स्टेरौइड के साइड इफैक्ट्स

पिछले कुछ सालों से लोगों में बौडी बनाने के लिए जिम जा कर घंटों वर्कआउट करने का चलन तेजी से बढ़ा है. यहां तक कि महिलाएं भी छरहरी काया के लिए शरीर की अतिरिक्त चरबी कम करने की कोशिश करती हैं. लोगों के बीच व्यायाम करने के चलन को बढ़ावा मिलने के साथसाथ स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट जैसे अननैचुरल प्रोडक्ट्स भी चलन में आए हैं, जिन का प्रयोग लोग तेजी से मांसपेशियां बनाने की चाह में करते हैं.

मगर ज्यादातर लोगों को यह मालूम नहीं कि लंबे समय तक ली गई स्टेरौइड की मात्रा दिल के लिए घातक साबित हो सकती है. यहां तक कि इस से दिल का दौरा या अचानक कार्डिएक अरैस्ट भी हो सकता है. विशेषरूप से बौडी बिल्डर्स जो लंबे समय तक स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट का सेवन भारी मात्रा में करते हैं, उन के लिए जरूरी है कि वे इन से सेहत पर होने वाले बुरे असर के बारे में सजग हों.

आइए, विस्तार से जानें कि स्टेरौइड और प्रोटीन एकदूसरे से कैसे अलग हैं और इन के स्वास्थ्य पर क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं:

जरूरी स्टेरौइड और प्रोटीन की भूमिका

स्टेरौइड शब्द आमतौर पर दवाओं की एक श्रेणी के तहत आता है, जिस का प्रयोग विभिन्न चिकित्सा स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है जैसे पुरुषों में यौन हारमोन को बढ़ावा देना, प्रजनन क्षमता को बढ़ाना, मैटाबोलिज्म और रोगप्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने के अलावा मसल मास, बोन मास बढ़ावा आदि.

प्रोटीन पाउडर मुख्यरूप से सोया, दूध या पशु प्रोटीन से बना होता है और इस का प्रयोग अधिक समय तक वर्कआउट के बाद शरीर की प्रोटीन की जरूरत को पूरा करने के लिए किया जाता है.

स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट के प्रभाव

बौडी बनाने में असल में प्रोटीन बहुत फायदेमंद होते हैं और पोषण सुरक्षित स्रोत भी हैं, क्योंकि ये प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान नहीं पहुंचाते. यदि इन का सेवन सही मात्रा में किया जाए तो ये किसी भी शारीरिक बीमारी का कारण नहीं बनते हैं. मगर स्टेरौइड के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

स्टेरौइड मुख्यरूप से टैस्टोस्टेरौन का बनावटी संस्करण है. यह कृत्रिम रूप से मांसपेशियों के विकास में मदद करता है. हृदय भी मांसपेशियों की तरह होता है, मगर स्टेरौइड के सेवन से इस का आकार बढ़ भी सकता है. दिक्कत तब होती है जब दिल के आसपास मौजूद सतहों यानी वौल्स तक उस की मोटाई पहुंचने लगती है, तब यह सही तरीके से काम नहीं कर पाता है और रक्तसंचार में समस्या होने लगती है.

स्टेरौइड का दिल पर प्रभाव

स्टेरौइड का सेवन करने वालों का दिल इस का सेवन न करने वालों की तुलना में बहुत कमजोर होता है. एक कमजोर दिल शरीर के लिए जरूरी पर्याप्त रक्त पंप नहीं कर पाता है और इस स्थिति में दिल काम करना बंद कर सकता है. अचानक दिल की धड़कन रुकने से मौत भी हो सकती है.

स्टेरौइड का सेवन न करने वालों की तुलना में इस का सेवन करने वालों की धमनियों में प्लेक यानी गंदगी या मैल बढ़ जाता है. जो पुरुष लंबे समय तक स्टेरौइड लेना जारी रखते हैं, उन की धमनियों की स्थिति बहुत बदतर हो जाती है.

अन्य समस्याएं

दिल को नुकसान पहुंचाने के अलावा स्टेरौइड गुरदों की विफलता, लिवर की क्षति, टैस्टिकल्स के संकुचन यानी सिकुड़ना और शुक्राणुओं की संख्या घटाने का काम भी कर सकता है. शौर्टकट के जरीए बौडी बनाना भी दिल को नुकसान पहुंचा सकता है.

डा. वनीता अरोड़ा

डायरेक्टर ऐंड हैड, कार्डिएक इलैक्ट्रोफिजियोलौजी, मैक्स स्पैश्यलिटी अस्पताल

ब्राइडल ब्यूटी के लिए आयरन है जरूरी

किसी भी लड़की के जीवन में शादी का दिन सब से महत्त्वपूर्ण दिन होता है. इस दिन वह एक खूबसूरत सफर के लिए निकल रही होती है. पहली बार अपने हमसफर से उस का सामना होता है. उस की दिली ख्वाहिश रहती है कि इस दिन वह बेहद खूबसूरत दिखे. वैसे भी हर किसी की निगाहें दुलहन पर ही टिकी होती हैं.

केवल हैवी वर्क वाला खूबसूरत लहंगाचोली पहन लेने या मेकअप कर लेने से ही दुलहन सुंदर नहीं दिख सकती. इस के लिए जरूरी है अच्छी सेहत और चमकती त्वचा. चेहरे पर स्वाभाविक लाली और कांति के बिना लाख मेकअप या महंगे कपड़े भी दुलहन का श्रृंगार पूरा नहीं कर सकते.

हमारे शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखने के लिए कई पोषक तत्त्वों में से किसी एक की भी कमी हो जाए तो सेहत बिगड़ने लगती है. खासतौर पर महिलाओं और लड़कियों को अपनी सेहत और पोषण का खास खयाल रखना चाहिए.

आजकल ज्यादातर लड़कियां कामकाजी हैं और इस वजह से व्यस्तता के चलते वे अपने खानपान से समझौता करती हैं. कई शोधों में यह बात सामने आई है कि गड़बड़ खानपान के चलते भारतीय लड़कियों को जरूरी पोषण नहीं मिलता जिस के चलते वे कई तरह की शारीरिक समस्याओं का शिकार बन रही हैं.

आयरन की कमी

आयरन की कमी की वजह से ऐनीमिक हो जाना लड़कियों में अब आम हो गया है. ऐसे में सेहत के साथसाथ उन की त्वचा पर भी बुरा असर पड़ता है. त्वचा पर पीलापन आ जाने की वजह से उन की खूबसूरती फीकी पड़ जाती है.

आयरन यानी लौह तत्त्व एक खनिज लवण है, जो शरीर के लिए काफी जरूरी होता है. शरीर को सुचारु रूप से चलाने के साथसाथ त्वचा को चमकदार और आकर्षक बनाने में आयरन का बड़ा हाथ होता है. अगर किसी वजह से शरीर में आयरन की कमी आ जाए तो शरीर में कमजोरी के साथ चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ने लगती है.

दरअसल आयरन ही हमारे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. ये कोशिकाएं हीमोग्लोबिन बनाने का काम करती हैं और हीमोग्लोबिन फेफड़ों से औक्सीजन ले कर रक्त में औक्सीजन पहुंचाता है.

जाहिर है आयरन की कमी से हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और हीमोग्लोबिन कम होने से शरीर में औक्सीजन की कमी होने लगती है. इस की वजह से कमजोरी और थकान महसूस होती है, इस स्थिति को एनीमिया कहते हैं. यही नहीं, हीमोग्लोबिन खून को उस का लाल रंग देता है, जिस से चेहरा खिला हुआ और लाली लिए हुए नजर आता है. हीमोग्लोबिन कम होने से चेहरा फीका और पीला दिखने लगता है. पुरुषों में सामान्य हीमोग्लोबिन 13.5 से 17.5 ग्राम और महिलाओं में 12.0 से 15.0 ग्राम प्रति डीएल होता है.

आयरन की कमी का सुंदरता पर असर

शरीर में आयरन की सही मात्रा का न होना आप की सुंदरता को किस तरह प्रभावित करता है, आइए जानते हैं:

त्वचा का पीलापन: जब शरीर में आयरन की कमी हो जाए तो चेहरा पीला पड़ने लगता है और उस की कुदरती लालिमा खो सी जाती है, क्योंकि आयरन की कमी से हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है और हीमोग्लोबिन से ही खून को लाल रंग मिलता है जिस से हमारे चेहरे पर पर हलकी लालिमा वाली रंगत बनी रहती है.

टूटते नाखून: नाखून दुलहन के लुक में चार चांद लगाते हैं. इस के साथसाथ ये ब्राइडल मेकअप का अहम हिस्सा भी होते हैं. इसलिए जब आप के नाखून पीले पड़ने लगें और बेजान हो कर टूटने या मुड़ने लगें तो आप सावधान हो जाएं, क्योंकि ये शरीर में आयरन की कमी के संकेत भी हा सकते हैं. इसलिए अगर आप भी ब्यूटीफुल ब्राइड बनना चाहती हैं तो आयरन युक्त डाइट लेना शुरु करें.

बेजान बाल: आयरन की कमी शरीर में रक्त संचार को भी प्रभावित करती है जिस से आक्सीजन सही मात्रा में शरीर के अन्य हिस्सों के साथसाथ सिर की त्वचा यानी स्कैल्प तक पहुंच नहीं पाती. इस वजह से बाल धीरेधीरे बेजान हो कर झड़ने लगते हैं. इस स्थिति में मनचाही ब्राइडल हेयरस्टाइल पाने का आप का सपना सपना ही रह जाएगा.

डार्क सर्कल्स: आंखों के आसपास काले घेरे दुलहन के मेकअप को पूरी तरह खराब कर सकते हैं. अगर शरीर में आयरन की कमी होगी तो आप की आंखों के नीचे काले घेरे यानी डार्क सर्कल्स नजर आने लगेंगे.

आयरन की कमी के दुष्प्रभाव

शादी के पहले शौपिंग और दूसरी तैयारियों व शादी के बाद ससुराल में अपनी जगह बनाने के लिए दुलहन को हरदम फिट रहने की जरूरत होती है. मगर यदि उस के शरीर में आयरन की कमी होगी तो इन सब कामों को करने के लिए जो ऐनर्जी चाहिए वह भी उसे नहीं मिल पाएगी.

आयरन की कमी से शरीर में दिखने वाले संकेत:

थकान: शरीर में आयरन की कमी से शरीर सही से काम करना बंद कर देता है. बिना कोई काम किए भी थकावट रहने लगती है. यदि आप को घर या औफिस के थोड़ेबहुत काम करने में भी थकावट आने लगे और चाह कर भी आप पहले वाली फुरती महसूस नहीं कर रहीं तो एक बार अपने खून की जांच जरूर कराएं.

दम फूलना: शरीर में आयरन कम होने से रक्तचाप कम हो जाता है और सांस लेने की रफ्तार भी कम हो जाती है, जिस से थोड़ा भी दौड़नेभागने या सीढि़यां चढ़ने में भी सांस फूलने लगती है.

मांसपेशियों में दर्द: आयरन कम होने से मांसपेशियों में दर्द रहने लगता है.

चेहरे की फीकी रंगत: शरीर में आयरन की कमी होने से चेहरे की रंगत भी प्रभावित होने लगती है. चेहरा मुरझाया हुआ, उदास और पीला दिखता है. अब अगर दुलहन के चेहरे पर तेज ही नहीं दिखेगा तो उस का पूरा लुक खराब हो सकता है.

पीरियड्स में तेज दर्द: अगर पीरियड्स के दौरान सामान्य से ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है तो इस की वजह महिला में आयरन की कमी भी हो सकती है. ऐसे में अपनी डाइट का ध्यान रखें. फल, हरी पत्तेदार सब्जी व दालें ज्यादा से ज्यादा अपनी डाइट में शामिल करें.

सिर दर्द रहना: हीमोग्लोबिन शरीर के सभी हिस्सों में औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. अगर दिमाग तक हीमोग्लोबिन की सही मात्रा नहीं पहुंच पाती तो अक्सर सिर दर्द रहने लगता है.

घबराहट: औक्सीजन की कमी के कारण कभीकभी घबराहट भी महसूस हो सकती है.

कैसे करें आयरन की कमी पूरी

आयरन की कमी दूर करने के लिए संतुलित और पोषक तत्त्वों से भरपूर डाइट लेना जरूरी है. आहार में न केवल अच्छी मात्रा में आयरन होना जरूरी है, बल्कि ऐसे खाद्य पदार्थ भी होने चाहिए जो आयरन को शरीर में अवशोषित कर सकें. ऐसे फल और सब्जियों का सेवन करें जिन में विटामिन सी की मात्रा अधिक हो. विटामिन सी शरीर को आयरन अवशोषित करने में मदद करता है. जैसे ब्रोकोली, कीवी, आम, टमाटर, संतरा, नीबू, मिर्च आदि.

इन से मिलता है आयरन

शरीर में आयरन की कमी न हो, इस के लिए जानिए खानेपीने की कुछ ऐसी चीजों के बारे में जिन्हें अपनी डेली डाइट का हिस्सा बना कर आप शरीर में आयरन की सही मात्रा बनाए रख सकती हैं:

सब्जियां: हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मेथी, बथुआ आयरन के अच्छे स्रोत हैं. इन के अलावा बींस, इमली, मटर, फलियां, ब्रोकली, टमाटर, मशरूम, चुकंदर का सेवन भी आयरन की कमी को पूरा कर सकता है.

फल और ड्राई फ्रूट्स: अपनी डेली डाइट में मौसमी फलों को जरूर शामिल करें. तरबूज, अंगूर, केला, बादाम, खूबानी, किशमिश, काजू, खजूर जैसे फलों में आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है.

अन्य खाद्यपदार्थ: फलों और सब्जियों के अलावा कुछ ऐसे भी खाद्यपदार्थ हैं जो आयरन के अच्छे स्रोत हैं. लाल मांस, चिकन, साबूत अनाज (सोयाबीन और काबुली चने), ब्रैड, अंडे, मूंगफली, टूना मछली, गुड़, कद्दू के बीज इत्यादि से आयरन की कमी को पूरा किया जा सकता है.

आयरन सप्लीमैंट्स: शरीर में आयरन की ज्यादा कमी हो तो डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लीमैंट्स जैसे लीवोजिन आदि लेना काफी फायदेमंद होता है. इस का नियमित रूप से इस्तेमाल आयरन की कमी को पूरा करने के साथसाथ त्वचा को कांति भी देता है.

वजन कम करेंगे ये व्यायाम

योंतो महिलाएं हर तरह का वर्कआउट कर सकती हैं और करती भी हैं जैसे ऐरोबिक्स, बौडी बिल्डिंग, स्ट्रैंथ टे्रेनिंग, किकबौक्सिंग, जुंबा, टबाटा वर्कआउट आदि. लेकिन ये सभी वर्कआउट उम्र, बौडी टाइप, हैल्थ इशू, बौडी की नीड को ध्यान में रख कर ही और ऐक्सपर्ट की देखरेख में किए जाने चाहिए.

यहां हम कुछ ऐसे वर्कआउट्स के बारे में बता रहे हैं जो महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद हैं:

कार्डिओ वर्कआउट: कार्डिओ फायदेमंद है. यह वेट लौस करने में काफी मददगार है. इस से तनाव कम होता है. वर्कआउट से फेफड़ों तक औक्सीजन पहुंचने में मदद मिलती है, रक्तसंचार सही होता है, दिल मजबूत और ब्लड भी प्यूरिफाई होता है. कार्डियो वर्कआउट वजन को कम कर के बौडी में जमा अतिरिक्त फैट को कम करता है और बीमारियों से बचाता है. अलगअलग तरह के कार्डिओ वर्कआउट से आप खुद को फिट रख सकती हैं.

ऐरोबिक्स: ऐरोबिक्स आप कभी भी कहीं भी एक छोटी सी जगह पर कर सकते हैं. इस में अपनी पसंद के म्यूजिक पर कुछ स्टैप्स किए जाते हैं. ग्रेपवाइन लेग कर्ल जंपिंग जैक्स जैसे मूव्स से पूरे शरीर का वजन घटता है. पसीने के जरीए बौडी से टौक्सिन निकलना ही फैट और बीमारियों को दूर करता है. सिर्फ पसीना निकलना ही जरूरी नहीं, कड़ी मेहनत भी जरूरी है. ऐरोबिक्स वर्कआउट में आप के हार्ट रेट को लो से हाई ले जा कर एक स्तर पर मैंटैन किया जाता है, जो वेट लौस में मदद करता है.

स्ट्रैंथ वर्कआउट: महिलाओं के लिए स्ट्रेंथ वर्कआउट बहुत जरूरी भी है और ट्रैंड में भी. इस से महिलाओं में औस्टियोपोरेसिस की समस्या बहुत कम होती है. बोन डैंसिटी भी बढ़ती है. इस में बाइसैप कर्ल, ट्राइसैप ऐक्सटैंशन, हैमर कर्ल, शोल्डर प्रैस, पुशअप्स, ट्राइसैप डिप्स इत्यादि महिलाओं के लिए फायदेमंद हैं.

डांस फिटनैस: फिटनैस डांस महिलाओं के लिए बहुत ही अच्छा है और आजकल तो यह ट्रैंड बनता जा रहा है. इस में आप भांगड़ा, बेली डांस इत्यादि पर अलगअलग तरीके से थिरक कर 30-50 मिनट तक वर्कआउट कर सकती हैं. मस्ती के साथसाथ वजन भी घट जाता है.

किकबौक्सिंग: किकबौक्सिंग एक तरह का कार्डिओ वर्कआउट है. इस में बहुत सारी मसल्स एकसाथ इस्तेमाल होती हैं. महिलाओं में ज्यादातर अपनी आर्म्स और लैग्स को टोन करना ही मुख्य होता है. किकबौक्सिंग वैसे तो पूरे शरीर के लिए अच्छी है लेकिन यह उस पार्ट को जल्दी टोन करती है जिस से आप अपनी मनचाही कट स्लीव्स या वनपीस ड्रैस पहन सकती हैं. इस में शरीर के ऊपरी भाग के मूवमैंट्स जैब्स, क्रौस, हुक व अपरकट्स हैं तो शरीर के निचले भाग के मूवमैंट्स में नी स्ट्राइक, फ्रंट किक, राउंडहाउस किक, साइड किक, बैक किक इत्यादि शामिल हैं.

हाई इंटैंसिटी वर्कआउट: कुछ महिलाएं अपने लिए समय नहीं निकाल पातीं जिस की वजह से वे जिम या पार्क में जा कर वर्कआउट नहीं कर पातीं. उन के लिए हाई इंटैंसिटी वर्कआउट बढि़या विकल्प है. यह बाकी वर्कआउट्स से थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन इस से कम समय में ज्यादा वजन कम किया जा सकता है. यह मैटाबौलिज्म को तेजी से बढ़ाता है. इस वर्कआउट में कुछ हाई इंटैंसिटी ऐक्सरसाइज का चुनाव कर के उन्हें क्रम में लगा कर सैट्स में किया जाता है जैसे, जंप, स्विंग, ऐअर पुशअप्स, रौक क्लाइम्बिंग स्टार जंप, जंप हाईनीज को मिला कर 1 सैट करने के बाद इन सभी के 3 सैट या 5 सैट किए जाते हैं. हर ऐक्सरसाइज को मिनटों में या सैकंड्स के हिसाब से किया जाता है. वेट लौस और बौडी टोनिंग के लिहाज से कम समय में ज्यादा से ज्यादा वजन कम करने के लिए यह अच्छा वर्कआउट है.

स्टैपर वर्कआउट: यह भी एक अच्छा विकल्प है. एक बौक्स या सीढ़ी का इस्तेमाल कर इस वर्कआउट को कर सकती हैं. स्टैमिना बढ़ाने में यह काफी मददगार है.

ऐब्स वर्कआउट: इस में आप लैग रेज, स्क्वाट्स, क्रंचेज इत्यादि कर सकती हैं. इस से पेट, कमर व टांगों की चरबी घटेगी. महिलाओं में ज्यादातर पेट, कमर और लैग्स की चरबी ज्यादा होती है.

महिलाओं के लिए प्लैंक, सूमो स्क्वाट्स, बैक लैग किकिंग, वुड चौपर, रशियन क्रंच, प्लैंक, लैग फ्लटर इत्यादि व्यायाम बढि़या विकल्प हैं.

नाश्ते से शांत होती है ब्रेन की भूख

अमृतसर से अमेरिका तक का सफर कुछ कर गुजरने का जनून लिए तय करने वाले शैफ विकास खन्ना आज सैलिब्रिटी शैफ के रूप में दुनियाभर में जाने जाते हैं. खानपान पर कई किताबें लिखने के अलावा कई टीवी शोज में भी वे अपनी प्रतिभा का जादू दिखा चुके हैं. इतनी शोहरत और कामयाबी के बाद भी अपनी विनम्रता से वे मिलने वालों को अपना कायल बना लेते हैं. क्विकर ओट्स इवेंट पर उन से हैल्दी ब्रेकफास्ट और उन के जीवन से जुड़ी घटनाओं पर चर्चा हुई. पेश हैं, उसी चर्चा के कुछ खास अंश:

फिटनैस के लिए ब्रेकफास्ट कितना अहम है?

फिटनैस के 2 पहलू हैं- पहला फूड और दूसरा डिसिप्लिन, पहले घर के बड़ेबुजुर्ग कभी सूर्य डूबने के बाद खाना नहीं खाते थे. लेकिन अब सब बदल गया है. लोगों की दिनचर्या बदली है, खाने का अंदाज बदला है. आज खाने का कोई समय नहीं है. पहले हर घर में यह नियम होता था कि घर से सुबह कोई बिना नाश्ता किए नहीं निकलता था. घर पर बनने वाला ब्रेकफास्ट भी देशी होता था. दलिया, पोहा, रागी, मल्टीग्रेन, स्प्राउट का नाश्ता हर घर में बनता था. लेकिन अब नाश्ते के माने ही बदल गए हैं. आज जरूरत ऐसे फूड को अपने ब्रेकफास्ट में शामिल करने की है जो इंस्टैंट कुकिंग के साथसाथ हैल्दी भी हो. ओट्स और कौर्नफ्लैक्स इस के लिए अच्छे औप्शन हैं जिन्हें कई तरह से बना सकते हैं. आज ओट्स टिक्की से ले कर ओट्स ठंडाई, पोहा, खीर सभी बना सकते हैं. मतलब आप 30 दिन रोज बदलबदल कर हैल्दी ब्रेकफास्ट का स्वाद ले सकते हैं.

क्यों जरूरी है ब्रेकफास्ट?

इस का भूख से तो संबंध है ही साइंटिफिक कारण भी है. जब हम बिना नाश्ता किए काम पर जाते हैं तो पूरा समय हमारे दिमाग में एक ही बात रहती है कि पेट में कुछ नहीं हैं. यही सोचसोच कर काम में मन नहीं लगा पाते, क्योंकि रिसर्च बताती है कि नाश्ता करने से पेट से ज्यादा ब्रेन की भूख शांत होती है या कह सकते हैं पेट नहीं हमारा ब्रेन फूड खाता है. मेरे दादाजी बिना किसी बीमारी के 93 साल तक जिंदा रहे. इस का राज उन का ब्रेकफास्ट था जिसे उन्होंने कभी मिस नहीं किया.

लोग आजकल मोटे अनाज का उपयोग जम कर कर रहे हैं, यह कितना फायदेमंद है?

पहले ज्वार, बाजरा, ओट्स हर मोटे अनाज को गरीबों का खाना माना जाता था. इस में फाइबर और प्रोटीन भरा होता है. मेहनत करने वाले किसानों और मजदूरों को इस से ताकत मिलती है. मोटा होने के कारण यह स्वाद में अच्छा नहीं होता और फिर पीसने में भी ज्यादा मेहनत लगती, इसलिए बड़े आदमी गेहूं, चावल को अपनी डाइट में शामिल करते थे. लेकिन अब ट्रैंड बदल गया है. मीडिया की वजह से लोगों में जागरूकता आई है. लोग जानने लगे हैं कि जिस अनाज को वे गरीबों का खाना मानते थे वह कितना पौष्टिक और रोगों से बचाने वाला है.

पापा के साथ कैसी बौंडिंग थी?

पापा पापा तो थे ही, साथ में एक बड़े भाई भी थे. मैं जो भी करता उन से पूछ कर ही करता था. वे मुझे शैफ नहीं आर्टिस्ट मानते थे. वे हर समय मेरे पीछे खड़े रहते थे. इस का एहसास मुझे तब हुआ जब वे हम लोगों को छोड़ कर चले गए. मैं पापा से हर तरह की बातचीत कर लिया करता था. जब मैं ने शैफ बनने की बात पापा को बताई तब वे बहुत खुश हुए.

शुरुआत कैसे हुई?

मैं जब 14 साल का था तब किटी पार्टी से काम शुरू किया था. पहली पार्टी के वे क्षण मुझे आज भी याद हैं. जब आंटियों ने मेरे खाने की खूब तारीफ की थी और मैं ने इसी उत्साह में उन से पैसे नहीं लिए. इस पर मेरे पापा ने गुस्से में पूछा था कि यह कौन सा बिजनैस है, जिस में तू पैसे नहीं लेता? मैं ने शुरुआती संघर्ष में सप्लाई करने से ले कर स्वैटर बनाने और बरतन धोने तक का काम किया.

अमेरिका में कैसे पहचान बनाई?

एक वक्त था जब यूएस में इंडियन ऐक्सैंट का मजाक उड़ाया जाता था. मैं एक होटल में काम करता था.उस का मालिक मुझे हर तरह से नीचा दिखाता था. वह कहता था कि मैं किसी काम का नहीं हूं. वह मुझे हमेशा डराता था और मेरे बोलने के लहजे का मजाक उड़ाता था. तब मैं वहां से भाग निकला और जान गया कि मेरा संघर्ष इतना आसान नहीं है.

-विकास खन्ना, सैलिब्रिटी शैफ ऐंड राइटर

चिया सीड्स हैं गुड फौर हैल्थ

ओमेगा 3 फैटी ऐसिड, फाइबर, प्रोटीन, ऐंटीऔक्सिडैंट और कैल्सियम से भरपूर चिया सीड्स का वैज्ञानिक नाम ‘साल्विया हिस्पैनिका’ है. इसी की खेती सब से पहले मैक्सिको में की गई थी. अक्सर चिया सीड्स और तुलसी के बीजों को ले कर लोगों में उलझन दिखाई देती है, क्योंकि दोनों काफी हद तक एक जैसे दिखाई देते हैं. लेकिन हैं ये दोनों पूरी तरह अलगअलग और इन के गुण भी अलगअलग हैं. चिया सीड्स का स्वाद हलका और काफी हद तक अखरोट जैसा होता है, जिस कारण इन्हें खाद्य पदार्थों और पेयपदार्थों में मिलाना आसान हो जाता है.

हाल ही में एक अध्ययन द्वारा पता चला है कि चिया के बीजों के काफी लाभ हैं. मसलन वजन कम करने में सहायक है. 1 गिलास पानी में 2 चम्मच कच्चे या साबूत चिया सीड्स को फूलने से पहले ही मिला कर पीएं. ये तृप्ति को बढ़ाते हैं जिस से वजन धीरेधीरे कम होने लगता है.

हृदय रोगी के लिए लाभदायक: चिया सीड्स में मानव शरीर में जमा ऐक्स्ट्रा वसा या सूजन को कम करने की क्षमता होती है. इन का सेवन कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित करता है जिस से निम्न रक्तचाप या लो ब्लडप्रैशर के मरीज को बहुत फायदा होता है.

शुगर पर नियंत्रण: ‘नैशनल इंस्टिट्यूट औफ हैल्थ’ के अनुसार चिया बीज की उच्च फाइबर सामग्री और फैट के कारण प्राकृतिक रूप से रक्त शर्करा नियंत्रित होती है. चिया सीड्स रक्त में अत्यधिक वसा और इंसुलिन प्रतिरोध जैसे विकारों को रोकने में मदद करते हैं, जो मधमुह के विशेष कारक होते हैं. यानी चिया सीड्स मधुमेह को रोकने में सक्षम होते हैं.

कैंसर उपचार के लिए लाभकारी: चिया सीड्स स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसर के कीटाणुओं के सफाए के लिए काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं. इन के तेल में भी कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने वाले गुण पाए जाते हैं. ये ट्यूमर के विकास को कम करने और कैंसर कोशिकाओं की प्रतिकृति को रोकने में मदद करते हैं.

त्वचा की कांति बढ़ाते हैं: चिया सीड्स में प्रोटीन, आयरन और विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. ये पोषक तत्त्व त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखने में मदद करते हैं. इन का नियमित सेवन बालों की झड़ने की समस्या से राहत दिलाता है. इन में मौजूद ओमेगा 3 फैटी ऐसिड ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है और त्वचा के रूखेपन को समाप्त करता है. चिया सीड्स जिंक का अच्छा स्रोत हैं. ये त्वचा को नरम बनाते हैं. बढ़ती उम्र के संकेतों को रोकने के लिए चिया सीड्स का सेवन करना बहुत अच्छा माना जाता है.

अनिद्रा और मूड स्विंग्स में सुधार: चिया सीड्स में अमीनो ऐसिड अच्छी मात्रा में होता है, इसलिए ये मूड स्विंग और अनिद्रा रोग से राहत दिलाते हैं. इन का सेवन करने से मानसिक अवसाद का सामना करने में मदद मिलती है.

चिया सीड्स का प्रयोग कैसे करें: चूंकि चिया सीड्स हाइड्रोफिलिक हैं. ये शरीर के पानी को अवशोषित करने का प्रयास करते हैं, इसलिए इन्हें पानी में भिगो कर प्रयोग करने की सलाह दी जाती है.

चिया सीड्स को पाउडर बना कर आटे में गूंध कर, सलाद के ऊपर बुरक कर और दही या दूध में मिला कर प्रयोग में लाया जा सकता है.

चिया सीड्स के नुकसान

वैसे तो चिया सीड्स के नुकसान बहुत कम हैं फिर भी, प्रौस्टेट कैंसर के साथ किए गए अध्ययन से पता चलता है कि ये प्रौस्टेट कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं.

चिया सीड्स से कभीकभी, अधिक फाइबर सामग्री होने के कारण पेट की परेशानी हो सकती है, इसलिए इन का सेवन अत्यअधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए.

इन का अधिक मात्रा में सेवन करने पर ऐलर्जी हो सकती है. इस ऐलर्जी में शरीर पर निशान, सांस लेने में दिक्कत, उलटियां, सूजन आदि समस्याएं हो सकती हैं.

ओमेगा 3 फैटी ऐसिड नैचुरल ब्लड थिनर के रूप में कार्य करता है. यदि आप पहले से ही ब्लड थिनर की दवा ले रहे हैं तो चिया सीड्स के सेवन से बचें.

हो जाए 2 प्याली चाय

गरमगरम चाय की चुसकियों में सेहत भी घुलमिल जाए कुछ ऐसे तो कहने ही क्या…

‘चाय की चुसकियों के साथ

आओ बांट लें फुरसत के पल,

दोस्ती की महक और अपनेपन

की सौंधी रंगत के पल.’

कोई अपना घर आए तो उस की खातिरदारी का बहाना हो या कभी बारिश की बूंदें पड़ें तो पकौड़ों के साथ पीने का बहाना या फिर शरीर की थकान दूर कर ताजगी का एहसास जगाने का बहाना, चाय पीने की वजह ढूंढ़नी नहीं पड़ती. कभी भी कहीं भी चंद खूबसूरत लमहों की साथी बन जाती है चाय की प्याली. तभी तो ढाबा हो या बड़ेबड़े रैस्टोरैंट, चाय हर जगह मौजूद होती है. बस इसे बनाने के तरीके अलगअलग हो सकते हैं. चीन में इसे वैलकम ड्रिंक का नाम दिया जाता है तो जापान में मेहमानों के आने पर ‘टी सेरेमनी’ होती है.

चाय का इतिहास

चाय का इतिहास काफी पुराना है. सब से पहले चीन में चाय पीने की शुरुआत हुई. बाद में छठी शताब्दी में चीन से चाय जापान पहुंची. वहां इसे काफी पसंद किया गया. एशिया में चाय का आगमन 19वीं सदी में हुआ. आज भारत चाय का सब से बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है.

चाय के फायदे

चाय दिल को तंदुरुस्त रखती है. यह ऐंटी इंफ्लैमैटरी, ऐंटी बैक्टीरियल और ऐंटी डायबिटिक जैसे गुणों से पूर्ण है. दांतों के लिए भी अच्छी है. चाय में पोटैशियम सहित अनेक खनिज पदार्थ मौजूद होते हैं. चाय में मौजूद कैटेचिन, पौलीफिनोल और ऐंटीऔक्सिडैंट्स इसे सेहतमंद बनाते हैं. भारत में चाय उत्तर भारत में कौसानी, दक्षिण में नीलगिरी के पठारी क्षेत्र, उत्तरपूर्व में दार्जिलिंग और असम व दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में प्रमुखता से उगाई जाती है.

ब्लैक टी

ब्लैक टी फुल औक्सीडेशन की प्रक्रिया से निर्मित होती है. इस में कैफीन की मात्रा 50 से 65% तक होती है. ब्लैक टी चाय की सब से कौमन वैराइटी है और पूरी दुनिया में करीब 75% लोग इस का उपयोग करते हैं. इस में दूध नहीं डाला जाता और चीनी भी जरूरी नहीं होती.

फायदे

यह हृदयरोग के खतरे को कम करने में सहायक होती है. डायबिटीज के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है. ब्लैक टी रोमछिद्रों में कसावट लाती है और लाल रक्त कणिकाओं की रक्षा करती है.

ओलोंग टी

चीनी भाषा में ओलोंग का अर्थ होता है ब्लैक ड्रैगन. इस में कैफीन कंटैंट की मात्रा ग्रीन टी और ब्लैक टी के बीच में होती है. इस की अपनी अलग खुशबू होती है. वैसे तो यह ब्लैक टी जैसी ही है पर इस का फर्मैंटेशन कम समय तक किया जाता है जिस की वजह से इस का स्वाद काफी अच्छा होता है. इस के 1 कप में कैफीन की मात्रा 30 मिलीग्राम तक होती है.

फायदे

यह वजन कम करने में सहायक है. फैट कम करती है. त्वचा पर उम्र के प्रभाव को रोकती है. कैंसर और हृदयरोग से बचाव करती है.

ग्रीन टी

ग्रीन टी में केवल 10 से 30% तक कैफीन होती है. इस में स्वाद के लिए नीबू, पुदीना या शहद मिलाया जा सकता है मगर चीनी नहीं डाली जाती.

फायदे

कैटेचिन नाम के ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर यह चाय आप को कैंसर से ले कर दिल के रोग सब से बचाती है. एक अध्ययन के मुताबिक रोजना 1 कप ग्रीन टी कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का खतरा 10% तक कम करती है. मोटापा कम करना हो तो दिन में 3 कप ग्रीन टी जरूर पीएं. चीन और जापान के अधिकतर लोग ग्रीन टी पीते हैं इसलिए वहां दिल के रोग या कैंसर के मामले कम देखने में आते हैं.

मसाला टी

मसाले वाली चाय कालीमिर्च, लौंग, इलायची, दालचीनी आदि को पीस कर बनाई जाती है. इस में मसाला पहले से तैयार रखा जाता है. जब भी चाय बनती है तो तैयार मसाले में से थोड़ा मसाला कप में डाल दिया जाता है. इस से मसाले में मौजूद सभी फ्लैवर और गुण चाय में मिल जाते हैं. यह बहुत स्वादिष्ठ चाय होती है.

व्हाइट टी

व्हाइट टी काफी माइल्ड फ्लैवर वाली होती है. इस का स्वाद भी शानदार होता है. इस के 1 कप में केवल 15 मिलीग्राम तक कैफीन मौजूद होती है.

फायदे

यह कार्डियोवैस्कुलर डिजीज से बचाती है और कैंसर से लड़ने में भी मददगार है. एलडीएल कौलैस्ट्रौल घटाने में मदद करती है.

हर्बल टी

हर्बल टी वस्तुत: कुछ ड्राईफ्रूट्स और हर्ब्स का कौंबिनेशन है. इस में कैफीन नहीं होती है और चीनी भी जरूरी नहीं होती. इस में अलग ही खुशबू और स्वाद होता है.

फायदे

जर्नल औफ न्यूट्रिशन में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक रोजाना 2 से 3 कप हर्बल टी का सेवन हाइपरटैंशन के मरीजों में ब्लडप्रैशर नियंत्रित रखने में मदद करता है.

लैमन टी

लैमन टी भी फैशन में है. इस में चीनी या शहद, पुदीना, सौंठ या पाउडर, कालानमक आदि जो भी पंसद है मिला कर पीया जाता है. यह चाय बहुत फायदेमंद है. इस से नींबू से होने वाले लाभ मिलते हैं.

क्या है एओर्टिक स्टेनोसिस

डायबिटीज रोगी 77 साल के बिपिन चंद्रा की जिंदगी अब थोड़ी सुकूनभरी है लेकिन साल 2014 में उन की स्थिति काफी तकलीफदेह हो गई थी. किडनी की बीमारी से जूझ रहे बिपिन चंद्रा की बाईपास सर्जरी हो चुकी थी. उम्र के इस पड़ाव में उन का चलनाफिरना या काम करना मुश्किल हो गया था. थोड़ा चलने पर ही वे हांफने लगते. उन की बढ़ती समस्या को देखते हुए डाक्टर से परामर्श लिया गया.

डाक्टर ने उन के कुछ टैस्ट किए जिन में एमएससीटी (इस तकनीक में हृदय और वैसल्स की 3डी इमेज बनाने के लिए एक्सरे बीम तथा लिक्विड डाई का इस्तेमाल किया जाता है) भी शामिल है. टैस्ट के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीररूप से एओर्टिक स्टेनोसिस से पीडि़त थे. बिपिन चंद्रा की सर्जरी हुए 2 साल हो गए हैं और अब वे बेहतरीन जिंदगी जी रहे हैं.

एओर्टिक स्टेनोसिस क्या है?

जब हृदय पंप करता है तो दिल के वौल्व खुल जाते हैं जिस से रक्त आगे जाता है और हृदय की धड़कनों के बीच तुरंत ही वे बंद हो जाते हैं ताकि रक्त पीछे की तरफ वापस न आ सके. एओर्टिक वौल्व रक्त को बाएं लोअर चैंबर (बायां वैंट्रिकल) से एओर्टिक में जाने के निर्देश देते हैं.

एओर्टिक मुख्य रक्तवाहिका है जो बाएं लोअर चैंबर से निकल कर शरीर के बाकी हिस्सों में जाती है. अगर सामान्य प्रवाह में व्यवधान पड़ जाए तो हृदय प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता. गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस यानी एएस में एओर्टिक वौल्व ठीक से खुल नहीं पाते.

मेदांता अस्पताल के कार्डियोलौजिस्ट डा. प्रवीण चंद्रा कहते हैं कि गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस की स्थिति में आप के हृदय को शरीर में रक्त पहुंचाने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है. समय के साथ इस वजह से दिल कमजोर हो जाता है. यह पूरे शरीर को प्रभावित करता है और इस वजह से सामान्य गतिविधियां करने में दिक्कत होती है. जटिल एएस बहुत गंभीर समस्या है. अगर इस का इलाज न किया जाए तो इस से जिंदगी को खतरा हो सकता है. यह हार्ट फेल्योर व अचानक कार्डिएक मृत्यु का कारण बन सकता है.

लक्षण पहचानें

एओर्टिक स्टेनोसिस के कई मामलों में लक्षण तब तक नजर नहीं आते जब तक रक्त का प्रवाह तेजी से गिरने नहीं लगता. इसलिए यह बीमारी काफी खतरनाक है. हालांकि यह बेहतर रहता है कि बुजुर्गों में सामने आने वाले विशिष्ट लक्षणों पर खासतौर से नजर रखनी चाहिए. ये लक्षण छाती में दर्द, दबाव या जकड़न, सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, कार्य करने में स्तर गिरना, घबराहट या भारीपन महसूस होना और तेज या धीमी दिल की धड़कन होना हैं.

बुजुर्ग लोगों को एओर्टिक स्टेनोसिस का बहुत रिस्क रहता है क्योंकि इस का काफी समय तक शुरुआती लक्षण नहीं दिखता. जब तक लक्षण, जैसे कि छाती में दर्द या तकलीफ, बेहोशी या सांस लेने में तकलीफ, विकसित होने लगते हैं तब तक मरीज की जीने की उम्र सीमित हो जाती है. ऐसी स्थिति में इस का इलाज सिर्फ वौल्व का रिप्लेसमैंट करना ही बचता है. हाल ही में विकसित ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) तकनीक की मदद से गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों का इलाज प्रभावी तरीके से किया जा सकता है जिन की सर्जरी करने में बहुत ज्यादा जोखिम होता है.

एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट

टीएवीआर से उन एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों को बहुत लाभ मिलेगा जिन्हें ओपन हार्ट सर्जरी करने के लिए अनफिट माना गया है. इस उपचार की सलाह उन मरीजों को दी जाती है जिन का औपरेशन रिस्कभरा होता है. इस से उन के जीने और कार्यक्षमता में बहुत सुधार होता है.

गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस में जान जाने का खतरा रहता है और अधिकतर मामलों में सर्जरी की ही जरूरत पड़ती है. कुछ सालों तक इस बीमारी का इलाज ओपन हार्ट सर्जरी ही थी. लेकिन टीएवीआर के आने से अब काफी बदलाव हो रहे हैं. टीएवीआर मिनिमल इंवेसिव सर्जिकल रिप्लेसमैंट प्रक्रिया है जो गंभीर रूप से पीडि़त एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों और ओपन हार्ट सर्जरी के लिए रिस्की माने जाने वाले रोगियों के लिए उपलब्ध है. इस के अलावा जो रोगी कई तरह की बीमारियों से घिरे हुए हैं, उन के लिए भी यह काफी प्रभावी और सुरक्षित प्रक्रिया है.

टीएवीआर ने दी नई जिंदगी

देहरादून के 53 साल के संजीव कुमार का वजन 140 किलो था और वे हाइपरटैंशन व डायबिटीज से पीडि़त थे. इस के साथ उन्हें अनस्टेबल एंजाइना की समस्या थी जिस में रोगी को अचानक छाती में दर्द होता है और अकसर यह दर्द आराम करते समय महसूस होता है.

संजीव को कई और बीमारियां जैसे कि नौन क्रीटिकल क्रोनोरी आर्टरी बीमारी (सीएडी), औबस्ट्रैक्टिव स्लीप अपनिया (सोते समय सांस लेने में तकलीफ), उच्च रक्तचाप, क्रोनिक वीनस इनसफिशिएंसी (बाएं पैर), ग्रेड 2 फैटी लीवर (कमजोर लीवर), हर्निया और गंभीर एलवी डायफंक्शन के साथ खराब इंजैक्शन फ्रैक्शन 25 फीसदी (हृदय के पंपिग करने की कार्यक्षमता) थीं.

संजीव की स्थिति दिनबदिन गंभीर होती जा रही थी और उन का पल्स रेट 98 प्रति मिनट (सामान्य से काफी ज्यादा) था. सीटी स्कैन और अन्य परीक्षणों के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से भी पीडि़त थे.

इतनी बीमारियों के कारण डाक्टर ने मोेटापे से ग्रस्त संजीव का इलाज ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) से किया. हालांकि जब फरवरी 2016 में उन पर यह प्रक्रिया अपनाई गई, तब तक वे 25-30 किलो वजन कम कर चुके थे और जिंदगी को ले कर उन का नजरिया काफी सकारात्मक हो गया था.

समय पर चैकअप जरूरी

गौरतलब है कि एएस की बीमारी आमतौर पर जब तक गंभीर रूप नहीं ले लेती तब तक इस बीमारी के लक्षणों का पता नहीं चलता. इसलिए नियमित चैकअप कराने की सलाह दी जाती है. उम्र बढ़ने के साथ एएस के मामले भी बढ़ते जाते हैं. इसलिए बुजुर्ग रोगियों को वौल्व फंक्शन टैस्ट के बारे में डाक्टर से पूछना चाहिए और गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस के इलाज की आधुनिक तकनीकों की जानकारी भी लेते रहना चाहिए.

क्या आप जानते हैं

भारत में लगभग 15 लाख लोग गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से पीडि़त हैं. उन में से 4.5 लाख रोगी सर्जरी के लिए अनफिट हैं.

अगर समय पर एओर्टिक वौल्व रिप्लेस न किए जाएं तो पाया गया है कि 50 फीसदी एओर्टिक स्टेनोसिस रोगी दिल का दौरा पड़ने पर 2 साल और छाती में दर्द के साथ 5 साल तक ही जीवित रह पाते हैं.

अनियमित मासिकधर्म का गर्भावस्था पर असर

असामान्य मासिकधर्म न केवल आप के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि गर्भवती होने की आप की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है. अपने मासिकधर्म चक्र पर ध्यान रखने से खुद के स्वास्थ्य के बारे में बहुत कुछ पता चल सकता है.

मासिकधर्म चक्र क्या है

यदि शरीर प्राकृतिक नियमों और उन के क्रियाकलापों का पालन करता है, तो हर लड़की और महिला को पीरियड 21 से 35 दिनों के अंदर होता है. इस का साफ मतलब यह भी हो सकता है कि आप को एक कैलेंडर महीने में 2 बार पीरियड हो सकता है. प्रत्येक चक्र को 2 चरणों में विभाजित किया जा सकता है- फौलिक्यूलर फेज और ल्यूटियल फेज.

आप के पीरियड का पहला दिन आप के चक्र का पहला दिन है और फौलिक्यूलर फेज की शुरुआत को चिन्हित करता है, जिस के दौरान मस्तिष्क के उत्तेजित हारमोन (एफएसएच), जोकि फीमेल सैक्स हारमोन है, मस्तिष्क से निकलता है ताकि एक प्रमुख फौलिकल (कूप) जिस में एक अंडाणु होता है उस के विकास को प्रोत्साहित कर सके. चूंकि अंडाणु परिपक्व होता है, फौलिकल गर्भाशय के स्तर की वृद्धि को उत्तेजित करने के लिए ऐस्ट्रोजन को निर्गत करता है.

दूसरे चरण की शुरुआत ओव्युलेशन की शुरुआत के साथ होती है जो ल्यूटियल फेज की शुरुआत को चिन्हित करता है. इस फेज के दौरान अंडाशय गर्भाशय की परत को परिपक्व करने के लिए प्रोजेस्टेरौन को निर्गत करता है और इसे भ्रूण के प्रत्यारोपण के लिए तैयार करता है. अगर गर्भावस्था अस्तित्व में नहीं आती है, तो प्रोजेस्टेरौन का स्तर गिरता है और रक्तस्राव 14 दिनों के अंदर होता है जब ल्यूटियल फेज समाप्त हो जाता है.

21 से 35 दिनों का सामान्य मासिकचक्र यह दर्शाता है कि ओव्युलेशन अस्तित्व में आया और सभी यौन हारमोन प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने के लिए संतुलित हैं. 35 दिनों या इस से अधिक समय तक जारी लंबे या अनियमित मासिकधर्म चक्र से यह संकेत मिलता है कि ओव्युलेशन नियमित नहीं है या यह अस्तित्व में ही नहीं आ रहा है. ऐसा तब होता है जब एक फौलिकल परिपक्व और अंडाकार नहीं होता है और प्रोजेस्टेरौन को निर्गत करने की अनुमति नहीं देता है.

गर्भाशय की परत ऐस्ट्रोजन के कारण निर्माण जारी रखती है और इतनी मोटी हो जाती है कि यह अस्थिर हो जाती है और अंत में इस की वजह से रक्तस्राव होता है. अकसर भारी रक्तस्राव होता है.

एक छोटा मासिकधर्म चक्र 21 दिनों से कम समय में होता है जो इंगित करता है कि ओव्युलेशन बिलकुल अस्तित्व में नहीं आया. यह यह भी संकेत दे सकता है कि आप के अंडाशय में सामान्य से कम अंडाणु पैदा हो रहे हैं और रजोनिवृत्ति समीप आने वाली है. इस की पुष्टि करने के लिए आप को खून की जांच करने की जरूरत होती है. अंडाशय में अंडाणुओं की घटती संख्या के साथ मस्तिष्क एक फौलिकल विकसित करने के लिए अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए अधिक एफएसएच निर्गत करता है. इस का परिणाम समय से पहले फौलिकल और ओव्युलेशन के विकास में होता है. इस के अलावा कभीकभी रक्तस्राव तब भी हो सकता है जब आप छोटे मासिकचक्र की वजह से ओव्युलेट की स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाती हैं.

यदि आप को रक्तस्राव 5 से 7 दिनों से अधिक समय तक हो रहा है, जिस के परिणामस्वरूप सिलसिलेवार तरीके से यह दर्शाता है कि आप को ओव्युलेशन प्राप्त नहीं हुआ है. यदि आप को इस से अधिक समय तक या फिर पीरियड के बीच में रक्तस्राव होता है, तो यह गर्भाशय या गर्भाशय के भीतर संभावित पौलिप्स, फाइब्रौयड, कैंसर या फिर संक्रमण के कारण हो सकता है. यदि भू्रण इस समय गर्भाशय में प्रवेश करता है, तो गर्भधारण कर पाने में अक्षमता या गर्भपात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

छोटा मासिकचक्र

छोटा मासिकचक्र निम्नलिखित में से किसी एक को इंगित कर सकता है:

अंडाणु की खराब गुणवत्ता: छोटा चक्र विशेषरूप से उम्रदराज महिलाओं में डिंबग्रंथि की गुणवत्ता में कमी को दर्शाता है. आप का मासिकधर्म चक्र उम्र के साथ घटता जाता है. खासतौर से पहले भाग के समय जिस के दौरान अंडाणु परिपक्व होता है और ओव्युलेशन के लिए तैयार होता है. एक अविकसित अंडाणु पूरी तरह परिपक्व नहीं हो सकता है और इस की वजह से गर्भाधान की स्थिति कमजोर हो सकती है.

गर्भपात का जोखिम: छोटे मासिकधर्म चक्र वाली महिलाओं की तुलना में 30 से 31 दिनों के मासिकधर्म चक्र वाली महिलाओं में गर्भधारण करने की अत्यधिक संभावना होती है. जिन महिलाओं का मासिकधर्म छोटा होता है वे गर्भधारण तो कर लेती हैं, लेकिन उन में गर्भावस्था के नुकसान या फिर गर्भपात होने की संभावना अधिक रहती है. यदि ल्यूटियल फेज छोटा होता है, तो गर्भावस्था के अवसर को बढ़ाने वाली स्थिति के लिए छोटी जगह ही मिलती है.

 

ऐसे आएगी मीठी नींद

दिन भर का थका इंसान जब रात में बिस्तर पर लेटता है, तो उस की ख्वाहिश होती है सुकून भरी मीठी नींद की. गहरी और आरामदायक नींद दिन भर की थकान दूर कर शरीर में नई ताजगी भर देती है.

एक तंदुरुस्त इंसान के लिए 5-6 घंटे की नींद काफी है, जबकि छोटे बच्चों के लिए  10-12 घंटे की नींद जरूरी होती है. बुजुर्गों के लिए 4-5 घंटे की नींद भी काफी है.

रात में अच्छी नींद न आने से कई तरह की शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आंखों के नीचे काले घेरे, खर्राटे, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी, निर्णय लेने में दिक्कत, पेट की गड़बड़ी, उदासी, थकान जैसी परेशानियां सिर उठा सकती हैं.

नींद न आने के कारण

  • नींद न आने के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे चिंता, तनाव, निराशा, रोजगार से जुड़ी परेशानियां, मानसिक और भावनात्मक असुरक्षा वगैरह.
  • इस के अलावा तय समय पर न सोना, चाय या कौफी का ज्यादा सेवन, कोई तकलीफ या बीमारी, देर से खाना या भूखा सो जाना, देर रात तक टीवी, इंटरनैट और मोबाइल फोन से चिपके रहना, दिन भर कोई काम न करना आदि कारण भी अनिद्रा की वजह बन सकते हैं.

कैसे आएगी मीठी नींद

  • जिन्हें दिन में बारबार चाय या कौफी पीने की आदत होती है वे रात में जल्दी नहीं सो पाते. चाय या कौफी में मौजूद कैफीन नींद में बाधा पैदा करती है, इसलिए खास कर सोने से तुरंत पहले इन का सेवन कतई नहीं करना चाहिए.
  • अगर आप दिमागी रूप से किसी बात को ले कर परेशान हैं और कोई फैसला नहीं कर पा रहे हैं, तो आप की नींद डिस्टर्ब हो सकती है. ऐसे में आप को उस बारे में सोचना छोड़ना होगा. अच्छी नींद के लिए दिमाग का शांत होना बहुत जरूरी है.
  • यदि आप सोने का प्रयास कर रहे हैं पर नींद नहीं आ रही है, तो उठ कर थोड़ी देर टीवी देखें, कोई मनपसंद किताब पढ़ें या फिर हलका संगीत सुनें, इस से आप को अच्छी नींद आएंगी.
  • सोने से पहले थोड़ी देर के लिए अपने दिमाग को किसी खास चीज पर फोकस करें. इस से मन की चंचलता कम होगी और आप को अच्छी नींद आएगी.
  • दिन में न सोएं तो रात में गहरी नींद आती है.
  • रात में सोने से पहले थोड़ी देर टहलना चाहिए. इस से हाजमा सही रहता है और नींद भी सुकूनभरी आती है. डिनर में भारी खाना नहीं लेना चाहिए.
  • खाना खाने के तुरंत बाद सोने न जाएं. सोने से 3 घंटे पहले भोजन कर लें.
  • सोने से पहले नहा लेने से भी गहरी नींद आती है.
  • सोने और जागने का समय तय रखें. रोज एक ही समय पर सोने से नींद गहरी आती है.
  • सोते समय हमेशा ढीलेढाले कपड़े पहनने चाहिए.
  • कमरे का तापमान ज्यादा अधिक ठंडा और न ज्यादा गरम रखें. वरना बारबार नींद टूटती रहती है.
  • रात को सोने से पहले कुनकुने दूध में हलदी मिला कर पीने से अच्छी नींद आती है.
  • सोते समय कमरे में हलकी रोशनी होनी चाहिए.
  • दिनभर औफिस में बैठ कर काम करना पड़ता है, जिस से कमर दर्द, पीठ दर्द होता है. इसलिए रोज व्यायाम जरूर करें. व्यायाम करने से दर्द दूर रहेगा और नींद भी गहरी आएगी.

इन टिप्स को आजमाने के बाद भी नींद न आने की समस्या जस की तस बनी रहे तो डाक्टर से मिलें और अनिद्रा की समस्या का इलाज कराएं.

बेहद कारगर है दूध और तुलसी के पत्ते का पेय, जानिए फायदे

कई बीमारियों के लिए दवाइयों पर निर्भर रहना ठीक नहीं होता. कई ऐसे प्राकृतिक तरीके होते हैं जिनके प्रयोग से आप अपनी कई बीमारियों का इलाज घर बैठे कर सकती हैं. इनकी खास बात है कि ये असरदार तो होते ही हैं, साथ में इनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता. कुछ ऐसी ही तुलसी के पत्तों से जुड़ी जानकारियां हम आपके लिए ला रहे हैं. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि तुलसी के पत्तों को दूध में डाल कर इस्तेमाल करने से आप किन किन रोगों का इलाज कर सकती हैं.

फ्लू

अगर आपको फ्लू हो गया हो, तो तुलसी और दुध को मिला कर पीने से आप जल्दी ठीक होंगी.

ह्रदय के लिए है लाभकारी हृदय

जिन लोगों को हृदय रोग है उनके लिए तुलसी का पत्ता और दूध किसी प्रभावशाली दवा से कम नहीं है. ऐसे मरीजों के लिए ये काफी फायदेमंद है.

तनाव में है लाभकारी

इस पेय को पीने से नर्वस सिस्टम अच्छा रहता है इससे व्यक्ति का तनाव कम होता है. डिप्रेशन के मरीजों के लिए ये महत्वपूर्ण इलाज है.

गलाए किडनी का स्‍टोन

किडनी के स्टोन में ये पेय काफी लाभकारी है. जिन्हें ये परेशानी है उन्हें तुरंत तुलसी और दूध का सेवन शुरू कर देना चाहिए. जल्दी ही फायदा दिखेगा.

कम करे कैंसर का खतरा

तुलसी में कई एंटीबायोटिक गुण होते हैं साथ ही ये एक जबरदस्त एंटीऔक्‍सीडेंट भी है. वहीं दूध में सारे अन्‍य पोषक तत्‍व होते हैं जिसकी वजह से कैंसर जैसी घातक बीमारी, शरीर के कमजोर न होने की स्थिति में पनप नहीं पाती है.

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