सुधा का बैग उस ने अपने हाथों में ले कर कमरे में प्रवेश किया. जहां उस की मां एक पलंग पर बैठी थीं. पलंग से सटी एक मेज थी जिस पर दवाइयां रखी थीं. कमरा बहुत बड़ा था. सामने की दीवार पर एक तसवीर टंगी थी, जिस पर फूलों की माला लटक रही थी. सुधा ने उस की मां के चरणों को स्पर्श किया तो वे पलंग पर बैठे उसे आश्चर्यचकित नजरों से देखने लगीं. तभी निलेश ने उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘मां, यह सुधा है, दिल्ली से आई है. कालेज में मेरे साथ पढ़ती थी.’’ उस की मां सुधा से औपचारिक बातें करने लगीं, पर सुधा की नजरें दीवार पर लगी उस तसवीर पर टिकी थीं.
निलेश ने कहा, ‘‘सुधा, यह मेरे पिताजी की तसवीर है. वह पलंग से उठ कर उस तसवीर को स्पर्श कर भावविह्वल हो गई. उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. निलेश की मां देख कर समझ गई कि यह बहुत भावुक लड़की है.’’
उन्होंने उस का ध्यान हटाने के उद्देश्य से कहा, ‘‘बेटी, मेरे पति जिंदा होते तो तुम्हें देख कर बहुत खुश होते, पर नियति को कौन टाल सकता है. आओ, मेरे पास बैठो. लगता है तुम मेरे बेटे से बहुत प्यार करती हो. तभी तो इतनी दूर से मिलने आई हो वरना इस कुटिया में कौन आता है. मेरी बूढ़ी आंखें कभी धोखा नहीं खा सकतीं. क्या तुम मेरे बेटे को पसंद करती हो?’’ यह सुन सुधा ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘हम और निलेश कालेज में बहुत अच्छे दोस्त थे.’’
जब निलेश की मां ने कहा, ‘‘तो क्या अब नहीं हो?’’ मुसकराते हुए उस ने बड़ी सहजता से कहा, ‘‘हां, अभी भी मैं उस की दोस्त हूं, तभी तो मिलने आई हूं.’’
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निलेश की मां मुसकराने लगीं, और उस के सिर पर हाथ रख कहा, ‘‘सदा खुश रहो बेटी, मेरा बेटा बहुत अच्छा है, पर मेरी बीमारी के कारण वह कोई डिगरी न पा सका. मैं ने बहुत समझाया कि दिल्ली जा कर अपनी पढ़ाई पूरी कर ले, मेरा क्या है, आज हूं कल नहीं रहूंगी. पर उस की तो पूरी जिंदगी पड़ी है.’’ सुधा ने तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मांजी, आप बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगी. आप को इस हालत में छोड़ कर कोई भी बेटा कैसे जा सकता था?’’
तभी निलेश चाय का प्याला ले कर कमरे में उपस्थित हुआ और सुधा की बातें सुन कर सोचने लगा कि क्या यह वही सुधा है? जो परिवार की जिम्मेदारी के नाम से कोसों दूर भागती थी. मां को खुश करने के लिए कितना अच्छा नाटक कर रही है. न जाने क्यों झूठी तसल्ली दे रही है. वह उस के करीब जा कर कहने लगा, ‘‘सुधा, तुम सफर में थक गई होगी, फ्रैश हो कर चाय पी लो.’’ चाय मेज पर रखते हुए उसे आदेश दिया. निलेश की मां पलंग से उठीं और अपने कमरे से बाहर चली गईं ताकि वे दोनों आपस में बातें कर सकें. उन के जाते ही सुधा निलेश से सवाल कर बैठी, ‘‘निलेश, क्या चाय तुम ने बनाई है?’’
‘‘हां, सुधा, मुझे सबकुछ काम करना आता है और कोई है भी तो नहीं हमारी मदद करने के लिए घर में.’’ सुधा आश्चर्यचकित होती हुई बोली, ‘‘तुम लड़का हो कर भी अकेले कैसे सब मैनेज कर लेते हो. अब तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए, ताकि तुम्हें जीवन में कुछ आराम तो मिलता.’’
निलेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यह तुम कह रही हो सुधा. आजकल की लड़कियां घर की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं रहना चाहतीं. हर लड़की के सपने होते हैं. किसी लड़की के उन सपनों को मैं बिखेरना नहीं चाहता. मैं जैसा भी हूं, अकेले ही ठीक हूं.’’
सुधा अचानक एक प्रश्न कर बैठी, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करना चाहोगे?’’
वह उस की तरफ देख कर फीकी हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘सुधा, क्यों मजाक कर रही हो?’’
‘‘यह मजाक नहीं निलेश, हकीकत है. क्या तुम मुझ से शादी करोगे? तुम से बिछड़ने के बाद एहसास हुआ कि जीवन में एक हमसफर तो होना ही चाहिए. अब जीवन में मुझे किसी चीज की कोई कमी नहीं है. मैं ने जो चाहा, सब किया पर खुशी की तलाश में अब तक भटक रही हूं. मुझे लगता है कि वो खुशी तुम हो, कोई और नहीं. न जाने क्यों दिल तुम्हें ही पुकारता रहा. तुम ने ठीक कहा था. प्यार कब किस से हो जाए पता नहीं चलता, जब पता चला तो दिल पर तुम्हारा ही नाम देखा. तुम्हारी प्यारभरी बातें, मुझे सोने नहीं देतीं.’’
‘‘यही तो प्यार है, सुधा, दो दिल मिलते हैं पर कभीकभी एकदूजे को समझ नहीं पाते, और जब समझते हैं तो बहुत देर हो जाती है. सुधा, सच तो यह है कि मैं तुम्हें खुश नहीं रख पाऊंगा. क्या तुम इस गांव के वातावरण में मेरे साथ रह पाओगी? मेरी परिस्थिति अब तुम्हारे सामने हैं. जैसी जिंदगी तुम्हें चाहिए, मैं नहीं दे सकता. तुम्हें बंधन पसंद नहीं और मैं उन्मुक्त नहीं. तुम्हारे सपने अधूरे रह जाए, यह मुझे मंजूर नहीं.’’ चाय की चुस्की लेते हुए सुधा ने कहा, ‘‘निलेश, मेरे सपने तो अब पूरे होंगे. अब तक मैं शहर के बच्चों को पढ़ाती रही, चित्रकला भी सिखाती रही पर अब तुम्हारे गांव के बच्चों के साथ बिताना चाहती हूं. शहर में तो सभी रहना चाहते हैं, पर अब मैं तुम्हारे गांव के बच्चों को पढ़ाऊंगी. एक अलग अनुभव होगा मेरे जीवन में. इस तरह तुम्हारी मां की देखभाल भी कर पाऊंगी, अब मेरा नजरिया बदल गया है. जिम्मेदारी और प्यार का एहसास तो तुम्हीं ने कराया है. तुम ठीक कहा करते थे कि बंधन में सुख भी होता है और दुख भी.’’
वह सुधा की बातें सुन, अवाक उसे देखने लगा. उस का जी चाहा कि सुधा को गले लगा ले. वह सोचने लगा, वक्त ने सुधा को कितना परिपक्व बना दिया या मेरी जुदाई ने प्यार का एहसास करा दिया है कि जब किसी से प्यार होता तो सभी परिस्थितियां अनुकूल दिखाई देने लगती हैं.
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‘‘क्या सोच रहे हो, निलेश, दरअसल, तुम से जुदा हो जाने के बाद मुझे एहसास हो गया कि दोस्ती और प्यार के बिना इंसान जीवनपथ पर चल नहीं सकता. कभी न कभी औरत हो या पुरुष दोनों को जीवन में एकदूसरे की आवश्यकता होती ही है. फिर तुम क्यों नहीं मेरी जिंदगी में. आज उस प्यार को स्वीकार करने आई हूं जो कभी ठुकरा दिया था. बोलो, क्या मुझे स्वीकार करोगे?’’ ‘‘सुधा, बात स्वीकार की नहीं, लक्ष्य की है. तुम तो अपनी सफलता की सारी मंजिले पार कर गई. पर मैं आज भी लक्ष्यविहीन हूं. तुम्हारे शब्दों में कहूं तो समय पर भरोसा जो करता था.’’
उसे दिलासा देते हुए सुधा ने कहा, ‘‘निलेश, परिस्थितियां इंसान को बनाती हैं, और बिगाड़ती भी हैं. इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. तुम ने तो अपनी मां के लिए अपना कैरियर दांव पर लगा दिया. ऐसा बेटा होना भी तो आजकल इस संसार में दुर्लभ है. क्या तुम्हारा यह लक्ष्य नहीं? आज मुझे तुम पर गर्व है. तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे पास अभी भी समय है, अपनी अधूरी शिक्षा पूरी कर सकते हो. बीए कर सेना में भरती हो सकते हो तुम्हारे पिता की भी यही इच्छा थी न?’’ यह सुन निलेश की खुशी का ठिकाना न रहा,‘‘तुम सचमुच ग्रेट हो. यहां आते ही मेरी हर समस्या को तुम ने ऐसे सुलझा दिया जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो.’’
तभी दरवाजे की ओर से निलेश की मां ने जब यह सुना तो खुशी से फूले न समाईं. अपने बेटे के भविष्य को ले जो उन के हृदय पर संकट के बादल घिर आए थे, वे सब छंट गए. आगे बढ़ कर सुधा को उन्होंने गले लगा लिया.
सुधा ने कहा, ‘‘आंटी, यदि आप इजाजत दें तो मैं अपनी नौकरी और शहर छोड़ कर यहीं आ जाऊं?’’ ‘‘आंटी नहीं, सुधा, आज से तुम मुझे मां कहोगी,’’ निलेश की मां ने जब यह कहा तो दोनों मुसकरा पड़े. सुधा ने अपने मातापिता की इजाजत ले कर निलेश से शादी कर ली और गांव में ही जीवन व्यतीत करने लगी.
निलेश ने स्नातक की परीक्षा पास कर सेना में भरती होने के लिए अर्जी दे दी थी. आज वह अपने देश की सीमा पर तैनात है. शादी के 6 महीने बाद ही निलेश की मां की मृत्यु हो गई थी.
आज वे जीवित होतीं तो कितनी खुश होतीं. सीमा पर तैनात निलेश यही सोच रहा है. शायद यही जीवन की रीत है. कभी मिलती खुशी तो कभी गम की लकीर. पर जिंदगी रुकती तो नहीं है. सुधा ठीक तो कहा करती थी कि इंसान चाहे तो कभी भी, कुछ भी कर सकता है. पर आज अगर अपने लक्ष्य तक पहुंचा हूं तो सुधा के सहयोग से. जीवन का हमसफर साथ दे तो कोई भी जंग इंसान जीत सकता है.
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