Serial Story: मार्जिन औफ एरर (भाग-2)

पहली बार अच्युत और दर्शित एकदूसरे से मिल रहे थे. महिका एक बड़े बिज़नैस फर्म का हिस्सा है, इतना तो जानता था दर्शित, लेकिन उस के सामने इतना अनिंद्य सुंदर युवक खड़ा होगा, जतन से बारबार दिल को घिस कर छुड़ाया गया. उस का डर उस के इतना सामने होगा, उसे अंदेशा न था.

साल में 10 लाख रुपए से ऊपर कमाने वाली महिका को कभी पैसे की नजर से आंका नहीं उस ने, मगर आज अच्युत के आगे महिका उस की पहुंच के बाहर के छीके में लगी मक्खन महसूस हो रही है.

आज से 4 वर्षों पहले जब दोनों रहने को एक अदद किराए का फ्लैट ढूंढ़ रहे थे तब महिका दर्शित से टकराई थी और उसी की पहल पर दोनों किराए के इस फ्लैट में साझा हिसाब से रहने लगे थे. तब महिका किसी छोटे से वर्कशौप में रिसैप्शनिस्ट थी और छिटपुट मौडलिंग करती थी. अव्वल तो वह महीने के 15 हजार रुपए किराए दे ही नहीं सकती थी, दूसरे, जितना वह पैसे दे सकती थी, दर्शित ने उस की भी कभी आशा नहीं की. उस ने सिर्फ मांगा था भरोसा और प्यार. और हां, दर्शित को महिका से प्यार होता जा रहा था.

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मिलनसार स्वभाव के हैंडसम अच्युत को देख दर्शित झिझक रहा था. सरसरी निगाह उस ने अच्युत की उंगलियों पर चलाई. सोने की अंगूठी जिसे वह ढूंढ़ रहा था, वास्तव में वह तो उस की उन उंगलियों में उस अंगूठी की अनुपस्थिति को ढूंढ़ रहा था, जिसे महिका ने 5 दिनों पहले खरीदा था. उसे अच्युत की उंगलियां सोनेहीरे की अंगूठियों से लदीफंदी मिलीं, जिन में महिका की अंगूठी भी रही हो. लेकिन अब दर्शित को खुशफहमी में रहने की कला आ गई थी शायद डार्विन के सर्वाइवल सिद्धांत के अनुरूप. उस ने अंगूठी वाली बात दिल से निकाल देने में ही अपनी भलाई समझी.

अच्युत से बातचीत में यह तय हुआ कि उन की अनुपस्थिति में अकाउंट का फाइनल और रुपयों को बैंक में जमा करवा देने का काम दर्शित का होगा.

रात को बैडरूम में आसपास सोते हुए दर्शित ने महिका से कहा, “मही, हम 4 साल से लिवइन में हैं, अब मुझे डर सताने लगा है. क्या दुबई जाने से पहले तुम मुझ से शादी कर लोगी?”

“क्यों, डर कैसा?” महिका ने लापरवाही से कहा.

“तुम मेरे पास वापस तो आओगी न इसी तरह, जैसे अभी हो?”

“अरे यार, तुम बड़े झक्की और सेंटी हो. इतना क्यों सोचते हो. सब ठीक है. मुझे सोने दो, सुबह काफी सारी तैयारी करनी है. तुम भी अपना काम समझ लेना.”

दर्शित को उस का जवाब नहीं मिला, वह शांति और निश्चितता नहीं मिली जो एक समर्पित प्रेमी अपनी प्रेमिका से चाह सकता है.

महिका पीछे मुड़ कर सो गई है.

जिंदगी के छूटे क़दमों को भी तो वह पीछे छोड़ आगे बढ़ आई है आज.

एक किशोरी जिसे पिता और भाई के कड़े अनुचित अनुशासन में लंबा समय गुजारना पड़ा, जिस की मां का आंचल 10वीं पास करते हुए छूट गया और मां की किडनी की बीमारी से मृत्यु के बाद पिता से हमेशा यह सुनना पड़ता रहा कि ‘बेटी को फूलकुमारी बना कर छोड़ गई इस की मां, यह नहीं कि औरत जन्म लेने का सही कायदा सिखा जाती. बहुत लाड़ दिया बेटी को. अब बातबात पर टेसुएं बहाएगी नकारा.’

सरल नहीं था आज की इस महिका को अपने अंदर तैयार करना. अब इस बदलाव के साथ वह खुद से बिलकुल भी उम्मीद नहीं करती कि उसे पुरुष समाज के प्रति स्नेहिल समर्पित होना चाहिए. पिता और बड़े भाई के प्रकोप से बचने के लिए फिर भी कुछ तो मां का स्नेहिल स्पर्श था, लेकिन मां के जाने के बाद जैसे महिका अनाथ ही हो गई थी. पिता के वाक्यवाण हों या भाई के थप्पड़, या फिर घुटनभरी पराधीनता, सारी लड़ाई तो उस के अकेले की ही थी.

जैसेतैसे स्नातक कर उस के लिए मां द्वारा रखी गई गहने की पोटली को लिए वह चुपके से मुंबई की ट्रेन में चढ़ चुकी थी. खुद का परिचय छिपा कर कैसेकैसे पापड़ बेले उस ने कि आज वह बड़ी बिज़नैस फर्म में पर्सनल असिस्टैंट है और आगे सुनहरा अवसर उस के द्वार पर खड़ा है.

कोई अर्थ नहीं दर्शित के इन प्रलापों का. उसे जो पाना है, पा कर रहेगी. पुरुषों की भावना भी भला कभी सच्ची हुई है, उस ने तो नहीं जाना है. यह सब सोचती है महिका.

दुबई के एक शानदार होटल के सुइट में अच्युत शूटिंग के बाद स्पा के लिए तैयार थे कि महिका अंदर आई, . “गुड इवनिंग सर.”

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अच्युत चाय तैयार करने की तयारी में थे, बोले, “चाय लोगी?”

“लाइए सर, मैं बनाती हूं.”

अच्युत के पास सोफे पर बैठते हुए महिका के हाथ के स्पर्श ने अच्युत को अवाक नहीं किया. वे महीनों से महिका का मन पढ़ रहे थे. हां, खुद कुछ झिझक में पड़ गए. बाथिंगगाउन में उन के अधखुले बदन के बहुत करीब थी फ्लर्ट करने को उत्सुक महिका.

चाय खत्म करते ही अच्युत उठ खड़े हुए और बड़ी सी खिड़की के सामने खड़े हो कर दुबई का नजारा देखते हुए कहा, “दर्शित की ओर से कोई ख़बर?”

महिका ने बहाने से फिर अच्युत के सीने से लग कर खड़ी होते हुए जवाब दिया, “वहां की डिटेल मैं ने मेल कर दी है आप को. सर, फिर से आप को शुक्रिया कहना था, आप ने मुझे दुबई आने का, नई दुनिया देखने का मौका दिया.’

अच्युत शांति से पीछे हटते हुए बोले, “कोई बात नहीं. एंजौय द मूड एंड अपौरचुनिटी. मैं आता हूं स्पा से. तुम अभी अपने कमरे में जा सकती हो.”

तीनचार दिन सिनेमा शूटिंग की व्यस्तता रही. इस दौरान महिका को अच्युत के आसपास जाने की गुंजाइश नहीं रही.

4 दिनों बाद रात को 9 बजे अच्युत जब अपने सुइट में डिनर कर रहे थे, महिका हाथ में 2 गिलास बादाम की लस्सी के साथ पहुंची, काफी जोर दे कर कहा, “सर, कितने दिनों बाद आप से मिल रही हूं. मुझे पता है आप को बादाम की लस्सी पसंद है, मेरे लिए ले लीजिए.”

अच्युत की खास इच्छा तो नहीं थी, फिर भी महिका को निराश न करते हुए उन्होंने पी लिया.

खाना ख़त्म करते तक अच्युत कुछ थकान महसूस कर रहे थे.

महिका से कहा, “शायद तीनचार दिन के लगातार शूटिंग के बाद ज्यादा थकान महसूस कर रहा हूं, सोना चाहता हूं, महिका अब तुम जाओ.”

महिका लौटने के बजाय उन के बिस्तर पर आ कर उनींदे अच्युत को सोने में मदद करने लगी.

इस के बाद अच्युत को होश नहीं रहा कि महिका कब तक उन के साथ रुकी.

सुबह अच्युत को सिर भारी सा लगा. आंखें खुल नहीं रही थीं, कमज़ोरी के साथ उबासी सा छाया रहा मूड पर.

अच्युत ने शूटिंग यूनिट को फोन कर डाक्टर बुलवाया और सारे जरूरी टैस्ट करवाए.

महिका ने अच्युत की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी. बिजनैस की जानकारी से ले कर शूटिंग में साथ, निजी देखभाल से ले कर खुश रखने की कोशिश. बस, उस की एक जिद फिर अच्युत ने पूरी नहीं होने दी कि चाय या कौफी बना कर वह अच्युत को पिलाए.

वापस मुंबई आ कर फिर से नाविक ने अपनी पुरानी किस्ती संभाली, यानी, अच्युत अपने कामों पर गौर फरमाने लगे.

अकाउंट का मसला देख अच्युत के पैरों के नीचे से जमीन लगभग खिसक ही गई. लाखों रुपए महिका और अच्युत के बिजनैस फर्म के जौइंट अकाउंट में इन दिनों डाले गए थे.

महिका ने यह नया अकाउंट खुलवाया था और दर्शित को अथौरिटी दे रखी थी. यह सब कब और क्यों?

अच्युत को अब तक लगता था कि महिका सिर्फ उसे पाने की होड़ में है. अब रुपयों का यह खेल…

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महिका से अच्युत ने सीधे पूछा. महिका आश्चर्य में पड़ गई. बाध्य हो कर अच्युत ने दर्शित को बुलवा भेजा. हफ्ता बीत गया और जब दर्शित नहीं आया तो अच्युत परेशान होने लगे. इस बीच अचानक बैंक से महिका का नाम कट कर सिर्फ दर्शित का नाम रह गया. इस अकाउंट में 12 लाख जमा किए गए थे अच्युत के बिज़नैस की कमाई से. दोचार दिन में वे रुपए गायब होने लगे, यानी निकाल लिए गए.

अच्युत की मानसिक परेशानी की वजह ये 12 लाख रुपए नहीं थे. फिर भी वे परेशान थे. अब महिका के लिए उलझने की बारी थी. जब 12 लाख रुपए के जाने का गम नहीं, तो परेशान क्यों हैं अच्युत. महिका देख रही थी कि अच्युत दिन में कई बार अपने काम की टेबल पर सिर रख कर सो जाया करते हैं. और पूछने पर, रातभर नींद न आने की बात कहते हैं.

एक दिन अच्युत महिका के साथ मनोरोग विशेषज्ञ डाक्टर केशव के पास पहुंचे. महिका ने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए अच्युत की परिस्थिति के प्रति अपनी संवेदनशीलता दिखाई. अच्युत ने कहा, “डाक्टर साहब, महिका ही अब से मेरे बारे में बात कर लेगी, मेरी दवा आदि आप इन्हें ही दे देना.”

महिका अब अच्युत को बिना नागा के दवा खिला जाती.

अच्युत को थोड़ा सुस्त, मायूस और उनींदी देखती महिका तो उस के सिर पर हाथ फिराती, उसे अपने करीब लाने की कोशिश करती. थोड़ा अवाक होती कि अच्युत हमेशा उस से अलग हो कर किसी काम के लिए कैसे उठ कर चले जाते हैं जब उसे लगता कि अब वह अच्युत को कमजोर कर सकेगी.

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Serial Story: मार्जिन औफ एरर (भाग-3)

इधर दर्शित का मसला वाकई बहुत पेचीदा लग रहा था अच्युत को. देखनेभालने में इतना सीधा. ऐसा कैसे कर सकता है कि महिका को छोड़ कर रुपए ले कर भाग जाए. क्या महिका ने उसे समझने में भूल की? महिका की मानें तो ऐसा ही है.

एक दिन अचानक किसी से कुछ कहे बिना अच्युत दर्शित के होटल पहुंच गए. अच्युत को उम्मीद ही नहीं थी कि दर्शित होटल में मिलेगा भी.

दर्शित उन्हें यों अचानक देख कर कुछ अचंभित, अप्रत्याशित सा महसूस करता उन की ओर बढ़ आया और अच्युत को मजबूरन अपने संग अपने छोटे से केबिन में ले गया.

अच्युत मन ही मन तैयार हो कर ही आए थे, भले ही उसे दर्शित के यहां होने की उम्मीद न थी.

“दर्शित, मै जानता हूं, तुम निर्दोष हो. मुझे मेरे 12 लाख रुपयों की फिक्र जितनी है उस से ज्यादा मुझे तुम्हारी फिक्र है. मैं असली अपराधी को पहचानता हूं, तुम मुझे, बस, इतना बता दो कि तुम इतना भी क्यों डर रहे हो कि सामने वाले की सारी बातें तुम्हें माननी पड़ीं? तुम बताओगे दर्शित, वरना मैं पुलिस को बुलाऊंगा.”

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दर्शित अब तक सफेद पड़ चुका था, कहा, “महिका की शर्तों की वजह से. मैं उसे हमेशा के लिए खोना नहीं चाहता था, एक दर्द है जो दोबारा महसूस करने की मुझ में हिम्मत नहीं थी.”

“दर्शित, मैं जब तुम से मिला था, इतना जरूर समझा था कि आदमी तुम खरे हो. मैं बिजनैसमैन हूं, इंसान को समझे बिना काम नहीं चलता. कुछ तो दिक्कत है तुम्हारे साथ. क्या तुम महिका के साथ सीरियस रिलेशन में हो? महिका को देख कर वैसे कभी लगा नहीं. एक दोस्त समझो मुझे और खुद को मेरे सामने खोल दो. मैं जो कुछ समझ रहा हूं उस से दुविधा बढ़ रही है. अपने बारे में बताओ, तो यह दुविधा मिटे,” अच्युत करुणा से भरा दर्शित की आंखों में सीधा देखते हुए कह रहा था. विश्वास की एक नाजुक मगर स्पष्ट रोशनी दर्शित की आंखों तक पहुंच रही थी.

“अच्युत जी,”

“सिर्फ अच्युत कहो, दर्शित.”

“अच्युत, दरअसल, मेरी जिंदगी के पिछले पन्ने काफी कटेफटे हैं, इसलिए अभी के इन अधलिखे पन्नों की हिफाजत की बड़ी फिक्र लगी रहती है.”

“पिछली जिंदगी के ऐसे क्या गम हैं?” अच्युत ने सादगी से पूछा.

“आप सुनेंगे?”

“जरूर दोस्त, मैं जब तक आप को पूरी तरह नहीं समझूंगा, अभी की इन घटनाओं का हिसाब कहां मिला पाऊंगा?”

दर्शित की आंखों में सिलीगुड़ी का उस का छोटा होटल था. पिता के इस सामान्य से ढाबेनुमा होटल को सुंदर सा लौज सहित रैस्टोरैंट बनवा लिया था. अच्छा चलता था. दार्जिलिंग, सिक्किम जाने वाले देशीविदेशी पर्यटक एकदो दिन रुक कर आगे जाते, तो सस्ता, साफ व अच्छे होटल के लिए दर्शित के ‘वातायन’ होटल को चुनते. ग्राहकों के प्रति दर्शित का व्यवहार तो घर में आए किसी सम्मानित अतिथि सा होता.

दोमंजिला लौज़ और दो वक़्त खाने की व्यवस्था. 5 कर्मचारी थे. और ज्यादा से ज्यादा दर्शित ही दौड़भाग कर लेता.

ऐसे ही किसी एक व्यस्ततम दिन में जब वह ग्राहकों में उलझा था, एक 19-20 साल की नेपाली लड़की उस के पास आ खड़ी हुई. उस की पीठ पर स्कूलबैग जैसा एक बैग था, गोरा गोल चेहरा धूल और थकान से मटमैला हो रहा था. भूख जैसे आंखों में थकान की कालिमा सी पसरी थी.

दर्शित की ओर बिन कुछ कहे एकटक देखती रही थी कि जैसे दर्शित उस का कब का परिचित हो. और 28 साल का दर्शित भी तो. ग्राहकों की बात पर राजी हो कर उन्हें जल्द एक कर्मचारी लड़के के साथ कमरे की ओर भेज उस नेपाली लड़की के पास आ गया था.

टूटीफूटी हिंदी, बांग्ला और नेपाली उच्चारण में उस ने जो भी कहा, उस का मर्म यह था कि उस का नाम निशिता है. वह गरीब घर की पहली संतान है. पिता नहीं रहे, मां किसी तरह घरों में कई तरह के काम कर 3 बच्चों को पाल रही थी.

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ऐसे ही समय उस के गांव में मजदूर ढूंढने वाली गाड़ी से कुछ लोग आए. निशिता उन के साथ काम की तलाश में सिलीगुड़ी शहर आ गई. 2 दिनों में ही पता चला कि वह कमउम्र की लड़कियों के अश्लील वीडियो बना कर बेचने वाला गिरोह था .

निशिता वहां से भाग तो आई थी, लेकिन उस के काम की तलाश यों ही रह गई थी. अब एक काम के बिना गांव किस मुंह से लौटे. दूसरे, उसे दोपांच दिन यहां रुकने और खाने को मिल जाए, तो काम ढूंढ़ कर बिल चुका देगी.

सारी स्थितियां जान कर नर्मदिल दर्शित ने न केवल उस के रहनेखाने का प्रबंध किया बल्कि अपने सहयोगी के तौर पर उसे काम पर रख एक संतोषजनक तनख्वाह का भी इंतजाम कर दिया.

सालभर काम करते हुए दर्शित और निशिता इतने ही निकट आ गए कि अनाम से रिश्ते ने नाम तलाश लिए, उन्होंने विवाह कर लिया. किश्तों में अपने घर रुपए भी भेजती रही थी निशिता इन दिनों.

अभी छोटेछोटे नाजुक सपनों ने जागने से पहले अंगड़ाई ली ही थी कि एक सुबह दर्शित सो कर उठते ही सदमे में आ गया. सारा घर और होटल छान मारा, निशिता कहीं नहीं दिखी. बैडरूम की अलमारी देखने को वह दौड़ा गया. हां, वहां सारा खुलासा हो पड़ा था.

कुछ दर्शित की मां के गहने और होटल के 5 लाख रुपए जो आज बैंक में जमा करना था, नदारद थे. निशिता का फोन बंद था और हमेशा के लिए बंद ही रह गया.

टूटे दिल से लोगों के जोर देने पर जब पुलिस की तहकीकात शुरू करवाई गई तो तीनचार महीने बाद पता चला, वह अरब देश चली गई है. नेपाल के जिस किसी भी बौर्डर से वह आई थी, दर्शित के पूछने पर उस ने जो पता दिया था, वह सरासर झूठ था.

आह, वह लगाव, नेह और एकाकी जीवन में अचानक झूम कर आए मीठे बयार का इस तरह कुछ तहसनहस कर देने वाला तूफ़ान बन जाना दर्शित को अवसाद में ले गया.

सालभर की टूटफूट के बाद आखिर उस ने जीने की राह तलाशी और अपने पिता के होटल व घर को बेच मुंबई आ गया और यहां एक मध्यमस्तरीय होटल खरीदा.

अब जब सबकुछ ठीक था. वह महिका के लिए फिर उसी प्रेम और आकर्षण में गहरे डूब चुका था. इतना कि अब फिर से उसे वह खोने की हालत में नहीं था.

“महिका के प्रेम में इतने अंधे हो गए हो कि महिका तुम्हें उलझा कर स्वार्थ साध रही है और तुम न नहीं कह पा रहे हो, क्यों दर्शित? मुझ से कुछ भी छिपा नहीं है. कहो तो आगे मैं तुम्हारा दोस्त बन कर तुम्हें इस मुसीबत से निकाल सकता हूं.”

“डरता हूं, महिका रिश्ता समाप्त कर देगी.”

रिश्ता 2 लोगों के बीच होता है. महिका ने कभी तुम से रिश्ता समझा ही नहीं दर्शित. सच सुन सकोगे?”

“हां, अब यही ठीक है, सुनूंगा.”

“वह मेरे साथ क्यों गई थी विदेश? क्या तुम कुछ नहीं जानते?”

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दर्शित का चेहरा सफेद पड़ गया था, बोला, “डरता था सच से”

“डर तो तुम्हें और डराएगा. उस ने कोई कसर नहीं छोड़ी तुम्हें धोखा देने की. सच स्वीकार लोगे तो ज्यादा धक्के से बच जाओगे. यह तुम्हारे लिए जानना जरूरी होगा दर्शित कि उस ने मुझ से संबंध बनाने के लिए काफी होड़ लगाई, यहां तक कि… खैर, दर्शित, मुझे रुपए का हिसाब दो. यह सब क्या है?”

दर्शित कमजोर पड़ गया था, बोला, “उस ने ही सब किया. पहले आप की फर्म के साथ खुद के नाम से अकाउंट खोल मुझ से रुपए डलवाए. मेरा नाम उस में शामिल करवाया, बाद में आप पर जाहिर हो जाने पर मुझ से रुपए निकलवाए और अपना नाम बैंक अकाउंट से हटाया. मुझ से कहा कि रुपए निकाल कर उसे दे दूं और ऐसा प्रतीत करवाऊं कि रुपए मैं ने निकाले. यह उसी ने कहा था कि आप के बुलाने पर न जा कर आप का मेरे प्रति संदेह पुख्ता करूं.”

“तुम ने साथ दिया दर्शित. क्या गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं तुम में?”

“हिम्मत नहीं रही अच्युत. महिका के बिना बहुत अधूरा हो जाऊंगा. उस ने खुद को देने की यही शर्त रखी.”

“संभालो दर्शित खुद को. आईना नहीं अपनी आंखें साफ करो. चलता हूं. डरने की जरूरत नहीं. महिका को कुछ भी नहीं बता रहा हूं अभी.”

अच्युत और महिका साइकोथेरैपिस्ट डाक्टर केशव के क्लिनिक में थे. अच्युत ने महिका को साथ चलने को कहा था. उस ने उस से कहा कि वह अभी दवा के ज्यादा डोज की जरूरत महसूस कर रहा है. महिका ही यह मामला संभालती थी. वह तब अवाक हो गई जब डाक्टर केशव के क्लिनिक में दर्शित को देखा, सोचा, यह तो साथ ही रहता है उस के, बताया नहीं कि यहां आ रहा है. वैसे चारपांच दिनों से कटाकटा सा था उस से.

महिका को माहौल अजीब लग रहा था. डाक्टर केशव की असिस्टैंट अफरोजा दर्शित के साथ धीरेधीरे बात कर रही थी. डाक्टर केशव कुछ अजीब सी निगाहें लिए अच्युत के स्वागत में मुसकरा रहे थे.

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क्यों आंसुओं का कोई मोल नहीं : विदेश में क्या हुआ मार्गरेट के साथ

Serial Story: क्यों आंसुओं का कोई मोल नहीं (भाग-1)

कोमल एहसासों की चादर में लिपटी मारिया अपने आज और आने वाले कल की खुशियों को धीमधीमे खुद में समेटने की कोशिश में जुटी थी. आज वह बहुत खुश थी. पूरे 3 साल बाद उस की बेटी मार्गरेट अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर जयपुर लौट रही थी. डैविड की असमय मृत्यु के 5 सालों बाद मारिया दिल से खुशी को जी रही थी. मार्गरेट तो वैसे भी घर की जान हुआ करती थी. उस की हंसी और खुशमिजाज स्वभाव से तो सारा घर खिल उठता था. उस के अमेरिका चले जाने के बाद घर बिलकुल सूना सा हो गया था. मारिया यह सोच खुश थी कि उस के घर की रौनक लौट रही है. उस की खुशी का अंदाजा लगाना मुश्किल था.

न्यूयौर्क जाने से पहले मार्गरेट ने मारिया को धैर्य बंधाते हुए कहा था, ‘‘मां, मैं तुम्हारी बहादुर बेटी हूं और तुम्हारी ही तरह आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं. आने वाले दिनों में तुम्हें मुझ पर गर्व होगा.’’ तब मारिया ने अपनी आंखें बंद कर मन ही मन कामना की थी बेटी की सारी इच्छाएं पूरी हों.

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डैविड की 5 साल पहले एक ऐक्सीडैंट में असमय मौत हो गई थी. यों अचानक बीच रास्ते में साथी का साथ छूट जाना कितना तकलीफदेह होता है, इस बात को केवल वही समझ सकता है जिस के साथ यह घटित होता है. डैविड के जाने के बाद 2 बेटियों की परवरिश और घर चलाने का पूरा जिम्मा मारिया पर आ गया था. यह अच्छी बात थी कि मारिया भी डैविड के बिजनैस में अपना योगदान देती थी. उन का गारमैंट्स ऐक्सपोर्ट का बिजनैस था, जो बहुत अच्छा चल रहा था. इसीलिए डैविड की असमय मृत्यु के बाद मारिया को उतनी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा जितना कि एक नौनवर्किंग महिला को करना पड़ता है. पर अकेले व्यापार और घर संभालना आसान भी नहीं था. फिर बेटियां भी छोटी ही थीं.

तब बड़ी बेटी मार्गरेट 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी और छोटी बेटी ऐंजेल 8वीं कक्षा में. उस समय मार्गरेट अपनी मां का सहारा बनी. परिस्थितियों ने अचानक उसे परिपक्व बना दिया. अपनी पढ़ाई के साथसाथ घर के कामों में मां का हाथ भी बंटाने लगी. मार्गरेट पढ़ाई में बहुत होशियार थी. 2 साल बाद 12वीं कक्षा में स्कूल में टौप किया था और एक टेलैंट सर्च कंपीटिशन में उसे स्कौलरशिप मिली थी न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी से बिजनैस की पढ़ाई के लिए.

हालांकि मारिया नहीं चाहती थी कि मार्गरेट पढ़ने के लिए सात समंदर पार जाए, पर बच्चों की जिद और उन के सपनों के लिए अपनी सोच से डर को रुखसत करना ही पड़ता है. हर मातापिता यही चाहते हैं कि उन के बच्चे खूब पढ़ेंलिखें और आगे बढ़ें. मारिया ने भी आखिरकार रजामंदी दे दी. मारिया की एक कजिन सुजन अमेरिका में ही रहती थी. अत: एक भरोसा था कि कोई जानने वाला वहां है जो जरूरत के समय काम आ जाएगा और यह भी कि मार्गरेट को भी घर जैसा फील चाहिए हो तो वह सुजन के घर जा सकती है. मारिया ने सुजन से बात कर अमेरिका के विषय में काफी जानकारी ले ली थी. उसे यह जान कर खुशी हुई थी कि वहां पढ़ाई का बहुत उच्च स्तर है जो मार्गरेट के भविष्य के लिए बहुत अच्छा होगा. अत: 3 साल का समय किसी तरह दिल पर पत्थर रख कर बिता दिया.

मार्गरेट की फ्लाइट शाम को 5 बजे लैंड होने वाली थी. मार्गरेट के इंतजार में एअरपोर्ट पर जैसे मारिया को 1-1 पल भारी पड़ रहा था. इंतजार का वक्त खत्म हुआ और मार्गरेट एअरपोर्ट से बाहर निकल मारिया केसामने आ खड़ी हो गई. पर मानो मारिया के लिए उसे पहचान पाना मुश्किल सा था. सामने कोई मुसकराता चेहरा न था. मार्गरेट का चेहरा मायूसी से भरा था. आंखों के नीचे काले गड्ढे हो गए थे. मुसकराहट तो चेहरे से लापता थी. सामने जैसे कोई हड्डी का ढांचा खड़ा हो.

मारिया ने जैसेतैसे खुद को संभाला और मार्गरेट को गले से लगाते हुए कहा, ‘‘कैसी है मेरी बच्ची? बहुत दुबली हो गई है.’’ मार्गरेट ने बहुत धीमे स्वर में कहा, ‘‘ठीक हूं और जिंदा हूं.’’

न उस के चेहरे पर कोई खुशी का भाव था और न ही दुख का. एक बेजान चेहरा. कुछ क्षणों के लिए जैसे मारिया के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया हो, फिर खुद को संभालते हुए उस ने प्यार से मार्गरेट के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘चलो, घर चलें. ऐंजेल तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रही होगी.’’

मारिया ने गाड़ी में सामान रखवा कर गाड़ी घर की तरफ मोड़ दी. पूरा रास्ता मार्गरेट चुप बैठी एकटक लगाए कार की खिड़की से बाहर देखती रही.

मारिया को कई सवालों ने घेर लिया था. उसे मार्गरेट की चुप्पी खाए जा रही थी पर चाह कर भी उस ने मार्गरेट से कुछ नहीं कहा और न ही कुछ पूछा. उसे लगा हो सकता है लंबे सफर की वजह से थक गई हो या फिर 3 सालों के फासले ने उसे कुछ बदल दिया हो. दिमाग सवालों की एक माला पिरोता जा रहा था पर जवाब तो सारे मार्गरेट के पास थे. यही सब सोचतेसोचते मारिया मार्गरेट को ले कर घर पहुंच गई. कार का हौर्न बजाते ही ऐंजेल बुके लिए दरवाजे पर खड़ी थी. मार्गरेट कार से धीमी गति से उतरी, एकदम सुस्त. ऐंजेल दौड़ कर उस के पास पहुंची और चिल्लाते हुए बोली, ‘‘वैलकम होम दीदी… आई मिस्ड यू सो मच.’’

पर मार्गरेट के चेहरे पर न कोई खुशी, न कोई उत्साह और न कोई उल्लास था. जब मार्गरेट ने उसे कोई उत्साह नहीं दिखाया तो ऐंजेल थोड़ी मायूम हो गई. बोली, ‘‘क्या दीदी, तुम मुझ से 3 साल बाद मिल रही हो और तुम्हारे चेहरे पर कोई खुशी नहीं है.’’

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मारिया ने ऐंजेल को समझाते हुए कहा कि मार्गरेट सफर से थकी हुई है. तुम इसे परेशान न करो. इसे आराम करने दो… बाद में बातें कर लेना.’’ ऐंजेल ने एक अच्छी बच्ची की तरह मां की बात मान ली. कहा, ‘‘चलो दीदी, मैं तुम्हें तुम्हारा कमरा दिखा दूं. मैं ने और मां ने उसे तुम्हारी पसंद से सजाया है.’’

कमरा बहुत खूबसूरती और करीने से सजा था. टेबल पर गुलाब के फूलों का गुलदस्ता था और मार्गरेट की पसंदीदा बैडशीट जिस पर गुलाब के फूलों के प्रिंट थे बिस्तर पर बिछी थी. मार्गरेट की फैवरिट कौर्नर की स्टडी टेबल पर फूलों से लिखा था- वैकलम होम. मार्गरेट जैसे ही कमरे में दाखिल हुई जोर से चिल्ला उठी, ‘‘आई हेट फ्लौवर्स,’’ और फिर गुलदस्ता जमीन पर पटक दिया. चादर को भी उठा कर एक कोने में सरका दिया, फिर अपना सिर पकड़ वहीं बैड पर बैठ गई.

मार्गरेट का यह रूप देख मारिया और ऐंजेल डरीसहमी एक कोने में खड़ी हो गईं. मारिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. बहुत हिम्मत जुटा कर वह मार्गरेट के पास पहुंची और फिर उस के सिर पर हाथ सहलाते हुए बोली, ‘‘मार्गरेट, तुम आराम करो, सफर में थक गई होगी. थोड़ी देर बाद हम डिनर टेबल पर मिलते हैं,’’ और फिर मारिया ने ऐंजेल, जो सहमी सी एक कोने में खड़ी थी, को इशारे से वहां से जाने को कहा. फिर मार्गरेट को बिस्तर पर लिटा दिया. उसे चादर ओढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम आराम करो,’’ और कमरे से बाहर आ गई. डाइनिंगटेबल के पास बैठ बहुत परेशान हो मार्गरेट के विषय में सोचने लगी. उसे मार्गरेट के बदले स्वभाव के बारे में कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.

फिर खयाल आया कि क्यों न सुजन से पूछे… हो सकता है वह कुछ जानती हो. अत: सुजन को फोन लगाया और यों ही बातोंबातों में जानने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘हैलो सुजन कैसी हो? तुम्हें इस वक्त फोन यह बताने के लिए कर रही हूं कि मार्गरेट घर पहुंच गई है. तुम्हें तहेदिल से शुक्रिया भी कहना था कि वहां परदेश में तुम ने मार्गरेट का खयाल रखा.’’ ‘‘नहीं मारिया शुक्रिया कहने की कोई जरूरत नहीं…मार्गरेट तो बहुत ही प्यारी बच्ची है और वह कभीकभार ही आती थी. पहले तो वह अकसर आती थी पर पिछले साल सिर्फ 1 बार ही आई थी और वह भी मेरे बुलाने पर,’’ सुजन बोली.

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Serial Story: क्यों आंसुओं का कोई मोल नहीं (भाग-2)

फिर कुछ इधरउधर की बातें कर मारिया ने थैंक्स कहते हुए फोन रख दिया. मारिया को सुजन से भी कुछ खास जानकारी न मिल सकी. अब वह और परेशान थी. तभी मार्गरेट के जोर से चिलाने की आवाज आई. मारिया दौड़ कर कमरे में पहुंची, मार्गरेट को देखा एक जगह सुन्न सी खड़ी रही. मार्गरेट अपने कपड़ों को अपने ही हाथों से नोचनोच कर अलग कर रही थी. बालों का एक गुच्छा जमीन पर पड़ा था. मार्गरेट की हालत और हरकतें कुछ पागलों जैसी थीं… मारिया ने खुद को फिर संभाला और मार्गरेट के पास जा उसे प्यार से सहलाने की कोशिश की तो मार्गरेट ने उस का हाथ झटकते हुए कहा, ‘‘डौंट टच मी,’’ और फिर जोरजोर से चिल्लाने लगी…

मार्गरेट की हालत देख कर मारिया को यह तो समझ आ गया था कि मार्गरेट किसी मानसिक समस्या से जूझ रही है. बड़ी मुश्किल से मारिया ने मार्गरेट को संभाला. किसी तरह खाना खिला उसे सोने के लिए छोड़ कमरे से बाहर गई. काफी रात हो चुकी थी, पर उस से रहा न गया. अपने फैमिली डाक्टर को फोन मिलाया और सारा ब्योरा देते हुए पूछा, ‘‘डाक्टर अमन बताएं मैं क्या कंरू? प्लीज मेरी मदद कीजिए. मैं ने अपनी बेटी को पहले कभी ऐसी हालत में नहीं देखा है.’’ डाक्टर ने धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से डाक्टर राजन आप की मदद कर सकते हैं, क्योंकि वे साइकिएट्रिस्ट हैं. मेरे अच्छे दोस्त हैं. तुम्हारी मदद जरूर करेंगे…डौंट वरी… सब ठीक हो जाएगा. तुम्हारी कल की अपौइंटमैंट फिक्स करवा देता हूं.’’

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मारिया ने डाक्टर का शुक्रिया करते हुए फोन रख दिया. फिर उसे कई सवालों ने घेर लिया. पूरी रात यही सोचती रही कि न्यूयौर्क में ऐसा क्या हुआ होगा जो मार्गरेट की ऐसी हालत हो गई… सोचतेसोचते अचानक खयाल आया कि जब मार्गरेट सैकंड ईयर में थी तब वीडियो चैट के दौरान उस ने अपनी एक सहेली से भी बात करवाई थी, जो अमेरिकन थी. शायद एमिली नाम था. तब शायद उस समय उस का नंबर भी लिया था. उसे यह भी याद आया कि पिछले साल मार्गरेट ने कभी वीडियो चैट नहीं किया. अकसर फोन पर ही बातें करती थी. ये सब सोचतेसोचते कब उसकी आंख लगी और कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला.

सुबह उठते ही सब से पहले मारिया ने एमिला का नंबर तलाशना शुरू किया. एक पुरानी डायरी में वह नंबर लिखा करती थी. उस में एमिली का नंबर लिखा मिल गया. इसी बीच डाक्टर की अपौइंटमैंट का समय हो गया. अत: मारिया ने एमिली को शाम को फोन लगाना उचित समझा, क्योंकि अमेरिका में तब रात होती है जब भारत में दिन होता है.

बड़ी मुश्किल से मार्गरेट तैयार हुई डाक्टर से मिलने को और वह भी यह कह कर कि मारिया को कुछ डिसकस करना है स्वयं के विषय में. डाक्टर अमन ने पहले ही डाक्टर राजन को पूरा ब्योरा दे दिया था.

मारिया जब डाक्टर मुखर्जी के रूम में मार्गरेट के संग दाखिल हुई तब डाक्टर राजन ऐसे मिले जैसे वह मारिया को पहले से जानते हों, ‘‘हैलो मारिया, कैसी हैं आप और अगर मैं गलती नहीं कर रहा तो यह आप बड़ी बेटी है मार्गरेट… एम आई राइट?’’ मारिया ने हां में सिर हिला दिया. बातोंबातों में डाक्टर ने बहुत सी जानकारी निकाल ली मार्गरेट के विषय में और उस के हावभाव, आचरण से यह साबित हो ही रहा था कि वह किसी तनाव से ग्रस्त है. यों ही मजाक करते हुए पहले मारिया का ब्लडप्रैशर लिया, फिर बाद में हंसते हुए कहा कि चलो मार्गरेट आज तुम्हारा भी बीपी चैक कर लिया जाए…

ऐसे ही बातोंबातों में डाक्टर ने एक प्रश्नावली मार्गरेट को भरने को कहा. दरअसल, यह कोई मामूली प्रश्नावली न हो कर एक साइकोलौजिकल टैस्ट था मार्गरेट के लिए. किसी तरह डाक्टर ने मार्गरेट का मूल्यांकन किया और फिर उसे बाहर बैठने को कहा. मार्गरेट के बाहर जाते ही उत्सुकता से मारिया ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है मेरी बच्ची को… वह क्यों ऐसा बरताव कर रही हैं?’’

डाक्टर ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मार्गरेट को ऐनोरेक्सिया और पार्शियल एपिलिप्स्या है.’’ मारिया ने इस बीमारी का नाम पहले कभी नहीं सुना था. कहा, ‘‘डाक्टर यह कौन सी बीमारी है और इसे कैसे हो गई? मेरी बच्ची ठीक तो हो जाएगी न?’’

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डाक्टर ने हताश मन से कहा, ‘‘मैडिकल में इस बीमारी का कोई ठोस इलाज नहीं है. ठीक होने के चांसेज 30-35% ही हैं. यह बीमारी अकसर अत्यधिक स्ट्रैस या फिर लंबे समय तक किसी मानसिक तनाव से गुजरने से हो जाती है. आप चाहें तो मार्गरेट को कुछ दिनों के लिए यहां ऐडमिट करा सकती हैं.’’ मारिया ने सोचने का समय लेते हुए डाक्टर को धन्यवाद कहा और फिर एक उदासी को साथ लिए कमरे से बाहर आ गई. मन सवालों की गठरी के नीचे दबा जा रहा था. पर जवाब मिलें भी तो कहां से मिलें. मार्गरेट की अवस्था सवालों के जवाब देने लायक तो बिलकुल भी नहीं थी. इन्हीं सवालों में उलझी मारिया मार्गरेट को ले घर पहुंची और तुरंत एमिली को फोन मिलाने का निश्चय किया.

एमिली इस वक्त एकमात्र जरीया थी जहां से कुछ जानकारी मिलने की आशा थी. बहुत संकोच के साथ मारिया ने एमिली को फोन मिलाया. जाने क्या सुनने को मिलेगा बस यही विचार बारबार दिमाग में आ कर बेचैन कर रहा था. तभी बेचैनी को भेदती हुए एक आवाज कानों में पड़ी, ‘‘हैलो.’’

जवाब में मारिया ने भी, ‘‘हैलो,’’ कहा. एमिली ने पूछा, ‘‘मे आई नो हु इज औन द लाइन?’’ मारिया ने कहा, ‘‘इज दिस एमिली औन द लाइन… दिस इज मारिया मार्गरेट्स मदर. डू यू रीमैंबर मार्गरेट?’’

‘‘ओह यस आई डू रीमैंबर मार्गरेट… हाऊ इज शी?’’ मारिया ने समय न गंवाते हुए झट मार्गरेट की स्थिति से अवगत कराते हुए पूछा, ‘‘डू यू हैव एनी आइडिया, व्हाट हैप्पंड विद मार्गरेट व्हैन शी वाज इन अमेरिका?’’

सवाल को सुन एमिली कुछ देर चुप रही. इधर मारिया की जान मानो हलक में अटकी हो. मारिया ने फिर अपना सवाल दोहराया. तब एमिली ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘यस आंटी, बट आई कांट टैल यू ओवर द फोन. यू नीड टु कम हियर… इट्स अ लौंग स्टोरी.’’

जवाब सुनते ही मानो मारिया के दिमाग में हजारों सवालों ने एक सुरंग का रूप धारण कर लिया हो, जहां सिर्फ अंधकार ही अंधकार हो, जहां से दूसरा छोर नजर तो आ रहा था पर पहुंच के बाहर सा लग रहा था. मारिया कुछ देर चुप सोचती रही कि आखिर क्या करे, फिर, ‘‘आई विल कौल यू लेटर… थैंक यू,’’ कह फोन रख दिया. एक तरफ मार्गरेट का दर्द और तकलीफ, तो दूसरी तरफ ऐंजेल की स्कूल की पढ़ाई, तीसरी तरफ बिजनैस की जिम्मेदारी तो चौथी तरफ घर…क्या संभाले और कैसे. पर इस चक्रव्यूह को किसी भी तरह तो भेदना ही था. अत: बहुत सोचविचार कर मारिया ने निर्णय लिया कि वह अमेरिका जाएगी.

अगले ही दिन मारिया ने वीजा के लिए तत्काल में आवेदन किया. 10 दिनों में यूएस का मल्टिपल ऐंट्री वीजा मिल गया. इन 10 दिनों में मार्गरेट को डाक्टर राजन के हौस्पिटल में दाखिल करवा दिया. हालांकि यह एक दिल पर पत्थर रख कर लिया जाने वाला निर्णय था पर लेना भी तो जरूरी था. जाने से एक दिन पहले ऐंजेल को डैविड की बड़ी सिस्टर जो जयपुर में ही रहती थी उन के पास छोड़ दिया ताकि उस का खयाल रखें और पढ़ाई में कोई नुकसान न हो. औफिस की सारी जिम्मेदारी डैविड के खास दोस्त और कंपनी के चार्टर्ड अकाउंटैंट उमेश को सौंप मारिया अब तैयार थी आगे की लड़ाई के लिए. फ्लाइट में मारिया सोच रही थी कि पता नहीं न्यूयौर्क पहुंच क्या सुनने और जानने को मिले. विमान में बैठे घर और बच्चों की चिंता से मन भारी हो रखा था. एअरपोर्ट पर सुजन मारिया का इंतजार कर रही थी.

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Serial Story: क्यों आंसुओं का कोई मोल नहीं (भाग-3)

सुजन को देखते ही मारिया उस के गले से लिपट गई. दोनों एकदूसरी से 10 साल बाद मिल रही थीं. एअरपोर्ट से सुजन का घर आधे घंटे की दूरी पर था. सुजन ने मारिया से कहा, ‘‘इतने सालों बाद अचानक तुम से मुलाकात होने पर बहुत खुशी हो रही है.’’ मारिया ने जवाब में कहा, ‘‘क्या बताऊं तुम्हें… मेरी तो दुनिया ही उलटपलट हो गई है.’’

रास्ते में मारिया ने सुजन को मार्गरेट के बारे में सब कुछ बता दिया, फिर बोली, ‘‘इसी सिलसिले में यहां मार्गरेट की दोस्त एमिली से मिलने आई हूं… जानना चाहती हूं कि क्या हुआ इन 3 सालों में, जिस ने मेरी हंसतीखिलखिलाती बच्ची के चेहरे से हंसी ही छीन ली है.’’ सुजन को यह सब जान कर बेहद दुख हुआ. उस ने मायूसी भरे स्वर में कहा, ‘‘काश मैं कुछ कर पाती… मैं तो यहीं थी पर मुझे कुछ मालूम ही नहीं चला.’’

अगली सुबह मारिया की मुलाकात एमिली से तय थी. पूरी रात मारिया ने एक भय के साए में बिताई कि न जाने सुबह क्या सुनने को मिले. मारिया एमिली के बताए पते पर पहुंच गई. रविवार का दिन था. एमिली की छुट्टी का दिन था. वह एक न्यूज एजेंसी में पत्रकार थी. एमिली और मार्गरेट एक ही कालेज में साथ पढ़े थे. एमिली ने जर्नलिज्म का कोर्स किया था और मार्गरेट ने मैनेजमैंट का. जर्नलिज्म का कोर्स करते हुए एमिली ने कामचलाऊ हिंदी भी सीख ली थी. दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी. एमिली ने मारिया को सोफे पर बैठने का आग्रह करते हुए कहा, ‘‘हैलो मारिया नाइस टु सी यू.’’

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मारिया ने समय न गंवाते हुए सीधे एमिली से प्रश्न किया, ‘‘एमिली, आई हैव कम औल द वे टु नो अबाउट माई चाइल्ड मार्गरेट…प्लीज टैल मी इन डिटेल.’’ एमिली ने थोड़ी टूटीफूटी हिंदी में बताना शुरू किया, ‘‘वह मेरी रूममेट थी. हम एकदूसरे से काफी बातें शेयर करते थे. फर्स्ट ईयर तो हंसतेखेलते निकल गया. मार्गरेट ने कालेज में अपने अच्छे स्वभाव से अपनी बहुत अच्छी इमेज बना ली थी. वह पढ़ाई में तो होशियार थी ही, साथ ही ऐक्स्ट्रा ऐक्टिविटीज में भी.

‘‘रूथ एक अमेरिकन लड़का था जो मार्गरेट को पसंद करता था. दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती भी थी. एक ही क्लास में थे. रूथ कालेज में बहुत पौपुलर था. उस की इमेज कुछ प्लेबौय जैसी थी पर वह मार्गरेट को पसंद करता था. मगर मार्गरेट का लक्ष्य पढ़ाई कर वापस जाना था. अत: उस ने रूथ को कभी सीरियसली नहीं लिया. पर रूथ उसे इंप्रैस करने की हमेशा कोशिश करता. हर रोज मार्गरेट को एक गुलाब का फूल देता था. हम सब जानते थे मार्गरेट को गुलाब का फूल बेहद पसंद है. ‘‘लास्ट सैम से पहले कालेज इलैक्शन के दौरान मार्गरेट और रूथ को नौमिनेट किया गया, कालेज प्रैसिडैंट की पोस्ट के लिए और जैसाकि हम सब जानते थे मार्गरेट इलैक्शन जीत गई. रूथ को दुख तो हुआ पर उस ने मार्गरेट को बधाई दी. मार्गरेट की जीत की खुशी में रूथ ने एक पार्टी और्गनाइज की जिस में केवल कुछ दोस्तों को ही बुलाया गया,’’ कहतेकहते एमिली रुक गई और रोने लगी.

मारिया की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस ने एमिली से रिक्वैस्ट की ‘‘एमिली प्लीज मुझे सारी बातें बताओ… तुम ऐसे अचानक क्यों रोने लगी.’’ एमिली ने 1 घूंट पानी पीया और आगे बताना शुरू किया, ‘‘मार्गरेट जब रूथ के चंगुल से निकल कर आई तब उस ने मुझे बताया कि उस के साथ क्या गुजरी. अब तक हम सब रूथ को बस एक मदमस्त लड़के के रूप में जानते थे. पार्टी के बाद रूथ ने मार्गरेट को रुकने को कहा. अपनी दोस्ती का वास्ता दिया. मार्गरेट एक अच्छे दोस्त की तरह रूथ की बातों में आ गई. कहीं न कहीं मार्गरेट भी रूथ को पसंद करती थी. शायद यही कारण था कि वह उस की बातों में आ गई. फिर कोई अपने दोस्त पर शक करे भी तो कैसे? मार्गरेट भी तो अनजान थी रूथ के इरादों से.

‘‘पार्टी में सभी ने शराब पी. हालांकि मार्गरेट ने सिर्फ बियर ही पी थी पर न जाने कैसे बेहोश हो गई. जब आंखें खुली ने उस ने स्वयं को एक छोटे से गंदे से कमरे में पाया. स्टोररूम जैसा लग रहा था. मार्गरेट को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह उस कमरे में कैसे आई. घबराहट में उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी. तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई. सामने रूथ को देख उस की जान में जान आई. वह झट रूथ के गले लग गई. मगर रूथ ने उसे अपने से अलग करते हुए धक्का देते हुए कहा कि स्टे अवे. ‘‘मार्गरेट की समझ से परे था ये सब. वह सोच रही थी कि जिस लड़के ने एक दिन पहले उस की जीत की खुशी में पार्टी दी वही आज उस से इतनी बेरुखी से क्यों पेश आ रहा है? मार्गरेट ने फिर मदद की गुहार लगाई पर रूथ के कानों में तो जूं तक नहीं रेंग रही थी. अचानक उस ने मार्गरेट पर झपट्टा मारा और मार्गरेट के बदन से कपड़ों को नोच कर अलग कर दिया. मार्गरेट दया की गुहार लगाती रही और रूथ उस की इज्जत से खेलता रहा. मार्गरेट ने छूटने की बहुत कोशिश की, गिड़गिड़ाई पर जैसे रूथ तो एक आदमखोर भेडि़ए की तरह मार्गरेट को नोचने में लगा था.

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बहुत कोशिशों के बाद भी मार्गरेट स्वयं को बचा न सकी. जब रूथ का दिल भर गया तो वह उसे वहीं कमरे में छोड़ जाने लगा. उस के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव थे जैसे वह अपनी जीत का जश्न मना रहा हो. मार्गरेट को अब तक कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर रूथ ऐसा कर क्यों रहा था उस के साथ. जातेजाते रूथ अपने साथ मार्गरेट के कपड़े भी ले गया. ‘‘नग्नावस्था में मार्गरेट ने 1 नहीं, 2 नहीं पूरे 3 हफ्ते बिताए. रूथ का जब मन करता कमरे में आता और मार्गरेट की आबरू को छलनी कर वहां से ऐसे चला जाता जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो. मार्गरेट के आसुओं का, उस की विनती का कोई असर नहीं होता. उसे तो केवल अपनी हवस ही सर्वोपरी थी. उस ने जीतेजी एक लड़की को निर्जीव बना दिया था वह भी केवल अपने घमंड को ऊंचा रखने के लिए. रूथ मार्गरेट का इस्तेमाल एक सैक्स टौय के रूप में कर रहा था,’’ कहतेकहते एमिली फिर रुक गई.

यह सब सुनना मारिया के लिए एक नर्क से गुजरने जैसा था. मार्गरेट की चीखें जैसे मारिया के कानों को भेदते हुए उस के शरीर को तारतार कर रही थीं. मारिया का केवल कल्पनामात्र से शरीर सुन्न पड़ गया था. न जाने मार्गरेट ने इन कठिन परिस्तिथियों का सामना किस प्रकार किया होगा… मारिया ये सब सुन कर पूरी तरह से ब्लैकआउट हो गई थी. आज उसे बेहद पछतावा हो रहा था कि उस ने मार्गरेट को अमेरिका पढ़ने ही क्यों भेजा… वह सोच रही कि मार्गरेट इतने कठिन दौर से गुजरी और उस ने इस दर्द को किसी के साथ बांटा भी नहीं. मार्गरेट ने इस दर्द को अकेले सह साहसी होने का परिचय तो दिया था पर इस दर्द और तकलीफ ने उसे जीतेजी मार डाला था.

इन सब बातों को सुनने के बाद मारिया ने यह तय किया कि उसे रूथ को उस की गलतियों की सजा अवश्य दिलवानी है. मारिया ने एमिली से रूथ का पता जानने की इच्छा जताई तो एमिली ने बताया कि रूथ भी होस्टल में ही रहता था. उस के पास उस का पता नहीं है. एक संभावना थी शायद कालेज से पता मिल जाए पर उस के लिए कुछ जुगत लगानी होगी, क्योंकि अधिकतर कालेजों में पर्सनल डिटेल्स देना रूल्स के खिलाफ माना जाता है.

‘‘लड़ाई तो बस अभी शुरू ही हुई है,’’ मारिया ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा. उस ने हाथ जोड़ कर एमिली से रूथ का पता निकलवाने का आग्रह किया. एमिली ने मारिया को धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगी… आप चिंता न करें.’’

एमिली को दिल से शुक्रिया कहते हुए मारिया ने उसे अपने गले से लगा लिया. फिर कहा, ‘‘तुम्हारी मदद की आवश्यकता मुझे आगे भी इस लड़ाई में पड़ती रहेगी. आशा करती हूं तुम मेरी हैल्प अवश्य करोगी.’’ एमिली ने दुख में सराबोर हो कहा, ‘‘एनी टाइम यू कैन कौल मी.’’

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Serial Story: क्यों आंसुओं का कोई मोल नहीं (भाग-4)

मारिया भारी मन से वहां से रुखसत हुई. वह यही सोच रही थी कि कैसे मार्गरेट ने इतनी तकलीफों का सामना किया होगा और अब सारी बातें जानने के बाद मार्गरेट के बदले और बेहाल स्वास्थ्य का कारण भी पता था. मारिया का मन तो कर रहा था कि रूथ बस कहीं से मिल जाए और वह उसे सरे बाजार नंगा कर बीच चौराहे में गोली मार दे. उस के भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फट चुका था. इस ज्वालामुखी के शांत होने का सिर्फ एक ही उपाय था कि वह उसे सलाखों के पीछे देखे. पर यह इतना आसान भी नहीं था. मार्गरेट एक प्रवासी थी न्यूयौर्क में. इस रास्ते को तय करना बेहद मुश्किलों से भरा था, पर मारिया अब इन मुश्किलों से लड़ने के लिए स्वयं को तैयार कर चुकी थी.

2 दिन बाद एमिली ने मारिया को फोन कर खबर दी कि रूथ के लोकल गार्जियन जिन का नाम रोसेलिन था का पता मिल गया है. झट मारिया ने रूथ की आंटी का पता नोट कर उन से मिलने की सोची. समय न गंवाते हुए वे उस के घर जो बोस्टन में था के लिए रवाना हो गई. न्यूयौर्क से बोस्टन की दूरी बस द्वारा कुल 4 घंटों की थी. जैसेतैसे यह रास्ता भी तय हो गया. बस स्टौप से रोसेलिन का घर 5 मिनट की दूरी पर था. मारिया ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजा रोसेलिन ने ही खोला. वह एक आकर्षक वृद्ध ब्रिटिश महिला थीं, जिन्होंने थोड़े आश्चर्यभाव के साथ दरवाजा खोला. उन्होंने दरवाजा खोलते ही पूछा ‘‘हू आर यू… व्हाट डू यू वांट.’’

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मारिया ने जवाब में कहा, ‘‘आई वांट टू मीट रोसेलिन. आई एम मारिया फ्रौम इंडिया… वांट टू सी हर.’’ जवाब में रोसेलिन ने कहा, ‘‘कम इन, आई एम रोसेलिन.’’

घर काफी करीने से सजा था. मारिया ने एक नजर घर के चारों कोनों में दौड़ाई. वह मन ही मन सोच रही थी कि शुरुआत कहां से और कैसे की जाए.

तभी रोसेलिन ने पूछा, व्हाटस द पर्पज औफ आवर मीटिंग… हाऊ यू नो मी?’’ मारिया ने कहा, ‘‘आई वांट टु नो अबाउट रूथ योर नैफ्यू,’’ और फिर मारिया ने एक ही सांस में सारी कहानी रोसेलिन को बता डाली कि कैसे रूथ ने उस की बेटी मार्गरेट का जीवन नष्ट कर डाला और यह भी कि वह रूथ से मिल कर जानना चाहती है कि क्या मिला उसे मार्गरेट के जीवन से खेल कर.

पहले तो रोसेलिन चुप रहीं पर मारिया के बहुत समझाने और आग्रह करने पर वे मान गईं और फिर रूथ की पूरी कहानी मारिया को बताई. मारिया और रोसेलिन के बीच संपूर्ण वार्त्तालाप अंगरेजी में ही हुई थी. रोसेलिन ने बताया, ‘‘रूथ की परवरिश एक अजीबोगरीब परिवार में हुई थी. रूथ जब मात्र

7 साल का था तब उस की मां उस के पिता को छोड़ किसी और के साथ रहने लगी. पिता शराबी और व्यभिचारी था. रूथ ने जो बचपन से देखा वही सीखा. उसे कभी औरतों की इज्जत करना आया ही नहीं. आता भी कैसे. किसी ने कभी कुछ सिखाया ही नहीं. ‘‘अपने मातापिता होने के बावजूद उस ने अनाथों की तरह अपनी जिंदगी बिताई… घर का माहौल बेहद खराब था, जिस का असर यह हुआ कि रूथ में एक स्प्लिट पर्सनैलिटी ने जन्म ले लिया था. उसे औरतों से खासा नफरत सी थी. जब वह अपनी वास्तविक अवस्था में रहता तब कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि उस के दिमाग के एक हिस्से में बेहद खतरनाक इंसान का वास है.

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‘‘पर किसी भी दृष्टिकोण से रूथ को कोई हक नहीं था कि किसी बेगुनाह की जिंदगी से खेले. मुझे लगता है उसे उस के किए का कोई पछतावा भी नहीं होगा. होता भी कैसे. उसे जो उस की समझ में ठीक लगता है वह वही करता हैं. कई बार मैं ने उसे समझाने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ. रूथ जहां पढ़ने में बहुत अच्छा था, वहीं उस के मन को पढ़ना उतना ही कठिन था.’’ मारिया ने रोसेलिन से रूथ का पता जानने की इच्छा जताई तो रोसेलिन ने बताया कि जब तक कालेज में था तब तक वे उस की लोकल गार्जियन थीं, पर अब वह उन के साथ नहीं रहता था. कालेज खत्म कर रूथ ने वहां न्यूयौर्क के एक कालेज में फैलोशिप की नौकरी कर ली थी. उन की आखिरी मुलाकात 6 महीने पहले हुई थी.

मारिया को अपने कई सवालों के जवाब तो मिल गए थे पर यह जानना अभी बाकी था कि आखिर मार्गरेट ही क्यों उस का शिकार बनी? रोसेलिन का हृदय से धन्यवाद कर मारिया न्यूयौर्क वापस आ गई. अगले दिन मारिया सुजन की मदद से एक वकील जो इंडियन अमेरिकन था को मार्गरेट के साथ हुए भयावह अत्याचार का ब्योरा दिया.

वकील ने मारिया को सुझाव देते हुए कहा कि सुबूतों के अभाव की वजह से केस बहुत वीक है और विक्टिम भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं है, ऐसे स्थिति में पुलिस भी शायद ही एफआईआर लिखे. फिर भी मारिया ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. उस के सामने अब एक और चुनौती ने जन्म ले लिया था. वह किसी भी हाल में रूथ को सलाखों के पीछे देखना चाहती थी. उसे यह खयाल दिन में चैन से नहीं बैठने देता था कि उस के पास सारी जानकारी है पर सुबूत न होने की वजह से रूथ जैसे दुराचारी के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रही है. मारिया ने मार्गरेट के कालेज मैनेजमैंट से बात कर सीसीटीवी फुटेज निकलवाए. जिन से यह पता चला कि मार्गरेट की वाकई जानपहचान थी रूथ से और फिर डाक्टर राजन से कह मार्गरेट की मैडिकल रिपोर्ट तैयार करवाई, जिस में डाक्टर ने मार्गरेट की मानसिक और शारीरिक स्थिति का पूरा ब्योरा दिया कि कैसे शारीरिक और मानसिक यातना का नतीजा है मार्गरेट की ऐसी दयनीय स्थिति. इन सभी सुबूतों को ले मार्गरेट और उस के वकील ने रूथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई. इतना ही नहीं एमिली ने भी गवाही देना मंजूर कर लिया.

इन सभी रास्तों पर चलना मारिया के लिए आसान तो नहीं था पर शायद मां की आत्मशक्ति के आगे रास्ते खुदबखुद बनने लगे थे. आखिरकार पुलिस ने रूथ को पकड़ ही लिया. कस्टडी में पूछताछ के दौरान उस ने मान लिया कि मार्गरेट को उसी ने बंदी बना रखा था और वह ये सब इसलिए करता था क्योंकि उसे सुंदर और अंकलमंद औरतों से नफरत थी. दूसरा कारण यह भी था कि मार्गरेट

स्टूडैंट इलैक्शन में जीत गई थी, जिस से रूथ के अहं को बहुत ठेस पहुंची थी और वह मार्गरेट से इस बात का बदला लेना चाहता था. रूथ को सैशन कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उसे मनोवैज्ञानिक उपचार भी करवाने की सलाह दी. मार्गरेट की कोई गलती न होने पर भी उसे नर्क से गुजरना पड़ा. मारिया को जब कारण का पता चला तो उस के होश उड़ गए. मार्गरेट को इतनी परेशानियों का सामना केवल इसलिए करना पड़ा कि वह खूबसूरत और अकलमंद है. रूथ को सजा होने पर मारिया खुश तो थी पर मार्गरेट को देख बेहद दुख होता. एक होनहार लड़की की ऐसी हालत देख बहुत दर्द होता. मार्गरेट आज भी डाक्टर राजन से अपना इलाज करा रही है. उस से दैहिक घाव तो मिट गए हैं, पर आत्मिक घाव आज भी रिस रहे हैं. मार्गरेट के साथ जो भी घटित हुआ था वह आज के युग का एक ऐसा भयंकर सच है जिस के साथ जीना न केवल मुश्किल है, अपितु विषपान से भी अधिक कड़वा पान है. ऐसी कितनी ही मार्गरेट आएदिन विकृत विचारधारा वाले भेडि़यों के मुंह का निवाला बनती रहती हैं. उन के मन को इतना लहूलुहान कर दिया जाता है कि वे जिंदा तो होती हैं पर उन की स्थिति एक जिंदा लाश से कम नहीं.

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उपलब्धि: नई नवेली दुलहन कैसे समझ गई ससुरजी के मनोभाव

Serial Story: उपलब्धि (भाग-2)

बाबूजी के प्रति एक नई स्नेहधारा प्रवाहित होने लगी उस के हृदय में. उस की थीसिस जमा हो गई थी. अब बाकी रहा था साक्षात्कार. सुबहसुबह बस से इंटरव्यू के लिए जाना था. घर के सभी सदस्य अभी सो रहे थे. उस के एक परीक्षक आज ही वापस भी चले जाने वाले थे शाम की गाड़ी से, इसलिए इतनी सुबह जाना था. किसी तरह तैयार हो कर वह निकली. सामने कांपते हाथों में चाय का प्याला पकड़े बाबूजी खड़े थे. लज्जित हो वह बोली, ‘‘आप ने क्यों तकलीफ की?’’

सस्नेह वे बोले, ‘‘मेरी कामना है कि तुम्हारा उद्देश्य सफल हो.’’ झुक कर उन के पांव छू कर वह चल दी.

एकांत के सुनहरे क्षणों में स्नेहमयी बांहों की घेराबंदी से अपने को मुक्त करती हुई वह बोली, ‘‘आज मुझे सुबहसुबह बड़ी अजीब सी स्थिति का सामना करना पड़ा. बाबूजी ने स्वयं अपने हाथों से मुझे चाय बना कर ला कर दी है.’’

‘‘तो इस में इतना परेशान होने की क्या बात है, रानी? बाबूजी तो काफी समय से यही करते आए हैं. मां इतनी सुबह उठ नहीं पाती थीं. रात में घर के ढेरों काम रहते थे. बाबूजी रोज 5 बजे सुबह हम लोगों को चाय बना कर देते थे. तब कहीं जा कर हम लोग पढ़ने के लिए बैठते थे.’’ ‘‘ओह डार्लिंग, जिस बात को तुम लोग इतना सामान्य मानते हो, वह मेरे लिए एक निहायत ही मूल्यवान अनुभव है,’’ वह बोली, और उत्तर में मिली एक मुसकान.

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इस घर के चारों ओर जो हरियाली थी उसी के कारण पड़ोसी उसे ग्रीन हाउस कहते और इस परिवार के सदस्यों का आपसी स्नेह सब की ईर्ष्या की वस्तु थी. नई बहू का शोषण करने के इरादे से कोई बातूनी आ कर कहती, ‘‘चलो न, छोटी, आज मेरे पति फ्री हैं. हम दोनों नाइट शो देख आएं. मेरे पति, तुम्हारे पति के सहकर्मी ही नहीं, जिगरी दोस्त भी हैं.’’ तनिक झिझक से वह कहती, ‘‘बाबूजी को ज्यादा रात गए घर लौटना पसंद नहीं है.’’

‘‘ओह, अपने बूढ़े ससुर से कहो ये दकियानूसी बातें भूल जाएं. आखिर एक मैट्रिकुलेट का देखनेसोचने का क्षेत्र तो सीमित होगा ही.’’

छोटी का दिल छलनी होने लगा. बाबूजी ज्यादा पढ़ नहीं पाए, क्या इसलिए वे व्यापक रूप से देखसमझ नहीं पाते? काश, ये छींटे कसने वाली यह गु्रेजुएट महिला जानती कि कितनी तमन्ना थी उन में पढ़ने की. पर कौन पढ़ाता उन्हें? दूर के रिश्ते के एक मामा ने मैट्रिक पास करते ही असम के जंगलों में भेज दिया उन्हें नौकरी करने. किसी तरह अपने को संभाल कर बोली, ‘‘छोटी ननदें हैं न घर में, उन पर क्या असर पड़ेगा?’’ ‘‘अरे, छोड़ो भी. वे क्या तुझे आदर्श बना कर जी रही हैं. ये स्कूलकालेजों में पढ़ने वाली छोकरियां तो अब तक अपना आदर्श ढूंढ़ चुकी होंगी.’’

अब वह क्या कहती? शिक्षा के दीवाने बाबूजी क्या उन लोगों को छोड़ने वाले हैं? हाथ धो कर पीछे लगे रहते हैं ताकि उन लोगों की पढ़ाई पूरी हो जाए. शांत, समझदार सास कभीकभी तुनक भी उठतीं, ‘पढ़ाई के पीछे होशोहवास खो बैठते हैं. यही एक नशा है इन को. लड़कियां घर का कामधाम भले ही न सीखें, बस दिनरात किताबें लिए रटती रहेंगी. लड़कों को तो पढ़ालिखा कर बड़ा लाट बना दिया.’ ‘लाट नहीं तो क्या? उन के ठाठ क्या किसी से कम हैं?’ बाबूजी एक संतोषपूर्ण मुखमुद्रा में चिल्लाचिल्ला कर कहते, ‘पड़ोसी पूछते हैं कि तुम्हारा कितना बैंक बैलेंस है? मैं कहता हूं कि मैं ने अपना पैसा बैंकों में जमा कर दिया है. पांचों बेटे मेरे हीरे हैं.’ उन्हें बैंक बैलेंस शून्य होने का कोई भी दुख नहीं था.

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बेटे कभीकभी चिढ़ जाते, ‘हां, हां, लिखायापढ़ाया ही तो है. और क्या दिया है? हम लोग अपनी मेहनत से आगे बढ़े. तुम ने खापी कर सब खर्च कर दिया.’ ‘जरूर किया. कमाया है, खाऊंगा नहीं?’ बाबूजी अपना धीरज खो बैठते. भिन्नभिन्न प्रकार के पकवानों के प्रति वे अपना लोभ न रोक पाते. खाने का शौक बराबर रहा है उन्हें. यह तो उन के बाजार से अपनी मनपसंद चीजें लाने का शौक देख कर ही वह समझ जाती. दूसरी बहुएं और सास मुंह में कपड़ा ठूंस कर ठिठोली करतीं, ‘‘दांत नहीं रहे, फिर भी खाते किस शौक से हैं. शायद उम्र के साथ लालच और भी बढ़ गया है.’’

मनोविज्ञान की छात्रा छोटी सोचती कि इन लोगों को कौन समझाए. स्नेह और प्यार की वह भूख जो मिट न पाई, उसे जीभ की संतुष्टि द्वारा पेटभर कर मिटाना चाहता है स्नेह का प्यासा वह व्यक्ति. उस के अतृप्त मन ने अपना समाधान खोज निकाला है, पर यदि वह बोलने लगे तो वे हंस कर बोलेंगी, ‘‘चल री, यह कोई तेरी विश्वविद्यालय की कक्षा है, जो लैक्चर झाड़ रही है. अपनी छात्राओं को सिखाना जा कर.’’ प्यार मिला नहीं, पर प्यार लुटाना आता है बाबूजी को. पतंग पकड़ने के लिए जाने पर किस तरह मामा के हाथों पिटाई हुई थी, वही किस्सा सुनातेसुनाते वे मंडू को पतंग बनाना सिखाते. ‘‘स्कूल खुल रहे हैं, मीतू की बरसाती लानी है,’’ सुबह से ही वे हल्ला मचाने लगते मानो मीतू की बरसाती लाने से बड़ा कोई काम इस दुनिया में बचा ही न हो. जब मीतू शैतानी करती तब संझली कहती, ‘‘अब मैं इसे होस्टल में डाल दूंगी.’’

‘‘मजाक में भी होस्टल का नाम मत लेना. बेटी, मांबाप के रहते बच्ची को भला होस्टल में क्यों रहना पड़े इस कच्ची उम्र में? मुझे भी मामा ने 9वीं कक्षा में होस्टल में रख दिया था…’’ वे खो जाते उन दिनों की याद में जब उन्हें पोखर से कमल चुरा कर लाने में बड़ा आनंद आता था. लालाजी के कुम्हड़े की बेल काट कर फेंक देने में हर्ष होता था. और कितना मजा आता था चाचाजी की गाय के बछड़े को छोड़ देने में, जिस से पूरा दूध बछड़ा पी जाए और लल्लन चाचा उसे गालियां सुनाने घर आ धमकें. इस खेल में उपलब्धि शायद भौतिक लाभ की दृष्टि से कुछ भी न होती, पर एक किशोर बालक का अहं तृप्त हो जाता. पर किस को परवा थी उस के अहं की. वह तो पराश्रित अनाथ बालक था, इसीलिए मामा ने उसे होस्टल में भरती कर दिया था.

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Serial Story: उपलब्धि (भाग-3)

‘‘जाड़े के दिन थे. बहू और मामा नई रजाई दे गए थे मुझे. लड़कों ने मेरी नईनई रजाई देखी तो ईर्ष्यावश दौड़े आए और हंसने लगे, ‘अरे, मुंडी रजाई है, मुंडी.’ मेरी रजाई के किनारों पर पाइपिंग नहीं थी. बस, छोकरों को बहाना मिल गया. सब के सब टूट पड़े मुंडी रजाई पर और सारी रुई नोचनोच कर हवा में उछालने लगे. एक असहाय किशोर पर उस रात क्या बीती, यह उस का दिल ही जानता है.

‘‘कमरे में रुई के गुब्बारे नहीं, उस के मथे हुए अरमानों की धूल उड़ रही थी. मेरे देखते ही देखते उन्होंने रजाई के चीथड़े कर दिए. ठंड से ठिठुर कर वह जाड़ा गुजारा मैं ने, पर मामा से दूसरी रजाई मांगने का साहस न जुटा पाया. जीवनभर कभी भी किसी से जिद कर के कुछ मांगने का दिन नहीं आया. ‘‘आज किसी बच्चे की कोई भी जिद पूरी कर के मुझे बड़ी आत्मतृप्ति होती है.

‘‘इस कच्ची उम्र में होस्टल में मत भेजो, जबकि तुम लोग जिंदा हो, मैं जिंदा हूं. कल से मैं पढ़ाया करूंगा मीतू को. वह सुधर जाएगी. मांबाप के प्यार में वह ताकत है जो शायद होस्टल के कठोर अनुशासन में नहीं है.’’ छोटी बहू की आंखें सजल हो उठतीं. क्या किसी के पास थोड़ा सा भी अतिरिक्त प्यार नहीं बचता है एक अनाथ बच्चे के लिए? थोड़ा सा स्नेह जहां जादू कर सकता है, सारे विष को अमृत में बदल सकता है, वहां ये समर्थ दुनिया वाले अपनी क्षमता का दुरुपयोग क्यों करते हैं?

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कुछ देर के लिए बाबूजी की उन धुंधली आंखों की सजल गहराई में डूबतीउतराती वह वर्षों पीछे घिसटती चली जाती. प्यार का लबालब भरा प्याला किसी के होंठों से लगा है, पर वह उस स्वाद की अहमियत नहीं जानता और जिस के आगे से अचानक प्यार की भरी लुटिया खींच ली गई हो वह प्यासे मृग की भांति भाग रहा है. और वह खो जाती है अपने वार्षिक परीक्षाफल की घोषणा के दिनों की याद में. वह कक्षा में प्रथम आती है और उस से उम्र में बड़ी चचेरी बहन किसी तरह पास हो जाती है. चाची हाथ मटकामटका कर कहती है, ‘‘देखो, आजकल की बहुरूपिया लड़कियों को, कैसे दीदे फाड़ कर चीखती थी कि हाय, मेरा परचा बिगड़ गया. इधर देखो तो पहला नंबर ले कर आ रही है. हाय, कितने नाटक रचे.’

वह प्रथम आई है, इस की खुशी मनाना तो दूर रहा, पर कभी परचा बिगड़ जाने पर रो पड़ने की बात पर चाची उलाहना देना न भूलीं. स्वाभाविक था कि कितना भी अच्छा विद्यार्थी हो, वह परीक्षा के दिनों में ऊटपटांग सोचता है, डरता है. पर उस के लिए तो स्वाभाविक बात या व्यवहार करना भी संभव न था. वह सब की नजरों में एक वयस्क, समझदार और सख्त लड़की थी, जिस के लिए नाबालिग की तरह व्यवहार करना अशोभन था. और जब आर्थिक झंझटों के बावजूद बाबूजी ने उसे अपनी छोटी बहू मनोनीत किया था, तब तो मानो कहर बरपा था.

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‘क्या देख कर ले जा रहे हैं?’ एक ने कटाक्ष करते हुए कहा था. ताईजी का स्नेह जरूर था इस पर. हौलेहौले वे बोली थीं, ‘अजी, ऐसा मत कहो. हमारी बिटिया का चेहरामोहरा तो अच्छा है. हरदम हंसती आंखें, तीखी नाक और पढ़ाई में अव्वल.’

हां, उस के साधारण से चेहरे पर एक ही असाधारण बात थी. उस की हंसती हुई आंखें-जैसे प्रतिज्ञा कर ली थी उन आंखों ने कि हर उदासी को हरा कर रहेंगे और यही उस का गुण बन गया था-हंसमुख बने रहना. वह अपने आसपास देखती कि इस अभावग्रस्त दुनिया में सुखसुविधा के बीच भी आदमी अभाव का अनुभव कर रहा है. जो भौतिक सुखों से वंचित है वह भी और जो सुविधाप्राप्त है वह भी. शायद भौतिक सुख दुनिया के हर कोने तक पहुंचाने में हम असमर्थ हैं, पर स्नेह के अगाध सागर से लबालब भरा है यह मानव मन. यदि थोड़ा सा भी सिंचन करना शुरू कर दे हर कोई तो सारी धरती, सारी जगती सिंच जाए. इतना थोड़ा सा त्याग वह भी करेगी और करवाएगी. आखिर इस में तो कोई खर्च नहीं है? आजकल की दुनिया में हिसाब से चलना पड़ता है, पर मन का कोई बजट नहीं बन सका है आज तक और न ही प्यार का कोई माप. इसलिए जहां तक स्नेहप्रेम खर्च करने का सवाल है, बेझिझक आगे बढ़ा जा सकता है. वहां न कोई औडिट होगा न कोई चार्ज.

पर हिसाबी है न मानव मन. हो सकता है कभी कोई माप निकल आए और स्नेह का भी हिसाब देना पड़े. शायद यही सोच कर स्नेह के भंडार भरे पड़े हैं और रोते दिलों को लुटाने को कोई तैयार नहीं दूरदर्शी, समझदार आदमी की जात. खिलखिला कर हंस उठी वह. ‘‘कैसी पगली हो तुम? मन ही मन हंसती हो और रोती हो,’’ पति की मीठी झिड़की सुन कर चुप हो गई वह. फिर तुनक कर बोली, ‘‘क्यों, हंसने पर कोई टैक्स तो है नहीं और जहां तक रोने का सवाल है, तुम्हें पा कर, तुम लोगों के बीच इस ग्रीन हाउस की ठंडी छांव में रो कर भी शांति मिलती है. मानो, बीती कड़वी यादों को धो कर बहाए दे रही हूं.’’

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कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी. परिवार के सभी सदस्य रजाई में दुबके पड़े थे, पर इतना शोरगुल होने लगा कि एकएक कर सब उठने को मजबूर हो गए. बैठक से शोरगुल की आवाज आ रही थी. एकएक कर सब भीतर झांकने लगे.

‘‘आइए, आइए,’’ छोटी का सदा सहास स्वर. मेज पर एक बड़ा सा केक रखा था. और चाय की प्यालियां सजी थीं. सारे बच्चे बाबूजी को खींच कर मेज तक ला रहे थे. छोटी ने प्यालियां भरनी शुरू कीं. चाय की सुगंध से कमरा महक उठा. बच्चों ने दादाजी को ताजे गुलाब के फूलों का गुलदस्ता भेंट किया. छोटी ने उन की कांपती उंगलियों में छुरी पकड़ा दी. बच्चे एकसाथ गाने लगे, ‘‘हैप्पी बर्थ डे टू यू… दादाजी, जन्मदिन मुबारक हो…’’

परिवार के सदस्यों ने भुने हुए काजुओं के साथ चाय की चुस्की ली. केक का बड़ा सा टुकड़ा छोटी ने बाबूजी को पकड़ा दिया. कनखियों से सास की ओर देखा बाबूजी ने. फिर उन की आंखों में जो स्नेह का सागर उमड़ रहा था वह सब के कल्याण के लिए, सारी दुनिया के वंचित लोगों के लिए, सारी जगती के अतृप्त बच्चों के मंगल के लिए बहने लगा… ‘‘मेरा जन्मदिन आज तक किसी ने नहीं मनाया था, बेटी…’’ और छोटी को लगा, स्नेह के इन कीमती मोतियों को वह पिरो कर रख ले.

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