अभिजीत ने पलक को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, ऐसे नहीं कहते… आखिर ये तुम्हारे पिता हैं.’’ पर पलक फिर वहां नहीं रुकी, उठ कर अंदर चली गई. अभिजीत के बहुत कहने पर आशुतोष अपना सामान लाने व वहीं रहने के लिए तैयार हो गया. बाजार से लौट कर स्मिता व कविता को सारी बातें पता चलीं. स्मिता
बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए अन्य कार्यों में लग गई. आशुतोष का इस तरह आ कर रहना उसे अच्छा तो नहीं लगा, परंतु उस ने कोई मुखर विरोध भी नहीं किया. हां, अभिजीत व कविता प्रयास करते रहे कि वह पुरानी कटु स्मृतियां भुला कर नए सिरे से अपना जीवन आशुतोष के साथ आरंभ करने के लिए राजी हो जाए.
एक दिन स्मिता का मूड अच्छा देख अभिजीत ने ही बात आरंभ की, ‘‘भाभी, पलक तो शादी के बाद अपने घर चली जाएगी. आप बिलकुल अकेली रह जाएंगी.’’
‘‘हां, सो तो है. पर पलक खुश तो मैं भी खुश. वैसे भी एक न एक दिन तो उसे जाना ही है.’’
‘‘भाभी आप का दिल तो बहुत बड़ा है. मैं सोच रहा था कि यदि बीती बातें भुला कर आप पुन: भैया के साथ एक नई जिंदगी की शुरुआत करें तो…’’
‘‘ओह, तो आप अपने भैया के हिमायती बन कर आए हैं?’’
‘‘नहीं भाभी, आप मुझे गलत न समझें. अपने भाई से पहले मैं आप का छोटा भाई हूं. पर भाभी मैं आप की जिंदगी में भी खुशी देखना चाहता हूं. भैया ने गलती तो की है पर उस का अपराधबोध सदा उन के मन पर हावी रहा. इसीलिए शर्मिंदगी के कारण वे बाद में चाहते हुए भी न आ पाए.’’
‘‘तो अब क्यों आए?’’
‘‘रोनित से आप की बीमारी व औपरेशन की बात सुन कर वे खुद को रोक न सके. उन की आंखों में मैं ने आप के लिए दर्द महसूस किया है.’’
एक क्षण के लिए स्मिता चुप हो गई. समझ वह भी रही थी लेकिन विश्वास करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. पर दिल में कहीं हलकी सी खुशी महसूस हुई.
कविता उसे मनाती हुई बोली, ‘‘भैया की बातों से जो पता चला है, उस से तो यही लगता है कि रिया के साथ उन का पारिवारिक जीवन ज्यादा सुखद नहीं रहा है… यहां आप परेशान रहीं तो आराम उन्हें भी नहीं मिला… न दांपत्य सुख न संतान सुख.’’
‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ स्मिता ने चौंक कर पूछा.
‘‘अभिजीत से भैया ने काफी बातें की थीं. उन्होंने ही मुझे बताया है. फिर कुछ गलती तो रिया की भी थी. शादी से पहले उसे भी तो भैया के बारे में पूरी जांचपड़ताल करनी चाहिए थी. बाद में जब उसे अपनी मेड सर्वेंट से हकीकत पता चल ही गई थी, तब भी उस ने इस बारे में कोई बात नहीं की. शायद अपनी गृहस्थी उजड़ने के डर से स्वार्थी हो गई थी. आखिर नारी ही नारी की दुश्मन बन गई न… काश, उस ने खुद को आप की जगह रख कर सोचा होता… वह भैया पर कभी विश्वास नहीं कर पाई और आए दिन उन के बीच टकराव होता रहा. उन का दांपत्य तो चलता रहा पर कागज के फूल की तरह, जिस में विश्वास व प्यार की खुशबू थी ही नहीं.’’
‘‘हां… यह बात तो ये भी कह रहे थे,’’ स्मिता कुछ सोचती सी कह उठी.
कविता स्मिता के पास सरक आई. उस का हाथ अपने हाथों में ले कर प्यार से सहलाते हुए बोली, ‘‘दीदी, हम सचमुच बस आप को खुश देखना चाहते हैं. जब से मैं इस घर में आई हूं, आप को सदा इस घरपरिवार और पलक की चिंता में होम होते देखा है. आज आप को अपने लिए सोचना है. अपनी जिंदगी की खुशियों के लिए सोचना है. मैं आप का दर्द समझती हूं. विश्वास टूटना बहुत तकलीफदेह होता है. पर हम सब इंसान हैं, गलती इंसानों से ही होती है और माफ करने वाला कभी छोटा नहीं होता.’’ कहतेकहते कविता की आवाज भर्रा गई.
प्रत्युत्तर में स्मिता हौले से उस का हाथ दबाते हुए विचारमग्न सी बोली, ‘‘मैं सोचूंगी कविता… पर पलक को समझाना बहुत मुश्किल है. उस बेचारी ने तो कभी पिता का प्यार जाना ही नहीं.’’
‘‘वह आप मुझ पर छोड़ दीजिए, मैं उसे समझाऊंगी,’’ कविता उत्साहित होते हुए बोली, ‘‘वह वैसे भी अपने जाने के बाद होने वाले आप के अकेलेपन को ले कर काफी चिंतित है. इसीलिए वह इंडिया छोड़ कर कहीं और जाने की सोचना ही नहीं चाहती.’’
विवाह के मात्र 2-3 दिन ही बचे थे. घर में मेहमान आने आरंभ हो गए थे. कातर स्वर व झुकी आंखों से अपनी गलती स्वीकारता आशुतोष सहज ही सब की सहानुभूति पा लेता था. परिणामस्वरूप, हर कोई स्मिता को ही समझाने लगता कि चलो देर से ही सही अब तो पति लौट आया है. उसे पुरानी बातें भुला कर संबंध सुधार लेने चाहिए.
स्मिता की बुजुर्ग मौसीसास उसे समझाती हुई बोलीं, ‘‘बहू, आशुतोष लौट आया है, इसी में सब्र कर लो. अरे मर्द है, अपनी गलती भी तो मान रहा है. अब आगे की सुध लो.’’
बारबार हर तरफ से दबाव पड़ने पर आखिर एक दिन उस ने पूरे परिवार के सामने आशुतोष से ही सीधे पूछा, ‘‘आप मर्द हैं इसलिए आप की 100 गलतियां माफ हो जानी चाहिए, यही बात सब लोग मुझे समझाना चाहते हैं. क्या मुझे अतीत की सब बातें भुला देनी चाहिए?’’
‘‘हां, यही तो मैं भी कहना चाह रहा हूं. मुझे अपने किए पर अफसोस है. उस वक्त केवल पैसा और उस से हासिल हो सकने वाली हर चीज प्राप्त कर लेने की प्रवृत्ति के साथ महत्त्वाकांक्षाओं की हैवानी भूख इतनी हावी थी कि और किसी के बारे में सोचने का कभी वक्त ही नहीं मिला. बस, मशीन बन कर पैसा ही कमाता रहा पर दिली खुशी कहीं नहीं पा सका. अब मुझ से और क्या चाहती हो बताओ, मैं सब करने को तैयार हूं.’’
‘‘सिर्फ मर्द होने से आप को यह अधिकार किस ने दे दिया कि जब जो चाहें करें?
घर में अजीब सी खामोशी थी. कुछ गलत तो नहीं कह रही थी स्मिता. एक क्षण रुक कर उस ने पुन: कहना शुरू किया, ‘‘अतीत के आप के गलत आचरण के कारण हमें, मां व बाबूजी को जो मानसिक पीड़ा भोगनी पड़ी, क्या उस की क्षतिपूर्ति संभव है? हमारी जिंदगी के वे सुनहरे साल, जो तरहतरह के अवरोधों से जूझने में ही बीत गए, बेटी का मासूम बचपन, जो इस निरपराध ने पिता का प्यार औरों में ढूंढ़ते हुए बिताया, क्या कुछ भी आप लौटा सकते हैं? पतिपत्नी का संबंध, जिसे मैं अटूट समझती थी, आप ने कितनी आसानी से तोड़ दिया था. जीवन के कठिन संघर्षों के दौर में भी मैं तो अपने कर्तव्य पथ से कभी विचलित नहीं हुई… क्या मेरे सामने कभी कोई लुभावना लालच नहीं आया होगा? अब आप के प्रायश्चित्त के 2 शब्द कह देने से जिंदगी के वे अनमोल वर्ष लौट तो नहीं आएंगे. स्त्री बहन, बेटी या मां के रूप में जितनी प्रिय होती है, पत्नी के रूप में उतनी ही पराई क्यों बना दी जाती है?’’
मन का आक्रोश शब्दों की राह बन चला था. वर्षों की पीड़ा आज स्मिता दबा न सकी थी.
स्मिता के आरोपों की मार झेलता आशुतोष चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था. बीच में ही उसे शांत कराने की कोशिश करता वह बोल उठा, ‘‘मुझे अपनी गलतियों का एहसास है, स्मिता. मैं तुम सब का गुजरा वक्त तो नहीं लौटा सकता, हां यह विश्वास दिला सकता हूं कि मेरे कारण भविष्य में कभी तुम लोगों की आंखों में आंसू नहीं आएंगे…’’
‘‘पलक आप की भी बेटी है इस नाते उस का कन्यादान करने का आप को पूरा हक है. हां, स्वयं पहल कर के आप का आना मुझे अच्छा लगा पर आज आप से सिर्फ एक बात पूछूंगी. इस का उत्तर पूरी ईमानदारी से दीजिएगा.’’
सब सांस रोके स्मिता का मुंह देख रहे थे. आखिर वह क्या पूछना चाह रही थी.
तभी उस सन्नाटे को भेदती उस की आवाज उभरी, ‘‘जो कुछ आप ने मेरे साथ किया यदि वह कुछ मैं ने आप के साथ किया होता तो क्या आप मुझे माफ कर के अपना लेते?’’
स्मिता की बात समाप्त होतेहोते आशुतोष की नजरें झुक गईं. कुछ पल के बोझिल मौन के पश्चात वह धीरे से बोला, ‘‘नहीं… शायद नहीं… और अपने ही दर्पदंश से आहत थके कदमों से लौटने को मुड़ा.