प्रश्नचिह्न: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

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मां से मायका: क्या हुआ था ईशा के साथ

रात का घना अंधेरा पसरा था. रात की चादर तले इंसानों के साथसाथ अब तो सारे सितारे भी सो चुके थे पर ईशा की आंखों में नींद कहां… वह अजीब सी बेचैनी महसूस कर रही थी. अंकुर नींद के आगोश में डुबे थे. घड़ी की सूई की टिकटिक से भी उसे झंझलाहट महसूस हो रही थी. पता नहीं क्यों कुछ छूटता हुआ महसूस हो रहा था.

अंशु भाभी का थोड़ी देर पहले ही फोन आया था, ‘‘नानाजी नहीं रहे.’’

‘‘कब?’’

‘‘थोड़ी देर पहले उन्होंने अंतिम सांस ली.’’

दिल में कहीं कुछ चटक सा गया. शायद ननिहाल से जुड़ा हुआ वह अंतिम धागा क्योंकि उन के जाने के साथ ही ननिहाल शब्द जीवन से खत्म हो गया. ईशा को ननिहाल हमेशा से बहुत पसंद था. यह वह जगह थी जहां लोग उस की मां को उन के नाम से पहचानते थे. यहां वे राम गोपालजी की बहू नहीं, रमेश की पत्नी नहीं और न ही ईशा की मां थीं. यहां वो कमला थी सिर्फ कमला जहां उन के आगमन का लोगों को इंतजार रहता था, जिन की वापसी के नाम पर लोगों के चेहरे पर उदासी पसर जाती थी.

‘‘इतनी जल्दी कितने दिनों बाद आई हो, कुछ दिन तो रुको.’’

मां का चेहरा जितनी तेजी से खुशी से चमकता उतनी ही तेजी से धप्प भी पड़ जाता. खुशी इस बात की कि कुछ लोग आज भी उन के आने का इंतजार करते हैं, गम इस बात का कि जो दूसरे ही पल इस बात का इजहार कर देता है कि अब वह पराई हो चुकी है. सिर्फ अपनों के लिए ही नहीं इस शहर के लिए भी…

‘‘क्या सोचा है आप ने… कब चलेंगी?’’ उन की बहू कह रही थी, ‘‘बीमार चल रहे थे… सब का इंतजार करेंगे तो कैसे चलेगा… मिट्टी खराब हो जाएगी.’’

मिट्टी… एक जीताजागता इंसान पलभर में मिट्टी हो गया. महीनों तक गरमी की छुट्टियों का इंतजार करने वाले नानाजी को आखिरी बार देखना भी संभव न होगा. मां के जाने के बाद उन्होंने ही तो सहेजा था हम दोनों भाईबहन को… मां जब इस दुनिया से गईं बच्चे नहीं थे हम पर प्यार के दो मीठे बोल, ममताभरा हाथ तो हर उम्र में चाहिए होता है. मां बहुत कष्ट में थीं, हर बार की कीमियोथेरैपी निराशा की ओर धकेल रही थी… डाक्टर हर बार कहते अब वे ठीक हैं पर मां जानती थीं सबकुछ ठीक नहीं है.

डाक्टर से मिलने के बाद पापा हमेशा हम भाईबहन के सामने मुसकराने का प्रयत्न करते, ‘‘सबकुछ ठीक है चिंता की कोई बात नहीं.’’

पर हर बार पापा के माथे की लकीरों को अनपढ़ मां न जाने कैसे पढ़ लेती थीं. आज सोचती हूं तो लगता है पापा के लिए कितना मुश्किल रहा होगा सबकुछ… हम सब के चेहरे पर खुशी के कुछ हसीन पल देखने के लिए वे मुसकराने का प्रयत्न करते थे… पर मुसकराते रहना कोई आसान बात नहीं. बहुत दर्द से गुजरती थी उन की वह हंसी हम सब के चेहरे पर खुशी के चंद लम्हे देखने के लिए…

ईशा को आज वह दिन बारबार याद आ रहा था. मां का शरीर कैंसर से दिनबदिन कमजोर होता जा रहा था पर उस से ज्यादा कमजोर होती जा रही थी उन के जीने की इच्छाशक्ति. पर न जाने क्यों मायके की दहलीज उन्हें बारबार खींच रही थी. पापा के बारबार मना करने के बावजूद मां हमें समेटे नानानानी से मिलने चली गई थीं.

नानाजी ने बारबार कहा भी था,’’ तुम चिंता न करो हम तुम से मिलने आएंगे.’’

मगर उस दहलीज, उन दीवारों का मोह उन से छूट नहीं रहा था. छूटता भी क्यों जीवन की न जाने कितनी यादें जुड़ी थीं उन दीवारों से, उन गलियारों से… उन्हें हमेशा लगता था शहर के चौराहे, नुक्कड़ उन की राह आज भी तक रहे हैं.

एकएक चीज का हिसाब रखने वाली मां नानी के घर जा कर न जाने क्यों भुलक्कड़ बन जाती थीं. नानी के बारबार कहने पर भी कुछ न कुछ सामान हर बार छूट ही जाता था. हर समय हर चीज को सहेजने वाली मां खुद को सहेजना भूल जाती थीं, जिन की उंगलियों पर एकएक चीज होती वे न जाने क्यों मायके से लौटते समय चीजें रख कर भूल जातीं. शायद वे उस घर में अपने वजूद की खुशबू बनाए रखना चाहती थीं पर उस बार वे सामान नहीं शायद अपनेआप को भूल आई थीं.

कभीकभी इंसान मौत से पहले ही मर जाता है… मां शायद अपना अंत जानती थीं हमेशा बोलने वाली मां अचानक चुप हो जातीं या फिर बहुत बोलने लगतीं. बहुत कुछ कहना था उन्हें पर शायद हम ही उन्हें सुन नहीं पाए. कुछ था जो मां के साथ ही अनकहा रह गया. अब की बार वे लौट कर आईं तो कुछ था जो उन से छूट रहा था पर मां मुंह से कुछ भी न कहतीं. रिश्तों और संबंधों को हमेशा सहेजने और समेटने वाली मां सूख रही थीं.

मां हमेशा कहती थीं, ‘‘वृक्षों से हमें संबंधों को गहराई की कला सीखनी चाहिए, कुल्हाड़ी की एक चोट से सिर्फ जड़ें ही नहीं मरतीं पेड़ भी मर जाता है.

‘‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:,

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:..’’

अंतिम आहुति के साथ पूजा संपन्न हुई. ईशा अपनी सोच के दायरे से बाहर आ

गई. नानाजी तसवीर में मुसकरा रहे थे. स्वागत करने वाले हाथ, दुलारने वाले हाथ आज तारीफ बन चुके थे. सभी लोग प्रसाद ग्रहण कर आंगन में ही बैठ गए. बड़े मामाजी के लड़के ने नानाजी के जीवन पर एक छोटा सी वृत्तचित्र बनाया था. ईशा हर कोने में बिखरी बचपन की यादों को आंचल में समेट रही थी. पता नहीं अब कब आना हो. हो भी या शायद… नानाजी का मुसकराता चेहरा आंखों में समा गया. औफिस जाते नानाजी, पोते की शादी में नाचते नानाजी परिवार के साथ खाना खाते नानाजी, ईशा की आंखों के आंसू रुक नहीं रहे थे. अंशु भाभी ने धीरे से उस के हाथों पर हाथ रखा पर स्नेह और आश्वासन का स्पर्श भी उन आंसुओं को रोक न सका. अंकुर ने धीरे से रूमाल ईशा की तरफ सरक दिया.

कुछ था जो ईशा किसी से भी बांट नहीं पा रही थी. पूजा संपन्न हो चुकी थी. धीरेधीरे घर से सभी पड़ोसी, दोस्त और रिश्तेदार प्रसाद ले कर अपनेअपने घर लौटने लगे.

अंकुर ने भी धीरे से इशारा किया, ‘‘अगर अभी निकल लेंगे तो रात तक घर पहुंच जाएंगे.’’

रुकने का कोई मतलब भी नहीं था और रोकने वाला भी दूरदूर तक कोई नहीं था. रोकने और मनुहार करने वाले हाथ तो न जाने कब का हाथ छुड़ा कर इस दुनिया से जा चुके थे. ईशा ने सब से इजाजत मांगी. मामीजी ने अंकुर और ईशा का टीका किया और घर के लोगों के लिए डब्बे में प्रसाद बांध कर दे दिया. ईशा ने एक भरपूर नजर घर पर डाली, कितना कुछ समेट लेना चाहती थी वह… शायद रिश्ते, शायद घर या फिर शायद यह शहर सबकुछ तो छूट रहा था. गाड़ी धूल उड़ाती आगे बढ़ गई.

रास्तेभर ईशा ने किसी से कोई बात नहीं की पर अंशु कुछकुछ समझ रही थी. वह उस के चेहरे को पढ़ने का प्रयास कर रही थी. उम्र में उस से छोटी ही थी पर दुनिया की उसे बड़ी अच्छी समझ थी, ‘‘जीजाजी, बड़ी देर से गाड़ी चल रही है, कहीं ढाबा देख कर गाड़ी रोक लीजिए. चाय पीने का मन कर रहा है.’’

अंशु समझ चुकी थी, कुछ ऐसा था जो ईशा को चुभ रहा था. ईशा बेचैन है अंशु यह अच्छी तरह समझ रही थी. नाना के घर से हमेशा के लिए नाता कहीं न कहीं टूट रहा था, सब लोग ढाबे की ओर चल पड़े. ईशा भरे कदमों से कुरसी की तरफ बढ़ ही रही थी कि अंशु ने हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया, ‘‘दीदी, आप बुरा न माने तो एक बात कहूं?’’

‘‘हां बोल न.’’

‘‘नानाजी का जाना हम सब के जीवन में एक खालीपन भर गया है पर इस दुनिया में जो आया है उसे एक दिन तो जाना ही है. नानाजी अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी कर के गए हैं. मुझे ऐसा लगा आप के आंसुओं का कारण सिर्फ नानाजी का जाना नहीं है. ऐसा कुछ है जो आप को कचोट रहा है, आप के आंसू थम नहीं रहे हैं.’’

ईशा चुपचाप अंशु के चेहरा देखती रही. अंशु न जाने कैसे उस के दिल के दर्द को समझ गई थी.

‘‘अंशु, तुम से आज तक कुछ भी छिपा नहीं है. आज भी तुम से मैं कुछ भी नहीं छिपाऊंगी. जिस घर में मेरी मां पलीबढ़ीं जिन की हर सांस मायके से शुरू होती थी और मायके पर ही खत्म होती थी. आज नानाजी के घर जब वह वृत्तचित्र चला तो मामाजी के बेटेबहू, नातीपोते सब की तसवीरें थीं पर मेरे पापा और मेरी मां की एक तसवीर भी नहीं थी. नानाजी की संतान, मेरी मां उस घर की बेटी भी थीं, किसी की बहन, किसी की बूआ भी थीं.

आज न जाने क्यों मुझे यह महसूस हुआ.

‘‘मां का वजूद उन की मृत्यु के साथ ही खत्म नहीं हुआ बल्कि उस घर में तो उन का अस्तित्व कब का खत्म हो चुका था. मां से जुड़ा हुआ यह नाता शायद उसी दिन खत्म हो गया था, जिस दिन मां मरीं पर इस का एहसास मुझे आज हुआ. अंशु लोगों की थोड़ी सी अनदेखी सिर्फ रिश्ते को ही ठंडा नहीं करती इंसान को भी ठंडा कर देती है. आज मैं ने महसूस किया, कुछ साल पहले मेरी मां मरीं तो सिर्फ उन का शरीर मरा था पर लोगों की नजरों में उन का अस्तित्व तो बहुत पहले ही मर गया था.

‘‘जानती हो अंशु छोटी चाची गरीब परिवार से थीं, दादी ने उन की सुंदरता देख कर चाचा से शादी की थी. मां बताती थीं, चाची के मायके वाले इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हो रहे थे क्योंकि उन्हें लगता था जीवनभर वे इतने संपन्न परिवार के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं कर पाएंगे.’’

‘‘कर्तव्य?’’

‘‘कर्तव्य मतलब लेनदेन. भारतीय परिवारों में हर मौके, तीजत्योहार पर आने वाला नेग बहू के घर वालों और समधियाने का कर्तव्य ही तो है.’’

ईशा की बात सुन अंशु मुसकरा दी.

‘‘अंशु, उस पर से तुर्रा यह कि इस में नया क्या है, दुनिया करती है. दादी ने चाची की सुंदरता पर मोहित हो कर उन्हें दो कपड़ों में लाना मंजूर तो किया था पर शादी होते ही दादी यह बात भूल चुकी थीं कि चाची के परिवार के लोगों की ऐसी स्थिति नहीं है कि वे हर मौके पर नेग भेजते रहें पर चाची ने अपने मायके वालों की इज्जत रखने के लिए न जाने कितनी बार चाचाजी से बचाबचा कर रखे पैसों से कभी मिठाई तो कभी कपड़े खरीद कर मायके की इज्जत रखी. दादी इंसान के तौर पर बहुत अच्छी थीं पर सासदादी समझ जाती थीं कि यह सारा सामान किस तरह से एकत्र किया गया हैं. ‘सैंया का दाम और भैया का नाम’ दादी का यह एक वाक्य चाची को नश्तर की तरह चुभता पर बेचारी क्या करतीं.

‘‘घर में जेठानी भी थीं. एक अनदेखी सी प्रतिद्वंद्विता बनी ही रहती. आश्चर्य की बात यह प्रतिद्वंदिता उन दोनों के मन में कभी नहीं उपजती. मां के चाची से हमेशा से अच्छे संबंध रहे पर दादी, बूआ और नातेरिश्तेदार तुलना कर ही देते थे.

‘‘एक बार चाची ने मन की गांठों को मां के सामने खोल कर रख दिया था.

उन्होंने रोतेरोते मां को बताया था कि भाईभाभी के आने के बाद बिलकुल ही बदल गए हैं पर मायके की इज्जत रखने के लिए मन पर पत्थर रख कर वहां जाना ही पड़ता है. औरत का जीवन कभी ससुराल में मायके की इज्जत रखने तो कभी मायके में ससुराल की इज्जत रखने में ही बीत जाता है.

‘‘मां अच्छी तरह से समझती थीं कि विदाई में मिली चाची की साडि़यां उन की खुद की खरीदी हुई होती हैं पर आज समझ में आता है कहीं न कहीं मां भी तो मायके की इज्जत ही रख रही थीं. नानानानी अपनी सामर्थ्य अनुसार सबकुछ कर ही रहे थे पर आज मामा के परिवार का व्यवहार देख कर यह महसूस हुआ कि मायके की दहलीज मां के हाथ से कब की निकल चुकी थी. जिस परिवार के पास नाना के परिवार के नाम पर उन की बेटी और उस के परिवार की एक तसवीर भी उपलब्ध न हो सकी, वह भला मां से जुड़े हुए रिश्तों की क्या कद्र करेगा. मां बस नानानानी का मुंह देख कर आतीजाती रहीं. शायद ससुराल में मायके का सम्मान बचाए रखने के लिए.’’

अंशु ईशा के चेहरे को देख रही थी और ईशा आसमान में बिखरे उन बादलों के बीच डूबते सूरज को… रिश्तों की भीड़ में आज एक रिश्ता कहीं डूब गया था.

विधवा विदुर: किस कशमकश में थी दीप्ति

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नींद: मनोज का रति से क्या था रिश्ता- भाग 3

रमा और मनोज दोनों ही अपने बेटे का यह संकल्प जानते हैं. यही सोचता हुआ मनोज बाथरूम से तरोताजा हो कर बाहर आया, तो उस ने परदे की आड़ से कमरे में झांका, रमा सो गई थी.
मनोज ने देखा कि नींद में उस की यह सुंदरता कितनी रहस्यमयी है. उस की नींद और सपनों के कितने कथानक होंगे, क्या वह भी शामिल होगा उन में, शायद नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई भय हो, जो कहीं से इस के मन में भरा हो? इसीलिए जब भी मनोज आता है, रमा सोई मिलती है.

वह चुपचाप सांस रोक कर और बारबार परदे के उस तरफ मुंह तिरछा कर के सांस ले कर उस की नींद का अवलोकन करता रहा.
कुछ पल बाद मनोज ने खाना लगाया और मोबाइल पर रति से चैट करते हुए खाना खाने लगा.

“मनोज डार्लिंग 10 लाख रुपए चाहिए.” अचानक ही रति का संदेश आया. मनोज के लिए यह रकम बड़ी तो थी, पर बहुत मुश्किल भी नहीं थी. मगर वह सकपका गया. वह रति से इतना आसक्त हो गया था कि सवाल तक नहीं कर पा रहा था कि क्यों चाहिए, किसलिए… वो कुछ मिनट खामोश ही रहा. दोबारा संदेश आया. अब न जाने क्या हुआ कि मनोज ने रति का नंबर ब्लौक कर दिया. आज वह बौखला रहा था.
हद है, वह समझ गया कि आखिर कौन सा खेल खेला जा रहा था उस के साथ. अब उस ने तुरंत अपने एक सोशल मीडिया विशेषज्ञ मित्र को रति की तसवीर भेज कर कुछ सवाल पूछे. प्रमाण सहित उत्तर भी आ गए. वह अपनी नादानी पर शर्म से पानीपानी हो रहा था. एक बाजारू महिला के झांसे में.

उफ, उस ने अपना सिर पीट लिया यानी वो उस दिन जिस घर पर ले गई थी, वह न रति का था, न उस के पति का. सच तो यह है कि इस का कोई पति है ही नहीं. यही उस ने आननफानन में खाना खत्म किया और फोन एक तरफ रख कर रमा के पास आ कर लेट गया. अब वह रति से कोई संबंध नहीं रखना चाहता था.

‘‘मनोज खाना खा लिया,‘‘ रमा हौले से फुसफुसा कर पूछ रही थी.

‘‘हां,‘‘ कह कर मनोज अभीअभी लेटा ही था. अचानक करवट ले कर वह बिस्तर पर बैठ गया. अब उस ने आसपास हाथ फिराया, तो मलहम मिल गई. मलहम ले कर वह रमा की पीठ पर मलने लगा और बहुत देर तक मलता रहा. रमा को मीठी नींद आ रही थी. वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था कि उस के कानों तक अपना अधर पहुंचा सकता तो दिलासा देता कि तुम निश्चिंत हो, सोती रहो, मैं कोई हानि नहीं पहुंचाऊंगा. मैं कैसे तुम्हारे भरोसे के योग्य बनूं कि तुम अपनी नींद मुझे सौंप दो? मुझे इतना हक कैसे मिले?

मैं कैसे तुम्हारे बसाए घर पर ऐसे चलूं कि कोई दाग ना लगे, तुम को मेरी सांसों के कोलाहल से कोई संशय न हो. तुम निडर हो कर जीती रहो- जैसे सब जीते हैं. इस विश्वास के साथ रहो कि यह घर संपूर्ण रूप से तुम्हारा है. तुम यहां सुरक्षित हो. वह आज यह सोच रहा था कि एक रमा है जो उस से कुछ नहीं मांगती. बस, बिना शर्त प्यार करती है. अगर वह उस का विश्वास जीतने में भी जो विफल रहा, उस ने फिर दुनिया भी जीत ली तो क्या जीता. यह सोचतासोचता वह भी गहरी नींद में सो गया.

अगले दिन रति फैक्टरी नहीं आई. वह उस के बाद फिर कभी नहीं आई.

ब्रैंड दीवानी: क्या था सुमित का जवाब

भव्या बहुत देर तक मौल में इधरसेउधर घूमती रही. आखिकार उस के पति अक्षर ने झंझला कर कहा, ‘‘लेना क्या है तुम्हें? एक बार ले कर खत्म करो.’’

भव्या की मोटीमोटी आंखों में आंसू आ गए. रोंआसी आवाज में बोली, ‘‘मुझे मीना बाजार की साड़ी ही पसंद आ रही हैं.’’

‘‘तो ले लो, क्या समस्या हैं?’’ अक्षर बोला.

भव्या ?िझकते हुए बोली, ‘‘बहुत महंगी है, 20 हजार की.’’

भव्या यह साड़ी करवाचौथ के लिए लेना चाहती थी, इसलिए अक्षर उस का दिल नहीं तोड़ना चाहता था. अत: भव्या को साड़ी दिलवा दी थी. भव्या बेहद खुश हो गई.

फिर दोनों मेकअप का सामान लेने चले गए. वहां पर भी भव्या ने महंगे ब्रैंड का सामान लिया. यही कहानी चप्पलों और अन्य सामान खरीदते हुए दोहराई गई.

जब भव्या और अक्षर मौल से बाहर निकले तो अक्षर अपनी आधी तनख्वाह भव्या के ब्रैंडेड सामान पर खर्च कर चुका था.

भव्या घर आ कर अपनी सास मृदुला को सामान दिखाने लगी तो मृदुला बोलीं, ‘‘बेटा इतने महंगे कपड़े खरीदने की क्या जरूरत थी? मैं तुम्हें सरोजनी नगर मार्केट ले चलती, इस से भी अच्छे और सुंदर कपड़े मिल जाते.’’

भव्या बोली, ‘‘मम्मी मगर वे ब्रैंडेड नहीं होते न. ब्रैंडेड चीजों की बात ही कुछ और होती है. मुझे तो ब्रैंडेड चीजें बेहद पसंद हैं.’’

करवाचौथ के रोज भव्या बहुत प्यारी लग रही थी. लाल रंग की साड़ी में एकदम शोला लग रही थी.

रात को चांद निकल गया था और बहुत हंसीखुशी के माहौल में जब पूरा परिवार

डिनर करने के लिए बैठा तो भव्या बोली, ‘‘अक्षर मेरा गिफ्ट कहां है?’’

अक्षर ने अपनी जेब से एक अंगूठी निकाली तो भव्या बोली, ‘‘यह क्या किसी लोकल ज्वैलरी शौप से लाए हो तुम? तनिष्क, जीवा कोई भी ब्रैंड नहीं मिला तुम्हें?’’

और फिर भव्या बिना खाना खाए पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई.

अक्षर अपमानित सा डाइनिंगटेबल पर बैठा रहा. सब की भूख मर गई थी.

मृदुला अक्षर से बोलीं, ‘‘बेटा तुम परेशान मत हो. धीरेधीरे ही सही भव्या हमारे रंग में रंग जाएगी.’’

अक्षर बोला, ‘‘3 साल तो हो गए हैं मम्मी, आखिर कब समझेगी भव्या?’’

जब अक्षर कमरे में पहुंचा तो भव्या अपनी मम्मी से वीडियो कौल पर बात कर रही थी.

रात में भव्या बोली, ‘‘पता है तुम्हें अंशिका दीदी को जीजू ने करवाचौथ पर तनिष्क का डायमंड सैट गिफ्ट किया है. तुम ने दी है बस यह अंगूठी वह भी ऐसी ही.’’

अक्षर गुस्सा पीते हुए बोला, ‘‘भव्या, अंशिका का पति इतने महंगे गिफ्ट अफोर्ड कर सकता होगा, मैं नहीं कर सकता हूं.’’

भव्या बोली, ‘‘अरे सब लोग करवाचौथ पर अपनी बीवी के लिए क्याक्या नही करते और एक तुम हो?’’

‘‘आगे से मेरे लिए यह व्रत करने की जरूरत नही है,’’ अक्षर गुस्से में बोला.

भव्या जोरजोर से रोने लगी. अक्षर बिना कुछ कहे पीठ फेर कर सो गया. अक्षर और भव्या के मध्य यह बात इतनी बार दोहराई गई है कि अब दोनों को ऐसे ही रात बिताने की आदत पड़ गई थी.

सुबह अक्षर और भव्या के बीच अबोला ही रहा. मगर शाम को अक्षर भव्या के लिए उस की पसंद की आइसक्रीम ले आया. आइसक्रीम पकड़ाते हुए बोला, ‘‘भव्या मेरा दोस्त सुमित और उस की पत्नी शालिनी कल रात खाने पर आएंगे.’’

भव्या एकदम से उत्साहित होते हुए बोली, ‘‘सुमित वह ही दोस्त है न जिस ने शादी में मुझे बांबेसिलैक्शन की बेहद प्यारी औरगेंजा की साड़ी गिफ्ट करी थी?’’

अक्षर हंसते हुए बोला, ‘‘हां वह ही है.’’

भव्या सुमित से पहले 2 बार मिल चुकी थी और दोनों ही बार भव्या सुमित की पर्सनैलिटी और उस के शाही अंदाज से प्रभावित थी. आज तक भव्या ने सुमित की पत्नी शालिनी को देखा नहीं था, मगर बस सुना था कि शालिनी बेहद सुलझ हुई महिला हैं.

शाम को जब शालिनी और सुमित आए तो शालिनी को देख कर भव्या चौंक गई. सुमित के शानदार व्यक्तित्व के आगे शालिनी कहीं भी नही ठहरती थी.

शालिनी का रंग दबा हुआ था और कद भी छोटा था. जहां सुमित ने चमचमाता हुआ सूट पहना हुआ था वहीं शालिनी एक सिंपल सी कौटन की साड़ी में बेहद सामान्य लग रही थी.

भव्या ने देखा जहां सुमित बातचीत में भी निपुण था वहीं शालिनी अधिकतर मौन रहती. सुमित ने स्टार्टर्स के बाद शालिनी से कहा, ‘‘भई भव्या भाभी का गिफ्ट तो दो, जो हम लाए हैं.’’

शालिनी ने मुसकराते हुए भव्या को 2 पैकेट्स पकड़ा दिए.

भव्या बोली, ‘‘क्या दोनों मेरे लिए हैं?’’

‘‘जी भाभी,’’ सुमित बोला.

तभी भव्या तुनक कर बोली, ‘‘मुझे आप भव्या कह सकते हो, मैं आप दोनों से ही छोटी हूं.’’

अक्षर भी बोला, ‘‘हां भई भव्या ठीक कह रही हैं.’’

भव्या ने जल्दीजल्दी पैकेट खोले, ‘‘एक पैकेट में हैदराबाद के सच्चे मोतियों का सैट था तो दूसरे में जयपुरी बंदेज की लाल रंग की साड़ी.’’

भव्या ?िझकते हुए बोली, ‘‘मैं इतने महंगे गिफ्ट कैसे ले सकती हूं?’’

सुमित बोला, ‘‘अरे भव्या तुम्हारी खूबसूरती के सामने तो सब फीका है.’’

एकाएक सब चुप हो गए, सुमित अपनी जीभ काटते हुए बोला, ‘‘तोहफे की कीमत नहीं, देने वाले की भावना समझनी चाहिए.’’

भव्या मगर उस पूरी शाम सुमित के आगेपीछे घूमती रही. उसे अच्छे से पता था कि सुमित उस की खूबसूरती का कायल है और दिल से भी दिलदार है. अगर वह थोड़ाबहुत उस से हंसबोल लेगी तो क्या ही बुरा होगा. बेचारा सुमित कितने महंगे और ब्रैंडेड गिफ्ट्स देता है और एक उस की ससुराल वाले हैं जो हमेशा कंजूसी करते हैं.

रात को भव्या ने वही साड़ी पहन कर देखी. वास्तव में भव्या उस साड़ी में शोला लग रही थी. फिर न जाने क्या सोचते हुए भव्या ने अपनी एक सैल्फी खींची और एकाएक सुमित को भेज दी.

तुरंत सुमित का रिप्लाई आया, ‘‘साड़ी की कीमत तो अब वसूल हुई है. मैं ने तुम्हारे लिए एकदम सही कलर चुना था.’’

भव्या का मैसेज पढ़ कर रंग लाल हो गया. उसे शर्म भी आ रही थी कि क्यों उस ने सुमित को फोटो भेजा. पर अब क्या कर सकती थी?

रात को नहा कर भव्या निकली ही थी कि उस के फोन पर सुमित के 2 मैसेज आए थे. भव्या ने बिना पढ़े ही छोड़ दिए. उसे एकाएक अक्षर को देख कर ग्लानि हो रही थी.

अगले दिन जब भव्या शाम को दफ्तर से घर पहुंची तो सुमित वहीं बैठा था.

अक्षर बोला, ‘‘भव्या सुमित की थोड़ी मदद कर दो. अगले हफ्ते भाभी का जन्मदिन है, सुमित को भाभी के लिए गिफ्ट सलैक्ट करना है.’’

भव्या बोली, ‘‘तुम नहीं चलोगे?’’

‘‘नहीं कल एक जरूरी प्रेजैंटेशन है,’’

अक्षर बोला.

भव्या ने निर्णय ले लिया कि वह सुमित से दूरी बना कर रखेगी.

गाड़ी में बैठ कर सब से पहले कार तनिष्क के शोरूम के आगे रुकी.

सुमित बोला, ‘‘अच्छा सा ब्रेसलेट और झमके पसंद करो.’’

भव्या ठंडी सांस भरते हुए खुद का कोस

रही थी.

जब सुमित ने 5 लाख का बिल चुकाया

तो भव्या बोली, ‘‘अक्षर तो कभी इतना खर्च

नहीं करेंगे.’’

सुमित बोला, ‘‘आप के पति हमारी तरह दिलदार नहीं हैं.’’

भव्या ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया.

फिर सुमित ने भव्या की पसंद से सूट, साड़ी खरीदी.

सुमित फिर भव्या से बोला, ‘‘चलो काफी देर हो गई, डिनर कर लेते हैं.’’

भव्या का मन था मगर फिर भी उस ने ऊपरी मन से कहा, ‘‘नहीं घर पर अक्षर इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ सुमित बोला.

भव्या को मन ही मन बहुत गुस्सा भी आ रहा था कि क्या वो कोई नौकर है जो सुमित की बीवी के लिए शौपिंग कर के अपना समय बरबाद करे. घर आ कर उस ने सुमित से बोल दिया कि वह आगे से नहीं जाएगी.

रातभर भव्या की आंखों के सामने वह हीरे का ब्रेसलेट और वह कपड़े घूमते रहे.

अगले दिन शालिनी का जन्मदिन था. भव्या बिना मन पार्टी में जाने के लिए तैयार हुई. शालिनी आज दर्शनीय लग रही थी. सुमित शालिनी के आगेपीछे घूम रहा था. न जाने क्यों भव्या के पूरे शरीर में आग लग गई.

तभी केक काटने का ऐलान हो गया. सुमित ने शालिनी के हाथों में उपहार की डब्बी पकड़ा दी.

शालिनी ने खोल कर देखा तो हीरे के झमके जगमगा रहे थे. शालिनी खुशी से सुमित के गले लग गई.

भव्या सोच रही थी कि सुमित ने ब्रेसलेट क्यों नहीं दिया. फिर बात आईगई हो गई.

एक रोज भव्या के मोबाइल पर सुमित का मैसेज था कि कोई अर्जेंट काम है. वह

दफ्तर में लंचटाइम पर उस के पास आ रहा है. न जाने क्यों भव्या मना नहीं कर पाई. लंचटाइम तक भव्या का काम में मन नहीं लग पाया. सुमित की मर्सिडीज, दौलत, उस की दिलदारी न चाहते हुए भी भव्या को खींचती थी.

भव्या ने आखिरी बार अपनेआप को बाथरूम के मिरर में देखा और फिर बालों पर आखिरी बार ब्रश फेर कर भव्या बाहर निकल गई.

सुमित रास्ते भर इधरउधर की बातें करता रहा. भव्या भी हांहूं में जवाब देती रही.

लंच और्डर करने से पहले सुमित बोला, ‘‘हाथ आगे करो भव्या,’’ फिर सुमित ने बिना कुछ कहे भव्या की कलाई में वह ब्रेसलेट पहना दिया और धीमे से बोला, ‘‘हैप्पी बर्थडे इन एडवांस.’’

भव्या की आंखों में हीरे से भी अधिक चमक थी. उल्लासित सी भव्या बोली, ‘‘यह आप ने मेरे लिए लिया था? पर मैं इतना महंगा तोहफा कैसे ले सकती हूं.’’

सुमित बोला, ‘‘कह देना तुम ने खरीदा है. तुम्हीं इस की असली हकदार हो.’’

भव्या अंदर से जानती थी यह गलत है, मगर हीरे के ब्रेसलेट का लालच भव्या पर हावी हो गया कि वह मना नहीं कर पाई.

जब शाम को भव्या घर पहुंची तो बेहद खुश थी. उस की गोरी कलाई पर ब्रेसलेट बेहद फब रहा था. उस ने अपने घर में सब से झठ बोल दिया कि यह ब्रेसलेट उस ने क्रैडिट कार्ड से खरीदा.

भव्या रातदिन सुमित के साथ चैट करती रहती थी. सुमित भव्या की जिंदगी में ताजा हवा के झंके की तरह आया था. भव्या का लालच उसे किस राह पर ले कर जा रहा था, यह खुद भव्या को भी समझ नहीं आ रहा था.

सुमित और भव्या हफ्ते में 2-3 बार मिल लेते थे. सुमित एक दौलतमंद इंसान था जिसे खूबसूरत लड़कियों के साथ फ्रैंडशिप करने का शौक था. वह सामान की तरह लड़कियां बदलता था. इस बात का अक्षर को पता था, मगर उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सुमित उस की पत्नी भव्या के साथ भी वही खेल खेलेगा.

एक दिन अक्षर ने भव्या को सुमित के साथ देख भी लिया. जब अक्षर ने भव्या से पूछा तो भव्या बोली, ‘‘अरे मैं और सुमित बस अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं.’’

अक्षर ने कहा, ‘‘यह दोस्ती कब और कैसे हो गई?’’

भव्या ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम मुझ पर शक कर रहे हो?’’

अक्षर शांति से बोला, ‘‘तुम पर नहीं भव्या, मैं सुमित के मंसूबों पर शक कर रहा हूं. ध्यान रहे कि तुम बस उस की दोस्त ही रहो.’’

जब भव्या ने यह बात सुमित को बताई तो वह गुस्से में बोला, ‘‘अक्षर जैसे लोग ऐसा ही सोचते हैं… उन्हें न खुद खुश रहना है और न दूसरों को रहने देना है. अगर हमारी मुलाकातें हम दोनों को खुशी देती हैं तो उस में क्या गलत है? मैं और तुम कोई बेवफाई थोड़े ही कर रहे हैं?’’

भव्या ने भी चुपचाप सिर हिला दिया.

अक्षर ने भव्या के व्यवहार में आए परिवर्तन को अनुभव कर लिया था. वह सामने से और इशारों में बहुत बार भव्या को समझ चुका था, मगर भव्या ने उस की बातों को कानों पर ही टाल दिया.

विवाह के 3 सालों में पहली बार उसे इतना रोमांचक अनुभव हो रहा था वरना तो शादी के बाद से ही अक्षर की कंजूसी से तंग आ चुकी थी. पिछले माह ही तो वह सुमित के साथ लेह लद्दाख घूम आई थी. मगर सुमित चंद माह में ही भव्या से उकता गया. वैसे भी वह अक्षर की बीवी थी इसलिए सुमित अब इस रिश्ते पर पूर्णविराम लगाना चाहता था.

उधर भव्या इस खुशफहमी में जी रही थी कि उस का और सुमित का रिश्ता हमेशा ऐसे ही चलता रहेगा.

पिछले 1 हफ्ते से सुमित ने एक बार भी भव्या को पिंग नहीं किया तो वह

बेचैन हो गई. उस ने सुमित को खुद ही 2-3 मैसेज किए, मगर वे अनरीड ही रहे. भव्या को सुमित का बरताव समझ नहीं आ रहा था, इसलिए 10 दिन के बाद वह खुद ही सुमित के औफिस जा धमकी.

भव्या को देख कर सुमित सकपका गया. बोला, ‘‘अरे मैं तुम्हें मैसेज करने ही वाला था.भव्या मुझे लगता है अब इस दोस्ती को यहीं खत्म कर देते हैं.’’

भव्या बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘तुम मेरे दोस्त की बीवी हो, अगर उसे पता चल गया तो ठीक नहीं होगा,’’ सुमित बोला

‘‘पता लग जाने दो, मैं भी अब दोहरी जिंदगी से तंग आ गई हूं,’’ भव्या बोली.

सुमित अचकचाते हुए बोला, ‘‘भव्या यह क्या कह रही हो तुम? क्या इस टाइमपास को कुछ और समझने लगी हो? देखो भव्या जैसे तुम्हें अलगअलग ब्रैंड के सामान का शौक है वैसे ही मुझे अलगअलग ब्रैंड की लड़कियों का शौक है. तुम भी तो एक ही ब्रैंड से बोर हो जाती होगी तो मेरे साथ भी वैसा ही है.’’

भव्या सुमित के जवाब से ठगी खड़ी रह गई. यह महंगे ब्रैंड के सामान का शौक उसे कभी ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर देगा, उस ने कभी सोचा नहीं था. सुमित के लिए वह एक इंसान नहीं, एक ब्रैंड है, एक सामान है. भव्या ने हीरे का ब्रेसलेट सुमित की टेबल पर रखा और चुपचाप बाहर निकल गई. उसे समझ आ गया था कि सामान के ब्रैंड से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है इंसान का ब्रैंडेड होना.

विदेश: मीता के मन में कौनसा मैल था

बेटी के बड़ी होते ही मातापिता की चिंता उस की पढ़ाई के साथसाथ उस की शादी के लिए भी होने लगती है. मन ही मन तलाश शुरू हो जाती है उपयुक्त वर की. दूसरी ओर बेटी की सोच भी पंख फैलाने लगती है और लड़की स्वयं तय करना शुरू कर देती है कि उस के जीवनसाथी में क्याक्या गुण होने चाहिए.

प्रवेश के परिवार की बड़ी बेटी मीता इस वर्ष एमए फाइनल और छोटी बेटी सारिका कालेज के द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. मातापिता ने पूरे विश्वास के साथ मीता को अपना जीवनसाथी चुनने की छूट दे दी थी. वे जानते थे कि सुशील लड़की है और धैर्य से जो भी करेगी, ठीक ही होगा.

रिश्तेदारों की निगाहें भी मीता पर थीं क्योंकि आज के समय में पढ़ीलिखी होने के साथ और भी कई गुण देखे थे उन्होंने उस में. मां के काम में हाथ बंटाना, पिता के साथ जा कर घर का आवश्यक सामान लाना, घर आए मेहमान की खातिरदारी आदि वह सहर्ष करती थी.

उसी शहर में ब्याही छोटी बूआ का तो अकसर घर पर आनाजाना रहता था और हर बार वह भाई को बताना नहीं भूलती कि मीता के लिए वर खोजने में वह भी साथ है. मीता की फाइनल परीक्षा खत्म हुई तो जैसे सब को चैन मिला. मीता स्वयं भी बहुत थक गई थी पढ़ाई की भागदौड़ से.

अरे, दिन न त्योहार आज सुबहसुबह भाई के काम पर जाने से पहले ही बहन आ गई. कमरे में भाई से भाभी धीमी आवाज में कुछ चर्चा कर रही थी. सारिका जल्दी से चाय बना जब कमरे में देने गई तो बातचीत पर थोड़ी देर के लिए विराम लग गया.

पापा समय से औफिस के लिए निकल गए तो चर्चा दोबारा शुरू हुई. वास्तव में बूआ अपने पड़ोस के जानपहचान के एक परिवार के लड़के के लिए मीता के रिश्ते की सोचसलाह करने आई थी. लड़का लंदन में पढ़ने के लिए गया था और वहां अच्छी नौकरी पर था. वह अपने मातापिता से मिलने एक महीने के लिए भारत आया तो उन्होंने उसे शादी करने पर जोर दिया. बूआ को जैसे ही इस बात की खबर लगी, वहां जा लड़के के बारे में सब जानकारी ले तुरंत भाई से मिलने आ पहुंची थी.

अब वह हर बात को बढ़ाचढ़ा कर मीता को बताने बैठी. बूआ यह भी जानती थी कि मीता विदेश में बसने के पक्ष में नहीं है. शाम को भाईभाभी से यह कह कि पहले मीता एक नजर लड़के को देख ले, वह उसे साथ ले गई. समझदार बूआ ने होशियारी से सिर्फ अपनी सहेली और लड़के को अपने घर बुला चायपानी का इंतजाम कर डाला. बातचीत का विषय सिर्फ लंदन और वहां की चर्चा ही रहा.

बूआ की खुशी का ठिकाना न रहा जब अगले दिन सुबह ही सहेली स्वयं आ बूआ से मीता व परिवार की जानकारी लेने बैठीं. और आखिर में बताया कि उन के बेटे निशांत को मीता भा गई है. मीता यह सुन सन्न रह गई.

मीता ने विदेश में बसे लड़कों के बारे में कई चर्चाएं सुनी थीं कि वे वहां गर्लफ्रैंड या पत्नी के होते भारत आ दूसरा विवाह कर ले जाते हैं आदि. बूआ के घर बातचीत के दौरान उसे निशांत सभ्य व शांत लड़का लगा था. उस ने कोई शान मारने जैसी फालतू बात नहीं की थी.

मीता के मातापिता को जैसे मनमांगी मुराद मिल गई. आननफानन दोनों तरफ से रस्मोरिवाज सहित साधारण मगर शानदार विवाह संपन्न हुआ. सब खुश थे. मातापिता को कुछ दहेज देने की आवश्यकता नहीं हुई सिवा बेटीदामाद व गिनेचुने रिश्तेदारों के लिए कुछ तोहफे देने के.

नवदंपती के पास केवल 15 दिन का समय था जिस में विदेश जाने के लिए मीता के लिए औपचारिक पासपोर्ट, वीजा, टिकट आदि का प्रबंध करना था. इसी बीच, 4 दिन के लिए मीता और निशांत शिमला घूम आए.

अब उन की विदाई का समय हुआ तो दोनों परिवार उदास थे. सारिका तो जैसे बहन बगैर अकेली ही पड़ गई थी. सब के गले लगते मीता के आंसू तो जैसे खुशी व भय के गोतों में डूब रहे थे. सबकुछ इतनी जल्दी व अचानक हुआ कि उसे कुछ सोचने का अवसर ही नहीं मिला. मां से तो कुछ कहते नहीं बन पड़ रहा था, पता नहीं फिर कब दोबारा बेटी को देखना हो पाएगा. पिता बेटी के सिर पर आशीर्वाद का हाथ रखे दामाद से केवल यह कह पाए कि इस का ध्यान रखना.

लंदन तक की लंबी हवाईयात्रा के दौरान मीता कुछ समय सो ली थी पर जागते ही फिर उसे उदासी ने आ घेरा. निशांत धीरेधीरे अपने काम की व अन्य जानकारी पर बात करता रहा. लंदन पहुंच कर टैक्सी से घर तक जाने में मीता कुछ संयत हो गई थी.

छोटा सा एक बैडरूम का 8वीं मंजिल पर फ्लैट सुंदर लगा. बाहर रात में जगमगाती बत्तियां पूरे वातावरण को और भी सुंदर बना रही थीं. निशांत ने चाय बनाई और पीते हुए बताया कि उसे कल से ही औफिस जाना होगा पर अगले हफ्ते वह छुट्टी लेने की कोशिश करेगा.

सुबह का नाश्ता दोनों साथ खाते थे और निशांत रात के खाने के लिए दफ्तर से आते हुए कुछ ले आता था.

मीता का अगले दिन का लंच उसी में हो जाता था. अगले हफ्ते की छुट्टी का इंतजाम हो गया और निशांत ने उसे लंदन घुमाना शुरू किया. अपना दफ्तर, शौपिंग मौल, बसटैक्सी से आनाजाना आदि की बातें समझाता रहा. काफी पैसे दे दिए और कहा कि वह बाहर आनाजाना शुरू करे. जो चाहे खरीदे और जैसे कपड़े यहां पहने जाते हैं वैसे कुछ कपड़े अपने लिए खरीद ले. मना करने पर भी एक सुंदर सी काले प्रिंट की घुटने तक की लंबी ड्रैस मीता को ले दी. एक फोन भी दिलवा दिया ताकि वह उस से और इंडिया में जिस से चाहे बात कर सके. रसोई के लिए जरूरत की चीजें खरीद लीं. मीता ने घर पर खाना बनाना शुरू किया. दिन बीतने लगे. निशांत ने समझाया कि यहां रहने के औपचारिक पेपर बनने तक इंतजार करे. उस के बाद यदि वह चाहे तो नौकरी की तलाश शुरू कर सकती है.

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एक दिन मीता ने सुबह ही मन में सोचा कि आज अकेली बाहर जाएगी और निशांत को शाम को बता कर सरप्राइज देगी. दोपहर को तैयार हो, टैक्सी कर, वह मौल में पहुंची. दुकानों में इधरउधर घूमती चीजें देखती रही. एक लंबी ड्रैस पसंद आ गई. महंगी थी पर खरीद ली. चलतेचलते एक रेस्टोरैंट के सामने से गुजरते उसे भूख का एहसास हुआ पर वह तो अपने लिए पर्स में सैंडविच ले कर आई थी. अभी वह यहां नई है और अब बिना निशांत के अकेले खाने का तुक नहीं बनता, उस ने बस, उस ओर झांका ही था, वह निशांत…एक लड़की के साथ रेस्टोरैंट में, शायद नहीं, पर लड़की को और निशांत का दूर से हंसता चेहरा देख वह सन्न रह गई. दिमाग में एकदम बिजली सी कौंधी, तो सही थी मेरी सोच. गर्लफ्रैंड के साथ मौजमस्ती और घर में बीवी. हताश, वह टैक्सी ले घर लौटी. शाम को निशांत घर आया तो न तो उस ने खरीदी हुई ड्रैस दिखाई और न ही रेस्टोरैंट की चर्चा छेड़ी.

तीसरे दिन औफिस से लौटते वह उस लड़की को घर ले आया और मीता से परिचय कराया, ‘‘ये रमा है. मेरे दूर के रिश्ते में चाचा की बेटी. ये तो अकेली आना नहीं चाह रही थी क्योंकि इस के पति अभी भारत गए हैं और अगले हफ्ते लौट आएंगे. रेस्टोरैंट में जब मैं खाना पैक करवाने गया था तो इसी ने मुझे पहचाना वहां. मैं ने तो इसे जब लखनऊ में देखा था तब ये हाईस्कूल में थी. मीता का दिल धड़का, ‘तो अब घर तक.’ बेमन से मीता ने उसे चायनाश्ता कराया.

दिन में एक बार मीता स्वयं या निशांत दफ्तर से फोन कर लेता था पर आज न मीता ने फोन किया और न निशांत को फुरसत हुई काम से. कितनी अकेली हो गई है वह यहां आ कर, चारदीवारी में कैद. दिल भर आया उस का. तभी उसे कुछ ध्यान आया. स्वयं को संयत कर उस ने मां को फोन लगाया. ‘‘मीता कैसी हो? निशांत कैसा है? कैसा लगा तुम्हें लंदन में जा कर?’’ उस के कुछ बोलने से पहले मां ने पूछना शुरू कर दिया.

‘‘सब ठीक है, मां.’’ कह फौरन पूछा, ‘‘मां, बड़ी बूआ का बेटा सोम यहां लंदन में रहता है. क्या आप के पास उस का फोन या पता है.’’

‘‘नहीं. पर सोम पिछले हफ्ते से कानपुर में है. तेरे बड़े फूफाजी काफी बीमार थे, उन्हें ही देखने आया है. मैं और तेरे पापा भी उन्हें देखने परसों जा रहे हैं. सोम को निशांत का फोन नंबर दे देंगे. वापस लंदन पहुंचने पर वही तुम्हें फोन कर लेगा.’’

‘‘नहीं मां, आप मेरा फोन नंबर देना, जरा लिख लीजिए.’’

मीता, सोम से 2 वर्ष पहले उस की बहन की शादी में कानपुर में मिली थी और उस के लगभग 1 वर्ष बाद बूआ ने मां को फोन पर बताया था कि सोम ने लंदन में ही एक भारतीय लड़की से शादी कर ली है और अभी वह उसे भारत नहीं ला सकता क्योंकि उस के लिए अभी कुछ पेपर आदि बनने बाकी हैं. इस बात को बीते अभी हफ्ताभर ही हुआ था कि शाम को दफ्तर से लौटने पर निशांत ने मीता को बताया कि रमा का पति भारत से लौट आया है और उस ने उन्हें इस इतवार को खाने पर बुलाया है.

मीता ने केवल सिर हिला दिया और क्या कहती. खाना बनाना तो मीता को खूब आता था. निशांत उस के हाथ के बने खाने की हमेशा तारीफ भी करता था. इतवार के लंच की तैयारी दोनों ने मिल कर कर ली पर मीता के मन की फांस निकाले नहीं निकल रही थी. मीता सोच रही थी कि क्या सचाई है, क्या संबंध है रमा और निशांत के बीच, क्या रमा के पति को इस का पता है, क्योंकि निशांत ने मुझ से शादी…?

ध्यान टूटा जब दरवाजे की घंटी 2 बार बज चुकी. आगे बढ़ कर निशांत ने दरवाजा खोला और गर्मजोशी से स्वागत कर रमा के पति से हाथ मिलाया. वह दूर खड़ी सब देख रही थी. तभी उस के पैरों ने उसे आगे धकेला क्योंकि उस ने जो चेहरा देखा वह दंग रह गई. क्या 2 लोग एक शक्ल के हो सकते हैं? उस ने जो आवाज सुनी, ‘आई एम सोम’, वो दो कदम और आगे बढ़ी और चेहरा पहचाना, और फिर भाग कर उस ने उस का हाथ थामा, ‘‘सोम भैया, आप यहां.’’

‘‘क्या मीता, तुम यहां लंदन में, तुम्हारी शादी’’ और इस से आगे सोम बिना बोले निशांत को देख रहा था. उसे समझते देर न लगी, कुछ महीने पहले मां ने उसे फोन पर बताया था कि मीता की शादी पर गए थे जो बहुत जल्दी में तय की गई थी. मीता अब सोम के गले मिल रही थी और रमा अपने कजिन निशांत के, भाईबहन का सुखद मिलाप.

सब मैल धुल गया मीता के मन का, मुसकरा कर निशांत को देखा और लग गई मेहमानों की खातिर में. उसे लगा अब लंदन उस का सुखद घर है जहां उस का भाई और भाभी रहते हैं और उस के पति की बहन भी यानी उस की ननद व ननदोई. ससुराल और मायका दोनों लंदन में. मांपापा सुनेंगे तो हैरान होंगे और खुश भी और बड़ी बूआ तो बहुत खुश होंगी यह जानकर कि सोम की पत्नी से जिस से अभी तक वे मिली नहीं हैं उस से अकस्मात मेरा मिलना हो गया यहां लंदन में. मीता की खुशी का आज कोई ओरछोर नहीं था. सब कितना सुखद प्रतीत हो रहा था.

मीत मेरे

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और मान बह गया- भाग 1: क्या दोबारा जुड़ पाया यशोधरा और गौतम का रिश्ता

लंबे इंतजार के बाद आज देश के नामी उद्योगपति गौतम खन्ना और विश्वसुंदरी यशोधरा 7 फेरे ले कर विवाह के बंधन में बंध गए थे. देखने वालों के होंठों पर यही बात थी कि ऐसी खूबसूरत जोड़ी दूसरी नहीं. भीड़ से बेपरवाह प्रेम पगी आंखों से वरवधू एकदूसरे को निहार रहे थे. दोनों का मिलना भी किसी इत्तफाक से कम नहीं था…

गौतम ब्यूटी कौंटैस्ट में जज बन कर क्या गया कि मिस वर्ल्ड की प्रतियोगिता के लिए चयनित हुई ब्रेन और ब्यूटी की प्रतिमूर्ति यशोधरा उस की चाहत ही बन गई. जैसे भी हो विश्वसुंदरी का ताज यशोधरा के सिर पर सजे यशोधरा के साथ गौतम का भी जनून बन कर रह गया था.

2 महीने बाद विश्वस्तर पर होने वाली इस प्रतियोगिता के हर इवेंट की तैयारी के लिए यशोधरा को विशेष रूप से प्रशिक्षित करने के लिए गौतम हर प्रकार से तैयार था. राहें आसान नहीं थीं. पर यह गौतम की कोशिशें और यशोधरा की साधना का परिणाम ही था कि 100 से ज्यादा सुंदरियों को पराजित कर के विश्वसुंदरी का ताज पहनने में सफल रही. यशोधरा की इस उपलब्धि में गौतम की भी बहुत बड़ी भागीदारी थी.

कितने महीनों के इंतजार के बाद खुशियों का सारी कायनात लिए आज का दिन आया था जब 2 तन कानूनन एक हो गए थे. वरवधू दोनों के मातापिता के चेहरों पर असीम खुशी थी.

2 हफ्ते का हनीमून मना कर गौतम और यशोधरा  लौट आए थे.

जीवन पुराने ढर्रे पर चल पड़ा था. गौतम अपने कारोबार में लग गया. विश्वसुंदरी बनने के बाद की गतिविधियों में यशोधरा के दिन व्यस्त से व्यस्तर होते गए. स्विट्जरलैंड के छोटे शहरों में भी तो यशोधरा के प्रशंसकों ने इस तरह से उसे घेर लिया था कि उन से पीछा छुड़ाने के लिए गौतम को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. हर शहर में होने वाले आए दिन के समारोहों में चीफ गैस्ट बन कर जाना तो आम बात हो गई थी. कहीं किसी ब्यूटीपार्लर के उद्घाटन का फीता काटना होता था तो कहीं नारी सशक्तीकरण के मंच को सुशोभित करना पड़ता था. ऐसे समारोहों में वे कभीकभी प्यारमनुहार से गौतम या अपनी सास को भी ले जाया करती थी. पूर्व विश्वसुंदरी हो जाने के बाद भी यशोधरा को शहर से बाहर के आमंत्रण भी स्वीकारने होते थे. विदेशों के चक्कर भी लगते. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से ब्यूटी प्रोडक्ट्स के प्रचार के लिए भी यशोधरा को जाना पड़ता था. मौडलिंग एवं फिल्मी औफर्स की भी भरमार हो गई थी. 2-4 फिल्मों में काम मिलने की बात चल रही थी. मीडिया वालों का घर पर हमेशा आनाजाना लगा रहता था. अपनी ख्याति और उपलब्धियों पर यशोधरा तो फूली नहीं समा रही थी.

शुरू में गौतम का सहयोग भी खूब रहा पर धीरेधीरे वह उस के कार्यक्रमों में बोर होने लगा, क्योंकि सब की नजरें तो उस की पत्नी पर होती थीं. वह फालतू का बाउंसर सा उस के इर्दगिर्द रहता था. कई बार तो उसे दूसरे बाउंसर की तरह भीड़ द्वारा धकेला भी गया. फिर भी गौतम को रंज न था. वह ट्रौफी वाइफ से खुश था.

इन सारी हलचलों को महीनों तक सभी ने तरजीह देते हुए खूब ऐंजौय किया. जब यशोधरा की रंगारंग गतिविधियां दिन दूनी रात चौगुनी होती गईं तो गौतम की मां अनिता एवं पिता रमेश खीज उठे. गौतम ने भी यशोधरा को प्यार से समझाते हुए उस की सीमाएं समझाईं, लेकिन यशोधरा अपने विश्वसुंदरी के ताज को घर चारदीवारी की शोभा किसी भी कीमत पर नहीं बनने देना चाहती थी. प्यार, विश्वास के पंखों के साथ उड़ने के लिए यशोधरा को उन्मुक्त गगन क्या मिला कि उस ने धूप के सारे हिस्से अपने नाम कर लिए.

उस की यह स्वार्थतता तूल ही पकड़ने वाली थी कि प्यार या प्रकृति जिस की भी भूल हो फिर जो कुछ घटित हुआ उस ने उस की सारी अवमाननाओं को बिसारते हुए पूरे परिवार पर खुशियों की बारिश ही कर दी. हालांकि इतनी जल्दी इस रूप में स्वयं को देखने की चाहत यशोधरा को नहीं थी. फिर भी परिवार में स्वयं को अहमियत के शीर्ष पर विराजते देख खामोश रही. उस की खुद की हिम्मत नहीं हुई कि अबौर्शन कराए. डाक्टर भी उस के खिलाफ थे. गौतम के परिवार ने एक बार फिर अति उत्साह व उमंग के साथ अपनी इस खुशी को सैलिब्रेट किया.

आयुष ने अभी अपने डगमगाते कदमों को संभाला भी नहीं था कि नन्हीं आशी आ गई.

फिर यशोधरा को एक लंबे समय तक अपनी रंगारंग गतिविधियों पर विराम लगाना पड़ा, जो उस जैसी महत्त्वाकांक्षिनी के लिए आसान नहीं था.

समय के साथ जब मां के रूप में उस की जिम्मेदारियां कम हुईं तो किसी धूमकेतु की तरह वह अपनी प्रसिद्धियों की राह पर एक बार फिर से चल पड़ी. प्यारदुलार, हारमनुहार, तकरार आदि सारी बाधाओं को, पारिवारिक विरोध के चट्टान को दृढ़ता से पार करती हुई निरंतर आगे बढ़ती चली गई. उस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि उस की बच्चों और पति को जरूरत है.

राष्ट्रीय बाजार के फैशन की दुनिया में यशोधरा के अद्भुत प्रचार ने एक क्रांति सी ला दी. उस की प्रसिद्धि पहले ही अंतरर्राष्ट्रीय बाजार तक फैली थी. उन्होंने फिर यशोधरा से संपर्क किया और अपने बाजार में उसे उतार लिया. एक सुंदर सफल मां और पत्नी की असीमित योग्यता के साथ उस के शूट बहुत बोल्ड होने लगे. वह साबित करना चाहती थी कि मां बन कर भी उस का शरीर शादी से पहले जैसा ही है. ऐसे बाजार किसी पर वारेन्यारे होते हैं तो उसे अच्छी तरह भुनाते भी हैं. उन्होंने यशोधरा के प्रचार का बहुत सा नाजायज फायदा उठाना आरंभ किया.

बिजनैस के काम से न्यूयौर्क गए गौतम की नजर किसी मौल में यशोधरा के अर्धनग्न पोट्रैट पर पड़ी. फिर वह जिस भी मौल या ब्रैंडेड शौप में गया हंसतीमुसकराती अपनी दिलकश अदाओं में लोगों को लुभाती यशोधरा ही यशोधरा थी. यह शूट यशोधरा ने गौतम को दिखाया भी नहीं था. कैफियत के लिए गौतम ने यशोधरा से संपर्क करना चाहा पर वह किसी जरूरी फंक्शन में थी. गौतम की अनगिनत मिस्ड कौल्स को देख कर भी उस ने कौल बैक करने की आवश्यकता नहीं समझीं. झल्ला कर गौतम ने भी फिर उसे कौल नहीं की.

और मान बह गया- भाग 2: क्या दोबारा जुड़ पाया यशोधरा और गौतम का रिश्ता

वापसी में लंदन होते लौटना था. वहां भी लंदन के नामी मौल्स और शौप्स में यशोधरा के अर्धनग्न पोर्ट्रेट्स को देख कर वह बौखला गया. यहां के बाजारों ने भी यशोधरा के सौंदर्य की मादकता को जी भर कर भुनाया था. अब बाजार विदेशों का था तो मुंह पर घूंघट डाल कर पोर्ट्रेट तो बनवाते नहीं. जिस हद तक  वे यशोधरा के शारीरिक सौंदर्य को उघार कर भुना सकते थे, खुल कर भुनाया. यशोधरा ने भी बहुत खुल कर पोज दिए थे. ऐसे जो शायद गौतम ने अपने कमरे में भी न देखे होंगे. चूंकि यह सब कौंट्रैक्ट के अंतर्गत था, यशोधरा अपनी विदेश यात्राओं के दौरान यही सब करती रही.

धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. ख्याति के लिए घर की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा कर इस हद तक चली जाएगी, ऐसा गौतम ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था. उस के संबंधी, मित्रगण सब से बढ़ कर उस के पिता का भी बिजनैस के कामों में लंदन, अमेरिका अनाजाना हमेशा होता रहता था. यशोधरा के इस तरह के पोट्रेट्स को देख कर उन की प्रतिक्रियाओं की कल्पना कर के गौतम इतनी ठंड में भी पसीने से भीग गया. उस ने यशोधरा को फोन पर ही बहुत जलीकटी सुनाई. वह अपनी निर्दोषिता बताती रही, लेकिन गौतम ने कुछ नहीं सुना और गरजता रहा. क्रोध के मारे सारे कामों को स्थगित कर वह लौट पड़ा.

गौतम के प्यार और विश्वास का अच्छा प्रतिदान दिया था यशोधरा ने.

कैसे वह यशोधरा के पास जल्द से जल्द पहुंच कर उस की इस हरकत का सबब मांगे सोच कर सारे रास्ते वह जलताभुनता रहा. घर पर जब यशोधरा ही नहीं मिली तब गौतम के क्रोध का पारा 7वें आसमान को छूने लगा. वह तो बच्चों के साथ शहर से बाहर गई हुई थी जबकि इस परिस्थिति में कम से कम गौतम के आने तक उसे घर में रहना था. मां को भी वह कुछ बता कर नहीं गई थी. उस ने गुस्से में अपने फोन को भी स्विच औफ कर रखा था. यशोधरा की जानकारी गौतम ने उस की मां से लेनी चाही तो उन्होंने भी अपनी अनभिज्ञता जताई.

2 दिन के बाद यशोधरा लौटी तो बैडरूम में जो बम फूटा वह सब कुछ ध्वंस कर गया.

‘‘अब मेरा वकील कोर्ट में ही तुम्हें देखेगा,’’ कहते हुए क्रोध से चीखती हुई यशोधरा बच्चों के साथ उसी समय घर से निकल गई. दूसरे दिन ही उस ने अपना और बच्चों की जरूरत का सामान मंगवा लिया. दोनों के बीच का घटित मामला किसी दावानल की तरह पूरे शहर में फैल गया. गौतम परिवार की प्रतिष्ठा गलियों, चौराहों की गप्प गोष्ठियां बन गई. उन के मानसम्मान से जलने वाले अफवाहों की आहुति देते हुए खूब हाथ सेंक रहे थे. खुशियों की प्रतिध्वनियां मातमी गूंज बन कर रह गई थीं. जो काम गौतम को करना था उसे यशोधरा ने कर दिखाया. महीने के अंदर ही अलग होने की काररवाई आंरभ हो गई. कोर्ट का नोटिस मिलते ही वह बौखला गया. अनिताजी ने स्वयं जा कर यशोधरा को हर तरह से समझाने की कोशिश की पर उस ने कुछ भी सुनने से इनकार कर दिया.

पहली सुनवाई के दिन जज साहब ने गौतम और यशोधरा को अपने चैंबर में बुला कर सारे प्रतिवादों को भूल जाने को कहा. पारिवारिक प्रतिष्ठा के साथसाथ बच्चों की टूटन का भी एहसास दिलाया.

गौतम शांत रहा पर यशोधरा क्रोध से चीख रही थी, ‘‘नहीं जज साहब, इस ने मेरी एक भी नहीं सुनी. मुझे निर्दोषिता का कोई साक्ष्य नहीं देने दिया. मेरा विश्वास तक नहीं किया. मेरा साथ देने के बदले मुझ पर अपने बच्चों की मां पर हाथ उठाने की जुर्रत की. मैं इस के साथ नहीं रह सकती.’’

‘‘ठीक है तो आप दोनों आपसी सहमति से अलग हो जाएं. परिवार की इज्जत को सरेआम तमाशा न बनाइए. बच्चों पर आप दोनों का समान अधिकार है. उन की कस्टडी का निर्णय आप दोनों मिल कर विचार कर के ले लीजिए.’’

उस दिन कोर्ट में फिर सुनवाईर् नहीं हुई. तारीख को आगे बढ़ा दिया गया. लेकिन मीडिया वाले भी कहीं किसी के होते हैं. नमकमिर्च के साथ जो नहीं हुआ उसे भी खूब उछाला. कभी गौतम का नाम किसी अनजान से जोड़ा तो कभी यशोधरा को किसी और की बांहों में बांध अंकशायिनी ही बना कर रख दिया. कभी उस की गौतम से करोड़ों रुपए की मांग बात उड़ा. नित नई अफवाहें बिना पंख के ही चारों ओर उड़ रही थीं.

परिवार की खुशियों ने दम तोड़ दिया था. चारों ओर उदासी बिखरी थी. बच्चों के बिना सूना घर गौतम को काटने लगा था. अपने उतावलेपन में कहीं सच में उस से गलतियां तो नहीं हो गईं. गौतम रोज सोचता. यशोधरा की उपलब्धियों से तो वह भी अविभूत था. वह भी तो गर्व से फूला नहीं समाता था. कितने ही काम उस ने सिर्फ इसलिए कराए थे कि काम करने वाले को यशोधरा से मिलने का मौका मिला था.

‘‘गौतम, आ कर देखिए तो जरा तुम्हारे और यशोधरा के बारे में जो बातें कल तक न्यूज पेपर तक सीमित थीं आज टीवी पर किस धड़ल्ले से दिखाईर् जा रही हैं. तुम दोनों के संबंध में कैसी अभद्र अफवाहों को हवा दी जा रही है. शर्म से हम गले जा रहे हैं. आप के पापा ने तो बाहर ही निकलना छोड़ दिया है. फिर भी आए दिन मिलने वाले कोई न कोई चुभती बात उछाल ही जाते हैं. देश के नामी जिस उद्योगपति रमेश के समक्ष जिन लोगों का आने में पसीना छूट जाता था अब उन की भी हंसी का पात्र बनना पड़ रहा है. प्रतिद्वंद्वियों को अलग से नया मसाला मिल गया है,’’ अनिताजी कुछ और आगे कहतीं उस से पहले ही परेशान सा गौतम यह कहते हुए उन के पास आ कर बैठ गया.

‘‘बस कीजिए मां… धाराप्रवाह बोले ही जा रही हैं. आप ही बताएं इस विषवृक्ष के बीज क्या यशोधरा ने नहीं बोए हैं? इस के पीछे उस की कुटिल महत्त्वाकांक्षाएं नहीं हैं? कोर्ट में उस के पागल वकील ने मुझे जिस तरह से झूठी तोहमत लगाते हुए जलील किया है उसे देखते हुए मैं तो उसे छोड़ूंगा नहीं. सारी दलीलें झूठी हैं, इस सत्य को जानते हुए भी यशोधरा आए दिन मीडिया वालों को बुला कर कहानियां सुना रही है. यह उचित है क्या?’’

और मान बह गया- भाग 3: क्या दोबारा जुड़ पाया यशोधरा और गौतम का रिश्ता

अनिताजी बोलीं, ‘‘आयुष और आशी को याद कर के मैं बेचैन हूं. अकारण ही वे मासूम आप दोनों की लड़ाई में पिस कर रह गए हैं. जब तुम दोनों ने अलग होने का निर्णय ले ही लिया है तो फिर ये इस फालतू फसाद को क्यों तरजीह दी जा रही है? रहा बच्चों की कस्टडी का प्रश्न तो उन की मरजी के अनुसार वहीं रहने दीजिए जहां वे चाहें. ऐसे भी परिवार जब टूटते हैं तो ज्यादा प्रभावित बच्चे ही होते हैं. ऐसी अति महत्त्वाकांक्षिनी लड़कियां शादी की मर्यादा ज्यादा दिनों तक नहीं रख पाती हैं. उस समय हम ने तुम्हें कितना समझाया था, लेकिन उस के विश्व सुंदरी के ताज की चकाचौंध ने तुम्हारी सोचनेसमझने की शक्ति ही हर ली थी. फिर जिस की मां ने ही इस रिश्ते की पावनता का मान नहीं रखा, वह अपनी बेटी का घर बसाने के लिए कुछ करेगी उस से ऐसी उम्मीद रखने का कोई औचित्य ही नहीं है… अपने बचपन की संगिनी अनन्या का मन भी तो तुम ने कितनी निर्दयता से तोड़ा था, साथ में हमारे सपनों में भी तो तुम ने मायूसी भर दी थी. वह तुम्हारा इंतजार करती रही और तुम सेहरा पहन कर किसी और के नूर बन गए.’’

मां चुप बैठी रहीं. जब गौतम ने कुछ नहीं कहा तो उन्होंने फिर कहा, ‘‘जो भी हुआ उसे वापस तो मोड़ा नहीं जा सकता. अब कल की तारीख पर कोर्ट में सब कुछ पर निर्णय हो जाना चाहिए. जो भी वह चाहती है दे कर रफादफा कर दी. अब और जिल्लतें मैं बरदाश्त नहीं कर सकती,’’ कहते हुए अनिताजी का स्वर अवरुद्ध हो गया.

ऐसी ही ऊहापोह में दिन गुजर रहे थे. परिवार, रिश्तेदारों, संगेसंबंधियों, दोस्तों, मीडिया सभी के आक्षेपों से घबरा कर किसी एकांत की खोज में गौतम गोवा चला गया. एक समुद्र के तट पर बैठ कर गौतम एकाग्रता से आत्ममंथन कर रहा था. मन में आंधियां ही आंधियां थीं, जिन्होंने उस के हंसतेगाते, मुसकराते चमन को उजाड़ कर रख दिया था. बाहर लहरों को उछालते हुए समंदर था तो मन के अंदर भूत, वर्तमान एवं भविष्य का समंदर विकराल लहरों को घेर उन्हें अतल गहराई में डुबो रहा था कि यशोधरा के साथ कहीं उस से ज्यादती तो नहीं हो गई? क्या पता सच में इन सब के पीछे उस की कोई मजबूरी रही हो. अपनी निर्दोषिता को प्रमाणित करने के लिए वह जो कुछ भी कह रही थी उसे निर्विवाद सुनना था.

बेगुनाही की फरियाद करने का एक अवसर तो देना था. घर से निकलने की बात कह कर उस पर हाथ उठाने की गलती वह कैसे कर बैठा? यशोधरा के मानसम्मान का भी खयाल नहीं रखा. अंतर्राष्ट्रीय बाजार की स्किन दिखाने की जरूरत से अच्छी तरह वाकिफ होने के बावजूद यशोधरा को कुछ भी कहने का अवसर उस ने नहीं दिया. अविश्वास की अग्नि में अपनी पारिवारिक सुखशांति को स्वाहा कर दिया. यह सोच कर उस की आंखें भर आईं. बच्चों के साथ अब यशोधरा की याद में वह विह्वल हो उठा. चाहत की असीम वेदना से वह तड़प उठा. पर अब कर भी क्या सकता था. तीर कमान से निकल चुका था. यशोधरा के स्वाभिमान से वह अच्छी तरह वाकिफ था.

6 साल पहले इसी प्राइवेट बीच पर यशोधरा के साथ उस ने कितना आनंद उठाया था. उस की 1-1 अदाओं पर वह सम्मोहित हो कर बलिहार गया था. दूसरे पतिपत्नी का हर जोड़ा उसे अवसाद से भरने लगा था. वह अब यशोधरा और बच्चों से दूर नहीं रह सकता. जो कुछ हुआ अच्छा नहीं हुआ. सभी कुछ पहले की तरह हो जाए, जा कर पूरी कोशिश करेगा.

जल्दी से वह लौटने लगा तो दूसरी ओर समंदर को निहारते हुए जिसे देखा सहसा वह अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर सका. डूबते सूरज की किरणों को जल की अनंत धाराओं में प्रतिबिंबित होते देखना यशोधरा को बहुत भाता था और वह उसी को देख रही थी.

बिना शृंगार के, उदासी की प्रतिमूर्ति बनी यशोधरा वहीं उसी बीच पर थी. उस के पावन सौंदर्य की मोहकता अप्रतिभा थी. अपनी इस अमूल्य धरोहर को फिर कहीं खो न बैठे कल्पना कर के गौतम कांपते मन में क्षमायाचना की चाहत लिए यशोधरा की तरफ तेज कदमों में भागा, लेकिन एक बड़ी लहर में फंस कर रह गया. जब तक वह भीड़ से निकलता यशोधरा उस की नजरों से दूर जा चुकी थी. काउंटर पर जा कर पता चला कि यशोधरा अभीअभी चैक आउट कर गई है. गौतम एयरपोर्ट आया. बिजनैस क्लास की सीटें भरी हुई थीं और इकोनौमी में उसे सब से पीछे सीट मिली. वह इतनी बुरी तरह थका था कि जिस मकसद से आया था उसे भूल कर बैठते ही सो गया और जब हवाई जहाज उतर चुका था तो होस्टेस ने उसे जगाया. जहाज से उतरने के बाद गौतम की व्याकुल नजरें यशोधरा को ही ढूंढ़ रही थीं.

तनमन दोनों से थक गए थे पर पांव किसी अनजान दिशा में बढ़ते गए. उस ने गाड़ी मैरीन ड्राइव पर रुकवा ली. इसी मैरीन ड्राइव पर वह यशोधरा के साथ बैठा करता था जब वह इतनी जानीपहचानी नहीं थी. वह सर ढके रखती थी ताकि आनेजाने वाले तंग न करें. थक कर वह पत्थरों के चबूतरे पर जा कर बैठ गया. रात का अंधेरा फैल चुका था. आकाश में पूनम का चांद था. अचानक गौतम को बराबर में किसी के बैठने का आभास हुआ और जिसे बैठे पाया उसे अपनी आंखों का भ्रम समझा.

आहिस्ता से उठ कर गौतम यशोधरा के पास जा बैठा. छिटकती हुई श्वेत चांदनी में नहाते हुए यशोधरा के संगमरमरी बदन के चारों ओर गौतम ने अपनी बांहें क्या फैलाईं कि वह सिमट कर उस के आगोश में आ गई. पश्चात्ताप के अश्रुजल से दोनों की पलकें भीगी हुईं थीं. एकदूजे को बांहों में बांधे हुए सुधबुध खोए एकदूसरे को अपलक निहार रहे थे. मानो दोनों के विदग्ध तप्त मन में प्यार का अमृत बरस रहा हो. पल भर में सारे गिलेशिकवे जाते रहे. पानी की तरह सारा मान बह गया. एकदूसरे में समाए दिल की धड़कनों को सुन रहे थे. उन दोनों के मिलन को देख उत्साह और उमंग से आलोकित हो कर समंदर मानो अपनी प्यार भरी लहरों को उछाल कर उन्हें भिगो रहा था.

आज सदियों बाद कोई अनारकली फूलों के चादर के नीचे अपने साहबेआलम की बांहों में खोई पड़ी थी. फर्क सिर्फ इतना था कि यह अनारकली अपने सलीम की मलिका एवं उस के 2 प्यारेप्यारे बच्चों की मां थी.

उस सलीम की अनारकली ने अपने साहबेआलम को रुसवाई से बचाने के लिए दीवार में चुनवा देने से पहले केवल एक दिन की हिंदोस्ताने मलिका बनने की खवाहिश की गुहार अकबरेआजम से लगा कर कांटों का ताज पहना था तो आज इस अनारकली ने अपने सलीम और बच्चों के खातिर विश्वसुंदरी के ताज की गरिमा को गर्व से ठुकराते हुए अपने प्यार भरे आशियाने की ओर लौटने को प्रतिबद्व थी. यह अनारकली है, उस पर उस का ही नहीं हजारों दीवानों का हक भी है. उसे समझौता करना पड़ेगा. पर यह जबरन समझौता नहीं प्रेम की समझ है. प्रेम में लेना होता है तो देना भी.

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