किसी भी भाग में या वायुमार्ग (ट्रैकिया) में भी हो सकती हैं. लंग कैंसर की कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं और बड़ा ट्यूमर बना लेती हैं. इन के कारण फेफड़ों के कार्य में बाधा पहुंचती है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार प्रति वर्ष विश्‍व भर में 76 लाख लोगों की मृत्‍यु फेफड़ों के कैंसर के कारण होती है जो विश्‍व में होने वाली मृत्यु का 13 प्रतिशत है.

लंग कैंसर मुख्य रूप से किस वजह से होता है?

लंग कैंसर के 10 में से 5 मामलों में सब से प्रमुख कारण तंबाकू का सेवन होता है. लेकिन अब स्थिति  बदल रही है. अब लंग कैंसर के मामले धुम्रपान न करने वालों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं.

जो लोग धुम्रपान करने वालों के साथ रहते हैं, सेकंड हैंड स्मोकिंग के कारण उन में भी लंग कैंसर होने की आशंका 24 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.

सीओपीडी से पीड़ित लोगों में लंग कैंसर का खतरा चार से छह गुना बढ़ जाता है. इस के अलावा वायु प्रदूषण और अनुवांशिक कारणों से भी लंग कैंसर होता है.

कोई कैसे समझे की उसे लंग कैंसर हो गया है?  इस के शुरूआती लक्षण क्या हैं?

लगातार अत्‍यधिक खांसी रहना ,बलगम में खून आना , सांस लेने और निगलने में समस्‍या आना, आवाज कर्कश हो जाना,  सांस लेते समय तेज आवाज आना, न्‍युमोनिया हो जाना जैसे लक्षण दिखें तो समझें कि लंग कैंसर हो सकता है.

लगातार खांसी रहना और खांसी में खून आना, लंग कैंसर के प्रमुख लक्षण है जो पुरुष व महिलाओं दोनों में होते है. बाकी लक्षण ऐसे है जो दूसरी बीमारियों में भी हो सकतें है.

फेफड़ों के कैंसर के नए और आधुनिक उपचार क्या है?

कैंसर का उपचार इस पर निर्भर करता है कि कैंसर का प्रकार क्‍या है और यह किस चरण पर है. लंग कैंसर के इलाज के कई तरीके हैं – सर्जरी, कीमोथेरेपी, टारगेटथेरेपी, रेडिएशनथेरेपी  एवं इम्यूनोथेरपी.

फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी

फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी तब संभव है जब उस का उपयुक्त स्टेज पर डायग्नोसिस हो जाए. पहले और दूसरे चरण में सर्जरी कारगर रहती है, क्यों कि तब तक बीमारी फेफड़ों तक ही सीमित रहती है. सर्जरी थर्ड ए स्टेज में भी की जा सकती है, लेकिन जब कैंसर फेफड़ों के अलावा छाती की झिल्ली से बाहर निकल जाता है या दूसरे अंगों तक फैल जाता है तब सर्जरी से इस का उपचार नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में कीमोथेरेपी, टारगेट थेरेपी और रेडिएशन थेरेपी की सहायता ली जाती है.

कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी में  साइटोटौक्सिक दवाइयों को नस में इंजेक्शन के द्वारा शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है, जो कोशिकाओं के लिए घातक होती है. इस से अनियंत्रित रूप से बढ़ती हुई कोशिकाएं तो नष्‍ट होती हैं साथ ही यह कई स्‍वस्‍थ कोशिकाओ को  भी प्रभावित करती है.

टारगेट थेरैपी

कीमोथेरैपी के दुष्‍प्रभावों को देखते हुए टारगेट थेरैपी का विकास किया गया है. इस में सामान्‍य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसरग्रस्‍त कोशिकाओं को नष्‍ट किया जाता है. इस के साइडइफेक्‍टस  भी कम होते हैं.

रैडिएशन थेरैपी

रेडिएशन थेरेपी में कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिये अत्‍यधिक शक्‍ति वाली उर्जा की किरणों का उपयोग किया जाता है. इस का उपयोग कई कारणों से किया जाता है. कईं बार इसे सर्जरी के बाद, बची हुई कैंसर कोशिकाओं को क्लीन अप करने के लिए किया जाता है तो कई बार इसे सर्जरी के पहले कीमोथेरेपी के साथ किया जाता है ताकि सर्जरी के द्वारा निकाले जाने वाले ट्युमर के आकार को छोटा किया जा सके.

इम्‍यूनोथेरैपी थेरैपी

बायोलौजिकल उपचार के अंतर्गत कैंसरग्रस्‍त कोशिकाओं को मारने के लिये इम्‍यून तंत्र को स्‍टीम्‍युलेट किया जाता है.  पिछले 2-3 वर्षों से ही इस का इस्तेमाल लंग कैंसर के उपचार के लिए किया जा रहा है. कई रोगियों में इसे मूल इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

फेफड़ों के कैंसर से अपना बचाव कैसे किया जा सकता है ?

  • धुम्रपान न करें, न ही तंबाकू का सेवन करें.
  • प्रदूषित हवा में सांस लेने से बचें.
  • विषैले पदार्थों के संपर्क से बचें. कोयला व् मार्बल की खदानों से दूर रहें.
  • अगर मातापिता या परिवार के किसी सदस्‍य को लंग कैंसर है तो विस्‍तृत जांच कराएं.
  • घर में वायु साफ करने वाले पौधे जैसे कि एरिका पौम, एलुवेरा, स्नैक प्लांट इत्यादि लगवाएं.
  • शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. नियमित रूप से योग और एक्‍सरसाइज करें.

चाहिए तेज तर्रार दिमाग वाले बच्चे, तो ये खबर आपके लिए है

प्रेग्नेंसी में बच्चे की सेहत का राज होता है प्रेग्नेंसी के दौरान मां की डाइट. गर्भावस्था में मां का खानपान किस तरह का है इसपर निर्भर करता है कि बच्चे का सेहत कैसा होने वाला है. अगर आप चाहती हैं कि आपका बच्चा सेहतमंद रहे, मानसिक तौर पर तेज हो तो ये खबर आपके लिए है. बच्चों को मानसिक तौर पर स्मार्ट बनाने के लिए जरूरी है कि मांएं को पोषक खाद्य पदार्थों के साथ साथ विटामिंस की खुराक लेती रहें.

अमेरिका में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि प्रेग्नेंसी के दौरान जिन महिलाओं ने विटामिन सप्लिमेंट की खुराक लेती हैं उनके बच्चे, उन महिलाओं के बच्चों की तुलना में दिमागी तौर पर अधिक तेज तर्रार हैं जिनकी माएं गर्भावस्था के दौरान विटामिन सप्लिमेंट नहीं लेती थी.

आपको बता दें कि इस शोध को 9 से 12 साल के करीब 3000 बच्चों पर किया गया है. जानकारों की माने तो प्रेग्नेंसी के दौरान मां के खानपान का असर बच्चों के संज्ञानात्मक  क्षमताओं पर होता है. विटामिन के तत्व जो प्रेग्नेंसी में बच्चों की मानसिक क्षमताओं को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करते हैं वो हैं फौलिक एसिड, रिबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन बी12, विटामिन सी और विटामिन डी. इन तत्वों को अपनी डाइट में शामिल करने वाली माओं के बच्चों में सोचने, समझने की क्षमता अच्छी रहती है. शोधकर्ताओं के अनुसार प्रेग्नेंसी के दौरान सिर्फ भोजन से इन सभी पोषक तत्वों की भरपूर और पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पाती. इसलिए भोजन के साथ-साथ विटामिन सप्ल‍िमेंट्स की खुराक भी जरूरी हैं.

आपको बता दें कि शुरुआती तीन साल के दौरान ही जो बच्चे ताजे फल, हरी सब्ज‍ियां, मछली और अनाज खाते हैं, उनका स्कूल में रिजल्ट बेहतर होता है. कई शोधों में ये बात स्प्ष्ट हुई है कि जिन बच्चों की डाइट अच्छी रहती है उनमे कौन्फिडेंस भी बेहतर होता है.

प्रेग्नेंसी के दौरान इन चीजों से रहें दूर

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती है जिससे कोख में पल रहे बच्चे को किसी तरह की परेशानी ना हो. इस दौरान ध्यान रखना चाहिए कि गर्भवती महिला को अच्छा खान पान मिले, नियमित एक्सरसाइज और जरूरी सप्लीमेंट्स मिलते रहें. इन बातों के अलावा ऐसी और भी कुछ चीजें हैं जिनमें लापवाही करना नुकसानदायक हो सकता है.

आइए कुछ ऐसी ही बातों के बारे में विस्तार से जाने.

दूर रहें नुकसानदायक गंध ले

कई चीजों के गंध आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है. अगर आप दीवारों पर पेंट करने वाली हैं तो रुक जाइए. पेंट की गंध आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है.

 गर्म पानी से ना नहाएं

गर्भावस्था के दौरान गर्म पानी से नहाना खतरनाक हो सकता है. हालांकि हमेशा इसका असर बुरा नहीं होता. लेकिन संभव है कि शरीर का तापमान 101 डिग्री तक पहुंच जाए और आपका ब्लड प्रेशर गिर सकता है. ऐसा होने पर आपके बच्चे को जरूरी पोषक तत्व और औक्सीजन की कमी हो सकती है. और्गैनाइजेशन ऑफ टेराटोलौजी इन्फौर्मेशन सर्विस की माने तो गर्भवती महिलाओं को अपने शरीर का तापमान 101 डिग्री से नीचे ही रखने की कोशिश करनी चाहिए.

फलों के जूस के अत्यधिक सेवन से बचें

जी हां, गर्भावस्था में अत्यधिक जूस के सेवन से बचें. इसका प्रमुख कारण है कि इसमें शुगर की मात्रा अधिक होती है. जूस पीने से बेहतर है कि आप फलों को खाएं.

पीठ के बल ना सोएं

प्रेग्नेंसी के दौरान पीठ के बल सोने से बचें. इस वक्त सबसे अच्छा होता है कि आप बाईं ओर करवट ले कर सोएं. हालांकि आपके लिए ये थोड़ा मुश्किल हो सकता है. आपको बता दें कि जब गर्भवती महिला पीठ के बल लेटती है तो गर्भाशय का पूरा भार शरीर के दूसरे अंगों पर पड़ता है. इससे ब्लड सर्कुलेशन भी बिगड़ सकता है. पीठ के बल सोने से सांस संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं.

 स्किन केयर प्रोडक्ट्स

आप अपनी त्वचा पर कुछ भी लगाएंगी वो आपके शरीर द्वारा सोख लिया जाता है. इसका प्रभाव आपके बच्चे पर भी होता है. इस दौरान आपको किसी भी तरह के केमिकल्स के उपयोग से बचाव करना चाहिए. खासतौर पर एसिड, रेटिनौयड और बेंजाइल पेरोक्साइड से दूरी बनाएं. अपने ब्यूटी प्रोडक्ट खरीदने से पहले एक बार उसके कंपोनेंट्स जरूर चेक कर लें.

महिलाओं को होता है कैंसर का ज्यादा खतरा, जानिए क्यों

देश में असमय मौत होने वाले कारणों में कैंसर प्रमुख कारण है. 2016 में तरीब 14 लाख कैंसर के मामले दर्ज किए गए हैं. आपको बता दें कि इन आंकडों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. वहीं इंडियन काउंसिल औफ मेडिकल रिसर्च ने साल 2020 तक कैंसर के 17 लाख नए मामलों के दर्ज होने की आशंका जताई है, जिनमें 8 लाख लोगों के लिए जान का खतरा कहीं ज्यादा है.

महिलाओं को होने वाले कैंसर में स्तन, सर्वाइकल, फेफड़े के मामले प्रमुख हैं. एक वेबसाइट के मुताबिक देश में हम मिनट एक महिला की मौत सर्वाइकल कैंसर से होती है. आपको बता दें कि महिलाओं को हर तरह के कैंसरों में स्तन का कैंसर सबसे ज्यादा 27 प्रतिशत होता है.

जानकारों की माने तो महिलाओं में स्तन कैंसर होने के प्रमुख कारण मोटापा, वसा युक्त भोजन, देर से शादी, अपर्याप्त स्तनपान हैं.

बड़े पद पर बैठी एक हेल्थ एक्सपर्ट ने एक आर्टिकल में लिखा कि महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा अधिक कैंसर होने का कारण खान-पान पर ध्यान ना देना है. इसके अलावा वायु प्रदूषण का भी महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. हालांकि इन दोनों कारणों का शिकार पुरुष भी हैं लेकिन जागरूकता के अभाव में महिलाएं देर से इलाज कराती हैं जिसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. इसके अलावा भारत में मासिक धर्म के दौरान महिलाएं साफ-सफाई का ख्याल नहीं रख पातीं जिसकी वजह से भी स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं हो जाती हैं.

2 से ज्यादा बच्चों की प्लानिंग कर रहीं हैं तो है जान का खतरा

जिन महिलाओं के दो से अधिक बच्चे होते हैं, उनमें हार्ट अटौक का खतरा बढ़ जाता है. इस बात की पुष्टी यूके में हुए एक शोध में हुई. कैंब्रीज यूनिवर्सिटी के छात्रों द्वारा किए इस शोध में ये स्पष्ट हुआ कि हर बच्चे के जन्म से मां के दिल में खिंचाव होता है. जिसकी ओर किसी का भी ध्यान नहीं जाता. इसके अलावा बच्चों के पैदा होने पर घर में कामकाज भी अधिक हो जाता है, जिसके चलते मां अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाती.

इस शोध में ये बात भी सामने आई कि महिलाएं जिनके दो बच्चे होते हैं, कि तुलना में महिलाएं जिनके 5 बच्चे हैं, उनमें दिल की बीमारी का खतरा 30 फीसदी बढ़ जाता है.

इस लिए जरूरी है कि लोग छोटे परिवार रखें और मां की सेहत का खासा ख्याल रखें. आपको बता दें कि इस शोध में करीब 8000 महिलाओं को शामिल किया गया, जिनकी उम्र 45 से 64 साल की थी.

त्वचा संबंधी इन परेशानियों का इलाज है अंडा

अंडा प्रोटीन का प्रमुख स्रोत होता है. इसके सफेद हिस्से में प्रोटीन और एलबुमिन की प्रचूर मात्रा होती है है. त्वचा संबंधी कई समस्याओं में ये बेहद कारगर होता है. आपको बता दें कि एलबुमिन वही तत्व है जिससे स्किन टोनिंग की जाती है. इस गुण के कारण झुर्रियों की समस्या कम होती है.

सूरज की रोशनी, प्रदूषण, स्मोकिंग, एल्कोहल, मोटापा, खानपान की आदतें, कैमिकल भरे स्किन प्रोडक्ट, डिहाइड्रेशन की वजह से त्वचा का इलैसटिन और कोलेजन नष्ट हो जाता है. इससे त्वचा पर पिंपल्स, झुर्रियां और उम्र के निशान नजर आने लगते हैं. आपको बता दें कि अंडे के सफेद हिस्से का फेस मास्क बना कर इस्तेमाल करने से स्किन टाइट होती है. यह त्वचा का सारा तेल सोक लेता है. इसके अलावा इसके विटामिन्स और मिनरल्स त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि अंडा हमारी त्वचा के लिए कैसे फायदेमंद है.

औयली स्किन के लिए शानदार

औयली स्किन में मुहांसो और एक्ने की समस्या बेहद आम है. एग व्हाइट इस परेशानी में भी काफी कारगर है. इससे आपकी त्वचा में मौजूद अतिरिक्त तेल बाहर हो जाता है. मास्क लगाने से पहले चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें. इसके बाद चेहरे पर मास्क लगाएं. मास्क सूखने के बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. नियमित तौर पर ऐसा करने से कुछ ही दिनों में आपको अंतर महसूस होगा.

स्किन टाइटनिंग

अंडे के सफेद हिस्से में ऐसे गुण होते हैं जो त्वचा के पोरों को छोटा कर त्वचा को टाइट करते हैं. एग व्हाइट मास्क बना कर उसमें नींबू डाल लें. उसे चेहरे पर लगाएं. कुछ देर तक उसे छोड़ दें. बाद में इसे गुनगुना पानी से धो लें. हफ्ते में दो बार इसका इस्तेमाल करने से आपको अंतर दिखेगा.

चेहरे के बाल हटाए

चेहरे पर छोटेछोटे बालों का आना एक आम परेशानी है. इससे नीजात पाने में एग व्हाइट मददगार है. माथे, गाल और अपर लिप्स पर छोटेछोटे बाल हटाने के लिए एग व्हाइट लगा सकती हैं. जब यह सूख जाए तो मास्क को खींचकर हटा लें.

कीलमुंहासों से छुटाकरा दिलाए

ऐक्ने या औयली स्किन त्वचा की ऊपरी परत पर धूल जमा होने की वजह से होते हैं. एग व्हाइट से आपकी त्वचा का एक्स्ट्रा तेल निकल जाता है जिससे अपने आप ऐक्ने और पिंपल खत्म हो जाते हैं.

30 से ज्यादा की उम्र में प्रेग्नेंसी हो सकती है खतरनाक

एक वक्त था जब बेहद कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी. आज लोगों की सोच में बदलाव देखा जा रहा है. बहुत से लोग अब लड़की के 30 की उम्र के बाद शादी कर रहे हैं. लड़कियों की प्राथमिकता शादी नहीं रही. वो अपने करियर के लिए ज्यादा फोकस हैं. यही कारण है कि बच्चा होते होते लड़की की उम्र 32-34 हो जाती है. पर एक महिला की सेहत लिहाज से ये अच्छा नहीं है.

बढ़ती उम्र के साथ ही गर्भवती होने और बच्चे को जन्म देने से संबंधी कई समस्याएं हो जाती हैं. जिसमें मां और बच्चे दोनों को खतरा है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि अगर आप 30 की उम्र के बाद मां बनने की प्लानिंग कर रही हैं तो आपको क्या परेशानियां हो सकती हैं.

इसी उम्र में शुगर का खतरा तेज रहता है. प्रेग्नेंसी में इस परेशानी का होना बच्चे और मां, दोनों के लिए काफी खतरनाक है. इस स्थिति में अगर बच्चे का जन्म सर्जरी से होता है तो इसमें जोखिम और ज्यादा बढ़ जाता है.

35 की उम्र में गर्भ धारण करना काफी मुश्किल होता है. उम्र के इस पड़ाव के बाद गर्भ धारण करने पर गर्भपात होने की आशंका बहुत अधिक बढ़ जाती है.

आपको बता दें कि 35 से ज्यादा की उम्र में नार्मल डिलिवरी होने की संभावना काफी कम हो जाती है. ऐसे में सर्जरी आप की मजबूरी हो जाती है. अगर आप 35 की उम्र के पार हैं और बेबी प्लान कर रही हैं तो डाक्टर से जरूर संपर्क करें.

इस उम्र में प्रेग्नेंसी में महिलाओं में उच्च रक्तचाप की समस्या होने का खतरा काफी बढ़ जाता है. हाई ब्लड प्रेशर की स्थिति में मां और बच्चे, दोनों का नुकसान है.

35 की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी में भ्रूण का विकास समान्य नहीं हो पाता. इसके कारण बच्चे में विकार होने की संभावना तेज हो जाती है.

बच्चों को इन रोगों से बचाने के लिए जरूरी है मां का दूध

नवजात के लिए मां का दूध बेहद जरूरी होता है. बच्चे को जितना पोषण मां की दूध से मिलता है, उतना किसी और चीज से नहीं मिलता. जानकारों की माने तो दूध में जटिल शर्करा का विशेष संयोजन होता है, जो भविष्य में होने वाली एलर्जी से बच्चों को  बचाता है. इससे उनमें रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है.

आपको बता दें कि मां के दूध में ओलिगोसैकराइड्स (एचएमओ) पाया जाता है. जिसकी संरचनात्मक में जटिल शर्करा के अणु होते हैं. यह मां के दूध में पाए जाने वाले लेक्टोज और वसा के बाद तीसरा सबसे बड़ा ठोस घटक है.

असल में बच्चे इसे पचा नहीं पाते हैं लेकिन लेकिन शिशु के आंत में माइक्रोबायोटा के विकास में प्रिबॉयोटिक के तौर पर काम करते हैं. माइक्रोबायोटा एलर्जी की बीमारी पर असर डालता है.

इस शोध को एक साल से कम उम्र के बच्चों पर किया गया. उनकी त्वचा पर इसकी जांत की गई. जिसमें पाया गया कि स्तनपान करने वाले शिशुओं ने खाद्य पदार्थ की एलर्जी के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाई.

शोध में शामिल शोधार्थियों की माने तो, परीक्षण में सकारात्मक लक्षण का पाया जाना जरूरी नहीं है कि वह एलर्जी का साक्ष्य हो, लेकिन यह उच्च संवेदनशीलता का संकेत अवश्य देता है. बाल्यावस्था के संवेदीकरण हमेशा बाद के दिनों तक नहीं बने रहते हैं, लेकिन वे भविष्य में एलर्जी बीमारी के महत्वपूर्ण नैदानिक संकेतक और संभावनाओं को उजागर करते हैं.

केले का छिलका है बेहद फायदेमंद, जानिए इसके गुण

केले के फायदे के बारे में सभी लोग जानते हैं. सेहत के लिए केला बेहद फायदेमंद होता है. इसमें विटामिन, मिनरल्‍स, प्रोटीन, एंटी फंगल, फाइबर प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं. पर क्या आप केले के छिलके से होने वाले फायदों के बारे में जानती हैं? आम तौर पर लोग केला खा कर छिलका फेंक देते हैं. इस खबर में हम केले के छिलके से होने वाले फायदों के बारे में बताएंगे. जिसके बाद आप उन्हें कभी फेंकेंगी नहीं.

आइए जानते हैं कि केले के छिलके किस तरह से हमारे लिए फायदेमंद हो सकते हैं.

  • केले का छिलका हमारे मूड को अच्छा करने में काफी मददगार होता है. इसमें सेरोटोनिन हार्मोन पाया जाता है, जो हमारे मूड को हल्का करता है और हम अच्छा महसूस करते हैं. एक स्टडी के मुताबिक 3 दिन तक रोजाना केले के 2 छिलके खाने से शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन की मात्रा 15 फीसदी तक बढ़ जाती है.
  • आपको बता दें कि केले के छिलके में सबसे ज्यादा फाइबर पाया जाता है. ये दो तरह के होते हैं. सौल्यूबल और इनसौल्यूबल. ये शरीर में कौलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करते हैं.
  • केले के छिलकों में ल्यूटिन होता है. यह तत्व आंखों की रोशनी को तेज करता है.
  • केले का छिलका शरीर में पैदा होने वाली लाल कोशिकाओं को टूटने से रोकता है.
  • केले के छिलके में फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है. मोटापे को कम करने में ये काफी सहायक होता है.
  • केले के छिलकों में ट्रिप्टोफेन नाम का केमिकल होता है. इससे आपको अच्छी और सुकून की नींद आती है.
  • केले का छिलका खून को साफ करने में मदद करता है. इतना ही नहीं बल्कि यह कब्ज की बीमारी को दूर करने के साथ इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है.

चेहरे पर चमक और पाचन दुरुस्त चाहिए तो पढ़ें ये खबर

जीने के लिए खाने से कहीं ज्यादा जरूरी है पानी. जानकारों का मानना है कि अच्छी सेहत के लिए 8 से 10 ग्लास पानी जरूरी है. पर क्या आपको पता है कि गर्म पानी पीने से सेहत को कई तरह के फायदे पहुंचते हैं. शरीर की कई बीमारियों में गर्म पानी पीना काफी लाभकारी होता है. इस खबर में हम आपको गर्म पानी पीने के फायदे बताएंगे.

वजन होता है वजन

वजन कम करने में गर्म पानी बेहद कारगर उपाय है. गर्म पानी में नींबू और शहद मिला कर लगातार तीन महीने तक पिएं. खाना खाने के बाद रोज एक ग्लास पानी पीना आपके लिए फायदेमंद होगा.

 बौडी करे डिटौक्‍स

गर्म पानी पीने से बौडी डिटौक्स होती है. आम भाषा में समझें तो शरीर की सारी अशुद्धियां निकल जाती हैं. गर्म पानी पीने से शरीर का तापमान बढ़ने लग जाता है, जिससे पसीना आता है और इसके माध्यम से शरीर की अशुद्धियां दूर हो जाती हैं.

पेट की परेशानी रहे दूर

पाचन क्रिया के लिए गर्म पानी का सेवन लाभकारी होता है. खाने के बाद गर्म पानी पीने की आदत डाल लें. इससे खाना जल्दी पच जाएगा, पेट हल्का रहेगा और साथ में गैस की समस्या से भी राहत मिलेगी.

चमकदार होते हैं बाल

बालों के लिए भी गर्म पानी का सेवन काफी फायदेमंद होता है. इससे बाल चमकदार होते हैं. बालों के ग्रोथ के लिए भी गर्म पानी काफी असरदार होती है.

जोड़ों का दर्द करें दूर

जोड़ों के दर्द में गर्म पानी काफी असरदार होता है. आपको बता दें कि हमारी मांसपेशियों का 80 फीसदी भाग पानी से बना हुआ है. गर्म पानी पीने से मांसपेशियों के एठन में राहत मिलती है.

बढ़ती उम्र थम जाए

चेहरे की झुर्रियों में गर्म पानी का सेवन काफी फायदेमंद होता है. अगर आप अपनी झुर्रियों के निजात पाना चाहती हैं तो आज ही से गर्म पानी पीना शुरू कर दें. कुछ ही हफ्तों में स्किन में कसाव आने लगेगा और स्किन चमकदार भी हो जाएगी.

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